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Adultery मौके पर चौका
#41
Heart 
समीना- "तेरे जीजू बीस दिन के बाद आने वाले हैं"

फिर ऐसे ही आपा बोली- "वैसे तेरी बीवी हर महीने गोलियां खाकर कुछ अच्छा नहीं कर रही, देख रहा है न मेरी हालत"

मैं- "क्या बताऊँ आपा… रज़िया अभी औलाद नहीं चाहती"

समीना- "अरे पहले एक बच्चा तो होने दो फिर जो मन में आये करो। आज सुबह सुन लिया ना। अम्मी पोते-पोती के लिए तरस रही हैं"

मैं हंस कर बोला- "तू सबसे बड़ी है। पहले तू फिर रूही आपी एक एक बच्चे की अम्मी बन जाएँ फिर मैं रज़िया को तो यूँ अम्मी बना दूंगा" मैंने चुटकी बजाते हुए कहा

समीना- "हमारी अम्मी भी ना… अजीब बात करती हैं। अगर बेटा होगा तो तेरी शक्ल पर और बेटी हुई तो मेरी जैसी"

मैं और समीना दोनों ही मजार की भीड़ में काफी गर्म हो चुके थे। मेरा लण्ड तो अभी भी काफी टाइट था।

मुझसे खुद को सम्भालना अब मुश्किल हो रहा था। मैं आपा के पीछे खड़ा हो गया। इस वक़्त आपा गैलरी की रेलिंग पकड़ कर आगे झुक कर खड़ी थी। झुकने से आपा के गाउन के अंदर बिना पैंटी के नंगे चूतड़ और उनके बीच की दरार पीछे से साफ दिखाई दे रही थी।

मैं रुक नहीं पाया और अपनी हाफ पैंट को उतार कर आपा के पीछे चिपक गया।

लेकिन जैसे आपा को मेरी इस हरकत से कुछ भी नहीं हुआ वो अब भी बालकनी से बाहर झाँक रही थी।

अपनी धुन में खोई आपा बोली- "तू जानता है सग़ीर, अम्मी और मजार वाले सेवादार का दावा है कि इस बार मेरी कोख खाली नहीं रहेगी"

“आ … ऊऊऊ … अम्मी …” इस बीच मैं अपने लण्ड को आपा की गांड की दरार में दबा रहा था। आपा की चूत में इससे सरसराहट हुई तो उनकी सिसकारी निकल गयी।

अब मैंने आपा के गाउन को उनके कूल्हों से ऊपर किया और पीछे से अपना लंड आपा की चूत पर रख कर दबा दिया। एक तो मेरे लण्ड का मोटा सुपारा और दूसरे मेरी बहन समीना की चूत पर बढ़ी हुई झांटें… मेरा लंड आपा की चूत में नहीं जा पाया, वो उन्ही झांटों में बुरी तरह फंस गया।

मैं बोला- "आपा! हम सबकी दुआ आपके साथ है। इस बार आपकी कोख किसी भी कीमत पर खाली नहीं रहेगी"

मेरा लंड आपा की चूत में दाखिल हो नहीं पा रहा था। तो आपा ने अपनी दोनों टांगों को थोड़ा फैला दिया। मैंने आपा कि झांटे एक तरफ करके चूत का मुंह खोल दिया और देर न करते हुए अपने लण्ड के सुपाड़े पर ढेर सारा थूक लगाकर लण्ड को आपा की चूत पर चार पांच बार घिसा और चूत के छेद का आभास मिलते ही मैंने एक धक्का मारा और मेरे लण्ड का सुपारा आपा की चूत में चला गया।

भाई के लंड का गर्म सुपारा चूत के अंदर घुसते ही मेरी बड़ी बहन की चूत वासना से तपने लगी। अब समीना भी मेरे लण्ड के ऊपर अपने कूल्हों को दबा रही थी लेकिन ऐसे दिखा रही थी कि जैसे उसे कुछ पता ही नहीं कि क्या हो रहा था।

वो उसी तरह से मेरे साथ बात कर रही थी। हाँ अब समीना की आवाज ज़रूर भारी हो गयी थी।

वो उत्तेजना भरी आवाज़ में बोली- "कल रात फ़रिश्ते के आने से मेरी उम्मीद बढ़ गयी है सग़ीर अगर वो कल नहीं आते तो आज मैं नाउम्मीद ही हो जाती। आह … भाई ऊऊई … आउच"

अब तक मेरा आधा लण्ड आपा की चूत में घुस चुका था। इसी हालत में मैं अपने लण्ड को आपा की गीली चूत में आगे पीछे करने लगा।

मैं बोला- "आपा! अब तो आपकी उम्मीद को हकीकत में बदलने के लिए आपका भाई आपके पीछे खड़ा है। आपके होने वाली औलाद किसकी शक्ल लेकर आएगी? आपकी या रफ़ीक़ जीजू की?"

समीना आपा मेरे मोटे लंड को अपनी चूत में महसूस करती हुई नशीली आवाज में बोली- "मेरे राजा भाई सग़ीर जैसी शक्ल लेकर आयेगी मेरी औलाद"

मैं अपने लंड को अपनी बड़ी बहन की चूत में थोड़ा और धकेल कर बोला- "आपा, क्या सच में आपको रफ़ीक़ जीजू पसंद नहीं?"

समीना सिसकारी भरती हुई बोली- "एक तरफ तू अपनी और रज़िया की जोड़ी देख दूसरी तरफ रफ़ीक़ और मेरी जोड़ी देख फिर तू खुद फैसला कर। एक बीबी का तो इतने सालों में कुछ उखाड़ न पाया उस पर ज़नाब की दूसरी शादी की बात चल रही है"

मैं अपना लंड आपा की चूत में आगे पीछे करते हुआ बोला- "रज़िया और आपकी शक्ल तो बिलकुल मिलती है। कोई अनजान भी तुम दोनों को एक साथ देखे तो यही कहेगा कि तुम दोनों सगी बहनें हो, मुझे तो कभी कभी शक होने लगता है" मैंने आपा के चूतड़ पर हाथ मारते हुए कहा

समीना भारी आवाज़ से बोली- "हम दोनों सगी बहनें न सही … पर ममेरी बहनें तो हैं ना … रज़िया तेरी बहन ही थी, चोद लिया था कोई बात नहीं, वही मामले को रफा दफा कर देते। तुझे उससे निकाह करना नहीं चाहिए था"

मैं बोला- "फिर तुम सबने मिलकर खुशी खुशी हम दोनों का निकाह क्यों करवाया?"

समीना आपा ने हंस कर अपने हाथ से मेरा लंड अपनी चूत से निकाला और बोली- "चल अंदर चलते हैं, अभी बहुत रौशनी है यहाँ किसी की भी नज़र पड़ सकती है"

फिर समीना मेरा हाथ पकड़ कर बिस्तर पर ले गई और अंदर जाकर हंसती हुई बोली- "मैं तो बिलकुल नहीं चाहती थी कि तू मामू की बेटी से शादी करे। अभी भी रज़िया तुझे भाईजान बुला देती है"

मैंने हंस कर समीना को पीछे से पकड़ा- "शौहर तो मैं उसका बाद में हुआ, पहले तो मैं रज़िया का भाई ही था। जितना हक रज़िया का मेरे ऊपर है उतना हक आपका रूही और हनी का भी मेरे ऊपर है। आपका वही हक़ तो अब अदा कर रहा हूँ"

समीना आपा भी मेरी बाकी दोनों बहनो की तरह पूरी तौर से खुल चुकी थी- "जब तुझे अपनी बहनों के ही जिस्म पसंद आते हैं तो हम क्या कर सकते हैं। एक बहन को बीवी बना कर चोदा तूने, अब दूसरी को तू किस हक़ से चोद रहा है बहनचोद?"

इतना सुनते ही मैं हंस कर बोला- "क्या बोली?"

समीना हंस कर बोली- "मैं तेरी सगी बड़ी बहन हूँ और तू मेरे सामने नंगा होकर अपना लण्ड हाथ में लिए अपनी सगी बड़ी बहन की चुदाई करने के लिए खड़ा है तो तू बहनचोद ही हुआ ना"

मैंने फटाफट समीना का गाउन उतारा और उन्हें पूरी तौर पर नंगा कर दिया फिर उन्हें बिस्तर पर लिटाते हुए बोला- "जब तुम जैसी हूर की परी मेरे घर में हो तो मैं बार बार बहनचोद बनूंगा"

समीना बोली- "सग़ीर! मेरे भाई, तुझे जो करना है, ज़ल्दी कर। अम्मी और रज़िया आने वाले होंगे"
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#42
Heart 
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चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#43
Heart 
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चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#44
Heart 
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चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#45
Heart 
इतना सुनते ही मैंने आपा की जांघें फैलायी और अपने लण्ड को उनकी चूत के अंदर एक ही झटके में पेल कर चुदाई शुरु करते हुए कहा- "आपा यार, ये झांटे साफ़ कर लिया करो, मुझे चिकनी चूत पसंद है"

"आह ... ओह मेरी अम्मी! आराम से चोद और तुझे अगर झांटे पसंद नहीं हैं तो तुझे खुद साफ़ करनी होंगी। मैंने एक बार की थी मुझे कई जगह कट लग गए तब से मैं साफ़ ही नहीं करती हूँ" -आपा ने टाँगे ऊपर उठा कर फैलाते हुए कहा

दोनों भाई बहन अब फूल मस्ती से चुदाई का लुत्फ़ उठा रहे थे। मैं फुल स्पीड से आपा को चोद रहा था। आपा भी अब पूरी तौर से खुल कर चुदवा रहीं थीं।

आपा अपनी आँखे बंद किये अपनी चूत में मेरा लण्ड लेते हुए बोलीं- "सग़ीर, मेरे भाई! रफ़ीक़ के आने से पहले तू मेरी कोख में अपनी औलाद डाल देगा ना?"

मैं चुदाई का रफ्तार तेज़ करके बोला- "आप चिन्ता मत करो आपा, आप जीजू के आने से पहले ही पेट से हो जाओगी"

समीना नशीली आवाज़ में बोली- "भाई! जब रफ़ीक़ वापस चले जायेंगे तो मैं फिर से आऊंगी तेरे साथ रहने, तूने हक़ीक़त में मुझे चुदाई का सुख दिया है, कल से पहले मुझे मालूम ही नहीं था कि चुदाई में इतना मज़ा मिलता है मेरे भाई"

आपा अब हर धक्के पर नीचे से अपने चूतड़ उठा देतीं थी जिससे अब मेरा लण्ड सीधा उनकी बच्चेदानी पर चोट कर रहा था।

आपा उत्तेजना भरी आवाज़ में बोली- "यह तेरा खतरनाक लण्ड बेचारी रज़िया कैसे झेलती होगी"

मैं अपनी आपा की चूत को तेज़ रफ़्तार से चोदते हुए बोला- "जैसे आप इस वक़्त झेल रही हो, वैसे ही रज़िया भी झेल लेती है। ये जो ऊपर वाले ने आप लोगों को जो चूत तोहफे में दी है, ये बड़े से बड़े लण्ड को भी खाने की ताक़त रखती है"

आपा बोली- "कल रात तो मैं इसे फ़रिश्ते का लण्ड समझ कर झेल गयी। कल से पहले मैंने ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि लण्ड भी इतने मोटे और लम्बे होते है। इसने मेरी पूरी चूत ही फाड़ दी थी। भाई तेरे लण्ड ने तो मेरी चूत पूरी खोल दी है। अब तो तेरे जीजू का लण्ड तेरी आपा की चूत में ऐसे जाएगा जैसे कुएँ में बाल्टी"

इस तरह की मज़ेदार बातें करते करते हम दोनों भाई बहन ने अलग अलग स्टाइल से चुदाई की फिर मैं और आपा दोनों एक साथ झड़ने लगे तो हम बुरी तरह हांफने लगे थे।

हम दोनों के चेहरे पर खुशी झलक रही थी। मैं इसलिए खुश था कि एक तो मुझे नयी और कसी हुई चूत मिली और दूसरे इसलिए कि मैं अपनी आपा को औलाद का सुख दे पाऊँगा।

आपा इसलिए खुश थी कि एक तो उन्हें औलाद का सुख मिल जाएगा और भाई के मोटे लण्ड से आज उन्हें असली चुदाई का मजा मिल रहा है।

फिर समीना आपा अपना गाऊन सम्भालती हुई बोली- "भाई, आधी रात को एक बार मेरे कमरे में जरूर आ जाना, इस चूत की आग अब तेरे लण्ड से ही शांत होगी मेरे भाई"

मैंने भी खुश होते हुए कहा- "ठीक है आपाजान"

समीरा हंस कर बोली- "आपा को अपनी जान बना लिया? बदमाश कहीं का, अब तू जा कहीं किसी को शक हो गया तो गड़बड़ हो जाएगी"

मैंने अपने कपड़े पहने और बाहर निकल आया।

जब तक रज़िया और अम्मी वापस आई तब तक मैं बाहर बाइक को साफ़ करने का नाटक करने लगा।

इधर समीना आपा अपनी चुदाई की थकान मिटा कर एक घण्टे बाद नीचे आयी और खुशी खुशी मेरी बीवी से बात करने लगी।

रात का खाना खाकर सब अपने अपने कमरे में चले गये। मैं रज़िया को एक बार चोद कर उसे सुला कर आपा के कमरे में जाना चाहता था लेकिन उस रात उसने मुझे कहीं नहीं जाने दिया।

भले ही उस रात मैंने रज़िया की एक ही बार चुदाई की लेकिन वो पूरी रात मेरे लण्ड को हाथ में लेकर मुझसे बातें करती रही। रज़िया का रोमांस काफी देर तक चलता रहा। आखिर देर रात मैंने रज़िया को एक बार और चोद कर सुला दिया और मैं भी सो गया फिर सुबह आठ बजे मेरी नींद खुली।

फिर सुबह मैं नहा धोकर समीना आपा को मजार पर ले गया। दुआ के बाद मैं आपा को पास वाले जंगल में ले गया, वहां मैंने आपा को नंगी करके पेड़ के सहारे खडी करके पीछे से मस्त चोदा। यही जंगल चुदाई हम दोनों भाई बहन ने शाम को मजार पर जाने के बहाने की।

अब मेरा रोज का काम हो गया कि मैं रात को अपनी बीवी रज़िया को एक बार जोर से चोद कर ठण्डी कर देता और फिर आधी रात के बाद समीना आपा के कमरे में जाकर मैं उनकी चुदाई करता।

