17-08-2022, 12:41 AM
पदमा ( part-1)
(इस कहानी के सभी पात्र और घटनाए काल्पनिक है जिसका किसी भी जीवित अथवा म्रत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है यदि किसी व्यक्ति ,वस्तु या स्थान के साथ इसका कोई संबंध मिलता है तो यह एक संयोग मात्र होगा )
जनवरी के महीने का अंत चल रहा था । पर ठंड अब भी जिस्म को कपड़ों से आजाद कराने के लिए तैयार नहीं थी । इसी ठंड को काम करने के लिए मे रोज की तरह अपनी छत पर धूप सेकने बेठी थी । ये मेरा रोज का routine बन गया था । अशोक के घर से ऑफिस जाने के बाद मे घर के सभी काम निपटा कर दोपहर मे छत पर जाकर धूप मे सर्दी को कम करने की कोशिश करती थी । उस दिन भी मे दोपहर मे छत पर घूम रही थी । मेरे घर के सामने एक प्लेग्राउन्ड है जहाँ कुछ लड़के क्रिकेट खेल रहे थे । उनमे से मे केवल एक को मैं पर्सनली जानती थी वो था ' वरुण ' वो भी इसलिए क्योंकि उसकी मम्मी के साथ मेरे अच्छे संबंध थे । वो हमारे ही मोहल्ले मे , मेरे घर से 3 घर छोड़कर रहती थी ।
हैलो , मेरा नाम है " पदमा " और ये मेरी कहानी है ।
यूं तो मे रोज ही दोपहर को अपनी छत पर धूप लेने के लिए जाती थी पर उस दिन मन कुछ अजीब सा महसूस कर रहा था कुछ घबराहट । जेसे तूफान के आने से पहले एक शान्ति सी छा जाती है बिल्कुल एसा ही लग रहा था । मैं अपनी छत की रैलिंग पकड़कर गली मे देख रही थी के तभी गली मे एक बाइक पर एक आदमी आता हुआ दिखाई दिया मेने उसे ज्यादा गोर से तो नहीं देखा पर वो एक ब्लैक शर्ट उसके ऊपर एक जैकिट और ब्लू पेंट पहने हुआ था आँखों पर ब्लैक चश्मा था । उत्सुकता मुझे तब हुई जब गली के सभी घरों को पार कर वो अंत मे मेरे घर की तरफ मुड़ा और मेरे घर के सामने अपनी बाइक रोक दी । मैं उस वक्त भी छत पर ही थी और उसे ध्यान से देखने की कोशिश कर रही थी पर उसे पहचानने मे नाकामयाब रही । वह अपनी बाइक से नीचे उतरा और डोर बेल बजाई । चाहती तो मे छत से ही पूछ सकती थी की वह कोन है और क्या काम है ? पर ना जाने क्यूं मैं उसके लिए दरवाजा खोलने नीचे चली गई । ये शायद मेरा उसके लिए पहला आकर्षण था । मैं जल्दी जल्दी सीढ़ियों से नीचे उतरी और दरवाजा खोला । दरवाजा खोलने के बाद मेने पहली बार सपष्ट रूप से देखा वह एक हैन्ड़सम लगभग 5.8 का आदमी था जिसकी उम्र शायद 29 वर्ष होगी । वह मुझे देख कर मुस्कुरा रहा था मेने उसके चेहरे से अपना ध्यान हटाया और उससे पुछा
मैं - जी , आप कोन ?
