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Adultery सलहज
तब मैंने मानसी से पूछा- अचानक तुम मेरे साथ इतना खुल कैसे गई हो?
इस पर उसने कहा- उस दिन तुम्हारा लंड देखने के बाद मुझे अपनी प्यास पूरी होती नजर आई. पर क्योंकि हम दोनों रिश्ते में हैं और ये प्यास बुझाना हर किसी के बस की बात नहीं है. मैं पूरी तरह संतुष्ट होना चाहती थी इसलिए मैंने सोचा कि तुम मेरा यह काम कर सकते हो शायद. इसलिए जब तुम दोनों बाजार चले गए, उसके बाद मैंने तुम्हारी बीवी से सेक्स लाइफ को लेकर सारे सवाल पूछ लिए थे. यहां तक कि तुम्हारा लंड कितना बड़ा है और तुम कितनी देर तक चुदाई कर सकते हो, यह भी जान लिया था.

अब क्योंकि औरतें चूत हाथ में लेकर नहीं घूमतीं कि जहां लंड मिले, वहीं चुदवा लो, इसी वजह से मेरी सलहज ने मुझसे चुदने का मन बना लिया था.
फिर रश्मि ने उसे पूरा बताया कि कैसे मैं उसे निचोड़ देता हूँ और फिर भी मेरा नहीं होता.
ये सब सुनकर सलहज ने अपना विचार पक्का कर लिया था.

सलहज से सारा मामला समझ लेने के बाद मैंने मुस्कुरा कर कहा- तुमने तो मेरे बारे में पता कर लिया, पर अपने बदन के बारे में तो बताया ही नहीं!
मानसी बोली- अब बताना क्यों, सीधा देख कर जो करना हो कर लेना!

तब मैंने कहा- तुम वहां हो और मैं यहां … तो ये होगा कैसे?
वह बोली- जब दिल मिल गए तो बाकी सब भी मिल जाएगा.

यह कह कर वह खिलखिला कर हंस पड़ी.
इस बीच उसने कहा- एक घंटा होने को है, दोनों के पार्ट्नर जाग ना गए हों.

फिर हम दोनों ने एक दूसरे को फोन पर ही बाइ वाली किस की और सोने चले गए.
अगले दिन जब मैं सोकर उठा तो देखा मानसी ने सिर्फ़ तौलिया पहने हुए अपनी फोटो भेजी थी, जिसमें उसके गोरे गोरे मम्मे कुछ इस तरह से दिख रहे थे कि सिर्फ़ निप्पल छुपे हुए थे बाकी ऊपर का सारा स्तन दिख रहा था.

एक तो सुबह का टाइम, ऊपर से ऐसी फोटो देख कर लंड महाराज फनफना उठे.
तब मैंने भी बाथरूम में जाकर अपने लंड की फोटो मानसी की तुरंत भेज दी.

फोटो देख कर मानसी का तुरंत रिप्लाइ आया- बाप रे, ये तो दीपेश के दुगने से भी बड़ा है!
अपने लंड की तारीफ सुन कर मेरा सीना चौड़ा हो गया.

फिर इसी तरह हमारी बात होने लगी क्योंकि दिन में उसे भी काम रहता और घर जाकर वह बात नहीं कर सकती थी.
इस वजह से हम रात को ग्यारह बजे के आस-पास से एक डेढ़ घंटे के लिए बात करते और अब ज़्यादातर फोन सेक्स ही करते.

हम दोनों ही एक दूसरे को अपने अपने न्यूड फोटो भेजते, पर अभी तक मानसी ने अपने मम्मे और चूत की फोटो साफ साफ नहीं भेजी थी.

वह हमेशा कहती कि जब मिलोगे तब जी भरके देख लेना.

इसी तरह हमें बात करते और फोटो भेजते आठ दिन हो गए थे.

एक दिन उसने बताया कि बैंक की तरफ से कोई मीटिंग है, जो दो दिन की है और मेरे शहर रायपुर से पचास किलोमीटर की दूरी पर किसी जगह पर है.
उसने यह भी कहा कि उस मीटिंग में वह अकेली आएगी यानि दीपेश नहीं आएगा.

यह सुन कर हम दोनों के तन बदन में आग लग गई और मिलने के लिए तड़पने लगे.
मानसी से मैंने मीटिंग की तारीख और समय पूछ कर एक अच्छे से होटल में कमरा बुक कर लिया.

मीटिंग आठ दिन बाद शुक्रवार और शनिवार को दोपहर दो से रात आठ नौ बजे तक होने वाली थी.
मानसी ने कहा कि वह सुबह सात बजे वाली ट्रेन से आएगी और उसे पहुंचने में एक डेढ़ घंटा लगेगा.

मैंने भी घर में ऑफिस का बहाना बना कर सोमवार सुबह तक आने का बोल दिया.

नियत तिथि को मैंने जल्दी से नहा धोकर झांटों को हटा कर लंड को मस्त चिकना बना लिया.

यही काम उस वक़्त मानसी भी अपनी मुनिया के साथ कर रही थी.

फिर मैं नाश्ता करके जल्दी अपनी कार से उस स्थान के लिए निकल पड़ा और मानसी भी ट्रेन में चल पड़ी थी.
अब बस हम दोनों की चुदाई की रेलगाड़ी चलने की देर थी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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हम दोनों अपने मिलन को लेकर काफ़ी उत्सुक थे क्योंकि मैं कार से आ रहा था और सिर्फ़ पचास किलीमीटर की ड्राइव करनी थी तो मैं जल्दी पहुंच गया.
पहले से होटल में जाकर अपने बुक किए हुए रूम को अच्छे से चैक किया कि वहां पहुंचने के बाद रूम की सर्विस को लेकर हमें कोई परेशानी हो और उसमें फालतू का वक़्त जाया न हो.

होटल में सब सैट करने के बाद मैं वापस स्टेशन आ गया.

लगभग सवा आठ बजे मानसी की ट्रेन आई.
मैंने उसे प्लॅटफॉर्म से रिसीव किया.

आज पहली बार मानसी को अपनी गर्लफ़्रेंड के तौर पर देख कर एक अलग से आनन्द की अनुभूति हो रही थी.

उसने हल्के पीले रंग का सूट पहना हुआ था, दुपट्टा एक साइड कंधे पर था एक हाथ में मोबाइल और दूसरे हाथ में सूटकेस था जिसमें उसके अगले दिन के कपड़े और जरूरी सामान था.

