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Adultery जिस्म की भूख
#21
Heart 
(11-02-2024, 07:42 PM)dragonslair Wrote: Ye story Sagar ki likhi huyi lagti hai? Writer se request hai ki atleast credit dijye original writer ko. Sagar ne ye story adhuri chori huyi thi to agar ho sake to ise complete kijye. Good luck

clps clps Ye kahani pahle bhi maine hi likhi thi, kai meri likhi kahani alag-alag sites par maujud hai. Yaha par ye mera teesara account hai. Kuch din gape ho jane par mai apna login id password bhul jata hoo to mujhe dobara phir se ID banani padti hai.
Vaise aapka shukriya ki aap meri sari kahani padhate hai. "Yadon ke jharokhe Se" kahani Yad hai? wo bhi meri hi likhi huee thi.
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#22
लेकिन उनके अंदाज़ से ऐसा बिल्कुल नहीं महसूस हो रहा था कि जैसे उन्हें मुझे इस हालत में देखने से कोई प्राब्लम हो। इस वक़्त वो ऐसे ही नॉर्मल थीं जैसे आम हालात में होती थीं। शायद अब वो मुझे ऐसे देखने की आदी हो गई थीं।

‘आप भी तो सारा दिन लगाती हैं ये करते हुए, मैंने कभी आपको कुछ कहा है?’ ये बोलते हुए भी मैं अपने लण्ड को सहलाता रहा।

‘बकवास मत करो और चलो बाहर जाओ और मुझे कुछ टाइम दो।’ वो सामने ही सोफे पर बैठते हुए बोलीं। लेकिन उस सोफे से कंप्यूटर स्क्रीन नज़र आती थी।

‘आप भी मेरे साथ यहाँ आ जाएँ दोनों देख लेते हैं ना मुझे बाहर भेज के आपको क्या मिलेगा?’

‘पागलों वाली बातें मत करो, मैं तुम्हारे साथ बैठ कर नहीं देख सकती, मैं अकेली ही देखूंगी।’ यह बोल कर वो कुछ सेकेंड्स रुकीं और फिर शैतानी के से अंदाज़ में कहा- “मैंने कुछ काम भी करना होता है”

‘ओह! होऊऊओ’ मैं आपी की इस जुर्रत पर वाकयी हैरान हुआ और हैरतजदा अंदाज़ में उनकी आँखों में देखा तो उनके चेहरे पर शर्म की लाली फैल गई और हल्की सी मुस्कुराहट के साथ उन्होंने नजरों के साथ-साथ सिर भी झुका लिया।

कुछ देर ना आपी कुछ बोलीं और ना मैं पर मैं समझ गया कि वो बाहर नहीं जाएंगी, शायद वो यहाँ बैठना चाहती हैं। मैंने भी ज़ाहिरी तौर पर उन्हें नज़र अंदाज़ किया और मूवी देखते हुए अपने लण्ड को हिलाने लगा और कुछ ही देर बाद फिल्म में इतना खो गया कि आपी का ध्यान ही नहीं रहा।

तकरीबन 10 मिनट बाद मैंने सिर घुमा कर आपी की तरफ देखा तो उनकी नजरें मेरे लण्ड पर ही जमी हुई थीं और बहुत इत्मीनान से मेरी हर हरकत को देख रही थीं। आपी की आँखों में लाल-लाल डोरे बन चुके थे और आँखें ऐसी हो रही थीं जैसे नशे में हों।

उन्होंने मेरी नज़र को अपने चेहरे पर महसूस करके नज़र उठाई और मुझे कहा- “सामने देखो और अपना काम करते रहो, मेरी तरफ मत देखो”

मैं उनके इस अंदाज़ पर मुस्कुरा दिया और फिर मूवी के तरफ ध्यान देने लगा, कुछ-कुछ देर बाद में आपी की तरफ देख लेता था। आपी कभी अपने एक दूध को दबोच देती थीं कभी अपनी टाँगों के बीच वाली जगह को हाथ से रगड़ देती थीं लेकिन इस बात का ध्यान रखने की कोशिश कर रही थीं कि मैं ना देख सकूँ और अपनी इस कोशिश में कुछ हद तक कामयाब भी थीं। वैसे भी आपी मुसलसल नहीं हाथ चला रही थीं बस कुछ-कुछ देर बाद ही हरकत करती थीं।
कुछ ही देर बाद मेरा जिस्म अकड़ना शुरू हो गया, मुझे महसूस हो रहा था कि मेरे पूरे जिस्म से कोई चीज़ बह-बह कर मेरे लण्ड में जमा हो रही है। मुझे अंदाज़ा हो गया था कि आपी को लण्ड से निकलते हुए पानी को देखना बहुत पसन्द है। मैंने कुर्सी को आपी की तरफ घुमा दिया और बहुत तेज-तेज अपने हाथ से लण्ड को रगड़ने लगा।
अब आपी मेरे बिल्कुल सामने थीं।
आपी समझ गईं थीं कि मेरी मंज़िल अब क़रीब ही है। मेरे रुख़ फेरने पर बिगड़ने के बजाए वो और ज्यादा तवज्जो से मेरे लण्ड को देखने लगी थीं। उनकी आँखों में बिल्कुल ऐसी खुशी थी जो किसी बच्चे की आँख में उस वक़्त होती है जब उससे मन पसन्द चीज़ मिलने वाली हो। आपी की आँखें नहीं झपक रही थीं बस एकटक वो मेरे लण्ड पर नज़र जमाए हुए थीं और सोफे से कुछ इंच उठी हुई थीं।
मैं आपी के चेहरे के बदलते रंग देख रहा था। मेरे हाथ की हरकत में बहुत तेजी आ चुकी थी मेरे जिस्म से लहरें लण्ड में इकठ्ठी होती जा रही थीं और तभी एकदम से मेरा लण्ड फट पड़ा..
‘आआआहह आअपीईईई ईईईईई.. उफफफ..फफ्फ़..’

मैं आज ऐसा डिसचार्ज हुआ था कि मेरी पहली पिचकारी तकरीबन 4 फीट तक गई थी और आज मेरे लण्ड ने पानी भी नॉर्मल से बहुत ज्यादा छोड़ा था। मैं 6-7 मिनट तक आँखें बन्द किए निढाल सा पड़ा रहा।

फिर अचानक मैंने एक हाथ अपने कंधे पर महसूस किया- “सगीर! तुम ठीक तो हो ना, क्या हुआ ???” आपी की फिक्रमंद आवाज़ मुझे सुनाई दी।

‘जी आपी, मैं बिल्कुल ठीक हूँ, ऐसा होता है, ये नॉर्मल है’ मैंने आँखें खोल कर देखा तो आपी एक हाथ मेरे कंधे पर रखे हुए थीं और दूसरे हाथ में पानी का गिलास पकड़े हुए मेरे सामने खड़ी थीं।

‘लो पानी पियो और ठहर-ठहर कर घूँट-घूँट पीना।’

आपी ने मुझे पानी का गिलास दिया और फिर वापस मुड़ गईं।
मैंने फिर आँखें बंद कर लीं और एक घूँट पानी पीकर थोड़ी देर रुका फिर दूसरा घूँट ले ही रहा था कि मुझे अपने लण्ड पर ऊँगलियाँ महसूस हुईं।
मैंने आँखें खोल कर देखा तो आपी मेरी टाँगों के सामने अपने घुटने ज़मीन पर टेके बैठी थीं और उन्होंने लेफ्ट हैण्ड की दो ऊँगलियों में मेरे नरम हुए लण्ड की टोपी थाम रखी थी।
उन्होंने खींच कर मेरे लण्ड को सीधा किया और दूसरे हाथ में पकड़े टिश्यू पेपर से मेरे लण्ड पर लगे पानी को साफ करते हुए फिक्रमंद लहजे में बोलीं- “कितनी ही मूवीज में मैंने कितने ही लड़कों को डिसचार्ज होते देखा है लेकिन इतनी कमज़ोरी तो किसी को नहीं होती, तुम अपनी सेहत का भी कुछ ख़याल करो”
ये कह कर आपी ने हाथ में पकड़े गंदे टिश्यूस को कंप्यूटर टेबल के नीचे पड़े डस्टबिन में फेंका और पैकेट में से 5-6 टिश्यू और निकाले और फिर से मेरे लण्ड और मेरी जाँघों पर लगी मेरी गाढ़ी सफ़ेद मनी को साफ करने लगीं। मैं पानी का गिलास हाथ में पकड़े आपी को देखने लगा, कितना मासूम और पाकीज़ा लग रहा था मेरी आपी का चेहरा, कितनी मुहब्बत थी उनकी नजरों में मेरे लिए, ममता भरी मुहब्बत…. कोई लस्ट नाम की चीज़ नहीं थी उनकी आँखों में, सिर्फ़ प्यार था, ऐसा प्यार जो सिर्फ़ बड़ी बहन अपने छोटे भाई से करती है।
आपी का प्यार देख कर मेरी आँखों में भी नमी आ गई। वो इतनी ज्यादा तवज्जो से सफाई कर रही थीं कि कहीं कोई क़तरा चिपका ना रह जाए। आपी ने मेरे लण्ड के नीचे बॉल्स को पकड़ा और उनकी सफाई करते हो ऐसे हँसी जैसे किसी ने गुदगुदी कर दी हो।
‘ही..हहहे.. ये कितने प्यारे से हैं ना, मासूम से छू छू छुउऊउउ..’ ये कहते हुए आपी ने मेरे बॉल्स को नीचे से हथेली में लिया और नर्मी से इस अंदाज़ में हाथ को हरकत देने लगीं जैसे कोई चीज़ तौल रही हों फिर नर्मी से दूसरे हाथ की ऊँगलियों से मेरे बॉल्स की सिलवटों को सहलाने लगीं।

‘इन पर क्यों बाल उग आते हैं?’ आपी ने मेरे बॉल्स पर बालों को महसूस करते हुए बुरा सा मुँह बना कर गायब दिमागी की सी हालत में अपने आपसे कहा।

मेरे बॉल्स पर आपी के हाथ का रदे-ए-अमल फौरी हुआ और मेरे सोए लण्ड में जान पड़ने लगी।
‘नहीं! बिल्कुल भी नहीं’ ये कहते हुए आपी ऐसे पीछे हटीं और खड़ी हो गईं जैसे उन्हें करंट लगा हो।
‘फ़ौरन.. फ़ौरन उठो और अपना ट्राउज़र पहनो, क्यों अपनी सेहत के दुश्मन हुए हो?’
आपी ने लेफ्ट हैण्ड क़मर पर रखा और सीधे हाथ की ऊँगली का इशारा मेरे ट्राउज़र की तरफ करते हुए हुक्मिया लहजे में कहा और इसके बाद वे कमरे से बाहर निकल गईं।
मैं बस ट्राउज़र पहन कर कुर्सी पर बैठा ही था कि आपी दोबारा कमरे में दाखिल हुईं, उनके हाथ में दूध का गिलास था। उन्होंने दूध का गिलास टेबल पर रखा और मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों में भरा और मुस्कुराते हुए मुहब्बत भरी नज़र से कुछ सेकेंड्स मुझे देखा फिर मेरे माथे को चूमते हो कहा- “मेरा सोहना भाई! चलो दूध पी लो फ़ौरन”

मुझे हुकुम देती हुईं वे सोफे पर जा बैठीं। कुछ देर तक हम इधर-उधर की बातें करते रहे, मेरी पढ़ाई के बारे में कुछ बातें हुईं, उसके बाद आपी ने अचानक ही मुझसे पूछा- “तुम्हारे और फरहान के दरमियान ये सब कैसे शुरू हुआ?”

