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Adultery रीमा की दबी वासना
देवी - काल मतलब समय, इस मृत्यु लोक में सब काल ही तो नियंत्रित करता है | इतना कहकर उन्हें आंखे बंद कर ली और एक उर्जा का अहवान किया | पल भर में वहां आग की भयानक लपते उठने लगी | आग की तपिश असहनीय होती जा रही थी | लेकिन रीमा ने तो जैसे किलो भर चरस फूंक रखी हो | सभी आदम आग की तपिश से पीछे हटने लगे लेकिन रीमा तस से मस न हुई | उसका शरीर उस अग्नि के ताप से झुलसने लगा था फिर भी वो देवी के सौब्दर्य और आकर्षण में बंधी एक तक उन्हें निहारती रही |  अग्नि ने का बवंडर रीमा के चारो तरफ मंडराने लगा, आदि शक्ति ने एक मंत्र पढ़ा और फिर सारी अग्नि उनके हाथ में पकडे चन्द्राकार भाले में समां गयी | आदि शक्ति ने वो भाला रीमा के सर पर दे मारा | रीमा चीखी और एक भयानक विस्फोट हुआ | भाले से असीमित अग्नि उर्जा निकल कर रीमा के जिस्म में समाती चली गयी | रीमा वही पर लुढ़क गयी | उसके मूर्क्षित होते मनो मस्तिष्क में सिर्फ यही स्वर सुनाई पड़ा - इन्हें मुक्ति दे दो, सिर्फ तुम्ही दे सकती हो | तुमारा कल्याण हो हर मनोकामना पूरी हो | आदि शक्ति ब्रम्हांड के जिस जगह से आई थी वही को फिर रवाना हो गयी | जब रीमा मूर्क्षित हुई थी तो उसे लगा था उसके प्राण पखेरू उड़ जायेगे | लेकिन कुछ ही पलो में सब फिर से वैसा हो गया | वो आदम डरते डरते रीमा के पास आये | रीमा की जैसे चेतना लौटी | खुद तो निवस्त्र देख उसने अपनी जांघे समेत ली और अपने हाथो से अपने स्तन ढक लिए | सारे आदम नंगे थे | बुढा आदम आगे बढ़कर जमीन पर दंडवत लेटकर रीमा को प्रणाम करता हुआ - हमें मुक्ति दे दो देवी | हमारे जीवन का कष्ट हर लो  | मै उस मुर्ख के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ | उसने जो भी किया अज्ञानता वस् किया | उसका आशय आपने शरीर का भोग करना कदापि नहीं था | वासना से वो ग्रसित हो गया था लेकिन  उसे तो बस हम सबकी तरह मुक्ति चाहिए |

रीमा कुछ देर तक सबको घूरती रही, अब न उसके अंदर डर था न ही मरने का भय | सब दूर हो चूका था | वो अब इनके भयानक चेहरों से भयभीत नहीं थी | 

