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Adultery मौके पर चौका
#61
Heart 
अज़रा की चूत से कामरस का अविरल प्रवाह जारी था जिससे मेरा हाथ सना जा रहा था लेकिन उस अलौकिक आनन्द को पाते रहने में मुझे उसकी चूत तक अपने हाथों की गर्दिश कयामत के दिन तक मंज़ूर थी।

थोड़ी देर बाद मैंने बहुत प्यार से अज़रा को आलिंगन में लिए लिए, दीवान पर लेटा दिया और उसके निप्पलों को अपने मुंह में लेकर खुद अज़रा के ऊपर झुक सा गया, उसके मुंह से सिसकारियां अपने चरम पर थी।

अचानक अज़रा ने अपना एक हाथ नीचे कर के मेरा लण्ड अपने हाथ थाम लिया और जोर जोर से अपनी ओर खींचने लगी।

आज़माइश की घड़ी पास आती जा रही थी, बतौर प्रेमी, मेरे कौशल का इम्तिहान बहुत सख़्त था, मुझे ना सिर्फ बिना कोई हल्ला गुल्ला किये एक कामयाब चुदाई करनी थी, बल्कि अपनी कुंवारी साली की चूत का आराम से मुबारक़ आगाज़ भी करना था।

बगल वाले कमरे में मेरी बेगम सो रही थी और किसी किस्म का हल्ला-गुल्ला उसकी नींद हराम कर सकता था।

काम मुश्किल था… पर मुझे करना ही था… हर हाल में करना था और आज के आज अभी करना था।

मैंने अज़रा को जरा सा सीधा किया और घुटनों के बल बैठ कर उसकी दोनों टांगों के बीच में आ गया, अपना लण्ड मैंने अपने दाएं हाथ में लेकर उसकी चूत की दरार पर रख कर थोड़ा अंदर की ओर दबाते हुए ऊपर नीचे फिराना शुरू कर दिया।

अज़रा के मुंह से आहें, कराहें क्रमशः तेज़ और ऊँची होती जा रही थी और उसके शरीर में रह रह कर उत्तेजना की लहरें उठ रही थी। जैसे ही मेरे लण्ड का सुपाड़ा अज़रा की चूत की दरार के ऊपर भगनासा को दबाता, उसके शरीर में मदन-तरंग उठती जिसका कम्पन मुझे स्पष्टत: अपने लण्ड पर हो रहा था।

अज़रा की चूत से कामरस अविरल बह रहा था, वह रह-रह कर मुझे अपने ऊपर खींच रही थी जिससे यह बात साफ़ थी कि लोहा पूरी तौर पर गर्म हो चुका है, ज़रुरत थी तो अब चोट करने की पर मैं कोई रिस्क नहीं ले सकता था।

अचानक मेरे लण्ड का सुपाड़ा अज़रा की चूत के मध्य भाग से जरा सा नीचे जैसे किसी नीची सी जगह में अटक गया और तभी उसके शरीर में भी जोर से इक झुरझुरी सी उठी, जन्नत का मेहमान जन्नत की दहलीज़ पर ख़डा था, मैंने अपना लण्ड उसकी चूत में वहीं टिका छोड़ दिया और ख़ुद उसके ऊपर सीधा लेट गया।

मैंने अज़रा का निचला होंठ अपने होंठों में लिया और हौले हौले उस को चुभलाने लगा। उसने बदले में अपनी दोनों टांगें हवा में उठाईं और मेरी क़मर पर कैंची सी मार कर अपने पैरों से मेरी क़मर नीचे की ओर दबाने लगी।

अभी मेरा सुपाड़ा भी उसकी चूत के अंदर नहीं गया था और ये चुदने को उतावली लड़की मेरे इस हलब्बी लण्ड को और अपनी चूत के अंदर लेना चाह रही थी।

मैंने अपने लण्ड पर हल्का सा दबाव बढ़ाया, अब मेरे लण्ड का सुपाड़ा उसकी रस से चिकनी चूत को फैलाकर उसमें टप्प से अंदर घुस गया।

‘आ… ई…ई…ई… ई…ई…ईईईई!!!’ -अज़रा के मुंह से मज़े से निकल रही सीत्कारों में दर्द का जरा सा समावेश हो गया। मुझे इस का पहले से ही अंदाज़ा था, मैंने फ़ौरन अपने लण्ड पर दबाब डालना बंद कर दिया और यहीं से सुपाड़ा वापिस खींच कर हौले से अज़रा की चूत में वापिस यही तक दोबारा ले जा कर फिर वापिस खींच लिया। कुल मिलाकर अभी मैं सिर्फ सुपाड़े से उसको चोद रहा था।

ऐसा मैंने तीन चार बार किया, अज़रा पर इसकी तत्काल प्रतिक्रिया हुई, पांचवी बार जैसे ही मैंने अपना लण्ड उसकी चूत से बाहर निकाला, उसने मेरी पीठ पर अपनी टांगों की कैंची तत्काल पूरी ताक़त से अपनी ओर खींची, परिणाम स्वरूप मैं भी उसकी ओर जोर से खिंचा और मेरा लण्ड भी अज़रा की चूत में ढाई से तीन इंच फनफनाता घुस गया।

"हाय... अल्लाह... ओ... अम्मी... मर गई..." -अज़रा के मुख से मज़े और दर्द से भरी मिली-जुली सिस्कारी निकल गई।

अज़रा की चूत एकदम कसी हुई और अंदर से जैसे धधक रही थी, मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरा लण्ड जैसे किसी नर्म गर्म संडासी में फंसा हुआ हो। ऐसा लगता था कि चूत की गर्मी धीरे धीरे मेरे लण्ड को पिघला कर ही मानेगी तो विरोध में मेरा लण्ड भी फूल कर और मोटा आकार लेने लगा।

चूत का रस खूब चिकनाहट पैदा कर रहा था और चूत में लण्ड का आवागमन थोड़ा सा आसान होता जा रहा था लेकिन अभी मैं अपने लण्ड को अज़रा की चूत के और ज्यादा अंदर प्रवेश करवाने से परहेज़ कर रहा था, आराम-आराम से अपने लण्ड को अज़रा की चूत से बाहर खींच कर, फिर जहां था वहीं तक दोबारा ठेल रहा था।

अब अज़रा भी इस रिदम का लुत्फ़ अपने चूतड़ उठा-उठा कर ले रही थी, ऐसे करते करते दस मिनट हो चुके थे और अज़रा आँखें बंद कर के चुदाई का पूरा मज़ा ले रही थी, लेकिन अभी कहानी आधी ही हुई थी, समय आ गया था कि इस चुदाई को सम्पूर्णता की ओर ले जाने का।

प्रेमपूर्वक की जा रही चुदाई का सबसे मुश्किल पल आने को था, यह वो पल होता है जब एक पुरुष, पूर्ण-पुरुष की उपाधि पाता है और एक लड़की, कच्ची कली से फूल बन जाती है। इसी पल से आगे चल कर औरत, एक माँ बनती है और एक नई कायनात रचती है।

