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Adultery PADMA ( Part -1)
#61
Arreeeee....kya likh rahe ho yaar

Soooooper se bhi uper Erotica

Keep continue

Waiting fr more n more
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#62
Update
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#63
Dosto story ko lekar main apki utsukta samajh rha hun aur aap sabhi dosto ka dil se dhanyavad karta hun 
1) Abhi T ---- mere dost bohot dhanyawad so much 
2 ) Samit_Bhai ---- thanks for your suggestion and advice also 
3) Jyotimoy123 ---- bohot bohot sukriya 
4) omprakash meena ---- dhanyawad 
5) rekha6625 ----- apke appreciation aur advice dono ke liye bohot dhanyawad main kosis karunga story ko aur acche se likhne ki 
6) Sush44 ---- Thank you so much bro
7) hot_boy93 --- thank you very much bro 
8) Djking - Thanks bro 
9) agoodfriend --- Thank you so much bro keep supporting.
main janta hun ki aap sabhi log update ka wait bohot time se kr rhe hai dosto me mafi chahunga ki itne dino ke baad bh apko update na de ska , darsal maine apko btaya tha na apne ek exam ke bare me bas kuch dino ka wait aur karlo dosto fir update milega . ok love you all 
                                      [Image: 20220921-003903.jpg]
agar koi suggestion dena chahe to swagat hai 
                           [Image: 39fbc42c1f991e24508e369c296567e1.jpg]
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#64
वेटिंग for अपडेट आफ्टर yours एग्जाम।
बेस्ट ऑफ लक फ़ॉर एग्जाम
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#65
बहुत ही इरोटिक स्टोरी है
फोरम पर सबसे गर्म
भाई...
INTERFAITH CHACATER
ऐड करो जो
पदमा की जोरदार चुदाई करें।
please
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#66
(17-08-2022, 04:41 PM)Ravi Patel Wrote: 2. नितिन चला तो गया पर उसके आने से जो मेरे मन जो हलचल मच गई थी वह नही गई । पता नहीं कब 4 बज गए जब मैंने घड़ी देखी तो याद आया की मुझे तो गुप्ता जी के पास साड़ी के ब्लाउस और पेटीकोट को सिलवाने के लिए भी जाना है । रमेश गुप्ता जी एक 50 साल के आदमी  हमारे मोहल्ले के दर्जी थे , मोहल्ले की ज्यादातर औरते उन्ही से कपड़े सिलवाया करती थी । सभी उन्हे गुप्ता जी कहकर बुलाते थे मैं भी उन्ही मे से एक थी गुप्ता जी एक किराये के कमरे मे अकेले रहते थे उनका परिवार गाँव मे था । मैंने जल्दी से अपना फोन जो चार्जिंग पर लगा हुआ था को हटाया ओर उसे ऑन करके देखा तो पाया की उसमे अशोक की 3 मिस्सड  कॉल थी मैं समझ गई की ये उसने फाइल के लिए ही की होंगी मैंने उसे कॉल बैक किया तो वो बिजी बता रहा था मैंने सोचा की वो मीटिंग मे होंगे फिर मैं उठकर अपना समान समेटने लगी और सिलाई का कपड़ा लेकर घर से बाहर निकली ।
 बाहर आकर घर का दरवाजा लॉक किया और गली मे चल पड़ी । घर के बाहर ज्यादा ठंड थी कुछ लोग आग तापने के लिए एक जगह इकट्ठे खड़े थे पर मुझे आता देख वो सब आग को छोड़कर मुझपर आंखे सेकने लगे । मेरे लिए ये कोई नई बात नहीं थी मैं जब भी किसी काम से घर से निकलती थी तो मोहल्ले के कई मर्द अपने होश खो बेठते थे । मैं थोड़ा आगे चली तो वो सब मेरी बलखती कमर और मेरे बड़े नितम्बों को देखने लगे जैसे खा ही जाएगे[Image: Shraddha-Das-exposing-navel-hot-photos-S...-58860.jpg]
 फिर मैं थोड़ा ओर आगे चली तो उनमे से बोल पड़ा - "हाए क्या गदराई जवानी है एक बार मिल जाए तो इसका सारा रस पी लूँ । "
ये सुनकर मुझे थोड़ा गुस्सा भी आया मैंने पलटकर पीछे देखा तो वो सब बड़ी बेशर्मी के साथ हँस रहे थे मैंने उन्हे जवाब देने की सोची भी पर वो 6-7 थे और मैं कोई बखेड़ा खडा नहीं करना चाहती थी इसलिए मुड़कर फिर आ से आगे की ओर बढ़ी इस बार उनमे से किसी ने कुछ कहा तो नहीं पर उनके हँसने की आवाज मेरे कानों तक पहुँच रही थी मैंने जल्दी जल्दी से कदम बढ़ाए और गुप्ता जी के फ्लैट के नीचे  तक पहुँच गई गुप्ता जी का फ्लैट एक मंजिल ऊपर था नीचे किराने की 1 पुरानी दुकान थी और एक सिलाई के समान जैसे सुई ,रील या सिलाई मशीन वगैरह की दुकान थी गुप्ता जी यहाँ से ही अपनी सिलाई का सारा सामान लेते थे और गली के बाकी लोग भी ।  ऊपर की मनजिल पर जाने के लिए लोहे की  सीढ़िया बाहर से ही जाती थी मैंने जल्दी से सीढ़ियाँ चढ़ी और जल्द ही गुप्ता जी की दुकान मे परवेश किया
गुप्ता जी की दुकान एक छोटा पर सिलाई के लिए पर्याप्त कमरा था जिसके फर्श पर काफी कटे हुए कपड़े पड़े थे  एक ओर रस्सी पर एक पर्दा लगा था जिसके पीछे जाकर सभी औरते चेंज करती थी । कमरे मे हीटर चल रहा था जिससे उसमे काफी गरमाई थी।  गुप्ता जी उस समय किसी का घागरा सि रहे थे मुझे देखते ही बोले -
गुप्ता जी - आओ , आओ पदमा बेठो । कहो केसे आना हुआ ? 
मैं - नमस्ते गुप्ता जी । वो दरसल एक साड़ी का ब्लाउस और पेटीकोट सिना है । 
इतना कह मैं पास मे रखे स्टूल पर बैठ गई । 
[Image: Shriya-In-Blue-Transparent-Saree.jpg]
गुप्ता जी ( आँखों से चश्मा हटाते हुए ) - हाँ बिल्कुल हो जाएगा । और सुनाओ सब ठीक है घर ? 
मैं - जी हाँ सब ठीक है । और आप केसे है ? 
गुप्ता जी - बस सब सही है । समय निकल रहा है । अच्छा तुम तैयार जो जाओ मैं फीता लेकर आता हूँ । 
गुप्ता जी को मैं अच्छी तरह से जानती थी तैयार होने से उनका मतलब था की मैं अपनी साड़ी उतार दूँ और ब्लाउस और पेटीकोट मे आ जाऊ । एसा वो हर बार करते थे  मैं अपनी जगह से उठी औरं एक छोटे से परदे के पीछे जाकर साड़ी को निकालने लगी पर्दा काफी हल्का था और उसके आर पार देखा जा सकता था मतलब परदे के दूसरी ओर से कोई भी आदमी ये देख सकता था की मैंने कितने कपड़े उतार दिए है और कितने पहने है । 
मैंने अपना पर्स वही परदे के पीछे साइड मे रखा और पर्दा लगा कर  साड़ी उतारने लगी के तभी गुप्ता जी ने कमरे मे परवेश किया और जैसे ही उनकी नजर परदे के पीछे मुझ पर पड़ी उनकी नजरे वही टिक गई परदे का होना , ना होना बराबर था और  वो परदे के पीछे भी मुझे स्पष्ट रूप से देख सकते थे ।

 जैसे ही मेरी नजर गुप्ता जी पर गई मेरा चेहरा शर्म से लाल हो गया और दिल धड़कने लगा । शर्म के मारे मेने अपना चेहरा दूसरी ओर घूमा लिया पर गुप्ता जी कहाँ मानने वाले थे वो पीछे से मेरी पतली कमर और नितम्बों वो निहारने लगे । मैंने अपनी साड़ी तो उतार दी पर ये समझ नहीं आ रहा था की एसी हालत मे गुप्ता जी के सामने जाऊ केसे ? आज मुझे उत्तेजना हो भी कुछ ज्यादा रही थी उसका कारण था नितिन ने जो मेरे साथ दोपहर मे हरकते की थी । 
गुप्ता जी जानते थे की मैंने साड़ी उतार दी थी और उसे नीचे पड़े कपड़ों के ढेर पर रख दिया ।
[Image: 27_8017.jpg]
 पर उनके सामने जाने मे हिचकिचा रही थी । मेरी मनोदशा समझ कर गुप्ता जी परदे के बिल्कुल पीछे आकर खड़े हो गए और बोले -
गुप्ता जी - पदमा , क्या तुमने साड़ी उतार दी ?
मैं - जी जी .. गुप्ता जी । 
गुप्ता जी - ठीक है । 
इतना कहकर गुप्ता जी ने बिना मुझसे कुछ पूछे और बिना देरी कीये परदे को एक ओर को खेन्च दिया । अब मेरी  बैक उनके सामने सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज मे थी 
[Image: anushka-hot-stills-in-vaanam-movie-3_orig.jpg]
पहले कुछ देर गुप्ता जी ने पीछे से ही मेरी जवानी के रस को आँखों से पिया फिर अचानक उन्होंने मेरे कंधे पर अपना हाथ रक दिया । मैं एक दम से सिहर उठी । 
गुप्ता जी बोले- "मेंरी ओर घूमो पदमा मुझे नाप लेना है। "
मैं बिना कुछ बोले गुप्ता जी की ओर घूम गई । गुप्ता जी ने एक बार फिर मुझे ऊपर से नीचे तक फिर नीचे से ऊपर तक निहारा और अपना फीता उठाया । शर्म के मारे मेरा चेहरा लाल और साँसे तेज हो रही थी यूं तो गुप्ता जी ने पहले भी मेरा 2 बार नाप लिया था पर कभी मुझे इतनी एक्साइटमेंट महसूस नहीं हुई थी पर आज मुझे कुछ अलग ही नशा छा रहा था  । शायद ये सब दोपहर मे हुई गतिविधियों का नतीजा था । 
फिर गुप्ता जी ने फीते को मेरे एक कंधे से दूसरे कंधे पर लगाया और नाप नोट किया इस दोरान उनकी उंगलियाँ मेरी गर्दन और पीछे पीठ को छूती रही । फिर उन्होंने कमर से अपना फीता हटाया और उसे मेरे बाजू पर लपेट कर बाजू का नाप लेने लगे एसा करने  मे उनके हाथ मेरे बूब्स से साइड से टकरा गए और मेरे पहले से टाइट बूब्स और तन गए अब साँसों की रफ्तार भी बढ़ गई थी फिर उन्होंने दाएं बाजू का नाप नोट किया और बाएं बाजू की ओर बढ़े और एक बार फिर गुप्ता जी के हाथ मेरे बाएं बूब्स पर टच हो गए साँसे अब काबू से बाहर हो रही थी और बूब्स साँसे लेने के साथ ऊपर नीचे हो रहे थे ।
[Image: darthmall75-shriya-saran.gif]
 बाएं बाजू का नाप लेने के बाद गुप्ता जी अब आगे बढ़ना चाहते थे और वो मेरे पीछे जा खड़े हुए और मुझ से लगभग बिल्कुल सट गए फिर गुप्ता जी ने पीछे से मेरे कान मे  कहा -"अपने हाथ ऊपर उठाओ, पदमा  । "
गुप्ता जी ने मेरे कान के इतने नजदीक से कहा की उनकी गरम साँसे मुझे अपने कान और गर्दन पर महसूस हुई । 
मैं जानती थी के गुप्ता जी अब क्या करना चाहते है वो मेरे सीने का नाप लेना चाहते थे और फिर मैंने गुप्ता जी के लिए अपने हाथ ऊपर उठा दिए । गुप्ता जी ने बिना देरी कीये अपना फीता मेरी बाहों के नीचे से मेरे सीने के आगे किया और उसे मेरे सीने से लगाकर एक दम से अपनी ओर खींचा ,खिंचाव इतना तेज था के मुझे संभालने का मौका नहीं मिला और मैं गुप्ता जी के जिस्म से जा टकराई और मैंने पहली बार अपने नितम्बों पर गुप्ता जी का गरम  कड़ा  लिंग महसूस किया एक बार को तो मेरे होश ही उड़ गए ये क्या गुप्ता जी का लिंग इतना कठोर इसका मतलब गुप्ता जी भी उत्तेजित हो चुके है ।

