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Adultery जिस्म की भूख
Heart 
आपी को हँसता देख कर मैंने कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था कि आपी हँसी को ज़बरदस्ती रोकते हो बोलीं- “अच्छा अच्छा सॉरी! मूड ऑफ मत कर लेना, सॉरी सॉरी”

मैंने कुछ नहीं कहा बस मुस्कुरा कर वापस अपनी नजरें आपी की टाँगों के दरमियान जमा दीं। आपी ने अपने पजामे को थोड़ा और नीचे किया तो उनकी चूत के ऊपर वाले हिस्से के बाल नज़र आने लगे जो काफ़ी बड़े हो रहे थे और गुलाबी जिल्द पर डार्क ब्लैक बाल बहुत भले लग रहे थे।

“आपी क्या बात है? कब से बाल साफ नहीं किए? बहुत बड़े-बड़े हो रहे हैं?”

“काफ़ी दिन हो गए हैं। सुबह यूनिवर्सिटी जाना था इतना टाइम नहीं था कि साफ करती, अब आज करूँगी”

आपी ने ये कहा और पजामे को घुटनों तक पहुँचा दिया।

मैंने नज़र भर के आपी की चूत को देखा। टाँगों के बंद होने की वजह से सिर्फ़ चूत का ऊपरी हिस्सा ही दिख रहा था। मैंने अपना हाथ बारी-बारी आपी की खूबसूरत रानों पर फेरा और अपना अंगूठा चूत से थोड़ा ऊपर रख कर चूत को ऊपर की तरफ खींचते हुए आपी से कहा- “आपी टाँगें खोलो ना थोड़ी सी”

आपी ने अपनी टाँगों को खोला तो चूत बालों में घिरी एक लकीर सी नज़र आ रही थी। मैंने अंगूठे को थोड़ा नीचे ला कर आपी की चूत के दाने पर रख दिया और उसे मसलते हुए आपी की रानों को चाटने लगा। मैंने बारी-बारी से दोनों रानों को चाटा और फिर अंगूठे के दबाव से चूत को ऊपर की जानिब खींच कर अपनी ज़ुबान आपी की चूत से लगा दी।

मेरी ज़ुबान आपी की चूत पर टच हुई तो उन्होंने एक झुरझुरी सी ली और अपना हाथ मेरे सिर पर रख कर दबाने लगीं। मैंने चूत को मुकम्मल चाट कर आपी की चूत के एक लब को अपने होंठों में दबाया और उसका रस निचोड़ने लगा।

इसी तरह मैंने दूसरे लब को चूसा और फिर दोनों लबों को एक साथ मुँह में लेकर पूरी चूत को चूसने की कोशिश की तो आपी ने एक ‘आह..’ भरते हुए कहा- “अहह… सगीर! दाना… दाने को चूसो... प्लीज़...”

मैंने आपी की बात सुन कर एक बार फिर पूरी चूत पर ज़ुबान फेरी और उनकी चूत के दाने को अपने होंठों में दबा कर चूसने लगा। मैं आपी की बात सुन कर उनकी चूत के दाने को अपने लबों में दबा कर चूसने लगा। मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे आपी की चूत के दाने से मीठे रस का चश्मा उबल रहा है जो मेरे मुँह में शहद घोलता जा रहा है।

आपी की चूत के दाने को चूसने की वजह से मेरी नाक चूत के बालों में उलझ सी गई और मुझे ऐसा महसूस होने लगा जैसे मेरी नाक अपनी आपी की चूत की खुश्बू को एक-एक बाल से चुन लेना चाहता हो।

मैं अपने इन्हीं अहसासात के साथ आपी की चूत को चाट और चूस रहा था कि एक आवाज़ बॉम्ब की तरह मेरी शामत से टकराई- “रूहीयययययई…”

अम्मी की आवाज़ सुनते ही मैं तड़फ कर पीछे हटा और अभी उठने भी नहीं पाया था कि किचन के दरवाज़े पर अम्मी खड़ी नज़र आईं।

उन्होंने मुझे ज़मीन पर बैठे देखा तो हैरत से पूछा- “यह क्या कर रहे हो सगीर?”

मैंने अम्मी को देखे बिना ही रेफ्रिजरेटर के नीचे हाथ डाला और कुछ ढूँढने के अंदाज़ में हाथ फिराता हुआ बोला- “कुछ नहीं अम्मी! वो पानी पी रहा था तो हाथ में पकड़ा पेन नीचे गिर गया है वो ही देख रहा हूँ”

कह कर मैंने तिरछी नज़र से आपी को देखा तो वो उसी हालत में क़मीज़ दाँतों में दबाए पाजामा घुटनों तक उतारा हुआ और टाँगें थोड़ी सी खोले हुए बुत बनी खड़ी थीं।

अम्मी ने माथे पर हाथ मार कर कहा- “या रब्बा! ये लड़के भी ना, इतनी क्या मुसीबत पड़ी है पेन की, बाद में निकाल लेना था अभी अपने सारे कपड़े गंदे कर लिए हैं”

मैं दिल ही दिल में दुआ कर रहा था कि अम्मी अन्दर ना आ जाएँ। फिर मैंने हाथ रेफ्रिजरेटर के नीचे से निकाला और अपना बैग उठा कर खड़ा हो रहा था तो अम्मी बोलीं- “रूही को तो नहीं देखा तुमने? पता नहीं कहाँ चली गई है?”

“नहीं अम्मी! मैंने तो नहीं देखा, जाना कहाँ हैं ऊपर स्टडी रूम में होंगी”

अम्मी ने सीढ़ियों की तरफ मुँह कर के तेज आवाज़ लगाई- “रुहीययई...”

फिर अपने कमरे की तरफ घूम कर बोलीं- “सगीर! जा बेटा, ऊपर हो तो उसे मेरे पास भेज देना”

बोल कर अम्मी धीमे क़दमों से मुड़ते हुए अपने कमरे की तरफ चल दीं।

एक क़दम पीछे होकर मैंने आपी को देखा उनका चेहरा खौफ से पीला पड़ा हुआ था। वो इतनी खौफजदा हो गई थीं कि उन्हें यह ख्याल भी नहीं रहा कि अपने दाँतों से फ्रॉक का दामन ही निकाल देतीं ताकि चूत ऐसी नंगी खुली न पड़ी रहती।

मैंने उनके साथ कोई शरारत करने का सोचा लेकिन फिर उनकी हालत के पेशेनज़र अपने ख़याल को खुद ही रद कर दिया और आगे बढ़ कर आपी का पजामा ऊपर करने के बाद उनके दाँतों से फ्रॉक का दामन भी खींच लिया।

लेकिन उनकी हालत में कोई फ़र्क़ नहीं आया था।

आपी को कंधों से पकड़ कर आगे करके मैंने अपने सीने से लगाया और उन्हें बाँहों में भर लिया, फिर एक हाथ से उनकी क़मर और दूसरे हाथ से उनके गाल को सहलाते हुए कहा- “आपी... आपी... अम्मी चली गई हैं… कुछ भी नहीं हुआ... सब ठीक है... मेरी जान से प्यारी मेरी बहना कुछ भी नहीं हुआ”

मैं इसी तरह आपी की क़मर और गाल को सहलाते हुए उन्हें तसल्लियाँ देता रहा और कुछ देर बाद आपी पर छाया खौफ टूटा और वो सहमी हुई सी आवाज़ में बोलीं- “सगीर, अगर अम्मी देख लेतीं तो?”

“आपी इतना मत सोचो यार, देख लेतीं तो ना... देखा तो नहीं है? जो इतनी परेशान हो रही हो बस अपना मूड ठीक करो। याद करो कैसे कह रही थीं सगीर दाने को चूसो ना, बोलो तो दोबारा चूसूँ ‘दाने’ को?”

मेरी बात सुन कर आपी ने मेरी क़मर पर मुक्का मारा और मुस्कुरा दीं, फिर मेरे सीने पर गाल रगड़ कर अपने चेहरे को मज़ीद दबाते हुए संजीदगी से बोलीं- “सगीर कितना सुकून मिलता है तुम्हारे सीने से लग कर, मैं कभी तुमसे अलग नहीं होना चाहती सगीर। हम हमेशा साथ रहेंगे”

मैंने आपी को फिर से संजीदा होते देखा तो उनसे अलग होकर शरारत से कहा- “अच्छा मलिका ए जज़्बात साहिबा! सीरीयस होने की नहीं हो रही, आपको भी अम्मी ने बुलाया है। मैं भी ऊपर जाता हूँ कुछ देर सोऊँगा” -फिर आपी के सीने के उभार को दबा कर शरारत से कहा- “रात में जागना भी तो है ना अपनी बहना जी के साथ”

आपी मेरी बात पर हल्का सा मुस्कुरा दीं।

मैं घूमा और जाने लगा तो आपी ने आवाज़ दी- “सगीर!”

मैंने रुक कर पूछा- “हूउऊउन्न्न?”

आपी आगे बढ़ीं और आहिस्तगी से मेरे होंठों पर अपने होंठ रखे और चूम कर कहा- “बस अब जाओ, रात में आऊँगी”

मैंने आपी को मुहब्बत भरी नज़र से देखा और किचन से निकल गया। मैं कमरे में आया तो फरहान कंप्यूटर के सामने बैठा था और ट्राउज़र से अपना लण्ड बाहर निकाले पॉर्न मूवी देखते हुए आहिस्ता आहिस्ता अपने लण्ड को सहला रहा था।

दरवाज़े की आहट पर उसने घूम कर एक नज़र मुझे देखा तो मैंने कहा- “बस एग्जाम खत्म हुए हैं तो फिर शुरू हो गया ना इन्हीं चूत चकारियों में?”

“भाई इतने दिन हो गए हैं मैं इन सब चीज़ों से दूर ही था। आपी भी नहीं आती हैं अब कम से कम मूवी तो देखने दें ना”

यह कह कर फरहान ने फिर से अपना रुख़ स्क्रीन की तरफ कर लिया।

“ओके देख लो मूवी लेकिन कंट्रोल करके रखना आपी अभी आएँगी”

मेरी बात सुन कर वो खुशी से उछल पड़ा और मुझे देख कर बोला- “सच भाईईइ... अभी आएँगी आपी?”

मैंने मुस्कुरा कर उसकी तरफ देखा और ‘हाँ’ में गर्दन हिला दी और फरहान वैसे ही बैठे मूवी भूल कर गुमसुम सा हो गया या शायद यूँ कहना चाहिए कि आपी के ख्यालों में गुम हो गया।

मैंने कैमरा कवर से निकाला और रिकॉर्डिंग मोड को सिलेक्ट करते हुए कैमरा ड्रेसिंग टेबल पर रख कर उसका ज़ूम बिस्तर पर सैट कर दिया। अब सिर्फ़ रिकॉर्डिंग का बटन दबाने की देर थी कि हमारी मूवी बनना स्टार्ट हो जाती। कैमरा सैट करके मैंने अल्मारी से अपना स्लीपिंग ट्राउज़र निकाला और चेंज करने लगा।

TO BE CONTINUED ......
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

Love You All  Heart Heart
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(24-03-2024, 01:19 PM)KHANSAGEER Wrote:
आपी को हँसता देख कर मैंने कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था कि आपी हँसी को ज़बरदस्ती रोकते हो बोलीं- “अच्छा अच्छा सॉरी! मूड ऑफ मत कर लेना, सॉरी सॉरी”
[Image: 89028536_060_5904.jpg]
मैंने कुछ नहीं कहा बस मुस्कुरा कर वापस अपनी नजरें आपी की टाँगों के दरमियान जमा दीं। आपी ने अपने पजामे को थोड़ा और नीचे किया तो उनकी चूत के ऊपर वाले हिस्से के बाल नज़र आने लगे जो काफ़ी बड़े हो रहे थे और गुलाबी जिल्द पर डार्क ब्लैक बाल बहुत भले लग रहे थे।

“आपी क्या बात है? कब से बाल साफ नहीं किए? बहुत बड़े-बड़े हो रहे हैं?”

“काफ़ी दिन हो गए हैं। सुबह यूनिवर्सिटी जाना था इतना टाइम नहीं था कि साफ करती, अब आज करूँगी”

आपी ने ये कहा और पजामे को घुटनों तक पहुँचा दिया।[Image: 19375590_042_4a3e.jpg]

मैंने नज़र भर के आपी की चूत को देखा। टाँगों के बंद होने की वजह से सिर्फ़ चूत का ऊपरी हिस्सा ही दिख रहा था। मैंने अपना हाथ बारी-बारी आपी की खूबसूरत रानों पर फेरा और अपना अंगूठा चूत से थोड़ा ऊपर रख कर चूत को ऊपर की तरफ खींचते हुए आपी से कहा- “आपी टाँगें खोलो ना थोड़ी सी”

आपी ने अपनी टाँगों को खोला तो चूत बालों में घिरी एक लकीर सी नज़र आ रही थी। मैंने अंगूठे को थोड़ा नीचे ला कर आपी की चूत के दाने पर रख दिया और उसे मसलते हुए आपी की रानों को चाटने लगा। मैंने बारी-बारी से दोनों रानों को चाटा और फिर अंगूठे के दबाव से चूत को ऊपर की जानिब खींच कर अपनी ज़ुबान आपी की चूत से लगा दी।

मेरी ज़ुबान आपी की चूत पर टच हुई तो उन्होंने एक झुरझुरी सी ली और अपना हाथ मेरे सिर पर रख कर दबाने लगीं। मैंने चूत को मुकम्मल चाट कर आपी की चूत के एक लब को अपने होंठों में दबाया और उसका रस निचोड़ने लगा।

इसी तरह मैंने दूसरे लब को चूसा और फिर दोनों लबों को एक साथ मुँह में लेकर पूरी चूत को चूसने की कोशिश की तो आपी ने एक ‘आह..’ भरते हुए कहा- “अहह… सगीर! दाना… दाने को चूसो... प्लीज़...”

मैंने आपी की बात सुन कर एक बार फिर पूरी चूत पर ज़ुबान फेरी और उनकी चूत के दाने को अपने होंठों में दबा कर चूसने लगा। मैं आपी की बात सुन कर उनकी चूत के दाने को अपने लबों में दबा कर चूसने लगा। मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे आपी की चूत के दाने से मीठे रस का चश्मा उबल रहा है जो मेरे मुँह में शहद घोलता जा रहा है।[Image: 19375590_044_b06d.jpg]

आपी की चूत के दाने को चूसने की वजह से मेरी नाक चूत के बालों में उलझ सी गई और मुझे ऐसा महसूस होने लगा जैसे मेरी नाक अपनी आपी की चूत की खुश्बू को एक-एक बाल से चुन लेना चाहता हो।

मैं अपने इन्हीं अहसासात के साथ आपी की चूत को चाट और चूस रहा था कि एक आवाज़ बॉम्ब की तरह मेरी शामत से टकराई- “रूहीयययययई…”[Image: 19375590_063_30c8.jpg]

अम्मी की आवाज़ सुनते ही मैं तड़फ कर पीछे हटा और अभी उठने भी नहीं पाया था कि किचन के दरवाज़े पर अम्मी खड़ी नज़र आईं।

उन्होंने मुझे ज़मीन पर बैठे देखा तो हैरत से पूछा- “यह क्या कर रहे हो सगीर?”

मैंने अम्मी को देखे बिना ही रेफ्रिजरेटर के नीचे हाथ डाला और कुछ ढूँढने के अंदाज़ में हाथ फिराता हुआ बोला- “कुछ नहीं अम्मी! वो पानी पी रहा था तो हाथ में पकड़ा पेन नीचे गिर गया है वो ही देख रहा हूँ”

कह कर मैंने तिरछी नज़र से आपी को देखा तो वो उसी हालत में क़मीज़ दाँतों में दबाए पाजामा घुटनों तक उतारा हुआ और टाँगें थोड़ी सी खोले हुए बुत बनी खड़ी थीं।

अम्मी ने माथे पर हाथ मार कर कहा- “या रब्बा! ये लड़के भी ना, इतनी क्या मुसीबत पड़ी है पेन की, बाद में निकाल लेना था अभी अपने सारे कपड़े गंदे कर लिए हैं”

मैं दिल ही दिल में दुआ कर रहा था कि अम्मी अन्दर ना आ जाएँ। फिर मैंने हाथ रेफ्रिजरेटर के नीचे से निकाला और अपना बैग उठा कर खड़ा हो रहा था तो अम्मी बोलीं- “रूही को तो नहीं देखा तुमने? पता नहीं कहाँ चली गई है?”