थोड़े दिन बाद समीना की डेट आनी थी जो नहीं आयी। फिर भी आपा ने यह खबर किसी को नहीं बताई।

फिर कुछ दिन बाद रज़िया की डेट नहीं आई तो उसने मुझे और अम्मी को ये बात बताई। अम्मी ने यह बात अब्बू को और समीना को बतायी तो सब खुश हो गए।

तब अचानक मुझे लगा कि मैं दो हफ्ते से समीना आपा को चोद रहा हूँ, उनकी डेट कब आनी थी, यह मैंने पूछा ही नहीं।

मुझे लगा कि जरूर समीना आपा की डेट निकल चुकी होगी और उनकी कोख भी रज़िया की तरह भर गयी होगी क्योंकि मैंने अपनी बीवी को कम और आपा को पिछले दिनों ज्यादा चोदा था। आगे आपा की डेट आती तो वो चुदाई बंद कर देती लेकिन ऐसा तो कुछ नहीं हुआ था। बल्कि आपा उसी ज़ोर शोर से रोज़ चुदाई करवा रहीं थीं।

मैं आपा के कमरे में गया और उनकी डेट के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि उनकी डेट रज़िया से दो रोज पहले थी जो नहीं आयी थी।

यह सुन कर मैं खुशी से झूम उठा। मैंने आपा के लबों को चूम लिया और उन्हें गले से लगा लिया।

जीजू के आने में अब दो दिन ही बचे थे। आपा को अभी भी मजार पर कुछ दिन और दुआ मांगनी थी तो जीजू हमारे घर ही आये। अब आपा और मेरी चुदाई बंद हो गयी। जीजू रोज रात को आपा को चोदते थे। आपा रोज मुझे बताती थी कि कैसी चुदाई हुई। आपा को जीजू का लंड अब चूत में पता भी नहीं लगता था। उन्हें जीजू से चुदाई में ज़रा भी मजा नहीं आता था।

जीजू पाँच दिन हमारे घर रुक कर दो दिन के लिए अपने घर पर रुके और फिर वापिस चले गए।

रफ़ीक़ जाने के बाद अब मैं और समीना पहले की तरह फ्री होकर चुदाई करने लगे।

जीजू के जाने के दस पंद्रह दिन बाद आपा ने अम्मी को अपनी माहवारी ना आने का बताया तो अम्मी खुश हो गयी और उन्होंने आपा की सासू को फोन करके यह खुशखबरी दी। वो भी बहुत खुश हुई और काफी फल मिठाई तोहफे लेकर वो हमारे घर आयी और इस खुशी में शरीक हुई।

आपा की सासू उन्हें अपने घर ले जाना चाहती थी लेकिन आपा ने अभी मजार जाने का बहाना बना कर उन्हें टाल दिया। असल में आपा को मेरे लंड की लत लग गयी थी।

जब समीना और रज़िया का पेट फूल कर आगे निकलने लगा तो रज़िया की अम्मी आकर उसको अपने घर ले गई।

इधर समीना की सासू ने समीना को अपने घर ले जाने की बात की तो आपा ने बड़ी चालाकी से ससुराल जाने से मना कर दिया- "अम्मी! जिस मजार पर दुआ करने से मुझे यह खुशी मिली है, उसे मैं खुशी पूरी होने तक नहीं छोडूंगी"

समीना आपा की इस चालाकी से मैं बहुत खुश था। चार पांच महीने तक आपा दिन रात मुझसे टाँगे फैला कर पूरा जड़ तक लण्ड ले लेकर हचक के चुदी फिर मैंने समझाया कि अब चुदाई बच्चे के लिए ठीक नहीं रहेगी तब वह किसी तरह मन मार कर शांत हुईं।

आखिर में नौ महीने बाद वही हुआ। समीना के बेटी हुई और मेरी बीवी रज़िया ने एक बेटे को जन्म दिया।

बच्चा पैदा करने के बाद समीना को अपनी ससुराल जाना पड़ा लेकिन बीच बीच में मौका निकाल कर आज तक वो चुदने मेरे पास आ जातीं हैं।

आज तक समीना आपा की औलाद का असली राज़ कोई नहीं जान पाया। अम्मी तो यही सोचती हैं कि आपा की औलाद फ़रिश्ते के चोदने से हुई है।

आप लोगों को मेरी कहानियां कैसी लगतीं है, यह कमेंट में ज़रूर बताया करिये।

अगली कहानी आने तक अपने दोस्त सग़ीर ख़ान को इज़ाजत दीजिये।

ख़ुदा हाफिज।  Namaskar Namaskar
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#46
Heart 
भाग - 3

नाजायज़ औलाद
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#47
Heart 
ख़वातीन और हाज़रात को आपके दोस्त सग़ीर ख़ान का आदाब!

दोस्तों! यह कहानी बहुत पहले की है जब मैं मदरसे में तालीम हासिल करने जाया करता था। मैं बहुत ही गोरा चिट्टा हसीन तरीन लड़का था। लड़कियां मुझसे दोस्ती करने को आगे पीछे घूमतीं थीं पर मैं बचपन से ही क्रिकेट का शौक़ीन था सो मेरे फ्रेंड्स भी सभी लड़के ही हुआ करते थे। लण्ड और चूत के खेल से मैं पूरी तौर पर अनजान था।

मदरसे में मुझे जो तालीम दिया करते थे उनका नाम तो पता नहीं पर सब उन्हें 'ख़ान साहब' कह कर बुलाते थे। ख़ान साहब लम्बे चौड़े मूल पाकिस्तान के सिंध प्रान्त के रहने वाले थे। वह मुझे अक्सर अपने पास बुला कर मेरे शरीर पर हाथ फेरा करते थे जो मुझे बहुत नाग़वार गुजरता था। परन्तु उस्ताद होने की वजह से मैं कुछ बोल नहीं पाता था।

एक रोज़ ख़ान साहब ने मुझे छुट्टी होने के बाद सभी फाइलें और कागज़ ले चल कर उनके क़्वार्टर में पहुँचाने को बोला। सारे बच्चे जा चुके थे, मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था लेकिन उस्ताद थे सो मन मार कर मैं कागज़ात लेकर उनके पीछे चलने लगा।

क़्वार्टर पहुँच कर ख़ान साहब अपने कमरे में चले गए। मैंने सभी कागज़ात उनकी टेबल पर करीने से रख कर जाने की इज़ाजत लेने उनके कमरे में गया तो वह सिर्फ एक अंडरविअर पहने लेटे थे। उन्होंने अपने पास बुलाकर मेरे गाल पर किस किया और शाबाशी देते हुए मेरे चूतड़ों पर हाथ फिराने लगे।

मैं सख़्त शर्मिंदा था, कल तक जिस काम से मुझे नफ़रत थी, आज वही मेरे साथ हो रहा था। वैसे मेरे साथ इस तरह की हरकत करने वालों की तादाद बहुत बड़ी थी लेकिन मुझे ऐसा सेक्स करने की कोइ चाहत कभी नहीं थी। मैंने उन्हें रोकना चाहा पर मैंने सोचा बेकार है क्योंकि उस वक़्त क़्वार्टर में हम दोनों के अलावा कोई नहीं था।

वो मुझसे उम्र में भी काफी बड़े थे, मैं उनसे मुफ़्त में छुट्टियाँ भी पाता था। मैं मन मसोस कर उनकी ज्यादती बर्दाश्त करता रहा।

थोड़ी देर बाद ख़ान साहब ने मुझे अपने से चिपकाते हुए मेरी शर्ट के सभी बटन खोल कर उसे उतार दिया फिर मेरी बनियान भी निकाल कर मेरी निप्पल्स को बारी बारी जीभ से चुभलाते हुए चूसने लगे। फिर उन्होंने मेरा पेंट भी उतार दिया। अब मैं बिलकुल नंगा था क्योंकि मैंने पेंट के अंदर कुछ नहीं पहना था।

मुझे नंगा करके थोड़ी देर बाद उन्होंने अपना अंडरविअर भी निकल दिया। मैंने देखा कि उनकी टांगों के जोड़ के बीच एक साधारण सा लण्ड लटक रहा था जिसमे बिलकुल भी सख्ती नहीं थी। अब उन्होंने मेरे बदन को फिर से चूमना चाटना शुरू कर दिया। मुझे बहुत ही बुरा लग रहा था, मैं सोच रहा था कि अब मेरा दैहिक शोषण होकर ही रहेगा।

थोड़ी देर चूमा चाटी करने के बाद उन्होंने मेरे हाथ में अपना लण्ड पकड़ा दिया और उसे हिलाने का इशारा किया। मैं उनका लण्ड हिला रहा था और वो मेरे लण्ड को कभी सहलाते तो कभी मेरी गांड के छेद पर ऊँगली से दबाब डालते।
वो मुझे काफ़ी देर तक चूमते रहे, पर उन्होंने मेरी गाण्ड नहीं मारी उल्टे मुझसे कपड़े पहन लेने का फरमान सुना दिया। मैं मन ही मन बहुत खुश था कि जान बची तो लाखों पाए।

तभी मेरा ध्यान उनके लण्ड पर गया जो मेरे इतना सहलाने के बाद भी सख्त नहीं हुआ था बल्कि अभी तक बिल्कुल मुरझाया हुआ था और ऐसा लग रहा था कि लण्ड के नाम पर बस एक गोश्त का टुकड़ा लटक रहा हो। खैर, मैं बहुत खुश था कि जान छूटी।

उन्होंने मेरी जेब में दो रूपए डाल दिए। मैं बहुत खुश था कि चलो इन पैसों से कोई चीज खरीद कर खाऊँगा।

ख़ान साहब इसी तरह अक्सर किसी न किसी बहाने मुझे अपने क़्वार्टर में बुलाते और दोनों नंगे होकर चूमा चाटी करते फिर मेरी जेब में दो रुपये डाल कर मुझे जाने को बोल देते। मैं भी खुश था कि पैसे भी मिल जाते हैं और गाण्ड भी नहीं मरवानी पड़ी। मुझे तो बहुत बाद में मालूम हुआ कि ऐसे लोगों को नामर्द यानी इंपोटेंट कहते हैं।

ख़ान साहब एक तन्हा शख़्स थे। मुझे नहीं मालूम कि उनका कोई आगे-पीछे वाला था भी या नहीं। बावर्ची और मुलाज़िम उनके घर पर काम करते थे और उनकी शराफ़त की वजह से शोहरत भी बहुत थी।

यह अलग बात है मुझे मालूम था कि वे कितने बड़े मादरचोद इन्सान थे। मैंने कभी किसी से (उनके एहतराम की वजह से) ज़िक्र भी नहीं किया। कह भी देता तो शायद, लोग यक़ीन ना करते और ज़रूरत भी नहीं थी।

उनसे मेरे ताल्लुकात का ये एक सबब था और मैं उनका ख्याल भी रखता था। उनकी बीमारी में, मैंने तीमारदारी की और मैं क्या, हमारे इलाके के सभी लोग उनका ख्याल रखते थे।

वह इस काम के साथ साथ अपनी पढाई करते हुए परीक्षा भी देते रहते थे। कुछ समय बाद उनकी किसी बड़ी पोस्ट पर नियुक्ति हो गई, मैं फिर भी उनके पास जाता रहा। उन्होंने काफ़ी अरसे से वो गंदी हरकत भी बंद कर दी थी।

दिन गुजरते गए। मैं कॉलेज में चला गया और उनसे कभी-कभार मिलता था। मैं कॉलेज में सेकेंड इयर में था, उन्होंने मुझे एक आदमी के जरिए मुझे बुलवाया।

मैं उनके बुलावे पर शाम को उनके दफ्तर गया। वे मुझसे बहुत अदब से मिले और घर चलने को कहा। मैंने सोचा शायद फिर वही चूमा-चाटी करेगा साला... लेकिन अब मैं वो लड़का नहीं बल्कि पूरा मर्द बन गया था। हालाँकि अभी तक मैंने किसी के साथ सेक्स नहीं किया था। मैंने सोचा अगर आज इसने फिर वही हरकत दी तो इसकी गांड मार लूंगा। और फिर अब मुझे पैसों की भी कोई खास ज़रूरत नहीं थी। मुझे कॉलेज की तरफ से स्कॉलर-शिप मिलती थी और मेरा कोई विशेष खर्चा भी नहीं था। ऊपर से अब्बू मुझे डेली कुछ न कुछ देते ही रहते थे।

उनका घर भी दफ्तर के अहाते में ही था, हम वहाँ चले गए, उन्होंने दरवाज़ा खटखटाया तो एक ख़ातून ने दरवाज़ा खोला। मैंने पहली बार उनके घर में ख़ातून देखी थी, बल्कि कभी किसी ख़ातून का नाम भी उनके हवाले से नहीं सुना था।

उन्होंने कहा- "ये मेरी बेगम हैं"

मैं खुश हुआ कि उन्होंने शादी कर ली और शायद इसी वजह से उन्होंने मुझे काफ़ी अरसे से बुलाया भी नहीं।

उन्होंने अपनी बेगम फ़रज़ाना से मेरा परिचय कराया।

फ़रज़ाना से कहा- "बेगम! यही सग़ीर है, मेरे सबसे अज़ीज़-तरीन स्टूडेंट, जिनका ज़िक्र मैंने आपसे किया था"

इसका मतलब था कि उन्होंने अपनी बेगम से मेरे बारे में पहले कभी चर्चा की होगी।

फ़रज़ाना ख़ातून उम्र में मुझ से बड़ी थीं और ख़ान साहब से कुछ ज्यादा ही छोटी थीं। ख़ान साहब से क़द में लंबी और खूब गोरी और बेहद आम सी ख़ातून, उनके चेहरे पर कोई कशिश भी नहीं थी। ऐसा लगता था जैसे उन्हें किसी बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। चेहरा भी बुझा बुझा सा था। आँखे ऐसी लग रही थीं जैसे कई रात से सोई न हो।

काफ़ी देर के बाद ख़ान साहब ने कहा- "सग़ीर, मुझे और फ़रज़ाना को तुम्हारी मदद की ज़रूरत है"

मैं कुछ नहीं बोला, वो चाय बगैरह पीकर वापिस दफ्तर चले गए, जाते-जाते खान साहब कह गए कि हम दोनों बातें करें, वे कुछ जरूरी काम निबटा कर आते हैं, तब सब मिल कर खाना खायेंगे।

उनके जाने के बाद फ़रज़ाना साहिबा ने मुझे अपना घर दिखाना शुरू कर दिया। सरकारी घर था, मगर बहुत बड़ा था। फ़रज़ाना ने मुझे एक-एक कमरे को दिखाया और उस कमरे में ले गईं जिसमें टीवी था। उस ज़माने में ब्लॅक एंड व्हाइट टीवी भी बहुत ही कम लोगों के घर में होता था।

वो मेरे साथ बैठ गईं। उन्होंने मेरे बारे मैं पूछा और कहा- "ख़ान साहब सिर्फ आपको याद करते हैं। उन्होंने आपके बारे में मुझे बताया है कि आप ही उनके सबसे करीब के स्टूडेंट थे"

मैंने मन ही मन सोच मादरचोद ने कहीं मेरे साथ चूमा-चाटी के किस्से तो नहीं सुना दिए लेकिन फिर सोचा कि ऐसी बातें अपनी बीवी को क्यों बतायेगा!

