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Adultery जिस्म की भूख
Heart 
जवाब में आपी सिर्फ़ मुस्कुरा कर रह गईं लेकिन बोलीं कुछ नहीं। मैंने अपने लण्ड को आहिस्ता-आहिस्ता आपी के सीने के उभारों के दरमियान आगे-पीछे करना शुरू कर दिया। आपी के मम्मे बहुत सख़्त थे और मेरा पूरा लण्ड चारों तरफ से रगड़ खा रहा था और हर बार रगड़ लगने से जिस्म में मज़े की नई लहर पैदा होती थी।

मैं जब अपने लण्ड को आगे की तरफ बढ़ाता था तो मेरे बॉल्स का ऊपरी हिस्सा भी आपी के मम्मों और पेट के दरमियानी हिस्से पर रगड़ ख़ाता हुआ आगे जा रहा था और जब मैं लण्ड को वापस लाता तो मेरे बॉल्स के निचले हिस्से पर रगड़ लगती जिससे मुझे दुहरा मज़ा आ रहा था।

आपी ने अपने दोनों मम्मों को साइड्स से पकड़ कर दबा रखा था। मैंने अपने दोनों हाथों को आपी के मम्मों पर रखा और उनके निप्पल को अपनी चुटकियों में पकड़ कर मसलने लगा और लण्ड को आगे-पीछे करना जारी रखा।

आपी ने मज़े की वजह से अपनी आँखें बंद कर ली थीं और आपी तेज-तेज साँसों के साथ सिसकारियाँ भर रही थीं।

आपी को मज़े लेता देख कर मैं भी जोश में आ गया और तेजी से अपना लण्ड आगे-पीछे करने लगा। कमरे में आपी की सिसकारियाँ और मेरे लण्ड की रगड़ लगने से ‘पुचह... पुचह...’ की आवाजें साफ सुनाई दे रही थीं।

हमें यह भी इत्मीनान था कि घर में हमारे अलावा और कोई नहीं है इसलिए ना ही आपी अपनी आवाजों को कंट्रोल कर रही थीं और मैं भी इस मामले में बेख़ौफ़ था।

आपी ने आनन्द के कारण अपनी आँखें बंद कर ली और साथ ही वे तेज साँसों के साथ सिसकारियाँ भर रही थीं। मैंने आपी की निप्पलों को ऊपर की तरफ खींच कर ज़रा ज़ोर का झटका लगाया तो मेरे लण्ड की नोक आपी के निचले होंठ से टच हो गई। आपी ने फ़ौरन अपनी आँखें खोल कर मेरी तरफ देखा लेकिन बोलीं कुछ नहीं। आपी की आँखें नशीली हो रही थीं और उनकी आँखों में नमी भर गई थी जो शायद उत्तेजना की वजह से थी।

मैं आपी की आँखों में देखते हुए ही ज़ोर-ज़ोर के झटके मारने लगा। आपी बिना कुछ बोले आँखें झपकाए बगैर मेरी आँखों में ही देख रही थीं और अब तकरीबन हर झटके पर ही मेरे लण्ड की नोक आपी के निचले होंठ से टच होने लगी। मैं दिल ही दिल में खुश हो रहा था कि आपी इस बात से मना नहीं कर रही हैं और ये सोच मेरे अन्दर मज़ीद जोश भर रही थी।

कुछ देर बाद ही मुझे हैरत का शदीद झटका लगा। मैंने अपने लण्ड को आगे झटका दिया ही था कि उससे वक़्त आपी ने मेरी आँखों में देखते-देखते ही अपनी ज़ुबान बाहर निकाली और मेरे लण्ड की नोक आपी की ज़ुबान पर टच हुई और आपी के थूक ने मेरे लण्ड की नोक पर सुराख को भर दिया…

और मेरे मुँह से बेसाख्ता निकला- “आअहह आअपीईई ईईईई उफ्फ़… आपकी ज़ुबान टच हुई तो ऐसा लगा जैसे बिजली का झटका लगा हो। आपकी ज़ुबान मेरे लण्ड में करेंट दौड़ा रही है”

आपी मुस्कुरा दीं और हर झटके पर इसी तरह अपनी ज़ुबान बाहर निकालतीं और मेरे लण्ड की नोक पर टच कर देतीं। थोड़ी देर इसी तरह अपना लण्ड आपी के सीने के उभारों के दरमियान रगड़ कर आगे-पीछे करने के बाद मैंने एक झटका मारा आपी की ज़ुबान बाहर आई और मेरे लण्ड की नोक से टच हुई तो मैंने अपने लण्ड को वहाँ ही रोक दिया।

आपी ने अपनी ज़ुबान वापस मुँह में डाली और कुछ देर मेरी आँखों में ही देखती रहीं लेकिन मैंने अपना लण्ड पीछे नहीं किया और कुछ बोले बगैर ही उनकी आँखों में देखता रहा। चंद सेकेंड बाद आपी ने अपनी नज़रें नीची करके मेरे लण्ड को देखा और फिर अपनी ज़ुबान बाहर निकाल कर ज़ुबान की नोक को मेरे लण्ड के सुराख में डाला और अपनी ज़ुबान से मेरे लण्ड के सुराख के अंदरूनी हिस्से को छेड़ने लगीं।

कुछ देर आपी ऐसे ही मेरे लण्ड की नोक के अन्दर अपनी ज़ुबान की नोक डाले रहीं और फिर मेरे लण्ड की टोपी पर पहले अपने ज़ुबान की नोक से ही मसाज किया और फिर अपनी ज़ुबान को थोड़ा टेढ़ा करके ऊपरी हिस्से से मेरे लण्ड की टोपी की राईट साइड को चाटा और इसी तरह से लेफ्ट साइड चाटने के बाद टोपी पर अपनी ज़ुबान गोलाई में फेरी और ज़ुबान वापस अपने मुँह में खींच ली। मेरे चेहरे पर शदीद बेबसी के आसार थे और मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ।

“आपी प्लीज़... अब और मत तरसाओ... प्लीज़ आपीयईई कुछ तो रहम करो”

मैंने यह कहते हुए अपने लण्ड को थोड़ा और आगे किया और मेरे लण्ड की नोक आपी के होंठों के सेंटर में टच हो गई। आपी ने अपने दोनों होंठों को मज़बूती से बंद कर लिया था। मेरी बात सुन कर थोड़ा झिझकते हुए आपी ने अपने होंठों को ढीला किया और मेरे लण्ड की टोपी आपी के मुँह में दाखिल हो गई।

आपी ने फ़ौरन ही मेरे लण्ड को मुँह से निकाला और फिर से होंठ मज़बूती से भींच लिए। मेरा बहुत शिद्दत से दिल चाह रहा था कि आपी मेरे लण्ड को अपने मुँह में लें।

मैंने अपने लण्ड की नोक को आपी के बंद होंठों से लगा कर ज़ोर दिया और गिड़गिड़ा कर कहा- “आपी डालो ना मुँह में, प्लीज़ यार, क्यों तड़फा रही हो। चूसो ना आपी, मेरी प्यारी बहन प्लीज़ चूसो… नाआआआआअ…”

आपी कुछ देर सोचती रहीं और फिर कहा- “अच्छा मैं खुद करूँगी। तुम ज़ोर मत लगाना”

यह कह कर आपी ने अपना दायें हाथ अपने उभार से उठाया और मेरे लण्ड को अपनी मुठी में पकड़ कर झिझकते हुए अपना मुँह खोला। मेरे लण्ड की नोक पर मेरी प्रीकम का एक क़तरा झिलमिला रहा था, आपी ने अपनी ज़ुबान बाहर निकाली और अपनी ज़ुबान की नोक से मेरी प्रीकम के क़तरे को समेट कर ज़ुबान अन्दर कर ली और ऐसे मुँह चलाया जैसे किसी टॉफ़ी को अपनी ज़ुबान पर रख कर चूस रही हों।

आपी ने फिर मुँह खोला और मेरी आँखों में देखते-देखते मेरे लण्ड की टोपी अपने मुँह में डाल ली। आपी के मुँह की गर्मी को अपने लण्ड की टोपी पर महसूस करके ही मेरी हालत खराब होने लगी।

मैंने अपने सिर को पीछे की तरफ झटका और आँखें बंद करके भरपूर मज़े से एक सिसकारी भरी- “आहह... मेरी प्यारी बहना... उफ्फ़... चूसो ना... आपी... प्लीज़...”

आपी ने वॉर्निंग देने के अंदाज़ में कहा- “याद रखना सगीर, अगर तुमने अपना जूस मेरे मुँह में छोड़ा तो मैं फिर कभी तुम्हारा लण्ड मुँह में नहीं डालूँगी”

मैंने अपने दोनों हाथों से आपी के चेहरे को नर्मी से थामा और कहा- "नहीं आपी! मैं आपके मुँह में डिस्चार्ज नहीं होऊँगा। बस थोड़ी देर चूस लो, जब मेरा जूस निकलने लगेगा तो मैं पहले ही बता दूँगा”

इस पोजीशन में आपी मुकम्मल तौर पर मेरे कंट्रोल में थीं और अपनी मर्ज़ी से अब लण्ड मुँह से बाहर नहीं निकाल सकती थीं। उन्हें यह डर भी था कि कहीं मैं ज़बरदस्ती अपना लण्ड आपी के हलक़ तक ना घुसा दूँ। बस यही सोच कर आपी ने मुझे थोड़ा पीछे हटने का इशारा किया।

मेरे पीछे हटने पर बोलीं- “मेरे ऊपर से उतर कर सीधे बैठ जाओ, तुम्हें जोश में ख़याल नहीं रहता। पहले भी मेरे ऊपर सारा वज़न डाल दिया था तुमने, मेरा सांस रुकने लगता है”

मैं आपी के ऊपर से उतरा और बेड के हेड से कमर टिका कर बैठ गया। आपी मेरी टाँगों के दरमियान आकर घुटनों के बल बैठी हुई झुक गईं। ऐसे बैठने से आपी के घुटने और टाँगों का सामने का हिस्सा पैरों समेत बिस्तर पर था और मुँह नीचे मेरे लण्ड के पास होने की वजह से गाण्ड भी हवा में ऊपर की तरफ उठ गई थी।

आपी ने फिर से मेरे लण्ड को अपनी मुट्ठी में पकड़ा और मुँह खोल कर मेरे लण्ड के पास लाकर मेरी तरफ देखा। इस वक़्त आपी की आँखों में झिझक या शर्म नहीं थी बस उनकी आँखों में शरारत नाच रही थी। आपी मेरी आँखों में ही देखते हो अपना मुँह खोल के मेरे लण्ड को मुँह में डालतीं लेकिन अपने मुँह के अन्दर टच ना होने देतीं और उसी तरह लण्ड मुँह से बाहर निकाल देतीं।

TO BE CONTINUED ....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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Heart 
आपी की गर्म-गर्म सांसें मुझे अपने लण्ड पर महसूस हो रही थीं। आपी ने 3-4 बार ऐसा ही किया तो मैंने बहुत बेबसी की नजरों से उन्हें देखते हुए कहा- “क्यों तड़फा रही हो आपी, शुरू करो ना”

आपी खिलखिला के हँस दीं और कहा- “शक्ल तो देखो अपनी ज़रा, ऐसे लग रहा है जैसे किसी भिखारी को 10 दिन से रोटी ना मिली हो”

कह कर फिर से हँसने लगीं। मैंने जवाब में कुछ नहीं कहा बस वैसे ही मासूम सी सूरत बनाए उन्हें देखता रहा।

“ओके ओके बाबा, नहीं तड़फाती बस” -आपी ने कहा और फिर उसी तरह मुँह खोल कर आहिस्ता से मेरा लण्ड अपने मुँह में डाला और आहिस्तगी से ही अपने होंठ बंद कर लिए। मेरे लण्ड की टोपी पूरी ही आपी के मुँह में थी।

आपी ने होंठों से मेरे लण्ड को जकड़ा और मुँह के अन्दर ही मेरे लण्ड के सुराख पर और पूरी टोपी पर अपनी ज़ुबान फेरने लगीं।

मैं लज़्ज़त की इंतिहा पर पहुँचा हुआ था। आपी के मुँह की गर्मी से इतना मजा मिल रहा था कि मैंने ऐसा मज़ा आज से पहले कभी नहीं महसूस किया था। मैं पहले बहुत बार फरहान से अपना लण्ड चुसवा चुका था लेकिन आपी के मुँह में लण्ड देने का मज़ा उस मज़े से कहीं गुना बढ़ कर था।

एक लड़के और लड़की के मुँह में फ़र्क़ तो होता ही है इसके अलावा असल मज़ा इन फ़ीलिंग्स का था। यह अहसास था कि मेरा लण्ड एक लड़की के मुँह में है, एक कुंवारी लड़की और वो लड़की भी मेरी सग़ी बहन है, मेरी बड़ी बहन है। यह अहसास था जो मेरे मज़े को बढ़ा रहा था।

आपी कुछ देर इसी तरह मेरे लण्ड की टोपी को होंठों में फँसाए मुँह के अन्दर ही अन्दर ज़ुबान उस पर फेरती रहीं और फिर उन्होंने आहिस्ता आहिस्ता लण्ड को अपने मुँह में उतारना शुरू कर दिया। मेरा लण्ड आधे से ज्यादा आपी के मुँह में चला गया था कि अचानक मुझे अपने लण्ड की नोक पर सख्ती महसूस हुई और उसी वक़्त आपी को उबकाई सी आ गई।

यह इस बात का सबूत थी कि मेरा लण्ड आपी के हलक़ तक पहुँच गया था लेकिन अभी भी थोड़ा सा मुँह से बाहर बच गया था। उबकाई लेकर आपी ने थोड़ा सा लण्ड को बाहर निकाला और सांस लेकर दोबारा से अन्दर गहराई में उतारने लगीं लेकिन इस बार भी लण्ड पहले जितना ही अन्दर गया ही था कि आपी को एक बार फिर उबकाई आई और आपी लण्ड को थोड़ा सा बाहर निकाल कर खांसने लगीं, खाँसते हुए भी मेरे लण्ड की टोपी आपी के मुँह में ही थी।

आपी ने तीसरी बार पूरा मुँह में लेने की कोशिश नहीं की और मेरे लंड को अपने मुँह से बाहर निकाल कर उससे ऊपर की तरफ सीधा किया और लंड की जड़ में अपनी ज़ुबान का ऊपरी हिस्सा रख कर पूरे लंड की लंबाई को चाटते हुए नोक तक आईं और एक बार लंड की टोपी पर ज़ुबान फेर कर उससे नीचे की तरफ दबाया और लंड के ऊपरी हिस्से की लंबाई को ऊपर से नीचे जड़ तक चाटा।

फिर इसी तरह आपी ने मेरे लंड को दोनों साइड्स से ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर तक चाटा और फिर लंड को मुँह में ले लिया। लेकिन इस बार आपी ने आधा ही लंड मुँह में डाला और उस पर अपने होंठों की गिरफ्त को टाइट करके अन्दर की तरफ चूसने लगीं।

लंड को इस तरह चूसने से आपी के दोनों गाल पिचक कर अन्दर घुस जाते और उनका चेहरा लाल हो जाता था। आपी इतनी ताक़त से चूस रही थीं कि मुझे साफ महसूस हुआ कि मेरे लंड के अन्दर से मेरी मलाई का एक क़तरा रगड़ ख़ाता हुआ बाहर की तरफ जा रहा है। जब वो क़तरा मेरे लंड की नोक से बाहर आया तो मेरे जिस्म और लंड को एक झटका सा लगा।

मैंने झटका लेकर आपी की तरफ देखा तो वो मेरे चेहरे पर ही नज़र जमाए हुए थीं और मेरी हालत से लुत्फ़ ले रही थीं। मुझसे नज़र मिलने पर आपी ने शरारत से आँख मारी और फिर अपने मुँह को मेरे लंड पर आगे-पीछे करने लगीं।

जब आपी मेरे लंड पर अपना मुँह आगे की तरफ लाती थीं तो अन्दर से अपने मुँह के जबड़ों की गिरफ्त को ढीला कर देतीं और जब मेरा लंड अपने मुँह से बाहर लातीं तो सिर को तो पीछे की जानिब हटाती थीं जिससे लंड बाहर आना शुरू हो जाता था।

लेकिन बाहर लाते वक़्त आपी अपने मुँह के अन्दर वाले हिस्से से लौड़े को ऐसे चूसतीं कि मेरा लंड अन्दर की तरफ खिंचता हुआ बाहर आता था। पता नहीं मैं आपको यह अंदाज़ समझा पाया हूँ या नहीं बहरहाल एक बार फिर गौर से पढ़िएगा तो आपको समझ आ जाएगा।

इस अंदाज़ से कभी फरहान ने भी मेरा लंड ना चूसा था बल्कि फरहान क्या मैंने भी कभी ऐसे नहीं चुसवाया था जैसे आपी चूस रही थीं।

कुछ देर तक इसी तरह आपी मेरा लंड चूसती रहीं और फिर जब भी आपी लंड को अपने मुँह के अन्दर धकेलतीं तो आख़िर में एक झटका मारती थीं जिससे मेरा लंड हर बार थोड़ा-थोड़ा ज्यादा अन्दर जाने लगा था। कुछ ही देर में आपी की कोशिश रंग लाई और उन्होंने जड़ तक मेरा लंड अपने मुँह में लेना शुरू कर दिया। लेकिन सिर्फ़ एक लम्हें को ही आपी के होंठ मेरे लंड की जड़ तक पहुँच पाते थे और फिर आपी वापस लंड को बाहर निकालना शुरू कर देती थीं।

आपी का हाथ मेरे पेट और लंड के दरमियानी हिस्से पर रखा हुआ था जहाँ से मेरे लंड के बाल शुरू होते हैं।