“नहीं अम्मी! मैंने तो नहीं देखा, जाना कहाँ हैं ऊपर स्टडी रूम में होंगी”

अम्मी ने सीढ़ियों की तरफ मुँह कर के तेज आवाज़ लगाई- “रुहीययई...”

फिर अपने कमरे की तरफ घूम कर बोलीं- “सगीर! जा बेटा, ऊपर हो तो उसे मेरे पास भेज देना”

बोल कर अम्मी धीमे क़दमों से मुड़ते हुए अपने कमरे की तरफ चल दीं।

एक क़दम पीछे होकर मैंने आपी को देखा उनका चेहरा खौफ से पीला पड़ा हुआ था। वो इतनी खौफजदा हो गई थीं कि उन्हें यह ख्याल भी नहीं रहा कि अपने दाँतों से फ्रॉक का दामन ही निकाल देतीं ताकि चूत ऐसी नंगी खुली न पड़ी रहती।

मैंने उनके साथ कोई शरारत करने का सोचा लेकिन फिर उनकी हालत के पेशेनज़र अपने ख़याल को खुद ही रद कर दिया और आगे बढ़ कर आपी का पजामा ऊपर करने के बाद उनके दाँतों से फ्रॉक का दामन भी खींच लिया।

लेकिन उनकी हालत में कोई फ़र्क़ नहीं आया था।

आपी को कंधों से पकड़ कर आगे करके मैंने अपने सीने से लगाया और उन्हें बाँहों में भर लिया, फिर एक हाथ से उनकी क़मर और दूसरे हाथ से उनके गाल को सहलाते हुए कहा- “आपी... आपी... अम्मी चली गई हैं… कुछ भी नहीं हुआ... सब ठीक है... मेरी जान से प्यारी मेरी बहना कुछ भी नहीं हुआ”

मैं इसी तरह आपी की क़मर और गाल को सहलाते हुए उन्हें तसल्लियाँ देता रहा और कुछ देर बाद आपी पर छाया खौफ टूटा और वो सहमी हुई सी आवाज़ में बोलीं- “सगीर, अगर अम्मी देख लेतीं तो?”

“आपी इतना मत सोचो यार, देख लेतीं तो ना... देखा तो नहीं है? जो इतनी परेशान हो रही हो बस अपना मूड ठीक करो। याद करो कैसे कह रही थीं सगीर दाने को चूसो ना, बोलो तो दोबारा चूसूँ ‘दाने’ को?”

मेरी बात सुन कर आपी ने मेरी क़मर पर मुक्का मारा और मुस्कुरा दीं, फिर मेरे सीने पर गाल रगड़ कर अपने चेहरे को मज़ीद दबाते हुए संजीदगी से बोलीं- “सगीर कितना सुकून मिलता है तुम्हारे सीने से लग कर, मैं कभी तुमसे अलग नहीं होना चाहती सगीर। हम हमेशा साथ रहेंगे”

मैंने आपी को फिर से संजीदा होते देखा तो उनसे अलग होकर शरारत से कहा- “अच्छा मलिका ए जज़्बात साहिबा! सीरीयस होने की नहीं हो रही, आपको भी अम्मी ने बुलाया है। मैं भी ऊपर जाता हूँ कुछ देर सोऊँगा” -फिर आपी के सीने के उभार को दबा कर शरारत से कहा- “रात में जागना भी तो है ना अपनी बहना जी के साथ”[Image: 46723108_015_375e.jpg]

आपी मेरी बात पर हल्का सा मुस्कुरा दीं।

मैं घूमा और जाने लगा तो आपी ने आवाज़ दी- “सगीर!”

मैंने रुक कर पूछा- “हूउऊउन्न्न?”

आपी आगे बढ़ीं और आहिस्तगी से मेरे होंठों पर अपने होंठ रखे और चूम कर कहा- “बस अब जाओ, रात में आऊँगी”

मैंने आपी को मुहब्बत भरी नज़र से देखा और किचन से निकल गया। मैं कमरे में आया तो फरहान कंप्यूटर के सामने बैठा था और ट्राउज़र से अपना लण्ड बाहर निकाले पॉर्न मूवी देखते हुए आहिस्ता आहिस्ता अपने लण्ड को सहला रहा था।

दरवाज़े की आहट पर उसने घूम कर एक नज़र मुझे देखा तो मैंने कहा- “बस एग्जाम खत्म हुए हैं तो फिर शुरू हो गया ना इन्हीं चूत चकारियों में?”

“भाई इतने दिन हो गए हैं मैं इन सब चीज़ों से दूर ही था। आपी भी नहीं आती हैं अब कम से कम मूवी तो देखने दें ना”

यह कह कर फरहान ने फिर से अपना रुख़ स्क्रीन की तरफ कर लिया।

“ओके देख लो मूवी लेकिन कंट्रोल करके रखना आपी अभी आएँगी”

मेरी बात सुन कर वो खुशी से उछल पड़ा और मुझे देख कर बोला- “सच भाईईइ... अभी आएँगी आपी?”

मैंने मुस्कुरा कर उसकी तरफ देखा और ‘हाँ’ में गर्दन हिला दी और फरहान वैसे ही बैठे मूवी भूल कर गुमसुम सा हो गया या शायद यूँ कहना चाहिए कि आपी के ख्यालों में गुम हो गया।

मैंने कैमरा कवर से निकाला और रिकॉर्डिंग मोड को सिलेक्ट करते हुए कैमरा ड्रेसिंग टेबल पर रख कर उसका ज़ूम बिस्तर पर सैट कर दिया। अब सिर्फ़ रिकॉर्डिंग का बटन दबाने की देर थी कि हमारी मूवी बनना स्टार्ट हो जाती। कैमरा सैट करके मैंने अल्मारी से अपना स्लीपिंग ट्राउज़र निकाला और चेंज करने लगा।

TO BE CONTINUED ......
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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Heart 
मैं अपने ट्राउज़र को पहन कर घूमा ही था कि कमरे का दरवाज़ा खुला और आपी अन्दर दाखिल हुईं। आपी ने आज काली शनील का क़मीज़ सलवार पहन रखा था और सिर पर वाइट स्कार्फ बाँधा हुआ था।

कमरे में दाखिल होकर आपी ने दरवाज़ा बंद किया और घूमी ही थीं कि फरहान अपनी कुर्सी से उछाल कर भागते हुए गया और आपी के जिस्म से लिपट कर बोला- “आपी, मेरी प्यारी आपी! आज मेरा बहुत दिल चाह रहा था कि आप हमारे पास आएँ और आप आ गईं”

और यह कह कर क़मीज़ के ऊपर से ही आपी के दोनों उभारों के दरमियान में अपना चेहरा दबाने लगा। मैंने एक नज़र उन दोनों को देखा और कैमरे से उनको ज़ूम में लेकर रिकॉर्डिंग ऑन करके वहाँ साथ पड़ी कुर्सी पर ही बैठ गया।

आपी ने अपने एक हाथ से फरहान की क़मर सहलाते हुए दूसरा हाथ फरहान के सिर की पुश्त पर रखा और अपने सीने में दबाते हुए कहा- “उम्म्म्म… फ़िक्र नहीं करो मेरे छोटू, आज दिल भर के एंजाय कर लेना, मैं यहाँ ही हूँ तुम्हारे पास”

फिर फरहान को अपने आपसे अलग करते हुए कहा- “चलो उतारो अपने कपड़े”

“आपी आप ही उतार दें न, भाई को तो पहनाती भी आप अपने हाथों से हैंलेकिन मुझे”

इतना बोल कर ही वो चुप हुआ और उसकी शक्ल ऐसी हो गई कि जैसे अभी रो देगा।

फरहान का बुझा सा चेहरा देख कर आपी ने उसकी ठोड़ी को अपनी हथेली में लिया और गाल को चूम कर कहा- “ऐसी कोई बात नहीं मेरी जान, तुम दोनों ही मेरे भाई हो और भाई होने के नाते जितना फिर मुझे सगीर से है उतने ही लाड़ले तुम भी हो” -यह कह कर आपी ने अपने दोनों हाथों से फरहान की शर्ट को पेट से पकड़ कर उठाते हुए कहा- “चलो हाथ ऊपर उठाओ”

फरहान की शर्ट उतार कर आपी पंजों के बल नीचे बैठीं और फरहान के ट्राउज़र को साइड्स से पकड़ते हुए नीचे करने लगीं। फरहान का ट्राउज़र थोड़ा नीचे हुआ तो उसका खड़ा लण्ड एक झटका लेकर उछलते हुए बाहर निकला।

आपी ने फरहान के लण्ड को देखा और अपने हाथ में पकड़ कर सहलाते हुए बोलीं- “वॉववओ! मेरा छोटू तो आज बहुत ही कड़क हो रहा है”

फरहान का लण्ड आपी के हाथ में आया तो वो तड़फ उठा और एक सिसकी लेकर बोला- “आहह! आपी मुँह में लो ना प्लीज़”

लण्ड छोड़ कर आपी ने ट्राउज़र को पकड़ा और नीचे करके फरहान के पाँव से निकाल दिया और फिर से फरहान का लण्ड हाथ में पकड़ कर खड़े होते हो बोलीं- “अन्दर तो चलो ना, यहाँ दरवाज़े पर ही सब कुछ करूँ क्या?”

और ऐसे ही फरहान के लण्ड को पकड़ कर उससे खींचते हुए बिस्तर की तरफ चलने लगीं।

आपी हँसते हुए आगे-आगे चल रही थीं उनकी नज़र फरहान के लण्ड पर थी और फरहान एक तरह से घिसटता हुआ आपी के पीछे-पीछे चला जा रहा था। ऐसे ही आपी बिस्तर के पास आईं और फरहान के लण्ड को छोड़ कर दो क़दम पीछे हो कर अपनी क़मीज़ उतारने लगीं। मेरे और उनके दरमियान तकरीबन 7-8 फीट का फासला था, मेरी तरफ आपी की क़मर थी और फरहान उनके सामने उनसे दो क़दम आगे खड़ा था।

आपी ने दाएं हाथ से क़मीज़ का सामने वाला दामन पकड़ा और बाएँ हाथ से क़मीज़ का पिछला हिस्सा पकड़ कर हाथों को मोड़ते हुए क़मीज़ उतारने लगीं। क़मीज़ ऊपर उठी तो मुझे उनकी ब्लैक शनील की सलवार में क़ैद खूबसूरत कूल्हे नज़र आए और अगले ही लम्हें आपी की क़मीज़ थोड़ा और ऊपर उठी और उनकी इंतिहाई चिकनी, साफ शफ़फ़ गुलाबी जिल्द नज़र आई जो क़मीज़ के ब्लैक होने की वजह से बहुत ही ज्यादा खिल रही थी।

आपी ने अपनी क़मर को थोड़ा सा खम दे कर क़मीज़ को मज़ीद ऊपर उठाया और अपने सिर से बाहर निकालते हो सोफे पर फेंक दिया। जैसे ही आपी की क़मीज़ उनके सिर से निकली तो उनके बालों की मोटी सी चोटी किसी साँप की तरह बल खाते हुए नीचे आई और इधर-उधर झूलने के बाद उनके कूल्हों के दरमियान रुक गई।

आपी ने गहरे गुलाबी रंग की ब्रा पहन रखी थी जिसकी पट्टी टाइट होने की वजह से उनकी क़मर में धँसी हुई सी नज़र आ रही थी। ब्रा का रंग उनकी हल्की गुलाबी जिल्द से ऐसे मैच हो रहा था कि जैसे ये रंग बना ही आपी के जिस्म के लिए हो।

अपने दोनों कंधों से आपी ने बारी-बारी ब्रा के स्ट्रॅप्स को खींचा और अपने बाज़ू से निकाल कर बगल में ले आईं और ब्रा को घुमा कर कप्स को पीछे लाते हुए थोड़ा नीचे अपने पेट पर किया और सामने से ब्रा क्लिप खोल कर ब्रा को भी सोफे की तरफ उछाल दिया।

अपने दोनों अंगूठे आपी ने अपनी सलवार में फँसाए और थोड़ा सा झुकते हुए सलवार नीचे की और बारी-बारी दोनों टाँगें सलवार में से निकाल कर अपने हाथ कमर पर रखे और सीधी खड़ी हो कर फरहान को देखने लगीं। आपी की कमर पतली होने की वजह से इस वक़्त उनका जिस्म बिल्कुल कोकाकोला की बोतल से मुशबाह था।

सुराहीदार लंबी गर्दन, सीना भी गोलाई लिए थोड़ा साइड्स पर निकला हुआ, पतली खंडार क़मर और फिर खूबसूरत कूल्हे भी थोड़ा साइड्स पर निकले हुए।
हर लिहाज़ से मुतनसीब और मुकम्मल जिस्म, आह्ह…

फरहान की शक्ल किसी ऐसे बिल्ली के बच्चे जैसी हो रही थी कि जिसको उसकी माँ ने दूध पिलाने से मना कर दिया हो, उसके मुँह से कोई आवाज़ भी नहीं निकल रही थी। आपी ने चंद लम्हें ऐसे ही उसके चेहरे पर नज़र जमाए रखे और फिर फरहान की हालत पर तरस खाते हुए हँस पड़ीं और नीचे बैठने लगीं।

अपने घुटनों और पंजों को ज़मीन पर टिकाते हुए आपी कुछ इस तरह बैठीं कि उनके कूल्हे पाँव की एड़ियों से दब कर मज़ीद चौड़े हो गए। उन्होंने फरहान के लण्ड को अपने हाथ में पकड़ा और उसकी पूरी लंबाई को अपनी ज़ुबान से चाटने लगीं।

फरहान के मुँह से बेसाख्ता ही एक ‘आहह..’ खारिज हुई और वो बोला- “अहह... आपीयईई... आपी पूरा मुँह में लें ना…”

आपी ने मुस्कुरा कर उसकी बेताबी को देखा और कहा- “सबर तो करो ना... अभी तो शुरू किया है”

यह कह कर आपी ने फरहान के लण्ड की नोक पर अपनी ज़ुबान की नोक से मसाज सा किया और फिर लण्ड की टोपी को अपने मुँह में ले लिया।

“आह्ह... आअप्पीईईई ईईई पूरा मुँह में लो ना... उस दिन भी आपने दिल से नहीं चूसा था...”

