Poll: Aasha should be
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Misc. Erotica आशा...
#41
(30-04-2019, 03:31 PM)shruti.sharma4 Wrote: Waiting for update....please continue

अपडेट लगभग तैयार है .. कुछ एडिटिंग की ज़रूरत है... जो नहीं हो रहा है, वो है समय निकल पाना .... निजी जीवन में व्यस्त हूँ बहुत ही | Sad
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#42
(01-05-2019, 09:47 PM)Theflash Wrote: You're writing is best of the best
Just like old hindi movie where villan is
Seducing heroine
Great keep it up

हाहा.. बहुत बहुत धन्यवाद आपको... Smile
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#43
(24-04-2019, 10:59 AM)shruti.sharma4 Wrote: Wonderful update as always.........really hot

sjruti realty btana kitni bar ungli ki story read krte hue  Smile
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#44
Bhut shandaar update.... Mja aa gya .... Bhut hi badhiya tarike se likhi huyi kahani.... Bhut besabri se intjaar hai agle update ka
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#45
[Image: G8A]
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#46
Waiting for your update......
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#47
(10-05-2019, 11:47 AM)shruti.sharma4 Wrote: Waiting for your update......

जल्द ही ...
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#48
Update please
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#49
भाग ५): अलग एहसास


करीब १०-१२ दिन बीत गए हैं ---


पिछली घटना को हुए --- |


आशा की नौकरी लग गई है कॉलेज में --- नॉन टीचिंग स्टाफ कम रिजर्व्ड टीचर के रूप में --- कभी कोई टीचर नहीं आ पाए तो उसके जगह आशा क्लास ले लेती --- हालाँकि रणधीर बाबू के पास आप्शन तो था, आशा को नर्सरी या जूनियर क्लासेज में टीचर नियुक्त करने का --- पर इससे होता यह कि वह आशा को हर वक़्त अपने पास नहीं पाता --- नॉन टीचिंग स्टाफ़ बनाने से वह जब चाहे आशा को अपने कमरे में बुला सकता है और जो जी में आये कर सकता है | आशा तो पहले ही सरेंडर कर चुकी है --- मौखिक और लिखित --- दोनों रूपों में; --- इसलिए उसकी ओर से रणधीर बाबू को रत्ती भर की चिंता नहीं थी --- और आशा के अलावा जितनी भी लेडी टीचर्स हैं कॉलेज में; उन सबको रणधीर बाबू बहुत अच्छे से महीनों और सालों तक भोग चुके हैं – रणधीर बाबू के कॉलेज में काम करना अपने आप में एक गर्व की बात है जो हर किसी के भाग्य में नहीं होता --- इसके अलावा भी, रणधीर बाबू उन सबको समय समय पर इन्क्रीमेंट, हॉलीडेज, और दूसरे सुविधाएँ देते रहते थें --- |


इसलिए, कॉलेज छोड़ कर जाना किसी से बनता नहीं था ---


और जितने मेल टीचर्स हैं, वे सब रणधीर बाबू के मैनपॉवर से डरते हैं --- कई नामी गुंडों, नेताओं, मंत्रियों, सिक्युरिटी और वकीलों के साथ जान पहचान और उठना-बैठना है | इन सब के बीच रणधीर बाबू की छवि एक बहुत बड़े और पैसे वाले बिज़नेसमैन, ऐय्याश आदमी और अपने काम के लिए किसी भी हद तक गुज़र जाने वाले एक ज़िद्दी इंसान के रूप में प्रचलित है ---


खुद को हरेक दिशा, हरेक कोण से पूरी तरह सुरक्षित कर रखे हैं ये रणधीर बाबू ---


आम इंसान जिस कानून से डरता है,


रणधीर बाबू का उसी के साथ उठना बैठना है ---


जो उसका (रणधीर) साथ दिया--- उसका वारा न्यारा


और जो कोई भी विरोध करने के विषय में सोचने के बारे में भी कभी भूल से सोचा ---


रणधीर बाबू उसका ऐसा इंतज़ाम लगाते कि वह फ़िर कभी कोई भूल करने की स्थिति में न रहा |


पर साथ ही रणधीर बाबू की ख़ासियत भी हमेशा से यह रही की वे कभी भी अपने चाहने वालों को निराश नहीं करते --- फ़िर चाहे कभी किसी हॉस्पिटल का खर्चा उठाना हो --- या नौकरी दिलवाना --- कहीं एडमिशन करवाना हो ---- या फिर नगद (कैश) सहायता ---- कभी पीछे नहीं हटते |


जैसे,


उसी के शागिर्द / चमचों में किसी ने अगर किसी ज़रूरी काम के लिए एक लाख़ रुपए माँगे ; तो रणधीर बाबू उसे दो लाख़ दे देते ---- और दिलदारी ऐसी की बाकि के पैसों के बारे में कुछ पूछते भी नहीं |


किसी शागिर्द / चमचे के घर का कोई सदस्य अगर अस्पताल में है और पैसे कम पड़ रहे हैं तो रणधीर बाबू को पता चलते ही डॉक्टर के बिल से लेकर अस्पताल और दवाईयों के बिल तक चुका देते हैं --- |


रणधीर बाबू को पार्टियों का भी बहुत शौक है ---


अक्सर ही पार्टी देते रहते हैं --- और ऐसी वैसी नहीं ---- बिल्कुल टॉप क्लास की --- हाई फाई लेवल की --- |


और ऐसी पार्टियों में, कानून के पैरोकार हो या उसके रक्षक , मंत्री --- नेता ---- सब अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवाते --- |


पार्टियों में जम कर शराब --- शवाब --- और कबाब परोसा जाता ---


और इन सब का बिल जाता रणधीर बाबू के खाते में --- और बिल भी हज़ारों में नहीं ---


वरन लाखों में होते --- जिनका भुगतान बड़े शौक से करते हैं बाबू --- ‘रणधीर बाबू’ |


अब भला ऐसे आदमी को किसका डर--- किस बात का डर ?!


------


इन्हीं दस - बारह दिनों में कई बार छू चुके हैं आशा को रणधीर बाबू ---- और जाहिर ही है की केवल छूने तक खुद को सीमित नहीं रखा है उन्होंने --- अपने रूम में बुला कर बेरहमी से चूचियों को मसलना, देर तक किस करना---- नर्म, फ्लेवर वाले लिपस्टिक लगे होंठों को चूसते रहना --- टेबल के नीचे घुटनों के बल बैठा कर लंड चुसवाना --- ये सब करवाए – किए बिना तो जैसे रणधीर बाबू को दिन ; दिन नहीं लगता और रात को तो नींद आती ही नहीं |


हद तो तब होती जब रणधीर बाबू घंटों आशा को अपनी गोद में बैठाए, मेज़ पर रखे ज़रूरी फाइल्स के काम निपटाते और बीच – बीच में दूसरे हाथ से आशा के नर्म, गदराये, बड़े-बड़े, पुष्टकर चूचियों को पल्लू के नीचे से दम भर दबाते रहते ---


और अगर इतने में कोई लेडी स्टाफ़ / लेडी टीचर किसी काम से कमरे में आने के लिए बाहर से नॉक करती तो आशा को बिना गोद से उतरने को कहे ही स्टाफ़/टीचर को अंदर आने की परमिशन देते और उनके सामने भी आशा की चूचियों के साथ साथ जिस्म के दूसरे हिस्सों से खेलते रहते --- |


बेचारी लेडी स्टाफ़ मारे शर्म के कुछ कह नहीं पाती और ---


यही हालत आशा की भी होती --- |


शर्म – ओ – ह्या से आशा का चेहरा लाल होना और हल्के दर्द में एक तेज़; धीमी सिसकारी लेना रणधीर बाबू को बहुत अच्छा लगता है --- और यही कारण है कि जब आशा को गोद में, बाएँ जांघ पर बैठा कर बाएँ हाथ से --- पल्लू के नीचे से --- बाईं चूची के साथ खेलते हुए मेज़ पर रखी फ़ाइलों पर दस्तख़त या कुछ और कर रहे होते और अगर तभी कोई लेडी स्टाफ़ आ जाए रूम में तो उसके सामने आ कर खड़े या बैठते ही रणधीर बाबू अपने बाएँ हाथ की तर्जनी अंगुली और अँगूठे को अपनी थूक से थोड़ा भिगोते और दोबारा पल्लू के नीचे ले जाकर उसकी बायीं चूची के निप्पल को ट्रेस करते और निप्पल हाथ में आते ही तर्जनी अंगुली और अंगूठे से उसे पकड़ कर ज़ोर से मसलते हुए आगे की ओर खींचते ---


और हर बार ऐसा करते ही ---


आशा भी दर्द के मारे --- ज़ोर से कराह उठती ----


शुरू शुरू में तो लेडी स्टाफ़ चौंक जाती कि ‘अरे क्या हुआ?!’ ----


पर मामला समझ में आते ही शर्म वाली हँसी रोकने के असफ़ल प्रयास में बगलें झाँकने लगती --- |


पर धीरे धीरे ये रोज़ की बात हो गई ---


रोज़ ही कोई न कोई लेडी स्टाफ़ रूम में आती ---


रोज़ ही आशा, रणधीर बाबू की गोद में बैठी हुई पाई जाती ---


और रोज़ ही लेडी स्टाफ़ के सामने ही,


रणधीर बाबू, तर्जनी ऊँगली और अंगूठे पर थूक लगाते ---


और,


फिर, उसी तर्जनी ऊँगली और अंगूठे के बीच दबा कर निप्पल को मसलते हुए आगे की ओर खींचने लगते,


और;


रोज़ ही की तरह, हर बार आशा दर्द से एक मीठी आर्तनाद कर उठती --- !


