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मैं मीरा अपने साथ घटी इस घटना को आप सबके साथ बांट रही हूं, आशा है आप सभी अपने टिप्पणी से मुझे दिशा देंगे। कुछ दिन पहले की बात है, जब मैं शादी के कई बरस बाद एक लंबे समय के लिए मैके में रहने का मौका मिली थी। सौभाग्य से मेरे बचपन की सहेली सीमा भी आई हुईं थी। सीमा और मेरी दामन चोली जैसे संबंथ थे, जो शादी होने के बाद एक तरह से छुट गई थी।हम दोनो के शरीर करीब करीब थोरे अंतर के साथ समान हि थी। एक बात में हम दोनो एक मिजाज की थी और वह थी अपनी जवानी के जलवे दिखा कर अपना काम निकालना। कभी कभी ऊलटे बांस बरेली वाली बात हो जाती थी, पर केया कि जा सकती थी। खैर वह सब बाते अगली पोस्ट में दूंगी, अगर ईसे आप सबका समर्थन मिले तो।
मुझे मैंके आए हुए सप्ताह भर से ज्यादा दिन बित चुके थे। वो तो सीमा भी आई हुई थी वरना समय काटनी मुश्किल होती। उस दिन सीमा के साथ घर के छत पर बैठी अपने बिते दिनों की बात कर रहे थे। सीमा तो पहले ही से मुंहफट थी और शादी के बाद तो और आगे बढ गई थी। आगे मैं अपनी और सीमा के बिच में हो रहे संवाद को जैसे के तैसे लिख रही हूं। सीमा बोल रही थी...मीरा बिआह के बाद तोहार चूंची आ गांड त बरा फैल गईल बा, लागता दिन रात भतार पेलाई ठूकाई करते रहेलन। मैं उ की चूंचियों को मसलते बोली आ तोहार बुर गांड़ कौनो उपास रहेला बुरचोदि सीमा। सीमा तुरंत बरी अदा से साहाना लहजे में बोली, बन्नो याद है ना वो दामू आउर जत्तन भाई, जिनकर 7ईंची के लौड़ा घचाक से लेत रहनी ह आ बुरचोदी तोहार पैर आ हाथ हमनी के ना पकरले रहती त तोहार बुरिया में खूंटे ना गराईत ।
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[quote='Meerachatwani111' pid='345500' dateline='1555154353']
मैं मीरा अपने साथ घटी इस घटना को आप सबके साथ बांट रही हूं, आशा है आप सभी अपने टिप्पणी से मुझे दिशा देंगे। कुछ दिन पहले की बात है, जब मैं शादी के कई बरस बाद एक लंबे समय के लिए मैके में रहने का मौका मिली थी। सौभाग्य से मेरे बचपन की सहेली सीमा भी आई हुईं थी। सीमा और मेरी दामन चोली जैसे संबंथ थे, जो शादी होने के बाद एक तरह से छुट गई थी।हम दोनो के शरीर करीब करीब थोरे अंतर के साथ समान हि थी। एक बात में हम दोनो एक मिजाज की थी और वह थी अपनी जवानी के जलवे दिखा कर अपना काम निकालना। कभी कभी ऊलटे बांस बरेली वाली बात हो जाती थी, पर केया कि जा सकती थी। खैर वह सब बाते अगली पोस्ट में दूंगी, अगर ईसे आप सबका समर्थन मिले तो।
मुझे मैंके आए हुए सप्ताह भर से ज्यादा दिन बित चुके थे। वो तो सीमा भी आई हुई थी वरना समय काटनी मुश्किल होती। उस दिन सीमा के साथ घर के छत पर बैठी अपने बिते दिनों की बात कर रहे थे। सीमा तो पहले ही से मुंहफट थी और शादी के बाद तो और आगे बढ गई थी। आगे मैं अपनी और सीमा के बिच में हो रहे संवाद को जैसे के तैसे लिख रही हूं। सीमा बोल रही थी...मीरा बिआह के बाद तोहार चूंची आ गांड त बरा फैल गईल बा, लागता दिन रात भतार पेलाई ठूकाई करते रहेलन। मैं उ की चूंचियों को मसलते बोली आ तोहार बुर गांड़ कौनो उपास रहेला बुरचोदि सीमा। सीमा तुरंत बरी अदा से साहाना लहजे में बोली, बन्नो याद है ना वो दामू आउर जत्तन भाई, जिनकर 7ईंची के लौड़ा घचाक से लेत रहनी ह आ बुरचोदी तोहार पैर आ हाथ हमनी के ना पकरले रहती त तोहार बुरिया में खूंटे ना गराईत ।
