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भाभी के 'वो'
मुझसे रहा नहीं गया और मैंने पूछ लिया-
“भाभी आपके वो कब आएंगे?”
कामिनी भाभी के ‘वो’ यानी?
अब भाभी अलफ।
सारी दोस्ती मस्ती एक मिनट में खत्म। उनका चेहरा तमक गया। मैं घबड़ा गई, क्या गलती हो गई मुझसे?
“तुम मुझे क्या बोलती हो?”
बहुत ठंडी आवाज में उन्होंने पूछा।
“भाभी, आपको भाभी बोलती हूँ…”
मैंने सहम के जवाब दिया।
“और मेरे ‘वो’ क्या लगे तुम्हारे?”
फिर उन्होंने पूछा।
अब मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया, और सुधारने का मौका भी मिल गया। दोनों कान पकड़ के बोली-
“गलती हो गई भाभी, भैया हैं मेरे, और आगे से आपको मैं भौजी बोलूंगी उनको भैया…”
सारा गुस्सा कामिनी भाभी का कपूर की तरह उड़ गया।
उन्होंने मुझे कस के बाँहों में भींच लिया और अपने बड़े-बड़े उभारों से मेरी कच्ची अमिया दबाती मसलती बोलीं-
“एकदम, तू हमार सच्च में असल ननद हो…”
फिर उन्होंने पूरा किस्सा बताया- जब वो शादी होकर आईं तो पता चला की उनकी कोई ननद नहीं है, सगी नहीं है, ये तो पता ही था। लेकिन कोई चचेरी, ममेरी, मौसेरी, फुफेरी बहन भी नहीं है उनके पति के उन्हें तब पता चला।
गाँव के रिश्ते से थी लेकिन असल रिश्ते वाली एकदम नहीं थी और आज उन्होंने मुझे अपनी वो ‘मिसिंग ननद’ बना लिया था।
“एकदम भौजी ओहमें कौनो शक?”
उनके मीठे-मीठे मालपूआ ऐसे गाल पे कचकचा के चुम्मा लेते मैंने बोला।
“डरोगी तो नहीं?” मेरी चुन्मुनिया रगड़ते उन्होंने पूछा।
“अगर डर गई भौजी तो आपकी ननद नहीं…” जवाब में उनकी चूची मैंने कस के मसल दी।
“मैंने तय किया था की मेरी जो असल ननद होगी न उसे भाईचोद बनाऊँगी और उनको पक्का बहनचोद, लेकिन कोई ननद थी नहीं…”
मुश्कुराते वो बोलीं।
“नहीं रही होगी लेकिन अब तो है न?”
उनकी आँखों में आँखें डाल के मैंने बोला।
और जवाब में मेरी साड़ी खोल के गचाक से एक उंगली उन्होंने मेरी कसी चूत में पेल दी।
“लेकिन भैया तो हैं नहीं?”
मैंने बोला, लेकिन मेरी बात का जवाब बिना दिए भाभी रसोई में वापस चली गईं।
हम दोनों बेडरूम में बिस्तर पर बैठे थे। जब वो लौटीं तो उनके हाथ में बड़ा सा ग्लास था। भौजी के हाथ में बखीर थी।
और वो भी मुझे तब पता चला जब एक कौर मेरे मुँह में चला गया।
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14-05-2019, 07:07 PM
(This post was last modified: 14-05-2021, 05:10 PM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
उन्तीसवीं फुहार- कामिनी भाभी की बखीर
बखीर- मुझे अच्छी तरह मालूम था ये क्या चीज है और उससे भी ज्यादा ये भी मालूम था कि इसका असर क्या होता है? गुड़ चावल की खीर, लेकिन अक्सर इसे ताजे गन्ने के रस में बनाते हैं और जितना ताजा गन्ने का रस हो और जितना ही पुराना चावल हो उसका मजा और असर उतना ही ज्यादा होता है।
[/url]
गौने की रात दुल्हन को उसकी छोटी ननदें, जिठानियां गाँव में दुलहन को कमरे में भेजने के पहले इसे जरूर खिलाती हैं। दुलहन को उसके मायके में उसकी भौजाइयां, सहेलियां सब सीखा पढ़ा के भेजती हैं की किसी भी हालत में बखीर खाने से बचना और अगर बहुत मजबूरी हो तो बस रसम के नाम पे एक दो कौर, बस।
लेकिन यहां उसकी ननदें तैयार रहती हों, चाहे बहला फुसला के, चाहे जोर जबरदस्ती वो बिना पूरा खिलाये नहीं छोड़तीं। फायदा उनके भाई को होता है। अगर गौने की दुल्हन ने बखीर खा लिया तो वो… …
[/url]![[Image: bride-sgrt.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/12/20/bride-sgrt.jpg)
[url=<br /><br /><br /><br /><br /><br /><font]
उसकी तासीर इतनी गरम होती है कि थोड़ी देर में ही खुद उसका मन करने लगता है, और मना करना या बहाने बनाना तो दूर, खुद उनका मन करता है की कितनी जल्दी भरतपुर का… …
और बाहर खड़ी, दरवाजे खिड़की से ननदियां कान चिपकाए इन्तजार करती रहती हैं की कब भाभी की जोर से कमरे के अंदर से जोर की चीख आये, और फिर तो बाहर खड़ी ननदों, जिठानियों की खिलखिलाहटें, मुँह बंद करके, खिस खिस, और थोड़ी दूर जाग रही सास, चचिया, ममेरी, फुफेरी सब, एक दूसरे को देखकर मुश्कुरातीं और अगले दिन जो ननदें भाभी को कमरे से लाने जाती हैं तभी से छेड़खानी।
मुझे इसलिए भी मालूम है की किस तरह अपनी भाभी को मैंने बहाने बना के, फुसला के बखीर खिलाई थी, एकलौती ननद होने के रिश्ते से ये काम भी मेरा था।
लेकिन कामिनी भाभी जितना बखीर खिला रही थीं वो उसके दुगुने से भी ज्यादा रहा होगा।
मैंने लाख नखड़े बनाये, ना नुकुर किया, लेकिन कामिनी भाभी के आगे किसी ननद की आज तक चली है की मेरी चलती।
वो अपने हाथ से बखीर खिला रही थीं की कहीं जोर से कुछ गिरने की या दरवाजा खुलने ऐसी आवाज हुई।
भाभी ने बखीर मुझे पकड़ा दी और बोलीं-
“उनके लौटने से पहले बखीर खत्म हो जानी चाहिए। उन्हें लगा की कोई चूहा है या कोई दरवाजा ठीक से नहीं बंद था…”
वो चली गईं और उनके आने में पांच दस मिनट लग गए।
मेरा ध्यान बस इसी में था की कौन सा चूहा है जिसे भगाने में भाभी को इतना टाइम लग गया।
वो लौटीं तो मैंने छेड़ा भी-
“भौजी कौन सा चूहा था, कितना मोटा था? आपका कोई पुराना यार तो नहीं था की मौका देखकर आपके बिल के चक्कर में?”
मेरी बात काट के मुश्कुराती बोलीं वो-
“सही कह रही हो बहुत मोटा था (अंगूठे और तर्जनी को जोड़ के उन्होंने इशारा भी किया, ढाई तीन इंच मोटा होने का), और तुम्हारी बिलिया में घुसेगा घबड़ाओ मत। लेकिन बखीर खतम हुई की नहीं?”
और फिर उनके तगड़े हाथ ने जबरन मेरा गाल दबाया और दूसरे हाथ से बखीर लेके सीधे उन्होंने… पूरा खत्म करवा के मानी। वो बरतन किचेन में रखने गईं और मैं बिस्तर पे लेट गई, साड़ी से मैंने अपने उभार ढक लिए।
दिल मेरा धक-धक कर रहा था, अब क्या होगा?
