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Misc. Erotica छोटी छोटी कहानियां...
अब तो मेरी भी समझ मे आ गया की भाभी के क्या ईरादे है और मेरे लण्ड के साथ वो‌ क्या करना चाह रही है.....? अब ये बात मेरे दिमाग मे आते ही रोमाँच से मेरे रोँगटे खङे हो गये और दिल की धङकन एकदम‌ से बढ सी गयी। पर भाभी ने बस एक बार ही अपने कोमल होठो से मेरे सुपाङे को चुमा था उसके बाद उन्होने अपना मुँह वहाँ से हटा लिया और मेरे लण्ड के नीचे की तरफ चुमने लगी।


मेरे लण्ड को चुमते हुवे भाभी‌ का जो हाथ मेरे लण्ड को‌ पकङे था वो अब धीरे धीरे मेरी गोलियो को सहलाने लगा। मुझसे ये सहन करना मुश्किल हो रहा था इसलिये मै भाभी के सिर को पकङकर जबरदस्ती उनके गालो व होठो पर पर अपने लण्ड को रगङने लगा..

मगर तभी भाभी जिस हाथ से मेरी गोलियो के साथ खेल रहा था उससे मेरे लण्ड के बेस को पकङ लिया और उसे सीधा खङा कर अपने मुँह को खोलकर मेरे लण्ड के अग्र भाग को अपने होठो के बीच दबा लिया......

भाभी के नर्म मुलायम होठो के बीच उनके मुँह की गर्मी अपने लण्ड पर महसूस होते ही मै अब...
"इईई.श्श्श्श्..अ्आ्आ्...ह्ह्ह्ह्ह्.....
इईईई.श्श्श्श्श्..अ्अा्आ्आ्...ह्ह्ह्ह्ह्ह्....." करके जोरो से सिसक उठा और अपने आप ही मेरे कुल्हे‌ उपर हवा मे उठ गये...

मैने भाभी के सिर को भी अपने लण्ड पर जोरो से दबा भी लिया था ताकी अधिक से अधिक मेरा लण्ड भाभी के मुँह मे घुस जाये मगर मेरा लण्ड भाभी के दाँतो से ही टकराकर रह गया..!

भाभी एक हाथ से मेरे लण्ड को पकङे अभी भी मेरे सुपाङे पर अपने होठो को रखे थी। वो जानबुझकर मुझे तङपा रही थी, मगर मुझसे अब रहा नही जा रहा था इसलिये मै अपनी कमर को ही उपर नीचे हिलाकर अपने लण्ड को भाभी के हाथ व होठो के बीच घीसने लगा...

कुछ देर‌‌ ऐसे ही मुझे तङपाने के बाद शायद भाभी को मेरी हालत पर तरश आ गया था इसलिये उन्होने दुसरे हाथ से पहले तो मेरी कमर को दबाकर मुझे रूकने का इशारा सा किया, फिर धीरे धीरे मेरे लण्ड के आगे के भाग को अपने होठो के बीच दबाकर उसे अपने नर्म नाजुक होठो के बीच घिसना शुरु कर दिया..

मेरे लण्ड से निकलने वाले पानी से भाभी के होठ चिकने हो गये थे इसलिए भाभी के होठ के बीच मेरा लण्ड भी आसानी से फिसल रहा था। उत्तेजना के मारे मेरे मुँह से सिसकियां निकलने लगी थी, मगर तभी....

भाभी के होठो मेरे लण्ड को पकङे पकङे ही उपर, मेरे लण्ड के अग्र भाग तक आये और मेरे सुपाङे की चमङी को अपनी पकङ मे फँसा लिया.. अब जैसे ही भाभी ने अपनी गर्दन को नीचे की तरफ दबाया... भाभी के नर्म‌ नाजुक होठ मेरे सुपाङे की चमङी को खोलते हुवे नीचे तक लेकर चले गये और मेरा नँगा सुपाङा भाभी के गर्म गर्म मुँह मे समा गया..
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कसम से भाभी की इस अदा ने तो‌ मुझे अब अन्दर तक ही हिला दिया और मेरे मुँह से जोरो की सिसकी निकल गयी, मगर भाभी अब इतने पर ही‌ नही रुकी‌ , वो अपने होठो से‌ मेरे सुपाङे की चमङी को पुरा पीछे करती हुई जहाँ तक मेरे लण्ड को अपने मुँह मे ले सकती थी वहाँ तक अन्दर करके उसे जोरो से चुश भी लिया.....

अब तो मै भी चीखे बीना नही रह सका। मै... "इईईई.श्श्श्श्श्..अ्अा्आ...ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्..." की एक चीख के साथ जोरो से सिसक उठा और अपने आप ही मेरे हाथ भाभी के सिर पर जोरो से कस गये।

पर भाभी भी कम‌ नही थी, वो मुझे इस खेल के सारे सुख‌ देने मे पीछे नही रहना चाहती थी या फिर ये कहु की वो‌ मुझे इस खेल‌ के एक एककर सारे गुर सिखा रही थी तो ये कुछ गलत नही होगा, क्योंकि मेरे लण्ड को अपने मुँह मे भरकर वो उसे अब जोर जोर से चुशने लगी तो, उनकी गर्म गर्म व चपल जीभ ने भी मेरे सुपाङे पर अब हरकत करना शुरु कर दिया...

वो अपनी लचीली जीभ को कभी मेरे सुपाङे पर गोल गोल घुमाकर उसे सहला रही थी तो कभी उसे जीभ निकालकर उसे पुरा चाट ले रही थी। भाभी की नर्म जीभ का स्पर्श व मुँह की गर्मी अपने लण्ड पर पाकर मै अब सातवे आसमान मे उङ रहा था।

मेरे लण्ड से तो पानी निकल ही रहा था, भाभी के मुँह से भी लार निकल रही थी जो की मेरे लण्ड के सहारे बह कर मेरी गोलियो व जाँघो पर फैलती जा रही थी।

मेरे लण्ड से निकले प्रेमरश ने भाभी के मुँह‌ की लार से मिलकर एक नये ही द्रव्य का निर्माण कर लिया था जो की बेहद ही चिकना था।‌ अब इस द्रव्य से भीग कर मेरा पुरा लण्ड बेहद ही चिकना हो गया था जिससे वो अपने आप ही भाभी के मुँह मे फिसल रहा था।

भाभी भी मेरे लण्ड को अपने होठो के बीच दबाकर कभी उपर नीचे कर रही थी तो कभी उसे जोरो से चुश रही थी, कभी सुपाङे के उपर जीभ को गोल गोल घुमा देती तो कभी कभी वो पुरी जीभ निकाल कर मेरे लण्ड‌ को चाट‌ले रही थी।

वो मेरे लण्ड के साथ ऐसे खेल, खेल रही थी जैसे कोई छोटा बच्चा लोलीपोप के साथ करता है। वो उसे कभी चुशता है तो कभी जीभ से चाटता है। बिल्कुल वैसे ही भाभी भी मेरे लण्ड के साथ वैसा ही कर रही थी मगर कुछ भी हो भाभी के इस खेल से मुझे बहुत मझा आ रहा था, मेरे लिये ये एक अदभुत व अविश्वसनीय अहसास था।

मेरे हाथ भाभी के सिर को पकङे हुवे थे जो की अब भाभी के सिर को सहलाने लगे थे, मै अपने आप पर काबु नही कर पा रहा था इसलिये भाभी के मुहँ के साथ साथ अपने आप ही मेरी कमर उपर नीचे हरकत करने लगी...

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भाभी ने भी मेरे लण्ड को अब हाथ से‌ उपर नीचे हिलाना शुरु कर दिया तो वो उसे अब जोर जोर से चुशने भी लगी। उनकी गर्म‌ गर्म लचीली जीभ तो मेरे सुपाङे पर जैसे अब कहर ही ढा रही थी जिससे कुछ ही देर मे मेरा सारा बदन अब सुन्न सा पङने लगा..


मै चर्म पर पहुँचने वाला था इसलिये मैने जल्दी जल्दी चार पाँच बार तो अपने लण्ड को भाभी के मुँह मे अन्दर बाहर करके घीसा फिर अचानक से मेरा बदन अकङने लगा, भाभी समझ गयी थी की मेरा काम तमाम हो गया है, वो अपना मुँह मेरे लण्ड पर से हटाना चाह रही थी मगर उत्तेजना के वशीभूत होकर मैने जोरो से भाभी के सिर को अपने लण्ड पर ही दबा लिया..

मेरा लण्ड अब भाभी के गले तक उतर गया था जिससे वो... "उऊऊ..उऊगूँगू्ँगूँ...उऊऊ...उऊगूँगू्ँगूँ....." की अावाज करने लगी मगर मुझे तो अब होश ही कहाँ था। भाभी के सिर को अपने लण्ड पर जोरो से दबाकर मैने अब रह रह कर उनके मुँह मे ही वीर्य उगलना शुरु कर दिया..

भाभी अपने आप को छुटाने के लिये जोरो से छटपटाई भी मगर मैने उन्हे तब तक ऐसे ही दबाये रखा जब तक की मेरे लण्ड ने अपना सारा लावा उनके मुँह मे ही नही उगल दिया...
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मेरे वीर्य से भाभी का पुरा मुँह भर गया था जो की उनके मुँह से निकल कर अब मेरे लण्ड के चारो तरफ भी बह निकला। गाढा गाढा मलाई‌ के जैसे एकदम‌ सफेद सफेद रश जो‌की शायद आज कुछ निकला भी ज्यादा ही था।


खैर कुछ देर बाद जब मेरा सारा ज्वार शाँत हो गया तो भाभी के सिर पर मेरी पकङ कुछ कमजोर हो गयी। भाभी ने भी अब तुरन्त मेरे लण्ड को अपने मुँह से बाहर निकाल दिया और जोरो से खाँशते हुवे जल्दी से बैड के किनारे जाकर थुकने लगी।

भाभी ने थुक कर मेरा सार वीर्य मुँह से बाहर निकाल दिया और अपने पेटीकोट से ही मुँह पोँछते हुवे...
"क्या करता है, जान लेगा क्या मेरी..?" भाभी ने मेरी जाँघो पर जोरो से एक चपत लगाते हुवे कहा।

मै भाभी को अब कुछ नही बोल सका बस चुपचाप अपनी फुली हुई साँसों को काबु करने की कोशिश करता रहा। अपना मुँह साफ करके भाभी अब मेरी बगल मे ही लेट गयी।

मै तो बिल्कुल नँगा ही था भाभी ने भी अपने कपङे सही नही किये और ऐसे ही मेरी बगल मे लेट गयी। कुछ देर तक तो हम दोनो ऐसे ही लेटे रहे फिर भाभी ने करवट बदलकर अपना मुँह मेरी तरफ कर लिया और अपना एक पैर भी मेरे घुटनो पर रखकर मुझसे चिपक सी गयी।

भाभी के उभार जो की अभी भी नँगे ही थे, वो मेरी बाजू को स्पर्श कर रहे थे तो उनकी नँगी जाँघ भी मेरे घुटनो को अपनी नर्मी का अहसास करवा रही थी। भाभी का बदन काफी गर्म लग रहा था शायद मेरा रशखलित कराते कराते वो खुद अब दोबारा से उत्तेजित हो गयी थी।

भाभी मुझसे चिपकती जा रही थी और साथ ही धीरे धीरे अपनी नँगी जाँघ को भी मेरी जाँघो पर घीसते हुवे उपर मेरे लण्ड की तरफ भी बढा रही थी, मगर फिर तभी.. "छीहः..गन्दे...!
इसे साफ तो कर ले....!" ये कहते हुवे भाभी ने तुरंत वहाँ से अपनी जाँघ हटा ली.....

अभी-अभी भाभी ने मुझे जो सुख दिया था उसके कामरश व भाभी की लार से तो मेरी जाँघे सनी ही थी, साथ ही मेरा लण्ड जो की वैसे तो मूर्छित था मगर अभी भी उसमे से वीर्य की कुछ बुन्दे रीश रीशकर बाहर आ रही थी जिससे मेरा लण्ड व जाँघो के पास काफी गीलापन हो रखा था।

उत्तेजना व चर्म से मै अभी भी हाँफ सा रहा था इसलिये भाभी की बात को अनसुना कर मै ऐसे ही लेटा रहा। जब मैने कुछ नही किया तो अब भाभी ने ही लेटे लेटे अपने पेटीकोट को निकालकर अपने हाथ मे‌ ले लिया और मेरी जाँघो व लण्ड को पौँछने लगी...

भाभी नीचे से पुरी नँगी हो गयी थी जिससे उनकी एक तो नँगी व गर्म‌ गर्म‌ चुत मेरे कुल्हो की बगल को छुने लगी, उपर से मेरे लण्ड व जाँघो को साफ करने‌ के बाद भी भाभी ने उसे छोङा नही, बल्की उसे अब अपनी मुट्ठी मे‌ भर लिया और हल्के हल्के सहलाने लगी....

अभी तक‌ मेरा लण्ड बेहोश था मगर भाभी के कोमल हाथो का स्पर्श होते ही उसने भी अब एक‌ ठुनकी सी मारी, जिसे देख भाभी ने मेरे गाल‌ को बङे ही जोर से चुम लिया...यह शायद मेरे लण्ड को‌ मिलने‌ वाला इनाम‌ था जो की भाभी ने मेरे गाल पर दिया था।
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भाभी मेरी ओर करवट किये थी मगर मै अभी भी पीठ के बल‌ ही लेटा था जिससे मेरा एक हाथ जो की मेरे व भाभी के बीच था, भाभी ने उस हाथ को अब उपर उठाकर अपनी गर्दन के नीचे दबा लिया और अपनी एक‌ जाँघ मेरी जाँघ पर चढाके मुझसे कस के चिपक गयी।


भाभी लगभग अब नँगी‌ ही थी‌ जिससे उनके कोमल‌ कोमल बदन का अहसास मुझे अन्दर तक गुदगुदा रहा था। मै अभी भी वैसे ही लेटा था मगर भाभी ने मुझसे चिपक कर अब फिर से अपनी नँगी जाँग मेरी जाँघो पर घिसना शुरू कर दिया तो साथ ही एक हाथ से मेरे लण्ड को सहलाते सहलाते वो मेरे गालो पर भी हल्के-हल्के चुमने लगी, जिससे अब कुछ ही देर मे मेरे लण्ड मे भी‌ फिर से कठोरता आ गयी।

मैने भी अपनी गर्दन घुमाकर अब भाभी की तरफ चेहरा कर लिया जिससे भाभी की गर्म गर्म साँसे मेरी साँसो मे समाने लगी। भाभी के मुँह से भी वैसी ही मादक मादक गँध आ रही थी जैसी की उनकी चुत से आ रही थी। मगर ये शायद मेरे लण्ड से निकले वीर्य की गँध थी जो की अभी‌ अभी मैने भाभी के मुँह मे उगला था।

भाभी मेरे गालो की बजाय अब मेरे होठो को चुमने लगी थी इसलिये मैने भी अब करवट बदल कर अपना‌ मुँह भाभी की तरफ कर लिया।मेरे अब करवट बदलते ही मेरे उत्तेजित लण्ड ने सीधा भाभी की नँगी जाँघो के‌ बीच घुसकर अपनी‌ कठोरता का अहसास करवाया तो, भाभी की नँगी चुँचियो ने भी मेरे सीने को अपना मखमली नर्मी का अहसास करवाया.. पर उत्तेजना के मारे उनकी चुँचियो के‌ निप्पल तनकर एकदम पत्थर हो रखे थे जो कि मुझे अपने सीने चुभते से महसूस हवे..


भाभी का साथ देने के लिये, मै भी अब उनके होठो को चुमने लगा पर भाभी के‌ हाथ से मेरा लण्ड छुट गया था इसलिये भाभी ने उस हाथ को मेरे कँधे पर से लाकर अब मेरी गर्दन को पकङ लिया और मेरे सिर के बालो को सहलाते सहलाते जोर जोर से मेरे होठो को चुशने लगी..

मेरे होठो को चुशते भाभी ने अपनी जीभ को भी मेरे मुँह मे घुसा दिया और मेरे पुरे मुँह अपनी जीभ घुमा घुमाकर मेरे मुँह के रश को चाटने लगी... पर मैने अब दोबारा से अपनी जीभ को भाभी‌ के मुँह मे डालने की गलती नही की, मै बस उनके ही होठो व जीभ को ही चुशता रहा...

मै एक हाथ से भाभी की कमर व नितम्बो को सहलाते सहलाते उनके‌ होठो व जीभ का‌ स्वाद ले रहा था मगर भाभी मेरे होठो को चुशते चुशते लगभग अब मेरे उपर ही चढ गयी और दोनो हाथो से मेरे सिर को पकङकर उन्होने बङे ही जोर शोर से व कस कसकर मेरे होठो चुशना शुरु कर दिया...

भाभी मेरे होठो को चूशते चुशते मेरे होठो व गालो को जोरो से नोच काट भी रही थी। यहाँ तक की मुझे तो वो अब साँस भी लेने का भी मौका नही दे रही थी, बस जोर जोर से आँहे.. भरते भरते खुद ही मेरे होठो व गालो को ही चुशे जा रही थी, जिससे मेरा अब दम सा घुटने लगा।

मैने अपने आप को छुङाने के लिये उन्हे अपने से दुर धकेलना चाहा..!, मगर तभी भाभी करवट बदलकर पीठ के‌ बल लेट गयी और साथ ही मुझे भी खीँचकर अपने उपर ले लिया।

मेरे अब भाभी के उपर आते ही उन्होने अपने पैरो को खोल, मुझे सीधा ही अपनी दोनो जाँघो के बीच ले लिया और अपने हाथ पैरो को समेट मुझे कस के अपनी बाँहो मे एकदम जैसे जकङ सा लिया...

