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Incest बहन - कंचन के बदन की गरमी
#21














जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#22
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#24

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#26
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#27
(24-04-2019, 09:05 AM)neerathemall Wrote:
बहन - कंचन के बदन की गरमी
Heart Heart Heart





















Heart

(24-04-2019, 09:06 AM)neerathemall Wrote: बात उन दिनों की है जब मेरी उम्र 25 साल की थी और मैं बंगलौर में इंजीनियरिंग पढ़ रहा था। मैं पटियाला का रहने वाला हूँ। मेरे एक्जाम समाप्त हो गए थे तो कुछ दिनों की छुट्टियों में घर आया था। मेरी छोटी बहन कंचन की शादी कुछ ही दिन पहले हुई थी। मेरे जीजा पेशे से सैनेटरी वेयर के थोक विक्रेता थे, उन्होंने काफी पैसा कमा रखा था। कंचन की उम्र 20 साल की थी, वो हमारे पैतृक घर के पास ही रहते थे! उसकी जवानी पूरे शवाब पर थी, झक्क गोरा बदन और कंटीले नैन नक्श और गदराये बदन की मालकिन थी।

जब जीजा जी दुकान चले जाते थे तो मैं और कंचन दिन भर ऊपर बैठ कर गप्पें हांका करते थे। सच कहूँ तो वो मुझे अपना दोस्त मानती थी। बचपन से ही वो मेरे सामने बड़े ही सहज भाव से रहती थी, अपने कपड़े भी मेरे सामने ठीक से नहीं पहनती थी, उसके वक्ष की आधी दरार हमेशा दिखती रहती थी, कभी कभी तो सेक्स की बात भी कर लेती थी। जब भी मुझे अकेली पाती थी तो हमेशा द्वीअर्थी बात बोलती थी, जैसे बछड़ा भी दूध देता है, तेरा डंडा कितना बड़ा है? तुझे स्पेशल दवा की जरुरत है, आदि !

दिन भर मेरे कालेज और बंगलौर के किस्से सुनती रहती थी। जब मेरे बंगलौर जाने के कुछ शेष रह गए तो एक दिन कंचन ने कहा- हम भी बंगलौर घूमने जाना चाहते हैं।

मैंने कहा- हाँ क्यों नहीं ! आप दोनों मेरे साथ ही इस शनिवार को चलिए, मैं आप दोनों को पूरी सैर करवा दूँगा।

कंचन ने अपनी इच्छा जीजा जी को बताई तो जीजा जी तुरंत मान गए। मैंने उसी समय इन्टरनेट से तीन टिकट एसी फर्स्ट क्लास में बुक करवा लिए। शनिवार को हमारी ट्रेन थी, शनिवार को सुबह हम तीनों ट्रेन से बंगलौर के लिए रवाना हुए। अगले दिन शाम सात बजे हम सभी बंगलौर पहुँच गए। मैंने उनको एक बढ़िया होटल में कमरा दिला दिया। उसके बाद मैं वापस अपने होस्टल आ गया। होस्टल आने पर पता चला कि कालेज के गैर शिक्षण कर्मचारी अपनी वेतनवृद्धि की मांग को लेकर अनिश्चित कालीन हड़ताल पर जा रहे हैं और इस दौरान कालेज बंद रहेगा। मेरे अधिकाँश मित्रों को यह बात पता चल गई थी इसलिए सिर्फ 25-30 प्रतिशत छात्र ही कालेज आये थे।

मैं अगले दिन करीब 11 बजे अपने जीजा जी के कमरे पर गया, वहाँ वे दोनों नाश्ता कर रहे थे। कंचन ने मेरे लिए भी नाश्ता लगा दिया। मैंने देखा कि जीजा जी कुछ परेशान हैं।

पूछने पर पता चला कि जिस कम्पनी का उन्होंने फ्रेंचाइजी ले रखा है उस कम्पनी ने दुबई में जबरदस्त सेल ऑफ़र किया है, अब जीजा जी की परेशानी यह थी कि अगर वो वापस कंचन को पटियाला छोड़ने जाते और वहाँ से दुबई जाते तो तब तक सेल समाप्त हो जाती और अगर साथ में लेकर दुबई जा नहीं सकते थे क्योंकि कंचन का कोई पासपोर्ट वीजा था ही नहीं।

मैंने कहा- अगर आप दुबई जाना चाहते हैं तो आप चले जाएँ क्योंकि मेरा कालेज अभी एक सप्ताह बंद रह सकता है। मैं कंचन को या तो पटियाला पहुँचा दूँगा या फिर आपके वापस आने तक यहीं रहेगी। आप दुबई से यहाँ आ जाना और फिर घूम फिर कर कंचन के साथ वापस पटियाला चले जाना।

जीजा जी को मेरा सुझाव पसंद आया।

कंचन ने भी कहा- हाँ जी, आप बेफिक्र हो कर जाइए और वापस यहीं आइयेगा। तब तक भैया मुझे बंगलौर घुमा देगा। आपके साथ मैं दोबारा घूम कर वापस आपके साथ ही पटियाला जाऊँगी। जीजा जी को कंचन का यह सुझाव भी पसंद आया।

लैपटॉप पर इन्टरनेट खोल कर देखा तो उसी दिन के दो बजे की फ्लाईट में सीट खाली थी। जीजा जी ने तुरंत सीट बुक की और हम तीनों एयरपोर्ट के लिए निकल पड़े। दो बजे जीजा जी की फ्लाईट ने दुबई की राह पकड़ी और मैंने एवं कंचन ने बंगलौर बाज़ार की। कंचन के साथ लंच किया, घूमते घूमते हम मल्टीप्लेक्स आ गए। शाम के सात बज गए थे, कंचन ने कहा- काफी महीनों से मल्टीप्लेक्स में सिनेमा नहीं देखा, आज देखूँगी।

मैंने देखा कि कोई नई पिक्चर आई थी, इसलिए सारी टिकट बिक चुकी थी। उसके किसी हाल में कोई एडल्ट टाइप की इंग्लिश पिक्चर की हिंदी वर्सन लगी हुई है, फिल्म चार सप्ताह से चल रही थी इसलिए अब उसमें कोई भीड़ नहीं थी। मैंने दो टिकट सबसे कोने के लिए और हम हाल के अन्दर चले गए। मुझे सबसे ऊपर की कतार वाली सीट दी गई थी और उस पूरी कतार में दूसरा कोई भी नहीं था। हमारी कतार के पीछे सिर्फ दीवार थी, मैंने जानबूझ कर ऐसी सीट मांगी थी। मेरा आगे वाले तीन कतार के बाद कोने पर एक लड़का और लड़की अकेले थे, उस कतार में भी उसके अलावा कोई नहीं था। उससे अगली कतार में दूसरे कोने पर एक और जोड़ा था, इस तरह से उस समय 300 दर्शकों की क्षमता वाले हाल में सिर्फ 20-22 दर्शक रहे होंगे। पता नहीं इतने कम दर्शकों के लिए फिल्म क्यों लगा रखी थी।

कंचन मेरे दाहिने ओर बैठी, कंचन के दाहिने दीवार थी। तुरंत ही फिल्म चालू हो गई। फिल्म शुरू होने के तुरंत बाद ही मेरे बाद के चौथे कतार में बैठे लड़के एवं लड़की ने होठों से चूमाचाटी करना चालू कर दिया। हालांकि बंगलौर के सिनेमा घरों में इस तरह के नजारे आम बात हैं, हर शो में कुछ लड़के लड़की सिर्फ इसलिए ही आते हैं।

कंचन ने उस जोड़े की तरफ मुझे इशारा करके कहा- हाय देख तो रवि भैया ! कैसे खुलेआम चूम रहे हैं।

मैंने कहा- कंचन, यहाँ आधे से अधिक सिर्फ इसलिए ही आते हैं। सिनेमा हाल ऐसे काम के लिए बेस्ट हैं। तुम उस कोने पर बैठे उस जोड़े को तो देखो, वो भी यही काम कर रहे हैं। अभी तो सिर्फ एक दुसरे को किस कर रहे हैं, आगे देखना क्या क्या करते हैं। तुम ध्यान मत देना इन सब पर ! सब मस्ती करते हैं, यही तो जिन्दगी है।

कंचन- तूने भी कभी मस्ती की या नहीं इस तरह से सिनेमा हाल में?

मैंने कहा- अभी तक तो नहीं की लेकिन अब के बाद पता नहीं !

तुरंत ही फिल्म में सेक्सी सीन आने शुरू हो गए, कंचन ने मेरे कान में फुसफुसा कर कहा- हाय राम, जरा देखो तो यह कैसी सिनेमा है।

मैंने कहा- कंचन, यह बंगलौर है, यहाँ सब इसी तरह की फिल्में लगती हैं, चुपचाप आराम से ऐसी फिल्मों के मज़े लो! पटियाला में ये सब देखने को नहीं मिलेगा।

वो पूरी फिल्म सेक्स पर ही आधारित थी, कंचन अब गर्म हो रही थी, वो गर्म गर्म साँसें फेंक रही थी, उसका बदन ऐंठ रहा था, शायद वो पहली बार किसी हाल में एडल्ट फिल्म देख रही थी।

मैंने पूछा- क्यों कंचन? पहले कभी देखी है ऐसी मस्त फिल्म?

(24-04-2019, 09:06 AM)neerathemall Wrote: कंचन- नहीं रवि भैया! कभी नहीं देखी।

मैंने धीरे धीरे अपना दाहिना हाथ उनके पीछे से ले जाकर उनके कंधे पर रख दिया। मैंने देखा कि कंचन अपने हाथ से अपनी चूत को साड़ी के ऊपर से सहला रही हैं, शायद सेक्सी सीन देख कर उसकी चूत गीली हो रही थी। मेरा भी लंड खड़ा हो गया था, मैंने भी अपना बायाँ हाथ अपने लंड पर रख दिया। मैंने धीरे धीरे कंचन के पीठ पर हाथ फेरा, उन्होंने कुछ नहीं कहा, वो अपनी चूत को जोर जोर से रगड़ रही थी। मैंने उसकी पीठ पर से हाथ फेरना छोड़ दाहिने हाथ से उनके गले को लपेटा और अपनी तरफ उसे खींचते हुए लाया। कंचन मेरी तरफ झुक गई।

मैंने पूछा- क्यों कंचन, मज़ा आ रहा है फिल्म देखने में?

कंचन ने शर्माते हुए कहा- धत्त रवि ! मुझे तो बड़ी शर्म आ रही है।

मैंने कहा- क्यों ? इसमें शर्माना कैसा? तुम और जीजा जी तो ऐसा करते होंगे न? तेरे एक हाथ जहाँ हैं न उससे तो लगता है कि मज़े आ रहे हैं तुम्हें !

कंचन- हाय राम, रवि बड़ा बेशर्म हो गया है तू रे बंगलौर में रह कर ! बड़ा देखता है यहाँ-वहाँ कि कहाँ हाथ हैं, कहाँ नहीं?

मैंने कंचन के कान को अपने मुँह के पास लाया और कहा- जानती हो कंचन? ऐसी फिल्म देख कर मुझे भी कुछ कुछ होने लगता है।

कंचन ने अपने होंठ मेरे होंठों के पास लगभग सटाते हुए कहा- क्या होने लगता है?

मैंने अपने लंड को घिसते हुए कहा- वही, जो तुझे हो रहा है ! मन करता है कि यहीं निकाल दूँ !

कंचन- सिनेमा हाल में निकालते हो क्या?

मैंने- कई बार निकाला है, आज तुम हो इसलिए रुक गया हूँ।

कंचन- रवि आज यहाँ मत निकाल, बाद में निकाल लेना।

थोड़ी देर में फिल्म की नायिका अपना मुम्मा मसलवा रही थी, हम दोनों और गर्म हो गए तो मैंने कंचन के कान में अपने होंठ सटा कर कहा- देख कंचन, साली का मुम्मा क्या मस्त हैं ! नहीं?

कंचन- ऐसा तो सबका होता हैं।

मैंने- तुम्हारा भी ऐसा ही है क्या?

कंचन- और नहीं तो क्या?

मैंने- तेरा मुम्मा छूकर देखूँ क्या?

कंचन- हाँ रवि, छू कर देख ले।

मैंने अपना दाहिना हाथ से उसका मुम्मा पकड़ लिया और दबाने लगा। उन्होंने अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया और आराम से अपने मुम्में दबवाने लगी। मैंने धीरे धीरे अपना दाहिना हाथ उसके ब्लाउज के अन्दर डाल दिया, फिर ब्रा के अन्दर हाथ डाल कर उनके बड़े बड़े मुम्में को मसलने लगा, वो मस्त हुई जा रही थी।

मैं- अपनी ब्लाउज खोल दो ना ! तब मज़े से दबाऊँगा।

उसने कहा- यहाँ?

