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Adultery मायके का जायका
#41
मैं पाठकों एवं पाठिकाओं से क्षमा चाहती हूं देर के लिए।
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#42
आगे आगे दो सिपाही रमेश भैया और दामु को अपने घेरे में लेकर चल रहे थे और एक सिपाही हम तिनो के पिछे पिछे आ रहा थ।रमेश भैया और दामु दोनो के हाथ में एक एक बैग था जिसमें हमारे कपरे और पुजा का सामान था।दोनो आगे चलने वाला सिपाही तिखी आवाज मेंकभी दामु तो कभी रमेश भैया को कुछ कहकर धमका रहा था,एक बार तो दामु ने बैग खोलने को हाथ बढाया और कह रहा था देखिये न हवलदार साहेब पुजा का सामान है,हमलोग सच में पुजा करने ज रहे हैं।चुप मादंरचोद तोहार बहिनीया के बुर में लौरा,पुजाआआ कंरे जात रहे आउर तीन तीन कबुरचोदी रंडी लेके,पुजा में रंडी नचावे खतिरा,चल साहेब के बताव।
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#43
(19-07-2020, 12:11 PM)Meerachatwani111 Wrote: आगे आगे दो सिपाही रमेश भैया और दामु को अपने घेरे में लेकर चल रहे थे और एक सिपाही हम तिनो के पिछे पिछे आ रहा थ।रमेश भैया और दामु दोनो के हाथ में एक एक बैग था जिसमें हमारे कपरे और पुजा का सामान था।दोनो आगे चलने वाला सिपाही तिखी आवाज मेंकभी दामु तो कभी रमेश भैया को कुछ कहकर धमका रहा था,एक बार तो दामु ने बैग खोलने को हाथ बढाया और कह रहा था देखिये न हवलदार साहेब पुजा का सामान  है,हमलोग सच में पुजा करने ज रहे हैं।चुप मादंरचोद तोहार बहिनीया के बुर में लौरा,पुजाआआ कंरे जात रहे आउर तीन तीन कबुरचोदी रंडी लेके,पुजा में रंडी नचावे खतिरा,चल साहेब के बताव।
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#44
(19-07-2020, 12:11 PM)Meerachatwani111 Wrote: आगे आगे दो सिपाही रमेश भैया और दामु को अपने घेरे में लेकर चल रहे थे और एक सिपाही हम तिनो के पिछे पिछे आ रहा थ।रमेश भैया और दामु दोनो के हाथ में एक एक बैग था जिसमें हमारे कपरे और पुजा का सामान था।दोनो आगे चलने वाला सिपाही तिखी आवाज मेंकभी दामु तो कभी रमेश भैया को कुछ कहकर धमका रहा था,एक बार तो दामु ने बैग खोलने को हाथ बढाया और कह रहा था देखिये न हवलदार साहेब पुजा का सामान  है,हमलोग सच में पुजा करने ज रहे हैं।चुप मादंरचोद तोहार बहिनीया के बुर में लौरा,पुजाआआ कंरे जात रहे आउर तीन तीन कबुरचोदी रंडी लेके,पुजा में रंडी नचावे खतिरा,चल साहेब के बताव।
कुछ ही देर में हम सब बरामदा पार कर कमरे में पहूंचे।कमरा देखने से लगता था कि यह छोटी नाश्ते चाय कि दुकान है जहां मछुआरों का अड्डा है,केयोंकी मछली कि बास आ रही थी।चौकि और बेंच पर सामान बिखरे परे थे।हालांकि हम लोगों का मछली केबास से बुरा हाल था लेकिन उन सिपाहियों से कौन मुंह लगाए।उस कमरे से लगी हुई एक और दरवाजा था जो बंद थापता नही वह दरवाजा बाहर कि ओर निकलता था या कमरा था। हमलोग के साथ आए सिपाहियों में से एक बढ कर दरवाजे को थपथपाते हुए आवाज़ दी...हवलदार साहेब ओ हवलदार साहेब। भितर से रोबिली आवाज आई,का बात है मंगल। ओ पांच जना बानी सर,दुगो मरदुआ आउर तीनगो मेहरारू, कहत हईं जे पुजा करे धाम जात बानी टेम्पु से।ठहर आवतानी।कुछ फुफुसाने कि आवाज आई फिर कुछ हि क्षन में दरवाजा खुली और एक हट्टे कट्टेआदमी बाहर निकला,साथ ही तारी कि महक सेपुरा कमरा भर गया।हम लोगों कि तारि के दुर्गंध से बुरा हाल था
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#45
Bhai bhojpuri dialogue bouncer ho raha hai. Very very hot plot.
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#46
(19-07-2020, 12:11 PM)Meerachatwani111 Wrote: आगे आगे दो सिपाही रमेश भैया और दामु को अपने घेरे में लेकर चल रहे थे और एक सिपाही हम तिनो के पिछे पिछे आ रहा थ।रमेश भैया और दामु दोनो के हाथ में एक एक बैग था जिसमें हमारे कपरे और पुजा का सामान था।दोनो आगे चलने वाला सिपाही तिखी आवाज मेंकभी दामु तो कभी रमेश भैया को कुछ कहकर धमका रहा था,एक बार तो दामु ने बैग खोलने को हाथ बढाया और कह रहा था देखिये न हवलदार साहेब पुजा का सामान  है,हमलोग सच में पुजा करने ज रहे हैं।चुप मादंरचोद तोहार बहिनीया के बुर में लौरा,पुजाआआ कंरे जात रहे आउर तीन तीन कबुरचोदी रंडी लेके,पुजा में रंडी नचावे खतिरा,चल साहेब के बताव।
यह सब देख सुनकर मेरी घबराहट बढती जा रही थी, पैरों में थरथराहट महसुस होने लगी,मैं नजर घुमा कर उषा भाभी के तरफ देखी,उनके चेहरे का भी रंग ऊतरा हुआ था,पर वो भी सीमा केकंंधे पर हाथ रखे हुए अपने को निर्भिक दिखलाने का प्रयास कर रही थी।
उधर रमेश भैया ऊस हवलदार या दारोगा जो भी हो उससे हाथ जोरे कह रहे थे,सर हम लोग सभी साभ्रांत परिवार से हैं,हम लोग सच में मंदिर दर्शन करने जा रहे हैं।फिर वो उषा भाभी कि ओर ईशारा कर बोले सर यह मेरी पत्नि ऊषा है,ईसके मामा का घर भी यहीं ...पुर में है,यह बात मैं पहले ही सिपाही जी को बता दिया था। तभी ऊनमें से एक सिपाही बोल परा,ओ हुजुर वही मैडम जी कॉलेज के बगल वाली..... वर बाबू के बारे में बता रहल बानीएहनी के,और यह बताते हुए उसने एक अश्लिल मुस्कान के साथ ऊषा भाभी कि ओर ईशारा किया।
उषा के मामा का नाम सुनते ही हवलदार या दरोगा जो भी हो,उसके चेहरे पर एक निश्चितता के भाव आ गए जैसे वह सारा माजरा समझ गया हो लेकिन अब वहँ बरी गहरी नजरों से हम तीनों औरतों को देखने लगा फिर उसने एक सिपाही को जिसका नाम बलवंत था से बोला का हो टेम्पु चेक कईल ह।हां हुजूर,फिर दरोगा ने उसे हमलोगों से थोड़ी दूर ले जाकर हल्के आवाज में कुछ कहा,वाह साहेब ठिक है और वह ऊषा भाभी कि ओर देखकर मुस्कुराते हुए कहीं चला गया। फिर उसने सिपाही मंगर को डपटता हुआ बोला ,झोरा और बैग खुलवा देखी का का बा।पहले मंगल नामक सिपाही ने झोला लेने के लिए हाथ बढाया ही था कि ऊषा भाभी बोल परी,एमे पूजा के समान बा।मंगर नठिठक कर ईधर उधर देखने लगा और उसने दूर पर रखे अखबार के दो तीन पन्ओओ जमीन पर बिछा दिया और फिर ऊषा भाभी से बोला ,चल निकल के देखा कौन कौन सामान है।ऊषा भाभी एक एक कर सामान झोले से निकाल कर अखबार पर रखने लगी।उसमें से पुजा का सामान निकला।फिर वापस झोले में रख बैग का जिप खोल कर दिखानी शुरू कि,जिसमें हम लोगों के कपरेथे।अचानक हवलदार ने एक लाल रंग के पैकेट को देखते हुए कहा,हउ का बाटे रे मंगरु हेने ला त देखीं और अपना हाथ बढा दिया।भाभी कहने लगी अरे कुछौ नाही दरोगा जी।लेकिन ऊषा भाभी कि बात न सुनकर मंगर नामक सिपाही ने वह पैकेट ऊषा भाभी के हाथ से झपट कर दरोगा के हाथ में रख दिया।दरोगा नेवह पैकेट में से एक पैकेट छोटा सा निकाला, उसे देख करमेरे दिल कि धड़कन बढ गई।वह कंडोम का पैकेट था।वह दरोगा एक पैकेट कोफारकर उसमें से कंडोम निकाल कर ऊषा भाभी कि ओर बढाते हुए पुछा ,ई का है जी,जी जी....ईईई बोलकर वह शर्म से मुंह घुमा ली।होने मुंह घुमाए से का ना चली चल बताव हई का बा ,दरोगा दहारते हुए बोला।रमेश भैया जो एकंरफ खरे थे,बोले साहब हमलोग शादीशुदा हैं और भूलवश ईस बैग में चल आया है,अभी दरोगा कुछ बोलता कि एक मोटरसाइकिल के रुकने कि आवज आई,और धरधराते हुए एक युवक अंदर आ गया।एक उचटती नजर से हमलोगो को देखते हुए बोला सर उ त आज ना धराईल,पर पन्डेऊआ बोल लस ह जे शनिचर के जरूर आई।त हेतना देरी कहां मरावत रहल बरल।हे हे सर का बताई सर ओकरा खोजे खतिरा जात रहीं त ऊ पुरनका कचहरी में आवाज आवत सुननी, त हमरा शक भैल कि जरूर ए में होखी।पर ऊहाँ त सवितिया रहे तीन गो के ले के।और जोर से हंसने लगा।तब त तोहार आज के रात बन गेल होखी हंसते हुए दरोगा बोला।ना सर ओकरा पर त तीनो भिरल रहे,रहिम ससुरा ओकरा मूंहे पर भिरल रहे,ओकरा हटईनी आ आपन हथियार चुसवा के चल अईली,पांच सौ दिहलस तीनों मीलके।यह सब बातें वह हमलोगों के सामने ही करता जा रहा था।