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(22-02-2024, 05:37 PM)neerathemall Wrote: नीतू से एक संक्षिप्त परिचय करवाना —-
रूपाली की जेठानी का नाम नीतू है। नीतू मौसा जी के बड़े भाई अशोक की पत्नी है जिनका कपड़ों का बड़ा व्यवसाय है।
अशोक सारा दिन शराब के नशे में डूबा रहता है जिसकी वजह से शादी के इतने साल बाद भी उनकी कोई संतान नहीं है।
नीतू की उम्र 30 साल है लेकिन चेहरे के भोलेपन और मासूमियत की वजह से वह देखने में रूपाली की हमउम्र ही लगती है।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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काले घने बाल जो खुला छोड़ने पर उसकी कमर तक आते थे। हिरनी की तरह उसकी हल्की भूरी मृगनयनी आँखें, सपाट और उजला माथा जिस पर छोटी सी काली बिंदी जैसे हर भारतीय महिला के वैवाहिक जीवन की प्रतिक होती है।
कश्मीरी सेब की तरह गुलाबी गाल और दो बेहद पतले, नाजुक, रसीले होंठ।
उसकी त्वचा दूध सी सफेद और मुलायम थी। उसकी 34″ के आकार वाली चूचियां, 28 इंच की लचकती हुई कमर और 35″ की भारी-भरकम गांड सच में उसका फिगर बहुत ही कातिलाना था।
उसे देख कर जवान, बूढ़े क्या यहाँ तक कि मुर्दों के लंड में हलचल होने लगे।
नीतू देखने में कुछ हद तक पंजाबी हिरोइन जैसी लगती है।
रूपाली- दीदी, आप इस वक़्त यहाँ अचानक?
नीतू- हां, छोटे (मौसा जी) ने कहा था कि वो काम की वजह से कुछ दिनों के लिये बाहर जा रहा है. और रूपाली भी घर में अकेली है इसलिये मुझे तेरे पास आने को बोला।
नीतू ने मेरी तरफ इशारा करते हुए पूछा- राहुल तुम कब आए?
मैं- जी अभी सुबह को ही आया, वो मौसी ने बुलाया था।
अब तक रूपाली जो किसी चिड़िया की तरह चहक रही थी, नीतू के अचानक आने से उसकी इच्छाओं के जैसे पंख ही कट गये हो।
नीतू को आगे वाले कमरे में बैठा कर रूपाली उनके लिये चाय बनने चली गयी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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शाम को दोनों ने मिल कर खाने की तैयारी की और खाना खाने के बाद दोनों रसोई के काम व्यस्त हो गई.
और मैं टीवी देखने में!
मेरा टीवी देखने में मन नहीं लग रहा था लेकिन मैं रूपाली के पास चाहकर भी नहीं जा सकता था क्योंकि नीतू भी रसोई में उसके साथ थी।
मेरी आँखों में तो बस रह-रह कर रूपाली की फड़कती हुई चूत घूम रही थी।
मन कर रहा था कि अभी पकड़ के नंगी कर दूँ और जमकर उसकी चुदाई कर डालूं।
जितना मैं रूपाली की चुदाई के लिये व्याकुल हो रहा था, शायद उससे कहीं ज्यादा वो मुझसे चुद जाने को बेचैन हो रही होगी।
घर का सारा काम खत्म करने के बाद अब सबके सोने की व्यवस्था कर दी गई थी।
बेड पर केवल दो लोगों के लिये ही सोने की जगह थी इसलिये मैंने दोनों महिलाओं को प्राथमिकता देते हुए अपना बिस्तर जमीन पर लगा लिया।
अब स्थिति कुछ इस प्रकार थी।
नीतू बेड के दायें तरफ दीवार की ओर मुंह करके लेटी थी और रूपाली उसके बगल में!
वहीं जमीन पर मैं रूपाली पैर के ठीक पास सिर करके लेट गया।
मैंने एक ऩजर उठा के रूपाली को देखा तो उसके चेहरे पर मुझे व्याकुलता स्पष्ट रूप से दिखाई दी।
लेकिन बगल में नीतू के लेटे होने की वजह से हम दोनों में कुछ भी करने की हिम्मत नहीं हुई।
कुछ देर तक हम दोनों उसी तरह लेटे रहे. नींद न मेरी आँखों में थी और न ही उसकी!
कुछ था तो बस शरीर में उठती कामवासना को उसके अंजाम तक पहुँचाना।
थोड़ी देर बाद जब मुझे लगा कि नीतू गहरी नींद में सो रही रही है तो मैं अपने बिस्तर से उठ खड़ा हुआ और रूपाली को अपने पीछे आने को कहा।
रूपाली भी किसी दासी की तरह बिना कोई सवाल करे मेरे पीछे हो ली।
हम दबे पाँव सीढ़ी चढ़ते हुए घर की छत पर पहुँच गये।
छत पर पहुँचते ही हम दोनों ने एक दूसरे को बांहों में कैद कर लिया और आलिंगनबद्ध हो गए बिना आस पास के माहौल की परवाह करे!
और वैसे भी रात एक बजे शायद ही कोई हमें देख रहा हो।
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कितनी देर तक हम उसी तरह बांहों में सिमटे रहे. उसके बदन की गर्मी से मैं भी उत्तेजित हो गया और मेरे हाथ स्वतः ही उसकी पीठ को सहलाने लगे।
कुछ देर बाद जब मैंने उसे अपने सीने अलग किया तो उसकी आँखें नम हो गयी थी और गला रुंध आया था।
उसने अपनी रुंधी हुई आवाज़ में मुझसे कहा- मुझे फिर से अपना बना लीजिए!
आगे बढ़ कर मैंने उसकी आँखों को पौंछा और उसके सुलगते हुए होंठों पर अपने होंठ रख दिये।
मैंने रूपाली के निचले होंठ को अपने दोनों होंठों के बीच में दबा कर चूसते हुए उसकी चूचियों को हाथों से मसलने लगा।
कुछ देर तक हाथों से उसके बदन पर कलाकारियाँ करते हुए रूपाली भी गर्म होने लगी थी जिसके चलते रूपाली ने अपनी जीभ मेरे मुंह में ठूंस दी और मेरी जीभ से अपनी जीभ लड़ाने लगी।
[url=https://www.dscgirls.live/model/lajja?affid=2&oid=4&source_id=AV&sub1=web&sub2=outstream&sub3=instory-outstream&sub4=live-recording-lajja][/url]
उसके निप्पल बाहर की ओर उभर आये और चूचियां भी कड़क हो गयी थी।
हमारे मुंह से लगातार उम्म्म … म्मम्म … जैसी आवाज आ रही थी. हम दोनों में से कोई भी इस चुम्बन को तोड़ना नहीं चाह रहा था खासकर रूपाली तो बिलकुल भी नहीं।
इसलिये मैंने ही आगे बढ़ने की सोची और रूपाली की मैक्सी को अपनी मुट्ठियों में भरकर ऊपर सरकाते हुए उसके बदन से अलग करने लगा।
रूपाली ने भी मेरी मदद करते हुए अपने दोनों हाथों को असमान की ओर समान्तर उठा लिया और मैंने उसकी मैक्सी को उसके हाथों से निकाल कर उससे अलग कर दिया.
न तो उसने अन्दर ब्रा पहन हुई थी और न ही पैंटी।
जिस रूपाली को मैं कमरे से खुले असमान के नीचे बुलाकर लाया था उसका शिकार करने के लिये असल में मैं खुद एक शिकार की तरह उसके सामने खड़ा था।
मेरे सामने रूपाली इस वक़्त अजंता की किसी कलाकृति की तरह नग्न अवस्था में खड़ी थी।
चाँद की रोशनी में रूपाली का नंगा, बिना बालों वाला दूधिया जिस्म ऐसे चमक रहा था जैसे उसे चांदी के पानी से नहला दिया गया हो।
किसी ने ठीक ही कहा है कि चाँद लोगों को अपनी ओर केवल सोलह कलाओं से आकर्षित कर सकता है जबकि औरतें किसी को भी अपनी ओर उससे ज्यादा कलाओं से आकर्षित कर सकती हैं.
