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Adultery जिस्म की भूख
#61
(29-02-2024, 12:31 PM)xfirefox Wrote: Picchle kucch dino ki chhed chhaad ke baad bhai ke saath saath behen bhi khulti ja rahi hai, aur ab to khud apni taraf se he shuruaat bhi karti dikhti hai.
Aur shayad isi wajah se sageer ki bhi himmat badh gayi hai jo din dahaade he apni ammi ki maujoodgi mein bhi apni appi ko pyaar karne se rok nahi paata.
Kahani to mast hai bas ye gay wala stuff jyaada ho raha hai. Shuruaat mein thoda bahut theek tha par ab baar baar inka jyaada lag raha hai.
Sexual activities ke saath saath in dono bhai behen ke beech baat cheet bhi khoob dikhaao. Isko padhne mein jyaada maza aayega.
Chhote bhai ko filhaal in dono ki chemistry se bahar he rakho, bas jab jyaada spicy bana ho to usko scene mein include karo.

Baaki kahani theek chal rahi hai. Saath mein thoda update bhi bada karo.
N8ce keep it up

BHAI THODA SABAR KARIYE, GAY SE SHURUAAT KARKE HI YAHA TAK PAHUNCHE HAI, YAKEEN KARIYE AAGE AAP LOGO KO BAHUT MAZA AANE WALA HAI.
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

Love You All  Heart Heart
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#62
Heart 
आपी ने जैसे ही महसूस किया था कि मैं उनको जकड़ने लगा हूँ तो आपी ने अपने दोनों हाथ कोहनियों से बेंड करके अपनी गर्दन पर रख लिए थे। आपी ने मेरी गोद में गिरते ही अपने जिस्म को सिकोड़ लिया था और अपने दोनों बाजुओं में सीने के उभारों को छुपा लिया था।

मैंने आपी को अपने बाजुओं में भींचते हुए कहा- “बोलो बसंती! अब तुम्हें कौन बचाएगा?”

मैं यह कहते हुए सिर झुका करके आपी के गाल चूमने की कोशिश करने लगा।
आपी बेतहाशा हँस रही थीं। उन्होंने अपनी टाँगें उठा कर सोफे पर सीधी कर दीं और थोड़ा नीचे खिसकते हो अपना चेहरा मेरे सीने में पेवस्त कर दिया और हँसते हुए अपने गाल मुझसे बचाने लगीं। आपी के कंधों का पिछला हिस्सा मेरे दायीं बाज़ू पर था जो मैंने अपनी दायीं रान पर टिका रखा था और मैं अपना बायाँ बाज़ू आपी के ऊपर से पेट पर रख उनकी बगल में हाथ ले जाकर गुदगुदी करने लगा।
आपी की कमर मेरी बायीं रान पर टिकी थी। आपी के कूल्हे सोफे पर ही थे और उन्होंने अपने घुटनों को बेंड किए पाँव भी सोफे पर ही रखे हुए थे।
वो मेरी गोद में तकरीबन लेटी ही हुई थीं। मैं आपी को गुदगुदी करते हुए चेहरा नीचे किए उनके गाल चूमने की कोशिश कर रहा था।
आपी के जिस्म पर मेरी गिरफ्त भी ढीली हो गई थी।
आपी ने अपनी बायीं टांग सीधी कर दी और दाईं टांग को उसी तरह मुड़ी हालत में बायीं टांग पर लेते हुए करवट ले ली। अब आपी का चेहरा मुझे बिल्कुल ही नज़र नहीं आ रहा था क्योंकि आपी के गाल मेरे पेट से टकरा रहे थे।

उन्होंने बेतहाशा हँसते हुए घुटी-घुटी आवाज़ में कहा- “सगीर छोड़ो, मुझे बैठने दो वरना”

“वरना क्या??” -मैंने भी हँसते हुए ही पूछा।

“वरना.. ये” -कह कर आपी ने अपने दाँतों को मेरे पेट में गड़ा दिया और काटने लगीं।

“अहह.. अच्छा अच्छा.. छोड़ता हूँ.. छोड़ता हूँ” -यह कह कर मैंने फ़ौरन अपने हाथ आपी के जिस्म से अलग करके हवा में ऊपर उठा लिए।

आपी ने ज़ोर से काटा और फिर हँसते हुए चेहरा ऊपर उठा दिया लेकिन वो उठी नहीं और उसी तरह आधी सोफे पर और आधी मेरी गोद में लेटे रहते हुए उन्होंने अपने जिस्म को ढीला छोड़ दिया और अपनी हँसी पर क़ाबू पाने लगीं। हँसते-हँसते आपी की आँखों में नमी आ गई थी और आँखों से पानी बह कर खूबसूरत गुलाबी गालों को तर कर रहा था।
मैंने भी हँसते हुए अपनी गर्दन को सोफे की पुश्त से टिकाया और सीधा हाथ आपी के बालों में फेरते हुए बायें हाथ को आपी के पेट पर रख दिया। चंद लम्हें ऐसे ही अपनी हँसी को रोकते और लंबी-लंबी साँसें लेते हुए गुज़र गए। मैंने अपना सिर उठाया और आपी की तरफ देखा। उनका चेहरा बहुत खिल रहा था और गाल आँखों से बहते पानी से तर थे।
आपी भी अपनी हँसी पर क़ाबू पा चुकी थीं, उन्होंने भी मेरी तरफ देखा और हम कुछ सेकेंड्स एक-दूसरे की आँखों में देखते रहे। आपी की नज़र से नज़र मिलाए हुए ही मैंने अपना हाथ आपी के पेट से उठाया और उनके गालों को साफ करने लगा। अब आपी एकदम सीरीयस नज़र आने लगी थीं।

आपी ने भी अपने बायें हाथ को उठाया और मेरे गाल को अपनी हथेली में भर लिया और मेरी नजरों से नजरें मिलाए ही बहुत संजीदा लहजे में बोलीं- “सगीर हम दोनों जो ये सब कर रहे हैं, तुम्हारे ख्याल में ये सब सही है?”

आपी की बात सुन कर मेरे चेहरे पर भी संजीदगी आ गई थी, मैंने भी आपी के बालों में हाथ फेरते-फेरते ही जवाब दिया- “आपी क्या सही है क्या गलत है, यह मैं भी नहीं जानता। मैं बस इतना जानता हूँ कि यह जो लड़की मेरी गोद में लेटी है, मुझे इससे शदीद मुहब्बत है, बस”

“लेकिन सगीर, हम सगे बहन-भाई हैं। हम ये सब नहीं कर सकते” -आपी के संजीदा लहजे में कोई फ़र्क़ नहीं आया था।

मैंने कहा- “आपी ठीक है कि आप मेरी बहन हो लेकिन मेरी बहन होने के साथ-साथ दुनिया की हसीन-तरीन लड़की भी हो। मैंने आज तक आप से ज्यादा खूबसूरत चेहरा नहीं देखा”

“सगीर, यह कोई मज़ाक़ नहीं है, ये सब करने की इजाज़त ना ही हमारा मज़हब देता है और ना ही हमारा ये ताल्लुक, हमारा समाज क़ुबूल करेगा?” -आपी ने कहा और अपने पेट पर रखे मेरे हाथ को उठाया और उसकी पुश्त को चूम लिया।

मैंने अपने हाथ को आपी के हाथ से छुड़ा कर वापस उनके पेट पर रखते हुए अपने सिर को झटका और झुंझलाहट से ज़िद्दी लहजे में कहा- “आपी मैं कुछ नहीं सोचना चाहता बस मैं यह जानता हूँ कि मुझे आपसे शदीद मुहब्बत है और मैं अब आपके बिना नहीं रह सकता”

आपी ने जवाब में कुछ नहीं कहा और मेरे गाल से हाथ हटा कर मेरे बालों को सँवारने लगीं जो उन्होंने ही खराब किए थे। मैं भी खामोश ही रहा और बस आपी की आँखों में देखता रहा।

कुछ देर बाद आपी ने कहा- “सगीर मुझे भी यही महसूस होता है कि मैं भी अब हमेशा तुम्हारे ही साथ रहना चाहूंगी। कभी शादी नहीं करूँगी। लेकिन..!”

आपी यह कह कर रुकीं तो उनके चेहरे से बेबसी और शदीद मायूसी ज़ाहिर हो रही थी।

“लेकिन-वेकिन कुछ नहीं बस आप भी ज्यादा मत सोचो और मैं भी, बस सोचना क्या जो भी होगा देखा जाएगा”

मैंने यह जुमला कह कर अपने सिर को नीचे किया और नर्मी से अपने होंठों को आपी के होंठों से लगा दिया। 
आपी ने अपनी आँखों को बंद कर लिया और मैंने आपी के ऊपरी होंठ को अपने होंठों के दरमियान पकड़ा और चूसने लगा। आपी जिस हाथ से मेरे बालों को संवार रही थीं उस हाथ को मेरी गर्दन पर रखा और मेरे निचले होंठ को चूसना शुरू कर दिया। अचानक मैंने किसी ख़याल के तहत चौंक कर अपने सिर को उठाया तो आपी ने भी अपनी आँखें खोल दीं और सवालिया अंदाज़ से मेरी तरफ देखने लगीं।

“आपी.. अम्मिईइ..??”

मैं यह कह कर चुप हुआ तो आपी ने मेरी गर्दन पर रखे अपने हाथ को मेरे सिर की पुश्त पर ले जाते हुए कहा- “मैंने दरवाज़ा बाहर से बंद कर दिया था, वो जल्दी नहीं उठेंगी”

अपनी बात खत्म करते ही आपी ने दोबारा आँखें बंद कर लीं और मेरे सिर को नीचे के तरफ दबाते हुए मेरे निचले होंठ को अपने होंठों में दबा लिया और अपनी ज़ुबान मेरे मुँह में दाखिल कर दी। मैंने आपी की ज़ुबान को चूसते हुए अपना हाथ आपी के पेट से उठाया और नर्मी से उनके उभार पर रख कर दबाना और सहलाना शुरू कर दिया। आपी ने मेरे सख़्त हाथ को अपने नर्म और मुलायम उभार पर महसूस किया और एक ‘अहह..’ भरते हुए मेरे हाथ पर अपना हाथ रख दिया और मेरे हाथ को हटाने के बजाए अपने हाथ से मेरे हाथ को दबाने लगीं।

हमारे होंठ एक-दूसरे के होंठों में पेवस्त थे। कभी आपी मेरी ज़ुबान चूसने लगतीं तो कभी मैं उनकी ज़ुबान को चूसता। कुछ देर बाद मैंने अपने होंठ आपी के होंठों से अलग किए और कहा- “आपी हमने पहले कभी ऐसे अम्मी का दरवाज़ा बाहर से लॉक नहीं किया। वो उठ गईं तो कहीं उनके ज़हन में ऐसे ही कोई शक़ ना पैदा हो जाए?”

आपी की आँखें बंद थीं और उन्होंने झुंझलाहट में लरज़ती आवाज़ से कहा- “कुछ नहीं होता सगीर, आओ ना प्लीज़” और वे मेरे सिर को वापस नीचे दबाने लगीं।

मैंने अपने सिर को अकड़ा कर नीचे होने से रोका और कहा- “चलो ना आपी, मेरे रूम में चलते हैं। दरवाज़ा खोल देते हैं अम्मी का”

आपी ने आँखें खोल दीं। उनके चेहरे पर शदीद नागवारी के भाव थे, उन्होंने दोनों हाथ मेरी गर्दन में डाले और कहा- “क्या है सगीर! तुम भी ना, मैं कहीं नहीं जा वा रही। तुम जाओ, तुम्हें जहाँ जाना है”

आपी का ये अंदाज़ ऐसा था जैसे किसी बच्चे को चीज़ दिलाने से मना करो तो वो नाराज़ हो जाता है।

मैंने मुस्कुरा कर आपी को देखा और कहा- “अच्छा मेरी सोहनी बहना जी! इतनी छोटी बातों पर नाराज़ थोड़ी ना होते हैं”

मैंने बात खत्म करके आपी के होंठों को चूमने के लिए अपना सिर झुकाया तो उन्होंने अपने हाथ से मेरे चेहरे को रोका और होंठ दूसरी तरफ करते हो नाराज़गी से कहा- “अच्छा जाओ, अब खोल दो अम्मी का दरवाज़ा”

आपी यह कह कर मेरी गोद से उठने लगीं तो मैंने उनको वापस गोद में दबाते हुए कहा- “मैं अपनी जान से प्यारी बहना को खुद ही साथ ले जाता हूँ”

यह कह कर मैंने अपना बाज़ू आपी के कन्धों के नीचे रखा और एक बाज़ू को उनके कूल्हों के नीचे से गुजार कर उनकी रान को मजबूती से थाम लिया और खड़ा हो गया।

“सगीर..!” आपी ने अचानक लगने वाले झटके की वजह से मुझे पुकारा और फिर मेरी गर्दन में दोनों हाथ डाल कर मुझे मुहब्बत भरी नजरों से देखती मुस्कुराने लगीं।

मैंने आपी को गोद में उठाए-उठाए ही जाकर अम्मी का दरवाज़ा अनलॉक किया और सरगोशी में आपी से पूछा- “बहना जी कहाँ चलें?? आपके रूम में या ऊपर हमारे रूम में?”

आपी ने सोचने का ड्रामा करते हुए कहा- “उम्म्म.. ऐसा करो, बाहर सड़क पर ले चलो” और दबी आवाज़ में हँसने लगीं।

“मेरा बस चले तो मैं तो आपको सात पर्दों में छुपा कर रखूँ जहाँ मेरे अलावा आपको कोई देख भी ना सके!” -मैं ये कह कर आपी के कमरे की तरफ चल दिया।

आपी बोलीं- “नहीं सगीर यहाँ नहीं, ऊपर ही ले चलो मुझे अपने कमरे में। अम्मी अगर उठ भी गईं तो ऊपर नहीं आ सकेंगी और हनी फरहान तो लेट ही वापस आयेंगे”

मैंने आपी की इस बात पर मुस्कुरा कर उन्हें देखा तो उन्होंने शर्मा कर अपना चेहरा मेरे सीने में छुपा लिया और मैं ऊपर अपने कमरे की तरफ जाते हुए आपी को भी छेड़ने लगा- “अच्छा! आज तो मेरी बहना जी खुद कह रही हैं कि उन्हें अपने कमरे में ले जाऊँ, हाँ..!”

आपी ने मेरी तरफ देखा और शर्म से लाल चेहरा लिए बोलीं- “बकवास मत करो, वरना मैं यहाँ ही उतर जाऊँगी”

TO BE CONTINUED ……
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

Love You All  Heart Heart
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#63
Waah!
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#64
Awesome Story 
Mind blowing 
Keep it up 
Waiting for updates
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#65
Heart 
मैं आपी को देख कर हँसने लगा लेकिन बोला कुछ नहीं। मैं कमरे में दाखिल हुआ तो दरवाज़ा बंद किए बगैर ही आपी को लेकर बिस्तर के क़रीब पहुँच गया। मैंने आपी को बिस्तर पर लिटाने लगा तो उनके वज़न और आपी के हाथ मेरी गर्दन में होने की वजह से खुद भी उनके ऊपर ही गिर गया।

आपी ने फिर से मेरे बालों में हाथ फेरा और कहा- “उठो, दरवाज़े को लॉक कर दो”

उन्होंने मेरी गर्दन से हाथ निकाल दिए। मैंने दरवाज़ा लॉक किया और वापस आते हुए अपनी क़मीज़ भी उतार दी। आपी बेड पर बेसुध सी लेटी छत को देखते कुछ सोच रही थीं। मैं चंद लम्हें उन्हें देखता रहा। फिर मैंने आपी के दोनों हाथ पकड़ कर खींचे और उन्हें बिठा कर पीछे हाथ किए और आपी की क़मीज़ को खींच कर उनके कूल्हों के नीचे से निकाल दिया।

मैं अपने हाथों में आपी की क़मीज़ का दामन आगे और पीछे से पकड़े, उनकी क़मीज़ उतारने के लिए ऊपर उठाने लगा तो आपी ने अपने हाथ मेरे हाथ पर रखा और फिक्रमंद लहजे में कहा- “सगीर! ये सब गलत है, अभी भी रुक जाओ”

आपी की कैफियत बहुत मुतज़ाद सी थी। कभी तो वो ये सब एंजाय करने लगती थीं तो कभी उनको गिल्टी फील होने लगता था और सब तो होना ही था कि अपने सगे भाई से ऐसा रिश्ता कोई ऐसी बात नहीं थी जो उनका जेहन आसानी से क़ुबूल कर लेता। उनकी बदलती कैफियत फितरती थी और मैं उनकी हालत अच्छी तरह समझता था।

“आपी प्लीज़! अब कुछ मत सोचो बस जो हो रहा है होने दो” -मैंने ये कह कर आपी की आँखों में देखा तो उन्होंने एक अहह भरी और मेरे हाथ से अपना हाथ उठा दिया।

