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Adultery यादों के झरोखे से
#21
Heart 
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चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#22
Heart 
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Me with my hot didi
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#23
Heart 
"दीदी, मैं आपके साथ कोई ज़बरदस्ती नहीं करूँगा, हाँ यहाँ अगर मेरी आपी होती तो शायद मैं यही आपी को भी बोलता और फिर उनकी मर्ज़ी से ये सब करता" मैने उनके चूतड़ को पकड़ कर अपने लॅंड पर रगड़ते हुए कहा।

"मतलब....? तू...? ये... सब... रूही के साथ भी कर देता?" -दीदी ने पहली बार अपना चेहरा उठा कर मेरी आँखों मे देखते हुए पूछा।

"इसमें नज़ायज़ क्या है, शरीर की भी अपनी ज़रूरतें होतीं हैं और अगर ये अपने घर में ही पूरी हो जाएँ तो इससे अच्छा और क्या है" मैं उन्हे बाँहों में कस कर फिर पलट गया, अब वो मेरे नीचे थीं और मैं उनके ऊपर, मैने बात ज़ारी रखते हुए कहा, "जब इंसान की ज़रूरत घर में पूरी नहीं होती तभी वह बाहर इधर उधर मुँह मारता है" इसी के साथ अब मैने और समय बर्बाद न करते हुए एक हाथ से उनकी चूची मसलते हुए उनके होंठों से होंठ मिला दिए.

परंतु उनकी आँखों मे बसी हैरत कुछ और जानना चाह रही थी।

"तो क्या तू रूही को नंगा करके वो सब भी कर लेगा?" -दीदी ने मुझे थोड़ा पीछे करते हुए पूछा

अब मेरे बर्दाश्त से बाहर हो रहा था.

मैने कहा, "तो इसमें बुरा क्या है, यदि आपकी अपनी शारीरिक भूख आपसे किसी मर्द का शरीर चाह रही है ऐसी हालत में यदि आपका अपना भाई खुद को हाज़िर कर रहा है तो दिक्कत क्या है?"

मैं अब दोनो हाथों से उनकी चूचियाँ मसलने लगा था, मुझे डर था कहीं खड़े लॅंड पर धोखा न हो जाए, नीचे से मैं अपने लॅंड को उनकी चूत पर रगड़ रहा था।

दीदी की चूत से निकलते पानी ने उनकी नाइटी को गीला कर दिया था। मैने बाज़ू में लेट कर उनकी नाइटी में हाथ घुसा कर उनकी पनीली चूत को अपनी मुट्ठी मे भर लिया,

"मतलब तू रूही को भी चो... मेरा मतलब पेल देता???" - दीदी ने अपनी चूत से बिना मेरे हाथ को हटाए फिर पूछा।

"हाँ दीदी, मैं आपी को भी चोद देता बशर्ते आपी भी चुदना चाहें तो और क्या आप भी बार बार हमारे बीच आपी को ला रहीं हैं। क्या मेरी मौज़ूदगी आप को अच्छी नहीं लग रही। यदि ऐसा है तो आप कहो मैं चला जाता हूँ" -मैं दीदी की चूत को सहलाते हुए बोला।

मुझे पता था कि अब लोहा पूरी तौर पर गरम हो चुका है अब दीदी को चुदने से कोई नहीं बचा सकता था।

दीदी थोड़ा सा कसमसाते हुए बोली, "अरे...रे... मेरा सोहना भाई... लगता है नाराज़ हो गया, अच्छा अब मैं रूही की कोई बात नहीं करूँगी"

"मैं अक्सर रातों को ख्वाबों में आपको देखता था, ऊपर वाले से मन्नत माँगता था कि कब वो आपको मेरी बाहों में आने देंगे, आज मेरी मन्नत पूरी हो गई लगता है" - मैं दीदी को कस कर अपने से चिपकाते हुए बोला।

मैं उनके गालों से होता हुआ अब गर्दन पर अपनी जीभ घुमा रहा था. उनके पसीने और डियो की मिली जुली खुश्बू मुझे मदहोश किए दे रही थी।

दीदी से भी अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था. वो मेरे हाथों को अपनी चूचियों पर रगड़ते हुए बोलीं, "ओ सग़ीर... मेरे भाई... मेरे सरताज़... मिटा दे अपनी इस बहन के शरीर की आग को, कर ले अपने ख्वाबों को पूरा... मेरी भी चाहत थी कि कोई तेरे जैसा मर्द मेरे शरीर को तोड़ कर रख दे, रौंद दे मेरी इस जवानी को... आह... मेरे राजा... बुझा दे मेरी प्यास... तेरी ये बहन तेरी हमेशा लौंडी बन के रहेगी"

मुझसे दीदी का इतना कहना काफ़ी था क्योंकि मुझ में भी अब बर्दाश्त करने का माद्दा नहीं बचा था. मैने दीदी की नाइटी को उनकी गर्दन से बाहर खींच कर फेंक दिया.

मैं दीदी के ऊपर चढ़ कर उस के होठों को बेदर्दी से चूसने लगा, दीदी भी मेरा पूरा साथ दे रहीं थीं. मेरे हाथ दीदी की चूचियों पर पहुंच जाते है मैं अपनी बहिन चूचियों को मसलने लगता हूँ, दीदी की तनी हुई चूचियों को छूते ही मेरे शरीर में करंट दौड़ जाता है, मेरे अंदर सुबह से दबी वासना फिर से जग जाती है, मैं  दीदी की ब्रा खोल कर उस की चूचियों को मुँह में भर कर पीने लगता हूँ, दीदी भी अपनी कुँवारी चूचियों पर अपने भाई के होठों को महसूस करके सिसकने लगती है और मज़े की अधिकता में मेरे सिर को पकड़ कर अपनी चूचियों पर कस कर दबाने लगती हैं.

मैं दीदी की चूचियों को दबा दबा कर चूस रहा था. ऐसा लग रहा था कि जैसे शायद मेरे दबाने से उनमें से दूध निकलना शुरू हो जाएगा. मेरा लॅंड बुरी तरह से मचल रहा था. मैने धीरे से अपना हाथ नीचे बढ़ा कर दीदी की चूत को सहलाना शुरू कर दिया. 

दीदी अपनी चूत पर मेरा हाथ महसूस करते ही एक दम से सिसक पड़ीं, उनके अंदर की काम वासना मचलने लगी थी. वो, 'आह... सग़ीर... उम्म्म... मेरे भाई... हाय...' की आवाज़ें मुँह से निकाल रहीं थीं.

मैने जल्दी से दीदी की ब्रा को भी खोल कर फेंक दिया. अब वो बिल्कुल मादरजात नंगी बेड पर बाज़ू में लेटी थीं. मैं उठ कर दीदी की टाँगों के बीच में आ गया और उनकी जांघों को फैला कर उनकी कुँवारी कमसिन गुलाबी चूत को सहलाने लगा. 

मैं अपनी एक उंगली से दीदी की फुद्दी को सहला रहा था वहीं दूसरे हाथ की उंगली से उनकी चूत के छेद को कुरेद रहा था. मैं दीदी की चूत की दोनों फांकों को अलग करके उस अनछुई कुँवारी कच्ची कली को देख कर मस्त हो गया.

अब दीदी के मुंह से हल्की हल्की सिसकारियां निकालनी शुरू हो गयीं थीं।

मैंने दीदी से कहा " ओ मेरी प्यारी दीदी, आज तुमने जो मेरे साथ किया है वो शायद मेरी सगी बहन भी नहीं करती, क्या शानदार चूचियां है तुम्हारी, बिल्कुल बड़े बड़े नागपुरी संतरे की तरह, और चूत… वो तो लाज़बाब है, क्या मस्त हल्के हल्के रोंयेदार चूत है आपकी" -मै दीदी की चूत को सहलाते हुए बोला

"ये बहुत गलत बात है कि तूने मुझे तो बिल्कुल नंगा कर दिया और तू अभी तक अंडरविअर पहने है" दीदी ने शोख आवाज़ में गहरी सांसों के साथ जैसे मेरे मन की बात कह दी

"सॉरी दीदी, मै आपकी मस्त मस्त चूत और शानदार चूचियों में भूल गया" -यह कह कर मैंने फटाक से अंडरवियर उतार कर फ़ेंक दिया। जैसे ही लंड आज़ाद हुआ वह भी फनफना के खडा हो गया।

"हाय अल्ला, कित्ता मोटा और बड़ा लंड है तेरा" -दीदी मेरे लंड को देखकर आश्चर्य से बोली।

"अरे दीदी, हाथ में लेके इत्मीनान से देखो ना, वैसे और किस किस के लंड आपने देखे है" -मैंने दीदी के हाथ में अपना लंड थमाते हुए शरारत से पूछा

"धत बेशरम, वो तो कभी कभी किसी किसी का सड़क के किनारे पेशाब करते चुपचाप लंड देखा है या फिर एक दो बार अब्बू का देखा था, छूकर तो आज पहली बार देख रही हूँ" -दीदी ने शरमाते हुए बताया