[/quoteसीमा के मुंह से यह बात सुनते ही ,ऊस दिन की सारी बातें मेरी आंखो के आगे नाचने लगी, साथ ही सारे शरीर मे झनझनाहट सी होने लगी ।शर्म और अनी झेंप मिटाने के लिए मैं ने अपनी हथेलियों से सीमा की दोनो चुंचियों को कसके दबा ली, वह चिल्लाने लगी ,पर तबतक मैं उसे पटक कर उस पर चढ बैठी थी, और उसके चुंचियों को और कसके मसलती हुई बोली, रन्डी छिनरी सीमुआ तोहरा बरा मजा आवत रहे ना हमरा मुंह के आपन गांड से दबा के बंद क्ईले में आउर उ मादरचोद दमुआ पुरा 6ईंची के मूसर हमार बुर में एके झटका में धांस दिहलस हरामी जैसे ओकर मतारी के भोंशरी रहे, और ऊ शाला जत्तन भ्ईबा ओकरा बहिन के कुत्ता से चोदाई कैसे कभि तहरा मुंह में कभी हमरा चुंची से रगरत रहेस, सीमा जब तक जबाव देती,अचानक सिढियों के पिछे से आवाज़ आई.. कहां बानी हमार सौतनिया सब कहते हुए एक भरे पुरे बदन की महिला सामने आई, हमलोग भी अपनी कपड़ो को संभालती खरी हो गई ,सीमा निश्चित खरी मुश्कराते हुए बोली ,आई भौजाई, और मेरी तरफ मुडकर बोली, मीरा ई बारन रमेश भैया के माऊ, कहे खतिरा बाकी त अगल बगल के लौंडवन स ,,,,कहकर सीमा शैतानी भरे मुश्कराने लगी। हां मीरा बबुनी हम बानी उषा, बाकी त बत्इए दिहलन सीमा बबुनी ।बरी मन रहे जे अहां के देखी ।अब मैं भीउन कि हाथ पकर कर साथ बैठा लि और फिर कुछ देर तक परिचय बाते होती रही। गपशप होती रही ,फिर वो चलनेवाली ही थि जा हम त भूलाईए गैनी र सुनी न सीमा बबुनी राऊर भैया बजाज के आटो खरिद ल्ईलन ह ।ओकर पुजा करवावे खतिरा .....मंदिर जात बानी, अकेले जाए खतिरा हम मना कैनी ह त राउर भाई बोलले हं कि सीमा आउर मीरा से जाकर पुछ लि, अगर दोनो साथ रही त अकेला ना रही। बाकी हम बानी और दामोदर(दामु) दुनो रहबे करब। मैं दामु का नाम सुनके झिझक के सीमा के तरफ देखी, उसके सपाट चेहरे से मुझे अनुभव हुई की वह तैयार है। फिर मैं पलट कर भाभी को बोली भाभी मैं मा से पुछती हूं। तपाक से ऊषा भाभी बोली पुछ लिहीं बाकी हम त दोनो माई से पुछिए के आईल बानी। कब चले के बा सीमा पुछी। ऐ बबुनी वहां जाए में चार पांच घन्टा लागी। भोरवे में चलल जाई त्ईओ 12 बजे दिन से पहले पुजा ना होख पाई। हम त ईहां के राए देली ह कि शमवे केसात बजे ईहाँ से चलल जाए नौ बजे ले .....गाँव (उषा भाभी का मैके) पहुँच, आराम करके चार बजे ऊठ के वहां से चलके सात आठ बजे ले मंदिर पहूँच जाएब।मुझे भी क्ई दिन से घर में खाली बैठे रहने से उबाउपन महशूस हो रही थी अत्: सोची चलो ईस बहाने घुमने के साथ भगवान की पुजा भी कर लूंगी ।चलते चलते भाभी बोली हां एक बात सुन लिहीं तनि सज संवर के चलेब, हमर बस्ती के लोग भी देख ली कि हमार ससुराल के माल के।
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Mza aa gya. Sach mein dhamaka kar diya apne.
