Poll: Aasha should be
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Misc. Erotica आशा...
#61
(17-05-2019, 06:56 AM)bhavna Wrote: अतिसुन्दर!

धन्यवाद
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Do not mention / post any under age /rape content. If found Please use REPORT button.
#62
(17-05-2019, 03:24 PM)shruti.sharma4 Wrote: Wow......things are heating up........ great introduction of bhola............wasn't expecting the update so early......super .....keep updating.

Thanks a ton.. Smile  Heart
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#63
(17-05-2019, 06:02 PM)Nasheeliaankhein Wrote: GOOD GOING . . . KEEP IT UP . . . .

JALDI JALDI UPDATE POST KIYA KARO . . . . READERS KA INTEREST BANA RAHTA HAI..

Thank you
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#64
(18-05-2019, 06:43 AM)Luckyloda Wrote: Bhut shandaar update

धन्यवाद
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#65
(20-05-2019, 11:20 AM)shruti.sharma4 Wrote: I don't know why there are so less readers for this story.....this story deserves a much better response.......Such a super erotic story

Yeah.. I too wonder about that... and, This is the reason I decided to finish the story in the next update.

Trying to make the next/final update more good...

That's why, it will be a bit delayed.

But I hope that you all will like it. (fingers crossed.) Smile
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#66
(20-05-2019, 09:55 PM)Bhaiya Ji95 Wrote: Yeah.. I too wonder about that... and, This is the reason I decided to finish the story in the next update.

Trying to make the next/final update more good...

That's why, it will be a bit delayed.

But I hope that you all will like it. (fingers crossed.) Smile

Take a moment and just look at the replies from readers and think about the fact that every single one of them has liked your story not even one negative reply.
So why care about the no.of the readers
I haven't found only few stories with only this much positive feedback.
Anyway even if you do want to end it that's your decision no hard feelings
And one thing I would like to say is that we enjoyed this story coz of your point of imagination next time don't ask about how the story should continue with single guy or multiple. Just write as you want to it would be the best
And also very important part of the story is ending so this should end either early or later.
Some would say I am the REVERSE 
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#67
Super hot update.....
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#68
(20-05-2019, 09:55 PM)Bhaiya Ji95 Wrote: Yeah.. I too wonder about that... and, This is the reason I decided to finish the story in the next update.

Trying to make the next/final update more good...

That's why, it will be a bit delayed.

But I hope that you all will like it. (fingers crossed.) Smile

That's really sad to know......story is just getting interesting......I hope u reconsider ur decision..........but in the end it's ur choice.........
Take care.
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#69
(20-05-2019, 09:55 PM)Bhaiya Ji95 Wrote: Yeah.. I too wonder about that... and, This is the reason I decided to finish the story in the next update.

Trying to make the next/final update more good...

That's why, it will be a bit delayed.

But I hope that you all will like it. (fingers crossed.) Smile
dear bhaiya ji.....

milliions of viewers and hundreds of commenters also waiting...OBIVIOUSLY FINGERS CROSSED.... on your other story...अद्भुत जाल.... since last 6 months or even more.... not only for update... but atleast a reply.....
so i think it is your right deceision to windup in 1 update... blaming lack of readers.... i am thankful.... you are not hanging here... but ending....
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#70
अंतिम भाग का अपडेट दे रहा हूँ ,

कैसा लगा ज़रूर बताइएगा |
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#71
भाग ७: नया कदम .. (अंतिम भाग)

दो सख्त से हाथों के अपने सुकोमल वक्षों पर पड़ते दबाव से निःसंदेह कसमसा गई वह --- शावर के ठीक नीचे खड़े होने के कारण उससे गिरते पानी सीधे उसके बंद आँखों और चेहरे पर पड़ रहे थे --- और उन कठोर हाथों का मालिक चाहे जो कोई भी हो, पीछे से अडिग रूप से खड़ा था जिस कारण आशा दिल में लाख़ चाहते हुए भी पीछे हट नहीं पा रही थी --- इन्हीं दो कारणों से आशा न आँखें खोल पाई और न ही पीछे हट कर उसके स्तनों के साथ छेड़खानी करने की गुस्ताख़ी करने वाले उन हाथों के स्वामी को देख पाने की स्थिति में रही --- |

पर इतना तो तय है,

कि आशा के सुपुष्ट स्तनों के साथ खिलवाड़ करने वाले वो हाथ किसी अनारी के नहीं हो सकते --- 

क्योंकि जिस अनुपम कलात्मक ढंग से वे हाथ और ऊँगलियाँ पूरे स्तनों के क्षेत्रफल पर गोल गोल घूमते हुए उसके निप्पल को छेड़ रहे हैं --- वह किसी खेले – खेलाए ; एक मंझा हुआ खिलाड़ी ही हो सकता है --  |

कोशिश काफ़ी की आशा ने खुद को और खुद के स्तनों को उन हाथों की गिरफ़्त से छुड़ाने की ---

पर छुड़ा न पाई ---

क्योंकि नाकाफ़ी साबित हुए उसके वे कोशिश ---

तर्कों ने लाख़ तर्क दिए ;  पर पहले से ही उसपे हावी उसकी काम-क्षुधा ने आशा को उसे, उसके दिल के साथ रज़ामंद होने में देर न होने दी ---

और इसी का प्रतिफल यह रहा कि आशा ने ख़ुद को छुड़ाने की बस इतनी ही कोशिश की कि ज़रूरत पड़ने पर वह खुद को सान्तवना और दूसरों को सबूत दे सके की उसने तो कोशिश की थी ख़ुद को छुड़ाने की, पर बेचारी अबला अकेली नारी ख़ुद को एक मज़बूत हवसी से बचा न सकी --- |

दिल ने गवाही देने के साथ साथ ये माँग करनी भी शुरू कर दी थी कि उसके चूचियों और शरीर के साथ और ज़्यादा से ज़्यादा खेला जाए --- छेड़खानी की गुस्ताख़ी और बढ़े --- सीमाओं के बाँध और टूटे --- अरमानों के बाढ़ और बहे --- शावर से गिरते पानी, सावन की बारिश सी उसकी कामाग्नि को बुझाने में उसकी भरसक मदद करे ----

पर ये सब उसके होंठों से न निकल सके ---

ये बातें दिल में उठ कर दिल में ही दब कर रह गए ---

किसी अनजाने अंदेशों ने इन बातों को उसके होंठों के कैद से बाहर न निकलने दिए ---

सबकुछ जान -  समझ रही आशा बस चुपचाप खड़ी रह कर कसमसाते रहने और बीच बीच में ख़ुद को छुड़ाने की एक दिखावटी कोशिश में लगी रही --- |

पर नर्म, सुकोमल, सुपुष्ट चूचियों पर सख्त हाथों के पड़ते दबाव और निरंतर हो रही उनसे छेड़खानियों ने आशा के शरीर को उसके तर्क, लाज, दुविधा और अन्य बातों से बगावत करने को मज़बूर कर ही दिया ---

धीरे धीरे उसके अंदर समर्पण का भाव जन्म लेने लगा ---

गुदगुदी सी हुई पूरे शरीर में --- साथ ही चूत में चीटियाँ सी रेंगने वाली फीलिंग आने लगी ---

कुछ कुछ होने लगा था उसके तन बदन में ----

काम पीड़ा से तो पहले से ही पीड़ित थी वह --- और अब यह पूरा उपक्रम --- ‘उफ्फ्फ़..!’...

वो दोनों हाथ कभी उसके चूचियों को नीचे से ऊपर की ओर उठा कर अच्छे से मसलते, तो कभी मसलते मसलते नीचे बढ़ते हुए कमर तक पहुँचते और थोड़ी देर वहां गोल गोल घूमने के बाद थोड़ा तिरछा हो कर कुछ नीचे और बढ़ते --- चूत के ठीक बिल्कुल ऊपर तक पहुँचते और दो ऊँगलियों से हल्का प्रेशर दे कर एक ऊँगली को दबाए ; दूसरी ऊँगली को उसी तरह दबाए रख कर धीरे धीरे उस हिस्से को गोल गोल घूमाते हुए --- ऊँगलियों के प्रेशर को यथावत बनाए रखते हुए एक सीध में ऊपर उठते हुए कमर तक पहुँचते और फ़िर उसी तरह नीचे चूत तक जाते ----

ठीक उसी तरह प्रेशर को बनाए रखते हुए चूत के ऊपरी हिस्से से खिलवाड़ करते और फ़िर धीरे धीरे उँगलियों से प्रेशर बनाते हुए ऊपर की ओर उठ आते ---

हर दो बार ऐसा करने के बाद तीसरी बार वे हाथ कमर पर पहुँचते ---

गाउन के ऊपर से ही नाभि को टटोलकर पूरे पेट पर घूमते ----

और फ़िर धीरे धीरे चूचियों के ठीक निचले हिस्से पर पहुँच कर गाउन के ऊपर से ब्रैस्ट अंडरलाइन को ढूँढ कर, दोनों अंगूठों से दबाते हुए दोनों चूचियों के नीचे दाएँ बाएँ घूमते ----

और फ़िर दोनों हथेली एकदम से फ़ैल कर उन विशाल मस्त चूचियों को अपने गिरफ़्त में भली प्रकार लेते हुए बड़े प्रेम से मसलने लगते ---- |

आशा तो बस अपनी सारी सुध-बुध खो चुकी थी ---

दिन रात, सर्दी गर्मी ठण्ड, बारिश ---- सब कुछ अभी गौण हो चुके हैं फ़िलहाल उसके लिए ---- |

उसके लिए तो केवल ‘काम’,  ‘काम’ , ‘काम’, ‘काम’ और बस..... ‘काम’..... -----

साँसें तेज़ होने लगी उसकी,

धड़कनें तो धीरे धीरे न जाने कब की बढ़ चुकी हैं ---  

होंठ काँपने लगे हैं ---

शावर के ठन्डे पानी और तन की गर्मी के मिश्रण से शरीर अजीब सा अकड़ गया है ---

वो हिलना चाहे भी तो नहीं हिल पा रही है ---

पीछे जो भी है,

लगता है बड़ी चूचियों का बहुत दीवाना है ---

तभी तो इतने देर से मसलने के बाद भी अब भी पहले वाले जोश और तरम्यता के साथ मसले जा रहा है ---

गाउन के अंदर ही खड़ी हो चुकी दोनों निप्पल को तर्जनी ऊँगलियों के सहायता से हल्के से छूते हुए ऊपर नीचे और दाएँ बाएँ करके खेलना शायद बहुत पसंद होगा इस शख्स को ---- तभी तो शुरुआत से लेकर अभी तक इस खेल में रत्ती भर का कोई अंतर या परिवर्तन नहीं आया था ---- |

अभी अपने वक्षों पर हो रहे यौन शोषण का आनंद ले ही रही थी कि अचानक से चिहुंक पड़ी आशा ---

कारण,---

कारण था अपने पिछवाड़े पर कुछ सुई सा चुभने का अहसास --- जोकि अभी अभी हुआ उसे --- आशा को ---

कुछ और होगा सोच कर दुबारा मीठे दर्द के अहसास में खोने के लिए तैयार होने जा रही आशा फ़िर से चिहुंक उठी ---
और इस बार चुभने का अहसास कुछ ऐसा था कि वह अपने पैर के अँगुलियों पर ही लगभग खड़ी हो गई --- पर ज़्यादा देर खड़ी न रही आशा ---- क्योंकि वो बलिष्ठ हाथ उसके चूचियों को अच्छे से मुट्ठी में ले अपने ओर --- पीछे की ओर खिंच लिए ---
आशा धप्प से उस शख्स के शरीर से जा टकराई --- और इसबार भी फ़िर वही अहसास हुआ --- पर इसबार के अहसास से चौंकी या चिहुंकी नहीं वह --- अपितु, मारे लाज के दोहरी हो गई --- !