वह - पदमा , मेरा नाम नितिन है मैं अशोक का दोस्त हूँ उसी के ऑफिस मे काम करता हूँ । उसकी एक फाइल घर पर रह गई है और वो मीटिंग मे बिजी है इसलिए उसने मुझे भेजा है , फ़ाइल लाने के लिए ।
ये मेरे लिए काफी शॉकइंग था एक तो मैंने कभी इस आदमी को अशोक के साथ नहीं देखा था । ऊपर से ये मेरा नाम भी जानता था । मैंने फिर उससे पूछा -
मैं - पर अशोक ने तो मुझे किसी फ़ाइल के बारे मे कुछ नहीं बताया ।
नितिन - बताता केसे तुम्हारा मोबाईल भी तो स्विच ऑफ है ।
उसकी बात सुन मेने अंदर आकर अपना मोबाईल चेक किया वो सच मे स्विच ऑफ था । मैं अपने मोबाईल मे ही उलझी थी के नितिन बाहर से ही बोल पड़ा -
नितिन - अरे , अब अगर इजाजत हो तो क्या मैं अंदर आजाऊ ?
मैं ( पलटकर )- ओह , प्लीज आइ यम सॉरी । प्लीज कम इन ।
वह अंदर आया मैंने उसे बेठने को कहा ," प्लीज सीट " और उसके लिए पानी लेने कीचेन मे चली गई । पानी का ग्लास लेकर जैसे ही मैं नितिन को देने के लिए झुकी मेरी साड़ी का पल्लू जरा सा नीचे ढलक गया और नितिन के सामने मेने उन्नत उरोज आ गए । जैसे ही नितिन की नजर मेरे कसे हुए स्तनों पर पड़ी उसकी निगाहें वही थम गई वह घूर -घूर कर उन्हे देखने लगा जैसे आँखों से ही उनका रसपान कर रहा हो । फिर जल्दी से मैंने ग्लास नीचे टेबल पर रखा और बोली -
मैं - आप जब तक पानी पीजिए मैं फाईल देखती हूँ ।
मैं जल्दी से फाईल लेने अपने बेडरूम की तरफ भागी पर एसा लग रहा था जैसे मुझे पीछे से कोई घूर रहा है बेडरूम के दरवाजे पर जाकर मैंने पलट कर देखा तो मेरा अंदाजा बिल्कुल ठीक था नितिन मुझे पीछे से घूर रहा था । अपने आप को किसी अनजान आदमी से अपने ही घर मे एसे घूरे जाने से मेरी दिल की धड़कन बढ़ गई । मैं जल्दी से अंदर गई और अपनी साँसों को नॉर्मल करने के लिए बेड पर बेठ गई थोड़ी देर बाद साँसे नॉर्मल होने पर मैं उठी और फाइल ढूंढने लगी । मैंने अलमारी खोली पर वहाँ पर कोई एसी फाइल नजर नहीं आई जो इम्पॉर्टन्ट हो मैं फाइल ढूंढने मे लगी थी और मुझे पता भी नहीं चला कब नितिन कमरे मे आ गए और मेरे पीछे खड़े होकर बिल्कुल मेरे करीब जाकर मेरे कान के पास धीरे से बोले" मिली नहीं क्या ?"
नितिन ने मेरे कान के इतने करीब से बोल था की उनकी गरम साँसे मुझे मेरी पीठ और कान पर महसूस हुई मैं घबराकर पीछे मुड़ी तो मेरे स्तन नितिन के सीने से टकरा गए । घबराहट मे फिर मेरी धड़कने और साँसे तेज हो गई , मैंने कहा - न न .. नहीं वो अलमारी मे तो नहीं है ।
नितिन अब भी मुझसे सट कर खड़े थे और हमारे बीच गेप ना के बराबर था । फिर नितिन ने कहा " शायद अलमारी के ऊपर रखी होगी "
मैंने दोबारा पलटकर अलमारी की और देखा तो कुछ फाइले अलमारी के ऊपर राखी थी पर अलमारी काफी ऊँची होने की वजह से वहाँ तक नितिन का ही हाथ नहीं पहुँच सकता था तो मेरा तो क्या ही जाता ?