भाभी का नँगा मखमली बदन अब मेरे नीचे था जिससे उनकी दोनो चुँचियाँ मेरी छाती से दबकर चटनी हो रही थी तो मेरा उत्तेजित लण्ड भी भाभी की नँगी चुत पर ठोकर मार रहा था।

वैसे तो मेरा लण्ड अब भाभी की चुत पर तो था मगर, उसके प्रवेशद्वार से वो अभी दुर था, जिसे मै‌ अब एक हाथ से पकङकर सही जगह पर लगाने‌ की कोशिश करने‌ लगा..
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भाभी‌ मेरे होठो को अभी भी चुशे जा रही थी मगर जैसे ही मै अपने लण्ड को उनकी चुत की चुत मे घुसाने लगा, भाभी मेरे होठो को छोङ अपने बदन‌ को‌ कङा‌ कर‌के एकदम स्थिर सी हो गयी...


भाभी की चुत कामरश से भीगकर एक तो चिकनी हो रखी थी उपर से मै भी इस‌ खेल‌ मे अनाड़ी था इसलिये बार बार मेरा लण्ड चुत की‌ लाईन‌ मे‌ ही फिसल‌ जा रहा था। भाभी अब कुछ देर तो अपने‌ बदन‌ को‌ कङा किये लेटी रही, मगर फिर..
"उ्ह्ह्. हुँ.. हटो मै करती हुँ... भाभी ने थोङा झुँझलाते हुवे कहा और अपना एक हाथ नीचे‌ ले जाकर खुद ही मेरे लण्ड को पकङकर सही से अपनी चुत के मुँह पर लगा लिया..

भाभी शायद कुछ ज्यादा ही उत्तेजित थी, और इस बात का पता उनकी चुत से ही चल रही थी, क्योंकि मै बाहर से ही अपने लण्ड पर भाभी की चुत की गर्मी महसूस कर रहा था। मेरा लण्ड चुत के मुँह पर तो लगा ही था इसलिये मैने भी अब देरी नही की और एक जोर को धक्का लगा दिया.....

भाभी की चुत का प्रवेशद्वार कामरश से भीग कर एक तो चिकना हो हो रखा था, उपर से भाभी भी इसके लिये तैयार थी जिससे एक ही झटके मे मेरा अब आधे से ज्यादा लण्ड भाभी की चुत मे समा गया और भाभी.. "इई.श्श्श्श्श्..अ्आ्आ्...ह्ह्हह्ह्ह्ह्ह्...... की अावाज करके कराह सी गयी।

भाभी ने अपने पैरो व हाथो को समेटकर मेरे शरीर को अब कस के भीँच लिया और इनाम‌ के तौर पर जोरो से मेरे गालो को चुम भी लिया, जैसे की मैने कोई बहुत बङा और गर्व का काम किया हो। मैने भी अब एक बार फिर से अपने लण्ड को थोङा सा बाहर खीँचा और एक जोर का धक्का भाभी की चुत पर फिर से लगा दिया..

इस बार लगभग मेरा पुरा ही लण्ड भाभी की चुत की गहराई नाप गया जिससे भाभी भी एक बार फिर से...
"इई..श्श्श्श्श्..अ्आ्आ्आ्...ह्ह्हहहहहह......" की आवाज के साथ कराह गयी, मगर साथ ही मुझे अपनी बाँहो मे और भी कसकर भीँच लिया तो, अपने पैरो को उपर उठाकर अब मेरे पैरो मे इस तरह से फँसा लिया की मै चाह कर भी भाभी के उपर से उठ नही सकता था।

लगभग मेरा पुरा ही लण्ड अब भाभी की चुत मे था जो की अन्दर किसी भट्ठी की तरह सुलग रही थी। मेरा ये दुसरा अवसर था जब मेरा लण्ड भाभी की चुत मे घुसा था, और इस अहसास को मै बयाँ नही कर सकता की मुझे उस समय कितना मझा आ रहा था...
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मुझसे अब रुका नही जा रहा था इसलिये दोनो हाथो से भाभी के कँधो को पकङ मैने धीरे धीरे अपने शरीर को अागे पीछे कर धक्के लगाने शुरू कर दिये.. मेरे अब आगे पीछे होने से मेरा लण्ड तो भाभी की चुत की मखमली दिवारो को घीसते हुवे अन्दर बाहर हो ही रहा था, साथ ही मेरी छाती से दबी उनकी दोनो चुँचियाँ भी चटनी की तरह पीसने लगी..


मेरे हर एक धक्के के साथ भाभी के मुँह से अब ...
"अ्आ्आ्.ह्ह्ह्..
इई..श्श्श्श्श्...अ्आ्आ्ह...
इई...श्श्श्श्श्....अ्आ्आ्.ह्ह्ह्....." की कराह सी निकालने लगी, मगर उनकी ये कराहे दर्द की नही थी, बल्की आनन्द की थी, जो की उत्तेजना व आनन्द के वश उनके‌ मुँह से निकल रही थी...

भाभी ने अपने दोनो हाथो का घेरा बनाकर मुझे कस के अपने से चिपका रखा था मगर मेरे अब धक्का लगाना शुरु करते ही उनके दोनो हाथ मेरी पीठ पर आ गये और धीरे धीरे व हौले हौले से मेरी पीठ को सहलाने लगे..

दोनो हाथो से मेरी पीठ को सहलाते साहलाते
भाभी मुँह से तो "अ्आ्आ्.ह्ह्ह्..
इई..श्श्श्श्श्...अ्आ्आ्ह...
इई...श्श्श्श्श्....अ्आ्आ्.ह्ह्ह्....." कर रही थी, मगर साथ ही मेरी गर्दन वा गालो को चुमे भी जा रही थी। भाभी का साथ देने के लिये मैने भी अब अपने होठो‌‌ को भाभी के होठो से जोङ दिया जिन्हे भाभी अब बङे ही‌ जोर शोर उसे चुशने चाटने लगी..

भाभी के रसिले होठो‌ का रश के पीते पीते अब अपने आप ही धीरे धीरे मेरे धक्को की गत्ती बढने लगी‌.. जिससे भाभी के मुँह से निकलने वाली आवाजे भी तेज हो गयी और नीचे उनकी कमर अब अपने आप ही हरकत मे आ गयी...

भाभी का मुँह मेरे होठो से बन्द था मगर फिर भी वो मेरे होठो को चुशते चुशते जोरो से..
उ्.ऊ्.हु्ह्ह्......
उ्.ऊ्.हू्हूह्ह्ह्.......
उ्.ऊ्ऊ.हु्हु्ह्ह्ह्ह्......" की अवाजे‌ निकाल रही थी तो वो अब नीचे से अपने कुल्हो को भी हिला हिलाकर धक्के लगाने लगी थी...

भाभी‌‌ का ये जोश देखकर मैने भी अब अपने शरीर को और तेजी आगे पीछे हिलाकर धक्के लगाने शुरु कर दिये, जिससे भाभी भी अब नीचे से जल्दी जल्दी अपनी कमर को उचका उचकाकर धक्के‌ लगाने‌ लगी और उनके मुँह से निकलने वाली आवाजे और भी तेज हो गयी।

अब जितनी तेजी से धक्के लगा कर मै अपने लण्ड को भाभी की मखमली गुफा मर घीस रहा था, भाभी भी उतनी‌ ही जल्दी जल्दी अपने कुल्हो को उचका उचकाकर अपनी चुत की दिवारो को मेरे लण्ड से घीस रही थी। हम दोनो‌ ही एक तय व लयबद्ध चाल के साथ धक्कमपेल करते हुवे अपनी अपनी मँजिल की तरफ बढ रहे थे...

मगर भाभी अब कुछ ज्यादा ही जोश‌ मे आती जा रही थी। वो दोनो हाथो से मेरी पीठ को पकङ कर मुझे अब जल्दी जल्दी आगे पीछे करने लगी तो, उनके दोनो पैर भी मेरे कुल्हो पर आ गये, और वो खुद ही अपनी एडीयो से मेरे कुल्हो को दबा दबाकर मुझसे तेजी से धक्के लगवाने लगी..

जोर‌ जोर से... "उ्.ऊ्.हु्ह्ह्......
इई..श्श्श्श्श्...अ्आ्आ्ह...
उ्.ऊ्.हू्हूह्ह्ह्.......
इई...श्श्श्श्श्....अ्आ्आ्.ह्ह्ह्.....
उ्.ऊ्ऊ.हु्हु्ह्ह्ह्ह्......" की आवाजे नकालते हुवे भाभी मेरे होठो को भी पागलो की चुमने चाटने लगी थी। शायद उन पर कुछ ज्यादा ही उत्तेजना चढ गयी थी, इसलिये मेरे होठो के साथ साथ वो मेरे गालो को भी इतनी जोरो से नोचने काटने लगी जैसे की उन्हे काटकर खा ही जायेगी....
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उत्तेजना तो मुझे भी जोरो की चढी थी मगर भाभी के काटने से बचने के लिये मैने अब अपने हाथो के सहारे अपनी छाती व मुँह को उपर उठा लिया। बस मेरे पेट के नीचे का ही भाग भाभी पर रहने दिया और तेजी से धक्के लगाने लगा...

मेरे उपर उठ जाने से भाभी का मुँह अब आजाद हो गया था इसलिये वो अब और भी जोर जोर से सिसकियां भरने लगी, उनके पैर भी अब मेरी कमर पर आ गये तो, दोनो हाथ मेरे कुल्हो पर पहुँच गये...

नीचे से अपने कुल्हो को जल्दी जल्दी उचका उचका कर भाभी दोनो हाथो से मेरे भी कुल्हो को दबा दबा कर मुझे जोर जोर से धक्के लगाने के लिये उकसा‌ रही थी‌। भाभी की ये तङप देखकर मै भी अब नीचे से अपने घुटनो पर हो गया और अपनी पुरी ताकत व तेजी से धक्के लगाने लगा...

मेरा पुरा लण्ड भाभी की चुत से बाहर आकर अब मेरी पुरी ताकत व तेजी के साथ वापस उनकी चुत की गहराई तक उतर रहा था जिससे भाभी अब जोर जोर से...
"अ्आ्आ्.ह्ह्ह्..
इई..श्श्श्श्श्...अ्आ्आ्ह...
इई...श्श्श्श्श्....अ्आ्आ्.ह्ह्ह्....." किलकारियाँ सी मारने लगी...

मै अपनी पुरी ताकत व तेजी से धक्के मार मारकर भाभी को चोद रहा था तो मजे से भाभी भी नीचे से अपनी कमर को उचका उचकाकर मुझसे चुद रही थी। हम दोनो की‌ इस धक्कमपेल से हमारी साँसे अब फुल आई थी तो शरीर भी पसीने से नहा गये, मगर फिर अचानक से भाभी की चुत मे जोरो का सँकुचन सा हुवा और वो..

"इ्ई्ई्ई्.श्श्श्श्श्.अ्आ्आ्आ्...ह्ह्हहहहहह......
म्म्म्.अ्..म्..अ्.अ.ह्ह्..ऐ..ऐ..हे्हे्.ऐ्..श्श्..अ्...श्.अ्अ्
इ्ई्ई्ई्...श्श्श्श्श्...अ्आ्आ्आ्...ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्....."


की एक लम्बी सी चीख भरककर मुझसे किसी जोक तरह लिपटती चली गयी। उनके हाथ मेरी पीठ पर तो दोनो पैर मेरी कमर पर कश गये और उनकी चुत अन्दर ही अन्दर कामरश से‌ भरती चली गयी...
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भाभी चर्म पर पहुँच गयी थी मगर मै अब भी प्यासा ही था इसलिये मै धक्के लगाता रहा... चुतरश से भीगकर मेरा लण्ड अब और भी आसानी से चुत के अन्दर बाहर हो रहा था मगर भाभी अब कुछ देर तो ऐसे ही मुझसे लिपटी रही फिर वो मुझे रोकने लगी..


भाभी को शायद दिक्कत हो रही थी, मगर मै रूका नही, मै ऐसे ही धक्के लगाता रहा, क्योकी मै भी अब अपनी मँजिल के करीब ही था। भाभी को भी शायद ये अहसास हो गया था की इस हालत मे मेरा रुकना मुमकिन नही होगा इसलिये उन्होने अपने बदन को ढीला छोङ दिया और मुझे जल्दी से अपने मुकाम पर पहुँचाने के लिये मेरी कमर को सहलाने लगी........

मैने भी अब पाँच सात धक्के तो अपनी पुरी ताकत व तेजी से लगाये, फिर भाभी के बदन से लिपटता चला गया और हल्के हल्के धक्को के साथ उनकी चुत को अपने वीर्य से भरना शुरु कर दिया...

भाभी ने भी मुझे अब जोरो से अपनी बाँहो‌ मे भीँच लिया और जब तक मैने अपना सारा ज्वार भाभी की चुत मे उगल नही दिया वो मुझे ऐसे अपनी बाँहो मे भीँचे रही...

अपना सारा काम ज्वार भाभी की चुत मे उगलने के बाद मै भाभी पर से उतरना चाहता था मगर भाभी मुझे ऐसे ही अपनी बाँहो मे कसे रही। शायद अब मुझे रशखलित करवाते करवाते भाभी फिर से उत्तेजित हो गयी थी..?

ऐसे ही अब मेरे व भाभी के बीच इस खेल का दौर लगभग पुरी रात चलता रहा और रात भर भाभी ने मुझे जगाये रखा... मेरे व भाभी के बीच उस रात चार बार सम्बन्ध बने‌, जिसमे से एक एक बार तो हम‌ दोनो मुखमैथन से रशखलित हुवे थे बाकी तीन बार चुदाई करके सन्तुष्ट हुवे..
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तो दोस्तो मेरा ये सैक्स सफर यहाँ से शुरु हुवा और उसके बाद चलता ही गया क्योंकि उस रात के बाद लगभग मेरे व भाभी के बीच अब रोजाना ये खेल चलने लगा। मेरे भैया जब छुट्टी आते तभी मै दुसरे कमरे मे सोता नही तो अपनी भाभी के कमरे मे ही सोता और हमारे बीच रोजाना ही‌ ये खेल चलने लगा.. जिससे मै अपनी पढाई से दुर और इस खेल के करीब होता चला गया...


कहानी को‌ पसन्द करने के लिये आप सभी का धन्यवाद। अब इसी‌ के साथ इस कहानी को समाप्त करने‌ की अनुमति चाहता हुँ, पर मेरी दुसरी कहानीयां चल रही है। उनका आनंद लिजिए...

*****
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चूत का बैगन मसाला
करीब छह महीने पहले मैंने एक नया कमरा किराये पर लिया। मेरी बीवी अभी पूना में होने के कारण मैं यहाँ अकेला ही रह रहा हूँ। नई कमरे के पड़ोस में ही एक परिवार रहता है, राजेश मेडिकल कंपनी में है, उसकी बीवी मीरा लगभग 35 साल की है पर क्या माल है, क्या बताऊँ !

उसके चूचे और चूतड़ देखकर किसी के भी मुँह में पानी आ जाये। एकदम विद्या बालन के माफिक ! उनका 15 साल का एक लड़का है, वो मुंबई में पढ़ाई करता है। पर जिस दिन से मैंने मीरा को देखा उस दिन से मेरा लंड उसे चोदने के लिए तड़प रहा था। मैं जब भी उसे देखता, मेरा लंड पैंट में ही तम्बू खड़ा कर देता। वो भी मेरी नजर को जान चुकी थी पर मैं हिम्मत नहीं कर पा रहा था।

तभी भगवन ने मेरी सुन ली।

मैं शाम को करीब 6 बजे रूम पर लौटा ही था, तभी सामने वाली खिड़की से मीरा ने मुझे आवाज दी। धीरे धीरे जान-पहचान बढ़ने से मैं उससे बात कर लेता था पर आज उसके अचानक आवाज देने से मैं चोंक गया।

मैंने देखा कि वो कुछ परेशान दिख रही थी, मैंने पूछा- क्या बात है?

उसने मुझे घर में आने को कहा। मैं जैसे ही घर में पहुँचा, तो वो सोफे पर लेटी हुई थी, मैंने पूछा- क्या हुआ?