आपी ने उसके लण्ड को मुँह से निकाल कर एक गहरी नज़र उसके चेहरे पर डाली और फिर बिना कुछ बोले दोबारा लण्ड को मुँह में लेकर अन्दर-बाहर करने लगीं और 5-6 बार अन्दर-बाहर करने के बाद ही लण्ड पूरा जड़ तक आपी के मुँह में जाने लगा।

फरहान का जिस्म काँपने लगा था वो सिसकती आवाज़ में बोला- “आपी मुझसे खड़ा नहीं हुआ जा रहा”

आपी ने लण्ड मुँह से निकाला और कहा- “ओके नीचे लेट जाओ”

फरहान एक क़दम पीछे हटा और ज़मीन पर लेट कर अपनी दोनों टाँगों को थोड़ा खोलते हुए आपी के इर्द-गिर्द फैला लिया।

इस तरह लेटने से आपी फ़रहान की टाँगों के दरमियान आ गई थीं। इसी तरह घुटनों और पाँव की ऊँगलियों को ज़मीन पर टिकाए हो आपी आगे की तरफ झुकाईं जिससे उनकी गाण्ड ऊपर को उठ गई और वे फरहान के लण्ड को चूसने लगीं।

मैं आपी के पीछे था जब आपी इस तरह से झुकीं तो उनके कूल्हे थोड़े से खुल गए और आपी की गाण्ड का खूबसूरत डार्क ब्राउन झुर्रियों भरा सुराख और उनकी छोटी सी गुलाबी चूत की लकीर मुझे साफ नज़र आने लगी।

मैंने मेज से कैमरा उठाया और पहले आपी की गाण्ड के सुराख को ज़ूम करता हुआ रिकॉर्ड किया और फिर कैमरा थोड़ा नीचे ले जाते हो चूत के लबों को ज़ूम किया। आपी की चूत के लब आपस में ऐसे चिपके हुए थे कि अन्दर का हिस्सा बिल्कुल ही नज़र नहीं आ रहा था और बस दो उभरे हुए से लबों के दरमियान एक बारीक सी लकीर बन गई थी।

मैंने कैमरा टेबल पर सैट करके रखा और आपी के दोनों ग्लोरी होल्स पर नज़र जमाए हुए अपने एक हाथ से लण्ड को सहलाते दूसरे हाथ से अपना ट्राउज़र उतारने लगा। ट्राउज़र उतार कर मैं कुछ देर वहीं खड़ा आपी के प्यारे से कूल्हों और उनके दरमियान के हसीन नज़ारे को देखते हुए अपने लण्ड को सहलाता रहा और फिर ट्रांस की कैफियत में आपी की तरफ क़दम बढ़ा दिए।

मैं आगे बढ़ा और आपी के पीछे उन्हीं के अंदाज़ में बैठ कर चूत के पास अपना मुँह लाया और आपी की चूत से उठती मदहोश कर देने वाली महक को एक लंबी सांस के ज़रिए अपने अन्दर उतारा, फिर अपनी ज़ुबान निकाली और चूत पर रख दी।

TO BE CONTINUED ....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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Heart 
परीक्षा भी ख़त्म हो गईं, त्यौहार भी हो गया।
अब दिल थाम कर बैठिए, आपी के चुदने का समय आ गया है।
अब उनकी चूत मेरा लण्ड खाने के लिए बेताब है।

Tongue Tongue Tongue Tongue
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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हनी को भी छुपके से देखने दो
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Heart 
(28-03-2024, 02:09 PM)Vnice Wrote: हनी को भी छुपके से देखने दो

DON'T WORRY, AGLA NUMBER USI KA HAI  

Tongue Tongue
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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Heart 
मेरी ज़ुबान को अपनी चूत पर महसूस करके आपी के जिस्म को एक झटका लगा और उन्होंने फरहान के लण्ड को मुँह से निकाले बिना ही एक सिसकी भरी और उनके चूसने के अंदाज़ में शिद्दत आ गई।

मैं कुछ देर ऐसे ही आपी की चूत की मुकम्मल लंबाई को चाटता और उनकी चूत के दाने को चूसता रहा। तो आपी ने फरहान का लण्ड मुँह से निकाला और मज़े से डूबी आवाज़ में कहा- “आह सगीर! पीछे वाला सुराख भी चाटो नाआ…”

आपी की ख्वाहिश के मुताबिक़ मैंने उनकी गाण्ड के सुराख पर ज़ुबान रखी और उसी वक़्त उनकी चूत में अपनी एक उंगली भी डाल दी। आपी 2 सेकेंड को रुकीं और कुछ कहे बगैर फिर से अपना काम करने लगीं।

मैंने आपी की गाण्ड के सुराख को चाटा और उससे सही तरह अपनी थूक से गीला करने के बाद मैंने अपने दूसरे हाथ का अंगूठा आपी की गाण्ड के सुराख में उतार दिया और अपने दोनों हाथों को हरकत दे कर अन्दर-बाहर करने लगा।

मेरा लण्ड शाम से ही बेक़रार हो रहा था और अब मेरी बर्दाश्त जवाब दे चुकी थी। मैं आपी की चूत चाटते चाटते थक गया था। अब मैं हर हाल में उनकी चूत में अपना लंड पेल कर ठोंकना चाहता था। मैंने अपना अंगूठा आपी के पिछले सुराख में ही रहने दिया और चूत से ऊँगली निकाल कर अपना लण्ड पकड़ा और अपने लण्ड की नोक आपी की चूत से लगा दी।

आपी ने इससे महसूस कर लिया और फ़ौरन अपनी कमर को ऊपर की तरफ उठाते हुए चूत को नीचे की तरफ दबा दिया और गर्दन घुमा कर कहा- “सगीर क्या कर रहे हो तुम? अन्दर डालने की कोशिश का सोचना भी नहीं”

मैंने तकरीबन गिड़गिड़ाते हुए कहा- “प्लीज़ बहना, आपको इस पोजीशन में देख कर दिमाग बिल्कुल गरम हो गया है। अब बर्दाश्त नहीं होता ना और आपी इतना कुछ तो हम कर ही चुके हैं। अब अगर अन्दर भी डाल दूँ तो क्या फ़र्क़ पड़ता है”

“बहुत फ़र्क़ पड़ता है इससे सगीर, अगर तुम से कंट्रोल नहीं हो रहा, तो मैं चली जाती हूँ कमरे से”

आपी के मुँह से जाने की बात सुन कर फरहान उछल पड़ा। वो अपने लण्ड पर आपी के मुँह की गर्मी को किसी क़ीमत पर खोना नहीं चाहता था।

वो फ़ौरन बोला- “नहींSSSS… आपी प्लीज़ आप जाना नहींSSSS… भाई प्लीज़ आप कंट्रोल करो ना... अपने आप पर…”

मैंने बारी-बारी आपी और फरहान के चेहरे पर नज़र डाली और शिकस्तखुदा लहजे में कहा- “ओके ओके बाबा, अन्दर नहीं डालूंगा लेकिन सिर्फ़ ऊपर-ऊपर रगड़ तो लूँ ना”

आपी के चेहरे पर अभी भी फ़िक्र मंदी के आसार नज़र आ रहे थे- “क्या मतलब? अन्दर रगड़ोगे?”

मैंने आपी के कूल्हों को दोनों हाथों से पकड़ कर ऊपर उठाते हुए कहा- “अरे बाबा नहीं डाल रहा ना अन्दर, अन्दर रगड़ने से मुराद है कि आपकी चूत के लबों को थोड़ा खोल कर अन्दर नरम गुलाबी हिस्से पर अपना लण्ड रगडूँगा”

आपी अभी भी मुतमइन नज़र नहीं आ रही थीं।

मैंने आपी को आश्वस्त करते हुए कहा- “अरे नहीं, अन्दर नहीं डाल रहा, अन्दर रगड़ने से मतलब है कि आपकी चूत के होंठों को जरा सा खोल कर अन्दर नर्म गुलाबी हिस्से पर अपना लंड रगडूँगा”

आपी को अभी भी मुझ पर भरोसा नहीं हो रहा था।

उन्होंने अपनी क़मर को नीचे की तरफ खम देते हुए गाण्ड ऊपर उठा दी लेकिन गर्दन घुमा कर मेरे चेहरे पर ही नज़र जमाए रखी। मैंने अपने लण्ड को हाथ में लिया और आपी की चूत के दोनों लबों के दरमियान रख कर लबों को खोला और चूत के अंदरूनी नरम हिस्से पर लण्ड को ऊपर से नीचे रगड़ने लगा।

मेरे इस तरह रगड़ने से मेरे लण्ड की नोक आपी की चूत के अंदरूनी हिस्से को रगड़ दे रही थी और टोपी की साइड्स आपी की चूत के लबों पर रगड़ लगा रहे थे। मैंने 4-5 बार ऐसे अपने लण्ड को रगड़ा तो आपी के मुँह से बेसाख्ता ही एक सिसकारी निकली और मुझे अंदाज़ा हो गया कि आपी को इस रगड़ से मज़ा आने लगा है।

कुछ देर आपी ऐसे ही गर्दन मेरी तरफ किए रहीं और अपनी आँखों को बंद करके दिल की गहराई से इस रगड़ को महसूस करने लगीं। अब मेरे लण्ड की रगड़ के साथ-साथ ही आपी ने अपनी चूत को भी हरकत देनी शुरू कर दी थी।

मैंने अपने लण्ड को एक जगह रोक दिया तो आपी ने आँखें खोल कर मुझे देखा और फिर शर्म और मज़े की मिली-जुली कैफियत से मुस्कुरा कर अपना मुँह फरहान की तरफ कर लिया और अपनी चूत हिला-हिला के मेरे लण्ड पर रगड़ने लगीं।

कुछ देर तक ऐसे ही अपना लण्ड आपी की चूत के अन्दर रगड़ने के बाद मैंने अपना लण्ड हटाया और आपी की गाण्ड के सुराख पर अपनी ज़ुबान रखते हो अपनी दो उंगलियाँ आपी की चूत में तकरीबन 1. 5 इंच तक उतार दीं और उन्हें आगे-पीछे करते हुए अपनी तीसरी उंगली भी अन्दर दाखिल कर दी।

आपी ने तक़लीफ़ के अहसास से डूबी आवाज़ में कहा- “उफ्फ़ सगीर! दर्द हो रहा है”

मैंने आपी की बात अनसुनी करते हुए अपनी उंगलियों को अन्दर-बाहर करना जारी रखा और उनकी गाण्ड के सुराख को चूसने लगा ताकि इससे तक़लीफ़ का अहसास कम हो जाए।

लेकिन आपी की तक़लीफ़ में कमी ना हुई और वो बोलीं- “आआईईई सगीर! दर्द ज्यादा बढ़ रहा है ऐसे, निकालो उंगलियाँ उफ्फ़”

मैंने उंगलियाँ निकाल लीं और आपी से कहा- “आपी ऐसा करो, फरहान के ऊपर आ जाओ और उसका लण्ड चूसो, वो साथ-साथ आपकी चूत के दाने (क्लिट) को भी चूसता रहेगा तो दर्द नहीं होगा”

मेरी बात सुन कर फरहान खुश होता हुआ बोला- “हाँ आपी ऊपर आ जाएँ, इससे ज्यादा मज़ा आएगा”

आपी ने एक नज़र मेरे चेहरे पर डाली और फिर फरहान को देखते हुए मुँह चढ़ा कर तंज़िया लहजे में उसकी नकल उतारते हुए बोली- “आपी ऊपाल आ जाएं बाअला मज़ा आएगा… खुशी तो देखो ज़रा इसकी! शर्म करो कमीनो, मैं तुम्हारी सग़ी बहन हूँ कोई बाज़ारी औरत नहीं हूँ”

आपी का अंदाज़ देख कर मैं मुस्कुरा दिया लेकिन फरहान ने बुरा सा मुँह बनाया और खराब मूड में कहा- “आपी! भाई कुछ भी कहते रहें आप उन्हें कुछ नहीं कहती हैं, मैं कुछ बोलूँ तो आप नाराज़ हो जाती हैं”

आपी ने फरहान की ऐसी शक्ल देख कर हँसते हुए उसके गाल पर हल्की सी चपत लगाई और अपनी टाँगें उसके चेहरे के दोनों तरफ़ रखते हुए बोलीं- “पगले मजाक़ कर रही थी तुमसे, हर बात पर इतने बगलोल ना हो जाया करो”

फिर वे अपनी चूत फरहान के मुँह पर टिकाते हुए झुकीं और उसका लण्ड अपने मुँह में भर लिया। फरहान ने अभी भी बुरा सा मुँह बना रखा था लेकिन जैसे ही आपी की चूत फरहान के मुँह के पास आई तो उनकी चूत की महक ने फरहान का मूड फिर से हरा-भरा कर दिया और एक नए जोश से उसने आपी की चूत के दाने को अपने मुँह में ले लिया।

मैंने आपी की चूत की तरफ हाथ बढ़ाया और फिर से उनकी गाण्ड के सुराख को चूसते हुए चूत में पहले 2 और फिर 3 उंगलियाँ डाल कर अन्दर-बाहर करने लगा और मेरे आइडिया का रिज़ल्ट पॉज़िटिव ही रहा मतलब आपी को अब इतनी तक़लीफ़ नहीं हो रही थी या यूँ कहना चाहिए कि आपी के मज़े का अहसास उनकी तकलीफ़ के अहसास पर ग़ालिब आ गया था और कुछ ही देर बाद आपी की चूत मेरी 3 उंगलियों को सहने के क़ाबिल हो गई थीं, अब वो मेरी उंगलियों के साथ-साथ ही अपनी चूत को भी हरकत देने लगीं।

अब पोजीशन ये थी कि आपी फरहान का लण्ड चूसते हुए अपनी चूत को भी हरकत दे रही थीं। फरहान के मुँह में आपी की चूत का दाना था जिसे वो बहुत मजे और स्वाद से चूस रहा था। मेरी 3 उंगलियाँ आपी की चूत में डेढ़ दो इंच गहराई तक अन्दर-बाहर हो रही थीं और मैं आपी की गाण्ड के सुराख पर कभी अपनी ज़ुबान फिराता तो कभी उसे चूसने लगता।

हम अपने-अपने काम में दिल से मसरूफ़ थे कि तभी एक नए ख्याल ने मेरे दिमाग में झटका सा दिया। मैं अपनी जगह से उठ कर अलमारी के पास गया और डिल्डो निकाल लिया। यह वही भूरे रंग का डिल्डो था जिसकी मोटाई बिल्कुल मेरे लण्ड जितनी ही थी और लंबाई तकरीबन 12 इंच थी, इसके दोनों तरफ लण्ड की टोपी बनी हुई थी।

मैंने डिल्डो निकाला और मेज़ से तेल की बोतल उठा कर वापस आ रहा था तो आपी की नज़र उस डिल्डो पर पड़ी और उन्होंने फरहान के लण्ड को मुँह में ही रखे हुए आँखें फाड़ कर मुझे देखा।

मैंने मुस्कुरा कर आपी को आँख मारी और डिल्डो की टोपी को आपी की आँखों के सामने लहराते हुए कहा- “मेरी प्यारी बहना जी! क्या तुम इसके लिए तैयार हो?”

आपी ने फरहान के लण्ड को अपने मुँह से निकाला लेकिन हाथ में पकड़े-पकड़े ही कहा- “तुम्हारा दिमाग खराब हुआ है क्या सगीर? ये इतना बड़ा है! ये तो मैं कभी भी नहीं डालने दूँगी”

मैंने आपी के पीछे आते हुए कहा- “कुछ नहीं होता यार आपी! रिलैक्स... मैं ये पूरा थोड़ी ना अन्दर घुसाने लगूंगा”

आपी ने इसी तरह अपनी गाण्ड उठाए और चूत को फरहान के मुँह से लगाए गर्दन घुमा कर मुझे देखा और परेशानी से कहा- “लेकिन सगीर इससे बहुत दर्द तो होगा ना?”