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(14-04-2019, 03:10 PM)Meerachatwani111 Wrote: (13-04-2019, 04:49 PM)Meerachatwani111 Wrote: मैं मीरा अपने साथ घटी इस घटना को आप सबके साथ बांट रही हूं, आशा है आप सभी अपने टिप्पणी से मुझे दिशा देंगे। कुछ दिन पहले की बात है, जब मैं शादी के कई बरस बाद एक लंबे समय के लिए मैके में रहने का मौका मिली थी। सौभाग्य से मेरे बचपन की सहेली सीमा भी आई हुईं थी।चलते चलते भाभी बोली हां एक बात सुन लिहीं तनि सज संवर के चलेब, हमर बस्ती के लोग भी देख ली कि हमार ससुराल के माल के। राउर क एक पोस्ट पर हमार कुल किस्सा कहानी न्योछावर , ... बकी एक बात कहीं बबुनी बुरा मत मनिहा , जउन भउजी क गाँव हौ , ओकर नावं लेवे में काहें ,... बिंदी लगाए के छोड़ देहलू , अरे हम अपने कहानी में तो शहर का नाम मोहल्ला गली ,... बाकी आगे राउर क मर्जी ,... लेकिन पहली बार आप भोजपुरी क नाम रोशन कइले हउ।
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(14-04-2019, 05:13 PM)komaalrani Wrote: राउर क एक पोस्ट पर हमार कुल किस्सा कहानी न्योछावर , ... बकी एक बात कहीं बबुनी बुरा मत मनिहा , जउन भउजी क गाँव हौ , ओकर नावं लेवे में काहें ,... बिंदी लगाए के छोड़ देहलू , अरे हम अपने कहानी में तो शहर का नाम मोहल्ला गली ,... बाकी आगे राउर क मर्जी ,... लेकिन पहली बार आप भोजपुरी क नाम रोशन कइले हउ।
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कोमल भौजी प्रणाम, पहिले त अपने के हम बहुत आभारी बानी जे पोस्ट पढ के हमर हौशला बढाविले। जन्म कहीं ,पढाई कहीं भ्ईल बियाह के कौनो और भाषी जगह में। भोजपुरी मैधिल तिरहूत सब भाषा के मिश्रण बन गई ल बानी ।ई हमार पहिले पोस्ट बा। ए भौजी बनल रही चाहे त हमार दिदी बन जांई। अपने के मीरा
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ईतना बोल के ऊषा भौजी वापस चली गई। ऊनके जाने के बाद मैं सीमा से बोली, सीमा चले में त कोई हरज न्ईखे, पर ई कमीना दमुओ साथे बा न, बहानचोद फेर कोई फेरा लग्ईलस त ।दुर खचरी अब का करी, जादे से जादासाड़ी उठाई लौड़ा धांसी। हमहूँ कहब पेल बहानचोद, भतार छुट्टे छोरले बा और यह कह कर वह जाने लगी, लेकिन जाने से पहले कहने लगी, ऐ मीरा सुननी ह कि उषा भौजी के घर के लोग बरी एडभांस बा ,त हमनियों के अच्छा से सज थज के चले के होखी ।मैंभी बनावटी शोखी दिखाते हुए बोली ऐडभांस हवन चाहे ऐडभैंसी हमर पहनावा त वही रही साड़ी साया ब्लाऊज़। सीमा के जाने के बाद मैंभी नहाने चली गई। आज जब नहाने गई तो पता नहीं क्यों अपने उग आए बालों की सफाई भी करली। खाना खाकर आराम से ओसारे पर सो गई। नींद टुटी तो सुर्यास्त होने को थी ,अचानक ऊषा भाभी हरबराति हुईं आंयी और कहने लगी, का हे बबुनी अभी तक तैयार न्ईखे भ्ईली, तैयार होखे में केता देर लागी। ठीक बाअभी 6बजत बाटे ठीक 7 बजेआटो पर सीमा बबुनी के लेलही आएम,ठीक बा न। ठीक बा भौजी हम जरूर तैयार रहब। ईतनी बात कहके वह चली गई। मैंभी शाम कि चाए के बाद तैयार होने गई ।बैग खोलते ही मेरी नजर पति द्वारा दि गई गिफ्ट पर पड़ीमैं ऊत्सकता के साथ वह पैकेट खोली।