[Image: shreya-shriya-saran.gif]
 है भगवान गुप्ता जी मुझसे कितने बड़े है और इस तरह मेरे पीछे अपना लिंग अड़ाए खड़े है यही सोचकर  मेरे होंठों से अचानक एक कामुक आह निकाल पड़ी । गुप्ता जी का लिंग मुझे अपने नितम्बों पर चुभता हुआ महसूस हो रहा था और मुझे अपने नीचे योनि पर एक अजीब हलचल का भाव लग रहा था मेरी योनि गीली होने लगी थी ।  मेरे हाथ अभी भी ऊपर ही थे जिसकी वजह से मेरे तने हुए बूब्स के बीच की घाटी को गुप्ता जी पीछे से घूर रहे थे गुप्ता जी कभी फ़ीते  को थोड़ा ऊपर कभी थोड़ा नीचे करके मेरे बूब्स का पूरा माप ले रहे थे । कुछ तो कमरे मे हीटर की गर्मी कुछ कामाग्नि मे जलता मेरा बदन । मेरी हालत खराब होने लगी । मेरे निप्पल तानकर बिल्कुल कड़े हो चुके थे । जिस्म मे उत्तेजना , रोमांच और डर तीनों के भाव एक साथ दोड़ रहे थे । गुप्ता जी भी अब आगे बढ़ना चाहते थे अब वो फ़ीते के साथ साथ अपने हाथ भी मेरे बूब्स पर फिराने लगे और अपने होंठ बिल्कुल मेरे कान से लगा दिए मानो किसी भी वक्त उसे अपने होंठों मे भरकर चूस लेंगे । उनका लिंग अब मुझे और भी सख्त लगने लगा था और वो जैसे धीरे से उसे मेरे पीछे रगड़ने लगे । 
हालत मेरे काबू से बाहर हो रहे थे इसलिए मेने गुप्ता जी से उत्तेजना मे कापंती आवाज से बोला - 
मैं - गुप्ताआआआ.. .. जीईईई.. .. नाप पूरा हो गया क्या ? मेरे हाथ दुखने लगे है । 
गुप्ता जी मेरी स्थिति को जानते थे वो बोले-
गुप्ता जी - बस थोड़ी देर और .. 
और फिर उन्होंने अचानक से अपने हाथ मेरे दोनों  निप्पलो पर रख दिए और उन्हे सहलाने लगे । 
मैं- आहहह.. ... . गुप्ता जी ये आप क्या कर रहे है ?  
गुप्ता जी- पदमा मैं तुम्हारे निप्पलो के कप का  साइज़ ले रहा हूँ  इसे हाथों से ही लेना पड़ता है । 
अपने लिए निप्पल जैसे शब्द सुनकर मेरी आग और भड़क उठी । 
मैं -  परर र .... गुप्ता जी .... आपने पहले तो कभी एसा नहीं किया । फिर आज क्यूं ?
गुप्ता जी - ये मेरी एक नई तकनीक है । 
गुप्ता जी के लिंग का दबाव अब मेरे नितम्बों पर और भी सख्त हो गया था उनका लिंग उनकी पेंट को फाड़कर बाहर आने को आतुर था । मेरी योनि अब चुत रस से भीग चुकी थी और पेन्टी पूरी गीली थी । मैं अपने जिस्म की आग मे सब भूल चुकी थी की मैं एक शादीशुदा औरत हूँ जिसकी कुछ मर्यादाएं भी है ।  
मैं - अच्छाआआआ.. .. तो आपने कितनी औरतो पर ये नई तकनीक इस्तेमाल की है । 
गुप्ता जी - तुम पहली हो पदमा ।
मैं - आह.... .. गुप्ता जी......  प्लीज नहीं ......
[Image: awarapan-shriya-saran.gif]
[Image: 4444b5_fff12c2a19eb41cdbeb6b39195b432e0~mv2.gif]
मैं इतना ही कह पाई क्योंकि गुप्ता जी ने मेरे कान को पूरी तरह अपने होंठों मे भर लिया और उसकी चुसाई शुरू करदी ।  उनकी पकड़ मेरे बूब्स पर भी सख्त हो गई और वो मेरे बूब्स को मसलने लगे । मेरा जिस्म अंगारे बरसाने लगा हाथ नीचे आकर गुप्ता जी के हाथों को रोकने की नाकाम कोशिश करने लगे । 

तभी अचानक से मेरे फोन की घंटी बजी जिसकी आवाज से हम दोनों घबराकर अलग हो गए । मैंने दोड़कर पर्स से फोन निकाला तो देखा यह अशोक का फोन था मेरी घबराहट और भी बढ़ गई। मैं अशोक का फोन उठाना चाहती थी पर मेरी धड़कन और साँसे इतनी तेज चल रही थी के मैं चाहकर भी उसका फोन ना उठा सकी ।  फिर मैंने गुप्ता जी की ओर देखा उनकी हालत तो और भी खराब थी वो कुछ नहीं बोल रहे थे पर उनके नीचे पेंट मे तना हुआ लिंग सब कुछ बयान कर रहा था । 
मैंने गुप्ता जी से कहा मुझे जाना होगा और परदे के पीछे जाकर अपनी साड़ी पहनने लगी । गुप्ता जी कुछ नहीं बोले । तब तक फोन भी कट चुका था । मैंने झटपट अपनी साड़ी पाहनी और जाने लगी , की तभी गुप्ता जी बोले 
गुप्ता जी - पदमा !
मैं ( पलटकर) - जी ?
गुप्ता जी - पेटीकोट का नाप अभी बाकी है । 
मैं - मैं फिर कभी दे जाऊँगी गुप्ता जी , पर अभी मुझे जाना होगा । 
गुप्ता जी - आज के लिए मुझे माफ कर देना पदमा प्लीज आइ यम सॉरी । दरसल हालत ही कुछ एसे बने की मैं अपने पर काबू नहीं रख पाया । तुम तो जानती हो मेरी बीवी तो यहाँ है नहीं वो तो मुझसे कितनी दूर है । मैं प्यार के लिए तरस जाता हूँ इसलिए बस तुम्हारा हुस्न देखकर मैं अपने पर काबू नहीं रख पाया । 
गुप्ता जी ने कितनी ही बात एक साथ कह डाली पर मैं क्या कहती , मैं तो खुद अपनी हवस पर काबू नहीं रख सकी थी ।  और ऊपर से गुप्ता जी मेरी तारीफ भी कर रहे थे । मैंने सोचा कह तो बेचारे ठीक ही रहे है अब आदमी इतने दिन तक घर से बाहर अकेला रहेगा तो तन्हा तो हो ही जाएगा । 
मैं - मुझे देर हो रही है । 
बस इतना ही बोलकर मैं उनके फ्लैट से बाहर निकल गई और सीढ़ियों से नीचे जाने लगी । उनके कमरे से बाहर आकर मुझे कुछ ठंडक मिली मेरा तो सारा शरीर ही जल रहा था। फिर मैं धीरे धीरे अपने घर पहुँची दरवाजा खोला और धड़ाम से जाके अपने बिस्तर पर गिर पड़ी । मुझे बोहोत थकान हो रही थी । फिर मैंने पर्स से फोन निकाला और अशोक को फोन किया - 
[Image: 57c4da292b0a99cee83b911672a221aa.jpg]
मैं - हैलो 
अशोक - हैलो , पदमा कहाँ हो तुम आज ? कभी मोबाईल स्विच ऑफ तो कभी तुम कॉल रिसीव ही नहीं कर रही ?
मैं - जी वो मोबाईल की बैटरी डाउन हो गई थी इसलिए स्विच ऑफ था ।  और फिर मैंने आपको कॉल किया था तो आप बिजी थे । अब जब आपका कॉल आया तो मैं छत पर थी औरं मोबाईल नीचे इसलिए पता ही नहीं चला । 
अशोक - ओह अच्छा । चलो छोड़ो ये सब बात सुनो मेरी एक फाइल घर रह गई थी उसे लेने .. ..
अशोक के बात पूरा करने से पहले ही मैं बीच मे बोल पड़ी  
मैं - हाँ , आपके दोस्त आए थे उसे लेने । 
अशोक - दोस्त ? कोन दोस्त ?
मैं - हाँ , आपके दोस्त नितिन !
अशोक - नितिन मेरा दोस्त ? हा हा हा .. .. 
इतना कहकर अशोक जोर से हँसने लगे । मैंने हैरत से पुछा - 
मैं - क्यूं क्या हुआ ? क्या वो आपके दोस्त नहीं है ? 
अशोक - लगता है तुम्हें कोई गलत फहमी हुई है । नितिन मेरे दोस्त नहीं है । 
मैं ( उत्सुकता से )- तो फिर ? 
अशोक - अरे वो मेरे .. अच्छा सुनो मैं तुमसे बाद मे बात करता हूँ , अभी मुझे जाना होगा ।    
इतना बोलकर अशोक ने फोन रख दिया । पर मेरे मन मैं एक सवाल छोड़ दिया की नितिन आखिर है कोन ? 
यही सोचते-सोचते मुझे नींद आ गई ।     
[Image: shriya-saran-featured-inmarathi.png]