मैंने आपी की क़मीज़ को गर्दन तक उठाया तो आपी ने भी मेरी मदद करते हुए अपनी क़मीज़ को अपने जिस्म से अलग कर दिया।

आपी ने आज भी ब्लैक लेसदार ब्रा ही पहन रखी थी। क़मीज़ उतारने के बाद मैं दोबारा अपने हाथ सामने से घुमाता हुआ आपी की पीठ पर ले गया और उनकी ब्रा का हुक खोलने लगा तो आपी ने अपने दोनों हाथों से ब्रा को सीने के उभारों पर ही थाम लिया। मैंने हुक खोला तो आपी ने अपने बाज़ू से ब्रा को अपने मम्मों पर ही रखते हुए ब्रा की पट्टियाँ अपने हाथों से निकाल दीं और इसी तरह ब्रा को थामे हुए ही लेट गईं।

मैंने आपी के सीने से ब्रा हटाना चाहा तो उन्होंने अपने सिर को नहीं के अंदाज़ा में ‘राईट-लेफ्ट’ जुंबिश दी और अपनी बाँहें फैलाते हुए मुझे गले से लगने का इशारा किया। अब मेरे और आपी के जिस्म पर सिर्फ़ हमारी सलवारें ही मौजूद थीं और आपी के सीने के उभारों पर उनकी खुली हुई ब्रा रखी हुई थी। मैंने अपने दोनों घुटने आपी की टाँगों के इर्द-गिर्द टिकाए और उनके सीने के उभारों पर अपना सीना रखते हो आपी के ऊपर लेट गया।

मेरे लेटते ही आपी ने मेरी कमर को अपने बाजुओं से कसा और मेरे होंठों से अपने होंठ चिपका दिए। कभी आपी मेरे होंठ चूसने लगती थीं तो कभी मैं, कभी मैं आपी की ज़ुबान चूसता तो कभी आपी मेरी ज़ुबान का रस चूसने लगतीं। मैं आपी के चेहरे को अपने हाथों में थामे 10 मिनट तक किस करता रहा।

फिर आपी ने अपने होंठ मेरे होंठों से अलग किए और नशीली आवाज़ में कहा- “सगीर थोड़ा ऊपर उठो”

मैंने ऊपर उठने के लिए अपने सीने को उठाया ही था कि आपी ने अपना लेफ्ट हाथ मेरी कमर से हटाया और अपने सीने पर रखी ब्रा को हम दोनों के दरमियान से खींचते हुए राईट हैण्ड से मेरी कमर को वापस अपने जिस्म के साथ दबा दिया।

जैसे ही आपी के सख़्त हुए निप्पल मेरे बालों भरे सीने से टकराए तो मेरे जिस्म में एक बिजली सी कौंध गई और आपी के जिस्म में भी मज़े की लहर उठी और उनके मुँह से एक सिसकती ‘अहह..’ निकली। यह मेरी जिन्दगी में पहली बार थी कि मैं किसी लड़की और वो भी अपनी सग़ी बहन जो हुस्न का पैकर थी, के मम्मों को अपने सीने से चिपका महसूस कर रहा था।

मैं अपने होश खोता जा रहा था और मेरे साथ-साथ आपी के दिल की धड़कनें भी बहुत तेज हो गई थीं। उनकी धड़कनों की आवाज़ मुझे साफ सुनाई दे रही थी। मैंने एक बार फिर आपी के होंठों को चूमा और फिर उनकी गर्दन पर अपने होंठ रख दिए।

मैंने पहले आपी की गर्दन के एक-एक मिलीमीटर को चूमा और फिर अपनी ज़ुबान निकाली और आपी की गर्दन को चाटने लगा। मेरी ज़ुबान ने आपी की गर्दन को छुआ तो उन्होंने एक झुरझुरी सी ली और मेरी कमर पर ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर तेजी से हाथ फेरने के साथ-साथ अपने सीने को राईट-लेफ्ट हरकत देते हुए अपने निप्पल्स मेरे सीने से रगड़ने लगीं।
आपी ने अपनी आँखें मज़बूती से भींच रखी थीं और चेहरे का गुलाबीपन सुर्खी में तब्दील हो गया था।

मेरा लण्ड अपने पूरे जोश में आ चुका था और आपी की रानों के दरमियान दबा हुआ था। मैंने आपी की गर्दन को सामने से और दोनों साइडों से मुकम्मल तौर पर चाटा और अपने घुटनों पर वज़न देता हुआ अपने लण्ड को आपी की रानों से थोड़ा उठा लिया और अपना सीना भी आपी के सीने से उठाते हुए गर्दन से नीचे आने लगा।

मैंने नीचे की तरफ ज़ोर दिया तो आपी ने अपने हाथों की गिरफ्त भी ढीली कर दी और एक हाथ से मेरी कमर सहलाते हुए दूसरा हाथ मेरे सिर पर फेरने लगीं।
मैं गर्दन से होता हुआ आपी के कंधे पर आया और अपनी ज़ुबान से चाटते आपी के बाज़ू हाथ और फिर हाथ की ऊँगलियों तक पहुँच गया। एक-एक ऊँगली को मुकम्मल चूसने के बाद मैं बाज़ू के निचले हिस्से को चाटता हुआ आपी की बगलों में आ कर रुका।

आपी की बगलें बालों से बिल्कुल पाक थी। वो कभी फालतू बालों को बढ़ने नहीं देती थीं और बाकायदगी से फालतू बाल साफ करती थीं जो कि उनकी नफीस तबीयत का ख़ासा था कि गंदगी से उन्हें नफ़रत थी।

आपी की राईट बगल को मुकम्मल चाटते और चूमते हुए मैं कंधों से होता दूसरे हाथ तक पहुँचा और उसी तरह वापस उनके सीने के ऊपरी हिस्से तक आ गया। आपी के सीने के ऊपरी हिस्से को चाटने के बाद मैंने अपना रुख़ उनके सीने के राईट उभार की तरफ किया और अपनी बहन के मम्मों की गोलाई पर ज़ुबान फेरने लगा।

मैं बारी-बारी से आपी के दोनों मम्मों को चाटता और चूमता रहा लेकिन उनके सीने के उभारों की पिंक सर्कल (अरोला) और पिंकिश ब्राउन खूबसूरत निप्पल को अपनी ज़ुबान नहीं टच की।

मैं जब अपनी ज़ुबान से उनके उभार को चाटते हुए पिंक ऐरोला के पास पहुँचता तो उससे टच किए बगैर ही सिर्फ़ गोलाई पर ज़ुबान फेरने लगता।
मेरी इस हरकत पर आपी मचल सी जातीं।

जब मैंने 4-5 बार ऐसा किया तो उनकी बर्दाश्त जवाब दे गई और इस बार जब फिर मैं ज़ुबान वहाँ पर टच किए बगैर हटने लगा तो आपी ने गुस्सैल सी आवाज़ में सिसकारी भरी और अपने दोनों हाथों से मेरे सिर की पुश्त से बालों और गर्दन को पकड़ कर मेरा मुँह अपनी निप्पल्स की तरफ दबाने लगीं।

मेरे चेहरे पर शैतानी मुस्कुराहट फैल गई मैं जान गया था कि अब आपी मज़े और लज़्ज़त में पूरी तरह डूब गई हैं।

मैंने अपने सिर को झुकाया और आपी के लेफ्ट निप्पल को अपने मुँह में ले लिया।

‘ववॉवव’ आपी की निप्पल को मुँह में लेते ही मेरा लण्ड फनफना उठा और मैं पागलों की तरह बारी-बारी से दोनों मम्मों को चूसने लगा। आपी के जिस्म में भी खिचाव पैदा होना शुरू हो गया था और वो भी बुरी तरह मचलने लगी थीं।

मैं कोशिश करने लगा कि आपी के सीने के उभार को पूरा अपने मुँह मैं भर लूँ लेकिन ये मुमकिन नहीं था क्योंकि मेरा मुँह बहुत छोटा था और आपी के मम्मे बहुत बड़े थे।

मैंने आपी के उभार को चूसते हुए उनके निप्पल को अपने दाँतों मैं. पकड़ा और दबाया तो आपी मज़े और तक़लीफ़ की मिली-जुली आवाज़ में चिल्ला उठीं- “आहह! सगीर, ज़रा… आआ आआराम से… उफफ्फ़…अह”

TO BE CONTINUED ......
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#66
Heart 
मैंने आपी के सीने के उभारों को चूसते हुए ही उनका हाथ को पकड़ा और सलवार के ऊपर से ही अपने लण्ड पर रख दिया। आपी ने फ़ौरन ही मेरे लण्ड को मुठी में दबा लिया। आपी को लण्ड पकड़ा कर मैंने अपना हाथ उनकी रान पर रखा और सलवार के ऊपर से ही रान को सहलाते हुए अपना हाथ उनकी टाँगों के दरमियान रख दिया।

आपी मेरे हाथ को अपनी चूत पर महसूस करते ही उछल पड़ीं और बोलीं- “नहीं सगीर, प्लीज़ यहाँ नहीं, टच मत करो न”

उन्होंने अपनी टाँगों को आपस में दबा लिया। मैंने अपना हाथ हटाया और तेजी से आपी के मम्मों को चूसने और दबाने लगा। कुछ ही देर में आपी की साँसें बहुत तेज हो गईं और जिस्म अकड़ना शुरू हो गया। मैंने दोबारा हाथ उनकी टाँगों के दरमियान रख दिया। आपी ने कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था कि मैंने अपने होंठ उनके होंठों से लगा दिए और ज़ुबान उनके मुँह में डाल दी।

इस बार मेरी दो उंगलियाँ सीधी उनकी चूत के दाने पर ही छुई थीं। जिससे आपी के जिस्म को एक झटका लगा और उन्होंने बेसाख्ता अपनी टाँगें थोड़ी खोल दीं। मैंने आपी की चूत के दाने को सहलाते हुए दोबारा उनके निप्पल को अपने मुँह में लिया और चूसने लगा।

मैंने अपनी उंगलियाँ आपी की चूत के दाने से उठाईं और चूत के अन्दर दाखिल करने के लिए नीचे दबाव दिया ही था कि आपी फ़ौरन बोलीं- “सगीर, रुको ना… हाय प्लीज… उईईई... और ऊपर... रगड़ो ना... आआहह…”

आपी की साँसें बहुत तेज हो गई थीं और जिस्म मुकम्मल तौर पर अकड़ गया था। आपी मेरे लण्ड को भी अपनी तरफ खींचने लगी थीं। मुझे भी ऐसा महसूस हो रहा था कि शायद मैं अब कंट्रोल नहीं कर पाऊँगा। मैंने बहुत तेज-तेज आपी की चूत के दाने को रगड़ना शुरू कर दिया था और उनके निप्पल को चूसने और दाँतों से काटने लगा था।

अचानक ही आपी का जिस्म बिल्कुल अकड़ गया और उन्होंने अपने कूल्हे बिस्तर से उठा दिए। मेरे लण्ड पर आपी की गिरफ्त बहुत सख़्त हो गई थी। वो अपनी पूरी ताक़त से मेरे लण्ड को अपनी मुट्ठी में भींचने लगी थीं।

फिर आपी के जिस्म ने 2 शदीद झटके लिए और उनके मुँह से बहुत लंबी ‘आआआआआहह..’ निकली। उनकी चूत ने पानी छोड़ दिया था। उसी वक़्त मेरे लण्ड को भी झटका लगा और मेरे लण्ड का जूस मेरी सलवार को गीला करने लगा।

मेरे हाथ की हरकत रुक गई थी और मैं आपी के सीने के उभार पर ही मुँह रखे हुए निढाल सा लेट गया। आपी की साँसें आहिस्ता-आहिस्ता मामूल पर आ रही थीं।

काफ़ी देर तक ऐसे ही लेटे रहने के बाद आपी ने मेरे सिर पर हाथ फेरना शुरू किया और बोलीं- “सगीर उठो, मुझे भी उठने दो”

मैं आँखें बंद किए बिल्कुल निढाल पड़ा था, मैंने आपी की बात का जवाब नहीं दिया और मेरे मुँह से सिर्फ़ एक ‘हूऊऊन्न्न्..’ निकली। आपी ने नर्मी से मेरे चेहरे को अपने सीने के उभार से उठाया और मेरे नीचे से निकल गईं और तकिया उठा कर मेरे चेहरे के नीचे रख दिया।

मैं वैसे ही बेतरतीब सी हालत में उल्टा बिस्तर पर पड़ा रहा। मुझे ऐसे लग रहा था जैसे मेरे जिस्म से बिल्कुल जान निकल गई है और अब मैं कभी उठ नहीं पाऊँगा।

“देखो सगीर, ऐसा लग रहा है मैंने पेशाब किया है। पूरी सलवार गीली हो रही है” -आपी यह बोल कर खुद ही हँसने लगीं।

मैंने बोझिल से अंदाज़ में आँखें खोल कर देखा तो आपी अपनी टाँगों को फैलाए सलवार को दोनों हाथों से पकड़ कर देख रही थीं।

कोई आवाज़ ना सुन कर आपी ने मेरी तरफ देखा और खिलखिला कर हँसने लगीं- “हालत तो देखो ज़रा शहज़ादे की, मुर्दों की तरह पड़े हो”

मैंने कुछ नहीं कहा बस झेंपी हुई सी हँसी हँस दिया।

आपी बिस्तर से उठते हुए बोलीं- “सगीर तुम लोगों के पास मेरे या हनी के कपड़े तो ज़रूर होंगे, जिनसे तुम मज़े लिया करते थे”

मेरी तरफ से कोई जवाब ना पा कर वो बाथरूम की तरफ चली गईं। मैंने भी आँखें बंद कर लीं क्योंकि मैं बहुत कमज़ोरी महसूस कर रहा था।

आपी बाथरूम से बाहर आईं और फिर पूछा- “सगीररर… हमारा कोई सूट पड़ा है या नहीं??”

मैंने आँखें खोल कर देखा तो आपी आईने के सामने नंगी खड़ी अपने बालों को ब्रश कर रही थीं और अपनी सलवार शायद बाथरूम में ही उतार आई थीं। मैंने अपनी बहन के नंगे जिस्म पर नज़र मारी तो अपनी क़िस्मत पर रश्क आया कि खुदा ने कितना हसीन और मुकम्मल जिस्म दिया है मेरी बहन को। सीने के उभारों की मुकम्मल गोलाइयाँ, कूल्हों की खूबसूरत शेप, लंबी सुडौल टाँगें, भारी-भारी रानें, लंबे स्लिम बाज़ू, खूबसूरत हाथ, गोया जिस्म का हर हिस्सा इतना मुकम्मल है कि हर हिस्से की तारीफ में गज़ल कही जा सकती है।

“मेरी पैंट की पॉकेट में चाभी पड़ी है। अलमारी में सूट होगा, आप देख लें” -मैंने मरी सी आवाज़ में कहा और फिर आपी के जिस्म को निहारने लगा।

बालों में ब्रश करने के बाद आपी ने मेरी पैन्ट से चाभी निकाली और अल्मारी में कोई सूट देखने लगीं और एक सूट उन्हें मिल ही गया। लेकिन क़मीज़ अलग और सलवार अलग थी। लाइट ग्रीन लॉन की क़मीज़ आपी की थी और वाइट सलवार हनी की थी।

“ये कब से यहाँ पड़ी है, मैं ढूँढ ढूँढ कर पागल हुए जा रही थी” -आपी ने गुस्सा करते हुए कहा।

मैंने एक नज़र आपी के हाथ में पकड़ी क़मीज़ को देखा और कहा- “यह तो बहुत दिनों से यहाँ पड़ी है लेकिन सलवार तो कल रात को ही फरहान कहीं से उठा कर लाया था"

आपी ने क़मीज़ पहनी और सलवार पहनने के लिए फैलाई थी कि कुछ देख कर चौंक गईं।

मैंने आपी के चेहरे के बदलते रंग देखे तो पूछा- “अब क्या हो गया आपी?”