वो फ़रज़ाना मेरे क़रीब आ गईं और बिल्कुल चिपक कर बैठ गईं।

उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा- "मैं आपको प्यार कर सकती हूँ?"

मैंने उनकी तरफ देखा और घबरा गया कि यह सब क्या हो रहा है। उन्होंने मेरे जवाब का इंतज़ार भी नहीं किया और मुझे गले लगा कर प्यार करने लगीं। मेरी ज़िंदगी में माँ के अलावा पहली बार किसी ने प्यार किया था और मैं एक शर्मीला लड़का हूँ, मैं घबरा गया था।

उन्होंने मुझे प्यार करते हुए मेरे होंठों चुम्बन लिया। मैं उनके गले लगा हुआ था और वो मुझे बेतहाशा प्यार कर रहीं थीं लेकिन सिवाय घबराहट के मेरे अन्दर कोई फीलिंग नहीं थी।

अब उनका हाथ मेरे लंड पर था जो बिल्कुल बैठा हुआ था। मैं कुछ नहीं कर रहा था मेरा लण्ड उनके हाथों में था और मेरे होंठों पर उनके होंठ थे। जो कुछ भी हो रहा था सब उनकी मर्जी से हो रहा था।

उन्होंने कहा- "आओ मेरे साथ लेट जाओ..!"

उन्होंने खुद ही मुझे बिस्तर पर अपने साथ लेटा लिया। वो मुझ से चिपट गईं और अब जाकर मेरे अन्दर कुछ होना शुरू हुआ यानि लण्ड भी खड़ा होने लगा और सब कुछ अच्छा लगने लगा।

वो मेरे ऊपर आ गईं और खूब चूमने लगीं, जिसके जवाब मैं भी उनको चूमने लगा, मेरा लण्ड अब पूरी तरह सख़्त हो चुका था।

contd....
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#48
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#49
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#50
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उन्होंने अपने कपड़े उतारते हुए कहा- "तुम भी अपने कपड़े उतार दो, सग़ीर"

हम दोनों नंगे हो गए और फिर से चिपक गए।

मैं कमरे के खुले दरवाज़े की तरफ देख रहा था, जो उन्होंने महसूस कर लिया और कहा- "फिकर ना करो ख़ान साहब देर से आऐंगे और घर में हम दोनों के अलावा कोई नहीं है"

हम दोनों एक-दूसरे के साथ चिपके हुए थे और खूब पसंदिगी से चूमा-चाटी कर रहे थे, वो मेरी आँखों में देख रहीं थीं।

उन्होंने कहा- "तुम बहुत ही अच्छे और खूबसूरत जवान हो…तुम्हारा हथियार कितना लम्बा और मोटा है... काश..."

मैं उनकी तरफ़ देखता रहा और उन्होंने फिर ‘काश’ के बाद कुछ ना कहा।

उन्होंने कहा- "मैं खुशनसीब हूँ कि मेरी पहली चुदाई तुम करोगे"

और यह कह कर फिर से मेरे जिस्म के ऊपर आकर जगह-जगह से चूसने लगीं और लण्ड को हाथों में लेकर सहलाने लगीं और कहा कुछ भी नहीं। मेरे सीने पर जगह-जगह काट रही थीं और बार-बार मेरी आँखों में झाँक रही थीं। इधर मेरे सामने ख़ान साहब का मुर्दा लण्ड घूम रहा था। हक़ीक़त में वो चूमा चाटी के अलावा और कुछ कर ही नहीं सकते थे।

तो क्या उनकी बेगम फरज़ाना अभी तक कुंवारी थी?

वो फिर मेरे बाजू में लेट गईं और बोलीं- "अब आ जाओ और शुरू हो जाओ, अब बर्दाश्त नहीं हो रहा। बहुत प्यासी हूँ सग़ीर, अब जल्दी से मेरी प्यास बुझा दो"

मैं समझ गया कि उनका मतलब चुदाई से ही था। मैंने आज तक कभी चुदाई नहीं की थी। बस जानता था और पढ़ा था। पहले न कभी ब्लू-फ़िल्म देखी थी।

मैं उनकी टाँगों के दरमियान आ गया। वो यूँ तो मामूली शक्ल-सूरत की थीं लेकिन जिस्म बड़ा गदराया हुआ था और चूत का तो क्या कहना। लगता था था आज ही उन्होंने झांटे साफ़ कीं थीं। चूत कि दोनों फांके आपस में चिपकी हुई थीं, लगता था कि इसने आज तक लण्ड कि शकल भी नहीं देखी है। फांकों के निचले हिस्से से कुछ लिसलिसा सा पानी निकल रहा था।

उनका पेट खूब गोरा और बिल्कुल चिकना था जिस पर उनकी दोनों चूचियां नुकीली भरी हुई और बिलकुल तनी हुई थीं। निप्पल कड़े होकर बिलकुल खड़े थे। लंबे से बाल और लंबी गर्दन, बड़ी-बड़ी आँखें..! बस बाक़ी सब कुछ आम सा था।

मैं उन्हें देख रहा था।

उन्होंने पूछा- "क्या यह तुम्हारा पहली बार है?"

मैंने कहा- "जी"

फिर वो कुछ ना बोलीं। मैं उनके ऊपर था। मेरा लण्ड खूब सख़्त और लोहे की तरह तना हुआ था।

उन्होंने कहा- "परेशान ना हो, ख़ान साहब ने मुझे तुमसे चुदने की इज़ाज़त दे दी है क्योंकि वो इस क़ाबिल नहीं हैं। उन्होंने मेरी खातिर और अपनी आबरू बचाने के लिए तुम को मुन्तखिब किया है। मेरा यक़ीन करो कि शादी से पहले और बाद में यह मेरा भी पहला ही मौका है और शायद तुम्हारे अलावा किसी और से होगा भी नहीं"

यह कहते हुए वे उदास हो गईं और मुझे भी वो दिन याद आने लगे। जब खान साहब मुझ से नाकाम सेक्स करते थे।

फ़रज़ाना की उदासी का सबब जाना तो मैं उनकी चूचियां चूसने लगा और मेरा लण्ड अपनी मंज़िल तलाश करने लगा। उनकी चूत कुछ गीली सी महसूस हो रही थी और मेरा लण्ड बिलकुल उनकी चूत के मुहाने पर था। मेरे जरा से धक्के में मेरा लण्ड उनकी चूत में दाखिल होने लगा। मुझे चुदाई का तजुर्बा तो नहीं था, लेकिन अब सब कुछ खुद ही मालूम होने लगा।

फ़रज़ाना के चेहरे पर अब खुशी और सुकून तो था, उनको कुछ दर्द भी हो रहा था, उनकी एक ‘आह’ सी निकली।

मेरे अगले हमले के लिए वे तैयार तो थीं, पर मैंने हमला कुछ बेदर्दी से किया क्योंकि मुझे चुदाई का कोई कोई अनुभव नहीं था। मैंने सुपाड़ा चूत में घुस जाने के बाद जोश में आकर एक करारा झटका मारते हुए पूरा लण्ड एक ही झटके में उनकी चूत में ठांस दिया जो सीधा बच्चेदानी से जाकर टकरा गया।

उनके गले से एक बहुत लम्बी दर्द भरी चीख निकल गई- "हाय अल्ला... ओहो मेरी अम्मी... मर गई... आआऐईईईई ईईई..!"

मैं डर गया। मैंने अपना लण्ड बाहर खींचने की सोच ही रहा था कि उन्होंने दर्द से तड़फते हुए भी मुझे जकड़ लिया और मुझसे बोलीं- "नहीं सग़ीर, तुम हटना नहीं… यह दर्द कुछ ही धक्कों में चला जाएगा, बस कुछ देर अपना लण्ड ऐसे ही चूत में पड़ा रहने दो"

फिर मैंने उनकी चूचियों को अपने होंठों से चूसना शुरू कर दिया। मैं ज़िन्दगी में कभी किसी कि नंगी चूचियों को छूना तो दूर देखा तक नहीं था। मैं उनकी चूत में अपने लण्ड को फंसाये उनकी चूचियों को बुरी तरह से चूस और मसल रहा था। फरज़ाना बिना रोके अपने निचले होंठ को अपने दांतो से दबाये मुझे चूचियां मसलते देख रहीं थीं। उनकी आँखों में बहुत सुकून महसूस हो रहा था।

थोड़ी देर बाद जब उनकी चूत ने कुछ राहत महसूस की तो उन्होंने नीचे से अपने चूतड़ उचकाने शुरू कर दिए।

मैंने उनकी आँखों में देखा तो वे बोली- "जी, सग़ीर अब चोदिए आप"

मैंने फिर से धक्के लगाने शुरू कर दिए। कुछ धक्कों के बाद वे बहुत ही मस्ती से मेरे लण्ड को अपनी चूत में ले रहीं थीं। उन्होंने अपनी दोनों टाँगे ऊपर उठा कर पूरा फैला दी जिससे अब उनकी चूत पूरी तौर से उभर कर ऊपर उठ गई थी। अब मेरा लण्ड सीधा उनकी बच्चेदानी पर ठोकर मार रहा था। पूरी तरह से मस्ती का आलम था। मालूम हुआ कि यह वही अमल है जिससे जिस्म और रूह दोनों को सुकून मिलता है और शायद ऐसा मज़ा सिर्फ़ महसूस हो सकता है, अल्फाज़ों में बयान नहीं हो सकता।

मुझे नहीं मालूम कि यह मस्ती थी या मज़ा था। लौड़े को अन्दर गरम-गरम महसूस हो रहा था, जो कि और भी लज्जत दे रहा था। मेरा लण्ड एक तंग संकरी सी बेहद गर्म गली में सटासट अंदर बाहर हो रहा था। फरज़ाना पूरी मस्ती में आँखे बंद किये चुदाई का लुत्फ़ ले रही थी। लंड को उनकी चूत खूब गीली लग रही थी और पूरे बदन में नशा सा था। वो मेरे और मैं उनके होंठों को चूस रहे थे और पहली बार उनके चेहरे पर मुस्कुराहट देखी। वो और मैं दोनों ही बुरी तरह हांफ रहे थे।

लंड को अन्दर-बाहर करने में तेज़ी आ गई थी और अब उनकी भी मस्ती में डूबी हुई आवाजें आ रही थीं, जो कि सिर्फ़ लुत्फ़ ही लुत्फ़ की अलामत थी।

"हाँ जी, सग़ीर ऐसे ही चोदो, रफ़्तार कम मत करना"

"जी मैम, नहीं करूँगा" -यह कहते हुए मैं उन्हें पूरी ताक़त से चोदने लगा।

भरा हुआ उनका बदन मेरे नीचे था और दिल चाहता था कि कभी उनसे जुदा ना होऊँ।

चुदाई की रफ़्तार तेज़ होती जा रही थी। उन्होंने भी मुझे पूरी ताक़त से जकड़ा हुआ था और लंड भी अपने गिर्द यही कैफियत महसूस कर रहा था।

चुदाई की इंतेहा हो रही थी और मैंने अपने दोनों हाथों को उनके बाजुओं में से निकाल कर उनके दोनों कंधों को अपनी सीने की तरफ खींचा हुआ था।

मैं अपने लण्ड को रफ़्तार से अन्दर-बाहर कर रहा था।

चुदाई की इस स्थिति में उन्होंने कहा- "आह... सग़ीर... मेरे सरताज... क्या मज़ा है... ऐसे ही चोदते रहना... बस मेरा होने वाला है मेरी जान...!"

उनकी जुबान से हल्की-हल्की मादक आवाजें आ रहीं थीं। उनकी इस तकलीफ़ को मैं अपनी उन पर फ़तह होने की लज्ज़त में डूब रहा था।

मैंने एक ना सुनी और खूब ज़ोर-ज़ोर से झटके लगाने लगा, जो कि मेरे लंड का फितरी तक़ाज़ा था और मैं सब कुछ भूल कर कि वो मुझसे बड़ी हैं और ख़ान साहब की बेगम हैं, सिर्फ़ और सिर्फ़ लण्ड का साथ दे रहा था। पहली बार मैंने जाना था कि चुदाई में कितना लुत्फ़ है, मुझे तो बस इसी छेद में ज़न्नत दिखाई दे रही थी।

मुझे चुदाई इतनी ज्यादा पसन्द आ रही थी कि मेरे लण्ड को लग रहा था कि दाखिल तो हुआ चूत से मगर निकलना चाह रहा है शायद उनके हलक़ से…!

उनकी मंज़िल तो आ चुकी थी। मैं खौफ़नाक झटके लगा रहा था कि जैसे खुद भी उनके अन्दर जाने की कोशिश कर रहा होऊँ। उन्होंने मुझे बहुत ताक़त से जकड़ लिया था कि वो मेरे धक्कों को कुछ हद तक रोक सकें, लेकिन कहाँ वो शहरी ख़ातून और कहाँ मैं कुंवारा नौजवान, खूब ज़ोर कर पूरी ताक़त से हचक हचक कर चोदे जा रहा था। 

उनके मुंह से अब हल्की सी चीखें निकलने लगीं थीं।

"अब रुक जाओ सग़ीर, लगता है मेरी चूत फट गई है... प्लीज..."