मैंने कहा- “आपी अगर मैंने सब तफ़सील से बताना शुरू किया तो 2-3 घंटे लग जाएंगे, आपको खास-खास बातें बता देता हूँ”

‘नहीं, मुझे ए से जेड तक सुनाओ I चाहे 5-6 घन्टे ही क्यूँ ना लग जाएं।’
उन्होंने गर्दन को राईट-लेफ्ट हरकत देते हो ज़िद्दी अंदाज़ में कहा।

‘उम्म्म्म ओके, मैं कोशिश करूँगा कि कोई बात भूलूं नहीं, ये सब जब शुरू हुआ उस वक्त मेरी उम्र..’

मैंने आपी को शुरू से अपनी पूरी दास्तान सुनाना शुरू की। आपी ने दोनों पाँव ऊपर सोफे पर रखे और टाँगों को आपस में क्रॉस करके दोनों हाथों को जोड़ कर अपनी गोद में रखते हो बैठीं और पूरी तवज्जो से मेरी बात सुनने लगीं।

TO BE CONTINUED ......
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#23
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जैसे-जैसे दास्तान आगे बढ़ती जा रही थी आपी की बेचैनी भी बढ़ती जा रही थी। वो कभी टाँगों को आपस में भींचती थीं तो कभी अपनी दोनों रानों को एक-दूसरे से रगड़ देती थीं शायद उनकी बेचैनी की वजह ये थी कि वो मेरे सामने अपनी टाँगों के दरमियान सहला नहीं पा रही थीं।

उनके गोरे गाल सेक्स की चाहत से गुलाबी हो गए आँखों में नशा सा छा गया था और आँखों में लाली भी आ गई थी। मेरा लण्ड भी फुल टाइट हो चुका था और थोड़ी-थोड़ी देर बाद बेसाख्ता ही मेरा हाथ लण्ड तक चला जाता था और मैं ट्राउज़र के ऊपर से ही लण्ड को पकड़ कर भींच देता था।

मुझे दास्तान सुनाते एक घन्टे से ज्यादा हो गया था I मैं थोड़ी देर पानी पीने के लिए रुका, मैं टेबल से पानी उठाने के लिए दूसरी तरफ मुड़ा तो आपी को भी मौका मिल गया और उन्होंने अपनी टाँगें सीधी कीं और अपनी टाँगों के दरमियान वाली जगह को अपने हाथ से रगड़ दिया। यक़ीनन आपी की टाँगों के दरमियान वाली जगह भी मुसलसल निकलते पानी से बहुत गीली हो चुकी थी और उन्होंने अपना गीलापन सलवार से साफ किया था।

मैंने कुर्सी पर बैठते ही जहाँ दास्तान छोड़ी थी वहीं से शुरू की, दस मिनट बाद ही आपी की बेचैनी दोबारा शुरू हो चुकी थी, शायद उनका पानी फिर बहने लगा था।

जब आपी की बर्दाश्त से बाहर होने लगा तो आपी ने मेरी बात को काटते हुए कहा- “सगीर प्लीज़ तुम अपनी कुर्सी को घुमा लो और मेरी तरफ पीठ करके सुनाते रहो”

मैं फ़ौरन ही समझ गया कि मेरी प्यारी बहन क्या करना चाह रही हैं, मैंने हँसते हुए फिल्मी अंदाज़ में कहा- “आपी मेरे सामने ही कर लो ना, मैं भी आपके सामने ही कर रहा हूँ। ये दुनिया है कभी हम तमाशा देखते हैं तो कभी हमारा तमाशा बनता है”

‘बकवास मत करो! तुम बेशर्म हो, मैं नहीं, जल्दी से घूमो ना, प्लीज़! अब बर्दाश्त नहीं हो रहा है’ आपी अपनी फोल्डेड टाँगें खोलती हुई बोलीं और बेख़याली में मेरे सामने ही अपनी टाँगों के बीच वाली जगह को रगड़ दिया।
फ़ौरन ही उन्हें अंदाज़ा हुआ कि उन्होंने क्या कर दिया है, उन्होंने शर्म से लाल होते हुए कहा- “घूम जा ना कमीने, इतना क्यूँ तंग करते हो अपनी बहन को”

मैंने हँसते हुए अपनी कुर्सी को घुमाया उनकी तरफ पीठ करके कहा- “आपी ज़रा प्यार से रगड़ना, कहीं छील ना देना”

‘शटअप..!’ वो झेंपते हुए बोलीं।

मैंने दोबारा दास्तान शुरू कर दी और साथ ही अपना ट्राउज़र भी उतार दिया और लण्ड को मुठी में लेकर हाथ आगे-पीछे करने लगा।
थोड़ी-थोड़ी देर बाद आपी की ‘आआआहह.. उफफ्फ़..’ जैसी आवाजें भी सुनाई दे रहीं थीं और सोफे की चरचराहट बता रही थी कि आपी कितनी तेज-तेज हाथ चला रही हैं।
दास्तान खत्म होने के क़रीब थी तो आपी के हलक़ से निकलती आवाज़ ‘अक्खहूंम्म्म.. उफफफ्फ़.. उखं..’ सुन कर मैंने अपना रुख़ आपी की तरफ किया , आपी की आँखें बंद थीं उनका जिस्म अकड़ा हुआ था, टाँगें खुली हुई थीं.. पाँव ज़मीन पर टिके थे और कंधे और कमर का ऊपरी हिस्सा सोफे की पुश्त पर था। सिर पीछे की तरफ़ ढलक गया था और पेट और सीने का हिस्सा कमान की सूरत में मुड़ा हुआ था, उनके कूल्हे सोफे से उठे हुए थे.. बायें हाथ से आपी ने अपने बायें दूध को दबोचा हुआ था और दायें से आपी अपनी टाँगों के बीच वाली जगह को कभी भींचती थीं, कभी लूज कर देती थीं, उनके हलक से ऐसी आवाजें आ रही थीं जैसे वो बहुत करीब में हैं।
उनकी क़मीज़ पेट से हट गई थी, मैंने पहली बार अपनी सग़ी बहन का पेट देखा था, गोर पेट पर खूबसूरत सा नफ़ (नेवेल) बहुत प्यारा लग रहा था। उनके पेट पर नफ़ के बिल्कुल नीचे एक तिल भी था। अपनी डीसेंट सी बहन को इस हालत में देख कर मैं अपने ऊपर कंट्रोल खो बैठा था, मैं बहुत तेज-तेज हाथ चला रहा था।
दूसरी तरफ आपी भी डिसचार्ज हो गई थीं और उनका जिस्म नीचे सोफे पर टिक गया था।
मैंने देखा आपी की सलवार के दरमियान का बहुत बड़ा हिस्सा गीला हो गया था और उनका हाथ भी उनके पानी की वजह से चमक रहा था। उसी वक़्त मेरी बर्दाश्त करने की हद भी खत्म हो गई और मेरे लण्ड से भी पानी एक धार की सूरत में निकाला और ज़मीन पर गिरा और उसके बाद क़तरा-क़तरा निकल कर मेरे हाथ और रानों पर सजने लगा।
कुछ देर बाद जब मैंने आँखें खोलीं तो उसी वक़्त आपी भी आँखें खोल रही थीं। आपी ने आँख खोली और मुझसे नज़र मिलने पर मुस्कुरा दीं।
मैं भी मुस्कुरा दिया, मेरा लण्ड मेरी मुठी में ही था और आपी का भी एक हाथ टाँगों के दरमियान और दूसरा उनके एक उभार पर था लेकिन उनके अंदाज़ में कोई घबराहट या जल्दी नहीं थी, वो कुछ देर ऐसे ही आधी लेटी मेरी तरफ देखती रहीं फिर आहिस्तगी से उन्होंने अपनी सलवार से ही अपनी टाँगों के बीच वाली जगह को साफ किया और फिर सीधी बैठीं और अपने मम्मों को पकड़ कर अपनी क़मीज़ सही करने लगीं।
मम्मों और पेट से क़मीज़ सही करने के बाद आपी ने फिर मेरी आँखों में देखा मैं उन्हीं को देख रहा था।
‘अब उठो, और साफ करो अपने आपको, कितनी गंदगी फैलाते हो तुम’

फिर उन्होंने अपने हाथ को देखा और सिर झुका कर अपनी सलवार को दोनों हाथों से फैला कर देखने लगीं जो ऐसी हो रही थी जैसे उन्होंने पेशाब किया हो। सलवार देखते हुए उन्होंने कहा- “तुम्हारे साथ रह-रह कर मैं भी गंदी हो गई हूँ”
‘आपी मुझे भी साफ कर दो ना’ मैंने निढाल सी आवाज़ में कहा।

‘जी नहीं, मैं हर किसी को इतना फ्री नहीं करती’ आपी ने किसी फिल्मी हीरोइन के तरह नखरीले स्टाइल में कहा और खड़ी होकर मेरी तरफ पीठ करके सिर को टिकाया ‘हम्म..’ और कैटवॉक के स्टाइल में कूल्हों को मटका कर चलती हुई बाहर जाने लगीं।
दरवाज़े में खड़े होकर उन्होंने सिर्फ़ गर्दन घुमा कर पीछे मुझे देखा और बहुत सेक्सी से स्टाइल में एक्टिंग करते हुए उन्होंने मुझे आँख मारी और बाहर निकल गईं।
आपी की इस मासूमाना हरकत ने मेरे चेहरे पर भी मुस्कुराहट फैला दी और मेरी सुस्ती को भी कम कर दिया। मेरा लण्ड अभी भी मेरी मुट्ठी में ही था और जिस्म में इतनी जान ही नहीं बची थी कि में हाथ-पाँव हिला सकता। करीबन 15 मिनट ऐसे ही पड़े रहने के बाद मैं उठा और नहाने के लिए बाथरूम चला गया।
रात में खाना खाने के बाद सब अपने कमरों में सोने जा चुके थे, मैं अकेला बैठा टीवी देख रहा था जब फरहान बैग उठाए घर में दाखिल हुआ।

मैं उठ कर उससे मिलते हुए बोला- “यार फोन ही कर देते, मैं आ जाता तुम लोगों को लेने”

‘हमारा इरादा तो ये ही था लेकिन इजाज़ खालू के एक दोस्त जो एयरपोर्ट पर ही काम करते हैं उन्होंने ज़िद करके अपने ड्राइवर को साथ भेज दिया इसलिए आप लोगों को इत्तला नहीं दी, मैं ज़रा नहा लूँ भाई, फिर बातें करेंगे।’ फरहान ने ऊपर कमरे की तरफ जाते हुए कहा।

फिर पहली सीढ़ी पर रुकते हुए कहा- “बाक़ी सब तो सो गए होंगे?”