फिर अचानक उसे कुछ याद आयाऔर वह एक झटके सेबाहर जाकर फिर वापस आया।और वह घुर कर ऊषा भाभी को देखने लगा,फिर वह दरोगा के तरफ देखकर बोला,सर ऊ सवितिया त टेम्पो पर बैठ के चल गईल रहे,त वापस कैसे आईल।दूअरा पर जे टेम्पो ह वही से त ऊ गईल रहे ढाबा पर से और ऊषा भाभी के तरफ ईशरा करते हुए बोला ईहां के साथे त गईल रहे सवितिया।यह सब सुनकर दरोगा जी कि आंखों में चमक बढ गशर्ब ऊसने एक पतली सी छरी बांस के करची वाली उठाई और बैग से निकले कपरों को ईधर ऊधर करने लगा।अचानक एक ब्रा उसके छरी मे गई जिसे उसने हवा में उठा कर एक एक कर हम तीनो के आख के सामने कम हमलोगों के सिने के सामने करता हुआ बोला,हई केकर बा हो। हम तीनो शर्म से नजरे फेर कर ईधर ऊधर देखने लगे।फिर वह रमेश भैया और दामू के तरफ ईशारा करते हुए आगंतुक से बोला बलवंत दुनो के लाव त भीतर,फिर वहां मौजूद दोनो सिपाहियों से बोला तोहनी के ई तीनो रांड पर नजर राखे के बा।और वह दोनो रमेश भैया और दामु को लेकर अंदर वाले कमरे में चले गए।पांच मिनट भी न बिते होंगे कि रमेश भैया के चिखने कि आवाज आई,जिसे सुनते ही ऊषा भाभि ऊस कमरे के तरफ बढी,पर एक सिपाही ऊनकी हाथ को पकर कर अपने तरफ घसीटा और करीब करीब अपने शरिर से सटा लिया,जिसके कारण भाभि कि भारी उभरी हुई गांड़ सिपाही के पैन्ट मे तंबु बनाए हुए लौरे से जा टकराई।कहां जात बारे छिनरी,तोहार केंकियाई के बारी आई तनिक ठहर और अपने बाएँ पंजे को भाभि कि चुचियों पर दबाता हुआ दरवाजे से परे कर दिया।यह सब देख कर मेरी हालत खराब हो रही थी।और जोरों से पेशाब लग रही थी।पता नही कब तक छुट्टी मिलेगी ईस मुशिबत से।भितर से आवाज तो आ रही थी पर लगता था दूर से आ रही है।घबराने से और पेशाब करने कि बेचैनी बढती जा रही थी।मै सीमा कि ओर झुककर उससे धिमे स्वर में बोली, सीमा शुशु लाग रहल वा का करी। सीमा बोली एहि हाल त हमरो बा,ठहर फिर वह एक सिपाही से बोली ,भईआ मीरा के बाहर जाऐं दिही ,हल्का हो के आ जाईं।सिपाही सीमा को घुरता हुआ बोला,तोहनी के सुनले नईखे का कहलन रहे साहेब,चुपचाप खरा रह।मेरी अब हालत और खराब हो रही थी,मैं मिन्नत भरी आंखों से फिर सीमा के तरफ देखी और ईशारे से कही भी।सीमा फिर उस सिपाही को बोली,भईआ जाए दिहीं ना।यह सुनकर दूसरा सिपाही जो चौकी के पायताने पर चुपचाप बैठा हुआ हाथ मेंडंडा पकरे ईधर ऊधर कर रहा था बरे जोर से हंसा तथा अपने साथी से बोला जा बे साले आज त तहरा के हम बहिनचोद त बनायल चाही।फिर वह दरवाजे के समिप जाकर जोर से बोला ओ साहेब सुनल जाला।का बात ह रे भितर दूर से आवाज आती सुनाई दी।कुछो नाही सर ईहा के बाहर जाए के चाहतानी।ठिक बा एक एक कर के ले जाऔर ले आ।यह सुनते ही वह सिपाही सीमा को चलने का ईशारा करने लगा।सीमा मेरी तरफ देख कर बोली पहिले ईनका के ले जाईं।मैं उस सिपाही के साथ बाहर आई और नजर दौराने लगी कोई झारी बगैरह।थोरी दूर पर नहर किनारे एक सरकंडे और लम्बे वाले घास के पिछे जगह दिखी तो उधर बढने लगी।कने जा तारू तोहरा जगह नईखे दिखात।ऐने ओने ना देख यही किनारे बैठ के मूत ले।ठिक बा आपन मूंह ओने घुमा ली न मैने बिनती भरी आवाज में बोली।हं हं ठिक बोलतारी,हम ओने मुंह करी आउर तु एने चम्पत।चल कोना में बैठ के मूत जादे नखरा करबु त चल भितरे।मजंबूरी में मैं कोने मेंजाकर पहले अपनी पैंटी ऊतारी फिर लहंगा के पायंचे को कमर तक उठा कर पेशाब करने बैठी।और सर्र सर्र कि आवाज के साथ पेशाब करने लगी।पेशाब करके जैसे ही ऊठने लगी तो सामने देख चौंक परी,वह सिपाहि बरे गौर से मुझे देख रहा था और अपने हाथ मे पकरे डंडे को दुसरे हाथ को ऊसपर आगे पिछे कर रहा था।
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#47
Give big update please
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#48
Update jaldi do please
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#49
....मैं अपनी लहंगे को ठीक करती हुई खरी हुई और वापस रूम के तरफ लौट चली, वह सिपाही भी पिछे पिछे चला आ रहा था,वह कमिना भी ठिक ईतने ही पिछे था कि अगर मै थोरी भी रूकती तो पिछे से उसका धक्का लगना पक्की थी।मैं थोरी तेज चलने लगी तो मेरी कुल्हे औररे गांड ऊपर निचे हो रहे थे,मैं उस सिपाही कि नजरे अपने गांड पर महसुस कर रही थी। अभी हम लोग दरवाजे के पास पहूंचे भी नही थे कि एक मोटरसाइकिल वहां आकर रूकी और दो आदमी बाईक से ऊतर कर झप से अंदर चले गए।पिछे पिछे मैं भी अंदर वापस आ गई और वह सिपाही भी। भितर में सीमा अपने जगह पर ही खरी हुई भितरी रुम के अधखुले किवाड़ को देख रही थी,और सहमी हुई थी,भीतर से अब साफ साफ और तेज आवाज आने लगी थी,आवाज साफ साफ मिल रही थी..त तोहनी के ईनका पहचानतक
कि,ओह का मजाक करत हईं सरकार ई त हिरोइन हई ..।कौन लाघन होटल वाला ईहां के नईखे जानत,दु बार हमनी के साथे भी सुहाग रात मनईले ह ई ऊषा रानी अभी आने वाले कि आवाज थी, फिर उसकी आवाज आई का रे बुरचोदी तोहार मुंह में लौरा घचसल बा कचछ बोलत काहे नईखे।ई का बोली छिनरी लागता कही से मोप सौदा भईल ह दूगो और माल बा एकरा साथे,कहतिया पुजा करे जातानी सब लोग,नया टेम्पु के पुजा ला ।जी सर टेम्पु त एकर भतार खरिदलस ह,बात त सहिए बा,लेकिन टेम्पू खरिदला त महिना से ऊपर भईल,अब जा के पुजा के याद आईल बा ।मामला कुछ त बा कहते हुए दरोगा बाहर आया,उसके साथ और लोग ,ऊषा भाभी सहित बाहर आ गए।रमेश भैया और दामू के तरफ देख के आगंतुकों में से एक आदमी दरोगा से कुछ हल्के आवाज में बोला।उस आदमी कि बात सुन ,दरोगा रमेश भैया और दामू के तरफ देख गुर्राहट भरे आवाज में बोला,अरे बहीनचोद ,ए हो तोहनी जा भीतर बैठ ,हम तहकीकात कर लेब,तब तोहरा से सच झूठ उगलवा लेहव ,और फिर बैठे दोनो सिपाहियों को ऊसने ईशारे कर रमेश भैया और दामू को भितर भेज कर हम दोनो अर्थात मुझे और सीमा की ओर ताकता हुआ नजदीक आने  लगा साथ में ऊषा भाभी भी मुंह लटकाए हुए आ रही थी। पहले वह सीमा की ओर अपने हाथ में पकरे डंडे के उपर अपने दूसरे हथेली से सहलाता हुआ बरे आत्मिय स्वर में पुछा ,केया नाम है तुम्हारी, सीमा डरी सहमी हुई बिना कुछ बोले दरोगा के तरफ ताकती रही, कुछ क्षण बाद जबाब न मिलने पर ईस बार कुछ करे लहजे में बोला,एई बोलती काहे नही ,बाप के नाम न मालूम है,तोहार मतारी भी तोहनी के ऐसन धंधा करे वाली बा।जी.जी..ईई  देखी हमार माय बाप के बिच में ना लाईं।फिर लहजा बदल के धीमे स्वरमें थरथराती आवाज में बोली,जी मेरा नाम सीमा है और मेरे पीता जी श्री....होत्री है,और सर मैं विवाहित हूं,अभी मैके आई हुई हूं,यह मेरी ऊषा भाभी के तरफ ईशारा करते हुए बोली जी यह मेरी भाभी है।अब वह दरोगा मेरी तरफ घुमा और पहले कुछ क्षण तक मेरे को घुर घुर कर देखता रहा और फिर बदले और फिर मुझसे वही सवाल केया नाम है तुम्हारी, जी मीरा,और तेरे बाप का।जीईई जी श्री.... प्रसाद।फिर पूछा तो तुम भी अपने मायके ही आई होगी।मैं मन ही मन यह सोचते हुए ऊत्साहित होते हुए कि शायद ईसे हमारी बात पर विश्वास हो गया है ,चेहरे पर मुश्कान के साथ बोली हमलोग सच कह रहे हैं,धाम पर जा रहे हैं।ठीक है ओ छोटे बाबू जरा..थाना को वायरलेस तो किजिये. और फिर ईनके घर पर खबर देकर किसी को बुलवाईए।मैं तो कुछ नही बोली और उषा भाभी के तरफ देखने लगी।मुझे और कुछ नही बोल पा रही थी।ऊषा भाभी दरोगा से गिरगिराते हुए बोली,सर ई सब का कौन जरूरत है बगल में हमारे मामाजी का घर है वहीं से किसी को बुलवाईए न,हमार टेम्पो से चल जाई और बुलवा लिहीं। ठिक बा,छोटे बाबू जाईं जा के बुला लाईं आउर हां देखब ठिक से लाएब,और यह कहते हुऊ उसने कथित छोटे बाबु को बांइ आंख मारते हुए देखी।दरोगा फिर भाभी कि तरफ देखते हुए ऊन्हे अपन साथ चलने का ईशारा कर वापस रूम के तरफ बढ चला।पिछे पिछे ऊषाभाभी भी रुम के अंदर चली गई।भीतर से धीमी आवाजेऔ आ रही थी पर स्पस्ट कुछ भी नही थे।थोरी देर में टेम्पो आकर रुकी।टेम्पो के रूकते ही एक सिपाही दौरता हुआ बाहर चला गया।