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Adultery लवली फ़ोन सेक्स चैट
#61
और फिर मैंने कनिष्का को फोन किया.

कनिष्का: हाय...स्लीपि हेड...उठ गए..
मैं: मुझे उठे हुए तो एक घंटा हो गया..
कनिष्का: है...एक घंटा और मैंने सोचा की तुम देर से उठोगे, इसलिए मैंने तुम्हे फोन नहीं किया...पता है, सुबह से तुम्हे फोन करने के लिए बेचैन थी मैं.
मैं: तो कर लेती न...या फिर सीधा आ जाती घर पर ही..
कनिष्का: नहीं बाबा...सीधा तो मैं अब कभी नहीं आउंगी. तुमने पता नहीं किसी और को इनवाईट कर रखा हो..
मैं: हा हा...तुम भी न...चलो आ जाओ अब, आज तुम्हारे अलावा कोई और इनवाईट नहीं है. तुम्हारी दीदी भी नहीं. उसे आज कोई काम है.
कनिष्का: उनसे मुझे कोई प्रोब्लम नहीं है...वैसे प्रोब्लम तो किसी से भी नहीं है. चलो ठीक है मैं आती हूँ, आधे घंटे मैं: ओके..बाय..

और फिर उसने भी फोन रख दिया. मैंने जल्दी से घर को साफ़ करना शुरू कर दिया, बेड शीट बदली, कमरे में स्प्रे किया, और फिर नहाने चल दिया, नहाकर निकला ही था की बेल बजने लगी, अभी तो सिर्फ बीस मिनट ही हुए थे, इतनी जल्दी कैसे आ गयी कनिष्का. मैंने टोवल में ही जाकर दरवाजा खोल दिया.

सामने पारुल खड़ी थी.

पारुल: हाय...विशाल...
मैं: हाय पारुल...तुम इतनी सुबह...
पारुल: क्यों?? मेरा आना अच्छा नहीं लगा तुम्हे..

वो आगे आई और टावल के ऊपर से ही मेरे लंड को हाथ में लेकर मसल दिया. उसने टी-शर्ट और जींस पहनी हुई थी. अपने मोटापे की वजह से वो जींस काफी कम ही पहनती थी. पर आज वो जींस में ज्यादा मोटी नहीं लग रही थी.

पारुल: क्या हुआ?? मुझे देखकर ख़ुशी नहीं हुई तुम्हे क्या?? अन्दर कोई और भी है क्या?? उस दिन की तरह...हूँ...
मैं: नहीं पारुल...कोई नहीं है...पर आने वाली है..
पारुल: अच्छा...वोही तुम्हारी गर्लफ्रेंड. उस दिन वाली. क्या मारी थी तुमने उसकी...यार...मजा आ गया था तुम्हे उसको फक करते हुए देखकर. सच में. वो अपनी ब्रेस्ट के निप्पल को बड़ी बेशर्मी से मेरे सामने ही दबाने लगी. उस दिन की चुदाई के बारे में सोचकर..
मैं: नहीं पारुल...वो नहीं...कोई और है..
पारुल: शाबाश...मेरे शेर...शाबाश...पहले तो तुम्हे कोई मिलती नहीं थी और अब...लाईन लगाकर..सही है...
मैं: हंसकर रह गया.
पारुल: पर मेरा क्या होगा यार...कितने मन से आई थी मैं...सोचा था की कल तुमने पूरा दिन आराम किया है, तो आज जाकर तुम्हारे साथ फिर से. यु नो मी ना. आजकल मुझे अपने आप पर काबू नहीं रहता. मन करता है की बस कोई मुझे सारा दिन चोदता रहे...चोदता रहे...बस और कुछ नहीं.

मैं उसकी बात सुनकर समझ गया की अगर मैंने उसे जबरदस्ती वापिस भेजा तो उसे कितना बुरा लगेगा..

मैं: कोई बात नहीं पारुल...आज तुम भी रुको...थ्रीसम करेंगे...बोलो..
पारुल: थ्रीसम....वाव...मैंने आज तक नहीं किया...पर तुम्हारी वो फ्रेंड मानेगी क्या..
मैं: जिसे लंड चाहिए. वो मेरी हर बात मानेगी. हाहा

और हम दोनों एक दुसरे के हाथ के ऊपर हाथ मारकर हंसने लगे. तभी बाहर से कनिष्का अन्दर आ गयी. उसने जैसे ही मुझे पारुल के साथ केवल टावल में खड़ा हुए देखा वो सकपका गयी.

कनिष्का: ओह...लगता है... मैं गलत टाईम पर आ गयी.
मैं: अरे नहीं कनिष्का...आओ, इससे मिलो, ये है मेरे कॉलेज टाईम की फ्रेंड पारुल और पारुल ये है कनिष्का, जिसके बारे में मैंने अभी तुमसे कहा.
पारुल: हाय कनिष्का..बड़ा प्यारा नाम है और उतनी ही प्यारी तुम भी हो..
कनिष्का: थेंक्स..

कनिष्का को काफी अनकम्फर्टेबल महसूस हो रहा था, उसने शायद सोचा भी नहीं था की मेरे घर पर कोई और भी लड़की हो सकती है.

मैं: क्या हुआ?? कन्नू, तुम तो कह रही थी की तुम्हे कोई प्रोब्लम नहीं है. अगर कोई और भी साथ हो तो.

वो मेरी तरफ आँखे फाड़ कर देखे जा रही थी..उसे लगा था की मेरी फ्रेंड आई है मिलने, पर मेरी बातो से उसे विशवास होने लगा था की आज मैं उन दोनों की एक साथ लेने के मूड में हूँ, जैसे कल ली थी उसकी, अंशिका के सामने ही. पर अपनी बहन के सामने करने में और किसी दुसरे के सामने करने में फर्क है. पर पारुल को किसी बात से परेशानी नहीं थी, वो नोर्मल सी बैठी थी सोफे पर. शायद कन्नू के चेहरे पर आये हुए भाव को पड़ने की कोशिश कर रही थी वो..

मैंने कनिष्का के कंधे पर हाथ रखा और उसे पकड़कर पारुल के साथ ही सोफे पर बिठा दिया, और मैं उसके सामने उसके घुटने पर हाथ रखकर अपने पंजो के बल बैठ गया.

मैं: देखो कनिष्का, मैं तुमसे कुछ छिपाना नहीं चाहता..ये मेरी कॉलेज फ्रेंड है और अभी कुछ दिनों पहले ही इसका ब्रेकअप हुआ है, और ये अपने बॉय फ्रेंड के साथ हुए सेक्स को काफी मिस कर रही थी, इसलिए अब इसे मैं वो सेटिस्फेक्शन दे रहा हूँ जो ये चाहती है... और अभी मैं इससे थ्रीसम की बात ही कर रहा था, और ये तैयार भी है. अगर तुम नहीं चाहती ये करना तो तुम्हे मैं फ़ोर्स नहीं करूँगा. पर करोगी तो बड़ा मजा आएगा. जैसा कल मिला था. उससे भी ज्यादा क्योंकि ये पारुल है न..ये सेक्स की प्यासी है. खुद भी मजे लेती है और दुसरो को उससे ज्यादा देती है..

मेरी बात कनिष्का बड़े ध्यान से सुन रही थी. उसके चेहरे की रंगत देखकर तो मैं समझ ही गया था की वो आगे की बाते सोचकर उत्तेजित हो रही है. पर फिर भी मैं उसके मुंह से सुनना चाहता था.

मैं: बोलो...कन्नू.  
कन्नू : ठीक है...जैसा तुम चाहो.

हाथ मे आया इतना सुनेहरा अवसर शायद ही कोई छोड़ना चाहेगा और वैसे भी वो चुदने के परपस से ही आई थी. बिना लंड लिए तो वो वापिस जाने से रही. उसकी बात सुनते ही मैं खुश हो गया और बोला : ठीक है. तुम दोनों यहीं बैठो. मैं कपडे पहन कर आता हूँ..

मेरी बात सुनते ही पारुल तपाक से बोली: ये कपडे उतारने का टाईम है विशाल...न की पहनने का. उसकी बात सुनकर मेरे साथ-साथ कनिष्का भी हंसने लगी .

मेरा लंड तो पहले से ही खड़ा था. अब उसके शो दिखाने का टाईम आ गया था. मैं उन दोनों के बीच खड़ा हो गया..मेरी बन्दूक सामने की तरफ तनी हुई थी. पारुल ने मेरे टावल को धीरे से खोला और मेरे जिस्म से गीला टावल हटा दिया..जैसे ही टावल हटा, मेरा लंड स्प्रिंग की तरह से हवा में झूलने लगा. जिसे देखकर पारुल ने बिना कोई देर किये उसे पकड़ा और सीधा अपने मुंह के हवाले कर दिया और उसे तेजी से चूसने लगी.

उसकी हरकत देखकर कनिष्का के होंठ लरज रहे थे. वो शायद सोच रही थी की उसने क्यों पहल नहीं की. ये सोचते हुए वो अपनी ब्रेस्ट को हाथ में लेकर होले से दबाने लगी. अपने सुख चुके होंठो पर जीभ फिराने लगी और थोडा आगे होकर ध्यान से पारुल को मेरा लंड चूसते हुए देखने लगी.

पारुल ने जब देखा की भूखी कन्नू उसे बड़ी ललचाई नजरो से देख रही है तो वो थोडा पीछे हुई , मेरे लंड को बाहर निकाला और उसे कन्नू के मुंह की तरफ करके बोली: चल शुरू हो जा... शर्मा मत...

उसे तो जैसे इसी मौके का इन्तजार था. उसने मेरे लंड को पारुल के हाथ से झपटा और सीधा अपने मुंह में धकेल दिया..मेरे लंड को वो किसी खिलोने की तरह ट्रीट कर रही थी. मेरे लंड पर उसके दांतों की रगड़ लगी..मैं कराह उठा.

मैं: धीरे...धीरे...करो कन्नू. ये तुम्हारा ही है...भागा नहीं जा रहा कहीं.

उसने अपनी नजरे मुझसे मिलायी, जिनमे हलकी हंसी मैंने साफ़ देखी और फिर मुझे देखते-देखते ही वो मेरे लंड को बुरी तरह से चूसने लगी. बिना अपने दांत लगाये..

इतनी देर में पारुल ने अपनी टी-शर्ट और जींस उतार दी. वो बिलकुल भी नहीं शर्मा रही थी. उसके मुम्मे ब्रा में कैद देखकर मेरे लंड का खून और तेजी से दोड़ने लगा. मुझे देखते हुए ही उसने अपनी ब्रा भी खोल दी और खड़े होकर मेरे पास आई और मेरे होंठो के ऊपर अपने होंठ रखकर उन्हें चूसने लगी. मेरा हाथ सीधा उसके दोनों मुम्मो पर जाकर चिपक गया और उन्हें मसलने लगा. कन्नू मेरा लंड और पारुल मेरे होंठ चूस रही थी. पारुल अपनी ब्रेस्ट को मेरी छाती से रगड़ने लगी..

पारुल को ना जाने क्या हुआ, उसने एकदम से अपनी एक टांग उठा कर लंड चूस रही कनिष्का के सर से घुमा कर दूसरी तरफ फेंक दी..अब पारुल का मुंह मेरी तरफ था और उसकी दोनों टाँगे मेरे लंड के दोनों तरफ थी और नीचे कन्नू मेरा लंड चूस रही थी. मुझसे कम हाईट होने की वजह से उसकी गांड नीचे लंड चूस रही कनिष्का के मुंह से टच हो रही थी. अब आलम ये था की उसे लंड के साथ-साथ पारुल की चूत की खुशबु भी लेनी पड़ रही थी. मैंने पारुल की गांड के नीचे हाथ लगा कर उसे ऊपर की तरफ उठा लिया और उसने भी अपनी बाहे मेरी गर्दन में लपेट कर मुझे चूमना और चाटना शुरू कर दिया..उसका वजन काफी था, पर मैंने फिर भी उसे उठा रखा था.

वो तो जैसे मुझमे समां जाने को आतुर थी, मुझे अपनी तरफ इतनी तेजी से भींच रही थी की उसकी मोटी ब्रेस्ट बीच में पीसकर ऊपर की तरफ आकर मेरी ठोडी से टकरा रही थी. मैंने थोडा नीचे होकर उसकी ब्रेस्ट के ऊपर अपनी जीभ रख दी और उसे फिराते हुए नीचे जाकर उसके निप्पल को मुंह में लेकर जोरो से चूसने लगा. वो जोर-जोर से चीखने लगी..

आआअह्ह्ह्ह विशाल्ल्ल्ल......काट डालो....इन्हें.....अह्ह्ह्ह....बड़ी खुजली होती है इनमे......साले बड़ा परेशान करते हैं ये....चुसो......जोर से चुसो....हरामियो को...

वो अपने चिर परिचित अंदाज में चीखे जा रही थी और अपने गुलाबी निप्पलस को गालियाँ दिए जा रही थी. और नीचे उस कनिष्का ने अति मचा रखी थी. .वो भी पारुल की चीखे सुनकर अपने असली रंग दिखाने लगी और मेरे लंड को मुंह में भरे-भरे ही वो भी आवाजे निकालने लगी.

उम्म्म्म......ओंगग्ग्ग्ग........ग्गग्ग्ग्ग.......म्मम्मम.....

मैंने एक ऊँगली पारुल की गांड में डाल दी. वो थोडा सा उछल कर ऊपर की तरफ हुई और फिर एकदम से मेरी ऊँगली के ऊपर बैठ गयी. मेरी ऊँगली उसकी गांड के अन्दर फिसलती चली गयी. पारुल के तो मजे हो गए. वो मेरी ऊँगली को अन्दर ले कर मजे से ऊपर नीचे होने लगी. उसकी चूत मेरे लंड के ऊपर वाले हिस्से पर घस्से लगा रही थी..जिसकी वजह से उसके अन्दर का पानी निकलकर नीचे की तरफ जाने लगा और जब उसकी चूत का पानी लंड से फिसलकर कनिष्का में मुंह में गया तो उसे भी ये डबल टेस्ट का बड़ा मजा आया, जो मुझे उसकी स्पीड देखकर पता चला..

पारुल ने अपने होंठ मुझसे हटा कर जोर से बोली: स्स्स्स....ओह्ह्ह्ह....विशाल...अब सहन नहीं होता....प्लीस....डाल दो अब....

मैंने नीचे हाथ करके अपने लंड को कन्नू के मुंह से छुड़ाया और उसकी गीली हो चुकी चूत के मुहाने पर रखकर अन्दर की तरफ धकेल दिया. बाकी का काम उसके मोटे जिस्म ने कर दिया..अपना सारा भार उसने मेरे लंड की तरफ करके अपनी चूत को मेरे लंड के चारो तरफ लपेट सा दिया.

अह्ह्हह्ह्ह्ह......विशाल.......मम्म......तुम्हारा लंड कितना शानदार है.....आआह्ह्ह्ह.... और वो ऊपर नीचे उछलने लगी मेरे शानदार लंड के ऊपर.

नीचे बैठी हुई कनिष्का ने अपना मुंह अभी भी ऊपर ही किया हुआ था. इसी आशा में की कभी तो मेरा लंड बाहर फिसलेगा और जैसे ही वो आएगा वो उसे लपक लेगी..अपने मुंह में. पर काफी देर तक कुछ आता न देखकर वो बेचैन सी हो गयी. उसने जल्दी से अपने कपडे उतारने शुरू कर दिए और एक ही मिनट में वो मादरजात नंगी होकर नीचे की तरफ वापिस बैठ गयी. उसने मेरी ऊँगली को पारुल की गांड से बाहर निकाला और उस जगह पर अपना मुंह लगा दिया. पारुल के लिए ये शायद पहला मौका था की किसी लड़की ने उसकी गांड के छेद को अपने मुंह से छुआ था.

वो अपने मुंह से उसकी गांड के छेद में सक करने लगी. उसकी सक्शन पावर इतनी ज्यादा थी की पारुल को चूत से ज्यादा उसे अपनी गांड में सन-सनाहत होने लगी. जिसकी वजह से वो जोरो से चीखते हुए मेरे लंड पर किसी करंट लगी कुतिया की तरह से कूदने लगी.

अह्ह्हह्ह.....अह्ह्ह अह्ह्ह अह्ह्ह अह्ह्ह कन्नू....अह्ह्ह्ह म्मम्म.....चुसो......विशाल......चोदो और तेज....अह्ह्ह..... और चीखते-चीखते कब उसकी चूत का रसायन बाहर निकल कर नीचे की तरफ झरना बनकर गिरने लगा, उसे भी नहीं पता चला, उसने तो कूदना तब बंद किया जब उसकी चूत के अन्दर की दीवारे लंड को और बर्दाश्त कर पाने में असमर्थ थी. वो हांफती हुई मेरे लंड के ऊपर अपना पूरा भार डालकर लटक गयी और कनिष्क थी की वो उसकी गांड को चुसे जा रही थी और उसने भी चुसना तब बंद किया जब उसे अपनी तरफ एक-दो बूंदे रस की लुडक कर आती दिखाई दी, जैसे ही बुँदे उसके होंठो से टकराई उसे पता चल गया की पारुल का रस निकल चूका है.

मैंने पारुल को धीरे से अपने लंड से जुदा किया. कन्नू ने भी उसकी गांड को चुसना बंद कर दिया और वो थोडा आगे की तरफ होकर मेरे लंड और पारुल की चूत के बीच से निकलकर ऊपर की तरफ उठती चली गयी और एकाएक मेरे सामने आकर प्रकट हो गयी..पारुल तो निढाल हो चुकी थी, वो पीछे की तरफ होकर सोफे पर लुडक गयी और अब कनिष्का ने पारुल की जगह लेते हुए मेरे गले में बाहे लपेटी और उछल कर मेरी गोद में चढ़ गयी..कन्नू की चूत इतनी देर से गीली थी की मेरे लंड से टकराते ही वो मक्खन की तरह मेरे लंड को निगलती हुई अन्दर तक ले गयी. मेरा लंड सीधा उसके गर्भाश्याय से जा टकराया.

अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह.....मरररर गयी........अह्ह्ह्हह्ह....विशाल्ल्ल.......फक्क्क्क मीईssssssssssssssssss.....हाआआआअर्द ........अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह.... और मैंने अपने लंड के पिस्टन को उसकी चूत की गुफा में धकेलना शुरू कर दिया. तभी नीचे से अपना होश संभाल चुकी पारुल उठी और उसने अपने होंठ ठीक उसी तरह कन्नू की गांड से चिपका दिए, जैसे कन्नू ने उसकी गांड से चिपकाये थे और उन्हें तेजी से चुसना शुरू कर दिया और तब कनिष्का को पता चला की चूत में लंड और गांड में जीभ अगर एक साथ आये तो क्या सेंसेशन होता है पुरे शरीर में और फिर शुरू हुआ उसके उछलने का सिलसिला. उसकी चीखे तो आप जानते ही हो. पूरा घर सर पर उठा लिया था उसने तेज आवाजो को निकाल कर. अह्ह्हह्ह्ह्ह अयीईई......म्मम्मम्म... और तेज चोदो.....अह्ह्ह्ह....हम्म्म्म ऐसे ही....अह्ह्ह .....म्मम्म.....चुसो मेरी गांड अह्ह्ह्ह........

उसकी ताजा चुदी गांड को पारुल ने अपनी जीभ से तर कर दिया था..मैंने एक दम से उसकी चूत से अपना लंड बाहर निकाल दिया और उसे नीचे उतार दिया. उसकी चूत का रस निकलने ही वाला था, इसलिए उसे मेरे ऊपर बड़ा ही गुस्सा आया.

कनिष्का: साले...बाहर क्यों निकाल दिया. इतना मजा आ रहा था.
मैं: तेरी गांड मारनी है कुतिया...इसलिए...

गांड मारने की बात सुनते ही उसके चेहरे की रोनक बढ गयी और वो घूमकर अपनी गांड को मेरे लंड की तरफ करके खड़ी हो गयी और अब उसका चेहरा पारुल की तरफ था जो सोफे पर बैठी हुई कन्नू की चूत की गीली सिलवटे देखकर अपने होंठो पर जीभ फेर रही थी.

कन्नू ने उसके चेहरे को अपने हाथो से पकड़कर अपनी चूत के ऊपर फिक्स कर दिया और मैंने उसकी गांड को पकड़कर अपने लंड के ऊपर. पारुल के चूसने की वजह से उसकी गांड काफी रसीली हो चुकी थी..इसलिए मेरे लंड को अन्दर दाखिल होने में ज्यादा मुशक्कत नहीं करनी पड़ी.

अह्ह्ह्हह्ह विशाल्ल्ल्ल......तुमसे अच्छा गांड मारने वाला तो कोई हो ही नहीं सकता......म्मम्मम......चल मेरे कुत्ते ...मार मेरी गांड....

पारुल सोफे से नीचे उतारकर ज़मीन पर अपनी गांड टीकाकार बैठ गयी और ऊपर मुंह करके कनिष्का की चूत का रस पीने लगी. कनिष्का ने भी अपनी एक टांग उठा कर पारुल के कंधे से ऊपर घुमा कर सोफे पर रख दी और मजे लेने लगी.

मेरे हर धक्के से वो आगे की तरफ जाती और सामने बैठी हुई कनिष्का के मुंह में उसकी चूत आती जिसे चूसकर वो अपनी प्यास बुझाने में लगी हुई थी. लगातार इतनी देर तक चूत और अब गांड मारने की वजह से मैं भी झड़ने के काफी करीब था...इसलिए मैंने आगे हाथ करके कन्नू के मोटे मुम्मो को पकड़ा और उसके निप्पल्स को मसलकर उसे ज्यादा उत्तेजित करते हुए झड़ने के करीब ले जाने लगा और मेरी मेहनत रंग लायी, निप्पल के दाने मेरे मसले जाने से फटने वाली हालत में हो गए और उसकी गांड में मेरा लंड जो दंगल मचा रहा था उसकी वजह से और पारुल के चूत चाटने की वजह से कन्नू की चूत का झरना जब फूटा तो सामने बैठी हुई पारुल को पूरा नहलाता चला गया. इतना तेज फव्वारा मैंने आज तक चलता हुआ नहीं देखा था, किसी की चूत से.

उसकी एक तेज चीख निकल गयी...अह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह ......विशाल्लल्ल्ल्ल..........आई एम् कमिंग..........अह्ह्हह्ह.....

बस यही बहुत था मेरे लंड की पिचकारी निकालने के लिए. मैंने भी अपना रस निकाल कर उसकी गांड में फिक्स डिपोसिट करना शुरू कर दिया. मेरे पैर कांप रहे थे, मैंने अपना लंड बाहर निकाला और सोफे पर लुडक गया और मेरे पीछे-पीछे कनिष्का भी.

पारुल सामने की तरफ घूमकर आई और कनिष्का की गांड में अपना मुंह लगाकर वहां से आईसक्रीम खाने लगी
और फिर वो भी कनिष्का की बगल में लेट कर गहरी साँसे लेने लगी...हमारी तरह.

पर असली शो तो अभी बाकी था.

पिछले कई दिनों से मैंने ये बात नोट की थी की मेरा स्टेमिना बढता चला जा रहा है. हर बार मैं पिछली बार से ज्यादा देर तक चूत मारता हूँ और अगली ठुकाई के लिए भी जल्दी तैयार हो जाता हूँ. पता नहीं इतनी जल्दी-जल्दी मेरे लंड के अन्दर माल कैसे बनता है..

मैं उठा और किचन में जाकर कुछ खाने को धुंडने लगा. मैंने अपनी फेवरेट गाजर उठाई और धो कर खाने लगा. मैंने सोचा की बाहर से कुछ मँगा लेना चाहिए, पिज्जा खा-खाकर तो बोर हो चूका था. पर जैसे ही मैं उन दोनों से पूछने के लिए बाहर निकला तो मैं देखकर चकरा गया की दोनों एक दुसरे को बुरी तरह से चूम रही हैं.

मैंने आज तक किसी भी लड़की को दूसरी के साथ करते हुए नहीं देखा था, इसलिए मैं एक चेयर लेकर वहीँ उनके सामने बैठ गया और उनका शो देखने लगा. पारुल ही ज्यादा उत्तेजना के साथ कनिष्का को चूस रही थी. कनिष्का भी अपने हाथ बड़ी ही तेजी से पारुल की मोटी ब्रेस्ट के ऊपर चला रही थी.

मैंने अपना गला साफ़ के पूछा : सुनो...तुम दोनों को भूख नहीं लगी क्या..?

पारुल: लगी तो है...मँगा लो कुछ भी तुम..

और फिर से वो दोनों एक दुसरे में गुम हो गयी.

मैंने अपने ड्रो में से एक-दो रेस्टोरेंट के पम्फलेट निकाले और देखने लगा, और फिर मैंने पास ही के एक रेस्टोरेंट से प्रोपर खाना मंगवा लिया, वो बोले की आधा घंटा लगेगा.

मैं फोन रखकर फिर से उनका शो देखने लगा.

पारुल ने कनिष्का के होंठ चूसते-चूसते अपना सर नीचे किया और उसकी दांयी ब्रेस्ट के ऊपर अपना मुंह लगाकर उसे किसी बच्चे की तरह चूसने लगी..मानो अभी उसमे से दूध निकल पड़ेगा...कनिष्का भी अपनी ब्रेस्ट का सिरा पकड़कर बड़े प्यार से पारुल के मुंह के अन्दर डाल रही थी और तभी पारुल ने अपनी एक ऊँगली कनिष्का की चूत में डाल दी और जैसे ही ये हुआ, कनिष्का ने अपना सर नीचे करके, ब्रेस्ट को निकाल कर, अपने होंठ पारुल के मुंह में डाल दिए और पारुल उन होंठो को भी उतनी ही बेदर्दी से चूसने लगी, जिस बेदर्दी से वो उसके निप्पल चूस रही थी. और फिर कनिष्का ने उसका सर पकड़ा और उसे नीचे की और धकेलने लगी. पारुल समझ गयी की कन्नू को अब ऊँगली नहीं उसकी जीभ चाहिए अपनी चूत के अन्दर  और वो भी अपनी जीभ को उसके नर्म मुलायम जिस्म से रगडती हुई , उसे लार से नेहलाती हुई, नीचे तक जा पहुंची और कन्नू की आँखों में देखते-देखते ही पारुल ने उसकी चूत के परों को फेलाया और उनमे कूद गयी..

अह्ह्हह्ह्ह्ह......पारुल......म्मम्म.......सच में......तुम बड़ा मजा देती हो.......

पारुल ने अपना सर उठाया और बोली.... " लो...तुम भी मजा दो फिर मुझे और ये कहते हुए वो पलटकर 69 की पोसिशन में आ गयी और अपनी मोटी चूत को उसके पतले होंठो के सामने परोस दिया. कन्नू ने बिना देर किये उसे चाटना शुरू कर दिया.

पारुल अब नीचे आ गयी और कनिष्का उसके मुंह के ऊपर अपनी चूत को विराजमान करके उसकी फेली हुई चूत के लिप्स को चबाने में लगी हुई थी. दोनों की चूत के अन्दर अभी तक मेरे लंड की गंध बरकरार थी, जिसकी वजह से उन्हें ज्यादा ही मजा आ रहा था.

दोनों की इस रासलीला को देखकर मेरे लंड ने भी अपना सर उठाना फिर से शुरू कर दिया. मैं उनका शो देखते-देखते, 5 गाजर भी खा चूका था और मुझमे अगली चुदाई की थोड़ी बहुत ताकत भी आ चुकी थी.

मुझे अपने हाथो से लंड मसलता देखकर नीचे लेती हुई पारुल बोली: हम दोनों के होते हुए तुम अपने हाथो को क्यों तकलीफ देते हो विशाल.....कम हेयर....नीचे आओ...

और फिर दोनों एक दुसरे से अलग होकर मुझे और मेरे लंड को ललचाई हुई नजरो से देखने लगी. पारुल ने मुस्कुराते हुए मेरा हाथ लकड़ा और मुझे नीचे जमीन पर घुटनों के बल बिठा दिया और फिर उसने मेरे हाथ पकड़कर मुझे आगे किया और मेरे हाथो को भी जमीन पर रख कर मुझे डोगी स्टाईल में करवा दिया. मेरी समझ में नहीं आया की ये करना क्या चाहती है और फिर खुद वो मेरे लंड के नीचे आकर लेट गयी और कनिष्का से बोली: चल कन्नू...इसका दूध निकाल....इसके लंड से सांड की तरह दूध निकलेगा...देखना...

वो अपना मुंह खोलकर नीचे लेती हुई थी. साईड से कन्नू आई और मेरे लंड को पकड़कर ऊपर नीचे करते हुए उसे मसलने लगी. जैसे दूध चो रही हो. मेरे पुरे शरीर में झनझनाहट सी होने लगी. ऐसा मैंने कभी सोचा भी नहीं था की ऐसी अवस्था में अपने लंड का मैथुन करवाने में इस तरह के मजे मिलेंगे.

कनिष्का अपनी ब्रेस्ट को मेरी पीठ से रगड़ रही थी और उसके तीखे निप्पल वहां चुभ से रहे थे. उसके हाथो की हरकत से मेरा लंड मेरे पेट की तरफ मुंह करके अपना कड़कपन दिखा रहा था. पर कन्नू उसे अपनी ताकत से नीचे की और करके पारुल के मुंह की तरफ कर रही थी. पारुल भी अपने मोटे मुम्मो को मसलते हुए, अपनी जीभ निकाल कर, मेरे लंड को छूने का प्रयास कर रही थी और जब-२ मेरा लंड उसकी जीभ की पकड़ में आता, वो उसपर अपनी जीभ से पूरी लार लगाकर, गीला कर देती, जिसकी वजह से कन्नू को मैथुन करने में ज्यादा आसानी होती और तभी नीचे लेती हुई पारुल ने अपना एक हाथ मेरे पीछे लेजाकर, अपनी एक ऊँगली को मेरी गांड के छेद में डाल दिया.

मेरे अन्दर बन रहे ओर्गास्म के लिए ये बहुत था, जैसे ही उसकी ऊँगली मेरी गांड के अन्दर सरकी, मेरे लंड ने दनादन रस के शोट मारने शुरू कर दिए. जो सीधा नीचे लेटी हुई पारुल के मुंह में जाने लगी. और जैसे ही पहला शोट निकला, कन्नू भी आधी लेटकर नीचे हुई और अपने मुंह पारुल की बगल में लेजाकर लंड का रुख अपनी तरफ करके उसकी बोछारो का वो भी आनंद लेने लगी.

मेरे लंड की एक पिचकारी वो पारुल के मुंह पर मारती और दूसरी वो अपने मुंह पर और ऐसा करते-करते कब मेरे लंड की टंकी खाली हो गयी, पता ही नहीं चला और जब सब ख़त्म हुआ तो मैं एक तरफ लुडक कर उनसे दूर होकर जा बैठा. उन दोनों के चेहरे देखने लायक थे, वैसे तो दोनों ने कोशिश की थी की पिचकारी वो अपने मुंह के अन्दर मारे, ताकि उसे सीधा पी जाए, पर ज्यादातर माल उनके मुंह के चारो तरफ लगा हुआ था, और ऐसा लग रहा था की उनके चेहरे को सफ़ेद गाड़े पानी से पोत दिया गया है. फिर जो मैंने देखा, वो मेरे मरे हुए लंड के अन्दर फिर से जिन्दगी डालने के लिए बहुत था. वो दोनों भूखी कुतियों की तरह से एक दुसरे के मुंह से मेरे लंड से निकला रस चाटकर पीने लगी और जल्दी ही कन्नू के चेहरे का माल पारुल ने खा लिया और उसके चेहरे का माल कन्नू ने.

पर अभी भी उनकी चूत में हो रही खुजली मिटी नहीं थी. उन्होंने नया खेल खेलकर मेरे लंड को तो मजा दे दिया, पर अपनी चूत से खिलवाड़ करके उसकी प्यास को अधुरा छोड़ दिया.

पारुल रेंगती हुई मेरी तरफ आई और मेरे लंड को मुंह में भरकर उसे उठाने की कोशिश करने लगी. पर मुझे मालुम था की इसे उठने में अभी कम से कम एक घंटा तो लगेगा.

मैंने उसे पीछे किया और कहा : यार...थोडा तो वेट करो न...अभी तो निकला है मेरा रस.. इतनी जल्दी नहीं कर पाउँगा दोबारा.

पारुल: उनहू....पर यहाँ तो आग लगी है न....इसका क्या करू..इसे तो अब लंड ही बुझा सकता है.

तभी बाहर की बेल बजी.

मैं: खाना आ गया है. चलो तुम अन्दर जाओ जल्दी से. मैं बाहर देखता हूँ.

तभी पारुल ने एक झटके से कहा...: रुको विशाल...एक मिनट...अगर तुम कहो तो...क्या डिलीवरी बॉय के साथ हम कुछ मजे ले सकते हैं क्या...??

मैं उसकी बात सुनकर भोचक्का रह गया.

मैं: क्या...ये तुम क्या कह रही हो....पागल हो क्या.
पारुल: प्लीस...यार....कुछ तो हमारी भी फ़िक्र करो...मजा आएगा. तुम चाहो तो छुप कर देख लेना. पर हमें तो करने दो न...प्लीस....

और ये कहते हुए उसने कन्नू की तरफ देखा. जो ये आईडिया सुनकर अजीब तरीके से मुझे देख रही थी और साथ ही साथ अपनी चूत के ऊपर उंगलिया भी चला रही थी. मैं जानता था की ये रिस्की मामला है. पर कभी-कभी इस तरह के रिस्क भी लेने चाहिए.

मैं: ठीक है...पर अगर बाहर आया हुआ बुड्ढा हुआ तो.
कनिष्का: अरे तुम्हे क्या पता....बुड्ढ़े तुम जैसे जवानों से ज्यादा मजे देते हैं.