‘हाँ’ मैंने जवाब दिया।

‘आप भी आ जाओ ना यहाँ, क्या कर रहे हैं’ उसने कहा और ऊपर चला गया।

उसके जाते ही आपी अपने रूम से निकलीं और आकर सोफे पर मेरे बराबर बैठ गईं।
‘फरहान की आवाज़ आ रही थी, क्या वो आ गया है?’

‘जी! ऊपर चला गया है’ मैंने जवाब दिया और उनको देखने लगा। उनके चेहरे पर परेशानी सी छाई हुई थी।

‘कमीने अगर दिन में मुझे मूवी देखने दे देते तो अच्छा था ना, तुम तो उसके साथ सब कुछ कर ही सकते हो’ वो झुँझलाते हुए बोलीं।

अब मुझे समझ आ गई थी आपी की परेशानी की वजह, मुझसे आपी की झिझक अब बिल्कुल खत्म हो गई थी और वो मुझसे हर तरह की बात कर रही थीं। मैंने भी हैरत का इज़हार नहीं किया और नॉर्मल रह कर ही बात करने लगा।

‘आपी उसे तो आना ही था, आज नहीं तो कल आ जाता, आपकी 114 खत्म होने के बाद 115वीं, 116वीं भी तो आनी ही हैं ना, आप हमारे साथ ही देख लिया करो। वैसे भी अब हमारे दरमियान कोई बात छुपी हुई तो है नहीं, आप भी जानती हैं कि हम सेक्स के मामले में बिल्कुल पागल हैं और मैं भी जानता हूँ कि आप भी हमारी ही सग़ी बहन हैं। अगर हमारे खून में इतना उबाल है तो आप की रगों में भी वो ही खून है, उबाल उसका भी हमारे जितना ही है।’
‘तुम्हारी और बात है, तुम समझदार हो और नेचुरल नीड्स को समझ सकते हो I इस बात को समझ सकते हो कि जब हमारे जिस्मों को जेहन के बजाए टाँगों के बीच वाली जाघें कंट्रोल करने लगती हैं तो सोचने समझने की सलाहियत खत्म हो जाती है, क्या हालत होती है उस वक़्त इसका अंदाज़ा तुम्हें है। लेकिन फरहान अभी बच्चा है, उसके सामने मैं ???’ इतना कह कर आपी चुप हो गईं। उनके चेहरे से बेचारगी और लाचारी ज़ाहिर हो रही थी।

‘आपी आपकी इतनी लंबी तक़रीर का मेरे पास एक ही जवाब है कि फरहान भी सब समझता है, वो बच्चा नहीं है, कईयों बार मुझे चोद चुका है वो’ मैंने शरारती अंदाज़ में कहा और हँसने लगा।

मेरी इस बात का असर वो ही हुआ जो मैं चाहता था। आपी के चेहरे से भी परेशानी गायब हो गई और उन्होंने भी शरारती अंदाज़ में हँसते हुए मेरे सीने पर मुक्का मारा और कहा- ‘तुम्हारा बस चले तो तुम तो गधे घोड़े को भी नहीं छोड़ो’

आपी की इस बात पर मैं भी हँस दिया। माहौल की घुटन खत्म हो गई थी। फिर मैंने सीरीयस होते हुए कहा- “आपी मैं जानता हूँ कि आपको लड़कों-लड़कों का सेक्स देखना पसन्द है। मैंने काफ़ी दफ़ा आपके जाने के बाद हिस्टरी चैक की है। तो ज्यादा मूवीज ‘गे’ सेक्स की ही होती हैं जो आप देखती हैं। ज़रा सोचो आप मूवीज के बजाए हक़ीक़त में ये सब अपने सामने होता हुआ भी देख सकती हैं”

TO BE CONTINUED …..
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ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#24
Erotic.... अगले अपडेट का इंतजार है
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#25
(13-02-2024, 02:02 PM)neerathemall Wrote: [Image: 59106350_025_0d3e.jpg]
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#26
Heart 
(14-02-2024, 09:31 AM)Pentagon Wrote: Erotic.... अगले अपडेट का इंतजार है

आप लाइक और कमेंट करते रहिए, अपडेट आते रहेंगे
Namaskar Namaskar
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#27
Heart 
मेरी बात सुन कर आपी की आँखों में चमक सी लपकी थी वो चंद लम्हें कुछ सोचती रहीं फिर बोलीं- “हाँ मुझे इस किस्म की कुछ मूवीज ने बहुत एक्साइट किया था और वो सब देख कर अजीब सा मज़ा आया था। ये सच है कि मैं रियल एक्शन देखना चाहती हूँ”

आपी यह कह कर फिर से कुछ सोचने लगीं, मैं भी चुप ही रहा और उन्हें सोचने का टाइम दिया।

कुछ देर बाद आपी बोलीं- “ओके! ठीक है लेकिन ये सब होगा कैसे?”

मैंने कहा- “इसकी आप फ़िक्र ना करें, ये सब मुझ पर छोड़ दें लेकिन आप ये जेहन में रखें कि आपके और मेरे दरमियान जो कुछ हुआ वो सब कुछ उसे बताना होगा तभी मैं उसे भरोसे में ले सकूँगा”

आपी से उन बातों के दौरान मेरा लण्ड थोड़ी सख्ती ले चुका था और ट्राउज़र में टेंट सा बन गया था।
आपी ने कुछ देर सोचा और फिर शायद उनको भी उसी बागी मिज़ाज ने अपनी लपेट में ले लिया।
मतलब वही जो मैं सोच रहा था कि सोचना क्या, जो भी होगा देखा जाएगा। आख़िर थीं तो वो मेरी सग़ी बहन ही ना, खून तो एक ही था और शायद ये बागी मिज़ाज भी हमें जीन्स में ही मिला था कि हमारे अम्मी अब्बू ने भी कोर्ट मैरिज की थी।
उन्होंने हाथ को मक्खी उड़ाने के स्टाइल में लहराया और कहा- “ओके! गो अहेड, कुछ भी करो, अब सब तुम पर छोड़ती हूँ” कह कर वो खड़ी हुईं और थप्पड़ के अंदाज़ में हाथ मेरे खड़े लण्ड पर मारा
जैसे ही थप्पड़ मेरे खड़े लण्ड पर पड़ा, मैं तक़लीफ़ से एकदम दुहरा हो गया और मेरे मुँह से ‘आहह..’ के साथ ही निकला ‘बहनचोद आपीईई..’ और आपी हँसते हुए फ़ौरन अपने कमरे की तरफ भाग गईं।

मैंने पीछे से आवाज़ लगाई- “याद रखना बदला ज़रूर लूँगा”

आपी अपने कमरे में पहुँच गई थीं उन्होंने दरवाज़े में खड़े होकर कहा- “सोचना क्या, जो भी होगा देखा जाएगा” और ये कह कर दरवाज़ा बंद कर लिया।

कुछ देर बाद जब लण्ड की तक़लीफ़ कम हुई तो मैं कमरे में आ गया। फरहान सो चुका था शायद इतने दिन बाद अपने बिस्तर का सुकून नसीब हुआ था इसलिए। मैं भी बिस्तर पर लेटा और जल्द ही दुनिया-ओ-माफिया से बेखबर हो गया।
सुबह जब आँख खुली तो 10 बज रहे थे, फरहान अभी तक सो रहा था। उसके स्कूल की छुट्टियाँ अभी खत्म नहीं हुई थीं। मैंने बाथरूम जाने से पहले फरहान को भी जगा दिया। मैं बाथरूम से बाहर आया तो फरहान इन्तजार में ही बैठा था। मेरे निकलते ही वो अन्दर घुस गया तो मैं उससे नीचे आने का कह कर खुद भी नीचे चल दिया।
जब मैं डाइनिंग टेबल पर बैठा तो किचन में से अम्मी की आवाज़ आई- “उठ गए बेटा, बस थोड़ी देर बैठो मैं नाश्ता बना देती हूँ”

मैंने कहा- “अम्मी 2 बन्दों का नाश्ता बनाइएगा फरहान भी वापस आ गया है, नीचे आ ही रहा है और आपी नहीं हैं घर में क्या जो आप नाश्ता बना रही हैं?”

"नहीं, वो तो सुबह ही यूनिवर्सिटी चली गई थी और वो छोटी निक्कमी भी जाकर नानी के घर ही बस गई है, ना कुछ खाना बनाना सीखती है, ना सीना पिरोना, कल दूसरे घर जाएगी तो..!" अम्मी का ना रुकने वाला सिलसिला शुरू हो चुका था।

ऐसे ही अपनी फिक्रें बताते हुए और शिकायत करते हुए ही अम्मी नाश्ता बनाने लगीं, मैं उनकी बातों का जवाब देते हुए ‘हूँ.. हाँ..’ करने लगा।

फरहान नीचे आया तो अम्मी की आवाज़ सुनते ही सीधा किचन में गया और उन्हें सलाम करने और उनसे प्यार लेने के बाद उनके साथ ही नाश्ते के बर्तन पकड़े बाहर आया और मेरे साथ वाली कुर्सी पर ही बैठ गया।

हमने नाश्ता शुरू किया और अम्मी का रुख़ अब फरहान की तरफ हो गया था। नाश्ता करते-करते फरहान अम्मी से भी बातें करता रहा जो गाँव के बारे में ही पूछ रही थीं।

नाश्ता खत्म करके में टिश्यू से हाथ साफ कर ही रहा था कि फरहान ने पीछे मुड़ कर अम्मी को देखा और उन्हें किचन में बिजी देख कर फरहान ने मेरे ट्राउज़र के ऊपर से ही मेरे लण्ड को पकड़ कर दबाया और बोला- “भाई चलो ना आज, बहुत दिन हो गए हैं”

फिर किसी ख़याल के तहत चौंकते हुए उसने कहा- “अम्मी का बिहेव तो ठीक ही है इसका मतलब है आपी ने अम्मी अब्बू को नहीं बताया ना कुछ”

उसकी बात के जवाब में मैंने मुस्कुराते हो उसका हाथ अपने लण्ड से हटाया और खड़े होते हुए कहा- “नाश्ता खत्म करके कमरे में आ जाओ” कह कर मैं ऊपर चल दिया।

जब फरहान कमरे में दाखिल हुआ तो मैं बिस्तर पर लेटा हुआ आपी के बारे में ही सोच रहा था और मेरा लण्ड खड़ा था।

फरहान ने मेरी तरफ आते हुए कहा- “अम्मी सलमा खाला के घर चली गई हैं, कह रही थीं कि इजाज़ खालू से भी मिल लेंगी और शाम को ही वापस आएँगी”
बात खत्म करके फरहान मेरे पास आकर बैठा तो मैं भी उठ कर बैठ गया। फरहान ने मेरे खड़े लण्ड को अपने हाथ में पकड़ा और बोला- “भाई! आज तो ये कुछ बड़ा-बड़ा सा लग रहा है”

मैंने उसे कोई जवाब नहीं दिया मैं अपनी सोच में था।
फरहान ने मुझे सोच में डूबा देख कर मेरे लण्ड को ज़ोर से दबाया और बोला- “भाई आपी ने किसी को शिकायत नहीं लगाई तो लाज़मी बात है कि आपको बहुत बुरा-भला कहा होगा?”

