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Misc. Erotica छोटी छोटी कहानियां...
हैल्लो दोस्तों, मेरा नाम सत्यम है, आज में आप सभी के चाहने वालों के लिए जो यह घटना लेकर आया हूँ, मेरे जीवन का एक बड़ा ही शानदार और मज़ेदार अनुभव है और यह उस समय की बात है जब मेरी उम्र 18 साल थी, मेरे बदन में जवानी का असर दिखने लगा था और में औरतों और लड़कियों में बहुत रूचि दिखाने लगा था। दोस्तों मेरी माँ बहुत प्यार से मेरा ध्यान रखती थी और में हमेशा उनके पास रहना पसंद करता था, मेरी माँ बहुत ही हॉट सेक्सी और सुंदर है। उनके जिस्म का क्या मस्त आकार था? वो एकदम गोरी उनके लंबे काले बाल और उनके बूब्स का आकार करीब 42DD-26-36 था। दोस्तों मैंने कई बार मेरी माँ और पिताजी को चुदाई करते हुए भी देखा था। उस समय माँ और पिताजी को एकदम नंगे देखा है और कभी तो मेरी माँ के बूब्स को पिताजी किसी छोटे बच्चे की तरह चूसते थे और कभी तो मेरी माँ भी मेरे पिताजी का लंड चूस लिया करती थी। फिर पिताजी मम्मी के ऊपर लेट जाते और पिताजी अपना लंड माँ की चूत में डालकर धक्के देने लगते और माँ के मुहं से हल्की सी सिसकी निकलती और फिर पिताजी ज़ोर ज़ोर से झटके देने लगते। अब माँ भी नीचे से अपने कूल्हों को उठाकर मज़ा लेती थी और फिर कुछ देर बाद वो दोनों शांत भी हो जाते और इधर यह सब देखकर मेरा भी बुरा हाल हो जाता था।

दोस्तों क्योंकि में भी उसी कमरे में सोता था और वो दोनों सोचते थे कि में सो रहा हूँ, लेकिन में उनकी चुदाई देखने के लिए अपनी दोनों आँखों को बंद करके सोने का नाटक करता और जब उनका खेल शुरू हो जाता तो में चोरीछिपे देखा करता था। दोस्तों जब कभी काम करते समय मेरी माँ उनका आँचल उनकी छाती से फिसलकर नीचे गिरता या वो नीचे झुकती में उनके बूब्स की एक झलक पाने के कोशिश करता, मेरी माँ को इस बात का पता था और वो जानबूझ कर मुझे अपने बूब्स का जलवा दिखा देती थी। फिर बहुत सालों बाद मेरी माँ को एक बच्चा हुआ, जिसकी वजह से माँ उस समय आराम में थी और में अपनी माँ को घर के काम में भी मदद कर देता था, जिसकी वजह से वो खुश रहती थी और कुछ दिनों के बाद माँ ठीक हो गयी। दोस्तों यह घटना तब हुई जब मेरे पिताजी उनके किसी काम की वजह से बाहर चले गए। वो सुबह दस बजे की ट्रेन से चले गये। फिर उसी दिन शाम को बच्चे की तबीयत कुछ खराब हो गयी, जिसकी वजह से उसने दूध पीना भी बंद कर दिया और अब माँ के निप्पल से दूध ना निकलने से वो भारी हो गयी। अगले दिन डॉक्टर को दिखाया और उसने कहा कि बच्चा अगर दूध नहीं पीता है तो आपको पंप से छाती का दूध बाहर निकालना पड़ेगा और उस समय में भी माँ के साथ डॉक्टर के पास गया था।

फिर में उस दिन घर ही था, में अपनी पढ़ाई कर रहा था और कुछ देर बाद मैंने देखा कि माँ की छाती में दोबारा दर्द होने लगा था और वो अपने बूब्स को दबाए जा रही थी। फिर मुझे अचानक ही डॉक्टर की वो बात याद आ गई और मैंने माँ से कहा कि डॉक्टर ने कहा था कि छाती में दूध जमा होने की वजह से आपको तकलीफ़ होगी, हम ऐसा करते है कि में आपके बूब्स को दबाकर दूध निकाल देता हूँ, क्योंकि आज तो में भी पंप नहीं लेकर आया हूँ और मैंने पूछा क्यों माँ ठीक है ना? अब वो कहने लगी कि तुम जैसे भी कुछ भी करो, लेकिन मुझे इस दर्द से छुटकारा दिलाओ, मुझे बड़ा तेज दर्द हो रहा है। अब माँ ने यह कहते हुए ब्लाउज का बटन खोला और तुरंत ही उनका एक बड़े आकार का बूब्स बाहर निकाल आया। फिर मैंने निप्पल को दबाया, जिसकी वजह से उन्हे दर्द हुआ और वो कहने लगी कि ऐसे मुझे दर्द हो रहा है। अब में उनको कहने लगा कि इसके अलावा भी मेरे पास एक और तरीका है, आप कहे तो में छोटे बच्चे की तरह आज आपका दूध चूसकर पी लेता हूँ? तभी वो कहने लगी कि चल तू इतना बड़ा हो गया है और यह सब करेगा। अब में उनको बोला कि क्यों क्या हुआ, में भी तो आपका बेटा हूँ।

दोस्तों उन्हे बहुत ही ज़ोर का दर्द हो रहा था, इसलिए वो कहने लगी कि हाँ ठीक है, लेकिन तुम जल्दी करो। फिर में खुश होकर उनको बोला कि में अभी चूसकर आपके बूब्स को खाली कर देता हूँ और मैंने उनके निप्पल को अपने होंठो पर लगाया और निप्पल को मुहं में लेकर चूसना शुरू किया, जिसकी वजह से अब मेरे मुहं में दूध आने लगा और फिर में चूस चूसकर पीने लगा। दोस्तों लगातार चूसने की वजह से मेरे मुहं में दूध भर गया था और मुझे बहुत ही मज़ा आ रहा था और फिर मैंने माँ से पूछा क्यों में दूध पीना भूला तो नहीं? माँ हंसकर बोली कि माँ का दूध कोई बेटा नहीं भूल सकता और में अब बूब्स को दबा दबाकर दूध पीने लगा था, जिसकी वजह से माँ को बड़ा आराम मिलने लगा था। फिर कुछ देर में मैंने बूब्स का पूरा दूध पी लिया, जिसकी वजह से मेरी माँ की छाती हल्की हो गयी और उनका वो दर्द भी दूर हो गया। अब वो मुझसे कहने लगी कि बेटा आज तूने मेरी बहुत मदद की है आज तो में इस दर्द से मर ही जाती और तूने मुझे बचा लिया। फिर मैंने कहा कि माँ कोई बात नहीं है अब तुम्हे इस वजह से तकलीफ़ नहीं होगी, बच्चा जब तक दूध नहीं पीने लगता तब तक में पी लूँगा। अब माँ बोली कि हाँ यह बात हम दोनों किसी को नहीं बताएँगे। तुम यह बात पिताजी को भी मत बताना।

फिर मैंने बोला कि हाँ पक्का में किसी को भी नहीं बताऊंगा, सिर्फ़ हम दोनों के बीच में ही रहेगी और रात को में ट्यूशन से घर लौटा, खाना खाया। अब माँ मुझसे कहने लगी कि आज तो तेरे पिताजी घर में नहीं है तू मेरे पास ही सो जाना और मैंने हाँ कह दिया। में मन ही मन बहुत खुश था और फिर रात को जब हम दोनों सोने लगे तभी माँ मुझसे बोली कि बेटा दो तीन दिनों की बात है तुम्हे तकलीफ़ उठानी होगी और मेरा दूध पीना होगा। अब में उनको बोला कि माँ इसमे तकलीफ़ की क्या बात है? फिर रात को भी में माँ के पास में लेटकर उनका दूध पीने लगा था और में उनके बूब्स को सहलाता भी जा रहा था। दोस्तों मुझे तो मानो स्वर्ग मिल गया था, मुझे वाह क्या मस्ती आ रही थी। मैंने एक एक करके दोनों बूब्स का दूध पिया और दूध पीते समय में अपना हाथ उनकी कमर पर ले जाता और एक बार तो मैंने उनके कूल्हों पर भी अपने हाथ को रख दिया और ज़ोर से दबा भी दिया, लेकिन वो कुछ नहीं बोली। फिर मैंने तभी देखा कि माँ अपनी चूत पर साड़ी के ऊपर से ही ज़ोर से हाथ फेर रही थी और फिर वो पेटीकोट के अंदर हाथ डालकर चूत को खुजाने लगी।

अब में तुरंत समझ गया कि माँ गरम हो गयी है और में अब उनको ज्यादा गरम करके जोश में लाने के लिए बूब्स को चूसते हुए उनके पेट के नीचे तक अपने एक हाथ को ले गया और फिर अपना एक पैर उनकी जाँघो के ऊपर रख दिया। फिर उसी समय माँ कहने लगी कि हाँ अब तू रहने दे मुझे आराम मिल गया और उसी समय मैंने हंसकर कहा कि तेरा मतलब पूरा होते ही मुझे दूर हटा दिया। अब माँ मुस्कुराते हुए बोली कि चल बदमाश कहीं का, अभी तो तुझे कई बार मेरा दूध ऐसे ही पीना है। दोस्तों उस रात को मुझे नींद नहीं आ रही थी, इसलिए में माँ की जांघ के ऊपर अपने पैर को रखकर लेट गया, लेकिन वो मुझसे कुछ नहीं बोली। फिर उनको कुछ देर बाद नींद आ गयी और मैंने उनकी साड़ी को ऊपर कर दिया और उसी समय गहरी नींद में होने की वजह से वो मुझसे लिपट गयी और मुझे तो बड़ा मज़ा आ रहा था। अब मेरे पूरे बदन में एक अजीब सी गुदगुदी होने लगी थी। फिर कुछ देर बाद वो घूमकर सो गयी और मैंने अपने लंड को उनके दोनों कूल्हों की दरार में सटा दिया, जिसकी वजह से मुझे तो अब बहुत मज़ा आने लगा था। फिर कुछ देर बाद मैंने उनकी साड़ी और पेटीकोट को ऊपर तक उठा दिया और अब अपने लंड को उनकी गांड से सटाते हुए में उनसे चिपककर सोने का नाटक करने लगा था।

फिर थोड़ी देर के बाद माँ ने करवट ली, शायद उनकी नींद खुली होगी, उन्होंने अपनी साड़ी को थोड़ा सा नीचे किया और वो सीधी लेट गयी और कुछ देर के बाद में उनके ऊपर अपने पैर और हाथ रखकर लिपटकर सो गया। दोस्तों उस रात को और कुछ भी नहीं हुआ, लेकिन मेरी इच्छा थी कि में एक बार उनकी चूत को देखूं और सेक्स का भी मज़ा लूँ और इस तरह फिर सुबह हो गयी। अब में उठकर तैयार होकर खा पीकर अपने कॉलेज चला गया, दोपहर को में अपने घर था और दोपहर के समय मैंने उनका दूध पिया और बीच में मैंने बूब्स को ज़ोर से दबाकर दाँत भी गड़ाए। अब वो दर्द की वजह से चीख मारकर कहने लगी कि यह क्या करता है क्या दूध ऐसे पिया जाता है? और कुछ देर बाद उसने मुझे अपने से दूर हटा दिया। फिर में शाम को ट्यूशन चला गया और रात तक वापस आ गया, तब तक माँ ने खाना बना लिया था और हम दोनों ने साथ में खाना खाया। दोस्तों उस दिन वो मेरे ऊपर कुछ ज़्यादा ही मेहरबान थी और वो बार बार किसी ना किसी बहाने से मुझे अपने बूब्स का जलवा दिखा रही थी और खाने के बाद माँ ने मुझे फल खाने को दिया। फिर वो एक आम को चाकू से काटने लगी और में उनको कहने लगा कि में तो इसको ऐसे ही चूसकर खा लूँगा, मुझे चूसकर खाने में बड़ा मज़ा आता है।

अब में उनके सामने आम को धीरे धीरे दबाते हुए चूसने लगा। अब वो मुस्कुराते हुए मुझसे कहने लगी कि तुझे तो आम बहुत अच्छे से चूसना आता है। फिर में भी दो मतलब के शब्दों में बोला कि तुम बोलो तो दोनों आम को चूस चूसकर खा लूँ बड़ा मज़ा आता है और वो भी देखकर जोश में आ रही थी। अब मैंने बोला कि माँ तुम्हे आम नहीं खाना तो केले खा लो बड़े अच्छे और आकार में भी यह बड़े है, तुम्हे बहुत मज़ा आएगा और वो केला खाने लगी, वो केले पर अपने होंठो को फेरते हुए जीभ से चूसती हुई खा रही थी। अब में उसको कहने लगा कि माँ तुम भी आज केला बड़ी मस्ती में खा रही हो और वो मुझसे कहने लगी कि तू जब आम को चूस सकता है तो क्या में केला नहीं खा सकती? में शरमा गया क्योंकि यह सब कहने का मतलब कुछ अलग था और उसमे शरारत झलक रही थी। फिर वो खाने के बाद में पढ़ने बैठ गया और वो अपने कपड़े बदलने लगी थी वो गर्मियों के दिन थे और गरमी कुछ ज्यादा ही थी। दोस्तों में उस समय शर्ट उतारकर बस लूँगी पहनकर पढ़ने बैठा था, मेरी उस टेबल के ऊपर दीवार पर एक शीशा लगा हुआ था और में अपनी माँ को उस शीशे से देख रहा था।

फिर वो मेरी तरफ देख रही थी और अपने कपड़े उतार रही थी, लेकिन वो सोच भी नहीं सकती थी कि में कांच से देख रहा था, उन्होंने अपना ब्लाउज खोलकर उतार दिया और में पहली बार डोरी वाली ब्रा में बँधे उनके बूब्स को देख रहा था। दोस्तों उनके बूब्स बहुत बड़े आकार के थे और वो उस ब्रा में समा भी नहीं रहे थे, इसलिए आधे नंगे बूब्स ब्रा के ऊपर से साफ झलक रहे थे। अब कपड़े उतारकर वो बिस्तर पर लेट गयी और अपनी छाती को एक हल्की सी चुन्नी से ढक लिया। दोस्तों एक पल के लिए तो मेरा मन करने लगा कि में उसी समय उनके पास जकड़ उनके बूब्स को देख लूँ और फिर मैंने सोचा कि यह सब ठीक नहीं होगा और में दोबारा अपना ध्यान लगाकर पढ़ने लगा। दोस्तों कुछ देर लेटे ही वो सो गयी और कुछ ही देर में वो चुन्नी उनकी छाती से सरक गई और अब साँसों के साथ ऊपर नीचे होती उनकी मस्त रसीली छाती मुझे साफ नजर आ रही थी। अब तक रात के बारह बज चुके थे मैंने अपनी पढ़ाई को बंद किया और में बत्ती को बुझाने ही वाला था कि उसी समय माँ की सुरीली आवाज़ मेरे कानो में पड़ी, बेटे इधर आओ ना। फिर में सुनकर उनकी तरफ बढ़ गया और अब उन्होंने अपनी छाती को दोबारा चुन्नी से ढक लिया था।

अब मैंने पूछा कि माँ क्या हुआ? उन्होंने कहा कि बेटा तुम मेरे दूध को चूसो यह फिर से भारी हो गए है। अब मैंने कहा कि तुम पहले बोलती तो में पहले ही चूस लेता, तुम्हे आराम मिल जाता। फिर वो कहने लगी कि तुम पढ़ाई कर रहे थे, इसलिए मैंने तुम्हे परेशान करना उचित नहीं समझा और कोई बात नहीं है अब चूस लो, आओ मेरे पास ही लेट जाओ और वो कहने लगी कि बल्ब को भी बंद कर दो। फिर मैंने बल्ब को बंद कर दिया और छोटा बल्ब जलाकर में बिस्तर पर उनके पास लेट गया। दोस्तों जिस बदन को में सालों से निहारता रहा आज में उसी के पास चिपककर लेटा हुआ था और उसके निप्पल को चूस रहा था। अब में चूसते हुए निप्पल को दबा दबाकर बूब्स के चारों तरफ से हाथ फेरते हुए, दबाते हुए पूरी मस्ती भी ले रहा था और हाथ उनके बदन पर भी घुमा रहा था और वो अधनंगा शरीर मेरे बिल्कुल पास था। फिर में बोला कि माँ तुम घुटनों के बल सामने हाथ टिकाकर घोड़ा बनकर खड़ी हो जाओ में नीचे से मुहं लगाकर दूध पीऊँगा जिसकी वजह से दूध जल्दी से नीचे उतार जाएगा। अब वो तुरंत ही ऐसा करने के लिए तैयार हो गयी और में नीचे से उनके निप्पल को अपने मुहं में लेकर खींचकर चूसने लगा था और मैंने अपना एक हाथ उनकी कमर में डाल दिया।