जब वह मेरे पास आई तो मैं इसी उधेड़बुन में था कि उससे कैसे मिलूँगा.
पर मानसी बिना कोई संकोच या किसी की परवाह किए सीधा मेरे गले लग गई और थोड़ा जोर लगाकर मुझे अपने आलिंगन में बाँध लिया.

मैंने भी तुरंत उसे अपने आगोश में लिया और बिल्कुल छोटी सी किस उसके नर्म गोरे गाल पर कर दी.

वह किस इतनी छोटी थी कि कब हुई, किसी को पता भी नहीं चला.
क्योंकि यह कोई महानगर तो है नहीं कि आप जो चाहे पब्लिक्ली करो.

मैं भी नहीं चाहता था कि कोई देखे और बात बने.
इसलिए हम दोनों वहां से निकल कर सीधा कार में आ गए.

कार में आकर हमने एक जोरदार हग किया, जिससे मानसी के दूध मेरे सीने से काफ़ी जोर से दबे हुए थे.
दो मिनट बाद हम वहां से होटल के लिए निकले.

रास्ते में मानसी काफ़ी खुश होकर खिलखिला कर बात कर रही थी.

इसी बीच मैंने उसकी पसंद पूछ कर रास्ते में मेडिकल स्टोर से दस पीस वाला एक पैकेट डार्क चॉक्लेट कंडोम का ले लिया.

फिर हमने बाहर ही हल्का सा नाश्ता किया ताकि मिलन के वक़्त होटल वाला नाश्ते या खाने को लेकर तंग ना करे.

मैं सुबह ही होटेल में चैक-इन कर चुका था इसलिए कार को पार्क करके हम लोग सीधा कमरे में चले गए.

कमरे में पहुंच कर मानसी ने अपना सामान सलीके से अलमारी में रखा और आकर मेरे सीने से लग गई.

मैंने भी उसको अपने आगोश में भर लिया.
उसके 34 साइज के दूध मेरे सीने में दबे जा रहे थे.

कुछ मिनट तक हमने सिर्फ़ एक दूसरे को महसूस किया.

फिर धीरे से उसने अपना मुँह ऊपर किया और हमारे होंठ आपस में मिलते चले गए. हम दोनों बिल्कुल आराम से किस कर रहे थे इसलिए कि हम दोनों में से किसी को जल्दबाज़ी नहीं थी.

हम दोनों हर लम्हे का पूरा मज़ा लेना चाहते थे.

दोस्तो, उसके नर्म गुलाबी होंठों को चूम कर ऐसा लग रहा था, जैसे मक्खन और शहद का मिश्रण हो.
इस दौरान हम दोनों के हाथ एक दूसरे के बदन को परस्पर सहला रहे थे.

हम दोनों एकदम चिपक कर किस कर रहे थे, इस वजह से मानसी के दूध को मसलना मेरे लिए संभव नहीं था.
मैंने उसके नितंबों को मसलना चालू कर दिया.

मानसी के नितंब ऐसे थे जैसे पानी भरे हुए दो गुब्बारे हों, एकदम नर्म.
दस मिनट बाद जब हम दोनों अलग हुए तो उसने कुछ पल इंतजार करने को कहा और अपने पति को सही सलामत पहुंचने की खबर दी.

फिर उसने अपने मैनेजर से बात करके आज के उसके काम का पूरा ब्यौरा लिया ताकि बाद में कोई तंग ना करे.

इसके बाद वह अपना सूटकेस लेकर बाथरूम में चली गई और दस मिनट के बाद एक पतली झीनी सी काले रंग की नाइटी पहन कर बाहर आई.
यह काले रंग की नाइटी उसके गोरे बदन के साथ कयामत ढा रही थी.

उसने यह नाइटी आज के इस खास मौके के लिए तीन दिन पहले ही खरीदी थी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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उस झीनी सी नाइटी के अन्दर उसने ब्रा और पैंटी पहनी हुई थी.
उसकी ब्रा पैंटी उसके तराशे हुए जिस्म को मस्त नुमाया कर रही थीं.

फिर वह बड़ी अदा के साथ मेरे पास आई.
मैं बिस्तर पर बैठा हुआ था.

उसने मुझे धकेल कर लिटा दिया और धीरे से मुझ पर चढ़ कर किस करने लगी.

हम दोनों के होंठ आपस में उलझे हुए थे और पहले किस के मुकाबले अभी हमारा किस और जोर से हो रहा था.

चुंबन के साथ साथ हम एक दूसरे को थोड़ा थोड़ा काट भी रहे थे जिससे मीठा मीठा दर्द एक अलग ही मस्ती दे रहा था.

उसके हाथ मेरे सिर में उलझे थे और मैं अपने हाथों से उसके चूतड़ और उसकी पीठ को सहला रहा था.
मानसी कभी मेरे गले को काटती तो कभी मेरे कान की लौ को चबाती … तो कभी अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल देती.

सच कहूँ तो उस वक़्त हम दोनों जन्नत की सैर कर रहे थे.

कुछ देर बाद वह मेरे ऊपर से हटी और उसने मेरी टी-शर्ट और बनियान को निकाल कर फेंक दिया.

साथ ही टीवी का रिमोट उठा कर उसे चालू करके एक म्यूजिक चैनल लगा कर उसकी आवाज को काफी तेज करते हुए बढ़ा दिया ताकि हमारी आवाजें बाहर ना जा सकें.
फिर उसने मेरे सीने पर किस करना शुरू किया और मेरे निप्पल को हल्का सा चबाते हुए लाल कर दिया.

इतना सब होने के बाद अब मेरी बारी थी.
मैंने उसे अपने नीचे लिटाया और उसके पूरे चेहरे पर अपने चुंबनों की बौछार करने लगा.

उसकी आंखें, गाल, सुराही जैसी गर्दन, कान, नाक सबको चूम चूम कर मैंने अपने प्यार से उसे सराबोर कर दिया.

उसके बाद मैंने उसकी काली नाइटी को उसकी मांसल जांघों से ऊपर करना शुरू किया और धीरे धीरे उसका पूरा गोरा बदन मेरी आंखों के सामने आने लगा.

पहले उसकी काली पैंटी जो उसकी योनि के अन्दर घुसी हुई थी और साथ ही कामरस से भीगी हुई थी.
फिर उसका चिकना पेट … और फिर मक्खन से गुंदाज दो गोले!

सिर को उठा कर उसने अपने नाइटी को उतारने में पूरा सहयोग दिया.