क्योंकि,

जिस चीज़ से उसे चुभन का एहसास बारम्बार हो रहा था, वह कुछ और नहीं, वरन, उस शख्स का कड़क मोटा खड़ा लंड था !
जो कुछ इस तरह से पोजीशन लिए था कि आशा जितनी बार भी पीछे होती या वह शख्स ही जितनी बार आगे होता --- उतनी ही बार लंड का अग्र भाग आशा के गोल नर्म चूतड़ों से टकराता --- |

चुभन के कारण का पता चलने के बाद से ही लाज से दोहरी हुई आशा अब एक और द्वंद्व में फँस गई ---

जिस प्रकार उसे अपने नर्म गदराए नितम्बों पर लंड का स्पर्श अच्छा लगने लगा ; ठीक उसी प्रकार ऐसी परिस्थिति जहाँ वह खुद अपने बाथरूम के शावर के नीचे गाउन पहने खड़ी हो और पीछे से कोई अनजान उसके शरीर के एक अंग से शुरू हो धीरे धीरे पूरे शरीर पर दखल करना चाह रहा हो ---- क्या उसे, यानि आशा को, इस तरह आनंद सुख लेना चाहिए??

और अगर नहीं तो फ़िर क्या करना चाहिए उसे??

प्रतिवाद करे?

नहीं... नहीं....

प्रतिवाद या प्रतिकार करने का सटीक समय बीत गया है ----

इस तरह की कोई भी चेष्टा उसे शुरू में ही करना चाहिए था ---

पर अभी भी,

‘अब पछताए क्या होत, जब चिड़िया चुग गई खेत’ वाली परिस्थिति नहीं है ---

आरंभिक आपत्ति जता कर धीरे धीरे मामले को यहीं ख़त्म कर देना चाहिए ---- क्योंकि एक तो पीछे बगीचे में एक लड़का काम कर रहा है जो कभी भी अंदर दाख़िल हो कर किसी प्रकार का मदद माँग सकता है --- और कहीं ऐसा न हो कि वह लड़का आशा को किसी आपत्तिजनक हालत में देख ले, इससे उस लड़के के नज़रों में तो आशा के सम्मान को धक्का तो लगेगा ही--- शायद आस पास के छोटे कस्बाई इलाके; जहाँ ये लड़का रहता है --- उन लोगों के बीच भी आशा की किरकिरी हो सकती है --- फ़िर क्या पता --- भविष्य में उन्हीं में से कोई या दो-तीन जन आशा पर चांस मारने की कोशिश करे --- सफ़ल न होने पर शायद ज़ोर-ज़बरदस्ती या बलात्कार करे --- ब्लैकमेल का भी कारण बन सकता है ---और न जाने कौन कौन सी ; कैसी कैसी समस्या आ खड़ी हो --- |

और दूसरी बात यह कि आशा ने अब तक पीछे खड़े उसके जिस्म के साथ खेलने वाले शख्स को देखा नहीं था ---

न जाने वह कौन हो ---

हे भगवान! --  कहीं इस भोला का कोई संगी-साथी तो नहीं !! --- जो शायद भोला के साथ या उसके पीछे खड़ा रहा हो --- जिसे आशा देख नहीं पाई या शायद ध्यान नहीं दी हो ---?? जिसने शायद भोला को देख कर अपनी चूत खुजलाती और दूध दबाती आशा को देख लिया हो और अब मौका मिलने पर उसके घर में घुस कर सीधे बाथरूम में आ कर पीछे से आशा के नर्म गदराए जिस्म से खेलना शुरू कर दिया??!!

और अगर ऐसा कोई नहीं तो फ़िर कौन ??

मन में ऐसे ढेरों विचार आते ही आशा तुरंत संभल कर खड़ी हुई ---

उसकी बॉडी जगह जगह थोड़ी टाइट हो गई ---

पीछे खड़े शख्स को कोई ख़ास मौका न देने के उद्देश्य से कोहनियों से हल्के से मारना चाही --- कोशिश भी की ---- पर कर न सकी --- वह शख्स काफ़ी सट कर खड़ा था और बीच बीच में अपने कमर को आगे कर , लंड को कभी दाएँ तो कभी बाएँ चुत्तड़ पर मार रहा था और फ़िर लंड की पोजीशन बना कर आशा के गांड के बीच के दरार में फँसा ऊपर नीचे कर रहा था |

यकीनन आशा को बेइन्तेहाँ मज़ा आ रहा था ---

पर अब ये जानना ज़रूरी था कि आख़िर ये है कौन ----

कोहनियों से मार कर कोई लाभ न हुआ --- पर इतना पता ज़रूर लगा कि पीछे वाला शख्स जो कोई भी हो --- है वो शर्टलेस है ! --- और थोड़ा तोंदू है !

‘ह्म्म्म, यानि की ये कोई मर्द.... मेरा मतलब कोई आदमी है --- उम्रदराज--- अंह--- पर ये ज़रूरी तो नहीं --- आजकल तो कम उम्र के बच्चों के भी पेट निकल आ रहे हैं --- मम्मम... एक और कोशिश कर के देखती हूँ --- |’

ऐसा सोच कर आशा ने अपने बाएँ हाथ को पीछे ले जा कर सही अंदाज़ा लगाते हुए झट से उसके लंड को पकड़ ली ---

ओह!

‘अरे यह क्या??!! ----  ये तो सिर्फ़ अंडरवियर--- चड्डी में है !! ओह ! ओह माई गॉड !! कौन है ये शख्स?’

पूरे शरीर में डर और आशंकाओं की चीटियाँ सी दौड़ पड़ी ---

किंकर्तव्यविमूढ़ सी हो कर कुछ पल तो बस वैसे ही खड़ी रही वह---

लंड को चड्डी के ऊपर से पकड़े ---

शावर से गिरते ठंडे पानी के नीचे  ----

बस, मूर्तिवत ....

कुछ सेकंड्स ऐसे ही गुज़रे होंगे कि तभी वह शख्स अपने चेहरे को पीछे से आशा के कंधे के ऊपर लाते हुए कान में धीरे से फुसफुसाया,

‘क्या हुआ आशा --- इसे प्यार करो न--- रुक क्यों गई --- अच्छा नहीं लगा? या यहाँ खड़े खड़े बोर हो गई?’

‘ये --  ये आवाज़ ! ओह! ये आवाज़ तो मैं जानती हूँ --- ये --- ये तो ---’

शरीर की समस्त शक्तियों को बटोर कर एक झटके से घूम कर खड़ी हो गई आशा --- पानी अब सिर के पिछले हिस्से पर गिर रहे हैं --- इसलिए समस्या नहीं --- आँखें खोलीं --- और सामने देखते ही बेचारी बहुत बुरी तरह से चौंकी ----

‘हे भगवान!! ऐसा कैसे हो सकता है? ये --- ये तो ---- ’

‘क्या हुआ आशा --? भूल गई मुझे? या विश्वास नहीं हो रहा??’

सामने खड़ा शख्स एक कुटिल कमीनी मुस्कान लिए अब सामने से आशा के स्तनों को पकड़कर मरोड़ता हुआ बोला |

पर उसके बात या क्रिया, किसी पर भी आशा का ध्यान न गया ---

परम आश्चर्य से चौड़ी होती आँखों से उस शख्स को देखते हुए उसके दिमाग में बस एक ही नाम कौंधा ,
रणधीर बाबू !!’

हाँ ..!

रणधीर बाबू ही तो था वह शख्स --- जो इतनी देर से पीछे से आशा के जिस्म के हरेक अंग प्रत्यंग से खेले जा रहा था --- |

आशा के साथ इतने देर तक गुपचुप मस्ती के कारण जहाँ एक ओर रणधीर बाबू के चेहरे पर एक शैतानी मुस्कान थी , साथ ही आँखों में वासना लबरेज़ तो वहीँ दूसरी ओर आशा के नर्म हाथो के स्पर्श से लंड उस हाफ चड्डी के अंदर ही अंदर बुरी तरह से फनफना रहा था ---

आशा बेचारी इतनी शॉकड थी कि वो तो कुछ पलों के लिए ये भूल ही गई थी कि उसकी मुट्ठी के गिरफ्त में रणधीर बाबू का लंड अब भी है और बुरी तरह से अकड़ रहा है ---

रणधीर बाबू बड़े आराम और प्रेम से थोड़ा और करीब आए,

और थोड़ा झुक कर अपने होंठों को आशा के होंठों के और पास ले आए,

और थोड़ा रुक कर, आशा के होंठों पर हल्का सा साँस छोड़ते हुए बड़े धीरे से अपने होंठों को छुआ दिया और फिर कुछ ५-६ सेकंड्स बाद आशा के होंठों पर अपने होंठो को अच्छे से जमा कर किस पर किस करने लगे |

शोकिंग स्टेट से वापस आते ही रणधीर बाबू के होंठों को अपने होंठों पर पा कर दिल धक् से कर के रह गया आशा का ---

प्रत्युत्तर में कुछ करना तो चाहती थी पर करे क्या यही उसकी समझ में न आया --- अतः चुपचाप खड़ी रह के रणधीर बाबू के होंठों के द्वारा अपने होंठों का यौन शोषण सहन करने लगी ---