और फ़िर,


दोनों ही --- लेडी स्टाफ़ --- जो कोई भी हो --- वो और आशा दोनों ही मारे शर्म के एक दूसरे से आँखें मिलाने से तब तक बचने की कोशिश करती जब तक वो लेडी स्टाफ़ वहाँ से उठ कर चली नहीं जाती ---


और उसके जाते ही आशा थोड़ा गुस्सा और थोड़ा शिकायत के मिले जुले भाव चेहरे पे लिए रणधीर बाबू की ओर देखती --- और रणधीर बाबू एक गन्दी हँसी हँसते हुए उसके चूचियों से खेलते हुए उसके चेहरे और होंठों को चूमने – चूसने लगते |


धीरे धीरे कुछ लेडी टीचर्स को यह बात खटकने लगी की हालाँकि रणधीर बाबू ने उन लोगों के साथ भी काफ़ी मौज किये हैं; पर आख़िर ये आशा नाम की बला में ऐसी क्या ख़ास बात है जो रणधीर बाबू हमेशा --- सुबह – शाम उसके साथ चिपके रहते हैं ---


सुन्दर तो वाकई में वो है ही ---


बदन भी अच्छा खासा भरा हुआ है ---


ये दो ही बातें तो चाहिए होती हैं किसी भी मर्द को अपना गुलाम बनाने के लिए --- और रणधीर बाबू की बात की जाए तो वो गुलाम बनने वालों में नहीं बल्कि बनाने वालों में से हैं ---


और जो बंदा दूसरों को अपना गुलाम बनाने में माहिर हो --- वह इस एक औरत के पीछे लट्टू हुए क्यूँ घूमेगा भला ??


कोई तो ख़ास वजह होगी ही --- पर क्या ---


ये बात उन लेडी टीचर्स को समझ न आती थी --- और आती भी कैसे --- रणधीर बाबू तो वो हवसी शिकारी है जो हर खूबसूरत औरत को अपना बनाने में लगा रहता है और पहली बार आशा के रूप में उसे वह रत्न मिली जिसे पा कर वह दूसरी सभी औरतों को कुर्बान कर सकता था --- या अब यूँ कहा जा सकता है कि लगभग कुर्बान कर चुके हैं ---


आशा के कॉलेज ज्वाइन करने के बाद से ही शायद ही रणधीर बाबू ने किसी ओर औरत के बारे में शायद ही सोचा होगा --- ये और बात है कि रणधीर बाबू के द्वारा; कॉलेज के गैलरी या लॉबी में चलते वक़्त कोई लेडी टीचर मिल जाए तो उसके होंठों पर किस करना --- या बूब्स मसल देना या फ़िर पिछवाड़े पर ‘ठास !’ से एक थप्पड़ रसीद देना; ---- ये सब बहुत कॉमन था और चलता ही रहता था और आगे भी न जाने कितने ही दिनों तक चलता रहेगा --- |


उन्हीं टीचर्स में एक है मिसेस शालिनी --- कॉलेज में बहुत पहले से टीचर पोस्ट पर पोस्टेड है, पर उम्र में आशा से छोटी है --- चौंतीस साल की --- चूचियाँ उसकी आशा जैसी तो नहीं पर छत्तीस के आसपास की है --- गोल पिछवाड़ा --- आशा के तुलना में पतली कमर --- आशा जैसी दूध सी गोरी भी नहीं पर रंग फ़िर भी साफ़ है --- कह सकते हैं की वो भी गोरी ही है --- दोनों गालों पर दो-तीन पिम्पल्स हैं --- अधिकांश वो सलवार कुरता ही पहनती है --- कुछ ख़ास मौकों पर ही साड़ी पहनना होता है उसका |


शालिनी पिछले सप्ताह भर से देख रही है कि रणधीर बाबू उसकी तरफ़ कोई विशेष ध्यान नहीं दे रहे हैं --- जबकि वो उनकी फेवरेट हुआ करती थी |


ठरकी बुड्ढे से कोई विशेष तो क्या ; रत्ती भर की कोई प्यार व्यार की गुंजाइश नहीं रखती है शालिनी ---


पर अचानक से ही पता नहीं क्यूँ ,


वो थोड़ा इंसिक्योर सा फ़ील करने लगी है ---


आशा जाए भाड़ में --- पर अगर बुड्ढा भी उसके साथ भाड़ में चला गया तो ??


खैर,


उसने तय कर लिया कि वह धीरे धीरे आशा के करीब आएगी और एक दिन सारे राज़ जान कर उसे ब्लैकमेल कर के या तो कॉलेज से हटा देगी या फ़िर किसी तरह आशा को साइड कर फ़िर से बुड्ढे के दिल ओ दिमाग में अपने लिए जगह बना लेगी |


--------


एक दिन की बात है,


आशा समय से बीस मिनट पहले कॉलेज पहुँच गई थी ---- नीर को उसके क्लास में बैठा आई --- बहुत ही कम स्टाफ्स और स्टूडेंट्स को आए देख वह आराम करने का सोची --- पर तभी ध्यान आया कि उसे थोड़ा और सलीके से ठीक होना है --- रणधीर बाबू के लिए --- |


एक श्वास छोड़ी,


एक से दस तक गिनी और फ़िर चल दी वाशरूम की ओर --- ;


लेडीज़ वाशरूम की अपनी ही एक अलग ख़ासियत है इस कॉलेज में ---- और जब बनवाने वाला ख़ुद रणधीर बाबू हो, तब तो खास होना ही है |


टाइल्स, मार्बल्स, फैंसी वॉशबेसिंस , लाइटिंग, ... आहा... एक अलग ही बात है ऐसे वाशरूम में...


आशा अब तक एक बात छुपाती आ रही थी रणधीर बाबू से ----


और वो बात यह थी कि ---- ;


आशा ब्रा पहन कर कॉलेज आती थी !


घर से निकलते समय तो उसने ब्लाउज के नीचे ब्रा पहनी होती पर जैसे ही वो कॉलेज पहुँचती, जल्दी से नीर को उसके क्लास में पहुँचा कर वह लगभग भागती हुई सी वाशरूम पहुँचती और ब्रा उतार कर अपने बैग में रख लेती !


आज भी वह वाशरूम में घुस कर यही कर रही थी कि तभी शालिनी आ गई --- !


आशा चौंकी; उस वक़्त किसी के आने की कल्पना की ही नहीं थी आशा ने ---- पर अच्छी बात यह रही कि शालिनी के भीतर कदम रखने के दस सेकंड पहले ही उसने अपनी ब्रा बैग में रख चुकी थी और फिलहाल साड़ी पल्लू को सीने पर रख पल्लू के नीचे से हाथ घुसा कर हुक्स लगा रही थी ---


शालिनी भी इक पल को ठिठकी .. उसने भी किसी के वहाँ होने की कल्पना नहीं की थी ---


और अभी अपने सामने आशा को देख वह भी दो पल के लिए भौचक सी रह गई --- |


और कुछ ही सेकंड्स में उसके होंठों के कोनों पर एक कुटिल मुस्कान खेल गई ---


उसकी अनचाही प्रतिद्वंदी; आशा जो खड़ी है सामने --- आज शायद कुछ अच्छी बातें हो जाए इसके साथ ---


हौले से मुस्कराकर ‘गुड मोर्निंग’ विश की आशा को और दीवार पर लगे लार्ज फ्रेम आईने के सामने खड़ी हो कर अपना दुपट्टा और बाल ठीक करने लगी ---


आशा भी मुस्करा कर रिटर्न विश की दोबारा अपने काम में लग गई --- ब्लाउज हुक्स लगाने के काम में ---


इधर शालिनी भी मन ही मन अपने सवालों को अच्छे से सजाने में लगी रही --- और जल्द ही तैयार भी हुई ---


आईने में देखते हुए अपने बालों के जुड़े को ठीक करते हुए बोली,


‘दीदी, आज जल्दी आ गई आप?’