Super
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#67
pics ke saath story bahut achchaa lagtaa hai..... happy happy happy happy happy happy
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#68
Plzzz add interfaith creation with Padma
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#69
(04-10-2022, 11:24 PM)Ravi Patel Wrote: Dosto story ko lekar main apki utsukta samajh rha hun aur aap sabhi dosto ka dil se dhanyavad karta hun 
1) Abhi T ---- mere dost bohot dhanyawad so much 
2 ) Samit_Bhai ---- thanks for your suggestion and advice also 
3) Jyotimoy123 ---- bohot bohot sukriya 
4) omprakash meena ---- dhanyawad 
5) rekha6625 ----- apke appreciation aur advice dono ke liye bohot dhanyawad main kosis karunga story ko aur acche se likhne ki 
6) Sush44 ---- Thank you so much bro
7) hot_boy93 --- thank you very much bro 
8) Djking - Thanks bro 
9) agoodfriend --- Thank you so much bro keep supporting.
main janta hun ki aap sabhi log update ka wait bohot time se kr rhe hai dosto me mafi chahunga ki itne dino ke baad bh apko update na de ska , darsal maine apko btaya tha na apne ek exam ke bare me bas kuch dino ka wait aur karlo dosto fir update milega . ok love you all 
                                      [Image: 20220921-003903.jpg]
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                           [Image: 39fbc42c1f991e24508e369c296567e1.jpg]
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#70
Bhai sex ka koi special day krwana jaisa marriage anversery type....mja aayega
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#71
Please please update update update update update
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#72
Waiting dear....
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#73
8. नहाने से मेरे बाल गीले हो गए थे तो उन्हे सुखाने के लिए मे बालकनी मे आकर खड़ी हो गई और वहाँ की धूप मे अपने बाल सुखाने लगी ।
[Image: video2gif-20190213-000557.gif]
 नहाकर मेरे तन मन को कुछ शान्ति मिली और मैं हॉल मे आकर सोफ़े पर बैठ गई
[Image: shivaninarayanan-2.jpg]
 मेरा शरीर शान्त था पर मन मे सुकून के नाम की जगह नहीं थी आज सुबह की नितिन के साथ  हुई घटना ने मेरे चित्त को बैचेन कर रखा था और उसके साथ -2 वो सब बातें भी मेरे जहन मे थी जो वरुण और गुप्ता जी के साथ हुई थी , खासकर वरुण का ध्यान बार बार मेरे दिमाग मे घूम रहा था ,  रह-रह कर मुझे कल शाम का वो द्रश्य याद आ रहा था "जब मैंने अपनी छत से घूमते हुए गली मे नितिन को वरुण के घर जाते देखा आखिर ऐसा क्या है जो मुझसे छिपाया जा रहा है वरुण का नितिन के साथ क्या रिश्ता हो सकता है ? मुझे तो ये भी नहीं पता की कल शाम जिसे मैंने वरुण के घर जाते देखा वो नितिन ही था या नहीं , कहीं शाम के अंधेरे मे मुझसे देखने मे कोई भूल तो नही हो गई ।  हो सकता है जिसे मैंने देखा था वो नितिन ना होकर कोई ओर हो , वैसे भी मैं भी कहाँ उसका चेहरा स्पष्ट रूप से देख पाई थी ? शाम के अंधेरे मे मुझसे गलती भी हो सकती है । पर अगर वो नितिन नहीं था तो आज सुबह जब मैंने नितिन से पुछा कि क्या वो कल मेरी गली मे आया था तो उसने कोई जवाब दिए बगैर बात हँसी मे क्यों टाल दी ? पता नहीं क्या सच है क्या झूठ मेरी तो कुछ समझ नहीं आता ।" वरुण पर भी मेरा विश्वाश कुछ डगमगाने लगा था एक तो उसकी हरकते ही आज-कल कुछ ऐसी थी के मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि ये वही पहले वाला वरुण है और दूसरा आज वो मुझे ग्राउंड मे भी नहीं दिखा जबकि कल उसने ही मुझे वॉक पर चलने के लिए खुद इन्वाइट किया था और फिर वो खुद ही नहीं आया और नितिन वहाँ पहले से ही मेरा इंतज़ार कर था उसे कैसे पता चला कि मैं आज ग्राउंड मे वॉक पर जाने वाली हूँ  , कहीं वरुण ने ही तो उसे नहीं बता दिया अगर ऐसा है तो इसका सीधा मतलब यही है कि वरुण और नितिन का आपस मे कुछ ना कुछ कनेक्शन है जो मेरे लिए और मेरे पति अशोक के लिए घातक साबित हो सकता है इसलिए मुझे अब हर एक कदम पर सावधानी बरतनी होगी मैं इन लोगों के हाथ का खिलौना नहीं बन सकती कैसे भी करके मुझे सच का पता लगाना ही होगा अगर जैसा मे सोच रही हूँ सब कुछ वैसा ही है तो अब मुझे खुद इसके पीछे का मकसद जानना होगा पर कैसे ? "  कितनी ही देर तक मैं इन्ही विचारों मे खोई हुई सोफ़े पर बैठी रही फिर फोन की घंटी से मेरा ध्यान टूटा , मैंने अपना मोबाईल उठाकर देखा तो वो अशोक की कॉल थी । मैंने कॉल रिसीव किया -
[Image: shriya-saran-hires-after-wedding44.jpg]

मैं - हैलो !
अशोक - हाँ हैलो पदमा !
मैं - आप ऑफिस पहुँच गए क्या ?
अशोक - हाँ बस अभी-अभी आया हूँ , क्या कर रही हो ?
मैं - बस कुछ नहीं अभी नहाकर आई हूँ । 
अशोक - हम्म । अच्छा सुनो मैंने टेलेफ़ोन कम्पनी मे बात की थी वो कह रहे थे कि वो आज अपने किसी सर्विस बॉय को भेज देंगे हमारी रेडलाइन को ठीक करने के लिए । वो 11-12 बजे तक आ जाएगा तुम उसे टेलेफ़ोन दिखा देना । ठीक है । 
मैं - जी ठीक है । 
अशोक - और सुनो पदमा ! उसे कोई फीस नहीं देनी है वो कम्पनी की जिम्मेदारी पर है । 
मैं - ओके जी , मैं समझ गई । 
अशोक - अरे वो मैं जानता हूँ मैंने बोहोत समझदार बीवी पाई है । 
मैं अशोक की बात सुनकर फोन पर ही थोड़ी मुस्कुरा दी और बोली - " हम्म अच्छा बस - 2 अब ज्यादा मस्का मत मारों । "
अशोक - मस्का नहीं है बीवी साहिबा , सच बोल रहा हूँ मेरे सारे दोस्त यही कहते है कि 'अशोक की बीवी का जवाब नहीं '। 
मैं - हाँ , झूठ बोलने मे तो आपका कोई जवाब नहीं है । 
अशोक - अरे झूठ नहीं मेरी बीवी जान एकदम सच बोल रहा हूँ चाहे तो आज शाम को एक से पूछ भी लेना । 
मैं ( थोड़ी हैरानी से ) - आज शाम को ? किससे ? 
अशोक - हाँ , आज शाम को रफीक घर आ रहा है । 
( रफीक मेरे पति अशोक के एक पुराने दोस्त थे जब मैं शादी करके शहर आई उसके लगभग 1.5 साल बाद अशोक , रफीक को हमारे घर लेके आए थे तब उन्होंने मुझे रफीक से मिलवाया था और तब से अब तक अक्सर रफीक हमारे घर आया करते थे । रफीक पैशे से एक डॉक्टर थे , जैसा अशोक ने मुझसे कहा था मगर मैं कभी उनके क्लिनिक नहीं गई , अशोक ने बताया था कि वो मनोवेज्ञानिक डॉक्टर है ।  जब कभी भी मैं रफीक से मिली वो हमेशा मुझे एक सुलझे हुए इंसान ही लगे बात करने मे , मिलने मे बिल्कुल एक सज्जन व्यक्ति की तरह । बस एक ही कमी लगती थी और वो थी कि जब भी वो हमारे घर आते थे अक्सर अशोक के साथ छत पर बैठकर शराब पिया करते थे उनकी ये बात मुझे बोहोत अखरती थी । आज काफी दिनों के बाद रफीक के हमारे घर आने की बात सुनकर मुझे भी थोड़ी खुशी हुई । )  
मैं - ओह , अच्छा । किस टाइम आएंगे वो ? 
अशोक - बस मेरे ऑफिस के खत्म होने के बाद दोनों साथ मे ही आएंगे ।
मैं - ओके ठीक है । 
अशोक - अच्छा चलों रखता हूँ फोन । बाय । 
मैं - बाय । 
फिर अशोक ने फोन रख दिया 
[Image: 274452896864b4daf2c5565bf5e1e49e961e1e81.gif]
उनके फोन रखने के बाद मैं अपने घर के टेलेफ़ोन ( रेडलाइन ) के पास गई जो पिछले 1 महीने से खराब था । मैंने अशोक से कई बार कहा भी कि इसे ठीक करवा दो, पर वो भी अपने काम मे इतने बिजी थे कि उनका भी समय नहीं लगा , लेकिन आज आखिरकार ये काम भी निपट जाएगा । मैंने एक बार के लिए टेलेफ़ोन के रिसीवर को उठाया वो अभी भी डेड था । मैंने फिर से उसे नीचे रख दिया और अपने घर के काम मे लग गई । सब काम खत्म करने के बाद मुझे ध्यान आया की "छत पर कुछ कपड़े है ,जो मैंने कल सूखने के लिए डाले  थे  अब मुझे वो ले आने चाहिए " ऐसा सोचकर मैं अपने घर की छत पर चली गई । छत का वातावरण मुझे हमेशा ही मनमोहक लगता था, वहाँ की खुली हवा और सुबह  की मीठी-2 धूप मन को प्रफुल्लित कर देती । आज भी छत पर आकर मेरा मन वहीं घूमते रहने का करने लगा , मैं वहीं छत पर बैठ गई ओर उस मीठी धूप के लिए अपनी बाहें फैला दी । 
[Image: 5TH-IS-1.jpg]
फिर थोड़ी देर बाद मैंने अपने कपड़े लिए और उन्हे लेकर नीचे आ गई । 
[Image: 20221011-184703.jpg]
मैंने कपड़ों को अलमारी मे रखने के इरादे से अपने बेडरूम मे आकर अपनी अलमारी खोली और उसमे कपड़ों को सलीके से रखने लगी । कपड़े अलमारी मे रखने के बाद जैसे ही उसे बंद करने के लिए मैंने अपने हाथ चालये , अचानक मेरे मन मे उसी फ़ाइल का ध्यान आ गया जो रात अशोक ने मुझे रखने के लिए दी थी और जिसकी कल सुबह नितिन बात कर रहा था । मेरे मन मे उस फाइल को एक बार फिर से देखने की इच्छा होने लगी , मुझे भी लगा एक बार तो देखना ही चाहिए कि आखिर इस फाइल मे ऐसा क्या है जो नितिन और अशोक दोनों ही इसके लिए इतने फिक्रमंद है , इसलिए अपने मन की उत्सुकता को शान्त करने के लिए मैंने अलमारी का लॉकर खोलकर वो फाइल निकाली और वहीं बेडपर बैठकर उसे समझने की कोशिश करने लगी ।
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 फाइल को ध्यान से देखने के बाद भी मुझे उसके बारे मे कुछ खास जानकारी नहीं मिल सकी , सिर्फ इतना ही पता चल पाया की वो कुछ सरकारी और गैर-सरकारी दस्तावेज है किसी कम्पनी के बारे मे , जो देखने से काफी जरुरी भी लग रहे थे , पर फिर भी मैं ये नहीं जान सकी के इस फाइल का नितिन के यहाँ आने से क्या ताल्लुक है । नितिन तो बोल रहा था कि अशोक उसे फाइल नहीं देंगे क्योंकि वो नहीं चाहते कि वापस आकर उनके ग्रुप-हेड की पोस्ट छीन ले , पर सवाल ये था की क्या नितिन जो बोल रहा है उसमे कुछ सच्चाई है भी या नहीं ।" अशोक से मेरी शादी को 4 साल हो चुके थे और इन 4 सालों मे मैंने कुछ भी ऐसा तो नहीं देखा था जिससे ये लगे की अशोक कोई बुरे आदमी है जो अपने फायदे के लिए दूसरों का बुरा चाहता हो । " नितिन पर तो मुझे बिल्कुल भरोसा नहीं था उसकी तो शुरुवात ही झुठ से हुई थी , जो भी हो मुझे सच को जानना ही होगा , " मैं इसी उधेड़बुन मे बैठी थी ।  
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ऐकाक डॉर बेल बजी और  मैं अपने ख्यालों से बाहर निकली ,मैंने घड़ी मे टाइम देखा तो 11:15 बज रहे थे । मैंने अंदाजा लगा लिया की ये जरूर टेलेफ़ोन वाला होगा और मैं अपने बेड से उठी और उस फाइल को जल्दी-2 अलमारी मे रखकर दरवाजा खोलने के लिए , गेट की ओर बढ़ी । 
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गेट खोला तो देखा सामने ब्लू टी-शर्ट मे एक 20-22 साल का लड़का खड़ा था , सूरत देखने से तो वो लड़का काफी मासूम सा लग रहा था ।  उसके हाथ मे एक बॉक्स था , उसमे उसके टूल्स रहे होंगे शायद । मेरे गेट खोलने के बाद से ही वो मुझे देख रहा था पर उसका ध्यान मेरी नेवल रिंग पर था जो मैंने आज सुबह ही पहनी थी ।
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  फिर उसने कहा - " नमस्ते मैडम । "

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#74
मैं - नमस्ते । तुम ???..... 