मैं उनकी हर बात अनसुनी करता हुआ पूरे जुनून से उन्हें जकड़े चोदने में लगा था।

इतना जुनून था कि मेरे मुंह से अब गालियां निकलने लगीं थीं। आख़िरकार मैंने एक तेज़ झटका मारा और मेरा लण्ड उनकी बच्चेदानी पर जाकर टिक गया। मैंने हांफते हुए अपना सर उनकी चूचियों पर रख कर एक दो तीन और पता नहीं कितनी पिचकारी मारते हुए अपने माल से उनकी बच्चेदानी को भर दिया।

CONTD ....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#51
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चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
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#52
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चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#53
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चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#54
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उन्होंने मेरे झड़ने पर मुझे चूम लिया और कहा- "शुक्रिया सग़ीर! आह... क्या चुदाई की है... मेरी तो चूत की तुमने धज्जियाँ ही उड़ा दीं लेकिन कसम खुदा की! पूरी ज़न्नत ही दिखा दी मेरे सरताज, बहुत मस्त चुदाई की तुमने"

उस वक़्त तक उनके ऊपर लेटे-लेटे उनको चूमता रहा। जब तक कि लंड अपनी मर्ज़ी से बाहर नहीं निकल गया।

हम दोनों ने अलग-अलग शावर लिया और एक-दूसरे के साथ चिपक कर बैठे रहे। उन्होंने वादा लिया कि मैं उनके यहाँ दिन के वक़्त में आता रहूँ और जिस्मानी सुख देता रहूं क्योंकि ख़ान साहब की निगाह में मुझ से ज्यादा भरोसेमंद और कोई नहीं था।

काफ़ी देर बाद ख़ान साहब आ गए और वो बिल्कुल नॉर्मल थे।

खाना खाने के बाद मैं जाने लगा तो ख़ान साहब ने कहा- "शुक्रिया सग़ीर, आगे भी आते रहना"

मैं उनके शुक्रिया कहने का कारण जानता था। उसके बाद तो मैं उनके घर बार-बार गया और जब-जब गया, हम दोनों ने खूब चुदाई की। बस उनके यहाँ रात गुजारना मुश्किल था क्योंकि फिर मैं आपने घर वालों से क्या कहता..! दूसरा भले ही हम दोनों की चुदाई ख़ान साहब की रज़ामंदी से हो रही थी पर मुझे उनका लिहाज़ भी था। मेरे लिए उनके घर में रहते उनकी बेगम को चोदना मुमकिन नहीं था इसलिए मैं भी दिन में ही जाकर फरज़ाना की चुदाई करता था।

वक़्त का पहिया गुज़रता गया और इसी तरह कई बरस गुज़र गए। मेरी पढाई ख़त्म हो चुकी थी। रूही आपी, हनी फरहान सबकी शादी हो चुकी थी। मेरी शादी मेरे मामू की छोटी बेटी रज़िया से हो गई थी। ये सब कैसे हुआ ये जानने के लिए आप मेरी दूसरी कहानियां पढ़िए।

मेरे लिए अब्बू ने एक इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रिकल्स का शोरूम खुलवा दिया था, जहाँ मैं व्यस्त रहता था।

कहते है कि इंसान अपनी ज़िन्दगी में अपनी पहली चुदाई कभी नहीं भूलता। यही कारण था कि अक्सर टाइट चूत को चोदते वक़्त मुझे बेगम खान साहिबा यानी फरज़ाना की याद आ जाती थी।

इसी बीच हमारे पड़ोस में एक नौजवान लड़का, जो एक प्राइवेट फर्म में अच्छी पोस्ट पर था, किराये पर रहने आया। उसका नाम आतिफ था और अभी दो महीने पहले ही शादी हुई थी। लड़की उससे बहुत छोटी थी, बिलकुल कच्ची कली... नाम था उसका 'नोशबाह'।

नोशबाह के वालिद का इंतकाल हो चुका था और यह शादी उनकी खाला ने तय की थी। जबकि उनकी वालिदा आपने भाई के साथ कनाडा में थीं। ये सारी बातें जब उसका हमारे घर आना जाना हुआ तब हमें पता चला क्योंकि रज़िया से उसकी अच्छी दोस्ती हो गई थी। वो रज़िया को आंटी और मुझे अंकल कहती थी। मेरे दोनों बेटे उससे बहुत घुल मिल गए थे।

आतिफ और नोशबाह की यह शादी नोशबाह की खाला ने करवाई थी । नोशबाह अभी हक़ीक़त में शादी और शौहर इन सब से बहुत ज्यादा वाक़िफ़ भी नहीं लगती थी। मुझे तो वो बिलकुल ही बच्ची जैसी लगती थी। रज़िया अक्सर उसका ज़िकर मुझसे किया करती थी। नोशबाह को ज्यादा तो नहीं देखा था पर जितना हाथ पैर और चेहरे से पता चलता था, उससे वह बहुत ही खूबसूरत थी। दुबली पतली सी बिलकुल शफ़्फ़ाक़ गोरी। बस उसके पूरे शरीर में उसकी बड़ी बड़ी चूचियां और उभरे हुए चूतड़ ही अलग से पता चलते थे। बाकि सब एक आम औरत जैसा ही था क़ाबिले बयान जैसा कुछ नहीं।

एक दिन रज़िया ने बताया कि नोशबाह तीन महीने की प्रेग्नेंट है और कल उनके यहाँ फंक्शन है। सब लोगों को बुलाया है। कल थोड़ा जल्दी आ जाइएगा।

"ठीक है" -मैंने रज़िया को जवाब दिया

दूसरे दिन मैं जब घर पहुंचा तो सब लोग पहले से तैयार थे। मैंने भी फटाफट कपड़े बदले, रज़िया ने मेरे कपड़े पहले ही निकाल दिए थे। हम सब तैयार होकर नोशबाह के घर पहुंचे।

वह बहुत ही ज्यादा खुश थी कि उनकी पूरी फैमिली आ चुकी थी। वो मेरे हाथों में हाथ डाल कर ड्राइंग-कमरे में दाखिल हुई और वहाँ मौजूद लोगों से मेरा परिचय कराया।

मुझे उनके मामून ने गले लगाया और खूब प्यार कर रहे थे कि अचानक चाय के कप की शीशे के टेबल पर गिरने की आवाज़ आई। सब मुझे देख कर खड़े हुए थे और नोशबाह सब को छोड़ कर एक ख़ातून की तरफ अम्मी कह कर लपकी, जिनके हाथों से कप गिर गया था और वो खुद भी सोफे पर ढेर हो गई थीं। मैं भी उनकी तरफ लपका और उनके क़रीब जा कर उन्हें देखते ही मेरी तो चीख निकलती-निकलती रह गई कि नोशबाह की अम्मी फरजाना ख़ान थीं।

सारी सूरत-ए-हाल मैं समझ गया और खुद को कंट्रोल करने लगा।

नोशबाह ने अम्मी को संभाला और मेरे कमरे में ले जाने लगी, मैं भी मुज़ारत करके उनके साथ ही हो लिया। नोशबाह उन्हें लेटा कर पानी लाने कमरे से बाहर निकल गई। फरजाना ख़ान होश में थीं और उनका रंग पीला हो गया था।

मैंने नोशबाह की गैर-मौजूदगी में सिर्फ़ खौफज़दा होकर पूछा- "क्या नोशबाह मेरी बेटी है?"

और उन्होंने रोते हुए कहा- "जी सग़ीर... नोशबाह हमारी ही बेटी है"

मैं यह सुनकर बड़ी मुश्किल से संभला और मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरा हार्ट-फेल ना हो जाए। बहुत मुश्किल से खुद पर क़ाबू पाया। नोशबाह ने उन्हें पानी पिलाया और इसी दौरान सब लोग कमरे में आ गए।

सबने पूछा कि क्या हुआ और उन्होंने गहरी सांस लेते हुए कहा- "कुछ नहीं, हैरानी में क़ाबू ना पा सकी कि सग़ीर जी हमारे ख़ान साहब के सबसे क़रीबी स्टूडेंट थे और मैं बहुत पहले कई बार इनसे मिल चुकी हूँ"

यह सुनकर सब बहुत खुश हुए और बच्चों ने तालियाँ भी बजाईं और फिर सब कमरे में ही इधर-उधर बैठ गए और अब सबने ही कहना शुरू कर दिया कि मुझे क्या हुआ।

मैं बदनसीब क्या बोलता कि क्या क़यामत टूट रही है। मैं पसीना-पसीना हो रहा था और कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि क्या सोचूँ क्या करूँ।

मेरी अम्मी और रज़िया भी परेशान थीं कि मुझे क्या हुआ?

मैंने कह दिया- "मैं भी ख़ान साहब का सुनकर हैरान हुआ और कुछ नहीं। मुझे मालूम ही नहीं था कि ख़ान साहब का इंतकाल हो चुका है"

अब सब लोग आपस में बात कर रहे थे कि इस दौर में भी लोग आपने टीचर से इस कदर प्यार करते हैं। फ़रज़ाना ख़ान भी सन्नाटे में थीं और बदहवाश थीं।

लेकिन क़ुसूर हम दोनों का नहीं था।

सब लोग खाने तक रुके और मैंने नॉर्मल रहने की बहुत कोशिश की, फ़रज़ाना साहिबा की तरह।

हम सब लोग घर वापस आ गए थे। मैं अपने कमरे में आ गया और अब फिर सोच रहा था कि यह क्या हो गया।

काम से फारिग होकर रज़िया भी आ गई और बैठी ही थी कि मेरी आपा आ गई और बोली कि नोशबाह की अम्मी का फ़ोन आया है। वो मुझसे बात करना चाह रही थीं।

उन्होंने सिर्फ़ इतना कहा- "सग़ीर जी, प्लीज़ हो सके तो ख़ान साहब, मेरी और अपनी बेटी की इज़्ज़त रख लेना"

मैंने सिर्फ़ इतना कहा- "आप परेशान ना हों"

और मैं वापस अपने कमरे में आ गया। मैं बिस्तर पर निढाल होकर लेट गया।

ये दुनिया बहुत छोटी है दोस्तों! हमारा किया देर सबेर हम तक पहुँच ही जाता है। 
अब अपने दोस्त सग़ीर खान को अगली कहानी तक के लिए इज़ाजत दीजिये। ख़ुदा हाफिज़।  Namaskar Namaskar
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#55
भाग - 4

हसीन गुनाह
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#56
Heart 
सभी दोस्तों को सग़ीर ख़ान का आदाब!

दोस्तों यह कहानी तब की है जब मेरी रज़िया से नई नई शादी हुई थी। मस्त ज़िन्दगी गुज़र रही थी। आदत से मज़बूर मौका मिलने पर इधर उधर मुंह भी मार लिया करता था लेकिन जब से शादी हुई थी मैंने दूसरी लड़किओं की तरफ देखा भी नहीं था। कुल मिलकर पिछले डेढ़ दो महीने से बस रज़िया की चूत में ही लण्ड पेल कर गुज़ारा कर रहा था।

अचानक एक दिन रज़िया की खाला, जो हमारे यहाँ से लगभग ४०-५० किलोमीटर दूर एक कस्बे में रहती है, हमारे घर आईं।

(ये वही खाला है जिनसे आप लोग मेरी कहानी 'यादों के झरोखे से' में मिल चुके हो। इन्ही की बड़ी बेटी का नाम सायरा है जो जालंधर से डॉक्टरी कर रही है।)

उनकी बेटी अज़रा ने B.Com पास कर ली थी लेकिन समस्या यह थी कि क़स्बे में कोई अच्छा कॉलेज नहीं था जहां मास्टर्स की जा सके और हमारे शहर में कई अच्छे कॉलेजों समेत यूनिवर्सिटी भी थी।

लिहाज़ा अज़रा ने यहीं के एक नामी गिरामी कॉलेज में M.Com में ऐडमिशन ले लिया था लेकिन बदकिस्मती से अज़रा को हॉस्टल में जगह नहीं मिल पाई थी। इसके लिए वो अब्बू से कुछ सिफारिश लगवाने आई थी।

"मेरे एक दो पहचान वाले यूनिवर्सिटी में हैं। मैं पूरी कोशिश करता हूँ कि अज़रा का किसी न किसी हॉस्टल में काम हो जाये तब तक अज़रा को कोई दिक्कत न हो तो वह हमारे यहाँ रुक सकती है। ये भी तो उसी का घर है" -अब्बू ने जवाब दिया

"आप का लाख लाख शुक्रिया, आपने तो मेरे दिमाग का सारा बोझ ही उतार दिया" -रज़िया की खाला ने अब्बू के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा

इधर रज़िया बहुत खुश हुई। साथ ही थोड़ी चिंतित भी क्योंकि वो मेरी फितरत से पूरी तौर से वाक़िफ़ हो गई थी। इस शख्श ने जब अपनी बहनो को नहीं छोड़ा, अज़रा की बड़ी बहन सायरा को भी लुधियाने में जम के चोदा तो ये आदमी अज़रा को तो कतई छोड़ने वाला है नहीं।

वैसे भी 'हर चूत पर लिखा है चोदने वाले लण्ड का नाम' यह सोच कर वह बावर्चीखाने में चली गई।

मैंने जब पिछली बार अज़रा को देखा था तब वह सात-आठ साल की पतली सी, मरघिल्ली सी लड़की थी जो हर वक़्त या तो रोती रहती थी या रोने को तैयार रहती थी। बहुत दफा तो वो घर आये मेहमानों के सामने ही नहीं आती थी लिहाज़ा मैंने भी अज़रा पर पहले कभी ध्यान नहीं दिया था।

लब्बोलुआब ये कि यह फाइनल हो गया कि अज़रा जब तक हॉस्टल नहीं मिलता तब तक हमारे घर रह कर ही M.Com करेगी। अम्मी ने फैसला सुनाया कि सग़ीर का स्टडी वाला कमरा अज़रा को दे दिया जाए ताकि वो अपनी पढ़ाई बे रोक-टोक कर सके।

इस बात से रज़िया इतनी खुश हुई कि उस रात बिस्तर में उसने कहर बरपा दिया। वो पूरी रात न तो सोई और न मुझे सोने दिया। जब भी झपकी आये मुझे अपने लण्ड के चूसे जाने से आँख खुल जाए। उस रात उसने तीन बार चुदाई करवाई। ऐसा बहुत दिनों बाद हुआ था लिहाज़ा मैं भी खुश था। एक हफ्ते बाद अज़रा हमारे घर आ गई।

उस रात डाइनिंग टेबल पर मैंने पहली बार उसको गौर से देखा। डेढ़ पसली की मरघिल्ली सी, रोंदू सी लड़की, माशा-अल्लाह! जवान हो गई थी, करीब 5′-4″ कद, कमान सा कसा हुआ पतला लेकिन स्वस्थ शरीर, रंग गेहुँआ, लंबे बाल, सुतवाँ नाक, पतले गुलाबी लेकिन भरे-भरे होंठ, तीखे नैननक्श और काले कजरारे नयन! ऊपर से फ़िगर अंदाजन 34-26-34 था। कुल मिलकर मस्त माल हो चुकी थी।

यूं मैं कोई सैक्स-मैनियॉक नहीं पर ईमानदारी से कहूँ तो उस वक़्त मन ही मन मैं अज़रा के नंगे जिस्म की कल्पना करने लगा था।

खैर जी! डिनर हुआ। सब लिविंग रूम में आ बैठे, बच्चे टीवी देखने लगे, अज़रा और रज़िया  दोनों बातें करने लगी और मैं इजी चेयर पर बैठा किताब पढ़ने लगा पर मेरे कान तो उन दोनों की बातों पर ही लगे हुए थे।

मैंने नोटिस किया कि बोल तो सिर्फ रज़िया ही रही थी और अज़रा तो बस हाँ-हूँ कर रही थी।

खैर, धीरे धीरे अज़रा हमारे परिवार का अंग होती चली गई, दोनों बच्चों को वो पढ़ा देती थी। रात का डिनर पकाना भी अज़रा की जिम्मेवारी हो गई थी लेकिन अब भी अज़रा मेरे सामने कम ही आती थी, आती भी थी तो मुझ से बहुत कम बोलती थी, बस हां जी… नहीं जी… ठीक है जी!