मैंने कहा- और नहीं तो क्या? साड़ी से ढके रहना, यहाँ कोई नहीं देखने वाला।

वो भी गर्म हो चुकी थी, उन्होंने ब्लाउज खोल दिया, लगे हाथ ब्रा भी खोल दिया और अपने नंगे मुम्मों को अपनी साड़ी से ढक लिया। मैंने मज़े ले लेकर नंगे मुम्मों को सिनेमा हाल में ही दबाना चालू कर दिया।

मैं जो चाहता था वो मुझे करने दे रही थी, मुझे पूरी आजादी दे रखी थी। मैंने अपने बाएं हाथ से उनके बाएं हाथ को पकड़ा और उनके हाथ को अपने लंड पर रख दिया और धीरे से कहा- देखो ना ! कितना खड़ा हो गया है।

कंचन ने मेरे लंड को जींस के ऊपर से दबाना चालू कर दिया।

अब मैंने देख लिया कि कंचन पूरी तरह से गर्म है तो मैंने अपना हाथ उनके ब्लाउज से निकाला और उसके पेट पर ले जाकर नाभि को सहलाने लगा, धीरे धीरे मैंने अपने हाथ को नुकीला बनाया और नाभि के नीचे उसकी साड़ी के अन्दर डाल दिया। कंचन थोड़ी चौड़ी हो गई जिससे मुझे हाथ और नीचे ले जाने में सहूलियत हो सके। मैंने अपना हाथ और नीचे किया तो उसकी पेंटी मिल गई, मैंने उसकी पेंटी में हाथ डाला और उनके चूत पर हाथ ले गया।

ओह क्या चूत थी ! एकदम घने बाल ! पूरी तरह से चिपचिपी हो गई थी। मैं काफी देर तक उसकी चूत को सहलाता रहा और वो मेरे लंड को दबा रही थी। मैंने अपने दाहिने हाथ की एक उंगली उसकी चूत के अन्दर घुसा दी।वो पागल सी हो गई।

उन्होंने आसपास देखा तो कोई भी हमारे पास नहीं था, उन्होंने अपनी साड़ी को नीचे से उठाया और जांघ के ऊपर तक ले आई, फिर मेरे हाथ को साड़ी के ऊपर से हटा कर नीचे से खुले हुए रास्ते से लाकर अपनी चूत पर रख कर बोली- अब आराम से कर, जो करना है।

अब मैं उसकी चूत को आराम से मसल रहा था, उन्होंने अपनी पेंटी को नीचे सरका दिया था। मैंने उसकी चूत में उंगली डालनी शुरू की तो उसने अपनी जांघें और चौड़ी कर ली।

उन्होंने मेरे कान में कहा- तू भी अपनी जींस की पेंट खोल ना, मैं भी तेरा सहलाऊँ।

मैंने जींस की ज़िप खोल दी, लंड डण्डे की तरह खड़ा था, कंचन ने बिना किसी हिचक के मेरे लंड को पकड़ा और सहलाने लगी।मैं भी उसकी चूत में अपनी उंगली डाल कर अन्दर-बाहर करने लगा। वो सिसकारी भर रही थी। मेरा लंड भी एकदम चिपचिपा हो गया था।

मैंने कहा- कंचन, अब बर्दाश्त नहीं होता. अब मुझे मुठ मार कर माल निकालना ही पड़ेगा।

कंचन- रवि आज मैं मार देती हूँ तेरी मुठ ! मुझसे मुठ मरवाएगा?

मैंने कहा- तुम्हें आता है लंड की मुठ मारना?

कंचन- मुझे क्या नहीं आता? तेरे जीजा जी का लगभग हर रात को मुठ मारती हूँ। सिर्फ हाथ से ही नही… किसी और से भी..

मैंने कहा- किसी और से कैसे?

कंचन- तुझे नहीं पता कि लंड का मुठ मारने में हाथ के अलावा और किस चीज का इस्तेमाल होता है?

मैंने कहा- पता है मुझे ! मुंह से ना?

कंचन- रवि तुझे तो सब पता है।

(24-04-2019, 09:07 AM)neerathemall Wrote: मैंने कहा- तुम जीजा जी का लंड अपने मुंह में लेकर चूसती हो?

कंचन- हाँ रवि, बड़ा मजा आता है मुझे और उनको !

मैंने कहा- तुम जीजा जी का माल भी पीती हो?

कंचन- बहुत बार ! एकदम नमकीन मक्खन की तरह लगता है।

मैंने- तुम तो बहुत एक्सपर्ट हो, मेरी भी मुठ मार दो आज अपने हाथों से ही सही !

कंचन ने मेरे लंड को तेजी से ऊपर नीचे करना शुरू कर दिया। सचमुच काफी एक्सपर्ट थी वो। कंचन सिनेमा हाल के अँधेरे में मेरी मुठ मारने लगी। पहली बार कोई महिला मेरी मुठ मार रही थी, मैं ज्यादा देर बर्दाश्त नहीं कर पाया, धीरे से बोला- हाय कंचन, मेरा निकलने वाला है।

कंचन ने तुरन अपने साड़ी का पल्लू मेरे लंड पर लपेटा, सारा माल मैंने कंचन की साड़ी में ही गिरा दिया।

फिर मैं कंचन की चूत में उंगली अन्दर बाहर करने लगा, कंचन भी एडल्ट फिल्म की गर्मी बर्दाश्त नहीं कर पाई, उनका माल भी निकलने लगा, उन्होंने तुरंत अपनी चूत में से मेरी उंगली निकाली और साड़ी के पल्लू में अपना माल पोंछ डाला।

दो मिनट बाद अचानक बोली- रवि, चलो यहाँ से, अपने होटल के कमरे में !

मैंने कहा- क्यों? अभी तो फिल्म ख़त्म भी नहीं हुई है?

कंचन- नहीं, अभी चलो, मुझे काम है तुमसे !

मैंने- क्या काम है मुझसे?

कंचन- वही जो अभी यहाँ कर रहे हो, वहाँ आराम से करेंगे।

मैंने कहा- ठीक है चलो।

और हम लोग फिल्म चालू होने के 45 मिनट बाद ही निकल गए। हमारा होटल वहाँ से पांच मिनट की दूरी पर ही था। वहाँ से हम सीधे अपने कमरे में आ गये।

कमरे में आते ही कंचन ने अपनी साड़ी उतार फेंकी, लपक कर मेरी शर्ट और जींस खोल दी। अब मैं सिर्फ अंडरवीयर में था। कंचन ने अगले ही पल अपनी ब्लाउज को खोल दिया और पेटीकोट भी उतार दिया। अब वो भी सिर्फ ब्रा और पेंटी में और मैं सिर्फ अण्डरवीयर में था।

वो मुझे अपने सीने के लपेट कर पागलों की तरह चूमने लगी, मेरे पूरे बदन को चूमने-चाटने लगी।

कंचन- रवि, आ जा ! अब जो भी करना है आराम से कर ! मुझे भी तेरी काफी प्यास लगी है, मेरी प्यास बुझा दे, चीर डाल मुझे !

मैंने अपना अंडरवीयर खोल दिया, मेरा 9 इंच का लंड किसी तोप की भांति कंचन की तरफ निशाना साधे खड़ा था। मैं आगे बढ़ा और अपना लंड अपनी प्यारी छोटी बहन के हाथों में थमा दिया।

कंचन मेरे लंड को सहलाने लगी, बोली- बाप रे बाप ! रवि, कितना बड़ा लंड है रे तेरा, जैसे किसी गधे का लंड हो इतना बड़ा, हाय !

मैंने कंचन की चूचियों का दबाते हुए कहा- कंचन, तू बड़ी मस्त है ! जीजा जी को तो खूब मज़े देती होगी तू !

कंचन- तू भी ले न मज़े ! तू तो मेरा सगा भाई है, तेरा भी उतना ही हक बनता है मुझ पर ! अब से तू मेरा दूसरा खसम है !

मैंने- हाँ कंचन ! क्यों नहीं !

कंचन- हाय, रवि कितना अच्छा लगता है अपने बड़े भाई से ये सब करवाना, सच बता कितनियों को चोदा है तूने अब तक?

मैंने- अब तक एक भी नहीं कंचन डार्लिंग, आज तुझसे ही अपनी ज़िंदगी की पहली चुदाई शुरू करूँगा।

मैंने कंचन की ब्रा को खोला और मुम्मों को नंगा करके आज़ाद कर दिया। उसके मुम्में तो ऐसे थे कि आज तक मैंने किसी ब्लू फिल्मों की रंडियों के मुम्में भी वैसे नहीं देखे थे, एकदम चिकने और गोरे, एक तिल का भी दाग नहीं था !

मैंने उसकी घुंडियों को अपने मुँह में लिया और चूसने लगा। कंचन सिसकारियाँ भरने लगी। मैंने उसे लिटा लिया, उसके बदन के हर अंग को चूसते हुए उसकी कच्छी पर आया, वो बिल्कुल गीली हो चुकी थी। मैं उसकी पेंटी के ऊपर से ही उसकी फ़ुद्दी को चूसने लगा।

कंचन पागल सी हो रही थी।

मैंने धीरे धीरे उसकी पेंटी को उसकी चूत पर से हटाया। आह ! क्या शानदार चूत थी ! लगता ही नहीं था कि पिछले चार महीने से इसकी चुदाई हो रही थी ! गोरी गोरी चूत पर काली काली झांटें ! ऐसा लगता था चाँद पर बादल छा गए हों ! मैंने झांटों को हाथ से बगल किया और उसके चूत को उँगलियों से फैलाया, अन्दर एकदम लाल नजारा देख कर मेरा दिमाग ख़राब हो रहा था। मैंने झट से उसकी लाल लाल चूत में अपनी लपलपाती जीभ डाली और स्वाद लिया, फिर मैंने अपनी पूरी जीभ जहाँ तक संभव हुआ उसकी चूत में घुसा कर चूस चूस कर स्वाद लेता रहा।

कंचन जन्नत में थी, उसने अपनी दोनों टांगों से मेरे सर को लपेट लिया और अपनी चूत की तरफ दबाने लगी। दस मिनट तक उसकी चूत चूसने के बाद उसकी चूत से माल निकलने लगा। मैंने बिना किसी शर्म के सारा माल को चाट लिया।

कंचन बेसुध होकर पड़ी थी, वो मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी।

मैंने कहा- सच बता कंचन, जीजा जी से पहले कितनों से चुदवाया है तूने?

कंचन- तेरे जीजा जी से पहले सिर्फ दो ने चोदा है मुझे रवि!

मैंने कहा- हाय, किस किस ने तुझे भोगा री?

कंचन- जब मैं कॉलेज में थी तब कॉलेज की एक सहेली के भाई ने मुझे तीन बार चोदा। फिर जब मैं उन्नीस साल की थी तो कालेज में मेरा एक फ्रेंड था, हम सब एक जगह पिकनिक पर गए थे, तब उसने मुझे वहाँ एक बार चोदा। एक साल बाद तो मेरी शादी ही तेरे जीजा जी से हो गई।

मैंने- तब तो मैं चौथा मर्द हुआ तेरा न?

कंचन- हाँ ! लेकिन सब से प्यारा मर्द !

मैं उसके बदन पर लेट गया आर उसके रसीले होंठ को अपने होंठों में लिए और अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी। कभी वो मेरी जीभ चूसती, कभी मैं उसकी जीभ चूसता। इस बीच मैंने उसके दोनों टांगों को फैलाया और उसकी चूत में उंगली डाल दी। कंचन ने मेरा लंड पकड़ा और उसे अपने चूत के छेद के ऊपर ले गई और हल्का सा घुसा दिया। अब शेष काम मेरा था, मैंने उसकी जीभ को चाटते हुए ही एक झटके में अपना घोड़े जैसा लंड उसके चूत में पूरा डाल दिया।

वो दर्द में मारे बिलबिला गई।

बोली- अरे, फाड़ देगा क्या रे? निकाल रे !

लेकिन मैं जानता था कि यह कम रंडी नहीं है, इसे कुछ नहीं होगा, मैंने उसकी दोनों बाहें पकड़ी और अपने लंड को उसकी चूत में धक्के लगाने शुरू कर दिए। वो कस कर अपनी आँखें बंद कर रही थी और दबी जुबान से कराह रही थी लेकिन मुझे उस पर कोई रहम नहीं आ रहा था बल्कि उसकी चीखों में मुझे मजा आ रहा था।

70-75 धक्कों के बाद उसकी चीखें बंद हो हो गई। अब उसकी चूत पूरी तरह से मेरे लंड को सहने योग्य चौड़ी हो गई थी, अब वो मज़े लेने लगी। उसने अपनी आँखे खोल कर मुस्कुरा कर कहा- हाय रे मेरे दूसरे खसम, बड़ा जालिम है रे तू ! मुझे तो लगा मार ही डालेगा !

मैंने कहा- कंचन डार्लिंग, मैं तुझे कैसे मार सकता हूँ रे ! तू तो अब मेरी जान बन गई है और तुझे तो आदत होगी न बचपन से?

कंचन हंसने लगी. बोली- लेकिन इतना बड़ा लंड की आदत नहीं है मेरे शेर राजा ! मज़ा आ रहा है तुझसे चुदवा कर!

करीब दस मिनट तक चोदने के बाद मेरे लंड से माल निकलने पर हो गया, मैंने कहा- कंचन डार्लिंग, माल निकलने वाला है।

कंचन- निकाल दे ना वहीं अन्दर !

अचानक मेरे लंड से माल की धार बहने लगी और मैंने पूरा जोर लगा कर कंचन की चूत में अपना लंड घुसा दिया। कंचन कराह उठी।

थोड़ी देर बाद हम दोनों को होश आया, मेरा लंड उसकी चूत में ही था।

मैं उसके नंगे बदन पर से उठा, समय देखा तो नौ बजने को थे, मैंने पूछा- कंचन नहाएगी?

कंचन- हाँ रवि, चल !

मैंने उसे अपनी गोद में उठाया, उसने भी हँसते हुए अपनी दोनों बाहें मेरे गले में लपेटी और हम दोनों बाथरूम में आ गए। वहाँ मैंने कंचन को बाथटब में डाल दिया, फिर शावर को टब की ओर घुमाया और चला दिया। अब नीचे भी पानी और ऊपर से भी पानी बरस रहा था। मैं कंचन के ऊपर लेट गया, अब हम ठण्डे पानी में एक दूसरे के आगोश में थे, मेरे होंठ उसके होंठों को चूम रहे थे। मेरा एक हाथ उसके मुम्मों से खेल रहा था, और दूसरा हाथ उसकी चूत के छेद में उंगली कर रहा था।

और वो भी खाली नहीं थी, वो मेरे लंड को दबा रही थी। दस मिनट तक ठण्डे पानी में एक दूसरे के बदन से खेलने के बाद हम दोनों का शरीर फिर गर्म हो गया, मैंने उसकी टांगों को टब के ऊपर रखा और अपने लंड को उसके सुराख में डाला और पानी में डूबे डूबे ही उसे 20 मिनट तक आराम से चोदता रहा। इस दौरान मेरे और उसके होंठ कभी अलग नहीं हुए।

अचानक मेरे लंड ने माल निकलना चालू किया तो मैं उसे चोदना छोड़ कर उसके चूत में लंड को पूरी ताकत के साथ दबाया और स्थिर हो गया और मेरे होंठों का दबाव उसके होंठों पर और ज्यादा बढ़ गया। जब मैं उसके होंठों को छोड़ा तो उसने कहा- कितनी देर तक चोदते हो, मेरी जान, तुम्हें पता है मेरा दो बार माल निकल चुका था इस चुदाई में ! मैं कब से कहना चाहती थी लेकिन तुमने मेरे होठों पर भी अपने होंठों से ताला लगा दिया था।

मैंने कहा- कंचन डार्लिंग, सच बताना, कैसा लगा मेरे लंड का करिश्मा?