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(14-04-2019, 07:55 PM)Meerachatwani111 Wrote: कोमल भौजी प्रणाम, पहिले त अपने के हम बहुत आभारी बानी जे पोस्ट पढ के हमर हौशला बढाविले। जन्म कहीं ,पढाई कहीं भ्ईल बियाह के कौनो और भाषी जगह में। भोजपुरी मैधिल तिरहूत सब भाषा के मिश्रण बन गई ल बानी ।ई हमार पहिले पोस्ट बा। ए भौजी बनल रही चाहे त हमार दिदी बन जांई। अपने के मीरा
दीदिये ठीक बा।
अउर भाषा में मिलावट क चिंता जिन करी , दस पांच गांव पे बोली बदल जाले , हम आज तक आपन कहानी में भोजपुरी लोकगीत लोगन क सुनउने रहलीं , पर ठेठ भोजपुरी में लिखब केतना मुश्किल हौ , इ हम जानीला। आपके हर पोस्ट क हमें नाहीं हजारन लोगन के इन्तजार रही।
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बस, मैं पैकेट से निकली रेशमी घाघरा चोली बिना ब्रा के पहनकर तैयार होने लगी, तभी उस पैकेट से एक छोटी सी पैकेट निकली जिसे खोलने पर एक जालीदार पैन्टी के समान सिर्फ डोरीयां और आगे एक जालीदार पट्टी सि थी। मैं सोच ही रही थी कि यह कैसे क्या कि पैकेट के उपर बनी एक औरत कि फोटो पर नजर परी जिसमें उस महिला ने वह पैन्टी पहने हुई थी जिसमें सिर्फ उसकी गोल चुतर साफ दिख रही थी और पिछे से एक डोरी उसकी गांड के दरारो से होती हुई उसके चुत के सिर्फ फांको को ढकती हुई एक रिंगके सहारे कमर के डोरियों से बंधी हुई थी। झटपट मैं वही तिनो कपड़े पहन कर तैयार हो गई। कपड़े पहन कर मैं आइने में जब अपने को देखि तो मैं खुद शर्मा गई। सामने आईने में मेरी दोनो चुंचियो के उपरी भाग चोली से बाहर दिख रही थी ,चोली से बाहर निकलने को बेताब ।मैं स्वंय झेंप कर ईधर ऊधर दने लगी ।और यह सोचकर दूसरे कपड़े ढूँढने हेतु बैग में देखने लगी कि तभी सीमा की आवाज़ आई, कहां बारी मीरा रानी और आवाज़ लगाती मेरे रूम में आ गई ।आए हाए जालीम मार देहलू रानी, आज त केतना के हथियार भोथरा कर देबे बुरचोदी।गे खचरी तोहार खच्चर बहनोईआ गई लन रहे काम से त वहीं ए से लाईले रहन। और दोसरा दिन त एहिंए आ गईनी ।बुझत रहीं जे साड़ी ब्लाउज होखी ।पकेटवा खोलनी त अच्छा लागल त पहिन लेनी। सीमा देख न कैसन लागेला, चुंचियों आधनंगीए बा ।ना रे मत उतार एहिए पहिन के चल, बरा एडभांस बाटे उषिया भ्उजी के धर बरी बड़ाई बतिआवत रहेलन, हमर घर में ऐसे लोग रहेलन त वैसन कापड़ पहिरलन। ईहा त सब पिछरू बारन। तहरा देखिए त बुझाई लोगन के कि फैसन का होखेला अब हमरे देख कहियो ऐसन मैक्सी पहिन के ईहाँ ना घुमनी जन् ।अब मेरी नजर उसके ड्रेस पर परि। गेहूँवन रंग के शरीर पर भूरे रंग की मै