" वो सर ने बुलाया था आपके टेलेफ़ोन मे कुछ खराबी है शायद । " उसने कहा और फिर चुप हो गया । मैं उसकी बात समझ गई और बोली - " अरे हाँ हाँ .. आओ , अंदर आओ । " इतना कहकर मैं अंदर आ गई
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 और मेरे पीछे-2 वो लड़का भी अंदर आ गया । मैं उसे लेकर हॉल मे आई और टेलेफ़ोन के पास ले गई । 
मैं - यही है , पिछले 1 महीने से बंद है । 
" एक महीना .. अपने पहले शिकायत क्यों नहीं की ? " उसने थोड़ी हैरानी से कहा । 
मैं - बस क्या कहे टाइम ही नहीं लगा । अब तुम इसे चेक कर लो एक बार और कुछ चाहिए हो तो बता देना । मैं यही हूँ सामने कीचेन मे । 
उसने मेरी ओर देखकर मुस्कुराते हुए जवाब दिया - " जी ठीक है । " और अपने काम मे लग गया । मैं भी कीचेन मे जाकर अपने दोपहर के खाने के लिए कुछ बनाने लगी ।
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 खाना बनाते हुए मेरी नजर उस लड़के पर गई जैसे ही मैंने उसकी ओर देखा मैं ये देखकर हैरान रह गई कि वो पहले से ही मुझे घूर रहा था । मुझे अपनी ओर देखता पाकर उसे अपनी चोरी पकड़े जाने का एहसास हुआ और वो सकपका गया , मुझसे नजरे चुराते हुए वो फिर से अपने काम मे व्यस्त होने का दिखावा करने लगा । उसकी इस हरकत से मेरी हंसी छूट गई और मैं धीरे से वहीं कीचेन मे मुस्कुरा दी ।
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 उसके बाद भी मैंने एक बात नोटिस की , कि जब भी उसे मौका मिलता वो चोरी छुपे मुझ पर अपनी नजरे फिरा देता  ये सिलसिला तब-तक चला जब-तक मैं पानी का ग्लास लेकर खुद उसके पास नहीं गई । मैंने उसके पास जाकर उसे कहा - " हो गया क्या ? "मुझे एकदम से आपने इतने पास देखकर वो सकपका गया और थोड़ी घबराहट सी की आवाज मे बोला - " जी .. जी .. मैडम  बस हो गया । " उसकी ऐसी हालत देखकर मेरे होंठों पर फिर से मुस्कान छा गई ।
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 मैंने उसे पानी का ग्लास थमाया और वहीं खड़ी होकर उसका काम देखने लगी , उसे सताने मे मुझे भी एक अजीब सा मजा आ रहा था । पानी पीते हुए भी उसकी नजरे मेरे मादक जिस्म का दर्शन कर रही थी उसने तेजी के साथ पानी पिया और फिर टेलेफ़ोन के वायर को लगाने लगा । मैंने ग्लास उसके हाथ से लिया और इस दौरान मैंने जानबूझकर अपनी उंगलियों का स्पर्श उसके हाथ को कराया , जिसने उसके माथे पर पसीने को छलका दिया , वो काफी घबराया हुआ सा लग रहा था , शायद पहली बार किसी महिला के इतने करीब आया था या मुझे अजनबी समझकर थोड़ा घबराया हुआ था । उसने जल्दी-2 टेलेफ़ोन की वायर लगाई और कहा - " अब आप कोई नंबर डायल करके देखिए । " मैंने टेलेफ़ोन के रिसीवर को उठाया और अपने ही सेल फोन का नंबर डायल किया
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 , तुरंत ही मेरे मोबाईल पर रिंग बज गई इसका मतलब साफ था के टेलेफ़ोन ठीक हो गया है । मैंने उस लड़के से मुस्कुराते हुए कहा - " हम्म , अब ये ठीक हो गया है  , थैंक्स । " मुझे मुस्कुराता देखकर उसने भी स्माइल के साथ जवाब दिया - " योर वेलकम मैम । अब मैं चलता हूँ ।" फिर वो जाने लगा , मैंने उसे पीछे से टोका - " सुनो । "
वह पलटा और बोला - " जी मैम ? "
अचानक से ना जाने क्यूँ मुझे एक शरारत सूझी मैं उसके करीब आने लगी और धीरे से उसके आगे पैर फिसलने का ड्रामा करते हुए अपनी साड़ी का  पल्लू नीचे ढलाक दिया । 
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पल्लू के मेरे बूब्स से थोड़ा हटते ही मेरे ब्लाउज मे बंधे भारी -भरकम गोल गोल चुचे उस नौजवान के  सामने आ टपके , वो तो पहले से मेरे हुस्न का दीवाना बना हुआ था मेरे उन्नत बूब्स की एक झलक को पाते ही उसकी आँखों मे एक चमक उभर आई जिसे मैंने अपनी आँखों से बखूबी देखा । थोड़ा संभलते हुए मैं सीधी हुई और अपना पल्लू ठीक किया और उससे बोली - 
मैं - " तुम्हारा नाम क्या है ? "
वो थोड़ी स्माइल देकर बोला - " विवेक ! " उसका नाम सुनकर मेरे जहन मे कुछ पुरानी यादें ताजा हो गई , इसका कारण ये था कि ये नाम मैंने पहले भी सुना हुआ था ।  मैंने एक टक उसको देखा और आगे कहा - " विवेक , दोपहर हो गई है खाना खाओगे ?" मेरे निमंत्रण को सुनकर उसका चेहरा खिल गया आखिर जिस औरत को वो इतने समय से घूर रहा था अगर उसके साथ खाने को मिल जाए तो और क्या चाहिए उसे ? उसने एक बार अपनी घड़ी मे देखा तो उसका चेहरा उतर गया । मैंने पुछा - " क्या हुआ विवेक ?" उसने अपना ध्यान अपनी घड़ी से हटाया और कहने लगा - " सॉरी मैडम , पर मुझे आगे भी एक कस्टमर के घर जाना है खाना खाने रुका तो बोहोत लेट हो जाएगा । " मैंने उसकी बात पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा - " कोई बात नहीं विवेक , तुम अपना काम खत्म करो ।   इट्स ऑल राइट । "
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 उसके बाद उसने अपना बॉक्स उठाया और चला गया । मैंने भी उसके पीछे जाकर दरवाजा बंद किया और फिर अंदर हॉल मे आकर सोफ़े पर बैठ गई और अपने द्वारा अभी विवेक के साथ की हुई बातों को याद करके हंसने लगी ।  
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             "ये तुझे क्या हो गया था पदमा ! तू कब से इतनी बोल्ड हो गई कि इस तरह से एक लड़के के साथ ठिठोली करने लगी । "- मैंने मन मे सोचा और खुद ही मुस्कुराने लगी । मैंने ऐसा पहले कभी नहीं किया था , पर आज ना जाने क्यूँ मुझे उस नौजवान को सताने मे एक अजीब सा मजा आ रहा था ,पता नहीं ये समय की नियति थी या मेरे साथ हुई पिछली घटनाओ का प्रभाव , पर मेरे लिए ये बिल्कुल नया अनुभव था, "उस लड़के को अपने हुस्न से सताने मे मुझे इसलिए भी मजा आ रहा था क्योंकि शायद मैं ये भी देखना चाहती थी कि क्या मैं खुद भी किसी मर्द को विचलित कर सकती हूँ या नहीं और इसका जवाब भी मैं जान गई थी साथ ही मुझे ये भी पता चल गया था कि कैसे मैं नितिन और वरुण के बीच की सच्चाई जान सकती हूँ और वो तरीका है अपने हुस्न के जाल का इस्तेमाल,  एक औरत का जिस्म किसी भी मर्द के ईमान को डगमगा सकता है वैसे भी नितिन , गुप्ता जी , वरुण और आज विवेक की नज़रों और हरकतों ने मुझे ये तो बता ही दिया था कि मेरे कामुक बदन की आँच किसी भी मर्द को अपनी ओर खिंच सकती है , अब तक मेरे जिस जिस्म से ये लोग खेल रहे थे अब मैं खुद इसके इस्तेमाल से उनके बीच की सच्चाई का पता लगाऊँगी लेकिन मुझे उन्हे ये बिल्कुल नहीं लगने देना कि मुझे उन पर शक है और साथ ही मुझे अपनी सीमाओं और मर्यादा का भी ध्यान रखना होगा कहीं ऐसा ना हो की उन्हे उकसाने के चक्कर मे मुझसे कोई ऐसी भूल ना हो जाए जिससे मेरी दुनिया ही लूट जाए , मुझे बस ये पता करना है कि क्या कल जिस आदमी को मैंने गली मे देखा था वो नितिन ही था या नहीं ? और एक चीज ये कि क्या नितिन को ऑफिस से निकलवाने मे अशोक का कोई हाथ है या नहीं ? मुझे वैसे तो नितिन से कोई हमदर्दी नहीं है , पर मैं किसी गलत काम मे भागीदारी नहीं बन सकती अगर अशोक ने ऐसा किया है तो वो गलत है और मुझे वो फाइल नितिन को देनी ही होगी "। खैर मैं अपनी सोच से बाहर निकली और कीचेन मे जाकर अपने लिए खाना तैयार किया मुझे बोहोत भूख लग रही थी । खाना खाकर मुझे थोड़ी नींद सी आने लगी इसलिए मैं सीधे अपने बेडरूम मे गई और बेड पर लेट गई , लेटे हुए मुझे ज्यादा देर नहीं हुई थी तभी मुझे नींद आ गई और मे उसमे खोती चली गई । 
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#75
मैं 3 बजे तक सोती रही जब आँखे खुली तो मैं अपने अपने बिस्तर से उठी ओर बाहर हॉल मे आकर टीवी देखने लगी ,
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 कोई खास  प्रोग्राम तो टीवी मे आया हुआ था नहीं , तो मैं बस गानों को ही सुनने लगी । वक्त कब बीता पता ही नहीं चला और 3:30 बज गए इतने मे ही वरुण ने आकर मेरे घर की डॉर बेल बजा दी ।  डॉर बेल की आवाज से मैं अपने गानों की दुनिया से बाहर आई और टीवी बंद करके गेट खोलने चली गई
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 गेट खोला तो सामने वरुण ही खड़ा था वो मुस्कुराते हुए मुझे ही देख रहा था या यूँ कहूँ के मेरे बदन पर अपनी नजरे जमाये हुए था । मुझे देखकर वो बोला - " हैलो भाभी !" मैंने भी उसकी बात के जवाब मे उसे हैलो कहा और अंदर आने को बोला ।  वरुण अंदर जाने लगा और मैं वही खड़ी होकर दरवाजा बंद करने लगी , दरवाजा बंद करते हुए मैंने देखा बाहर का मौसम काफ़ी ठंडा था , आसमान मे बादल भी मँडरा रहे थे , थोड़ी-2 हवा भी चल रही थी । मैंने दरवाजा बंद किया और अंदर आ गई वरुण पहले से ही अंदर सोफ़े पर बैठ था मुझे आता देखकर उसने मुस्कुराते हुए अपनी खुशी जाहिर की । 
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 मैंने उसे अपनी किताबे खोलने के लिए कहा ओर उसके लिए पानी लेने कीचेन मे चली गई । जब तक मैं पानी का ग्लास लेकर आई वरुण बैठा हुआ अपनी किताब पढ़ था , वरुण से नितिन के बारे मे  जानकारी पता लगाने के लिए मैंने अपना पहला पाँसा फेंकने की योजना बनाई और  उसे पानी देते हुए जानबूझकर अपना आँचल थोड़ा सा नीचे गिरा दिया पर इस बार मैंने उसे उठाने मे कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई बल्कि बोहोत ही आराम से वरुण को अपने भारी चूचों के दर्शन करवाए,
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 वरुण ने पानी का ग्लास उठा तो लिया पर वो उसे पीना भूलकर मेरे कसे हुए बूब्स की गहरी घाटियों मे खो गया उसके होंठ खुल गए जैसे अभी लपककर मेरे चूचों को मुहँ मे भर लेंगे और फिर कभी नहीं छोड़ेंगे । अपने इस बोल्ड अंदाज से गुदगुदी तो मेरे मन मे भी हो रही थी और मेरे बूब्स कुछ ज्यादा ही तन गए , मैंने धीरे से अपना आँचल संभाला और उससे अपने बूब्स को ढका । वरुण भी अपने भ्रम से निकला और पानी के ग्लास को अपने होंठों से लगाकर पीने लगा । पानी पीकर उसने ग्लास वहीं टेबल पर रख दिया मैं उसके सामने वाले सोफ़े पर बैठ गई
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और उसकी एक किताब उठाकर पढ़ने लगी वरुण की नजरें मुझ पर ही थी उसने मुझे किताब पढ़ते हुए देखा तो बोला - " भाभी आज कौन सा टॉपिक पढ़ना है ? "

