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Adultery मौके पर चौका
#1
Heart 
दोस्तो! जैसा कि अभी तक आप लोगों ने मेरी एक लम्बी कहानी "जिस्म की भूख" व दो छोटी कहानियों का लुत्फ़ उठाया। अब इस नए थ्रेड "मौके पर चौका" में आप लोग मेरी छोटी छोटी कहानियों का भी साथ साथ मज़ा ले सकेंगे जो चार या पांच एपिसोड में ख़तम हो जाया करेंगीं। 

बस जैसे अभी तक आप लोग अपने कमेंट्स और लाइक से मेरी हौसला आफज़ाई करते आये हैं वैसे ही आगे भी करते रहिएगा जिससे मैं पूरी काबिलियत से आप लोगों के लिए इसी तरह लिखता रहूँ।

सगीर खान 
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#2
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#3
Heart 
मेरे सभी चाहने वालों को सगीर खान का प्यार भरा आदाब !

तो बिना समय बर्बाद किये आइये मज़ा लेते हैं कुछ छोटी छोटी कहानियों का ...
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#4
भाग १ - अनजान हसीना

मैं अपने रोज़ के रूटीन की तरह अपनी इलेक्टॉनिक्स की शॉप पर बैठा था। शॉप में कुछ कस्टमर टीवी फ्रिज कूलर एसी वगैरह घूम घूम कर देख रहे थे। मैं हमेशा की तरह अपने केबिन में बैठा था। शॉप के सभी स्टाफ कस्टमर के साथ व्यस्त थे क्योंकि गर्मी ख़तम हो चुकी थीं इसके मद्देनज़र मेरे यहाँ गर्मी के सभी प्रोडक्ट्स पर बम्पर छूट चल रही थी। इसी के चलते मेरे शोरूम में काफी भीड़ भाड़ रहती थी।

अचानक एक बला की खूबसूरत लड़की और एक लड़का शीशे का दरवाजा खोल कर शॉप में अंदर दाखिल हुए। वह इधर उधर निगाह दौड़ाने लगे क्योंकि कोई स्टाफ ख़ाली नहीं था।

जब मैंने उन्हें खोजते देखा तो मैं खुद केबिन से निकल कर उनके पास जाकर बोला, "गुड मॉर्निंग मैम, हाउ कैन आई हेल्प यू?"

"हाय! इट्स वीणा, एंड ही इज़ माय हस्बैंड मि० वरुण, वी वांट टू परचेज ए मिक्सर प्लीज़"

"ओह, श्योर मैम, माय सेल्फ सगीर, प्लीज़ कम दिस साइड"

उसका रंग बिलकुल ऐसा कि किसी ने दूध में चुटकी भर सिंदूर मिला दिया हो। उसकी चूचियां लगभग चौतींस कि रही होंगी। स्लिम बॉडी उभरी हुई गांड, कद यही कोई पांच फुट चार या पांच इंच; कुल मिला कर ऊपर वाले ने उसको बिलकुल फुर्सत से बनाया लगता था। उसके साथ वाला बिलकुल भी उससे मैच नहीं कर रहा था। अजीब सा खोया खोया इंसान लग रहा था। ऐसा महसूस हो रहा था कि कोई गम है जो उसे अंदर ही अंदर खाये जा रहा हो।

“एक्चुअली हमें किसी ने आपके शोरूम के बारे में बताया कि आप के यहाँ से मैं बेफिक्र होकर कोई भी इलेक्ट्रॉनिक्स का सामान ले सकती हूँ और आपकी सर्विस 'आफ्टर सेल' भी बहुत अच्छी है। कोई भी दिक्कत होने पर आप डोर स्टेप सर्विस देते हैं।" -वो वीणा नाम की लेडी बोली

"जी मेम! आपने बिलकुल सही सुना है, हमारे यहाँ बिक्री से पहले सारे प्रोडक्ट्स को अच्छे से चेक करके ही शोरूम पर लाया जाता है। बिक्री के हफ्ते दस दिन बाद तक भी यदि कोई दिक्कत आती है तब भी हम पूरा सहयोग करते हैं। उसके बाद कस्टमर को सर्विस सेंटर का पूरा पता दे दिया जाता हैं" -मैंने उसकी चूचियों को घूरते हुए जवाब दिया

उसने डार्क ग्रीन डीप गले की कुर्ती के साथ वाइट कलर कि टाइट लेगिंग पहन रखी थी। थोड़ा सा भी झुकने से उसकी कुर्ती के गले से उसकी आधे से ज्यादा दूधिया चूचियां नुमाया हो जातीं थीं जिन पर उसने ब्लैक कलर कि ब्रा पहन रखी थी जो उसके बार बार झुकने से चूचियों के साथ दिख रही थी।

उसका हस्बैंड चूतियों की तरह कुर्सी पर बैठ कर अपने मोबाइल में कुछ कर रहा था। उसको देख कर लग ही नहीं रहा था कि वह अपनी बीबी के साथ आया है।

वीणा मेरी निगाह पहचान गई थी। अब वह मेरे सामने झुकने से पहले अपना एक हाथ अपने सीने पर रख लेती थी फिर मेरे चेहरे पर मायूसी देख कर मुस्कराने लगती थी। मैंने भी ऐसा जाहिर किया कि अगर वह नहीं दिखाना चाहती तो मैं भी इंटरेस्टेड नहीं हूँ।

थोड़ी देर इधर उधर कि बात करने के बाद वह बिना किसी खास वजह के भी झुक जाने लगी परन्तु अब मैंने उसको अनदेखा करना शुरू कर दिया।

जिससे उसके चेहरे पर झुंझलाहट के भाव आ गए थे। मैं उसकी यह हालत देख कर मन ही मन मुस्करा रहा था।

दोस्तो! किसी भी लड़की को अगर आप देख कर भी अनदेखा कर देते हो तो वह तिलमिला जाती है। वो पूरी ताक़त लगा देती है आपकी तवज्जो पाने के लिए। उसके मन में एक ही भाव आता है 'इस लड़के ने मुझे इग्नोर कैसे कर दिया'।

आखिर उसे एक फिलिप्स का मिक्सर पसंद आ गया जिसे उसने चेक करके पैक करवाने को बोला।

उसके साथ आये उसके हस्बैंड ने कार्ड निकाल कर उसे पेमेंट करने को बोला। पेमेंट के समय मैंने मोबाइल और एड्रेस पूछा तो वह बोली, "आप मेरा नंबर ले लीजिये और अपना नंबर भी दे दीजिये प्लीज़, अगर कोई प्रॉब्लम हुई तो मैं काम से काम आप से डायरेक्ट बात तो कर पाऊँगी"

उसने मेरी तरफ देख कर मुस्कराते हुए अपना मोबाइल नंबर तथा एड्रेस नोट करवा कर वह बिल और मिक्सर लेकर मेरी तरफ एक मुस्कराहट देकर चली गई।

शाम तक वह मेरे दिमाग से निकाल गई, मैं अपने डेली रूटीन की तरह ही मशरूफ हो गया। सुबह से शाम तक शोरूम रात को घर पहुँच कर आपी हनी और फरहान के साथ मस्ती फिर थक कर सो जाना। इसके आलावा और कुछ सोचने के लिए समय भी नहीं था।

अचानक एक दिन मेरे मोबाइल पर किसी अनजान नंबर से कॉल आई। मैंने उठाया तो ऐसा लगा कि किसी ने कानों में शहद घोल दिया हो।

"क्या मेरी बात सगीर जी से हो रही है?"