आपी ने इसी तरह मेरा लंड चूसते-चूसते अपना हाथ मेरे लंड के बालों वाली जगह से उठाया और मेरे लंड के नीचे लटकती गोटों को पकड़ लिया और आहिस्ता-आहिस्ता इन बॉल्स को सहलाने लगीं। आपी का हाथ मेरी बॉल्स पर टच हुआ तो सुरूर की एक और लहर मेरे बदन से उठी और मुझे ऐसा लगा कि शायद मैं अब अपने आप पर कंट्रोल नहीं कर पाउंगा, मैंने दोनों हाथों से आपी का चेहरा थामा और अपना लंड उनके मुँह से निकाल लिया और आँखें बंद करके लंबी-लंबी साँसें लेने लगा।

मुझे साफ महसूस हुआ कि मेरे लंड का जूस जो कि बाहर आने लगा था वो अब वापस मेरी रगों में जा रहा है। चंद सेकेंड बाद जब मैंने यह महसूस किया कि अब मैंने अपनी हालत पर कंट्रोल कर लिया है तो मैंने आँखें खोलीं और आपी की तरफ देखा।

आपी का चेहरा मेरे हाथों में और उनका मुँह थोड़ा सा खुला हुआ मेरे लंड से तकरीबन 4 इंच दूर था। मेरे लंड की नोक से एक पतली सी लकीर आपी के निचले होंठ तक गई हुई थी। वो पता नहीं मेरे लंड का जूस (मेरा प्री कम) था या आपी की थूक (सलाइवा) थी जो बारीक सी तार की तरह मेरे लंड की नोक से आपी के होंठों तक गई हुई थी।

आपी की नजरें मेरे चेहरे पर ही जमी थीं और शायद उन्होंने इस लकीर को देखा ही नहीं था। मैंने आपी का चेहरा एक हाथ से मज़बूती से थामा कि वो मुँह हिला ना सकें और दूसरे हाथ की उंगली आपी की आँख के सामने लहराई।

आपी ने कुछ ना समझने वाले अंदाज़ में मेरी उंगली को देखा और मैं अपनी उंगली नीचे अपने लंड की तरफ ले जाने लगा। आपी की नजरें मेरी उंगली पर ही जमी थीं और उंगली के साथ-साथ गर्दिश कर रही थीं। मैंने अपनी उंगली अपने लंड की टोपी पर नोक के पास रखी तो उसी वक़्त आपी की नज़र भी मेरी प्री-कम के उस बारीक तार पर पड़ी और मैंने आपी के चेहरे को मज़बूती से थाम लिया कि कहीं आपी पीछे हटने की कोशिश ना करें।

लेकिन मैंने महसूस क्या कि आपी ने ऐसी कोई कोशिश नहीं की तो मैंने भी गिरफ्त ढीली कर दी और उनकी नजरें मेरे लंड की नोक से उसी तार पर होती हुई उनके अपने होंठों तक गईं।

आपी ने मुस्कुरा कर मेरी आँखों में देखा। आपी की आँखों में अजीब सी चमक थी, अजीब सा खुमार था जो इस अहसास के लिए था कि यह उनकी ज़िंदगी का पहला लंड था जिसको उन्होंने चूसा और उसके ज़ायक़े को महसूस किया और लंड भी उनके अपने सगे भाई का था।

TO BE CONTINUED ....
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आपकी पसंदीदा और इंटरनेट की सबसे खूबसूरत cuckold based interfaith स्टोरी अपडेट हो चुकी है अगर आपने इसे पहले नहीं पढ़ा तो कृपया पहले पेज से पटना ढेर सारी कमेंट वगैरह करके लेखक की हौसला अफजाई करना
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Heart 
मैंने अपनी उंगली आपी के होंठों पर रखी और अपनी प्री-कम की लकीर को उनके होंठों से लेकर के अपनी उंगली पर ले लिया और उस तार को उंगली पर समेटते हुए अपने लंड की नोक तक आया और वहाँ से भी उस तार को तोड़ लिया।

मैंने अपनी उंगली आपी को दिखाई आपी ने मेरी उंगली पर लगा मेरे लंड का जूस देखा और नर्मी से मेरा हाथ पकड़ कर अपनी आँखों के क़रीब ले गईं और फिर अचानक ही झपट कर मेरी उंगली अपने मुँह में लेकर उससे चूसने लगीं।

मैं आपी का यह अंदाज़ देख कर दंग रह गया। आपी ने मेरी पूरी उंगली चूसी और मेरा हाथ छोड़ कर फिर से मेरे लंड को अपने हाथ में पकड़ कर अपनी ज़ुबान लंड के सुराख में घुसाने लगीं। एक बार फिर उन्होंने पूरे लंड को चाटने के बाद लंड मुँह में लिया और तेजी से अपने मुँह में अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया।

कुछ ही देर बाद मेरा जिस्म अकड़ना शुरू हो गया। मैंने कोशिश की कि मैं अपने आप पर कंट्रोल करूँ लेकिन जल्द ही मुझे महसूस हुआ कि मैं अबकी बार अपने आपको नहीं रोक पाऊँगा।

मैंने अपनी तमाम रगों को फैलता- सिकुड़ता महसूस किया और मैंने चीखती आवाज़ में बा-मुश्किला कहा- “आपीयईईईई… मैं छूटने वाला हून्ंननणन्…”

आपी ने मेरी बात सुनते ही लंड को मुँह से निकाला और तेजी से मेरे लंड को अपने हाथ से मसलने लगीं, फिर 3-4 सेकेंड बाद ही मेरे मुँह से एक तेज ‘आअहह’ निकली और मेरे लंड ने फव्वारे की सूरत में अपने जूस की पहली धार छोड़ी जो सीधी मेरी बहन के हसीन गुलाबी उभारों पर गिरी।

आपी ने अपना हाथ मेरे लंड से नहीं हटाया और इस धार को देख कर और तेजी से मेरे लंड को रगड़ने लगीं। दो-दो सेकेंड के वक्फे से मेरे लंड से एक धार निकलती और आपी के मम्मों या पेट पर चिपक जाती। तकरीबन एक मिनट तक मेरा लंड और जिस्म झटके ख़ाता रहा और जूस बहता रहा।

आपी ने मेरे लंड से निकलते इस समुंदर को देखा तो बोलीं- “वॉववववव… आज तो मेरी जान... मेरा सोहना भाई बहुत ही जोश में है…”

यह सच था कि आज से पहले कभी मेरे लंड ने इतना ज्यादा जूस नहीं छोड़ा था और मैं कभी इतना निढाल भी नहीं हुआ था।

आपी ने भी अपना हाथ चलाना अब बंद कर दिया था लेकिन बदस्तूर मेरे लंड को थाम रखा था। मैंने निढाल सी कैफियत में अधखुली आँखों से आपी को देखा। उनके सीने के उभारों और पेट पर मेरे लंड से निकले जूस ने आड़ी तिरछी लकीरें सी बना डाली थीं।

आपी ने अपने जिस्म पर नज़र डाली और मेरे लंड को छोड़ कर अपनी उंगली से अपने खूबसूरत निप्पल्स पर लगे मेरे लंड के जूस को साफ किया और काफ़ी सारी मिक़दर अपनी उंगली पर उठा कर उंगली अपने मुँह में डाल ली। मैं आपी को देख तो रहा था लेकिन इतना निढाल था कि कुछ बोलना तो दूर की बात है आपी की इस हरकत पर हैरत भी ना ज़ाहिर कर सका और खाली-खाली आँखों से आपी को देखता रहा।

आपी ने उंगली को अच्छी तरह चूसा और मुझे आँख मार के अपनी आँखों को गोल-गोल घुमाते हो कहा- “उम्म्म यूम्ममय्ययई… यार सगीर यह तो मज़े की चीज़ है”

वे यह बोल कर हँसने लगीं। मैंने भी मुस्कुरा कर आपी का साथ दिया।

अचानक ही आपी की हँसी को ब्रेक लग गया और उन्होंने घबराए हुए अंदाज़ में घड़ी को देखा फिर बिस्तर से उछल कर खड़ी होती हुए बोलीं- “शिट... अम्मी और हनी आने ही वाली होंगी… या शायद आ ही गई हों”

आपी ने मेरी शर्ट उठा कर जल्दी-जल्दी अपना जिस्म साफ किया और क़मीज़ पहन कर सलवार पहनने लगीं।

तो मैंने कहा- “आपी आप तो आज डिस्चार्ज हुई ही नहीं हो?”

आपी ने सलवार पहन ली थी। उन्होंने कहा- “कोई बात नहीं… फिर सही”

वे फरहान के पास गईं जो कि नीचे कार्पेट पर नंगा ही उल्टा सो रहा था, उसको फिर से उठाते हुए कहा- “फरहान उठो, कपड़े पहनो और सही तरह बिस्तर पर लेटो। उठो शाबाश…”

फरहान को उठा कर मेरे पास आईं और मेरे होंठों को चूम कर मेरे बाल सँवारते हुए बोलीं- “उठो मेरी जान, शाबाश, अपना जिस्म साफ करो। मैं जा रही हूँ”

इसके साथ ही कमरे से बाहर निकल गईं। मैं उठा तो फरहान बाथरूम जा चुका था।

मैंने वैसे ही अपना लोअर पहना और बिस्तर पर लेटते ही मुझे नींद आ गई शायद कमज़ोरी की वजह से!

शाम को आपी ने ही मुझे उठाया वो दूध लेकर आई थीं। वे हम दोनों को उठा कर फ़ौरन ही वापस नीचे चली गईं क्योंकि उन्होंने रात का खाना भी बनाना था। दूध पी कर मैंने गुसल किया और बाहर निकल गया।

जब मैं वापस आया तो रात का खाना बाहर ही दोस्तों के साथ ही खा कर आया था। घर पहुँचा तो 11 बज रहे थे। सब अपने-अपने कमरों में ही थे बस अब्बू टीवी लाऊँज में बैठे न्यूज़ देख रहे थे। अब्बू को सलाम वगैरह करने के बाद मैं अपने कमरे में आया तो फरहान सो चुका था।

मुझे भी काफ़ी थकान सी महसूस हो रही थी और मुझे यह भी अंदाज़ा था कि आज दिन में हमने सेक्स किया ही है तो आपी अभी रात में हमारे पास नहीं आएँगी। उनका दिल चाह भी रहा हो तब भी वो नहीं आएंगी क्योंकि वो हमारी सेहत के बारे में बहुत फ़िक़रमंद रहती थीं। हक़ीक़त यह थी कि इस वक़्त मुझे भी सेक्स की तलब महसूस नहीं हो रही थी इसलिए मैं भी जल्द ही सो गया।

सुबह मैं अपने टाइम पर ही उठा, कॉलेज से आकर थोड़ी देर नींद लेने के बाद दोस्तों में टाइम गुजार कर रात को घर वापस आया तो खाने के बाद आपी ने बता दिया कि वो आज रात में आएँगी।

मैं कुछ देर वहाँ टीवी लाऊँज में ही बैठ कर बिला वजह ही चैनल चेंज कर-कर के टाइम पास करता रहा और तकरीबन 10:30 पर उठ कर अपने कमरे की तरफ चल दिया। मैं कमरे में दाखिल हुआ तो फरहान हमेशा की तरह मूवी लगाए कंप्यूटर के सामने ही बैठा था।

मुझे देख कर बोला- “यहाँ आ जाओ भाई, जब तक आपी नहीं आतीं, मूवी ही देख लेते हैं”

मैंने अपनी पैंट उतारते हुए फरहान को जवाब दिया- “नहीं यार! मेरा मूड नहीं है मूवी देखने का, तुम देखो”

मैं बिस्तर पर आ लेटा।

थोड़ी देर बाद फरहान भी कंप्यूटर बंद करके बिस्तर पर ही आ गया और बोला- “भाई कल जब मेरे लण्ड ने अपना जूस निकाला तो मुझे तो इतनी कमज़ोरी फील हो रही थी कि आँखें बंद किए पता ही नहीं चला कि कब सो गया। मैं तो आपी के उठाने पर ही उठा था। मुझे बताओ न, मेरे सो जाने के बाद आपने आपी के साथ क्या-क्या किया था?”

मैंने जान छुड़ाने के लिए फरहान से कहा- “यार छोड़, फिर कभी बताऊँगा”

लेकिन फरहान के पूछने पर मेरे जेहन में भी कल के वाक़यात घूम गए कि कैसे आपी मेरा लण्ड चूस रही थीं। किसी माहिर और अनुभवी चुसक्कड़ की तरह। फरहान ने मुझसे मिन्नतें करते हुए दो बार और कहा तो मैं उससे पूरी स्टोरी सुनाने लगा कि कल क्या-क्या हुआ था।

फरहान ने सुकून से पूरी कहानी सुनी और बोला- “भाई आप ज़बरदस्त हो। आपने जिस तरह आपी को ये सब करने पर राज़ी किया है उसका जवाब नहीं। मैं तो ये सोच कर पागल हो रहा हूँ कि जब आपी मेरा लण्ड चूसेंगी तो? उफफ्फ़…”
यह कह कर फरहान ने एक झुरझुरी सी ली।
TO BE CONTINUED .....
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मैंने मुस्कुरा कर फरहान को देखा और कहा- “फ़िक्र ना कर मेरे छोटे, मेरा अगला टारगेट तो आपी की टाँगों के बीच वाली जगह है”

फरहान ने छत को देखते हुए एक ठंडी आह भरी और बोला- “हाँनन् भाई! कितना मज़ा आएगा जब आपी की चूत में लण्ड पेलेंगे”

फिर एकदम चौंकते हुए बोला- “लेकिन भाई अगर कोई मसला हो गया तो, मतलब आपी प्रेग्नेंट हो गईं या ऐसी कोई और बात हो गई तो फिर?”

मैंने एक नज़र फरहान को देखा और झुंझला कर कहा- “चुतियापे की बात ना कर यार, मैं इसका बंदोबस्त कर लूँगा। बस एक बार फिर कहता हूँ कि खुद से कोई पंगा मत लेना। जैसा मैं कहूँ बस वैसा ही कर”

इन्हीं ख़यालात में खोए और आपी का इन्तजार करते हम दोनों ही पता नहीं कब नींद के आगोश में चले गए। सुबह मैं उठा तो फरहान जा चुका था। मैं कॉलेज के लिए रेडी हो कर नीचे आया तो अम्मी ने ही नाश्ता दिया क्योंकि आपी भी यूनिवर्सिटी जा चुकी थीं। मैं नाश्ता करके कॉलेज चला गया।

कॉलेज से वापस आया तो 3 बज रहे थे मैंने आपी के कमरे के अधखुले दरवाज़े से अन्दर झाँका तो आपी सो रही थीं और हनी वहाँ ही बैठी अपनी पढ़ाई कर रही थी। मुझे अम्मी ने खाना दिया और खाना खाकर मैं अपने कमरे में चला गया। फरहान भी सो रहा था। मैंने भी चेंज किया और सोचा कि कुछ देर नींद ले लूँ फिर रात में आपी के साथ खेलने में देर हो जाती है और नींद पूरी नहीं होती।

शाम को मैं नीचे उतरा तो आपी अभी भी घर में नहीं थीं। मैंने अम्मी से पूछा तो उन्होंने बताया कि सलमा खाला की किसी सहेली की छोटी बहन की मेहँदी है। कोई म्यूज़िकल फंक्शन भी है तो फरहान, आपी और हनी तीनों ही उनके साथ चले गए हैं। मैं भी अपने दोस्तों की तरफ निकल गया।

रात में 10 बजे मैं घर पहुँचा तो आपी अभी भी वापस नहीं आई थीं। अब्बू टीवी लाऊँज में ही बैठे अपने लैपटॉप पर बिजी थे। मैंने कुछ देर उन से बातें कीं और फिर अपने कमरे में चला गया। मैंने कमरे में आकर ट्रिपल एक्स मूवी ऑन की लेकिन आज फिल्म देखने में भी मज़ा नहीं आ रहा था बस आपी की याद सता रही थी। किसी ना किसी तरह मैंने एक घंटा गुज़ारा और फिर नीचे चल दिया कि कुछ देर टीवी ही देख लूँगा।

मैं अभी सीढ़ियों पर ही था कि मुझे अम्मी की आवाज़ आई- “बात सुनिए! सलमा का फोन आया है वो कह रही है कि सगीर को भेज दें। रूही लोगों को ले आएगा”

मैं अम्मी की बात सुन कर नीचे उतरा तो अब्बू अपना लैपटॉप बंद कर रहे थे। मैंने उनसे गाड़ी की चाभी माँगी तो पहले तो अब्बू गाड़ी की चाभी मुझे देने लगे फिर एकदम किसी ख़याल के तहत रुक गए और चश्मे के ऊपर से मेरी आँखों में झाँकते हुए बोले- “सगीर तुमने लाइसेन्स नहीं बनवाया ना अभी तक?”

मैंने अपना गाल खुजाते हो टालमटोल के अंदाज़ में कहा- “वो अब्बू! बस रह गया कल चला जाऊँगा बनवाने”

अब्बू ने गुस्से से भरपूर नज़र मुझ पर डाली और बोले- “यार अजीब आदमी हो तुम, कहा भी है जा के बस तस्वीर वगैरह खिंचवा आओ, अपने साइन कर दो वहाँ, बाक़ी शकूर साहब संभाल लेंगे लेकिन तुम हो कि ध्यान ही नहीं देते हो किसी बात पर। मैं देख रहा हूँ आजकल तुम बहुत गायब दिमाग होते जा रहे हो। किन ख्यालों में खोए रहते हो.. हाँ?”