मैंने फरहान की तरफ देखा और उससे कहा- “जो मैं तुम्हें बताने जा रहा हूँ सुन कर तुम्हारे होश उड़ जाएंगे”

वो बगैर कुछ बोले आँखें फाड़ते हुए मेरी तरफ देखने लगा और मैंने उससे शुरू से बताना शुरू किया।

"उस रात तुम्हारे सोने के बाद मुझे ख़याल आया कि मैं कंप्यूटर में से अपना पॉर्न मूवीज का फोल्डर तो डिलीट कर दूँ ताकि आपी अब्बू को बता भी दें तो कोई ऐसा सबूत तो ना हो। मैं उठा और कंप्यूटर टेबल पर आकर कंप्यूटर ऑन करने लगा तो मैंने देखा कि उसकी पॉवर कॉर्ड गायब थी। कुछ देर तो मुझे समझ नहीं आया लेकिन आख़िर में याद आया कि आपी कमरे से जाने से पहले कंप्यूटर के पास आई थीं। यक़ीनन वो ही पॉवर कॉर्ड निकाल कर ले गई होंगी......."

पूरी बात फरहान को बताने के बाद जब मैंने ध्यान दिया तो हम दोनों ही बिल्कुल नंगे हो चुके थे और हम दोनों ने एक-दूसरे के लण्ड को अपने हाथों में ले रखा था। हमें पता ही नहीं चला था कि कब हमने कपड़े उतार कर फैंके और कब लण्ड हाथों में ले लिए।
फरहान की हालत बहुत खराब थी आपी के बारे में सुन कर उसके होशो-हवास गुम हो गए थे।
ये तो होना ही था क्योंकि हमारी बहन जो हर वक़्त बड़ी सी चादर में रहती थी जिसके सिर से कभी किसी ने स्कार्फ उतरा हुआ नहीं देखा था, जो नफ़ासत और पाकीज़गी का पैकर थी उसको इस हाल में देखना तो दूर की बात, सोचना भी मुश्किल था। और फरहान को मैं वो सच बता रहा था, ऐसा सच जो चाँद की तरह सच था।
मैं अपनी जगह से उठा और मैंने अपने होंठ फरहान के होंठों से चिपका दिए और हमने एक-दूसरे का लण्ड चूसा, गाण्ड का सुराख चाटा, एक-दूसरे को चोदा, मतलब हम जो-जो कुछ कर सकते थे, सब कुछ किया।
जब एक शानदार चुदाई के बाद हम दोनों फारिग हुए, तो 3 बज चुके थे, मतलब 4 घन्टे से हम चुदाई का खेल खेल रहे थे और अब थक कर बिस्तर पर नंगे ही लेटे हुए थे।
हम दोनों के हलक़ खुश्क हो चुके थे।
फरहान को इसी हालत में छोड़ कर मैंने अपने कपड़े पहने और पानी लेने के लिए नीचे चल दिया।
उसी रात मुझे और फरहान को फिर एमर्जेन्सी में गाँव जाना पड़ गया। इस बार हम 8 दिन रुके और सब काम मुकम्मल निपटा कर साथ ही वापस लौटे थे। जब 8 दिन बाद भरपूर सेक्स करने के बाद फरहान सो गया था और मैं अपने कमरे से निकल कर नीचे आ गया था।
जब मैंने आखिरी सीढ़ी पर क़दम रखा तो सामने सोफे पर आपी आधी लेटी आधी बैठी हुई सी हालत में सोफे पर पड़ी थीं और पाँव ज़मीन पर थे। उनकी टाँगें थोड़ी खुली हुई थीं उनकी गर्दन सोफे की पुश्त पर टिकी थी और सिर पीछे को ढलका हुआ था, आँखें बंद थीं। यूनिवर्सिटी बैग सामने कार्पेट पर पड़ा था शायद वो अभी-अभी ही यूनिवर्सिटी से आईं थीं और गर्मी से निढाल हो कर यहाँ ही बैठ गईं थीं।
मैंने किचन के तरफ रुख़ मोड़ा ही था कि किसी ख़याल के तहत मेरे जेहन में बिजली सी कौंधी और मैं दबे पाँव आपी की तरफ बढ़ने लगा। मैं उनके बिल्कुल क़रीब पहुँच कर खड़ा हुआ और अपना रुख़ सीढ़ियों की तरफ करके भागने के लिए अलर्ट हो गया। मैंने एक नज़र आपी के चेहरे पर डाली, उनकी आँखें अभी भी बंद थीं।
मैंने अपना सीधा हाथ उठाया और थप्पड़ के अंदाज़ में ज़ोर से अपनी सग़ी बहन की टाँगों के दरमियान मारा और फ़ौरन भागा लेकिन 3-4 क़दम बाद ही किसी ख़याल के तहत रुक गया। वहाँ हाथ मारने से ना ही कोई आवाज़ आई थी और मुझे ऐसा महसूस हुआ था जैसे मैंने फोम के गद्दे पर हाथ मारा हो, पता नहीं मेरा हाथ आपी की टाँगों के बीच वाली जगह पर लगा भी था या मैं सोफे पर ही हाथ मार के भाग आया था।

TO BE CONTINUED ………
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#28
Ekdam mast... Jldi update do bhai
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#29
(16-02-2024, 03:03 PM)Aftab94 Wrote: Ekdam mast... Jldi update do bhai

चन्द घंटे पहले ही अपडेट दिया है, कोशिश कर रहा हूं कि शाम तक एक और दे दूं।  Namaskar Namaskar
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
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#30
Ab to raat b ho gai .. ab to update de dete
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#31
(13-02-2024, 01:54 PM)neerathemall Wrote: [Image: 48548965_037_93c9.jpg]

bhut rseelee hi
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#32
Heart 
(16-02-2024, 10:06 PM)Aftab94 Wrote: Ab to raat b ho gai .. ab to update de dete

अपडेट तो रेडी हो गया था पर किसी कारण से पोस्ट नहीं कर पाया, चलो कोई बात नहीं, एक साथ दो दिए देता हूं।

अब तो मुस्कुरा दो। 
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#33
Heart 
फ़ौरन ही आपी के हँसने की आवाज़ पर मैं घूमा, तो आपी बेतहाशा हँस रही थीं और उनके चेहरे पर जीत की खुशी थी।
उन्होंने हँसते-हँसते ही कहा- “कमीने! तुमने बदला ले लिया है, यह अलग बात है कि इसका नुक़सान मुझे हुआ ही नहीं लेकिन हिसाब बराबर हो गया है। अब तुम दूसरी कोशिश नहीं कर सकते समझ गए?”

"ओके! मेरा वादा है कि दोबारा कोशिश नहीं करूँगा, हिसाब बराबर" - मैंने कन्फ्यूज़ और कुछ ना समझ आने वाली कैफियत में जवाब दिया।

आपी ने मुझे कन्फ्यूज़ देखा तो मेरी कैफियत को समझते हुए और मेरी हालत से लुत्फ़-अंदोज़ होते हुए कहा- “उल्लू के चरखे! कन्फ्यूज़ ना हो, मैं महीने से हूँ और शुरू के और आखिरी दिनों में मेरा बहुत हैवी फ्लो होता है इसलिए में डबल पैड लगाती हूँ, आज आखिरी दिन है, समझे बुद्धू”

यह कह कर उन्होंने एक नज़र मुझ पर डाली और फिर खिलखिला कर हँस पड़ीं क्योंकि मेरी शक्ल ही ऐसे हो रही थी। मेरी हालत उस शख्स जैसी थी जैसे भरे बाज़ार में किसी गंजे के सिर पर कोई एक चपत रसीद करके भाग गया हो।

आपी ने मुझे वॉर्निंग देते हुए कहा- “मैंने भी तुमसे एक बात का बदला लेना है, मैं भूली नहीं हूँ उस बात को”

मैंने पूछा- “कौन सी बात?”

आपी ने जवाब दिया- “मैं सही टाइम पर ही बदला लूँगी, अभी नहीं… देखो शायद वो टाइम आ जाए और हो सकता है कि ऐसा टाइम कभी ना आए”

मैं कुछ देर खड़ा रहा फिर झेंपी सी हँसी हँसते हुए, सिर खुजाते किचन में चला गया और आपी भी उठ कर अपने कमरे की तरफ चली गईं लेकिन मैंने देखा था आपी के चेहरे पर अभी भी शैतानी मुस्कुराहट सजी थी।
मैंने पानी पीकर कमरे में ले जाने के लिए जग भरा और किचन से निकला तो आपी भी अपने कमरे से बाहर आ रही थीं। वो अभी-अभी मुँह हाथ धोकर आई थीं, उनका चेहरा बहुत बहुत ज्यादा खूबसूरत और फ्रेश लग रहा था।
उन्होंने क्रीम रंग का स्कार्फ जिस पर बड़े-बड़े लाल फूल थे, बहुत सलीक़े से अपने मख़सूस अंदाज़ में सिर पर बाँध रखा था। क्रीम रंग की ही कॉटन की कलफ लगी क़मीज़ थी और उस पर भी लाल रंग के बारे बारे फूल थे। सफ़ेद कॉटन की सादा सी सलवार थी।
आपी ने अपने जिस्म के गिर्द ग्रे कलर की बड़ी सी चादर लपेट रखी थी, वो नंगे पाँव थीं।
उनके गोरे पाँव मैरून कार्पेट पर बहुत खिल रहे थे।

“आपी! आप इस सूट में बहुत ज्यादा हसीन लग रही हैं” - मैंने भरपूर नज़र आपी पर डालते हुए कहा।

"अच्छा अभी तो तुमने सही तरह से सूट देखा ही कहाँ है, चलो तुम भी क्या याद करोगे, देख लो" - ये कहते हुए आपी ने अपनी चादर उतारी और अपने बाज़ू पर लटका दी।

आपी के चादर हटते ही उनके बड़े-बड़े मम्मे मेरी नजरों के सामने थे। आपी की ये क़मीज़ भी उनकी बाक़ी सब कमीजों की तरह टाइट थी और आपी के मम्मे उनमें बुरी तरह से दबे हुए थे। ब्रा का रंग नहीं मालूम पड़ रहा था लेकिन गौर से देखने पर पता चलता था जहाँ-जहाँ ब्रा का कपड़ा मौजूद था वहाँ-वहाँ से क़मीज़ का रंग गहरा हो गया था और ब्रा की शेप और डिजाइन वज़या नज़र आ रहा था। ब्रा ही की वजह से निप्पल बिल्कुल छुप गए थे और उनका निशान भी नहीं नज़र आता था।