मैंने उसके गले पर हल्का सा काट कर लव बाइट का निशान दे दिया.

फिर उसकी ब्रा की स्ट्रिप्स को कंधे से उतार कर साइड में कर दिया और धीरे से उसकी ब्रा को नीचे सरका कर उसके चिकने पेट तक कर दिया.

अब मेरे सामने उसकी तनी हुई चोटियां थीं जिन्हें मसलने के लिए मैं पिछले कितने दिनों से व्याकुल था.

उसके चूचों का रंग बिल्कुल गोरा और लगभग पांच रुपये के सिक्के जितना चौड़ा एयरोला था और उस पर मटर के दाने जितना बड़ा कड़क भूरा निप्पल अपने घमंड में अकड़ा हुआ था.
अगले एक मिनट तक तो मैं सिर्फ़ उसके दोनों मम्मों को देखता ही रहा.

वह शर्मा गई और उसने हौले से कहा- चूस लो न!
मैं मुस्कुरा दिया और मैंने अपने दोनों हाथों में एक एक स्तन को पकड़ कर धीरे धीरे मसलना शुरू कर दिया.

मानसी की मादक सिसकारियां भी निकलनी शुरू हो गईं.
फिर मैंने मानसी के एक स्तन को अपने मुँह में भर लिया और उसके निप्पल को अपनी जीभ से चाटने लगा.

मानसी तो पागल सी हो गई.
वह मेरे सिर के बालों को खींचने लगी और जोर जोर से सिसकारियां भरने लगी.

मैंने मन ही मन कहा कि खींच ले मेरी बुलबुल मेरे सारे बाल, तेरे जैसे स्तनों को पाने के लिए अगर मुझे गंजा भी होना पड़े, तो कोई गम नहीं!

मैं कभी एक स्तन को मसलता और दूसरे को मुँह में भरता, तो कभी दूसरे को मसलता और पहले को मुँह में भर लेता.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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फिर नीचे आकर मैंने उसके पेट को चाटना शुरू किया.
लेकिन उसकी ब्रा बीच में आ रही थी तो मैंने मानसी को पलट कर पेट के बल लिटा दिया और उसके शरीर के बचे हुए दोनों कपड़ों के टुकड़े से एक को हटा कर दूर फेंक दिया.

दूसरा टुकड़ा यानि पैंटी आगे से चूत में और पीछे से उसकी गांड की दरार में घुसी जा रही थी.

मैं उसकी पीठ को चूमते हुए अपने दोनों हाथ उसके गुंदाज गोलों में घुसा कर मसलने लगा.
उसने भी अपने कंधे को ऊपर उठा कर सहयोग किया.

पीठ को चूम कर उसे जब मैंने सीधा लिटाया तो उसने मुझे खड़े होने को कहा ताकि वह मेरी जीन्स उतार सके.

मानसी ने मेरी जीन्स को धीरे धीरे बड़ी अदा के साथ खोला और उतार कर नीचे फेंक दिया.
चड्डी में मेरा लंड फुँफकार रहा था और पूरा तंबू बना हुआ था.

मानसी ने देखा और मुस्कुराकर उसे चड्डी के ऊपर से मसल दिया और मेरे लंड का अंदाज़ा लगाने लगी.
उसकी आंखों में अजीब सी चमक थी जो साफ साफ कह रही थी कि ये लंड उसे पूरी तरह से संतुष्ट कर देगा.

वह मेरी चड्डी को नीचे करना चाह रही थी.
पर मैंने उसे रोक दिया और उसके होंठों को चूम कर सीधा नीचे लिटा दिया.
फिर उसके पेट को चूम कर मैं उसकी नाभि में अपनी जीभ चलाने लगा.

वह फिर से मस्ती के समंदर में गोते लगाने लगी.

अब मैंने नीचे होकर उसकी पैंटी को सूँघा जो कामरस से सराबोर हो चुकी थी.

मैंने पैंटी के ऊपर से ही उसकी योनि को सूंघ कर चाटा … तो वह कसमसा उठी और उसने खुद ही अपनी पैंटी को उतार कर अलग कर दिया.

अब मेरे सामने दुनिया की सबसे सुंदर चूत थी … बिल्कुल गुलाबी रंग की चूत … जिस पर बाल तो क्या, रोयें का भी नामो निशान नहीं था.

मैंने तुरंत थोड़ा सा सहला कर उस गुलाबी चूत को अपने मुँह में भर लिया और अपनी जीभ अन्दर तक डाल कर चाटने लगा.

मानसी की सिसकारियों की आवाज बढ़ने लगी.
वह अपने दोनों हाथों से मेरे सिर को अपनी चूत पर दबाने लगी.

मैंने भी एक हाथ से उसकी चूत के अन्दर धीरे धीरे उंगली करना शुरू किया और दूसरे हाथ से उसके स्तन मसलने लगा.

क्योंकि चूत चटवाने का यह उसका पहला अनुभव था इसलिए दस मिनट के अन्दर ही जोर से चिल्लाती हुई वह झड़ गई और उसने अपनी चूत से नमकीन पानी छोड़ दिया.

फिर तुरंत मुझे ऊपर खींच कर मेरे होंठों को किस करने लगी जिससे कि उसके कामरस का स्वाद भी उसे मिलने लगा.

पांच मिनट के बाद उसने मुझे नीचे लिटाया और मेरे ऊपर सवार हो गई.
वह तुरंत ही मेरे लंड को सहलाने लगी.

फिर उसने मेरी आंखों में देखा और लंड पर जीभ फिरा कर आधा लंड मुँह में भर लिया … और बड़ी ही नाज़ुक अदा के साथ चूसने लगी.

मैं वासना के समंदर में गोते लगाने लगा.

मेरा लंड पूरा उसके मुँह के अन्दर जा नहीं पा रहा था.
पर जितना भी मानसी से बन रहा था … वह उतना अपने मुँह में भरने का प्रयास कर रही थी.

दस मिनट के बाद उसने मेरा लंड छोड़ा और खुद ही कंडोम निकाल कर लंड पर पहनाने लगी.

लंड पर कंडोम चढ़ जाने के बाद मैंने उसे नीचे लिटाया और उसकी गांड के नीचे तकिया कुछ इस तरह से लगाया जिससे उसकी चूत उभर कर मेरे सामने आ गई.

फिर मैंने अपने लंड से उसकी चूत को पांच छह बार रगड़ा और धीरे से अन्दर डालने लगा … क्योंकि उसके पति का लंड काफ़ी छोटा था इसलिए मानसी की चूत काफ़ी टाइट थी.