यानी वो भी मजे लेने के लिए तैयार थी.

मैं: अच्छा जी...कितने अंकल लोगो का लंड ले चुकी हो....
कनिष्का: सिर्फ दो का....वो भी अपने टीचर्स में से...पर वो बाते फिर कभी.

और फिर वो पारुल से बोली: पारुल, तुम देखकर आओ की किस तरह का है, अगर सही हुआ तभी तो मजा आएगा न.

पारुल नंगी ही भागती हुई बाहर की और गयी, और दरवाजे से लगी मेजिक आई से बाहर की तरफ देखने लगी और फिर भागकर अन्दर आई, उसके चेहरे से साफ़ पता चल रहा था की वो बाहर आये हुए "लंड" को देखकर काफी खुश है.

पारुल: यार...क्या लड़का है....एकदम चिकना...टाई पहनी हुई है. और उसकी एज भी लगभग 35 के आस पास है. यानी...ना जवान है और ना ही बुढ़ा..

पर ये डिलीवरी वाले टाई कब से पहनने लगे.

मैंने कहा: ठीक है....मैं फिर अन्दर वाले कमरे में छुप जाता हूँ. पर उसे कांफिडेंस में लेकर ही सब करना. वर्ना कहीं उसने बाहर जाकर बाते फेला दी की इस घर में रहने वाली लडकिया चालू है तो कल से ही घर के बाहर ठरकी लोगो की लाईन लग जायेगी...समझे..

पारुल: तुम उसकी फिकर मत करो.

और फिर उसने जल्दी से अपनी टी-शर्ट उठा कर पहन ली...पर नीचे कुछ नहीं पहना..

उसकी टी-शर्ट उसकी गांड से थोडा ही नीचे आ रही थी और उसके मोटे निप्पल बिना ब्रा के साफ़ चमक रहे थे. उसने कनिष्का के कान में कुछ कहा और फिर वो खुद बाहर की और चल दी.

मैं भी भागकर अपने कमरे की तरफ चल दिया. पारुल ने गहरी सांस ली और फिर धीरे से दरवाजा खोल दिया.
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#62
बाहर खड़े हुए बन्दे ने जैसे ही पारुल को ऐसी अवस्था में देखा. वो हैरान रह गया. वो हकलाते हुए बोला: जी...जी...वो...खाना मंगवाया था...आपने.  उसकी नजरे पारुल की मोटी छाती से होते हुए, नीचे उसकी मखमली और मोटी जांघो की तरफ फिसल रही थी.

पारुल: ओह...या....पर तुम शकल से तो डिलीवरी बॉय नहीं लगते.

वो बोला: जी...आज लड़का छुट्टी पर है. तो मैं ही ले आया. मैं रेस्टोरेंट का मेनेजर हूँ.  वो क्या है न... कभी-कभी स्टाफ की शोर्टेज हो जाती है. वो हकलाते हुए बोल रहा था. यानी उसे ये सिचुएशन बड़ी ही अजीब लग रही थी. जहाँ एक जवान लड़की आधे-अधूरे कपड़ो में उससे खाने की डिलीवरी लेने आई थी.

पारुल: ओके....आप अन्दर आओ. मैं पैसे देती हूँ.

वो अन्दर आ गया और पारुल ने पीछे से दरवाजा बंद कर दिया. वो दरवाजे के पास ही खड़ा रहा और पारुल अपनी गांड मटकाती हुई अन्दर की तरफ आ गयी. जहाँ मैं बैठा हुआ था, वहां से मुझे साफ़ दिखाई दे रहा था की अन्दर आते ही मेनेजर ने अपनी पेंट के उभार को छुपाया और दरवाजे के पास ही खड़ा होकर वेट करने लगा.

पारुल ने उसे अन्दर बुलाया: अरे...तुम बाहर क्यों खड़े हो. अन्दर आओ न.

वो धीरे-धीरे चलते हुए अन्दर तक आया और सोफे के पास आकर खड़ा हो गया. पारुल ने उसे बैठने को कहा. पर जैसे ही वो बेठने लगा, सोफे पर लेटी हुई कनिष्का को देखकर वो एकदम से वापिस उठ बैठा.

कनिष्का सोने की एक्टिंग कर रही थी, उसने अपने कपडे तो पहन लिए थे पर सोफे पर उल्टा सोने की वजह से उसकी गांड ऊपर की तरफ घुमावदार सी साफ़ दिखाई दे रही थी, और उसने अपनी टी-शर्ट ऊपर खिसका रखी थी, जिसकी वजह से उसकी कमर आधी से ज्यादा नंगी थी.

पारुल: ओहो....यहाँ तो मेरी फ्रेंड सो रही है. वो क्या है न...हम दोनों आज सुबह ही मुंबई से आई हैं और ये घर मेरे दूर के अंकल का है. वो लोग बाहर रहते हैं, इसलिए एक दिन के लिए उन्होंने हमें यहाँ रहने की इजाजत दे दी. हम रात को ही बेंगलोर निकल जायेंगे.

वो मूक सा खड़ा होकर पारुल की बनायीं हुई कहानी सुन रहा था. वो क्या करती है और कहाँ जा रही है, वो उसे क्यों बता रही है. शायद येही सोच रहा होगा वो. पर असल में वो सही कर रही थी, जैसा की मैंने उसे कहा था की अगर इसके साथ मजे लेने है तो ऐसा कुछ करना की सिर्फ आज के मजे मिले. कहीं उसे उसकी ठरक दुबारा यहाँ न खींच लाये.

पारुल: मुझे आज यूनिवर्सिटी में काम है, उसके बाद हम निकल जायेंगे. ये मेरी फ्रेंड है सकीना और मैं हूँ नेहा.
मैनेजर: ओके...ह्म्म्म और मेरा नाम...चेतन है.

बेचारा और बोल ही क्या सकता था.

पारुल आगे बोली: सुबह से ही भूख लगी थी. अब मजा आएगा और वो खाने के डब्बे खोलने लगी.

मैनेजर: जी...वो...पेमेंट कर देती तो मैं चलता फिर....
पारुल: ओहो...मैं तो भूल ही गयी....सॉरी चेतन...रुको. अभी देती हूँ...

और वो अपनी पेंट को उठा कर उसकी जेब में पैसे धुंडने लगी. पर उसमे पैसे नहीं थे.

पारुल: मेरी पॉकेट वाले पैसे तो ख़तम हो गए. मैंने सामान नहीं खोला है अभी. वो मेरा सूटकेस ऊपर है. अरे हाँ...इसके पास जरुर होगा.

और वो भागकर कन्नू के पास गयी और उसकी पॉकेट में पैसे खोजने लगी. उसकी पीछे वाली दोनों पॉकेट खाली थी. पारुल ने उसकी आगे वाली पॉकेट में हाथ डालने की कोशिश की. पर वो अपने पेट के बल लेटी हुई थी. इसलिए उसे मुश्किल हो रही थी.

पारुल: सुनो...चेतन, यहाँ आओ न...मेरी हेल्प करो. ये तो गहरी नींद में सो रही है. इसकी आगे वाली पॉकेट में पैसे होंगे जरुर. मैं इसे टेड़ा करती हूँ, तुम पैसे निकाल लेना. ओके.

बड़ी ही अजीब सिचुएशन लग रही थी चेतन को. पर लड़की को छुने की ललक में वो कुछ न बोला और आगे आकर सोफे के किनारे पर खड़ा हो गया.

पारुल ने कन्नू को कंधे से पकड़कर आधा सीधा किया और चेतन ने जल्दी से उसकी आगे वाली जेब में हाथ डाल दिया. पर उसे वहां भी कुछ न मिला...पारुल ने उसकी दूसरी जेब में हाथ डालने को कहा और जैसे ही उसने अपना हाथ अन्दर खिसकाया कन्नू ने उसके हाथ को पकड़ा और अपनी चूत के ऊपर रख कर उसे घिसने लगी और धीरे से सिसकारी मारकर बोली...ओह्ह्हह्ह विशाल्ल्ल...

मानो वो सारा काम नींद में कर रही हो. अब तो चेतन की शक्ल देखने लायक थी. वो घबरा रहा था. पर ये सब देखकर पारुल जोरो से हंसने लगी. पारुल को हँसता देखकर चेतन भी खिसियानी हंसी में हंसने लगा. वो ज्यादा चालु टाईप का नहीं लग रहा था, अगर होता तो अब तक शुरू हो गया होता.

पारुल: हा हा हा....आई...आई एम् सॉरी....वो क्या है न....सुबह से बेचारी को अपने बॉय फ्रेंड की बड़ी याद आ रही है. बेचारी चार दिनों से नहीं मिली है उसे और शायद येही सपना देख रही है की उसका बॉय फ्रेंड आ गया है. उसके पास. और तभी तुम्हारा हाथ रगड़ रही है अपनी चूत पर. हा हा...

पारुल के मुंह से चूत शब्द सुनकर बेचारा चेतन झेंप सा गया.

पारुल (थोडा सीरियस होते हुए): सुनो चेतन...अगर तुम बुरा न मानो तो एक काम कर सकते हो क्या.
चेतन: जी...जी क्या काम...
पारुल: वो मैंने कहा न की ये चार दिनों से तड़प रही है...अपने बॉय फ्रेंड के लिए. तो क्या तुम इसकी हेल्प करोगे.
चेतन: जी मैं...मैं कैसे...हेल्प..करू.

वो शायद समझ तो चूका था की आज उसके साथ क्या होने वाला है और ये सोचकर ही उसके आते के ऊपर पसीना आने लगा था.

पारुल: तुम इसे ऐसे ही घिसते रहो और देखना इसका ओर्गास्म कितनी जल्दी हो जाता है फिर.

वो कुछ न बोला...बस अपने हाथ को ढीला छोड़कर वहीँ सोफे पर बैठ गया और कन्नू उसके हाथ को पकड़कर अपनी चूत के ऊपर घिसती रही.

मैंने मन में सोचा. साला कितना बड़ा घोंचू है....इतना खुला ऑफर मिला है. फिर भी आराम से बैठा हुआ है..

पारुल: तुमने तो अपने हाथ को ढीला छोड़ रखा है. थोडा टाईट करो. तभी तो उसे भी मजा आएगा.

तभी कन्नू नींद में ही बडबडाने लगी..." ओह्ह्ह.....विशाल्ल्ल.......हां.....जोर से करो न.....म्मम्म "

पारुल ने चेतन की तरफ मुस्कुरा कर देखा और कहा: ये विशाल ही है इसका बॉय फ्रेंड. सोच रही है की नींद में वोही सब कर रहा है. तुम लगे रहो और ये कहते हुए पारुल वहीँ उसके सामने वाले सोफे पर बैठ गयी. पारुल के कहने पर चेतन ने अपने हाथ की पकड़ उसकी चूत के ऊपर थोड़ी बड़ा दी...

पारुल: तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड है क्या...चेतन...
चेतन: जी...जी नहीं.
पारुल (हेरानी से): और तुमने पहले कभी किया है किसी लड़की के साथ कुछ.
चेतन: जी...जी कभी नहीं.
पारुल: इसका मतलब. तुम अभी तक कुंवारे हो.

उसकी आँखों में अजीब सी चमक आ चुकी थी.

चेतन: जी हाँ

उसके लंड का उभार फिर से दिखाई देने लगा था अब.

उसकी बात सुनते ही ना जाने पारुल को क्या भूत चड़ा की वो बड़ी ही बेशर्मी से अपनी मोटी छाती को चेतन की आँखों में देखते-देखते ही मसलने लगी. उसकी टी-शर्ट काफी टाईट थी, और मसलने की वजह से उसके निप्पल चमक कर बाहर की और निकलने लगे, मानो टी-शर्ट को फाड़कर छेद कर देंगे. चेतन भी पारुल को देखकर अपने पर काबू न रख पाया और अपने दुसरे हाथ से लंड को पेंट के ऊपर से ही सहलाने लगा.

अब आलम ये था की चेतन का एक हाथ अपने लंड पर था और दूसरा कनिष्का की चूत के ऊपर और आँखे थी पारुल की गोल मटोल गोलइयो पर. जिसे पारुल बड़ी ही तेजी से दबा रही थी.

नींद का बहाना कर रही कनिष्का की सिस्कारियां निकालनी शुरू हो चुकी थी. उसने एक झटके में अपनी जींस को नीचे किया और चेतन के हाथ को अपनी नंगी चूत के ऊपर रख कर उसे घिसने लगी.

चेतन का ध्यान पारुल की तरफ था, इसलिए वो कन्नू को अपनी जींस नीचे करते नहीं देख पाया, पर जब उसका हाथ गीली चूत के ऊपर गया तो उसने देखा की जींस तो खिसक कर नीचे जा चुकी है और अब उसका हाथ कन्नू की नंगी चूत के ऊपर है.

वो गोर से उसकी चूत को देखने लगा.

पारुल: पहली बार देखी है क्या...तुमने किसी लड़की की चूत.
चेतन: हाँ.

उसके होंठ कांप रहे थे... ये कहते हुए.

पारुल: और एक साथ दो चूत देखी है कभी.

और ये कहते हुए उसने अपनी जांघे खोल डाली और अपना दूसरा हाथ सीधा अपनी चूत के ऊपर लेजाकर उसे मसलने लगी.

चेतन की तो हालत ही खराब हो गयी. चेतन ने अपनी पेंट की जिप खोली और अपना लंड निकाल कर बाहर किया और उसे मसलने लगा. उसके काले लंड की झलक देखते ही पारुल का भूत सर चड़कर बोलने लगा. वो बडबडाने लगी "ओह्ह्ह......क्या कोरा लंड है तेरा.....म्मम्म....साले....इसे अपने तहखाने में क्यों रखा हुआ था.....लंड को निकाल कर....मजे लिया कर इसके और दुसरो को भी दिया कर....अह्ह्ह..."

पारुल ने अपना एक हाथ अपनी टी-शर्ट के अन्दर डालकर अपनी लेस्ट ब्रेस्ट को बाहर खींचा और उसे दबाकर अपनी सिस्कारियो को और भी तेज कर दिया. चेतन का लंड भी अच्छा ख़ासा मोटा और लम्बा था और ख़ास बात थी की वो वर्जिन था. जैसा की मैं था कुछ दिनों पहले तक. पारुल ने अपनी टी-शर्ट उतार फेंकी और अब वो चेतन के सामने पूरी नंगी होकर खड़ी थी..वो अपनी जगह से उठी और चेतन के पास आकर उसकी गोद में बैठ गयी.

उसके हाथ सीधा पारुल की मस्त गोलइयो पर जा टिके और वो उन्हें जोर से दबाने लगा.

अब उसके हाथ कनिष्का के ऊपर से हट चुके थे.

कनिष्का ने आँख खोलकर देखा की पारुल ने मैदान मार लिया है और अब चेतन का पूरा ध्यान पारुल की ही तरफ है और हो भी क्यों न...उसकी गोद में नंगी जो बैठी थी वो.

वो भी उठ बैठी और अपनी टी-शर्ट को उतार दिया. जींस तो पहले से ही नीचे थी, उसे भी उसने अपनी टांगो से नीचे करके निकाल दिया. अब वो भी नंगी थी. पारुल की ही तरह...उसने अपने हाथ आगे किये और चेतन को पीछे से उसकी पीठ से लिपट गयी.

चेतन ने जैसे ही अपनी पीठ पर दो और मुम्मे महसूस किये वो एकदम से पलटा और कनिष्का को नंगा पाकर वो हेरानी से उसे देखने लगा और फिर वो कभी कनिष्का को और कभी पारुल को देखने लगा.

पारुल: देख क्या रहे हो...मेरी फ्रेंड और मुझे दोनों को अपने कुंवारे लंड के मजे दो. चलो जल्दी करो.

और ये कहते-कहते उसने चेतन के कपडे उतारने शुरू कर दिए.

तभी मेरा सेल बज उठा. वो अंशिका का फोन था. मैंने दो रिंग में ही उठा लिया.

तब तक शायद चेतन ने सेल की आवाज सुन ली थी. वो बोला " किसका फ़ोन है. कोई है क्या अन्दर..."

पारुल: अरे नहीं...वो मेरा ही फ़ोन है...अन्दर चार्जिंग पर लगा है. बाद में देखूंगी. अभी टाईम नहीं है.

और वो चेतन को नंगा करने में दोबारा से जुट गयी.

मैंने फ़ोन उठाया और धीरे से उससे कहा: हेलो...क्या हाल है...

अंशिका: इतना धीरे क्यों बोल रहे हो.... बिजी हो क्या..?
मैं: हाँ बिजी तो हूँ...तुम्हारी बहन के साथ ही.
अंशिका (झेंपते हुए): ठीक है फिर...बाद में बात करुँगी.
मैं: नहीं यार...कोई बात नहीं.
अंशिका: मैंने तो बस ऐसे ही फोन कर दिया. तुम्हारी याद आ रही थी. वैसे क्या कर रहे हो अभी.
मैं: तुम्हारी बहन की चूत चाटी थी मैंने अभी...बस अपने लंड को वहां डालने की तय्यारी कर रहा हूँ.

अंशिका की साँसे तेज होने लगी ये सब सुनकर.

अंशिका: तुम लोग करो....मैं रखती हूँ.

मैंने थोडा तेज आवाज में कहा: बोला न नहीं रखो अभी. बात करती रहो. मैंने अपना लंड बाहर निकाल कर उसे रोंदना शुरू कर दिया.

अंशिका (तेज साँसों में): क्या कर रहे हो अब.
मैं: लंड पर कन्नू की चूत का रस लगाकर उसे चिकना बना रहा हूँ.

अंशिका की हालत खराब हो गयी मेरी बात सुनकर...

इस बीच चेतन पूरा नंगा हो चूका था. अब बात थी की इस कुंवारे लंड को कौन अपनी चूत में लेगा पहले. पारुल बड़ी थी, इसलिए कन्नू ने उसकी तरफ देखा की वो ही फेसला करे की पहल कौन करेगा. पारुल ने बड़े प्यार से कन्नू की आँखों में देखा और बोली: चल सकीना...चढ़ जा इसके ऊपर और मिटा ले अपनी चूत की खुजली. विशाल के नाम की. कनिष्का तो फूली न समाई. वो जल्दी से आगे आई और सोफे पर बैठे हुए चेतन की टांगो के दोनों तरफ टाँगे करके उसकी गोद में आ बैठी और पारुल ने पीछे से उसके लंड का निशाना उसकी चूत पर लगाया और कन्नू की चूत में जैसे ही चेतन के लंड का सुपाड़ा गया, वो बहक उठी और अपना पूरा भार उसने चेतन के लंड के ऊपर छोड़ दिया और उसकी चूत फुलझड़ी की तरह सुलगती हुई नीचे तक आती चली गयी.

अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह........म्मम्म.....ओह्ह्हह्ह.....माय गोड........साला....क्या लंड है तेरा...मम्म...ऊऊ विशाल्ल्ल्ल.....मम्म...

वो अभी तक अपना रोल प्ले कर रही थी और उसने आगे बढकर उसके चिकने चेहरे पर अपनी जीभ से लार की पुताई करनी शुरू कर दी.चेतन ने आँखे बंद कर ली. मैंने मौका देखा और जल्दी से भागकर बाहर आया और सोफे के पीछे जाकर छुप गया.

पारुल भी मुझे देखकर हैरान रह गयी. पर मैंने फ़ोन की तरफ इशारा किया और उसे चुप रहने को कहा.

कन्नू चेतन के लंड के ऊपर कूदने लगी और जोर से चिल्लाने लगी...अह्ह्ह्हह्ह विशाल्ल्ल.....म्मम्म....ओह्ह्ह्ह माय पुससी.....अह्ह्ह्ह .....

और ये सब बाते बड़ी ही साफ़ आवाज में अंशिका सुन रही थी और सोच रही थी की मैं उसकी छोटी बहन की चूत मार रहा हूँ और ये सोचकर ही वो भी उत्तेजित होकर शायद अपनी चूत की मालिश कर रही थी.

और फिर एकदम से कनिष्का की चूत में एक तूफ़ान सा आ गया. अह्ह्हह्ह्ह्ह........ओह्ह्ह........आई एम् कमिंग........अह्ह्ह्हह्ह....... और वो अपना रस का छत्ता चेतन के लंड के ऊपर फोड़कर उसके कंधे पर सर रखकर जोरो से हांफने लगी.

और यही हाल दूसरी तरफ फोन पर अंशिका का भी था. वो भी झड चुकी थी. अपनी बहन के साथ ही.

चेतन का पहली बार था. इसलिए उसका रस निकलने का नाम ही नहीं ले रहा था और ये अच्छा भी था. क्योंकि अपनी चूत के पर फेलाए दूसरी मोरनी यानी पारुल भी तो लाईन में थी.

मैंने तब तक अंशिका का फोन काट दिया. अगर उसने पारुल की आवाज सुन ली तो पता नहीं क्या सोचेगी.

और जैसे ही कन्नू चेतन के लंड से ऊपर उठी, पारुल आकर उसी जगह पर बैठ गयी और आते ही जोर से चीखना और कूदना शुरू कर दिया. पारुल को ज्यादा एक्स्पेरिंस था. उसने उसके लंड की चटनी बनानी शुरू कर दी, अपनी ओखली नुमा चूत में और अपनी मोटी ब्रेस्ट उसके मुंह में ठूस डाली.

अह्ह्ह्हह्ह.......वाह....क्या लंड है....

और फिर जल्दी ही चेतन ने भी उसकी ब्रेस्ट का दूध पीकर अपने लंड की शक्ति को बढाया और उसे चोदना शुरू कर दिया. जल्दी ही ऊपर से रस निकलकर नीचे आने लगा और नीचे से रस निकलकर ऊपर की और जाने लगा. दोनों की आँखे बंद हो गयी...झड़ते हुए.

मैंने चेतन की बंद आँखों का फायेदा उठाया और भागकर वापिस ऊपर चला गया और वापिस छुप गया. मैंने ऊपर जाकर अपने कपडे ठीक किये और नीचे देखने लगा, पारुल चेतन को समझा रही थी.

पारुल: आज रात को तो हम चले ही जायेंगे यहाँ से और जो कुछ हमारे बीच हुआ है वो किसी और को पता नहीं चलना चाहिए...ओके.
चेतन: नहीं चलेगा. आप दोनों की वजह से मेरी वर्जिनिटी टूटी है. जिसका मुझे कई दिनों से इन्तजार था. मुझे तो आप दोनों का थेंक्स बोलना चाहिए. थेंक्स और फ़िक्र मत करो. ये बात मैं किसी को नहीं बताऊंगा...ओके.

और फिर वो भी अपने कपडे पहन कर बाहर निकल गया. बेचारा जाते-जाते अपने पैसे लेना भी भूल गया था.

उसके जाते ही मैं नीचे आया, पारुल मुझे देखते ही मुझसे लिपट गयी. "थेंक्स विशाल...तुम्हारी वजह से ही आज ये सब हुआ है. .मजे तो तुम भी बहुत देते हो. पर जैसे तुम लडको को अलग-अलग लड़की की ललक होती है. वैसे ही हम लडकियों का भी मन दुसरे लंड देखकर मचल जाता है. पर जो भी था. मजा बहुत आया. है न. "

उसने कनिष्का की तरफ देखा. जो अपनी चूत के अन्दर ऊँगली डालकर अपना रस निकल कर चूस रही थी.

उसके बाद हम सबने खाना खाया और एक आखिरी बार शाम को जाते-जाते जमकर चुदाई की.

उन दोनों के जाने के बाद मैंने पुरे घर की सफाई की, बेडशीट बदली, रूम फ्रेशनर से घर को महकाया.

रात को मैंने अंशिका को फोन किया

अंशिका: हाय...फ्री हो गए.
मैं: हाँ...कनिष्का घर आ गयी क्या.
अंशिका: हाँ...अपने कमरे में सो रही है. थक गयी थी.
मैं: अच्छा जी...काम हमने किया और थक वो गयी. कमाल है.
अंशिका: चुप रहो तुम. तुम्हे क्या पता की लड़की की क्या हालत होती है...सेक्स करने के बाद. पूरा बदन टूट जाता है और तुम तो पुरे जानवर की तरह करते हो. बेचारी को पता नहीं कितनी बार फक किया होगा.
मैं: चार बार.
अंशिका: हे भगवान्....मेरी फूल सी बहन को तुमने चार बार किया. तभी उसकी ऐसी हालत हुई पड़ी है. बेचारी.

अभी तो मैंने चेतन वाली चुदाई नहीं गिनी थी....

मैं: बड़ी फ़िक्र हो रही है तुम्हे अपनी बहन की. वैसे तुम्हे शायद याद नहीं है. पर जब तुमने पहली बार करवाया था तो हमने पांच बार किया था. याद है.
अंशिका: मैं बड़ी हूँ. पर वो तो अभी बच्ची है.
मैं: कोई बच्ची-वच्ची नहीं है वो. उसका बस चले तो एक साथ 3-4 लंड ले डाले अपनी चूत में.

अंशिका को मेरी बात सुनकर इस बार सही में गुस्सा आ गया.

अंशिका: बकवास बंद करो तुम अपनी. कैसे तुम मेरी बहन के बारे में बोले जा रहे हो. तमीज से बात करो उसके बार में...समझे.

मैं समझ गया की मेरे मुंह से कुछ ज्यादा ही निकल गया है आज. अंशिका अपनी बहन को कुछ ज्यादा ही प्यार करती है. उसके सामने मुझे ऐसी बात नहीं बोलनी चाहिए थी कन्नू के बारे में.

मैं: ओह....सॉरी यार....मैंने तो बस ऐसे ही कह दिया. ठीक है बाबा. मैं आगे से उसके बारे में कोई भी गलत बात नहीं बोलूँगा. अगर तुम कहोगी तो उसे चोदुंगा भी नहीं...खुश.
अंशिका: हम्म.
मैं: अच्छा तुम सुनाओ....आज का दिन कैसा बीता.
अंशिका (धीरे से): क्या बताऊ विशाल...आज बड़ा ही अजीब लग रहा था पूरा दिन. मुझे पता था की कन्नू तुम्हारे साथ है और क्या कर रही है. पर फिर भी मुझे बड़ी ही बेचनी थी. तभी मैंने तुम्हे फोन भी किया था और सच कहू. तुमने मुझे फ़ोन नहीं रखने दिया, मुझे अच्छा लगा. आज कई दिनों के बाद मुझे ऐसा ओर्गास्म हुआ, फोन पर. मन तो कर रहा था की मैं तुम दोनों को वो सब करते हुए देखती. पर ये मुमकिन नहीं था.
मैं: अगर ऐसी बात है तो अगली बार तुम सामने बैठ जाना और हम दोनों करेंगे.
अंशिका: और अभी तो तुम कह रहे थे की तुम उसे दोबारा नहीं...सेक्स
मैं: यार, तुम कभी कुछ कहती हो और कभी कुछ...चलो छोड़ो ये सब बाते. तुम्हारा टूर कब जा रहा है.
अंशिका: अगले वीक बुधवार को.
मैं: हम्म...आज फ्राईडे है. संडे को मम्मी-पापा आ जायेंगे. मैं उनसे कह दूंगा फिर.
अंशिका: और वहां जाकर तुम इधर-उधर मुंह मत मारना...समझे.
मैं: मैं तुम्हे ऐसा लगता हूँ क्या..??
अंशिका: मैं जानती हूँ. की तुम कैसे हो...समझे.
मैं (हँसते हुए): ओके बाबा...तुम जीती मैं हारा. ओके...अब मुझे नींद आ रही है. बाय
अंशिका: हाँ हाँ....अब तो नींद आएगी ही. पुरे दिन में चार बार जो किया है तुमने...चलो सो जाओ अब. मैं कल बात करुँगी.
मैं: बाय...गुड नाईट.

और फिर हमने फोन रख दिया.
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#63
अगले दिन जब अंशिका का फोन आया तो मैंने उसे शाम को घर आने को कहा, पर उसने कहा की घर पर किसी का डिनर है, इसलिए नहीं आ पाएगी..तय्यारी करनी है और संडे को तो वैसे भी वो घर से निकलती ही नहीं थी. शाम तक मम्मी-पापा भी आ गए.

मुझे काफी अच्छा लगा, इतने दिनों के बाद मम्मी के हाथो का खाना खाने को मिला, मम्मी पूरा दिन शादी की बाते बताती रही, ये हुआ, वो हुआ. कुल मिलकर वो अब पापा के रिश्तेदारों से नाराज नहीं थी. मैंने उन्हें अपने फ्रेंड्स के साथ टूर पर जाने के बारे में बताया, उन्होंने इजाजत दे दी.

रात को मेरी अंशिका से फिर से बात हुई. वो भी मुझसे मिलने को कुलबुला रही थी. पिछले चार दिनों से मैंने उसे देखा भी नहीं था. मैंने सोच लिया की मंडे को किसी भी हालत में उससे मिलके रहूँगा..उसका फोन आया 11 बजे, पर मैंने उसे कुछ नहीं बताया, और फिर सीधा उसकी छुट्टी के समय मैं उसके कॉलेज के सामने पहुँच गया, अपनी बाईक लेकर.

मैं उसका इन्तजार कर ही रहा था की मुझे पीछे से किट्टी में की आवाज आई...: अरे विशाल...कहाँ रहते हो तुम आजकल.

मैंने उनकी तरफ देखा, वो अपनी प्यासी नजरो से मुझे घूरने में लगी हुई थी.

मैं: अरे मैम...कैसी है आप??
किट्टी मैम: चुप रहो तुम. तुमने तो आजकल दिखाई देना ही बंद कर दिया है. ज्यादा ही बिजी हो आजकल. कब से तुम्हारा इन्तजार कर रही हूँ मैं.

वो अपनी चूत वाले हिस्से तक अपने हाथ ले गयी और वहां खुजा कर वापिस ऊपर ले आई.

किट्टी मैम: चलो कोई बात नहीं. अब तो तुम चार दिनों तक मेरे साथ ही रहोगे. अपनी कजन बहन अंशिका से थोडा दूर ही रहना. ताकि मेरे साथ ज्यादा टाईम निकाल सको...समझे..

मैं समझ गया की इस पिकनिक वाले टूर में ये आंटी मेरे लंड का कचूमर बनाकर रहेगी और दूसरी तरफ इसकी हॉट बेटी स्नेहा भी तो है.

मैं: ओके मेडम...जैसा आप चाहोगी, मैं वैसा ही करूँगा. .वैसे आपकी फेमिली में से कौन जा रहा है.
किट्टी मैम: सीधा पूछो न की स्नेहा जा रही है या नहीं.

मैं झेंप गया...

किटी मैम: नहीं...स्नेहा नहीं जा रही, उसके एग्साम है, चार दिन की छुट्टी लेकर वो नहीं चल सकती. मेरा बेटा सचिन चल रहा है..
मैं: ओहो...कोई बात नहीं. आप तो होंगी ही न वहां. अपनी बेटी के बदले के मजे आप ले लेना.
किटी मैम: बदमाश.

वो कुछ और बोलती, पर तभी अंशिका आती हुई दिखाई दी. वो मुझे देखकर हैरान रह गयी.

अंशिका: अरे विशाल...तुम यहाँ..?
मैं: मैं इधर से ही जा रहा था, सोचा तुम्हे घर छोड़ता चलू.

अंशिका वैसे ही मुझे देखकर काफी खुश थी, मेरी बात सुनकर और उसका मतलब समझकर, उसके चेहरे का रंग लाल हो गया.

किटी मैम: ओके जी...तुम दोनों भाई बहन जाओ. मैं चलती हूँ और विशाल. कल मिलते हैं.

मैंने और अंशिका ने उन्हें बाय कहा और वो चली गयी..

उनके जाते ही अंशिका मेरे बिलकुल पास आकर खड़ी हो गयी, उसने आज पिंक कलर की साडी और स्लीवलेस ब्लाउस पहना हुआ था, जिसमे वो बड़ी ही सेक्सी लग रही थी. उसकी जांघे मेरी टांगो से टच कर रही थी.

अंशिका: मुझे तुम्हारा ये सर्प्राईस अच्छा लगा.
मैं: मैं अगर तुमसे आज नहीं मिलता तो मैं खुद मरने के कगार पर पहुँच जाता.

अंशिका ने अपनी कोमल उंगलिया एक झटके से मेरे होंठो पर रख दी. और बोली: खबरदार...ऐसी बात अगर मुंह से निकाली तो और फिर जब उसे एहसास हुआ की वो कॉलेज के बाहर खड़ी है तो उसने अपना हाथ पीछे खींच लिया और घूमकर मेरे पीछे आई और बाईक पर बैठ गयी.

अंशिका: चलो यहाँ से.
मैं: कहाँ चलू...तुम्हारे घर क्या..

अंशिका: नहीं..घर नहीं..कही भी चलो.
मैं: समझ गया की आज इसकी चूत में कुछ ज्यादा ही कुलबुलाहट हो रही है.

मैं बाईक चलाते हुए सोचने लगा की मैं अंशिका को कहाँ लेकर जाऊ. पर उसके पीठ पर चुभ रहे मुम्मे मुझे सोचने ही नहीं दे रहे थे. मैंने बाईक चलाते-चलाते उससे बात की: तुमने तैयारी कर ली कल जाने की.

अंशिका: हाँ...कर ली है. तुमने नहीं की क्या?
मैं: मैंने क्या करना है, एक-दो जींस और टी-शर्ट ही तो लेनी है.

अंशिका: और नाईट ड्रेस ?
मैं: नाईट में तो मैं नंगा ही सोता हूँ.

