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Adultery यादों के झरोखे से
#41
Heart 
[Image: 014.jpg]
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#42
Heart 
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चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#43
Heart 
रज़िया पूरी तरह से चुदासी होकर मुझसे चिपकी थी लेकिन शायद शरम या संकोच के कारण वो सोने का ड्रामा कर रही थी वरना उसकी चूत मेरे लंड को गपकने को मुंह बाये खड़ी थी। 

चूँकि मुझे भी पता था कि ये सोने का सिर्फ नाटक कर रही है वरना इसकी चूत की हालत चीख चीख कर कह रही है कि मुझे चोदो व पेल पेल कर फाड़ दो।सो मैंने सबसे पहले रज़िया को धीरे से अपने बगल में लिटा करके उसकी इकलौती चड्डी भी उतार कर उसे नंगा कर दिया व अपनी बनियान उतार कर मैं भी पूरा नंगा होकर उसके बगल में आ कर एक हाथ से उसकी संतरे जैसी चूची को मसलते हुए दूसरी चूची के निप्पल को चुकर चुकर करके चूसने लग गया।

रज़िया की आँखे ज़रूर इस वक़्त बंद थीं परन्तु उसके हाथ मेरे बालों में धीरे धीरे चल रहे थे जो ये साबित कर रहे थे कि वह भी पूरी मस्ती में है। उसकी चूत व मेरा लंड दोनों एक दूसरे के मिलन को धडाधड पानी छोड़ रहे थे।

मैंने भी अब देर करना ठीक नहीं समझा क्योंकि दो बार पहले ही खड़े लण्ड पर धोखा हो चुका था। मैंने उसे बेड पर चित्त लिटा कर उसकी टांगों को फैला कर अपने फनफनाते लंड का सुपाडा उसकी बुर पे टिका कर घिसना शुरू कर दिया। मेरे ऐसा करते ही रज़िया के मुंह से सिसकारियां निकालनी शुरू हो गयीं वह दोनों हाथों से सिर के नीचे रक्खे तकिये को कस कर पकडे धीरे धीरे छटपटा सी रही थी, उसकी चूत की हालत मेरे लंड से भी बद्तर हो रही थी लेकिन शायद अभी कहीं न कहीं थोड़ी बहुत शरम बाकी थी जिससे वह अपनी आँखे व मुंह दोनों बंद किये थी परन्तु उसकी रह रह कर झटके लेती कमर मानों चिल्ला चिल्ला के मेरे लंड से बिसमिल्लाह की गुज़ारिश कर रही थी।

चूंकि मेरी हालत भी बहुत ज्यादा ख़राब हो चुकी थी सो मैं उसकी चूत पर अपने लंड का सुपाडा टिका कर उसके ऊपर लेट गया और उसकी बगलों में हाथ डाल के उसके कन्धों को कस कर पकड़ लिया। नीचे से वह अपनी चूत उचकाने की कोशिश करके मेरे लंड को अन्दर लेना चाह रही थी चूँकि मैंने उसे कस के दबा रक्खा था सो वह कामयाब नहीं हो पा रही थी।

अपना एक हाथ निकाल कर मैंने उसके घुटने के नीचे लगा कर उसकी टांग को मोड़ कर उसके पेट की तरफ कर दिया, दूसरे पैर को उसने खुद ही ऊपर उठा कर अपनी टांगों को पूरा फैला दिया।

उसकी चूत अब पूरी तरह से उभर कर बाहर उठ गई थी। इस पोजीशन में चोदने से हर ठोकर में लण्ड पूरा जड़ तक चूत में जाता है जिससे चुदाई का भी भरपूर मज़ा मिलता है।

मैंने एक ज़ोरदार धक्के के साथ अपना आधे से ज्यादा लंड उसकी चूत में ठांस दिया। एक पल के लिए रुक कर मैंने रज़िया के चहरे की तरफ़ देखा तो दंग रह गया, उसने न तो आँखे खोली और ना मुंह से आवाज़ निकलने दी। हाँ उसकी आँखों से भल-भल आँसू निकल के तकिये में ज़ज्ब हो रहे थे और वह अपने दांतों से अपने निचले होंठ को कुचले जा रही थी। मैंने अपने लंड को सुपाडे तक पीछे खींचकर फिर से एक ज़ोरदार धक्का से अबकी बार जड़ तक ठांस दिया। आखिर बहुत बर्दाश्त करने के बाद भी उसके गले से एक भारी सी आह s s s निकल गयी।

" बहुत दर्द हो रहा है भाईजान" वह नीचे से छटपटाते हुए रोते रोते बोली

"बस छुटकी बस , हो गया ...... अब दर्द नहीं होगा " मैंने उसके कंधे छोड़ कर अपने दोनों हाथों की उँगलियों की कैंची बनाकर उसमे उसका सिर जकड़ लिया।

वह मेरे नीचे पूरी तरह से बेबस दबी थी और सिर्फ़ उसके हाथ आज़ाद थे, जिनसे वह मेरी पीठ अपने बड़े बड़े नाखूनों की मदद से खुरच रही थी। मैं अपनी जीभ से उसके होठों को चाटते हुए भकाभक अपने लंड को उसकी मांसल व मखमली टाइट चूत में अन्दर बाहर कर रहा था।

शायद रज़िया का दर्द अब कुछ कम हो गया था क्योंकि उसने अपनी टांगों को पूरी तरह से चौड़ा कर मेरी कमर के इर्द गिर्द लपेट लिया था व मेरे लंड की हर ठोकर पर नीचे से अपनी चूत उचका कर पूरा का पूरा ठंसवाने की कोशिश कर रही थी। 

अब मैं उसके सिर को छोड़ कर दोनों हाथो से चूचियों को कस कर मसलते हुए पूरी ताक़त से रज़िया को चोद रहा था। मज़े की अधिकता के कारण रज़िया की आँखे फिर बंद हो चुकीं थी, अब वह टांगों से मेरी कमर को व हाथों से मेरी पीठ को बुरी तरह से जकड़े नीचे से गांड उचका उचका कर चुदवा रही थी।

थोड़ी देर बाद मुझे अपने लंड पर गरमागरम लावा सा महसूस हुआ और रज़िया हाथ पैर ढीले छोड़ कर हांफती हुई टाँगे फैलाये चुदवाती रही लेकिन मुझे अब मज़ा नहीं आ रहा था सो मैंने अपना लंड बाहर निकाल कर पास पड़े टॉप से उसकी चूत व अपने लंड को ढंग से साफ़ करके फिर चोदना शुरू कर दिया। दीदी की तरह रज़िया बिना नाज़ नखरे दिखाए ज़म के चुद रही थी और सबसे बड़ी बात उसने अपने होठों पर तो जैसे फेवीकोल लगा रक्खा था।

लेकिन दोस्तों मेरी आदत है कि मुझे चुपचाप चोदने में बिलकुल मज़ा नहीं आता सो मैं रज़िया को छेड़ते बोला, "कैसा लग रहा है चुदने में, मज़ा आ रहा है या नहीं"

"हूँ..." कहकर उसने फिर आँखे बंद कर लीं। मेरा लंड उसे पूरी ताक़त से चोद रहा था।

"अरे कुछ तो बोलो, जिससे लगे कि मैं किसी ज़िंदा लौंडिया की चूत में अपना लंड पेल रहा हूँ" -मैंने उसे फिर छेड़ा

"क्या बोलूँ, अब बोलने को बचा ही क्या है, कल रात में दीदी आज मुझे ...... दोनों को तो आप निपटा चुके है" -रज़िया ने उसी तरह आँखे बंद किये ज़बाब दिया, अब वह मुझसे फिर कस कर चिपक गयी थी।

मैंने उसी स्पीड से चोदते हुए कहा, "क्या रज़िया ! ऊपर वाले ने तुम लोगों को चूत इसीलिए दी है कि इसे लंड से चुदवाओ, अरे अगर मैं नहीं चोदता तो कोई और चोदता, चूत बनी ही लंड पिलवाने को है... कोई ऐसी चूत बता दो जो चुदी ना हो" रज़िया ने इस बार कोई ज़बाब नहीं दिया बस मुझसे थोडा और कस कर लिपट गयी। 