तीन चार कोशिश के बाद लंड धीरे धीरे उसकी गुलाबी चूत के अन्दर जाने लगा.

उधर लंड ने अन्दर जाना शुरू किया और इधर मानसी ने अपनी आंखें जोर से बंद करके अपने नाख़ून मेरी पीठ पर गड़ा दिए.
मैंने अभी अपना आधा लंड ही मानसी की चूत के अन्दर डाला था.

मैं अब अपने आधे लंड को ही धीरे धीरे अन्दर बाहर करने लगा.
उसी के साथ ही मानसी के नाख़ूनों का दबाव भी मेरी पीठ पर बढ़ता जा रहा था.

बीस पच्चीस धक्कों के बाद जब मानसी कुछ सामान्य हुई तो मैंने उसे एक जोरदार किस किया और झटके से अपना पूरा लंड उसकी चूत में उतार दिया.

उसकी घुटी घुटी सी चीख हम दोनों के किस में दब कर रह गई लेकिन उसने नाख़ून इतनी जोर से मेरी पीठ पर गड़ा दिए मानो लगा कि खून निकल आया हो.

दो मिनट तक मैंने अपना लंड मानसी की चूत में बिना हिलाए डुलाए डाले रखा और उसे धीरे धीरे किस करने लगा.

वह कुछ सामान्य होती दिखी तो मैं हल्के हल्के से अपने लंड को अन्दर बाहर करने लगा.
पंद्रह बीस धक्के के बाद मैं सीधा होकर अपने घुटने के बल बैठा और दोनों हाथों से मानसी के स्तनों को मसलते हुए उसकी चूत को चोदने लगा.

हर धक्के के साथ मानसी के मुँह से कामोत्तेजना भरी आवाज आहह आहह निकलने लगी.
वह इस पल का भरपूर मजा ले रही थी.
अब वह मेरा पूरा सहयोग कर रही थी और चुदाई का भरपूर आनन्द ले रही थी.

दस मिनट के बाद वह जोर जोर से आहें भरती हुई एकदम से अकड़ गई और फिर से झड़ गई.
उसकी चूचियां मेरे सीने से काफ़ी जोर से दबी हुई थीं.

मैं कुछ देर रुका रहा और चूंकि मैं अभी झड़ा नहीं था तो मैंने फिर से रेलगाड़ी चलाना शुरू कर दी.

अब चूत में काफी ज्यादा चिकनाई हो गई थी तो लंड सटासट अन्दर बाहर होने लगा था.
बीस पच्चीस धक्कों के बाद वह मस्ती में आ गई और मुझे अपनी गांड उठा कर जबाव देने लगी.

मैंने भी पूरा लंड सुपारे तक बाहर निकाल कर अन्दर बच्चे दानी तक ठांसना चालू कर दिया था.
तो वह अकबकाने लगी थी और उससे रहा नहीं गया तो वह जोर जोर से सांस लेती हुई फिर से झड़ गई.

उसकी नर्म चूत कामरस से भीग कर सराबोर हो गई थी.

उसने मुझे रोक कर कंडोम को हटा दिया और कहा- अब इसका इस्तेमाल नहीं करेंगे!

दोस्तो, अब जब मैंने बिना कंडोम के मानसी की चुदाई शुरू की तो कसी हुई चूत की वजह से हम दोनों को एक अलग ही आनन्द की अनुभूति हो रही थी.
हर धक्के के साथ हम दोनों के मुँह से ‘आअहह आहह’ की आवाज आ रही थी.

मैं उसके ऊपर से हटा और बिस्तर से नीचे उतर कर खड़ा हो गया.
मैंने मानसी को लेटी हुई अवस्था में ही अपनी तरफ किनारे पर खींचा एवं उसकी दोनों टांगों को अपने दोनों कंधों पर रखकर धक्कम पेल चुदाई शुरू कर दी.

अब की बार मैं अपना लंड बहुत जोर जोर से अन्दर बाहर कर रहा था और एक हाथ से उसके रसभरे स्तन को भी दबा रहा था.

पंद्रह मिनट के बाद जब मेरा लावा फूटने को हुआ तो मानसी ने समझ लिया.
उसने मुस्कुराकर कहा- बिंदास अन्दर ही डाल दो.

मैं लग गया और पंद्रह बीस करारे झटके देने के बाद हम दोनों एक साथ झड़ गए.
मेरा लावा मानसी की चूत में लबालब भर गया.

हॉट भाभी Xxx फक के बाद मैं मानसी के ऊपर ही लेट गया.
हम दोनों को चेहरे पर पूर्ण संतुष्टि के भाव थे.

कुछ देर बाद जब हम सामान्य हुए तो बाथरूम में जाकर अच्छे से एक दूसरे को साफ किया और नंगे ही बेड पर लेट गए.

चूंकि मानसी को मीटिंग में जाना था इसलिए दूसरे राउंड का वक़्त नहीं था.
पर अभी वह कल रात तक मेरे साथ थी तो अभी तो बहुत कुछ होना बाकी था.

इसलिए कुछ देर बाद हम तैयार होकर उसकी मीटिंग वाली जगह पर चले गए.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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मानसी मुझसे लिपटकर सो रही थी और उसके स्तन मेरे सीने में दबे हुए थे.

रात तकरीबन बारह बजे के आस पास मानसी की नींद खुली.
उसने अपने होंठ से एक किस करके मुझे उठाया और बोली- थोड़ी भूख लग रही है!

मैंने उसके गद्देदार नितंब को मसलते हुए उसके किस का जवाब उसी तरह किस करके दिया और नीचे होटल में कॉल करके एक फ्राइड राइस और एक रेड सॉस पास्ता का ऑर्डर दिया.

मैं फिर मानसी से लिपट गया और हमारे होंठ एक दूसरे से चिपक कर उनका रस पीने लगे तथा हमारे हाथ एक दूसरे के बदन को सहलाने लगे.

कुछ देर बाद मानसी मेरे ऊपर आ गई और बिना देरी किए मेरे खड़े लंड के टोपे की चमड़ी को नीचे किया और उस पर जीभ फिराने लगी और मैं वासना के समंदर में गोते लगाने लगा.

थोड़ी देर तक वह मेरे लंड को मसलती रही और अपनी जीभ फिराती रही.
और फिर उसने मेरा लंड अपने मुंह में भर लिया और बड़ी ही प्यारी अदा के साथ जितना हो सकता था उतना अपने अंदर ले कर चूस रही थी और मुझे जन्नत का मज़ा दे रही थी.