आपी सलवार लेकर मेरी तरफ आते हुए बोलीं- “ये देखो ज़रा, इस हनी कमीनी को ज़रा भी अहसास नहीं है कि घर में अब्बू होते हैं, मामू आते-जाते हैं, 2 जवान भाई हैं… ऐसी चीजें तो घर की औरतें 1000 तहों में छुपा कर रखती हैं कि किसी की नज़र ना पड़े”

मैंने आपी के हाथ में पकड़ी हुई सलवार को देखा तो उसमें 3-4 बड़े-बड़े लाल रंग के धब्बे पड़े हुए थे। पहले तो मुझे कुछ समझ नहीं आया और जब समझ आया तो मैंने मुस्कुराते हुए आपी से कहा- “तो क्या हो गया आपी, आपको मेनसिस नहीं होते क्या? जो इतना गुस्सा हो रही हैं”

“होते हैं, पर मैं एक दिन पहले से ही पैड लगा लेती हूँ। अगर कभी इतिफ़ाक़न सलवार गंदी हो भी जाए तो उसी वक़्त धो डालती हूँ। ऐसे शो पीस बना के नहीं रखती” -आपी ने बदस्तूर उसी लहजे में कहा और सलवार हाथ से फेंक कर फरहान की एक पुरानी पैंट पहन ली।

“आपी आप पैंट में और ज्यादा हसीन लग रही हो”

“अपनी हालत तो देखो, उठा जा नहीं रहा” -और फिर मेरी नक़ल उतारते हुए बोलीं- “आपी आप पैंट में बहुत हसीन लग रही हो”

मुझे आपी का यह अंदाज़ बहुत अच्छा लगा और मैं मुस्कुरा दिया।

“उठो नबाव साहब, अपनी हालत सही कर लो। मैं नीचे जा रही हूँ कुछ देर बाद अम्मी भी उठ जाएंगी” -आपी यह कह कर कमरे से बाहर निकल गईं और मैं वैसे ही आधा नंगा उल्टा पड़ा रहा, कमज़ोरी की वजह से मुझे नींद भी आने लगी थी।

TO BE CONTINUED .....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

Love You All  Heart Heart
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#67
Aaj itni jaldi dher ho gaya, jab goud mein utha kar laya tha to laga tha ki aaj kucch kar he daalega.

Baharhaal indono ki gaadi to dheemi he chal rahi hai magar lagta hai farhan aur honey dono kucch apni he khicchdi pakane mein vyast hai.

Nice updates so far
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#68
KHANSAGEER
मैं आपी को देख कर हँसने लगा लेकिन बोला कुछ नहीं। मैं कमरे में दाखिल हुआ तो दरवाज़ा बंद किए बगैर हीआपी को लेकर बिस्तर के क़रीब पहुँच गया। मैंने आपी को बिस्तर पर लिटाने लगा तो उनके वज़न और आपी के हाथ मेरी गर्दन में होने की वजह से खुद भी उनके ऊपर ही गिर गया।[Image: 37617352_006_8319.jpg]

आपी ने फिर से मेरे बालों में हाथ फेरा [Image: 36960350_005_3230.jpg]और कहा- “उठो, दरवाज़े को लॉक कर दो”[Image: 53828591_113_9517.jpg]

उन्होंने मेरी गर्दन से हाथ निकाल दिए। मैंने दरवाज़ा लॉक किया और वापस आते हुए अपनी क़मीज़ भी उतार दी। आपी बेड पर बेसुध सी लेटी छत को देखते कुछ सोच रही थीं। मैं चंद लम्हें उन्हें देखता रहा। फिर मैंने आपी के दोनों हाथ पकड़ कर खींचे और उन्हें बिठा कर पीछे हाथ किए और आपी की क़मीज़ को खींच कर उनके कूल्हों के नीचे से निकाल दिया।[Image: 44502244_073_0b3b.jpg]

मैं अपने हाथों में आपी की क़मीज़ का दामन आगे और पीछे से पकड़े, उनकी क़मीज़ उतारने के लिए ऊपर उठाने लगा तो आपी ने अपने हाथ मेरे हाथ पर रखा और फिक्रमंद लहजे में कहा- “सगीर! ये सब गलत है, अभी भी रुक जाओ”[Image: 70588730_002_79cc.jpg]

आपी की कैफियत बहुत मुतज़ाद सी थी। कभी तो वो ये सब एंजाय करने लगती थीं तो कभी उनको गिल्टी फील होने लगता था और सब तो होना ही था कि अपने सगे भाई से ऐसा रिश्ता कोई ऐसी बात नहीं थी जो उनका जेहन आसानी से क़ुबूल कर लेता। उनकी बदलती कैफियत फितरती थी और मैं उनकी हालत अच्छी तरह समझता था।

“आपी प्लीज़! अब कुछ मत सोचो बस जो हो रहा है होने दो” -मैंने ये कह कर आपी की आँखों में देखा तो उन्होंने एक अहह भरी और मेरे हाथ से अपना हाथ उठा दिया।

मैंने आपी की क़मीज़ को गर्दन तक उठाया तो आपी ने भी मेरी मदद करते हुए अपनी क़मीज़ को अपने जिस्म से अलग कर दिया।

आपी ने आज भी ब्लैक लेसदार ब्रा ही पहन रखी थी। क़मीज़ उतारने के बाद मैं दोबारा अपने हाथ सामने से घुमाता हुआ आपी की पीठ पर ले गया और उनकी ब्रा का हुक खोलने लगा तो आपी ने अपने दोनों हाथों से ब्रा को सीने के उभारों पर ही थाम लिया। मैंने हुक खोला तो आपी ने अपने बाज़ू से ब्रा को अपने मम्मों पर ही रखते हुए ब्रा की पट्टियाँ अपने हाथों से निकाल दीं और इसी तरह ब्रा को थामे हुए ही लेट गईं।

मैंने आपी के सीने से ब्रा हटाना चाहा तो उन्होंने अपने सिर को नहीं के अंदाज़ा में ‘राईट-लेफ्ट’ जुंबिश दी और अपनी बाँहें फैलाते हुए मुझे गले से लगने का इशारा किया। अब मेरे और आपी के जिस्म पर सिर्फ़ हमारी सलवारें ही मौजूद थीं और आपी के सीने के उभारों पर उनकी खुली हुई ब्रा रखी हुई थी। मैंने अपने दोनों घुटने आपी की टाँगों के इर्द-गिर्द टिकाए और उनके सीने के उभारों पर अपना सीना रखते हो आपी के ऊपर लेट गया।

मेरे लेटते ही आपी ने मेरी कमर को अपने बाजुओं से कसा और मेरे होंठों से अपने होंठ चिपका दिए। कभी आपी मेरे होंठ चूसने लगती थीं तो कभी मैं, कभी मैं आपी की ज़ुबान चूसता तो कभी आपी मेरी ज़ुबान का रस चूसने लगतीं। मैं आपी के चेहरे को अपने हाथों में थामे 10 मिनट तक किस करता रहा।

फिर आपी ने अपने होंठ मेरे होंठों से अलग किए और नशीली आवाज़ में कहा- “सगीर थोड़ा ऊपर उठो”

मैंने ऊपर उठने के लिए अपने सीने को उठाया ही था कि आपी ने अपना लेफ्ट हाथ मेरी कमर से हटाया और अपने सीने पर रखी ब्रा को हम दोनों के दरमियान से खींचते हुए राईट हैण्ड से मेरी कमर को वापस अपने जिस्म के साथ दबा दिया।

जैसे ही आपी के सख़्त हुए निप्पल मेरे बालों भरे सीने से टकराए तो मेरे जिस्म में एक बिजली सी कौंध गई और आपी के जिस्म में भी मज़े की लहर उठी और उनके मुँह से एक सिसकती ‘अहह..’ निकली। यह मेरी जिन्दगी में पहली बार थी कि मैं किसी लड़की और वो भी अपनी सग़ी बहन जो हुस्न का पैकर थी, के मम्मों को अपने सीने से चिपका महसूस कर रहा था।

मैं अपने होश खोता जा रहा था और मेरे साथ-साथ आपी के दिल की धड़कनें भी बहुत तेज हो गई थीं। उनकी धड़कनों की आवाज़ मुझे साफ सुनाई दे रही थी। मैंने एक बार फिर आपी के होंठों को चूमा और फिर उनकी गर्दन पर अपने होंठ रख दिए।[Image: 78137962_012_76f3.jpg]

मैंने पहले आपी की गर्दन के एक-एक मिलीमीटर को चूमा और फिर अपनी ज़ुबान निकाली और आपी की गर्दन को चाटने लगा। मेरी ज़ुबान ने आपी की गर्दन को छुआ तो उन्होंने एक झुरझुरी सी ली और मेरी कमर पर ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर तेजी से हाथ फेरने के साथ-साथ अपने सीने को राईट-लेफ्ट हरकत देते हुए अपने निप्पल्स मेरे सीने से रगड़ने लगीं।
आपी ने अपनी आँखें मज़बूती से भींच रखी थीं और चेहरे का गुलाबीपन सुर्खी में तब्दील हो गया था।

मेरा लण्ड अपने पूरे जोश में आ चुका था और आपी की रानों के दरमियान दबा हुआ था। मैंने आपी की गर्दन को सामने से और दोनों साइडों से मुकम्मल तौर पर चाटा और अपने घुटनों पर वज़न देता हुआ अपने लण्ड को आपी की रानों से थोड़ा उठा लिया और अपना सीना भी आपी के सीने से उठाते हुए गर्दन से नीचे आने लगा।

मैंने नीचे की तरफ ज़ोर दिया तो आपी ने अपने हाथों की गिरफ्त भी ढीली कर दी और एक हाथ से मेरी कमर सहलाते हुए दूसरा हाथ मेरे सिर पर फेरने लगीं।
मैं गर्दन से होता हुआ आपी के कंधे पर आया और अपनी ज़ुबान से चाटते आपी के बाज़ू हाथ और फिर हाथ की ऊँगलियों तक पहुँच गया। एक-एक ऊँगली को मुकम्मल चूसने के बाद मैं बाज़ू के निचले हिस्से को चाटता हुआ आपी की बगलों में आ कर रुका।

आपी की बगलें बालों से बिल्कुल पाक थी। वो कभी फालतू बालों को बढ़ने नहीं देती थीं और बाकायदगी से फालतू बाल साफ करती थीं जो कि उनकी नफीस तबीयत का ख़ासा था कि गंदगी से उन्हें नफ़रत थी।

आपी की राईट बगल को मुकम्मल चाटते और चूमते हुए मैं कंधों से होता दूसरे हाथ तक पहुँचा और उसी तरह वापस उनके सीने के ऊपरी हिस्से तक आ गया। आपी के सीने के ऊपरी हिस्से को चाटने के बाद मैंने अपना रुख़ उनके सीने के राईट उभार की तरफ किया और अपनी बहन के मम्मों की गोलाई पर ज़ुबान फेरने लगा।

मैं बारी-बारी से आपी के दोनों मम्मों को चाटता और चूमता रहा लेकिन उनके सीने के उभारों की पिंक सर्कल (अरोला) और पिंकिश ब्राउन खूबसूरत निप्पल को अपनी ज़ुबान नहीं टच की।

मैं जब अपनी ज़ुबान से उनके उभार को चाटते हुए पिंक ऐरोला के पास पहुँचता तो उससे टच किए बगैर ही सिर्फ़ गोलाई पर ज़ुबान फेरने लगता।
मेरी इस हरकत पर आपी मचल सी जातीं।

जब मैंने 4-5 बार ऐसा किया तो उनकी बर्दाश्त जवाब दे गई और इस बार जब फिर मैं ज़ुबान वहाँ पर टच किए बगैर हटने लगा तो आपी ने गुस्सैल सी आवाज़ में सिसकारी भरी और अपने दोनों हाथों से मेरे सिर की पुश्त से बालों और गर्दन को पकड़ कर मेरा मुँह अपनी निप्पल्स की तरफ दबाने लगीं।

मेरे चेहरे पर शैतानी मुस्कुराहट फैल गई मैं जान गया था कि अब आपी मज़े और लज़्ज़त में पूरी तरह डूब गई हैं।

मैंने अपने सिर को झुकाया और आपी के लेफ्ट निप्पल को अपने मुँह में ले लिया।

‘ववॉवव’ आपी की निप्पल को मुँह में लेते ही मेरा लण्ड फनफना उठा और मैं पागलों की तरह बारी-बारी से दोनों मम्मों को चूसने लगा। आपी के जिस्म में भी खिचाव पैदा होना शुरू हो गया था और वो भी बुरी तरह मचलने लगी थीं।[Image: 59167736_166_0d2a.jpg]

मैं कोशिश करने लगा कि आपी के सीने के उभार को पूरा अपने मुँह मैं भर लूँ लेकिन ये मुमकिन नहीं था क्योंकि मेरा मुँह बहुत छोटा था और आपी के मम्मे बहुत बड़े थे।

मैंने आपी के उभार को चूसते हुए उनके निप्पल को अपने दाँतों मैं. पकड़ा और दबाया तो आपी मज़े और तक़लीफ़ की मिली-जुली आवाज़ में चिल्ला उठीं- “आहह! सगीर, ज़रा… आआ आआराम से… उफफ्फ़…अह”

TO BE CONTINUED ......
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#69
“सगीर उठो, सगीर.. उठो, दूध पी लो और चेंज करो, शाबाश जल्दी से उठ जाओ” -मेरी गहरी नींद टूटी और आँखें खुलीं तो आपी मुझे कंधे से पकड़ कर हिला-डुला रही थीं और उन्होंने दूध का गिलास पकड़ा हुआ था। वो अपने असली हुलिया यानि स्कार्फ और चादर पर वापस आ चुकी थीं।

मैं फिर से आँखें बंद करते हुए शरारत से बोला- “अब कभी गिलास से नहीं पिऊँगा, आपी आप सीधे ही पिला दिया करो ना”

आपी ने हँसते हो तंज़िया लहजे में कहा- “अपनी हालत तो देखो ज़रा! सीधे पिला दिया करो…!! सीधे पीने का शौक है लेकिन अपना आपा संभाला नहीं जाता” -वे दूध का गिलास साइड में टेबल पर रख कर मुझे सीधा करने लगीं- “चलो सगीर इंसान बनो अब, उठ भी जाओ”

मैं सीधा हो कर लेट गया लेकिन उठा नहीं वैसे ही बिस्तर पर पड़ा रहा। आपी ने मेरे अज़ार बंद को खोला और सलवार में हाथ फँसा कर झुंझलाहट से बोलीं- “अपने कूल्हे ऊपर करो, गंदे… क्या हाल बनाया हुआ है”

मैंने अपने कूल्हे उठाए तो आपी ने मेरी सलवार को नीचे खींचते हुए पाँव से बाहर निकाल दिया और सलवार के साथ ही मेरी क़मीज़ भी उठा कर बटोर कर चली गईं। आपी बाथरूम से वापस आईं तो उन्होंने हाथ में तौलिया पकड़ा हुआ था जिसका कोना पानी से गीला था।

आपी मेरी रानों, बॉल्स और लण्ड के आस-पास के हिस्से को गीले तौलिये से साफ करते हुए कहने लगीं- “तुम्हारी बीवी की तो जान हमेशा अज़ाब में ही रहेगी। अपने बच्चों के साथ-साथ तुम्हारी भी गंदगी साफ करती रहेगी”

आपी ने यह कहा और एक हाथ से मेरे लण्ड को पकड़ कर दूसरे हाथ से गीले तौलिये से साफ करने लगीं।

“मुझे बीवी की जरूरत ही नहीं है, मेरी सोहनी सी बहना जी हैं ना मेरे पास” -मैंने मुस्कुरा कर कहा।

तो आपी ने रुकते हुए मेरे चेहरे पर एक नज़र डाली और कहा- “हाँ, बहनें इसी काम के लिए ही तो रह गईं हैं अब”

आपी ने गीले तौलिये से सफाई के बाद तौलिए के खुश्क हिस्से से साफ किया और अलमारी से मेरा दूसरा सूट निकाल लाईं।

अब वे मेरे क़रीब ही बैठ कर बोलीं- “अब उठ जाओ सगीर, अम्मी भी उठने वाली हैं और कुछ देर में अब्बू भी घर आ जाएंगे, मैं चाय बनाती हूँ जल्दी सी नीचे आ जाओ”

आपी ने ये कह कर मेरे सिर पर हाथ फेरा और माथे को चूम कर बाहर निकाल गईं। मुझे वाकयी ही बहुत कमज़ोरी महसूस हो रही थी। कुछ देर बाद मैं हिम्मत करके उठा और बाथरूम चला गया। फ्रेश होकर अपना दूसरा सूट पहना और नीचे चला गया।

मैं चाय पीने के लिए बैठा ही था कि अब्बू घर में दाखिल हुए। उन्होंने अपने हाथ में एक पैकेट पकड़ा हुआ था जो वहाँ ही मेज पर रखा। हमने उन्हें सलाम किया और वो अपने कमरे में चले गए। मैं चाय खत्म करके वहाँ ही बैठा रहा।

कुछ देर बाद अब्बू बाहर निकले और सोफे पर बैठते हुए कहा- “रूही बेटा, मेरे लिए भी चाय ले आओ”

“जी अब्बू अभी लाई” -आपी ने किचन से ही जवाब दिया।

अब्बू मुझसे इधर-उधर की बातें करने लगे।

आपी ने आकर चाय का कप अब्बू को दिया और सोफे पर उनके साथ ही बैठने लगी थीं कि अब्बू बोले- “बेटा! वो मेज पर एक पैकेट पड़ा है, वो भी उठा लाओ”

आपी ने पैकेट ला कर अब्बू को दे दिया। अब्बू पैकेट खोलते हुए मुझे मुखातिब कर के बोले- “यार सगीर! इसे देखो ज़रा विन्डोस की इन्स्टालेशन वगैरह कर देना”

अब्बू ने पैकेट से लैपटॉप निकाला और मेरी तरफ बढ़ा दिया।

मैंने लैपटॉप को बड़े गौर से देखते हुए कहा- “ये कितने तक का मिला है अब्बू?”