"जी हाँ, मैं सगीर खान बोल रहा हूँ, बताइये मैं आपकी क्या खिदमत कर सकता हूँ?" -मैंने फोन पर जवाब दिया।

"जी मैं वीणा बोल रही हूँ, अभी दस बारह दिन पहले आपके यहाँ से एक फिलिप्स का मिक्सर लेकर गई थी" -वीणा ने अपने नाम के मुताबिक़ वीणा जैसी आवाज़ में कहा

"हाँ हाँ याद आया, क्या हुआ मैम?... कोई दिक्कत आ रही है क्या?"

"नहीं ऐसा कुछ खास तो नहीं पर वो चल नहीं रही है, अब उसमे कुछ कमी है या मैं गलत तरीके से ऑपरेट कर रही हूँ, कह नहीं सकती"

"कोई बात नहीं, मैं कल किसी सर्विस इंजीनिअर को भेज देता हूँ"

"नहीं नहीं, अगर मेरी गलती निकली तो उसके सामने मेरी बेइज़्ज़ती हो जाएगी, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि एक बार पहले आप देख लेते?"

"मैं?... मेरी टाइमिंग बड़ा ओड होती है मैम, मैं या तो सुबह दस बजे तक आ सकता हूँ या फिर रात को साढ़े नौ के बाद, और फिर कल फ्राइडे है तो इस दिन हमारा शोरूम बंद रहता है" - मैंने अपनी परेशानी बताते हुए कहा

"तो जिस दिन शो रूम बंद रहता है उस दिन आप क्या करते है?" -वीणा ने पूछा

"वो... उस दिन कुछ नहीं बस घर या अब्बू के काम में ही व्यस्त हो जाता हूँ, खास कुछ नहीं"

"तो फिर कल उन्ही बिना खास काम में से थोड़ा समय हमारे लिए भी निकाल लीजिये, कसम से चाय मैं बहुत अच्छी बनाती हूँ"

उसके बात करने के अंदाज़ से मेरे मुंह से ना निकल ही नहीं पाई।

"हा... हा... हा... चलिए ठीक है, मैं कल खुद ही आने कि कोशिश करता हूँ, आप मुझे अपना एड्रेस व्हाट्सप्प कर दीजियेगा"

उसके बात करने के तरीके से मैं खुद हाँ कहने से रोक नहीं पाया पर मेरे मन में अभी तक कोई गलत ख्याल नहीं आया था। बस उसका अंदाज़ कुछ ऐसा था जो मुझे पसंद आया था।

थोड़ी देर बाद ही व्हाट्सप्प पर उसने अपनी लोकेशन शेयर कर दी साथ ही एक इस्माइली बना कर भी भेज दी।

दूसरे दिन सुबह नौ बजे मेरे व्हाट्सप्प पर मैसेज आया 'कितने बजे तक साहब इस नाचीज़ के गरीबखाने पर तशरीफ़ लेकर आ रहे है'

पढ़ कर ही मेरे चेहरे पर मुस्कराहट आ गई, मैंने लंच बाद आने का वादा करके फोन रख दिया।

थोड़ी देर अपने कमरे में हनी के साथ मौज मस्ती करने के बाद हम सब लोग नीचे आ गए। आपी ने सबका खाना परोस दिया था। हम सबने खाना खाया, अम्मी अपने रूम में चलीं गई और मैं आपी को एक कंप्लेंट पर जाने को बोल कर उस लोकेशन पर निकल गया।

वहां पहुँच कर देखा तो मेरी आँखें खुली रह गई। वह कोई आम घर नहीं बल्कि लगभग सात आठ हजार स्कवायर फ़ीट में बनी एक विशाल कोठी थी।

TO BE CONTINUED....
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#5
Heart 
गेट पर दरबान ने रोका तो मैंने बताया कि मिसेज वीणा की मिक्सर की कंप्लेंट है जिसे मैं अटेंड करने आया हूँ।

दरबान ने फोन से अंदर कुछ बात की फिर मुझे बड़े अदब से अंदर ले जा कर एक विशाल ड्राइंग रूम में बिठा दिया। तभी एक नौकरानी एक ट्रे में दो तीन तरह की मिठाई और पानी लेकर आ गई। उसी के पीछे वीणा भी आ गई।

मैं उसे देखते ही सोफ़ा से खड़ा होकर बोला, "जी मैम बताइये, क्या दिक्कत है? चलिए देख लेते हैं"

"अरे आप आराम से बैठिये, पहले पानी पीजिये फिर बताइये कि चाय लेंगे या कॉफी" -उसने मेरे हाथ को पकड़ कर मुझे सोफ़ा पर बैठाते हुए कहा

"अरे नहीं मैम, क्यूँ आप तक़ल्लुफ़ करतीं हैं, मैं अभी थोड़ी देर पहले ही लंच करके निकला हूँ" -मैं उसके हाथ पकड़ने से थोड़ा झेंपते हुए बोला

"पहली बात तो ये कि मेरा नाम मैम नहीं वीणा हैं दूसरी बात अपने घर से तो हर कोई खा पीकर ही निकलता है पर मेहमाननवाज़ी भी कोई चीज़ होती है" -उसने एक अधिकार से कहा

"ठीक है, आप इतना कह रहीं हैं तो मैं ये लिए ले रहा हूँ पर इससे ज्यादा मुझसे नहीं खाया जायेगा" -मैंने मिठाई का एक पीस उठाते हुए कहा

पानी पीने के बाद मैंने वीणा से फिर मिक्सर दिखाने को बोला तो उसने जो कहा तो मैं चौंक गया।

"मिक्सर में कोई खराबी नहीं है, एक्चुअली मैंने आपको एक ज़रूरी काम से बुलाया है। जिसने मुझे आप के बारे में बताया है, उसने पूरी गारंटी से कहा है कि आप ही मेरा यह काम पूरी गोपनीयता से कर देंगे"

"क... कौन सा काम ... और मेरा नाम आपको किसने बताया?" -मैं अनजानी मुसीबत से डरते हुए बोला

"उसने फ़िलहाल अपना नाम गुप्त रखने को बोला है परन्तु समय आने पर आपको उसका नाम खुद ब खुद पता चल जायेगा" -वीणा ने थ्रिलर उपन्यास की हीरोइन की तरह सस्पेंस क्रिएट करते हुए बोला।

"चलिए फिर ये ही बता दीजिये कि आपने मुझे यहाँ बुलाया क्यूँ है?" -मैंने पूछा

"आपकी मित्र ने मुझे पूरी तरह से जब आश्वश्त कर दिया था तभी मैं मिक्सर का बहाना कर के आपके शो रूम गई थी" -उसने अपने पैर के अंगूठे से कालीन कुरेदते हुए जवाब दिया

"मैं आपकी किस तरह और कैसे मदद कर सकता हूँ" -मैं उहापोह की स्थिति में ही फिर पूछा

वह मेरे चहरे का मुआयना करती हुई बोलीं, "समस्या मेरी व्यक्तिगत है और मेरे पति से सम्बंधित है" थोड़ी देर रुक कर अपनी नज़रें नीचे झुकाये हुए बोली, "मेरी शादी आज से दो साल पहले हुई थी। मेरी ननद की शादी हो चुकी है और अब मेरे परिवार में मेरे सास-ससुर हैं और हम हैं, अच्छा घर बार है, पति देखने में अच्छे हैं और परिवार के सभी सदस्य मिल जुल कर रह्ते हैं!"