मैंने वरुण की ओर देखा -
मैं - आज अकाउंट्स के कुछ प्रश्न हल करेंगे तुम अपनी कॉपी खोलो । 
वरुण - जी । 
फिर वरुण ने अपनी कॉपी मे मेरे द्वारा बोले गए प्रश्न लिखे और उन्हे सुलझाने बैठ गया , वरुण सवालों मे उलझा था और मैं अपने सवालों का जवाब उससे सुनना चाहती थी मैंने आखिर उससे पूछ ही लिया -
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मैं - वरुण !
वरुण ने बिना कुछ बोले मेरी ओर देखा तो मैंने अपनी बात आगे बढ़ाई - " कल शाम तुम्हारे घर कोई आया था क्या ? "
वरुण ने मेरे सवाल पर कुछ सोचते हुए जवाब दिया - " कल शाम ...... हाँ याद आया , कल शाम हमारे घर इंसयोरेंस कंपनी वाला आया था , वो आपको तो पता ही है ना 4 साल पहले पापा की डेथ के बाद उनके इंसयोरेंस से ही हमारा खर्च चलता है तो वो उसी के सिलसिले मे मम्मी से कुछ बात करने आया था , पर आपने उसे कहाँ देखा ?
मैं ( थोड़ी सचेत होती हुई ) - अरे कल शाम छत पर घूमते हुए मेरी नजर पड़ गई , मुझे लगा पता नहीं कौन होगा ? इतने दिनों बाद तुम्हारे घर एक अनजान शख्स को आता देखकर ऐसे ही पूछने का मन किया । 
वरुण ने हाँ मे सर हिलाया और फिर से अपनी कॉपी मे देखने लगा , पर मैं वरुण के जवाब से संतुष्ट नहीं थी इसकी वजह ये थी के वरुण तो कह रहा था कि कल शाम उसके घर आने वाला आदमी बीमा कंपनी से था तो उसके पास कोई दस्तावेज , बेग कुछ तो होना चाहिए था पर जहां तक मुझे याद है उसके हाथ मे ऐसा कुछ नहीं था और वो इतनी जल्दी आकर चला कैसे गया ? मैंने वरुण की ओर देखा तो वो एक सवाल पर अटका हुआ था । " है तो बिल्कुल निकम्मा एक सवाल भी नहीं कर सकता अभी भी इसके दिमाग मे मेरे बूब्स की तस्वीरे ही घूम रही होंगी , जरूर ये मुझे सोफ़े पर ब्रा और पेन्टी मे कल्पना कर रहा होगा  "
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- मैंने मन मे सोचा । 
 मैंने उसे कहा - "क्या हुआ हुआ वरुण ? हुआ नहीं  क्या ?
वरुण - भाभी ये सवाल समझ नहीं आ रहा , आप समझा दो प्लीज । 
इतना कहकर वरुण ने अपनी कॉपी मेरी ओर बढ़ा दी ,मैंने उसके हाथ से कॉपी ली और उसे सामने की टेबल पर रखकर समझाने लगी । प्रश्न को हल करने के लिए मुझे थोड़ा झुककर उसे समझना पड़ा जिससे मेरे बूब्स की गहरी घाटी एक बार फिर उसकी आँखों के सामने आ गई ।
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 वरुण की पैनी निगाहे वही मेरे बूब्स पर चिपक गई और वो बस अपनी आँखों से ही उनका रसपान करने लगा । मैं ये जानती थी कि वरुण का ध्यान सवाल समझने मे नहीं बल्कि मेरे बदन की गुत्थियों को सुलझाने मे है पर मैं भी उसे उकसाने मे कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी । यही मेरी योजना थी के वरुण को अपनी सुंदरता के जाल मे फाँसकर उससे सारी सच्चाई निकलवाई जाए , इसलिए मैं भी बिना किसी झिझक के वरुण को अपने दोनों खरबूजों के दर्शन करने दे रही थी । वरुण की निगाहों की तपन मेरे दिल मे भी हलचल मचा रही थी पर मैं खुद को उसके सवाल मे उलझे रहने का नाटक कर रही थी , सच तो ये था कि ना तो मेरा ध्यान वरुण को पढ़ाने मे था और ना ही वरुण को इन किताबी सवालों मे कोई दिलचस्पी थी वो तो बस मेरी सुंदरता और मेरे जिस्म के उभारों मे ही खोया हुआ था , जब सवाल पूरा हो गया तो मैं सीधी हो गई और वरुण की आँखों के सामने से उसका पसंदीदा नजारा हट गया जिससे वो उदास सा हो गया और मेरे चेहरे पर हँसी आ गई । कुछ देर बाद वरुण के जाने का वक्त हो गया, वरुण जाने के लिए उठा और अपनी किताबें समेटने लगा , वरुण के खड़े होने से उसकी पेंट मे बना उसके लिंग का ऊभार भी साफ नजर आ रहा था
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 जिसे देखकर मैं समझ गई के वरुण को वश मे करने की मेरी चाल कामयाब रही । जब वरुण जाने लगा तो मैं भी उसे गेट तक छोड़ने के लिए उसके पीछे-2 चल दी । वरुण ने आगे बढ़कर गेट खोला और बाहर का नज़ारा देखकर रुक गया । 
बाहर का मौसम बोहोत अच्छा था , ठंडी -2 हवा चल रही थी आकाश मे काले बादल छाए हुए थे सामने ग्राउंड मे चारों और पेड़-पौधे हवा मे लहर रहे थे । हम दोनों घर के अंदर थे लेकिन हवा के झोंके हम तक भी आ रहे थे । अचानक वरुण मेरी ओर मुड़ा और बोला - " भाभी , देखो ना कितना अच्छा मौसम है बाहर का ।
मैं - हाँ वरुण लगता है आज बारिश होगी । 
 वरुण- चलिए थोड़ी देर ग्राउंड मे घूमते है , मन फ्रेश हो जाएगा । 

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#76
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sorry it was re-posted by mistake
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#77
ग्राउंड का व्यू वाकई बहोत अच्छा था और मैं जाना भी चाहती थी पर वरुण के साथ होने की वजह से थोड़ी नर्वस हो रही थी । मुझे कोई जवाब देता ना देखकर वरुण ने एक बार फिर से मेरी ओर मुड़कर कहा - " क्या हुआ भाभी आइये ना ? " 