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सर्वोत्तम। बिल्कुल रस से सराबोर।
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,,,,,मैक्सी, बरे गले कि, उसकी बड़ी बडी चुंचियों के बिच की घाटियों का मनमोहक दिख रही थी। उसकी तरफ देख कर मैं बोली, रे सीमा ठहर तोहरे जैसन हमहूँ बदल लेत बानी, ए ड्रेस में लगता जैसे कौनो छिनरी आपन यार से मिले जातिया। ना ना तहरा कापड बदले के जरूरत न्ईखे, तनि भौजाईयो देखस हमनी के भी कम एडभांस नत बानी। ई गंडमरौनी जब से बियाह के अईली ह तब से रमेश भ्ईबा के रंगे बदलल बा। पहिले जब आवत रहीं बहानचोद ,सीमा आइल बा सूनते दौड़त चल आवत रहे आउर माई से कौनौ बहाना बना के दुकनिया ले जात रहे आ एक्ई घन्टा ले चुत घपाघप बजावत रहे कभीओ त दमुओ के साध मिलके आगा पिछा बजावत रहे। अब त अईला सप्ताह भर हो ग्ईल हरामी झांकी भी न मारल। बस यहीआटो खरिदल ह त मंदिर जाए खतिरा पुछलस बाटे। मै अचं हो के सीमा से अपनी आंखे लाल करके बोली ,बुरचोदी, खचरी हम त तोहार आपन रही अगरे जान ज्ईती कि तु रमेश के लौड़ा पर बैठतारू त का हम हिस्सा बटवावे ब्ईठ ज्ईती ।हमे जानत रही ई तोहार चचा के ल्ईका बारन ।एक बार त हम कसके डांटल रही जब ह्उ हमर चुतर एकबार सहलावे लागल। तब से फेर हिम्मत ना क्ईलस कि कभीओ हमरी ओर ताके का सहसे ना भ्ईल ।अच्छा जाएदे बित ग्ईल बात ग्ईल, हमरा से कहियो ना जिकर क्ईलस,ना त तोहर बुरिया भी चखवाईए देल जाता ,कहते हुए सीमा बोली चल एही जे पहनले बारे। मैं बोली हम चलेब त जरूर ईहे पहिन के, पर ई ड्रेस के एक जोरा आऊर बा, ऐसन कर तु आपन कपरा ऊतार और तुंहो ईहे पहिन ले। हम दोनो की कद काठी लगभग समान ही थी, सिर्फ सीमा की चूंची और चुतर थोरी सी बरी थी। सीमा बिना हिचक के तुरत अपने पहने कपड़े उतार कर लहंगा पहनने लगी कि, मै ने उसे रोकते हुए बोली, रंडी पहिले मेन गेट त बंद कर और उसकी ओर पैन्टी बढा दी ।ऊसे देखते ही बोली ई त थौंग बा, लागता जिजू के पसन्द बडी रंगीन बा ।अरे ना रे सीमा आफिस के काम से दिल्ली ग्ईल रहिखन त वहीं के एक कस्टमर भेंट में दिहलस। सीमा के सब पहनने में पांच मिनट भी नही लगी।लहंगा और चोली दोनो एकदम कसी हुई, लेकिन उसके देह पर कसी हुई और आकर्षक लग रही थी ।आए हय आज त नया टेम्पु कहीं टकराई जरूर मैं ने ऊसकी तरफ आंख मारते हुए बोली । काहे ! सीमा आंख मटकाते हुए बोली ।आज रमेश भाई के डन्डा आपन पुरनका बिल खोजे लागी। समय हो चली थी ।हम दोनो बाहरी बरामदे पर ऊन लोगों के ईंतजार में बैठ गप्प बाजी करने लगी। तभि मेरे ध्यान में आई कि सीमा तो