मैं - पर वह तो बहुत ऊँची है मैं कोई स्टूल लेकर आती हूँ ।
मैं स्टूल लेने जाने लगी पर अचानक नितिन ने मेरी बाँह पकड़ ली और कहा -
नितिन - रहने दो मैं लेट हो रहा हूँ ।
इतना कहकर नितिन ने बिना मुझसे पूछे मेरी कमर के उस भाग को जहां साड़ी नहीं थी को मजबूती से पकडा उसे मुझे ऊपर उठा दिया । ये सब इतनी जल्दी मे हुआ की मैं कुछ कह न सकी बस एक "आह" निकाल गई जिसे नितिन ने भी बखूबी सुना । नितिन ने मेरी कमर के दोनों नंगे भागों को मजबूती दे पकडा हुआ था और एक बार फिर उसकी गरम साँसे मुझे मेरी कमर पर महसूस हो रही थी । मेरी धड़कनों की रफ्तार बढ़ती जा रही थी । मैं ज्यादा देर एसे नहीं रह सकती थी इसलिए मेने जल्दी से फाइल ढूंढना शुरू कर दिया पर इधर नितिन ने मेरी मुशकील ओर बढा दी थी उसने अपनी नाक पूरी मेरी नंगी कमर पर लगा दी ओर अब उसके होंठों का स्पर्श मेरी कमर पर होने लगा पर इससे पहले की स्थिति मेरे काबू से बाहर हो मुझे वो फाइल मिल गई । मैंने कहा - मिल गई फाइल
पर नितिन ने तो जैसे सुना ही ना हो वो तो मेरे जिस्म से आने वाली मादक खुशबू मे व्यस्त था । मैंने एक बार फिर थोड़ा तेज आवाज मे कहा - नितिन फाइल मिल गई ।
इतना सुन नितिन जैसे नींद से बाहर आया और कहा - ओह अच्छा ।
इतना कह उसने मुझे नीचे उतारा और नीचे उतरते हुए एक बार फिर मेरी पीछे से नंगी पीठ उसके कठोर सीने से रगड़ कहा गई पर इस बार मुझे अपने नितम्बों (गांड) पर एक चीज और चुभती महसूस हुई मुझे समझते देर ना लगी की ये क्या है वो नितिन का लिंग था पर मेरे लिए चोकाने वाली बात ये थी की उसके लिंग की लंबाई मुझे कुछ ज्यादा ही महसूस हुई मेने उत्सुकतावश नीचे उतारकर उसे फाइल दी और अपनी आँखों से उसकी पेंट पर बने ऊभार की लंबाई को मापने की कोशिश करने लगी ये सिर्फ मेरा भ्रम नहीं था वाकई मे उसका लिंग पेंट मे भी बोहोत लंबा और मोटा महसूस हो रहा था मैं तो जैसे अपने होश ही खोने लगी थी कुछ तो नितिन की वो कामुक हरकते और कुछ उसके उस लिंग का आकार मुझे और उत्तेजित कीये जा रहा था
नितिन फाइल चेक कर रहा था उनसे फाइल चेक की , कि सही है या नहीं फिर कुछ देखकर मेरी ओर देखकर बोला "सब ठीक है यही है वो फाइल " इतना कह वो मुझे थैंक्स कह कर जाने लगा मैं उसे छोड़ने गेट तक गई । गेट पर जाकर अचानक नितिन पीछे मुड़ा और बोला - सॉरी पदमा ।
मैं - वो किस लिए ?
नितिन - वो .. मेने तुमसे बिना पूछे तुम्हें पीछे से उठा लिया था ना । वो मैं लेट हो रहा था इसलिए जल्दी मे कुछ सुझा ही नहीं।
मैं - कोई बात नहीं नितिन , इट्स ओके । पर मैं तुमसे एक बात पूछना चाहती हूँ ?
नितिन - हाँ बोलो . ..
मैं - अशोक के सभी दोस्तों को तो मैं जानती हूँ , पर तुम्हें कभी नहीं देखा । ना ही काभी आज से पहले तुम्हारा नाम ही सुना था । एसा क्यूं ?
