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Thriller रश्मि का आरंभ- रश्मि मंडल
#21
sahi.. thoda lamba update do pls
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#22
(12-07-2022, 10:22 PM)Princeazmi Wrote: Story achi ja rhi h

Plz continue

जी धन्यवाद
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#23
(13-07-2022, 07:59 AM)longindian_axe Wrote: sahi.. thoda lamba update do pls

जी, अगला आग लगा देगा.
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#24
जड़ होकर खड़ा अमर सिंह अचानक, जैसे छोटा बच्चा अपने प्रिय खिलौने को देख कर कूद पड़ता है वैसे ही मेरे आमंत्रण से अपने आप को रोक नहीं पाया. मैंने अपना स्कर्ट पूरा अपनी पैंटी तक खींच दिया था. अमर एक झटके के साथ नीचे आया और अपना दोनों हाथ मेरी एक-एक मांसल जांघों पर रख कर घुटने के ऊपर मेरी दायें जांघ को अपनी जीभ निकाल कर फिराने लगा. उसका गरम साँस मैं अपने मखमली जांघों पर पर महसूस कर रही थी. घुटनों के तीन मिलीमीटर ऊपर से वह अपनी जीभ रख कर तेजी से मेरी दायें जांघ के ऊपरी कटाव, जहाँ तक मेरी पैंटी का निचला किनारा था, पहुँच गया. अगर मैंने अपने दायें हाथ से उसका बाल जोर से पकड़ कर उसका सिर नहीं खींचा होता तो वह सीधे मेरी पैंटी के अन्दर के कोमल और चिकने जन्नत को खा रहा होता. वैसे अमर इस मामले में अनुभवी आदमी था पर इतनी देर की तड़प और नशे के कारण वह वह बेसब्र और उतावला हो उठा था. मैंने जैसे ही उसका बाल पकड़ कर खींचा वह दर्द से कराहते हुए अपनी आँखें ऊपर उठा कर एक आज्ञाकारी बच्चे की तरह मुझे देखने लगा. मेरी साँस तेज चल रही थी और मेरे सीने के उन्नत उभार तेजी से ऊपर नीचे होकर मेरे शर्ट के बटन को तोड़ने का प्रयास कर रहे थे. मैंने नशीली, कातिल निगाहों से उसकी आँखों में देखा, और उसका बाल जोर से पकड़ कर फिर से उसका मुंह अपनी बायीं जांघ पर घुटनों के ऊपर रख दिया.

वह फिर से उसी तरह हरकत करने लगा. वह मेरी जांघ को पूरी तरह चाट जाना चाहता था. मैं आनंद की तरंगों से सराबोर हो गयी. मैं आँख बंद कर उसके होंठों का चुम्मन और उसके जीभ का छुवन अपनी जांघ पर अनुभव कर रही थी. उसका दोनों हाथ अभी भी मेरी एक-एक जांघों पर था. वह अपने हाथों से मेरी मांसल, गदराई जांघों को मसल रहा था. अमर का सिर दो जन्नत की, दूधिया और सम्पूर्णता से तराशी गयी कन्दली खम्भों के बीच थी. मैं अपना हाथ उत्तेजना से उसके बाल पर फेर रही थी. तभी चूमते हुए, अपना मुंह खोल उसने कर मेरी जंघा पर अपना दांत गड़ा दिया. मैं कराह उठी. उसका दोनों हाथ अब ऊपर की ओर सफ़र तय करने लगा. मेरी पुष्ट जांघों को सहलाते, मसलते उसका हाथ अब मेरी जांघों के बगल से होते हुए स्कर्ट के अन्दर से ही मेरे नितम्भों तक पहुँच गया. उसका हाथ अपने पैंटी के ऊपर से ही अपने नितम्भों पर महसूस कर मैं मदमस्त हो उठी. वह बड़े अनुभवी तरीके से अपना पूरा पंजा खोल कर मेरे दोनों नितम्भों को मसल रहा था. ना चाहते हुए भी मेरे मुंह से, "स्स्स्सस्स्स्स आआह्ह" की आवाज निकल पड़ी.

मैं ऐसे मौकों पर भरपूर आनंद तो लेती थी पर मजाल है कोई मुझपर नियंत्रण स्थापित कर ले. मैं संयम के साथ पूरा संचालन अपने पास रखती थी ताकि किसी भी परिस्थिति में सब कुछ मेरे हिसाब से चलते रहे. और अब मैं इंडियन इंटेलीजेंट एजेंसी की एजेंट भी हूँ. अब मुझे और सावधान एवं चौकन्ना रहना होगा. मेरे दिमाग में जूलिया मैंम के साथ घटी घटनाएँ घूमने लगी, शायद वह यही परखना चाह रही थीं. शायद वह यही जानना चाह रही थीं कि मैं उत्तेजित होने के बाद भी संयमित रह पाती हूँ या नहीं!!

मेरे कूल्हों को मसलते हुए अमर अपना मुंह मेरी जंघा से हटा कर उठ खड़ा हुआ. मैं अभी भी बिस्तर के किनारे पर ही बैठी थी. अमर मेरे सामने सीधा खड़ा था. मेरी आंख्ने उसके कमर की नीचे जीन्स के ऊपर के उभरे हुए कड़े भाग पर गया. उसका मोटा और लम्बा सा उभार मुझे मदमस्त कर रहा था. मैंने अपना बायां हाथ आगे किया और जीन्स के ऊपर से ही उसके कड़े होते लिंग को अपनी हथेली पूरी खोल कर दबोच लिया. "आआअह्ह्ह्ह रश्मि" यह पहली बार था जब अमर के मुंह से कुछ आवाज निकला. उसने फटा-फट मेरे शर्ट के ऊपर के खुले हुए हिस्से से अपने हाथों को अन्दर डाल कर मेरे दोनों सुडौल मखमली कन्धों पर हाथ रख कर मुझे धक्का देते हुए बिस्तर पर लिटा दिया. उसका हाथ मेरी ब्रा के पट्टी के ऊपर था. मैंने अपने सुलगते बदन को ढीला छोड़ दिया. अब मैं कमर से ऊपर बिस्तर पर लेटी थी और मेरे दोनों टांग नीचे थे. अमर मेरे ऊपर छाने लगा. वह बिस्तर पर गिरे हुए मेरे मिस्र की देवियों जैसी, सुडौल, पुष्ट और एक-एक अंग फुर्शत से तराशी हुई बदन पर चढ़ गया. मेरा स्कर्ट पूरा ऊपर होकर अभी भी मेरे कमर पर फंसा हुआ था, जिसके नीचे मेरी मखमली और थोड़ी पारदर्शी सफ़ेद पैंटी था. और पैंटी के अन्दर मेरी गुलाबी, चिकनी और मुलायम रतिगृह. पैंटी के नीचे मेरी खुली, मांसल, दूध की तरह गोरी जांघें नंगी थी.

ऊपर फुल स्लीव शर्ट अस्तव्यस्त था, ऊपर के दो बटन पहले से खुले हुए थे. शर्ट बमुश्किल से मेरी सफ़ेद इनर और उसके अन्दर के सफ़ेद ब्रा को ढंक पा रही थी. मेरे पुष्ट और दूधिया उभारों के ऊपरी भाग का मादक नजारा सामने था. उसके नीचे हल्के भूरे गुलाबी पुष्पपथ सा मेरा सपाट और चिकना पेट जो शुरू से आवरण रहित था. उदर के बीच में अन्दर की ओर लघु गहराई लेता हुआ नाभि. मेरे खुले हुए बाल बिस्तर पर इधर-उधर सर्प की तरह फैले हुए थे. कुल मिला कर कामुकता की देवी मैं, साक्षात् आसमान से उतरी अप्सरा की तरह दिख रही थी. अमर तो क्या कोई भी पुरुष, यहाँ तक की कोई भी स्त्री मुझे अभी ऐसे देख कर आपा खोने से अपने आप को नहीं रोक पाएगा.  

अमर अपनी दोनों टांगे मेरे कमर के इर्द-गिर्द रखकर मुझ पर चढ़ा हुआ था. अपने कन्धों पर मैं उसके हाथों का दबाव महसूस कर रही थी. वह झुका और उसने अपने तपते होंठों को मेरी गुलाब की पंखुड़ियों जैसी कोमल और गुलाबी अधरों पर रख दिया. वह मुझे बेतहाशा चूमे जा रहा था. मैं भी उसका उसी तरह साथ दे रही थी. उसका दाहिना हाथ मेरे बाएँ कंधे से उतर कर मेरी बाएँ उभारों अग्र बिंदु को टटोलने लगा. शर्ट के अन्दर और ब्रा तथा इनर से ऊपर से वह मेरे बाएँ वक्ष को पकड़ लेना चाहता था. उसका पूरा हथेली खुला हुआ था और मेरा उन्नत स्तन उसमें समाने का असफल प्रयास कर रहा था. उसके छुवन से मेरे उभारों के अग्र बिंदु कठोर हो चले. उसने मेरा बायाँ स्तन अपनी पूरी हथेली में लेकर जोर से मसल दिया. "अआह्ह' मेरे मुंह से निकला. हम दोनों एक दूसरे के होंठों का बेदर्दी से रसपान कर रहे थे. उसकी हरकत ने मेरे तन बदन में आग लगा दी. अपने टांगों के बीच मैं गीलापन का अनुभव करने लगी. अचानक अमर ने अपना हाथ निकाल कर मेरे शर्ट का अंतिम बटन जो काफी देर से तड़प रहा था, खोल दिया. मेरा शर्ट, बिस्तर पर पीठ के बल लेटे मेरे बदन के इर्द गिर्द फ़ैल गया. अमर मेरे सफ़ेद ब्रा के ऊपर के हल्के पारदर्शी सफ़ेद इनर को तक रहा था. वह दोनों कपड़ों के ऊपर से मेरे खरबूजे जैसे पुष्ट स्तन को अपनी आँखों में समा लेना चाहता था. उसकी हालत दयनीय थी. उसके सामने वह साक्षात् स्वर्ग सुंदरी आधे कपड़ों में थी जिसे वह कई वर्षों से पाना चाहता था. मेरे मादक, गदराई बदन की गर्मी से उसका पूरा शरीर जल रहा था. अपने कमर के पास मैं उसके कठोर, मोटे और लम्बे अंग को महसूस कर रही थी.