"जी भर के देखो मेरी प्यारी दीदी , आखिर तुम भी तो मुझे अपनी चूत और चूचियों से मज़ा लेने दे रही हो तो भाई होने के नाते मेरा भी तो कोई फ़र्ज़ बनता है " मैंने उनकी मलाईदार चूत को सहलाते हुए कहा। 

मै समझ चुका था कि दीदी अब पूरी तरह से गरम हो चुकी है और अब मुझे सिर्फ उनकी चूत को चुदने के लिए तैयार करना था। सो मैने दीदी के होंठो को चूसते हुए उन्हें अपने सीने से कस कर चिपका लिया और लंड को उनकी चूत के ऊपर रगड़ने लगा।

"मेरी प्यारी दीदी, तुम मेरा लंड चूसना पसंद करोगी क्या?" -मैंने दीदी से पूछा

"आज मै सब पसंद करुंगी मेरे भाई, आज तो तूने मेरी सारी मन की मुरादे पूरी कर दी मेरे राजा" -दीदी कामुक अंदाज़ में बोली

"ज़रा मुझे भी तो बताओ मेरी प्यारी दीदी, तुम्हारी क्या क्या मन की मुरादे है" -मैंने दीदी को चुदने के लिए तैयार करते हुए कहा

"हर लडकी एक उमर के बाद यह सब करना चाहती है जो तू मेरे साथ कर रहा है" -दीदी बोली।

दीदी शायद अभी भी थोडा शरम की वजह से यह नहीं कह पा रहीं थीं कि वो चुदासी है व चाहती है कि मै अपना लंड उनकी चूत में पेल कर उन्हें खूब चोदूं लेकिन मै उनके बिना कहे ही सारी बात समझ गया। मै उठ कर दीदी की चूत के ऊपर मुंह करके उल्टा लेट गया अब मेरा लंड दीदी के होंठो को छू रहा था।

"लो दीदी, अब मै आपकी चूत चूसूंगा और आप मेरा लंड चूसो" -यह कह कर मैंने दीदी की चूत में उंगली करते हुए उनकी फुद्दी को चूसना शुरू कर दिया। दीदी ने भी मेरे लंड को मुठ्ठी में लेकर सटासट चूसना शुरू कर दिया।

contd....
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#24
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#25
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दीदी अब फुल मस्ती में आ चुकी थी वह उचक उचक कर अपनी फुद्दी चुसवा रही थी। मैं दीदी की फुद्दी को चूसते हुए अपनी बीच वाली उंगली को उनकी पानी छोड़ती चूत में अंदर बाहर करता जा रहा था, अचानक मैने वही गीली उंगली धीरे से उनकी गाँड़ में घुसा दी.

दीदी ने एक झटके से अपने चूतड़ ऊपर उचका कर मेरा लॅंड अपने मुँह से निकाल दिया और कहा, "सीस्स... नहीं... सग़ीर... वहाँ नहीं... दर्द हो रहा है"

मैने उंगली गाँ ड़ से बाहर नहीं निकाली लेकिन वहीं रोक कर अपनी जीभ से उनकी चूत को कुरेदने लगा।

अब तो दीदी की हालत ख़राब होने लगी, वो गाँड़ में घुसी उंगली को भूल कर अपने चूतड़ बार बार ऊपर उचकाने लगीं। दीदी अपनी चूत पर मेरे हाथों को महसूस करके मचल उठीं, उनकी नाक से गरम गरम साँसे निकलने लगीं, इसके चलते उनकी चूचियाँ ऊपर नीचे हो रहीं थीं। 

तभी मैने अपना मुँह उनकी जलती हुई चूत पर रख दिया। अपने भाई की जीभ को अपनी चूत पर रेंगता महसूस करके उनकी चीख निकल गई, उनका बदन बुरी तरह जल रहा था. वो दोनों हाथों से अपनी चूचियों को मसलते हुए अपने चूतड़ झटकने लगीं।

मैं भी अपनी दीदी की गांड की गोलाइयों को दबोचे अपने मुँह को चूत में घुसाके अपनी प्यास बुझाने में लगा था, मैं बुरी तरह से अपनी दीदी की चूत को चूसे जा रहा था।

दीदी की सिसकारियां बढ़ती जा रही थी, उनकी चूत आग उगल रही थी, उन्होने अपनी जांघो से मेरा सिर अपनी चूत पर दवा लिया और दोनों हाथो से जोर जोर से अपनी चूचिया मसलने लगी वो मेरे सिर को अपनी चूत में दबाये निचे से चूतड़ उछालने लगी उनकी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी वो बेदर्दी से मेरा मुँह चोद रहीं थीं।

मैं भी अपनी दीदी की चूत को दीवानो के तरह खाये जा रहा था मैं जोर जोर से अपनी जीभ को चूत के अंदर बहार कर रहा था, दीदी की जाँघे उस के मुँह और नाक को अपनी चूत में घुसाए जा रही थी, वो अपने चरम पर पहुंचने वाली थी, वो बहुत जोर जोर से अपने चूतड़ उछाले जा रही थी, उनकी चीखों से कमरा गूँज रहा था,

"आहा... सग़ीर... मेरी जान... ऐसे ही चूस अपनी बहन की चूत को... खा जा इसे... बहुत आग लगी रहती है इसमें मेरे भैय्या... और चाट इसे... बहुत मस्त चाटता है तू तो" -दीदी मस्ती में मेरे लॅंड को चाटतीं चूसतीं बड़बड़ा रहीं थीं।

अचानक दीदी पूरी ताक़त से चूतड़ उचकाते हुए सिसकारीं, "आह मेरी जान... मैं गई..." यह कह कर उनकी चूत ने चूतरस को मेरे मुँह में छोड़ना चालू कर दिया, वो हलके हलके झटके खाती मेरे मुँह में अपनी चूत का माल छोड़ने लगी।

मैं पूरी लगन के साथ अपनी दीदी के चूत के माल को चाटता जा रहा था, मेरी दीदी की चूत से निकलते नमकीन कसैले माल को पीने से मेरी वासना दुगनी हो गई थी।

मैं भी बहुत देर से अपने पर कंट्रोल किए था पर दीदी की चूत का रस पीते हुए मुझे लगा मेरी ट्रेन भी प्लेटफार्म पर पहुँचने वाली है।

"ओ... मेरी... जान... मैं भी... आ... रहा... हूँ..." -यह कह कर मैने अपना लॅंड दीदी के मुँह में गले तक पेल दिया।

'गों...गों...' करते हुए दीदी ने मेरी कमर को पीछे पूरी ताक़त से धकेला, उनकी सांस रुकने लगी थी। अचानक मेरे लॅंड से पिचकारी निकलनी शुरू हो गईं जिसे दीदी ने एक बूँद भी बर्बाद नहीं जाने दिया। हम दोनों ने ही पानी तुरंत ही चाट लिया।

थोड़ी देर बाद मैंने दीदी के बगल में लेट कर उनकी चूचियां मसलते हुए कहा ,"वाह दीदी, कसम से ऐसा मज़ा ज़िंदगी में कभी नहीं मिला, तुम्हारा हुस्न लाज़बाब है मेरी दीदी"

"तू भी तो कुछ कम नहीं मेरे शैतान भाई और तेरा लंड तो वाकई बहुत ही शानदार है, ऐसा लंड तो अब्बू का भी नहीं है, मैंने एक बार चुपके से उनको अम्मी को चोदते देखा था"

दीदी अब पूरी तरह से मेरे साथ खुल के बात कर रही थी सो मैंने भी उनको चुदने के लिए तैयार करने की गरज से उनकी चूचियों को मसलते हुए कहा, "और क्या देखा तुमने दीदी?"