नितिन - इसका जवाब तो तुम्हें अशोक ही देगा पर मैं इतना तो समझ गया हूँ की अशोक ने मुझे तुमसे क्यूं नहीं मिलवाया ?
मैं - अच्छा , तो बताओ क्यूं नहीं मिलवाया ?
नितिन- जिसकी इतनी सुंदर पत्नी होगी उसे डर तो रहेगा ही कही मैं ना चुरा लूँ उसकी बीवी ।
इतना कहकर वो जोर से हंसने लगा । मैं उसके इस जवाब पर बस शर्माकर रह गई और कुछ ना बोल सकी । फिर वो बोला - अच्छा , चलो बाय मैं चलता हूँ फिर मिलेंगे । अब तो मेने अशोक के चाँद को देख लिया है अब इसे देखने तो मैं आता रहूँगा ।
उसकी ये बाते फिर से मेरे दिल की धड़कनों को बढ़ा रही थी । मैंने उसके कमेन्ट का जवाब दिए बिना उसे बाय बोला और दरवाजा बंद करके अंदर आ गई ।
अंदर आकर सबसे पहले मैं कीचेन मे गई ओर 2 ग्लास पानी पिया फिर सोफ़े पर बेठकर थोड़ी नॉर्मल होने की कोशिश करने लगी । बाहर काफी सर्दी थी पर मेरे माथे पर पसीना आया हुआ था वजह आप सब जानते है। मैं सोचने लगी की ये अशोक का एसा कोन सा दोस्त है जिसका अशोक ने कभी नाम भी नहीं लिया । मेरी और अशोक की शादी को 4 साल हो चुके थे पर कभी उसके एसे किसी दोस्त से नहीं मिली जो मुझे भाभी ना कहकर नाम से बुलाता हो । इन सब सवालों के जवाब तो अशोक के ऑफिस से आने के बाद ही मिलेंगे
(इस कहानी के सभी पात्र और घटनाए काल्पनिक है जिसका किसी भी जीवित अथवा म्रत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है यदि किसी व्यक्ति ,वस्तु या स्थान के साथ इसका कोई संबंध मिलता है तो यह एक संयोग मात्र होगा )
जनवरी के महीने का अंत चल रहा था । पर ठंड अब भी जिस्म को कपड़ों से आजाद कराने के लिए तैयार नहीं थी । इसी ठंड को काम करने के लिए मे रोज की तरह अपनी छत पर धूप सेकने बेठी थी । ये मेरा रोज का routine बन गया था । अशोक के घर से ऑफिस जाने के बाद मे घर के सभी काम निपटा कर दोपहर मे छत पर जाकर धूप मे सर्दी को कम करने की कोशिश करती थी । उस दिन भी मे दोपहर मे छत पर घूम रही थी । मेरे घर के सामने एक प्लेग्राउन्ड है जहाँ कुछ लड़के क्रिकेट खेल रहे थे । उनमे से मे केवल एक को मैं पर्सनली जानती थी वो था ' वरुण ' वो भी इसलिए क्योंकि उसकी मम्मी के साथ मेरे अच्छे संबंध थे । वो हमारे ही मोहल्ले मे , मेरे घर से 3 घर छोड़कर रहती थी ।
हैलो , मेरा नाम है " पदमा " और ये मेरी कहानी है ।
यूं तो मे रोज ही दोपहर को अपनी छत पर धूप लेने के लिए जाती थी पर उस दिन मन कुछ अजीब सा महसूस कर रहा था कुछ घबराहट । जेसे तूफान के आने से पहले एक शान्ति सी छा जाती है बिल्कुल एसा ही लग रहा था । मैं अपनी छत की रैलिंग पकड़कर गली मे देख रही थी के तभी गली मे एक बाइक पर एक आदमी आता हुआ दिखाई दिया मेने उसे ज्यादा गोर से तो नहीं देखा पर वो एक ब्लैक शर्ट उसके ऊपर एक जैकिट और ब्लू पेंट पहने हुआ था आँखों पर ब्लैक चश्मा था । उत्सुकता मुझे तब हुई जब गली के सभी घरों को पार कर वो अंत मे मेरे घर की तरफ मुड़ा और मेरे घर के सामने अपनी बाइक रोक दी । मैं उस वक्त भी छत पर ही थी और उसे ध्यान से देखने की कोशिश कर रही थी पर उसे पहचानने मे नाकामयाब रही । वह अपनी बाइक से नीचे उतरा और डोर बेल बजाई । चाहती तो मे छत से ही पूछ सकती थी की वह कोन है और क्या काम है ? पर ना जाने क्यूं मैं उसके लिए दरवाजा खोलने नीचे चली गई । ये शायद मेरा उसके लिए पहला आकर्षण था । मैं जल्दी जल्दी सीढ़ियों से नीचे उतरी और दरवाजा खोला । दरवाजा खोलने के बाद मेने पहली बार सपष्ट रूप से देखा वह एक हैन्ड़सम लगभग 5.8 का आदमी था जिसकी उम्र शायद 29 वर्ष होगी । वह मुझे देख कर मुस्कुरा रहा था मेने उसके चेहरे से अपना ध्यान हटाया और उससे पुछा
मैं - जी , आप कोन ?
वह - पदमा , मेरा नाम नितिन है मैं अशोक का दोस्त हूँ उसी के ऑफिस मे काम करता हूँ । उसकी एक फाइल घर पर रह गई है और वो मीटिंग मे बिजी है इसलिए उसने मुझे भेजा है , फ़ाइल लाने के लिए ।
ये मेरे लिए काफी शॉकइंग था एक तो मैंने कभी इस आदमी को अशोक के साथ नहीं देखा था । ऊपर से ये मेरा नाम भी जानता था । मैंने फिर उससे पूछा -
मैं - पर अशोक ने तो मुझे किसी फ़ाइल के बारे मे कुछ नहीं बताया ।
नितिन - बताता केसे तुम्हारा मोबाईल भी तो स्विच ऑफ है ।
उसकी बात सुन मेने अंदर आकर अपना मोबाईल चेक किया वो सच मे स्विच ऑफ था । मैं अपने मोबाईल मे ही उलझी थी के नितिन बाहर से ही बोल पड़ा -
नितिन - अरे , अब अगर इजाजत हो तो क्या मैं अंदर आजाऊ ?
मैं ( पलटकर )- ओह , प्लीज आइ यम सॉरी । प्लीज कम इन ।
वह अंदर आया मैंने उसे बेठने को कहा ," प्लीज सीट " और उसके लिए पानी लेने कीचेन मे चली गई । पानी का ग्लास लेकर जैसे ही मैं नितिन को देने के लिए झुकी मेरी साड़ी का पल्लू जरा सा नीचे ढलक गया और नितिन के सामने मेने उन्नत उरोज आ गए । जैसे ही नितिन की नजर मेरे कसे हुए स्तनों पर पड़ी उसकी निगाहें वही थम गई वह घूर -घूर कर उन्हे देखने लगा जैसे आँखों से ही उनका रसपान कर रहा हो । फिर जल्दी से मैंने ग्लास नीचे टेबल पर रखा और बोली -
मैं - आप जब तक पानी पीजिए मैं फाईल देखती हूँ ।
मैं जल्दी से फाईल लेने अपने बेडरूम की तरफ भागी पर एसा लग रहा था जैसे मुझे पीछे से कोई घूर रहा है बेडरूम के दरवाजे पर जाकर मैंने पलट कर देखा तो मेरा अंदाजा बिल्कुल ठीक था नितिन मुझे पीछे से घूर रहा था । अपने आप को किसी अनजान आदमी से अपने ही घर मे एसे घूरे जाने से मेरी दिल की धड़कन बढ़ गई । मैं जल्दी से अंदर गई और अपनी साँसों को नॉर्मल करने के लिए बेड पर बेठ गई थोड़ी देर बाद साँसे नॉर्मल होने पर मैं उठी और फाइल ढूंढने लगी । मैंने अलमारी खोली पर वहाँ पर कोई एसी फाइल नजर नहीं आई जो इम्पॉर्टन्ट हो मैं फाइल ढूंढने मे लगी थी और मुझे पता भी नहीं चला कब नितिन कमरे मे आ गए और मेरे पीछे खड़े होकर बिल्कुल मेरे करीब जाकर मेरे कान के पास धीरे से बोले" मिली नहीं क्या ?"