इतना कहकर वो चुप हो गई तो मैंने बात को आगे चलाने के मकसद से बातचीत शुरु की।

मैंने कहा, "यह सब तो बहुत अच्छी बात है फ़िर आपको दिक्कत कहाँ है?"

इस सबके बाद भी वो मुझे टुकुर टुकुर ताकती रही, उनके मुँह से आगे के बोल नहीं निकल रहे थे।

इस पर मैंने उनको समझाया कि यदि आप कुछ बोलेंगी नहीं तो मैं भी आपकी कोई मदद नहीं कर पाउंगा।

इस पर उनकी नजर नीचे हो गई और एक लम्बी सांस छोड़ते हुए बहुत हलके शब्दों में बोलीं, "दिक्कत मुझे मेरी विवाहित जिन्दगी से है"

मेरे मुँह से सिर्फ़ इतना निकला, "ओह…"

कुछ समय हम दोनों ही चुपचाप बैठे रहे और गनीमत हुई कि उस वक्त नौकरानी चाय दे गई तो उसने मुझसे चाय लेने को कहा। चाय पीने के दौरान वो बहुत हद तक सामान्य हो गई थीं और हम दोनों में छोटी मोटी घर बार की इधर उधर की बातें होती रहीं।

चाय खत्म करने के दौरान हम दोनों में उनकी परेशानी वाले विषय पर और कोई बात नहीं हुई।

चाय खत्म करने के बाद एक बार फ़िर वो मेरा मुँह देखने लगी तो मैंने कहा, "आप अपने वैवाहिक जीवन में किसी समस्या के बारे में मुझसे कोई बात करने वाली हैं और यह मानिये वीणा जी कि यदि आप चुप बैठ जायेंगी तो मैं अन्तर्मन की बातें जानने वाला नहीं हूँ कि उसके बाद मैं आपसे सीधे ही आपकी समस्या पर आपसे बात करने लग जाउंगा या कोई समाधान बताने लग जाउंगा इसलिये प्लीज आप बेहिचक अपनी बात शुरु कीजिये। जहाँ तक मैं समझ पा रहा हूँ आप जिस प्रकार से हिचक रही हैं उससे आपकी समस्या सेक्स से सम्बन्धित कोई परेशानी होनी चाहिए लेकिन असली बात तो आप ही मुझे बतायेंगी"

वीणा के होटों पर एक जुम्बिश आई और बोली- "आपने मुझे दोस्ती के काबिल समझा ये बहुत बड़ी बात है और आप यदि इसी तरह से मुझसे बात करेंगे तो मैं अपनी बात ठीक से कह पाऊंगी"

मैं बोला- "ठीक है वीणा अपनी इस समस्या के लिये मुझसे खुल कर बात करो और यह मत सोचना कि मैं कुछ बुरा मानूंगा"

अब वीणा ने मुझे देखा और बोली- "सगीर जी आपका धन्यवाद, अब आप मुझे मेरी इस अगली लाइन के लिये माफ़ करना, आपका मेरे बारे में क्या खयाल है फ़िर हाथ उठाकर मुझे बोलने से रोकते हुए कहा कि मेरा मतलब है कि क्या मैं आपको मेरे व्यवहार से, मेरे चालढाल से, मेरी बातचीत करने के तरीके से कोई चालू या बाजारू टाइप की या टुच्ची लगती हूँ?"

मेरी गरदन ना में हिली, उसकी आंखों से दो बूंद छलक ही पड़ी जो शायद बहुत समय से बाहर आने को बेचैन थीं।

तो मैंने कहा- "वीणा, यदि आप एक चालू औरत होती तो मैं आपके घर आना तो दूर मैं बात तक करना गवारा नहीं करता यार, मैं आपके घर तक चल कर आया हूँ इसका मतलब है कि मैं आपको गलत नहीं समझता"

"आप भी क्या सोचते होंगे कि एक स्त्री इस प्रकार से सेक्स के बारे में आपसे अकेले में बात कर रही है" -वीणा ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा

वो फ़िर नीचे जमीन की तरफ़ देखने लगी और बोलीं, "शादी के बाद जो लड़की के अरमान होते हैं वो उनमें काफ़ी हद तक तो अच्छा घर बार और परिवार ही होते हैं लेकिन..." फ़िर वो लम्बी सांस छोड़ते हुए चुप हो गई।

इस पर मैंने कहा- "आप सही कह रही हैं शादी तो शादी, बिना शादी के भी सेक्स बहुत हद तक सभी जीवों के जीवन में बेहद महत्व रखता है"

तो वो बोलीं, "एकदम ठीक बात कह रहें हैं आप, मेरे पति…"

मेरे मुँह से अनायास ही निकल गया – "ओ ओ ओह ह ह्ह… तो मैं आपकी सहायता किस प्रकार से कर सकता हूँ?"

तो वो एक बार फ़िर से मेरे मुँह को ताकते हुए बोलीं- "देखो सगीर, पहले तो ये जी और आप की दीवार हटा दो तो शायद मैं कुछ नार्मल हो पाऊँ। दूसरा क्या हम अच्छे दोस्तों की तरह एक दूसरे का ज़रूरते पूरी नहीं कर सकते?"

मैंने धीरे से उसके हाथ पर अपना हाथ रखते हुए उसे तसल्ली देने के अंदाज़ में कहा, "ओके वीणा, देखो तुम माशाअल्लाह बहुत खूबसूरत होने के साथ साथ एक बहुत ही परफेक्ट फिगर की मालकिन हो, तुम्हारे एक इशारे पर हज़ारों लोग तुम्हारी तरफ खिंचे चले आएंगे फिर मुझे ही क्यों चुना?"

"मेरे सास ससुर बहुत बुज़ुर्ग हो गए है, वो अपने कमरे से महीने में एक बार हॉस्पिटल जाने के लिए निकलते है, मेरे पति को नोट छापने से फुर्सत नहीं, दिन रात वो अपने बिज़नेस में ही व्यस्त रहते है। सगीर! आखिर मेरी भी कुछ ज़रूरतें है, दो साल से में अपनी इच्छाओं का गला घोंट रही हूँ, अब मुझसे बर्दाश्त नहीं होता। मुझे एक ऐसा बंदा चाहिए था जो बहुत ही भरोसे का हो और हमारे संबंधों को बिलकुल गोपनीय रखे। तुम भले ही मुझे नहीं जानते परन्तु मैं तुम्हारे बारे में सब जानती हूँ, बस फ़िलहाल इतना ही बता सकती हूँ" -वीणा ने एक साँस में ही जैसे सब कुछ कह डाला था।

contd....
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#6
Heart 
मैं बोला- "अब आगे भी बोलो क्या चाह्ती हो"

वीणा - "मुझे गलत तो नहीं समझोगे ना…"

मैं - "अब लिख के दूं क्या?" और ये कहते हुए मैं ने अपनी जेब से पेन निकालने का उपक्रम किया।

वीणा - "नहीं रहने दीजिये…!"