रीमा - कौन हो तुम लोग, क्या चाहिए तुमे |
बुढा आदम - मुक्ति चाहिए देवी | 
रीमा - मेरा मांस नोचकर खाओगे | मेरी बलि चढ़ावोगे |
बुढा आदम - नहीं देवी, हम सब काम वासना के शापित है, हमें वही मुक्ति दिला सकती है | हम किसी काल में अपने ही किसी देवी के काम वासना के कारण कोप का भाजन बने 
रीमा - मतलब तुम सब, उनके गधे की साइज़ के लिंग  की तरह इशारा करके, ये जानवर के साइज़ से मेरी दुर्गति करके मुक्ति मिलेगी | अभी जो इसने किया वही तुम सब करना चाहते हो | 
बुढा आदम - नहीं देवी, आप गलत समझ रही है | ये हम सबमे सबसे छोटा है, जब हम शापित हुए थे तो ये केवल तेरह वर्ष का था | इसे तो स्त्री देह, उसकी गर्मी, वासना, योनि, सम्भोग, स्खलन कुछ नहीं पता | ये तो अबोध बालक जैसा था | इसने पिछली बार ४० साल पहले एक आदम को इसी तरह एक  स्त्री के साथ करते देखा था तो मुक्ति की चाह में आपके भी .......... (एक लम्बी चुप्पी) मै उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ | लेकिन इसी बहाने हमें ये तो पता चला की आप के स्पर्श से हम स्खलित हो सकते है |  हम जीवन मृत्यु के उस चक्र में वापस लौट सकते है, जहां भूख है प्यास है, कामना है और मृत्यु भी। जीवन है तो संभोग है और फिर उस संभोग ने नवजीवन, यही जीवन प्रक्रिया है। आप हमने वो हाँड़ मांस का शरीर लौटा सकती हो, जिसका एक निश्चित समय है, उन निश्चित अवधि में इन मुर्दा  लिंगो में फिर से रक्त संचार हो सकता है | इनमे फिर से तनाव आ सकता है | ये फिर से स्त्री का मर्दन कर सकते है मेरा आशय योनि मर्दन से था और मर्दन से स्खलन होगा और मुक्ति । 
रीमा - मै कुछ समझी नहीं तुम सब नपुंसक हो |
बुढा आदम - नहीं हम नपुंसक नहीं है लेकिन हमारा पुरुषत्व हमारी पुरुषत्व होने की सवेदना छीन ली गयी, हमारे लिंग सवेद्नाहीन कर दिए गए, रक्त संचार नहीं होता इनमे और न ही हम स्खलित होते है | जो उस बच्चे ने किया वो असली स्खलन है, जहां नवजीवन देने वाली कोशिकाएँ बनती है और बाहर निकलती है। 800 सालो से हम अपने तेज को संभाले ब्रम्चार्य का पालन करते हुए अपनी मुक्ति की राह देख रहे है | 
रीमा - तुम 800 साल से जिन्दा हो | 
बुढा आदम - इसमें आश्चर्य कैसा | 
रीमा - इतने दिन कोई आदमी जिन्दा नहीं रह सकता | 
बुढा आदम - आप जिस दुनिया से हो उसके लिए संभव है लेकिन हम इन जर्जर शरीरो में जीवित है यही सच है | 
रीमा - कैसे | 
बूढ़ा आदम - जब आप काल के चक्र में अपने परमाणुओं की गति को जितना धीमा कर देते हो, आपके शरीर की परिवर्तन की गति भी उतनी ही धीमी हो जाती है । इसलिए हम इतने सालो से जीवित है ।
बुढा आदम - हमें मृत्यु दे दो, मुक्ति मिल जाएगी | 
रीमा - मै कैसे दे सकती हूँ | 
बुढा आदम - आप के अलावा और कोई नहीं दे सकता | काल ने आपको ही नियुक्त किया है | आप ही हमे हमारे परमाणुओं की वो गति लौटा सकती हो ।
रीमा - मेरी कुछ समझ नहीं आ रहा है, मै कैसे तुम्हे मार सकती हूँ | मैंने आज तक किसी की हत्या नहीं की  (मन ही मन में गिरधारी को छोड़कर )|
बुढा आदम - आपको मारना नहीं है बस हमें मुक्ति के लिए जो चाहिए वो दे दीजिये | 
रीमा - क्या चाहिए ? 
बुढा आदम - योनि |
रीमा आश्चर्य से - क्या ? क्यों ?
बुढा - आपकी योनि ?
रीमा - तुम  पागल हो गए हो, तुम क्या कहना चाहते हो, मेरी चूत से तुम्हे कैसे मुक्ति मिल जाएगी | आपकी बात चलो मान लेती हूँ लेकिन  चुदाई से सम्भोग से मुक्ति मिल जाएगी कैसे , एक औरत की चूत चोदकर आपको मोक्ष मिल जायेगा बात कुछ गले के नीचे उतरी नहीं ?
बुढा आदम - बहुत फर्क है देवी, भावना का फर्क है, लक्ष्य का फर्क है | क्या संतानोपत्ति के लिए किये गए सम्भोग और सामान्य वासना तृप्ति के सम्भोग में कोई अंतर नहीं | क्या गर्भ धारण करते समय दंपत्ति उत्तम संतान के  समस्त ब्रम्हांड की सकारात्मक शक्तियों का, अपने पूज्य देवी देवताओं का अहवान नहीं करते |  बहुत फर्क है देवी | भावना का फर्क है, कर्म का फर्क है और मिलने वाले कर्म फल का अंतर है | 
बूढ़े के जवाब ने रीमा को निरुत्तर कर दिया | 
रीमा - अभी भी मुझे भरोसा नहीं | 
बुढा आदम - मेरी आखो में देखो, ये झुरियो से भरा चेहरा ये कंकाल शरीर, क्या लगता है क्या तुमारे कमनीय यौवन के रसपान का भूखा है | हम श्रापित है, हमें कोई कामना, कोई वासना की अभिलाषा नहीं है | हम करे भी तो उसे भोगने की इन्द्रियां शुन्य हो चुकी है | ये सब  अपना विवेक चेतना विचार शक्ति रस गंध का भेद करने का ज्ञान, सब गँवा चुके है, ये पुरे वन आदम है आदि मानव की तरह | बस हममे से कुछ है जिन्होंने अपने आत्मबल और आत्मा की शुद्धता के कारन न केवल अपना अतीत याद रखा बल्कि सदियों से मुक्ति के लिए प्रयासरत रहे | 
बुढा - देवी मानव जीवन की शुरुआत गर्भ से होती है और शिशु बालक योनि से इस दुनिया में आता है और मुक्ति भी योनि से ही मिलती है | बिना सम्भोग के किसे सहज मृत्यु आती है | आजीवन ब्रम्हचारी अपनी सजह मृत्यु कब मरते है, उन्हें मुक्ति किसी अन्य उपाय से ही मिलती है | 
रीमा को बूढ़े की बात पर हँसी आ गयी थी - चुदाई से मुक्ति ।
बूढ़ा आदम - आप हंस सकती है क्योंकि आपको ये बात बहुत सतही लगेगी लेकिन सच यही है । हमे  अपने शरीर के परमाणुओं की गति वापस पाने के लिए असल में आपके गर्भ में जाना चाहिए, लेकिन जन्म लिए मनुष्य का वापस गर्भ में जाना असंभव है इसलिए हम बस गर्भ मुख तक जायगें और वही से आप हमारे शरीर के परमाणु की गति को उलटा दिशा में पलट दोगी । आपने उस आदम का लिंग देखा है, जिसको रीमा ने काट डाला था, रीमा ने ज़मीन पर पड़े उस आदम के लिंग की तरफ नजर उठाई जो उसकी गाड़ को चीर कर अन्दर घुस गया था, उसके लिंग का साइज़ बिलकुल सामन्य था, सुघड़ चिकना और पूरी तरह से तना हुआ | वो शरीर से अलग होने के बाद भी न सिकुड़ा, न नरम हुआ, और बूढ़े आदम ने जाकर उसे फिर से उस आदम के शरीर में लगा दिया । रीमा हैरान रह गई, ये कैसे संभव है, जैसे ही बूढ़े आदम ने उस लिंग को सर कटे आदम को लगाया, उसने अपने हाथों से  उसने कस कर जड़ से पकड़ कर मसलने लगा  | 
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रीमा - ये कैसे संभव है, कैसे ।
बूढ़ा आदम - इसके परमाणुओं की स्थित अभी भी स्थिर है और वही है जो कटने के पहले थी, अगर ये भिन्न भिन्न अवस्था में पहुँच जाये तो लिंग का पुनः शरीर में अवस्थित होना असमभव था । ये बालक अभी भी उसी अवस्था में है जिस अवस्था में इसका सर विच्छेदन किया गया था इसलिए इसका चेहरा अभी भी प्रसन्नचित है ।
रीमा - फिर भी इसके लिंग में तनाव आने का कारण मुझे समझ नहीं आया, मेरे जिस्म में ऐसा क्या है ?
बूढ़ा आदम - तुमारे शरीर से उत्सर्जित होने वाली सूक्ष्म उर्जा की तरंगो (जो प्रकट रूप में परमाणु के अवयव है, अन्यथा ऊर्जा है ) ने वर्षो से सुसुप्त पड़े सवेदना धागों को सक्रीय कर दिया | इसलिए जब ये तुमारे शरीर के सपर्श में आकर इसने घर्षण  किया  तो इसके लिंग के सुसुप्त पड़े संवेदना तंतु के परमाणु  उस सूक्ष्म ऊर्जा तरंगों से अपनी गति बदल कर सक्रीय हो उठे और लिंग में रक्त संचार बढ़ गया | ऐसा नहीं था की पहले रक्त संचार नहीं होता था लेकिन वो बस उतना था जितना उसे शरीर का हिस्सा बनाये रखने के लिए जरुरी था | रक्त भरने से लिंग में कठोरता आ गयी और आपस में संघर्ष करते दो शरीरो में ये समय भी आया जब  सूखी  लकड़ी जैसा खुदुरा, पूरी तरह से कठोर लिंग गुदा द्वार से जा टकराया और इसे तुमारा दुर्भाग्य कहूँगा और हम सबका सौभग्य की उस समय इतना  भीषण दबाव् तुमारे गुदा द्वार पर पड़ा की लिंग गुदाद्वार को चीरता हुआ अन्दर घुस गया | तुमारी गुदा सुरंग रक्त रंजित हो गयी | तुम भीषण दर्द से चीखी और उस चीख से तुमारे शरीर की सारी उर्जा तुमारी गुदा छिद्र में आकर एकत्रित हो गयी | घायल गुदा अपनी पूरी शक्ति से संकुचन करने लगी,  इतना सख्त संकुचन और असीम उर्जा के इकट्ठे होने से ये लिंग इसे सहन नहीं कर पाया और स्खलन शुरू हो गया | तुमारे शरीर का गुदा रस, रक्त और आदम का वीर्य तीनो का समागम ही इसके लिंग को मानव स्वरूर में ले आया, कुछ तो तुमारे शरीर के परमाणुओं में जो वो संपर्क में आने की गति बदल देते है । ये शरीर इन्ही भौतिकी का नियमों का पालन करता है । 
रीमा - इसके परमाणु सक्रिय हुए हो या नहीं लेकिन मेरी तो दुर्गति हो गई, कितना भीषण दर्द हुआ । 
बूढ़ा आदम - स्त्री के लिए संभोग कई बार कष्ट कर होता है और स्त्री के पास इसे सहने की शक्ति भी होती है , इसलिए स्त्री विशेष है । 
रीमा - कुल अर्थ ये है बिना लिंग के योनि या गुदा में जाये ये समागम पूर्ण नहीं होगा और मुक्ति नहीं मिलेगी । 
बूढ़ा आदम - यही एक मुक्ति मार्ग है । 
रीमा - आप कुछ भी कहे लेकिन हमारी दुनिया में इसे चुदाई ही कहते है, एक ने किया तो ये हाल है । 
बूढ़ा आदम - क्या संभोग से गर्भ नहीं ठहरता।
रीमा - हाँ संतान भी होती है । 