मैं - नहीं वरुण तुम जाओ मुझे आज बोहोत काम है । आज तुम्हारे अशोक के दोस्त घर आने वाले है ।
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वरुण - उनके आने मे तो अभी बोहोत टाइम है , आप आइये बाद मे हो जाएगा काम । 
ये कहते हुए वरुण ने अपना बैग वही गेट के पास खूंटी पर टाँग दिया और मेरा हाथ पकड़कर मुझे घर से बाहर ले आया । ये सब इतनी जल्दी मे हुआ कि मुझे कुछ बोलने का मौका ही नहीं मिला  फिर नितिन मेरा हाथ छोड़कर झूमता हुआ आसमान की ओर देखकर बोला - " देखिए इतना अच्छा नज़ारा रोज - रोज थोड़े ही देखने को मिलता है आइये मेरे साथ । "
बाहर की ठंडी मोहक हवा ने मेरे मन मे भी बचपना जगा दिया और मैं भी वरुण के साथ उस मौसम का आनंद लेने लगी और सामने के ग्राउंड मे जाने लगी , 
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वरुण मुझसे आगे भागता हुआ ग्राउंड मे पहुँच गया और मस्ती मे झूमने लगा । जब मैं ग्राउंड मे पहुँची तो वहाँ के मन-मोहक नज़ारे को देखकर बस देखती रह गई । ग्राउंड मे इक्का-दुक्का लोग थे जो मेरी ही तरह वहाँ के नज़ारे का मज़ा ले रहे थे ।  एक कोने मे कुछ सुंदर फूल खिले हुए थे मैं वहाँ उनके पास गई और एक फूल को तोड़कर अपने पास लाई ।
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 मैं वहाँ की मदहोश कर देने वाली हवा मे खोई हुई थी और मेरे पीछे वरुण अपना सारा काम छोड़कर मेरे जिस्म मे खोया हुआ था मुझे तो अपनी हालत का ध्यान ही नहीं था , कि पीछे से वरुण अपनी ज़हरीली नज़रों से ही मेरे कामुक बदन का रस पी रहा है । 
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मुझे पता भी नहीं चला और वरुण धीरे-धीरे मेरे करीब आ गया । बादल अब और भी घने हो गए जिसकी वजह से अँधेरा छाने लगा और हवा भी तेज चलने लगी , बारिश होने के पूरे आसार लग रहे थे , जो लोग ग्राउंड मे थे वो भी अब धीरे-2 करके वहाँ से निकलने लगे थे, हवा के तेज होने से मेरी साड़ी का पल्लू भी हवा से उड़कर नीचे गिर गया और मैंने भी लापरवाही से उसपर कोई ध्यान नहीं दिया  । मैंने सोचा अब मुझे घर चलना चाहिए कहीं बारिश ना हो जाए , पर मुझे क्या पता था कि वरुण बिल्कुल मेरे पीछे ही खड़ा है जैसे ही मैं पीछे हटने को हुई पीछे वरुण से जा टकराई, वरुण ने भी इस मौके का पूरा फायदा उठाया और अपने हाथ आगे बढ़ाकर मेरी पतली कमर के उस हिस्से को जहां कोई कपड़ा नहीं था पीछे से पकड़कर अपनी ओर खींचा ।
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 इससे मेरी पीठ वरुण के  सीने से जा टकराई और मैं बिल्कुल उससे सट गई , मौसम ठंडा था पर वरुण के बदन से गरम लहरे निकल रही थी जो मुझे अपने बदन पर साफ महसूस हो रही थी , नीचे वरुण के लिंग का जो तनाव था वो भी मुझे मेरे नितम्बों पर चुभने लगा , आज पहली बार मैंने वरुण के लिंग को अपने जिस्म पर महसूस किया । मैं समझ गई कि ये सब आज की मेरी वरुण के साथ की गई हरकतों का परिणाम है । मैं जल्दी से वरुण से अलग हुई और उसकी ओर हैरानी के भाव से देखा ।
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 अपनी गलती के पकड़े जाने से वरुण एकदम से थोड़ा सा घबराया और कहने लगा - " वो सॉरी भाभी.......  मैं आपको ये कहने आया था कि अब हमे चलना चाहिए मौसम खराब हो रहा है । " वरुण की बात सुनकर मैंने हामी मे सर हिलाया और उसे भी चलने को कहा । वरुण बात तो मुझसे कर रहा था पर उसकी नजर मेरे उभरे हुए बूब्स पर थी जैसे वो उन्हे सिर्फ ब्रा मे कल्पना कर रहा हो, 
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जब मुझे अपनी हालत का ध्यान आया तो मैंने अपनी साड़ी का आँचल ठीक किया , अब तक सब लोग ग्राउंड से निकल चुके थे सिर्फ हम दोनों ही वहाँ खड़े थे । मैंने उसे एक बार फिर से उसकी कल्पना से जगाया - " वरुण चलो भी । "
वरुण - हाँ ... हाँ ... भाभी । 
इतना कहकर हम दोनों चलने वाले ही थे के तभी बोहोत ज़ोरों की बिजली कड़की और एक तेज हवा का झोंका आया जिसकी वजह से एक बार फिर मेरा आँचल मेरी पकड़ से छूटकर हवा मे उड़ने लगा 
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, मैंने उसे पकड़ने की भी कोशिश की पर नाकामयाब रही । मैं अपने आँचल को संभालने मे लगी थी और वरुण पीछे से मेरी हालत के मजे ले रहा था , एक ही दिन मे दो बार वरुण के सामने इतनी बोल्ड हो जाने से मुझे अब थोड़ी शर्म भी आने लगी । मैंने जल्दी -2 अपने पल्लू को ठीक किया और चलने लगी । पर आज शायद होनी भी मुझे वरुण के करीब ही लाना थी मेरे एक कदम बढ़ाते ही ज़ोरों की बारिश शुरू हो गई । बारिश शुरू होते के साथ ही मैं घबरा गई और ग्राउंड से निकलने के लिए तेजी से भागने लगी । वरुण मेरे पीछे ही चल रहा था , मेरे पैरों मे सैंडल थी बारिश होने की वजह से ग्राउंड की मिट्टी गीली हो गई  और भागते हुए मेरी सैंडल मिट्टी मे धंस गई जिससे मेरा पैर मुड़ गया मैं तो गिरने को ही हो गई थी पर तभी पीछे से वरुण ने मुझे थाम लिया और सहारा देकर खड़ा किया । 
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वरुण(मुझे थामे हुए )  - भाभी आप ठीक तो है ?
मेरे पैर मे थोड़ा दर्द था मैंने वरुण से कहा - " हम्म मैं ठीक हूँ , शुक्रिया वरुण । " वरुण ने मुझे पूरा अपनी बाँहों मे समेटा हुआ था उसने ऐसे ही पकड़े-2 मेरी ओर देखा और अपनी आँखों से ही मेरा शुक्रिया स्वीकार किया । मैं वरुण से थोड़ा अलग होते हुए चलने की कोशिश करने लगी पर चलते ही फिर से मेरे पैर मे दर्द मचल गया जिसकी वजह से मैं फिर से वरुण से सट गई ।
 वरुण इस बार मुझे पीछे से और भी मजबूती से पकड़ा और मेरी कमर मे अपना हाथ धीरे से फिराते हुए मेरी गर्दन पर धीरे से अपने होंठो से चुम्बन देने लगा ।
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 बारिश के होते हुए भी वरुण का जिस्म गरम था और उसकी गर्मी मेरे जिस्म तक पहुँच रही थी । मेरा पूरा बदन सिहर उठा और मैं वरुण की बाहों मे सिमट गई । 
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#78
वरुण ने एक नजर मेरी आँखों मे देखा और हमारी नजरें मिल गई ना वो कुछ बोल रहा था ना मैं । चलती तेज बारिश की वजह से हम दोनों पूरे भीग चुके थे
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 और एक दूसरे के इतने करीब होने से हमारी साँसों की गरमी एक दूसरे के बदन को रोमांचित करने लगी । वरुण ने एक टक मेरी ओर देखते हुए कहा - " पैर मे दर्द है क्या भाभी ? " मैं कुछ बोल तो नहीं पाई बस उसके इस सवाल पर धीरे से हाँ मे गर्दन हिला दी । इसके बाद वरुण ने कोई सवाल नहीं पुछा , और अपने एक हाथ से मेरी कमर को मजबूती से पकड़ा और दूसरे हाथ को मेरी पीठ , कमर और नितम्बों पर फिराते हुए नीचे ले गया और एक झटके के साथ मुझे अपनी बाँहों मे उठा लिया ।
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 उस दिन मुझे वरुण के शरीर की ताकत का सही अंदाजा हुआ , उसने मुझे किसी फूल की तरह अपने ताकतवर हाथों मे उठा लिया । वरुण के गोद मे उठाते ही मेरी चूचियाँ उसकी छाती पर दब गई जिससे मेरी हल्की सी आह .. निकल गई जिसे दबाने के लिए मैंने वरुण से कहा - " आह .... वरुण  ये क्या ....... "
मैंने इतना ही कहा था कि वरुण ने बीच मे ही मेरी बात काटते हुए कहा - " घबराइए मत भाभी , मुझ पर भरोसा रखिए । " वरुण का इतना कहना मेरे होंठों को सि देने के लिए बोहोत था , मैं चुप हो गई और वरुण मुझे गोद मे लिए हुए ही मेरे घर की तरफ बढ़ने लगा । बारिश मे भीगे हुए हमारे बदन आपस मे रगड़ खा रहे थे , वरुण के साथ अपनी इस हालत को देखकर मेरी दिल की धड़कने तेज होने लगी । वरुण चलते हुए भी मुझे ही देख रहा था और मैं अपनी नजरे नीची किये हुए उसकी गोद मे सिमटी हुई थी , मुझे इस बात का भी डर लग रहा कहीं कोई मुझे इस हालत मे वरुण के साथ देख ना ले । मैंने अपने आस-पास देखा तो वहाँ दूर -2 तक कोई नहीं था सब अपने घरों मे जा चुके थे, जल्दी ही हम भी घर पहुँच गए बारिश के आने की वजह से बिजली भी चली गई थी और पूरे घर मे अँधेरा हो रखा था । वरुण मुझे अपनी गोद मे उठाए हुए सीधे मेरे बेडरूम मे ले गया और धीरे से मुझे मेरे बेड पर लिटाया 

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इस दौरान वरुण मेरे चेहरे के काफी करीब आ गया इतने कि मैं उसकी साँसों की गरमाई अपने चेहरे पर महसूस कर पा रही थी जो मुझे भी मेरे होंठ खोलने के लिए मजबूर कर रही थी । वरुण की छातियों से रगड़ खाकर मेरी चूचियाँ थोड़े तनाव मे आ गई थी , मुझे लिटाकर वरुण ने धीरे से एक तकिया मेरे सिरहाने लगाया ।
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 मेरी नजर उसके चेहरे पर जमी हुई थी, मैंने कभी वरुण को इतने करीब से नहीं देखा था पर आज देखकर उसे देखते रहने का ही मन कर रहा था । वरुण मेरे बिस्तर के पास से हटा और दूर जाके खड़ा हो गया बारिश मे भीगा हुआ वो 19 साल का लड़का मुझ 28 साल की औरत को लुभा रहा था अब तक मैंने या वरुण ने एक शब्द भी नहीं कहा था माहोल ही इतना गरम हो चुका था और चारों ओर अँधेरा भी तो था ।
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 फिर वरुण मेरे पैरों के पास बैठ गया और मेरे पैर पर अपना एक हाथ रखकर बोला - " क्या अभी भी दर्द है ? "  मैं धीमी आवाज मे वरुण के सवाल का जवाब दिया - " थोड़ा सा ।" वरुण ने एक बार मेरी ओर देखा फिर कमरे मे चारों ओर देखता हुआ बोला यहाँ कोई बाम है क्या ?" मैंने उसके सवाल के जवाब मे मेज के ड्रावर की ओर इशारा करते हुए कहा - " उसमे है एक । " वरुण बिस्तर से उठा और मेज के पास जाके उसके ड्रावर से बाम की एक छोटी शीशी लेके वापस बिस्तर पर मेरे पैरों के पास आकर बैठ गया । मेरे पैरों मे अभी-भी सैंडल थी वरुण ने धीरे मेरे पैर को पकड़कर उसकी सैंडल को निकालने लगा । सैंडल उसने वही नीचे फर्श पर फेंक दी और अपने हाथ की दो उँगलियों पर बाम लेकर उसे मेरे पैर पर धीरे-2 लगाने लगा । वरुण के हाथों का स्पर्श जैसे -2 मेरे पैरों पर हो रहा था आनंद और सुकून मे मेरी आँखे बंद होने लगी ।
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 वरुण के हाथ मेरे पैरों की मसाज कर रहे थे पर उसकी नजरे मेरे बदन पर ऊपर से नीचे तक घूम रही थी ,बीच-2 मे वरुण मेरे पैर को थोड़ा सा दबा देता जिससे मेरे जिस्म मे एक हल्की दर्द की लहर मचल जाती और मैं आँखे बंद कीये हुए एक हल्की सी आह .. भर देती , मेरे बदन मे अंदर-ही-अंदर एक मस्ती की तरंग दौड़ने लगी , 
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मेरा बदन पूरा भीगा हुआ था पर फिर भी मुझे ठंड नहीं लग रही थी इसकी वजह ये थी के वरुण के हाथ और वो कामोत्तेजक माहौल मेरे जिस्म मे भरपूर गर्मी पैदा कर रहे थे   वरुण मेरी हालत को अच्छे से समझ रहा था और वो इसका भरपूर मज़ा भी उठा रहा था , मेरी साड़ी गीली होकर मेरे जिस्म से चिपकी हुई थी जिसकी वजह से मेरे बूब्स पूरे आकार मे वरुण की आँखों के सामने थे जिन्हे वो बड़ी ही बेशर्मी के साथ लगातार घूर रहा था । थोड़ी देर पैर की मालिश करने ने बाद वरुण ने कहा - " अब दर्द कुछ कम हुआ क्या भाभी ? " मैं तो लगभग नशे मे मदहोश ही थी और ऐसे ही आँखे बंद कीये हुए मैंने कहा - " हम्म । "
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#79
वरुण - तब तो अच्छा है अब और भी आराम मिलेगा । 