मैं- "तो बोलो अब…"

वीणा - "अब मुझे बताओ कि मुझे इस स्थिति में क्या करना चाहिये, या तो मुझे कोई दवा बताओ ताकि सेक्स मुझे परेशान ना करे और या फ़िर इसका कोई समाधान…"

मैं- "दवा की बात तो बेकार है, पैंतीस तक जाते जाते बूढ़ी हो जाओगी और चालीस तक भद्दी भी, हाँ इसके दूसरे इलाज यह हैं कि इसके लिये खिलौने मिल जाते हैं और या फ़िर आप अपने रिश्ते या दोस्ती में किसी को अपना साथी बना लो"

वीणा - "खिलौने तो बेकार हैं, मुझे नहीं पसन्द, अब रही किसी मेरे साथी की बात तो बताओ कि मैं किसको अपना साथी बनाऊं, मेरे कोई सगा देवर नहीं है और हो या नहीं हो, ये क्या विश्वास करूं कि मेरा कोई साथी मुझसे गलत फ़ायदा नहीं उठायेगा, यदि वो मेरी बात को अपने दोस्तों में उछालता है या मुझे अपने किसी और मिलने वाले से जबरदस्ती सेक्स करने के लिये कहता है तो मैं तो मैं, मेरे पति और परिवार की इज्जत का क्या होगा, कैसे विश्वास करूं किसी पर?"

मैं- "कहती तो सही हो लेकिन इसका और कोई क्या इलाज बताऊं, फ़िर कुछ नहीं हो सकता"

वीणा - "हो सकता है बिलकुल हो सकता है। आप मेरे साथी बन जाओ..."

जैसे अचानक कोई बम का धमाका मेरे कानों में हुआ हो। मेरी आंखें फ़टी रह गई और मैं अवाक वीणा को देखने लगा।

वीणा -"सॉरी... सगीर..."

अब मैं सम्हल चुका था, बोला- "नहीं वीणा सॉरी की कोई बात नहीं, वैसे भी मैंने ही तुमको अपनी बात कहने को कहा है, तो तुम बिलकुल बेहिचक कह सकती हो"

फ़िर कुछ पल ठहर कर मैं बोला- "तुम मुझ पर कैसे विश्वास कर सकती हो? अभी कुछ दिन से ही तो जानती हो, ये हमारी दूसरी मुलाकात है फ़िर ये तुम किस प्रकार से कह सकती हो कि मैं तुम्हारी सन्तुष्टि में कामयाब हो जाउंगा और तुमको एक और बार जिल्लत नहीं उठानी पड़ेगी वो भी अस्मत की क़ुरबानी देकर, फ़िर ये बताओ कि मैं… मेरे पास तो यदि कोई भी इस प्रकार की समस्या लेकर आये तो क्या मुझे सभी से सम्बन्ध स्थापित कर लेने चाहियें? और वीणा अब मेरी बात का बुरा मत मानना… मैं भी तो तुमको अभी कुछ ही दिनों से जानता हूँ, पहले देखा तक नहीं… मैं कैसे तुम पर विश्वास करूं… तुम बताओ कि तुम किस के रेफ़रेन्स से मेरे पास आई हो"

वीणा - "हाय मर जावां, क्या पोइन्ट्स निकाले हैं… अब सुनो, मेरे विश्वास की बात ये है कि जिस भी किसी ने आपके बारे में बताया है मुझे उसकी बातों पर पूरी तरह से विश्वास है कि आप गलत आदमी नहीं हो, मैं उन पर अविश्वास कर ही नहीं सकती और ये आपकी अभी अभी कही आपकी बातें ही साबित करती हैं वरना कोई और होता तो अब तक तो फ़ेवीकोल लगा कर मुझसे चिपक गया होता और सगीर ये भी मेरा विश्वास ही है कि अब के सेक्स में सफ़लता ही होगी और सगीर प्लीज मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ मुझसे रेफ़रेन्स का नाम मत पूछिये, आप भी गोपनीयता का मतलब जानते हैं। हाँ जान पहचान नई है तो आप मेरे घर आते जाते रहिये, हम फ़िर एक दूसरे से कुछ बार मिलते हैं"

मैंने वातावरण को थोड़ा हलका करने की कोशिश की- "इतना मिलने जुलने से तो चाय, ठन्डे का खर्चा बहुत बढ़ जायेगा…"

वीणा - "मैंने आपको बताया ना, पैसों का मुझसे कोई हिसाब नहीं मांगता। बस इस घर के लोगों के पास किसी को भी देने के लिए वक़्त नहीं है"

पता नहीं क्यों मेरा दिमाग इस रिश्ते को आगे बढ़ाने से रोक रहा था पर दिल था कि कह रहा था 'अबे चोद ले, ऐसा माल बार बार नहीं मिलता'... मैं कुछ भी डिसाइड नहीं कर पा रहा था।

फ़िर टालने के लिहाज से बोला- "देखते हैं वीणा, सोचेंगे... लेकिन अपने पति से किसी तरह टाइम लेकर अपना काम चलाती रहो, मुझे तब तक थोड़ा सोचने का समय दो"

उसके बदन से उठाने वाली खुशबू मुझे मदहोश कर रही थी। जिसका असर मेरे पेन्ट में खड़े होते लण्ड से आसानी से लगाया जा सकता था परन्तु मैं किसी भी तरह की की कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहता था।

"सगीर मुझे पैसों की कोई दिक्कत नहीं है मैं जितना चाहूं खर्च कर सकती हूँ। इसके लिए आज तक किसी ने मुझ से कोई हिसाब नहीं लिया, पर प्लीज़ सगीर मुझे तुम्हारी ज़रूरत है, ना मत कहना प्लीज़" -वीणा मेरे नज़दीक आकर मुझसे सटकर बैठते बोली

उसकी नाज़ुक बांह मेरी बांह से टच हो रही थी। उसने हल्का सा मेकअप किया हुआ था उसकी चूचियों की गोलाइयाँ पिछली बार की तरह उसकी ब्लाउज से आधी से ज्यादा नुमाया हो रहीं थीं। मेरा लण्ड तो पहले से ही फ़नफनाने लगा था। मुझे लगा यदि मैं थोड़ी देर और बैठा तो शायद इसे यहीं चोद दूंगा।

"ऐसा है वीणा, मुझे थोड़ा समय दो, मैं कुछ समझ नहीं पा रहा क्या ठीक है और क्या गलत" -मैंने उसके हाथ को अपने दोनों हाथों में लेकर कहा

"ठीक है, जहाँ दो साल वहां दो चार दिन और सही, कोई बात नहीं" -यह कह कर उसने मुझे अपनी बाँहों में लेकर अपना चेहरा मेरे चेहरे के नज़दीक कर दिया।

मेरे लिए इतना इशारा बहुत था, मैंने उसे अपने से चिपका कर उसके होठों पर अपने होठों से एक गाढ़ा चुम्बन देते हुए मैंने धीरे से उसके चूतड़ सहला दिए। उसकी चूचियां ठोस होकर मेरे सीने में गढ़ रहीं थीं। हम दोनों की ही सांसे भारी हो गईं थीं। मुझे अपने लण्ड पर उसकी आग उगलती चूत महसूस हो रही थी।

मैंने उसे बड़े प्यार से अपने से अलग किया क्योंकि मेरे बहकने के पूरे पूरे चांस थे।

"अच्छा वीणा जी, तो क्या मुझे अब इज़ाज़त है?" -मैंने दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा

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#7
Heart 
यह कह कर मैं वहां से चला आया। मेरे दिल और दिमाग में भयंकर जद्दोजहद चल रही थी।

जहाँ दिल इस मौके का फायदा उठाने की कह रहा था वहीँ दिमाग इस किसी अनजान के साथ सेक्स करने को रोक रहा था। क्या पता वीणा के दिमाग में क्या चल रहा हो, हो सकता है कोई चाल हो...