बूढ़ा आदम - तो संभोग का उद्देश्य क्या है, आनंद, नहीं वो तो उस प्रक्रिया का एक कारक है, परिणाम तो नव जीवन की रचना ही है । अब सोचिए जो गर्भ नये परमाणु बनाकर नया जीवन दे सकता है वो दुनिया में मौजूद परमाणु की दिशा और गति बदल सकता है । 
रीमा - इसका मतलब तुम मेरी योनि में लिंग डालोगे और मुक्ति पा जावोगे, तुम्हें मुझे चोदने की ज़रूरत नहीं है ।
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बूढ़ा आदम - नहीं देवी, मेरे शरीर के परमाणु तब तक उस अवस्था में नहीं लौटेगे जब तब उनका आपने शरीर के परमाणुवों से मिलन नहीं होता, इसलिए आपका रक्त, रज और मेरे वीर्य का मिलन होना आवश्यक है , फिर हम दोनों अपनी स्वास साधन क्रिया से उस त्रिशक्ति रस को पुनः लिंग के माध्यम से अपने शरीर में स्थापित कर देगें और वो ऊर्जा हमारे मूलाधार चक्र से होती हुई रक्त संचार के माध्यम से वो हमारे पूरे शरीर में फैल जाएगा और हम अपनी मृत्यु अवस्था में वापस आ जाएँगें, फिर आपको हमारे ऊर्जित रक्त की भेंट उस पत्थर मूर्ति की योनि पर चढ़ानी होगी, जिसकी वजह से हमको ये गति प्राप्त हुई है । 