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14-05-2019, 07:15 PM
(This post was last modified: 14-05-2021, 05:28 PM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
***** *****कन्या रस
![[Image: lez-luv.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/12/20/lez-luv.jpg)
कामिनी भाभी के साथ चीजें इतने सहज ढंग से होती थीं की पता ही नहीं चला कब हम दोनों के कपड़े हमसे दूर हुए, कब बातें चुम्बनों में और चुम्बन सिसकियों में बदल गए। पहल उन्होंने ही की लेकिन कुछ देर में ही उन्होंने खुद मुझे ऊपर कर लिया, जैसे कोई नई नवेली दुल्हन उत्सुकतावश विपरीत रति करने की कोशिश में, खुद अपने पति के ऊपर चढ़ जाती है।
![[Image: Lez-Gu-9239736.gif]](https://picsbees.com/images/2018/12/20/Lez-Gu-9239736.gif)
मैंने कन्या रस सुख पहले भी लिया था, लेकिन आज की बात अलग ही थी। आज तो जैसे 100 मीटर की दौड़ दौड़ने वाला, मैराथन में उतर जाय। कुछ देर तक मेरे होंठ उनके होंठों का अधर रस लेते रहे, उंगलियां उनके दीर्घ स्तनों की गोलाइयां नापने का जतन करती रहीं,
![[Image: nips-rub-lez-tumblr_ozl9tgbDTb1wf2484o1_400.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/12/20/nips-rub-lez-tumblr_ozl9tgbDTb1wf2484o1_400.jpg)
लेकिन कुछ ही देर में हम दोनों को लग गया की कौन ऊपर होना चाहिए और कौन नीचे।
कामिनी भाभी, हर तरह के खेल की खिलाड़िन, काम शास्त्र प्रवीणा मेरे ऊपर थीं लेकिन आज उन्हें भी कुछ जल्दी नहीं थी। उनके होंठ मेरे होंठ को सहला रहे थे, दुलरा रहे थे। कभी वो हल्के से चूम लेतीं तो कभी उनकी जीभ चुपके से मुँह से निकल के उसे छेड़ जाती और मेरे होंठ लरज के रह जाते।
![[Image: Lez-kiss-17097327.gif]](https://picsbees.com/images/2018/12/20/Lez-kiss-17097327.gif)
मेरे होंठों ने सरेंडर कर दिया था। बस, अब जो कुछ करना है, वो करें।
और उनके होंठों ने खेल तमाशा छोड़कर, मेरे होंठों को गपुच लिया अधिकार के साथ, कभी वो चुभलातीं, चूसतीं अधिकार के साथ तो कभी हल्के से अपने दांतों के निशान छोड़ देती। और इसी के साथ अब कामिनी भाभी के खेले खाए हाथ भी मैदान में आ गए। मेरे उभार अब उन हाथों में थे, कभी रगड़तीं कभी दबाती तो कभी जोर-जोर से मिजतीं। मैं गिनगिना रही थी, सिसक रही थी अपने छोटे-छोटे चूतड़ पटक रही थी।
लेकिन कामिनी भाभी भी न, तड़पाने में जैसे उन्हें अलग मजा मिल रहा था। मेरी जांघें अपने आप फैल गई थीं, चुनमुनिया गीली हो रही थी। लेकिन वो भी न… लेकिन जब उन्होंने रगड़ाई शुरू की तो फिर, मेरी दोनों खुली जाँघों के बीच उनकी जांघें, मेरी प्यासी गीली चुनमुनिया के ऊपर उनकी भूखी चिरैया, फिर क्या रगड़ाई उन्होंने की? क्या कोई मर्द चोदेगा जैसे कामिनी भाभी चोद रही थीं।
![[Image: Lez-pussy-rubbing-18174544.gif]](https://picsbees.com/images/2018/12/20/Lez-pussy-rubbing-18174544.gif)
और कुछ ही देर में वो अपने पूरे रूप में आ गईं, दोनों हाथ मेरे गदराये जोबन का रस ले रहे थे, दबा रहे थे, कुचल रहे थे, कभी निपल्स को फ्लिक करते तो कभी जोर से पिंच कर देते, और होंठ किसी मदमाती पगलाई तितली की तरह कभी मेरे गुलाल से गालों पे, तो कभी जुबना पे, और साथ में गालियों की बौछार, जिसके बिना ननद भाभी का रिश्ता अधूरा रहता है।
किसी लता की तरह मैं उनसे चिपकी थी, धीरे-धीरे अपने नवल बांके उभार भाभी के बड़े-बड़े मस्त जोबन से हल्के-हल्के रगड़ने की कोशिश कर रही थी।
![[Image: pussy-19999992.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/12/20/pussy-19999992.jpg)
मेरी चुनमुनिया जोर-जोर से फुदक रही थी, पंखे फैलाके उड़ने को बेताब थी। मैं पनिया रही थी। 8-10 मिनट, हालांकि टाइम का अहसास न मुझे था न मेरी भौजी को। मैं किनारे पर पहुँच गई, पहली बार नहीं, दूसरी तीसरी बार, लेकिन अबकी भाभी ने बजाय मुझे पार लगाने के, एकदम मझधार में छोड़ दिया।
शाम से ही यही हो रहा था, बंसती, गुलबिया और कामिनी भौजी, लेकिन अगले पल पता चला की हमला बंद नहीं हुआ, सिर्फ और घातक हो गया था। हम दोनों 69 की पोज में हो गए थे, भौजाई ऊपर और मैं नीचे।
और वहां भी वो शोले भड़का रही थीं। बजाय सीधे ‘वहां’ पहुँचने के उनके रसीले होंठों ने मेरी फैली खुली रेशमी जाँघों को टारगेट बनाया और कभी हल्के से लम्बे-लम्बे चाटना और कभी हल्के से किस, और बहुत बहुत धीमे-धीमे उनके होंठ मेरे आनद द्वार की ओर पहुँच गए, लेकिन कामिनी भाभी की गीली जीभ मेरे निचले होंठों के बाहरी दरवाजे के बाहर, बस हल्के-हल्के एक लाइन सी खींचती रही।
मैंने मस्ती से आँखें बंद कर ली थी, हल्के-हल्के सिसक रही थी। जोर से मेरी मुट्ठियों ने चादर दबोच रखी थी।
और जैसे कोई बाज झपट्टा मार के किसी नन्ही गौरैया को दबोच ले, बस वही हालत मेरी चुनमुनिया की हुई।
![[Image: pussy-licking-lesb-8.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/12/20/pussy-licking-lesb-8.jpg)
भाभी ने तो अपनी जीभ की नोक मेरी कसी-कसी रसीली गुलाबी चूत की फांकों के बीच डालकर दोनों होंठों को अलग कर दिया। उनकी जीभ प्रेम गली के अंदर थी, कभी सहलाती, कभी हल्के से प्रेस करती। मैं पनिया रही थी, गीली हो रही थी। फिर भाभी के दोनों होंठ… उन्होंने एक झपट्टे में दोनों फांको को दबोच लिया।
मैं सोच रही थी की वो अब चूस-चूसकर, लेकिन नहीं… उनके होंठ बस मेरे निचले होंठों को हल्के-हल्के दबाते रहे। रगड़ते रहे। लेकिन मेरी चूत में घुसी उनकी जीभ ने शैतानी शुरू कर दी। चूत के अंदर, कभी आगे-पीछे, कभी अंदर-बाहर, तो कभी गोल।
![[Image: lez-pussy-lick18077314.gif]](https://picsbees.com/images/2018/12/20/lez-pussy-lick18077314.gif)
जवाब मेरे होंठों ने उनकी बुर पे देना शुरू किया लेकिन वहां भी वही हावी थीं। जोर-जोर से रगड़ना, मेरे होंठों को बंद कर देना… हाँ, कभी-कभी जब वो चाहती थीं की उनकी छुटकी ननदिया उनके छेड़ने का जवाब दे, तो पल भर के लिए मेरे होंठ आजाद हो जाते थे।
कामिनी भाभी की जाँघों की पकड़ का अहसास मुझे अच्छी तरह हो गया था, किसी मजबूत लोहे की सँड़सी की पकड़ से भी तेज, मेरा सर उनकी जाँघों के बीच दबा था, और मैं सूत भर भी हिल नहीं सकती थी। और नीचे उसी मजबूती से उनके दोनों हाथों ने मेरी दोनों जांघों को कस के फैला रखा था।
उन्होंने इतनी जोर से चूसा की मैं काँप गई और साथ में हल्के से क्लिट पे जो उन्होंने बाइट ली की, बस लग रहा था अब झड़ी तब झड़ी।
![[Image: lez-tumblr_mfr04hf2jv1rxgcceo1_500.gif]](https://picsbees.com/images/2018/12/20/lez-tumblr_mfr04hf2jv1rxgcceo1_500.gif)
बस मन कर रहा था की जैसे कोई मोटा लम्बा आके, मेरी चूत की चूल चूल ढीली कर दे, लेकिन भौजी मेरी झड़ने दे तब न… जैसे ही मैं किनारे पे पहुँची, उन्होंने मेरी चूत पर से अपने होंठ हटा लिए और जबरदस्त गाली दी-
“काहें ननदी छिनार, भाईचोदी, तेरे सारे खानदान की गाण्ड मरवाऊँ तोहरे भैया से, तोहरी चूत को चोद-चोद के भोसड़ा न बनाय दिया तो तुहारे भैया ने…”
मैं भी कौन कम थी, अपनी भाभी की चुलबुली ननद, मैंने भी मुँह बना के जवाब दिया-
“भौजी आपके मुँह में घी शक्कर लेकिन भैया हैं कहाँ?”