इतना कहकर वरुण पूरा मेरे बेड पर चढ़ गया अब तक वो नीचे पैर कीये हुए था । बेड पर बैठकर वरुण ने मेरे पैर को अपनी गोद मे रखा और बड़े ही प्यार से सहलाने लगा ,ना जाने क्यूँ मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे पैर पर कुछ चुभ रहा है वरुण के दोनों हाथ तो मेरे पैर पर थे फिर ये नीचे क्या है ? ये जानने के लिए मैंने जिज्ञासा-वश अपनी आँखे धीरे से खोली और फिर जो देखा उसे देखकर साँसो की रफ्तार ने तूल पकड़ ली
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 ' वरुण ने मेरे पैर को अपने लिंग के ऊपर रखा हुआ था उसकी पेंट मे कैद उसका लिंग पूरे उफान पर लग रहा था , वरुण का लिंग इतना कठोर था कि पेंट के अंदर से भी वो मेरे कोमल पैरों पर चुभ रहा था , मेरे दिल की धड़कने तेज हो गई, घबराकर मैंने अपनी आँखे बंद कर ली और अपने होंठों को दाँतों मे दबा लिया 
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अब मेरी साँसों के साथ-2 मेरी तनाव मे आई हुई चूचियाँ भी मेरे निप्पलस को तना रही थी । अब धीरे -2 वरुण ने मेरी साड़ी को मेरी टाँग के ऊपर से हटाना शुरू किया और उसे मेरे घुटनों तक करके वहाँ भी सहलाने लगा , अब तो ये उसका क्रम बन गया वो अपने हाथों को मेरे पैरों की उंगलियों से लेकर मेरे घुटनों तक ले जाता और वहाँ पर सहलाता हुआ नीचे आता । इस समय मेरी हालत कुछ भी कहने की नहीं थी मैं बस बिस्तर पर बेसुध पड़ी रही और वरुण के गरम हाथों के स्पर्श का मज़ा उठाती रही और कही ना कही वरूण भी ये बात जान गया था कि मैं भी उसकी हरकतों का मज़ा उठा रही हूँ । अब इस खेल को चलते हुए काफी वक्त बीत गया था और मुझे अब इसे रोकना था इससे पहले कि मेरे अरमान मुझ पर पूरी तरह से हावी हो जाएं । वैसे भी अब मेरे पैर मे बिल्कुल दर्द नहीं था मैंने अपनी आँखे खोली जो सुर्ख लाल हो गई थी[Image: 235606837-ei21vktumaaezb9.jpg]
  और वरुण से कहा -
मैं - वरुण .. अब मेरा पैर बिल्कुल ठीक है । 
वरुण मेरी बात सुनकर थोड़ा सा सकपका गया , उससे उसका हवस भरा रोमांच जो छीनने जा रहा था । वरुण ने मेरी ओर देखा और मेरी बात को अनसुना सा करके कहा - " भाभी आपके पैर बोहोत नाजुक है , इनका ध्यान रखिए , 1 मिनट जरा देखूँ  । "
इतना कहकर वरुण मेरे पैर के तलवे पर कुछ बोहोत ही गौर से देखने लगा । 
मैं - क्या हुआ वरुण ? 
वरुण - आपके पैर के नीचे कुछ लगा है । 
ये बोलते हुए वरुण मेरे पैर के तलवे पर अपनी उंगलियों से कुछ ढूंढने लगा । वरुण की उंगलियों के अपने पैर के तलवे पर फिरने से मुझे एक मीठी से गुदगुदी होने लगी । वरुण ने मेरे पैर को अपने दोनों हाथों मे उठा लिया और अपने चेहरे बिल्कुल पास ले आया । वरुण की साँसों की गरमाई मेरे पैरों से होकर मेरे पूरे शरीर मे फैलने लगी और मेरी आँखों मे वासना की लकीरे उतर आई । मैंने वरुण से एक बार फिर पुछा- "क्या लगा है वरुण पैर मे ?" वरुण मेरे पैर अपने होंठों के एक दम करीब लाया और बोला - " कुछ चिकना सा है । " और इतना कहकर वरुण ने बिना मुझसे कुछ पूछे अपनी जीभ बाहर निकाली और मेरे पैर के तलवे उससे चाट लिया ।
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 मुझे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी वरुण ऐसा कर देगा , मेरी एकदम से आह फूट पड़ी । 
मैं - आह .... वरुण .... ये ... क्या .... ....नहीं ....  ?
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पर वरुण ने उल्टा मेरे पैर को अपने हाथों मे मजबूती से पकड़ा और अपने होंठ मेरे पैरों से घुमाते हुए मेरी जांघों तक आया और वहाँ पर जम कर चूमा । 
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"ओह .... वरुण .... छोड़ो ना ....... । "- कहते हुए मैं बिस्तर पर तड़पने लगी हवस का शैतान मुझे अपने काबू मे कीये जा रहा था, तभी लाइट आ गई और हर तरफ रोशनी हो गई ,  अचानक से रोशनी फैल जाने से वरुण की पकड़ मेरे पैर पर थोड़ी ढीली हो गई और मैंने तेजी के साथ अपना पैर वरुण के हाथों से खिंच लिया और बिस्तर पर उठकर बैठ गई ।  मैंने थोड़े गुस्से के भाव से वरुण की ओर देखा
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 वो मुझसे नजरे चुराता हुआ बेड से उतरा और बाम की शीशी रखने जाने लगा , मैं उसे कुछ बोलती इससे पहले ही ठीक उसी समय दरवाजे की बेल बजी । मैंने थोड़ा हड़बड़ाते हुए वरूण की ओर देखा वो पहले से ही मुझे देख रहा था । एक बार के लिए तो मुझे लगा कि अशोक ही आ गए है पर फिर घड़ी मे देखा तो अभी तो सिर्फ 6 ही बजे थे अशोक तो 7 बजे ऑफिस से आते है । मुझे थोड़ी राहत मिली के ये अशोक तो नहीं होंगे मैं जल्दी से बिस्तर से उतरकर दरवाजा खोलने के लिए गई , वरूण मेरे पीछे ही था । जैसे ही मैंने दरवाजा खोला
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 तो देखा सामने सीमा जी ( वरुण की माँ ) खड़ी थी ।
मुझे देखते ही वो तुरंत बोल पड़ी - " पदमा वो वरुण नहीं आया अब तक ? "
मेरे कुछ कहने से पहले ही पीछे से उन्होंने वरुण को देख लिया और देखते ही बोली - " अरे वरुण ! तुम अभी तक यहाँ क्या कर रहे हो ? " वरुण उनकी बात का कुछ जवाब देता इतने मे ही उन्होंने एक और सवाल दाग दिया । 
सीमा जी - और ये तुम दोनों के कपड़े कैसे भीग गए ?
मैंने सीमा जी को देखकर उन्हे आदर के साथ अंदर आने को कहा और वो अंदर आ भी गई ,पर मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उनकी बात क्या जवाब दूँ , मुझसे तो कोई जवाब देते ना बना । मेरे मन मे चिंता की लकिरे खिंच आई पर तभी वरुण ने बात संभालते हुए कहा - " अरे मम्मी , वो मैं आ ही रहा था कि बीच मे ही बारिश शुरू हो गई और मुझे वापस यहीं रुकना पड़ गया पर मैं उस टाइम रास्ते मे था तो थोड़ा भीग गया । " 
सीमा जी वरुण के इस जवाब से संतुष्ट हुई और मुझे भी राहत मिली 'आज तो वरुण ने बचा लिया , नहीं तो सीमा जी क्या सोचती के मैं उनके बेटे को टयूशन पढ़ाने के बजाय उसके साथ बारिश के मजे ले रही हूँ । ' 
सीमा जी - अच्छा ठीक है चल अब तू घर जाके कपड़े बदल ले, नहीं तो तुझे सर्दी हो जाएगी ।  बारिश अब रुक गई है , जल्दी जा । 
मैंने मन मे सोचा "  बाहर की बारिश अब बंद हो गई वो तो शायद बस मुझे वरुण के करीब लाने के लिए आई थी ।"
वरुण ने अपनी मम्मी की बात सुनी और खूंटी से अपना बेग उतारकर जाने लगा । 
फिर सीमा जी ने मेरी ओर देखा और कहा - " पदमा तुम भी भीगी हुई लग रही हो ?" 
मैं ( थोड़ी झिझक के साथ ) - हाँ सीमा जी वो ..... मैं छत पर कपड़े लेने गई थी और तभी बारिश के आने से मैं भीग गई । 
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सीमा जी - तो तुम्हें तभी चेंज कर लेना चाहिए था । 
सीमा जी की इस बात मैं एक सवाल भी था कि मैंने अभी तक अपने भीगे हुए कपड़े बदले क्यों नहीं और मेरे पास इसका कोई उचित जवाब भी नहीं था , मैं सोच ही रही थी कि सीमा जी से क्या कहूँ के तभी दरवाजे पर खड़ा वरुण बोला - " वो बिजली चली गई थी ना मम्मी ,तो बोहोत अँधेरा था इसलिए ......... । " 
वरुण इतना कहकर चुप हो गया सीमा जी ने इसपर हामी मे सर हिलाया और मुझे चेंज करने को बोलकर , वरुण के साथ चली गई । 

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#80
उनके जाने के बाद , मैंने चैन की साँस ली । अब मेरे शरीर को ठंड लगने लगी थी वरुण ने मेरे जिस्म मे जो गरमाई पैदा की थी वो भी अब खत्म हो चुकी थी ,मैं  सीधे बेडरूम मे गई और वहाँ से दूसरे कपड़े लेकर बाथरूम मे गई और अपनी गीली साड़ी निकाल दी और दूसरी साफ साड़ी पहन ली,
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 चेंज करके मैं बाहर आई । बेडरूम मे वापस आकर मेरी नजर बेड-शीट पर गई जो पूरी तरह से गीली हो चुकी थी , मैंने उस बेडशीट को बेड से हटा दिया और उसकी जगह एक दूसरी नई बेड-शीट बिछा दी , सोचा अशोक पूछेंगे तो कह दूँगी ' वो पुरानी वाली गंदी हो गई थी । ' बेड-शीट बिछा कर मैंने एक बार घड़ी मे देखा 6:30 बज रहे थे , इसका मतलब था की अशोक के आने मे बस आधा घंटा बचा था । मैं जल्दी-2 रात के खाने के इंतेज़ाम मे लग गई वैसे भी आज अशोक अकेले तो थे नहीं उनके साथ डॉक्टर रफीक भी तो आने वाले थे ।    

