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02-04-2019, 10:37 PM
हेलो फ्रेंड्स एंड रीडर्स, मैं भैया जी, हाज़िर हूँ एक नया स्टोरी ले कर .. न्यू एंड फ्रेश.. बहुत दिनों से कुछेक घटनाओं पर कहानी लिखने को जी चाह रहा था .. जिसे अब धीरे धीरे एक मूर्त रूप दे रहा हूँ.. ये कहानी शार्ट ज़रूर होगी पर शार्ट स्टोरी नहीं... कामकाजी एवं व्यक्तिगत जीवन में प्राय: व्यस्त रहने के कारण मैं रेगुलर अपडेट शायद नहीं भी दे पाऊं.. इसलिए जब फ्री होता हूँ तभी लिखता हूँ और हर सप्ताह एक अपडेट पोस्ट किया करूंगा.. कहानी कैसी लग रही है ये बताने के लिए थोड़ा समय कष्ट कर के अवश्य निकालिएगा | आज एक अपडेट दे रहा हूँ.. आगे आपके कमेंट्स और विचार जान कर ही अपडेट्स दिया जाएगा..
सधन्यवाद,
आपका भैया जी |
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02-04-2019, 10:43 PM
(This post was last modified: 02-04-2019, 10:44 PM by Bhaiya Ji95. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
प्रस्तावना :- अपने वक्षों पर लगातार पड़ते उसके हाथों के दबाव और चुम्बनों से वह कामोत्तेजित रूप से कसमसा गई थी .. बिना ब्रा का हल्की गुलाबी ब्लाउज, निप्पल और उसके आस पास के हिस्से लार से बुरी तरह भीग चुके हैं .. साथ ही हाथों के दबाव और खेल ने ब्लाउज की सिलाई को बेतरतीब ढंग से ख़राब कर चुके हैं.. तंग ब्लाउज में कैद स्तनों के नीचे पड़ते दबाव गोल सुडौल स्तनों को ब्लाउज के ऊपर खुले क्षेत्र से बाहर निकल आने को कह रहे थे | खुले काले बाल कमर तक नागिन की भांति लहरा रहे थे | खुले गले का ब्लाउज का कंधे वाला बॉर्डर अब धीरे धीरे कंधे से ही नीचे उतर जाने को उतावले होने लगे | एक धक्के से उसे सुला दी.. उस बंद कमरे में उन दोनों के अलावा और कोई नहीं था और ना ही किसी के होने का सवाल था | उसे लिटा कर वह भी उसके बगल में लेट गई .. थोड़ी चुप्पी छाई रही .. फ़िर वह उठ बैठी ; अपने लम्बे बालों को थोड़ा संभाली पर अब वे उसके चेहरे पर लटकते हुए झूल रहे थे .. उसे गुदगुदी होने लगी.. उसके हटाने से पहले ही आशा हँसते हुए अपने बालों को उसके चेहरे पर से हटा ली.. दोनों एक दूसरे की आँखों में एकटक देखते रहे – दोनों ही के आँखों में एक दूसरे के प्रति भूख साफ़ दिख रही थी – पर एक अंतर के साथ ... आशा की आँखों में यौन क्षुधा के साथ साथ अपनत्व का भाव था—पर उसके आँखों में सिर्फ़ और सिर्फ़ यौन क्षुधा को तृप्त करने की लालसा थी -- ....... |
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भाग १) आरंभ..
स्क्रीच्चचचssssss….की आवाज़ के साथ एक टैक्सी आ कर रुकी एक घर के सामने | दो मंजिले का घर.. कुछ और कमियों के कारण बंगला बनते बनते रह गया | आगे एक लॉन जिसके बीचों बीच एक पतली सी जगह है जो खूबसूरत मार्बल्स से पटी पड़ी है जिससे चल कर घर के मुख्य दरवाज़े तक पहुँचा जा सकता है | ‘जस्ट पड़ोसी’ की बात की जाए तो जवाब हाँ में भी हो सकता है और ना में भी .. क्योंकि आस पास के घर कम से १५ से २० कदमों की दूरी पर हैं... या शायद उससे थोड़ा ज़्यादा | यानि कि हर घर का शोर शराबा दूसरे (पड़ोस के) घर के लोगों को डिस्टर्ब नहीं कर सकता.. मतलब दूरी इतनी कि आवाज़ वहां तक पहुँचने से पहले ही हवा में घुल जाए | सिर्फ़ यही नहीं हर दो घरों के बीच २-३ पेड़ भी हैं जो कि हर एक घर को दूसरे से आंशिक रूप से छुपा कर खड़े थे |
घर बहुत दिनों से खाली पड़ा था | पांच दिन पहले बात हुआ और तीन दिन पहले ही घर फाइनली बुक हो गया | टैक्सी के पीछे सामानों से लदी दो गाड़ियाँ आ कर खड़ी हो गईं | टैक्सी का पिछला गेट खुला और उससे बाहर निकली नीली साड़ी और मैचिंग शार्ट स्लीव ब्लाउज में... ‘आशा’... ‘आशा मुखर्जी..’ | गोरा रंग, कमर तक लम्बे काले बाल, आँखों पर बड़े आकार के गोल फ्रेम वाला चश्मा (गोगल्स), नाक पर फूल की आकार की छोटी सी नोज़पिन, गले पर पतली सोने की चेन जिसका थोड़ा हिस्सा साड़ी के पल्ले के नीचे है, सिर के बीचों बीच बालों को करीने से सेट कर लगाया हुआ काला हेयरबैंड, कंधे पर एक बड़ा सा हैंडबैग, हाथों में चूड़ियाँ और सामान्य ऊँचाई की हील वाले सैंडेल्स | सब कुछ आपस में मिलकर उसे एक परफेक्ट औरत बना रहे थे |
टैक्सी से उतर कर बाहर से ही कुछ देर तक घर को देखती रही | फिर एक लम्बा साँस छोड़ते हुए हल्का सा मुस्काई | फिर अपने ** साल के बेटे को ले कर, गाड़ी वालों को गाड़ी से सामान उतारने को कह कर घर की ओर कदम बढ़ाई | साथ में उसे घर दिलाने वाला एजेंट भी था | एजेंट घर के एक एक खासियत के बारे में अनर्गल बोले जा रहा था | आशा उसके कुछ बातों पर ध्यान देती और कुछ पर नहीं | अपने बेटे नीरज, जिसे प्यार से नीर कह कर बुलाती थी, नया घर लेने पर उसकी ख़ुशी को देख कर वह भी ख़ुश हो रही थी |
एजेंट ने घर का ताला खोला | धूल वगैरह कुछ नहीं सब साफ़ सुथरा.. एजेंट ने बताया की सब कल ही साफ़ करवाया है | एक बार पूरा घर अच्छे से घूम घूम कर दिखा देने और बाकि के ज़रूरी कागज़ी कामों को पूरा करने के पश्चात् वह चला गया | जाने से पहले उसने मेड के बारे में भी बता दिया जो की एक घंटे बाद पहुँचने वाली थी | आशा ने ही एजेंट से एक मेड दिलाने के बारे में बात की थी .. चूँकि वह खुद एक प्राइवेट कॉलेज में टीचर है इसलिए उसे करीब आठ से नौ घंटे तक कॉलेज में रहना पड़ता था | हालाँकि नीर भी उसी कॉलेज में पढ़ता है जिसमें आशा पढ़ाती है फिर भी कभी कभी नीर जल्दी छुट्टी होने के बाद भी आशा के छुट्टी होने तक स्टाफ रूम में रह कर खेला करता है तो कभी जल्दी घर आ जाता है | उसके जल्दी घर आ जाने पर घर में उसका ध्यान रखने वाला कोई तो चाहिए .. इसलिए आशा ने एक मेड रखवाई.. नीर का ध्यान रखने के साथ साथ वह घर के कामों में भी हाथ बंटा दिया करेगी |
सभी सामान अन्दर सही जगह रखवाने में करीब पौने दो घंटे बीत गए | फ़िर सबका बिल चुका कर, सबको विदा कर, अच्छे से दरवाज़ा बंद कर के वह दूसरी मंजिल के एक बालकनी में जा कर खड़ी हो गई | उसे उस बालकनी से दूर दूर तक अच्छा नज़ारा देखने को मिल रहा था | पेड़, पौधे, उनके बीच मौजूद कुछेक घर और उन घरों के खिड़कियों और छतों पर रखे छोटे बड़े गमलों में लगे तरह तरह के नन्हें पौधे .... हर जगह हरियाली ही हरियाली.. | आशा को हमेशा से ऐसे वातावरण ने आकर्षित किया है | स्वच्छ हवा, आँखों को तृप्त करती हरियाली युक्त हरे भरे पेड़ पौधे, सुबह और शाम मन को छू लेने वाली मंद मंद चलने वाली हवा ... आह: आत्मा को तो जैसे शांति ही मिल जाती है | नज़ारा देखते सोचते आशा की आँख बंद हो गई.. वह वहीँ आँखें बंद किए खड़ी रही .... वह जैसे अपने सामने के सम्पूर्ण प्रकृति, हरियाली और ताज़ा कर देने वाली हवा का सुखद अनुभूति लेते हुए ये सबकुछ अपने अन्दर समा लेना चाहती थी | कुछ पलों तक वह चुपचाप , आँखें बंद किए बिल्कुल स्थिर खड़ी रही | फिर एकदम से आँख खुली उसकी.. ओह नीर को खाना देना है.. वह तुरंत मुड़ कर जाने को हुई की अचानक से ठहर जाना पड़ा उसे | पलट कर देखी, दूर बगान में एक लड़का जांघ तक का एक हाफ पैंट और सेंडो गंजी में खड़ा उसी की तरफ़ एकटक नज़र से देख रहा था | हाथों में उसके मिट्टी जैसा कुछ था ... और पैरों के नीचे आस पास दो चार पौधे रखे थे.. रोपने के लिए.. |