इस पल में पुरुष लड़की के साथ प्यार के साथ साथ थोड़ी सी क्रूरता से पेश आता है, वही क्रूरता दिखाने का पल आ पहुंचा था। मैंने अज़रा की बाई चूची के निप्पल को मुंह में लिया और उसे चुभलाने लगा, उसके गर्म शरीर का उत्ताप फिर से बढ़ने लगा और उन्माद में वह बिस्तर पर जल बिन मछली की तरह तड़पने लगी।

मैंने उसका सर अपने दोनों हाथों की कैंची बनाकर फंसा लिया, फिर उसकी चूची के निप्पल से मुंह उठाया और उसके दोनों होठों को अपने होठों में दबा लिया और लगा चूसने। अगले ही पल मैंने अपना लण्ड अज़रा की चूत से बाहर निकाल कर पूरी ताक़त से वापिस उसकी चूत में ठांस दिया।

अगर मैंने उसके दोनों होंठ अपने होंठों से बंद नहीं कर दिए होते तो यकीनन उसकी चीख सड़क के परले सिरे तक सुनाई दी होती।

तत्काल अज़रा के दोनों हाथों ने दीवान की चादर पकड़ कर गुच्छा-मुच्छा कर डाली और अपने पैरों से मुझे पर धकेलने की असफल कोशिश करने लगी। उसकी आँखों से आंसुओं की धारें फ़ूट पड़ी पर अब तो जो होना था सो हो चुका था। अब अज़रा कुंवारी नहीं रही थी।

उसके गले से 'गों... गों ...' की आवाज़ें आ रही थीं लेकिन मैं उसकी चूत में अपना लण्ड जड़ तक ठांसे उसे वैसे ही जकड़े रहा।

मैं अज़रा के ऊपर औंधा पड़ा धीरे धीरे उसके सर को सहला रहा था, उसके आंसू अपने होंठों से बीन रहा था। धीरे-धीरे उसका रोना कम होता गया और मैंने हौले हौले अपनी क़मर को हरकत देना प्रारंभ किया, चार-छह धक्कों के बाद, अचानक अज़रा के शरीर में वही जानी पहचानी कम्पन की लहर उठी।

दो पल बाद ही अज़रा का शरीर इस रिदम का जवाब देने लगा। लण्ड को अज़रा की चूत  से बाहर खींचने की क्रिया के साथ साथ ही अज़रा अपने नितम्ब नीचे को खींच लेती और जैसे ही लण्ड उसकी चूत में दोबारा प्रवेश पाने को होता तो वह शक्ति के साथ अपने चूतड़  ऊपर को करती, परिणाम स्वरूप एक ठप्प की आवाज के साथ मेरा लण्ड उसकी चूत के अंतिम छोर तक पहुँच जाता।

अज़रा के मुख से ‘आह…आई… ओह… मर गई… हा… उफ़… उम्म्ह… अहह… हय… याह… हाय… सी… ई…ई’ की आधी-अधूरी सी मज़े वाली सिसकारियां लगातार निकल रही थी और मैं बेसाख्ता उसको यहाँ-वहाँ चूम रहा था, चाट रहा था माथे पर, आँखों पर, गालों पर, नाक पर, गर्दन पर, गर्दन के नीचे, कंधो पर, चूचियों पर, निप्पलों पर, चूचियों की घाटी में।

चुदाई इस समय अपनी पूरी स्पीड पर थी, अचानक अज़रा का शरीर अकड़ने लगा, उसने अपने दांत मेरे बाएं कंधे पर गड़ा दिए, मेरी पीठ पर उसके तीखे नाख़ून पच्चीकारी करने की कोशिश करने लगे।

ये लक्षण मेरे लिए जाने पहचाने थे, मैं तत्काल अपनी कोहनियों के बल हुआ और उसके दोनों हाथ अपने हाथों में जकड़ कर बिस्तर पर लगा दिए और अपनी कमर तीव्रतम गति से चलाने लगा, साथ साथ मैं कभी अज़रा होठों पर चुम्बन जड़ रहा था, कभी उसके निप्पलों पर, कभी उसकी आँखों पर।

अचानक अज़रा  का सारा शरीर कांपने लगा और उसकी चूत में जैसे विस्फोट हुआ और अज़रा की चूत से जैसे स्राव का झरना फूट पड़ा। अज़रा अपनी जिंदगी में पहली बार फुल चुदाई का मज़ा लेकर झड़ रही थी और उसकी चूत की मांसपेशियों ने संकुचित होकर मेरे लण्ड को जैसे निचोड़ना शुरू कर दिया।

प्रतिक्रिया स्वरूप मेरा लण्ड और ज्यादा फूलना शुरू हो गया, इसका नतीजा यह निकला कि मेरे लण्ड के लिए संकरी चूत में रास्ता और भी ज्यादा संकरा हो गया और मेरे लण्ड पर अज़रा की चूत की अंदरूनी दीवारों की रगड़ पहले से भी ज्यादा लगने लगी।

करीब एक मिनिट बाद ही जैसे ही मैंने पूरी शक्ति से अपना लण्ड अज़रा की चूत में अंदर तक डाला मेरे अंडकोषों में एक जबरदस्त तनाव पैदा हुआ और मेरे लण्ड ने पूरी ताक़त से वीर्य की पिचकारी उसकी चूत के आखिरी सिरे पर मारी फिर एक और.. एक और… एक और… एक और… मेरे गर्म वीर्य की बौछार।

अपनी चूत में मेरे वीर्य का लावा महसूस कर के अब तक निढाल और करीब-करीब बेहोश पड़ी अज़रा जैसे चौंक कर उठी और उसने मुझसे अपने हाथ छुड़ा कर जोर से मुझे अपनी बाँहों में ले लिया और मुझे यहाँ-वहाँ चूमने लगी।

एक भँवरे ने एक कली को फूल बना दिया था, एक लड़की, एक औरत बन चुकी थी, एक सफल चुदाई का समापन हो चुका था... अज़रा की सील आखिर टूट ही गई थी और मुझे अपने इस हसीं गुनाह पर कोई शर्मिंदगी नहीं थी।

और इसी के साथ अपने दोस्त सग़ीर ख़ान को अगली कहानी तक के लिए इजाज़त दीजिये। 

ख़ुदा हाफ़िज़  Namaskar Namaskar
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#62
Super bro
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#63
Heart 
(27-05-2024, 12:50 PM)Eswar P Wrote: Super bro

thank you dear  Namaskar Namaskar
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#64
Heart 
भाग - 5
हवस का पुजारी

मेरी कहानियां पढ़ने वाले सभी दोस्तो को आदाब, मैं आपका दोस्त सग़ीर ख़ान आज एक बार फिर से आप सबके लिए एक मस्त मादक कहानी ले कर आया हूँ।
जैसा कि अब तक आप लोग मुझे जानते हैं कि मैं चूत का कितना बड़ा रसिया हूँ, चूत देखते ही बस उसको खा जाने की तमन्ना एकदम से दिल में उभर पड़ती है। मैंने आज तक चुदाई करते हुए यह नहीं देखा या सोचा कि चूत किसकी है। बस अगर चोदने को मिली तो चोद दी क्योंकि चूत बनाई ही ऊपर वाले ने चुदने के लिए है, आप नहीं चोदोगे तो कोई और चोद देगा।