कंचन- मानना पड़ेगा, सच में मज़ा आ गया मुझे तो आज ! अब चल कुछ खा पी लें ! अभी तो पूरी रात बाकी है।

मैंने बाथरूम के ही फोन पर से खाने के लिए चिकन, पुलाव, बियर और सिगरेट रूम में ही मंगवा लिया। थोड़ी देर में कमरे की घंटी बजी, मैं तौलिया लपेट कर बाहर आया और खाना मेज पर रखवा कर वेटर को वापस किया। कमरे का दरवाजा बंद करके मैंने कंचन को आवाज दी तो कंचन नंगी ही बाथरूम से बाहर आ गई। मैंने भी तौलिया खोल दिया। फिर हम दोनों ने जम कर चिकन-पुलाव खाया और बीयर पी। कंचन पहले भी बियर पीती थी, जीजा पिलाता था। मेरे कहने पर उसने उस दिन 3 सिगरेट भी पी ली। उसके बाद मैंने उसकी कम से कम 10-12 बार चुदाई की।

कभी उसकी चूत की चुदाई, तो कभी गांड की चुदाई, तो कभी मुँह की चुदाई, कभी चूची की चुदाई !

साली कंचन भी कम नहीं थी, एकदम रंडी की तरह रात भर चुदवाती रही, सारी रात मैंने उसे लूटा। सुबह के आठ बजे तक मैंने उसकी चुदाई की, तब जाकर कंचन को थकान हुई। तब बोली- भैया, अब मैं थक गई हूँ, अब बाथरूम चल ना!

हम दोनों लगभग एक घंटे तक टब में डूबे रहे और एक दूसरे के अंगों से खेलते रहे। टब में एक बार उसकी चुदाई की। फिर वापस कमरे में आकर नाश्ता मंगवाया और नाश्ता करके हम दोनों जो सोये तो सीधे पांच बजे उठे। हम दोनों नंगे थे, उसने मेरे लंड पर हाथ साफ़ करना शुरू किया, लंड दूसरी पारी के लिए एकदम से तैयार हो गया। मैं कंचन के बदन पर चढ़ गया और उसके चूत में अपना नौ इंच का लंड घुसेड़ दिया।

(24-04-2019, 09:08 AM)neerathemall Wrote: तभी जीजा जी का फोन आया लेकिन मैंने कंचन की चुदाई बंद नहीं की, कंचन ने मुझसे चुदवाते हुए अपने खाविन्द यानि मेरे जीजा जी से बात की। उन्होंने कहा कि वो दुबई पहुँच गए हैं, फिर कंचन से पूछा कि क्या तुम रावो के साथ बंगलौर घूमी या नहीं।

कंचन ने मुस्कुराते हुए मेरी ओर देखा और फोन पर कहा- उसे फुर्सत ही नहीं मिलती है। जब आप आयेंगे तभी मैं आपके साथ घूमूंगी। तब तक आपका इंतज़ार करती हूँ। फोन रख कर उसने बगल से सिगरेट उठाई और जला कर कश लेते हुए कहा- क्यों रवि? तब तक तुम मुझे जन्नत की सैर करवाओगे न?

मैंने हँसते हुए अपने लंड के धक्के उसके चूत में तेज किया और कहा- क्यों नहीं कंचन डार्लिंग ! लेकिन तू हैं बड़ी कमीनी चीज !

कंचन ने भी मेरे लंड के धक्के पर कराहते हुए मुस्कुरा कर कहा- तू भी तो कम हरामी नहीं है, पक्का बहनचोद है तू ! अपना गधे जैसे लंड से अपनी प्यारी बहिन को चूत फाड़ डाली |

मैंने कहा- पक्की रंडी है तू साली ! एकदम सही पहचाना मुझे ! तुझ पर तो मेरी तभी से नजर थी जब से तू फ्रॉक पहन के घूमा करती थी। अब जाकर मौका मिला है तुझे चोदने का।

कंचन- हाय मेरे हरामी राजा, पहले क्यों नहीं बताया, इतने दिन तक तुझे प्यासा तो ना रहना पड़ता।

मैंने कहा- सब्र का फल मीठा होता है मेरी जान !

तब तक मेरे लंड का माल उसके चूत में निकल चुका था, अब मैं उसके बदन पर निढाल सा पड़ा था और वो सिगरेट के कश ले रही थी।

