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Incest शादीशुदा बहन को मस्ती से चोदा
सवेरे जब मैं नहाने गया.. तो मैं जानबूझ कर अपने कपड़े नहीं ले गया और नहाने के बाद सिर्फ़ गमछा पहन कर बाहर आया और दीदी को कहा- मेरे कपड़े कहाँ हैं?

तब दीदी मेरे कपड़े देखने लगीं.. तो मैंने लण्ड को गमछे के छेद से बाहर निकाला.. मैंने पहले ही गमछे में छेद कर रखा था। जब दीदी ने मेरी अंडरवियर मुझे दी.. तो मैंने कहा- इसमें तो चींटी लगी हैं।

मैं चींटी निकालने लगा.. तब मेरा 7″ का तना हुआ लण्ड दीदी को सलाम कर रहा था। दीदी ने उसको थोड़ी नजर भर कर देखा और शरमा के भाग गईं।

बाद में दीदी जब नहाने जा रही थीं.. तो मैंने मेरे मोबाइल से अपने ही घर के लैंड लाइन वाले फोन पर घंटी की.. और दीदी को आवाज लगा दी- प्लीज़ फोन उठा लो.. दीदी जब फोन सुनने गईं.. तब मैं बाथरूम में जाकर उनके सारे कपड़े ले आया।

जब दीदी नहा रही थीं.. तब मैंने बाथरूम के दरवाजे की दरार से उन्हें नहाते हुए देख रहा था।

अपने सारे कपड़े दीदी ने उतार दिए.. सिर्फ़ अंडरवियर बाकी था। दीदी के सख्त मम्मे.. बड़े ही मस्त.. बड़े-बड़े तने हुए थे और अंगूर जैसे निप्पल थे।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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दीदी नहाने लगीं.. जब दीदी ने सब जगह साबुने लगा लिया.. तो अंडरवियर में हाथ डाल कर चूत में साबुन लगाया।
शायद कभी दीदी ने चूत की शेविंग नहीं की थी.. उनकी झांटें साफ नज़र आ रही थीं।

फिर वे पानी डालकर नहाने लगीं और थोड़ी देर बाद दीदी ने अंडरवियर में हाथ डाल लिया और चूत को सहलाने लगींस।
मैं समझ गया कि दीदी अब गर्म हो गई हैं।

वे चूत को सहलाते-सहलाते हाँफने लगीं
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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इतना सब होने पर भी दीदी ने चड्डी नहीं निकाली।
नहाने के बाद गमछे से अपना तन पोंछने लगीं.. तब मैं वहाँ से चला गया।

बाद में दीदी ने मुझे आवाज़ दी.. मैं गया.. तो दीदी बोलीं- मेरे कपड़े दे दो.. शायद मैं बाहर भूल आई हूँ..
मैं कपड़े देखने का नाटक करने लगा.. और मैंने कहा- मुझे नहीं मिल रहे हैं..

तो दीदी बोलीं- मेरे पास कपड़े नहीं है.. पहले सारे कपड़े भिगो दिए.. अब क्या करूँ?
मैंने कहा- गमछा लपेट कर आ जाओ न..

तो दीदी बाहर निकलीं.. दीदी का पूरा बदन गमछे से साफ नज़र आ रहा था।
मैं दीदी को ही देख रहा था। गमछा भीग जाने के कारण पूरा पारदर्शी हो गया था था।

दीदी बोलीं- मेरे कपड़े कहाँ हैं।
मैं दीदी के मम्मे देख रहा था।

वो अभी भी अपने पूरे रंग में थे.. फिर दीदी कमरे में गईं.. मैं भी दीदी के पीछे-पीछे चला गया।