यही कारण है कि मैं अपने घर परिवार व रिश्तेदारी में कई हसीन चूतों का मज़ा ले चुका हूँ और आज भी जो मिल जाए चोदने को तैयार रहता हूँ। ऊपर वाले की दया से कभी चूत के लिए नहीं तरसा हूँ।

तो आइये लुत्फ़ लेते हैं आज की कहानी का जिसको नाम दिया है- "हवस का पुजारी"
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#65
Heart 
जैसा कि आप लोगों को पता है मेरा एक इलेक्ट्रॉनिक्स एन्ड इलेक्ट्रिकल्स का शोरूम है जहाँ में डेली बैठता हूँ। चूँकि मैंने इंजिनिअरींग की है तो फिलिप्स कंपनी कि तरफ से एक ऑफर आया कि 'आप खुद एक इंजीनियर है तो आप को सभी प्रोडक्ट की डिटेल नॉलेज के लिए कंपनी एक ट्रेनिंग दे रही है जिसमे आपका फाइव स्टार होटल में रहना खाना फ्री होगा। दिन में चार -चार घंटे के दो ट्रेनिंग प्रोग्राम रोज़ एक हफ्ते तक होंगे। + आने जाने का पेट्रोल या एसी ट्रैन का किराया मिलेगा' मैंने घर पर अम्मी और अब्बू को बताया कि बहुत अच्छा प्रोग्राम है तो उन्होंने जाने की परमिशन दे दी।

दो दिन पहले पता चला कि ट्रेनिंग आगरा शहर में होटल मुग़ल शेरेटन में होगी। मेरा नाम से एक रूम भी बुक करवा दिया गए है।

तभी मेरा एक फ्रेंड राजेश आया उसे पता था कि मैं आगरा जा रहा हूँ तो वह एक बड़ा सा पैकेट लेकर आया कि आगरा में कोई जयपुर हॉउस कॉलोनी है उसमे उसकी बुआजी रहतीं है तो प्लीज ये पैकेट उन तक पहुंचा दूँ, साथ ही मुझे दो हज़ार रुपये देते हुए कहा कि जब आगरा जा ही रहे हो तो हरी पर्वत चौराहे पर एक पंछी पेठा स्टोर है, उसके यहाँ से दो तीन तरह के पेठा लेते आना वैसे तो उसके यहाँ पेठा की पचासो वेराइटी है पर तुम केसर और सादा वाला ही लेते आना। एक एक डिब्बा मेरी तरफ से अपने लिए भी ले लेना।

तब मुझे ध्यान आया कि आगरा तो पेठा के लिए मशहूर है, तो मैंने भी कुछ डिब्बे अपने और रिश्तेदारों के लिए लेने का सोच लिया।

ट्रेनिंग से एक दिन पहले रात को डिनर वगैरह करके मैं इत्मीनान से ग्यारह बजे के आसपास आगरा के लिए निकल लिया।

सुबह सुबह साढ़े पांच बजे के करीब आगरा पहुँच कर मैंने सोचा कि पहले दोस्त का सामान उसकी बुआजी को दे आता हूँ, उनके यहाँ चाय पीकर इत्मीनान से फिर होटल में चेक इन करते हैं। बस फिर मैंने अपनी गाड़ी दोस्त के बताये एड्रेस की तरफ घुमा दी।

लगभग आधा घंटे के बाद मैं दोस्त के बताये पते के सामने था। मैंने बेल बजाई तो कुछ देर बाद एक लगभग तीस पैतीस की उम्र की भरे भरे शरीर वाली औरत ने दरवाजा खोला।

मैंने अपने दोस्त का नाम बताया और बताया कि उसने अपनी साधना बुआ के लिए कुछ सामान भेजा है।

तो वो बोली- "मैं ही साधना हूँ, आप अंदर आ जाइए"

मैं सोच रहा था कि मेरी अम्मी की उम्र की कोई बूढी औरत उसकी बुआ होगी पर ये तो बड़ी मस्त थी। जैसे ही वो मुड़ कर अन्दर की तरफ चली तो उनकी मटकती गांड देख कर मेरे लंड ने एकदम से सलामी दी। आखिर मैं ठहरा चूत का रसिया।

साधना का पूरा भरा भरा शरीर, मस्त बड़ी बड़ी चूचियाँ जो उसके सीने की शोभा बढ़ा रही थी, हल्का सा उठा हुआ पेट पतली कमर के साथ मिलकर शरीर की जियोग्राफी को खूबसूरत बना रहा था, उसके नीचे मस्त गोल गोल मटकी जैसे थोड़ा बाहर को निकले हुए चूतड़ जो उसकी गांड की खूबसूरती को चार चाँद लगा रहे थे।

आप भी सोच रहे होंगे कि शरीर की इतनी तारीफ़ कर दी, चेहरे की खूबसूरती के बारे में एक भी शब्द नही लिखा। अजी, इतने खूबसूरत बदन को देखने में इतना खो गया था कि चेहरे की तरफ तो निगाह गई ही नहीं।

खैर जब अन्दर पहुंचे तो बुआ ने मुझे बैठने के लिए कहा तो मेरी नजर उनके चेहरे पर पड़ी। जब बदन इतना खूबसूरत था तो चेहरा तो खूबसूरत होना ही था। रंग जरूर थोड़ा गेहुआ था पर चेहरे की बनावट और खूबसूरती में कोई कमी नहीं थी, ऐसी खूबसूरती की देखने वाला देखता रह जाए। कमजोर लंड वालो का तो देख कर ही पानी टपक पड़े। मुझे बैठा कर बुआ रसोई में चली गई और कुछ देर बाद चाय और नाश्ता लेकर वापिस आई।

जब से आया था तब से मुझे घर में साधना बुआ के सिवा कोई भी नजर नहीं आया था। अभी तो सुबह के लगभग सात बजे का समय था और बुआ अकेली थी। नाश्ता करते समय बुआ मेरे सामने ही बैठ गई और राजेश की फॅमिली के बारे में बात करने लगी।

मुझे आये लगभग आधा घंटा हो चुका था, अब मुझे वहाँ से निकलना था, होटल पहुँच कर ट्रेनिंग के लिए तैयार भी होना था। बुआ की खूबसूरती को देखते हुए मैं इतना खो गया था कि मेरा मन ही नहीं कर रहा था वहां से जाने का… पर जाना तो था ही।

कहते हैं ना कि ‘अगर आप शिद्दत से किसी चीज़ को चाहो तो पूरी कायनात आपको मिलाने पर लग जाती है' पर यह भी सच है कि कमीने लोगों कि ऊपर वाला बहुत जल्दी सुनता है। यही कुछ मेरे साथ भी हुआ।

जब चलने लगा तो बुआ ने पूछा कि कितने दिन के लिए आये हो और कहाँ रुक रहे हो?

तो मैंने बोल दिया- "एक हफ्ता रुकूँगा आगरा में, एक होटल में कमरा बुक है"

"अरे! होटल में क्यूँ? तुम्हारे दोस्त की बुआ का घर है तो होटल में क्यों रुकोगे?"