मैं रूपाली के बड़े से क्लीवेज को चाटते हुए उसकी एक चूची को मुंह भर कर चूसने लगा और दूसरी को हाथ से सहलाना शुरू कर दिया।
उसने भी मस्ती से मेरे बालों को अपनी उँगलियों से सहलाना शुरू कर दिया।
जब कभी उसकी चूचियों को मुट्ठियों में भर कर दबा देता या फिर उसके निप्पलो को ऐंठ देता तो रूपाली और ज्यादा उत्तेजित हो जाती।
कुछ देर तक उसकी चूचियों को बारी बारी पीने के बाद मैं उसके पेट को चाटते हुए नाभि पर जा पंहुचा।
जितना मैं उसकी नाभि को जीभ से छेड़ता, उतना ही उसकी सांसें नियंत्रण से बाहर हो जाती और उसके मुंह से कामुक आआह्ह निकल जाती।
कुछ देर बाद मैं अपने घुटनों पर बैठ गया और उसकी मांसल जांघ को चाटने लगा।
कभी- कभी जाँघों को चाटते वक़्त दोनों जांघ के बीच से होते हुए उसकी चूत को जीभ से छूकर लौट जाता तो रूपाली वासना से कलप जाती।
कुछ देर तक वो अपनी नंगी चूत से होते खिलवाड़ को बरदाश्त करती रही लेकिन जब वो खुद पर अधिक काबू न रख सकी तो उसने मेरे सिर को बालो से पकड़ कर मेरा मुंह चूत से सटा दिया।
मैंने चूत से बहते हुए प्रीकम को जीभ से चाट कर साफ़ किया और उन गुलाब की तरह नाजुक चूत की पंखुड़ियों को जीभ छेड़ कर चूसने लगा।
कभी चूत की लकीर को जीभ से ऊपर नीचे करते हुए चाट लेता तो कभी जीभ को नुकीला करते हुए उसकी चूत के अंदर की गुलाबी नर्म दीवारों को सहलाने लगता।
रूपाली अपने हाथों से मेरे सिर पर दबाव बनाते हुए कमर को आगे पीछे करने लगी जैसे वो मेरी जीभ को चूत के आखिरी छोर तक पहुँचना चाहती हो।
अब उसके मुंह से लगातार आअह्ह … ह्ह्ह … उफ्फ … स्स्स्स … उम्म्म ओह माँ श्श्श्श … जैसी सिसकियाँ निकलने लगी थी।
फिर मैंने अपने दायें हाथ की बड़ी उंगली को उसकी चूत में उतार दिया और उसकी चूत के दाने को दाँतों में दबा कर चुभलाने लगा।
लगातार उसके फड़कते हुए दाने को जीभ से सहलाने और उंगली से उसके जी-स्पॉट को छेड़ने से रूपाली और भी उग्र हो गई थी।
जिसके चलते उसने अपनी जांघों का घेरा मेरी गर्दन पर और कस दिया।
अगर मैं उसकी चूत को इसी तरह चाटता रहता तो शायद वो किसी भी वक़्त अपने काम शिखर को प्राप्त करके झड़ जाती।
इसलिये मैंने चूत को चाटना छोड़कर उसकी जांघों से गर्दन को आज़ाद करा लिया और उठ खड़ा हुआ।
रूपाली ने मुझसे कहा- क्या हुआ? रुक क्यों गए? आपको दिखता नहीं कि मेरा होने वाला था.
मैंने अपने द्वारा की गई इस हरकत का कोई जवाब देना उचित नहीं समझा और उत्तर देता भी तो क्या!
अब मैंने अपने लोवर और टीशर्ट उतारकर उसकी मैक्सी के उपर रख दी।
मैंने रूपाली का हाथ पकड़ा और छत पर लगी रेलिंग की तरफ चलने को कहा।
इस वक़्त खुले असमान के नीचे दो नंगे जिस्म विचरण कर रहे थे; ऐसा लग रहा था जैसे दो हिरनों का जोड़ा जंगल में सम्भोग करने के लिये घूम रहा हो।
अभी तक की हो रही हर घटना के बारे में सोच कर मेरा मन कुलाँचे मार रहा था।
रेलिंग के पास पहुँच कर उसने आगे झुक कर देखा, मानो जैसे वो शत प्रतिशत आश्वस्त होना चाहती हो कि कोई हम दोनों को देख तो नहीं लेगा।
जब उसे दूर तक कोई इंसान नहीं दिखा, तब मैंने उसके दोनों हाथों से उसे रेलिंग पकड़ा दी और उसकी कमर को थोड़ा अपनी तरफ निकालकर उसे झुका दिया।
मैंने उसके दोनों नितंबों पर हाथ फेरा और उसकी पीठ से बाल हटा दिए।
फिर मैंने अपनी जीभ उसकी नंगी पीठ पर रख दी और घुमाने लगा।
सबसे पहले मैंने अपनी जीभ से उसकी गर्दन को चाटना शुरू किया और नीचे सरकने लगा। उसके कंधों को चूमने लगा.
तभी मैं अपने हाथ आगे ले जाकर अचानक से उसकी रूई के समान नर्म फाहे जैसी चूचियों को पकड़ के दबाने लगा।
थोड़ा और नीचे जीभ को सरका कर उसकी लचकती हुई कमर को जोर जोर से चाटने लगा। मेरी लार से उसकी पीठ पूरी गीली हो गई थी जो चाँद की रोशनी में शीशे की तरह चमक रही थी।
मेरी जांघें उसके चूतड़ों से सटी हुई थी और लंड भी रह-रह तुनके मार के उसकी चूत को छू रहा था।
जब भी कोई ठंडी हवा का झोंका उसकी गीली पीठ को छू जाता तो वो जोर से काँप जाती।
कुछ कम्पन तो सर्द हवा से थी और कुछ शायद खुले आसमान ने नीचे चूत से छूते लंड और आगे होने वाली जोरदार चुदाई के ख्याल से हो रही होगी।
क्योंकि हर उम्र की औरत का ख्वाब होता है कि काश कोई खुले असमान के नीचे चांदनी रात के बीच एक बार उनकी चूत को चाट के तर कर दे और चूत में लंड ठूंस के ताबड़तोड़ चुदाई कर दे.