पाँच मिनट के बाद मैंने उसका सर पकड़ा उसका उसके नर्म गुलाबी होंठों की चुदाई चालू कर दी.
जिससे मेरा लंड उसके गले तक पहुँचने लगा और उसे सांस लेने में तकलीफ़ होने लगी.

जब उसे दर्द ज़्यादा होने लगा तो मुझे रोककर अपनी उखड़ी हुई सांसों को संभालते हुए बोली- आराम से जान, सांस तो लेने दिया करो!
मैंने मुस्कुरकर उसके होंठों को चूमते हुए कहा- अब तुम आराम से सांस लो और बाकी काम में करता हूँ!

यह कह कर हमने अपनी पोज़िशन बदल ली.
अब वह मेरे नीचे थी और उसकी गुलाबी चिकनी चूत मेरे मुंह के सामने!

मैंने पहले उसकी चूत को सूँघा जो कुछ वक़्त पहले मेरे वीर्य से सराबोर थी.
उसमें से अजीब सी खुश्बू आ रही थी जो मेरे दिल दिमाग़ और लंड पर चढ़ गई.

मैंने लपककर उस नर्म चूत को अपने मुंह में भर लिया और दांतों से चबाते हुए चाटने लगा.
मानसी को इस सेक्स वार Xxx की उम्मीद नहीं थी.
वह कसमसाते हुए मेरे बाल नोचने लगी और अपनी छाती को उपर उठा लिया और कहा- आअहह आराम से जान … ह्म्‍म् आअहह मैं आआ हह श्हह्ह … आअहह … कहीं भाग आहह नहीं रही … उफ्फ़ श्ह्ह!

पर उसकी बातों को अनसुना करके मैंने अपने काम को जारी रखा.
नतीजा यह हुआ कि मानसी जल्द ही सिसकारियाँ भरते हुए झड़ गई और निढाल पड़ गई और ज़ोर ज़ोर से सांसें लेती हुई मुझे अपने पास खींच कर ज़ोर ज़ोर से किस करने लगी.
बल्कि किस नहीं, उन्हें चबाने लग गई.

तभी वेटर खाना लेकर आया और दरवाजे की घंटी बजाई.

तब कहीं मानसी ने मुझे छोड़ा.
क्योंकि हम बिल्कुल नंगे थे तो मानसी ने चादर अपने सिर तक ओढ़ ली और मैंने तौलिया पहन कर दरवाज़ा खोला.

वेटर ने अंदर आकर टेबल पर खाना रखा और हम दोनों के कपड़े जिसमें मेरी चड्डी और मानसी की ब्रा पैंटी आदि सब था, उन्हें देख कर और मानसी को पूरी चादर ओढ़ कर लेटे हुए माजरा समझ गया और मुस्कुराकर चला गया.
फिर हमने ऐसे ही नंगे खाना खाया,
बीच बीच में मानसी पास्ता के टुकड़े को आधा मुंह में रखती और आधा बाहर रखकर मेरी तरफ आती और मैं उस आधे पास्ता को मानसी के होठों से चबाकर ख़ाता.

फिर हम वॉशरूम से फ्रेश होकर आए और बेड में घुस गये.

मानसी मेरे सोए हुए लंड के साथ खिलवाड़ करने लगी, कभी उसे चूमती, कभी सहलाती, कभी मसलती, कभी मूठ मारती.
थोड़ी ही देर में मेरा सोया लंड फनफ़ना उठा और मानसी उसकी सवारी करने के लिए ऊपर चढ़ कर लंड को धीरे धीरे अपने अंदर घुसा लिया.

जैसे जैसे लंड उसकी नर्म चूत के अंदर जा रहा था, मानसी की दर्द मिश्रित सिसकारी की आवाज़ बढ़ती जा रही थी.

जब लंड पूरा अंदर घुस गया तो कुछ देर तक उसने अपने दर्द पर काबू पाने के लिए वक़्त लिया और उसके बाद धीरे धीरे ऊपर नीचे होने लगी.
क्योंकि मानसी मेरे ऊपर बैठ कर चुद रही थी, इस वजह से मेरा लंड उसकी जड़ तक पहुँच रहा था. हमें चुदाई का पूरा सुख मिल रहा था.

जब वह थोड़ा थक गई तो मैंने उसे अपने ऊपर लिटाया और नीचे से ज़ोर ज़ोर से धक्के लगाने लगा.
जिससे पूरा कमरा ठप ठप की आवाज़ से गूंजने लगा और मानसी की सिसकारियाँ दर्द भरी आहटों में बदलने लगी.

बीस पच्चीस धक्कों के बाद मैं बेड से नीचे उतरा और मानसी को अपनी और खींच कर उसकी दोनों टाँगों को अपने दोनों हाथों से पकड़कर पूरा खोल दिया जिससे उसकी चूत मेरे सामने पूरी खुल गई और मैं दनादन धक्के लगाने लगा.
मानसी घुटी घुती सी चीख ‘आअहह श्ह्ह्ह ह्म्‍म्’ निकालने लगी.

क्योंकि इस आसन में उसकी चूत के साथ उसकी जाँघों पर भी खिंचाव हो रहा था तो उसने इस आसन की जल्दी रोक दिया.
तब मैंने उसकी दोनों टाँगों को अपने एक कंधे पर चिपकाकर रखा और चुदाई शुरू कर दी.

साथ ही उसके मांसल स्तन भी दबाने लगा.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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इस आसन में मानसी को भी काफ़ी मज़ा आ रहा था.
यह उसके चेहरे पर संतुष्टि के भाव से पता चल रहा था.

बीच बीच में मैं मानसी को उठा कर उसके नर्म होठों का भी मज़ा ले रहा था.

कुछ देर बाद मैंने नीचे खड़े रहते हुए मानसी को अपनी गोद में घुटनों के अंदर से हाथ लेजाकर उठाया जिससे उसके गद्देदार चूतड़ मेरे दोनों हाथों में थे.

तब मानसी ने अपना हाथ पीछे ले जाकर मेरे लंड को अपनी चूत में सेट किया.
जहाँ हमारे चूत और लंड आपस में चूम रहे थे, वहीं हमारे होंठ भी चिपके हुए थे.

फिर शुरू हुआ चुदाई का घमासान युद्ध जिसे हम दोनों चाहते थे कि यह युद्ध चलता रहे, चलता रहे.