अब उन्हे भी बहुत मज़ा आने लगा था, वो भी मन ही मन खुश हो रही थी और तभी वो अचानक से कहने लगी कि हाँ बेटा ऐसे ही ज़ोर ज़ोर से चूस मुझे बहुत अच्छा लग रहा है ऊह्ह्ह हाँ आज तू ठीक से चूस रहा है। अब मेरे भी पूरे बदन में सनसनी होने लगी थी और लंड भी खड़ा होकर टाइट हो गया था, उसी समय वो बोली कि बेटे यह ब्रा का हुक भी खोल दो और ठीक से चूसो। फिर मैंने बूब्स का दूध पीते हुए अपने एक हाथ से उनकी ब्रा का हुक खोल दिया और ब्रा को अलग कर दिया और अब में भी बहुत उत्तेजित हो गया और जोश में आकर पागल हो गया। अब में अपने पैर से माँ के पैर को सहलाने लगा था और तभी अचानक से उनका संतुलन बिगड़ गया और वो मेरे ऊपर गिर गयी। अब उनके बड़े आकार के बूब्स मेरी छाती से सट गये और मेरे खड़े लंड का दबाव उनकी जांघो, चूत के कुछ हिस्से पर पड़ा, जिसकी वजह से उन्हे भी करंट सा लगा और उनके मुहं से निकला उईईईईई। अब मैंने पूछा क्या हुआ? वो बोली कि कुछ नहीं रे चल तू ठीक से पी वो सीधी होकर लेट गई और में उनके ऊपर लेटकर बूब्स को चूस चूसकर दूध पीने लगा था। अब माँ अपनी चूत पर लगातार हाथ घुमा रही थी और फिर पेटीकोट में हाथ डाकर शायद चूत में ऊँगली भी डालने लगी थी।

दोस्तों उस समय उनका पेटीकोट जाँघो के ऊपर आ गया था, मैंने मैंने उनको पूछा कि माँ क्या हो गया आज क्या नीचे भी भारी हो गया? तुम्हे कुछ तकलीफ़ हो रही है तो वहाँ भी ठीक कर दूँ। अब वो बोली तू यह क्या बोलता है? मैंने कहा तुम कहो वहाँ भी कुछ चूसना हो तो चूस लेता हूँ सिर्फ़ तुम्हे आराम मिलना चाहिए और मैंने अब माँ का चूम लिया और बोला कि मेरी प्यारी माँ मेरी अच्छी माँ तुम कितनी सुंदर हो, यह बदन बड़ा ही कोमल है। दोस्तों मेरा लंड अब अंडरवियर से बाहर निकलने के लिए ज़ोर लगा रहा था। मेरा सात इंच का लंड बहुत जोश में आ गया था, बूब्स को मसलते हुए में उनके बदन के बिल्कुल पास आ गया था और मेरा लंड उनकी जाँघो में रगड़ मारने लगा था। फिर उसी समय वो मुझसे कहने लगी कि बेटा यह मेरे पैरों में क्या चुभ रहा है? मैंने हिम्मत करके जबाब दिया कुछ भी नहीं तो है। अब उन्होंने पूछा क्या में हाथ लगाकर देखूं? और मेरे जबाब देने से पहले ही अपना एक हाथ वो मेरे लंड पर रखकर उसको टटोलने लगी थी। अब अपनी मुट्ठी में मेरे लंड को कसकर वो कहने लगी बाप रे बहुत कड़क है तेरा तो एकदम खड़ा हो गया और वो मुझसे पूछने लगी तू अभी क्या बातें कर रहा था? अब मैंने बोला कि माँ तुम बुरा मत मानना, आज तुम मुझे अपना सब कुछ दिखाओ ना।

अब माँ कहने लगी कि यह तो सिर्फ़ पति पत्नी के बीच ही होता है और तुम अभी बच्चे हो अभी तुम्हारी शादी भी नहीं हुई है और यह सब शादी के बाद ही होता है। अब मैंने कहा तो क्या हुआ हम सिर्फ़ आज करेंगे, प्लीज़ माँ आज यह मौका तुम मुझे दो ना, शादी के बिना भी तो कर सकते है। फिर उसके उत्तर दिया, लेकिन यह पाप है। अब में उसकी निप्पल को अपनी उंगली के बीच लेकर मसलते हुए बोला कि यह पाप करने में बहुत मज़ा आता है प्लीज़ माँ मुझे वो मज़ा दे दो ना प्लीज़ करने दो ना। अब वो मेरी तरफ मुड़ गई और अपना एक हाथ मेरी अंडरवियर में डालकर मेरे फड़फड़ाते हुए लंड को ऊपर निकाल लिया और लंड को कसकर पकड़े हुए वो अपना हाथ लंड की आखरी हिस्से तक ले गयी। फिर मैंने भी तुरंत ही उनकी चूत तक अपनी उँगलियों को पहुंचा दिया और मेरे लंड का आकार महसूस करके वो बहुत हैरान हो गयी और कहने लगी कि बेटा तू तो बड़ा हो गया है। फिर मैंने कहा कि यह तुम्हारा ही है और अब माँ कहने लगी कि मुझे क्या पता था कि तुम्हारा इतना बड़ा होगा? वो मुझसे बातें करते हुए मेरे लंड को अपने हाथ में लेकर खींच रही थी और कसकर दबा भी रही थी।


फिर मैंने भी बिना देर किए पेटिकोट को ऊपर उठा दिया और वो कहने लगी तू यह क्या करता है? मैंने कहा कि सिर्फ़ आज एक बार फिर नहीं कहूँगा देखने दो ना, आज तो कोई भी नहीं है। फिर वो मेरे तने हुए लंड को अपने हाथों में लेकर सहलाते हुए वो मेरी तरफ करवट लेकर लेट गयी। अब उनके बूब्स मेरे मुँह के बिल्कुल पास थे और में उन्हे कसकर दबा रहा था और फिर वो बोली कि अच्छा ले चल और अचानक उन्होंने अपने एक बूब्स को मेरे मुँह में डालते हुए कहा कि चूसो इनको और आज अपनी इच्छा पूरी कर लो, जी भरकर दबाओ, चूसो और मज़े लो। फिर मैंने यह बात सुनकर खुश होकर दोनों बूब्स को बारी बारी से अपने मुँह में भर लिया और में जोश में आकर ज़ोर से चूसने लगा और वो सिसकियाँ भरने लगी, कहने लगी ऊफ्फ्फ वाह मज़ा आ गया, हाँ ज़ोर ज़ोर से चूस ना। अब में कसकर बूब्स को दबा रहा था, जैसे कि आज में उनका पूरा रस निचोड़ दूंगा और वो भी मेरा पूरा साथ दे रही थी। उनके मुहं से अब ओह्ह्ह्ह स्सीईईई की आवाज़ निकल रही थी। अब में कहने लगा कि तुम नहीं जानती कि तुमने मुझे और मेरे लंड को कितना परेशान किया है? और में दोनों अनारों को कसकर पकड़े हुए था और बारी बारी से उन्हे चूस रहा था।

अब उनसे भी नहीं जा रहा था, इसलिए गरम होकर वो भी मेरे लंड को बुरी तरह से मसल रही थी और फिर उन्होंने अपनी एक जांघ को मेरी जांघ के ऊपर चड़ा दिया और मेरे लंड को अपनी जांघ के बीच रख लिया। फिर उसी समय मुझे उनकी जाँघो के बीच एक मुलायम रेशमी एहसास हुआ, दोस्तों यह उनकी चूत थी, क्योंकि उस समय माँ ने पेंटी नहीं पहन रखी थी। अब मेरे लंड का टोपा उनकी झांटो में घूम रहा था, मैंने कहा कि माँ तेरा नीचे वाला अंग तो बहुत ही मुलायम है और अब मेरे सबर का बाँध टूट रहा था। फिर में कहने लगा कि माँ मुझे कुछ हो रहा और अब में अपने आपे में नहीं हूँ, प्लीज़ तुम ही मुझे अब बताओ कि में क्या करूं? वो कहने लगी कि मुझे लगता है कि तू आज मानेगा नहीं, चल तेरी जो भी इच्छा है वो तू कर ले। दोस्तों वो बड़े ही मादक अंदाज़ में मुस्कुराने लगी और मेरे लंड को आज़ाद करते हुए बोले कि ठीक है, मुझे लगता है कि अपने इस बेटे को मुझे ही सब कुछ सीखना पड़ेगा, लेकिन तुम मुझे गुरु दक्षिणा पूरे मन से देना। अब मैंने तुरंत ही उनके पेटीकोट का नाड़ा खींचा और कहा कि अब तो इसके दर्शन करा दो, कहते हुए मैंने उनका पेटिकोट को नीचे किया और माँ अपने कूल्हों ऊपर कर दिया, जिसकी वजह से पेटिकोट उनके पैरों से उतरकर अलग हो गया।

फिर में भी पलंग से नीचे उतर गया और मैंने अपनी अंडरवियर को उतार दिया, उसके बाद में अपने तने हुए लंड को लेकर अपनी माँ के सामने खड़ा था और अब माँ भी पूरी तरह से नंगी होकर मेरे सामने लेटी हुई थी और वो अपने रसेली होंठो को अपने दांतों में दबाकर मेरी तरफ देखती रही। फिर अपने दोनों पैरों को पूरा फैला दिया और मुझे रेशमी झांटों के जंगल के बीच छुपी हुई उनकी रसीली गुलाबी चूत का द्रश्य देखने को मिला। दोस्तों उस छोटे बल्ब की हल्की रोशनी में चमकते हुए नंगे जिस्म को देखकर में उत्तेजित हो गया और मेरा लंड मारे खुशी के झूमने लगा था। अब में तुरंत उनके ऊपर लेट गया और उनके बूब्स को दबाते हुए, उनके रसीले होंठो को चूसने लगा और उन्होंने भी मुझे कसकर अपने आलिंगन में कसकर जकड़ लिया और मेरे चुम्मे का जवाब देते हुए मेरे मुँह में अपनी जीभ को डाल दिया है। अब में भी उनकी जीभ को मज़े से चूसने लगा और फिर पूरे जोश के साथ कुछ देर तक तो हम दोनों ऐसे ही चिपके रहे। फिर माँ ने मेरी पीठ से हाथ ऊपर लाकर मेरा सर पकड़ लिया और नीचे की तरफ किया। अब में अपने होंठ उनके होंठो से नीचे ले आया और कंधो को चूमते हुए बूब्स पर पहुँच गया। एक बार फिर उनके बूब्स को मसलते हुए और खेलते हुए चूसने लगा।

अब उन्होंने बदन के निचले हिस्से को मेरे बदन के नीचे से निकाल लिया और अपने एक हाथ से वो मेरा लंड पकड़कर उसको मुट्ठी में लेकर सहलाने लगी और अपने दूसरे हाथ से मेरा एक हाथ पकड़कर अपने पैरों के बीच ले गयी। फिर जैसे ही मेरा हाथ उनकी चूत पर पहुँचा तो उन्होंने अपनी चूत को रगड़ दिया और किसी भी समझदार को बस एक इशारा ही बहुत होता था। अब में उनके बूब्स को चूसता हुआ उनकी चूत को रगड़ने लगा था और मैंने अपनी उंगली को चूत के मुँह पर दबा दिया और फिर मैंने अपनी उंगली को उनकी चूत की दरार में घुसा दिया, जिसकी वजह से मेरी ऊँगली पूरी तरह से अंदर चली गई। अब में अपनी ऊँगली को उनकी चूत में इधर उधर घुमाने लगा था। फिर जैसे ही मेरी उंगली उनकी चूत के दाने से टकराई तो उन्होंने ज़ोर से सिसकियाँ लेकर अपनी जाँघो को कसकर बंद कर लिया और वो दोनों कूल्हों को उठाकर मेरे हाथ से खेलने लगी। दोस्तों जोश की वजह से उनकी चूत से पानी बह रहा था, थोड़ी देर बाद तक ऐसे ही मज़ा लेने के बाद मैंने अपनी उंगली को चूत से बाहर निकाल लिया। अब में सीधा होकर उनके ऊपर लेट गया। उन्होंने अपने दोनों पैरों को फैला दिया और मैंने अपने फड़फड़ाते हुए लंड को चूत के मुहं पर रख दिया और हल्के से चूत के मुहं पर रगड़ने लगा, उनकी चूत बहुत गीली हो चुकी थी।

फिर उसी समय अचानक से मेरा लंड उनकी चूत में थोड़ा सा अंदर चला गया और वो कहने लगी कि प्यार से डालो नहीं तो मुझे दर्द होगा आहह्ह्ह। अब उनकी झांटों और चूत का मुलायम स्पर्श मुझे पागल बना रहा था और फिर जैसे ही मैंने धक्का लगाया एक ही धक्के में लंड अंदर चला गया। दोस्तों इससे पहले कि माँ संभले या अपना आसान बदले मैंने दूसरा धक्का लगा दिया और पूरा का पूरा लंड मक्खन जैसी चूत के अंदर हो गया। अब वो दर्द की वजह से चिल्ला गई ऊऊईईईई आईईईईईई माँ ओह्ह्ह्ह तुम ऐसे ही कुछ देर हिलना नहीं मुझे बड़ी जलन हो रही है। फिर में अपना लंड उनकी चूत में डालकर वैसे ही चुपचाप पड़ा रहा और कुछ देर बाद मैंने हाथों को आगे बढ़ाकर दोनों बूब्स को पकड़ लिया और मुँह में लेकर चूसने लगा, जिसकी वजह से उनको बड़ी मस्ती आराम मिलने लगा था और अब उन्होंने अपनी कमर को हिलाना शुरू कर दिया। अब वो कहने लगी कि अब तुम देर ना करो चोदो मुझे लो मज़ा इस जवानी का मेरे राजा और वो अपनी गांड को हिलाने लगी और मैंने वैसे ही करना शुरू किया। अब मेरा लंड धीरे धीरे उनकी चूत के अंदर बाहर होने लगा था। फिर कुछ देर बाद मैंने अपनी रफ्तार को बढ़ा दिया और मेरा लंड बड़ी तेज़ी से अंदर बाहर होने लगा था।

अब हम दोनों को पूरी मस्ती मज़ा आ रहा था और वो नीचे से अपनी कमर को उठाकर मेरे हर धक्के का जवाब देने लगी, लेकिन जैसे ही में ज्यादा रफ्तार बढ़ाता लंड बाहर निकल जाता। फिर माँ से रहा नहीं गया और करवट लेकर मुझे अपने ऊपर से उतार दिया और मुझे लेटाकर वो मेरे ऊपर आ गयी, वो अपनी दोनों जाँघो को पूरा फैलाकर अपने गद्देदार कूल्हों को मेरे ऊपर रखकर बैठ गयी। अब उनकी चूत मेरे लंड पर थी और हाथ मेरी कमर को पकड़े हुए थे और फिर वो मुझसे कहने लगी कि अब में तुम्हे बताती हूँ कि चुदाई कैसे करते है? मेरे ऊपर लेटकर एक धक्का लगा दिया और मेरा लंड घप से चूत के अंदर चला गया। फिर माँ ने अपने रसीले बूब्स को मेरी छाती पर रगड़ते हुए अपने गुलाबी होंठो को मेरे होंठो पर रख दिया और मेरे मुँह में जीभ को डाल दिया। फिर माँ ने बड़े ही मज़े से अपनी कमर को हिलाकर धक्के लगाना शुरू किया। वो बहुत कसकर धक्के लगा रही थी, उनकी चूत मेरे लंड को अपने में समाए हुए बड़ी तेज़ी से ऊपर नीचे हो रही थी और मुझे लग रहा था कि में जन्नत में पहुँच गया हूँ। अब माँ मेरे ऊपर मेरे कंधो को पकड़कर घुटनों के बल बैठ गयी और ज़ोर ज़ोर से कमर को हिलाकर लंड को तेज़ी से अंदर बाहर लेने लगी थी।