फिर चाहे वो अभी-अभी जवान हुई कोई कमसिन कली या फिर अनेकों बार चार दीवारों के भीतर चुदी हुई नारी।
मेरा लंड भी अब तक इतना तन चुका था कि ऐसा लग रहा था कि अभी जड़ से टूट जाएगा।
मैंने रूपाली से लंड चूस के गीला करने को कहा तो रूपाली भी आज्ञाकारी पत्नी की तरह अपने घुटनों पर बैठ गई और मेरे लंड को अपने दोनों होंठ के बीच में दबा के चूसने लगी।
कुछ आठ दस बार बार लंड को मुंह में आगे पीछे करने के बाद मैंने लंड उसके मुंह से निकाल लिया तो रूपाली भी वापस रेलिंग पकड़ के पहले जैसे झुक गई।
मैंने अपने हाथ में थोडा सा थूक ले कर पीछे से उसकी पनियाई हुई चूत के उपर चुपड़ दिया।
फिर मैं अपने लंड पर दबाव बनाते हुए धीरे से चूत के अन्दर घुसाने लगा।
पहले किसी बड़े आंवले की तरह फूला हुआ सुपारा अंदर गया और रूपाली की चूत में लंड के लिये रास्ते को सुगम बनाने लगा।
धीरे धीरे लंड पर दबाव बनाते हुए लंड को सरकाने लगा कुछ देर बाद मेरा समूचा लंड रूपाली की चूत की गहराइयों में खो गया और मेरी कमर रूपाली की कमर से सट गई।
अब रूपाली ने अपने सिर को रेलिंग पर टिका लिया और मुझे चुदाई शुरू करने का इशारा किया।
मैंने उसकी कमर को अपने दोनों हाथों में थाम लिया और अपने लंड को आगे पीछे करते हुए उसकी चुदाई करने लगा।
जितने प्यार से मैं लंड को बाहर करता, उतने ही प्यार से वापस अंदर ठोक देता।
इस प्यार भरी चुदाई के चलते रूपाली की आँखें स्वतः ही बंद हो गयी जैसे इस चुदाई से उसकी चूत नहीं बल्कि उसके मन को तृप्ति मिल रही हो।
जब कभी घर से कुछ दूरी पर गुजरती हुई मुख्य सड़क से कोई वाहन चारों ओर फैले हुए सन्नाटे को चीरते हुए तेजी से गुजर जाता तो रूपाली अपनी आँखें खोल लेती.
और जैसे ही हमारी आँखें एक दूसरे से टकराती तो रूपाली के मुंह पर मुस्कान तैर जाती और फिर से अपनी आँखें बंद कर लेती।
कुछ देर बाद मैंने धक्के लगाने बंद कर दिए तो रूपाली ने आँखें खोल के प्रश्नवाचक दृष्टि से रुकने का कारण पूछा.
तो मैंने रूपाली से कहा- देखो रूपाली, कितना अनोखा और कितना उतेजित नज़ारा है. चांदनी रात है आसमान में असंख्य तारे हैं. मेरे सामने मेरी चाँद सी सुंदर बीवी नंगी खड़ी है और उसकी चूत में घुसा हुआ मेरा लंड। हमें देख कर चाँद भी शर्मा जाता है और बार बार खुद को बादलों में छुपा लेता है।
रूपाली ने भी एक सरसरी नज़र आसमान में घुमाई और बोली- जितना आप चुदाई करने में उस्ताद हो … उतना ही बातें बनाने में! बातें बनाना तो कोई आपसे सीखे!
फिर मौसी बोली- नीचे दीदी अकेली हैं. और हमें भी ऊपर आए काफी समय हो गया है. जल्दी से करो … फिर नीचे चलते हैं. नहीं तो दीदी जाग जायेंगी।
“जो हुकुम मेरी रानी!” मैं बोला.
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मैंने वापस से लंड को चूत में अन्दर बाहर करना शुरू कर दिया लेकिन इस बार जोरदार धक्को के साथ मैं अपने लंड को पूरा बाहर निकालता और एक बार में पूरा लंड वापस से उसकी चूत में घुसा देता।
रूपाली ने रेलिंग को जोर से पकड़ रखा था लेकिन हर धक्के के साथ उसके हिलते हुए जोबन बता रहे थे कि उसकी चूत मेरे लंड के कितने जोरदार वार को झेल रही थी।
कुछ देर बाद उसके मुंह से सिसकियाँ निकलने लगी- आअह्ह … आह्ह … ह्ह्ह … उम्म्म … माँ … श्श्श्श … उफ्फ्फ … ऎश्श्श … हायय..सीईई … इस्सस … आह्ह मेरी जान … मार मेरी चूत को! आज मिटा दे इसकी खुजली! साली बहुत खुजलाती है … तुझे बुलाया था अपनी चूत खुजली मिटाने के लिये … लेकिन ये साली हरामजादी नीतू कहाँ से आ गयी! लेकिन अब तू रुकना मत … चोद मुझे पूरा दम लगा कर।
रूपाली न जाने क्या-क्या बोले जा रही थी।
उधर मैं भी उसकी चूत में ताबड़तोड़ धक्के लगाये जा रहा था।
मुझे रूपाली की चुदाई करते हुए अब पंद्रह मिनट से ऊपर हो गये थे.
तभी वो जोर सिसकारती हुई चिल्लाने लगी- रुकना मत मेरे राजा … मैं आने वाली हूँ … आह्ह … आह्ह … ईईई मैं आई … मैं आई!
कहते हुए उसकी चूत ने अपना रस छोड़ दिया।
उसकी चूत से रिसता हुआ रस उसकी जाँघों पर लकीर बनाता हुआ जमीन पर गिरने लगा। उसकी चूत की दीवारें रह-रह कर मेरा लंड अंदर खीच रही थी।
सम्पूर्ण रूप से झड़ने के बाद रूपाली मौसी पस्त हो गयी तो मैंने उसकी कमर को सहारा देकर पकड़ लिया।
मैंने उसे अपनी बांहों में उठा लिया और दीवार के कोने में पड़े पुराने तख्त पर लिटा दिया और खुद भी उसके बगल में लेट गया।
कुछ देर बाद मैंने उसके होंठों को चूम लिया और उससे फिर से चुदाई के बारे में पूछा.
तो उसने भी मुझे अपने ऊपर आने को बोला।
मैं रूपाली के ऊपर आ गया और उसके होंठों को चूमते हुए उसकी चूचियों को दबाने लगा।
फिर उसकी एक चूची को मुंह में भर कर चूसने लगा और नीचे से धीरे- धीरे उसकी चूत में लंड को उतारने लगा।
लंड अंदर जाने के बाद मैंने उसकी दोनों चूचियों को हाथों में पकड़ लिया और धक्के लगाने लगा।
उसकी गीली चूत में मेरा पनियाया हुआ लंड सटासट तेजी अंदर बाहर हो रहा था।
पूरी छत में चुदाई की आवाज़ आ रही थी, मेरे टट्टे उसकी चूत से टकरा कर ठप ठप ठप का शोर कर रहे थे।
थोड़ी देर में रूपाली फिर से गर्म होने लगी उसके हाथ मेरी पीठ पर घूमने लगे और उसने अपनी गर्दन को उचका कर मेरे होंठ को अपने होंठ से चूमना चालू कर दिया।
एक बार फिर रूपाली के मुंह से गर्म आहें निकलने लगी थी- आअह्ह … आईईइ … उम्म्म … मम्म … ईईईश्श … यस … यस … ओह्ह गॉड ऐसे ही चोदो।
रूपाली ने अपनी टांगों का मजबूत घेरा मेरी कमर पर बना लिया था।
मैं भी रूपाली के कंधों को पकड़ के जोर-जोर से चूत के चीथड़े उड़ाने में लगा हुआ था।
तभी कुछ देर बाद रूपाली बदन को उचकाने लगी.
मैं समझ गया था कि रूपाली फिर से झड़ने वाली थी इसलिये मैं और तेजी से चूत को कूटने लगा।
फिर रूपाली ने मुझे अचानक अपने सीने से चिपका लिया और आह्ह … आअह्ह्ह … आआईइ … स्स्स्स करते हुए झड़ने लगी थी।
उसकी चूत से बहते रस की गर्मी से मेरे लंड की नसें भी तन गई थी; टट्टे भी रस से भर कर भारी हो रहे थे और मैं कभी भी झड़ सकता था.
इसलिये मैं अपने लंड को बाहर निकाल के झड़ना चाहता था.
लेकिन तभी मेरी नज़र अचानक से दरवाजे के पास एक परछाई पड़ी।
ऐसा लगा जैसे कोई हमें देख रहा है.
जब तक मैं कुछ सोच पाता … तब तक मेरे लंड ने रूपाली की चूत में लावा उगलना शुरू कर दिया था.