दीदी बोलीं- तुम यहाँ क्या कर रहे हो?
मैंने कहा- आप को देख रहा हूँ।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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तो दीदी ने मुझे गुस्से से कहा- मैं तेरी बहन हूँ।
उन्होंने मुझे एक ज़ोर का तमाचा मेरे गाल पर मार दिया और कमरे के बाहर निकाल दिया।
बाद में मैं दीदी से नज़र नहीं मिला पा रहा था।
उनके साथ बात भी नहीं कर रहा था।
दो दिन बाद दीदी ने कहा- मुझे कार चलानी सीखनी है।
मैंने कहा- मैं नहीं सिखाऊँगा।
तब दीदी मेरे पास आईं और मुझे समझाने लगीं- ये बात ग़लत है.. मैं तेरी बहन हूँ।
मेरे दिमाग में नया ही ख्याल आया और मैंने कहा- ठीक है।

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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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दीदी को गाड़ी सिखाने को तैयार हो गया और हम लोग खाली रोड पर गाड़ी ले गए।
वो रोड अच्छा था और दोपहर होने कारण वहाँ कोई ट्रैफिक भी नहीं था।

मैंने उनके साथ जाने से पहले ही मेरी अंडरवियर बाथरूम में निकाल दी थी। अब मैंने दीदी को ड्राइविंग सीट पर बैठाया और मैं दीदी के बगल वाली सीट पर बैठ गया।

मैंने दीदी को गाड़ी चलाने को कहा.. तो दीदी ने एकदम से तेज भगा दी।

एकदम से दीदी डर गईं और मैंने हैण्ड ब्रेक लगा दिया।

दीदी ने कहा- ये मेरे से नहीं होगा।
तो मैंने दीदी से कहा- फिर से ट्राई करो न..
फिर से दीदी ने वैसे ही किया.. तो दीदी बोलीं- रहने दो.. मेरे से नहीं होगा।

फिर मैंने दीदी को मेरी सीट पर बैठाया और ड्राइविंग सीट पर मैं आ गया।
दीदी से कहा- मैं कैसे चलाता हूँ.. वो देखो..

मैं गाड़ी चलाने लगा और साथ उनको समझाने लगा।
कुछ दूर जाने के बाद मैंने दीदी से कहा- अब आप चलाइए।

दीदी नहीं मानी.. तो मैंने कहा- एक काम करते हैं मैं यहीं पर ही बैठा हूँ.. और आप मेरे आगे बैठ जाओ.. मैंने पीछे से आपको बताता रहूँगा।
तो दीदी ने कहा- हाँ, यह ठीक है।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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जब दीदी ने मेरी तरफ आने के लिए गेट खोला.. तो मैंने मेरे पैन्ट की चैन खोल दी.. और लण्ड को बाहर निकाल कर शर्ट से छुपा दिया।
आज दीदी ने सलवार-कुरता पहना था।
दीदी जब आईं तो मैंने उनको अपनी गोद में बैठा लिया और उनके पीछे होते-होते मैंने दीदी का कुरता ऊपर कर दिया और अपनी शर्ट को भी ऊपर कर दिया।

अब जैसे ही दीदी मेरी गोद में बैठीं.. तो मेरा लण्ड उनकी गाण्ड को टच होने लगा।
तो दीदी ने पीछे मुड़कर देखा.. पर कुछ कहा नहीं। उनको लगा कि मेरा लण्ड पैन्ट में होगा।

मैंने मेरे पैर उनके पैर के नीचे से ऊपर ले लिए ताकि वो हिल ना सकें।
मुझे उनके चूतड़ों से रगड़ने का सुख मिलने लगा जिससे मेरे लौड़े में और तनाव आ गया।

मैंने गाड़ी स्टार्ट की और चलाने लगा। मेरा लण्ड खड़ा होते-होते उनकी गाण्ड के छेद को टच होने लगा था।
मेरा लवड़ा पैन्ट से बाहर होने के कारण आराम से उनकी गाण्ड को सहला रहा था।

दीदी कुछ नहीं बोलीं.. बोलतीं.. तो भी क्या बोलतीं..
बाद में मैंने गाड़ी का स्टेयरिंग दीदी के हाथ में दे दिया और कहा- अब आप चलाइए।
मैंने अपने दोनों हाथ उनकी जाँघों पर रख लिए और धीरे-धीरे सहलाने लगा।