मैं अब्बू की झाड़ सुन कर दिल ही दिल में अपने आपको कोस रहा था कि इस टाइम पर नीचे क्यों उतरा। अम्मी ने मेरी कैफियत भाँप कर मेरी वकालत करते हुए अब्बू से कहा- “अच्छा छोड़ो ना, आप भी एक बात के पीछे ही पड़ जाते हैं। बनवा लेगा कल जाकर”

अब्बू ने अपना रुख़ अम्मी की तरफ फेरा और बोले- “अरे नायक बख़्त! लोग तरसते हैं कि कोई जान-पहचान वाला आदमी हो तो अपना काम करवा लें और शकूर साहब मुझे अपने मुँह से कितनी बार कह चुके हैं कि लाइसेन्स ऑफिस सगीर को भेज दो। अब पता नहीं कितने दिन हैं वो वहाँ, उनका भी ट्रान्स्फर हो गया तो परेशान होता फिरेगा। इसलिए कह रहा हूँ कि बनवा ले जाकर”

अम्मी ने बात खत्म करने के अंदाज़ में कहा- “अच्छा चलिए अब चाभी दें उसे, वो लोग इन्तजार कर रहे होंगे”

अब्बू ने अपना लैपटॉप गोद से उठा कर टेबल पर रखा और खड़े होते हुए बोले- “नहीं अब इसकी ये ही सज़ा है कि जब तक लाइसेन्स नहीं बनवाएगा, गाड़ी नहीं मिलेगी”

यह कह कर वे बाहर चल दिए। अम्मी ने झल्ला कर अपने सिर पर हाथ मारा और कहा- “हाय रब्बा! ये सारे जिद्दी लोग मेरे नसीब में ही क्यों लिखे हैं, जैसा बाप है वैसी ही सारी औलाद”

मैं चुपचाप सिर झुकाए खड़ा था कि दोबारा अम्मी की आवाज़ आई- “अब जा ना बेटा, दरवाज़ा खोल वरना हॉर्न पर हॉर्न बजाना शुरू कर देंगे”

मैं झुंझलाए हुए ही बाहर गया और अब्बू के गाड़ी बाहर निकाल लेने के बाद दरवाज़ा बंद करके सीधा अपने कमरे में ही चला गया। मेरा मूड बहुत सख़्त खराब हो चुका था। पहले ही आपी के साथ सेक्स ना हो सकने की वजह से झुंझलाहट थी और रही-सही कसर अब्बू की डांट ने पूरी कर दी।

मैं बिस्तर पर लेटा और तय किया कि सुबह सबसे पहला काम यही करना है कि जा कर लाइसेन्स बनवाना है।

इसी ऑफ मूड के साथ ही नींद ने हमला करके मेरे शरीर को सुला दिया। मैं सुबह उठा तो मेरे जेहन में अब्बू की डांट ताज़ा हो गई, मैं जल्दी-जल्दी तैयार हुआ और नाश्ता करके लाइसेन्स ऑफिस चल दिया। वहाँ जा कर मैं शकूर साहब (अब्बू के दोस्त) से मिला उन्होंने एक आदमी मेरे साथ भेजा।

खैर, सब पेपर वर्क निपटा कर मैं शकूर सहाब के पास गया और पूछा- “तो अंकल ये लर्निंग तो कल मिल जाएगा ना, उसके कितने अरसे बाद मुझे पक्का लाइसेन्स मिलेगा?”

उन्होंने एक नज़र मुझे देखा और हँसते हुए बोले- “बेटा अगर तुम्हारे लाइसेन्स में भी अरसा-वरसा या लर्निंग और कच्चे-पक्के लाइसेन्स का झंझट हो तो फिर तो हम पर लानत है ना”

मुझे उनकी बात कुछ समझ नहीं आई तो मैंने दोबारा पूछा- “क्या मतलब अंकल?”

वो बड़े फखरिया से लहजे में बोले- “बेटा मैं सब देख लूँगा। बस तुम्हारा काम खत्म हो गया है तुम जाओ घर और हाँ अब्बू को मेरा सलाम कहना। मैं किसी दिन चक्कर लगाऊँगा”

मैंने अपने कंधों को लापरवाह अंदाज़ में झटका दिया जैसे मैंने कह रहा होऊँ कि ‘मेरे लण्ड पर ठंड.. मुझे क्या’

मैं वहाँ से सीधा कॉलेज चला गया। कॉलेज से घर आया तो फरहान टीवी देख रहा था, मुझे देख कर बोला- “भाई खाना टेबल पर रखा है। खा लो”

मैंने अम्मी का पूछा तो फरहान ने बताया कि अम्मी और हनी मार्केट गई हैं और आपी को सलमा खाला अपने साथ कहीं ले गई हैं। मैं खाना खा कर कमरे में गया और जाते ही सो गया क्योंकि आज थकान भी काफ़ी हो गई थी। शाम में मैं सो कर उठा तो फ्रेश हो कर दोस्तों की तरफ निकल गया और रात को घर वापस पहुँचा तो 9 बज रहे थे।

मैंने सबके साथ ही रात का खाना खाया और अपने कमरे में आ गया। काफ़ी देर आपी का इन्तज़ार करने के बाद भी आपी नहीं आईं, मैंने टाइम देखा तो 11:30 हो चुके थे। मैं फरहान को वहाँ ही लेटा छोड़ कर खुद नीचे आपी को देखने के लिए चल दिया।

मैं टीवी लाऊँज में पहुँचा तो आपी के कमरे का दरवाज़ा थोड़ा सा खुला था। बाहर लाइट ऑफ थी लेकिन अन्दर लाइट जल रही थी और अम्मी और हनी आपी को वो कपड़े वगैरह दिखा रही थीं जो उन्होंने आज शॉपिंग की थी।

अम्मी और हनी की कमर मेरी तरफ थी और आपी उनके सामने बैठी थीं। मैं दरवाज़े के पास जा कर खड़ा हो गया और दरवाज़े की झिरी से हाथ हिलाने लगा कि आपी मेरी तरफ देख लें लेकिन काफ़ी देर कोशिश के बाद भी आपी ने मेरी तरफ नहीं देखा और मैं मायूस हो कर वापस जाने का सोच ही रहा था कि आपी की नज़र मुझ पर पड़ी और फ़ौरन ही उन्होंने नज़र नीची कर लीं।

TO BE CONTINUED .....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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लेकिन मैंने देख लिया था कि आपी को मेरी मौजूदगी का इल्म हो चुका है। कुछ ही देर बाद आपी बिस्तर से उठीं और कहा- “हनी तुम वो पीला वाला शॉपिंग बैग खोलो मैं पानी पी कर आती हूँ”

आपी यह कह कर दरवाज़े की तरफ बढ़ी ही थीं कि हनी ने आवाज़ लगाई- “आपी प्लीज़ एक गिलास मेरे लिए भी ले आना प्लीज़”

मैं फ़ौरन दरवाज़े से साइड को हो गया कि दरवाज़ा खुलने पर अम्मी या हनी की नज़र मुझ पर ना पड़ सके। आपी कमरे से बाहर निकलीं और अपनी पुश्त पर दरवाज़ा बंद करके किचन की तरफ जाने लगीं तो मैंने उनका हाथ पकड़ कर उन्हें अपनी तरफ खींचा।

आपी इस तरह खींचे जाने से डर गईं और बेसाख्ता ही उनके हाथ अपने चेहरे की तरफ उठे और वो मेरे सीने से आ लगीं। आपी मुझसे टकराईं तो मैं भी पीछे दीवार से जा लगा और आपी को अपने बाजुओं में जकड़ लिया।

आपी के दोनों बाज़ू उनके सीने के उभारों और मेरे सीने के दरमियान आ गए थे। उन्होंने हाथ अपने चेहरे पर रखे हुए थे और मैंने आपी को अपने बाजुओं में जकड़ा हुआ था।

आपी ने अपने चेहरे से हाथ हटाए और सरगोशी में बोलीं- “सगीर! कमीने कुछ ख़याल किया करो। मेरी तो जान ही निकल गई थी। ऐसे अचानक तुमने मुझे खींचा है”

मैंने भी सरगोशी में ही जवाब दिया- “मैं समझा आपने मुझे दरवाज़े से हट कर दीवार से लगते हुए देख लिया होगा”

“नहीं मैंने नहीं देखा था और अभी छोड़ो मुझे, अम्मी और हनी दोनों अन्दर हैं। बाहर ना निकल आएँ और अब्बू भी अपने कमरे में ही हैं” -आपी ने यह कहा और एक खौफजदा सी नज़र अब्बू के कमरे के दरवाज़े पर डाली।

मैंने आपी की कमर से हाथ हटाए और उनकी गर्दन को पकड़ कर होंठों से होंठ चिपका दिए।

आपी ने मेरे सीने पर हाथ रख कर थोड़ा ज़ोर लगाया और मुझसे अलग हो कर बोलीं- “सगीर क्या मौत पड़ी है, पागल हो गए हो क्या?”

मैंने आपी का हाथ पकड़ा और अपने ट्राउज़र के ऊपर से ही अपने खड़े लण्ड पर रख कर कहा- “आपी ये देखो मेरा बुरा हाल है। आओ ना कमरे में”

“सगीर पागल हो गए हो क्या? अभी कैसे चलूं? अम्मी और हनी कमरे में ही हैं। तुम देख ही चुके हो”

आपी ने ना जाने की वजह बताई लेकिन अपना हाथ मेरे लण्ड से नहीं हटाया और ट्राउज़र के ऊपर से ही मुठी में पकड़ कर मेरा लौड़ा दबाने लगीं। मैंने आपी के सीने के राईट उभार को क़मीज़ के ऊपर से ही पकड़ कर दबाया और पूछा- “तो कब तक फ्री होओगी? आपी आज चौथी रात है कि मैंने कुछ नहीं किया। मेरा जिस्म जल रहा है”

“मैं क्या कहूँ सगीर, पता नहीं कितनी देर लग जाए”

आपी ने अपनी बात खत्म की ही थी कि मैंने अपना ट्राउज़र थोड़ा नीचे किया और अपना लण्ड बाहर निकाल लिया और आपी को कहा- “आपी प्लीज़ थोड़ी देर मेरा लण्ड चूस लो ना”

आपी ने मेरे नंगे लण्ड को अपने हाथ में पकड़ा और कहा- “सगीर! पागल हो गए हो क्या? अपने आप पर थोड़ा कंट्रोल करो। मैं फारिग हो कर तुम्हारे पास आ जाऊँगी ना”

मैंने आपी की बात सुनते-सुनते अपना राईट हैण्ड पीछे से आपी की सलवार के अन्दर डाल दिया था। मैंने आपी की गर्दन पर अपने होंठ रखते हुए अपने हाथ को उनके दोनों कूल्हों पर फेरा और उनके दोनों चिकने और सख़्त कूल्हों को बारी-बारी दबाने लगा।

मेरे होंठ आपी की गर्दन पर और हाथ आपी के कूल्हों पर डाइरेक्ट टच हुए तो उनका बदन लरज़ गया और वो सरगोशी में लरज़ती आवाज़ से बोलीं- “सगीर! आहह… नहीं करो प्लीज़… में. मैं बर्दाश्त नहीं... कर पाऊँगी नाआ...”

मैंने आपी की बात का कोई जवाब नहीं दिया और उनकी गर्दन को चाटता हुआ अपना मुँह गर्दन की दूसरी तरफ ले आया। साथ-साथ ही मैंने अपना लेफ्ट हैण्ड आपी की सलवार में आगे से डाला और उनकी मुकम्मल चूत को अपनी मुठी में पकड़ते हुए दूसरे हाथ की ऊँगलियों को कूल्हों की दरमियान दरार में घुसा दिया और पूरी दरार को रगड़ने लगा।

आपी पर आहिस्ता-आहिस्ता मदहोशी सी सवार होती जा रही थी और वो अपनी आँखें बंद किए आहिस्ता-आवाज़ में बेसाख्ता बड़बड़ा रही थीं- “बस सगीर, सगीर छोड़ दो मुझे, बस करो”

उनकी आवाज़ ऐसी थी जैसी किसी गहरे कुँए में से आ रही हो। मैंने आपी की चूत को अपने हाथ से छोड़ा और दोनों लबों के दरमियान में अपनी ऊँगली दबा कर चूत के अंदरूनी नरम हिस्से पर रगड़ते हुए दूसरे हाथ की एक उंगली आपी की गाण्ड के सुराख में दाखिल कर दी।

मेरे इस दो तरफ़ा हमले से आपी ने तड़फ कर अपनी आँखें खोल दीं और होश में आते ही उन्हें अहसास हुआ कि हमारी पोजीशन कितनी ख़तरनाक है और किसी के आने पर हम अपने आपको बिल्कुल संभाल नहीं पाएंगे।

इसी ख़तरे के पेशेनज़र आपी ने लरज़ती आवाज़ में कहा- “सगीर कोई बाहर आ जाएगा। मेरे प्यारे भाई प्लीज़, अपनी पोजीशन को समझो न खुदा के लिए!”

आपी ने यह कहा ही था कि हमें एक खटके की आवाज़ आई और आपी फ़ौरन मुझे धक्का देकर पीछे हटीं और किचन की तरफ भाग गईं। आपी के धक्का देने और पीछे हटने से मेरे हाथ भी आपी की सलवार से निकल आए थे। मैंने फ़ौरन अपना ट्राउज़र ऊपर किया। मेरा दिल भी बहुत ज़ोर से धड़का था। मैं कुछ सेकेंड वहीं रुका रहा और फिर दबे क़दम सीढ़ियों की तरफ बढ़ने लगा।

वो खटका शायद कमरे के अन्दर ही हुआ था। आपी किचन से पानी लेकर निकलीं तो मैं सीढ़ियों के पास ही खड़ा था।

आपी को किचन से निकलता देख कर मैं उनकी तरफ बढ़ा तो आपी ने गर्दन को नहीं के अंदाज़ में हिला कर मुझ पर एक गुस्से भरी नज़र डाली और मेरे क़दम रुकते ना देख कर भाग कर कमरे की तरफ चली गईं। आपी ने कमरे के दरवाज़े पर खड़े हो कर पीछे मुड़ कर मुझे देखा।

मैं आपी को भागता देख कर अपनी जगह पर ही रुक गया था। आपी ने मुझे देख कर मेरी तरफ एक फ्लाइंग किस की लेकिन मैंने बुरा सा मुँह बना कर आपी को देखा और घूम कर सीढ़ियों की तरफ चल दिया।

मैंने पहली सीढ़ी पर क़दम रखा ही था कि मुझे पीछे दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ आई। आपी कुछ देर तक वहीं रुकी मुझे देखती रही थीं। लेकिन मैंने पलट कर नहीं देखा तो वो अन्दर चली गईं।

मैं भी अपने कमरे में वापस आया तो फरहान सो चुका था। मुझे आपी पर बहुत गुस्सा आ रहा था और मैं उसी गुस्से और बेबसी की ही हालत में लेटा और फिर पता नहीं कब मुझे भी नींद ने अपने आगोश में ले लिया। सुबह फरहान ने उठाया तो कॉलेज जाने का दिल नहीं चाह रहा था इसलिए मैंने फरहान को मना किया और फिर सो गया।

दूसरी बार मेरी आँख खुली तो 10 बज रहे थे। मैं नहा धो कर फ्रेश हुआ और नीचे आया तो अम्मी टीवी लाऊँज में बैठी टीवी देखते हुए साथ-साथ मटर भी छीलती जा रही थीं।

मैंने अम्मी को सलाम किया और डाइनिंग टेबल पर बैठा ही था कि आपी भी मेरी आवाज़ सुन कर अपने कमरे से निकल आईं और उसी वक़्त अम्मी ने भी मटर के दाने निकालते हुए आवाज़ लगाई- “रुहीई..! बाहर आओ बेटा, भाई को नाश्ता दे दो…”

TO BE CONTINUED ....
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“जी अम्मी आ गई हूँ। देती हूँ अभी” -आपी ने अम्मी को जवाब देकर किचन की तरफ जाते हो मुझे देखा।

मैंने भी आपी को देखा और गुस्से में मुँह बना कर नज़र फेर लीं। इस एक नज़र ने ही मुझे आपी में आज एक खास लेकिन बहुत प्यारी तब्दीली दिखा दी थी। आपी ने हमेशा की तरह अपने सिर पर स्कार्फ बाँधा हुआ था और बड़ी सी चादर ने उनके बदन के नशेबोफ़राज़ को हमारी नजरों से छुपा रखा था लेकिन खास तब्दीली थी कि आपी की बड़ी-बड़ी खूबसूरत आँखों में झिलमिलता काजल। आपी ने आज आँखों में काजल लगा रखा था और उससे आपी की खूबसूरत आँखें मज़ीद हसीन और बड़ी नज़र आ रही थीं।

आपी नाश्ते की ट्रे लेकर आईं और टेबल पर मेरे सामने रखते हुए आहिस्ता आवाज़ में बोलीं- “अल्ल्लाआअ! मेरी जान नाराज़ है मुझसे”

मैंने आपी को कोई जवाब नहीं दिया। उन्होंने ट्रे से निकाल कर ऑमलेट परांठा मेरे सामने रखा और मेरे गाल पर चुटकी काट कर अपने दाँतों को भींचते हुए बोलीं- “गुस्से में लगता बड़ा प्यारा है। मेरा सोहना भाई”

मैंने बुरा सा मुँह बना कर आपी के हाथ को झटका लेकिन मुँह से कुछ ना बोला और ना ही नज़र उठा कर उनको देखा। मुझे यह खौफ भी था कि अगर मैंने नज़र उठाई तो आपी के खूबसूरत गुलाबी गाल और उनकी हसीन आँखें जो काजल की वजह से मज़ीद सितम ढा रही हैं, मुझे ऐसे क़ैद कर लेंगी कि मैं अपनी नाराज़गी कायम रखना तो दूर की बात दुनिया ओ माफिया ही से बेखबर हो जाऊँगा।

मैंने चुपचाप नज़र झुकाए हुए ही नाश्ता करना शुरू कर दिया। आपी कुछ देर वहाँ ही खड़ी रहीं फिर अम्मी के पास जाकर मटर छीलने में उनकी मदद करने लगीं। मैंने नाश्ता खत्म किया ही था कि आपी ने पौधों को पानी देने वाली बाल्टी उठाई और अम्मी को कुछ कहते हुए बाहर गैराज में रखे गमलों को पानी लगाने के लिए चली गईं।

मैं टीवी लाऊँज के दरवाज़े पर पहुँचा ही था कि अम्मी की आवाज़ आई- “सगीर मोटर चला दो। ये लड़की पौधों को पानी लगाते-लगाते पूरी टंकी ही खाली कर देगी”

टीवी लाऊँज के दरवाज़े से निकल कर राईट साइड पर हमारे घर का छोटा सा लॉन है और लेफ्ट साइड पर गाड़ी खड़ी करने के लिए गैरज है। गैरज के अन्दर वाले सिरे पर ही मोटर लगी हुई है और गैरज के बाहर वाले सिरे पर तो ज़ाहिर है हमारे घर का मेन गेट ही है।

मैं मोटर का बटन ऑन करके मुड़ा ही था कि आपी ने मेरा हाथ पकड़ कर झटका दिया और अपने दोनों हाथ अपनी कमर पर रख कर बोलीं- “ये क्या ड्रामा है सगीर! बात क्यों नहीं कर रहे हो मुझसे?”

