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Adultery PADMA ( Part -1)
#41
Update
nospam horseride

 

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#42
7. जब आँखे खुली तब कुछ होश आया । साँसे तो अब नॉर्मल हो गई थी पर लज्जा के मारे मेरा दिल बैठने लगा । मेरी हवस का गुबार अब शांत हो चुका था और अब उसकी जगह पाप और शर्म ने लेली । " पदमा ये तूने क्या कर दिया , तू  अपनी हवस मे इतनी अंधी कैसे हो सकती है ? "- मैंने खुद से मन मे सवाल किया । मन मे कई सारे  भाव एक साथ उठने लगे मेरे लिए एक पल भी अब गुप्ता जी की दुकान मे रुकना मुझे अपमानित कर रहा था । गुप्ता जी अभी भी मेरे ऊपर लेटे हुए थे उन्हे तो मानो कोई फ़र्क ही नहीं पड़ा हो । मैंने ही गुप्ता जी से कहा - " गुप्ता जी ! हठीये मुझे जाना है । "              मेरे इतना कहने पर गुप्ता जी बिना कुछ बोले मेरे ऊपर से हटकर साइड मे लेट गए । गुप्ता जी के अपने ऊपर से हटने से मुझे ऐसा लगा जैसे एक बोहोत बड़ा भार मेरे शरीर के ऊपर से हट गया हो ।गुप्ता जी के हटने के बाद मैं उठने लगी , उठते हुए अपनी हालत देख मुझे खुद पर रोना सा आ गया मेरे बदन पर कपड़े के नाम पर केवल मेरी छोटी सी पेन्टी थी
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 जो मेरी योनि के चुतरस से भीगी हुई थी जिसकी वजह से वो चिपचिपी होकर मेरी योनि से चिपक गई थी और उससे मेरी योनि को बोहोत असुविधा होने लगी मुश्किल से मैं सीधी हुई  । मैंने गुप्ता जी की ओर देखा उनका लिंग अभी भी उनकी पेंट के बाहर मुरझाया हुआ पड़ा था और वो खुद लेटे हुए बेशर्मी से मुझे देख रहे थे । ये पहली बार था जब मैंने गुप्ता जी का लिंग देखा था अब तक मैंने सिर्फ उसे महसूस ही किया था शर्म से मैंने अपना मुहँ फेर लिया और इधर उधर पड़े अपने कपड़े समेटने लगी गुप्ता जी अब बैठ गए और उन्होंने अपना लिंग अपनी पेंट के अंदर डाल जीप लगा ली , बैठकर भी वो मुझपर ही नजरे बनाएं हुए  थे । अपने  जिस्म को ढकने के लिए मैंने जमीन पर पड़े कुछ कपड़े उठाए और उन्हे अपने पर डाल लिया . 
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 और अपनी ब्रा , ब्लाउज और पेटीकोट लेकर परदे के पीछे चली गई, जाते हुए भी गुप्ता जी पीछे से मुझे घूर रहे थे, पर वो कुछ बोले नहीं ।  परदे के पीछे जाकर मैंने अपने कपड़े पहनने शुरू कीये परदा इतना महीन था के आर-पार का सब कुछ दिख रहा था और गुप्ता जी की नजरे वहाँ भी मेरा पीछा छोड़ने को तैयार नहीं थी । मैंने जल्दी-जल्दी अपने कपड़े पहनने शुरू
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 कीये सबसे पहले अपनी ब्रा को पहनने लगी ब्रा पहनते हुए मुझे मेरे बूब्स मे हल्का दर्द मुहसूस हुआ जिसका कारण था गुप्ता जी के हाथों के द्वारा उनका बेदर्दी से मसला जाना । ब्रा पहनने के बाद मैंने अपना ब्लाउज पहना और जैसे ही पेटीकोट पहनने की सोची तो चुतरस से भीगी पेंटी ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा अगर मैंने ऐसे ही पेन्टी के ऊपर पेटीकोट पहन लिया तो मुझे रास्ते भर चलने मे परेशानी होगी और मुझे ऐसे चलता देख मोहल्ले के लोगों को कुछ शक भी हो सकता था इसलिए मैंने पेन्टी को ना पहनने का फैसला किया और उसे निकालने लगी पेन्टी निकालते समय मुझे इस बात का भी ध्यान नहीं रहा की गुप्ता जी परदे के पीछे से मेरी एक-एक हरकत पर नजर बनाए हुए है । पेन्टी निकालने के बाद मैंने उसे अपने हाथ मे लेकर देखा तो उसपर बोहोत सारा गुप्ता जी का वीर्य बिखरा हुआ था उसे देख मुझे अपने ऊपर फिर से शर्म आ गई मैंने चुपचाप अपनी पेन्टी को अपने पर्स मे रख लिया और अपना पेटीकोट पहन , नीचे पड़ी अपनी साड़ी पहन ली ।  कपड़े पहनने के बाद मैंने अपने आप को थोड़ा ठिक करने का सोचा क्योंकि मुझे घर भी जाना था और रास्ते मे खड़े मोहल्ले के लोग तो वैसे ही मुझे घूरते रहते है और अगर मैं ऐसे बाहर निकली तो वो लोग मेरी हालत देखकर तुरंत समझ जाएंगे कि मैंने गुप्ता जी के साथ क्या गुल खिलाए है इसलिए सबसे पहले मैंने अपने बालों को ठिक किया जो बिखरे हुए थे फिर अपने पर्स से एक छोटा सा आईना निकालकर अपने चेहरे को देखा -" माथे की बिंदी भी बिखर गई थी और होंठों की लाली तो गुप्ता जी ने मेरे होंठ चूस-चूस कर मिटा ही दी थी । " मैंने अपने पर्स से एक नई बिंदी निकाली और उसे अपने माथे पर लगाया फिर लाली की डब्बी निकाली और उसमे से थोड़ी लाली अपनी उँगली पर लेकर अपने होंठों पर लगाई
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 जब सब कुछ ठिक लगा तो मैं पदरे के पीछे से बाहर आई । बाहर आई तो देखा गुप्ता जी दीवार के सहारे खड़े हुए मुझे देख रहे थे , पर वो कुछ बोले नहीं । अब तक हम दोनों मे से कोई भी कुछ नहीं बोला था । मेरे मुहँ से तो शब्द ही नहीं निकल रहे थे , निकलते भी कैसे मुझे वहाँ खड़े रहकर  तो एक - एक पल काटने को दौड़ता था शर्म के मारे आँखों मे नमी आ गई मैं बस किसी भी तरह जल्द-से-जल्द अपने घर पहुंचना चाहती थी  । मैं अपना सर नीचे कीये चुपचाप खड़ी रही ओर दरवाजे की ओर बढ़ने लगी मुझे जाता देख गुप्ता जी ने टोका -

गुप्ता जी - पदमा !
उनकी आवाज सुन मैं रुक गई पर उनकी ओर पलटी नहीं । मुझे ऐसे ही चुप-चाप खड़ा देख गुप्ता जी एक बार फिर से बोले - " पदमा , आज जो भी हुआ तुम उसे लेकर परेशान मत होना । ये सब तो किस्मत का खेल है , वरना मेरी इतनी हिम्मत कहाँ की मैं ऐसा तुम्हारे साथ कर सकूँ । हालातो पर हमारा जोर नहीं होता पदमा , और हालात ही ऐसे बने की ये सब हो गया । तुम्हें देखकर ना मैं अपने आप को रोक पाया और फिर तुम भी अपनी हवस मे बहक गई । " 
गुप्ता जी की बातों से साफ जाहीर था की वो अपने सारे कीये का दोष किस्मत , हालातों और मुझ पर डालना चाहते थे ताकि मैं उनके बारे मे कोई गलत धारणा ना बनाऊ , जबकि सारी समस्या की जड़ खुद गुप्ता जी थे । उन्होंने ही मुझे उत्तेजित किया ताकि मैं अपनी हवस मे बह जाऊँ और अपने मकसद मे वो किसी हद तक कामयाब भी हो गए । गुप्ता जी की बातों को सुनकर मैंने रुदासी से उनकी ओर देखा और कहा - "गुप्ता जी , प्लीज आज जो कुछ भी हुआ उसका जिक्र किसी के सामने मत कीजिएगा "
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 मेरी बात सुनकर गुप्ता जी मेरी ओर बढ़े और बोले - " ये क्या पदमा तुम्हारी आँखों मे आँसू ?"
गुप्ता जी मेरे करीब आकर शायद मुझे दिलासा देना चाहते थे पर मैं अभी उनके पास जाने मे अपमानित महसूस कर रही थी इसलिए जैसे ही वो मेरे करीब आने लगे मैंने उनके हाथ अपने से दूर झटक दिए ।
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 मेरी हरकत से गुप्ता जी को झटका सा लगा और वो चुपचाप दूर खड़े होकर मुझे देखने लगे और कुछ देर बाद बोले - " पदमा , तुम मुझे गलत मत समझना मैंने भी अपने आप पर काबू  रखने की बोहोत कोशिश की थी पर क्या करूँ ? हूँ तो आखिर एक मर्द और जब तुम्हारे जैसी अप्सरा किसी के सामने आ जाए तो ऋषि -मुनियों का भी धैर्य जवाब दे जाए मैं तो फिर भी बस एक आम आदमी हूँ । " मेरी समझ मे नहीं आ रहा था की गुप्ता जी की बात का क्या जवाब दूँ ? उनकी बात सुन मैंने उनकी ओर देखा और कहा - " गुप्ता जी , ये आप क्या कह रहे हैं ? 
गुप्ता जी - मैं बिल्कुल सच कह रहा हूँ पदमा शायद तुम्हें अपनी खूबसूरती का अंदाजा नहीं है पर ये सच है की तुम्हारे लिए सिर्फ मैं ही नहीं कालोनी का हर मर्द आहें भरता है तुम्हें पाना चाहता है । 
गुप्ता जी अपनी बातों के तीर लगातार मुझ पर छोड़ने लगे और मैं भी मंत्र मुग्ध होकर अपनी तारीफ सुनने लगी ।
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 उनकी हर बात का मुझपर असर होने लगा ये सब बातें तो कभी अशोक ने भी मुझसे नहीं कहीं थी मुझे लगने लगा कहीं मैं एक बार फिर बहक ना जाऊँ इसलिए गुप्ता जी की बात बीच मैंने गुप्ता जी की बात बीच मे ही काट दी और कहा - " गुप्ता जी , ये सब बातें मत बोलिए प्लीज । "
गुप्ता जी - लेकिन क्यूं  पदमा , क्या तुम्हें ये सब अच्छा नहीं लग रहा । 
मैं - नहीं गुप्ता जी , मैं ये सब नहीं सुनना चाहती बोहोत देर हो गई है मुझे जाना चाहिए । बस आपसे एक विनती है आज यहाँ जो कुछ हुआ वो आप किसी से ना कहिएगा , नहीं तो मैं कहीं की नहीं रहूँगी । 
गुप्ता जी - तुम इतनी शर्मिंदा क्यों हो रही हो पदमा ? तुमने कुछ गलत नहीं किया । 
मैं - नहीं गुप्ता जी ये जो कुछ भी आज हुआ है मेरे लिए बोहोत अपमानजनक है मैं शादीशुदा हूँ और मेरी कुछ सीमाएं है । आप बस वादा कीजिए की आप किसी को इस बारे मे कुछ नहीं बताएंगे प्लीज ।  
गुप्ता जी - ठीक हैं पदमा मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगा लेकिन ........ 
गुप्ता जी इतना कहकर रुक गए । गुप्ता जी की बात को जानने के लिए मैंने ही उनसे पुछा - " लेकिन क्या गुप्ता जी , क्या बात है बोलिए ?"
गुप्ता जी - मुझे तुमसे एक चीज चाहिए । 
मै गुप्ता जी की बात सुनकर थोड़ा घबरा गयी के अब गुप्ता जी को क्या चाहिए कहीं वो कुछ ऐसा ना मांग बैठे जो मेरे लिए और भी बड़ी मुसीबत बन जाए । मैंने डरते-2 गुप्ता जी से पूछ। -  क्या चाहिए गुप्ता जी आपको ?
गुप्ता जी - वो लाल कपड़ा जो तुमने अभी थोड़ी देर पहले अपने पर्स मे रखा है  । 
पहले तो मुझे समझ नहीं आया के गुप्ता जी क्या माँग रहे है पर फिर जब समझ आया तो गाल शर्म से लाल हो गए गुप्ता जी मेरी पेन्टी मांग रहे थे पर वो उसका क्या करेंगे उन्हे उससे क्या काम हो सकता है ? और इससे भी बड़ी बात मैं उन्हे अपने आप कैसे अपनी पेन्टी देदूँ । ये तो मुझ से ना हो पाएगा । मैंने गुप्ता जी से पुछा - " क्यूँ गुप्ता जी ? आपको वो क्यूँ चाहिए ? " 
गुप्ता जी - अब तुम तो चली जाओगी पदमा , मेरे पास तो बस आज की याद रह जाएगी इसलिए तुमसे दूर रहकर मेरे पास भी तो कुछ होना चाहिए जिससे मैं आज की याद को बनाए रखूँ । 
मैं - लेकिन गुप्ता जी मैं कैसे ...।..।? 
गुप्ता जी - प्लीज , पदमा बस एक बार मुझे अपनी पेन्टी देदो ? 
गुप्ता जी ने सीधा 'पेन्टी' शब्द मेरे सामने ही बोल दिया और मैं शर्माकर रह गई । गुप्ता जी तो अपनी बात पर अड़े थे और मुझे देर हो रही थी इसलिए मैंने सोचा दे ही देती हूँ एक पेन्टी देने से क्या हो जाएगा ? फिर मुझे ये भी था कि मेरी पेन्टी लेने के बाद गुप्ता जी किसी की मेरे बारे मे कुछ नहीं बोलेंगे लेकिन खुद अपने हाथों से अपनी पेन्टी निकालकर गुप्ता जी के हाथों मे देना मेरा मानभंग कर रहा था मैंने अपना पर्स खोला और उसे गुप्ता जी की ओर बढ़ा दिया और बोली - " ये लीजिए गुप्ता निकाल लीजिए ?" गुप्ता जी - पदमा तुम खुद ही निकालकर देदों । 
अब गुप्ता जी ने मुझे और भी परेशानी मे डाल दिया । मैंने गुप्ता जी कहा - " आप खुद ही लेलिजीएना ना मुझसे नहीं निकाली जाएगी । "
गुप्ता जी - नहीं पदमा , पेन्टी तुम्हारी है और अगर तुम अपनी मर्जी से दे रही हो तो तुम्हें ये अपने हाथों से निकालकर मुझे देनी होगी  नहीं तो रहने दो मुझे नहीं चाहिए।        गुप्ता जी ने तो अपनी बात साफ कर दी थी पर मुझे अब समझ नहीं आ रहा था के क्या करूँ एक तरफ मुझे ये डर भी था के कहीं गुप्ता जी किसी को कुछ बता ना दे दूसरी ओर अपने हाथों से अपनी पेन्टी निकालकर गुप्ता जी को देने मैं मुझे शर्म भी आ रही थी । आखिर मेरी शर्म पर मेरा डर जीत गया और मैंने अपने पर्स के अंदर हाथ डाल के अपनी पेन्टी को निकाला उसमे अभी भी थोड़ा गीलापन था पेन्टी निकालकर मैंने वो गुप्ता जी की ओर बढ़ा दी । गुप्ता जी ने मुस्कुराते हुए उसे तुरंत अपने हाथों मे ले लिया और इसी मे मेरे हाथ को भी छु लिया । मेरी पेन्टी को पाकर गुप्ता जी तो फुले ना समायें और खुश होकर उसे अपने हाथों मे लेकर आँखे फाड़-फाड़कर देखने लगे गुप्ता जी को ऐसा करते देख मेरे मन मे एक सवाल को पूछने की इच्छा हुई पहले तो मैंने नहीं पुछा पर फिर अपने मन की उत्सुकता को रोक भी ना सकी और गुप्ता जी से पूछ ही लिया - 
मैं - " इसका क्या किजिएगा ...?" गुप्ता जी ने पेन्टी से ध्यान हटा  मेरी ओर देखा और जवाब मे मेरी पेन्टी को अपने एक हाथ से पकड़ अपने होंठों के पास लाकर अपनी जीब से उसे चाटने लगे ।
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 गुप्ता जी के इस जवाब से तो मेरा मन डोल गया और शर्मा के मैंने अपना सर नीचे झुका  लिया । मैं गुप्ता जी की दुकान से जाना तो चाहती थी पर अभी गुप्ता जी ने मुझे पूरा आश्वासन नहीं दिया था की वो आज की घटना के बारे मे किसी को नहीं बताएंगे मैंने गुप्ता जी से फिर पुछा - " अब तो मैंने आपकी बात मान ली गुप्ता जी , अब आप वादा कीजिए की आप किसी से आज की घटना के बारे मे कुछ नहीं कहेंगे । "
गुप्ता जी ने मेरी पेन्टी को हाथों मे लेकर मसलते हुए कहा - "वादा पदमा , आज यहाँ इस कमरे मे जो भी हुआ वो मेरे और तुम्हारे अलावा किसी तीसरे को पता नहीं चलेगा ।" गुप्ता जी की ये बात सुनकर मैंने चैन की साँस ली और घर जाने लगी । जैसे ही मैं दरवाजे पर पहुँची गुप्ता जी ने मुझे एक बार ओर आवाज दी - " पदमा ! "           
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             गुप्ता जी की आवाज सुनकर मैं फिर से सोच मे पड़ गई के अब इन्हे क्या चाहिए । बिना कुछ बोले मैं बस गुप्ता जी की ओर थोड़ा घूम गई । गुप्ता जी ने आगे सवाल किया - " फिर कब आओगी ? " मैंने हैरानी से गुप्ता जी की ओर देखा मुझे अपनी ओर इस तरह से घूरते पाकर गुप्ता जी ने अपनी बात संभाली और कहा - " मेरा मतलब सिले हुए कपड़े लेने कब आओगी ? " 
मैं - आप सिल दीजिए गुप्ता जी मैं थोड़े दिनों बाद अपने-आप आ जाऊँगी ?  
