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Misc. Erotica पारस्परिक हस्त मैथुन
#1
पारस्परिक हस्त मैथुन

जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#2
[Image: 81344211_077_3568.jpg]
मैं अपने माता पिता के साथ पूर्वी भारत के एक छोटे से शहर में रहती हूँ तथा वहाँ के एक लड़कियों के स्कूल में छात्राओं को पढ़ाती हूँ।
पाँच वर्ष पूर्व मेरे माता-पिता द्वारा तय की गई मेरी शादी उसी रात को ही टूट गई क्योंकि पुलिस ने दुल्हे को विवाह मण्डप में से ही गिरफ्तार कर के उसे उसकी असली ससुराल जेल में ले गए थे।
मुझे बाद में पुलिस से ही पता चला था कि वह व्यक्ति वास्तव में एक बदमाश गिरोह का सदस्य था जो लड़कियों से शादी करने के बाद उस लड़की के माध्यम से घर वालों से धन-दौलत और जायदाद की मांग करते रहते थे।
जब उन्हें वहाँ से कुछ नहीं मिलता या मिलना बंद हो जाता था तब वह लोग उस लड़की को अरब देशों में लेजा कर शेख लोगों को बेच देते थे।
अगर उन व्यक्तियों को उस लड़की की उचित कीमत नहीं मिलती थी तो वह उस लड़की से वेश्यावृति करवाते थे और विरोध करने पर उसका वध भी कर देते थे।
मुझे उस उत्पीड़न से बचाने के लिए और अपराधियों को उचित दंड दिलाने के लिए मैं अपने देश की पुलिस की अत्यंत अनुगृहीत हूँ।


जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#3
[Image: 81344211_087_79cb.jpg]

जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#4
[Image: 81344211_077_3568.jpg]
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#5
[Image: 44213060_015_a92d.jpg]
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#6
कुछ माह तक उस हादसे से हताश रहने के बाद जब मैं उस सदमे से बाहर निकली तब मैंने भविष्य में कभी शादी नहीं करने की प्रतिज्ञा ली और घर वालों को अपने निर्णय से अवगत करा दिया।
घर वालों ने समझाने की बहुत कोशिश करी लेकिन मेरे अटल निश्चय के सामने सभी को घुटने टेकने पड़े और उसके बाद मैंने बीएड कर ली तथा शहर के एक स्कूल में नौकरी करने लगी।
मेरी एक छोटी बहन है मंजू जो मुझसे तीन वर्ष छोटी है और दिखने में बहुत ही सुन्दर एवम् आकर्षक है तथा सभी उसे अप्सरा भी कहते हैं।
उसी मंजू की शादी दो वर्ष पहले एक बहुत ही बड़े और धनी एवम् संप्पन घर के एक बहुत ही स्मार्ट युवक सिद्धार्थ के साथ हो गई थी।

जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#7
उसकी शादी के दो सप्ताह के बाद जब वह और सिद्धार्थ पहली बार फेरा डालने के लिए घर पर आये तब माँ ने चार दिन के लिए मेरा कमरा उन्हें दे दिया और मुझे उन दिनों स्टोर में रहना पड़ा था।

तीन दिन तो मंजू और सिद्धार्थ मेरे कमरे में ही सोते रहे लेकिन चौथी रात को अगले दिन आने वाले बिछोह से दुखी मंजू माँ से बातें करते करते उनके पास ही सो गई।
सिद्धार्थ देर रात तक मंजू के आने की प्रतीक्षा करता रहा किन्तु जब वह नहीं आई तब उसे कमरे में अकेले ही सोना पड़ा।
उस रात लगभग साढ़े ग्यारह बजे सोने से पहले मैं लघु शंका के लिए बाथरूम के भिड़े हुए द्वार को धकेलती हुई अन्दर घुसी और जो देखा उससे स्तब्ध हो गई।
बाथरूम की लाइट जल रही थी और सिद्धार्थ पूर्ण नग्न रूप में अपने सिर को थोड़ा ऊपर किये तथा आँखें बंद किये पॉट के सामने खड़ा हुआ था, उसने अपना बायां हाथ पॉट की टंकी पर रखा हुआ था और वह दायें हाथ से बड़े ही प्यार से अपने सात इंच लम्बे एवम् ढाई इंच मोटे लिंग को हिला रहा था।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#8
योंकि रात के उस समय मुझे घर के किसी भी सदस्य के दिखने या मिलने की सम्भावना नहीं थी इसलिए मैं सिर्फ एक बिना बाजू का टॉप और एक झीनी सी पैंटी पहने हुए बाथरूम में घुस गई थी।