और फिर अगले 6 दिन तक हम दोनों में से कोई कमरे के बाहर भी नहीं निकला जब तक कि जीजा जी दुबई से वापस नहीं आ गए।


~~~ समाप्त ~~~
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#28
(16-12-2019, 01:56 PM)neerathemall Wrote: yourock Heart
Heart
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#29
कंचन -बेटी बहन से बहू तक का सफ़र
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#30
(10-12-2023, 01:22 PM)neerathemall Wrote:
कंचन -बेटी बहन से बहू तक का सफ़र



















cool2
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#31
(10-12-2023, 01:22 PM)neerathemall Wrote:
कंचन -बेटी बहन से बहू तक का सफ़र

मैं बचपन से ही बहुत सुंदर थी. मेरा एक छोटा भाई है, विकी. विकी मुझ से दो साल छोटा है. विकी भी लंबा तगड़ा जवान है. मेरी छातियाँ भर आई थी. बगल में और टाँगों के बीच में काफ़ी बाल निकलने लगे थे. 18 साल तक पहुँचते पहुँचते तो मैं मानो पूरी जवान लगने लगी थी. गली में और बाज़ार में लड़के आवाज़ें कसने लगे थे. ब्रा की ज़रूरत तो पहले से ही पद गयी थी. 18साल में साइज़ 34 इंच हो गया था. अब तो टाँगों के बीच में बाल बहुत ही घने और लंबे हो गये थे. हालाँकि कमर काफ़ी पतली थी लेकिन मेरे नितंब काफ़ी भारी और चौड़े हो गये थे. मुझे अहसास होता जा रहा था कि लड़कों को मेरी दो चीज़ें बहुत आकर्षित करती हैं – मेरे नितंब और मेरी उभरी हुई छातियाँ. कॉलेज में मेरी बहुत सी सहेलियों के चक्कर थे, लेकिन मैं कभी इस लाफदे में नहीं पड़ी. कॉलेज से ही मेरे पीछे बहुत से लड़के दीवाने थे. लड़कों को और भी ज़्यादा तड़पाने में मुझे बड़ा मज़ा आता था. कॉलेज में सिर्फ़ घुटनों से नीचे तक की स्कर्ट ही अलोड थी. क्लास में बैठ कर मैं अपनी स्कर्ट जांघों तक चढ़ा लेती थी और लड़कों को अपनी गोरी गोरी सुडोल मांसल टाँगों के दर्शन कराती. केयी लड़के जान बूझ कर अपना पेन या पेन्सिल नीचे गिरा कर, उठाने के बहाने मेरी टाँगों के बीच में झाँक कर मेरी पॅंटी की झलक पाने की नाकामयाब कोशिश करते.

19 साल की उम्र में तो मेरा बदन पूरी तरह से भर गया था. अब तो अपनी जवानी को कपड़ों में समेटना मुश्किल होता जा रहा था. छातियों का साइज़ 36 इंच हो गया था.मेरे नितुंबों को संभालना मेरी पॅंटी के बस में नहीं रहा. और तो और टाँगों के बीच में बाल इतने घने और लंबे हो गये कि दोनो तरफ से पॅंटी के बाहर निकलने लगे थे. ऐसी उल्हड़ जवानी किसी पर भी कहर बरसा सकती थी. मेरा छोटा भाई विकी भी जवान हो रहा था, लेकिन आप जानते हैं लड़कियाँ जल्दी जवान हो जाती हैं. हम दोनो एक ही कॉलेज में पढ़ते थे. हम दोनो भाई बेहन में बहुत प्यार था. कभी कभी मुझे महसूस होता कि विकी भी मुझे अक्सर और लड़कों की तरह देखता है.

लेकिन मैं यह विचार मन से निकाल देती. लड़कों की ओर मेरा भी आकर्षण बढ़ता जा रहा था, लेकिन मैं लड़कों को तडपा कर ही खुश हो जाती थी.

मेरी एक सहेली थी नीलम. उसका कॉलेज के लड़के, सुधीर के साथ चक्कर था. वो अक्सर अपने इश्क़ की रसीली कहानियाँ सुनाया करती थी. उसकी कहानियाँ सुन कर मेरे बदन में भी आग लग जाती. नीलम और सुधीर के बीच में शारीरिक संबंध भी थे. नीलम ने ही मुझे बताया था कि लड़कों के गुप्तांगों को लंड या लॉडा और लड़कियो के गुप्तांगों को चूत कहते हैं. जब लड़के का लंड लड़की की चूत में जाता है तो उसे चोदना कहते हैं. नीलम ने ही बताया की जब लड़के उत्तेजित होते हैं तो उनका लंड और भी लंबा मोटा और सख़्त हो जाता है जिसको लंड का खड़ा होना बोलते हैं. 16 साल की उम्र तक मुझे ऐसे शब्दों का पता नहीं था. अभी तक ऐसे शब्द मुँह से निकालते हुए मुझे शर्म आती है पर लिखने में संकोच कैसा? हालाँकि मैने बच्चों की नूनियाँ बहुत देखी थी पर आज तक किसी मर्द का लंड नहीं देखा था. नीलम के मुँह से सुधीर के लंड का वर्णन सुन कर मेरी चूत भी गीली हो जाती. सुधीर नीलम को हफ्ते में तीन चार बार चोद्ता था. एक बार मैं सुधीर और नीलम के साथ कॉलेज से भाग कर पिक्चर देखने गये. पिक्चर हॉल में नीलम हम दोनो के बीच में बैठी थी. लाइट ऑफ हुई और पिक्चर शुरू हुई. कुच्छ देर बाद मुझे ऐसा लगा मानो मैने नीलम के मुँह से सिसकी की आवाज़ सुनी हो. मैने कन्खिओ से नीलम की ओर देखा. रोशनी कम होने के कारण साफ तो दिखाई नहीं दे रहा था पर जो कुच्छ दिखा उसेदेख कर मैं डांग रह गयी. नीलम की स्कर्ट जांघों तक उठी हुई थी और सुधीर का हाथ नीलम की टाँगों के बीच में था. सुधीर की पॅंट के बटन खुले हुए थे और नीलम सुधीर के लंड को सहला रही थी. अंधेरे में मुझे सुधीर के लंड का साइज़ तो पता नहीं लगा लेकिन जिस तरह नीलम उस पर हाथ फेर रही थी, उससे लगता था की काफ़ी बड़ा होगा. सुधीर का हाथ नीलम की टाँगों के बीच में क्या कर रहा होगा ये सोच सोच कर मेरी चूत बुरी तरह से गीली हो चुकी थी और पॅंटी को भी गीला कर रही थी. इंटर्वल में हम लोग बाहर कोल्ड ड्रिंक पीने गये. नीलम का चेहरा उत्तेजना से लाल हो गया था. सुधीर की पॅंट में भी लंड का उभार सॉफ नज़र आ रहा था. सुधीर ने मुझे अपने लंड के उभार की ओर देखते हुए पकड़ लिया. मेरी नज़रें उसकी नज़रें से मिली और मैं मारे शर्म के लाल हो गयी. सुधीर मुस्कुरा दिया. किसी तरह इंटर्वल ख़तम हुआ और मैने चैन की साँस ली. पिक्चर शुरू होते ही नीलम का हाथ फिर से सुधीर के लंड पे पहुँच गया. लेकिन सुधीर ने अपना हाथ नीलम के कंधों पर रख लिया. नीलम के मुँह से सिसकी की आवाज़ सुन कर मैं समझ गयी की अब वो नीलम की चूचियाँ दबा रहा था. अचानक सुधीर का हाथ मुझे टच करने लगा. मैने सोचा ग़लती से लग गया होगा. लेकिन धीरे धीरे वो मेरी पीठ सहलाने लगा और मेरी ब्रा के ऊपर हाथ फेरने लगा. नीलम इससे बिल्कुल बेख़बर थी. मैं मारे डरके पसीना पसीना हो गयी और हिल ना सकी. अब सुधीर का साहस और बढ़ गया और उसने साइड से हाथ डाल कर मेरी उभरी हुई चूची को शर्ट के ऊपर से पकड़ कर दबा दिया. मैं बिल्कुल बेबुस थी. उठ कर चली जाती तो नीलम को पता लग जाता. हिम्मत मानो जबाब दे चुकी थी. सुधीर ने इसका पूरा फ़ायदा उठाया. वो धीरे धीरे मेरी चूची सहलाने लगा. इतने में नीलम मुझसे बोली,“ कंचन पेशाब लगी है ज़रा बाथरूम जा कर आती हूँ.” मेरा कलेजा तो धक से रह गया. जैसे ही नीलम गयी सुधीर ने मेरा हाथ पकड़ कर अपने लंड पर रख दिया. मैने एकदम से हड़बड़ा के हाथ खींचने की कोशिश की, लेकिन सुधीर ने मेरा हाथ कस कर पकड़ रखा था. लंड काफ़ी गरम, मोटा और लोहे के समान सख़्त था. मैं रुनासि होके बोली

“ सुधीर ये क्या कर रहे हो ? छोड़ो मुझे, नहीं तो नीलम को बता दूँगी.” सुधीर मंजा हुआ खिलाड़ी था, बोला,

“ मेरी जान तुम पर तो मैं मरता हूँ. तुमने मेरी रातों की नींद चुरा ली है. मैं तुमसे बहुत प्यार करने लगा हूँ.” यह कह कर वो मेरा हाथ अपने लंड पर रगड़ता रहा.

“ सुधीर तुम नीलम को धोका दे रहे हो. वो बेचारी तुमसे शादी करना चाहती है और तुम दूसरी लड़कियो के पीछे पड़े हो.”

“ कंचन मेरी जान तुम दूसरी कहाँ, मेरी हो. नीलम से दोस्ती तो मैने तुम्हें पाने के लिए की थी.”

“ झूट ! नीलम तो अपना सूब कुच्छ तुम्हें सौंप चुकी है. तुम्हें शर्म आनी चाहिए उस बेचारी को धोका देते हुए. प्लीज़ मेरा हाथ छोड़ो.”

इतने में नीलम वापस आ गयी. सुधीर ने झट से मेरा हाथ छोड़ दिया. मेरी लाचारी का फायेदा उठाने के कारण मैं बहुत गुस्से में थी, लेकिन ज़िंदगी में पहली बार किसी मर्द के खड़े लंड को हाथ लगाने के अनुभव से खुश भी थी. नीलम के बैठने के बाद सुधीर ने फिर से अपना हाथ उसके कंधे पर रख दिया. नीलम ने उसका हाथ अपने कंधों से हटा कर अपनी टाँगों के बीच में रख दिया और सुधीर के लंड को फिर से सहलाने लगी. सुधीर भी नीलम की स्कर्ट में हाथ डाल कर उसकी चूत सहलाने लगा. जैसे ही नीलम ने ज़ोर की सिसकी ली मैं समझ गयी कि सुधीर ने अपनी उंगली उसकी चूत में घुसा दी है.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#32
इस घटना के बाद मैने सुधीर से बिल्कुल बात करना बंद कर दिया. लेकिन अब सुधीर मेरे घर के चक्कर लगाने लगा और मेरे भाई विकी से भी दोस्ती कर ली. वो विकी से मिलने के बहाने घर आने लगा लेकिन मैने उसे कभी लिफ्ट नहीं दी. कुच्छ दिनों के बाद हमने अपना घर बदल लिया. सुधीर यहाँ भी आने लगा. मेरे कमरे के बाहर खुला मैदान था. लोग अक्सर मेरी खिड़की के नज़दीक पेशाब करने खड़े हो जाया करते थे. मेरी तो मानो मन की मुराद ही पूरी हो गयी. मैं रोज़ खिड़की के पीछे से लोगों को पेशाब करते देखती. दिन में कम से कम 10 से 15 लोगों के लंड के दर्शन हो जाते थे. मुझे काफ़ी निराशा होने लगी क्योंकि किसी भी आदमी का लंड 2 से 3 इंच लंबा नहीं था. सभी लंड सिकुदे हुए और भद्दे से लगते थे. किसी का भी लंड देखने लायक नहीं था. नीलम ने मुझे हिन्दी की सेक्स की कहानियों की राज शर्मा की एक साइट बताई. उसमे कहानियो के साथ साथ 8 इंच या 10 इंच के लंड का वर्णन था. यहाँ तक कि एक कहानी में तो एक फुट लंबे लंड का भी जीकर था. केयी दिन इंतज़ार करने के बाद मेरी मनो कामना पूरी हुई. एक दिन मैं और नीलम मेरे कमरे में पढ़ रहे थे कि नीलम की नज़र खिड़की के बाहर गयी. उसने मुझे कोहनी मार के बाहर देखने का इशारा किया. खिड़की के बिकुल नज़दीक ही एक लंबा तगड़ा साधु खड़ा इधेर उधेर देख रहा था. अचानक साधु ने अपना तहमद पेशाब करने के लिए ऊपर उठाया. मेरे मुँह से तो चीख ही निकल गयी. साधु की टाँगों के बीच में मोटा, काला और बहुत ही लंबा लंड झूल रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे उसका लंड उसके घुटनों से तीन या चार इंच ही उँचा था. नीलम भी पसीने पसीने हो गयी . लंड बहुत ही भयंकर लग रहा था. साधु ने दोनो हाथों से अपना लंड पकड़ के पेशाब किया. साधु का लंड देख कर मुझे गधे के लंड की याद आ गयी. मैदान में केयी गधे घूमते थे जिनके लटकते हुए मोटे लंबे लंड को देख कर मेरी चूत गीली हो जाती थी. जब साधु चला गया तो नीलम बोली,

“ हाई राम ! ऐसा लंड तो औरत की ज़िंदगी बना दे. खड़ा हो के तो बिजली के खंबे जैसा हो जायगा. काश मेरी चूत इतनी खुशनसीब होती ! ऊऊऊफ़ ! फॅट ही जाती.” “ नीलम! नीलम ! तू ये क्या बोल रही है. कंट्रोल कर. तुझे तो सिर्फ़ सुधीर के बारे में ही सोचना चाहिए.”

“ हां मेरी प्यारी कंचन ! सिर्फ़ फरक इतना है कि सुधीर का खड़ा हो के 6 इंच का होता है और साधु महाराज का सिक्युडा हुआ लंड भी 10 इंच का था. ज़रा सोच कंचन, एक फुट का मूसल तेरी चूत में जाए तो तेरा क्या होगा. भगवान की माया देख, एक फुट का लॉडा दिया भी उसे जिसे औरत में कोई दिलचस्पी नहीं.”

“ तुझे कैसे पता साधु महाराज को औरतों में दिलचस्पी नहीं. हो सकता है साधु महाराज अपने लंड का पूरा इस्तेमाल करते हों.” मैने नीलम को चिड़ाते हुए कहा.

“ हाई मर जाउ ! काश तेरी बात बिल्कुल सच हो. साधु महाराज की रास लीला देखने के लिए तो मैं एक लाख रुपये देने को तैयार हूँ.”“ और साधु महाराज से चुदवाने की लिए ?”

“ ओई मा. साधु महाराज से चुदवाने की लिए तो मैं जान भी देने को तैयार हूँ. कंचन, तूने चुदाई का मज़ा लिया ही कहाँ है. तूने कभी घोड़े को घोड़ी पर चढ़ते देखा है? जब ढाई फुट का लॉडा घोड़ी के अंडर जाता है तो उसकी हालत देखते ही बनती है. साधु महाराज जिस औरत पर चढ़ेंगे उस औरत का हाल भी घोड़ी जैसा ही होगा.”