" कुछ नहीं मै रात को पेशाब करने के लिए उठी तो देखा कि अम्मी के कमरे की लाइट जल रही है व दरवाजा थोड़ा सा खुला है, मैंने जब झाँका तो देखा कि अब्बू अम्मी की सलवार का नाडा खोल रहे थे। मै चुपचाप देखती रही, उन्होंने फिर अम्मी का कुरता भी उतार कर उन्हें बिल्कुल नंगा कर दिया, अम्मी ने भी अब्बू की लुंगी और बाकी के कपडे उतार कर उन्हें नंगा कर दिया उस वक़्त मैंने अब्बू का लंड देखा था, इस उमर में भी बिल्कुल काले नाग की तरह फुँफकार रहा था उस वक़्त मुझे वो सबसे मस्त लंड लगा था क्योंकि मूतते हुए लोगों के लंड ढीले ढाले होते थे, ये तो पूरी तौर से टनटनाता हुआ खड़ा था, इस हालत में लंड मैंने पहली बार ही देखा था, उस वक़्त मुझे लगा कि अब्बू का ये छह इंची लंड ही सबसे मस्त है लेकिन तेरा लंड तो उनके भी लंड से कहीं ज्यादा मोटा और लम्बा है" -दीदी ने मेरे लंड को सहलाते हुए बताया।

"और क्या देखा दीदी , पूरी बात बताओ ना" -मैंने उनकी चूचियों को मसलते हुए पूछा

"अब्बू ने अम्मी को बेड पर घोड़ी की तरह खड़ा करके उनके पीछे से चूत पर अपना लंड टिका कर एक झटके में पेल दिया और अम्मी की कमर थाम के सटासट अपना लंड अम्मी की चूत में अन्दर बाहर करते हुए चोदने लगे" -दीदी फुल बेशर्मी के साथ अपनी अम्मी की चुदाई की दास्तान बताती बोली।

मैंने देखा कि मेरा लंड फिर से फनफनाने लगा था सो मैंने दीदी की चूत को सहला कर देखा कि वो भी पनीली हो रही है। अतः मैंने दीदी को चोदने की गरज से कहा ,"इसका मतलब मामी को चुदने में बहुत मज़ा आ रहा होगा"

"और नहीं तो क्या, चूत को तो वैसे भी एक अदद लंड की हमेशा चाहत रहती है" -दीदी मेरे चूत रगड़ने से मस्त होते हुए कमर हिलती हुयी बोली।

" तो दीदी, इसका मतलब तुम्हारी चूत भी लंड की चाहत रखती होगी, अगर हाँ तो मेरा लंड क्या तुम्हे पसंद नहीं आया, कसम से दीदी एक बार आज़मा के तो देखो, मामू से भी ज्यादा ढंग से मस्त बना दूंगा" -मैंने अपने लंड को दीदी की चूत पर कसके रगड़ते हुए कहा।

"तूने तो मेरे मन की बात ही छीन ली पगले, जबसे तेरे लंड के मेरी चूत ने दीदार किये है वो चुदने के लिए बेकरार हुई जा रही है" -दीदी मस्त होते हुए बोली "आज तू इसे ज़रा जम के चोद दे मेरे भैय्या, ये मेरी चूत पता नहीं कब से तेरे ही जैसे लंड के लिए तड़प रही है"

"क्यों नहीं दीदी, एक भाई का लंड अगर अपनी बहन की चूत की प्यास भी नहीं बुझा सकता तो लानत है ऐसे भाई और उसके लंड पर" -मैंने दीदी की चूचियों को मसलते हुए कहा "पर एक बात सच सच बताओ दीदी, क्या पूरे लुधियाने में तुम्हे आज तक कोई ऐसा लंड नहीं मिला जो तुम्हारी चूत की खुजली मिटा सके"

" अब्बू के डर से आज तक सिर्फ उंगली से ही काम चलाया है, वो खुद तो रोज़ रोज़ अम्मी की चूत में अपना लंड पेल के पूरा मज़ा लेते है और मेरे बारे में बिलकुल भी नहीं सोचते कि आखिर ये भी एक चूतवाली है और इसका भी किसी लंड से चुदवाने का मन होता होगा " दीदी भुनभुनाते हुए बोली

" कोई बात नहीं दीदी, आज मै सारी कसर पूरी कर दूंगा , वो जम के तुम्हारी चूत को अपने इस लंड से चोदूंगा कि तुम ताउम्र याद रक्खोगी" मैंने दीदी के रसीले होंठो को चूमते हुए कहा।

मेरे लॅंड की सारी नसें बुरी तरह से तनी हुईं थीं, सुपाड़ा किसी लाल टमाटर जैसा रक्खा था, बर्दाश्त अब दो में से किसी को नहीं था. मेरे पास ज़्यादा समय नहीं था, मुझे जो कुछ करना था अभी ही करना था वरना फिर यह मौका दोबारा नहीं आना था। मैंने दीदी को टाँगे पेट की तरफ मोड़ कर पूरी तरह से फ़ैलाने को कहा, दीदी ने तुरंत आज्ञा का पालन करते हुए अपनी टाँगे फैला दी।

अब जैसे दीदी की चूत मेरे लंड को चोदने का खुला निमंत्रण दे रही थी। मैंने दीदी की चूत पर अपने लंड का सुपाडा टिका कर कस के उनके कंधे पकड़ लिए और एक ही धक्के में अपना आधा लंड दीदी की पानी छोड़ती चूत में ठांस दिया।

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#26
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#27
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#28
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“ओ... अम्म्म...मी... मार डाला...., बहुत दर्द ... हो रहा है... लगता है... फट गई...ओ सग़ीर... मेरे... भाई.... निकाल ले बाहर... मुझे... नहीं... चुदवाना अपनी चूत को..." -दीदी की आँखों से आँसू बहने लगे, वो पूरी ताक़त से मुझे पीछे धकेल रहीं थीं।

मैने अपने आधे लॅंड को दीदी की चूत में वहीं फँसा रहने दिया क्योंकि इस समय का निकाला गया लॅंड दोबारा चूत में नहीं जाता।

"यह सिर्फ पहली बार होता है दीदी, उसके बाद तुम्हे भी मामी की तरह भरपूर मज़ा आयेगा, बस सिर्फ कुछ धक्के बर्दाश्त कर लो मेरी प्यारी दीदी, फिर तुम देखना कितना मज़ा आता है" -मै दीदी को सांत्वना देता हुआ बोला,

इसी के साथ मैने उनकी चूचियों को बारी बारी मुँह में लेकर चुभलाना शुरू कर दिया, एक दो मिनट इसी तरह करने के बाद दीदी के मुँह से सिसकारी निकलने लगीं "आहह... सग़ीर... मेरे भाई... हाँ ... ऐसे ही... और चूसो..." साथ ही उन्होने नीचे से कमर भी हिलाना शुरू कर दिया।

मैं समझ गया था कि अब ट्रिक से काम लेना होगा, मैने सुपाड़े तक लॅंड को बाहर खींचा और फिर उतना ही चूत में पेल दिया, पाँच छ: शॉट आधे लॅंड से धीरे धीरे लगा कर फिर मैने थोड़ा थोड़ा लॅंड बढ़ाना शुरू कर दिया क्योंकि चूत भी रसीली हो चुकी थी। दीदी अब पूरे जोश में आ चुकीं थीं।

मज़ा मुझे भी बहुत आ रहा था। दीदी की चूत बहुत ही टाइट थी अगर दीदी की चूत मेरे हलब्बी लॅंड से फट रही थी तो मेरे लॅंड में भी जलन होने लगी थी परंतु दीदी जैसी हसीन और ताज़ातरीन मस्त चूत के आगे मैं अपनी जलन भूल गया था, उसी मज़े मज़े में अचानक मैने कस कर शॉट मारते हुए अपना लॅंड दीदी की चूत में  पूरा पेल दिया। 

मेरा पूरा लंड दीदी की चूत में चरचराता हुआ जड़ तक पहुँच गया था। मेरे लॅंड ने सीधा दीदी की झिल्ली फाड़ते हुए बच्चेदानी पर जाकर ठोकर मार दी थी। हर ठोकर के साथ दीदी की चूत से ख़ून निकल कर उनकी गाँड़ के छेद को तर करता हुआ बेडशीट में जज़्ब हो रहा था।

"हाय अल्ला, मर... गई... मर... गई... ओ... अम्मी... पूरी चूत... फाड़ दी... अपने इस मूसल लॅंड से... कुछ तो रहम कर... आख़िर मैं तेरी बहन हूँ कमीने... कितनी बेदर्दी से तू चोद रहा है... मुझे नहीं चुदवाना... बाहर निकाल अपने इस लॅंड को... मैं तेरे हाथ जोड़ती हूँ..." -दीदी ने गिडगिडाते हुए कहा- "पता नहीं अम्मी कैसे अब्बू से मज़े ले ले के चुदवाती हैं"

दीदी बुरी तरह छटपटाते हुए चीख रहीं थीं, मुझे किसी और का तो नहीं पर रज़िया का ज़रूर डर था सो मैंने कस कर दीदी का मुंह बंद करते हुए रुकना मुनासिब नहीं समझा और सटासट उनकी चूत में अपने लॅंड को ठोंकना शुरू कर दिया।

दीदी पूरी ताक़त लगा कर अपने मुँह से मेरा हाथ हटाना चाह रहीं थीं पर शाम से सब्र करते करते अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था। मैं पूरी ताक़त से उन्हें चोद रहा था।

दीदी के मुँह से अब कोई आवाज़ नहीं आ रही थी, उन्होने अपनी टाँगें उठा कर पूरी तौर से फैला लीं थीं जिससे मेरा लॅंड उनकी चूत में जड़ तक जाकर ठोकर मार रहा था।

अब मुझे लगा कि शायद दीदी चिल्लाएँगीं नहीं तो मैने उनके मुँह से हाथ हटाते हुए पूछा, "अब कैसा लग रहा है दीदी " मेरा लंड बराबर उनकी चूत को चोदे जा रहा था।