फिर धीरे से रफ़्तार बढ़ाना शुरू किया। अब दीदी से गाड़ी कंट्रोल नहीं हुई.. तो मैंने एकदम से ब्रेक मारा और दोनों हाथ जानबूझ कर दीदी के मम्मों पर रख दिए और मम्मों को दबा दिया।
ब्रेक लगने से दीदी एकदम से उठ सी गई थीं.. जिससे मेरा लण्ड अब तक दीदी की चूत को टच करने लगता।

तब दीदी ने कहा- अगर तुम ब्रेक नहीं मारते तो हम रोड के नीचे चले जाते।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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मैंने कहा- हाँ..

दीदी के बोलने के पहले ही ब्रा के ऊपर से ही निप्पलों को ज़ोर से दबा दिया और छोड़ दिया।
तब दीदी ने सिसकारी भरी थी.. पर दीदी ने कुछ नहीं कहा। मेरा लण्ड अभी भी उनके चूतड़ों से चिपका हुआ था।
फिर दीदी ने कहा- चलो.. अब घर चलते हैं।

तो मैंने दीदी से कहा- आप गाड़ी चलाते रहो और हम वापिस चलते हैं।
दीदी नहीं मान रही थीं.. फिर भी जब मैंने बहुत कहा- डरती रहोगी तो सीखोगी कैसे?
तो वे मान गईं.. अब दीदी वैसे ही बैठी रहीं.. मैंने गाड़ी टर्न की.. और दीदी को चलाने दी।

मैंने अपना हाथ दीदी के पैरों पर रख लिया और सहलाने लग गया।
मैं धीरे-धीरे कमर को भी आगे-पीछे करने लगा.. पैर सहलाते हुए मैं उनकी जाँघ के ऊपरी हिस्से तक आ गया था.. बिल्कुल चूत के पास.. पर मेरी चूत को हाथ लगाने की हिम्मत नहीं हुई।
अब तक दीदी गर्म होना चालू हो गई थीं।

जब हम घर पहुँचने वाले थे.. तब मैंने कपड़े के ऊपर से ही मैंने चूत को ज़ोर-ज़ोर से हाथ को सहलाया।

तभी हम घर पहुँच गए.. तो दीदी कुछ भी ना बोलते सीधे भागते हुए बाथरूम चली गईं और खड़े-खड़े चूत में उंगली डाल कर पानी निकालने लगीं और चूत का सफेद पानी निकाल कर चाटने लगीं।
उसके बाद मैंने सोच लिया कि दीदी अब मुझे खुद चोदने के लिए बोलेगीं.. तभी मैं इनको चोदूँगा।

रात को दीदी ने खाना बनाया और हम खाना ख़ाकर सो गए। उस रात को कुछ नहीं हुआ.. सबेरे जब दीदी सोकर उठीं और झाड़ू लगाने मेरे कमरे में आने लगीं।
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मैंने उनके आने की आहट पा कर अपना पैन्ट उतार दिया और लण्ड को खड़ा करके सोने का नाटक करने लगा।
मैंने अपने मुँह पर कंबल ले लिया जिसमें मैंने एक छेद ढूँढ कर रख लिया था.. उस छेद से मैं उन्हें देख रहा था कि दीदी क्या करती हैं।

जब वो कमरे में आईं और उन्होंने लाइट ऑन की तो उनकी नज़र मेरे तने हुए लण्ड पर पड़ी। मेरा लण्ड उनको देख कर पूरा तन चुका था और उनको सलामी दे रहा था।
एक मिनट देखने के बाद वो कमरे से जाने लगीं.. थोड़ी दूर जाने के बाद फिर से वापस आईं और मेरी तरफ़ देखा। फिर वहीं पर खड़ी होकर मेरे लण्ड को देखने लगीं.. उनको लगा कि मैं सोया हूँ।
थोड़ी देर बाद वो मेरे लण्ड को पास से देखने लगीं।

वो जैसे ही पास आने को हुईं.. मेरा लण्ड और तना.. कुछ देर देखने के बाद उन्होंने झाड़ू लगाना शुरु किया और झाड़ू लगाने के बाद फिर से मेरा खड़ा औजार देखने लगीं..