उसने आव देखा ना ताव और अपने दोनों बलिष्ट बाँहों को मेरे छाती के अगल-बगल रख, मुझे पकड़, बल देकर मेरे पूरे बदन को उठाते हुए ऊपर की ओर सरका दिया. अब मेरे टांग भी बिस्तर पर थे, मेरा पूरा मांसल बदन बिस्तर पर उल्टा पड़ा हुआ था. उसने बहुत ही जल्दबाजी में मेरे इनर के दोनों निचले छोरों को पकड़ा और मेरे ऊपरी बदन को थोड़ा ऊपर उठाते हुए मेरे सिर से इनर को बाहर निकालते हुए फेंक दिया. उसने सामने अब मेरे कसे हुए स्तन बड़े स्तन सिर्फ सफ़ेद ब्रा में कैद थे. अमर वासना के चरम आग में जल रहा था. उसने मेरा दोनों हाथ अपने मजबूत बाँहों में दबोच लिया और उन्हें खिसकाते हुए ऊपर की ओर ले जाकर मेरे मखमली बिस्तर पर दबा दिया. अपना होंठ मेरे चिकने गले, मेरे गाल, मेरे कान और मेरे भरे हुए स्तन के उपरी हिस्से पर ले जाकर चुम्बन की बरसात कर दी. मैं निढाल थी, मेरे कामदेवी जैसे शरीर के हर हिस्से में आनंद की सुनामी लहर उछाल ले रही थी. अब मैं चाहती थी की वह जल्दी ही मुझे आवरण विहीन करे और मेरी प्यासी, गीली हो चुकी योनी को अपने प्रचंड हथियार से घायल कर दे. अब तक मैं सारा नियंत्रण अमर को दे रखी था, अगर अब भी वह मेरी स्थिति जान कर मुझ पर प्रहार ना करता तो मैं उस पर चढ़ कर खुद उसका लिंग अपने अन्दर ले लेती. पर अमर अनुभवी था, उसे इस क्रीड़ा में महारत हासिल थी.
उसने एक झटके से अपने   दायें हाथ से मेरी  बाएं वक्ष के ऊपर के ब्रा को पकड़ कर उसे मसलते हुए  नीचे कर दिया. "आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्" मैं कराह उठी. मुझे उसकी यह हरकत बहुत पसंद आई. मेरी  पुष्ट कठोर उरोज उसके सामने पूरी तरह   नंगी थी, जिसका अग्र नुकीला भाग कड़ा होकर उसको आमंत्रण दे रहा था. पता नहीं उसने कितने बार उसे सोच कर खुद से मेहनत की होगी. उसने बिना कोई पल गंवाए नीचे झुक कर वह अग्र कठोर भाग अपने मुंह में ले लिया. और उसे चूस-चूस कर अपनी प्यास बुझाने लगा. अपने दूसरे हाथ से वह मेरा दूसरा वक्ष मर्दन कर रहा था. मेरी टाँगें फैली हुई थी, उसका कमर  मेरे दोनों टांगों के बीच मुझे हौले-हौले धक्के लगा रहा था. मैं बेसब्र थी, मैंने अपने  हाथ छुड़ाए और दोनों हाथ नीचे ले जाकर उसका बेल्ट खोलने लगी. मैंने फिर उसके जीन्स का बटन खोल दिया, उसके जिप को नीचे कर दिया. वह मुझसे थोड़ा अलग हुआ और अपना जीन्स निकाल फेंका, मैंने उसे टी-शर्ट निकालने को इशारा किया. उसने अपना टी-शर्ट भी निकाल फेंका. मैंने अपना हाथ पीछे मोड़ कर अपनी ब्रा का हुक खोल दिया और ब्रा बिस्तर पर फेंक दिया. फिर मैंने दोनों हाथ नीचे ले जाकर अपनी पैंटी को अपने पैरों से सरका कर निकाल फेंका. अब मैं स्वर्ग की अप्सरा पूरी आदमजात नंगी थी. मेरे बदन का एक-एक तराशा हुआ अंग, पूरे कमरे को चकाचौंध कर रहा था. पुष्ट, मांसल और गदराई शरीर, जिसका हर अंग सम्पूर्ण गोलाईयां लिए, तने हुए दो कठोर दूध, सपाट चिकना पेट, और उसके नीच दो कन्दली सम्पूर्ण गोलाईयां लिए जांघें, जांघों के कटाव के बीच में मेरी चिकनी ललचाती योनी. मुझे ऐसे देख कर किसी भी उम्र का व्यक्ति अपने होशो हवास खो बैठता था. अमर मेरे सामने मुझे आवक निहार रहा था.
मैंने अपना हाथ आगे बढ़ा कर उसके अंडरवीयर के ऊपर से ही उसका लिंग अपने हाथों में समेट लिया. "आआअह्हह्हह्ह, रश्मि. तू मुझे इतने दिनों तक क्यों नहीं मिली अमर ने कहा" "चुप चाप जो कर रहा है कर, ज्यादा बात मत कर" मैंने उसे कहा और उसका अंतिम वस्त्र उसके शरीर से निकल दिया. अमर सिंह ऊपर नीचे, सब तरफ से एक भरपूर मर्द था. उसके लम्बे और कड़े लिंग में नसों की रेखाएं स्पष्ट दिखाई दे रही थी. मैं उसके विशाल लिंग को अपनी हाथ में लिया और मसलने लगी. वह "आःह्ह्ह, रश्मि अआह्ह" की आवाजें निकाल रहा था. मेरी टांगों की बीच की जगह पूरी तरह गीली थी, मेरे सब्र का बांध टूट रहा था. मैंने उसके लिंग को पकड़ कर अपनी ओर खींचा और उसका लाल अग्र भाग ले जाकर अपने योनी के मुहाने पर रख दिया. उत्तेजित अमर मुझ पर टूट पड़ा, वह मुझे बिस्तर पर गिरा कर मेरे पैरों पर चढ़ गया. मैं चाहती भी यही थी. मेरी टांगों को फैला कर उसने अपनी उँगलियाँ मेरी योनी द्वार पर रख दी. उँगलियों से वह मेरी योनी को मसल रहा था. "आआह्हह्हह, नहीं. अब हो गया, अब जो अन्दर डाला जाता है, डाल दे" मैंने कहा. काम वासना के चरम पर पर बैठे अमर ने अपने लिंग को पकड़ कर एक झटके से मेरी पूरी योनी के अन्दर डाल दिया. "आह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्हह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह" मैं कराह उठी. वह बिना रुके और बिना सुने, मेरे दोनों बाँहों को अपने हाथों से दबोच कर, मेरी टांगों के बीच अपने लिंग को घुसा कर बड़े ही तीव्र गति से धक्के लगाने लगा. बीच-बीच में वह मेरा निप्पल मुंह में लेकर चूसता और काटता. वह किसी वहशी की तरह मेरे बदन को रेते जा रहा था. "आःह्ह्ह स्स्स्स आआह्ह स्स्स्स स्स्स्स" मैं आनंद से कराह रही थी. वह बहुत ही उत्तेजित होकर बेसब्री से, लगातार मुझपे वॉर कर रहा था. वह ऐसे उस क्रीड़ा में लिप्त था जैसे उसने जिंदगी में पहली बार यह किया हो. जबकि मैं अच्छे से जानती थी, अमर ने अब तक पचासों लड़कियों को दबोचा होगा. हो सकता है यही उसका तरीका हो.

वह लगातार, काफी देर तक उसी गति से मुझे भोगता रहा. उसका एक-एक धक्का मैं अपने पेट के अंदरूनी गहराई में महसूस कर रही थी. वह मेरे बड़े दूधों को चूसता, उन्हने मसलता और फिर से उसी गति से मेरी योनी में लिंग भेदन करता. मैं आनंद की चरम सीमा पर थी. यह रात मेरे जीवन के काम क्रीड़ाओं की यादगार रात बन गयी. हमने रात भर में तीन-चार बार अपने हवास की आग को बुझाया. कभी वह ऊपर तो कभी वह नीचे. मैं आनंद से सराबोर हो उठी. ऐसा नहीं था कि मुझे काम क्रीड़ा का कोई अनुभव ना हो पर मेरी 22 वर्ष की उम्र में पहली बार मैं इतनी उत्तेजित और आनंदित हुई. अंतिम बार के बाद हम पूरी तरह से थक कर चूर होकर वैसे ही सो गये.

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दूसरे दिन सुबह मेरे जॉइनिंग का दिन था, सुबह 8 बजे मुझे आई.आई.ए. के ऑफिस में रिपोर्ट करना था. जब मैं सुबह 6 बजे उठी तो अमर वैसे ही घोड़े बेचकर सो रहा था. खैर मुझे उससे क्या था. मुझे तो अपने भविष्य के यात्रा की शुरुवात करनी थी. मैं जल्दी से गयी, फ्रेश होकर नहा कर अपने ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़े होकर अपने हाहाकारी बदन को आईने में देखकर गर्वान्वित हो रही थी. मेरे बदन के सांचे में ढले एक-एक हिस्से में मुझे गर्व था. अगर मैं याद करूँ तो आज तक मुझे दो ही लोग मिले हैं जिनके बदन और रूप रंग से मैं प्रभावित थी. जिसकी तुलना मैं खुद से कर सकती थी. एक तो रीमा शर्मा और एक जूलिया एन मैंम. रीमा तो फिर भी मुझसे 19 ही थी पर जूलिया मैंम, उनके सामने मैं कुछ भी नहीं. मैं आश्चर्यचकित थी कि कैसे इस उम्र में भी वो हर तरह से मुझसे बेहतर थीं. क्या शानदार बदन है उनका. बड़े-बड़े वक्ष, शानदार गोलाईयां लिए मांसल और पुष्ट बदन. वैसे ही लगभग साढ़े 6 फुट की ऊंचाई उनकी. वो सी.आई.ए. के एक तेज तर्रार सीनियर एजेंट थीं. मैं सच में उनसे काफी प्रभावित थी. "क्या मेरी आज उनसे मुलाकात होगी" यही सब सोचते मैं कपड़े पहन कर, आईने से सामने खड़े होकर निश्चिन्त अवस्था में अपने बालों पर कंघी कर रही थी. समय कम था 7 बज रहे थे, तभी किसी ने पीछे से आकर अपने दोनों हाथों को आगे ले जाकर टॉप के ऊपर से मेरे दोनों वक्षों को पकड़ लिया. मैं तुरंत सक्रीय हुई और मैंने अपने दायें हाथ की कोहनी से एक भरपूर वार पीछे की ओर मारा. मार बहुत जोरदार थी, वह अमर ही था. वह 4-5 फूट दूर जाकर जमीन में गिरा. उसे तुरंत अहसास हुआ होगा कि रात में अगर मैं उसके नियंत्रण में थी तो अपनी मर्जी से. वरना मुझसे भिड़ने का अंजाम बहुत बुरा होता है. वह अपने सीने पर चोट वाले स्थान पर हाथ रख कराहते हुए मुझे देख बोला "क्या था रश्मि यह?" "रात में जो कुछ भी हुआ वह नशे के कारण था, उससे ज्यादा कुछ उम्मीद मत रखना मुझसे" मैंने कहा.