गुप्ता जी कुछ नहीं बोले । मैं भी दरवाजा खोलकर गुप्ता जी की दुकान से बाहर आ गई और सीढ़ियों से नीचे उतरकर गली मे चल दी ।


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#43
 जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाकर मैं अपने घर पहुँची । मैं बोहोत थका हुआ महसूस कर रही थी  घर पहुंचते ही मैं सीधे अपने बेडरूम मे गई और बेड पर गिर गई ।
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  बेड पर लेटकर मुझे वो सब फिर से याद आने लगा जो अभी थोड़ी देर पहले गुप्ता जी ने मेरे साथ अपनी दुकान मे किया था उसके साथ ही अशोक का भी ध्यान आया  इन सब मे मैं अशोक को तो भूल ही गई थी अशोक का ख्याल आते ही मेरी आँखे भर आई मन मे ना जाने कितने भाव उमड़ने लगे ।           "मैं चाहकर भी क्यूँ अपने जिस्म की आग को रोक नहीं पाती , जब एक बार मेरी हवस परवान चढ़ती है उसके बाद तो मुझे कुछ ख्याल ही नहीं रहता ना अपने पति की इज्जत का , ना ही अपनी मर्यादाओं का और ना ही अपनी सीमाओं का "- मैं  यही सोच रही थी और सोचते -2 मुझे नींद आ गई । 

तकरीबन 3:30 बजे डॉर बेल बजने की आवाज से मेरी आँखे खुली । मैं अँगड़ाई लेते हुए उठी । ये समय वरुण के आने का था । मैंने उठकर दरवाजे की ओर कदम बढ़ाए । दरवाजा खोला
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 तो सामने वरुण ही था वो मुझे देखकर मुस्कुराया तो रिटर्न मे मैंने भी उसे स्माइल पास की और कहा- " आजाओ वरुण .... "
वरुण अंदर आया और बोला - " आप सो रही थी क्या भाभी । "
मैं - हाँ । वो आज जरा थकान सी हो गई थी । 
वरुण - ओह । अगर आप आराम करना चाहे तो मैं चला जाता हूँ । पढ़ाई कल कर लेंगे । 
मैं - नहीं नहीं सब ठीक है थोड़ी सी थकान ही तो थी सो कर ठीक हो गई । 
इतनी बातों-2 मे ही हम दोनों हॉल मे आ गए मैंने सोफ़े की ओर इशारा करते हुए वरुण से कहा - " तुम बैठो वरुण , मैं अभी आई । "  इतना बोलकर मे किचन मे चली गई और गैस पर अपने और वरुण के लिए चाय चढ़ा दी । जब मे किचन से बाहर आई तो देखा वरुण अपनी किताब खोल उसे ही पढ़ रहा था ये देखकर मुझे अच्छा लगा कि चलो अब वरुण अपनी पढ़ाई पर थोड़ा ध्यान तो दे रहा है पर मुझे गुप्ता जी की बात भी याद थी जो उन्होंने मुझे वरुण को के बारे मे बताई थी । मेरे मन मे एक सवाल भी था कि "क्या वरुण सच मे ऐसा ही है जैसा गुप्ता जी बोल रहे थे या फिर इसमे कुछ ओर बात है । " मैं वरुण के पास गई और उसके सामने वाले सोफ़े पर बैठ गई और बोली - " वरुण , शनिवार को जो डेफ़िनिशन मैंने तुम्हें याद करने को दी थी वो तुमने याद करली । "      वरुण ने मेरी ओर देखा और जवाब दिया - " जी भाभी मैंने उन्हे याद कर लिया । "  वरुण की बात सुनकर मैंने खुशी से कहा - " वेरी गुड़ । चलो अब आगे पढ़ते है । " और इतना कहकर मैंने वरुण को आगे की डेफ़िनिशन याद करने को दी और खुद उठकर किचन मे आई । चाय बिल्कुल तैयार होने वाली थी उसके तैयार होते ही मैंने दो कप चाय तैयार की और वरुण को चाय देने के लिए किचन से बाहर आई 
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वरुण के पास पहुंचकर मैंने उसे बोला - " लो वरुण चाय पीओ । " जैसे ही मैं उसे चाय देने के लिए झुकी , तो हर बार की तरह मेरा पल्लू सरक गया और मेरे गोल-2 ब्लाउज मे कैद बूब्स वरुण के सामने आ गए
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 वरुण चाय लेना भूल सीधे मेरे बूब्स को अपनी आँखों से घूरने लगा । अपनी स्थिति को देख मैंने जल्दी से अपना पल्लू ठीक किया और चाय का कप वरुण के सामने टेबल पर रखकर सीधी हो गई । वरुण भी होश मे आया और चुपचाप सीधा होकर चाय पीने लगा । उसके बाद मैं किचन मे गई और अपनी भी चाय ले आइ फिर सोफ़े पर बैठकर चाय पीने लगी वरुण मेरे सामने बैठकर ही पढ़ रहा था और बीच -2 मे अपनी चोर निगाहों से मेरे बूब्स को घूर रहा था । जब भी मे उसे कुछ समझाने के लिए उसकी किताब मे देखती झुकने के कारण मेरे बूब्स , ब्लाउज से छलककर वरुण की आँखों के सामने आ जाते और उसकी पैनी नजरे वहीं जम जाती । मैं वरुण की हर हरकत पर गौर कर रही थी और उसकी नज़रों मे अपने बूब्स के लिए हवस मुझे साफ दिखाई दे रही थी जो मुझे भी अंदर रोमांचित करने लगी । ये सिलसिला थोड़ी देर तक ऐसे ही चलता रहा फिर अचानक से वरुण खड़ा हो हुआ और बोला - " भाभी मुझे वाशरूम जाना है । " उसकी ये बात सुन मेरे दिमाग मे उस दिन का वोही द्रश्य छा गया जब वरुण वाशरूम मे अपना लिंग बाहर निकाले हिला रहा था और उसके याद आते ही मेरे दिल मे धुक-2 होने लगी मैंने तिरछी नज़रों से उसकी ओर देखा तो मुझे उसकी पेंट के ऊपर वही जाना-पहचाना ऊभार नजर आया । उसके लिंग का ऊभार देखकर मेरी साँसे फिर रुक सी गई मैंने बिना बोले उसे जाने का इशारा किया ।
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 वरुण सीधा हॉल से निकलकर वाशरूम की ओर जाने लगा । आज जिस वजह ने मेरा ध्यान खींचा वो थी के वरुण जाते हुए आपना मोबाईल नहीं ले गया था , पता नहीं ये मेरा वरुण की ओर आकर्षण था या मेरी हवस पर मुझे फिर से वरुण को देखने की इच्छा होने लगी मन बैचेन हो उठा जैसे कह रहा हो एक बार जाके देख की वरुण क्या कर रहा है । मैंने मन को डाँटने की कोशिश की पर जिस्म मे उठते इस रोमांच को रोक ना सकी और धीरे से अपनी सैंडल वही हॉल मे उतारकर धीरे-2 वाशरूम की ओर चलने लगी , चलते हुए भी मेरा दिल जोर-2 से धडक रहा था एक अलग ही रोमांच का नशा मुझ पर छा रहा था इस तरह से मैंने पहले काभी किसी को छिपकर नहीं देखा था और ये नशा अंदर ही अंदर मेरे बदन का रोयाँ सुलगा ने लगा ।  हॉल से निकली तो देखा वाशरूम का दरवाजा बंद है एक बार को तो मेरे जिस्म मे शांति का भाव आ गया , लगा की जैसे एक तूफान मेरे मन मे थम गया ।  मैं वापस मुड़ने लगी पर तभी मेरी नज़र वाशरूम से अटैच बाथरूम पर पड़ी जिसका दरवाजा आधा खुला हुआ था मेरे मन मे बेचैनी जो अभी कुछ कम हुई थी ओर भी बढ़ गई " वरुण तो  वाशरूम मे गया था फिर ये बाथरूम का गेट क्यूँ खुला हुआ है ? कहीं वरुण बाथरूम मे तो नहीं? "मेरी इस सोच ने मेरी धड़कन को और भी तेज कर दिया । " अगर वरुण बाथरूम मे हुआ तो वो क्या कर रहा होगा ? " ये ही सब सोचते-सोचते मैं बाथरूम के पास पहुँची । जैसे ही मैं बाथरूम के पास गई तो मुझे हल्की -2  कुछ आवाजे सुनाई पड़ी  मैंने धीरे से बाथरूम मे झाँका तो जो मैंने देखा उसे देख मेरी धड़कने रुक और साँसे फूलने लगी । 
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अंदर वरुण ने अपनी पेंट खोल अपना लिंग बाहर निकाला हुआ था जिसे वो एक हाथ से पकड़ कर हिला रहा था
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 और दूसरे हाथ मे मेरी ब्रा और पेन्टी को लेकर अपनी नाक के पास लेजाकर सूँघ रहा था । " हे भगवान ....... ये वरुण क्या कर रहा है कहीं मैं सपना तो नहीं देख रही कल तक जो मेरे साथ खेलता था आज मेरी ब्रा-पेन्टी से खेल रहा है । "- ये सोच-सोचकर मेरी साँसे और भारी होने लगी डर के मारे मेरे पैर कांपने लगे दिल की धड़कने तेज हो चुकी थी और एक उत्तेजना ने मेरे जिस्म पर कब्जा कर लिया ,ना जाने क्यूँ और कैसे मेरा जिस्म मेरे काबू से बाहर होता चला गया मैं छिपकर वरुण को देखने लगी । 
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 वरुण ने मेरी  ब्रा को अपने लिंग के टोपे पर रखकर रगड़ना शुरू किया और मेरी पेन्टी को अपने होंठों के पास लेजाकर उसे चूमने -चाटने लगा ठीक वैसे ही जैसे गुप्ता जी ने अपनी दुकान मे किया था  जिस तरह से वरुण मेरी पेन्टी को चूम और चाट रहा था मुझे तो ऐसा महसूस होने लगा जैसे वो मेरी योनि को चूम रहा है मेरी साँसों की रफ्तार बढ़ती रही वरुण साथ मे धीरे से कुछ बड़बड़ा भी रहा था जो मुझे हल्का-हल्का सुन रहा था । " आह ...... पदमा भाभी .......        सेक्सी ......... मिल ......... खा जाऊँगा ...।..।।। " - ये सब बातें बोलते हुए वरुण जोर-जोर से मेरी ब्रा को अपने लिंग पर रगड़ने लगा । वरुण अंदर अपनी हरकतों को अंजाम दे रहा था और इधर मैं उसकी इन हरकतों से उत्तेजित हो चुकी थी
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 और अनजाने मे ही मेरा हाथ मेरी योनि पर पहुँच गया । पेन्टी तो मैंने पहनी ही नहीं थी तो हाथ की सीधी चोट ,योनि पर होने लगी जिससे मेरे मन मे उठे रोमांच से पैदा हुई उत्तेजना ने गहरी हवस का रूप ले लिया मेरी योनि भी गीली होकर पानी छोड़ने लगी और योनि को सहलाने के लिए चलने वाले मेरे हाथ भड़कती जिस्म की आग को शांत करने के लिए उसे रगड़ने लगे हवस मे अंधी हो मैं अपने होंठ काटने लगी और तेजी से अपनी योनि को रगड़ने लगी  उधर वरुण भी अब पूरी तेजी के साथ अपने लिंग को हिला रहा था और इधर मैं भी एक हाथ से अपने बूब्स और दूसरे हाथ से अपनी योनि के दाने को रगड़ने लगी जल्द ही मेरी योनि भर-भरकर पानी छोड़ने लगी मेरी हालत खराब हो चली  मैं बोहोत ज्यादा उत्तेजित हो गई और  अपनी योनि के दाने को मसलने लगी मेरे अंदर की वासना का लावा अब पानी के रूप मे बाहर आना चाहता था और मैं भी उसे रुकने नहीं देना चाहती थी मैंने अपने होंठ दाँतों तले दबाकर जोर-2 से अपनी योनि को रगड़ा ,  मुझे ज्यादा इंतजार  नहीं करना पड़ा । उधर वरुण ने भी अपनी उखड़ती हुई साँसों को थामते हुए अपना सारा वीर्य मेरी ब्रा के कप मे भर दिया और इधर मैं भी अपनी आहों को बड़ी मुश्किल से अपने गले मे दफ्न करते हुए झड़ने लगी
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  पेन्टी ना पहने रखने के कारण मेरी योनि का सारा पानी मेरी टांगों से बहता हुआ  नीचे  फर्श पर बिखर गया, वासना शांत हुई तो कुछ होश आया झड़ने के बाद मेरे लिए खड़ा रहना मुश्किल हो गया मुझे साँस चढ़ रही थी और  मेरे माथे पर पसीना छलक आया था  वासना का तूफान थमने के बाद मुझे अपनी स्थिति का पता लगा । बाथरूम के अंदर का नजारा भी कुछ ऐसा ही था झड़ने के बाद वरुण ने मेरी ब्रा और पेन्टी वही बाथरूम की टाइल्स पर फेंक दी और नीचे बैठ गया । मैंने सावधानी से अपने कदम पीछे खींचने शुरू किये , वरुण के बाथरूम से निकलने से पहले मुझे हॉल मे जाकर सोफ़े पर बैठना था और मे इसमे कामयाब भी हो गई ।
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#44
मैं चुपके से जाके हॉल मे सोफ़े पर बैठ गई और अपने को वरुण की किताब मे व्यस्त करने का दिखावा करने लगी ।
[Image: 20220922-154245.jpg]
 थोड़ी देर बाद वरुण हॉल मे आया उसे भी पसीना आया हुआ था वो चुपचाप आकर मेरे सामने सोफ़े पर बैठ गया । मैंने उसे ना  कुछ कहा और ना ही उसकी ओर देखा दरसल अब  मुझे खुद पर शर्म भी आ रही थी और मैं वरुण की आँखों मे देखने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी । फिर पढ़ाई का बहाना बना कर मैंने वरुण से बात शुरू की , वरुण पढ़ाते हुए मैंने एक बात नोटिस की वरुण बीच-2 मे मुझे कुछ अजीब तरह से देख रहा था जैसे उसे मुझ पर कुछ शक हो और मैं बेवकूफ उससे नजरे चुराकर उसके शक को ओर भी पक्का कर रही थी ।
 थोड़ी देर बाद वरुण के जाने का समय हो गया और वो उठकर जाने लगा , जाते हुए  वरुण मेरी ओर देखकर एक कटीली मुस्कान के साथ बोला - " भाभी ! " मैं वरुण की ओर देखकर बोली -

  मैं - हाँ  वरुण ?
वरुण - आपने अपनी सैंडल क्यों उतारी हुई है ? 