मुझे अपना अब स्टेशन नज़र आने लगा था सो पूरे शरीर की ताक़त लंड में इकठ्ठी करके दोनों हाथों से चूचियां मसलते हुए मैं उसे चोदने लगा। अचानक हम दोनों के शरीर ने झटका लेते हुए एक साथ ही पानी निकाल दिया और बेड पर पड़े हांफने लगे। 

रज़िया इस वक़्त बड़ी नशीली आँखों से मुझे देख रही थी, वह धीरे से करवट लेकर मेरे सीने पर अपना सिर रख मुझसे नंगी ही चिपक कर लेट गयी। यूं तो रज़िया बहुत खूबसूरत नहीं थी लेकिन उसके शरीर की बनावट दीदी से इक्कीस ही थी यह मुझे उसको नंगा देखने पर ही पता लगा। लाइट कलर की बेडशीट पर तकरीबन एक x एक फुट के एरिया में गहरा लाल निशान पड़ा था जो उसकी कुंवारी चूत की सील टूटने की गवाही दे रहा था।

पता नहीं क्यों इस वक़्त मुझे रज़िया पर बहुत ही प्यार आ रहा था जो बिना होठों और जीभ का इस्तेमाल किये सिर्फ नज़रों से ही अपनी दिल की बात मुझसे किये जा रही थी। उसकी आँखों में असीम तृप्ति के भाव थे जैसे किसी बहुत दिन के भूखे शख्श को रोटी की जगह कोई रसगुल्ला खिला दे। 

वह धीरे धीरे मेरे सीने को सहलाती हुई मुझसे चिपकी लेटी थी। मैंने भी उसके होठों को अपने होठों में लेकर चूसते हुए उसे अपने ऊपर लिटा लिया। यह जानते हुए भी कि वह मेरी छोटी बहन है मुझे वाकई इस वक़्त उस पर बहुत प्यार आ रहा था रज़िया की चुदाई के बाद मुझे एक असीम तृप्ति का अनुभव हो रहा था। 

इतना मज़ा मुझे बहुत दिनों बाद किसी चूत को चोदने में मिला था, वाकई रज़िया की एक एक चीज़ ऊपर वाले ने बड़ी फुर्सत में बनाई थी। चूंकि मैं पूरी रात का जगा हुआ था सो मैं रज़िया को अपने से चिपकाये हुए वैसे ही सो गया। शाम तकरीबन चार बजे भूख के कारण मेरी आँख खुली तो देखा मैं ऊपर वाले कमरे में अकेला ही सो रहा था, रज़िया पता नहीं कब उठ कर नीचे चली गयी थी। मैं भी फटाफट उठ कर नीचे आया तो देखा दीदी नहा धोकर किचिन में कुछ कर रहीं थीं और रज़िया नहा कर अपने गीले बाल ड्रायर से सुखा रही थी।

उसने पिंक कलर का टॉप और पर्पल कलर की लॉन्ग स्कर्ट पहन रखी थी। जैसे ही हमारी नज़रें मिलीं वो धीरे से शरमा कर मुस्करा दी, उसके चेहरे पर एक अजीब से सुकून का भाव था व उसका रूप और निखर आया था।

contd....
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#44
Heart 
दोस्तों एक बात आप ज़रूर नोट करना कि जो स्त्रियाँ अपने जीवन में भरपूर सम्पूर्ण सेक्स का आनंद लेतीं है अर्थात अपनी चूत को पूरी तरह संतुष्ट होने तक चुदवातीं है उनके चहरे पर एक अलग तरह का नूर होता है व जो इस सुख को नहीं भोग पातीं है या जिनकी चूत प्यासी रह जाती है उनके चहरे की चमक धीरे धीरे चली जाती है। कुल मिला कर उनका चेहरा ही उनकी सेक्स लाइफ का आईना होता है।

कुछ इसी तरह की चमक मुझे रज़िया के चेहरे पर नज़र आ रही थी। मैंने पीछे से जाकर उसकी चूचियों को धीरे से मसलते हुए नाज़ुक गालों को चूम लिया।

"क्यूं अभी भी दिल नहीं भरा क्या? अभी कुछ मत करो भाईजान, दीदी किचिन में हैं... उन्हें पता चल गया तो मुझे कच्चा चबा जायेंगीं, सोचेंगीं मेरे माल पर हाथ साफ कर रही है" -रज़िया ने बड़े प्यार से मेरे हाथों को अपनी चूचियो से हटाते हुए कहा और एक गाढा सा मीठा चुम्बन मेरे होठों पर जड़ दिया।

चूंकि मैंने इस चुदाई के चक्कर में सुबह से कुछ खाया भी नहीं था सो इस वक़्त मेरे पेट में बड़े बड़े चूहे उछ्ल कूद कर रहे थे।मैंने रज़िया से पुछा, "कुछ खाने को है क्या, बहुत तेज़ भूख लगी है"

"हाँ दीदी ने नमकीन सेवइयां बनाई है क्योंकि अब खाने का वक़्त तो रहा नहीं , पूरा खाना शाम को बना लेंगे। वो आपको जगाने जाने ही वालीं थीं , अभी हम लोगों ने भी नहीं खाया है" -रज़िया ने हमेशा की तरह बड़ी शालीनता से ज़बाब दिया

"तो चल जल्दी से सबका खाना लगवा ले, अब भूख बर्दाश्त नहीं हो रही है" -मैंने बड़ी बेसब्री से कहा

तभी दीदी हाथ में सेवइयों की प्लेट लिए किचिन से आ गयीं और मुस्कराते हुए बोलीं, "मुझे मालूम था की तू उठते ही भूख भूख चिल्लाएगा"

उन्होंने व्हाइट कलर का वी गले का टॉप और नीले रंग का पेटीकोट पहन रखा था। पेटीकोट का नाडा कमर पर साइड में करके बांधा था जिससे उसके कट से उनकी नंगी कमर का गोरा गोरा थोडा सा हिस्सा नुमाया हो रहा था क्योंकि अन्दर उन्होंने पेन्टी नहीं पहनी थी। 

यही अगर नार्मल तरीके से बंधा होता तो शायद कमर की जगह उनकी छोटी छोटी झांटे दिखाई दे रहीं होती। कुल मिला कर इस अजीब पहनावे में भी वह गज़ब की सेक्सी लग रहीं थीं , उनकी चाल और बातचीत के अंदाज़ से लग रहा था कि उनकी चूत व गांड में दवा से ज़बरदस्त आराम हुआ है और सबसे बड़ी बात दो में से कोई भी चुदने के बाद भी मुझसे नाराज़ नहीं थीं। 

सो मैंने अब पूरी तरह से निश्चिन्त होकर उनके हाथ से प्लेट लेकर सेवइयां खानी शुरू कर दीं।

तभी दरवाजे की घंटी बजी तो दीदी ने रज़िया से कहा, "देख तो कौन है"

रज़िया ने जाकर दरवाज़ा खोला तो बाज़ू की दुकान का नौकर था. उसने बताया कि अस्पताल से मामू का फ़ोन है, वो किसी सग़ीर से बात करना चाहते हैं.

मैने बताया ‘मैं ही सग़ीर हूँ’ फिर मैं टीशर्ट पहन कर उसके साथ चला गया.