तो उसने रोती सूरत बना कर कहा- देखो, यह बात तुम किसी से नहीं कहोगे…

मैंने कहा- बात क्या है? मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगा…

फिर वो हिचकिचाते हुए कहने लगी- ..राजू… के पिताजी… यानि मेरे पति… राजेश मेरी इच्छा पूरी नहीं कर पाते इसलिए मैं और चीजों से काम चलाती हूँ, वो कल से गाँव गए हैं, मैं आज बाजार खरीददारी करने गयी थी.. मैंने सब्जी खरीदते समय अच्छे और लम्बे बैंगन ख़रीदे थे। घर आते ही मेरी नजर बैंगन पर पड़ी और मेरी अन्दर की आग सुलग गई। मैंने बैंगन पर वेसलिन लगाकर अपनी टाँगों के बीच में रगड़ना शुरू किया, मुझे बहुत मजा आ रहा था। उसी मदहोशी में मैंने बैंगन को अन्दर-बाहर करना शुरू किया। इसी बीच बैंगन पूरा अन्दर तक डाल दिया और उसके डंठल को पकड़कर खींचने लगी। तभी अचानक बैंगन पूरा अन्दर गया, मैं उसे बाहर खींचने लगी पर डंठल टूटकर हाथ में आ गया। पिछले तीन घण्टे से कोशिश करने के बावजूद भी मैं उसे बाहर नहीं निकाल पाई। मैं ठीक से चल भी नहीं सकती हूँ, मुझे बहुत दर्द हो रहा है, प्लीज मुझे इससे छुटकारा दिलाओ !

ऐसा कह कर वो रोने लगी !

पर ये सब सुनकर मेरा खड़ा हो गया था, मैंने कहा- एक बार मैं कोशिश करता हूँ..

वो बिना कुछ कहे मान गई, मैंने उसका गाउन ऊपर उठाया, छेड़खानी से उसकी चूत पूरी लाल हो चुकी थी, मुझे लगा अभी मुँह लगाकर चूस लूँ !

मैंने उसके दोनों पैर ऊपर उठा कर चूत का दरवाजा खोल दिया, बैंगन का मुँह साफ़ दिखाई दे रहा था पर 5 इंच लम्बा बैंगन चूत के अन्दर फंसा था, मैं उसे निकलने की नाकाम कोशिश कर रहा था। वेसलिन की वजह से बैंगन हाथ से छुट रहा था, कुछ समय बाद हार मान कर मैंने कहा- देखो, इसे निकालना सिर्फ डॉक्टर के बस की बात है।

वो कहने लगी- नहीं, डॉक्टर को मालूम हुआ तो मेरी बेइज्जती होगी…

मैंने कहा- तुम उसकी फ़िक्र मत करो, मेरा एक दोस्त डॉक्टर है, उसे बुला लेते हैं।

नानुकर के बाद वो मान गई। मैंने डॉक्टर हरीश को फोन लगाया और उसे पूरा किस्सा फोन पर ही सुना दिया।
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आधे घंटे बाद हरीश पहुँचा, उसने मीरा को देखकर सीटी बजाई और बोला- इतना बड़ा लंड तुम्हारे पड़ोस में होकर बैंगन क्यों घुसा रही हो…

उसकी बेधड़क बात सुन कर मीरा शरमा गई…

हरीश ने मुझे उसकी दोनों टांगें पकड़ने को कहा और उसकी चूत पर एक्स्पोज़र लगाया।अब चूत के अन्दर का साफ साफ दिख रहा था, नाख़ून लगने से अन्दर जख्म हुए थे।

हरीश ने अपने औजारों से बैंगन के टुकड़े करके बैंगन चूत से निकाला तो मीरा के चेहरे पर छुटकारे का आनन्द दिख रहा था…

उसने कहा- थेंक यू डॉक्टर…

हरीश ने कहा- मैं आपको यह मलहम देता हूँ.. इसे दिन में दो बार अन्दर लगाइएगा.. 4-5 दिन में जख्म ठीक हो जायेंगे… चेक अप लिए जरूर आइयेगा…

वो उठने लगा तो मीरा ने पूछा- आपकी फ़ीस?

हरीश बोला- फ़ीस तो हम दोनों लेंगे पर पहले ठीक हो जाओ.. हम दोनों के बैंगन तुम्हारी चूत में जाने के लिए बेताब हैं…

हम दोनों हंस पड़े और वो शरमा गई।

हरीश के जाने के बाद मीरा बोली- विनोद, आज तुम नहीं होते तो मेरा क्या हाल हुआ होता…

मैंने कहा- अब घबराओ मत, इसके बाद तुम्हे बैंगन की जरूरत नहीं पड़ेगी…

ऐसा कह कर मैंने उसके लबों को चूम और चूस भी लिया… यह कहानी आप ////.live पर पढ़ रहे हैं।

उसने कहा- अब मलहम लगा दोगे प्लीज…

फिर क्या ५ दिन तक उसके पति के ऑफिस जाने के बाद और आने से पहले मैं मलहम लगाने जाता रहा… 5 दिन के बाद चेकअप करने के लिए मैंने हरीश से वक्त लिया… उसने दोपहर को लंच टाइम में आने को कहा।

मैं और मीरा समय पर पहुँच गए… हरीश का छोटा सा क्लिनिक था…

उसने डॉक्टर आउट का बोर्ड लटकाकर हमें अन्दर बुला लिया। उसके बाद हरीश ने मीरा की सलवार उतारकर चूत चेक की और बोला- अरे वाह, तुम्हारी चूत तो अब बैंगन घुसाने के लिए एकदम तैयार है…

मीरा बोली- नहीं अब फिर नहीं करुँगी…

हरीश हंसकर बोला- ..जी, मैं हमारे बैंगन की बात कर रहा हूँ… यही तो हमारी फ़ीस है।…ऐसा कहते हुए हरीश ने उसके होंठ चूमते हुए मम्मे दबाने शुरू किये… मैं भी शुरू होगया… मैंने उसकी कमीज उतार कर ब्रा सरकाते हुए मम्मे चूसना शुरू किया.. उसकी चूत एकदम साफ और चिकनी थी… मुझे उस दिन की याद आई और मैंने सीधा उसकी चूत पर मुँह रख दिया… इधर मैं चूत और उधर हरीश मम्मे चूस रहा था..

मीरा अब गर्म होने लगी थी, मेरे मुँह पर चूत रगड़ते हुए… आह… उई माँ… उफ़… ईई… आह… आ… करने लगी।

तभी डॉक्टर ने मुझे हटाते हुए अपना मुँह चूत पर लगा दिया। मीरा एग्ज़ामिनेशन टेबल पर लेटी हुई थी.. मैंने अपने कपड़े उतार कर 8 इंच का लंड उसके मुँह में दे दिया। वो उसे मजे से चूस रही थी… अब डॉक्टर ने अपने कपड़े उतार कर उसकी चूत में लंड डाल दिया।

अब उसे और मजा आने लगा- …चोदो मुझे… जोर से… और जोर… से.. स…आह…उफ़…करो…राजा…चोदे मुझे… कह कर चुदने लगी.. उसकी आवाजें सुन कर डॉक्टर ने गति बढ़ा दी… वैसे ही उसने जोरसे मेरा लंड चूसना शुरू किया…

तभी हरीश ने लंड बाहर निकलते हुए उसका मुंह खीचते हुए लंड मुँह में ठूंस दिया… मैंने मौका पाकर मीरा की चूत पेलनी शुरू की। हरीश ने सारा माल उसके मुँह में डाल दिया और वो मजे से पीने लगी।

इधर मैं धक्के पे धक्के मारे जा रहा था.. इस बीच मीरा दो बार झड़ चुकी थी… मैंने जैसे ही गति बढ़ाई तो वो अपने हाथ से चूत मसलते हुए आह… और जोर चोद मुझे… मेरी प्यास बुझा… आह… उई…मर… गयी… इ इ… स…स…कहते हुए झड़ने लगी।

मैं अब चरम सीमा पर था, मैंने आख़िर के धक्के मारते हुए सारा माल चूत में डाल दिया।

कुछ देर बाद वो सामान्य हुई तो बोली- विनोद, तुमने तो सारा माल अन्दर डाल दिया ..अब गड़बड़ हो गई तो?

मैंने कहा- तो फिर यह डॉक्टर किस लिए है…

अब जब भी मौका मिलता है, हम हरीश के क्लिनिक में सेक्स का मजा लूटते हैं…

समाप्त
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O...............
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मेरी पहली अक्षतयोनि

मै अब 60 वर्ष के ऊपर का हो गया हूँ और भगवान की बड़ी कृपा रही है कि मुझे अभी तक कामुकता आकर्षित करती है। 21 वी शताब्दी के नए खुले वातावरण के भारत मे आज भी संभोग परमानंद देता है और काम क्रीड़ा के विविध आयामों का अनुभव प्राप्त होता रहता हूँ। मुझे,आज इस चोदन जीवन मे प्रवेश किये करीब 45 वर्ष हो गये है और विभिन्न उम्र की 70 से ज्यादा स्त्रियां(षोडशी से लेकर नानी दादी) इस सुखद व रमणीय यात्रा में मेरी सहयात्री रही है। मैं आज भी इन सबको नमन करता हूँ और उनके प्रति अनुग्रह का भाव रखता हूँ। मैं मूलतः किन्ही अन्य विषयों का लेखक हूँ लेकिन मैंने जब भी मैने वासना, कामुक जीवनशैली व यौन क्रीड़ा पर लिखा है, वह अपने जीवन और मेरे वातावरण में हुई सत्य घटनाओं को ही लिपिबद्ध किया है। वैसे तो एक लेखक को कल्पनाशील माना जाता है और वह अपनी कल्पना से कुछ भी चरित्र और घटना लिख सकता है लेकिन इस विषय मे कल्पना कर लिखने की क्षमता से मैं दरिद्र हूँ। आज जो लेखन प्रस्तुत कर रहा हूँ वह मेरे जीवन का पहला था। जैसे कोई अपना प्रथम प्रेम नही भूलता वैसे ही कोई अपनी पहली चुदाई नही भूलता है। मेरे जीवन की पहली स्त्री और पहली बार चुदाई के बारे में फिर कभी मन आया तो लिखूंगा लेकिन आज जिसके बारे में लिख रहा हूँ वह मेरी पहली अक्षतयोनि थी वह मेरी पहली कुंवारी थी। वह मेरी पहली कुंवारी लड़की थी जिसका कौमार्य मैंने भंग किया था। जैसा कि ऐसे आत्मकथ्यात्मक लेखन में होता है, पात्र व स्थान के नाम, दोनो ही काल्पनिक है।

यह घटना 1970 दशक के आखरी वर्षों कि है, जब मै ग्रेजुएशन कर रहा था। मेरे यूनिवर्सिटी पहुंचते पहुंचते, मुझे स्त्री समागम व काम क्रीड़ा का अनुभव पहले से ही हो चुका था इसलिए एक छूटे सांड की तरह लड़कियों को पटाने व उनको चोदने की मानसिकता अंदर घर कर गई थी। मेरे अंदर यह वासनात्मक इच्छा तो थी लेकिन एक व्यवहारिक दिक्कत भी थी। मैं जिस शहर में रह रहा और पढ़ाई कर रहा था, वह कोई बड़ा शहर नही था। मै और मेरा परिवार, शहर में काफी जाना पहचाना हुआ था, इसलिए बिना पूरा भरोसा किये किसी से प्रणय संवाद या रोमांस के प्रति लालायित करना बड़ा टेढ़ी खीर था।

ऐसे में, मेरे ऐसे लड़को को अपनी लालसा के लिए अपने वातावरण के परिवेश में ही प्रयास करना पड़ता है। हम लोग जिस घर मे रहते थे उससे लगे हुए घर मे एक परिवार रहता था। परिवार में केवल पति पत्नी व एक छोटा बच्चा था और उनकी कुछ वर्षों पूर्व ही शादी हुई थी। वे लोग बहुत बढ़िया व मिलनसार लोग थे। इसी कारण, हमारे दोनों परिवार के बीच काफी घनिष्ठता थी। मै उन लोगो को भईया और भाभी कह कर संबोधन करता था। मेरे इन भाई साहब का ससुराल भी उसी शहर में ही था इसलिए उनके ससुराल के सारे सदस्यो का निरंतर आना जाना लगा रहता था। कालांतर में, उनके ससुराल के सदस्यों के साथ मेरे परिवार का भी काफी घुलना मिलना हो गया था। उनमे से एक लड़की थी, जिसका नाम सारिका था। वह भईया कि साली थी। भईया भाभी, सारिका के जीजा, दीदी थे। वह मेरी छोटी बहनो के साथ कि ही थी लेकिन स्कूल अलग था। जैसा कि उस काल के सामाजिक परिवेश होता था, दोनो ही घर में काफी आना जाना था और बाते भी होती थी। सारिका, मुझे भईया कहती और रक्षा बंधन में राखी भी बांधती थी। आज भी, मैं बड़ी सत्यनिष्ठा से कह सकता हूँ कि मेरे अंदर सारिका को लेकर कभी कोई वासनात्मक विचार नही रहा था। लेकिन जीवन में कुछ ऐसे क्षण सामने आजाते है, जहां व्यक्ति उस मार्ग पर चल पड़ता है जिस पर चलने की उसने कभी सोची भी नहीं होती है।

मेरे उस क्षण का प्रारम्भ होली के दिन से हुआ था। मै अपने दोस्तों के साथ होली खेलने के लिए अपने घर तैयार बैठा था और उन सबके आने की प्रतीक्षा कर रहा था कि तभी भईया के ससुराल वाले आगये। वे लोग भईया के यहाँ होली खेलने लगे और मेरे माता पिता व बहने भी, उन्ही के यहाँ, उन लोगो के साथ होली खेलने चले गए। वहां हुड़दंग होता देख कर, मैं भी औपचारिकता निभाने के लिए वहां चला गया। वहां देखा तो सब गीली होली खेल रहे थे तो मैं वहां से खिसक कर, बाहर बरामदे में आ गया क्यों कि मुझे अभी इतनी जल्दी भीगने का बिलकुल भी मन नहीं था। मै वही बरामदे में खड़े, बाहर गेट कि तरफ टकटकी लगाये हुये, अपने दोस्त का इंतज़ार कर रहा था कि तभी मेरे ऊपर किसी ने पीछे से रंग कि पूरी बाल्टी डाल दी। अचानक हुई इस घृष्टता से मै अचकचा गया और क्रोध से पीछे मुड़ कर देखा तो सारिका खी खी खी कर के हंस रही थी और चिल्ला रही थी, 'भईया होली है! बुरा न मनो होली है'! मेरा बहुत तेज़ दिमाग ख़राब हुआ लेकिन खिसिया कर हंस भी दिया, आखिर होली है, कब तक मै सजा धजा बचा रहूंगा! मैंने हंसते हुए कहाँ,

''सारिका यह तो बदमाशी है, थोडा रंग लगा देती, मुझे पूरा गीला कर दिया और अभी ठीक से दिन भी नहीं शुरू हुआ है! चल अब तेरी खैर नहीं"

सारिका मुझे चिढ़ाती हुई, हंसते हुए अंदर भाग गयी। उसके जाने के बाद, मैं अपने हांथो में बैगनी रंग लगा कर उसके पीछे गया। मै बदला लेना चाहता था, उसको गंदी तरह पोतना चाहता था। मुझे आता देख, सारिका मेरा मनमंतुर समझ गई और इधर उधर भाग कर, छिपी जारही थी। आखिर में, मैंने उसको ड्राइंग रूम के बाहर वाले आंगन में दबोच लिया। वह न न न करती रही लेकिन फिर भी मैंने उसको जकड़ कर, उसके चेहरे पर रंग पोत दिया। मैंने जब उसको छोड़ा तो वह पक्की भूतनी लग रही थी। मैं उसकी दशा देख कर हंसने लगा और पलट कर चल दिया। तभी पता नही कहाँ से उसने रंग निकाला और पीछे से आकर मेरे मुँह पर रंग लगाने के लिए उचकी। वो ठीक से रंग लगा भी नही पाई थी की इससे पहले ही मैंने उसको पकड़ लिया और उसके ही हाथो से उसका चेहरा रंग दिया। इस छीना झपटी में वह जब कसमसाने लगी तो मैंने उसको दीवार के सहारे सटा दिया। उसी क्षण कुछ ऐसा हुआ की मैंने अपने शरीर का भार उस पर ड़ाल कर उसे दीवार पर पूरी तरह से चिपका दिया और उसकी चुचिया मेरे सीने से लग कर, दब गई। तभी मेरी आँखें उसकी आँखों से मिली और मैंने हलके से उस पर अपनी पकड़ छोड़ दी। सारिका, वही दीवार के सहारे खड़ी रही और उसने अपनी आंखे झुका ली। मैं, जब उसको ऐसा चुप देख कर अलग हुआ, तो न जाने किस उन्माद में, मैंने उसकी चुचियो को मसल डाला। मेरी इस दुस्साहस पर वह चिहुंक उठी और वहां से भाग, अंदर घर मे चली गई। मैंने सारिका के साथ घृष्टता तो कर तो दी लेकिन जब अपने किये गए कृत का इन्द्रियबोध हुआ तो मेरी हालत ख़राब होगई। मैं डर गया था। सारिका कहीं किसी से मेरी शिकायत न कर दे, यह सोंच कर चिंतित हो उठा था। मैं, उसके बाद घर से ऐसा निकला कि 3 बजे ही लौटा, जब सब नहा धो, खाना खा कर, थक कर सो गए थे।

होली की पूरी शाम मेरे लिए बड़ी यातनापूर्ण थी। जब भी कोई फोन आता या घर आता तो यही खटका लगा रहा कि कोई मेरी शिकायत करने आया है। इसी यंत्रणा में जब 2/3 दिन गुजर गए और किसी ने सारिका के साथ जो मैंने किया था, उस पर कोई बात नही की तो मैं समझ गया की सारिका ने होली वाले दिन में जो हुआ, उसके बारे में किसी को नहीं बताया है। मैं अब सारिका को लेकर आश्वस्त हो गया था और उसके मौन से मेरी हिम्मत खुल गयी थी। सारिका का अपने जीजा और दीदी के आना बराबर बना हुआ था लेकिन एकांत में उससे बात करने का मुझे कोई अवसर नही मिल रहा था। कुछ दिनों के बाद, सारिका मुझे अकेले में मिल गई। वह अपनी दीदी से मिलने, सीधे स्कूल से चली आयी थी लेकिन भाभी घर पर नही थी। सारिका, घर मे ताला पड़ा देख कर मेरी छोटी बहन से मिलने मेरे घर चली आई थी। उस वक्त मेरी बहन, स्कूल से आकर, बाथरूम में मुँह हाथ धो, कपडे बदल रही थी। सारिका मुझे कमरे में अकेले खड़ी हुई मिल गई। मैंने पीछे से आकर उसकी पीठ पर अपना हाथ रक्खा और पीछे से ही उसकी गर्दन पर ओंठ रख, चूम लिया। मेरे पीछे से आकर ऐसा करने से उसके मुंह से चीख निकल गई। उसने हड़बड़ा कर पीछे देखा और मुझ को वहां खड़ा पाकर कहा,

"भैया क्या है! यह सब म़त करिए, क्या कर रहे है! कोई देख लेता तो?'