उस लड़के को अपने तरफ़ उस निगाह से देखते हुए देख कर आशा थोड़ा सकपका गई | स्त्री सुलभ प्रवृत्ति के कारण जल्दी से उसने अपने शरीर पर एक हलकी नज़र दौड़ाई .. और ऐसा करते ही वह भौंचक्क सी रह गई | दरअसल हुआ यह कि जब वह आँखें बंद कर हवा का आनंद ले रही थी तब हवा के ही झोंकों से उसके साड़ी का एक पल्ला पूरी तरह एक ओर को हट गया था .. और इससे उसका ब्लाउज में कैद दाँया वक्ष सामने दृश्यमान हो गया था | ब्लाउज थोड़ा तंग होने के वजह से दोनों वक्षों के बीच बन रही घाटी ५ इंच सामने थी और स्तन का आकार भी उस ब्लाउज में खुद को संभाल पाने में खुद को पूरी तरह से अक्षम पा रहा था और इस कारण ऐसी स्थिति में उसके वक्ष किसी को भी दूर से अनावृत (नंगा) सा लग सकते हैं | गले में पड़ी सोने की चेन का अगला काफ़ी हिस्सा उस ५ इंच घाटी में समाया हुआ था जोकि आशा की सेक्सीनेस को कई गुना अधिक बढ़ा दे रहा था | बड़ी शर्म सी आई आशा को | खुद को जल्दी से ठीक की ... साड़ी के पल्ले को यथास्थान अच्छे से रख कर वो एक बार फ़िर सामने की ओर देखी ... लड़का अब भी उसी की तरफ़ देख रहा था | उम्र कुछ ख़ास नहीं होगी उस लड़के की | शायद दसवीं में पढ़ने वाला होगा | या शायद उससे थोड़ा कम. सिर पर गमछा सा एक कपड़ा बंधा था | चेहरे पर भोलापन .. पर जैसे वो देख रहा था; आशा को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा |
अंततः वह पलटी और अन्दर चली गई |
नीर को नाश्ता लगा कर आशा बेडरूम में आ कर निढाल सी बिस्तर पर पीठ के बल लेट गई ..| बहुत थक गई थी वह | लेटे लेटे ही पास रखे अपने हैंडबैग से एक छोटा सा एन्वेलोप निकाली और उसमें से एक फ़ोटो निकाल कर देखने लगी | फ़ोटो में वह थी, नीर था .... और था ‘अभय’... नीर के पापा.. उसके पति.. | कुछ देर तक एकटक देखती ही रही उस फ़ोटो को.. और न जाने ऐसा क्या हुआ जो उसके आँखों के किनारों में आँसू आ गए | पर आंसूओं को अधिक देर तक टिकने नहीं दी .. तुरंत ही पल्लू के आखिरी हिस्से से पोंछ ली | दरअसल बात क्या थी यह कोई नहीं जानता था | आशा के पति का आख़िर हुआ क्या था ? जीवित था या वे दोनों अलग हो गए थे.. या फिर तलाक़..? आशा ने कभी इस बारे में किसी से कोई बात नहीं की | कोई कितना भी पूछ ले, वह हमेशा बात को टाल जाती | कुछ समय तक तो माता पिता के साथ ही रही पर जब आस पड़ोस में तरह तरह की बातें होने लगीं और बेवजह कुछ बातें बनने भी लगीं, तब आशा ने शहर से दूर एक जगह पर इस घर को खरीद ली | पैसों की कमी न उसे थी और न उसके मा बाप को .. इसलिए घर लेने में किसी तरह की कोई समस्या नहीं हुई | दोनों घरों की बीच की दूरी कम से कम ५-६ घंटे की थी | आशा ने अच्छे से जानबूझ कर ही इतनी दूरी का चयन की थी ताकि जल्दी आना जाना न रहे | इससे वह वहां (माता पिता के घर के) के पड़ोसियों से भी दूर रहेगी, फालतू के बात बनाने वाले और ऐसे लोगों के समुदाय से भी दूर रहेगी |
बहुत शांति है यहाँ | शहर से इतनी दूर, न ध्वनि प्रदूषण , न वायु प्रदूषण | ऊपर से चारों तरफ़ हरियाली ही हरियाली |
ये सब सोचते सोचते आशा की आँखें बोझिल होने लगी | थकान से बदन भी टूट रहा था | उठ बैठी.. सोची, पहले नहा ले फ़िर कुछ खा लेने के बाद ही अच्छे से आराम करेगी | बिस्तर से उठ, कुछ कदम चलकर बगल में मौजूद ड्रेसिंग टेबल के आदमकद अंडाकार दर्पण के सामने जाकर खड़ी हो गई और अपने अप्रतिम सौन्दर्य को निहारने लगी | शादी और बच्चे होने के बाद भी इतने सालों में कुछ बदलाव आने के बावजूद उसका सौन्दर्य जैसे और भी निखर गया हो | जिस्म का हर उतार चढ़ाव और हरेक कटाव उसके जिस्मानी खूबसूरती में जैसे चार चाँद लगाते हैं | ऊपर से गदराई मांसल बदन.. उफ्फ्फ़.. कभी कभी तो उसे खुद से ही प्यार और ख़ुद से ही रश्क होने लगता है |
खुद को मंत्रमुग्ध सी देखती हुई उसने कंधे पर से साड़ी को ब्लाउज से पिन अप किए पिन को आहिस्ते से निकाला और पिन को एक ओर रखते हुए पल्लू को गिरा दिया | और पल्लू के गिरते ही सामने दृश्यमान हुआ उसकी भरी छाती से भरा ब्लाउज ... ५ इंच लम्बे क्लीवेज के साथ चूचियों के ऊपरी गोलाईयों को सख्ती से लिए उसके डीप कट ब्लाउज ने बखूबी उन्हें ऊपर उठा रखा था | ब्लाउज भी तंग और छोटी थी |
आशा अपने गोल, बड़े बड़े उभारों को देख, मंत्रमुग्ध सी होकर अपने दोनों हाथों से ब्लाउज के ऊपर से ही उभारों को दोनों साइड से हलके से बीच की ओर ठेलने लगी और उसके ऐसा करते ही सीने की ऊपरी हिस्से पर चूचियों की गोलाईयाँ और भी अधिक उभर आई और साथ ही एक लम्बी और गहरी घाटी बन आई दोनों चूचियों के मध्य |
अपने स्तनों की पुष्टता और क्लीवेज की लंबाई और गहराई को देख कर आशा के पूरे जिस्म में कामोत्त्जेना वाली एक गुदगुदी सी दौड़ गई और अपने शरीर के ऊपरी हिस्से के अप्रतिम सौन्दर्य को देख कर वह बुरी तरह शर्म से लाल होते हुए एक ‘आह’ भर उठी |
वह मुग्ध सी मादक यौवन से भरे अपने स्तनयुगल को किनारों से और ब्लाउज के ऊपर से सामने दिख रहे उनकी गोलाईयों को यूँ ही हौले से दबाने लगी | अपने ही नर्म, गदराए स्तनों का स्पर्श उसे एक अद्भुत रोमांच से भर दे रहा था | वह उस आदमकद अंडाकार दर्पण के सामने खड़ी रहते हुए अपने ही हाथों का कोमल स्पर्श अपने गोल, सुडौल, पुष्टता से परिपूर्ण नर्म, गदराए चूचियों पर लेते हुए आँखें बंद कर ली और इस छुअन का सुखद अनुभव करने लगी | ऐसा करते हुए उसके मन में यह विचार आने लगे कि, ‘ईश्वर ने ऐसी गौरवमयी अमूल्य संपत्ति उसके अतिरिक्त शायद किसी और को नहीं दी है |’
आँखें बंद किए आत्ममुग्धता में खोई आशा अपने उरोजों को दबाते सहलाते धीरे धीरे नीचे की ओर बढ़ी और अपनी मखमली सी नर्म पेट पर उसके हाथ ठहर गए | इतनी नर्म चिकनी पेट पर उसे खुद विश्वास नहीं हो रहा था | शादी के कुछ सालों बाद, बच्चा होने के बाद और एक कामकाजी महिला होने के बाद भी उसके जिस्म का रोम रोम अब भी चिकनाहट से भरा हुआ और एक परफेक्ट फ़िगर लिए है | मखमल पेट पर हाथ फेरते फेरते वह एक ऊँगली नाभि में ले गई.. गहरी गोल नाभि में ऊँगली का ऊपरी कुछ हिस्सा घुसा और फिर वैसे रखे ही गोल गोल घूमाने लगी ऊँगली को |
अभी वह अपनी नाभि की सुन्दर गोलाई और गहराई में डूबने ही वाली थी कि तभी खुली खिड़की से कमरे में हवा का झोंका थोड़ा तेज़ आया और इससे खिड़की पर ही पर्दों से लगा झालरनुमा पतले चेन से लगे धातु के छोटे छोटे परिंदे आपस में टकरा कर एक तेज़ पर मीठी ‘छन्नन्न’ से आवाज़ कर उठे और इससे आशा की यौन तन्द्रा भंग हुई | होश में लौटी हो जैसे मानो | अपनी स्थिति को देखकर बौखलाई भी और शरमाई भी | गाल सुर्ख लाल हो उठे शर्म से | जल्दी घूमी और पलंग पर रखे बैग से कपड़े और तौलिया वगैरह निकालने लगी | पल्लू अभी भी फ़र्श पर पड़ी है ... पर आशा के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं | कभी कभी बिना पल्लू के रहना उसे अच्छा लगता है | इससे वह खुद को बहुत उम्दा किस्म की फ़ील करती है | जैसे की, अभी बैग से कपड़े निकालते समय बिना पल्लू के तंग ब्लाउज में कैद उसकी बड़ी बड़ी चूचियाँ; गहरी क्लीवेज के साथ दाएँ बाएँ ऊपर नीचे हो कर नाच रहे हैं ... रह रह कर आशा की नज़रें अपनी नाचती अर्धनग्न चूचियों और डीप क्लीवेज पे जाती... जहां उसकी सोने की चेन क्लीवेज में कहीं खो कर रास्ता ढूँढ रही है .. और ये सब देखकर उसे खुद के एक जबरदस्त मादक, कमसीन, सेक्सी औरत होने का अहसास कराती |
खैर, कपड़े लेकर जल्दी से बाथरूम की ओर रवाना हुई और उससे पहले करीब ५ सेकंड के लिए रुक कर बाहर की ओर उभरे अपने पिछवाड़े और कमर पे थोड़ी चर्बी के कारण हो रहे एक कटावदार फोल्ड को हसरत भरी निगाहों से अच्छे से देखी | फ़िर झट से बाथरूम में घुस गई |
करीब २०-२५ मिनट बाद बाथरूम से निकली | भीगे बाल, भीगा बदन, बदन पर सिर्फ़ एक टॉवल लिपटा.. जो उसके ऊपरी सीने से शुरू हो कर नीचे जाँघों के मध्य भाग तक पहुँच रही थी | गोरी, गदराई गुदाज़ भीगे बदन पर वो नीली धारियों वाला सफ़ेद टॉवल बहुत फ़ब रहा था |
बाथरूम से निकल कर आईने के सामने फ़िर खड़ी हो गई | नहाने के बाद एक अलग ही ताज़गी फ़ील कर रही थी वह अब | दर्पण में चेहरा अब और भी खिला खिला सा लग रहा है | तीन-चार भीगे लट उसके चेहरे के किनारों पर बिख़र आए हैं; एकबार फ़िर उसे अपने आप पर बहुत प्यार आ गया | ख़ुद को किशोरावस्था को जस्ट पार करने वाली नवयौवना सी समझने लगी वह | और ऐसा ख्याल मन में आते ही एक हया की मुस्कान छा गई होंठों के दोनों किनारों पर ... और ऐसा होते ही मानो चार चाँद लग गए गोल गोरे मुखरे पर | और अधिक खिल सी गई ...