मैंने अभी भी आपी की तरफ नहीं देखा और नज़र झुकाए हुए ही नाराज़ अंदाज़ में कहा- “बस नहीं करनी मैंने बात, मेरी मर्ज़ी”

आपी ने मेरी ठोड़ी को अपने हाथ से ऊपर उठाया और मुहब्बत भरे अंदाज़ में कहा- “सगीर! मैं भी तो मजबूर हूँ ना, बस अब नाराज़गी खत्म करो। चलो शाबाश मेरी तरफ देखो, मेरा सोहना भाई… नज़र उठाओ अपनी”

मैंने नज़र नहीं उठाई लेकिन आपी के हाथ को भी नहीं झटका- “आपी कितने दिन हो गए हैं। आप नहीं आई हो। आप का अपना दिल चाहता है तो आती हो। मेरी खुशी के लिए तो नहीं ना”

“मुझे पता है, आज 5 दिन हो गए हैं मैंने अपने सोहने भाई को खुश नहीं किया। मैं क्या करूँ मेरी जान, मौका ही नहीं मिल पाया है लेकिन मैं आज रात लाज़मी कोशिश करूँगी। ओके”

आपी ने ये कहा और मेरी ठोड़ी से हाथ हटा लिया और मेरे चेहरे पर अपनी नजरें गड़ा दीं।

मैंने आपी की बात सुन कर भी अपना अंदाज़ नहीं बदला और हल्का सा गुस्सा दिखाते हुए बोला- “अभी भी ये ही कह रही हो कि कोशिश करूँगी यानि कि आज रात को भी आने का प्रोग्राम नहीं है?”

“यार तुम्हें पता ही है कि फरहान और हनी के फाइनल एग्जाम होने वाले हैं। हनी रात में 3-4 बजे तक पढ़ाई करती रहती है। मैं उसके सामने कैसे आऊँ? तुम भी तो एक बार ज़िद पकड़ लेते हो। तो कोई बात समझते ही नहीं हो”

अब आपी के लहजे में भी झुंझलाहट पैदा हो गई थी।

थोड़ी देर तक ऐसे ही आपी मेरे चेहरे पर नज़र जमाए रहीं और मेरी तरफ से कोई जवाब ना सुन कर कुछ फ़ैसला करके बोलीं- “ओके ठीक है। ऐसी बात ही तो ये लो”

ये कहते हुए आपी ने अपनी सलवार में अपने दोनों अंगूठों को फँसाया और एक ही झटके में अपने पाँव तक पहुँचा दिया और अपनी चादर और क़मीज़ को इकठ्ठा करके अपने पेट तक उठा लिया और मेरी तरफ पीठ करते हुए बोलीं- “चलो अभी और इसी वक़्त चोदो मुझे, मैं कसम खाती हूँ कि तुम्हें नहीं रोकूँगी। आओ चोदो मुझे”

अपनी बहन का ये अंदाज़ देख कर मैं दंग ही रह गया और हकीक़तन डर से मेरी गाण्ड ही फट गई। मैं खुद भी ऐसी हरकतें करता ही था लेकिन जब बंदा खुद कर रहा हो तो समझ आता है, जेहन मुतमइन होता है कि कोई मसला हुआ तो मैं संभाल ही लूँगा लेकिन आपी की ये हरकत मेरे वहमोगुमान में भी नहीं थी।

हम से चंद क़दम के फ़ासले पर ही टीवी लाऊँज का दरवाज़ा था और अन्दर अम्मी बैठी थीं और सामने घर का मेन गेट था। अगर कोई भी घर में दाखिल होता तो पहली नज़र में ही हम दोनों सामने नज़र आते। 

अब हालत कुछ ऐसी थी कि आपी ने मेरी तरफ पुश्त की हुई थी और थोड़ी सी झुकी खड़ी थीं। उनके खूबसूरत गुलाबी चिकने कूल्हे मेरी नजरों के सामने थे। झुकने से आपी के दोनों कूल्हों के दरमियान का गैप थोड़ा बढ़ गया था और आपी की गाण्ड का डार्क ब्राउन सुराख भी झलक दिखला रहा था।

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उससे थोड़े ही नीचे आपी की खूबसूरत चूत के लब नज़र आ रहे थे जो थोड़े उभर गए थे और आपस में ऐसे मिले हुए थे कि चूत की बारीक सी लकीर बन गई थी। आपी की साफ और शफ़फ़ गुलाबी रानें अपनी मुकम्मल गोलाई के साथ कहर बरपा रही थीं।

मुझे हैरत का शदीद झटका लगा था। मैं गुमसुम सा ही खड़ा था और मेरी नज़र आपी की नंगी रानों और कूल्हों पर ही थी कि आपी की आवाज़ मुझे होश की दुनिया में वापस ले गई।

“चलो ना, रुक क्यों गए हो। आओ डालो अपना लण्ड मेरी चूत में”

तेजी से मैं आगे बढ़ा और आपी के कंधों को थाम कर ऊपर उठाने की कोशिश करते हुए बोला- “पागल हो गई हो आपी! क्या कर रही हो? उठो ऊपर, सीधी खड़ी हो और सलवार ऊपर करो अपनी”

आपी ने अपने कंधों को झटका दे कर मेरे हाथों से अलग किया और वैसे ही झुकर झुके अपने हाथ से मेरे लण्ड को पैंट के ऊपर से ही मज़बूती से पकड़ कर दबाया और जिद्दी लहजे में ही कहा- “नहीं! मैं नहीं होती सीधी, तुम इसे बाहर निकालो और अभी इसी वक़्त मेरी चूत में डाल कर ठंडा कर लो अपने आपको। अपनी ख्वाहिश पूरी करो आओ। तुम जिद्दी हो तो मैं भी तुम्हारी ही बहन हूँ”

यह बोलते हो आपी की आवाज़ भर्रा गई थी और उनकी आँखों में नमी भी आ गई थी। मैं नीचे झुका और आपी की सलवार को पकड़ कर ऊपर करने के बाद आपी के हाथ से उनकी क़मीज़ और चादर भी छुड़वा दी जो उन्होंने अपने एक हाथ से अपने पेट पर पकड़ रखी थी। 

इसके बाद मैंने मज़बूती से आपी के कंधों को पकड़ा और उनको सीधा खड़ा करके अपने सीने से लगा लिया।

आपी ने अपना चेहरा मेरे सीने से लगा दिया और रोते हो हिचकियाँ लेकर बोलीं- “सगीर! मुझसे नाराज़ नहीं हुआ करो। मैं मर जाऊँगी… अच्छा…”

मैंने अपना एक हाथ आपी की कमर पर रखा और कमर सहलाते हुए दूसरे हाथ से उनके सिर को अपने सीने से दबा कर बोला- “अच्छा बस ना आपी! रोया मत करो ना यार, गुस्सा कर लो, मार लो मुझे लेकिन रोया मत करो। मेरा दिल हिल जाता है”

कुछ देर हम दोनों ही कुछ ना बोले। आपी ऐसे ही मुझसे चिपकी अपना चेहरा मेरे सीने पर छुपाए खड़ी रहीं और अपनी सिसकियों पर क़ाबू करती रहीं। फिर उखड़े हुए लहजे में ही बोलीं- “तुम भी तो ख़याल नहीं करते हो ना, हर वक़्त तुम्हारे जेहन पर चूत ही सवार रहती है बस”

मैंने देखा कि आपी ने अब रोना बंद कर दिया है तो उनके मूड को सैट करने के लिए कहा- “अच्छा ना मेरी सोहनी बहना! बस अब रोना खत्म, अपना मूड अच्छा करो जल्दी से”

मेरी बात सुन कर आपी ने मेरी कमर पर मुक्का मारा और सीने पर हल्का सा काट लिया। आपी का एक हाथ मेरी कमर पर था और दूसरा हाथ हम दोनों के जिस्मों के दरमियान, आपी को ख़याल ही नहीं रहा था कि उनका हाथ अभी तक मेरे लण्ड पर ही है और उन्होंने बेख़याली में ही उसे बहुत मज़बूती से थाम रखा था।

मैंने आपी का मूड कुछ बेहतर होते देखा तो शरारत से कहा- “रोते रोते भी मेरे लण्ड को नहीं छोड़ा आपने और कह मुझसे रही हो कि मेरे जेहन पर चूत सवार रहती है। हाँ… अब छोड़ दो… अब मुझे दर्द होने लगा है”

मेरी बात सुन कर आपी बेसाख्ता ही पीछे हटीं। एकदम मेरे लण्ड को छोड़ा और नम आँखों से ही हँसते हुए मेरे सीने पर मुक्का मार कर दोबारा मेरे सीने से लग गईं। मैंने भी हँसते हुए फिर से आपी को अपनी बाँहों में भींच लिया।

चंद लम्हों बाद मैंने आपी को पीछे किया और अपने हाथ से उनके गालों पर बहते आँसुओं को साफ किया। जिन्होंने आपी के गुलाबी रुखसारों पर काजल की काली लकीरें बना डाली थीं और फिर उनके चेहरे को दोनों हाथों में नर्मी से पकड़ कर चेहरा उठाया। आपी ने भी अपनी नजरें उठा कर मेरी आँखों में देखा और हम दोनों फिर से हँस दिए। आपी की आँखों के इर्द-गिर्द काजल फैल गया था और उनकी रोई-रोई सी आँखें बहुत ज्यादा हसीन लग रही थीं।

मैंने आपी की दोनों आँखों को बारी-बारी चूमा और कहा- “आपी आपकी आँखें काजल लगाने से इतनी हसीन लग रही थीं कि कसम खुदा की, मैं कहता हूँ मैंने आज तक कभी इतनी हसीन आँखें नहीं देखीं और अब काजल फैल गया है तो एक नया हुस्न उभर आया है”

आपी ने भी आगे बढ़ कर मेरे गाल को चूमा और नाराज़ से अंदाज़ में बोलीं- “तुम्हारे ही लिए लगाया था काजल, मुझे पता था कि तुम्हें अच्छा लगेगा लेकिन तुमने एक बार भी नहीं देखीं मेरी आँखें और अब तो सारा काजल फैल ही गया होगा”

आपी ने अपनी बात खत्म की ही थी कि अम्मी की आवाज़ आई- “रूही बस कर दो! क्या सारा पानी खत्म करके ही आओगी?”

“बस आ रही हूँ अम्मी”

आपी ने अम्मी को जवाब दिया और अन्दर जाने ही लगी थीं कि मैंने उनका हाथ पकड़ा और अपनी तरफ खींच कर आपी के होंठों को अपने होंठों में जकड़ लिया।

तकरीबन 2 मिनट तक मैं और आपी एक-दूसरे के होंठों और ज़ुबान को चूसते रहे फिर आपी मेरे निचले होंठ को चूस कर खींचते हुए मुझसे अलग हुईं और अपने होंठों पर ज़ुबान फेर कर बोलीं- “सगीर! बस अब छोड़ो, कोई आ ना जाए”

मेरे मुँह से बेसाख्ता ही हँसी निकल गई और मैंने हँसते हुए ही आपी को कहा- “अब होश आया है कि कोई आ ना जाए, कुछ देर पहले की अपनी हालत याद करो ज़रा?”

“बकवास नहीं करो, मुझे गुस्सा आ गया तो मैं फिर शुरू हो जाऊँगी” -आपी ने वॉर्निंग देने वाले अंदाज़ में अकड़ कर कहा।

तो मैंने ताली मारने के अंदाज़ में अपनी दोनों हथेलियाँ अपने माथे के पास जोड़ीं और कहा- “माफ़ कर दे मेरी माँ, गुस्सा ना करना। बहुत भारी गुस्सा है तुम्हारा”

आपी ने हँसते हो मेरे जुड़े हुए हाथों को पकड़ा और उनको नीचे करके अन्दर चली गईं। आपी के अन्दर जाने के बाद मैं कुछ देर वहाँ ही खड़ा रहा और फिर सोचा कि मूड फ्रेश हो ही गया है तो चलो आज का दिन स्नूकर की नज़र ही कर देते हैं और ये सोच कर बाहर निकल गया।

TO BE CONTINUED .....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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दिन का खाना भी मैंने दोस्तों के साथ ही खाया और रात को जब घर पहुँचा तो 10:15 हो रहे थे। मेरा खाना डाइनिंग टेबल पर ही पड़ा था और अब्बू और अम्मी टीवी लाऊँज में बैठे थे जबकि आपी वगैरह सब अपने कमरों में ही थे।

मैंने खाना खाया और इस दौरान अब्बू से बातें भी करता रहा। उन्होंने लाइसेन्स के बारे में दरयाफ्त किया। मैंने उस बारे में बताया और ऐसे ही इधर-इधर की बातें करते रहे। तकरीबन 11:30 पर मैं अपने कमरे में आया तो फरहान बिस्तर पर अपनी बुक्स फैलाए पढ़ने में इतना मग्न था कि उससे मेरी आमद का भी पता नहीं चला।

मैंने जा कर उसकी गुद्दी पर एक चपत लगाई और पूछा- “क्यों भाई आईंस्टाइन! आज ये ख़याल कैसे आ गया?”

वो अपनी गुद्दी सहलाते हुए बोला- “भाई फाइनल एग्जाम होने वाले हैं और अगर मेरे नंबर हनी से कम हुए तो अब्बू वैसे ही मेरी जान नहीं छोड़ेंगे”

मैं बिस्तर पर गिरने के अंदाज़ में लेटा और उससे बोला- “तो अच्छी बात है ना बेटा, बाक़ी सारे काम अपनी जगह लेकिन पढ़ाई अपनी जगह। ओके…”

“भाई एक बात समझ में नहीं आती, आपी जब यहाँ कमरे में होती हैं तो मुझसे बहुत प्यार जताती हैं लेकिन अगर नीचे हूँ तो मुझ पर तपी ही रहती हैं।”

मैंने उसकी बात पर चौंक कर उसे देखा और पूछा- “क्यों क्या हुआ है?”

वो बुरा सा मुँह बना कर बोला- “मैंने अभी शाम में आपी से पूछा था कि आज रात में आएँगी हमारे कमरे में? तो उन्होंने बुरी तरह मुझे झाड़ दिया और बोलीं कि तुम्हारे पेपर होने वाले हैं ना, जाओ जा कर पेपर्स की तैयारी करो”

मैं बिस्तर से उठ कर बैठ गया और उसे समझाने के अंदाज़ में बोला- “देखो फरहान! मेरी एक बात अभी ध्यान से सुनो, अब तुम इस कमरे के अलावा और कहीं भी कभी भी आपी से हमारे इन तालुक्कात का जिक्र नहीं करोगे। चाहे आपी घर में अकेली ही क्यों ना हो लेकिन नीचे हो तो तुमने ऐसी कोई बात नहीं करनी है। कमरे में कहो जो कहना है। समझ रहे हो ना मेरी बात?”

फरहान ने ‘हाँ’ में गर्दन हिला कर कहा- “जी भाई! समझ गया”

“हाँ! इन बातों के अलावा तुम जो बात मर्ज़ी करो। मैं तुम्हें यक़ीन दिलाता हूँ कि आपी कभी तुमसे खफा नहीं होंगी। बेवक़ूफ़! वो अपनी जान से ज्यादा चाहती हैं हम दोनों भाईयों को लेकिन एक बार फिर कहूँगा कि इस कमरे से बाहर आपी से ऐसी कोई बात नहीं! अच्छा, चलो अब अपनी पढ़ाई करो और आज से जब तक तुम्हारे एग्जाम नहीं खत्म हो जाते, मैं तुम्हें कंप्यूटर पर भी बैठा हुआ नहीं देखूँ। ओके...!”

मेरी आखिरी बात सुन कर वो बौखला गया और बोला- “भाई मूवी तो देखने दो ना, अच्छा कभी-कभी जब बहुत दिल चाहेगा मुठ मारने का तब देखूंगा”

मैंने कहा- “ठीक है, लेकिन बस उसी वक़्त जब बहुत दिल चाहे और तुम ज़रा ध्यान पढ़ाई में लगाओगे तो जेहन वहाँ जाएगा ही नहीं”

मैंने अपनी बात कही और ट्राउज़र उठा कर बाथरूम में चला गया। मैं बाथरूम से चेंज करके और फ्रेश हो कर बाहर निकला तो फरहान दोबारा अपनी किताबों में खोया हुआ था। मैंने भी उससे तंग करना मुनासिब ना समझा और चुपचाप बिस्तर पर आकर लेट गया और आपी की आज सुबह वाली हरकत को सोच कर उनका इन्तजार करने लगा।

रात के 2 बजे तक मैं आपी का इन्तजार करता रहा लेकिन वो नहीं आईं तो मैंने फरहान को कहा- “चलो बस फरहान! अब सो जाओ, सुबह स्कूल भी जाना है तुमने”

मैंने खुद भी आँखें बंद कर लीं। मेरी गहरी नींद टूटी और मैंने ज़बरदस्ती आँखें खोल कर देखा तो धुँधला-धुँधला सा साया सा नज़र आया जो मेरे कंधे को हिला रहा था। 

कुछ मज़ीद सेकेंड के बाद मेरी आँखें सही तरह खुल पाईं और मेरे कानों में दबी-दबी सी आवाज़ आई- “अब उठ भी जाओ ना, सगीर…!”