मैंने वही पर, उसका मुंह अपनी तरफ पूरा मोड़ कर, उसके ओठों पर अपने ओंठ रख दिये और एक हाथ से उसकी स्कूल ड्रेस वाली ब्लाउज के उपर से, उसकी बड़ी हो रही कड़ी कड़ी चुंचियो को दबाने लगा और साथ में, 'आई लव यू' 'आई लव यू' बोलने लगा। वह एक दम से घबड़ा गई और उसकी आंखें फैल गई। वो छटपटा रही थी और उसकी चौड़ी होती हुई आंखे, बराबर मेरी बहन की आहट में, दरवाजे की तरह बार बार देख रही थी। मैं करीब1 मिनट तक उसके ओंठो और गालों को चूमता रहा और उसकी चुंचियो को ऊपर से ही सहलाता रहा। मेरा शरीर पीछे से उससे सटा हुआ था। मेरा पैंट के अंदर खडा होता हुआ लंड, उसकी स्कर्ट के ऊपर से उसके चूतड़ों पर रगड़ रहा था। मैने ज़ब उसके ब्लाउज के अंदर हाथ डाल कर उसकी चुंचियो को छूने की कोशिश की तो वो मुझसे अपने आप को छुड़ा कर भाग गई।

इसी तरह मुझे ज़ब भी मौका मिलता, मैं उसको एकांत में छेड़ देता और अवसर मिलने पर, उसके ओंठो को चूम लेता और वयस्क हो रही चुंचियो से खेल लेता। सारिका ने उस दिन के बाद से कभी भी मुझे नही रोका, वह बस किसी के आजाने या देख लेने के प्रति सशंकित रहती थी। कुछ ही महीनों में सारिका, धीरे धीरे मुझ से और भी खुलने लगी। अब सिर्फ मैं ही एकांत के अवसर नही ढूंढता था बल्कि सारिका भी ऐसे अवसरों की उपलब्धता के प्रति सचेत व उसकी प्रतीक्षा करती थी। एक दिन ऐसा भी अवसर हाथ लगा की मुझे उसके साथ थोड़ा ज्यादा समय एकांत मिल गया। उस दिन, मैंने पहली बार उसके स्कूल ड्रेस के ब्लाउज को ऊपर कर के, उसकी चूंचियों को बाहर निकाल कर चूसा। उसकी अल्हड़ चूंचिया बहुत ही कड़ी और मस्त थी। मेरे पहले ओंठ थे जिन्होंने उसे चूसा था। उसके घुंडीया बड़ी नोकीले व उसकी चुंचियो में काफी भराव था। मेरे उस चूसने से सारिका सिसयागयी और बदहवास सी हो गई थी। मैं जितना ज्यादा से ज्यादा उसकी चुंचियो को अपने मुंह मे समेट कर चूसने का प्रयास कर रहा था उतना ही उसकी गर्दन टेढ़ी होती जारही थी और अपने हाथों से मेरे मुँह को उसकी चुंचियो से हटाने का प्रयास कर रही थी। लेकिन मुझ पर उसका कोई प्रभाव नही पड़ रहा था। मैं एक हाथ से उसकी एक चुंची को दबा और उसकी घुंडीयों को रगड़ रहा था तो दूसरी चुंची और उसकी घुंडी को चूस रहा था। मै कोई 1 वर्ष बाद किसी लड़की के साथ, इस अवस्था तक पहुंचा था, इस लिए मेरे दिमाग में केवल उसको चोदने के आलावा कोई भी बात नही घूम रही थी। मैंने उस दिन अपने हाथ उसकी स्कर्ट के अंदर भी डालने का प्रयास किया था लेकिन उसने मेरे हाथ पकड़ लिये थे। समय ज्यादा न होने के कारण मैने भी कोई उससे कोई जिद्द नही की। उस दिन के बाद से जब भी मौका लगता था सारिका, मुझ को अपनी चूंचियों से खेलने देती और मै भी पैंट के ऊपर से ही अपने लंड को उसकी स्कर्ट के ऊपर से ही उसके चूतड़ों और उसकी चूत पर रगड़ देता था।

एक दिन वह अपने जीजा और दीदी के यहां आई तो मेरे घर मे नौकर के अलावा कोई नही था। मुझे यह मालूम था कि अभी कुछ समय तक मेरे घर मे कोई नही होगा तो मैं भईया के घर चला गया और सारिका को मेरे घर आने का इशारा किया। सारिका 10 मिनिट बाद मेरे घर आई तो मैंने उसे बताया कि अभी कोई घर वापस नही आएगा और उसे मैं खींच कर, स्टोर रूम में ले गया। मैंने स्टोर रूम की लाइट नही जलाई थी, उसे उस अंधेरे में ही गले लगा कर चूमने लगा। मैने उसका ब्लाउज और ब्रा ऊपर कर के उसकी चुंचियो को निकाल लिया और अपनी जीभ उस पर घुमाने लगा। वो मेरी तरह पूरी तरह वासनामय हो चुकी थी। तभी मैंने अपनी पेंट की जीप खोल कर लंड निकाल लिया और उसके हाथ पर रख दिया। वहां अँधेरा था इसलिए जब मैंने उसका हाथ पकड़ कर उसको अपने लंड पर ले जाने लगा तो कोई झिझक नही दिखाई लेकिन जैसे ही उसने अपने हाथ में मेरा लंड महसूस किया तो वो कूद पड़ी। भरी जवानी का मेरा भन्नाया लंड, बिलकुल सख्त और गर्म था। एक बारगी तो सारिका ने अपना हाथ ही लंड हटा दिया था, फिर बड़ी मुश्किल से मैने उसे मनाया और उसके हाथ को पकड़ कर, अपना लंड को पकड़ा दिया। जैसा की मेरा अनुमान था, जैसे जैसे मै सारिका को चूमने और उसकी चूंचियों को दबाने लगा, वह भी मेरे लंड को अपनी उंगलियों से आहिस्ते से दबाने लगी। उस दिन से बाद से सारिका का लंड से डर खत्म हो गया और मौके बे मौके वो मेरे लंड को कभी पैंट से निकाल कर या ऊपर से ही सहलाने लगी थी।

मेरे और सारिका के बीच हो गए इस प्रणय सम्बंध को करीब 7/8 महीने हो चुके थे और एक दिन वह अपनी दीदी से मिलने उनके आई। वह रविवार का दिन था और मेरी बहनों के स्कूल का वार्षिकोत्सव था। उस समारोह को देखने मेरे घर के सभी लोग गये थे। सारिका जब आई तो वह मुझे घर के बाहर गेट पर ही मिल गई। मैंने इशारे से उसको अपने पास बुलाया तो वह बोली,

''दीदी के पास जा रही हूँ''।
मैंने कहा,
'बाद में मिल लेना, अभी यहाँ आजाओ''।

वह एक बार रुकी, इधर उधर देखा और तेजी से वह अन्दर आगई। वह जब अंदर आगई तब मैंने सारिका से कहा,
"आज कोई नहीं है घर पर, सब स्कूल के वार्षिकोत्सव में गए है और नौकर भी गांव गया है"।

मैने उसके बाद, आगे बढ़ कर जब सिटकनी लगा कर दरवाजे को बन्द किया तो सारिका थोडा सा घबडा गई थी। मैंने उसको हिम्मत देते हुये उसकी पीठ सहलाई और उसके गालों को चूम लिया। कुछ पलों बाद उसकी घबड़ाहट कम हो गई और मेरी बाहों में झूल गई। मैंने उसके ओठों को अपने ओठों में ले लिया और उन्हें आहिस्ता आहिस्ता चूसने लगा। सारिका उस दिन टॉप और स्कर्ट पहन कर आई थी। मैं उसको अपनी बांहों में लेकर उसे अंदर अपने कमरे में ले गया और अपने बिस्तर पर बैठा दिया। मैं आज, एकांत को लेकर इतना आश्वस्त था कि मैं बड़े इत्मीनान से बारी बारी से उसके गालो, ओठों, गर्दन, माथे और कानो का चुम्बन ले रहा था। मैं एक हाथ से उनको कंधे को जकड़े था और दूसरे हाथ से उसकी टॉप ऊपर कर रहा था। उसकी टॉप ऊपर होने पर, उसकी चुंचियो को बाहर निकालने की जगह मैंने आज, पीछे ऊँगली डाल कर, उसकी ब्रा का हुक भी ख़ोल डाला। सारिका जानती थी कि आज घर पर कोई भी नहीं हैं इसलिये उसने उसकी ब्रा खोले जाने पर मुझे नही रोका।मैं उसकी नग्न चुचियों को दबाने और चूसने लगा। उसकी चुंचिया मेरे स्पर्श से और तन गई थी। मैं उसकी जमुनिया घुंडीयों को अपनी उंगलियों के बीच लेकर रगड़ने लगा। बहुत प्रतीक्षा के बाद, सारिका उस स्थिति में मिली थी जिस स्थिति की कल्पना कर के मैं मुट्ठ मारता रहता था। सारिका के अछूते नग्न शरीर का सान्निध्य, मुझे काम पीड़ा से जला रहा था। मेरा धैर्य जवाब दे रहा था और अंडरवियर में बन्द मेरे लंड की हालत भी ख़राब हो रही थी।

हम लोगो को इससे पहले कभी भी इतना सुकून से मौका नहीं मिला था इसलिये किसी प्रकार का विघ्न पड़ जाने का बोझ भी नही था। सारिका मेरे बगल में, कमर से ऊपर नंगी, मुझसे चिपकी बैठी थी। वो मेरे हाथों से दब रही चुंचियो और मेरे ओंठो से चूसे जारही घुंडीयों पर पूरी मादकता में कामुक स्वर निकाल रही थी। उसकी आवाज़ में भर्राहट थी और जब भी मेरे ओंठ उसकी घुंडीयों को कस के चूसते या मेरी उंगलियां उनको रगड़ती, वह सिसक जाती थी। सच यह था कि वासना के मद में हम दोनों ही अपनी चेतना खो रहे थे। मैंने अपनी बुशर्ट और बनियाइन उतार दी और अपने नंगे सीने को उसकी नंगी चुंचियो से चिपका कर रगड़ दिया। मैंने अपनी अब अपनी पैंट कि ज़िप को खोल कर अपना लंड निकाल लिया और उसके हाथ में उसे रख दिया। सारिका ने मेरी तरफ अधखुली आंखों से देखा और उसे ऊपर नीचे कर के सहलने लगी। हम दोनों एक दूसरे से चिपटे हुए, एक दूसरे को चूम चाट रहे थे की मैंने हिम्मत दिखाते हुए अपना दाहिना हाथ, पहली बार उसकी जांघो को सहलाते हुये स्कर्ट के अंदर डाल दिया। मेरे ऐसा करने पर वो सिहर कर मुझसे कस के लिपट गई और बोली," प्रशांत भैया! मत करो प्लीज"! मैंने उसके अगले बोल, उसके ओंठो पर अपने ओंठ रख कर बंद कर दिए और मेरी उंगलिया उसकी चूत को पैंटी के उपर से छूने लगी। सारिका कसमसाई और थोडा असहज हुई तो मैंने उसको कस के ओंठो को चूमते हुए, बिस्तर पर जोरे देकर लेटा दिया। उसके लेटने पर उसकी स्कर्ट उपर हो गई और उसकी सफ़ेद पैंटी दिखने लगी। मैंने उसको जोर से अपने शरीर से चिपटा लिया और अपना हाथ उसकी पैंटी में ड़ाल कर, उसकी चूत को अपने हाथ से दबा लिया।

वह अपनी दोनो जांघों को दबाते हुए, एक दम से मुझसे कस के चिपक गई। उसकी चूत पर हलके से बाल थे और वह बिलकुल गर्म हो रही थी। मेरी उंगलियां उसकी कुंवारी चूत के अंदर जाने का प्रयास कर रही थी, जो बिल्कुल कसी हुई थी। मेरी उंगली उसकी चूत की फांको को फैला, ज्यादा नही घुस पारही थी लेकिन उसने चूत के अंदर के गीलेपन को जरूर महसूस कर लिया था। मैंने उंगलियों से उसकी पैंटी को नीचे करनी चाही तो उसने कांपते हुई आवाज़ में मुझसे कहा,

''भैया यह म़त कीजिये, कोई आ जायेगा।"

मैंने उसे पुचकारते हुये कहा,

''कोई नहीं आयेगा सारिका, बार बार ऐसा मौका नहीं मिलता है। मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और जानता हूँ कि तुम भी मुझको बहुत प्यार करती हो। प्लीज सारिका आज मत रोको।"

इतना कह कर मैं उसकी चूत को रगड़ने लगा। उसके मुंह से ओह! ओह! उफ्फ! की आवाजे निकलने लगी थी और उसकी आँखे मुंदी जारही थी। उसने आकुल हो कर, विचलित सी आवाज मे कहा,

''कुछ और म़त करना भैया।"

मैंने उसकी चूत को सहलाते हुये पुछा,

''और क्या नहीं करना है?"

वह लजा गई और अपना मुँह मेरे सीने में छुपा लिया। मैंने अब उसकी चूत में आहिस्ते से दबाव बना कर, अपनी ऊँगली ड़ाल दी और वह जोर से झिटक गई। मैंने उसको फिर अपने अंदर समेटते हुये, धीरे से उसके कान में फुसफुसा कर फिर वही सवाल पूछा, तो उसने सुगबुगाते हुये कहा,

''वही जो दीदी करती हैं।''

उसके उत्तर से मैं मस्ती में आगया और पूंछा,

''तुमने क्या दीदी को करते हुए देखा है?''

उसने जब सर हिलाकर हां कहा तो यह देख कर मै आवेशित हो गया और कस कर उसकी चुंचियो को चूसने और चूत को रगड़ने लगा। वह अब निढाल होकर, मेरे हर हरकत का आँख बंद कर के आनंद लेने लगी थी। वो कामुकता के ज्वार में बही जारही थी। मैंने तभी मौका देख कर अपनी पैंट और अंडरवियर एक साथ उतार दिया और अपने नंगे शरीर को सारिका से लिपटा लिया। मेरे नग्न शरीर की गर्मी उसको लगी तो उसने एक क्षण के लिए अपनी आंखे खोली और मुझे नंगे देख, उसकी आंखें फटी की फटी रह गई। मैं पहला पुरुष था जिसको उसने संपूर्ण रूप से नग्न देखा था। सारिका ने मेरी नग्न काया देख कर अपनी आंखें मूंद ली थी। मै उसको सहलाते हुये अपने हाथ नीचे ले गया और जब तक वह उठ कर मना करती मैंने उसकी पैंटी को खींच कर उसकी टांगो से बाहर निकाल दिया। उसकी नंगी जांघे और जरा से बालो से अधछूपी नंगी चूत देख कर मै अपने को रोक नहीं पाया और उसके उपर चढ़ कर, अपने शरीर को सारिका के शरीर से रगड़ने लगा।

हमारे शरीर आपस मे रगड़ रहे थे। मैं साथ में उसको चूमता भी जारहा था, मेरे हाथों से उसकी चूंचियां मसली जारही थी। मेरा लाल सुपाडे का गर्म लंड, उसकी चूत और जांघों से रगड़ खा रहा था। उतेजना में, मेरे लंड से मदन रस निकल रहा था जो उसकी जांघों पर लसा जारहा था। सारिका, मेरे लंड के गर्म व गीले स्पर्श से बावरी हुई जारही थी। उसके मुँह से लगातार सिसकारी निकलने लगी थी। मैने उसकी यह हालत और संपूर्ण समर्पण देख कर, उसकी स्कर्ट का हुक खोल दिया और उसके शरीर से अलग कर दिया। मैं जब उसकी स्कर्ट उतार रहा तो वह रोक रही थी लेकिन उसके रोकने का प्रयास बिल्कुल आलस्य वाला था। मैंने अब ज्यादा विचार करने और प्रतीक्षा किये जाने पर विराम लगाया और उसकी टांगो की बीच घुस कर अपने लंड को उसकी चूत पर रख दिया। वह मेरे लंड का सुपाड़ा अपनी चूत पर पाकर बिदक गई और मेरे नीचे से निकलने की कोशिश करने लेगी और साथ कहती जा रही थी,

'' भैया यह म़त करो! में मर जाऊंगी!''