अंशिका ने मेरी पीठ पर मुक्का मारा

मैं: अरे सच में...तुम देख लेना..
अंशिका: देख लेना तो ऐसे कह रहे हो जैसे मैं तुम्हारे साथ ही सौउंगी

मैं: तुम सारा टूर मेनेज कर रही हो. तुम ही डिसाईड करना की कौन किसके पास सोयेगा..
अंशिका: तुम अपना दिमाग ज्यादा तेज मत चलाओ. तुम हमारे कॉलेज के टूर में जा रहे हो .यही बहुत नहीं है क्या तुम्हारे लिए..

मैं: ये दिल बड़ा ही लालची है....जितना मिलता है, उससे ज्यादा की आस करता है.

अंशिका ने अपना सीना मेरी पीठ पर और तेजी से गाड़ दिया और धीरे से बोली: मेरा भी तो येही हाल है विशाल. आज तक तुमने जो भी मुझे दिया है, मेरा दिल हमेशा उससे ज्यादा की आस लगाये रहता है तुमसे. उसका एक हाथ फिसलकर मेरे लंड के ऊपर आ गया, बाईक चलाते हुए अंशिका ने पहली बार मेरा लंड पकड़ा था वो भी बिना किसी डर के..वो तो अपना चेहरा मेरे कंधे पर झुकाकर अपना चेहरा छुपा रही थी, पर मुझे डर लग रहा था की किसी ने मुझे अंशिका के साथ देख लिया और वो भी इतनी बुरी तरह से चिपटे हुए, तो क्या होगा.

मैंने अपनी बाईक गुडगाँव हाईवे की तरफ मोड़ दी. जयपुर जाते हुए मैंने एक-दो बार नोट किया था की रास्ते में जंगल जैसा इलाका आता है, मैंने सोचा की आज अंशिका को वहीँ ले चलता हूँ. लगभग आधे घंटे बाद मैंने अपनी बाईक हाईवे से उतार कर एक घने जंगल में उतार दी. थोड़ी आगे जाने पर बाईक के जाने का रास्ता भी बंद हो गया, उसके आगे किसी खेत की बाउंड्री शुरू हो चुकी थी, इसलिए आगे जाना संभव नहीं था. मैंने बाईक साईड में लगायी, यहाँ से मेन रोड काफी दूर था, और दूर-दूर तक कोई भी दिखाई नहीं दे रहा था, खेत में एक झोपडी बनी हुई थी, उसके अलावा दूर -२ तक कोई नजर नहीं आ रहा था.

अंशिका: ये कौन सी जगह है.
मैं: पता नहीं.

अंशिका: कोई आ गया तो..
मैं: डर लग रहा है..

अंशिका मेरी तरफ देखते हुए मुस्कुरायी और बोली: आज तो तुम मुझे कहीं भी ले जाते, मुझे डर नहीं लगता..

वो मुझे जिस तरह देख रही थी, उसकी गुलाबी आँखों में तेर रहे डोरे साफ़-साफ़ दिखाई दे रहे थे. वो इधर -उधर देखने लगी, मानो तय कर रही हो की कोई हमें नहीं देख रहा है और फिर वो मेरी तरफ घूमी और अपनी साडी का पल्लू उसने नीचे गिरा दिया.

अंशिका: ये तो काफी घना जंगल लगता है. बड़ी ही अजीब जगह ढूंढी है तुमने आज...प्यार करने की.

वो अपने होंठो में ऊँगली डाल कर बड़े ही कामुक तरीके से मेरे करीब आती जा रही थी. उसके ब्लाउस में फंसे हुए मोटे-मोटे मुमे देखकर मेरे मुंह में पानी आ गया.

जैसे ही वो मेरे करीब आई, मैंने उसकी कमर में हाथ डालकर उसे अपनी तरफ खींच लिया.

अंशिका: उनहू....मिस्टर....आज मैं इतनी आसानी से नहीं मिलने वाली आपको.
मैं: उसकी बात सुनकर थोडा रुक गया और उसके चेहरे को प्रश्नवाचक दृष्टि से देखने लगा..अभी तो वो इतनी तड़प रही थी और अब नखरे दिखा रही है.

मैं: क्या मतलब.
अंशिका: आज तुम कुछ नहीं करोगे...मैं जैसा कहूँगी, वैसा करते जाओ तो तुम्हे आज जंगल में जंगलीपन देखने को मिलेगा मेरा...वर्ना कुछ नहीं मिलने वाला आज.

उसने मेरे हाथ को अपनी कमर के ऊपर लेजाकर बुरी तरह से दबा दिया. उसके गुदाज पेट का ठंडा मांस मेरे हाथ की रगड़ से लाल हो उठा.

मैं: देखो अंशिका...टाईम कम है. तुम्हे घर भी जाना है न.
अंशिका: तुम उसकी फिकर मत करो.

और ये कहकर उसने अपना सेल निकाला और फोन मिलाया.

अंशिका: हेल्लो...कन्नू...अच्छा सुन, मेरा प्रोग्राम बना है आज विशाल के साथ मूवी देखने का. तू संभाल लेना मम्मी को प्लीस...मैं पांच बजे तक आ जाउंगी. ओके थेंक्स...लव यु.

और उसने फोन रख दिया. यानी अगले 2-3 घंटो का इंतजाम कर लिया था उसने. अंशिका ने फिर से अपने चारो तरफ देखा और बोली: कोई आएगा तो नहीं न यहाँ. 

मैं: नहीं आएगा...तुम डरो मत..

अंशिका ने मुस्कुरा कर मुझे देखा और फिर अपनी साडी खोलने लगी, और उसे निकलकर मेरी बाईक पर रख दिया और फिर वो अपने ब्लाउस के हूक खोलने लगी, जैसे-जैसे उसकी पिंक ब्रा उजागर होती चली गयी, मेरा लंड खड़ा होकर उसकी तरफ देखने लगा.

मैंने हाथ आगे करके उसके मुम्मो को पकड़ना चाह, पर उसने मुझे रोक दिया और बोली: रुको वहीँ... जब तक मैं न कहूँ, कुछ मत करो..

मैंने उसकी बात मान ली.

उसने अपना ब्लाउस उतारा और फिर पेटीकोट भी, अब वो सिर्फ हाई हील में थी, और ऊपर उसने सिर्फ ब्रा और लेस वाली पेंटी पहनी हुई थी. बड़ी ही सेक्सी लग रही थी..ब्रा में से झांकते हुए उसके काले निप्पल साफ़ दिखाई दे रहे थे. उसकी आँखों की मदहोशी भी बढ चुकी थी और वो अब बिना डरे अपने हूँस्न को मेरे सामने बेपर्दा करके पुरे मजे लेने के मूड में थी.

मुझे भी उसके खेल में मजा आने लगा था. मैंने अपना लंड अपनी जींस से बाहर निकाल लिया.

मेरे तने हुए लंड को देखते ही उसकी आँखे बंद होती चली गयी. और उसने अपनी बीच वाली ऊँगली अपने मुंह में डाली और फिर वही ऊँगली अपने पेंटी में डालकर अपनी चूत के रस में डुबोयी और फिर वही गीली ऊँगली वो मेरे पास लेकर आई और मेरे लंड के ऊपर रगड़ डाली और सारा रस मेरे लंड के ऊपर मल दिया.

उसके ठन्डे हाथ अपने गर्म लंड पर पाकर मेरे लंड ने दो-चार जोरदार झटके खाए. मन तो कर रहा था की उसे अपने सामने बिठा कर अपना लंड उसके मुंह में ठूस दू. पर उसने कुछ भी करने को मना किया हुआ था अभी तक.

अंशिका ने अपनी पेंटी को अपनी टांगो से निकाल कर साईड में रख दिया और फिर अपनी ब्रा भी खोल डाली.

अब अंशिका पुरे जंगल में नंगी खड़ी थी. कभी भी कोई आ सकता था, इसके बावजूद वो अपने पुरे कपडे उतार कर खड़ी थी मेरे सामने, दिन की रौशनी में पूरा नंगा शरीर मैंने पहली बार देखा था. उसके शरीर पर एक भी बाल नहीं था, चूत वाला हिस्सा बिलकुल सफाचट था, टाँगे भी बिलकुल स्मूथ थी और ऊपर उसकी बड़ी-२ ब्रेस्ट के ऊपर चमक रहे दो काले रंग के जामुन, जिन्हें ना जाने मैं कितनी बार खा चूका था, पर उसका रस हर बार मुझे अपनी तरफ खींचता था.

उसके होंठ बार-बार सूख रहे थे, जिन्हें वो अपनी जीभ से गीला कर रही थी.

अंशिका: क्या देख रहे हो...विशाल..
मैं: यु आर ब्यूटीफुल अंशिका....देखो मेरे लंड की क्या हालत हो गयी है तुम्हारे नंगे जिस्म को देखकर.

मैंने अपने लंड की तरफ इशारा किया...

अंशिका: हालत तो मेरी चूत की भी ऐसी ही है विशाल..पर आज कुछ अलग करने का विचार है मेरा. तुम अपने कपडे उतारो जल्दी से.

उसके कहने की देर थी, मैं एक मिनट में उसके सामने नंगा खड़ा था. मेरा हाथ अपने लंड के ऊपर था.

अंशिका मेरे पास आई और मेरे हाथ को लंड से हटा दिया और बोली: जब तक मैं न कहूँ, तुम इसे हाथ मत लगाना अब..ओके...

मैं: ओके....पर जो भी करना है, जल्दी करो. मुझसे ज्यादा देर तक बर्दाश्त नहीं होगा अब.

मैंने अपना हाथ हटा लिया लंड से. मेरा लंड हवा में ऊपर नीचे हो रहा था, बड़ा ही भारीपन आ गया था उसमे एक दम से. वो खुद तो तड़प ही रही थी, मुझे भी तडपाने के मूड में थी शायद.

मैंने आगे हाथ करके उसकी ब्रेस्ट पकडनी चाही, पर उसने मेरा हाथ परे झटक दिया और बोली: वेट करो बेबी.....

उसकी सिडक्टिव स्माईल बड़ी ही कातिलाना लग रही थी.

वो मेरे पीछे आई और अपने हाथो से मेरी पीठ के ऊपर अपनी उंगलियों के नाखुनो से धीरे-धीरे मुझे गुदगुदाने लगी.

मैं: ओहो......अंशिका...क्या कर रही हो. क्यों तदपा रही हो अपने दीवाने को.

अंशिका ने पीछे से मेरा सर पकड़ा और मेरे कान में धीरे से बोली: तुम्हारी यही तड़प काफी दिनों से देखना चाहती थी मैं. पर हर बार जल्दबाजी में सिर्फ फकिंग के अलावा कुछ और न कर पायी. आज पूरा हिसाब लुंगी..

उसके दोनों निप्पल मेरी पीठ पर चुभ रहे थे, उसकी ब्रेस्ट का सोफ्ट्पन मुझे पीछे की तरफ साफ़ महसूस हो रहा था. उसने अपनी गर्म जीभ से मेरे कानो को सहलाना शुरू किया..मुझे काफी गुदगुदी हो रही थी. वो मुझे पकड़ कर अपनी बाईक तक ले गयी और उसपर बैठ गयी..मेरी पीठ अभी भी उसकी तरफ थी, उसने मुझे पीछे से कस कर पकड़ा, अपनी दोनों टाँगे मेरे चारो तरफ लपेटी, एक हाथ से मेरे बाल पकडे और मेरे चेहरे को अपनी तरफ किया, और मेरे गालो और कान को किसी कुतिया की तरह चाटने लगी और अपने दुसरे हाथ से मेरे लंड को पकड़ा और उसे जोरो से हिलाने लगी.

सुनसान जंगल में मैं चीख सा पड़ा एकदम से...: अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह अंशी.......का...आअ..........अह्ह्ह्हह्ह......

मेरे कान को उसने एकदम से अपने कोमल से मुंह में लिया और उसे चूसने लगी. मेरी तो हालत ही खराब हो गयी, पुरे शरीर में ऐसा सेंसेशन होने लगा जो आजतक नहीं हुआ था. उसकी चूत का गीलापन मुझे अपने कुलहो पर साफ़ महसूस हो रहा था, वो अपनी चूत वाले हिसे को भी बड़ी ही लय के साथ मेरे कूल्हों पर रगड़ रही थी. पर इस पुरे खेल में वो मुझे हाथ भी नहीं लगाने दे रही थी, बड़ा ही अजीब सा एहसास था ये मेरे लिए, मुझे कण्ट्रोल करके वो मेरी सेक्स की भावनाओ को भड़का रही थी, और शायद बाद में उसे ज्यादा मजा मिले इसलिए ये सब कर रही थी वो..क्योंकि जब मेरे सब्र का बाँध टूटेगा तो वो ही डूबेगी उसके अन्दर..

वो मेरे लंड को तेजी से आगे पीछे कर रही थी. मेरे कंधे पर सर रखकर वो मेरे लंड को देखने लगी. मैं भी उसकी नजरो का पीछा करते हुए, अपने लंड को देखने लगा, पता नहीं वो क्या चाहती थी, पर अगर एक मिनट तक वो ऐसे ही करती रही तो शायद मेरा रस निकल जाएगा. मेरे लंड की नसे तन चुकी थी और अन्दर से आने वाली बाद का एलान कर चुकी थी, ये देखकर उसने अपनी गति और बड़ा दी, शायद वो भी यही चाहती थी. और मेरे कुछ कहने से पहले ही मेरे लंड से पिचकारियाँ निकल-निकल कर दूर तक गिरने लगी. उसने मेरे लंड को अपने हाथो में ले रखा था और उसे तोप की तरह से पकड़कर वो दूर तक निशाना लगा रही थी. और अंत में जब सारा माल निकल कर नीचे जमीं पर बिखर गया तो हाँफते हुए मैंने उससे पूछा : ये...ये क्या किया तुमने....

अंशिका: अब अगली बार तुम जब करोगे तो ज्यादा देर तक मेरी चूत के अन्दर रहोगे...समझे.

समझता तो मैं भी था, पर पहली बार भी तो चूत के अन्दर किया जा सकता था न...खेर..आज का खेल वो खेल रही थी. मैंने कुछ भी बोलना उचित नहीं समझा.

मैं: एक बात समझ लो अंशिका...आज तो मैं वो सब कर रहा हूँ जो तुम कह रही हो. आज के दिन मैं तुम्हारा गुलाम हूँ. पर यही सब मैं तुम्हारे साथ भी करूँगा. नेनीताल में और तुम भी बिना सवाल किये मेरा कहना मानोगी. ठीक है...

अंशिका ने मुस्कुरा कर कहा : ठीक है...पर अभी तुम वो करो जो मैं चाहती हूँ.

मेरा लंड पिघल कर लटक चूका था. अंशिका ने उसे छोड़ दिया और अपने हाथो पर लगी हुई रस की एक-दो बूंदे चाटने लगी. फिर अंशिका ने अपने सेंडिल उतार दिए, और मेरे कंधो को पकड़ कर वो बाईक की सीट पर खड़ी हो गयी. और मेरा चेहरा पकड़ कर मुझे अपनी तरफ घुमा लिया. अंशिका की जूस से भीगी हुई चूत मेरी आँखों के बिलकुल सामने थी, उसने अपने एक पैर उसने बाईक की टंकी के ऊपर रखा और दूसरा सीट पर. उसकी गीली चूत से रस की एक बूँद निकल कर गिरने को तैयार थी. मुझसे ये देखा न गया और मैंने अपनी जीभ लगा कर उसे अपने मुंह में समेत लिया.

अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह विशाआआआआआल..........मेरी जान लेकर रहोगे एक दिन तुम तो.....

वो ये बात इसलिए कह रही थी क्योंकि मैंने उसकी चूत के लिप्स को अपने मुंह से ऐसे चुसना शुरू कर दिया था जैसे वो चूत के नहीं, उसके मुंह वाली लिप्स हो. उनपर मेरे दांतों और जीभ ग़दर मचा रही थी और वो बीच जंगल में नंगी खड़ी होकर मुझसे अपनी चूत की ऐसी चटवाई करवा रही थी मानो इस दुनिया में हमारे अलावा कोई और है ही नहीं और वो इतनी जोर से चीख रही थी की मुझे डर लगने लगा की दूर खेत में जो झोपड़ा है, उसमे से कोई निकल कर यहाँ न आ जाए, ये देखने की ऐसी आवाज कहाँ से आ रही है. पर लगता था की उस वक़्त उस झोपड़े में कोई नहीं था, मैंने अपना काम जारी रखा. चूत चूसने का.

आज अंशिका की चूत में बड़ी मिठास थी और कुछ ज्यादा गीलापन भी. मैंने अपनी एक ऊँगली अंशिका की गांड में डाल दी. ऊँगली अन्दर जाते ही वो बाईक की सीट पर पंजो के बल उचक गयी और अपने दोनों हाथो से मेरे सर के ऊपर अपना भार डाल दिया.

अह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह एक जगह तो पूरी तरह करो पहले.....पीछे के छेद का लालच भी कर रहे हो.....हम्म्म्म.....

मैंने उसकी तरफ हँसते हुए देखा और चूत का चुप्पा लेना जारी रखा.

तभी अंशिका बोली: बस.....बस करो...विशाल.....अब रुक जाओ...

मैं रुक गया...वो ऊपर खड़ी होकर साँसे ले रही थी..मानो मिलों तक दौड़कर आई हो...

वो नीचे हुई और बाईक की सीट पर बैठ गयी. उसकी चूत से निकल रहे रस की वजह से सीट गीली हो गयी. अंशिका ने अपना एक पैर मेरे लंड के ऊपर रखा और मुझे थोडा पीछे किया. उसके और मेरे बीच अब एक पैर का फांसला था.

उसके नर्म-मुलायम पैरो की थिरकन से मेरे लंड में फिर से जान आने लगी. उसने अपने पैर के अंगूठे और ऊँगली के बीच मेरे लंड को किसी तरह से फंसा लिया और उसे आगे पीछे करने लगी. दुसरे पैर के अंगूठे से वो मेरी बाल्स को मसाज देने लगी.

अंशिका: मजा आ रहा है...बोलो...
मैं: तुम तो ये सब ऐसे कर रही हो जैसे सब कुछ प्लानिंग कर रखी हो तुमने आज की.....की क्या-क्या करोगी मेरे साथ. पर तुम्हे तो पता भी नहीं था की मैं आने वाला हूँ आज.

अंशिका: सच कहा तुमने. मैंने सोच तो रखा था की तुम्हारे साथ ये सब करुँगी. पर आज करुँगी ये नहीं सोचा था..आज मौका भी है...दस्तूर भी. तुम भी हो और हम भी.

नशे में डूबी हुई सी आवाज में उसके मुंह से कविता निकल रही थी. मैंने उसकी मांसल पिंडलिया पकड़ रखी थी और अपने लंड के ऊपर घिसाई कर रहे उसके पैरो को सपोर्ट दे रखी थी और जब उसने देखा की मेरा लंड फिर से तैयार है तो उसने अपने पैर मेरे लंड से हटा लिए और मेरी कमर में हाथ डालकर मुझे अपनी तरफ खींचा. मेरा तना हुआ लंड सीधा जाकर उसके पेट से टकराया. मैंने अपना हाथ बीच में डालकर अपने लंड को उसकी चूत में डालना चाहा , पर उसने रोक दिया.

अंशिका: उनहू......इतनी जल्दी नहीं....अपने आप जाने दो इसे. बिना किसी सहारे के... यार ये तो मेरी जान लेकर रहेगी आज. पर कोई बात नहीं. मेरा भी टाईम आएगा.

मैं थोडा झुका और अपने लंड को नीचे किया, और जैसे ही उसकी चूत सामने आई, मैं ऊपर उठ गया. पर लंड के टोपे पर लगी चिकनाई और चूत से निकल रहा रसीला पानी उसे अन्दर जाने से पहले ही फिसला कर इधर उधर कर रहा था.

अंशिका मेरी हालत देखकर हँसे जा रही थी. मैं बड़े ही डेस्परेट तरीके से हर कोशिश कर रहा था.

और अंत में अंशिका ने मेरा चेहरा अपने हाथो में पकड़ा और बोली: अभी तक नहीं सीखे तुम. कोई बात नहीं. चलो मुझे उठाओ अपनी गोद में.

मैंने वैसा ही किया.

अंशिका ने अपनी बाहों से मेरी गर्दन लपेट डाली और आज के दिन की पहली किस की उसने मेरे होंठो पर.

उसके नम से हो चुके होंठो को चूसने में बड़ा मजा आ रहा था. मेरे हाथो में उसके भरे हुए कुल्हे थे. पर उसकी चूत अभी भी मेरे लंड से काफी ऊपर थी. मेरा लंड ऊपर मुंह किये उसका नीचे आने का इन्तजार कर रहा था और फिर अंशिका का जिस्म मेरे शरीर की घिसाई करता हुआ नीचे आने लगा और न मैंने हाथ लगाया और न उसने, मेरा लंड सीधा उसकी चूत में जा फंसा और जब ये हुआ तो उसके साथ-साथ मेरी साँसे भी अटक गयी. उसके चेहरे पर ऐसे एक्सप्रेशन आ रहे थे मानो मेरा लंड पहली बार जा रहा है उसकी चूत में.

उसकी आँखों में अजीब सा नशा था. मैंने उसकी आँखों में देखते-२ उसके होंठो का रस पीना जारी रखा और अपने हाथो का दबाव उसकी गांड पर कम कर दिया, जिसकी वजह से मेरे लंड के ऊपर उसकी चूत लिपटती चली गयी. और वो सी-सी करती हुई मेरे लंड को अन्दर लेने लगी.

अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह सीईई..........सीईई.........म्मम्मम...विशाल..........आई वास डाईंग....तो टेक युर कोक......अह्ह्हह्ह...

मैं चिल्लाया..... साली....इसलिए इतनी देर से ड्रामा कर रही थी. मेरे लंड को कितना तरसाया तुने आज....अब देख...मैं तेरी चूत का कैसे बेन्ड बजाता हूँ. भेन चोद...एक घंटा हो गया. पर चूत में लंड अब गया है..... अह्ह्ह्ह.....ले साली.....ले मेरा लंड......कुतिया....

मेरे मुंह से गलियों की बोछार सी निकलने लगी और वो भी तेज आवाज में.....उसके कानो के बिलकुल पास. अपनी चूत में मेरे लंड को लेकर और मेरे मुंह से गन्दी गलियां और बाते सुनकर उसका ओर्गास्म अपने चरम पर पहुँच गया और वो मेरी गोद में उछलती कूदती हुई झड़ने लगी....

अह्ह्ह्हह्ह ओह्ह विशाल्ल्ल्ल ..........आई एम् कमिंग........अह्ह्हह्ह्ह्ह...... और उसकी चूत से गर्म रस निकल कर मेरे लंड और फिर नीचे की तरफ गिरने लगा....

मेरे लंड ने थोड़ी देर पहले ही पानी छोड़ा था, इसलिए दोबारा झड़ने में टाईम लगा रहा था. पूरी तरह से निचुड़ने के बाद वो मेरे लंड से नीचे उतर गयी. मेरा लंड अभी भी खड़ा हुआ था. मैंने उसे बाईक की तरफ घुमाया और उसके दोनों हाथ बाईक पर टिका दिए, और उसे थोडा नीचे झुका दिया, और फिर मैंने अपना लंड उसकी चूत में पीछे से डाल दिया और मैंने हाथ आगे करके उसके लटकते हुए मोटे-ताजे मुम्मे पकड़ लिए. उसके लटकते हुए मुम्मे पकड़ने से मुझे आज उसके साईज और गुदाज्पन का पूरा एहसास हुआ. मैंने चूत में झटके और ब्रेस्ट में स्ट्रोक मारने शुरू कर दिए. और लगभग पांच मिनट के बाद मेरे लंड से भी रस निकलने को तैयार हो गया....

मैंने आखिरी मौके पर उसे बाहर निकाला और सारा माल अंशिका की गोरी पीठ के ऊपर छोड़ दिया.  उसकी पीठ पर जगह-जगह मेरे रस की चट्टानें बन गयी और फिर लकीरे बनकर नीचे की तरफ लुड़कने लगी. मैंने अपनी जींस से रुमाल निकाल कर उसकी पीठ और चूत और फिर अपना लैंड साफ़ किया और उसे वहीँ फेंक दिया.

मैं: अब क्या इरादा है और रुकना है या चले अब.
अंशिका: मन तो नहीं कर रहा. पर जाना भी है. चलो अभी चलते हैं. बाकी अब नेनीताल में करेंगे.

मैं: नेनीताल में जो होगा...मेरी मर्जी से भूल गयी क्या.
अंशिका: ओके...बाबा...अपनी मर्जी से कर लेना. अभी तो चलो यहाँ से..

मैं वापिस जाते हुए नेनीताल में क्या-क्या करूँगा ये सोचता रहा.
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#64
जिस दिन नेनीताल जाना था मैं टाईम से स्टेशन पर पहुँच गया, रात की ट्रेन थी, काठगोदाम एक्सप्रेस, अंशिका ने मुझे स्टेशन के बाहर मिलने को कहा था, ताकि सभी को ये लगे की हम एक साथ ही आये हैं, कनिष्का को मालुम था की की मैं भी साथ जा रहा हूँ, वो अंशिका को ऑटो पर छोड़ने आई थी, अपनी बहन को गले मिलकर विदा करने के बाद वो मेरे पास आई और धीरे से बोली: दीदी का ध्यान रखना और ज्यादा इधर-उधर मुंह मारने की जरुरत नहीं है. वापिस आकर मेरा भी तो हिसाब-किताब करना है.

मैं उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दिया, और फिर वो मेरे गले से लग कर अपने गुदाज जिस्म की गर्मी से मेरे लंड महाराज को बीच सड़क पर खड़ा करने लगी. मैंने जल्दी से उसे अलग किया और उसे बाय बोलकर हम दोनों अन्दर की तरफ चल दिए.

जल्दी ही हमें एक कोने में अंशिका के कॉलेज का ग्रुप दिखाई दिया, अंशिका के कॉलेज की लडकियों ने अंशिका को विश किया और अंशिका ने मुझे सबसे अपना कजिन कहकर मिलवाया, मैंने नोट किया की उनमे से दो-तीन लड़कियां काफी मस्त थी और एक-दो लडकिया तो मुझे ऐसे देख रही थी मानो मैं उनकी चुदाई के लिए है लाया गया हूँ.

थोड़ी ही देर में किट्टी मैम भी आ गयी. सभी ने उन्हें विश किया.

मैं: हेल्लो मेडम...आप अकेली आई है...आपका बेटा सचिन कहाँ है?

किट्टी में मुझे देखकर रहस्यमयी हंसी हंसी और बोली: अपने पीछे देखो...और पीछे देखकर मैं चोंक गया, मेरे पीछे स्नेहा खड़ी थी. टी-शर्ट और केप्री में. मुझे देखकर वो चहक कर बोली: हाय....केसे हो...?

मैं कभी स्नेहा को और कभी किट्टी में को देखने लगा...

मैं: अरे स्नेहा तुम...तुम्हारा तो एग्साम था न...फिर तुम कैसे आ गयी..मेडम ने तो कहा था की सचिन जाएगा..
स्नेहा: मैंने ही मम्मी को मना किया था. तुम्हे बताने के लिए. बस तुम्हारा चेहरा देखना चाहती थी , कैसा लगा ये सरप्रायीस...
मैं: बहुत खूब....मतलब...अच्छा लगा..

मैंने अंशिका की तरफ देखा, वो भी मंद-मंद मुस्कुरा रही थी मुझे देखकर. उसे शायद अंदाजा हो गया था मेरा स्नेहा के साथ क्या चक्कर है.

रात को ग्यारह बजे ट्रेन चली और हम सभी आराम से अपनी सीटों पर बैठकर गप्पे मारने लगे. स्नेहा खासतोर पर मुझे घेर कर बैठी थी, मानो मैं उसकी पर्सनल प्रोपर्टी हूँ. अंशिका की नजर भी थी मुझपर.

रात को सोने के लिए मैं सबसे ऊपर चढ़ गया, अंशिका सबसे नीचे वाली बर्थ पर और स्नेहा बीच वाली बर्थ पर सो गयी.

रात को लगबग 2 बजे के आस पास मेरे पैरो के ऊपर को गुदगुदी करने लगा. मेरी नींद एकदम से खुल गयी. मैं उठ कर बैठा, वहां घना अँधेरा था, पर मैंने पैरों के पास देखा तो एक लड़की का चेहरा दिखाई दिया, और फिर वो फुसफुसाई: साईड में हो जाओ....मुझे ऊपर आने दो..

मुझे समझ नहीं आया की कौन है, स्नेहा या अंशिका. मैं बाहर की तरफ खिसक गया, और वो ऊपर आ गयी, पास आकर पता चला की स्नेहा है..

मैं: ये क्या कर रही हो स्नेहा, कोई देख लेगा..
स्नेहा: सब सो रहे है...मुझे नींद नहीं आ रही थी..

और ये कहते हुए उसने अपना हाथ सीधा मेरे नींद से जाग रहे लंड के ऊपर रख दिया.

मैं घबरा गया, की अगर कोई देख लेगा तो क्या होगा, पर वो बिना किसी डर के सब कर रही थी..उसने अपना चेहरा आगे किया और मेरे होंठो को चूसने लगी...पहले तो मैंने कुछ नहीं करा पर जैसे-२ उसकी पकड़ मेरे होंठो पर बढती गयी मैं भी बेबस होता चला गया.

इन लडकियों के लिए हम लडको को सेक्स के लिए तैयार करना कितना आसान है...है न..

उसने स्ट्रेप वाली टाईट टी-शर्ट पहनी हुई थी, मैंने उसके दोनों स्ट्रेप्स को कंधो से नीचे कर दिया, उसने नीचे ब्रा नहीं पहनी हुई थी..मैं थोडा नीचे हुआ और उसके ब्राउन निप्पल को मुंह में भर कर जोर से काट लिया....वो जोरो से चीख पड़ी...पर शुक्र है उसकी आवाज साथ से गुजरती ट्रेन की आवाज में दब कर रह गयी. मुझे भी ध्यान आया की मुझे अपना हिंसक रूप नहीं दिखाना चाहिए, कोई भी आवाज सुनकर जाग सकता है, सबसे नीचे अंशिका भी सो रही थी, और दूसरी तरफ स्नेहा की माँ भी. सीट थोड़ी छोटी थी, इसलिए लेटने में मुश्किल हो रही थी, मैंने हिम्मत करके स्नेहा को अपने ऊपर की तरफ खींच लिया, अब अगर कोई नीचे खड़ा होकर ऊपर देखेगा तो उसे साफ़ पता चल जाएगा की ऊपर क्या चल रहा है. पर अँधेरा काफी था, इसलिए मैंने वो रिस्क उठा ही लिया.

स्नेहा ने ऊपर आते ही अपना हाथ नीचे करके मेरे लंड को बाहर निकाल लिया, और मेरे कान में धीरे से बोली: आज ज्यादा एक्सपेरिमेंट करने का टाईम नहीं है...इसलिए सीधा चुदाई करो...समझे. मैंने हाँ में सर हिलाया और उसकी केप्री के बटन खोलकर उसे नीचे खिसका दिया, उसकी नंगी चूत की गर्मी मेरे शरीर पर पड़ते ही मुझे ऐसे लगा की किसी ने गर्म ईंट रख दी है मेरे लंड के पास..

पर मुझे मालुम था की उस गरम चूत को ठंडा करने का क्या तरीका है, मैंने अपने लम्बे लंड को सीधा किया और उसने भी अपनी गांड को हवा में उठाकर मेरे लंड को अपनी चूत के अन्दर फंसाया और जैसे ही निशाना सेट बैठा, उसने अपने कुल्हे नीचे की तरफ करने शुरू कर दिए.

रसीली चूत में लंड जाते ज्यादा समय नहीं लगा, ट्रेन के धक्के इतने ज्यादा थे की हम दोनों को धक्के मारने की कोई आवश्यकता ही महसूस नहीं हुई...बस वो मेरे ऊपर लेटी रही और मैं उसके नर्म और मुलायम होंठो को चुस्त रहा...धक्के तो अपने आप लगते रहे और जैसे ही मेरा रस निकलने को हुआ...मैंने उसके कान में कहा..आई एम् कमिंग. स्नेहा ने झट से अपनी चूत को बाहर निकाल लिया और घूमकर 69 के पोस में आ गयी..मुझे पता था की उसने ये इसलिए किया क्योंकि हमारे पास इस वक़्त चूत और लंड से निकले रस को साफ़ करने का कोई साधन नहीं था...उसकी ताजा चुदी चूत मेरे मुंह के सामने थी, मैंने उसके ऊपर मुंह लगा दिया...तब मुझे पता चला की वो तो पहले ही झड चुकी है...चूत की दीवारों से बहकर आता हुआ रस मैं चाटकर साफ़ करने लगा और दूसरी तरफ मेरे लंड ने जैसे ही प्रसाद बांटना शुरू किया, स्नेहा ने अपने मुंह का कमाल दिखा कर सारा प्रसाद सीधा ग्रहण कर लिया और खा गयी और जब सारा खेल ख़त्म हुआ तो मैंने उसकी केप्री वापिस ऊपर खिसका दी और उसने भी मेरा पायजामा वापिस ऊपर कर दिया और वहीँ से वो नीचे की तरफ उतर कर अपनी सीट पर जाकर लेट गयी..

चुदाई के बाद सच में बड़ी गहरी नींद आती है..मैं कब सो गया, मुझे पता ही नहीं चला.

सुबह हमारी ट्रेन रानीखेत पहुंची और वहां से हमने टेक्सी की और हम सीधा नेनीताल में पहुँच गए..पहाड़ो का मौसम खराब था, काफी बारिश थी रास्ते में..हमारा होटल पहले से बुक था, अंशिका ने सारा काम बखूबी किया था

किट्टी मेडम के कहे अनुसार सभी को अपने साथ आये रिलेटिव के साथ कमरा शेयर करना था, ये सुनते ही मेरा मन बाग़-बाग़ हो उठा, अंशिका के साथ तीन दिन और रात एक ही कमरे में रहने का रोमांच ऐसे लग रहा था मानो मैं उसके साथ हनीमून पर आया हूँ. अंशिका का चेहरा भी मंद-मंद मुस्कुरा कर अपने अन्दर की ख़ुशी को बयान कर रहा था. मैंने चाबी ली और अपने कमरे की तरफ चल दिया, अंशिका अभी नीचे ही थी, दुसरे स्टुडेंट्स को चाबी बांटने में लगी हुई थी वो.