मेरी आँखों के सामने से धुँध हटी तो पता चला कि आपी बिस्तर पर ही बैठीं मुझे उठा रही थीं। मैंने आँखों को मुकम्मल खोलते हुए कहा- “क्या हो गया है आपी? क्या टाइम हो रहा है?”

“साढ़े तीन हुए हैं। कैसे घोड़े बेच कर सोते हो? कब से उठा रही हूँ तुम्हें”

मैंने दोबारा आँखें बंद करते हो गुस्सा दिखा कर कहा- “तो अब क्यों आई हो? मेरा मूड नहीं है अब, जाओ जा कर सो जाओ”

“आई एम सॉरी ना, सगीर प्लीज़! 3 बजे तक हनी पढ़ाई करती रही है। वो सोई है तो मैं आई हूँ”

“इतना इन्तजार करवाया है, सारा मूड खराब हो गया है। अब सोने दो मुझे”

आपी दबी आवाज़ में शरारत से हँस कर बोलीं- “ओह्ह! मेरा सोहना भाई, फिर नाराज़ हो गया है मुझसे। देखो मुझे तुम्हारा कितना ख़याल है। मैं इतना लेट भी आ गई हूँ”

मैंने कोई जवाब नहीं दिया तो आपी बोलीं- “मुझे पता है मेरे सोहने भाई का मूड कैसे ठीक होगा”

यह कह कर आपी उठीं और मेरी टाँगों के दरमियान बैठ कर मेरे ट्राउज़र को नीचे खींचा और मेरा लण्ड अपने हाथ में पकड़ लिया। मैंने अपना लण्ड आपी के हाथों में महसूस किया तो मेरी आँखें खुद बा खुद ही खुल गईं और पहली नज़र ही आपी के चेहरे पर पड़ी। आपी मेरी टाँगों के बीच में बैठी थीं। मेरा लण्ड उनके हाथ में था और उनके मुँह से बमुश्किल एक इंच की दूरी पर होने की वजह से आपी की गरम सांसें मेरे लण्ड में जान भर रही थीं।

मेरी नज़र आपी से मिली तो उन्होंने मुझे आँख मारी और मेरे लण्ड को अपने मुँह में डाल लिया। मेरे मुँह से एक तेज ‘आह...’ निकली और मैंने बेसाख्ता ही फरहान की तरफ देखा जो बिस्तर के दूसरे कोने पर उल्टा पड़ा सो रहा था।

आपी ने मेरी नजरों को फरहान की तरफ महसूस करके मेरा लण्ड अपने मुँह से बाहर निकाला और बोलीं- “सोने दो उसे, मत उठाओ। वैसे भी अभी उसके सिर पर ढोल भी बजाओगे तो वो सोता ही रहेगा”

अपनी बात कह कर आपी ने अपनी ज़ुबान बाहर निकाली और मेरे लण्ड को चारों तरफ से चाटने लगीं। मेरा लण्ड तो आपी के हाथ में आते ही खड़ा होने लगा था और अब आपी की ज़ुबान ने उस पर ऐसा जादू चलाया कि वो कुछ ही सेकेंड में अपने जोबन पर आ चुका था।

आपी ने पूरे लण्ड को अपने मुँह में लेने की कोशिश की लेकिन जड़ तक मुँह में दाखिल ना कर सकीं तो लण्ड को मुँह से बाहर निकाला और बोलीं- “आज तो रॉकेट कुछ ज्यादा ही बड़ा हो गया है और फूला हुआ भी बहुत है”

मैंने मुस्कुरा कर कहा- “आपी इसको बड़ा कह रही हो? ये तो सिर्फ़ 6. 5 इंच है। मूवीज में नहीं देखे कितने बड़े-बड़े और मोटे-मोटे होते हैं”

आपी हैरतजदा सी आवाज़ में बोलीं- “हाँ यार और मैं सोचती हूँ कि वो औरतें कैसे इतने बड़े-बड़े लण्ड अपने मुँह में और चूत में ले लेती हैं”

मैंने आपी को आँख मारी और शरारत से बोला- “मेरी बहना जी! बोलो तो मैं सिखा देता हूँ कि लण्ड कैसे लिया जाता है चूत में”

“बकवास मत करो! बस ख्वाब ही देखते रहो, ऐसा कभी नहीं होगा”

और फिर शरारत से बोलीं- “वैसे सुबह मौका था तुम्हारे पास लेकिन तुमने ज़ाया कर लिया”

ये कह कर वो खिलखिला कर हँस पड़ीं।

मैंने डरने की एक्टिंग करते हुए कहा- “ना बाबा ना, ऐसे मौके से तो दूर ही रखो। तुम्हारा क्या भरोसा, कल बाहर सड़क पर ही खड़ी हो जाओ और बोलो कि मुझे चोदो यहाँ”

आपी ने मेरे लण्ड पर अपने हाथ को चलाते-चलाते सोचने की एक्टिंग की और आँखों को छत की तरफ उठा कर बोलीं- “उम्म्म्म… वैसे यार सगीर, यह ख्याल भी बुरा नहीं है। बाहर रोड पर ये करने में मज़ा बहुत आएगा”

यह कह कर आपी ने मेरे लण्ड को छोड़ा और हँसते हुए अपनी क़मीज़ उतारने लगीं।

TO BE CONTINUED ....
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मैं आपी की बात सुन कर हैरत से सोचने लगा कि यह मेरी वो ही बहन है जो कल तक किसी गैर मर्द के सामने भी नहीं जाती थी और आज कितनी बेबाक़ी से सड़क पर चुदवाने की बात बोल रही है।

आपी ने अपनी क़मीज़ और सलवार उतारने के बाद मेरा ट्राउज़र भी खींच कर उतारा और मेरे लण्ड पर झुकती हुई बोलीं- “चलो शर्ट उतारो अपनी”

उन्होंने मेरे लण्ड को फिर से अपने मुँह में डाल लिया। मैंने थोड़ा सा ऊपर उठ कर अपनी शर्ट उतार कर साइड में फेंकी और दोबारा लेट कर आपी के सिर पर अपने हाथ रख दिए।

आपी मेरे आधे लण्ड को मुँह में डाल कर चूस रही थीं और थोड़ी-थोड़ी देर बाद ज़रा ज़ोर लगा कर लण्ड को और ज्यादा अन्दर लेने की कोशिश करती थीं। मैं ज़ोरदार ‘आह..’ के साथ आपी के सिर को नीचे दबा ले रहा था।

ये मेरी ज़िंदगी के चंद बेहतरीन दिन थे जब मेरा लण्ड मेरी बड़ी बहन, मेरी इंतिहाई हसीन बहन के नर्मो-नाज़ुक होंठों में दबा हुए था तो मैं अपने आपको दुनिया का खुश क़िस्मततरीन इंसान महसूस कर रहा था।

आपी ने अपना एक हाथ अपनी चूत पर रख लिया था और तेज-तेज अपनी चूत को रगड़ते हुए ज़रा तेज़ी से मेरे लण्ड को अपने मुँह में अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया था। उनके लण्ड चूसने का अंदाज़ वो ही था कि आपी अपने मुँह से लण्ड बाहर लाते हुए अपनी पूरी ताक़त से लण्ड को अन्दर की तरफ खींचती तो उनके गाल पिचक कर अन्दर चले जाते थे।

आपी तेजी से लण्ड को अन्दर-बाहर करतीं और हर झटके पर उनकी कोशिश यही होती कि उनके होंठ मेरे लण्ड की जड़ पर टच हो जाएँ।

मैंने अपने हाथ आपी के सिर से हटा कर उनके चेहरे को अपने हाथों में पकड़ा और लज़्ज़त में डूबी आवाज़ में कहा- “आपी अपने सिर को ऐसे ही रोक लो, मैं करता हूँ”

मैंने ये कहा और आपी के चेहरे को ज़रा मज़बूती से थाम कर अपनी गाण्ड को झटका देकर आपी के मुँह में अपना लण्ड अन्दर-बाहर करने लगा। मुझे इस तरह झटका मारने में ज़रा मुश्किल हो रही थी लेकिन एक नया मज़ा मिल रहा था। नया अहसास था कि मैं अपनी बहन के मुँह को चोद रहा हूँ। इस तरह झटका मारने से हर झटके में ही मेरे लण्ड की नोक आपी के हलक़ को छू जाती थी।

ऐसे ही झटके मारते-मारते मेरा ऑर्गज़म बिल्ड हुआ तो मैंने अपने कूल्हे एक झटके से बिस्तर पर गिरते हुए आपी के मुँह को भी ऊपर की तरफ झटका दिया और मेरा लण्ड ‘फुच्च..’ की एक तेज आवाज़ के साथ आपी के मुँह से बाहर निकल आया।

मैंने आपी को छोड़ा और अपना सिर पीछे गिरा कर लंबी-लंबी साँसें लेकर अपनी हालत को कंट्रोल किया और फिर आपी से कहा- “उठो यहाँ मेरे पास आओ”

आपी मेरी टाँगों के दरमियान से उठ कर मेरे मुँह के पास आईं और बिस्तर पर बैठने ही लगी थीं कि मैंने अपना हाथ उनके कूल्हों के नीचे रखा और कहा- “वहाँ नहीं, यहाँ ऊपर आओ मेरे मुँह पर”

“यस ये हुई ना बात” -आपी ने खुश हो कर कहा और उठ कर मेरे चेहरे की दोनों तरफ अपने पाँव रखे और मुँह दीवार की तरफ करके ही बैठने लगीं।

मैंने आपी को इस तरह बैठते देखा तो एकदम चिड़ कर कहा- “यार आपी इतनी मूवीज देखी हैं फिर भी चूतिया की चूतिया ही रही हो। बाबा मुँह दूसरी तरफ करो मेरे पाँव की तरफ। 69 पोजीशन में आओ”

“मुझे क्या पता कि तुम्हारे दिमाग में क्या है? मुँह से बोलो ना, मूवीज में तो ऐसा भी होता है जैसे मैं बैठ रही थी” -आपी ने भी उसी अंदाज़ में जवाब दिया और फिर से खड़ी हो गईं।

मैंने अपने लहजे को कंट्रोल किया और कहा- “अच्छा मेरी जान! जो मर्ज़ी करो”

आपी ने मुझे हार मानते देखा तो अकड़ कर फिल्मी अंदाज़ में बोलीं- “अपुन से पंगा नहीं लेने का हाँ! बोले तो अब वैसे ही लेटती हूँ, 69 पोजीशन में”

यह कह कर वो घूम कर खड़ी हुईं और बोलीं- “अपने हाथ सिर की तरफ करो”

मैंने अपने हाथ सिर की तरफ किए तो आपी मेरे सीने पर बैठीं और लण्ड पर झुकते हुए थोड़ी पीछे होकर मेरी बगलों के पास से पाँव गुजार कर पीछे कर लिए और अपना ज़ोर घुटनों पर दे दिया। आपी के पीछे होने से मेरा चेहरा आपी के दोनों कूल्हों के दरमियान आ गया और आपी की चूत से निकलता जानलेवा खुश्बू का झोंका मेरे अंग-अंग को मुअतर कर गया।

मैंने अपनी ज़ुबान निकाली और आपी की चूत के लबों को चाट कर चूत के आस-पास के हिस्से को चाटने लगा।

आपी ने फिर से मेरे लण्ड को अपने मुँह में भर लिया था और चूसने लगी थीं।

मैंने चूत के आस-पास के हिस्से को मुकम्मल तौर पर चाटने के बाद अपनी उंगलियों से चूत के दोनों लबों को अलहदा किया और अपनी ज़ुबान से आपी की चूत के अंदरूनी गुलाबी नरम हिस्से को चाटने लगा।

आपी ने मेरे लण्ड को चूसते-चूसते अब अपनी गाण्ड को आहिस्ता-आहिस्ता हिलाना भी शुरू कर दिया था और मेरी ज़ुबान की रगड़ को अपनी चूत के अंदरूनी हिस्से पर महसूस करके जोश में आती जा रही थीं।

कुछ देर ऐसे ही अन्दर ज़ुबान फेरने के बाद मैंने अपनी ज़ुबान चूत के सुराख में दाखिल कर दी। आपी ने एक ‘आहह..’ भरी और अपनी चूत को मेरे मुँह पर दबाने लगीं। मैं और तेजी से ज़ुबान अन्दर-बाहर करने लगा। 

कुछ देर तक मैं अपनी ज़ुबान इसी तरह अन्दर-बाहर करता रहा फिर ज़ुबान बाहर निकाल कर आपी की चूत के दाने को चाटा और उससे होंठों में दबा कर अन्दर की तरफ खींचते हुए चूसा तो आपी ने मेरे लण्ड को मुँह से निकाल कर एक ज़ोरदार सिसकारी भरी।

“अहह हाँ सगीर! यहाँ से चूसो, यहाँ सबसे ज्यादा मज़ा आता है”

वो फिर से मेरे लण्ड को चूसने लगीं।

कुछ देर ऐसे ही आपी की चूत के दाने को चूसने के बाद मैंने फिर अपनी ज़ुबान निकाली और आपी के कूल्हों की दरमियानी लकीर पर ज़ुबान फेरते हुए अपनी 2 उंगलियाँ आपी की चूत में डाल दीं। आपी ने एक लम्हें को मेरा लण्ड चूसना रोका और फिर दोबारा से चूसने लगीं।

मैंने देखा कि आपी ने कुछ नहीं कहा तो आहिस्ता-आहिस्ता अपनी उंगलियों को हरकत देकर चूत में अन्दर-बाहर करते हुए अपनी ज़ुबान को आपी की गाण्ड की ब्राउन सुराख पर रख दिया। दो मिनट तक सुराख को चाटता रहा और फिर अपनी ज़ुबान की नोक को सुराख के सेंटर में रख कर थोड़ा सा ज़ोर दिया और मेरी ज़ुबान मामूली सी अन्दर चली ही गई या शायद आपी की गाण्ड का नरम गोश्त ही अन्दर हुआ था।

आपी अब मेरे लण्ड पर अपना मुँह बहुत तेज-तेज चला रही थीं और मेरे अन्दर जोश भरता जा रहा था। मैंने भी आपी की चूत में अपनी उंगलियाँ बहुत तेज-तेज चलाना शुरू कर दीं।

मैं पहले तो यह ख्याल रख कर उंगलियाँ चलाता रहा था कि एक इंच से ज्यादा अन्दर ना जाने पाए लेकिन अब तेजी-तेजी से अन्दर बाहर करने की वजह से मैं अपने हाथ को कंट्रोल नहीं कर पा रहा था और हर 3-4 झटकों के बाद एक बार उंगलियाँ थोड़ी ज्यादा गहराई में उतर जाती थीं जिससे आपी के जिस्म को एक झटका सा लगता और 2 सेकेंड के लिए उनकी हरकत को ब्रेक लग जाती।

मैंने आपी की गाण्ड के सुराख को भरपूर अंदाज़ में चाट कर अपनी ज़ुबान हटाई और दूसरे हाथ की एक उंगली को अपने मुँह से गीला करके आपी की गाण्ड के सुराख में दाखिल कर दी जो पहले ही झटके में तकरीबन 1. 5 इंच तक अन्दर चली गई।

TO BE CONTINUED ....
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आपी के कूल्हों ने एक झटका लिया उन्होंने फ़ौरन मेरे लण्ड से मुँह हटाया और तक़लीफ़ से लरज़ती आवाज़ में कहा- “उफफ्फ़ सगीर कुत्ते! निकाल उंगली, साले बहुत दर्द हो रहा है”

मैंने उंगली को बगैर हरकत दिए कहा- “कुछ नहीं होता आपी, बस थोड़ी देर दर्द होगा, बर्दाश्त कर लो”

“नहीं नहीं सगीर! निकालो प्लीज़, मेरा कोई सुराख तो छोड़ दो कमीने, क्यों इसके पीछे पड़ गए हो?”

“बस बस आपी एक मिनट में सुराख आदी हो जाएगा तो दर्द नहीं होगा”

आपी ने गर्दन घुमा कर मेरे चेहरे को देखा और ज़रा अकड़ कर कहा- “कहा ना नहीं, बस सगीर बाहर निकालते हो उंगली या नहीं?”

मैंने मुस्कुरा कर आँख मारी और उन्हीं के अंदाज़ में जवाब दिया- “नहीं निकालता फिर क्या कर लोगी तुम?”