मैंने उसको कंधे से बिस्तर पर दबा, शरारती स्वर में उससे पुछा,
''क्या नहीं करू?"

सारिका बोली,

''आप जानते हो भैया, प्लीज आगे मत करो।''

मैंने थोडा सा ठील देते हुये उससे कहा,

''बोलो ना सारिका, मेरी कसम।''

तब उसने लजाते हुये कहा,

''जीजा जी, जो दीदी के साथ करते हैं।''

मैंने कहा,

''मालूम हैं, उसे क्या कहते हैं।''

उसने कहा,

''सेक्स।''

उसका उत्तर सुन कर मैंने उसे कस के चिपका लिया और कामुक स्वर में कहा,

''उसको चुदाई कहते हैं, जो हर प्यार करने वाला करता हैं।"

इसके बाद मैंने अपना लंड उसकी चूत से हटा लिया और उसकी नाभि और पेट को चूमने लगा। वह अब शांत हो कर, आंख बंद करके लेट गयी थी। उसको सहज होता हुआ देख मेरी थोड़ी हिम्मत बढ़ी और उसके पैर फेलाकर, उसकी चूत पर अपना मुँह रख दिया। जैसे ही मैंने अपनी जीभ से उसकी चूत को चाटा, वो ईईईईईईए छीछी कर के चिल्ला पड़ी। मैंने उसको अनसुना कर दिया क्योंकि मुझमें चूत चूसने की प्रवृत्ति नर्सीगिक रूप से थी। मुझे चूत की महक उसका स्वाद, उसका अपनी जीभ पर स्पर्श , भावविभोर कर देता है। मैंने उसकी चूत को चाटना शुरू कर दिया और अपनी जीभ को उसकी कुंवारी चूत में डाल कर अंदर की मांसलता के स्पंदन को अपनी अंतरात्मा में संग्रहित करने लगा था। सारिका की चूत, मेरी पहली कुंवारी चूत थी, जिसका रसास्वादन मै कर रहा था। उसकी गमक मेरे नथुनों से अंदर तक समां गयी थी। मेरी जीभ जब उसकी भगांकुर(क्लिट) को रगड़ रही थी तब उसके पैर बिलकुल ही ढीले पड़ गये थे। मैंने तब उसके चूतड़ों के नीचे तकिया लगा दिया, जिससे उसकी चूत उपर उठ कर, सामने आगई थी। मैं अपने लंड और सुपाडे पर निविया की क्रीम लगाकर, उसकी चूत पर रख कर, उसके भगांकुर पर रगड़ने लगा। तब उसने कहा,

''भैया, इसको अंदर म़त करना, बहन हूँ, राखी बांधती हूँ।"

सारिका ने एक ऐसी भावनात्मक बात कह दी थी की एक क्षण मेरे अंदर का संस्कारी पुरुष जागृत हो गया था लेकिन दूसरे ही क्षण मेरे अंदर का प्रकृतिस्त्व आदम का कामोन्माद, संस्कार पर भारी पड़ गया और मैने अपना लंड उसकी चूत पर रगड़ते हुए, उसको पुचकारते हुए कहा,

'सारिका, तुम मेरी सबसे प्यारी बहन हो। हम दोनों एक दुसरे को प्यार करते हैं। ऐसा तो कई बहिन भाई करते हैं।" फिर उसकी दोनो आंखों को चूमते हुये कहा, "सारिका मेरी जान, इतने दिनों से हम लोग भी तो, इसके अलावा सब कुछ कर रहे थे।"

फिर, मैंने उसका एक हाथ अपने लंड पर रख दिया और उसकी संवेदनशील घुंडीयों को चूसने लगा। मेरे लंड से मदन रस निकल रहा था और सुपाड़ा क्रीम और मदन रस से गिला हो गया था और वह उसके हाथ में लगने लगा था। मै थोडा उठा और बिस्तर पर पड़े अंडरवियर से उसका हाथ पोछ दिया। उसके बाद अपने लंड पर फिर क्रीम लगाई और ऊँगली से उसकी चूत में भी लगा दिया। अब तक उसका और मेरा दोनो का ही हाल बेहाल हो चुका था। मैंने उसका चेहरा अपने दोनो हाथों में ले लिया और बोला,

''सारिका, मेरी प्यारी बहन, आई लव यू।"

उसके तुरंत बाद मैं सारिका के उपर आगया। मैंने उसकी टांगो को फैला दिया और अपना लंड उसकी चूत की फांको के बीच घुसेड़ने लगा, तभी सारिका बोली,

''भैया कुछ गड़बड़ तो नहीं होगी?"

मैंने कहा,

"नहीं! मैं बाहर निकाल कर झाड़ दूंगा।"

और एक दम से लंड उसकी चूत में ड़ाल कर, तगड़ा धक्का मार दिया। वह एकदम से चिल्लाई

"मम्मी!!!!! "मर गई"!' ''प्रशांत! भैया निकल लो! अब छोड़ दो!"

लेकिन मैंने बिना ध्यान दिए 3/4 धक्के मार कर उसकी चूत में आधा लंड डाल दिया। उसकी कुंआरी चूत अब अक्षत नही रह गई थी। मैं उसका प्रथम पुरुष बन चुका था। मैं अपनी मिश्रित भावनाओ को संजोए हुये उस पर लेट गया और उसको चूमने लगा। उसकी आँखों में आंसू थे। मै उसको सहलाता रहा और संतावना देता रहा की अब सब ठीक हो जायेगा। उसको पुचकारते हुये मैं फिर से उसे धीरे धीरे चोदने लगा था। वह अब भी वह दर्द में थी लेकिन मैं उसकी चूत में घक्के मारता रहा। सारिका मुझसे कस के चिपटी रही और रोते होए बोलती रही,

''भैया अब बस कर दो! निकाल लो अपना, फिर कर लेना।"

लेकिन में उसको चूमते हूए, उसकी चूचियों को चूसते हुए चोदता रहा। कुछ देर के धक्कों के बाद, सारिका भी शांत पड़ गई थी। उसे अब दर्द के साथ रतिसुख की अनुभूति होने लगी थी। सारिका की चूत इतनी तंग थी की मेरा लंड उससे हो रही घर्षण की गर्मी बर्दाश्त नहीं कर पारहा था। मुझे एक दम से लगा कि यदि मै अब नही रुका तो उसकी चूत में ही झड जाऊँगा। मैंने घबड़ा कर, जल्दी से अपना लंड उसकी चूत से निकाल लिया और मुट्ठ मारते हुए उसके पेट पर अपना वीर्य गिरा दिया। मैं जब झड़ रहा तो मुझे परमानंद की अनुभूति हो रही थी, वही पर सारिका अपनी तंग चूत में फंसे लंड के निकलने और मेरे बाहर झड़ने से सुगम हो चुकी थी। मैंने देखा की सारिका की चूत से बड़ा हल्का सा खून निकला था, जिसे मैंने अपने अंडरवियर से ही पोंछ दिया। वह जब उठने लगी तब मैंनें उसको चिपका कर खूब प्यार किया। हम दोनों ऐसे ही पड़े रहे और थोड़ी देर में दोनों की ही सांसे स्थिर हो चुकी थी। मैंने सारिका से कहा,

"देखा पगली तुम बेकार डर रही थी। थोड़ा दर्द पहली बार मे होता ही, अगली बार कोई दिक्कत नही होगी।"

उसने मुझे कोई उत्तर नही दिया, बस मेरे सीने पर अपनी उंगलियां चलती रही। मैंने फिर उससे पूछा,

"सारिका, तुम भी झड़ी? ओर्गासम हुआ?"

इस पर उसने अपना मुँह फिर मेरी बाँहों में घुसेड दिया और मुझसे कहा,

''भैया, किसी को यह पता नहीं चलना चाहिए।''

मैंने उसके माथे पर चुम्बन देते हुए कहा,

''पागल हो क्या?तुम मेरी बहन हो और यह भाई बहन का प्रेम, हम दोनों के बीच ही रहेगा"।

उसके बाद हम दोनों ने, बिस्तर से उठ कर अपने अपने कपडे पहने, मुँह धो कर, बाल ठीक किये और दरवाजा खोल बाहर कर जाते समय, कस कर, एक दुसरे से गले मिले। मैंने उसका एक चुम्बन लिया और दरवाजा खोल दिया। मैने इधर उधर देखा की कोई देख तो नही रहा है फिर आश्वस्त होने पर सारिका को अपने घर से बाहर निकाल दिया। सारिका भी बड़ी तेजी से मेरे घर से बाहर निकल गई और अपनी दीदी के घर की तरह न मुड़ कर, सीधे अपने घर को चली गई।

मैंने सारिका को करीब 15 बार चोदा होगा, लेकिन बाद में मेरे पिता जी का तबादला दूसरे शहर होगया और मेरी यह कहानी बंद होगई। बाद में वह कई वर्ष बाद इलाहाबाद में, भईया जी की भतीजी की शादी में मिली, तब उसकी शादी हो चुकी थी। वहां हम दोनों की आंखे मिली, एक झिझक आड़े आई लेकिन सामाजिक शिष्टाचार का निर्वाह करते हुए हम दोनों के बीच बातों का आदान प्रदान करने से नही रुके। पूरे कार्यक्रम भर हम दोनों ही एक दुसरे के प्रति सचेत रहे और अकेले में आमने सामने आने से कटते रहे।

मुझे उसे सूखी देख कर बड़ा संतोष हुआ लेकिन साथ मे मेरे दिल मे एक मीठी कसक भी उठी थी। यह शायद इसलिए था क्योंकि यह निर्वाद सत्य था कि वह मेरी प्रथम अक्षत योनि की स्वामिनी थी और मैं उसका प्रथम पुरुष था। मेरे लिए उसके प्रति मनोभाव विशेष थे। सत्य कहूंगा, एक कामुक लोभी पुरुष की भांति मेरे अंदर, उसको एक बार फिर पाने की इच्छा भी बलवंत हुई थी लेकिन मैं टैब ताज अपने को, अपनी नई खींची गई लक्ष्मण रेखा के भीतर बांध चुका था। मैंने उसे उन दो दिनों में कभी भी यह अनुभूति नहीं होने दी की मै एक बार फिर उसे चोदना चाहता हूँ।
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Heart 
पत्नी में मित्र की विधवा बहन और मैं

मैं जब करीब 20/21 वर्ष का हो गया था मुझे तभी इसका अनुभव होने लगा था कि मेरे जीवन मे आश्चर्यजनक रूप से लडकिया और स्त्रियां आने लगी है। एक तरफ यह स्वयं में दम्भ को पल्लवित कर रहा था तो दूसरी तरफ यह भी समझ रहा था कि जो भी हो रहा है वह असामान्य है। मैंने तब पहली बार अपने जीवन के कामुक पहलू को और अपनी यौन क्रीड़ा के जीवन पर गंभीरता से विचार किया। मुझे मेरा लड़कियों और स्त्रियों के प्रति आकर्षण तो समझ आता था लेकिन उनसे शारीरिक सम्बंध बनाने के जो अवसर मिल रहे थे उससे डर भी लग रहा था। मुझे लगा यदि मैंने इन सम्बन्धो को लेकर अपने कोई सिद्धांत नही बनाये तो मैं भावहीन, असैद्धान्तिक व मानवीय मूल्यों से दूर एक व्यक्तित्व बन जाऊंगा। मेंरे जीवन की गाड़ी कभी भी उलट सकती है और समाज मे कलंकित हो जाऊंगा। अब क्योंकि मैं एक प्रतिष्ठित परिवार से था, तो मान मर्यादा को लेकर ज्यादा ही सचेत हो गया था। मैंने उस उम्र में पहला सिद्धांत यह बनाया की किसी भी मित्र के परिवार की महिला से संपर्क नही बढ़ाऊंगा, दूसरा यह कि अपने मुहल्ले की कोई भी लड़की या महिला कितना भी संकेत दे, उससे दूर रहना है और तीसरा था कि जब विवाह होगा तो अपनी पत्नी की किसी मित्र या उसकी सहकर्मी से प्रगाढ़ता नही बढ़ाऊंगा। अब मैंने जीवन के 60 से ऊपर बसंत देख लिए है और ज्यादातर मैंने अपने द्वारा खिंची गई लक्ष्मण रेखा को पार नही किया है। लेकिन नियति भी कोई चीज़ होती है जो आपसे बार बार परीक्षा देने को कहती है। ऐसा ही कुछ अपवाद मेरे साथ भी हुये है जिसे यहां वर्णित कर रहा हूँ। अभी तक इस फोरम में उन घटनाओं को कहानी का स्वरूप दिया है जो दूसरों की सत्य घटना थी लेकिन आज पहली बार मैं स्वयं की एक सत्य घटना को कहानी के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह कहानी भी कुछ वर्ष पूर्व मैंने ब्लॉग पर लिखी थी लेकिन तब सत्य से स्वयं का वाचाल होना उद्देश्य न होकर, सत्य पर दुसरो को उत्तेजित करने वाली कहानी लिखना था। मेरी कहानी में सिर्फ नाम कल्पित है बाकी वैसे ही है, जैसा है और जैसे हुआ था।

मै एक शादी शुदा व्यक्ति हूँ और मेरी पत्नी का नाम श्वेता है। मैंने अभी तक वैवाहिक जीवन से बाहर की अपनी कामुक जीवनशैली को गोपनीय रक्खा हुआ है और सिद्धान्तानुसार मैंने, पत्नी के संपर्क में आई किसी भी महिला को अपने करीब नही आने दिया है, लेकिन फिर भी जीवन मे कुछ ऐसा हुआ की मन और तन दोनो ही फिसल गये। यह बात तब की है जब हमारी शादी को लगभग 20 वर्ष हो चुके थे। वैसे मुझे अपने वैवाहिक जीवन से कोई विशेष शिकायत नही थी लेकिन सफल वैवाहिक जीवन मे पति पत्नी के बीच सफल सहवास की जो अनिवार्यता होती है, उस को लेकर जरूर कमी थी। विवाह के बाद हमारे बीच यौन सम्बंध बड़े मधुर व अंतरंग था लेकिन बच्चे हो जाने के बाद उसका यौनिक क्रिया से मन उचाट हो गया और वह तटस्थ होती चली गई। इन्ही परिस्थियों के कारण मेरा मन विचलित रहता था।

एक दिन की बात है की जब मैं आफिस से शाम को लौटा तो पत्नी ने बताया की उसकी एक स्कूल/कॉलेज के ज़माने की मित्र मानसी(मैं उसे जानता था), जो अब अमेरिका में है, उसकी छोटी बहन मालविका दिक्कत में है। मानसी का मेरी पत्नी के पास अमेरिका से फोन आया कि मालविका जिसके पति की मृत्यु एक सड़क दुर्घटना में कुछ वर्ष पूर्व हो चुकी थी, उसे ससुराल वालों के व्यवहार के कारण उनका घर छोड़ना पड़ रहा है। उसके ससुराल वाले कलुषित लोग थे, जो विधवा बहु का ससुराल की पैतृक सम्पत्ति से बेदखल करने के लिए उसे कुछ समय से प्रताड़ित कर रहे थे। मानसी अमेरिका से तुरंत आने की स्थिति में नही है और उसके बूढ़े मां बाप व एक छोटा भाई भी अमेरिका में ही है इसलिये कल मालविका के साथ मार पिटाई हो जाने के बाद, उसका ससुराल का घर छोड़ना आवश्यक हो गया है।

मानसी ने मेरी पत्नी श्वेता से पूछा है कि क्या वह कुछ समय के लिए मालविका को अपने घर रख सकती है? श्वेता ने उसे आश्वासन दिया कि वो मुझसे विमर्श कर उससे बात करेगी। श्वेता ने मुझे मालविका के साथ हो रहे उत्पीड़न के बारे मे बताया और उसको, जब तक कोई और इंतज़ाम नही होता है, उसको अपने घर पर रुकवाने के लिए मुझसे पूछा। मुझे मालविका को अपने घर में कुछ समय के लिए प्रश्रय देने में कोई आपत्ति नहीं थी। 4 कमरों वाले घर मे सिर्फ हम पति पत्नी दो प्राणी के अलावा कोई नही था, हमारे दोनो बच्चे बाहर पढ़ रहे थे। श्वेता ने उसी रात, मानसी और मालविका दोनो से बात कर ली और उनको निश्चिंत रहने को कहा।