अभी अपनी ख़ूबसूरती में और भी डूबे रहने की तमन्ना थी उसे .. पर तभी एक ‘बीप’ की आवाज़ के साथ उसका फ़ोन घर्रा उठा.. हमेशा अपने फ़ोन को साउंड के साथ वाईब्रेट मोड पर रखती है आशा .. कारण शायद उसे भी नहीं पता | कोई मैसेज आया था शायद.. मैसेज आते ही उसका फ़ोन का लाइट जल उठता है | और अभी अभी ऐसा ही हुआ .. एक ही आवाज़ के साथ लाइट जल उठा | और इसलिए ऐसा होते ही आशा की नज़र फ़ोन पर पड़ी | चेहरे और बाँहों में लोशन लगाने के बाद इत्मीनान से ड्रेसिंग टेबल के पास से उठी और बिस्तर पर पड़े फ़ोन को उठा कर मैसेज चेक की |
मैसेज चेक करते ही उसका चेहरा छोटा हो गया... दिल बैठ सा गया.. | भूल कर भी भूल से जिसके बारे में नहीं सोचना चाहती थी उसी का मैसेज आया था |
--- ‘हाई स्वीटी, कैसी हो?’
--- ‘क्या कर रही हो.. आई होप मैंने तुम्हें डिस्टर्ब नहीं किया | क्या करूँ, दिल को तुम्हें याद करने से रोक तो नहीं सकता न!!’
--- ‘अच्छा, सुनो ना.. मैं क्या कह रहा था... आज तो तुम कॉलेज आओगी नहीं... इसलिए तुम्हारा दीदार भी होगा नहीं .. एक काम करो, अपना एक अच्छा सा फ़ोटो भेजो ना...’
--- ‘हैल्लो.. आर यू देयर? यू गेटिंग माय मैसेजेज़ ?’
--- ‘प्लीज़ डोंट बी रुड.. सेंड अ पिक.. ऍम वेटिंग..|’
कुल पाँच मैसेज थे .. और ये मैसेजेज़ भेजने वाला था ‘मि० रणधीर सिन्हा’ | आशा के कॉलेज का फाउंडर कम चेयरमैन | फ़िलहाल प्रिंसिपल की सीट के लिए उपयुक्त कैंडीडेट नहीं मिलने के कारण रणधीर ने ख़ुद ही काम चलाऊ टाइप प्रिंसिपल की जिम्मेदारियों को सम्भाल रखा था |
रणधीर कैसा पिक माँग रहा था यह अच्छे से समझ रही थी आशा | रणधीर या उसके जैसा इंसान आशा को बिल्कुल भी पसंद नहीं | यहाँ तक कि उसका नाम भी सुनना आशा को पसंद नहीं .. पर.. पर..
खैर,
एक छोटा टॉवल सिर पर बालों को समेट कर बाँधी.. ड्रेसिंग टेबल के दर्पण के सामने तिरछा खड़ी हुई .. कैमरा ऑन की.. २-३ पिक खींची और भेज दी |
अगले पाँच मिनट तक कोई मैसेज नहीं आया..
ये पिक्स रणधीर के लिए काफ़ी हैं सोच कर मोबाइल रख कर ड्रेस चेंज करने ही जा रही थी कि एक ‘बीप’ की आवाज़ फ़िर हुई.. आशा कोसते हुए फ़ोन उठाई..
---‘हाई.. पिक्स मिला तुम्हारा.. अभी अभी नहाई हो?? वाओ... सो सुपर्ब स्वीटी.. बट इट्स नॉट इनफ़ यू नो.. आई मेंट सेंड मी समथिंग हॉट.. | यू नो न; व्हाट आई मीन..??’
लंबी साँस छोड़ते हुए एक ठंडी आह भरी आशा ने | जिस बात का अंदाजा था बिल्कुल वही हुआ ... रणधीर ऐसे में ही ख़ुश होने वालों में नहीं था | उसे आशा के ‘न्यूड्स’ चाहिए !! .. आशा को पहले ही अंदाज़ा हो गया था कि रणधीर कैसी पिक्स भेजने की बात कर रहा है .. वह तो बस एक असफ़ल प्रयास कर रही थी बात को टालने के लिए | पर ये ‘भवितव्य:’ था... होना ही था ...
थोड़ा रुक कर वह फ़िर ड्रेसिंग टेबल के सामने गई.. सिर पर टॉवल को रहने दी.. बदन पर लिपटे टॉवल को धीरे से अलग किया ख़ुद से... ख़ुद तिरछी खड़ी हुई दर्पण के सामने | अपने पिछवाड़े को थोड़ा और बाहर निकाली, स्तनों का ज़रा सा अपने एक हाथ से ढकी और होंठों को इस तरह गोल की कि जैसे वह किस कर रही हो..
फ़िर दूसरा पिक वो ज़रा सामने से ली... सीधा हो कर ... अपनी हथेली और कलाई को सामने से अपने दोनों चूची पर ऐसे रखी जिससे की चूचियाँ, निप्पल सहित हल्का सा ढके पर आधे से ज़्यादा उभर कर ऊपर उठ जाए और एक लम्बा गहरा क्लीवेज सामने बन जाए.. |
फ़िर तीसरा पिक ली.. ये वाला लगभग दूसरे वाले पिक जैसा ही था पर इसमें वह थोड़ा पीछे हो कर मोबाइल को थोड़ा झुका कर ली.. इससे इस पिक में उसका पेट, गोल गहरी नाभि और कमर पर ठीकठाक परिमाण में जमी चर्बी भी नज़र आ गई |
तीनों ही पिक बड़े ज़बरदस्त सेक्सी और हॉट लग रहे थे.. एक बार को तो आशा भी गर्व से फूली ना समाई और होंठों के किनारों पर एक गर्वीली मुस्कान बिखर जाने से रोक भी न पाई | आशा गौर से थोड़ी देर अपनी पिक्स को देखती और इतराती रही .. फ़िर बड़े मन मसोस कर रणधीर को सेंड कर दी.. | पिक मिलने के मुश्किल से दो से तीन सेकंड हुए होंगे की रणधीर का मैसेज आ गया.. एक के बाद एक ... कुल तीन मैसेजेज़ ..
पहला दो मैसेज तो स्माइलीज़ और दिल से भरे थे .. तीसरा मैसेज यूँ था..
---‘ऊम्माह्ह्ह... वाओ... डार्लिंग आशा... यू आर जीनियस ... सो सो सो सो ब्यूटीफुल... अमेजिंग बॉडी यू हैव गोट.. आई लव यू... ऊम्माह्ह्ह्ह.... टेक केयर आशा बेबी.. सी यू टुमॉरो.. |’
मैसेज पढ़ कर भावहीन बुत सा खड़ी रही आशा.. मैसेज पढ़ कर रणधीर, उसका चेहरा, उसकी उम्र, नाम सब उसके आँखों के आगे जैसे तैरने से लगे.. मन घृणा से भर गया आशा का.. सिर को झटकते हुए मोबाइल को बिस्तर पर पटकी और चली गई चेंज करने.......|
क्रमशः
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Wow....what a start.....ur hindi writing is too good.......
So erotic .....keep on writing
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Superb start.... agli update ka besabri se intezaar rahega.
lets chat
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Nice story... Great start.... waiting next update
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(03-04-2019, 02:43 AM)shruti.sharma4 Wrote: Wow....what a start.....ur hindi writing is too good.......
So erotic .....keep on writing
Thank you mam,
Will try to keep up the same..
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(03-04-2019, 01:10 PM)thyroid Wrote: Superb start.... agli update ka besabri se intezaar rahega.
Thank you so much ..
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(03-04-2019, 01:37 PM)Singsonu1415 Wrote: Nice story... Great start.... waiting next update
Thank You So much..