मैने कुत्ते को कुतिया पर और सांड को गाय पर चढ़ते तो देखा था लेकिन घोड़े को घोड़ी पर चढ़ते कभी नहीं देखा था. अब तो साधु महाराज का लंड मुझे सपनों में भी आने लगा. बड़े और मोटे लंड की तो मैं दीवानी हो गयी थी. हालाँकि मेरे हज़ारों दीवाने थे पर मैं किसी को लिफ्ट नहीं देती थी. मुझे उन सबका इरादा अच्छी तरह मालूम था.

अब मैं 18 बरस की हो गयी थी और कॉलेज में 12 क्लास में मेरा आखरी साल था. मुझे साड़ी में देख कर कोई कह नहीं सकता था कि मैं कॉलेज में पढ़ती हूँ. चूचियाँ 38 इंच होने जा रही थी. मेरे बदन का सबसे सेक्सी हिस्सा शायद मेरे भारी नितूंब थे. लड़कों को देख कर मैं और मटक कर चलती. उनकी आहें सुन कर मुझे बड़ा मज़ा आता. अक्सर मेरे नितुंबों पर लड़के कॉमेंट पास किया करते थे. एक दिन तो हद ही हो गयी. मैने एक लड़के को बोलते सुना, “ हाई क्या कातिल चूतर हैं. आजा मेरी जान पूरा लॉडा तेरी गांद में पेल दूं.” मैं ऐसी अश्लील बातें खुले आम सुन कर दंग रह गयी. जब मैने उस लड़के के कॉमेंट के बारे में नीलम को बताया तो वो हस्ने लगी.

“ तू कितनी अनारी है कंचन. तेरे चूतर हैं ही इतने सेक्सी की किसी भी लड़के का मन डोल जाए.”

“ लेकिन वो तो कुच्छ और भी बोल रहा था.”

“ तेरी गांद में लंड पेलने को बोल रहा था? मेरी भोली भाली सहेली बहुत से मर्द औरत की चूत ही नहीं गांद भी चोद्ते हैं. ख़ास कर तेरी जैसी लड़कियो की, जिनकी गांद इतनी सुन्दर हो. अभी तो सती सावित्री है , जब तेरी शादी होगी तो याद रख एक दिन तेरा पति तेरी गांद ज़रूर चोदेगा. सच कंचन अगर मेरे पास लंड होता तो मैं भी तेरी गांद ज़रूर मारती.”

“ हट नालयक ! सुधीर ने भी तेरी गांद चोदि है ?”

“ नहीं रे अपनी किस्मत में इतने सेक्सी चूतर कहाँ.”

मुझे पहली बार पता लगा कि औरत की आगे और पीछे दोनो ओर से ली जाती है. तभी मेरे आँखों के सामने साधु महाराज का लंड घूम गया और मैं काँप उठी. अगर वो बिजली का खंबा गांद में गया तो क्या होगा! मुझे अभी भी नीलम की बात पर विश्वास नहीं हो रहा था. इतने छ्होटे से छेद में लंड कैसे जाता होगा.

इस दौरान सुधीर ने मेरे भाई विकी से अच्छी दोस्ती कर ली थी. दोनो साथ साथ ही घूमा करते थे. एक दिन जब मैं बाज़ार से वापस आई तो मैने देखा कि सुधीर और विकी ड्रॉयिंग रूम में कुच्छ ख़ुसर पुसर कर रहे हैं और हस रहे हैं . मैं दीवार से कान लगा कर उनकी बातें सुनने लगी. उनकी बातें सुन के मैं हैरान रह गयी. सुधीर कह रहा था,

“ विकी तूने कभी किसी लड़की की चूत देखी है ?”

“ नहीं यार अपनी किस्मत ऐसी कहाँ ? तूने देखी है?”

“ देखी ही नहीं ली भी है.”

“ झूट मत बोल. किसकी ली है ?”

“ तू विश्वास नहीं करेगा.”

“ अरे यार बोल ना. विश्वास की क्या बात है?”

“ तो सुन, तेरी बेहन कंचन की सहेली नीलम को मैं रोज़ चोद्ता हूँ?”

“ क्या बात कर रहा है? मेरी दीदी की सहेलियाँ ऐसी हो ही नहीं सकती. मेरी दीदी ऐसी लड़कियो से दोस्ती नहीं कर सकती.”

“ देख विकी तू बहुत भोला है. तेरी बहन जवान हो चुकी है और अच्छी तरह जानती है कि नीलम मुझसे चुदवाति है.”

“ मैं सोच भी नहीं सकता की दीदी ऐसी लड़की से दोस्ती रखती है.”

“ विकी एक बात कहूँ? बुरा तो नहीं मानेगा?”

“ नहीं, बोल.”

“ यार, तेरी दीदी भी पताका है. क्या गदराया हुआ बदन है. तूने कभी अपनी दीदी की ओर ध्यान नहीं दिया.?”

“ सुधीर! क्या बकवास कर रहा है. अगर तू मेरा दोस्त नहीं होता तो मैं तुझे धक्के मार के घर से निकाल देता.”

“ नाराज़ मत हो मेरे दोस्त. तू और मैं दोनो मर्द हैं. लड़की तो लड़की ही होती है, बेहन ही क्यों ना हो. सच कहूँ, मैं तो अपनी बड़ी बेहन को केयी बार नंगी देख चुक्का हूँ. मैने बाथरूम के दरवाज़े में एक छेद कर रखा है. जब भी वो नहाने जाती है तो मैं उस छेद में से उसको नंगी नहाते हुए देखता हूँ. तू मेरे साथ घर चल एक दिन तुझे भी दिखा दूँगा. अब तो खुश है ना! अब सच सच बता तूने अपनी दीदी को नंगी देखा है.?”

विकी थोड़ा हिचकिचाया और फिर जो बोला उसे सुन कर मैं दंग रह गयी.

“ नहीं यार. दिल तो बहुत करता है लेकिन मोका कभी नहीं मिला. कभी कभी दीदी जब लापरवाही से बैठती है तो एक झलक उसकी पॅंटी की मिल जाती है. जब कभी वो नहा कर निकलती है तो मैं झट से बाथरूम में घुस जाता हूँ और उसकी उतारी हुई पॅंटी को सूंघ लेता हूँ और अपने लंड पे रगड़ लेता हूँ.”

“ वाह प्यारे! तू तो छुपा रुस्तम निकला. कैसी सुघन्ध है तेरी दीदी की चूत की?”

“ बहुत ही मादक है यार. दीदी की चूत पे बॉल भी बहुत लंबे हैं. अक्सर पॅंटी पर रह जाते है. कम से कम तीन इंच लंबी झाँटें होंगी.”

“ हाई यार मेरा लंड तो अभी से खड़ा हो रहा है. एक दिन अपनी दीदी की पॅंटी की महक हमें भी सूँघा दे. तेरा कभी अपनी दीदी को चोदने का मन नहीं करता?”

“ करता तो बहुत है लेकिन जो चीज़ मिल नहीं सकती उसके पीछे क्या पड़ना? दीदी के नाम की मूठ मार लेता हूँ.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#33
विकी और सुधीर की बातें सुन कर मेरा पसीना छ्छूट गया. मेरा सगा भाई भी मुझे चोदना चाहता है. मैने अब अपनी पॅंटी बाथरूम में कभी नहीं छोड़ी. मुझे डर था की विकी मेरी पॅंटी सुधीर को ना देदे. मुझे विकी से कोई शिकायत नहीं थी. आख़िर वो मेरा छ्होटा भाई था. अगर विकी मुझे नंगी देखने के लिए इतना उतावला था तो हालाँकि मैं उसके सामने खुले आम नंगी तो नहीं हो सकती थी पर किसी ना किसी बहाने अपने बदन के दर्शन ज़रूर करा सकती थी. कॉलेज ड्रेस में अपनी पॅंटी की झलक देना बड़ा आसान था. सोफा पर बैठ कर टीवी देखते वक़्त अपनी टाँगों को इस प्रकार फैला लेती की विकी को मेरी पॅंटी के दर्शन हो जाते. एक दिन मैं कॉलेज ड्रेस में ही लेटी बुक पढ़ रही थी की विकी के कदमों की आहट सुनाई दी. मैने झट से टाँगें मोड़ कर ऊपर कर ली ओर बुक पढ़ने का नाटक करती रही. मेरी गोरी गोरी मांसल टाँगें पूरी तरह नंगी थी. स्कर्ट कमर तक ऊपर चढ़ गयी थी. मैने ज़्यादा ही छ्होटी पॅंटी पहन रखी थी जो बरी मुश्किल से मेरी चूत को ढके हुए थी. मेरी लंबी घनी झांटें पॅंटी के दोनो ओर से बाहर निकली हुई थी. इतने में विकी आ गया और सामने का नज़ारा देख कर हरबदा कर खड़ा हो गया. उसकी आँखें मेरी टाँगों के बीच में जमी हुई थी. इस मुद्रा की प्रॅक्टीस मैं शीशे के सामने पहले ही कर चुकी थी. मुझे भली भाँति पता था कि इस वक़्त मेरी चूत के घने बॉल पॅंटी के दोनो ओर से झाँक रहे थे. पॅंटी बड़ी मुश्किल से मेरी फूली हुई चूत के उभार को ढके हुए थी. मैने उसे जी भर के अपनी पॅंटी के दर्शन कराए. इतने में मैने बुक नीचे करते हुए पूछा “ विकी क्या कर रहा है? कुच्छ चाहिए?” विकी एकदम से हार्बारा गया. उसका चेहरा उत्तेजना से लाल था. “ कुच्छ नहीं दीदी. अपनी बुक ढूंड रहा था. उसकी पॅंट के उभार को देख कर मैं समझ गयी उसका लंड खड़ा हो गया है. लेकिन विकी के पॅंट का उभार देख कर ऐसा लगता था कि उसका लंड काफ़ी बड़ा था.

जब से विकी के पॅंट का उभार देखा तब से मेरे दिमाग़ में एक ही बात घूमने लगी कि किस तरह विकी का लंड देखा जाए. मुझे पता था कि विकी रात को लूँगी पहन कर सोता है. मेरे दिमाग़ में एक प्लान आया. मैं रोज़ सुबह जल्दी उठ कर विकी के कमरे में इस आस में जाती कि किसी दिन उसकी लूँगी खुली हुई मिल जाए या कमर तक उठी हुई मिल जाए और मैं उसके लंड के दर्शन कर सकूँ. कई दिन तक किस्मत ने साथ नहीं दिया. अक्सर उसकी लूँगी जांघों तक उठी हुई होती लेकिन लंड फिर भी नज़र नहीं आता. लेकिन मैने भी हार नहीं मानी. आख़िर एक दिन मैं कामयाब हो ही गयी. एक दिन जब मैं विकी के कमरे में घुसी तो देखा विकी पीठ पे लेटा हुआ है और उसकी लूँगी सामने से खुली हुई थी. सामने का नज़ारा देख कर तो मैं बेहोश होते होते बची. मैने तो सपने में भी ऐसे नज़ारे की कल्पना नहीं की थी. इतना लंबा! इतना मोटा! इतना काला लंड! जैसा की मैने बताया विकी पीठ के बल लेटा हुआ था, लेकिन उसके लंड का सुपरा बिस्तेर पे टीका हुआ था! बाप रे बाप! मैने अपने आप को नोचा, कहीं मैं सपना तो नहीं देख रही थी. क्या भयंकर लग रहा था विकी का लंड. इसने तो साधु महाराज के लंड को भी मात दे दी. अब तक तो मैं लंड एक्सपर्ट हो चुकी थी. नीलम और मैने अब तक ना जाने कितने छ्होटे छ्होटे पेशाब करते भद्दे से लंड देखे थे. मैं मन ही मन सोचने लगी कि घर में इतना लंबा मोटा लंड मोज़ूद है और मैं बेकार में ही दूसरों का लंड देखने में अपना समय बर्बाद कर रही थी. मुझे तो जैसे साँप सूंघ गया था. अचानक विकी ने हरकत की, और मैं जल्दी से भाग गयी. उस दिन के बाद से तो मेरी नींद हराम हो गयी. रोज़ सुबह पागलों की तरह उठ के विकी के लंड के दर्शन करने उसके कमरे में जाती लेकिन हमेशा निराशा ही हाथ लगती. मैने सोच लिया था कि एक दिन ये लंड मेरी चूत में ज़रूर जाएगा.

मेरी उम्र 20 साल हो चुकी थी. मम्मी पापा मेरे लिए लड़का ढूंड रहे थे. एक बार हम सब कानपुर से एक लड़के को देख कर वापस आ रहे थे. ट्रेन में बहुत भीड़ थी. सिर्फ़ दो ही सीट मिली. वो भी अलग अलग कॉमपार्टमेंट में. पापा मम्मी एक कॉमपार्टमेंट में चले गये और मैं और विकी दूसरे में. मैने सोचा इससे अच्छा मोका कभी नहीं मिलेगा. रात को तो हम दोनो को एक ही सीट पर सोना पड़ेगा. मैं प्लान बनाने लगी की किस प्रकार इस सुनेहरे मोके का पूरा फ़ायदा उठाया जाए. एसी 2 टीएर में साइड वाली सीट थी. विकी मेरी सामने वाली सीट पर बैठा था. मैने लहंगा पहना हुआ था. आज तक काई बार विकी को पॅंटी के दर्शन करा चुकी थी और एक बार तो उसके मुँह पे भी पॅंटी से धकि अपनी चूत रगड़ चुकी थी. क्यों ना इस बार अपनी नंगी चूत के भी दर्शन करा दूं. विकी को इस प्रकार तड़पाने में मुझे बहुत मज़ा आने लगा था. मुझे मालूम था विकी मुझे चोदने के ख्वाब देखता है. मैने जब से उसका लंड देखा था तभी से ठान लिया था कि शादी के बाद विकी से ज़रूर चुदवाउन्गि. शादी से पहले मैं अपना कुँवारापन नहीं खोना चाहती थी. इसके इलावा किसी भी कुँवारी चूत के लिए विकी का मूसल बहुत ख़तरनाक था. मेरी कुँवारी चूत बुरी तरह से फॅट सकती थी, और अगर नहीं भी फटती तो इतनी चौरी हो जाती की मेरे होने वाले पति को पता लग जाता की मैं कुँवारी नहीं हूँ. पापा के मोटे लॉड ने मम्मी की चूत का क्या हाल कर रखा था वो तो मैं खुद ही देख चुकी थी. मैं पेशाब करने के बहाने बाथरूम गयी और अपनी पॅंटी उतार ली. अब मेरी चूत लहँगे के नीचे बिल्कुल नंगी थी. सामने की सीट पर विकी बैठा हुआ था. मैं अपनी सीट पर उसके सामने आ कर बैठ गयी, टाँगें विकी की सीट पर रख लीं, और अपनी सीट का परदा खींच लिया ताकि बाकी लोग मेरी हरकतें ना देख सकें. अगर मैं लहंगा थोड़ा भी ऊपर करती तो वो मेरी टाँगों के बीच झाँक सकता था. मैं नॉवेल पढ़ने का बहाना करने लगी. विकी पूरी कोशिश कर रहा था कि किसी तरह मेरी टाँगों के बीच की झलक मिल जाय. वो तो बेचारा मेरी पॅंटी की झलक पाने की आशा कर रहा था. उसे क्या मालूम कि आज तो उसे शॉक लगने वाला था. मैं भी उसे खूब उतावला करती रही. थोड़ा सा लहंगा ऊपर खींच लेती, लेकिन सिर्फ़ इतना ही की विकी को कुच्छ दिखने की आशा हो जाए पर दिखाई कुच्छ ना दे. फिर थोरी देर में टाँग खुजलाने के बहाने लहंगा थोड़ा और ऊपर कर लेती जिससे विकी को मेरी गोरी गोरी टाँगें नज़र आ जाती पर असली चीज़ नहीं. मेरा इरादा था कि रात को सोने से पहले ही उसे अपनी चूत के दर्शन कारवँगी, क्योंकि सोना तो हमने एक ही सीट पर था
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#34