मैंने अपनी 3 उंगलियों को आपस में जोड़ कर डिल्डो की नोक पर रखा और आपी को दिखाते हुए कहा- “ये देखो आपी, ये मेरी 3 उंगलियों से थोड़ा सा ही ज्यादा मोटा है और आप मेरी 3 उंगलियाँ अपनी चूत में ले चुकी हो। इतना दर्द नहीं होगा और अगर हुआ तो मुझे बता देना मैं इसे बाहर निकाल लूँगा"

अपनी बात कह कर मैंने डिल्डो के हेड पर बहुत सारा तेल लगाया और कुछ तेल अपनी उंगली पर लगा कर आपी की चूत की अंदरूनी दीवारों पर भी लगा दिया। अब डिल्डो को हेड से ज़रा पीछे से पकड़ कर मैंने एक बार आपी को देखा। वो मेरे हाथ में पकड़े डिल्डो को देख रही थीं और उनकी आँखों में फ़िक्र मंदी के आसार साफ पढ़े जा सकते थे।

मैं कुछ देर डिल्डो को ऐसे ही थामे हुए आपी के चेहरे पर नज़र जमाए रहा तो उन्होंने मेरी नजरों को महसूस करके मेरी तरफ देखा। आपी से नज़र मिलने पर मैंने आँखों से ही ऐसे इशारा किया जैसे कहा हो कि ‘फ़िक्र ना करो, मैं हूँ ना…’

फिर आहिस्तगी से आपी की चूत के लबों के दरमियान डिल्डो का हेड रख कर उससे लकीर में फेरा जिससे आपी की चूत के दोनों लब जुदा हो गए और हेड डायरेक्ट चूत के अंदरूनी नरम हिस्से पर टच होने लगा। मैंने 3-4 बार ऐसे ही डिल्डो के हेड को चूत के अन्दर ऊपर से नीचे तक फेरा और फिर उसकी नोक को चूत के निचले हिस्से में सुराख पर रख कर हल्का सा दबाव दिया।

आपी की चूत उनके अपने ही जूस से चिकनी हो रही थी और मैंने काफ़ी सारा आयिल भी चूत के अन्दर और डिल्डो के हेड पर लगा दिया था जिसकी वजह से पहले ही हल्के से दबाव से डिल्डो का हेड जो तकरीबन डेढ़ इंच लंबाई लिए हुए था एक झटके से अन्दर उतर गया।

उसके अन्दर जाने से आपी के जिस्म को भी एक झटका लगा और उन्होंने सिर को झटका देते हुए आँखें बंद करके एक सिसकारी भरी- “उम्म्म्म सगीर…”

मैं चंद सेकेंड ऐसे ही रुका और फिर डिल्डो को मज़ीद आधा इंच अन्दर धकेल कर आहिस्ता-आहिस्ता उसे हिलाने लगा।

आपी ने अपने सिर को ढलका कर अपना रुखसार (गाल) फरहान के लण्ड पर टिका दिया और आँखें बंद किए लंबी-लंबी सांसें लेकर बोलीं- “उफ्फ़ सगीर... बहुत मज़ा आ रहा है”

“देखा मैं कह रहा था ना, कुछ नहीं होगा... आप ऐसे ही टेन्शन ले रही थीं”

इतने मे मैंने फरहान को आपी की चूत का दाना चूसने का इशारा किया और डिल्डो को अन्दर-बाहर करते हुए आहिस्ता-आहिस्ता और गहराई में ढकेलने लगा। डिल्डो अब तकरीबन ढाई इंच तक अन्दर जा रहा था। मैं इतनी गहराई मेंटेंन रखते हुए आपी की चूत में डिल्डो अन्दर-बाहर करता रहा।

कुछ देर बाद मैंने डिल्डो को मज़ीद गहराई में उतारने के लिए थोड़ा दबाव दिया तो आपी ने तड़फ कर एक झटका लिया और सिर उठा लिया।

फिर मेरी तरफ गर्दन घुमा कर मेरी आँखों में देखती हुई सिसक कर बोलीं- “बस सगीर और ज्यादा अन्दर मत करो। बहुत दर्द होता है बस इतना ही अन्दर डाले आगे-पीछे करते रहो”

मैं समझ गया था कि अब आपी की चूत का परदा सामने आ गया है और डिल्डो वहाँ ही टच हुआ था जिससे आपी को दर्द हुआ। मैं खुद भी आपी की चूत के पर्दे को डिल्डो से फाड़ना नहीं चाहता था। बल्कि मैं चाहता था कि मेरी बहन की चूत का परदा मेरे लण्ड की ताकत से फटे। मेरी बहन का कुंवारापन मेरे लण्ड की वहशत से खत्म हो।

TO BE CONTINUED .....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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ab ho asli khel shuru..................wah
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Heart 
आप लोगों से एक ही गुज़ारिश है कि अच्छी बुरी जैसी भी हो अपनी राय अवश्य दिया करिए .....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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मैंने आपी की बात सुन कर मुस्कुरा कर उन्हें देखा और कहा- “अच्छा जी, तो इसका मतलब है। हमारी बहना जी को इससे बहुत मज़ा आ रहा है”

आपी ने मज़े से डूबी आवाज़ में कहा- “हाँ सगीर! उम्म्म्म मम... यह बहुत अलग सा मज़ा है... बहुत हसीन अहसास है... आह…”

मैंने लोहा गर्म देखा तो कहा- “तो आपी मुझे डालने दो ना अपना लण्ड, जब हुमच हुमच कर आपको चोदूगा, उससे और ज्यादा मज़ा मिलेगा”

“नहीं सगीर! वो अलग चीज़ है। तुम्हें नहीं पता क्या? उससे मैं प्रेग्नेंट भी हो सकती हूँ”

“कुछ नहीं होता आपी, मैं कंडोम लगा लूँगा ना”

“नहीं ना सगीर, मुझे पता है कंडोम भी हमेशा सेफ नहीं होता”

“मैं छूटने लगूंगा तो लण्ड बाहर निकाल लूँगा ना”

“अच्छा?? और अगर तुमने एक सेकेंड के लिए भी अपना कंट्रोल खो दिया तो फिर?”

“आपी मैं सुबह गोलियाँ ला दूँगा। प्रेग्नेन्सी रोकने की, आप वो खा लेना”

मेरे बहस करने से आपी के अंदाज़ में थोड़ी झुंझलाहट पैदा हो गई थी। उन्होंने कहा- “बस! नहीं ना सगीर, खामखाँ ज़िद मत करो”

आपी किसी तरह भी नहीं मान रही थीं तो मैंने अपने आपको समझाया कि शायद अभी वक्त ही नहीं आया है। इन सब बातों के दौरान मेरे हाथ की हरकत भी रुक गई थी और फरहान ने भी आपी की चूत से मुँह हटा लिया था और हमारी बातें सुन रहा था कि शायद कोई बात बन ही जाए लेकिन बात ना बनते देख कर उसने बेचारगी से मुझे देखा तो मैंने उसे वापस चूत का दाना चूसने का इशारा किया और उदास सा चेहरा लिए हार मान कर आपी से कहा- “अच्छा छोड़ें इसको, आप अभी अपना मज़ा खराब नहीं करो”

फरहान ने फिर से चूत से मुँह लगा दिया था तो मैंने भी अपने हाथ को हरकत देनी शुरू कर दी और आपी की चूत में डिल्डो अन्दर बाहर करने लगा और आपी ने भी फिर से अपना सिर झुकाया और फरहान का लण्ड चूसने लगीं।

लेकिन मेरा जेहन वहाँ ही अटका हुआ था कि मैं कैसे चोदूँ आपी को। ये ही सोचते-सोचते मैंने चंद सेकेंड्स में अपने जेहन में प्लान तरतीब दिया और अमल करने का फ़ैसला करते हुए फरहान को इशारा किया कि वो डिल्डो को पकड़े। फरहान ने कुछ ना समझने के अंदाज़ में मुझे देखा और डिल्डो को पकड़ लिया। मैंने इशारों-इशारों में फरहान को समझाया कि डिल्डो को ज्यादा अन्दर ना करे और इसी रिदम से जैसे मैं अन्दर-बाहर कर रहा हूँ, ऐसे ही करता रहे।

फरहान मेरी बात को समझ गया और उसी तरह आहिस्ता-आहिस्ता डिल्डो आपी की चूत में अन्दर-बाहर करने लगा। मैं अपनी जगह से उठा और आपी के पीछे अपनी पोजीशन सैट करके ऐसे बैठा कि मेरा जिस्म आपी के जिस्म से टच ना हो।

मैं अपने लण्ड को हाथ में पकड़ कर आपी की चूत के क़रीब लाया और फरहान को इशारा किया कि वो 3 बार ऐसे ही अन्दर-बाहर करे और चौथी बार इसी रिदम में डिल्डो बाहर निकाल कर ऊपर कर ले। फरहान को अब अंदाज़ा हो गया था कि मैं क्या करने लगा हूँ और उसकी आँखों में जोश सा भर गया था।

उसने मेरी बात समझ कर आँखों से इशारा किया कि वो तैयार है! मैंने अपनी पोजीशन को सैट किया और अपना लण्ड आपी की चूत के जितने नज़दीक ले जा सकता था, ले आया।

लेकिन इस बात का ख्याल रखा कि लण्ड आपी की चूत से टच ना हो फिर मैंने हाथ के इशारे से फरहान को रेडी का इशारा किया और खुद भी लण्ड अन्दर डालने के लिए तैयार हो गया। जैसे मैंने फरहान को समझाया था उसी तरह उसने 3 बार इसी रिदम में अन्दर-बाहर किया और चौथी बार में बाहर निकाल कर ऊपर उठा लिया।

जैसे ही फरहान ने डिल्डो बाहर निकाला मैंने एक सेकेंड लगाए बगैर अपना लण्ड अन्दर ढकेल दिया। आपी उस वक़्त एक लम्हे को ठिठक कर रुकीं और फिर से लण्ड चूसने लगीं। आपी को इस तब्दीली का पता नहीं चला था और वो ये ही समझी थीं कि डिल्डो गलती से बाहर निकल गया था जो मैंने दोबारा अन्दर डाल दिया है।

आपी की चूत में मेरा लण्ड दो इंच चला गया था, मैं कोशिश कर रहा था कि डिल्डो वाला रिदम कायम रखते हुए ही अपना लण्ड अन्दर-बाहर करता रहूँ। बहुत अजीब सी सिचुयेशन थी। मेरा लण्ड चूत के अन्दर था लेकिन मैं मज़े को फील नहीं कर पा रहा था और वो बात ही नहीं थी जो चूत में लण्ड डालने से होनी चाहिए थी। शायद इसकी वजह यह थी कि मैंने आपी की मर्ज़ी के बगैर उनकी चूत में लण्ड डाला था।

शायद आपी की नाराज़गी का डर था या अपनी सग़ी बहन की चूत में लण्ड डालने से गिल्टी का अहसास था या शायद मेरी पोजीशन ऐसी थी कि मैं अकड़ा हुआ था और कोशिश यह थी कि मेरा जिस्म आपी से टच ना हो और रिदम भी कायम रहे।

इसलिए मैं अपना बैलेन्स बनाए रखने की कोशिश कर रहा था। बरहराल पता नहीं क्या बात थी कि मुझे रत्ती भर भी मज़ा नहीं फील हो रहा था। मैंने 4-5 बार ही अपने लण्ड को आपी की चूत में अन्दर-बाहर किया था कि एकदम मेरा बैलेन्स बिगड़ गया और मैंने अपने आपको आपी पर गिरने से बचाते हुए हाथ सामने किए जो सीधे आपी के कूल्हों पर पड़े और कूल्हे नीचे दब गए और इसी झटके की वजह से मेरा लण्ड भी झटके से आगे बढ़ा और आपी की चूत के पर्दे पर मामूली सा दबाव डाल कर रुक गया।

आपी ने मेरे हाथों को झटके से अपने कूल्हों पर पड़ते और अपने परदा-ए-बकरत पर लण्ड के दबाव को महसूस किया तो सिर उठा कर तक़लीफ़ से कराहते हुए कहा- “उफ्फ़… आराम से करो नाआआ… जंगलीईइ… सारा अन्दर डालोगे क्या?”

यह कह कर आपी ने पीछे देखा तो मेरी पोजीशन देख कर उनकी आँखें फटी की फटी रह गईं और उन्हें अंदाज़ा हुआ कि जिस दबाव को उन्होंने अपनी चूत के पर्दे पर महसूस किया वो डिल्डो नहीं बल्कि उनके अपने सगे भाई का लण्ड था।

तो वो तड़फ कर चिल्ला के बोलीं- “नहीं… सगीर... खबीस मैंने तुम्हें मना किया था... बाहर निकालोओ जल्दीई...”

यह कह कर आपी उठने के लिए ज़ोर लगाने लगीं लेकिन मेरे हाथों ने आपी के कूल्हों को दबा रखा था और मेरा पूरा वज़न आपी पर था जिसकी वजह से वो उठने में कामयाब ना हो सकीं।

मैंने अपना वज़न आपी के ऊपर से हटाते हुए कहा- “कुछ नहीं होता आपी, देखो आपको कितना ज्यादा मज़ा आ रहा था”

आपी ने भर्राई हुई आवाज़ में कहा- “नहीं सगीर, इसे फ़ौरन निकालो और मुझे उठने दो। नहीं तो मैं तुम्हें ज़िंदगी भर माफ़ नहीं करूँगी, याद रखना”

यह कहते ही उन्होंने फूट-फूट कर रोना शुरू कर दिया। यह हक़ीक़त है कि मैं अपनी बहन की आँखों में कभी आँसू नहीं देख सकता हूँ। सेक्स या हँसी-मज़ाक़ अपनी जगह लेकिन आपी की आँखें नम देख कर मेरा दिल बंद होने लगता है।

आपी अभी जिस तरह फूट कर रोई थीं, मैं दंग रह गया। आपी को इस तरह रोता देख कर मेरी हवस ही गुम हो गई। मैंने तड़फ कर अपना लण्ड आपी की चूत से बाहर खींचा तो वे फ़ौरन फरहान के ऊपर से उठ कर साइड पर बैठ गईं।

TO BE CONTINUED .....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
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अब तो मनाना पड़ेगा......वैसे २-३ ट्राय में ही उछल-उछलकर लेने लगेगी
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Heart 
“अच्छा आपी प्लीज़ रोओ मत, मैं कुछ नहीं कर रहा प्लीज़ आपी, चुप हो जाओ” -मैं यह कह कर आगे बढ़ा और आपी को अपनी बाँहों में ले लिया।

आपी ने एक झटका मारा और मुझे धक्का दे कर मेरी बाँहों के हलक़े से निकल गईं और शदीद रोते हुए कहा- “सगीर! मैंने मना किया था ना तुम्हें, क्यों मुझे इस तरह ज़लील करते हो? मैं खुद ये करना चाहती हूँ लेकिन मैं इसके लिए अभी तैयार नहीं हूँ”

मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या कहूँ। इतनी शिद्दत से आपी को रोते हुए मैंने पहले कभी नहीं देखा था। मेरी समझ में कुछ ना आया तो मैंने आपी को बाँहों में लेने के लिए हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा- “आपी आई लव यू, मैं आप से बहुत मुहब्बत करता हूँ। मैं कभी ये नहीं चाहता कि आपको कोई तक़लीफ़ दूँ या आप की मर्ज़ी के खिलाफ कुछ करूँ। बस पता नहीं क्या हो गया था मुझे, प्लीज़ आपी माफ़ कर दो मुझे”

यह कह कर मैंने आपी को फिर बाँहों में लेना चाहा तो उन्होंने चिल्ला कर गुस्से से कहा- “नहींईईई नाआअ सगीर… दूर रहो मुझसे…”

वे रोते-रोते ही खड़ी हो कर अपने कपड़े उठाने लगीं। फरहान इन सारे हालात पर बिल्कुल खामोश और गुमसुम सा बैठा था, उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि आपी को या मुझे कुछ कहे या आगे बढ़े।

आपी को इस तरह बेक़ाबू देख कर मैंने भी दोबारा उनसे कुछ कहने की हिम्मत नहीं की और उनसे दूर खड़ा खामोशी से उन्हें क़मीज़ सलवार पहनते देखता रहा।

आपी अभी भी रो रही थीं और उनकी आँखों से आँसू गिरना जारी थे।

रोते-रोते ही आपी ने अपनी सलवार पहनी और फिर क़मीज़ से अपने आँसू साफ करके क़मीज़ पहन ली। लेकिन ना तो आपी के आँसू रुक रहे थे और ना ही उनकी हिचकियाँ कम हो रही थीं। उन्होंने अपना स्कार्फ सिर्फ़ पर बाँधा और ब्रा से अपनी आँखों को रगड़ते हुए हमारी तरफ नज़र डाले बगैर रूम से बाहर चली गईं।

आपी के जाने के बाद भी मैं कुछ देर वैसे ही गुमसुम सा खड़ा रहा कि एकदम से फरहान की आवाज़ आई- “भाई…भाई आप थोड़ा…”

मैंने फरहान के पुकारने से घूम कर उसे देखा और उसकी बात काट कर बोला- “यार अब तो मेरा दिमाग मत चोदने लग जाना, मैं वैसे ही बहुत टेन्शन में हूँ”

मैं यह बोल कर ऐसे ही नंगा ही अपने बिस्तर की तरफ चल दिया तो फरहान सहमी हुए से अंदाज़ में बोला- “भाई आप मुझ पर क्यों गुस्सा हो रहे हैं? मेरा क्या क़ुसूर है?”

मुझे फरहान की आवाज़ इस वक़्त ज़हर लग रही थी। उसके दोबारा बोलने पर मैंने गुस्से से उससे देखा तो उसकी मासूम और मायूस सूरत देख कर मेरा गुस्सा एकदम से झाग की तरह बैठ गया और मैंने सोचा यार वाकयी ही इस बेचारे का क्या क़ुसूर है। मैंने उससे कुछ नहीं कहा और बिस्तर पर लेट कर अपनी आँखों पर बाज़ू रख लिया।

तकरीबन 5-7 मिनट बाद मुझे कैमरा याद आया तो मैंने आँखों से बाज़ू हटा कर फरहान को देखा वो अभी तक वहाँ ज़मीन पर ही बैठा था लेकिन अब उसका चेहरा नॉर्मल नज़र आ रहा था और शायद वो कुछ देर पहले के आपी के साथ गुज़रे लम्हात में खोया हुआ था।

मैंने उसके चेहरे पर नज़र जमाए हुए ही उसे आवाज़ दी- “फरहान!!”