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(07-04-2019, 03:17 PM)rajeshsarhadi Wrote: nice start waiting next
Thank You
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भाग २): रणधीर सिन्हा.. एंड फर्स्ट एनकाउंटर विद हिम
‘सिन्हा’... ‘मि० रणधीर सिन्हा...’ शहर के किसी कोने के एक बड़े से हिस्से में एक जाना माना नाम .. कई क्षेत्रों में कई तरह के बिज़नेस है इनका | बहुत कम समय में बहुत बहुत पैसा कमा लिया | ईश्वरीय कृपा ऐसी थी कि जिस काम या व्यापार में हाथ आजमाते , सौ प्रतिशत सफ़ल होते | धर्मपत्नी को गुज़रे कई साल हो गए .. दो बेटे और एक बेटी है और तीनों ही विदेशों में बस गए हैं ... घर में अकेले रहने की आदत सी पड़ गई है रणधीर को .. घर से काम और काम से घर.. यही रोज़ की दिनचर्या रही है रणधीर बाबू की अब तक.. पर पिछले कुछ महीनों से काफ़ी टाइम घर पर बिताना हो रहा है रणधीर बाबू का ... |
ज़ाहिर है की बेशुमार दौलत जिसके पास हो और घर में बीवी ना हो तो ऐसे लोग खुले सांड की तरह हो जाते हैं |
ऐसा ही कुछ हाल था रणधीर बाबू का भी... पिछले कुछ महीनों से उनके घर में महिलाओं और लड़कियों का आना जाना शुरू हो गया है.. और सिर्फ़ शुरू ही नहीं हुआ; बल्कि बेतहाशा बढ़ भी गया है | ये औरतें और लडकियाँ अधिकांश वो होती हैं जो रणधीर बाबू के किसी न किसी बिज़नेस या फर्म में काम करती | रणधीर बाबू ने इतने फर्म्स खोल रखे हैं की शहर में किसी को भी अगर नौकरी की ज़रूरत होती तो वह सबसे पहले सीधे रणधीर बाबू के ही किसी एक ऑफिस में जा कर आवेदन कर आता | रणधीर बाबू अच्छी सैलरी देने के साथ ही अपने एम्प्लाइज को और निखारने के लिए समय समय पर उनका ग्रूमिंग भी करते ... वो भी खुद अपने निरीक्षण में | इससे उसके अंडर में काम करने वालों को डबल फ़ायदा होता .. एक तो अच्छी सैलरी मिलना और दूसरा, भविष्य के लिए खुद को और अधिक योग्य बनाना |
और इसलिए एम्प्लाइज भी हमेशा रणधीर बाबू के कुछ गलत आदतों और बातों को नज़रअंदाज़ कर दिया करते हैं .. मसलन, रणधीर बाबू का अक्सर नशे में होना, शार्ट टेम्पर होना, लेडी स्टाफ को ग़लत नज़र से देखना और उनके साथ मनमाफिक छेड़खानी करना इत्यादि.. | ख़ासकर शराब और शबाब का चस्का या कहिए नशा होने के बारे में हर कोई जानता है .. और महिलाओं के प्रति उनकी कमज़ोरी तो जगजाहीर थी सबके सामने |
आशा को अपनी ही एक सहेली से रणधीर बाबू के ऑफिस का नंबर मिला था .. नौकरी के लिए आवेदन करने हेतु.. | ऑफिस में किसी लेडी स्टाफ़ से फ़ोन पर बात हुई थी आशा की, वैकेंसी के बारे में जानकारी लेने के सिलसिले में | दो तीन जगह खाली होने के बारे में बताया गया था और इसी दरम्यान आशा से उसके बारे में भी जानकारी ली गई थी | बाद में उसी दिन शाम को ऑफिस से फ़ोन आया था कि रणधीर बाबू ने ऑफिस से पहले एकबार उसे अपने घर बुलाया है बायोडाटा और दूसरे एकेडमिक सर्टिफिकेट्स के साथ .. ऑफिस में मिलने से पहले रणधीर बाबू हर क्लाइंट से घर में मिलते हैं.. शायद कोई अंधविश्वास या कोई और कारण होता होगा | चूँकि शुरू से ही रणधीर बाबू की यही आदत रही है इसलिए लड़का हो या ख़ास कर महिलाएँ और लडकियाँ; बेहिचक चली जाती है रणधीर बाबू के यहाँ .. |
रणधीर बाबू के यहाँ बुलाए जाने की बात सुनकर ही आशा ख़ुशी से नाच उठी | उसे पूरा भरोसा था कि रणधीर बाबू ने अगर बुलाया है तो फिर जॉब पक्की है | आशा को अपने क्वालिफिकेशन के साथ साथ अपनी ख़ूबसूरती पर भी अडिग विश्वास था ... क्वालिफिकेशन देख कर ना करना भी चाहे कोई अगर तो शायद आशा की सुंदरता के कारण अपने फैसले बदलने को मज़बूर हो जाए | आशा को एक औरत के दो कारगर हथियारों के बारे में बहुत अच्छे से पता है हमेशा से और वो हैं;
१) ख़ूबसूरत देहयष्टि और
२) आँसू
किसी भी औरत के ये दो ऐसे तेज़ हथियार हैं जो दिलों को ही क्या –-- बड़े बड़े सत्ता तक को हिला और मिट्टी में मिला सकते हैं | दिग्गज ज्ञानी और विद्वान भी इन दो हथियारों के अचूक निशाने से खुद को बचा पाने में पूरी तरह विफ़ल पाते हैं | फ़िर रणधीर बाबू जैसे लोगों की बिसात ही क्या |
अगले दिन ही आशा बहुत अच्छे से तैयार हो कर रणधीर बाबू के यहाँ चली गई –-- गोल्डन बॉर्डर की बीटरेड साड़ी, साड़ी पर ही लाल और सुनहरे धागे से छोटे छोटे फूल और दूसरी कलाकृतियाँ बनी हैं---मैचिंग ब्लाउज --- शार्ट स्लीव--- ब्लाउज भी थोड़ा टाइट--- चूचियों को उनके पूरी गोलाईयों के साथ ऊपर की ओर स्थिर उठाए हुए --- सामने से डीप ‘वी’ कट और पीछे काफ़ी खुला हुआ--- डीप ‘यू’ कट--- ब्लाउज के निचले बॉर्डर और कमर पर बंधी साड़ी के बीच काफ़ी गैप है--- और चलने फिरने से उस गैप से आशा का गोरा चिकना पेट साफ़ साफ़ दिख रहा है | बाहर की ओर निकली हुई गोलाकार पिछवाड़ा टाइट बाँधी हुई साड़ी में एकदम स्पष्ट रूप से समझ में आ रही है और हर पड़ते कदम के साथ ऊपर नीचे करती हुई नाच रही है |
नीर को अपने साथ लिए आशा ऑटो से रणधीर बाबू के यहाँ पहुँची | इससे पहले रास्ते भर ऑटोवाला रियरव्यू मिरर से आशा की कसी बदन को ताड़ता रहा | रास्ते भर ऑटो के तेज़ चलने से आने वाली हवा के झोंकों से कभी आशा के दायीं तो कभी बाएँ तरफ़ का साड़ी का पल्ला उड़ जाता .. अगर दायीं तरफ़ का उड़ता तो तंग ब्लाउज कप में कसी आशा की भरी गदराई चूची के ऊपरी गोलाई के दर्शन हो जाते और यदि बाएँ साइड से पल्ला उड़ता तो ब्लाउज कप में कैद आशा का बायाँ वक्ष अपनी पूरी गोलाई के आकार के साथ दिखता---और तो और ब्लाउज के निचले बॉर्डर से शुरू होकर कमर तक करीब ५-६ इंच के गैप में आँखों को बाँध देने वाली गोरी नर्म पेट के दर्शन होते |
जैसे - जैसे जगह मिलते ही ऑटो की स्पीड बढ़ती; वैसे - वैसे चलने वाली हवा भी तेज़ हो जाती---और इन्हीं तेज़ हवा के झोंकों से, रह रह कर आशा का पल्लू उसके सीने पर से हट जाता और उस लाल तंग ब्लाउज के कप में कैद दायीं चूची पूरी और बायीं चूची का थोड़ा सा हिस्सा नज़र आ जाता ... और इसके साथ ही एक लंबी सी घाटी, अर्थात क्लीवेज भी दृष्टिगोचर हो जाती | एक तंग ब्लाउज में कैद पुष्टता से परिपूर्ण एक दूसरे से सट कर लगे दो चूचियों के कारण बनने वाली एक क्लीवेज का आकार क्या और कैसा हो सकता है इसका तो हर कोई सहज ही अंदाज़ा लगा सकता है--- और जब बात बिल्कुल अपने सामने देखने की हो तो ऐसा अलौकिक सा दृश्य भला कौन मूर्ख छोड़ना चाहेगा?! बाएँ कंधे पर साड़ी को अगर सेफ्टी पिन से न लगाया होता आशा ने तो शायद अब तक पूरा का पूरा पल्लू ही हट गया होता | वो गोरी गोरी चूचियाँ जो रोड के हरेक गड्ढे और उतार चढ़ाव के आने पर ऐसे उछलती जैसे की कोई रबर बॉल या बैलून --- या – या फ़िर मानो पानी वाले गुब्बारे हों, जिन्हें भर कर ज़रा सा हिलाने पर जैसा हिलते हैं ठीक वैसे ही ऊपर नीचे हो कर हिल रही थी | चूचियाँ तो कयामत ढा ही रही थीं पर आशा का दुधिया क्लीवेज भी --- जो पत्थर तक को पिघला कर पानी कर दे ---- मदहोश किए जा रही थी |
ऐसा नहीं की आशा को पता नहीं चला था की ऑटोवाले का ध्यान कहाँ है... पर शायद कहीं न कहीं वो कम उम्र के लड़कों या फ़िर किसी भी मर्द को टीज़ करने में बड़ा सुख पाती है --- मर्दों का बेचैन हो जाना, थोड़ा और – थोड़ा और कर के लालायित रहना ---- यहाँ तक की ज़रा सा देह दर्शन करा देने से आजीवन चरणों का दास बने रहने की मर्दों की मौन सौगंध और स्वीकृति उसे अंदर तक गुदगुदा देती | कॉलेज जीवन में फेरी वालों से २-५ रुपये का कुछ बिल्कुल मुफ्त में लेना हो या फिर चाटवाले से कॉम्प्लीमेंट के तौर पर २ एक्स्ट्रा बिना पानी वाला पानीपूरी खा लेना --- ये सब वह कर लेती थी----सिर्फ़ २ इंच का दूधिया क्लीवेज दिखा कर |
बीते दिनों की यादों ने आशा के चेहरे पर एक कमीनी सी कातिल मुस्कान ला दी | तिरछी आँखों से वह कुछेक बार ऑटोवाले लड़के की ओर देख चुकी है अब तक और हर बार औटोवाला लड़का एक हाथ से हैंडल पकड़े, दूसरे हाथ को नीचे सामने की ओर रखा हुआ मिला--- आँखों को सामने रोड पर टिकाए रखने की असफ़ल कोशिश करता हुआ | ‘फ़िक’ से बहुत धीमी आवाज़ में आशा की हँसी निकल गई | वह समझ गई की लड़का अपने दूसरे हाथ से अपने हथियार को फड़क कर खड़ा होने से रोकना चाह रहा है पर नाकाम हो रहा है | बेचारे लड़के की ऐसी दुर्दशा का ज़िम्मेवार ख़ुद को मानते हुए आशा गर्व से ऐसी फूली समाई कि उसकी दोनों चूचियाँ और अधिक फूल कर सामने की ओर तनने लगीं |
खैर,
रणधीर बाबू के घर के सामने पहुँच कर ऑटो रुका.. घर तो नहीं एक बड़ा बंगला हो जैसे—आशा अपने बेटे को ले कर जल्दी से उतर कर बैग से पैसे निकालने लगी--- पल्लू अब भी यथास्थान न होने के कारण ऑटोवाला लड़का दूध और दूधिया क्लीवेज का नयनसुख ले रहा है---आशा उसकी नज़र को भांपते हुए चोर नज़र से अपने शरीर को देखी और देखते ही एक झटका सा लगा उसे—पल्लू का स्थान गड़बड़ाने से उसका दायाँ चूची और क्लीवेज तो दिख ही रहा था पर साथ ही साथ --- पल्लू बाएँ साइड से भी उठा हुआ होने के कारण बाएँ चूची का गोल आकार और निप्पल का इम्प्रैशन साफ़ साफ़ समझ में आ रहा था ब्लाउज के ऊपर से ही... !! इतना ही नहीं ---- आशा का दूधिया पेट और गोल गहरी नाभि भी सामने दृश्यमान थी ! --- वह लड़का कभी गहरी नाभि को देखता तो कभी रसीली दूध को ...| आशा ख़ुद को संभालते हुए जल्दी से पल्लू ठीक कर उसकी ओर पैनी नज़रों से देखी—लड़का डर कर नज़रें फेर लिया--- पैसे दे कर आशा पलट कर जाने ही वाली थी कि लड़का पूछ बैठा,
‘मैडम..... मैं रहूँ या चलूँ?’