और फिर जो मैं देखी ऊसे देखते ही मैं समझ गई कि तार से गिरे तो खजूर में अटके वाली बबात ना तो हो गई।मैं देखी एक करीब पैंतीस चालीस केआयु कि महिला सिर्फ साड़ी लपेटे हुए जिनसे उसकी बरी बरी चूंचियां लगभग नंगी ही थी चली आ रही थी छोटे दरोगा के साथ,जिसके एक हाथ का पंजा ऊस औरत कि एक चूंची पर चल रहा था और दूसरे हाथ को ऊस औरत के पुष्ट,गोल ऊभरे गांड पर रखे हुए था।भितर आकर जब ऊस औरत कि नजर हम दोनो और सिपाही पर परी तो पहले तो ठिठकी फिर अपने सारी का पल्लु संभालने के लिए छोटे दारोगा के हाथ को अपने चूंची पर से हटाना चाही,मगर छोटे दरोगा ने उस औरत के हाथ को अलग टरते हुए डपटते हुए बोला जादा छिनरपन ना दिखाई,ऊंहा पर त तीन जने संगे लौरा बुर के खेलत रही आ ईहां झांपत हई।और फि वह दोनो भितर जहां ऊषाभाभी,दामु और बरा दरोगा था चले गए।भितर कुछ देर सन्नाटा रहा फिर लगा जैसे ऊषाभाभी कुछ कह रही थी फिर ऊस औरत ने फुसफुसाहट भरे स्वर में कुछ बोली और फिर थोरी जोरसे बोली, अरे कुछो नईखे हो अब ईंहा के एही चाहतानी त हमनी के का करी,एही जा एक दू घन्टा रूक जाई आ हम त बरले बानी, यह आवाज़ स्पष्ट सुनाई दी।पर मेरे ध्यान मे ऊस समय रमेह भैया के बारे में सोच रही थीं जो टेम्पो लेकर गए थे आखिर वह और वह सिपाही जो बाहर गया था,अभी तक लौटे केयों नही।करीब पन्द्रह बिस मिनट के बखद भितर से छोटा दरोगा बाहर निकला और मुझे और सीमा को अंदर आने को कहा।भीतर जाते ही सामने ऊषाभाभी पर नजर परी जो एक तरफ मूंह बनाए हुए खरी थी,वह औरत जो अभी आई थी अब कमर से उपर एक दम नंगी थी और ऊसकी बरी बरी चूंचियां लटक रही थी सारी का अधिकांश भाग नीचे गिरा हुआ था।सारी कि गांठ ईह तरह बंधी हुई थी कि एकटांग नंगु नजर आ रही थी।मेरी और सीमा दोनो भीतर पहूँच कर नजरे नीची कर खरीं हो गई।बरे दरोगा ने ऊस औरत को हम दोनो के तरफ ईशारा करते हुए बोला आ एकनी सब के।ना सर ईहां के कंबो नईखे देखले बानी,हम कभिओ ईनका घरे माने ससुराल नईखे गेल बानी त हम महल्रा वाली के कैसे पहचान बताई सन् कहते हुए उस औरत ने ऊषाभाभी के तरफ उंगली दिखाई।अब मेरे समझ में आ रही थी बल्कि समझ गई थी कि आगंतुक महिला और कोई नही बल्कि ऊषाभाभी कि मामी है।उधर दरोगा अब अपनी आंखें तरेरते हुए एक सिपाही से बोला,ओए दौलत सिंह ला त ऊ बहानचोद के सामने उहे बताई अब।कुछ क्षण बाद ही दो सिपाहियों के बीच चलते हुए रमेश भैया अंदर आए।ऊनके तरफ ईशारा करते हुए दरोगा ने ऊषाभाभी के मामी से पुछा,ईनका के पहचानु ले कि न।मामी ने ईनकार में सर हिलाया।ऊषाभाभी को ना में सर हिलाते देख ,सभी मौजूद सिपाही, छोटा दरोगा सहित सभी हो हो कर हंसने लगे।फिर बरे दरोगा ने उषाभाभी के कथित मामी के नंगे स्तनो पर अपने हाथ में पकरे डन्डे से हल्का सा टहोका देते हुए कहा,तू कईसन ममानी बारू जे आपन दमाद के नइखन पहचानुतारीस।फिर छोटा दरोगा से कहा चल जा रिपोर्ट बनाव,तीन गो रंडी आपन दुगो दलाल के साथ धराईल बा।
यह सुनते ही हम सब के सब एक दूसरे को देखने लगे।आखिर में रमेश भैया दरोगा से बोले,सर हमारी शादी के दो साल ही गुजरे हैं,कभी मामी जी से मिलने का मौका नही मिला था,मामाजी का नाम जानते थे,कभी मिले नही थे।शादी के समय बहुत लोग रहता है न।और सर,हमारे पास कुछ रूपया है,आप ले लीजिए और हमलोगों को जाने दीजिये,और यह कहकर जेब से हजार हजार के दो नोट दरोगा के तरफ बढाने लगे।
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#50
आगे....रूपया देखते ही वह अपनी आंखें तरेरते हुए रमेश भाई के तरफ देखा और फिर उषा भाभो के मामी कि बांह पकरते हुए बोला ,हेने सुन और करीब करीब उन्हे बांह से पकर कर घसीटते हूए भितर वाले कमरे में ले गया।करिब पांचेक मिनट के बाद मामी जी बाहर आई और रमेश भैया को हम लोगों से दूर एक कोने में ले जाकर कुछ बोल रही थी,पहले तो भैया का सर ईंकार कि भंगिमा में हिलता रहा,फिर ऊसपर मामी कुछ बोली,ईस बार भैया बरे मायूस नजरों से उषा भाभी कि तरफ देखते हुए हां में गरदन हिलाते हुए हां का ईशारा किया,फिर वह दोनो हमलोग के पास आए और ऊषा भाभी के कान में कुछ फुसफुसाई आवाज में कहा और फिर कुछ देर जैसे मान मनौँवल्ल जारी रही।अब मामी भितर रूम में गई और तुरंत ही वापस लौटी।ईधर हम लोगों कि यानि सीमा और मेरी हालत खराब हो रही थी,पर कर ही केया सकती थी।बाहर आकर मामी रमेश भैया से कुछ बोली ,लेकिन रमेश भैया ने दामु के तरफ ईशारा कर रहे थे।और दामु को एवं उषा भाभी को कमरे के भीतर जाने को कहा।ऊन दोनो को भीतर जाते देख वहां पर बैठे खरे सभी हम चारों के पास आ गए।ऊनमें से एक मामी के बगल मेंहाथ लगा कर उनसे पुछ बैठा,का जी साहेब से बात बन गईलस का और बरी वेशर्मी से हसते हुए ऊनके करीब करीब नंगे कुल्हो पर चुटकी काटते हुए अपनी हाथ हटा कर अपने पैंट के जीप पर हाथ चलाकर ऐसा दिखाया मानो अपना ल़ड सहला रहा हो।मामी कुछ न बोलकर अपने मुंह को दूसरी तरफ घुमा लिया ।ऊसके ईस हरकत से अब मेरी समझ में सब कुछ आ गया था,और मैं सीमा को टहोका देकर बोली,कहां फंस गईन सीमा।सीमा मेरी बेचैनी कै देख बोली,अब का करे के बा मीरा ।जे होई देखल जाई।कमरे के भीतर से पहले हल्की आवाज आ रही वह अब साफ साफ तेज सुनाई देने लगी थी।अब दामु कि आवाज साफ सुनाई देने रगी थी।जी सर तैयार हो गईल आईं,फिर कुछ ही क्षण में उषा भाभी कि पहले हल्कि सिसिआहट और तेज चिख सुनाई दी।आहँ् निकाली सरकार हमार फट गईल माईईईई रे।ऊस आवाज से मैं सभझ गई भीतर केया हो रहा है और रमेश भैया के तरफ देखी।ऊन्होने नजर तो मिलाई फिर दूसरी तरफ मूंह फेर ली।
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#51
भितर कि आवाजें बाहर भी अपना प्रभाव डाल रहि थी।मैं नजरे निचे किए हुए ही सभों के ओर देखने लगी।।सबों के पैन्ट में तंबू बने हुए थे,वैसे तो गिली मैं और सीमा भी हो चुकी थी।आश्चर्य तो रमेश भैया को देख कर हो रही थी,भितर बिबि चुद रहि थी और बाहर उनका लंड फुफकारे मार रहा था।साथ ही सारे सिपाही अपने हाथ अपने पैन्ट के उपर से हि अपने हथेली से सहलाते हुए आपस में गप्प लरा रहे थे।फिर ऊनमें से एक ने मामी को उंगली दिखाते हुए अपने पास आने का ईशारा किया,पहले तो मामी ने आंखो से रमेश भैया के तरफ ईशारा किया मानो कह रही हो कि ईसके सामने कैसे आऊं,ईसपर उस सिपाही ने अपनी आंखे लाल कर गुस्साई नजरों से घुराऔर अपने बेंच से ऊठने का ऊपक्रम करने कि कोशिश कर ही रहा था कि मामी धीमी कदमों से चलती हुई ऊन सब के पास पहूंची।वहां ऊनके पहूंचते ही एक सिपाही मामी के कमर मे हाथ डालकर अपने तरफ खिंचते हुए बेंच पर ईस तरह बैठाया कि मामी कि एक जांघ ऊसिपाही के एक जांघ पर थी और दूसरी बेंच पर।मेरी नजर ऊनपर ही थी,वो झेंपती,कसमसाती बैठी तो सहारा लेने के लिएअपने बाएं हाथ को बेंच से पकरने हेतु निचे कि तो दूसरा जवान और नजदीक बल्कि मामी कि जांघो से सट गया और मामी कि हथेली सिधे ऊस जवान के पैन्ट मेंबने तम्बू यानि लौड़े पंर परा।वह हरामी अपने मकसद मे सफल हो गया और हो हो कर हंसता हुआ बोला हां ई भईल सही तरिका बैठे खतिरा।फिर शैतानी भरी हंसी में अपने साथी को बोला,देख रे गोविन्दर ई बुरचोदी का पकड़ले हउए।अरे खोल के थमा दे,बेचारी के,गरमाईल बा शाली.चूंची मसलवावत रहे बेचारी,धंसवावे से पहले ही पकर के ले अईनी बुरचोदी के।चूंकि आवाज अब तेज हो गई थी अतः हमलोग भी सब देख और सुन रहे थे।और मामी शर्मसार होती हुई सिर निचे किए हुए बोलती जा रही थी,कैसे करतानी जी,ऊईई आः लागता बोले जा रही थी।रमेश भैया मुंह लटकाए उस कमरे के तरफ कभी कभार नजर मार ले रहे थे ,ऊस घर का दरवाजा भी आधी खुली हुई थी।सीमा मेरे से एकदम सट के खरी थी,हमलोग ठीक से एक दूसरी से कभी झेंपी नजरो से देख रहे थे।उधर उषा कि मामी भी दो जवानो से मसली जा रही थी, कमर से ऊपर नंगी,ऊनकी दोनो बरी बरी चूंचीयां दोनो जवानो ने एक एक हथेली में जकर रखी थी और। दूसरे हाथ से मामी कि जांघो को सहला रहे थे,सहलाते सहलातेअपनी एक उंगृली मामी के बुर में सारी सहित घुसेर देते और कई बार तो दोनो अपनी अपनी ऊंगली ए