नितिन ने मेरे कान के इतने करीब से बोल था की उनकी गरम साँसे मुझे मेरी पीठ और कान पर महसूस हुई मैं घबराकर पीछे मुड़ी तो मेरे स्तन नितिन के सीने से टकरा गए । घबराहट मे फिर मेरी धड़कने और साँसे तेज हो गई , मैंने कहा - न न .. नहीं वो अलमारी मे तो नहीं है ।
नितिन अब भी मुझसे सट कर खड़े थे और हमारे बीच गेप ना के बराबर था । फिर नितिन ने कहा " शायद अलमारी के ऊपर रखी होगी "
मैंने दोबारा पलटकर अलमारी की और देखा तो कुछ फाइले अलमारी के ऊपर राखी थी पर अलमारी काफी ऊँची होने की वजह से वहाँ तक नितिन का ही हाथ नहीं पहुँच सकता था तो मेरा तो क्या ही जाता ?
मैं - पर वह तो बहुत ऊँची है मैं कोई स्टूल लेकर आती हूँ ।
मैं स्टूल लेने जाने लगी पर अचानक नितिन ने मेरी बाँह पकड़ ली और कहा -
नितिन - रहने दो मैं लेट हो रहा हूँ ।
इतना कहकर नितिन ने बिना मुझसे पूछे मेरी कमर के उस भाग को जहां साड़ी नहीं थी को मजबूती से पकडा उसे मुझे ऊपर उठा दिया । ये सब इतनी जल्दी मे हुआ की मैं कुछ कह न सकी बस एक "आह" निकाल गई जिसे नितिन ने भी बखूबी सुना । नितिन ने मेरी कमर के दोनों नंगे भागों को मजबूती दे पकडा हुआ था और एक बार फिर उसकी गरम साँसे मुझे मेरी कमर पर महसूस हो रही थी । मेरी धड़कनों की रफ्तार बढ़ती जा रही थी । मैं ज्यादा देर एसे नहीं रह सकती थी इसलिए मेने जल्दी से फाइल ढूंढना शुरू कर दिया पर इधर नितिन ने मेरी मुशकील ओर बढा दी थी उसने अपनी नाक पूरी मेरी नंगी कमर पर लगा दी ओर अब उसके होंठों का स्पर्श मेरी कमर पर होने लगा पर इससे पहले की स्थिति मेरे काबू से बाहर हो मुझे वो फाइल मिल गई । मैंने कहा - मिल गई फाइल
पर नितिन ने तो जैसे सुना ही ना हो वो तो मेरे जिस्म से आने वाली मादक खुशबू मे व्यस्त था । मैंने एक बार फिर थोड़ा तेज आवाज मे कहा - नितिन फाइल मिल गई ।
इतना सुन नितिन जैसे नींद से बाहर आया और कहा - ओह अच्छा ।
इतना कह उसने मुझे नीचे उतारा और नीचे उतरते हुए एक बार फिर मेरी पीछे से नंगी पीठ उसके कठोर सीने से रगड़ कहा गई पर इस बार मुझे अपने नितम्बों (गांड) पर एक चीज और चुभती महसूस हुई मुझे समझते देर ना लगी की ये क्या है वो नितिन का लिंग था पर मेरे लिए चोकाने वाली बात ये थी की उसके लिंग की लंबाई मुझे कुछ ज्यादा ही महसूस हुई मेने उत्सुकतावश नीचे उतारकर उसे फाइल दी और अपनी आँखों से उसकी पेंट पर बने ऊभार की लंबाई को मापने की कोशिश करने लगी ये सिर्फ मेरा भ्रम नहीं था वाकई मे उसका लिंग पेंट मे भी बोहोत लंबा और मोटा महसूस हो रहा था मैं तो जैसे अपने होश ही खोने लगी थी कुछ तो नितिन की वो कामुक हरकते और कुछ उसके उस लिंग का आकार मुझे और उत्तेजित कीये जा रहा था