हालाँकि उसने मुझे खुद का अपने उसी ब्लड बैंक के द्वारा ब्लड डोनेशन का सर्टिफ़िकेट दिखाया जिसमे मैं भी डोनेट करता हूँ। छः बड़ी बीमारियों की मुफ़्त जांच के विवरण भी थे जिनमें एच आई वी और हेपेटाइटिस भी शामिल थे, सब के सब सामान्य। मैंने मन ही मन सोचा कि जो भी कोई इसका मिलने वाला है वो मुझे भी बहुत अच्छे से जानता है, इसमें कोई दो राय नहीं अन्यथा मैं भी ब्लड डोनर हूँ, इसका पता किसी सामान्य को तो नहीं ही होगा। कौन हो सकता है वो?

खैर मैंने अभी फ़िलहाल के लिए वीणा का मैटर बहुत सोच विचार कर कदम उठाने के लिए छोड़ दिया और मैं अपनी पुरानी दिनचर्या से चलने लगा।

कुछ दिन बाद हनी ने शाम को खाना खाते वक़्त एक कार्ड मेरे सामने रख दिया। सभी लोग डाइनिंग टेबल पर बैठे थे, मैंने पूछने वाले अंदाज़ में हनी की तरफ देखा तो उसने बाद में बताने का इशारा कर दिया। अब्बू अम्मी खाना खा कर अपने कमरे में चले गए। हम चारो ही रह गए तब मैंने हनी से पुछा, "ये किसकी शादी का कार्ड है?"

हनी ने मुस्कराते हुए जवाब दिया, "मेरी फ्रेंड सुनीता की दीदी रंजना की शादी है परसों, अब याद आया?"

मेरे दिमाग में जैसे बल्ब जल गया। ओह! तो ये उसकी शादी का है। ये दोनों बहने तो मुझसे कई बार चुद चुकीं थीं।

(इनके बारे में आप मेरी दूसरी कहानी में पढ़ पाएंगे)

यह सोच कर तो मेरा लण्ड ही टायट हो गया।

"ऐ हनी, इधर आ... एक बात बता, मेरी सोनी बहना क्या इसकी चूत मारने की वहां कोई जुगाड़ नहीं बन सकती?"

"बस्स्स... जहाँ लड़की देखी और ज़नाब का लण्ड चोदने को तैयार? अरे कमीने ये तो सोच तू अपनी सगी बहन से चूत का इंतज़ाम करने को कह रहा है" -आपी मेरी तरफ देखकर बोलीं

"क्या आपी... आप भी ना? अगर मेरा लण्ड किसी और चूत को चोद लेगा तो घिस थोड़े ना जायेगा। अरे आप लोग क्यों परेशां होते हो, मैंने आप लोगों की चुदाई में कभी कोई कमी रक्खी है? यार रोज़ रोज़ रसमलाई खाते खाते कभी कभी सादा दाल रोटी खाने को भी दिल करता है" -मैंने आपी को मक्खन लगाते हुए कहा

"चलो आप भी क्या याद करोगे, मैं कुछ ना कुछ करती हूँ" -हनी ने अपनी छाती और फुलाते हुए कहा

मैं नियत दिन हनी के साथ शादी में पहुँच गया, रंजना की मम्मी पापा व भाई बहन सब मुझसे परचित थे सो मुझे कोई दिक्कत नहीं हो रही थी।

"क्या सगीर! अब तो तुमने घर आना ही बंद कर दिया, कोई बात हो गई क्या?" -सुनीता की मम्मी ने मेरे पास आकर कहा

"अरे नहीं आंटी, वो जबसे शोरूम पर जाना शुरू किया है, ये शिकायत सभी को मुझसे हो गई है" -मैंने जवाब दिया

"हाँ सो तो है, अच्छा तुम और सुनील को ही सब देखना है, ध्यान रखना कहीं भी किसी चीज़ की कमी ना होने पाए" -आंटी ने मुझसे कहा

तभी सुनीता बोल पड़ी, "और हाँ भैय्या, हनी साथ है तो रात में ही वापस मत जाना, रास्ता बहुत सुनसान है, अब सुबह ही जाना"

"हाँ सुनीता ठीक कह रही है बेटा, ज़माना बहुत ख़राब है और साथ में जवान बहन भी है। तुम अब सुबह ही जाना" -आंटी ने कहा

"ठीक है आंटी" -मैंने कहा

वैसे तो आंटी लगभग चालीस की होंगीं पर उन्होंने अपने को बहुत मेन्टेन कर के रखा था। वो बिलकुल भी तीस से ऊपर की नहीं लगतीं थीं, इस उमर में भी बड़ा कंटीला माल थीं।

मैं रंजना के पास तो नहीं जा सका क्योंकि उसके आस पास बहुत से रिश्तेदार उसे घेरे थे परन्तु बीच बीच में मौका निकाल कर मैं सुनीता के चूतड़ या चूचियों को मसल देता था जिससे वह मुस्करा देती थी पर बुरा नहीं मान रही थी।

गीत संगीत का कार्यक्रम चल रहा था, मुझे भी सुनीता खींच कर स्टेज पर ले गई, थोड़ा डांस वगैरह हुआ फ़िर खाना आदि चला। खाना समाप्त करते करते रात के बारह बज गये। मैं इन्तजाम देखता रहा।

सुनीता ने मुझे कहा कि मुझे तो घर तक पहुंचने में और थोड़ा सा समय लगेगा, यदि आप चाहो तो घर तक पहुंचवा देती हूँ तो मैंने मना कर दिया और कहा कि सबके साथ ही चलेंगे, हिसाब किताब कर के घर तक जाते जाते लगभग एक बज रहा था।

घर पहुँच कर सुनीता ने मुझे कहा कि देखो थोड़ा सा कंजेशन है भैय्या, एडजस्ट करना होगा।

तो मैंने कहा कि कैसी बात करती हो यार, चार पांच घन्टे की बात ही तो है, मैं एड्जस्ट कर लूंगा।

फिर मैंने रंजना के बारे में पूछा तो वो मुस्करा कर बोली, "आज तो इतने सारे घर में मेहमान हैं कि मैं या दीदी में से किसी से भी मिलन संभव नहीं है"

मैं मायूस होकर उसके पीछे पीछे चल दिया। एक कमरे में हमने जाकर देखा तो उसमे बिलकुल भी जगह नहीं थी। फिर सुनीता मुझे दूसरे कमरे में ले गई जो बहुत छोटा था और उसमें सब लोग ज़मीन पर गद्दे बिछा कर सो रहे थे। उसमें दीवार कि तरफ एक इंसान के लेटने लायक पर्याप्त जगह थी।

मैंने सुनीता कि तरफ देखा तो वह बोली, "यहाँ एडजस्ट हो जायेंगे क्या?"