उसने चौंक कर मुझे देखा और बोला- “जी भाई?”

“यार वो कैमरा टेबल पर पड़ा है, उसकी रिकॉर्डिंग ऑफ कर दे”

यह कहते ही मैंने वापस अपनी आँखों पर बाज़ू रखा ही था कि फरहान की खुशी में डूबी आवाज़ आई- “वॉववव भाई! आपने सारी मूवी बनाई है?”

मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और आपी के बारे में सोचने लगा। मुझे अपने आप पर शदीद घुसा आ रहा था कि मैंने अपनी फूल जैसी बहन को इतना रुलाया किया था कि अगर मैं अपने ऊपर कंट्रोल करता और ये सब ना करता? लेकिन मैं भी क्या कर सकता था। उस वक़्त मेरा जेहन कुछ सोचने-समझने के क़ाबिल ही नहीं रहा था।

ऐसी भी क्या बेहोशी यार, मर्द को अपने ऊपर इतना तो कंट्रोल होना ही चाहिए।
मैं ऐसी ही मुतज़ाद सोचों से लड़ रहा था कि आहिस्ता-आहिस्ता बिस्तर के हिलने से मेरे ख़यालात का सिलसिला टूटा और मैंने आँखें खोल कर देखा तो फरहान बिस्तर की दूसरी तरफ लेट कर कैमरा हाथ में पकड़े हमारी मूवी देखते हुए मुठ मार रहा था।

मैंने चिड़चिड़े लहजे में कहा- “यार क्या है फरहान! सोने दे मुझे, जा बाथरूम में जा कर देख वहाँ ही मुठ मार”

मेरे इस तरह बोलने से फरहान डर कर फ़ौरन उठते हुए बोला- “अच्छा भाई सॉरी, आप सो जाओ”

वो बाथरूम की तरफ चल दिया। फरहान के जाते ही मैंने दोबारा अपनी आँखें बंद कर लीं मेरा जेहन बहुत उलझा हुआ था। आपी के रोने की वजह से दिल पर अजीब सा बोझ था और उन्हीं सोचों से लड़ते-झगड़ते जाने कब मुझे नींद आ गई।

अचानक… …

अपनी गर्दन पर शदीद तक़लीफ़ के अहसास से मेरे मुँह से एक सिसकी निकली बेसाख्ता ही मेरे हाथ अपनी गर्दन की तरफ उठे और बालों के गुच्छे में उलझ गए। मैंने हड़बड़ा कर आँख खोली तो एक जिस्म को अपने ऊपर झुका पाया।

वो जिस्म मेरे ऊपर बैठा था और उसने अपने दाँत मेरी गर्दन में गड़ा रखे थे कि जैसे मेरा खून पीना चाहता हो। मैंने उसके सिर के बालों को जकड़ा और ज़रा ताक़त से ऊपर की तरफ खींचा तो मेरी नज़र उसके चेहरे पर पड़ी।

वो चेहरा तो मेरी बहन का ही था लेकिन अजीब सी हालत में आपी के बाल बिखरे और उलझे हुए थे। दाँतों को आपस में मज़बूती से भींच रखा था और आँखें लाल सुर्ख हो रही थीं कि जैसे उन में खून उतरा हुआ हो!

उनके बाल मेरे हाथ में जकड़े हुए थे और ताक़त से खींचने की वजह से उनके चेहरे पर दर्द का तब्स्सुर भी पैदा हो गया और गुलाबी रंगत लाली में तब्दील हो कर एक खौफनाक मंजर पेश कर रही थी। वो चेहरा आपी का नहीं बल्कि किसी खौफनाक चुड़ैल का चेहरा था।

मेरी नींद मुकम्मल तौर पर गायब हो चुकी थी मैं हैरत से बुत बना आपी के चेहरे को ही देखा जा रहा था और मेरी गिरफ्त उनके बालों पर ढीली पड़ चुकी थी।

आपी ने अपने सिर पर रखे मेरे हाथ को कलाई से पकड़ा और झटके से अपने बालों से अलग करके सीधी बैठीं तो आपी के सीने के बड़े-बड़े उभारों और खड़े पिंक निप्पल्स पर मेरी नज़र पड़ी जो आज कुछ ज्यादा ही तने हुए महसूस हो रहे थे।

उसी वक़्त मुझ पर ये वज़या हुआ कि आपी बिल्कुल नंगी हैं कुछ देर पहले आपी के नंगे उभार मेरे सीने से ही दबे हुए थे लेकिन तक़लीफ़ के अहसास और फिर आपी की अजीब हालत के नज़ारे में खोकर मैं इस पर तवज्जो नहीं दे सका था।

आपी मेरी रानों पर सीधी बैठी कुछ देर तक अपनी खूँख्वार आँखों से मुझे देखती रहीं फिर उन्होंने अपने दोनों हाथ मेरे पेट पर रख कर ज़ोर दिया और नीचे उतर कर मेरे सिकुड़े हुए लण्ड को पकड़ा और पूरी ताक़त से खींचते हुए भर्राई आवाज़ में बोलीं- “उठो सगीर... जल्दी”

उनकी आवाज़ ऐसी थी जैसे किसी गहरे कुँए से आ रही हो। आपी ने मुझे लण्ड से पकड़ कर खींचा था और लण्ड पर पड़ने वाले खिंचाव के तहत मैं बेसाख्ता खिंचता हुआ सा खड़ा हो गया।

TO BE CONTINUED .....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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मेरे खड़े होने पर भी आपी ने मेरे लण्ड को अपने हाथ से नहीं छोड़ा और इसी तरह मज़बूती से लण्ड को पकड़े अपने क़दम आगे बढ़ा दिए। मैं सिहरजदा सी कैफियत में कुछ बोले, कुछ पूछे बिना ही आपी के पीछे घिसटने लगा।

आपी के लंबे बालों का ऊपरी हिस्सा खुला था लेकिन बालों के निचले हिस्से पर चुटिया सी अभी भी कायम थी। ऊपरी घने बाल बिखरे होने की वजह से उनकी कमर मुकम्मल तौर पर छुप गई थी लेकिन जहाँ से आपी के कूल्हों की गोलाई शुरू होती थी वहाँ से बालों की चुटिया भी शुरू हो जाती थी जो आपी के खूबसूरत गोल-गोल कूल्हों की दरमियानी लकीर में किसी बल खाते साँप की तरह आती और लकीर के दरमियानी हिस्से को चूम कर कभी दायें और कभी बायें कूल्हे की ऊँचाइयों को चाटने निकल जाती।

आपी कमरे का दरवाज़ा खोलने को रुकीं तो मैंने देखा कि उनकी सलवार वहाँ ही दरवाज़े के पास पड़ी थी जो मेरे पास बिस्तर पर आने से पहले आपी ने उतार फैंकी होगी। मैं आपी की क़मीज़ की तलाश में सलवार के आस-पास नज़र दौड़ा ही रहा था कि मेरा जिस्म झटके से आगे बढ़ा।

आपी दरवाज़ा खोल चुकी थीं और उन्होंने बाहर निकलते हुए मेरे लण्ड को झटके से खींचा था। मेरा क़दम खुद बखुद ही आगे को उठ गया और इतनी देर में पहली बार मेरी ज़ुबान खुली- “यार आपी कहाँ ले जा रही हो? कुछ बोलो तो?”

आपी ने रुक कर एक नज़र मुझे देखा और बोली- “स्टडी रूम में…”

यह कह कर उन्होंने फिर चलना शुरू कर दिया। मैं भी आपी के पीछे ही क़दम उठाने लगा। सीढ़ियों के पास मेरे पाँव में कोई कपड़ा उलझा और मैंने गिरते-गिरते संभल कर देखा तो वो आपी की क़मीज़ थी। मेरे जेहन ने फ़ौरन कहा मतलब आपी ने सीढ़ियाँ चढ़ते-चढ़ते क़मीज़ उतारी होगी और ऊपर पहुँचते ही सिर से निकाल फैंकी होगी। मेरे लड़खड़ाने पर भी आपी रुकी नहीं थीं और मैं संभल कर फिर से उनके पीछे चलता हुआ स्टडी रूम में दाखिल हो गया।

स्टडी रूम के दरवाज़े के पास ही मेरे बिल्कुल सामने खड़े हो कर आपी ने लण्ड को छोड़ा और आहिस्तगी से अपने दोनों हाथ उठा कर मेरे सीने पर रख दिए और अपनी गर्दन को राईट साइड पर झुकाते हुए नर्मी से हथेलियाँ मेरे सीने पर फेरने लगीं।

आपी ने 3-4 बार ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर मेरे सीने को सहलाते हुए हाथ फेरे और फिर दोनों हथेलियाँ गर्दन से थोड़े नीचे रखते हुए ताक़त से मुझे धक्का दिया और घूम कर दरवाज़ा लॉक करने लगीं। आपी के इस अचानक धक्के से मैं लरखड़ाता हुआ दो क़दम पीछे हट गया। आपी की यह कैफियत मेरी समझ में नहीं आ रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे उनके जिस्म में कोई खबीस की रूह घुस गई हो और वो उस खबीस रूह के ज़ेरे-असर ये सब कर रही हों।

आपी दरवाज़ा लॉक करके घूमीं और लाल सुर्ख आँखों से मुझे देखने लगीं। यकायक ही आपी की अंगार आँखों में एक चमक सी पैदा हुई और किसी शेरनी के अंदाज़ में वो मुझ पर झपट पड़ीं। मैं आपी के इस अचानक के हमले के लिए तैयार नहीं था इसलिए जब उनका बदन मेरे जिस्म से टकराया तो मैं खुद को संभाल ना पाया और लड़खड़ाता हुआ पीछे की जानिब गिरा और आपी ने भी मुझ पर चढ़ते हुए मेरे साथ ही नीचे आ गिरीं।

लेकिन फर्श पर नरम कार्पेट होने की वजह से मुझे चोट नहीं लगी थी लेकिन आपी को तो जैसे कोई परवाह ही नहीं थी कि मैं मरूं या जीऊँ। आपी मेरे ऊपर छा सी गईं।

मैं झटके से ज़मीन पर गिरा जिसकी वजह से एक लम्हें के लिए मेरा लण्ड जो उस वक़्त कुछ ढीला कुछ अकड़ा सा था, भी ऊपर पेट की जानिब झटके से उठा था और उसी वक़्त आपी मेरे ऊपर बैठीं तो मेरे लण्ड का निचला हिस्सा मुकम्मल तौर पर आपी की चूत की लकीर में फिट हुआ और मेरी कमर ज़मीन से टच हो गई।

आपी ने अपनी चूत की लकीर में मेरे लण्ड को दबाए हुए ही अपने घुटने मेरे जिस्म के इर्द-गिर्द नीचे कार्पेट पर टिकाए और अपने सीने के उभारों को मेरे सीने पर दबा कर वहशी अंदाज़ में मेरी गर्दन को चूमने और दाँतों से काटने लगीं।

मुझे आपी के दाँतों से तक़लीफ़ भी हो रही थी लेकिन हैरत अंगैज़ तौर पर इस तक़लीफ़ से मुझे अनजानी सी लज्जत महसूस होने लगी। मेरा लण्ड आपी की चूत के नीचे दबे हुए ही सख़्त होना शुरू हो गया।

आपी ने दाँतों से काटने के साथ-साथ अब मेरे कंधों, बाजुओं, सीने गरज़ यह कि जहाँ-जहाँ उनका हाथ पहुँच सकता था वहाँ से मुझे नोंचना शुरू कर दिया था और अपने तेज नाख़ुनों से मुझ पर खरोंचें डालती जा रही थीं।

मैंने आपी को अपने ऊपर से हटाने की कोशिश नहीं की। ये अज़ीयत, ये तक़लीफ़ मेरे अन्दर जैसे बिजली सी भरती जा रही थी और मेरा अंदाज़ भी वहशियाना होता चला गया। मैंने भी आपी की कमर पर दोनों हाथ रखे और अपने नाख़ून उनके नर्म-ओ-नाज़ुक बदन में गड़ा कर नीचे की तरफ घसीट दिया।

आपी ने फ़ौरन मेरी गर्दन से दाँत हटा कर चेहरा ऊपर उठाया उनके मुँह से अज़ीयत और लज़्ज़त से मिली-जुली एक कराह निकली- “आओउ... उउफफफ्फ़...”

मैंने इस मौके का फ़ायदा उठा कर फ़ौरन अपना हाथ आपी की गर्दन पर रखा और गर्दन जकड़ते हुए उनको थोड़ा और ऊपर को उठा दिया। आपी के ऊपर उठने से उनके सीने के नर्मोनाज़ुक लेकिन खड़े उभार मेरे सामने आ गए।

मैंने एक लम्हा ज़ाया किए बगैर अपना सिर उठाया और उनके लेफ्ट उभार को अपने मुँह में भर कर अपने दाँतों से दबा दिया।

आपी ने तड़फ कर एक अज़ीयतजदा ‘आअहह…’ भरी। अपनी कोहनी को मेरे सिर के पास ही ज़मीन पर टिकाया और हाथ से मेरे सिर के बाल जकड़ा और दूसरे हाथ की मुठी में मेरे सीने के बाल पकड़ कर खींचने लगीं।

हम दोनों बहन-भाई की ही हालत अजीब सी हो गई थी जो कि मैं सही तरह लफ्जों में बयान नहीं कर सकता। बस हमारे अंदाज़ में एक दीवानगी थी, वहशीपन था, हैवानियत थी, जुनून था, शैतानियत थी।

मेरी बहन मेरे लण्ड को अपनी चूत के नीचे दबाए मेरे सिर के बाल खींच रही थी। दूसरे हाथ से मेरे सीने पर अपने नाख़ून गड़ा कर खरोंचती जा रही थी। आपी ने मेरे सीने के बाल मुठी में भर कर खींचे तो सीने के बाल टूटने पर मैं तक़लीफ़ से बिलबिला उठा और आपी को छोड़ने की बजाए मज़ीद वहशी अंदाज़ में उनके सीने के उभार को मुँह से निकाल कर दोनों उभारों के दरमियानी हिस्से पर दाँत गड़ा दिए।

मेरा लण्ड अब मुकम्मल तौर पर खड़ा हो चुका था लेकिन वो ऊपर की तरफ सिर उठाए दबा हुआ था यानि मेरे लण्ड का ऊपरी हिस्सा मेरे बालों वाले हिस्से से चिपका हुआ था। मेरे लण्ड की नोक नफ़ से कुछ ही नीचे टच थी और मेरे लण्ड का निचला हिस्सा आपी की चूत की लकीर में कुछ इस तरह बैठा हुआ था कि आपी की चूत के लिप्स ने मेरे लण्ड की दोनों साइड्स को भी ढांप दिया था।

आपी की चूत ने कुछ इस तरह मेरे लण्ड को अपनी आगोश में ले रखा था कि जैसे मुर्गी चूज़े को अपने पैरों में छुपा लेती है। आपी की चूत से बहते गाढ़े और चिकने पानी ने मेरे पूरे लण्ड को तर कर दिया था। आपी के हिलने से उनकी चूत मेरे लण्ड पर ही फिसल-फिसल जाती थी।

जब आगे फिसलने पर उनकी चूत का दाना मेरे लण्ड की नोक से टच होता तो उनके बदन में झुरझुरी सी उठती और आपी लरज़ कर मज़ीद वहशी अंदाज़ में अपने दाँत और नाख़ूनों को मेरे जिस्म में गड़ा देतीं। हम दोनों बहन-भाई इसी तरह जुनूनी अंदाज़ में एक-दूसरे को नोंचते खसोटते दुनिया-ओ-माफिया से बेखबर अपने जिस्मों को सुकून पहुँचाने की कोशिश कर रहे थे।

मैंने आपी के सीने के खूबसूरत उभारों पर दाँत गड़ाने के बाद उनकी गर्दन के निचले हिस्से को दाँतों में दबाया तो आपी ने भी उससे अंदाज़ में फ़ौरन अपना चेहरा मेरी दूसरी साइड पर लाकर मेरे कंधों में दाँत गड़ा दिए।

मैं आपी की कमर को खरोंचता हुआ अपने हाथ नीचे लाया और अपनी बहन के दोनों कूल्हों को अपने दोनों हाथों से पूरी ताक़त से नोंच कर मुख़्तलिफ़ करने में ऐसे ज़ोर लगाने लगा जैसे मैं उनके दोनों कूल्हों को बीच से चीर देना चाहता हूँ।

“अहह… सगीर…”

आपी ने एक चीखनुमा सिसकी भरी और तड़फ कर ऊपर को उठीं। आपी ने अपना ऊपरी जिस्म ऊपर उठा लिया लेकिन निचला हिस्सा ना उठा सकीं क्योंकि मैंने बहुत मज़बूती से उनके कूल्हों को नोंच कर चीरने के अंदाज में पकड़ रखा था जिसकी वजह से उनका निचला दर मेरे जिस्म पर दब कर रह गया था।

मेरे यूँ आपी के कूल्हों को चीरने से उन्हें जो तक़लीफ़ हो रही थी वो उनके चेहरे से दिख रही थी।

आपी ने अपने कूल्हों को छुड़ाने के लिए तड़फते हुए ऊपर उठने की कोशिश करते हुए ज़ोर लगा लगाया और मुस्तक़िल कराहते हुए कहा- “आईईईई... सगीर... बहुत दर्द हो रहा है प्लीज़...”

