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Adultery जिस्म की भूख
#41
Heart 
मेरी पाकीज़ा बहन ये सब देखते हुए मज़े से अपनी टाँगों के बीच वाली जगह को अपने ही हाथ से मसल रही है और अपने मम्मों को दबा-दबा कर बेहाल हुए जा रही है। आपी को हक़ीक़तन ही ये सब बहुत अच्छा लग रहा था और वो अपने मम्मों को अपने हाथ से मसलती थीं तो कभी उन्हें दबोच लेती थीं तो कभी अपने निप्पल्स को चुटकी में लेकर खींचने लगती थीं। फरहान और मेरी नजरें आपी पर ही थीं, आपी भी हमें ही देख रही थीं, कभी-कभी हमारी नजरें भी मिल जाती थीं।
कुछ देर बाद मैं फरहान की गाण्ड में ही डिसचार्ज हुआ और अब मैं नीचे और फरहान मेरे ऊपर आ गया और फरहान ने मुझे चोदना शुरू कर दिया और हम दोनों ने नजरें आपी पर जमाए रखीं। आपी अब बिल्कुल फ्री होकर अपने जिस्म को रगड़ रही थीं और मज़े में अपने मुँह से आवाजें भी निकाल रही थीं। फरहान के लण्ड का जूस निकालने तक आपी भी 2 बार डिसचार्ज हो चुकी थीं।

इस तरह नजारा ये रहा कि आपी रोज रात को आ जातीं, अब उनकी झिझक खत्म हो चुकी थी, वो बस कमरे में आकर अपनी जगह पर बैठ जातीं और अपनी टाँगों के दरमियान हाथ रख कर हमें हुकुम दे देतीं कि शुरू हो जाओ, हम एक-दूसरे को चोदते और आपी अपने हाथ से अपने आपको सुकून पहुँचा लेतीं।

जब आपी डिसचार्ज होने लगती थीं तो बहुत वाइल्ड हो जाती थीं और ज़ोर-ज़ोर से आवाजें निकालने लगती थीं। अक्सर ही हम डर जाते कि कहीं नीचे आवाज़ ना चली जाए लेकिन आपी की ये आवाजें हमें मज़ा भी बहुत देती थीं।

कुछ रातों तक ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहा लेकिन अब मैं बोर होने लगा था।
अगली रात जब आपी कमरे में आईं और अपनी जगह पर बैठते हुए अपनी टाँगों के दरमियान हाथ रखा और हमें शुरू करने का इशारा किया तो मैंने कुछ भी करने से मना कर दिया और कहा- "नहीं आपी.. अब मैं ये रोज़ के रूटीन से थक गया हूँ"

"क्या मतलब है तुम्हारा..?" -आपी ने कहा।

मैंने कहा- "कम ऑन आपी! रोज़-रोज़ एक ही चीज़..! अब हम कुछ अलग चाहते हैं"

आपी ने कुछ समझने और कुछ ना समझने वाले अंदाज़ में पूछा- "क्या कहना चाहते हो तुम?"

मैंने आपी को आँख मारते हुए शरारती अंदाज़ में जवाब दिया- "क्या ख़याल है अगर आप भी हमारे साथ शामिल हों तो?"

"इसके बारे में सिर्फ़ ख्वाब ही देखो तुम, ऐसा कभी नहीं हो सकता" -आपी ने चिल्ला कर कहा।

"ओके तो फिर हम भी कुछ नहीं करेंगे। ये दुनिया ‘कुछ लो और कुछ दो’ के उसूल पर ही कायम है.. फ्री में कुछ नहीं मिलता" -मैंने भी अकड़ते हो कहा।

"ठीक है, नहीं तो नहीं बस.." आपी ने ये कहा और जो चादर कुछ लम्हों पहले उन्होंने ठीक की थी, उसे खोलने लगीं।

फरहान ने कहा- "भाई छोड़ो ना यार, चलो शुरू करते हैं"

मैंने फरहान से इशारे में कहा कि सबर करो ज़रा और आपी की तरफ देखा जो चादर कंधों पर डाल रही थीं।

मैंने कहा- "ओके मैं जानता हूँ आपको भी हमें देखने में इतना ही मज़ा आता है, जितना हमें और जाना आप भी नहीं चाहती हो"

यह हक़ीक़त ही थी कि आपी को अब आदत हो चुकी थी और वो सिर्फ़ हमें डराने के लिए ही जाने की धमकी दे रही थीं और जाना खुद भी नहीं चाहती थीं।
आपी को ताकता देख कर मैंने कहा- "चलो एक समझौता कर लेते हैं"

आपी ने कहा- "किस किस्म का समझौता?"

मैंने कहा- "चलो ठीक है, आप हमारे साथ शामिल ना हों बल्कि हमसे दूर वहाँ सोफे पर ही बैठो लेकिन अपने कपड़े उतार कर बैठो"

फरहान मेरे इस मशवरे पर बहुत उत्तेजित हो गया और फ़ौरन बोला- "हाँ आपी! हम लोगों को तो आपने नंगा देख ही लिया है अब हमारा भी कुछ ख़याल करें ना"

आपी का चेहरा शर्म और गुस्से के मिले-जुले तासूर से लाल हो गया और उन्होंने चादर अपने जिस्म के गिर्द लपेटी और खड़े होते हुए कहा- "शटअप, मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूँगी पहले ही तुम्हारे लिए बहुत कुछ कर चुकी हूँ। अगर तुम लोग आपस में कुछ करने को तैयार हो तो बता दो नहीं तो मैं जा रही हूँ"

आपी के इस अंदाज़ ने मुझ पर ज़ाहिर कर दिया था कि वो वाकयी ही चली जाएंगी इसलिए मैं कन्फ्यूज सा हो गया कि क्या करूँ।

फरहान ने मेरी हालत को भाँप लिया और आपी से कहने लगा- "आपी प्लीज़, हमने कभी किसी लड़की को रियल में नंगा नहीं देखा और आपको देखने से बढ़ कर कुछ नहीं क्योंकि मैं कसम ख़ाता हूँ कि मैंने आज तक आप से ज्यादा हसीन लड़की कोई नहीं देखी, आप बहुत खूबसूरत हैं। सब ही ये कहते हैं, मेरी कसम पर यक़ीन नहीं तो आप भाईजान से पूछ लें"

फिर मैंने भी मिन्नत करते हुए कहा- "फरहान सही कह रहा है आपी, प्लीज़ हमारे साथ ऐसा तो ना करो, यार ऐसे तो मत जाओ, आपका यहाँ बैठा होना ही हमें बहुत मज़ा देता है कि हमारी सग़ी बड़ी बहन हमें देख रही है, ये अहसास हमारे अन्दर बिजली सी भर देता है। लेकिन प्लीज़ आपी हमारा भी तो कुछ ख़याल करो ना आप अच्छी तरह से जानती हो कि हम ‘गे’ नहीं हैं, ये सब इसलिए हुआ कि हमें शिद्दत से एक सुराख चाहिए था जिसमें हम अपने लण्ड डाल सकें, जब हमें कोई लड़की नहीं मिली तो हमने एक-दूसरे के साथ शुरू कर दिया, अच्छा प्लीज़ आपी आप सिर्फ़ अपनी क़मीज़ थोड़ी सी उठा कर हमें अपने सीने के उभार दिखा दें, प्लीज़ आपी! आप इतना तो कर ही सकती हो ना, प्लीज़ मेरी सोहनी आपी"

मुझे देख कर फरहान ने भी मिन्नत करते हुए कहा- "प्लीज़ आपी जी, दिखा दो ना, मेरी प्यारी आापी जी, प्लीज़.."

कुछ देर बाद आपी ने अपनी चादर उतारी और झिझकते हुए कहा- "ओके लेकिन सिर्फ़ देखोगे, क़रीब मत आना मेरे.."

यह कह कर आपी घूमी और चादर सोफे पर रखने लगीं।

‘यसस्स स्स..’ मैंने और फरहान ने एक साथ खुशी से चिल्ला कर कहा।

फरहान ने मुझे आँख मारते हुए सरगोशी में कहा- "गुड जॉब भाई"

आपी हमारे सामने सीधी खड़ी हुईं और दोनों हाथों से अपनी क़मीज़ का दामन पकड़ा और आहिस्ता-आहिस्ता ऊपर उठाने लगीं। हमें आपी की काली सलवार नज़र आने लगी, आपी की सलवार पर बहुत बड़ा सा सफ़ेद धब्बा बना हुआ था, जो शायद उनकी मोनी थी, जो सूख चुकी थी। उनकी सलवार काली होने की वजह से सफ़ेद धब्बा ज्यादा ही वज़या हो गया था, क़मीज़ थोड़ी और ऊपर उठी तो आपी की सलवार का बेल्ट और फिर उनका ब्लैक एज़ारबंद नज़र आने लगा जो कहीं-कहीं से सफेद हो रहा था जो ज़ाहिर कर रहा था कि आपी ने डिस्चार्ज होकर कितनी ज्यादा पानी छोड़ा था कि सलवार से निकल-निकल कर एज़ारबंद को गीला करता रहा था।
आपी ने क़मीज़ थोड़ी और ऊपर उठाई तो हमने पहली बार भरपूर नज़र से अपनी सग़ी बहन का नंगा पेट देखा। आपी का गोरा पेट और उस पर उनका खूबसूरत नफ़ जो काफ़ी गहरी होने की वजह से काली नज़र आ रही थी और उसके नीचे छोटा सा तिल जो ऐसे लग रहा था जैसे दरबार-ए-हुस्न के दर पर निगहबान बिठा रखा हो। ये सब नजारा हमारे होश गुम किए दे रहा था।
आपी अपनी नजरें हमारे चेहरों पर जमाए धीरे-धीरे अपनी क़मीज़ को ऊपर उठा रही थीं और हम दोनों बिल्कुल खामोश और बगैर पलकें झपकाए दुनिया के हसीन तरीन नज़ारे के इन्तजार में थे। हम दोनों की साँसें रुक गई थीं और हमारे दिमाग कुंद हो चुके थे।
आपी की क़मीज़ उनके मम्मों तक पहुँच गई थी और हमें उनके मम्मों का निचला हिस्सा जहाँ से गोलाई ऊपर उठना शुरू होती है, दिखाई दे रहा था। आपी ने क़मीज़ यहाँ ही रोक दी थी लेकिन हम दोनों ही टकटकी बांधे आपी के मम्मों का निचला हिस्सा और उनका गुलाबी पेट देख रहे थे। जब काफ़ी देर तक हमने कोई रिएक्शन नहीं दिया तो आपी बोलीं- "मेरा ख़याल है कि मैं इससे ज्यादा कुछ [b]नहीं कर सकती हूँ, बस तुम दोनों के लिए इतना ही बहुत है" [/b]आपी ने ये कहा और शरारती अंदाज़ में मुस्कुराने लगीं।

मैं समझ गया था कि आपी हमारी कैफियत से मज़ा ले रही हैं। फिर भी मैंने कहा- "प्लीज़ आपी! अब तड़फाओ मत, ऊपर उठाओ ना अपनी क़मीज़, प्लीज़ आपी"

फरहान भी घिघयाने लगा- "प्लीज़ आपी! दिखाओ ना, मेरी अच्छी वाली आपी प्लीज़"

आपी ने मुस्कुरा कर हमें देखा और एक ही तेज झटके में अपनी क़मीज़ सर से निकाल कर सोफे पर फेंक दी।
‘वॉववववव..’
यह मेरी ज़िंदगी का सबसे हसीन तरीन नज़ारा था, मेरी आपी, मेरी सगी बहन, मेरी वो बहन जिसकी हया, जिसके पर्दे, जिसकी नज़ाकत, जिसकी पाकीज़गी, जिसकी मासूमियत, जिसकी नफ़ासत, की पूरा खानदान मिसालें देता था, वो मेरे सामने बगैर क़मीज़ के खड़ी थीं, उसके मम्मे मेरी नजरों के सामने थे।
मेरे लिए वक़्त रुक सा गया था, मुझे अपने आस-पास का बिल्कुल होश नहीं रहा था और मेरी नजरें अपनी सग़ी बहन के मम्मों पर जम गई थीं।
मेरी बहन के मम्मे बिल्कुल गुलाबी थे, उनकी जिल्द बहुत ज्यादा चिकनी थी, कोई दाग कोई धब्बा या किसी पिंपल का नामोनिशान नहीं था।
मैं अपनी बहन के मम्मों का 1-1 मिलीमीटर पूरी तवज्जो से देख रहा था और इस नज़ारे को अपनी आँखों में हमेशा हमेशा के लिए बसा लेना चाहता था।

TO BE CONTINUED ……
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#42
Heart 
उनके गुलाबी मम्मों पर हरी नीली रगों का जाल था और एक-एक रग साफ देखी और गिनी जा सकती थी। मुकम्मल गोलाई लिए हुए आपी के मम्मे ऐसे लग रहे थे जैसे 2 प्याले उल्टे रखे हों, इतनी मुकम्मल शेप मैंने आज तक किसी फिल्म में भी नहीं देखी थी। थोड़े बहुत तो लटक ही जाते हैं हर किसी के लेकिन आपी के मम्मे बिल्कुल खड़े थे, कहीं से भी ढलके हुए नज़र नहीं आते थे।
सच कह रहा हूँ अभी भी ये सब याद करके ही मेरी इतनी बुरी हालत हो गई है कि मुझसे अब मज़ीद नहीं लिखा जा रहा। मेरी कैफियत का अंदाज़ा सिर्फ़ वो ही लोग लगा सकते हैं कि जिन्होंने अपनी सग़ी बहन के मम्मे अपनी नज़र के सामने नंगे देखे हों या फिर वो समझ सकते हैं जिन्होंने अपनी सग़ी बहन के मम्मों को तन्हाई और इत्मीनान से सोचा हो।
आपी के गुलाबी मम्मों पर गहरे गुलाबी रंग के छोटे-छोटे सर्कल थे और उन सर्कल के बीच में भूरे गुलाबी रंग के छोटे-छोटे निप्पल अपनी बहार फैला रहे थे। आपी के निप्पल को अपनी नजरों की गिरफ्त में लिए-लिए ही मैं बेसाख्ता तौर पर खड़ा हो गया, अभी मैंने शायद एक क़दम उनकी तरफ बढ़ाया ही था कि आपी की आवाज़ आई- “सगीर! वहीं रुक जाओ, आगे मत बढ़ो, मैंने कहा था कि तुम लोग सिर्फ़ देखोगे, छुओगे नहीं..” -आपी ने वॉर्निंग देने के अंदाज़ में कहा।

मैंने खोए-खोए अंदाज़ में बहुत नर्म लहजे में पलक झपकाए बगैर उनके निप्पल को देखते हुए कहा- “नहीं आपी मैं छूना नहीं चाहता, बस इन्हें क़रीब से देखना चाहता हूँ”

आपी के निप्पलों पर बहुत सी दरारें थीं जो क़रीब से देखने पर महसूस होती थीं, निप्पल के टॉप पर बिल्कुल सेंटर में एक गड्डा सा था और ऐसा लग रहा था कि जैसे इस गड्डे से ही दरारें निकल रही हों और उनके निप्पल की दीवारों से होती हुई नीचे फैल कर ज़मीन पर दायरा बना रही हों।
मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे मैं हवा मैं उड़ते-उड़ते एक जगह हवा में ही रुक गया हूँ और नीचे देख रहा हूँ कि एक बहुत बड़ा पहाड़ है, आतिश फिशन पहाड़ और वो फट कर रुक चुका है और उसके बीच में बहुत सा लाल भूरा लावा जमा हो चुका है और चारों तरफ से लकीर की शकल में बह कर नीचे जाते हुए जड़ में ज़मीन पर एक सर्कल की सूरत में जमा हो गया हो।
मुझे बाद में आपी ने बताया था कि तुमने यह जुमला इतना ठहर-ठहर के और खोए हुए कहा था कि फरहान और मैं दोनों ही तुम्हें हैरत से देखने लगे थे। तुम उस वक्त किसी और ही दुनिया में थे, इस हाल में थे कि तुम्हें कुछ पता नहीं था, आस-पास का, और तुम बस मेरे दूधों को ही देखे जा रहे थे और मेरे इतने क़रीब आ गए थे कि तुम्हारी साँसें मैं अपने निप्पल पर और अपने मम्मों पर महसूस कर रही थी। तुम्हारी साँसों की गर्मी ने मुझ पर ऐसा जादू सा कर दिया था कि अगर तुम उस वक़्त इन्हें अपने मुँह में भी ले लेते तो शायद मैं तुम्हें मना नहीं करती।

मैं आपी के निप्पलों को क़रीब से देख ही रहा था कि फरहान ने मुझे कन्धे से पकड़ कर झंझोड़ा और कहा- “भाई होश में आओ, क्या हो गया है आपको?” 
शायद वो परेशान हो गया था कि कहीं मैं जेहनी तवज्जो ही ना खो बैठूं।
मुझे ऐसा लगा जैसे मैं पता नहीं कहाँ आ गया हूँ और फिर जैसे मुझे होश आ गया लेकिन मैं अभी भी खोया-खोया सा था। 
फरहान ने सुकून की सांस ली और वो भी क़रीब से आपी के मम्मों को देखता हुआ बोला- “आपी ये दुनिया के हसीन-तरीन मम्मे हैं, हमने जितनी भी मूवीज देखी हैं, उनमें कभी इतने खूबसूरत मम्मे नहीं देखे, आप बहुत गॉर्जियस और हॉट हो”

आपी ने ये जुमले सुने तो शर्म से सुर्ख हो गईं और सोफे पर बैठते हुए हम दोनों के पूरे खड़े लण्ड की तरफ इशारा करते हो बोलीं- “चलो अब दोनों बिस्तर पर जाओ और इन दोनों पर रहम करो”

हम दोनों आपी के खूबसूरत खड़े उभारों से नज़र हटाए बगैर उल्टे क़दम बिस्तर की तरफ चल दिए।
मेरा जी चाह रहा था कि वक़्त थम जाए और ये नज़ारा हमेशा के लिए ऐसे ही ठहर जाए और मैं देखता रहूं।
बहुत शदीद ख्वाहिश हुई थी उन्हें छूने की, चूसने की, चाटने की, लेकिन मैंने अपनी ख्वाहिश को दबा दिया। मैं जानता था कि अभी वक़्त नहीं आया है और हमारी किसी भी जल्दबाज़ी से आपी बिदक जाएंगी।

बिस्तर पर बैठते हुए फरहान ने कहा- “प्यारी आपी जी! प्लीज़ क्या आप हमारे लिए अपनी निप्पल्स को अपनी चुटकी में पकड़ कर मसलेंगी”

आपी ने कहा- “बको मत! मैंने तुम्हें कहा था ना, नो टचिंग और एनिथिंग, मैं जानती हूँ तुम लोग एक के बाद एक फरमाइश करते चले जाओगे”

“प्यारी आपी जी प्लीज़ सिर्फ़ एक बार, फिर दोबारा आपसे नहीं कहेंगे, पक्का वादा”

फरहान के खामोश होते ही मैंने कहा- “मेरी सोहनी आपी! एक बार कर दो ना यार प्लीज़ और पहले अपनी ऊँगली को अपने मुँह में डाल कर गीला करो फिर निप्पल पर फेरना”

“ये गंदी मूवीज देख-देख कर तुम लोग बिल्कुल ही बेशर्मी का शिकार हो गए हो” - आपी ने मुस्कुरा कर कहा।

मैंने हँसी को दबाते हुए ‘खी.. खी..’ करते हुए कहा- “जरा देखना तो ये बात कह कौन रहा है.. हहहे..”