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19-05-2019, 09:42 AM
(This post was last modified: 16-05-2021, 08:01 PM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
“काहें ननदी छिनार, भाईचोदी, तेरे सारे खानदान की गाण्ड मरवाऊँ तोहरे भैया से, तोहरी चूत को चोद-चोद के भोसड़ा न बनाय दिया तो तुहारे भैया ने…”
मैं भी कौन कम थी, अपनी भाभी की चुलबुली ननद, मैंने भी मुँह बना के जवाब दिया- “
भौजी आपके मुँह में घी शक्कर लेकिन भैया हैं कहाँ?”
जवाब भौजी ने अपने स्टाइल से दिया, दो उंगली से पूरी ताकत से उन्होंने चूत की दोनों फांकें फैला दिया और एक बार में जैसे कोई लण्ड पेले, गचाक से अपनी जीभ पूरी अंदर ठेल दिया और उनके दोनों होंठ जैसे कोई संतरे की फांक चूसे वैसे पहले धीमे-धीमे फिर जोर-जोर से, और उनकी शैतान उंगलियां भी खाली नहीं थीं।
जाँघों को सहलाते सहलाते सीधे क्लिट पे,
मेरे पास कोई जवाब नहीं था सिवाय अपने छोटे-छोटे कुंवारे चूतड़ मस्ती में बिस्तर पे पटकने के।
मुँह तो हमारा एक बार फिर भौजी की बुर ने कस के बंद कर दिया था और अब उनका इशारा समझ के मैं भी जोर-जोर से चूस रही थी। भाभी की जाँघों ने न सिर्फ मेरे सर को दबोच रखा था बल्की सीधे वो मेरी दोनों नरम कलाई पे थीं इसलिए मैं हाथ भी नहीं हिला सकती थी। नीचे मैं पनिया रही थी और ऊपर भाभी की चूत से भी एक तार की चाशनी निकलनी शुरू हो गई थी। क्या कोई मर्द किसी लौंडिया का मुँह चोदेगा, जिस ताकत से कामिनी भाभी मेरा मुँह चोद रही थीं।
क्या मस्त स्वाद था, लेकिन इस समय मन कर रहा था बस एक मोटे लम्बे… मैं तो बोल नहीं सकती थी,
भौजी ही बोली-
“कहो छिनार, चाही न तोहें मोटा लण्ड?”
मैं जवाब देने की हालत में नहीं थी क्योंकी एक तो कामिनी भाभी ने पूरी ताकत से अब अपनी बुर से मेरा मुँह बंद कर रखा था और दूसरे अबकी मैं तीसरी बार झड़ने के कगार पे थी।
तबतक किसी ने मेरी दोनों लम्बी टांगों को पकड़ के अपने मजबूत कंधे पे रख लिया।
भाभी ने अपने होंठ मेरी गीली कीचड़ भरी चूत से हटा लिया था
लेकिन उनके दोनों हाथों की उंगलियां कस के मेरे निचले होंठों को फैलाये हुयें थीं।
मैं एकदम हिलने की हालत में नहीं थी और तभी जो मैं चाह रही थी, एक खूब मोटे गरम सुपाड़े का अहसास,
मेरी चूत की दरार के बीच… जब तक मैं सम्हलूँ, दो तीन धक्के पूरी ताकत से, और आधे से ज्यादा मोटा सुपाड़ा मेरी चूत में।
मैं दर्द से कराह रही थी, लेकिन कामिनी भाभी ने ऊपर से ऐसे मुझे दबोच रखा था की न मैं हिल सकती थी न चीख सकती थी। ऊपर उनकी मोटी-मोटी जाँघों ने मेरे चेहरे को दबा रखा था।
सिर्फ दर्द का अहसास था और इस बात का की एक खूब मोटा पहाड़ी आलू ऐसा सुपाड़ा बुरी तरह मेरी बुर में धंसा है।
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19-05-2019, 09:46 AM
(This post was last modified: 16-05-2021, 07:59 PM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
तीसवीं फुहार-
भैय्या का फँस गया, धंस गया, अंड़स गया
मैं एकदम हिलने की हालत में नहीं थी और तभी जो मैं चाह रही थी, एक खूब मोटे गरम सुपाड़े का अहसास, मेरी चूत की दरार के बीच… जब तक मैं सम्हलूँ, दो तीन धक्के पूरी ताकत से, और आधे से ज्यादा मोटा सुपाड़ा मेरी चूत में।
मैं दर्द से कराह रही थी, लेकिन कामिनी भाभी ने ऊपर से ऐसे मुझे दबोच रखा था की न मैं हिल सकती थी न चीख सकती थी। ऊपर उनकी मोटी-मोटी जाँघों ने मेरे चेहरे को दबा रखा था।
सिर्फ दर्द का अहसास था और इस बात का की एक खूब मोटा पहाड़ी आलू ऐसा सुपाड़ा बुरी तरह मेरी बुर में धंसा है।
आगे
दर्द के मारे जान निकली जा रही थी। बस चीख नहीं पा रही थी क्योंकी कामिनी भाभी ने अपनी गीली बुर से मेरे मुँह को कस के दबोच रखा था। मैं छटपटा रही थी।
लेकिन कामिनी भाभी की तगड़ी मोटी जाँघों की पकड़ से हिलना भी मुश्किल था, ऊपर से अपनी देह से उन्होंने मुझे पूरी ताकत से दबा रखा था। उनके होंठ मेरी चूत से हट जरूर गए थे, लेकिन उनकी दोनों हाथ की उंगलियों ने चूत को फैला रखा था।
अभी तक मैं लण्ड के लिए तड़प रही थी लेकिन बस अब मन कर रहा था की बस किसी तरह ये मोटा बांस निकल जाय।
चूत फटी पड़ रही थी।
भाभी के होंठों ने एक बार फिर चूत के किनारे को चाटना शुरू कर दिया। और कुछ देर में ही मेरी फूली पगलाई बौराई क्लिट भौजी के दुष्ट होंठों के बीच थी।
चूसते-चूसते उन्होंने हल्के से एक बाइट ली और फिर मेरा बाँध टूट गया।
साथ में जोरदार धक्कों के साथ सुपाड़ा पूरा अंदर… पता नहीं मैं चूत में सुपाड़े के धक्के से झड़ी या भौजी ने जो जम के क्लिट चूसी, काटी थी।
लेकिन अब सब दर्द भूल के मैं सिसक रही थी, चूतड़ हल्के-हल्के ऊपर उचका रही थी और मौके का फायदा उठा के कभी गोल-गोल घुमा के, तो कभी पूरी ताकत से, सुपाड़े के साथ-साथ अब लण्ड भी थोड़ा सा अंदर पैबस्त हो गया था, करीब ⅓, दो तीन इंच। और झड़ना रुकने के साथ ही एक बार उस चूत फाडू दर्द का अहसास फिर से शुरू हो गया।