क साथ ठांस देते,और मामी बेचारी वर्म से आवाज भी नही निकाल पा रही् थी।
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#52
(04-06-2019, 10:11 AM)komaalrani Wrote: स्वागत है , एक बार फिर से कहानी की शुरुआत की।  ;लेकिन बस अबकी ये धार टूटने  न पाए , सच में ऐसी कहानी आज तक इस फोरम को छोड़िये , कही भी न मैंने पढ़ी न देखी।  

fight
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#53
Update
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#54
Little difficult to understand, हम तो सिर्फ खड़ी हिंदी और थोड़ी बहुत मालवी भाषा समझते हैं, ये अनोखी और अच्छी लग रही है मगर सारी सर के उपर से जा रही है, यदि साथ ही शुद्ध हिंदी में रूपांतरण हो जाता तो आनंद आ जाता, थोड़ा पढ़ के छोड़ देता हूँ, क्योंकि ये भाषा काला अक्षर भैंस बराबर,,,
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#55
सहेलियों और यारों कहानी आगे नही बढा पा रही थी,केंयोकी ईसके सारे किरदार वास्तविक हैं,उनमें से कईयों को एतराज था चाहते थे कि ईसे पुरी न कि जाए।अगर लिखनी ही हो तो कम स कम नाम बदल देनी होगी।जो अब संभव नही थी,कम से कम मेरी जैसी असाहित्यिक महिला से।बहुत मनावन के बाद और केया बताउं बहुत कुछ हुआ तब जाके सब माने हैं।अतः ईस कहानी को आज से ही बढाना आरंभ करुंगी और ऊम्मीद करती हूं दो से तीन दिन में पुरी कर दूं।आशा है आप सब मुझे क्षमा कर देंगे,देंगी ईस देरी के लिए।आपकी चुदक्कर मीरा।
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#56
अब आगे..अंदर कमरे से ऊषा भाभी कि सित्कार और बाहर बरामदे से ऊसकी मामी कि हल्की सि चिखने कि आवाजें हम दोनो मुंह दाबे सुन रही थीं,कभी कभी ऊषा भाभी कि मामी कि गालियाँ यथा बहानचोद फार दिहलस रे,कभी ना रे गांड में मत घुसा और फिर जबाब में ,ना कईसे लेबू ,हई ला खा हमार केला बुरचोदी,नखरा मत चोदा और ईन सब बातो से मैं और सीमा दोनो समान रुप सेप्रभावित हो रही थी।भय और कामुक कल्पनाओं से पुरी तरह आंदोलित हो कभी मैं सीमा की और कभी सीमा मेरी कलाई पकर लेती कभी मैं उसकी जांघो पर अपनी हथेली रगर देती।अफिसर भितर जाने से पहले हम दोनो को वहीं पर रखे दो बक्से जिसमें शायद दुकान का सामान था ऊसी पर बैठा गया था,और तब से हम दोनो वैसे ही बैठी  हुई थी।कभी मन ही मन यह सोच रही थी कि आखिर कोई हम दोनो से कुछ नं कह रहा है और न कर रहा है।ईसी उहापोह में समय व्यतीत हो रहा था,रमेश भैया भी अपनी नजर दूसरी तरफ देख रहे थे।कुछ देर में ही भीतर से जोर जोर की कुछ चरमराने कि आवाज सुनाई देने लगी,मैं समझ गई कि अब भाभी कि घचाघचचचचच्अपने चरम पर पहूँच गई है।प्रतीक्षा नही करनी परी,दो चार मीनट के बाद ही भाभी कि एक लम्बी छसिसकारी सुनाई दी लगा जैसे वो अपने चरम पर पहुंच गई हो,फिर आवाज आई हो गईल रे तोहार त हट अब हमे चढे दे।उषा भाभी लगभग रोती हुई बोल रही थी, अब हमें छोर दी सर बरी दरद हो रहल बा। फिर एक गरजदार आवाज आई कहाँ दरद हो रहल बा रे चुतमरानी उषा,बुर त भोंषरा बा,लगता लौरा बुर में ना मैदान में कबड्डी खेलत रहे.साली दिन रात लौड़ा ठंसबईलस रहतबारीस का रे।का होखी रे सीमा मै डर और लज्जा से सीमा से सटती हुई फुसफुसाहट के साथ बोली।वह मेरी ओर घुमती हुई बोली और का होखी,अब जब सिर ओखल मे पर ही गेल ह त मूसल के चोट परबे करी।हम दोनो अभी एक दूसरे के तरफ बातकर ही रही थी कि मुझे जैसे करेंट जैसी सिहरन हुई कोई मेरी गांड पर थपकी देते हुए बोल रहा था चली सनभीतरे बुलावल जाता।मैं घुम कर देखी वही आदमी जो मोटरसाइकिल से बाद में आया था,हम दोनो को भीतर चलने का ईशारा कर रहा था।मरती केया न करती सीमा और मैं धीमे गती से रुम केअंदर पहूंची।अंदर का नजारा देखते ही हम दोनो की सांसे उपर नीचे होने लगी,हमदोनो की भरी भरी चूंचिया अपने आप ही हर सांस के साथ ऊपर नीचे हो रही थी,भीतर ऊषा भाभी एक के शरीर पर पेट के बल लेटी हुई थी जिसका लंड ऊनकी बुर में था और दूसरा उनके गोले गोले चुतर को अपने दोनो पंजो से फैलाए हुए अपना लौरा आगे पिछे कर रहा था,और दामू अपना लौरा भाभी के मूंह में पेले हुए चुपचाप खरा था।भाभी भी हर झटके पर गुं गुं कर रही थी।यह सब देख कर मैं तो दहशत से मरी जा रही थी और ऊस घरी को कोश रही थी जब मैं ईस यात्रा के लिए राजी हुई थी।सर झूकाए हूए हम दोनो भीतर जा कर खरी ही हुई थी कि बरा वाला साहेब बोला,चलो तुम दोनों बताओ केया चाहती हो,ऐसा ही तुम लोगों के साथ हो कि रंडी बना के चालान कर दें।यह सुनकर तो मेरी हालत ही खराब हो गई, मूंह से आवाज निकालने कि शक्ति भी काफूर हो गई थी।सीमा भी सहमी हुई थी और कभी मेरी ओर देखती कभी साहेब कि ओर,कुछ क्षण चुप रह कर साहेब के घुटनो पर हाथ रख कर गिड़गिड़ाते हुए बोली,सर हम लोग अच्छे परिवार से हैं विश्वास करें हम लोग धाम पर ही जा रहे थे।सुनते ही वह अपने कुर्सी पर से ऊठता हुआ जोर से डपटते हुए बोला,शाली रंडी ,बुरचोदी दिन रात तुम जैसी रंडियों से पाला परता है,हमको का समझती है ललबबुआ,भोंषरीवाली।फिर कुछ मद्धिम स्वर में बोला चल पन्द्रह हजार रूपया निकाल, आखिर हमको भी ऊपर जबाब देना परता है,तुम लोगों को ईस रास्ते से आने का खबर मिला था,पुरे विभाग कोखबरदार कर दिया गया है।अब त चाहे गिरफ्तारी होगी फिर थाने में लौकअप में बंद कर दी जाओगी और लौकअप में केया होगा सो सोच लोफिर मां बाप का केया होगा जगहंसाई तो होगी ही और तुम लोग न अपने मायके कि रहोगी न पिहर की।अब मैंभी कुछ साहस बटोर कर साहेब कि पैरो पर गिरती हुई बोली सर हमलोग के पास ईतना रूपया तो नही है फिर अपने चोली में हाथ डाल कर छोटी सी पर् निकाली फिर ऊसके चेन को खोल कर सामने टेबल पर ऊलट दी जिसमें करीब सोलह सौ रुपए एक हजार,और पांच सौ के एक एक नोट और एक सौ का नोट साथ में कुछ रेजगारी थी, सीमा के पास कुल छौ सौ रुपए निकले।ऊसे मैं साहेब के सामने खिसकाते हुए बोली बस सर यही है हमलोगों के पास।मजाक करती है केया शाली,ओए ला चालान के बही एक सिपाही को ऊंगली से ईशारा करते हुए साहेब बोला।अब हम लोग ईतनी डर गई थी कि उषा भाभी कि गुगआहट भी नही सुनाई पर रही थी,ऊधर देखने कि हिम्मत भी नही हो रही थी,लेकिन चौकि कि चरमराहट से पता चल जा रही थी कि ठुकाई अपने चरम पर है,फच् फच् कि आवाजे खुद बयान कर रहे थे।साहेब के पैरों पर गिरती हुई मैं और सीमा दोनो लगभग रोते हुए बोली सर हमलोगों के जिन्दगी का सवाल है रहम किजिए।तब तक वह सिपाही ऐक रजिस्टर ले कर आ चुका था,जिसे हाथ में पकरते हुए हम दोनो के तरफ देख कर बोला,एक रास्ता है,बोल जैसे हम कहेंगे वैसे तुम दोनो करोगी तो बच सकती हो,बोलो करोगी तो ठिक है वरना चालान और गिरफ्तारी होगी ही।ऊसकी बात सुन दिल कोढाढस मिली और मैं और सीमा दोनो एक स्वर में बोली, जी सर जी सर आप जो भी कहेंगे वैसे हम दोनो करेंगी, विश्वास किजिए।तो सुन ले ,साहेब धमकी भरे स्वर में बोला,अगर एक बार भी ना नुकुर करोगी तो सिधे चालान और गिरफ्तारी और उ भी वेश्यावृत्ति के अपराध में।और जब निकलोगी जेल से त सिधे कोठा पर पहुंचोगी सो सोच लो।ना सर ,हम दोनो आपकी सभी बाते मानेंगी।ठीक है चल दोनो अपनी लहंगा कुर्ती ऊतार,अरे ओ मंगरुआ ई टेबुल त खिसका,उसने दरवाजे के पास खरे सिपाही से कहा।जब तक वह टेबूल खिसकाता हम दोनो अपने कपरे उतार ब्रा और पैंटी में शर्म से सर झुकाए खरी थी।जब तक टेबुल खिसका रहा था वह साहेब भी अपने पैन्ट को उतार कर सिर्फ अन्डरवियर में आ चुका था,फिर एक गरज के साथ बोला बुरचोदियों ई चूंचकसनी आ बुरझंप्पा हटाने के लिए तुमलोगों की मां आएगी मादरचोदी,चल जल्दी खोल।झिझक तो हो रही थी पर करती केया।जल्दी से हम दोनो ने अपनी ब्रा और पैन्टी हखोल कर ऐकदम नंगी हो गई।