आपी ने अंगड़ाई लेने के अंदाज़ में अपनी टाँगें सीधी कीं और पाँव ज़मीन पर टिकाते हुए टाँगों को थोड़ा खोल लिया फिर मेरी आँखों में देखते हुए आपी ने बगैर मुँह खोले अपनी ज़ुबान को बाहर निकाला और अपने राईट हैण्ड की इंडेक्स फिंगर को ज़ुबान पर फेरते हुए अपने बंद होंठों पर अपनी ऊँगली की नोक से दबाव डाला और आपी की ऊँगली आहिस्ता-आहिस्ता उनके मुँह में दाखिल होने लगी।
फिर आपी ने पूरी ऊँगली को चूसते हुए ऊँगली बाहर निकाल ली।
उन्होंने पहले फरहान की आँखों में देखा और फिर मेरी नज़र से नज़र मिला कर अपने दोनों बाज़ू अपने मम्मों के नीचे क्रॉस कर लिए और एक निप्पल पर अपनी ऊँगली फेरने लगीं।
‘वॉवववव..’
ये एक ऐसा नज़ारा था जो हमें बेताब करने के लिए काफ़ी था। मेरे लण्ड को झटका लगा और मेरे साथ-साथ फरहान का हाथ भी बा-साख्ता ही अपने लण्ड पर पहुँच गया। हमने अपने-अपने लण्ड को मज़बूती से भींच लिया।
आपी को देखते हुए जो हमारी हालत हो रही थी उससे आपी को भी मज़ा आ रहा था और उन्होंने देखा कि हमारे लण्ड झटके ले रहे हैं तो उन्होंने अपनी ऊँगली को अपने निप्पल के टॉप पर रखा और उससे दबा कर रखते हुए अपना दूसरा हाथ उठाया और अपनी टाँगों के दरमियान ले जाकर रगड़ने लगीं।

क़रीब 2 मिनट ये करने के बाद आपी ने अपने हाथों को रोक लिया और बोलीं- “चलो बच्चों! बहुत देख लिया और अब अपने कहे हुए अल्फ़ाज़ ‘कुछ दो.. कुछ लो’ के मुताबिक़ शुरू हो जाओ और मैं उम्मीद कर रही हूँ कि आज मुझे एक ग्रेट शो देखने को मिलेगा” यह कहते ही आपी के चेहरे पर शैतानी मुस्कुराहट आ गई थी।

मैं आप लोगों के बारे में नहीं जानता लेकिन अगर आप वर्जिन हो, कभी किसी लड़की को नहीं चोदा हो और एक लड़की और वो भी आपकी अपनी सग़ी बहन जो खूबसूरत हो या ना हो इससे फ़र्क़ नहीं पड़ता बस वो आपके सामने अधनंगी बैठी हो उसके बड़े-बड़े क्रीमी मम्मे आपके सामने हों तो वो आपको शिट खाने को भी कहे तो आप तैयार हो जाएंगे, मेरा यक़ीन मानिए उस वक़्त ऐसी ही हालत होती है।मेरी बहन तो थी भी बेइंतिहा खूबसूरत और साथ-साथ अपनी हरकतों से हमें उकसा भी रही थी।
जैसा कि आपी ने ग्रेट शो का कहा था तो हमने भी वैसा ही किया। यह एक वाइल्डेस्ट चुदाई थी जो मैंने और फरहान ने की, जिसमें लण्ड चूसना और अलग-अलग पोजीशन में चोदना, एक-दूसरे के लण्ड का जूस पीना था, गर्ज ये कि हम जो कुछ सोच सकते थे, हमने सब किया।
आपी भी आज बहुत ज्यादा जोश में थीं, उन्हें भी ये सोच मज़ा दे रही थी कि वो अपने सगे भाईयों के सामने अपने सीने के उभारों को खोले बैठी हैं और अपनी टाँगों के दरमियान हाथ फेर रही हैं।
आपी उस दिन 3 बार डिसचार्ज हुई थीं लेकिन वे खुल कर डिसचार्ज नहीं होती थीं। मैंने महसूस किया था कि उनके अंदाज़ में अभी झिझक बाकी थी। लेकिन पहले दिन से मुकाबला करें तो आपी रोज़-बा-रोज़ काफ़ी बोल्ड होती जा रही थीं जैसे आज उन्होंने अपना ऊपरी जिस्म नंगा करके और टाँगों को खोल के जो कुछ हमें दिखाया था, ये बिल्कुल भी उनकी ज़ाहिरी शख्सियत से मेल नहीं ख़ाता था। लेकिन उनके अन्दर क्या छुपा था, उसे ज़ाहिर कर रहा था।
जब आपी ने अपनी क़मीज़ पहनना शुरू की तो हमारे चेहरे बुझ से गए थे। आपी ने अपनी चादर उठाते हुए हमें देखा तो हमारी उदास शक्लें देख कर हँसते हुए कहा- “शर्म करो कमीनों! मैं तुम्हारी सग़ी बहन हूँ और वो भी बड़ी, अब मैं तुम लोगों के सामने सारा दिन नंगी तो नहीं घूम सकती ना!”

और फिर अपनी चादर वैसे ही तहशुदा हालत में अपने बाज़ू पर रखी और दरवाज़े की तरफ चल दीं। उन्होंने बाहर जाने के लिए दरवाज़ा खोला और दो सेकेंड को रुकीं….
फिर हमारी तरफ घूमते हुए कहा- “ओके आखिरी बार..”

TO BE CONTINUED …..
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

Love You All  Heart Heart
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#43
तब आपी ने एक बार अपनी क़मीज़ ऊपर की और अपने खूबसूरत दूधों को नंगा करके दायें बायें हरकत देने लगीं।
‘आह्ह..’
4-5 झटकों के बाद उन्होंने अपनी क़मीज़ नीचे की और कहा- “शब्बाखैर! और अब फिर ना शुरू हो जाना, अपनी सेहत का ख़याल रखो और एनर्जी सेव करके रखो” फिर मुस्कुराते हुए बाहर चली गईं।
मैं और फरहान दोनों ही आपी की इस हरकत पर बुत बने खड़े थे और शायद मेरी तरह फरहान भी हमारी बेपनाह हया वाली बहन के इस अंदाज़ के बारे में ही सोच रहा था।
मैं अपनी सोचों में आपी के कल और आज का मिलान करने लगा।मैं और फरहान दोनों ही रूही आपी के ख्यालों में गुम थे और आज जो कुछ हुआ उस पर बहुत खुश थे। हम दोनों ने ही आज तक कभी किसी लड़की को असल में नंगी नहीं देखा था और आज असली मम्मे देखे भी थे तो अपनी ही सग़ी बहन के। मुझे यह सोच पागल किए दे रही थी कि अब मैं रोज़ अपनी बहन के खूबसूरत जिस्म का दीदार किया करूँगा। क्या हुआ जो सिर्फ़ ऊपरी जिस्म ही है और हो सकता है कि आपी जल्द ही पूरी नंगी होने पर आमादा हो ही जाएँ।
फरहान की आवाज़ पर मेरी सोच का सिलसिला टूटा, वो कह रहा था- “भाई आपका क्या ख़याल है? क्या हम आपी को इस बात पर तैयार कर लेंगे कि पूरी नंगी होकर हमारे सामने बैठा करें?”
मैं फरहान के इस सवाल पर सिर्फ़ मुस्कुराने लगा, जो मैं सोच रहा था वही फरहान मतलब हम दोनों की सोच एक ही लाइन पर जा रही है।
“भाई कितना मज़ा आएगा ना अगर ऐसा हो जाए” - फरहान ने छत को देखते हुए गायब दिमाग से कहा।
“यार मैं प्लान कर रहा हूँ कि अब आगे क्या करना है, बस तुम अपना दिमाग मत लगाना और जो मैं कहूँ या करूँ बस वैसे ही होने देना, ओके! मैं नहीं चाहता कि कोई गड़बड़ हो और आपी हमसे नाराज़ हो जाएँ। बस अब कोई प्लान सोचने के बजाए आपी के दूधों को सोच और सोने की कोशिश करो और मुझे भी सोने दो” - मैंने फरहान को डाँटने के अंदाज़ में कहा और आँखें बंद करके सोचने लगा कि अब क्या करना है और ये ही सोचते-सोचते ना जाने कब नींद ने आ दबोचा।
अगले दिन मैं कॉलेज से जल्दी निकला और घर वापस आते हुए अपने दोस्त से 3 नई सीडीज़ भी लेता आया। मैं चाहता था कि आज आपी जब रात में हमारे कमरे में आएं तो पहले से ही गर्म हों। जब मैं घर पहुँचा तो 2 बज रहे थे। अम्मी, रूही आपी और फरहान बैठे खाना खा रहे थे। मैंने सबको सलाम किया और हाथ-मुँह धोकर खाने के लिए बैठ गया। खाने के बाद हम वहाँ ही बैठे टीवी देख रहे थे तो अम्मी उठीं और सोने के लिए अपने कमरे में चली गईं। रूही आपी और फरहान वहाँ ही थे।
मैंने बिला वजह ही चैनल चेंज करना शुरू किए तो एक चैनल पर हॉट सीन बस शुरू ही हुआ था और लड़का-लड़की किसिंग कर रहे थे। मैं उससे चैनल पर रुक गया।
आपी ने दबी आवाज़ में कहा- “सगीर! क्या हिमाक़त है ये अम्मी किसी भी वक़्त बाहर आ सकती हैं, चैनल चेंज करो”
फरहान मेरा साथ देने के लिए फ़ौरन बोला- “कुछ नहीं होता आपी, अम्मी का दरवाज़ा खुलेगा तो आवाज़ आ ही जाएगी तो भाई चैनल चेंज कर देंगे”
आपी ने अपना मख़सूस लिबास यानि क़मीज़-सलवार और सिर पर स्कार्फ बाँधा हुआ था और बड़ी सी चादर लपेट रखी थी और टांग पर टांग रखे हुए बैठी थीं।
मैंने आपी को देखते हुए कहा- “सोहनी सी आपी! क्या ख़याल है आज दिन की रोशनी में अपने प्यारे से दुद्धुओं का दीदार करा दो ना, मेरे जेहन से उनका ख्याल निकल ही नहीं रहा है। प्लीज़ आपीईइ”
आपी फ़ौरन घबरा कर बोलीं- “तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या? बिल्कुल ही उल्टी बात करने लगते हो”
“चलो ना यार! मज़ा आएगा ना आपी, डरते हुए ये सब करने का मज़ा ही अलग है” - मैंने कहा और आपी को देखते हुए अपनी पैंट की ज़िप खोली और लण्ड बाहर निकाल कर अपने हाथ से सहलाने लगा।
आपी के साथ-साथ फरहान भी तकरीबन उछल ही पड़ा- “ये क्या है भाई! मूवी देखना और बात है, आप फ़ौरन चैनल चेंज कर सकते हो लेकिन ये?” वो कुछ डरे-डरे से लहजे में बोला।
मैंने हाथ को मक्खी उड़ाने के स्टाइल में लहराया और कहा- “कुछ नहीं होता यार, चलो आपी, मैंने आपको दिन की रोशनी में अपना लण्ड दिखा दिया है, अब आप भी दिखाओ ना?”
आपी अभी भी ‘नहीं.. नहीं..’ करने लगीं तो मैंने फरहान को इशारा किया- “चलो फरहान शुरू हो जाओ”
मेरे कहने पर फरहान ने भी अपना लण्ड बाहर निकाल लिया और हाथ में पकड़ लिया लेकिन वो अभी भी डरा हुआ सा था।
आपी ने फरहान को हैरत से देखा और मेरी तरफ इशारा करके कहा- “ये तो है ही खबीस, तुम्हें किस पागल कुत्ते ने काटा है, अम्मी बाहर आ गईं तो पता लग जाएगा सबको”
फरहान को डरते देख कर मैंने आपी को कहा- “आपी अभी भी टाइम है, मान लो नहीं तो”
आपी फ़ौरन बोलीं- “नहीं तो क्या??”
मैंने मुस्कुरा कर आपी को देखा और फरहान की टाँगों के दरमियान बैठते हुए कहा- “नहीं तो ये” और फरहान का लण्ड अपने मुँह में ले लिया।
आपी खौफ से पीली पड़ गईं और अपनी जगह से खड़ी होती हुई बोलीं- “बस करो सगीर, खुदा के लिए उठो, अम्मी बाहर आ गईं तो”
मैंने आपी की बात काट कर कहा- “अगर अम्मी बाहर आईं तो इस सबकी जिम्मेदारी आप पर होगी, आप दिखा दो ना, देख लिए जाने के डर से ये सब करते हुए आपको मज़ा नहीं आएगा क्या। इसमें अजीब सा मज़ा है आपी प्लीज़ करके तो देखो”
आपी ने डरते हुए ही अम्मी के दरवाज़े और बाहर वाले मेन गेट पर नज़र डाली और कहा- “सगीर छोड़ो ना प्लीज़ उठो, ये सब कमरे में कर लेंगे ना”
मैंने अनसुनी करते हुए कोई जवाब नहीं दिया और अपना मुँह फरहान के लण्ड पर चलाते-चलाते आपी को क़मीज़ उठाने का इशारा कर दिया।
आपी ने झिझकते-झिझकते झुक कर अपनी चादर समेत क़मीज़ के दामन को पकड़ा तो मेरा दिल भी धक-धक करने लगा। मैं ज़ाहिर तो बहुत कर रहा था कि मुझे परवाह नहीं और शायद मुझे अपनी इतनी परवाह भी नहीं थी लेकिन आपी को ये करता देख कर मुझ पर भी खौफ कायम हो गया था कि कहीं सचमुच ही अम्मी बाहर आ गईं या बाहर से कोई घर में दाखिल हुआ और उन्होंने ये देख लिया तो क्या होगा।
इसके आगे मुझसे सोचा ही नहीं गया। मैंने धक-धक करते दिल के साथ अम्मी के दरवाज़े पर नज़र डाली।
अम्मी का कमरा आपी की बैक की तरफ था और बाहर का मेन गेट उनके दायें और हमारी बाईं तरफ़ था।
फिर मैंने आपी को देखा उन्होंने अपनी चादर और क़मीज़ के दामन को थामा हुआ था और घुटनों से ऊपर उठा रखा था।
आपी ने खौफजदा सी आवाज़ में कहा- “सगीर तुम अम्मी के दरवाज़े का ध्यान रखना और फरहान तुम बाहर वाले गेट को भी देखते रहना, अच्छा”
यह कह कर आपी ने अपनी चादर और क़मीज़ को अपनी गर्दन तक उठा दिया। आपी ने ब्लैक कलर की ब्रा पहनी हुई थी और ब्लैक ब्रा से झाँकते गुलाबी-गुलाबी मम्मों का ऊपरी हिस्सा क़यामत ढहा रहा था।
मैंने कुछ देर इस मंज़र को अपनी नज़र में सामने देखने के बाद, डरी हुई आवाज़ में आहिस्तगी से कहा- “आपी अपना ब्रा भी उठाओ ना प्लीज़”
और शायद आपी को भी अब इस सब में मज़ा आने लगा था, उन्होंने गर्दन घुमा कर अम्मी के कमरे के दरवाज़े को और फिर बाहर वाले दरवाज़े को देखा और एक झटके में अपनी ब्रा भी ऊपर कर दी। इसी के साथ मेरे दिल की धड़कन बिल्कुल रुक गईं। मुझ पर वो ही कैफियत हावी होने लगी थी जो कल आपी के सीने के उभारों को देख कर हुई थी।
मैं चंद लम्हें ऐसे ही अपनी खूबसूरत सी बहन के प्यारे से मम्मों को देखता रहा और फिर उनके हसीन भूरे गुलाबी निप्पलों पर नज़र जमाए हुए एकदम गुमशुदा दिमाग की कैफियत में जैसे ही आपी की तरफ बढ़ा तो आपी ने फ़ौरन अपनी क़मीज़ नीचे कर दी और चादर और क़मीज़ के ऊपर से ही अपने ब्रा को मम्मों पर सैट करने लगीं।
फिर उन्होंने अपना हाथ चादर के अन्दर डाला और खड़े-खड़े ही थोड़ी सी टाँगें खोलीं और घुटनों को बेंड करते हुए अपनी सलवार से ही टाँगों के बीच वाली जगह को साफ कर लिया।
मैंने ये देखा तो हँसते हुए तंज़िया अंदाज़ में कहा- “आपीजान! इतने में ही गीली हो गई हो और नखरे इतने कर रही थीं”
"बकवास मत कर खबीस, मैं नखरे नहीं कर रही थी अगर अम्मी या कोई और आ जाता ना तो फिर तुम्हें पता चलता” -आपी ने ये कहा और फिर अपना लिबास सही करने लगीं।
फरहान पहले ही अपना लण्ड अन्दर कर चुका था, मैंने भी अपना लण्ड पैंट में डाला और ज़िप बंद करते हुए कहा- “अच्छा सच-सच बताओ आपी, मज़ा आया ना आपको”
आपी को खामोश देख कर मैंने फिर कहा- “आपी झूठ मत बोलना, आपको हम दोनों की कसम सच बताओ?”

मेरी बात सुन कर आपी मुस्कुरा दीं और अपने कमरे की तरफ चल पड़ीं। फिर 4-5 क़दम बाद रुक कर पलटीं और मुझे आँख मार कर बड़े फिल्मी स्टाइल में कहा- “एकदम झकास्स्स..”