चंद पलों में ही अनुभवी रणधीर बाबू ने अपने गीले वहशी चुम्बनों से और अपनी करामाती उँगलियों के कमाल से; कोमल वक्ष और कड़क होते निप्पलों को छेड़ और दबा दबा कर आशा को भरपूर उत्तेजना में भर दिया था ---

एक तो सुबह से ही आशा बुरी तरह से पागल थी यौन सपने देख देख कर, फ़िर आया भोला--- जिसके उम्र से मैच नहीं करता उसका कड़क मोटा लम्बा लंड आशा के तन बदन में जबरदस्त कामाग्नि प्रज्जवलित कर दिया था --- और अब जब शावर के नीचे खड़े हो कर उस कामाग्नि को शांत करने का उपाय कर ही रही थी कि अचानक से न जाने कहाँ से और कैसे रणधीर बाबू अंदर आ गए --- जबकि सुबह से तो ये इस घर में थी भी नहीं --- |



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#72
रणधीर बाबू अब धीरे धीरे अपने जीभ को बाहर निकाल आशा के होंठों पर फ़िराने लगे ----


जीभ के अग्र भाग से आशा के होंठों पर हल्का दबाव डालते और फ़िर जीभ को होंठों पर ऊपर नीचे घूमाते हुए हलके दबाव डाल कर होंठों के बीच घुसा कर आशा के दांतों पर फ़िराने लगते --- रणधीर बाबू को आशा के सफ़ेद, पंक्तिबद्द, मोतियों से चमकते दांत हमेशा से ही पसंद थे --- और मौका मिलते ही अपने जीभ से उसके उन दांतों को छूते ज़रूर थे --- अजीब फेटिश थी उनकी --- खैर, सबकी अपनी अपनी फेटिश और फंतासी होती है |

और रणधीर बाबू तो हैं ही एक नंबर के रसिया ---

रणधीर बाबू के दोनों हथेलियों के दबाव को अपने गीले गाउन के ऊपर से अपने वक्षों पर साफ़ साफ़ महसूस कर रही थी आशा --- रेसिस्ट तो करना चाह रही थी पर मन चाहे जो भी कहे, शरीर ने हरकत करना छोड़ दिया था ---

समर्पण ---

केवल समर्पण ही करना चाह रहा था उसका जिस्म --- मखमल --- कोमल ---- गोरी त्वचा वाली जिस्म --- जिसने न जाने कितनी ही रातों ; और यहाँ तक की दिनों में भी रणधीर बाबू के हाथों का स्पर्श खुद पर बर्दाश्त किया --- दबी गई, दबाई गई, कुचली गई , पुचकारी गई ---- जैसा रणधीर बाबू ने चाहा --- वैसा ही उन्होंने किया --- और आशा सहती गई --- |

पर हमेशा जो आशा के साथ होता है --- वही इस बार ---  इस वक़्त हुआ ---

लाख न चाहने पर भी ---

आशा शनै: शनै: उत्तेजित होने लगी !!

मन के सभी भावों – विकारों, चिंता – दुश्चिंताओं को साइड कर,

अपने दिल – ओ – दिमाग,

और तन बदन में,

ऐसी परिस्थितियों में परम अपेक्षित, परम यौन उत्तेजनाओं को फ़ैल जाने दी --- फ़ैल जाने दी सृष्टि के सबसे पेचीदा पर साथ ही सबसे आकर्षणीय अद्भुत उन विचार और भावनाओं को --- जो इस सृष्टि चक्र को चलाने में सदा ही परम सहायक रहा है --- “काम-भावना” ---- फ़िर चाहे वो मनुष्य हो, या जानवर, या पक्षी ---- सबके मामले में सदैव एक सा |

और केवल सृष्टि चक्र को चलाने में ही नहीं,

अपितु,

ह्यूमन बीइंग्स अर्थात मनुष्यों के मामलों में विपरीत लिंग को देख कर जब तब, सदैव यौन तृष्णा को जगाने और तृप्त करने की आस जगाने में भी महत्ती भूमिका रही है --- |

अधिक देर तक बुत न बनी रह सकी वह ---

अपने हाथों को रणधीर बाबू के सिर के पीछे तक ले जा कर अपनी अँगुलियों को आपस में फंसाई और बाँहों का एक घेरा बना कर खुद को पैरों के अँगुलियों के सहारे खड़ी कर ; और भी बढ़ा दी अपने होंठों को उनके तरफ़ --- |

रणधीर बाबू उसकी मंशा को तुरंत ही समझ गए ---- स्पष्ट संकेत था कि उन्हें अब और विलम्ब नहीं करना चाहिए ---
हथौड़ा गर्म है --- चोट तुरंत करनी होगी ---

उन्होंने तुरंत ही अपने हाथों को नीचे कर आशा के कमर के दोनों ओर रखा और थोड़ी देर वहाँ रखने के बाद धीरे से हाथों को पीछे से नीचे ले जा कर उसकी गोल उभरी हुई माँसल गांड को दबाने और पुचकारने लगे |

आशा मारे जोश के गंगानाने लगी --- वाकई अपने जिस्म पर हो रही रणधीर बाबू के हरेक छेड़खानी उसके सहनशक्ति के पार जा रही थी |

वह मस्ती भर कर दोनों हथेलियों से रणधीर बाबू के सिर पीछे से अच्छे से पकड़ कर अपने तरफ़ और खिंची और जीभों की क्रिया लीला को छोड़ सीधे होंठों पर आक्रमण कर उनके निचले होंठों को बेइंतेहाई रूप से चूसने लगी ---- |

रणधीर बाबू की ख़ुशी का तो जैसे अब कोई पार नहीं है ----

आशा को कस कर अपनी ओर खिंच कर ज़बरदस्त तरीके से बाँहों में भर कर उसके नर्म होंठों का रसीला आनंद लेने लगे ---- अपनी आज तक की ज़िंदगी में उन्होंने कभी ऐसी कड़क और जोशीली माल नहीं देखी थी --- जो शुरू में बाधा तो देती है पर तुरंत ही हथियार भी डाल देती है --- और पूरे यौन क्रिया का मज़ा दूसरे को देने के साथ ही साथ ख़ुद भी जम कर लेती है |

आशा की मुँह से सिर्फ़,

“ऊँहहह... आःह्ह .... ओह्ह्ह ... मम्मम्मम”

की आवाजें आ रही थीं ---

रणधीर बाबू ने हाथ बढ़ा कर शावर को बंद किया ----

फ़िर आशा को एक ही झटके में बड़े ख़ूबसूरत तरीके से अपने गोद में उठा लिया और होंठों पर चुम्बनों की बौछार को बदस्तूर जारी रखते हुए ही किसी तरह बाथरूम से निकले --- और ---- आशा को गोद में उसी तरह उठाए ही सीढ़ियों से ऊपर उसके कमरे की तरफ़ बढ़ चले ---- एक सेकंड को आशा का ध्यान इस तरफ़ गया और उसे इस तरह उठाए ऊपर सीढ़ियाँ चढ़ते देख कर वह मन ही मन, इस उम्र में भी रणधीर बाबू के ताक़त का कमाल देख कर बेहद हतप्रभ हुई ---- और साथ ही बहुत ख़ुश और यौनोत्तेजित भी ---- आशा तो अब और भी ज़ोरों से रणधीर बाबू के सर को अपने होंठों के पास खिंच कर उनके होंठों को खा जाने वाले तरीके से चूसने लगी ---- |

इस उम्र में करीब ५५ किलो उठा कर चलने से निःसंदेह ही रणधीर बाबू का दम फूलने लगा था ---- पर किसी भी कीमत पर आशा को यह पता चले ; यह उनको गवारा नहीं था --- |

आशा का बेडरूम का दरवाज़ा अब भी पूरा खुला था ---

रणधीर बाबू अंदर घुसने के साथ ही सीधे बिस्तर के पास पहुंचे और आशा को ‘ध्प्प्प’ से पटक कर उस पर चढ़ बैठे --- पर अब तक तो आशा के अंदर का यौनेत्तेजना नाम का जानवर भी जाग कर बहुत बुरी तरह से खूंखार हो चुका था --- आशा ख़ुद को थोड़ा ऊपर कर रणधीर बाबू को धक्का दी --- धक्का बहुत जोर का तो नहीं पर था कुछ ऐसा कि रणधीर बाबू ख़ुद को संभाल नहीं सके और वहीँ आशा के बगल में ही बिस्तर पर धराशायी हो गए ---

उनके गिरते ही अब आशा उन पर चढ़ बैठी ---- और ---- अपने नाखूनों से रणधीर बाबू के सीने पर आघात करते हुए उनके होंठों पर टूट पड़ी --- बहुत बहुत और बहुत ही बुरी तरह से रणधीर बाबू के होंठों को चूस रही थी ---- लगभग काटते हुए ---- सीने, कंधे, ऊपरी बाँहों पर अपने नाखूनों से आघात कर निशान छोड़ रही थी ---- बेशक, रणधीर बाबू को पीड़ा हो रहा थी पर एक ऐसी सुंदरी, सम्पूर्ण यौवनयुक्त, उत्कट इच्छाओं से भरी एक महिला के हाथों कुछ पलों तक चोट खाना उन्हें सहर्ष स्वीकार था ---

रणधीर बाबू भी अपने काम वेग के सामने हार मानते हुए आशा के गले के पास से गाउन को पकड़ कर दो विपरीत दिशाओं की ओर खींचा ---  और इससे नाईट गाउन कुछ फट कर --- और कुछ लूज़ हो कर बिल्कुल आजू बाजू और नीचे की ओर झूल गई --- आशा को बुरा न लगा --- लगता भी तो कैसे ---- कामाग्नि में जलते हुए आँखें बंद कर रखी है उसने --- रणधीर बाबू के हाथों दंड पाना चाहती है इस वक़्त --- पीड़ित होना चाहती है --- टॉर्चर होना चाहती है --- हर बाँध --- हर सीमओं --- को तोड़ देना चाहती है -- |


आशा के बड़े बड़े दूधिया दूध अब उन्मुक्त हो चुके थे ---- और दूध से भी अधिक जो सबसे मोह लेने वाला दृश्य था, वो था आशा के विशाल दूधों के बीच का ६ इंच लंबी दरार (क्लीवेज) --- आँखें और मुँह लोलुपता से भरने की देर भर थी कि उन्होने (रणधीर बाबू ने) उसे पास खींच लिया और उसकी दरार को चूमते-चूसते हुए, उसके नर्म मुलायम कूल्हों को दबाया ।
‘शशशssssशशशशशsssss ........