फिर उनका पूरा बदन हिल रहा था और साँसे बड़ी तेज़ तेज़ चल रही थी और साथ ही बूब्स भी तेज़ी से ऊपर नीचे हो रहे थे। अब मुझसे रहा नहीं गया और मैंने हाथ को आगे बढ़ाकर दोनों बूब्स को पकड़ लिया और में ज़ोर से मसलने लगा और उनकी रफ़्तार बढ़ती ही जा रही थी। अब कमरे में फच फच की आवाज़ गूँज रही थी और जब उनकी सांस फूल गयी। तब वो खुद ही नीचे आकर मुझे अपने ऊपर खींच लिया और पैरों को फैलाकर ऊपर उठा लिया। अब वो मुझसे कहने लगी कि में थक गयी हूँ मेरे राजा अब तुम अपना मोर्चा संभालो। फिर में झट से उनकी जाँघो के बीच बैठ गया और निशाना लगाकर झटके से लंड को अंदर डाल दिया और उनके ऊपर लेटकर धक्के लगाने लगा और माँ ने अपने पैरों को मेरी कमर पर रखकर मुझे जकड़ लिया और अपने कूल्हों को उठाकर चुदाई में साथ देने लगी। फिर में उनके बूब्स को मसलते हुए ज़ोर ज़ोर से धक्के लगा रहा था और वो अपनी कमर को हिलाकर कूल्हों को उठाकर चुदाई के मज़े ले रही थी और वो मुझसे कहे जा रही थी आह्ह्ह्हह ऊओह्ह्ह ऊऊहह्ह्ह मेरे राजा मज़ा आ गया। यह कहते हुए मेरी माँ ने मुझे कसकर अपनी बाहों में जकड़ लिया और उसी समय उनकी चूत ने ज्वालामुखी का लावा छोड़ना शुरू कर दिया।

अब तक मेरा लंड भी वीर्य छोड़ने वाला था और में उनको कहने लगा कि में भी गया मेरी जान और मैंने भी अपने लंड का वीर्य छोड़ दिया और में हांफते हुए उनके बूब्स पर सर रखकर चिपककर लेट गया। दोस्तों यह मेरी पहली चुदाई थी, इसलिए मुझे बड़ी थकान महसूस हो रही थी और वो भी अपने एक हाथ से मेरे सर को धीरे धीरे से सहलाते हुए दूसरे हाथ से मेरी पीठ सहला रही थी। फिर माँ ने करवट लेकर मुझे अपने ऊपर से हटा दिया और मुझे अपनी बाहों में कसकर धीरे से मेरे कान में फुसफुसाकर कहने लगी, वाह बेटा तुमने तो कमाल कर दिया, तुम्हारे लंड में वाह क्या गजब की ताकत है? फिर मैंने कहा कि असली कमाल तो आपने कर दिया है आजतक तो मुझे पता ही नहीं था कि चूत और लंड के इस खेल से इतनी मस्ती आती है और यह तो बस आपकी मेहरबानी है जो कि आज मेरे लंड को आपकी चूत की सेवा करने का यह पहला मौका मिला। अब भी मेरा लंड उनकी चूत के बाहर झांटों के जंगल में रगड़ मार रहा था और फिर माँ ने अपनी मुलायम हथेलियों में मेरे लंड को पकड़कर सहलाना शुरू किया।

फिर अचानक ही बच्चे के रोने की आवाज़ आई और वो उसको सम्भालने लगी और फिर उसके बाद में सो गया ।।

धन्यवाद …
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Behtareen story likhi hai apne dost.....ek story maa bete baap beti.....mama bhanji inpar bhi likho yaara ....jyada maza aayega....
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Heart 
चूत चुदाई के दोहे।
बाबा बेलन ने आज बहुत दिनों के बाद अपनी महफिल लगाई थी और आज वो हम लोगों को चूत गीली व लंड खड़ा कर देने वाले चुदाई के दोहे सुनाने वाले थे। ये दोहे महान लेखकों के दोहों की तरह बाबा बेलन के दोहों के नाम से जाने जाएंगे।

तो आईये शुरुआत करते हैं इन दोहों से

लौड़ा जब तक खड़ा न हो, चूत विरह में आय, पेल लंड अंदर करो, चूत दियो गन गनाय।

हम सब मजे से सुन रहे थे कि बाबा बेलन ने इस दोहे का अर्थ समझाया। मेरे प्रिय चेलों इसका अर्थ है कि जब तक लंड खड़ा न हो चूत टेंश्सन में रहती है। और जब लंड खड़ा होकर अंदर जाता है, चूत मगन हो जाती है।

भाई बात तो सही है। हम सबने इस दोहे को सुना और वाह वाह करने के बाद अपने लंड को थपथपाया अभी वो खड़ा नहीं हुआ था। बाबा बेलन ने अभी और दोहे सुनाने थे।

बाबा बेलन ने दूसरा दोहा सुनाया

चूत जरा गीला करो, अंगुली सरस घुसाय। गीली चूत को देख के, लौड़ा सरपट जाय

लौड़ा सरपट जाय , धाय जब लंड वो अंदर। चोद चोद के लौन्डिया को बना दे बंदर!!

वाह ये छंद कुंडलिया मारी बेलन बाबा ने। जैसा कि आप को बता दें, बेलन बाबा पोर्न जगत के सबसे टैलेंटेड और प्रतिभाशाली पोर्न स्टार हैं जिनके किस्से सिर्फा आप सकसेक्स पर आभासी व्यक्ति सेक्शन में पढ सकते हैं। गौर तलब है कि बेलन बाबा इससे पहले वयस्क मनोरंजन जगत के समस्त पोर्नस्टार्स जिसमें बहुचर्चित छिनाल सविता भाभी, जाज्मीन, प्रिया राय, सन्नी लिओनी, सबकी चूत को पेल कर ताखा बना चुके हैं। मत भूलें उनकी रचनाओं पर एक नजर सकसेक्स की साइट पर सेक्स कहानियों में जाकर अवश्य मारें।

हम सब इस रचना को सुनकर बाबा बेलन की काव्य सृजन क्षमता से अत्यंत प्रभावित हुए। तब बाबा बेलन ने फरमाया

गांड अगर कैसी भी हो, उसमें थूक लगाय। जैसे ही लौड़ा दियो, धक्का जरा लगाय

धक्का जरा लगाय, जोर से अंदर ठेलो। अंदर ठेल घुसाय, वहां फिर सरपट पेलो।

पेल पेल कर करो निहाल उसे फिर बोलो। बोलो लंड की जय जय मेरी भी जय बोलो

बेलन लंड महान यही नारा तुम लेलो।

इस कविता को सुन कर हम लोगों के लंड में सनसनाहट होने लगी। निश्चय ही इस प्रवाहमान दोहे और कवित्त को पढ कर कोई भी पोर्न प्रेमी दीवाना हो सकता है।

तभी बेलन बाबा ने एक दोहा सुनाया लंड को लंबा होने के उपर

लोग कहें लंबा हो लंड तो सजनी देख मुसकाय,

उसकी हवस मिटाए लंड जो लंबा वही कहाय,

लंबा हो या छोटा थोड़ा होए मोटा,

लंड वही जो आए काम, हो जाए सोंटा

जैसे देखे चूत दनादन खड़ा हो जाए,

अड़ियल घोड़े के जैसा अड़ा हो जाए।

आप इसका मतलब तो समझ ही गये होंगे। उनके कहने का मतलब है कि लंड वही बेहतर जो कि प्रेमिका को देख कर प्रसन्नता हो। चाहे वो लंबा हो या छोटा पर उसका मोटा होना ज्यादा जरुरी है। और उससे भी ज्यादा जरुरी है कि उसको चूत देख कर खड़ा होना चाहिए। ऐसा लंड ही कारगर हथियार होता है।

हम सब भक्त जन बाबा बेलन की बातों से सहमत थे कि अचानक से पप्पू ने हाथ उठाकर पूछा “ बाबा मेरी गर्लफ्रेंड तो मुझसे चूत चूसने को कहती है, उसका क्या करुं?”

बाबा बेलन हंसे और बोले वत्स पप्पू तू है बड़ा निखट्टू!! सुन तुझे सुनाता हूं, तेरी खुजली मिटाता हूं और उन्होंने जो दोहे कहे वो कुछ ऐसे थे, –

लंड जो चोदे चूत को प्रबल गति से भाय,
फाड़े उसकी देहरी मोटा मुंड घुसाय।

जो मजा आवे रंडी को लंड पेलन में भाय,

काहें को फिर रंडी तुझसे चूत चुसाय?

मतलब कि अगर तुम्हारा लन्ड मोटा है, और उसमें दम है जिससे तुम रंडी की चूत में घुसा कर दमदार तरीके से चोदते हुए उसकी खुजली मिटा सको तो फिर रंडी तुमको काहे चूत चूसने को कहेगी? सच है चुद्ने से ज्यादा मजा कहीं नहीं आता फिर मुखमैथुन वगैरह सेकन्ड्री चीजें है।

आगे बाबा बेलन मुखमैथुन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए अपने कवित्त में कहते हैं कि

मुखमैथुन एक गीत है, गले में लौड़ा ठूंस,]

लौड़ा ठूंस अंदर करे फिर हल्के से चूस,

चूस चूस कर हिला दे, हिला हिला कर चूस

वीर्य गले में छोड़ दे ना खींचो कंजूस।

मतलब कि मुखमैथुन करना एक गीत के समान मधुर कार्य है, उसमे अगर आप तल्लीन होकर करें तो फिर जो मजा है वो कहीं भी नहीं। आखिर में गले में वीर्य का पान कराना न भूलें, जिससे कि लड़की को अद्भुत आनंद आता है।

अगला वचन बाबा का था समलैंगिकता के उपर

मुस्कराने का बहाना ढूंढ लेता है,

वो गांड मराने का बहाना ढूंढ लेता है

जो अक्सर मूठ मारे बंद कमरों में सदा बेलन

वो बंदा लंड का मोटा खजाना ढूंढ लेता है

कहने का मतलब कि गांडू आदमी अक्सर बंद कमरे में लंड के अभाव में मूठ मारता पाया जाता है और चाहे वो कहीं भी रहे, अपने लिए एक दूसरे गांडू की तलाश कर ही लेता है।

आगे बाबा बेलन कहते हैं,

प्रेमी एक अचार है, पति उसठ व्यवहार

चुद चुद पति से मन भरे, प्रेमी करे उबार

प्रेमी करे उबार , गांड बीबी की मारे,

मार मार के फाड़ चूत उसकी वह वारे।

इसका मतलब भी आप समझ ही गये होंगे। कहना ये है कि पति के रुखे व्यवहार से और एकरस चुदाई के तरीके से बीबी कभी भी नाराज होकर अपने प्रेमी के पास जा सकती है या अपने लिए एक नया प्रेमी तलाश कर सकती है अत: आप अपनी बीबी से प्यार के साथ पेश आएं और उसको अल्ग अलग तरीके से चोद कर उसकी एकरसता खत्म करें। तो आप समझ गये होंगे उनका कहना। आखिर में आपको कुछ और दोहे सुनाते हैं बाबा बेलन के जिनको हमें उनकी क्लास में कंठस्थ करना था।

पेल देना रेल देना चूत में लंड ठेल देना,

है कसम इस लंड की तुम चूत ही में खेल लेना

जो मिले मौका कभी गर चूत मारन का सिकंदर

है कसम बेलन गुरु की पेल कर के रेल देना।

मतलब कि अगर चूत मारने और चूंचे चूसने का मौका कभी भी मिले तो उसे छोड़ना मत, उसे हाथों हाथ अपना लेना। इतना सुनने के बाद हम सब भक्त बाबा बेलन की जय बोलकर घर चले। अगले क्लास में बाबा बेलन ने छंद लड़भंगी सुनाने की बात की और चूत रसगीतिका।
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Heart 
जीवन-ज्योति


जीवन और ज्योति इन दोनों की जोड़ी कालेज में सभी की जुबान पर रहती थी. वह दोनों एक ही क्लास में थे. वो साथ-साथ पढ़ते और घूमते पर उनकी रातें अपने अपने हॉस्टल में गुजरतीं. वह दोनों एक दूसरे को अपना जीवनसाथी मान चुके थे पर साथ रातें गुजारने में अभी वक्त था.

उस दिन वैलेंटाइन डे था शायद कॉलेज में यह उनका आखिरी वैलेंटाइन डे होता. दोनों मन ही मन एक दूसरे के प्रति समर्पण को तैयार थे. उनके यौनांग भी एक दूसरे को महसूस करने के लिए तत्पर थे. आज तक जीवन और ज्योति ने एक दूसरे के अंगों को महसूस जरूर किया था पर वस्त्रों के ऊपर से. जीवन और ज्योति ने एक दूसरे को नग्न नहीं देखा था. अबतक यह उन्हें मर्यादा के खिलाफ लगता था. परंतु अब वह दोनों युवा हो चुके थे.ज्योति भी कुछ दिनों पहले मतदान योग्य हो चुकी थी. उसने भी आज मन बना लिया था कि वह अपना कौमार्य अपने प्रेमी जीवन को अर्पित कर देगी. जीवन भी यह बात जानता था पर कहां? उनके पास कोई उचित जगह नहीं थी. होटल जाना खतरनाक हो सकता था.
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Heart 
तभी मनीष दौड़ता हुआ आया

"यार जीवन मजा आ गया. मेरे मम्मी पापा 2 दिनों के लिए बाहर गए हैं घर पूरा खाली है तू आज ज्योति को भी वहीं बुला ले. मैने ने अपनी मनीषा को भी वही बुला लिया है. मुझे पूरी उम्मीद है ज्योति मना नहीं करेगी."

उसने मुझसे कहा

"यार राहुल, तू रश्मि को बोल ना वह उन दोनों को मना लेगी. सच बहुत मजा आएगा. कुछ ही देर में प्रोग्राम सेट हो गया. हमारी प्रेमिकाएँ सहर्ष वहां आने को तैयार हो गयीं. हम तीनों के बीच गहरी दोस्ती थी."

ज्योति को छोड़कर बाकी दोनों लड़कियां अपना कौमार्य पहले ही परित्याग कर चुकी थीं. आज जीवन और ज्योति का मिलन नियत ने सुनियोजित कर दिया था.

जीवन एक आकर्षक कद काठी का युवा था जो पढ़ने में भी उतना ही तेज था जितना खेलने में. वह कालेज का हीरो था सभी लोग उसकी तारीफ करते हुए नहीं थकते. मुझे और मनीष को उससे कभी ईर्ष्या नहीं हुई . वह हम दोनों का बहुत ख्याल रखता था. वह एक सामान्य परिवार से था उसके माता-पिता उसका ख्याल रखते पर धन की कमी अवश्य थी. एक रईसजादा ना होने के बावजूद उसके चेहरे पर चमक थी उस से जलने वाले लड़के उसके पीठ पीछे यही बात कहते हैं जरूर इसकी मां ने किसी रईसजादे के साथ अपनी रातें गुजारी होंगी.

वह कभी भी फिजूलखर्ची में नहीं पड़ता और पूरी जिम्मेदारी से अपनी पढ़ाई करता. ज्योति से उसकी मुलाकात कॉलेज के पहले साल में ही हो गई थी. वह बला की खूबसूरत थी. आप ज्योति की शारीरिक संरचना की कल्पना के लिए मनीषा कोइराला(1942 ए लव स्टोरी वाली) को याद कर सकते हैं. वह जीवन का बहुत ख्याल रखती थी उन दोनों में अद्भुत तालमेल था.