और कमरे में चली गईं।

TO BE CONTINUED …..
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

Love You All  Heart Heart
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#44
Jabardast kahani hai aise he continue rakho

Full erotic update hai bhai behno ke beech mein
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#45
अब मैं सोचने लगा कि हमारी बहन का ये स्टाइल भी बहुत खूब है जो वो अक्सर जाते-जाते पलट कर हमें मुतमइन कर जाती हैं।
आज रात फिर आपी हमारे कमरे में आईं और अपनी क़मीज़ उतार कर सोफे पर बैठ गईं। फरहान और मैंने आपी को देखते-देखते ही उनके सामने एक-दूसरे को चोदा और अब रोज ही ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहा। तक़रीबन एक हफ्ते तक यही करते रहने के बाद एक रात जब चुदाई करते हुए फरहान और मैं डिसचार्ज हुए तो आपी भी तब तक दो बार अपना पानी छोड़ चुकी थीं।
हम तीनों अपनी-अपनी ड्रेस पहन रहे थे कि आपी ने अपनी क़मीज़ पहनते-पहनते कहा- “यार आज कुछ मज़ा नहीं आया है, कुछ और दिखाओ मुझे, कुछ नया दिखाओ, ये डेली तुम लोगों को एक ही काम करते देख-देख कर अब बोर हो गई हूँ। अब कुछ चेंज लाओ”

फरहान ने कहा- “किस किस्म का चेंज लाएं आपी?”

आपी ने कहा- “ये मुझे नहीं पता लेकिन बस कुछ मज़ेदार सा हो”

मैंने आपी को देखते हुए कहा- “आपी जान हम तो जो कर सकते थे सब कर ही लिया है। हमारे पास तो कुछ नया है नहीं यदि कुछ चेंज ही चाहती हो तो आप ही हमें कुछ नया दिखा दो”

आपी मुस्कुराईं और चादर को अपने जिस्म से लपेटते हुए कहा- “सगीर तुम से तो मैं इतनी अच्छी तरह वाक़िफ़ हूँ कि तुम्हारी शक्ल देख कर ही मुझे पता चल जाता है कि तुम क्या चाह रहे हो। कमीनों! मैं अच्छी तरह से समझती हूँ कि तुम क्या सोच रहे हो लेकिन याद रखना जो तुम सोच रहे ही न वो कभी नहीं हो सकता और इसके बारे में सोचना भी मत। पहले ही कभी-कभी मैं बहुत गिल्टी फील करती हूँ कि ये सब कर रही हूँ!”

आपी का दुखी होता चेहरा देख कर मैंने फ़ौरन कहा- “अच्छा आपी अब रोना-वोना मत शुरू हो जाना। हम देख नहीं सकते लेकिन रात को सोने से पहले सोच तो लेते हैं ना अब अगर मूड ऑफ हो गया तो सोच भी नहीं सकेंगे”

“सगीर तुम सचमुच बहुत ही बड़े वाले कमीने हो!” -आपी ने हँसते हुए कहा और हमें ‘शब्बा खैर’ कहती हुई कमरे से बाहर चली गईं।

अगले ही दिन मैं अपने दोस्त मोईन के पास गया और उससे कहा- “यार मोईन हम अपने रुटीन सेक्स से उकता गए हैं। तुम कुछ और ऐसा बताओ जो ज़रा एग्ज़ाइटेड सा हो”

मैंने अभी तक मोईन को ये नहीं बताया था कि मेरा सेक्स पार्ट्नर मेरा अपना ही सगा भाई है।

मोईन बोला- “यार तुम लोग थ्री-सम ट्राई करो, इसमें तुम्हें बहुत मज़ा आएगा। मैं कामरान से बात कर लेता हूँ वो वैसे भी मुझसे बहुत बार तुम्हारे बारे में पूछ चुका है”

मैंने कहा- “नहीं यार, मेरा दोस्त इस मामले में बहुत केयरफुल है। वो किसी तीसरे बंदे को कभी क़बूल नहीं करेगा”

मेरी बात सुन कर मोईन कुछ सोचने लगा और कुछ देर बाद बोला- “यार सगीर, तुम शाम में मेरे पास चक्कर लगाना। मैं तुम्हारे मसले का कुछ हल निकालता हूँ”

मोईन के बुलाने के मुताबिक़ मैं शाम में जब मोईन के घर गया वो घर से निकला तो उसके चेहरे पर अजीब सी शैतानी मुस्कुराहट थी। मोईन ने मुझे एक शॉपिंग बैग दिया और मेरे चेहरे पर नज़र जमाए हुए बोला- “तेरी सोच से ज्यादा मज़ेदार चीज़ दे रहा हूँ तुझे जा मजे कर”

मैंने शॉपिंग बैग को खोला तो मुझे हैरत का शदीद झटका लगा। शॉपिंग बैग में एक डिल्डो (प्लास्टिक का लण्ड) रखा हुआ था। मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं और बेसाख्ता मेरे मुँह से निकला- “ओ बहनचोद! ये तुझे कहाँ से मिल गया”

मोईन ने मेरी हालत से लुत्फ़अंदोज़ होते हुए कहा- “तू आम खा गुठलियाँ गिनने के चक्कर में क्यों पड़ता है”

मैंने मिन्नतें करते हुए कहा- “बता ना यार प्लीज़, हो सकता है वहाँ से और भी मज़ेदार चीजें मिल जाएँ?”

मोईन बोला- “तेरा दिमाग खराब है, तू क्या समझ रहा है कि यहाँ कोई ऐसी सेक्सशॉप है जहाँ ऐसी चीजें मिलती होंगी”

मैंने कहा- “तो फिर ये कहाँ से लिया तुमने?”

मोईन ने जवाब दिया- “मेरी जान जितना टाइम मुझे हो गया है इन चक्करों में, इतना टाइम तुझे हो जाएगा तो रास्ते खुद ही नज़र आने लगेंगे। तू मेरे कज़िन सलीम को तो जानता ही है ना, मेरा उससे भी ऐसा रिश्ता है। वो 2 महीने पहले इटली गया था तो मैंने उससे कहा था कि वहाँ से ये चीजें ले आए। मैंने उससे सेक्स डॉल का भी कहा था लेकिन ऐसी चीजें लाना इतना आसान नहीं है। वो मुश्किल से 3-4 डिल्डो ही ला सका है बस”

मैंने बहुत जज़्बाती लहजे में पूछा- “तो बाक़ी और कहाँ हैं?”

मोईन बोला- “वो सोलो एक्शन के लिए हैं तुम लोगों को इसकी जरूरत है, ये तुम लोगों को ज्यादा मज़ा देगा”

मोईन ने जो डिल्डो मुझे दिया था तकरीबन 17 इंच लंबा था। सेंटर में एक इंच की बेस थी और दोनों साइड्स तकरीबन 8-8 इंच लंबी थीं। जिनके सिरे बिल्कुल लण्ड की टोपी से मुशबाह थे और मोटाई एक नॉर्मल लण्ड जितनी ही थी।
मैंने उससे अपने बैग में रखा तो मोईन ने मुझे कुछ सीडीज़ भी दीं और मज़े लेते हुए कहा- “जब इससे दिल भर जाए तो आकर मुझसे दूसरे ले जाना। वो इससे ज़रा मोटे भी हैं और लंबे भी”

मैं वो लेकर घर आया और फरहान को दिखाया। वो भी इससे देख कर बहुत हैरान हुआ और बहुत खुश भी हुआ। हम दोनों ही ने कितनी मूवीज में ये देखा ही था और दोनों जानते थे कि इसको कैसे इस्तेमाल किया जाता है। मैंने उसे अपनी अल्मारी में लॉक किया और हम दोनों ही बहुत बेताबी से रात होने का इन्तजार करने लगे। रात को डेली रुटीन की तरह आपी हमारे कमरे में आईं और अपनी बड़ी सी चादर, स्कार्फ और क़मीज़ उतार कर सोफे के साथ रखी टेबल पर रखीं और सोफे पर बैठ गईं। मैं और फरहान दोनों ही आपी के सामने खड़े उनके चेहरे पर नज़र जमाए मुस्कुराए जा रहे थे।

आपी ने हैरानी से हमें देखा और बोलीं- “क्या बात है, तुम दोनों यहाँ खड़े हो के क्यूँ दाँत निकाल रहे हो?”

मेरे कुछ कहने से पहले ही फरहान बोल पड़ा- “आपी आज हमारे पास आपके लिए एक सरर्प्राइज़ है”

फरहान की बात खत्म होने पर मैंने कहा- “आपी आप चाहती थीं ना कुछ अलग सा हो जो हमारे खेल में कुछ एग्ज़ाइट्मेंट पैदा करे”

“हाँ तो..?” - आपी ने कुछ ना समझ आने वाले अंदाज़ में कहा।

मैं अपनी अल्मारी की तरफ गया और वहाँ से शॉपिंग बैग से डिल्डो निकाला और आपी को दिखाते हुए कहा- “तो ये है कुछ अलग सा”

जैसे ही आपी की नज़र डिल्डो पर पड़ी उनका मुँह खुला का खुला रह गया। उनके मुँह से कोई आवाज़ नहीं निकल रही थी। बस उनकी नजरें उस डार्क ब्राउन 17 इंच लंबे टू साइडेड डिल्डो पर ही चिपक कर रह गई थीं। आपी भी अच्छी तरह से जानती थीं कि ये क्या चीज़ है क्योंकि हमारी तकरीबन सब ही मूवीज उन्होंने भी देखी ही हुई थीं। चंद लम्हें इसी तरह आपी डिल्डो को देखती रहीं और हम आपी के खूबसूरत चेहरे के बदलते रंग देखते रहे फिर आपी ने फंसी-फंसी आवाज़ में कहा- “ये.. ये.. कहाँ से ले लिया तुमने सगीर..??” -आपी ने पूछा मुझसे था लेकिन नज़र डिल्डो से नहीं हटाई।

मैंने मुस्कुराते हुए हाथ सीने पर रखा और आदाब बजा लाने वाले अंदाज़ में थोड़ा सा झुक कर कहा- “मैं अपनी इतनी प्यारी और हसीन बहन के लिए आसमान से तारे भी तोड़ लाऊँ तो ये तो बहुत हक़ीर सी चीज़ है”

“नहीं, सीरियसली प्लीज़, मैं नहीं समझती कि इस किस्म की कोई चीज़ हमारे मुल्क में कहीं से मिलती होगी” -आपी ने बहुत संजीदा लहजे में पूछा।

“मेरी सोहनी सी बहना जी हमारा मुल्क अब बहुत अड्वान्स हो गया है। आप तसब्बुर भी नहीं कर सकतीं कि यहाँ क्या-क्या हो रहा है। इन बातों को छोड़ो और ये देखो”

मैंने ये बोल कर आहिस्तगी से डिल्डो आपी की तरफ उछाल दिया जो सीधा आपी की गोद में उनकी टाँगों के दरमियान जाकर गिरा। आपी कुछ देर तक नज़र झुका कर डिल्डो को अपनी टाँगों के दरमियान पड़ा देखती रहीं और उन्होंने बेइख्त्यारी से अपनी टाँगों को थोड़ा सा खोल दिया। शायद आपी उस डिल्डो के टच को अपनी टाँगों के बीच वाली जगह पर महसूस करना चाहती थीं।
आपी ने खोए-खोए अंदाज़ में आहिस्ता से अपना हाथ डिल्डो की तरफ बढ़ाया और अपने लेफ्ट हैण्ड की मुट्ठी में उसे थाम लिया और उठा कर अपना राईट हैण्ड की नर्मी से डिल्डो की पूरी लंबाई पर ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर फेरने लगीं।
अच्छी तरह से पूरे डिल्डो को महसूस कर लेने के बाद आपी ने बायें हाथ से डिल्डो को सेंटर से पकड़ा और दायें हाथ से डिल्डो को इस अंदाज़ में थामा जैसे हम मुठ मारते हुए लण्ड को पकड़ते हैं। उन्होंने नज़र उठा कर हमारी तरफ देखा और मुस्कुराते हुए डिल्डो पर हाथ ऊपर नीचे करते हुए बोलीं- “तो ये तरीक़ा है तुम लोगों के मज़े लेने का। तुम लोग ऐसे ही हस्तमैथुन करते हो ना??”

“जी ये ही तरीक़ा है लेकिन अगर आप चाहो तो डिल्डो को छोड़ो प्रैक्टिकल के लिए असली चीज़ हाज़िर है” -मैंने अपने लण्ड की तरफ इशारा करते हुए कहा।

TO BE CONTINUED …..
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#46
(20-02-2024, 12:47 PM)neerathemall Wrote:
[Image: 60132920_003_3a2c.jpg]




कैसे कहें?






?

कहानी में रवानगी है और कामुकता भी !
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#47
“जी नहीं, मुझे कोई जरूरत नहीं प्रैक्टिकल की, बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब का” -आपी ने नखरीले अंदाज़ में कहा और डिल्डो मेरी तरफ़ फेंक दिया।

आपी ने अपनी टाँगों को थोड़ा सा खोला और अपने बायें हाथ से अपनी बायीं निप्पल को 2 ऊँगलियों की चुटकी में पकड़ते हुए थोड़ी सी टाँगें खोलीं और राईट हाथ को अपनी टाँगों के दरमियान वाली जगह पर आहिस्ता से रगड़ते हुए कहा- “चलो अब जल्दी से शुरू करो, मुझसे अब मज़ीद सब्र नहीं हो रहा है”

मैंने डिल्डो को अपने हाथ में पकड़े रखा और अपनी जगह से हरकत किए बिना ही कहा- “मेरी सोहनी बहना जी, आज का शो ज़रा स्पेशल है तो इसका टिकट भी ज़रा क़ीमती ही होगा ना”

“अब क्या तक़लीफ़ है कमीने?” - आपी ने ज़रा गुस्सैल लहजे में पूछा।

मैंने वहाँ हाथ का इशारा सोफे के साथ रखे टेबल की तरफ किया जहाँ आपी के तहशुदा चादर, स्कार्फ और कमीज़ पड़ी थी और जवाब दिया- “आपी! मेरा ख़याल है कि इस टेबल पर अब एक और चीज़ का इज़ाफ़ा कर ही दो आप”

“बकवास मत करो, मैं जो कर चुकी हूँ ये ही बहुत है। जो तुम कह रहे हो वो मैं कभी नहीं करूँगी और प्लीज़ अब शुरू करो, मैं रियली तुम लोगों को इस डिल्डो के साथ एक्शन में देखने के लिए बहुत एग्ज़ाइटेड हूँ” -आपी ने झुँझलाहटजदा अंदाज़ में कहा।

मैंने कहा- “आपी आप भी तो खामखाँ ज़िद पर अड़ी हो ना। हम आप का आधा जिस्म तो नंगा देख ही चुके हैं तो अब आपको सलवार भी उतार देने में क्या झिझक है। और मैं सिर्फ़ सलवार उतारने का ही तो कह रहा हूँ आपको अपने साथ शामिल करने की शर्त तो नहीं रख रहा ना?”

कुछ देर तक कमरे में खामोशी छाई रही मैं भी कुछ नहीं बोला और आपी भी कुछ सोच रही थीं।

“ओके दफ़ा हो तुम लोग, नहीं देखना मैंने तुम लोगों को भी” - आपी ने चिल्ला कर कहा और अपनी क़मीज़ पहनने लगीं।

हम चुपचाप खड़े आपी को देखते रहे। उन्होंने क़मीज़ पहनी, स्कार्फ बाँधा और अपने जिस्म पर चादर को लपेट कर हमारी तरफ देखे बगैर बाहर जाने लगीं।
आपी अभी दरवाज़े में ही पहुँची थीं कि मैंने ज़रा तेज आवाज़ में कहा- “मेरी सोहनी बहना जी! अगर जेहन चेंज हो जाए और हमारी हालत पर रहम आ जाए तो हमारे कमरे का दरवाज़ा आपके लिए हमेशा खुला है। बिला-झिझक कमरे में आ जाना, हम आपको इस शानदार चीज़ के साथ यहाँ ही मिलेंगे”

आपी ने दरवाज़े में खड़े हो कर घूम कर मुझे बहुत गुस्से से देखा और कुछ बोले बिना ही दरवाज़ा ज़ोर से बंद करती हुई बाहर चली गईं।

आपी के बाहर जाते ही फरहान मेरे पास आया और फ़िक्र मंदी और मायूसी के मिले-जुले तसब्बुर से बोला- “भाई आज तो आपका प्लान बैकफायर नहीं कर गया? मेरा मतलब है कि अपनी बहन को पूरा नंगी देखने के चक्कर में हम आधे से भी गए। कम से कम आपी के खूबसूरत मम्मे तो हमारे सामने होते ही थे ना। अब तो सब खत्म हो गया”

“फ़िक्र ना करो यार, हम से ज्यादा मज़ा आपी को आता है हमें ये सब करते देखने में। मैं तुम्हें यक़ीन दिलाता हूँ वो वापस ज़रूर आएँगी। बेफ़िक्र रहो वो अब इसके बिना नहीं रह सकेंगी”

लेकिन मेरा अंदाज़ा गलत निकला और आपी उस रात वापस नहीं आई थीं।
सुबह नाश्ते के वक़्त भी आपी बहुत खराब मूड में थीं। मुझसे बात करना तो दूर की बात मेरी तरफ देख तक नहीं रही थीं। लेकिन मुझे अपनी बहन का ये अंदाज़ भी बहुत अच्छा लग रहा था। गुस्से में वो और ज्यादा हसीन लग रही थीं। उनके गुलाबी गाल गुस्से की हिद्दत से लाल-लाल हो रहे थे।

तीन दिन तक आपी का गुस्सा वैसा ही रहा फिर चौथी रात को फिर आपी हमारे कमरे में आईं और मुझसे नज़र मिलने पर दरवाज़े में खड़े-खड़े ही पूछने लगीं- “सगीर तुम्हारा दिमाग वापस ठिकाने पर आ गया है या अभी भी तुम वो ही चाहते हो जो उस दिन तुम्हारी ज़िद थी?”