“वो इहतिशाम ने दुबई से ला दिया है, मैंने नहीं खरीदा” -अब्बू ने जवाब दिया और घूँट-घूँट चाय पीने लगे।

इहतिशाम अंकल अब्बू के बहुत क़रीबी दोस्तों में से थे और इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट का बिजनेस करते थे।

मैं लैपटॉप को ऊपर-नीचे से चैक करने के बाद ओपन कर ही रहा था कि अब्बू की आवाज़ आई- “देखो आज रात इसमें जो भी काम है वो कर लो, सुबह मैं ऑफिस जाते हुए ले जाऊँगा और मेरे पुराने लैपटॉप से सारा डाटा इसमें ट्रान्सफ़र कर दो और वो लैपटॉप अपने इस्तेमाल के लिए रख लो”

मैंने अब्बू की तरफ देखा तो वो चाय पी रहे थे और उनका ध्यान टीवी की तरफ था। मैंने अपना रुख़ फेर कर आपी के चेहरे पर नज़र डाली, उनकी नजरें लैपटॉप की स्क्रीन पर जमी हुई थीं।

आपी ने मेरी नजरें अपने चेहरे पर महसूस करते हुए मेरी तरफ देखा तो मैंने उन्हें आँख मारी और फिर रुख़ अब्बू की तरफ करते हुए कहा- “अब्बू मेरे पास तो पीसी है कमरे मैं, आप लैपटॉप आपी को दे दें, उनको ज्यादा जरूरत होगी। आज कल वैसे भी आपी थीसिस लिख रही हैं”

“अरे हाँ भाई रूही, तुम्हारा वो क्या था? हाँ ‘नीक़ाब औरत’ कहाँ तक पहुँचा है वो??” -अब्बू ने आपी की तरफ देखते हुए सवाल किया।

आपी ने अब्बू को अपनी तरफ मुतवजा पाकर अपना दुपट्टा सिर पर सही किया और कहा- “अब्बू वो तो कंप्लीट हो ही गया है लेकिन मैं सोच रही हूँ इसी टॉपिक को लेकर एक किताब लिखना शुरू करूँ”

आपी ने अपनी बात खत्म करके अब्बू को देखा तो वो दोबारा टीवी की तरफ रुख़ फेर चुके थे। फिर आपी ने मुझे देखा और आँख मार कर मुस्कुरा दीं।

“हाँ बेटा ज़रूर लिखो, किसी चीज़ की भी जरूरत हो तो मुझे कह देना और बेटा सगीर तुम लैपटॉप आपी को दे देना अच्छा” -अब्बू ने ये कहा और चाय का खाली कप टेबल पर रखते हुए उठ खड़े हुए।

“रूही बेटा मेरा सूट निकाल दो कोई, मैं ज़रा नहा कर फ्रेश हो लूँ” -ये कहा और अपने कमरे की तरफ चल दिए।

मैंने अब्बू को कमरे में दाखिल हो कर दरवाज़ा बंद करते हुए देखा तो आपी के नज़दीक़ होते हुए सरगोशी और शरारत से कहा- “अब तो मेरी बहना जी दिन रात गंदी फ़िल्में, पोर्न मूवीज़ देखेंगी और वो भी मज़े से अपने बिस्तर में लेट कर”

एक लम्हें को आपी के चेहरे पर शर्म के आसार नज़र आए और फिर फ़ौरन ही अपनी हालत पर क़ाबू पा कर बोलीं, “बकवास ना करो, मैं तुम्हारे जैसी नहीं हूँ और दूसरी बात यह कि मैं कमरे मैं अकेली नहीं होती हूँ समझे?”

TO BE CONTINUED ......
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#70
Heart 
मैंने यह बात कही तो वैसे ही शरारत से थी लेकिन आपी की बात सुन कर मैंने एक लम्हें को कुछ सोचा और मेरी आँखों में चमक सी लहरा गई। 
मैंने आपी की तरफ देखा तो आपी ने मुस्कुराते हुए गर्दन को ऐसे हिलाया जैसे उन्होंने मेरी सोच पढ़ ली हो और कहा- “सगीर कमीने! मैंने कहा है ना मैं तुम्हारी रग-रग से वाक़िफ़ हूँ। मैं जानती हूँ तुम्हारे खबीस दिमाग में क्या चल रहा है”

मैंने झेंपते हुए अपने सिर को खुज़ाया और नज़र झुका कर मुस्कुरा दिया। फिर फ़ौरन ही नज़र उठाई और आपी से बोला- “आपी यह तो इत्तिफ़ाक़न ही बहुत अच्छा मौका बन गया है, किसी तरह राज़ी कर लो हनी को भी, फिर मिल कर मज़े करेंगे ना”

आपी ने सीरीयस अंदाज़ में कहा- “शर्म करो सगीर, उसको तो छोड़ दो, वो अभी कमसिन है यार”

मैं फ़ौरन बोला- “खैर, अब इतनी छोटी भी नहीं है वो, मैं कल जब अपने गंदे कपड़े वॉशिंग मशीन में डालने गया तो वहाँ मैंने हनी की पैन्टी पड़ी देखी थी। उस पर 4-5 स्पॉट लगे हुए थे ब्लड के और दिन में आपने उसकी सलवार भी देखी ही थी”

आपी ने मेरी गुद्दी पर एक चपत रसीद की और कहा- “मेनसिस तो उसे 4-5 साल पहले से हो रहे हैं लेकिन है तो नादान ही ना”

मैंने अपनी गुद्दी को सहलाते हुए कहा- “मेनसिस 4-5 साल से हो रहे हैं, सीने के उभार आप से कुछ ही छोटे हैं, कूल्हे मटकने लगे हैं, तो नादान कहाँ से है?”

“अच्छा बस करो फिज़ूल की बहस, बाद में देखेंगे कि क्या करना है। मैं जाती हूँ अब्बू को कपड़े दे दूँ” -आपी यह कह कर खड़ी हुईं तो मैं भी उनके साथ-साथ ही खड़ा हो गया।

आपी ने 2 क़दम उठाए और रुक गईं फिर वापस घूमीं और आहिस्ता आवाज़ में बोलीं- “सगीर मैं आज रात को तुम्हारे कमरे में नहीं आऊँगी। सुबह यूनिवर्सिटी लाज़मी जाना है क्योंकि मेरी प्रेज़ेंटेशन है”

फिर मेरे सामने दोनों हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने के अंदाज़ में बोलीं- “और प्लीज़… प्लीज़ तुम लोग भी आपस में कुछ नहीं करना। कुछ तो अपनी सेहत का ख़याल रखो। अभी डिस्चार्ज होने के बाद क्या हालत हो गई थी तुम्हारी, याद है ना?”

मैं कुछ देर तो चुप रहा फिर बोला- “अच्छा ठीक है आप नहीं आना और बेफ़िक्र रहें, हम कुछ नहीं करेंगे। आज वैसे भी अब्बू के लैपटॉप को सैट करना है उसमें ही बहुत टाइम लग जाएगा। सुबह तैयार ना हुआ तो अब्बू की बातें सुननी पड़ेंगी”

आपी ने मेरी बात सुनी तो मुस्कुरा दीं और मेरे गाल को चुटकी में पकड़ कर दबा दिया और दाँत चबा कर बोलीं- “शाबाश मेरा सोहना भाई..”

“आआअप्प्प्प्पीईई…” -मैंने अपने दोनों हाथ आपी के हाथ पर रख के अपना गाल छुड़ाया और बुरा सा मुँह बना के गाल को सहलाते हुए कहा- “यार ये नहीं किया करो ना, आपी दर्द होता है ना”

आपी तेज आवाज़ में खिलखिला कर हँसी और बगैर कुछ बोले ही अब्बू के कपड़े लेने चल दीं। मैं कुछ देर बुरा सा मुँह बनाए अपना गाल सहलाता रहा और फिर बाहर की तरफ चल दिया कि काफ़ी दिन हो गए स्नूकर की बाज़ी नहीं लगाई थी।

रात को फरहान ने आपी का पूछा तो मैंने कह दिया- “सुबह आपी की प्रेज़ेंटेशन है इसलिए वो नहीं आएँगी और मैंने भी काम करना है, तुम सो जाओ”

फरहान को टालने के बाद मैं भी अब्बू के लैपटॉप को ही सैट करता रहा। डेटा ट्रान्स्फर करने के बाद आपी के कहे बिना ही अपने पीसी से तमाम ट्रिपल एक्स मूवीज भी आपी वाले लैपटॉप में ट्रान्स्फर कर दीं। ये काम भी तो जरूरी ही था। अपना काम खत्म करने के बाद मैं भी सोने के लिए लेट गया और आगे का सोचने लगा कि अब बात को आगे कैसे चलाया जाए और इसी सोच में जाने कब नींद ने तमाम सोचों से बेगाना कर दिया।

मेरी बहन को भी अब इस सब खेल में मज़ा आने लगा था और उनकी झिझक काफ़ी हद तक खत्म हो गई थी। मैं हमेशा यह सोचता था कि लड़कियाँ लड़कों के मुक़ाबले में सेक्स की तरफ कम ही मुतवजा होती हैं लेकिन अब मेरी सोच का नजरिया बदल चुका था और मैं जान गया था कि जितनी शिद्दत सेक्स की हम लड़कों में होती है उससे कई गुना ज्यादा लड़कियों में होती है। बस ये है कि उनमें फितरती झिझक और खौफ होता है जो उन्हें सेक्स के मामले में आगे नहीं बढ़ने देता। मर्दों का तो कुछ नहीं जाता और ना ही कोई ऐसा सबूत होता है जो उनके कुंवारेपन को चैलेन्ज कर सके, जबकि लड़कियाँ अगर अपना कुंवारापन खो दें तो वे उसे कभी छुपा नहीं सकती हैं।

सुबह जब मेरी आँख खुली और कॉलेज जाने के लिए तैयार होने के लिए बाथरूम के पास गया तो फरहान नहा रहा था।

मैंने बाहर से आवाज़ लगाई- “फरहान यार कितनी देर है?”

अन्दर से शावर के शोर के साथ ही फरहान की आवाज़ आई- “भाई मैं अभी तो घुसा हूँ, नहा रहा हूँ थोड़ा टाइम तो लगेगा ही ना”

मैंने फरहान की बात का कोई जवाब नहीं दिया और नीचे कामन बाथरूम के लिए चल दिया।

मैं बाथरूम के पास पहुँचा ही था कि आपी के कमरे का दरवाज़ा थोड़ा खुला देखकर रुक गया और अन्दर देखा तो आपी चादर, स्कार्फ से बेनियाज़, उलझे बालों और सिलवटजदा कपड़ों में नज़र आईं। शायद वो अभी ही बिस्तर से उठी ही थीं, उनकी क़मीज़ बेतरतीब सी हालत में उनके कूल्हों से उठी हुई थी और कमर से चिपकी थी। आपी की रानें और कूल्हे देख कर मुझे झुरझुरी सी आई और लण्ड ने अंगड़ाई ली।

मैं आपी के कमरे की तरफ चल दिया। मैं अन्दर दाखिल हुआ और आहिस्तगी से दरवाज़ा बंद कर दिया। आपी दोनों हाथ कमर पर टिकाए बाथरूम के सामने खड़ी थीं और नींद से बोझिल आँखें लिए हनी के बाथरूम से निकलने का इन्तजार कर रही थीं। शावर की आवाज़ बता रही थी कि हनी नहा रही है।

मैं दबे पाँव आपी के पीछे गया और उनकी बगलों के नीचे से हाथ गुजार कर आपी के सीने के खूबसूरत उभारों पर रखते हुए सरगोशी में कहा- “हैलो सेक्सी बहना जी, सुबह की सलाम”

मैंने बात खत्म करके अपने होंठ आपी की गर्दन पर रख दिए। आपी ने मेरी इस हरकत पर हड़बड़ा कर आँखें खोलीं और कूल्हों को पीछे दबाते हुए मेरे हाथ अपने मम्मों से हटाने की कोशिश की और सहमी हुई सी आवाज़ में बोलीं- “सगीर पागल हो गए हो क्या? छोड़ो मुझे, किसी ने देख लिया तो??”

मैंने आपी के दोनों निप्पल अपनी चुटकियों में पकड़ कर मसले और आपी की गर्दन से होंठ हटा कर कहा- “मेरी सोहनी बहना जी! अम्मी अब्बू का रूम अभी बंद है, शावर की आवाज़ आ रही है तो हनी अभी नहा ही रही है और किसने देखना है?”

मैंने बात खत्म की और आपी को अपनी तरफ घुमाते हुए उनके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। आपी ने अपना चेहरा पीछे हटाने की कोशिश की लेकिन मैंने उनकी कमर को जकड़े रखा जिससे वो पीछे की तरफ कमान की सूरत मुड़ गईं। मैंने जोरदार चुम्मी करने के बाद अपने होंठ आपी के होंठों से अलग किए और उन्हें सीधा कर दिया जिससे से मेरी गिरफ्त भी ढीली हो गई।

आपी ने मेरी गिरफ्त को कमज़ोर महसूस किया तो मेरे सीने पर हाथ रख कर पीछे धक्का दिया और झुंझलाते हुए दबी आवाज़ में कहा- “इंसान बनो, सुबह-सुबह क्या मौत पड़ी है तुमको, अब जाओ भी, क्यों मरवाओगे क्या?”

मैंने शैतानी सी मुस्कुराहट से आपी की तरफ देखा तो वो फ़ौरन बोलीं- “सगीर! खुदा के लिए जाओ”

मैंने आपी के चेहरे पर ही नज़र जमाए हुए कहा- “एक शर्त पर जाऊँगा”

“शर्त??” -आपी ने हैरत और खौफ की मिली-जुली कैफियत में कहा।

मैंने आपी के सीने के उभारों की तरफ हाथ से इशारा करते हुए कहा- “मुझे ये दोनों देखने हैं”

“तुम बिल्कुल ही सठिया गए हो, इस वक़्त???? क्या आग लगी है तुम्हें??”

आपी ने अब अपनी कैफियत पर क़ाबू पा लिया था और अब उनके चेहरे पर खौफ के आसार भी नहीं थे लेकिन झुंझलाहट अभी भी मौजूद थी।

TO BE CONTINUED .....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#71
SHANDAR HAI APKI STORY..................
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#72
Heart 
मैंने मिन्नतें करते हुए कहा- “प्लीज़ आपी! मेरी प्यारी बहन हो या नहीं?”

“बहन क्या इसी काम के लिए है?” -आपी ने कहा और दबी सी मुस्कुराहट चेहरे पर आ गई।

मैंने कहा- “चलो ना यार”

“अगर उसी वक़्त हनी बाहर आ गई तो…ओ..?” -आपी ने कहा और गर्दन घुमा के बाथरूम के दरवाज़े को देखने लगीं।

मैंने कहा- “आपी! शावर की आवाज़ अभी भी आ रही है, वो नहीं आएगी। फिर भी आप अपने इत्मीनान के लिए उससे पूछ लो ना कि कितनी देर में निकलेगी”

आपी बाथरूम के नज़दीक हुईं और ज़रा तेज आवाज़ में बोलीं- “हनी और कितनी देर है? मैं यूनिवर्सिटी के लिए लेट हो रही हूँ”

हनी ने अन्दर से आवाज़ लगाई- “बस आपी 5 मिनट और, मैं निकलती हूँ बस… थोड़ी देर”

मैंने मुस्कुरा कर आपी को देखा और उनके क़रीब होते हुए कहा- “चलो ना आपी! प्लीज़… 5 मिनट बहुत हैं हमारे लिए”

आपी ने ज़रा डरे हुए अंदाज़ में बाथरूम को देखा और फिर कमरे के दरवाज़े की तरफ गईं। दरवाज़ा खोल कर बाहर अम्मी-अब्बू के कमरे पर एक नज़र डाली और फिर दरवाज़ा बंद करके मेरी तरफ घूम गईं और दरवाज़े पर अपनी कमर लगा कर वहाँ ही खड़ी हो गईं।

आपी ने क़मीज़ का दामन पकड़ा- “लो… खबीस... देखो और जाओ यहाँ से”
और मुझसे यह कहते हुए क़मीज़ गर्दन तक उठा दी।

मैं आपी के क़रीब पहले ही आ चुका था। मैंने अपनी बहन के हसीन उभारों को देखा और अपने दोनों हाथों में आपी के उभार पकड़ कर दबाए और निप्पल को सहलाने के फ़ौरन बाद ही अचानक से आगे बढ़ कर आपी का खूबसूरत गुलाबी निप्पल अपने मुँह में ले लिया।

मेरी ज़ुबान ने आपी के निप्पल को छुआ तो आपी ने एक ‘आअहह..’ भरी और सरगोशी से बोलीं- “ये क्या कर रहे हो? कहते कुछ हो और करते कुछ हो, देखने का कहा था और अब चूसना भी शुरू कर दिया। हटो पीछे, हनी बाहर आने ही वाली है”

मैंने आपी के दोनों उभारों को हाथों में दबोचा हुआ था और आपी का एक निप्पल मेरे मुँह में था। मैंने कुछ देर बारी-बारी आपी के दोनों निप्पलों को चूसा और फिर अपना मुँह हटा कर एक भरपूर नज़र से आपी के उभारों को देखा। मेरे दबोचने से ऐसा लग रहा था जैसे आपी के जिस्म का सारा खून उनके सीने के उभारों में जमा हो गया है। शफ़फ़ गुलाबी मम्मों पर मेरी ऊँगलियों के निशान बहुत वज़या हो गए थे।

मैंने हाथ उनके मम्मों पर ही रखे-रखे एक बार फिर आपी को किस किया और उनके जिस्म से अलग होते हुए कहा- “थैंक्स मेरी सोहनी सी बहना जी! आई रियली लव यू”

फिर मैंने आपी को आँख मारी और शैतानी से मुस्कुराते हुए कहा- “अब ये मेरा रोज़ सुबह-सुबह का नाश्ता हुआ करेगा। आप तैयार रहा करना,ठीक है ना”

आपी सिर झुका कर अपनी क़मीज़ को सही कर रही थीं और अपने राईट सीने के उभार को अपने हाथ से ऊपर उठा रखा था क़मीज़ सही करने के लिए। फिर उन्होंने अपने सिर उठा कर मेरी तरफ देखा और कहा- “बकवास मत करो, अब दोबारा ऐसा सोचना भी नहीं, मैं खामखाँ का रिस्क नहीं लूँगी समझे??”