‘हाँ शालिनी, वो गाड़ी आज जल्दी आ गई थी तो ---- ’


आशा ने अपने वाक्य को अधूरा ही छोड़ा |


‘ओह्ह अच्छा---’ शालिनी ने बात को ज़ारी रखने की कोशिश में बोली |


आशा ने हुक्स लगा लिए --- अब पल्लू को सलीके से प्लेट्स बना कर कंधे पर रखना रह गया जिसे बखूबी, बड़े आहिस्ते से कर रही थी आशा ---


शालिनी को कुछ सूझा,


समथिंग हॉट --- वैरी नॉटी !!


कुछ ऐसा जिसे सोचने मात्र से ही वह शर्मा कर अंदर तक हिल गई ---


आशा की ओर देख चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान लिए बोली,


‘वाह दीदी ! आज तो बड़ी सुंदर लग रही हो इस साड़ी में....’


सुनकर आशा भी मुस्कुराये बिना रह न सकी |


वो खुद भी अब तक तीन - चार बार आईने में गौर से देख देख कर ख़ुद ही पर मोहित सी हो गई है --- और हो भी क्यूँ न ?


गोरे तन पे नारंगी साड़ी और मैचिंग ब्लाउज में वह वाकई अद्भुत सुन्दर लग रही है आज ---


पुरुष तो क्या ; औरत भी आज उसकी अनुपम सुंदरता पर मुग्ध हुए बिना न रह पाए --- |


और हॉट तो वह हमेशा से ही लगती है |


अभी वो पल्लू के एक हिस्से को लेकर सीने पर रखी ही थी कि तभी उसे यह अहसास हुआ कि जैसे शालिनी उसके पास आ कर खड़ी हो गई है --- और तुरंत ही पीछे खड़ी हो गई ---


आशा भौंचक सी हो, सिर उठा कर सामने आईने की ओर देखी --- और पाया की वाकई शालिनी उसके पीछे खड़ी हो कर; पीछे से सामने आईने में आशा को ही अपलक देखे जा रही है --- होंठों पर प्यारी सी मुस्कान --- आँखों में चमक --- ऐसे जैसे किसी छोटी बच्ची को उसका मनपसंद खिलौना मिल गया हो --- |


पीछे इस तरह से खड़ी हुई थी शालिनी, कि उसका वक्षस्थल आशा की पीठ से सटे जा रहा था --- आशा को इसका अहसास तो हो रहा था पर एकदम से उससे कुछ कहते नहीं बना --- क्या बोले, ये सोचने, शालिनी को देखने और उसके अगले कदम के धैर्यहीन प्रतीक्षा में ही उसके बोल होंठों से बाहर आज़ादी नहीं पा रहे थे |


दोनों एक दूसरे को आईने में देख रही हैं --- एक, चेहरे पर एक बड़ी सी शर्मीली – शरारती मुस्कान लिए और दूजी, चेहरे पर जिज्ञासा का भाव लिए --- |


अचानक से शालिनी आईने में ही देखते हुए आशा से आँखें मिलाई --- दोनों की आँखें मिलते ही शालिनी के गाल लाज से लाल हो गए --- आशा को अब थोड़ा अजीब लगने लगा --- और कोई बात बेवजह अजीब लगना आशा को बिल्कुल सहन नही होता --- इसलिए और देर न करते हुए भौंहें सिकुड़ते हुए फीकी सी मुस्कान लिए, बहुत धीमे स्वर में पूछी,


‘क्या हुआ----?’


प्रत्युत्तर में शालिनी सिर को हल्के से दाएँ बाएँ घूमा कर ‘ना या कुछ नहीं’ बोलना चाही --- |


फ़िर से दो – चार पलों की चुप्पी ---


और,


तभी एक हरकत हुई;


हरकत हुई शालिनी की तरफ़ से ----


आशा की डीप ‘यू’ कट ब्लाउज से उसकी गोरी चिकनी, बेदाग़ पीठ का बहुत सा हिस्सा बाहर निकला हुआ था --- और अभी – अभी शालिनी ने जो किया उससे आशा के शरीर में एक झुरझुरी सी दौड़ गई --- |


दरअसल,


हुआ ये कि आशा के पीछे खड़ी हो कर उससे आती भीनी भीनी चन्दन सी खुशबू और गोरे तन पर नारंगी साड़ी और मैचिंग ब्लाउज और उसपे भी डीप यू कट बैक ब्लाउज से झाँकती आधे से भी अधिक गोरी बेदाग़, चमचम करती पीठ; जोकि थोड़ी भीगी हुई थी आशा के ही भीगे बालों के कारण --- देख कर खुद पर नियंत्रण न रख सकी शालिनी और अपना दाँया हाथ सीधा उठा कर, तर्जनी ऊँगली की लंबी नाखून को आशा की पीठ पर टिकाते, धीरे धीरे ऊपर नीचे करने लगी थी |


पीठ पर से आशा के कमर तक आते काले लम्बे बाल, जिन्हें वो वाशरूम में खुला छोड़ दी थी; को हटा कर धीरे धीरे उसकी पूरी पीठ पर अपनी ऊँगली के पोर और नाखून से सहलाने लगी ---


आशा हतप्रभ सी कुछ देर तक सहती रही ---


समझ नहीं आ रहा था उसे कि आखिर वो करे तो करे क्या?


सिंगल मदर होने के कारण यौन आकांक्षाओं को अपने अंदर ही मार देना उसने अपनी नियति समझ ली थी ----


पर ये भी सत्य है कि;


ज़रा सा उत्तेजक बात या ऐसी कोई बात हो जाए जिसमें यौनता प्रमुख हो --- तो वह तुरंत ही कामाग्नि में जल उठती थी ---


और आज, अभी ऐसा ही हो रहा है ---


उससे कम उम्र की, उसी की सहकर्मी, कॉलेज की एक टीचर उसे यौनेत्तेजक रूप से छू रही है और कहाँ तो उसे रोकने के बजाए उल्टे आशा ही मज़े लेने लगी ---- |


करीब पांच मिनट तक ऐसे ही करते रहने के बाद, शालिनी दोनों हाथों की तर्जनी ऊँगली के नाख़ून से आशा के गदराए मांसल पीठ को सहलाने लगी और फ़िर तीन मिनट बाद दोनों हाथों की तर्जनी और अँगूठे से आशा के कंधे पर से ब्लाउज के बॉर्डर को पकड़ कर बहुत ही धीरे से कंधे पर से सरका दी ---


आशा की अब तक आँखें बंद हो आई थीं ---


कहीं और ही खो गई थी अब तक वो --- अतः उसे शालिनी की करतूत के बारे में पता ही न चला --- वो तो बस अपनी पीठ पर शालिनी के नुकीले नाखूनों से मिलने वाली गुदगुदी और आराम को भोग करने में लगी थी ---- |


पल्लू चमचमाते फर्श पर लोटने लगी और आशा रोम रोम में उठने वाले यौन उत्तेजना की अनुभूति करने में खो गई --- ये देख कर शालिनी ने अब पूरे नंगे कंधे से होकर गर्दन के पीछे वाले हिस्से तक नाखूनों से सहलाते हुए हल्के साँस छोड़ने लगी --- और इसी के साथ ही बीच बीच में दोनों हाथों की अपनी लंबी तर्जनी ऊँगली को गर्दन से नीचे उतारते हुए आशा की उन्नत चूचियों के ऊपरी गोलाईयों के अग्र फूले हिस्सों पर, जो ब्लाउज के “वी” कट से ऊपर की ओर निकले हुए थे; पर हल्के दबावों से दबाने लगी ----


[Image: Aasha-pressed.md.png]

