Thread Rating:
  • 0 Vote(s) - 0 Average
  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5
Misc. Erotica पारस्परिक हस्त मैथुन
#41
योंकि हम दोनों के बीच में कुछ फासला था इसलिए मुझे और सिद्धार्थ को कुछ कठिनाई आ रही थी इसलिए उसने अपनी दाईं बाजू को मेरे कन्धों पर रख कर मुझे अपने निकट खींच लिया।

इस निकटता के कारण मेरा बायाँ स्तन सिद्धार्थ की छाती के दाईं भाग से छूने लगा था और जब मैं लिंग हिलाती थी तब वह हम दोनों के शरीर के बीच में होने के कारण दब जाता था।[Image: 97450827_013_7692.jpg]
जब मैं सही विधि से सिद्धार्थ का हस्त-मैथुन करने लगी तब उसने अपना बायाँ हाथ मेरे जघन-स्थल पर रखा और उसी हाथ की बड़ी ऊँगली को मेरी योनि की ओर बढ़ा कर मेरे भगांकुर को ढूँढने लगा।

[Image: 35219177_058_ae37.jpg][Image: 94767908_005_537f.jpg]

[Image: 48055082_063_9532.jpg]
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
Like Reply
Do not mention / post any under age /rape content. If found Please use REPORT button.
#42
[Image: 73897421_003_7a0f.jpg]
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
Like Reply
#43
[Image: 41328069_007_93ca.jpg]

[Image: 41328069_008_36c4.jpg]
[Image: 41328069_010_0e34.jpg]
[Image: 41328069_014_13be.jpg]
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
Like Reply
#44
जब मुझे एहसास हुआ की वह मेरे भगांकुर को ढूंढने में असमर्थ हो रहा है तब मैंने अपनी टाँगे थोड़ी चौड़ी कर दी जिससे सिद्धार्थ को कुछ सुविधा हो जाए।
मेरी जाँघों के बीच में जगह मिलते ही उसकी ऊँगली मेरी योनि के होंठों को भेदती हुई सीधा मेरे भगांकुर तक पहुँच कर उसे सहलाने लगी थी।
सिद्धार्थ के शरीर से चिपट कर उसके लिंग को हिलाने और उस द्वारा मेरे भगांकुर को सहलाने से मेरी उत्तेजना बढ़ने लगी तथा मैंने अपनी चुचूकों को सख्त होते हुए महसूस किया।
उधर सिद्धार्थ का लिंग-मुंड उसकी त्वचा से बाहर आ गया और फूलने लगा था क्योंकि उसका व्यास उसके लिंग से अधिक हो गया था।[Image: 36413712_039_fade.jpg]
हम दोनों को चुपचाप एक दूसरे को हिलाते अथवा सहलाते हुए पांच मिनट हो गए थे तभी सिद्धार्थ ने अपनी उस ऊँगली को भगांकुर से हटा कर मेरी योनि के अन्दर डाल दी और मेरे जी-स्पॉट को कुरेदने लगा।


[Image: 36413712_046_e6dd.jpg]

[Image: 94804802_058_f67f.jpg]
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
Like Reply
#45
[Image: 36413712_040_c6e9.jpg]
[Image: 36413712_022_0b7b.jpg]
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
Like Reply
#46
उसके ऐसा करने से मेरी उत्तेजना में वृद्धि होने लगी और मेरे शरीर में कम्पन की लहरें उठने लगी तब वह अपने अंगूठे से मेरे भगांकुर को भी सहलाने लगा।