लौट कर सारी बात दीदी और रज़िया को बताते हुए बोला,"दीदी! मामू का फोन था, कह रहे थे कि अम्बाला से मामी की छोटी बहन और उनकी बेटी रात की ट्रेन से लुधियाना पहुँच रहे हैं, दूसरी बात यह कि मामी की हालत में बहुत आराम है जिससे डॉक्टर का कहना है कि अगर हम चाहें तो मामी को आज ही घर ले जा सकते है। अब आप अपनी राय दीजिये कि मामी को आज ही ले आयें या कल ही लाया जाए, वैसे मेरी राय में अगर हम कल लेकर आयें तो वही ज्यादा उचित रहेगा , कहीं कुछ उल्टा सीधा न हो जाये "

चूंकि मैं आज रात दोनों बहनों को खुल कर ढंग से चोदने का मज़ा लेना चाह रहा था जो शायद अम्मी और मामू के आने से संभव न हो पाता और फिर कबाब में हड्डी बनने वैसे भी मामू की साली और उनकी बेटी जो दोनों ही बड़ी चिपकू थीं, आ ही रहीं थीं सो मुझे अपनी रात का मज़ा खटाई में पड़ता दीख रहा था। यही कारण था कि मैं आज मामी को घर नहीं लाना चाह रहा था।

"तू ठीक कह रहा है, अम्मी अगर आज रात वहीँ अस्पताल में ही रहें तो ज्यादा सही रहेगा क्योंकि उनका घाव बहुत ही गहरा था" -दीदी ने चिंतित होते हुए कहा

"अगर आप ही मामू को चल कर समझायें तो ज्यादा सही रहेगा" -मैंने दीदी को कहा

"ठीक है, अभी पौने छह बजे है, मैं पंद्रह मिनट में तैयार हो जाती हूँ पर ये बता सायरा की ट्रेन कितने बजे की है"

"सात बजे की"

"ओ हो फिर तो वक़्त नहीं बचा है तू मुझे अस्पताल छोड़ कर स्टेशन चले जाना और सायरा व खाला को लेकर वहीं अस्पताल आ जाना। तब तक मैं अम्मी की कंडीशन देख कर डॉक्टर से भी बात कर लेती हूँ"

"ये ठीक रहेगा दीदी" -मैंने दीदी से कहा

दीदी अपने पेटीकोट का नाडा खोलते हुए अन्दर वाले कमरे की तरफ कपडे बदलने चलीं गयीं। मैंने घूम कर रज़िया की तरफ देखा, वो मेरी तरफ देख के धीमे धीमे मुस्करा रही थी। मैंने आगे बढ़ कर उसे अपने से कस कर चिपका लिया, उसने भी मेरे गले में अपनी बांहे डाल के बंद आँखों के साथ अपने होंठ मेरी तरफ बढ़ा दिये। 

मैंने भी उसकी भावनाओ को समझते हुए उसके होठों को अपने होठों में लेकर चूसते हुए उसके चूतडों को मसलना शुरू कर दिया। मेरा लंड मेरी जींस में खडा होकर उसकी नाभि से रगड़ता हुआ मुझे दिक्कत दे रहा था। 

"आज तो दोबारा शायद संभव नहीं होगा भैय्या, आपने उस बेचारी की बहुत बुरी हालत कर दी है। ज़रा सा जोर लगते ही M C की तरह ब्लीडिंग होने लगती है। सूज के कुप्पा हो गयी है बेचारी, इतना दर्द हो रहा है कि पेंटी भी नहीं पहनी जा रही है।" -रज़िया मेरे सीने से चिपक कर बोली।

मैंने अब तक की ज़िन्दगी में कई लौंडियों को चोदा था लेकिन पता नहीं क्यों मुझे रज़िया को चोदने के बाद उससे बड़ा लगाव हो गया था। मैंने मन ही मन कुछ निश्चय कर लिया और उसके टॉप में अन्दर हाथ डाल कर ब्रा के ऊपर से ही चूचियों को मसलते हुए उसके मुंह में अपनी जीभ घुसा दी। 

तभी पीछे से दीदी के खांसने की आवाज़ आयी तो वह मुझ से छिटक कर अलग हो गयी। दोस्तों दोनों को ही यह अच्छी तरह पता था कि मैं उनको ढंग से चोद चुका हूँ परन्तु शायद शर्म या रिश्तों की उस दीवार के कारण वो एक दूसरे के सामने अनजान शो कर रहीं थीं लेकिन मैंने भी इस दीवार को गिराने की ठान ली थी।

"दीदी, वो जो दवा मैं सुबह ले कर आया था वो अभी बची होगी , उसमे से ज़रा एक खुराक दे दो" -मैंने दीदी से खुल कर पूछा

"वो वहीं ड्रेसिंग टेबल पर रखी है" -दीदी ने नज़रें चुराते ज़बाब दिया

"लो, ये खा लो, दो तीन घंटे में आराम मिल जायेगा" -मैंने दवा की एक खुराक ला कर रज़िया को देते हुए कहा- "दीदी, जल्दी चलो लेट हो रहे है"

"चल ना, मैं तो कब से तैयार हो चुकी हूँ" -दीदी ने कहा। 

दीदी ने इस समय डार्क ब्लू जींस और स्काई ब्लू कलर का मैचिंग टॉप पहन रखा था। इस ड्रेस में वो बड़ी धांसू आइटम लग रहीं थीं। 

मैंने आगे बढ़ कर उनके दोनों होठ चूमते हुये कहा, "हाय हाय, कहीं नज़र न लग जाये"

"चल हट" -दीदी का चेहरा लाल हो गया जबकि रज़िया की हँसी निकल गयी। उसको हंसते देख मुझे अन्दर ही अन्दर बहुत अच्छा महसूस हुआ। मैं दीदी को लेकर अस्पताल की तरफ लेकर चल दिया।

दीदी के साथ हुई बेरहमी वैसे शायद नहीं होती परन्तु मेरे दिमाग में एक बात घर किये थी कि ऊपर वाले ने बड़ी मुश्किल से ये मौका दिया है और अगर यह निकल गया तो फिर यह मौका दोबारा कब आएगा पता नहीं। सिर्फ यही वजह थी जो मैं बिलकुल भी ठंडा करके न खा सका ।

और रज़िया का तो मुझे सपने में भी गुमान नहीं था कि उसकी चूत मुझे ऐसे वो खुद परोस कर दे देगी। कुल मिलाकर मुझे आपी को चोद कर भी वो मज़ा नहीं आया था जो दीदी और उसके बाद रज़िया को चोद कर मिला।

आपी के साथ बंदिशें बहुत थीं। ऐसे लण्ड नहीं डालना है वैसे डालो, ऐसे नहीं चोदना है वैसे चोदो वगैरह वगैरह। यहाँ ऐसा कुछ नहीं हुआ, दूसरी तो चुपचाप सारा दर्द खुद ही पीकर मुझे हर तरह से खुश करने में लगी थी।

लुधियाना आकर मुझे ये दोनों ही तरह के अनुभव बहुत मस्त लगे। कुल मिलाकर आपी और हनी की चूत की रत्ती भर भी कमी महसूस नहीं हो रही थी। यही सब सोचता हुआ कब हॉस्पिटल आ गया पता ही नहीं चला। मैं दीदी को गेट पर ही उतार कर सीधा रेलवे स्टेशन को चला गया।

contd....
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#45
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#47
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#48
Heart 
स्टेशन पहुँच कर मैंने इन्क्वायरी पर देखा तो पता चला कि ट्रेन राइट टाइम है यानी के पंद्रह मिनट बाद ट्रेन आ रही थी। मैं वहीं स्टेशन पर पंजाबिन लड़कियों की फूली फूली गांड और मस्त बड़ी बड़ी चूचियों को देख कर टाइम पास करने लगा। 

थोड़ी देर में प्लेटफार्म पर गाडी आ गयी। मैं जल्दी से S 5 की तरफ बढ़ा जिसमे मामी और सायरा का रिजर्वेशन था। डिब्बे के सामने पहुँच कर मैं उन लोगों को ढूँढने लगा, तभी किसी ने पीछे से मेरे कंधे पे हाथ रख कर कहा, "सग़ीर भैय्या ! कहाँ देख रहे हो? हम लोग उतर कर इधर खड़े हैं"

मैंने देखा कि एक बड़ी मस्त तकरीबन 5 फुट 7 इंच हाईट वाली लड़की मेरे पीछे खड़ी थी व उसके साथ एक औरत बुर्के में एक एयर बैग व एक स्काई बैग लिए खड़ी थी। 