आशा कराह उठी ---

सिर को ऊपर सीलिंग की ओर उठा कर --- आँखें बंद कर ---- अपने नर्म चुत्तड़ो पर उनके सख्त हाथों के दबाव को महसूस की ---- वह उसके नरम कूल्हों को दबाते हुए महसूस कर रहे थे ---- फ़िर उन्होंने अपना हाथ आशा के कूल्हे की दरार के बीच रख दिया और उसे दरार पर बड़े आहिस्ते से --  प्रेमपूर्वक चलाते रहे ।

पहले से ही काम-पीड़ित आशा अब धीरे धीरे जंगली होती जा रही थी --- उसने अपने जाँघों को, रणधीर बाबू की टांगों व जाँघों पर रगड़ना शुरू कर दिया ---- पर रणधीर बाबू तो आशा के काम प्रतिक्रियाओं से बेख़बर रह, ---- उसकी दूधिया छह इंच लंबे क्लीवेज को चूसे जा रहे थे --- बिल्कुल मगन हो कर --- सब बातों से बेख़बर हो कर --- बस ‘लप्प लप्प’ और ‘स्ल्लर्पssss स्ल्लsssर्र्पsss’ की आवाजें करते हुए क्लीवेज चूसने के काम में मगन थे ---

जल्द ही,

उन्होंने आशा के कूल्हों को छोड़ दिया और अपने सख्त हाथों से उसके नरम स्तन को अच्छे से पकड़ कर पंप करना शुरू किया  ----

और पंप भी कुछ ऐसा करना चालू किया रणधीर बाबू ने कि देख कर लग रहा था मानो आशा के बूब्स में जो कुछ भी है इस वक़्त वह सब निकाल लेना चाहते हों --- आशा भी कुछ इस तरह से आहें भर रही थी जैसे की वह भी आज सब कुछ लुटाने को तैयार हो कर आई है ----


काफ़ी देर तक पागलों की तरह दबाने के बाद रणधीर बाबू कुछ सेकंड्स के लिए रुके  ---- फटा हुआ गाउन अब बाधा बन रहा था ---- रणधीर बाबू ने आँखों के इशारे से अपनी बात आशा को समझाई --- और --- आशा भी बात को समझते ही तुरंत गाउन को जाँघों के पास से पकड़ कर कमर से होते हुए बहुत ही सिडकटिव तरीके से अपने दोनों हाथों के ऊपर से होकर निकाल फेंकी ---

“वाऊ !!”

सीने से लेकर कमर तक का नंगा जिस्म देख कर रणधीर बाबू के होंठ स्वतः ही गोल हो कर एक सीटी बजाते हुए ये बोल निकले |

आशा के गदराए शरीर को तो कई महीनों से भोग रहे हैं रणधीर बाबू पर आज तो रूप ही अलग है आशा का ---- और रूप ऐसा कि वासना की लहरें हिलोरें मार मार कर दिल और दिमाग को सुन्न किये दे रहा था और लंड को चुस्त और सख्त पर सख्त ---- |


अपने हथेलियों को आशा के चूचियों के बिल्कुल नीचे रख कर ऊपर से उठाते हुए उन्होंने आशा के गोरे स्तनों के गुलाबी निपल्स को देखा ---

इतनी देर में उसकी चूचियों को इतनी यातनाएँ दे चुके हैं रणधीर बाबू की दोनों ही जगह जगह से बुरी तरह लाल हो चुकी थीं और निपल्स भी एकदम कड़क हो कर खड़े थे ---

कामेच्छा की तीव्रता ने रणधीर बाबू के आँखों को सुर्ख लाल कर दिया था और अपनी उन्हीं सुर्ख लाल आँखों से वे आशा के आँखों में आँखें डाल कर उन लाल हो चुकी चूचियों को हौले से दबाया --- हालाँकि आशा भी काम वासना से बुरी तरह पीड़ित हो तड़प रही थी पर रणधीर बाबू का इस तरह उसके आँखों में आँखें डाल कर उसकी नंगी चूचियों के साथ खेलने के उपक्रम ने उसे लजाने को मज़बूर कर दिया --- रणधीर बाबू ने भी अब उसके वक्षों को दबाते – पुचकारते हुए उसके निपल्स पर उत्तेजक ढंग से अँगुलियों को रगड़ा --- और इस पर वह तनिक कराह उठी ---

पहले से ही अधनंगे रणधीर बाबू ने आशा को अपनी ओर नीचे की तरफ़ खींचा ; अचानक के खिंचाव से आशा ख़ुद बचाव न कर सकी और सीधे रणधीर बाबू के सीने पर जा गिरी --- उसके स्तन उनके बालों वाली छाती में दब गए |

दब क्या गए ; यूँ समझिये की कुचल गए !! ---

अब रणधीर बाबू ने बड़े प्यार से आशा के सिर के भीगे बालों को सहलाया और करीब पांच-छह बार सहलाने के बाद बड़े लुभावने- ललचाई ढंग से उसके गर्दन और कानों को चूमने लगे ---

कानों को चूमते हुए ही अपनी जीभ से उसके कान के पत्ते को थूक से भिगोते हुए ; कान के अंदर तक जीभ डाल डाल कर प्यार जताने लगे ---

यह क्रिया ऐसे ही कुछ देर तक चलाने के बाद उन्होंने आशा के दोनों बाँहों को दोनों हाथों से पकड़ कर अपने सीने पर से थोड़ा उठाया और अपने मुँह को उसके एक नंगी चूची पर रख दिया ---

“ओह्हssss --- sssss----- उम्म्म्मsssss ---- sssssउम्माह्हssssss ---- स्लsssर्प्प्पsss --- ssssस्ल्र्रप्प्पssssss --- मम्मsssssssss--- sssओह्ह्हsssss ---sssss---- कितना नर्म औरsssss स्पोंजीsss है ---- आआउउऊऊमममममsssssssssssss

आशा के बायीं चूची को चूसते हुए रणधीर बाबू ने सोचा ---- |

चूची चुसाई इतना प्रेम और जबरदस्त तरीके से हो रहा था कि कुछ समय बाद रणधीर बाबू को लगा की कहीं वह चूची चूसते चूसते, अपने चड्डी में ही न झड़ जाए --- इसलिए चूची पर मुँह लगाए ही वह अपने दूसरे हाथ से अपने कमर पर से अपनी भीगी चड्डी किसी प्रकार थोड़ा थोड़ा कर के सरकाते हुए पैरों से निकाल फेंका ---- और --- फ़िर से पूरी तन्मयता से जम गये आशा की चूचियों पर --- वो बारी-बारी से उसके चूचियों को चूसता रहा ।  “आआssssहाहाssssहाहाssss --- एकदम कड़क --- और मखमल---- sssss ---- उम्म्मssssमम्मssss मक्खन ---- आह्ह्ह:ssssss --- वाह्ह्हsssssssss” ---- रणधीर बाबू उसकी चूची चूसते और मन ही मन तारीफ़ पर तारीफ़ करते जाते ---- पानी और लार से गीले सफ़ेद स्तन और भी ज्यादा लुभावना लग रहे थे --- और इस नज़ारे को देख कर रणधीर बाबू का लंड धीरे धीरे फनफना कर खड़ा होने लगा --- होने नहीं, बल्कि हो गया था --- आशा को थोड़ा और उठा कर अपने और आशा के जिस्मों के बीच से हाथ ले जा कर उन्होंने अपना लंड पकड़ कर आशा को दिखाया --- ।


आशा तो पहले से ही जोश और मस्ती की मारी थी --- और अब कड़क टनटनाता लंड और उसका लाल सुपाडा देख कर तो जैसे उसपे कोई नशा सा छा गया --- रणधीर बाबू ने जल्दी से आशा की पैंटी को उतारने में आशा की मदद की और उतार कर अपने चड्डी के पास ही फ़ेंक दिया ---

रणधीर बाबू का लंड बेतहाशा हिल रहा था --- और आशा के चूत को छू रहा था --- वो दोनों बिल्कुल नंगे थे ; उस बड़े से बेडरूम के बड़े से बेड पर --- नर्म स्तनों को चूसते हुए, गर्म लोहे के रोड जैसे लंड को उसकी मुलायम दूधिया जांघ पर रगड़ना शुरू कर दिया और साथ ही साथ उसके माँसल गदराई चुत्त्ड़ो को भी मसलने लगे --- मस्ती और बेकरारी ऐसी कि अपने हाथों को उस नर्म गांड की दरार पर बुरी तरह फ़ैला रहा था ---


रणधीर बाबू के इन यौन अत्याचारों से बेचारी आशा की तड़पन तिल तिल कर बढ़ रही थी --- और अब तो रणधीर बाबू के उसके गांड के दरार पर हाथ लगा देने से तो वह और भी दोहरी हो गई और ज़ोर से कराह उठी --- रणधीर बाबू उसे उठा बिस्तर पे लिटाए और अब ख़ुद उसपे चढ़ गए --- और फ़िर दोनों की चुम्बन शुरू हो गई --- कई मिनटों के चुम्बनों के बाद रणधीर बाबू धीरे धीरे नीचे आते हुए उसके बिना बालों वाली चूत के पास पहुंचे --- उनको अपनी ओर आमंत्रित करता वह गुलाबी छेद दिखा --- पानी से गीला हुआ , और पानी ही नहीं शायद प्राकृतिक तरल पदार्थ ; दोनों के मिश्रण से गीला लग रहा था वह गुलाबी छेद --- यानि की वह गुलाबी चूत --- बेसुध सा --- होश खोए हुए किसी व्यक्ति जैसा उस प्राकृतिक लुभावनी चीज़ को कुछ देर देखने के बाद स्वतः ही एक कमीना मुस्कान रणधीर बाबू के अधरों पर खेल गया --- चूत पर झुक गए रणधीर बाबू --- अपने नाक को बहुत पास ले जाकर उसकी चूत को सूंघा ---- पेशाब, पसीना और यौन रस मिश्रित एक अजीब सी गंध आ रही थी --- पर रणधीर बाबू के चेहरे पर ऐसे भाव रेखाएं खींच आईं जैसे कि मानो उन्होंने ब्राउन शुगर या कोकेन से भी ज़्यादा नशे वाली किसी चीज़ का स्वाद ले लिया हो --- एकबार फ़िर झुके उस चूत पर और इस बार अपनी जीभ को निकाल कर चूत के एक सिरे पर रखते हुए उसे, चूत की रेखा के किनारों तक दौड़ाया --- उस गंध ने रणधीर बाबू को एक जंगली या यूँ समझे की एक जंगली से भी बद्तर --- एक हैवान बना दिया है --- |