सिद्धार्थ के इस दोहरे आक्रमण से मेरी उत्तेजना में कई गुना बढ़ोतरी होने लगी और मेरे शरीर के अंगों में एक प्रकार की गुदगुदी एवम् कम्पन होने लगा था।
मैंने उस पर काबू पाने के लिए सिद्धार्थ के लिंग को और भी अधिक कस कर पकड़ लिया तथा हिलाने की गति को भी बहुत तेज़ कर दिया।
इस क्रिया को अभी छह-सात मिनट ही हुए थे की शरीर की इस गुदगुदी एवम् कम्पन के कारण मेरे मुख से सिसकारियाँ निकलने लगी थे और मेरा शरीर कुलबुलाने लगा।
मेरी सिसकारियाँ सुन कर और शरीर के कुलबुलाने को महसूस कर के सिद्धार्थ की उत्तेजना भी चरम-सीमा पर पहुँच गई और उसके मुख से भी आवाजें निकलने लगी।
तभी मेरे उदर के नीचे वाली माँस-पेशियाँ खिंचने लगी और योनि के अन्दर सिकुडन महसूस होने लगी तथा मेरी टांगें अकड़ने लगी थी।
मुझे अपने आप को संतुलन में रखने में कठनाई अनुभव होने लगी और मैं सिद्धार्थ से और भी कस कर चिपक गई तथा उसके लिंग को अधिक तीव्रता से हिलाने लगी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
Like Reply
#47
दो मिनट के अंतराल में ही मेरे और सिद्धार्थ के मुख से कुछ ऊँचे स्वर में सिस्कारिया एवम् हुंकार निकलने लगी थी।[Image: 40887228_102_484d.jpg]

उसी समय मेरे उदर के नीचे भाग की माँस-पेशियाँ एकदम से खिंच गई और मेरी योनि ने पूरी तरह से सिकुड़ कर सिद्धार्थ की ऊँगली को जकड़ लिया।[Image: 40887228_147_2a65.jpg]
मेरी दोनों टाँगें ऐंठ गई और एड़ियाँ ऊपर उठ गई जिस कारण मैं अपना संतुलन खोकर गिरने वाली थी तभी सिद्धार्थ ने मुझे अपने शरीर के साथ जकड़ कर संभाला।
उस बहुत ही महत्वपूर्ण क्षण में मेरी दोनों आँखें बंद हो गई, सांसें तेज़ हो गई और योनि में अत्यधिक सिकु्ड़न होने के साथ ही उसमें से रस का स्खलन होने लगा।[Image: 40887228_266_d7a1.jpg]
तभी मेरे हाथ में पकड़े सिद्धार्थ के लिंग में मुझे स्पंदन का अनुभूति हुई और साथ ही मुझे अपनी जांघ पर कुछ गर्मी महसूस हुई।
जब मैंने चौंक कर नीचे देखा तो पाया कि सिद्धार्थ का लिंग झटकों के साथ अपने वीर्य की बौछार मेरी जांघ पर कर रहा था।
[Image: 023.jpg]

[Image: 38879589_002_de3b.jpg]



[Image: 38879589_003_dc46.jpg]
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
Like Reply
#48
जब मैं उस वीर्य की बौछार से बचने के लिए उसके रास्ते से हटने लगी तो हट नहीं सकी क्योंकि सिद्धार्थ ने बहुत कस के अपने साथ जकड़ रखा था तथ उसने एक हाथ में मेरा स्तन भी थाम रखा था।

छह-सात बार बौछार करने के बाद जब वीर्य स्खलन बंद हो गया तब मैंने लिंग को छोड़ कर अपने को सिद्धार्थ से अलग करने की चेष्टा करी।[Image: 88834146_031_4961.jpg][Image: 13394946_119_88cc.jpg]
सिद्धार्थ ने मेरे स्तन को छोड़ दिया और अपनी पकड़ को ढीला कर दिया तथा अपनी ऊँगली को मेरी योनी से बाहर निकाल कर अपना हाथ वहाँ से हटा लिया।
उसके हाथ को देख कर मुझे हैरानी हुई क्योंकि वह बहुत गीला था और ऐसा लग रहा था कि जैसे उसने मेरी योनि में से हुए रस-स्त्राव से अपना हाथ धोया हो।[Image: 87946596_045_61c2.jpg]
सिद्धार्थ अपने उस हाथ को अपने मुंह में लगा कर चाटने लगा और बोला- दीदी, आपका रस तो अमृत है। सच में यह मंजू के रस से बहुत ज्यादा मीठा है तथा कहीं अधिक स्वादिष्ट भी है।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
Like Reply
#49
https://cdni.pornpics.de/1280/7/124/8794...5_61c2.jpg[Image: 87946596_045_61c2.jpg]
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
Like Reply
#50
जब मैं उस वीर्य की बौछार से बचने के लिए उसके रास्ते से हटने लगी तो हट नहीं सकी क्योंकि सिद्धार्थ ने बहुत कस के अपने साथ जकड़ रखा था तथ उसने एक हाथ में मेरा स्तन भी थाम रखा था।