आपी कुछ बोले बगैर घूमी और झुक कर मेरे लण्ड की टोपी को दाँतों में दबा कर बोलीं- “कमबख्त निकालो” -वे अपने दाँतों को ज़ोर देकर लण्ड को काटने लगी।

मैंने शदीद तक़लीफ़ से चिल्ला कर कहा- “उफफ्फ़, अच्छा अच्छा… निकालता हूँ”

आपी ने अपने दाँतों को लूज कर दिया और फिर मैंने भी आपी की गाण्ड से उंगली निकाल कर कहा- “कितनी ज़ालिम हो यार आपी! मेरी जान ही निकाल दी, इतने ज़ोर से काटा है”

आपी ने खिलखिला कर हँसते हुए कहा- “याद रखना बेटा, कभी उस लड़की से पंगा नहीं लेना जिसके मुँह के पास ही तुम्हारा सामान हो” -यह कहते हुए उन्होंने मेरे लण्ड पर एक चुटकी मारते हुए कहा- “ये चीज दबी हो”

और वो हँसते हुए दोबारा से मेरे लण्ड को मुँह में लेकर चूसने लगीं।

मैंने भी फिर से आपी की चूत में उंगलियाँ डालीं और उनकी चूत के दाने को चूसते हुए उंगलियाँ अन्दर-बाहर करने लगा।

कुछ ही देर बाद मेरी साँसें तेज हो गईं और मुझे अंदाज़ा हो गया कि मेरा लण्ड अपना लावा बहाने को तैयार है। मेरा जिस्म अकड़ना शुरू हुआ तो मैंने आपी की चूत से मुँह हटा कर कहा- “आपी, मैं छूटने वाला हूँ”

आपी ने एक लम्हें के लिए मुँह से मेरा लण्ड निकाला और तेज साँसों के साथ कंपकंपाती आवाज़ में बोलीं- “मैं…  मैं … भी…”

उन्होंने फ़ौरन ही दोबारा मेरा लण्ड मुँह में ले लिया। मैंने भी फ़ौरन आपी की चूत के दाने को अपने मुँह में लिया और अगले ही लम्हें आपी का जिस्म भी अकड़ गया और आपी के जिस्म को झटके लगने लगे। मेरी उंगलियाँ आपी की चूत के अन्दर ही थीं, आपी की चूत की अंदरूनी दीवारें मेरी उंगलियों को भींचती थीं और फिर चूत लूज़ हो जाती और अगले ही लम्हे फिर भींच लेती।

काफ़ी देर तक आपी के जिस्म को झटके लगते रहे और उनकी चूत इसी तरह मेरी उंगलियों को भींच-भींच के छोड़ती रही। उसी वक़्त मुझे ज़िंदगी में पहली बार यह पता चला कि लड़की डिस्चार्ज होती है तो उसकी चूत इस तरह सिकुड़ती है और लूज होती है।

आपी के डिस्चार्ज होते ही मैंने अपनी उंगलियाँ चूत से निकालीं और अपना मुँह आपी की चूत से लगा कर चूत के अन्दर से सारा रस अपने मुँह में खींचने लगा। उसी वक़्त मेरा जिस्म भी अकड़ा और फिर मेरा लण्ड आपी के मुँह के अन्दर ही अपना लावा बहाने लगा और मेरी आँखें बंद हो गईं।

हम दोनों ही डिस्चार्ज हो चुके थे आपी मेरे ऊपर से उठ कर मेरी राईट साइड पर लेटीं और अपनी राईट टांग उठा कर मेरी टाँगों पर रख कर मेरे सीने पर हाथ मारा।

उनके मुँह से आवाज आई- “ओंन्नाममम ओन्न्णुणन्…”

मैंने आँखें खोल कर आपी को देखा तो उन्होंने अपने होंठों को मज़बूती से बंद कर रखा था और होंठों के साइड से मेरे लण्ड का जूस बह रहा था। मेरे मुँह में भी आपी की चूत से निकला हुआ आबे-ज़न्नत मौजूद था।

आपी ने मेरे गाल पर हाथ रख कर मेरे चेहरे को अपनी तरफ किया और मेरे होंठों से अपने होंठ चिपका दिए और हम दोनों ही एक-दूसरे की जवानी के जूस से लिपटे होंठों के साथ किस करने लगे।

काफ़ी देर एक-दूसरे के होंठ चूसने और ज़ुबान लड़ाने के बाद हम अलग हुए तो एक-दूसरे के मुँह को देख कर दोनों ही हँस पड़े।

फिर आपी ने बिस्तर पर ही पड़ी मेरी ही शर्ट को उठाया और अपना मुँह साफ करने के बाद मेरा मुँह साफ करते हुए बोलीं- “गंदे… मुझे भी अपनी तरह गंदा बना ही दिया ना तुमने”

मैंने निढाल सी आवाज़ में शरारत से कहा- “आपी गंदी तो आप थीं ही क्योंकि हो तो मेरी ही बहन ना बस ये गंदगी कहीं अन्दर छुपी हुई थी जो अब बाहर आ रही है”

आपी मेरी बात सुन कर हँसी और उठ कर अपने कपड़े पहनने लगीं, अपने कपड़े पहन कर आपी मेरे पास आईं और मुझे ट्राउज़र पहना कर मेरे माथे को चूमा और मुहब्बत से चूर लहजे में बोलीं- “मेरी जान हो तुम, मुझसे नाराज़ मत हुआ करो”

मैंने जवाब में आपी को मुहब्बतपाश नजरों से देखा और सिर्फ़ मुस्कुरा कर रह गया और आपी उठ कर बाहर चली गईं।

TO BE CONTINUED .....
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ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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अब लोहा पूरी तौर से गर्म हो चुका है।

अब आपी की चूत में लण्ड चला जाना चाहिए।

क्या कहते हो दोस्तो!!!

Tongue Tongue yourock yourock horseride horseride
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Exam ke baad..tb tk foreplay chalne do ....
Farhan ko honey ke paas niche padhai ke liye bhej do
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(19-03-2024, 06:24 PM)Vnice Wrote: Exam ke baad..tb tk foreplay chalne do ....
Farhan ko honey ke paas niche padhai ke liye bhej do

GOOD IDEA ........
clps clps clps
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अगला दिन भी रूटीन की तरह ही गुज़रा रात में जब मैं घर आया तो अब्बू टीवी लाऊँज में ही बैठे टीवी पर न्यूज़ देखने के साथ-साथ अपने लैपटॉप पर काम भी करते जा रहे थे। मैं उनको सलाम करता हुआ वहाँ ही बैठ गया। 

अब्बू ने चश्मे के ऊपर से मुझ पर एक नज़र डाली और अपने लैपटॉप को बंद करते हुए बोले- “सगीर तुम्हारे एग्जाम भी होने वाले हैं। क्या इरादा है तुम्हारा फिर?”

“अब्बू मेरा इरादा तो यही है कि इंजीनियरिंग करूँगा, इलेक्ट्रॉनिक्स में”

“हून्न्न! नंबर इतने आ जाएंगे कि दाखिला हो जाए तुम्हारा?”

“जी अब्बू! मुझे तो पूरी उम्मीद है कि हो जाएगा दाखिला”

“सगीर बेटा! तुम मेरे दोस्त रहीम को तो जानते ही हो ना?”

मैंने कहा- “जी अब्बू! वो जिनकी इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम्स का शोरूम है, वो ही रहीम अंकल ना?”

अब्बू ने अपना चश्मा उतार कर टेबल पर रखा और मेरी तरफ घूम कर बोले- “हाँ वो ही”

अब्बू का सीरीयस अंदाज़ देख कर मैं भी संभल कर बैठ गया और अपना मुकम्मल ध्यान उन पर लगा दिया।

“बेटा मैं अब रिटायर होने वाला हूँ, मैं काफ़ी दिन से सोच रहा था कि कोई कारोबार शुरू करूँ और अब खुदा ने खुद ही एक रास्ता बना दिया है। उसी के बारे में तुमसे बात करनी है”

मैं अपने सीने पर हाथ बांधे सवालिया अंदाज़ में अब्बू को देखता रहा। कुछ देर खामोश रहने के बाद अब्बू ने कहा- “मैं कुछ भी करूँ, संभालना तो तुमने ही है क्योंकि मेरे बाद घर के बड़े तुम ही हो”

“अब्बू आप फ़िक्र ना करें, मैं हर तरह आप की उम्मीदों पर पूरा उतरूँगा”

मेरी बात सुन कर अब्बू के चेहरे पर खुशी के आसार पैदा हुए और वो बोले- “रहीम भाई ने बहुत मेहनत से अपनी इलेक्ट्रॉनिक्स शॉप बनाई है। उन्होंने आज ही मुझसे जिक्र किया है कि वो अपने बेटों के पास अमेरिका जा रहे हैं और अपनी शॉप बेचना चाहते हैं। मैंने उनसे तो ऐसी कोई बात नहीं की है लेकिन तुम से मशवरा माँग रहा हूँ कि अगर उनसे शॉप ले ली जाए तो संभाल लोगे तुम?”

मैंने अब्बू की बात सुन कर चंद लम्हें सोचा और फिर मज़बूत लहजे में जवाब दिया- “अब्बू आप मेरी तरफ से बेफ़िक्र हो जाएँ। आप जानते ही हैं कि मुझे इलेक्ट्रॉनिक्स में दिलचस्पी भी है बस आप देख लें कि पैसों का इन्तज़ाम हो जाएगा ना?”

“वो सब मैं देख लूँगा, कुछ पैसे देकर बाक़ी के लिए टाइम भी लिया जा सकता है”

मैं और अब्बू दो घंटे तक इसी मोज़ू पर बात करते रहे। तमाम पॉज़िटिव और नेगेटिव इश्यूस को ज़ेरे-ए-बहस लाने के बाद हमने ये ही फ़ैसला क्या कि खुदा को याद करके काम शुरू कर देते हैं। मैं अब्बू के पास से उठ कर कमरे में आया तो फरहान अपनी पढ़ाई में ही बिजी था।

मैंने उससे ज्यादा बात नहीं की और उसकी पढ़ाई की बाबत मालूम करके कपड़े चेंज किए और बिस्तर पर आ गया। मेरा यह नेचर है कि मैं जब कोई काम करने लगता हूँ तो मेरा जेहन, मेरी तमामतर तवज्जो उसी काम पर जम जाती है और बाक़ी तमाम सोचें पासेमंज़र में चली जाती हैं। इस वक़्त भी ऐसा ही हुआ और मैं अपने शुरू होने वाले नए कारोबार के बारे में प्लान करता हुआ जाने कब नींद की वादियों में खो गया।

सुबह मेरी आँख खुली तो दस बज रहे थे, मैंने मुँह हाथ धोया और नाश्ते के लिए नीचे जाने लगा। मैंने अभी पहली सीढ़ी पर क़दम रखा ही था कि मुझे ऊपर वाली सीढ़ियों पर एक साया सा नज़र आया और महसूस हुआ कि जैसे ऊपर कोई है।

मैं चंद सेकेंड रुका और फिर नीचे जाने के बजाए आहिस्ता-आहिस्ता दबे क़दमों से ऊपर जाने वाली सीढ़ियों पर चढ़ने लगा।

जब मैं सीढ़ियों के दरमियानी प्लेटफॉर्म, जहाँ से सीढ़ियाँ वापस घूम कर ऊपर को चढ़ती हैं, पर पहुँचा तो आपी वहाँ साइड में होकर दीवार से लगी खड़ी थीं, आपी ने एक प्रिंटेड लॉन का ढीला-ढाला सा सूट पहन रखा था और दुपट्टे, चादर, स्कार्फ वगैरह से बेनियाज़ थीं।

आपी ने अपने दोनों हाथ से प्लास्टिक का लाल रंग का टब पकड़ रखा था जिसको उल्टा करके अपने सीने पर रखते हुए आपी ने अपने दोनों सीने के उभारों को छुपा लिया था। उनके बाल मोटी सी चुटिया में बँधे हुए थे और चंद आवारा सी लटें पानी से गीली हुईं उनके खूबसूरत गुलाबी रुखसारों से चिपकी हुई थीं।

क़मीज़ की कलाइयाँ कोहनियों तक चढ़ी हुई थीं और सलवार के पायेंचे आधे पाँव के ऊपर और आधे पाँव के नीचे थे और खूबसूरत गुलाबी पाँव चप्पलों की क़ैद से आज़ाद थे। 

मैंने सिर से लेकर पाँव तक आपी के जिस्म को देखा और हैरतजदा सी आवाज़ में पूछा- “आपीयईई… मुझसे छुप रही हो?”

आपी ने सहमी हुई सी नजरों से मुझे देखते हुए कहा- “वो तुम… तुम जाओ नीचे… म्म… मैं आ कर तुम्हें नाश्ता देती हूँ”

मैं समझ नहीं पा रहा था कि आपी ऐसे क्यों बिहेव कर रही हैं। मैं एक क़दम उनकी तरफ बढ़ा तो वो एकदम से साइड को हुईं और अपने एक हाथ से टब को अपने सीने पर पकड़े दूसरे हाथ से मुझे रोकते हुए बोलीं- “तुम जाऊऊओ ना सगीर, मैं आती हूँ ना नीचे”

मैंने शदीद हैरत के असर में कहा- “आपी क्या बात है। इतना घबरा क्यों रही हो, ऊपर से कहाँ से आ रही हो?”

आपी बोलीं- “वो मैं ऊपर धुले हुए कपड़े लटकाने गई थी। तुम जाओ नीचे, मैं बाद में आऊँगी। अम्मी टीवी लाऊँज में ही बैठी हैं”

“इतनी परेशान क्यों हो? मैं आपके इतने क़रीब कोई पहली बार तो नहीं आ रहा ना”

मैं यह कह कर आगे बढ़ा और आपी के हाथ से खाली टब खींच लिया। आपी के सीने से टब हटा तो एक हसीन-तरीन नज़ारा मेरी आँखों के सामने था।

आपी ने क़मीज़ के अन्दर ब्रा या शमीज़ नाम की कोई चीज़ नहीं पहनी हुई थी। उनकी क़मीज़ गीली होने की वजह से दोनों खड़े उभारों के दरमियान गैप में सिमट कर उनके सीने के उभारों से चिपकी हुई थी। जिसकी वजह से आपी के निपल्स और निप्पलों के गिर्द का खूबसूरत दायरा क़मीज़ से बिल्कुल वज़या नज़र आ रहा था।

मैंने टब नीचे रखा और एक हाथ से आपी का लेफ्ट उभार थामते हुए अपना मुँह उनके उभारों के बीच और अपना दूसरा हाथ उनकी टाँगों के दरमियान ले जाते हुए हँस कर कहा- “ये छुपा रही थीं मुझसे? मैं ये कोई पहली बार थोड़ी ना देख रहा हूँ”

अपनी बात कह कर मैंने क़मीज़ के ऊपर से ही आपी के निप्पल को मुँह में ले लिया और उसी वक़्त मेरा हाथ भी आपी की टाँगों के दरमियान पहुँच गया। मेरा हाथ आपी की टाँगों के दरमियान टच हुआ तो मैं एकदम ठिठक गया और आपी का निप्पल मुँह में ही लिए अपने हाथ से आपी की टाँगों के दरमियान वाली जगह को टटोलने लगा।

TO BE CONTINUED .....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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मेरे ज़हन में तो यह ही था कि मेरा हाथ आपी की चूत की चिकनी नरम जिल्द पर टच होगा। उनकी चूत के उभरे-उभरे से नरम लब मेरे हाथ में आएंगे लेकिन हुआ ये कि मेरा हाथ एक फोम के टुकड़े पर टच हुआ और चंद सेकेंड में ही मेरी समझ में आ गया कि आपी ने अपनी चूत पर पैड लगा रखा है।

मैंने आपी के निपल्लों पर काट कर उनकी आँखों में देखा तो उन्होंने मेरा चेहरा पकड़ कर मुझे झटके से पीछे किया और चिड़चिड़े लहजे में बोलीं- “बस अब देख लिया ना, इसी लिए मैं तुमसे छुप रही थी”

मैंने आपी की बात सुनी और उनके दोनों हाथों को अपने हाथों में पकड़ कर उनके सिर के ऊपर लाया और दीवार से चिपका कर कहा- “तो इससे क्या होता है, मैं उसे नहीं चाटूँगा ना" -और फिर अपने होंठ आपी के होंठों से लगा दिए और उनके निचले होंठ को अपने दोनों होंठों में पकड़ कर चूसने लगा।

आपी ने मुझसे अपना आपको छुड़ाने की कोशिश करते हुए अपने सीने को झटका और मेरे हाथ से अपना हाथ छुड़ा कर मेरे सीने पर रख कर पीछे ज़ोर दिया तो मैंने पीछे हटते हुए आपी के होंठ को अपने दांतों में पकड़ लिया और होंठ खिंचने की वजह से आपी दोबारा मुझसे चिपक गईं।

मैंने ज़ोरदार तरीक़े से आपी के होंठ चूसते हुए उनका हाथ नीचे ला कर अपने लंड पर रखा लेकिन आपी ने हाथ हटा लिया। वो अभी भी मुझसे अलग होने की ही कोशिश कर रही थीं।

आपी ने मेरा लंड नहीं पकड़ा तो मैं खुद ही पीछे हट गया और बुरा सा मुँह बना कर कहा- “क्या है यार आपी! थोड़ा सा तो साथ दो ना?”

आपी ने बेचारगी से गिड़गिड़ा कर कहा- “सगीर प्लीज़, अभी मैं कुछ नहीं कर सकती ना, तुम थोड़ा कंट्रोल कर लो”

यह कहते-कहते आपी की आवाज़ भर गई और उनकी आँखों में आँसू आ गए थे।

मैंने आपी की आँखों में आँसू देखे तो मैं तड़फ उठा और एकदम आपी को अपनी बाँहों में भर कर अपने सीने से लगाता हुआ बोला- “नहीं आपी प्लीज़! मेरे सामने रोया मत करो ना, मेरा दिल दहल जाता है। मुझे क्या पता था कि आपको ऐसे तक़लीफ़ होती है। अब मैं कभी इन दिनों में आपको नहीं छेड़ूँगा। मैं वादा करता हूँ आपसे बस रोया मत करो। मैं इन प्यारी-प्यारी आँखों में आँसू नहीं देख सकता”

आपी कुछ देर ऐसे ही मेरे सीने में अपना चेहरा छुपाए खड़ी रहीं और मैं एक हाथ से आपी की क़मर को सहलाते दूसरे हाथ से उनके सिर को अपने सीने में दबाए रहा।

कुछ देर बाद आपी मुझसे अलग होते हुए बोलीं- “अच्छा बस तुम अब नीचे जाओ, मैं कुछ देर बाद आकर तुम्हें नाश्ता देती हूँ। मैं ऊपर से अपनी चादर भी ले आऊँ। मैं ये नहीं चाहती कि अम्मी मुझे इस हालत में तुम्हारे सामने घूमते-फिरते देखें”

“ओके जाऊँ अब नीचे?” -मैंने सीरीयस से अंदाज़ में आपी की आँखों में देखा जो रोई-रोई सी मज़ीद हसीन लगने लगीं थीं और बिना कुछ बोले नीचे जाने के लिए वापस घूमा ही था कि आपी ने मेरा बाज़ू कलाई से पकड़ा और मेरे सामने आकर प्यार भरे लहजे में बोलीं- “अब ऐसी शकल तो नहीं बनाओ ना, एक बार मुस्कुरा तो दो”

मैंने आपी की आँखों में देखा और मुस्कुराया तो आपी ने कहा- “मेरा सोहना भाई…”

उन्होंने आगे बढ़ कर अपने होंठ मेरे होंठों से लगा कर नर्मी से चूमा और मेरी आँखों में देखते हुए ही अलग हो गईं।

मैंने आपी के चेहरे को अपने दोनों हाथों में थाम कर बारी-बारी से आपी की दोनों आँखों को चूमा और उन्हें छोड़ कर नीचे चल दिया। मैं नीचे पहुँचा तो अम्मी टीवी लाऊँज में बैठी दोपहर के खाने के लिए गोश्त काट रही थीं।

मैंने उन्हें सलाम करके अनजान बनते हुए पूछा- “अम्मी आपी कहाँ है? नाश्ता वाश्ता मिलेगा क्या?”