लेकिन अब कामिनी भाभी मेरे ऊपर से उठ गई, लेकिन उठने के पहले मेरे कान में फुसफुसा के बोलीं-
“छिनरो अब चाहे जितना चूतड़ पटको, सुपाड़ा तो गटक ली हो, अब बिना चोदे आई लण्ड निकलने वाला नहीं है। भाईचोद तो बन ही गई, अब आराम से चूतड़ उठा-उठा के अपने भैय्या का लण्ड घोंटों, मस्ती से चुदवाओ। चलो देख लो अपने भैय्या को…”
भौजी भैया को भी क्यों छोड़तीं, उनको भी लपेटा कामिनी भाभी ने-
“क्यों मजा आ रहा है न बहिन चोदने में? अरे हचक्क के चोदो छिनार को, दोनों चूची पकड़ के कस-कस के… उहू के याद रहे भैया से चोदवाये क मजा…”
मैंने हल्के-हल्के आँखें खोलीं।
मस्त हवा चल रही थी। बादलों और चांदनी की लुका छिपी में इस समय चाँद ने अपना घूँघट हटा दिया था और बेशर्म की तरह खुली खिड़की से उतरकर सीधे कमरे में बैठा था। खिड़की से एक ओर आम का घना बाग और दूसरी ओर दूर तक गन्ने का खेत दिख रहा था।
बारिश कब की थम चुकी थी, लेकिन कभी-कभी घर की खपड़ैल से और आम के पेड़ों से पानी की टपटप बूंदें गिर रही थीं।
और मैंने उनको देखा, कामिनी भाभी के ‘उनको’
ऊप्स ‘भैय्या’ को।
कामिनी भाभी ने मुझे कसम धरा दी थी की ‘उनको’ मैं भैया ही बोलूं, और मैं मान भी गई थी।
खूब गठा बदन, चौड़ा सीना, हाथों की मछलियां साफ दिख रही थी। ताकत छलक रही थी, और कैसी ललचाई निगाह से मुझे देख रहे थे, मेरे ऊपर झुके हुए।
कामिनी भौजी भी दूर नहीं गई थीं, मेरे सिरहाने ही बैठी थीं। मेरा सर अपनी गोद में लेकर, हल्के-हल्के दुलराते मेरा माथा सहला रही थीं। चिढ़ाते हुए कामिनी भौजी बोलीं-
“अरे ले लो न अब काहें ललचा रहे हो? अब तो तोहार बहिनिया तोहरे नीचे है…”
वो झुके, मुझे लगा मेरे होंठ… मेरी पलकें काँपकर अपने आप बंद हो गईं,
लेकिन उनके होंठ सीधे मेरे जुबना पर, एक निपल उनके होंठों में और दूसरा उनके हाथों के बीच। लेकिन बिना किसी जल्दीबाजी के, होंठ चुभलाते चूसते और हाथ धीरे-धीरे मेरे मस्त उभार रगड़ते मसलते।
मुझे चम्पा भाभी की बात याद आई, उन्होंने मुझे मेले में देखा था और तबसे मेरे जोबन ने उनकी नींद चुरा ली थी और बसंती ने भी यही बात कही थी की सिर्फ वोही नहीं गाँव के सारे मर्द मेरी मस्त चूचियों पे मरते हैं। मैंने निगाहे खोल दी और नीचे ले गई चोरी-चोरी, और सिहर गई।
उफ्फ्फ… कितना मोटा था, मैंने अब तक कितनों का घोंटा था, सुनील, अजय, दिनेश का… लेकिन किसी का भी, तो इतना नहीं था… ये तो एकदम मोटा बांस…
लेकिन मेरी चोरी पकड़ी गई, पकड़ने वाली और कौन, मेरी भौजी, कामिनी भौजी।
चोरी-चोरी मुझे देखते उन्होंने पकड़ लिया और कान में फुसफुसा के बोली-
“अरे ननद रानी तोहरे भैया का है, काहें छुप के देख रही हो। पसंद आया न? अब घोंटो गपागप्प…”
दर्द के मारे चूत फटी जा रही थी, फिर भी मैं मुश्कुरा पड़ी, भौजी भी न…
मुझे बसंती की बात याद आ रही थी, मर्द की चुदाई की बात और होती है? एकदम सही बोली थी वो। दर्द भी मज़ा भी। कोई और लड़का होता तो सिर्फ सुपाड़ा घुसा के छोड़ता थोड़े ही, उसे तो जल्द से जल्द पूरा घुसाने की जल्दी रहती। जैसे कोई दौड़ जीतनी हो, कुछ साबित करना हो, लेकिन जैसा बसंती ने बोला था मर्द सब मज़ा लेना भी जानते हैं और देना भी।
कुछ ही देर में मेरी चूत में दर्द का अहसास कम होने लगा, एक मीठी टीस थी अभी भी लेकिन इसके साथ जिस तरह वह चूत के ऊपरी नर्व्स को रगड़ रही थी, एक नए तरह का मजा भी मिल रहा था, सिसक भी रही थी, उफ्फ उफ्फ भी कर रही थी। और चूची की रगड़ाई मसलाई भी बहुत तेज हो गई थी। जैसे कोई आटा गूंथे वैसे।
पर कामिनी भौजी कहाँ चुप बैठने वाली थीं, उन्होंने उकसाया-
“अरे हचक-हचक के पेल दो पूरा लण्ड न… इस छिनार को आधे तीहे में मजा नहीं आता। चोद-चोद के एहकी बुरिया को आज भोसड़ा बना दो। तोहरी बहिन के इहाँ से रंडी बना के भेजूंगी…”
भैया ने मेरी दोनों चूचियां छोड़ दी, एक हाथ कमर पे, एक मेरे छोटे-छोटे कड़े चूतड़ों पे। थोड़ा सा सुपाड़ा उन्होंने बाहर निकाला और फिर क्या करारा धक्का मारा, कि मेरी आँखों के आगे तारे नाच गए।
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19-05-2019, 09:49 AM
(This post was last modified: 19-05-2021, 06:28 PM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
चीख
मेरी इतनी जोर से चीख निकली की आधे गाँव में सुनाई दिया होगा।
पूरी देह में दर्द की लहर दौड़ गई और अभी पहले धक्के के दर्द से उबरी भी नहीं थी की एक बार फिर, और अबकी पहले वाले से भी दूनी ताकत से… मुझे लग रहा था की मेरी चूत फट जायेगी। एक के बाद एक धक्के जैसे कोई धुनिया रुई धुने।
मेरी चीखें कुछ कम हो गई थीं, लेकिन बंद नहीं हुई थीं।
आँखों में दर्द का छलकता पानी, कुछ छलक कर गालों पे भी उतर आया था।
भैय्या का एक हाथ अभी भी जोर से मेरे चूतड़ को दबोचे हुआ था और दूसरा मेरी पतली कमर को पकड़े था।
चूचियां अब भौजी के कब्जे में थी और वो उसे कभी हल्के-हल्के सहलाती, दुलराती तो कभी कस-कस के मसल मीज देतीं और मुझे छेड़ते हुए बोलतीं-
“क्यों ननद रानी आ रहा है मजा चुदवाने का न? अब बन गई न भाईचोद?”