फिर वह हम दोनो को एक साथ अपने बांए हाथ को मेरी कमर को और दांए हाथ से सीमा के कमर को पकर कर अपने तरफ खिंचकर अपने दोनो जांघो पर बैठा लिया।अब ऊषा भाभी के साथ जो हो रहा था,हमलोगों के सामने था।देखी ऊषा भाभी दामु का लंड मूंह से निकालने के लिये सर को ईधर ऊधर झटके दे रही थी,लेकिन दामु जानबूझकर या किसी डर से पता नही हर बार भाभी कि सर को जकर ले रहा था।भाभी भी पस्त हो चुकी लग रही थी और चुपचाप बुर और गांड में लौरा ठुकवाए जा रही थी।ईथर उस हरामजादे साहेब ने अब मेरी और सीमा दोनो के चूंचियो पर अपने पंजे जमा दिए थे और कभी हौले और कभी जोर से दबा दबा कर पता नही केया जांच रहा था,फिर ऊसने हमारी चूंचियो को छोर उसने उषा भाभी के गांड में लंड घुसेरे आदमी को आवाज़ दी,अरे बलवंत मेरी मोबाइल कहां है रे।वहीं टेबुल के दराज में है सर,लेकिन अभी मोबाइल से कौन काम है,बलवंत भाभी कि गांड में पुर्ववत धक्के लगाता हुआ बोला।ईतना तु समझदार रहते त यहां के ईचार्ज तुम्ही ना होते,और य कहते हुए साहेब ने हाथ बढाकर दराज खोली और ऐक चार पांच ईंची का मोबाईल निकाली।उस समय तक मोबाईल का नाम तो सुनि थी पर देखी नही थी।फिर ऊसकी अंगुलियां कुछ दबाती रही, और फिर एक सामान्य टेलिफोन के घन्टी टनटनाने जैसी आवाज आ रही थी, थोरी देर के बाद ऊधर से आवाज आई,कैसे याद किए हैं माथुर जी,कोई खास बात।ईधर से साहेब जिसका नाम माथुर ,या ऊपनाम माथुर हो ने जबाब दिया,काहे हम आपको कभो भूल सकते हैं केया और जोर से हंसता हुआ बोला,आप बराबर कहते थे कोई जुगाड़ लगा दिजिए त ऊसी कारण फोन किए हैं।
अरे सच में केया ,ऊधर से हर्षमिश्रीत उत्तेजित आवाज आई।हां भाई सच में बोल रहे हैं ईधर से माथुर ने कहा ,फिर ऊधर से कुछ धीमी सी आवाज में कुछ कहा गया जिसके जबाब में साहेब जिसका नाम माथुर था बोला ना ना कोई बात नही पांच भी होता तो कोई बात नही,यहाँ त मेला लगी हुइ है,लेकिन माल पुरा लगेगा, ना जी वैसा आज नंही होगी एकदम धांसू माल है फिर ऊधर से कुछ बोला गया जिसके जबाब में माथुर ने कहा ठीक है आज आपके खातिर बुरभोज कर देते हैं,बाकी त आप जानते ही हैं सरकारी तनख्वाह से अपना परिवार ही चलाना संभव नही है,हेलो हेलो एक बात और सुन लिजीये आपकी परोस वाली चाची भी हैं...यहां पर नही बाहरे ओसारा में घपाघप करवा रही है फिर कुछ उथर से कहा गया जिसे सुनकर माथुर बोला लिजिए खुद अंदाज लगा लिजिए और यह कह कर हरामी माथुर ने अपने दाहिने पंजे में सीमा की चुंची ईतनी जोर से दबाई कि बरबस उसके मुंह से जोरदार चिख निकल गई, माथुर एक हाथ से मोबाइल सीमा के मुंह से सटा रखा था और दूसरे से सीमा कि चूंचियो को बेदर्दी से दबा रहा था,फिर सीमा कि चूंचि को छोड़ मेरी चूंची के निपल पकर कर फोन पर बोला अब दूसरा नमूना सुनिए और कहते कहते उसने मेरी नेपुल को ईतनी जोर से दबाया कि मैं नही चाहती हुई भी ऊईईई मां मर गई बोल बैठी।माथुर साहेब अब भी फोन पर बाते कर रहे थे।हं हं ठीक है बस तीन बजे तक...ठिक है आईए।कहकर माथुर हम दोनो के तरफ मुखातिब हुआ और धमकी भरे शब्दो मे बोला तुम लोगो के लिये मैने रुपये का जुगाड़ कर दिया है,अगर कुछ गरबर,या आनाकानी चोदी त बुर त यहाँ फटेगी ही और हवालात मेंभी और कहकर उसने बात अधुरी छोरकर उषा भाभी कि चुदाई कर रहे बलवंत से कहा जल्दी कर ना जी,जल्दी से मोबिल पल्टी कर और दोनो ममानी भांजी के साफ सफाई करवा के ले आ।महंथ जी आवत बारे।एक गोली से दूनो शिकार हो जाएगा।
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#57
माथुर ने जैसे ही अपनि बात खतम कि ऊधर बलवंत और दूसरा सिपाही जिसका लंड भाभी के बुर में था ,दोनो ने अपनी घुसेरने और निकालने कि रफतार तेज कर दी,बेचारी ऊषा भाभी कभी दामू के लंड को छुते हुए निकालने का प्रयास करती कभी हाथ बढा कर बलवंत का लंड हटाने कि कोशिश कर रही थि पर ऊन हरामजादों को तो बस अपनी परी थी।निचे वाले ने अपनी दोनों बांहो से उषा भाभी कि पिठ को कसकर जकर रखा था।भाभी अपनी गांड ईधर ऊधर नचा रही थी,बलवंत हरामी तो कभी कभी अपना पुरा लंड निकाल कर भाभी जबतक सांस भी ले पाती कि वह हरामी एक झटके से पुरा लंड उनकी गांड में ठोक देता।झटकों के तेजी से मुझे अंदाजा हो चुकी थी कि अब यह लोग स्खलित होने वाले हैं।और वही हुआ बलवंत एक जोर का झटका देकर भाभी कि पिठ पर ही लूढक गया निचे वाला भी अब लगभग नरम झटका हि दे रहा था।हमहूँ डाल देनी बलवंत भाई,कहकर ऊसने बलवंत को ऊठने का ईशारा किया,लेकिन दामू अभी भी अपना लंड भाभी के  मुंह में घुसेरे ऊनका शिर दाबे हुए था,बलवंत भाभी कि पिठ पर से उठता हुआ अपना लंड  जो अभी तक भाभी कि गांड में ही घुसा हुआ था खप से निकाला ,भाभी कि गांड विर्य और पसिने से भरी हुई थी।बलवंत उठकर अपनी लुंगी ठिक करते हुए दामू को गाली देते हुए बोला रे बहानचोद अपन भौजाई के मुंहे में माल डालवे का रे।छोर शाली के साफ सुथरा भी करवावे का।यह सुनकर दामू भी अपने हाथ को भाभी के सर पर से हटाते हुए अपना लौड़ा भाभी के मुंह से निकाल लिया,ऊनके होंठो से टपकती हुई विर्य कि बूंदे अपनी कहानी कह रही थी।भाभी मुंह के खुलते ही जोर जोर से सांसे ले रही थि और धीरे धीरे खरी हो रही थी।फिर अपने कपरों जो वही फर्श पर फेंकी हुई थी कि ओर बढी।दामू भी अपने पैन्ट के जिप को लगा कर एक तरफ खरा था।अब माथुर ने बलवंत से कहा जा ऊ ससूरी के भी ले आव आ पिछवाड़े चापाकल के पास ले जाके साफ करवा के ले आब त एहनी के कपरा लत्ता दिहल जाई।जा जल्दी कर। फिर मंगर नामके सिपाही को हमलोगों की बैग लाने के लिए बोला,मंगर दौर कर बैग ले आया,माथुर के इशारे पर ऊसने मेरी चूंची दबाते हुए कहा.रांड केया नाम बताई थी,जीईई मीरा मैंअपनी चूंचि को सहलाती हुई रुआंसी होते हुई बोली।ठीक त मीरा रानी बेग में से अपनी पाऊडर लिपस्टिक निकाल और यह ले अपन चोली घांघरा,ब्रा पैन्टी बाद में मिली।सीमा और मैने। जल्दी से लहंगा चोली पहन लि,
फिर ऊसने कहा अब बढिया से मुंहाथ पोंछ के पाऊडर लिपस्टिक लगा के तैयार हो जा,जैसे अपनी सुहागरात मनाने के लिए होती है,चाहे धंधा के लिए जाते वख्त शिंगार पटार करके जाती है,चल जल्दी कर।यह सुनकर मैं कभी सीमा को देखने लगी सीमा भि मेरी ओर सवालिया नजरों से देखने लगी,अभी हम दोनो कुछ समझते कि माथुर ने एक जोर का थप्पर सीमा के गांड पर मारता हुआ बोला, रंडि साली बुरचोदियों कह रहे हैं जल्दी जल्दी त एक दूसर के मुंह देख रही है।सीमा ऊफफ्आइइइ करते हुए झुकी और बैग से पाऊडर स्नो,और कई शैडो वाली लिपस्टिक का डब्बा बाहर निकाल करटेबुल पर रखी
और जब तक हम वहाँ पर रखे एक तौलिए से अपना मुंह पोंछ कर स्नो पाऊडर लगा रही थी,वह लिपस्टिक के डब्बे को घुमा फिरा कर देखता रहा।फिर हम दोनो के हाथ में दो अलग अलग शेड का लिपस्टिक थमा कर बोला चल ईसे लगा।मैं हाथ में ले कर देखी,मेरी वाली सूर्ख लाल और सीमा वाली मैरून रंग कि थी।खैर हम लोगों ने वही कि और अगल बगल खरी रह कर अगले आदेश के लिए ऊसके तरफ ताकने लगी।ऊषा भाभी और मामी अभी तक पिछवारे के चापाकल पर ही थी,और उनकी आह ओह और नहाने के समवेत स्वर से आ रही थी।यह तो हम दोनो समझ चुकी थी कि अब हमलोगों कि चुदाई तो होगी ही,पर वो लोग कौन है,कहीं जानने वाला न हो,ईस डर को यह सोच कर कभी कभी सांत्वना भी देती थि,कि घर से ईतनी दूर हमें कौन पहचानेगा।कामुक भावनाओं का भंवर भी काफी हलचल मचा रहे थे।आने वाले पल कि अनुभूति वैसी ही थी जैसी सुहागरात में पति के प्रतिक्षा में सुहागसेज पर हो रही थी।हालांकि न पति के साथ सुहागसेज पर मै कुंवारी थी और आज तक तो मैं चार पांच लंडो को अपनी चूत कि सैर करवा चुकी थी।माथुर ऊधर मंगर को हमारी स्नो पाउडर और दो अन्य शेड का लिपस्टिक ऊसके हांथो में देता हुआ ऊसके कानो में कुछ कहके पिछवारे कि ओर भेज दिया।