"कितनी निर्दयी हो तुम उसने उठते हुए कहा" "मैं ऐसी ही हूँ" मैंने कहा. "चल अपना बोरिया बिस्तर बांध और निकल यहाँ से, मुझे तुरंत कहीं जाना है" कहते हुए मैं फिर से आईने की तरफ  मुड़ गयी. अमर ने तुरंत अपना कपड़ा पहना और वहां से चलते बना.
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#25
Story achi h bt sex scene ko lamba or detail me do

Or khule shabdo ka use kro jaise chut lund

To kuch zada maza ayega story read krne ka
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#26
wwwwwwwwwoooooooooooowwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww
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#27
मैंने डार्क ब्लू रंग की हल्की फैडेड जीन्स और उसके ऊपर ब्राउन रंग की फुल स्लीव शर्ट अंडरशर्ट करके पहनी हुई थी. शर्ट में काले रंग की धारियां थीं. कमर में ब्राउन रंग की बेल्ट और खुले बाल दोनों कन्धों पर लटक रहे थे. नीचे ग्रे रंग की हाई हील सैंडल. मैं बहुत ही स्मार्ट, मॉडर्न और आत्मविश्वास से भरी हुई लग रही थी. मेरा हाहाकारी बदन ऐसे कपड़ों में बहुत शिष्ट और सभ्य लग रहा था. मुझे काम पर ऐसे ही सभ्य और शालीन बन कर जाना था.
मैं घर पर ताला  लगा कर जल्दी-जल्दी घर से बाहर निकली. मैं बिलकुल भी समय बरबाद नहीं करना चाहती थी. आज मेरा आई.आई.ए. का पहला दिन था, और मैं आज ही लेट नहीं पहुँचाना चाहती थी. मैंने सचिन श्रीवास्तव को पहले ही कॉल कर दिया था, वो मेरी गाड़ी लेकर आता ही होगा. "क्या मुझे एक और गाड़ी ले लेनी  चाहिए" मैं सोच रही थी.

.........[[[[[[रश्मि के पिता उदय प्रताप सिंह राणा जैसलमेर राज परिवार से थे. मृत्यु के बाद उन्होंने सारी संपत्ति रश्मि मंडल के नाम कर दी थी. रश्मि अकूत संपत्ति की मालकिन थी.-------- यह पेज 1 में पढ़िए]]]]]]]]...........


तभी मुझे सचिन आता हुआ दिखाई दिया. गाड़ी रोकते ही उसने मुझसे पूछा "क्या अमर सिंह रात भर यहाँ रुका हुआ था? मैंने उसे अभी जाते हुए देखा". उसके चेहरे पर अजीब से उलझन का भाव था. "हाँ, काफी लेट हो गया था" मैंने उसका बांह पकड़ कर उसे कार से बाहर निकालते हुए कहा. मैं जल्दी से अपने मंजिल की ओर बढ़ जाना चाहती थी.
"पर तुम्हें तो अमर कुछ खास पसंद नहीं था ना" सचिन ने चेहरे पर नाराजगी का भाव लाते हुए कहा. उसे लग रहा होगा, जो वो मुझसे चाहता है कहीं वह अमर ने हासिल तो नहीं कर लिया? पर मैं बहुत जल्दबाजी में थी. "काफी रात हो गयी थी, मुझे किसी इन्सान को ऐसे रात में नशे की हालत में भेजना अच्छा नहीं लगा. वो भी वह इन्सान जिसने मेरी मदद की हो. मेरा घर है, मैं जिसे भी रोकूं, तुझे क्या करना है?" मैंने बेटूक जवाब दिया. सचिन का मुंह उतर गया. मैं उसे वहीँ छोड़ कर अपना मालबोरो लाइट जलाते हुए आगे बढ़ गयी.

मैं 7:50 सुबह ऑफिस की पार्किंग में थी. मैंने बहुत फुर्ती से वहाँ गाड़ी पार्क की फिर लिफ्ट से बेसमेंट की तरफ जाने लगी. सिक्यूरिटी ऑफिसर्स अभी भी अपनी जगह चुस्ती से तैनात खड़े थे.नीचे पहुँचने पर मेरी पहली मुलाक़ात एजेंट पूजा से हुई. वही एजेंट पूजा जिन्हें हमारा फिजिकल एक्सामिनेशन करना था पर फिर उनके बदले खुद जूलिया मैम ने मेरा और लिली का फिजिकल एक्सामिनेशन लिया था. एजेंट पूजा से मुझे पता चला हम 5 लडकियाँ एजेंसी में सलेक्ट हुई हैं. मेरी ख़ुशी का ठिकाना ना था, मैंने इतनी सारी लड़कियों में टॉप 5 में अपना स्थान बनाया था. और टॉप 5 क्या मैं इस बैच की टॉपर थी, यह बात मुझे पता चली जब अभी एजेंट पूजा और एजेंट कामिनी ने मुझे आकर बधाई दी. मैं बहुत प्राउड फील कर रही थी.
मैं थोड़ा चकित थी, अभी मैं वहां अकेली थी और बाकि 4 लड़कियां नदारत थी. "हो सकता है इन्होने सबको अलग-अलग समय पर बुलाया हो" मैंने सोचा.  तभी एजेंट पूजा वहां आई और उसने मुझे बताया कि हमें अब शूटिंग ट्रेनिंग के लिए जाना था पर चूँकि मैं पहले से ही शूटिंग में अनुभवी थी और ना सिर्फ अनुभवी बल्कि मुझे तो निशानेबाजी में महारत हासिल थी. तो मुझे और एजेंट लिली को सीधे शूटिंग रेंज में टेस्ट के लिए जाना था. मुझे और लिली को छोड़कर बाकी तीनों एजेंट्स को शूटिंग प्रैक्टिस में भेज दिया गया है. अब मुझे समझ आया कि क्यों बाकि एजेंट्स मुझे वहाँ नहीं दिखी. पर लिली भी यहाँ नहीं थी, वो किसलिए यहाँ नहीं थी? मैं इसी उधेड़बुन में थी तभी मुझे लिली एक  वृद्ध औरत के साथ आते हुए दिखी. ये वही थी जो हमारे इंटरव्यू में थी. वो दोनों काफी हस कर बात कर रहे थे, जैसे बरसों से एक दूसरे को जानते हों. "ओह तो यही है लिली की चाची, माया मैम" मैंने अंदाजा लगाया.

जीन्स टी-शर्ट पहले लिली गजब की लग रही थी. उसने एकदम चुस्त कपड़ा पहन रखा  था, मैंने देखा वो दोनों मेरी ही तरफ आ रहे थे. लिली के सीने में जो छोटे और एकदम गोल स्तन थे वे उसके कड़े टी-शर्ट से बहार आने को ललायित थे. छोटे कद की लिली जब चलते हुए मेरी ओर आ रही थी तो उसकी टाईट जीन्स जो की जसकी जंघाओं से पूरी तरह से चिकपी हुई थी, उसके सुडौल जांघों और पैरों का अहसास दे रही थी. "लिली की ऊंचाई 5 फुट भी नहीं होगी" मैंने सोचा. वह अपने सुडौल नितम्भों को मटकाते हुए, अपने छोटे क़दमों को तेजी से चलाते हुए चल रही थी. उसे देखकर मेरे मन में विचार आया, "लिली भले ही छोटे कद की थी, पर थी क़यामत. मुझे लगता है आज सुबह जो मैं सोच रही थी उसे मुझे बदलना होगा. मैं सिर्फ रीमा और जूलिया मैम नहीं, लिली के शानदार बदन और खूबसूरती से भी अपने आप को प्रभावित होने से नहीं रोक पा रही थी. उम्र में मुझसे बड़ी होने के बावजूद लिली की ऊंचाई इतनी कम थी कि अगर वो गलती से मेरी गोद में बैठती है तो वह मेरे सामने एकदम बच्ची लगेगी और मैं उसके माँ जैसी. अपने इन विचारों के साथ मैं ज्यादा देर तक नहीं रह पायी.

लिली ने पास आकर रश्मि को जानी पहचानी स्माइल दी जिसका रश्मि ने वैसे ही उत्तर दिया. रश्मि ने माया मैम को गुड मॉर्निंग विश किया, उन्होंने  उसे रुखाई से "हूँ" कहा और  वहां से चली गयी. रश्मि को देखते ही लिली को एक अजीब सी ख़ुशी का अहसास हुआ. वह सोच रही थी "यह लड़की कितनी खूबसूरत है! और वैसी ही मादक शरीर. इसके आगे और पीछे के उभार कितने बड़े और गदराये हुए हैं. मैं चाहती थी इसका सलेक्शन हो जाये. और जैसा की माया चाची ने बताया यह निशानेबाजी की चैम्पियन है, लगता है हमारी खूब जमेगी". उन दोनों ने एक दूसरे को हाय-हलो किया. एजेंट कामिनी ने उस दोनों को एक ओर आने के लिए इशारा किया और वो दोनों बातें करते शूटिंग टेस्ट के लिए जाने लगे.लिली बहुत ही हसमुख स्वाभाव की लड़की थी.वह रास्ते भर रश्मि को हसाती रही.थोड़ी ही देर में उन दोनों में बहुत अच्छी दोस्ती हो गयी.

लिली असम की थी और उसकी चाची माया मैम यहाँ काफी सीनियर मैनेजमेंट ऑफिसर थीं. 5 घंटे तक तक हम दोनों ने अलग-अलग दूरी के लिए अलग-अलग रेंज पर अपना टेस्ट दिया. यह मेरा पहला दिन है, मैं पूरे जोश में हूँ और मेरे साथ लिली भी. हमने खूब सारी बातें की, एक-दूसरे को जाना-समझा. लिली अभी अपनी चाची के घर ही रुकी हुई थी, उसने मुझे बताया वह रहने के लिए किराये में घर ढूढ़ रही है. मैंने सोचा अपने घर में ही रख लेती हूँ. इतनी जगह तो है, इतना बड़ा घर है. मेरा अकेलापन भी दूर हो जायेगा, रेंट भी नहीं लूंगी तो भी चलेगा मुझे तो. मैंने उसे कहा "मेरे घर पर रह लो, ऊपर का 2 फ्लोर पूरा खाली है. अकेले रहती हूँ इतने बड़े घर में भूत जैसे. मुझे रेंट भी मत देना तुम". "अरे रेंट क्यों नहीं दूँगी मैं, ऐसे थोड़ी अच्छा लगता है? मैं आती हूँ देखने कल और पसंद आया तो कल ही शिफ्ट भी हो जाउंगी". "पधारो फिर" मैंने उसे हँसते हुए कहा. हम दोनों के बातों का सिलसिला चल ही रहा था तभी एजेंट कामिनी ने हमें आकर बताया हम दोनों ने अच्छा किया और हमें यहाँ से क्लियर कर दिया गया है. हमें बताया गया कि कुछ ही दिनों में हमारी जूलिया मैम से मुलाक़ात होगी और वो हमें हमारे पहले मिशन के लिए सारा डिटेल्स देंगी. फिर हमें वहां से डिस्चार्ज कर दिया गया. मैंने लिली को बाय कहा और वहाँ से घर के लिए निकल गयी.