छुरी अपने हाथ से नीचे रख कर अम्मी खड़ी होती हुए बोलीं- “तुम्हारा उठने का कोई टाइम फिक्स हो तो बंदा नाश्ता बना कर रखे ना, तुम बैठो मैं अभी बना कर लाती हूँ। रूही ने आज मशीन लगाई हुई है, कपड़े धोने में लगी है”

अम्मी किचन में नाश्ता बनाने गईं तो मैं उनकी जगह पर बैठ कर न्यूज़ देखते हुए गोश्त काटने लगा।

कुछ देर बाद अम्मी नाश्ते की ट्रे लेकर किचन से निकलीं और ट्रे टेबल पर रखते हुए बोलीं- “ओहो! मैं तो भूल ही गई थी सगीर, तुम्हारे अब्बू का फोन आया था वो कह रहे थे कि 12 बजे तक उनके ऑफिस चले जाना। वो कह रहे थे तुम्हें साथ ले कर रहीम भाई से मिलने जाना है”

“जी अच्छा अम्मी, मैं चला जाऊँगा”

यह कह कर मैं नाश्ता करने के लिए टेबल पर बैठा और उसी वक़्त आपी भी नीचे उतर आईं। लेकिन अब उन्होंने अपने सिर पर और ऊपरी जिस्म के गिर्द अपनी बड़ी सी चादर लपेटी हुई थी जिससे उनके बदन के उभार छुप गए थे। मुझसे नज़र मिलने पर आपी ने अम्मी से नज़र बचा कर मुझे आँख मारी और अपने सीने से चादर हटा कर एक लम्हे को मुझे अपने खूबसूरत मम्मों का दीदार करवाया और हँसते हुए बाथरूम में चली गईं।

मैं जज़्बात से सिर उठाते अपने लंड को सोते रहने का मशवरा देता हुआ सिर झुका कर नाश्ता करने लगा। नाश्ता करके मैं अब्बू के ऑफिस गया और वहाँ से हम रहीम अंकल से मिलने उनकी शॉप कम शोरूम पर गए। उनकी शॉप पर 3 आदमी काम करते थे और तीनों बहुत पुराने और ईमानदर वर्कर थे।

वहाँ ही हमने रहीम अंकल से बात-चीत की और सारे मामलात तय करके रहीम अंकल ने वर्कर्स को भी यह बात साफ़ कर दी कि अब शॉप के नये मालिक हम लोग होंगे जिसको उन वर्कर्स ने भी बहुत खुशदिली से क़बूल किया।

अगले 3 दिन तक हम पेपर वर्क और दूसरे तमाम मामलात में मसरूफ़ रहे। मैं सुबह जल्दी कॉलेज जाता था और कॉलेज से ही सीधे शॉप पर पहुँच जाता और रात 9 बजे शॉप क्लोज़ होने के बाद ही मैं घर जाता था। मैंने अपने तरीक़े से सारी लिस्ट को मेन्टेन किया कि हमारे पास क्या-क्या आइटम्स हैं और हम कितने में खरीदते हैं? कितने में हमने आगे बेचना है? वगैरह वगैरह…।

शॉप पर जाते मेरा चौथा दिन था। मैं रात 9 बजे घर पहुँचा तो सब डाइनिंग टेबल पर ही बैठे थे। मैं उन्हें 5 मिनट रुकने का कह कर बाथरूम गया और हाथ मुँह धो कर खाने के लिए आ बैठा। इधर उधर की बातें करते हुए हमने खाना ख़त्म किया।

अब्बू ने अपने पॉकेट में हाथ डालते हुए कहा- “अरे हाँ सगीर, मैं भूल गया था यार, वो शकूर साहब तुम्हारा लाइसेन्स दे गए थे”

उन्होंने अपने जेब से लाइसेन्स निकाल कर मुझे दे दिया।

मैं अभी लाइसेन्स को हाथ में ले कर देख ही रहा था कि हनी ने मेरे हाथ से लाइसेन्स खींचा और बोली- “भाई ऐसे ही सूखा-सूखा तो कुछ भी नहीं मिलता ना लाइसेन्स। अब ज़रा अपना जेब ढीला करो और अभी के अभी हम सबको आइसक्रीम खिलाने ले कर चलो। तो मैं लाइसेन्स दूँगी वरना नहीं”

हनी की बात सुन कर फरहान भी उसके साथ मिल गया और दोनों ‘आइस्क्रीम...आइस्क्रीम’ का शोर करने लगे।

अब्बू ने मुस्कुराते हुए उन दोनों को चुप करवाया और गाड़ी की चाबी मुझे देते हुए बोले- “जाओ यार, ले जाओ सबको आइसक्रीम भी खिला लाओ और अपने लिए दूसरी चाबी भी बनवा लाओ”

मैं फरहान, हनी और आपी तीनों को आइस्क्रीम खिलाने ले गया और गाड़ी की चाबी भी बनवा कर हम घर वापस पहुँचे तो 11 बज रहे थे।

अम्मी अपने कमरे में थीं और अब्बू न्यूज़ देख रहे थे। हमें अन्दर आता देख कर अब्बू उठते हुए बोले- “मुझे बहुत सख़्त नींद आ रही है। मैं बस तुम लोगों के इंतज़ार में जाग रहा था। तुम लोग भी अब जाओ सो जाओ। अब गप्पें मारने नहीं बैठ जाना”

यह कह कर अब्बू कमरे में चले गए। हनी भी ना जाने कब से पेशाब रोके बैठी थी। अन्दर आते ही सीधी बाथरूम की तरफ भागी।

TO BE CONTINUED .....
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आपी भी अपने कमरे की तरफ जाने लगीं तो फरहान आहिस्ता आवाज़ में मुझसे बोला- “भाई आज आपी को बोलो ना थोड़ा मज़ा करते हैं। आज बहुत दिल चाह रहा है ना, अब तो सिर्फ़ 2 पेपर बचे हैं”

फरहान ने कहा तो आहिस्ता आवाज़ में ही था लेकिन आपी ने उसकी बात सुन ली और मेरे कुछ बोलने से पहले ही गर्दन घुमा कर हमारी तरफ देखा और मेरे चेहरे पर नज़र जमाते हुए बोलीं- “तुम्हारा भी दिल चाह रहा है क्या?”

मैंने चंद सेकेंड सोचा और कहा- “नहीं यार, मैं सुबह 7 बजे से निकला हुआ हूँ और शॉप से घर पहुँचा ही था कि तुम लोगों ने आइस्क्रीम का शोर कर दिया। इस टाइम बस नींद के अलावा और कोई बात मेरी समझ में नहीं आ रही है। मैं तो चला ऊपर”

अपनी बात कह कर मैं रुका नहीं और अपने कमरे को चल दिया। कमरे में आते ही मैं बिस्तर पर गिरा और कुछ ही मिनटों में दुनियाँ ओ माफिया से बेखबर हो गया।

अगले रोज़ भी मैं तक़रीबन सवा नौ बजे घर पहुँचा तो थकान से चूर था। सब खाना खा रहे थे। मैं फ्रेश हो कर नीचे आया तो सब ही खाना खा चुके थे और अब्बू हस्बे-मामूल टीवी लाऊँज में ही बैठे न्यूज़ देखते हो चाए पी रहे थे।

मैं खाने के लिए टेबल पर बैठा और खाना शुरू किया ही था कि अब्बू ने मेरा थका हुआ चेहरा देख कर कहा- “बेटा, तुम कॉलेज से 2 बजे तक तो शॉप पर पहुँच ही जाते हो तो ऐसा किया करो कि 5 बजे घर आ जाया करो। सलीम (शॉप का मुंतज़ीं) बहुत ईमानदार और मेहनती लड़का है। वो रहीम भाई के होते हुए भी अच्छा ही संभाल रहा था। अब भी संभालता रहेगा और मैं भी एकाध चक्कर लगा ही लेता हूँ तो इतनी परेशानी उठाने की क्या जरूरत है कि अपना ख़याल भी ना रख सको”

मैंने खाना खाते-खाते ही अब्बू को जवाब दिया- “वो अब्बू! मैं तो अपने अनुभव के लिए वहाँ बैठा रहता हूँ और सारी लिस्ट मैं अपने हिसाब से तरतीब दे रहा था इसलिए टाइम ज्यादा लग जाया करता है”

“बेटा मेरी एक बात याद रखना कि जब तक सांस चल रही है ये काम धन्धा चलता रहेगा। ऐसा तो है नहीं कि आज हम सब ख़त्म कर लेंगे और फिर चैन से सोएंगे। बेटा मरने के बाद ही इन चक्करों से छुटकारा मिलता है। इसलिए मेरा हमेशा ये ही उसूल रहा है कि काम को अपने ऊपर इतना मत सवार करो कि अपनी सेहत और ज़ेहनी सुकून को तबाह कर बैठो। जान है तो जहान है और तुम्हारी अभी ज़िंदगी पड़ी है। अभी तो जुम्मा-जुम्मा आठ 8 दिन भी नहीं हुए। होता रहेगा तजुर्बा लेकिन अपने आप पर तवज्जो देना बहुत जरूरी है और इस तरह तुम्हारी पढ़ाई का भी हर्ज होगा”

“अब्बू बस अब सारी लिस्ट वगैरह तो तक़रीबन फाइनल हो ही चुकी हैं और जहाँ तक पढ़ाई की बात है तो मैं शोरूम में ही अपने केबिन में बैठ कर पढ़ाई कर ही लेता हूँ लेकिन चलिए मैं कल से 5 बजे तक घर आ जाया करूँगा”

इसके बाद भी कुछ देर अब्बू मुझसे शॉप के बारे में ही पूछते रहे और मैं उनसे बातें करता हुआ खाना ख़ाता रहा। फिर मैं भी चाय पीकर अपने कमरे में आ गया। फरहान पढ़ाई में ही लगा था। 

मैंने उसके दोनों कंधों पर हाथ रख कर कन्धों को दबाते हुए कहा- “और सुना छोटू! कैसे हो रहे हैं पेपर?”

वो तक़लीफ़ से कराह कर बोला- “उफफ्फ़ भाईईईईई! इतने ज़ोर से दबाए हैं कंधे? बस कल आखरी पेपर है फिर छुट्टी”

मैंने उसकी गुद्दी पर एक चपत मारी और अपनी जगह पर लेट कर बोला- “क्या यार! थोड़ा सा दबाया है और तुमसे बर्दाश्त नहीं हो रहा इसी लिए कहता हूँ कि ज़रा कम पानी निकाला करो। वैसे तुम्हें तो काफ़ी दिन हो गए हैं पानी निकाले हुए ना?”

मेरी बात सुन कर वो खुश होता हुआ बोला- “अरे हाँ! आप तो कल कमरे में आ गए थे लेकिन आपी ने मुझे कल मज़ा करवाया था”

मैंने लेटे-लेटे ही उसकी तरफ देखा और कहा- “अच्छा, मुझे तो पता ही नहीं चला। तुम्हारे साथ ही आपी भी आ गई थीं क्या कमरे में?”

“नहीं भाई, आपको पता भी कैसे चलता। हम कमरे में नहीं आए थे, कमरे से बाहर ही सीढ़ियों के पास आपी ने मेरा लंड चूस कर मुझे डिसचार्ज करवाया था लेकिन आपी ने बस जान छुड़ाने वाले अंदाज़ में ही चूसा था। पता नहीं वो मेरे साथ ऐसा क्यों करती हैं”

मैंने फरहान की बात सुनी तो मुस्कुरा कर उसे जवाब दिया- “अबे नहीं यार, ऐसा मत सोचो कि तुम्हारे साथ वो ऐसा करती हैं। असल में आपी को मेनसिस चल रहे हैं इसलिए आपी ने दिल से नहीं चूसा होगा क्योंकि अगर वो दिल से सब कुछ कराएँ तो वो भी गर्म हो जाएँगी और फिर उनकी चूत में जलन होती है। आपी ने खुद मुझे ये बातें बताई थीं लेकिन ये देखो कि वो तुमको इतना प्यार करती हैं कि अपनी तक़लीफ़ का बता कर उन्होंने तुम्हें मना नहीं किया बल्कि तुम्हारा लंड चूस कर तुम्हें सुकून पहुँचाया है”

वो चंद लम्हें कुछ सोचता रहा फिर बोला- “हाँ भाई, ये तो बात है!”

“अब दिमाग से चूत को निकाल और चल अब पढ़ाई कर और मैं भी सोता हूँ” -मैंने फरहान से कहा और चादर अपने मुँह तक तान ली।

अगला दिन भी बहुत बिजी ही गुज़रा और आम दिनों से ज्यादा थका हुआ सा घर पहुँचा तो अब्बू और अम्मी टीवी लाऊँज में ही थे। अम्मी ने मुझे खाना दिया और खाने के दौरान ही शॉप के बारे में अब्बू से बातें भी होती रहीं। कमरे में आया तो आज खिलाफे तवक़ा फरहान सोता हुआ नज़र आ रहा था। मुझे भी थकान ने कुछ और सोचने ही नहीं दिया और मैं भी चेंज करके सो गया।

सुबह मैं ज़रा लेट उठा तो अम्मी ने ही नाश्ता दिया कि आपी यूनिवर्सिटी चली गयी थीं। मैं भी नाश्ता वगैरह करके कॉलेज चला गया और वहाँ से शॉप पर, वापस घर आते हुए मैंने अपनी शॉप से एक डिजिटल कैमरा भी उठा लिया था कि अब तो हर चीज़ ही पहुँच में थी। मैं घर पहुँचा तो सवा पाँच हो रहे थे। टीवी लाऊँज में कोई नज़र नहीं आ रहा था। आपी का और अम्मी का कमरा भी बंद था।

मैं अपनी लेफ्ट साइड पर किचन के अन्दर देखता हुआ राइट पर सीढियों की तरफ मुड़ा ही था कि ‘भौं..’ की आवाज़ के साथ ही मेरे कन्धों को धक्का लगा।

और “हहा... हाअ डर गए… डर गए... कैसे उछले हो डर के...” -आपी शरारत से हँसते हुए मेरे सामने आ गईं जो दीवार की साइड पर छुप कर खड़ी हुई थीं।

आपी ने इस वक़्त सफ़ेद चिकन की फ्रॉक और सफ़ेद रेशमी चूड़ीदार पजामा पहना हुआ था जो पैरों से ऊपर बहुत सी चुन्नटें लिए सिमटा हुआ था, सर पर अपने मख़सूस अंदाज़ में ब्लॅक स्कार्फ बाँधा हुआ था। सीने पे बड़ा सा दुपट्टा फैला कर डाला हुआ था।

मैंने आपी को हँसते हुए देखा तो उन्होंने मुँह चिढ़ा कर कहा- “ईईईहीईए... डर कहाँ से गया? इतने ज़ोर से धक्का मारा है कि अन्दर से मेरा सब कुछ हिल गया है”

मेरी बात सुन कर आपी एक क़दम आगे बढ़ीं और पैंट के ऊपर से ही मेरे लण्ड को मज़बूती से पकड़ कर दाँत पीसती हुई बोलीं- “क्या-क्या हिल गया है मेरे भाई का अन्दर से?”

मैंने आपी की इस हरकत पर बेसाख्ता ही इधर-उधर देखा और कहा- “क्या हो गया है आपी? घर में कोई नहीं है क्या?”
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आपी ने मेरे लण्ड को दबा कर मेरी गर्दन पर अपने दांतों से काटा और फिर अपने दांतों को आपस में दबा कर अजीब तरह से बोलीं- “सब घर में ही हैं नाआआ, अम्मी अपने कमरे में और हनी अपने में!”

आपी के इस अंदाज़ पर मैं हैरतजदा रह गया और मैंने उन्हें कहा- “होश में आओ यार, कोई बाहर निकल आया तो?”

आपी ने अपने सीने के उभारों को मेरे सीने पर रगड़ा और मेरी गर्दन को दूसरी तरफ से चूम और काट कर कहा- “देखने दो सब को, सारी दुनिया को देख लेने दो कि मैं अपने भाई की रानी हूँ। अपनी प्यास बुझाना चाहती हूँ अपने सगे भाई के लण्ड से”

मैंने आपी के दोनों कन्धों को पकड़ कर उन्हें अपने आपसे अलग किया और झुरझुरा कर कहा- “ऊओ मेरी माँ! बस कर दे एक्टिंग, क्यों फंसवाएगी भाईईइ...”

आपी ने हँसते हुए अपनी आँखें खोलीं और मुझे देख कर आँख मारते हुए नॉर्मल अंदाज़ में बोलीं- “यार सगीर आज कुछ करने का बहुत दिल चाह रहा है”

मैंने शरारत से कहा- “क्यों बहना जी! लीकेज खत्म हो गई है क्या?”