पहले एक … फिर दो … फिर तीन …
इस तरह मेरे लंड ने रूपाली की चूत में कई सारी पिचकारी मारी और उसकी चूत को लबालब भर दिया।
नीचे देखा तो मेरा वीर्य और रूपाली का कामरस मिश्रण बन के चूत से बाहर आ रहा था।
मैंने एक नजर वापस से दरवाजे पर डाली तो इस बार कोई परछाई नहीं दिखाई दी।
तो मैं भी इसे अपना वहम समझ कर रूपाली के बगल में लेट गया और हम अपनी सांसें नियंत्रित करने लगे।
इस लम्बी और घमासान चुदाई से हम दोनों खुले आसमान के नीचे भी पसीने से तरबतर हो गये थे।
कुछ देर बाद रूपाली ने मुझसे पूछा- आज आपने अन्दर ही अपना माल क्यों छोड़ दिया?
तो मैंने बहाना बना के बात टाल दी क्योंकि मैं उसे परछाई के बारे में बता के उसे परेशान नहीं करना चाहता था।
रूपाली ने कपड़ों के ढेर में से एक कपड़ा उठा के पहले मेरा लंड पौंछा फिर अपनी चूत को अच्छे से साफ़ करके हम नीचे बेडरूम की ओर चल पड़े।
बेडरूम में नीतू पहले जैसे ही बेड पर पड़ी हुई थी और हम भी अपने अपने बिस्तर पर जा कर सो गये।
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22-02-2024, 05:47 PM
(This post was last modified: 22-02-2024, 06:18 PM by neerathemall. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
13
रात को हम लोग नीतू को जिस अवस्था में छोड़ कर छत पर गये थे, वापस आने पर वो हमें उसी तरह सोती हुई मिली।
मैं और रूपाली पुनः अपने- अपने बिस्तर पर जाकर लेट गये.
फिर पता नहीं कब मुझे नींद आ गयी।
सुबह मेरी आँख मेरे रोज की अपेक्षा जल्दी खुल गई लेकिन फिर भी घर की दोनों महिलायें मतलब मौसी और उनकी जेठानी मुझसे पहले ही उठ गई थी।
बेड पर लेटे-लेटे ही रात की सारी घटना मेरी आँखों में तैर गई और मैं रात में दिखी उस परछाई के बारे में सोचने को मजबूर हो गया.
लेकिन कुछ भी समझ नहीं आया।
अगर थोड़ा और उजाला होता तो शायद किसी निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता था.
अंत में मैं अपने बिस्तर से उठ खड़ा हुआ। मैंने बाहर आँगन में आकर देखा नीतू नहा चुकी थी जैसा की उसके गीले बालों से टपकती हुई पानी की बूंदों से जाहिर हो रहा था लेकिन रूपाली मुझे कहीं भी नहीं दिखी।
मैं रसोई में जाकर दरवाजे के पास खड़ा हो गया।
नीतू के गीले बदन की खुशबू से पूरा रसोई महक रहा था। मैं उसके बदन की काया को अपनी आँखों से निहार रहा था।
सच में भगवान ने उसे बड़े इत्मीनान से बनाया था वो खुदा का नायाब नगीना थी और शायद भगवान को भी इस बात का गुरुर होता होगा।
अभी मैं उसके बदन की खुशबू को अपने सीने में जज्ब किये उसकी गर्मी से आँखें सेंक रहा था।
तभी उसकी आँखें अपने बदन पर घूमती हुई मेरी आँखों से टकरा गई।
उसने मुझे घूरकर ऐसे देखा जैसे उसे पता चल गया हो कि मैं उसे बहुत देर से ताड़ रहा हूँ।
उसकी आँखों में मुझे अपने लिए गुस्सा साफ़ दिख रहा था.
लेकिन सिर्फ देखने भर से कोई इतना गुस्सा थोड़ी होता है।
बात शायद कुछ और रही होगी इसलिये मैंने माहौल को थोडा हल्का करने के लिए उनसे रूपाली के बारे में पूछा- मौसी रूपाली मौसी कहाँ हैं?
नीतू- वो तो बाथरूम गई है नहाने!
मैं- अच्छा!
नीतू- क्यों मन नहीं लग रहा क्या उसके बिना?
मैं- नहीं मौसी, ऐसा नहीं है।
नीतू- जा तू भी जाकर घुस जा बाथरूम में … शायद तेरे लिए दरवाजा खोल के ही बैठी हो।
मैं- ये आप क्या कह रही हो? मैं ऐसा कैसे कर सकता हूँ, वो तो मेरी मौसी हैं।
नीतू- और ये मौसी मौसी क्या लगा रखा है? रूपाली कह कर बुलाओ उसे … क्योंकि वो तो तुम्हारी पत्नी है न!
अब तक नीतू का चेहरा गुस्से से लाल हो चुका था.
मैं- आप ऐसा क्यों कह रही हो? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा।
नीतू- ज्यादा शरीफ मत बनो. मुझे सब पता है कि तुम दोनों कल रात को छत पर क्यों गये थे और क्या कर रहे थे। मैंने रात को सब देखा!
अब मुझे सब कुछ समझ आ गया था कि गत रात छत पर जो परछाई देखी थी, दरअसल वो नीतू ही थी. और उसने मुझे और रूपाली चुदाई करते हुए देख लिया था.
लेकिन मैं फिर भी ढीठ बन कर उनकी बातों से अनजान बनने का दिखावा करने लगा।
“नहीं मौसी, हम कल छत पर नहीं गये थे.” मैंने कहा.
मेरे इतना कहते ही नीतू ने एक जोरदार थप्पड़ मेरे गाल पर जमा दिया।
थप्पड़ इतना जोर था कि उसके हाथों की उँगलियों का निशान मेरे गालों पर पड़ गया था।
इससे पहले मैं कुछ समझ पाता, तभी उसने एक और जोर का थप्पड़ लगा दिया.
फिर तीसरा, चौथा, इसके बाद न मैंने गिनना ठीक समझा और न नीतू ने रुकना।
उसके हर थप्पड़ से मैं एक कदम पीछे होता जा रहा था।
पीछे हटते हटते मैं आँगन तक जा पंहुचा।
रसोई से ले कर आँगन तक नीतू की चूड़ियां यहाँ वहाँ बिखरी पड़ी थी।
कुछ कांच के टुकड़े मेरे गालों को भी छू चुके थे जिससे गाल पर खून की कुछ बूँदें उभर आयी थी।
तभी बाथरूम का दरवाजा खुला और रूपाली मौसी बाहर निकली- क्या हुआ दीदी, क्यों मार रही हो इसे? क्या किया राहुल ने?
नीतू- ज्यादा भोली बनने की कोशिश मत कर तू समझी छिनाल! साली बहुत शौक चढ़ा है न चूत चुदवाने का? हरामजादी बहुत खुजली होती है न तेरी चूत में, शर्म नहीं आती अपनी बहन के लड़के से चुदाई करवाने में। एक बार भी घर की इज्जत के बारे में नहीं सोचा कि अगर परिवार में किसी को पता चल जायेगा तो कितनी बदनामी होगी। क्या छोटे (मौसा जी) तेरे लिए काफी नहीं है जो उसके अलावा बाहर के मर्द के साथ रंडीबाजी कर रही है। कल रात को कैसे मजे से इस हरामी का लंड अपनी चूत को खिलाने में लगी हुई थी। साली कुतिया बड़ी आग लगी है न तेरे बदन को। आखिर क्या कमी रह गई थी छोटे के प्यार में जो तू उसे इस तरह धोखा दे रही है। आने दे छोटे को … तुम दोनों की रंगरलियों के बारे में सब बताऊंगी।
इतना कहते ही नीतू फिर से मुझे मारने के लिए आगे बढ़ी लेकिन इस बार रूपाली ने नीतू का हाथ रोक लिया।
अब तक मैं और रूपाली किसी अपराधी की तरह नीतू की सारी बातें सुन रहे थे लेकिन अब रूपाली ने और चुप रहना ठीक नहीं समझा.