रश्मि घर पहुँचने वाली थी तभी उसका फ़ोन रिंग होना स्टार्ट हुआ. उसने दायें हाथ से स्टेरिंग ड्राइव करते हुए बाएं हाथ से फ़ोन उठा कर देखा, यह आलिया का कॉल था.
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#28
pls update
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#29
"हैलो, आलिया, मेरी बहन, कैसी है?" मैंने कॉल उठा कर कहा. "कुछ खास नहीं दीदी" आलिया कुरैशी  ने बुझे हुए स्वर से कहा. उसके आवाज में निराशा और परेशानी थी. "क्या हो गया? तू परेशान लग रही है!" मैंने पूछा. "वो सब मैं मिलकर बताती हूँ दीदी. सबसे पहले आपको बहुत-बहुत सारा बधाई, और सॉरी मैं आपकी पार्टी में नहीं आ सकी, बाहर थी ना मैं. हाँ पर मेरी पार्टी बची है ना!!" आलिया ने कहा. "कोई बात नहीं पगली, तू जब ले ले पार्टी, कोई मनाही नहीं है तुझे"मैंने उसे थोड़ा हंसाने का प्रयास करते हुए कहा. "दीदी, कहाँ हो अभी आप? आपके घर आ जाऊँ?" आलिया ने पूछा. "ऑफिस से घर जा रही हूँ, मुझे 15 मिनट लगेगा, तू तब तक आएगी तो चलेगा?" मैंने पूछा. "हाँ दीदी, बिलकुल" आलिया ने कहा. "ठीक है चल फिर मिल घर पर" मैंने जवाब दिया. "हाँ दीदी, बाय" आलिया ने कहा फिर मैंने फ़ोन कट कर दिया.

"क्या हो गया इस लड़की को, इतनी उदास तो नहीं लगती है कभी. चलो आने दो इसकी सारी उदासी दूर करती हूँ मैं" यह सब सोचते हुए मैं गाड़ी ड्राईव करने लगी. आलिया का खयाल आते ही मुझे पिछली सारी घटनाएँ याद आने लगी. किस तरह से आलिया का हाथ नींद में मेरी टी-शर्ट के अन्दर मेरी नंगी पेट में था. किस तरह से उसकी उँगलियाँ मेरी चिकनी पेट पर रेंग रही थी. यह सब करते हुए अपना दूसरा हाथ वह अपने छोटे वक्षों पर रखी हुई थी. आलिया के वक्ष, छोटे पर तने हुए, नुकीले, अलफांसों आम की तरह. मेरे दिमाग में उस रात का दृश्य घूमने लगा. जब उसके हल्के नीले रंग के पारदर्शी टी-शर्ट के अन्दर मैंने उसके बिना ब्रा पहने वक्षों को देखा था. आलिया के बाएँ वक्ष का नुकीला अग्र भाग जो उसके टी-शर्ट के ऊपर से काली बिंदु की तरह दिख रहा था. उसके सीने की गोलाइयाँ, मुझे अजीबो गरीब अहसास हो रहा था. आलिया मासूम परी लग रही थी उस दिन. मैं उसके वक्षों को टी-शर्ट के अन्दर से अच्छे से निहार लेना चाहती थी. उस दिन से पहले तक आलिया मेरे लिए सिर्फ एक छोटी बहन थी. पर उस दिन की घटना ने मेरे नजरिए को बदल दिया था. मैं आज तक यह समझने में नाकाम थी, जो उस दिन हुआ था, वह था क्या? आलिया सचमुच नींद में थी? या उसने यह सोच समझ कर किया. आलिया नींद में थी तो क्या वह स्वप्न में थी? और स्वप्न में थी तो मेरे साथ ऐसी हरकत क्यों कर रही थी वह? सपने में किसके साथ वह यह कर रही थी?

खैर अब मैं घर पहुँचने ही वाली थी. जाकर मैंने अपना जीन्स और टी-शर्ट निकाल फेंका. अब मैं सिर्फ अपने काले पैंटी और ब्रा में थी. "आह, कितना आराम है" मैंने कहा. फिर मुझे याद आया आलिया आने ही वाली होगी, मैं उठी और अपने वार्डरोब पर पहुँच कर एक नीले रंग का लेगिंग और सफ़ेद रंग का थोड़ा पारदर्शी टी-शर्ट पहन लिया. मैं आई और आईने के पास खड़ी हो गयी. मैं कयामत की बला लग रही थी. लेगिंग मेरी जांघों पर, पैरों पर, नितम्भों पर पूरी तरह से चिपका हुआ. मेरे मांसल और फुर्सत से तराशे गये पैरों और नितंभ का एक-एक कटाव स्पष्ट नुमाया था. ऊपर मेरी झीनी सफ़ेद टी-शर्ट, अन्दर के काले ब्रा और डीप नेक पैटर्न से स्तन के आकृति और कटाव का प्रदर्शन कर रही थी. मेरे दोनों पुष्ट उभारों के बीच का हिस्सा दो पहाड़ों के बीच की गहराई जैसी प्रतीत हो रही थी. मैंने पता नहीं क्यों ऐसे कपड़े पहने हुए थे सामान्यतः मैं घर में सिंपल सभ्य कपड़े पहनती हूँ.

तभी मुझे कॉल बेल की आवाज सुनाई दी. आलिया ही होगी मैंने सोचा और मैं गेट की तरफ बढ़ गयी. मैंने की-होल से देखा, सामने पिंक कलर का टीशर्ट और ग्रे कलर का जीन्स पहने आलिया दरवाजे की ओर निहार रही थी. मैंने दरवाजा खोला. कांग्राजुलेशंस दीदी कहते हुए आलिया मुझसे गले लग गयी. पहले जब भी आलिया मुझसे गले लगती थी, मैं उससे एक बड़ी बहन की तरह गले मिलती थी. पर आज, आज जब आलिया मुझसे गले मिल रही थी मेरा ध्यान उसके विभिन्न अंगों पर जा रहा था. मैं चाह कर भी अपने आप को नहीं रोक पा रही थी. अब मुझे लगता है, मुझे उन लड़कियों की लिस्ट बढ़ानी पड़ेगी जिनके बदन और खूबसूरती से मैं खुद प्रभावित थी. इसमें अब लिली के साथ-साथ दूसरी शायद आलिया भी शामिल हो रही थी.
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28 साल की लिली, पता नहीं क्यों, पर शुरू से मुझे लगता है, लिली मुझ पर कुछ ज्यादा ही ध्यान देती है. जैसे वो मेरी इस भरी-पूरी शरीर पर मोहित हो. लिली उम्र में तो मुझसे बड़ी थी पर वो  क़यामत मेरे सामने बच्ची ही लगती थी. गोल चेहरा, थोड़ी चपटी नाक. हमेशा जीन्स टी-शर्ट पहनने वाली लिली के टी-शर्ट के ऊपरी भाग में हमेशा दो पूर्णतः गोल, छोटे और कसे हुए पठार दिखाई देते थे. पठार इसलिए क्यूंकि लिली के स्तन को ऊपर से देख कर लगता था जैसे वह पूरी तरह से चांदे से खिंची गयी गोलाईयां थीं, सम्पूर्ण गोलाई, एक दोषहीन वृत्त. मैंने इतना उत्तम गोल स्तन अपनी जिंदगी में  नहीं देखा था. गोलाई के बाद वे  थोड़ा ऊपर उभर कर हमेशा चुस्त टी-शर्ट में बंधे हुए दिखाई देते थे. ऐसा लगता था जैसे उसके दोनों स्तन अन्दर दब कर, बाहर आने के लिए लगातार प्रयासरत हैं. उसके स्तन पठार जैसे ऊपर से सपाट और अगल-बगल से उभरे हुए दिखते थे. उसका नितंभ छोटा पर एकदम पुष्ट और कड़ा था, जिसका हर एक तराशा हुआ कटाव    उसके चुस्त जीन्स से स्पष्ट दिखाई देता था. उसे पीछे से देखने पर किसी के लिए भी अपना हाथ वहां रखने से रोक पाना मुश्किल था. ऐसा फिगर, ऐसी बनावाट जो किसी को भी उसकी तरफ खीचने के लिए मजबूर कर दे. और उसके चुस्त जीन्स में उभरती उसकी सुडौल और कसी हुई जंघाएँ तो मदमस्त करने वाली थीं. पहले दिन,  लिली की पहली  मुस्कान से ही उसकी नजरों में अपने लिए प्रशंसा का भाव और एक अजीब से आकर्षण का अनुभव होता है. उसका पहले से मेरे साथ संवाद स्थापित करना, मुझे आल थे बेस्ट बोलना, उसका चोरी छिपे मुझे देखने का प्रयास करना, उसका मेरी नंगी बदन को ऊपर से नीचे तक लालची निहागों से ताड़ना. उफ्फ्फ, लिली ने तो मुझे पूरी तरह से नंगी भी देखा है. पता नहीं क्यों पर उस दिन मैं प्रफुल्लित थी कि अब जूलिया मैम लिली को भी पूरी तरह से नंगी होने कहेंगी. मेरे अन्दर तीव्र जिज्ञासा थी, अन्दर से लिली है कैसी यह जानने का.

"दीदी, कहाँ गुम  हो गये आप? मुझे अन्दर भी नहीं बुलाओगे?" मुझसे अलग होते हुए आलिया बोली. "ओह्ह, सॉरी, आ, अन्दर आ- अन्दर आ" मैंने कहा. मैं थोड़ा झेंप सी गयी, ऐसा मेरे साथ होता नहीं था कि मैं ऐसे विचारों में खो जाऊं , मैं हमेशा चौकन्ना रहती थी. अभी मैं घर में थी इसलिए थोड़ा आराम से थी. और आलिया को देखकर मैं अपने सपनों की दुनिया में चली गयी थी. "आ जा बेडरूम में ही आराम से बैठ कर बात करते हैं आलिया, थोड़ा थकी हुई हूँ" मैंने कहा. "हाँ दीदी, कोई प्रॉब्लम नहीं है" अलिया ने कहा. हम बेडरूम में पहुंचे. "तू बैठ मैं आई" मैंने कहा और मैं किचन आयी और बढ़िया कड़क कॉफ़ी बनाने लगी.
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#30
pls post more
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#31
आलिया कुरैशी जब गले मिली, मैंने महसूस किया उसके वक्षों के ऊपरी हिस्सों को अपने स्तनों के निचले हिस्से से टकराते हुए. मैं अपने आप को रोक नहीं पा रही थी. उस दिन के बाद से मेरा ध्यान आलिया के अंगों पर ही था. उसके वक्षों के कड़े तिकोने अग्र भाग पर मेरी नजर कई बार गयी. मैं उन्हें देखना चाहती थी अन्दर से कैसे दिखते हैं. आलिया के छरहरी बदन का उसके कपड़े के नीचे से अंदाजा लगा कर मैं अन्दर तक रोमांचित हो गयी. आलिया दिखने में बहुत खूबसूरत है, एकदम गोरी चिट्टी. पर कपड़े के ऊपर से एक-दो बार देखने पर उसका पतला बदन अन्दर से कैसे कसा हुआ है ये समझ पाना थोड़ा मुश्किल है. पहले मेरा आलिया पर ज्यादा ध्यान गया नहीं कभी. मैं बस उसके मस्तियों पर साथ देती थी, उसको एक छोटी बहन की तरह संभालती थी.