दरसल वापस हॉल मे आकर मैं अपनी सैंडल पहनना तो भूल गई थी और  वरुण की इस बात से तो मुझे यकीन हो गया की उसे मुझ पर शक है कि मैं उसे छिपकर बाथरूम के बाहर से देख रही थी , मेरा गला सुख गया कुछ जवाब भी ना सुझा , बड़ी मुश्किल से एक बहाना बनाया  -
मैं - वो .... वो क्या है ना ...... वरुण ..... सारा दिन ये सैंडल पहनने से मेरे पैरों मे दर्द होने लगता है इसलिए सोचा की थोड़ी देर के लिए उतार दूँ ।
मेरे इस गोल -मोल जवाब को सुन वरुण फिर से मुस्काया और कहने लगा - " भाभी अब तो फरवरी भी खत्म होने को है और अब इतनी ठंड भी नहीं होती । तो आप सुबह को ग्राउंड मे वॉक के लिए क्यों नहीं आ जाती ? अब तो मोहल्ले के काफी लोग भी घूमने आने लगे है , इससे आपके पैरों को भी आराम मिलेगा । 
दरसल हर साल सर्दियाँ बीत जाने पर मैं और अशोक रोज सुबह -सुबह हमारे घर के सामने वाले पार्क मे वॉक और योग के लिए जाते थे पर इस बार सर्दियाँ बीत जाने पर भी अशोक ने मॉर्निंग वॉक की बात नहीं छेड़ी और मैंने भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया पर अब वरुण के याद दिलाने से मुझे भी मॉर्निंग वॉक पर जाने की इच्छा होने लगी मैंने मन मे सोचा की आज अशोक से इसके बारे मे जरूर बात करूंगी । 
मैं - हम्म .. कह तो तुम ठीक रहे हो वरुण । कल से मैं भी शुरू करूंगी ।
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वरुण खुश होते हुए बोला-  ओके भाभी फिर 6 बजे ग्राउंड मे मिलते है ।  बाय । 
मैंने भी वरुण को बाय बोला और वो चला गया ।
वरुण के जाने के बाद मैं सीधे बाथरूम की ओर गई बाथरूम के बाहर पानी की कुछ बुँदे बिखरी हुई थी  जो और कुछ नहीं अभी थोड़ी देर पहले मेरी योनि से निकला मेरा चुतरस था उसे देखकर मुझे शर्म भी आई और घबराहट भी हुई मेरे मन मे एक बात ने जगह बना ली कि वरुण ने ये मेरा चुतरस जरूर देख लिया होगा और इसीलिए वो मुझे शक की निगाहों से देख रहा था "हे ! भगवान अब क्या होगा ? क्या वरुण जान गया है कि मैं उसे छिपकर देख रही थी ? वो मेरे बारे मे क्या सोच रहा होगा ?" - ये बातें मेरे दिमाग मे घूमने लगी और फिर मैंने बाथरूम मे प्रवेश किया बाथरूम के अंदर का नजारा तो नॉर्मल ही लग रहा था पर मेरी ब्रा और पेन्टी जो वरुण के हाथ मे थी कहीं नजर नहीं आई मैंने इधर -उधर देखा तो दीवार पर टँगे कपड़ों के पीछे मुझे कुछ दिखाई दिया मैंने धीरे से दीवार पर टँगे कपड़े उतारे उनके उतरते ही सामने मुझे मेरी ब्रा और पेन्टी दिख गई मैंने उन्हे उतारकर अपने हाथों मे लिया पेन्टी तो मुझे ठीक सी ही लगी पर जब ब्रा को मैंने अपने हाथों मे लिया तो कुछ गाढ़ा चिपचिपा लिक्विड की तरह का मेरे हाथों पर लग गया मैंने ब्रा को पलटकर देखा तो उसके कप मे ढेर सारा वोही सफेद लिक्विड भरा हुआ था मैं समझ गई ये ओर कुछ नहीं बल्कि वरुण का वीर्य है जो उसने चरमसुख पाते हुए मेरी ब्रा के कप मे भर दिया था मेरे हाथ वरुण के वीर्य से सन गए थे जिससे मुझे घिन आ रही थी वरुण का वीर्य बोहोत ही गाढ़ा सफेद था वो मेरी उंगलियों और हथेली पर चिपक गया उसे देखकर मुझे ना चाहते हुए भी अशोक की याद आ गई ,कारण था अशोक का पतला वीर्य । अशोक का वीर्य वरुण के मुकाबले बिल्कुल पानी था , ना ही उसका वीर्य इतना गाढ़ा था ना ही सफेद ।  मैं बाथरूम के पानी की टंकी को खोलकर अपने हाथ धोने लगी । हाथ धोकर मैं अपनी साड़ी उतारने लगी ।  मैं नहाना चाहती थी आज पूरे दिन की उथल -पुथल मे मुझे नहाने का तो मौका ही नहीं मिला था अपने सारे कपड़े उतारकर मैंने शावर खोल दिया । शावर की ठंडी बुँदे मुझे आनंदित करने लगी और मैं भी आज दिनभर की घटनाओ को भूलकर नहाने लगी ।
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         नहाने के बाद शावर बंद करके मैं अपने शरीर को टावल से पोंछने लगी ऐसा करते हुए एक बार फिर मेरी नजर मेरी उस ब्रा पर पड़ी जिसपर वरुण ने अपना कम छोड़ा था मेरी नजर बार-बार उस पर जा रही थी और एक अजीब सी कशिश मुझे उसकी ओर बाँधे हुई थी मैं अपने मन की उस स्थिति को बता नहीं सकती पर ना जाने क्यूँ मेरे हाथों ने एक बार फिर से उस ब्रा को उठा लिया और मैं बोहोत ध्यान से उसके कप मे गिरे वरुण के वीर्य को देखने लगी मन मे तो एक उफान सा उमड़ रहा था एक जिज्ञासा से मैं अपनी ब्रा को अपने नाक के पास लाई और वरुण के वीर्य की गंध को सूंघने लगी वरुण के वीर्य की गंध बोहोत तेज और अजीब सी थी उसे सूँघकर मुझे बोहोत अजीब स लगा और मैंने उसे अपने नाक से हटा लिया और उसे नीचे फेंककर अपने कपड़े पहनने लगी। 
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कपड़े पहनकर मैंने अपने पहले वाले कपड़े वाशिंग मशीन मे धोने के लिए डाल दिए पर अपनी ब्रा को उसमे नहीं डाला मैं नहीं चाहती थी के उसपर लगा वरुण का वीर्य मेरे दूसरे कपड़ों मे भी मिल जाए तो मैंने ब्रा को अलग बाल्टी मे भिगो कर रख दिया । हॉल मे आकर सोफ़े पर बैठ गई  सोफ़े पर बैठी हुई कितनी ही देर तक मैं आज की हुई चीजों के बारे मे सोचती रही ये भी सवाल मन मे था कि क्या वरुण वाकई ऐसा ही है जैसा गुप्ता जी ने उसके बारे मे कहा था ? आज जो कुछ उसने मेरे बाथरूम मे किया वो तो इसी ओर इशारा कर रहा था । दूसरी ओर मेरा खुद का जिस्म मेरे काबू मे नहीं था मेरे अंदर उत्तेजना कितनी जल्दी भरने लगी थी इसका तो खुद मुझे आश्चर्य हो रहा था शायद ये सब अशोक से ना मिल पाने वाले प्यार के कारण था जो अब बोहोत आगे बढ़ चुका था और फिर पिछले कुछ दिनों से मेरे साथ जो भी हो रहा था उससे भी मेरी दबी हुई कामाअग्नि सुलगने लगी थी । "ना जाने मेरी ये हवस मुझे किस अंधेरे दल-दल मे ले जाएगी " - ये सब मे बैठे हुए सोचती रही । थोड़ी देर ऐसे बैठने के बाद जब मन को कुछ शांति मिली तो मैं उठकर घर की छत पर घूमने चली गई शाम हो जाने की वजह से छत पर ठंड थी और फिर मैं अभी-अभी नहाई भी तो थी । छत पर घूमते हुए मैं गली की ओर  वाली रैलिंग पर पहुँची और नीचे गली मे देखने लगी
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 नीचे कुछ लोग थे जो अपने-अपने काम मे लगे हुए थे तभी मैंने देखा  एक बाईक हमारी गली मे आ रही है और आते हुए  सीधे वारुण के घर के सामने रुकी । मेरे उस बाईक को इतने गौर से देखने की वजह ये थी कि मैंने वो बाईक पहले भी देखी हुई थी बिल्कुल ऐसी ही बाईक नितिन के पास थी  उसपर बैठे आदमी ने हेलमेट लगाया हुआ था वो आदमी अपनी बाईक से नीचे उतरा और  वरुण के घर की डॉर बेल बजाई थोड़ी देर बाद किसी ने आकर दरवाजा खोला अब तक उस आदमी ने हेलमेट नहीं उतारा था  दरवाजा खुलने के बाद उस आदमी ने अपना हेलमेट उतारा । जैसे ही मेरी नजर उस आदमी के चेहरे पर गई एक बार के लिए मैं बिल्कुल हील गई 
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,वो बाईक वाला आदमी " नितिन " था , कम से कम मुझे तो वहाँ से ऐसा ही दिखाई दिया । शाम का वक्त था और वो मेरी नज़रों से काफी दूर खड़ा था मैंने उसे थोड़ा और गौर से देखने की कोशिश की पर वो तब तक वरुण के घर के अंदर चला गया । मेरा तो शरीर ठंडा पड़ गया , हालाँकि मैंने उसे पूरे साफ तौर पर नहीं देखा था पर जितना देखा उससे तो मैं उसके नितिन होने का ही अंदाजा लगा पाई । 
मेरे मन मे ढेर सारे सवाल एक साथ खड़े हो गए ," ये कौन था जो नितिन जैसा लग रहा था ? कही ये नितिन ही तो नहीं ? पर वो यहाँ क्या करेगा ? और उसका वरुण के घर से क्या रिश्ता ? वो तो इन्हे जानता भी नहीं । अगर ये नितिन ही हुआ तो ? ये यहाँ हो क्या रहा है ? क्या कोई खेल चल रहा है ? वैसे भी पिछले कुछ दिनों से मेरे साथ जो वाक्या हुए है वो भी तो कुछ नॉर्मल नहीं थे । "  इन्ही सब बातों को सोचते हुए मैं बैचेन होकर छत पर इधर उधर चक्कर काटने लगी । फिर मन मे ख्याल आया - " नहीं ये नितिन कैसे हो सकता है उसे तो बॉस ने आउट ऑफ टाउन भेजा हुआ है ।  वो यहाँ कैसे हो सकता है ? पर ये बाईक तो उसकी ही लगती है । क्या करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा ?" ये सब बातें मेरे जहन मे घूमने लगी । मैंने सोचा यहीं रुककर देखती हूँ जब वो बाहर आएगा तो एक बार फिर उसे ध्यान से देखने की कोशिश करूंगी । मैं वही छत की रेलिंग पर खड़ी हो गई और गली मे देखने लगी मुझे ज्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ा थोड़ी ही देर मे वरुण के घर का दरवाजा खुला और वो आदमी घर के बाहर आया , पर इस बार तो मैं उसे पहले जितना भी नहीं देख पाई क्योंकि वो घर के अंदर से ही हेलमेट लगाकर आया था । वो सीधे अपनी बाईक पर बैठा और उसे स्टार्ट करके जाने लगा एक अजीब बात इस बार ये हुई की जाने से पहले उसने एक बार पीछे मुड़कर देखा । उसे पीछे मुड़ता पाकर मैं  रेलिंग से हट कर नीचे छत पर  बैठ गई ।
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 मैं नहीं जानती की उसने किस ओर देखा था और क्यूँ ? पर मुझे येही लगा जैसे वो मेरे ही घर को देख रहा हो । फिर वो सीधा हुआ और अपनी बाईक तेजी से लेकर चला गया । उसके जाने के बाद मैं कितनी ही देर इन्ही खयालों और सवालों मे उलझी वहाँ घूमती रही ।
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#45
7 बज रहे थे मैं कीचेन मे खाना बनाने मैं व्यस्त थी तभी डॉर बेल बजी । मैं जान गई की अशोक आ गए है मैं अपना काम छोड़ गेट खोलने चली गई ,
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 गेट खोला तो सामने अशोक ही थे पर आज रोज की तरह मुस्कुरा नहीं रहे थे उनके हाथ मे एक फाइल थी । मैंने उन्हे देखते ही कहा - "आ गए आप " 

अशोक उसी शांत स्वभाव से बोले - " हम्म " 
और अंदर की ओर चल दिए । मुझे अशोक के स्वभाव मे कुछ गड़बड़ लगी ऐसा आमतौर पर तो वो नहीं करते । मैंने सोचा " आज ऑफिस मे जरूर कोई बड़ा काम रहा होगा ! या शायद कुछ काम अच्छा ना  हुआ हो । " अशोक चुपचाप जाकर हॉल मे  सोफ़े पर बैठ गए और मैं भी उनके पीछे - 2 चलती हुई हॉल मे आ गई और उनके बगल मे बैठ कर बोली - " क्या हुआ ? आज मूड बोहोत ऑफ लग रहा है । " 
अशोक ने अपने हाथ मे ली हुई फाइल सामने टेबल पर रखी और मेरी ओर देखते हुए बोले - " अरे हाँ ... । बस आज कुछ काम ज्यादा था इसीलिए थोड़ी थकान हो गई । " 
मैं - हम्म ..  समझ गई ये सब इस फाइल की वजह से हुआ होगा ? 
मैंने टेबल पर रखी हुई फाइल को उठाते हुए कहा । 
अशोक - " हाँ ... ये फाइल जाकर अलमारी के लॉकर मे रख दो । और ध्यान रखना ये बोहोत ही जरूरी फाइल है । 
मैं - ठीक है । आप बिल्कुल फिक्र ना करे  । 
अशोक - आह .. आज तो अभी से नींद आ रही है । पदमा जल्दी से खाना लगा दो प्लीज । 
 मैं -  आप बस जाकर फ्रेश होइए मैं खाना लगाती हूँ । फिर आप आराम करना । 
अशोक ने मुस्कुराकर मेरी ओर देखा और कहा - " ओके बीवी साहिबा । " इतना कहकर अशोक ने मेरे गाल पर अपने होंठों से एक चुम्बन दिया और फ्रेश होने चले गए । 
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 अशोक को मुस्कुराता देखकर मुझे भी खुशी मिली और मैं खाना तैयार करने कीचेन मे चली गई , थोड़ी ही देर मे मैंने सारा खाना टेबल पर लगा दिया और तब तक अशोक भी आ गए और फिर हम खाना खाने लगे । खाना खाते  हुए हम दोनों यूँही हल्की फुल्की बात करने लगे अचानक मेरे मन मे आया की क्यूं ना अशोक से नितिन के बारे मे पूछ लूँ कि वो शहर मे वापस आया है की नहीं ? इससे मेरे मन का वहम भी मिट जाएगा कि जिसको मैंने आज वरुण के घर जाते देखा वो नितिन हो सकता है या नहीं ।  मैंने यूँही बातों-बातों मे अशोक से पुछा - 
मैं - ओर आपके पुराने बॉस नितिन के क्या हॉल है ? वापस आ गए क्या ? 
अशोक नितिन की बात सुन खाना खाते हुए एकदम से रुक गए । मुझे कुछ हैरानी हुई,   एकदम से अशोक तो ऐसे रुक गए जैसे पहली बार नितिन का नाम सुन रहे हो , उनके चेहरे पर चिंता की लकिरे खिंच आई ।  अशोक ने  मेरी ओर देखकर सीधे सवाल किया  - " क्या तुम्हें वो कहीं दिखाई दिया ?"