मेरे चेहरे पे असमंजस के भाव देख कर वह फिर बोली, "क्या सग़ीर भैय्या! पहचाना नहीं? अरे मैं सायरा ... और ये अम्मी"

"ओहो! कैसे पहचानूं? मामी बुरके में है और तू इत्ती बड़ी हो गयी है, पिछली बार जब मिली थी तो फ्राक पहना करती थी" -मैंने उसकी शर्ट से झांकतीं बड़ी बड़ी चूचियों को घूरते हुए कहा

"आय हाय आय! जैसे पिछली बार ज़नाब ऐसे ही छः फुटा थे, सिर्फ तीन साल ही मुझसे बड़े हो" -सायरा मेरे सीने पे मुक्का मारती बोली

"अरे तुम दोनों यहीं लड़ते ही रहोगे या अब चलोगे भी" -मामी ने कहा

“हाँ हाँ चलो" कह कर मैंने कुली को बुला कर उसे सामान थमा दिया और हम लोग स्टेशन के बाहर की तरफ चल दिए। मेरी निगाह सायरा की फूली हुई गांड और उसकी खरबूजे जैसी चूचियों से हट नहीं रही थी। 

मुझे ऐसे देखते सायरा बोली, "किधर ध्यान है ज़नाब का"

"कहीं नहीं,तुझी से तो बात कर रहा हूँ"

"हाँ, ज़नाब बात तो मुझ से कर रहे है लेकिन नज़रें कहीं और भटक रहीं है"

"अरे नज़र तो नज़र है, जहां अच्छी चीज़ दिखाई देगी वहीं तो टिकेगी"

मैं उसकी बोल्डनेस से भली भांति परिचित था और उसकी यही आदत मुझे बचपन से पसंद भी थी।

"ओहो, परन्तु इसका मतलब ?"

"मतलब क्या ये तुम्हारी बात का ज़बाब था"

"आपकी गोल मोल बात करने की आदत गयी नहीं, अरे यार क्यू लड़कियों जैसा शरमाते हो। खुल के कहो ना कि सायरा तू मुझे अच्छी लग रही है"

"वाह वाह अपने मुंह ही अपनी तारीफ़, कभी आईना देखा है, बिलकुल बंदरिया लगती है"

"अच्छा जी! मैं बंदरिया लगती हूँ। शायद तभी मेरे शरीर को इतनी देर से घूर रहे हो जैसे नज़रों से ही घोल के पी जाओगे"

इसी तरह नोक झोंक करते हम स्टेशन के बाहर आ गए। मामी थोडा धीरे चल रहीं थी सो बाहर आकर मैंने कुली को पैसे दिए और मामी का इंतजार करने लगे।

मामी के आते ही मैंने उनसे कहा, "आप दोनों के लिए मैं ऑटो किये दे रहा हूँ क्योंकि मेरे पास बाइक है"

"नहीं मैं तो आपके साथ ही बाइक से चलूंगी" -सायरा बच्चों सी जिद करती बोली

"ऐसा करते है सग़ीर! इसे तू बाइक पर ही बिठा ले और हम लोग पहले हॉस्पिटल ही चलते है, दीदी को देखे बिना मुझे सुकून नहीं मिलेगा"

"ठीक है, ऐसा ही करते है" -मैंने ज़बाब दिया मामी को ऑटो में बिठा कर मैंने स्टैंड से बाइक निकाल कर स्टार्ट की और सायरा को साथ लेकर हम अस्पताल के लिए चल दिए। 

सायरा ने पीछे से मुझे पकड़ कर अपनी ठुड्डी मेरे कंधे पर और अपने दोनों हाथ मेरी जाँघों पर रख लिए। इस पोजीशन में उसकी चूचियां मेरी पीठ में धंसी जा रहीं थीं।

"कैसे बैठी हो, सब देख रहे है... हम घर के अन्दर नहीं है सायरा, सड़क पर है। ऐसा लग रहा है कि तुम मेरी बहन नहीं कोई गर्ल फ्रेंड हो" -मैंने सायरा से फुल मज़ा लेते हुए कहा

"ओ हो तो ज़नाब अगर घर के अन्दर हो तो मुझे ऐसे चिपका कर रक्खेंगे" -सायरा मेरी पीठ से और लिपटते बोली

"घर में अगर तुम यूं लिपटना चाहो तो कम से कम दूसरे मज़ा लेने वाले तो नहीं होंगे, यहां सड़क पर सब मज़ा ले रहे है"

"वाह सिर्फ चिपक के बैठने से ही दूसरों को मज़ा आ जाता है? और फिर जब मज़ा आने वाला काम करेंगे तो फिर उनका क्या हाल होगा" -सायरा हंसती हुई बेबाकी से बोली

तभी अस्पताल आ गया और मैंने सायरा को उतार कर बाइक स्टैंड पर लगा दी। हम सब अन्दर जा कर मामी के रूम में पहुँच गए। वहां मामी को डॉक्टर ने ड्रेसिंग करके तैयार कर दिया था लेकिन दीदी ने घाव को देख कर आज रात और यहीं हॉस्पिटल में रुकने की कह दी थी। 

हालांकि मामी घर जाने की बहुत जिद कर रहीं थीं लेकिन हम लोगों के समझाने पर एक रात और रुकने को मान गयीं थीं। छोटी मामी ने साफ़ साफ़ कह दिया कि वह तो हॉस्पिटल में ही रुकेंगी और कल सबके साथ ही घर जाएँगी। 

अंत में यह तय हुआ कि मैं दीदी और सायरा को लेकर घर चला जाऊं बाकी वो तीनो लोग वहीं मामी के साथ हॉस्पिटल में रुकेंगे। चूंकि सायरा का सामान भी था और लोग भी तीन थे अतः मैंने ऑटो करना ही मुनासिब समझा। बाइक वहीं हॉस्पिटल में मामू के पास छोड़ कर हम तीनों ऑटो से घर चल दिए।

ऑटो में सायरा बीच में बैठी थी और मेरी बाजू से उसकी लेफ्ट चूची दब रही थी , उसने भी अपना एक हाथ मेरी जांघ पर बेफिक्री से रक्खा हुआ था। जब भी कोई हल्का सा झटका लगता तो मैं जानबूझ कर अपनी बाजू से उसकी चूची मसल देता था लेकिन वह इन सब बातों से अनजान मस्त बैठी थी।

घर पहुँच कर मैंने ऑटो का पेमेंट करके सामान अन्दर रखवा दिया। सायरा रज़िया के गले लग के खूब मस्ती से बतिया रही थी। अन्दर आ कर मैंने घडी देखी तो टाइम साढ़े नौ से ऊपर ही हो रहा था।

"दीदी, साढे नौ बज चुके है, बड़ी भूख लगी है। आप लोग फ़टाफ़ट खाना लगाओ तब तक मैं चेंज करके आता हूँ" -कह कर मैं अन्दर कमरे में चला गया। 

अन्दर जाकर मैंने अपने कपडे उतार दिए। मैं सिर्फ अंडरवियर व बनियान में था कि तभी सायरा और रज़िया अन्दर आ गयीं। उन्हें देख कर मैं झेंप कर अपनी लुंगी तलाशने लगा क्योंकि जैसा कि आप सभी जानते ही है की इन रेडीमेड अंडरवियर में लंड गांड सब क्लियर पता चलती है।

"चल चल सायरा, तू भी फ़टाफ़ट फ्रेश होकर चेंज कर ले फिर हम सब खाना खाते हैं, मुझे बहुत तेज़ भूख लगी है" -मैंने सायरा को बोला।

वो लोग कमरे से बाहर चले गए और मैं भी बाहर किचिन के पास लाबी में पड़ी डाइनिंग टेबल पर बैठ गया जिस पर दीदी खाना लगा रहीं थीं। दीदी ने अपनी वही ड्रेस यानी पेटीकोट और टॉप पहन रखा था। 