रीमा - मेरे लिए ये सब नया है लेकिन तुम अपने लिंग से कैसे कोई चीज शरीर में वापस प्रवेश करा दोगे । 
बूढ़ा आदम - साँसो के अभ्यास से सब संभव है, उस संभोग के चरम पर हमारे शरीर का ताप इतना होगा की कोई भी तरल पदार्थ नष्ट हो जाएगा, इसलिए हमारे शरीर से वीर्य नहीं, बल्कि उसकी ऊर्जा ही बाहर निकलेगी और आपकी योनि से होते हुए गर्भ तक जाएगी और आप अपनी महाशक्ति से उस ऊर्जा को न केवल हमारे शरीर में प्रस्थापित कर देगी बल्कि एक साथ ही सातो  चक्रो  को सक्रिय कर देगी और हम समाधि अवस्था में चले जायेगें ।फिर आपको हमारे निष्प्राण शरीर को चीर कर जो भी रक्त आपको मिले, उसमे अपने रक्त की एक बूँद मिलकर उसे मूर्ति के योनि द्वार में डालना होगा और हमे पाप मुक्त कर इस लोक से हमेशा के लिए विदा कर दे । हो सकता है हमारे रक्त की बलि इस पाषाण बन ऋषि का श्राप झेल रही ऋषि पत्नी को भी श्राप से मुक्त कर दे ।
रीमा - ये पत्थर मूर्ति के बारे तुमने कुछ बताया ही नहीं ?
बूढ़ा आदम - इनके बारे में तो बताना ही भूल गया, इन्ही देवी के कारण हम ऋषि के कोप का भाजन बने और इतने सालो से यहाँ मुक्ति को तड़प रहे है । ये भी अपने जड़वत रूप में खुले आकाश ने नीचे सर्दी गर्मी बारिश सब कुछ भोग रही है, चलिए आपको वही पाषाण स्थल पर ही ले चलता हूँ ।
रीमा को बूढ़े आदम की बारे समझ आई तो उसके जीवन के सहज ज्ञान की कायल हो गयी | सच ही तो कह रहा था बुढा | आज के समय में भले ही चुदाई को लोग बुरा बना दिया गया हो लेकिन पुराने समय में ये सहज था | स्त्री पुरुष का संसर्ग करना एक सहज और प्राकृतिक क्रिया है | 
पाषाण स्थल की तरफ़ जाते हुए - आप सब कुल कितने है यहाँ । 
बूढ़ा आदम - कुल हम ४०० थे लेकिन काल चक्र में सब टिक न सके, ३५० से ज़्यादा के शरीर नष्ट हो गये है, उनका मानव शरीर ही नहीं बचा और उन्हें मुक्ति भी नहीं मिली । कुल १० लोग ऐसे है जिनके शरीर स्थूल हो गये (पूर्णतः मिट्टी बन गये है), उनका मानव शरीर में लौटना संभव नहीं है । पता नहीं ऐसे लोगो को कैसे मुक्ति मिलेगी, मिलेगी या यू ही अनंत काल तक यहाँ भटकते रहेगें ।
रीमा - तुम ४० लोग हो जिन्हें मुक्ति चाहिए । 
बूढ़ा आदम - नहीं हम ३६ है और एक वो पाषाण प्रतिमा । ४ लोगों ने अग्नि स्नान कर लिया था, उसी काल में इससे उनके शरीर ऐसे हालत में पहुँच गये की उनका वापस लौटना अब संभव नहीं है ।
रीमा - क्या उन लोगो की आत्मायें भी संभोग करेगी । 
बूढ़ा आदम - नहीं आत्मा की अवस्था, अलग होती है, वो सिर्फ़ एक ऊर्जा है जिसे एक आयाम से दूसरे आयाम में जाना है, मुझे इसका ज्ञान नहीं वो क्या करेगी । मैं तो यथार्थ के लिए पुरुषार्थ कर रहा हूँ । हो सकता है पाषाण प्रतिमा के साथ उनको मुक्ति मिले ।
रीमा - आप बहुत गंभीर बात कर रहे है, आप मुझे जो मांग रहे है उसका मतलब जो मुझे समझ में आया की आप चुदाई मेरा मतलब सम्भोग से मुक्ति पा जायेगे ................. मेरा सवाल है कैसे ? मै भयभीत हूँ, आप सभी ३६ पुरुष मेरे साथ चुदाई मेरा मतलब सम्भोग करेगे और वो भी इस तरह के लिंग के साथ | मेरे प्राण एक दो लिंग सम्भालने में ही निकल जाएँगें ।
एक लम्बी ख़ामोशी छा गयी रीमा ने काफी देर बाद उस ख़ामोशी को तोडा  - यानि तुम सब मिलकर मुझे चोदोगे | हर चुदाई के बाद तुम लोगो की मुक्ति के लिए मुझे अपना रक्त बहाना पड़ेगा | 
बुढा आदम - नहीं देवी वो तो बस रक्त का एक परमाणु ही पर्याप्त है | आपनी गुदा भंजन में हुए घात के लिए मै उस बालक की तरफ से क्षमा प्रार्थी हूँ | आप के परमाणु अभी दिव्या शक्तियों से ओत प्रोत है ।
रीमा - फिर भी चालीस  पुरुष एक स्त्री को चोदेगे, सिर्फ़ अपनी मुक्ति के लिए | 
बुढा आदम - देवी आप इसे गलत दिशा से विचार कर रही है | यहाँ वासना जैसा कुछ नहीं है हमें आपके योवन का भोग नहीं करना है | हमें आपके अधरों का रस नहीं पीना है, हमें आपके स्तनों का दग्ध पान नहीं करना है | हमें आपकी योनि का मर्दन करके कामवासना का चरम सुख नहीं प्राप्त करना है | 
रीमा आवेश में बोली - लेकिन उससे क्या बदल जायेगा, जायेगा तो लिंग ही मेरी चूत में, मेरा मतलब योनि में, चुदुंगी तो मै ही न | कोई फर्क है |
बुढा आदम - ऐसा नहीं है शरीर में ऊर्जा का प्रहाव होता रहता है । जिन शरीर के अंगो की बात आप कर रही है, युवा शरीर में उन अंगो की तरफ़ को ऊर्जा का प्रहाव होता है, और इसीलिए स्त्री पुरुष संसर्ग को व्याकुल रहते है । मस्तिष्क से ये पूरी ऊर्जा का नियंत्रण होता है । सामान्य मनुष्य के मस्तिष्क के नियंत्रण में ये ऊर्जा प्रवाह नहीं होता है इसलिए जब शरीर की ऊर्जा का प्रहाव योनि या लिंग की तरफ़ होता है तो वे मनुष्य काम पीड़ित हो जाते है । ये एक युवा सामान्य मानव शरीर के काम  ऊर्जा का प्रहाव है । इस ऊर्जा के फल स्वरूप ही पुरुष में वीर्य का और स्त्रियों में रज रस का निर्माण होता है और इंसके मिलन से नया जीवन का निर्माण होता है, जो संभोग के बाद स्त्री के गर्भ में स्थापित हो जाता है। लेकिन हमारे ऋषियों मुनियो ने वर्षों की साधना तपस्या से जीवन के इन ऊर्जा प्रवाहों का पता लगाया और इन्हें संरक्षित करने का, नियंत्रित करने का मार्ग सुझाया । 
रीमा - मैं आपका आशय समझ नहीं पा रही हूँ ।