मैंने आपी की बात को अनसुनी करते हुए मासूम बनते हुए कहा- “चलें छोड़ें, बाद में देखेंगे, फिलहाल अगर आपकी कोई ख्वाहिश है? मेरे जिस्म की कोई चीज़ देखनी है? या कुछ हाथ मैं पकड़ना है? या कुछ चूसना है? तो बता दें, मैं आपकी खिदमत के लिए तैयार हूँ”

आपी बेसाख्ता हँसने लगीं और बोलीं- “मैं समझ रही हूँ तुम किस चीज़ के लिए फटते जा रहे हो लेकिन मेरी ऐसी कोई ख्वाहिश नहीं है। जनाब का बहुत-बहुत शुक्रिया”

आपी की बात सुन कर मैं भी हँस दिया और बाहर जाने के लिए दो क़दम चला ही था कि बाथरूम का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई। मैंने गर्दन घुमा कर देखा तो हनी अपने जिस्म पर सीने से लेकर घुटनों तक तौलिया लपेटे हुए बाहर निकलती नज़र आई। हनी को इस हाल में देख कर मेरे लण्ड ने फ़ौरन सलामी के तौर पर एक झटका खाया और मेरी नज़रें हनी की जवानी पर घूम गईं।

हनी 2-3 क़दम बाहर आई ही थी कि मुझ पर नज़र पड़ते ही उछल पड़ी और बोली- “उफ्फ़ भाईई! आप यहाँन्न…?”

और फिर तकरीबन भागते हुए वापस बाथरूम में घुस गई। मैं और आपी दोनों ही इस सिचुयेशन पर कन्फ्यूज़ हो गए थे और मैं बेसाख्ता ही बोला- “सॉरी गुड़िया, वो हमारे बाथरूम में फरहान घुसा बैठा है और बाहर वाले बाथरूम में अब्बू हैं तो मैं यहाँ आ गया कि शायद खाली हो”

हनी ने बदस्तूर गुस्सैल आवाज़ में कहा- “लेकिन भाई आप कम से कम मुझे बता तो देते ना कि आप कमरे में अन्दर हैं”

“अच्छा मेरी माँ गलती हो गई मुझसे, अब जा रहा हूँ बाहर”

मैंने यह कहा और आपी की तरफ देख कर अपना लेफ्ट हाथ अपने सीने पर ऐसे रखा जैसे मैंने अपना सीने का उभार पकड़ रखा हो और आपी को आँख मारते हुए अपने दायें हाथ की इंडेक्स फिंगर और अंगूठे को मिला कर सर्कल बनाया और बाथरूम की तरफ आँख से इशारा करते हुए हाथ ऐसे हिलाया जैसे मैं आपी को जता रहा होऊँ कि हनी के सीने के उभार देखे आपने? कितने मस्त हो गए हैं। आपी ने मुस्कुरा कर गर्दन ऐसे हिलाई जैसे मेरी बात समझ गई हों और फिर मुझे बाहर जाने का इशारा कर दिया।

“हनी बाहर आ जाओ, सगीर चला गया है” -ये आखिरी जुमला था जो मैंने आपी के कमरे से बाहर निकल कर सुना और दरवाज़ा बंद करके बाथरूम जाते हुए हनी के बारे में ही सोचने लगा।

हनी अब वाकयी ही छोटी नहीं रही है। जब वो तौलिया में लिपटे हुए बाहर निकली थी तो उसके गीले बाल और भीगा-भीगा जिस्म बहुत ही ज्यादा सेक्सी लग रहा था। मैंने आपी को आँख मारते हुए बाथरूम की तरफ आँख से इशारा करते हुए हाथ ऐसे हिलाया जैसे मैं आपी को बता रहा होऊँ कि हनी के सीने के उभार कितने मस्त हो गए हैं।

हनी जब तौलिये में लिपटी बाहर निकली थी तो उसके गीले बाल और भीगा ज़िस्म बहुत सेक्सी लग रहा था। तौलिये में हनी के सीने के उभार काफ़ी बड़े दिख रहे थे और जब वो वापस जाने के लिए मुड़ी थी तो उसके चूतड़ों की शेप भी वज़या हो रही थी और वो 3-4 क़दम ही भागी थी लेकिन मैंने हनी के कूल्हों का मटकना पहली बार गौर से देखा था जो बहुत दिलकश मंज़र था।

हनी के नंगे बाज़ू और नंगी पिण्डलियाँ बालों से बिल्कुल साफ और आपी की ही तरह शफ़फ़ थीं, बस ये था कि उसका रंग थोड़ा दबता हुआ था या फिर ये कहना ज्यादा मुनासिब है कि आपी के मुक़ाबले में वो साँवली नज़र आती थी।

हनी का क़द तकरीबन 4 फीट 10 इंच था और उसका जिस्म भारी-भरकम नहीं था बल्कि वो दुबली-पतली सी थी लेकिन सीने के उभार आपी से थोड़े छोटे और साइज़ में 32सी के थे, कूल्हे ना ही बहुत ज्यादा बड़े थे और ना ही बहुत छोटे, बस मुनासिब थे।

उसकी चाल कुदरती तौर पर ही ऐसी थी कि वो चलती थी तो उसकी टांग दूसरी टांग को क्रॉस करते हुए पाँव ज़मीन पर पड़ता था बिल्कुल बिल्ली की तरह और खुद बा खुद ही उसके छोटे क्यूट से कूल्हे मटक से जाते थे। मैंने अपनी इन्हीं सोचों के साथ गुसल किया और नाश्ते की टेबल पर ही लैपटॉप अब्बू के हवाले करके कॉलेज के लिए निकल गया।

TO BE CONTINUED ....
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#73
Heart 
दो दिन तक आपी की प्रेज़ेंटेशन चलती रही जिसकी वजह से वो हमारे कमरे में नहीं आ सकीं और हमने आपस में भी कुछ नहीं किया।

तीसरे दिन कॉलेज से वापस आकर मैंने कुछ देर आराम किया और फिर शाम को चाय के वक़्त आपी ने भी सेक्स की हिद्दत से बोझिल आँखें लिए बता दिया कि वो आज रात को हमारे पास आएँगी। दो रातें और 2 दिन गुज़र चुके थे कि आपी हमारे रूम में नहीं आई थीं। फरहान और मैं बहुत शिद्दत से कमरे में बैठे आपी का इन्तजार कर रहे थे।

हम दोनों ने अपने कपड़े पहले से ही उतार रखे थे। जब आपी कमरे में दाखिल हुईं तो हमारे खड़े लण्ड पर नज़र पड़ते ही उनकी आँखों में भी चमक पैदा हो गई। आख़िर वो थीं तो हमारी ही बहन और अब उन्हें भी इस खेल की आदत हो गई थी।

आपी ने दरवाज़ा बंद करके बहुत बेताबी से अपनी क़मीज़ उतार कर फैंकी और ब्रा को खोल कर सोफे की तरफ उछाल दिया।

मैंने आपी को क़मीज़ उतारते देखा तो बिस्तर से उठ कर भागता हुआ आपी की तरफ गया और अपने बाज़ू उनकी कमर के गिर्द मज़बूती से कसते हुए आपी की गर्दन पर होंठ रख दिए। आपी भी 2 दिन से जिस्म की आग को दबाए बैठी थीं, जैसे ही उनके सीने के उभार और निप्पल मेरे बालों भरे सीने से दबे तो उनकी आँखें खुद ही बंद हो गईं और आपी के मुँह से एक सिसकारी निकली और उन्होंने बेसाख्ता ही अपने बाज़ू मेरे जिस्म के गिर्द कस कर मुझे भींचना शुरू कर दिया और कभी मेरी कमर को अपने हाथों से सहलाने लगीं।

कुछ देर मैं और आपी ऐसे ही खड़े अपने-अपने जिस्मों को महसूस करते रहे फिर मैंने अपने होंठ आपी की गर्दन से हटाए और आपी के होंठों को चाटते और चूमते हुए उन्हें तकरीबन घसीटता हुआ बिस्तर की तरफ चल दिया।

फरहान मुझे और आपी को इस हाल में देख कर एकदम बेखुद सा बिस्तर पर ही बैठा था। मैंने उससे 2 दिन पहले आपी के साथ हो सेक्स के बारे में कुछ नहीं बताया था।

आपी को लिए हुए ही मैं बिस्तर पर लेट गया। आपी के अंदाज़ में आज बहुत गरमजोशी थी। वो बहुत वाइल्ड अंदाज़ में मेरी कमर को सहला रही थीं और अपने सीने के उभारों को मेरे सीने पर रगड़ रही थीं।

आपी कभी मेरे होंठों को बहुत बेताबी से चूसने लगतीं तो कभी दाँतों में दबा कर खींच लेतीं। कुछ देर ऐसे ही एक-दूसरे के होंठ और ज़ुबान चूसने और चाटने के बाद मैं थोड़ा नीचे हुआ और आपी की गर्दन को चाटने और छूने लगा।

आपी सीधे लेटी हुई थीं और उनके हाथ मेरी कमर पर थे। मैं आपी के दिल की तेज-तेज धड़कन को साफ सुन और महसूस कर रहा था।

आपी की गर्दन से होता हुआ मैं नीचे उनके सीने के उभार तक पहुँचा और बारी-बारी दोनों निप्पलों को चाटने और चूसने लगा। आपी के उभार को मुँह में लिए लिए ही मैंने अपना हाथ नीचे किया और आपी की सलवार को नीचे उनके पाँव की तरफ सरकाना शुरू कर दिया। यह भी अच्छा था कि आपी की इस सलवार में अजारबंद के बजाए इलास्टिक थी जिसकी वजह से सलवार आसानी से नीचे सरक रही थी।

जब आपी को महसूस हुआ कि मैं उनकी सलवार उतार रहा हूँ तो उन्होंने अपने एक हाथ से फ़ौरन मेरे उस हाथ को पकड़ लिया जो उनकी सलवार पर था और आँखें बंद किए हुए ही बोलीं- “नहीं सगीर प्लीज़ सलवार मत उतारो, ऊपर-ऊपर से ही कर लो, जो भी करना है”

मैंने अपना हाथ आपी की सलवार से हटा दिया और फरहान को देखा जो आपी की दायीं तरफ़ ही बैठा था। फरहान से नज़र मिलने पर उससे इशारा किया कि आपी के एक उभार को मुँह में ले ले।

फरहान तो बस तैयार ही बैठा था। उसने मेरा इशारा समझा और एकदम से आपी के दायें निप्पल पर टूट पड़ा, उसने निप्पल मुँह में लिया और जंगलियों की तरह चूसना और हाथ से दबाना शुरू कर दिया।

आपी ने एक लम्हे को आँख खोली तो अपने दोनों सगे भाईयों के मुँह में अपना एक-एक उभार देख कर वो मचल सी गईं और अपने दोनों हाथ हम दोनों के सिर पर रख कर दबाने लगीं। उनकी साँसें बहुत तेज हो गई थीं और वो मदहोश होने लगीं थीं।

मैंने दोबारा अपने हाथ को नीचे करके आपी की सलवार को थामा और दूसरे हाथ से आपी की कमर को थोड़ा सा ऊपर उठाते हुए एक झटके से उनकी सलवार को कूल्हों के नीचे से निकाल दिया। आपी ने कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था कि मैंने अपने होंठ उनके होंठों से चिपका के उनका मुँह बंद कर दिया और दूसरे हाथ से आपी की सलवार को घुटनों से नीचे तक पहुँचा दिया।

फरहान कभी आपी के उभार को चाटने लगता तो कभी उनके निप्पल को चूसने लगता। उसके अंदाज़ में बहुत जंगलीपन था और होना भी था क्योंकि ज़िंदगी में पहली बार वो दुनिया की हसीन-तरीन चीज़ को चूस रहा था।

मेरे मुँह हटाते ही फरहान ने आपी के दूसरे उभार को भी हाथ में पकड़ लिया था और झंझोड़ने लगा था। मैंने आपी के दोनों होंठों को अपने होंठों से खोलते हुए सांस तेजी से अन्दर को खींची तो आपी मेरा इशारा समझ गईं और फ़ौरन अपनी ज़ुबान मेरे मुँह में दाखिल कर दी।

मैंने आपी की ज़ुबान को अपने दाँतों में पकड़ा और चूसने लगा। आपी को ज़ुबान चुसवाने में बहुत मज़ा आता था और मैंने आपी के इसी मज़े का फ़ायदा उठाते हुए आपी की टाँगों के दरमियान अपना हाथ रख दिया।

मेरा हाथ जैसे ही आपी की चूत के दाने को टच हुआ तो वो मचल गईं लेकिन उनकी ज़ुबान को मैंने अपने दाँतों में दबा रखा था इसलिए ना ही कुछ बोल सकीं और ना ही ज्यादा हिल सकीं।

मैंने कुछ देर तेजी से अपनी ऊँगलियों को आपी की चूत के दाने पर मसला तो उनकी हालत माही-बेआब बिन पानी की मछली की तरह हो गई और आपी ने तेजी से अपने पाँव की मदद से अपनी सलवार को पाँव तक पहुँचाया और घुटनों को मोड़ते हुए अपनी टाँगों को थोड़ा खोल लिया।

आपी की चूत बहुत गीली हो गई थी और मेरी उंगलियाँ खुद ब खुद उनकी चूत के दाने से स्लिप होकर नीचे चूत के दरवाजे पर टच होने लगती थीं। मैंने आपी की टाँगों को खुलता महसूस कर लिया था और उनकी चूत से बहते पानी ने भी मुझे यह समझा दिया था कि अब आपी का दिमाग उनकी चूत के कंट्रोल में आ गया है इसलिए मैंने उनकी ज़ुबान को अपने दाँतों से निकाल दिया।

आपी ने अपनी ज़ुबान को आज़ाद महसूस करके आँखें खोल दीं। उनकी आँखें भी बहुत लाल हो रही थीं और नशे की सी हालत में थीं। मैंने आपी को अपनी तरफ देखता पाकर आपी की चूत पर रखा अपना हाथ हटाया और आपी को दिखाते हुए अपनी एक-एक उंगली को चूसने लगा।

आपी ने मेरी इस हरकत पर आँखें फाड़ कर मुझे देखा तो मैंने मुस्कुराते हुए मज़े से डूबी आवाज़ में कहा- “यम्मम्मी… मेरी सोहनी बहन की चूत से निकले लव-जूस का ज़ायक़ा दुनिया के बेहतरीन मशरूब से ज्यादा लज़ीज़ है”

मेरी बात सुन कर आपी का चेहरा शदीद शर्म से लाल हो गया और उन्होंने मुस्कुरा कर अपनी आँखें बंद करते हुए चेहरा दूसरी तरफ कर लिया। मैं भी मुस्कुरा दिया और नीचे सरकते हुए अपनी ज़ुबान आपी की नफ़ में दाखिल कर दी।

फरहान ने भी उसी वक़्त आपी के निप्पल को दाँतों में दबा कर ज़ोर से काटा और ऊपर को खींचने लगा। फरहान के काटने की वजह से और मेरी ज़ुबान को अपनी नफ़ के अन्दर महसूस करते हुए आपी ने एक ज़ोरदार ‘आआआअहह..’ भरी। उस ‘आहह..’ में ‘मज़े की शिद्दत’ और ‘तक़लीफ़ का अहसास’ दोनों ही बहुत नुमाया हो रहे थे।