और भौजी भैया को भी छेड़तीं-
“अरे बहन की चुदाई क्या जब तक आधे गाँव को पता न चले, पेलो हचक-हचक के। बिना चीख पुकार के कच्ची कुँवारी चूत की चुदाई थोड़े ही होती है, चीखने दो छिनार को…”
कुछ भौजी की छेड़छाड़, कुछ जिस तरह वो चूची मीज मसल रही थी
और कुछ भैय्या के धक्कों का जोर भी अब कम हो गया था।
एक बार फिर से दर्द अब मजे में बदल गया था। चूत में अभी भी टीस हो रही थी, फटी पड़ रही थी, लेकिन देह में बार-बार हर धक्के के साथ एक मजे की लहर उठती। मैं सिसक रही थी, धक्कों का जवाब भी अब चूतड़ उठा के दे रही थी।
लेकिन तब तक भैया ने चोदना रोक दिया, और जब तक मैं कुछ समझ पाती, भौजी ने झुक के मेरे होंठों को चूम के बोला-
“बिन्नो, अभी सिर्फ आधा गया है, जो इत्ता चीख रही हो, आधा मूसल बाकी है…”
और मैंने शर्माते लजाते, कुछ डरते झिझकते देखा, तो सच में करीब तीन चार इंच बांस बाकी था।
मेरी तो जान निकल गई, और असली जान तो तब निकली,
जब भैया ने एक हाथ से अपने लण्ड को पकड़ के मेरी चूत में गोल-गोल घुमाना शुरू कर दिया।
जिस तरह वो मेरी सहेली की अंदर की दीवारों को रगड़ रहा था, दरेर रहा था, घिसट रहा था,
बस दो मिनट में वही हुआ जो होना था।
पहले मैं दर्द से मर रही थी और अब मजे से।
भैय्या ने उसके साथ दूसरे हाथ से मेरी क्लिट को छेड़ना मसलना शुरू कर दिया।
भौजी भी उनके साथ, जोर-जोर से मेरे निप्स को पिंच कर रही थी।
मन तो यही कह रहा था की भैया अब बाकी बचा मूसल भी मेरी चूत में डाल दें लेकिन कैसे कहती?
अपने ऊपर झुकी भौजी की आँखों से लेकिन मेरी प्यासी आँखों ने अपनी फरियाद कह दी, और हल भी भौजी ने बता दिया, मेरे कानों में-
“आरी बिन्नो, अरे मजा लेना है तो लाज शर्म छोड़ के खुल के बोल न अपने भैय्या से की पूरा लण्ड डाल के चोदें, जब तक तू नहीं बोलेगी न उनसे, न वो पूरा चोदेंगे, न तुझे झड़ने देंगे, बस ऐसे तड़पाते रहेंगे…”
मैंने उनकी ओर देखा, उनकी आँखें मेरी आँखों में झाँक रही थी, मुश्कुरा रही थीं जैसे मेरे बोलने का इन्तजार कर रही हो और मैंने बोल दिया-
“भैय्या, करो न… प्लीज, करो न… भैय्या, करो न…”
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19-05-2019, 10:03 AM
(This post was last modified: 19-05-2021, 06:39 PM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
“भैय्या, करो न प्लीज, करो न…”
… … …..
न उन्होंने धक्का मारा और न बोले, सिर्फ उनकी आँखें मेरी आँखों में झांकती रहीं। और फिर मुश्कुरा के हल्के से बोले-
“क्या करूँ, खुल के बोल न?”
मेरी चूत दर्द से परपरा रही थी, लेकिन उसमें चींटे भी जोर-जोर से काट रहे थे। लेकिन शर्म, झिझक अभी भी बहुत थी। किसी तरह हिम्मत करके बोली-
“भैय्या, रुको मत, डालो न पूरा, बहुत मन कर रहा है मेरा…”
“क्या डालूं मेरी बहना, खुल के बोल न?”
मेरे निपल से खेलते वो बोले।
दूसरे निपल को जोर से पिंच करते भौजी ने मेरे कान में फुसफुसाया-
“अरे छिनरो, साफ-साफ बोल तुझे तेरे भैय्या का मोटा लण्ड चाहिए, तुझे हचक के चोदें, वरना रात भर बिना झड़े तड़पती रहेगी…”
और मेरी तड़पन और बढ़ गई थी क्योंकी भैया के दूसरे हाथ के अंगूठे ने जोर-जोर से मेरी क्लिट को रगड़ना शुरू कर दिया था। मेरे चूतड़ अपने आप उछल रहे थे।
मेरा मन कर रहा था बस वो हचक के चोद दें।
अब बेशर्म चुदवासी की तरह मैं बोली-
“भैया, मुझे, आपकी बहन को आपका मोटा लण्ड चाहिए। चोदो न मुझे पूरा लण्ड डाल के, झाड़ दो मुझे…”
उन्होंने एक बार फिर मेरी दोनों लम्बी गोरी टाँगें अपने चौड़े कंधे पे सेट की और एक हाथ चूची से हट के मेरे चूतड़ पे आ गया।
लेकिन भौजी ने दोनों चूचियां दबोच ली और जोर-जोर से मीजने रगड़ने लगी।
मुझे लगा की भैय्या अब धक्का मारेंगे, लेकिन उन्होंने क्लिट को मसलने की रफ़्तार तेज की और मेरे गाल को कचकचा के काटते हुए, बोला-
“सुन चोदूंगा मैं तुझे, लेकिन आज ही नहीं रोज चुदवाना होगा, जहाँ कहूँ वहां आना होगा, हर जगह चुदवाना होगा…”
“हाँ भैया, हाँ…”
मैं चूतड़ पटक रही थी, सिसक रही थी।
उन्होंने लण्ड आलमोस्ट बाहर निकाल लिया, आधे से ज्यादा सुपाड़ा भी बाहर था, क्लिट वो जोर-जोर से दबा रहे थे, रगड़ रहे थे।
भैया-
“जिससे कहूँ उससे चुदवाना पड़ेगा, बहना मेरी समझ ले?”
मैं न कुछ सुनने की हालत में थी न समझने की हालत में। बस चूतड़ पटक रही थी, सिसक रही थी, हाँ हाँ बोल रही थी।
और अगला धक्का इतना तेज था की मैं आलमोस्ट बेहोश हो गई।
दर्द की जोर-जोर से चीखे निकल रही थी चौथे पांचवें धक्के में लण्ड ने सीधे बच्चेदानी पे धक्का मारा।
वो मोटा सुपाड़ा, पहाड़ी आलू जैसा बड़ा, तगड़ा सीधे मेरी बच्चेदानी पे, और मेरी चूत से जैसे कोई ज्वालामुखी फूटा,
मैं काँप रही थी, चीख रही थी, अपने चूतड़ जोर-जोर से चादर पर रगड़ रही थी।
झड़ रही थी।
आज तक मैं इतने जोर से नहीं झड़ी थी। झड़ती रही, झड़ती रही।
पता नहीं मैंने कितने देर तक आँख बंद करके बस जस की तस पड़ी रही। मेरे दोनों हाथ जोर से चादर को भींचे हुए थे।
और जब मैंने आँखों खोली तो, बाहर अब सब कुछ बदल गया था। चाँद की आँखें शैतान कजरारी बदरियों ने अपनी गदोरियों में बंद कर दी थी। बस बादलों से छिटक कर थोड़ी सी चाँदनी अभी भी कमरे में छलक रही थी।
बाहर खिड़की से दिखती अमराई और गन्ने के खेत अब स्याह अँधेरे में पुत गए थे।
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19-05-2019, 10:06 AM