ऊसके जाते ही माथुर ने पहले सिमा को अपनी ओर खींच कर ऊसके होंठो को चुमने,चुभलाने लगा,सीमा ऊससे बचने के लिए अपंने सिर को ईधर ऊधर करने लगि उइइआहहह का करितानी जी,ऊंहूहह,लेकिन माथुर हरामी ऊसके बालों को कसकर पकरे हुए अपनी मनमानी करता रहा ,मै यह सब देखकर कामुक भी होती जा रही थी और साथ ही एक अंजाने भय से दुबकी जा रही थी,तभी टेबल पर से ट्रिन ट्रिन कि आवाज आई,यह मोबाइल से आवाज आ रही थी।माथुर उसे कान से सटा बाते करने लगा,ऊधर कि आवाज तो नही पर माथुर कि आवाज सुन रही थी। बोल रहा था..हांहां समझ गया फिर ऊधर से कुछ कहा गया जिसके जबाब में माथुर बोला हां जी सब एही मे हो जाएगा,पुआले पर चादर बिछवा देते हैं...हां हां ए में त जादे मजा मिली... हां नयापन भी होगा। फिर ऊधर से कुछ कहा गया जि वहाँ तब सब कुछ खुले में होता है बाकी ठीक है आंई अब देर मत किजिये, कहकर ऊसने फोन निचे रख कर जोर से पुकारा ओए मंगरु।मंगरू पिछवारे से लगभग दौरता हुआ आया,ऊसे आया देख माथुर बोला का हो दूनो रांड तैयार हो गईल कि ना,तैयारे बा,ई बलवंत कू जानत नईखी, नहात रहे दुनो त कभी कोनो के गांर मे उंगरी कर देत रहे त दुसर के बुर में।अच्छा चल जल्दी से रूम में से ई चौकी हटा दे चाहे एक तरफ खरा कर दे और बाहरे से पुआल ला कर रूम में बिछा दे और ई चादय आ गद्दी ओहि पर बिछा दिहे।चल बाहर कौन कौन बा सबके कह जल्दी कर।ईतना कहकर वो मेरी और सीमा के तरफ देखता हुआ बोला,देखो वो लोग आ रहे हैं,जैसा कहें वैसी करना वरना समझ ले का होगा तुम लोगों कि,जेल गई कि समझ ले।हम दोनो सहमति हुई सिर हिलाकर रह गई।पांच सात मिनट में पुरे कमरे में पुआल बिछा कर ऊसपर गद्दी और चादर बिछा दि गई थी।फिर बलवंत को आवाज देकर ऊषा भाभी और ऊसकी मामी अंदर आई।दोनो सिर्फ़ सारी में थी,फिर भी उनके शरीर का हर अंग ट्रांसपैरेंट सारी से दिख रही थी, बरी बरी चूंचिया और पिछे ऊभरी हुई गांड,सच पुछिये तो ईस परिस्थिति में भी मुझे जलन होने लगी,फिर यह सोच कर कि ईध सब का यह धन्धा भी है,और उसके लिए यह जरुरी भी है।ईधर माथुर ऊषा भाभी के मामी को कह रहा था ,देख जैसे कह रहे हैं वैसी कर वरना और भी तरीका है मेरे पास।और कुछ नही त समाज में मुंह दिखाने लाएक नही रहेगी।ऊसकी बात सुन मामी उसी टेबुल पर पेट के बल झूक गई जीससे ऊनकी सिर दिवारके तरफ और गांड हम लोगो के तरफ हो गई।अब मामी ऊस कमरे में आने जाने वालों को देख नही सकती थी।ईतना कहके माथुर बाहर वाले रूम में जा कर रमेश भैया से कुछ बातें कर रहा था,उसके कहने के भाव से पता चल रहा था कि वह धमका भी रहा है और बात भी मनवा रहा है।फिर कुछ बाते हुइ और रमेश भैया ने स्वीकृति में सर हिलाने लगे।माथुर ऊनका बांह थपथपाते हुए बाहर बरामदे पर चला गया।कुछ ही पल में माथुर तीन मध्य आयू के व्यक्तियों के साथ आकर रमेश भैया के पास पहुंचा, और ऊनसे कुछ बातें की।मैं भितरी रूम में ऐसी जगह खरी थी कि जिससे बाहरी रूम के ऊस कोने को अच्छी तरह देख रही थी जहां रमेश भैया बैठे हुए थे।अब रमेश भैया ऊनके साथ भितर आ गए।तीनो किसी बरे घर के या व्यापारी वर्ग के लग रहे थे।दो ने साफ झकझक धोती और कुर्ता में थे और एक फुलपैंट और शर्ट में था तीनो समवय्सक सेपैंतालिस पचास के उमर का लग रहा था,हृष्टपुष्ट शरीर का था।डगमगाती चाल बता रहा था कि तीनो नशे में है।उनमें से एक धोती वाला जिसकी आंखे लाल थी ऊसने पहले कमरे में चारो तरफ नजर दौराई ,जैसे ही ऊसकी नजर टेबल पर पेट के बल लेटी हुई ऊषा भाभी कि मामी पर परी ,ऊसने माथुर से आंखो से कुछ ईशारा किया,अभी तक वे तीनो के मुंह से कोई आवाज नही निकली थी, मैं खामोशी से सब देख रही थी पर कुछ समझ नही पा रही थी।ईधर माथुर ने बलवंत को गर्दन हिलाकर संकेत दिया ,बलवंत जैसे ईसी ईंतजार में था,वह आगे बढा और ठिक मामी के सामने दिवार से लगकर खरा  हो गया और अपनी पैंट कि जिप खोल अपना लौरा जो अंदाजन छ से सात ईंच लम्बा और तकरीबन दो ईंच मोटा होगा अपने हाथ से पकर कर मामी कि होठों से सटा दिया,मामी अपने सिर को हिला कर नही लेने का कह रहीं थी पर बलवंत ने उनके बालों को पकर के एक झटका दिया,दर्द से जैसे ही मामी चिखने के लिए मुंह खोली कि बलवंत सटाक से अपना लंड मामी के मुंह में पेल दिया।मामी के मुंह से सिर्फ गुं गुंउउ कि आवाज निकल रही थी। अब ईधर ऊन तीनो की नजर हम दोनो सहेलियों और ऊषा भाभी पर आ टिकी।तीनो में से एक ने रमेश भैया को कहा ओए केया नाम बताया था तुने अपनी,जी रमेश, भैया ने जबाब दिया। तो रमेश तु ईन तीनो रंडियों का दल्ला है,रमेश भैया जीईई कर के रह गए।हालांकि वो ईंकार करना चाहते थे,मगर माथुर गुर्राती हुई आंखे देख चुप रह गए।तब जीसने रमेश भैया से नाम पुछा था उसी ने रमेश भैया से पुनः कहा त चल देखा कैसन कैसन माल बा,और कहाँ के बा।रमेश भैया पहले सीमा के पास पहूचे और  ऊसे बताने लगे यह सीमा है,रीश्ते में यह मेरी बहन लगती है और यह मीरा है ईसकी सहेली और फिर उषा भाभी की तरफ ईशारा कर कहा यह मेरी पत्नी है ऊषा नाम है।चल नाम त जान लेनी अब माल दिखा,भैया यह सुनके ऐसा बन गए जैसे ऊन्होने कुछ सुना ही नही होअरे  अपने से माल देखिए न माथुर बोला।जांई महंथ जी अपने के मुआयना कर लिहल जाव। जब एकनी के चोदहे के बा त का देंखी,पहले त ए खुलल गांड के देखी ,महंथ टेबुल के पास जाके ऊषा की मामी कि गांड पर से सारी को हटाता हुआ बोला।बलवंत का लंड तेजी से मामी कि मुंह में धक्का लगा रहा था जिस कारण मामी कि गांड आगे पिछे हो रही थी ,अब ऊसपर महंथ अपनी दोनो पंजो को रुखाई से चला रहा था,कभी मसल देता,कभी थपथपा देता।फिर ओ माथुर कि ओर देखता हुआ बोला,केया माथुर साहेब देखिए त बेचारी के मुंह में त केला खिला रहें ह और उतनी गोल गोल छेद,वह मामी के दोनोभागो को फैलाता हुआ बोला को तरसा रहे हैं।महंथ का ईशारा समझ माथुर ने रमेश भैया से कहा,जा जी ,समझ गईल ना महंथ जी का कहत हइं।रमेश भैया तो पहले झिझके,पर दूसरे ही पल अपने पैंट कि जिप खोलते हुए अपना लौरा निकाला,और मामी किगांड से सटा दिया,हालांकि मामी अपनी गांड कभी बांऊ कभी दांए कर रही थी पर एक तरफ महंथ के हाथों का दबाव और अब रमेश भैया का लंड जिसे मैंपहले पहल देख रही थी करीब सात आठ ईंची लम्बा और दो सवा दो ईंची मोटी होगी, मामी कि भूरि छेद से सट कर हमला करने को तैयार थी, मैं मामी के चेहरे पर नजर डालनी चाही तो उधर बलवंत का धक्का लगाता उसका कमर नजर आया, हां मामी की गुंगुआहट तेज हो गई थीं।अचानक बलवंत कोपिछे झूकते देखा साथ ही मामी के चिख भी,फार दिहलस रे माईईई।रमेश भैया अपना पुरा लौरा मामी कि गांड में ठोक डाला था,साथ ही एक हाथ से मामी कि कमर को टेबल पर दबाते हुए धक्के लगाना और तेज कर दिया था,वो पुरा लंड निकालते और फिर जोरों का धक्का।महंथ जो मामी कि चिख सुनि तो अपने चेहरे पर आश्चर्य का भाव प्रगट करते हुए बलवंत से कहा अरे ई आवाज त जानल पहचालन लागता,हो बलवंत जी जरी ई गांरचोदी के चेहरा त दिखा भाई।लगता कोई आपन पुरान जानपहचान के हई।और झूकते हुए वो मामी का चेहरा देखने झूका हि था कि मामी अपनी सारी ताकत लगा कर टेबुल से उठना चाही पर आगे से बलवंत औ्र गांर में लंड डाले रमेश भैया उसे कसकर दबोचे हुए घचाघच्चचचच अपना अपना लौरा पेले जा रहे थे।ऊधर महथ मामी का चेहरा देखते जोर से चिल्लाया ,अरे बहानचोद ई त गरमरौनी हमार चाचीए बानी। फिर वो रमेश भैया से बोला रे जल्दी सेआपन पानी गीरा भाई,हम जात रही तोहार बहिनिया बिबि के चोदे,तु त हमार चाचीए के गांर फार दिहल।कौनो बात नईखे।ईतना कहके वह पुआल पर बिछाए गद्दी पर आकर बैठ गया।ऊसके बैठते हीऊसके साथ आए पैंटशर्ट वाले व्यक्ति ने बाहर जाकर एक झोला ऊठा लाया,और उसमें से दो भरी हुई बोतल एक भूने मांश से भरी हुइ कागज का ठोंगा और प्लास्टिक के गँलास निकाल कर रखा।ओ माथुर जी जरा पानी मंगवाईए और आईए पहले थोरा मूड बना लिहल जाए,बाकी ई रउआ ठीक ना कईनी ,हमार चाचीए के गांड फरवा देहनी ,कहकर ठठा कर हंस परा।
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#58
Great Keep Posting !!