"नहीं बुआ जी, मेरा काम कुछ ऐसा है कि रात को देर सवेर तक काम करना पड़ता है और घर पर रहकर आप लोगों को तकलीफ होगी, तो मेरे ख्याल से होटल ही ठीक है"

"तुम ठीक तो हो? बुआ भी कहते हो और बुआ की बात भी नहीं मानते, मुझे कोई तकलीफ नहीं होगी तुम्हारे यहाँ रहने से, उल्टा मुझे कंपनी मिल जायेगी तुम्हारे यहाँ रहने से"

"वो कैसे?"

"तुम्हारे फूफा जी एक महीने के लिए सिंगापुर गये हुए हैं, उनका इम्पोर्ट एक्सपोर्ट का काम है ना तो घर पर सिर्फ मैं और मेरी ननद ही है, तुम्हारे यहाँ रहने से हम अकेली औरतें भी सेफ महसूस करेंगी"

"पर…मैं…"

"सग़ीर बेटा जैसा मेरे लिए राजेश है वैसे ही तुम, अगर तुम हमारे पास रुकोगे तो हमें ख़ुशी होगी, बाकी तुम्हारी मर्जी" -साधना बुआ ने थोड़ा सा मायूसी भरी आवाज में कहा तो मैं रुकने के लिए राज़ी हो गया और फिलिप्स के एरिया मैनेजर को फोन करके बता दिया कि मेरा रूम किसी और को देकर एडजस्ट कर ले। मैं यहाँ अपने रिलेशन में रुक रहा हूँ।

सच कहूँ तो मेरे अन्दर का कमीनापन जागने लगा था, दिमाग में बार बार आ रहा था कि अगर पास रहेंगे तो शायद साधना जैसी खूबसूरत बला की जवानी का रसपान करने का मौका मिल जाए।

वैसे साधना बुआ ने अपनी ननद का जिक्र भी किया था पर वो इस समय घर पर नहीं थी।

दो दो चूत घर पर अकेली मिले तो कमीनापन कैसे ना जाग जाए। मैंने गाड़ी में से अपना सामान निकाला और अन्दर ले आया। बुआ ने मेरे लिए एक कमरा खोल दिया जिसका एक दरवाजा बाहर की तरफ भी खुलता था।

मैंने सामान रख लिया तो बुआ ने एक चाबी मुझे दी और बोली- "देर सवेर जब भी आओ, यह दरवाजा खोल कर तुम आ सकते हो। जब तक यहाँ हो, इसे अपना ही घर समझो। मेरे लिए जैसा राजेश वैसे ही तुम हो"

बिजनेसमैन हर चीज का हिसाब लगा लेता है। पहली बात यहाँ रहने से घर का खाना मिलेगा और दूसरी बात कि अगर होटल में किसी चूत का इंतजाम करता तो पैसा खर्च करना पड़ता पर यहाँ अगर साधना बुआ से बात बन गई तो चूत भी फ्री में और अगर ननद की भी मिल गई तो एक्स्ट्रा बोनस।

मैंने अपना सामान कमरे में रखा ही था कि साधना बुआ आई, बोली- "नहाना हो तो दरवाजे से निकलते ही बाथरूम है"

नहाना तो था ही, रात भर के सफ़र की थकान जो उतारनी थी, मैं बुआ के साथ गया तो बुआ ने बाथरूम दिखा दिया। बाथरूम का दरवाजा कमरे में तो नहीं था पर था कमरे से बिल्कुल लगता हुआ।

मैंने बैग में से अपने कपड़े और तौलिया निकाला और नहाने के लिए बाथरूम में घुस गया।

बाथरूम में घुसते ही पहले फ्रेश हुआ फिर कपड़े निकाल कर नहाने लगा। नहाने के बाद जब कपड़े पहनने लगा तो देखा कि अंडरवियर तो बैग में ही रह गया है। जो पहना हुआ था वो गीला हो चुका था।

घर पर होता तो आवाज लगा कर मांग लेता पर यहाँ तो आवाज भी नहीं लगा सकता था। मैंने तौलिया लपेटा और जल्दी से कमरे में घुस गया।

contd....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#66
Heart 
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SADHANA BUAJI
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#67
Heart 
कमरे में घुसा तो देखा कि एक अट्ठारह बीस साल की लड़की पौंछा लगा रही थी, मैं उसको देख कर चौंक गया और वो मुझे देख कर। वो हतप्रभ सी मेरी ओर देख रही थी और मैं उसे। अचानक उसने शर्मा कर अपना मुँह दूसरी और फेर लिया।

उसके मुँह फेरने के बाद मुझे कुछ होश आया तो देखा कि मेरा तौलिया खुल कर मेरे पाँव में पड़ा था और मैं नंगा खड़ा था उस लड़की के सामने। लंड तना हुआ तो नहीं था पर हल्की हल्की औकात में जरूर था। मैंने हाथ में पकड़े हुए कपड़े बेड पर फेंके और झुक कर अपना तौलिया उठाया। वो लड़की हँसती हुए मेरे पास से निकल कर बाहर चली गई।

क्या यह साधना बुआ की ननद है? मैं सोच रहा था पर वो बुआ की ननद नहीं थी बल्कि वो घर पर झाड़ू पौंछा करने वाली थी। नाम पहले मैंने नहीं पूछा था पर बाद में बुआ ने बताया था, उसका नाम शबनम था पर सब उसको शब्बो कहते थे।

तीसरी चूत… मेरे मन में फिर से एक लड्डू फूटा… सोच कर ही लंड अंगड़ाइयाँ लेने लगा था, उसे समझ में आ रहा था कि तीन में से एक आध चूत तो जरूर उसको मिलने वाली थी अगले पाँच-सात दिन में। तीन तीन चूतों के बारे में सोच सोच कर ही लंड करवटें लेने लगा था। जबकि अभी तक तीसरी चूत वाली के दर्शन नहीं हुए थे पर उम्मीद थी कि वो भी मस्त ही होगी।

तीन तीन चूतों के बारे में सोच सोच कर ही मैं तैयार हुआ और ट्रेनिंग के लिए होटल को निकल गया। होटल में ही मुझे शाम के पांच बज गए, मुझे खाली हाथ वापिस जाना अच्छा नहीं लग रहा था सो मैंने कुछ मिठाई और फल ले लिए। गाड़ी की पार्किंग के पास ही एक फूल वाला बैठा हुआ था तो बिना कुछ सोचे समझे ही मैंने एक छोटा सा गुलाब के फूलों का बुके भी ले लिया।

छ: बजे वापिस बुआ के घर पहुँचा। घण्टी बजाई तो दरवाजा एक तेईस-चौबीस साल की लड़की ने खोला, चेहरा खूबसूरत था तो मेरी नजरें उसके चेहरे पर चिपक गई। अभी वो या मैं कुछ बोलते कि बुआ आ गई और मुझे देखते ही बोली- “तुम आ गए”

उस लड़की ने बुआ की तरफ मुड़ कर देखा तो बुआ ने मेरा परिचय करवाया। यह लड़की बुआ की ननद थी, नाम था दिव्या। उन्होंने मुझे अन्दर आने के लिए कहा तो मैं उनके पीछे पीछे अन्दर आ गया।