मैंने अपना और अंशिका का सामान अन्दर रखा और बेग से कपडे लेकर बाथरूम में चला गया, नहा धोकर मैं बाहर आया तो पाया की अंशिका अभी तक नहीं आई है..मैंने नीचे टोवल लपेटे रखा था , मैंने सोचा की अभी थोड़ी ही देर में अंशिका के आने के बाद वैसे ही सब उतारना पड़ेगा, इसलिए कुछ नहीं पहना और मैं टोवल में ही अंशिका का इन्तजार करने लगा. थोड़ी ही देर में दरवाजा खडका...मैं भागकर बाहर आया और दरवाजा खोला , अंशिका के आने के बारे में सोचकर ही मेरे लंड ने टोवल में तम्बू बना दिया था..पर जैसे ही दरवाजा खोला, सामने किट्टी मैम खड़ी थी और उनके साथ एक दो और लडकिया भी थी..

मुझे टोवल में देख कर दोनों लडकिया खी खी करके हंसने लगी...एक लड़की तो अपने होंठो पर ऐसे जीभ फेरने लगी मानो मुझे चाट रही हो, अपनी आँखों से.

किट्टी मैम: विशाल...ये क्या है...कपडे क्यों नहीं पहने..
मैं: जी...जी वो ...मैं बस नहाकर निकला ही था की बेल बज गयी...इसलिए खोलने चला आया..

उनकी नजर नीचे होकर मेरे लंड वाले हिस्से पर गयी और फिर वो बोली: ठीक है...ठीक है...हमारे ग्रुप में ज्यादातर लडकिया है. इसलिए थोडा बिहेव सही रखना अपना. समझे और ये लो, अंशिका का एक और बेग, ये नीचे रह गया था, उसे अभी आने में टाईम लगेगा...ओके और ये कहकर वो चली गयी.

मैंने राहत की सांस ली, पर मुझे उस लड़की का चेहरा याद आ रहा था जो अपने होंठो पर जीभ फेर रही थी. जल्दी ही उसके बारे में पता लगाना होगा.

जैसा की अंशिका ने बताया था, इस टूर पर टोटल पचास लोग आये थे, बीस स्टुडेंट्स, सोलह उनके रिलेटिव जो ज्यादातर भाई या बहन थे, और बाकी कॉलेज के स्टाफ. अब ये लड़की कॉलेज की है या किसी स्टुडेंट की बहन ये पता लगाना होगा. मैंने अन्दर आकर जल्दी से कपडे पहन लिए, क्या पता किट्टी मेडम दोबारा अन्दर आ जाए.

जैसे ही मैंने कपडे पहने, बेल फिर से बज उठी, मैं भागकर फिर से बाहर आया, इस बार अंशिका थी. वो अन्दर आई, दरवाजा बंद किया, और मुझसे बुरी तरह से लिपट गयी. मेरे शरीर से उठती महक और गीले बालो को देखकर वो बोली: नहा भी लिए तुम...वाह..पर ये कपडे क्यों पहने फिर...मेरा इन्तजार नहीं कर सकते थे...हूँ...

अब बताओ यार, पहले जब टोवल में इन्तजार किया तो किट्टी मैम आ गयी और बोली की टोवल में क्यों हो और अब जब कपडे पहन लिए तो ये मेडम कह रही है की कपडे क्यों पहने.

अंशिका ने मुझे प्यार से देखा और बोली: बी रेडी, मैं नहाकर आती हूँ और मुझे देखकर, एक सिडक्टिव सी स्माईल देकर, वो बाथरूम के अन्दर चली गयी नहाने. मैं भी अपने कपडे उतार कर अंशिका का इन्तजार करने लगा, काफी देर हो गयी तो मैं उठकर दरवाजे तक गया और अंशिका से कहा की दरवाजा खोले और मुझे अन्दर आने दे.

अंशिका: रुको यार...बस एक मिनट में आई और वैसे भी जब हमारे पास डबल बेड है तो क्यों इस छोटे से बाथरूम में प्यार करे. तुम रुको, मैं बस पांच मिनट में बाहर आई.

बात तो उसकी सही थी.

मैं अपने ज़ोकी में उसका इन्तजार करने लगा. थोड़ी ही देर में दरवाजा खुला और अंशिका बाहर आई. उसे देखकर मेरी आँखे फटी की फटी रह गयी. उसने अपनी कमर से टोवल लपेट रखा था, जैसे हम लड़के लपेटते है, नहाने के बाद, और दूसरा टोवल उसने अपने सर से बाँधा हुआ था, जो एक ऊँची ईमारत बना रहा था वहां और बीच वाले हिस्से पर...सिवाए पानी की बूंदों के कुछ भी नहीं था...वो टोपलेस ही बाहर निकल आई थी...मैं उसकी हिम्मत देखकर दंग रह गया

पर यारो, क्या माल लग रही थी, उसके मोटे-मोटे मुम्मे जिनपर से पानी फिसल कर नीचे गिर रहा था, उसका सपाट पेट, और टॉवेल के नीचे की मोटी और सफाचट टाँगे...मेरे तो मुंह में पानी आ गया.

अंशिका (मुस्कुराते हुए): क्या देख रहे हो...ये तो वैसे भी उतरने वाले थे...इसलिए मैं ऐसे ही आ गयी, जैसे घर पर नहाने के बाद निकलती हूँ.
मैं: मतलब...घर पर भी तुम ऐसे ही...वाव ....यार...

अंशिका: तुम तो ऐसे कह रहे हो जैसे तुमने मुझे ऐसे कभी देखा ही नहीं...

ये कहते-कहते उसने अपने सर के ऊपर बंधा हुआ टोवल भी खोल दिया और उससे अपने गीले बालों को मलने लगी. उसके मोटे मुम्मे बाल सुखाने की वजह से जोरों से हिलने लगे और मेरी नजर पहली बार उसके तने हुए निप्पलस के ऊपर गयी, जो फटने की कगार पर थे, यानी वो पूरी तरह से गरम थी. आगे क्या होने वाला है उसके बारे में सोचकर. वो मुझे जानती थी, की इस तरह से अपना नंगा शरीर दिखा कर मेरी भावनाओ को भड़का रही थी और वो भड़क भी चुकी थी, मेरे लंड के रूप में.

मेरे लंड ने मेरे ज़ोकी में बवाल सा मचा रखा था. मैंने एक झटके में अपना ज़ोकी नीचे कर दिया, और मेरे लंड ने नेनीताल की फिजाओं में पहली बार अपनी महबूबा को देखा और उसे सलाम ठोंका.

अंशिका ने मेरे लंड को अपनी नजरों में कैद किया और धीरे-धीरे अपनी गांड मटकाती हुई मेरे पास आई और अपने हाथ में पकडे हुए टोवल को मेरे लंड पर झुला दिया, मानो वो लंड न हो, कपडे टांगने का खूंटा हो..टोवल के बोझ से मेरा लंड नीचे झुक गया पर टोवल नीचे नहीं गिरा.

ये देखकर अंशिका की हंसी निकल गयी और वो खिलखिला कर हंसने लगी...

मेरे सामने खड़ी होकर, वो अपने होंठो के ऊपर अपनी कोमल उँगलियों को रखकर जोर-जोर से हंस रही थी, मैं तो उसके हूँस्न और नजाकत को देखकर पागल सा हो गया और मैंने झट से उसकी कमर में हाथ डालकर उसे अपनी बाँहों में बाँध लिया. मेरा टोवल नीचे गिर गया और मैंने अंशिका का टोवल भी खोल दिया, कमर वाला.

ये उसके लिए पहला अवसर नहीं था जब वो मेरे सामने नंगी खड़ी थी. मैंने अपने लिप्स लगा दिए उसकी गर्दन पर और उसके शरीर से बहता हुआ पानी सोखने लगा.

अंशिका: सुनो विशाल....
मैं: हूँ...बोलो...

अंशिका: हम यहाँ तीन दिनों तक रहेंगे...एक ही कमरे में..
मैं: हूँ...पता है..

अंशिका: मैं चाहती हूँ की हम दोनों पति पत्नी की तरह से रहे..
मैं: क्या मतलब...

अंशिका: मतलब की तुम मुझे ऐसे प्यार करो जैसे हम शादी के बाद अपने हनीमून पर आये हैं..
मैं: वैसे ही तो रहेंगे हम जान...

अंशिका: नहीं ना....तुम समझे नहीं...सिर्फ फिसीकली नहीं, मेंटली भी...समझे...

मैं क्या कहता, मैं जानता था की वो क्या कहना चाह रही थी...इसमें मुझे भी कोई बुराई नहीं दिखी और अंशिका ये सब शायद इसलिए बोल रही थी की उसे और मुझे पता था की हमारी शादी नहीं हो सकती, उम्र में इतना फर्क है इसलिए, और इतने दिनों में हमारे बीच जो नजदीकियां आई हैं, और हमने एक दुसरे को जितना समझा है, उसके अनुसार इतना हक तो बनता है की हम अपनी जिन्दगी के ये तीन दिन पति-पत्नी की तरह से बिता ले.

मैं: जैसा तुम चाहो अंशिका, तुम्हे मालुम है की मैं तुम्हारी किसी बात को मना नहीं कर सकता...

ये सुनते ही अंशिका मुझसे बेल की भाँती लिपट गयी और मुझे पागलो की तरह से चूमने चाटने लगी. ओह...विशाल.....आई लव यु. मेरा लंड बीच में बात करते-करते बैठ गया था, उसकी इस हरकत से वो फिर से खड़ा होने लगा. अंशिका ने मेरे लंड को अपने हाथो में पकड़ा और उसे मसलने लगी और मेरी आँखों में देखकर धीरे से फुसफुसाई: आज तुम देखना, मैं तुम्हारा क्या हाल करती हूँ. आज तो तुम ये समझो की हमारी सुहागरात है.

इस अलग तरह की सोच के साथ चुदाई करने में बड़ा ही रोमांच फील हो रहा था..

अंशिका ने मेरे सर को पकड़कर अपने मुम्मे पर रख दिया और मैं किसी पालतू बकरी की तरह उसका दूध पीने लगा. उसके हाथ मेरे लंड से चिपके हुए थे, मैंने दुसरे हाथ से उसका मुम्मा पकड़ कर निप्पलस को दबाना शुरू कर दिया.

अंशिका: अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह विशाल.......आज तुम जो चाहो करो.....जैसे चाहो करो.....जो चाहो करवा लो.....अह्ह्हह्ह....मैं कुछ नहीं कहूँगी....

वैसे ज्यादा करने को बचा नहीं था हमारे बीच, पर फिर भी ये सब सुनकर मुझे अच्छा लगा...वो किसी आज्ञाकारी बीबी की तरह अपने पति को खुश करने के लिए सब कुछ करने को तैयार थी.

मैं कुर्सी पर बैठ गया और उसे हूँक्म सा दिया: चलो आओ और मेरा लंड चुसो अंशिका और साथ-साथ बोलती भी जाओ की तुम्हे कैसा लग रहा है. अंशिका ने फ़ौरन मेरी बात का पालन किया और मेरे लंड को अपने गर्म मुंह के अन्दर रखकर चूसने लगी. अह्ह्हह्ह्ह्ह......धीरे साली.....धीरे काट.....मेरे लंड को कुतिया. मुझे मालुम था की गन्दी गालियाँ सुनकर उसके अन्दर की जानवर और भी खुन्कार हो जाती है.

अह्ह्ह्ह....तुम्हारा ये लंड कितने कमाल का है विशाल....जितना चुसो, और चूसने का मन करता है.....अन्दर जाकर जितना मजा देता है, उतना ही मुंह में भी.....अह्ह्ह्ह......

कुतिया सुनकर वो सच में कुतिया की तरह से अपनी जीभ से मेरे लंड और बाल्स को चाटने लगी और चाटते-चाटते वो ऊपर तक आई और अपने गीले मुंह से मेरे होंठो को चूसने लगी....

अह्ह्हह्ह विशाल........अब सहन नहीं होता........डाल दो न....डाल दो अपना लंड...अपनी अंशिका की चूत.....

मैंने भी उसे ज्यादा तरसाना उचित नहीं समझा और उसकी गांड के नीचे हाथ रखकर, मैंने उसे अपने लंड के करीब खींचा. जैसे ही मेरा लंड उसकी गरमाई हुई चूत के संपर्क में आया, वो जोर से सिस्कार उठी. आअयीईईइ.......विशाल........जल रही है मेरी......चूऊऊत.........अह्ह्ह्हह्ह....
बुझा दो ये आग, अपने.....लंड से....अह्ह्ह्ह......

मैंने उसे अपने लंड के ऊपर खींच लिया, और वो अपनी कसी हुई चूत को मेरे लंड के चारों तरफ लपेटती हुई नीचे की तरफ आने लगी और अंत में आकर उसने मेरी गर्दन को जोर से पकड़ा और अपने गर्म होंठ मेरी गर्दन पर रखकर जोरों से सांस लेने लगी...

अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह विशाल........आई एम्........लविंग......यूर कोक.......इन माय पुससी .......

कुछ देर तक ऐसे ही रहने के बाद मैंने नीचे से धक्के मारने शुरू कर दिए. अंशिका भी हरकत में आई और अपने बाल बांधकर वो भी मैदान में कूद गयी....

अह्ह्ह ...ओह्ह्ह्ह....ओह्ह्ह विशाल......ओह्ह्ह्ह.....कितना मोटा लग रहा है तुम्हारा लंड आज.....अह्ह्ह.....मरररर गयी......अह्ह्ह्हह्ह........येस्स.येस्सस्सस्स...आई एम् कमिंग.....विशाल......अह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह....

और जैसे ही उसने अपनी चूत के झड़ने का एलान किया, मैंने भी अपने लंड के धक्के तेज कर दिए और उसके साथ-साथ मैं भी झड़ने लगा. जब तूफ़ान थमा तो उसने अपना सर उठाया और मुझे प्यार से देखा, उसके देखने में एक अजीब से प्यार का एहसास था और फिर उसने मुझे चूम लिया.

तभी बाहर से किट्टी मैम की आवाज आई. अंशिका....अंशिका....जल्दी चलो...डिनर के लिए लेट हो रहा है.

अंशिका: ओके मैम....आप जाओ...हम आते हैं...

उनके जाने के बाद अंशिका जल्दी से उठी और वापिस बाथरूम में जाकर वाश करने लगी. जब वो बाहर आई तो मुझे वैसे ही बैठा देखकर बोली: उन्नन...सुनो...जल्दी उठो...न..भूख लगी है मुझे...

वो ऐसे बात कर रही थी मानो अपने पति से बात कर रही है. मुझे काफी अच्छा लगा. पर ये सोचकर परेशान भी हो गया की मैं अंशिका के रहते दूसरी चूतों के मजे कैसे ले पाउँगा. जो भी हो, मुझे कोई न कोई उपाय तो निकलना ही पड़ेगा.

हम तैयार होकर नीचे गए और सबने मिलकर खाना खाया, काफी स्वादिष्ट खाना था होटल का. उसके बाद हमने आइसक्रीम भी खायी और फिर अंशिका अपनी दूसरी टीचर्स के साथ गप्पे मारने लगी, मैंने स्नेहा को अपने पास बुलाया.

स्नेहा: क्या यार...तुम तो मुझे यहाँ आते ही भूल गए,
मैं: नहीं, मैं ऐसा कैसे कर सकता हूँ.
स्नेहा: मुझे सब पता है. वर्ना जब से हम लोग नेनीताल आये हैं, तुमने मुझ से ढंग से बात भी नहीं की.

वो अपने होंठो पर अजीब तरीके से जीभ फेर रही थी.

मैंने अंशिका की तरफ देखा, वो तिरछी नजरो से मुझे ही देख रही थी, जैसे कोई पत्नी अपने पति के ऊपर नजर रखती है की वो किसके साथ बात कर रहा है. मैंने स्नेहा की तरफ देखा और कुछ बोलने ही वाला था की मेरा सेल बज उठा, कोई नया नंबर था. मैंने फोन उठाया

मैं: हेल्लो

दूसरी तरफ से एक सेक्सी और मधुर से आवाज आई...हेल्लो....

मैं वो आवाज और अंदाज सुनकर चोंक गया, वो इसलिए की इतनी सेक्सी आवाज मैंने आज तक नहीं सुनी थी, और उसके हेल्लो कहने का अंदाज इतना निराला था मानो अपनी चूत में ऊँगली डालकर मुझसे बात कर रही थी और वही फीलिंग्स मुझे भी महसूस हो रही थी.

मैंने स्नेहा को एक्स्क्युस कहा और एक कोने में जाकर बात करने लगा

मैं: हेल्लो...कौन बोल रहा है.
आवाज: बस ये समझ लो की आपके चाहने वाले ही हैं हम भी..

मैं उसकी बात सुनकर खुश हो गया और ये सोचकर भी की इतनी सेक्सी आवाज वाली की मारने को मिल जाए तो मजे आ जायेंगे. पर है कौन ये? मुझे लगता है की मेरे घर के आस पास की रहने वाली या फिर शायद पारुल ने अपनी किसी सहेली को मेरे बारे में बताया हो और नंबर लेकर वो भी अपनी चूत की खुजली मुझसे शांत करवाना चाहती हो.

मैं: अच्छा जी..हमारे चाहने वाले हैं तो हमारे सामने तो आइये...नाम क्या है आपका..?
आवाज: अजी नाम जानकार क्या करेंगे. आपको तो पूछना चाहिए की मेरा फिगर क्या है.

साली बड़ी हरामी किस्म की लड़की लगती है..

मैं: चलिए कोई बात नहीं, अपना फिगर ही बता दीजिये..
आवाज: 33 26 34
मैं: वाव...पर आप इतना स्युओर कैसे हैं अपने फिगर के बारे में..कब नापा था.
आवाज: कल रात को नापा था तो यही था, अभी का पता नहीं..

मैं उसकी बात सुनकर हंस दिया और बोला: ये इंचीटेप तो गलत नाप बताते है, हमेशा लडको से कहा करो, वो सही तरीके से नाप लेंगे अपने हाथो से, और वोही साईज बताया कीजिये दुसरो को फिर..अगर आप कहो तो मैं आपका साईज लेने के लिए तैयार हूँ.

वो हंसने लगी और फिर थोड़ी देर चुप रहने के बाद वो बोली: आज आप ब्लू टी-शर्ट और ब्लेक जींस में काफी स्मार्ट लग रहे हैं..

ओ तेरी माँ की..यानी ये लड़की यहीं पर ही है...मेरा अंदाजा गलत निकला की ये दिल्ली से फ़ोन आया है, ये तो यही पर है...पर कौन है ये...? मैंने अपने चारो तरफ नजर घुमाई, आधे लोग जा चुके थे और बाकी जो बैठे हुए थे कोई भी फोन पर बात नहीं कर रहा था.

मैं: अच्छा...यानी आप भी यही पर है, हमारे ग्रुप में...
आवाज: जी...अब ये आपके ऊपर है की हमें कितनी जल्दी ढूंढते हैं आप और कितनी जल्दी मेरा फिगर अपने अनुभवी हाथो से नापते हैं.

मुझे उस लड़की की याद आ गयी, जो किट्टी मैम के साथ आई थी मेरे रूम में...जो मुझे देखकर बड़े ही कामुक स्टाईल से मुझे देख रही थी, हो न हो ये वही है..पर मुझे उसका नाम नहीं मालुम था. मैंने जल्दी से फ़ोन काटा और स्नेहा की तरफ गया, वो एक दूसरी लड़की के साथ बैठकर बाते कर रही थी, जैसे ही मैं उसके पास गया, उस लड़की को देखकर मैं चोंक गया, क्योंकि ये वही लड़की थी जिसके बारे में मैं अभी सोच रहा था और स्नेहा से उसके बारे में पूछने के लिए आया था.और जब से मैं फोन पर बात कर रहा था, स्नेहा इस लड़की के साथ यहीं बैठकर बाते कर रही थी, यानी ये वो लड़की नहीं है..

स्नेहा ने मुझे देखा और मुझे उस लड़की की तरफ घूरते पाकर वो बोली: अरे विशाल...ये है सिमरन. मेरी मम्मी की कलिग है न रजनी आंटी, उनकी बेटी है और सिमरन ये है विशाल...वो अंशिका मैम है न..उनका कजिन और ये मुझे टयूशन भी पढाते है..

मैंने अपना हाथ सिमरन की तरफ बढाया और उसने भी मेरे हाथ को अपने नर्म हाथो में पकड़कर दबा दिया..उसके चेहरे के एक्सप्रेशन अभी भी वैसे ही थे, मुझे खा जाने वाले..

मैंने सिमरन के साथ कुछ देर तक बात की और फिर मैं वापिस एक कोने में चला गया और उस लड़की को फिर से फोन मिलाया.

आवाज: येस...क्या हुआ था, एकदम से फ़ोन कट कर दिया, मेरी आवाज इतनी बुरी है क्या.
मैं: अरे नहीं...तुम्हारी आवाज तो इतनी सेक्सी है की ये सोचकर मैं तड़प रहा हूँ की तुम कितनी सेक्सी होगी.
आवाज: अरे विशाल...आवाज सुनकर कभी भी इंसान की शक्ल या फिगर का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता.
मैं: पर तुम्हारे बारे में मैं ये पक्का कह सकता हूँ की तुम देखने में भी और दिखाने में भी, दोनों में सेक्सी हो..
आवाज: हा हा आ....तुम बड़े इन्त्रस्टिंग इंसान हो...तुमसे दोस्ती करके मजा आएगा.
मैं: वो मजे तो आप तभी ले सकोगे जब हम मिलेंगे..
आवाज: चलो ठीक है, एक वादा करती हूँ, कल शाम तक अगर तुमने मुझे ढूंढ लिया तो जो तुम कहोगे वो मैं करुँगी और अगर नहीं ढून्ढ पाए तो जो मैं कहूँगी , वो तुम्हे करना पड़ेगा...बोलो मंजूर है.

मैं उसकी बात सुनकर सोचने लगा, पर दोनों ही सूरत में मेरा ही फायेदा था, इसलिए मैंने हाँ कह दी. मैं सीधा अंशिका के पास गया, और उसे एक कोने में लेजाकर मैंने कहा: सुनो, तुमने मुझे अपने ग्रुप में आये लोगो से तो मिलवाया ही नहीं. अंशिका मेरी बात सुनकर मुस्कुराने लगी और बोली: मैं देख रही हूँ की तुम काफी बेचैन हो रहे हो यहाँ आकर, चारो तरफ इतनी तितलिया जो उढ़ रही है तुम्हारे, मैं देख रही थी तुम्हे, स्नेहा के साथ गप्पे मार रहे थे और सिमरन के साथ भी.

मैं: क्या यार, अब तुम तो अपनी कुलीग्स के साथ बिजी थी, मैंने अगर किसी और से बात कर ली तो इसमें प्रोब्लम क्या है.
अंशिका: प्रोब्लम क्यों नहीं होगी, हनीमून पर अगर किसी का पति उसके अलावा किसी और को देखे या उसके साथ बात करे, तो प्रॉब्लम तो होनी ही है न..

यार, ये अंशिका भी न, अपने चक्कर में मेरे मजे का कबाड़ा करने पर तुली है. मेरी सूरत देखकर वो एकदम से हंसने लगी.

अंशिका: अरे मेरे राजा...मैं तो मजाक कर रही थी...घबराओ मत. मैं तुम्हे सबसे मिलवाउंगी. पर अपनी हद में रहना और किसी के साथ भी कुछ करने से पहले मेरे और मेरी पोसिशन के बारे में सोच लेना..ओके...

मैं समझ गया और मैंने उसे आश्वासन दिया की मैं किसी के साथ कोई बदतमीजी नहीं करूँगा...(पर अगर कोई सामने से करे तो मैं रोक नहीं पाउँगा न...)

अंशिका: आज तो सब काफी थके हुए थे, इसलिए खाना खाकर सभी सोने चले गए हैं, कल हमने बोटिंग करनी है और मार्केट घूमना है, और शाम को बोन फायर का प्रोग्राम है, तभी मिलवा दूंगी तुम्हे सबसे...ठीक है.

मैंने हाँ में सर हिला दिया, पर उस लड़की ने भी तो कल शाम तक का टाईम दिया था मुझे, अंशिका जब मिलवाएगी, तब मिलवाएगी, मुझे कल दिन के टाईम ही उसे ढूँढना पड़ेगा.

उसके बाद अंशिका बोली: सुनो, चलो न रूम में चलते हैं, देखो ज्यादातर लोग जा चुके हैं. सिर्फ किट्टी मैम और एक-दो और टीचर्स बैठकर गप्पे मार रही थी. किट्टी मैम के पीछे ही स्नेहा भी बैठकर बोरियत से बचने के लिए अपने मोबाइल पर गेम खेल रही थी.

अंशिका और मैं किट्टी मैम के पास गए और उन्हें गुड नाईट बोला

किट्टी मैम: अरे अंशिका, तुम भी न, इतनी जल्दी क्या है सोने की, बैठो थोड़ी देर, चली जाना.

अंशिका ने मेरी तरफ देखा और फिर बोली: नहीं मैम...आज बहुत थक गयी हूँ, मुझे नींद आ रही है अब.

किट्टी मैम ने मेरी तरफ देखा और बोली: ठीक है, तुम जाओ, विशाल को बैठने दो थोड़ी देर तक. देखो न, स्नेहा भी बोर हो रही है, मैं अभी थोड़ी देर तक और बैठूंगी यहाँ, तब तक विशाल और स्नेहा एक दुसरे को कम्पनी देंगे, ठीक है न विशाल..

मैंने अंशिका की तरफ देखा और फिर किट्टी मैम से बोला: ठीक है, मैम, जैसा आप कहो.

अंशिका किट्टी मैम को मना नहीं कर सकती थी, इसलिए उसने भी कुछ नहीं कहा और वो अन्दर चली गयी, किट्टी मैम फिर से अपनी सहेलियों के साथ गप्पे मारने लगी, मैं स्नेहा के पास जाकर बैठ गया.
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#65
स्नेहा: सुनो, अन्दर गेम रूम में चलते हैं, वहां बिलियर्ड टेबल है, मैंने आज तक नहीं खेला वो, मुझे सिखाओ न..

स्नेहा की बात किट्टी मैम ने भी सुन ली थी, वो बोली: हाँ हाँ...विशाल, इसे सिखा दो न बिलियर्ड्स. हमेशा बोलती रहती है.

मैं स्नेहा को लेकर अन्दर चला गया, वहां एक बड़ा सा रूम था, जिसमे हर तरह के खेल, जैसे केरम, टेबल टेनिस, बिलियर्ड्स, वगेरह थे, मैंने बाल्स को सेट किया और स्टिक लेकर मैं खड़ा हो गया.

स्नेहा को मैंने अपने पास बुलाया और उसके हाथ में स्टिक पकड़ाकर मैं उसके पीछे खड़ा हो गया. उसकी मोटी गांड मेरे लंड वाले हिस्से को छु रही थी. मैंने स्टिक को पकड़ा हुआ था, और स्नेहा ने मेरे हाथ के ऊपर अपना हाथ रख दिया.

मैं: स्नेहा, मेरे हाथ को नहीं, स्टिक को पकड़ो.
स्नेहा: मुझे ये स्टिक नहीं, ये स्टिक पकडनी है.

उसने अपना हाथ मेरे लंड के ऊपर रखकर उसे धीरे से दबा दिया. मैंने घबराकर बाहर की तरफ देखा, जहाँ किट्टी मैम और दूसरी टीचर्स बैठी थी, पर अन्दर सिर्फ टेबल के ऊपर लाईट होने की वजह से, हम दोनों को बाहर से नहीं देखा जा सकता था.

स्नेहा: डरो मत. मम्मी को मैंने पहले ही कह दिया था, और वैसे भी मेरे बाद मम्मी का ही नंबर है. उन्हें भी नहीं तो नींद नहीं आएगी आज की रात.

मैं किट्टी मैम की नहीं बल्कि अंशिका की चिंता कर रहा था, जो अपने कमरे में किसी नव विवाहित दुल्हन की तरह मेरा वेट कर रही थी. मुझे जल्दी ही इन दोनों की प्यास बुझानी होगी, वर्ना अंशिका को शक हो गया और वो यहाँ आ गयी तो मैं तो काम से गया फिर.

मैंने अपनी जिप खोली और स्नेहा के हाथ में अपना लंड पकड़ा दिया. उसे शायद उम्मीद नहीं थी की मैं इतनी जल्दी मान जाऊंगा. पर अपने सामने लंड को पाकर वो ये भी भूल गयी की वो इस समय खड़ी कहाँ पर है, वो पलटी और मेरे लंड को हाथ में लेकर जोर से हिलाने लगी. मेरी नजर बाहर की तरफ ही थी, किट्टी मैम का चेहरा हमारी तरफ था और बाकी की तीनो टीचर्स की पीठ थी इस कमरे की तरफ, अगर किट्टी मैम देख भी लेती है तो कोई परेशानी वाली बात नहीं है, पर किसी और ने देख लिया तो गड़बड़ हो जायेगी.

मैंने भी सोचा की ऐसा रोमांच और कब मिलेगा, इसलिए खुले कमरे में मैंने अपना लंड निकाल कर स्नेहा के सामने रख दिया था. स्नेहा मेरे सामने बैठ गयी और मेरे लंड को अपने मुंह में लेकर जोर से चूसने लगी. उसने लॉन्ग स्कर्ट और टी-शर्ट पहनी हुई थी, अपने दुसरे हाथ को अपनी स्कर्ट के अन्दर डाला और अपनी गीली चूत के अन्दर अपनी दो फिंगर डालकर हिलाने लगी.

बड़ा ही अजीब सा एहसास था वो, कमरे में पूरा अँधेरा था, सिर्फ टेबल के ऊपर की लाईट जल रही थी, हम उसे बंद भी नहीं कर सकते थे, क्योंकि बाहर बैठी हुई दूसरी टीचर्स को शक न हो जाए, और किट्टी मैम से डरने की कोई जरुरत नहीं थी, वो तो खुद ही लंडखोर थी.

मैंने किट्टी मैम की तरफ देखा, और पाया की उनकी नजर अब अन्दर की तरफ ही चिपकी हुई थी, वो शायद अपनी बेटी को ढूंढने की कोशिश कर रही थी, पर इतनी दूर से उन्हें साफ़-साफ़ नहीं दिख रहा था की उनकी लाडली तो मेरा लोलीपोप चूस रही है. पर मेरे हिलते हुए शरीर की वजह से उन्हें अंदाजा होने लगा था की अन्दर का एक्शन शुरू हो चूका है. अब किट्टी मैम का भी ध्यान हमारी तरफ ज्यादा और अपनी सहेलियों की तरफ कम था.

मैंने नीचे हाथ करके स्नेहा की टी-शर्ट को सर से घुमा कर उतार दिया, नीचे उसने सफ़ेद रंग की ब्रा पहनी हुई थी, जिसके ऊपर क्रिस्टल लगे हुए थे. मैंने उसके ब्रा स्ट्रेप्स नीचे कर दिया और उसके दोनों मुम्मे बाहर की तरफ निकाल कर उन्हें हिलते हुए देखने लगा. उसके मुम्मो के ऊपर लगे हुए क्रिस्टल भी चमक रहे थे.

स्नेहा से अपनी चूत की गर्मी ज्यादा बर्दाश्त नहीं हुई, उसने मेरे लंड को अपने मुंह से बाहर निकाला और खड़ी होकर मेरे होंठो को चूसने लगी पागलो की तरह. हलकी रौशनी हम दोनों के शरीर पर पड़ रही थी, जिसकी वजह से बाहर बैठी हुई किट्टी मैम को अब अपनी बेटी साफ़-साफ़ मेरे होंठो को चुस्ती हुई दिखाई दे रही थी और वो भी टोपलेस होकर.

किट्टी मैम ने ज्यादा देर तक बाहर बैठना उचित नहीं समझा, क्योंकि दूसरी टीचर्स का ध्यान कभी भी हमारी तरफ आ सकता था, इसलिए उन्होंने सभी को गुड नाईट बोलकर अन्दर चलने को कहा और फिर उन्हें ये कहकर की आप चलो मैं स्नेहा और विशाल को भी बुला कर लाती हूँ, हमारी तरफ आने लगी.

अन्दर आते ही किट्टी मैम की साँसे मुझे साफ़-साफ़ सुनाई देने लगी. आज पहली बार दोनों माँ-बेटी एक दुसरे के सामने मेरे साथ चुदने को तैयार थे, घर पर तो सिर्फ किट्टी मैम ने मुझसे अकेले में ही चुदवाया था और एक बार ही उन्होंने मुझे और स्नेहा को रंगे हाथो पकड़ा भी था, पर आज पहली बार था शायद जब वो अपनी जवान लड़की के सामने नंगी होकर मुझसे चुदवाने को तैयार थी.

स्नेहा ने जब देखा की उसकी मम्मी भी अन्दर आ चुकी है तो उसके उत्साह में दुगना इजाफा हो गया. वो टेबल के ऊपर की तरफ झुकी और अपनी स्कर्ट को नीचे खिसका दिया, नीचे उसने चड्डी नहीं पहनी हुई थी, साली मदर्जात नंगी होकर खड़ी थी अब वो मेरे और अपनी माँ के सामने. आजकल की ये एडवांस लड़कियां अपने माँ बाप से भी नहीं शर्माती.