(This post was last modified: 21-05-2021, 10:45 AM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
जादूगर सैयां, बना भैय्या
लेकिन अंदर कुछ भी नहीं बदला था।
भैय्या का ‘वो’, वो लण्ड अभी भी पूरी तरह पैबस्त था, एकदम जड़ तक, मेरी कुँवारी चूत में।
उनके हाथ अभी भी मेरी पतली कमरिया को पकड़े थे जोर से। उनकी जादू भरी आँखें मेरे चेहरे को टकटकी लगाए देख रही थीं, जैसे कोई नदीदा बच्चा हवा मिठाई देखता है।
कामिनी भाभी अभी भी अपनी गोद में मेरा सर रखे हल्के प्यार से मेरा सर सहला रही थीं। झड़ते समय तो लग रहा था मैं हवा में उड़ रही थी, लेकिन अब… मेरी पूरी देह टूट रही थी, दर्द में डूबी थी। खासतौर से दोनों फैली खुली जांघें फटी पड़ रही थीं। ऐसी थकान लग रही थी की बस…
मेरी खुली आँखों को देखकर भैय्या की आँखें मुश्कुराईं।
भाभी ने भी शायद कुछ इशारा किया, और जैसे कोई फिल्म जो फ्रीज हो गई,
एक बार फिर से स्लो मोशन में शुरू हो जाए बस उसी तरह।
भैय्या ने अपनी पोज जरा भी नहीं बदली, उनके हाथ मेरी कमर को थामे रहे।
उन्होंने अपने उसको भी न ही बाहर निकाला न धक्के शुरू किये। लण्ड उसी तरह पूरी तरह मेरी चूत में… बस, उनके लण्ड के बेस ने मेरी क्लिट को हल्के-हल्के रगड़ना शुरू किया,
पहले बहुत धीमे-धीमे, जैसे बाहर से हल्की-हल्की पुरवाई अंदर आ रही थी। कोई धीरे से आलाप छेड़े
लेकिन कुछ देर में रगड़न का जोर और स्पीड दोनों बढ़ने लगी।
भौजी ने ऊपर की मंजिल सम्हाली। पहले तो माथे से उनका एक हाथ मेरे चिकने-चिकने गाल को सहलाता रहा लेकिन जैसे ही भैय्या के लण्ड के बेस ने क्लिट को रगड़ने की रफ़्तार तेज की उन्होंने मेरे दोनों जुबना को दबोच लिया,
लेकिन बहुत हल्के से, प्यार से, कभी सहलाती, तो कभी धीरे से मीज देती। झुक के उन्होंने मेरे होंठ भी चूम लिए।
मुझसे ज्यादा कौन जानता था उनकी उंगलियों के जादू को। और भैया और भौजी के दुहरे हमले का असर तुरंत हुआ, एक बार फिर मेरे तन और मन दोनों ने मेरा साथ छोड़ दिया। दर्द से देह टूट रही थी लेकिन मेरे चूतड़ हल्के-हल्के भैय्या के लण्ड के बेस की रगड़ाई के लय में ऊपर-नीचे होने लगे।
जैसे ही भौजी मेरे निपल्स पिंच किये मस्ती की सिसकी जोर से मेरे होंठों से निकली।
दिल का हर तार हिला छिड़ने लगी रागिनी, और कुछ ही देर में भइया ने लण्ड हल्के से थोड़ा सा बाहर निकाला और बहुत हल्के से पुश किया।
जिस तरह से उनका मोटा लण्ड मेरी चूत की दीवालों को रगड़ते दरेरते अंदर-बाहर हो रहा था, मस्ती से मैं काँप रही थी।
भौजी ने झुक के एक निपल मेरे होंठों में भर लिया और लगी पूरी ताकत से चूसने,
दूसरी चूची उनके हाथों से रगड़ी मसली जा रही थी।
बहुत समय नहीं लगा मुझे उस आर्केस्ट्रा का हिस्सा बनने में।
मैं कमर हिला रही थी, चूतड़ उचका रही थी। और जब मेरी दोनों लम्बी गोरी टांगों ने भैया की कमर को लता की तरह घेर के दबोच लिया, अपनी ओर खींचना शुरू कर दिया, मेरे दोनों हाथ उनके कंधे पे थे, मेरे लम्बे नाखून उनके शोल्डर ब्लेड्स पे धंस रहे थे और जब मैंने खुद बोल दिया-
“ओह्ह… आह्ह… भैय्या करो न… आह्ह्ह्ह्ह…”
फिर तो कमरे में वो तूफान मचा।
एक बारगी उन्होंने लण्ड आलमोस्ट बाहर निकाल लिया और मेरे दोनों चूतड़ों को पकड़ के वो करारा धक्का मारा की सीधे सुपाड़ा बच्चेदानी पे।
बालिश्त भर का उनका पहलवान अंदर। दर्द से मेरी जान निकल गई लेकिन साथ-साथ मजे से मैं सिहर गई।
लेकिन मेरा सैयां बना भैय्या जानता था मुझे क्या चाहिये? आज की पूरी रात उनके नाम थी।
और बचा खुचा बताने के लिए थीं न मेरी भौजी-
“अरे चोदो न हचक-हचक के, मुझे तो इतनी जोर से… और तुम्हारी बहन है तो रहम दिखा रहे हो, फाड़ दो इसकी आज…”
भौजी ने मौके का फायदा उठाया, और साथ उनकी ननद यानी मैंने भी दिया, अपना चूतड़ जोर से उचकाकर।
और खूब जोर से भैय्या को अपनी ओर खींचकर। फिर क्या था, एक बार फिर से मेरी दोनों उभरती चूचियां भैय्या के कब्जे में आ गईं और अब वो बिना किसी रहम के उसे मसल रहे थे थे, रगड़ रहे थे और धक्के पर धक्के मसर रहे थे।
“दोनों जुबन जरा कस के दबाओ, लगाय जाओ राजा धक्के पे धक्का…”
भौजी ने एक बार फिर भैय्या को उकसाया।
चूत दर्द से फटी जा रही थी, फिर भी मस्ती में चूर मेरी देह उनके हर धक्के का जवाब धक्के से दे रही थी।
जब उनका सुपाड़ा मेरी बच्चेदानी से टकराता तो रस में डूबी चूत जोर से उनके मोटे लण्ड को भींच लेती जैसे कभी छोड़ेगी नहीं।
और कामिनी भाभी अब भैया के पास बैठी कभी उन्हें उकसातीं कभी छेड़ती, और मेरी भौजी हो तो बिना गालियों के… लेकिन अब गालियों की रसीली दरिया में मैं और भैय्या भी खुल के शामिल हो गए थे। और अक्सर मैं और भैया एक साथ…
“क्यों मजा आ रहा है भैया को सैयां बना के चुदवाने का?”
भौजी ने मुझे चिढ़ाया।
लेकिन मैंने भी जवाब उसी लेवल का दिया-
“अरे भौजी रोज-रोज हमरे भैया से चुदवावत हो तो एक दिन तो हमारा भी हक बनता है न, क्यों?”
भैय्या की आँखों में झांक के मैंने बोला और भौजी को सुना के गुनगुनाया-
“सुन सुन सुन मेरे बालमा…”
और सीधे उनके होंठों को चूम लिया।
भैया ने भी जवाब अपने ढंग से दिया, आलमोस्ट मुझे दुहरा करके वो धक्का मारा की, बस जान नहीं निकली। और भौजी को सुनाते मुझसे बोले-
“तू एकदम सही कह रही है। एक दिन क्यों? हर रोज, बिना नागा, जब तक तू है यहां पे, अरे मेरी बहन पे जोबन आया है तो मैं नहीं चोदूंगा तो कौन चोदेगा?”
दर्द बहुत हुआ लेकिन मजा भी बहुत आया, उस धक्के में।
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19-05-2019, 10:08 AM
(This post was last modified: 21-05-2021, 11:07 AM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
दर्द बहुत हुआ लेकिन मजा भी बहुत आया, उस धक्के में।
मैं एक बार फिर झड़ने के कगार पे थी, लेकिन बजाय रुकने के भैय्या ने एक और ट्रिक शुरू कर दी थी वो पोज बदल लेते थे। आसन बदल-बदल कर चोदने में मुझे भी एक नया मजा आ रहा था।
उन्होंने उठाकर मुझे गोद में बिठा लिया लेकिन इस तरह की उनका लण्ड उसी तरह मेरी चूत में धंसा हुआ था।
कामिनी भाभी ने मेरी टाँगें एडजस्ट करके उनकी पीठ के पीछे फंसा दी।
अब मैं गोद में थी, लण्ड अंदर जड़ तक धंसा हुआ, और मेरी चूचियां उनके सीने में रगड़ खाती।
मेरी थकान कुछ कम हुई इस आसन में क्यंकि अब उनके धक्के का असर उतना नहीं हो रहा था।
“जरा हमरी ननदिया को झूला झुलाओ, मैं आती हूँ…”
बोल के भाभी चली गईं।
बाहर हवाएं तेज हो गईं थी, रुक-रुक के हल्की बूंदें भी शुरू हो गई थीं।
और फिर उन्होंने हल्के-हल्के अंदर-बाहर, और मैं भी उन्हीं के ताल पे आगे-पीछे, आगे-पीछे, एकदम झूले का मजा था। जब वो बाहर निकालते तो मैं भी कमर पीछे खींच लेती और सुपाड़ा तक बाहर निकालने के बाद कुछ रुक के जब मेरी कमरिया पकड़ के वो पुश करते तो मैं उन्हीं की स्पीड में बराबर के जोर से धक्के मारती।
उनका हाथ मेरी पीठ पे, मेरा हाथ उनकी पीठ पे, साथ-साथ हम दोनों एक दूसरे को चूम रहे थे, चाट रहे थे।
भाभी एक बड़े गिलास में दूध भर के ले आईं, कम से कम दो अंगुल तक मलाई। हम दोनों ने तो पिया ही थोड़ा बहुत भौजी को भी… और फिर तो भैया को एकदम जैसे नई ताकत… और मेरी भी सारी थकान जैसे उतर गई।
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(19-05-2019, 11:15 AM)Badstar Wrote: Bhut hotttt update
Thanks so much
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11-06-2019, 08:28 AM
(This post was last modified: 21-05-2021, 11:18 AM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
भइया का मूसल ,... रात भर
अब तक
दर्द बहुत हुआ लेकिन मजा भी बहुत आया, उस धक्के में। मैं एक बार फिर झड़ने के कगार पे थी, लेकिन बजाय रुकने के भैय्या ने एक और ट्रिक शुरू कर दी थी वो पोज बदल लेते थे। आसन बदल-बदल कर चोदने में मुझे भी एक नया मजा आ रहा था।
उन्होंने उठाकर मुझे गोद में बिठा लिया लेकिन इस तरह की उनका लण्ड उसी तरह मेरी चूत में धंसा हुआ था। कामिनी भाभी ने मेरी टाँगें एडजस्ट करके उनकी पीठ के पीछे फंसा दी।
अब मैं गोद में थी, लण्ड अंदर जड़ तक धंसा हुआ, और मेरी चूचियां उनके सीने में रगड़ खाती।
मेरी थकान कुछ कम हुई इस आसन में क्यंकि अब उनके धक्के का असर उतना नहीं हो रहा था।
“जरा हमरी ननदिया को झूला झुलाओ, मैं आती हूँ…” बोल के भाभी चली गईं।
बाहर हवाएं तेज हो गईं थी, रुक-रुक के हल्की बूंदें भी शुरू हो गई थीं।
और फिर उन्होंने हल्के-हल्के अंदर-बाहर, और मैं भी उन्हीं के ताल पे आगे-पीछे, आगे-पीछे, एकदम झूले का मजा था।
जब वो बाहर निकालते तो मैं भी कमर पीछे खींच लेती और सुपाड़ा तक बाहर निकालने के बाद कुछ रुक के जब मेरी कमरिया पकड़ के वो पुश करते तो मैं उन्हीं की स्पीड में बराबर के जोर से धक्के मारती। उनका हाथ मेरी पीठ पे, मेरा हाथ उनकी पीठ पे, साथ-साथ हम दोनों एक दूसरे को चूम रहे थे, चाट रहे थे।
भाभी एक बड़े गिलास में दूध भर के ले आईं, कम से कम दो अंगुल तक मलाई।
हम दोनों ने तो पिया ही थोड़ा बहुत भौजी को भी… और फिर तो भैया को एकदम जैसे नई ताकत… और मेरी भी सारी थकान जैसे उतर गई।
आगे
(ये तो मुझे बाद में पता चला की इस दूध में कुछ रेयर हर्ब्स पड़ी थी जिससे उनकी ताकत दूनी हो गई और मेरी थकान कम होने के साथ-साथ उत्तेजना भी बढ़ गई। शिलाजीत, अश्वगंधा, जिनसेंग, सफेद मूसली, शतावरी, शुद्ध कुचला, केसर और भी बहुत कुछ)
कुछ देर बाद मैं फिर उनके नीचे थी। और अब मूसल लगातार चल रहा था।
मैं चीख रही थी, सिसक रही थी। लेकिन वो रुकने वाले नहीं थी और न मैं चाहती थी की वो रुकें।
दो बार मैं झड़ चुकी थी। एक बार जब उन्होंने पहली बार सुपाड़ा ठेला था और दूसरी बार जब उन्होंने पूरा लण्ड पेल दिया था, सुपाड़ा बच्चेदानी से टकराया था। तीसरी बार जब मैं झड़ी तो साथ में वो भी, हम दोनों साथ-साथ देर तक, लण्ड जड़ तक चूत में घुसा था।
मैं बुरी तरह थक गई थी। हम दोनों एक दूसरे को बाँहों पकड़े जकड़े भींचे सो गए।
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11-06-2019, 08:32 AM
(This post was last modified: 23-05-2021, 11:01 AM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
***** *****इकतीसवीं फुहार
मेरी नींद जब खुली तो बाहर अभी भी पूरा अँधेरा था। मैं करवट लिए लेटी थी, सामने की ओर कामिनी भाभी और पीछे उनके पति, भैया।
सोते समय भी उन्होंने पीछे से मुझे कस के दबोच रखा था, एक हाथ उनका मेरे एक उभार पे था।
दूसरा उभार भौजी के हाथ में था।
रात अभी बाकी थी। मैंने फिर सोने की कोशिश की तो लगा मेरे उठने के चक्कर में कामिनी भाभी की नींद भी टूट गई थी। कामिनी भाभी की उंगलियां अब मेरे जोबन पे हल्के-हल्के रेंगने लगी थीं।
मै डर गई।
कहीं भैय्या भी जाग गए, और वो दोनों लोग मिल के चालू हो गए तो?
अभी भी नीचे बहुत दर्द हो रहा था। मैंने झट से आँखें बंद कर ली और फिर से सोने की ऐक्टिंग करने लगी।
लेकिन बचत नहीं थी। लगता है मेरे हिलने डुलने से कामिनी भाभी के पति की भी नींद खुल गई और मेरे उभार पे जो उन्होंने हाथ सोये में रखा था, वो हल्के-हल्के उसे दबाने सहलाने लगा।
मैंने खर्राटे की एक्टिंग की और ऐसे की जैसे मुझे पता न चल रहा हो की वो दोनों जग गए हैं।
लेकिन कामिनी भाभी भी न… उनसे कौन ननद बच पाई है जो मैं बच पाती? झट से दूसरे हाथ से गुदगुदी लगानी शुरू कर दी और बोलीं-
“मेरी बिन्नो, आई छिनारपना कहीं और करना, मुझे सब मालूम है कि अच्छी तरह जग गई हो, अब नौटंकी मत करो…”
खिलखिलाते हुए मैंने आँखें खोल दी और करवट से अब सीधे पीठ के बल लेट गई।
बस मुझे दोनों ने बाँट लिया, एक उभार भैया के हाथ में तो दूसरा भौजी ने दबोच रखा था। और सिर्फ चूचियां ही नहीं गाल भी, एक पे कामिनी भौजी हल्के-हल्के किस कर रही थी
तो दूसरे पे लिक करते-करते उन्होंने कचकचा के गाल काट लिया।
“उईई… आह्ह्ह… लगता है…”
मैं जोर से चीखी। नींद अच्छी तरह भाग गई।
“सब कुछ तो ले लिहला, गाल जिन काटा, भैय्या बहुते खराब तू त बाटा…”
भौजी ने मुझे चिढ़ाया लेकिन भैय्या को और उकसाया-
“अरे अस मालपुआ जस गाल है, खूब मजे ले कचकचा के काटा, दो चार दिन तक तो निशान रहना चाहिए। अरे पूरे गाँव को पता तो चलना चाहिए न की छुटकी ननदिया केहसे गाल कटवा के आय रही हैं…”
भैय्या कभी भौजी की बात टालते नहीं थे, तो उन्होंने एक फिर उसी जगह पे दुहरी ताकत से… और अबकी जो गाल पे निशान पड़ा तो सचमुच में तीन चार दिन से पहले नहीं मिटने वाला था। वो खूब मस्ता रहे थे।
उन्होंने अपने हाथ से मेरी चूची अब जोर-जोर से पकड़ ली थी और खूब कस-कस के मीज रहे थे।
भौजी दोनों ओर से आग लगा रही थीं, वैसे उन्होंने मुझे खुद अपनी असली ननद बनाया था तो कुछ मेरा हक तो बनता ही था न। उन्होंने अब मेरी साइड ली और कान में फुसफुसाया-
“सिर्फ वही थोड़ी पकड़ सकते हैं, तू भी तो पकड़ा पकड़ी कर सकती है। उनके पास भी तो है पकड़ने के लिए?”