अशोक के इस जवाब से मैं भी हैरान थी । मैंने अशोक की बात पर ना मे सर हिलाया और अशोक को कहा - " क्या बात है ? आप नितिन का नाम सुन इतने हैरान क्यों हो गए ? "  मेरी इस बात से अशोक एकदम से सकपका गए और बात को घूमते हुए बोले - " अअअ..नहीं तो वो बस ऐसे ही बोहोत दिनों बाद उसका जिक्र तुमसे सुन ना इसलिए । नितिन तो अभी यहाँ नहीं है उसे बॉस ने  तो आउट ऑफ टाउन भेजा है ना,  तो वो कैसे होगा यहाँ । " अशोक ने जल्दी - जल्दी मे जवाब दिया और फिर से खाना खाने लगे । इसके बाद मैंने अशोक को बीच-बीच मे देखा तो वो कुछ परेशान से लग रहे थे मैंने पूछना भी चाहा , पर फिर कही वो गुस्सा ना हो जाए इसलिए चुप ही रही और खाना खाने लगी । अशोक ने खाना खत्म किया और टेबल से उठकर जाने लगे मैंने पीछे से उन्हे आवाज दी । 
मैं - सुनिए । 
अशोक मेरी ओर घूमे ओर कहा - " हाँ बोलो पदमा । "
मैं - अब तो सुबह को इतनी सर्दी भी नहीं होती तो क्यों ना हम दोनों सुबह ग्राउंड मे  वॉक पर चले ।  
अशोक - हम्म .. बात तो ठीक है पर मुझसे तो अब इतनी जल्दी उठा नहीं जाता तुम एक काम करो तुम चली जाना । मैं भी कुछ दिनों मे शुरू कर दूंगा । 
इतना बोलकर अशोक बेडरूम की ओर चल दिए । मैं जान गई की अब वो सोना चाहते है । अशोक के जाने के बाद मैं  अपने बचे हुए काम निपटाने मे लग गई । सब काम खत्म करके मैं हॉल की  लाइट्स ऑफ करके बेडरूम की ओर जाने लगी तभी मेरी नजर टेबल पर रखी उस फाइल पर गई जो अशोक ने मुझे रखने के लिए दी थी मैंने उसे टेबल ये उठाया और लेकर बेडरूम मे आ गई और अलमारी का लॉकर खोलकर उसमे रखने लगी एकबार को उसे खोलकर भी देखा उसमे कंपनी की कुछ रिपोर्ट्स थी जो मेरी तो समझ से बाहर थी इसलिए मैंने उसे वही लॉकर मे रखकर लॉक लगा दिया और अलमारी बंद कर दी ।  फिर मैंने चेंज किया और अपनी साड़ी और ब्लाउज निकालकर एक नाइटी पहन ली और बेड पर लेट गई  बेड पर पहले से ही अशोक गहरी नींद मे थे पर मेरी आँखों मे नींद नहीं कई सारे सवाल और जिस्म मे बैचेनी थी । सवाल ये की "क्या जिसको मैंने आज वरुण के घर के बाहर देखा वो नितिन ही था या नहीं और अगर था तो वहाँ क्या कर रहा था ? वरुण के घर उसे क्या काम ? दूसरा आज नितिन का नाम सुन अशोक इतने परेशान क्यों हो गये ? ऐसी क्या बात हो सकती है ? " जिस्म की बैचेनी ये थी के आज वरुण के घर पर रहने के दौरान जो हुआ वो नहीं होना चाहिए था कहीं वरुण को कुछ पता तो नहीं चल गया उसकी बातों के अंदाज से तो येही लग रहा था कि उसे मुझ पर कुछ शक हो गया है । पता नहीं आगे क्या-2 होगा मेरी तो कुछ समझ मे नहीं आता । ये सब बाते सोचते हुए ही मेरी आँख लग गई ।
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सुबह 5 बजे अलार्म के बजने से मेरी नींद खुली । आज मे 1 घंटा पहले जाग गई क्योंकि मुझे वॉक पर जाना था । मैं अपने बिस्तर से उठी ओर फ्रेश होने वॉशरूम मे चली गई । जब मैं फ्रेश होकर वॉशरूम से बाहर आई मैंने देखा अशोक अभी भी सो रहे थे , वो काफी गहरी नींद मे थे इसलिए मैंने उन्हे जगाना ठीक नहीं समझा मैंने चुप-चाप अपनी अलमारी को खोलकर उसमे से अपना वॉक-सूट निकाला । और उसे पहनने बाथरूम मे चली गई, वॉक-सूट पहनकर मै वॉक के लिए घर से बाहर आई । अशोक अभी सो रहे थे तो मैंने गेट बाहर से लॉक कर दिया उसकी एक चाबी अशोक के पास भी थी तो वो उसे आराम से खोल सकते थे । घर के बाहर आकर मैंने देखा ग्राउंड मे ज्यादा लोग नहीं थे अभी कम ही लोग घूम रहे थे । मैंने सोचा " वरुण तो बोल रहा था कि ग्राउंड मे अब काफी लोग आने लगे है पर यहाँ तो इतने लोग नहीं । " मुझे वरुण भी कही दिखाई नहीं दिया । "खैर मैंने मुझे इन सब से क्या मैं तो घूम कर जल्दी अपने घर  वापस आ जाऊँगी । " ये विचार करके मैं ग्राउंड मे पहुँच गई । 
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ग्राउंड के सामने ही आगे की ओर एक पुराना बाग था सर्दियों मे किसी के उस ओर ना जाने की वजह से वहाँ बोहोत बड़ी-बड़ी झाड़ियाँ हो गई थी अगर कोई ग्राउंड पार करके उस ओर चला जाए तो कोई ये भी नहीं देख सकता था की वहाँ कोई है या नहीं ?  सुबह का वक्त था पर ज्यादा ठंड नहीं थी मैंने अपनी वॉक शुरू की , अभी मैंने चलना शुरू ही किया था के तभी मेरे पीछे से कोई आदमी दौड़ता हुआ आया और मुझे साइड से कंधा मार कर आगे निकल गया । उसका कंधा लगते ही मैं अपनी जगह से हील गई ओर बस गिरते-2 बची । मैंने संभालते हुए  गुस्से से उसे एक आवाज दी
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 - " ओए ..... कौन है बदतमीज़ ? दिखता नहीं है क्या ? " 
वो आदमी एक पल के लिए वहीं रुक गया , पर मेरी ओर पलटा नहीं मैंने उसे पीछे से देखा उसने एक ट्रैक-सूट पहना हुआ था । वहीं रुककर उस आदमी ने बिना पीछे मुड़े एक  हँसी भरी और आगे की ओर भागने  लगा । मैंने कहा - " रुको कौन हो तुम ? "
 मुझे बोहोत गुस्सा आया ये कैसा आदमी है अपनी गलती पर सॉरी कहने के बजाए हँस रहा है । मैं भी दौड़ने के मूड मे थी मैंने निश्चय किया कि एक बार इसे जरूर देखूँगी आखिर ये है कौन ? और फिर मैं उसे पकड़ने के इरादे से उसके पीछे भागने  लगी ।
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 वो बोहोत तेज भाग रहा था पर मैं भी हार मानने वाली नहीं थी  मैं उसके पीछे भागती रही ।  भागते हुए वो ग्राउंड को पार करके भाग मे घुस गया मैं उसके पीछे पकड़ने मे इतनी उलझी थी कि मुझे पता ही नहीं चला कब मैं भी उसके पीछे बाग मे पहुँच गई । बाग के अंदर आकर मैं रुक गई ओर जोर -2 से साँस लेने लगी मैं भागते हुए बोहोत थक गई थी और मुझे पसीना भी आ रहा था ।  तेज-2 साँस लेते हुए मैंने उस आदमी को चारों ओर देखा पर  वो ना जाने कहाँ गायब हो गया । मैं बाग के अंदर थी ओर चारों ओर उसे खोज रही थी पर वो आदमी मुझे कहीं नजर नहीं आया । बाग के अंदर चारों ओर इतनी घनी झाड़ियाँ थी के वहाँ आदमी तो क्या कोई परिंदा तक नहीं था । मैं चारों ओर से अकेली वहाँ घिरी हुई थी जब मेरा ध्यान इस ओर गया तो मैं घबरा गई अकेले उस सूनसान बाग मे वो भी इतनी घनी झाड़ियों के बीच , मेरे तो पसीने छूट गए ।  मैंने वापस ग्राउंड मे जाने मे ही भलाई समझी और मैं पीछे हटते हुए वहाँ से जाने लगी तभी उन घनी झाड़ियों मे से एक हाथ निकला और उसने मेरे हाथ को पकड़कर जोर से खींचा ।
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#46
" आह .... " मैं बस इतना ही कह सकी ओर अगले ही पल मैं उन झाड़ियों मे घिरी खड़ी थी जहां मे खड़ी वही एक अमरूद का छोटा सा पेड़ था जिसकी छाव मे मैं  और मेरे सामने वही आदमी खड़ा था जिसने मुझे अभी थोड़ी देर पहले ग्राउंड मे कंधा मारा था । " नितिन तुम ...... " मैंने अपनी घबराई हुई आवाज मे कहा । मेरे सामने नितिन खड़ा था जो मुझे देखकर मुस्कुरा रहा था । मैं बोहोत गुस्से मे थी ओर देखते ही मैं उस पर बरस पड़ी - " नितिन  तुम यहाँ ..... ? इस तरह से ....  तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया ? तुम जानते भी हो तुम क्या कर रहे हो ? " 
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नितिन पर तो जैसे मेरी बातों का कोई फ़र्क ही नहीं पड़ा वो वैसे ही मुझे देख कर मुस्कुराता रहा । मैंने उसे मुस्कुराते हुए देखकर एक बार फिर से उसे गुस्से मे कहा - " तुम हँस रहे हो ये कोई मजाक नहीं चल रहा यहाँ । जानते हो कितना डर गई थी मैं ? "
नितिन अब भी मेरी बात सुन कर हँसते हुए बोला - " कैसी हो पदमा ? "
नितिन बिल्कुल नॉर्मल स्वभाव मे बोला जैसे कुछ हुआ ही ना हो । मैंने उसकी बात का जवाब देते हुए कहा - " मुझे नहीं बताना । तुम हँस क्यों रहे हो इतनी देर से मैं कोई जोक सुना रही हूँ क्या  ? "
नितिन ने  मेरी ओर देखकर  कहा - "पदमा तुम गुस्से मे बोहोत प्यारी लगती हो । "  नितिन की ये बात सुनकर मैं थोड़ी सकपका गई
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 ओर बात को बदलते हुए कहा - " तुम बिल्कुल पागल हो , ऐसे किसी को धक्का देते है क्या अगर मैं गिर जाती तो ? "
नितिन - तो मैं तुम्हें उठा लेता । 
मैं - तुम रहने दो । तुम तो मुझे छोड़ कर वहाँ से भाग दिए थे । 
नितिन - नहीं , पहले तो मैं रुका था इसलिए ही तो रुका था कि तुम्हें देख सकूँ । 
अब तक मेरा गुस्सा भी काफी शांत हो गया था और घबराहट भी दूर हो गई थी । 
मैं - हम्म ।  पर तुम यहाँ कैसे तुम तो आउट ऑफ टाउन गए थे ना ? 
नितिन - हाँ  सब तुम्हारे पति की मेहरबानी है ?
मैं ( हैरानी से ) - अशोक ? क्या किया उन्होंने ?
नितिन - अरे छोड़ो वो सब तो बिजनेस की बाते है । मैं तो यहाँ तुमसे मिलने आया हूँ ? 
मैं - अच्छा  ! तो ये कैसा तरीका हुआ  मिलने का मुझे कितना डरा दिया । दिल की धड़कने कितनी बढ़ गई थी पता है ? 
ये सुनकर नितिन ने कहा - " ओह सॉरी पदमा , देखूँ कहीं तुम ज्यादा तो नहीं डर गई । " इतना बोलकर नितिन ने मेरा हाथ पकड़कर अपनी ओर खींचा । एक बार मे ही मैं खींचती हुई उसके सीने से जा टकराई मेरे बूब्स जो भागने की वजह से तनाव मे आ गए थे । नितिन के सीने से दब गए । " आह .... नितिन ये ...... "
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 मैं इतना ही बोल सकी तभी  नितिन ने अपनी उँगली मेरे होंठों पर रखकर कहा - " शशशश् ....... पदमा  । मुझे तुम्हारी धड़कने चेक करने दो । " इतना कहकर नितिन ने मुझे अपने एक हाथ के घेरे मे लिया और अपना दूसरा हाथ मेरे बूब्स के ऊपर मेरे दिल पर रख कर मेरी धड़कनो की चाल मापने लगा मेरी धड़कने जो अब कुछ नॉर्मल होने लगी थी नितिन के शरीर ओर हाथों की छुअन से फिर से तेज हो गई । नितिन ने मुझे बिल्कुल अपने  शरीर से मिला रखा था जिससे हमारी साँसे आपस मे टकराने लगी ।  नितिन का हाथ बिल्कुल मेरे बूब्स के ऊपर मेरे दिल पर था और उसकी आँखे मेरे चेहरे पर लगी हुई थी । फिर नितिन बोला - "सच पदमा , तुम्हारी धड़कन तो बोहोत तेज चल रही है । " 
मैं - अब तो यकीन आ गया ना , चलो अब छोड़ो मुझे । 
नितिन ने मेरी आँखों मे देखा और कहा - " छोड़ने का मन नहीं है , पदमा । " नितिन की बात सुनकर मैं थोड़ी घबरा गई ओर उसकी बाहों मे मचलते हुए छूटने की कोशिश करने लगी । 
मैं - नितिन .. छोड़ो ना । 
मुझे विरोध करता पाकर नितिन ने अपनी पकड़ मुझ पर कुछ ढीली कर दी इससे मुझे भी सहजता हुई और मैं सीधी खड़ी हो गई
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 पर अगले ही पल नितिन ने मुझे कस कर पकड़ा और अपने बिल्कुल करीब लाकर अपने होंठ मेरे होंठों से लगा दिए और जोर-2 से मेरे होंठों को चूमने लगा करने लगा । मैं उसके इस हमले से वहीं हक्की-बक्की खड़ी रह गई मुझे कुछ करने का तो क्या कुछ समझने का भी मौका नहीं मिला । नितिन के होंठ मेरे जिस्म पर अपना जादू चलाने लगे और मेरे बदन मे एक मीठा दर्द मचलने लगा ।
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 नितिन मुझे यहाँ - वहाँ कभी गाल पर , कभी होंठों पर, कभी गले पर चूमने लगा और मेरा जिस्म उसके हर चुम्बन से काँपने लगा । मैंने नितिन को रोकने के लिए उसे कहा - " आह .... नितिन ...... ये क्या ...... ये सब मत ...... करो ......... आह ....... नहीं .......  । " 
पर नितिन तो मेरी बात को बिल्कुल अनसुना कर मुझे लगातार चूमते हुए बोला - "  आह ..  पदमा , तुम तो हुस्न की देवी हो  बस थोड़ी देर ओर । मैं तुम्हारे बिना बोहोत तड़पा हूँ ।  " नितिन की बाते मुझे भी भटका रही थी पर  मैं जानती थी के अगर एक बार मेरी जिस्म की आग जाग गई तो फिर मैं चाहकर भी नितिन को रोक नहीं पाऊँगी इसलिए लगातार नितिन का विरोध कर रही थी । मेरा जिस्म नितिन के जिस्म से बिल्कुल मिल हुआ था तभी मुझे नीचे अपनी जांघों के बीच एक लंबी मजबूत चीज का अहसास हुआ जिसके अनुभव से ही मैं समझ गई ये नितिन का लिंग ही है जो अब तनाव मे आने लगा है अब मेरे लिए रुकना बोहोत जरूरी हो गया था क्योंकि नितिन के लिंग का दबाव मेरी योनि पर बढ़ने लगा था जिससे मेरे जिस्म मे एक भयंकर आग उमड़ने लगी । मैंने नितिन को " नहीं ....... आह....... छोड़ ..... दो ..... मुझे ....... ओह "
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 कहते हुए एक जोर का धक्का दिया । पता नहीं इतनी ताकत मुझमे कैसे आइ पर धक्का देते ही मैं नितिन की पकड़ से छूट गई और नितिन तेजी से पीछे हटते हुए  एक अमरूद के पेड़ से जा टकराया जो उसके बिल्कुल पीछे था । मैं नितिन की बाहों की  कैद से आजाद होते ही मुझे कुछ सुकून मिला  और मैं वही  खड़ी रही तभी मेरे ऊपर तेल के जैसी मोटी चिपचिपी कुछ बुँदे गिरने मैं जब तक कुछ समझ पाती तब तक वो बुँदे मेरे शरीर पर हर तरफ चेहरे , हाथों, कंधों, बूब्स के ऊपर गले पर हर जगह बिखर गई कुछ बुँदे मेरे होंठों पर भी गिरी जिससे मुझे उनका स्वाद पता चला 
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वो बिल्कुल शहद के जैसी थी  मुझे कुछ समझ ही नहीं आया के ये क्या हो रहा है उन बूंदों से बचने के लिए मैंने अपने हाथ ऊपर किये ताकि वो बुँदे मुझे पर ना गिर सके तभी वो बुँदे भी गिरना बंद हो गई । मैंने ऊपर की ओर देखा तो मेरी समझ मे सारी बात आ गई दरसल जिस अमरूद के पेड़ के नीचे मैं और नितिन खड़े थे उसके ऊपर एक शहद का छत्ता था और जब मैंने नितिन को खुद से दूर करने के लिए धक्का दिया तो वो अमरूद के पेड़ से टकरा गया जिससे शहद के उस छत्ते से शहद की बुँदे गिरने लगी जो सीधे मुझ पर पड़ी क्योंकि मैं ही उसके नीचे खड़ी थी । मैंने अपनी हालत देखी मेरे शरीर पर हर जगह शहद गिरा  हुआ था मेरा सारा शरीर उससे  चिपचिपा हो गया । मैंने सामने नितिन की ओर देखा वो मुझे देख कर मुस्कुरा रहा था । उसे अपनी ओर ऐसे मुस्कुराता देख मैने कहा - " तुम हँस रहे हो देखो तुम्हारी वजह से ये क्या हो गया ? " 
नितिन उसी तरह मुस्कुराता हुआ बोला - " मैंने क्या किया ? तुम्ही ने मुझे धक्का दिया था , ना तुम मुझे धक्का देती ना ये होता । लगता है भगवान भी येही चाहते है की तुम मेरे पास रहो । " इतना बोलकर वो जोर जोर से हँसने लगा । 
मैं - बस बस .. अब ज्यादा बाते मत बनाओ । कुछ करों ये शहद मेरे सारे शरीर पर चिपक रहा है । 
नितिन - मैं क्या करूँ तुम जाना चाहती थी जाओ अब ?