मैंने फल और मिठाई मेज पर रखी तो बुआ ने उसके लिए थैंक यू बोला। मैं सोफे पर बैठ गया तो दिव्या मेरे लिए पानी लेकर आई।

जब वो मेरे सामने से मुझे पानी दे रही थी यही वो क्षण था जब मैंने दिव्या को ध्यान से देखा। दिव्या का कद तो कुछ ज्यादा नहीं था पर उसके पतले से शरीर पर जो चूची रूपी पहाड़ियाँ बनी हुई थी वो किसी की भी जान हलक में अटकाने के लिए काफी थी। उसकी कसी हुई टाइट टी-शर्ट में ब्रा में कसी चूचियों की गोलाइयाँ अपने खूबसूरत आकर को प्रदर्शित कर रही थी। पतला सा पेट और साइज़ के साथ मेल खाते मस्त कूल्हे… अगर कद को छोड़ दिया जाए तो कुल मिलाकर मस्त क़यामत थी।

बुआ और मैं बैठे घर परिवार की बातों में मस्त थे तभी दिव्या चाय बना कर ले आई और हम तीनों बैठ कर चाय पीने लगे। मैंने दिव्या से बात शुरू करने के लिए पूछा- “आप क्या करती हैं दिव्या जी?”

"दिव्या जी? सग़ीर जी, आप मुझे सिर्फ दिव्या कहो तो मुझे ज्यादा अच्छा लगेगा"

"सॉरी फिर तो तुम्हें भी मुझे सग़ीर ही कहना पड़ेगा… सग़ीर जी नहीं"

तभी बुआ भी बोल पड़ी- "फिर ठीक है, तुम मुझे भी साधना कह कर बुलाओगे, बुआ जी नहीं… बुआ जी सुनकर ऐसा लगता है जैसे मैं बूढ़ी हो गई हूँ" -कहकर साधना बुआ… सॉरी साधना हँस दी, साथ में हम भी हँस पड़े।

कुछ देर की बातों में दिव्या और साधना मुझसे घुलमिल गई थी। कुछ देर बातें करने के बाद मैं अपने रूम में चला गया और फिर चेंज करने के बाद तौलिया लेकर बाथरूम में घुस गया।

बाथरूम में जाकर नहाया और लोअर और बनियान पहन कर जैसे ही मैं अपने रूम में आया तो दिव्या कमरे में थी। उसका कुछ सामान उस कमरे में था जिसे वो लेने आई थी। इतनी चूतों का मज़ा लेने के बाद मुझे यह तो अच्छे से पता है कि कोई भी लड़की या औरत सबसे ज्यादा खुश सिर्फ अपनी तारीफ़ सुनकर होती है।

जैसे ही दिव्या अपना सामान लेकर कमरे से जाने लगी तो मैंने बड़े प्यार से दिव्या को बोल दिया- “दिव्या.. अगर बुरा ना मानो तो एक बात बोलूँ?”

“क्या?”

“तुम बहुत खूबसूरत हो… मैंने आज तक तुम्हारे जैसी खूबसूरत लड़की नहीं देखी”

“हट… झूठे…”

“सच में दिव्या… झूठ नहीं बोल रहा… तुम सच में बहुत खूबसूरत हो!”

“ओके… तारीफ के लिए शुक्रिया… अब जल्दी से तैयार होकर आ जाईये… भाभी ने खाना तैयार कर लिया होगा” -कह कर दिव्या एक कातिल सी स्माइल देते हुए कमरे से बाहर निकल गई।

दिव्या की स्माइल से मुझे इतना तो समझ आ चुका था कि अगर कोशिश की जाए तो दिव्या जल्दी ही मेरे लंड के नीचे आ सकती है। पर साधना भी है घर में… थोड़ा देखभाल कर आगे बढ़ना होगा।

अभी सिर्फ आठ बजे थे और इतनी जल्दी मुझे खाना खाने की आदत नहीं थी, मैंने अपना लैपटॉप खोला और दिन की ट्रेनिंग की रिपोर्ट तैयार करने लगा। कुछ देर काम करने के बाद मुझे बोरियत सी महसूस होने लगी तो मैंने लैपटॉप पर एक ब्लू फिल्म चला ली और आवाज बंद करके देखने लगा।

ब्लूफिल्म देखने से मेरे लंड महाराज लोअर में तम्बू बना कर खड़े हो गए। मुझे ब्लूफिल्म की हीरोइन साधना बुआ सी नजर आने लगी थी।

अचानक मेरे मुँह से निकला- "हाय… साधना बुआ क्या मस्त माल हो तुम"

और यही वो क्षण था जब साधना बुआ ने कमरे में कदम रखा। बुआ को कमरे में देख मैं थोड़ा घबरा गया, मैंने जल्दी से लैपटॉप बंद किया और साधना की तरफ देखने लगा।

"सग़ीर! कहाँ मस्त हो? कब से आवाज लगा रही हूँ, खाना तैयार है आ जाओ"

"वो बुआ… सॉरी साधना... मुझे जरा लेट खाने की आदत है तो बस इसीलिए"

"चलो कोई बात नहीं कल से लेट बना लिया करेंगे पर आज तो तैयार है तो आज तो जल्दी ही खा लेते है नहीं तो ठंडा हो जाएगा"

"ओके… आप चलिए मैं आता हूँ"

जैसे ही साधना वापिस जाने के लिए मुड़ी मैं खड़ा होकर अपने लंड को लोअर में एडजस्ट करने लगा और तभी साधना मेरी तरफ पलटी। मेरा लंड लोअर में तन कर खड़ा था, साधना हैरानी से मेरी तरफ देख रही थी।

मैंने उसकी नजरों का पीछा किया तो वो मेरे लंड को ही देख रही थी जो अपने विकराल रूप में लोअर में कैद था। वो बिना कुछ बोले ही कमरे से बाहर निकल गई। मैं थोड़ा घबरा गया था कि कहीं वो बुरा ना मान जाए पर मेरे अनुभव के हिसाब से बुरा मानने के चांस कम थे।

मैं अपने लंड को शांत कर लगभग पाँच मिनट के बाद बाहर आया तो टेबल पर खाना लग चुका था और वो दोनों मेरा इंतजार कर रही थी। वो दोनों टेबल के एक तरफ बैठी थी तो मैं टेबल के दूसरी तरफ जाकर बैठ गया।

दिव्या एक खुले से गले की टी-शर्ट पहने हुई थी और साधना अभी भी साड़ी पहने हुए थी। जैसे ही मैं अपनी जगह पर बैठा तो दिव्या उठ कर सब्जी वगैरा मेरी प्लेट में डालने लगी। क्यूंकि वो मेज के दूसरी तरफ थी तो उसको ये सब थोड़ा झुक कर करना पड़ रहा था, झुकने के कारण उसके खुले गले में से उसकी मस्त गोरी गोरी चूचियाँ भरपूर नजर आ रही थी।