तो मैंने मेरा हाथ लण्ड के पास ले जाकर मेरे लण्ड का टोपे को नीचे कर दिया और लण्ड खड़ा करके उनको दिखाने लगा। मेरा लण्ड पूरा लाल हो गया था। लाल-लाल लण्ड देख कर उनके मुँह से एक ‘आह’ निकली..

फिर लण्ड को मैंने आगे-पीछे करना शुरू किया.. तो उनको शक हुआ कि मैं जाग रहा हूँ.. और वो उधर से चली गईं।
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बाद में मैं उठा और ब्रश करके जब चाय पी रहा था.. तब दीदी से पूछा- आपने झाड़ू लगाई क्या?
तो दीदी बोलीं- हाँ..
‘मेरे कमरे में भी लगाई क्या..?’
‘हाँ.. लगाई.. क्यों?’
‘नहीं.. बस ऐसे ही..’
दीदी बोलीं- रात को बहुत गर्मी थी क्या?
‘हाँ दीदी.. रात को बहुत गर्म था.. दीदी आपको कैसा लग रहा था?’
दीदी बोलीं- हाँ कल बहुत गर्म था..

फिर मैं नहा कर तैयार हो गया.. बाद में दीदी भी नहाने चली गईं.. तो मैं दीदी को नहाते देखने लगा, दीदी पूरी नंगी होकर नहा रही थीं.. पर आज उन्होंने चूत से पानी नहीं निकाला।
नहाने के बाद जब वो बाहर निकलीं.. तो उनके हाथ में पैन्टी-ब्रा था। मतलब आज उन्होंने ब्रा और पैन्टी नहीं पहनी थी।
सिर्फ़ सलवार और कुरता ही पहना हुआ था।

दोस्तो, मुझे मालूम था कि आज दीदी कौन सा सलवार सूट पहनने वाली हैं.. तो मैंने उनके पजामे की गाण्ड तरफ का हिस्सा थोड़ा फाड़ कर रखा था.. पर उनको पता नहीं चला था।
बाद में खाना बनाते और खाते वक्त मैं उनकी चूचियों को ही देख रहा था, उन्होंने आज ओढ़नी भी नहीं ली थी और उनके निप्पल भी साफ नज़र आ रहे थे।
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आज वो मेरे ऊपर बहुत मेहरबान दिख रही थीं।

जब दोपहर हुई.. तो मैंने दीदी से कहा- चलो गाड़ी चलाते हैं।
तो आज दीदी तुरंत मान गईं और हम गाड़ी चलाने गए।

दीदी से मैंने कहा- आज हम घर पर ही गार्डन में चलाते हैं..
क्योंकि दोस्तों अगर चूत गर्म होगी तो मुझे रास्ते में चोदना पड़ेगा और आज इस साली दीदी को मैं आज किसी भी हालत में चोद कर चूत का रस पीना चाहता था।

मैंने आज शर्ट नहीं पहनी थी.. सिर्फ़ बनियान और पैन्ट में ही था.. और नो अंडरवियर..

मेरा फ़ार्म हाउस का गार्डन थोड़ा बड़ा था जिससे हम लोग उधर भी खूब आराम से गाड़ी चला सकते थे।
दीदी बगल की सीट पर बैठ गईं और मैं ड्राइवर की सीट पर.. जब गार्डन में गाड़ी लाकर खड़ी की और दीदी से कहा- अब आप चलाओ।

तो दीदी ने कहा- गार्डन छोटा है और मेरे से ब्रेक नहीं लगे तो?
‘तो फिर क्या करना है दीदी?’
तो वो शरमा कर बोलीं- कल जैसे बैठे थे.. वैसे ही बैठ कर सिखाओ न..
मैंने कहा- ठीक है..