जीवन और ज्योति का मिलन नियति ने नियोजित किया था. वह दोनों स्वतः ही एक दूसरे के करीब आते गए. वह साथ साथ बैठते, साथ-साथ पढ़ते और सभी कार्यक्रमों में एक साथ ही जाते. उन दोनों दोनों में अद्भुत तारतम्य था. उनका प्रेम सभी को पता था पर उससे किसी को आपत्ति नहीं थी. मुझे ऐसा प्रतीत होता है जैसे उन्होंने अपने कॉलेज जीवन के शुरुआती 3 वर्ष एक दूसरे को समझने में ही बिता दिए. एक तरफ मैं और मनीष अपनी अपनी प्रेमिकाओं के साथ रंगरलिया मनाते और वह दोनों कभी साथ में ड्राइंग करते हैं कभी एक दूसरे से घंटों बातें. परंतु कुदरत ने शरीर की संरचना इस हिसाब से ही बनाई है कि लड़का और लड़की ज्यादा दिनों तक बिना अंतरंग हुए नहीं रह सकते. उनके यौनांग स्वयं एक दूसरे के करीब आ जाते हैं. यह बात जीवन और ज्योति पर भी लागू हुयी.

ज्योति के जन्मदिन पर जीवन ने पहली बार उसे चूमा था वह भी सीधा होंठों पर उनका यह अद्भुत चुम्बन लगभग 2 मिनट तक चलता रहा था. इस दौरान वह दोनों एक दूसरे में समा जाने के लिए तत्पर थे. इस अदभुत मिलन के गवाह और जोड़े भी थे परंतु उन्हें जैसे हमारी उपस्थिति का एहसास भी नहीं था. जब वह दोनों अलग हुए तालियां बज रही थी. जीवन ने घुटनों पर आकर ज्योति का हाथ मांग लिया ज्योति तो जैसे इसका इंतजार ही कर रही थी कुछ ही देर में दोनों फिर आलिंगन बंद हो गए. इसके पश्चात जीवन और ज्योति का शारीरिक मिलन शुरू हो गया पर उनके बीच मर्यादा कायम रही.

हम लोगों ने कई बार जीवन को उकसाया कि वह ज्योति के अंग प्रत्यंग से अपनी दोस्ती बना ले. पर उसने हमेशा बात टाल दी. हमें पूरा विश्वास था कि उन दोनों ने एक दूसरे को छुआ जरूर है पर यह बात हम भी जानते थे कि उन्होंने एक दूसरे से संभोग नहीं किया था.
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मैं ज्योति)

आज रविवार था सुबह-सुबह जीवन का मैसेज देख कर मैं मन ही मन आज उसके साथ बिताए जाने वाले पलों को सोचकर आनंदित हो रही थी. जितना ही मैं सोचती उतना ही मेरी उत्तेजना बढ़ती. मेरी मुनिया (योनि)आज अपने प्रेमी से मिलन की प्रतीक्षा में भावविभोर होकर खुशी के आंशू छोड़ रही थी. मेरी जाँघों के बीच फसा तकिया हिल रहा था उसे हिलाने वाला मेरा मस्तिष्क था या मेरी मुनिया यह कहना कठिन था पर खुश दोनो थे.

तभी मेरी मां का फोन आया

"कैसी है मेरी प्यारी बेटी"

" ठीक हूं मां"

"और वह तेरा जीवन कैसा है?"

" वह बहुत अच्छा है मां तुम उससे मिलोगी तो खुश हो जाओगी. मैं सचमुच उससे बहुत प्यार करती हूं."

" तो क्या तुम दोनों एक दूसरे के करीब आ चुके हो?"

"हम दोनों पिछले 3 साल से करीब है पर जो आप पूछ रही हैं वैसे नहीं पर हां आज मैं वह दूरी मिटा देना चाहती हूं."

"पर आज क्या है?

"यह मेरे कालेज जीवन का आखिरी वैलेंटाइन डे है. मैंने जीवन को अपना मान लिया है इसलिए उसके साथ इसे यादगार बनाना चाहती हूं."

" मेरी प्यारी ज्योति यदि वह तुझे पसंद है तो हमें भी पसंद है मेरी बेटी कभी गलत नहीं हो सकती. यह बात मैं जानती हूँ पर पर अपना ध्यान रखना. और हां यह भी ध्यान रखना कि तुम्हारा मिलन सुरक्षित हो"

"ठीक है माँ"

मैंने फोन काट दिया. मुझे इस बारे में और बातें करना अच्छा नहीं लग रहा था मुझे शर्म आ रही थी. उन्होंने अपनी हिदायत मुझे स्पष्ट रूप से दे दी थी. मैं स्वयं आज जीवन से एकाकार होने के लिए तत्पर थी. जब हम दोनों का मन एक हो ही चुका था तो तन एक होने में कोई दुविधा नहीं थी. मेरे यौनांगो को भी अब उसकी प्रतीक्षा थी.
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(मैं ज्योति)


मेरी मां ने भी प्रेम विवाह किया था. वह प्रेम की अहमियत जानती थीं. मेरी मां के पिता राम रतन एक हवलदार थे जो कुमाऊं जिले के पोखरिया ग्राम के रहने वाले थे मेरी मां मेरी नानी के साथ उसी गांव में रहतीं. नाना अक्सर अपनी ड्यूटी के चक्कर में कुमाऊं से बाहर ही रहते हैं साल में वह कभी कभी घर आया करते थे.

मेरे नाना एक कड़क स्वभाव के आदमी थे. पुलिसवाला होने की वजह से उनमें संवेदना पहले ही कम हो चुकी थी. घर में भी उनकी हिटलर शाही चला करती कोई उनके खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं करता था.

जब भी छुट्टियों में मैं अपनी मां के पास जाती वह मुझे नाना नानी की कहानियां सुनाया करती. मेरी मां ने मुझे पति पत्नी और प्रेम संबंधों की अहमियत समझाई थी. मेरी मां की मुलाकात मेरे पिताजी से कॉलेज फंक्शन में हुई थी मेरे पिता कुमाऊं जिले के एसडीएम थे मेरी मां की सुंदरता पर वह मोहित हो गए और कुछ ही दिनों में वह दोनों एक दूसरे से प्रेम करने लगे.

उनका प्रेम परवान चढ़ता गया और अंत में उन दोनों ने शादी कर ली मेरी मां द्वारा बताई गई है प्रेम कहानी ने मेरे मन में पुरुषों के प्रति डर को खत्म कर दिया था सच उन दोनों का प्रेम अद्भुत था. मैंने अपने बचपन में उन्हें कभी भी लड़ते हुए नहीं देखा.

मां के विवाह के कुछ वर्षों बाद नाना और नानी दोनों एक दुर्घटना में स्वर्गवासी हो गए मेरे पिता ने वहां की जमीन बेचकर कुमाऊ शहर से अपना नाता तोड़ दिया और देहरादून में एक आलीशान मकान बना लिया. उनका अब कुमाऊं से कोई नाता नहीं बचा था पर उन दोनों के मन में कुमाऊं के प्रति अद्भुत प्रेम था.

आज भी जब भी मेरे माता-पिता कुमाऊं के बारे में बातें करते हैं वह भाव विभोर हो जाते हैं. कभी-कभी उनकी आंखों में आंसू दिखाई पड़ते. वह खुशी के होते या गम के यह तो मैं नहीं जानती थी पर उन्हें भाव विह्वल देखकर मैं उन्हें उनकी यादों से खींच कर हकीकत में ले आती. मेरी चंचलता देखकर वह दोनों मुझे अपनी गोद में खींच लेते और ढेर सारा प्यार देते.
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(मैं ज्योति)

मैं अपनी यादों में खोई हुई थी तभी दरवाजा खुला

रश्मि मेरे कमरे में आई और बोली

" तू आज क्या पहन कर जा रही है?"

मैंने उस समय तक कुछ भी नहीं सोचा था मैंने कहा

"तू ही बता ना क्या पहनना चाहिए"

"देख कायदे से तो आज कपड़ों की कोई जरूरत तो है नहीं"

" तो क्या नंगी चली जाऊं"

"हम दोनों हंसने लगे"

रश्मि, राहुल की गर्लफ्रेंड थी और मेरी अच्छी सहेली. मैंने अपनी अटैची खोली और एक सुंदर सा लहंगा चोली निकाल कर उसे दिखाया.

"अरे मेरी लाडो रानी इस ड्रेस में तो दुल्हन के जैसी लगेगी. जीवन तो तुझे इस ड्रेस में देखकर आज ही तेरी मांग में सिंदूर और योनि में वीर्य दोनों भर देगा"

मैं उसे मारने के लिए दौड़ी पर वह कमरे से भाग गयी पर जाते-जाते मेरी जांघों के जोड़ पर एक सिहरन छोड़ गयी.

घड़ी पर नजर पढ़ते ही मैं घबरा गई. दोपहर के 1:00 बज चुके थे. मैंने अपने जरूरी सामान बाल्टी में भरे और भागती हुई बाथरूम की तरफ चली गई. आज नहाते समय मैं अपने स्तनों को महसूस कर रही थी. आज उन्हें भी जीवन के नग्न और मजबूत हथेलियों का स्पर्श मिलना था. अपनी मुनिया के होठों पर आए प्रेम रस को साफ करते समय मुझे अपने कौमार्य का एहसास हुआ. मेरी उंगलियां आज तक जिस मुनिया के अंदर प्रवेश नहीं कर पायीं थी उसे जीवन के मजबूत राजकुमार(लिंग) को अपने आगोश में लेना था. मेरी उंगलियां हमेशा से उसके होठों पर ही अपना कमाल दिखातीं तथा उसके मुकुट को सहला कर मुनिया को स्खलित कर देतीं पर आज का दिन विशेष था. मेरी मुनिया को बहादुरी से अपना कौमार्य त्याग करना था उसके पश्चात आनंद ही आनंद था यह मैं और मेरी मुनिया दोनों जानते थे. हम दोनों ने आज अपना मन बना लिया था.

कुदरत की दी हुई अद्भुत काया में मुनिया को छोड़ कहीं पर भी बाल नहीं थे. मुझे मुनिया के बाल हटाने में थोड़ा ही वक्त लगा. मेरी जाँघे, पैर तथा कोमल हाथ भगवान ने ही वैक्सिंग करके भेजे थे. उनपर एक रोवाँ तक न था.

कमरे में आने के बाद मैंने अपनी अटैची फिर खोली मां की दी हुई पायल और अंगूठी मैंने निकाल ली. आज मैं जीवन के लिए सजना चाहती थी.. मेरे पास गले की चैन के अलावा हॉस्टल में यही दो आभूषण थे. मेरी मां ने मेरे 18 वें जन्मदिन पर अपने गले से चैन उतार कर मेरे गले में डाल दी थी. इस सोने की चैन में हाथी दांत से बना हुआ एक सुंदर लॉकेट था. यह लॉकेट अत्यंत खूबसूरत था. मुझे यह शुरू से ही पसंद था . बचपन में जब भी मैं मां के साथ बाथरूम में नहाती उनका लाकेट छीनने की कोशिश करती . वो कहतीं

"बेटी पहले बड़ी हो जा मैं यह तुझे ही दूंगी तू मेरी जान है" वह पेंडेंट आधे दिल के आकार का था. जब भी वह किसी की नजर में आता अपना ध्यान जरूर खींचता था. मैंने उन्हें पहन लिया. मुझे मां की बात याद आई वह अक्सर त्यौहार के दिन अपने पैरों में आलता लगाया करती थी. मैंने उनसे पूछा था

"मां, यह आलता क्यों लगाती हो? उन्होंने मुझे चूमते हुए बताया

"बेटा, यह अपने सुहाग के लिए लगाया जाता है आलता लगे हुए पैर सुहाग का प्रतीक होते हैं पति को यह अच्छा लगता है"

मेरे मन में आलता को लेकर संवेदना थी. मैं भी अपने पैरों में आज आज आलता लगाना चाहती थी. पर यहां हॉस्टल में आलता मिलना संभव नहीं था. मैंने मन ही मन कोई उपाय निकालने की कोशिश की पर विफल रही. अचानक मेरी नजर मेरे रूम पार्टनर की टेबल पर पड़ी. उसकी टेबल पर लाल स्याही देखकर मेरी नजरों में चमक आ गई. मैंने उसे ही का प्रयोग कर अपने पैर रंग लिए मैं मन ही मन अपनी रचनात्मकता पर खुश होने लगी.
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(मैं ज्योति)

हमें 4:00 बजे निकलना था. कुछ ही देर में मैं तैयार हो चुकी थी. मेरे आलता लगे हुए पैर मेरे लहंगे के नीचे छुपे हुए थे. मेरे लिए यह अच्छा ही था. रश्मि यदि मेरे पैर देखती तो 10 सवाल पूछती. मैंने रश्मि को फोन किया..

" आई एम रेडी"

" अरे मेरी जान अभी रेडी होने से कोई फायदा नहीं अभी सील टूटने में 6 घंटे बाकी हैं"

" हट पगली, मैंने वो थोड़ी कहा"

"अरे वाह, तुम्हीं ने तो कहा आई एम रेडी"

मैं हंसने लगी "अरे मेरी मां, चलने के लिए कहा, चु**ने के लिए नहीं"

"तो क्या, आज तो फिर वैसे ही वापस आ जाओगी?"

"नहीं- नहीं मेरा मतलब वह नहीं था"

"साफ-साफ बताना"

"यार मजाक मत कर अब आ भी जा" मैंने बात खत्म की.

मैंने महसूस किया कि मेरी मुनिया आज इन सब बातों पर तुरंत ही सचेत हो जा रही थी. वह ध्यान से हमारी बातें सुनती और मन ही मन कभी डरती कभी प्रसन्न होती.

हम दोनों को हास्टल के गेट पर आ चुके थे. जीवनी हमारा गेट पर ही इंतजार कर रही थी. कुछ ही देर में हम तीनों सहेलियां ओला की सेडान कार में बैठ शहर की तरफ निकल पड़ीं. वह दोनों मुझे देखकर मुस्कुरा रही थीं. मुझे अब अफसोस हो रहा था कि मैंने अपने कौमार्य भंग के लिए आज का ही दिन क्यों चुना था. वह भी अपनी दो सहेलियों की उपस्थिति में .

वैसे यह काम एकांत में ही होता. पर मेरी इन दो सहेलियों को कमरे में होने वाली गतिविधियों की विधिवत जानकारी होगी. एक तरफ यह मेरी शर्म को तो बढ़ा रहा था तो दूसरी तरफ मेरी उत्तेजना को और भी जागृत कर रहा था.

मनीष का घर बेहतरीन था. घर क्या वो एक आलीशान कोठी थी. उसने आज वैलेंटाइन डे के लिए विशेष पार्टी की व्यवस्था की थी. इस पार्टी का आनंद हम सभी उठाते पर मैं और जीवन आज के विशेष अतिथि थे. असली वैलेंटाइन डे हम दोनों का ही होना था. आज हम दोनों को एक साथ देखकर सभी मन ही मन आनंदित थे. वह सच में हमारे अच्छे दोस्त थे.

मेरी नजरें शर्म से झुकीं हुईं थीं. मैं मनीष और राहुल से नजर नहीं मिला पा रही थी. वह दोनों मेरी खूबसूरती का आनंद जरूर ले रहे थे. आखिर मनीष ने बोल ही दिया

"ज्योति आज जीवन तो गया. भाई पहले राउंड में तो यह हिट विकेट हो जाएगा . थोड़ा धीरज रखना उसे फॉलोऑन खिलाना. लड़का ठीक है और तुम्हारे लायक है. पर तुम अद्भुत हो विशेषकर आज तो कयामत लग रही हो"

मैं शर्म से पानी पानी होती जा रही थी. मेरी दोनों सहेलियां मुझे लेकर अंदर आ गयीं हम एक बड़े से हॉल में बैठे हुए थे. मेरी निगाह जीवन पर पड़ी आज वह भी सज धज कर आया हुआ था. ऐसा लग रहा था जैसे इस अवसर के लिए उसने विशेष कपड़े खरीदे थे. एक पल के लिए मुझे लगा जैसे हम दोनों का छद्म विवाह होने वाला हो.
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(मैं रचना, ज्योति की माँ)


आज मैंने अपनी बेटी को यौन सुख लेने की अनुमति दे दी थी. मेरी नजरों में अपने प्रेमी के साथ किया गया यह कृत्य कभी बुरा नहीं हो सकता. नियति ने हमारे यौनांग इसीलिए बनाएं हैं. प्रेम पूर्वक उनका उपयोग करना सर्वथा उचित है.