वो टेबल के ऊपर बैठ गयी और अपनी टाँगे हवा में फेला कर मुझे अपनी तरफ खीचा, मैंने भी आनन-फानन में अपनी जींस को खोला और अंडरवीयर समेत नीचे खिसका दिया और अपने लोहे की रोड जैसे लंड को सीधा उसकी चूत में लगा कर एक जोरदार धक्का मारा.

अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह विशाल.........म्मम्मम......

उसकी चूत का गीलापन इतना अधिक था की टेबल के ऊपर भी फेलने लगा था वो. उसकी हिलती हुई दोनों बाल्स और मेरे धक्को से हिलते हुए टेबल के ऊपर रखी हुई बाल्स, मेरे हर धक्के से नाच नाचकर अपनी ख़ुशी प्रकट कर रहे थे.

किट्टी मैम ने भी अपने कपडे उतारने शुरू कर दिए थे, उन्होंने एक पायजामा और लॉन्ग और लूस सी टी-शर्ट पहनी हुई थी. जिसे उन्होंने उतार दिया था, फिर अपनी ब्रा भी खोल कर गिरा दी..नीचे उन्होंने भी अपनी बेटी की तरह कुछ नहीं पहना था. वो टेबल के पास आई और अपनी बेटी के पास जाकर खड़ी हो गयी और उसके हिलते हुए मुम्मो को देखकर अपनी चूत में ऊँगली डालकर हिलाने लगी.

ओह्ह्ह्ह मम्मी...... इतना मजा आता है इसके लंड से.... अह्ह्ह्हह्ह...... देखो न..... कैसे जा रहा है बिलकुल अन्दर तक. अह्ह्ह्हह्ह...... ओह्ह्ह्ह मम्मा........ आअज...... तो...... अह्ह्ह्ह..... मजा...... अह्ह्हह्ह........ गया....... अह्हह्ह्हह्ह्ह्यी.....

और उसके कहते-कहते ही उसकी चूत से रस निकल कर बाहर की तरफ आने लगा और मेरे लंड ने भी उसकी चूत का साथ देने के लिए वहीँ पर अपने रस का त्याग कर दिया..

मैंने अपना लंड जैसे ही बाहर खींचा, किट्टी मैम जल्दी से आगे आई और अपने मुंह में मेरे लंड को भरकर जोर से चूसने लगी, और अपने एक हाथ को उन्होंने अपनी बेटी की चूत के ऊपर पंजे समेत जमा दिया, ताकि उसका रस बाहर निकल कर नीचे न गिर जाए, मेरे लंड को साफ़ करने के बाद उन्होंने अपनी बेटी की चूत की तरफ रुख किया और अपना उन्ह वहां पर लगाकर जोर जोर से अपनी बेटी की चूत चूसने लगी, और अन्दर जमा हुआ मेरा और स्नेहा का मिला जुला रस पीने लगी.

माँ बेटी का ऐसा प्यार देखकर मेरे लंड ने फिर से अपना सर उठाना शुरू कर दिया, मुझे अपने ऊपर विशवास था की एक बार में मैं लगातार तीन या चार बार चुदाई कर सकता हूँ, एक स्नेहा की हो गयी, किट्टी मैम के बाद अपनी अंशिका के लिए भी तो कुछ बचा कर रखना था न.

अपनी बेटी की चूत को साफ़ करने के बाद किट्टी मैम मेरी तरफ घूमी, उनकी हालत देखकर मैं तो सिर्फ एक ही बात सोच रहा था की आज ये मोटी मुझे छोड़ेगी नहीं. चल बेटा चढ़ जा इसके ऊपर भी.

जैसे ही किट्टी मैम मेरी तरफ घूमी, मेरी नजर सीधा उनके बेशुमार दोलत से भरे हुए उभारो पर पड़ी, ये वही उभार थे जिनको देखकर मेरे मन में न जाने कितनी बार इन्हें चोदने का ख्याल आया था, वैसे तो इनकी गांड भी उतनी ही दौलतमंद थी पर सामने जो दिखता है उसकी बात ही कुछ और होती है. वो मेरे पास आई और मेरे सर को पकड़ कर बड़ी ही बेरहमी से अपनी छाती पर दे मारा.

मुझे तो ज्यादा नहीं, पर जिस अंदाज में उन्होंने मेरा सर मारा था अपने स्तन पर, उन्हें बड़ा दर्द हुआ होगा. पर दर्द होने के बावजूद उनके मुंह से दर्द के बजाये एक मीठी सी सिसकारी निकली, मानो मेरा लंड डाल लिया हो अपनी चूत में.

मैंने अपनी जीभ निकाल कर उनके मोटे निप्पल के ऊपर फिरानी शुरू की, ये दुनिया के सबसे मोटे निप्पल थे मेरे लिए, क्योंकि इनसे बड़े और मोटे तो मैंने आज तक नहीं देखे थे. मेरे मुंह में आकर वो ऐसे लग रहे थे मानो छेना मुर्गी का मीठा दाना, उतना हो मोटा और उतना ही मीठा. मेरे दांत हलके-हलके उनके निप्पल को काट भी रहे थे. किट्टी मैम मचल सी रही थी, उनकी गांड बिलियर्ड टेबल के साथ सटी हुई थी, वो उचक कर उसके ऊपर बैठ गयी, अब उनके आधे शरीर पर ऊपर से आती हुई रौशनी पड़ रही थी, जो उनके खुले हुए योवन को और भी चमका कर मेरी और स्नेहा की आँखों के सामने ला रही थी.


किट्टी मैम: ओह्ह्हह्ह्ह्ह विशाल........जोर से काट न......अखरोट नहीं खाए क्या कभी, इन्हें अखरोट की तरह से तोड़ दे...साले जब भी किसी जवान लंड को देखते है, कमीनो की तरह खड़े हो जाते हैं. अह्ह्हह्ह....बड़े ही धोखेबाज निप्पलस है ये मेरे, मेरी तो बात ही नहीं सुनते कभी भी, बीच बाजार में खड़े होकर दुनिया को अपने खड़े होने का एहसास कराते हैं, रोज क्लास में भी लडको को देखकर मचल उठते हैं. इन्हें आज इतना काट की ये ऐसा कभी न करे. सजा दे इन्हें...काट डाल....चबा डाल...अह्ह्हह्ह......ओह्ह्ह्ह....हाआन्न्न.....ऐसे.....ही ओफ्फ्फफ्फ्फ़....कुत्ते........साले.....धीईएरे.....अह्ह्हह्ह्ह्ह... अबे खून निकालेगा क्या.....म्मम्मम्मम.......अह्ह्ह्ह ...आआन्हाअ........ओह......

अपनी मम्मी की गन्दी बाते सुनकर स्नेहा भी अपने निप्पलस को अपने हाथो से मसलने लगी, वो शायद देख रही थी की उसके निप्पल अपनी माँ से कितने छोटे हैं.
स्नेहा को अपने निप्पलस को मसलता पाकर किट्टी मैम उससे बोली: बेटी, अपने दाने रोज मसला कर तू भी, अगर मेरे जैसे मोटे बनाने है तो, इन्हें अपने मुंह में लेकर तेरे पापा को भी बड़ा मजा आता है और मेरे साथ के सभी लोंडो को भी. तू ब्रा कम पहना कर. इन्हें खुला छोड़ा कर और जब भी मौका मिले इन्हें दबाने लग जाया कर और इन्हें ज्यादा से ज्यादा चुसवाया कर...तभी फूलेंगे ये...मेरी तरह. समझी.

अपनी माँ की ज्ञान भरी बाते सुनकर स्नेहा हां में हां मिलाये जा रही थी.

किट्टी मैम फिर वहीँ टेबल पर लेट गयी. उनके पैर अभी भी नीचे की तरफ लटके हुए थे. उन्होंने मुझे भी अपने ऊपर खींच लिया. मैंने ऊपर जाते ही अपना मुंह फिर से उनके मोटे स्तन पर लगा दिया और उन्हें पीने लगा.

अह्ह्ह्हह्ह....विशाल......तुझे तो चुसना बड़ी अच्छी तरह से आता है.....लगता है तुझे काफी प्रेक्टिस है....ह्न्न्नन्न्न्न........है न.......बोल.....साले....बोल....

मैं क्या बोलता... की अंशिका के मुम्मे चूस कर ही सीखा हूँ. पर उनकी नजर में तो मैं उसका कजिन था. मैं चुप चाप उनका दूध पीने में लगा रहा.

तभी स्नेहा अपनी जगह से हिली और अपनी मम्मी की टांगो के बीच आकर खड़ी हो गयी. किट्टी मैम समझ गयी की उनकी बेटी की चूत में फिर से खुजली होने लगी है. पर उन्हें तो पहले अपनी खुजली मिटानी थी, इसलिए उन्होंने अपनी टाँगे ऊपर उठाई, स्नेहा के कंधे पर रखी और उसे अपनी तरफ खींचा और अगले ही पल उनकी बेटी किट्टी मैम की रसीली चूत के रस को सोखने का काम करने लगी.

ऐसा लग रहा था जैसे उसके मुंह को किसी शरबत से भरे कटोरे में डाल दिया गया है, इतना रस उनकी चूत से निकल रहा था, जितना स्नेहा पी रही थी उससे ज्यादा निकलता चला जाता और उसके पुरे मुंह को चमकीले और गीले रस ने भिगो कर रख दिया था.

स्नेहा का और मेरा मुंह तो किट्टी मैम की सेवा करने की वजह से बंद था. पर किट्टी मैम अपने भारी भरकम शरीर पर दो-दो गीले मुंह लगाकर पुरे उत्साह के साथ मजे लेने में लगी हुई थी.

अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह उफ्फ्फ्फफ्फ्फ्फ़........सने..........हाआआ.........मेरी बच्ची........अह्ह्ह्ह........चूस बेटा.....चूस....अह्ह्ह्ह.....अपनी मम्मी....की...चाशनी.......पी.....ले......रीईइ........ और तभी उनकी चूत में जैसे धमाका हुआ. उसमे से एक अजीब तरह का प्रेशर निकला जिसकी वजह से स्नेहा के मुंह को भी झटका लगा और वो पीछे हो गयी और फिर किट्टी मैम की चूत से रस का फव्वारा निकलना शुरू हुआ जिसने सामने खड़ी हुई स्नेहा को पूरी तरह से भिगो दिया. रस के ख़त्म होने के बाद शायद उनके अन्दर का पेशाब भी निकल कर सविता को भिगोने लगा था. पहले तो स्नेहा भोचक्की रह गयी. पर फिर उसके कांपते हुए शरीर पर गिरती बोछारो ने जब उसके शरीर को एक नया एहसास देना शुरू किया तो वो भी अपनी आँखे बंद करे अपनी माँ के आशीर्वाद को अपने ऊपर महसूस करने लगी. जैसे-जैसे फव्वारा कम होता गया, स्नेहा का शरीर आगे की तरफ खिसकता चला गया, वो उनके रसिलेपन को आखिरी क्षण तक अपने ऊपर महसूस करना चाहती थी और जैसे ही उसके स्लिपरी मुम्मे अपनी माँ की जांघो से टकराए, किट्टी मैम ने फिर से उसको अपनी टांगो के मोहपाश में बाँध लिया और उसे फिर से अपनी चूत के ऊपर दबा कर उसे अपनी चूत के रस का मजा देने लगी.

उनकी चूत से उठ रही मादक स्मेल को महसूस करके मैं भी उस तरफ घूम गया, मेरे चूतडो के नीचे किट्टी मैम के दोनों विशाल मुम्मे थे, ऐसा लग रहा था की मैं किसी गद्देदार कुर्सी पर बैठा हुआ हूँ.


मैंने अपना सर झुकाया और अपना मुंह किट्टी मैम की चूत पर लगा कर वहां से निकल रहा अमृत पीने लगा. किट्टी मैम ने भी मुझे अपनी तरफ खींचा और मेरे लंड को सीधा करके बड़ी मुश्किल से अपने मुंह में डाल कर चूसने लगी.

स्नेहा का रस से भीगा हुआ मुंह मेरे मुंह के बिलकुल सामने था. जैसे ही मेरे होंठ वहां पहुंचे स्नेहा ने मुझे थोड़ी जगह देकर अपनी माँ की चूत को मुझे चूसने के लिए दे दिया, पर काफी देर तक भी जब मैंने मुंह नहीं हटाया तो वो अपनी जीभ से मेरे होंठो को हटाने का असफल प्रयास करने लगी. पर मुझे इतना मजा आ रहा था की मैंने उसे वापिस वहां पर मुंह पगाने का कोई मौका नहीं दिया.

पर वो भी कहाँ मानने वाली थी, उसने अपने होंठो को सीधा मेरे होंठो पर लगा दिया और उन्हें किसी पागल कुतिया की तरह से चूसने लगी. इतना मीठापन था उसके होंठो में और इतनी तड़प थी उसकी सकिंग में की थोड़ी देर तक तो मैं उसकी माँ की चूत को भी भूल गया. और इसका फायेदा उसने बखूबी उठाया. मेरे होंठो को एकदम से चुसना छोड़कर उसने फिर से किट्टी मैम की चूत को चुसना शुरू कर दिया.

मैं उसकी चतुरता देखकर दंग रह गया. पर मैंने भी हार नहीं मानी. मैं एकदम से उठा, अपने लंड को बड़ी मुश्किल से किट्टी मैम के मुंह से छुड़ाया, और नीचे आ गया. अब मेरे सामने किट्टी मैम की चूत को चूस रही स्नेहा खड़ी थी. मैंने उसकी उठी हुई गांड को अपने हाथो से दबाना शुरू कर दिया. उसकी गांड अभी भी कुंवारी थी. पर आज उसकी गांड मारने का मौका नहीं था, अगर उसकी चीख बाहर निकल गयी तो गड़बड़ हो जायेगी. इसलिए मैंने अपना हाथ थोडा नीचे किया और उसकी चूत का जाएजा लिया, जिसे मैंने अभी थोड़ी देर पहले ही मारा था, पर उसके अन्दर की गर्मी देखकर लग रहा था की वो फिर से तैयार है. मैंने उसकी चूत के आगे अपना लंड लगाया, और एक तेज धक्का मारकर अपने सुपाड़े को अन्दर धकेल दिया.

अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह ममम्म्म्मी............ चुदते हुए उसकी मम्मी इतने पास थी, ये बड़ा ही सोभाग्य था उसके लिए.

मेरे धक्के से वो अपनी माँ की चूत को चुसना भूल गयी और उसने अपने दोनों हाथ उनकी जांघो पर रख दिए और अपनी आँखे बंद करके अगले धक्के का इन्तजार करने लगी. जैसे ही अगला धक्का आया, उसकी चूत ने मेरे लंड को पूरी तरह से अपने अन्दर उतार लिया और उसका शरीर भी थोडा आगे खिसक कर लगभग अपनी माँ के ऊपर तक आ गया. मैंने तीन-चार धक्के और मारे तो वो उछल कर अपनी माँ के ऊपर चढ़ गयी. और सीधा जाकर अपने मुंह में इकठ्ठा किया हुआ शहद वापिस उन्हें पिलाने लगी.

म्मम्मम्म......ओह्ह्ह्ह....स्नेहा.......म्मम्मम....

वो दोनों इतनी बुरी तरह से एक दुसरे के होंठो को नोच रहे थे मानो उन्हें जड़ से उखाड़ देना चाहते हो. मेरे लंड के चारो तरफ स्नेहा की चूत थी और उसके थोडा सा नीचे ही उसकी माँ की भी. मैंने अपने लंड को पूरा बाहर निकाल लिया और नीचे की तरफ पड़ी हुई किट्टी मैम की चूत के ऊपर रखकर एक तेज शोट मारा.

अह्ह्हग्ग्ग्गघ्ह्ह्ह.............साले......बता तो देता.....अह्ह्हह्ह....की डाल रहा है.....म्मम्मम्मम........ओह्ह्ह्ह विशाल.......कितना बड़ा लंड है तेरा.....अम्म्म्मम्म..........जोर से चोद मुझे अब........जोर से.....अह्ह्ह्ह.....

उसकी बोलती जुबान को स्नेहा ने अपने होंठो से फिर से बंद कर दिया. फिर तो मैंने जो धक्के मारे किट्टी मैम की चूत में. उनका हिसाब ही नहीं था.....उनकी मोटी टांगो ने मेरी कमर को अपने जाल में बाँधा हुआ था. ऐसा लग रहा था की वो मुझे अपनी चूत में खींच रही है. मैंने हाथ आगे किये और अपनी माँ के ऊपर लेती हुई स्नेहा के गीले शरीर पर फिराने लगा और उसके मुम्मो को दबाने लगा. मेरे हाथ उसके और उसकी माँ के मुम्मो के बीच पिस गए थे और मुझे दोनों तरफ से गुदगुदेपन का एहसास करा रहे थे. किट्टी मैम का शरीर अकड़ने सा लगा. उन्होंने अपनी कमर को हवा में उठाना शुरू कर दिया, जैसे कोई प्लेन हवा में उडता है, उनके ऊपर लेटी हुई स्नेहा को तो फ्री में झूले मिलने लगे थे. किट्टी मैम अपनी चूत को मेरे लंड के ऊपर बुरी तरह से दबा रही थी. मुझे लगा की मेरे लंड ने उनकी चूत के अन्दर की उन परतो को भी खोल दिया है, जहाँ आज तक कोई और नहीं गया.

ओह्ह्ह्हह्ह फक्क्कक्क्क.........म्मम्मम......विशाल्ल्ल्ल....ययु आआर.......टू गुड......

स्नेहा भी अपनी माँ के ऊपर से हट गयी और मेरी तरफ मुंह करके खड़ी हो गयी.

अब किट्टी मैम टेबल पर लेटी थी और मैं नीचे खड़ा होकर उनकी चूत मार रहा था, और उनकी बेटी टेबल पर मेरी तरफ मुंह करके खड़ी थी. मुझे पता था की वो क्या चाहती है, पर मैंने अपनी तरफ से कोई पहल नहीं की और किट्टी मैम की चूत मारने में लगा रहा. उससे और सहन नहीं हुआ और उसने मेरे सर के पीछे हाथ रखकर होले से अपनी चूत को मेरे मुंह से लगा दिया और एक तेज सिसकारी मारकर, अपनी आँखे बंद करके, अपने पंजो के बल, मेरे मुंह के ऊपर बैठ सी गयी.  अह्ह्ह्हह्ह स्स्स्सस्स्स्स......म्मम्मम्म......

मैंने भी अपनी जीभ पूरी तरह से बाहर निकाल ली थी जो उसकी चूत के लिए उस समय पार्ट टाईम लंड का काम कर रही थी, मेरी तनी हुई जीभ के ऊपर वो अपनी चूत को डुबकियाँ दिलवा रही थी, और अपने शरीर को गिरने से बचने के लिए मेरे सर के ऊपर अपने हाथो को रखकर बेलेंस बना रही थी..

अह्ह्हह्ह ओह्ह्ह्हह्ह....विशाल......म्मम्मम...ओह्ह्हह्ह गोड.....म्मम्म....सक......सक्क्क्क माय पुस्स्सी......फक्क्क्क माय पुस्स्सी......विद ......यूर टंग........म्मम्मम्म.....ओह माय गोड.....ओह माय गोड......आई एम् कमिंग......कमिंग......कमिंग.......ओह्ह्ह्ह फक्क्क्क........यु मदर फकर.....अह्ह्ह....

साली, मुझे माँ की गाली दे रही थी. जबकि उसकी माँ को मैं चोद रहा था. अपनी चूत से उसने अपनी माँ की ही तरह शहद का झरना खोल दिया. मेरे मुंह से टकराकर वो झरना नीचे की तरफ गिरने लगा. अपनी बेटी के गर्म रस का एहसास अपने ऊपर पाते ही किट्टी मैम की चूत के अन्दर से भी अपनी बेटी की ही तरह एक और तूफ़ान निकलने लगा.. और मैं उन दोनों माँ बेटियों के रस में नहाकर अपने आप को गोर्वान्वित महसूस कर रहा था.

जब तूफ़ान थमा तो उसे मैंने अपने मुंह से उतारा और वहीँ टेबल पर उसकी माँ के पास लिटा दिया. दोनों ने एक दुसरे को चूमना चाटना शुरू कर दिया. मैंने सोचा की इन्हें यही छोड देना चाहिए, मेरा इन्तजार जो हो रहा था.

फिर मैंने पास ही पड़े हुए टोवल से अपने शरीर को पोंछा और अपने कपडे पहन कर अपने कमरे की तरफ भागा. वहां मेरी "बीबी" अंशिका मेरा इन्तजार जो कर रही थी. और आज उसके लिए मेरे पास एक नया तरीका था, जिसे मैंने अभी माँ-बेटी को चोदते हुए ही सोचा था.

जैसे ही मैं अपने कमरे के पास पहुंचा, मेरा फ़ोन फिर से बजने लगा, ये वोही अनजान नंबर था.

मैं: हेल्लो..
आवाज: बड़े मजे ले रहे हो तुम तो. किट्टी मेडम और उनकी बेटी दोनों को एक साथ ही चोद डाला तुमने तो

मैं उसकी बात सुनकर हैरान रह गया. इसका मतलब वो मुझे देख रही थी. उसकी आवाज में एक अजीब सा भूखापन था, यानी जब वो ये बात बोल रही थी, मानो अफ़सोस के साथ कह रही थी की ये सब उसके साथ क्यों नहीं हुआ.

मैंने भी अँधेरे में तीर मारा: तुम हम सब को देख रही थी और मैं तुम्हे देख रहा था.

अब हैरान होने की बारी उसकी थी.

आवाज: यानी...यानी...तुमने मुझे पहचान लिया.
मैं: हाँ, पहचान भी गया और जान भी गया. तुम्हारे चेहरे के एक्सप्रेशन मैं अँधेरे में भी साफ़ देख पा रहा था. शीशे में से.

मैंने ये इसलिए कहा क्योंकि उस कमरे से बाहर की तरफ देखने का एकमात्र साधन वो खिड़की ही थी, जिसपर शीशा लगा हुआ था.

वो मेरे जाल में फंस सी गयी..

मैं अब कल तक का इन्तजार करने का टाइम नहीं है मेरे पास, मैं अभी नीचे वापिस आ रहा हूँ, जल्दी से तुम भी आ जाओ. समझी.

वो कुछ न बोली और फोन रख दिया.

मैंने कमरे में झांककर देखा, अंशिका सो रही थी, मेरा इन्तजार करते-करते उसकी आँख लग चुकी थी, उसने अपने पुरे शरीर पर रजाई ओढ़ रखी थी, और उसका सुन्दर सा चेहरा बड़ा हो मोहक लग रहा था, उसने शायद थोडा मेकअप भी कर रखा था, पर इस समय मैं नीचे खड़ी उस लड़की के बारे में सोच रहा था, इसलिए मैंने दरवाजा बंद किया और वापिस नीचे की तरफ भागा.

किट्टी मैम और स्नेहा वापिस जा चुके थे, कमरे की लाईट भी बंद हो चुकी थी.

मैं पार्क में जाकर एक बेंच पर बैठ गया, तभी दूसरी तरफ से एक लड़की आती हुई दिखाई दी. काफी अँधेरा था वहां पर. पर जैसे-जैसे वो पास आती जा रही थी, उसका चेहरा साफ़ होता जा रहा था. वो एक छोटे से कद की लड़की थी, वैसे भी जिस लड़की सिमरन के बारे में मैं सोच रहा था वो तो शाम को ही स्नेहा के साथ बैठी थी, इसलिए उसके बारे में अंदाजा लगाना तो मैंने पहले ही छोड़ दिया था. ये लड़की तो काफी सिंपल सी लग रही थी, चेहरे पर चश्मा था, रंग गोरा था, ब्रेस्ट भी ज्यादा बड़ी नहीं थी, कद भी पांच फूट दो इंच के आस पास था, कुल मिला कर काफी साधारण सी थी वो.

मेरे पास आकर वो खड़ी हुई तो मैंने हेरानी से पूछा: तुम थी वो...??

मेरी बात सुनकर वो मुझे आश्चर्य से देखने लगी: इसका मतलब, तुमने मुझे नहीं देखा था. ओह माय गोड. मतलब तुमने मुझे झूठ कहा था की तुमने मेरा चेहरा देखा अभी.

मैं मुस्कुरा दिया. उसका चेहरा उतर सा गया था. वैसे जैसे भी थी वो, उसकी आवाज सुनते ही मेरे पुरे शरीर में करंट सा दोड़ने लगा, इतनी गहरी आवाज थी उसकी की मन कर रहा था की वो मेरे कानो के पास खड़ी होकर बोलती रहे.

मैं: अब तुमने मुझे चेलेंज जो किया था, और चेलेंज मैंने पूरा कर दिया. अब जो मैं चाहूँगा, वोही करना होगा तुम्हे.

उसके चेहरे के रंग बदलने लगे.

मैं समझ गया की ये एक जवानी की देहलीज पर कदम रख रही वो लड़की है जिसने अपने आस पास हो रही हलचल को महसूस करके अपने ख्वाब बुने है, किसी लड़के के साथ मजे लेने के. पर शायद उसका चेहरा और शरीर ऐसा नहीं था जो आजकल के लडको को लुभा सके, आजकल के लडको को तो बस मोटी-मोटी ब्रेस्ट और अपने सुन्दर शरीर और चेहरे से घायल करने वाली लड़कियां ही पसंद है, और ये लड़की उस केटागिरी में नहीं आती. और शायद मुझे देखकर और मेरे अंदाज को देखकर इसने सोचा होगा की मेरे साथ कुछ पंगा लिया जाए इसलिए वो मुझे फोन कर रही थी. वो तो मेरा दिमाग चल गया और ये मेरी बातो में आकर मेरे सामने आ गयी, वर्ना शायद ये मुझे कल भी न मिलती. क्योंकि मैं इस लड़की के बारे में तो सोच भी नहीं सकता था की ये मुझे फोन कर रही होगी.

मैं: चलो छोड़ो सब बातो को. तुम्हारा नाम क्या है..
लड़की: माय नेम इस रीना और मैं यहाँ अपनी दीदी के साथ आई हूँ, उनका नाम माया है.
मैं: उसके शरीर को घूरने लगा.
रीना: क्या देख रहे हो इस तरह.
मैं: देख रहा हूँ की तुमने जो अपने फिगर का साईज बताया था, ये कुछ कम सा लग रहा है.
रीना: अच्छा जी. नाप कर देख लो. एक इंच भी कम निकले तो जो कहोगे वो करुँगी मैं.

बड़ी ही बडबोली टाईप की थी वो. मैं उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दिया.

मैं: मेरे पास इंचीटेप तो है नहीं. पर जैसा मैंने कहा था, मैं अपने हाथो से नाप कर बता सकता हूँ.

मेरी बात सुनकर उसके चेहरे का रंग लाल हो उठा. उसके होंठ कांपने से लगे.

मैं: अपनी जगह से उठा और उसके पीछे जाकर खड़ा हो गया.

उसकी तेज साँसे मैं साफ़ सुन पा रहा था. उसके पीछे जाकर मैंने अपने हाथ उसके पेट वाले हिस्से पर रख दिए. वो सिहर सी उठी. उसने पायजामा और टी-शर्ट पहनी हुई थी. मैंने झुक कर अपना चेहरा उसके कंधे पर रख दिया.

मैं: तुम्हारे शरीर के हर हिस्से का नाप लेकर मैं तुम्हे बता सकता हूँ.
रीना: हननं....

उसकी तो जैसे गिग्घी सी बंध गयी थी.

मैं: तुम्हारे पेट पर तो कुछ भी नहीं है. इतना सपाट है ये.

मैंने टी-शर्ट और पायजामे के बीच से उसके पेट वाले हिस्से के अन्दर अपने हाथ खिसका दिए. उसका सर मेरी तरफ झुक सा गया. उसके दोनों मुम्मे और उनकी उचाई अब मेरे सामने थी. मैंने अपने हाथ ऊपर किये और उसके छोटे-छोटे स्तनों के ऊपर हाथ रखकर सहलाने लगा. वाव.....इतने कठोर थे वो दोनों. शायद उसने अपनी ब्रा काफी टाईट करके पहनी हुई थी. मैंने हाथ पीछे लेजाकर अपने एक ही हाथ से उसकी ब्रा के स्ट्रेप को खोल दिया. प्लक की आवाज के साथ उसकी ब्रा खुल गयी. और उसके मुम्मे आगे की तरफ लटक गए. अब मैंने उन्हें अपनी हथेली में भरा, सच में...ये अब ज्यादा बड़े लग रहे थे और शायद वो ठीक ही कह रही थी, 33 तो होंगे ही वो.

मैं: तुमने सही कहा था. इनका साईज तो 33 ही है.

वो मेरी बात सुनकर मुस्कुरा उठी. मैंने अपने हाथ अन्दर डाल कर उसकी ब्रा को ऊपर किया और उसके नंगे बूब्स पकड़ कर उनके साथ खेलने लगा. इतने तने हुए और अपनी शेप में आये हुए मुम्मे मैंने आज तक नहीं देखे थे. इतने सोफ्ट थे मानो जैल से भरा गुब्बारा. जिसे जितना दबाओ उतना ही मजा आये. मैंने उसकी गर्दन पर अपने होंठ रख दिए. वो तड़प सी उठी. मैंने अपना एक हाथ सीधा उसके पायजामे में डालकर उसकी गरमा गरम चूत के ऊपर रख दिया. वो एक तेज सिसकारी मारकर अपनी गांड वाले हिस्से को मेरे लंड के ऊपर दबाने लगी. वैसे जिस तरह की हरकते कर रही थी, मुझे पक्का मालुम था की वो वर्जिन थी अभी तक. वो मेरी तरफ घूमी और एकदम से अपने होंठो से मुझे चूसने लगी. इतने मुलायम थे उसके होंठ. एक अजीब सी तपिश थी उनमे. शायद पहली बार चूस रही थी वो किसी के होंठ.

तभी मेरा सेल बज उठा. मैंने हडबडा कर उसके होंठो से अपने आप को छुड़ाया. वो अंशिका का फोन था.

मैं: हाँ...हेल्लो.
अंशिका: विशाल....कहाँ हो तुम. मैं कितनी देर से इन्तजार कर रही थी तुम्हारा..

मैं: अरे मैं तो आया भी था, तुम सो रही थी इसलिए वापिस नीचे आकर टहलने लगा. बस अभी आया ऊपर.

ये कहकर मैंने फोन रख दिया. रीना मेरी तरफ देख रही थी.

मैं: देखो रीना. मैं समझ सकता हूँ की इस समय तुम क्या चाहती हो और सच बताऊ. मैं भी तुम्हे पुरे मजे देना चाहता हूँ. पर अंशिका को शक न हो जाए इसलिए कल तक का इन्तजार करो. तुम्हारी प्यास मैं बुझाकर रहूँगा. ओके.

मेरी बात सुनकर वो शर्मा सी गयी. चुदने के लिए पूरी तरह से तैयार थी वो भी. पर मेरी बात शायद समझ गयी थी वो और पहली बार में ज्यादा जिद करके वो बुरी भी नहीं बनना चाहती थी शायद.

मैं वापिस ऊपर की तरफ भागा. अंशिका के पास.
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#66
मैंने दरवाजा खोला और अन्दर से बंद करके मैं अंशिका की तरफ मुड़ा, तो उसे देखकर मैं दंग सा रह गया, वो बेड के ऊपर लाल साडी में सजी हुई, दुल्हन की भाँती बैठी थी, जैसे मैं उसका दूल्हा, सुहागरात वाले दिन, कमरे में आया हूँ. वो अपने साथ साडी और ये सब सामान भी लायी थी, यानी वो ये सब करना चाहती थी, और जब मैं पहले भी कमरे में आया था तो उसने अपने ऊपर रजाई ले रखी थी, इसलिए शायद मैं उसके कपडे देख नहीं पाया था. लाल साडी, बिंदी, लिपिस्टिक और हाथो में चुडा, जो ब्याहता लडकिय पहनती है, मैं तो उसके रंग रूप को देखकर मंत्र्मुघ्ध सा रह गया.

मैं धीरे-धीरे चलकर बेड के पास पहुंचा, वो उठी और मेरे पैरो को हाथ लगाने लगी, मैंने उसे बीच में ही पकड़ लिया.

मैं: अरे अंशिका, ये क्या..कर रही हो..?
अंशिका: वही...जो एक शादीशुदा लड़की करती है, शादी के बाद.

मैं: देखो अंशिका...इन सबकी कोई जरुरत नहीं है. मैं वो सब तो कर ही रहा हूँ न तुम्हारे साथ .

मेरा मतलब चुदाई से था. जो वो समझ गयी और उसके चेहरे पर हल्का सा गुस्सा आ गया.

अंशिका: विशाल...तुम ये बात कभी नहीं समझ सकते, की मेरे दिल में इस समय क्या चल रहा है. मैं जानती हूँ और तुम भी की हमारी शादी कभी नहीं हो सकती, पर सच मानो, मैंने जब से तुमसे फिसिकल रिलेशन बनाया है, हर लड़की की तरह, मैंने भी तुम्हे अपनी जिन्दगी और दिल का शेह्जादा माना है और यही कारण है की यहाँ आकर मैंने तुमसे हसबेंड और वाईफ की तरह रहने को कहा, और इन सब के बीच मैंने सोचा की क्यों न अपनी जिन्दगी की सुहागरात भी मैं यही मना लू, तुम्हारे साथ. मुझे मालुम है की अब तुम्हारे लिए इन सबका कोई मतलब नहीं है, पर मेरे लिए ये बहुत मायने रखता है.

ये सब कहते-कहते उसकी आँखों में आंसू आ गए थे..