सिद्धार्थ को अकस्मात् ही उस हालत में देख कर मैंने अपने को एक संकोचशील स्थिति में पाया और शर्म के मारे मेरा चेहरा और कान भी लाल हो गए।

[Image: 84830215_011_7206.jpg]
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#9
[Image: 84830215_018_6385.jpg]
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भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#10
कुछ क्षणों के बाद भी जब सिद्धार्थ ने मुड़ कर मेरे ओर नहीं देखा और अपने लिंग को हिलाने में तल्लीन रहा तब मैं समझ गई कि सिद्धार्थ को मेरा बाथरूम में आगमन का पता ही नहीं चला था।

लगभग दो मिनट तक तो मैं वहीं खड़े हो कर उस रोमांच भरे नज़ारे को देखती रही और उसके बाद मैं जाकर वाश-बेसिन की शेल्फ पर बैठ गई तथा सिद्धार्थ की उस क्रिया को देखने में मग्न हो गई।
उसके बलवान एवम् मज़बूत मांसल शरीर बहुत आकर्षक लग रहा था, लेकिन उसका सात इंच लंबा और ढाई इंच व्यास का तना हुआ लिंग उससे भी अधिक आकर्षक लग रहा था।

[Image: 42438327_005_1de2.jpg]
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भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#11
सिद्धार्थ जब भी अपना हाथ पीछे की ओर ले जाता तब उसका लीची के आकार जैसा गुलाबी रंग का लिंग-मुंड बाहर निकल आता और बाथरूम की रोशनी में चमकने लगता था।

और जब वह अपना हाथ आगे की ओर ले जाता तब लिंग-मुंड उसकी त्वचा में छुप जाता और वह चमक भी लुप्त हो जाती।


[Image: 69153721_006_e1b8.jpg]

[Image: 69153721_008_2f89.jpg]
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#12
स समय मुझे ऐसा लग रहा था कि बाथरूम में दिवाली की बत्तियों की तरह एक लाईट जल बुझ रही है।

मैं उस लुभावने दृश्य को देखने में इतनी लीन थी कि मुझे समय गुजरने का पता ही नहीं चला और मेरी तन्द्रा तब टूटी जब सिद्धार्थ का स्वर मेरे कानों में पड़ा।
वह छत की ओर मुँह करके कह रहा था– ओह इश्वर, तेरी भी क्या अजब माया है। मुझे तो घरवाली चाहिए थी और तुमने यह आधी घरवाली को क्यों भेज दिया?
फिर मेरी ओर देखते हुए बोला– दीदी, आप कब आईं? मुझे तो आपके आने की कोई आहाट ही नहीं सुनाई दी। कृपया मुझे इस दशा में आपके सामने खड़े रहने के लिए क्षमा कर देवें।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#13
मैंने उसकी बात सुन कर मुस्कराते हुए कहा– अगर तुम्हारा कार्य अथवा क्रिया समाप्त हो गई हो तो तुम बाहर जाओ ताकि मैं लघु शंका से मुक्त हो सकूँ।

तभी सिद्धार्थ बेशर्मी से अपने लिंग को हिलाता हुआ नीचे बैठ गया और बोला– दीदी, आप झूठ क्यों बोल रही हैं? आपकी गीली पैंटी तो बता रही है कि आपने भी तो वहाँ बैठे बैठे वाश-बेसिन में ही लघु-शंका कर ली है।
उसकी बात सुन कर मुझे एहसास हुआ कि उसका संकेत मेरी चौड़ी जाँघों के बीच में से दिख रही मेरी पैंटी की ओर था।
[Image: 59998280_002_bd69.jpg]