मैं तो इसी बात में खुश था कि मुझे मेरी बेगम का ज्यादा समय मिल रहा था और मेरी सेक्स लाइफ नार्मल से भी अच्छी हो गई थी। धीरे धीरे समय गुजरने लगा।

शुरू शुरू में तो अज़रा हर शनिवार अपने घर चली जाया करती थी और सोमवार सवेरे सीधे कॉलेज आकर शाम को घर आती थी लेकिन धीरे धीरे उसका अपने घर जाना कम होने लगा। अब अज़रा दो महीने में एक बार या बड़ी हद दो बार अपने घर जाती थी।

फर्स्ट ईयर के फाइनल एग्जाम ख़त्म होने के बाद अज़रा तीन महीने के लिए अपने घर चली गई। इधर मेरे अम्मी अब्बू मेरी समीना आपा के यहाँ सऊदी चले गए। आपा उन लोगों को दो साल से लगातार बुला रहीं थीं। घर पर मैं रज़िया और दोनों बच्चों के आलावा कोई नहीं था।

एक दो हफ्ते गुज़र जाने के बाद एक रात, मेरे और रज़िया के बीच एक रस्मी सी चुदाई से असंतुष्ट सा मैं उसके नंगे शरीर पर हाथ फेर रहा था कि रज़िया ने मुझ से कहा- "सुनते हो? चलो, कल जाकर अज़रा को ले आयें। उसके बिना मेरा दिल नहीं लग रहा और दोनों बच्चे भी उदास हैं"

अज़रा का नाम सुनते ही मेरे लण्ड ने तुरंत सर उठा दिया, मैंने भी ख़ुशी ख़ुशी हामी भर दी।

अगले दिन हम दोनों जाकर अज़रा को ले आये। उस रात रज़िया ने मेरे छक्के छुड़ा दिए, उसने मेरा लण्ड चूस-चूस कर मुझे स्खलित किया और बाद में खुद मेरा लण्ड पकड़ कर, उस पर तेल लगाया और अपने हाथ से मेरा लण्ड अपनी गांड पर रख कर मुझे गांड मारने को बोला, चुदाई के किसी भी आसन को उसने ‘ना’ नहीं कहा बल्कि दो कदम आगे जाकर कुछ अपनी ओर से और नया कर दिया। वैसे भी मेरी सोहबत में रहकर वो भी चुदाई के सारे पैंतरे जान चुकी थी।

ख़ैर! जिंदगी वापिस पटरी पर आ गई थी लेकिन अब एक फर्क था, अब अज़रा सारा दिन घर पर ही रहती थी, उसके कॉलेज खुलने में अभी लगभग डेढ़ महीना बाकी था। हालाँकि उसके घर रहने या कॉलेज जाने से मुझ पर कोई असर नहीं पड़ना था क्योंकि जब वह कॉलेज के लिए निकलती थी उससे काफी पहले मैं शोरूम चला जाता था और उसके आने के बहुत बाद रात तक मैं लौटता था। तो मेरी उससे मुलाकात सुबह शाम ही हो पाती थी।

मैं दोपहर को खाना खाने घर आता था, पहले जब अज़रा कॉलेज गई होती थी तो मैं अक्सर दोपहर को भी रज़िया को चोद लिया करता था, कभी रसोई में, कभी स्टोर में, कभी लॉबी में और कभी ड्राइंग रूम में भी… एक-आध बार तो बाथरूम में शावर के नीचे भी!

अज़रा के घर पर ही रहने से दोपहर की इन तमाम खुराफातों में लगाम लग गई थी। कोफ़्त होती थी कभी कभी पर क्या किया जा सकता था?

फिर भी दांव लगा कर कभी-कभार मैं रज़िया से छोटी-मोटी चुहलबाज़ी तो कर ही लेता था, जैसे पास से गुज़रती रज़िया के चूतड़ों को सहला देना, उसकी चूचियों पर हल्के से हाथ फेर देना, निप्पल दबा देना, रसोई में सब्ज़ी बनाते समय सट कर खड़े होकर कढ़ाई में सब्ज़ी देखने के बहाने उसके कान के पास एक छोटा सा चुम्बन ले लेना या उसके दुपट्टे के पल्लू की आड़ में उसका हाथ पकड़ कर अपने लण्ड पर दबा देना।

मेरे ऐसा करने पर वो दिखावटी गुस्सा दिखाती जरूर थी लेकिन तिरछी आँखों से मुझे देखते हुये उसके होंठों पर स्वीकृति की एक मौन सी मुस्कान भी होती थी।

लेकिन दिन ब दिन मैं अज़रा में और उसके मेरे प्रति व्यवहार में कुछ कुछ फर्क महसूस कर रहा था। मैं अक्सर नोट करता कि डाइनिंग टेबल पर खाना खाते वक़्त या लिविंग रूम में टी.वी देखते वक़्त या कभी कभी कोई किताब पढ़ते-पढ़ते मैं जब जब सिर उठा कर उसकी ओर देखता तो उसे मेरी ओर ही देखते पाता और जैसे ही मेरी उसकी नज़र से नज़र मिलती तो वो या तो नज़र नीची कर लेती या कहीं और देखने लगती।

मुझे कुछ समय के लिए उलझन तो होती पर जल्दी ही मेरा ध्यान किसी और बात पर चला जाता और बात आई-गई हो जाती।

बरसात का मौसम आ गया था, बहुत निकम्मी किस्म की गर्मी पड़ रही थी, जिस दिन बरसात होती उस दिन तो मौसम ठीक रहता, अगले दिन जब धूप निकलती तो उमस के मारे जान निकलने लगती, जगह जगह खड़ा पानी बास मारने लगता और मक्खी-मच्छर पैदा करने की ज़िंदा फैक्टरी बन जाता। बस एयर कंडीशनड कमरों में ही जिंदगी सिमटी पड़ी थी।

उसी मौसम में एक दिन अज़रा के कमरे के A.C की गैस लीक हो गई। बच्चों का बैडरूम छोटा था और उसमें तीसरे बेड की जगह नहीं थी, ड्राइंग रूम और लिविंग रूम तो रात को सोने के किये डिज़ाइन्ड ही नहीं थे तो एक ही चारा बचता था कि जब तक अज़रा के कमरे का A.C रिपेयर हो कर नहीं आता, उसका फोल्डिंग हमारे बैडरूम में हमारे बेड की बगल में ही लगाया जाए।

ऐसा ही हुआ और ऐसा होने से हम पति-पत्नी की रात वाली घमासान चुदाई पर टेम्परेरी बैन लग गया था। पर क्या करते… मज़बूरी थी।

हमारे बैडरूम में बेड के साथ ही लेफ्ट साइड बाथरूम का दरवाज़ा था और मेरी बेगम बैड के लेफ्ट साइड सोना पसंद करती थी क्योंकि वह रात में तीन चार बार टॉयलेट जाती है और मैं राईट साइड सोता था, हमारे बेड के साथ ही राईट साइड अज़रा का फोल्डिंग बेड लगाया गया था।

रात आती, खाना-वाना खा कर हम लोग सोने के लिए बैडरूम में आते। रज़िया मेरे बायें और अज़रा मेरे दायें… ये दोनों बातें करने लगती और मैं बीच में ही सो जाता।

दो-एक दिन बाद एक रात को अचानक मेरी आँख खुली तो पाया कि अज़रा बाईं करवट सो रही थी यानी उसका मुंह मेरी ओर था और उसका दायां हाथ मेरी छाती पर था। उसकी ढीली ढाली टीशर्ट के गले से उसकी बड़ी बड़ी गोरी चूचियां आधे से ज्यादा नुमाया हो रही थीं। मैंने सिर उठा कर देखा तो रज़िया को घनघोर नींद के हवाले पाया। मैंने धीरे से अज़रा का हाथ अपनी छाती से उठाया और उसकी बगल में रख दिया। इसी दौरान मेरा हाथ उसकी नरम मुलायम चूची से टच हो गया। कसम से पूरे बदन में करेंट सा दौड़ गया। मेरी नींद पूरी तौर पर काफूर हो गई थी। मैं रज़िया की तरफ करवट लेकर लेट गया पर नींद बहुत देर तक नहीं आई, दिल में बहुत उथल-पुथल सी चल रही थी।

क्या अज़रा ने जानबूझ कर ऐसा किया था? अगर हाँ तो क्यों? क्या अज़रा मेरे साथ... सोच कर झुरझुरी सी उठी और अचानक ही मेरे लण्ड में तनाव आ गया। इसी ऊहापोह में जाने कब मेरी आँख लग गई।

दिन चढ़ा, सब कुछ अपनी जगह पर, हर चीज़ नार्मल सी थी पर मेरे दिल में इक अनजान सी फ़ीलिंग थी, रह रह कर अज़रा के हाथ की छुअन मुझे अपनी छाती पर फील हो रही थी और रह रह कर मेरे लण्ड में तनाव आ रहा था।

उस दिन मैंने अपनी शादी के बाद पहली बार बाथरूम में नहाते समय हस्त मैथुन किया।

अगली रात आई, फिर वही सोने का अरेन्जमेन्ट, रज़िया डबलबेड के बाईं ओर, मैं दाईं ओर और अज़रा का फोल्डिंग बेड हमारे डबलबेड के दाईं ओर सटा हुआ और मुझ में और अज़रा में ज्यादा से ज्यादा डेढ़ फुट का फासला।

आज मैं अभी किताब ही पढ़ रहा था कि ये दोनों सोने की तैयारी करने लगी। जल्दी सोने का कारण पूछने पर अज़रा ने बताया कि आज दोनों बाज़ार गईं थी, थक गई हैं।

पन्द्रह बीस मिनट बाद मैंने लाईट बंद की और खुद उल्टा हो कर सोने की कोशिश करने लगा, उल्टा बोले तो पेट के बल! पन्द्रह-बीस मिनट ही बीते होंगे कि अज़रा का हाथ आज़ फिर से मेरे ऊपर आ पड़ा लेकिन आज़ चूंकि मैं उल्टा पड़ा था सो इस बार उसका हाथ मेरी पीठ पर पड़ा।

तीन चार मिनट बाद अज़रा ने अपना हाथ मेरी पीठ से उठा लिया और खुद सीधी होकर, मतलब पीठ के बल लेट कर सोने का उपक्रम करने लगी। उसका मेरी ओर वाला हाथ मतलब बायां हाथ उसके सिर के पास सिरहाने पर ही पड़ा था। मेरा मुंह उसकी ओर ही था और मेरा और उसका फासला ज्यादा से ज्यादा डेढ़ फुट का रहा होगा।

अचानक मैंने अपने बायें हाथ को अज़रा के पेट पर रख दिया, सीधा चूचियों पर रखने की रज़िया के कारण हिम्मत नहीं हुई। मेरा दिल पसलियों में धाड़-धाड़ बज़ रहा था।

कोई हरकत नहीं… ना मेरी ओर से… ना अज़रा की ओर से…

contd....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#57
Heart 
अचानक अज़रा ने सिर उठाया और मेरी ओर ध्यान से देखने लगी, अधखुली आँखों में मैं सोने की एक्टिंग करने लगा। एक डेढ़ मिनट मुझे ध्यान से देखने के बाद जब उसे यकीन हो गया कि मैं गहरी नींद में सो रहा था तो उसने मेरे हाथ के ऊपर चादर डाल थी और चादर के नीचे मेरे हाथ की उँगलियों को एक के बाद एक करके चूमने लगी। थोड़ी देर चूमने के बाद उसने मेरी हथेली को अपनी चूची पर रख कर अपनी बांह से दबा लिया।

उम्म्ह… अहह… हय… याह… उत्तेजना के मारे मेरा बुरा हाल था, तनाव के कारण मेरा लण्ड जैसे फटने की कगार पर था। मैं अज़रा के हाथ का स्पंदन महसूस कर सकता था पर मैंने अपनी ओर से कोई हरकत नहीं की। करीब आधे घंटे तक वो मेरी हथेली को कभी अपनी बाई चूची पर तो कभी दाई चूची पर रख कर दबाती रही फिर मेरे हाथ को अपनी दोनों बाँहों से अपने सीने से भींच कर वो सो गई। ऐसे ही जाने कब मैं भी नींद के आगोश में चला गया।

सुबह उठा तो पाया कि रज़िया और अज़रा उठ कर कब की जा चुकी थी, तभी रज़िया अख़बार ले कर आ गई। दिल में अनाम सी ख़ुशी लिए मैंने जिंदगी का एक नया दिन शुरू किया।

तभी अज़रा भी बैडरूम में चाय की ट्रे लेकर आई, नहाई-धोई, सफ़ेद पजामी सूट में ताज़ा ताज़ा शैम्पू किये बालों से मनभावन सी खुशबू उड़ाती एकदम ताज़ा दम, सफ़ेद सूट में से सफ़ेद ब्रा साफ़ साफ़ उजाग़र हो रही थी।

जैसे ही मेरी अज़रा की आँख से आँख मिली, उसकी नज़र झुक गई और क्षण भर को ही ग़ुलाबी भरे भरे होंठों पर एक गुप्त सी मुस्कान आकर लुप्त हो गई।

रात वाली बात याद आते ही मेरे लिंग में जान सी आने लगी। जैसे ही अज़रा बैठने लगी तो मेरी वाली साइड से सफ़ेद पजामी में से गहरे रंग की पैंटी साफ़ साफ़ झलकने लगी। एक क्षण में ही मेरा लण्ड फुल जोश में फुंफ़कारने लगा और मैंने अपने साथ बैठी रज़िया का हाथ चादर के अंदर ही पकड़ कर अपने लण्ड पर रख कर ऊपर से अपने हाथ से दबा लिया।

रज़िया चिंहुक उठी, अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी… लेकिन मैं जाने दूं तब ना! 