विकी का उतावलापन साफ नज़र आ रहा था. मुझ से ना रहा गया. बेचारे पे बहुत तरस आ रहा था. मैने विकी की सीट से टाँगें उठा कर अपनी सीट पर कर लीं. टाँगें इस प्रकार से चौड़ी करते हुए उठाई की गोरी जांघों के बीच में विकी को मेरी झांतों से भरी हुई चूत के एक सेकेंड के लिए दर्शन हो गये. पॅंट का उभार बता रहा था मेरी चूत का असर. अब तो विकी की हालत और भी खराब थी. बेचारा मेरी आँख बचा कर अपने लंड को पॅंट के ऊपर से ही रगड़ रहा था. कुच्छ देर के बाद मैं टाँगें मोड़ के उकड़ू हो कर बैठ गयी और अपना सिर घुटनों पर टीका के सोने का बहाना करने लगी. लहँगे के नीचे के हिस्से को मैने अपनी मूडी हुई टाँगों में फसाया हुआ था और सामने के हिस्से को घुटनों तक ऊपर खींच रखा था. अब अगर ल़हेंगे का नीचे का या पिच्छला हिस्सा मेरी मूडी हुई टाँगों से निकल कर नीचे गिर जाता तो ल़हेंगे के अंडर से मूडी हुई टाँगों के बीच से मेरी नंगी चूत विकी को बड़ी आसानी से नज़र आ जाती. एक सेकेंड की झलक पा कर ही विकी बहाल था. काफ़ी देर इंतज़ार कराने के बाद मैने अपने घुटनों पे सिर रख कर सोने का बहाना करते हुए टाँगों के बीच फँसा हुआ लहँगे का निचला हिस्सा नीचे गिरने दिया. अब तो मेरी नंगी चूत विकी की आँखों के सामने थी. विकी ज़िंदगी में पहली बार किसी लड़की की चूत देख रहा था. गोरी गोरी मांसल जांघों के बीच में लंबी काली झांतों के अंडर से झँकती हुई मेरी डबल रोटी के समान फूली चूत को देख कर अच्छों अच्छों का ईमान डोल सकता था. विकी तो फिर बच्चा ही था. इस मुद्रा में मेरी चूत के उभरे हुए होंठ घनी झांतों के बीच से झाँक रहे थे. उभरे हुए तो बहुत थे लेकिन उतने चौड़े और खुले हुए नहीं जितने मम्मी की चूत के थे. मम्मी की चूत को पापा का मोटा लॉडा बीस साल से जो चोद रहा था. करीब 5 मिनिट तक मैने जी भर के विकी को अपनी चूत के दर्शन कराए.विकी की तो जैसे आँखे बाहर गिरने वाली थी. अचानक मैने सिर घुटनों से ऊपर उठाया और पूछा,

“ विकी कौन सा स्टेशन आने वाला है.?”

विकी एकदम हरबदा गया और बोला,

“ पता नहीं दीदी. मैं तो सो रहा था.”

“ अरे तुझे इतना पसीना क्यों आ रहा है ? तू ठीक तो है?” मैने विकी के माथे पर हाथ रखते हुए पूछा. पसीना आने का कारण तो मुझे अच्छी तरह मालूम था. ऐसा ही पसीना मुझे भी उस दिन आया था जिस दिन मैने विकी का मोटा लॉडा देखा था. विकी के पॅंट का उभार भी च्छूप नहीं रहा था.

“ अच्छा चल खाना खा लेते हैं.” हम दोनो ने खाना खाया और फिर सोने की तैयारी करने लगे.

“ विकी जा कपड़े बदल ले. सीट तो एक ही है मेरे साथ ही लेट जाना.”

“ दीदी आपके साथ कैसे लेटुँगा?”

“ क्यों मैं इतनी मोटी हूँ जो तू मेरे साथ नहीं लेट सकता.?”

“ नहीं नहीं दीदी एक बार आपको मोटी कह कर भुगत चुक्का हूँ फिर कह दिया तो ना जाने क्या हो जाएगा. अब आप जवान हो गयी हो. आपके साथ सोने में शरम आती है.”

“ ओ ! तो तुझे मेरे साथ सोने में शर्म आ रही है. ठीक है सारी रात खड़ा रह मैं तो चली सोने.” ये कह कर मैं सीट पर लेट गयी. बेचारा काफ़ी देर तक बैठा रहा फिर उठ के बाथरूम गया. जब वापस आया तो उसने लूँगी पहनी हुई थी. मैं मन ही मन मनाने लगी कि काश विकी ने अंडरवेर भी उतारा हुआ हो. विकी फिर आ कर बैठ गया. थोरी देर बाद मैने कहा,

“ जब तेरा शरमाना ख़त्म हो जाए तो लेट जाना. लाइट बंद कर्दे और मुझे सोने दे.”

विकी ने लाइट बंद करदी. मैं विकी की तरफ पीठ करके लेटी थी. उसके लेटने की जगह छोड़ रखी थी. ट्रेन में हल्की हल्की लाइट थी. सोने का बहाना करते हुए मैने लहंगा घुटनों से ऊपर खींच लिया था. ट्रेन की हल्की हल्की लाइट में मेरी गोरी गोरी जंघें चमक रही थी. करीब एक घंटे तक विकी ऐसे ही बैठा रहा. शायद मेरी टाँगों को घूर रहा था. थोरी देर में मुझे धीरे से हिला के फुसफुसाया,

“ दीदी ! दीदी!. सो गयी क्या?

मैं गहरी नींद में सोने का बहाना करती रही.

“ दीदी ! दीदी !” इस बार थोड़ा और ज़ोर से हिलाता हुआ बोला. लेकिन मैने कोई जबाब नहीं दिया. अब उसे विश्वास हो गया था कि मैं गहरी नींद में हूँ. अचानक मुझे महसूस हुआ जैसे कोई मेरा लहंगा ऊपर की ओर सरका रहा हो. मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धक धक करने लगा. मैं विकी का इरादा अच्छी तरह समझ रही थी. बहुत ही धीरे से विकी ने मेरा लहंगा इतना ऊपर सरका दिया की मेरी पूरी टाँगें नंगी हो गयी; सिर्फ़ नितंब ही ढके हुए थे. बाप रे ! थोरी ही देर में ये तो लहंगा मेरे नितंबों के ऊपर सरका देगा. मैने विकी से इस बात की आशा नहीं की थी. मैने तो पॅंटी भी नहीं पहनी थी. विकी भी इस बात को जानता था.

“ दीदी ! दीदी!” विकी एक बार फिर फुसफुसाया. मैं सोने का बहाना किए पड़ी रही. समझ नहीं आ रहा था क्या करूँ. इतने में विकी ने लहंगा बहुत ही धीरे से मेरे नितंबों के ऊपर सरका दिया. हे भगवान ! अब तो मेरे विशाल नितंब बिल्कुल नंगे थे. शरम के मारे मेरा बुरा हाल था, लेकिन क्या करती. जिन नितंबों ने पूरे शहर के लड़कों पर कयामत ढा रखी थी वो आज विकी की नज़रों के सामने बिल्कुल नंगे थे. काफ़ी देर तक मेरे नितंबों को निहारने के बाद विकी धीरे से मेरे पीछे लेट गया. थोरी देर दूर ही लेटा रहा फिर आहिस्ता से सरक के मेरे साथ चिपक गया. मेरे बदन में तो मानो बिजली का करेंट लग गया हो. विकी का तना हुआ लॉडा मेरे चूतरो से चिपक गया. मुझे उसके लौदे की गर्मी महसूस होने लगी. ट्रेन के हिचकॉलों के साथ विकी का लॉडा मेरे चूतरो से रगड़ रहा था. लेकिन उसकी लूँगी मेरे नंगे चूतरो और लॉड के बीच में थी. मेरी चूत तो बुरी तरह से गीली हो चुकी थी. अचानक मुझे महसूस हुआ जैसे की विकी के लॉड की गर्मी बढ़ गयी हो. हाई राम ! विकी ने लॉडा लूँगी से बाहर निकाल लिया था ! अब उसने अपने आप को मेरे पीछे इस प्रकार अड्जस्ट किया की उसका लॉडा मेरे चूतरो की दरार में रगड़ने लगा. वो बिना हीले दुले लेटा हुआ था. ट्रेन के हिचकॉलों के कारण लॉडा मेरे चूतरो की दरार में आगे पीछे हो रहा था. कभी हल्के से मेरी गांद के छेद से रगड़ जाता तो कभी मेरी चूत के छेद तक पहुँच जाता. मुझे बहुत ही मज़ा आ रहा था. मैं सोचने लगी की अगर लॉडा गांद के छेद से रगड़ खा कर भी इतना मज़ा दे सकता है तो गांद में घुस कर तो बहुत ही मज़ा देगा. लेकिन विकी के लॉड के साइज़ को याद करके मैं सिहर उठी. जो लॉडा चूत को फाड़ सकता है वो गांद का क्या हाल करेगा? अब तो मेरी चूत का रस निकल कर मेरी झांतों को गीला कर रहा था. इतने में ट्रेन ने ज़ोर से ब्रेक लगाया और विकी का लॉडा मेरी चूत के छेद से जा टकराया. ऊवई मा कितना अच्छा लग रहा था! मन कर रहा था की चूतरो को थोड़ा पीछे की ओर उचका कर लंड को चूत में घुसा लूँ. अचानक विकी ने मुझे गहरी नींद में समझ कर थोडा ज़ोर से धक्का लगा दिया और उसका लॉडा मेरी बुरी तरह गीली चूत में घुसते घुसते बचा. मैं घबरा गयी. अभी मैं विकी के लंड के लिए तैयार नहीं थी. अंडर घुस गया तो अनर्थ हो जाएगा. मैने नींद टूट जाने का बहाना करते हुए एक अंगड़ाई ली . विकी ने झट से अपना लॉडा हटा लिया और लहंगा मेरे चूतरो पर डाल दिया. मैं उठाते हुए बोली,“ विकी हट बाथरूम जाने दे.”

“ दीदी, बहुत गहरी नींद में थी. ठीक से सोई कि नहीं. मैं बैठ जाता हूँ. दोनो एक सीट पे सो नहीं पाएँगे.”

“ मैं तो बहुत गहरी नींद में थी. थक गयी थी ना. तू तो लगता है सोया ही नहीं.” ये कह के मैं बाथरूम चली गयी. इतनी देर तक उत्तेजना के कारण प्रेशर बहुत ज़्यादा हो गया था. पेशाब करके राहत मिली. छूटरो पर और चूतरो के बीच में हाथ लगाया तो कुच्छ चिपचिपा सा लगा. शायद विकी का वीर्य था. वापस सीट पर आई तो विकी बोला “ दीदी आप सो जाओ मैं किसी दूसरी सीट पे चला जाता हूँ.”

“ नहीं मैं तो सो चुकी हूँ तू लेट जा. मुझे लेटना होगा तो मैं तेरे पीछे लेट जाउन्गि.”

“ ठीक है दीदी. मैं तो लेट रहा हूँ.” विकी लेट गया. पीठ मेरी ओर थी. मैं काफ़ी देर तक बैठी रही और फिर विकी के पीछे सत के लेट गयी. पता नहीं कब आँख लग गयी. जब आँख खुली तो सवेरा हो चुका था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#35
मुझे मालूम था कि ट्रेन वाली बात विकी के पेट में रहने वाली नहीं है. जैसे ही उसका दोस्त सुधीर घर पे आया दोनो में ख़ुसर पुसर शुरू हो गयी. मैं भी जानना चाहती थी कि विकी मेरे बारे में क्या बोल रहा है. मैं कान लगा कर उनकी बातें सुनने लगी.

“ बहुत दिनों बाद नज़र आ रहा है विकी ?”

“ हां यार, कानपुर गया था दीदी के लिए लड़का देखने.”

“ दिल मत तोड़ विकी. तेरी दीदी की शादी हो गयी तो मेरा दिल टूट जाएगा. किस्मत वाला होगा जो तेरी दीदी की जवानी से खेलेगा. अपनी दीदी से एक बार बात तो करवा दे. अपनी किस्मत भी आजमा लें.”

“तेरी किस्मत का तो पता नही पर मेरी किस्मत ज़रूर खुल गयी.”

“ वो कैसे ? नंगी देख लिया या चोद ही दिया अपनी दीदी को?”

“ चोदना अपनी किस्मत में कहाँ? लेकिन काफ़ी कुच्छ कर लिया.”

“ पूरी बात बता ना यार. पहेलियाँ क्यों बुझा रहा है?”

“ हाई यार क्या बताऊ, मेरा लंड तो सोच सोच के ही खड़ा हुआ जा रहा है. कानपुर से वापस आते पे सीट ना मिलने के कारण मैं और दीदी एक ही सीट पे थे. एसी 2 टीएर में साइड की सीट थी. हमने परदा डाल लिया. दीदी मेरे सामने बैठी हुई थी. उसने लहंगा पहन रखा था. पैर मोड नॉवेल पढ़ रही थी. एक दो बार टाँगें सीधी करते और मोड़ ते वक़्त उसकी टाँगों के बीच की झलक मिल गयी. गोरी गोरी जांघों के बीच में काला काला नज़र आया तो मुझे लगा की काली पॅंटी पहनी हुई है. थोरी देर में टाँगें मोड़ के घुटनों पे सिर रख के सो गयी. मैं मना रहा था कि किसी तरह मूडी हुई टाँगों में दबा लहंगा नीचे हो जाए. अचानक वोही हुआ. दीदी के लहँगे का नीचे का हिस्सा उसकी मूडी हुई टाँगों में से निकल कर गिर गया. है यार.. ! दिल पे च्छूरियँ चल गयी. गोरी गोरी मोटी मोटी जांघों के बीच में से दीदी की चूत बिल्कुल नंगी झाँक रही थी. ज़िंदगी में पहली बार किसी लड़की की चूत देखी और वो भी इतने करीब से. इतनी घनी और काली झांटें थीं. कम से कम 3 इंच लुंबी तो होंगी ही. पूरी चूत झांतों से धकि हुई थी. लेकिन क्योंकि दीदी की टाँगें मूडी हुई थी, चूत की दोनो फाँकें फैल गयी थी. ऊफ़ क्या फूली हुई चूत थी! फैली हुई फांकों के बीच में से चूत के दोनो होंठ मेरी ओर झाँक रहे थे. इतने बड़े होंठ थे जैसे तितली के पंख हों. मन कर रहा था उन होंठों को चूम लूँ. चूत के होंठों का ऊपरी सिरा इतना उभरा हुआ था मानो छ्होटा सा लंड खड़ा हो गया हो. चूत के चारों ओर के घने बॉल ऐसे चमक रहे थे जैसे चूत के रस में गीले हों. मेरी दीदी ना होती तो आगे सरक कर अपना तना हुआ लॉडा उस खूबसूरत चूत के होंठों के बीच में पेल देता.”

“ यार तूने तो बहुत सुन्दर मोका खो दिया. यही मोका था चोदने का.”“ छोड़ यार कहना आसान है. रात को दीदी जब गहरी नींद में सो रही थी तो मैने चुपके से उसका लहंगा कमर तक ऊपर सरका दिया. वो मेरी ओर पीठ किए लेटी थी. बाप रे ! क्या कातिलाना चूतेर थे. सारा शहर जिन चूतरो के पीछे मरता है वो चूतर मेरी नज़रों के सामने थे. मैं दीदी के पीछे लेट गया. हिम्मत करके मैने लूँगी में से अपना तना हुआ लॉडा निकाला और दीदी के विशाल चूतरो के बीच की दरार में सटा दिया. ट्रेन के हिचकॉलों के साथ मेरा लंड दीदी के चूतरो के बीच आगे पीछे हो रहा था. ग़ज़ब का मज़ा आ रहा था. मैने एक फोटो में एक आदमी को औरत की चूत में पीछे से भी पेलते देखा था. मैं बहुत उत्तेजित हो गया था और हल्के हल्के धक्के भी लगाने लगा था. मुझे अपने ऊपर कंट्रोल नहीं रहा और मैने तोड़ा ज़ोर से धक्का लगा दिया. इस धक्के से दीदी की आँख खुल गयी. मैने जल्दी से उसका लहंगा नीचे किया. जब वो उठ के बाथरूम गयी तो मैने देखा की मेरे लंड का सुपरे के आस पास चिपचिपा हो गया है. पता नहीं मेरा ही वीर्य था की दीदी की चूत का रस. मैने सूंघ के देखा तो वोही खुश्बू थी जो दीदी की पॅंटी से आती थी.”