"यार आपी! ये इतने ज्यादा दबे हुए हैं, इतना टाइट होने से इनमें दर्द नहीं होता क्या?" - मैंने अपनी सग़ी बहन के सीने के उभारों पर ही नज़र जमाए हुए उनसे पूछा।

"अरे नहीं यार! अब आदत हो गई है बिल्कुल भी महसूस नहीं होता लेकिन जब ब्रा पहनना शुरू किया था तो उस वक़्त मैं बहुत तंग होती थी, ब्रा ना पहनने पर रोज़ ही अम्मी से डांट पड़ती थी और उस वक़्त ब्रा से बचने के लिए ही मैंने बड़ी सी चादर लेनी शुरू की थी जो बाद में मेरी आदत ही बन गई" - आपी ने यह कह कर मेरे हाथ से जग लिया और जग से ही मुँह लगा कर पानी पीने लगीं।

पानी पीकर वो सोफे के तरफ बढ़ीं तो मैंने कहा- “आप यहीं रहना, मैं पानी कमरे में रख कर आता हूँ”

मैं कमरे में पहुँचा तो फरहान सो रहा था। मैंने उसके पास पानी रखा और बाहर निकल कर दरवाज़ा बंद करते हुए मैंने बाहर से लॉक भी कर दिया। जब मैं वापस नीचे हॉल में पहुँचा तो आपी सोफे पर अपने पाँव कूल्हों से मिलाए और घुटने सीने से लगा कर घुटनों पर अपनी ठोड़ी टिकाए बैठी थीं। आपी ने दोनों बाजुओं को अपनी टाँगों से लपेट रखा था, उनकी चादर और स्कार्फ दोनों ही नीचे कार्पेट पर पड़े थे।

मैंने उनके बिल्कुल सामने ज़मीन पर बिछे कार्पेट पर बैठ कर पूछा- “तो फिर आपने ब्रा कैसे पहनना शुरू की?”

"बाजी को पता था कि मैं ब्रा नहीं पहनती हूँ और इस बात को सबसे छुपाने के लिए बड़ी सी चादर लिए रखती हूँ तो उन्होंने ही मुझे समझाया था कि ब्रा ना पहनने से ये लटक जाएंगे और इनकी शेप भी खराब हो जाएगी और ब्रेस्ट कैन्सर जैसी बीमारी भी लग सकती है वगैरह वगैरह"

अब मैं आपसे बाजी का तवारूफ भी करवा दूँ, हम अपनी सबसे बड़ी बहन जिनका नाम समीना है.. उनको बाजी कह कर बुलाते हैं। वो आपी से 7 साल बड़ी हैं। उनकी शादी 4 साल पहले हुई थी उनके शौहर उनके साथ यूनिवर्सिटी में पढ़ते थे, वहाँ ही उनका लव हुआ लेकिन शादी दोनों के घरवालों की मर्ज़ी से हँसी खुशी हुई थी और अब बाजी अपने सुसराल वालों के साथ लाहौर में रहती हैं। बाक़ी की तफ़सील उस वक़्त बताऊँगा जब वो हमारी कहानी में शामिल होंगी। तब तक के लिए इन्तजार कीजिए।

"उस वक़्त क्या उम्र थी आपकी?" -मैंने पूछा।

आपी ने अपनी आँखें छत की तरफ़ कर के सोचते हुए कहा- “मैं उस वक़्त तकरीबन 14 साल की थी"

आपी की बात खत्म होते ही मैंने एक और सवाल कर दिया- “आपी आपके दूध किस उमर में निकले थे कि आपको 14 साल की उम्र में ब्रा की जरूरत पड़ गई”

“गुठलियाँ सी तो 10 साल की उम्र में ही बन गई थीं और 12 साल की उम्र में साफ नज़र आने लगी थीं और 14 साल में तो फुल डवलप हो चुके थे। मैंने पहली बार ब्रा 28सी साइज़ का पहना था। तभी तो अम्मी डांटा करती थीं कि मामू वगैरह घर आते थे तो अम्मी को शर्म आती थी”

"इतनी जल्दी निकल आते हैं क्या दूध?" - मैंने हैरत से पूछा।

आपी ने कहा- “नहीं, हर किसी के साथ ऐसा नहीं होता, नॉर्मली तो 13 साल की उम्र में गुठलियाँ ही होती हैं लेकिन हम लोगों का ये खानदानी सिलसिला है। बाजी और सलमा खाला के भी 10 साल की उम्र में शुरू हो गए थे और नानी बताती हैं कि अम्मी के और उनके अपने तो 10 साल की उम्र में इतने बड़े थे जितने हमारे 13 साल की उम्र में थे और उन दोनों की ही गुठलियाँ तो 7 साल की उम्र में ही बन गई थीं इसी लिए तो सब के इतने बड़े-बड़े हैं। तुमने भी नोटिस किए ही होंगे, मैं जानती हूँ कि तुम बहुत बड़े कमीने हो” - आपी ने ये कहा और मुझे देख कर शरारती अंदाज़ में मुस्कुराने लगीं।

मैंने फ़ौरन कहा- “नहीं आपी! आपकी कसम मैंने कभी नानी या अम्मी के बारे में ऐसा कुछ नहीं सोचा”

"अच्छा इसका मतलब है बाजी और सलमा खाला के बारे में सोचा है, हाँ!"

"आपी आपको तो पता है, एक तो बाजी का जिस्म इतना भरा-भरा है और बाजी और खाला आपकी तरह चादर लेना तो दूर की बात, हमारे सामने दुपट्टे तक का ख़याल नहीं करती हैं। बाजी तो शादी के बाद से अपने आपसे बिल्कुल ही लापरवाह हो गई हैं। आप जानती ही हैं गले इतने खुले होते हैं कि कभी ना कभी नज़र पड़ ही जाती है।" मैं ये कह कर नीचे देखने लगा और नाख़ून से कार्पेट को खुरचने लगा।

TO BE CONTINUED .....
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#34
Heart 
"अच्छा जी तो मेरे सोहने भाई की कहाँ-कहाँ नज़र पड़ी है और क्या-क्या देखा है जनाब ने, अपनी सग़ी बाजी और सग़ी खाला का?" -आपी ने ये कह कर सोफे से पाँव उठाए और टाँगें सीधी करते हुए पाँव ज़मीन पर टिका दिए।

मैंने जवाब देने के लिए चेहरा ऊपर उठाया तो आपी के घुटने मेरे चेहरे के बिल्कुल सामने थे और दोनों घुटनों के दरमियान मुझे काफ़ी गहराई में आपी की टाँगों के दरमियान सिर्फ़ अंधेरा दिखाई दिया, मेरी नजरों को अपनी टाँगों के दरमियान महसूस करके आपी ने अपने घुटनों को थोड़ा और खोला और अपनी क़मीज़ के दामन को सामने से हटा कर रान की बाहर वाली साइड पर कर दिया और बोलीं- “क्या ढूँढ रहे हो?? अरे खून आना बंद हो गया था इसलिए मैं जब मुँह हाथ धोने गई तो पैड भी निकाल दिए थे। बताओ ना, क्या-क्या देखा है तुमने बाजी और खाला का?”

आपी की टाँगों के दरमियान से उनकी सलवार का बहुत सा हिस्सा गीला हो चुका था पता नहीं उनको इन बातों में ही इतना मज़ा आ रहा था या मेरी नजरें अपनी टाँगों के दरमियान महसूस करके वो गीली हो गई थीं।

"अब बोल भी दो और पहले बाजी का बताओ" -आपी की आवाज़ मैं बहुत बेताबी थी।

“जब वो यहाँ थीं, उस वक़्त तो मैं काफ़ी छोटा था लेकिन पिछले साल गर्मीयों में जब मैं और आप बाजी के घर 10 दिन रहे थे तब अक्सर ऐसा होता था कि बाजी सफाई वगैरह के लिए या बच्चों को ज़मीन से उठाने या किसी और काम से झुकती थीं तो अक्सर नज़र पड़ ही जाती थी उनके गले में, तो ऐसे कुछ दफ़ा उनके आधे-आधे दूध देखे हैं और उनके मम्मों की लकीर तो अक्सर बैठे हुए भी नज़र आती ही रहती है। कितनी बार मैंने नोट किया था कि मुझे आता देख कर आप बाजी की क़मीज़ का गला सही करती थीं, शायद आपको भी याद होगा एक बार आपी मुन्ने को गोद में लिटा कर दूध पिला रही थीं, मैं जैसे ही अन्दर आया तो बाजी की निप्पल मुन्ने के मुँह से निकल गई थी क़मीज़ पहले ही आधे मम्मे से ऊपर थी। आप दोनों ही बातों में इतनी गुम थीं कि बाजी को तो वैसे ही परवाह नहीं होती और आपका ध्यान भी उधर नहीं गया था और तकरीबन 25-30 सेकेंड बाद आपने इस अंदाज़ से उनकी क़मीज़ खींची थी कि ना बाजी को पता चल सके और ना मुझे। लेकिन मैंने नोट कर लिया था बस उस दिन मैंने पहली और आखिरी बार बाजी का निप्पल देखा था।”

“इसके अलावा क्या देखा..?” - आपी ने मेरे चेहरे पर नज़र जमाए-जमाए पूछा।

“इसके अलावा मैंने बाजी की टाँगें देखी हैं, आप जानती ही हैं कि वो जब भी फर्श धोती हैं तो अपने पाएंचे घुटनों तक चढ़ा ही लेती हैं और 3-4 बार उनका पेट और कमर देखी है। अक्सर जब वो करवट के बल लेट कर कोई रिसाला वगैरह पढ़ रही होती हैं तो उनकी क़मीज़ पेट या कमर या दोनों जगह से हटी होती है। उस वक़्त ही देखा है और उनके नफ़ के आस भी एक तिल है जैसे आपका है..” - आखिरी जुमला कह कर मैं आपी की आँखों में देख कर मुस्कुरा दिया।

“बको मत और बताते रहो…” - आपी ने शर्म से लाल होते हुए कहा।

फिर खुद ही 4-5 सेकेंड बाद ही बोलीं- “तुम्हारी मालूमात में मैं इज़ाफ़ा कर दूँ कि सिर्फ़ मेरा और बाजी का ही नहीं, बल्कि अम्मी की नफ़ के नीचे भी वैसा ही तिल है”

अम्मी का जिक्र को अनसुनी करते हुए मैं आपी से ही सवाल कर बैठा- “आपी प्लीज़ एक बात तो बताओ, आपको तो पता ही होगा”

“क्या..??” - आपी ने एक लफ्ज़ कहा और मेरे बोलने का इन्तजार करने लगीं।

“बाजी के सीने के उभारों का क्या साइज़ है, आप से तो बड़े ही लगते हैं उनके?” - ये पूछते हुए मैंने एक बार फिर आपी के मम्मों पर नज़र डाली।

“लगते ही नहीं यक़ीनन बड़े ही हैं उनके शायद 42 डी साइज़ है बाजी का, और भी किसी का पूछना है या बस?” - उन्होंने डायरेक्ट मेरी आँखों में देख कर कहा।