TO BE CONTINUED .....
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(01-04-2024, 01:29 PM)KHANSAGEER Wrote:
मेरे खड़े होने पर भी आपी ने मेरे लण्ड को अपने हाथ से नहीं छोड़ा और इसी तरह मज़बूती से लण्ड को पकड़े अपने क़दम आगे बढ़ा दिए। मैं सिहरजदा सी कैफियत में कुछ बोले, कुछ पूछे बिना ही आपी के पीछे घिसटने लगा।

आपी के लंबे बालों का ऊपरी हिस्सा खुला था लेकिन बालों के निचले हिस्से पर चुटिया सी अभी भी कायम थी। ऊपरी घने बाल बिखरे होने की वजह से उनकी कमर मुकम्मल तौर पर छुप गई थी लेकिन जहाँ से आपी के कूल्हों की गोलाई शुरू होती थी वहाँ से बालों की चुटिया भी शुरू हो जाती थी जो आपी के खूबसूरत गोल-गोल कूल्हों की दरमियानी लकीर में किसी बल खाते साँप की तरह आती और लकीर के दरमियानी हिस्से को चूम कर कभी दायें और कभी बायें कूल्हे की ऊँचाइयों को चाटने निकल जाती।

आपी कमरे का दरवाज़ा खोलने को रुकीं तो मैंने देखा कि उनकी सलवार वहाँ ही दरवाज़े के पास पड़ी थी जो मेरे पास बिस्तर पर आने से पहले आपी ने उतार फैंकी होगी। मैं आपी की क़मीज़ की तलाश में सलवार के आस-पास नज़र दौड़ा ही रहा था कि मेरा जिस्म झटके से आगे बढ़ा।

आपी दरवाज़ा खोल चुकी थीं और उन्होंने बाहर निकलते हुए मेरे लण्ड को झटके से खींचा था। मेरा क़दम खुद बखुद ही आगे को उठ गया और इतनी देर में पहली बार मेरी ज़ुबान खुली- “यार आपी कहाँ ले जा रही हो? कुछ बोलो तो?”

आपी ने रुक कर एक नज़र मुझे देखा और बोली- “स्टडी रूम में…”

यह कह कर उन्होंने फिर चलना शुरू कर दिया। मैं भी आपी के पीछे ही क़दम उठाने लगा। सीढ़ियों के पास मेरे पाँव में कोई कपड़ा उलझा और मैंने गिरते-गिरते संभल कर देखा तो वो आपी की क़मीज़ थी। मेरे जेहन ने फ़ौरन कहा मतलब आपी ने सीढ़ियाँ चढ़ते-चढ़ते क़मीज़ उतारी होगी और ऊपर पहुँचते ही सिर से निकाल फैंकी होगी। मेरे लड़खड़ाने पर भी आपी रुकी नहीं थीं और मैं संभल कर फिर से उनके पीछे चलता हुआ स्टडी रूम में दाखिल हो गया।

स्टडी रूम के दरवाज़े के पास ही मेरे बिल्कुल सामने खड़े हो कर आपी ने लण्ड को छोड़ा और आहिस्तगी से अपने दोनों हाथ उठा कर मेरे सीने पर रख दिए और अपनी गर्दन को राईट साइड पर झुकाते हुए नर्मी से हथेलियाँ मेरे सीने पर फेरने लगीं।

आपी ने 3-4 बार ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर मेरे सीने को सहलाते हुए हाथ फेरे और फिर दोनों हथेलियाँ गर्दन से थोड़े नीचे रखते हुए ताक़त से मुझे धक्का दिया और घूम कर दरवाज़ा लॉक करने लगीं। आपी के इस अचानक धक्के से मैं लरखड़ाता हुआ दो क़दम पीछे हट गया। आपी की यह कैफियत मेरी समझ में नहीं आ रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे उनके जिस्म में कोई खबीस की रूह घुस गई हो और वो उस खबीस रूह के ज़ेरे-असर ये सब कर रही हों।

आपी दरवाज़ा लॉक करके घूमीं और लाल सुर्ख आँखों से मुझे देखने लगीं। यकायक ही आपी की अंगार आँखों में एक चमक सी पैदा हुई और किसी शेरनी के अंदाज़ में वो मुझ पर झपट पड़ीं। मैं आपी के इस अचानक के हमले के लिए तैयार नहीं था इसलिए जब उनका बदन मेरे जिस्म से टकराया तो मैं खुद को संभाल ना पाया और लड़खड़ाता हुआ पीछे की जानिब गिरा और आपी ने भी मुझ पर चढ़ते हुए मेरे साथ ही नीचे आ गिरीं।

लेकिन फर्श पर नरम कार्पेट होने की वजह से मुझे चोट नहीं लगी थी लेकिन आपी को तो जैसे कोई परवाह ही नहीं थी कि मैं मरूं या जीऊँ। आपी मेरे ऊपर छा सी गईं।

मैं झटके से ज़मीन पर गिरा जिसकी वजह से एक लम्हें के लिए मेरा लण्ड जो उस वक़्त कुछ ढीला कुछ अकड़ा सा था, भी ऊपर पेट की जानिब झटके से उठा था और उसी वक़्त आपी मेरे ऊपर बैठीं तो मेरे लण्ड का निचला हिस्सा मुकम्मल तौर पर आपी की चूत की लकीर में फिट[Image: 53354567_065_f717.jpg]

हुआ और मेरी कमर ज़मीन से टच हो गई।

आपी ने अपनी चूत की लकीर में मेरे लण्ड को दबाए हुए ही अपने घुटने मेरे जिस्म के इर्द-गिर्द नीचे कार्पेट पर टिकाए और अपने सीने के उभारों को मेरे सीने पर दबा कर वहशी अंदाज़ में मेरी गर्दन को चूमने और दाँतों से काटने लगीं।[Image: 53354567_012_b555.jpg]

मुझे आपी के दाँतों से तक़लीफ़ भी हो रही थी लेकिन हैरत अंगैज़ तौर पर इस तक़लीफ़ से मुझे अनजानी सी लज्जत महसूस होने लगी। मेरा लण्ड आपी की चूत के नीचे दबे हुए ही सख़्त होना शुरू हो गया।

आपी ने दाँतों से काटने के साथ-साथ अब मेरे कंधों, बाजुओं, सीने गरज़ यह कि जहाँ-जहाँ उनका हाथ पहुँच सकता था वहाँ से मुझे नोंचना शुरू कर दिया था और अपने तेज नाख़ुनों से मुझ पर खरोंचें डालती जा रही थीं।
[Image: 53354567_042_b040.jpg]
मैंने आपी को अपने ऊपर से हटाने की कोशिश नहीं की। ये अज़ीयत, ये तक़लीफ़ मेरे अन्दर जैसे बिजली सी भरती जा रही थी और मेरा अंदाज़ भी वहशियाना होता चला गया। मैंने भी आपी की कमर पर दोनों हाथ रखे और अपने नाख़ून उनके नर्म-ओ-नाज़ुक बदन में गड़ा कर नीचे की तरफ घसीट दिया।

आपी ने फ़ौरन मेरी गर्दन से दाँत हटा कर चेहरा ऊपर उठाया उनके मुँह से अज़ीयत और लज़्ज़त से मिली-जुली एक कराह निकली- “आओउ... उउफफफ्फ़...”[Image: 53354567_044_874b.jpg]

मैंने इस मौके का फ़ायदा उठा कर फ़ौरन अपना हाथ आपी की गर्दन पर रखा और गर्दन जकड़ते हुए उनको थोड़ा और ऊपर को उठा दिया। आपी के ऊपर उठने से उनके सीने के नर्मोनाज़ुक लेकिन खड़े उभार मेरे सामने आ गए।

मैंने एक लम्हा ज़ाया किए बगैर अपना सिर उठाया और उनके लेफ्ट उभार को अपने मुँह में भर कर अपने दाँतों से दबा दिया।

आपी ने तड़फ कर एक अज़ीयतजदा ‘आअहह…’ भरी। अपनी कोहनी को मेरे सिर के पास ही ज़मीन पर टिकाया और हाथ से मेरे सिर के बाल जकड़ा और दूसरे हाथ की मुठी में मेरे सीने के बाल पकड़ कर खींचने लगीं।

हम दोनों बहन-भाई की ही हालत अजीब सी हो गई थी जो कि मैं सही तरह लफ्जों में बयान नहीं कर सकता। बस हमारे अंदाज़ में एक दीवानगी थी, वहशीपन था, हैवानियत थी, जुनून था, शैतानियत थी।

मेरी बहन मेरे लण्ड को अपनी चूत के नीचे दबाए मेरे सिर के बाल खींच रही थी। दूसरे हाथ से मेरे सीने पर अपने नाख़ून गड़ा कर खरोंचती जा रही थी। आपी ने मेरे सीने के बाल मुठी में भर कर खींचे तो सीने के बाल टूटने पर मैं तक़लीफ़ से बिलबिला उठा और आपी को छोड़ने की बजाए मज़ीद वहशी अंदाज़ में उनके सीने के उभार को मुँह से निकाल कर दोनों उभारों के दरमियानी हिस्से पर दाँत गड़ा दिए।

मेरा लण्ड अब मुकम्मल तौर पर खड़ा हो चुका था लेकिन वो ऊपर की तरफ सिर उठाए दबा हुआ था यानि मेरे लण्ड का ऊपरी हिस्सा मेरे बालों वाले हिस्से से चिपका हुआ था। मेरे लण्ड की नोक नफ़ से कुछ ही नीचे टच थी और मेरे लण्ड का निचला हिस्सा आपी की चूत की लकीर में कुछ इस तरह बैठा हुआ था कि आपी की चूत के लिप्स ने मेरे लण्ड की दोनों साइड्स को भी ढांप दिया था।[Image: 25514100_004_499a.jpg]

आपी की चूत ने कुछ इस तरह मेरे लण्ड को अपनी आगोश में ले रखा था कि जैसे मुर्गी चूज़े को अपने पैरों में छुपा लेती है। आपी की चूत से बहते गाढ़े और चिकने पानी ने मेरे पूरे लण्ड को तर कर दिया था। आपी के हिलने से उनकी चूत मेरे लण्ड पर ही फिसल-फिसल जाती थी।[Image: 25514100_005_499a.jpg]

जब आगे फिसलने पर उनकी चूत का दाना मेरे लण्ड की नोक से टच होता तो उनके बदन में झुरझुरी सी उठती और आपी लरज़ कर मज़ीद वहशी अंदाज़ में अपने दाँत और नाख़ूनों को मेरे जिस्म में गड़ा देतीं। हम दोनों बहन-भाई इसी तरह जुनूनी अंदाज़ में एक-दूसरे को नोंचते खसोटते दुनिया-ओ-माफिया से बेखबर अपने जिस्मों को सुकून पहुँचाने की कोशिश कर रहे थे।[Image: 25514100_014_cab8.jpg]

मैंने आपी के सीने के खूबसूरत उभारों पर दाँत गड़ाने के बाद उनकी गर्दन के निचले हिस्से को दाँतों में दबाया तो आपी ने भी उससे अंदाज़ में फ़ौरन अपना चेहरा मेरी दूसरी साइड पर लाकर मेरे कंधों में दाँत गड़ा दिए।

मैं आपी की कमर को खरोंचता हुआ अपने हाथ नीचे लाया और अपनी बहन के दोनों कूल्हों को अपने दोनों हाथों से पूरी ताक़त से नोंच कर मुख़्तलिफ़ करने में ऐसे ज़ोर लगाने लगा जैसे मैं उनके दोनों कूल्हों को बीच से चीर देना चाहता हूँ।

“अहह… सगीर…”

आपी ने एक चीखनुमा सिसकी भरी और तड़फ कर ऊपर को उठीं। आपी ने अपना ऊपरी जिस्म ऊपर उठा लिया लेकिन निचला हिस्सा ना उठा सकीं क्योंकि मैंने बहुत मज़बूती से उनके कूल्हों को नोंच कर चीरने के अंदाज में पकड़ रखा था जिसकी वजह से उनका निचला दर मेरे जिस्म पर दब कर रह गया था।[Image: 68264280_014_cd4b.jpg]

मेरे यूँ आपी के कूल्हों को चीरने से उन्हें जो तक़लीफ़ [Image: 76437902_181_9467.jpg]हो रही थी वो उनके चेहरे से दिख रही थी।

आपी ने अपने कूल्हों को छुड़ाने के लिए तड़फते हुए ऊपर उठने की [Image: 76437902_240_d145.jpg]कोशिश करते हुए ज़ोर लगा लगाया और मुस्तक़िल कराहते हुए कहा- “आईईईई... सगीर... बहुत दर्द हो रहा है प्लीज़...”

TO BE CONTINUED .....
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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Heart 
यह इस पूरे टाइम में पहली बार थी कि आपी के मुँह से कोई अल्फ़ाज़ निकले हों। इस बात ने मुझ पर यह भी वज़या कर दिया कि ऐसे कूल्हे चीरे जाने से आपी को वाकयी ही बहुत शदीद तक़लीफ़ हो रही है। मैंने अपने हाथों की गिरफ्त मामूली सी लूज की तो आपी का निचला दर ऊपर को उठा और उसके साथ ही उनकी चूत के नीचे दबा मेरा लण्ड भी आपी की चूत से रगड़ ख़ाता हुआ सीधा हो गया।

मेरे लण्ड की नोक आपी की चूत के ठीक एंट्रेन्स पर एक पल को रुकी और मैंने अपने हाथों से आपी के कूल्हों को हल्का सा नीचे की तरफ दबाया और अगले ही लम्हें मेरे लण्ड की नोक आपी की चूत के अन्दर उतर गई।

जैसे ही मेरे लण्ड की नोक आपी की चूत के अन्दर घुसी तो उससे महसूस करते ही आपी के मुँह से एक तेज लज़्ज़त भरी ‘आअहह…’ निकली और उन्होंने आँखें बंद करते हुए अपनी गर्दन पीछे को ढलका दी। उसके साथ ही जैसे सुकून सा छा गया, तूफ़ान जैसे थम सा गया हो, हर चीज़ कुछ लम्हों के लिए ठहर सी गई।

मैंने आहिस्तगी से अपने हाथ से आपी के कूल्हों की खूबसूरत गोलाइयों को छोड़ा और हाथ उनके जिस्म से चिपकाए हुए ही धीरे से आपी की कमर पर ले आया। आपी ने भी एक बेखुदी के आलम में अपने दोनों हाथ मेरे हाथों पर रख दिए।

अब पोजीशन ये थी कि मैं सीधा चित्त कमर ज़मीन पर टिकाए लेटा हुआ था। मैंने आपी की कमर को दोनों तरफ से अपने हाथों से थाम रखा था। मेरी कमर की दोनों तरफ में आपी के घुटने ज़मीन पर टिके हुए थे और वो मेरे हाथों पर अपने हाथ रखे गर्दन पीछे को ढुलकाए हुए लंबी-लंबी साँसें ले रही थीं।

चंद लम्हें ऐसे ही बीत गए फिर आपी ने अपनी गर्दन को साइड से घुमाते हुए सीधा किया और आँखें बंद रखते हुए ही धीमी आवाज़ में बोलीं- “सगीर मुझे लिटा दो नीचे…”

यह कहते ही आपी अपनी लेफ्ट और मेरी राईट साइड पर थोड़ी सी झुकीं और अपनी कोहनी ज़मीन पर टिका कर सीधी होने लगीं। आपी के साइड को झुकते ही मैं भी उनके साथ ही थोड़ा ऊपर हुआ और आपी की चूत में अपने लण्ड का मामूली सा दबाव कायम रखते हुए ही उनके साथ ही घूमने लगा।

मैंने लण्ड के दबाव का इतना ख़याल रखा था कि लण्ड मज़ीद अन्दर भी ना जा सके और चूत से निकलने भी ना पाए।

थोड़ा टाइम लगा लेकिन आहिस्तगी से ही मैं अपना लण्ड आपी की चूत के अन्दर रखने में ही कामयाब हो गया और हम दोनों मुकम्मल घूम गए। अब आपी अपनी आँखें बंद किए ज़मीन पर कमर के बल सीधी लेटी थीं, उनके घुटने मुड़े हुए थे लेकिन पाँव ज़मीन पर ही रखे हुए थे।

मैं अब आपी के ऊपर आ चुका था और उनकी टाँगों के दरमियान में लेटा हुआ सा था। मेरी टाँगें पीछे की जानिब सीधी थीं और मेरा पूरा वज़न मेरे हाथों पर था और हाथ आपी की बगल के पास ज़मीन पर टिके हुए थे।

लेकिन मैं इस पोजीशन में बहुत अनकंफर्टबल महसूस कर रहा था। मैं अपने घुटने मोड़ कर आगे लाने की कोशिश करता तो मुझे पता था कि मेरा लण्ड आपी की चूत से बाहर निकल आएगा और मैं ये नहीं चाहता था, मैंने आपी को पुकारा- “आपीयईई…”

उन्होंने आँखें खोले बगैर ही कहा- “हूँम्म...”