"क्या बात करती हो? बस थोड़ी देर की तो बात है, मुझे कोई दिक्कत नहीं" -मैंने सुनीता की गांड पर हाथ फेरते हुए कहा

"आज बहुत रंगीन हो रहे हो वरना इतने महीने गुज़र गए एक बार भी याद नहीं किया" -उसने धीरे से मुझसे शिकायत कर ही दी

"तुमने भी तो घर आना बंद कर दिया और कोई संपर्क भी नहीं किया"

"क्या करती, तब तो स्कूल जाने के बहाने घर से निकल आती थी अब जब खुलेंगे तब ही आना होगा" -यह कह कर वो मेरे होठों पर किस करके चली गई

मैं किसी तरह जगह बनाता हुआ दीवार तक पहुंचा और लेट गया। थकन भी हो रही थी और सुबह घर जाकर तैयार होकर शोरूम जाने की भी चिंता थी।

contd....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#8
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Sunita... My sweetie...
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#9
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सभी फ़र्श पर दरी, गद्दे लगाकर कम्बल ओढ़े सोये हुये थे। जरा सी देर में ही बत्तियां बंद हो गईं और बाहर बरामदे में एक नाइट लैम्प जलता रहा।

थके होने से जल्दी ही मैं भी नींद के आगोश में चला गया। अचानक से मुझे नींद की तन्द्रा में लगा कि मेरे दाहिनी तरफ़ किसी नरम हाथों ने मेरे हाथों को हौले से सहलाया तो मुझे रोमांच हो आया। क्या प्यारा सपना है फ़िर मेरे हाथ को उन हाथों ने उठाकर अपनी चूचियों से छुआया तो मेरे लंड में अंगड़ाई आने लगी।

यह सब मैं पहले भी झेल चुका था। सपने में किसी लड़की या औरत को चोदना और झड़ जाना यानि कि सीधे सीधे कहें तो स्वप्नदोष और मुझे इस में कभी कोई परेशानी नहीं हुई थी। सेक्स के हर रूप का अपना मजा है, इसका भी है इसलिये मैंने सपने की दुनिया से बाहर आने में कोई रुचि नहीं दिखाई। होने दो यह भी एक शानदार रोमान्च होगा।

फ़िर वो औरत या लड़की जो भी थी, धीरे से मेरे कम्बल में सरक आई और मुझसे चिपक गई और अपना सिर उठा कर अपने होंठ मेरे होठों पर रख दिये तब जाकर मेरी तन्द्रा भंग हुई और मैंने अपने बीच में फ़ंसे हाथ से उसको दूर धकेलने का प्रयास किया तो उस ने मेरे कान में धीरे से फ़ुसफ़ुसाया कि 'प्लीज! यदि आपने अभी कोई और हरकत की या जोर से आवाज निकाली तो मैं मुसीबत में फ़ंस जाऊंगी, कोई जाग गया तो मेरी इज्जत उतर जायेगी । प्लीज... प्लीज... शांत रहिये, खुद भी मज़ा लीजिये और मुझे भी लेने दीजिये'

अजीब स्थिति थी। कुछ बोल नहीं सकता था, उसकी इज्जत का सवाल था और साथ में जिनके यहाँ मैं शादी में आया था उनकी भी।

मैंने उसकी तरफ़ करवट ली और उसके कान में फ़ुसफ़ुसाया कि 'और यह जो तुम कर रही हो उस से तुम्हारी इज्जत में बढ़ोतरी होगी क्या?'

तो वो फ़ुसफ़ुसाई कि 'यह बात तो हम फ़िर बाद में कर सकते है और आप जो भी कुछ कहोगे वो मैं पूरी तरह सुनूंगी। मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ, आपके पैर पकड़ती हूँ'

ये कह कर अपना धड़ मोड़ कर हाथ मेरे पैरों की तरफ़ ले जाने लगी तो मैंने उसको अपने हाथों से ऊपर की तरफ़ खींच कर उसको रोका और कहा कि 'इस सब की कोई जरूरत नहीं है लेकिन…'

तब तक तो उसने खुद के होठों से मेरा मुँह बन्द कर दिया था। उसकी जीभ मेरे मुँह में घूमने लगी। सांसों में गरमी बढ़ने लगी थी।

लेकिन मेरा मजा बेमजा हो रहा था। जान पहचान और दोस्ती के बिना सेक्स ना करने का दम्भ भरने वाला मैं आज मेरे सेक्स साथी की शक्ल तक नहीं जानता था और उस एकदम मद्धिम सी रोशनी में कुछ देख पाना वैसे भी सम्भव नहीं था सिर्फ़ परछाई सी ही नजर आती थी।

मेरे किसी भी एक्शन में गरमी नहीं देखकर अपने होठ मेरे मुँह से हटा कर वो मेरे कान में फ़ुसफ़ुसाई – "प्लीज राजा साथ दो ना, ऐसे क्या करते हो, यदि साथ नहीं दोगे तो भी चुदाई तो होगी, राज़ी राज़ी या गैरराजी लेकिन ज़बरदस्ती की चुदाई का क्या फ़ायदा, मुझे पूरा मजा दो और खुद भी लो और ये पक्का है कि ये सब मैं करके ही रहूँगी, आज हर कीमत पर अपनी प्यास बुझा कर ही रहूंगी"

मैंने सोचा कि कहती तो एकदम से ठीक है लेकिन यों किसी से इस तरह से सेक्स करना और उसको इस तरह से सेक्स के लिये तैयार करना इसको क्या कहेंगे? लेकिन यहाँ प्रतिवाद का कोई फ़ायदा नहीं था, वो मेरे पैर पकड़ने तक को तैयार थी और मेरे मना करने पर ज़बरन चुदने की धमकी भी दे रही थी। यह तो सीधा सीधा वो शादी का नाज़ायज़ फायदा उठा रही थी। फ़िर जरा सी गलती से इसकी और हनी की दोस्त दोनों की इज्जत का फालूदा बन जाने वाला था।

मैंने सब तरफ़ से सोच कर मन बनाया कि इसको तो मैं चोदने के बाद भी समझ लूंगा, अभी तो पूरी तरह साथ देना चाहिये, यही ठीक रहेगा।

उसका शरीर, चूचियां और कमर जितने हिस्से भी मैंने छुए थे वो सब बहुत ही मस्त थे। बिलकुल मक्खन मलाई।

मैंने उसकी गर्दन पर एक हाथ रखकर उसके मुँह को अपनी ओर खींचा और उसके होठों से अपने होठ चिपका दिये। हमारी जीभें एक दूसरे के मुँह के अन्दर का मुआयना करने लगीं।

अब तो वो मेरे ऊपर पर आ गई। मेरा दूसरा हाथ उसके बदन पर फ़िरने लगा और जैसे ही उसकी कमर तक आया तो जाना कि उसने टू पीस नाइट गाउन पहन रखा है तो मैंने उसकी चोली के अन्दर हाथ डालकर उसकी चोली को ऊपर की तरफ़ खींच दिया अब दूसरा हाथ उसकी गुद्दी से हटा लिया क्योंकि उसके चेहरे का दबाव मेरे मुँह पर इतना था कि उसका चेहरा मेरे मुँह से हटने वाला था ही नहीं। उसके बाल खुलकर नीचे की तरफ़ फ़ैल कर हम दोनों के चेहरों को ढक चुके थे। मेरा धड़ उसकी दोनों टांगों के बीच हो गया था।