मैंने कहा- “नहीं आपी! हम आज भी वो ही कहेंगे और कल भी वो ही कहेंगे जो उस दिन हमने कहा था”

आपी ने घूम कर एक नज़र दरवाज़े से बाहर सीढ़ियों की तरफ देखा और पलट कर अपने हाथों से चादर और क़मीज़ के दामन को सामने से पकड़ा और एक झटके से अपनी गर्दन तक उठा दिया और कहा- “एक बार फिर सोच लो वरना इनसे भी जाओगे”

फरहान ने फ़ौरन मेरी तरफ देखा जैसे कह रहा हो कि भाई मान जाओ। आज तीन दिन बाद अपनी बहन के खूबसूरत गुलाबी उभारों और छोटे-छोटे चूचुकों को देख कर दिमाग को एक झटका सा लगा लेकिन मैंने अपने जेहन को अपने कंट्रोल में कर ही लिया और फरहान को चुप रहने का इशारा करते हुए आपी को कहा- “बहना जी हमारा फ़ैसला अटल है”

“ओके तुम्हारी मर्ज़ी” -आपी ने अपनी क़मीज़ सही की और दरवाज़ा बंद करके बाहर चली गईं।

आपी के जाने के बाद हम दोनों कुछ देर वैसे ही उदास बैठे रहे और फिर फरहान सोने के लिए बिस्तर पर लेट गया। मेरा भी दिल उदास सा था और कुछ करने का मन नहीं कर रहा था। मैं भी बिस्तर पर लेट कर इन हालात पर सोचने लगा। मुझे भी यक़ीन सा होता जा रहा था कि अब शायद हमारे रूम में आपी कभी नहीं आएँगी और यह सिलसिला शायद इसी तरह खत्म होना था जो शायद आज ही खत्म हो गया है।
लगभग 45 मिनट से मैं अपनी इन्हीं सोचों में गुमसुम था कि दरवाज़ा खुलने की आवाज़ पर चौंक कर देखा तो आपी कमरे में दाखिल हो रही थीं।
उन्होंने अन्दर आकर दरवाज़ा लॉक किया और झुंझलाते हुए बोलीं- “तुम दोनों पूरे के पूरे खबीस हो, तुम अच्छी तरह से जानते हो कि इंसान का कौन सा बटन किस वक़्त पुश करना चाहिए और मैं जानती हूँ ये सारी कमीनगी सगीर, तुम्हारी ही प्लान की हुई है। तुम बहुत बहुत ही कमीने हो। अब उठो दोनों, क्यों मुर्दों की तरह पड़े हुए हो”

आपी ने ये कहा और फिर सोफे के पास जाकर अपनी क़मीज़ उतारने लगीं। चादर और स्कार्फ वो अपने कमरे में ही छोड़ आई थीं। आपी को क़मीज़ उतारते देख कर मैं भी बिस्तर से उठा और अपने कपड़े उतारने लगा। अपनी सग़ी बहन को मादरजात नंगी देखने के तसव्वुर से ही मेरे लण्ड में जान पड़ने लगी थी और वो भी खड़ा हो गया था।
मेरी देखा-देखी फरहान ने भी अपने कपड़े उतारे और हम दोनों अपने-अपने लण्ड को हाथ में पकड़ कर आपी से चंद गज़ के फ़ासले पर ज़मीन पर बैठ गए। आपी हमारे बिल्कुल सामने खड़ी थीं उन्होंने बेल्ट वाली काली सलवार पहनी हुई थी और इजारबंद नज़र नहीं आ रहा था जिससे ज़ाहिर होता था कि आपी की इस सलवार में इलास्टिक ही है। मेरी बहन का दूधिया गुलाबी जिस्म काली सलवार में बहुत खिल रहा था और नफ़ के नीचे काला तिल सलवार के साथ मैचिंग में बहुत भला दिख रहा था।आपी के पेट और सीने पर ग्रीन रगों का एक जाल सा था जो जिल्द के शफ़फ़ होने की वजह से बहुत वज़या था।
आपी ने अपने दोनों हाथों को अपनी कमर की साइड्स पर रखा, अंगूठों को सलवार में फँसा दिया और अपने हाथों को नीचे की तरफ दबाने लगीं। आपी की सलवार आहिस्तगी से नीचे सरकना शुरू हो गई। जैसे-जैसे आपी की सलवार नीचे सरक रही थी मेरे दिल की धडकनें भी तेज होती जा रही थीं। तकरीबन 2 इंच सलवार नीचे हो गई थी।
आपी की नफ़ के तकरीबन 3 इंच नीचे बालों के आसार नज़र आ रहे थे जिनको देख कर लगता था कि शायद आपी ने एक दिन पहले ही सफाई की थी। अचानक आपी ने अपने हाथों को रोक लिया। मेरी नजरें उनकी टाँगों के दरमियान ही जमी हुई थीं।
आपी के हाथ रुकते देख कर मैंने अपनी नज़र उठाई। जैसे ही आपी की नजरें मुझसे मिलीं उन्होंने शदीद शर्म के अहसास से अपनी आँखों को भींच लिया और अपने दोनों हाथ अपने चेहरे पर रख कर चेहरा छुपाते हुए पूरी घूम गईं।
आपी की शफ़फ़ और गुलाबी पीठ मेरी नजरों के सामने थी। चंद लम्हों तक हम तीनों ऐसे ही चुप रहे और मुकम्मल खामोशी छाई रही फिर मैंने इस खामोशी को तोड़ते हुए सिर्फ़ दो लफ्ज़ कहे- “आपी प्लीज़”

चंद लम्हें मज़ीद खामोशी की नज़र हो गए तो मैंने फिर कहा- “आअप्प्पीईइ..”

मेरी आवाज़ सुन कर आपी ने अपने चेहरे से हाथ उठा लिए और वापस अपनी कमर पर रखते हो अंगूठों को सलवार में फँसा दिया लेकिन आपी हमारी तरफ नहीं घूमीं और वैसे ही हमारी तरफ पीठ किए अपनी सलवार को नीचे खिसकने लगीं।
सलवार का ऊपरी किनारा वहाँ पहुँच गया था जहाँ से आपी के कूल्हों की गोलाई शुरू होती थी। सलवार थोड़ा और नीचे हुई तो उनके खूबसूरत शफ़फ़ और गुलाबी कूल्हों का ऊपरी हिस्सा और दोनों कूल्हों के दरमियान वाली लकीर नज़र आने लगी।
आपी ने सलवार को थोड़ा और नीचे किया और अपने हाथ फिर रोक लिए। उनके आधे कूल्हे और गाण्ड की आधी लकीर देख कर नशा सा छाने लगा था और मैं अपने हाथ से अपने लण्ड को भींचने लगा। आपी थोड़ी देर ऐसे ही रुकी रहीं और फिर थोड़ा झुकीं और एक ही झटके में सलवार को अपने पाँव तक पहुँचा कर दोबारा सीधी खड़ी होते हुए अपने चेहरे को हाथों से छुपा लिया और पाँव की मदद से सलवार को अपने जिस्म से अलग करने लगीं।
खवातीन और हजरात, यह कहानी बहुत ही रूमानियत से भरी है आपसे आग्रह है कि अपने ख्याल कहानी के अन्त में जरूर लिखें।

TO BE CONTINUED …….
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#48
shandar ......................update
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#49
(20-02-2024, 12:38 PM)neerathemall Wrote:
[Image: 20698708_004_fea0.jpg]

Kya kya n sahe sitam
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#50
(25-02-2024, 01:33 PM)KHANSAGEER Wrote:
“जी नहीं, मुझे कोई जरूरत नहीं प्रैक्टिकल की, बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब का” -आपी ने नखरीले अंदाज़ में कहा और डिल्डो मेरी तरफ़ फेंक दिया।

आपी ने अपनी टाँगों को थोड़ा सा खोला और अपने बायें हाथ से अपनी बायीं निप्पल को 2 ऊँगलियों की चुटकी में पकड़ते हुए थोड़ी सी टाँगें खोलीं और राईट हाथ को अपनी टाँगों के दरमियान वाली जगह पर आहिस्ता से रगड़ते हुए कहा- “चलो अब जल्दी से शुरू करो, मुझसे अब मज़ीद सब्र नहीं हो रहा है”

मैंने डिल्डो को अपने हाथ में पकड़े रखा और अपनी जगह से हरकत किए बिना ही कहा- “मेरी सोहनी बहना जी, आज का शो ज़रा स्पेशल है तो इसका टिकट भी ज़रा क़ीमती ही होगा ना”

“अब क्या तक़लीफ़ है कमीने?” - आपी ने ज़रा गुस्सैल लहजे में पूछा।

मैंने वहाँ हाथ का इशारा सोफे के साथ रखे टेबल की तरफ किया जहाँ आपी के तहशुदा चादर, स्कार्फ और कमीज़ पड़ी थी और जवाब दिया- “आपी! मेरा ख़याल है कि इस टेबल पर अब एक और चीज़ का इज़ाफ़ा कर ही दो आप”

“बकवास मत करो, मैं जो कर चुकी हूँ ये ही बहुत है। जो तुम कह रहे हो वो मैं कभी नहीं करूँगी और प्लीज़ अब शुरू करो, मैं रियली तुम लोगों को इस डिल्डो के साथ एक्शन में देखने के लिए बहुत एग्ज़ाइटेड हूँ” -आपी ने झुँझलाहटजदा अंदाज़ में कहा।

मैंने कहा- “आपी आप भी तो खामखाँ ज़िद पर अड़ी हो ना। हम आप का आधा जिस्म तो नंगा देख ही चुके हैं तो अब आपको सलवार भी उतार देने में क्या झिझक है। और मैं सिर्फ़ सलवार उतारने का ही तो कह रहा हूँ आपको अपने साथ शामिल करने की शर्त तो नहीं रख रहा ना?”

कुछ देर तक कमरे में खामोशी छाई रही मैं भी कुछ नहीं बोला और आपी भी कुछ सोच रही थीं।

“ओके दफ़ा हो तुम लोग, नहीं देखना मैंने तुम लोगों को भी” - आपी ने चिल्ला कर कहा और अपनी क़मीज़ पहनने लगीं।

हम चुपचाप खड़े आपी को देखते रहे। उन्होंने क़मीज़ पहनी, स्कार्फ बाँधा और अपने जिस्म पर चादर को लपेट कर हमारी तरफ देखे बगैर बाहर जाने लगीं।
आपी अभी दरवाज़े में ही पहुँची थीं कि मैंने ज़रा तेज आवाज़ में कहा- “मेरी सोहनी बहना जी! अगर जेहन चेंज हो जाए और हमारी हालत पर रहम आ जाए तो हमारे कमरे का दरवाज़ा आपके लिए हमेशा खुला है। बिला-झिझक कमरे में आ जाना, हम आपको इस शानदार चीज़ के साथ यहाँ ही मिलेंगे”

आपी ने दरवाज़े में खड़े हो कर घूम कर मुझे बहुत गुस्से से देखा और कुछ बोले बिना ही दरवाज़ा ज़ोर से बंद करती हुई बाहर चली गईं।

आपी के बाहर जाते ही फरहान मेरे पास आया और फ़िक्र मंदी और मायूसी के मिले-जुले तसब्बुर से बोला- “भाई आज तो आपका प्लान बैकफायर नहीं कर गया? मेरा मतलब है कि अपनी बहन को पूरा नंगी देखने के चक्कर में हम आधे से भी गए। कम से कम आपी के खूबसूरत मम्मे तो हमारे सामने होते ही थे ना। अब तो सब खत्म हो गया”

“फ़िक्र ना करो यार, हम से ज्यादा मज़ा आपी को आता है हमें ये सब करते देखने में। मैं तुम्हें यक़ीन दिलाता हूँ वो वापस ज़रूर आएँगी। बेफ़िक्र रहो वो अब इसके बिना नहीं रह सकेंगी”

लेकिन मेरा अंदाज़ा गलत निकला और आपी उस रात वापस नहीं आई थीं।
सुबह नाश्ते के वक़्त भी आपी बहुत खराब मूड में थीं। मुझसे बात करना तो दूर की बात मेरी तरफ देख तक नहीं रही थीं। लेकिन मुझे अपनी बहन का ये अंदाज़ भी बहुत अच्छा लग रहा था। गुस्से में वो और ज्यादा हसीन लग रही थीं। उनके गुलाबी गाल गुस्से की हिद्दत से लाल-लाल हो रहे थे।

तीन दिन तक आपी का गुस्सा वैसा ही रहा फिर चौथी रात को फिर आपी हमारे कमरे में आईं और मुझसे नज़र मिलने पर दरवाज़े में खड़े-खड़े ही पूछने लगीं- “सगीर तुम्हारा दिमाग वापस ठिकाने पर आ गया है या अभी भी तुम वो ही चाहते हो जो उस दिन तुम्हारी ज़िद थी?”

मैंने कहा- “नहीं आपी! हम आज भी वो ही कहेंगे और कल भी वो ही कहेंगे जो उस दिन हमने कहा था”

आपी ने घूम कर एक नज़र दरवाज़े से बाहर सीढ़ियों की तरफ देखा और पलट कर अपने हाथों से चादर और क़मीज़ के दामन को सामने से पकड़ा और एक झटके से अपनी गर्दन तक उठा दिया और कहा- “एक बार फिर सोच लो वरना इनसे भी जाओगे”

फरहान ने फ़ौरन मेरी तरफ देखा जैसे कह रहा हो कि भाई मान जाओ। आज तीन दिन बाद अपनी बहन के खूबसूरत गुलाबी उभारों और छोटे-छोटे चूचुकों को देख कर दिमाग को एक झटका सा लगा लेकिन मैंने अपने जेहन को अपने कंट्रोल में कर ही लिया और फरहान को चुप रहने का इशारा करते हुए आपी को कहा- “बहना जी हमारा फ़ैसला अटल है”

“ओके तुम्हारी मर्ज़ी” -आपी ने अपनी क़मीज़ सही की और दरवाज़ा बंद करके बाहर चली गईं।

आपी के जाने के बाद हम दोनों कुछ देर वैसे ही उदास बैठे रहे और फिर फरहान सोने के लिए बिस्तर पर लेट गया। मेरा भी दिल उदास सा था और कुछ करने का मन नहीं कर रहा था। मैं भी बिस्तर पर लेट कर इन हालात पर सोचने लगा। मुझे भी यक़ीन सा होता जा रहा था कि अब शायद हमारे रूम में आपी कभी नहीं आएँगी और यह सिलसिला शायद इसी तरह खत्म होना था जो शायद आज ही खत्म हो गया है।
लगभग 45 मिनट से मैं अपनी इन्हीं सोचों में गुमसुम था कि दरवाज़ा खुलने की आवाज़ पर चौंक कर देखा तो आपी कमरे में दाखिल हो रही थीं।
उन्होंने अन्दर आकर दरवाज़ा लॉक किया और झुंझलाते हुए बोलीं- “तुम दोनों पूरे के पूरे खबीस हो, तुम अच्छी तरह से जानते हो कि इंसान का कौन सा बटन किस वक़्त पुश करना चाहिए और मैं जानती हूँ ये सारी कमीनगी सगीर, तुम्हारी ही प्लान की हुई है। तुम बहुत बहुत ही कमीने हो। अब उठो दोनों, क्यों मुर्दों की तरह पड़े हुए हो”

आपी ने ये कहा और फिर सोफे के पास जाकर अपनी क़मीज़ उतारने लगीं। चादर और स्कार्फ वो अपने कमरे में ही छोड़ आई थीं। आपी को क़मीज़ उतारते देख कर मैं भी बिस्तर से उठा और अपने कपड़े उतारने लगा। अपनी सग़ी बहन को मादरजात नंगी देखने के तसव्वुर से ही मेरे लण्ड में जान पड़ने लगी थी और वो भी खड़ा हो गया था।
मेरी देखा-देखी फरहान ने भी अपने कपड़े उतारे और हम दोनों अपने-अपने लण्ड को हाथ में पकड़ कर आपी से चंद गज़ के फ़ासले पर ज़मीन पर बैठ गए। [Image: 13837009_062_cda8.jpg]


[Image: 90234088_055_fff8.jpg]
आपी हमारे बिल्कुल सामने खड़ी थीं उन्होंने बेल्ट वाली काली सलवार पहनी हुई थी और इजारबंद नज़र नहीं आ रहा था जिससे ज़ाहिर होता था कि आपी की इस सलवार में इलास्टिक ही है। मेरी बहन का दूधिया गुलाबी जिस्म काली सलवार में बहुत खिल रहा था और नफ़ के नीचे काला तिल सलवार के साथ मैचिंग में बहुत भला दिख रहा था।आपी के पेट और सीने पर ग्रीन रगों का एक जाल सा था जो जिल्द के शफ़फ़ होने की वजह से बहुत वज़या था।
आपी ने अपने दोनों हाथों को अपनी कमर की साइड्स पर रखा, अंगूठों को सलवार में फँसा दिया और अपने हाथों को नीचे की तरफ दबाने लगीं। आपी की सलवार आहिस्तगी से नीचे सरकना शुरू हो गई। जैसे-जैसे आपी की सलवार नीचे सरक रही थी मेरे दिल की धडकनें भी तेज होती जा रही थीं। तकरीबन 2 इंच सलवार नीचे हो गई थी।
आपी की नफ़ के तकरीबन 3 इंच नीचे बालों के आसार नज़र आ रहे थे जिनको देख कर लगता था कि शायद आपी ने एक दिन पहले ही सफाई की थी। अचानक आपी ने अपने हाथों को रोक लिया। मेरी नजरें उनकी टाँगों के दरमियान ही जमी हुई थीं।
आपी के हाथ रुकते देख कर मैंने अपनी नज़र उठाई। जैसे ही आपी की नजरें मुझसे मिलीं उन्होंने शदीद शर्म के अहसास से अपनी आँखों को भींच लिया और अपने दोनों हाथ अपने चेहरे पर रख कर चेहरा छुपाते हुए पूरी घूम गईं।
आपी की शफ़फ़ और गुलाबी पीठ मेरी नजरों के सामने थी। चंद लम्हों तक हम तीनों ऐसे ही चुप रहे और मुकम्मल खामोशी छाई रही फिर मैंने इस खामोशी को तोड़ते हुए सिर्फ़ दो लफ्ज़ कहे- “आपी प्लीज़”

चंद लम्हें मज़ीद खामोशी की नज़र हो गए तो मैंने फिर कहा- “आअप्प्पीईइ..”