“हाँ यार आज सुबह ही नहा ली थी। तभी तो बेताब हो रही हूँ, इतने दिन से पानी नहीं निकाला ना”

मैंने आपी का हाथ पकड़ा और सीढ़ियों की तरफ घूमते हुए कहा- “तो चलो आओ ऊपर, पानी निकालने का अभी कोई बंदोबस्त कर देता हूँ”

आपी ने आहिस्तगी से अपना हाथ छुड़ाया और कहा- “नहीं यार अभी नहीं, अभी खाना भी बनाना है। रात में आऊँगी तुम्हारे पास”

मैंने आपी की बात सुन कर अपने कंधे उचकाए और ऊपर जाने के लिए पहली सीढ़ी पर क़दम रखा ही था कि आपी बोलीं- “अब इतने भी बेवफा ना बनो यार”

मैंने गरदन घुमा कर आपी को देखा और कहा- “क्या मतलब?? खुद ही तो कहा है रात में आऊँगी”

“हाँ मैंने रात में आने का कहा है लेकिन ये तो नहीं कहा कि ऐसे ही ऊपर चले जाओ?”

मैंने अपना क़दम सीढ़ी से वापस खींचा और घूम कर आपी की तरफ रुख करके कहा- “क्या करूँ फिर? साफ बोलो ना?”

आपी ने अपने निचले होंठ की साइड को अपने दांतों में दबा कर बड़े अजीब अंदाज़ से मेरी आँखों में देखा और कहा- “मेरे सोहने भैया जी! कम से कम दीदार ही करवा दो”

मैं समझ तो गया लेकिन फिर भी मज़े लेते हुए कहा- “किस चीज़ का दीदार करवा दूँ मेरी सोहनी बहना जी?”

आपी ने मेरी आँखों में ही देखते हुए अपना एक क़दम आगे बढ़ाया और मेरी पैंट की ज़िप को खोलते हुए कहा- “अपने ‘लण्ड’ का दीदार करवा दो। कितने दिन हो गए हैं मैंने देखा तक नहीं है अपने भाई का ‘लण्ड’”

लण्ड लफ्ज़ बोलते हुए आपी की आँखें हमेशा ही चमक सी जातीं और लहज़ा भी अजीब सा हो जाता था।

मैंने भी लण्ड लफ्ज़ पर ज़ोर देते हुए कहा- “मेरी सोहनी बहना जी मेरा ‘लण्ड’ मेरी बहन के लिए ही तो है। खुद ही निकाल कर देख लो ना”

मेरी बात पूरी होने से पहले ही आपी ने मेरी पैंट की ज़िप से अन्दर हाथ डाल दिया था। उन्होंने अन्दर ही टटोल कर मेरे लण्ड को पकड़ा और पैंट से बाहर निकाल कर कहा- “सगीर चलो किचन में चलें। यहाँ कोई आ ना जाए”

मेरा लण्ड इस वक़्त सेमी इरेक्ट था मतलब ना ही फुल खड़ा था और ना ही फुल बैठा हुआ था।

मैं आपी के साथ ही किचन की तरफ चल पड़ा और कहा- “मैं तो पहले ही कह रहा था कि इधर कोई आ जाएगा लेकिन उस वक़्त तो रानी साहिबा को एक्टिंग सूझ रही थी ना”

“बकवास मत करो, एक्टिंग की बात नहीं है। उस वक़्त मुझे इतना इत्मीनान था कि किसी की आहट पर ही हम एक-दूसरे से अलग हो जाएंगे लेकिन अब तुम्हारा ये ‘भोंपू’ बाहर निकला हुआ है ना इसे छुपाना मुश्किल होगा” -आपी की बात खत्म हुई तब तक हम दोनों किचन में दाखिल हो चुके थे।

आपी ने मेरा हाथ पकड़ा और रेफ्रिजरेटर की साइड पर ले जाते हुए कहा- “यहाँ दीवार से लग कर खड़े हो जाओ और ये मुसीबत कि जड़ बैग तो कंधे से उतार देना था”

आपी ने ये कहा और अपने हाथ पीछे कमर पर ले जाकर दुपट्टे के दोनों कोनों को आपस में गाँठ लगाने लगीं।

ये जगह फ्रिज की साइड में थी और यहाँ पर खड़े होने से मेरे और किचन के दरवाज़े के दरमियान रेफ्रिजरेटर आ गया था। मुझे दरवाज़ा या उससे बाहर का मंज़र नज़र नहीं आ सकता था और इसी तरह अगर कोई दरवाज़े में खड़ा हो तो वो भी मुझे नहीं देख सकता था बल्कि किचन में अन्दर आ जाने के बाद भी मैं उस वक़्त तक नज़र से ओझल ही रहता कि जब तक कोई मेरे बिल्कुल सामने आकर ना खड़ा हो जाए।

मैं दीवार से पीठ लगा कर खड़ा हुआ और कहा- “यार, ये सारा दिन कंधे पर लटका होता है तो अभी अहसास ही नहीं रहा था कि यह भी लटका है। आप ही बोल देती ना उतारने का”

मैं बैग नीचे ज़मीन पर रखने लगा तो मुझे अचानक कैमरा याद आया और मैं बैग को हाथ में पकड़े हुए ही बोला- “आपी आज मैं कैमरा लाया हूँ। डिजिटल है 20 मेगा पिक्सल का, 52जे ज़ूम का है और अंधेरे में भी क्लियर मूवी बनाता है”

आपी ने अपने दुपट्टे को अपनी कमर पर गाँठ लगा ली थी और अब अपने सीने पर दुपट्टा सही करते हुए बोलीं- “कहाँ से लिया है?”

मैंने बैग खोलते हुए कहा- “कहाँ से क्या मतलब यार? अपनी शॉप से लाया हूँ, अभी दिखाऊँ क्या?”

आपी ने मेरा खुला बैग एक झटके से बंद किया- “अभी छोड़ो, दफ़ा करो और बैग नीचे रख दो”

यह बोलते हुए आपी ने मेरे लण्ड को पकड़ा और किचन के दरवाज़े से बाहर देखते हुए नीचे बैठ गईं और आखिरी बार नज़र बाहर डाल कर मेरे लण्ड को मुँह में ले लिया।

आज इतने दिनों बाद अपने लण्ड पर आपी के मुँह की गर्मी को महसूस करके मैं भी तड़फ उठा- “उफ्फ़ आप्पी! मेरी सोहनी बहना के मुँह की गर्मी, लण्ड की क़ातिल”

मैंने एक सिसकारी ली और आपी के चेहरे को देखने लगा। आपी भी मेरा लण्ड चूसते हुए ऊपर नज़र उठा कर मेरी आँखों में ही देख रही थीं। आपी लण्ड ऐसे चूसती थीं जैसे कोई अनुभवी चुसक्कड़ हो।

शायद यह चीज़ औरतों में कुदरती तौर पर ही होती है कि वो चुदाई के तमाम असरार बिना किसी से सीखे ही समझ जाती हैं और आपी तो काफ़ी सारी ट्रिपल एक्स मूवीज देख चुकी थीं जो वैसे ही अपने आप में एक बहुत बड़ा ट्रेनिंग स्कूल होती हैं।

मेरा लण्ड अब आपी के मुँह की गर्मी से फुल खड़ा हो गया था, मैंने मज़े में डूबते हुए आपी के सिर पर हाथ रख दिए। जब आपी मेरे लण्ड को जड़ तक अपने मुँह में उतार लेतीं तो मैं आपी के सिर को दबा कर कुछ देर वहीं रोक लेता और जब आपी पीछे की तरफ ज़ोर देने लगतीं तो मैं अपने हाथों को ढीला कर लेता।

इसी तरह से आपी ने मेरा लण्ड चूसते हुए अपना हाथ नीचे ले जाकर अपनी टाँगों के बीच रखा ही था कि किसी आहट को सुन कर आपी फ़ौरन पीछे हट कर खड़ी हो गईं और मैंने भी जल्दी से अपने लण्ड को अपनी पैंट में डाल कर ज़िप बंद कर दी।

आपी मुझसे दूर हट कर वॉशबेसिन में बिला वजह बर्तन इधर-उधर करने लगीं और मैं सांस रोके वहीं खड़ा किसी के आने का इन्तजार करने लगा लेकिन काफ़ी देर तक कोई सामने ना आया तो आपी ने डरते-डरते दरवाज़े के बाहर नज़र डाली और वहाँ किसी को ना पाकर मेरी तरफ देखा।

मैंने आपी को हाथ से इशारा करके बगैर आवाज़ के होंठों को जुंबिश दी- “बाहर जा कर देखो ना यार”

आपी सहमे हुए से अंदाज़ में ही बाहर तक गईं और फिर अन्दर आ कर बोलीं- “कोई नहीं है बाहर और बस अब तुम जाओ। मैं रात में आऊँगी कमरे में, सोना नहीं अच्छा”

TO BE CONTINUED ....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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मैं भी रेफ्रिजरेटर की साइड से निकाल कर आपी के सामने आया और कहा- “सो भी गया तो उठा देना लेकिन मेरी अभी की बारी का क्या होगा?”

आपी ने एक नज़र बाहर देखा और कहा- “अभी क्या करना है तुमने? छोड़ो रात को ही कर लेना”

मैंने आपी का चेहरा पकड़ कर उनके होंठ चूमे और कहा- “जी नहीं, रात की रात में देखेंगे लेकिन मेरी अभी की बारी दो”

“अच्छा ना, बोलो क्या करना है?”

ये कह कर आपी ने अपने एक हाथ से दुपट्टा अपने सीने से हटाया और दूसरे हाथ से सीने के एक उभार को अपनी क़मीज़ के ऊपर से पकड़ कर कहा- “ये चूसना है?”

मैंने गर्दन को नहीं के अंदाज़ में हिलाया और दो सेकेंड रुक कर कहा- “इस दुनिया की सबसे ज्यादा मदहोश कर देने वाली खुश्बू सूँघनी है और दुनिया के लज़ीज़-तरीन मशरूब के जो चंद क़तरे निकले होंगे, वो पीने हैं”

आपी ने फिर से अपने निचले होंठ की साइड को दाँत से काट कर नशीली नजरों से मुझे देखा और फिर आँख मार कर घूमीं और हँसते हुए किचन से बाहर भाग गईं।

आपी के इस तरह बाहर भाग जाने से मेरी गाण्ड ही जल गई और मुझे इतनी शदीद झुंझलाहट हुई कि मेरे मुँह से कोई बात ही नहीं निकल सकी। मेरे दिमाग़ में बस दो ही लफ्ज़ गूँजने लगे ‘सगीर चूतिया… सगीर चूतिया…’

मैं आँखें फाड़े खाली दरवाज़े को ही देख रहा था कि आपी फिर से सामने आईं और अपने दोनों अंगूठों को अपने कान पर रख कर मुझे मुँह चिढ़ा कर मेरी तरफ पीठ की और अपने कूल्हों को मटकाते हुए मुझे देख कर गाना गाने लगीं- “जा जा... हो... जाअ जा... मैं तुम से नहीं बो… लूँन्न्न्... जाअ... जाआ...”

आपी का यह मज़ाक़ मुझे इस वक़्त ज़हर सा लग रहा था। मैंने आपी की तरफ से नज़र हटा ली और गुस्से से सिर झटक कर रैक पर पड़े पानी के जग की तरफ घूम गया।

मैंने गिलास में पानी उड़ेला और पानी पी ही रहा था कि आपी अन्दर आईं और मेरी राईट साइड पर दोनों हाथ अपनी कमर पर टिका कर खड़ी हो गईं। मैंने पानी पी कर गिलास नीचे रखा और बुरा सा मुँह बनाए हुए आपी की तरफ देखा तो वो मेरे चेहरे को ही देख रही थीं।

कुछ देर ऐसे ही मैं और आपी एक-दूसरे की आँखों में देखते रहे और फिर मैंने नज़र झुका लीं और आपी की साइड से हो कर बाहर निकलने लगा तो आपी ने मेरा हाथ कलाई से पकड़ा और झटके से अपनी तरफ घुमाते हुए मेरे होंठों को चूम कर कहा- “यार मज़ाक़ कर रही थी ना, एक तो तुम इतनी जल्दी मुँह बना लेते हो?”

मैंने आपी की बात का कोई जवाब नहीं दिया और उनकी आँखों में ही देखता रहा।

आपी ने मेरी शर्ट का सबसे ऊपर वाला बटन खुला देखा तो उसको बंद करते हुए बोलीं- “यार सगीर! ऐसा ना किया कर ना, मेरे भाई प्लीज़… अब मान जाओ”

मैंने उखड़े-उखड़े लहजे में ही कहा- “यार आपी आप भी तो अजीब ही हरकत करती हो ना। इतना ज़बरदस्त मूड बना हुआ था, सबकी माँ चोद दी आपने”

“अच्छा बस, बकवास नहीं कर अब। गालियाँ दे कर अपना मुँह गंदा मत किया करो”

“तो क्या करूँ? पता है हम दोस्त यार एक मिसाल दिया करते हैं कि खड़े लण्ड पर धोखा, ये मिसाल इस मौके पर बिल्कुल फिट बैठ रही है। आपने भी कुछ ऐसा ही किया है यानि खड़े लण्ड पर धोखा दिया है”

आपी ने हँसते हुए मेरा हाथ थामा और वापस अन्दर रेफ्रिजरेटर की तरफ जाते हुए कहा- “यह मिसाल तुम दोस्तों तक ही रखो, मैं तुम्हारी बहन हूँ। बहनें या तो लण्ड खड़ा ही नहीं करवाती हैं और अगर लण्ड खड़ा करवा दें तो कभी धोखा नहीं देती हैं और मैं भी अपने सोहने भाई को खड़े लण्ड पर धोखा नहीं दूँगी”

आपी ने बात खत्म की तो हम रेफ्रिजरेटर के पास पहुँच गए थे। आपी ने मेरे दोनों हाथों को अपने हाथों में लिया और घूम कर उसी जगह पर दीवार से टेक लगा कर खड़ी हो गईं जहाँ कुछ देर पहले मैं खड़ा था। मेरा मूड अभी भी खराब ही था, मैं सिर झुका कर बुरा सा मुँह बना कर खड़ा रहा।

आपी ने कुछ देर ऐसे ही मुझे देखा और फिर मेरे हाथों को छोड़ कर उल्टे हाथ की हथेली में मेरी ठोड़ी को भर कर ऊपर उठा दिया और सीधा हाथ अपने चूड़ीदार पजामे में डाल कर अपनी चूत पर रगड़ने लगीं। आपी ने 3-4 बार अपनी चूत पर हाथ रगड़ कर बाहर निकाला तो उनकी उंगलियों पर उनकी चूत का पानी लगा था।

आपी ने अपनी चूत के रस से गीली उंगलियों को मेरे नाक के पास रगड़ा और मेरे होंठों पर अपनी उंगलियाँ फेरते हुए फिल्मी अंदाज़ में बोलीं- “मेरे सोहने भाई के लिए इस दुनिया की सब्ब से ज्यादा मदहोश कर देने वाली खुश्बू। सोहने भाई की सग़ी बहन की चूत के रस की खुशबू और दुनिया के लज़ीज़ तरीन मशररूब तुम्हारी आपी की चूत के जूस के चंद क़तरे हाज़िर हैं”

आपी के इस अंदाज़ ने मेरे मूड की सारी खराबी को गायब कर दिया और बेसाख्ता ही मुझे हँसी आ गई।

मैंने आपी को अपनी तरफ खींच कर उनको सीने से लगाया और अपने बाजुओं में भींचते हुए कहा- “आई लव यू आपी, आई रियली लव यू!”

आपी ने भी मेरी क़मर पर हाथ फेरा और अपना सिर पीछे करते हुए मेरे गाल को चूम कर कहा- “आई लव यू टू जानू! मेरा सोहना भाई!”

हम इसी तरह कुछ देर गले लगे रहे फिर आपी मुझसे अलग हुईं और दीवार से क़मर लगा कर अपनी फ्रॉक का दामन सामने से उठाया और कहा- “चलो अब अपना इनाम ले लो”

मैंने हँस कर आपी को देखा और नीचे बैठ कर उनके पजामे के ऊपर से टाँगों के दरमियान अपना मुँह दबा लिया।

आपी की चूत की खुशबू को अपने अंग-अंग में बसने के बाद मैंने मुँह पीछे किया और आपी के पजामे को उतारने के लिए हाथ फँसाए ही थे कि आपी ने मेरे हाथों को पकड़ लिया और कहा- “आहहनन्न… तुम हाथ हटा लो मैं खुद अपने सोहने भाई के लिए अपने हाथों से अपना पजामा नीचे करूँगी”

“ओके बाबा! जो रानी जी की मर्ज़ी”

मैंने यह कह कर अपने हाथ पीछे कर लिए और अपनी नजरें आपी की टाँगों के दरमियान में चिपका कर पजामा नीचे होने का इन्तजार करने लगा। आपी ने अपनी फ्रॉक के दामन को दाँतों में दबाया और दोनों अंगूठे साइड्स से पजामे में फँसा कर आहिस्ता-आहिस्ता नीचे करने लगीं।

आपी ने अपने पजामे को दो इंच नीचे सरकाया और नफ़ से थोड़ा नीचे करके रुक गईं। मैं उत्तेजना से मुँह खोले अपनी नजरें आपी की टाँगों के दरमियान जमाए हुए पजामे के उतरने का इन्तजार कर रहा था, मेरी शक्ल से ही बहुत बेताबी ज़ाहिर हो रही थी।

जब काफ़ी देर बाद भी आपी ने पजामा नीचे ना किया तो मैंने नज़र उठा कर आपी के चेहरे की तरफ देखा तो वो खिलखिला कर हँस पड़ीं, उनकी आँखों में इस वक़्त शदीद शरारत नाच रही थी।

TO BE CONTINUED .....
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