7:15 पर घर की डॉर बेल बजी , मैं अपने काम मे व्यस्त थी । मैंने जाकर दरवाजा खोला तो सामने अशोक और रफीक दोनों खड़े थे,
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 रफीक के हाथ मे एक बेग था । मैंने मुस्कुराते हुए उनका स्वागत किया और उन दोनों को अंदर लेके आई । रफीक ने भी मुस्कुराते हुए मुझे ' हाई' बोला और अंदर आ गया । अंदर आकर हम सभी हॉल मे बैठ गए मैं सबके लिए चाय लेने कीचेन मे चली गई जब मैं चाय लेकर वापस आई तो रफीक और अशोक आपस मे कुछ बात कर रहे थे ।
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 मैंने उनके सामने चाय रखी और वही पास वाले सोफ़े पर अशोक के बगल मे बैठ कर चाय पीने लगी । मैं और अशोक एक सोफ़े पर थे और रफीक दूसरे सोफ़े पर । अशोक ने बात करते हुए रफीक से कहा - 
" रफीक अब तुम ही मेरी बीवी जान का शक दूर करो । "
रफीक ने हँसते हुए थोड़ी हैरानी से मेरी ओर देखा और कहा - " शक ..... कैसा शक ? "
अशोक - अरे इसको लगता है कि मैं इसकी झूठी तारीफ करता हूँ , अब तुम ही इसे बताओ क्या ऐसा ही है ?
रफीक ( हँसते हुए ) - नहीं ... नहीं ... ऐसा नहीं है पदमा । तुम्हारी तारीफ सिर्फ अशोक ही नहीं हम सब दोस्त भी करते है । 
अशोक - देखा मैंने कहा था ना । 
मैं ( अपनी प्रशंसा से थोड़ी शरमाती हुई ) - अरे छोड़ो भी रफीक ... इनकी तो आदत है मुझे ऐसे ही सताने की ।
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रफीक - नहीं पदमा .. अशोक बिल्कुल सही तुम्हारी तारीफ करता है अगर तुम्हारे जैसी पत्नी मुझे मिल जाए तो मेरे भी दिन सुधर जाए । ( इतना कहकर वो हँसने लगा और मैं भी अपनी मुस्कुराहट छिपा नहीं पाई )
मैं - मिल जाएगी एक दिन फिक्र मत करों । 
रफीक - नहीं कोई फिक्र नहीं है , बस तुम ही ढूंढ देना । 
मैं -  हाँ बिल्कुल । 
अशोक - अरे भई ऐसी बीवी के लिए तो बड़े अच्छे कर्म करने पड़ते है तब जाके मिलती है । 
रफीक - बस भई फिर तो अपने को नहीं मिलने वाली क्योंकि अपने तो कर्म ही पूरे पापियों वाले है । 
( हम सब हँस पड़े )
मैं - और बताओ रफीक आज बड़े दिनों बाद आना हुआ , कुछ ज्यादा ही बीजी लगते तो अपने क्लिनिक मे ?
रफीक - अरे बस कुछ नहीं ऐसे ही टाइम ही नहीं लगा । 
मैं - अच्छा तुम लोग बैठो मैं खाना लगाती हूँ । 
मैं उठकर कीचेन मे जाने लगी तभी अशोक ने मुझे पीछे से रोक दिया । 
अशोक - अरे सुनो पदमा । 
मैं पीछे मुड़ी और पुछा - हाँ । 
अशोक - तुम खाना मत लगाओ अभी हम अभी आते है जरा छत से घूम कर । 
मैं समझ गई के ये लोग आज फिर से शराब पीने जाने वाले है , मैंने हैरानी से रफीक की ओर देखा
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 और उससे कहा - " रफीक तुम इन्हे रोकते क्यों नहीं ? ये कोई अच्छी बात थोड़े ही है , घर मे मेहमान आए और उसे लेकर शराब पीने चल दिए । "
पर रफीक के कुछ कहने से पहले ही अशोक बोल पड़े - " अरे मेरी डार्लिंग बीवी बस 10 मिनट मे नीचे आ जाएंगे । "
मैं जानती थी ये बस कहने को 10 मिनट है , असल मे तो 2 घंटे से पहले ये दोनों नीचे नहीं आने वाले । इतने मे ही  रफीक ने अपने साथ लाया हुआ वो बेग उठाया और अशोक के साथ छत पर चला गया । यहाँ नीचे मैं अकेली रह गई और वहाँ उन दोनों की महफ़िल शुरू हो गई । मुझे अशोक पर काफी गुस्सा भी आया क्योंकि मुझे उससे नितिन के बारे मे कुछ बात भी करनी थी पर वो तो सीधा अपनी मस्ती मे मजे करने चले गए ।  मैं भी समय बिताने के लिए सोफ़े पर बैठकर टीवी देखने लगी , करीब आधा घंटा टीवी देखने के बाद मैं भी अपने बचे हुए काम को निपटाने मे लग गई चाय की ट्रे लेकर मे कीचेन मे गई और वहाँ के अपने काम खत्म कीये । मैं जानती थी की अब अशोक या रफीक दोनों मे से कोई खाना तो खाने वाला है नहीं इसलिए बचे हुए आटे को ऊपर छज्जे पर रखने लगी पर वो थोड़ी ऊँचाई पर था और वहाँ मेरा हाथ भी मुस्किल से पहुँच रहा था अचानक आटे को ऊपर रखने के चक्कर कैसे उसका डब्बे से कुछ आटा उड़कर मेरे ऊपर आ गिरा । मेरी साड़ी थोड़ी खराब सी गंदी हो गई और आटे के कुछ कण मेरे ब्लाउज पर भी गिर गए । मैं उन्हे साफ करने के लिए वहीं कीचेन मे खड़ी होकर अपनी साड़ी अपने ब्लाउज से हटाकर उसे साफ करने लगी ,
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 मैं अपने आप को साफ करने मे व्यस्त थी मुझे पता भी नहीं चला कब रफीक नीचे आ गये और वहीं कीचेन के पास गेट पर खड़े होकर मुझे चुपके से देखने लगे । साड़ी के सामने से हटने की वजह से रफीक के सामने मेरे ब्लाउज मे कसे हुए बूब्स और मेरा सपाट चिकना पेट साफ दिख रहा था और वो मजे से इस नज़ारे का लुत्फ उठा रहा था । मेरा ध्यान रफीक पर तब गया जब मैंने अपने को बिल्कुल साफ करके अपनी साड़ी ठीक की और सामने देखा , सामने रफीक को देखकर मैं एक दम से सकपका गई ये पहली बार था जब रफीक ने मुझे ऐसे देख लय था , वहीं खड़े-2 उसकी ओर देखकर बोली - रफीक .... तुम .. ? क्या कुछ चाहिए था ? 
रफीक अभी भी मुझे ही देख रहा था और मेरे सवाल पूछने पर वो अपनी सोच से बाहर निकलता हुआ बोला - " हाँ ... वो मुझे थोड़ा पानी चाहिए था । "
इतना बोलकर रफीक कीचन के अंदर आ गया और पानी लेने के लिए सीधे फ्रिज की ओर बढ़ा फ्रिज मेरे पीछे था और वहाँ से पानी लेने के लिए रफीक को मुझे पार करना था । चाहता तो रफीक मुझे भी पानी लाने के लिए कह सकता था पर उसने ऐसा नहीं किया वो बिल्कुल मेरे करीब आया और अपने मर्दाना सीने को मेरी नाजुक चूचियों से रगड़ता हुआ आगे बढ़ गया 'आह........ ' मेरी आह मेरे होंठों तक आई पर मैंने उसे अपने गले मे ही दफ्न कर लिया । रफीक को अपने इतने पास से गुजरता महसूस करके मेरी धड़कने तेज हो गई । रफीक ने फ्रिज से पानी की बोतल निकाली और वापस जाने लगा पर इस बार मैं रास्ते से थोड़ा पीछे हट गई  रफीक थोड़ा सा लड़खड़ाते हुए मेरी ओर आया मे एक तरफ खड़ी थी । मेरे करीब आते ही रफीक एक-दम से मुझ से टकरा गया पर इस बार ना सिर्फ मेरी चूचियाँ उसके सीने के नीचे दब गई बल्कि यूँ अचानक से गिरने की वजह से मेरे होंठ भी उसके होंठों से टकरा गए ।
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" आह .... रफीक .... ओह ...... "- मैं संभलते हुए बोली । 
रफीक काफी नशे मे लग रहा था उसके मुहँ से शराब की बदबू आ रही थी । उसने मुझे अपनी बाहों के घेरे मे ले लिया और धीरे से अपने होंठ मेरे होंठों पर रगड़ दिए ।
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 वरुण की आज शाम की, की हुई हरकतों से मैं पहले ही उत्तेजित थी और अब रफीक के होंठ आग मे घी का काम कर रहे थे । मैंने संभलते हुए रफीक को खुद से अलग किया और उसकी ओर देखते हुए कहा - 
मैं - ये सब क्या है रफीक ?
रफीक भी अब होश मे आया और अपनी गलती मानते हुए बोला - " ओह .. मुझे माफ करदों पदमा .. दरसल मैं नशे मे बहक गया था । "  
  फिर रफीक बोतल लेकर बिना कुछ बोले वहाँ से चला गया , उसके मुहँ से शराब की बदबू आ रही थी । रफीक का ये रूप मैंने पहली बार देखा था ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ था मैंने सोचा , शायद शराब के नशे मे रफीक से गलती हो गई खैर मैंने अपना ध्यान इन सब बातों से हटाया और अपने काम को खत्म करके वापस हॉल मे आकर बैठ गई । अशोक और रफीक को गए 1 घंटा हो गया मैंने सोचा अब बस बोहोत पीली इन दोनों ने अब इन्हे वापस नीचे आ जाना चाहिए । ये सोचकर मैं ऊपर की ओर छत पर जाने लगी , जैसे ही मैं छत पर गई मुझे छत वाले कमरे से अशोक की नशे मे धुत धीमी-2 कुछ आवाज़े सुनाई देने लगी , ना जाने मुझे क्या सूझी मैं धीरे-2 उनकी बातों को सुनने का प्रयास करने लगी
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 और वही छिपकर कमरे के पास खड़ी हो गई अशोक कह रहा था -
अशोक - यार .. रफीक मुझे तो लगता है उस नितिन के बच्चे को मुझ पर शक हो गया है । 
रफीक - तू उसकी चिंता मत कर बस एक बार वो फाइल और वो ड्राइव मिल जाए फिर देखते है साले को क्या कर पाता है हमारा ?
अशोक - फाइल तो मेरे पास है यार बस वो ड्राइव मिल जाए एक बार । 
रफीक - ड्राइव की बाद मे देख लेंगे तू ये बता क्या किसी और को भी तेरे काम पे शक है ?
अशोक - नहीं , और किसी को तो भनक भी नहीं कि कंपनी मे क्या हो है । 
रफीक - गुड़ । बस ये राज राज ही रहे जबतक काम पूरा ना हो जाए । 
अशोक - ऐसा ही होगा । चीयर्स ।
रफीक - चीयर्स । वैसे वो नितिन अभी कहाँ है ? शहर से बाहर ही क्या ?
अशोक - हाँ ,वही है ।
रफीक - बस ठीक है वो हमारे रास्ते मे नहीं आएगा । 
फिर वो दोनों शराब पीने मे मग्न हो गए और इधर उधर की बाते करने लगे । मैं थोड़ी देर उनकी बाते सुनती रही पर फिर मुझे कमरे मे कुछ हलचल महसूस हुई । कहीं ये दोनों बाहर तो नहीं आ रहे ये सोचकर मैं वहाँ से धीरे से पीछे हटी और नीचे आकर सोफ़े पर बैठ गई । मेरे दिमाग मे उन दोनों के कहे हुए शब्द बिजली की रफ्तार से घूमने लगे " आखिर ये सब हो क्या रहा है ? क्या चल रहा है यहाँ ? कहीं अशोक कुछ गलत तो नहीं कर रहे ? पर क्या है वो ? और क्या रफीक भी इसमे शामिल है ? कहीं जो कुछ नितिन कह रहा था वो सच तो नहीं ? " ये सब बातें मेरे दिमाग मे घूमने लगी ।   
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