तभी रज़िया और सायरा भी चेंज करके डाइनिंग टेबल पर आ गये। सायरा ने एक ढीला ढाला गाउन पहन रखा था जिसमे उसकी चुचियों की तनी हुई घुन्डियाँ साफ़ साफ़ उठी हुई नज़र आ रहीं थी।

"ये क्या पहन रखा है, इस ड्रेस में तेरा सब कुछ दिखाई दे रहा है" -दीदी ने धीरे से सायरा को टोका

"अरे दीदी, सारा दिन बॉडी कसी रहती है इसलिए रात में इसे बिलकुल फ्री करके हमें सोना चाहिए" -सायरा बेझिझक बोली

CONTD....
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#49
Heart 
SAYRA


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#50
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मेरा लंड तो वैसे भी उसकी चुचियों की घुंडियों को देख देख कर अंगड़ाईयां ले रहा था लेकिन ये सुन कर कि उसने चड्डी भी नहीं पहनी है, वह बुरी तरह फनफना उठा। मैंने टांग पर टांग चढ़ा कर अपने लंड को उसमे कस कर दबा लिया। 

हालांकि मेरी उसको चोदने की तबियत हो रही थी लेकिन मैं यह अभी शो नहीं करना चाह रहा था। मैं उसी की तरफ से किसी पहल का इंतज़ार कर रहा था फिर तो उसकी चूत में अपना लंड पेल के उसे चोद ही देना था। वैसे उसकी एक्टिविटी से लग रहा था कि सायरा उस टाइप की लड़की है जो ये सोचतीं है की जब चुदाई करने से लड़कों के लंड का कुछ नहीं बिगड़ता तो लड़कियों की चूत का क्यों बिगड़ेगा। 

चूंकि खाना लग चुका था सो हम सब खाना खाने लगे लेकिन मेरी निगाह बार बार सायरा की चूचियों की तरफ ही उठ जा रही थी जिसे सभी बखूबी समझ रहे थे क्योंकि में बीच बीच में अपने फनफनाते लंड को भी एडजस्ट कर रहा था। खाना खाकर रज़िया ऊपर वाले कमरे में चली गयी। 

हालांकि वह इतनी बुरी तरह चुदने के बाद भी चुप थी, दीदी की तरह हाय हाय नहीं कर रही थी फिर भी मैं उसकी चूत की हालत समझते हुए आज उसे छेड़ना नहीं चाहता था। एक रात के रेस्ट के बाद उसकी चूत की हालत भी सुधर ही जानी थी और फिर मेरे लंड के लिए कौन सी चूतों की कमी थी, यहाँ लुधियाना आने के बाद तो मेरे लंड को वैसे भी बिलकुल रेस्ट नहीं मिला था, हर वक़्त चूत में ही घुसा रहता था। 

दो दो कुंवारी चूतों की सील तो खोल ही चुका था ऊपर से खुदा ने सायरा को और भेज दिया, वैसे मैं उसकी चूत के बारे में डाउट में था क्योंकि इतनी बोल्ड लड़की अपनी चूत में बिना लंड पिलवाये नहीं मान सकती। ज़रूर उसने लंड का मज़ा ले लिया होगा। 

खैर, दीदी व सायरा भी खाने से फ्री होकर लेटने चल दीं तो मैंने फोर्मली पूछा, "आज कैसे लेट बैठ होगी"

"हम दोनों तो अन्दर वाले कमरे में लेट जाते है, बैठने का काम आप पूरी रात शौक से फरमा सकते हैं" -सायरा ने मेरी बात पर चुटकी ली

"वाह भई वाह, रज़िया ऊपर और तुम दोनों अन्दर वाले कमरे में... मैं अकेले यहाँ क्या करूंगा" -मैंने टोका

"आप ज़नाब, कांग्रेस आई के सहयोग से रात काटिए (कांग्रेस आई का निशान हाथ का पंजा है)" -सायरा शोखी से आँखे नाचते बोली

"अजी अगर हम कांग्रेस का सपोर्ट लेंगे तो आपको भी तो रात काटने को उसी का सपोर्ट लेना पड़ेगा" -मैंने भी उसी के टोन में ज़बाब दिया

"हाँ यार, इससे बढ़िया तो ये रहेगा कि हम दोनों ही मिलजुल के सरकार बना ले" -सायरा मेरी बनियान की स्ट्रिप्स में अपनी उंगली फंसाकर धीरे से बोली

"मुझे कब ऐतराज है"

"हाँ जी, वो तो तुम अपना डंडा लिए झंडा फहराने को बिलकुल तैयार दिखाई दे ही रहे हो" -सायरा मेरी लुंगी में काफी उभरे हुए लंड को देख कर बोली

वैसे तो दोस्तों मैंने अपनी इस छोटी सी लाइफ में कई चुदासी चूतों को चोदा और कई चूतों को थोडा ज़बरदस्ती करके भी चोदा था लेकिन ऐसी बोल्ड चूत खुल के चुदवाने को उतावली आज पहली बार देख रहा था। 

हम लोगों को खुसुर पुसुर करते देख दीदी ने मामू के कमरे में सोने का ऐलान कर दिया। वह भी समझ चुकीं थी कि हम दोनों ही चुदाई प्रोग्राम किये बिना नहीं मानेंगे सो उन्होंने हम लोगों को अकेला छोड़ देने का सोचा लेकिन सायरा ने दीदी की बात काटते हुए कहा, "क्या दीदी, कितने दिन बाद तो मिले है, आप भी हमारे साथ ही लेटिये ना… ढेर सारी बातें करेंगे" -फिर मेरी तरफ देखकर मुस्करा दी।

हालांकि मेरे और दीदी के बीच अब कोई पर्दा नहीं था फिर भी मेरी समझ में उसका प्लान नहीं आ रहा था क्योंकि वह तो हमारे इस चुदाई रिलेशन से बिलकुल ही अनजान थी।

अन्दर जाकर वह दोनों बेड पर लेट गयीं और सायरा थोडा एक तरफ खिसक कर बीच में जगह बनाती बोली, "अरे अब खड़े ही रहोगे या लेटोगे भी"

मैं तो सिर्फ इशारे का इंतज़ार कर रहा था सो उसके कहते ही मैं कूद कर बेड पर चढ़ गया और उन दोनों के बीच लेट गया। दीदी ने उठ कर लाइट बंद करके नाईटलैंप जला दिया। वह सिर्फ कहने भर का नाईट लैंप था वर्ना कमरे में इतनी रोशनी हो रही थी कि मैं आराम से नॉवेल पढ़ सकता था। 

दीदी चूँकि हम दोनों से उम्र में बड़ीं थीं सो वह सायरा के सामने पूरी तरह खुल नहीं पा रहीं थीं। 

उन्होंने हमारी तरफ करवट लेते हुए कहा, "मुझे तो बहुत नींद आ रही है, तुम लोग भी जल्दी सो जाओ सुबह अम्मी को हॉस्पिटल से भी लाना है"

"आप टेंशन मत लो दीदी, मैं सब मैनेज कर लूँगा" -मैंने दीदी के पीछे से उनके पेट पर हाथ फिराते हुए कहा। 

"ठीक है" -कह कर दीदी ने धीरे से मेरा हाथ दबा कर पेट से हटा दिया।

मैं भी उनका इशारा समझ कर सायरा की तरफ घूम गया। सायरा आँखे बंद किये चुपचाप पीठ के बल सीधी लेटी थी। उसकी बिना ब्रा के गाउन में तनीं हुई चूचियां किसी उन्नत पर्वत शिखर जैसी हर सांस के साथ ऊपर नीचे हो रहीं थी। हौज़री के पतले से गाउन में उसका एक एक कटाव साफ़ साफ़ नज़र आ रहा था। 

मेरा लंड ये नज़ारे देख कर तो फुंफकार मार कर चड्डी से बाहर आने को बेताब होने लगा लेकिन मैं अपनी तरफ से पहल नहीं करना चाहता था। मैं अपने लंड को दोनों जाँघों में दबा कर उसकी तरफ से किसी शुरुआत का इंतज़ार करने लगा।

थोड़ी देर की चुप्पी के बाद सायरा ने मेरी तरफ करवट लेकर पूछा, "सो गए क्या?"