मेरी आवाज़ सुन कर आपी ने अपने चेहरे से हाथ उठा लिए और वापस अपनी कमर पर रखते हो अंगूठों को सलवार में फँसा दिया लेकिन आपी हमारी तरफ नहीं घूमीं और वैसे ही हमारी तरफ पीठ किए अपनी सलवार को नीचे खिसकने लगीं।
सलवार का ऊपरी किनारा वहाँ पहुँच गया था जहाँ से आपी के कूल्हों की गोलाई शुरू होती थी। सलवार थोड़ा और नीचे हुई तो उनके खूबसूरत शफ़फ़ और गुलाबी कूल्हों का ऊपरी हिस्सा और दोनों कूल्हों के दरमियान वाली लकीर नज़र आने लगी।
आपी ने सलवार को थोड़ा और नीचे किया और अपने हाथ फिर रोक लिए। उनके आधे कूल्हे और गाण्ड की आधी लकीर देख कर नशा सा छाने लगा था और मैं अपने हाथ से अपने लण्ड को भींचने लगा। आपी थोड़ी देर ऐसे ही रुकी रहीं और फिर थोड़ा झुकीं और एक ही झटके में सलवार को अपने पाँव तक पहुँचा कर दोबारा सीधी खड़ी होते हुए अपने चेहरे को हाथों से छुपा लिया और पाँव की मदद से सलवार को अपने जिस्म से अलग करने लगीं।[Image: 13072233_012_5144.jpg]
खवातीन और हजरात, यह कहानी बहुत ही रूमानियत से भरी है आपसे आग्रह है कि अपने ख्याल कहानी के अन्त में जरूर लिखें।

TO BE CONTINUED …….
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#51
हम भाइयों की जिद पर आपी ने आखिर अपनी सलवार उतार ही दी। मैं और फरहान दोनों आपी के चूतड़ों पर नजरें जमाए अपने-अपने लण्ड को अपने हाथों से रगड़ रहे थे। आपी हमारी तरफ पीठ किए हुए ही दो क़दम सोफे की तरफ बढ़ीं और अपना स्कार्फ उठा कर सीधी खड़ी होते हुए अपने सिर पर स्कार्फ बाँधने लगीं।
मैं पीछे बैठा आपी की एक-एक हरकत को देख रहा था। जब उन्होंने स्कार्फ बाँधने के लिए अपने दोनों बाज़ू अपने जिस्म से ऊपर उठाए तो उनकी बगलों के नीचे से सीने के उभारों की हल्की सी झलक नज़र आने लगी और आपी को इस पोजीशन में देखते ही मुझे कोका कोला की बोतल याद आ गई।
आपी का जिस्म बिल्कुल ऐसा ही था हर चीज़ बहुत तहजीब में थी। कमर से थोड़ा नीचे से साइड्स से उनकी कूल्हे बाहर की तरफ निकलना शुरू हो जाते थे और एक खूबसूरत गोलाई बनाते हुए रानों की शुरुआत पर वो गोलाई खत्म हो जाती थी। उनके दोनों कूल्हे मुकम्मल गोलाई लिए हुए और बेदाग और शफ़फ़ थे, उनकी रानें भी बहुत खूबसूरत और उनके बाक़ी जिस्म की तरह गुलाबी रंगत लिए हुए थीं। मुतनसीब पिंडलियाँ और खूबसूरत पाँव बहुत हसीन नज़र आते थे।
उनको हरकत ना करते देख कर मैंने कहा- “आपी प्लीज़ हमारी तरफ घूमो ना, प्लीज़..”

आपी ने मेरी बात सुनी और दोनों हाथों से अपनी टाँगों के बीच वाली जगह को छुपाते हुए सामने सोफे पर बैठ गईं। उन्होंने अपनी आँखें बंद कर रखी थीं। आपी का चेहरा शर्म के अहसास से लाल हो रहा था। कमरे में सिर्फ़ हम तीनों की तेज साँसों और हमारे ज़ोर-ज़ोर से धड़कते दिल की आवाजें गूँज रही थीं। फरहान और मेरे हाथ अपने अपने लंड को सहला रहे थे और नजरों ने आपी के जिस्म को गिरफ्त में ले रखा था।
हम आपी के सामने चंद गज़ के फ़ासले पर ही बैठे थे।

आपी के बैठते ही फरहान ने कहा- “आपी असल चीज़ तो अभी भी छुपी हुई है हाथ हटाओ ना”

“नहीं..!! मुझे बहुत शर्म आ रही है..!” -आपी ने अपनी आँखों को भींचते हुए हल्की आवाज़ में जवाब दिया।

मैंने कहा- “चलो ना सोहनी बहना जी, हम दोनों भी तो नंगे बैठे हैं ना आपके सामने”

मेरी बात खत्म होते ही आपी ने अपने दोनों हाथों को टाँगों के दरमियान से उठाया और अपने चेहरे को हाथों से छुपा लिया। उनकी टाँगें आपस में जुड़ी हुई थीं जिसकी वजह से सिर्फ़ उनकी टाँगों के दरमियान वाली जगह के ऊपरी बाल जो एक दिन की शेव जैसे थे, दिख रहे थे।

“आपी टाँगें खोलो ना” -फरहान बहुत उत्तेजित हो रहा था।

आपी ने अपने सिर को पीछे झुकाते हुए गर्दन को सोफे की पुश्त पर टिकाया और अपनी टाँगों को खोलने लगीं।
‘वॉवववव’ मेरे लिए जैसे दुनिया रुक सी गई थी। मुझे दूसरी बार ऐसा महसूस हुआ कि मैं अपनी ज़िंदगी का हसीन तरीन मंज़र देख रहा हूँ।
मैं अपनी ज़िंदगी में पहली बार असली चूत देख रहा था और चूत भी अपनी सग़ी बहन की। मेरा लण्ड कुछ-कुछ देर बाद एक झटका लेता और पानी का एक क़तरा बाहर फेंक देता। मैं अपनी बहन की चूत पर नज़र जमाए-जमाए मदहोश सा होता जा रहा था।
आपी की चूत के ऊपरी हिस्से में बिल्कुल छोटे-छोटे बाल थे, बाल जहाँ खत्म होते थे वहाँ से ही चूत शुरू होती थी। पूरी चूत गेहूँ के दाने सी मुशबाह थी। आपी की चूत का रंग बिल्कुल गुलाबी था और ज़रा उभरी हुई थी। चूत के लब फैले-फैले से थे और अन्दर का हिस्सा नज़र नहीं आ रहा था।
आपी की चूत के शुरू में हल्का सा गोश्त बाहर था जिसमें छुपा दाना (क्लिटोरिस) नज़र नहीं आता था। उनकी चूत के लिप्स के अंदरूनी हिस्सों से दोनों साइड्स से निकलते गोश्त के दो पर्दे से थे जो बहुत मस्त लग रहे थे।
“आपी आप इस दुनिया की हसीनतरीन लड़की हुए आपके जिस्म का हरेक हिस्सा ही इतना दिलकश है कि मदहोशी कर देता है। मैंने अपनी ज़िंदगी में इतना मुकम्मल जिस्म किसी का नहीं देखा। आपका चेहरा, आपके सीने के उभार, खूबसूरत पेट और कमर, जज़्ब ए नज़र, लंबी-लंबी टाँगें और हसीन तरीन चू..” -मैंने खोई-खोई सी आवाज़ में ये जुमले अदा किया।
फरहान मुँह खोले और अपने लण्ड को हाथ में पकड़े बस आपी की चूत पर नजरें जमाए हुए गुमसुम सा बैठा था। उसके मुँह से कोई आवाज़ तक नहीं निकली थी। आपी ने मेरी बात सुन कर अपनी आँखें खोलीं। उनका चेहरा शर्म और उत्तेजना से भरा हुआ था, उनकी आँखें बहुत नशीली हो रही थीं और जिस्म की गर्मी की वजह से आँखों में नमी आ गई थी। आपी ने अपनी हालत पर ज़रा क़ाबू पाते हुए मेरी तरफ देखा।
कुछ देर तक मैं और आपी एक-दूसरे की आँखों में देखते रहे फिर उन्होंने मेरी नजरों से नज़र मिलाए हुए एक ‘आहह..’ खारिज की और सिसकते हुए अंदाज़ में कहा- “सगीर उठो और अपने नए खिलौने को लेकर दोनों बिस्तर पर जाओ”

मैं हिप्नॉटाइज़्ड की सी कैफियत में उठा और फरहान के हाथ को पकड़ कर उसे उठने का इशारा किया और हम दोनों बिस्तर की तरफ चल दिए।
बिस्तर पर बैठ कर मैंने सिरहाने के नीचे से डिल्डो निकाला। यह डिल्डो हम दोनों के ही लण्ड से लंबा और थोड़ा मोटा भी था।
फरहान और मैंने डिल्डो की एक-एक साइड्स को मुँह में लिया और चूसने लगे। जब वो गीला हो गया तो मैंने फरहान से डॉगी स्टाइल में झुकने को कहा और मैं उठ कर उसकी गाण्ड के पास आ गया। मैंने डिल्डो को थोड़ा चिकना किया और फिर फरहान की गाण्ड में डालना शुरू कर दिया।
डिल्डो मेरे लण्ड से थोड़ा मोटा था और बड़ा भी था, तकरीबन 5-6 मिनट अन्दर-बाहर करने से फरहान की गाण्ड थोड़ी नर्म पड़ गई और डिल्डो आराम से अन्दर-बाहर होने लगा तो मैं भी डॉगी स्टाइल में हुआ और आपी की तरफ नज़र उठा कर शरारती अंदाज़ में मुस्कुरा दिया।
आपी भी मुझे देख कर मुस्कुराने लगीं उनके चेहरे से अब शर्म खत्म हो गई थी और सेक्स की हिद्दत लाली की सूरत में उनके गालों से ज़ाहिर हो रही थी, आपी बहुत दिलचस्पी से हम दोनों के एक्शन को देख रही थीं। आपी ने अपने लेफ्ट हैण्ड से अपने एक उभार को दबोच रखा था और राईट हैण्ड की इंडेक्स फिंगर और अंगूठे की चुटकी में अपनी चूत के ऊपर वाले हिस्से में पेवस्त दाने यानि क्लिट को मसल रही थीं।
मैंने फरहान की गाण्ड से गाण्ड मिला कर अपना हाथ पीछे की तरफ ले जाकर डिल्डो को थामा और उसका दूसरा सिरा अपनी गाण्ड में डालने की कोशिश करने लगा। मेरे जेहन में यह था कि डिल्डो पूरा अन्दर करके में अपनी गाण्ड फरहान की गाण्ड से मिला दूँ लेकिन इस मुश्किल पोजीशन में मुझसे डिल्डो अपनी गाण्ड में नहीं डाला जा रहा था। हमने ये पोजीशन मूवीज में देखी थीं और आपी ने खासतौर पर इस पोजीशन को पसन्द किया था इसलिए मैं उनको रियल शो दिखाना चाहता था।
लेकिन 2-3 मिनट कोशिश करने के बावजूद में कामयाब नहीं हुआ तो मैंने बेचारजी की नज़र से आपी को देखा और कहा- “आपी ये पोजीशन आसान नहीं है। कसम से मैं जानबूझ के ऐसा नहीं कर रहा, यक़ीन करो, मैं पूरी कोशिश कर रहा हूँ”

आपी ने अपने सीने के उभार और चूत को मसलते हुए धीरे से कहा- “कोई बात नहीं, तुम आराम से डालने की कोशिश करो”

मैंने कुछ देर दोबारा कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हुआ। मैंने फिर आपी की तरफ देखा और मायूसी से ‘नहीं’ के अंदाज़ में अपने सिर को हिलाया। आपी कुछ देर हम दोनों को देखती रहीं। फिर पता नहीं उन्हें क्या हुआ कि वो अपनी जगह से उठ कर हमारे पास आईं और अपने एक हाथ से डिल्डो को पकड़ा और दूसरा हाथ से मेरे कूल्हों को खोलते हुए डिल्डो का सिरा मेरी गाण्ड के सुराख पर रख कर अन्दर दबाने लगीं।
आपी का हाथ छूते ही मेरे मुँह से एक ‘आहह..’ निकली और मैंने बेसाख्ता ही कहा- “आआहह.. आपी! आपके हाथ का अहसास बहुत मज़ा दे रहा है”

आपी ने एक हाथ से डिल्डो को मेरी गाण्ड में अन्दर-बाहर करते हुए कहा- “अच्छा चलो ऐसी बात है तो और मज़ा ले लो”

आपी ने यह कहा और दूसरे हाथ को मेरी गाण्ड पर फेरते हुए नीचे ले गईं और मेरी बॉल्स (टट्टों) को अपने हाथ में ले लिया और नर्मी से मसलने लगीं।

“चलो, अब दोनों एक साथ पीछे की तरफ झटका मारो और फिर एक साथ ही आगे जाना ताकि रिदम ना खराब हो” - यह कहते हुए आपी ने अपने हाथ से डिल्डो को छोड़ दिया।

अचानक मुझे फरहान की तेज सिसकारी की आवाज़ सुनाई दी- “आअहह आपी जी.. उफफफ्फ़”

मैंने सिर घुमा कर देखा तो आपी ने दूसरे हाथ में फरहान के बॉल्स पकड़े हुए थे और उन्हें भी मसल रही थीं।
हम दोनों को आपी के हाथों की नर्मी पागल किए दे रही थी और हम बहुत तेज-तेज अपने जिस्मों को आगे-पीछे करने लगे।
जब हमारा रिदम बन गया तो आपी ने हमारे बॉल्स को छोड़ा और सोफे की तरफ जाते हुए बोलीं- “अब अपनी मदद खुद करो, मैं तुम लोगों को मज़ा देने नहीं अपना मज़ा लेने के लिए आई हूँ”

TO BE CONTINUED ….
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

Love You All  Heart Heart
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#52
फ़िर आपी हम दोनों की डिल्डो से गांड चुदाई का मज़ा लेने के लिए सोफे पर जाकर बैठ गईं। हम दोनों की स्पीड अब कम हो गई थी और हम दोनों ने आपी के बैठते ही अपनी नजरें उनकी टाँगों के दरमियान जमा लीं। उनकी चूत बहुत गीली होने की वजह से चमक रही थी।
आपी ने हमारी तरफ देखा और हमको अपनी चूत की तरफ देखता पाकर मुस्कुरा दीं और अपनी टाँगें थोड़ी और खोल लीं।

“सगीर.. फरहान..!”

आपी की आवाज़ पर हम दोनों ने एक साथ ही नज़र उठाईं तो आपी ने शरीर सी मुस्कुराहट के साथ अपने सीधे हाथ की दरमियान वाली बड़ी ऊँगली को अपने होंठों में फँसा कर चूसा और हवा में लहरा कर अपनी चूत की तरफ हाथ ले जाने लगीं। हमारी नजरें आपी की हाथ के साथ ही परवाज़ कर रही थीं।
आपी ने अपने हाथ को चूत पर रखा और इंडेक्स और तीसरी फिंगर की मदद से चूत के लिप्स को खोला तो उनकी चूत का दाना साफ नज़र आने लगा। आपी ने बीच वाली ऊँगली को अपनी चूत के दाने पर रखा और आहिस्ता-आहिस्ता मसलने लगीं।
इस नज़ारे ने मुझ पर और फरहान पर जादू सा किया और हम तेजी से हरकत करने लगे और 8 इंच का डिल्डो पूरा ही अन्दर जाने लगा। जब हम पीछे को झटका मारते तो हम दोनों की गाण्ड आपस में टकराने से ‘थपथाप्प..’ की आवाज़ निकालती।
आपी ने हमारी हालत से अंदाज़ा लगा लिया कि उनकी इस हरकत ने हमें बहुत मज़ा दिया है। आपी ने दोबारा अपना हाथ फिर हटाया और दरमियान वाली ऊँगली को मुँह में डाल कर चूसने लगीं फिर वो उसी तरह हवा में हाथ को लहराते हुए नीचे लाईं और इस बार भी अपनी चूत के पर्दों को अपनी ऊँगलियों की मदद से साइड्स पर करते हुए दरमियान वाली बड़ी ऊँगली को 2-3 बार क्लिट पर रगड़ कर नीचे की तरफ दबा दिया।
इसी हरकत के साथ उनके मुँह से ‘अहह..’ की आवाज़ निकली और उन्होंने ऊँगली का सिरा अपनी चूत के अन्दर दाखिल कर दिया। मैं और फरहान तो यह देखते ही पागल से हो गए और ज़ोर-ज़ोर से अपनी गाण्ड को आपस में टकराने लगे। मैंने अपने लण्ड को हाथ में पकड़ा और उससे दबोचने लगा और हाथ तेजी से आगे-पीछे करने लगा।
हमारा पागलपन आपी के मज़े को भी बहुत बढ़ा गया था। उन्होंने अपनी सीधे हाथ की मिडल ऊँगली का एक इंची हिस्सा बहुत तेजी से अपनी चूत में अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया और बायें हाथ से कभी अपनी निप्पल्स को चुटकी में मसलने लगतीं तो कभी अपनी चूत के दाने को चुटकी पर पकड़ के मसलने और खींचने लगतीं।
वो बिना झिझके और पलकें झपकाए हमारी तरफ ही देख रही थीं।
चंद मिनट बाद ही फरहान के लण्ड ने पानी छोड़ दिया और उसने एक झटके से आगे होते हुए डिल्डो को अपनी गाण्ड से बाहर निकाल दिया। अब आधा डिल्डो मेरी गाण्ड के अन्दर था और आधा बाहर लटक रहा था जैसे कि वो मेरी दुम हो। आपी ने फरहान के लण्ड से जूस निकलते देखा और मेरी गाण्ड में आधे घुसे और आधे लटके डिल्डो को देखा तो लज्जत की एक और सिहरअंगेज़ लहर की वजह से उनके मुँह से एक तेज ‘अहह..’ निकली, इसी के साथ उनका हाथ भी चूत पर तेज-तेज चलने लगा।
आपी ने अपनी गर्दन को सोफे की पुश्त से टिका कर अपनी आँखें बंद कर लीं। उनके दोनों पाँव ज़मीन पर टिके थे और वो अपनी ऊँगली को अपनी चूत में अन्दर-बाहर करने के रिदम के साथ ही अपनी गाण्ड को आगे करते हुए सोफे से थोड़ा सा उठ जाती थीं।
मैंने आपी की आँखें बंद होती देखीं तो डिल्डो को अपनी गाण्ड से बाहर निकाले बगैर ही बिस्तर से उठ कर आपी की टाँगों के दरमियान आ बैठा। मेरी देखा-देखी फरहान भी क़रीब आ गया।
आपी की गुलाबी चूत में उनकी खूबसूरत गुलाबी ऊँगली बहुत तेजी से अन्दर-बाहर हो रही थी। जब आपी अपनी ऊँगली अन्दर दबाती थीं तो चूत के लब भी बंद हो जाते और उनकी ऊँगली को अपने अन्दर दबोच लेते। जब ऊँगली बाहर आती तो लब खुल जाते और लबों के अन्दर से ऊँगली के दोनों साइड्स पर चूत के पर्दे नज़र आने लगते।
आपी जब अपनी उंगली को चूत में दबाती थीं तो चूतड़ों को सोफे से हल्का सा उठा लेतीं और उसी रिदम में आगे झटका देतीं। आपी का पूरा हाथ उनकी चूत से निकलते जूस से गीला हो गया था जिससे चूत के आस-पास का हिस्सा और उनका हाथ दोनों ही चमक रहे थे।
आपी की चूत से बहुत माशूरकन महक निकल रही थी। वो ऐसी महक थी जो लफ्जों में बयान नहीं की जा सकती बस महसूस की जा सकती है। जिन्होंने उस खुश्बू को अपनी बहन की चूत से निकलते हुए महसूस किया है या आपमें से जो लोग अपनी बहनों की ब्रा या पैन्टी को सूँघते रहे हैं। वो जान सकते हैं कि चूत से उठती महक में कैसा जादू होता है।
अचानक आपी ने अपनी गर्दन को सोफे की पुश्त पर दबाया और टाँगें खुली रखते हुए ही पैर ज़मीन पर टिका कर अपने चूतड़ों को सोफे से उठा लिया, उनका जिस्म कमान की सूरत में अकड़ गया, हाथ चूत से और उभारों से हट गए और पेट के क़रीब अकड़ गए थे। आपी ने अपनी आँखों को बहुत ज़ोर से भींच लिया था और उनके चेहरे पर बहुत तक़लीफ़ का अहसास था।
यह पता नहीं आपी के डिसचार्ज होने का ख़याल था, उनके हसीन खूबसूरत जिस्म का नज़ारा था, सेक्सी माहौल का असर या फिर मेरी सग़ी बहन की चूत से उठती मदहोशकन खुश्बूओं का जादू था कि मैं बुत की सी कैफियत में आगे बढ़ा
और
अपनी बहन के सीने के दोनों उभारों को अपने दोनों हाथों में दबोचा और आपी की चूत पर अपना मुँह रखते हुए उनकी चूत के दाने को पूरी ताक़त से अपने होंठों में दबा लिया और चूस लिया।
आपी के मुँह से एक तेज ‘अहाआआआआ..’ निकली और उन्होंने बेसाख्ता ही अपने दोनों हाथों को मेरे सिर पर रखते हुए अपनी चूत को मेरे मुँह पर दबा दिया। फरहान मेरी इस हरकत पर शॉक की हालत में रह गया और ना उसने हरकत की और ना ही उसकी ज़ुबान से कोई बात निकली।

आपी के जिस्म ने एक ज़ोरदार झटका खाया और उनके मुँह से निकला- “सगीर.. अहह.. रुकओ.. ऊऊ मैं गइई.. उफ फफ्फ़..”