दूसरे हाथ को हम दोनों के बीच में डाल कर उसकी चूचिओं को दबाया तो पता चला कि उसने ब्रा नहीं पहन रखी है। मैं एक हाथ से उसकी चूची दबाने लगा और दूसरे हाथ से उसका बदन सहलाने लगा, क्या शानदार बदन की मल्लिका है। एकदम से चिकना मुलायम मखमल जैसा, बिलकुल सांचे में ढला हुआ।

फ़िर हाथ को और ज्यादा नीचे करके उसके चूतड़ मसलने लगा। अब उसका बदन मचलने लगा। मेरा लण्ड भी फ़नफ़नाने लग चुका था और उसकी चूत के नीचे दबा हुआ टन्कारें मार रहा था।

मैं उसके कूल्हों के ऊपर से उसके गाउन के नीचे वाले हिस्से को खींचने लगा और पूरे का पूरा गाउन उसकी कमर पर ले आया। पता चला कि उसने पेंटी भी नहीं पहन रखी है। इसका सीधा सा मतलब था कि वह किसी न किसी मुर्गे कि तलाश में चुदने कि पूरी तैयारी से लेटी इंतज़ार कर रही थी। यदि मैं न आता तो ये मेरी जगह जो भी आता उससे चुद जानी थी।

मैंने हम दोनों के पेट के बीच में हाथ डाल कर उसके पेट को जरा सा ऊपर की तरफ़ किया तो उसने अपना पेट थोड़ा सा ऊपर कर लिया। इससे मेरे पायजामे का इलास्टिक मेरे हाथ में आ गया और मैंने भी अपने कूल्हे जरा से ऊपर किये और पायजामा अपने अन्डरवियर सहित कूल्हों से नीचे सरका दिया। अब मेरा लन्ड एकदम से खुला था। मैंने अपना हाथ बीच में से निकाल लिया तो एक बार फ़िर से उसकी चूत मेरे लन्ड पर आ गई लेकिन इस बार बिना कपडों के।

अब मैं पूरे जोश से एक हाथ से उसका बदन सहलाने लगा और दूसरे हाथ से उसकी चूचियां मसलने लगा, जीभ पूरे जोश से मुँह के अन्दर का मुआयना करने लगी। धीरे धीरे मेरा लन्ड उसकी चूत से निकले गुनगुने चिकने पानी से भीगने लगा और मैंने अपने मुँह को उसके मुँह से हटा कर उसकी गरदन से सटा दिया और चूसने लगा तो उसके मुँह से सिसकारी फ़ूट निकली तो मैंने अपने हाथ को जल्दी से उसके मुँह पर भींचा और उसके कान में फ़ुसफ़ुसाया कि 'ऐसा करोगी तो मरवा ही दोगी'

तो वो फ़ुसफ़ुसाई कि 'अब सब कुछ बर्दाश्त से बाहर है, अब रहा नहीं जाता, पेल दो अपना लण्ड मेरी चूत में'

तो मैंने अपने हाथों को उसके कूल्हों के बीच से डालकर अपने लन्ड को उसकी चूत के छेद पर सेट किया और अपनी दोनों हाथों की तर्जनी से उसकी चूत के फ़लक खोल दिये तो वो अपने कूल्हों का दबाव डाल कर लन्ड अपनी चूत में लेने लगी।

जैसे ही मेरे लण्ड का सुपाड़ा उसकी चूत में अंदर गया, उसके मुंह से एक आह सी निकल गई, मैंने तुरंत अपने होठ उसके होठों से लगा दिए। थोड़ी देर बाद ही वह खुद ऊपर से दवाब बना कर मेरा लण्ड अपनी चूत में लेने लगी। मैं बिलकुल शांत लेटा रहा, धीरे धीरे करके वह जब पूरा लण्ड अंदर ले ली फिर गहरी सांस लेकर मेरे ऊपर फ़ैल गई।

मैंने अपने हाथ फ़िर से चूचिओं और शरीर पर लगा दिये और अब उसकी गर्दन पर अपना मुँह जमा दिया और चूसने लगा। वह मेरे ऊपर लेटी अपनी चूत को आगे पीछे करके अपनी चुदाई खुद करना शुरू कर दी। उसकी चूत से बहता पानी मेरे अंडकोषों से बहता हुआ गांड तक जा रहा था।

contd....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
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#10
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#11
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#12
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#13
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#14
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#15
Heart 
वो तड़पने लगी और अपने कूल्हे चला कर चूत को रगड़ने लगी।

आह! ये मेरी सबसे पसन्दीदा पोजीशन है इससे चूत के अन्दर का हिस्सा लगातार कसता और नरम पड़ता है, इससे लन्ड को बेहद सुखद अनुभूति होती है।

इतने में उसने अपने हाथों पर अपने धड़ को ऊपर कर लिया तो मैंने गरदन चूसनी बंद कर दी और उसके बोबे चूसने लगा और दोनों हाथों से मसलने लगा तो उसको बेहद उत्तेजना हुई और वो अपने कूल्हे जोर लगा कर अपनी चूत मेरे लन्ड पर मसलने लगी और एकाएक निढाल मेरे ऊपर पसर गई।

दो मिनट हम दोनों बिना हरकत किये पड़े रहे। फ़िर मैं अपने हाथ उसके बदन पर फ़िराने और बोबे दबाने लग गया और अपने मुँह को उसके मुँह से सटा दिया तो उसमें फ़िर से हरकत होने लगी और वो फ़िर से होटों को मेरे होटों से सटा कर चूसने लगी और फ़िर से एक बार कूल्हे चलाने लगी।

इस बार तो उसने बहुत तेज चक्की चलाई, मुझे भी मजा आने लगा था। उसकी चूत उसके कूल्हे की हर हरकत पर कसती और ढीली होती थी तो मुझे मेरे लन्ड पर बहुत तेज करेन्ट महसूस होता था। मैं अपने हाथ उसके कूल्हों पर बहुत हल्के से फ़िराने लगा तो वो फ़िर एक बार तड़पने लगी और अचानक ही उसने अपने होटों से मेरे होटों को जोर से काट लिया। मुझे लगा कि मेरा होंट सूज गया है। उसका बदन अकड़ गया और फ़िर एकदम से निढाल हो कर मेरे ऊपर पसर ग़ई। मैंने मेरे हाथ उसकी पीठ पर बान्ध लिये और हाथ के पन्जे से उसके बाल हौले हौले सहलाने लगा।

पांच मिनट बाद उसमें धीरे धीरे फ़िर से चेतना आने लगी और वो मेरे कान में फ़ुसफ़ुसाई- “अब आप ऊपर आ जाओ और अपना काम भी कर लो”

और यह कह कर हौले से मेरे ऊपर से सरककर उतरती हुई मेरे पहलू में आ गई। अब मैं धीरे धीरे उसके ऊपर आ गया तो उसने अपने एक हाथ से मेरी गुद्दी पकड़ कर मेरा मुँह अपने मुँह से चिपका लिया और अपनी जीभ मेरे मुँह में देकर मेरी जीभ टटोलने लगी।

मैंने अपना लन्ड उसकी चूत पर सेट करके अन्दर डाल दिया तो एकाएक उसके होंट मेरे होटों पर कस गये और मुझे पहले के काटे हुये हिस्से पर दर्द महसूस हुआ लेकिन इस समय कौन ऐसे दर्दों की परवाह करता है। मैंने मेरी कोहनी और घुटनों पर अपना वजन रखते हुये मेरे हाथ उसके दोनों बोबों पर कस दिये और मैं उस पर धक्के लगाने लगा। लम्बे धक्के लगा नहीं सकता था क्योंकि इस से कमरे के किसी भी जन के जाग जाने का डर था। 