“नहीं, मैंने पूछना तो नहीं है लेकिन अगर आप मजबूर करती हैं तो पूछ लेता हूँ” - मैंने ये कहा ही था कि आपी ने मेरी बात काट कर कहा- “जी नहीं, मैं आपको मजबूर नहीं कर रही, आप ना ही पूछो!” मैं मुस्कुरा दिया।

“अब मुझे ये बताओ कि बाजी के जिस्म में ऐसी कौन सी चीज़ है जिसे देख कर तुम्हें बहुत मज़ा आता है और तुम्हारा जी चाहता है बार-बार देखने का?” -ये बोल कर वो फिर सवालिया नजरों से मुझे देखने लगीं।

मैंने कुछ देर सोचा और फिर अपने खड़े लण्ड को नीचे की तरफ दबा कर छोड़ा और कहा- “बाजी की बैक, मतलब उनकी गाण्ड, उनकी गाण्ड है भी काफ़ी भरी-भरी और थोड़ी साइड्स पर और पीछे को निकली हुई भी है। उनकी गाण्ड की लकीर में जब क़मीज़ फंसी होती है और वो चलती हैं तो उनके दोनों कूल्हे आपस में रगड़ खाकर अजीब तरह से हिलते और थिरकते हैं जब भी ये सीन देखता था तो बहुत मज़ा आता था। आप जानती ही हैं कि जब भी वो बैठने के बाद खड़ी होती हैं तो उनके कूल्हों की दरार में उनकी क़मीज़ फंसी होती है मैंने बहुत बार देखा था आप पीछे से उनकी क़मीज़ खींच कर सही करती थीं जिसका वो कभी ख़याल नहीं करतीं”

मैंने बात खत्म की ही थी कि दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई और आपी ने फ़ौरन अपनी चादर और स्कार्फ़ उठाया और अपने कमरे में भाग गईं।
कुछ देर बाद ही अम्मी अन्दर दाखिल हुई थीं।

मैंने सलाम किया तो अम्मी ने कहा- “बेटा एक गिलास पानी पिला दो”

मैं इतने एतिहात से उठा कि अम्मी को मेरे खड़े लण्ड का पता ना चल सके और किचन में जाकर पानी का गिलास भरा ही था कि आपी अपने कमरे से निकालीं और मम्मी को सलाम करके किचन में आ गईं।

उन्होंने स्कार्फ बाँध लिया था और चादर लपेटी हुई थी। मेरे हाथ से गिलास लिया और मेरे लण्ड की तरफ इशारा करते हुए दबी आवाज़ में कहा- “पहले अपने जहाज़ को तो लैंड करवा दो इसे बिठा कर ही बाहर जाना”

ये कह कर वे बाहर चली गईं और अम्मी के साथ बैठ कर बातें करने लगीं। मैं किचन से निकला और सीधा ऊपर चला गया। अपने कमरे को बाहर से अनलॉक करके खोला ही था कि फरहान ने दरवाज़ा खोला और मुझे देख कर कहा- “अरे भाई आप यहाँ क्यूँ खड़े हो?”

तो मैंने जवाब दिया- “यार कमरे में ही जा रहा था लेकिन फिर प्यास लगी तो सोचा नीचे जाकर ही पानी पी लूँ”

मैं ये बोल कर नीचे चल पड़ा थोड़ी देर बाद फरहान भी नीचे आ गया और उसने सिर झुकाए-झुकाए ही आपी को सलाम किया। आपी उसकी आवाज़ सुन कर अपनी चादर को संभालते हुए उठीं और फरहान का चेहरा दोनों हाथों में ले कर उसका माथा चूमने के बाद बोलीं- “ठीक ठाक हो तुम, वहाँ तुम्हें हमारी याद तो बहुत आई होगी खास तौर पर अपने भाई को तो बहुत याद किया होगा ना”
फरहान आपी के इस हमले के लिए तैयार नहीं था इसलिए थोड़ा सा घबरा गया, शायद अम्मी सामने थीं इसलिए भी इहतियात कर रहा था।

TO BE CONTINUED .....
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#35
shandar ...............Update
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#36
Hhgggffv
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#37
Bhut badiya.. dost lekin thoda jldi update kra kro
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#38
Heart 
उसने यहाँ से निकल जाने में ही गनीमत समझा और आपी के सामने से हट कर बाहर जाता हुआ बोला- “आपी मैं बच्चा तो नहीं हूँ जो अकेले परेशान हो जाऊँगा” यह कह कर वो बाहर निकल गया।

अम्मी उठ कर अपने कमरे में चली गईं तो मैंने आपी से कहा- “क्या दिमाग खराब हुआ है आपका, ऐसे तंज़ मत करो फरहान पर वरना सब काम बिगड़ जाएगा। जब आपने सब कुछ मुझ पर छोड़ा है तो मेरे तरीक़े से मुझे संभालने दें ना”

“अरे मैंने तो वैसे ही मज़ाक़ में कह दिया था लेकिन मैं भूल गई थी कि वो फरहान है सगीर नहीं, शायद वो बेचारा अभी भी मुझसे डरा हुआ ही है” -आपी ने फ़िक्र मंदी से कहा।

मैं फ़ौरन बोला- “अच्छा अब आप परेशान नहीं होओ, जाओ मैं देख लूँगा सब” कह कर मैं भी बाहर जाने लगा तो आपी ने पूछा- “क्या तुमने मेरे बारे में सब बता दिया है फरहान को?”

मैंने चलते-चलते ही जवाब दिया- “हाँ एक-एक लफ्ज़” और मैं बाहर निकल गया।

रात में जब मैं घर में घुसा तो सब खाने के लिए बैठ ही रहे थे, मैंने भी सबके साथ खाना खाया और अपने कमरे में आ गया। आधे घंटे बाद फरहान भी अन्दर आया तो उसका मूड ऑफ था।

“भाई आपी आपसे तो इतनी फ्री हो गई हैं लेकिन मुझ पर तंज़ करती हैं”

मैंने समझाया- “यार, वो मज़ाक़ कर रही हैं तुमसे, बेतकल्लुफ होने के लिए ऐसे ही बातें कह देती हैं तुम टेन्शन मत लो और तुम भी तो भीगी बिल्ली बने हुए हो ना उनके सामने, घबराए-घबराए से रहते हो तो अम्मी-अब्बू को कुछ शक भी हो सकता है इसलिए भी आपी तुम को छेड़ लेती हैं और मेरी बात कान खोल कर सुनो और इसको जेहन में बिठा लो कि आपी की किसी हरकत पर हैरत मत ज़ाहिर करो उनकी हर बात हर हरकत को नॉर्मल ट्रीट करो और बाक़ी सब मुझ पर छोड़ दो”

फिर फरहान के लण्ड को सलवार के ऊपर से ही पकड़ते हुए मैंने कहा- “बहुत जल्दी ही इसको आपी की टाँगों के बीच वाली जगह की सैर करवा दूँगा। बस तुम कुछ मत करो और हालत के साथ-साथ चलते रहो, मैं हूँ ना हालात कंट्रोल करने के लिए”

फरहान ने अपने दोनों हाथों को भींचते हुए कहा- “भाई अगर ऐसा हो जाए तो मज़ा आ जाए”

कुछ देर मैं फरहान को समझाता रहा और फिर हम दोनों कंप्यूटर के सामने आ बैठे ट्रिपल एक्स मूवी देखने लगे।

अचानक ही दरवाज़ा खुला और आपी अन्दर दाखिल हुईं- “आह्ह मेरे ख़ुदा! तुम लोग ज़रा भी टाइम ज़ाया नहीं करते हो”

फरहान ने फ़ौरन डर कर मॉनिटर ऑफ कर दिया लेकिन फिर कॉन्फिडेंस से बोला- “आपी आप भी मिस मौलवी नहीं हैं, आपने भी तो सारी मूवीज देखी ही हैं ना”

मैंने फरहान को इशारे से चुप करवाया और कहा- “अच्छा बहना जी, तो अब आप क्या चाहती हैं?”

आपी ने मुस्कुराते हुए कहा- “रूको मुझे सोचने दो, उम्म्म्मम, मुझे नहीं समझ आ रहा, मैं तुम लोगों को क्या करने को कहूँ” - यह कह कर आपी हमारे राईट साइड पर पड़े हुए सोफे पर जा बैठीं।

“क्या मतलब” - फरहान ने सवालिया अंदाज़ में कहा।

आपी बोलीं- “फरहान, दरवाज़ा बंद कर दो”

फरहान उठा और जाकर दरवाज़ा बंद कर दिया।
“लॉक भी लगा दो”

फरहान ने लॉक भी लगाया और वापस आकर अपनी कुर्सी पर बैठ गया।

“हाँ मुझे तुम्हारे कंप्यूटर में कुछ फ़िल्में वाकयी ही बहुत अच्छी लगी हैं, तो मैं सोच रही हूँ कि आज रियल ही क्यूँ ना देख लूँ, चलो शुरू करो, जो तुम लोग मेरे आने से पहले करने जा रहे थे”

“बिल्कुल नहीं” - फरहान ने चिल्ला कर कहा- “आप ऐसा कैसे कर सकती हैं, आप हमारी सग़ी बड़ी बहन हैं”

आपी तंज़िया अंदाज़ में बोलीं- “अच्छाआ, देखो देखो ज़रा, अब कौन मिस्टर मौलवी बन रहा है, उस रात तो बहुत मज़े ले-लेकर चूस रहे थे, क्या वो तुम्हारा सगा बड़ा भाई नहीं था?”

मैं काफ़ी देर से खामोश होकर उनकी बातें सुन रहा था। मैंने हाथ उठा कर दोनों को खामोश होने का इशारा करते हुए खड़ा हुआ और फरहान से कहा- “चलो यार फरहान, अब बस करो, हमारी कोई बात ऐसी नहीं है जो आपी को ना पता हो, वो पहले ही सब जानती हैं। फिर बहस का क्या फ़ायदा?”