उसने अपनी जीभ को छेद के अंदर गहराई तक धकेला ----

और,

उनके ऐसा करते ही,

आशा के हाथ नीचे हो कर उनके सिर के बालों में घुस गए और उन्हें कस कर जकड़ लिया----

इधर रणधीर बाबू ने भी उसके माँसल, मोटे जांघ वाले पैरों को थोड़ा और फैला कर अपना मुँह और अधिक अंदर कर लिया और अब उसकी चूत को बेतहाशा चाट रहे थे --- उसकी चूत के हर संभव कोने पर काटते हुए आशा को यौन संसार के एक अलग दुनिया में ले जा रहे थे --- |

और,

उनके हरेक ऐसे करतूत पर आशा ज़ोरदार कराहें दे रही थी --- इस बात को भूल कर --- इस बात से बेपरवाह --- की आज उसका बेटा घर पर है और किन्हीं एक रूम में सो रहा है ---

अब तक रणधीर बाबू ने आशा की आँखों में देखते हुए अपने लंड को ऊपर की ओर सीधा कर के पकड़ लिया और आशा की कमर पर अपना बायाँ हाथ रख; आशा को अपने लंड पर बैठने का संकेत किया ----

आशा तो थी ही जोश में पागल, --- संकेत मिलते ही उसने खुद को थोड़ा ऊपर उठाया, रणधीर बाबू के गर्म लोहे को पकड़ लिया और खुद को उसके ऊपर, उस ठरकी बुड्ढे के सांकेतिक निर्देशानुसार व्यवस्थित की और धीरे-धीरे खुद को उस राक्षसी अंग पर बैठा दिया ---

अब,

जब आशा उस बुड्ढे के सख्त अंग पर स्वयं का मार्गदर्शन कर रही थी, तब ठरकी बुड्ढे रणधीर ने अपना दाहिना हाथ आशा के नर्म कूल्हों पर रख दिया था और अपने नज़रों को स्थिर किया आशा के पूरे जिस्म पर जो अभी अभी उस सख्त लौड़े पर बैठी थी, जो खुद को व्यवस्थित कर रही थी उस सख्त गर्म लोहे के ऊपर जो उसकी उस नम, आर्द्र चूत में अभी खुद को सेट कर रहा था ----

आशा ने रणधीर बाबू का गर्म लंड अपने नर्म, गीली, आर्द्रता से पूर्ण चूत में  भले ही डाल ली थी,  लेकिन एक ऐसी गृहिणी होने के नाते ; जिसके पति का लंबे समय तक कोई अता पता न हो, कोई खबर न हो --- जिसने अपने पति के अलावा सिर्फ़ किसी से सेक्स किया हो तो केवल रणधीर बाबू से, --- वो भी सिवाय काऊ गर्ल वाले पोजीशन को छोड़ अन्य सभी आजमाई हो --- आज पहली बार इस तरह अपने जांघे फैला कर अपने चूत में बैठे बैठे किसी का लंड नामक यौनांग ले कर , उस पर सवार होने के बारे में सोच भी नहीं पा रही थी। रणधीर बाबू ने स्थिति को भांपते हुए, उसे हाथों से पकड़ कर फ़ौरन अपने सीने के ऊपर खींच लिया ---- और धीरे-धीरे आशा की योनी में अपनी मर्दानगी को घुसा कर घूमाने लगा ----


लंड जैसे जैसे योनि में एडजस्ट होता गया , --- वैसे वैसे आशा पर विश्रांति का भाव छाने लगा --- इससे पहले भी बहुत बार इस ठरकी बुड्ढे से चुद चुकी थी आशा ---- पर ऐसा अहसास --- ये पहली बार ऐसा अहसास हो रहा था उसे ---- उसके दिल-ओ-दिमाग में एक ऐसी ख़ुमारी घर कर गई थी कि वह बिल्कुल भी होशोहवास में नही रहना चाहती थी --- बल्कि वह तो चाहती ही नहीं कि ये पल, ये समय --- कभी ख़त्म हो ---

आशा ने अपना सिर रणधीर बाबू के दाहिने कंधे पर रख दिया और फ़िर सिर को अपनी ही दाईं ओर घुमा दी ---

रणधीर बाबू ने अपना बायाँ हाथ आशा के सिर पर रख दिया और अपनी उधर्व चुदाई को जोरदार गति देते हुए, उसके बालों को सहलाने लगे ----

चुदाई की गति बढ़ते ही आशा को गीली चूत के बावजूद भी थोड़ा दर्द का अहसास होने लगा --- दर्द थोड़ा ही हो रहा था --- पर आशा को उस चुदाई ख़ुमारी में वह दर्द एक मीठा दर्द लग रहा था ---

ख़ुद पे और नियंत्रण न कर पाते हुए; आशा धीरे-धीरे कराहने लगी, “आआआआsssssssssआआआआआsssssssssआआआआआsss आआआआआssssss आआssssआआsssss आआआ आआआ आआहहहssssss आआह्ह्ह्हssssssss आआआआआआssssssआआआआह्ह्ह्ह्ह्ssssssssssह्ह्ह्ह्ह्ह्sssssss आआआआsssssssssआआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् आआआआआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् आआआह्ह्ह्ह्ह्हsssss आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् sssssss ---- ssssssssssss ----


रणधीर बाबू ने आशा के स्वागत करती योनि में अपने लंड को और बलपूर्वक धक्के मारते हुए , चूत की गहराईयों में दबाया और फ़िर उसके बालों को सहलाते हुए अपनी बोली में शहद सा मीठास घोलते हुए कहा, "क्या हुआ जान, दर्द हो रहा है ?? --- थोड़ा सह लो --- प्लीज़, --- मेरे लिए --- और सुनो, मुँह क्यों फ़ेरी हो? ज़रा इस ओर देखो ना"

पर आशा को होश कहाँ,

वह तो बेचारी यौन तृप्ति की आनन्द सागर में योनि में रह रह कर उठने वाली मीठे दर्द को सहने की जी तोड़ कोशिशों में लगी है ---


बुड्ढे की बात पर आशा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिया, ---- लेकिन बेचारी कराहती रही, '' आआआआआआआआआआहहहहहहह, ----- ..आआआआआआआआआआआआआआआ----आआआआआआआआआआआ---- आआहहहहहहहहहहह---- हहहहहहहहहहहहहहह----- हहहहहहहहह्हssssssssssह्हह्हह्हह्हह्हsssssssssह्हह्हह्हह्हह्ह ------ ह्हह्हह्हsssssss -----sssssssss---- ह्हह्हह्हह्हsssssss ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्sssssssssssssss ... (जैसे शब्दों का प्रयोग कर रही थी)


रणधीर बाबू भी आशा की ओर से किसी जवाब की प्रतीक्षा किए बगैर लगातार ७-८ धक्के बड़े जोर के मारे ---
और उन धक्को के चोटों को बर्दाश्त न कर पाने की वजह से आशा चिहुंक कर, मदमस्त अंदाज़ में और भी अधिक मादक स्वर में कराहने लगी,

आआआआआआआआआआआsssssssssssss आआआआsssssssssss ---- आआआआsssssssआआआआआआआsssssssssss ---- आआहहहहहहहहहहह---- हहहहहहहहहहहहहहह----- हहहहहहहहह्हह्हह्हह्हह्हह्हह्हह्हह्हह्हह्ह ------ ह्हह्हह्हह्हsssssssssह्हह्हह्हह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् ----- ..आआआआआsssssssssआआआआआआआआआआ----आआआआआआआआआआआ---- आआहहहहहहहहहहह---- हहहहहहहहहहहहहहह----- ऊउम्मम्मssssssssम्मम्मम--- आआअह्हssssssssss ---- आआआआआआssssssssssssआआआआआआआsssssssssssssआआ----आआआआआआsssssssआआआआआ---- sssssssss--- आआहहहहहहहहहहह---- sssssssssssहहहहहहहहहsssssssssहहहहहह----- हहहहहssssssssssssssssह्ह्ह्ह्ह्हह --- ओह्ह्ह्हहह्ह्ह्हह्ह
“ओह्ह्ह्हहह्ह्ह--- ssssssss---आह्हह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह्ह्ह-----ऊऊऊऊहहहहहहहहहहssssssssssssssss----ओह्ह्ह्हह ---- माँआअsssssssssssअआआआआssssss ---- ssssss--- स्स्सस्स्स्सस्सस्सस्सस्स्सsssss ------”

आशा की प्रत्येक कराह रणधीर बाबू के कानों में जैसे शहद घोल दे रही थी --- और मन में यह हार्दिक इच्छा थी की वह धक्के मारते हुए अब आशा की आँखों में देख सके- --- प्रत्येक धक्के पर उसके चेहरे पर बनने बिगड़ने वाले भावों को करीब से देखना चाहते थे ----

इसलिए,

खुद के साँसों पर काबू पाने की कोशिश करते हुए एक बार और अनुनय किया उन्होंने,

“आशा ---- जान --- एक बार प्लीज़ मेरी तरफ़ देखो न ---- इधर देखो --- प्लीज़ ---- आँखों में देखो --- आशा ----”

इस बार आशा भी मना नहीं कर पाई और बेहद आहिस्ते से वह रणधीर बाबू की ओर घूम गई --- पर जैसे ही एक सेकंड के लिए उसकी आँखें रणधीर बाबू की आँखों से मिलीं, वह जैसे शर्म के सागर में डूब गई --- तुरंत ही अपने होंठों को सख्ती से भींचते हुए उसने अपने कराहने पर काबू किया और आँखें बंद कर लीं ---





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#73
रणधीर बाबू --,

“अरे क्या हुआ?? ओफ़्फ़ो ---- यार, इतना शरमाओगी तो फ़िर कैसे चलेगा --? और आज अचानक से इतना क्यों शर्मा रही हो?? इससे पहले भी तो हम दोनों ने बहुत बार किया --- पर तब तो इतनी न शरमाई थी तुम --- चलो, आँख खोलो और मुझे देखो ---- ”