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बहुत बढ़िया पोस्ट ,... भौजी क ननद दुनो एकदम आग लगहियें
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,,,सीमा तो उधर से साथ आने वाली थी ,तो मैं उससॆ पुछ बैठी, अरे सीमा,, तु त सबके साथ आवे वाली रहलू ह उषा भाभी बतवलन र । कुछो नाही मीरा बस वैसे ही, तभि आटो की आवाज आई और रमेश भैया अपनी टेम्पो चलाते आ पहुंचे थे,उषा भाभी टेम्पो से उतर कर आई, और हमदोनो के तरफ आंख फैलाकर देखती हुईं भितर घर के चली गई, फिर मेरी मां के साथ ही बाहर आई और हम सब टेम्पो पर आ कर बैठ गई। मा भी भीतर चली गई। शाम गहरी हो चली थी।भाभी टेम्पो के पिछली सिट पर अकेले बैठी थी,बीच वाली पर हम दोनो और रमेश भैया के साथ दामु। शहर छोड़ने से पहले एक जगह तिपहिया रोक के
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कहीं गए ।कुछेक 10 मि. में लौटे तो उनके साथ एक 30/32वर्षीय भरे पुरे बदन वाली औरत ,माथे में सिन्दूर, होठों पे गहरी लाल लिपिस्टक तथा गले में मंगलसूत्र थी आई और रमेश जी के हाथो में एक झोली थी। ऊषा भाभी ऊसे देखते ही बोली, आई आई सविता बहिन आजो बुक बानी की। ना हे आज आपन देवर के रात वाली ड्यूटी बिया ।दुकनिया के आगे ईहा के भैंट गईनी। का करेब घरे ब्ईठ के ,ईतनी बात बोल के वह भी भाभी के बगल में बैठ गई। तिपहिया फिर आगे बढ चली थी । मुझे ऊत्सुकता थी जानने की ,वह औरत कौन थी और बुक बानी का मतलव केया है। ईधर सीमा अपने दुपट्टे को माथे बाल पर ऐसे लपेट रखी थी कि एक नजर में कोई ऊसे बिना गौर से देखे ना पहचान सकता था।
आटो शहर के भीड भार से निकल कर अंतरराज्यीय सड़क पर आ गई ।रास्ते मे सिर्फ हर तरह के वाहनों की आवाजाही हो रही थी। कभी कभार एक दो आदमी नजर आ रही थी । रात के आठ के उपर बज रही थी और हमलोगों को ऊषा भाभी का घर ही अभी 35__36 की. मी दूर थी और करीब उतनी ही दूरी वहां से मंदिर की थी।अब तक तो सब लोग शांत बैठे थे, सिवाए हल्की फुलकी बातों के। लेकिन अभी आई सविता ,आटो के चलते ही बोलना आरंभ कर दी। वह अपने शिर को हमलोंगो को गौर से देखने लगी, मेरे चेहरे को तो वह साफ देख पा रही थी पर सीमा ड्राइवर के पुस्त मेंलगी डंडे को पकड़ कर उसी पर सर टिकाए बैठी थी,कि ओर ईशारा कर वह ऊषा भाभी से पुछी ,ऊषा बहिन ई लोग पसिन्जर बारी की। अरे ईनका सब के न्ईखे जानतारू ,हंसती हुईं उषा भाभी बोली। और फिर मेरी तरफ ईसारा कर बोली ,ई बारिन मीरा हमार मुहल्ला के पुरनकी माल और ओने बारीन सीमा रानी। सीमा शर्माती अपने मुंह को पिछे सविता के तरफ घुमाती हुई बोली परणाम भौजी। जबाव में सविता ,सीमा के गालो को चिकोटती हुई बोली, आए हाए आज बरा शरम आतिया,ओ दिने त रमेश जी के लौड़ा पुरा ६ईंची धंसवा के चिल्लात रहींं फार दे भैया पुरा धांस दे और भाई के बहिनचोद, माईचोदी आउय न जानी काथी काथी बोलत रही ।