भौजी का इशारा काफी था। वैसे भी ‘वो’ थोड़ा सोया थोड़ा जागा बहुत देर से मेरे पिछवाड़े पड़ा था। और जब वो जग जाता तो इतना मोटा हो जाता की मेरी मुट्ठी में समाता ही नहीं। बस मैंने पकड़ लिया। अभी भी थोड़ा थोड़ा सोया ही था।
सिर्फ पकड़ने से थोड़े ही होता है, मैंने हल्के-हल्के मुठियाना भी शुरू कर दिया।
डरती तो थी लेकिन इतना भी नहीं, अभी थोड़ी देर पहले ही पूरा घोंट चुकी थी। फिर अजय सुनील ने पकड़वाके और चन्दा मेरी सहेली, चम्पा भाभी, बसंती की संगत में मुठियाना, रगड़ना सीख भी गई थी। फिर जब हम तीनों अच्छी तरह जग गए थे तो उसके सोने का क्या मतलब?
भैया जोर-जोर से मेरी चूचियां मसल रहे थे, मजे ले ले के मेरे मुलायम मुलायम गाल काट रहे थे। कामिनी भाभी भी दूसरे उभार को अपनी मुट्ठी में ले के मजे ले रही थी। और मैं भी इन दोनों के साथ, और ‘उसे’ ले के जोर-जोर से मुठिया रही थी।
नतीजा वही हुआ जो होना था, शेर अंगड़ाई ले के जाग गया।
पर बसंती, गुलबिया का सिखाया पढ़ाया, मैंने एक झटके से खींचा तो सुपाड़ा खुल गया।
खूब मोटा, एकदम कड़ा, लेकिन था तो मेरी मुट्ठी में, मुझे एक और शरारत सूझी। मैंने अंगूठे से सुपाड़े पे रगड़ दिया, और वो मस्ती से गिनगिना उठे।
भौजी ने मस्ती से, कुछ तारीफ से मेरी ओर देखा।
मेरी शैतानी और बढ़ गई, और मैंने अंगूठे को सीधे ‘पी-होल’ (पेशाब के छेद) पे लगाकर हल्के से दबा दिया।
अब भैय्या के पास जवाब देने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था। उनका अपना एक हाथ मेरी दोनों जाँघों के बीच पहुँच गया और उंगलियां प्रेम गली की ओर बढ़ने लगीं।
बुर मेरी अभी भी किसी ताजी चोट की तरह दुःख रही थी। जांघें भी दर्द से फटी पड़ रही थीं। मुझे डर लगा की कहीं भैया दुबारा मेरी बुर तो नहीं… बुरी हालत थी बुर की। मैंने उसी अदालत में गुहार लगाई-
“भौजी, भैय्या से बोलिए वहां नहीं, प्लीज वहां नहीं…”
“अरे वहां नहीं, मतलब कहाँ नहीं? नाम डुबो देगी मेरा, बोल साफ-साफ?” उलटे कामिनी भाभी की डांट पड़ गई।
“भौजी, भैय्या से बोल दीजिये, उन्हें मना कर दीजिये, बहुत दुःख रहा है, भईया से कहिये दीजिये मेरी… मेरी चूत मत चोदें। चूत बहुत दुःख रही है…”
भैय्या ने दूसरा रास्ता निकाला, उन्होंने अपनी उंगली मेरी चूत के मुहाने पे लगा दी और अभी कुछ देर पहले लण्ड के जो धक्के उसने खाए थे, जो चोटें लगी थी, दर्द से मैं दुहरी हो गई। जोर से चीख उठी- “भौजी नहींईऽऽऽ उंगली भी नहीं, चूत में कुछ मत डालें, मना करिये न उन्हें…”
और अब डांट भैय्या को पड़ी-
“सुन नहीं रहे हो क्या बोल रही है बिचारी? इसकी चूत को हाथ भी मत लगाओ, न चोदना, न उंगली करना…”
भौजी को देखकर मैंने जोर-जोर से हामी में सर हिलाया।
भइया ने तुरंत हाथ हटा दिया। प्यार से मेरे बाल सहलाते बोले-
“न बुर चोदना है न बुर में उंगली करना है, क्यों बिन्नो?”
मैंने खुशी में मुश्कुराते हुए हामी में सर हिलाया। लेकिन भैया को भी तो थैंक्स देना था, उनके सामने से रसमलाई हटा ली थी मैंने, कहीं गुस्सा न हो जाएं। तो मुड़ के मैंने उन्हें देखकर भी एक किस सीधे उनके लिप्स पे दिया और फिर एक बार जोर से मुठियाने लगी।
भैय्या की जीभ मेरे मुँह में थी और मैं उसे प्यार से चूस रही थी। भैया मेरे दोनों उभार अब जोर-जोर से मसल रहे थे और मैं उनके भी दूने जोर से उनका लण्ड दबा रही थी, मसल रही थी, मुठिया रही थी।
भाभी मुझे हल्के-हल्के चूम रही थीं, फिर मेरे कान में बोली-
“तूने उसे तो एकदम खड़ा कर दिया और फिर चुदवाने से भी मना कर दिया। कम से कम एकाध चुम्मी तो दे दे उसे…”
उसमें मुझे कोई ऐतराज नहीं था। अजय ने खूब चुसवाया था मुझे। तो भैय्या के लण्ड को चूसने में कौन ऐतराज हो सकता था।
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Uff tar tum writer bohat khatarnak ho Komal fadu update
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11-06-2019, 09:14 AM
(This post was last modified: 23-05-2021, 11:04 AM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
चुसम चुसववल
अजय ने खूब चुसवाया था मुझे। तो भैय्या के लण्ड को चूसने में कौन ऐतराज हो सकता था।
और जब तक मैं कुछ समझूँ, भैय्या सरक के पलंग के सिरहाने, और ‘वो’ एकदम मेरे रसीले होंठों के पास।
“जोर से आऽऽ बोल जैसे एक बार में पूरा लड्डू घोंटती है न, खोल पूरा मुँह…”
भौजी बोलीं।
और मैंने भी पूरी ताकत से मुँह खोल दिया, एक बार में पूरा सुपाड़ा, और भैय्या ने जो मेरा सर पकड़ के धक्का मारा, तो आधा लण्ड मेरे मुँह में था।
आलमोस्ट गले तक। चूसा मैंने पहले भी था, लेकिन… जो मजा अभी आ रहा था, इतना बड़ा, इतना मोटा, इतना कड़ा। पूरा मुँह मेरा भर गया था, गाल फूल गए थे, ऊपर तलुवे तक रगड़ खा रहा था और नीचे से मेरी जीभ चपड़-चपड़ चाट रही थी, होंठ लण्ड को दबोचे हल्के-हल्के दबा रहे थे।
कुछ देर पहले जैसे अंगूठे और तरजनी के बीच मैं उसे पकड़े थी, अब मुझे भी आदत हो गई थी, पकड़ने की रगड़ने की। और एक मजा लेने के बाद मैं क्यों मौका छोड़ती? एक बार फिर से लण्ड के बेस पे मेरी मुट्ठी ने उसे पकड़ लिया, हल्के-हल्के दबाते सहलाते आगे-पीछे, आगे-पीछे, चाट भी रही थी, चूस भी रही थी, मुठिया भी रही थी।
कितना मजा आ रहा था मुझे बता नहीं सकती।
उन्हें कोई जल्दी नहीं थी न कोई धक्का, न पुश, बस अपने मुँह में उस कड़े मोटे खूंटे का मजा मैं ले रही थी और मेरे गरम-गरम, मखमली किशोर मुँह का मजा वो।
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खडा होगया
Some would say I am the REVERSE
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(03-07-2019, 10:31 AM)Theflash Wrote: खडा होगया
इसी लिए तो लिखा था और अब अगला अपडेट
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Please do share your views
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