CONTD ....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#68
Heart 
उसने नीचे ब्रा नहीं पहनी थी, इस कारण उसकी चूचियों का मेरी आँखों के सामने भरपूर प्रदर्शन हो रहा था। ऐसी मस्त चूचियां देखते ही मेरे लंड ने फिर से करवट ली और लोअर में तम्बू बन गया।

तभी मेरी नजर साधना पर पड़ी तो झेंप गया क्योंकि वो मेरी सारी हरकत को एकटक देख रही थी। दिव्या मेरी प्लेट में खाना डालने के बाद अपनी जगह पर बैठ गई और फिर हम तीनों खाना खाने लगे।

खाना खाते खाते मैंने कई बार नोटिस किया कि साधना बार बार मेरी तरफ देख देख कर मुस्कुरा रही थी, उसके होंठों पर एक मुस्कान स्पष्ट नजर आ रही थी। पर उस मुस्कान का मतलब समझना अभी मुश्किल था। आज मेरा पहला ही दिन था और जल्दबाजी काम बिगाड़ भी सकती थी।

खाना खाने के बाद मैं उठ कर सोफे पर बैठ गया और टीवी देखने लगा, दिव्या और साधना रसोई में थी। तभी दिव्या एक प्लेट में आगरे का मशहूर पेठा रख कर ले आई और बिलकुल मेरे सामने आकर खड़ी हो गई। मेरी नजर टीवी से हट कर दिव्या पर पड़ी तो आँखें उस नज़ारे पर चिपक गई जो दिव्या मुझे दिखा रही थी। वो प्लेट लेकर बिलकुल मेरे सामने झुकी हुई थी और उसकी ढीली सी टी-शर्ट के गले में से उसकी नंगी चूचियों के भरपूर दर्शन हो रहे थे।

मैं तो मिठाई लेना ही भूल गया और एकटक उसकी गोरी गोरी चूचियों को देखने लगा।

“सग़ीर बाबू… कहाँ खो गए… मुँह मीठा कीजिये ना…”

दिव्या की बात सुन मैं थोड़ा सकपका गया- “दिव्या… समझ नहीं आ रहा कि कौन सी मिठाई खाऊँ?”

“मतलब?”

“कुछ नहीं…” -कह कर मैंने एक टुकड़ा उठा लिया और दिव्या को थैंक यू बोला।

दिव्या ने भी एक टुकड़ा उठाया और मेरे मुँह में देते हुए बोली- “यू आर वेलकम!”

और हँसते हुए वहाँ से चली गई। हरा सिग्नल मिल चुका था पर साधना का थोड़ा डर था। डरने की आदत तो थी ही नहीं पर थोड़ा सावधानी भी जरूरी थी। कहते हैं ना सावधानी हटी तो दुर्घटना घटी।

करीब आधे घंटे तक मैं अकेला बैठा टीवी देखता रहा, फिर साधना और दिव्या दोनों ही कमरे में वापिस आ गई। साधना मेरे सामने वाले सोफे पर बैठ गई पर दिव्या आकर मेरे वाले सोफे पर मुझ से चिपक कर बैठ गई।

हम सब इधर उधर की बातें करने लगे पर बीच बीच में कई बार मैंने महसूस किया की शायद दिव्या जानबूझ कर अपने बूब्स मेरी कोहनी से टच कर रही थी… गुदाज चूचों के स्पर्श से मेरे लंड महाराज की हालत खराब होने लगी थी।

कुछ देर बातें करने के बाद साधना उठ कर अपने कमरे में जाने लगी और उसने दिव्या को भी आवाज देकर अपने साथ चलने को कहा। दिव्या ने कहा भी कि उसे अभी टीवी देखना है पर आरती ने उसे अन्दर चल कर बेडरूम में टीवी देखने को कहा और फिर वो दोनों कमरे में चली गई।

मैं अब अकेला बोर होने लगा तो मैं भी उठ कर पहले बाथरूम गया और फिर अपने कमरे में घुस गया, लैपटॉप पर कुछ देर काम किया फिर ब्लू फिल्म देखने लगा।

मुझे रात को बहुत प्यास लगती है, अपने घर में तो मैं सोते समय पहले से ही एक जग पानी का भर कर रख लेता हूँ। पर यहाँ मैं साधना या दिव्या को पानी के लिए कहना ही भूल गया था। कुछ देर सोचता रहा कि साधना या दिव्या को आवाज दूँ फिर सोचा की खुद ही रसोई में जाकर ले लेता हूँ।

मैं उठा और कमरे से बाहर निकला और रसोई की तरफ चल दिया। साधना के कमरे की लाइट अभी तक जल रही थी, सोचा कि दिव्या टीवी देख रही होगी। पर चूत के प्यासे लंड की तमन्ना हुई कि सोने से पहले एक बार उन हसीनाओं के थोड़े दर्शन कर लिए जाएँ ताकि रूम में उनको याद करके मुठ मार सकूँ। बिना मुठ मारे तो नीद भी नहीं आने वाली थी।

रूम के दरवाजे पर जाकर अन्दर झाँका तो अन्दर का नजारा कुछ अलग ही था, दीवार पर लगी स्क्रीन पर एक ब्लूफिल्म चल रही थी। मैं तो हैरान रह गया। जब नजर बेड पर गई तो मेरे लंड ने एकदम से करवट ली, साधना बेड पर नंगी लेटी हुई थी और दिव्या भी सिर्फ पेंटी पहन कर बुआ के बगल में बैठी हुई थी।

बुआ अपने हाथों से अपनी चूचियां मसल रही थी और दिव्या एक हाथ से अपनी चूचियाँ दबा रही थी, दूसरे से बुआ की नंगी चूत सहला रही थी। दोनों का ध्यान स्क्रीन पर था। मेरे कदम तो जैसे वहीं चिपक गये थे।

वो दोनों बहुत धीमी आवाज में बातें कर रही थी, मैंने बहुत ध्यान लगा कर सुना तो कुछ समझ आया- "दिव्या… मसल दे यार… निकाल दे पानी…"

"मसल तो रही हूँ भाभी…"

"जरा जोर से मसल… कुछ तो गर्मी निकले…"

"भाभी… हाथ से भी कभी गर्मी निकलती है… तुम्हारी चूत की गर्मी तो भाई का लंड ही निकाल सकता है!" -कह कर दिव्या हँसने लगी।

"तुम्हारे भाई की तो बात ही मत करो… बहनचोद महीना महीना भर तो हाथ नहीं लगाता मुझे… और जब लगाता भी है तो दो मिनट में ठंडा होकर सो जाता है..."

"ओह्ह्ह्ह… इसका मतलब मेरी भाभी जवानी की आग में जल रही है…"

"हाँ दिव्या… कभी कभी तो रात रात भर जाग कर चूत मसलती रहती हूँ… तुझे भी तो इसीलिए अपने पास रखा है कि तू ही अपने भाई की कुछ कमी पूरी कर दे"

"भाई की कमी मैं कैसे पूरी कर सकती हूँ… मेरे पास कौन सा लंड है भाई की तरह…" -दिव्या खिलखिलाकर हँस पड़ी।

"अरे लंड नहीं है तो क्या हुआ… तू जो चूत को चाट कर मेरा पानी निकाल देती है, उससे ही बहुत मन हल्का हो जाता है"

"भाभी… जो काम लंड का है, वो लंड ही पूरा कर सकता है, जीभ से तो बस पानी निकाल सकते हैं, चुदाई तो लंड से ही होती है"

"तू बड़ी समझदार हो गई है… पर तेरा भाई तो अब एक महीने से पहले आने वाला नहीं है, तो लंड कहाँ से लाऊं?"