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#59
[quote='Meerachatwani111' pid='3809064' dateline='1633863802']
माथुर ने जैसे ही अपनि बात खतम कि ऊधर बलवंत और दूसरा सिपाही जिसका लंड भाभी के बुर में था ,दोनो ने अपनी घुसेरने और निकालने कि रफतार तेज कर दी,बेचारी ऊषा भाभी कभी दामू के लंड को छुते हुए निकालने का प्रयास करती कभी हाथ बढा कर बलवंत का लंड हटाने कि कोशिश कर रही थि पर ऊन हरामजादों को तो बस अपनी परी थी।निचे वाले ने अपनी दोनों बांहो से उषा भाभी कि पिठ को कसकर जकर रखा था।भाभी अपनी गांड ईधर ऊधर नचा रही थी,बलवंत हरामी तो कभी कभी अपना पुरा लंड निकाल कर भाभी जबतक सांस भी ले पाती कि वह हरामी एक झटके से पुरा लंड उनकी गांड में ठोक देता।झटकों के तेजी से मुझे अंदाजा हो चुकी थी कि अब यह लोग स्खलित होने वाले हैं।और वही हुआ बलवंत एक जोर का झटका देकर भाभी कि पिठ पर ही लूढक गया निचे वाला भी अब लगभग नरम झटका हि दे रहा था।हमहूँ डाल देनी बलवंत भाई,कहकर ऊसने बलवंत को ऊठने का ईशारा किया,लेकिन दामू अभी भी अपना लंड भाभी के  मुंह में घुसेरे ऊनका शिर दाबे हुए था,बलवंत भाभी कि पिठ पर से उठता हुआ अपना लंड  जो अभी तक भाभी कि गांड में ही घुसा हुआ था खप से निकाला ,भाभी कि गांड विर्य और पसिने से भरी हुई थी।बलवंत उठकर अपनी लुंगी ठिक करते हुए दामू को गाली देते हुए बोला रे बहानचोद अपन भौजाई के मुंहे में माल डालवे का रे।छोर शाली के साफ सुथरा भी करवावे का।यह सुनकर दामू भी अपने हाथ को भाभी के सर पर से हटाते हुए अपना लौड़ा भाभी के मुंह से निकाल लिया,ऊनके होंठो से टपकती हुई विर्य कि बूंदे अपनी कहानी कह रही थी।भाभी मुंह के खुलते ही जोर जोर से सांसे ले रही थि और धीरे धीरे खरी हो रही थी।फिर अपने कपरों जो वही फर्श पर फेंकी हुई थी कि ओर बढी।दामू भी अपने पैन्ट के जिप को लगा कर एक तरफ खरा था।अब माथुर ने बलवंत से कहा जा ऊ ससूरी के भी ले आव आ पिछवाड़े चापाकल के पास ले जाके साफ करवा के ले आब त एहनी के कपरा लत्ता दिहल जाई।जा जल्दी कर। फिर मंगर नामके सिपाही को हमलोगों की बैग लाने के लिए बोला,मंगर दौर कर बैग ले आया,माथुर के इशारे पर ऊसने मेरी चूंची दबाते हुए कहा.रांड केया नाम बताई थी,जीईई मीरा मैंअपनी चूंचि को सहलाती हुई रुआंसी होते हुई बोली।ठीक त मीरा रानी बेग में से अपनी पाऊडर लिपस्टिक निकाल और यह ले अपन चोली घांघरा,ब्रा पैन्टी बाद में मिली।सीमा और मैने। जल्दी से लहंगा चोली पहन लि,
फिर ऊसने कहा अब बढिया से मुंहाथ पोंछ के पाऊडर लिपस्टिक लगा के तैयार हो जा,जैसे अपनी सुहागरात मनाने के लिए होती है,चाहे धंधा के लिए जाते वख्त शिंगार पटार करके जाती है,चल जल्दी कर।यह सुनकर मैं कभी सीमा को देखने लगी सीमा भि मेरी ओर सवालिया नजरों से देखने लगी,अभी हम दोनो कुछ समझते कि माथुर ने एक जोर का थप्पर सीमा के गांड पर मारता हुआ बोला, रंडि साली बुरचोदियों कह रहे हैं जल्दी जल्दी त एक दूसर के मुंह देख रही है।सीमा ऊफफ्आइइइ करते हुए झुकी और बैग से पाऊडर स्नो,और कई शैडो वाली लिपस्टिक का डब्बा बाहर निकाल करटेबुल पर रखी
और जब तक हम वहाँ पर रखे एक तौलिए से अपना मुंह पोंछ कर स्नो पाऊडर लगा रही थी,वह लिपस्टिक के डब्बे को घुमा फिरा कर देखता रहा।फिर हम दोनो के हाथ में दो अलग अलग शेड का लिपस्टिक थमा कर बोला चल ईसे लगा।मैं हाथ में ले कर देखी,मेरी वाली सूर्ख लाल और सीमा वाली मैरून रंग कि थी।खैर हम लोगों ने वही कि और अगल बगल खरी रह कर अगले आदेश के लिए ऊसके तरफ ताकने लगी।ऊषा भाभी और मामी अभी तक पिछवारे के चापाकल पर ही थी,और उनकी आह ओह और नहाने के समवेत स्वर से आ रही थी।यह तो हम दोनो समझ चुकी थी कि अब हमलोगों कि चुदाई तो होगी ही,पर वो लोग कौन है,कहीं जानने वाला न हो,ईस डर को यह सोच कर कभी कभी सांत्वना भी देती थि,कि घर से ईतनी दूर हमें कौन पहचानेगा।कामुक भावनाओं का भंवर भी काफी हलचल मचा रहे थे।आने वाले पल कि अनुभूति वैसी ही थी जैसी सुहागरात में पति के प्रतिक्षा में सुहागसेज पर हो रही थी।हालांकि न पति के साथ सुहागसेज पर मै कुंवारी थी और आज तक तो मैं चार पांच लंडो को अपनी चूत कि सैर करवा चुकी थी।माथुर ऊधर मंगर को हमारी स्नो पाउडर और दो अन्य शेड का लिपस्टिक ऊसके हांथो में देता हुआ ऊसके कानो में कुछ कहके पिछवारे कि ओर भेज दिया।ऊसके जाते ही माथुर ने पहले सिमा को अपनी ओर खींच कर ऊसके होंठो को चुमने,चुभलाने लगा,सीमा ऊससे बचने के लिए अपंने सिर को ईधर ऊधर करने लगि उइइआहहह का करितानी जी,ऊंहूहह,लेकिन माथुर हरामी ऊसके बालों को कसकर पकरे हुए अपनी मनमानी करता रहा ,मै यह सब देखकर कामुक भी होती जा रही थी और साथ ही एक अंजाने भय से दुबकी जा रही थी,तभी टेबल पर से ट्रिन ट्रिन कि आवाज आई,यह मोबाइल से आवाज आ रही थी।माथुर उसे कान से सटा बाते करने लगा,ऊधर कि आवाज तो नही पर माथुर कि आवाज सुन रही थी। बोल रहा था..हांहां समझ गया फिर ऊधर से कुछ कहा गया जिसके जबाब में माथुर बोला हां जी सब एही मे हो जाएगा,पुआले पर चादर बिछवा देते हैं...हां हां ए में त जादे मजा मिली... हां नयापन भी होगा। फिर ऊधर से कुछ कहा गया जि वहाँ तब सब कुछ खुले में होता है बाकी ठीक है आंई अब देर मत किजिये, कहकर ऊसने फोन निचे रख कर जोर से पुकारा ओए मंगरु।मंगरू पिछवारे से लगभग दौरता हुआ आया,ऊसे आया देख माथुर बोला का हो दूनो रांड तैयार हो गईल कि ना,तैयारे बा,ई बलवंत कू जानत नईखी, नहात रहे दुनो त कभी कोनो के गांर मे उंगरी कर देत रहे त दुसर के बुर में।अच्छा चल जल्दी से रूम में से ई चौकी हटा दे चाहे एक तरफ खरा कर दे और बाहरे से पुआल ला कर रूम में बिछा दे और ई चादय आ गद्दी ओहि पर बिछा दिहे।चल बाहर कौन कौन बा सबके कह जल्दी कर।ईतना कहकर वो मेरी और सीमा के तरफ देखता हुआ बोला,देखो वो लोग आ रहे हैं,जैसा कहें वैसी करना वरना समझ ले का होगा तुम लोगों कि,जेल गई कि समझ ले।हम दोनो सहमति हुई सिर हिलाकर रह गई।पांच सात मिनट में पुरे कमरे में पुआल बिछा कर ऊसपर गद्दी और चादर बिछा दि गई थी।फिर बलवंत को आवाज देकर ऊषा भाभी और ऊसकी मामी अंदर आई।दोनो सिर्फ़ सारी में थी,फिर भी उनके शरीर का हर अंग ट्रांसपैरेंट सारी से दिख रही थी, बरी बरी चूंचिया और पिछे ऊभरी हुई गांड,सच पुछिये तो ईस परिस्थिति में भी मुझे जलन होने लगी,फिर यह सोच कर कि ईध सब का यह धन्धा भी है,और उसके लिए यह जरुरी भी है।ईधर माथुर ऊषा भाभी के मामी को कह रहा था ,देख जैसे कह रहे हैं वैसी कर वरना और भी तरीका है मेरे पास।और कुछ नही त समाज में मुंह दिखाने लाएक नही रहेगी।ऊसकी बात सुन मामी उसी टेबुल पर पेट के बल झूक गई जीससे ऊनकी सिर दिवारके तरफ और गांड हम लोगो के तरफ हो गई।अब मामी ऊस कमरे में आने जाने वालों को देख नही सकती थी।ईतना कहके माथुर बाहर वाले रूम में जा कर रमेश भैया से कुछ बातें कर रहा था,उसके कहने के भाव से पता चल रहा था कि वह धमका भी रहा है और बात भी मनवा रहा है।फिर कुछ बाते हुइ और रमेश भैया ने स्वीकृति में सर हिलाने लगे।माथुर ऊनका बांह थपथपाते हुए बाहर बरामदे पर चला गया।कुछ ही पल में माथुर तीन मध्य आयू के व्यक्तियों के साथ आकर रमेश भैया के पास पहुंचा, और ऊनसे कुछ बातें की।मैं भितरी रूम में ऐसी जगह खरी थी कि जिससे बाहरी रूम के ऊस कोने को अच्छी तरह देख रही थी जहां रमेश भैया बैठे हुए थे।अब रमेश भैया ऊनके साथ भितर आ गए।