यह सब सुनके मैं सीमा के तरफ देखने लगी, वैसे तो हम दोनो ने क्ई बार एक साथ क्ई बार एक साथ क्ई लौडे लिए थे वह भी शादी से पहले, लेकिन सीमा रमेश भाई से भी चुदी है यह मेरी जानकारी में नही थी। सीमा के लाल चेहरा देखते ही मैं समझ गई कि यह मजाक नही सच है। रमेश भाई आटो चलाते हुए झेंपी आवाज में सविता को हंसते हुए डांटने लगे, रंडी एही खतिरा तोहरा हम ब्ईठ्ईनी ह ।सीमा अपनी शर्म को भूल कर रमेश से बोली भैया ना होखे त दमुआ के पिछे सिटवा पर भेज दिहीं, दमुआ के डनडा जब ईंहा के मुंह में ठोकाई तब जा के ईनकर छिनारी बंद होखी। अरे हमार मुंह में डारी चाहे बुर गांर फांरी, वही खतिरा त जात बानी। आऊर शरम का हे खतिरा कैल जाई,बताईं उषा बहिन याद बा नू जे एके चट्ईवा पर हमतिनो एके साथे घचाघच घचाचच लौड़ा पेलवैले रहनी मन।
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पाठक एवं पाठिकाओं से क्षमा मांगती हूं अगले पोस्ट भेजने में देरी होने के कारण।दरअसल कुछ पारिवारिक समारोहों में भाग लेने अन्यत्र जानी परी ।
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अब आगे.... वैसे तो मैं ईन सब अश्लील कामुक बातें सुनने, करने की आदि रही हूं पर चलते सवारी पर बिच सड़क पर ना कभी की थी, कुछ अटपटा सी लग रही थी। हालांकि मेरी चुत में हल्की हल्की गुथगुदाहट होने लगी थी। न जाने किस कारण मैंने रमेश भाई से बोल बैठी, का हो रमेश भाई हमनी के पुजा करे चलत ह्ईं कि नौटंकी में ।
बुरिया खजूआए लागल कि हे मीरा रानी, मेरी बात समाप्त होते ही पिछे से सविता की आवाज आई। सविता जी आप रमेश भाई से ही बात करें, मेरी तो आपसे कोई जानपहचान भी नही है। ईतना कह के मैं सिधी होकर सामने देखने लगी ।आटो के अगल बगल से गुजरने वाली गारियाँ, ईक्का दुक्का पैदल चलने वाले नजर आ रहे थे। थोरी दूर चलने के बाद रमेश भाई सविता से बोले एही जा उतरबु कि अगला पर। सडक से थोरी दूर पर ही एक ठाठ और छप्पर वाली लाईन होटल थी, सामने साईनबोर्ड भी लगी हुई थी *पांडेजी का ढाबा*।ढाबे के अगल बगल क्ई ट्रक, क्इ कारें लगी हुई थी। ढाबे के बाहर और भीतर लोग कुर्सियों और चारपाई पर बैठे हुए खाना खा रहे थे, करीफ करीब सभी के ग्लास में दारू भरे हुए थे। उधर सविता आटो से उतर कर रमेश स कह रही ती आई ना रमेश जी एक एक कप चाए हो जाए।
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स्वागत है , एक बार फिर से कहानी की शुरुआत की। ;लेकिन बस अबकी ये धार टूटने न पाए , सच में ऐसी कहानी आज तक इस फोरम को छोड़िये , कही भी न मैंने पढ़ी न देखी।
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