आशा ज़रा सा पीछे सर घूमा कर बोली,
‘तुम जाओ.. मेरा काम हो गया |’
इतना कहकर नीर का हाथ पकड़ कर गेट की ओर बढ़ी --- और इधर वह लड़का आशा के रूखे शब्द सुन और अपेक्षित उत्तर न पाकर थोड़ा निराश तो हुआ पर पीछे से आशा की गोल उभरे गांड को देखकर उसकी वह निराशा पल भर में उत्तेजना में परिवर्तित हुआ और मदमस्त गजगामिनी की भांति आशा के चलने से गोल उभरे गांड में होती थिरकन को देख, एक वासनायुक्त ‘आह’ कर के रह गया |
रणधीर बाबू का गेट से लेकर मेन डोर तक सब कुछ साफ़ सुथरा और चमक सा रहा था | डोरबेल बजने पर एक आदमी आ कर दरवाज़ा खोल गया --- नौकर ही होगा शायद— रणधीर बाबू के बारे में पूछने पर बताया कि, ‘साहब अभी नाश्ता कर रहे हैं--- आप बैठिए ..’
सामने सोफ़े की ओर इंगित कर चला गया वह--- आशा बैठ गई--- नीर बीच बीच में जल्दी घर जाने की ज़िद कर रहा था --- इसी बीच नौकर पानी दे गया—प्यास लगी थी आशा को, इसलिए पानी गटकने में देर नहीं की --- नीर के लिए कुछ बिस्कुट लाया था वह नौकर---जहां तक हो सके—जितना हो सके ---- वह नज़रें घूमा घूमा कर उस आलिशान रूम को देखने लगी ---- टाइल्स, मार्बल्स, दीवार घड़ी, टेबल, चेयर्स,सोफ़ा सेट... इत्यादि.. सब कुछ इम्पोर्टेड रखा है वहाँ | क्या फर्नीचर और क्या खिड़की दरवाज़े--- यहाँ तक की खिड़कियों पर लगे पर्दे भी अपनी ख़ूबसूरती से खुद के इम्पोर्टेड होने के सबूत देना चाह रहे हैं |
कुछ मिनटों बाद ही अंदर के कमरे से रणधीर बाबू आए | कुरता पजामा में रणधीर बाबू काफ़ी जंच रहे हैं—आशा की ओर देख कर एक स्वागत वाली मुस्कान दे कर ठीक सामने वाली सोफ़ा चेयर पर बैठ गए | रणधीर बाबू को नमस्ते करके आशा भी बैठ गई | बैठते समय आशा को आगे की ओर थोड़ा झुकना पड़ा --- और यही झुकना ही शायद उसकी बहुत बड़ी गलती हो गई उस दिन --- आशा के मुखरे की खूबसूरती देख प्रभावित हुआ रणधीर बाबू अब भी उसी की ओर ही देख रहा था कि आशा नमस्ते करके बैठते हुए झुक गई --- और इससे उसका दायाँ स्तन टाइट ब्लाउज-ब्रा कप के कारण और ज़्यादा ऊपर की ओर निकल आया --- यूँ समझिए की लगभग पूरा ही निकल आया था---सुनहरी गोल फ्रेम के चश्मे से आशा की ओर देख रहे रणधीर बाबू वो नज़ारा देख कर बदहवास सा हो गए --- मुँह से पान की पीक निकलते निकलते रह गई ---- यहाँ तक की वह निगलना तक भूल गए--- होंठों के एक किनारे से थोड़ी पीक निकल भी आई --- आँख गोल हो कर बड़े बड़े से हो गए --- हद तो तब हो गई जब २ सेकंड बाद ही आशा नीर के द्वारा एक बिस्कुट गिरा दिए जाने पर झुक कर कारपेट पर से बिस्कुट उठाने लगी----और उसके ऐसा करने से रणधीर बाबू ने शायद अपने जीवन में अब तक का सबसे सुन्दर नज़ारा देखा होगा ---- चूची के वजन से दाएँ साइड से साड़ी का पल्ला हट गया और तंग ब्लाउज में से उतनी बड़ी चूची एक तो वैसे ही नहीं समा रही है और तो और पूरा ही बाहर निकल आने को बस रत्ती भर की देर थी ---- साथ ही करीब करीब सात इंच का एक लंबा गहरा दूधिया क्लीवेज सामने प्रकट हो गया था |
चाहे कितना भी नंगा देख लो पर अधनंगी चूचियों को देखने में एक अलग ही मज़ा है ---- खास कर यदि चूचियों में पुष्टता हो और क्लीवेज की भी एक अच्छी लंबाई हो--- और रणधीर बाबू तो इन्ही दो चीज़ों पर जान छिड़कते थे |
कुछ ही क्षणों में आशा सीधी हो कर बैठ गई — पर पल्लू को ठीक नहीं किया— शायद ध्यान नहीं गया होगा उसका--- इससे दायीं ब्लाउज कप में कैद दायीं चूची ऊपर को निकली हुई अपनी गोलाई के साथ पल्लू से बाहर झाँकती रही और रणधीर बाबू को एक अनुपम नयनसुख का एहसास कराती रही |
रणधीर बाबू तो जैसे अंदर ही अंदर स्वर्गलाभ करने लगे हैं--- और साथ ही यह दृढ़ निश्चय भी करने लगे हैं कि अगर इसी तरह प्रत्येक दिन दूध वाले सौन्दर्य दर्शन करना है तो उन्हें न सिर्फ़ अभी के अभी इसे नौकरी के लिए हाँ करना है बल्कि बिल्कुल भी इंकार न कर सके ऐसा कोई ज़बरदस्त ऑफर भी करना होगा |
गला खंखारते हुए रणधीर बाबू ने पूछा,
“यहाँ आते हुए कोई दिक्कत तो नहीं हुआ न आशा जी?”
“नहीं सर, कोई प्रोब्लम नहीं हुई ... पर आप मुझे ‘जी’ कह कर संबोधित मत कीजिए---- मैं बहुत छोटी हूँ आपसे—तकरीबन आपकी बेटी की उम्र की हूँ --”
आशा के ऐसा कहते ही एक उत्तेजना वाली लहर दौड़ गई रणधीर बाबू के सारे शरीर में--- उसने अब ध्यान दिया--- आशा की उम्र लगभग उसकी अपनी बेटी के उम्र के आस पास होगी--- अपने से इतनी कम उम्र की किसी लड़की के साथ सम्बन्ध बनाने की कल्पना मात्र से ही रणधीर बाबू का रोम रोम एक अद्भुत रोमांच से भर गया |
गौर से देखा उसने आशा को; कम से कम २०-२२ साल का अंतर तो होगा ही दोनों में---रणधीर ने खुद अनुमान लगाया की जब वह खुद 65 का है तो आशा तो कम से कम 35-40 की होगी ही | उम्र का ये अंतर भी काफ़ी था रणधीर के पजामे में हरकत करवाने में |
थोड़ी देर तक पूछ्ताछ के बाद,
‘अच्छा आशा, तुम्हारे जवाबों से मुझे संतुष्टि तो हुई है .... मम्ममम..... (नज़र आशा के बेटे पर गई.....) ... प्यारा बच्चा है... क्या नाम है इसका ...??’
आशा ने खुद जवाब न देकर नीर से कहा,
‘बाबू.. चलो... अंकल को अपना नाम बताओ...’
‘न..नीर.. नीरज... नीरज मुखर्जी...|’
तनिक तोतलाते हुए नीर ने जवाब दिया...
रणधीर उसकी बात सुन हँस पड़ा ... हँसते हुए पूछा,
‘एंड व्हाट्स योर फादर्स नेम?’
‘अ..अभ...अभय मुखर्जी.. |’
जवाब देते हुए नीर एकबार अपनी माँ की तरफ़ देखा और फ़िर रणधीर की ओर...
जब नीर ने आशा की ओर देखा, तब रणधीर ने भी नीर की दृष्टि को फ़ॉलो करते हुए आशा की ओर देखा; और पाया कि नीर से उसके पापा का नाम पूछते ही आशा थोड़ी असहज सी हो गई ... चेहरे की मुस्कान विलीन हो गई .. नीर भी जैसे पापा का नाम बताते हुए अपनी मम्मी से इसकी अनुमति माँग रहा है.... |
रणधीर जैसे मंझे खिलाड़ी को ये समझते देर नहीं लगी कि दाल में कुछ काला है---- इतना ही नहीं, आशा के बॉडी लैंग्वेज से उसे ये डाउट भी हुआ की हो न हो शायद पूरी दाल ही काली है..|
आशा के मन को थोड़ा टटोलते हुए पूछा,
‘पापा से बहुत प्यार करता है न यह?’
आशा ने चेहरे पर एक फीकी मुस्कान लाते हुए धीरे से कहा,
‘जी सर |’
रणधीर हर क्षण आशा के चेहरे के भावों को पढ़ने लगा--- इतने सालों से वो देश-दुनिया को देख रहा है--- इतना बड़ा और तरह तरह के व्यापार सँभालने वाला कोई भी व्यक्ति इतना तो परिपक्व हो ही जाता है की वो सामने वाले के चेहरे पर आते जाते विचारों के बादल को पढ़-पकड़ सके |
‘ह्म्म्म.. देखो आशा ----- मुझे जो भी जानना था----सो जान लिया---तुम्हारा क्वालिफिकेशन लगभग ठीक ही है---दो तीन जगह खाली हैं मेरे आर्गेनाइजेशन में---- देखता हूँ --- क्या किया जाए तुम्हारे केस में ---- .....’