और इसी के साथ ही आपी के जिस्म को मज़ीद झटके लगने लगे और उनका जिस्म अकड़ने लगा, वो मेरे मुँह को अपनी चूत पर दबाती जा रही थीं और उनके हलक़ से ‘आआखह.. अहह..’ की आवाजें निकल रही थीं। मुझे अपने मुँह में आपी की चूत फड़कती हुई सी महसूस हो रही थी।
मैंने ज़िंदगी में पहली बार किसी चूत का ज़ायक़ा चखा था। कुछ लम्हों बाद ही जब आपी को अपनी हालत का इल्हाम हुआ कि उनका सगा भाई अपने हाथों से उनके सीने के उभारों को दबा रहा है और उनकी शर्मगाह को अपने मुँह में दबाए हुए है तो उन्होंने तकरीबन चिल्लाते हुए कहा- “नहीं.. सगीर.. हटोअओ.. छोड़ो मुझे.. उफफ्फ़.. ये.. ये क्या कर रहे हो.. मैं तुम्हारी सग़ी बहन हूँ.. प्लीज़..”

मैंने आपी की चूत के दाने को अपने दाँतों में पकड़ कर ज़रा ज़ोर से दबा दिया।
“अहह.. ऊऊओफ्फ़.. साअ..गर्र छोड़ो मुझे हटोऊऊ.. नाआ आआ..” -आपी ने ये कह कर एकदम अपने कूल्हों को सोफे पर गिराया और अपने दोनों हाथों से मेरे हाथों को पकड़ते हुए एक झटके से अपने उभारों से दूर कर दिया और मेरे सीने पर अपने पाँव रखते हुए मुझे धक्का दिया।

मैं आपी के धक्का देने से तकरीबन 2 फीट पीछे की तरफ गिरा और अपना सिर ज़मीन पर टकराने से बहुत मुश्किल से बचाया।

मुझे धक्का देते ही आपी ने देखा कि मेरा सिर ज़मीन पर लगने लगा है तो वो मुझे बचाने के लिए एकदम सोफे से उठीं और बोलीं- “सगीर..”

उन्होंने मुझे देखा कि मेरा सिर नहीं टकराया है तो फ़ौरन ही वापस सोफे पर बैठ गईं और अपने जिस्म को समेटते हुए दोनों हाथों में चेहरा छुपा लिया और रोने लगीं।
मैंने फरहान की तरफ देखा तो वो बहुत डरा हुआ और कुछ परेशान सा था। मैंने उसको इशारे से कहा कि कुछ नहीं होगा ‘यार.. मैं हूँ ना..’ जाओ तुम बिस्तर पर जाओ।
फरहान को समझा कर मैं आपी की तरफ गया। वो सोफे पर ऐसे बैठी थीं कि उन्होंने अपनी दोनों टाँगों को आपस में मज़बूती से मिला रखा था और अपनी रानों पर कोहनियाँ रखे बाजुओं से अपने सीने के उभारों को छुपाने की कोशिश की हुई थी।
‘कोशिश..’ मैंने इसलिए कहा कि मेरी बहन के बड़े-बड़े मम्मे नर्मोनाज़ुक से बाजुओं में छुप ही नहीं सकते थे।

मैं आपी के पास जाकर खड़ा हुआ और कहा- “आपी प्लीज़ रोओ तो नहीं यार..”

आपी ने रोते-रोते ही जवाब दिया- “नहीं सगीर तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था। ये बहुत गलत है, बहुत गलत हुआ है ये। तुमने मेरी हालत का नाजायज़ फ़ायदा उठाया है। तुम जानते ही हो कि मैं जब डिसचार्ज होने लगती हूँ तो मैं होश में नहीं रहती। तुम तो होश में थे। इतना तो सोचते कि मैं तुम्हारी सग़ी बहन हूँ सगीर”

TO BE CONTINUED .....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#53
(27-02-2024, 08:14 AM)KHANSAGEER Wrote: [Image: 26649280_048_6358.jpg]
फ़िर आपी हम दोनों की डिल्डो से गांड चुदाई का मज़ा लेने के लिए सोफे पर जाकर बैठ गईं। हम दोनों की स्पीड अब कम हो गई थी और हम दोनों ने आपी के बैठते ही अपनी नजरें उनकी टाँगों के दरमियान जमा लीं। उनकी चूत बहुत गीली होने की वजह से चमक रही थी।
आपी ने हमारी तरफ देखा और हमको अपनी चूत की तरफ देखता पाकर मुस्कुरा दीं और अपनी टाँगें थोड़ी और खोल लीं।

“सगीर.. फरहान..!”

आपी की आवाज़ पर हम दोनों ने एक साथ ही नज़र उठाईं तो आपी ने शरीर सी मुस्कुराहट के साथ अपने सीधे हाथ की दरमियान वाली बड़ी ऊँगली को अपने होंठों में फँसा कर चूसा और हवा में लहरा कर अपनी चूत की तरफ हाथ ले जाने लगीं। हमारी नजरें आपी की हाथ के साथ ही परवाज़ कर रही थीं।
आपी ने अपने हाथ को चूत पर रखा और इंडेक्स और तीसरी फिंगर की मदद से चूत के लिप्स को खोला तो उनकी चूत का दाना साफ नज़र आने लगा। आपी ने बीच वाली ऊँगली को अपनी चूत के दाने पर रखा और आहिस्ता-आहिस्ता मसलने लगीं।[Image: 14373655_121_c53e.jpg]
इस नज़ारे ने मुझ पर और फरहान पर जादू सा किया और हम तेजी से हरकत करने लगे और 8 इंच का डिल्डो पूरा ही अन्दर जाने लगा। जब हम पीछे को झटका मारते तो हम दोनों की गाण्ड आपस में टकराने से ‘थपथाप्प..’ की आवाज़ निकालती।
आपी ने हमारी हालत से अंदाज़ा लगा लिया कि उनकी इस हरकत ने हमें बहुत मज़ा दिया है। आपी ने दोबारा अपना हाथ फिर हटाया और दरमियान वाली ऊँगली को मुँह में डाल कर चूसने लगीं फिर वो उसी तरह हवा में हाथ को लहराते हुए नीचे लाईं और इस बार भी अपनी चूत के पर्दों को अपनी ऊँगलियों की मदद से साइड्स पर करते हुए दरमियान वाली बड़ी ऊँगली को 2-3 बार क्लिट पर रगड़ कर नीचे की तरफ दबा दिया।
इसी हरकत के साथ उनके मुँह से ‘अहह..’ की आवाज़ निकली और उन्होंने ऊँगली का सिरा अपनी चूत के अन्दर दाखिल कर दिया। मैं और फरहान तो यह देखते ही पागल से हो गए और ज़ोर-ज़ोर से अपनी गाण्ड को आपस में टकराने लगे। मैंने अपने लण्ड को हाथ में पकड़ा और उससे दबोचने लगा और हाथ तेजी से आगे-पीछे करने लगा।[Image: 68454210_003_7d71.jpg]
हमारा पागलपन आपी के मज़े को भी बहुत बढ़ा गया था। उन्होंने अपनी सीधे हाथ की मिडल ऊँगली का एक इंची हिस्सा बहुत तेजी से अपनी चूत में अन्दर-बाहर करना [Image: 68454210_037_c895.jpg]शुरू कर दिया और बायें हाथ से कभी अपनी निप्पल्स को चुटकी में मसलने लगतीं तो कभी अपनी चूत के दाने को चुटकी पर पकड़ के मसलने और खींचने लगतीं।[Image: 68454210_034_bd41.jpg]
वो बिना झिझके और पलकें झपकाए हमारी तरफ ही देख रही थीं।
चंद मिनट बाद ही फरहान के लण्ड ने पानी छोड़ दिया और उसने एक झटके से आगे होते हुए डिल्डो को अपनी गाण्ड से बाहर निकाल दिया। अब आधा डिल्डो मेरी गाण्ड के अन्दर था और आधा बाहर लटक रहा था जैसे कि वो मेरी दुम हो। आपी ने फरहान के लण्ड से जूस निकलते देखा और मेरी गाण्ड में आधे घुसे और आधे लटके डिल्डो को देखा तो लज्जत की एक और सिहरअंगेज़ लहर की वजह से उनके मुँह से एक तेज ‘अहह..’ निकली, इसी के साथ उनका हाथ भी चूत पर तेज-तेज चलने लगा।
आपी ने अपनी गर्दन को सोफे की पुश्त से टिका कर अपनी आँखें बंद कर लीं। उनके दोनों पाँव ज़मीन पर टिके थे और वो अपनी ऊँगली को अपनी चूत में अन्दर-बाहर करने के रिदम के साथ ही अपनी गाण्ड को आगे करते हुए सोफे से थोड़ा सा उठ जाती थीं।
मैंने आपी की आँखें बंद होती देखीं तो डिल्डो को अपनी गाण्ड से बाहर निकाले बगैर ही बिस्तर से उठ कर आपी की टाँगों के दरमियान आ बैठा। मेरी देखा-देखी फरहान भी क़रीब आ गया।
आपी की गुलाबी चूत में उनकी खूबसूरत गुलाबी ऊँगली बहुत तेजी से अन्दर-बाहर हो रही थी। जब आपी अपनी ऊँगली अन्दर दबाती थीं तो चूत के लब भी बंद हो जाते और उनकी ऊँगली को अपने अन्दर दबोच लेते। जब ऊँगली बाहर आती तो लब खुल जाते और लबों के अन्दर से ऊँगली के दोनों साइड्स पर चूत के पर्दे नज़र आने लगते।[Image: 14876163_045_3f46.jpg]
आपी जब अपनी उंगली को चूत में दबाती थीं तो चूतड़ों को सोफे से हल्का सा उठा लेतीं और उसी रिदम में आगे झटका देतीं। आपी का पूरा हाथ उनकी चूत से निकलते जूस से गीला हो गया था जिससे चूत के आस-पास का हिस्सा और उनका हाथ दोनों ही चमक रहे थे।
आपी की चूत से बहुत माशूरकन महक निकल रही थी। वो ऐसी महक थी जो लफ्जों में बयान नहीं की जा सकती बस महसूस की जा सकती है। जिन्होंने उस खुश्बू को अपनी बहन की चूत से निकलते हुए महसूस किया है या आपमें से जो लोग अपनी बहनों की ब्रा या पैन्टी को सूँघते रहे हैं। वो जान सकते हैं कि चूत से उठती महक में कैसा जादू होता है।[Image: 68454210_048_f2a7.jpg]
अचानक आपी ने अपनी गर्दन को सोफे की पुश्त पर दबाया और टाँगें खुली रखते हुए ही पैर ज़मीन पर टिका कर अपने चूतड़ों को सोफे से उठा लिया, उनका जिस्म कमान की सूरत में अकड़ गया, हाथ चूत से और उभारों से हट गए और पेट के क़रीब अकड़ गए थे। आपी ने अपनी आँखों को बहुत ज़ोर से भींच लिया था और उनके चेहरे पर बहुत तक़लीफ़ का अहसास था।[Image: 26649280_048_6358.jpg]
यह पता नहीं आपी के डिसचार्ज होने का ख़याल था, उनके हसीन खूबसूरत जिस्म का नज़ारा था, सेक्सी माहौल का असर या फिर मेरी सग़ी बहन की चूत से उठती मदहोशकन खुश्बूओं का जादू था कि मैं बुत की सी कैफियत में आगे बढ़ा[Image: 26649280_049_dfab.jpg]
और
अपनी बहन के सीने के दोनों उभारों को अपने दोनों हाथों में दबोचा और आपी की चूत पर अपना मुँह रखते हुए उनकी चूत के दाने को पूरी ताक़त से अपने होंठों में दबा लिया और चूस लिया।
आपी के मुँह से एक तेज ‘अहाआआआआ..’ निकली और उन्होंने बेसाख्ता ही अपने दोनों हाथों को मेरे सिर पर रखते हुए अपनी चूत को मेरे मुँह पर दबा दिया। फरहान मेरी इस हरकत पर शॉक की हालत में रह गया और ना उसने हरकत की और ना ही उसकी ज़ुबान से कोई बात निकली।

आपी के जिस्म ने एक ज़ोरदार झटका खाया और उनके मुँह से निकला- “सगीर.. अहह.. रुकओ.. ऊऊ मैं गइई.. उफ फफ्फ़..”

और इसी के साथ ही आपी के जिस्म को मज़ीद झटके लगने लगे और उनका जिस्म अकड़ने लगा, वो मेरे मुँह को अपनी चूत पर दबाती जा रही थीं और उनके हलक़ से ‘आआखह.. अहह..’ की आवाजें निकल रही थीं। मुझे अपने मुँह में आपी की चूत फड़कती हुई सी महसूस हो रही थी।
मैंने ज़िंदगी में पहली बार किसी चूत का ज़ायक़ा चखा था। कुछ लम्हों बाद ही जब आपी को अपनी हालत का इल्हाम हुआ कि उनका सगा भाई अपने हाथों से उनके सीने के उभारों को दबा रहा है और उनकी शर्मगाह को अपने मुँह में दबाए हुए है तो उन्होंने तकरीबन चिल्लाते हुए कहा- “नहीं.. सगीर.. हटोअओ.. छोड़ो मुझे.. उफफ्फ़.. ये.. ये क्या कर रहे हो.. मैं तुम्हारी सग़ी बहन हूँ.. प्लीज़..”

मैंने आपी की चूत के दाने को अपने दाँतों में पकड़ कर ज़रा ज़ोर से दबा दिया।
“अहह.. ऊऊओफ्फ़.. साअ..गर्र छोड़ो मुझे हटोऊऊ.. नाआ आआ..” -आपी ने ये कह कर एकदम अपने कूल्हों को सोफे पर गिराया और अपने दोनों हाथों से मेरे हाथों को पकड़ते हुए एक झटके से अपने उभारों से दूर कर दिया और मेरे सीने पर अपने पाँव रखते हुए मुझे धक्का दिया।

मैं आपी के धक्का देने से तकरीबन 2 फीट पीछे की तरफ गिरा और अपना सिर ज़मीन पर टकराने से बहुत मुश्किल से बचाया।

मुझे धक्का देते ही आपी ने देखा कि मेरा सिर ज़मीन पर लगने लगा है तो वो मुझे बचाने के लिए एकदम सोफे से उठीं और बोलीं- “सगीर..”

उन्होंने मुझे देखा कि मेरा सिर नहीं टकराया है तो फ़ौरन ही वापस सोफे पर बैठ गईं और अपने जिस्म को समेटते हुए दोनों हाथों में चेहरा छुपा लिया और रोने लगीं।
मैंने फरहान की तरफ देखा तो वो बहुत डरा हुआ और कुछ परेशान सा था। मैंने उसको इशारे से कहा कि कुछ नहीं होगा ‘यार.. मैं हूँ ना..’ जाओ तुम बिस्तर पर जाओ।
फरहान को समझा कर मैं आपी की तरफ गया। वो सोफे पर ऐसे बैठी थीं कि उन्होंने अपनी दोनों टाँगों को आपस में मज़बूती से मिला रखा था और अपनी रानों पर कोहनियाँ रखे बाजुओं से अपने सीने के उभारों को छुपाने की कोशिश की हुई थी।
‘कोशिश..’ मैंने इसलिए कहा कि मेरी बहन के बड़े-बड़े मम्मे नर्मोनाज़ुक से बाजुओं में छुप ही नहीं सकते थे।

मैं आपी के पास जाकर खड़ा हुआ और कहा- “आपी प्लीज़ रोओ तो नहीं यार..”