रूपाली- कौन कहता है कि मैं आपके देवर से प्यार नहीं करती। मैं आज भी उन्हें पहली की तरह प्यार करती हूँ लेकिन शायद अब वो मुझे पहले की तरह प्यार नहीं करते। उन्हें तो शायद ये भी याद नहीं कि उनकी एक पत्नी है जिसकी कुछ जरूरत है और उसके प्रति उनकी कुछ जिम्मेदारी हैं। उन्हें तो ये लगता है की दुनियाँ की सारी खुशियाँ पैसे से खरीदी जा सकती है, इच्छाएं तो पैसे से पूरी की जा सकती है लेकिन जरूरतों का क्या वो पैसे से पूरी नहीं होती। एक अरसा बीत गया है उनके साथ सेक्स किये। मेरी तरफ देखते भी नहीं, बस सारा समय पैसे कमाने में लगे रहते हैं। इसलिये न चाहते हुए भी मैं भी जवानी की आग में बहक गयी। आपके देवर ने मुझे एक विधवा बना के छोड़ दिया है। जिसका पति है तो लेकिन केवल मांग में उसके नाम का सिन्दूर लगाने के लिए बस!
इतना कहते-कहते रूपाली का गला रुंध आया था और आँखों से आंसुओं की अविरल धारा बह चली थी।
नीतू ने आगे बढ़ कर रूपाली को गले लगा लिया और दोनों कितनी देर तक साथ में रोती रही।
क्योंकि इस वक़्त दोनों की मनिस्थिति लगभग बराबर थी और दोनों ही एक समान दुःख से परेशान थी।
उस दिन एक बात समझ आयी कि विवाहपूर्व यौन संबंध, विवाहेतर यौन संबंध, विवाह पश्चात भी हस्तमैथुन, हमउम्र मित्रों या कमउम्र लोगों के साथ अप्राकृतिक और अशोभनीय आचरण या निर्जीव वस्तुओं के साथ अराजक हो जाना और भी तमाम माध्यम हैं विवाह कर लाई गई एक लड़की को बगैर छुए प्रताड़ित करने के!
रूपाली- दीदी, अब कभी मैं राहुल के पास नहीं जाऊँगी।
नीतू- नहीं रूपाली, अगर तुझे राहुल के साथ रहने में ख़ुशी मिलती है तो तुमको भी हर इंसान की तरह खुश रहने का हक़ है. और छोटे ने तुम्हारी जिंदगी में जिन हिस्सों को खाली छोड़ दिया है तुम्हें पूरा हक है उन खाली हिस्सों को राहुल के साथ भरने का!
इतना कहते ही दोनों ने एक दूसरे को फिर से गले लगा लिया और मैं उन दोनों उसी जगह छोड़ कर वापस कमरे में आ गया।
नीतू को हमारे संबंधों के बारे पता चल गया था। इसलिये अब रूपाली ने भी उन्हें खुल के सारा कुछ बता दिया।
मैं रूपाली के बेडरूम में बैठा हुआ था और बहुत देर से अभी-अभी हुए सारे घटनाक्रम के बारे में सोचने लगा।
तभी कमरे का दरवाजा खुलने की आवाज़ हुई जिससे मेरी तन्द्रा भंग हो गई।
मैंने देखा कि रूपाली मेरी तरफ आ रही है। उसके हाथों में कोई दवा की शीशी थी।
रूपाली मेरे बगल में आ कर बैठ गई।
उसने मेरे गाल को अपने हाथों से साफ़ किया फिर उस पर दवा लगाने लगी।
वो मेरे गाल पर दवा लगा रही थी और मैं उसे लगातार देखे जा रहा था.
उसकी आँखें आंसुओं से भरी हुई थी.
जैसे ही उसकी आँखें मेरी आँखों से टकराई, वो अपनी भावनाओं को रोक न सकी और रोने लगी।
मैंने अपने हाथ से उसके आसुओं को पौंछा और उसके रोने का कारण पूछा.
रूपाली- ये सब मेरी वजह से हुआ. न रात को हम छत पर जाते, न दीदी हमें देखती और न तुमको इतना कुछ सहना पड़ता।
मैं- क्या नीतू दीदी अभी भी गुस्सा है हम लोगों से?
रूपाली- नहीं, दीदी को अब हमारे रिश्ते से कोई ऐतराज़ नहीं है।
मैं रूपाली की दोनों आँखों को बारी-बारी से चूमने लगा।
धीरे से मैंने अपने होंठों को रूपाली के नम्र होंठों की ओर अग्रसर कर दिया।
रूपाली के होंठ चूमते-चूमते मैं गर्म होने लगा लेकिन रूपाली न तो मेरा साथ दे रही और न ही मुझे रोक रही थी।
शायद वो नीतू के घर में होने की वजह से थोड़ी असहज हो रही थी लेकिन तब तक मेरे अंदर वासना का भूत जाग चुका था और मैं किसी भी तरह रूपाली की चुदाई करना चाहता था।
फिर मैंने उसके शरीर के सबसे कामुक हिस्से पर हमला करते हुए उसकी गर्दन को चूमना और चाटना शुरू कर दिया।
कुछ समय बाद उसका खुद से काबू खोने लगा और उसकी आँखें बंद होने लगी।
उसकी आँखें बंद होते ही मैंने उसकी चूचियों को ब्लाउज के ऊपर से ही सहलाना शुरू कर दिया। उसकी चूचियों को हाथ लगाते ही मुझे पता चला कि उसने ब्रा नहीं पहनी हुई है।
मैं ब्लाउज के ऊपर से ही उसकी दोनों चूचियों के निप्पल को अपनी उँगलियों से उमेठने लगा जिससे रूपाली की सिसकारियां निकलने लगी।
मैंने उसके होंठों से अपने होंठ सटा दिये और अपने अपने मन में उठी वासना की प्यास बुझाने लगा।
उसके होंठों को चूमते-चूमते जैसे ही मैंने उसके ब्लाउज का पहला हुक खोला तो रूपाली ने अपनी आँखें खोल दी और मुझे याचना भरी दृष्टि से देखते हुए और आगे न बढ़ने की विनती की.