मैं ( थोड़ा चिढ़ते हुए )- पागल हो गए हो क्या  मैं ऐसे घर नहीं जा सकती नितिन ये तुम भी जानते हो, मैं अशोक को क्या जवाब दूँगी ? 
नितिन - तो मैं क्या करूँ तुम्ही बताओ । 
मैं ( थोड़ी रुदासी की आवाज मे ) - प्लीज कुछ भी करके इस शहद को मेरे शरीर से पोंछ दो ,इससे मुझे बोहोत असहजता हो रही है ।
नितिन अपनी जगह से मेरे करीब आया और अपनी नजरे एक बार मेरे जिस्म पर  ऊपर से नीचे तक फिराई फिर एक कुटिल मुस्कान से बोला - " एक तरीका है पदमा , पर कहीं तुम बुरा ना मान जाओ । "
मैं ऐसे खड़े खड़े बोहोत परेशान हो गई थी मेरे जिस्म पर हर शहद बिखरा हुआ था और उसकी चिपचिपाहट मुझे बोहोत परेशान कर रही थी । मैं कैसे भी इससे छुटकारा पाना चाहती थी इसलिए मैंने बिना कुछ सोचे नितिन से कहा - " तुम कुछ भी करो नितिन पर बस इस शहद को मेरे शरीर से हटाओ  । "
नितिन एक बार फिर से मेरी ओर देख कर मुस्कुराया और फिर मेरे बिल्कुल करीब आ गया इतने कि हमारी साँसे आपस मे मिलने लगी मैं सोच ही रही थी के ये नितिन क्या कर रहा है इतने मैं ही नितिन ने मेरे चेहरे के पास आकर अपनी जीभ बाहर निकाली और मेरे गाल पर गिरी हुई शहद की बूंदों को चाट लिया ।
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 मैं एकदम से सिहर गई और नितिन से थोड़ा पीछे हटकर घबराहट मे बोली - "ये ये ... त..तुम क्या कर रहे हो नितिन ? " 
नितिन - अरे तुमने ही तो कहा था कि कैसे भी शहद को साफ करूँ अब यहाँ कोई ओर चीज तो है नहीं जिससे मैं इसे साफ कर सकूँ । 
मैं - लेकिन तुम ऐसे .....  नहीं कर सकते । 
नितिन - "क्यों क्या हुआ पदमा ? अब इस शहद को तो हटाना ही होगा ना । आओ मुझे करने दो । " इतना कहकर नितिन फिर से मेरे पास आने लगा , पर मैं ऐसा अपनी मर्जी से भला कैसे होने दे सकती थी । 
मैं - प्लीज , बात को समझो नितिन तुम ऐसे इसे साफ नहीं कर सकते । 
नितिन( नाराजगी से ) - तो ठीक है मैं जाता हूँ तुम खुद ही कर लेना ।
ये कहकर नितिन जाने लगा मैं बोहोत घबराई हुई थी मेरी कोई यहाँ मदद करने वाला भी नहीं था ।  मैं ऐसे घर भी नहीं जा सकती थी  "अगर अशोक ने पुछा की ये शहद कैसे लगा तो मैं क्या जवाब दूँगी और अगर किसी गली वाले ने मुझे ऐसे देख लिया तो वो भी क्या सोचेंगे । " - मैं यही सोच रही थी और मैंने नितिन को जाने से रोका - " नितिन रुक जाओ प्लीज । " मेरी आवाज सुन नितिन वही रुक गया । मैंने आगे कहा - " अच्छा...  ठीक है ...  जैसा तुम्हें ठीक लगे .... करलो .. । " 
नितिन वापस मुड़ा इस बार उसकी आँखों मे एक अलग ही चमक थी वो  धीरे -धीरे मेरी तरफ बढ़ने लगा जैसे - जैसे नितिन मेरी ओर आ रहा था घबराहट और रोमांच मे मेरी धड़कने तेज हो रही थी । "शहद तो मेरे जिस्म के अंग-अंग पर लगा है  तो क्या नितिन हर जगह से ऐसे ही अपने होंठों से साफ करेगा । " येही सोचते हुए मुझ पर रोमांच छाने लगा । नितिन फिर से मेरे बिल्कुल करीब आया और आकर कहा - " 
सोच लो , तुम्हें कोई परेशानी तो नहीं वरना बाद मे ये मत कहना की मैंने तुम्हारी मजबूरी का फायदा उठाया है । "
मैं ( मन मे )- फायदा तो तू उठा ही रहा है कमीने , पर अभी मेरे पास कोई ओर चारा भी नहीं  है ।
रुदासी से मैंने नितिन से कहा - नहीं नितिन तुम बस कैसे भी इसे साफ करदों ।
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घबराओ मत पदमा कुछ नहीं होगा , मैं हूँ ना । "
 नितिन ने अपने ट्रेक-सूट की चैन को ऊपर से पकड़ा और उसे नीचे करके खोल दिया और अपना ट्रेक सूट उतारने लगा । उसके ऐसा करने से मैं हैरान थी मैंने उससे पुछा - "नितिन  तुम अपना ट्रैक-सूट क्यों उतार रहे हो इसकी क्या जरूरत है ?" नितिन ने अपना ट्रैक-सूट उतारते हुए कहा - " पदमा तुम्हारे शरीर पर कई जगह शहद गिर गया है कहीं उसे साफ करते हुए वो मेरे ट्रैक-सूट पर ना लग जाए । " नितिन के इस जवाब का मेरे पास कोई उत्तर न ही था , नितिन ने ट्रैक-सूट के नीचे कुछ पहना था उसके उतरते ही उसकी चिकनी मजबूत छाती मेरे सामने आ गई मेरी धड़कन तो उसे ऐसे देख कर ही तेज होने लगी आगे क्या होगा इसका तो मुझे अंदाजा ही नहीं था । 
 उसके बाद नितिन ने अपना खेल शुरू किया , उसने मुझे मेरी कमर से पकड़ा और अपनी ओर खिंच कर मुझे खुद से सटा लिया और फिर बिना देरी किये अपने होंठ मेरे दूसरे गाल पर लगाकर वहाँ पर से शहद को चूसने लगा । "आह ..... ना ... । "
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 नितिन के होंठ अपने जिस्म पर पड़ते ही मेरी एक धीमी कामुक आह निकल गई  तो साँस फूलने लगी शर्म से मैंने अपनी आँखे बंद करली और अपनी उत्तेजना को रोकने के लिए अपनी मुट्ठी भींच ली ।  नितिन के दोनों हाथ मेरे नितम्बों पर थे और उन्हे हल्के -हल्के सहला रहे थे उसने  अपने होंठ आगे बढ़ाए और उन्हे मेरे माथे ,आँखों और चेहरे पर फिराते हुए वहाँ पर लगा शहद चूसने लगा नितिन ने एक - एक जगह को खूब चूस -चूस कर साफ किया फिर वो अपने होंठ मेरे चेहरे से हटाए बिना नीचे की ओर उन्हे फिराता हुआ बढ़ने लगा और जैसे ही उसके होंठ मेरी गर्दन पर आए वहाँ पर भी जोर -2 से चूमने और चूसने लगे नितिन के हर वार के साथ मेरी कामुकता बढ़ने लगी और साँसे भारी हो चली । अब नितिन के होंठ कहाँ -कहाँ जाएंगे इस रोमांच से धड़कनों ने भी रफ्तार पकड़ ली ,नितिन के हाथ अब मेरे नितम्बों को ना सिर्फ सहला रहे थे बल्कि बीच-बीच मे दबाने भी लगे थे । 
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#47
 अपने सीने से चिपका के नितिन ने अपने होंठ मेरे कंधों पर लगाए और अपना जितना हो सकता था उतना मुहँ खोलकर मेरे कँधे को अपने मुहँ मे भर लिया और उसकी चुसाई शुरू कर दी
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 नितिन के इस वार से तो मैं पागल ही हो गई मेरा पूरा बदन वासना की लहरों से काँपने लगा और मेरी योनि भी अब गीली होकर मचलने लगी , कब मेरे हाथों ने नितिन को अपनी बाहों मे जकड़ लिया मुझे खुद पता नहीं चला ,  फिर अचानक नितिन ने मुझे एक पल को मुझे खुद से अलग किया मैंने इसकी उम्मीद तो नितिन से बिल्कुल नहीं की थी मैंने अपनी हवस मे लाल हो चुकी आँखों से एक बार नितिन की ओर देखा और अगले ही पल नितिन ने मुझे मेरे कंधों से पकड़कर तेजी से घूमा दिया और मेरे पीछे आकर मेरी गर्दन, कंधों पर तेजी से अपने होंठ रगड़ने लगा
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 उसकी इस हरकत ने आग मे घी का काम किया और मैं आहें भरने लगी बड़ी मुश्किल से मैंने अपने होंठ काटते हुए अपनी आहं को उन झाड़ियों मैं फेलने से रोका ।  मुझे ये भी डर था की कहीं कोई मेरी इन कामुक आंहों को सुन ना ले । नितिन के हाथ अब मेरे नितम्बों से हट गए थे पर अब वो मेरे पेट से होते हुए उस जगह आने लगे थे जहां का स्पर्श पाकर मैं अक्सर बेकाबू हो जाती और वो जगह थी मेरे 'बूब्स ' ।  पीछे खड़ा होने की वजह से नितिन का तना हुआ लिंग मुझे मेरे नितम्बों पर चुभने लगा और उसके हाथों ने आगे बढ़कर मेरे बूब्स को थाम लिया और उन्हे सहलाने लगे । अब नितिन मेरी गर्दन से चूमता हुआ मेरे कान तक आया और  धीरे से उसे अपने होंठों मे भरकर चूसने लगा । 
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सुबह के समय ठंड थी पर  मेरा जिस्म वासना मे सुलगने लगा , बदन आग की भट्टी की तरह गरम हो गया । नितिन के हाथ अब मेरे बूब्स को धीरे-धीरे दबाने लगे और मेरी योनि भर-भरकर पानी छोड़ने लगी । फिर नितिन ने पीछे से मेरे कान से अपने होंठ हटाकर धीरे से मेरे कान मे कहा- "पदमा , शहद नीचे की ओर तुम्हारी पीठ पर भी फैल गया है उसे साफ करने के लिए मुझे तुम्हारा टॉप खोलना होगा ।" मुझे इस वक्त कुछ भी सूझ नहीं रहा था मैं बस जो हो रहा था होने देना चाहती थी मुझे कुछ ना कहता देख नितिन ने फिर बिना कोई सवाल कीये मेरे वॉक-टॉप की चैन को पीछे से नीचे कर दिया और बिना एक पल की देरी कीये अपने दोनों हाथों से उसे  पकड़कर उतार दिया और वही जमीन पर फेंक दिया । टॉप के उतरते ही मेरे बूब्स पर सिर्फ ब्रा ही रह गई थी जो मेरे उन्नत बूब्स को बड़ी मुश्किल से थामे हुई थी नितिन के हाथों ने अब मेरे बूब्स को ब्रा के ऊपर से पकड़ लिया और अपने होंठों से  मेरी पीठ को चूमते हुए उसके हाथ मेरे बूब्स को और भी दबाव के साथ मसलने लगे । 

मैं  -आह .....   नितिन ..... नहीं ..... ये क्या ....... नाह ....... ?
नितिन ( एक पल को मेरी पीठ से अपने होंठ हटाते हुए ) - क्या हुआ पदमा ?