गोवा ट्रिप में  मैंने आलिया को खुद को कई बार ताकते हुए पाया. मुझे कुछ ज्यादा अजीब नहीं लगा, मैंने सोचा हो सकता है मेरा आकर्षक व्यक्तित्व उसे अच्छा लगता हो. ऐसा होता है, जिससे हम प्रभावित होते हैं उसे देखने, जानने, समझने की इच्छा होती है. आलिया जैसा मुझसे व्यवहार करती थी, कोई भी कह सकता था वह मेरी बहुत इज्जत करती है, यहाँ तक की उसने गोवा में मुझे कहा था "दीदी, आप इतनी गजब क्यों हैं?". इस सब से साफ पता चलता है वह मुझसे प्रभावित थी. यहाँ तक की अपनी बड़ी बहन शाहीन कुरैशी से भी ज्यादा वह मुझे मानती थी. पर नीन्द में आलिया का मेरे पेट को सहलाना और सहलाते समय अपने हाथ से अपना वक्ष मलना. मुझे याद है उस समय मैं कुछ सोच नहीं पा रही थी. मैं बस आलिया के मखमली हाथ को अपने पेट पर महसूस कर रही थी. मेरी नजरें सिर्फ उसके जवान सीने पर टिकी हुई थी. जब मैंने उसके पारदर्शी कपड़े के अन्दर उसके कड़े छोटे, सीने के अग्रभाग को देखा मुझे लगा बच्ची अब बच्ची नहीं रही, बल्कि अब उसमें जवानी हिलोरे मार रही है. एक ऐसी अनछुई जवानी जिसे मुझे पकड़ कर रौंद देने का मन किया. मैं उसी समय उसके छोटे वक्षों को अपनी हथेलियों से परख लेना चाहती थी. ये सब बातें बार-बार मेरे मन में आ रही थी.  मुझे पहली बार अहसास हुआ कि एक अनछुई कमसिन जवानी को समझने की कितनी तीव्र इच्छा है मेरे अन्दर. इससे पहले, इधर मेरा ध्यान कभी नहीं गया था. मैं उसके दोनों अलफांसों आमों को चख लेना चाहती थी. उसे देखते ही मेरे दिमाग में रुखसाना आंटी का गीले कमीज वाला दृश्य घूम गया. उस दिन रुखसाना आंटी ने मेरे दिलों दिमाग में एक बिजली सी कड़का दी थी. घर में आलिया की हरकतों को सोच कर मैं गीली भी हो गयी थी. अहह , गीली मैं अभी भी हो रही हूँ थोड़ी सी. मैं ये सब क्या सोच रही हूँ! कॉफ़ी लगभग तैयार है.

उस दिन की तरह आज भी मेरी नजरें उसके छूते कमसिन उभारों पर जा रही थी. हांलाकि आज आलिया ने अन्दर ब्रा पहना हुआ था फिर भी उसके छोटे, कमसिन उभारों की आकृति का अंदाजा लगाया जा सकता था. मैंने ऊपर से यह भी समझ लिया था कि अन्दर मटर के दाने जैसे अग्र भाग कहाँ पर होंगे. स्लीवलेस टी-शर्ट से बाहर  उसकी मखमल सी त्वचा वाले गोर हाथ उसकी सुन्दरता में चार चाँद लगा रहे थे. उसका छोटा पर सुडौल नितंभ और उसकी स्टाइलिश जीन्स जो उसके जांघों के पास चिपकी हुई थी, उसके मांसल और मदमस्त जांघों का प्रदर्शन कर रही थी. उसके जांघ एक दूसरे से चिपके हुए प्रतीत होते थे. पर सबसे ऊपरी हिस्से में जहाँ उसका पैर उसके कमर से अलग हुआ था, उसके दोनों जांघों के बीच थोड़ी सी जगह छूटी हुई थी जो उसके कटि प्रदेश की सुडौलता का अंदाजा दे रहे थे. आलिया जैसी कमसिन कच्ची कलि को भोगना किसी के लिए स्वप्न के जैसा था. मैं आज यह मौका नहीं जाने देना चाहती थी, बड़ी बहन-छोटी बहन का लिहाज मेरे अन्दर से नदारत थी. अन्दर बस शाहीन के लिए एक अपराध बोध था, शाहीन मेरी अच्छी दोस्त थी. पर अब मैं पूरी तैयारी  कर चुकी थी, आज की  थकान को मिटाने का मुझे एक ही रास्ता अभी नजर आ रही थी और वो थी आलिया.
आलिया की नजरों को भी मैंने अपनी डीप नेक पैटर्न के टी-शर्ट से झांकते मेरे दोनों स्तनों के बीच के कटाव पर ठहरते हुए पाया. वह नजरें चुरा कर मेरे बड़े, पुष्ट उभारों की ओर देखती थी. पारदर्शी टी-शर्ट के भीतर का काला ब्रा जरूर आलिया को उतावली बना रही होगी. पूरी तरह से बदन से चिपकी हुई लेगिंग जो मेरे सुडौल नितम्भों, जांघों और तराशी हुई, मिश्र की देवी जैसी टांगों के हरएक कटाव को स्पष्ट नुमाया कर रहा था. मुझे इस बात का अहसास हुआ, मैं कॉफ़ी बनाने के लिए किचन की तरफ मुड़ी तब से लेकर जब तक मैं नजरों से ओझल नहीं हो गयी, आलिया की नजरें मेरी मांसल नितम्भों और जांघों में था. वह एकटक मेरे हिलते हुए नितम्भों के बीच के दरार को देख रही थी. मैं इसलिए इतनी पक्की हूँ क्यूंकि मैंने आने के बाद मोबाईल से कमरे में लगे हुए कैमरे से सब देखा है. मेरी अवचेतन मन ने शायद जानबूझकर आज  ऐसे उत्तेजक कपड़े पहनाए थे. मैं कमरे में पहुंची,आलिया बिस्तर पर बैठी मेरा इन्तजार कर रही थी. मैंने मुस्कराते हुए उसे कॉफ़ी दिया.

"बता, क्या हो गया? क्यों परेशान  लग रही थी तू" मैंने कॉफ़ी देते हुए उसे कहा. आलिया बिस्तर पर, दोनों पैर नीचे रख कर बैठी हुई थी. मैं उसके सामने ही एक कुर्सी पर बैठ गयी. कॉफ़ी की चुस्की लेते हुए आलिया ने कहा "मेरे घर वालों ने परेशान करके रख दिया है दीदी. मेरा लॉ कॉलेज में सलेक्शन हो गया है. दिल्ली में अच्छा कॉलेज मिल रहा है. और मैं वहीं पढ़ना चाहती हूँ. और घर वाले कह रहे हैं, कहाँ लॉ करेगी! वो भी दिल्ली जाकर? यहीं ब्यूटी का कोर्स कर ले. अब आप ही बताओ, कहाँ लॉ और कहाँ ब्यूटी का कोर्स है? हद है, समझ भी नहीं आता है  इन लोगों को!" आलिया कहते-कहते रूआंसी हो गयी. "अरे-अरे! मैं हैंडल करुँगी ना, इतना निराश मत हो" मैंने उसे देखते हुए कहा. "यहाँ तक की शाहीन भी कह रही है, यहीं से लॉ कर ले. वो भी मुझे बाहर जाने में सपोर्ट नहीं कर रही है" आलिया ने फिर आवेश में कहा. "शाहीन ऐसा क्यों कर रही है!" मैंने चौंकते हुए कहा. "पता नहीं दीदी. ऊपर से एक और नियम बना रहे हैं घर वाले कि अब हमें बुर्का  पहन कर  बाहर निकलना है , और शाहीन मान भी गयी है. अम्मी तो अब घर में भी बुर्का पहनने लगी है. मुझे लॉयर बनना है, किसी भी हालत में और अपने मनपसंद कॉलेज से ही दीदी" यह कहते हुए वह फूट-फूट कर रो पड़ी. हम दोनों की कॉफ़ी ख़त्म हो चुकी थी, मैं तुरंत कुर्सी से  उठी और आलिया की तरफ गयी. मैंने जाकर उसे चुप कराया, अपने हाथों से उसके आंसुओं को पोछा.

मैं उसे समझाया, मैंने कहा "मैं बात करुँगी आंटी से, तू रोना बंद कर" उसने मेरी ओर देखा और मुझसे लिपट कर  रोने लगी. आलिया मेरे सामने ही बिस्तर पर बैठी थी. मैं उसके सामने खड़ी थी. जब आलिया मुझसे लिपटी तो उसका सिर मेरे उभारों के नीचे मेरे पेट के पास था. उसने अपने दोनों हाथों से मुझे लपेट लिया था, उसके दोनों हाथ पीछे मेरे नितम्भों पर टिके हुए थे. वो लगातार रोये जा रही थी, उसके आंसुओं से मेरे पेट के पास टी-शर्ट भींग गया. मैं उसे लगातार चुप करा रही थी. मैं अपना हाथ उसके खुले मखमली बालों पर फेर रही थी. "चुप हो जा आलिया, मैं बात करुँगी ना, सब ठीक हो जायेगा. कह रहीं हूँ मैं" वह थोड़ा सा चुप हुई. मैं उसका हाथ अलग करते हुए    उसके बगल में जाकर  बिस्तर पर बैठ गयी. मैंने उसे कहा "देख आलिया, मैं बात करुँगी आंटी से, कह रही हूँ ना  मैं" वह मेरी ओर घूम गयी. "हाँ दीदी, वह सुबकते हुए बोली" उसकी मुंडी इस पूरे समय नीचे ही थी. अभी भी वो सिर नीचे ही की हुई थी. मैं बिस्तर के ऊपर गयी और उसके पीछे से जाकर अपना पैर ऐसे फैला कर कि वह अब मेरे दोनों टांगों के बीच वाली जगह पर बैठी थी, पीछे से उससे चिपक गयी. मेरा सीना उसके पीठ को छू रहा था. अपना हाथ उठा कर मैंने पीछे से उसका बाल सहलाना चालू रखा. अचानक वह बोली "और नहीं मानी तो अम्मी?" और वह फिर सुबकने लगी. मैं पीछे से अपने दोनों हाथ सामने ले जाकर उसे धीरे से अपनी तरफ खिंचा, वह आकर अपने पीठ से मेरे  सीने में टिक गयी.