प्यार भरे इस मनुहार में उन्होंने अपना निर्देश भी दे दिया था ---

आखिर,

आशा को अपनी आँखें खोलनी ही पड़ी ---

और आँखें खोलते ही नज़रें सीधे जा टकराई बुड्ढे के नज़रों से --- हवसी नज़र--- पर आज आशा को बुड्ढे की नजरों में दिखाई देने वाला हवस, हवस नहीं ; एक प्राकृतिक गुण या अवस्था लग रहा था जो कि ऐसे मौकों पर एकदम ही कॉमन होते हैं --- |
हालाँकि अपनी स्त्री सुलभ लाज वाली प्रवृति के कारण वह खुलेआम उनकी वासना से भरी इस पूरी गतिविधि में पूरे मन से भाग नहीं ले पा रही थी,  पर फ़िर भी उसकी आँखें वासना की डोरों से लाल होकर भर गई थीं ---- जैसे उसने अपनी आँखें खोलीं और रणधीर बाबू को देखा;  रणधीर बाबू ने अपनी शैतानी बुद्धि का उपयोग करते हुए अपने रॉड से लंड को उसकी योनि से बाहर निकाला और दुबारा पूरे ताक़त से जोर से अंदर डाल दिया।


अचानक से हुए इस हमले से आशा संभल नही पाई और इस बार दिल खोल कर, ज़ोर से चिल्ला उठी ---

आआआआsssssssssssssआआआआआआssssssssssआआआआआ----आआआआआssssssssआआआआआआ---- आआहहहsssssहहहहहहहहsssssss ---- हहहहहहsssssssssssहहहहहहहहह----- हहहहहहहहह्हह्हssssssssssssssssह्हह्हह्हह्हह्हह्हssssssssssssह्हह्हह्ह --- माँआअssssssssssssssअआआआssssssssssssssss---- स्स्सस्स्स्सस्सस्सस्सस्स्सssssssssss ---- आआआआआआऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊssssssssss----”


दर्द थोड़ा कम होते ही आशा तीन चार लंबी गहरी सांस ली और धीरे से आँखें खोल कर रणधीर बाबू की ओर देखी,

रणधीर बाबू उसी की ओर टकटकी बांधे देख रहे थे---

उन्होंने एक-दूसरे की आँखों में देखा और नज़रें मिलते ही रणधीर बाबू  ने एक और ज़ोर का धक्का दिया जिससे आशा के होंठ एक बार फिर खुल गए और एकबार फिर से पहले के तरह ही आआआअह्हह्हह्हसे कराह उठी ----

इसी तरह रुक रुक कर करीब दस धक्के लगाने के बाद रणधीर ने अपने होठों को आशा को चूमने के लिए आगे बढ़ाया ; आशा ने न कोई प्रतिक्रिया दी और न ही किसी तरह के विरोध का भाव दिखाया, बल्कि उल्टे आशा ने भी अपना मुँह रणधीर बाबू की ओर कर दिया और उन दोनों ने एक दूसरे के होंठों को अपने अपने होंठों के गिरफ़्त में ले बड़े वासनायुक्त तरीके से कस कर चूमना शुरू कर दिया ---- |


रणधीर बाबू ने अपनी चुदाई के धक्कों की गति ज़ोरदार रूप से बढ़ाई और परिणामस्वरुप आशा ने भी उसी अनुपात में कराहना शुरू कर दिया, बावजूद इसके की उसके होंठ अभी भी रणधीर बाबू के होंठों के साथ एक भावुक चुंबन में बंद है ;

"आआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआहहहहहहहह ---
आआआआआआआआआआआआआआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् ---
ऊऊम्मम्मम्मम्मम्मम्ममममममममम्मम्म ----
आअह्ह्ह्हह्ह्हह्ह्ह्हह्ह्हह्ह्ह्ह ------“


आशा को पीड़ा तो निःसंदेह हो रही थी पर साथ ही अंदर ही अंदर वह इस बात से बहुत बहुत ही ख़ुश थी कि रणधीर बाबू के बाहर टूर पर चले जाने के कारण कुछ रातों और दिनों से जो अकेलापन उसे साल रहा था वो सब आज एक ही दिन; ---- बल्कि यूँ कहो कि पिछले एक घंटे से परम सुकून से कट रहा था ---- शायद एक घंटा भी पूरी तरह से न बीता हो, और अभी तक में ही इतनी संतुष्टि और यौन शान्ति मिली है , जिसे वह शायद ही कभी शब्दों में बयाँ कर सके ---- और जो बात उसे सबसे अधिक पसंद आई --- वह है रणधीर बाबू द्वारा उसके सुस्वादु शरीर का ज़बरदस्त एवं अभूतपूर्व रूप से मर्दाना उपभोग करने का तरीका ---


मतलब की क्षण-प्रतिक्षण, पल प्रतिपल, ख़ुद को बखूबी नियंत्रण में रखते हुए आशा के गदराए जिस्म के साथ ऐसे खेलना कि हर बार आशा काम सुख एक शिखर तक पहुँच जाती और क्षण भर उस शिखर पर रहने के बाद अचानक से ही बड़े ही खूबसूरत, करामाती ढंग से ---- रणधीर बाबू के हाथों, होंठों और हथियार के खेल से --- आशा धीरे धीरे उस शिखर से नीचे हो आती ---  कुछ देर बाद फ़िर से उसी तरह काम-आनंद के ऊँचाइयों में उड़ने लगती ---

आशा की अकड़ती जिस्म, बीच बीच में तेज़ और फ़िर धीरे हो जाने वाली श्वास प्रक्रिया --- चेहरे पर अनकही प्रसन्नता के आते जाते भाव --- ये सब साफ़ साफ़ बता रहे थे कि वह अब सिर्फ़ और सिर्फ़ --- इस खेल --- इस पूरे काम क्रिया को शीघ्र से शीघ्र समाप्त करना चाहती है --- कुछ ऐसे --- जिससे की जल्दबाज़ी भी न हो ---- और कोई शिकायत भी न हो ---

और ये बातें , कई साल के अनुभवी खिलाड़ी --- रणधीर बाबू कैसे न समझ पाते --- बीते कुछ दिनों वे आशा को भली प्रकार जान चुके थे ---- उसकी अच्छाई--- इच्छाएँ --- कमज़ोरी --- सब कुछ --- ये कहना की आज की तारिख में रणधीर बाबू से बेहतर, आशा को जानने वाला कोई न होगा ; ----- अतिश्योक्ति न होगी ---  ऊपर से , पिछले कुछ मिनटों से आशा के आव-भाव ये इस बात की साफ़ गवाही दे चुके हैं कि वह अब लाज शर्म वाली कोई भी बाधा नहीं देने वाली है ---- रणधीर बाबू ने अब ख़ुद को ऊपर उठाते हुए --- आशा को बिस्तर पर लिटा दिया --- आशा की धडकनें तेज़ और आँखें बंद हैं --- मुखरे पर मासूमियत के साथ वासना के बादल भी छाए हुए हैं --- रणधीर बाबू के अधरों के कोनों पर एक कुटिल मुस्कान खेल गई --- अब उनके हर आदेश व निर्देश के प्रति आशा के अनुपालन के बारे में आश्वस्त होकर, उसके टांगों के बीच में आकर उस आरामदायक गद्दे वाले बिस्तर पर अपने घुटने टेक दिए और उसके (आशा) के पैरों को पकड़ कर --- अँगुलियों के हल्के स्पर्शों से सहलाते हुए उन्हें फैला दिया ----


सुर्ख गुलाबी छेद एकबार फ़िर सामने है --- गीली --- दिन के उजाले में --- खिड़की से आती रोशनी में --- गीलेपन के वजह से चमकती हुई --- होंठों पर वही कमीनी, शैतानी मुस्कान लिए --- रणधीर बाबू ने अपने मुँह में एक उंगली घुसाई --- अच्छे से अपने थूक से भिगोया और बिना ज़्यादा चालाकी के उस गुलाबी छेद में डाल दिया ---- इतना ही नहीं ; ---- जैसे ही उन्होंने ऐसा किया, --- ऐसा करते हुए ही वे नीचे झुके और आशा के कड़क --- खड़े निपल्स को चूसना शुरू कर दिया।
“अम्म्मम्म --- आअह्ह्ह्हह्ह्ह्हह ---- स्सस्सस्ससस्सस्सस ---- ”

आशा यौनेत्तेजक रूप से बिस्तर पर कसमसाते हुए बड़े मादक ढंग से कराह उठी ----

उसकी इस कराह को सुनकर कोई भी अपना होश खो सकता था ---

आशा ने अपने नाजुक, खड़े निप्पल्स पर उनके मोटे जीभ को और मोटे फनफनाते अंग को महसूस किया ; ---- जोकि उनकी नर्म चूत की तरफ ही था --- ।

जैसे-जैसे ठरकी बुड्ढे--- रणधीर बाबू की अनुभवी अंगुली अंदर-बाहर होती गई --- ठीक वैसे वैसे --- उसकी चूत जवाब देने लगी और उससे रस टपकने लगा ---

चेहरे के साथ साथ चूत की भी वांछित प्रतिक्रिया देख, रणधीर बाबू की तो बांछे ही खिल गई --- अपने दूसरे मुक्त हाथ से रणधीर बाबू  आशा के नरम स्तन और जाँघों को ज़्यादा से ज़्यादा सहलाने और अच्छे से छू महसूस करने के लिए उसके पूरे जिस्म पर उन्मुक्त ढंग से हाथ फ़ेरने लगे ---

आशा भली भांति उस बुड्ढे रणधीर के जननांग की गर्मी और कठोरता को महसूस कर रही थी ---

इधर अब धीरे धीरे रणधीर बाबू भी अपने जोश के आगे अपने हथियार को डालते हुए पाए ---- अब और इंतज़ार नहीं किया जा सकता --- वह तुरंत आशा के पेट पर झुक गए --- उसकी नाभि को चूमा और अपनी जीभ को उसमें घुसा दिया ---- कुछ देर तक नाभि में जीभ को घूमा घूमा कर अच्छे से स्वाद, जोकि पानी और पसीने के मिश्रण से नमकीन सा लग रह था; लेने के बाद रणधीर बाबू ने नीचे से जगह बना कर आशा की गांड के नीचे हाथ फेरा और उसे उठा कर उसकी चूत को और अधिक उन्मुक्त और खुला कर दिया ----  उसके बाद उसकी चूत पर झुक कर अपनी जीभ  चूत के होठों में घुसेड़ दी,  --- और ---- घुसेड़ कर बेतरतीब तरीके से दाएँ बाएँ घूमाने लगे क्योंकि वह उन्हें अलग-थलग कर के चूत के एक एक कोने का मज़ा लेना चाहते थे --- ऐसा होते ही , --- उसकी चूत फ़िर बहने लगी और उसके रस को रणधीर बाबू पूरी तल्लीनता और श्रद्धा से चाटने लगे--- ।

“आअह्ह्ह्ह ---- ओह्ह्ह्ह ---- र----रण----रण--धीर जी , प्लीज़ ---- य --- ये ---- क्या--- कर र---- रहे ---- हैं ---- आ-- आप ???”