लेकिन इतना आगे बढ़ कर अब खुद को रोक पाना मेरे बस में भी नहीं था।
मैंने एक-एक करके उसके ब्लाउज के सारे हुक खोल दिए और उसके ब्लाउज को सरकाते हुए उसके हाथों से अलग कर दिया।
ब्लाउज के निकलते ही उसने अपनी चूचियों को हाथों से ढक लिया और दरवाजे की तरफ देखने लगी जैसे उसे लग रहा हो कि नीतू आज भी हमें देख रही है।
मैंने उसे भरोसा दिलाते हुए बेड पर लिटा दिया और उसकी एक चूची को मुंह में भर कर उसे पीने लगा तथा दूसरी को मुट्ठी में भर कर आटे की तरह गूंथने लगा।
उसके मुंह से अब आह … आह्ह्ह … य्ह्ह्ह … सीईई..यैईईई जैसे आवाज आने लगी थी।
मैं चूचियों को छोड़ कर उसकी चिकनी कमर पर जीभ घुमाने लगा।
मैंने उसकी नाभि को अपनी लार से भर दिया और उसकी कमर को चाटते हुए पूरी कमर को गीला कर दिया था।
तब मैंने उसके पेटीकोट के नाड़े को खोल दिया और पेटीकोट के अंदर हाथ डाल दिया।
उसने अंदर पैंटी भी नहीं पहनी थी; शायद उसने बाथरूम से निकलते वक़्त जल्दी-जल्दी में केवल ब्लाउज और पेटीकोट ही पहना था।
मैं अपने हाथ से उसकी नन्हे बालों वाली चूत को सहलाने लगा जिससे उसकी आँखें एक बार फिर उन्माद से बंद होने लगी थी।
एक हाथ से मैं उसकी चूत को सहलाते हुए दूसरे हाथ से उसके पेटीकोट को निकलने लगा।
शायद अब तक रूपाली भी गर्म होने लगी थी. इसलिये इस बार न तो उसने मुझे रोका और न ही आँखें खोली, बस अपनी कमर को हल्के से हवा में उठा कर पेटीकोट निकलने में मेरी मदद की।
मैंने उसके पेटीकोट को उसकी टांगों से निकाल कर साइड में रख दिया और उसकी टांगों को फैला कर बीच में बैठ गया।
उसकी चूत अब गीली हो गई थी और उसमें से रस की बूँद चादर पर टपकने लगी थी।
मैंने अपनी जीभ निकाली और उसकी चूत के मुकुट पर यानि दाने के ऊपर रख दी और उसे चाटने लगा।
रूपाली अपनी कमर को गोल-गोल घुमाते हुए मेरे बालों में अपनी उंगलियाँ चलाने लगी।
जितना जोर से मैं रूपाली की चूत चाटता, रूपाली उतनी ही जोर से आह्ह्ह … ह्ह्ह … उम्म्म … श्श्श … आईई जैसी कामुक आवाजें निकालने लगती।
थोड़ी और देर तक उसकी चूत चाटने के बाद जैसे ही मुझे लगा कि अब रूपाली कभी भी झड़ सकती है.
और अगर एक बार रूपाली झड़ जाती तो वो मुझे दोबारा जल्दी हाथ न लगाने देती … कम से कम रात होने से पहले तो बिल्कुल भी नहीं।
इसलिये मैंने उसकी चूत चाटना रोक दिया।
मैं बेड से नीचे उतरा और अपने सारे कपड़े उतार दिये और वापस से बेड पर आ गया।
रूपाली मेरे लंड को देखे जा रही थी जो अभी ठीक से खड़ा नहीं हुआ था।
उसे पता था कि आगे क्या होने वाला है।
मैं उसकी चूचियों के बीच में घुटने के बल बैठ गया और रूपाली की गर्दन को थोड़ा उठा कर उसके सिर के नीचे एक तकिया लगा दिया।
उसने एक पल कुछ सोच कर मेरे लंड को अपने मुंह में गप्प से भर लिया और अपनी गर्दन को आगे पीछे करते हुए मेरे लंड को चूसने लगी।
मैं भी इस लंड चुसाई का आनंद ले रहा था.
अचानक मेरी नज़र सामने की खिड़की पर पड़ी जिसकी हल्की सी ओट से नीतू हमें देख रही थी।
इस वक़्त मैं नीतू को और नीतू, मुझे और रूपाली देख रही थी.
लेकिन रूपाली अभी भी इस सब से अनजान थी।
रात को हम लोग नीतू को जिस अवस्था में छोड़ कर छत पर गये थे, वापस आने पर वो हमें उसी तरह सोती हुई मिली।
मैं और रूपाली पुनः अपने- अपने बिस्तर पर जाकर लेट गये.
फिर पता नहीं कब मुझे नींद आ गयी।
सुबह मेरी आँख मेरे रोज की अपेक्षा जल्दी खुल गई लेकिन फिर भी घर की दोनों महिलायें मतलब मौसी और उनकी जेठानी मुझसे पहले ही उठ गई थी।
बेड पर लेटे-लेटे ही रात की सारी घटना मेरी आँखों में तैर गई और मैं रात में दिखी उस परछाई के बारे में सोचने को मजबूर हो गया.
लेकिन कुछ भी समझ नहीं आया।
अगर थोड़ा और उजाला होता तो शायद किसी निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता था.
अंत में मैं अपने बिस्तर से उठ खड़ा हुआ। मैंने बाहर आँगन में आकर देखा नीतू नहा चुकी थी जैसा की उसके गीले बालों से टपकती हुई पानी की बूंदों से जाहिर हो रहा था लेकिन रूपाली मुझे कहीं भी नहीं दिखी।
मैं रसोई में जाकर दरवाजे के पास खड़ा हो गया।
नीतू के गीले बदन की खुशबू से पूरा रसोई महक रहा था। मैं उसके बदन की काया को अपनी आँखों से निहार रहा था।
सच में भगवान ने उसे बड़े इत्मीनान से बनाया था वो खुदा का नायाब नगीना थी और शायद भगवान को भी इस बात का गुरुर होता होगा।
अभी मैं उसके बदन की खुशबू को अपने सीने में जज्ब किये उसकी गर्मी से आँखें सेंक रहा था।
तभी उसकी आँखें अपने बदन पर घूमती हुई मेरी आँखों से टकरा गई।
उसने मुझे घूरकर ऐसे देखा जैसे उसे पता चल गया हो कि मैं उसे बहुत देर से ताड़ रहा हूँ।
उसकी आँखों में मुझे अपने लिए गुस्सा साफ़ दिख रहा था.
लेकिन सिर्फ देखने भर से कोई इतना गुस्सा थोड़ी होता है।
बात शायद कुछ और रही होगी इसलिये मैंने माहौल को थोडा हल्का करने के लिए उनसे रूपाली के बारे में पूछा- मौसी रूपाली मौसी कहाँ हैं?
नीतू- वो तो बाथरूम गई है नहाने!
मैं- अच्छा!
नीतू- क्यों मन नहीं लग रहा क्या उसके बिना?
मैं- नहीं मौसी, ऐसा नहीं है।
नीतू- जा तू भी जाकर घुस जा बाथरूम में … शायद तेरे लिए दरवाजा खोल के ही बैठी हो।
मैं- ये आप क्या कह रही हो? मैं ऐसा कैसे कर सकता हूँ, वो तो मेरी मौसी हैं।
नीतू- और ये मौसी मौसी क्या लगा रखा है? रूपाली कह कर बुलाओ उसे … क्योंकि वो तो तुम्हारी पत्नी है न!
अब तक नीतू का चेहरा गुस्से से लाल हो चुका था.
मैं- आप ऐसा क्यों कह रही हो? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा।
नीतू- ज्यादा शरीफ मत बनो. मुझे सब पता है कि तुम दोनों कल रात को छत पर क्यों गये थे और क्या कर रहे थे। मैंने रात को सब देखा!
अब मुझे सब कुछ समझ आ गया था कि गत रात छत पर जो परछाई देखी थी, दरअसल वो नीतू ही थी. और उसने मुझे और रूपाली चुदाई करते हुए देख लिया था.
लेकिन मैं फिर भी ढीठ बन कर उनकी बातों से अनजान बनने का दिखावा करने लगा।
“नहीं मौसी, हम कल छत पर नहीं गये थे.” मैंने कहा.
मेरे इतना कहते ही नीतू ने एक जोरदार थप्पड़ मेरे गाल पर जमा दिया।
थप्पड़ इतना जोर था कि उसके हाथों की उँगलियों का निशान मेरे गालों पर पड़ गया था।
इससे पहले मैं कुछ समझ पाता, तभी उसने एक और जोर का थप्पड़ लगा दिया.
