उसने बिना पलके झपकाये मेरे से कहा कि यह कार्य तुम ही कर सकते हो। मेरे परिवार की इज्जत का सवाल है। भाई की शादी को चार साल हो गये है और अभी तक कोई बच्चा नहीं हुआ है। भाभी की सारी जाँच सही है लेकिन भाई अपनी जाँच नहीं करवाना चाहता है। उसे सबने समझाया है लेकिन वह किसी की नहीं सुनता। लगता है कि उसे अपनी खराबी का पता है या कुछ और बात है। भाभी को ही सारी बातें सुननी पड़ती है। परिवार में माता-पिता दोनों परेशान है। तुम्हें तो पता है कि भाभी मेरी सहेली भी है उन की परेशानी से मैं बहुत परेशान हूँ, वह तो आत्महत्या करने की धमकी देती है। तुम बताओ क्या करुँ? हमने पहले सोचा कि IVF करवा लेते है लेकिन ना भाई और ना ही भाभी इस के लिये राजी है। समझ नहीं आ रहा कि क्या करे?
मुझे ध्यान आया कि महाभारत में भी ऐसा हुआ था कि नियोग द्वारा परिवार आगे बढ़ा था। मैं पत्नी की तरफ हैरत से देख रहा था। वह बोली कि ऐसे मुझे मत देखो, तुम से कुछ माँग रही हूँ। मैंने कहा कि सही कह रही हो कि हमारे यहाँ नियोग की प्रथा थी लेकिन यह तो पुरानी बात है। अब कहाँ ऐसा संभव है। वह बोली कि सब संभव है, किसी को कुछ पता नहीं चलेगा। तुम, मैं और भाभी के सिवा कोई कुछ नहीं जान पायेगा। परिवार की इज्जत भी बच जायेगी। भाभी आत्महत्या करने का विचार छो़ड़ देगी।
तुम्हें लगता है भाभी इस के लिये तैयार होगी।
मैंने उन से इस विषय पर बात की है, उन की कुछ शर्तें है
क्या शर्ते हैं
तुम उन से शारीरिक संबंध बनाओगे तभी वह इस बात के लिये राजी होगी।
तुम इस बात के लिये राजी कैसे हुई और यह कैसे सोचा कि मैं ऐसा करुँगा?
मैंने अपने मन पर भारी पत्थर रखा है और तुम मेरी कोई बात नहीं टालते हो ऐसा मैं जानती हूँ
लेकिन यह तो गलत है तुम्हारे मेरे संबंध बिगड़ सकते है। मैं भटक सकता हूँ
भटक कर दिखायो, मुझे पता है तुम कैसे हो, मुझे अपने पति पर अटल विश्वास है
अनैतिक नहीं है
नैतिक अनैतिक का मुझे पता नहीं लेकिन अगर हम किसी का जीवन बचा पाये तो सब कुछ जायज है
मुझे नहीं पता था कि मेरी बीवी इतनी बड़ी दार्शनिक है
मजाक मत बनाओ
चलो मान लेता हूँ कि मैं राजी हूँ तुम मेरा वीर्य ले कर उन की योनि में डाल दो, काम हो जायेगा
तुम ने सुना नहीं वह इस के लिये राजी नहीं है उन का कहना है कि जो भी हो वह स्वाभाविक रुप से हो
मैं उन्हें भाभी मानता हूँ उन के साथ शारीरिक संबंध, मन नहीं मानता
सही हो लेकिन तुम समस्या को समझोगे तो समझ आयेगा कि यह सब तो मामुली चीज है
किसी के साथ सोना, मामुली तुम होश में तो हो तुम्हारे मेरे संबंध खराब हो गये तो, मैं उन से जुड़ गया तो
तुम ऐसा कुछ नही करोगे ना कर सकते हो ऐसा मेरा विश्वास है, पत्नी हूँ तुम्हारी तुम्हें जानती हूँ
बहुत भारी रिस्क ले रही हो
रिस्क तो है, लेकिन जिस परिवार की मैं सदस्य हूँ उस के प्रति मेरे कर्तव्य भी तो है।
हम अपना बच्चा उन को गोद दे सकते है
इस पर वह राजी नहीं है, बात भी सही है जिस बात को छुपाना चाहते है वही सामने आ जायेगी
हाँ यह तो तुम सही कह रही हो
मुझे सोचने दो
ज्यादा समय नहीं है, कल भाभी यहाँ आ रही है
आने दो
सोच लो
यार कोई समान लेने जाने वाली बात तो नहीं है, तुम जो माँग रही हो उस के लिये मन को भी तो समझाना पड़ेगा।
मैं कहाँ मना कर रही हूँ, जो मुझ से चाहिये मुझे बता दो
मेरी तो उन से घनिष्टता भी नहीं है फिर यह सब करना, बड़ा कठिन है, कितने दिन के लिये आ रही है?