हर धक्के के साथ इस आसन चूतड़ से ठप ठप की आवाज़ पहले से ज़्यादा आ रही थी.
मैं इस बार अपना लंड पूरा बाहर निकलता और फिर ज़ोर से मानसी की चूत में प्रवेश करता तो उसकी आवाज़ भी दर्द भरी हो जाती.

कुछ मिनट के बाद मानसी के वजन से मुझे उसको उठाए रखना मुश्किल लग रहा था.
तब मैंने उसे नीचे उतार कर एक टेबल पर बैठाया जो लगभग मेरी कमर जितना उँचा था.

मानसी के दोनों पैर मैंने अपनी कमर में फंसा लिये जिससे उसकी चूत मेरे सामने काफ़ी खुल कर दिखने लगी.
मैंने उसकी चूत में एक बार जीभ फिराई और फिर से दनादन धक्के लगाना शुरू कर दिया.

मैं अपने पाठकों से यह आग्रह करना चाहूँगा कि अगर आप इस आसन में सेक्स करते हैं तो सबसे ज़्यादा मज़ा आपको इसी आसन में आयेगा. यह मेरी गारेंटी है.

मेरा लंड मानसी की चूत में इंजिन में पिस्टन की रफ़्तार से अंदर बाहर हो रहा था.
एक हाथ से मैंने उसके चूतड़ को मसला हुआ था तथा दूसरे हाथ से मैंने उसके एक स्तन को दबोचा हुआ था.

मानसी ने अपने दोनों हाथ मेरी गर्दन पर फंसा रखे थे.
इस आसन में चुदाई करने से हम दोनों को थकान बिल्कुल भी नहीं हो रही थी.

जबकि मानसी इसी आसन में दो बार झड़ चुकी थी.
बीस मिनट के बाद जब मेरा लावा फूटने को हुआ तो मेरी सांस उखड़ने लगी.
तब मानसी फटाफट नीचे उतरी और मेरे लंड मुंह में भरकर ज़ोर ज़ोर से चूसने लगी.

मैंने उसे बोला- लंड छोड़ो क्योंकि किसी भी वक़्त मेरा वीर्य निकल सकता है.
पर उसने मेरी ना सुनने की तो जैसे कसम खा रखी थी.

तो फिर मैंने भी कुछ सोचे बिना दोनों हाथों से मानसी के सर को पकड़ा उसके मुंह की चुदाई शुरू कर दी.
उसके मुंह से सिर्फ़ गों गों को आवाज़ आ रही थी.

दो मिनट बाद मेरा लावा फूटा और मानसी के मुंह के अंदर पूरा भर गया.
झड़ते समय मैंने अपना पूरा लंड मानसी के मुंह के अंदर घुसा दिया जिसकी वजह से काफ़ी सारा वीर्य मानसी के मुंह से बाहर निकल गया और उसके गर्दन और वक्ष पर बहने लगा.

बाकी बचे वीर्य को मानसी ने अजीब सा मुंह बनाते हुए अपने अंदर ले लिया और मेरे लंड को मुंह से बाहर निकाल कर जीभ से अच्छे से चाट चाट कर साफ करने लगी.

मैं निढाल होकर पीछे बेड पर गिर पड़ा.
पर मानसी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा और बहुत देर तक मेरे लंड को चूसती रही और पूरा वीर्य चाट चाट कर साफ कर दिया.

फिर वह उठी और वॉशरूम जाकर अपने मुंह को अच्छे से साफ करके कुल्ला किया और वापस बेड में आकर मेरे उपर लेट गई.

मैं अभी तक अपनी सांसों को संतुलित करने में लगा था क्योंकि इस चुदाई मैं मुझे पिछली दोनों चुदाई से ज़्यादा आनद प्राप्त हुआ.
और इस बार में वीर्य भी काफ़ी ज़्यादा निकला.

मानसी मेरे ऊपर आई और किस करने लगी.
वीर्य की वजह से उसके मुंह से अलग सी गन्ध आ रही थी.
लेकिन दोस्तो, अगर आप दिल से चुदाई कर रहे हो तो आपको चुदाई के वक़्त कभी भी किसी भी चीज़ से घिन नहीं आयगी.

फिर कुछ देर बाद मैंने मानसी को साइड में लिटाया और किस करते हुए अपने आगोश में भर लिया.
और इस प्रकार अंत में हम दोनों ही यह चुदाई युद्ध जीत गए.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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क्योंकि मैं दोपहर को अच्छे से सोया था इसलिए मुझे नींद की ज़रूरत ज़्यादा थी नहीं!
और जब बिस्तर पर आपका हर तरह से साथ देने वाला पार्ट्नर हो तो भला नींद किसे आयेगी.

तो 40-50 मिनट की झपकी के बाद मेरी नींद खुल गई.
और एसी भी 18 डिग्री पर था तो ठंड अच्छी हो गई थी.
मैं बाथरूम में मूतने के लिए गया और वापस आकर देखा कि मानसी थक कर बेसुध होकर सोई है.
क्योंकि हम एक ही चादर में थे तो जब मैं बाथरूम जाने के लिए उठा था तो चादर एक तरफ को सरक गई थी और मानसी के शरीर से भी हट गई थी.

कमरे में एक नाइट लैंप जल रहा था और उसकी दूधिया रोशनी में मानसी के संगमरमर सा बदन अंधेरे कमरे में पूर्णिमा की रात में चाँद जैसा चमक रहा था.
इतनी चुदाई और ऊपर से उसकी मीटिंग की वजह से वह काफ़ी थक चुकी थी.

मुझे उस पर तरस भी आया … पर यह भी सोचना पड़ा कि आज और कल बस दो ही दिन हैं हमारे पास!
फिर ना जाने कब मुलाकात होगी!
और उस मुलाकात में भी कुछ हो पायेगा या नहीं … क्या पता?

फिर मैंने उसे अपने आगोश में लिया और चादर को दोनों के नंगे शरीर पर औढ़ लिया.

इस बीच मानसी थोड़ा हिलने की वजह से कसमसाई और अपनी आंखें खोल कर मुझे देखा और हल्के से मुस्कुराई.
फिर बिना किसी के कुछ कहे हमारे होंठ आपस में मिल गये.

इस बार हमारा चुंबन एकदम धीरे धीरे हो रहा था, कोई जल्दबाज़ी नहीं, कोई किसी को काट भी नहीं रहा था, कोई हवस नहीं … सिर्फ़ प्यार और प्यार ही था इस चुंबन में!