"अब तो कुछ ठीक है… पर उस वक़्त तो ऐसा लगा कि… जान ही निकल गयी… , आ s s s s ह मेरे भैय्या… और चोदो… सही में अब तो बड़ा मज़ा आ रहा है…" -दीदी सिसकारियां लेते हुए बोली।

"चिंता मत करो दीदी, आज मै तुम्हारी चूत की सारी की सारी खुजली मिटा दूंगा" -ये कहते हुए मैंने चोदने की स्पीड और बढा दी।

अब मै अपने लंड को दीदी की चूत में फुल स्पीड से अन्दर बाहर कर रहा था। दीदी भी पूरी मस्ती के साथ अपनी चूत उठा उठा के मेरे लंड से चुदाई का भरपूर मज़ा ले रही थी। अचानक दीदी का शरीर थोडा तन के ढीला पड़ गया और मुझे अपने लंड पर गरम गरम महसूस होने लगा, मै समझ गया कि दीदी झड गयी।

मैं अब अपनी दीदी की चूत में जोर जोर से लण्ड पेल रहा था दीदी भी सिसकारियां भरती जोर जोर से अपने चूतड़ उछाले जा रही थी, दोनों जवान जिस्म एक दूसरे में समाते जा रहे थे, दोनों भाई बहिन आग उगलती सांसो के साथ एक दूसरे के शरीर को भोगे जा रहे थे, दोनों के मुँह से कामुक सिसकारियां निकल रही थी। 

चुदाई की थापो और फच्च... फच्च की आवाज़ से पूरा कमरा गूंज रहा था, दोनों बदन पसीना पसीना हो रहे थे, मैं दीदी की चूचियों को मसलता हुआ जोर जोर से चोदे जा रहा था।

मेरी रेलगाड़ी भी अब प्लेटफार्म पर लगने वाली थी। मैं अब उन्हें पूरी ताक़त से चोद रहा था।

अचानक मैंने एक करारा झटका मार कर अपना पूरा लण्ड दीदी की चूत में ठांस कर रोक दिया। मेरा सुपाड़ा दीदी की बच्चेदानी पर टिक गया था और एक के बाद दूसरी लंबी पिचकारी से दीदी की जवान बच्चेदानी का घड़ा उनके छोटे भाई की सफेद मलाई से भरने लगा।

जब मेरा पूरा रस दीदी की बच्चेदानी में समा गया तब जाकर मैंने उनके गरम जिस्म को अपनी गिरफ्त से आज़ाद किया। मैं खुद दीदी के ऊपर लेट गया और अपनी सांसें संभालने लगा।

मेरा लम्बा मोटा लंड जो कुछ देर पहले शेर की तरह दहाड़ रहा था, अब मुर्दा सा होकर, सिकुड़ कर दीदी की चूत से बाहर आ गया। हम दोनों ही एक दूसरे की बांहों में हांफते हुए लाइट जलती हुई छोड़ कर नंगे ही कब सो गए हमें पता ही नहीं चला।

अचानक कमरे के दरवाजे पर खटका सा हुआ…

चूँकि मै निश्चिंत होकर सो रहा था क्योंकि घर में कोई था ही नहीं सिर्फ रज़िया को छोड़ कर, वह भी ऊपर पढाई कर रही थी सो मैंने आँखों में हल्की सी झिर्री बना कर दरवाजे की तरफ देखा तो मेरी तो गांड ही फट गयी क्योंकि दरवाजे में रज़िया खड़ी हम लोगों को इस अवस्था में देख रही थी। 

हम दोनों ही पूरी तरह नंगे एक दूसरे से चिपके लेटे थे , दीदी ने एक हाथ से मेरा लंड थामा हुआ था और मेरे एक बाजू पर सर रख कर आराम से सो रही थीं और मेरा एक हाथ उनकी मस्त दूधिया चूचियों पर था। ऐसी हालत में रज़िया हम लोगों को दरवाजे में खडी देख रही थी। 

मै सोच रहा था कि अब यह सबको बता देगी कि रात में जब यह ऊपर पढाई कर रही थी तो नीचे मैंने दीदी को किस तरह से चोदा। मेरी अम्मी और अब्बू को ज़ब यह पता चलेगा तो वह बिना थूक लगाये ही मेरी गांड मार लेंगे।

इन सारी बातों से बचने का सिर्फ एक ही रास्ता था कि मै रज़िया की कुंवारी चूत में भी अपना लंड पेल के उसको भी दीदी की तरह चोद देता लेकिन रज़िया को पटाना बहुत ही मुश्किल लग रहा था हालाँकि उसकी चूत पूरी तरह से चुदने के लायक हो चुकी थी परन्तु उसकी किसी भी हरकत से ऐसा नहीं लग रहा था कि वह अपनी चूत को चुदवाने की इच्छा रखती है।

तभी रज़िया दरवाजे से हटकर किचिन में चली गयी और थोड़ी देर बाद उसके सीढियों से ऊपर जाने की आवाज़ आयी। मेरी आँखों से नींद कोसों दूर जा चुकी थी व कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाय। आखिर में मैंने सब कुछ ऊपर वाले पर छोड़ दिया कि दीदी को तो मै चोद ही चुका हूँ अब ‘जो कुछ भी होगा देखा जाएगा’

तभी दीदी ने सोते में मेरे लंड को अपनी मुठ्ठी में दो तीन बार ऊपर नीचे करके बडबडाया ,"ओ सग़ीर! ज़रा कस के चोदो ना , फाड़ के रख दो अपनी दीदी की चूत को , पता नहीं कब से ये तुम्हारे जैसे लंड के लिए तरस रही थी" यह कह कर दीदी ने अपनी एक टांग उठा कर मेरी टांग पर रख ली और दो तीन बार मेरी जांघ से अपनी चूत को रगड़ दिया। दीदी शायद सोते में भी अपनी चुदाई का सपना देख रहीं थीं।

CONTD....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#29
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चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#30
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चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#31
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चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
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#32
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DIDI KI CHUDAI
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#33
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यह सब देख कर सारी टेंशन भूल कर मेरा लंड फिर से अंगड़ाई लेने लगा। मैंने धीरे से थोड़ी सी करवट लेकर अपने हाथ से दीदी की मक्खन मलाई जैसी गांड को मसलना शुरू कर दिया। अब मेरा लंड पूरी तरह खड़ा हो चुका था , मैंने दीदी का हाथ अपने लंड से हटा कर अपने गले में डाल लिया और पूरी तरह से करवट लेकर अपना लंड उनके दोनों जांघों के जोड़ पर टिका कर रगड़ना शुरू कर दिया। 

दीदी को भी हौले हौले मज़ा आने लगा था सो उन्होंने एक टांग उठा कर मेरी कमर पर चढ़ा ली। अब मेरे लंड को चूत के पूरी तरह से नज़ारे हो गए। मैंने अपने लंड को दीदी की चूत पर टिका कर सुपाडे को चूत में अन्दर बाहर करने लगा। 

मैंने दीदी के रसीले होंठो को चूसते हुए अपनी जीभ दीदी के मुंह में डाल दी , अब दीदी की चूत भी पनीली हो चुकी थी उन्होंने धीरे से आँखे खोलते हुए मेरी जीभ को लोलीपॉप की तरह चूसना शुरू कर दिया। मेरा लंड अब दीदी की चूत को फिर से चोदने के लिए पूरी तरह से तैयार था। 

दीदी भी अपनी चूत को चुदवाने के लिए बेताब नज़र आ रही थी। मैंने भी देर न करते हुए दीदी को अबकी बार घोड़ी बना कर खडा कर दिया और उनके पीछे की तरफ जाकर पनीली चूत पर लंड को टिका कर एक झटके में ठांस दिया। साथ ही उनके चूतरस में अपना अंगूठा गीला करके उनकी गांड में करने लगा।

"अरे बहनचोद! आज तो मज़ा आ गया, चोद मेरे भैय्या और जम के चोद अपनी दीदी की चूत को, फाड़ के रख दे आज तू, अगर मुझे पता होता कि तू मेरी चूत में अपने इस शानदार लंड को ठांसना चाहता है तो मै पहले ही तुझसे चुदवा लेती, पता नहीं कब से मेरी चूत लंड की प्यासी थी मेरे राजा ... आआआह चोद खूब चोद आज तू" -दीदी मस्ती में बडबडाई।

मेरा लंड दीदी की चूत को धकाधक चोद रहा था। थोड़ी देर में अंगूठा आराम से गांड में अंदर बाहर होने लगा तो मैंने दो उंगली घुमाते हुए अंदर बाहर करनी शुरू कर दीं। जिससे उनकी गांड का छेद थोड़ा ढीला हो गया था फिर मैंने दीदी की चूत से लंड को बाहर खींच लिया।

"क्या हुआ बहनचोद! लंड क्यूं बहार निकाल लिया।" दीदी थोडा गुस्से से बोली।

"अरे कुछ नहीं दीदी, ज़रा तुम्हारे दूसरे छेद को ट्राई करने का दिल कर रहा है, तुम बस चुपचाप मज़े लेती रहो” -मैंने दीदी की गांड को थूक से गीला करते हुए कहा।