8 दिन के लिये
कोई और साथ है
हाँ, छोटी बहन
बात बहुत मुश्किल नहीं है, अकेले होती तो सही रहता
सही है लेकिन मेरे यहाँ वह अकेली नहीं आ सकती, किसी को साथ आना ही पड़ेगा। इसी लिये छोटी आ रही है, उसे मैं सभाल लुगी।
मुझे उन से बात करनी पड़ेगी अकेले में, एकान्त दोगी मुझे
बिल्कुल दूगी, लेकिन कोई ऐसी बात मत करना कि जिस से वह अपमानित महसुस करे
नहीं, मैं तो बस उन को समझना चाहता हूँ और कुछ नहीं, सेक्स संबंध मेरे लिये मशीनी नहीं मानसिक है।
मैं उन से बात करती हूँ
मेरी हाँ पर प्रसन्न हो कर पत्नी मुझ से लिपट गयी और बोली कि तुम हमेशा मेरे रहोगे।
दूसरे दिन शनिवार होने के कारण मेरी छुट्टी थी, सो मैं देर से सो कर उठा तो पत्नी बोली कि तैयार हो जाओ कुछ देर बाद भाभी आने वाली है। मैं उस की बात सुन कर चौका और नहाने चल दिया। नहा कर आया तो नाश्ता करने बैठ गया। अभी हम नाश्ता कर ही रहे थे कि तक दरवाजे की घन्टी बजी। पत्नी ने जब दरवाजा खोला तो उसकी भाभी यानि वाणी और मेरी छोटी साली खड़ी थी। पत्नी ने उन दोनों का स्वागत किया और उन्हें बिठा कर उनके लिये नाश्ता लाने चली गयी। मैंने दोनों से पुछा कि यात्रा में कोई परेशानी तो नहीं हुई तो वाणी बोली कि नहीं हमने तो खुब इंजाय किया।
नाश्ता करने के बाद दोनों कपड़ें बदलने चली गयी। मैं कमरे में बैठा आगे होने वाले घटना क्रम के बारे में सोचता रहा। मन मान नहीं रहा था लेकिन विषय की गम्भीरता का ध्यान रख कर मन में आ रहा था कि अगर एक अनैतिक संबंध से एक परिवार बचता है तो क्या बुरा है फिर अच्छा या बुरा का फैसला करने वाला मैं कौन होता हूँ। कोई हल नहीं मिल रहा था। अपनी सलहज को मैंने कभी घ्यान से भी नहीं देखा था उस से शारीरिक संबंध बनाना अजीब सा लग रहा था लेकिन कोई और रास्ता नजर नहीं आ रहा था।
दोपहर के खाने के बाद मैं सोने चला गया। मेरी नींद किसी के झकझौरने से खुली, देखा कि मेरी सलहज यानि वाणी बेड के किनारे पर खड़ी थी। मैं अचकचा कर उठ कर बैठ गया। मेरी हालत देख कर वह हंसी और बोली कि आप हड़वड़ा क्यों रहे है मैं कोई भुत नहीं हूँ। मैंने सरक कर उन्हें बैठने की जगह दी और कहा कि गहरी नींद में था इस लिये ऐसा लग रहा है। लगता है मुझ से डर लग रहा है।
ऐसा क्यों लगा, आप को
आप के व्यवहार से
किस व्यवहार से
आप ने मेरा स्वागत मन से नहीं किया
स्वागत तो किया था
हाँ सो तो है लेकिन उस में रोमांच नहीं था
मेरी जान पर बनी है और आप को रोमांच की पड़ी है
जान पर क्यों पड़ी है, इस लिये कि किसी और के साथ सोना है,
हाँ
इतने शरीफ तो नहीं लगते
शराफत का सार्टिफिकेट गले में लटका कर तो नहीं घुम सकता
नाराज है मुझ से
नहीं
फिर क्या बात है
कोई बात नहीं है, और सब कहाँ है
दीदी छोटी के साथ बाजार गयी है
आप से कुछ बात करनी थी इस लिये वह गयी है
मुझे पता है,क्या बात करनी है
जो होगा वह आप की मर्जी से हो रहा है या कोई जबरदस्ती
आप को ऐसा कैसे लगा?