"किसी को पटा लो…"

"हट… मैं तेरे भाई से बेवफाई नहीं कर सकती… आजकल नहीं चोदते है तो क्या हुआ… पहले तो मेरे बदन का पोर पोर ढीला कर दिया करते थे… बहुत प्यार करते हैं वो मुझे!"

"भाभी एक बात कहूँ…"

"हाँ बोलो मेरी रानी.."

"भाभी… तुम्हारे साथ ये सब करते करते मेरी चूत में बहुत खुजली होने लगती है… तुम तो बहुत चुद चुकी हो पर मेरी चूत ने तो बस तुम्हारी उंगली का ही मज़ा लिया है अब तक… मेरी चूत को अब लंड चाहिए वो भी असली वाला!"

"अच्छा जी… मेरी बन्नो रानी को अब लंड चाहिए… आने दे तेरे भाई को… तेरी शादी का इंतजाम करवाती हूँ"

"भाभी अगर बुरा ना मानो तो एक बात कहूँ…"

"हाँ बोलो..."

साधना बुआ और उसकी ननद दिव्या नंगी होकर लेस्बीयन सेक्स कर रही थी, दिव्या अपनी भाभी की चूत में उंगली करते हुए अपने लिए लंड की ख्वाहिश जाहिर कर रही थी।

"ये जो सग़ीर आया हुआ है…"

"हाँ… तो…"

"आपने गौर किया… कितना बड़ा लंड है उसका?"

"अरे… तुमने कब देख लिया उसका लंड…"

"देखा नहीं है भाभी… जब वो बाथरूम से नहा कर बाहर आया था तो उसके लोअर में तम्बू बना हुआ था बस उसी से अंदाजा लगाया कि बहुत लम्बा और मोटा लंड होगा उसके लोअर के अन्दर…"

"हाँ… देखा तो मैंने भी है… पर तेरा इरादा क्या है?"

"इरादा अभी तक तो नेक ही है… सोच रही हूँ की अपनी भाभी की जलती सुलगती चूत को सग़ीर के लंड से ठण्डा करवा दूँ… मेरी भी रोज रोज की मेहनत कम हो जायेगी…"

"कमीनी… मैं सब समझती हूँ… तू किसकी चूत को ठंडा करवाना चाहती है…"

"तो इसमें बुरा क्या है भाभी… ऐसे तड़प तड़प के जीना भी कोई जीना है?"

"दिव्या वो मेरे भतीजे का दोस्त है… वो क्या सोचेगा हमारे बारे में…"

"अरे भाभीजान… मर्द है वो… और जहाँ तक मुझे पता है सारे मर्द चूत के गुलाम होते हैं… चूत देखते ही सब भूल जाते हैं"

"अच्छा… तेरी चूत में अगर इतनी ही आग लगी है तो तू अपनी चूत चुदवा ले… मैं ये सब नहीं कर सकती!"

"पर भाभी मैंने आज तक लंड नहीं लिया है… पहली बार लेने में डर लग रहा है… अगर तुम मदद करोगी तो मैं भी जन्नत के मजे ले लूँगी"

"ना बाबा ना… मुझे तो डर भी लगता है और शर्म भी आती है ये सब सोचते हुए भी…"

"अच्छा जी… अपनी ननद से चूत चटवा कर, चूत में उंगली करवा के मज़ा लेती हो तब तो शर्म नहीं आती?"

"मेरी बन्नो… लगता है तेरी चूत का दाना कुछ ज्यादा ही फुदक रहा है जो सग़ीर के लंड को खाने के लिए तड़प रही है?"

"भाभी… सच में जब से सग़ीर के लोअर में खड़े लंड का अहसास हुआ है, तब से चूत पानी पानी हो रही है"

"चल अब बातें छोड़ और मेरी चूत का पानी निकाल… कल सुबह कोशिश करना सग़ीर को पटाने की… अगर वो मान गया तो चूत चुदवा लेना… मुझे कोई ऐतराज नहीं!"

"मेरी अच्छी भाभी…" -कहकर नंगी दिव्या नंगी साधना से लिपट गई और फिर वो दोनों अधूरा काम पूरा करने में व्यस्त हो गई।

contd....
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#69
Heart 
मैं भी चुपचाप अपने कमरे में आया और एक बार जोरदार मुठ मारी और फिर सुबह का इंतज़ार करते हुए सो गया। अगले दिन सुबह साधना ने मुझे उठाया, आँख खुली तो वो मेरे सामने खड़ी थी चाय का कप लेकर…

साधना को देखते ही रात का नजारा एक दम से आखों के सामने घूम गया, मन में तो आया कि पकड़ कर अभी चोद दूँ पर जब आग उधर भी लगी थी तो मैंने पहल करना सही नहीं समझा।

साधना नहा कर तैयार होकर आई थी, बढ़िया सा परफ्यूम लगाया हुआ था, बदन महक रहा था साधना का… मुझे खुद पर काबू करना मुश्किल हो रहा था।

साधना चाय मेरे हाथ में पकड़ा कर जाने लगी तो मैंने तारीफ़ करते हुए बोल ही दिया– "क्या बात है साधना… आज तो सुबह सुबह ही तैयार हो गई?"

"नहीं ऐसी कोई बात नहीं है… मैं तो हर रोज सुबह सुबह ही तैयार हो जाती हूँ"

"वैसे एक बात कहूँ… बहुत खूबसूरत लग रही हो आज" -औरतों वाला वही पुराना पैंतरा मैंने आज़माते हुए कहा।

साधना ने कोई जवाब नहीं दिया बस एक स्माइल दे कर वो कमरे से बाहर चली गई।

घड़ी देखी तो दस बजने वाले थे, ट्रेनिंग साढ़े दस तक शुरू हो जाती थी। मैं जल्दी से उठा और तौलिया लेकर बाथरूम की तरफ भागा। जैसे ही बाथरूम के पास पहुँचा, तभी दिव्या बाथरूम से बाहर निकली, मुझे देख कर उसने एक सेक्सी सी स्माइल दी और चली गई।

नहाने के बाद याद आया कि मैं आज भी अंडरवियर कमरे में ही भूल गया था पर अब शर्माने की जरूरत नहीं थी बल्कि साधना और दिव्या को कुछ दिखाने की जरुरत थी।

मैंने बनियान पहनी और तौलिया लपेट कर ही बाथरूम से बाहर आ गया। दिव्या रसोई में थी और आरती बाथरूम के सामने बनी एक अलमारी में से कुछ सामान निकाल रही थी।

जैसे ही मैं बाथरूम से बाहर आया, दरवाजे की आवाज सुनकर साधना का ध्यान मेरी तरफ हुआ, तभी मैंने जानबूझ कर अपने हाथ में पकड़े हुए कपड़े नीचे गिरा दिए।