"नहीं यार, नींद ही नहीं आ रही" -मैंने कहा। 

मन में तो आया कि कह दू कि बिना चुदाई किये मुझे नींद नहीं आती लेकिन मैं चुप रहा। उसने अपना एक हाथ मेरे सीने पर रख लिया जिससे उसकी बम्बइया आम जैसी मस्त चूचियां मेरी बाजू में गढ़ने लगीं।

"तो फिर कुछ बाते ही करो यार"

"क्या बाते करूं, तुम ही थोडा सजेस्ट करो"

"कुछ भी बात करो ना, मुझे भी नींद कहाँ आ रही है"

"कांग्रेस की जगह एक दूसरे को सपोर्ट करके सरकार बना लेते है, नींद आ जायेगी"

मेरी ये बात सुन कर उसने मुझे जीभ निकाल कर दिखा दी और धीरे से दीदी की तरफ इशारा करके कहा, "अभी शायद जग रहीं है"

"नहीं वो बहुत जल्दी और गहरी नींद में सोतीं है" -मैंने कहा क्योंकि दीदी की तरफ से मुझे बिलकुल भी डर नहीं था, उनकी तो वो मस्त चुदाई की थी कि उनके चूत और गांड दोनों दवा देने के बाद भी शायद अभी तक कसक रहे होंगे। 

उसने अपनी जांघ मेरी जांघों पर चढ़ा ली। मेरा लंड जिसे मैं बड़ी मुश्किल से जांघो में दबाये था झटके से बाहर निकल कर उसकी जांघो से रगड़ खाने लगा।

"ओहो ये ज़नाब तो सरकार बनाने को कुछ ज्यादा ही उतावले हो रहे है"

"तुम्हीं ने हामी भर कर इसकी यह हालत की है"

तभी सायरा ने मेरे गले में बांहे डाल कर मेरे होंठो पर अपने तपते होंठ रख दिए। मैं तो वैसे भी इसी पहल का इंतज़ार कर रहा था। मैं उसके होंठो को चूसते हुए अपनी जीभ उसके मुंह में घुमाने लगा। वह भी बराबर का सहयोग देती हुई लेमनचूस की तरह मेरी जीभ को चूसने लगी। 

मेरी हालत तो जो थी सो थी लेकिन उसकी भी साँसे भारी होने लगीं थी। मैंने उसके गाउन में हाथ डाल कर उसकी नारियल जैसी सख्त हो रखीं चूचियों को मसलना शुरू करदिया।

"स्सी S S S S S हाय धीरे धीरे भैय्या...... क्या आज उखाड़ के ही रख दोगे ......... प्लीज़ लाइट बंद कर लो, दीदी बगल में ही लेटीं हैं"

"तुम उनकी चिंता मत करो, वह बहुत गहरी नींद में सोतीं है....... इस वक़्त अगर कोई उनका पेटीकोट उठा कर चूत में लंड भी पेल दे तो शायद उन्हें पता नहीं चलेगा" -मैंने हंसते हुए कहा और उसकी एक पूरी तनी निप्पल को पकड़ कर ऐंठ दिया।

"आ S S S ह....... तो क्या तुम पेल चुके हो"

"अरे यार........ मैं एक मिसाल दे रहा हूँ" -कहकर मैंने दूसरे हाथ से उसकी गांड मसलते हुए अपने से कस कर चिपका लिया। अब मेरे लंड के उभार को वह अपनी टांगो के बीच महसूस कर रही थी। मज़े की अधिकता से उसकी आँखे पूरी तौर पर बंद थीं।

मैं अभी भी सिर्फ उतना ही आगे बढ़ रहा था जितना वह मेरे साथ करती जा रही थी। मैंने बड़ी मुश्किल से अपने पर काबू किया हुआ था। जैसे दीदी और रजिया को मैंने चुदने के लिये तैयार किया था उसी तरह मैं चाहता था कि सायरा भी मुझे चोदने को तैयार करे हालांकि मेरा लंड बमुश्किल चड्डी में कंट्रोल हो रहा था वरना वो तो पता नहीं कब से उसकी चूत का तिया पांचा करने को तैयार बैठा था।

contd....
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#54
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उसका गाउन खिसक कर कमर तक आ चुका था जिसे मैंने उठा कर गर्दन तक खींच दिया। अब उसकी नंगी संगमरमरी चूचियां मेरी आँखों के सामने थीं। गुलाबी रंगकी बड़ी-बड़ी बम्बइया आम जैसी मांसल चूचियां उस पर लगभग ढेड इंच व्यास का कत्थई कलर का गोल घेरा जिसमे Wi - Fi एंटीना के माफिक सीधीं तनीं हुईं निप्पलस...।

दोस्तों ऊपर वाले ने हम लंड वालों को तो सिर्फ बचा मटेरियल आगे टांगो के जोड़ पर चिपका कर छुट्टी पा ली लेकिन उसने इन चूत वालियों को पूरी कायनात में सबसे खूबसूरत बनाने में अपनी सारी काबिलियत लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।

मेरा लंड अभी भी मेरी चड्डी में बिलकुल पिटारे में बंद नाग के माफ़िक फनफना रहा था। मैंने उसकी एक चूची को मसलते हुये दूसरी के निप्पल को मुंह में लेकर चुभलाते हुए चूसना शुरू कर दिया।

"सी S S S S S आह... हां... हां... और मसलो भैय्या... ज़रा और कस कस के मसलो"
सायरा अब पूरी तरह गरम हो चुकी थी, उसके नथुनों से सांस की जगह जैसे फुंफकार निकल रही थी।

"आओ ना भैय्या"

"मैं तो तेरे बगल में ही लेटा हूँ, मैं गया कब था"

मेरी बात सुनकर वह एक झटके से उठी और अपना गाउन गले से निकाल कर पूरी नंगी हो गयी। मैंने भी अपनी टाँगे फैला कर चड्डी में तम्बू बनाये लंड को थोड़ा और उभार दिया। उसने आगे बढ़ कर मेरी लुंगी एक तरफ फैंक कर चड्डी उतार दी। मेरा लंड भी मेरी तरह ही पता नहीं कब से इसी पल इंतज़ार कर रहा था, वो एक दम से फुंफकार मारता हुआ तन के खड़ा हो गया। हम दोनों इस वक़्त पूरी तौर से नंगे हो चुके थे।

"आ...ह कितना मोटा और लंबा है भैय्या तुम्हारा और कितना टाइट हो रहा है" -सायरा ने मेरे लंड को मुट्ठी में ले के दबाते हुए कहा।

मेरे लंड का सुपाड़ा उसके हाथों की नरमी पा कर सुर्ख टमाटर जैसा फूल कर कुप्पा हो चुका था। वह उचक कर मेरे मुंह को अपनी दोनों टांगो के बीच लेकर मेरे ऊपर 69 की पोजीशन में लेट गयी जिससे उसकी चूत ठीक मेरे मुंह पर आ गयी और मेरा लंड उसके हाथों में बिलकुल होठों के नज़दीक था। 

उसकी चूत बिलकुल चिकनी थी ऐसा लग रहा था कि उसने आज ही हेयर रिमूवर का इस्तेमाल किया था। मैंने दोनों हाथो से उसकी रस छोड़ती चूत की दोनों फांकों को अलग किया और गप्प से अपनी जीभ उसकी गुलाबी गुफा में घुसा दी। उसका बदन उत्तेज़ना में बुरी तरह काँप रहा था। 

हम दोनों की हालत तकरीबन एक जैसी ही हो रही थी। उसने मेरे लंड की खाल को ऊपर नीचे करना शुरू कर दिया फिर अपनी जीभ निकाल कर सुपाड़े पर फिराने लगी। मेरी हालत बहुत पतली हो रही थी, उसके मुंह में जाते ही मेरे लंड की सारी नसें तन गयीं थीं। मैं नीचे से कमर उचका उचका कर उसका मुंह चोद रहा था तो वह अपनी चूत में मेरी जीभ को ज्यादा से ज्यादा अन्दर लेकर चुदवा रही थी।