और सच कहू, आज पहली बार मेरे दिल में एक तीस सी उभरी थी, ये सोचकर की मेरी शादी अंशिका के साथ क्यों नहीं हो सकती. इतना प्यार करने वाली मुझे और कहाँ मिलेगी, हम दोनों एक दुसरे को कितना समझते हैं, एक दुसरे को हर तरह का शारीरिक सुख तो दिया ही है..पर क्या मैंने कभी अंशिका की तरह उसके आगे भी सोचा है. सेक्स के अलावा मैंने क्या कभी अंशिका को अपने प्यार, अपने महबूब की नजर से देखा है. नहीं...ऐसा कभी नहीं किया मैंने. मैं तो हमेशा से सेक्स के पीछे ही भागता रहा और अंशिका ने भी मुझे कभी मना नहीं किया और आज जब उसके मन में इस तरह के विचार आ रहे है तो मुझे भी उसकी भावनाओ को समझना चाहिए और उसका साथ देना चाहिए..

मैंने उसे गले से लगा लिया. भरी भरकम साडी में लिप्त उसका बदन मेरी बाहों में आते ही बेकाबू सा हो गया और वो फूट-फूट कर रोने लगी.

अंशिका: ओह्ह्ह.....विशाल.....तुम नहीं समझ सकते...मैं तुम्हारे बारे में क्या सोचती हूँ. उनहू.....उनहू....

मैंने उसका चेहरा अपने हाथो में पकड़ा और उसके आंसूओ के ऊपर मैंने जीभ फेरकर उन्हें पी लिया.

मैं: अपनी सुहागरात वाले दिन तुम रो रही हो. लगता है तुम्हे डर लग रहा है की मैं कहीं चुदाई करते वक़्त तुम्हे तकलीफ न पहुँचाऊ...है न..

मेरी बात सुनकर उसके रोते हुए चेहरे पर हंसी आ गयी.

मैं: मैं वादा करता हूँ अंशिका, मैं तुम्हारे साथ सिर्फ सेक्स नहीं. बल्कि प्यार से भी प्यारा, प्यार करूँगा. जैसा आजतक किसी ने भी नहीं किया होगा.

मैं कहता जा रहा था और उसकी गर्दन और गालो पर किस्स देता जा रहा था. उसका शरीर कांपने सा लगा...ऐसा लग रहा था की जैसे ये सब उसके साथ पहली बार हो रहा है. मेरा लंड भी अपने रूप में आने लगा था. मैंने उसकी साडी का पल्लू नीचे गिरा दिया और उसकी साडी को खींच कर निकालने लगा, वो साडी के निकलने के साथ-साथ घुमती जा रही थी. और अंत में मैंने उसकी भारी भरकम साडी को निकाल कर एक तरफ रख दिया. लाल रंग के ब्लाउस में से उफन कर बाहर आते हुए उसके गोरे-चिट्टे मुम्मे देखकर तो मैं उनकी सुन्दरता में खो सा गया. मैंने आज पहली बार गोर से देखा की उसके गोरे मुम्मे के ऊपर एक छोटा सा तिल है, जो शायद उन्हें बुरी नजर से बचने के लिए ही बनाया गया है और नीचे उसका हल्का सा थुलथुला और गोरा पेट था, जिसके अन्दर घुसी हुई उसकी नाभि बड़ी ही दिलकश सी लग रही थी और नीचे था उसका पेटीकोट, जो इतना टाईट था की उसकी गांड और जांघो की ऊँचाईया अलग ही चमक रही थी.

इतनी सेक्सी मैंने अंशिका को आज तक नहीं देखा था. मैंने अपनी टी-शर्ट उतार दी और अपने पायजामे को भी उतार कर साईड में रख दिया, अब मैं सिर्फ जोक्की में खड़ा था, अपनी तोप को उसकी तरफ ताने हुए.

मैंने अंशिका से कहा: याद है, मैंने कहा था की तुम्हे नैनीताल में जाकर मेरी हर बात माननी होगी. अब उसका टाईम आ गया है..

अंशिका: वो बात तुमने ना भी कही होती, तो भी मैं तुम्हारी किसी बात को मना नहीं करती आज..बोलो क्या करू, जिससे तुम खुश हो जाओ.

मैं सोफे के किनारे पर बैठ गया और आधा पीछे की तरफ लेट कर उसकी आँखों में देखकर मैंने कहा: अपने बचे हुए कपडे उतारो एक-एक करके और साथ-ही-साथ नाचती भी रहो...धीरे-धीरे .

अंशिका मेरी बात सुनकर मुस्कुरा उठी. पर कुछ न बोली. और अगले ही पल उसकी गजब सी कमर ने मटकना शुरू कर दिया. वो इतने सिडक्टिव तरीके से अपने बदन को हिला रही थी की मुझे अपने ऊपर सबर करना मुश्किल सा हो रहा था..मन कर रहा था की अभी अंशिका को बेड पर पटक कर उसे चोद डालू. पर आज कुछ अलग करना था. इसलिए मैंने अपने आप पर काबू पाया.

अंशिका ने अपने हाथ आगे किये और ब्लाउस के हूक खोलने शुरू कर दिए और जल्दी ही उसने ब्लाउस को खोल दिया और अपने हाथ ऊपर करके उसे निकाल कर मेरे मुंह के ऊपर फेंक दिया. उसकी बगलों से निकले पसीने की महक को सूंघकर मेरे लंड ने बगावत का एलान कर दिया. उसके बाद उसने अपने इलास्टिक वाले स्ट्रेचेबल पेटीकोट को भी खींच कर नीच गिरा दिया. उसकी मोटी-मोटी जांघे और सुदोल पिंडलिया देखकर मेरा मन उन्हें चूमने को करने लगा. अंशिका ने पिंक कलर की ब्रा और पेंटी पहनी हुई थी और वो भी जाली वाली. मैंने ये सेट उसके ऊपर पहले कभी नहीं देखा था. लगता है, ये अपनी "सुहागरात" के लिए स्पेशल लेकर आई है. और फिर उसने धीरे-धीरे डांस करते हुए अपनी ब्रा और पेंटी भी खोल कर मेरी तरफ उछाल दी. उसकी पेंटी के गीलेपन को देखकर ही मुझे उसकी चूत से उफान मार रहे मीठे शहद का आभास हो गया था.
आज उसके निप्पल कुछ ज्यादा ही चमक रहे थे. अंशिका ने मुझे उसके निप्पलस को घूरते देखकर कहा: क्या देख रहे हो. मैंने इनपर तुम्हारे लिए कुछ लगाया है. छुकर देखो जरा इन्हें अपने होंठो से. वो मेरी तरफ कमर मटकाती हुई आई और मेरे ऊपर आधी लेटकर अपने मोटे मुम्मे को पकड़कर मेरे मुंह के अन्दर धकेल दिया. सच में...उसने अपने निप्पलस के ऊपर कुछ लगाया था, जिसकी वजह से वो चमकने के साथ-साथ मीठे भी लग रहे थे. मन कर रहा था की मैं उन्हें चूसता ही जाऊ, चूसता ही जाऊ.

मेरे हाथ अपने आप उसकी गांड के ऊपर चले गए और उन्हें दबाने लगे. पर मेरा खेल अभी ख़त्म नहीं हुआ था. मैंने अंशिका को पीछे किया और कहा: तुम्हे मैंने अभी और कुछ करने को नहीं कहा. पहले तुम मेरे सामने अपनी चूत के साथ खेलो. अंशिका मेरी बात सुनकर मुझे सवालिया नजरो से देखने लगी. पर वादे के मुताबिक कुछ न बोली और वही मेरे बेड के ऊपर, मेरे दोनों तरफ टाँगे करके वो खड़ी हो गयी. उसकी गीली चूत मुझे नीचे लेटे हुए साफ़ नजर आ रही थी. मैंने भी अपने जोक्की को एक झटके में नीचे कर दिया और अपने तने हुए लंड को हाथ में लेकर ऊपर की तरफ देखते हुए उसे हिलाने लगा.

अंशिका ने अपनी चूत के ऊपर अपनी उंगलिया रखी और उसे मसलने लगी. उसकी चूत से छिटक कर एक-दो रस की बूंदे मेरे पेट के ऊपर गिरी, जिसे मैंने हाथ से समेट कर अपने लंड के ऊपर मल दिया. वो मुझे देखकर अजीब से मुंह बना रही थी, मानो कुछ सोच रही थी, और अपने होंठो को गोल करके अजीब तरीके से आवाजे निकालने लगी..

आग्ग्गग्ग्ग्घ.......विशाल्लल्ल्ल्ल.......ओह माय लव.......म्मम्म.....स्सस्सस्स.....यु आर.....माय लाईफ.....ओह्ह्ह्ह.. ...म्मम्मम्म...... ओह्ह्ह्ह गोड.......म्मम्मम....

मेरे लंड ने तो थोड़ी देर पहले ही दो बार पानी छोड़ा था, इसलिए उसे दोबारा डिस्चार्ज होने में टाइम लगना था. पर अंशिका का ये पहला मौका था, इसलिए सिर्फ पांच मिनट के अन्दर ही वो बुरी तरह से हांफती हुई, मेरे ऊपर मीठे रस की बारिश करने लगी. अह्ह्ह्हह्ह विशाल्ल्ल्ल.....आई एम कमिंग......

उसने कमिंग बाद में बोला पर उसके रस ने मुझे पहले से ही भिगो दिया था. वो निढाल सी होकर मेरे ऊपर गिरने सी लगी, मैंने उसकी मोटी गांड को पकड़ा और सीधा अपने खड़े हुए रोकेट के ऊपर लेंड करवा दिया. .जैसे ही मेरे लंड ने उसकी गीली चूत को छुआ, वो उसके अन्दर तक घुसता चला गया और फिर उसे वापिस आसमान की सेर कराने चल दिया.

अह्ह्हह्ह्ह्ह फक्क्क्कक्क्क.......अंशिका......यु आर.....सो गुडडडडडडडडड....

मेरा लंड उसकी चूत के अन्दर किसी पिस्टन की तरह से चलने लगा, इतनी स्लिपरी चूत तो आज तक नहीं दिखी थी उसकी. वो अपने मुम्मे मेरे मुंह के ऊपर बुरी तरह से पिस रही थी, जिन्हें मैं अपने दांतों से और होंठो से काटने और चूसने में लगा था. मैंने एक ऊँगली उसकी गांड के छेद में डाल दी और वो झनझनाती हुई सी एक बार और मेरे लंड के ऊपर झड़ने लगी. मैंने अंशिका को अपने हाथो में उठाया, लंड अभी भी उसकी चूत में ही था, और मैंने उसे बेड पर पीठ के बल लिटाया और खुद उसके ऊपर आ गया, और फिर उसकी टांगो को फेलाया और दे दना दन उसकी चूत के अन्दर धक्के मारने लगा. उसने अपने हाथ अपने सर के ऊपर करे हुए थे, और उसके मोटे चुचे मेरे हर धक्के से बुरी तरह से हिल रहे थे. पुरे कमरे में फचा फच और उसकी सिस्कारियों की आवाजे गूँज रही थी. पलंग भी बुरी तरह से हिल रहा था और फिर जब मुझे महसूस हुआ की मेरा रस निकलने वाला है, मैंने अपने लंड को बाहर निकाला, पर तभी उसने मेरे पीछे टांग बांधकर मुझे फिर से अपनी चूत के अन्दर खींच लिया और मेरे होंठो को चूसने लगी और बीच में रुक कर बोली: मेरे अन्दर ही करो......आज की रात मैं तुम्हे पूरी तरह से महसूस करना चाहती हूँ.

मुझे उसकी इस बात पर क्या एतराज हो सकता था. मेरे लंड ने एक के बाद एक कई पिचकारिया उसकी चूत के अन्दर तक मारनी शुरू कर दी.

और जब तूफ़ान थमा तो मैंने और अंशिका ने एक साथ बाथरूम में जाकर एक दुसरे के शरीर को पूरी तरह से साफ़ किया और वापिस बेड पर आकर, नंगे ही एक दुसरे की बाहों में लेट गए. और उस रात दो बार और मैंने उसकी चूत और गांड का बेंड बजाया और वो भी एक आज्ञाकारी दुल्हन की तरह मुझसे चुदती रही. आज की रात मैं अपनी जिन्दगी में कभी नहीं भूलूंगा.

पूरी रात चुदाई करने के बाद मैं और अंशिका बुरी तरह से थक चुके थे.

सुबह आठ बजे मेरी नींद खुली, मुझे बड़ी ही तेज पेशाब आया था, मैं नंगा ही बाथरूम की तरफ भागा. सुबह-सुबह मेरा लंड अपने पुरे शबाब में था, मैंने अपने हाथ धोये और वापिस बेड के पास आया.

अंशिका बेसुध सी होकर सो रही थी. उसके ऊपर से रजाई हट चुकी थी और उसकी नंगी पीठ और नीचे की तरफ के मोटे और गद्देदार चुतड बड़े ही दिलकश से लग रहे थे. मेरे लंड को सुबह-सुबह और क्या चाहिए था, मैं उसके साथ ही बेड पर लेट गया और उन्हें सहलाने लगा. वो नींद में कुनमुनाई और फिर दूसरी तरफ मुंह करके सो गयी. आज उसकी मोटी गांड को मैं गोर से देख पा रहा था, क्या गांड थी यार, और उसके ऊपर कमर से जुड़ता हुए हिस्से का घुमाव वाला हिस्सा तो इतना मजेदार था की मैंने अपने हाथ उस मोड़ के ऊपर आगे पीछे करने शुरू कर दिए. अपने लंड को मैंने उसकी गांड के साथ दबा दिया और उसकी टांग को उठा कर उसकी गर्म जांघो के बीच फंसा दिया.

आज बड़ा ही प्यार आ रहा था मुझे अंशिका पर..

कल रात को जिस तरह से उसने एक पत्नी की तरह मुझे प्यार दिया था, उसे पाकर मेरे मन में भी उसके लिए एक अजीब तरह की लगन पैदा हो चुकी थी. मैं उसके बालो में उंगलिया फेरा कर उसे देख रहा था की तभी अंशिका का मोबाइल बजने लगा. मैंने झट से उसे सायलेंट पर कर दिया ताकि उसकी नींद न खुल जाए.

वो कनिष्का का फोन था.

मैंने फोन उठा लिया. मेरी आवाज सुनते ही वो खुश हो गयी.

कनिष्का: वाह...क्या बात है...दीदी के फोन को आपने उठाया..सुबह-सुबह..लगता है एक ही बेड पर हो तुम दोनों.
मैं: ठीक कहा और वो भी नंगे..हा हा..
कनिष्का: उनहू....यार...ये गलत बात है. एक तो मुझे नहीं लेकर गए. ऊपर से मुझे चिड़ा भी रहे हो. ईट इस नोट फेयर.

मैं धीरे-धीरे बात कर रहा था. ताकि अंशिका की नींद न खुल जाए.

कनिष्का: अच्छा विशाल. बताओ न. क्या किया तुमने रात को.
मैं: अब तुम्हारी बहन जैसी सेक्सी लड़की मेरे साथ होगी तो क्या करूँगा मैं. पूरी रात चुदाई की उसकी.
कनिष्का: वाव....की...कितनी बार.

उसकी तेज धडकनों के बीच रुकी-रुकी सी आवाज आई. मैं समझ गया की अपनी बहन की चुदाई की बात सुनकर वो एक्साइटेड हो रही है और उसकी ऐसी हालत के बारे में सोचते ही मेरा लंड एक इंच और बाहर निकल आया और सामने सो रही अंशिका की सोती हुई चूत के दरवाजे को धकेल कर अन्दर दाखिल हो गया..

अंशिका की नींद खुल गयी. मेरे लंड का सुपाड़ा उसकी चूत के अन्दर फंस चूका था. वो हेरानी से मुझे अपने पीछे लगे हुए देखने लगी और वो भी उसके फोन पर बात करते हुए. मैंने उसे चुप करने का इशारा किया और होंठ हिला कर बताया की कनिष्का का फोन है. अंशिका सीधी हो चुकी थी, और अपनी पीठ के बल लेट गयी और अपनी एक टांग उठा कर मेरी कमर के ऊपर रख दी...ताकि मेरा लंड सीधा उसकी चूत के अन्दर तक जाए.

मैं कनिष्का से बाते करता रहा..

वो पूछती रही की मैंने कल रात को कैसे और क्या-क्या किया. मैं बताता रहा. अंशिका को शायद उम्मीद नहीं थी की मैं वो सारी बाते उसकी छोटी बहन को ज्यो की त्यों बता दूंगा. पर अपनी चूत में लंड और मेरे चुप करने की वजह से वो बस अपनी गोल आँखों से मुझे बोलते और अपनी चूत को चुदते हुए देखती रही. मैंने अब तेज धक्के मारने शुरू कर दिए थे और उसकी वजह से मुझे बात करने में मुश्किल हो रही थी. मैंने एक हाथ से फोन भी पकड़ा हुआ था. मैंने फोन को स्पीकर मोड पर कर दिया और उसे अंशिका के मुम्मो के बीच रख दिया. अंशिका की तेज साँसे सीधा फोन के ऊपर पड़ रही थी और उतनी ही तेज साँसे दूसरी तरफ से कनिष्का की भी आ रही थी. क्योंकि कल रात की चुदाई की कहानी सुनकर शायद वो भी नंगी-पुंगी होकर अपनी चूत के अन्दर अपनी उंगलियों को डालकर अपना तेल निकलने में लगी हुई थी और तभी अंशिका के मुंह से रसीली सिस्कारियां निकलने लगी. वो इतनी देर से अपने मुंह को बंद करे बैठी थी पर अब उससे सहन नहीं हुआ और वो सीत्कार उठी मेरे लंड की टक्कर अपनी चूत के अन्दर तक पाकर. अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह स्स्स्सस्स्स्स.......म्मम्मम्म.....विशाल्लल्ल्ल......

और जैसे ही कनिष्का ने सुना. वो भी हैरान सी होकर बोल पड़ी: दी.....दीदी....अआप क्या अभी भी.....मेरा मतलब है...विशाल क्या तुम अभी मेरी दीदी को चोद रहे हो.

मैं: हूँ....हाँ....कन्नू......तेरी दीदी की गरमा गरम चूत के अन्दर है मेरा साड़े छह इंच का लम्बा लंड. और वो भी बड़े मजे ले लेकर मुझसे चुद रही है.

कनिष्का की तो आवाज ही आनी बंद हो गयी. तब अंशिका बोली: कन्नू.....अह्ह्हह्ह......बेबी......काश तू भी यहाँ होती आज.

कनिष्का तो अपनी बहन का प्यार देखकर फूली नहीं समायी....: ओह्ह्ह....दीदी...मैं भी तो येही कह रही थी अभी विशाल से.....काश मैं भी होती वहां....आपकी चूत के अन्दर...विशाल का लम्बा लंड जाते हुए देखती और और ...अपनी जीभ से वहां पर चाटती और...अपनी पुससी को आपके मुंह के ऊपर रखकर.....ओह्ह्ह्ह दीदी.....अह्ह्हह्ह.....ये सोचकर....ही...मेरे अन्दर......का.....ज्वालामुखी......फूट रहा है....अह्ह्हह्ह....ओह्ह्ह फक्क्क्कक.......आयी एम कमिंग......दीदी....आई एम कमिंग....ओन यूर फेस......अह्ह्हह्ह.....

अंशिका की आँखे तो बंद सी होने लगी. अपनी छोटी बहन की चूत को अपने मुंह के ऊपर झड़ता हुआ सोचकर. मैंने आगे बढकर अंशिका के निप्पल को मुंह में भरा और उनमे से शहद की बूंदे निचोड़ने लगा..

अब अंशिका का नंबर था चीखने का. अह्ह्ह्हह्ह.......विशाल.......जोर से करो. और तेज....हां......ऐसे ही.....येस्स्स्स........म्मम्मम......आई केन फील यु कन्नू.....ओन माय फेस.....येस्स्स्स.... और अंशिका ने मेरे मुंह को पकड़कर अपनी ब्रेस्ट के ऊपर और तेजी से दबा दिया. और फिर मेरे चेहरे को अपनी तरफ खींचकर मुझे जोर-जोर से स्मूच करने लगी. मानो आज के बाद कोई दिन नहीं निकलेगा. जो करना है, आज ही कर ले. हम दोनों के नंगे जिस्मो के बीच पीसकर अंशिका का फोन कब बंद हो गया..पता ही नहीं चला और अंशिका के चूसने से मेरे लंड का पानी निकल कर कब उसकी चूत के अन्दर शिफ्ट हो गया. मुझे भी पता नहीं चला. मैं तो धक्के मारता गया और तब रुका जब लंड में दर्द सा होने लगा और तब महसूस हुआ की लंड का रस निकल चूका है. मैं भी हांफता हुआ उसके पहाड़ो की चोटियों के ऊपर गिर पड़ा. आज जैसा ओर्गास्म मुझे कभी नहीं हुआ था.

अब तक 9 बज चुके थे..अंशिका उठी और बाथरूम में जाकर क्लीन करने लगी. वो बाहर आई. नंगी और शीशे के सामने खड़े होकर अपने पुरे शरीर को घूम घूमकर देखने लगी. मैंने उसे ऐसा करते देखकर सीटी मारी.

अंशिका: बदमाश हो तुम एक नंबर के. देखो, तुमने मेरी ब्रेस्ट को दबा-दबाकर कितना बड़ा कर दिया है.
मैं: अरे मैं तो इन्हें इसलिए दबाता हूँ की ये अन्दर घुस जाए. पर पता नहीं ये हर बार बड़े क्यों होते चले जा रहे है. पर पता है. येही है तुम्हारा असली एट्रेक्शन. जो मुझे खींच लाता है तुम्हारे पास.

वो मेरी बात सुनकर मुस्कुरा दी.

अंशिका: अच्छा चलो अब बहुत हो गया. उठो और जल्दी नहा लो. आज हमें घुमने जाना है. नोकुचिया ताल और उसके आस पास के और भी ताल देखने.

मैं जल्दी से अन्दर गया और नहा धोकर एक जींस और टी-शर्ट पहन कर जल्दी से तैयार हो गया. अंशिका भी नहाई और तैयार होकर हम दोनों नीचे आ गए. सभी नाश्ता कर रहे थे. मेरी नजरे तो रीना को तलाश रही थी, जिसे मैंने रात को प्यासा छोड़ दिया था. जल्दी ही मुझे रीना मिल गयी, वो टेबल पर बैठी हुई नाश्ता कर रही थी और उसके साथ बैठी थी वोही सेक्सी लड़की...सिमरन.

अंशिका अपनी प्लेट लेकर किट्टी मैम के पास चली गयी, मैंने भी ब्रेड ओम्लेट लिया और रीना की टेबल की तरफ चल दिया. रीना ने जैसे ही मुझे आता हुआ देखा, सिमरन को हाथ मारकर इशारा किया की मुझे देखे और जैसे ही उस सेक्सी ने मुझे देखा, उसकी आँखों में लाल डोरे तेर गए, मुझे देखते ही शायद रीना ने सिमरन को मेरे बारे में बताया होगा, की रात को मैंने उसके साथ क्या-क्या किया. पर मुझे नहीं पता था की रीना सिमरन की दोस्त है. शायद यहाँ आकर दोनों में दोस्ती हुई है.

मैं: हाय रीना. सिमरन...क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ.
रीना: हाँ..हाँ...क्यों नहीं विशाल. अभी मैं सिमरन से तुम्हारी ही बात कर रही थी.
मैं: अच्छा जी. कोई बुराई तो नहीं की न मेरी.
रीना: बुराई ही कर रही थी. अच्छा तो किया नहीं तुमने मेरे साथ.

वो इतनी बेबाकी से मुझसे कल रात की बात कर रही थी और वो भी सिमरन के सामने. मैंने रीना को देखा और फिर सिमरन को.

रीना: मैंने इसे सब बता दिया है और तुम्हे फोन करने का आईडिया भी इसने ही दिया था मुझे कल सुबह. हम दोनों काफी अच्छे दोस्त बन चुके हैं.

मैं समझ गया की ये दोनों दोस्त बनकर मेरी इज्जत लूटने के मूड में हैं. पर मेरा नाम भी विशाल है. पिछले दो महीनो में मैंने इतनी बार लडकियों को चोदा है जितनी इनकी उम्र भी नहीं होगी.

मैं: कोई बात नहीं. मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है. वैसे भी एक से भले दो और दो से भले तीन...है न..

मैंने सिमरन की तरफ देखकर आँख मार दी. वो शर्मा गयी. यार...क्या स्माईल थी उसकी. उसके होंठ इतने मोटे थे. जैसे वो है न...प्रियंका चोपड़ा. उसकी तरह...मन कर रहा था, ओम्लेट छोड़कर उसके होंठ खा जाऊ.

रीना ने मुझे उसकी तरफ घूरते पाकर कहा: वैसे....तुमने काम अधूरा मेरे साथ छोडा था. न की इसके साथ. वो शायद सोच रही थी की उसकी जैसी साधारण लड़की को छोड़कर मैं अब सिमरन जैसी सेक्सी लड़की के पीछे पड़ गया हूँ, और उसका पत्ता कट गया.

मैं: अरे रीना तुम क्यों परेशान हो. हम वही से शुरू करेंगे..जहाँ छोडा था.

मैंने एक हाथ बढाकर उसकी जांघ पर रख दिया और धीरे से दबा दिया. वो मुस्कुरा उठी. चुदाई की बात सुनकर हर लड़की मुस्कुराने क्यों लग जाती है. मैं सोचने लगा और सामने बैठी हुई सिमरन भी शायद मेरे लंड के बारे में सुनकर अपने सपनो में खोयी हुई थी.

तभी किट्टी मैम की आवाज आई की सभी लोग बस में जाकर बैठे. हम बस निकलने ही वाले है. अन्दर जाकर अंशिका इस बार भी किट्टी मैम के साथ आगे जाकर बैठी और मैं सबसे पीछे वाली लम्बी सीट पर रीना और सिमरन के साथ.

अंशिका ने बीच में खड़े होकर आज के स्केडुल के बारे में बताया. सब उसकी बाते सुन रहे थे. पर रीना के हाथ मेरे लंड के ऊपर थिरक रहे थे. लगता है आज ये बस के अन्दर ही कुछ करके रहेगी.

मैंने जेकेट पहनी हुई थी, बस के अन्दर ठण्ड कम थी और रीना भी मेरे लंड के ऊपर हाथ फेरा रही थी, इसलिए मैंने जेकेट को उतारा, और अपनी गोद में रख दिया ताकि रीना का हाथ क्या कर रहा है, वो सब छुप जाए और दुसरे कोने में बैठी हुई दो लड़कियां न देख पाए की हम क्या कर रहे हैं. वैसे तो सिमरन भी अपने आपको आगे करके बैठी थी ताकि उन दोनों लडकियों को इस कोने में होता हुआ कुछ न दिखाई दे, पर फिर भी डर तो लगता ही है न. मेरे जेकेट के डालने से तो रीना और भी बेशर्मी पर उतर आई, उसने मेरी पेंट की जिप खोली और अपने नन्हे हाथ अन्दर डाल कर मेरे मोटे लंड को पकड़ कर मसलने लगी और जल्दी ही उसे बाहर निकाल कर पूरी तरह से उसकी सेवा करने लगी.

मुझे पता नहीं था की उसने पहले कभी लंड हाथ में लिया है या नहीं पर उसके चेहरे को देखकर तो लगता था की वो काफी अचरज में है. शायद मेरे लंड के साईज को देखकर. वो अपनी गांड को सीट पर बैठे हुए हिला रही थी, शायद नीचे की तरफ से आते हुए घिस्से उसे मजा दे रहे थे.

तभी मैंने अंशिका को पीछे की तरफ आते हुए देखा, मैंने जल्दी से रीना का हाथ अपने लंड से हटाया और जेकेट से अपने नंगे लंड को छुपा लिया. अंशिका पीछे तक आई और मुझे रीना और सिमरन के साथ बैठा हुआ पाकर वो मुस्कुराने लगी..

अंशिका: अरे विशाल...तुम पीछे बोर तो नहीं हो रहे न..
मैं: नहीं अंशिका. मुझे यहाँ नए दोस्त मिल गए हैं. बस टाईम पास हो ही जाएगा आज का.

अंशिका ने आँखे निकाल कर मुझे देखा, मानो कोई बीबी अपने पति को बाहर की औरतों को देखने के लिए मना कर रही हो.

तभी रीना बीच में बोल पड़ी: अरे मैम...आप फिकर मत करो. हम विशाल का अच्छी तरह से ध्यान रखेंगे..

शायद अंशिका सोच रही होगी, इसी बात का तो डर है. मैं उसकी मनोदशा भांपकर हंस दिया.

अंशिका आगे चली गयी और रीना का हाथ फिर से मेरे बिल में घुस गया और सो चुके लंड महाराज को उठाने का काम करने लगा और वो जल्दी उठ भी गया और इस बार दुगने जोश के साथ. रीना ने साईड में होकर दोनों लडकियों को देखा, रास्ता घुमावदार था, शायद उन्हें चक्कर आ रहे थे.इसलिए कोने में बैठी लड़की ने अपनी आँखे बंद कर रखी थी, शायद सो रही थी वो और उसके साथ बैठी हुई लड़की ने उसकी गोद में सर रखा हुआ था और वो भी सोने की कोशिश कर रही थी. रीना ने जैसे ही ये देखा, उसके दिमाग में भी आईडिया आया, उसने सिमरन के कान में कुछ कहा और फिर मेरी तरफ मुड़कर अपने सर को मेरी गोद में रख दिया और मेरी जेकेट को उठा कर अपने सर के ऊपर ओढ़ लिया.

मेरी तो हालत ही खराब हो गयी. उसने मेरे मोटे सांप को अपने मुंह के अन्दर निगल लिया..पूरा का पूरा. देखने में तो उसका चेहरा काफी छोटा था, पर अन्दर से उसका मुंह काफी बड़ा था. मेरे लंड को वो किसी लोलीपोप की तरह से चूस रही थी, मानो उसकी सारी मिठास आज वो निकाल कर रहेगी. मैंने उसकी पीठ पर हाथ रखा और उसके गुदाज जिस्म को सहलाने लगा और सहलाते हुए मेरा हाथ उसकी गांड की तरफ चला गया. उसने लॉन्ग स्कर्ट पहनी हुई थी और उसके ऊपर स्वेटर. मैंने एक हाथ उसके स्वेटर के अन्दर दाल दिया, नीचे उसने कुछ भी नहीं पहना हुआ था. सिर्फ ब्रा के स्ट्रेप हाथ में आ रहे थे. मैंने उसकी गांड के चीरे पर अपनी ऊँगली रखकर नीचे खिसकानी शुरू कर दी. उसकी गांड काफी दमदार थी, उसकी घाटी के अन्दर मेरी ऊँगली फिसलती चली गयी.

पूरी बस में हमारी तरफ ध्यान देने वाला कोई नहीं था.

रीना अपने मुंह से मेरे लंड को चूस चूसकर मजा दे रही थी और सिमरन. उसकी तरफ तो मेरा ध्यान गया ही नहीं. मैंने सिमरन को देखा. उसकी आँखे गुलाबी हो चुकी थी और उसकी नजरे रीना के ऊपर थी, जो मेरी जेकेट के नीचे घुसकर मेरे लंड को नोच खा रही थी. मैंने सिमरन को भी अपने लंड का गुलाम बनाने की सोची और मैंने एक झटके से अपनी जेकेट को रीना के सर के ऊपर से हटा दिया. जैसे ही जेकेट हटी, रीना हडबडा कर मेरे लंड को छोड़कर उठ बैठी और जैसे ही उसने मेरे लंड को अपने मुंह से निकला, वो अपनी सुन्दरता बिखेरता हुआ सिमरन की नंगी आँखों के सामने लहराने लगा.

रीना ने जब देखा की कोई नहीं है तो वो जल्दी से वापिस नीचे झुकी और मेरे गीले लंड को अपने मुंह में डालकर फिर से चूसने लगी और इतनी देर तक सिमरन की हालत बुरी हो चुकी थी. उसने मेरे लंड की एक एक नस देख ली थी इतनी देर में. और उसकी साँसे तेजी से चलने लगी थी और तब उसने अपनी लाल आँखे उठा कर मेरी तरफ देखा. जैसे ही उसकी नजरे मुझसे मिली. मैंने उसे आँख मार दी. वो शर्मा गयी.

मैंने रीना के सर के ऊपर जेकेट फिर से डाल दी. सिमरन समझ चुकी थी की मैंने ये सब उसे अपना लंड दिखाने के लिए ही किया है. मेरा एक हाथ अभी भी रीना की गांड कुरेदने में लगा हुआ था. सिमरन का हाल बुरा हो चला था. उसकी टी-शर्ट में से मुझे उसके निप्पल साफ़ दिखाई देने लगे थे और उसके मोटे-मोटे होंठ दांतों के नीचे दबने से लाल सुर्ख हो चुके थे.

मैंने रीना की गांड से हाथ निकाला और सिमरन की तरफ बड़ा दिया. सिमरन वैसे भी रीना को छुपाने के लिए लगभग उससे सट कर बैठी हुई थी. मेरा हाथ सीधा उसके पेट पर गया..ठीक उसके मोटे और झूलते हुए मुम्मो के नीचे. उसके बदन में करंट सा लगा..मैंने अपने हाथो को उसके नर्म पेट पर फेरना शुरू कर दिया और थोडा ऊपर किया और उसके लटकते हुए मुम्मे के नीचे वाली हिस्से पर अपनी उंगलियों को छुआ दिया. उसके मुंह से एक मादक सी आवाज निकल गयी.

अह्ह्हह्ह्ह्ह......