आज मेरी प्यारी ज्योति एक नारी की तरह सुख भोगने जा रही थी वह भी अपने प्रेमी के साथ. मुझे अगली सुबह का इंतजार था. ज्योति का पहला अनुभव मेरे लिए तसल्ली देता या प्रश्न चिन्ह यह तो वक्त ही बताता पर मैं भगवान से इस पावन मिलन के सुखमय होने की प्रार्थना कर रही थी.


##

मुझे अपने कॉलेज के दिन याद आने लगे थे. ज्योति के पिता रजनीश से कॉलेज फंक्शन में हुई मुलाकात कॉफी हाउस तक जा पहुंची थी. मेरी सुंदरता ने उन्हें मेरी ओर आकर्षित कर लिया था. मैं अभी मुश्किल से 20 वर्ष की हुई थी तभी उनके प्रेम ने मुझे अपना कौमार्य खोने पर विवश कर दिया. वह दिन मुझे अभी भी याद है जब कुमाऊं में मेला लगा हुआ था. वह मेले के प्रभारी थे. मैं अपनी सहेलियों के साथ मेला देखने पहुंची हुई थी.

कुछ ही देर में कई सारे सिपाही भव्य व्यवस्था के साथ मेरी सहेलियों को मेंला घुमाने निकल गए और मैं रजनीश के साथ उनके ऑफिस में आ गयी. उनके ऑफिस में आराम करने के लिए एक बिस्तर भी लगा हुआ था. हम दोनों में आग बराबर लगी हुई थी. हमारे पास वक्त भी कम था. जब तक मेरी सहेलियां मेले में झूला झूल रही थीं मैंने भी ज्योति के पिता के साथ प्रेमझूला झूल लिया. मेरा पहला संभोग यादगार था.

संभोग के उपरांत वह मुझे लेकर बाहर आए और मेले में लगे एक विशेष दुकान से हाथी दांत के बने 2 पेंडेंट खरीदे जो एक दूसरे के पूरक थे. उन दोनों को साथ में रखने पर वह एक दिल के आकार में दिखाई पड़ते और अलग करते ही दो टुकड़ों में बट जाते. दोनों टुकड़े अलग होने के बावजूद उतने ही खूबसूरत लगते. पर जब वह जुड़ जाते हैं उनकी खूबसूरती अद्भुत हो जाती.

रजनीश ने लॉकेट का एक भाग अपने पास रख लिया और दूसरा मुझे दिया उन्होंने कहा

" रजनी, मैंने अपने दिल का आधा टुकड़ा तुम्हें दिया है. हम दोनों जल्दी ही एक होंगे"

मैंने उनसे दो वर्ष की अनुमति मांगी ताकि मेरी पढ़ाई पूरी हो सके. वह मान गए हम दोनों का प्रेम परवान चढ़ने लगा.

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अगले एक महीने में मैं और रजनीश दोनों ने जी भर कर संभोग सुख लिया. हमारी अगली मुलाकात में वह दो सोने की चेन भी ले आए थे. हमने अद्भुत लॉकेट को अपने अपने गले में डाल दिया. जब भी हम संभोग करते वह लॉकेट एक दूसरे से सट जाते थे. मुझे लगता था जैसे उसमें चुंबक का भी प्रयोग किया गया था.


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मैं लॉकेट की खूबसूरती में खोई हुई थी तभी दरवाजे पर घंटी बजी रजनीश आ चुके थे. मैं ज्योति के बारे में सोचती हुयी उनकी खातिरदारी में लग गयी. आज मेरा मन भी युवा हो चला था. मैं रजनी के पिता के साथ आज रात रंगीन करने के लिए उत्सुक थी.
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Heart 
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(मनीष का घर)


(मैं जीवन)

मैंने अपने सपने में भी नहीं सोचा था की मुझे ज्योति जैसी सुंदर और सुशील प्रेमिका मिलेगी. मैं एक गरीब परिवार से आया हुआ लड़का था. मेरे माता पिता काफी गरीब थे उन्होंने मेरा लालन-पालन किया पर अपनी हैसियत के अनुसार ही.

भगवान ने मेरे लिए कुछ और ही सोच रखा था. जैसे जैसे मैं पढ़ता गया मेरी काबिलियत मुझे आगे लाती गयी. दसवीं कक्षा तक आते-आते मुझे कई स्कॉलरशिप मिलने लगी जिसकी बदौलत मैं इस सभ्रांत स्कूल में आ चुका था.

ज्योति एक अप्सरा की तरह थी. वह मुझे पूरी तरह समझती थी और मैं उसे. हम दोनों के प्यार में वासना का स्थान नहीं था. परंतु जैसे-जैसे दिन बीत रहे थे ज्योति की काया अद्भुत रूप ले रही थी. समय के साथ उसमें कामुकता स्वतः ही फूट रही थी. सारे कॉलेज का ध्यान उसके स्तनों और नितंबों पर रहता मैं भी उनसे अछूता नहीं था.

उस दिन जब मैंने ज्योति को पहली बार चुंबन दिया था वह मेरे आलिंगन में आ गई थी. मेरे हाथ स्वतः उसकी पीठ पर होते हुए उसके मादक नितंबों तक पहुंच चुके थे. हम दोनों एक दूसरे से सटे हुए थे. उसके कोमल स्तनों का मेरे सीने पर स्पर्श और कठोर निप्पलों की चुभन मैं आज तक नहीं भूलता. जितना ही उस कोमलता को मैं महसूस करता मेरा राजकुमार (लिंग)उतना ही उत्तेजित होता.

आज इस वैलेंटाइन डे पर हम दोनों एक होने वाले थे. ज्योति ने आज लहंगा और चोली पहना हुआ था वह उसमें अत्यंत खूबसूरत लग रही थी. पार्टी शुरु हो चुकी थी. सामने बैठी हुई तीनों हसीनाएं एक से एक बढ़कर एक थी पर ज्योति उन सब में निराली थी. मनीष ने आज रेड वाइन मंगाई थी. हम सभी थोड़ी-थोड़ी रेड वाइन लेने लगे.

ज्योति ने भी अपने हाथों में रेड वाइन ली हुई थी. जैसे ही उसने रेड वाइन अपने मुख में लिया मुझे एक पल के लिए प्रतीत हुआ जैसे लाल रंग की रेड वाइन उसके गले से उतर रही हो और उतरते समय उसके गले से दिखाई पड़ रही थी. इतनी सुंदर और कोमल काया ज्योति की.

मैंने और ज्योति ने अपने दोस्तों का साथ देने के लिए कुछ घूंट रेड वाइन के पी लिए पर हम दोनों पर अलग ही नशा सवार था.

आज हमारा मिलन का दिन था कुछ देर की हंसी ठिठोली के पश्चात हम सभी अपने अपने कमरों में जाने लगे. मैं अपने कमरे में आ चुका था ज्योति अभी भी बाहर थी. कुछ ही देर में रश्मि और मनीषा ज्योति को लेकर मेरे कमरे में हंसते हुए आयीं और हम दोनों को ऑल द बेस्ट कहा तथा दरवाजा बंद कर दिया.

मैं ज्योति के चेहरे की तरफ देख रहा था और वह नजरें झुकाए खड़ी थी. हमारे पैर स्वतः ही आगे बढ़ते गए और कुछ ही देर में ज्योति मेरी बाहों में थी.

कमरे का बिस्तर करीने से सजा हुआ था ऐसा लगता था मैने और मनीष ने इसे सजाया था. बिस्तर पर फूल बिखरे हुए थे लाल रंग का सुनहरा तकिया उसकी खूबसूरती बढ़ा रहा था. जैसे-जैसे मैं ज्योति को छूता गया वह मेरी बाहों में पिघलती गई. अचानक ही कमरे की बत्ती गुल हो गई. बाहर से मनीष की आवाज आई. जीवन परेशान मत होना लाइट गई हुई है कुछ देर में आ जाएगी. मैं और ज्योति अब ज्यादा आरामदायक स्थिति में थे.

अंधेरा शर्म को हटा देता है हमारे कपड़े स्वतः ही मेरे शरीर से अलग होते गए. मैं ज्योति को लगातार चूमे जा रहा था. हमारे हाथ कभी ऊपर होते कभी साइड में वह सिर्फ हमारे वस्त्रों को बाहर निकालने के लिए अलग हो रहे थे. कुछ ही देर में हम दोनों पूर्णता नग्न हो चुके थे.

ज्योति के स्तन मेरे सीने से सटे हुए थे कुछ ही पलों में मैं और ज्योति संभोग की अवस्था मैं आ गए. अपने राजकुमार को उसकी मुनिया के मुख पर रखकर मैंने ज्योति के होठों का चुंबन लिया तथा अपने राजकुमार का दबाव बढ़ा दिया एक मीठी से दर्द के साथ ज्योति ने अपना कौमार्य खो दिया. उसी दौरान लाइट आ गई हम दोनों बत्ती बुझाना भूल गये थे. कमरे की चमकदार रोशनी में ज्योति का खूबसूरत चेहरा मुझे दिखाई पड़ गया. उसकी आंखों से आंसू थे.

अचानक ज्योति चौक उठी. उसके गले में पड़ी हुई चैन का पेंडेंट मेरे गले में पड़े हुए पेंडेंट से चिपक गया था. यह दोनों मिलकर एक दिल की आकृति बना रहे थे. यह पेंडेंट बचपन से मेरे गले में था जिसे मेरी मां ने काले धागे में डालकर पहनाया हुआ था. उसने मुझे यह हिदायत भी दी थी कि कभी इसे अपने शरीर से अलग मत करना.

हम दोनों पेंडेंट के मिलन से आश्चर्यचकित थे नियत ने यह कैसा संयोग बनाया था मैं और ज्योति दो अलग-अलग शहरों से आए हुए थे पर हमारे पेंडेंट एक दूसरे के पूरक थे. हकीकत तो यह भी थी कि मैं और ज्योति भी अब एक दूसरे के पूरक हो चुके थे. मेरे गले का पेंडेंट ज्योति के पेंडेंट से सटा हुआ था. हम दोनों एक दूसरे की तरफ मुस्कुराए और हमारी कमर में हलचल शुरू हो गयी.

ज्योति की आंखों का आंसू सूख चुका था और उस पर खुशी के आंसू ने अपना प्रभाव जमा लिया था कुछ ही देर में हम दोनों एक दूसरे को चूमते हुए स्खलित हो गए.

मैं इस संभोग के लिए कंडोम लेकर आया था पर पता नहीं न वह ज्योति को याद आया और ना मुझे. ज्योति की मुनिया मेरे प्रेम रस से भीग चुकी थी. मुनिया से निकला हुआ प्रथम मिलन का रक्त मेरे श्वेत धवल वीर्य से मिलकर अपनी लालिमा खो रहा था. ज्योति हांफ रही थी और मैं उसे प्यार से चूमे जा रहा था. हम दोनों के लॉकेट अभी भी सटे हुए थे.
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(मैं रचना, ज्योति की माँ)


आज रजनीश की बाहों में आने के बाद मुझे एक बार फिर कुमायूं में हुआ हमारा पहला मिलन याद आ गया. रजनीश ने मेरे गले में पड़े मंगलसूत्र को देखा अरे तुम्हारे गले का वह लॉकेट कहां गया. मैंने उसे ज्योति को उसके जन्मदिन पर गिफ्ट कर दिया. वैसे भी वह हमें बार-बार पुराने जख्म याद दिलाता था.

"हां तुम्हारी बात तो सच है पर उस मासूम का चेहरा मेरी आंखों से आज भी नहीं भूलता. कैसे कुछ ही दिनों में सब कुछ बदल गया था"

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मैंने और रजनीश ने अपने प्रथम संभोग के बाद कई दिनों तक लगातार संभोग सुख लिया था. हम दोनों ही परिवार नियोजन या इससे संबंधित किसी उपाय के बारे में नहीं जानते थे.

इस लगातार संभोग से मैं गर्भवती हो गई. मेरी पढ़ाई अभी पूरी नहीं हुई थी अतः विवाह संभव नहीं था. मेरे पिता राम रतन को यदि इस बात की जानकारी होती तो घर में एक तूफान खड़ा होता. जब वो घर आने वाले होते मेरी मां मुझे मामा के घर भेज देती जो कुमाऊ से कुछ ही दूरी पर था. मेरे मामा और मामी की कोई औलाद नहीं थी.

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धीरे-धीरे 9 महीने बीत गए. मेरी मां को मेरे और रजनीश के संबंधों की पूरी जानकारी थी. मेरी डिलीवरी का वक्त नजदीक आ चुका था पिताजी का घर आने का संदेश आते ही उन्होंने एक बार मुझे मामा के घर भेज दिया. रजनीश पूरे समय मेरे साथ थे मैंने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया था उसका नाम हमने जगत रखा था. एक हफ्ते रहने के बाद रजनीश वहां से चले आए पर आते वक्त उन्होंने अपने गले में पड़ा हुआ लाकेट हमारे पुत्र के गले में डाल दिया.

समय तेजी से बीतने लगा हम दोनों मामा के यहां बीच-बीच में जाते और अपने जगत के साथ खेलते धीरे-धीरे वह 1 साल का हो गया.

अगले कुछ ही दिनों में मैंने ग्रेजुएशन पूरा कर लिया और रजनीश से विवाह कर लिया. मैं और रजनीश जगत को लेने के लिए मामा के घर जा रहे थे तभी केदारनाथ वाली घटना हो गयी.

आकाश में बादल फटा था प्रकृति ने अपना रौद्र रूप दिखाया था. बादल फटने से नदी के आसपास के गांव बह गए मेरे मामा और हमारा प्यारा जगत प्रकृति के कहर के आयी उस आपदा में जाने कहां गुम हो गया. हम अपने मामा के घर से कुल 10 - 15 किलोमीटर ही दूर थे. पर उनके घर तक पहुंचने कि अब कोई संभावना नहीं बची थी. मैं और रजनीश तड़प रहे थे और निष्ठुर नियति को कोस रहे थे.


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मेरा ध्यान संभोग से बट गया था. रजनीश के लिंग को अपनी जांघों के बीच जगह तलाशते देखकर मैं वास्तविकता में लौट आयी. मैंने ज्योति को याद किया निश्चय ही वह आज संभोग सुख ले रही होगी. मेरी उत्तेजना वापस लौट आयी और मैं रजनीश के साथ संभोगरत हो गई.
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Heart 
अगली सुबह ज्योति का फोन आया

"मां कैसी हो?'

"मैं ठीक हूं बेटी, तू बता तू कैसी है? तू ठीक तो है ना? "

"हां मां, कल एक आश्चर्यजनक बात हुई जीवन में भी ठीक वैसा ही लाकेट पहना हुआ था जैसा आपने दिया था हाथी दांत वाला. जब मैं और जीवन संभोगरत तभी मेरी नजर उसके लॉकेट पर पड़ी. उसके लाकेट ने मेरे लाकेट को सटा लिया था. और एक दिल की आकृति बन गई थी. यह एक अद्भुत संयोग ही है ना? मां मै और जीवन एक दूसरे के लिए ही बने हैं. मां तुम एक बार जीवन से मिलना वह सच में बहुत अच्छा है मेरा बहुत ख्याल रखता है."