[Image: 36115343_108_67fe.jpg][Image: 54468718_002_c419.jpg]
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#14
हड़बड़ाहट में जब मैंने अपनी पैंटी की ओर देखा तो मैंने पाया कि मेरा एक हाथ मेरी योनि के ऊपर था और उसकी बड़ी ऊँगली पैंटी के एक ओर से उसमें घुसी हुई थी।[Image: 89470820_004_e557.jpg]

मैंने झट से ऊँगली को बाहर निकाल कर जब अपने हाथों से अपनी पैंटी को छुपाने की कोशिश करी तब मुझे उसका गीलापन महसूस हुआ।
मैं समझ गई कि सिद्धार्थ को लिंग हिलाते देख कर मेरी उत्तेजना भी जागृत हो गई होगी और अनजाने में मैंने अपनी ऊँगली योनि में डाल दी होगी जिससे उसमें से पानी रिसना शुरू हो गया होगा।[Image: 86651792_006_bb95.jpg]
मैं तुरंत शेल्फ से उतर कर खड़ी हो गई और दरवाज़े की ओर जाने ही लगी थी कि तभी सिद्धार्थ उठ कर मेरे पास आया और मेरी बाजू पकड़ कर मुझे रोका और कहा– दीदी, मैंने तो मंजू से मेरी मदद के लिए कहा था लेकिन वह खुद नहीं आई बल्कि उसने आपको यहाँ आने की तकलीफ दे दी। दीदी, क्या मेरे इस कार्य में आप मेरी सहायता करेंगी?
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#15
मैं एक साधरण परिवार की एक सामान्य युवती हूँ जिसे किसी भी अन्य युवती के तरह युवा शरीर की भूख सताती रहती है और मैं उसे मिटाने का प्रयास अपनी ऊँगली से करती भी रहती हूँ।

आज जब सिद्धार्थ ने मुझसे सहायता मांगी तो मेरे शरीर की वह भूख जाग उठी और मैं सोच में पड़ गई कि ‘क्या करूँ और क्या नहीं करूँ!’
मेरे सामने दो विकल्प थे, जिनमें से एक था कि मैं सिद्धार्थ के साथ पूरा सहयोग करूँ और यौन संसर्ग करके दोनों की भूख मिटा कर संतुष्टि पाऊँ।
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#16
तथा दूसरा विकल्प था कि मैं अपने को उसके साथ सिर्फ पारस्परिक हस्त-मैथुन तक ही सीमित रखूँ।
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#17
क्योंकि मैं अपनी छोटी बहन मंजू के साथ कोई विशवासघात नहीं करना चाहती थी इसलिए निश्चय किया की मुझे दूसरे विकल्प तक ही सीमत रहने की सहमति देनी चाहिए।
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#18
मुझे सोचते हुए देख कर सिद्धार्थ बोला– दीदी आप रिश्ते में मेरी साली यानि की आधी घरवाली भी तो हो, फिर इतना भी क्या सोचना, अगर आपकी सहमति हो तो मुझे जल्दी से आपके कपड़े उतारने की अनुमति दे दीजिये।

मैं एक कदम पीछे हटते हुए बोली- नहीं, मैं मंजू या और किसी के कहने पर नहीं आई हूँ। मुझे मेरी लघु-शंका यहाँ ले कर आई है।
मेरी बात सुन कर सिद्धार्थ बोला- दीदी, क्या आप मेरी इस क्रिया में सहयोग नहीं देंगी? मैं तो सोच रहा था की इस समय आप भी उत्तेजित हैं और मेरी जैसी समरूप क्रिया भी कर रही थी। क्यों नहीं हम दोनों पारस्परिक एक दूसरे की क्रिया में सहायता करें और आसीम आनन्द एवम् संतुष्टि पायें?
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#19
[Image: 96283880_003_6894.jpg]
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#20
[Image: 25669407_026_ac37.jpg]
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