अभी अपनी बात पूरी कर भी नहीं पाया था रणधीर बाबू के अचानक से आशा सेंटर टेबल पर थोड़ा और झुकते हुए, हाथों को आपस में जोड़ते हुए से मुद्रा लिए बोली,
‘प्लीज़ सर, प्लीज़ कंसीडर कीजिएगा---- मेरा एक जॉब पाना बहुत ज़रूरी है--- आई नीड इट--- प्लीज़ सर--- आई प्रॉमिस की आपको मेरी तरफ़ से कोई शिकायत नहीं होगी--- पूरी ईमानदारी और मेहनत से काम करुँगी--- आपकी कभी कोई बात नहीं टालूंगी ---- .............’
‘अच्छा अच्छा ---- रुको----’ रणधीर बाबू ने हाथ उठा कर आशा को चुप करने का इशारा किया
इस बार रणधीर ने बीच में टोका---
आशा की तरफ़ गौर से कुछ पल निहारा ---- आशा के सामने झुके होने की वजह से एकबार फ़िर उसकी दायीं चूची का ऊपरी गोलाई वाला हिस्सा बाहर आने को मचलने लगा है---- रणधीर बाबू की नज़रें वहीँ अटक गईं ----और इसबार आशा ने भी इस बात को नोटिस किया पर --- पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी--- शायद इस भरोसे में की अगर ये बुड्ढा थोड़ा नयनसुख लेकर उसे एक अच्छी नौकरी दे देता है तो इसमें हर्ज़ ही क्या है?!
‘पर आशा, एक बात मैं तुम्हें अभी से ही बिल्कुल क्लियर कर देना चाहूँगा कि अगर मैंने तुम्हें नौकरी पर रखा तो मैं हमेशा ही इस बात का अपेक्षा रखूँगा की तुम कभी मेरा कोई कहना नहीं टालोगी--- ज़रा सी भी ना-नुकुर नहीं--- और यही तुम्हारा फर्स्ट ड्यूटी --- परम कर्तव्य भी होगा--- ठीक है??’
अंतिम के शब्दों को कहते हुए रणधीर बाबू ने चश्में को नाक पर थोड़ा नीचे करते हुए बड़ी बड़ी आँखों से सीधे आशा की आँखों में झाँका --- रणधीर के इस तरह देखने से आशा थोड़ी सहम ज़रूर गई पर बात को ज़्यादा गंभीरता से नहीं लेते हुए चेहरे पर एक फीकी स्माइल लिए सिर हिलाते हुए ‘बिल्कुल सर..’ बोली |
‘आई प्रॉमिस की मैं आपकी हर आदेश का --- हर बात का पालन करुँगी ---- किसी भी बात में कभी कोई बाधा न दूँगी न बनूँगी--- आपकी हर बात सर आँखों पर--- |’
आशा को बिना इक पल की भी देरी किए; ज़रूरत से ज़्यादा हरेक बात को मानते देख रणधीर मन ही मन बहुत खुश हुआ---चिड़िया खुद ही बिछाए गए जाल को अपने ऊपर ले ले रही है—ये समझते देर नहीं लगी |
‘वैरी गुड आशा... तुम्हारे रेस्पोंस से मैं काफ़ी प्रभावित हुआ .. वाकई तुममें ‘काम’ करने की एक ललक है (काम शब्द पर थोड़ा ज़ोर दिया रणधीर बाबू ने) --- समझो की तुम लगभग एक जॉब पा गई---- बस, एक बात के लिए तुम्हें हाँ करना है---- एक शर्त समझो इसे--- या--- म्मम्मम--- इट्स लाइक एन एग्जाम--- अ टेस्ट--- टू गेट सिलेक्टेड फॉर द जॉब---’
‘यस सर... एनीथिंग----|’ – आशा जोश में आ कर बोली |
‘हम्म्म्म-----’ ---रणधीर बाबू के होंठों पर एक कुटिल मुस्कान खेल गई |
और फ़िर रणधीर बाबू ने वह शर्त बताया--- उस टेस्ट के बारे में जिसे पास करते ही आशा को एक शानदार जॉब मिलेगा----
जैसे जैसे रणधीर बाबू शर्त और उसकी बारीकियाँ समझाते गए---
वैसे वैसे;
आशा की आँखें घोर आश्चर्य और अविश्वास से बड़ी और चौड़ी होती चली गई ---- ह्रदय स्पंदन कई गुना बढ़ गया--- अपने ही कानों पर यकीं नहीं हो रहा था आशा को ----- रणधीर बाबू के शर्त के एक एक शब्द, आशा के काँच सी अस्तित्व पर पत्थर की सी चोट कर; उसके अस्तित्व को समाप्त करते जा रहे थे ----- बुत सी बैठी रह गई सोफ़े पर---- |
क्रमशः
**************************
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(09-04-2019, 08:51 AM)rajeshsarhadi Wrote: good one
Thank You....
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(09-04-2019, 11:39 AM)Singsonu1415 Wrote: Wow nice update
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(09-04-2019, 03:02 PM)shruti.sharma4 Wrote: Wonderful update.......... really professional writing..........keep it up
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भाग ३): सरेंडर
‘ओह नहीं----नहीं--- ये क्या कह रहे हैं आप ?? नहीं सर--- मैं ऐसी वैसी नहीं हूँ--- मुझे जॉब चाहिए---- पर मैं कोई ऐसी वैसी औरत नहीं हूँ--- माफ़ कीजिए--- मुझसे न हो पाएगा----|’
‘कूल डाउन आशा--- मैंने बस तुम्हें ऐसा ऑफर किया है---इसका मतलब ये नहीं की तुम्हें ऐसा कुछ करना ही है---ऐसा नहीं की तुम अगर न करोगी तो तुम्हें जॉब नहीं मिलेगी--- मिलेगी, पर प्रमोशन नहीं—---इंसेंटिव नहीं ---- एक्सटेंडेड हॉलीडेज नहीं ---- और भी कई चीज़ें हैं जो तुम्हें नहीं मिलेंगी--- ’
आशा ने बीच में ही टोकते हुए पूछा,
‘पर मैं ही क्यों ? अभी अभी आपने कहा था की एक शर्त पर हाँ करने से ही मुझे जॉब मिलेगी----और तो और मैंने आज ही आपसे मुलाकात की और आज ही आप मुझे ऐसा ऑफर कर रहे हैं—क्यों??’
अविश्वास से भरे उसके कंठस्वर बरबस ही ऊँचे हो चले थे--- और ऊँचे आवाज़ में कोई रणधीर बाबू से बात करे ---- ये रणधीर बाबू को बिल्कुल पसंद नहीं था |
‘लो योर वोइस डाउन आशा--- मुझे ऊँची आवाज़ बिल्कुल पसंद नहीं---हाँ--- मैंने कहा है की इस एक शर्त को मान लेने पर तुम्हें जॉब मिल जाएगी--- क्या--- क्यों--- कैसे--- ये सब घर जा कर सोचना--- और अगर शर्त मंज़ूर हो, तो तीन दिन बाद, ****** हाई कॉलेज में 11:00 – 1:00 के बीच आ कर मिलना--- ओके?? नाउ यू मे गो----| ’
आशा को अब तक बहुत तेज़ गुस्सा भी आने लगा था ------
गुस्से से नथुने फूल-सिकुड़ रहे थे ------- |
गुस्से में ही वह उठने को हुई की एकाएक उसकी नज़र अपने जिस्म के ऊपरी हिस्से पर गई ----- पल्ला अपने स्थान से हटा हुआ था ---- और दाईं चूची का ऊपरी हिस्सा गोल हो कर हद से अधिक बाहर की ओर निकला हुआ था --- |
गुस्से को एक पल के लिए भूल, स्त्री सुलभ लज्जा से आशा ने झट से अपनी आँचल को ठीक किया---- ठीक करते समय उसने तिरछी नज़र से रणधीर बाबू की ओर देखा ---- रणधीर बाबू एकटक दृष्टि से उसके वक्षों की ओर ही नज़र जमाए हुए हैं ---- रणधीर बाबू की नज़रों में नर्म गदराए मांस पिंडों को पाने की बेइंतहाँ ललक और प्रतिक्षण उनके चेहरे पर आते जाते वासना के बादल को देख पल भर में दो वैचारिक प्रतिक्रियाएं हुईं आशा के मन में-----
एक तो वह एक बार फ़िर अपनी ही खूबसूरत शारीरिक गठन और ख़ूबसूरती पर; होंठों के कोने पर कुटिल मुस्कान लिए, गर्व कर बैठी -----
दूसरा, अभी इस गर्वीले क्षण का वो आनंद ले; उससे पहले ही उसे रणधीर बाबू के द्वारा दिए गए शर्त वाली बात याद आ गई और याद आते ही उसका मन कड़वाहट से भर गया |
वह तेज़ी से उठी; नीर को साथ ली और पैर पटकते हुए चली गई---- बाहर निकलने से पहले एकबार के लिए वह ज़रा सा सिर घूमा कर पीछे देखी--- रणधीर बाबू बड़ी हसरत से उसकी गोल, उभरे हुए नितम्बों को देख रहा था---- चेहरे और आँखों से ऐसा लगा मानो रणधीर बाबू साँस लेना तक भूल गए हैं------
एकटक---
एक दृष्टि----
अपलक भाव से देखते हुए----
----------
खिड़की के पास बैठी आशा दूर क्षितिज तक देख रही थी; कॉफ़ी पीते हुए------ उसकी माँ नीर को ले कर बगल में कहीं गई हुई थी----- आशा के पिताजी भी रोज़ की तरह ही अपने रिटायर्ड दोस्तों से मिलने शाम को निकल जाया करते थे--- खुद भी रिटायर्ड और दोस्त भी ----- मस्त महफ़िल जमती थी सबकी |
घर में अकेली आशा--- ‘सिरररप सिरररप’ से कॉफ़ी की चुस्कियाँ ले रही और किसी गहरी सोच में डूबी; गोते लगा रही है ----
‘क्या करूँ.. ऐसी बेहूदगी भरा ऑफर... पिता के उम्र के होकर भी शर्म नहीं आई उन्हें..’
मन घृणा से भरा हुआ था उसका |
सोच रही थी,
‘कैसी विचित्र दुनिया है--- थोड़ी हमदर्दी के बदले क्या क्या नहीं माँगा जाता--- अब तो सवाल ही नहीं उठता की मैं उसके पास जाऊँ--- कितना नीच है--- साला..’