और ऐसा करते ही आशा एक मादक कराह दे बैठी -----


शालिनी के लंबी उँगलियों के हल्के पड़ते दबाव एक मीठी सी गुदगुदी दौड़ा दे रही थी आशा के पूरे जिस्म में --- पूरे दिल से वह रोकना चाहती है फ़िलहाल शालिनी को; पर पता नही ऐसी कौन सी चीज़ है तो जो आशा के हाथों और होंठों को थामे हुए है --- मना कर रही है उसे कि जो हो रहा है उसे होने दो ---- ऐसे पल बार बार नहीं मिलते ---- जस्ट एन्जॉय द फ़ील --- द मोमेंट --- |


करीब दस मिनट ऐसे ही हल्के दबाव देते देते शालिनी की चूत भी पनिया गई --- वो आशा से प्रतिद्वंद्विता का भाव अवश्य रखती है मन में ; पर फ़िलहाल मन के साथ साथ चूत में भी चींटियों की सी रेंगती गुदगुदी ने उसके अंदर की स्वाभाविक कामुकता को इतना बढ़ा दिया कि वह लगभग भूल ही चुकी है की वो और आशा फ़िलहाल कॉलेज के वाशरूम में हैं और क्लासेज स्टार्ट होने में कुछ ही मिनट रह गए हैं ----


शालिनी ने ब्लाउज के बॉर्डर वाले सिरों को तर्जनी और अंगूठे से थाम कंधे से और नीचे उतार दी ----


और,


अपने दोनों हाथों को कन्धों के ऊपर से ही ले जाते हुए, थोड़ा हिम्मत करते हुए, काँपते हाथों से ; ब्लाउज के प्रथम हुक को आहिस्ते से खोल दी ----


और बिना कोई समय गंवाते हुए,


शालिनी ने अपने पतले लंबे ऊँगलियों से, खुले हुए ब्लाउज के ऊपरी दोनों सिरों को प्रथम हुक समेत ज़रा सा मोड़ते हुए अंदर कर दी --- मतलब आशा के पुष्टकर, नर्म, फूले हुए बूब्स की ओर अंदर कर दी दोनों ऊपरी उन्मुक्त सिरों को --- इससे ब्लाउज की नेकलाइन और गहरी हो गई और गहरी क्लीवेज और भी अधिक दर्शनीय हो गई ---- बिना कोई अतिरिक्त या विशेष जतन किए | क्लीवेज के गहराई में शालिनी की ऊँगलियों की छूअन ने आशा को और भी मस्ती में भर दिया और अब वह अपने शरीर को थोड़ा ढीला छोड़ते हुए अपना भार, खुद को पीछे करते हुए शालिनी के जिस्म से टिका कर छोड़ दी ---


शालिनी ने भी कोई और मौका गंवाए बिना, फट से आशा के बगलों से होते हुए उसके बड़े बूब्स को पकड़ ली ;


और पकड़ते ही उसके विशाल चूचियों की नरमी का एक सुखद अहसास हुआ ---


और यह अहसास ऐसा था कि पकड़ने के साथ ही आधे से अधिक दुश्चिन्ताओं को शालिनी खड़े खड़े ही भूल गई ---- टेंशन फ्री ---- और अपने भीतर एक हल्कापन फ़ील होते ही शालिनी ने मस्ती में नर्म चूचियों को दो-तीन बार लगातार ज़ोर से दबा दी ---


आशा एक मृदु ‘आह:’ कर उठी ;


पर शालिनी तीन बार चूची दबाने के बाद ही अचानक से रुक गई ---


आश्चर्य से उसकी आँखें बड़ी होती चली गई ---


कारण,


उसके हाथों ने कुछ महसूस किया किया अभी अभी ---


और वो यह कि आशा ब्लाउज के अंदर ब्रा नहीं पहनी है, और उसके खड़े निप्पल जैसे शालिनी की ऊँगलियों को एक मौन उत्तेजक आमन्त्रण दे रहे हों --- कि,


‘आओ, और प्लीज खेलो हमसे--- ’

ना जाने इसी तरह पकड़े, चूचियों से कितनी ही देर खेलती रही वह--- बीच बीच में खुद की चूचियों को भी आगे तान कर आशा की पीठ से लगा देती ----

और आशा भी शालिनी की कोमल वक्षों के नर्म स्पर्श पाते ही अपनी पीठ और अधिक पीछे की ओर ले जाती जिससे की शालिनी की चूचियाँ उसके पीठ से टकरा टकरा कर दबतीं और शालिनी के साथ साथ --;

आशा के मज़े को दोगुना कर देती ---

एक प्रतिष्ठित कॉलेज के बंद वाशरूम में दो मादाओं का एक अलग ही खेल चल रहा था --- जोकि निःसंदेह उन दोनों को अपने अपने गदराए जिस्म का परम आनंद देने वाला एक 'अलग एहसास' करा रहा था ----- !!


[Image: Aasha-and-Shalini.png]

शालिनी को हैरानी तो बहुत जबरदस्त हुई; क्यूंकि आम तौर पर कोई भी बड़े और भरे स्तनों वाली महिला बिना ब्रा के ब्लाउज पहनती नहीं है,

और आशा के तो काफ़ी अच्छे साइज़ के स्तन हैं, तो फिर इसके ब्रा न पहनने का कारण??!!

शालिनी सोचती रही ---- पर नर्म चूचियों के स्पर्श का आनंद अपने मन से निकाल न सकी--- और सोचते हुए ही दबाते रही --- ब्लाउज कप के पतले कपड़े के ऊपर से ही दोनों निप्पल्स को पकड़ ली और बड़े प्यार से उमेठने लगी ---- निप्पल अब तक सख्त हो कर खड़े भी हो चुके थे --- अतः ब्लाउज के ऊपर से पकड़ने में कोई ख़ास मशक्कत नहीं करनी पड़ी शालिनी को |

आशा सिवाय एक मीठी ‘आह्ह... उम्म्म...’ के और कुछ न कह सकी ----- आँखें अब भी बंद हैं उसकी --- |

एक और बड़ी हैरानी वाली बात ये घटी शालिनी के साथ की चूचियों और निप्पल को दबाते दबाते उसके हाथ, उँगलियाँ कुछ भीगी भीगी, चिपचिपी सी हो गई थी---

शालिनी कन्फर्म थी की इतनी भी पसीने से न आशा नहाई थी और न ही शालिनी ख़ुद --- तो फ़िर ऐसा क्यों लग रहा है ??

इतने में ही अचानक से घंटी की आवाज़ सुनाई दी ----

इस आवाज़ के साथ ही दोनों हडबडा उठी ---

शालिनी जल्दी से पीछे हटी और अब तक आशा भी आंखें खोल, ख़ुद को ऐसी स्थिति में देख शर्म से दोहरी हो जल्दी जल्दी कपड़े ठीक कर बैग उठा कर वहाँ से निकल गई ---- बिना शालिनी की ओर देखे ----


[Image: Aasha-rr.png]

(आशा पल्लू ठीक करती हुई--)

और,

यहीं काश कि वह एक बार पलट कर शालिनी की ओर एक बार अच्छे से देख लेती--- या कपड़े ठीक करते वक़्त ही --- |

इस पूरे घटनाक्रम के यूँ घटने से शालिनी भी ख़ुद को संभाल नहीं पाई थी और अब आशा के वाशरूम से निकल जाने के बाद ख़ुद को इत्मीनान से व्यवस्थित करने में लग गई --- करीब दस मिनट लगे उसे अपने उखड़ती साँसों पर काबू पाने में --- ‘जागुआर’ टैप खोल कर गिरते पानी के जोर के छींटे लिए उसने अपने चेहरे पर --- कम से कम दस बार --- फ़िर सीधे, आईने में अपने को देखने लगी --- कुछ देर पहले घटी घटना उसे फ़िर धीरे धीरे याद आने लगी ---

सिर झटकते हुए नजर दूसरी ओर करना चाहती ही थी कि तभी उसे टैप के पीछे, दीवार से सटे, थोड़ा हट कर थोड़ी तिरछी हो कर खड़ी रखी उसकी मोबाइल दिखी---

वीडियो रिकॉर्डिंग चालू था !!


हाथ पोंछ कर सावधानी से मोबाइल उठाई ---


रिकॉर्डिंग बंद की ---


गैलरी में गई ----


पहला वीडियो ऑप्शन पर टैप की ---


वीडियो खुला,


फ़िर टैप;


वीडियो प्ले होना शुरू हुआ ----


ज्यों ज्यों वीडियो प्ले होता गया, त्यों त्यों शालिनी के चेहरे में एक चमक और होंठों पर एक बड़ी ही कमीनी सी मुस्कान आती गई -------



(क्रमशः)



*****************************
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#50
अगला अपडेट भी तैयार है, एक दो दिन बाद पोस्ट करूँगा |

धन्यवाद
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#51
Good one...
[+] 1 user Likes bhavna's post
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#52
Wonderful update as always ....worth the wait....... getting interesting.......keep writing
[+] 1 user Likes shruti.sharma4's post
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#53
(15-05-2019, 12:08 AM)bhavna Wrote: Good one...