"क्या बोला भोसड़ी के! तू मेरी गांड मारेगा , नहीं नहीं तेरा ये हलब्बी लंड मेरी गांड बर्दाश्त नहीं कर पायेगी, तू चूत में पेल ना, अब तुझे क्या मेरी चूत में मज़ा नहीं आ रहा है” -दीदी ने अपनी गांड को थोड़ा सा उंचा करके मेरे लंड को दोबारा अपनी चूत में लेने की कोशिश करते हुए कहा।

"तुम बस चुपचाप घोड़ी बनी पिलवाती रहो दीदी और देखती जाओ मै तुम्हे कैसे कैसे मज़े दिलवाता हूँ " -मैंने दीदी की गांड पर अपने लंड का सुपाडा टिकाते हुए कहा। 

मै जानता था कि चूत और गांड बिलकुल डिफरेंट होतीं है सो मैंने दीदी की कमर को कसके पकड़ के अपने तकरीबन एक चौथाई लंड को गांड में ठांस दिया।

"हाय हाय मार डाला इस बहनचोद ने" -यह कह कर दीदी बेड पर उल्टी ही लेट गयी। मैंने भी झट से दीदी की कमर को छोड़ कर उनकी बगल में हाथ डाल कर कंधे जकड लिए और अपने पैरों से उनकी टांगों को चौड़ा कर फैला दिया लेकिन इस उठापटक में मेरा लंड दीदी की गांड से बाहर निकल गया।

"प्लीज! मेरी गांड मत मार, बहुत दर्द हो रहा है... तू मेरी चूत क्यों नहीं मारता है बहनचोद" -दीदी गिडगिडाते हुए बोली लेकिन मेरा लंड दीदी की फुल टायट गांड में जाकर दुबारा घुसने के लिए बुरी तरह फनफना रहा था और दीदी बुरी तरह से जकड़ी मेरे नीचे बेबस भी थी सो मैंने उनकी चीखों पर ध्यान न देते हुए अपने लंड पर थूक लगाकर फिर से उनकी गांड पर टिका कर अबकी बार एक झटके में तकरीबन आधा ठांस दिया।

"हाय हाय कोई मुझे इस बहन के लौड़े से बचाओ, कमीने मेरी गांड फट गयी है मादरचोद, अब तो छोड़ दे" -दीदी मेरे नीचे फडफड़ाने की कोशिश करते हुए चिल्लाई। 

मै तो जैसे बहरा हो गया था। ये मौक़ा मुद्दत बाद मेरे हाथ आया था जिसे मै किसी भी कीमत पर गवां नहीं सकता था सो मैंने उसी पोजीशन में थोड़ी सी कमर उचका कर एक कस के धक्का मार कर पूरा का पूरा लंड दीदी की गांड में ठांस दिया।

"हाय अल्ला , मर गयी ... अरे मादरचोद छोड़ दे, मेरी गांड बुरी तरह से फट गयी है ... ऐसा लग रहा है कि गांड में किसी ने पूरा का पूरा भाला घुसा दिया है ... छोड़ दे बहनचोद ... छोड़ दे" -दीदी अब बुरी तरह से बिलबिला रही थी लेकिन मै जानता था कि उनकी चीखें सुनने वाला वहां कोई नहीं था फिर भी मैने ऐतिहातन एक हाथ से उनके मुँह को दबा कर उनकी गांड मार रहा था।

अब दीदी की गांड पूरी तरह से रवां हो चुकी थी सो वह अब शांत होकर गांड मरवा रही थी। फिर मैंने दीदी की गांड से लंड को बाहर निकाल लिया और उन्हें चित्त लिटा कर उनकी चूत में फिर से पेल दिया। 

दीदी की चूत गांड मरने से भकाभक पानी फ़ेंक रही थी सो मैंने अपने लंड को निकाल कर अपना लंड और उनकी चूत को ढंग से पास पडी नाइटी से पोंछ लिया। अब मैंने दुबारा अपने फनफनाते लंड का सुपाडा दीदी की चूत पर टिका कर एक झटके में पूरा का पूरा लंड जड़ तक ठांस दिया।

"हाय हाय कुत्ते !! आज क्या तू मेरे सारे छेद फाड़ कर ही दम लेगा कमीने ... मादरचोद ... भोसड़ी के ... मुझसे क्या दुश्मनी है जो इतनी बेरहमी से ठोंक रहा है, भले ही मैं सगी नहीं पर हूँ तो तेरी बहन ही" -दीदी फिर से चिल्लाई।

"चिंता मत कर मेरी रानी दीदी ... आज तेरे सारे छेद रवां हो जायेंगे ... तेरी सारी की सारी खुजली मिटा दूंगा" -मैंने दीदी की रसीली मस्त मस्त चूचियों को कस कस के मसलते हुए उनकी चूत की पटरी पर अपने लंड की रेलगाड़ी दौडाते हुए कहा।

"आआआआआह बहनचोद! आज तो तूने वाकई सारे नट बोल्ट ढीले कर दिए कमीने... ऒऒऒओह ... आआआआआह ... हा s s य ... हाआआआय" -कहते हुए दीदी का शरीर अचानक तन कर ढीला पड़ गया, मेरे लंड पर दीदी की चूत ने गरमागरम पानी छोड़ दिया। 

मेरा लंड भी अब फुल स्पीड से दीदी की चूत में अन्दर बाहर हो रहा था , उनकी चूत से पानी रिस रिस कर उनकी गांड के चौड़े छेद में जा रहा था।

पूरे कमरे में सिर्फ फच्च फच्च और मीठी मीठी सिसकियों की आवाज़ें गूंज रहीं थीं। मुझे अब रज़िया की तरफ से भी कोई टेंशन नहीं थी क्योंकि उसे जो देखना था वह देख ही चुकी थी। वह अच्छी तरह से समझ गई थी कि दीदी कि कायदे से जमकर चुदाई हुई है। अब बस उसका कुछ इंतज़ाम करना था इसलिए मैं निश्चिंत होकर दीदी को भकाभक चोद रहा था।

मुझे भी अब अपना स्टेशन नज़र आ गया था सो मेरे लंड ने दीदी की चूत में गाढ़ा गाढ़ा वीर्य छोड़ दिया। अब हम दोनों ही बुरी तरह से थक कर चूर हो चुके थे। हम दोनों एक दूसरे की बांहों में पड़े हांफ रहे थे फिर कब हम दोनों उसी पोजीशन में सो गए ये पता ही नहीं चला।

हमेशा की तरह सुबह तकरीबन साढ़े छः बजे मेरी आँख खुली तो मैंने देखा दीदी बेड पर हाथ ऊपर को किये टाँगे फैलाये सो रही थी। उनकी बड़ी बड़ी गुलाबी मस्त चूचियां उन्नत पर्वत शिखरों सी मुझे ललकारती लग रहीं थीं। मैंने उठ कर उनकी चूत को इस वक़्त ध्यान से देखा तब पता चला कि रात में जो मैंने बुरी तरह से चोदा था इस वज़ह से वह सूज गयी थी व चारों तरफ खून निकल कर सूख कर चिपका था, थोडा नीचे झुक के देखने पर पता चला कि गांड का छेद अभी तक चौड़ा था।

फिर मैंने अपने लंड पर एक निगाह डाली जो रात की कुश्ती के बाद अब मस्त होकर शांत पड़ा था। मैंने चारों तरफ देखा , हर तरफ सन्नाटा था जिसका मतलब था कि रज़िया अभी तक नीचे नहीं आयी थी। 

मैंने सोच लिया था कि इस रज़िया नाम की मुसीबत का कोई ना कोई हल तो ढूँढना ही पड़ेगा। मैं धीरे से दीदी के बालों को सहलाते हुए उनके होठों को चूसने लगा। दीदी ने कराहते हुए धीरे से आँखे खोल दीं। 

"अब उठ जाओ दीदी , सुबह हो चुकी है। कभी भी कोई आ सकता है"

दीदी भी सारी बात समझते हुए बिना देर लगाए एक झटके में उठ कर बेड से उतर गयीं। जैसे ही उन्होंने बेड से ज़मीन पर पैर रक्खे उनके मुंह से एक चीख सी निकल गयी,
"हाय अल्ला s s s s s s मर गयी" -कहते हुए दीदी फिर से बेड पर धम्म से बैठ गई।

"क्या हुआ दीदी ! सब ठीक तो है" -मैंने दीदी के नंगे बदन को सहलाते हुए पूछा

"क्या खाक़ ठीक है, कमीने पूरी रात चोद चोद के सारे दरवाजे खिड़कियाँ सब तोड़ डाले, कोई भी छेद नहीं छोड़ा तूने हरामी जिसमे अपना लंड न पेला हो और अब पूछता है क्या हुआ दीदी" -दीदी गुस्से और दर्द से भिन्नाते हुए बोली।