‘साला’ शब्द मन में आते ही सिर को दो-तीन झटके देकर हिलाई---- हे भगवान ! ये क्या अनाप शनाप बोल रही हूँ मन ही मन---- उफ्फ्फ़--- इस आदमी ने तो मूड और दिमाग के साथ साथ मन को भी मैला कर दिया है----धत |
कप प्लेट धो कर रख देने के बाद घर के दूसरे कामों में लग गई आशा; रणधीर बाबू की बातों को लगभग भूल ही चुकी थी वह—
अचानक से उसका ध्यान टेबल पर रखे तीन-चार एप्लीकेशन फॉर्म्स पर गया--- कॉलेज एडमिशन फॉर्म्स थे वह सब--- नीर के लिए--- पर कॉलेजों की फ़ीस इतनी ज़्यादा थी कि आशा की हिम्मत ही जवाब दे गई थी--- हालाँकि उसके पापा के पास पैसे तो बहुत हैं और देने के लिए भी राज़ी थे पर आशा को यह पसंद नहीं था कि उसके रिटायर्ड पापा उसके बेटे के कॉलेज के खर्चों का निर्वहन करें |
उन फॉर्म्स को हाथों में लिए सामने रखी कुर्सी पर बैठ गई--- नीर को किसी बढ़िया कॉलेज में एडमिशन कराने की इच्छा एकबार फिर से हिलोरें मार कर मन की सीमाओं से पार जाने लगीं----अच्छे अच्छे यूनिफार्म पहना कर कॉलेज भेजने की--- रोज़ स्वादिष्ट टिफ़िन बना कर नीर का लंच बॉक्स तैयार करने की--- उसे बस स्टॉप तक छोड़ने जाना या फ़िर हो सके तो ख़ुद ही कॉलेज ले जाना और ले आना ; ये सभी पहले दम तोड़ चुकीं हसरतें एकबार फ़िर से मानो जिंदा होने लगीं |
उन्हीं फॉर्म्स में से एक फॉर्म पर नज़र ठिठकी उसकी;
फॉर्म के टॉप पर एक नाम लिखा हुआ/ प्रिंट था;
************************** कॉलेज |
थोड़ी बहुत बदलाव के साथ लगभग इस नाम के दो कॉलेज हैं पूरे शहर में और दोनों ही सिर्फ़ एक ही आदमी के थे---
‘रणधीर सिन्हा--- उर्फ़--- रणधीर बाबू |’
एकेडमिक के हिसाब से दोनों ही कॉलेज बहुत ही अच्छे हैं और नीर के लिए भी बहुत ही अच्छे रहेंगे ये कॉलेज--- पर;
पर,
एडमिशन और एकेडमिक फ़ीस में तो बहुत खर्चा है---
सिर पे हाथ रख कुर्सी पर पीठ सटा कर बैठ गई ----
कुछ ही मिनटों बाद अचानक से सीधी हो कर बैठ गई---
‘कुछ भी हो, मैं नीर का एडमिशन और पढ़ाई एक अच्छे कॉलेज से करा कर ही रहूँगी--- (एक फॉर्म को उठाकर देखते हुए)---- जॉब भी और एडमिशन भी--- |’
इतना बड़बड़ाने के तुरंत बाद ही,
आशा के---
दोनों आँखों से लगातार चार बूँद आँसू गिरे---
चेहरा थोड़ा कठोर हो चला उसका---
कुछ ठान लिया उसने---
अपने हैण्डबैग से एक पेन निकाल लाई और फटाफट फॉर्म भरने लगी---
स्पष्टतः उसने एक ऐसा निर्णय ले लिया था जो आगे उसकी ज़िंदगी को बहुत हद तक बदल देने वाला था ---|
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अगले ही दिन,
नहा धो कर, अच्छे से तैयार हो ; माँ बाबूजी का आशीर्वाद ले ऑटो से सीधे ****************** कॉलेज जा पहुँची ---- अर्थात रणधीर बाबू का कॉलेज--- |
रजिस्टर में नाम, पता और आने का उद्देश्य लिखने के बाद पेरेंट्स कम गेस्ट्स वेटिंग रूम में करीब आधा घंटा इंतज़ार करना पड़ा आशा को |
पियून आया और,
‘साहब बुला रहे हैं’
कह कर कमरे से बाहर चला गया |
सोफ़ा चेयर के दोनों आर्मरेस्ट पर अपने दोनों हाथ टिकाए सीधी बैठ,
एक लंबी साँस छोड़ी और उतनी ही लंबी साँस ली आशा ने –
फ़िर सीधी उठ खड़ी हुई और सधी चाल से उस कमरे से बाहर निकली--- उसको इस बात की ज़रा सी भी भनक नहीं लगी कि उस कमरे में ही दीवारों के ऊपर लगे दो छोटे सीसीटीवी कैमरों से उस पर नज़र रखी जा रही थी ----|
भनक लगती भी तो कैसे, पूरे समय किन्हीं और ख्यालों में खोई रही वह |
पियून उसे लेकर सीढ़ियों से होता हुआ, एक लम्बी गैलरी पार कर एक कमरे के बंद दरवाज़े के ठीक सामने पहुँचा--- बगल दीवार में लगी एक छोटी सी कॉल बेल नुमा एक बेल को बजाया--- २ सेकंड में ही अन्दर से एक मीठी सी बेल बजने की आवाज़ आई--- अब पियून ने दरवाज़े को हल्का धक्का दिया और दरवाज़ा को पूरा खोल कर ख़ुद साइड में खड़ा हो गया और अपने बाएँ हाथ से अन्दर की तरफ़ इशारा कर आशा से मौन अनुरोध किया; अंदर आने को --- आशा कंपकंपाए होंठ और काँपते पैरों से अन्दर प्रविष्ट हुई--- मन में किसी अनहोनी या कोई अनजाने डर को पाले हुई थी |
अन्दर एक बड़ी सी मेज़ की दूसरी तरफ़, रणधीर बाबू एक फ़ाइल को पढ़ने में डूबा हुआ था;
पियून ने एकबार बड़े अदब से ‘सर’ कहा---
फ़ाइल में घुसा रणधीर ने बिना सिर उठाए ही ‘म्मम्मम; हम्म्म्म..’ कहा---
आशा चेहरे पर शंकित भाव लिए सिर घुमा कर पीछे पियून की ओर देखा—पियून भी सिर्फ़ आशा को देखा और कंधे उचकाकर इशारे में ये बताने की कोशिश किया कि वह इससे ज़्यादा कुछ नहीं कर सकता है |
तब आशा ने ही अपने नर्वसनेस पर थोड़ा काबू पाते हुए अपनी आवाज़ को थोड़ा सख्त और ऊँचा करते हुए कहा,
‘ग... गुड मोर्निंग सर...|’
इस बार रणधीर ने फ़ाइल हाथों में लिए ही आँखें ज़रा सा ऊपर किया--- करीब ५-६ सेकंड्स आशा की ओर अपने गोल सुनहरे फ्रेम से देखता रहा--- आँखों पर जैसे उसे भरोसा ही नहीं हो रहा हो--- उसकी ड्रीमलेडी उसके सामने खड़ी है आज---अभी--- वो ड्रीमलेडी जो कुछ दिन पहले ही उसके घर से गुस्से से निकल आई थी उसका ऑफर सुनकर--- जिसके बारे में इतने दिनों से सोच सोच कर, तन जाने वाले अपने बूढ़े लंड को मुठ मार कर शांत करता आ रहा है--- आशा को सिर्फ़ सोचने भर से ही उसका बूढा लंड न जाने कैसे खुद ही, अभी अभी जवानी के दहलीज पर पाँव रखने वाले किसी टीनएजेर के लंड के माफ़िक टनटना कर, रणधीर बाबू के पैंट हो या लुंगी, उसके अंदर आगे की ओर तन जाया करता है --- सख्त - फूला – फनफनाता हुआ--- साँस लेने के लिए रणधीर बाबू के पैंट या लुंगी के अंदर से निकल आने को बेताब सा हो छटपटाने सा लगता लंड ऐसे पेश आता जैसे की उस समय अगर कोई भी महिला यदि सामने आ जाए तो फ़िर चोद के ही उसका काम तमाम कर दे----|
इसी सनक में रणधीर बाबू ने न जाने इतने ही दिनों में कितनी ही हाई क्लास कॉल गर्ल्स- कॉल वाइव्स – एस्कॉर्ट्स और कितने ही वेश्याओं को रगड़ रगड़ कर चोद चुका था पर वो सुख नहीं मिलता जो उसे आशा के नंगे जिस्म को कल्पना मात्र करते हुए मुठ मारने में मिल रहा था ---
और आज वही स्वप्नपरी उसके सामने उसी के ऑफिस में खड़ी है !
रणधीर के चश्मे का ग्लास हलके ब्राउन रंग का था और कुछ दूरी पर खड़ा कोई भी शख्स इस बात को कन्फर्म कभी नहीं कर सकता कि रणधीर अगर उसे देख रहा है तो एक्सेक्ट्ली उसकी नज़रें हैं कहाँ ......
और यही हुआ आशा के साथ भी----
वो बेचारी ये सोच रही है की रणधीर उसे देख रहा है पर वास्तव में रणधीर की नज़रें सिर्फ़ और सिर्फ़ आशा के सामने की ओर उभर कर तने विशाल पुष्ट चूचियों पर अटकी हुई हैं |
फ़ाइल के एक कागज़ को उसने इस तरह से भींच लिया मानो वो कागज़ न होकर आशा की पुष्ट नर्म गदराई चूचियों में से एक हो----
खैर,
ख़ुद को तुरंत सँभालते हुए रणधीर बाबू ने अपना गला खंखारा और बोला,
‘अरे! इतने दिन बाद... प्लीज हैव ए सीट...’