छह-सात बार बौछार करने के बाद जब वीर्य स्खलन बंद हो गया तब मैंने लिंग को छोड़ कर अपने को सिद्धार्थ से अलग करने की चेष्टा करी।
सिद्धार्थ ने मेरे स्तन को छोड़ दिया और अपनी पकड़ को ढीला कर दिया तथा अपनी ऊँगली को मेरी योनी से बाहर निकाल कर अपना हाथ वहाँ से हटा लिया।

उसके हाथ को देख कर मुझे हैरानी हुई क्योंकि वह बहुत गीला था और ऐसा लग रहा था कि जैसे उसने मेरी योनि में से हुए रस-स्त्राव से अपना हाथ धोया हो।
सिद्धार्थ अपने उस हाथ को अपने मुंह में लगा कर चाटने लगा और बोला- दीदी, आपका रस तो अमृत है। सच में यह मंजू के रस से बहुत ज्यादा मीठा है तथा कहीं अधिक स्वादिष्ट भी है।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
Like Reply
#51
ससे पहले कि मैं कुछ कह पाती उसने बहुत ही फुर्ती से मेरे उस हाथ की उँगलियों को जिस पर उसका वीर्य लगा था मेरे मुँह में ठूंस दीं और कहा- ज़रा आप मेरे वीर्य-रस को चख कर बताइये कि इसका स्वाद कैसा है?

सब कुछ इतनी जल्दी से हुआ कि मेरे न चाहते हुए भी उसका रस मेरे मुँह के अन्दर लग गया जिससे मुझे उबकाई आ गई।[Image: 56177302_267_3cbf.jpg]
मैंने तुरंत उस रस को थूकते हुए उससे कहा- सिद्धार्थ, यह पहला अवसर है कि मैंने किसी पुरुष को वीर्य स्खलित करते हुए देखा है। जब मुझे वीर्य के स्वाद के बारे में पता ही नहीं तो मैं तुम्हारे वीर्य के बारे में कैसे कुछ बता सकती हूँ।[Image: 56177302_284_33ef.jpg]
मेरी बात सुन कर सिद्धार्थ बोला- दीदी, इस क्रिया में मेरी सहायता करने के लिए मैं आपका बहुत बहुत धन्यवाद देता हूँ। सच बताऊँ तो आज मेरे जीवन का सब से आनंदमयी हस्त-मैथुन हुआ है। आज तक मेरा इतना वीर्य नहीं निकला जितना आज निकला है।
फिर मेरे स्तनों पर हाथ रखते हुए कहा- क्या मैं आपको संतुष्ट कर सका या नहीं, यह तो बता सकती हैं?
मैंने उसके हाथों को अपने शरीर से अलग करते हुए मैंने कहा- सिद्धार्थ, मैंने तुम्हारे अनुरोध पर तुम्हारी क्रिया में सहायता की है अपनी संतुष्टि के लिए नहीं और यह बात अब यहीं पर समाप्त होती है।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
Like Reply
#52





इतना कह कर मैंने नल चला कर अपनी जाँघों और टांगों पर लगे सिद्धार्थ के वीर्य को साफ़ किया तथा अपनी योनि को अच्छे से धोकर कपड़े पहने और बाथरूम से बाहर आ गई।[Image: 40559776_001_f5ee.jpg]


[Image: 40559776_008_1a2e.jpg][Image: 99594170_034_4876.jpg]
[Image: 36317799_001_6741.jpg]
[Image: 40377493_004_32b3.jpg]
अपने कमरे में पहुँच कर मैं बिस्तर पर लेटी बहुत देर तक सोचती रही और अपने से एक प्रश्न करती रही- क्या मैंने सिद्धार्थ के साथ पारस्परिक हस्त-मैथुन करके ठीक किया या गलती करी थी?
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
Like Reply
#53
अगली सुबह मंजू और सिद्धार्थ के जाने के बाद मैं फिर से अपने कमरे में रहने लगी और जब भी उस बाथरूम में जाती तो उस रात का दृश्य एक चलचित्र की तरह मेरी आँखों के सामने घूम जाता।

हालाँकि उस दिन के बाद इस तरह की कोई घटना मेरे साथ नहीं घटी है लेकिन आज तक मुझे अपने उस प्रश्न का उत्तर नहीं मिला है और शायद जीवन भर मिलेगा भी नहीं।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
Like Reply




Users browsing this thread: