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मौसी की चुदाई,मौसी से चुदाई
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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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Barbie B


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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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(08-06-2022, 03:09 PM)neerathemall Wrote: Barbie B


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(08-06-2022, 03:09 PM)neerathemall Wrote: Barbie B


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जवान मौसी की चूत



जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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जवान मौसी की चूत
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(22-02-2024, 05:11 PM)fneerathemall Wrote:
जवान मौसी की चूत

















Idea
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(22-02-2024, 05:11 PM)neerathemall Wrote:
जवान मौसी की चूत
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(22-02-2024, 05:18 PM)neerathemall Wrote: Jban
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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(22-02-2024, 05:18 PM)neerathemall Wrote: Jban
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भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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(22-02-2024, 05:11 PM)neerathemall Wrote:
जवान मौसी की चूत




























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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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M
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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(22-02-2024, 05:11 PM)neerathemall Wrote:
जवान मौसी की चूत

कुछ दिन बाद मैं शहर में किसी काम से अपनी बाइक पर घूम रहा था।
तभी अचानक से मेरा फ़ोन बजने लगा।

मैं फ़ोन उठाना नहीं चाहता था क्योंकि सड़क पर भीड़ बहुत थी लेकिन लगातार फ़ोन बजने से मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था।
इसलिये मैंने गांडी साइड में रोकी और बिना देखे ही फ़ोन उठा लिया- हाँ कौन है?

दूसरी तरफ की आवाज़ सुन कर मेरा सारा गुस्सा प्यार में बदल गया.
रूपाली- क्या हुआ राजा इतना गुस्सा क्यों हो?
मैं- कुछ नहीं बस ऐसे ही! तुम बताओ आज इस सेवक की याद कैसे आ गई?

रूपाली- आपके मौसा जी किसी काम से कल कुछ दिनों के लिए शहर से बाहर जा रहे हैं। तो मैंने न … अपने नीचे के बाल साफ़ कर लिए है। आप भी अपने नीचे के बाल बना कर जल्दी से मेरे पास आ जाओ मैं दीदी से बात कर लेती हूँ।
मैं- आई लव यू रूपाली … सच में जान … तूने दिल खुश कर दिया।
रूपाली- आई लव यू टू!
खनखनाती हुई हंसी हँसते हुए उसने फोन काट दिया।

फिर मैंने भी गांडी को घर की ओर मोड़ दिया और शहर की भीड़ को पीछे छोड़ते हुए मन में मौसी मिलन के ख्वाब लिय गांडी को रफ़्तार देने लगा।
घर पहुँच कर मैंने बाइक अन्दर खड़ी करी और बिना माँ से मिले सीधे अपने कमरे में चला गया क्योंकि मैं उत्सुकतावश योजना को बेकार नहीं करना चाहता था वरना माँ को शक हो जाता।
थोड़ी देर बाद माँ ने मुझे आवाज देकर मुझे बुलाया।
मैं माँ के पास गया तो उन्होंने मुझे बताया- तेरे मौसा जी किसी काम से चार दिनों के लिए आगरा जा रहे हैं, तो तू मौसी के घर चला जा … वहां रूपाली अकेली है। उसे अकेले रहने में डर लगता है।

मैंने जानबूझ कर न जाने का दिखावा करते हुए वहाँ जाने से मना कर दिया.
जबकि मेरा मन अन्दर से कुलाँचे मार मार कर रूपाली की चूची को मुख में भर कर झूल जाने को कर रहा था.

लेकिन माँ ने वहाँ जाने का आदेश दे दिया था।
मैंने माँ से पूछा- कब जाना है?
तो माँ ने बताया- कल सुबह सात बजे तेरे मौसा जी जायेंगे तो तू आठ बजे तक जाना।

मैं अपने कमरे में आया और सबसे पहले रेज़र लेकर बाथरूम में घुस गया और अपनी झांट बनाने लगा क्योंकि जिस तरह मुझे बिना बाल वाली फुद्दियाँ पसंद हैं, ठीक उसी तरह रूपाली को भी चिकना लौड़ा पसंद है।
बाल साफ़ करते हुए मैं रूपाली के बारे में सोचने लगा कि कैसे रूपाली के साथ चार दिन तक क्या क्या करना है।
यही सब सोचते सोचते मैं इतना ज्यादा उत्तेजित हो गया कि मुझे रूपाली के नाम की मुठ मार कर खुद को शांत करना पड़ा।

बाथरूम से निकल कर मैंने अपना बैग पैक किया और खाना खाने के बाद मैं अपने बेड पर लेट कर सोने की कोशिश करने लगा। 
लेकिन कहते हैं कि जिसे चूत न मिली हो वो इंसान आराम से सो सकता है. लेकिन जिसे चूत मिलने वाली हो, उस इंसान की आँखों से नींद कोसों दूर रहती है।
बस यही हाल कुछ मेरा था।

रूपाली के बारे सोचते हुए घड़ी में ग्यारह बज गए थे लेकिन नींद और मेरा दूर-दूर तक कोई मेल नहीं था।
इसलिए मैंने बाथरूम जाकर एक और बार रूपाली को याद कर के लंड को हिलाया और वापस बेड पर लेट गया।
फिर पता नहीं कितनी देर बाद मुझे नींद आ गयी। 

सुबह मेरी आँख देर से खुली घड़ी की तरफ देखा तो आठ बज रहे थे।
मैं जल्दी से नहाकर तैयार हो गया, अपना बैग उठाया, बाइक स्टार्ट की और लहराते झूमते हुए रूपाली के घर की ओर चल पड़ा।

घड़ी में दिन के नौ बज रहे थे और मैं रूपाली के घर के बाहर खड़ा था।
मैंने रूपाली को आवाज दे कर बुलाना चाहा लेकिन उससे पहले रूपाली ने दरवाजा खोल दिया।
मुझसे मिलने के लिये वो भी उतनी ही उत्सुक थी जितना कि मैं!
शायद इसलिये वो दरवाजे के पास खड़ी मेरी राह देख रही थी।

मैंने एक नज़र उसकी ओर देखा।
बदन पर गहरे हरे रंग की साड़ी आँखों में हल्का सा काजल चेहरे पर न मात्र मेकअप होंठों पर नारंगी रंग की लिपस्टिक नाखूनों पर साड़ी के रंग से मेल खाती हुई नेलपोलिश … और सबसे ज्यादा मुख पर पिया मिलन की ख़ुशी … जिससे ये साफ़ जाहिर हो रहा था कि मुझे देख कर वो कितनी खुश है।

हल्की सी मुस्कान के साथ मौसी ने मुझे अंदर आने को आमंत्रित किया।
मैंने गांडी घर के अंदर खड़ी की और बैग को साइड में रख दिया।
जैसे ही रूपाली घर का मेनगेट बंद करके मेरी ओर मुड़ी, मैं उसके दोनों कंधों को अपने हाथों में थाम कर उसके चेहरे को अपलक देखने लगा।
जैसे ही वो कुछ बोलने वाली थी, मैंने आगे झुककर उसके होंठ पर अपने होंठ रख दिए और उसके होंठों का रसास्वादन करने लगा।
शुरू में वो मेरा साथ नहीं दे रही थी, शायद घर का मेन गेट होने की वजह से वो थोड़ी असहज थी.

लेकिन समय के साथ शरीर के बढ़ते ताप और जोश की वजह से उसे भी अब खुद को रोक पाना मुश्किल हो रहा था इसलिए उसने भी दुनिया समाज को भूल कर मेरा साथ देना शुरू कर दिया।
अब कभी मैं उसके उपर वाले होंठ को चूसता तो वो मेरे नीचे वाले होंठ को अपने दांतों से खींचकर चूसने लगती।
कभी मैं उसके होंठ को जोर से चाटने लगता, तो कभी कभी हम दोनों एक दूसरे की जीभ को आपस में लड़ाते रहते और एक दूसरे की जीभ को मुख में भर कर खींचने की कोशिश करते।
अब हमारी लार एक दूसरे के गले को तृप्त कर रही थी।
उसके होंठ पर लगी हुई नारंगी रंग की लिपस्टिक अब लार के सहारे घुल कर हमारे पेट में अमृत की तरह पहुँच रही थी।
जिसकी वजह से उसके होंठों की पुरानी गुलाबी रंगत दिखने लगी थी जिसका मैं शुरू से कायल था। 

कई मिनट तक उसके होंठ को चूमने के बाद जब मैंने उसे खुद से अलग किया तो उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया था।
जिसकी वजह से वो मुझसे नजर भी नहीं मिला रही थी।

जैसे ही मैंने उसके माथे को चूमना चाहा तो और शर्मा कर अपने बेडरूम की तरफ भाग गयी।
फिर मैं आगे वाले कमरे में रखे सोफे पर बैठ गया। 

जैसे ही मैंने आगे बढ़कर उसके माथे को चूमना चाहा, वैसे ही रूपाली ने मेरा बैग उठाया और शर्मा कर हिरनी की तरह अपनी गोल गोल उठी हुई गांड मटकाते हुए अपने बेडरूम में घुस गई।
मैं बाहर वाले कमरे में पड़े सोफे पर बैठ कर उसके वापस आने की राह देखने लगा।
जब कुछ देर तक रूपाली बाहर नहीं आयी तो मैंने उसको आवाज दी- रूपाली इधर आओ!
रूपाली- जी, अभी आयी!

जब वो कमरे में आयी तो उसके हाथों में पानी का गिलास था जिसे उसने मेरी ओर बढ़ा दिया।
मैं- हर्ष कब तक कॉलेज से वापस आयेगा?
रूपाली- हर्ष तो कॉलेज गया ही नहीं।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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मैं- क्या मतलब घर में तो दिख नहीं रहा क्या पड़ोस में खेलने गया है?
रूपाली- नहीं! जब से उसे पता चला कि उसके पापा आगरा जा रहे हैं तो वो भी साथ में जाने की जिद करने लगा इसलिए ये आज सुबह उसे भी साथ में ले गये।
मैं- यानि कि अब चार दिनों के लिए इस घर में सिर्फ तुम और मैं!
रूपाली- हाँ केवल हम दोनों!

इतना बोल कर उसके मुख पर कातिलाना मुस्कान तैर गयी।
मैं तो घर से चला था गुलाबजामुन का मज़ा लेने के लिए लेकिन यहाँ तो रसमलाई मेरा इंतज़ार कर रही थी।
अब मैं बोला- यार, बहुत भूख लगी है तुमसे मिलने की ख़ुशी के चक्कर में घर से बिना खाए ही चला आया।
रूपाली- बस थोड़ी देर रुको, रसोई का काम खत्म कर करके आपके लिय कुछ बनाती हूँ।

फिर रूपाली रसोई में चली गयी।
कमरे में बैठे बैठे मैं बोर हो रहा था इसलिए मैं उसके बेडरूम में गया अपने कपड़े बदलकर लोवर और टी-शर्ट पहन ली और रसोई में चला गया।
जैसे ही वो मेरे तरफ मुड़ी तो मुझे उसके कामुक शरीर में कुछ परिवर्तन दिखाई दिए।
उसकी चूचियों का आकार अब शायद 34C हो गया था जो किसी किले की मेहराब की तरह उठी हुई ठोस और घमंड से फूली हुई लग रही थी।

कमर की नाप भी अब 30 हो गया था जैसे पेट से अतिरिक्त चर्बी को निकाला गया हो लेकिन उसके चूतड़ों का आकार आज भी वही था 36 … बस फर्क इतना था कि अब दोनों चूतड़ों ने गजब का उठान ले रखा था।
रूपाली सुन्दर आकर्षक और मनमोहिनी तो पहले से ही थी लेकिन अब उसके इस छरहरे बदन की वजह से उसे पहले से कही ज्यादा कामुक और कातिलाना बना दिया था।
अब जब वो कहीं से भी निकलती होगी तो हर उम्र का पुरुष उसे पाने के ख्वाब जरूर देखता होगा और जो उसे हासिल नहीं कर पता होगा वो उसकी छवि को अपने मन में लाकर मुठ मार के खुश हो जाता होगा।
बाकी मर्दों से मैं खुद को थोड़ा ज्यादा भाग्यशाली मानता हूँ।
अभी मैं अपने ख्यालों में ही खोया हुआ था कि रूपाली ने मेरे बायें गाल को चूम कर मेरी तन्द्रा भंग की।
रूपाली- कहा खो गये आप?
मैं- कहीं नहीं, बस तुम्हारे बारे में सोच रहा था।

अब मैं रसोई की स्लैब पर बैठ कर रूपाली से बात करने लगा।
मैं- एक बात पूछूं रूपाली?
रूपाली- हां पूछिए।

मैं- मैं तो तुम्हारा नाम ले रहा हूँ लेकिन तुम मेरा नाम नहीं ले रही … ऐसा क्यों!
रूपाली- वो इस लिए क्योंकि पति तो पत्नी का नाम ले सकता है लेकिन पत्नी अपने पति का नाम नहीं लेती। मैं तो आपको अब अपना पति मानती हूँ फिर चाहे आप मुझे अपनी पत्नी मानो या नहीं!

ख़ुशी के वशीभूत होकर मैंने रूपाली के होंठों पर छोटा सा चुम्बन अंकित कर दिया।
रूपाली भी खुश होकर वापस अपने काम में व्यस्त हो गयी।

उसके सर पर बालों का जूड़ा और पीछे आधे से ज्यादा खुला ब्लाउज जिस पर दो उँगलियों की चौड़ाई जितनी कपड़े की पट्टी थी।
जिससे बाकी पीठ पूरी नंगी थी और उसने साड़ी का पल्लू को कमर में खोस रखा था।

ये सब देखकर मैं खुद पर काबू नहीं रख सका और आगे बढ़ कर उसकी गर्दन पर अपने होंठ रख दिए और धीरे धीरे उसकी गर्दन को चूमने के साथ जीभ से चाटकर गीला करने लगा।
कुछ देर तक उसकी गर्दन को चूमने के बाद मैंने अपने सीधे हाथ को ऊपर ले जाकर उसके बालों का जूड़ा खोल दिया।

उसके खुले हुए बालों को मैंने हाथों से आगे करके उसके दायें वक्ष के उपर बिखरा दिया।
कई मिनट तक उसकी गर्दन को चूमने की वजह से रूपाली के बदन की गर्मी भी बढ़ने लगी थी लेकिन वो अभी कुछ हद तक अपने काम में व्यस्त थी।

तभी मेरी नज़र अलमारी पर रखे शहद के जार पर पड़ी। मैंने हाथ आगे बढ़ा कर शहद का जार उठा लिया और उसमें से थोड़ा सा शहद अपने हाथों में निकालकर उसकी पीठ पर अच्छे से लगा दिया। मैं अपनी जीभ को नुकीला कर के उसकी नंगी पीठ पर घुमा- घुमा कर शहद चाटने लगा।
अब रूपाली भी गर्म होने लगी थी जिसकी वजह उसके मुंह से वासना की तरंगें स्वर बन कर फूटने लगी थी।
रूपाली- अहह … ह्ह्ह … श … ओह्ह … आपकी इन्ही शैतानियों की तो मैं शुरू से कायल हूँ। कब से ये जिस्म आपके प्यार का भूखा है। आपको याद करके मैं और मेरी चूत दोनों अक्सर गीली हो जाती है।
उसके ब्लाउज का हुक आगे उसकी चूचियों की दरार में कहीं छिपा हुआ था। मैंने हाथ आगे बढ़ा कर हुक खोलना चाहा लेकिन हुक दिखाई न देने की वजह से मैं सफल न हो सका।
तो मैंने अपनी नजर को रसोई में घुमा कर देखा तो मेरी नजर फ्रिज के उपर रखी कैंची पर पड़ी।
मैंने कैची उठा कर रूपाली के ब्लाउज की कपड़े की पट्टी को बीच से काट दिया। जिसके बाद उसकी चूचियां थोड़ी और बाहर की तरफ निकल आयी।

उसका ब्लाउज अभी भी उसके दोनों कंधों में फंसा हुआ था।
फिर मैंने अपने हाथों से उसके कंधों में फंसी ब्लाउज की बांह को बारी-बारी से उतार कर ब्लाउज को उसके बदन से अलग कर दिया।

अब उसकी गोरी और नर्म त्वचा वाली पीठ मेरे सामने अल्फ़ नंगी थी। जिस पर मैंने अपने हाथों से थोड़ा सा शहद और चुपड़ दिया।
फिर मैं अपने हाथ आगे लेजा कर उसकी सुंदर सुडौल गोल आकार वाली चूचियों को मसलते हुए अपनी जुबाँ से चाटकर उसकी पीठ अपनी लार से चिकना करने लगा।
मेरी इस तरह लगातार हरकत करती हुई जीभ से रूपाली को खुद को रोक न पायी और रसोई की स्लेब को पकड़ कर किसी मूर्ति की तरह खड़ी हो गयी।
अब मैंने थोड़ा आगे बढने की सोची.
मैं उसकी कमर में अटके साड़ी के पल्लू को हाथों में लेकर साड़ी को खोलने लगा।
साड़ी उतारने में रूपाली ने मेरी मदद की।

उसके बदन से साड़ी को अलग करने के बाद मैंने साड़ी को रसोई के एक कोने में फेंक दिया।
फिर मैं उसकी नाजुक लचकाती हुई कमर पर गोल गोल जीभ फिराने लगा।

उसकी कमर को चाटते हुए मैंने उसके कमर पर बंधे पेटीकोट के नाड़े को अपने दांतों में दबा कर जैसे ही खीचा वैसे ही पेटीकोट के नाड़े की गांठ खुल गयी और पेटीकोट उसके बदन से चिपके रहने की मिन्नतें करते हुए फर्श पर जा गिरा।
पेटीकोट उसके बदन से अलग होकर उसके टांगों के पास पड़ा हुआ था।

अब मुझे मौसी की गोरी, चिकनी बालरहित दो टाँगें दिखाई दे रही थी।
मोटी मांसल जांघें, पुष्ट पिंडलियाँ और कमर पर विराजमान समान आकार एक जैसी गोलाई, गोरी रंगत वाले दो ठोस चूतड़।
उन चूतड़ों को एक वी आकार वाली पैंटी ने आधा- आधा ढक रखा था।

मैं उसकी पैंटी से बाहर झाकते चूतड़ों को बारी बारी चूमने लगा।
मैंने अपने हाथों में थोड़ा सा शहद ले उनकी टांगों पर लगा दिया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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फिर मैं नीचे फर्श पर बैठ गया और अपनी जीभ निकाल कर उनकी टांगों को चाटते हुए ऊपर की ओर बढ़ने लगा।
कभी उसकी एड़ियों को चाटता तो कभी जांघों के अंदर वाले हिस्से को चूमते हुए उसकी चूत तक पहुँच जाता।

चूत निकलती गर्मी और अंदर से आती खुशबू को नाक में भर कर मैं रोमांचित हो जाता।
दोनों टांगों को बारी- बारी चाटने के बाद मैं उठ खड़ा हुआ।

मैंने फ्रिज खोलकर अंदर से एक बर्फ का टुकड़ा निकाला और उसकी पैंटी को आगे खींचकर चूत के दाने के ऊपर रख कर पैंटी को वापस पहले जैसी अवस्था में कर दिया।
फिर मैंने उसकी उँगलियों को अपनी उँगलियों में फंसा लिया और उसकी पीठ को चूमने लगा।
शुरू में उसे कुछ खास फर्क नहीं पड़ा लेकिन धीरे धीरे चूत की गर्मी बर्फ की ठंडक से टकराने लगी जिसकी वजह से वो अपने होंठ को दांतों से चबाने लगी थी। 

मैं कभी उसकी पीठ को जीभ से सहलाता तो कभी उसके कन्धों पर दांत से हल्के से काट देता।
अब रूपाली बर्फ की ठंडक को और बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी इसलिये वो अपनी उँगलियों को आजाद कर के चूत को सहलाना चाहती थी लेकिन वो अपनी उँगलियों को मेरी से उँगलियों से न छुड़ा सकी।
कई बार उसने मेरे हाथ को खींच कर चूत के पास ले जाना चाहा लेकिन वो हर प्रयास में असफल रही।
अब रूपाली के बदन की तपिश बहुत बढ़ गई थी जिसके वजह से उसके मुख से काम-सिसकारियां निकलने लगी थी- उफ्फ … अहह … ह्ह्ह्श … आई माँ मर गयी उम्म्म … ओह्ह … ह्म्म्म … हाय … मेरे राजा क्या कर दिया है आपने मेरी चूत के साथ, आप खुद मेरी चूत को सहलाकर इसे झाड़ दो। अब और बर्दाश्त नहीं होता।
लेकिन मैं उसकी बातों को अनसुना कर उसकी पीठ को चूमने में मग्न था।
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उसकी चूत इतनी ज्यादा ठण्ड सह नहीं पायी और खुद को इस समस्या से निजात दिलाने के लिए उसकी चूत ने पेशाब की गर्म मोटी धार छोड़ दी।
चूत से निकलती गर्म पेशाब की धार की वजह से अब बर्फ तेज़ी से पिघलने लगी थी। जिसकी वजह से बर्फ पानी बन कर उसकी पैंटी से रिस कर उसकी टांगों के बीच से होते हुए गर्म, मोटी और पीली धार से फर्श पर पड़े पेटीकोट को गीला करने लगी थी।
थोड़ी देर बाद उसकी चूत ने मूतना बंद कर दिया था।
मैंने हाथ आगे ले जा कर उसकी चूत का मुआयना किया जहाँ पहले एक बर्फ का टुकड़ा रखा हुआ था। जिसका अब नाम- ओ निशान मिट चुका था।
कुछ रह गया था तो बस चंद पेशाब की बूँद जो रह- रह कर उसकी पैंटी से टपक जाती।

मैं अपने दोनों हाथों के अंगूठों को उसकी पैंटी की इलास्टिक में फंसा कर धीरे- धीरे उसकी टांगों से निकालने लगा।
पैंटी को निकालने के बाद मैंने पैंटी के चूत के ऊपरी भाग वाले कपड़े को जीभ से छू कर देखा.
पेशाब की वजह से वो अभी भी गर्म था।


पैंटी से आती पेशाब की खुशबू और उससे चूती हुई बूंदों को देख कर मैं खुद को रोक न सका और पैंटी के तिकोने भाग को मुंह में भर कर जोर से दबा लिया.
जिससे मेरे मुंह में पैंटी से रिसने वाली पेशाब का एक बड़ा घूँट मेरे मुख में भर गया।

मुझे पेशाब के साथ रूपाली के प्री- कम और बर्फ वाले पानी का स्वाद मिल रहा था और खुशबू तो ऐसी जैसी कई वर्षो पुरानी शराब हो।
मैं जितनी देर उसे मुंह में रोक के रखता, उतना ही ज्यादा मुझे नशा चढ़ता जा रहा था.
ऐसा नशा जैसे कोई महंगी शराब पी ली हो।

तब मुझे समझ आया कि लोग आजकल क्यों सेक्स के साथ पेशाब भी पीया करते हैं।
मैंने मौसी के पेशाब को गले से नीचे उतार लिया।

तब मैंने उठ कर रूपाली की तरफ देखा.
वो स्लेब पर पेट के बल झुक कर सर टिका के खड़ी थी और उसकी साँस तो ऐसी तेज चल रही थी जैसे बहुत से दूर भाग कर आयी हो।

मैंने अपने सारे कपड़े लोवर, टी- शर्ट और अंडरवियर खुद उतार कर रसोई के बाहर फेंक दिए और आगे बढ़कर उसकी पीठ को सहलाने लगा.
थोड़ी देर में रूपाली सामान्य हो गयी थी।
मैंने उसकी आँखों में झांककर उससे आगे बढने की मूक सहमति मांगी तो उसने भी अपनी पलकें झुका के सहमति दे दी।
तब मैंने अपने हाथ में शहद लेकर उसके गोरे- गोरे, गोल और चिकने चूतड़ों पर लगा कर उनको भूरे रंग कर दिया और हाथ की बड़ी वाली उंगली में थोड़ा सा शहद लेकर गांड के छेद में लगाकर अंदर भर दिया।
फिर मैंने अपनी जीभ को निकाल कर उसके बायें वाले चूतड़ पर रख दी और उसपर लगे शहद को चाटने लगा।
एक चूतड़ पर लगे शहद को देर तक चाटने के बाद जब मैं दूसरे की तरफ जाने लगा तो मैंने दोनों चूतड़ को हाथ से फैला कर उसके गांड के छेद को जीभ से छेड़ दिया।
इससे वो फिर से वासना से गनगना गई।

फिर मैं उसके दायें वाले चूतड़ को चाटने लगा।
दोनों चूतड़ों पर लगे शहद को चाटने और हाथों से मसलने से दोनों चूतड़ गुलाबी हो गये थे। 

रूपाली भी अब अपनी गांड को इधर उधर मटका कर अपने शरीर में बढ़ते कमावेश के संकेत देने लगी थी।
मैंने पुनः अपनी जीभ को गांड के छेद की ओर बढ़ा दिया। मैंने उसकी कमर को हाथों में पकड़ कर थोड़ा अपनी ओर झुका लिया और उसके दोनों चूतड़ों को हाथों से फैला कर अलग कर दिया।
तब मैंने उसके भूरे रंग के छेद यानि गांड के छेद पर अपनी जीभ रख दी और धीरे से उसे चाटने लगा।
कभी छेद के ऊपर जीभ घुमाता तो कभी जीभ को गांड के अंदर घुसाने की कोशिश करने लगता।

रूपाली भी अब बहुत ज्यादा उत्तेजित हो गयी थी जिससे वो खुद अपने हाथों से चूतड़ों को फैला कर अपनी गांड खोलकर मेरी जीभ के लिय रास्ता बना रही थी।
कुछ देर तक मौसी की गांड के छेद से खेलने के बाद मैंने उसकी गांड के छेद और चूत के बीच में उभरी हुई बारीक सी मांस की लकीर पर मैंने अपनी जीभ रख दी।
धीरे- धीरे उस मांस की पगडंडी पर जीभ को चलाते हुए उसकी चूत की तरफ बढ़ने लगा।

रूपाली ने भी वासना के कारण अपनी टांगों को फैला कर जीभ को चूत की तरफ आने का निमंत्रण दे दिया था।
रूपाली एक हाथ से चूत को सहलाते हुए मादक आवाजें करने लगी थी- आह्ह … ह्ह्ह … अह्ह … उम्मम हाय हाय।

उसकी चूत से रस रिसते हुए नीचे की ओर आ रहा था जिसे मैं बड़े चाव से चाट रहा था।
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कुछ देर तक उसके गांड के छेद और छेद की तरफ बहते रस को चाटने के बाद मैंने उसको कमर से पकड़ के अपनी ओर घुमा लिया।
अब उसकी चिकनी बिना बालों वाली चूत मेरे सामने थी।

मैंने अंत में शहद के जार से बचा हुआ बाकी का सारा शहद हाथों में लेकर उसकी चूत पर मल दिया और कुछ शहद को चूत की गहराई में उतार दिया।
मैं अपनी जीभ से चूत के आस पास चाटने लगा।
कभी चूत के दाने को मुंह में भर कर दांत से दबा देता तो कभी चूत की पंखुड़ियों को होंठ में भर कर खींच लेता.
तो बस वो चहक उठती।

वो बार- बार मेरे बालों को खींचते हुए मेरे सर को चूत के ऊपर ले जाकर चूत को चटवाना चाहती थी।
लेकिन मेरा मन अभी उसे और तड़पाने का था।

आखिर रूपाली ने खीजते हुए कहा- चाटो न … क्यों सताते हो।
फिर मैंने उसके आग्रह पर जैसे ही चूत पर जीभ रख के चाटा तो स्वतः ही रूपाली के मुंह से आअह्ह निकल गई।

अब मैं चूत के दाने को होंठ में दबा कर खींचने लगा जिससे उसके मुंह से कामुक शब्द निकलने लगे- ऐसे ही चाटते रहो मेरी दुलारी को … कितना सुकून मिल रहा है मुझे भी और इसे भी … यस यस … सक इट!
मुझे रूपाली के बदन से खेलते हुए बहुत समय हो गया था जिससे रूपाली के पैरों में दर्द होने लगा था।
इसलिये मैंने उसे कमर से उठा कर रसोई की स्लैब पर बैठा दिया; मैंने रूपाली की कमर को अपने हाथों में उठा कर उसके चूतड़ों को रसोई की स्लैब पर रख दिया।

उसकी कमर को पकड़ कर थोड़ा आगे की तरफ खींचा जिससे उसकी चूत उभर कर बाहर की ओर आ गयी।
मैं अपनी जीभ से चूत को ऊपर से चाटने लगा। 

फिर मैंने अपनी जीभ को उसकी चूत की गहराई में उतार दिया और उसकी चूत की दीवारों को जीभ से चाटने लगा।
उसकी चूत से शहद में डूबे प्री- कम को लगातार मैं अपनी जीभ से चाट रहा था।

रूपाली मेरे बालों को अपनी मुट्ठियों में पकड़ कर अपनी कमर को गोल- गोल चलाने लगी थी जैसे वो मेरी जीभ को अपनी चूत की और ज्यादा अंदर ले जाना चाहती हो।
उसके मुख से लगातार आह्ह … ह्ह्ह … ह्म्म्म … उफ्फ … हय्य्य … श्श्श्श्श … उम्म्म जैसी आवाजें आ रही थी।

अब उसकी चूत का दाना भी फड़कने लगा था। 
उसने मेरी गर्दन को अपनी जाँघों में दबा लिया था; शायद अब वो कभी भी अपने अंत बिंदु को छूने वाली थी।
रूपाली ने काम्पते हुए शब्दों में मुझसे कहा- अब रुकना मत राहुल बिल्कुल भी … बस ऐसे ही चाटते रहो मेरी चूत को … मैं बस आने वाली हूँ!

अब रूपाली का बदन चिलखने लगा था और वासनावश से उसकी आँखें भी बंद हो गई थी।
“मैं आ रही हूँ आ रही हूँ … आह्ह्ह … माँ …” कहते हुए उसकी चूत से बाँध तोड़ कर कामरस बहने लगा।
जिसे मैं अपनी जीभ से चाट रहा था।

रूपाली का शरीर रह रह कर झटके खा रहा था और हर झटके के साथ उसकी चूत से लगातार रस बह रहा था जैसे कई दिनों से दबी उसकी कामाग्नि उसकी चूत के रास्ते निकल कर उसके शरीर को तृप्त कर रहा हो।
जितना मैं रस को चाटता, उतना ही रस उसके शरीर से एक और झटके के साथ चूत से बह जाता।
उसकी चूत से लगातार बहता हुआ रस स्लैब पर फैल कर नीचे रखे उसके कपड़ों पर चूने लगा था।
एक लम्बे स्खलन के बाद उसका शरीर अब धीरे- धीरे शिथिल होने लगा था और उसकी आँखें स्वतः ही बंद होने लगी थी।

उसने अपने सिर को दीवाल के सहारे टिका लिया और खुद को शांत करने लगी।
उधर दूसरी तरफ मैं नीचे फर्श पर बैठ गया और रेलगाड़ी की तरह तेज़ चलती हुई सांस पर नियंत्रण बनाने की कोशिश करने लगा।
कुछ देर बाद मैंने एक नजर रूपाली को देखा उसकी आँखें अभी अवसाद जैसी अवस्था से बंद थी।
बिना कोई शोर किये मैं चुपचाप उठा और बाथरूम में घुस गया और अपने सीने पर लगे कामरस को साफ़ करके वापस बेडरूम में बिना कपड़ों के लेट गया।

कुछ देर बाद मेरी आँख रसोई से आते शोर से खुल गई।
मैंने कमरे से बाहर निकल कर देखा तो रूपाली खाना बना रही थी।

रसोई को उसने वापस से व्यवस्थित कर दिया था और अपने कपड़ो को भी बाथरूम में डाल के एक लूज़ मैक्सी पहन ली थी।
मैं अभी भी नंगा ही था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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6



मैंने कमरे के बाहर रखे अपने कपड़े उठाये और उसमे से चड्ढी पहन कर वापस बेड पर लेट गया।
कुछ देर बाद रूपाली ने रसोई से आवाज़ लगा कर कहा- हाथ मुंह धो लीजिय खाना बन गया है!
मैंने भी प्रतिउत्तर में कहा- रूपाली, एक ही प्लेट में खाना लाना, साथ में खायेगें. 

थोड़ी देर बाद रूपाली हाथों में प्लेट लिय बेडरूम में दाखिल हुई।
हम दोनों एक दूसरे के सामने बैठे हुए थे और बीच में खाने की प्लेट रखी हुई थी।

सबसे पहले रूपाली ने अपने हाथों से एक निवाला तोड़ कर मेरे मुंह में डाल दिया।
उसके बाद मैंने भी उसे अपने हाथों से एक निवाला खिलाया।

इस तरह बारी- बारी से कभी मैं तो कभी वो मुझे खिलाती रही।
थोड़ी देर बाद रूपाली प्लेट को रसोई में रखने चली गई।

जब वो वापस कमरे में आयी तो मैंने उसका हाथ पकड़ के अपने पास बैठने को कहा.
तो उसने भी हंसते हुए मेरा आग्रह स्वीकार कर लिया।

फिर मैंने भी थोड़ा पीछे सरकते हुए अपनी जाँघों के बीच में जगह बना दी।
रूपाली भी बीच की खाली जगह में अपनी पीठ मेरी तरफ कर के बैठ गई जैसे उसे मेरे मन में उठी इच्छा का पूर्वाभास हो गया हो।

मैंने भी उसकी कमर को पकड़ के अपनी ओर खींचा और उसकी पीठ को अपने सीने से सटा लिया।
उसकी गर्दन को चूमते हुए उससे पूछा- एक बात पूछूँ रूपाली?
रूपाली- हाँ पूछिए!
मैं- क्या सच में तुम मुझसे प्यार करती हो।
रूपाली- सच में राहुल मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ। जब से आपके घर से वापस आयी हूँ तब से दिन-रात आपको याद करती हूँ आपके बारे में ही सोचती रहती हूँ।

मैं- क्यों मौसा जी अब तुम्हारी चुदाई नहीं करते?
रूपाली ने खीजते हुए जवाब दिया- उस इंसान का नाम भी मत लो। उसको तो बस पैसे कमाने की पड़ी रहती है जहाँ बाकी सारे मर्द औरत की कामुक आवाज सुन कर खुश होते हैं, वहीं दूसरी तरफ वो है जो रूपयों की खनक से खुश होता है।

वो बोलती रही- कितनी रातें मैंने खुद को बिस्तर पर उसके साथ होते हुए भी अकेली महसूस किया है। रातों को अक्सर वासना की आग में जलते हुए जब भी उससे सम्भोग को कहा तो हर बार यही कह के टाल दिया कि आज नहीं आज बहुत थक गया हूँ। फिर मैं भी शरीर में उठी आग को शांत करने के लिय रातों को बाथरूम में ठन्डे पानी से बदन को शांत करती या फिर कभी-कभी आपके साथ बिताए हसीन पलों को याद कर के अपनी दुलारी को उँगलियों से सहलाने लगती. लेकिन निगोड़ी चूत की आग भी शांत होने की जगह और भड़क जाती। कभी-कभी जब महीने में एक या दो बार सेक्स भी होता तो बस वो खुद को शांत करके सो जाता।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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7