“आपी थोड़ी टाँगें और खोलो और पाँव ज़मीन से उठा लो”

मैंने ये कहा तो आपी ने अपने पाँव हवा में उठा लिए और घुटनों को मज़ीद मोड़ते हुए जितनी टाँगें खोल सकती थीं, खोल दीं। मैं बारी-बारी से अपने दोनों घुटनों को मोड़ते हुआ आगे लाया और आपी की रानों के नीचे से गुजार कर आगे कर लिए।

अब मेरे हाथों से वज़न खत्म हो गया था मैंने अपने दोनों हाथ उठाए और आपी के सीने के उभारों पर रख दिए और आहिस्तगी से उन्हें दबाते हुए मसलने लगा।

कुछ देर बाद आपी ने आँखें खोलीं, उनकी आँखें लज्जत और शहवात के नशे से बोझिल सी हो रही थीं। मैंने आपी की आँखों में देखते-देखते ही अपने लण्ड को थोड़ा आगे की तरफ दबाया तो आपी के मुँह से एक सिसकी निकल गई और उनके चेहरे पर हल्की सी तक़लीफ़ के आसार नज़र आने लगे।

आपी ने अपने दोनों हाथों की उंगलियों को कार्पेट में गड़ा दिया और पूरी ताक़त से कार्पेट को जकड़ लिया।

मैंने आँखों ही आँखों में सवाल किया कि आपी क्या तुम तैयार हो? और आपी की आँखों ने ‘हाँ’ में जवाब दिया।

मैंने आहिस्तगी से अपने लण्ड का दबाव आपी की चूत पर बढ़ाना शुरू किया तो उनके चेहरे पर तक़लीफ़ का तवस्सुर बढ़ने लगा और चेहरे का गुलाबीपन तक़लीफ़ के अहसास से लाली में तब्दील होने लगा।

मैंने दबाव बढ़ाते ही अपने ऊपरी जिस्म को झुकाया और आपी की आँखों में देखते हुए ही अपने होंठ आपी के होंठों के क़रीब ले गया। मेरे लण्ड की नोक पर अब आपी की चूत के पर्दे की सख्ती वज़या महसूस हो रही थी।

आपी की साँसें भी बहुत तेज हो चुकी थीं और दिल की धड़कन साफ सुनाई दे रही थी। आपी के जिस्म में हल्की सी लरज़ कायम थी।

मैंने अपने हाथ आपी के सीने के उभारों से उठा लिए और उनके चेहरे को मज़बूती से अपने हाथों में थाम कर आपी के होंठों को अपने होंठों में सख्ती से जकड़ा और उसी वक़्त अपने लण्ड को ज़रा ताक़त से झटका दिया और मेरा लण्ड आपी की चूत के पर्दे को फाड़ता हुआ अन्दर दाखिल हो गया।

आपी के जिस्म ने एक शदीद झटका खाया और बेसाख्ता ही उनके हाथ कार्पेट से उठे और मेरी कमर पर आए और आपी ने अपने नाख़ून मेरी कमर में गड़ा दिए।

आपी तक़लीफ़ को बर्दाश्त करने और अपनी चीख को रोकने में तो कामयाब हो गई थीं लेकिन तकलीफ़ की शिद्दत का अहसास उनके चेहरे से साफ ज़ाहिर था। उन्होंने अपनी आँखों को सख्ती से भींच रखा था, इसके बावजूद उनके गाल आंसुओं से तर हो गए थे।

मैंने आपी के होंठों से अपने होंठ उठा लिए और अपने जिस्म को सख्त रखते हुए आपी के चेहरे पर ही नजरें जमाई रखीं। मेरा लण्ड तकरीबन 4 इंच से थोड़ा ज्यादा ही आपी की चूत में उतर चुका था लेकिन अभी क़रीब 3 इंच बाक़ी था।

मैं थोड़ी देर आपी के चेहरे का जायज़ा लेता रहा और जब उनका चेहरा और आँखों का भींचना थोड़ा रिलैक्स हुआ तो मैंने एक झटका और मार कर अपना लण्ड आपी की चूत में जड़ तक उतार दिया।

मेरे पहले झटके के लिए तो आपी जहनी तौर पर तैयार थीं उन्होंने पर्दे के फटने की शदीद तक़लीफ़ को ज़रा मुश्किल से लेकिन सहन कर ही लिया था लेकिन मेरा ये झटका उनके लिए अचानक था।

इस झटके की तक़लीफ़ से बेसाख्ता उन्होंने अपना सिर ऊपर उठाया और मैंने अपना चेहरा उनसे बचाते हुए फ़ौरन ही साइड पर कर लिया।

आपी के मुँह से घुटी-घुटी आवाज़ निकली- “आआअ क्ककखह…”

उनका मुँह मेरे कंधे से टकराया और उन्होंने अपने दाँत मेरे कंधे में गड़ा दिए। आपी को तो जो तक़लीफ़ हो रही थी वो तो थी ही लेकिन उनके दाँत मेरे कंधे में गड़े थे और नाख़ून कमर में घुस से गए थे जिससे मुझे भी अज़ीयत तो बहुत हो रही थी लेकिन उस तक़लीफ़ पर लज़्ज़त का अहसास बहुत भारी था।

वो लज़्ज़त एक अजीब ही लज़्ज़त थी जिसे सिर्फ़ महसूस किया जा सकता है ब्यान नहीं किया जा सकता।

आपी की चूत अन्दर से इतनी गर्म हो रही थी कि मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मैंने किसी तंदूर में अपना लण्ड डाला हुआ हो। उनकी चूत ने मेरे लण्ड को हर तरफ से बहुत मज़बूती से जकड़ रखा था।

चंद लम्हें मज़ीद इसी तरह गुज़र गए अब आपी के दाँतों की गिरफ्त और नाख़ुनों की जकड़न दोनों ही ढीली पड़ गई थीं। मैंने आहिस्तगी से अपने लण्ड को क़रीब दो इंच पीछे की तरफ खींचा और इतनी ही आहिस्तगी से फिर अन्दर को ढकेल दिया।

मेरी आपी के मुँह से हल्की सी ‘आह...’ खारिज हुई लेकिन इस ‘आह...’ में तक़लीफ़ का तवस्सुर नहीं बल्कि मजे का अहसास था। उन्होंने आहिस्तगी से अपना सिर वापस ज़मीन पर टिका दिया। उनकी आँखें अभी भी बंद थीं।

मैंने अबकी बार फिर उसी तरह आहिस्तगी और नर्मी से लण्ड को क़रीब 3 इंच तक बाहर खींचा और फिर दोबारा अन्दर धकेल दिया और लगातार यही अमल करना जारी रखा लेकिन अपनी स्पीड को बढ़ने ना दिया।

TO BE CONTINUED .....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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मेरा लण्ड जब बाहर निकालता तो आपी अपने जिस्म को ज़रा ढील देतीं और जब मैं वापस लण्ड अन्दर पेलता तो उनके जिस्म में मामूली सा तनाव पैदा होता, आपी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ जाती उनका मुँह थोड़ा सा खुलता और एक लज्जत भरी नरम सी ‘आह...’ खारिज करते हुए वो मेरी कमर को सहला देतीं।

मैं हर बार इसी तरह नर्मी से लण्ड आपी की चूत में अन्दर-बाहर करता और हर बार आपी लज़्ज़त भरी ‘आह..’ खारिज करतीं।

मैंने 12-13 बार लण्ड अन्दर-बाहर किया और फिर पूरा लण्ड अन्दर जड़ तक उतार कर रुक गया और अपने चेहरे पर शरारती सी मुस्कान सजाए नजरें आपी के चेहरे पर जमा दीं। आपी कुछ देर तक इसी रिदम में लण्ड अन्दर-बाहर होने का इन्तजार करती रहीं और कोई हरकत ना होने पर उन्होंने अपनी आँखें खोल दीं।

आपी की पहली नज़र ही मेरे शरारती चेहरे पर पड़ी और सिचुयेशन की नज़ाकत का अंदाज़ा होते ही बेसाख्ता उनके चेहरा हया की लाली से सुर्ख पड़ गया और उन्होंने मुस्कुरा कर अपनी नज़रें मेरी नजरों से हटा लीं और चेहरा दूसरी तरफ करके दोबारा आँखें बंद कर लीं।

आपी की इस अदा को देख कर मैं शरारत से बा-आवाज़ हंस दिया तो आपी ने आँखें खोले बिना ही मासनोई गुस्से और शर्म से पूर लहजे में कहा- “क्या है कमीने, अपना काम करो ना, मेरी तरफ क्या देख रहे हो”

मैं आपी की बात सुन कर एक बार फिर हँसा और कहा- “अच्छा मेरी तरफ देखो तो सही ना, अब क्यों शर्मा रही हो? अब तो...”

मैंने अपना जुमला अधूरा ही छोड़ दिया। आपी की हालत में कोई तब्दीली नहीं हुई।

मैंने कुछ देर इन्तजार किया और फिर शरारत और संजीदगी के दरमियान के लहजे में कहा- “क्या हुआ आपी? अगर अच्छा नहीं लग रहा तो निकाल लूँ बाहर?”

आपी ने अपनी टाँगों को मज़ीद ऊपर उठाया और मेरे कूल्हों से थोड़ा ऊपर कमर पर अपने पाँव क्रॉस करके मेरी कमर को जकड़ लिया और अपने दोनों बाजुओं को मेरी गर्दन में डाल कर मुझे नीचे अपने चेहरे की तरफ खींचा और अपना चेहरा मेरी तरफ घुमाते हुए बोलीं- “अब निकाल कर तो देखो ज़रा, मैं तुम्हारी बोटी-बोटी नहीं नोंच लूँगी”

अपनी बात कहते ही आपी ने मेरे होंठों को अपने होंठों में ले लिया और मेरा निचला होंठ चूसने लगीं। मेरी बर्दाश्त भी अब जवाब देती जा रही थी। आपी ने होंठ चूसना शुरू किए तो मैंने अपने हाथों से उनके चेहरे को नर्मी से थामा और आहिस्ता आहिस्ता अपना लण्ड अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया।

यह मेरी ज़िंदगी में पहला मौका था कि मैं किसी चूत की नर्मी व गर्मी को अपने लण्ड पर महसूस कर रहा था। अजीब सी लज़्ज़त थी, अजीब सा सुरूर था।

पता नहीं हर चूत में ही ये सुरूर, ये लज़्ज़त छुपी होती है या इसका सुरूर इसलिए बहुत ज्यादा था कि ये कोई आम चूत नहीं बल्कि मेरी सग़ी बहन की चूत थी और बहन भी ऐसी कि जो इंतहाई हसीन थी, जिसे देख कर लड़कियाँ भी रश्क से ‘वाह...’ कह उठें।

अब आपी की तक़लीफ़ तकरीबन ना होने के बराबर रह गई थी और वो मुकम्मल तौर पर इस लज़्ज़त में डूबी चुकी थीं। हर झटके पर आपी के मुँह से खारिज होती लज़्ज़त भरी सिसकी इसका सबूत था।

मैंने अपनी स्पीड को थोड़ा सा बढ़ाया जिससे मेरा मज़ा तो डबल हुआ ही लेकिन आपी भी माशूर हो उठीं, उन्होंने अपनी आँखें खोल दीं और खामोशी और नशे से भरी नजरों से मेरी आँखों में देखते हुए अपने हाथ से मेरा सीधा हाथ पकड़ा जो कि उनके गाल पर रखा हुआ था।

अपने उस हाथ को उठा कर अपने सीने के उभार पर रखते हुए बोलीं- “आह... सगीर... इन्हें भी दबाओ न… लेकिन नर्मी से…”

मैंने लण्ड को उनकी चूत में अन्दर-बाहर करना जारी रखा और आपी की आँखों में देखते हुए ही मुस्कुरा कर अपने हाथ से आपी के निप्पल को चुटकी में पकड़ते हुए कहा- “आपी मज़ा आ रहा है? अब तक़लीफ़ तो नहीं हो रही ना?”

आपी ने भी मुस्कुरा कर कहा- “बहुत ज्यादा मज़ा आ रहा है सगीर, मेरा दिल चाह रहा है वक़्त बस यहाँ ही थम जाए और तुम हमेशा इसी तरह अपना लण्ड मेरी चूत में ऐसे ही अन्दर-बाहर करते रहो”

मैंने कहा- “फ़िक्र ना करो आपी, मैं हूँ ना अपनी बहना के लिए, जब भी कहोगी मैं हमेशा तुम्हारे लिए हाज़िर रहूँगा”

“सगीर मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मेरा कुंवारापन खत्म करने वाला लण्ड, मेरी चूत की सैर करने वाला पहला हथियार मेरे भाई, मेरे अपने सगे भाई का होगा” -आपी ने यह बात कही लेकिन उनके लहजे में कोई पछतावा या शर्मिंदगी बिल्कुल नहीं थी।

मैंने आपी की बात सुन कर कहा- “आपी, मेरी तो ज़िंदगी की सबसे बड़ी ख्वाहिश ही यह थी कि मेरा लण्ड जिस चूत में पहली दफ़ा जाए वो मेरी अपनी सग़ी बहन की चूत हो मेरी प्यारी सी आपी की चूत हो”

मेरे अपने मुँह से ये अल्फ़ाज़ अदा हुए तो मुझ पर इसका असर भी बड़ा शदीद ही हुआ और मैंने जैसे अपना होश खोकर बहुत तेज-तेज झटके मारना शुरू कर दिए।

मेरे इन तेज झटकों की वजह से आपी के मुँह से ज़रा तेज सिसकारियाँ निकलीं और वो अपने जिस्म को ज़रा अकड़ा कर घुटी-घुटी आवाज़ में बोलीं- “आह नहीं सगीर... प्लीज़ आहहीस... आहिस्ता... अफ दर्द होता है... आह… आहिस्ता करो प्लीज़…”

मैंने तेज-तेज 6-7 झटके ही मारे थे कि आपी की आवाज़ जैसे मुझे हवस में वापस ले आईं और मैं एकदम ठहर सा गया। मेरा सांस बहुत तेज चलने लगी थी।

मैं रुका तो आपी ने अपने जिस्म को ढीला छोड़ा और मेरे सिर के पीछे हाथ रख कर मेरे चेहरे को अपने सीने के उभारों पर दबा कर कहा- “सगीर इन्हें चूसो, इससे तक़लीफ़ का अहसास कम होता है”

मैंने आपी के एक उभार का निप्पल अपने मुँह में लिया और बेसाख्ता ही फिर से मेरे झटके शुरू हो गए और उस वक़्त मुझे ये पता चला कि जब आपका लण्ड किसी गरम चूत में हो तो कंट्रोल अपने हाथ में रखना तकरीबन नामुमकिन हो जाता है।

मुझे महसूस होने लगा कि मैं अब ज्यादा देर तक जमा नहीं रह पाऊँगा। मेरे झटकों की रफ़्तार खुद बा खुद ही मज़ीद तेज होने लगी। अब आपी भी मेरे झटकों को फुल एंजाय कर रही थीं। शायद उनकी मामूली तक़लीफ़ पर चूत का मज़ा और निप्पल चूसे जाने का मज़ा ग़ालिब आ गया था।

या शायद वो मेरे मज़े के लिए अपनी तक़लीफ़ को बर्दाश्त कर रही थीं इसलिए वो अब मुझे तेज झटकों से मना भी नहीं कर रही थीं। लेकिन अब आपी ने मेरे झटकों के साथ-साथ अपने कूल्हों को भी हरकत देना शुरू कर दिया था। जब मेरा लण्ड जड़ तक आपी की चूत में दाखिल होता तो सामने से आपी भी अपनी चूत को मेरी तरफ दबातीं और मेरी कमर पर अपने पाँव की गिरफ्त को भी एक झटके से मज़बूत करके फिर लूज कर देतीं और उनके मुँह से ‘आह...’ निकल जाती।

मैं अब अपनी मंज़िल के बहुत क़रीब पहुँच चुका था, लम्हा बा लम्हा मेरे झटकों में बहुत तेजी आती जा रही थी लेकिन मैं अपनी बहन से पहले डिसचार्ज होना नहीं चाहता था मैंने बहुत ज्यादा मुश्किल से अपने जेहन को कंट्रोल करने की कोशिश की और बस एक सेकेंड के लिए मेरा जेहन मेरे कंट्रोल में आया और मैंने यकायक अपना लण्ड बाहर निकाल लिया।

आपी ने फ़ौरन झुंझला कर ज़रा तेज आवाज़ में कहा- “रुक क्यों गए हो? प्लीज़ सगीर अन्दर डालो ना वापस, मैं झड़ने वाली हूँ। डालोऊऊ नाआअ...”