दीदी जब गेट खोल कर मेरे पास आने लगीं तो मैंने मेरी पैन्ट की चैन खोल कर लण्ड बाहर निकाल लिया और पैन्ट थोड़ा नीचे सरका दिया.. और बनियान को भी ऊपर कर दिया।
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जब उन्होंने गेट खोला तो मेरा पूरा तना हुआ लण्ड उनके सामने था.. पर वो कुछ नहीं बोलीं।
उन्होंने बस एक मिनट मेरे तने हुए लण्ड को देखा और मेरे लण्ड के ऊपर बैठ गईं और गाड़ी स्टार्ट करने लगीं।
मैंने थोड़ा उनकी गाण्ड को हिलाया और उनके फटे हुए पजामे से लण्ड को अन्दर कर दिया।

अब मैंने दोनों पैरों को मेरे पैरों में ले लिया।

अब उन्होंने गाड़ी स्टार्ट की और चलाने लगीं.. मैं मेरी सैटिंग जमा रहा था। थोड़ी देर बाद मेरा लण्ड उनकी गाण्ड के छेद से टच हुआ.. फिए मैंने सेकेंड राउंड में ज़ोर से एक्सीलेटर दबा दिया.. गाड़ी तेज हुई और ज़ोर से ब्रेक मारा।

तभी मैंने उनकी कमर पकड़ कर रखी थी.. ब्रेक मारते ही वो उचकीं.. और मेरा आधा लण्ड उनकी गाण्ड में घुस गया।
मैंने ब्रेक इतनी जोर से मारा था कि उनका पूरा ध्यान गाड़ी में था और मेरा लण्ड उनकी गाण्ड में था।
थोड़ी देर बाद फिर से वैसे ही किया और अब पूरा लण्ड उनकी गाण्ड में था.. पर वो कुछ नहीं बोलीं।

थोड़ी देर बाद वो गर्म होने लगीं.. और मैंने गाण्ड ऊपर-नीचे करना स्टार्ट किया.. जैसे ही वो गर्म हुईं.. तो मैंने मेरा लण्ड बाहर निकाल लिया और कहा- चलो बाकी काम घर में करते हैं।
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ब हम घर आए तो मैं पूर नंगा हो गया और उनको भी नंगा किया। फिर मैं उनके मम्मे दबाने लगा.. बहुत देर तक मम्मों को ही चूसता रहा और निप्पलों को काटते रहा। फिर चूत को चाटना स्टार्ट किया.. अब वो बहुत गर्म हो चुकी थीं।

बोलीं- अब बस करो और जल्दी से चूत में डालो..
मैं बोला- क्या डालूँ?
वो बोलीं- लण्ड डालो..

मैं समझ गया.. अब वो पूरी गर्म हो उठी हैं।
तो मैं बोला- मेरी कुछ शर्तें हैं मानती हो.. तो मैं डालता हूँ।
वो बोलीं- कैसी शर्त.. मुझे सब मंजूर है..
‘मेरी पहली शर्त है.. तुम आज के बाद कब भी चुदवाने के लिए ना नहीं कहोगी.. बोलो मंजूर?’
‘हाँ मंजूर..’
‘ओके.. दूसरी शर्त.. मैं तुम्हें कहीं पर भी चोदूँगा.. तुम ‘ना’ नहीं कहोगी.. बोलो मंजूर?’
‘हाँ..’
‘तुम अपनी देवरानी को मेरे से चुदवाओगी.. बोलो मंजूर?’
‘देवरानी को मैं कैसे तैयार करूँगी?’

‘वो मुझे नहीं मालूम..’
मैंने उनकी चूत में उंगली डाली तो बोलीं- ओके बाबा.. ठीक है..।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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अच्छा बाबा.. ठीक है.. अब तो डालो..’
‘ओके.. अब मैं आपको चोदूँगा..’