मैंने पीछे से उसकी मैक्सी के अंदर हाथ डाल कर उसकी चूचियों को पकड़ लिया और हल्के हाथ से सहलाने लगा।
फिर मैंने उसके चेहरे को अपनी ओर घुमा कर उसके पतले, रसीले, गुलाबी होंठ पर अपने होंठों को रखकर उनका रस पीने लगा।

हम दोनों एक दूसरे के होंठों को सम्पूर्ण समर्पण के साथ चूम रहे थे।
उधर मेरी उँगलियाँ चूचियों का मर्दन बड़ी ही बेरहमी के साथ कर रही थी।

अब रूपाली फिर से गर्म होने लगी थी।
फिर मैंने उसकी मैक्सी उतार कर उसे पीठ के बल बेड पर लिटा दिया।
सामने एक अल्फ़ नंगे जिस्म को देखकर मैं खुद पर काबू न रख सका और आगे बढ़ कर उसकी बायीं चूची को मुंह में भर लिया तथा दूसरी को हल्के हाथों से सहलाने लगा।
मैं उसकी चूची को मुंह में भरकर जब भी उसके निप्पल को दांतों से काट लेता तो वो जोश से मचलने लगती।


रूपाली भी अब अपने हाथों को मेरी पीठ पर स्वयं घुमाने लगी। कुछ देर बाद उसकी चूचियों को छोड़ कर नाभि को जीभ से कुरेदने लगा।
फिर मैंने उसकी टांगों को फैला कर उसकी सुलगती हुई चूत पर जीभ रख दी। मैं चूत के पतले होंठ को अपने होंठ में दबा कर खींचते हुए जीभ को अंदर बाहर करने लगा।

कुछ देर बाद रूपाली ने मुझसे लंड चूसने को कहा तो मैं भी अपनी चड्डी उतार कर 69 की अवस्था में हो गया।
उसने सबसे पहले लंड की चमड़ी को पीछे खींचा और पूरे सुपारे पर गोल जीभ घुमाते हुए जोर का चूपा लिया और फिर गप्प से लंड को मुंह में भर कर चूसने लगी।
उधर मेरी जीभ भी चूत के आस पास नाच रही थी।
जब भी मेरी जीभ उसके फड़कते हुए दाने को छू जाती तो वो मेरी गर्दन को अपनी जाँघों में जोर से दबा लेती और लंड को जोर-जोर से चूसने लगती; तो कभी वो केवल मेरे आंड को मुंह में भर लेती।
उसके मुंह में लंड होने की वजह से उम्म्म उम्म्म शी … जैसी आवाज आ रही थी।

कुछ देर तक एक दूसरे के अंगों को चूसने के बाद हम लोग अपने चरम बिंदु के करीब पहुँच गये थे और कुछ देर बाद हमारे शरीर ने झटके खाते हुए एक दूसरे के मुंह में अपना रज छोड़ दिया। जिसे हमने अपनी जीभ से चाट कर साफ़ दिया।
मेरा लंड झड़ कर धीरे-धीरे पहले जैसे आकार में आने लगा था.
लेकिन रूपाली ने लंड को चूसना जारी रखा. शायद उसके गले की प्यास बुझ गई थी लेकिन चूत की नहीं … इसीलिये वो वापस से खड़ा करना चाह रही थी। 

कुछ देर बाद उसकी मेहनत रंग लायी और लंड फिर तन कर घमंड से फूल गया।
मैंने उसके मुंह से लंड को निकाला लिया। लंड थूक से सना हुआ था और कमरे की मद्धम रोशनी में कांच की तरह चमक रहा था।
मैं उसकी टांगों के बीच आकर लंड को उसकी चूत की लकीर पर रगड़ने लगा।
रूपाली ने हाथ आगे बढ़ा कर लंड को पकड़ के छेद के ऊपर रख दिया और अंदर डालने का आग्रह किया।

मैं भी लंड पर दबाव बनाते हुए धीरे-धीरे अंदर करने लगा लेकिन पिछले कुछ समय से अच्छे से उसकी चूत और लंड का मेल न होने की वजह से छेद थोड़ा संकरा हो गया था इसलिये लंड आगे पीछे करने में चूत पर तनाव पड़ रहा था।
मैंने लंड को बाहर निकाला और एक जोरदार धक्के के साथ उसकी चूत में उतार दिया।
रूपाली के मुंह से बस आआह्ह निकल के रह गयी.

थोड़ी देर मैं उसी तरह रुका रहा।
फिर रूपाली नीचे से कमर को उचकाने लगी। मैं भी अपनी कमर को आगे पीछे करते हुए शॉट लगाने लगा।

कुछ देर में उसकी चूत पनियाने लगी थी इसलिये मैं अपने लंड को पूरा बाहर निकालता और ताकत के साथ उसकी चूत की गहराई में ठोक देता।
हर झटके से रूपाली का पूरा बदन हिल जाता और मुंह से आह्ह निकल जाती।

कुछ देर इसी तरह धक्के के बाद रूपाली ने मुझे जोरदार तरीके से चोदने को बोला।
मैं भी उसकी बायीं चूची का हाथों से मर्दन करते हुए उसकी चूत में करारे धक्के लगाने लगा।

रूपाली भी अब फिर से कामुक सिसकियाँ लेने लगी थी- अहह … ह्ह्ह … उम्म्म … हाय यय … आपके नीचे लेट कर आपसे चूत चुदवाने में कितना सुकून मिलता है! उफ्फ्फ … ऐसी ही अपनी बीवी की चूत की सेवा करते रहिए अहह … हस्स!
कुछ मिनट की बेरहम चुदाई से रूपाली की चूत का बाँध टूटने ही वाला था इसलिये उसने मुझे अपने सीने चिपका लिया और अपनी बांहों का घेरा मेरी पीठ बना दिया। 
मैं उसी तरह उसके बदन से चिपके हुए अपने लौड़े से उसकी चूत पर प्रहार किये जा रहा था।
अचानक रूपाली ने कहा- हां ऐसे ही चोदो मुझे … रुकना मत … मैं आने वाली हूँ!