मैं - नितिन ....... .... आह ..... तुमने ..... टॉप .... नहीं ......... ओह ... । 
नितिन अब बातों के जवाब देने मे बिल्कुल दिलचस्प नहीं था उसने बिना कोई जवाब दिए मेरे बदन पर चुंबनों की झड़ी लगा दी और मैं उसके हर चुंबन के साथ मेरा जिस्म जलता हुआ अंगारे बरसाने लगा ।  नितिन के हाथ अब जोर-जोर से मेरे बूब्स का मान-मर्दन कर रहे थे और साथ ही साथ बीच-बीच मेरे कठोर हो चुके निप्पलस को भी मरोड़ने लगे ।   शरीर से शहद तो कब का साफ हो चुका था अब तो जो कुछ चल रहा था वो तो बस वासना का खेल था और मैं जानती थी के नितिन ये खेल अंत तक खेलना चाहता है पर मैं अभी ये नहीं होने दे सकती थी नितिन के हाथ मेरे बूब्स पर सख्त हो गए थे उन्हे मसलने लगे थे 
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और पिछे से उसका लिंग अब मेरे नितम्बों पर धक्के लगाने लगा था ।          मैंने अपनी हवस भारी आवाज मे नितिन से कहा - 'आह ..... नितिन ...... अब .... नहीं ..... बस ...... अब तो... शशशहद .... साफ हो ..... ओह ........  गया ......... है ...... अब ..... तुम ....... हट ....... जाओ ....... ।" 
नितिन - बस थोड़ी देर और पदमा अभी कुछ हिस्सा बाकी है । 
मैं ( अपनी साँसे रोकती हुई ) - नहीं ...... नितिन ...आहं  ........ अब ....... बस ..........  करो ........  ना ह ..........  कोई ... आह .... आ .... जाएगा ........ । 
नितिन ( बेफ़िक्री से) - यहाँ कोई नहीं आता पदमा , तुम बस मजा लो । 
मैं - नहीं .... नितिन .... प्लीज ....... आह ....... । 
मेरे इतना कहते ही नितिन ने मुझे पीछे से मजबूती से पकड़ा और मेरे दोनों पैर उठाकर नीचे गिरा दिया और खुद मेरे ऊपर आ गया, मेरे साथ अचानक से हुई इस घटना से मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आया मेरे कुछ  बोलने से पहले ही नितिन ने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए और उन्हे जोर - जोर से चूसने लगा
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 ब्रा मे कैद मेरे उन्नत बूब्स उसकी नंगी छाती के नीचे दब गए । हवस की आग अब मुझ पर भी छा चुकी थी और अब मैं भी अपने को रोक नहीं पाई और नितिन के चुम्बन का जवाब अपने होंठों से देने लगी नितिन का एक हाथ मेरे बूब्स को पकड़े हुए था और उसे जोर -जोर से मसल रहा था और दूसरा हाथ नीचे जाकर मेरी पेंट्स मे घुसने की कोशिश कर रहा था उसके हाथ को ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ी और उसका हाथ मेरी पेंट्स से होते हुए नीचे मेरी पेन्टी पर पहुँच गया और उसके ऊपर से ही मेरी योनि को सहलाने लगा । अपनी योनि पर नितिन का हाथ जाते ही मैं  उछल पड़ी और जोर से आहें भरने लगी, 
मैं - आह ......नितिन ...... प्लीज ....... उसे ...... मत ..... छूओ ........ मैं  मर ....नाह ........ जाऊँगी ......... प्लीज ....... ओह ....... नहीं ....... नहीं ........ ।" 
पर नितिन मेरी कहाँ सुनने वाला था वो तो मेरी हर बात को अनसुना कर बस अपने काम मे लगा रहा  योनि तो पहले से ही गीली थी नितिन के हाथ का स्पर्श मिलते ही वो पानी के साथ -साथ आग भी उगलने लगी कामुकता मैं मैंने अपने होंठ काट लिए और नितिन को जोर से अपनी बाहों मे कसकर उसकी पिठ पर अपने नाखून चुभा दिए ।
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 फिर नितिन नीचे की ओर आता हुआ मेरे बूब्स पर आया और बिना देरी किये मेरी ब्रा को ऊपर खिसका दिया और मेरे बूब्स को अपने मुहँ मे भरकर जोर -जोर से चूसने लगा । 
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" आह .... नितिन ..... चूसो ...... इन्हे ..... जी ...... भरकर ..........  हाँ ..... हाँ .....ये ..... तुम्हारे..........  ही है .............ओह ..... नितिन ........ । " मैं आहें भरते हुए बोलती गई । मेरी आहें  सुन नितिन ओर  जोश मे आ गया और मेरे बड़े -बड़े बूब्स को जितना हो सके अपने मुँह मे भरकर चूसने लगा नीचे से अब उसका हाथ भी मेरी योनि को मसलने लगा था । नितिन ने जी भरकर मेरे बूब्स का सारा दूध पिया वो पूरी शिद्दत के साथ कभी मेरे एक बूब्स को कभी दूसरे बूब्स को बिना साँस लिए चूसता गया बीच -2 मे वो मेरे निप्पलस को भी अपने होंठों मे भर लेता और उन्हे अपनी जीभ से छेड़ता । बूब्स से अपनी प्यास बुझा लेने के बाद वो  उनको छोड़ नीचे मेरी नाभी पर आया और वहाँ पर चूमने चाटने लगा  । नितिन ना सिर्फ मेरी नाभी को चूम रहा था बल्कि अब वो अपनी जीभ निकालकर मेरी नाभी मे घूमाने लगा था । 
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बैचेनी मे मैं अपना सर इधर - उधर पटकने लगी  नितिन को रोक पाना अब मेरे बस मे नहीं रहा था मैं अपनी वासना को कैसे भी मिटाना चाहती थी बस । मेरे जिस्म की वो हालत थी जो जल बिन मछली की होती है जैसे -जैसे नितिन नीचे आता गया मेरी हवस अपने परवान चढ़ती गई नितिन ने नीचे आकर मेरी वॉक-पेंट्स को अपने दोनों हाथों से पकड़ा और एक झटके मे नीचे खिंच दिया अब मैंरी योनि को उसके सामने आने से बस मेरी पेंटी ने रोका हुआ था । मैंने कभी सोचा भी नहीं था के एक दिन मैं अपने ही पति के बॉस के साथ यूँ झाड़ियों मे इस हालत मे होऊँगी शर्म से मैंने अपनी आँखे बंद करली और अपने चेहरे को अपने हाथों से ढक लिया अब किसी भी वक्त मेरी योनि नितिन के सामने आ सकती थी नितिन भी इस पल का इंतजार नहीं करना चाहता था और उसने बिना देर कीये मेरी पेन्टी को भी पकड़कर नीचे खेन्च दिया । 
" आह पदमा.... कितनी सुंदर चुत है तुम्हारी ......।  "- नितिन मेरी योनि को देखते ही  बोल पड़ा । उसकी बात सुनकर मैं शर्म से लाल हो गई पर कुछ बोल नहीं सकी । फिर नितिन आगे बोला - "पदमा .. तुम्हारी चुत तो रस  से भीगी हुई है ... मैं ये रस पीना चाहता हूँ पदमा .. प्लीज मुझे ये रस पीने दो । "
"ये नितिन क्या बोले जा रहा है ये मुझे पागल करके छोड़ेगा ये मेरी योनि का चुतरस पीना  चाहता है ऐसा तो कभी मेरे साथ किसी ने नहीं किया अब मैं क्या करूँ । "- मैंने मन मे सोचा । नितिन  जिस बेबाकी के साथ ये सब बातें बोल रहा था उससे मेरी हवस की आग और भी बढ़ती जा रही थी , नितिन ने फिर से कहा - "बोलो ना  पदमा ? क्या मैं ये रस पी लूँ । "    मैं भी अब अपने जिस्म की आग को कैसे भी ठंडा करना चाहती थी इसलिए अपनी सभी सीमाएं और मर्यादा तोड़ते हुए नितिन से बोली - " आह ... हाँ .... पी .... लो ..... नितिन ..... अब ..... जल्दी  करो ...... । " इसके बाद नितिन ने बिना कोई सवाल पूछे और बिना देरी कीये अपने होंठ मेरी योनि से लगा दिए , नितिन के होंठ अपनी योनि पर पड़ते ही मुझे ऐसा लगा जैसे मैं हवा मे उड़ रहीं हूँ मेरे जिस्म मे चींटियाँ रेंगने लगी और मैं तड़पते हुए आहें भरने लगी नितिन के होंठ अब तेजी से चल रहे थे और वो अपनी जबान से मेरी योनि के दाने वो चाटने लगा ।
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 मेरे लिए ये अनुभव बिल्कुल नया था आज से पहले कभी किसी ने मेरी योनि को नहीं चाटा था मुझे बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था की इसमे इतना मज़ा आता है । और अब मैं इस मजे मे डूब जाना चाहती थी इस वक्त मुझे किसी की परवाह नहीं थी ना अपने पति की , ना उनकी इज्जत की और ना ही अपनी मर्यादाओ की मुझे बस इतना पता था कि यहाँ एक मर्द है जो मुझे वो सुख दे रहा है जो मुझे मेरे पति ने कभी नहीं दिया और शायद दे भी ना पाए । नितिन ने मेरी योनि चूसने के साथ - साथ अपनी एक उँगली भी मेरी योनि मे घुसाने की कोशिश करने लगा   और फिर उसने एक पल के लिए अपने होंठ मेरी योनि से हटायें और अपनी उँगली को उसमे घूसा दिया  । " आह .......... ओह .......... आह ........... "- मैं जोर से आहें भरते हुए तड़पने लगी नितिन ने अपने एक हाथ को ऊपर कर मेरे बूब्स को पकड़ लिया और उन्हे मन-मर्जी से मरोड़ने लगा । योनि मे उँगली घुसाते हुए नितिन बोला - "पदमा तुम्हारी चुत तो बोहोत कसी हुई है , लगता है अशोक तुम्हारी अच्छे से चुदाई नहीं करता । "नितिन की बात का मैं कोई जवाब नही देना चाहती थी मैं बस लेते हुए उसकी हरकतों का मज़ा उठाने लगी । पर नितिन तो मुझसे सब कुछ सुनना चाहता था ना जाने उसे इसमे क्या मजा आ रहा था उसने अपनी उँगली की रफ्तार मेरी योनि मे तेज करते हुए मुझसे फिर से पुछा - " बोलो ना पदमा , क्या नितिन तुम्हारी अच्छे से चुदाई नहीं करता । " अपनी योनि मे तेजी से हुए इस वार से मैं मचल उठी और नितिन से कहा - " नहीं ........... आह ........ अब उनकी ........ बात ...... ना करो .........नितिन ......... ओह ....... प्लीज ...... थोड़ा ... धीरे ..... करो .......ओह ....... । "           मेरे इतना कहने पर नितिन ने अपनी उँगली की रफ्तार मेरी योनि मे ओर  तेज करदी । मैं तो पहले से वासना मे तड़प रही थी नितिन के ऊँगली की रफ्तार तेज होने से मैं ओर भी कामोत्तेजित होकर जमीन पर आहें भरते  हुए अपने हाथ पैर ईधर -उधर मारने लगी ।  नितिन ने मुझे पुकारा - " पदमा !" मैंने आहें भरते हुए अपनी काँपती आवाज मे कहा -"   आह ...... ओह ......  हाँ ..... बोलो .।" नितिन - "मुझे तुमसे कुछ काम है ।"
मैं - आहं ....... हाँ ........  जल्दी  बोलो .....नितिन ...... । 
नितिन - कल अशोक एक फाइल लेकर घर आया होगा । 
मैं  - हाँ ....... .... आह ...... ........ ओह ...... करो ..... ओर ...... करो ........ । 
नितिन - वो फाइल मुझे चाहिए , दोगी ना पदमा । 
मैं - आहं ...... तुम्हें .... वो ..... क्यूँ ...... चाहिए ........ ओह ....... 
नितिन -   मेरे लिए वो फाइल बोहोत जरूरी है  पदमा, उस फाइल के मिलने के बाद ही मैं वापस शहर आ पाऊँगा , बोलो तुम मेरे लिए उसे लाओगी ना । 
मैं - आह .... पर ..... वो ... तो .... अशोक के ..... पास ........  ओह ..... है ......, मेरे पास ...... नहीं ....... । 
नितिन - तो तुम्हें अशोक के पास से उसे मेरे लिए लाना होगा । लाओगी ना ..... ?
नितिन की इस बात का मैंने कोई जवाब नहीं दिया बस वहीं लेटे-2 आहें भरती रही । मैंने सोचा "पता नहीं इस नितिन के बच्चे को वो फाइल क्यों चाहिए और वो भी इस समय ये उसकी  बात क्योँ कर रहा है । " मुझे कोई जवाब ना देता देख नितिन ने अपनी उँगली की रफ्तार मेरी योनि मे धीमी करदी और बोला - " बताओ पदमा .. ? दोगी ना मुझे वो फाइल .... बोलो नहीं तो मैं रुक जाऊँगा .... । " 
मैं कुछ भी बर्दास्त कर सकती थी पर इस वक्त नितिन का रुकना नहीं । मैं बोहोत प्यासी थी और  मैं अपने चरम पर पहुँचने के बोहोत करीब थी और अब मेरे लिए रुकना संभव नहीं था मैंने नितिन की बात का जवाब देते हुए कहा  - "आह ..... हाँ ... लाऊँगी .......  ओह ........ बस ........अब रुको ........ मत नितिन ........ आह ....... करते ....... रहो ......... आहं .... मैं ..... अब ..... रुक .... नहीं .... सकती ...... ।"   
नितिन को अपना जवाब मिल गया था और अब वो फिर से अपने छोड़े हुए काम मे लग गया । उसने फिर से अपने होंठ मेरी योनि पर लगाकर चूसना शुरू किया और अपने एक हाथ से मेरे बूब्स को पकड़कर जोर - जोर से उन्हे मसलने लगा और दूसरे हाथ की उँगली को तेजी से मेरी योनि के अंदर -बाहर करने लगा और मैं एक बार फिर  मेरी आहे उन झाड़ियों मे गूंजने लगी मैंने अपने हाथ नितिन के सर के बालों मे उलझा दिए और उसके सर को अपनी योनि पर दबाने लगी नितिन भी समझ गया था की मैं झडने के बोहोत करीब हूँ इसलिए उसने भी मेरी योनि को जमकर चूसना शुरू कर दिया और अपनी  ऊँगली को मेरी योनि ने डालकर अंदर जोर-जोर से घुमाने लगा ।
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मैं - आहं .... हाँ ..... नितिन ...... ओर करो ....... तेजी से ....... हाँ ...हाँ ... हाँ ....... वहीं पर ...... ऐसे ही दबाओ ......... मेरे बूब्स को ......... आह .... आह ...... आह ...... ओह ... जोर ........ से ....... चाटों मेरी ........ मेरी .... भगनसा ........ को ........ आहं ..... लूट ...... लो ....... मुझे ..... लूट ...लो ...... आह ..... । 
 अपनी जिस्म की हवस मे मुझे कुछ होश ही नहीं रहा मैं क्या बोले जा रही हूँ  नितिन की हरकतों ने मुझे बिल्कुल पागल कर दिया मुझे इतना मज़ा आ रहा था कि मैं बता नहीं सकती । नितिन ने अपनी उँगली की रफ्तार ओर भी तेज करदी थी और उसने मेरी योनि के दाने को अपने होंठों मे भरकर चूसना शुरू कर दिया मैं अपने चरमसुख पर कभी भी पहुँच सकती थी  फिर मुझे अपने अंदर वोही जाना पहचाना सैलाब आता हुआ महसूस हुआ  और एक कामुक लंबी आहं के साथ मेरी योनि ने ढेर सारा चुतरस छोड़ दिया नितिन ने अपनी उँगली मेरी योनि के अंदर से निकाल ली और मेरे बूब्स को भी छोड़ दिया और मेरी योनि से निकलने वाले सारे रस को अपना मुहँ वही लगाकर पी गया । 
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#48
 मैं कितनी ही देर वहाँ ऐसे ही लेती हुई तेज -तेज साँसे लेती रही  मेरी हवस का की आग अब बुझ चुकी थी  और अब मुझे अपनी हालत देखकर शर्म आ रही नितिन भी अब मेरी योनि से हटकर खड़ा हो गया और अपना ट्रेक-सूट उठाकर पहनने लगा । मैं भी धीरे -2 अपनी जगह से उठी मेरा जिस्म पूरा थका हुआ लग रहा था और मैं पसीने से भीगी हुई थी । जब मुझे अपनी हालत का होश आया तो मैंने अपनी ब्रा को ठीक किया 
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और खड़े होकर अपनी पेन्टी और वॉक-पेंट्स ऊपर चढ़ा ली । सामने नितिन खड़ा होकर मुस्कुरा रहा वो मेरी हालत देखकर खुश हो रहा था और मैं उसके सामने सिर्फ ब्रा मे खड़ी होकर शर्मिंदा हो रही थी अपने जिस्म को उसकी नज़रों से बचाने के लिए मैंने उसकी ओर से घूम गई  और अपनी पीठ उस ओर करके अपना वॉक-टॉप उठाकर पहहने लगी नितिन अभी भी पीछे से अपनी नजरे मेरी पीठ और कमर पर गड़ाएं हुए था । मैंने जल्दी -2 अपने कपड़े पहने और अपने शरीर पर लगी मिट्टी और घास कर तिनको को साफ करने लगी । मुझे वहाँ रुकने मे इतनी शर्मिंदगी हो रही थी की मैं क्या बताऊ मैं जल्द से जल्द अपने घर जाना चाहती थी इसलिए अपने आप को सहज करके मैंने नितिन की ओर देखा वो पहले से ही मुझे देख रहा था । 

मैं - ये सब ठिक नहीं हो रहा नितिन । 
नितिन(अनजान बनते हुए ) - क्या पदमा ?
मैं - तुम सब जानते हो । ये सही नहीं तुम्हें मुझसे नहीं मिलना चाहिए , मैं एक शादीशुदा औरत हूँ और तुम भी शादीशुदा हो । 
नितिन (लापरवाही से )- तो क्या हुआ पदमा ? शादीशुदा लोग आपस मे मिल नहीं सकते क्या ?
मैं - तुम समझते क्यों नहीं नितिन ? अगर कुछ ऊँच - नीच हो गई तो तुम्हारा तो कुछ नहीं बिगड़ेगा पर मैं कहीं की नहीं रहूँगी , इसलिए आज के बाद तुम मुझसे कभी मत मिलना और मेरे घर भी मत आना । 
नितिन मेरी बात सुनकर मेरे करीब आ गया और कहा  -"तुम ज्यादा परेशान ना हो पदमा , कुछ नहीं होगा । "
 मैं - नहीं नितिन ये सब गलत है और हमे इसे रोकना होगा । 
नितिन - पदमा मैं क्या करूँ तुम हो ही इतनी सुंदर तुम्हें देखते ही मैं अपने होश-हवाश खो देता हूँ । 
नितिन की बात सुनकर मैंने अपनी नजरे नीची करते हुए बोली - "तुम ये सब बातें ना कहो नितिन , बोहोत देर हो गई है अशोक मुझे ढूंढ रहे होंगे ।" 
[Image: 26939305f676115e1418ad25e29df8efa21d8361.jpg]
नितिन - ठीक है पर तुम्हें अपना प्रोमिस तो याद है ना ?
मैं - कौन सा प्रोमिस ?
नितिन - ये भी भूल गई , वही प्रोमिस जो तुमने अभी थोड़ी देर पहले मुझसे मजे लेते हुए किया । 
मैं ( थोड़ा गुस्से से ) - मजे लेते हुए क्या मतलब है तुम्हारा ?
नितिन - अरे तुम तो नाराज हो गई मैं तो मजाक कर रहा था मेरा मतलब उस फाइल से था वो तुम मुझे कब तक ला सकती हो । 
मैं - मुझे नहीं पता देखूँगी , वैसे तुम्हें वो क्यूँ चाहिए ?
नितिन - मेरे लिए वो फाइल बोहोत जरूरी है पदमा , एक वही जरिया है मेरे लिए शहर मे वापिस आने का । 
मैं - तो तुम वो फाइल अशोक से ही क्यों नहीं ले लेते । 
नितिन - नहीं पदमा , उसे तो इसकी खबर भी नहीं लगनी चाहिए वो इसे मुझे कभी देगा
मैं(हैरानी से ) - क्योँ ?
नितिन - क्योंकि मेरे यहाँ आने से उसके हाथ से ग्रुपहेड की पॉजिशन चली जाएगी । बस तुम मुझे वो फाइल ला दो पदमा मैं तुम्हें सब कुछ समझा दूंगा । 
मैं - ठीक है कोशिश करूंगी पर अभी मुझे जाना है देर हो रही है अशोक मुझे ढूंढ रहे होंगे ।
नितिन - हाँ मैं भी चलता हूँ मुझे भी देर हो रही है ।  
मैं - रुको तुम अभी , मेरे जाने के थोड़ी देर बाद जाना अगर किसी ने हमे साथ मे निकलते हुए देख लिया तो गजब हो जाएगा । 
नितिन - तुम घबराओ मत पदमा , मैं ग्राउंड से नहीं जाऊँगा । 
मैं ( थोड़ी हैरानी से )- तो फिर कहाँ से ........ ? 