अपना बायाँ हाथ मैं उसके स्लीवलेस बाहों में ले जाकर सांत्वना देने जैसा सहला रही हूँ और दाएं हाथ से उसकी  आँखों के आंसुओं को पोछने की कोशिश. उसे मैंने कहा "देख, तुझे पता है आंटी मेरा कहना मानती है. मैंने शाहीन को गोवा ले जाने के लिए आंटी को मना लिया था तुझे याद है ना?" वह थोड़ा शांत हुई फिर धीरे से उसने कहा "हाँ". मैंने बोलना जारी रखा "मुझे भरोसा है मैं आंटी से बात करुँगी और वह मेरी बात जरुर मानेंगी और उनकी कुछ चिंता हुई तो वो मैं चुटकियों में दूर कर दूँगी, तू परेशान मत हो". "हाँ दीदी, सही बोल रहे हो. आप कुछ भी कर सकते हो" उसके कहा. यह कहते समय उसके आवाज में कम्पन थी. मैं अपने बाएँ हाथ से उसकी मांसल भुजा को अभी भी सहला रही थी. वह पूरी तरह से मेरे सीने  में टिक कर  शांत, एकदम शांत बैठी हुई थी. उसे जरूर अपनी पीठ पर मेरे स्तनों का अंदाजा हो रहा, पूरा भार उन्हीं दोनों पर था. मेरी हथेली उसके मखमली भुजाओं पर पर मचल रही थी. उसकी  आवाज के कम्पन को मैंने एक सिग्नल की तरह माना. मैंने अपने हाथ को थोड़ा आगे ले जाकर कर बीच-बीच में बगल से उसके स्तनों को छूना शुरू किया. जब पहली बार मेरी उँगलियाँ उसके वक्ष से छुआ तो उसके मुंह से निकला "उंह", फिर वह शांत हो गयी. ना उसने कुछ बोला ना वह हिली, जैसे वह सिर्फ मेरी मचलती हाथ हो महसूस करते शांत बैठी हो. मैंने अपना दाहिना हाथ भी उसके दायें कंधे पर रख कर धीरे से सहलाने की मुद्रा में नीचे उसके कोहनी की तरफ ली जाने लगी. इस बार मैंने दोनों तरफ से, अपने दोनों हाथों से उसके दोनों छोटे वक्षों को छू लिया, और इस बार थोड़ी ज्यादा समय के लिए. वह हल्का सा छटपटाहट से हिली फिर शांत हो गयी. मैं अपने दोनों हाथों से उसकी मांसल बाँहों को सहला ही रही थी, मैंने अचानक दोनों बाँहों को हौले से मसल दिया. आंख बंद किये आलिया ने अपनी मुंडी को थोड़ा सा ऊपर उठाया. यही मौका देखकर मैंने दायाँ हाथ ले जाकर उसके दायें वक्ष पर रख दिया, हल्के से, बिना किसी दबाव के. मेरी खुली हथेली उसके वक्ष के ऊपर जाकर बस टिकी हुई थी, बिना किसी हरकत के. आलिया, अब तक अपना पीठ  मेरी ओर करके  सामने बिस्तर पर बैठी हुई थी. वह थोड़ा आगे झुकी, और फिर अपने दोनों हाथों को थोड़ा पीछे ले जाकर मेरे फैले हुए एक-एक जांघों पर रख दिया. मुझे उससे इस हतकत की उम्मीद ना थी, मेरी हंथेलियाँ अभी भी वहीँ थी.

मेरी जाँघों पर दबाव देते, आलिया ने अपनी नितम्भों को उठाते हुए अपने पूरे शरीर को ऊपर उठाया और पीछे खिसक कर एकदम से मेरी गोद में आकर बैठ गयी. उसने अपना  नितंभ, मेरी  दोनों टांगों के जुड़ाव वाले स्थान पर मेरी योनी प्रदेश से एकदम चिपका कर रख दिया था. वह मेरे जांघों पर बैठ जाना चाहती थी. उसकी  इस अप्रत्याशित हरकत ने मेरे तन-बदन में विद्युत् का संचार कर दिया. मैंने उसके कड़े, छोटे अलफांसों आम जैसी दाएं वक्ष को अपनी हथेली में पकड़ कर जोर से भींच दिया. "आआह्ह्ह, थोड़ा धीरे दीदी, धीरे" आलिया ने मधहोश होते हुए कहा.
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#32
उसकी यह बात सुन कर मेरे तन बदन में जो आग लगी थी वह भड़क पड़ी. मैंने बिना कोई देर किए अपना दूसरा हाथ भी आगे बढ़ाकर उसके बाएँ, तिकोने, कड़े  अलफांसों आम जैसी वक्ष को पकड़ लिया और दोनों वक्षों को  जोर से एक साथ  मसलते हुए उसके कान के पास अपना होंठ ले जाकर कहा "धीरे करूँ आलिया?" "स्स्स आःह्ह्ह  दीदी. कब से तरस रहे हैं ये आपकी हाथों से मसले जाने के लिए". मैंने अपनी दोनों बाँहों से उसे कस कर अपनी ओर खींच लिया और अपनी दोनों हथेलियों को पूरी तरह फैला कर उसके दोनों छोटे पर कड़े वक्षों को जोर-जोर से मसलना जारी रखा. पीछे से अपना होंठ आगे की और ले जाकर उसकी तपती गले के दायें भाग पर रख दिया. "स्स्स्स आह्ह्ह स्स्स्स आःह्ह" बस अब आलिया के मुंह से निकल रहा था. उसका पीठ मेरी स्तनों में गड़ा हुआ था. आलिया अपना मुंह थोड़ा सा खोल, आँख बंद किए, अपना सिर थोड़ा सा ऊपर उठाए मेरी होंठो को अपने गले और हाथों को अपने वक्षों पर महसूस कर रही थी. आलिया वासना की आग में तप रही थी.

आलिया कुरैशी, अपनी पीठ पर रश्मि के गुदाज स्तनों को महसूस कर रही थी. वह रश्मि के हाथों को अपने वक्षों पर पाकर उत्तेजना से तप रही थी. उसकी कितनी पुरानी इच्छा पूरी हो रही थी. तीन साल पहले, जब वह रश्मि से पहली बार मिली थी. तबसे उसके मन में यह प्रश्न  था "इस मिश्र की देवी जैसी लड़की का बदन इतना ज्यादा भरा-भरा और आकर्षक क्यों है? इसकी उंचाई, उसके नितंभ और इसके वक्ष इतने बड़े क्यों हैं? एकदम गोल, कठोर और पुष्ट. मन करता है छू लूँ इनको. ये इतनी स्मार्ट, रमणीय, आकर्षक और कामुक हैं, साथ में इन्हें मार्शल आर्ट, कराटे आदि भी आती है. शूटिंग में भी चैम्पियन हैं. ऐसा सभी लड़कियों को होना चाहिए. क्या मैं कभी इनको छू पाऊँगी? कपड़ों के नीचे इसका शानदार बदन कैसा दिखता होगा?". आलिया जो पिछले 3 वर्षों से रश्मि के लिए आतुर थी. आज रश्मि का  होंठ अपने गले पर, उसका हाथ अपने वक्षों पर और अपनी पीठ पर रश्मि के स्तनों को पाकर, आलिया अपना होश-ओ-हवास खो बैठ रही थी.

इधर मैं उसे कोई मौका नहीं देना चाहती थी. उस रात के बाद से मेरे अन्दर जो आलिया को दबोच लेने की कामना थी वह आज पूरी हो रही थी. उसके वक्षों के अधूरे दर्शन ने मुझे उसके लिए लालायित कर दिया था. उसके वो वक्ष अब मेरी हथेलियों में थे. अपना दायाँ हाथ मैं उसके टी-शर्ट के ऊपर से उसके बाएं वक्ष में धीरे गोल-गोल घुमा रही थी, उसके पुष्ट छोटी गोलाइयों के चारों ओर और उसके उभारों के बीच में उसके निप्पल के ऊपर भी. बायाँ हाथ मैंने उसके बाएँ वक्ष के ऊपर रखा हुआ था. उसकी बाँहों पे, उसके पेट पर, उसके ऊपरी जांघों में, उसके नितम्भों के पास और उसके वक्षों पर मैं अपना हाथ ले जाकर उसके अंगों को सहला रही थी. आलिया थोड़ा पीछे झुक कर, अपने पीठ के बल मुझ पर टिकी हुई थी, उसकी आंख्ने बंद थी और वह अपने छरहरी बदन पर मेरे छुवन को महसूस कर रही थी. अपनी हथेलियों को ले जाकर मैंने उसके दोनों वक्षों को सहलाते हुए, अपने दोनों हाथों को उसके उभारों की गोलाइयों में घुमाने लगी. दोनों उभारों को पकड़ कर मैं उन्हें हल्के-हल्के प्यार से दबाने लगी.

मैं कह सकती हूँ, आलिया पूरी तरह मेरी गिरफ्त में थी. और आलिया की कमसिन जवानी  मुझे भी कुछ और सोचने नहीं दे रहा थी. आह्ह, आलिया आखिरकार इस हालत में मेरे सामने थी. उसके वक्षों को हौले दबाते-सहलाते  अपना हाथ मैं नीचे की ओर ले गयी. आलिया के  पिंक टी-शर्ट और जीन्स के बीच का थोड़ा सा हिस्सा  खुला हुआ था. मैंने बड़ी नर्मी से अपने कांपते हाथों को उसकी भूरी और मखमली पेट पर रख दिया. मैं उसके पेट में उसके चिकने शरीर का अनुभव कर रही थी. दायें हथेली की 4 उँगलियाँ मोड़ कर मैं अपना मिडिल फिंगर उसके नाभि में डाल देती हूँ. और अपनी ऊँगली को वहां पर धीरे-धीरे हिलाने लगती हूँ. "ऊम्म्म, उन्ह्ह्ह" आलिया अपने मुंह से बस यही निकाल रही थी. अपनी पूरी हथेली खोल कर मैं उसके नाजुक चिकने पेट को सहला रही थी. उसके कमसिन बदन को छू कर मैं मदमस्त हो रही थी. मेरी सांसें तेज चल रही थी.

बाएं हाथ से उसके बाएं दूध को मसलते हुए मैं अपना दाहिना नीचे की और सरकाने लगी. उसके जीन्स के बटन पर पहुँच कर, मैं उसका बटन खोलने लगी. आलिया का शरीर कांप रहा था. जीन्स के बटन को खोल मैंने उसके जिप को पूरा नीचे कर दिया. आलिया की मुलायम त्वचा को छूकर से मैं बुरी तरह तप रही थी. उसके जीन्स के खुले बटन से अपना हाथ मैं उसकी दोनों टांगों की बीच की गहराइयों की तरफ ले जाने लगी. अपना दाहिना हाथ उसके जीन्स के अन्दर डाल मैंने अपनी उँगलियां उसकी अनछुई चूत के ऊपर पैंटी पर रख दिया. मैं धीरे-धीरे उसकी पैंटी को ऊपर से मसलने लगी. मेरा दूसरा हाथ उसके बाएँ उरोज पर टहल रहा था. "अहाह्हन ऊंह आह हहस्स्स्स" मेरी दोनों बाँहों के बीच फंसी आलिया के मुंह से यही आवाज निकल रही थी. "आआअह्ह' मैं लगातार उसकी चूत और नन्हे दूध को मसलती रही.

आलिया मेरी हरकतों से पूरी तरह उत्तेजित होकर मेरे सीने में धंसी हुई थी. उसके पीठ का दबाव मैं अपने उभारों में महसूस कर रही थी. मैंने उसका टी-शर्ट अपनी बायीं हाथ से पकड़ कर उठा दिया. गुलाबी ब्रा में लिपटे उसके छोटे तिकोने वक्ष मेरी आँखों के नीचे थे. मुझसे रहा ना गया, मैंने बाएं हाथ को नीचे से उसकी ब्रा के अन्दर डाल दिया. उसकी कसी हुई नुकीली चूची अब मेरे हाथ में थी. उसकी मुलायम त्वचा को छू कर मेरा रोम-रोम सहर उठा. उसकी कड़े हुए उग्र निप्पल को मैं उमेठने लगी. "अआई, आआह्ह्ह, अस्स्स्स स्स्स्स, दीदी धीरे, धीरे दीदी धीरे आआह्ह स्स्श्हाह" आलिया बोली. उसकी सिसकारी सुन मैं बुरी तरह उज्जेतिज हुई. अपना दूसरा हाथ मैंने थोड़ा पीछे कर उसकी पैंटी के अन्दर डाल कर उसकी मुलायम, चिकनी चूत को छू लिया. "आःह, कितनी गरम है ये" तुरंत मेरे दिमाग में ख़याल आया.

उसकी योनी पूरी तरह गीली थी. मैं अपनी उँगलियों का थाप उसकी चूत पर देने लगी. दूसरी ओर मैंने उसकी बाएं तरफ के ब्रा को पूरी तरह ऊपर उठा कर उसके भूरे निप्पल को अपनी उँगलियों के बीच दबाने लगी. आलिया आपनी आंख्ने उठा कर मुझे देखे जा रही थी. वह पूरी तरह से मुझ पर टिक कर लेट गयी थी. दोनों हाथों से वह मेरी जांघों को मसल रही थी. मैंने दोनों हाथ पीछे लेकर उसके छोटे, कठोर नितम्भों को पकड़ कर उसे थोड़ा ऊपर उठाया और उसका जीन्स उतारने का प्रयास करने लगी. आलिया मेरा इशारा समझ गयी, उसने खुद अपनी गांड ऊपर उठा कर अपना जीन्स निकाला और बिस्तर पर रख दिया. दो गोरी, चिकनी जांघों के बीच गुलाबी पैंटी अब मेरे सामने थी. आआआह, आलिया की मस्त भरी हुई गदराई जांघों को देखकर मेरे मुंह में पानी आ गया. कपड़ों के ऊपर से आलिया को देख कर बिलकुल भी नहीं लगता ऐसी कसी हुई मांसल जांघ आलिया की होगी. वह अपना दोनों टांग मोड़कर, अपनी दोनों जांघों को पूरी तरह फैला कर फिर से मेरी गुलाम की तरह मेरे आगोश में बैठ गयी. उसकी टांगों को फैला कर बैठने से मुझे साफ समझ आ गया वह क्या चाहती थी. मैंने उसे आगे झुकाया और उसकी पीठ में अपने हाथ ले जाकर उसके ब्रा के स्ट्रैप को खोल दिया. उसे खींच कर अपने सीने में टिका दिया. उसके टी-शर्ट को पकड़ कर मैंने ऊपर गले तक चढ़ा दिया. उसकी गुलाबी ब्रा को ऊपर उठा कर उसके दोनों जवान उरोजों को उन्मुक्त कर दिया. उसकी कसी हुई  तिकोने वक्षों को देख कर मुझे मन हुआ इसको पलटा कर चूस लूँ इन्हें पर जब मेरी नजर नीचे गयी तो आलिया अपना हाथ पैंटी के ऊपर रख कर अपनी कमसिन  योनी को सहला रही थी.

बिना कोई समय व्यतीत किये मैंने अपनी दायें हाथ की उँगलियाँ उसके पैंटी के अन्दर डाल दी. बाएं हाथ से फिर से उसके नन्हें वक्ष को मसलने लगी. बीच की ऊँगली उसकी योनी के दाने पे रख कर मैं उसकी चूत को जोर से घिसने लगी. आलिया प्यासी मछली की तरह मेरी उँगलियों की गति से मचल रही थी. "आआआह्ह्ह्ह, उन्ह्ह्हह्ह आआह्ह्ह दीदी, आआह्ह्ह्ह दीदी, दीदी" आलिया पूरी तरह से काम वासना में जली जा रही थी. अपना दायाँ हाथ ले जाकर वह अपना दायाँ दूध दबाने लगी. "आआह्ह्ह्ह अल्ल्ल्लाह, आःह या अल्ल्लाह्ह, दीदी मैं झड़ जाउंगी अआह्ह" आलिया बस यही कह रही थी. मैं लगातार उसका चूट रगड़े जा रही थी. मुझे उस नाजुक लड़की को अपनी उँगलियों की हरकत पर तड़फते देख आनद आ गया. मेरे हाथ की गति तेजी से बढ़ रही थी. "अह्ह्हह्ह्ह्ह, आःह्ह्ह, स्स्स्सश्ह्ह आआआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् दीदी" कहते हुए वह अपना एक हाथ ऊपर से मेरी हाथ में रख कर वह अपनी चूत की ओर दबाने लगी. "आअह्ह्ह्ह आआआआअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्" की आवाज के साथ मैंने उसकी योनी से निकलते पानी को महसूस किया. वह कामुक नवयौवना एक बार झड़ चुकी थी.

आलिया अकड़ कर उठ के पलट कर मुझसे लिपट गयी. "दीदी, आप बहुत अच्छी हो, आपको क्या नहीं आता!!"
 उसने धीरे से कहा. "अच्छा! इतनी अच्छी हूँ मैं" मैंने मुस्कराते हुए कहा. "हाँ दीदी" कहते हुए आलिया पूरी तरह से मेरी तरफ घूम गयी. यह पहली बार था जब इस पूरे घटनाक्रम में हमारी नजरें मिल रही थी, आलिया अपनी नजरें चुरा रही थी साथ ही उसकी नजरें मेरी डीप नेक टी-शर्ट से झांकती उभारों में फिसल रही थी. उसे देख कर समझ आ रहा था वह उनके लिए पागल हो रही थी.

मैं उसके सामने घुटनों पर बैठ गयी, आगे झुककर उसके चेहरे को अपनी हाथों में लेकर अपनी तपती होंठों को उसकी गुलाबी मुलायम होंठों पर रख दिया. मैं प्यार से उस कच्ची कली को चूमने लगी. हाथ उठा कर मैं उसका टी-शर्ट और ब्रा निकाल फेंकी. आलिया अब मेरे सामने ऊपर से पूरी तरह नंगी थी. वह आसमान से उतरी हुई किसी हूर की तरह लग रही थी. उसके कसे हुए तिकोने उरोजों को अपनी हाथों में लेकर उसकी होंठों को चूमने लगी. अपने हाथों से उसे पकड़ कर अपनी ओर खींचते हुए उसके गले में चुम्बनों की बरसात कर दी. मेरे हाथ उसके शरीर के मुलायम अंगों, उसके दूध, पीठ और नितम्भों में मचल रहे थे. "आआआअह्ह्ह दीदी, पागल कर दोगे आप मुझे" आलिया ने कहा. "अच्छा!" मैंने उसे कामुक नजरों से देखते हुए कहा. और मैं अपना टी-शर्ट निकाल दी, मेरे पुष्ट स्तन अब आलिया के सामने काली ब्रा में छुपने का प्रयास के रहे थे.

टी-शर्ट खुलते ही आलिया भूखी नजरों से मेरे उभारों को देखने लगी. उसके हाथों को मैंने अपनी ब्रा के ऊपर से स्तन पर पाया. आलिया अपनी छोटी हथेलियों में मेरे स्तनों को पकड़ने का प्रयास कर रही थी. उसके उतावलेपन को देखते हुए मैंने उसका हाथ पकड़ पीछे अपनी ब्रा स्ट्रैप में ले जाकर उन्हें खोलने का इशारा किया. आलिया ने तुरंत मेरा आदेश माना, ब्रा की पट्टियाँ खुलते ही वह हाथों से होते हुए नीचे गिर गयी. खरबूजे के जैसे बड़े मेरे पुष्ट उभार अब आलिया के सामने पूरी तरह निर्वस्त्र थे. "अआह्ह दीदी" कहते हुए आलिया ने एक बच्ची की तरह मेरे पुष्ट उभारों को अपनी हाथों में ले लिया. "या अल्लाह, कितनी खूबसूरत हो दीदी आप" उसने मेरे उभारों को दबाते हुए कहा. "तूने पहले कभी देखा है इस तरह किसी के स्तनों को?" मदमस्त होते हुए मैंने पूछा. "हाँ, दीदी पर आपको थोड़ा अजीब लगेगा" उसने लड़खड़ाते हुए शब्दों से कहा. "किसकी" मैंने पूछा. उसने मेरी तरफ देखा और हिचकिचाते हुए धीरे से कहा "अम्मी की".

उसका जवाब सुनते से ही मुझे रुखसाना कुरैशी आंटी की याद आ गयी. मेरे दिमाग में उनकी भींगे हुए स्तनों को नजारा घुमने लगा. मुझे एक लड़की बता रही है कि उसने उनके उन पुष्ट उरोजों को खुला देखा है और वो भी उनकी खुद की बेटी. मेरी उत्तेजना अपने चरम सीमा पर पहुँच गयी, आलिया के इस बात ने मेरे पूरे शरीर में विद्युत् की लहर दौड़ा दी. मैंने आलिया के सिर को पीछे से पकड़ा और उसे अपनी तरफ खींचते हुए अपना एक दूध उसके मुंह में डाल दिया. "चूस ले इनको" मैंने कहा. आलिया अपने दोनों हाथों से मेरे स्तनों को पकड़े हुए मेरे दायें निप्पल को बेतहाशा चूसने लगी. वह छोटी बच्ची की तरह मेरा पूरा दूध चूस लेना चाहती थी. कभी दाहिना तो कभी बायाँ, वह एक-एक करके मेरे कठोर स्तनों को चूसे जा रही थी. मैं आनंद से सराबोर हो गयी. बीच-बीच में उसका मुंह पकड़ मैं उसके होंठों को चूम लेती थी. आलिया जिस तरह से मेरे बड़े उरोजों को चूम रही थी, चाट रही थी, चूस रही थी लग रहा था जैसे उसकी बरसों की अधूरी इच्छा पूरी हो रही हो.