बूढ़ा आदम - पुरुष और स्त्री दोनों के शरीर में काम ऊर्जा का प्रवाह मस्तिष्क से निकल कर मेरु दंड से होता हुआ स्वाधिष्ठान चक्र  तक जाता है और वहाँ से मनुष्य के जननांगों में । मनुष्य के शरीर में कुल सात चक्र होते है जिनका नाम- मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुर चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्ध चक्र, आज्ञा चक्र, सहस्त्रार चक्र है। यह सभी चक्र हमारे विचारों, भावनाओं, स्मृतियों, अनुभवों और कर्मों के कारक हैं। एक व्यक्ति हठ योग के माध्यम से इन चक्रों को पूर्णतः जागृत कर सकता है। सबसे नीचे का चक्र है मूलाधार चक्र । मूलाधार चक्र सब चक्रो का आधार है, मूलाधार चक्र हमारे प्रजनन तंत्र को ऊर्जा देता है इसीलए  मूलाधार चक्र में सातों चक्र से कई अधिक ऊर्जा है । अगला चक्र स्वाधिष्ठान चक्र रीढ़ की हड्डी पर मौजूद होता है और यह सामान्य बुद्धि का आभाव, अविश्वास, सर्वनाश, क्रूरता और अवहेलना जैसी निम्न भावनाओं को नियंत्रित करता है। इस चक्र से काम भावना और उन्नत भाव जन्म लेता है। ये दो चक्र संभोग अवस्था में सक्रिय रूप से भाग लेते है ।