मेरे हाथ कांप रहे थे फोन का रिसीवर मेरे हाथ से गिर पड़ा. हे भगवान यह क्या हो रहा था. मुझे जगत की याद आ गई कहीं ऐसा तो नहीं की जीवन ही जगत था. हे भगवान तो क्या एक भाई ने अपनी बहन के साथ संभोग किया मैं थरथर कांप रही थी. रजनीश बगल में सो रहे थे. मैं जल्द से जल्द जीवन से मिलना चाहती थी.
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दो दिन बाद मैं और रजनीश जीवन से मिलने निकल पड़े.

मैं और रजनीश मन में कई सारी दुविधा लिए कॉलेज की तरफ चल पड़े. एक बार के लिए हमारा मन कहता हे भगवान वह जगत ही हो. पर जैसे ही मैं ज्योति के बारे में सोचती मेरी सोच ठहर जाती. दोनों भाई बहन एक दूसरे से प्यार करने लगे थे और परस्पर संभोग भी कर चुके थे.

मैं उन दोनों को इस रूप को कैसे स्वीकार करूंगी? इसी उधेड़बुन को मन में लिए हुए कुछ ही समय बाद हम हॉस्टल पहुंचे. जीवन और ज्योति हमारा इंतजार कर रहे थे. जीवन को देखते ही एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे हमारा जगत वापस आ गया हो.

हमने जगत के माता-पिता से मुलाकात की थोड़ा सा कुरेदने पर उन्होंने हमारे सामने सच उजागर कर दिया. जगत उर्फ जीवन हमारा ही पुत्र था.

हे प्रभु हमें मार्ग दिखाइए मेरे और रजनीश की कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था. हमारा पुत्र हमारे सामने खड़ा था पर हम उसे अपने आलिंगन में नहीं ले सकते थे. ज्योति और जीवन भाई बहन थे. काश उन का मिलन न हुआ होता.

अंततः हमने फैसला कर लिया हमने ज्योति की अनुपस्थिति में यह बात खुलकर जीवन को बता दी. वह खुद भी आश्चर्यचकित था पर उसे यह जानना बहुत जरूरी था. उसके माता-पिता उसके सामने खड़े थे.

उसने हम दोनों के चरण छुए. मैंने और रजनीश ने उसे गले से लगा लिया हमारी आंखों से अश्रु धारा फूट पड़ी अपने कलेजे के टुकड़े को इस तरह अपने सीने से लगाने का सुख आज हमें 19 वर्ष बाद मिला था. जीवन जब मेरे गले लगा ऐसा लगा मेरे कलेजे का खालीपन भर गया हो. कलेजे की हूक शांत हो गयी थी.

हमने ज्योति से उसके रिश्ते पर कोई प्रश्न नहीं किया.

पर उस ने अपनी बाहें मेरे गले में डालते हुए प्यार से कहा "मम्मी जब आप ने हम दोनो बहन भाई को मियाँ बीवी के इस नये रिश्ते में कबूल कर ही लिया है, तो अब आप बताएँ कि आप अब मेरी मम्मी बनेगीं या फिर सास?।"

मैंने जीवन से कहा तुम मेरे पुत्र हो और ज्योति मेरी पुत्री. तुम अपनी बहन ज्योति से जैसे रिश्ते रखोगे हमारे साथ तुम्हारा वही रिश्ता कायम होगा.

उसने एक बार फिर मेरे चरण छुए और कहां "मेरे लिए मां और सासू मां में कोई अंतर नहीं है"

तब तक ज्योति अंदर आ चुकी थी उसमें भी जीवन के साथ मेरे चरण छुए.



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कुछ ही दिनों में हमने जीवन और ज्योति का विवाह कर दिया.

यह जानने के बाद की ज्योति उसकी अपनी सगी बहन है जीवन का प्यार ज्योति के प्रति और भी बढ़ता गया. उनके अंतरंग पलों में जीवन ज्योति को कैसे प्यार करता होगा यह मैंने उन दोनों पर ही छोड़ दिया. मेरे लिए तो वह हर रूप में मेरे पुत्र और पुत्री ही थे.


समाप्त.
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Heart 
बुआ का प्यार


यह कहानी एक ऐसी औरत की है जो सती सावित्री थी, परंतु एक नाटकीय मोड़ ने उसे कुछ और ही बना दिया। यह कहानी उसी की जुबानी।

मेरा नाम उषा है। मेरी उम्र 39 साल है। मेरे पति विवेक एक मल्टीनेशनल कंपनी में बडे़ अधिकरी हैं। मेरा बेटा मानव अभी 18 साल का है और बंगलौर में इंजीनियरिंग कर रहा है। मैं अपने पति के साथ मुंबई में रहती हुँ। हमारे साथ मेरे भाई का बेटा रवि भी रहता है जो कोई कंप्यूटर कोर्स कर रहा है। उसकी उम्र तेईस साल है।


##


एक दिन टीवी पर योग का कोई प्रोग्राम दिखाया जा रहा था जिसमें गोमुत्र के बारे में बताया जा रहा था। चूँकि मेरे पति औफिस गये हुए थे इसीलिए मैं और रवि घर पर समय बिताने के लिए टीवी देख रहे थे।

उस प्रोग्राम को देखते हुए मैंने कहा "कोई कैसे गोमुत्र पी सकता है। यह तो बहुत ही गंदा होता है।"

तभी रवि ने कहा"बुआ उसे मशीन से साफ करके पीने लायक बनाया जाता है। तब उसे पीते हैं।"

मेरा भतीजा कभी कभी मुझसे चुहलबाजी भी करता है और मैं उसका मजा लेती हुँ।

मैंने बात बढा़ते हुए कहा"तभी तो कोई किसी का मुत्र ऐसे कैसे कोई पीये।"

तभी रवि ने कहा"कोई किसी का क्या मतलब । युँ तो दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं। आपने लोगो को लोगों का न पीने का तो सुना ही होगा तो मूत पीना कौन सी बडी़ बात है।"

मैने कहा"दुसरों की छोड़ तु बता। बडी़ डींग हाँकता है। तु कर सकता है क्या।"

मेरी डींग हाँकने वाली बात पर वह उत्तेजित होते हुए बोला"इसमें कौन सी बडी़ बात है, जरुर करके दिखा सकता हुँ।"

"लगी शर्त तु नहीं कर पाएगा।"

"करुँगा जरुर,लगी शर्त।"

"परंतु अपनी नहीं किसी और की। समझे। मेरे सामने पीनी होगी। अगर मर्द हो तो इनकार मत करना।"ऐसा कहकर मैं हँसने लगी।

फिर उसने मेरी शर्त मानते हुए बोला "बुआ यहाँ कोई और तो है नहीं, मैं तुम्हारी मूत ही पियुँगा वह भी सीधे बिना कोई अन्य चीज के।"

अब मैं शर्मिंदा हो ग़ई। मैने उसे यह बात भुलने को कहा। परंतु उसने कहा"न करना हो तो ठीक ही है। सभी औरतें अपने बात से मुकरती ही हैं।"

अब मैने ताव में उसकी बात मानी पर यह काम अभी न करने को कहा।

तब रवि ने कहा कि अगर वह यह काम कर लेगा तो मुझे उसकी एक बात माननी होगी।झिझकते हुए मैनें उसकी बात मानी और कहा"परंतु ये बातें किसी को पता नहीं लगनी चाहिए।"

उसके बाद मैं अपने घर के काम में लग गयी। मेरे पति शाम को घर आए तब तक रवि से कोई विशेष बात नहीं हुई।


##


दो दिनों के बाद मेरे पति ने औफिस जाने के बाद फोन कर कहा कि उन्हें 10 दिनों के लिए काम से यूरोप टुर पर जाना है, इसलिए उनका सामान तैयार कर दूँ। मैंने उनका सामान तैयार कर पैक कर दिया। विवेक शाम को आए और सो गये। उनकी फ्लाइट सुबह 4बजे की थी। सुबह उनके जाने के बाद मैं थोडी़ देर सोयी।

फिर सुबह के कामकाज समाप्त होने के बाद मैं टीवी पर सीरियल देख रही थी,उसी समय रवि आया और पूछा "बुआ फुफा तो विदेश गये हैं कब तक आएँगें।"

मैने कहा कि दस दिनों में आएँगे। तभी मैं बाथरुम जाने को उठी तब उसने पूछा "बुआ आप मुझसे गुस्सा तो नहीं हो क्योंकि उस दिन के बाद से आपने मुझसे विशेष बात भी नहीं की और थोडा़ दुर रहने लगी हो"। मैंने कहा "ऐसी कोई बात नहीं है"।

"बुआ अगर बुरा न लगे तो उस दिन की शर्त याद है न।"

"बुरा मानने वाली कोई बात तो नहीं है। फिर बात तो मैंने ही शुरु की थी। मैंने मजाक किया था।" मैंने बात टालने के मूड में कहा।

परंतु वह आज बात टालना नहीं चाहता था। उसने फिर कहा "बुआ तो फिर आज देख ही लो मैं मर्द हुँ या नहीं। तुम भी अपनी जुबान से मत फिरना। मैं यह बाय किसी को नहीं बताऊँगा।"

मुझे बडी़ कोफ्त होने लगी कि मैंने एक साधारण बात को कहाँ से कहाँ ला दिया।

आखिर झिझकते हुए मैंने कहा "पर मैं तुम्हारे आँख पर पट्टी बाँधुंगी और इस बात पर आगे कोई बात नहीं होगी, समझे।" मैं अपने कमरे में कोई कपडा़ लाने गयी।

उसने हाँ कहा और वहीं बैठा रहा। कमरे से आकर मैंने उसे अपने कपडे़ खोलकर बाथरुम में जाने को कहा। बाथरुम में जब मैं गयी तो वह तौलिया लपेट कर खडा़ था। मैंने उसके आँखों पर मोटी पट्टी बाँधी जिससे उसे कुछ दिखाई न दे। फिर सहारा देकर मैंने उसके सिर को नीचे किया। उस समय मैं साडी़ पहने हुए थी। अब मुझे भी सिहरन हो रही थी। फिर मैं उसके सिर पर अपनी चुत को उसके मुँह के पास रखकर पिशाब करने लगी। उत्तेजनावश पिशाब की एक मोटी धार उसके मुँह में गिरी और मैं पिशाब करने के बाद उठी। उसे देखा तो मैं आश्चर्यचकित हो गयी। उसने मेरा पूरा मूत पी लिया था। मैंने बिना कुछ कहे उसके आँखों की पट्टी खोली और उसे नहाने को बोलकर बाररुम से बाहर आ गयी।

बाहर आकर मैं अपने दुसरे कामों में व्यस्त हो गयी। रवि से नजरें मिलाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। खैर किसी तरह दो दिन बित गये।


##


इन दो दिनों में जब भी वह बात याद आती मेरी चूत गीली हो जाती थी।

तिसरे दिन मेरे टीवी देखते समय रवि मेरे पास आया। वह बोला "बुआ जो हुआ सो हुआ। मैं यह बात किसी को नहीं बताऊँगा और यह बात सताने वाली है भी नहीं कि मैंने आपका मूत पिया है।"

मैंने भी कहा कि यह बात किसी हालत में कोई न जाने क्योंकि इससे मेरी बदनामी होगी।

"बुआ ऐसे देखा आपने मैंने असंभव वाला काम कर दिया। मूत पीने समय तो बहुत ही खारा लगा पर मैं किसी तरह पी ही गया। आपके बाथरुम से निकलने के बाद थोडी़ उबकाई हुई पर सब ठीक हो गया। वैसे मेरी शर्त तो याद है ना।"

"हाँ याद है, बोलो क्या करना है।" मैनें थोडे़ कडे़ लहजे में उससे पूछा।

"रहने दीजिए बुआ आप नहीं कर पाएँगी।"

"ऐसा कौन सा काम है जो मैं नहीं कर पाउँगी।"

"आप मुझसे नाराज हो जाएँगी। और फिर आप से नहीं हो पाएगा।"

"अगर तुम वह वाली बात किसी को न बताओ तो मैं नाराज नहीं होउँगी और तुम जो कहोगे मैं करुँगी।"

"मैं किसी को कुछ नहीं कहुँगा, लेकिन आप कर नहीं पाएँगीं।"

"ऐसा क्या है जो मैं नहीं कर पाऊँगी।"

"बुआ वो...वो...।"

"क्या वो... बोलकर देखो, मैं कुछ भी कर सकती हुँ।"

"मैं चाहता हूँ कि...।"

"क्या चाहते हो? मुझे कमजोर मत समझो। मैं तुम्हें कुछ भी करके दिखा सकती हूँ।"

"बुआ, मैं आपके चूत के दर्शन करना चाहता हूँ और उसे जीभर के चूमना चाहता हूँ। उसकी गंध अभी भी मुझे बेचैन कर रही है।"

अब मैं चौंक उठी।

मैं कुछ बोलती इससे पहले ही रवि ने कहा "बुआ आपने पहले ही कहा है आप नाराज नहीं होंगीं और आप कुछ भी कर सकती हैं। अगर नहीं करना चाहती हैं तो कोई बात नहीं। मुझे पहले ही मालुम था कि आपसे नहीं होगा।पर आप नाराज ना हों।"

मैंने उससे कहा "क्या मालुम था मुझे कि तुम ऐसा कुछ कहोगे और औरतें भी अपने जुबान की पक्की होती है।" ऐसा कहकर मैं अपने कमरे में चली गयी।

वहाँ मैं सोचने लगी कि ये मैंने क्या कर दिया। खैर बहुत सोचने के बाद मैंने अपनी चड्डी उतारी और रवि को आवाज दिया।

थोडी़ देर में रवि आया और बिस्तर पर बैठा। मैंने कहा "देखो बेटा, यह जो तुम कह रहे हो वह कहीं से भी सही नहीं है। परंतु चुँकि शुरुआत मैंने की और मुझे तुम्हारी शर्त पूरी करनी है, इसीलिए मैं तुम्हारी बात मानूँगी। लेकिन यह सब बातें किसी को भी पता नहीं चलनी चाहिए।"

तब रवि ने कहा "बुआ यह बातें मैं किसी को नहीं बताऊँगा चाहे कुछ भी हो जाए।"

मैंने उसे आँख बंद करने को कहा और अपना पेटिकोट उठाया। फिर उसे आँख खोलने को कहा। वह कुछ देर युँ ही मेरी नंगी जाँघ और चूत को निहारता रहा, फिर काफी करीब से देखने लगा। फिर तेजी से उसने अपनी जीभ मेरी चूत पर फिरायी। मेरी तो हालत खराब हो गयी। मेरी जिंदगी में यह पहली बार था कि कोई मेरी चूत पर जीभ फिरा रहा हो। मेरे पति ने भी मेरे साथ ऐसा कभी नहीं किया।

पति के साथ मेरी सेक्स लाइफ सामान्य ही थी। हमनें कुछ नया करने की कभी सोची ही नहीं।

इधर मेरी चूत पर जीभ फिरने से मुझे अजीब सी सिहरन महसूस हो रही थी। मैंने अपनी आँखे बंद कर लीं। अब उसने तेजी से अपनी जीभ चलाना शुरु किया। मेरी हालत पतली हो रही थी। एक अजीब सी मदहोशी मुझ पर छा रही थी। उसके जीभ से चाटते चाटते लगा कि मैं सातवें आसमान पर पहुँच गयीं हूँ। अब उसने अपनी जीभ अंदर डालनी शुरु। कब तो मुझे लगा कि मैं मर ही जाऊँगी।

अचानक मेरे अंदर कुछ अजीब लगने लगा। अब मैं नहीं चाहती थी कि वह रुके कि तभी वह रुका और बोला "बुआ मैं तो और भी चाटना चाहता हूँ। "

"तो चाटो न रुक क्यों गये।" मेरी बात सुनकर वह मुस्कुराया और बोला कि जबतक फुफा जी नहीं आते हैं तबतक दिन में एक बार मैं आपका चूत जमकर चाटुँगा। अगर मंजुर हो तो बोलिये।

मेरी हालत यह थी कि मुझे अपनी चूत चटवाने के अलावा कुछ नहीं सूझ रहा था।

मैंने कहा "तुम जो कहो मुझे मंजूर है पर अभी रुको मत अपना काम जारी रखो।"