मेरा लण्ड पहले से ही पूरा खड़ा था,  मैंने अपने कपड़े उतारे और फरहान का हाथ पकड़ कर बिस्तर की तरफ चल पड़ा।
आपी की नजरें मेरे नंगे लण्ड पर ही जमी हुई थीं, वो सोफे से उठीं और कंप्यूटर कुर्सी पर बैठते हुए उन्होंने मॉनिटर भी ऑन कर दिया, जहाँ मूवी पहले से ही चल रही थी। फरहान अभी भी झिझक रहा था, मैंने फरहान को खड़ा किया और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए और उन्हें चूसने लगा। अपनी एक आँख मैंने मुस्तक़िल आपी पर रखी हुई थी क्योंकि मैं आपी का रिएक्शन देखना चाहता था।
अपने एक हाथ से मैंने फरहान का शॉर्ट नीचे किया और उसका लण्ड उछल कर बाहर निकल आया। फरहान का लण्ड भी थोड़ी सख्ती पकड़ चुका था शायद फरहान भी आपी की यहाँ मौजूदगी से एग्ज़ाइटेड हो रहा था। मैंने फरहान के होंठों से अपने होंठों को अलग किया और फरहान की शर्ट और शॉर्ट मुकम्मल उतार दिए। अब हम दोनों बिल्कुल नंगे हो चुके थे, दोनों आपी की तरफ घूम गए। आपी के गाल सुर्ख हो रहे थे और उनकी आँखें भी नशीली हो चुकी थीं।

“आपी कैसा लग रहा है आपको, अपने सगे भाइयों को नंगा देख कर और उनके लण्ड देख कर, क्या आप एंजाय कर रही हैं?” - मैंने मुस्कुराते हो कहा।

“शटअप! बकवास मत करो और अपना काम जारी रखो”

यह बोल कर आपी ने मुझे आँखों से इशारा किया कि प्लीज़ ये मत करो शायद आपी अभी जहनी तौर पर मुकम्मल तैयार नहीं थीं और उन में अभी काफ़ी झिझक बाक़ी थी। मैंने फिर फरहान के होंठों को चूसना शुरू कर दिया और फरहान को घुमा दिया, अब आपी की तरफ फरहान की पीठ थी, मैंने अपने एक हाथ से फरहान के कूल्हों को रगड़ना और दबोचना शुरू कर दिया। कुछ देर बाद मैंने अपने दोनों हाथों से फरहान के दोनों कूल्हों को खोल दिया ताकि आपी फरहान की गाण्ड के सुराख को साफ देख सकें। आपी को दिखाते हुए मैंने अपनी एक उंगली को अपने मुँह में लेकर गीला किया और फरहान की गाण्ड के सुराख में डाल दी। फरहान हल्का सा मचला लेकिन मैंने किसिंग जारी रखी और अपनी ऊँगली को अन्दर-बाहर करने लगा। आपी आँखें फाड़-फाड़ कर मेरी ऊँगली को अन्दर-बाहर होता देख रही थीं। मैंने फरहान के होंठों से होंठ हटाए और उसकी गर्दन को चूमते और ज़ुबान से सहलाते नीचे जाने लगा। मैंने फरहान के निप्पल को बारी-बारी से चूसा और फिर ज़मीन पर घुटने टेक कर बैठ गया। अब मैंने ऊँगली फरहान की गाण्ड से निकाल कर आपी को दिखाते हुए फरहान की गाण्ड के सुराख पर फेरी।
मैंने फरहान के लण्ड को हाथ में लिया और अपना चेहरा लण्ड के पास ला कर एक नज़र आपी पर डाली।
आपी की नजरें मेरी नजरों से मिलीं तो मैंने देखा कि आपी बहुत एग्ज़ाइटेड हो रही थीं शायद वो समझ गईं थीं कि मेरा अगला अमल क्या होगा।
फिर मैंने फरहान के लण्ड को अपने मुँह में लिया और आहिस्ता-आहिस्ता 3-4 बार मुँह आगे-पीछे करने के बाद मैंने एक हल्के से झटके से फरहान का लण्ड जड़ तक अपने मुँह में ले लिया।
उसकी टोपी मेरे हलक़ में टच हो रही थी।
मैंने इसी हालत में रुकते हुए आपी को देखा तो वो बहुत ज्यादा बेचैन नज़र आ रही थीं वो बार-बार अपनी पोजीशन चेंज कर रही थीं, शायद वो अपनी टाँगों के दरमियान वाली जगह को अपने हाथ से रगड़ना चाह रही थीं लेकिन अपने आपको रोके हुए थीं।
मैं कुछ देर तेज-तेज फरहान के लण्ड को अपने मुँह में अन्दर-बाहर करता रहा और फिर लण्ड मुँह से निकालते हुए खड़ा हुआ और फरहान को इशारा किया कि अब वो चूसे। फरहान मेरी टाँगों के दरमियान बैठा और मेरे लण्ड को चूसने लगा। कुछ देर मेरा लण्ड चूसने के बाद फरहान ने मुँह नीचे किया और मेरी बॉल्स को अपने मुँह में भर लिया। ‘वाउ..’  फरहान की इस हरकत ने मेरे अन्दर मज़े की एक नई लहर पैदा कर दी। फरहान नर्मी से मेरी बॉल्स को चूसने लगा।
मैंने आपी को देखा तो वो भी एकटक नज़रें जमाए फरहान को मेरे बॉल्स चूसते देख रही थीं। मैं जानता था कि आपी को मेरी बॉल्स बहुत अच्छी लगी थीं इसलिए भी आपी को फरहान की ये हरकत बहुत पसन्द आई थी। फरहान ने मेरी बॉल्स को मुँह से निकाला और मेरे पीछे जाकर मेरे कूल्हों को दोनों हाथों में लेकर खोला और मेरी गाण्ड के सुराख पर अपनी ज़ुबान फेरने लगा।

“एवव फरहान! तुम तो बहुत ही गंदे हो” - आपी ने बुरा सा मुँह बना कर कहा लेकिन अपनी नज़र नहीं हटाई।

फरहान आपी को कुछ कहना चाहता था लेकिन मैंने फरहान के सिर को वापस अपनी गाण्ड पर दबा दिया। मैंने अपने लण्ड को अपने हाथ में लिया और बहुत स्पीड से लण्ड पर हाथ को आगे-पीछे करने लगा। आपी बिल्कुल मेरे सामने थीं, मैं डाइरेक्ट आपी की आँखों में देख रहा था और लण्ड पर अपना हाथ चला रहा था।
आपी भी कुछ देर मेरी आँखों में देखती रहीं और फिर अपना चेहरा फेर लिया। मैं भी घूमा और फिर फरहान को किसिंग करने लगा। अब हम दोनों की नजरें आपी पर नहीं थीं। मैंने आँखों के कॉर्नर से देखा, आपी ने अपना एक हाथ टाँगों के दरमियान रख लिया था और मसलने लगी थीं।
ये नज़ारा देखते ही मेरे लण्ड को झटका सा लगा, जैसे ही हम आपी की तरफ घूमे, उन्होंने फ़ौरन हाथ अपनी टाँगों के दरमियान से हटा लिया। अब मैं डॉगी पोजीशन में झुका सा हुआ और फरहान मेरे पीछे आ गया। उसने अपने लण्ड पर और मेरी गाण्ड के सुराख पर तेल लगाना शुरू किया। मेरी नजरें आपी पर थीं और मुझे यक़ीन था कि आपी हर एक सेकेंड को एंजाय कर रही हैं।
फरहान ने आहिस्ता से अपना लण्ड मेरे अन्दर डाला और अपना लण्ड मेरी गाण्ड में अन्दर-बाहर करने लगा। मेरे मुँह से कुछ आवाजें तो वैसे ही मज़े और दर्द से निकल रही थीं और कुछ मैं खुद भी माहौल को सेक्सी बनाने और आपी को सुनाने के लिए निकालने लगा।

“आ ह..हाँ.. फरहान ज़ोर से धक्का मारो, ज़ोर से, हाँ पूरा डालो… अहह और ज़ोर से चोदो अपने सगे भाई को.. ज़ोर से झटका मारो.. हाँ फाड़ दो अपने बड़े भाई की गाण्ड”

मेरे ये अल्फ़ाज़ आपी पर जादू कर रहे थे और बार-बार बेसाख्ता उनका हाथ उनकी टाँगों के दरमियान चला जाता और वो अपना हाथ वापस खींच लेतीं। मैं चाहता था कि आपी पूरा मज़ा लें इसलिए मैंने फरहान से पोजीशन चेंज करने को कहा। अब हम दोनों की बैक आपी की तरफ थी और फरहान मेरे ऊपर था। आपी हम दोनों की गाण्ड और मेरी गाण्ड में अन्दर-बाहर होता फरहान का लण्ड साफ देख सकती थीं और हम आपी को डाइरेक्ट नहीं देख सकते थे लेकिन दीवार पर लगे आईने में हम अपनी पोजीशन भी देख सकते थे और आपी को भी साफ देख रहे थे।
अब आपी के सामने उनका बहुत पसंदीदा नजारा था, उन्होंने हमारी गाण्ड पर नज़र जमाए हुए अपने हाथ को अपनी टाँगों के दरमियान रखा और बहुत तेज-तेज रगड़ने लगीं। वो नहीं जानती थीं कि हम उन्हें आईने में साफ देख सकते हैं। आपी को ऐसे देखना मुझे बहुत उत्तेजित कर रहा था।
मैंने सरगोशी करते हुए फरहान को बुलाया और आईने की तरफ इशारा किया, जैसे ही फरहान ने आईने में देखा मैंने महसूस किया कि उसके बाद उसकी मेरी गाण्ड में लण्ड अन्दर-बाहर करने की स्पीड बढ़ती जा रही थी।
कुछ ही देर बाद उसके लण्ड ने मेरी गाण्ड में ही गर्म पानी छोड़ दिया।

उसके रुकने पर मैंने तेज आवाज़ में कहा- “आह्ह.. अब तुम आ जाओ नीचे अब मेरी बारी है करने की”

आपी ने यह सुना तो फ़ौरन अपना हाथ टाँगों के दरमियान से निकाल लिया। फरहान और मैंने अपनी जगहें चेंज कर लीं, अब फरहान डॉगी पोजीशन में था और मैंने उसकी गाण्ड में अपना लण्ड डाल दिया था। मैंने आहिस्ता-आहिस्ता लण्ड अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया। मुझे फरहान का पानी अब भी अपनी गाण्ड में महसूस हो रहा था जो बाहर निकलना चाह रहा था लेकिन मैंने अपनी गाण्ड के सुराख को भींचते हुए पानी को बाहर आने से रोक लिया और अपनी स्पीड को बढ़ाने लगा। मैंने आईने में देखा तो आपी अपना हाथ वापस अपनी टाँगों के दरमियान ला चुकी थीं और रगड़ना शुरू कर दिया था।
TO BE CONTINUED .....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