मैंने आपी की चूत में उंगली करते हुए अपनी उंगलियाँ चाटी तो मेरी बहना शर्मा गई। मेरा छोटा भाई आपी की चूचियाँ चूस रहा था और आपी सिसकार रही थी।
आपी की चीख भरी ‘आहह..’ सुन कर मैंने ऊपर देखा तो फरहान ने आपी के निप्पल को दाँतों में दबाया हुआ था और काफ़ी ताक़त से अपना सिर ऊपर खींच रहा था। आपी ने फ़ौरन अपने दोनों हाथ फरहान के सिर की पुश्त पर रखे और सिर को वापस नीचे अपने उभार पर दबा दिया।

मैंने दोबारा अपनी नज़र नीचे की और आपी की पूरी नफ़ के अन्दर अपने ज़ुबान फेरने लगा। आपी का पूरा पेट अपनी ज़ुबान से चाटने के बाद मैं उनकी रानों पर आया और पूरी रान के अंदरूनी और बाहरी हिस्से को अपनी ज़ुबान से चाटा।

मैं अपनी ज़ुबान से चाटता हुआ रान से घुटने और फिर पिण्डलियों से हो कर पाँव तक पहुँचा और आपी की सलवार को उनके जिस्म से अलग करके पीछे फेंक दिया और फिर पूरे पाँव को ऊपर से चाटने के बाद तलवे को चाटा और पाँव की एक-एक ऊँगली को बारी-बारी से चूसने लगा।

इसके बाद मैंने आपी की दूसरी टांग को पकड़ा और उसी तरह 1-1 मिलीमीटर के हिस्से को चाटता हुआ वापस आपी की नफ़ तक आ गया। मैं उठ कर आपी की टाँगों के दरमियान बैठा और आपी की नफ़ के नीचे बालों वाले हिस्से को चूमने लगा और फिर अपनी ज़ुबान निकाल कर चाटना शुरू कर दिया।

मैं अपना सिर उठा कर एक नज़र फरहान और आपी को भी देख लेता था। फरहान अभी भी आपी के मम्मों को ऐसे झंझोड़ और चूस रहा था जैसे उसे आज के बाद कभी ये नसीब नहीं होंगे।

TO BE CONTINUED .....
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#76
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आपी अभी भी बिल्कुल सीधी ही लेटी हुई थीं और आँखें बंद किए अपनी गर्दन को लेफ्ट-राईट झटक रही थीं। उनके चेहरे पर कभी फरहान की किसी जंगली हरकत पर तक़लीफ़ और कराह के आसार पैदा होते थे तो कभी मेरी ज़ुबान उनके बदन में मज़े की नई लहर पैदा कर देती थी।

मैंने आपी के बालों वाले हिस्से को अच्छी तरह चाटने के बाद अपने दोनों हाथ आपी की रानों के नीचे रखे और उनकी टाँगों को थोड़ा सा उठा कर टाँगें खोल दीं। अब मैंने अपना मुँह आपी की चूत के बिल्कुल करीब ला कर एक इंच की दूरी पर चंद लम्हें रुका और आपी की चूत को गौर से देखने लगा।

आपी की चूत पूरी गीली हो रही थी और उनकी चूत का रस चमक रहा था। आपी की चूत के दोनों खूबसूरत गुलाबी होंठों में छुपे दो गुलाब की पंखुड़ियाँ जैसे पर्दे फड़कते हुए से महसूस हो रहे थे और गोश्त का वो लटका हुआ सा हिस्सा जिस में चूत का दाना छुपा होता है, कांप रहा था।

आपी ने मेरी गर्म-गर्म तेज साँसों को अपनी चूत पर महसूस कर लिया था और उन्होंने फरहान के सिर से दोनों हाथ हटाए और अपने बिस्तर पर रखते हुए कोहनियों पर ज़ोर देकर अपना सिर और कंधों तक उठा लिया और नशीली आँखों से मुझे देखने लगीं। मैंने एक नज़र आपी को देखा और फिर अपनी आँखें बंद करते हुए नाक के जरिए एक तेज सांस को अपने अन्दर खींचा।

आपी की चूत से उठती मधुर महक मेरे नाक से होते हुए मेरे दिल और दिमाग पर सीधी असर अंदाज़ हुई और मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मैंने ड्रग्स की भारी डोज अपने अन्दर उतारी हो। मुझ पर हक़ीक़तन नशा सा हावी हो गया था और मेरे दिलोदिमाग में सिर्फ़ लज़्ज़त ही लज़्ज़त भर गई थी। मेरा जेहन सिर्फ़ उस महक को महसूस कर रहा था और मेरी तमाम सोचें और अहसासात सिर्फ़ अपनी बहन की चूत पर ही मरकज हो गई थीं।

मैंने सिहरजदा से अंदाज़ में अपनी आँखों खोला तो पहली नज़र आपी के चेहरे पर ही पड़ी। आपी की चेहरे पर बहुत बेताबी ज़ाहिर हो रही थी। वो समझ गई थीं कि मेरा अगला अमल क्या होगा।

आपी ने मेरी आँखों में देखते हुए ही गर्दन को थोड़ा आगे की तरफ झटका दिया। जैसे कह रही हों कि आगे बढ़ ना, रुक क्यों गया। मैंने आपी के इशारे पर कोई रद-ए-अमल नहीं ज़ाहिर किया और उनकी आँखों में आँखें डाले हुए ही नाक के जरिए एक और सांस ली और अपने टूटते नशे को सहारा दिया।

आपी ने एक बार फिर मुझे आगे बढ़ने का इशारा किया और कहा- “सगीर प्लीज़ अब और ना तड़फाओ, चूसो ना प्लीज़”

लेकिन मुझे गुमसुम देख कर उनकी बर्दाश्त जवाब दे गई और आपी ने अपने कूल्हों को ऊपर की तरफ झटका मारते हुए अपनी चूत को मेरे मुँह से लगा दिया।

आपी की चूत मेरे मुँह से लगी तो जो नशा मुझे चूत की महक से हुआ था अचानक ही वो खत्म हो गया।

मैं अपना मुँह जितना ज्यादा खोल सकता था मैंने खोला और अपनी बहन की पूरी चूत को अपने मुँह में भर कर अपनी पूरी ताक़त से जंगलियों की तरह चूसने लगा।

दो मिनट इसी अंदाज़ में चूसते रहने के बाद मैंने अपने मुँह की गिरफ्त हल्की की और आपी की चूत के ऊपरी हिस्से में छुपे क्लिट को होंठों में दबाया और चूसने लगा। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरे मुँह में नमक घुल गया हो।

आपी की चूत से निकलते लिसलिसे पानी ने मेरा मुँह अन्दर और बाहर से लिसलिसा कर दिया था।

मेरे होंठ आपी की चूत के रस की वजह से बहुत चिकने हो रहे थे और पूरी चूत पर फिसल-फिसल जा रहे थे। मैंने कुछ देर आपी की चूत के दाने को चूसा और फिर चूत के दोनों पर्दों को बारी-बारी चूसने लगा।

मेरे मुँह ने आपी की चूत को छुआ तो आपी ने- “आअहह सगीर.. उउउफ्फ़.. मेरे.. भाईईई ईईईईई” कह कर अपना सिर और कंधे एक झटके से वापस बिस्तर पर गिरा दिए।

कभी आपी झटकों-झटकों से अपनी चूत को मेरे मुँह पर दबाने लगतीं तो कभी कूल्हे बिस्तर पर सुकून से टिका कर तेज-तेज साँसों के साथ सिसकारियाँ भरने लगतीं।

आपी ने एक और झटका मारने के बाद अपने कूल्हे बिस्तर पर टिकाए तो मैंने अपनी ऊँगलियों की मदद से आपी की चूत के दोनों लब खोले और अपनी ज़ुबान की नोक चूत के बिल्कुल निचले हिस्से, जो एंट्रेन्स होती है, पर रख कर एक बार नीचे से ऊपर पूरी चूत को अन्दर से चाटा और वापस नोक एंट्रेन्स पर रख कर ज़ुबान अन्दर-बाहर करने लगा।

जैसे ही मेरी ज़ुबान आपी की चूत के अंदरूनी हिस्से पर टच हुई आपी ने अपने कूल्हे ऊपर उठा दिए और उनका जिस्म एकदम अकड़ गया और चंद लम्हों बाद ही उनके जिस्म ने 3-4 शदीद झटके खाए और मुझ साफ महसूस हुआ कि जैसे आपी की चूत मेरी ज़ुबान को भींच रही हो।

मैंने ज़ुबान अन्दर-बाहर करना जारी रखी और जब आपी की चूत ने मेरी ज़ुबान को भींचना बंद कर दिया और आपी बेसुध सी लेट गईं तो मैंने अपना मुँह थोड़ा सा पीछे किया और चूत को मज़ीद खोलते हुए अन्दर देखा। आपी की चूत में गाढ़ा-गाढ़ा सफ़ेद पानी जमा हो गया था। मैं कुछ देर नज़र भर के देखता रहा और फिर दोबारा अपनी ज़ुबान की नोक को अन्दर डाला और आपी के चूतरस को अपनी ज़ुबान पर समेट कर मुँह में डालता गया।

अपनी बहन का सारा लव जूस अपने मुँह में भरने के बाद मैं उठा और बिस्तर पर निढाल और बेसुध पड़ी आपी के साथ ही लेट कर उनके चेहरे को दोनों हाथों में थाम कर अपनी तरफ घूमते हो फंसी-फंसी आवाज़ में कहा- “ओह्ह नोनन्न आपीईई.. आँखें खोलो ये देखो”

आपी ने आँखें खोलीं तो मैंने अपना मुँह खोल कर आपी को दिखाया। मेरे मुँह में अपनी चूत के पानी को देख कर आपी ने बुरा सा मुँह बनाया और कहा- “हट गंदे”

आपी यह कह कर मुँह दूसरी तरफ करने ही लगीं थीं कि मैंने मज़बूती से उनके गालों को दबा कर पकड़ा जिससे आपी का मुँह खुल गया और मैंने अपना मुँह आपी के मुँह पर रखते हुए उनकी चूत का रस उन्हीं के मुँह में उड़ेल दिया।

आपी ने अपना मुँह छुड़ाने की कोशिश की लेकिन मैंने उसी तरह उनके गाल दबाए-दबाए ही आपी के होंठ चूसना शुरू कर दिए।

कुछ देर तक वो मुँह हटाने की कोशिश करती रहीं और फिर अपने आपको ढीला छोड़ते हुए मेरी किस के जवाब में मेरे होंठों को चूसने लगीं।

आपी का जूस हम दोनों के होंठों और गालों पर फैल गया था और अब उन्हें भी उसकी परवाह नहीं थी कुछ ही देर में आपी मेरे होंठों को चूसते हुए अपनी ही चूत के जूस को भी ज़ुबान से चाटने लगीं थीं और शायद उन्हें भी उसका ज़ायक़ा अच्छा ही लग रहा था।

फरहान, हम दोनों से लापरवाह बस आपी के जिस्म में ही खोया हुआ था। कभी आपी के उभारों से खेलता तो कभी उनके पेट और नफ़ पर ज़ुबान फेरने लगता। जब फरहान ने आपी की चूत को खाली देखा तो वो अपनी जगह से उठा और आपी की टाँगों के दरमियान बैठते हुए उनकी चूत को चाटने-चूसने लगा।

मैं और आपी कुछ देर ऐसे ही चूमाचाटी करते रहे और मैंने अपने होंठ आपी से अलग किए तो उनका चेहरा देख कर बेसाख्ता ही हँसी छूट गई और मैंने कहा- “क्यों बहना जी, मज़ा आया अपना ही जूस चख के?”

आपी ने भी मुस्कुरा के मुझे देखा और कहा- “तुम खुद तो गंदे हो ही, अपने साथ-साथ मुझे भी गंदा बना दोगे”

फिर एक गहरी सांस लेकर फरहान को देखा और कहा- “तुझसे ज़रा सबर नहीं हुआ? मुझे सांस तो लेने दो, तुम लोग तो जान ही निकाल दोगे मेरी”

फरहान ने आपी की बात पर कोई तवज्जो नहीं दी और अपने काम में मग्न रहा।
आपी ने अपने होंठों पर ज़ुबान फेर के एक बार फिर अपने रस को चाटा और मुस्कुरा कर मुझे आँख मारते हुए शरारत से बोलीं- “यार इतना बुरा भी नहीं है इसका ज़ायका”

“अच्छा जी, तो मेरी बहना को भी अच्छा लगा है चूत का पानी और पहले तो बड़ा ‘गंदे.. गंदे..’ कर रही थीं” -मैंने आपी को टांग खींचते हुए कहा।

आपी ने फ़ौरन ही जवाब दिया- “गंदे तो हो ही ना तुम, मैं ये नहीं कह रही कि ये बहुत अच्छा काम है”

मैंने आपी की बात का कोई जवाब नहीं दिया और उनको कहा- “अच्छा आपी खड़ी हो जाओ”

आपी ने सवालिया नजरों से मुझे देखा तो मैंने फरहान को हटाते हुए उन्हें ज़मीन पर सीधा खड़ा कर दिया।

आपी के खड़े होते ही फरहान फिर उनकी टाँगों के दरमियान बैठ गया और अपना मुँह आपी की चूत से लगाते हुए बोला- “आपी थोड़ी सी तो टाँगें खोलें ना प्लीज़”

आपी ने फरहान के सिर पर हाथ रखा और टाँगें थोड़ी खोलते हुए अपने घुटने भी थोड़े मोड़ से लिए। आपी अब फिर से गर्म होने लगी थीं। मैं आपी के पीछे आकर खड़ा हुआ और अपने एक हाथ से अपने खड़े लण्ड को ऊपर उनकी नफ़ की तरफ उठाता हुआ आपी के कूल्हों की दरार पर टिकाया और उनके पीछे से चिपकते हुए मैंने दोनों हाथ आपी के आगे ले जाकर उनके उभारों पर रख दिए।
आपी ने मेरे लण्ड को अपने कूल्हों की दरार में महसूस करते ही कहा- “आअहह... सगीर”

और उन्होंने अपने हाथ मेरे हाथों पर रखे और सिर को पीछे झुका कर मेरे कंधे से टिका दिया और अपनी गाण्ड पीछे की तरफ दबा दी।

मैं अपना लण्ड आपी के कूल्हों की दरार में रगड़ने के साथ-साथ ही उनकी गर्दन को भी चूमता और चाटता जा रहा था, अपने हाथों से कभी आपी के सीने के उभार दबाने लगता कभी उनके निप्पलों को चुटकियों में दबा कर मसलता।

फरहान आपी की चूत को ऐसे चाट रहा था जैसे कल कभी नहीं आएगा। फरहान का जोश में आना फितरती ही था क्योंकि वो अपनी ज़िंदगी में पहली बार किसी चूत को चाट और चूस रहा था और चूत भी तो दुनिया की हसीन-तरीन लड़की की थी।

TO BE CONTINUED .....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

Love You All  Heart Heart
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#77
(04-03-2024, 01:51 PM)KHANSAGEER Wrote:
मैंने मिन्नतें करते हुए कहा- “प्लीज़ आपी! मेरी प्यारी बहन हो या नहीं?”