अब मुझसे रहा नहीं गया, मैंने आलिया को अलग किया और पीठ की बल लेट कर अपनी लेगिंस को निकाल फेंका. आलिया ने मेरे तराशे हुए मांसल जांघों और दोनों टांगों के जोड़ के पास पैंटी को ललचाई नजरों से देखते हुए अपनी हाथों को मेरी जांघों पर रख दिया. मेरी जांघों को मसलते हुए उसने अपना हाथ मेरी पैंटी के ऊपर से मेरी योनी पर रख दिया. "आआह्ह" काम वासना में जलती हुई मैं पीठ के बल लेट कर निढाल हो गयी. अलिया मेरी योनी को पैंटी के ऊपर से मसल दी. "आआह्ह्ह आलिया मेरी बच्ची" मैं बेकाबू हो चुकी थी. मेरे मुंह से यह बात सुनते ही आलिया ने मेरी पैंटी पकड़ कर नीचे सरकाते हुए उसे निकाल दिया. अब मैं आदमजात पूरी तरह से नंगी थी. मेरे गदराई हुई जांघों के बीच का जन्नत का नजारा अब आलिया के सामने था.

वह नीचे झुक कर मेरी नाभि को मेरे पेट को चूमने लगी. "कैसे देखा तूने रुखसाना आंटी के दूध को?" मैंने पूछा. "दीदी!!" उसने सिर उठा कर मुझे शिकायत के लहजे में देखते हुए कहा. "अरे! मैं बस पूछ रही हूँ, इतना तो बता ही सकती है" मैंने कहा. "हूँ" कहते हुए वह फिर से मेरी एक जांघ को चूमने लगी. अपने एक हाथ मेरे उन्नत उभारों को दबाते हुए, मेरी जांघ को धीरे-धीरे चुमते हुए उसने कहा "एक बार मैं उनके रूम में बिना नॉक किए चली गयी थी, वो तुरंत नहा कर आयीं थी और ड्रेस चेंज कर रही थीं. जब मैं अन्दर गयी तो उन्होंने ऊपर कुछ नहीं पहना हुआ था". "अच्छा" मैंने कहा. आलिया का होंठ अब मेरे पैर के जोड़ के पास मेरी योनी के निकट था. मेरी जांघों को हाथों से सहलाते हुए उसने अपना होंठ मेरी चूत पर रख दिया. "अआह्ह्ह, आलिया" मेरे मुंह से निकला.

"तो तुझे और कभी मन नहीं हुआ रुखसाना आंटी को वैसे देखने का? या ऐसे देखने का जैसी अभी मैं हूँ" मैंने सिसकारी लेते हुए कहा. "दीदी$$ प्लीज, नहीं ना" शिकायती लहजे में कहते हुए वह अपनी जीभ से मेरी मदमस्त जवान योनी को चाटने लगी. "आआआअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्, आलिया! ऐसे ही मेरी बच्ची, रुकना नहीं" मेरी बात सुनते ही वह बेकाबू होकर मेरी चूत चाटने लगी. अपना जीभ उसने मेरी योनी के अन्दर डाल दिया. वह मेरी चूत को पूरी तरह से खा जाना चाहती थी. "आआह्ह्ह्ह, अलिया आआह्ह मेरी बच्ची" कहते हुए मैंने उसका बाल पकड़ कर उसका मुंह अपनी चूत में डाल दिया. वह मेरी चूत को बेतहासा चूम रही थी, चाट रही थी. मैं अपनी गांड ऊपर उठा-उठा कर हिलाने लगी. आलिया ने अपना दोनों हाथ नीचे ले जाकर मेरी चूतड़ को पकड़ लिया. वह लगातार मेरी योनी को चाट रही थी. मैं आनंद की चरम पर थी, थोड़ी ही देर में उसका मुंह मेरे रस से भींगने वाला था. वह अपना मुंह रगड़ रगड़ कर मेरा चाटने लगी. "आआअह्ह्ह्ह आह्ह्ह्हह्ह अआह्ह्ह, आलिया ऐसे ही, रुकना मत" मैंने कहा और अकड़ते हुए मैं उस चरम पर पहुँच गयी. आलिया ने सिर उठा कर मुझे मुस्कराते हुए देखा.

उठ कर घुटने के बल बैठते हुए मैंने अपना एक दूध आलिया के मुंह में डालते हुए कहा "चूस, बहन चूस ले, तेरा फर्स्ट टाइम है ना ये आआह्ह्ह". "हाँ दीदी" मदहोश होते हुए आलिया ने कहा. मैंने उसे धक्का देते हुए पीछे किया, उसके होंठों को चूमने लगी, उसके कसी हुई वक्षों को दबाने लगी. अपनी दोनों टांग फैलाए वह बिस्तर में अपना दोनों हाथ पीछे टिका कर बैठी हुई थी. उसके साथ जबरदस्ती करते हुए, मैं उसकी दोनों टांगों के बीच में अपना पैर डाल कर क्रॉस पोजिसन में बैठ गयी, इस तरह कि हम दोनों की चूत एक दूसरे से टकरा रही थी. अब मैं अपनी गांड जोर-जोर से हिला कर उसे रौंदने लगी. मैं इतनी तेजी से अपना नितंभ हिला-हिला कर उसकी योनी से अपनी योनी को टकरा रही थी कि आलिया बेचारी "आआअह्हह्हह्ह आआह्ह्ह आआआआअह्हह्हह्हह्हह्हह" के प्रलाप को छोड़कर और कुछ नहीं कर पा रही थी. धक्के मार-मार कर, रगड़ कर मैंने हम दोनों की योनी से फिर से रस निकाल दिया. तड़फती हुई आलिया चरम सुख को पाकर बिस्तर में निढाल हो गयी.  
मैं भी उसके बाजु में जाकर लेट गयी.
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#33
आलिया जब रश्मि के घर आई तो यह ड्रेस पहनी हुई थी.

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#34
रश्मि मंडल: जब वह 22 साल की थी

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#35
आलिया कुरैशी का हाहाकारी बदन

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#36
बात करते करते हम दोनों को कब नींद आयी पता नही चला. जब उठे तो रात का 8 बज रहा था. आलिया हड़बड़ी में थी, "दीदी, मुझे लेट हो गया है, मुझे जाना पड़ेगा" कहते हुए वह जल्दी जल्दी कपड़े पहनने लगी. "हाँ, ठीक है आराम से जाना" मैंने बेड के ऊपर अपने बदन को चादर के नीचे छुपाए सिगरेट जलाते हुआ कहा. आईने के सामने अपना बाल ठीक करते हुए आलिया ने कहा "दीदी, चलो मेरा हो गया मैं जा रही हूँ, गेट तो बंद कर लो". "तू जा मैं कर लूंगी" मैंने कहा. आलिया मेरी तरफ शिकायती नजरों से देखते हुए मुस्कुराई. फिर उसने वह किया जिसकी मुझे थोड़ी भी उम्मीद नहीं थी, वह मेरे पास आई और बेड में मेरे बाजु में बैठकर, झुक कर अपने दोनों हाथों को मेरे सिर के दोनों तरफ रख अपनी होंठ को मेरी होंठों पर रख दिया. अपने शरीर का पूरा भार मुझपे डाल, passionately किस किये जा रही थी. उसके कड़े उरोज मैं अपने सीने में महसूस कर रही थी. मन तो किया कि दबोच कर चढ़ जाऊं इसके ऊपर, पर सोची "है तो कमसिन ये पर इतनी भी उतावली बनना ठीक नहीं". उसने अपनी नजरें उठाई, मुस्कुराते हुए मुझे देख कर बोली चलो बाय. मैं सोची "इसको प्यार व्यार वाला केस तो नहीं हो गया है, अरे बाप रे". फिर मैं सोची "देखते हैं, जो भी होगा हैंडल कर लेंगे". जाते हुए आलिया के मटकते हुए नितंभ को देख कर मैं उत्तेजित होने लगी, फिर से मन किया जाकर, अपनी पूरी हथेली फैला है दोनों मटकते अंगों को पकड़ लूँ. पर मन तो मन है.

आलिया के जाने के बाद मैं डिनर का जुगाड़ की, बनाने का बिलकुल मन नही था मेरा आज तो ऑनलाइन मंगा ली मैं. खाना खाते मैं आलिया से हुई बातें सोच रही थी, कल सुबह मुझे उसके घर जाना है रुखसाना आंटी को उसके दिल्ली वाले कॉलेज के लिए मनाने. कल सुबह 8 से रात 8 तक घर में आंटी अकेली रहेंगी, अच्छा मौका रहेगा उनसे बात करने का. किसी भी तरीके से मनना होगा उनको अब, मैं आलिया को प्रॉमिस कर चुकी हूँ.

मैंने लिली को मैसेज किया "लिली, जॉइनिंग और मिशन का कुछ पता चला क्या? कब तक होगा?" लिली का रिप्लाई आया "एक सप्ताह लग जायेगा रश्मि". मुझे और लिली को शूटिंग प्रैक्टिस में आने की जरुरत नहीं है कह दिया गया था, हम दोनों पहले से चैम्पियन थे.
"तो तुम कल आ रही हो घर देखने?" मैंने फिर मेसेज किया. "यार रश्मि, कल मुझे एक काम से कही जाना पड़ रहा है, मैं परसों आऊं तो चलेगा क्या?". "बहुत सही, कल मुझे रुखसाना आंटी से मिलने जाना है" सोचते मैंने उसे रिप्लाई दिया "अरे हाँ, बिलकुल कोई दिक्कत नहीं है, तुम जब भी आओ बस मुझे काल करके पहले बता देना". "ओके स्वीटहार्ट" उसका मेसेज आया जिसमें स्माइली भी था. "ये बहुत ज्यादा फ्रैंक हो रही है" मैंने मुस्कुराते हुए सोचा. लिली का चिल मिजाज मुझे बहुत पसंद था. मैंने फ़ोन देखा तो आलिया के 6 मेसेज थे. "इसे क्या हो गया" मैंने सोचा, मेसेज ओपन किया. लिखा था "दीदी बहुत मिस कर रही हु आपको" अगला भी वही "मिसिंग यू सो मच दीदी". नेक्स्ट "दीदी आप बहुत अच्छे हो". "ये जवान खून तो भटक रही है" मैंने सोचा, फिर उसे मैसेज किया "अरे इतना मिस करने की जरुरत नही है तुझे, मैं तो पास ही रहती हूँ. कल मनाती हूँ आंटी को, तू चिंता मत कर". मैं उसके इमोशन को बिलकुल हवा नहीं देना चाहती थी. "ठीक है दीदी" उसका रिप्लाई आया. "चलो बात बनी" मैंने सोचा. पूरे दिन के घटनाक्रम में सुबह से अमर सिंह, सचिन श्रीवास्तव, आई. आई. ए. का ऑफिस, लिली और आलिया के साथ हुई बातों को सोचते मैं नींद में जाने लगी.

सुबह उठ, नहा धो मैं जल्दी से रेडी हुई, दिन का 7:30 हो रहा था. कॉफ़ी बनाई और बालकनी में बैठ सिगरेट सुलगा, कॉफ़ी और सिगरेट का मजा लेने लगी. "कुछ दिन ही आराम के बचे हैं फिर तो मिशन मिल जायेगा, नाश्ता नहीं  बनाती हूँ, बाहर ही कुछ खा लूंगी  या रुखसाना आंटी को ही कुछ खिलाने कह दूंगी " मैंने सोचा.
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