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सामान्यतः इन चक्र में अंतर्निहित ऊर्जा को जगाने के लिए योगी तपस्या करते है और इस विधि को कुण्डीलनी जागरण कहते है, योग और तप के ज़रिये मूलाधार चक्र से लेकर सहस्त्रार चक्र जब सभी चक्र जाग्रत हो जाते है तो ऐसे व्यक्ति को सिद्धि प्राप्त हो जाती है । इसी सिद्धि को प्राप्त करने के लिए योगी कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करते है और वीर्य का संरक्षण करते हुए उर्ध्वरेता बनने की कोशिश करते है  । वीर्य के संरक्षण से बल बुद्धि और आरोग्यता आती है । इसी तरह स्त्री भी अपनी कुंडलिनी जागरण कर सकती है ।
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रीमा -  परंतु यौवन ढलने तक स्त्री तो नियमित रजस्वला रहती है, फिर वो कैसे ब्रह्मचर्य का पालन करेगी ।
बूढ़ा आदम मुस्कुराया - मुझे तुमारी जिज्ञासा से आश्चर्य नहीं हुआ ध्यान  से सुनो 
बूढ़ा आदम - महिलाएं रजस्वला होते हुए कोई भी पूरुष के साथ शारीरिक संबंध न बांध कर ब्रह्मचर्य का पालन कर सकती है। ब्रह्मचर्य एक  अभ्यास से जुड़ा हुआ है । एक निश्चित अवधि के लिए या अपने शेष जीवन के लिए यौन गतिविधि से दूर रहने की औपचारिक प्रतिबद्धता को ही ब्रह्मचर्य कहते है ।गृहस्थ बनने से पहले तक  ब्रह्मचर्य  का पालन करना चाहिए ऐसा ज्ञान हमारे पूर्वज हमे देकर गए । 

रीमा - जब 
ब्रह्मचर्य इतना तेजस्वी बना सकता है तो आपको मुक्ति भी दिला सकता है ।
बूढ़ा आदम - नहीं, जो शरीर दो परमाणुओं की ऊर्जा के मिलन से बना है वो अकेले की तप से नष्ट तो हो सकता है लेकिन मुक्ति नहीं मिलेगी । दो बाते है एक है संभोग और दूसरा है मुक्ति। दोनो एक दूसरे के पूरक है ।  
सम्भोग के अंतिम समय जब आपके विचार शून्य हो जाते हैं , कोई विचार रह ही नहीं जाता सिर्फ़ एक साक्षी होता है जो असीम आनंद की अनुभूति करता है । जब विचार शून्य हो जाते हैं और आप साक्षी हो जाते हैं तो आप सीधे जाकर मिलते हैं परम ऊर्जा से । 
हर चक्र में कुछ ऊर्जा समाहित है जो बंद है अर्थात् जिस तक आपके चेतन मन की पहुँच नहीं है । जब आप संभोग की चरम अवस्था पर होते है तो इन चक्रो की सुसुप्त ऊर्जा प्रज्वलित होती है । जितना समय आप संभोग की चरम अवस्था में रहते है उतने समय तक ही ये चक्रीय ऊर्जा सक्रिय रहती है । इसे ऐसे समझो 
सबसे नीचे का चक्र है मूलाधार चक्र । मूलाधार चक्र में सातों चक्र से कई अधिक ऊर्जा है । इसका भी एक कारण है , मूलाधार चक्र हमारे प्रजनन तंत्र को ऊर्जा देता है । अब जहाँ से एक सम्पूर्ण शरीर के बीज का निर्माण होना हो जिसमें आत्मा रूपी ऊर्जा को सम्भालने की क्षमता होनी है , उसे अधिकतम ऊर्जा की आवश्यकता पड़ेगी ही ।
तो मूलाधार से ऊर्जा जब नीचे यानी प्रजनन तंत्र की ओर बहती है तो वो सम्भोग में काम आती है ।
अब जब आप ध्यान करते हैं तो सबसे पहले यही मूलाधार चक्र खुलता है इसे से ऊर्जा ऊपर की ओर बहती है और सारे चक्रों को खोलती चली जाती है । जब ये ऊर्जा सबसे ऊपर के चक्र सहस्त्राधार को खोल देती है इस अवस्था को समाधि कहते हैं ।
तो जब मूलाधार से ऊर्जा नीचे की ओर बहती है उसे सम्भोग कहते हैं
जब ऊर्जा ऊपर की ओर बहती है तो उसे समाधी कहते हैं ।
नीचे की तरफ़ ऊर्जा का बहाव स्वाभाविक है , इसमें ज़्यादा प्रयास की आवश्यकता नहीं पड़ती । जबकि ऊर्जा को ऊपर की ओर बहाने के लिए अधिक प्रयास की आवश्यकता पड़ती है ।
इसी लिए लोग अधिकतर सम्भोग में फँस कर रह जाते हैं । जो तपस्वी इस ऊर्जा को ऊपर की बहने का सिद्ध हासिल कर लेते है उनका संभोग में क्षरण नहीं होता । संभोग के उन क्षणों में जब आपका मूलाधार चक्र पूरी तरह प्रज्वलित है तो महा योगी/योगनी  उस वीर्य या रज रूपी ऊर्जा की खीच कर न केवल मस्तिष्क तक ले जा सकते है बल्कि एक तेज स्वास से उसे शरीर से बाहर निकाल कर प्राण भी त्याग सकते है । 