मैं उसकी चूत की मोटी मोटी संतरे जैसी फांको को चूसते हुए उसकी गांड में गपागप उंगली कर रहा था। वह उ... म्म हूं हूं... की आवाजे निकालती हुई मेरे लंड को चूस रही थी। उसने मारी उत्तेज़ना के अपनी टांग को मेरी गर्दन पर लपेट कर अपनी चूत बिलकुल मेरे मुंह में घुसा दी।

वो अपने एक हाथ से मेरी बाल्स को भी मसल रही थी, मैं जल्दी ही झड़ने के कगार पर पहुँच गया और जोर -२ से साँसे लेने लगा, वो समझ गयी और जोर से चूसने लगी, तभी मेरे लंड ने पिचकारी मार दी जो सीधे उसके गले के अन्दर टकराई, वो रुकी नहीं और हर पिचकारी को अपने पेट में समाती चली गयी, इधर उसकी चूत से भी फिर से फव्वारे छूटने लगे थे। हम दोनों ही मुस्कराते हुए विजयी मुस्कान के साथ बेड पर पड़े हांफ रहे थे।

उधर दीदी बिना हिले डुले हमारी तरफ पीठ किये लेटीं थीं। मैं जानता था कि वह जग रहीं है लेकिन उनकी सूजी और घायल चूत को कम से कम चौबीस घंटे का रेस्ट मिलना बहुत ज़रूरी था। और फिर मेरे लिए रात काटने के लिए सायरा की चूत तो चुदने के लिए तैयार थी ही सो मैंने दीदी को डिस्टर्ब न करना ही मुनासिब समझा।

सायरा अब सीधी होकर किसी नागिन के मानिंद मेरे से चिपकी लेटी थी। जाहिर था कि उसकी चूत की खुजली मेरी जीभ से शाँत नहीं हुई थी और वह अब बिना लंड पिलवाये मानने वाली नहीं थी।

मेरा लंड भी बिना चूतरस पिए कहां शांत होने वाला था सो मैंने बिना ज़्यादा वक़्त गंवाये उसे फ़टाफ़ट चोदने के लिए अपने नीचे दबोच लिया।

"आराम से भैय्या! मेरी चूत कहीं भागी नहीं जा रही है" -सायरा अपनी टाँगे चौड़ी करके मेरी कमर पर लपेटती हुई बोली।

"अब तो बिना चुदे अगर भागना चाहेगी तब भी नहीं भाग पायेगी… आज तो तेरी चूत और गांड दोनों में अपना लंड पेलूँगा" -मैंने दोनों हाथों से उसकी चूचियों को कस के मसलते हुए कहा।

"हा…… य, अभी तक यही सुना था कि गांड मरवाने में थोडा दर्द ज़रूर होता है लेकिन मज़ा चूत मरवाने से कम नहीं आता, आज ये भी ट्राई करके देखती हूँ"

"मेरे लंड को तो हर टाइट छेद में अन्दर बाहर होने में मज़ा आता है"

"तो फिर करो ना, टाइम क्यों वेस्ट कर रहे हो… अब बस पेल दो भैय्या… बहुत दिन से मेरी चूत ऐसे ही किसी लंड की चाहत में तड़प रही थी, आज कहीं वो मौका हाथ लगा है"

"चिंता मत कर, मैं केवल चूतों की प्यास बुझाने के लिए ही लुधियाने आया हूँ"

"क्या मतलब? किसी और की चूत पर भी निगाह है क्या?"

"अरे! लुधियाने आकर तो आँख बंद करके भी कमर हिलाओ तो लंड सीधा चूत से टकराता है, मज़ा आ गया लुधियाने में तो"

"फिलहाल तो इस चूत पर ध्यान लगाओ भैय्या, बहुत कुलबुला रही है"

"तो फिर देर किस बात की, चल बन जा घोड़ी… मेरा लंड कब मना कर रहा है"

"हाय हाय कैसा काले नाग सा फुंफकार रहा है... म्म म्म uuuu आह"

कह कर सायरा ने मेरे लंड के सुपाडे पर एक पप्पी जड़ दी।

उसकी पावरोटी जैसी फूली हुई चूत देख कर मेरा लंड तो बुरी तरह से दहाड़े मारने लगा था। आज तो उसका जलाल देखने लायक था। 8” का मोटा गेहुंआ रंग 120 डिग्री में मुस्तैद जंग लड़ने वाले सिपाही की तरह। मैंने उसे सीधा लेटा दिया। अपनी तर्जनी अंगुली पर थूक लगाया और उसकी पहले से ही गीली चूत में गच्च से डाल दी तो वो चिहुंकी, “ऊईई... अम्मी... ”

अब देर करना कहाँ की समझदारी थी मैंने झट से अपना लण्ड उसकी चूत के मुहाने पर रखा और एक जोर का धक्का लगाया। आधा लण्ड गप्प से उसकी रसीली चूत में चला गया। एक दो झटकों के साथ ही मेरा पूरा का पूरा फनफनाता हुआ लण्ड जड़ तक उसकी चूत में फिट हो गया। वो थोड़ा सा चिहुंकी पर बाद में सीत्कार के साथ 'आ… उईईई... आँ...' करने लगी

मैंने दनादन 4-5 धक्के कस कर लगा दिए। अब तो मेरा लण्ड दुगने उत्साह से उसे चोद रहा था। क्या मक्खन मलाई चूत थी। बिल्कुल दीदी की तरह। चुदी होने के बाद भी एक दम कसी हुई। उसकी चुदाई करते मुझे कोई 20 मिनट तो हो ही गए थे। उसकी चूत इस दौरान 2 बार झड़ गई थी और अब मेरा शेर भी किनारे पर आ गया था। मैंने उसे बताया कि मैं झड़ने वाला हूँ तो वो बोली अन्दर ही निकाल दो। मैंने उससे कहा कि अगर कोई गड़बड़ हो गई तो क्या होगा?

तो वो बोली- “आखिर M B B S कर रही हूँ , इस ज़रा सी बात के लिए चुदाई का पूरा मज़ा क्यों ख़राब किया जाये !”

मैंने उसे बाहों में जोर से भींच लिया और फ़िर 8-10 करारे झटके लगा दिए। उसने भी मुझे उतनी ही जोर से अपनी बाहों में भींचा और उसके साथ ही मेरे लंड ने पिचकारियाँ छोड़नी शुरू कर दी । 

मेरे लण्ड ने जैसे ही पहली पिचकारी छोड़ी ड्राइंग रूम में लगी दीवाल घड़ी ने भी टन्न टन्न 12 घंटे बजा दिए और मेरे लण्ड से भी दूसरी… तीसरी… चौथी. पिचकारियाँ निकलती चली गई।

हम लोग कोई 10 मिनट इसी तरह पड़े रहे।

CONTD....
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#58
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सुबह जब मेरी आँख खुली तो मैंने देखा सायरा और दीदी उठ चुके है। मैं भी फ़टाफ़ट उठ कर तैयार हो गया , तब तक दीदी नाश्ता बना लाई। नाश्ता करके मैं बाइक उठा कर तुरंत अस्पताल निकल गया। वहां की सारी खाना पूरी करके मैं मामी को लेकर घर वापस आ गया।

सारे दिन मिलने जुलने वाले आते रहे हालांकि मामी अब बिलकुल ठीक थीं और बारह दिन बाद उनके टाँके भी कट जाने थे। 

रात को सबने खाना पीना खाया और फिर मैंने दीदी से चुपके से पूछा, "आज लेट बैठ कैसे होगी"

"बिलकुल चुपचाप रहो, अपने आप अब्बू या फूफी बता देंगी और सुन  सग़ीर! कोई ऐसी वैसी हरकत मत कर देना जिससे अब्बू को हम पर शक हो जाये" -दीदी ने डरते डरते चारों तरफ देख कर कहा ।