हालाँकि ये कोई पहली बार नहीं था जो रणधीर बाबू उसकी चूत चुसाई कर रहे हैं ---- इससे पहले भी बहुत बार ऐसा हो चूका है --- और --- हर बार आशा को बहुत बहुत मज़ा आया है --- चूत चुसाई का अपना एक अलग ही आनंद है जिसका उपभोग आशा जम के करती है ---

पर आज, अभी , आशा को उस ठरकी रणधीर के छह इंच वाला माँस का लोथड़ा अपने भीतर लेने का बेहद दिल कर रहा था --- बेचारी कब से तड़पे ही जा रही है --- पर ठरकी बुड्ढे को है कि फोरप्ले से मन ही न भरे ---

शुरूआती हाथ पाँव तो चलाए उसने --- परन्तु शीघ्र ही उसकी प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगी क्योंकि उसने महसूस किया कि गर्म जीभ उसकी चूत को बेपनाह मोहब्बत से सहला रही है और कभी-कभी तो उसके अंदर एक गहरी गोता लगा रही है ----

इधर रणधीर बाबू अपने हाथों से उसकी कोमल जांघों को पकड़ कर--- अपनी जीभ के झटके तेज कर दिए ----

दर्द और वासना से आशा के नथुने फूल और सिकुड़ रहे थे ---

सुंदर गुलाबी होंठ ऐसे खुले हुए थे जैसे वह अपनी सांस को हवा से चूस कर ले रही हो, ---

उसके सिर के बाल बिखरे हुए और आँखें खुली हुई थीं , ---- जैसे दया की भीख माँग रही हो बुड्ढे से कि अब तो अंदर डाल दे ---

उसका पूरा जिस्म पसीने से लथपथ था जो कि दिन में खिड़की से आती हल्के उजाले में चमक रहा था ---

उसका दिल जैसे उत्तेजित आतंक से भर गया ---

निप्पल्स और भी तने हुए ---

और उसके स्तन एक घंटे से भी अधिक समय तक दिए गए ज़रूरत से ज़्यादा प्यार और ध्यान से सूज गए ----

अब रणधीर बाबू भी सीधे हुए,

फ़िर आहिस्ते से नीचे झुक कर आशा के दोनों कंधे पकड़ लिए --- अपने शरीर को थोड़ा ऊपर उठाया और अपने पैरों का सहारा लेकर आशा के पैरों को और फैला दिया ---- और ऐसा करते ही खुद को आशा के जाँघों के बीचों बीच सेट कर लिया ---
धीरे धीरे अपना अपना पूरा शरीर उसके ऊपर डाल --- और ऐसा करने से उसके वजन ने मानो आशा के गदराई शरीर के कोमल मांस को कुचल दिया ---- साथ ही उसने आशा का सुंदर, मासूम गोल चेहरा अपने हाथों में लिया और अपना मुँह उस पर डाल दिया ---- गीले चुम्बन हेतु --- उसने अपनी जीभ आशा के मुँह में घुसा दी और उसकी जीभ से खेलने लगा ---- गीले, लार मिले चुम्बन ले ले कर, जीभ से खेलते हुए वह वापस खिंच लिया और उसे जोर से स्मूच की आवाज़ के साथ चूमने लगा --- इसी के साथ आशा के सिर को उठा कर उसके बिखरे बाल संभाले और उसे एक तंग गुच्छे में कर, --- अपनी मुट्ठी की गिरफ्त में ले कर पीछे की ओर खींचते हुए अपने दूसरे हाथ से उसके नर्म सूजे हुए स्तनों को निचोड़ने लगे ----


इधर आशा ने भी महसूस किया कि उसके जाँघों के बीच थोड़ी बहुत हरकत करती --- एक माँस का लम्बा टुकड़ा गर्म खून से परिपूर्ण --- उसके चूत के द्वार को सहला रहा है --- इंच दर इंच --- और पास आ रहा है ---

साफ़ पर अजीब सा महसूस कर रही थी, रणधीर बाबू के होंठों को अपने चुचुक पर ; उन्हें ज़ोर से चूसते हुए --- साथ ही अपनी गर्म जीभ स्तनों की गोलाईयों को चाटते हुए ---

अब,

अब कुछ और भी महसूस हुआ,

महसूस हुआ उसे,

कि रणधीर बाबू के विशालकाय लंड का सुपाडा उसकी चूत को खोलना शुरू कर दिया है और योनि की अनंत गहराई में यात्रा शुरू कर दिया है ---- ।

योनि रस से भीगे होने के कारण उस विशालकाय लंड को अंदर प्रवेश करने को लेकर कोई खास प्रतिरोध का सामना नही करना पड़ा –

जैसे जैसे बुड्ढे का लंड अंदर प्रवेश करता गया,

वैसे वैसे वह महसूस की कि, उसकी चूत की दीवारें धीरे-धीरे भर रही हैं ----

“मम्ममम्म्म ओफ्फ मैं पागल हो रही हूँ ---- आअह्ह्ह”

उसका इतना कहना था कि रणधीर बाबू ने जोश में आकर अपने लंड को उसकी दर्द करने वाली चूत के उसी हिस्से में गहराई तक धक्के मार कर घुसा दिया ----

जवाब में आशा ने बड़ी सख्ती से बिस्तर के चादर को दोनों तरफ़ से अपने मुट्ठियों से पकड़ कर भींच ली ----

धीरे धीरे ही सही , पर अब आशा यौन तनाव में जंगली होती रही थी,

“आअह्ह्ह ... प्लीज़ मत रुकिए --- म्मम्मम !!”

धीरे से रणधीर बाबू के कान में बोल पड़ी --- |

इतना सुनना था कि रणधीर बाबू अपनी स्पीड धौंकनी की तरह और बढ़ा दिए और आशा भी अपनी गांड उठा उठा कर उनके स्पीड को मैच करने की कोशिश करने लगी ---

धप्प धपप्पप धप्प धपप्पप !!! धप्प धपप्पप धप्प धपप्पप धप्प! धपप्पप धप्प धपप्पप!! धपप्पप धपप्पप धपप्पप!! धप्प धप्प धप्प धप्पप्पप्पप्प!!

आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् आअह्ह्ह्ह ऊओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह !! ऊओह्ह्ह्ह आआऊऊईई म्मम्मम्म ऊओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह ऊओह्ह्ह्ह ऊओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह आआऊऊईई!!!

धप्प धपप्पप धप्प धपप्पप धप्प धपप्पप!! धप्प! धपप्पप धप्प! धपप्पप धप्प धपप्पप!! धपप्पप धपप्पप धपप्पप!! धप्प धप्प धप्प धप्पप्पप्पप्प!!

आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् आअह्ह्ह्ह ऊओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह !!! ऊओह्ह्ह्ह आआऊऊईई म्मम्मम्म!!! ऊओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह ऊओह्ह्ह्ह ऊओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह आआऊऊईई !!!

धप्प धपप्पप धप्प धपप्पप !! धप्प धपप्पप धप्प धपप्पप धप्प!!!! धपप्पप धप्प धपप्पप धपप्पप!! धपप्पप धपप्पप धप्प धप्प धप्प धप्पप्पप्पप्प!!

आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् आअह्ह्ह्ह ऊओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह !! ऊओह्ह्ह्ह आआऊऊईई म्मम्मम्म ऊओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह ऊओह्ह्ह्ह ऊओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह आआऊऊईई !!!!!

धप्प धपप्पप धप्प धपप्पप धप्प धपप्पप धप्प धपप्पप !!! धप्प धपप्पप धप्प धपप्पप धपप्पप धपप्पप !! धपप्पप धप्प धप्प धप्प धप्पप्पप्पप्प!!

आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् आअह्ह्ह्ह !! ऊओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह ऊओह्ह्ह्ह !! आआऊऊईई म्मम्मम्म ऊओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह !!! ऊओह्ह्ह्ह ऊओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह आआऊऊईई !!!!

पूरे कमरे में बस यही दो आवाजें गूँज रही थीं ;

एक ठुकाई की --- और दूसरी कराहने की ---- !!

उत्तेजना की अधिकता में रणधीर बाबू , आशा की एक चूची को चूसते हुए काट बैठे ; और जैसे ही उन्हें इस बात का एहसास हुआ, वह तुरंत ही उस पूरी चूची को चाटने लगे ---

"आआआआहहहहह हुहहुह हहहह अम्म्महहहहहहहह !!!", वह तेजी से कराहने लगी, उसकी साँसें तेज हो गईं ----

"आआआआहहहहह हुहहुह हहहह अम्म्महहहहहहहह आह्ह्ह्ह्ह्ह!”, आशा खुशी और दर्द ---- दोनों में झूम उठी, ---- उसके गोरे योनि रस ने उस ठरकी बुड्ढे के काले लंड को हर बार उसके शरीर को ऊपर खींचते हुए, -----  केवल उसे वापस अंदर धकेलने के लिए ही, उनके लंड पर और आगे बढ़ते हुए ---- अपने क्रीम रुपी जल को बुड्ढे की गेंदों पर जेट की तरह फ़ेंक कर उनकी भी मानो कोटिंग कर देना चाहती हो ---

रणधीर बाबू इस वक़्त एक जानवर सरीखा लग रहे थे  --- और --- ये बड़ा जानवर न तो अपनी पंपिंग अर्थात, --- चुदाई की गति को कभी धीमा किया,--- उल्टे आशा को उसकी मांसल कमर के चारों ओर से कसकर पकड़ कर --- उसकी चूत पर ज़ोरदार बेरहम तरीके से चुदाई चालू रखी --- “आआओओओओह्ह्ह्हघ्घ्घ्घ” ---- एक लंबी और तेज़ चीख उसके दोनों पैर सीधे हवा में उठ कर और भी अधिक फ़ैल गए ---


वह जानवर आशा के टांगों को हवा में फैलाए ; उसकी चूत को ऐसे भर रहा था जैसे पहले कभी नहीं भरा था !
हर ज़ोरदार शॉट के बाद थोड़ा सा रुक कर, बड़े आराम से आहिस्ते से लंड को बाहर निकालता --- और जब लगभग पूरा बाहर आ जाता उसका हथियार --- तब फ़िर एक धक्के से अंदर – बहुत अंदर तक घुसा देता --- और हर धक्के में इतना दम होता कि रणधीर के दोनों गेंद (आंड) के आशा के मोटे नितम्बों से टकराने तक की आवाज़ सुनाई देती --- 

“उफफ्फ्फ्फ़ ! ---- होफ्फफ्फ्फ़ !----- उफ्फ्फफ्फ्फ़ ! --- आह्ह्ह्ह!!”