धन्यवाद | Smile
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#54
(15-05-2019, 01:34 AM)shruti.sharma4 Wrote: Wonderful update as always ....worth the wait....... getting interesting.......keep writing

बहुत धन्यवाद |   Smile
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#55
भाग ६: जो न सोचा था....!


लगातार बजती डोर बेल की आवाज़ से आशा की तन्द्रा टूटी ---

विचारों के भँवर से बाहर निकली ---

खिड़की से आती सुबह की ठंडी हवा के झोंकों ने आशा को कुछ पुराने यादों के गोद में सुला दिया था ---

बिस्तर पर चादर के नीचे पैर फैलाए सफ़ेद नाईट गाउन में, अधलेटी आशा कॉफ़ी पीते पीते ही लगभग सो सी गई थी --- गनीमत थी कि आजकल फ्लास्क नुमा कॉफ़ी जार / मग उपलब्ध है बाज़ार में --- जिसके एक छोटे से छिद्र से ‘सुड़क सुड़क’ कर कॉफ़ी या चाय के घूँट बड़े आराम और प्रेम से लिए जा सकते हैं --- अगर ये आज नहीं होता तो शायद कॉफ़ी बिस्तर पर ही लुढ़क जानी थी --- |

नाईट गाउन जोकि सफ़ेद और कंधे पर पतले ब्रा स्ट्रेप सा है; थोड़ा डीप नेक है जिससे एक सुंदर सा क्लीवेज निकला हुआ है और गाउन के ऊपर से मैचिंग कलर का उसी के साथ वाला एक पतले कपड़े का ओवरकोट पहनी आशा रणधीर बाबू और शालिनी के साथ वाले पुराने यादों को सिर हिला कर झकझोरते हुए आलस मन से बिस्तर से उतरी --- और कॉफ़ी मग को पास वाले एक छोटे से टेबल पर रख वो दरवाज़ा खोलने लड़खड़ाते हुए आगे बढ़ी ---

रात भर मोबाइल में पोर्न देख देख कर बहुत उत्तेजित हुई थी और जितनी बार भी उत्तेजना के चरम को छूई ---

उतनी ही बार अपनी चूत को ऊँगलियों की सहायता से शांत की --- !

इतनी बार शांत कर चुकी थी कि अब चलने में कठिनाई बोध हो रही है उसे ---

ख़ुद को आगे की ओर खींचती हुई सी आगे बढ़ी और दरवाज़े के पास जा कर की-होल से आँख लगा कर बाहर देखी --- कोई नज़र न आया --- शायद डोर बेल बजाने वाला दरवाज़ा ना खुलता देख, पलट कर जा चुका है; ऐसा सोच कर आशा पलट कर जाने को हुई ही थी कि फ़िर से बेल बजी --- आशा फ़ौरन की-होल से बाहर देखी ---

कोई नहीं है!

‘कौन हो सकता है? सुबह सुबह किसको शरारत करने की सूझी ? --- कहीं रणधीर बाबू तो ----- ; --- नहीं नहीं --- वो नही हो सकते --- पर -----’ अभी और कुछ सोचती आशा के तभी फ़िर बेल बजी ---

आशा ने ख़ुद को संयमित करते हुए थोड़ा कठोर लहजे में पूछी,

“कौन है??”

आवाज़ अब कोई नहीं आई बाहर से --- |

सुबह सुबह इस तरह की गुस्ताखी आशा को बिल्कुल भी पसंद नहीं आया --- उल्टे गुस्सा तो इतना आया कि अगर उस समय कोई वहां होता तो वो उसका मुँह ही तोड़ देती --- या शायद सर फोड़ देती --- |

की-होल से झाँकती रही आशा ---  और जैसे ही इस बार एक हाथ डोर बेल को प्रेस करने के लिए जैसे ही आगे बढ़ा, आशा ने तपाक से दरवाज़ा खोल दी --- और जो देखी, उससे हैरान रह गई -- सामने शार्ट हाइट का वही लड़का खड़ा था जो कुछ दिन पहले जब आशा नई नई इस घर में आई थी और ऊपर बालकनी में खड़ी हो ठंडी हवा का आनद ले रही थी , तो ये कुछ दूर से चुपचाप इस सौन्दर्य की देवी को एकटक मुग्ध हो कर लगातार देख रहा था | और खास बात ये थी कि उसके देखने के अंदाज़ में एक अलग ही बात थी जिससे आशा खुद को बहुत अनकम्फ़र्टेबल फ़ील की थी |

उस दिन इस लड़के ने जो पहना था, आज भी लगभग वैसा ही कुछ पहना है --- नेवी ब्लू रंग की सेंडो गंजी और लालिमा लिए गहरे कत्थे रंग का आधी जांघ तक आती हाफ पैंट और कमर पर बंधी लाल गमछी --- और सिर के बिगड़े बाल --- सब मिलकर उस लड़के को एक ठेठ देहाती लुक दे रहे थे --- |

कुछ क्षणों तक उस लड़के को आश्चर्य से देखने के बाद आशा खुद पर नियंत्रण पाते हुई थोड़ा रूखे रुष्ट स्वर में बोली,

“कौन हो? क्या चाहिए?”

लड़का एकदम से जवाब न दे सका --- वह आशा की ओर अपलक भाव से टकटकी बांधे खड़ा रहा --- उसके आँखों में भी आश्चर्य के भाव थे --- वो आशा को कुछ ऐसे देख रहा था मानो उसने आशा को उस दिन के बाद कभी न देख पाने का सोच लिया हो और आज अचानक एकदम से सामने यूँ आ जाने से उसकी वह बाल बुद्धि भी चकरा गई हो जैसे --- |

आशा के प्यारे गोल से मुखरे को देखते हुए उसकी सुराहीदार नुमा गले पर नज़र फ़िसली और फ़िर वहाँ से नज़र फिसलते हुए नीचे उसके वक्षस्थल पर आ कर रूक गए ---

‘ओह्ह:!!’

लड़के के मन में बस इतनी सी बात कौंधी --- ज़्यादा सोचने के लिए समय न मिला उसे --- समय मिल जाता तो शायद उसे आशा की लो नेक गाउन से नज़र आती उस मनभावन मनोहर क्लीवेज को देखने और दिल ही दिल में उसमें डूब जाने का अवसर न मिल पता --- शायद---!!

कम से कम डेढ़ ऊँगली के जितना वो दूधिया चमकदार क्लीवेज सामने दृश्यमान था ---

एकदम स्पष्ट ---

बेदाग़ ---

पुष्टकर, बड़े-बड़े चूचियों के ऊपरी हिस्से को थोड़े गोलाई के रूप में ऊपर उठाए वह मैक्सी आशा के जिस्म के पूरे ऊपरी हिस्से को भरपूर मादकता से भर कर बड़ा खतरनाक बना रही थी -- |

इतनी रमणीय, सुन्दर, गोरी मैम को अपने सामने पाकर वो लड़का हक्काबक्का तो था ही, साथ ही साथ;
मैक्सी के ऊपर से आशा की चूचियों के समझ आते आकार , और एक अच्छी खासी नज़र आती क्लीवेज को इतने सामने देख उस बेचारे लड़के का मुँह अपनेआप थोड़ा खुल गया और एकबार जो खुला फिर वह बंद ही न हुआ ---|

आशा उसकी हालत देख कर ताड़ गई की यह क्या देख रहा है और इसकी ये हालत क्यूँ हो रही है ---?