मानसी मेरी पीठ और चेहरे को सहला रही थी और मैं उसकी गांड और दूध को मसल रहा था.

सिर्फ़ दो मिनट बाद मेरा लंड उफान मार कर उसकी चूत को टच कर रहा था.
मानसी ने एक हाथ से मेरे लंड को अपने हाथों में भर लिया और बेहतरीन तरीके से मसलने लगी.

पाँच मिनट बाद हमने चुम्बन बंद किया और मानसी सीधा नीचे सरक गई.
गप से एक झटके में उसने लंड को अपने मुंह में भर लिया और किसी छोटे बच्चे की तरह चूसने लगी जैसे उसे लॉलिपोप मिल गया हो.

वह कभी मेरे आंडों को मसलती, कभी उन्हें मुंह में भरती, कभी आँड से लेकर लंड के टोपे तक जीभ से चाटती.
कुल मिलकर स्वर्ग सी अनुभूति हो रही थी मुझे!

दस मिनट बाद मैंने उसे रोका और अपने ऊपर खींचा, जिससे हमारे होंठ फिर आपस में जुड़ गये.

तब मैंने उसके मन की बात जानने के लिए पूछा कि दिन भर के काम और इतनी बार के सेक्स के बाद अगर वह थक गई हो तो चाहे आराम कर ले. ये चुदाई का कार्यक्रम मीटिंग के बाद आराम से कर कर सकते हैं.
मानसी ने कोई जवाब दिए बगैर मेरे होंठों को अपने मुंह में भर लिया और जितना उसे बन सकता था उतना मेरे होठों को अंदर खींच रही थी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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मैंने भी उसकी रज़ामंदी जानकर और कुछ नहीं पूछा और और नरम गद्देदार चूतड़ों को मसलने और उन पर थप्पड़ बरसाने लगा.

कुछ देर बाद हम अलग हुए और मैंने मानसी को बेड पर पीठ के बल लिटा कर उसकी गर्दन को चूमते हुए ज़ोर से चबा लिया.
जिससे मानसी सिसक उठी और अपने लंबे नाख़ून वासना के अभिभूत होकर मेरे पीठ पर गड़ा दिए तथा मुझे अपने सीने से दबोचने लगी.

हम दोनों के शरीर पर एक दूसरे के द्वारा दिए गये लव बाइट्स पड़ चुके थे.

फिर नीचे झुक कर मैंने उसको 34″ साइज़ के दूध को मसलना शुरू किया और इतनी ज़ोर से मसल रहा था कि अगर सच में दूध की थैली होती तो कब की फट चुकी होती.

मसलते हुए मैंने उसके एक निप्पल को दाँत से चबा लिया तो मानसी कसमसकर एक हाथ से मुझे अपने सीने पर और ज़ोर से दबाने लगी … मानो कह रही हो कि और ज़ोर से चबाओ.
लेकिन दूसरे हाथ से मेरे बालों को पूरा ज़ोर लगा कर खींच रही थी जैसे मुझे अपने से दूर करना चाह रही हो.

उसके दूध मसलते मसलते मैंने उसके दोनों हाथों को ऊपर किया और उसके आर्मपिट ( कांख) को हल्का हल्का चाटना शुरू किया.
आप में से कई पाठक सोच रहे होंगे कि यह क्या गंदगी है.
पर सच मानिए … कांख चाटना, कान के अंदर जीभ डालना, चूत और गांड चाटना … बहुत ही अलग और रोमांचित करने वाला अनुभव होता है यह!
ये सब आप अपने उस सेक्स पार्ट्नर के साथ कर के देखिएगा जिससे आप प्यार करते हैं … और वह भी आपको प्यार करता हो!

मानसी खिलखिला कर हंस पड़ी और मेरे होठों को ज़ोर से चूम लिया.
फिर उसे मैंने उल्टा करके पेट के बल लिटाया और उसके खुले बालों को एक तरह करके उसकी गर्दन को चूमने लगा तथा धीरे धीरे नीचे जाकर उसकी पीठ को जीभ से सहलाने लगा.

मानसी तड़प उठी और उसने अपनी छाती ऊपर उठा ली जिससे मैंने अपने दोनों हाथों से उसके दूध को धीरे धीरे मसलना शुरू कर दिया.
अब मानसी की सिसकारियाँ गूंजने लगी.

धीरे धीरे मैं उसके नर्म चूतड़ों की तरफ बढ़ने लगा और उन्हें जीभ से सहलाते सहलाते दांतों से हल्का हल्का काटने भी लगा.
फिर मैं दोनों हाथों से उसकी गांड को फैला कर चाटने के लिए जीभ आगे बढ़ाने लगा.

पर अचानक मानसी ने मुझे रोक दिया और मेरे तरफ घूम कर मुझे चूमने लगी तथा कहा- पीछे अभी नहीं, अगली बार! अभी सिर्फ़ आगे से करो!

क्योंकि अब हम दोनों के बीच सिर्फ़ हवस नहीं प्यार भी था और वो भी काफ़ी गहरा … तो ज़बरदस्ती का तो सवाल ही नहीं उठता.

तुरंत मैंने उसे चित लिटाया उसकी टाँगों मोड़ कर दोनों हाथों से दबा कर चौड़ा किया और एक झटके में मानसी की गुलाबी चूत को अपने मुंह में भर लिया.

वह इस हमले के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थी तो उसके मुंह से दबी दबी चीख ‘आ आहह आआ हह’ के रूप में निकलने लगी.
और मैं किसी भूखे इंसान के समान उसकी चूत को चाटने और खाने लगा जैसे कई वक़्त के बाद अपने पसंद का भरपेट भोजन मिला हो.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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इधर मानसी की उंगलियाँ मेरे बालों में घूम रही थी और जब उसकी चूत को चबाता था तो वह भी तड़प के मेरे बालों को खींच लेती.

चार पाँच मिनट के बाद मानसी की सिसकारियाँ तेज होने लगी और उसकी चूत ने काम रस छोड़ दिया जिसे मैंने पूरा गटक लिया.

मानसी का काम रस निकालने के बाद वो अपनी सांसों को संयत करते हुए हांफने लगी और मैं उसकी बगल में लेट गया.

एकाएक वह मेरी छाती के ऊपर चढ़ कर बैठ गई और मेरे होंठ चूमने लगी.
उसकी चूत कम रस की वजह से थोड़ी गीली थी जो मेरे पेट पर चिकनाई का काम कर रही थी.