आशा बुरी तरह से हांफने लगी और उसकी साँसें भारी हो गईं ---

रणधीर नाम के जानवर , ठरकी बुड्ढे के कूल्हे तेजी से हिलने लगे ---- बुड्ढे का गांड जिस तेज़ी से नीचे आता --- आशा की नितम्ब भी उतनी ही तेज़ी से ऊपर उठ कर उससे मिलान करने की कोशिश करती---- उसके पैर अनजाने में ही उस ठरकी के कमर के मांसपेशियों के चारों ओर लिपट गए --- जबकि उसका खुद का शरीर वासना में बुरी तरह हिल रहा था ---

रणधीर थोड़ा धीमा हो जाता जब तक की आशा अपनी साँस को वापस लय में नहीं पा लेती --- और एकबार ऐसा होते ही वो फिर से अपनी गति पकड़ लेते ---  और --- इस बार तो और भी अधिक --- और भी प्रचंड तीव्रता के साथ चुदाई प्रारंभ कर दिया उन्होंने तो ---  और प्रत्येक ज़ोर के ठाप के साथ उनका लौड़ा और अंदर प्रविष्ट होता जाता --- एक समय तो ऐसा भी लगा की कहीं आशा बेहोश ही न हो जाए  !!

दो बातें तो साफ़ पता चल रही थी आज –

एक, आशा ने आज से पहले कभी ऐसा कुछ महसूस नहीं किया था और

दूसरा, उस पैंसठ वर्षीय बुड्ढे रणधीर बाबू के स्टैमिना का कोई जवाब नहीं था --- |

वह तो बस चोदे ही जा रहा था और उनके प्रत्येक ठाप से आशा की कराह और चीखें ; ज़ोर से ज़ोर होती चली गई --- यहाँ तक की वह गद्देदार बिस्तर भी आवाज़ के साथ साथ उछलने लगा था --- उनके सेक्स शक्ति के प्रत्येक वार के साथ ।

बुड्ढे की आँखों में एक जंगली पागलपन नज़र आ रहा था --- पसीने से पूरा जिस्म भीगा हुआ था ---

“म्मम्मम्मम्म !!!”

इसबार के उसके कराह में एक आराम और शांति का बोध था, साथ ही आँखों के कोनों से आंसूओं की एक एक बूँद बाहर निकल कर ओझल हो गए ---

वे आँसू ख़ुशी के थे --- या दर्द के ---- या किसी और बात पे --- पर इतना तो पक्का है कि आज से पहले ऐसा सुख उसे कभी नहीं मिला था ---

आख़िरकार,

रणधीर बाबू का भी शरीर अब अकड़ा और काँप उठा ---

और आख़िर में मुँह से एक ज़ोरदार आवाज़ निकालने के साथ साथ एक अंतिम ज़ोर का, जबरदस्त धक्का मारा उन्होंने ---

और आशा भी अपने चूत में रणधीर बाबू के लंड के अकड़न और ऐंठन को भांप कर ख़ुशी और यौन आनंद से

“आअह्ह्ह्ह ऊऊऊऊओ --- ह्ह्ह्हह्ह्ह्हम्मम्मम !!!”

चिल्ला उठी ----

आशा की नर्म – गर्म चूत में रणधीर बाबू का लंड किसी फौव्वारे की तरह छूट पड़ा था ---- गर्म वीर्य पूरे चूत में भर गया ---- और थोड़ा सा चूत से बाहर झाँक रहा था ---

इतने बेहतरीन तरीके से झड़ने के बाद, रणधीर बाबू ने आशा को उसके कन्धों से पकड़ा और धीरे से अपना चेहरा उसके चेहरे पर झुका दिया ---- और जैसे ही आशा ने अपना चेहरा थोड़ा ऊपर उठाया ; ----- दोनों के होंठ मिल गए ---- हैरानी वाली बात तो ये थी की इतने देर के फोरप्ले और सेक्स से हुई इतनी थकान के बाद भी आशा के अंदर जोश बाकी थी ;--- दोनों के होंठ मिलते ही, आशा ने अपने होंठ पीछे नहीं की ---- उल्टे रणधीर बाबू के गले में बाहें डाल कर अपने और पास लाते हुए और भी अधिक कामुक और उत्साह से किसिंग शुरू कर दी --- “म्मम्मम्मम्मम्मम्म” आवाज़ करती हुई होंठ चुम्बन करती रही ---

रणधीर बाबू ने आराम से अपने विशालकाय घोड़े को बाहर निकाला , ---- चूत का मुँह ‘आ’ कर के खुला हुआ रहा ---- और उसमें से गाढ़ा वीर्य धारा बाहर बह निकली ---

रणधीर बाबू बुरी तरह थक चुके थे --- लंड को निकाल कर आशा के बगल में ही बिस्तर पर धप्प से गिर गए ---

थक तो आशा भी गई थी --- पसीने से तर बतर --- चूत से गर्म वीर्य धारा बहती हुई --- टाँगे अब भी फैले हुए --- बाल बिखरे हुए --- गाल, गर्दन, कंधे, सीने और चूचियों पर लव बाइट्स के कारण बने लाल निशान --- नंग-धरंग पिता समान उम्र वाले एक बुजुर्ग आदमी के बगल में लेटी --- साँसों को नियंत्रण में लाने की पुरजोर कोशिश करती हुई --- होंठ और किनारों पर लगे रणधीर बाबू के लार को हथेलियों से थोड़ा थोड़ा कर पोछती हुई ----

आँखें बंद कर लेटी रही --- बिल्कुल चित्त --- |
 

समय कुछ और बीता ---- दोनों ने अच्छे से आराम किया इतने देर तक ---


सबसे पहले रणधीर बाबू उठे ----


बगल के दीवार में टंगी दीवार घड़ी पे नज़र दौड़ाया -----


पौने एक बज रहे हैं !!


“ओह! मुझे तो और भी काम है !”


ये ख्याल आते ही रणधीर बाबू ने जल्दी जल्दी कपड़े पहने --- हुलिया सही किया --- आशा के पास आए --- वह अब भी आँखें बंद किए लेटी थी --- उस गद्देदार बिस्तर पर --- बिल्कुल निस्तेज़ --- कौन कह सकता था कि कुछ देर पहले तक यही आशा हवसी आशा थी --- जो अब बेहद मासूम आशा लग रही है --- दो अँगुलियों से आशा के बाएँ गाल को स्पर्श किया --- मुस्कुराए --- झुक कर माथे और होंठ पर नर्म किस किया --- पास ही रखी एक चादर उठाई और आशा पर उसके गले तक को कवर करते हुए ढक दिया ---- ओह!! बाई गॉड !! आशा तो अब और भी सेक्सी लगने लगी --- रणधीर बाबू के हथियार में फ़िर ऐठन होने लगा --- पर संभाला खुद को --- पलटे --- और तेज़ी से कमरे से बाहर निकल गए ---- |


पर,


निकलते समय, कुछ फीट की दूरी पर --- उन्हें एक शख्स नज़र आया --- जो उसी विशाल कमरे की ही दूसरी तरफ़ की खिड़की से, --- जो बाहर की ओर खुलती है --- अंदर झांक रहा था --- रणधीर बाबू ने ज़रा गौर से देखा उसकी तरफ़ --- ‘अरे, ये तो वही लड़का है --- जो बगीचे में काम कर रहा था ---!!’


आगे बढ़ कर कुछ कहना चाहा रणधीर बाबू ने,


पर रुक गए --- दिमाग में कोई बात खेलने लगा शायद उनके --- कोई कारस्तानी --- शैतानी --- बदमाशी बुद्धि ---


गौर किया, --- वह लड़का बाहर से --- खिड़की से अंदर ज़रूर देख रहा है --- जहाँ आशा अभी भी निढाल , निस्तेज़ पड़ी हुई है --- जहाँ कुछ समय पहले तक उन दोनों ने जानवरों को भी हार मनवा देने वाला सम्भोग किया था --- शायद लड़के ने सब कुछ नहीं भी तो ; बहुत कुछ देख लिया था ---- पर अभी लड़के का ध्यान रणधीर बाबू की तरफ़ बिल्कुल भी नहीं था --- वह तो अंदर आशा को देख रहा था --- अपलक --- मुँह खुला हुआ --- और एक हाथ पैंट के ऊपर से तम्बू बना रहे लंड पर ----



रणधीर बाबू ने यह सब नोटिस किया,



दो मिनट बाद ही उनके होंठों पर एक मुस्कान छाई ---- एक बहुत ही ज़ालिम, कमीनी मुस्कान --- और फ़िर उसी मुस्कान को होंठों पर लिए ही वहाँ रुखसत हो लिए |
 









(क्रमशः ---- अगले भाग में)




                                           ***************दी एंड*************
[+] 2 users Like Bhaiya Ji95's post
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#74
Bhaiya ji chudai bahut detail me hui.... Kahani ka intzar hai
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#75
aage badho bandhu
नशीली आँखें
वो प्यार क्या जो लफ्ज़ो में बयाँ हो 
प्यार वो है जो आँखों में नज़र आए!!
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#76
(24-06-2019, 02:07 PM)Nasheeliaankhein Wrote: aage badho bandhu

कहानी समाप्त है |
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#77
(24-06-2019, 08:54 PM)Bhaiya Ji95 Wrote: कहानी समाप्त है |

धन्यवाद.... इस कहानी की न समझ आनेवाली समाप्ति पर
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#78
(25-06-2019, 04:16 AM)kamdev99008 Wrote: धन्यवाद.... इस कहानी की न समझ आनेवाली समाप्ति पर

आगे की कहानी इसके अगले भाग में होगी ---
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#79
बहोत बढिया कहानी लिखी है आपने। इसे ऐसे ही आगे ले जाओ pls
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#80
(25-06-2019, 01:47 PM)Bhaiya Ji95 Wrote: आगे की कहानी इसके अगले भाग  में होगी ---

Agle bhag ka intzar hai
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