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बूढ़ा आदम एक लंबी सांस खीच कर - तुम्हें देवी वही महा तपस्वनी वाली सिद्धि देकर गई है । तुम देवी के प्रताप से उर्ध्वरेता महा महिषी तपस्वनी बन गई हो । जो हमारी वर्षों से संचित ऊर्जा को स्खलन के बाद न केवल अपनी गर्भ  में संभाल सकती हो बल्कि जिन योगियों की कुंडलिनी जागरण का अभ्यास नहीं है उनके शरीर में भी ऊर्जा का प्रहाव पलट सकती हो, बशर्ते वो उस समाधि की अवस्था में हो जो केवल संभोग के ज़रिये ही प्राप्त की जा सकती है । 
रीमा - आपने तो काम की लेकर मेरी पूरी सोच समझ ही हिला दी । अब तक मैं सिर्फ़ वासना को ही समझती रही ।
बूढ़ा आदम - इसलिए देवी, बहुत फर्क है देवी, भावना का फर्क है, लक्ष्य का फर्क है | क्या संतानोपत्ति के लिए किये गए सम्भोग और सामान्य वासना तृप्ति के सम्भोग में कोई अंतर नहीं | क्या गर्भ धारण करते समय दंपत्ति उत्तम संतान के  समस्त ब्रम्हांड की सकारात्मक शक्तियों का, अपने पूज्य देवी देवताओं का अहवान नहीं करते |  बहुत फर्क है देवी | भावना का फर्क है, कर्म का फर्क है और मिलने वाले कर्म फल का अंतर है | 
रीमा हल्का सा हँसते हुए - आपकी फ़िलासफ़ी एक तरफ़ और लेकिन ३६ मूसल लंड को लेना, तुम सबकी  मुक्ति हो न हो मेरी ज़रूर हो हो जाएगी ।
बूढ़ा आदम - मैं देख रहा था आपने महा देवी की अग्नि को आत्मसात् कर लिया है, उसके आगे कामाग्नि क्या है । 

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रीमा - फिर भी हाड़ मांस के शरीर का क्या । 
बूढ़ा आदम - ऐसा नहीं की हम अभी संभोग शुरू कर देगें, उसकी एक प्रक्रिया है और उस प्रक्रिया से गुजरकर आपको पूरी साधना करनी होगी, जब साधना पूर्ण होगी, तभी आपकी योनि हमारे लिंग को लेने के लिए उपयुक्त होगी । अन्यथा मैथुन तो उस मूर्ख बालक ने भी किया था, वीर्य क्षरण भी कर दिया लेकिन मुक्ति नहीं मिली ।  मेरे पास है आपके लिए कुछ, जो शायद आपका भय निकाल दे, एक लंबी साधना प्रक्रिया  । 
इतने में दोनों उस पाषाण प्रतिमा की पास पहुँच गये । रीमा ने देखा एक निर्वस्त्र स्त्री की पत्थर नुमा मूर्ति है, जिस्म स्त्री पीठ के बल लेती है और उसकी जाँघे घुटनों से मुड़ी हुई है और उसकी योनि पूरी तरह से खुली है, यहाँ तक की उसकी योनि में दो  उँगली जाने भर की जगह भी । प्रतिमा को देखकर लगता ही नहीं की वो निर्जीव पत्थर है, ऐसा लगता है किसी ने साक्षात मैथुन करती स्त्री को पत्थर में ढाल दिया है । 
रीमा - ऐसा लगता है किसी साक्षत् स्त्री को इस पत्थर में उतार दिया हो । 
बूढ़ा आदम - आप सच कह रही है देवी, ये प्रतिमा नहीं है, ये देवी लोचना है जो हमारे साथ ही साथ अपना भी मुक्ति का मार्ग देख रही है । 
रीमा - मतलब तुम कह रहे हो ये पत्थर नहीं है एक मनुष्य शरीर है।