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#34
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"अरे दीदी! रात गयी बात गयी और फिर मज़ा तो तुमने भी पूरा लिया था, कुछ पाने के लिए कुछ तो खोना ही पड़ता है पर तुम चिंता मत करो मै अभी तुम्हे नाश्ते के बाद दवा लाकर दे दूंगा जिससे दो खुराकों में ही तुम रात तक बिल्कुल ठीक हो जाओगी। अब फ़टाफ़ट नहा धोकर तैयार हो जाओ कहीं रज़िया नीचे ना आ जाये और फिर हमें अस्पताल भी तो जाना है" -मैंने दीदी को समझाया

"रज़िया तो आठ बजे से पहले नीचे नहीं आयेगी लेकिन हाँ हमें जल्दी से अस्पताल के लिए तैयार हो जाना चाहिए" -दीदी ने कहा

किसी तरह से दर्द को बर्दाश्त करते हुए दीदी उठ कर खड़ी हुई और नंगी ही बाथरूम की तरफ चल दी। पूरी रात चुदने के बाद अब उसमें किसी भी तरह की शर्म या हया बाकी नहीं बची थी। उसकी टाँगे v शेप में ज़मीन पर पड़ रहीं थीं , उसने अपने निचले होंठ को दाँतों से कस कर दबा रक्खा था। 

हाय हाय करते हुए किसी तरह वह बाथरूम में घुस गयी लेकिन उसने दरवाजा खुला ही छोड़ दिया था। अन्दर से छु र्र र्र र्र र र र र र की आवाज़ मुझे सुनायी दी , मै समझ गया कि अब वह पेशाब कर रही थी। मैं भी फ़टाफ़ट बेड से नीचे उतरा और अपनी बनियान व अंडरविअर ढूंढ कर पहने व ऊपर से लुंगी लपेट ली। 

तभी मेरी निगाह बेडशीट पर चली गयी जिस पर खून के ढेर सारे निशान थे। मैंने अलमारी से दूसरी बेडशीट निकाल कर तुरंत बदली और उस बेडशीट को वाशिंग मशीन में डाल कर ब्लीच और सर्फ़ मिला के मशीन ऑन कर दी। 

तभी दीदी ने बाथरूम से आवाज़ लगाई- "अरे सग़ीर! ज़रा तौलिया तो देना" 

मै तौलिया लेकर बाथरूम में पहुँचा, मैंने देखा दीदी नहा धोकर नंगी खडी थी। पूरी रात ढंग से चुदने के बाद सुबह नहा कर उनका हुस्न और निखर आया था लेकिन मैंने अपने अन्दर के ज़ज्बातों को दबाते हुए उन्हें तौलिया देकर कहा- "दीदी! रात में एक गड़बड़ हो गयी है, जब हम तुम चुदाई करके सो रहे थे तो रज़िया नीचे शायद खाना लेने आयी थी और उसने तुम्हे मेरे बगल में नंगे लेटे देख लिया। वह समझ गयी होगी कि मैं तुम्हे चोद चुका हूँ"

"सत्यानाश! ये तो बहुत बड़ी गड़बड़ हो गयी सग़ीर, अगर उसने अब्बू को बता दिया तो वो मुझे जान से मार डालेंगे" -दीदी घबराते हुए बोली

"दीदी घबराने से काम नहीं चलेगा , हमें ठन्डे दिमाग से इस समस्या का हल ढूँढना होगा" -मैंने दीदी को समझाते हुए कहा

"लेकिन इस समस्या का आखिर क्या हल हो सकता है" -दीदी ने कपडे पहनते हुए कहा

"एक हल मेरे दिमाग में आ रहा है, अगर किसी तरह से रज़िया चुदवाने को तैयार हो जाय तो सारी प्रॉब्लम ही सोल्व हो जायेगी" -मैंने दीदी को आइडिया देते हुए कहा

"तुम्हारा दिमाग खराब हो चुका है, पहले तो शायद वह चुदने को तैयार ही नहीं होगी और अगर मान लो वो तैयार हो भी गयी तो तुम्हारे इस मूसल जैसे लंड से उसकी छोटी सी चूत का क्या हाल होगा ये सोचा है क्या?" -दीदी ने थोडा गुस्से से कहा

"अरे दीदी! कल रात तुम्हारी चूत भी तो छोटी सी थी लेकिन मेरा पूरा का पूरा लंड पिलवा पिलवा के खूब चुदी, गलत कह रहा हूँ मै?” -मैंने दीदी को समझाते हुए कहा

"हाँ हाँ, रात की चुदाई अभी तक भुगत रही हूँ, कमीने दो कदम भी चलना मुश्किल होरहा है, टाँगे फैला फैला के चल रही हूँ, चूत अभी तक सूज़ के कुप्पा रक्खी है और गांड वो तो इतना दर्द कर रही है कि लेट्रिन भी बड़ी मुश्किल से कर पाई हूँ नाशपीटे, तू बहुत ही बुरी तरह से चोदता है। रज़िया तो मर ही जायेगी तेरी इस चुदाई से, पूरे साढ़े चार साल मुझसे छोटी है" -दीदी ने रात की भड़ास निकालते हुए कहा

लेकिन मै जानता था कि बिना रज़िया को चोदे इस समस्या का हल नहीं निकलेगा सो मैंने भी किसी ना किसी तरह दीदी को पटाने की ठान ली और हम दोनों सोती हुयी रजिया को घर में ही लॉक करके अस्पताल को निकल गए।

बाइक पर बैठते ही दीदी के मुंह से 'हाय अल्ला' निकल गया। मैंने चौंक कर पूछा, "क्या हुआ दीदी?"

"होगा क्या? न चल पा रही हूँ न बैठ पा रही हूँ, चूत और गांड दोनों सूजीं रखीं हैं। इतना बेरहमी से दोनों को चोदा है तूने कि जैसे कोई रंडी को भी ऐसे ना चोदे" -दीदी कराहते हुए बोलीं

मैंने कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि मेरे पास कोई जवाब था भी नहीं, ‘उन्हें हर हाल में चोदना है क्योंकि मामी कभी भी हॉस्पिटल से वापस आ सकतीं थीं’ बस यही सोच कर मैं बिना कोई आगा पीछा देखे उन्हें चोद दिया था। परन्तु उनकी इस हालत पर अब बहुत रहम भी आ रहा था।

"अभी हॉस्पिटल से लौटते वक़्त आपके लिए दवा ले लूंगा जिससे आप शाम तक ठीक हो जायेंगीं" -मैंने उन्हें तसल्ली देते हुए कहा

अस्पताल में मामू और अम्मी हम दोनों का ही वेट कर रहे थे। जब हम दोनों वहाँ पहुँच गए तो अम्मी और मामू बारी बारी फ्रेश हो आये और हम सब ने मिल कर नाश्ता कर लिया।

"क्यों रे सग़ीर! तू यह सोच कर आया होगा कि मामू के यहाँ चल कर मौज मस्ती करेंगे लेकिन तू इस लफड़े में पड़ गया" -मामू मुझसे बोले

"अरे नहीं मामू! ये तो बाई चांस की बात है कि मामी गिर गयीं और फिर सिर्फ आज की ही तो और बात है, कल तो मामी घर पहुँच ही जायेगी। मौज मस्ती दो दिन बाद सही, कौन सी आफत आ जायेगी" -मैंने ज़बाब दिया

"अच्छा अब तुम लोग घर जाओ, रजिया भी जाग गयी होगी" -मामू ने कहा

"ठीक है मामू! अगर कोई बात हो तो अस्पताल के फ़ोन से अपने बगल वाली दुकान पर फ़ोन कर देना" -यह कह कर मै दीदी को बाइक पर बिठा कर घर की तरफ चल दिया।

रास्ते में मेडिकल से मैंने दीदी के लिए दवा खरीदी साथ ही अपनी टाइमिंग बढ़ाने वाली दवा भी ले ली। दीदी कि दवा मैंने दो चार दिन की बढ़ा कर ही ले ली थी क्योंकि अगर ऐसी हालत में आज रात में वो फिर चुदेंगीं तो रायता फैलने के पूरे चांस थे।

घर पहुँच के हमने देखा कि रजिया अभी तक नीचे नहीं उतरी है सो मैंने दीदी को दवा खाने की हिदायत दी और खुद रज़िया को देखने ऊपर की तरफ चल दिया।
ऊपर जाकर मैंने रज़िया के कमरे के दरवाजे पर नॉक करने को हाथ रक्खा लेकिन वह हल्के से धक्के से ही अपने आप खुल गया। 

मैंने अन्दर जा कर देखा तो ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की सांस नीचे रह गयी।रज़िया बेड पर करवट से एक टांग पेट की तरफ मोड़े हुए लेटी सो रही थी , इस पोजीशन में उसकी स्कर्ट पलट के कमर से जा लगी थी।रज़िया की चड्डी उसकी चूत से कसके चिपकी हुयी थी। स्कर्ट के नीचे से जांघ तो जांघ , उसकी गहरे नीले रंग की चड्डी के साथ साथ उसकी चूत की मस्त संतरे जैसी फांके क्लियर नज़र आ रहीं थीं। उसके दूधिया तरबूज जैसे चूतड़ देख कर मेरा लंड टाइट होने लगा और मेरा दिल उसकी उस वक़्त इन संतरे की फांकों जैसी चूत को चूमने को मचल उठा। 