“बहन क्या इसी काम के लिए है?” -आपी ने कहा और दबी सी मुस्कुराहट चेहरे पर आ गई।

मैंने कहा- “चलो ना यार”

“अगर उसी वक़्त हनी बाहर आ गई तो…ओ..?” -आपी ने कहा और गर्दन घुमा के बाथरूम के दरवाज़े को देखने लगीं।

मैंने कहा- “आपी! शावर की आवाज़ अभी भी आ रही है, वो नहीं आएगी। फिर भी आप अपने इत्मीनान के लिए उससे पूछ लो ना कि कितनी देर में निकलेगी”

आपी बाथरूम के नज़दीक हुईं और ज़रा तेज आवाज़ में बोलीं- “हनी और कितनी देर है? मैं यूनिवर्सिटी के लिए लेट हो रही हूँ”

हनी ने अन्दर से आवाज़ लगाई- “बस आपी 5 मिनट और, मैं निकलती हूँ बस… थोड़ी देर”

मैंने मुस्कुरा कर आपी को देखा और उनके क़रीब होते हुए कहा- “चलो ना आपी! प्लीज़… 5 मिनट बहुत हैं हमारे लिए”

आपी ने ज़रा डरे हुए अंदाज़ में बाथरूम को देखा और फिर कमरे के दरवाज़े की तरफ गईं। दरवाज़ा खोल कर बाहर अम्मी-अब्बू के कमरे पर एक नज़र डाली और फिर दरवाज़ा बंद करके मेरी तरफ घूम गईं और दरवाज़े पर अपनी कमर लगा कर वहाँ ही खड़ी हो गईं।

आपी ने क़मीज़ का दामन पकड़ा- “लो… खबीस... देखो और जाओ यहाँ से”
और मुझसे यह कहते हुए क़मीज़ गर्दन तक उठा दी।[Image: 60717981_078_750d.jpg]

मैं आपी के क़रीब पहले ही आ चुका था। मैंने अपनी बहन के हसीन उभारों को देखा और अपने दोनों हाथों में आपी के उभार पकड़ कर दबाए और निप्पल को सहलाने के फ़ौरन बाद ही अचानक से आगे बढ़ कर आपी का खूबसूरत गुलाबी निप्पल अपने मुँह में ले लिया।

मेरी ज़ुबान ने आपी के निप्पल को छुआ तो आपी ने एक ‘आअहह..’[Image: 62979448_005_e333.jpg] भरी और सरगोशी से बोलीं- “ये क्या कर रहे हो? कहते कुछ हो और करते कुछ हो, देखने का कहा था और अब चूसना भी शुरू कर दिया। हटो पीछे, हनी बाहर आने ही वाली है”[Image: 56005312_010_776c.jpg]

मैंने आपी के दोनों उभारों को हाथों में दबोचा हुआ था और आपी का एक निप्पल मेरे मुँह में था। मैंने कुछ देर बारी-बारी आपी के दोनों निप्पलों को चूसा और फिर अपना मुँह हटा कर एक भरपूर नज़र से आपी के उभारों को देखा। मेरे दबोचने से ऐसा लग रहा था जैसे आपी के जिस्म का सारा खून उनके सीने के उभारों में जमा हो गया है। शफ़फ़ गुलाबी मम्मों पर मेरी ऊँगलियों के निशान बहुत वज़या हो गए थे।

मैंने हाथ उनके मम्मों पर ही रखे-रखे एक बार फिर आपी को किस किया और उनके जिस्म से अलग होते हुए कहा- “थैंक्स मेरी सोहनी सी बहना जी! आई रियली लव यू”

फिर मैंने आपी को आँख मारी और शैतानी से मुस्कुराते हुए कहा- “अब ये मेरा रोज़ सुबह-सुबह का नाश्ता हुआ करेगा। आप तैयार रहा करना,ठीक है ना”

आपी सिर झुका कर अपनी क़मीज़ को सही कर रही थीं और अपने राईट सीने के उभार को अपने हाथ से ऊपर उठा रखा था क़मीज़ सही करने के लिए। फिर उन्होंने अपने सिर उठा कर मेरी तरफ देखा और कहा- “बकवास मत करो, अब दोबारा ऐसा सोचना भी नहीं, मैं खामखाँ का रिस्क नहीं लूँगी समझे??”[Image: 60717981_092_01ee.jpg]

मैंने आपी की बात को अनसुनी करते हुए मासूम बनते हुए कहा- “चलें छोड़ें, बाद में देखेंगे, फिलहाल अगर आपकी कोई ख्वाहिश है? मेरे जिस्म की कोई चीज़ देखनी है? या कुछ हाथ मैं पकड़ना है? या कुछ चूसना है? तो बता दें, मैं आपकी खिदमत के लिए तैयार हूँ”

आपी बेसाख्ता हँसने लगीं और बोलीं- “मैं समझ रही हूँ तुम किस चीज़ के लिए फटते जा रहे हो लेकिन मेरी ऐसी कोई ख्वाहिश नहीं है। जनाब का बहुत-बहुत शुक्रिया”

आपी की बात सुन कर मैं भी हँस दिया और बाहर जाने के लिए दो क़दम चला ही था कि बाथरूम का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई। मैंने गर्दन घुमा कर देखा तो हनी अपने जिस्म पर सीने से लेकर घुटनों तक तौलिया लपेटे हुए बाहर निकलती नज़र आई। हनी को इस हाल में देख कर मेरे लण्ड ने फ़ौरन सलामी के तौर पर एक झटका खाया और मेरी नज़रें हनी की जवानी पर घूम गईं।

हनी 2-3 क़दम बाहर आई ही थी कि मुझ पर नज़र पड़ते ही उछल पड़ी और बोली- “उफ्फ़ भाईई! आप यहाँन्न…[Image: 91955462_002_9b07.jpg]

और फिर तकरीबन भागते हुए वापस बाथरूम में घुस गई। मैं और आपी दोनों ही इस सिचुयेशन पर कन्फ्यूज़ हो गए थे और मैं बेसाख्ता ही बोला- “सॉरी गुड़िया, वो हमारे बाथरूम में फरहान घुसा बैठा है और बाहर वाले बाथरूम में अब्बू हैं तो मैं यहाँ आ गया कि शायद खाली हो”

हनी ने बदस्तूर गुस्सैल आवाज़ में कहा- “लेकिन भाई आप कम से कम मुझे बता तो देते ना कि आप कमरे में अन्दर हैं”

“अच्छा मेरी माँ गलती हो गई मुझसे, अब जा रहा हूँ बाहर”

मैंने यह कहा और आपी की तरफ देख कर अपना लेफ्ट हाथ अपने सीने पर ऐसे रखा जैसे मैंने अपना सीने का उभार पकड़ रखा हो और आपी को आँख मारते हुए अपने दायें हाथ की इंडेक्स फिंगर और अंगूठे को मिला कर सर्कल बनाया और बाथरूम की तरफ आँख से इशारा करते हुए हाथ ऐसे हिलाया जैसे मैं आपी को जता रहा होऊँ कि हनी के सीने के उभार देखे आपने? कितने मस्त हो गए हैं। आपी ने मुस्कुरा कर गर्दन ऐसे हिलाई जैसे मेरी बात समझ गई हों और फिर मुझे बाहर जाने का इशारा कर दिया।

“हनी बाहर आ जाओ, सगीर चला गया है” -ये आखिरी जुमला था जो मैंने आपी के कमरे से बाहर निकल कर सुना और दरवाज़ा बंद करके बाथरूम जाते हुए हनी के बारे में ही सोचने लगा।[Image: 91955462_004_6987.jpg]

हनी अब वाकयी ही छोटी नहीं रही है। जब वो तौलिया में लिपटे हुए बाहर निकली थी तो उसके गीले बाल और भीगा-भीगा जिस्म बहुत ही ज्यादा सेक्सी लग रहा था। मैंने आपी को आँख मारते हुए बाथरूम की तरफ आँख से इशारा करते हुए हाथ ऐसे हिलाया जैसे मैं आपी को बता रहा होऊँ कि हनी के सीने के उभार कितने मस्त हो गए हैं।

हनी जब तौलिये में लिपटी बाहर निकली थी तो उसके गीले बाल और भीगा ज़िस्म बहुत सेक्सी लग रहा था। तौलिये में हनी के सीने के उभार काफ़ी बड़े दिख रहे थे और जब वो वापस जाने के लिए मुड़ी थी तो उसके चूतड़ों की शेप भी वज़या हो रही थी और वो 3-4 क़दम ही भागी थी लेकिन मैंने हनी के कूल्हों का मटकना पहली बार गौर से देखा था जो बहुत दिलकश मंज़र था।

हनी के नंगे बाज़ू और नंगी पिण्डलियाँ बालों से बिल्कुल साफ और आपी की ही तरह शफ़फ़ थीं, बस ये था कि उसका रंग थोड़ा दबता हुआ था या फिर ये कहना ज्यादा मुनासिब है कि आपी के मुक़ाबले में वो साँवली नज़र आती थी।

हनी का क़द तकरीबन 4 फीट 10 इंच था और उसका जिस्म भारी-भरकम नहीं था बल्कि वो दुबली-पतली सी थी लेकिन सीने के उभार आपी से थोड़े छोटे और साइज़ में 32सी के थे, कूल्हे ना ही बहुत ज्यादा बड़े थे और ना ही बहुत छोटे, बस मुनासिब थे।

उसकी चाल कुदरती तौर पर ही ऐसी थी कि वो चलती थी तो उसकी टांग दूसरी टांग को क्रॉस करते हुए पाँव ज़मीन पर पड़ता था बिल्कुल बिल्ली की तरह और खुद बा खुद ही उसके छोटे क्यूट से कूल्हे मटक से जाते थे। मैंने अपनी इन्हीं सोचों के साथ गुसल किया और नाश्ते की टेबल पर ही लैपटॉप अब्बू के हवाले करके कॉलेज के लिए निकल गया।

TO BE CONTINUED ....
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#78
(04-03-2024, 01:56 PM)KHANSAGEER 123Angely Grace Wrote:
दो दिन तक आपी की प्रेज़ेंटेशन चलती रही जिसकी वजह से वो हमारे कमरे में नहीं आ सकीं और हमने आपस में भी कुछ नहीं किया।

तीसरे दिन कॉलेज से वापस आकर मैंने कुछ देर आराम किया और फिर शाम को चाय के वक़्त आपी ने भी सेक्स की हिद्दत से बोझिल आँखें लिए बता दिया कि वो आज रात को हमारे पास आएँगी। दो रातें और 2 दिन गुज़र चुके थे कि आपी हमारे रूम में नहीं आई थीं। फरहान और मैं बहुत शिद्दत से कमरे में बैठे आपी का इन्तजार कर रहे थे।[Image: 47332562_027_ed17.jpg]

हम दोनों ने अपने कपड़े पहले से ही उतार रखे थे। जब आपी कमरे में दाखिल हुईं तो हमारे खड़े लण्ड पर नज़र पड़ते ही उनकी आँखों में भी चमक पैदा हो गई। आख़िर वो थीं तो हमारी ही बहन और अब उन्हें भी इस खेल की आदत हो गई थी।

आपी ने दरवाज़ा बंद करके बहुत बेताबी से अपनी क़मीज़ उतार कर फैंकी और ब्रा को खोल कर सोफे की तरफ उछाल
[Image: 82113629_030_b9ff.jpg]
[Image: 43411750_014_6072.jpg]


[Image: 24489279_002_e204.jpg]

दिया।[Image: 82113629_051_efac.jpg]

मैंने आपी को क़मीज़ उतारते देखा तो बिस्तर से उठ कर भागता हुआ आपी की तरफ गया और अपने बाज़ू उनकी कमर के गिर्द मज़बूती से कसते हुए आपी की गर्दन पर होंठ रख दिए। आपी भी 2 दिन से जिस्म की आग को दबाए बैठी थीं, जैसे ही उनके सीने के उभार और निप्पल मेरे बालों भरे सीने से दबे तो उनकी आँखें खुद ही बंद हो गईं और आपी के मुँह से एक सिसकारी निकली और उन्होंने बेसाख्ता ही अपने बाज़ू मेरे जिस्म के गिर्द कस कर मुझे भींचना शुरू कर दिया और कभी मेरी कमर को अपने हाथों से सहलाने लगीं।

कुछ देर मैं और आपी ऐसे ही खड़े अपने-अपने जिस्मों को महसूस करते रहे फिर मैंने अपने होंठ आपी की गर्दन से हटाए और आपी के होंठों को चाटते और चूमते हुए उन्हें तकरीबन घसीटता हुआ बिस्तर की तरफ चल दिया।

फरहान मुझे और आपी को इस हाल में देख कर एकदम बेखुद सा बिस्तर पर ही बैठा था। मैंने उससे 2 दिन पहले आपी के साथ हो सेक्स के बारे में कुछ नहीं बताया था।

आपी को लिए हुए ही मैं बिस्तर पर लेट गया। आपी के अंदाज़ में आज बहुत गरमजोशी थी। वो बहुत वाइल्ड अंदाज़ में मेरी कमर को सहला रही थीं और अपने सीने के उभारों को मेरे सीने पर रगड़ रही थीं।

आपी कभी मेरे होंठों को बहुत बेताबी से चूसने लगतीं तो कभी दाँतों में दबा कर खींच लेतीं। कुछ देर ऐसे ही एक-दूसरे के होंठ और ज़ुबान चूसने और चाटने के बाद मैं थोड़ा नीचे हुआ और आपी की गर्दन को चाटने और छूने लगा।

आपी सीधे लेटी हुई थीं और उनके हाथ मेरी कमर पर थे। मैं आपी के दिल की तेज-तेज धड़कन को साफ सुन और महसूस कर रहा था।

आपी की गर्दन से होता हुआ मैं नीचे उनके सीने के उभार तक पहुँचा और बारी-बारी दोनों निप्पलों को चाटने और चूसने लगा। आपी के उभार को मुँह में लिए लिए ही मैंने अपना हाथ नीचे किया और आपी की सलवार को नीचे उनके पाँव की तरफ सरकाना शुरू कर दिया। यह भी अच्छा था कि आपी की इस सलवार में अजारबंद के बजाए इलास्टिक थी जिसकी वजह से सलवार आसानी से नीचे सरक रही थी।

जब आपी को महसूस हुआ कि मैं उनकी सलवार उतार रहा हूँ तो उन्होंने अपने एक हाथ से फ़ौरन मेरे उस हाथ को पकड़ लिया जो उनकी सलवार पर था और आँखें बंद किए हुए ही बोलीं- “नहीं सगीर प्लीज़ सलवार मत उतारो, ऊपर-ऊपर से ही कर लो, जो भी करना है”

मैंने अपना हाथ आपी की सलवार से हटा दिया और फरहान को देखा जो आपी की दायीं तरफ़ ही बैठा था। फरहान से नज़र मिलने पर उससे इशारा किया कि आपी के एक उभार को मुँह में ले ले।

फरहान तो बस तैयार ही बैठा था। उसने मेरा इशारा समझा और एकदम से आपी के दायें निप्पल पर टूट पड़ा, उसने निप्पल मुँह में लिया और जंगलियों की तरह चूसना और हाथ से दबाना शुरू कर दिया।

आपी ने एक लम्हे को आँख खोली तो अपने दोनों सगे भाईयों के मुँह में अपना एक-एक उभार देख कर वो मचल सी गईं और अपने दोनों हाथ हम दोनों के सिर पर रख कर दबाने लगीं। उनकी साँसें बहुत तेज हो गई थीं और वो मदहोश होने लगीं थीं।[Image: 67768240_018_e897.jpg]

मैंने दोबारा अपने हाथ को नीचे करके आपी की सलवार को थामा और दूसरे हाथ से आपी की कमर को थोड़ा सा ऊपर उठाते हुए एक झटके से उनकी सलवार को कूल्हों के नीचे से निकाल दिया। आपी ने कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था कि मैंने अपने होंठ उनके होंठों से चिपका के उनका मुँह बंद कर दिया और दूसरे हाथ से आपी की सलवार को घुटनों से नीचे तक पहुँचा दिया।

फरहान कभी आपी के उभार को चाटने लगता तो कभी उनके निप्पल को चूसने लगता। उसके अंदाज़ में बहुत जंगलीपन था और होना भी था क्योंकि ज़िंदगी में पहली बार वो दुनिया की हसीन-तरीन चीज़ को चूस रहा था।

मेरे मुँह हटाते ही फरहान ने आपी के दूसरे उभार को भी हाथ में पकड़ लिया था और झंझोड़ने लगा था। मैंने आपी के दोनों होंठों को अपने होंठों से खोलते हुए सांस तेजी से अन्दर को खींची तो आपी मेरा इशारा समझ गईं और फ़ौरन अपनी ज़ुबान मेरे मुँह में दाखिल कर दी।[Image: 54150743_002_fa02.jpg]

मैंने आपी की ज़ुबान को अपने दाँतों में पकड़ा और चूसने लगा। आपी को ज़ुबान चुसवाने में बहुत मज़ा आता था और मैंने आपी के इसी मज़े का फ़ायदा उठाते हुए आपी की टाँगों के दरमियान अपना हाथ रख दिया।

मेरा हाथ जैसे ही आपी की चूत के दाने को टच हुआ तो वो मचल गईं लेकिन उनकी ज़ुबान को मैंने अपने दाँतों में दबा रखा था इसलिए ना ही कुछ बोल सकीं और ना ही ज्यादा हिल सकीं।

मैंने कुछ देर तेजी से अपनी ऊँगलियों को आपी की चूत के दाने पर मसला तो उनकी हालत माही-बेआब बिन पानी की मछली की तरह हो गई और आपी ने तेजी से अपने पाँव की मदद से अपनी सलवार को पाँव तक पहुँचाया और घुटनों को मोड़ते हुए अपनी टाँगों को थोड़ा खोल लिया।

आपी की चूत बहुत गीली हो गई थी और मेरी उंगलियाँ खुद ब खुद उनकी चूत के दाने से स्लिप होकर नीचे चूत के दरवाजे पर टच होने लगती थीं। मैंने आपी की टाँगों को खुलता महसूस कर लिया था और उनकी चूत से बहते पानी ने भी मुझे यह समझा दिया था कि अब आपी का दिमाग उनकी चूत के कंट्रोल में आ गया है इसलिए मैंने उनकी ज़ुबान को अपने दाँतों से निकाल दिया।

आपी ने अपनी ज़ुबान को आज़ाद महसूस करके आँखें खोल दीं। उनकी आँखें भी बहुत लाल हो रही थीं और नशे की सी हालत में थीं। मैंने आपी को अपनी तरफ देखता पाकर आपी की चूत पर रखा अपना हाथ हटाया और आपी को दिखाते हुए अपनी एक-एक उंगली को चूसने लगा।