साधना मेरे पास आकर मेरे कपड़े उठाने लगी। उसी समय मैं भी कपड़े उठाने के लिए नीचे बैठा। यही वो क्षण था जब मेरे तौलिये ने मेरे बदन का साथ छोड़ दिया, मेरा साढ़े सात इंच का लम्बा और लगभग तीन इंच का मोटा लंड एकदम से साधना के सामने सलामी देने लगा।

मैं जल्दी से उठा तो तौलिया नीचे गिर गया, लंड अब बिलकुल साधना के मुँह के सामने था। मैंने सॉरी बोलते हुए जल्दी से तौलिया उठाया और भाग कर कमरे में चला गया।

मैंने अपना काम कर दिया था, अब जो भी होना था वो साधना या दिव्या की तरफ से होना था। कमरे में जाकर मैं तैयार हुआ, तभी दिव्या कमरे में आई और मुझे नाश्ते के लिए बुलाने लगी।

बाहर आया तो मैंने देखा साधना और दिव्या टेबल पर बैठे मेरा ही इंतज़ार कर रहे थे। मैं सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया और चुपचाप नाश्ता करने लगा। साधना मुझे ही घूरे जा रही थी जबकि दिव्या बिना इधर उधर देखे नाश्ता कर रही थी। नाश्ता करने के बाद दिव्या बर्तन उठा कर रसोई में चली गई।

मैंने मौका देखा और साधना को देखते हुए बोला– "वो क्या है साधना… जो कुछ भी हुआ मैं उसके लिए शर्मिंदा हूँ… तभी मैं होटल में रुकने को बोल रहा था। अगर तुम बुरा ना मानो तो मैं आज किसी होटल में चला जाता हूँ"

"अरे सग़ीर… तुम इतना परेशान क्यूँ हो रहे हो… हो जाता है ऐसा कभी कभी… और हाँ… कहीं जाने की जरूरत नहीं है… जब तक आगरा में हो, तब तक तुम हमारे साथ ही रहोगे… समझे…" -बोलकर साधना ने एक कातिलाना स्माइल दी।

मैं तो खुद भी यही चाहता था, मैंने अपना लैपटॉप उठाया और फिर घर से निकल गया।

पहली ट्रेनिंग के बाद मैं लगभग एक बजे फ्री हो गया। वैसे तो मुझे दूसरी ट्रेनिंग भी अटेंड करनी थी पर चूत के रसिया को अब चूत नजर आने लगी थी तो सोचा कि अब बाकी की ट्रेनिंग कल करेंगे।

मैंने गाड़ी उठाई और वापिस घर की तरफ चल पड़ा। रास्ते में से मैंने कुछ खाने पीने का सामान लिया और दस मिनट के बाद ही मैं साधना के घर के सामने था, दरवाजे पर पहुँच कर डोर-बेल बजाई।

दरवाजा साधना ने खोला, अभी तक वो सुबह की तरह ही महक रही थी- "अरे सग़ीर, आज तो बड़ी जल्दी आ गए?"

"सुबह वाली ट्रेनिंग के बाद दो घंटे का ब्रेक था तो सोचा कहाँ इधर उधर भटकूंगा, घर ही चलता हूँ"

"यह तुमने बहुत अच्छा किया… मैं भी अकेली बोर हो रही थी… खाना खाओगे?"

"नहीं साधना… वो सुबह बहुत हैवी नाश्ता हो गया था… खाना खाने का बिल्कुल भी मन नहीं है"

"ओके जैसी तुम्हारी मर्जी… भूख लगे तो बता देना..."

"दिव्या… कहाँ है?"

"वो अपने कॉलेज गई है… चार बजे तक आएगी" -बोलकर साधना रसोई में चली गई।

मैं कुछ देर तो वहीं बैठा रहा फिर उठकर कमरे में चला गया, जाकर मैंने अपने कपड़े बदले और एक टी-शर्ट और लोअर डाल कर वापिस बाहर आकर बैठ गया। तभी साधना ट्रे में दो गिलास जूस के लेकर आ गई।

जब उसने मेरे सामने झुक कर मुझे गिलास पकड़ाया तो मन किया कि अभी उसकी चूचियां पकड़ लूँ।

"साधना! एक बात पूछूँ?"

"अरे… पूछो ना…"

"सुबह वाली बात का तुम्हें बुरा तो नहीं लगा?"

"नहीं यार… तुमने कौन सा जानबूझ कर कुछ किया था… फिर तुम तो अब घर के ही मेंबर जैसे हो…"

थोड़ी देर चुप रही पर मैंने महसूस किया कि मेरे सुबह वाली बात शुरू करने से साधना थोड़ा अलग रंग में आने लगी थी।

"सच कहूँ मुझे तो बहुत शर्म आई जब देखा कि मैं तुम्हारे सामने बिल्कुल नंगा खड़ा हूँ…"

फिर भी साधना कुछ नहीं बोली पर उसकी आँखें उसके मन का राज खोल रही थी जिनमे मुझे थोड़ा थोड़ा वासना के डोरे नजर आने लगे थे।

"साधना… तुमने तो मुझे बिल्कुल नंगा देख लिया…आज तक मेरी अम्मी के सिवाय किसी ने मुझे नंगा नहीं देखा" -मैंने साधना की आँखों में झांकते हुए एक और दांव खेला।

"सग़ीर! प्लीज कुछ और बात करो ना…"

"और क्या बात करूं साधना… झूठ नहीं बोलूँगा… जब से मैं आगरा आया हूँ तुम्हारी खूबसूरती का दीवाना सा हो गया हूँ"

साधना चुप रही।

"सच कह रहा हूँ साधना… अगर तुम मेरे दोस्त की बुआ ना होती तो मैं कब का तुम्हें अपनी दोस्ती का ऑफर कर चुका होता"

"रहने दो रहने दो… अब इतना भी मत चढ़ाओ मुझे… मुझे जमीन पर ही रहने दो!"

"साधना… एक बात पूछूँ?"

"हाँ पूछो..."

"आपके पति आपसे इतने इतने दिन दूर रहते हैं… दिल लग जाता है तुम्हारा?" -मैंने उस की दुखती रग को छेड़ा।

साधना मेरी बात सुनकर कुछ चुप सी हो गई, उसके चेहरे के भाव उसके दिल का हाल बयाँ कर रहे थे। वैसे तो मैं उसके दिल का हाल रात को ही जान गया था।

मैं उठा और साधना के पास जाकर बैठ गया, मेरे बैठते ही वह उठ कर जाने लगी तो मैंने बिना अंजाम की परवाह किये साधना का हाथ पकड़ लिया।

वह अपना हाथ छुड़वाने की कोशिश करने लगी तो मैंने थोड़ा जोर लगा कर उसको अपनी तरफ खींचा तो वो कटे पेड़ की तरह मेरे ऊपर गिर गई।

मैंने उसको सँभालते हुए उसकी कमर में हाथ डाला तो साधना के मुलायम और गुदाज बदन के एहसास ने मेरे दिल में हलचल पैदा कर दी।

contd....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#70
very hot stories... thanks for sharing
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#71
And next????
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