किसी तरह अपने दिल को काबू में करके मैंने उसे धीरे से आवाज़ दी लेकिन वह उसी तरह पडी सोती रही तो मै आगे बढ़ कर उसके पास बेड पर जाकर बैठ गया और धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखकर उसको हिलाते हुए कहा, "रज़िया ! उठ जा, देख बहुत समय हो गया है"

"ऊँ ऊँ ऊँ... अभी मुझे और सोना है, पूरी रात तो पढाई करी है" -वह सोते में ही कुनमुनाई और अपने हाथ ऊपर की तरफ फैलाते हुए उसी पोजीशन में सीधी लेट गयी , उसका एक पैर का तलवा उसकी दूसरी जांघ से लगा हुआ बेड पर था कुल मिला कर उसके पैरों की पोजीशन कुछ ।> इस प्रकार थी। 

ये सब देख कर मेरे ऊपर तो बिजली ही गिर पडी। इस पोजीशन में उसकी अब हर चीज़ कपड़ों के ऊपर से भी क्लियर नज़र आ रही थी। उसके केले के पेड़ के तने जैसी चिकनी और दूधिया जांघे देख कर मेरा लंड गनगना उठा। अब मुझे कंट्रोल करना असंभव लग रहा था। 

मैंने धीरे से उसकी स्कर्ट उठा कर उसके पेट पर रख दी। अब उसकी पाव रोटी की तरह फूली हुयी चूत पूरी तौर से मेरी नज़रों के सामने थी। मै उसकी चूत को चूमने के लिए नीचे झुका तो मेरी निगाह दोनों फांकों के बीच के बड़े से धब्बे पर टिक गयी जो शायद उसके चूतरस से बना था। मैंने उसी धब्बे के ऊपर दोनों फांकों के बीच अपनी नाक घुसा गहरी सी सांस लेकर देखा तो चूतरस की मस्त खुशबू से मेरा लंड उसकी चूत में जाने को बेताब होकर फनफनाने लगा। 

मेरी इच्छा उसकी चड्डी को एक साइड करके उसकी चूत में लंड पेलने की हो रही थी। मैंने धीरे से उठ कर उसकी मस्त सीधी खडी पर्वत चोटियों पर हाथ रख कर उसे फिर से हिलाकर कहा- "रज़िया ! मेरी प्यारी बहन, अब उठ जा ... देख तो कितना सवेरा चढ़ आया है" 

जबकि मै मन ही मन ऊपर वाले से दुआ कर रहा था कि वह और गहरी नींद में सो जाये और मै उसकी चूत में अपना लंड ठांस कर अपना गरमागरम पानी निकाल सकूं। वो थोडा सा कुनमुना कर फिर सो गयी। अब मै धीरे से उसके पास ही बगल में लेट गया और अपना लंड पेण्ट की चेन खोल कर आज़ाद कर दिया। 

अब मैंने धीरे से अपना एक हाथ उसके पेट पर रख कर अपने को उससे चिपका लिया।अब मेरा लंड उसकी चिकनी जांघ से रगड़ रहा था और मै ये पूरी तरह से समझ चुका था कि रज़िया बहुत ही गहरी नींद सोती है। अब मैंने धीरे से उसका टॉप उठा कर उसकी गर्दन तक खींच दिया। उसकी बड़ी बड़ी नागपुरी संतरे जैसी दूधिया चूचियां काले रंग की ब्रा को फाड़ कर जैसे बाहर आने को उतावली थीं। 

मैंने ब्रा के ऊपर से ही उसकी चूचियों को सहलाना शुरू कर दिया। मेरा लंड रज़िया की चूत में घुसने को बुरी तरह से टन्ना रहा था। मुझ पर भी भयंकर रूप से वासना का भूत सवार हो चुका था। मैं धीरे से उसकी चूत को चड्डी के ऊपर से सहलाते हुए मज़े ले रहा था तभी मुझे दरवाजे पर दीदी दिखाई दी।

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उन्होंने गुस्से से हाथ से इशारा करके मुझे बुलाया। मरता क्या न करता, मै रज़िया के टॉप को नीचे करके बेड से उठ खड़ा हुआ। मेरी हालत ठीक वैसी ही हो रही थी जैसे बरसों से भूखे इन्सान के आगे से कोई भोजन की थाली उठा ले। 

मैंने भुनभुनाते हुए दीदी से आकर पूछा, "क्या है? क्यूं बुलाया मुझे, थोड़ी देर बाद ही बुला लेती”

"पहले ये अपना लंड अन्दर कर और नीचे चल, इस अपने लंड को देखा है बिल्कुल मूसल के माफिक खड़ा है और उसकी चूत देख ... झेल पायेगी? जब मेरी यह हालत है कि चूत अभी तक सूज के पकोड़ा रक्खी है, ठीक से चला भी नहीं जा रहा तो रज़िया तो मर ही जायेगी " -दीदी मुझे नीचे खींचते हुए बोली

लेकिन मेरा लंड कुछ भी सुनने को तैयार नहीं था। मैं सीढ़ियों पर ही दीदी को कस के चिपकाते हुए उनके होठों को चूसते लगा व मेरा एक हाथ उनकी गांड को तो दूसरा उनकी चूचियों को मसल रहा था। थोड़ा सा ऊँ ऊँ करने के बाद दीदी भी मेरी जीभ को लोलीपोप की तरह चूसती हुई लंड को पकड़ कर उसकी खाल को आगे पीछे करने लगीं।

"देख देख ! तेरा लंड कैसे फनफना रहा है, जबकि रात में ही चोद चोद कर मेरी चूत का कबाड़ा किया है और अभी नौ बजे ही फिर से चोदने को फड़फड़ाने लगा। मेरी चूत तो अभी तक सूजी हुई दर्द कर रही है" -दीदी मेरे लंड की खाल को कस कस के आगे पीछे करती हुई बोली। 

हालांकि मैंने सुबह ही उनको तीन टेबलेट जिनमे दो दर्द व सूज़न दोनों के लिये व एक एंटीबायोटिक दे दीं थीं परन्तु दवा को भी तो असर होने के लिए वक़्त चाहिए था शायद यही कारण था कि दीदी की चूत अभी भी कसक रही थी।

"देखो दीदी ! चूंकि रज़िया ने हम दोनों को चुदाई करते हुए देख लिया है इसलिए अब उसका चुदना बहुत ज़रूरी है वरना अगर कल उसने मामू या मामी को सारी बातें बता दीं तो आप अंदाज़ा लगा सकतीं है कि हम लोगों का क्या हाल होगा, इसीलिए मैं उसकी चूत को चोदने की सुबह से ही ज़ुगत लगा रहा था और शायद मैं कामयाब भी हो जाता लेकिन आपने सब गड़बड़ कर दी। दीदी! चूत कितनी भी देखने में छोटी लगे, वह बड़े से बड़े लंड को अपने में समाने की ताक़त रखती है। हाँ जब पहली बार चुदती है तो थोड़ा सील टूटने पर दर्द ज़रूर होता है लेकिन वह दर्द चुदाई के मज़े के आगे कुछ नहीं होता, अभी बारह घंटे भी तो नहीं हुये है तुम्हारी चुदाई किये हुये और तुम इतना जल्दी सब भूल गयीं?" -मैंने दीदी को समझाने की कोशिश करते हुए कहा

"ठीक है सग़ीर! लेकिन उसे ज़रा आहिस्ते से चोदना, मेरी तरह उसकी चूत को भी फाड़ के मत रख देना" -दीदी ने डरते हुए कहा

"तुम बस बाहर का ध्यान रखना अन्दर कमरे में मैं अकेला ही रजिया को संभाल लूँगा"

फिर हम दोनों उसी पोजीशन में एक दूसरे के नाज़ुक अंगों को छेड़ते हुए नीचे की तरफ बढ़ने लगे। नीचे पहुंचते पहुंचते हम लोग सिर्फ अंडर गारमेंट्स में थे। तभी दीदी ने उचक कर मेरे होठों को अपनी जीभ से चाटने लगी। मैंने उनकी पीठ पर अपने हाथों को लेजा कर ब्रा के हुक खोल दिए जिससे उनके दोनों दूधिया कबूतर अपने पंख फडफडा कर आज़ाद हो गये। फिर थोड़ा सा झुक कर मैंने उनके तने हुए गुलाबी निप्पलों को बारी बारी चूसते हुए चुभलाना शुरू कर दिया, मैंने दोनों हाथों से कस कर उनकी मांसल गांड को पकड़ कर अपने से चिपका लिया जिससे मेरा झटके लेता हुआ लंड भी दीदी की चड्डी के ऊपर से ही उनकी चूत को चूमने लगा। मैं अपने होठों को दीदी से चुसवाता हुआ उनकी चड्डी में अन्दर हाथ डाल कर उनकी गांड को मसले जा रहा था। दीदी की चड्डी भी नीचे की तरफ उनके चूतरस से पूरी तरह भींग चुकी थी।