आपी ने मेरी इस हरकत पर आँखें फाड़ कर मुझे देखा तो मैंने मुस्कुराते हुए मज़े से डूबी आवाज़ में कहा- “यम्मम्मी… मेरी सोहनी बहन की चूत से निकले लव-जूस का ज़ायक़ा दुनिया के बेहतरीन मशरूब से ज्यादा लज़ीज़ है”

मेरी बात सुन कर आपी का चेहरा शदीद शर्म से लाल हो गया और उन्होंने मुस्कुरा कर अपनी आँखें बंद करते हुए चेहरा दूसरी तरफ कर लिया। मैं भी मुस्कुरा दिया और नीचे सरकते हुए अपनी ज़ुबान आपी की नफ़ में दाखिल कर दी।[Image: 67768240_024_2758.jpg]

फरहान ने भी उसी वक़्त आपी के निप्पल को दाँतों में दबा कर ज़ोर से काटा और ऊपर को खींचने लगा। फरहान के काटने की वजह से और मेरी ज़ुबान को अपनी नफ़ के अन्दर महसूस करते हुए आपी ने एक ज़ोरदार ‘आआआअहह..’ भरी। उस ‘आहह..’ में ‘मज़े की शिद्दत’ और ‘तक़लीफ़ का अहसास’ दोनों ही बहुत नुमाया हो रहे थे।

मैंने आपी की चूत में उंगली करते हुए अपनी उंगलियाँ चाटी तो मेरी बहना शर्मा गई। मेरा छोटा भाई आपी की चूचियाँ चूस रहा था और आपी सिसकार रही थी।
आपी की चीख भरी ‘आहह..’ सुन कर मैंने ऊपर देखा तो फरहान ने आपी के निप्पल को दाँतों में दबाया हुआ था और काफ़ी ताक़त से अपना सिर ऊपर खींच रहा था। आपी ने फ़ौरन अपने दोनों हाथ फरहान के सिर की पुश्त पर रखे और सिर को वापस नीचे अपने उभार पर दबा दिया।

मैंने दोबारा अपनी नज़र नीचे की और आपी की पूरी नफ़ के अन्दर अपने ज़ुबान फेरने लगा। आपी का पूरा पेट अपनी ज़ुबान से चाटने के बाद मैं उनकी रानों पर आया और पूरी रान के अंदरूनी और बाहरी हिस्से को अपनी ज़ुबान से चाटा।[Image: 67768240_033_8ad6.jpg]

मैं अपनी ज़ुबान से चाटता हुआ रान से घुटने और फिर पिण्डलियों से हो कर पाँव तक पहुँचा और आपी की सलवार को उनके जिस्म से अलग करके पीछे फेंक दिया और फिर पूरे पाँव को ऊपर से चाटने के बाद तलवे को चाटा और पाँव की एक-एक ऊँगली को बारी-बारी से चूसने लगा।

इसके बाद मैंने आपी की दूसरी टांग को पकड़ा और उसी तरह 1-1 मिलीमीटर के हिस्से को चाटता हुआ वापस आपी की नफ़ तक आ गया। मैं उठ कर आपी की टाँगों के दरमियान बैठा और आपी की नफ़ के नीचे बालों वाले हिस्से को चूमने लगा और फिर अपनी ज़ुबान निकाल कर चाटना शुरू कर दिया।[Image: 67768240_041_ecb9.jpg]

मैं अपना सिर उठा कर एक नज़र फरहान और आपी को भी देख लेता था। फरहान अभी भी आपी के मम्मों को ऐसे झंझोड़ और चूस रहा था जैसे उसे आज के बाद कभी ये नसीब नहीं होंगे।

TO BE CONTINUED .....
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#79
(05-03-2024, 09:36 AM)KHANSAGEER Wrote:
आपी अभी भी बिल्कुल सीधी ही लेटी हुई थीं और आँखें बंद किए अपनी गर्दन को लेफ्ट-राईट झटक रही थीं। उनके चेहरे पर कभी फरहान की किसी जंगली हरकत पर तक़लीफ़ और कराह के आसार पैदा होते थे तो कभी मेरी ज़ुबान उनके बदन में मज़े की नई लहर पैदा कर देती थी।

मैंने आपी के बालों वाले हिस्से को अच्छी तरह चाटने के बाद अपने दोनों हाथ आपी की रानों के नीचे रखे और उनकी टाँगों को थोड़ा सा उठा कर टाँगें खोल दीं। अब मैंने अपना मुँह आपी की चूत के बिल्कुल करीब ला कर एक इंच की दूरी पर चंद लम्हें रुका और आपी की चूत को गौर से देखने लगा।[Image: 67768240_041_ecb9.jpg]

आपी की चूत पूरी गीली हो रही थी और उनकी चूत का रस चमक रहा था। आपी की चूत के दोनों खूबसूरत गुलाबी होंठों में छुपे दो गुलाब की पंखुड़ियाँ जैसे पर्दे फड़कते हुए से महसूस हो रहे थे और गोश्त का वो लटका हुआ सा हिस्सा जिस में चूत का दाना छुपा होता है, कांप रहा था।

आपी ने मेरी गर्म-गर्म तेज साँसों को अपनी चूत पर महसूस कर लिया था और उन्होंने फरहान के सिर से दोनों हाथ हटाए और अपने बिस्तर पर रखते हुए कोहनियों पर ज़ोर देकर अपना सिर और कंधों तक उठा लिया और नशीली आँखों से मुझे देखने लगीं। मैंने एक नज़र आपी को देखा और फिर अपनी आँखें बंद करते हुए नाक के जरिए एक तेज सांस को अपने अन्दर खींचा[Image: 67280431_005_260b.jpg]

आपी की चूत से उठती मधुर महक मेरे नाक से होते हुए मेरे दिल और दिमाग पर सीधी असर अंदाज़ हुई और मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मैंने ड्रग्स की भारी डोज अपने अन्दर उतारी हो। मुझ पर हक़ीक़तन नशा सा हावी हो गया था और मेरे दिलोदिमाग में सिर्फ़ लज़्ज़त ही लज़्ज़त भर गई थी। मेरा जेहन सिर्फ़ उस महक को महसूस कर रहा था और मेरी तमाम सोचें और अहसासात सिर्फ़ अपनी बहन की चूत पर ही मरकज हो गई थीं।
[Image: 59799224_033_4071.jpg]
मैंने सिहरजदा से अंदाज़ में अपनी आँखों खोला तो पहली नज़र आपी के चेहरे पर ही पड़ी। आपी की चेहरे पर बहुत बेताबी ज़ाहिर हो रही थी। वो समझ गई थीं कि मेरा अगला अमल क्या होगा।

आपी ने मेरी आँखों में देखते हुए ही गर्दन को थोड़ा आगे की तरफ झटका दिया। जैसे कह रही हों कि आगे बढ़ ना, रुक क्यों गया। मैंने आपी के इशारे पर कोई रद-ए-अमल नहीं ज़ाहिर किया और उनकी आँखों में आँखें डाले हुए ही नाक के जरिए एक और सांस ली और अपने टूटते नशे को सहारा दिया।

आपी ने एक बार फिर मुझे आगे बढ़ने का इशारा किया और कहा- “सगीर प्लीज़ अब और ना तड़फाओ, चूसो ना प्लीज़”

लेकिन मुझे गुमसुम देख कर उनकी बर्दाश्त जवाब दे गई और आपी ने अपने कूल्हों को ऊपर की तरफ झटका मारते हुए अपनी चूत को मेरे मुँह से लगा दिया।

आपी की चूत मेरे मुँह से लगी तो जो नशा मुझे चूत की महक से हुआ था अचानक ही वो खत्म हो गया।

मैं अपना मुँह जितना ज्यादा खोल सकता था मैंने खोला और अपनी बहन की पूरी चूत को अपने मुँह में भर कर अपनी पूरी ताक़त से जंगलियों की तरह चूसने लगा।

दो मिनट इसी अंदाज़ में चूसते रहने के बाद मैंने अपने मुँह की गिरफ्त हल्की की और आपी की चूत के ऊपरी हिस्से में छुपे क्लिट को होंठों में दबाया और चूसने लगा। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरे मुँह में नमक घुल गया हो।

आपी की चूत से निकलते लिसलिसे पानी ने मेरा मुँह अन्दर और बाहर से लिसलिसा कर दिया था।

मेरे होंठ आपी की चूत के रस की वजह से बहुत चिकने हो रहे थे और पूरी चूत पर फिसल-फिसल जा रहे थे। मैंने कुछ देर आपी की चूत के दाने को चूसा और फिर चूत के दोनों पर्दों को बारी-बारी चूसने लगा।

मेरे मुँह ने आपी की चूत को छुआ तो आपी ने- “आअहह सगीर.. उउउफ्फ़.. मेरे.. भाईईई ईईईईई” कह कर अपना सिर और कंधे एक झटके से वापस बिस्तर पर गिरा दिए।

कभी आपी झटकों-झटकों से अपनी चूत को मेरे मुँह पर दबाने लगतीं तो कभी कूल्हे बिस्तर पर सुकून से टिका कर तेज-तेज साँसों के साथ सिसकारियाँ भरने लगतीं।[Image: 51603104_103_5874.jpg]


आपी ने एक और झटका मारने के बाद अपने कूल्हे बिस्तर पर टिकाए तो मैंने अपनी ऊँगलियों की मदद से आपी की चूत के दोनों लब खोले और अपनी ज़ुबान की नोक चूत के बिल्कुल निचले हिस्से, जो एंट्रेन्स होती है, पर रख कर एक बार नीचे से ऊपर पूरी चूत को अन्दर से चाटा और वापस नोक एंट्रेन्स पर रख कर ज़ुबान अन्दर-बाहर करने लगा।
[Image: 15349795_033_bf11.jpg]
जैसे ही मेरी ज़ुबान आपी की चूत के अंदरूनी हिस्से पर टच हुई आपी ने अपने कूल्हे ऊपर उठा दिए और उनका जिस्म एकदम अकड़ गया और चंद लम्हों बाद ही उनके जिस्म ने 3-4 शदीद झटके खाए और मुझ साफ महसूस हुआ कि जैसे आपी की चूत मेरी ज़ुबान को भींच रही हो।

मैंने ज़ुबान अन्दर-बाहर करना जारी रखी और जब आपी की चूत ने मेरी ज़ुबान को भींचना बंद कर दिया और आपी बेसुध सी लेट गईं तो मैंने अपना मुँह थोड़ा सा पीछे किया और चूत को मज़ीद खोलते हुए अन्दर देखा। आपी की चूत में गाढ़ा-गाढ़ा सफ़ेद पानी जमा हो गया था। मैं कुछ देर नज़र भर के देखता रहा और फिर दोबारा अपनी ज़ुबान की नोक को अन्दर डाला और आपी के चूतरस को अपनी ज़ुबान पर समेट कर मुँह में डालता गया।

अपनी बहन का सारा लव जूस अपने मुँह में भरने के बाद मैं उठा और बिस्तर पर निढाल और बेसुध पड़ी आपी के साथ ही लेट कर उनके चेहरे को दोनों हाथों में थाम कर अपनी तरफ घूमते हो फंसी-फंसी आवाज़ में कहा- “ओह्ह नोनन्न आपीईई.. आँखें खोलो ये देखो”

आपी ने आँखें खोलीं तो मैंने अपना मुँह खोल कर आपी को दिखाया। मेरे मुँह में अपनी चूत के पानी को देख कर आपी ने बुरा सा मुँह बनाया और कहा- “हट गंदे”

आपी यह कह कर मुँह दूसरी तरफ करने ही लगीं थीं कि मैंने मज़बूती से उनके गालों को दबा कर पकड़ा जिससे आपी का मुँह खुल गया और मैंने अपना मुँह आपी के मुँह पर रखते हुए उनकी चूत का रस उन्हीं के मुँह में उड़ेल दिया।[Image: 21037663_004_1c9c.jpg]

आपी ने अपना मुँह छुड़ाने की कोशिश की लेकिन मैंने उसी तरह उनके गाल दबाए-दबाए ही आपी के होंठ चूसना शुरू कर दिए।

कुछ देर तक वो मुँह हटाने की कोशिश करती रहीं और फिर अपने आपको ढीला छोड़ते हुए मेरी किस के जवाब में मेरे होंठों को चूसने लगीं।

आपी का जूस हम दोनों के होंठों और गालों पर फैल गया था और अब उन्हें भी उसकी परवाह नहीं थी कुछ ही देर में आपी मेरे होंठों को चूसते हुए अपनी ही चूत के जूस को भी ज़ुबान से चाटने लगीं थीं और शायद उन्हें भी उसका ज़ायक़ा अच्छा ही लग रहा था।

फरहान, हम दोनों से लापरवाह बस आपी के जिस्म में ही खोया हुआ था। कभी आपी के उभारों से खेलता तो कभी उनके पेट और नफ़ पर ज़ुबान फेरने लगता। जब फरहान ने आपी की चूत को खाली देखा तो वो अपनी जगह से उठा और आपी की टाँगों के दरमियान बैठते हुए उनकी चूत को चाटने-चूसने लगा।

मैं और आपी कुछ देर ऐसे ही चूमाचाटी करते रहे और मैंने अपने होंठ आपी से अलग किए तो उनका चेहरा देख कर बेसाख्ता ही हँसी छूट गई और मैंने कहा- “क्यों बहना जी, मज़ा आया अपना ही जूस चख के?”

आपी ने भी मुस्कुरा के मुझे देखा और कहा- “तुम खुद तो गंदे हो ही, अपने साथ-साथ मुझे भी गंदा बना दोगे”

फिर एक गहरी सांस लेकर फरहान को देखा और कहा- “तुझसे ज़रा सबर नहीं हुआ? मुझे सांस तो लेने दो, तुम लोग तो जान ही निकाल दोगे मेरी”[Image: 20955376_020_765e.jpg]

फरहान ने आपी की बात पर कोई तवज्जो नहीं दी और अपने काम में मग्न रहा।
आपी ने अपने होंठों पर ज़ुबान फेर के एक बार फिर अपने रस को चाटा और मुस्कुरा कर मुझे आँख मारते हुए शरारत से बोलीं- “यार इतना बुरा भी नहीं है इसका ज़ायका”

“अच्छा जी, तो मेरी बहना को भी अच्छा लगा है चूत का पानी और पहले तो बड़ा ‘गंदे.. गंदे..’ कर रही थीं” -मैंने आपी को टांग खींचते हुए कहा।[Image: 76746373_033_7c72.jpg]

आपी ने फ़ौरन ही जवाब दिया- “गंदे तो हो ही ना तुम, मैं ये नहीं कह रही कि ये बहुत अच्छा काम है”

मैंने आपी की बात का कोई जवाब नहीं दिया और उनको कहा- “अच्छा आपी खड़ी हो जाओ”

आपी ने सवालिया नजरों से मुझे देखा तो मैंने फरहान को हटाते हुए उन्हें ज़मीन पर सीधा खड़ा कर दिया।


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आपी के खड़े होते ही फरहान फिर उनकी टाँगों के दरमियान बैठ गया और अपना मुँह आपी की चूत से लगाते हुए बोला- “आपी थोड़ी सी तो टाँगें खोलें ना प्लीज़”

आपी ने फरहान के सिर पर हाथ रखा और टाँगें थोड़ी खोलते हुए अपने घुटने भी थोड़े मोड़ से लिए। आपी अब फिर से गर्म होने लगी थीं। मैं आपी के पीछे आकर खड़ा हुआ और अपने एक हाथ से अपने खड़े लण्ड को ऊपर उनकी नफ़ की तरफ उठाता हुआ आपी के कूल्हों की दरार पर टिकाया और उनके पीछे से चिपकते हुए मैंने दोनों हाथ आपी के आगे ले जाकर उनके उभारों पर रख दिए।
आपी ने मेरे लण्ड को अपने कूल्हों की दरार में महसूस करते ही कहा- “आअहह... सगीर”

और उन्होंने अपने हाथ मेरे हाथों पर रखे और सिर को पीछे झुका कर मेरे कंधे से टिका दिया और अपनी गाण्ड पीछे की तरफ दबा दी।

मैं अपना लण्ड आपी के कूल्हों की दरार में रगड़ने के साथ-साथ ही उनकी गर्दन को भी चूमता और चाटता जा रहा था, अपने हाथों से कभी आपी के सीने के उभार दबाने लगता कभी उनके निप्पलों को चुटकियों में दबा कर मसलता।

फरहान आपी की चूत को ऐसे चाट रहा था जैसे कल कभी नहीं आएगा। फरहान का जोश में आना फितरती ही था क्योंकि वो अपनी ज़िंदगी में पहली बार किसी चूत को चाट और चूस रहा था और चूत भी तो दुनिया की हसीन-तरीन लड़की की थी।[Image: 25314942_007_bf42.jpg]

TO BE CONTINUED .....
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#80
Nice pics
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