नितिन - मैं बाग को पार करके सीधे पुरानी फाटक से निकलूँगा , वहीं मेरी बाइक खड़ी है । 
इतना कहकर नितिन जाने लगा अचानक मुझे कल वाली बात ध्यान आई और मैंने नितिन को टोकते हुए कहा  - " नितिन ।"
मेरी आवाज सुनकर नितिन वापस मुड़ा पर कुछ बोला नहीं । 
मैं - क्या तुम कल मेरी गली मे किसी के घर आए थे ?
मेरी बात सुनकर नितिन ने पहले तो मुझे एक बार तिरछी निगाहों से देखा और फिर मुस्कुराते हुए बोला - " फाइल तैयार रखना , मैं लेने आऊँगा । " और बस इतना कहकर तेजी से उन झाड़ियों से निकलकर भाग के अंदर भाग गया । 
 मैं वहाँ अबोध सी ऐसे ही खड़ी रह गई फिर मुझे भी होश आया और  मैं वहाँ उन झाड़ियों के बीच से धीरे -धीरे निकलने लगी झाड़ियों से निकलकर मैं बाग मे से होते हुए ग्राउंड पर पहुँची । अब तक सूरज भी पूरा निकल आया था मैंने छिपकर देखा ग्राउंड पूरा खाली था लोग घूमकर जा चुके थे ।  मैं  जल्दी से ग्राउंड से अपने घर की ओर भागी ।  "देर बोहोत हो चुकी है, अशोक ऑफिस के लिए निकलने वाले होंगे  " - इसका अंदाजा मुझे हो चुका था । मुझे इतनी देर से घर पर ना पाकर पता नही वो क्या-2  सवाल पूछेंगे ? इन सब सवालों को सोचते हुए मैं अपने घर पहुँची और गेट पर जाकर डॉर बेल बजाई थोड़ी देर बाद अशोक ने आकर दरवाजा खोला ।  मैं बोहोत हाफ रही थी , साँस चढ़ी हुई थी । मुझे देखते ही अशोक बोले - " अरे कहाँ रह गई थी तुम ? "
मैं (अपनी घबराहट छिपाते हुए ) - "जी वो बस आज पहला दिन था ना तो मुझे जाने मे देर हो गई और फिर वहाँ जाकर वक्त का पता ही नहीं चला । "
[Image: 281684079-resize-zju.jpg]
मेरे चेहरे पर कितने ही भाव एक साथ उमड़ रहे थे जिन्हे देखकर अशोक ने कहा  - "चलो कोई बात नहीं आओ अंदर चलो तुम्हें तो बोहोत पसीना आया हुआ है लगता है आज बोहोत मेहनत की है । "
अशोक की बात सुनकर मैं थोड़ी घबरा गई अब मैं उन्हे क्या बताती की मैंने कहाँ मेहनत की है और अंदर आकर सीधे हॉल मे सोफ़े पर पसर गई । मुझे बोहोत थकान हो रह थी । अशोक - " अच्छा मैं चलता हूँ तुम अपना ध्यान रखना । " मैं अशोक की बात सुनकर सोफ़े से उठी और कहा - " रुकिए मैं आपका नाश्ता बना देती हूँ ।  "
अशोक - नहीं रहने दो , देर हो जाएगी । मैं ऑफिस मे कर लूँगा । 
इतना कहकर अशोक ने अपना ऑफिस-बेग उठाया और घर से चले गए । अशोक के जाने के बाद मैं वापस वहीं सोफ़े पर बैठ गई । मुझे आज इस बात का बोहोत दुख था की  इस नितिन के कारण मैं अपने पति को नाश्ता भी ना करवा सकी , आज पहली बार मैं अपने पत्नी धर्म मे चूक गई । यही सब सोचते हुए मैं कितनी ही देर वहीं सोफ़े पर लेटी रही , और उस फाइल के बारे मे सोचने लगी जिसकी नितिन अभी बात कर रहा था "क्या अशोक ही नितिन के आउट ऑफ टाउन जाने का कारण है , क्या ग्रुप हेड बनने के लिए ही अशोक ,नितिन को यहाँ नहीं आने दे रहे जितना मैं अशोक को जानती हूँ  उसके हिसाब से तो अशोक ऐसे नहीं  है पर नितिन ने जो कुछ कहा वो भी झूठ नहीं लग रहा था पता नहीं क्या सच है क्या झूठ कुछ समझ नहीं आ रहा । " मैं इन्ही सब उलझनों मे उलझी थी । 
[Image: 867ad9fb937ca1ea7a3a0df78adb80b4.jpg]
   फिर जब पसीना सूख गया तो मैं अपने सोफ़े से उठकर बाथरूम की ओर गई  , नीचे जमीन पर लेटने की वजह से मिट्टी के कण शरीर पर लगे हुए थे । मैं नहाना चाहती थी इसलिए बाथरूम मे जाकर मैंने तुरंत अपना वॉक सूट निकाल दिया और शावर खोलकर नहाने लगी ।
[Image: 20220922-160326.gif]
 शावर की ताजी पानी की बुँदे मेरे जिस्म पर दमकने लगी और मैं उनका आनंद उठाते हुए अपनी आँखे बंद करके उनका मजा लेने लगी ।  नहाते हुए मेरे दिमाग मे कितनी ही बाते घूमने लगी जो मेरे साथ हुए आज और पिछले दिनों के वाक्यों को दोहरा रही थी ।  पता नहीं क्या खेल चल रहा था मेरे चारों ओर एक अनजान आदमी जो कहने को मेरे पति का बॉस है  पर अपने पति से ज्यादा मैं उसे जानने लगी थी ,  एक 19 साल का जवान लड़का जिसे मैं पिछले 4 साल से जानती थी मेरे लिए वो नहीं रहा जो पहले हुआ करता था मेरे भाव उसके लिए बिल्कुल बदल चुके थे और सबसे आखिर मे एक 50 साल का टेलर जिसके हाथों का स्पर्श ही मेरी कामअग्नि को हवा देने के लिए काफी था और ये सब बस जनवरी की उस सुबह से शुरू हुआ जब मैं अपनी छत पर खड़ी होकर धूप सेक रही थी उसी दिन मैंने पहली बार नितिन को देखा था । ना जाने कब ये बाते सोचते हुए मैंने नहा लिया और फिर शावर बंद करके एक नई ब्रा और पेन्टी पहनने लगी  क्योंकि पहले वाली पेन्टी तो पूरी चुतरस से भीगी हुई थी और ब्रा भी गंदी हो गई थी ।
[Image: 20220922-160702.gif]
  अपने कपड़े पहनकर मैं बाथरूम से बाहर आई  । 
[Image: 20220922-152933.jpg]
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#49
Reply of each and every comment -
1. (to ) Sagashu ---- thank you so much bro . bus aise hi support krte rho aur suggestion dete rho 
2. (to ) abcturbine ----- Thanks bro keep supporting me and give me suggestions for next update 
3. (to) Nasn3432 ------ Dhanyawad bhai jin characters ki aap baat kar rhe ho vo characters story me thode baad me ayenge tab tak ke liye bus aise hi support krte rho aur apne suggestion dete rho . 
4. (to) Djking ----- here is your update bro keep supporting me and give your suggestions for the next update . thank you .
5. (to) Abhi T ---- Bohot Bohot Dhanayawad mere bhai bus aise hi support krte rho aur apne suggestion dete rho agle update ke liye . Shy
6. (to) masud93 ----- mafi chahunga bhai pr main english me utna accha type nhi kr pata sorry dost  Namaskar
7 ( to) Jyotimoy 123---- thank you so much , keep supporting me and give suggestions for the update.
8 ( to) Omprakash meena - thanks for the comment here is your update . keep supporting me .


 Dosto agar kahani me mja aye to please like or comment kr dena . aur agle update me kya chahte ho vo bhi btana jarur .
ek jaruri baat abhi mera ek exam aane vala hai isliye ho sakta hai agla update aane me thodi der ho jaye to uske liye sorry dosto . love you .............. Heart
[Image: 160514498-ezgif-com-video-to-gif-91-ty.gif]
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#50
Fantastic mind blowing update bro keep going update thoda jaldi do please
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#51
Great update..one more encounter with gupta ji should be incorporated..this time little different perhaps..or maybe addition of a new character like a milkman (old and stout). 
Ps- you didn't give description about looks of gupta ji..you had only mentioned his age. Is he fat/thin/ugly.
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#52
Jabardast update bro . Love it
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#53
Nice update
nospam horseride

 

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#54
Awesome update, dear padma ko bhi thora strong bnao, ye to simple jaise har story me hota hai ki hath lagaya aur garam ho gyi har kisi ke sath, padma ko bhi mouka do wo apne anusar use kre logo ko, dominate kre, ek housewife ki jo feeling dikha rhe ho wo awesome hai lekin ek housewife kabhi bhi itni aasani se apne vjud se samjhota bhi nhi kerti, ab ek taraf usko ashok ki fikr hai chinta hai, dusri taraf sirf sex ke liye nitin ke hatho majbur hai file dene ko, padma ko saf khna chahiye ki wo apne pati ko dhokha nhi degi use relation rkhne hai to rkhe nhi to jaye, agar wo badnaam hogi to nitin bhi hoga uski family ko bhi sab malum chalega, padma ko saf malum chal rha hai ki koi sajish chal rhi hai nitin ka chupke varun se milna, phir achank se park me milna, padma ka character thora strong bnao
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#55
Thank you for updates bro.. Really fantastic updates..padma and guptaji part is amazing..
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#56
(23-09-2022, 12:47 AM)Ravi Patel Wrote:  मैं कितनी ही देर वहाँ ऐसे ही लेती हुई तेज -तेज साँसे लेती रही  मेरी हवस का की आग अब बुझ चुकी थी  और अब मुझे अपनी हालत देखकर शर्म आ रही नितिन भी अब मेरी योनि से हटकर खड़ा हो गया और अपना ट्रेक-सूट उठाकर पहनने लगा । मैं भी धीरे -2 अपनी जगह से उठी मेरा जिस्म पूरा थका हुआ लग रहा था और मैं पसीने से भीगी हुई थी । जब मुझे अपनी हालत का होश आया तो मैंने अपनी ब्रा को ठीक किया 
[Image: Video-Capture-20220526-140700.jpg]
और खड़े होकर अपनी पेन्टी और वॉक-पेंट्स ऊपर चढ़ा ली । सामने नितिन खड़ा होकर मुस्कुरा रहा वो मेरी हालत देखकर खुश हो रहा था और मैं उसके सामने सिर्फ ब्रा मे खड़ी होकर शर्मिंदा हो रही थी अपने जिस्म को उसकी नज़रों से बचाने के लिए मैंने उसकी ओर से घूम गई  और अपनी पीठ उस ओर करके अपना वॉक-टॉप उठाकर पहहने लगी नितिन अभी भी पीछे से अपनी नजरे मेरी पीठ और कमर पर गड़ाएं हुए था । मैंने जल्दी -2 अपने कपड़े पहने और अपने शरीर पर लगी मिट्टी और घास कर तिनको को साफ करने लगी । मुझे वहाँ रुकने मे इतनी शर्मिंदगी हो रही थी की मैं क्या बताऊ मैं जल्द से जल्द अपने घर जाना चाहती थी इसलिए अपने आप को सहज करके मैंने नितिन की ओर देखा वो पहले से ही मुझे देख रहा था । 

मैं - ये सब ठिक नहीं हो रहा नितिन । 
नितिन(अनजान बनते हुए ) - क्या पदमा ?
मैं - तुम सब जानते हो । ये सही नहीं तुम्हें मुझसे नहीं मिलना चाहिए , मैं एक शादीशुदा औरत हूँ और तुम भी शादीशुदा हो । 
नितिन (लापरवाही से )- तो क्या हुआ पदमा ? शादीशुदा लोग आपस मे मिल नहीं सकते क्या ?
मैं - तुम समझते क्यों नहीं नितिन ? अगर कुछ ऊँच - नीच हो गई तो तुम्हारा तो कुछ नहीं बिगड़ेगा पर मैं कहीं की नहीं रहूँगी , इसलिए आज के बाद तुम मुझसे कभी मत मिलना और मेरे घर भी मत आना । 
नितिन मेरी बात सुनकर मेरे करीब आ गया और कहा  -"तुम ज्यादा परेशान ना हो पदमा , कुछ नहीं होगा । "
 मैं - नहीं नितिन ये सब गलत है और हमे इसे रोकना होगा । 
नितिन - पदमा मैं क्या करूँ तुम हो ही इतनी सुंदर तुम्हें देखते ही मैं अपने होश-हवाश खो देता हूँ । 
नितिन की बात सुनकर मैंने अपनी नजरे नीची करते हुए बोली - "तुम ये सब बातें ना कहो नितिन , बोहोत देर हो गई है अशोक मुझे ढूंढ रहे होंगे ।" 
[Image: 26939305f676115e1418ad25e29df8efa21d8361.jpg]
नितिन - ठीक है पर तुम्हें अपना प्रोमिस तो याद है ना ?
मैं - कौन सा प्रोमिस ?
नितिन - ये भी भूल गई , वही प्रोमिस जो तुमने अभी थोड़ी देर पहले मुझसे मजे लेते हुए किया । 
मैं ( थोड़ा गुस्से से ) - मजे लेते हुए क्या मतलब है तुम्हारा ?
नितिन - अरे तुम तो नाराज हो गई मैं तो मजाक कर रहा था मेरा मतलब उस फाइल से था वो तुम मुझे कब तक ला सकती हो । 
मैं - मुझे नहीं पता देखूँगी , वैसे तुम्हें वो क्यूँ चाहिए ?
नितिन - मेरे लिए वो फाइल बोहोत जरूरी है पदमा , एक वही जरिया है मेरे लिए शहर मे वापिस आने का । 
मैं - तो तुम वो फाइल अशोक से ही क्यों नहीं ले लेते । 
नितिन - नहीं पदमा , उसे तो इसकी खबर भी नहीं लगनी चाहिए वो इसे मुझे कभी देगा
मैं(हैरानी से ) - क्योँ ?
नितिन - क्योंकि मेरे यहाँ आने से उसके हाथ से ग्रुपहेड की पॉजिशन चली जाएगी । बस तुम मुझे वो फाइल ला दो पदमा मैं तुम्हें सब कुछ समझा दूंगा । 
मैं - ठीक है कोशिश करूंगी पर अभी मुझे जाना है देर हो रही है अशोक मुझे ढूंढ रहे होंगे ।
नितिन - हाँ मैं भी चलता हूँ मुझे भी देर हो रही है ।  
मैं - रुको तुम अभी , मेरे जाने के थोड़ी देर बाद जाना अगर किसी ने हमे साथ मे निकलते हुए देख लिया तो गजब हो जाएगा । 
नितिन - तुम घबराओ मत पदमा , मैं ग्राउंड से नहीं जाऊँगा । 
मैं ( थोड़ी हैरानी से )- तो फिर कहाँ से ........ ? 
नितिन - मैं बाग को पार करके सीधे पुरानी फाटक से निकलूँगा , वहीं मेरी बाइक खड़ी है । 
इतना कहकर नितिन जाने लगा अचानक मुझे कल वाली बात ध्यान आई और मैंने नितिन को टोकते हुए कहा  - " नितिन ।"
मेरी आवाज सुनकर नितिन वापस मुड़ा पर कुछ बोला नहीं । 
मैं - क्या तुम कल मेरी गली मे किसी के घर आए थे ?