तीनो किसी बरे घर के या व्यापारी वर्ग के लग रहे थे।दो ने साफ झकझक धोती और कुर्ता में थे और एक फुलपैंट और शर्ट में था तीनो समवय्सक सेपैंतालिस पचास के उमर का लग रहा था,हृष्टपुष्ट शरीर का था।डगमगाती चाल बता रहा था कि तीनो नशे में है।उनमें से एक धोती वाला जिसकी आंखे लाल थी ऊसने पहले कमरे में चारो तरफ नजर दौराई ,जैसे ही ऊसकी नजर टेबल पर पेट के बल लेटी हुई ऊषा भाभी कि मामी पर परी ,ऊसने माथुर से आंखो से कुछ ईशारा किया,अभी तक वे तीनो के मुंह से कोई आवाज नही निकली थी, मैं खामोशी से सब देख रही थी पर कुछ समझ नही पा रही थी।ईधर माथुर ने बलवंत को गर्दन हिलाकर संकेत दिया ,बलवंत जैसे ईसी ईंतजार में था,वह आगे बढा और ठिक मामी के सामने दिवार से लगकर खरा  हो गया और अपनी पैंट कि जिप खोल अपना लौरा जो अंदाजन छ से सात ईंच लम्बा और तकरीबन दो ईंच मोटा होगा अपने हाथ से पकर कर मामी कि होठों से सटा दिया,मामी अपने सिर को हिला कर नही लेने का कह रहीं थी पर बलवंत ने उनके बालों को पकर के एक झटका दिया,दर्द से जैसे ही मामी चिखने के लिए मुंह खोली कि बलवंत सटाक से अपना लंड मामी के मुंह में पेल दिया।मामी के मुंह से सिर्फ गुं गुंउउ कि आवाज निकल रही थी। अब ईधर ऊन तीनो की नजर हम दोनो सहेलियों और ऊषा भाभी पर आ टिकी।तीनो में से एक ने रमेश भैया को कहा ओए केया नाम बताया था तुने अपनी,जी रमेश, भैया ने जबाब दिया। तो रमेश तु ईन तीनो रंडियों का दल्ला है,रमेश भैया जीईई कर के रह गए।हालांकि वो ईंकार करना चाहते थे,मगर माथुर गुर्राती हुई आंखे देख चुप रह गए।तब जीसने रमेश भैया से नाम पुछा था उसी ने रमेश भैया से पुनः कहा त चल देखा कैसन कैसन माल बा,और कहाँ के बा।रमेश भैया पहले सीमा के पास पहूचे और  ऊसे बताने लगे यह सीमा है,रीश्ते में यह मेरी बहन लगती है और यह मीरा है ईसकी सहेली और फिर उषा भाभी की तरफ ईशारा कर कहा यह मेरी पत्नी है ऊषा नाम है।चल नाम त जान लेनी अब माल दिखा,भैया यह सुनके ऐसा बन गए जैसे ऊन्होने कुछ सुना ही नही होअरे  अपने से माल देखिए न माथुर बोला।जांई महंथ जी अपने के मुआयना कर लिहल जाव। जब एकनी के चोदहे के बा त का देंखी,पहले त ए खुलल गांड के देखी ,महंथ टेबुल के पास जाके ऊषा की मामी कि गांड पर से सारी को हटाता हुआ बोला।बलवंत का लंड तेजी से मामी कि मुंह में धक्का लगा रहा था जिस कारण मामी कि गांड आगे पिछे हो रही थी ,अब ऊसपर महंथ अपनी दोनो पंजो को रुखाई से चला रहा था,कभी मसल देता,कभी थपथपा देता।फिर ओ माथुर कि ओर देखता हुआ बोला,केया माथुर साहेब देखिए त बेचारी के मुंह में त केला खिला रहें ह और उतनी गोल गोल छेद,वह मामी के दोनोभागो को फैलाता हुआ बोला को तरसा रहे हैं।महंथ का ईशारा समझ माथुर ने रमेश भैया से कहा,जा जी ,समझ गईल ना महंथ जी का कहत हइं।रमेश भैया तो पहले झिझके,पर दूसरे ही पल अपने पैंट कि जिप खोलते हुए अपना लौरा निकाला,और मामी किगांड से सटा दिया,हालांकि मामी अपनी गांड कभी बांऊ कभी दांए कर रही थी पर एक तरफ महंथ के हाथों का दबाव और अब रमेश भैया का लंड जिसे मैंपहले पहल देख रही थी करीब सात आठ ईंची लम्बा और दो सवा दो ईंची मोटी होगी, मामी कि भूरि छेद से सट कर हमला करने को तैयार थी, मैं मामी के चेहरे पर नजर डालनी चाही तो उधर बलवंत का धक्का लगाता उसका कमर नजर आया, हां मामी की गुंगुआहट तेज हो गई थीं।अचानक बलवंत कोपिछे झूकते देखा साथ ही मामी के चिख भी,फार दिहलस रे माईईई।रमेश भैया अपना  पुरा लौरा मामी कि गांड में ठोक डाला था,साथ ही एक हाथ से मामी कि कमर को टेबल पर दबाते हुए धक्के लगाना और तेज कर दिया था,वो पुरा लंड निकालते और फिर जोरों का धक्का।महंथ जो मामी कि चिख सुनि तो अपने चेहरे पर आश्चर्य का भाव प्रगट करते हुए बलवंत से कहा अरे ई आवाज त जानल पहचालन लागता,हो बलवंत जी जरी ई गांरचोदी के चेहरा त दिखा भाई।लगता कोई आपन पुरान जानपहचान के हई।और झूकते हुए वो मामी का चेहरा देखने झूका हि था कि मामी अपनी सारी ताकत लगा कर टेबुल  से उठना चाही पर आगे से बलवंत औ्र गांर में लंड डाले रमेश भैया उसे कसकर दबोचे हुए घचाघच्चचचच अपना अपना लौरा पेले जा रहे थे।ऊधर महथ मामी का चेहरा देखते जोर से चिल्लाया ,अरे बहानचोद ई त गरमरौनी हमार चाचीए बानी। फिर वो रमेश भैया से बोला रे जल्दी सेआपन पानी गीरा भाई,हम  जात रही तोहार बहिनिया बिबि के चोदे,तु त हमार चाचीए के गांर फार दिहल।कौनो बात नईखे।ईतना कहके वह पुआल पर बिछाए गद्दी पर आकर बैठ गया।ऊसके बैठते हीऊसके साथ आए पैंटशर्ट वाले व्यक्ति ने बाहर जाकर एक झोला ऊठा लाया,और उसमें से दो भरी हुई बोतल एक भूने मांश से भरी हुइ कागज का ठोंगा और प्लास्टिक के गँलास निकाल कर रखा।ओ माथुर जी जरा पानी मंगवाईए और आईए पहले थोरा मूड बना लिहल जाए,बाकी ई रउआ ठीक ना कईनी  ,हमार चाचीए के गांड फरवा देहनी  ,कहकर ठठा कर हंसने लगे,वाह भाई जी कि नजारा दिखईनी ह,हंसते हुए दूसरे धोती वाले ने महंथ के ठहाकों मेंअपनी ठहाका मिलाते हुए कहा।तभी माथुर बोला जानत बानी महंतजी, आपन चाची के गांर में कौन लौःरा पेल के गांरफार चुदाई कर रहल बा ।कौन हौ हो,कौन बा,बरी ऊत्सुक्ता से महंथ ने पुछा।जबाब में माथुर ने बरी अश्लीलता से ईशारा करते हुए कहा,अरे ई ईनकर दमादे बा,ईनकर भतार के भगिनदमाद बानी ईहां के,और ई बानी ऊषा रानी ,ईनकर भतार के भगिनी।आ हो माथुरजी तब त ई ऊषा रानी से हमार बहिन के रिश्ता भईल,वाह भाई ई भेल कोरम पुरा।फिर वह ऊषा भाभी को अपनी तरफ आने का ईशारा करते हुए बोला ,तु काहे ला ओने खरा बारू,एने आब अपन भाई के गले लग जा।
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#60
उषा भाभी धीमे धीमे चलकर महंंथ के पास आकर खरी ही हुइ थी कि,मह़थ ने एकहाथ बढाकर उषा भाभी को उनकी एक हाथ पकर कर अपनी गोद में खिंच कर बैठा लिया,खिंचने के क्रम में ऊषा भाभी कि सारी जो सिर्फ शरीर पर था अस्तव्यस्त हो कर उनकी कमर पर ही रह गई,ऊनकी चूंचिया एक दम नंगी हो गई थी,पर महंथ अपने हाथों में पकर कर कर मसलने लगा।वाह तोहार चूंची त बरा मस्त बा बहिनी।लागता भतार जम के मजा लूटेला।फिर भाभी कि गर्दन अपनी ओर घुमा के ऊनके होठो को अपने मुंह में लेकर चुभलाने काटने लगा।दो तीन मिनट तक भाभी को अपनी बांहो में चाप कर मनमानी करता रहा।अब ऊसने मेरी और सीमा के ऊपर निगाह डाली और हमलोगों के तरफ ईशारा कर भाभी से पुछा,ई दोनों तोहार के लागेलन। जी ई हमार चचेरी ननद बानी ,भाभी सीमा कि ओर ईशारा कर बोली और ई मीरा बानी सीमा कि सहेली महल्ला एके बा।माथे में सिन्दूर बा एकर मतलब दूनो शादीशुदा बारी।जी महंथ। जी भाभी ने जबाब दिया ।महंथ जी हम होखेब दूसरा ला तोहार त हम भाईए बानी अब से भैया कहके बात कर।फिर भाभी के स्तनो को अपने दोनो हाथो में कसकर चांपते हुए पुछने लगा,अच्छा ई बताव बहिन कि ईहो दूनो ई धंधा करेलन कि।भाभी प्रतिकार करती हुई बोली ना भैया ,हमनी के ई सब ना करेलीं।तत्काल बलवंत जो मामी के मूंह मे लौरा डाल के मुंहचुदाई कर रहा था,एक झटके से अपना लंड मामी के मुंह से खिंचकर आगे आया और भाभी को कहने लगा,बुरचोदी छीनार,शाली बहन की लौंडी,झूठ काहे बोलती है ,भोंषरी दो बार त हमहीं तोहरा के पकरले रहीं पांरे बाबा के ढाबा पर,एके संगे दू दू गो लौरा धंसवावत रहे अपना बूर गांर में ,बोल रंडि झूठ बोलत हईं कि।
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