बड़ी होशियारी से रणधीर बाबू ने आशा का नाम नहीं लिया क्योंकि अगर उसने नाम लिया होता तो ‘आशा जी’ कह कर संबोधित करना पड़ता जोकि उसे पसंद नहीं था क्योंकि आशा ने पहले अपने तेवर दिखाते हुए उसे ‘ना’ कर चुकी थी और अगर उसने सिर्फ ‘आशा’ कहा होता तो इससे वहाँ उपस्थित पियून को ये शक हो जाता कि रणधीर इस औरत को पहले से जानता है और ये बात वो पियून दूसरों में फ़ैला देता |
आशा सामने की कुर्सी को सरका के बैठ गई |
पियून जाने जाने को हो रहा था पर जा नहीं रहा देख कर,
रणधीर बाबू ने आँखों के इशारों से पियून को वहाँ से जाने का आदेश दिया |
पियून सलाम ठोक कर चला गया ----
रणधीर ने कुछ देर यूँही मुस्करा कर, चेहरे पर रौनक वाली हँसी लिए आशा के साथ इधर उधर की फोर्मालिटी वाली बातें करता रहा; पहुँचा हुआ खिलाड़ी है वह ऐसे खेलों में--- अच्छे से जानता है की आशा अभी घबराई हुई है और अगर अचानक से ऐसी वैसी कोई बात छेड़ी जाए तो बात शायद बिगड़ जाए--- हालाँकि कोई माई का लाल है नहीं जो रणधीर बाबू से पंगा ले ले --- रही बात कॉलेज के लेडी टीचर्स की तो; जितनी भी लेडी टीचर्स हैं--- सब की सब रणधीर बाबू के बिस्तर तक का सफ़र कर चुकी हैं |
आशा ने तिरछि नज़रों और कनखियों से पूरे रूम का जल्दी से मुआयना किया---
आलिशान रूम है रणधीर बाबू का....
चारों ओर सुन्दर नक्काशी वाले मार्बल्स, ग्लास के प्लेट्स, खिड़की पर सुन्दर गमलों में मनी प्लांट्स और ऐसे ही दूसरे प्लांट्स की मौजूदगी, कमरे में फ़ैली एक मीठी भीनी सी सुगंध... सब मिलकर माहौल को एक अलग ही ढंग दे रहे हैं |
टेबल पर रखे एक स्टैंड लैंप को ठीक करते हुए आशा की तरफ़ पैनी निगाह डालते हुए रणधीर ने पूछा,
‘सो...., आर यू रेडी??’
‘ऊंह...’
आशा चिंहुकी... रणधीर बाबू की ओर सवालिया नज़रों से देखी और मतलब समझते ही लाज से आँखें झुका ली.....
आदतन, अपने पल्लू को थोड़ा ठीक की वो..
और उसके ऐसा करते ही,
रणधीर बाबू की नज़रें फ़िर से आशा के पुष्ट वक्षस्थल पर जा टिकीं जो पिछले कुछ दिनों से उसके आशा के प्रति आकर्षण का केंद्र बिंदु रहा है ---
रणधीर बाबू के नज़रों का लक्ष्य समझने में देरी नहीं हुई आशा से...
और समझते ही तुरंत और भी ज़्यादा शर्मा गई...
रणधीर की अत्यंत वासना युक्त निगाहें---
और उन निगाहों से अंदर तक नहाती चली जाती आशा का सारा जिस्म का रक्त तो मानो उफ़ान सा मारने लगा--- चेहरे का सारा रक्त जैसे उसके गालों में इकट्ठा हो कर उसके मुखरे को और भी गुलाबी बना रहा था |
पता नहीं कैसे;
पर एक बाप के उम्र के आदमी के द्वारा खुद के यूँ मुआयना किए जाने से अब आशा के तन-मन में कुछ गुदगुदी सी होने लगी--- ख़ुद को ऐसे विचारों से घिरने से रोक तो रही थी अंदर ही अंदर; पर रह रह कर मन में उठने वाली काम-तरंगों पर उसका कोई नियंत्रण रह ही नहीं रहा था |
‘आई सेड, आर यू रेडी... आशा??’ मेज़ पर अपने दोनों कोहनियों को टिका कर आशा की तरफ़ आगे की ओर झुकते हुए रणधीर बाबू ने पूछा |
यूँ तो दोनों के बीच दो हाथ से भी ज़्यादा की दूरी है, फ़िर भी आशा को ऐसा एहसास हुआ की मानो रणधीर बाबू वाकई उसपर झुक गए हैं ---- |
‘ज..ज.. जी सर... आई एम रेडी... |’
‘पूरी बात साफ़ साफ़ बोलो आशा---’
रणधीर बाबू ने अबकी बार थोड़ा कड़क और रौबीले अंदाज़-ओ-आवाज़ में कहा----
शर्म और डर का मिश्रित भाव चेहरे पर लिए, नज़रें नीचे कर बोली,
‘मैं तैयार हूँ आपके हरेक आदेश को बिना शर्त और बिना के रोक टोक के , अक्षरशः पालन करने के लिए...’
‘मैं यहाँ हूँ आशा--- यहाँ--- मेरी तरफ़ देख कर अभी अभी कही गई बातों को दोहराओ..... |’ उसकी ऐसी स्थिति का और अधिक आनंद लेने के लिए रणधीर बाबू ने कहा |
एक साँस छोड़ते हुए आशा रणधीर बाबू की ओर देखी--- और दोहराई---
‘सर, मैं, आशा मुखर्जी, तैयार हूँ आपके हरेक आदेश को बिना शर्त और बिना के रोक टोक के , अक्षरशः पालन करने के लिए... |’
रणधीर मुस्कराया ---
आशा के शर्म और संकोच की दीवार में थोड़ी ही सही, पर आख़िर में एक दरार डाल पाया | पर उसे एक संदेह यह भी है की कुछ ही दिनों पहले गुस्सैल तेवर दिखाने वाली महिला अचानक से आज समर्पण क्यों कर रही है??
ह्म्म्म,
‘कुछ तो गड़बड़ है—‘ वह सोचा
‘आज यहाँ कैसे?’ --- रणधीर ने पूछा |
काँपते लहजे में नर्वस आशा ने उत्तर दिया,
‘सर... दो काम से आई हूँ---- एक, मुझे जॉब के लिए अप्लाई करना है और दूसरा, अपने बेटे का एडमिशन इस कॉलेज में करवाना है--- |’
‘हम्म्म्म, पर उस दिन तो सिर्फ़ जॉब के लिए आई थी?’ चकित रणधीर ने तुरंत सवाल दागा |
‘जी सर, नीर के लिए कोई बढ़िया कॉलेज नहीं मिल रहा और इस कॉलेज का काफ़ी नाम है--- इसलिए सोची की अगर मेरा जॉब और उसका एडमिशन; दोनों एक ही कॉलेज में हो जाए तो बहुत ही अच्छा होगा ---- नज़रों के सामने तो रहेगा --- पढ़ाई और ओवरऑल एक्टिविटीज़ पर ध्यान दे सकूँगी |’
‘उसपे ध्यान देने के चक्कर में कहीं तुम्हारा काम प्रभावित हुआ तो?’ रणधीर ने पूछा |
‘नहीं सर, आई प्रॉमिस--- ऐसा कभी नहीं होगा---- आई कैन वैरी वेल मैनेज इट |’ उतावलेपन पर थोड़ी दृढ़ता से जवाब दिया आशा ने |
‘तुम्हें यहाँ जॉब चाहिए और तुम्हारे बेटे को एडमिशन---- और मेरा क्या??’ इस प्रश्न को अधूरा छोड़ते हुए रणधीर ने आशा की ओर मतलबी निगाहों से देखा |
‘आप जो बोलें सर---’ आशा ने भी अस्पष्ट प्रत्युत्तर दिया |
‘मेरा हर कहना मानोगी?’ रणधीर ने सवाल किया |
‘जी सर... हर कहना मानूँगी’
रणधीर ने ड्रावर से एक सादा कागज़ निकाला और आशा की ओर बढ़ाते हुए कहा,
‘इसमें अपना पूरा नाम, पता, मोबाइल नंबर लिख कर दो और साथ ही यह भी लिख कर दो कि तुम अपने पूरे होशोहवास में मेरा हर कंडीशन स्वीकार कर रही हो और जॉइनिंग के बाद से मेरा हर कहना मानोगी--- जब कहूँ --- जो कहूँ --- जैसा कहूँ --- ’
आशा बिना सोचे कागज़ लपक कर ले ली और पेन निकाल कर वह सब लिख दी जो रणधीर ने लिखने के लिए कहा |
लिखने के बाद कागज़ वापस दी ---
रणधीर कागज़ पर लिखे एक एक शब्द को बड़े ध्यान से पढ़ा और पढ़ने के बाद मुस्कराया—
आशा की ओर देखा और बोला,
‘ह्म्म्म; ओके, पर इंटरव्यू तो देना पड़ेगा तुम्हें--- तैयार हो |’
‘जी सर--’
‘पक्का--??’ रणधीर ने फ़िर सवाल किया
‘जी सर...’ आशा ने वही जवाब दोहराया पर इस बार जवाब कुछ इस लहजे में दी जैसे की उसे थोड़ा बहुत अंदाज़ा हो गया की क्या और कैसा इंटरव्यू होने वाला है |
रणधीर मुस्कराया --- अपने सीट पर ठीक से बैठा और एक हाथ पैंट के ऊपर से ही धीरे धीरे सख्त हो रहे लंड को सहलाया |
‘प्रॉमिस याद है न? और कागज़ पर खुद के लिखे एक एक शब्द?’
‘जी सर....’ आशा झेंपते हुए आँखें नीची करके बोली |
आशा का यह जवाब सुनते ही रणधीर बाबू के चेहरे पर पहले से ही मौजूद मुस्कान अब और अधिक कुटिल और बड़ी हो गई और साथ ही साथ आँखों में टीनएजेर्स जैसी उतावली एक अलग चमक आ गई |
उत्तेजना में लंड को दोबार ज़ोर से रगड़ दिया |
टेलीकॉम पे एक बटन प्रेस कर रिसेप्शन में ऑर्डर दिया,
‘कैंसिल ऑल माय अपॉइंटमेंट्स --- नो गेस्ट्स--- नो पैरेंट्स---- नो पिओंस--- | नोबडी---- ओके? इज़ दैट क्लियर??’
‘यस सर—क्रिस्टल क्लियर--- |’ दूसरी तरफ़ से किसी लड़की की पतली सी आवाज़ आई |
कॉल काट कर आशा की ओर देखा अब रणधीर ने --- होंठों पर वही कुटिल मुस्कान वापस आ गई ---
ज़िप खोला,
लंड निकाला,
और मसलने लगा---- टेबल के नीचे--- और आशा को इस बात का ज़रा भी अंदाज़ा नहीं---- वैसे भी अंदाज़ा का करेगी क्या--- मन से तो वह रणधीर बाबू के आगे 'सरेंडर' कर ही चुकी है--- अब तो बस तन ................. |
‘तो मिस आशा, इंटरव्यू शुरू करते हैं --- !!’ चहकते हुए बोले, रणधीर बाबू |
क्रमशः
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