दो मिनट तक मुझे चूमने के बाद मानसी नीचे सरक गई और मेरे लंड को सहलाने लगी.
तब उसने अपने खुले हुए रेशमी बालों को झटक कर एक तरफ किया और मुस्कुराकर धीरे से मेरे लंड को अपने मुंह में भर लिया और एकदम नज़ाकत के साथ चूसने लगी.
अपने दूसरे हाथ से वह मेरी छाती को कभी सहलाती, कभी नोचती.

वह इतने प्यार से लंड को चूसने लगी कि मेरी सिसकारी निकलने लगी.
मैं अपने दोनों हाथों से उसके सिर को अपने लंड पर दबाने लगा.

पर उसने दोनों हाथों की उंगलियों से मेरे उंगलियों को फंसाया और मेरे ही चूतड़ों के नीचे दबा दिया.
अब पूरी तन्मयता के साथ वह लंड को अपने गले तक भरने लगी.

जब मेरा लंड पूरा उसके थूक से भर गया तो वह मेरे लंड के ऊपर आई और अपने दोनों हाथों को मेरे छाती पर रखा और धीरे धीरे लंड को अपनी चूत में समाहित करने लगी.

उसके चेहरे पर दर्द और सुख दोनों भाव एक साथ दिखाई देने लगे.

जब लंड पूरा अंदर उसने अपनी चूत में डाल लिया तो करीब 1 मिनट उसने अपने दर्द को काबू करने में लगाया … और फिर धीरे धीरे उपेर नीचे होने लगी.
मैं अपने दोनों हाथों से उसके गद्देदार चूतड़ मसलने लगा.

जब लंड आसानी से अंदर बाहर होने लगा तो मानसी थोड़ा सीधा होकर उछलने लगी जिससे उसके बड़े बड़े स्तन उभर कर नाचने लगे और वह खुद अपने दोनों हाथों से अपने दूध मसलने लगी.

तकरीबन पाँच मिनट तक हम इसी अवस्था में रहे.

फिर जब वह थकने लगी तो मानसी को बेड के किनारे लिटा कर में नीचे फर्श पर खड़ा हो गया और उसकी टाँगों को घुटने के पास से पकड़ कर फैला दिया जिससे उसकी गुलाबी चूत एकदम खुल कर मेरे साने आ गई.

मैंने बिना देरी किए अपना लंड उसकी चूत में उतार दिया और ट्रेन की रफ़्तार से हमारी चुदाई चालू हो गई.
हम दोनों की सिसकारी पूरे कमरे में गूंजने लगी.

दोस्तो, जब भी सेक्स के वक़्त हम आसान या पोज़िशन बदली करते हैं तो शुरू के 10 – 20 सेकंड लड़की को तकलीफ़ होती ही है.
फिर जब एक बार सही से चूत और लंड का तालमेल बैठ जाता है तो चुदाई एकदम आसान हो जाती है और मज़ा भी दोनों को आता है.

इसलिए आसन बदलने के बाद पहले आराम से निशाना सही से लगाओ और चुदाई की दौड़ का भरपूर आनद लो!

जब इस तरह से हमें 5 मिनट हो चुके थे चुदाई करते हुए … तो मानसी ने अपने पैरों को मेरी कमर में लपेटा और अपनी तरफ झटका दिया.
जिससे मैं उसकी छाती पर गिर पड़ा और उसने अपने दोनों हाथों से मेरी गर्दन को पकड़ा अपनी और खींच कर मेरे होठों को चूमने लगी.
लेकिन इस अवस्था में मेरा पूरा लंड उसकी चूत में नहीं जा पा रहा था.

तब मैंने उसे नीचे उतारा और दीवार के बल ऐसा खड़ा कर दिया जिससे उसकी छाती दीवार की तरफ रहे और उसकी पीठ बाहर मेरी तरफ!
तब मैंने उसकी 1 टाँग को अपने हाथ से पकड़ कर हवा में उठाया तथा उसे अपना चूतड़ बाहर की तरफ निकालने को बोला.
जिससे लंड आसानी से उसकी चूत में चला गया और हमारी चुदाई की गाड़ी फिर से बिना ब्रेक के दौड़ने लगी.

चुदाई करते करते जब जब मानसी अपने चूतड़ दीवार की तरफ करती तो मेरा लंड पूरा अंदर जा नहीं पाता.
तो मैंने दूसरे हाथ तो उसकी चूत को अपने और दबा के रखा और मसलने लगा.
जिससे मानसी बहुत ज़्यादा उत्तेजित हो गई और दो मिनट के बाद उसका झरना बह चला.

लेकिन उसके साथ ही वह रुकी नहीं बल्कि फुर्ती से नीचे झुक कर मेरे लंड को गप्प से मुंह में भर लिया और अपने होंठों से दबोच कर मेरे लंड को चूसने लगी.

इससे बहुत ही ज़्यादा मुझे रगड़ महसूस होने लगी और सिर्फ़ 2 मिनट बाद ही मेरा भी बाँध टूट गया और कुछ झटकों के साथ मेरा पूरा वीर्य मानसी के मुंह में चला गया.
हम दोनों बेड पर पसर कर अपनी अपनी सांसों को संयत करने लगे.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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कमरे में एसी चालू था फिर भी हम दोनों पसीने से लथपथ हो चुके थे.
10 मिनट बाद जब हमारी सांसें काबू में आई तो दोनों एक साथ बाथरूम गये और एक दूसरे के शरीर को अच्छे से साफ किया और पुनः बिस्तर में आकर चादर को ओढ़ के एक दूसरे के आगोश में सिमट कर सोने लगे.

रात भर सेक्स एंड सेक्स ओनली सेक्स के बाद हम काफ़ी तक गये थे और एक दूसरे में सिमट कर सो रहे थे.

अगला दिन भी उसी तरह बीता, मानसी तैयार होकर अपनी मीटिंग अटेंड करने गयी.
उसके आने पर हमने चुदाई का मजा लिया और शाम की ट्रेन थी उसकी.
मैंने उसे स्टेशन पर छोड़ने गया और ट्रेन में उसकी सीट पर बैठकर आया.

जब तक वह अपने गंतव्य स्थान तक नहीं पहुंच गई, हम फोन पर बात करते रहे.
उसका स्तेषां आ गया तो हमने एक दूसरे को जल्द मिलने का वादा करके विदा कहा.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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