मेरी बात सुनकर उसने मेरी चूत को जमकर चाटना चालू कर दिया। दो मिनट बाद ही ऐसा लगा जैसे मेरे अंदर का सबकुछ बाहर निकल आएगा। और फिर मैंने अचानक उसका सिर पकड़ कर अपने चूत पर कसकर सटाया कि तभी मेरी चूत ने पानी छोड़ना चालू कर दिया। मैं झड़कर निढाल पर गयी। ऐसा लगा मानो मेरी पूरी ताकत किसी ने निचोड़ ली हो। परंतु उसने मेरी चूत को चाटना नहीं छोडा़। तभी फिर एक बार मैं झड़ने लगी । ऐसा उसने दो बार और मुझे झडा़या। फिर मैंने उसे जबरदस्ती हटाया और मैं निढा़ल होकर पडी़ रही। फिर कब मुझे नींद आ गयी पता ही चला।

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जब मैं उठी तो शाम ढ़ल चुकी थी। मैं नहाने चली गयी। नहाने वक्त भी मैंने अपनी चूत को रगड़कर झाडा़ पर मुझे वैसा शुकुन नहीं मिला जैसा कि चूत चटवाते वक्त मिला था।

फिर मैं नहाकर निकली और तैयार होकर बैठी ही थी कि रवि आ गया। उसने मेरा हाल पूछा।

मैने कहा कि मैं ठीक हूँ। मैंने उससे पूछा कि उसने यह सब कहाँ से सीखा।

उसने कहा कि यह सब उसने विडियो देखकर और किताबों से सीखा है। फिर उसने पूछा "बुआ कैसा लगा, ये तो बताइए।"

तब मैंने कहा कि जैसे मैं स्वर्ग में पहुँच गयी हुँ। मैंने पहली बार अपनी चूत चटवायी। इसका अनुभव मैं बयां नहीं कर सकती। तुमने मेरी हरकतों से पकड़ लिया होगा।

मेरी बात सुनकर वह मुस्कुराने लगा और बोला अब तो जब भी मन होगा तब करवाओगी न।

मैंने झेंपते हुए कहा "ऐसा कोई जरुरी थोडे़ ही है। ऐसे भी हमें अपने रिश्ते की देखते हुए ही कोई काम करना है। अगर तुम इसे राज रखो तो करने में कोई हर्ज नहीं।" अब मैं भी बहकने लगी थी।

तभी रवि मेरे गोद में आकर बैठ गया और मुझे तुरंत करने के लिए मनाने लगा। मैंने उसकी बात को अनसुना करते हुए उसे अपने गोद से उतारते हुए किचेन में चली गयी। फिर रवि भी मेरे पीछे पीछे किचेन आ गया। उसने मेरी गाँड सहलाते हुए मुझसे जिद्द करने लगा। मै युँ ही इनकार करती रही।

तभी वह मेरे कदमों में गिर कर मनुहार करने लगा। फिर भी मैं इनकार करती रही। मेरे अंदर भी खलबली मची थी। मैं भी उससे अपने चूत को जमकर चटवाना चाहती थी। इसीलिए मैं उसे अनमने ढंग से मना कर रही थी।

तभी उसने मेरी साडी़ उठायी और अंदर घुस गया। फिर तेजी से उसने मेरी पैंटी नीचे सरकायी और मेरे चूत पर अपनी ऊँगली फिराने लगा। मैं अब पूरी तरह मस्त हो चुकी थी। मैंने उसे इशारे से मेरी पैंटी उतारने को कहा। उसने मेरी पैंटी उतारने के बाद मेरे चूत को चाटना शुरु किया। अब मैं साँतवे आसमान पर पहुँच गयी थी। चूत चाटते चाटते कब उसने मेरी साडी़ पेटीकोट सहित उतारा मुझे इसका भी ध्यान नहीं रहा। अब मैं पूरी तरह उसके नियंत्रण में थी। तभी उसने मेरी झाँटो भरी चूत को चाटना छोड़ मुझे झाँट साफ करने को कहा।

मैंने उससे कहा कि उसका जो भी मन है वो करे। तब उसने रेजर लाकर मेरे झाँटो को साफ करना शुरु किया। जैसे जैसे झाँट साफ होते गये मुझे अजीब सा महसूस होने लगा।

मेरे झाँटों को साफ करने के बाद उसने फिर से चूत को चाटना शुरु किया। अब मेरे अपने जाँघों से उसके सिर को दबाने लगी। अचानक मुझे अपने अंदर अजीब सा सिहरन होने लगा और मैं तेजी से झड़ गयी। मैं किचेन में ही फर्श पर बैठ गयी।

फिर न जाने मुझे क्या हुआ कि मैंने अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिया और उसे चूमना चालू कर दिया। पाँच मिनट तक ऐसे ही चूमने के बाद मैंने उसे खाने के लिए इंतजार करने को कहा।

फिर मैंने अपने कपडे़ समेट कर रखा और आधे नंगे रहकर ही खाना बनाया और खाने को डायनिंग टेबल पर लगाया। फिर मैं और रवि दोनों खाना खाने लगे।

खाना खाने के बाद सारे काम निपटाकर मैं अपने कमरे में बिस्तर पर लेटी। मैं अब तक अर्धनग्न ही चादर ओढ़कर लेटी थी।

तभी रवि केवल अंडरवियर में आया और बोला "बुआ मुझे नींद नहीं आ रही है और मुझे फिर तुम्हारा चूत चाटने की इच्छा है।" यह कहकर वह मेरे बगल में चादर के अंदर आकर लेट गया और मेरे जाँघों को फैलाने लगा।

मैंने भी उसे पूरी छुट देते हुए अपने कमर को हिलाने लगी। थोडी़ ही देर में मैं झड़ गयी।

मैं बिस्तर पर ही लेटी थी कि रवि ने मुझे अपना लंड चूसने को कहा। थोडी़ ना नुकुर के बाद मैं उसका लंड चूसने को तैयार हो गयी। फिर मैंने उसके अंडरवियर को नीचे सरकाया।

उसका लंड सामान्य से थोडा़ मोटा और एकदम तन कर खडा़ था। यह पहली बार था जब मैं अपने पति के अलावा किसी और का लंड देख रही थी। मैंने इससे पहले अपने पति का भी लंड कभी नहीं चूसा था।

सबसे पहले मैंने अपने जीभ से उसके लंड के सुपारे को चाटा। थोडा़ नमकीन जैसा जरुर था पर स्वाद उतना बुरा भी नहीं था।

फिर मैंने उसके पूरे लंड को मुँह में भर लिया। मुँह में भरकर मैं उसे जीभ से ही हिलाने लगी। अब रवि साँतवें आसमान पर था। लगभग दस मिनट लंड चूसने के बाद उसका शरीर अकड़ने लगा।

तभी रवि बोला "उषा डार्लिंग कसकर चूसो मेरा लंड अब मैं झड़ने वाला हूँ।" उसके मुँह से इसतरह अपना नाम सुनकर मैं चौंक उठी पर मैंने उसका लंड चूसना जारी रखा। तभी उसने मेरे सिर को कसकर पकडा़ और अपने लंड को तेजी से मेरे मुँह में हिलाने लगा। थोडी़ ही देर में उसके लंड ने वीर्य का फव्वारा मेरे मुँह में छोडा़।

मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने जबरदस्ती मेरे मुँह मे गर्म पानी डाल दिया हो। परंतु पता नहीं मुझे क्या हुआ मैंने उसे उगला नहीं बल्कि किचेन में जाकर एक गिलास पानी के साथ पी गयी।

उसके बाद मैं अपने बिस्तर पर रवि के बगल में ही सो गयी।

सुबह मेरी नींद रवि के मेरे चूत चाटते समय ही खुली। अचानक मुझे उत्तेजना महसूस हुई और मैंने रवि के सिर को कसकर पकडा़ और मैं झड़ गयी। फिर मैं उठकर बाथरुम चली गयी और रवि सो गया।

सुबह का काम खत्म होने के बाद अपने लिभिंग रुम में बैठकर सोच रही थी कि मैंने अपने भतीजे के साथ इस नये संबंध से कैसे निपटुँ। हालांकि अभी तक मैंने संभोग नहीं किया था फिर भी मुझे अजीब लग रहा था।

तभी रवि आया और बोला "क्या कर रही हो उषा"।

मैं उसके मुँह से इस तरह अपना नाम सुनकर चौंकि और बोली "ये क्या बार बार मेरा नाम लेकर बुला रहे हो"।

तब उसने कहा "देखो उषा यह सच है कि तुम मेरी बहुत ही प्यारी बुआ हो पर अब मैं तुमसे सच्चा प्यार करने लगा हूँ और प्यार में और कोई रिश्ता तो होता नहीं। फिर तुम इतनी प्यारी और खुबसूरत हो कि मैं बयां नहीं कर सकता। वैसे ये सब तभी होगा जब हम दोनों अकेले होंगें। सबके सामने हम बुआ भतीजा ही रहेंगें।"

उसके इस तरह कहने पर मैं थोडा़ आश्वशत हुई।

तभी वह मेरे पास आया और मुझे स्मूच करने लगा।

अब मैं भी उसका साथ देने लगी। उसने मेरा गाउन निकाल फेंका। गाउन के नीचे मैं पूरी तरह नंगी थी। फिर उसने मुझे सोफे पर लिटा कर चूत चाटने लगा।

अब मैं मदमस्त हो चूकी थी। मैंने उसे उठाकर उसका पजामा खोला और उसके लंड से खेलने लगी।

उसने मुझे फिर लिटाया और चूत को चाटने लगा। अब हम एक दुसरे के अंगों को एक साथ चाट रहे थे। मैं अब पूरी तरह उसके काबू में थी।

तभी उसने मेरे निप्पल को जमकर मसलना शुरु किया। मैं तुरंत ही झड़ गयी। उस दिन एक बार और हमने ऐसा किया।

फिर रात भर हम दोनों नंगे ही एक साथ सोये।
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सुबह मेरे पति विवेक ने मुझे फोन किया और कहा कि वह शाम तक आ रहे हैं। मैं जल्दी उठी और फ्रेश होकर घर की साफ सफाई में लग गयी।

उसके बाद मैं रवि को उठाने गयी तो देखा कि वह नंगे ही सो रहा है और उसका लंड तनकर खडा़ था। मैं बिना कुछ सोचे उसका लंड चूसने लगी। अब मुझे लंड चूसने में मजा आने लगा था। लंड चूसते समय ही वह उठ गया और मेरा सिर पकड़ कर हिलाने लगा। थोडी़ ही देर में वह मेरे मुँह में ही झड़ गया। मैं भी उसका सारा वीर्य पी गयी। अब मुझे वीर्य पीना अच्छा लगने लगा था।

मैंनें उसे बताया कि उसके फुफा शाम तक आ जाएँगे इसीलिए ठीक से व्यवहार करे। शाम तक मैं सारा काम खत्म कर खाना खाकर चाय पी रही थी। रवि अपना क्लास करने गया था।

मेरे पति आ गये। टुर के बारे में पूछ कर उन्हें तौलिया देकर मैं रात का खाना बनाने चली गयी। खाना बनाकर मैं अपने कमरे में गयी तो देखा कि मेरे पति फ्रेश होकर अखबार पढ़ रहे थे। मुझे उन्होंने आलिंगन में भरा और चूमने लगे। मैंने उन्हें छोड़ने को कहा और बोली कि रवि कभी भी आ जाएगा, रात को करेंगे।

फिर हम लोग टीवी देखने लीभिंग रुम में आ गये। लगभग नौ बजे रवि भी आ गया। उसके फ्रेश होते ही मैंने खाना लगाया और खा पीकर हमलोग सोने चले गये। कमरे में आने पर मैंने कपडे़ बदलकर नाइट गाउन पहना और पति के पास आकर लेट गयी।

मैंने अपने पति को थोडा़ परेशान देखा और परेशानी की वजह पूछी। उन्होंने मुझे औफिस के काम का हवाला दिया। मैंने कहा "यह औफिस के काम की वजह से आप परेशान नहीं हैं कुछ और ही वजह है। मैं आपको इतने सालों से जानती हूँ। जरुर आप कुछ छुपा रहे हैं। बताईये मुझे क्या बात है"।

इस तरह मैंने उन्हें बहुत बोला तब उन्होंने कहा कि अगर तुम गुस्सा न हो तो ही मैं कुछ कहुँगा।

मैंने कहा कि मैं गुस्सा नहीं होंगी।

तब उन्होंने कहा "उषा तुम्हे मालुम है कि मैं ब्लू फिल्म नहीं देखता, पर इस बार टुर में जब मैं इंग्लैंड में था मुझे मेरे कलीग ने एक ब्लू फिल्म दिखाई। उसमें दो आदमी और एक औरत होती है। एक आदमी अधेड़ है और औरत उसकी पत्नी होती है। दुसरा आदमी बहुत ही कम उम्र का होता है लगभग उनके बेटे के उम्र का। अधेड़ आदमी अपनी नीरस सेक्स लाइफ में कुछ नया करना चाहता है। इसीलिए अपनी पत्नी और उस लड़के को अपने सामने सेक्स करने के लिए मनाता है। दोनों उसके कहने पर सेक्स करते हैं और फिर उनका सेक्स लाइफ अच्छा चलने लगता है।"

यह कहते हुए मेरे पति ने एक विडियो अपने लैपटाॅप पर चलाया। उसमें एक लड़का और औरत सेक्स कर रहे थे, अधेड़ आदमी बगल में बैठकर उन्हें देख रहा होता है। लड़का उस महिला का चुंबन लेता है और धीरे धीरे महिला को नंगा करता है। फिर लड़का महिला को चुमते हुए उसके चुचियों को चुसने लगता है। थोडी़ देर चुसने के बाद वह नीचे बढ़ता है और उसकी नाभि को चुमता है और नीचे जाते हुए चूत चाटने लगता है। महिला अपने आपे से बाहर हो जाती है और लड़के को अपना चूत चाटने को उकसाती है। थोडी़ देर चूत चाटने के बाद महिला लड़के को नंगा करती है और उसका लंड देखकर आश्चर्य करती है। लड़का उसे अपना लंड चूसने को कहता है। महिला उसका लंड चूसने लगती है। वह उसका पूरा लंड मुँह में नहीं ले पाती है क्योंकि वह सामान्य से बडा़ होता है। फिर भी महिला कोशिश करती है और खाँसने लगती है।

फिर वह लड़का महिला को बिस्तर पर लिटाता है और अपना लंड उसके चूत में डालने लगता है पर एक बार में लंड चूत में नहीं जाता है। फिर दुसरी बार धक्का लगाने पर लंड सरसराकर चूत में चला जाता है। महिला चित्कार उठती है और थोडा़ रुककर धक्का लगाने को बोलती है। लड़का पहले तो धीरे धीरे फिर तेजी से धक्का लगाते हुए झड़ जाता है।

फिर अधेड़ आदमी वीर्य से भरे महिला के चूत को चाटता है और वह भी चुदाई करता है।

पूरा विडियो देखकर मैं भी गर्म हो जाती हूँ और पति को चूमने लगती हूँ। मेरे पति मेरा नाइटगाउन उतार फेंकते हैं और मेरी चिकनी चूत को देखकर हाथों से सहलाने लगते हैं। वह मेरी चूत के बारे में पूछते हैं तो मैं उन्हें कहती हूँ कि यह आपके लिए है।

मेरे पति मुझे चोदना शुरु करते हैं और कुछ ही क्षण में झड़ जाते हैं। मैं युँ ही रह जाती हूँ। हमदोनों बिस्तर पर पडे़ होते हैं। मेरे पति मुझसे पूछते हैं कि तुम्हारा क्या विचार है।

"किस बारे में"

"यही कि क्या हम भी किसी तिसरे को अपने बेडरुम में जगह दे सकते हैं। अगर तुम राजी हो तो मुझे कोई दिक्कत नहीं है।" मैं उनकी बात सुनकर बिना कोई जवाब दिए करवट बदलकर सो जाती हूँ। वह भी सो जाते हैं।

अगले दिन उठकर मैं फ्रेश होकर किचन का काम निपटाती हूँ। मेरे पति भी फ्रेश होकर औफिस जाते समय नाश्ता कर निकल जाते हैं। मेरी अपने पति से कोई बात नहीं होती। रवि भी अपने क्लास के लिए नाश्ता कर निकल जाता है।

अब मैं अकेली सोचतीं हूँ कि पति की बात मानी जाए कि नहीं। मन तो था कि मान जाती हूँ और रवि को शामिल कर लेती हूँ, पर कुछ सोच कर रुक जाती हूँ। यूँ ही सोचते सोचते दिन निकल जाता है।

फिर रात को बेडपर जाने के बाद मेरे पति फिर से वही बात पूछते हैं। मैं शांत ही रहती हूँ।

फिर पति के बार बार कहने पर मैं बोली "अगर मैं आपकी बात मान भी लुँ तो क्या भरोसा कि अगला इस बात को राज ही रखेगा"।

तब विवेक(मेरे पति) ने कहा "अगर तुम राजी हो तो हम कोई ऐसे आदमी को ही शामिल करेंगे जो कोई भी बात किसी को ना कहे।"

"कौन है वह आदमी? तुम्हारा कोई दोस्त"

"नहीं! कोई ऐसा जो हमारे राज को राज रखे। जो बहुत ही नजदीकी हो।"

"ऐसा कौन है नजदीकी व्यक्ति"

कुछ देर सोचने के बाद मेरे पति ने कहा "रवि के बारे में तुम्हारा क्या खयाल है।"

रवि का नाम सुनकर एक बार तो मैं खुश हो गयी क्योंकि रवि के साथ तो मेरा संबंध आगे बढ़ने के बावजूद मैं उससे अभी तक चुदी नहीं थी। मैंने अपनी खुशी दबाते हुए कहा "यह आप क्या कह रहे हैं? रवि मेरा भतिजा है और फिर वह मानव से थोडा़ ही तो बडा़ है।"

"रवि इसलिए क्योंकि हम उस पर विश्वास कर सकते हैं कि वह हमारी बातों को राज रखेगा। फिर उम्र तो कोई मायने नहीं रखता है।"

"ठीक है पर क्या आप उससे जाकर कहेंगें कि आओ और अपनी बुआ को चोदो। क्या यह ठीक रहेगा?"