और उसका बदन जोर से कांपा … कांपते हुए उसकी चूत से सैलाब बह निकला।
उसकी चूत से बहते रस की गर्मी मैं अपने लंड पर महसूस कर सकता था जो मेरे लंड के बगल से रिसते हुए चादर पर गिर रहा था।
रूपाली इस स्खलन से थोड़ी सुस्त हो गयी थी।इसलिये उसने अपनी आँखें बंद कर ली और उखड़ी हुई साँसों को नियंत्रित करने लगी।
मेरा लंड अभी भी उसकी चूत में फंसा हुआ था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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मैंने एक नज़र रूपाली के चेहरे पर डाली.
बिखरे हुए बाल, सपाट माथे पर पसीने की कुछ बूँदें, शांत आँखें, कुछ जोर से चूमने से लाल हो चुके गाल और होंठ पर मंद मुस्कान।

उसके चहेरे पर सम्पूर्ण संतुष्टि के ऐसे भाव थे जो उसे अब अपने पति(मौसा जी) से कभी नहीं मिलने वाले थे।
मैंने अपने लौड़े से चूत के अंदर खटखटा कर उसकी तन्द्रा भंग की.
उसने अपनी आखें खोल के पूछा- क्या हुआ?

मैं- तुम्हारा तो हो गया … पर अब मैं क्या करूं?
रूपाली- तो मना किसने किया है … आपकी ही हूँ … चढ़ जाओ फिर से!

मैंने रूपाली की एक टांग को अपने कंधे पर रख लिया और ताबड़तोड़ धक्के लगाने लगा।
हर धक्के से उसकी चूत में भरा हुआ रस बाहर छलक जाता।
रस से गीला लंड चूत में पच-पच की आवाज करते हुए सरपट भागे जा रहा था और बेड की चर्र-चर्र ध्वनि से कमरे में चुदाई का मधुर संगीत हो रहा था।

रूपाली फिर से गर्म होने लगी थी और नीचे से अपनी चूत उचका कर लंड को अंदर बाहर करने में मदद करने लगी थी।
बहुत देर से चल रही इस धकापेल चुदाई की वजह से मैं भी अब झड़ने के करीब आ गया था इसलिये मैंने भी अब जोश से धक्के लगाना शुरू कर दिए थे। 

लंड की सारी नसें फूलने लगी थी, टट्टे भी रस से भर कर भारी हो गये थे।
रूपाली भी अब फिर उम्म्म अहह यस्सस आईई माँ जैसी आवाजें निकाल रही थी।

तभी उसने कहा- रुकना मत … मैं आने वाली हूँ!
और आह … आह्ह्ह करते हुए उसकी चूत ने एक और बार रस की नदी खोल दी।
उसके रस के ताप से मैं खुद को रोक न सका और जल्दी से लंड को बाहर खींचा और उसकी चूत के ऊपर सारा वीर्य उगल दिया।

सारा वीर्य निकल जाने के बाद मैं उसकी बगल में लेट गया और उसके बालों से खेलते हुए उससे बातें करने लगा।
बातों-बातों में मैंने उससे आने वाले तीन दिनों तक नंगी रहने को कहा.
शुरू में तो उसने मेरी इस इच्छा को बहुत सारे तर्क देकर टालना चाहा लेकिन अंत में उसने मेरी मांग स्वीकार कर ली।

फिर पता नहीं कब हमारी आँख लग गयी और हम सो गये।
कुछ देर बाद मेरी आँख खुली तो देखा घड़ी में शाम के 4:10 हो रहे थे।
रूपाली अभी भी सो रही थी.

मैंने आगे झुक कर उसके होंठ को चूम लिया जिससे उसकी भी आँख खुल गयी और उसने भी मेरे होंठों पर छोटा सा चुम्मा चिपका दिया।
हम एक दूसरे को देख कर खुश हो रहे थे.

तभी घर के मुख्य दरवाजे की घंटी बजी!
दरवाजे की घण्टी बजने के बाद हम दोनों एक दूसरे को ऐसे देख रहे थे मानो इसे वहम समझ कर टालने की कोशिश कर रहे हों।
लेकिन तभी एक बार और घण्टी बजी इस बार हमारा ध्यान एक दूसरे के बदन पर गया।
हम दोनों नंगे ही बेड पर लेटे हुए थे और हमारे कपड़े पूरे कमरे में यहाँ वहाँ फैले पड़े थे।

इससे पहले एक और घण्टी बजती, रूपाली हड़बड़ी में उठ खड़ी हुई और उसने अपने शरीर को मैक्सी से ढक लिया।
मैंने भी जल्दी से लोवर टीशर्ट पहन ली।

रूपाली तेज क़दमों से चलते हुए कमरे बाहर निकल गयी।
मैंने बेडशीट को जल्दी से निकाला और बाथरूम में धुलने के लिये डाल दिया।

तभी मुझे किसी महिला की आवाज आ रही थी जो धीरे-धीरे मेरी तरफ आते हुए साफ़ और स्पष्ट होती जा रही थी।
मैंने बाथरूम से बाहर निकलकर देखा तो मेरे सामने मेरी दूसरी नायिका खड़ी थी।

रूपाली ने आगे झुककर उनके पैर छूते हुए ‘चरण स्पर्श दीदी’ कहा.
और जवाब उसे ‘खुश रहो’ का आशीर्वाद मिला।

मेरे सामने रूपाली की जेठानी खड़ी थी जिनसे मैं केवल एक बार रूपाली की शादी में ही मिला था।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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नीतू से एक संक्षिप्त परिचय करवाना —-
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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