जैसे ही रज़िया ने मुझे देख कर आँखें तरेरी तो अज़रा ने पूछा- "क्या हुआ आपा?"

"कुछ नहीं…" -कह कर रज़िया ने अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश बंद कर दी और चादर के नीचे से मेरा लण्ड जोर से पकड़ लिया। मैं अपने आज़ाद हुए हाथ से रज़िया की चिकनी सुडौल जाँघ जांचने लगा।

सारा दिन जैसे हवाओं के हिण्डोले पर बीता, जो मेरे और अज़रा के बीच चल रहा था, उस बारे में सारा दिन मेरे अपने ही अंदर तर्क कुतर्क चलते रहे। एक बात तो पक्की थी कि अज़रा की तो ख़ैर कच्ची उम्र थी पर मैं जो कर रहा था वो सामाजिक और नैतिक दृष्टि से गलत था और मैं खुद जानता था कि मैं गलत कर रहा था। लेकिन वो जैसा कहते हैं कि गुनाह की लज़्ज़त मेरा पीछा नहीं छोड़ रही थी। अज़रा की कच्ची उम्र की लज़्ज़त मेरा पीछा नहीं छोड़ रही थी, मैंने सोच लिया था कि आज से मैं अज़रा वाली साइड सोऊंगा ही नहीं लेकिन जैसे-जैसे दिन बीत रहा था, मेरा पक्का इरादा डाँवाडोल हो रहा था।

शाम आई… मैं घर आया, आते ही अज़रा मेरे लिए पानी का गिलास ले कर आई, ग़िलास पकड़ते वक़्त मैंने उसकी आँखों में देखा, अज़रा ने शर्मा कर नज़र नीची कर ली और खाली गिलास ले कर चली गई।

आज रात तो कुछ हो कर रहना था, ऐसी सोच आते ही पतलून के अंदर ही मेरा लण्ड भयंकर रौद्र रूप में आ गया, रात के इंतज़ार में समय काटना मुश्किल हो गया था। शाम को बाथरूम में नहाते समय मैंने एक बार फिर मुट्ठ मार कर अपने लण्ड को ठंडा करने की नाकाम कोशिश किया।

डिनर करते समय मैंने रह रह कर आती जाती रज़िया के नितंबों पर चुटकी काटी। डिनर टेबल पर ही रज़िया ने मुझ से अज़रा के कमरे के A.C के बारे में पूछा कि कब ठीक हो के आएगा?

यूं मैंने कह तो दिया कि एक-आध दिन में आ जाएगा पर मेरा इरादा तो उसके कमरे के A.C को कयामत के दिन तक ना लाने का हो रहा था। किसी तरह कर के डिनर निपटाया।

वैसे हम फ़ैमिली के सब लोग डिनर के बाद लिविंग रूम बैठ कर कुछ देर गप्पें हांकते है लेकिन उस दिन मैं सीधा अपने बैडरूम में चला गया।

बाथरूम में ब्रश करने के बाद मैंने अपना अंडरवियर उतार कर वाशिंग-बास्केट में डाल दिया और पजामा बिना अंडरवियर के पहन कर सीधे अपने बिस्तर पर जा कर A.C का टेम्प्रेचर 20 डिग्री पर सेट कर दिया।

रज़िया और अज़रा अभी बैडरूम में आईं नहीं थी, मैंने बिस्तर में लेट कर आँखें बंद कर ली, पंद्रह बीस मिनट बाद दोनों बैडरूम में आईं और मुझे सोता पाया। 10-15 मिनट हल्की-फ़ुल्की गप्पें हांकने के बाद दोनों सोने की तैयारी करने लगी और बैडरूम की लाइट बंद कर दी गई।

जैसे ही बैडरूम की लाइट बंद हुई मैंने तड़ाक से आँखें खोल ली और अज़रा को देखने लगा। वह तब अपने बिस्तर पर लेटने की तैयारी कर रही थी और अपने बाल बाँध रही थी।

मैंने चुपके से अपनी दाईं बाजु अज़रा के बिस्तर पर तकिये से ज़रा सी नीचे दूर तक फैला दी।

अज़रा चादर ऊपर खींच कर जैसे ही अपने बिस्तर पर लेटी, मेरी बाजु उसकी गर्दन के नीचे से उसके परले कंधे तक पहुँच गई। उसने अपने हाथ से अपने दाएं कंधे के पास टटोल कर देखा तो मेरा दायां हाथ उसके हाथ में आ गया। जैसे ही अज़रा के हाथ की उंगलियां मेरे हाथ से टच हुई, मैंने उस का हाथ जोर से पकड़ लिया।

पहले तो उसने दो-चार पल अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की लेकिन जल्दी ही मेरा हाथ कस के पकड़ लिया।

मुझे तो दो जहान् की खुशियां मिल गई जैसे… मानो सारी कायनात ठहर गई हो, मेरा दिल मेरे सीने में धाड़-धाड़ बज़ रहा था और मैं अपने ही दिल की धड़कन बड़ी साफ़-साफ़ सुन रहा था। पता नहीं ऐसे दो मिनट बीते के दो घंटे… कुछ याद नहीं।

फिर मैंने अज़रा की ओर करवट ली और अपना बायां हाथ उसकी नरम चूची पर रख दिया, अज़रा ने मेरा वो हाथ फ़ौरन परे झटक दिया और अपना सर बायें से दायें हिला कर जैसे अपना एतराज़ जताया लेकिन मैंने दोबारा अपना हाथ उसकी चूची पर रख कर हलके से मसलने लगा।

उसने दोबारा मेरा हाथ अपनी चूची पर से उठाना चाहा लेकिन इस बार मेरा हाथ ना उठाने का इरादा पक्का था, दो एक मिनट की असफ़ल कोशिश करने के बाद अज़रा ने अपना हाथ मेरे हाथ से उठा लिया और जैसे मुझे मनमानी करने की इज़ाज़त दे दी।

मैं अँधेरे में उसकी चूचियों की नरमी और गर्मी दोनों को अपने हाथ में महसूस कर रहा था। धीरे धीरे मैंने अपनी उँगलियों को उसकी चूची पर फिर से ज़ुम्बिश देनी शुरू की। अज़रा की चूची बहुत नरम सी थी, मैं उस पर बहुत मुलायमियत से उंगलियां चला रहा था।

अचानक एक जगह हल्की सी कुछ सख़्त सी मालूम पड़ी। हल्का सा टटोलने पर पता पड़ा कि यह चूची का निप्पल है। जैसे ही मेरा हाथ निप्पल को लगा, वो और ज़्यादा टाईट और बड़ा हो कर ख़डा हो गया। मैंने अपना हाथ अज़रा की चादर के अंदर डाल कर, उसकी नाईट सूट का ऊपर वाला एक बटन खोल कर, ब्रा के अंदर से हौले से चूची पर रखा तो उसके पूरे ज़िस्म में झुरझुरी की एक लहर सी दौड़ गई जिसे मैंने साफ़ साफ़ अपने हाथ पर महसूस किया।

अज़रा की गर्म तेज़ साँसें मैं अपनी कलाई पर महसूस कर रहा था। उसकी चूची के कठोर निप्पल का स्पर्श मैं अपनी हथेली के ठीक बीचों बीच महसूस कर पा रहा था।

धीरे से मैंने अपनी पाँचों उंगलियां चूची के साथ साथ ऊपर उठानी शुरू की और अंत में निप्पल उँगलियों के बीच में आ गया जिसे मैंने हलके से दबाया।

अज़रा के मुंह से असीम आनन्द की ‘आह’ की हल्की सी सिसकारी निकल गई। जल्दी ही मैंने अपना हाथ दूसरी चूची की ओर सरकाया, दूसरी वाली चूची थोड़ा दूर पड़ रही थी तो अज़रा बिना कहे खुद ही सरक कर मेरी ओर ख़िसक आई। अब ठीक था।

मैंने अपना हाथ ब्रा के ऊपर से ही परले चूची पर ऱखा और थोड़ा सा दबाया। अज़रा के मुंह से बहुत ही हलकी सी ‘सी… सी’ की सिसकारी निकली।

मैंने अपना हाथ उठा कर धीरे से ब्रा के अंदर सरकाया और दूसरी चूची पर कोमलता से हाथ धर दिया। दूसरी चूची का निप्पल अभी दबा दबा सा था लेकिन जैसे ही मेरे हाथ ने निप्पल को छूआ, निप्पल ने सर उठाना शुरू कर दिया और एक सैकिंड में ही अभिमानी योद्धा गर्व से सर ऊंचा उठाये खड़ा हो गया।

अचानक मुझे लगा की मेरे हाथ की हथेली पर कुछ नरम-नरम, कुछ गरम-गरम सा लग रहा है, देखा तो अपनी चादर के अंदर अज़रा मेरा हाथ बहुत शिद्दत से चूम रही थी, पूरे हाथ पर जीभ फ़िरा रही थी।

जल्दी ही उसने मेरे हाथ की उँगलियाँ एक एक कर के अपने मुँह में डाल कर चूसनी शुरू कर दी। मैं उसके होंठों की नरमी और उस की जीभ का नरम स्पर्श अपनी उँगलियों पर महसूस कर कर के रोमांचित हो रहा था।

मेरा लण्ड 90 डिग्री पर चादर और पजामे का तंबू बनाये फौलाद सा सख्त खड़ा था, मारे उत्तेज़ना के मेरी नसों में तेज़ दर्द हो रहा था। अब सहन करना मुश्किल था लेकिन इस से और आगे बढ़ना खतरे से खाली नहीं था।

अपने ही बैडरूम में, अपनी ही पत्नी की कुंवारी बहन को चोदते हुए या चोदने के लिए तैयार करते हुए, अपनी ही पत्नी के हाथों रंगे-हाथ पकड़े जाने से ज़्यादा शर्मनाक कुछ और हो नहीं सकता था और मैं ऐसी बेवकूफी करने वाला हरगिज़ नहीं था।

जिंदगी रही तो आगे ऐसे बहुत मौक़े मिलेंगे जब आदमी अपने दिल की कर गुज़रे और फिर अज़रा तो चुदने के लिए राज़ी थी ही!

बेमन से मन ममोस कर मैं उठा और बाथरूम में जाकर पेशाब करने के लिए पजामा खोला तो मेरा लण्ड झटके से बाहर आया। जैसे ही मैंने लण्ड का मुंह कमोड की ओर पेशाब करने के लिए किया, मेरे पेशाब की धार कमोड में नीचे जाने की बजाए कमोड के ऊपर सामने दीवार कर पड़ी, मैं अपने लण्ड को नीचे की ओर झुकाऊं पर मेरा लण्ड नीचे की ओर हो ही ना!

जैसे तैसे पेशाब करके मैं वापिस बैडरूम में आया ही था कि रज़िया ने मुझ से टाइम पूछा, मेरी तो फट के हाथ में आ गई।

ख़ैर जी! रज़िया को टाइम बता कर A.C का टेम्प्रेचर थोड़ा बढ़ा कर मैं भी सोने की कोशिश करने लगा, उधर अज़रा भी चुपचाप चित पड़ी सोने का बहाना कर रही थी। बहुत रात बीतने के बाद मुझे नींद आई।

अगला सारा दिन मैंने मन ही मन चिढ़ते कुढ़ते हुए गुज़ारा। शोरूम पर भी काम में मन नहीं लग रहा था। जो कुछ और जितना कुछ अज़रा के साथ रातों को हो रहा था, उस से ज़्यादा होने की गुंजाईश बहुत कम थी और ऐसा होना भी बहुत दिनों तक मुमकिन नहीं था।

आज नहीं तो कल, उसके कमरे का A.C ठीक हो कर आना ही था। ऊपर से अपने ही बैडरूम में रज़िया के किसी भी क्षण उठ जाने का डर हम दोनों को खुल कर खेलने नहीं देता था। मुझे जल्दी ही कुछ करना था।

किसी दिन अज़रा को ले कर किसी होटल में चला जाऊं? ना… ना! यह निहायत ही बकवास आईडिया था, आधा शहर मुझे जानता था और अज़रा को होटल ले कर जाने के अपने खतरे थे। और… घर में? घर में मेरे बच्चे थे, रज़िया थी… नहीं नहीं! ऐसा होना भी मुमकिन नहीं था। तो फिर… क्या करूँ? कुछ समझ में नहीं आ रहा था, लिहाज़ा मैं बहुत ही चिड़चिड़ा सा हो रहा था।

रात को डिनर करने के बाद फिर बाथरूम में ब्रश करके मैं अपना अंडरवियर उतार कर पजामा बिना अंडरवियर के पहन कर A.C का टेम्प्रेचर 20 डिग्री पर सेट कर के सीधे अपने बिस्तर पर जा पड़ा।

आज रज़िया और अज़रा दोनों अभी तक बेडरूम में नहीं आई थी। अपने आप में उलझे हुए मेरी कब आँख लग गई, मुझे पता ही नहीं चला।

अचानक मेरे कान में कुछ सुरसुरी सी हुई, मैंने नींद में ही हाथ चलाया तो मेरे हाथ में अज़रा का हाथ आ गया, वो चुपके से मुझे जगाने की कोशिश कर रही थी।

मैंने उसका हाथ अपनी छाती पर रख कर ऊपर अपना हाथ रख दिया और उसकी साइड वाला हाथ चादर के अंदर से उसके चेहरे पर फेरने लगा।

माथा, गाल, कान, आँखें, नाक, होंठ, ठुड्डी, गर्दन… धीरे-धीरे मेरा हाथ नीचे की ओर बढ़ रहा था और अज़रा की साँसें क्रमशः भारी होती जा रही थी जो मुझे उसकी उठती गिरती चूचियों से पता चल रहा था और दूसरी बात वो मुझे पिछले रोज़ की तरह से रोक भी नहीं रही थी, लगता था कि वो उसकी चूत खुद पनीली हो रही थी।

जैसे ही मेरा हाथ गर्दन के नीचे से होता हुआ अज़रा के कंधे से होता हुआ उसकी चूचिओं तक पहुंचा तो मैं एक सुखद आश्चर्य से भर उठा। 

आज अज़रा ने नाईट सूट के नीचे ब्रा नहीं पहनी थी, बस एक पतली बनियान सी पहनी हुई थी। मेरा हाथ चूचियों को छूते ही उसके शरीर में वही परिचित झुनझुनाहट की लहर उठी।

CONTD...
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#59
Heart 
आज मैं कल जैसी नर्मदिली से पेश नहीं आ रहा था, उसकी चूची का निप्पल हाथ में आते ही फूल कर सख़्त हो गया था, मैं अंगूठे और एक उंगली के बीच में निप्पल लेकर हल्के हल्के मसलने लगा।

अज़रा का दायां हाथ मेरे हाथ के ऊपर रखा था, जहां जहां उसे तीव्र आनन्द की अनुभूति होती, वहीं वहीं उसका हाथ मेरे हाथ पर कस जाता। मेरा मन कर रहा था कि मैं उसकी चूचियों के तने हुए निप्पलों का अपने होंठों से रसपान करूँ लेकिन उसमें अभी भयंकर ख़तरा था सो मैंने अपने मन पर काबू पाया और इसी खेल को आगे बढ़ाने में लग गया।

मैंने अपना दायां हाथ अज़रा की चूचियों से उठा कर उसके बाएं हाथ पर (जो मेरी छाती पर ही पड़ा था) रख दिया। अज़रा के हाथ को सहलाते सहलाते मैंने उसका हाथ उठा कर पजामे के ऊपर से ही अपने गर्म, तने हुए लण्ड पर रख दिया।

अज़रा को जैसे 440 वाट का करंट लगा, उसने झट से अपना हाथ मेरे लण्ड से उठाने की कोशिश की लेकिन उस के हाथ के ऊपर तो मेरा हाथ था, कैसे जाने देता?