पहले तो जी में आया की अपने वक्षों को ढक ले; पर --- पर न जाने क्यूँ उसका मन उस लड़के को अपना नुमाइश कराने को जी मचल गया ! मन में ऐसी गुदगुदी सी हुई कि अगर इस वक़्त वह लड़का वहाँ न होता तो पक्का वह खिलखिलाकर ;---- ठहाके मार कर हँस रही होती अभी ---

“ए लड़के... क्या है?? कौन हो तुम... क्यूँ लगातार बेल बजा रहे थे .... और इस तरह क्या देखे जा रहे हो?? ”

ओवरकोट के दोनों पल्लो को सामने की ओर खींचती हुई एक के ऊपर दूसरा रख ; वक्षों को ढकने का नाटक करते हुए बोली |

आशा के स्वर में इस बार झिड़क देने वाला स्वभाव था --- लड़का हडबडा गया ---

खुद को सम्भालते हुए बात को सँभालने का प्रयास किया,

“ओह --- म --- म ---  मैडम जी --- मैं --- मैं --- ये बताने आया था कि --- कि --- ”

लड़का अपनी बात पूरी करने ही वाला था कि उसे फ़िर ओवरकोट के पल्लो के फाँकों से सुपुष्ट चूचियों की ऊपरी गोलाईयाँ और दोनों चूचियों के आपस में अच्छे से सटे होने के कारण बनने वाली एक अच्छी गहराई वाली लम्बी क्लीवेज के दर्शन हो गए --- और दर्शन होते ही उसकी जीभ जैसे उसकी तालू से चिपक गए --- |

“क--- क---- कि ---- आम्म--- म---- वो---- म ---- ”

“अरे क्या क क म म  लगा रखा है --- जल्दी बोलो जो बोलना है --- नहीं तो दफा हो जाओ यहाँ से ---”

इस बार वाकई झुँझलाकर डांटते हुए बोली आशा |

डांट का असर तुरंत हुआ भी ---

लड़के ने अपनी नज़र तुरंत फेर ली और दूसरी तरफ़ देखते हुए एक लंबी गहरी सांस ली और आशा की ओर पलट कर देखते हुए बोला,

“व—वो --- वो मम्मी ने कहला कर भेजा है कि आज उनकी तबियत ख़राब है; सो वो आज नहीं आ सकेंगी----”

“मम्मी?? कौन मम्मी??”

“मेरी मम्मी”

“तुम्हारी मम्म--- ओहो --- कहीं तुम बिंदु की बात तो नहीं कर रहे? तुम उसके बेटे हो?”

“जी---” लड़का झेंपते हुए बोला |

“क्या हुआ उसे?”

आशा चिंतित स्वर में पूछी ---

“ज--- जी, कल रात से उन्हें काफ़ी तेज़ बुखार है --- पिताजी डॉक्टर बुलाने गए हैं --- इस बीच मम्मी ने कहा कि उनकी तबियत ख़राब होने की बात मैं गोरी मैम तक पहुँचा दूँ --- ”

“गोरी मैम ??”

आशा बीच में बोली;

“ज --- जी--- मतलब --- आप---”

लड़के ने शरमाते हुए जवाब दिया ---

आशा ‘हाहाहा’ कर के ठहाके मार कर हँस पड़ी ; अब तक थोड़ी लापरवाह सी भी हो गई थी वो --- ओवरकोट के पल्लों को अब तक ढीला छोड़ दिया था उसने और इससे उसके वक्ष और उनके बीच की घाटी भी उन्मुक्त होकर नाचने से लगे थे ---

“तो तुम्हारी मम्मी मुझे गोरी मैम बोलती हैं ?”

“ज --- जी --- ”

“ह्म्म्म--- और तुम भी मुझे गोरी मैम ही कहते हो क्या?”

“ज --- जी--- गोरी तो आप हैं ही --- और ---और ---”

“और??”

“अ--- और --- अच्छी भी --!”

- लड़के ने चोर नज़र से आशा के नाईट गाउन के अंदर उन्मुक्त से नाचते वक्षों की ओर देख कर कहा,

--- लड़के ने सोचा होगा की चोर नज़र से देखने पर शायद उसकी वह गोरी मैम कदाचित उसे पकड़ नहीं पाएगी --- |

पर बेचारा वो यह नहीं जानता था कि जिस गोरी मैम के बारे में ऐसा सोच रहा है ; वो काफ़ी खेली – खिलाई औरत है और चाहे मर्द हो , औरत या कोई कम उम्र का लड़का ही क्यों न हो--- सबकी नज़रों को पकड़ना और ताड़ जाना उससे बेहतर और कोई नहीं जानता --- और बहुत कुछ तो रणधीर बाबू के संगत का भी असर है ऐसे मामलों में --- |

‘अच्छा, अंदर आओ --- मैं देखती हूँ कोई ऐसा काम जो तुम कर सको ---”

“जी”

उसे अंदर बुला कर, वहीं खड़ा रख कर वो अंदर इधर उधर उसके लायक कोई काम देखने लगी --- पर अधिकतर काम किसी महिला वाले काम थे --- और जो दो-तीन काम थे; वह उस लडके से करवाना अच्छा नहीं लगा आशा को |

यही कोई दस मिनट तक एक रूम से दूसरे रूम तक करते करते उसकी नज़र अचानक बाहर ड्राइंग रूम में खड़े लड़के पर गया --- (हालाँकि उस रूम को ड्राइंग रूम न कह कर हॉल कहना ज़्यादा मुनासिब होगा |) ---- लड़का ड्राइंग रूम में ही एक छोटे टेबल पर रखे मध्यम आकार के फ़ोटो फ्रेम को बड़े ध्यान से देख रहा था --- वह आशा की फ़ोटो थी जिसमें वह छोटे नीर को गोद में लिए खड़ी थी --- नीर को गोद में संभालने के उपक्रम में साड़ी एक तरफ़ से हट गई थी जिससे की उसकी गोरी, चिकनी, बेदाग़ पेट और नाभि बहुत हद तक दृश्यमान हो रहा था और साथ ही पल्लू भी इतना हटा हुआ था कि आशा की बायीं चूची अपने पूरे आकार के साथ ब्लाउज के अंदर से ही काफ़ी ज़बरदस्त तरीके से पल्लू के नीचे से झाँक रही थी ---

सही मायनों में झाँकना भी नहीं कहेंगे उसे क्योंकि वह बड़ी चूची ब्लाउज समेत ही लगभग निकल ही आई थी पल्लू के नीचे से ---

लड़के को फ़ोटो फ्रेम की ओर एकटक दृष्टि से देखते देख आशा उत्सुक हो उस फ़ोटो की ओर देखी और देखते ही अपना सिर पीट ली --

वह इसलिए कि;

उस फ़ोटो को बेख्याली में आशा ने उस दिन उस टेबल पर रखी थी जिस दिन वो नई नई शिफ्ट हुई थी इस घर में ---

बाद में ध्यान गया भी था उसका इस तरफ़ पर ये सोच कर कि बाद में हटा लेगी, वो टालती रही; ---

और आज,

उसकी इसी बेख्याली और टालमटोल ; एक कम उम्र के लड़के के सामने उसकी इज्ज़त की बखिया उधेड़ने वाली है – या यूँ कहें कि उधेड़ चुकी है --- |

और हो भी क्यों न?

वह फ़ोटो है ही ऐसी ---

कि दूसरे की बात तो दूर, जिसकी वह फ़ोटो है वो ख़ुद भी शर्मा के दोहरी हो जाए --- कोई संदेह नहीं की वह फ़ोटो एक मासूम से छोटे बेटे और उसकी माँ के मीठी आतंरिकता ही एक साक्षी है पर जो स्थिति बन गई है आशा के कपड़ों के साथ उस फ़ोटो में; देखने वाला कोई भी हो --- वह घंटों सिर्फ़ और सिर्फ़ आशा पर नज़रें गड़ाए बिना रह ही नहीं सकता --- |

आशा एक खंभे नुमा दीवार के पीछे से छुप कर उस लड़के को देखने लगी --- कहीं न कहीं आशा के मन में यह अंदेशा घर कर चुकी है कि अगर यह लड़का इतनी देर से उसके उस फ़ोटो को इतने गौर से देख रहा है तो जल्द ही कुछ तो करेगा ही --- पर क्या --- यही तो दिलचस्प बात होगी !