फिर मैंने उनकी चूत को इतना चाटा कि आखिरकार वो दो बार झड़ चुकी थीं। फिर मैंने उनकी चूत में लण्ड डाला तो वो तड़फ़ने लगीं.. शायद मेरा लण्ड ज्यादा मोटा था और फिर मैंने उनको दो बार दम से चोदा।

एक बार फिर गाण्ड भी मारी और हम दोनों थक कर सो गए और जब उठे तो रात के 9 बज चुके थे। वो बिस्तर से उठ नहीं पा रही थीं.. क्योंकि उनकी चूत में भयानक दर्द हो रहा था।

फिर रात को हमें खाना खाया और एक बार चोदने को कहा.. जब वो नहीं मानी तो मैं बोला- तुमने वादा किया है।
वो बोलीं- आज नहीं.. प्लीज़..
तो मैं बोला- ओके.. मुँह में ले लो..

तो भी वे नहीं मान रही थीं.. तो मैंने जबरदस्ती उनके मुँह में लण्ड डाल दिया और उनका मुँह चोदने लगा। थोड़ी देर बाद मेरा सारा स्पर्म वो पी गईं और हम सो गए।
सुबह जब वो रोटी बना रही थीं.. तो मैंने नीचे मुँह डाल कर उनकी चूत चाटने लगा.. वो बहुत मना करती रहीं.. पर मैंने आख़िरकार उनका पानी पी ही लिया।
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(14-01-2022, 04:32 PM)neerathemall Wrote: Angry Angel Angel Angel
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(14-01-2022, 04:32 PM)neerathemall Wrote: Angry Angel Angel Angel

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एक दिन मैं कॉलेज से घर आई तो देखा कि माँ के पास एक हैण्डसम सा लड़का बैठा हुआ था, मैंने माँ से पूछा पता लगा कि यह मेरा ममेरा भाई है। वैसे हम लोग 14 साल बाद मिले थे क्योंकि वो बाहर रह कर पढ़ता था और मैं जब जाती थी, सब मिलते थे, वो नहीं मिलता था।
और माँ ने बताया कि मेरी ममेरी बहन की शादी है, वो हमको लेने आया था लेकिन किसी को ऑफ़िस से छुट्टी नहीं मिलने के कारण कोई नहीं जा पाएगा।
लेकिन माँ ने मुझे जाने को बोला।
मैं- हाँ ठीक है, मैं चली जाती हूँ।
माँ बोली- जाओ तुम जल्दी से रैयार हो जाओ, एक घंटे बाद बस का टाईम है।
मैं जल्दी-जल्दी तैयार हो गई, मैंने पज़ामी-कुरती पहनी थी, पज़ामी एकदम टाइट थी जो चूतड़ों के पास और ज्यादा टाइट थी जिसमें अगर हल्का सा भी छेद भी हो जाए तो पूरी फट जाएगी, और कुर्ता भी एकदम टाइट था और चूचियों के पास इतना खुला हुआ था कि अगर ओढ़नी नहीं ओढ़ूँ तो मेरी आधी चूचियाँ सबको दिख जाएँ और नीचे कुर्ती तो मेरी कमर से 2 इंच नीचे तक ही होगी, जिससे मेरी चूतड़ सब को आसानी से दिख सकते थे।
जब मैं बाहर निकली तो मेरा ममेरा भाई मुझे घूर-घूर के देख रहा था।
मैं बोली- अब चलो!
हम लोग चल दिए और बस में बैठ गए। शाम का टाइम था और रास्ता लम्बा था। मैं खिड़की के पास बैठी और वो मेरे बगल में बैठ गया। कुछ देर बाद बस चली, खिड़की खुली हुई थी, एक हवा का झोंका अंदर आया और मेरी ओढ़नी उड़ गई। मैंने अपनी चुन्नी ठीक की लेकिन हवा ने फिर उड़ा दी, मैं बार-बार ठीक कर रही थी और हवा उड़ा दे रही थी तो मैंने उसे ऐसे ही छोड़ दिया।
कुछ देर बाद मैंने देखा कि मेरा भाई तिरछी नज़र से मेरी चूचियों का मुफ़्त नज़ारा देख रहा था लेकिन मैं कुछ नहीं बोली और मन में सोचने लगी कि मैं ऐसे कपड़े तो यही सब दिखाने के लिए ही तो पहनती हूँ।
मैंने उसको कुछ नहीं कहा, शायद उसको भी पता चल गया था कि मैंने देख कर अनदेखा कर दिया है तो वह मेरे कंधे पर हाथ रख कर बैठ गया और बोला- हाथ दुख रहा है।
मैं कुछ नहीं बोली तो उसका मन और बढ़ गया और उसने खिड़की बन्द करने के बहाने अपने हाथ को मेरी चूची से सटा दिया और खिड़की बन्द कर दी। फिर भी मैं कुछ नहीं बोली और आँखें बंद करके सोने का नाटक करने लगी।