“ वाह बेटे विकी तू तो मुझे से भी दो कदम आगे निकल गया. मैं तो दूर से ही अपनी दीदी की चूत देख के खुश हो रहा था, तूने तो अपनी दीदी की चूत पे लंड भी टीका दिया. डर क्यों गया पेल देना था.”

“ यार मन तो बहुत कर रहा था. लेकिन यार मेरी दीदी की चूत का छेद इतना बड़ा नहीं था जिसमे मेरा लंड घुस जाए.”

“ विकी तू बहुत भोला है. लड़की की चूत है ही ऐसी चीज़ जो आदमी का तो क्या घोड़े का लंड भी निगल जाती है. तू भी तो उसी छ्होटे से छेद में से बाहर निकला है.तो क्या तेरा लंड इतना बड़ा है जो उस छेद में ना जाए? लड़की की चूत होती ही चोदने के लिए. ”

मैं विकी की बातें सुन के शर्म से लाल हो गयी थी और साथ में मेरी चूत भी खूब गीली हो गई थी. मेरा सगा भाई मुझे चोदने लिए पागल है यह सोच कर मैं बहुत खुश भी थी.

इस घटना के बाद से हम दोनो में हँसी मज़ाक बहुत बढ़ गया था और विकी अपना लंड मेरे जिस्म से रगड़ने का कोई मोका नहीं गँवाता था. लेकिन आज तक मुझे विकी का खड़ा हुआ लॉडा देखने का मोका नहीं मिला था. कई बार कोशिश भी की. कई बार सवेरे उसके कमरे में गयी , इस आशा से की उसके लॉड के दर्शन हो जाएँ पर किस्मत ने साथ नहीं दिया. एक दिन मोका हाथ लग ही गया. विकी मेरा टवल ले कर नहाने चला गया. उसे मालूम था कि मैं अपना टवल किसी को भी यूज़ नहीं करने देती थी. मैने उसे टवल ले जाते हुए देख लिया था लेकिन चुप रही. जैसे ही वो नहा के टवल लपट कर बाहर निकला मैं उसकी ओर झपटी और चिल्लाई,

“ तूने फिर मेरा टवल ले लिया. इसी वक़्त वापस कर. खबरदार जो आगे से लिया.” इससे पहले की वो संभाले मैने टवल खीच लिया. विकी एकदम नंगा हो गया.

“ हाआआआअ……….. बेशरम ! तूने अंडरवेर भी नहीं पहना.” मेरी आँखों के सामने विकी का मोटा किसी मंदिर के घंटे के माफिक झूलता हुआ लंड था. करीब करीब उसके घुटनों तक पहुँच रहा था. विकी का मारे शरम के बुरा हाल था. अपने हाथों से लंड को च्छुपाने की कोशिश करने लगा. लेकिन आदमी का लंड हो तो च्छूपे, ये तो घोड़े के लंड से भी बड़ा लग रहा था. बेचारा आधे लंड को ही च्छूपा पाया. मेरी चूत पे तो चीतियाँ रेंगने लगीं. हाई राम ! क्या लॉडा है. मुझे भी पसीना आ गया था. अपनी घबराहट च्छूपाते हुए बोली,

“ कम से कम अंडरवेर तो पहन लिया कर, नालयक!.” ओर मैने टवल दुबारा उसके ऊपर फेंक दिया. विकी जल्दी से टवल लपट कर भागा. मैं अपने प्लान की कामयाबी पे बहुत खुश थी, लेकिन जी भर के उसका लॉडा अब भी नहीं देख पाई. ये तो तभी मुमकिन था जब विकी सो रहा हो. अब मेरी हिम्मत और बढ़ गयी. अगले दिन मैं सवेरे चार बजे उठ कर विकी के कमरे में गयी. विकी गहरी नींद में सो रहा था. उसकी लूँगी जांघों तक ऊपर चढ़ि हुई थी. विकी पीठ के बल लेटा हुआ था और उसकी टाँगें फैली हुई थी. मैं दबे पावं विकी के बेड की ओर बढ़ी और बहुत ही धीरे से लूँगी को उसकी कमर के ऊपर सरका दिया. सामने का नज़ारा देख के मेरी आँखें फटी की फटी रह गयी. पहली बार जब उसका लॉडा देखा था तो इतनी घबराई हुई थी कि ठीक से देख भी नहीं पाई थी. दूसरी बार जब टवल खींचा था तब भी बहुत थोरी देर ही देख पाई, लेकिन अब ना तो कोई जल्दी थी ओर ना ही कोई डर. इतनी नज़दीक से देखने को मिल रहा था. सिकुड़ी हुई हालुत में भी इतना लंबा था की पीठ पे लेटे होने के बावजूद भी लंड का सूपड़ा बिस्तेर पर टीका हुआ था. दो बड़े बड़े बॉल्स भी बिस्तेर पर टीके हुए थे. इतना मोटा था कि मेरे एक हाथ में तो नहीं आता. ऐसा लग रहा था जैसे कोई लंबा मोटा, काला नाग आराम कर रहा हो. मन कर रहा था की सहला दूं और मुँह में डाल के चूस लूँ, लेकिन क्या करती, मजबूर थी. चूत बुरी तरह से रस छ्चोड़ रही थी और पॅंटी पूरी गीली हो गयी थी. अब तो मेरा इरादा और भी पक्का हो गया कि एक दिन इस खूबसूरत लॉड का स्वाद मेरी चूत ज़रूर लेगी. मैं काफ़ी देर उसकी चारपाई के पास बैठी उस काले नाग को निहारती रही. फिर हिम्मत कर के मैने उसके पूरे लॉड को हल्के से चूमा और मोटे सुपरे को जीभ से चाट लिया. मुझे डर था की कहीं विकी की नींद ना खुल जाए. मन मार के मैं अपने कमरे में चली गयी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#36
जिस लड़के को देखने हम कानपुर गये थे उसके साथ मेरी शादी पक्की हो गयी. एक महीने के अंडर ही शादी करना चाहते थे. आअख़िर वो दिन भी आ गया जब मेरी डॉली उठने वाली थी. धूम धाम से शादी हुई. आख़िर वो रात भी आ गयी जिसका हर लड़की को इंतज़ार रहता है. सुहाग रात को मैं खूब सजी हुई थी. मेर गोरा बदन चंदन सा महक रहा था. दिल में एक अजीब सा डर था. मैं शादी का जोड़ा पहने पति के आने का इंतज़ार कर रही थी. तभी दरवाज़ा खुला और मेरे पति अंडर आए. मेरे दिल की धड़कन बढ़ गयी. हाई राम, अब क्या होगा. मुझे तो बहुत शर्म आएगी. बहुत दर्द होगा क्या. क्या मेरा बदन मेरे पति को पसंद आएगा. कहीं पूरे कपड़े तो नहीं उतार देंगे. इस तरह के ख़याल मेरे दिमाग़ में आने लगे. मेरे पति पलंग पर मेरे पास बैठ गये और मेरा घूँघट उठा के बोले,

“ कंचन तुम तो बहुत ही सुन्दर लग रही हो.” मैं सिर नीचे किए बैठी रही.

“ कुच्छ बोलो ना मेरी जान. अब तो तुम मेरी बीवी हो. और आज की रात तो तुम्हारा ये खूबसूरत बदन भी मेरा हो जाएगा.” मैं बोलती तो क्या बोलती. उन्होने मेरे मुँह को हाथों में ले कर मेरे होंठों को चूम लिया.

“ ऊओफ़! क्या रसीले होंठ हैं. जिस दिन से तुम्हें देखा है उसी दिन से तुम्हें पाने के सपने देख रहा हूँ. मैने तो अपनी मा से कह दिया था कि शादी करूँगा तो सिर्फ़ इसी लड़की से.”

“ ऐसा क्या देखा आपने मुझमे?” मैने शरमाते हुए पूछा.

“ हाई , क्या नहीं देखा. इतना खूबसूरत मासूम चेहरा. बरी बरी आँखें. लंबे काले बाल. वो कातिलाना मुस्कान. तराशा हुआ बदन. जितनी तारीफ़ करूँ उतनी कम है.”

“ आप तो बिकुल शायरों की तरह बोल रहे हैं. सभी लड़कियाँ मेरे जैसी ही होती हैं.”

“ नहीं मेरी जान सभी लड़कियाँ तुम्हारे जैसी नहीं होती. क्या सभी के पास इतनी बड़ी चूचियाँ होती हैं?” वो मेरी चूचिओ पर हाथ फिराते हुए बोले. मैं मर्द के स्पर्श से सिहर उठी.

“ छ्चोड़िए ना, ये क्या कर रहे हैं.?”

“ कुच्छ भी तो नहीं कर रहा. बस देख रहा हूँ कि क्या ये चूचियाँ दूसरी लड़कियो जैसी ही हैं” वो मेरी चूचिओ को दोनो हाथों से मसल रहे थे. फिर उन्होने मेरे ब्लाउस का हुक खोल कर मेरा ब्लाउस उतार दिया. अब मैं सिर्फ़ ब्रा में थी. मुझे बाहों में भर के वो मेरे होंठों को चूसने लगे और मेरी नंगी पीठ सहलाने लगे. अचानक मेरे ब्रा का हुक भी खुल गया और मेरी बड़ी बड़ी चूचियाँ आज़ाद हो गयी.

“ है कंचन क्या ग़ज़ब की चुचियाँ हैं.” काफ़ी देर चूचाईओं से खेलने के बाद उन्होने मेरी सारी को उतरना शुरू कर दिया. मैं घबरा गयी.

“ ये, ये क्या कर रहे हैं प्लीज़ सारी मत उतारिये.”

वो मुझे चूमते हुए बोले,

“ मेरी जान आज तो हमारी सुहाग रात है. आज भी सारी नहीं उतरोगी तो कब उतारोगी? और बिना सारी उतारे हमारा मिलन कैसे होगा? शरमाना कैसा ? अब तो ये खूबसूरत बदन मेरा है. लड़की से औरत नहीं बनना चाहती हो.?” मेरी सारी उतर चुकी थी और मैं सिर्फ़ पेटिकोट में थी.

“ लेकिन आप क्या करना चाहते हैं? ऊऊओई मा!” उनका एक हाथ पेटिकोट के ऊपर से मेरी चूत सहलाने लगा. मेरी चूत को मुट्ठी में भरते हुए बोले,

“ तुम्हें औरत बनाना चाहता हूँ.” ये कह कर उन्होने मेरे पेटिकोट का नारा खींच दिया. अब तो मेरे बदन पे सिर्फ़ एक पॅंटी बची थी. मुझे अपने बाहों में ले कर मेरे नितंबों को सहलाते हुए मेरी पॅंटी भी उतार दी. अब तो मैं बिल्कुल नंगी थी. शर्म के मारे मेरा बुरा हाल था. जांघों के बीच में चूत को च्छुपाने की कोशिश कर रही थी.

“ बाप रे कंचन, ये झांटें हैं या जंगल.मेरा अंदाज़ा सही था. तुम्हें पहली बार देख के ही समझ गया था कि तुम्हारी टाँगों के बीच में बहुत बाल होंगे. लेकिन इतने लंबे और घने होंगे ये तो कभी सोचा भी नहीं था.”

“ लाइट बंद कर दीजिए प्लीज़.”

“ क्यों मेरी जान. इस खूबसूरत जवानी को देखने दो ना.” उन्हने जल्दी से अपने कपड़े उतार दिए और बिल्कुल नंगे हो गये. उनका तना हुआ लंड देख कर मेरी साँस रुक गयी. क्या मोटा और लंबा लंड था. पहली बार मर्द का खड़ा हुआ लंड इतने पास से देखा था. उन्होने मेरा हाथ पकड़ कर अपने लंड पे रख दिया.

“ देखो मेरी जान ये ही तुम्हें औरत बनाएगा. 8 इंच का है. छ्होटा तो नहीं है?”

“ जी, ये तो बहुत बड़ा है” मैं घबराते हुए बोली.

“ घबराव नहीं , एक कच्ची कली को फूल बनाने के लिए मोटे तगड़े लॉड की ज़रूरत होती है. सब ठीक हो जाएगा. जब ये लंड तुम्हारी इस सेक्सी चूत में जाएगा तो तुम्हे बहुत मज़ा आएगा.”

“ छ्ची कैसी गंदी बातें करते हैं?”

“ इसमे गंदी बात क्या है? इसको लॉडा ना कहूँ और तुम्हारे टाँगों के बीच के चीज़ को चूत ना कहूँ तो और क्या कहूँ ?. पहली बार चुदवा रही हो. तीन चार बार चुदवाने के बाद तुम्हारी शरम भी दूर हो जाएगी. आओ बिस्तेर पर लेट जाओ” उन्होने मुझे बिस्तेर पे चित लिटा दिया. मेरी टाँगों के बीच में बैठ कर उन्होने मेरी टाँगों को चौड़ा कर दिया. अब तो मेरी चूत बिल्कुल नंगी हो गयी.

“ ऊओफ़ कंचन! क्या फूली हुई चूत है तुम्हारी. अब तो तुम्हारे इस जंगल में मंगल होने वाला है.” उन्होने मेरी टाँगें मोड़ के घुटने मेरे सीने से लगा दिए. इस मुद्रा में तो चूत की दोनो फाँकें बिल्कुल खुल गयी थी और दोनो फांकों के बीच में से चूत के गुलाबी होंठ झाँक रहे थे. वो अब मेरी फैली हुई टाँगों के बीच में मेरी चूत को और यहाँ तक की गांद के छेद को भी आसानी से और खूब अच्छी तरह से देख सकते थे. घनी झांतों को चूत पर से हटाते हुए काफ़ी देर तक मेरी जवानी को आँखों से चोदते रहे. शरम के मारे मैं पागल हुई जा रही थी. मैने दोनो हाथों से अपना चेहरा ढक लिया. किसी अजनबी के सामने इस प्रकार से चूत फैला के लेट्ना तो दूर आज तक नंगी भी नहीं हुई थी. मैं मारे शरम के पानी पानी हुई जा रही थी. इतने में उन्होने अपने तने हुए लंड का सुपरा मेरी चूत के खुले हुए होंठों के बीच छेद पे टीका दिया. मैं सिहर उठी और कस के आँखें बंद कर लीं. उन्होने हल्का सा धक्का लगा के लंड के सुपरे को मेरी चूत के होंठों के बीच फँसाने की कोशिश की.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#37
एयेए….ह. धीरे प्लीज़.” मैं इतना ज़्यादा शर्मा गयी थी कि मेरी चूत भी ठीक से गीली नहीं थी. उन्होने दो तीन बार फिर अपना लंड चूत में घुसेरने की कोशिश की, लेकिन नाकामयाब रहे. लेकिन उन्होने भी पूरी तैयारी कर रखी थी. पास में ही तैल का डब्बा पड़ा हुआ था. उन्होने अपना लॉडा तैल के डब्बे में डूबा दिया. अब अपने टेल में सने हुए लॉड को एक बार फिर मेरी चूत पे रख के ज़ोर का धक्का लगा दिया.

“ आआआअ…………….ईईईईईईई. ऊऊऊ….फ़.ह. ऊ..ओह. बहुत दर्द हो रहा है.” उनका लॉडा मेरी चूत के छेद को चौड़ा करता हुआ 2 इंच अंडर घुस चुक्का था. आज ज़िंदगी में पहली बार मेरी चूत का छेद इतना चौड़ा हुआ था.

“ बस मेरी रानी, थोड़ा सा और सह लो फिर बहुत मज़ा आएगा.” ये कहते हुए उन्होने लॉडा बाहर खीचा और फिर से एक ज़बरदस्त धक्का लगा दिया.