आपी ने रोते-रोते ही जवाब दिया- “नहीं सगीर तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था। ये बहुत गलत है, बहुत गलत हुआ है ये। तुमने मेरी हालत का नाजायज़ फ़ायदा उठाया है। तुम जानते ही हो कि मैं जब डिसचार्ज होने लगती हूँ तो मैं होश में नहीं रहती। तुम तो होश में थे। इतना तो सोचते कि मैं तुम्हारी सग़ी बहन हूँ सगीर”

TO BE CONTINUED .....
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#54
Heart 
“आपी प्लीज़ जो कुछ हुआ उससे हम मिटा नहीं सकते, आपको अपने सीने के उभारों को मसलते, निप्पल्स को झंझोड़ते और अपनी टाँगों के दरमियान वाली जगह में ऊँगली अन्दर-बाहर करते देख कर मेरी भी सोचने-समझने की सलाहियत खत्म हो गई थी। आपकी टाँगों के बीच से उठती माशूरकन खुश्बू ने मेरे होश भी गुम कर दिए थे और मैंने जो किया उसकी आपको उस वक़्त शदीद जरूरत थी, लाज़मी था कि आपको संतुष्टि मिले वरना आप का नर्वस ब्रेक डाउन भी हो सकता था”

मैं यह कह कर आपी के साथ ही सोफे पर बैठ गया। मैं वाकयी ही बहुत दुखी हो गया था, मैं अपनी प्यारी बहन को रोता नहीं देख सकता था।
मैंने अपने एक हाथ से उनके सिर को नर्मी से थामते हुए अपने सीने से लगा लिया और अपना दूसरा बाज़ू आपी के पीछे से उनकी नंगी कमर से लगते हुए हाथ आपी के कंधों पर रख दिया।

मैं आपी को चुप कराने लगा- “आपी प्लीज़! अब बस करो, मैं आपको रोता नहीं देख सकता। मेरा दिल फट जाएगा, चुप हो जाओ”

आपी ने अभी भी अपने चेहरे को दोनों हाथों में छुपा रखा था और उनकी आँखों से मुसलसल आँसू निकल रहे थे। मैंने आपी के कंधे से हाथ हटाया और बिला इरादा ही उनकी नंगी कमर को सहलाने लगा। आपी के गाल मेरे सीने और कंधे के दरमियानी हिस्से के साथ चिपके और उनके सीने के खूबसूरत और बड़े-बड़े उभार मेरे सीने में दबे हुए थे।
आपी के निप्पल्स बहुत सख्ती से अकड़े हुए मेरे सीने के बालों में उलझे पड़े थे और मेरे खड़े लण्ड की नोक! आपी की नफ़ से ज़रा नीचे साइड पर उभरे खूबसूरत तिल को चूम रही थी। आपी ने रोना अब बंद कर दिया था लेकिन उनके मुँह से सिसकियाँ अभी भी निकल रही थीं। मैंने आपी के दोनों हाथों को अपने हाथ में लिया और उनके चेहरे से हटा कर आपी की गोद में रख दिया। मैंने आपी का चेहरा अपने हाथ से ऊपर किया, उन्होंने आँखें बंद कर रखी थीं।
मैंने अपने हाथ से आपी के आँसू साफ करने शुरू किए तो आपी ने आँखें खोल दीं। मैं उनके आँसुओं को साफ कर रहा था और आपी बिना पलक झपकाए मेरी आँखों में देख रही थीं, उनकी आँखों में बहुत तेज चमक थी। उस वक़्त पता नहीं क्या था आपी की आँखों में......
मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैं अब हमेशा के लिए इन आँखों का गुलाम हो गया हूँ। उनकी आँखों में देखते-देखते मेरी आँख में भी आँसू आ गए। आपी ने वैसे ही मेरे सीने से लगे-लगे अपना एक हाथ उठाया और मेरे आँसू साफ करने लगीं।
मैंने उस वक़्त अपनी बहन के लिए अपने दिल-ओ-दिमाग में शदीद मुहब्बत महसूस की और बेसख्तगी में अपना चेहरा नीचे किया तो पता नहीं किस अहसास के तहत आपी ने भी अपनी आँखें बंद कर लीं और मैंने अपने होंठ आपी के होंठों से मिला दिए। आपी के होंठ बहुत नर्म थे, मैंने आपी के ऊपर वाले होंठ को चूसना शुरू किया तो मुझे ऐसे लगा जैसे मैं गुलाब की पंखुड़ी को चूम रहा हूँ।
कुछ देर ऊपर वाले होंठ को चूसने के बाद मैंने आपी के नीचे वाले होंठ को अपने मुँह में दबाया तो मेरा ऊपरी होंठ आपी ने अपने मुँह में ले लिया और मदहोश सी मेरे ऊपरी होंठ को चूसने लगीं।
चुम्बन एक ऐसी चीज़ है कि आप अगर पहली मर्तबा भी करें तो आपको सीखने की जरूरत नहीं पड़ती, नेचर हमें खुद ही समझा देती है कि हमने क्या करना है।
आपी ने अपने जिस्म को मेरे हाथों में बिल्कुल ढीला छोड़ दिया था। मैंने आपी के दोनों होंठों के दरमियान अपने होंठ रख कर उनके मुँह को थोड़ा सा खोला और आपी की ज़ुबान को अपने होंठों में खींचने की कोशिश करने लगा। आपी ने मेरे इरादे को समझते हुए अपनी ज़ुबान को मेरे मुँह में दाखिल कर दिया। आपी की ज़ुबान का रस चूसते-चूसते ही मैंने अपना हाथ उठाया और आपी के सीने के उभार को नर्मी से थाम लिया और आहिस्ता-आहिस्ता दबाने और मसलने लगा। मैंने आपी के निप्पल को अपनी चुटकी में मसला तो आपी के मुँह से ‘सस्स्स्सीईईईई..’ की आवाज़ निकली और मेरे मुँह में गुम हो गई। मैं अपना हाथ आपी के दोनों उभारों पर फिराता हुआ नीचे की तरफ जाने लगा।
आपी के पेट पर हाथ फेरते हुए मैंने अपने हाथ को थोड़ा और नीचे किया और जैसे ही मेरा हाथ अपनी बहन की टाँगों के दरमियान पहुँचा और मैंने उनकी चूत के दाने को छुआ ही था कि उन्होंने एकदम से मचल कर आँखें खोल दीं और एक झटके से अपने जिस्म को मेरे जिस्म से अलग करते हुए कहा- “नहीं सगीर.. नहींईई.. ये नहीं होना चाहिए नहीं.. नहीं”

‘नहीं.. नहीं..’ की गर्दन करते हुए आपी उठीं और अपनी क़मीज़ पहनने लगीं। मैंने आपी की कैफियत को समझते हुए उनको कुछ कहना मुनासिब नहीं समझा कि उनको अपनी इस हरकत पर बहुत गिल्टी फील हो रहा था और मेरा कुछ कहना हमारे इस नए ताल्लुक के लिए अच्छा नहीं साबित होना था। मैं और फरहान चुपचाप आपी को कपड़े पहनते देखते रहे। आपी ने अपने कपड़े पहने और तेज क़दमों से चलती हुई कमरे से बाहर निकल गईं।
मैं अपने ऊपर छाए नशे को तोड़ना नहीं चाहता था, आपी के जिस्म की खुश्बू अभी भी मेरी साँसों में बसी थी और मैं उससे खोना नहीं चाहता था इसलिए फरहान से कुछ बोले बिना उससे सोने का इशारा करते हुए बिस्तर पर लेट गया और अपने लण्ड को हाथ में पकड़े आँखें बंद करके आपी के साथ हुए खेल को सोचते हुए लण्ड सहलाने लगा।
जल्दी ही मेरे लण्ड ने पानी छोड़ दिया और अब मुझमें इतनी हिम्मत भी नहीं थी कि मैं अपनी सफाई कर सकता। उसी तरह लेटे-लेटे ही मैं नींद की वादियों मैं खो गया।
सुबह जब मेरी आँख खुली तो 9 बज रहे थे, मैं फ्रेश हो कर नीचे पहुँचा तो अम्मी टीवी लाऊँज में ही बैठी थीं। मैंने उन्हें सलाम किया और आपी का पूछा, तो अम्मी बोलीं- “बेटा रूही यूनिवर्सिटी गई है और तुम्हारे छोटे भाई बहन अपने स्कूल गए हैं। तुम आज कॉलेज क्यों नहीं गए हो, अपनी पढ़ाई का भी कुछ ख़याल किया करो”

फरहान और हनी के स्कूल शुरू हो चुके थे। अम्मी ने हमेशा की तरह सबका ही बता दिया और मुझे भी लेक्चर पिलाने लगीं।

वो ज़रा सांस लेने को रुकीं तो मैं फ़ौरन बोला- “अम्मी नाश्ता तो दें दें ना, मुझे आज कॉलेज लेट जाना था इसलिए देर से ही उठा हूँ”

अम्मी बोलते-बोलते ही किचन में गईं और पहले से तैयार रखी नाश्ते की ट्रे उठाए हुए बाहर आ गईं। मैंने भी नाश्ता किया और कॉलेज चला गया। दिन में जब मैं कॉलेज से वापस आया तो फरहान और हनी नानी के घर जाने को तैयार खड़े थे और अम्मी उनको कुछ सामान देते हो नसीहतें दे रही थीं।

“सीधा नानी के घर ही जाना, कोई आइसक्रीम-वाइसक्रीम के चक्कर में मत पड़ जाना। सुन रहे हो ना मैं क्या कह रही हूँ” वगैरह वगैरह..

फरहान, हनी को भेजने के बाद अम्मी वहीं सोफे पर बैठ गईं और टीवी पर मसाला चैनल (कुकरी शो) देखने लगीं। 

मैंने अम्मी को कहा- “अम्मी बहुत भूख लगी है। खाना तो दे दें”

अम्मी ने टीवी पर ही नज़र जमाए हुए कहा- “रूही किचन में ही है, उससे कहो दे देगी”

आपी का जिक्र सुनते ही लण्ड ने सलामी के तौर पर झटका खाया और मैं किचन की तरफ बढ़ ही रहा था कि किचन के दरवाज़े पर आपी खड़ी नज़र आ गईं, वो बाहर ही आ रही थीं लेकिन अम्मी की बात सुन कर वहाँ ही रुक गईं और मेरी तरफ देख कर कुछ शर्म और कुछ झिझक के अंदाज़ में मुस्कुरा दीं। उन्होंने हमेशा की तरह सिर पर स्कार्फ बाँधा हुआ था और चादर के बजाए बड़ा सा कॉटन का दुपट्टा सीने पर फैला रखा था।

मैंने आपी को देख कर सलाम किया और नॉर्मल अंदाज़ में कहा- “आपी खाना दे दें, बहुत सख़्त भूख लगी है”

“तुम हाथ-मुँह धो कर टेबल पर बैठो, मैं खाना लेकर आती हूँ” - आपी ने किचन में वापस घुसते हुए जवाब दिया।

मैं हाथ-मुँह धोते हुए यही सोच रहा था कि कल रात जो आपी को बहुत गिल्टी फीलिंग हो रही थीं शायद अब वो धीमी पड़ गई है। वाकयी ही ये लण्ड और चूत की भूख ऐसी ही है कि जब जागती है तो गलत-सही, झूठ-सच कुछ नहीं देखती बस अपना आपा दिखाती है।
मैं ज़रा फ्रेश होकर टेबल पर बैठ ही रहा था कि आपी ट्रे उठाए किचन से निकलीं और मेरे सामने खाना रख कर सोफे पर अम्मी के पास ही बैठ गईं। मैं खाना खाने लगा और अम्मी और आपी आपस मैं बातें करने लगीं। मैं खाना खाते-खाते नज़र उठा कर आपी के सीने के उभारों और पूरे जिस्म को भी देख लेता था। आपी ने मेरी नजरों को महसूस कर लिया था। लड़कियों की सिक्स सेंस्थ इस मामले में बहुत तेज होती है, वो अपनी पीठ पर भी नजरों की ताड़ को महसूस कर लेती हैं।

अब जब मैंने नज़र उठाई तो आपी ने भी उसी वक़्त मेरी तरफ देखा और गुस्सैल सी शकल बना कर आँखों से अम्मी की तरफ इशारा किया। जैसे कह रही हों कि दिमाग ठिकाने पर नहीं है क्या?? अम्मी देख लेंगी….

TO BE CONTINUED ….
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#55
lajavab update hai aage aage dekho hota hai kya
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#56
Tongue 
(27-02-2024, 10:09 PM)saya Wrote: lajavab update hai aage aage dekho hota hai kya

AGLA UPDATE KAISA HONA CHAHIYE YE BHI TO BATAYA KARIYE
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#57
आपी के इशारे को समझते हुए मैंने एक नज़र अम्मी पर डाली, वे टीवी देखने में ही मस्त थीं और फिर आपी को देखते हुए अपने हाथ पर किस किया और किस को आपी की तरफ फेंक दिया। आपी के चेहरे पर बेसाख्ता ही मुस्कुराहट आ गई और उन्होंने अम्मी से नज़र बचा कर मेरी किस को कैच किया और अपने हाथ को अपने होंठों से लगा लिया। मेरे चेहरे पर भी मुस्कुराहट फैल गई। आपी ने फिर आँखों से खाने की तरफ इशारा किया और दोबारा अम्मी से बातें करने लगीं।
मैंने खाना खत्म किया ही था कि अम्मी ने आपी को हुकुम दिया- “रूही जाओ, भाई ने खाना खा लिया है। बर्तन अभी ही धो देना, ऐसे ही ना रख देना, बू आने लगती है”

“अम्मी मैंने पहले कभी छोड़े हैं, जो आज ऐसे ही रखूँगी। आप भी ना” - आपी ने नाराज़गी दिखाते हुए अम्मी को कहा और मेरे पास आकर बर्तन उठाने लगीं।

मैंने अम्मी की तरफ देखा, वो टीवी में ही मग्न थीं। मैंने उनसे नज़र बचाते हुए आपी के सीने के उभार की तरफ हाथ बढ़ाया और उनकी निप्पल पर चुटकी काट ली।
आपी के मुँह से तेज ‘आआयइईई ईईईईईई’ की आवाज़ निकली।

“क्या हुआ?” -अम्मी ने हमारी तरफ रुख़ मोड़ते हुए कहा।

मुझे अंदाज़ा था कि आपी इस सिचुयेशन से घबरा जाएंगी। इसलिए मैंने फ़ौरन ही बोल दिया- “अम्मी आपी के फैशन भी तो नहीं खत्म होते ना, इतने बड़े नाख़ून रखती ही क्यों हैं कि बर्तन में उलझ कर तक़लीफ़ देने लगें”

अम्मी ने मेरी बात सुनी और वापस टीवी की तरफ़ ध्यान देते हुए आपी को लेक्चर देना शुरू कर दिया।
आपी ने मेरी तरफ देखा और मुझे थप्पड़ दिखाते हुए बर्तन उठाए और रसोई में जाने लगीं। मैं आपी के कूल्हों पर नज़र जमाए कुछ लम्हों पहले की अपनी हरकत पर खुद ही मुस्कुराने लगा।

“आपी एक गिलास पानी तो ला दो” -कुछ देर बाद मैंने ज़रा ऊँची आवाज़ में कहा।

आपी ने रसोई से ही जवाब दिया- “खुद आ कर ले लो, मेरे हाथों पर साबुन लगा है”

मैं उठा और पानी के लिए रसोई के दरवाज़े पर पहुँचा तो आपी सामने वॉशबेसिन पर खड़ी गंदे बर्तन धो रही थीं, उनके दोनों हाथ साबुन से सने थे। मैं अन्दर दाखिल हुआ और आपी को पीछे से जकड़ते हुए हाथ आगे करके आपी के खूबसूरत उभारों को अपने हाथ में पकड़ा और कहा- “क्या हाल है मेरी सोहनी बहना जी?”

आपी मेरी इस हरकत पर मचल उठीं और मेरे सीने पर अपनी कोहनियों से दबाव देते हुए मुझे पीछे हटाने की कोशिश की और दबी आवाज़ में बोलीं- “सगीर..!! कमीने ना कर, अम्मी बाहर ही बैठी हैं। कुछ तो हया कर, छोड़ मुझे”

मैंने आपी की गर्दन पर अपने होंठ रखे और आँखें बंद करके एक तेज सांस लेते हुए आपी के जिस्म की खुश्बू को अपने अन्दर उतारा और कहा- “मेरी बहना जी! तुम्हारे जिस्म के हर हिस्से की खुश्बू होश से बेगाना कर देती है”

“सगीर छोड़ो मुझे, अम्मी अन्दर आ जाएंगी प्लीज़, कुछ गैरत खाओ” -आपी ने डरी हुई आवाज़ में कहा और अपने जिस्म को मेरी गिरफ्त से आज़ाद करने की कोशिश करने लगीं।

मैंने आपी के एक उभार को अपने सीधे हाथ से ज़रा ज़ोर से दबाया और अपना हाथ नीचे ले जाते हुए कहा- “अम्मी बहारी कवाब मुकम्मल तैयार करवा के ही टीवी से हटेंगी। आप अपना काम करती रहो ना, मैं अपना काम करता हूँ”

मेरा लण्ड अब खड़ा हो चुका था और मेरा हाथ आपी की टाँगों के दरमियान पहुँच गया था। जैसे ही मेरा हाथ आपी की टाँगों के बीच टच हुआ तो वो बेसाख्ता ही आगे को झुकीं। उनके साथ ही मैं भी थोड़ा झुका और मेरा खड़ा लण्ड आपी के कूल्हों की दरार में फिट हो गया।

“उफफ्फ़, सगीर छोड़ो मुझे, वरना मैं साबुन से भरे हाथ तुम्हारे कपड़ों से लगा दूँगी” -आपी ने नकली गुस्से से कहा लेकिन अपनी पोजीशन तब्दील नहीं की।

“लगा दें, फिर अम्मी को जवाब भी आप खुद ही देना, पहले तो मैंने बचा लिया था” -मैंने आपी की टाँगों के बीच रखे अपने हाथ को सलवार के ऊपर से ही उनकी चूत के दाने पर रगड़ते हुए कहा।

आपी ने मचलना बंद कर दिया था। शायद वो चंद लम्हों के लिए ही उस सुरूर को खोना नहीं चाहती थीं जो मेरे हाथ से उन्हें मिल रहा था। उन्होंने अटकती और फंसी-फंसी सी आवाज़ में हल्का सा मज़ा लेते हुए कहा- “आअहह! तो कमीनगी तो तुम्हारी ही थी ना, ना करते उल्टी सीधी हरकत”

मैंने आपी के कूल्हों में अपने लण्ड को ज़रा और दबाया तो उन्होंने मेरे लण्ड के दबाव से बचने के लिए अपने कूल्हों को दायें बायें हरकत दी तो उसका असर उलटा ही हुआ और मेरा लण्ड आपी के कूल्हों की दरार में मुकम्मल फिट हो गया। मैंने आहिस्ता आहिस्ता झटकों से अपने लण्ड को उनकी लकीर के दरमियान रगड़ते हुए अपने हाथ को थोड़ा और नीचे किया और आपी की चूत की एंट्रेन्स पर अपनी ऊँगली को दबाया। तो फ़ौरन आपी मछली की तरह तड़फीं और ज़रा ताक़त से मुझे पीछे धक्का देते हुए मेरी गिरफ्त से निकल गईं। मैं आपी के धक्के की वजह से पीछे रखे रेफ्रिजरेटर से टकराया और उसके ऊपर रखे बर्तन आवाज के साथ ज़मीन पर गिरे।

“अब क्या तोड़ दिया हैईइ?” -अम्मी ने बाहर से चिल्ला कर पूछा।

फ़ौरन ही आपी ने भी ऊँची आवाज़ में ही जवाब दिया- “कुछ नहीं टूटा अम्मी, बर्तन धो कर शेल्फ पर रखे थे, फिसल के गिर पड़े हैं”