Love You All  Heart Heart
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#39
Lajawab yaar...
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#40
Heart 
मैंने फरहान की गाण्ड में झटके मारते-मारते ही अपनी गाण्ड के सुराख को लूज किया और फरहान के लण्ड का गाढ़ा सफ़ेद पानी मेरी गाण्ड से लीक होकर मेरे टट्टों से होता हुआ मेरे लण्ड और फिर फरहान की गाण्ड में जाने लगा।
मुझे अंदाज़ा था कि यह सीन देख कर आपी बिल्कुल पागल ही हो जाएंगी और जैसे कि मैं आईने में देख सकता था, आपी ने एक हाथ को अपनी टाँगों के दरमियान चलाते-चलाते दूसरे हाथ से अपने लेफ्ट दूध को दबोच लिया था और अपनी निप्पल को चुटकी में लेकर बुरी तरह से मसल रही थीं।
जैसे-जैसे फरहान की गाण्ड में अन्दर-बाहर होते मेरे लण्ड की स्पीड तेज होती जा रही थी, आपी भी अपने हाथों की स्पीड को बढ़ाती जा रही थीं।
थोड़ी देर बाद मुझे पता चल गया कि आपी डिसचार्ज होने ही वाली हैं क्योंकि उन्होंने अपना हाथ सलवार के अन्दर डाल लिया था। उन्हें यह नहीं मालूम था कि हम उन्हें आईने में देख रहे हैं।
आपी का हाथ उनकी सलवार में जाता देख कर मैं अपना कंट्रोल खो बैठा और मैंने फ़ौरन फरहान की गाण्ड से अपने लण्ड को निकाला और उसके कूल्हों पर अपने लण्ड का गाढ़ा सफेद पानी छोड़ने लगा।
शायद यह आपी के लिए सबसे ज्यादा हॉट सीन था फ़ौरन ही आपी का जिस्म अकड़ गया और उनकी आँखें बंद हो गईं। मैं और फरहान दोनों ही घूम कर सामने आपी को देखने लगे।
वो दुनिया से बेख़बर हो चुकी थीं, उनके जिस्म को ऐसे झटके लग रहे थे जैसे उन्हें इलेक्ट्रिक शॉक लग रहे हों। उनका पूरा जिस्म काँपने लगा और आपी बहुत स्पीड से अपना हाथ अपनी टाँगों के दरमियाँ वाली जगह पर चलाने लगीं और दूसरे हाथ से अपने दूध को मसलने लगीं।
अचानक उनका जिस्म अकड़ा और गर्दन कुर्सी की पुश्त पर टिका कर और पाँव ज़मीन पर जमाते हुए उन्होंने अपने कूल्हे कुर्सी से उठा लिए और कमान की सूरत में उनका जिस्म मुड़ गया। उन्होंने अपनी टाँगों के बीच वाली जगह और अपने दूध को अपनी पूरी ताक़त से भींच लिया।
‘अहह.. अककखह.. ओह..’ की आवाज़ उनके मुँह और हलक़ से खारिज हुई और फिर उनका जिस्म ढीला होकर कुर्सी पर गिर सा गया।
कुछ देर ऐसे पड़ी वो अपनी साँसों को दुरुस्त करती रहीं और जब उन्होंने आँखें खोलीं तब उन्होंने हमें देखा कि हम बिल्कुल उनके सामने बैठे मुस्कुराते हुए अपने-अपने लण्ड को हाथ में लेकर सहला रहे थे।
आपी ने अपने आप पर एक नज़र मारी कि उनका एक हाथ उनकी सलवार के अन्दर था और दूसरा उनके मम्मे पर था और उससे रगड़ते हुए उनके पेट से भी क़मीज़ हटी हुई थी। आपी का खूबसूरत सा नफ़ भी नज़र आ रहा था।
आपी ने ये सोचा कि वो अपने सगे भाईयों, छोटे भाईयों के सामने अपने मम्मे और टाँगों के बीच वाली जगह को रगड़ती रही हैं और फ़ौरन ही अपने हाथ को सलवार से निकाला और अपना लिबास सही करने लगीं। उनकी हया की निशानी उनका स्कार्फ और चादर ज़मीन पर पड़ी थी, पता नहीं कब उन्होंने चादर और स्कार्फ निकाल फेंका था कि उन्हें खुद भी खबर नहीं हुई।
फरहान ने अपने दोनों हाथों को जोड़ा और ताली बजाते हुए शरारत से बोला- “ब्रावो आपी! ग्रेट शो था। मेरे ख़याल में आप अपने सगे भाईयों को एक्शन में देखने के लिए बैठी थीं लेकिन आपकी तरफ से हमें एक शानदार शो देखने को मिल गया, थैंक यू आपी, इतने खूबसूरत शो के लिए”

आपी का चेहरा शर्म से सुर्ख हो गया था तो मैंने बात संभालते हुए कहा- “कोई बात नहीं आपी, हमने सिर्फ़ एंड ही नहीं देखा बल्कि शुरू से आख़िर तक सब देखा है, उस आईने में..!”

मैंने आईने की तरफ इशारा किया जहाँ हम सब बिल्कुल क्लियर नज़र आ रहे थे। आपी बहुत ज्यादा शर्मिंदगी महसूस कर रही थीं तो मुझे बहुत अफ़सोस हुआ उनके लिए और मैंने कहा- “कोई बात नहीं आपी, ये एक नेचुरल चीज़ है, आपकी जगह कोई भी होता वो ये ही करता, आप परेशान ना हों बल्कि खुल कर हमारे साथ ही ये सब एंजाय करें”

ये कहते हुए मैं खड़ा हुआ और आपी की तरफ 2 क़दम ही बढ़ा था कि आपी फ़ौरन खड़ी हो गईं और अपनी चादर और स्कार्फ उठा कर सिर झुकाए-झुकाए कमरे से बाहर निकल गईं। शायद उन्हें बहुत अफ़सोस हो रहा था अपनी इस हरकत पर या फिर शर्म आ रही थी अपने सगे भाईयों से…
आपी बाहर निकल गई थीं मैं वहाँ ही खड़ा था कि फरहान की आवाज़ आई- “भाई आज मज़ा ही आ गया, आपी को इस हालत में देख कर, उफफ्फ़ सग़ी बहन सामने इस हॉल में” उसने एक झुरझुरी सी ली।

“फ़िक्र ना करो मेरे छोटे शहज़ादे, बस तुम सब कुछ मुझ पर छोड़ दो, देखो मैं तुम्हें क्या-क्या दिखाता हूँ” -मैंने शैतानी मुस्कुराहट से कहा।

अगली रात हमने मूवी स्टार्ट की ही थी कि दरवाज़ा खुला और आपी अन्दर आईं। हम दोनों की नजरें आपी पर ही थीं। आपी सिर झुकाए-झुकाए ही अन्दर आईं और हमारी तरफ नज़र उठाए बगैर ही जाकर सोफे पर बैठ गईं। उन्होंने आज भी क़मीज़ सलवार पहनी हुई थी, सिर पर स्कार्फ मौजूद था लेकिन चादर नहीं थी, उन्होंने दुपट्टा उतारा और सलीक़े से तह करके साइड टेबल पर रख दिया और चुपचाप सिर झुका कर बैठ गईं।
हम दोनों भी बगैर कुछ बोले आपी की ही तरफ देख रहे थे लेकिन वो नज़र नहीं उठा रही थीं। मैंने गौर किया तो मेरे लण्ड को झटका सा लगा। आपी की जर्द क़मीज़ में निप्पल वाली जगह काली नज़र आ रहा था और जब वो दुपट्टा ठीक करते हुए या किसी और वजह से जिस्म को हल्की सी भी हरकत देती थीं तो आपी के मम्मे हिलने लगते थे।
“भाईजान लगता है हमारी सोहनी सी बहना जी ने आज ब्रा नहीं पहनी” -फरहान ने आँख मार कर मुस्कुराते हुए आपी के चेहरे पर नज़र जमाए-जमाए कहा।
आपी ने नज़र नहीं उठाई और झेंपते हुए कहा- “बकवास मत करो और अपना काम शुरू करो। मेरी तरफ़ नहीं देखो वरना मैं उठ कर चली जाऊँगी”
मैंने फरहान को इशारा किया कि आपी को तंग नहीं कर वरना वो वाकयी ही चली जाएंगी।
मैं और फरहान फ़ौरन खड़े हुए और अपने कपड़े उतार कर नंगे हो गए। चूमा चाटी करने के बाद मैंने सोचा कि आज कुछ बदलाव किया जाए। मैंने फरहान को बिस्तर पर सीधा लिटाया और उसकी गर्दन को बिस्तर के किनारे पर टिका कर सिर को पीछे की तरफ नीचे झुका दिया। फिर मैंने फरहान के मुँह में अपने खड़े लंड को डाला और उसके ऊपर झुकते हुए फरहान के लण्ड को अपने मुँह में भर लिया। अब हम 69 की पोजीशन में थे।
“नाइस पोजीशन” - आपी के मुँह से बेसाख्ता ही निकला।
मैंने सिर उठा कर आपी को देखा तो उन्होंने फ़ौरन अपना हाथ अपनी टाँगों के दरमियान से हटा लिया। उनके निप्पल खड़े हो गए थे और क़मीज़ का वो हिस्सा नुकीला हो चुका था क्योंकि उन्होंने ब्रा नहीं पहनी थी।

“प्लीज़ आपी! अगर आप अपने जिस्म से मज़ा लेना ही चाहती हैं तो फ्री हो कर मज़ा लें, प्लीज़ हम यहाँ बिल्कुल नंगे हैं और आपके सामने एक-दूसरे के लण्ड को चूस रहे हैं। अगर आप अपने जिस्म को टच करेंगी तो हमें भी एक-दूसरे के साथ सब करने में मज़ा आएगा। हम आपको कल ये करते हुए देख चुके हैं और इससे क्या फ़र्क़ पड़ेगा कि हम आज फिर देख लेंगे। आप अपने मज़े को तो कत्ल मत करें” - मैंने समझाने वाले अंदाज़ में कहा।

आपी कुछ देर तक तो सिर झुकाए बैठी रहीं और फिर अपना हाथ उठा कर अपनी टाँगों के दरमियान वाली जगह पर रख कर 2-3 बार रगड़ा और हमारी तरफ देखते हुए कहा- “बस खुश हो अब!”

फरहान फ़ौरन ही बोला- “जी आपी! आप इस हाल में गज़ब लग रही हैं”

और वाकयी ही बहुत सलीक़े से सिर पर और चेहरे के गिर्द ब्लैक स्कार्फ जिसमें गोरे-गोरे गाल अब सेक्स की हिद्दत से लाल हो चुके थे। सोफे पर कुछ लेटी, कुछ बैठी सी हालत में ज़मीन पर पाँव फैलाए थोड़ी सी टाँगें खुली हुईं और ठीक टाँगों के दरमियान वाली जगह पर ब्लैक सलवार के ऊपर गुलाबी खूबसूरत हाथ… आपी बिल्कुल परी लग रही थीं।
मैंने और फरहान ने फिर से एक-दूसरे के लण्ड मुँह में लिए और लण्ड मुँह में अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिए और आपी भी फ्रीली अपनी टाँगों के बीच वाली जगह को रगड़ने लगीं। अब मैंने फरहान को सीधा लेटने को कहा और हमने अपना रुख़ भी थोड़ा चेंज कर लिया। फरहान की टाँगों को अपने कंधों पर जमाते हुए मैंने लण्ड फरहान की गाण्ड में डाला और 2-3 झटके मारने के बाद झुक कर उसके होंठों को चूसने लगा। आज मुझे कुछ ज्यादा ही मज़ा आ रहा था।
पता नहीं ये फरहान के नर्म और नाज़ुक होंठ थे या अपने लण्ड पर फरहान की गाण्ड के अन्दर की गर्मी का अहसास था या शायद आज के अनोखे मज़े की वजह ये सोच थी कि मेरी सग़ी बहन जो बहुत बा-हया और पाकीज़ा है, जिसका चेहरा ही शर्म-ओ-हया का पैकर है वो मुझे देख रही हैं कि मैं अपने सगे छोटे भाई की टाँगों को अपने कंधे पर रखे उसकी गाण्ड में अपना लण्ड अन्दर-बाहर कर रहा हूँ।

TO BE CONTINUED ……
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

Love You All  Heart Heart
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