“ठीक है ठीक है दीदी" -मैंने जबाब दिया

हालांकि गांड मेरी खुद भी फट रही थी लेकिन इस बहनचोद लंड से बुरी तरह परेशान था। मादरचोद कभी भी कहीं भी खडा हो जाता था।

तभी अम्मी ने कौन कहाँ लेटेगा का फैसला सुना दिया। सायरा ऊपर रज़िया के साथ, दीदी ड्राइंग रूम में मामी के साथ, मैं मामू के साथ उनके कमरे में और अम्मी मामी के साथ दूसरे बेडरूम में सोयेंगी। पता नहीं इस तुगलकी फरमान को सुन कर किस किस की झांट जली थी या नहीं लेकिन मेरी तो बुरी तरह सुलग उठीं थीं।

तभी मामू बोले, "अरे सो जायेंगे, जिसे जहां जगह मिलेगी वहां, पहले इतने दिन बाद सब इकट्ठे हुए है सो बतियाते है, अभी तो सिर्फ साढ़े नौ ही तो बजे है"

मेरी जान में जान आई और मैं अपने लंड की खुराक की जुगत में लग गया जो की दीदी या रज़िया में से ही एक थीं। हालांकि मज़ा सायरा को चोदने में भी बहुत आया था लेकिन इन कुंवारी चूतों की बात ही अलग थी। क्या फंसा फंसा लंड चूत में जाता था। कसम से ऐसा लगता था कि अमूल मक्खन की टिकिया में अपना लंड ठांस दिया हो। खैर सभी मामी के कमरे में आकर इकट्ठे हो गए और कुर्सियों व बेड पर बैठ गए।

थोड़ी देर बतियाने के बाद सायरा की अम्मी उठते हुए बोली, "अच्छा मैं तो अब सोने जाती हूँ बहुत तेज़ नींद आ रही है"

"हां हां चलो अब मैं भी सोता हूँ चल कर" -मामू बोले

मैं थोडा और टाइम पास करने की गरज से बोला, "आप लोग सोइये, हम लोगों को नींद नहीं आ रही"

मामू के जाने के बाद मैंने अपनी रात की जुगाड़ के लिए जाल बुनना शुरू कर दिया।

"यार ये लोग तो हॉस्पिटल से आये है, थके हुए भी है इसलिए इन लोगों को सोने दो। हम लोगों ने कौन से पहाड़ खोदे है जो इतनी ज़ल्दी सो जायेंगे। क्यों न हम चारो ऊपर वाले कमरे में चल कर रमी खेलें?"

दीदी और रज़िया कुछ नहीं बोले परन्तु सायरा बोली, "आईडिया बुरा नहीं है"

"तुम लोग जो मर्ज़ी आये करो, हम लोगों को अब सोने दो। रात के ग्यारह बज चुके है" -अम्मी ने कहा

मेरी तो बल्ले बल्ले हो गयी। मैंने उठते हुए कहा, "अम्मी सही कह रहीं हैं, हम लोग ऊपर चल कर ताश खेलते है। इन लोगों को सोने दिया जाय, वहां हॉस्पिटल में वैसे भी तीन दिन में आराम नहीं मिला होगा"

मैंने तीनो लोगो को ऊपर भेज कर रूम की लाइट बंद करके नाईट बल्ब जला दिया और खुद भी अपने लंड को सहलाता हुआ ऊपर चल दिया

ऊपर आकर मैंने ताश की गड्डी बेड पर फेंकी और जानबूझ कर अपने बदन पर सिर्फ तीन कपड़े यानी बनियान, अंडरवीयर व लुंगी ही रहने दिए और बोला, "देखो! आज हम लोग रमी तो खेलेंगे लेकिन ठीक वैसे ही जैसे मैं अपने हॉस्टल में फ्रेंड्स के साथ खेलता हूँ"

"क्या मतलब ?" -दीदी ने पूछा

"जो भी हारेगा उसे अपने शरीर से एक कपडा उतरना पड़ेगा" -मैंने ज़बाब दिया "और जिसके शरीर पर सबसे पहले कपडे ख़तम होंगे उसे बाकी तीनो के दो दो आदेश मानने होंगे"

"दिमाग तो ठीक है तेरा, तू अपनी बहनों को नंगी करना चाहता है" -दीदी ने उन दोनों के सामने अपने को कच्ची कुंवारी कली की तरह पेश करते हुए कहा

"अरे दीदी ! ये ज़रूरी तो नहीं कि हम ही हारे, हार तो ये ज़नाब भी सकते हैं, फिर हम तीनो मिल कर इन्हें नंगा करके छत पर घुमांयेंगे" -सायरा ने दीदी को समझाया

दीदी बेमन से चुप रहीं और सायरा ने उछल कर पत्ते बांटने शुरू कर दिए। परन्तु वो नासमझ एक बात भूल रहीं थीं कि चाहे खरबूजा छुरी पर गिरे या छुरी खरबूजे पर, कटना खरबूजे को ही है।

पहली चाल में मैं जानबूझ कर हार गया और मैंने अपनी बनियान उतार कर एक तरफ रख दी। उसके बाद तो हद हो गयी, तीन चाल लगातार रजिया हारती चली गयी और उसकी चुन्नी और हेरम पहले ही उतर चुकी थी अब सिर्फ वह ब्रा पेंटी और टॉप पहने थी जिनमे से वह किसी को भी उतारने को तैयार नहीं थी। तभी सायरा ने आगे बढ़ कर ज़बरन उसका टॉप उतार दिया। उसने शरमा कर अपनी ब्रा में कसी रसीली चूचियों को अपनी बांहों से ढँक लिया।

"अरे! इसमे इतना शरमा क्यों रही है? कोई बाहर का तो है नहीं, सब अपने ही तो है" -मैंने उसे समझाते हुए कहा

ज़बकि मैं चाह रहा था कि दीदी हार जाएँ क्योंकि वह सबसे बड़ी हैं। उनके नंगा होने के बाद फिर मुझे बाकी इन दोनों को नंगा करने में वक़्त नहीं लगना था।

तभी सायरा बोली- "यार! इस गेम के साथ एक एक चाय और होती तो मज़ा आ जाता"

"मैं बना के लाती हूँ" -कह कर रजिया फटाक से उठ कर खडी हो गयी और अपने कपडे पहिनने लगी।

उसका सिर्फ ब्रा और पेंटी में गोरा गोरा बदन देख कर मेरा लंड तो गनगना उठा।

"नो नो! जो जिस कंडीशन में है वैसा ही रहेगा, कोई चीटिंग नहीं चलेगी।… चाय मैं बना के लाता हूँ" -मैंने कहा

रज़िया मन मसोस कर वैसी ही चुपचाप बेड पर आकर बैठ गयी। मैं भी उसी कंडीशन में नीचे चाय बनाने चल दिया।

मामू कहीं जाग न जाएँ इसलिए मैं बिना कोई आवाज़ किये बहुत धीरे से किचिन की तरफ जा रहा था तभी मुझे मामू के कमरे से कुछ हल्की हल्की आवाजे आतीं सुनाई पडीं।

मैंने उनके कमरे में धीरे से झांका तो देखा कि मामू सायरा की अम्मी को अपने से चिपकाए उनकी कुर्ती में हाथ डाल कर मज़े से चूचियां मसल रहे थे।

"बड़ी देर लगा दी आने में, कब से तुम्हारी राह देख रहा था" -मामू बोले

"क्या करती, उस कमरे में आपकी बहन जो लेटीं थीं। जब तक उनकी तरफ से निश्चिन्त नहीं हो गई तब तक आने की हिम्मत ही नहीं पडी" -सायरा की अम्मी ने जबाब दिया।

फिर दोनों खामोश हो गए और चुपचाप एक दूसरे के कपडे उतारने लगे। थोड़ी ही देर में दोनों बिलकुल नंगे होकर एक दूसरे के अंगो को सहलाते हुए होठ चूसने लगे।

CONTD....
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