दो एक पल की धींगामुश्ती के बाद उसने हार मान ली और मेरे लण्ड पर से अपना हाथ हटाने की कोशिश छोड़ दी।

मैंने अपने हाथ से जो अज़रा का वो हाथ थामे था जिस की गिरफ़्त में मेरा गर्म, फौलाद सा तना हुआ लण्ड था, को दो पल के लिए अपने लण्ड से हटाया और अपना पजामा अपनी जांघों से नीचे कर के वापिस अपना लण्ड अज़रा को पकड़ा दिया। उसके शरीर में फिर से वही जानी-पहचानी कंपकंपी की लहर उठी।

अब अज़रा का हाथ खुद ही लण्ड की चमड़ी को आगे पीछे कर के मेरे लण्ड से खेलने लगी, कभी वो सुपाड़े पर उंगलिया फेरती, कभी लण्ड की चमड़ी पीछे कर के सुपाड़े को अपनी हथेली में भींचती, कभी मेरे अण्डकोषों को सहलाती।

ऊपर मेरे हाथों द्वारा उसकी चूचियों को मसलना जारी था। धीरे धीरे मैं अपना दायां हाथ उसके पेट पर ले गया, नाईट सूट के अप्पर को पेट से ऊंचा करके मैंने अज़रा के पेट पर हल्के से हाथ फेरा और फिर से उसके शरीर में वही जानी पहचानी कंपकंपी की लहर को महसूस किया, अज़रा का हाथ मेरे लण्ड पर जोरों से कस गया।

मैं धीरे धीरे अपना हाथ उसके पेट पर घुमाता घुमाता नाभि के आस पास ले गया, अज़रा के शरीर में रह रह कर कंपन की लहरें उठ रही थी। जैसे ही मेरा हाथ अज़रा के नाईट सूट के लोअर के नाड़े को टच हुआ, उसने अपने दाएं हाथ से मेरा हाथ पकड़ लिया और मजबूती से मेरा हाथ ऊपर को खींचने लगी।

मैंने जैसे-तैसे अपना हाथ छुड़ाया और फिर से दोबारा जैसे ही उसके नाईट सूट के लोअर के नाड़े को छूआ, अज़रा की फिर वापिस वही प्रतिक्रिया हुई, उसने मजबूती से मेरा हाथ पकड़ कर वापिस ऊपर खींच लिया।

ऐसा लगता था कि अज़रा मुझे किसी भी कीमत पर अपना लोअर खोलने नहीं देगी। मजबूरी थी… प्यार था, लड़ाई नहीं जो जोर जबरदस्ती करते, जो करना था खामोशी से और आपसी समझ बूझ से ही करना था।

मैंने अज़रा का हाथ उठा कर वापिस अपने लण्ड पर रख दिया और अब की बार अपना हाथ चादर के अंदर पर उसके नाईट सूट के सूती लोअर पर बाहर से ही उसकी बाईं जांघ कर रख दिया। अज़रा के शरीर में कंपन की लहर उठी और अब मैं उसकी जांघ सहलाते सहलाते अपना हाथ जांघ के अंदर को और ऊपर की ओर ले जाने लगा।

मेरी स्कीम काम कर गई, आनन्द स्वरूप अज़रा के मुंह से हल्की-हल्की सिसकारी निकलने लगी ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ उसका हाथ जोर-जोर से मेरे लण्ड पर ऊपर-नीचे चलने लगा।

अज़रा की बाईं जांघ पर स्मूथ चलती मेरी उंगलियों ने अचानक महसूस किया कि उंगलियों और रेशमी जांघ के बीच में कोई मोटा सा कपड़ा आ गया हो। मैं समझ गया कि यह अज़रा की पेंटी थी। धीरे धीरे मैं जाँघों के ऊपरी जोड़ की ओर बढ़ा।
उफ़! एकदम गर्म और सीली सी जगह… मैंने वहां अपना हाथ रोक कर अपनी उंगलियों से सितार सी बजाई। फ़ौरन ही अज़रा ने मेरे लण्ड को इतने जोर से दबाया कि पूछो मत।

मैंने नाईट सूट के सूती लोअर के बाहर से ही अज़रा की पेंटी को साइड से ऊपर उठाया और नाईट सूट के कपडे समेत अपनी चारों उंगलियां उसकी पेंटी के अंदर डाल दी। मेरे हाथ के नीचे जन्नत थी पर मुझे इस जन्नत पर कुछ खेती लहलहाती सी महसूस हुई। शायद वह चूत की झांटो को साफ़ नहीं करती थी।

मैं कुछ देर अपनी उंगलियों से अज़रा की चूत पर सितार बजाने जैसी हरकत करता रहा और इधर वह मेरे लण्ड को मथती जा रही थी। अचानक ही मैंने अपना दायां हाथ उसकी चूत से उठाया और फुर्ती से उसके नाईट सूट के लोअर का नाड़ा खोल कर अपना हाथ उसकी पेंटी के अंदर झांटो भरी चूत पर रख दिया।

उसने फ़ौरन अपना दायां हाथ मेरे हाथ पर रखा और मेरा हाथ अपनी चूत से उठाने की कोशिश करने लगी लेकिन अब तो बाज़ी बीत चुकी थी, अब मैं कैसे हाथ उठाने देता।

मैंने सख्ती से अपना हाथ अज़रा की चूत पर टिकाये रखा और साथ साथ अपनी बीच वाली उंगली चूत की दरार पर ऊपर से नीचे, नीचे से ऊपर फिराता रहा।कुछ ही देर बाद अज़रा ने मेरे उस हाथ की पुश्त पर जिससे मैं उसकी चूत का जुग़राफ़िया नाप रहा था, एक हल्की सी चपत मारी और अपना हाथ उठा कर परे करके जैसे मुझे खुल कर खेलने की परमीशन दे दी।

अज़रा की चूत से बेशुमार काम-रस बह रहा था, उसकी पूरी पेंटी भीग चुकी थी। मैंने उसकी चूत की दरार पर उंगली फेरते फेरते अपनी बीच वाली उंगली से उसकी चूत की  भगनासा को सहलाया, उसने जल्दी से अपनी दोनों जाँघें जोर से अंदर को भींच ली।

मैंने वही उंगली अज़रा की चूत में जरा नीचे अंदर को दबाई तो उसके मुंह से ‘उफ़्फ़’ निकल गया। अज़रा शतप्रतिशत कुंवारी थी, लगता था कि उसने आज तक कभी हस्तमैथुन भी नहीं किया था।

तभी मुझे अपनी बाईं ओर हल्की सी हलचल और कपड़ों की सरसराहट का अहसास हुआ, मैंने तत्काल अपना हाथ अज़रा की चूत पर से खींचा और उससे जरा सा उरली तरफ सरक कर गहरी नींद में सोने के जैसी ऐक्टिंग करने लगा।

मिंची आँखों से देखा तो रज़िया बाथरूम जाने के लिए उठ रही थी। जैसे ही वह बाथरूम में घुसी मैंने फ़ौरन अपने कपड़े ठीक किये और फुसफुसाती आवाज़ में अज़रा को भी अपने कपड़े ठीक करने को कह दिया। सब कुछ ठीक ठाक करने के बाद हम दोनों ऐसे अलग अलग लेट गए जैसे गहरी नींद में हों।

बाथरूम से बाहर आ कर सुधा ने AC का टेम्प्रेचर बढ़ाया और वापिस बिस्तर पर आकर मुझे पीछे से अपनी बांहो में ले लिया।

बाल बाल बचे थे हम... मुझे बहुत देर बाद नींद आई।

अगले दिन शनिवार था और शनिवार के बाद इतवार की छुट्टी थी।

शाम को लगभग 4 बज़े एसी वाले का फ़ोन आया कि एसी ठीक हो गया था और वो पूछ रहा था कि कब अपने आदमी मेरे घर भेजे ताकि एसी वापिस फ़िट किया जा सके। मैंने उसे इतवार शाम को आकर एसी फिट करने को बोला।

अब मेरे पास केवल एक ही रात थी जिसमें मैंने कुछ कर गुज़रना था और मैं रात को सबकुछ कर गुज़रने को दृढ़प्रतिज्ञ था। शाम को मैंने अपने परिचित कैमिस्ट से गहरी नींद आने की गोलियों की एक स्ट्रिप ली और आईसक्रीम की दूकान से एक ब्रिक बटरस्काच आईसक्रीम ले कर घर आया। रज़िया को बटरस्काच आईसक्रीम बहुत पसंद थी। चार गोलियां पीस कर में एक पुड़िया में अपने पास रख ली।

रात को डिनर के टाइम डाइनिंग टेबल पर अज़रा डिनर सर्व कर रही थी, आमतौर पर रज़िया डिनर सर्व करती थी लेकिन उस दिन अज़रा डिनर सर्व कर रही थी, आते-जाते किसी न किसी बहाने वह मुझे यहां वहां छू रही थी।

डिनर हुआ, आईस क्रीम मैंने खुद सबको सर्व की। बच्चों की और रज़िया वाली प्लेट में मैंने वो पीसी हुईं नींद की गोलियां मिला दी। सब ने आईसक्रीम खाई और करीब 9:30 बजे मैं एक दोहरी मनस्थिति में अपने बैडरूम में आ गया।

नींद की गोलियों का असर रज़िया पर एक से डेढ़ घंटे बाद होना था।

ब्रश करने के बाद मैंने बाथरूम में ही मुट्ठ मारी और अपना अंडरवियर पहने बिना ही पजामा पहन लिया और एक नावेल लेकर वापिस अपने बिस्तर पर आ जमा। मैं अपने बिस्तर पर दो तकियों के साथ पीठ टिका कर, पेट तक चादर ले कर ओढ़ कर और घुटने मोड़ कर नॉवल पढ़ने लगा।

सब काम निपटा कर, करीब सवा दस बजे रज़िया और अज़रा दोनों बैडरूम में आईं। तब तक बैडरूम में चलते A.C की बड़ी सुखद सी ठंडक फ़ैल चुकी थी।

आते ही रज़िया बोली- "आज तो मैं बहुत थक सी गई हूँ, बहुत नींद आ रही है"

"मुझे भी" -अज़रा ने भी हामी भरी।

"तो सो जाओ, किसने रोका है" -मैंने कहा।

"और आप?" -रज़िया ने पूछा।

"मैं थोड़ा पढ़ कर सोऊंगा, मुझे अभी नींद नहीं आ रही है" -मैंने कहा।

"ठीक है… पर आप ट्यूब लाइट बंद करके टेबललैम्प जला लें" -रज़िया ने मुझ से कहा।

मैंने सिरहाने फिक्स टेबल-लैम्प जला कर ट्यूब लाइट बंद कर दी।

अब स्थिति यूं थी कि मेरे सर के ऊपर थोड़ा बाएं तरफ टेबल-लैम्प जल रहा था और अज़रा मेरे दाईं तरफ क़दरतन अंधेरे में थी और मेरे दाईं ओर से, मतलब रज़िया की ओर से अज़रा को साफ़ साफ़ देख पाना मुश्किल था क्योंकि बीच में मैं था और अज़रा मेरी परछाई में थी।
CONTD....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#60
Heart 
बीस-पच्चीस मिनट बिना किसी हरकत के बीते। वैसे तो मेरी नज़र नॉवेल के पन्नों पर थी लेकिन दिमाग अज़रा की ओर था। कनखियों से अज़रा की ओर देखा तो पाया कि वह बाईं करवट लेटी हुई मेरी ओर ही देख रही थी।

फिर अज़रा ने आँखों ही आँखों में मुझे लाइट बंद करने का इशारा किया लेकिन मैंने उसे अभी रुक जाने का इशारा किया। जबाब में उसने मुझे ठेंगा दिखा कर मुंह बिचकाया, ऊपर चादर ले कर उलटी तरफ करवट ली और मेरी तरफ पीठ कर के लेट गई।

मुझे हंसी आ गई और मैंने हाथ बढ़ा कर अज़रा का कंधा छूआ तो उसने मेरा हाथ झटक दिया। मैंने दोबारा वही हाथ उस की कमर पर रखा तो उसने दुबारा मेरा हाथ अपनी कमर से झटक दिया। लौंडिया सचमुच रूठ गई थी।

अब के मैंने अपना हाथ हौले से अज़रा के ऊपर वाले नितम्ब पर रख दिया, इस बार उसने मेरा हाथ नहीं झटका। मैं धीरे-धीरे कोमलता से अज़रा का पूरा नितम्ब सहलाने लगा।