मेरी बात सुनकर नितिन ने पहले तो मुझे एक बार तिरछी निगाहों से देखा और फिर मुस्कुराते हुए बोला - " फाइल तैयार रखना , मैं लेने आऊँगा । " और बस इतना कहकर तेजी से उन झाड़ियों से निकलकर भाग के अंदर भाग गया । 
 मैं वहाँ अबोध सी ऐसे ही खड़ी रह गई फिर मुझे भी होश आया और  मैं वहाँ उन झाड़ियों के बीच से धीरे -धीरे निकलने लगी झाड़ियों से निकलकर मैं बाग मे से होते हुए ग्राउंड पर पहुँची । अब तक सूरज भी पूरा निकल आया था मैंने छिपकर देखा ग्राउंड पूरा खाली था लोग घूमकर जा चुके थे ।  मैं  जल्दी से ग्राउंड से अपने घर की ओर भागी ।  "देर बोहोत हो चुकी है, अशोक ऑफिस के लिए निकलने वाले होंगे  " - इसका अंदाजा मुझे हो चुका था । मुझे इतनी देर से घर पर ना पाकर पता नही वो क्या-2  सवाल पूछेंगे ? इन सब सवालों को सोचते हुए मैं अपने घर पहुँची और गेट पर जाकर डॉर बेल बजाई थोड़ी देर बाद अशोक ने आकर दरवाजा खोला ।  मैं बोहोत हाफ रही थी , साँस चढ़ी हुई थी । मुझे देखते ही अशोक बोले - " अरे कहाँ रह गई थी तुम ? "
मैं (अपनी घबराहट छिपाते हुए ) - "जी वो बस आज पहला दिन था ना तो मुझे जाने मे देर हो गई और फिर वहाँ जाकर वक्त का पता ही नहीं चला । "
[Image: 281684079-resize-zju.jpg]
मेरे चेहरे पर कितने ही भाव एक साथ उमड़ रहे थे जिन्हे देखकर अशोक ने कहा  - "चलो कोई बात नहीं आओ अंदर चलो तुम्हें तो बोहोत पसीना आया हुआ है लगता है आज बोहोत मेहनत की है । "
अशोक की बात सुनकर मैं थोड़ी घबरा गई अब मैं उन्हे क्या बताती की मैंने कहाँ मेहनत की है और अंदर आकर सीधे हॉल मे सोफ़े पर पसर गई । मुझे बोहोत थकान हो रह थी । अशोक - " अच्छा मैं चलता हूँ तुम अपना ध्यान रखना । " मैं अशोक की बात सुनकर सोफ़े से उठी और कहा - " रुकिए मैं आपका नाश्ता बना देती हूँ ।  "
अशोक - नहीं रहने दो , देर हो जाएगी । मैं ऑफिस मे कर लूँगा । 
इतना कहकर अशोक ने अपना ऑफिस-बेग उठाया और घर से चले गए । अशोक के जाने के बाद मैं वापस वहीं सोफ़े पर बैठ गई । मुझे आज इस बात का बोहोत दुख था की  इस नितिन के कारण मैं अपने पति को नाश्ता भी ना करवा सकी , आज पहली बार मैं अपने पत्नी धर्म मे चूक गई । यही सब सोचते हुए मैं कितनी ही देर वहीं सोफ़े पर लेटी रही , और उस फाइल के बारे मे सोचने लगी जिसकी नितिन अभी बात कर रहा था "क्या अशोक ही नितिन के आउट ऑफ टाउन जाने का कारण है , क्या ग्रुप हेड बनने के लिए ही अशोक ,नितिन को यहाँ नहीं आने दे रहे जितना मैं अशोक को जानती हूँ  उसके हिसाब से तो अशोक ऐसे नहीं  है पर नितिन ने जो कुछ कहा वो भी झूठ नहीं लग रहा था पता नहीं क्या सच है क्या झूठ कुछ समझ नहीं आ रहा । " मैं इन्ही सब उलझनों मे उलझी थी । 
[Image: 867ad9fb937ca1ea7a3a0df78adb80b4.jpg]
   फिर जब पसीना सूख गया तो मैं अपने सोफ़े से उठकर बाथरूम की ओर गई  , नीचे जमीन पर लेटने की वजह से मिट्टी के कण शरीर पर लगे हुए थे । मैं नहाना चाहती थी इसलिए बाथरूम मे जाकर मैंने तुरंत अपना वॉक सूट निकाल दिया और शावर खोलकर नहाने लगी ।
[Image: 20220922-160326.gif]
 शावर की ताजी पानी की बुँदे मेरे जिस्म पर दमकने लगी और मैं उनका आनंद उठाते हुए अपनी आँखे बंद करके उनका मजा लेने लगी ।  नहाते हुए मेरे दिमाग मे कितनी ही बाते घूमने लगी जो मेरे साथ हुए आज और पिछले दिनों के वाक्यों को दोहरा रही थी ।  पता नहीं क्या खेल चल रहा था मेरे चारों ओर एक अनजान आदमी जो कहने को मेरे पति का बॉस है  पर अपने पति से ज्यादा मैं उसे जानने लगी थी ,  एक 19 साल का जवान लड़का जिसे मैं पिछले 4 साल से जानती थी मेरे लिए वो नहीं रहा जो पहले हुआ करता था मेरे भाव उसके लिए बिल्कुल बदल चुके थे और सबसे आखिर मे एक 50 साल का टेलर जिसके हाथों का स्पर्श ही मेरी कामअग्नि को हवा देने के लिए काफी था और ये सब बस जनवरी की उस सुबह से शुरू हुआ जब मैं अपनी छत पर खड़ी होकर धूप सेक रही थी उसी दिन मैंने पहली बार नितिन को देखा था । ना जाने कब ये बाते सोचते हुए मैंने नहा लिया और फिर शावर बंद करके एक नई ब्रा और पेन्टी पहनने लगी  क्योंकि पहले वाली पेन्टी तो पूरी चुतरस से भीगी हुई थी और ब्रा भी गंदी हो गई थी ।
[Image: 20220922-160702.gif]
  अपने कपड़े पहनकर मैं बाथरूम से बाहर आई  । 
[Image: 20220922-152933.jpg]
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#57
Bhai story line acchi hi...but padma ko aise show kr rhe ho jaise house wife nhi randi hi....jaise common sbhi story me hi....koi chu diya lundiya ready koi emotions he nhi hi...???
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#58
(23-09-2022, 12:47 AM)loop Ravi Patel Wrote: yourock
 मैं कितनी ही देर वहाँ ऐसे ही लेती हुई तेज -तेज साँसे लेती रही  मेरी हवस का की आग अब बुझ चुकी थी  और अब मुझे अपनी हालत देखकर शर्म आ रही नितिन भी अब मेरी योनि से हटकर खड़ा हो गया और अपना ट्रेक-सूट उठाकर पहनने लगा । मैं भी धीरे -2 अपनी जगह से उठी मेरा जिस्म पूरा थका हुआ लग रहा था और मैं पसीने से भीगी हुई थी । जब मुझे अपनी हालत का होश आया तो मैंने अपनी ब्रा को ठीक किया 
[Image: Video-Capture-20220526-140700.jpg]
और खड़े होकर अपनी पेन्टी और वॉक-पेंट्स ऊपर चढ़ा ली । सामने नितिन खड़ा होकर मुस्कुरा रहा वो मेरी हालत देखकर खुश हो रहा था और मैं उसके सामने सिर्फ ब्रा मे खड़ी होकर शर्मिंदा हो रही थी अपने जिस्म को उसकी नज़रों से बचाने के लिए मैंने उसकी ओर से घूम गई  और अपनी पीठ उस ओर करके अपना वॉक-टॉप उठाकर पहहने लगी नितिन अभी भी पीछे से अपनी नजरे मेरी पीठ और कमर पर गड़ाएं हुए था । मैंने जल्दी -2 अपने कपड़े पहने और अपने शरीर पर लगी मिट्टी और घास कर तिनको को साफ करने लगी । मुझे वहाँ रुकने मे इतनी शर्मिंदगी हो रही थी की मैं क्या बताऊ मैं जल्द से जल्द अपने घर जाना चाहती थी इसलिए अपने आप को सहज करके मैंने नितिन की ओर देखा वो पहले से ही मुझे देख रहा था । 

मैं - ये सब ठिक नहीं हो रहा नितिन । 
नितिन(अनजान बनते हुए ) - क्या पदमा ?
मैं - तुम सब जानते हो । ये सही नहीं तुम्हें मुझसे नहीं मिलना चाहिए , मैं एक शादीशुदा औरत हूँ और तुम भी शादीशुदा हो । 
नितिन (लापरवाही से )- तो क्या हुआ पदमा ? शादीशुदा लोग आपस मे मिल नहीं सकते क्या ?
मैं - तुम समझते क्यों नहीं नितिन ? अगर कुछ ऊँच - नीच हो गई तो तुम्हारा तो कुछ नहीं बिगड़ेगा पर मैं कहीं की नहीं रहूँगी , इसलिए आज के बाद तुम मुझसे कभी मत मिलना और मेरे घर भी मत आना । 
नितिन मेरी बात सुनकर मेरे करीब आ गया और कहा  -"तुम ज्यादा परेशान ना हो पदमा , कुछ नहीं होगा । "
 मैं - नहीं नितिन ये सब गलत है और हमे इसे रोकना होगा । 
नितिन - पदमा मैं क्या करूँ तुम हो ही इतनी सुंदर तुम्हें देखते ही मैं अपने होश-हवाश खो देता हूँ । 
नितिन की बात सुनकर मैंने अपनी नजरे नीची करते हुए बोली - "तुम ये सब बातें ना कहो नितिन , बोहोत देर हो गई है अशोक मुझे ढूंढ रहे होंगे ।" 
[Image: 26939305f676115e1418ad25e29df8efa21d8361.jpg]
नितिन - ठीक है पर तुम्हें अपना प्रोमिस तो याद है ना ?
मैं - कौन सा प्रोमिस ?
नितिन - ये भी भूल गई , वही प्रोमिस जो तुमने अभी थोड़ी देर पहले मुझसे मजे लेते हुए किया । 
मैं ( थोड़ा गुस्से से ) - मजे लेते हुए क्या मतलब है तुम्हारा ?
नितिन - अरे तुम तो नाराज हो गई मैं तो मजाक कर रहा था मेरा मतलब उस फाइल से था वो तुम मुझे कब तक ला सकती हो । 
मैं - मुझे नहीं पता देखूँगी , वैसे तुम्हें वो क्यूँ चाहिए ?
नितिन - मेरे लिए वो फाइल बोहोत जरूरी है पदमा , एक वही जरिया है मेरे लिए शहर मे वापिस आने का । 
मैं - तो तुम वो फाइल अशोक से ही क्यों नहीं ले लेते । 
नितिन - नहीं पदमा , उसे तो इसकी खबर भी नहीं लगनी चाहिए वो इसे मुझे कभी देगा
मैं(हैरानी से ) - क्योँ ?
नितिन - क्योंकि मेरे यहाँ आने से उसके हाथ से ग्रुपहेड की पॉजिशन चली जाएगी । बस तुम मुझे वो फाइल ला दो पदमा मैं तुम्हें सब कुछ समझा दूंगा । 
मैं - ठीक है कोशिश करूंगी पर अभी मुझे जाना है देर हो रही है अशोक मुझे ढूंढ रहे होंगे ।
नितिन - हाँ मैं भी चलता हूँ मुझे भी देर हो रही है ।  
मैं - रुको तुम अभी , मेरे जाने के थोड़ी देर बाद जाना अगर किसी ने हमे साथ मे निकलते हुए देख लिया तो गजब हो जाएगा । 
नितिन - तुम घबराओ मत पदमा , मैं ग्राउंड से नहीं जाऊँगा । 
मैं ( थोड़ी हैरानी से )- तो फिर कहाँ से ........ ? 
नितिन - मैं बाग को पार करके सीधे पुरानी फाटक से निकलूँगा , वहीं मेरी बाइक खड़ी है । 
इतना कहकर नितिन जाने लगा अचानक मुझे कल वाली बात ध्यान आई और मैंने नितिन को टोकते हुए कहा  - " नितिन ।"
मेरी आवाज सुनकर नितिन वापस मुड़ा पर कुछ बोला नहीं । 
मैं - क्या तुम कल मेरी गली मे किसी के घर आए थे ?
मेरी बात सुनकर नितिन ने पहले तो मुझे एक बार तिरछी निगाहों से देखा और फिर मुस्कुराते हुए बोला - " फाइल तैयार रखना , मैं लेने आऊँगा । " और बस इतना कहकर तेजी से उन झाड़ियों से निकलकर भाग के अंदर भाग गया । 
 मैं वहाँ अबोध सी ऐसे ही खड़ी रह गई फिर मुझे भी होश आया और  मैं वहाँ उन झाड़ियों के बीच से धीरे -धीरे निकलने लगी झाड़ियों से निकलकर मैं बाग मे से होते हुए ग्राउंड पर पहुँची । अब तक सूरज भी पूरा निकल आया था मैंने छिपकर देखा ग्राउंड पूरा खाली था लोग घूमकर जा चुके थे ।  मैं  जल्दी से ग्राउंड से अपने घर की ओर भागी ।  "देर बोहोत हो चुकी है, अशोक ऑफिस के लिए निकलने वाले होंगे  " - इसका अंदाजा मुझे हो चुका था । मुझे इतनी देर से घर पर ना पाकर पता नही वो क्या-2  सवाल पूछेंगे ? इन सब सवालों को सोचते हुए मैं अपने घर पहुँची और गेट पर जाकर डॉर बेल बजाई थोड़ी देर बाद अशोक ने आकर दरवाजा खोला ।  मैं बोहोत हाफ रही थी , साँस चढ़ी हुई थी । मुझे देखते ही अशोक बोले - " अरे कहाँ रह गई थी तुम ? "
मैं (अपनी घबराहट छिपाते हुए ) - "जी वो बस आज पहला दिन था ना तो मुझे जाने मे देर हो गई और फिर वहाँ जाकर वक्त का पता ही नहीं चला । "
[Image: 281684079-resize-zju.jpg]
मेरे चेहरे पर कितने ही भाव एक साथ उमड़ रहे थे जिन्हे देखकर अशोक ने कहा  - "चलो कोई बात नहीं आओ अंदर चलो तुम्हें तो बोहोत पसीना आया हुआ है लगता है आज बोहोत मेहनत की है । "
अशोक की बात सुनकर मैं थोड़ी घबरा गई अब मैं उन्हे क्या बताती की मैंने कहाँ मेहनत की है और अंदर आकर सीधे हॉल मे सोफ़े पर पसर गई । मुझे बोहोत थकान हो रह थी । अशोक - " अच्छा मैं चलता हूँ तुम अपना ध्यान रखना । " मैं अशोक की बात सुनकर सोफ़े से उठी और कहा - " रुकिए मैं आपका नाश्ता बना देती हूँ ।  "
अशोक - नहीं रहने दो , देर हो जाएगी । मैं ऑफिस मे कर लूँगा । 
इतना कहकर अशोक ने अपना ऑफिस-बेग उठाया और घर से चले गए । अशोक के जाने के बाद मैं वापस वहीं सोफ़े पर बैठ गई । मुझे आज इस बात का बोहोत दुख था की  इस नितिन के कारण मैं अपने पति को नाश्ता भी ना करवा सकी , आज पहली बार मैं अपने पत्नी धर्म मे चूक गई । यही सब सोचते हुए मैं कितनी ही देर वहीं सोफ़े पर लेटी रही , और उस फाइल के बारे मे सोचने लगी जिसकी नितिन अभी बात कर रहा था "क्या अशोक ही नितिन के आउट ऑफ टाउन जाने का कारण है , क्या ग्रुप हेड बनने के लिए ही अशोक ,नितिन को यहाँ नहीं आने दे रहे जितना मैं अशोक को जानती हूँ  उसके हिसाब से तो अशोक ऐसे नहीं  है पर नितिन ने जो कुछ कहा वो भी झूठ नहीं लग रहा था पता नहीं क्या सच है क्या झूठ कुछ समझ नहीं आ रहा । " मैं इन्ही सब उलझनों मे उलझी थी । 
[Image: 867ad9fb937ca1ea7a3a0df78adb80b4.jpg]
   फिर जब पसीना सूख गया तो मैं अपने सोफ़े से उठकर बाथरूम की ओर गई  , नीचे जमीन पर लेटने की वजह से मिट्टी के कण शरीर पर लगे हुए थे । मैं नहाना चाहती थी इसलिए बाथरूम मे जाकर मैंने तुरंत अपना वॉक सूट निकाल दिया और शावर खोलकर नहाने लगी ।
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 शावर की ताजी पानी की बुँदे मेरे जिस्म पर दमकने लगी और मैं उनका आनंद उठाते हुए अपनी आँखे बंद करके उनका मजा लेने लगी ।  नहाते हुए मेरे दिमाग मे कितनी ही बाते घूमने लगी जो मेरे साथ हुए आज और पिछले दिनों के वाक्यों को दोहरा रही थी ।  पता नहीं क्या खेल चल रहा था मेरे चारों ओर एक अनजान आदमी जो कहने को मेरे पति का बॉस है  पर अपने पति से ज्यादा मैं उसे जानने लगी थी ,  एक 19 साल का जवान लड़का जिसे मैं पिछले 4 साल से जानती थी मेरे लिए वो नहीं रहा जो पहले हुआ करता था मेरे भाव उसके लिए बिल्कुल बदल चुके थे और सबसे आखिर मे एक 50 साल का टेलर जिसके हाथों का स्पर्श ही मेरी कामअग्नि को हवा देने के लिए काफी था और ये सब बस जनवरी की उस सुबह से शुरू हुआ जब मैं अपनी छत पर खड़ी होकर धूप सेक रही थी उसी दिन मैंने पहली बार नितिन को देखा था । ना जाने कब ये बाते सोचते हुए मैंने नहा लिया और फिर शावर बंद करके एक नई ब्रा और पेन्टी पहनने लगी  क्योंकि पहले वाली पेन्टी तो पूरी चुतरस से भीगी हुई थी और ब्रा भी गंदी हो गई थी ।
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  अपने कपड़े पहनकर मैं बाथरूम से बाहर आई  । 
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