उसने भी नीचे से अपने कूल्हों को हरकत देना शुरू किया। मुझे बिना लम्बे धक्कों के मजा नहीं आ रहा था तो मैंने अपने हाथ उसकी गरदन के नीचे लेकर उसको जोर से अपने से भींच लिया, अब अचानक से उसने अपना मुँह मेरे मुँह से हटा कर मेरी गरदन पर लगा कर चूसने लगी। अब मुझे करेन्ट आने लगा, मैं फ़िर धक्के लगाने लगा। हम दोनों में रगड़म-रगड़ाई चल रही थी। 

अचानक उसके मुँह से आंऽऽ आं की आवाज निकलने लगी तो मुझे अपने होटों से उसका मुँह बंद करना पड़ा। कुछ देर में मुझे मेरी मंजिल नजदीक आती लगी और आह… मैं उस पर पसरता चला गया।

फ़िर कोशिश करके उसकी बगल में आकर उसको बाहों में लेकर पड़ा रहा। अब वो बहुत प्यारी महसूस हो रही थी और इशारे भी कितनी आसानी से समझ लेती है। 

कोई पन्द्रह मिनट बीते होंगे कि अचानक से जैसे वो जागी हो और अपने होटों को मेरे होटों से छुआ कर एक चुम्बन लिया और कान में फ़ुसफ़ुसाई- “दवा के इस शानदार डोज के लिये शुक्रिया” और उठ कर कमरे से बाहर हो गई।

उस हल्के झीने से प्रकाश में परछाई सी जाती लगी।

इस अचानक हरकत पर मैं अचम्भित रह गया और जो कुछ मैं उसको कहने वाला था वो सब मेरे मन में रह गया। मैंने अपने कपड़े ठीक किये।

सोचने लगा, जाने कौन थी? उसका इस परिवार से जाने क्या रिश्ता है? मैंने कुछ गलत तो नहीं किया? यदि किसी तरह से यहाँ किसी को पता चला तो वो क्या सोचेगा? मैं कमरे में आंखे गड़ा कर घूरने लगा कि कोई जाग तो नहीं रहा ना।

अब सब कुछ सपने सा लग रहा था कि अचानक ही यह सब हुआ और फ़िर जैसे कोई था ही नहीं, इस प्रकार से उठ कर वो चली गई।

मुझे नींद नहीं आ रही थी। ना जान ना पहचान, जाने कौन थी? मुझे बेचैनी हो रही थी लेकिन कर क्या सकता था। उठ कर देख भी तो नहीं सकता था कि वो गई कहाँ? कोई मुझे यों कमरों में झांकते देखता तो मैं क्या जवाब देता। खैर, जैसे तैसे सुबह हुई।

छह बज चुके थे। लोगों में जाग होने लगी थी। सुनीता भी जग गई थी। मैं शौच जाकर उसके पास आया और जाने की इजाजत मांगने लगा।

तो उसने कहा- “रुक जाते तो मजा आ जाता, यदि मौका मिलता तो शायद कुछ और भी करते परन्तु तुम्हें शोरूम जाना है तो क्या किया जा सकता है”

फ़िर इतना कहकर मिठाई का एक डिब्बा लाकर मेरे हाथों में दिया। गर्मजोशी से हाथ मिलाया और गले लगा लेकिन उसे नहीं भूल पा रहा था। कौन थी वो?

एक महीना निकल चुका था। वीणा का फ़ोन नहीं आया तो मैंने चैन की सांस ली। चलो एक बला तो टली।

मैं अपने शोरूम में शाम को छह बजे बैठा कुछ काम कर रहा था कि मेरे मोबाइल ने आवाज मारी। उठा कर देखा तो वीणा का फोन था। या अल्लाह! कल ही तो मैं शुक्र मना रहा था और आज…

मैंने मोबाइल कान पर लगाया- "हेलो"

वीणा- "सगीर, मैं वीणा बोल रही हूँ"

मैं- "हाँ वीणा, बताइये, आपका नंबर सेव है मेरे पास"

वीणा - "आपने तो पलट कर एक बार भी फ़ोन नहीं किया"

मैं- "हां, माफ़ कीजिये, थोड़ा व्यस्त रहा इन दिनों"

वीणा - "व्यस्त रहे या टाल रहे थे"

मैं- "नहीं ऐसा कुछ नहीं वीणा"

वीणा - "तो फ़िर क्या सोचा, कब आ रहे हो?"

मैं- "नहीं, अभी तो नहीं वीणा, आजकल मैं बहुत व्यस्त हूँ। फ़िर कभी देखते हैं"

वीणा - "अच्छा? क्यों तड़पाते हो एक दुख़ियारी को? प्लीज…"

फ़िर चार पांच सेकन्ड चुप्पी रही फ़िर एकाएक वीणा की आवाज आई- "उस प्यारी दवा का दूसरा डोज और दे जाते तो बहुत मेहरबानी होती आपकी"

मेरे कान के पास जैसे बम फ़टा हो।

मेरे मुँह से लगभग चीखती सी आवाज निकली- "साली… वीणा की बच्ची, तो वो तू थी… मेरी तो जान ही निकली पडी है उस दिन की सोच सोच कर… देख लूंगा तुझे तो… समझ लूंगा… साली… तेरा कचूमर नहीं निकाल दिया तो देखना"

रेखा की खनकती हंसी सुनाई दी- "हाय हाय मर जावां… क्या प्यारा रिश्ता बनाया है… कसम से 'साली' यानी 'आधी घरवाली' हाय हाय मेरे जीजू… बिना मांझे की मन की पतंग डोर वाला रिश्ता… वाह… आनन्द ही आनन्द भये…"

फ़िर सन्जीदा आवाज सुनाई दी- "मेरे राजा… मेरे प्यारे जीजू… उस घटना के लिये सॉरी… दिल की गहराइयों से सॉरी… कान पकड़ कर सॉरी… दण्ड्वत करके सॉरी… आओगे तो पैर पकड़ के और सॉरी कहूँगी"

और फ़िर से खनकती हुई हंसी सुनाई दी और बोली- "देखना हो, समझना हो तो आज ही आ जाओ जान। सब के सब शादी में गये हैं, रात को दस बजे बाद तक ही आयेंगे। खूब अच्छी तरह से मुझे देखना और समझना। साथ ही मेरा कचूमर भी निकाल देना। जल्दी आओ, मैं इन्तजार कर रही हूँ। वैसे हनी और सुनीता ने तुम्हारे हथियार की और चोदने की जितनी तारीफ़ की थी, तुम उससे भी कहीं ज़्यादा मझे हुए खिलाड़ी निकले। कसम से इतने मस्त तरीके से मुझे वरुण ने आज तक नहीं चोदा"

मुझे अब वह पता नहीं क्यों अच्छी लगने लगी थी पर इस हनी की बच्ची ने भी मेरे साथ इतना बड़ा गेम खेला और मुझे हवा तक नहीं लगने दी। आज इस हनी का तो कोई छेद नहीं बचने वाला।

आ रहा हूँ मैं हनी…

समाप्त


अब मुलाकात होगी एक नई कहानी दे साथ तब तक के लिए इस नाचीज़ को इज़ाजत दीजिये।  Namaskar Namaskar
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
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#16
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