आशा का मन किशोरावस्था को पार कर युवावस्था में अभी अभी कदम रखने वाली किसी लड़की जैसी हो गई थी जिसके लिए सेक्स या विपरीत लिंग की ओर आकर्षण बहुत ही नई बात थी और इन दोनों बातों को जानने का फिलहाल सामने एक ऐसा मौका था जो शायद ही कोई नई नवेली किशोर लड़की या नवयौवना छोड़े |

बहुत धीरे धीरे कदम बढ़ाते हुए टेबल के और नज़दीक पहुँचा वो --- थोड़ा झुका ---

थोड़ा और झुका ---

और,

फ़ोटो को अच्छे से देखते हुए अपने पैंट में बनते टेंट को हाथों से छू कर थोड़ा सहलाया;

फ़िर एकाएक,

ज़ोर – ज़ोर से पैंट के ऊपर से ही मसलने लगा |

आशा के लिए यह कोई अप्रत्याशित घटना नहीं थी, पर न जाने क्यों उसका मन किसी नवयौवना की तरह खिलखिला उठा ---
वो और भी कुछ देखने के लिए लालायित हो उठी --

कुछेक बार जोर से – अच्छे से मसल लेने के बाद – लड़के को जैसे अचानक से होश आया --- उसने पलट कर इधर उधर देखा --- फ़िर ऊपर नीचे देखा--- शायद आशा को ढूँढ रहा हो --- शायद इस बात से आश्वस्त हो जाना चाहता हो कि कोई उसे देख नहीं रहा या रही है --- |

हर तरफ़ अच्छे से मुआयना कर लेने के बाद लड़का फिर फ़ोटो की ओर मुड़ा --- और अब धीरे धीरे, सावधानी से; तन कर खड़े लंड को पकड़ कर नीचे की झुकाने लगा ---  और अच्छे से सेट कर दिया ---

लंड अब भी तना हुआ है ---

पर अब सामने की ओर नहीं;

वरन,

अपनी पूरी लम्बाई और मोटाई के साथ पैंट में अब वह नीचे की ओर सेट किया हुआ है --- |

तेज़ रक्तप्रवाह और अति उत्तेजना के कारण लंड अद्भुत ढंग से गर्म हुआ जा रहा है और ऐसी स्थिति में लड़के का हालत बहुत ख़राब हो गया था ---

उसकी आँखें जैसे वासना और तृष्णा से तप्त हो गयी हो ---

पूरा शरीर कांपने सा लगा ---

कंठ सूखने लगा ---

लंड को पैंट के ऊपर से जोर से दबाए रखा था उसने ---

शायद अति उत्तेजना के वशीभूत हो, उसने अपने हथियार को कुछ अधिक ही ज़ोर से दबा दिया होगा--- क्योंकि लड़के के चेहरे पर वेदना के कुछ रेखाएं सी नज़र आई थी पल दो पल के लिए ---

होंठ कंपकंपाए ---

कुछ बोलने के लिए शायद मुँह खोलना चाहा होगा उसने ---

पर बोल निकले नहीं ---

दाएँ हाथ के अंगूठे और तर्जनी ऊँगली से, लंड के जड़ वाले स्थान से पकड़ता हुआ --- धीरे धीरे कुछ यूँ नीचे की ओर ले गया जैसे खुद के हथियार की मोटाई माप रहा हो --- पैंट के ऊपर से ही लंड के अग्र भाग तक पहुँचने पर थोड़ा सा रुक कर, फ़िर धीरे धीरे उसी तरह से उँगलियों को लंड के दोनों तरफ़ से पकड़े हुए, बड़ी सावधानी से ऊपर की ओर आया ---- इसी तरह वह लगातार कई मिनट तक कई - कई बार करता रहा ---

इधर आशा की भी हालत ख़राब हो गई थी ---

अपने हथियार के साथ लड़के को यूँ खेलते देख न जाने आशा भी कब अपने गाउन के ऊपर से ही अपनी चूत को सहलाने और खुजलाने लगी थी --- लगभग भूल ही चुकी थी कि वह अभी कहाँ और क्या कर रही है--- भीतर किसी एक कमरे में नीर सो रहा है; यह भी उसके दिमाग से कब का निकल चूका था --- वह तो बस उस लड़के के शारीरिक प्रतिक्रियाओं और उसके लंबे, मोटे लंड को देख कर अपनी सुधबुध खोने में थी --- कामाग्नि उसके अंदर ऐसी भड़की थी कि जिसका कोई पार बता पाना संभव नहीं था उस समय |

धीरे धीरे अपने बाएँ हाथ को अपने कमर से ऊपर उठाते हुए, कमर से लेकर अपनी बायीं चूची के नीचे तक के पूरे हिस्से को लगभग सहलाते हुए वह ऊपर उठी और हौले हौले से अपनी बाई चुची को दबाने लगी ---

आज अपने जिस्म के हरेक अंग का छुअन पता नहीं क्यों उसे एक अजीब सी अहसास दिए जा रही है और बेचारी आशा भी लाख चाह कर अपने दिमाग को इस हद तक काबू में नहीं रख पा रही है कि वह ज़रा सा इस बात पर भी गौर करे की वह क्या चाहती है और क्या कर रही है ?

बाई चूची को दबाते दबाते उसने अब क्लीवेज में एक ऊँगली डाल दी और बड़े प्रेम से अपनी क्लीवेज वाली चमड़ी और उसके रोम रोम को एक गुदगुदी सा अहसास देते हुए एक ऊँगली को दिल के पास गोल गोल घूमा कर दिल को आराम देने की एक मीठी कोशिश करने लगी |

अभी ये चल ही रहा था की अचानक कुछ गिरने की आवाज़ आई ---

आशा हडबडा कर अपने कपड़ों को ठीक कर दीवार से झाँक कर नीचे देखी ---

लड़का फ़ोटो फ्रेम को उठा कर टेबल पर रखने की कोशिश करता हुआ दिखा --- शायद उत्तेजना में धक्का मार कर गिरा दिया होगा --- फ़ोटो को टेबल पर संभाल कर रखते हुए काफ़ी घबराया हुआ लग रहा था वह --- डरा हुआ सूरत ले वह इधर उधर देख रहा है --  शायद आशा के वहाँ आ जाने के आशंका को लेकर चिंतित हो उठा है ---

तभी आशा को एक शरारत सूझी ---

अपने कपड़ों और खुद को व्यवस्थित करते हुए वह चेहरे पर दिखावटी गुस्सा लेकिन होंठों के कोनों पर एक शरारती मुस्कान लिए उस लड़के के सामने जा खड़ी हुई --  लड़के की तो जैसे घिग्घी बंध गई --- वह किसी तरह पैंट को आरी तिरछी कर अपने खड़े लंड को छुपाने की कोशिश किया |

आशा ने अनजान बनते हुए इधर उधर देखते हुए पूछा ,

“क्या हुआ --- एक आवाज़ आई थी न??”

लड़का हडबडाया सा जवाब दिया,

“नहीं मैडम, मैंने तो नहीं सुना --- शायद बाहर कहीं से आवाज़ आई होगी -- |”

“हम्म” कह कर आशा पलटने को हुई ही की रुक गई --- उस टेबल की ओर देखी --- फिर लड़के की ओर --- लड़के का दिल तनिक ज़ोर से धड़का --- आशा ने भौंहे सिकुड़कर टेबल की ओर गौर से देखा ---- 

फ़िर धीरे कदमों से चलते हुए टेबल के पास पहुँची ---

ठिठक कर नज़रें झुका कर अच्छे से देखी ---

फ़िर सिर को ऐसे हिलाते हुए, जैसे की मानो कोई अनचाही सी गलती हो गई --- वह उस लड़के की ओर पीठ कर के खड़ी हो गई और फ़िर बड़े सलीके --- बड़े खूबसूरत तरीके से अपने पिछवाड़े को बाहर की ओर निकालते हुए सामने की ओर झुक गई ---
और झुकी भी कुछ ऐसे जिससे की उसकी गांड बाहर की ओर एकदम गोल हो ऊपर की ओर उठ गई थी |

और उसी पोजीशन में --- झुके झुके ही आशा टेबल के गोल बॉर्डर लाइन को और फ़ोटो फ्रेम के किनारों को साफ़ करने लगी --- 
लड़के की हालत तो बस अब जैसे काटो तो खून नहीं ---

वह ये तो जान ही गया था कि उसकी गोरी मैम ने उसके सख्त तने लंड के कारण उसके पैंट पर अंदर से बनने वाले उभार को देख चुकी है और शायद कुछ कहने भी वाली रही होगी पर ; इस तरह से उसके सामने आकर उसकी ओर पीठ कर के सामने की ओर यूँ झुक जाना जिससे की उसकी गोल बड़ी गांड उभर कर उसके लंड से कुछ दूरी पर प्रकट हो जाए --  ये तो अपने किसी बदतर पोर्न वाले सपने में भी नहीं सोचा होगा |

टेबल और फ़ोटो फ्रेम को पोछने के क्रम में आशा के हाथ की हरेक हरकत के साथ उसकी गांड के दोनों तबले भी ताल से ताल मिलाकर थिरकन करने लगे ---