आपी की बात सुनते ही मैंने दोबारा लण्ड अन्दर डाला और मेरे तीसरे झटके पर ही आपी का जिस्म अकड़ना शुरू हुआ और मुझे साफ महसूस हुआ कि आपी की चूत ने अन्दर से मेरे लण्ड पर अपनी गिरफ्त मज़ीद मज़बूत कर ली है। जैसे चूत को डर हो कि कहीं लण्ड दोबारा भाग ना जाए।

TO BE CONTINUED .....
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ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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अभी मेरे मज़ीद 6-7 झटके ही हुए थे कि आपी का जिस्म पूरा अकड़ गया और उन्होंने मेरे सिर को अपनी पूरी ताक़त से अपने उभार पर दबा दिया और अब मुझे बहुत वज़या महसूस होने लगा कि आपी की चूत मेरे लण्ड को भींच रही है और फिर छोड़ रही है।

और उस वक़्त ही मुझे पहली बार ये बात मालूम हुई कि जब लड़की डिस्चार्ज होती है तो उसकी चूत लण्ड को इस तरह भींचती है कि कभी सिकुड़ती है तो कभी लूज होती है।

आपी ‘आहें...’ भरते हुए डिस्चार्ज हो गईं लेकिन मैंने अपने झटकों पर कोई फ़र्क़ नहीं आने दिया और अगले चंद ही झटकों में मेरा जिस्म भी शदीद तनाव में आया। मेरा लण्ड इतना सख्त हो गया था कि जैसे लोहा हो।

फिर जैसे मेरे पूरे बदन से लहरें सी उठ कर लण्ड में जमा होना शुरू हुईं और मेरे मुँह से एक तेज ‘आहह..’ के साथ सिर्फ़ एक जुमला निकला- “अहह... ऊऊऊऊ... मैं गया... आपी... में मैं गया… आआअ...”

इसके साथ ही मेरा लण्ड फट पड़ा और झटकों-झटकों के साथ पानी की फुहार आपी की चूत के अन्दर ही बरसाने लगा। मेरा जिस्म ढीला पड़ गया और मैं आपी के सीने के दोनों उभारों के दरमियान अपना चेहरा रखे, आँखें बंद किए तेज-तेज साँसें लेकर अपने हवास को बहाल करने लगा।

मुझे ऐसा ही महसूस हो रहा था कि जैसे मेरे जिस्म में अब जान ही नहीं रही है और मैं कभी उठ नहीं पाऊँगा। मुझे अपने अन्दर इतनी ताक़त भी नहीं महसूस हो रही थी कि अपनी आँखें खोल सकूँ। मेरे जेहन में भी बस एक काला अंधेरा सा परदा छा गया था।

जब मेरे होशो-हवास बहाल हुए और मैं कुछ महसूस करने के क़ाबिल हुआ तो मुझे अपनी हालत का अंदाज़ा हुआ। मेरा लण्ड अभी भी आपी की चूत के अन्दर ही था और पूरा बैठा तो नहीं लेकिन अब ढीला सा पड़ गया था।

मेरे हाथ ढीले-ढाले से अंदाज़ में आपी के जिस्म के दोनों तरफ कार्पेट पर मुड़ी-तुड़ी हालत में पड़े थे। मेरा बायाँ गाल आपी के सीने के दोनों उभारों के दरमियान में था।

आपी ने अपनी टाँगों को अभी भी उसी तरह मेरी कमर पर क्रॉस कर रखा था लेकिन उनकी गिरफ्त अब ढीली थी। आपी ने एक हाथ से मेरे गाल को अपनी हथेली में भर रखा था और दूसरा हाथ मेरे बालों में फेरते सिर सहला रही थीं।

मैंने अपनी आँखें खोलीं और काफ़ी ताक़त इकट्ठा करके अपना सिर उठाया। मैंने आपी के चेहरे को देखा। उनके चेहरे पर मेरे लिए गहरे सुकून और शदीद मुहब्बत के आसार थे।

आपी ने फ़िक्र मंदी से कहा- “सगीर क्या हालत हो जाती है तुम्हारी? बिल्कुल ही बेजान हो जाते हो?”

“कुछ नहीं आपी बस पहली बार है तो ऐसा तो होता ही है”

“नहीं सगीर, तुम्हारी हालत हमेशा ही ऐसी हो जाती है”

“आपी आपके साथ जब से तब ऐसी हालत हो रही है ना क्योंकि जो-जो कुछ आपके साथ किया है मैंने वो सब पहली-पहली बार ही किया है ना”

“अच्छा बहस को छोड़ो, अब उठो काफ़ी देर हो गई है। कुछ ही देर में सब उठ जाएंगे”

आपी ने ये कहा और मेरे कंधों पर हाथ रख कर उठने लगीं।

मैं सीधा हुआ तो मेरा लण्ड हल्की सी ‘पुचह..’ की आवाज़ से आपी की चूत से बाहर निकल आया। मेरा लण्ड आपी के खून और अपनी औरत की जवानी के रस से सफ़ेद हो रहा था। मैंने एक नज़र आपी की चूत पर डाली तो वहाँ भी मुझे कुछ ऐसा ही मंज़र नज़र आया।

अनजानी सी लज़्ज़त और जीत की खुशी मैंने अपने चेहरे पर लिए हुए आपी से कहा- “आपी उठ कर ज़रा अपना हाल देखो”

आपी उठ कर बैठीं। एक नज़र मेरे लण्ड पर डाली और फिर अपनी टाँगों को मज़ीद खोल कर अपनी चूत को देखने लगीं।

फिर वे बोलीं- “कितने ज़ालिम भाई हो तुम? कितना सारा खून निकाल दिया अपनी बहन का?”

मैंने हँस कर जवाब दिया- “फ़िक्र ना करो मेरी प्यारी बहना जी, अगली बार खून नहीं निकलेगा। बस वो ही निकलेगा जिससे तुम्हें मज़ा आता है। वैसे आपी मुझसे ज्यादा मज़ा तो तुमको आया है। मैंने एक मिनट के लिए बाहर किया निकाला था, कैसी आग लग गई थी ना?”

फिर मैंने आपी की नक़ल उतारते हुए चेहरा बिगड़ा-बिगड़ा कर कहा- “हायईईई... सगीर… निकाल क्यों लिया... अन्दर डालो नाआअ वापस...”

आपी एकदम से शर्म से लाल होती हुई चिड़ कर बोलीं- “बकवास मत करो... उस वक़्त मुझसे बिल्कुल कंट्रोल नहीं हो रहा था अच्छा…”

आपी ने बात खत्म की तो मैंने कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था कि आपी ने एकदम शदीद परेशानी से मेरे कंधे की तरफ हाथ बढ़ा कर कहा- “ये क्या हुआ है सगीर?”

मैंने अपने कंधे को देखा तो वहाँ से गोश्त जैसे उखड़ सा गया था जिसमें से खून रिस रहा था। मैंने आपी की तरफ देखे बगैर अपनी कमर को घुमा कर आपी के सामने किया और कहा- “जी ये आपके दाँतों से हुआ था और ज़रा कमर भी देखो, यहाँ आपके नाखूनों ने कोई गुल खिलाया हुआ है”

“या मेरे खुदा... आह... सगीर...”

आपी ने बहुत ज्यादा फ़िक्रमंदी से ये अल्फ़ाज़ कहे तो मैं उनकी तरफ से परेशान हो गया और पलट कर उनकी तरफ देखा तो आपी अपने मुँह पर हाथ रखे एकटक मेरे जख्मों को देख रही थीं। उनके चेहरे पर शदीद परेशानी के आसार थे और फटी-फटी आँखों में आँसू आ गए थे।

मैंने आपी की हालत देखी तो फ़ौरन उनको अपने गले लगाने के लिए आगे बढ़ते हुए कहा- “अरे कुछ नहीं है आपी, छोटे-मोटे ज़ख़्म हैं, परेशानी की क्या बात इसमें?”

मैंने अपनी बात खत्म करके आपी को अपनी बाँहों में लेना चाहा तो उन्होंने मेरे सीने पर हाथ रख कर पीछे ढकेल दिया और रोते हुए कहा- “ये... ये मैंने क्या कर दिया सग़ीर... कितना दर्द हो रहा होगा ना तुम्हें?”

मैंने अब ज़बरदस्ती आपी को अपनी बाँहों में भरा। उनकी कमर को सहलाते और उनके चेहरे को अपने सीने में दबाते हुए कहा- “नहीं ना आपी, कुछ भी नहीं हो रहा। क्यों परेशान होती हो? छोटे से ज़ख़्म हैं और सच्ची बात कहूँ तो इस छोटी सी तक़लीफ़ में भी बहुत ज्यादा लज्जत है और ये ज़ख़्म मुझे इसलिए आए हैं कि मेरी बहन अपनी तक़लीफ़ बर्दाश्त कर रही थी। जो मैंने दी थी तो मुझे तो ये जख्म बहुत अज़ीज़ हैं। प्लीज़ आप परेशान ना हों”

मैं इसी तरह कुछ देर आपी की कमर को सहलाता और तस्सली देता रहा तो उनका मूड भी बदल गया और वो रिलैक्स फील करने लगीं।

मैंने हँस कर कहा- “चलो आपी अब अम्मी वगैरह भी उठने वाले होंगे। जाओ आप अपने ज़ख़्म और खून साफ करो और मैं अपना कर लेता हूँ”

आपी ने भी हँस कर मुझे देखा और मेरे होंठों पर एक किस करके खड़ी हो गईं। मैं भी उनके साथ खड़ा हुआ तो आपी दरवाज़े की तरफ बढ़ते हो बोलीं- “सगीर, इन जख्मों पर एंटीसेप्टिक ज़रूर लगा लेना। अम्मी उठने वाली होंगी वरना मैं ये लगा कर जाती”

मैंने कहा- “अरे जाओ ना बाबा, परेशान क्यों होती हो? कुछ भी नहीं हुआ है मुझे, बेफ़िक्र रहो और अपने कपड़े बाहर से उठा लो और पहन कर ही नीचे जाना”

आपी ने कहा- “हाँ अब तो पहन कर ही जाऊँगी, कोई ऐसे नंगी ही तो नहीं जाऊँगी ना?”

आपी ये कह कर बाहर निकल गईं।

TO BE CONTINUED .....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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Tongue Tongue Tongue Tongue Tongue
horseride horseride horseride horseride horseride

ख्वातीन और हजरात, आपसे गुजारिश है कि अपने ख्यालात कमेन्ट्स में जरूर लिखें।
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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Nishabd ....
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(02-04-2024, 06:05 PM)KHANSAGEER Wrote:
मेरा लण्ड जब बाहर निकालता तो आपी अपने जिस



और एक लज्जत भरी नरम सी ‘आह...’ खारिज करते हुए वो मेरी कमर को सहला देतीं।

मैं हर बार इसी तरह नर्मी से लण्ड आपी की चूत में अन्दर-बाहर करता और हर बार आपी लज़्ज़त भरी ‘आह..’ खारिज 








आपी की पहली नज़र ही मेरे शरारती चेहरे पर पड़ी और सिचुयेशन की नज़ाकत का अंदाज़ा होते ही बेसाख्ता उनके चेहरा हया की लाली से सुर्ख पड़ गया और उन्होंने मुस्कुरा कर अपनी नज़रें मेरी नजरों से 








मैंने लण्ड को उनकी चूत में अन्दर-बाहर करना जारी रखा [Image: 48153488_045_dfba.jpg]


मैंने आपी की बात सुन कर कहा- “आपी, मेरी तो ज़िंदगी की सबसे बड़ी ख्वाहिश ही यह थी कि मेरा लण्ड जिस चूत में पहली दफ़ा जाए वो मेरी अपनी सग़ी बहन की चूत हो मेरी प्यारी सी आपी की चूत हो-घुटी आवाज़ में बोलीं- “आह नहीं सगीर... प्लीज़ आहहीस... आहिस्ता... अफ दर्द होता है... आह… आहिस्ता करो प्लीज़…”

मैंने तेज-तेज 6-7 झटके ही मारे थे कि आपी की आवाज़ जैसे मुझे हवस में वापस ले आईं और मैं एकदम ठहर सा गया। मेरा सांस बहुत तेज चलने लगी थी।

मैं रुका तो आपी ने अपने जिस्म को ढीला छोड़ा और मेरे सिर के पीछे हाथ रख कर मेरे चेहरे को अपने सीने के उभारों पर दबा कर कहा-[Image: 15073791_006_4ad5.jpg]


“सगीर इन्हें चूसो, इससे तक़लीफ़ का अहसास कम होता है”

मैंने आपी के एक उभार का निप्पल अपने मुँह में लिया और बेसाख्ता ही फिर

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मुझे महसूस होने लगा कि मैं अब ज्यादा देर तक जमा नहीं रह पाऊँगा। मेरे झटकों की रफ़्तार खुद बा खुद ही मज़ीद तेज

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लेकिन अब आपी ने मेरे झटकों के साथ-साथ अपने कूल्हों को भी हरकत देना शुरू कर दिया था। जब मेरा लण्ड जड़ तक आपी की चूत में दाखिल होता तो सामने से आपी भी अपनी चूत को मेरी तरफ दबातीं और मेरी कमर पर अपने पाँव की गिरफ्त को भी एक झटके से मज़बूत करके फिर लूज कर देतीं और उनके मुँह से ‘आह...’ निकल जाती।

मैं अब अपनी मंज़िल [Image: 15073791_025_2d72.jpg]

आपी ने फ़ौरन झुंझला कर ज़रा तेज आवाज़ में कहा- “रुक क्यों गए हो? प्लीज़ सगीर अन्दर डालो ना वापस, मैं झड़ने वाली हूँ। डालोऊऊ नाआअ...”

आपी की बात सुनते ही मैंने दोबारा लण्ड अन्दर डाला और मेरे तीसरे झटके पर ही आपी का जिस्म अकड़ना शुरू हुआ और मुझे साफ महसूस हुआ कि आपी की चूत ने अन्दर से मेरे लण्ड पर अपनी गिरफ्त मज़ीद मज़बूत कर ली है। जैसे चूत को डर हो कि कहीं लण्ड दोबारा भाग ना जाए।

TO BE CONTINUED .....

good discription
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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