पर बस की तेज आवाज की वजह से वो दब कर रह गयी. पर उसकी आवाज सुन कर मुझे डर लगने लगा. अगर किसी ने नोट कर लिया की मैं बस के पीछे बैठ कर दो-दो लडकियों से मजे ले रहा हूँ तो अंशिका की कितनी बदनामी होगी, यहाँ तो सभी को यही मालुम है की मैं उसका कजन हूँ..

मैंने अपना हाथ वापिस रीना की गांड की तरफ कर दिया. मेरी बेरुखी देखकर सिमरन मेरी तरफ देखने लगी, उसे शायद मजा आ रहा था और वो भी अपने जिस्म के ऊपर मेरे हाथो को महसूस करके खुश थी. मैंने उसे इशारा किया की बाद में उसका ही नंबर है. तो वो बुरा सा मुंह बनाकर फिर से रीना और मेरी पहरेदारी करने लगी.

अब मेरे लंड का पारा भी गर्म हो चला था. वो कभी भी फट सकता था. मैंने अपने हाथ को रीना की गांड से हटा कर उसकी स्वेटर के अन्दर डाल दिया और ब्रा के ऊपर से ही उसके सुदोल सी बेस्ट को दबाकर उनका मर्दन करने लगा और जल्दी ही वो लम्हा आ गया जिसके लिए रीना इतनी मेहनत कर रही थी और जैसे ही मेरे लंड की पहली पिचकारी उसके मुंह में गयी, उसने मेरे लंड को अपने गले तक लेजाकर वहीं छोड़ इया, ताकि उसके बाद निकलने वाली सारी पिचकारिया सीधा उसके पेट के अन्दर तक जाए.

इतनी अन्दर तक मैंने आज तक अपना लंड नहीं घुसाया था. किसी के मुंह में. और चलती बस में अपने लंड को किसी अनजान लड़की से चुस्वाने का ये रोमांच भी बड़ा ही सुखद था.

मेरे लंड को चूसने के बाद रीना ऊपर उठी, उसका चेहरा पसीने से भीगा हुआ था, और होंठो पर अभी भी मेरे लंड से निकला सफ़ेद रस लगा हुआ था. जिसे वो अपनी जीभ से इकठ्ठा करके चूसने में लगी हुई थी.

उठने के बाद वो बोली: विशाल. इतना स्वादिष्ट रस तो मैंने आज तक नहीं पिया और फिर उसने जो किया मैं और सिमरन दोनों हैरान रह गए..

उसने अपने मुंह के कोने में जमा किया हुआ मेरा वीर्य अपनी ऊँगली के सिरे पर इकठ्ठा किया और सिमरन के मुंह के अन्दर वो ऊँगली डाल दी.

सिमरन अपनी फटी हुई आँखों से रीना को देखती रही. पर रस पीने से मना न कर पायी और जैसे ही उसने वो रस अपने गले से नीचे उतारा उसे और भी ज्यादा पीने की इच्छा होने लगी. रीना ने उसे कहा की आते हुए तुम विशाल के पास बैठना और जी भरकर इसका जूस पीना.
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#67
खैर...

हमारा पहला स्टॉप आ गया था. एक बड़ी सी झील थी, पहाड़ो से घिरी हुई, और हलकी बारिश होने की वजह से माहोल काफी रोमांटिक सा हो रहा था. एक तरफ एक बड़ा सा रेस्टोरेंट बना हुआ था, जिसमे ज्यादातर लोग जाकर बैठ गए और बारिश के बंद होने का इन्तजार करने लगे.

अंशिका ने कहा की हम यहाँ एक घंटा रुकेंगे. जिसे भी भूख लगी है वो खा सकता है या किसी को घूमना है तो वो घूम सकता है. अंशिका की बात सुनकर सभी ने अपने ग्रुप बना लिए. मेरे साथ रीना, सिमरन और वो दोनों लड़कियां, जो हमारे साथ पीछे बैठी हुई थी, चल पड़ी.

रीना के पास छाता था, उसने खोला और मुझे और सिमरन को अन्दर ले लिया. हम सब आगे की तरफ चल दिए. थोडा आगे चले थे की बारिश और भी तेज हो गयी. वो दोनों लड़कियां, भीगने के डर से वही से वापिस भाग ली, और वापिस रेस्टोरेंट में जाकर बैठ गयी. हम तीनो भी थोडा बहुत भीग रहे थे. एक छाते के अन्दर तीन लोग सही तरह से आ नहीं पा रहे थे. सिमरन मुझसे बिलकुल सट कर चल रही थी. उसकी टाईट गांड के उभार देखकर मेरे लंड ने फिर से अपना सर उठाना शुरू कर दिया. काफी आगे जाकर रीना को पहाड़ का एक ऐसा हिस्सा दिखाई दिया, जिसके नीचे छिपकर ऊपर से आती हुई तेज बारिश से बचा जा सकता था. हम तीनो वहां जाकर खड़े हो गए और छाता एक तरफ रख दिया.

मौसम काफी ठंडा हो चूका था, सामने की तरफ बड़ी सी झील थी और हमारे पीछे की तरफ पहाड़. हमारे दांयी तरफ, जहाँ से हम आये थे, पूरा सुनसान था, क्योंकि सिवाए हमारे, किसी के पास भी छाता नहीं था, इसलिए तेज बारिश में कोई भी पीछे नहीं आ पाया और रीना इस मौके को अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहती थी.

उसने एक ही झटके में अपनी स्वेटर को अपने गले से उतार कर साईड में रख दिया और अपनी छोटी ब्रेस्ट, जो की काले रंग की ब्रा में कैद होकर उफान पर थी, मेरे और सिमरन के सामने परोस दी. उसकी हिम्मत देखकर मैं भी हैरान रह गया. पर सिमरन नोर्मल थी. शायद उसे मालुम था की रीना ऐसा करने वाली है और फिर रीना ने सिमरन को इशारा किया. और उसने भी हिचकिचाते हुए अपनी टी-शर्ट को पकड़ा और अपने सर से घुमा कर वो भी सिर्फ ब्रा और जींस में मेरे सामने खड़ी हो गयी. इतने मोटे और सफ़ेद मुम्मे मैंने आज तक नहीं देखे थे. सिमरन ने पर्पल कलर की ब्रा पहनी हुई थी और उसके मोटे निप्पल ब्रा में से भी साफ़ दिखाई दे रहे थे..

वाव...मेरे मुंह से उन दोनों के लिए एक ही शब्द निकला...वाव.

अब वो दोनों प्यासी नजरो से मुझे ही देख रही थी. मैं समझ गया की मुझे भी अपने कपडे उतारने होंगे. मैंने अपनी जेकेट और टी-शर्ट उतार दी. ठंडी हवा के झोंके ने मुहे सहला दिया..तेज बारिश की बोछार हमारे ऊपर भी आ रही थी, सिर्फ महीन बूंदों के रूप में.

अन्दर की तरफ एक ऊँची चट्टान के ऊपर एक सुखी हुई सी डाल थी, जिसपर मैंने अपने और उन दोनों के कपडे टांग दिए, ताकि वो भीगे न और फिर मैंने अपनी जींस उतारी और उसके अन्दर मेरे लंड का टेंट देखकर वो दोनों बाराती मेरे फंक्शन में आने को कुलबुलाने लगे. रीना ने सबसे पहले अपनी जींस को उतारा और उसे मेरी तरफ उछाल दिया और फिर अपनी पेंटी और ब्रा को भी उतार कर एक कोने में रख दिया. अब वो मेरे और सिमरन के सामने नंगी खड़ी थी.. मैं रीना के नंगे जिस्म को देख रहा था और सिमरन मेरे लंड वाले हिस्से को. वो तो रीना की तरफ देख भी नहीं रही थी. रीना ने सिमरन को देखा तो बोली: अब जल्दी कर. कोई आ गया तो सारा प्लान फेल हो जाएगा.

ओहो....यानी इन दोनों ने पहले से ही प्लान बनाया हुआ था, मुझसे चुदने का. वैसे मुझे अंदाजा तो था, पर ये बात मुझे बता देगी, ये नहीं पता था.

रीना का छोटा सा शरीर और उसकी छोटी ब्रेस्ट, और मखमली गांड को देखकर तो मेरे लंड ने अंडरवीयर को भी फाड़ डालने की सोच ली. सिमरन ने एक बार फिर से बाहर देखा की कोई आ तो नहीं रहा, अब बारिश और भी तेज हो चुकी थी, किसी के आने का तो सवाल ही नहीं था.

उसने अपनी जींस को उतारा, नीचे उसने मेचिंग पर्पल कलर की जाली वाली पेंटी पहनी थी. उसने हाथ पीछे इए और अपनी ब्रा को उतार दिया, ऐसा करते हुए उसने मेरी तरफ पीठ कर ली, साली शरमा रही थी मुझसे और फिर झुककर उसने अपनी पेंटी को भी नीचे गिरा दिया और ऐसा करते हुए उसकी गोरी और फेली हुई गांड को देखकर मेरा मन डोल उठा. मैंने आगे बढकर अपने अंडर वीयर को नीचे किया और अपने लंड को सीधा उसकी मखमली गांड के बीच रख कर उसे अपनी तरफ खींच लिया.

अह्ह्ह ह्ह्ह्हह्ह्ह्ह......स्सस्सस्स...... उसके मुंह से एक लम्बी और ठण्ड से भीगी हुई सी सिसकारी निकल गयी.

क्या जिस्म था यार उसका. एक दम मक्खन और इतनी सोफ्ट स्किन थी उसकी मानो हलवे के अंदर उंगलिया डाल रहे हैं. मेरे दोनों हाथो ने उसके मोटे-मोटे मुम्मे पकड़ लिए और उन्हें जोर से दबा दिया. तभी पीछे से मुझे रीना ने अपने हाथो में जकड लिया. उसने जब देखा की उसके नंगे बदन को छोड़कर मैं सिमरन की तरफ चला गया हूँ तो शायद उसने खाली खड़े होना उचित नहीं समझा.

हम तीनो नंगे थे उस छोटी सी गुफा नुमा जगह पर. मैं रीना की तरफ घुमा तो उसने मेरे गले में अपनी बाहे डाली और मुझे अपने मुंह की तरफ खींचा, उसके मुंह तक जाने के लिए मुझे नीचे झुकना पड़ा और मैंने अपने हाथ उसकी गांड पर रखकर उसके दहकते हुए होंठो पर अपने अंगार रख दिए.
उम्म्मम्म्म्म....मूऊचस्स्सस्स्स्सस्स्स........अह्ह्हह्ह.... और फिर मैंने उसे अपनी गोद में उठा लिया. बड़ी ही हलकी सी थी वो और मैंने उसके मुंह से अपनी होंठ छुड़ा कर नीचे किये और उसके छोटे-छोटे अमरूदो पर रख कर उनका स्वाद लेने लगा..

सिमरन दूसरी तरफ खड़ी होकर मुझे और रीना को चूमा चाटी करते हुए देख रही थी. रीना ने अपनी चूत को मेरे पेट वाले हिस्से पर रखकर घिसना शुरू कर दिया. उसकी चूत से निकल रहा घी मेरे लंड का अभिषेक कर रहा था और उसे चुदाई के लिए तैयारी में मदद कर रहा था अपनी चिकनाई देकर. और फिर रीना से जब सहन नहीं हुआ तो उसने अपनी गांड को थोडा और ऊपर उठाया और मेरे खड़े हुए लंड के ऊपर लेजाकर छोड़ दिया. वो पहले चुद चुकी थी. पर मेरे लंड का सुपाड़ा थोडा मोटा है..जो उसके लिए बड़ा था, इसलिए वो वही अटक सी गयी. उसने मेरी तरफ देखा और आँखों ही आँखों में विनती की. मैंने उसकी विनती स्वीकार की और उसकी कमर में हाथ डालकर उसे नीचे की तरफ धकेल दिया.

अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह........ओह्ह्हह्ह्ह्ह गोड.......

उसकी चूत की परते खुलती चली गयी. और मेरे लंड ने उसकी चूत को चीरते हुए अंदर तक अपना अधिकार जमा लिया. वो मेरे लंड के ऊपर लटक सी गयी थी. मैंने उसकी ब्रेस्ट को फिर से चूसा और नीचे से धक्के मारकर उसकी चूत का मजा लेना शुरू किया. साली की चूत इतनी टाईट थी की मुझे गोद में लेकर चोदना मुश्किल हो रहा था. मैंने उसे नीचे उतारा और दीवार की तरफ घुमा कर खड़ा कर दिया. उसने दीवार पर हाथ रखे और मैंने उसकी चूत के ऊपर अपना लंड और एक ही झटके में मैं फिर से उसकी चूत के कारखाने में था और फिर दे दना दन मैंने एक साथ लगभग दस पंद्रह धक्के मारे उसकी चूत में. जो उसके लिए बहुत थे और वो भरभरा कर झड़ने लगी.

अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह.......विशाल.......म्मम्म....क्या चोदता है यार......म्मम्म....मैं तो तुझे देखते ही समझ गयी थी की तू पुराना खिलाडी है.....अह्ह्ह......मजा आ गया....ऐसी चुदाई तो मेरे बॉय फ्रेंड ने आज तक नहीं की.....सच में.

मेरा लंड उसकी चूत से फिसल कर बाहर आ गया. वो अभी भी तना हुआ था. मैंने सिमरन को देखा. वो समझ गयी की अब उसका नंबर है. वो मेरे पास आई और मेरे गले में अपनी बाहे डालकर मुझसे लिपट गयी और नीचे हाथ करके उसने मेरा लंड हाथ में पकड़ कर हिलाना शुरू कर दिया. रीना की चूत से निकला रस उसकी हथेली पर लग गया. उसने अपने हाथ को ऊपर किया और चाटने लगी.

वो ज्यादा गर्म हो चुकी थी. मेरी और रीना की चुदाई देखकर. वैसे मैं उसे चुसना और चाटना तो चाहता था पर आज समय नहीं था, बारिश कभी भी बंद हो सकती थी और कोई भी यहाँ आ सकता था. इसलिए सीधा चुदाई करना ही उचित था. मैंने उसे भी घोड़ी बनाया और वो भी दिवार की तरफ मुंह करके खड़ी हो गयी. मैंने अपना लंड उसकी चूत के ऊपर रखा ही था की वो घूमी और थोडा बाहर निकल कर खड़ी हो गयी. यानी बारिश में. वो बुरी तरह से भीगने लगी थी. मैं समझ नहीं पाया की वो क्या चाहती है. फिर वो बाहर की तरफ वाली दिवार के ऊपर हाथ रखकर खड़ी हो गयी. यानी वो चाहती थी की मैं उसके पीछे जाकर उसे चोदु और वो भी बारिश में.

वैसे कोई फर्क तो नहीं पड़ता. क्योंकि हम सभी नंगे थे वहां. कपडे तो सभी के अंदर थे, पुरे सूखे हुए.

मैंने भी मजे लेने के लिए उसका साथ देना सही समझा और बाहर निकल आया. तेज बारिश की बूंदे मेरे नंगे जिस्म पर चुभ रही थी. मैं उसके पास गया और पहले उसे अपने गले से लगाकर बुरी तरह से चूमने लगा. चूसने लगा. और फिर उसका दीवार की तरफ मुंह करके मैंने अपने लंड को उसकी चूत के अंदर धकेलने लगा. उसकी गोरी गांड के ऊपर पड़ रही बारिश की बूंदे फिसल कर नीचे गिर रही थी. मैंने भी उसी बारिश के पानी के गीलेपन का फायेदा उठाया और अपने लंड को एक ही झटके में उसकी चूत की झील के अंदर उतार दिया.

उह्ह्ह्हह्ह्ह्ह म्म्म्मम्म्मास्स्सस्स्स्सस्स्स....

वो भी काफी टाईट थी. चुदी तो हुई थी. पर ज्यादा नहीं और ऐसी चुते चुदने में ज्यादा मजा देती है. मैंने बारिश में भीगते हुए, उसकी चूत के अंदर अपने लंड को जोरो से पेलना शुरू कर दिया.

अह्ह्हह्ह....अह्ह्हह्ह...ओह्ह्ह्हह्ह ...म्मम्मम्म... उसकी आँहे तेज बारिश में भी साफ़ सुनाई दे रही थी.

मेरे लंड के सामने ये दूसरी चूत थी, इसलिए वो जल्दी ही झड़ने के करीब आ गया. मैंने अपने हाथ आगे किये , एक हाथ से मैंने उसके मुंह को पकड़ कर अपनी तरफ किया और जोरो से स्मूच करने लगा और दुसरे हाथ से उसकी मोटी ब्रेस्ट को दबाने लग गया. येही काफी था उसकी चूत के अंदर का गुबार निकालने के लिए.

अह्ह्ह्हह्ह........विशा........आआअल...........अह्ह्ह्हह्ह...

मेरे लंड ने भी अपने रस को उसकी चूत के अंदर खाली कर दिया. ऐसा लग रहा था की उसकी चूत में कोई सक्शन पावर है, जो मेरे लंड का पानी निचोड़ रही है. जल्दी ही मैं झड कर एक तरफ हुआ, अपने लंड को बारिश के पानी से धोया और अंदर आ गया.

रीना तो कपडे पहन भी चुकी थी. उसने अपनी पॉकेट से एक बड़ा सा हैण्ड टॉवेल निकाला और मुझे दे दिया, अपना बदन सुखाने के लिए. वो छोटा था पर इस समय काफी काम आ रहा था. मैंने किसी तरह से अपने शरीर का पानी सुखाया और रिकॉर्ड तेजी से अपने कपडे पहन लिए. उधर सिमरन ने भी थोडा बहुत गीलापन साफ़ करके अपनी कपडे पहन लिए थे. पर अभी भी मुझे और शायद सिमरन को भी अंदर से काफी गीलापन महसूस हो रहा था. पर बारिश में चुदाई करने के लिए इतना सहन करना तो बनता ही है.

हम तीनो वही बैठकर बाते करते रहे, थोड़ी देर में ही बारिश बंद हो गयी. हम हलकी बोछारों में वापिस रेस्टोरेंट की तरफ चल दिए. 

रास्ते में हमें अंशिका हमारी तरफ आती हुई दिखाई दी. वो काफी परेशान लग रही थी. पास आते ही अंशिका ने मुझपर प्रश्नों की झड़ी लगा दी.

क्यों गए थे...? कहाँ थे...? कितना परेशान थी मैं. वगेरह वगेरह और फिर वो आगे हुई और मेरे गले से लगकर रोने लगी.

मैं समझ गया की वो सच में परेशान थी मेरे लिए और वो दोनों उसे कजन का प्यार समझ कर बस मुस्कुरा कर रह गए.

अब बारिश बंद हो चुकी थी. हम सभी आगे तक घुमने गए. काफी फोटो भी खींचे. अंशिका अब मेरे साथ ही थी. रीना और सिमरन अब मुझसे दूर थी, उनका काम तो हो ही चूका था. रात को हम सब वापिस अपने होटल में आ गए और अंदर आते ही अंशिका मेरे ऊपर आ चड़ी.

अंशिका ने मेरे हाथ अपने हाथो के नीचे दबा दिए, और मेरे पेट के ऊपर बैठ कर मुझे बेतहाशा चूमने चाटने लगी. उसके बूब्स मेरे सामने थे पर मेरे हाथ दबे होने की वजह से मैं उन फलों को अपने हाथों से पकड़ नहीं पा रहा था.

अंशिका: अब बोलो...सुबह से मुझे तरसा के रखा हुआ है. नयी लडकियों के साथ ज्यादा मजा आ रहा था. बोलो. क्या किया उनके साथ.

मैं जानता था की अगर मैंने अंशिका को अभी उनके बारे में कुछ भी बताया तो उसे बुरा लगेगा.

मैं: अरे कुछ भी नहीं यार. वो तो बारिश इतनी तेज थी इसलिए हमें एक जगह पर रूककर खड़े होना पड़ा. वैसे भी वहां पर इस तरह की कोई भी बात पोसिबल ही नहीं थी.
अंशिका: मैं जानती हूँ तुम्हे. तुम्हारे लिए सब पोसिबल है. तुमने मुझे कहाँ-कहाँ पर लेजाकर. चो...मतलब प्यार किया है....मुझे सब पता है.

कितनी अच्छी तरह से जानने लग गयी थी वो मुझे. मैंने उसकी आँखों में झाँका, उसमे मेरे लिए प्यार था और शायद थोडा इश्र्यापन उन दोनों की वजह से. मेरा दिल धक् से रह गया.

उसकी आँखों में आंसू थे. मैं उसके साथ यहाँ आया था, और मैंने कहा भी था की ये चार दिन हमारे हनीमून की तरह होंगे और मैंने उसके विशवास को ठेस पहुंचाई थी. अच्छा हुआ मैंने रीना और सिमरन के साथ चुदाई वाली बात उसे नहीं बताई अभी तक. वर्ना वो टूट जाती.

मैंने उसे नीचे पटक दिया और उसके ऊपर खुद आ चढ़ा. उसकी आँखों से दो आंसू निकल कर नीचे लुडक गए.

मैं: हे....ये क्या?? मेरे होते हुए तुम रो क्यों रही हो? सुनो...मेरा विशवास करो. मैं तुम्हारे अलावा किसी और की तरफ अब आँख उठा कर नहीं देखूंगा. प्रोमिस.

मेरा ऐसा कहते ही उसने मेरे चेहरे को अपनी तरफ खींचा और मेरे लबो के ऊपर अपने थरकते हुए होंठ रख दिए.

आज उसके होंठो में एक अजीब सी प्यास थी. जो वो मुझे पीकर बुझाना चाहती थी. मैंने अपने आप को उसके हवाले कर दिया. कभी-कभी इस तरह की सिचुएशन में कुछ भी न करो तो दूसरी तरफ से आने वाला मजा अच्छा लगता है और मैंने आज तक अंशिका को इतना उत्तेजित नहीं देखा था. आज तो वो मुझे खा जाने वाले मूड में थी. मुझे उसके दांतों से बचकर रहना होगा बस.

उसने मेरी टी-शर्ट को ऊपर किया और अपनी लम्बी जीभ से मेरे पेट को चाटते हुए ऊपर तक आई और मेरे निप्पल को मुंह में भरकर चूसने लगी. मेरे पुरे शरीर में सिहरन सी दौड़ गयी. आज पता चला की लडकियों के निप्पलस को चुसो तो क्या होता है उनके शरीर में. मैंने उसके चेहरे को अपनी छाती पर दबा सा दिया. ताकि वो अपनी जीभ से मुझे ज्यादा गुदगुदी न कर पाए. पर ऐसा करने से उसके तेज दांत मेरे उस हिस्से पर कस से गए. उसने अपना मुंह पूरा खोलकर मेरे निप्पल वाले हिस्से को मुंह में भर लिया और चूसने और काटने लगी.

अह्ह्हह्ह......अंश......इईका..........म्मम्म...ओह माय डार्लिंग......धीरे.....अह्ह्ह..

आज वो जंगली बिल्ली जैसे बिहेव कर रही थी. मेरा लंड तो पूरा खड़ा हो चूका था और किसी रोकेट की तरह उसकी चूत की तरफ मुंह किये हुए अपनी लौन्चिंग की तैयारी कर रहा था.

उसने मेरी टी-शर्ट को ऊपर करके निकलना चाहा पर वो गले में अटक गयी और अपने जंगलीपन में अंशिका ने मेरी टी-शर्ट को फाड़ डाला और दो हिस्सों में करके एक कोने में उछाल दिया. मैंने भी अपने दोनों हाथो से उसकी टी-शर्ट को पकड़ा और पूरा जोर लगा कर उसे फाड़ दिया. नीचे उसकी ब्लेक कलर की ब्रा थी. मैंने उसे भी एक झटके में दो टुकडो में फाड़कर ऊपर की तरफ उछाल दिया. अपने इस गर्म खेल में अंशिका को भी मजा आ रहा था. उसे अपने कपड़ो के फटने की कोई चिंता नहीं थी.

अंशिका के होंठ मेरे होंठो से फिर से आ मिले और इस बार वो ज्यादा गीले थे और नर्म भी और फिर तेज आवाज निकालते हुए उसके होंठ मेरी गर्दन, सीने और पेट से होते हुए मेरी जींस के ऊपर जाकर अटक गए. वैसे तो जींस काफी मोटी होती है. पर खड़े हुए लंड की शेप उसमे से भी साफ़ दिखाई दे रही थी और अंशिका ने अपने दांत मेरे खड़े हुए लंड के ऊपर जमा दिए. मैं कराह उठा.

मैं: अह्ह्हह्ह धीरे जान......येही तो काम आएगा बाद में.

मेरी बात सुनकर वो मुस्कुरा दी. और जल्दी से मेरी जींस के बटन खोलने लगी. मैंने अपने हाथ सर के नीचे रख दिए और उसे उसका "काम" करते हुए देखने लगा. उसके हाथो में इतनी तेजी थी की मेरी बेल्ट और बटन खोलने में उसे सिर्फ दस सेकेण्ड लगे और एक ही झटके में मेरी जींस के साथ-साथ मेरा अंडरवीयर भी नीचे था और उसके सामने लहरा रहा था. मेरा मोटा लंड.

अंशिका आज मेरे लंड को ऐसे देख रही थी. मानो पहली बार देखा हो. इससे पहले भी वो ना जाने कितनी बार इसे देख चुकी थी, चूस चुकी थी और अपनी चूत में भी ले चुकी थी. पर आज उसके इरादे ज्यादा खतरनाक थे इसके लिए. उसके लटकते हुए मुम्मे मेरे लंड को छु रहे थे. उसने मेरे लंड के ऊपर थूक फेंकी और उसे अपने हाथो से लंड पर फेला दी और फिर उसने अपने दोनों मुम्मो को पकड़ा और मेरे लंड को उनके बीच में फंसा कर भींच लिया. थूक के गीलेपन और अंशिका के शरीर से निकल रही गर्मी से मेरा लंड उसकी खायी में फिसलने लगा.

अह्ह्ह्हह्ह........म्मम्म......

अंशिका के मुंह से अजीब तरह की आवाजे निकल रही थी. सच में वो आज कुछ ज्यादा ही उत्तेजित थी और इस उत्तेजना में वो आज मुझे हर तरह के मजे देना चाहती थी और शायद इस तरह से वो अपनी इम्पोर्टेंस दिखाना चाहती थी की मैं उसके अलावा किसी और के बारे में ना सोचु.

मैं: ओह्ह्ह.....अंशिका.....यु आर किलिंग मीई.............अह्ह्ह्ह....
अंशिका: किल्ल अभी किया कहाँ है मेरी जान.....अभी देखना.

और ये कहते-कहते उसने मेरे गीले लंड को अपने मुंह में भरा और उसे गाजर की तरह से चूसने लगी. आज उसके मुंह की गर्मी मेरे लंड को झुलसा रही थी.

मैं: फिर से बोला.....अह्ह्हह्ह अंशु......धीरे....यार....

अंशिका पर तो मानो कोई भूत सवार था. उसकी स्पीड में कोई कमी नहीं आई.

अह्ह्ह्हह्ह......आज इरादे क्या है....

अंशिका: इरादे तो तुम्हे खाने के है और खिलाने के भी.
मैं: खिलाने के...मतलब.

वो धीरे से बेड के ऊपर खड़ी हुई और अपनी जींस और पेंटी को उतार कर वो भी नंगी खड़ी हो गयी और चलते हुए वो मेरे मुंह के ऊपर आई, मेरे सर के दोनों तरफ पैर किये और मेरी आँखों में देखते हुए बोली: नो हेंड टचिंग, ओके और ये कहते हुए वो मेरे मुंह के ऊपर अपनी शहद निकाल रही चूत के बल पर बैठ गयी.

मुझे तो उसने हाथ लगाने को मना कर दिया था. मेरे हाथ मेरे सर के ऊपर थे और असहाए से होकर वही पड़े थे और अंशिका ने मेरे बालो को बुरी तरह से पकड़ा और अपनी चूत को मेरे मुंह के ऊपर घिसना शुरू कर दिया. मानो गाजर का हलवा बना रही हो. उसके मुंह से मादक सिसकिया और चूत से गर्म चिंगारियां निकलने लगी.

अह्ह्हह्ह्ह्ह.....विशाल.....उम्म्म्मम्म........यु आर ओनली माईन.....तुम सिर्फ मुझे चोदोगे......अपनी बीबी...अंशिका को.....समझे....अह्ह्ह्हह्ह.....

वो चीख उठी. क्योंकि उसकी क्लिट जो मेरे मुंह में आ गयी थी. जिसे मैंने जब चुसना शुरू किया तो ना जाने कितना पानी निकल कर फेलने लगा उसकी चूत से.

अह्ह्ह्ह......जोर से....चूस.....न......अह्ह्ह्ह......म्मम्म....

और इतना कहने की देर थी की उसकी चूत से रस का दरिया बहने लगा और मेरे मुंह और चेहरे को भीगोते हुए बेड पर गिरने लगा. अंशिका का चेहरा पीछे की तरफ झुक गया और पूरा शरीर अकड़ सा गया. शायद इतना ज्यादा वो आज तक नहीं झड़ी थी. पर उसे मेरे खड़े हुए लंड की भी फिकर थी.

अपने सेंस में लोटने के बाद वो सीधी हुई और पीछे होते हुए मेरी आँखों में देखते हुए, अपनी गीली चूत में मेरे अकड़े हुए लंड को समां कर अपनी फेली हुई गांड को ऊपर नीचे करने लगी और फिर उसने अपनी चूत से लंड निकाला और अपनी गांड के छेद पर टिका दिया.

अंशिका: तुम्हे मेरी एस काफी पसंद है न...आज यहीं पर करो.

मुझे पता था की हर बार की तरह शुरू में उसे अपनी गांड के छेद में लंड डलवाने में फिर से तकलीफ होगी. पर वो आज पुरे मजे देने और लेने के मूड में थी और शायद इसलिए मुझे अपनी गांड खुद ऑफर कर रही थी. मैंने भी ज्यादा नखरे नहीं किये. लड़की की गांड अगर खुद ब खुद मिल जाए तो और क्या चाहिए. मेरा लंड उसकी गांड के छेद में अंदर बाहर होने लगा और अब उसने मेरे हाथो को खुद अपने मुम्मो पर रखकर उन्हें युस करने की इजाजत दे दी थी. मैंने उसके मुम्मे पकडे और नीचे से जोर से धक्के मारने शुरू कर दिए. और जल्दी ही मेरे लंड का पारा अपने चरम स्तर पर आ गया और मैंने अपने लंड का सारा रस उसकी गांड नुमा गुफा में समर्पित कर दिया.

हम दोनों को पंद्रह मिनट लगे अपनी साँसों को कंट्रोल करने में. और अगले पंद्रह मिनट लगे फिर से एक और चुदाई करने में. उस रात हम सोये नहीं. अंशिका अपने "हनीमून" में पूरी तरह से तृप्त होकर वापिस जाना चाहती थी.

और अगले दो दिनों तक मैंने अंशिका के प्यार की खातिर उसका साथ नहीं छोड़ा और न ही किट्टी मैम और स्नेहा और न ही रीना और सिमरन के बुलाने पर उनकी प्यास बुझाने उनके पास गया.

जब हम वापिस आ गए तो अंशिका को उसके घर पर छोड़कर, मैं अपने बिस्तर पर बैठा हुआ इन चार दिनों के बारे में सोच रहा था. तभी मेरा सेल बज उठा. वो अंशिका का फ़ोन था.

मैंने फ़ोन उठाया...

अंशिका: उम्मम्म्म्म.....

उसने मुझे फ़ोन उठाते ही एक जोरदार चुम्मा दिया. मैंने भी उसका रिप्लाई दिया.

अंशिका: क्या कर रहे हो
मैं: बस तुम्हारे बारे में ही सोच रहा था.

अंशिका: अच्छा.

और ये कहकर वो चुप हो गयी.

मैं: क्या हुआ? कुछ बात है...बोलो न.
अंशिका: मैंने तुम्हे एक बात बतानी थी.

मैं: हाँ बोलो.
अंशिका: वो...वो...मेरी शादी पक्की हो गयी है.

मेरा दिल धक् से रह गया. मेरे मुंह से कुछ न निकला.

अंशिका: दरअसल...नेनीताल जाने से पहले वो लोग आये थे घर पर और मुझे देखकर गए थे. मैंने तुम्हे जान बुझकर बताया नहीं था. और वापिस आकर मम्मी ने कहा की उन्हें मैं पसंद आ गयी हूँ और तुम तो जानते हो. मम्मी कितने समय से मेरी शादी करवाना चाहती थी. उम्र निकल रही है. लड़का एक सोफ्टवेयर कम्पनी में है. अगले दो महीने में शादी भी हो जायेगी.

मैं अब भी चुप था. मुझे शुरू से पता था की अंशिका के साथ मेरी शादी नहीं हो सकती. सिर्फ मजे लेने के लिए थी वो मेरे लिए. पर आज जब उसकी शादी की बात हुई तो मेरे दिल में उसके लिए दबा हुआ प्यार बाहर निकल आया.

अंशिका: मैं जानती हूँ. इन दिनों में हम अपने शरीर से ही नहीं. दिल से भी काफी करीब आ गए हैं. एक बात कहू. मैं अपना पहला बच्चा तुमसे ही चाहती हूँ. तुम हमेशा से येही चाहते थे न. की मुझे प्रेग्नेंट करो. शादी के बाद मुझे तुम ही प्रेग्नेंट करना. समझे...

उसकी बात सुनकर मेरी आँखों से आंसू निकल आये. मेरी हर बात का कितना ख्याल रखती है अंशिका. मैं कुछ बोलने लगा तो अंशिका ने मुझे चुप करा दिया..

अंशिका: नहीं विशाल. कुछ मत बोलो अभी. मैं जो कह रही हूँ वो सुनो तुम. अपनी पढाई पूरी करो और एक अच्छी सी नौकरी भी और फिर तुम्हारी शादी मैं करवाउंगी. कनिष्का के साथ.