“ ऊऊओिईई माआआआ………..! मर गयी………मैं. ईइसस्स्स्स्स्सस्स…….. आआआआआआ…ऊऊऊऊहह. प्ली…….से, छ्चोड़ दीजिए. और नहीं सहा जा रहा.” उनका मोटा लॉडा इस धक्के के साथ शायद 4 इंच अंडर जा चुक्का था.

“ अच्छा ठीक है अब कुच्छ नहीं करूँगा बस!” वो बिना कुच्छ किए मेरे होंठों का रस चूसने लगे और चूचिओ को मसल्ने लगे. जब कुछ राहत मिली और मेरा करहाना बंद हुआ तो उन्होने धीरे से लंड को पूरा बाहर खींचा और मेरी टाँगों को मेरे सीने पे दबाते हुए बिना वॉर्निंग के पूरी ताक़त से ज़ोर का धक्का लगा दिया.

“ आआआआआआआऐययईईईईईईईईईईईईईई……………आआहह. ऊऊऊऊऊऊऊओह, ऊओफ़…. आआअहगह……….मुम्मय्ययययययययययययी……………मार डालाअ……छ्चोड़ दीजिए एयाया…ह प्लीईआसए….हाथ जोड़ती हूँ. ऊऊओिईईईईईईईईईईई…… माआ…….” इतना भयंकर दर्द ! बाप रे ! मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी चूत के अंडर कुच्छ फॅट गया था. उनका लंड पूरा का पूरा मेरी चूत में जा चुक्का था और उनके बॉल्स मेरी गांद पे टिक गये थे. मेरी आँखों में आँसू आ गये थे. दर्द सहा नहीं जा रहा था. उन्होने मेरे होंठ चूमते हुए कहा,

“ कंचन, मेरी रानी, बधाई हो. अब तुम कच्ची कली नहीं रही, फूल बुन चुकी हो.” मैं कुच्छ नहीं बोली. उन्होने काफ़ी देर तक लंड को अंडर ही पेले रखा और मेरी चूचिओ और होंठों को चूमते रहे. जब दर्द थोड़ा कम हुआ तो उन्होने लॉडा पूरा बाहर खींच के पास पड़े तैल के डब्बे में फिर से डूबा दिया. उसके बाद तैल टपकता हुआ लॉडा मेरी चूत के छेद से टीका कर एक और ज़ोर आ धक्का लगा दिया. लॉडा मेरी चूत चीरता हुआ आधे से ज़्यादा धँस गया.

“ आआआहा…..ईईईईईईईई. ऊऊओफ़.”

“ बस मेरी जान पहली बार तो थोड़ा दर्द होता ही है. इसके बाद पूरी ज़िंदगी मज़े करोगी.” ये कहते हुए उन्होने धक्के लगाने शुरू कर दिए. लंड मेरी चूत में अंडर बाहर हो रहा था. दर्द कम होने का नाम नहीं ले रहा था. मैं ज़ोर ज़ोर से कराहती जा रही थी लेकिन वो बिना परवाह किए धक्के लगाते जा रहे थे. अब तो उन्होने पूरा लंड बाहर निकाल के एक ही धक्के में जड़ तक पेलना शुरू कर दिया. मेरी चूत तो बिल्कुल चरमरा गयी थी. बहुत दर्द हो रहा था. इतने में उनके धक्के एकदम से तेज़ हो गये और अचानक ही मेरे ऊपर ढेर हो गये. मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कोई मेरी चूत में पिचकारी चला रहा हो. वो शायद झाड़ चुके थे. थोरी देर मेरे ऊपर लेटे रहे फिर उठ के बाथरूम चले गये. मेरे अंग अंग में दर्द हो रहा था. मैने उठ के अपनी टाँगों के बीच में देखा तो बेहोश होते होते बची. मेरी चूत बुरी तरह से सूजी हुई थी और उसमे से खून और उनके वीर्य का मिश्रण निकल रहा था. बेड शीट भी खून से लाल हो गयी थी. मेरी चूत के बाल तैल, उनके वीर्य और खून से चिप चिप हो रहे थे. अपनी चूत की ये हालत देख के मैं रो पड़ी. मेरी समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ. इतने में ये बाथरूम से बाहर निकल आए. उनका लंड सिकुड के लटक रहा था लेकिन अभी भी काफ़ी ख़तरनाक लग रहा था. मुझे रोते देख मेरे पास आ कर बोले,“ क्या बात है कंचन ? बहुत दर्द हो रहा है?”

मेरी टाँगें चौड़ी करके मेरी चूत की हालत देख कर मुकुराते हुए बोले,

“ पहली, पहली चुदाई में ऐसा ही होता है मेरी जान. मेरा लॉडा भी तुम्हारी कुँवारी चूत को चोद्ते हुए छिल गया है. आओ बाथरूम में चल के सॉफ कर लो.”
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#38
clps
































fight fight fight fight
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#39
(२)











उन्होने मुझे उठा के खड़ा किया और बाहों में भर के चूम लिया. उसके बाद मुझे नंगी ही अपनी बाहों में उठा कर बाथरूम में ले गये और एक स्टूल पे बैठा दिया. फिर मेरी टाँगें चौड़ी करके मेरी चूत पे पानी डाल के धोने लगे. मुझे बहुत शर्म आ रही थी और दर्द भी हो रहा था. उन्होने खूब अच्छी तरह से मेरी झांटें और चूत सॉफ की और फिर टवल से पोच्छा. मेरी झाँटें सुखाने के बाद बड़े ध्यान से मेरी फैली हुई टाँगों के बीच देखने लगे. मैं तो शरम से पानी पानी हो गयी,

“ अब हमे छोड़िए ना.. ऐसे क्या देख रहे हैं ?”

“ मेरी जान तुम तो कली से फूल बुन ही गयी हो लेकिन देखो ना जब हमने तुम्हें चोदना शुरू किया था तो उस वक़्त तुम्हारी चूत एक बूँद कच्ची काली लग रही थी. और अब देखो तुम्हारी वो कच्ची कली बिकुल फूल की तरह खिल गयी है. ऐसा लग रहा है जैसे एक बंद कली की पंखुड़ीयाँ खुल के फैल गयीं हों.”

मैने शर्म के मारे अपने मुँह दोनो हाथों से धक लिया. मैने वापस बेडरूम में जाने से पहले टवल लपेटने की कोशिश की तो उन्होने मेरे हाथ से टवल ले लिया और बोले,

“ तुम नंगी इतनी खूबसूरत लगती हो, टवल लपेटने की क्या ज़रूरत है.” मुझे टाँगें चौड़ी करके चलना पड़ रहा था. हम दोनो नंगे ही सो गये. सुबह उठ कर वो एक बार फिर से मुझे चोदना चाहते थे, लेकिन मैने उनसे कहा कि बहुत दर्द हो रहा है, मैं और सह नहीं पाउन्गि. इस तरह मैं सुबह की चुदाई से तो बच गयी. अगले दिन हम लोग हनिमून पे चले गये. सुहाग रात की ज़बरदस्त चुदाई के कारण मेरी चूत अभी तक सूजी हुई थी और दर्द भी कम नहीं हुआ था. मैं अभी और चुदाई के लिए तैयार नहीं थी, लेकिन क्या करती. हनिमून में तो चुदाई से बचाने का कोई रास्ता नहीं था. जिस दिन हम शिमला पहुँचे, उसी रात उन्होने मुझे चार बार जम के चोदा. कोई भी मेरी चाल देख के बता सकता था कि मेरी ज़बरदस्त चुदाई हो रही है. मैं बचाने की काफ़ी कोशिश करती, फिर भी ये मोका लगते ही दिन में एक या दो बार और रात में तीन से चार बार मुझे चोद्ते थे. 10 दिन के हनिमून में कम से कम 50 बार मेरी चुदाई हुई. होनेमून से वापस आने तक मेरी चूत इतनी फूल गयी थी कि मैं खुद उसे पहचान नहीं पा रही थी. मैं यह सोच के परेशान थी कि यदि चुदाई का सिलसिला ऐसे ही चलता रहा तो बहुत मुश्किल हो जाएगा. मेरी चूत को आराम की सख़्त ज़रूरत थी. लेकिन वैसा नहीं हुआ जैसा मैं सोचती थी.

हनिमून से वापस आने के बाद इनका ऑफीस शुरू हो गया. अब दिन में तो चुदाई नहीं हो पाती थी लेकिन रात में एक बार तो ज़रूर चोद्ते थे. अब मेरी चूत का दर्द ख़तम हो गया था और झिझक भी कम हो गई थी . चुदवाने में बहुत मज़ा आने लगा था और चूत बहुत गीली हो जाती. मैं भी अब चूतर उचका उचका के खूब मज़े ले कर चुदवाती थी. मेरी चूत इतना रस छ्चोड़ती की जब ये धक्के लगाते तो मेरी चूत में से फ़च.. फ़च….फ़च की आवाज़ें आती. मैं रोज़ रात होने का बेसब्री से इंतज़ार करती थी. कभी कभी च्छुतटी के दिन, दिन में भी चोद देते थे. मैं बहुत खुश थी. इनका लंड 8 इंच लंबा और अच्छा ख़ासा मोटा था. जब भी चोदते, एक घंटे से पहले नहीं झाड़ते थे. मेरा बहुत दिल करता था कि ये भी मेरे साथ वो सब कुच्छ करें जो पापा मम्मी के साथ करते थे. लेकिन ये मुझे सिर्फ़ एक ही मुद्रा में चोदते थे. कभी अपना लंड मेरे मुँह में नहीं डाला ओर ना ही मेरी चूत को कभी चॅटा. मेरी गांद की तरफ भी कभी ध्यान नहीं दिया.

पहले 6 महीने तो रोज़ रात को एक बार चुदाई हो ही जाती थी. धीरे धीरे हफ्ते में तीन बार चोदने लगे. शादी को एक साल गुज़रने वाला था. चुदाई और भी कम हो गयी थी. अब तो महीने में सिर्फ़ दो तीन बार ही चोदते थे. सब कुच्छ उल्टा हो रहा था. जैसे जैसे मुझे चुदवाने का शोक बढ़ने लगा , इन्होने चोदना और भी कम कर दिया. शादी के एक साल बाद ये आलम था कि महीने में दो तीन बार से ज़्यादा चुदाई नहीं होती थी. मैं रोज़ रात बड़ी बेसब्री से इंतज़ार करती कि आज चोदेन्गे लॅकिन रोज़ ही निराशा हाथ लगती. ऑफीस से बहुत लेट आते थे इसलिए थक जाते थे. जब कभी चोद्ते तो पूरी तरह नंगी भी नहीं करते, बस सारी उठा कर पेल देते. मेरी वासना की आग बढ़ती जा रही थी. मेरे पति के पास मेरी प्यास बुझाने का समय नहीं था.

हमारे साथ मेरे पति का छ्होटा भाई यानी मेरा देवर रामू भी रहता था. रामू एक लंबा तगड़ा सुडोल जवान था. वो कॉलेज में पढ़ता था और बॉडी बिल्डिंग भी किया करता था. मैं उसे मथ्स पढ़ाया करती थी. वो मेरी ओर आकर्षित था. हम दोनो में बहुत हँसी मज़ाक चलता रहता था. मैं उसे केयी बार अपने ब्लाउस के अंडर या टाँगों के बीच में झाँकते हुए पकड़ चुकी थी. मुझे मालूम था कि वो केयी बार मेरी पॅंटी के दर्शन कर चुका था. एक बार जब मैं नहाने जा रही थी तो उसने मुझे नंगी भी देख लिया था. मेरी एक पॅंटी भी उसने चुरा ली थी और उस पॅंटी के साथ वो क्या करता होगा ये भी मैं अच्छी तरह जानती थी. हँसी मज़्ज़ाक़ इस हद तक बढ़ गया था कि हम सब प्रकार की बातें बेझिझक करते थे. लेकिन मैं उसके साथ एक सीमा से बाहर नहीं जाना चाहती थी. अपने ही देवर के साथ किसी तरह का शारीरिक संबंध ठीक नहीं था. लेकिन मेरा ये विचार उस दिन बिल्कुल बदल गया जिस दिन मैं ग़लती से उसका लंड देख बैठी. ऊफ़ क्या मोटा और लंबा लंड था ! जब से मेरी नज़र उसके मूसल जैसे लंड पे पड़ी तब से मेरी रातों की नींद गायब हो गयी. दोस्तो अब इससे आगे की कहानी मेरे देवर रामू की ज़ुबानी..........



मेरा नाम रामू है. मैं कॉलेज में पढ़ता हूँ. मेरी उम्र अब बीस साल है. मैं एक साल से अपने भैया और भाभी के साथ रह रहा हूँ. भैया एक बड़ी कंपनी में काम करते हैं. मेरी भाभी कंचन बहुत ही सुन्दर है. भैया की शादी को दो साल हो चुके हैं. भाभी की उम्र 24 साल है. मैं भाभी की बहुत इज़्ज़त करता हूँ और वो भी मुझे बहुत चाहती है. हम दोनो में खूब दोस्ती है और हँसी मज़ाक चलता रहता है. भाभी पढ़ाई में भी मेरी सहायता करती है. वो मुझे मथ्स पढ़ाती है.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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हमारे साथ मेरे पति का छ्होटा भाई यानी मेरा देवर रामू भी रहता था. रामू एक लंबा तगड़ा सुडोल जवान था. वो कॉलेज में पढ़ता था और बॉडी बिल्डिंग भी किया करता था. मैं उसे मथ्स पढ़ाया करती थी. वो मेरी ओर आकर्षित था. हम दोनो में बहुत हँसी मज़ाक चलता रहता था. मैं उसे केयी बार अपने ब्लाउस के अंडर या टाँगों के बीच में झाँकते हुए पकड़ चुकी थी. मुझे मालूम था कि वो केयी बार मेरी पॅंटी के दर्शन कर चुका था. एक बार जब मैं नहाने जा रही थी तो उसने मुझे नंगी भी देख लिया था. मेरी एक पॅंटी भी उसने चुरा ली थी और उस पॅंटी के साथ वो क्या करता होगा ये भी मैं अच्छी तरह जानती थी. हँसी मज़्ज़ाक़ इस हद तक बढ़ गया था कि हम सब प्रकार की बातें बेझिझक करते थे. लेकिन मैं उसके साथ एक सीमा से बाहर नहीं जाना चाहती थी. अपने ही देवर के साथ किसी तरह का शारीरिक संबंध ठीक नहीं था. लेकिन मेरा ये विचार उस दिन बिल्कुल बदल गया जिस दिन मैं ग़लती से उसका लंड देख बैठी. ऊफ़ क्या मोटा और लंबा लंड था ! जब से मेरी नज़र उसके मूसल जैसे लंड पे पड़ी तब से मेरी रातों की नींद गायब हो गयी. दोस्तो अब इससे आगे की कहानी मेरे देवर रामू की ज़ुबानी..........



मेरा नाम रामू है. मैं कॉलेज में पढ़ता हूँ. मेरी उम्र अब बीस साल है. मैं एक साल से अपने भैया और भाभी के साथ रह रहा हूँ. भैया एक बड़ी कंपनी में काम करते हैं. मेरी भाभी कंचन बहुत ही सुन्दर है. भैया की शादी को दो साल हो चुके हैं. भाभी की उम्र 24 साल है. मैं भाभी की बहुत इज़्ज़त करता हूँ और वो भी मुझे बहुत चाहती है. हम दोनो में खूब दोस्ती है और हँसी मज़ाक चलता रहता है. भाभी पढ़ाई में भी मेरी सहायता करती है. वो मुझे मथ्स पढ़ाती है.
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