आपी ने अपनी बात खत्म की और दोनों हाथ अपनी कमर पर रख कर गुस्से से मुझे देखने लगीं। आपी को ऐसे देख कर मुझे हँसी आ गई।
मुझे हँसता देख कर वो मेरी तरफ बढ़ीं, मेरे दोनों बाजुओं को पकड़ा और मेरा रुख़ दरवाज़े की तरफ घुमा दिया। मेरी पीठ पर अपने दोनों हाथ रखे और धक्का देते हुए किचन के दरवाज़े पर ला कर छोड़ा और मुझे गुस्से से ऊँगली दिखाते हुए वापस अन्दर चली गईं।
मैंने अम्मी को देखा तो उनका ध्यान मुकम्मल तौर पर टीवी पर ही था।
मैं कुछ सेकेंड ऐसे ही रुका और फिर आहिस्तगी से दोबारा रसोई में दाखिल हुआ। आपी को मेरे फिर अन्दर आने का पता नहीं चला था, मैं दबे कदमों उनके पीछे जा कर खड़ा हुआ ही था कि आपी ने महसूस किया कि पीछे कोई है। जैसे ही आपी ने गर्दन मोड़ कर पीछे देखा, मैंने आपी के चेहरे को दोनों हाथों में मज़बूती से थामा और अपने होंठ आपी के होंठों पर रख दिए।
मैंने खूब ज़ोरदार चुम्मी की और आपी को छोड़ कर भागता हुआ बाहर निकल आया।
मैंने पीछे मुड़ कर आपी को नहीं देखा था लेकिन मेरी ख्याली नज़र देख रही थी कि मेरे निकलते ही आपी कुछ देर तक अपनी कमर पर हाथ रख कर खड़ी रहीं और फिर गर्दन को दायें बायें नहीं के अंदाज़ में हरकत देते हुए मुस्कुरा दीं। हया की लाली ने उनके गालों को सुर्ख कर दिया था।
मैं बाहर आकर अम्मी के पास ही सोफे पर बैठ कर टीवी देखने लगा।

कुछ ही देर में बोर होते हुए मैंने अम्मी के हाथ से रिमोट खींचा और हँसते हुए कहा- “अम्मी बहारी कवाब अब प्रोड्यूसर हज़म भी कर चुका होगा और इस आंटी ने अभी कुछ और बनाना शुरू कर देना है। आपका यह ‘मसाला चैनल’ तो 24 घंटे ही चलता है। आप सब आज ही देख लेंगी तो कल क्या करेंगी, छोड़ें अब”

अम्मी ने सुस्ती से एक जम्हाई ली और कहा- “तुम और तुम्हारे बाबा ही हो ना जिनको चटोरी चीजें पसन्द हैं। तुम्हारे लिए ही देख रही थी”

अम्मी ने कहा और उठ कर अपने कमरे में जाने लगीं। दिन में सोने की उनकी पक्की आदत थी। अम्मी के जाने के बाद मैं कुछ देर तक वैसे ही गायब दिमाग से चैनल चेंज करता रहा और मुझे पता ही नहीं चला कि कब आपी मेरे पीछे आकर खड़ी हो गईं। आपी ने अपने दोनों हाथों से मेरे सिर के बालों को पकड़ा और खींचने लगीं।

“उफफ्फ़.. आपीईईई.. दर्द हो रहा है। छोड़ो ना बालों को” -मैंने तक़लीफ़जदा आवाज़ में कहा

तो आपी ने हल्का सा झटका मारा और बोलीं- “जल्दी से मुझसे माफी मांगो वरना मैं बालों को नहीं छोड़ूंगी”

मैंने अपने दोनों हाथ उठाए और आपी के हाथ जिनसे उन्होंने मेरे बालों को जकड़ा हुआ था को कलाइओं से पकड़ लिया और कराहते हुए कहा- “अच्छा अच्छा, मैं माफी माँगता हूँ। अब छोड़ो न बाल”

“नहीं ऐसे नहीं, बोलो आपी जान! मैं… आइन्दा… ऐसा… नहीं… करूँगा…” आपी ने ठहर-ठहर के ये लफ्ज़ अदा किए।

आपी की बात खत्म होने पर मैंने उसी अंदाज़ में दोहराया, - “आपी जान! मैं... आइन्दा... ऐसा... नहीं करूँगा”

आपी मेरे सिर के बालों को एक झटका और देते हुए बोलीं- “प्लीज़ प्यारी आपी जी! मुझे... माफ़... कर... दें...”

“सोहनी बहना जी! प्लीज़ मुझे माफ़ कर दें” -मैंने यह कहा तो आपी ने अपनी गिरफ्त ज़रा लूज कर दी और वैसे ही मेरे बालों को जकड़े-जकड़े ही सोफे की बगल से घूमते हुए सामने आ गईं।

गिरफ्त ढीली पड़ने पर मैंने भी आपी की कलाइयों को छोड़ दिया।

“शाबाश, अब तुम अच्छे बच्चे बने हो ना” -आपी ने ये कहते हुए मेरे बाल छोड़े और हँसते हुए सोफे पर बैठने के लिए जैसे ही उन्होंने पीठ मेरी तरफ की, मैंने खड़े होते हुए आपी को पीछे से जकड़ा और उन्हें अपनी गोद में लेता हुआ ही सोफे पर बैठ गया।

TO BE CONTINUED …..
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

Love You All  Heart Heart
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#58
(28-02-2024, 07:24 AM)KHANSAGEER Wrote: [Image: 95575243_001_9a05.jpg]
आपी के इशारे को समझते हुए मैंने एक नज़र अम्मी पर डाली, वे टीवी देखने में ही मस्त थीं और फिर आपी को देखते हुए अपने हाथ पर किस किया और किस को आपी की तरफ फेंक दिया। आपी के चेहरे पर बेसाख्ता ही मुस्कुराहट आ गई और उन्होंने अम्मी से नज़र बचा कर मेरी किस को कैच किया और अपने हाथ को अपने होंठों से लगा लिया। मेरे चेहरे पर भी मुस्कुराहट फैल गई। आपी ने फिर आँखों से खाने की तरफ इशारा किया और दोबारा अम्मी से बातें करने लगीं।
मैंने खाना खत्म किया ही था कि अम्मी ने आपी को हुकुम दिया- “रूही जाओ, भाई ने खाना खा लिया है। बर्तन अभी ही धो देना, ऐसे ही ना रख देना, बू आने लगती है”

“अम्मी मैंने पहले कभी छोड़े हैं, जो आज ऐसे ही रखूँगी। आप भी ना” - आपी ने नाराज़गी दिखाते हुए अम्मी को कहा और मेरे पास आकर बर्तन उठाने लगीं।[Image: 18816678_060_cbff.jpg]

मैंने अम्मी की तरफ देखा, वो टीवी में ही मग्न थीं। मैंने उनसे नज़र बचाते हुए आपी के सीने के उभार की तरफ हाथ बढ़ाया और उनकी निप्पल पर चुटकी काट ली।
आपी के मुँह से तेज ‘आआयइईई ईईईईईई’ की आवाज़ निकली।[Image: 38200601_040_44a8.jpg]

“क्या हुआ?” -अम्मी ने हमारी तरफ रुख़ मोड़ते हुए कहा।

मुझे अंदाज़ा था कि आपी इस सिचुयेशन से घबरा जाएंगी। इसलिए मैंने फ़ौरन ही बोल दिया- “अम्मी आपी के फैशन भी तो नहीं खत्म होते ना, इतने बड़े नाख़ून रखती ही क्यों हैं कि बर्तन में उलझ कर तक़लीफ़ देने लगें”


[Image: 38200601_030_091e.jpg]



अम्मी ने मेरी बात सुनी और वापस टीवी की तरफ़ ध्यान देते हुए आपी को लेक्चर देना शुरू कर दिया।
आपी ने मेरी तरफ देखा और मुझे थप्पड़ दिखाते हुए बर्तन उठाए और रसोई में जाने लगीं। मैं आपी के कूल्हों पर नज़र जमाए कुछ लम्हों पहले की अपनी हरकत पर खुद ही मुस्कुराने लगा।

“आपी एक गिलास पानी तो ला दो” -कुछ देर बाद मैंने ज़रा ऊँची आवाज़ में कहा।

आपी ने रसोई से ही जवाब दिया- “खुद आ कर ले लो, मेरे हाथों पर साबुन लगा है”

मैं उठा और पानी के लिए रसोई के दरवाज़े पर पहुँचा तो आपी सामने वॉशबेसिन पर खड़ी गंदे बर्तन धो रही थीं, उनके दोनों हाथ साबुन से सने थे। मैं अन्दर दाखिल हुआ और आपी को पीछे से जकड़ते हुए हाथ आगे करके आपी के खूबसूरत उभारों को अपने हाथ में पकड़ा और कहा- “क्या हाल है मेरी सोहनी बहना जी?”

आपी मेरी इस हरकत पर मचल उठीं और मेरे सीने पर अपनी कोहनियों से दबाव देते हुए मुझे पीछे हटाने की कोशिश की और दबी आवाज़ में बोलीं- “सगीर..!! कमीने ना कर, अम्मी बाहर ही बैठी हैं। कुछ तो हया कर, छोड़ मुझे”

मैंने आपी की गर्दन पर अपने होंठ रखे और आँखें बंद करके एक तेज सांस लेते हुए आपी के जिस्म की खुश्बू को अपने अन्दर उतारा और कहा- “मेरी बहना जी! तुम्हारे जिस्म के हर हिस्से की खुश्बू होश से बेगाना कर देती है”

“सगीर छोड़ो मुझे, अम्मी अन्दर आ जाएंगी प्लीज़, कुछ गैरत खाओ” -आपी ने डरी हुई आवाज़ में कहा और अपने जिस्म को मेरी गिरफ्त से आज़ाद करने की कोशिश करने लगीं।

मैंने आपी के एक उभार को अपने सीधे हाथ से ज़रा ज़ोर से दबाया और अपना हाथ नीचे ले जाते हुए कहा- “अम्मी बहारी कवाब मुकम्मल तैयार करवा के ही टीवी से हटेंगी। आप अपना काम करती रहो ना, मैं अपना काम करता हूँ”[Image: 51561268_002_dd2b.jpg]


मेरा लण्ड अब खड़ा हो चुका था और मेरा हाथ आपी की टाँगों के दरमियान पहुँच गया था। जैसे ही मेरा हाथ आपी की टाँगों के बीच टच हुआ तो वो बेसाख्ता ही आगे को झुकीं। उनके साथ ही मैं भी थोड़ा झुका और मेरा खड़ा लण्ड आपी के कूल्हों की दरार में फिट हो गया।

“उफफ्फ़, सगीर छोड़ो मुझे, वरना मैं साबुन से भरे हाथ तुम्हारे कपड़ों से लगा दूँगी” -आपी ने नकली गुस्से से कहा लेकिन अपनी पोजीशन तब्दील नहीं की।[Image: 66316495_008_c674.jpg]

“लगा दें, फिर अम्मी को जवाब भी आप खुद ही देना, पहले तो मैंने बचा लिया था” -मैंने आपी की टाँगों के बीच रखे अपने हाथ को सलवार के ऊपर से ही उनकी चूत के दाने पर रगड़ते हुए कहा।

आपी ने मचलना बंद कर दिया था। शायद वो चंद लम्हों के लिए ही उस सुरूर को खोना नहीं चाहती थीं जो मेरे हाथ से उन्हें मिल रहा था। उन्होंने अटकती और फंसी-फंसी सी आवाज़ में हल्का सा मज़ा लेते हुए कहा- “आअहह! तो कमीनगी तो तुम्हारी ही थी ना, ना करते उल्टी सीधी हरकत”

मैंने आपी के कूल्हों में अपने लण्ड को ज़रा और दबाया तो उन्होंने मेरे लण्ड के दबाव से बचने के लिए अपने कूल्हों को दायें बायें हरकत दी तो उसका असर उलटा ही हुआ और मेरा लण्ड आपी के कूल्हों की दरार में मुकम्मल फिट हो गया। मैंने आहिस्ता आहिस्ता झटकों से अपने लण्ड को उनकी लकीर के दरमियान रगड़ते हुए अपने हाथ को थोड़ा और नीचे किया और आपी की चूत की एंट्रेन्स पर अपनी ऊँगली को दबाया। तो फ़ौरन आपी मछली की तरह तड़फीं और ज़रा ताक़त से मुझे पीछे धक्का देते हुए मेरी गिरफ्त से निकल गईं। मैं आपी के धक्के की वजह से पीछे रखे रेफ्रिजरेटर से टकराया और उसके ऊपर रखे बर्तन आवाज के साथ ज़मीन पर गिरे।

“अब क्या तोड़ दिया हैईइ?” -अम्मी ने बाहर से चिल्ला कर पूछा।

फ़ौरन ही आपी ने भी ऊँची आवाज़ में ही जवाब दिया- “कुछ नहीं टूटा अम्मी, बर्तन धो कर शेल्फ पर रखे थे, फिसल के गिर पड़े हैं”

आपी ने अपनी बात खत्म की और दोनों हाथ अपनी कमर पर रख कर गुस्से से मुझे देखने लगीं। आपी को ऐसे देख कर मुझे हँसी आ गई।
मुझे हँसता देख कर वो मेरी तरफ बढ़ीं, मेरे दोनों बाजुओं को पकड़ा और मेरा रुख़ दरवाज़े की तरफ घुमा दिया। मेरी पीठ पर अपने दोनों हाथ रखे और धक्का देते हुए किचन के दरवाज़े पर ला कर छोड़ा और मुझे गुस्से से ऊँगली दिखाते हुए वापस अन्दर चली गईं।
मैंने अम्मी को देखा तो उनका ध्यान मुकम्मल तौर पर टीवी पर ही था।
मैं कुछ सेकेंड ऐसे ही रुका और फिर आहिस्तगी से दोबारा रसोई में दाखिल हुआ। आपी को मेरे फिर अन्दर आने का पता नहीं चला था, मैं दबे कदमों उनके पीछे जा कर खड़ा हुआ ही था कि आपी ने महसूस किया कि पीछे कोई है। जैसे ही आपी ने गर्दन मोड़ कर पीछे देखा, मैंने आपी के चेहरे को दोनों हाथों में मज़बूती से थामा और अपने होंठ आपी के होंठों पर रख दिए।[Image: 28127305_009_f231.jpg]
मैंने खूब ज़ोरदार चुम्मी की और आपी को छोड़ कर भागता हुआ बाहर निकल आया।
मैंने पीछे मुड़ कर आपी को नहीं देखा था लेकिन मेरी ख्याली नज़र देख रही थी कि मेरे निकलते ही आपी कुछ देर तक अपनी कमर पर हाथ रख कर खड़ी रहीं और फिर गर्दन को दायें बायें नहीं के अंदाज़ में हरकत देते हुए मुस्कुरा दीं। हया की लाली ने उनके गालों को सुर्ख कर दिया था।
मैं बाहर आकर अम्मी के पास ही सोफे पर बैठ कर टीवी देखने लगा।

कुछ ही देर में बोर होते हुए मैंने अम्मी के हाथ से रिमोट खींचा और हँसते हुए कहा- “अम्मी बहारी कवाब अब प्रोड्यूसर हज़म भी कर चुका होगा और इस आंटी ने अभी कुछ और बनाना शुरू कर देना है। आपका यह ‘मसाला चैनल’ तो 24 घंटे ही चलता है। आप सब आज ही देख लेंगी तो कल क्या करेंगी, छोड़ें अब”

अम्मी ने सुस्ती से एक जम्हाई ली और कहा- “तुम और तुम्हारे बाबा ही हो ना जिनको चटोरी चीजें पसन्द हैं। तुम्हारे लिए ही देख रही थी”
[Image: 66316495_002_605a.jpg]

अम्मी ने कहा और उठ कर अपने कमरे में जाने लगीं। दिन में सोने की उनकी पक्की आदत थी। अम्मी के जाने के बाद मैं कुछ देर तक वैसे ही गायब दिमाग से चैनल चेंज करता रहा और मुझे पता ही नहीं चला कि कब आपी मेरे पीछे आकर खड़ी हो गईं। आपी ने अपने दोनों हाथों से मेरे सिर के बालों को पकड़ा और खींचने लगीं।

“उफफ्फ़.. आपीईईई.. दर्द हो रहा है। छोड़ो ना बालों को” -मैंने तक़लीफ़जदा आवाज़ में कहा

तो आपी ने हल्का सा झटका मारा और बोलीं- “जल्दी से मुझसे माफी मांगो वरना मैं बालों को नहीं छोड़ूंगी”

मैंने अपने दोनों हाथ उठाए और आपी के हाथ जिनसे उन्होंने मेरे बालों को जकड़ा हुआ था को कलाइओं से पकड़ लिया और कराहते हुए कहा- “अच्छा अच्छा, मैं माफी माँगता हूँ। अब छोड़ो न बाल”

“नहीं ऐसे नहीं, बोलो आपी जान! मैं… आइन्दा… ऐसा… नहीं… करूँगा…” आपी ने ठहर-ठहर के ये लफ्ज़ अदा किए।

आपी की बात खत्म होने पर मैंने उसी अंदाज़ में दोहराया, - “आपी जान! मैं... आइन्दा... ऐसा... नहीं करूँगा”

आपी मेरे सिर के बालों को एक झटका और देते हुए बोलीं- “प्लीज़ प्यारी आपी जी! मुझे... माफ़... कर... दें...”

“सोहनी बहना जी! प्लीज़ मुझे माफ़ कर दें” -मैंने यह कहा तो आपी ने अपनी गिरफ्त ज़रा लूज कर दी और वैसे ही मेरे बालों को जकड़े-जकड़े ही सोफे की बगल से घूमते हुए सामने आ गईं।

गिरफ्त ढीली पड़ने पर मैंने भी आपी की कलाइयों को छोड़ दिया।

“शाबाश, अब तुम अच्छे बच्चे बने हो ना” -आपी ने ये कहते हुए मेरे बाल छोड़े और हँसते हुए सोफे पर बैठने के लिए जैसे ही उन्होंने पीठ मेरी तरफ की, मैंने खड़े होते हुए आपी को पीछे से जकड़ा और उन्हें अपनी गोद में लेता हुआ ही सोफे पर बैठ गया।

TO BE CONTINUED …..
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#59
Waiting
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#60
Picchle kucch dino ki chhed chhaad ke baad bhai ke saath saath behen bhi khulti ja rahi hai, aur ab to khud apni taraf se he shuruaat bhi karti dikhti hai.
Aur shayad isi wajah se sageer ki bhi himmat badh gayi hai jo din dahaade he apni ammi ki maujoodgi mein bhi apni appi ko pyaar karne se rok nahi paata.
Kahani to mast hai bas ye gay wala stuff jyaada ho raha hai. Shuruaat mein thoda bahut theek tha par ab baar baar inka jyaada lag raha hai.
Sexual activities ke saath saath in dono bhai behen ke beech baat cheet bhi khoob dikhaao. Isko padhne mein jyaada maza aayega.
Chhote bhai ko filhaal in dono ki chemistry se bahar he rakho, bas jab jyaada spicy bana ho to usko scene mein include karo.

Baaki kahani theek chal rahi hai. Saath mein thoda update bhi bada karo.
N8ce keep it up
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