घर मे बच्चों के कमरे खाली ही थे इसलिए हम लोगो को कोई चिंता नही थी। श्वेता से बात कर के, मालविका ने अपना रिजर्वेशन करा लिया और अपना सामान एक छोटी लॉरी से हमारे यहां भिजवा दिया। मालविका को जिस दिन आना था उसी के एक रात पहले मेरे ससुर जो भोपाल में रहते है उनकी तबियत खराब हो गई। मेरे विधुर ससुर, भोपाल में मेरे साले के परिवार साथ रहते थे लेकिन जब उनको ह्रदयघात हुआ तब मेरा साला, जो मर्चेंट नेवी में है, वह एक आयल टैंकर पर ओमान के रास्ते मे था। संकट की इस घड़ी में श्वेता बड़ी असमंजस्य में थी। एक तरफ बुजुर्ग पिता आईसीयू में और दूसरी ओर उसकी मित्र की छोटी बहन उसी के निमंत्रण में उसके पास आने के लिए ट्रेन पर बैठ चुकी थी। मैंने श्वेता से कहा कि भोपाल में उसकी भाभी अकेले, अपने ससुर को देख रही है इसलिए उसे रात को मुम्बई जाने वाली किसी गाड़ी से भोपाल निकल जाना चाहिए। दो तीन दिन की बात है तब तक उसका भाई किसी पास के पोर्ट पर उतर, वापस आजायेगा,तब तक मैं मालविका को देखे रहूंगा। मैंने अपने आफिस के ट्रेवल एजेंट से एक 2nd ए सी में एक बर्थ का इंतज़ाम कराया और श्वेता को रात करीब 11 बजे भोपाल रुकने वाली ट्रेन पर बैठा दिया।

अगले दिन सुबह 8 बजे की ट्रेन थी और समय से मालविका को लेने पहुंच गया था। मैं उससे पहले कभी मिला तो नही था लेकिन उसके फोटो देख रक्खी थी, इसलिये उसे पहचानने में कोई दिक्कत नही आने वाली थी। ट्रैन समय से आधे घण्टे देर से आई थी और मैं उसके डब्बे के आस पास ही खड़ा इंतज़ार कर रहा था। ट्रैन रुकने पर कुछ लोगो के उतरने के बाद मैंने मालविका को ट्रेन से उतरता देखा और उसे पहली दृष्टि में ही पहचान लिया था। उसे पहचानने के बाद जो मेरी पहली प्रतिक्रिया थी वह अवाक रह जाने की थी। उसे साक्षात देख कर जाने क्यों मेरा दिल धक से रह गया। फोटो में जो मालविका दिखी थी उससे ज्यादा आकर्षक व्यक्तित्व की लग रही थी। वह अकेले ही आई थी, उसका एक बच्चा था वह देहरादून में किसी स्कूल में होस्टल में पढ़ता था। उसने उतर कर इधर उधर देखा और मेरे से आंख मिलते ही वह पहचान गई। वह मेरी तरफ बढ़ती, उससे पहले मैं ही उसके पास पहुंच गया। मालविका ने कोई श्रंगार नही किया था, उसके बाद भी उसका चेहरा दमक रहा था। उसको हल्की पीली साड़ी में लिपटे बिना बिंदी और सुनी मांग को देख न जाने क्यों मन बैचैन हो गया। मालविका 5'4" की लम्बी गौर वर्ण रंग की थी। तीखी लंबी नाक थी और उसके फिटिंग का ब्लाउस बता रहे थे की वह एक सामर्थ्यवान स्तनों की धारणी है। मेरी वह तुरंतम प्रतिक्रिया एक ऐसे पुरुष की थी जिसने हमेशा सुंदरता को सराहा है और स्त्री से उर्जित होते हुये यौन आकर्षण को सहेजा है। इसके बाद भी मुझे अपनी स्टेशन पर वह प्रतिक्रिया बड़ी अटपटी लगी और मैं अपने पर लानत भेजने लगा। मैने फिर अपने आप को नियंत्रित किया और मालविका को लेकर स्टेशन के बाहर निकल आया। हम पहली बार मिल रहे थे, वह भी बड़ी असाधारण परिस्थितियों में लेकिन फिर भी मालविका मुझे शुरू से ही बड़ी नमनीय लगी थी। उसने मेरे साथ गाड़ी मे बैठते ही गप्पे मारने शुरू कर दिये थे और बात करते करते हम लोग घर पहुंच गए थे। मैंने मालविका से उसके साथ ससुराल में हुई घटनाओं के बारे में कोई बात नही की क्योंकि मैं नही जानता था कि इसका मालविका की मॉनसिक स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ेगा। श्वेता से उसकी बात हो गई थी और कार में भी बैठने पर दोनो ने बात की थी इसलिए मेरे लिए कुछ विशेष कहने और सुनने को नही रह गया था। मालविका बड़े सहज भाव से हमारे घर मे रम गई और घर में काम करने आने वाले नौकर व नौकरानी से तारतम्य स्थापित कर लिया था। मुझे उन दिनों कुछ ज्यादा काम था इसलिये मैं मालविका पर ज्यादा ध्यान भी नहीं दे पारहा था। वह ज्यादातर समय अकेले ही रहती थी। करीब 1 हफ्ते बाद, जब पत्नी को वापस आना था, तब उसका फ़ोन आया, कि उसके पिता की तबियत अभी ठीक नही है और मेरा साला भी अभी अपने शिप से रिलीव हो कर ओमान के पोर्ट पर नही पहुंचा है। ऐसे में वह अपने भाई के इंतज़ार में कुछ दिन और भोपाल बने रहना चाहती है। मैं उसकी दुविधा समझता था। मैने श्वेता को आश्वस्त किया की यहाँ पर सब ठीक है, पर वह मालविका को भी बता दे और वह हमारी चिंता ना करे।


मेरी हर दूसरे शनिवार को छुट्टी रहती है लेकिन पुरानी फ़ाइल को निपटाने के लिए अक्सर ऑफिस चला जाता था। इस बार जब दूसरा शनिवार आया तो पूरे दिन ऑफिस में न बैठ कर घर जल्दी आ गया था। उस दिन फुर्सत थी इसलिए मालविका से इतने दिनों बाद खुल के बात चीत हुई। उससे जब बात कर रहा था तो मुझे यह समझ आया कि इतने दिनों घर मे बैठी बैठी मालविका ऊब सी गई है। मैने मालविका से कहा, तुम्हे घर मे कैद हुए काफी समय हो गया है इसलिये शाम को तैयार हो जाओ, मुझे कुछ सामान भी ख़रीदना है और इसी बहाने पास के माल में थोड़ा चहलकदमी भी हो जाएगी। मालविका ने पहले तो न नकुर की लेकिन फिर वह तैयार हो गई। हम दोनों माल मे इधर उधर की चीज़ देखते व खरीदते रहे और मैंने पाया कि जैसे जैसे माल में समय गुजर रहा था, मालविका की झिझक भी कम हो रही थी। हम लोग चौथे माले पर थे तब उसने एक फ़िल्म का पोस्टर देखा जो वहां चल रही फ़िल्म की थी। उसकी बातों से लगा कि उसे फ़िल्म का शौक है इसलिए मैंने मालविका से फ़िल्म देखने को कहा, वह पहले तो चौंकी लेकिन मेरे ज्यादा कहने पर, फ़िल्म के लिए तैयार हो गई।

हाल में जब फ़िल्म देखने अंदर गये तो मै मालविका को लेकर थोड़ा सचेत था। मैंने अपनी तरफ से थोड़ी दूरी उससे बना रक्खी थी लेकिन फिर भी अगल बगल की सीट में बैठे मेंरी कोहनी, उसकी कोहनी से रगड़ खा ही जा रही थी। यह बड़ी अजीब बात थी की उसका जरा सा स्पर्श मेरे लंड की धमनियों में रक्त का संचार कर दे रहा था। मुझे अपने पर शर्म भी आरही थी और पत्नी की मित्र की छोटी बहन के साथ कुछ गलत न कर जाऊं इसकी चिंता भी थी। मैंने आज तक जीवन मे अपनी कामुक जीवनशैली में श्वेता के दोस्तो और सहकर्मियों को नही आने दिया था। फ़िल्म के बाद हम लोगो ने वहीँ कुछ बेकरी का सामान खरीदा और घर पास में था तो पैदल ही चल दिये। मालविका ने टहलने जी जिद जी थी इसलिए ड्राइवर से गाड़ी नही मंगाई थी। हम दोनों सड़क के किनारे चल रहे थे और तभी कोई बात ऐसी निकली की वो मुझे अपने ससुराल द्वारा दी गई प्रताड़ना के बारे मे बताने लगी। उसकी बातें सुन कर बड़ा दुख हुआ और थोड़ा विचलित भी हुआ क्योंकि मैं इस विषय पर उससे बात करने को टालता रहा था। वह बात कर रही थी और मैं उसे संतावना दे रहा था। तभी आती हुई एक गाड़ी की रोशनी हमारे ऊपर पड़ी तो देखा उसके आंखे आंसुओ से भरी थी और आंसू की एक लकीर उसके चेहरे पर बिखर रही थी। उसका संतप्त चेहरा देख मैंने अनायास ही उसका हाथ अपने हाथो मे ले लिया। मेरे द्वारा उसका हाथ पकड़ने से मालविका उचक गई और उसने एक दम अपना हाथ, मेरे हाथ से छुड़ा लिया। इस घटना से मैं भी अचकचा गया था और इसके बाद हम दोनों, बिना एक दुसरे से कोई बात करे घर वापस आ गये। घर लौटने पर हम दोनों ही काफी थक चुके थे। एक तो हम लोग पैदल चले थे और दूसरा रास्ते मे हुई घटना का बोझ भी था।

मालविका मुंह हाथ धो कर, हम दोनों का खाना, डाइनिंग टेबल पर ले आई, जिसे हम लोगो ने बिना कोई विशेष बात किये खाया और फिर लिविंग रूम में टीवी देखने लगे। हम दोनों को ही एक दूसरे की तरफ देखने तक झिझक थी और कुछ समझ में भी नहीं आ रहा था। कमरे मे सिर्फ टीवी पर समाचार की आवाज़ आरही थी बाकी सब सन्नाटा था। तभी अचानक से मालविका उठी और बोली,
"मै काफी थक चुकी हूँ और अपने कमरे मै सोने जा रही हूँ।"
और वो ऐसा कहते हुए मेरे पास से गुजरी और मेरे सर के बालो को अपनी उँगलियों से रगड़ते बोली,
,"प्रशांत जीजा जी, सॉरी, मुझे ऐसे नही झटकना चाहिए था।" और उसने अपना मुंह नीचे कर के मेरे सर को चुम लिया।

मै सन्न गन्न सा रह गया! यह अप्रत्याशित था और उसका स्नेहवश किया गया चुम्बन मुझे अंदर तक विचलित व हिला गया था।

मैंने उसकी इस अप्रत्याशित व्यवहार पर, जब चौक के अपना सर ऊपर उठा कर देखा तो मालविका थोड़ा लजा गई और तेजी से अपने कमरे की तरफ चली गई। मैं वैसे तो स्त्री पुरुष के सम्बन्धो को लेकर काफी अनुभवी था लेकिन जो कुछ हुआ था वह बिल्कुल भी समझ नहीं आ रहा था। मै सोफे पर जड़वत चिपक गया था। समने टीवी चल रहा था लेकिन मेरे ह्रदय व मस्तिष्क में काम भावना ग्रसित हो चुकी थी। उसका मुझे सॉरी कहना और उसके ओठो का मासूमियत से मेरे सर को स्पर्श करना मुझे कामाग्नि में जला गया था। मेरा लंड जो मेरे ही द्वारा खींची लक्ष्मण रेखा के अधीन अब तक विवश था, वह एक दम से जाग्रत हो गया। मैं उसको अल्हड़ता से अपनी लोअर के भीतर बड़ा होता हुआ अनुभव कर रहा था।

मै कुछ देर वैसे ही बैठा रहा और अपने अंदर हो रहे भूचाल के धमने की प्रतीक्षा करता रहा लेकिन मन विचलित हो रहा था। मैंने फिर टी वी बंद कर किया और बिना कुछ सोचे-समझे, मालविका के कमरे की तरफ चला गया। कमरे में हल्की वाली लाइट जल रही थी और दरवाजा भी पूरी तरह बंद नही थे। मेरा ह्रदय अंजाने परिणामो को लेकर धक धक कर रहा था। मैं पता नही क्यों अपने को वहां से हटा नही पा रहा था। मैं जानता था की मालविका मेरी पत्नी की मित्र की बहन है और मुझ से 14/15 वर्ष छोटी है और यदि उसने मुझे इस हालत में, अपने कमरे के बाहर देख लिया तो घर की लंका में आग लग जायेगी। मुझे तभी अंदर कमरे से कुछ खटका हुआ तो मै वहां से हट जाने की जगह, आगे बढ़ गया और दरवाजे के पल्ले के अंदर से आरही रोशनी में अंदर झांकने लगा।

मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था, कि मुझे क्या करना चाहिए या क्या नही, मै चुपचाप खड़ा रहा। तभी उसने हल्के खुले दरवाजे की तरफ देखा और उसकी आँखे मेरी आँखों से मिल गयी। मुझे उस वक्त ऐसा लगा जैसे सारा समय ही रुक गया है। मैं न हिल पाया और न ही मालविका ही अपने स्थान से हिली। मै इसकी प्रतीक्षा कर रहा था की वह कुछ मुझसे प्रश्न करेगी या कहेगी और मै कोई खटके की आई आवाज़ पर बहाना बना कर माफ़ी मांग लूंगा, लेकिन इन युग समान सेकेंडो में सिर्फ मौन ही शाश्वत रहा। हम दोनों ही बस जड़ बने रहे।

कुछ पलों के बाद मालविका ने मुझसे अपनी आंखों को फेर ली और सामने ड्रेसिंग टेबल के शीशे से हेयर ब्रश उठा कर अपने बाल सवारने लगी। उसकी इस चुप्पी ने मुझे अदम्य साहस दे दिया और मैं दरवाजे को हल्का धक्का दे कर कमरे के अंदर आगया। जब मैं दरवाजे को खोल अंदर कमरे में खुसा तो वह अब अभी भी अपने बाल सवार रही थी। उसने मुझे अंदर आते हुए, शीशे में देख भी लिया था। मै एक मादकता से अभिभूत उसके पास गया और कांपते हुए अपने शरीर को, उसके शरीर से चिपका दिया। पता नही वह कौन सी वासना का परिधान मेरे विवेक ने ओढ़ लिया था की मैंने अपनी दोनों बाँहों में उसको कमर से घेर कर, अपने से चिपका लिया था। मैंने शीशे में देखा की मालविका के दोनों हाथ, हैंड ब्रश के साथ उसके सर पर ही रुक गए थे। उसकी आँखे बंद थी। मैंने अपने वासना से ज्वलित ओंठो को उसकी गर्दन पर रख दिए और उसे कस के भीच लिया।

उसके मुँह से हल्की सी आवाज निकली,"जीजा जी!!" और उसने अपना चेहरा मेरी तरफ मोड़ दिया। उसकी आँखे अधखुली थी, होठ कांप रहे थे। मै थोड़ी देर उसके चहरे को घूरता रहा और अपने ओंठो को उसके ओंठो की तरफ बढ़ा दिए। हम दोनों के कांपते हुये होठ आपस मे जुड़ चुके थे और हम दोनों की गरम साँसे आपस मे मिलकर उस कमरे को कामुकता का सागर बना रहे थे। उस पल मेरा विवेक, मेरी अपनी स्वयं की बनाई गई, प्रतिबद्धता की दीवार ढह गई थी।

मैने एक व्यग्र प्रेमी की भांति उसकी ओंठो को चूमते, चूसते उसके मुँह के अन्दर अपनी जीभ डाल दी और मेरी जीभ की ऊष्मता में उसकी मुख के सभी स्पंदन चलायमान हो गए। वह अपने जीवन में वासना की पुनर्प्रविष्टि से अद्दाहलित हो चुकी थी और हम दोनों एक दुसरे के जीभ के साथ नूरा कुश्ती खेलना शुरू कर चुके थे। मैं इतना ज्यादा उत्तेजित और आवेग में आचुका था की मैने अपना हाथ, उसकी ठीली टी शर्ट में डाल कर, सीधे उसकी चूचियों को पकड़ लिया था। वो सोने जारही थी, उसने ब्रा नही पहनी हुयी थी। उसकी नग्न चूचियाँ मेरे हाथो पर आकर तेजी से फड़फड़ाने लगी थी। इतने वर्षों के बाद हुये एक पुरुष के स्पर्श से मालविका की चुचियो में गजब का कसाव आगया था। मैंने वैसे ही उसकी टी शर्ट को उसकी कंधे से नीचे की तरफ खीच दिया और मालविका ने भी अपने कंधो को नीचे झटकते हुए, उसे नीचे आने का कोई प्रतिरोध नही किया।अब उसकी दोनों चुंचिया स्वतंत्र थी और मेरी व्यग्र हथेलियों से मसली जा रही थी।

उसकी कई वर्षों से उपेक्षित चुंचियो को सहराते, दबाते, मसलते हुये,अब मैंने मालविका को अपनी तरफ घुमा दिया और उसको कसके अपनी बाहों में फिर से भर लिया। मै उसको ताबड़ तोड़ चूमे जारहा था की तभी उसने मुझे रुकने का इशारा किया और उसकी साथ ही उसने, अपनी कमर में लटकी हुई टी शर्ट को ऊपर से खीच कर, अपने बदन से अलग कर दिया। उसका ऊपरी बदन नग्न मेरे सामने था। जहां मेरे ओंठ अभी भी उसके ओंठो, गालों, आंखों और गर्दन को चूम रहे थे, वही दोनो हाथ उसके उफान लिए हुये चुंचियो को दबा रहे थे। मेरा दूसरा हाथ मेरा उसके लोअर पर चला गया और ऊपर से ही मै उसकी जांघों के बीच, बरसो से बिना चुदी चूत को ऊपर से ही सहलाने को आतुर होगया। मेरी उँगलियाँ जब उसकी टांगो के पास पहुंची तो मुझे पता चला की वह पैंटी भी नही पहने हुयी है। मैंने उसको अपनी छाती से चिपका लिया और उसकी लोवर को नीचे खीचने की कोशिश करने लगा। इधर मेरे लोवर के अंदर बंद मेरा लंड उन्मुक्त हो फड़फड़ा रहा था और मैं उसको, मालविका की जांघो पर कसके रगड़ने लगा था।