नहीं मैंने यो ही पुछा क्यों कि किसी और से संबंध किसी के लिये भी आसान नहीं है
सही है लेकिन कोई और राह नहीं है, आप ही एक मात्र सहारा है
अगर मेरे में कोई खराबी हो तो, वैसे भी हम दोनों भी तो दो साल से बिना बच्चे के है
इस के बारे में मुझे पता है आप मुझे डराओ नहीं, रही खराबी की बात तो दीदी सब चैक करा चुकी है
जरुरी है कि एक बार में गर्भ ठहर ही जाये
मैं चैक करवा के आयी हूँ अंड़ें निकलने वाले है। अगर इस बार नहीं ठहरा तो दूबारा ट्राई करेगे, लेकिन बच्चा तो चाहिये
आप बड़ी बहादूर हो
मेरा नाम क्यों नहीं लेते
यहाँ ले लेता हूँ लेकिन ससुराल में नहीं ले सकता
वहाँ किस ने कहा है, जब तक मैं यहाँ हूँ वाणी ही बुलाये
छोटी शिकायत तो नहीं कर देगी
नहीं उसे कोई मतलब नहीं है
मेरे से कोई सवाल जबाव
नहीं बस मुझ से पुरा प्यार करें, अधुरापन या बनावट ना रखे
आप को पता है कि मैं आपकी ननद का पति हूँ फिर भी ऐसी बात करती है
तभी तो करती हूँ आप पर मेरा अधिकार है, मैं आप के घर की सदस्य हूँ मेरी खुशहाली की चिन्ता भी आपका कर्तव्य है।
यह तो है, मेरी ही हो, लेकिन मन को मनाना मुश्किल हो रहा है।
यह इस लिये है कि सब कुछ आप के सामने खुला हुआ है, अगर यह ही छुप कर होता तो आपका मन परेशान नहीं होता।
मुझे साफगोई पसन्द है, कहाँ से शुरुआत करें
जहाँ से आप चाहो।
वाणी तुम्हारा मेरा यह संबंध आगे के हमारे जीवन में कोई बाधा तो उत्पन्न नहीं करेगा?
नहीं करेगा क्योकि हम दोनों अपने जीवन को जीना सही तरीके से जानते है। आप जो है वही रहेगे, केवल मैं आप के जीवन का अटुट हिस्सा बन जाऊँगी
तुम्हारी यह बात अच्छी लगी। इस के बाद हमारे जीवन हमेशा के लिये बदल जायेगे लेकिन यह बदलाव अच्छे कि लिये होगा ऐसी मेरी कामना है, मैं अच्छा प्रेमी नहीं हूँ
मुझे मत समझाइये, आपकी पत्नी मेरी ननद ही नहीं दोस्त है। मुझे सब पता है। शरारतों से बाज आओ
मैंने वाणी का हाथ पकड़ कर उसे अपने से सटा लिया। उस के शरीर की सुगंध मेरे लिये नयी थी। मैं उस के कारण मदहोश होने वाला था। वह यह जानती थी। उस ने मेरा चेहरा अपने हाथों में ले कर मेरे होंठों पर अपने होंठों की छाप छोड़ दी। वाणी के अधरों की मधुरता मुझे भाने लगी। कुछ देर तक हम दोनों एक दूसरे के अधरों का रसपान करते रहे, इस का एक फायदा हुआ कि हमारी शर्म खत्म हो गयी और हम अगले दौर के लिये तैयार हो गये। वासना की आग हम दोनों के शरीर में भड़क गयी। मेरे होंठ वाणी की गरदन पर होते हुये छाती पर आ गये लेकिन ज्यादा नीचे नहीं जा सके क्यों कि वहाँ पर कपड़ों की बाधा थी।
उस ने सलवार कुरता पहना हुआ था मैंने उसे ऊपर कर के उतार दिया। ब्रा में उसके उरोज मुझे ललचा रहे थे। मैंने उसकी ब्रा उतार दी और उस के उरोजों को अपने होंठों से चुमना शुरु कर दिया। मेरे से अब अपने आप को कन्ट्रोल करना संभव नहीं था। हाथों से उसकी पीठ को सहला कर मैंने उस की सलवार भी उतार दी अब वह पेंटी में थी। इस के बाद मैंने अपने कपड़ें उतार दिये और मैं भी ब्रीफ में था। हम दोनों एक दूसरें के शरीरों को सहला रहे थे। ऐसा करना जरुरी था। हम दोनों ऐसे रिश्ते में थे कि अगर हमें सेक्स का आनंद लेना था तो अपने दिमाग से रिश्तों को निकाल देना था। शरीर को सहला कर हम दोनों अपने शरीर में सेक्स की आग को भड़का रहे थे। उस के बाद उसे बुझाना भी था।
मैंने वाणी की पेंटी उतार दी और अपनी ब्रीफ भी उतार कर रख दी। इस के बाद मैंने हाथ से उस की योनि को सहलाया और अपनी ऊंगली उस की योनि में डाल दी। वहाँ पर नमी भरपुर थी। ऊंगली योनि में अंदर बाहर करके मैंने आग को और भड़काया और उस के बाद उसे भोगने के लिये उसकी भरी जाँघों के बीच बैठ गया। अपने लिंग को वाणी की योनि के मुँख पर एक दो बार सहलाया और लिंग को योनि में डालने की कोशिश की जो फेल हो गयी। तभी वाणी ने अपने हाथ से लिंग को पकड़ कर योनि के मुँख पर रखा और मुझे इशारा किया मैंने दबाव डाला और लिंग का सुपारा योनि में चला गया। दूसरे धक्के में लिंग पुरा योनि में समा गया। कुछ क्षण रुकने के बाद मैंने लिंग को अंदर बाहर करना शुरु कर दिया। वाणी भी नीचे से मेरा साथ देने लगी। हमें यह संभोग जल्दी खत्म करना था। रमा किसी समय भी बाजार से वापस आ सकती थी।