"दो दिन बाद उसका जन्मदिन है। मैं उसे शाम को किसी तरह बाहर भेज दुँगा। उस दौरान तुम तैयार होकर उसके कमरे में चली जाना और बत्ती बंद कर लेना। मैं उससे कहुँगा कि वह कमरा बंद कर बत्ती जलाए, उसका तोहफा वहीं है। फिर देखते हैं वह क्या करता है। अगर वह मान जाता है तब आगे देखते हैं।"

"ठीक है। अगर कुछ गड़बड़ हुई तो आप ही संभालना।" यह कहकर मैं करवट लेकर सो गयी।
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अगले दो दिनों तक मेरी अपने पति से कोई विशेष बात नहीं हुई।

तिसरे दिन सुबह उठने पर मैंने रवि को जन्मदिन की बधाई दी और अपने काम में लग गयी। मेरे पति ने भी रवि को जन्मदिन की बधाई दी और मुझे शाम के लिए इशारा किया। फिर तैयार होकर औफिस चले गये। अपना काम खत्म कर मैं भी ब्युटि पार्लर चली गयी। दोपहर बाद मैं घर आई तो रवि घर ही था। हमनें खाना खाया। खाने के बाद रवि अपने क्लास चला गया। मैं भी थोडा़ आराम करने लगी।

शाम को सात बजे के आसपास मेरे पति भी आ गये।

थोडी़ देर बाद रवि भी आया। आते ही मेरे पति ने कुछ कुछ काम बताकर बाहर भेज दिया और मुझे तैयार होकर उसके कमरे में जाने को बोला। मैं भी तैयार होने लगी।

तैयार होने के बाद मैंने रवि का कमरा भी थोडा़ ठीक किया। उसके आने से पहले मैं उसके कमरे में गयी और बिस्तर पर बैठ गयी। मेरे पति ने मुझे चादर से ढ़ककर बत्ती बंद कर दिया और बाहर चले गये।

रवि के आने के बाद मेरे पति ने उससे कहा "रवि आज तुम्हारे जन्मदिन पर मैंने तुम्हारा तोहफा तुम्हारे कमरे में रख दिया है। कमरे में जाओ और कमरा बंद कर अपना तोहफा ले लो। अगर पसंद आए तो ठीक नहीं तो तोहफा वापस भी कर सकते हो। लेकिन किसी भी सूरत में तोहफे के बारे में किसी से कोई बात नहीं करनी है, यह याद रखना।

रवि अब कमरे में आया और कमरा बंद कर बत्ती जलायी। बत्ती जलाने के बाद उसने बिस्तर मुझे ढ़ँका हुआ पाया और उसने मेरे उपर से चादर हटाया। चादर हटाने के बाद मुझे देखने पर सोचने लगा।


मैंने उससे कहा "रवि मैंने तुम्हारे फुफा से हमारे बारे में कोई बात नहीं की है। टुर से आने के बाद पता नहीं क्या सोचकर उन्होंने मुझे किसी और से चुदते समय देखने की बात की और उन्होंने ही तुम्हारा नाम सुझाया। फिर तुमसे सीधे ना बोलकर इस तरह किया है। अब तुम जो चाहो कर सकते हो।"

रवि को तो जैसे मुँह मांगी मुराद मिल गयी, उसने मुझे बेतहाशा चूमना शुरु कर दिया। चूमने के बाद उसने मुझे जल्दी से नंगा कर दिया।

मुझे नंगा देखकर वह बहुत खुश हुआ। मैंने ब्युटि पार्लर जाकर थ्रेडिंग वैक्सिंग कराया था और अपने काँख और चूत के बाल भी हटवाये थे। मैं पूरी तरह चिकनी होकर नंगे ही उसके सामने पडी़ थी।

उसने पूछा "क्या तुमने यह सब मेरे लिए कराया है।"

"हाँ, जानूं तुम ही अब मेरे नये मालिक हो और मैं अब तुम्हें जानूं ही कहुँगी और जो भी तुम कहोगे मैं करुँगी।" इतना कहने के बाद मैं उसे स्मूच करने लगी।

थोडी़ देर बाद उसने मेरे टाँगों को उठाया और कहा कि बहुत दिन के बाद तुम्हारा चूत चाटने को मिला है। आज तो मैं तुम्हें खा ही जाऊँगा। उसके बाद मेरे चूत को उसने जमकर चाटा और मुझे झाड़कर पस्त कर दिया।

मैं थोडा़ लेटी ही थी कि दरवाजा खुलने की आवाज आई। मैंने देखा तो रवि बाहर जा चुका था और मेरे सारे कपडे़ और चादर भी ले गया था। मैं भी नंगे ही दरवाजे तक आई तो देखा बाहर मेरे पति को रवि मेरा सारा कपडा़ दे रहा है।

उसने मेरे पति से कहा "फुफाजी आपका तोहफा मुझे पसंद है और विश्वास कीजिए यह सब बात मैं हमेशा राज ही रखुंगा। यह कपडे़ आप रखिए। मैं आज अपने हिसाब से काम करुँगा।" यह कहकर वह कमरे में आयाऔर मुझे अपने आप को नंगाकर लंड चूसने को कहा।

मैंने उसे नंगा कर उसका लंड चूसना शुरु कर दिया। तबतक लंब चूसा जब तक कि वह मेरे मुँह में ही झड़ नहीं गया। इसके उसने अपने होंठ मेरे होंठों पर रखा और अपने रस का भी स्वाद लेने लगा।

इसके बाद उसने मेरी चुँचियों को चूसना शुरु किया। मेरे निप्पल को जमकर मसला। मैं कराहने लगी। मेरी काँखों को चाटा। फिर मेरी नाभि चाटते हुए वह मेरी चूत तक पहुँचा और मेरे चूत को फिर चाटा। अब मैं पूरी तरह से गरम हो चुकी थी।

मैंने कहा "जानूं अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा है। अब जल्दी से मुझे चोद दो और अपनी रानी बना लो।"

अब मैंने लंड चूसकर खडा़ किया और बिस्तर पर लेटकर उसे चोदने का इशारा किया। अब मैं उसकी बुआ से उसकी रखैल बनने जा रही थी। उसने अपने लंड को मेरे चूत पर सटाया और धक्का दिया। मेरी गिली चूत में उसका लंड झटके से समा गया।

फिर वह युँ थोडी़ देर रुका और मुझे चुमने लगा। मैं अब पूरी तरह उसका साथ देने लगी। उसने धीरे धीरे धक्का मारना शुरु किया और मैं भी कमर उचका उचका कर उसका साथ देने लगी। इसीतरह लगभग आधा घंटा तक काम चला। अब मैं दो बार झड़ने के कारण थकने लगी थी। तभी उसने अपनी स्पीड बढा़ई और मेरे अंदर ही झड़ कर निढा़ल पड़ गया। हम दोनों थक गये थे इसीलिए जल्द ही सो गये।

फिर रात में एक बार और रवि ने मुझे जमकर चोदा।

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सुबह उठने पर मैंने देखा रवि अभी सोया है और उसका लंड आधा खडा़ था।

मैंने उसका लंड चूसकर उसे उठाया। उठने पर उसने मुझे फिर चोदा और मेरे चूत में ही अपना रस निकाल दिया। चूँकि मेरे सारे कपडे़ रवि पहले ही रुम से हटा दिया था इसीलिए मैं नंगे ही उसी अवस्था में अपने कमरे में गयी। मेरे चूत से रस टपककर जाँघों तक आ गया था। मैंने उसे तौलिया से पोछा।

तबतक मेरे पति औफिस जाने के लिए तैयार हो चुके थे। उन्होंने मुझे कसकर किस किया और औफिस चले गये। फिर मैं फ्रेश होकर नहायी और घर का काम खत्म किया।

तबतक रवि भी उठा और फ्रेश होकर नाश्ता करके क्लास करने चला गया। उसके बाद मैंने दिनभर आराम किया क्योंकि रात की चुदाई का थकान उतारना था। शाम को मेरे पति आ गये। उसके बाद मैं और पति लीभिंग रुम में बैठ कर बातें कर थे।

"कैसा लगा रवि के साथ रात बिताकर"

"ठीक ही था।"

"सुबह तुम्हें देखकर लग रहा था कि रातभर जमकर चोदा उसने तुम्हें"

मैं शर्मा गयी और कुछ बोलती इससे पहले रवि आ गया। विवेक और रवि एक दुसरे को देखकर मुस्कुराए। विवेक ने पूछा "कैसी है तुम्हारी बुआ चुदने में"

"अच्छी है। मैं आपका एहसानमंद हुँ कि आपने मुझे ये मौका दिया। इसे मैं किसी कीमत पर राज ही रखुँगा।"

तभी वह मेरे बगल में बैठ गया और मुझसे पूछा "आप ठीक तो हैं ना बुआ।"

मैं बोली "ठीक हुँ।"

उसके बाद उसने मेरे पति के सामने ही मुझे किस करने लगा। मैं थोडा़ हिचकिचायी फिर रवि के सिर पकड़कर किस करते हुए उसका साथ देने लगी।

उसने मेरे नाइटी के उपर से ही मेरी चुँचियों को मसलना शुरु किया। मैं अब उत्तेजित हो रही थी। तभी उसने एक झटके से मेरी नाइटी निकाल फेंकी।

मैंने कोई अंडरवियर नहीं पहना था। अब मैं नंगे ही अपने पति के सामने पडी़ थी।

तभी रवि ने मेरे चूत को चाटना शुरु किया। अब मेरी हालत पतली होने लगी। मैंने रवि को अपने चूत से हटाया और उसे नंगा कर दिया। उसका लंड पूरी तरह खडा़ हो चुका था। मैंने उसके लंड को थोडी़ देर चूसा और अपनी टाँगों को फैलाकर चोदने का इशारा किया।

तभी मैंने विवेक को देखा। वो धीरे धीरे अपना लंड मसल रहे थे। तभी रवि ने अपना लंड मेरे चूत पर सटाया और एक झटके से अंदर कर दिया।

मैं थोडा़ चिहुँकी और कमर हिलाकर रवि का साथ देने लगी। अब मैं गरम हो चुकी थी।

मैं बोली "जानूं अब मैं तुम्हारी रांड बन चुकी हुँ। तुम्हारे फुफा भी यही चाहते हैं। अब तुम्हें जब मन हो मुझे चोद सकते हो।"

तभी उसने पूछा "जब तुम मेरी रंडी बन ही चुकी हो तो यह बताओ कि किसकी चुदाई तुम्हें अच्छी लगती है।"

मैं यह सुनकर अपने पति की ओर देखा तो वो मजे से अपना लंड निकालकर सहला रहे थे।

मैं बोली "जानूं तुम्हारा"

"तो क्या अब फुफाजी से चुदोगी।"

"चुदुँगी जरुर, पर तुमसे पुछकर"

इतना सुनते ही उसने अपनी रफ्तार बढा़ दी और जल्द ही वह मेरी चूत में झड़ गया।

मैं भी थक चुकी थीऔर आँखें बंद कर लेटी थी कि लगा कोई मुझे किस कर रहा है। आँखे खोलकर देखा तो विवेक थे। मुझे किस कर वो बाथरुम चले गये।

मैं उठी और नाइटी पहनकर खाना बनाने चली गयी। रवि भी अपने कमरे में चला गया। खाना बनाने के बाद सबने खाना खाया। मैं बर्तन समेटकर कर वाशबेसिन में धोने लगी।

तभी रवि पीछे से आया और बोला "जल्दी से आओ मेरे कमरे में, बिना कपडो़ के आना।" यह कहकर वह चला गया।

मैं बर्तन धोकर अपने कमरे में गयी तो देखा मेरे पति नंगे होकर अपना लंड सहला रहे थे। मैं उनके लंड को चूसने लगी। विवेक आँखें बंद कर लंड चूसवाने का मजा ले रहे थे। मैंने अपनी शादी के बाद पहली बार उनका लंड चूसा था।

तभी विवेक मेरा सिर पकड़ कर दबाने लगे। मैं जल्दी से पीछे हटी। जैसे लंड मुँह से बाहर निकला सारा वीर्य मेरे चेहरे पर गिरा दिया।

मैं अपना चेहरा पोंछ कर अपने पति से बोली "रवि ने मुझे नंगे ही बुलाया है। इसीलिए उसके पास जा रही हुँ। आप सो जाइए।"

यह कहते हुए मैंने अपना गाउन उतार फेंका और नंगे ही रवि के कमरे में आ गयी। कमरे में जाकर देखा तो रवि नंगे ही बिस्तर पर लेटा हुआ था। मुझे देखकर कहा "बडी़ देर लगा दी आने में" "तुम्हारे फुफाजी को सुलाकर आ रही हुँ।" इसके बाद उसने मुझे बिस्तर पर लिटा कर मेरी चूत को चाटने लगा। उसके ऐसा करने से मैं तुरंत ही उत्तेजित हो गयी। तब उसने मुझे पहली बार डाॅगी जैसा होने को कहा।

उसके बाद उसने डॉगी स्टाइल में ही मेरी चुदाई शुरु की। अब तो मैं सातवें आसमान पर पहुँच चुकी थी। मैंने कभी नहीं सोचा था कि अपने भतीजे के साथ मैं यह सब करुँगी। उसके द्वारा नये नये तरीके की चुदाई के कारण अब मैं केवल उससे ही चुदना चाहती थी। डॉगी स्टाइल में चुदते चुदते मैं दो बार झड़ चुकी थी पर रवि अभी भी मुझे जमकर चोद रहा था तभी मैं बोली "जानूं आज मेरी बुर का भोंसडा़ ही बना दे। अब तो मैं तेरी दासी बन चुकी हुँ।"

तभी रवि ने तेजी से धक्का मारना शुरु किया और कुछ ही देर में मेरे अंदर ही झड़ गया। झड़ने के बाद वह निढा़ल होकर मेरे उपर ही सो गया।


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