बूढ़ा आदम - अब ये ख़ुद प्रत्यक्ष अनुभव करो, शब्दों का कोई अर्थ नहीं है यहाँ  । 
रीमा - पहले मैं चमत्कारों को नहीं मानती थी तुमसे मिलने के बाद मानने लगी हूँ लेकिन अभी भी यह संशय है । 
बूढ़ा आदम - संशय अभी दूर हो जाएगा । 
पीठ के बल लेटी मूर्ति के योनि छिद्र की तरफ़ इशारा करके - इसमें अपनी उँगली डालिये ।
रीमा ने डरते हुए - अपनी उँगली उसमें डाली, ऊपर से पाषाण और रीमा की उँगली को अंदर वही अहसास हुआ जो उसे अपनी योनि में उँगली डालने में होता है । 
बूढ़ा आदम - ये योनि से रिसता रस, लोचना  देवी की अतृप्त काम वासना की अन्नत प्रतीक्षा  है । हम वासना रत होकर अपने सुसुप्त परमाणुओं को सक्रिय करेगें और आपकी ऊर्जा से सातो चक्रो को उर्जित कर समाधि अवस्था में चले जायेगें । उन्ही परमाणुओं को आपको देवी लोचना के गर्भ में निष्पादित करना है, जब सबके परमाणु देवी लोचना के गर्भ में पहुँच जायेगें तो उनके गर्भ में उस संचित ऊर्जा की अग्नि शायद देवी की कामाग्नि को नष्ट कर दे और वो भी मुक्त हो जाए, ऐसा मेरा अनुमान है ।

 
रीमा ने इतन कुछ देख लिया था सुन लिया था की अब कुछ और सुनने समझने की ताक़त नहीं बची थी । एक पत्थर के अंदर मानव वो भी जीवित - विज्ञान में ये संभव नहीं है । 
बूढ़ा आदम - विज्ञान क्या है, जिसको हम प्रमाणित कर पाये, इसका अर्थ है जो प्रमाणित नहीं क्या वो सत्य नहीं हो सकता, क्या वो वास्तविक नहीं हो सकता । ये आकाश अन्नत है और यहाँ अनंत ऊर्जा के स्वरूप है, कौन सी ऊर्जा किस रूप में क्या चमत्कार कर सकती है हम तुक्ष लोगो को क्या पता । 

[Image: AVvXsEiTeapXKKcnOCvG_axVgfBqSyP_iBWw7cVE...=w640-h426]

रीमा बूढ़े आदम की तरफ़ देखती हुई - क्या है आपकी कहानी, मैं सुनना चाहूँगी । इन सबके बीच रीमा ये भी भूल गई वो आदम के साथ बिलकुल प्राकृतिक अवस्था में चल फिर रही है । न स्तनों को छिपाने का संकोच, न थिरकते नितंब कौन देख रहा है इसकी चिंता । रीमा के गले में एक हड्डी की माला पड़ी थी और शरीर पर नीला भभूत ।


बुढा आदम -हम न ही आदमखोर है, न ही मांस मदिरा भक्षी है, इ ही स्त्री खोर है और न ही जंगली है | ये बात है लगभग 800 साल पहले की | 
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उम्मीद है कहानी का ये पक्ष भी रीडर्स को पसंद आ रहा होगा । मेरी कोशिश रीमा  की वासना के हर पहलू को एक्स्प्लोर करने की है, इसीलिए एक रूटीन पर कहानी नहीं चला सकता । बहुत सी चीजे आगे पाइपलाइन में है लेकिन अपडेट जल्दी नहीं मिल पायेगे । जिन लोगो को जिज्ञासा है की आगे क्या होगा : -
क्या सच में रीमा इन आदमों को मुक्ति दे पाएगी या उनका इंतज़ार अनंत रहेगा ?
क्या रीमा सच में यहाँ से वापस जाएगी या जीवन के इन पहलुओं को समझने के बाद वो भी यही से मुक्ति ले लेगी ?
रीमा के बिना प्रियम और रोहित का क्या होगा ?
क्या विलास कभी सच में जान पाएगा अपने बेटे की मौत का सच ?
उस नवयुवक आदम को कैसे मुक्ति मिलेगी ?

इन सब सवालो के जवाब के लिए इंतज़ार करिए ।
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मेरी कोशिश एक ऐसा प्लेटफार्म पर कहानी को ले जाने की है  जहाँ से कंटेंट चोरी न किया जा सका, अगर इसमें मैं सफल रहा तो आपको ये कहानी एक नए कलेवर और फ्लेवर में मिलेगी । जहाँ आप कहानी पढ़ने के साथ साथ कहानी के बीच में एनीमेशन और ऑडियो का भी आनंद उठा पायेगे । मुझे नहीं पता प्लेटफार्म ओनर कितने पैसे लेगा और व्यूअर शिप को सब्सक्राइब मॉडल पर रखेगा या नहीं लेकिन इतना तो तय है इरोटिक कहानियों का नेक्स्ट लेवल एक्सपीरियंस मिलेगा । उम्मीद करता हो प्लेटोफ़ॉर्म ओनर से बातचीत सफल हो। मैं चाहता हो राइटर की मेहनत कोई चुरा न सके और रीडर्स को भी एक नए लेवल का एक्सपीरियंस हो ।

अगले साल मई तक वेट करिए, अपडेट करूँगा ।
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I thought that a wonderful story will be unfinished... I will never know what will happen with reema and her lust... seeing an update after long gap... I would like to thank the writer of the story how take out some quality time from his busy life to entertain us. Brother you had great writing skills and congrats to your efforts to keep alive the storyline... Please if you keep posting some of small update in some short gaps then will also get to know that this thread is also active. Keep entertaining us as looking forwarded to look what will reema do with all men in the jungles will she can satisfied all of them to give them liberated from their human life.
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