फिर तीसरा, चौथा, इसके बाद न मैंने गिनना ठीक समझा और न नीतू ने रुकना।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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(This post was last modified: 22-02-2024, 06:20 PM by neerathemall. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
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रूपाली को इस बारे में बता के सारा मजा खराब नहीं करना चाहता था। मैं अपनी कमर को आगे-पीछे करते हुए रूपाली के मुखचोदन का आनंद उठा रहा था।
नीतू अभी भी हमें छुप कर देख रही थी इसलिये मैंने भी अब उसे इससे ज्यादा और कुछ दिखाने का सोचा।
मैंने रूपाली से 69 की अवस्था में आने को बोला तो रूपाली तुरंत मान गई।
फिर मैंने अपनी जीभ को रूपाली की पनियाई चूत के ऊपर रखा और लप-लप करते हुए नीतू को दिखा कर चाटने लगा।
अपनी एक उंगली को उसकी चूत में डाल कर मैं उसकी चूत की फाँकों को जीभ से चाटने लगा। कभी उसकी चूत से उंगली निकाल कर चूसने लगता।
उधर रूपाली मेरे लंड को गप्प-गप्प करते हुए चूस रही थी और कभी मेरी गोलियों पर अपनी जीभ से कलाकारी कर देती तो मैं मचल उठता।
रूपाली की अब गर्म आहें निकलने लगी थी ‘आअह्ह … हह … ययय … उम्म्म …’
थोड़ी देर तक एक दूसरे के गुप्तांगों से खेलने के बाद रूपाली ने मुंह लंड को निकाल कर कहा- जल्दी से मुझे चोदो. बहुत देर हो गई है, कभी भी दीदी कमरे में आ सकती है।
मैं रूपाली की दोनों टांगों को फैला कर उनके बीच में बैठ गया और अपना लंड उसकी चूत पर रगड़ने लगा।
रूपाली अपनी वासना को और अधिक काबू में नहीं रख सकी और अपनी चूत के रसीले होंठ को खोल कर लंड डालने का आग्रह करने लगी।
मैंने भी उसकी चूत के बाहर से निशाना लगाते हुए घप्प से एक बार में उसकी चूत में पूरा लंड ठोक दिया।
रूपाली शायद इस तरह के हमले के लिए तैयार नहीं थी इसलिये उसके मुंह से आह्ह्ह जैसी एक घुटी हुई चीख निकल गई जिसे नीतू ने भी शायद सुन लिया होगा।
मैंने रूपाली की टांगों को फैला कर उसकी कमर की लय और अपने लंड की ताल का मेल करते हुए उसकी रसीली चूत का चोदन करने लगा।
रूपाली भी अपनी टाँगे अपने हाथों से खोल कर बाकी सारी दुनिया से अनजान चुदाई के सागर में गोते लगा रही थी।
उसे तो यह भी नहीं पता था कि उसकी जेठानी नीतू आज फिर हमें देख रही है।
उधर मैंने आगे झुक कर रूपाली के एक मम्मे को मुंह में भर लिया और दूसरे को बेदर्दी से मसलने लगा।
शायद मैं नीतू को दिखाने के चक्कर मे रूपाली के बदन को कुछ ज्यादा ही जोर से मसल रहा था।
जब भी मैं रूपाली के बदन को कहीं भी हाथों से रगड़ता तो वहां पर लाल निशान पड़ जाता।
रूपाली मेरे इस वहशीपन के कारण से अनजान थी। रूपाली की सांसें अब उसकी काबू से बाहर हो चली थी। अब वो अपने चरम बिंदु के अंत पर आ गई थी।
उसकी वासना का अंदाजा उसकी कामुक सिसकारियों से पता चल रहा था।
रूपाली ने अपनी टांगों का घेरा मेरी कमर पर कस दिया और आह्ह … सीईई … उम्म्म … ईस्स्श्श् जैसी कामुक आवाजें करते हुए मुझसे जोर से चुदाई करने को कहने लगी।
मैं भी अपनी शरीर की सारी शक्ति को अपने लंड पर एकत्रित करके उसकी चूत का कीमा बनाने में लग गया।
मेरे धक्के इतने तेज़ थे कि रूपाली का बदन तेज़ी से ऊपर नीचे होने लगा इसलिये मैंने उसके स्तनों को छोड़ उसकी दोनों बाजुओं को ताकत से पकड़ते हुए चुदाई करने लगा।
अब मेरे हर धक्के पर उसकी दोनों चूचियां जोर जोर से झटके खाने लगी।
लगभग पन्द्रह मिनट से चली रही इस चुदाई में रूपाली अचानक मुझे अपनी ओर खींचते हुए मेरे होंठों को अपने होंठों से चूमने लगी और अपने नाख़ून से मेरी पीठ को खरोंचने लगी।
उसकी चूत अब पानी से पूरी चिकनी हो गई थी और हर धक्के में फच्च- फच्च की आवाज़ कर रही थी।
फिर कुछ देर बाद रूपाली ने कांपना चालू कर दिया।
मैं समझ गया कि रूपाली की चूत से पानी निकलना शुरू हो गया है.
इसलिये मैं और तेजी से चुदाई करने लगा.
जब तक रूपाली झड़ती रही तब तक मैं उसे दोगनी रफ्तार से चोदता रहा।
रूपाली के पूर्ण रूप से झड़ जाने के बाद मैं उसकी चूत में लंड डाल हुए रुक गया।
कुछ देर बार रूपाली ने खुद को शांत किया और मुझे अपने ऊपर से अलग करने लगी- चलो हटो!
मैं- क्यों?
रूपाली- क्यों क्या! हो तो गया है और कितना करोगे?
मैं- तुम्हारा तो हो गया लेकिन मेरा नहीं हुआ अभी!
रूपाली- देखो कितनी देर हो गई है … दीदी कभी भी आ सकती है, रात में कर लेना।
मैं- अरे बस दस मिनट और रुक जाओ न!
रूपाली- अच्छा ठीक है लेकिन जल्दी करो।
मौसी के इतना कहने से मैंने खुशी से दोनों गालों को बारी-बारी से चूम लिया।
मेरी इस हरकत पर रूपाली इठला के हंस दी।
मैंने रूपाली की कमर को दोनों हाथों से पकड़ लिया और धीरे-धीरे उसकी चुदाई करने लगा।
मैं बड़े प्यार से धीरे से लंड उसकी चूत में डालता और बड़े आराम से बाहर निकालता.
कुछ देर तक रूपाली इस मंद गति की चुदाई को बर्दाश्त करती रही लेकिन फिर रूपाली ने लगभग खीजते हुए कहा- अगर आपको ऐसे ही करना है तो आप अपने हाथ से हिला के अपना काम कर लो. मैं चली … दीदी कभी भी आ सकती हैं.
मैंने रूपाली की जाँघों को अपने हाथों से दबा लिया और रूपाली को रोकते हुए कहा- अच्छा मेरी जान, करता हूं जल्दी … बस थोड़ा रुको!
फिर धीरे- धीरे मेरे धक्कों की रफ़्तार फिर से तेज़ होने लगी लगातार धक्के लगाने से उसकी चूचियां तेजी से हिलने लगी।
कुछ देर बाद मुझे लगा कि मेरे लंड से वीर्य निकलने वाला है इसलिये मैंने लंड को उसकी चूत से निकाल लिया और उसके मुंह के पास चला गया।
मैंने रूपाली से जीभ बाहर निकलने को कहा और उसके मुंह के पास घुटनों के बल बैठ कर लंड को हाथ से हिलाने लगा।
अचानक से लंड से वीर्य की एक धार निकली जो सीधे रूपाली के मुंह के अंदर चली गयी.
दूसरी धार उसके गालों को जा लगी. फिर लंड से वीर्य टपकते हुए उसकी बाहर निकली जीभ पर गिरने लगा।
मैंने एक नजर नीतू को देखा जो इस वक्त हमें ऐसे आँख फाड़ के देख रही थी जैसे उसने कोई भूत देख लिया हो।
काफी देर से चल रही इस चुदाई लीला के वजह से हम दोनों बहुत थक गये थे।
रूपाली तो इतना थक गयी थी कि उसमें कपड़े पहनने की भी ताकत नहीं रह गई थी.