मेरा द्वारा उसकी जांघों पर लंड रगड़ने ने आग में घी का काम किया और मालविका छटपटा गयी। उसने उम्म! आह! कहते हुए अपना एक हाथ, मेरे लंड को पूरी तरह से अनुभव करने के लिए मेरे लोवर के अंदर डालने का प्रयास करने लगी। उसकी इस उत्कंठा से मै बिलकुल ही कामातुर होगया था। मैंने अपनी बाहों से उसको अलग कर, तेजी से अपनी लोवर को उतार फेंकी। उसी के साथ ऊपर पहनी हुयी अपर और बनियान को भी उतार डाला। मैंने इधर अपने कपड़े उतारे, उधर मालविका ने खड़े खड़े ही अपनी लोवर को नीचे खिसका दिया। अब हम दोनों बिलकुल नंगे खड़े थे और एक दुसरे की तरफ देख रहे थे। खुले हुये बाल और बोझल होती हुई आंखों को लिए वो मेरे सामने नग्न खड़ी थी। मैं उस के शरीर मे हो रहे कम्पन की अनुभूति को ग्रहण कर रहा था। मैंने आगे बढ़ कर उसके कंधों पर हाथ रख अपने सीने से लगा लिया। मालविका का नँगा बदन जब मेरे नग्न शरीर से चिपका तो ऐसा लगा जैसे कि मेरे लंड से चिंगारियां निकल रही हो। कुछ समय के लिए हम दोनों एक दूसरे को बाहों में लिए, नग्न, चिपके ही खड़े रहे। मैं उसके गालों, गर्दन , माथे आंखों और ओंठों को चूम रहा था और वह हर चुम्बन में सिसक रही थी। मेरे हाथ उसकी पीठ और नितम्बो को बार बार सहला कर, उसके होने को सत्य कर रहा था। उसने अपना चेहरा मेरी गर्दन में घुसा रक्खा था। मैंने एक हाथ उसकी थोड़ी पर रख उसके चेहरे को उठाया तो मुझे सिर्फ उसकी आंखें दिखी। ऐसा लगा जैसे उसकी काम रस से भरी हुई आँखे मुझे बुलावा दे रही है। स्त्रियोचित लज्जा ने मौन पुकार लगाई थी। मालविका का बरसों सहेजा बाँध, बह जाना चाहता था और मेरे द्वारा खींची गई लक्षण रेखा भी आज टूट जाना चाहती थी।

मैने उसको अपने दोनों हाथो मे उठा लिया और उसे बिस्तर पर ले जाकर गिरा दिया। मालविका बिस्तर पर करवट लेकर लेटी थी, उसका घुमा हुआ चेहरा, बालों से ढक गया और उसने अपनी जांघों को मोड़ रक्खा था। मैं भी बिस्तर पर चढ़ कर मालविका के बगल में आगया और उसकी नग्न काया को निहारने लगा था। जीवन मे कभी सोंचा नही था कि मालविका साक्षात आदम रूप में मेरे सामने ऐसे पड़ी होगी। मैने पहले तो उसके पैरों, जांघों, कमर, पेट और चुंचियो को सहलाया, फिर उसके शरीर के एक एक भाग को चुम्बनों की वर्षा से आच्छादित कर दिया। मैं उसकी जांघों के बीच में दबी उसकी चूत का रसास्वादन करना चाहता था लेकिन जब उस तक मेरे ओंठ पहुंचे तो उसके घुंघराली झांटो में वो उलझ कर रह गए। मालविका ने शायद विधवा होने के बाद, अपनी चूत पर ख्याल देना, छोड़ दिया था। मैं उसकी बालो से ढकी चूत पर अपनी नाक रगड़ कर उसकी मादक महक को आत्मसात करना चाहता था। तभी मालविका का हाथ मेरे सर पर आया और उसकी उँगलियान मेरे बालों में घुस गई। वो मेरे बालों को कस के खींचने लगी और जोर लगा मुझे ऊपर की तरफ खींचने की कोशिश करने लगी। मैंने अनमने मन से उसकी चूत से अपना सर उठाया और मालविका के चेहरे की तरफ देखने लगा। मुझे मालविका के चेहरे पर बदहवासी साफ दिख रही थी और शायद उसके तन में जो आग लगी थी वह उसकी तीव्रता में अपने को धुंआ धुंआ होते महसूस कर रही थी। मै, कोहनी के सहारे थोड़ा ऊपर आया और उसकी एक चूची को अपने मुँह मे लेकर चूसने लगा। मेरा दूसरा हाथ, उसकी दूसरी चुंची को दबा रहा था और मेरे उंगलियों के बीच उसके जमुनिया निपल्स, रगड़ खा रहे थे। उसकी चुंचियो से मेरी अठखेलियों ने मालविका को और बेचैन कर दिया। वो अपने हाथ पैर झटकने लगी और उसके मुंह से आआह, आआईईई, सीसीसी, उफ्फ, बससस के अलावा कुछ भी नही निकल रहा था। मालविका के दोनो हाथ मेरी पीठ पर थे और हर आवाज़ पर उसकी हथेलियां मेरी पीठ को रगड़ दे रही थी। उसके निप्पल्स बहुत संवेदनशील थे, जब भी मैं उनको अपने दांतो के बीच लेता या जीभ से छेड़ता, मालविका की उँगलियों के नाख़ून, मेरे शरीर पर धसने लगते थे |


मेरे ओंठ उसके सुदृढ चुंचियो को संभाल रहे तो मेरा एक हाथ एक बार फिर नीचे उसकी चूत पर पहुंच गया था। इस बार, मालविका ने हल्के से अपनी जांघों को फैला कर, मेरे हाथों को उसकी चूत पर अधिकार जमाने के लिए स्वतंत्र कर दिया। मेरी उंगलियां, चूत पर आवरण डाले घुंघराले बालो को हटा, चूत की फलको की बीच पहुंच गए। मैंने उंगलियों से चूत के ऊपर से सहलाते हुये जब अंदर घुसेड़ने का प्रयास किया तो वह उचक गई। मेरी उंगलियां उसकी चूत में हुए रिसाव से चिपचिपा जरूर गई थी लेकिन इतने बरसो से लंड के प्रवेश पर निषेध होने के कारण, चूत के द्वार तंग हो गए थे। मुझे यह अनुभव हो रहा था कि मालविका की चूत पर मेरी चहलकदमी ने उसे बहुत ही ज्यादा उत्तेजित कर दिया है क्योंकि अब उसका शरीर कामपीड़ा से काँप रहा था।

मालविका ने एक बार फिर मुझे मेरे सर के बाल पकड़ के, अपनी चूत से हटा कर ऊपर की तरफ खिंचा और वह स्वयं बिस्तर पर उठ बैठी और मुझे बेतहाशा चूमने लगी। जब उसके चुम्बनों का उफान कम हुआ तो मालविका मेरे सीने और निप्पल्स को चाटने लगी। उसने जिस ढंग से मेरे निप्पल्स पर अपनी जीभ चलाई थी उसने मुझे ही तड़पा दिया था। मालविका मेरे शरीर को चाटते चाटते, नीचे की ओर आने लगी थी और फिर बेधड़क होकर उसने अपने ओंठ मेरे लंड पर रख दिया। मेरा लंड पहले से ही बदहवास खड़ा था और मदन रस टपका रहा था लेकिन जब अचानक मालविका के ओंठों ने उसको चुम्बन दिया तो वो फ़नफना कर विहिल हो उठा। मेरा लंड चूमने के बाद मालविका ने आहिस्ते से मंद मंद मुस्कराते हुए मेरी तरफ देखा और फिर मेरे लंड को अपनी गुदाज़ हाथो में लेकर सहलाने लगी। मैंने जब मालविका का अपने लंड के प्रति इतना लाड़ देखा तो मैंने एक हाथ उसके सर पर रख, उसे लंड की तरफ और झुका दिया। मालविका ने तुरंत मेरे लंड को अपने मुँह में ले लिया और मेरे लंड को टॉफी की तरह चूसने लगी थी।

मैंने जब कामाग्नि के वशीभूत मालविका को आलिंगनबद्ध किया था तब मुझे यह आभास नही था कि उन क्षणों की कामुकता मेरे लंड को चूत से समागम के साथ चूषण से अनुराग रखने वाला एक रमणीय मुख भी मिलेगा।

मालविका ने जब मेरा लंड पहली बार अपने मुँह में लिया था तभी ही मैं कपकपा गया था। एक तो बहुत दिनों बाद मेरे लंड को किसी ने चूसा था और दूसरा मैं मालविका से इस सहज भाव से अपने लंड के चूसे जाने की अपेक्षा भी नही रखे हुआ था। उसे लंड चूसना पसंद है मुझे यह इससे ही पता चल गया था, जब उसने शुरू में ही मेरे लंड के सुपाडे, जिस पर मदन रस टपक रहा था, उसे जीभ से चाटा था। लंड चूसने में भी मालविका ने कुछ नही छोड़ा था, उसने मेरा पूरा लंड जड़ तक, अंदर लेकर चूसा था। इसी सबका परिणाम था की थोड़ी देर में ही मुझे लगने लगा कि यदि मैंने उसके मुँह से अपना लंड नही निकाला तो मैं उसके मुँह में ही झड़ जाऊंगा।

मैंने अपने को संभालते हुए तेजी से उसके मुँह से अपना लंड निकाल लिया और मालविका को खीचकर अपने ऊपर कर लिटा दिया और उसको ओंठो को चूमने लगा। उसका मुँह मेरे लंड के मदन रस से लिपटा था और अपना ही स्वाद मुझे और कामोत्तेजक कर गया था। पूरे कमरे में अब सिर्फ आआअ…..ऊऊओ….की ही आवाज गुंजायमान थी।

मैंने उसके बाद मालविका को अपने दायें हाथ से जोर लगा कर बिस्तर पर अपने बगल में लेटा दिया। अब मुझसे अपनी ही वासना बर्दाश्त नही हो पारहा थी। मैं उसको लिटा, नीचे की तरफ खिसक कर आगया। मालविका ने, चूत और लंड के होने वाले मिलन की अपेक्षा में अपनी टांगे फैला रक्खी थी। मैं कमरे में हो रही हल्की से रोशनी में फैली हुई टांगो के बीच घुंघराले बालो से घिरी हुई मालविका की चूत को निहारने लगा। उस कामनीय चूत को देख मैं ऐसा आसक्त हुआ कि मैंने उसे चुम लिया। मालविका की चूत पर मैने जैसे ही अपने होठ रक्खे उसने अपनी जांघे और फैला दी और वह तेजी से सांस लेने लगी। उसकी चूत अब निर्विकार भाव से मेरे सामने समर्पित थी और उस समर्पण को स्वीकार कर, मैने अपना मुँह उसकी चूत मे घुसा और उसकी चूत को चाटने लगा। मैंने अपनी अभिलाषी जीभ को उसकी चुत के अन्दर डाल दिया और उसकी गीली, संकरी और गर्म चूत को जीभ से ही चोदने लगा।

मेरी जीभ जहां मालविका की उपेक्षित चूत को आसक्ति भाव से चोद रही थी वहीं मालविका कामोत्तेजना से छटपटा रही थी। उसके हाथ बराबर मेरे सर पर विचर रहे थे और उसके मुख से आआआअ …….ऊऊऊ …..ह्ह्ह्हह्ह्ह्ह… सिसयाती हुई कामुक आवाजे निकल रही थी। तभी उसके शरीर में एक कंपकपी हुई और एक घुटी हुई चीख निकली। उसने कस के मेरा सर अपनी जांघों के बीच घुसा दिया और उसकी कमर झटके मारने लगी थी। मैं समझ गया था कि मालविका का सब्र टूट चुका है और उसको ओर्गासम हो रहा है। मालविका की चूत से निकले उस रति द्रव्य का मेरी जीभ ने रसास्वादन किया और उसकी चूत को एक बार और चुम्बन दे कर, मैं, मालविका को गले लगा कर लेट गया।

मालविका हांफ रही थी और मैं उसके शरीर के हर धिरकन पर और मदहोश होते जारहा था। मालविका ने मुझे अपनी बांहों में लिया हुआ था और अपना मुँह मेरे अंदर ही घुसाए हुये थी। मैं थोड़ी देर तक अपनी चुदाई की इच्छा को दबाते हुए मालविका को सहलाता रहा और उसे चूमता रहा। मेरा लंड जो थोड़ा पहले शिथिल हो गया था, वह मालविका के शरीर से आरही गर्मी से फिर कड़ा होने लगा था। हम शायद 7/8 मिनिट ऐसे ही पड़े रहे और मैं, इच्छा होने के बाद भी मालविका को आराम का पूरा समय देना चाहता था। पता नही कैसे, मालविका ने मेरे मनोभाव को या तो पढ़ लिया या यह फिर प्रकृतिअनुसार उसने पहल करते हुए मेरे लंड को अपने हाथ मे ले लिया और उसे हिलाने लगी। उसके हाथों का स्पर्श मिलते ही मेरा लंड फिर कड़कड़ा गया। मैंने मालविका की तरफ देखा उसकी आंखें अधखुली थी। उसने जोर से मेरे लंड को झटका दिया और अपनी जांघों को पूरी तरह फैला दिया। मुझे संकेत मिल गया था कि मालविका ने मेरे उसके समागम का मुहूर्त निकाल लिया है।

मै मालविका के बगल से उठ कर, उसके पैरों की तरफ चला गया। उसने अपने पैर फैला और मोड़ रक्खे थे। मैं उन टांगो के बीच बैठ गया और अपने लंड से उसकी चूत पर रगड़ने लगा। मेरे लंड का सुपाड़ा बार बार उसकी क्लिट पर घर्षण कर रहा था और उसकी प्रतिक्रिया में मालविका के मुंह से एक बार फिर, सिसकियां सुनाई देनी लगी थी। मालविका एक बार फिर से कामुकता के सागर में हिचकोले खाने लगी थी और उसके मुंह से बराबर कामोन्मादक स्वर निकलने लगे थे। मैं अपने लंड से उसकी चूत को सहला रहा था और बीच बीच मे अपना सुपाड़ा उसकी चूत के द्वार पर ढेल दे रहा था। अब मालविका भी अपनी कमर को उठा कर खुद भी अपनी चूत को मेरे लंड से रगड़ने लगी थी। आज मैं पहली बार मालविका को चोदने जारहा था इसलिये उसकी चूत को और ऊपर लाने के लिए मैने उसके नितंबो के नीचे तकिया भी लगा दिया था।

मैने अपने लंड पर थोड़ा सा थूक लगाया और उसे मालविका की चूत पर रख कर, एक धक्के में घुसा दिया। उसकी चूत गीली जरूर थी लेकिन बरसो से बिना चुदी हुई चूत, कसी हुई थी। मेरा लंड 5/6 घक्को में पूरा उसकी चूत में समा गया। मेरा पूरा लंड, अपनी चूत के अंदर समाहित कर, मालविका ने मुझे कस के अपनी बाहों में जकड लिया। उसके ओंठो ने मेरे ओंठो को पकड़ लिया और वह उसे चूसने लगी। अपने ओंठो को चूसते हुआ देख मैंने उसकी चूत में अपने लंड की धक्के की गति शिथिल कर दी थी। मेंरी मालविका के साथ चुदाई तो हो रही थी लेकिन इस चुदाई में प्रणय का भाव और उसके जीवन मे इसकी अनुपलब्धता का भाव भारी था। मैं स्वयं भी ज्यादा समय तक उसे चोद पाने के प्रति सशंकित था इसलिये मैं आहिस्ते से चोद रहा था। एक तरफ मेरा लंड मालविका की चूत में एक लय में अंदर बाहर हो रहा था तो दूसरी तरफ मालविका भी अपनी टांगो को और ऊपर तक उठाये मेरे लंड को पूरा अंदर तक संभाल रही थी। मालविका के ओंठो से मुक्त हुये मेरे ओंठ अब उसकी चुंचियो का रसपान कर रहे थे और जब जब उसके निप्पल्स को कस के चूसता, मालविका की कमर नीचे से उपर उछाल मार, लंड को अपने अंदर धंसा लेती। मैं मालविका के निप्पल्स को कस के चूस रहा था कि मालविका ओह! ओह! आआह! आआह! जीजाआ जी!! की आवाज़ निकालने लगी और अपनी कमर उछालने लगी। यह आभास होने पर की उसको ओर्गासम होने वाला है, मै ताबड़तोड़ धक्के मारने लगा। मेरे लंड से कस के पड़ रही उसकी चूत पर चोट से मालविका चीख पड़ी थी और उसी के साथ मेरे लंड ने उबाल लिए वीर्य को, मालविका की चूत में फेंक दिया। मैं झड़ता जा रहा था और साथ मे धक्के भी मार रहा था। तभी मालविका ने मेरी कमर को अपने पैरो से जकड़ लिया और अपने नाखून मेरी पीठ पर गड़ा दिये। उसके मुँह से आई! आई! आई! कि सिसयाती हुई आवाज़ निकल रही थी और उसका शरीर अकड़ गया था। मेरे वीर्य की पिचकारी ने उसको चरम दिला दिया था। हम दोनों ही झड़ने के साथ तृप्त हो चुके थे। उसकी चूत ने बरसो बाद वीर्यपान किया था और मेरा लंड ने महीनों बाद एक सार्थक चूत में वीर्यदान करने का सौभाग्य प्राप्त किया था। हम दोनों ऐसे ही हांफते, अलसाते, थकते एक दूसरे की बांहों में पड़े रहे। हम दोनों को कब नींद आगयी यह पता ही नही चला।
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मेरी नींद करीब 4 बजे खुली तो सीधे बाथरूम जाकर अपने को साफ किया और नंगे ही वापस मालविका के बिस्तर पर आकर, उसके बगल में लेट गया था। मेरी हलचल से मालविका की भी नींद खुल गई। वह अपने को नग्न व मुझे बगल में नँगा पड़ा देख पहले तो चौकी लेकिन कुछ पल बाद जब पूरी चेतनता वापस आई तो लजा कर बाथरुम भाग गई। उसने वहां शावर लिया और तौलिया लपेट कर कमरे में वापस आई। वो तौलिए में लिपटी खुजराओ की गणिका लग रही थी। उसके शरीर से हो रहे स्पंदन ने मेरी इंद्रियों को फिर से जाग्रत कर दिया और मेरे लंड की धमनियों में फिर से रक्त बहने लगा। मुझसे रहा नही गया और मैं बिस्तर से उठ कर मालविका को बाहों में ले लिया। मेरा खड़ा हुआ लंड मालविका की जांघों पर अपने प्रणय का संकेत दे रहा था। मालविका मेरे सीने में अपना सर रख खड़ी रही और मैंने जोर से उसको अपने आलिंगन में बांध लिया। मैं उसे चूमने लगा और उसने भी कुछ पलों के बाद अपने ओंठो को मेरे ओंठो के लिए खोल दिये।