लडके का लंड अंदर ही अंदर और ऐठन लेने लगा ---

कुछ क्षणों के लिए मानो वह बिल्कुल ही यह समझ नही पाया कि अब करे तो क्या करे --- क्योंकि उसका लंड जिस तरह से ऐँठ कर पैंट के अंदर तना हुआ था और अभी भी और तनने को व्याकुल दिख रहा है ; --- उससे तो ये बिल्कुल स्पष्ट है कि न तो उसका लंड चैन से साँस लेने वाला है और न ही उसे साँस लेने देगा ---

आशा अभी भी टेबल और फ्रेम को धीरे धीरे, आराम से पोंछ रही थी कि अचानक से उसकी नज़र सामने शोकेस पे लगे शीशे पर गई और कुछ देखते ही वह बुरी तरह से चौंक उठी ---

शकल से मासूम सा दिखने वाला यह लड़का असल में इतना दिलेर और बदमाश होगा, इस बात की कल्पना भी नहीं की थी आशा ने ---

दरअसल,

पैंट के अंदर तनतनाए हुए लंड के ज़ोर के ऐँठन से बेचारा लड़का इतना परेशान और बेबस सा हो गया था कि बिना लंड को बाहर निकाले और कोई उपाए न था --- 

अतएव,

बिना लाज, भय और चिंता के,--- 

उसने चैन खोला,

हाथ अंदर डाला

और

सख्त हुए फनफनाते लंड अच्छे से पकड़ कर सावधानी से बाहर निकाला ---

और लगा खुद को सुकून पहुंचाने हेतु एक ज़ोरदार हस्तमैथुन करने !!

आशा कुछ देर तक अपलक उसके इस दिलेरी वाले कारनामे को देखती रही --- जितना आश्चर्य उसे उस लड़के की यूँ उसके पीछे खड़े हो कर लंड बाहर निकाल कर खुलेआम मुठ मारने की दिलेरी पर हो रहा था ---- उससे भी कहीं अधिक वह मुग्ध हुए जा रही थी उस लड़के के मोटे लंड की लम्बाई और चौड़ाई देख कर --- |

जिस तरह से उसके प्रत्येक मुठ पर उसके सुपारे पर की चमड़ी पीछे जाती और इससे उसका टमाटर सा लाल सुपारा सामने प्रकट होता ; उससे हर बार आशा का दिल ज़ोर से एक बार धड़क कर जी ललचा जाता --  |

वह एकबार -- 

बस एक बार उस लंड को अपने मुट्ठी की गिरफ्त में लेना चाहती थी ---

बस एकबार उसके सुपारे के चीरे हुए स्थान पर अपना नाक बिल्कुल समीप ले जाकर उसके नमकीन से गंध को सूंघना चाहती थी --- 

बस एक बार उसके लंड को अच्छे से अपनी मुट्ठी में कस कर पकड़ कर मुठ मार देना चाहती थी --- 

बस एक बार लंड के चीरे वाले स्थान के बिल्कुल अग्र भाग पर; अपने जीभ के नुकीले अग्र सिरे से छू कर उस लाल टमाटर से सुपाड़े के छुअन का आनंदमूर्त अहसास लेना चाहती थी ---

और,

अगर हो सके,

मतलब की अगर वाकई  में,

हो सके तो,

बस एक बार वह उस ग्रहणयोग्य सुपाड़े को अपने मुँह में भर कर लोलीपोप जैसा चूस कर अपने अतृप्त, लंड-क्षुधा पीड़ित मुँह को कुछ दिनों के लिए शाँत कर लेना चाहती थी --- |

तभी,

हाथ में पकड़ा हुआ फ्रेम, टेबल के बॉर्डर से टकराते हुए नीचे गिरा ---  !

टकराने से हुई आवाज़ के कारण आशा की तन्द्रा भंग हुई --- जिस वासना स्वप्न में वह स्वछन्द रूप से सैर कर रही थी --- वहीँ से मानो धडाम से गिरी --- |

होश आया उसे,

और लड़के को भी ---

जल्दी से लंड को अंदर डाल कर चेन लगा लिया और सीधा खड़ा हो गया |

आशा खुद को सम्भालती हुई खड़ी हुई और लड़के की ओर पलटी ---

नज़र सीधे लड़के के पैंट पर गई ----

उभार अब भी बना हुआ है ---

पर साथ ही,

पैंट के सामने, चेन वाला हिस्सा थोड़ा भीगा भीगा सा लगा आशा को --- ज़रा और गौर से देखी, --- ह्म्म्म ---- वाकई में भीगा हुआ है ---- शायद झड़ने वाला होगा --- या फिर शायद झड़ने से पहले लंड का अगला हिस्सा जिस तरह तरलता से भीग जाता है --- वही हुआ होगा ---

‘ओह्ह:! मुझ महिला को ले कर इतनी दीवानगी, इस लड़के में--- हाहाहा |’

मन ही मन खिलखिलाकर हँस दी आशा ---

‘तुम्हारा नाम क्या है?’

‘भोला ....’

‘ह्म्म्म --- तो भोला --- बगीचे का काम करना जानते हो??’

‘जी मैडम’

‘ओके--- तो एक काम करो --- अभी पीछे गार्डन --  आई मीन --- बगीचे में चले जाओ --- और पौधों को सलीके से काट कर थोड़ा सजाओ और सभी में पानी भी दे देना --- ठीक है?’

‘जी मैडम ---’

आशा, उस लड़के को ले पीछे के गेट से बगीचे में ले गई और काम को थोड़ा और अच्छे से समझा दी --- लड़का हर बात को जल्दी और बखूबी समझ गया और तुरंत काम में लग गया --- लड़का काम का है, देख कर आशा को भी ख़ुशी हुई और अंदर चली गई ---- |

पर अंदर जा कर भी उसे चैन नहीं मिला --- भोला का लंड--- उसकी तस्वीर आशा के दिल-ओ-दिमाग में छा सा गया था --- वह जितना अधिक हो सके उसके लंड का दीदार करना चाहती थी --- और इसलिए एक खिड़की की ओट लेकर खड़ी हो गई और भोला को देखने लगी ---

अनायास ही आशा की उंगलियाँ एक बार फिर गाउन के ऊपर से उसकी चूत को खुजलाने लगी ---- पहले ऐसी कभी नहीं थी आशा ---- रणधीर बाबू के साथ न जाने कितने दिन और रातें बिताईं --- पर कभी भी इस तरह वेश्यानुमा ख्याल नहीं आए --- पर आज क्यों ---?

‘उफ्फ्फ़’

एकाएक कुछ बोध हुआ आशा को ---

चूत पनिया गई है --- शायद ज़्यादा देर खुद को रोक ना सके आशा --- लज्जा और घबराहट के संयुक्त भाव खेलने लगे आशा के मन मस्तिष्क में --- वह दौड़ कर गई और बाथरूम में घुस गई ---- शावर खोला और झरने के गिरते पानी के नीचे खड़ी हो गई --- गाउन पहने ही --- कोई सोच विचार नहीं ---- पहले तन में लगी आग बुझे --- फ़िर और कोई बात ----
ठीक पता नहीं --- पर काफ़ी देर तक यूँ ही खड़ी रही शावर के नीचे ---

किन्ही ख्यालों में खोई हुई ---

और ना जाने कितनी देर किन किन ख्यालों में खोई ; खड़ी रहती ---

अगर एक झटके से अपने ख्यालों से बाहर न निकलती तो ---

और झटका लगने का कारण था ---

नहीं,---

कारण था नहीं --- कारण थे -- 

वह दो हाथ जो आशा के बगलों के नीचे से आ कर;  पीछे से आशा के; पानी में सराबोर गाउन से चिपक कर सामने की ओर और बड़े हो कर उभर आए दोनों चूचियों को थाम लिया था ---- |
 




क्रमशः


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#56
अतिसुन्दर!
[+] 1 user Likes bhavna's post
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#57
Wow......things are heating up........ great introduction of bhola............wasn't expecting the update so early......super .....keep updating.
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#58
GOOD GOING . . . KEEP IT UP . . . .

JALDI JALDI UPDATE POST KIYA KARO . . . . READERS KA INTEREST BANA RAHTA HAI..
नशीली आँखें
वो प्यार क्या जो लफ्ज़ो में बयाँ हो 
प्यार वो है जो आँखों में नज़र आए!!
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#59
Bhut shandaar update
[+] 1 user Likes Luckyloda's post
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#60
I don't know why there are so less readers for this story.....this story deserves a much better response.......Such a super erotic story
[+] 1 user Likes shruti.sharma4's post
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