(14-01-2022, 04:33 PM)neerathemall Wrote:
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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उसको लगा कि मैं सच में सो गई तो उसने उसका फ़ायदा उठाते हुए अपना एक हाथ मेरे जाँघ पर रखा और हल्के से सहलाने लगा, फिर उसने धीरे से अपना हाथ थोड़ा और अंदर की ओर सहलाते हुए किया, वैसे भी तब तक अंधेरा हो चुका था तो किसी को ज्यादा दिख नहीं रहा था।

मुझे लगा कि वो अपना हाथ मेरी चूत तक ले जाएगा लेकिन नहीं ले गया, उसने भी मेरे कंधे पर अपने सिर रखा और सिर को हल्का नीचे करते हुए मेरी चूचियों पर रख दिया और अपने होंठ से काटने की कोशिश करने लगा।

जब मैं कुछ नहीं बोली तो उसने अपना सिर हटाया और अपने एक हाथ से मेरी चूची को हल्के से सहलाने लगा और फिर भी मैं कुछ नहीं बोली तो उसने अपने एक हाथ मेरी चूची को थोड़ा ज़ोर से दबाया तो मैंने जागने का नाटक किया तो वो थोड़ा डर गया और मुझसे थोड़ा अलग हो गया और साइड में बैठ गया।

तो मैं अपनी सीट से उठी और ऊपर रखे बैग से एक चादर निकाल ली क्योंक तब तक ठंड भी बढ़ रही थी, मैंने चादर ओढ़ ली और उसकी तरफ देख कर मुस्कुरा दी, बोली- ठंड ज्यादा है, आप भी ओढ़ लो।

इतना सुनते ही वो मुझसे चिपक कर बैठ गया और अपना एक हाथ मेरी जाँघों पर रख कर सहलाते-सहलाते मेरी चूत तक पहुँच गया और अपनी उंगली मेरी चूत के ऊपर फ़िराने लगा।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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ने भी अपनी दोनो टाँगों को फैला दिया जिससे उसको मेरी चूत तक पहुँचने में और आसानी हो रही थी।

कुछ देर बाद चूत को छोर कर वो अपने हाथ को मेरी कमर पर ले गया और उसको सहलाने लगा और धीरे-धीरे वो मेरी नाभि के आस पास अपनी उंगली घुमाने लगा और कुछ देर बाद मेरी नाभि में उंगली डाल कर घुमाने लगा, मैं आँखें बंद करके अपने होंठ को अपने दांत से दबाए हुए इस सबका मज़ा ले रही थे।

धीरे-धीरे मैं भी अपना हाथ उसके लंड पर ले गई और उसको दबाने लगी। वो एकदम सख्त था कि तभी बस में लाइट जल उठी और मैंने अपना हाथ पीछे खींच लिया और उससे थोड़ा हट गई कि बस में कोई देख लेता तो बदनाम हो जाती!

हम लोग वैसे ही बैठे रहे, रात के 10 बजे बाद एक स्टॉपेज आया और बस के लगभग सब लोग उतर गये थे, बाकी जो थे, वो आगे बैठे हुए थे, पीछे सिर्फ़ हम दोनों ही थे तो मैंने पूछा- अभी और कितना दूर है?
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