अचानक मुझे महसूस हुआ कि आज अज़रा ने लोअर के नीचे पैंटी नहीं पहन रखी थी। वही हाथ उसकी पीठ पर फिराने से पता चला कि ब्रा भी नदारद थी। इन सब का मुकम्मल मतलब तो ये था कि मेरी अज़रा जान चुदाई के लिए आज पूरी तरह से तैयार थी।

ऐसा सोचते ही मेरा लण्ड अपनी पूरी भयंकरता के साथ मेरे पजामे में फुंफ़कारने लगा। अपना वही हाथ अज़रा के कंधे तक ला कर मैंने उसका कंधा हलके से अपनी ओर खींचा तो वह सीधी हो कर लेट गई और आँख के इशारे से मुझे टेबल-लैम्प बुझाने को कहा।

मैंने पहले रज़िया की ओर घूम कर देखा, अपना चेहरा परली तरफ घुमा कर हल्क़े से कंबल में चित लेटी रज़िया गहरी निद्रा में थी। मैंने हाथ बढ़ा कर टेबल लैम्प बंद किया और अंधेरा होते ही झुक कर अज़रा के होंठों पर होंठ रख दिए। अज़रा ने फ़ौरन अपनी बाजुएं मेरे गले में डाल दी और बड़ी शिद्दत से मेरे होंठ चूसने लगी।

थोड़ी देर बाद मैं सीधा हुआ और फ़ौरन दोबारा अज़रा की ओर झुक कर मैंने उसके माथे पर, आँखों पर, गालों पर, नाक पर, गर्दन पर, गर्दन के नीचे, सैंकड़ों चुम्बन जड़ दिए।

अज़रा के दाएं कान की लौ चुभलाते समय मैं उसके मुंह से, आनंद के मारे निकलने वाली ‘सी…सी… सीई… सीई… सीई… ई…ई…ई’ की सिसकारियाँ साफ़ साफ़ सुन रहा था।

मैंने उसके नाईट सूट के ऊपर के दो बटन खोल दिए और अपना हाथ अंदर सरकाया। रुई के समान नरम और कोमल दो गोलों ने जिन के सिरों पर अलग अलग दो निप्पलों के ताज़ सजे थे, मेरे हाथ की उँगलियों का खड़े होकर स्वागत किया।

क्या भावनात्मक क्षण थे...

मेरा दिल कर रहा था कि दोनों कबूतरों को अपने सीने से लगा कर चुम्बनों से भर दूं, निप्पलों को इतना चूसूं… इतना चूसूं कि अज़रा के मुंह से आहें निकल जाएँ।

यूं तो अज़रा के मुंह से आहें तो मेरे चूचियों को छूने से पहले ही निकलना शुरू हो गई थी।

उधर उसका बायां हाथ मेरे पाजामे के ऊपर से ही मेरा लण्ड ढूंढ रहा था। अज़रा ने मेरे पजामे का कपड़ा खींच कर मुझे मेरे लण्ड को पजामे की कैद से छुड़ाने का इशारा किया, मैंने तत्काल अपना पजामा अपनी जाँघों तक नीचे खींच दिया।
अज़रा ने बेसब्री से मेरे तपते, कड़े-खड़े लण्ड को अपने हाथ में लिया और उसके सुपाड़े पर अपनी उंगलियां फेरने लगी।

मेरे लण्ड से उत्तेजनावश बहुत प्री-कम निकल रहा था और उससे अज़रा का सारा हाथ सन गया।

अचानक अज़रा ने वही हाथ अपने मुंह की ओर किया और अपने हाथ की मेरे प्री-कम से सनी उंगलियां अपने मुंह में डाल कर चूसने लगी।

मैंने तभी अज़रा के नाईट सूट के बाकी बटन भी खोल दिए और उसकी इनर उठा कर दोनों चूचियां नंगी करके अपनी जीभ से यहां-वहां चाटने लगा। इससे वह बिस्तर पर बिन पानी की मछली की तरह तड़फने लगी, वह जोर जोर से मेरा लण्ड हिला दबा रही थी और मैं उसकी  चूचियों का, निप्पलों का स्वाद चेक कर रहा था।

अज़रा पर झुके झुके मैंने अपना बायाँ हाथ उसके पेट की ओर बढ़ाया, नाभि पर एक-आध मिनट हाथ की उंगलियां गोल गोल घुमाने के बाद अपना हाथ नीचे की ओर बढ़ा कर हौले से उसके नाईट सूट का नाड़ा खोल दिया।

सरप्राइज...! आज अज़रा ने मुझे ऐसा करने से बिलकुल भी नहीं रोका। मतलब मेरी तरह चुदास उस पर भी पूरी तौर से हावी थी।

मैंने जैसे ही अपना हाथ और नीचे करके उसकी बिना पेंटी की चूत पर रखा तो एक और आश्चर्य मेरा इंतज़ार कर रहा था, आज अज़रा की चूत एकदम साफ़-सुथरी और चिकनी थी, उसकी चूत पर बालों का दूर दूर तक कोई नामोनिशान तक नहीं था, लगता था कि अज़रा ने आज शाम को ही अपनी चूत के बाल साफ़ किये थे।

उसकी छोटी सी चूत ज्यादा से ज्यादा साढ़े चार से पांच इन्च की थी जिस पर ढाई इंच से तीन इंच की दरार थी, दरार के ऊपर वाले सिरे पर छोटे मटर के साइज़ का भगनासा और अज़रा की चूत रस से इतनी सराबोर कि दरार में से रस बह-बह कर जांघों की अंदर वाली साइडों को भिगो रहा था।

मैंने अपने हाथ की बीच वाली उंगली दरार पर ऊपर से नीचे और फिर नीचे से ऊपर फेरनी शुरू की, अज़रा के शरीर में रह रह कर काम तरंगें उठ रही थी जो मैं स्पष्टत: महसूस कर रहा था। वह बार बार अपने चूतड़ ऊपर उचका रही थी वहीँ एक हाथ से खुद ही अपनी चूची को बुरी तरह से मसल रही थी।

और दूसरे हाथ से मेरे लण्ड का भुरता बनाने पर तुली हुई थी। वह जोर जोर से मेरा लण्ड दबा रही थी, चुटकियां काट रही थी और लण्ड के सुपाड़े को अपनी उँगलियों में दबा दबा कर रस निकालने की कोशिश कर रही थी। बदले में मैं अज़रा की दोनों चूचियों को बारी बारी चूम रहा था, यहाँ-वहाँ चाट रहा था, निप्पल्स चूस रहा था।

निःसंदेह, हम दोनों जन्नत में थे।

अज़रा की चूत पर अपनी उंगलियां चलाते-चलाते मैंने अपने हाथ की बीच वाली उंगली दरार में घुसा दी और अंगूठे और पहली उंगली से उसका भगनासा हल्का हल्का मींजने लगा।

इस पर अज़रा ने उत्तेज़नावश अपनी दोनों टाँगें और चौड़ी कर दी ताकि मेरी बीच वाली उंगली थोड़ी और उसकी चूत में प्रवेश पा सके।

मुझे पता था कि अज़रा पूरी तौर पर कुंवारी कली थी और मेरे पास ज्यादा टाइम भी नहीं था, बस इक यही रात थी और जिंदगी में दोबारा ऐसी रात आनी मुश्किल थी। मैंने अज़रा की चूत में धँसी अपनी उंगली को उसकी चूत के अंदर ही गोल गोल घुमाना शुरू कर दिया।

इस का नतीजा फ़ौरन सामने आया, अज़रा बार बार रिदम में अपने चूतड़ बिस्तर से ऐसे ऊपर उठाने लगी जैसे चाहती हो कि मेरी पूरी उंगली उसकी चूत के अंदर चली जाए।

अज़रा की कुंवारी चूत से बेशुमार रस बह रहा था। मेरे लण्ड पर उस की पकड़ और मज़बूत हो गई थी। मैं अपनी उंगली को हर गोल घेरे के बाद थोड़ा और चूत में अंदर की ओर धँसा देता था।

धीरे धीरे गोल गोल घूमती मेरी करीब पूरी उंगली अज़रा की चूत में उतर गई। अब मैंने अपनी उंगली को बाहर निकाला और बीच वाली और तर्जनी उंगली को भी चूत में गोल गोल घुमाते घुमाते डालना शुरू कर दिया। रस से सरोबार अज़रा की चूत में मेरी दोनों उंगलियां प्रविष्ट हो गई।

अब ठीक था, रज़िया की बहन यानि मेरी साली अज़रा को प्रेम-जीवन के और इस सृष्टि के एक अनुपम और गूढ़तम रहस्य से परिचित करवाने का समय आ गया था। यानी कि अज़रा अपनी नथ उतरवाने को पूरी तौर से तैयार हो चुकी थी।
मैंने टाइम देखा, सवा बारह बज रहे थे, मतलब कि नींद की गोलियों का जादू रज़िया पर  पूरी तरह से चल चुका था और अब मेरे लिए ‘वन्स इन आ लाइफ टाइम’ जैसा मौका था।

मैं बिस्तर से उठ खड़ा हुआ और पहले अपना पजामा संभाला। परली तरफ जाकर, इससे पहले अज़रा कुछ समझ पाती, उसे अपनी गोद में उठा कर और अपने से लिपटा कर बाहर ड्राइंग रूम में लेकर आ गया। मुझे पता था कि जब किले की दीवारें ढहतीं है तो भयंकर आवाजें आती है। खासतौर से मेरे लण्ड से जब कोई कुंवारी चूत चुदती है तो वो चीखे चिल्लाये ना ऐसा हो ही नहीं सकता। हाँ इसकी आपा सायरा जैसी खेली खाई कई लण्ड से चुदी हो उसकी बात अलग है। जबकि सायरा की भी आँखे लण्ड के पहले झटके में बाहर को निकल आई थीं।

ड्राइंग रूम में सड़क से थोड़ी सी स्ट्रीट लाइट आ रही थी और वहाँ बैडरूम के जैसा घुप्प अन्धेरा नहीं था। अज़रा जहाँ पूरी तौर से चुदने को तैयार थी वहीँ उसे अपनी आपा यानी रज़िया का मन में खौफ भी था।

नीम अँधेरे में अज़रा मेरी बाहों में छटपटा रही थी- "मैं नहीं… मैं नहीं… आपा उठ जायेगी… मैं बदनाम हो जाऊँगी, वही बैडरूम में कल की तरह क्यू नहीं कर लेते… यहाँ बाहर मुझे क्या करने लाए हो… आप मुझे कहीं का नहीं छोड़ोगे…" -ऐसे ऊटपटाँग बड़बड़ा रही थी।

बाहर आते ही मैंने अपने बैडरूम का दरवाज़ा और बच्चों के कमरे का दरवाज़ा बाहर से लॉक किया और अज़रा को बताया कि आपा नहीं उठेंगी क्योंकि वह आज नींद में नहीं नशे में है। फिर मैंने उसको नींद की गोलियों वाली बात बताई तो वह बेफिक्र नज़र आने लगी।

मैंने अज़रा को बाहों में लेकर उसके तपते होठों पर होंठ रख दिए। अब वह भी दुगने जोशो-खरोश से मेरा साथ देने लगी। मैं उसका निचला होंठ चूस रहा था और वह मेरा ऊपर वाला होंठ चूस रही थी।

कभी मैं अज़रा की जुबान अपने मुंह में पा कर चूसता और कभी मेरी जीभ उसके मुंह के अंदर उसके दांत गिनती।

मेरे दोनों हाथ अज़रा के जिस्म की चोटियों और घाटियों का जायज़ा ले रहे थे, उसका एक हाथ मेरे लण्ड के साथ अठखेलियां कर रहा था और दूसरा हाथ मेरी गर्दन के साथ लिपटा था और वह खुद मेरे साथ लिपटी हुई पूरी हवा में झूल रही थी।

ऐसे ही अज़रा को अपने साथ लिपटाये लिपटाये चलते हुये मैंने ड्राइंग रूम में बिछे दीवान के पास उस को खड़ा कर दिया और खुद उसका नाईट सूट उतारने लगा।

अज़रा ने दिखावे के लिए थोड़ी नानुकुर तो की पर मैं माना ही नहीं… पलों में मैंने उसके नाईट सूट के साथ साथ नीचे पहनी इनर भी उतार दी और अगले ही पल मैंने अपने कपड़ों को भी तिलांजलि दे दी और उसकी ओर मुड़ा। अब हम दोनों ही ड्राइंग रूम में नितांत नंगे खड़े थे।

नंगी खड़ी अज़रा कभी अपने अंगों को दिखाने की कोशिश करती तो कभी पीठ करके छुपाने लगती। इस वक़्त वह बिलकुल खजुराहो का दिलकश मुज्जस्मा लग रही थी। अज़रा की दोनों नंगी चूचियां और उन पर तन कर खड़े दो निप्पल जैसे मेरे लण्ड को चुनौती दे रहे थे कि ‘है तुम में दम? जो हमें झुका सको?’

मेरे दिल में उसकी कुंवारी नन्ही सी चूत के लिए रहम भी आ रहा था वहीँ मेरा दिमाग इतने अरसे के बाद किसी सील बंद चूत की सील खोलने को उतावला हो रहा था। मैंने अज़रा को जोर से अपने आलिंगन में कस लिया और बदले में उसने दुगने जोर से मुझे अपनी बाँहों में कस लिया।

अज़रा की दोनों तनी हुई चूचियां मेरे सीने में जैसे पेवश्त हुई जा रहीं थीं। मैं उसके दिल की धड़कनें साफ़ साफ़ अपने सीने में धड़कती महसूस कर रहा था। वक़्त का पहिया चलते-चलते अचानक थम सा गया था, उस वक़्त मैं… सिर्फ मैं था, ना रज़िया का पति… ना बच्चों का पिता, बल्कि सिर्फ मैं... एक सील बंद चूत को खोलने की फ़िराक़ में अपना खड़ा लण्ड लिए सिर्फ मैं...

मेरी दोनों बाजुयें सख़्ती से अज़रा को लपेटे हुए उसकी पीठ पर जमी थीं। मैं अपना एक हाथ अज़रा की पीठ पर ऊपर नीचे फिरा रहा था कंधों से लेकर नितंबों के नीचे तक!

कभी कभी मेरी उंगलियां नितंबों की दरार के साथ साथ नीचे… गहरे नीचे उतर जाती, बिल्कुल उसकी चूत के छेद तक!

CONTD....
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ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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