नितिन फाइल चेक कर रहा था उनसे फाइल चेक की , कि सही है या नहीं फिर कुछ देखकर मेरी ओर देखकर बोला "सब ठीक है यही है वो फाइल " इतना कह वो मुझे थैंक्स कह कर जाने लगा मैं उसे छोड़ने गेट तक गई । गेट पर जाकर अचानक नितिन पीछे मुड़ा और बोला - सॉरी पदमा ।
मैं - वो किस लिए ?
नितिन - वो .. मेने तुमसे बिना पूछे तुम्हें पीछे से उठा लिया था ना । वो मैं लेट हो रहा था इसलिए जल्दी मे कुछ सुझा ही नहीं।
मैं - कोई बात नहीं नितिन , इट्स ओके । पर मैं तुमसे एक बात पूछना चाहती हूँ ?
नितिन - हाँ बोलो . ..
मैं - अशोक के सभी दोस्तों को तो मैं जानती हूँ , पर तुम्हें कभी नहीं देखा । ना ही काभी आज से पहले तुम्हारा नाम ही सुना था । एसा क्यूं ?
नितिन - इसका जवाब तो तुम्हें अशोक ही देगा पर मैं इतना तो समझ गया हूँ की अशोक ने मुझे तुमसे क्यूं नहीं मिलवाया ?
मैं - अच्छा , तो बताओ क्यूं नहीं मिलवाया ?
नितिन- जिसकी इतनी सुंदर पत्नी होगी उसे डर तो रहेगा ही कही मैं ना चुरा लूँ उसकी बीवी ।
इतना कहकर वो जोर से हंसने लगा । मैं उसके इस जवाब पर बस शर्माकर रह गई और कुछ ना बोल सकी । फिर वो बोला - अच्छा , चलो बाय मैं चलता हूँ फिर मिलेंगे । अब तो मेने अशोक के चाँद को देख लिया है अब इसे देखने तो मैं आता रहूँगा ।
उसकी ये बाते फिर से मेरे दिल की धड़कनों को बढ़ा रही थी । मैंने उसके कमेन्ट का जवाब दिए बिना उसे बाय बोला और दरवाजा बंद करके अंदर आ गई ।
अंदर आकर सबसे पहले मैं कीचेन मे गई ओर 2 ग्लास पानी पिया फिर सोफ़े पर बेठकर थोड़ी नॉर्मल होने की कोशिश करने लगी । बाहर काफी सर्दी थी पर मेरे माथे पर पसीना आया हुआ था वजह आप सब जानते है। मैं सोचने लगी की ये अशोक का एसा कोन सा दोस्त है जिसका अशोक ने कभी नाम भी नहीं लिया । मेरी और अशोक की शादी को 4 साल हो चुके थे पर कभी उसके एसे किसी दोस्त से नहीं मिली जो मुझे भाभी ना कहकर नाम से बुलाता हो । इन सब सवालों के जवाब तो अशोक के ऑफिस से आने के बाद ही मिलेंगे