उसकी बात सुनकर मैं हैरान रह गया. पर मैं मना भी नहीं कर पाया. उसकी बात में कोई बुराई भी नहीं थी. कनिष्का जैसी पत्नी मुझे नहीं मिल पाएगी. वो मुझे अच्छी भी लगती है.

मैं उसकी बात सुनता रहा.

अंशिका: मुझे पता है की तुम्हारी अपनी जिन्दगी है. पर फिर भी. ये मेरा एक प्रोपोसल है. तुम अपने हिसाब से देख लेना. पर अगर ऐसा हो जाए तो अच्छा है. हम सभी के लिए.

उसकी इस बात में छुपी हुई बात सोचकर मैं मुस्कुराने लगा.

मेरे सामने अपने भविष्य की तस्वीरे घूमने लगी. जिसमे मेरी और कनिष्का की शादी हो चुकी है. और अंशिका हमारे घर पर रहने आई है और हम तीनो एक साथ, एक ही बिस्तर में. वाव.....

थोड़ी देर तक बात करने के बाद अंशिका ने फोन रख दिया.

अंशिका के दिखाए हुए सपने को दिल में संजोकर मैंने भी फोन रख दिया. और अपनी आने वाली जिन्दगी के बारे में सोचने लगा.


THE END
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#68
मस्त कहानी।
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#76
(16-10-2020, 09:16 PM)sanskari_shikha Wrote:
खैर...

हमारा पहला स्टॉप आ गया था. एक बड़ी सी झील थी, पहाड़ो से घिरी हुई, और हलकी बारिश होने की वजह से माहोल काफी रोमांटिक सा हो रहा था. एक तरफ एक बड़ा सा रेस्टोरेंट बना हुआ था, जिसमे ज्यादातर लोग जाकर बैठ गए और बारिश के बंद होने का इन्तजार करने लगे.

अंशिका ने कहा की हम यहाँ एक घंटा रुकेंगे. जिसे भी भूख लगी है वो खा सकता है या किसी को घूमना है तो वो घूम सकता है. अंशिका की बात सुनकर सभी ने अपने ग्रुप बना लिए. मेरे साथ रीना, सिमरन और वो दोनों लड़कियां, जो हमारे साथ पीछे बैठी हुई थी, चल पड़ी.

रीना के पास छाता था, उसने खोला और मुझे और सिमरन को अन्दर ले लिया. हम सब आगे की तरफ चल दिए. थोडा आगे चले थे की बारिश और भी तेज हो गयी. वो दोनों लड़कियां, भीगने के डर से वही से वापिस भाग ली, और वापिस रेस्टोरेंट में जाकर बैठ गयी. हम तीनो भी थोडा बहुत भीग रहे थे. एक छाते के अन्दर तीन लोग सही तरह से आ नहीं पा रहे थे. सिमरन मुझसे बिलकुल सट कर चल रही थी. उसकी टाईट गांड के उभार देखकर मेरे लंड ने फिर से अपना सर उठाना शुरू कर दिया. काफी आगे जाकर रीना को पहाड़ का एक ऐसा हिस्सा दिखाई दिया, जिसके नीचे छिपकर ऊपर से आती हुई तेज बारिश से बचा जा सकता था. हम तीनो वहां जाकर खड़े हो गए और छाता एक तरफ रख दिया.

मौसम काफी ठंडा हो चूका था, सामने की तरफ बड़ी सी झील थी और हमारे पीछे की तरफ पहाड़. हमारे दांयी तरफ, जहाँ से हम आये थे, पूरा सुनसान था, क्योंकि सिवाए हमारे, किसी के पास भी छाता नहीं था, इसलिए तेज बारिश में कोई भी पीछे नहीं आ पाया और रीना इस मौके को अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहती थी.

उसने एक ही झटके में अपनी स्वेटर को अपने गले से उतार कर साईड में रख दिया और अपनी छोटी ब्रेस्ट, जो की काले रंग की ब्रा में कैद होकर उफान पर थी, मेरे और सिमरन के सामने परोस दी. उसकी हिम्मत देखकर मैं भी हैरान रह गया. पर सिमरन नोर्मल थी. शायद उसे मालुम था की रीना ऐसा करने वाली है और फिर रीना ने सिमरन को इशारा किया. और उसने भी हिचकिचाते हुए अपनी टी-शर्ट को पकड़ा और अपने सर से घुमा कर वो भी सिर्फ ब्रा और जींस में मेरे सामने खड़ी हो गयी. इतने मोटे और सफ़ेद मुम्मे मैंने आज तक नहीं देखे थे. सिमरन ने पर्पल कलर की ब्रा पहनी हुई थी और उसके मोटे निप्पल ब्रा में से भी साफ़ दिखाई दे रहे थे..

वाव...मेरे मुंह से उन दोनों के लिए एक ही शब्द निकला...वाव.

अब वो दोनों प्यासी नजरो से मुझे ही देख रही थी. मैं समझ गया की मुझे भी अपने कपडे उतारने होंगे. मैंने अपनी जेकेट और टी-शर्ट उतार दी. ठंडी हवा के झोंके ने मुहे सहला दिया..तेज बारिश की बोछार हमारे ऊपर भी आ रही थी, सिर्फ महीन बूंदों के रूप में.

अन्दर की तरफ एक ऊँची चट्टान के ऊपर एक सुखी हुई सी डाल थी, जिसपर मैंने अपने और उन दोनों के कपडे टांग दिए, ताकि वो भीगे न और फिर मैंने अपनी जींस उतारी और उसके अन्दर मेरे लंड का टेंट देखकर वो दोनों बाराती मेरे फंक्शन में आने को कुलबुलाने लगे. रीना ने सबसे पहले अपनी जींस को उतारा और उसे मेरी तरफ उछाल दिया और फिर अपनी पेंटी और ब्रा को भी उतार कर एक कोने में रख दिया. अब वो मेरे और सिमरन के सामने नंगी खड़ी थी.. मैं रीना के नंगे जिस्म को देख रहा था और सिमरन मेरे लंड वाले हिस्से को. वो तो रीना की तरफ देख भी नहीं रही थी. रीना ने सिमरन को देखा तो बोली: अब जल्दी कर. कोई आ गया तो सारा प्लान फेल हो जाएगा.

ओहो....यानी इन दोनों ने पहले से ही प्लान बनाया हुआ था, मुझसे चुदने का. वैसे मुझे अंदाजा तो था, पर ये बात मुझे बता देगी, ये नहीं पता था.

रीना का छोटा सा शरीर और उसकी छोटी ब्रेस्ट, और मखमली गांड को देखकर तो मेरे लंड ने अंडरवीयर को भी फाड़ डालने की सोच ली. सिमरन ने एक बार फिर से बाहर देखा की कोई आ तो नहीं रहा, अब बारिश और भी तेज हो चुकी थी, किसी के आने का तो सवाल ही नहीं था.

उसने अपनी जींस को उतारा, नीचे उसने मेचिंग पर्पल कलर की जाली वाली पेंटी पहनी थी. उसने हाथ पीछे इए और अपनी ब्रा को उतार दिया, ऐसा करते हुए उसने मेरी तरफ पीठ कर ली, साली शरमा रही थी मुझसे और फिर झुककर उसने अपनी पेंटी को भी नीचे गिरा दिया और ऐसा करते हुए उसकी गोरी और फेली हुई गांड को देखकर मेरा मन डोल उठा. मैंने आगे बढकर अपने अंडर वीयर को नीचे किया और अपने लंड को सीधा उसकी मखमली गांड के बीच रख कर उसे अपनी तरफ खींच लिया.

अह्ह्ह ह्ह्ह्हह्ह्ह्ह......स्सस्सस्स...... उसके मुंह से एक लम्बी और ठण्ड से भीगी हुई सी सिसकारी निकल गयी.

क्या जिस्म था यार उसका. एक दम मक्खन और इतनी सोफ्ट स्किन थी उसकी मानो हलवे के अंदर उंगलिया डाल रहे हैं. मेरे दोनों हाथो ने उसके मोटे-मोटे मुम्मे पकड़ लिए और उन्हें जोर से दबा दिया. तभी पीछे से मुझे रीना ने अपने हाथो में जकड लिया. उसने जब देखा की उसके नंगे बदन को छोड़कर मैं सिमरन की तरफ चला गया हूँ तो शायद उसने खाली खड़े होना उचित नहीं समझा.

हम तीनो नंगे थे उस छोटी सी गुफा नुमा जगह पर. मैं रीना की तरफ घुमा तो उसने मेरे गले में अपनी बाहे डाली और मुझे अपने मुंह की तरफ खींचा, उसके मुंह तक जाने के लिए मुझे नीचे झुकना पड़ा और मैंने अपने हाथ उसकी गांड पर रखकर उसके दहकते हुए होंठो पर अपने अंगार रख दिए.
उम्म्मम्म्म्म....मूऊचस्स्सस्स्स्सस्स्स........अह्ह्हह्ह.... और फिर मैंने उसे अपनी गोद में उठा लिया. बड़ी ही हलकी सी थी वो और मैंने उसके मुंह से अपनी होंठ छुड़ा कर नीचे किये और उसके छोटे-छोटे अमरूदो पर रख कर उनका स्वाद लेने लगा..

सिमरन दूसरी तरफ खड़ी होकर मुझे और रीना को चूमा चाटी करते हुए देख रही थी. रीना ने अपनी चूत को मेरे पेट वाले हिस्से पर रखकर घिसना शुरू कर दिया. उसकी चूत से निकल रहा घी मेरे लंड का अभिषेक कर रहा था और उसे चुदाई के लिए तैयारी में मदद कर रहा था अपनी चिकनाई देकर. और फिर रीना से जब सहन नहीं हुआ तो उसने अपनी गांड को थोडा और ऊपर उठाया और मेरे खड़े हुए लंड के ऊपर लेजाकर छोड़ दिया. वो पहले चुद चुकी थी. पर मेरे लंड का सुपाड़ा थोडा मोटा है..जो उसके लिए बड़ा था, इसलिए वो वही अटक सी गयी. उसने मेरी तरफ देखा और आँखों ही आँखों में विनती की. मैंने उसकी विनती स्वीकार की और उसकी कमर में हाथ डालकर उसे नीचे की तरफ धकेल दिया.

अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह........ओह्ह्हह्ह्ह्ह गोड.......

उसकी चूत की परते खुलती चली गयी. और मेरे लंड ने उसकी चूत को चीरते हुए अंदर तक अपना अधिकार जमा लिया. वो मेरे लंड के ऊपर लटक सी गयी थी. मैंने उसकी ब्रेस्ट को फिर से चूसा और नीचे से धक्के मारकर उसकी चूत का मजा लेना शुरू किया. साली की चूत इतनी टाईट थी की मुझे गोद में लेकर चोदना मुश्किल हो रहा था. मैंने उसे नीचे उतारा और दीवार की तरफ घुमा कर खड़ा कर दिया. उसने दीवार पर हाथ रखे और मैंने उसकी चूत के ऊपर अपना लंड और एक ही झटके में मैं फिर से उसकी चूत के कारखाने में था और फिर दे दना दन मैंने एक साथ लगभग दस पंद्रह धक्के मारे उसकी चूत में. जो उसके लिए बहुत थे और वो भरभरा कर झड़ने लगी.

अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह.......विशाल.......म्मम्म....क्या चोदता है यार......म्मम्म....मैं तो तुझे देखते ही समझ गयी थी की तू पुराना खिलाडी है.....अह्ह्ह......मजा आ गया....ऐसी चुदाई तो मेरे बॉय फ्रेंड ने आज तक नहीं की.....सच में.

मेरा लंड उसकी चूत से फिसल कर बाहर आ गया. वो अभी भी तना हुआ था. मैंने सिमरन को देखा. वो समझ गयी की अब उसका नंबर है. वो मेरे पास आई और मेरे गले में अपनी बाहे डालकर मुझसे लिपट गयी और नीचे हाथ करके उसने मेरा लंड हाथ में पकड़ कर हिलाना शुरू कर दिया. रीना की चूत से निकला रस उसकी हथेली पर लग गया. उसने अपने हाथ को ऊपर किया और चाटने लगी.

वो ज्यादा गर्म हो चुकी थी. मेरी और रीना की चुदाई देखकर. वैसे मैं उसे चुसना और चाटना तो चाहता था पर आज समय नहीं था, बारिश कभी भी बंद हो सकती थी और कोई भी यहाँ आ सकता था. इसलिए सीधा चुदाई करना ही उचित था. मैंने उसे भी घोड़ी बनाया और वो भी दिवार की तरफ मुंह करके खड़ी हो गयी. मैंने अपना लंड उसकी चूत के ऊपर रखा ही था की वो घूमी और थोडा बाहर निकल कर खड़ी हो गयी. यानी बारिश में. वो बुरी तरह से भीगने लगी थी. मैं समझ नहीं पाया की वो क्या चाहती है. फिर वो बाहर की तरफ वाली दिवार के ऊपर हाथ रखकर खड़ी हो गयी. यानी वो चाहती थी की मैं उसके पीछे जाकर उसे चोदु और वो भी बारिश में.

वैसे कोई फर्क तो नहीं पड़ता. क्योंकि हम सभी नंगे थे वहां. कपडे तो सभी के अंदर थे, पुरे सूखे हुए.

मैंने भी मजे लेने के लिए उसका साथ देना सही समझा और बाहर निकल आया. तेज बारिश की बूंदे मेरे नंगे जिस्म पर चुभ रही थी. मैं उसके पास गया और पहले उसे अपने गले से लगाकर बुरी तरह से चूमने लगा. चूसने लगा. और फिर उसका दीवार की तरफ मुंह करके मैंने अपने लंड को उसकी चूत के अंदर धकेलने लगा. उसकी गोरी गांड के ऊपर पड़ रही बारिश की बूंदे फिसल कर नीचे गिर रही थी. मैंने भी उसी बारिश के पानी के गीलेपन का फायेदा उठाया और अपने लंड को एक ही झटके में उसकी चूत की झील के अंदर उतार दिया.

उह्ह्ह्हह्ह्ह्ह म्म्म्मम्म्मास्स्सस्स्स्सस्स्स....

वो भी काफी टाईट थी. चुदी तो हुई थी. पर ज्यादा नहीं और ऐसी चुते चुदने में ज्यादा मजा देती है. मैंने बारिश में भीगते हुए, उसकी चूत के अंदर अपने लंड को जोरो से पेलना शुरू कर दिया.

अह्ह्हह्ह....अह्ह्हह्ह...ओह्ह्ह्हह्ह ...म्मम्मम्म... उसकी आँहे तेज बारिश में भी साफ़ सुनाई दे रही थी.

मेरे लंड के सामने ये दूसरी चूत थी, इसलिए वो जल्दी ही झड़ने के करीब आ गया. मैंने अपने हाथ आगे किये , एक हाथ से मैंने उसके मुंह को पकड़ कर अपनी तरफ किया और जोरो से स्मूच करने लगा और दुसरे हाथ से उसकी मोटी ब्रेस्ट को दबाने लग गया. येही काफी था उसकी चूत के अंदर का गुबार निकालने के लिए.

अह्ह्ह्हह्ह........विशा........आआअल...........अह्ह्ह्हह्ह...

मेरे लंड ने भी अपने रस को उसकी चूत के अंदर खाली कर दिया. ऐसा लग रहा था की उसकी चूत में कोई सक्शन पावर है, जो मेरे लंड का पानी निचोड़ रही है. जल्दी ही मैं झड कर एक तरफ हुआ, अपने लंड को बारिश के पानी से धोया और अंदर आ गया.

रीना तो कपडे पहन भी चुकी थी. उसने अपनी पॉकेट से एक बड़ा सा हैण्ड टॉवेल निकाला और मुझे दे दिया, अपना बदन सुखाने के लिए. वो छोटा था पर इस समय काफी काम आ रहा था. मैंने किसी तरह से अपने शरीर का पानी सुखाया और रिकॉर्ड तेजी से अपने कपडे पहन लिए. उधर सिमरन ने भी थोडा बहुत गीलापन साफ़ करके अपनी कपडे पहन लिए थे. पर अभी भी मुझे और शायद सिमरन को भी अंदर से काफी गीलापन महसूस हो रहा था. पर बारिश में चुदाई करने के लिए इतना सहन करना तो बनता ही है.

हम तीनो वही बैठकर बाते करते रहे, थोड़ी देर में ही बारिश बंद हो गयी. हम हलकी बोछारों में वापिस रेस्टोरेंट की तरफ चल दिए. 

रास्ते में हमें अंशिका हमारी तरफ आती हुई दिखाई दी. वो काफी परेशान लग रही थी. पास आते ही अंशिका ने मुझपर प्रश्नों की झड़ी लगा दी.

क्यों गए थे...? कहाँ थे...? कितना परेशान थी मैं. वगेरह वगेरह और फिर वो आगे हुई और मेरे गले से लगकर रोने लगी.

मैं समझ गया की वो सच में परेशान थी मेरे लिए और वो दोनों उसे कजन का प्यार समझ कर बस मुस्कुरा कर रह गए.

अब बारिश बंद हो चुकी थी. हम सभी आगे तक घुमने गए. काफी फोटो भी खींचे. अंशिका अब मेरे साथ ही थी. रीना और सिमरन अब मुझसे दूर थी, उनका काम तो हो ही चूका था. रात को हम सब वापिस अपने होटल में आ गए और अंदर आते ही अंशिका मेरे ऊपर आ चड़ी.

अंशिका ने मेरे हाथ अपने हाथो के नीचे दबा दिए, और मेरे पेट के ऊपर बैठ कर मुझे बेतहाशा चूमने चाटने लगी. उसके बूब्स मेरे सामने थे पर मेरे हाथ दबे होने की वजह से मैं उन फलों को अपने हाथों से पकड़ नहीं पा रहा था.

अंशिका: अब बोलो...सुबह से मुझे तरसा के रखा हुआ है. नयी लडकियों के साथ ज्यादा मजा आ रहा था. बोलो. क्या किया उनके साथ.

मैं जानता था की अगर मैंने अंशिका को अभी उनके बारे में कुछ भी बताया तो उसे बुरा लगेगा.

मैं: अरे कुछ भी नहीं यार. वो तो बारिश इतनी तेज थी इसलिए हमें एक जगह पर रूककर खड़े होना पड़ा. वैसे भी वहां पर इस तरह की कोई भी बात पोसिबल ही नहीं थी.
अंशिका: मैं जानती हूँ तुम्हे. तुम्हारे लिए सब पोसिबल है. तुमने मुझे कहाँ-कहाँ पर लेजाकर. चो...मतलब प्यार किया है....मुझे सब पता है.

कितनी अच्छी तरह से जानने लग गयी थी वो मुझे. मैंने उसकी आँखों में झाँका, उसमे मेरे लिए प्यार था और शायद थोडा इश्र्यापन उन दोनों की वजह से. मेरा दिल धक् से रह गया.

उसकी आँखों में आंसू थे. मैं उसके साथ यहाँ आया था, और मैंने कहा भी था की ये चार दिन हमारे हनीमून की तरह होंगे और मैंने उसके विशवास को ठेस पहुंचाई थी. अच्छा हुआ मैंने रीना और सिमरन के साथ चुदाई वाली बात उसे नहीं बताई अभी तक. वर्ना वो टूट जाती.

मैंने उसे नीचे पटक दिया और उसके ऊपर खुद आ चढ़ा. उसकी आँखों से दो आंसू निकल कर नीचे लुडक गए.

मैं: हे....ये क्या?? मेरे होते हुए तुम रो क्यों रही हो? सुनो...मेरा विशवास करो. मैं तुम्हारे अलावा किसी और की तरफ अब आँख उठा कर नहीं देखूंगा. प्रोमिस.

मेरा ऐसा कहते ही उसने मेरे चेहरे को अपनी तरफ खींचा और मेरे लबो के ऊपर अपने थरकते हुए होंठ रख दिए.

आज उसके होंठो में एक अजीब सी प्यास थी. जो वो मुझे पीकर बुझाना चाहती थी. मैंने अपने आप को उसके हवाले कर दिया. कभी-कभी इस तरह की सिचुएशन में कुछ भी न करो तो दूसरी तरफ से आने वाला मजा अच्छा लगता है और मैंने आज तक अंशिका को इतना उत्तेजित नहीं देखा था. आज तो वो मुझे खा जाने वाले मूड में थी. मुझे उसके दांतों से बचकर रहना होगा बस.

उसने मेरी टी-शर्ट को ऊपर किया और अपनी लम्बी जीभ से मेरे पेट को चाटते हुए ऊपर तक आई और मेरे निप्पल को मुंह में भरकर चूसने लगी. मेरे पुरे शरीर में सिहरन सी दौड़ गयी. आज पता चला की लडकियों के निप्पलस को चुसो तो क्या होता है उनके शरीर में. मैंने उसके चेहरे को अपनी छाती पर दबा सा दिया. ताकि वो अपनी जीभ से मुझे ज्यादा गुदगुदी न कर पाए. पर ऐसा करने से उसके तेज दांत मेरे उस हिस्से पर कस से गए. उसने अपना मुंह पूरा खोलकर मेरे निप्पल वाले हिस्से को मुंह में भर लिया और चूसने और काटने लगी.

अह्ह्हह्ह......अंश......इईका..........म्मम्म...ओह माय डार्लिंग......धीरे.....अह्ह्ह..

आज वो जंगली बिल्ली जैसे बिहेव कर रही थी. मेरा लंड तो पूरा खड़ा हो चूका था और किसी रोकेट की तरह उसकी चूत की तरफ मुंह किये हुए अपनी लौन्चिंग की तैयारी कर रहा था.

उसने मेरी टी-शर्ट को ऊपर करके निकलना चाहा पर वो गले में अटक गयी और अपने जंगलीपन में अंशिका ने मेरी टी-शर्ट को फाड़ डाला और दो हिस्सों में करके एक कोने में उछाल दिया. मैंने भी अपने दोनों हाथो से उसकी टी-शर्ट को पकड़ा और पूरा जोर लगा कर उसे फाड़ दिया. नीचे उसकी ब्लेक कलर की ब्रा थी. मैंने उसे भी एक झटके में दो टुकडो में फाड़कर ऊपर की तरफ उछाल दिया. अपने इस गर्म खेल में अंशिका को भी मजा आ रहा था. उसे अपने कपड़ो के फटने की कोई चिंता नहीं थी.

अंशिका के होंठ मेरे होंठो से फिर से आ मिले और इस बार वो ज्यादा गीले थे और नर्म भी और फिर तेज आवाज निकालते हुए उसके होंठ मेरी गर्दन, सीने और पेट से होते हुए मेरी जींस के ऊपर जाकर अटक गए. वैसे तो जींस काफी मोटी होती है. पर खड़े हुए लंड की शेप उसमे से भी साफ़ दिखाई दे रही थी और अंशिका ने अपने दांत मेरे खड़े हुए लंड के ऊपर जमा दिए. मैं कराह उठा.

मैं: अह्ह्हह्ह धीरे जान......येही तो काम आएगा बाद में.

मेरी बात सुनकर वो मुस्कुरा दी. और जल्दी से मेरी जींस के बटन खोलने लगी. मैंने अपने हाथ सर के नीचे रख दिए और उसे उसका "काम" करते हुए देखने लगा. उसके हाथो में इतनी तेजी थी की मेरी बेल्ट और बटन खोलने में उसे सिर्फ दस सेकेण्ड लगे और एक ही झटके में मेरी जींस के साथ-साथ मेरा अंडरवीयर भी नीचे था और उसके सामने लहरा रहा था. मेरा मोटा लंड.

अंशिका आज मेरे लंड को ऐसे देख रही थी. मानो पहली बार देखा हो. इससे पहले भी वो ना जाने कितनी बार इसे देख चुकी थी, चूस चुकी थी और अपनी चूत में भी ले चुकी थी. पर आज उसके इरादे ज्यादा खतरनाक थे इसके लिए. उसके लटकते हुए मुम्मे मेरे लंड को छु रहे थे. उसने मेरे लंड के ऊपर थूक फेंकी और उसे अपने हाथो से लंड पर फेला दी और फिर उसने अपने दोनों मुम्मो को पकड़ा और मेरे लंड को उनके बीच में फंसा कर भींच लिया. थूक के गीलेपन और अंशिका के शरीर से निकल रही गर्मी से मेरा लंड उसकी खायी में फिसलने लगा.

अह्ह्ह्हह्ह........म्मम्म......

अंशिका के मुंह से अजीब तरह की आवाजे निकल रही थी. सच में वो आज कुछ ज्यादा ही उत्तेजित थी और इस उत्तेजना में वो आज मुझे हर तरह के मजे देना चाहती थी और शायद इस तरह से वो अपनी इम्पोर्टेंस दिखाना चाहती थी की मैं उसके अलावा किसी और के बारे में ना सोचु.

मैं: ओह्ह्ह.....अंशिका.....यु आर किलिंग मीई.............अह्ह्ह्ह....
अंशिका: किल्ल अभी किया कहाँ है मेरी जान.....अभी देखना.

और ये कहते-कहते उसने मेरे गीले लंड को अपने मुंह में भरा और उसे गाजर की तरह से चूसने लगी. आज उसके मुंह की गर्मी मेरे लंड को झुलसा रही थी.

मैं: फिर से बोला.....अह्ह्हह्ह अंशु......धीरे....यार....

अंशिका पर तो मानो कोई भूत सवार था. उसकी स्पीड में कोई कमी नहीं आई.

अह्ह्ह्हह्ह......आज इरादे क्या है....

अंशिका: इरादे तो तुम्हे खाने के है और खिलाने के भी.
मैं: खिलाने के...मतलब.

वो धीरे से बेड के ऊपर खड़ी हुई और अपनी जींस और पेंटी को उतार कर वो भी नंगी खड़ी हो गयी और चलते हुए वो मेरे मुंह के ऊपर आई, मेरे सर के दोनों तरफ पैर किये और मेरी आँखों में देखते हुए बोली: नो हेंड टचिंग, ओके और ये कहते हुए वो मेरे मुंह के ऊपर अपनी शहद निकाल रही चूत के बल पर बैठ गयी.

मुझे तो उसने हाथ लगाने को मना कर दिया था. मेरे हाथ मेरे सर के ऊपर थे और असहाए से होकर वही पड़े थे और अंशिका ने मेरे बालो को बुरी तरह से पकड़ा और अपनी चूत को मेरे मुंह के ऊपर घिसना शुरू कर दिया. मानो गाजर का हलवा बना रही हो. उसके मुंह से मादक सिसकिया और चूत से गर्म चिंगारियां निकलने लगी.

अह्ह्हह्ह्ह्ह.....विशाल.....उम्म्म्मम्म........यु आर ओनली माईन.....तुम सिर्फ मुझे चोदोगे......अपनी बीबी...अंशिका को.....समझे....अह्ह्ह्हह्ह.....

वो चीख उठी. क्योंकि उसकी क्लिट जो मेरे मुंह में आ गयी थी. जिसे मैंने जब चुसना शुरू किया तो ना जाने कितना पानी निकल कर फेलने लगा उसकी चूत से.

अह्ह्ह्ह......जोर से....चूस.....न......अह्ह्ह्ह......म्मम्म....

और इतना कहने की देर थी की उसकी चूत से रस का दरिया बहने लगा और मेरे मुंह और चेहरे को भीगोते हुए बेड पर गिरने लगा. अंशिका का चेहरा पीछे की तरफ झुक गया और पूरा शरीर अकड़ सा गया. शायद इतना ज्यादा वो आज तक नहीं झड़ी थी. पर उसे मेरे खड़े हुए लंड की भी फिकर थी.

अपने सेंस में लोटने के बाद वो सीधी हुई और पीछे होते हुए मेरी आँखों में देखते हुए, अपनी गीली चूत में मेरे अकड़े हुए लंड को समां कर अपनी फेली हुई गांड को ऊपर नीचे करने लगी और फिर उसने अपनी चूत से लंड निकाला और अपनी गांड के छेद पर टिका दिया.

अंशिका: तुम्हे मेरी एस काफी पसंद है न...आज यहीं पर करो.

मुझे पता था की हर बार की तरह शुरू में उसे अपनी गांड के छेद में लंड डलवाने में फिर से तकलीफ होगी. पर वो आज पुरे मजे देने और लेने के मूड में थी और शायद इसलिए मुझे अपनी गांड खुद ऑफर कर रही थी. मैंने भी ज्यादा नखरे नहीं किये. लड़की की गांड अगर खुद ब खुद मिल जाए तो और क्या चाहिए. मेरा लंड उसकी गांड के छेद में अंदर बाहर होने लगा और अब उसने मेरे हाथो को खुद अपने मुम्मो पर रखकर उन्हें युस करने की इजाजत दे दी थी. मैंने उसके मुम्मे पकडे और नीचे से जोर से धक्के मारने शुरू कर दिए. और जल्दी ही मेरे लंड का पारा अपने चरम स्तर पर आ गया और मैंने अपने लंड का सारा रस उसकी गांड नुमा गुफा में समर्पित कर दिया.

हम दोनों को पंद्रह मिनट लगे अपनी साँसों को कंट्रोल करने में. और अगले पंद्रह मिनट लगे फिर से एक और चुदाई करने में. उस रात हम सोये नहीं. अंशिका अपने "हनीमून" में पूरी तरह से तृप्त होकर वापिस जाना चाहती थी.

और अगले दो दिनों तक मैंने अंशिका के प्यार की खातिर उसका साथ नहीं छोड़ा और न ही किट्टी मैम और स्नेहा और न ही रीना और सिमरन के बुलाने पर उनकी प्यास बुझाने उनके पास गया.

जब हम वापिस आ गए तो अंशिका को उसके घर पर छोड़कर, मैं अपने बिस्तर पर बैठा हुआ इन चार दिनों के बारे में सोच रहा था. तभी मेरा सेल बज उठा. वो अंशिका का फ़ोन था.

मैंने फ़ोन उठाया...

अंशिका: उम्मम्म्म्म.....

उसने मुझे फ़ोन उठाते ही एक जोरदार चुम्मा दिया. मैंने भी उसका रिप्लाई दिया.

अंशिका: क्या कर रहे हो
मैं: बस तुम्हारे बारे में ही सोच रहा था.

अंशिका: अच्छा.

और ये कहकर वो चुप हो गयी.

मैं: क्या हुआ? कुछ बात है...बोलो न.
अंशिका: मैंने तुम्हे एक बात बतानी थी.

मैं: हाँ बोलो.
अंशिका: वो...वो...मेरी शादी पक्की हो गयी है.

मेरा दिल धक् से रह गया. मेरे मुंह से कुछ न निकला.

अंशिका: दरअसल...नेनीताल जाने से पहले वो लोग आये थे घर पर और मुझे देखकर गए थे. मैंने तुम्हे जान बुझकर बताया नहीं था. और वापिस आकर मम्मी ने कहा की उन्हें मैं पसंद आ गयी हूँ और तुम तो जानते हो. मम्मी कितने समय से मेरी शादी करवाना चाहती थी. उम्र निकल रही है. लड़का एक सोफ्टवेयर कम्पनी में है. अगले दो महीने में शादी भी हो जायेगी.

मैं अब भी चुप था. मुझे शुरू से पता था की अंशिका के साथ मेरी शादी नहीं हो सकती. सिर्फ मजे लेने के लिए थी वो मेरे लिए. पर आज जब उसकी शादी की बात हुई तो मेरे दिल में उसके लिए दबा हुआ प्यार बाहर निकल आया.

अंशिका: मैं जानती हूँ. इन दिनों में हम अपने शरीर से ही नहीं. दिल से भी काफी करीब आ गए हैं. एक बात कहू. मैं अपना पहला बच्चा तुमसे ही चाहती हूँ. तुम हमेशा से येही चाहते थे न. की मुझे प्रेग्नेंट करो. शादी के बाद मुझे तुम ही प्रेग्नेंट करना. समझे...

उसकी बात सुनकर मेरी आँखों से आंसू निकल आये. मेरी हर बात का कितना ख्याल रखती है अंशिका. मैं कुछ बोलने लगा तो अंशिका ने मुझे चुप करा दिया..

अंशिका: नहीं विशाल. कुछ मत बोलो अभी. मैं जो कह रही हूँ वो सुनो तुम. अपनी पढाई पूरी करो और एक अच्छी सी नौकरी भी और फिर तुम्हारी शादी मैं करवाउंगी. कनिष्का के साथ.

उसकी बात सुनकर मैं हैरान रह गया. पर मैं मना भी नहीं कर पाया. उसकी बात में कोई बुराई भी नहीं थी. कनिष्का जैसी पत्नी मुझे नहीं मिल पाएगी. वो मुझे अच्छी भी लगती है.

मैं उसकी बात सुनता रहा.

अंशिका: मुझे पता है की तुम्हारी अपनी जिन्दगी है. पर फिर भी. ये मेरा एक प्रोपोसल है. तुम अपने हिसाब से देख लेना. पर अगर ऐसा हो जाए तो अच्छा है. हम सभी के लिए.

उसकी इस बात में छुपी हुई बात सोचकर मैं मुस्कुराने लगा.

मेरे सामने अपने भविष्य की तस्वीरे घूमने लगी. जिसमे मेरी और कनिष्का की शादी हो चुकी है. और अंशिका हमारे घर पर रहने आई है और हम तीनो एक साथ, एक ही बिस्तर में. वाव.....

थोड़ी देर तक बात करने के बाद अंशिका ने फोन रख दिया.

अंशिका के दिखाए हुए सपने को दिल में संजोकर मैंने भी फोन रख दिया. और अपनी आने वाली जिन्दगी के बारे में सोचने लगा.


THE END

Dear Sanskari_shikha,

You have mentioned THE END at the end, its really good. The Story is really very good.. I read this story many times. Gud Luck.
// सुनील पंडित // yourock
मैं तो सिर्फ तेरी दिल की धड़कन महसूस करना चाहता था
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!
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