मैं भी रूपाली की बगल में नंगा ही लेट गया और फिर पता नहीं कब हम दोनों की आँख लग गई।
कुछ घण्टों के बाद कमरे में किसी के आने की आहट से मेरी आँख खुल गई।
मैंने देखा नीतू ने मेज पर दो प्लेट खाना रख रही थी और रूपाली अभी भी पहले की तरह नंगी अपनी एक टांग मेरी टांग के ऊपर रख के सो रही थी।
अब मैंने रूपाली को हिला के उठाया तब तक नीतू कमरे के दरवाजे तक पहुँच चुकी थी।
रूपाली ने नीतू को आवाज देकर रोका।
नीतू रुक तो गई लेकिन दीवार की तरफ मुंह कर के खड़ी थी।
रूपाली- दीदी आप भी यही खाना खा लो न!
नीतू- बेशर्मो, कपड़े तो पहन लो, कितनी देर से नंगे पड़े हो।
मैंने देखा कि हमारे कपड़े बेड पर यहाँ वहां पड़े हुए थे.
इसलिये मैंने रूपाली को अपनी गोद में बिठा लिया और अपने आप को एक चादर से ढक लिया।
अब स्थिति इस प्रकार थी नीतू हमारे सामने एक कुर्सी पर बैठी थी, रूपाली मेरी गोद में नंगी बैठी थी और मैंने हम दोनों को एक चादर से ढक रखा था।
नीतू चुपचाप सर नीचे करके खाना खा रही थी.
उधर रूपाली भी अपनी प्लेट से कभी मुझे खिलाती या फिर खुद खा लेती।
हम तीनों में से कोई भी बात नहीं कर रहा था।
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मैंने अब रूपाली की चूचियों को छोड़ अपने हाथ को उसकी चूत की तरफ बढ़ा दिया।
जैसे ही मैंने अपने हाथों से उसकी चूत की पुत्तियों को छुआ तो रूपाली ने मेरे पेट पर कोहनी मार कर नीतू की तरफ देखते हुए मुझे आगे बढ़ने से रोकने की विनती की.
लेकिन मैं कहाँ मानने वाला था।
जितना मैं उसकी चूत के दाने से खेलता, रूपाली उतना ही खुद के काबू से बाहर होती जा रही थी।
धीरे-धीरे रूपाली गर्म होने लगी थी और इस गर्मी को मैं लगातार उसकी गर्दन पर अपनी साँसे छोड़ कर और बढ़ा रहा था।
रूपाली अब न तो खुद खा रही थी और न ही मुझे खिल रही थी।
अचानक से मैंने अपने दायें हाथ की बड़ी उंगली उसकी चूत की गहराई में उतार दी।
अचानक हुए इस हमले से रूपाली के मुंह से कामुक आह्ह्ह निकल गई जिसे नीतू ने सुन लिया।
जब नीतू और रूपाली की आँखें आपस में मिली तो रूपाली ने शर्म से आँखें नीचे कर ली और हड़बड़ी में मेरे मुंह में तीन-चार निवाले ठूंस दिए।
मैं अपनी उंगली को बड़े प्यार से रूपाली की चूत में अंदर बाहर करने लगा।
कुछ देर बाद उसकी चूत गीली होने लगी थी और मेरे उंगली करने पर पच्च- पच्च जैसी आवाज़ करने लगी थी।
नीतू भी कनखियों से हमें देख रही थी। उसका चेहरा शर्म से गुलाबी हो गया था।
जब कभी मेरी नजर उसकी नजरों से टकरा जाती तो उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती।
उधर रूपाली का बुरा हाल हो रहा था; उसका बदन आग की तरह तप रहा था।
नीतू ने जल्दी-जल्दी खाना खाया और कमरे से सरपट भाग गई।
नीतू के जाते ही रूपाली उठ खड़ी हुई और अपने कपड़े उठाते हुए मुझे डांटने लगी।
मैंने भी खाना खाया, कपड़े पहने और घर से बाहर घूमने निकल गया।
देर शाम बाद जब मैं घर लौटा तो देखा रूपाली और नीतू दोनों मिल कर खाना बना रही हैं।
मैं रूपाली के बेडरूम में जाकर टीवी देखने लगा।
थोड़ी देर खाना बन गया, सबने साथ में खाना खाया।
वे देवरानी जेठानी फिर से काम में व्यस्त हो गई और मैं कमरे में जाकर आराम करने लगा।
कुछ देर बाद रूपाली कमरे मे आई और मेरे बगल में लेट गई।
थोड़ी देर बाद उसे नींद आ गई।
शायद सारे दिन की थकान उस पर हावी हो गई थी।
मैंने कमरे की लाइट बंद कर दी और उसके बगल में लेट कर सोने की कोशिश करने लगा।
लेकिन नींद तो मेरी आँखों से कोसो दूर थी; मेरी आँखों में रह-रह कर नीतू का कामुक बदन घूम रहा था।
मन कर रहा था की किसी तरह नीतू का जिस्म भोगने को मिल जाये।
नीतू के बारे में सोच-सोच कर लंड ने अकड़ना शुरू कर दिया था।
मैंने बगल में लेटी रूपाली की तरफ देखा.
इस समय वो मुझे अपनी वासना शांत करने के माध्यम से ज्यादा कुछ नहीं लगी रही थी।
मैंने अपने कपड़े उतारे और रूपाली की टांगों के बीच में बैठ गया। मैंने उसकी मैक्सी को ऊपर सरकाते हुए उसकी कमर तक पंहुचा दिया।
उसने चड्डी तो पहनी ही नहीं थी तो उसकी दोनों टांगों को खोल कर चूत में गच्च से लंड उतार दिया और उसकी चूत चोदने लगा।
कुछ देर के बाद रूपाली नींद में कसमसाते हुए बोली- क्या कर रहे हो? सो जाओ न … मैं भी बहुत थक गई हूँ।
लेकिन तब तक मेरे अंदर काम की इच्छा कई गुना बढ़ गई थी इसलिये मैंने उसकी मैक्सी के अंदर हाथ डाल कर उसकी चूचियों को दबोच लिया और आँखें बंद करके उसके होंठ को चूसते हुए चूचियां दबाने लगा।
मेरे ख्यालों में इस वक़्त मैं नीतू को चोद रहा था। मेरे हर धक्के पहले से तेज़ होते जा रहे थे।
थोड़ी देर में मौसी की चूत ने चिकनाई छोड़नी शुरू कर दी।
मैं भी सरपट धक्के लगाये जा रहा था कुछ देर बाद हम दोनों साथ में झड़ने लगे।
मैंने अपने लंड को उसकी चूत से बाहर निकल कर सारा माल उसकी मैक्सी पर गिरा दिया और लंड को साफ़ कर के रूपाली के बगल में लेट गया।
कुछ देर बाद रूपाली फिर से सो गई।
लेकिन मुझे नींद आ रही थी तो मैं वैसे ही जगता रहा।
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(22-02-2024, 06:20 PM)neerathemall Wrote: 1234567890
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(23-02-2024, 12:52 AM)sri7869 Wrote: Nice story
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(08-06-2022, 02:39 PM)neerathemall Wrote:
(08-06-2022, 02:40 PM)neerathemall Wrote:
(22-02-2024, 05:11 PM)neerathemall Wrote: जवान मौसी की चूत
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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yr):
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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(14-01-2021, 11:03 AM)neerathemall Wrote: मौसी की चुदाई,मौसी से चुदाई
18131
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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(22-02-2024, 05:11 PM)neerathemall Wrote: कैसी है!

जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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