मुझसे अब बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं हो रहा था लेकिन मुझको पता था कि उनकी चूत भले ही पनीली हो रही हो परन्तु वह अभी चुदने की कन्डीशन में नहीं थी और अगर गलती से भी मेरा लंड उनकी चूत में घुस गया तो उसको भोसड़ा बनने में वक़्त नहीं लगेगा सो मैंने दीदी को उठा कर पीठ के बल बेड पर पटक कर एक झटके में उनकी चड्डी उतार कर फ़ेंक दी। 

दीदी की क्लीन शेव्ड चिकनी चूत रात की ज़बरदस्त चुदाई की वजह से अभी भी अच्छी खासी सूजी रखी थी फिर भी दीदी की चूत में सुबह की अपेक्षा बहुत आराम था। मैंने बड़ी ही फुर्ती से अपने कपड़े उतार कर फेंकते हुए दीदी को अपने नीचे दबोचे लिया। मैं उनके होंठो के रस को चूसते हुए दोनों हाथों से चूचियों को इस तरह मसल रहा था जैसे रोटी बनाने के लिए लेडीज़ आटे को मसलतीं है। 

मेरे लंड को भी उनकी चूत की खुशबू शायद लग गयी थी सो वह भी थोड़ा इधर उधर मुंह मार कर अब ठिकाने पर पहुँच कर बुरी तरह झटके खाने लगा था लेकिन मैं चूत की हालत की वजह से अपने ऊपर कंट्रोल रखे था। मैंने बेड पर घुटनों के बल बैठ कर दीदी के होठों पर लंड का सुपाड़ा टिका के एक झटके में आधे से ज्यादा लंड उनके मुंह में ठांस दिया।

ऑक . क . क .... की आवाज़ के साथ दीदी ने फुर्ती से लंड बाहर खींचने के बाद सटासट चूसना शुरू कर दिया। मैं एक हाथ से उनके सिर को पकडे हुये दूसरे हाथ से उनकी चूचियों को बारी बारी मसल रहा था। दीदी एक हाथ से मेरा लंड थामे चूस रहीं था और दूसरे हाथ से भकाभक अपनी चूत में उँगली कर रहीं थीं। मज़े की मस्ती में मेरी व दीदी दोनों की ही आँखे बंद हो चुकीं थीं। 

इसी पोजीशन में थोड़ी देर के बाद मेरे लंड ने गाढे गाढे वीर्य की पिचकारी दीदी के मुंह में चला दी। दीदी भी शायद झड चुकीं थीं क्योंकि अब वह दोनों हाथो से पकड़ कर मेरे लंड को चाट चाट कर साफ़ कर रहीं थी।अब हम दोनों नंगे बेड पर पड़े अपनी साँसे दुरुस्त कर रहे थे लेकिन मेरा लंड झड़ने के बाद भी सीधा खडा रह रह कर झटके ले रहा था, उसका सुपाड़ा एक छोटे टमाटर की तरह सुर्ख लाल हो रहा था जैसे चोद ना पाने के गुस्से से अपना चेहरा लाल करके मुझे घूर रहा था। 

दीदी अभी तक आँखे बंद किये पडीं गहरी गहरी साँसे ले रहीं थी। हाँलांकि पूरी रात सो न पाने और ऊपर से इतनी मेहनत की थकान के कारण मेरी भी आँखे बंद हो रहीं थीं लेकिन मेरे पास रजिया को चोदने का सिर्फ आज का ही वक़्त था, कल तो सबको अस्पताल से आ ही जाना था। और फिर पता नहीं चुदने के बाद रजिया की क्या हालत होती, मुझे यह भी तो देखना था सो मैंने फटाफट उठ कर अपने कपडे पहने और दीदी को उसी हालत में नीचे छोड़ कर मैं फिर ऊपर रज़िया के कमरे की तरफ चल दिया। 

ऊपर रज़िया अभी भी सो रही थी लेकिन उसकी पोजीशन थोड़ी बदल गयी थी। अब वह दरवाजे की तरफ पीठ किये अपनी एक टांग मोड़े करवट से लेटी थी। इस पोजीशन में भी उसकी चिकनी दूधिया जांघे पूरी तौर से नुमाया हो रहीं थी। 

मैं उसके चहरे की तरफ जा के बेड पर बिलकुल चिपक कर लेट गया और धीरे से कंधा पकड़ कर हिलाते हुए पूछा, "रज़िया, मेरी अच्छी सी बहन, आज सोती ही रहेगी क्या?"


रज़िया थोडा सा ऊ ऊ करके सीधी होकर उसी पोजीशन में ।> लेट गयी। मेरा लंड थोड़ी देर पहले की याद करके भक्क से टनटनाने लगा। मैंने धीरे से उठ कर सबसे पहले अपना पेंट व अंडरवियर उतार दिए। 

अब मैं बिलकुल नंगा केवल बनियान पहने रजिया के बगल में लेट गया, मेरा लंड बुरी तरह से झटके ले रहा था। मैंने हाथ बढ़ा कर जैसे ही उसकी स्कर्ट को पेट पर पलटा, मैं धक्क से रह गया, थोड़ी देर पहले जो उसने गहरे नीले रंग की चड्डी पहन रखी थी अब उसकी जगह महरून कलर की नेट की चड्डी उसकी चूत से चिपकी थी जिसमे से उसकी चूत की एक एक चीज़ नुमाया हो रही थी। 

ऐसा लग रहा था की झांटों को रात में ही साफ़ किया गया था क्योंकि चूत पूरी तौर पर चिकनी और साफ़ नज़र आ रही थी। दूसरी बात बदली हुई चड्डी से साबित होता था कि रज़िया सोने का नाटक कर रही है, उसने मेरे नीचे जाने के बाद अपनी चूत पानी से धोकर साफ़ करके चड्डी बदली है क्योंकि सुबह वाली चड्डी इसके चूतरस में बहुत भीग चुकी थी जो इतनी जल्दी किसी कीमत पर सूख ही नहीं सकती थी। 

दूसरी और सबसे अहम् बात ये थी कि रज़िया का यूँ चुपचाप सोने के नाटक से यह क्लियर भी हो गया कि उसे इन सब बातों में मज़ा आ रहा है लेकिन मैं भी कच्चा खिलाडी नहीं था, सो मैंने ऐसा शो किया जैसे मुझे उसके जागने का पता नहीं है। 

मैंने उसकी कमर पकड़ कर उसे अपने से इस तरह चिपका लिया कि मेरा लंड उसकी दोनों टांगो के जोड़ो में टिक गया जिसे मैंने एक झटके में अन्दर कर दिया , लंड भी उसकी चूत से रगड़ता हुआ पीछे गांड की तरफ निकल गया। रज़िया ने भी फुल मस्ती में अपनी एक टांग उठा कर मेरी कमर पर रख ली, अब मेरा लंड पूरी तरह से उसकी चूत पे रगड़ता हुआ चूतरस में भीगा मस्त हो चुका था। लेकिन वह अभी तक सोने का नाटक जारी रक्खे थी परन्तु मुझे इससे कोई फ़रक नहीं पड़ रहा था क्योंकि वह बीच बीच में ऊ ऊ s s s करके अपने शरीर को हिला डुला कर धीरे धीरे पूरा मज़ा ले रही थी। 

मैंने फिर से उसको अपने से चिपकाते हुए उसके चूतडों को मसलते हुए धीरे से उसके कान में पूछा , "अरे रज़िया, आज क्या उठेगी नहीं, तू तो सो के ही रह गयी है आज, बड़ी गहरी नींद सोती है"

रज़िया अपनी कमर हिला कर अपनी चूत मेरे लंड से कस के चार पांच बार रगड़ी जैसे सोते में कर रही हो,फिर ऊ ऊ ऊ कर के मेरे गले में बांह फंसा के अपने होंठ मेरे गालों पे रख कर चुपचाप लेट गयी।

अब मुझ से भी बर्दाश्त नहीं हो रहा था सो मैंने उसकी टॉप उतारते हुए अपने ऊपर लिटा लिया, अब मैं सीधा बेड पर लेटा था व रजिया मेरे ऊपर पट अपनी चूत से मेरे लंड को दबाये हुई लेटी थी। 

मेरा लंड उसकी कुँवारी चूत की मस्त खुशबू से दीवाना हुआ झटके ले रहा था। मेरी झांटे और लंड पूरी तौर से रज़िया के चूतरस में भीग चुके थे। मैं तो पहले से ही नीचे से नंगा था, सो मैंने रज़िया की पीठ पर हाथ लेजा कर उसकी ब्रा के हुक खोल कर उतार दी।

CONTD....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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Heart 
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ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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