हम दोनों एक दूसरे को चूमते हुये फिर बिस्तर पर आगये और वहां पहुंचते पहुंचते मालविका के शरीर से तौलिया भी अलग हो कर फर्श पर गिर गई थी। मैं उसकी चुंचियो निप्पल्स और चूत से छेड़छाड़ कर रहा था और मालविका भी उत्तेजित हो मेरे शरीर को अपने शरीर से रगड़ रही थी और मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में लेकर हिला रही थी। हम दोनों ही कामुकता के ज्वार में बह रहे थे कि तभी, मेरा मोबाइल बजने लगा। इतनी सुबह फोन आता देख मैं चौंका, जब स्क्रीन देखी तो श्वेता का फोन था। मुझे मालविका को कामुकता की हालत में बिस्तर पर छोड़ना ठीक नही लगा तो मैंने मालविका को इशारे से चुप रहने को कहा और मोबाइल उठा लिया।

श्वेता ने घर के हालचाल लिए और अस्पताल में मेरे ससुर की हालत के बारे में बताया। उसने बताया कि उसका भाई 3/4 दिन में ओमान से भोपाल पहुंच जाएगा, वह तभी आएगी। मैंने भी उसे यहां सब ठीक है, चिंता न करने को कहा। अंत मे श्वेता ने पूछा," मालविका का ख्याल रख रहे हो?"
मैंने कहा," हाँ सब ठीक है मालविका का मै पूरा ख्याल रखे हुए हूँ |"

यह कहते हुए मेरा ठीला पड़ गया लंड फिर कड़ा होने लगा और मोबाइल कट गया। मालविका ने भी मेरे खड़े होते हुए लंड का महसूस कर लिया था लेकिन श्वेता की कॉल आने पर अपने को दो राहे पर खड़ी पारही थी। मैंने मालविका को अपनी बाहों में ले लिया और कहा, "कॉल आने से पहले भी हम तुम थे और उसके बाद भी है। हम दोनों वर्तमान है और इतने परिपक्व है कि सामाजिक बंधनो को कैसे सहेज कर रखना है या जानते है।"

उसके बाद मालविका मुझसे चिपट गई और हम लोग बिना कुछ और किये फिर से सो गए।

अगले दिन रविवार था इसलिए घर पर ही रहना था। ब्रेकफास्ट के समय मालविका थोड़ा चुप थी और घर मे नौकर होने के कारण मैं उससे ज्यादा बात करना भी उचित नही लगा। दोपहर को खाना खाने के बाद जब नौकर चले गए तो मैं मालविका के कमरे में गया, वह कमरा बन्द कर लेटी थी। मेरे खटखटाने पर उसने दरवाजा खोल दिया और मैं अंदर चला आया। मालविका मैक्सी पहने थी और मेरा मन उसको बाहों में लेने को हो रहा था लेकिन मालविका की दिन भर की चुप्पी देख कर आगे बढ़ने की हिम्मत नही हई। मालविका ने मुझसे कोई प्रश्न नही पूछा, बस बिस्तर पर बैठ गई और नीचे फर्श को देखने लगी। मुझे उसकी मनोस्थिति को देख कर आत्मग्लानि होने लगी थी लेकिन समझ नही आरहा था कि मालविका को किस तरह संभालूं। थोड़ी देर खड़ा होने के बाद मैं भी मालविका के बगल में बैठ गया। मैंने डरते डरते उसका हाथ छुआ और कहा,"मालविका, जो हुआ उसके लिए मैं शर्मिंदा नही हूँ और न तुम्हे होना चाहिए। यह शायद प्रारब्ध था और मैं इसको हमेशा नियति मान स्वीकारता रहूंगा।" मालविका ने इस बार मेरा हाथ नही झटका बस धीरे से पूछा," बिरजू(नौकर) काम खत्म करके वापस चला गया है क्या?"

मैने आंखों से इशारा किया की वह गया और दरवाज़े बन्द कर दिए है। यह समझा के मैने मालविका के कंधे पर हाथ रक्खा तो उसने अपना सर मेरी गोदी पर लुढ़का दिया।

मैंने और मालविका ने अगले 5 दिन, जब तक श्वेता वापस नही आई, जी भर कर चुदाई की। घर का कोई कोना ऐसा नही बचा था जहां उसने न चुदवाया हो। कोई उसकी ऐसी फैंटेसी नही बची थी जो उसने मेरे साथ पूर्ण न की हो। श्वेता के आने के बाद, मालविका हमारे साथ करीब 4 माह रही लेकिन हम दोनों ने कभी भी शारीरिक सम्बंध बनाने की कोशिश नही की। हम लोगों ने हंसी मज़ाक और जीजा साली के रिश्ते के खुलापन को जरूर आनंद लिया लेकिन कभी एकांत में मिलने के मौके को ढूढने की कोशिश नही की और न ही जब भी एकान्त का अवसर मिला, तो उस अवसर का उपयोग करना चाहा। अब मालविका, नोएडा में स्थापित हो गई है और उसने अपने पति के रेडीमेड गारमेंट्स के बिज़नेस को संभाल लिया है। मैं आज भी जब भी दिल्ली नोएडा जाता हूँ, मालविका से मुलाकात करता है। मेरे वहां पहुंचने पर, मालविका खुद ही एकांत का अवसर निकाल लेती है। वो वहां आज भी मेरी 60 वर्ष की आयु में वैसे ही मिलती है जैसे मालविका, मुझे आज से 14 वर्ष पूर्व, मेरे घर मे, अपने कमरे में मिली थी। मैं समझता हूँ यह उन 4 महीनों के संयम का परिणाम है कि हम दिनों के रिश्तों के बीच अभी भी जीवंतता बनी हुई है।
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Heart 
55 वर्षीय प्रौढ़ बंगालिन और मेरी कामुकता

मैं, अपने जीवन की प्रथम अक्षतयोनि के संस्मरण लिखने के बाद, कामुक लेखन पर विराम लगा, किसी अन्य विषय के अधूरे लेख को पूर्ण करनी की सोंच रहा था। लेकिन फिर एक उचक उठी की यहां से कुछ अंतराल के लिए अंतर्ध्यान होने से पहले, एक और अपना संस्मरण, यहां पाठकों के लिए छोड़ जाऊं। मैंने अक्षतयोनि में अपनी 20 वर्ष की आयु में, स्कूल गमन करती एक षोडशी के साथ बने यौन सम्बंध के संस्मरण को लिखा था और आज मैं अपने से 22 वर्ष बड़ी महिला के साथ हुये यौन सम्बन्ध के संस्मरण को यहां मूर्त रूप दे रहा हूँ। मेरा जीवन मे यह अनुभव रहा है कि कामुकता व कामुक सम्बंध किसी उम्र की सीमा में बंधा नही होता है। पुरुषों में तो यह सत्य बड़े सार्वजनिक रूप से स्वीकारा जाता रहा है लेकिन मैंने पाया है कि महिलाएं भी इसकी अपवाद नही है। यदि कोई एक अधेड़/प्रौढ़ महिला के अंदर की स्त्री को, द्वंद की मनोस्थिति में, उचित क्षणों में सहेजे तो वे अंतरंगता को स्वर देने लगती है। मैंने अपने वातावरण, कामुक कहानियों और स्वीकारोक्तियों में जवान होते लड़को में अधेड़/मध्य वय(मिडिल ऐज) की महिलाओं के प्रति आसक्ति व यौन सम्बंध की अभिलाषा अक्सर देखी है लेकिन बुजुर्ग/प्रौढ़ महिला उनके मानसिक पटल से ओझल रहती है। शायद हमारी सामाजिक संस्कृति ही ऐसी है की ये बूढ़ी बुजुर्ग महिलायें इतनी माननीय व सम्मानित हो जाती है हम लोग उनका अन्वेषण व विश्लेषण कामुक दृष्टि से नही कर पाते है। मैं यहां अपने जीवन के जिस संस्मरण को उल्लेखित करने वाला हूँ उसमे नैंसी फ्राइडे की पुस्तकों का बड़ा योगदान रहा है, उन्होंने मुझे बुजुर्ग महिलाओं और उनके कम उम्र के पुरुषों से यौन सम्बंध के मनोविज्ञान को समझने में काफी सहायता की है। मेरी कहानी में नाम व स्थान के अतिरिक्त सभी कुछ सत्य है।

आज से लगभग 30 वर्ष पूर्व, जब मै करीब 32/33 वर्ष का था, सदूर एक परियोजना में कार्यरत था। वह परियोजना नगरीय सभ्यता से दूर, एकाकी, दूर वीराने में थी। अब जैसा दूर दराज की परियोजनाओं में होता है कि वही पर सभी कर्मियों को, वह चाहे अधिकारी हो या चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी, सबको घर मिले हुए थे। आप उसे को वीराने में बसाया गया टाउनशिप भी कह सकते है क्योंकि जीवन की मूलभूत सुविधाएं, परियोजना के प्रांगण में ही उपलब्ध थी। हम लोगो का दैनिक जीवन बड़ा व्यवस्थित व नीरस था। हम लोगों की, कम से कम मेरी जीवन शैली की समय सारणी बड़ी निश्चित सी थी, सुबह काम पर जाना, शाम को धूल से लथ पथ लौट कर घर आना, कभी कभार क्लब चले जाना और खाने से पहले 2/3 पैग लगाना और फिर खाना खा कर सो जाना। मेरा विवाह हो चुका था और मेरे बच्चे तब बहुत छोटे थे। वहां जब भी स्कूल में छुट्टियां होती थी तो पत्नी मायके या ससुराल चली जाती थी और मैं फिर बाद में, छुट्टी लेकर उनको लेने चला जाता था और नगरीय सभ्यता का सुख उठता था। इन छुट्टियों में पत्नी बच्चे जब चले जाते थे तो मेरा जीवन बिल्कुल ही अव्यवस्थित हो जाता था। बिल्कुल अविवाहितों का जीवन। मेरा न कोई काम से लौटने का समय, न खाने पीने का कोई समय, जहां बैठ गए तो बैठ गए, जीवन मे न कोई व्यवस्था व अनुशासन।

ऐसे ही एक बार गर्मी की छुट्टी में मेरी पत्नी, बच्चों को लेकर अपने घर चली गई और मैं अपना ज्यादा समय कार्यालय और कार्यस्थल पर व्यतीत करने लगा। मेरे अंतर्गत काम करने वाले कर्मचारियों की टीम काफी अच्छी थी इसलिए मुझे घर के बाहर, कार्य करते हुए समय व्यतीत करने में कोई विशेष परेशानी नही होती थी। इन्ही लोगो मे मेरे नीचे एक लड़का काम करता था, वह बड़ा अच्छा लड़का था। वह एक बंगाली लड़का था, उसकी उम्र होगी करीब 26/27 वर्ष और उसका नाम देवब्रत भट्टाचार्या था।

मैं एक दिन, देर शाम तक अपने कार्यालय में काम कर रहा था और ज्यादातर कर्मचारी लोग घर वापस जाचुके थे। कुछ लोग जो मेरे साथ रुके थे उसमे से एक देवब्रत भी था। शाम को करीब 7:30 बजे, जब देवब्रत छुट्टी कर, घर जाने लगा तो मेरे पास आया और मुझसे कहा,"सर, आज कल भाभी जी तो घर पर है नही, आप इस शनिवार को मेरे घर खाना खाने आइये।"

मैंने कहा,' छोड़ो देवब्रत, क्यों परेशान होते हो? घर पर नौकर है, वह बना देता है।"

इस पर देवब्रत ने कहा,"अरे सर परेशानी कि क्या बात है? आपको तो मछली खाने का बहुत शौक है और आज कल मेरी माँ भी कलकत्ते से आयी हुई है, बहुत बढ़िया बनाती है।"

उसकी बात सुन कर तो मेरा भी मन मचल गया। वहां जो लोग मुझे जानते थे, उन सभी को यह मालूम था कि मै मांसाहारी खाने का बहुत शौकीन हूँ, इसलिये देवब्रत का निमंत्रण बड़ा स्वाभाविक था। लेकिन फिर भी मुझे इस निमंत्रण को स्वीकारने में एक झिझिक थी। मैंने कहा," चलो ठीक है, मै तुमको रात तक निश्चयात्मक निर्णय बता दूंगा।"

मेरा देवब्रत के निमंत्रण को स्वीकारने में जो झिझक थी वह खाने को लेकर नहीं थी। मेरा संकोच उसके घर जाने को लेकर था। मै अधिकारी था और अधिकारीयों के आवास की बनी कॉलोनी में रहता था और देवब्रत स्टाफ कॉलोनी में रहता था जिसका प्रांगण मेरी कॉलोनी से अलग था। देवब्रत का निमंत्रण सार्वजनिक न हो कर व्यक्तिगत रूप से मुझ अकेले के लिए था इसलिये एक अधिकारी हो कर, स्टाफ कॉलोनी में रात को जाना मुझे असहज कर रहा था। मैं जिस तरह की परियोजना में काम कर रहा था, सदूर वैसी परियोजनाओं एवं ऐसे ही अन्य दूर दराज के औद्योगिक इलाको में, हर तरह कि बाते होती है। इसे स्थानों में छोटी से आबादी होती है और व्यक्ति की निजता पर हमेशा प्रश्नचिन्ह लगा रहता है। यदि आप ज्यादा इधर उधर होते है तो आपके चरित्र पर प्रश्न चिन्ह लग जाते है, नाम जुड़ने लगते है। वैसे भी यह एक आदिवासी इलाका था और पूर्व के बहुतो के किस्से मै जानता था। खैर रात को मैंने उसको फोन किया, हमारे यहाँ इंटरनल फोने एक्सचेंज था, सभी के यहाँ फोन लगा हुआ था ताकि आपातकालीन स्थिति में किसी को भी, कभी भी बुलाया जासके। मैंने कहा,"ठीक है देवब्रत, मै शनिवार को 8 बजे तुम्हारे घर खाने पर आऊंगा।"

मै उस शनिवार ठीक रात के 8 बजे देवब्रत के घर पहुँच गया। उसका 4 मकानो के ब्लाक में नीचे वाला घर था। घर के बाहर करीब 20 फिट की खुली जगह थी जिसमे एक तरफ शेड पड़ा था। शेष जगह पेड़ पौधे लगे हुए थे और वहाँ एक गेट था। मै जब वहां पहूँचा तो वह पहले से ही गेट पर ही खड़ा होकर मेरा इंतज़ार कर रहा था। देवब्रत मुझे अंदर ले गया। उसका छोटा सा ड्राइंग रूम था वही एक सोफा पड़ा था और बीच में एक टेबल रक्खी हुई थी। देबरत ने कहा,"सर बैठिये, मै अभी अंदर से आता हूँ।"

वह 5 मिनट में वापस आ गया और उसके हाथ ट्रे थी जिसमे गिलास, बर्फ, पानी और कुछ खाने का सामान था। यह देख कर मैंने उससे कहाँ, "इसकी क्या जरुरत थी?"

उसने हँसते हुए कहाँ, "सर मालूम है आपको क्या पसंद है, इस बहाने मुझे भी पीने कि छूट मिल जायेगी।"

फिर उसने सोफे के बगल से जिन कि बोतल निकाली, जो उस ज़माने में मैं गर्मियों में पीता था। उसने दो गिलास में पैग बनाये और साथ मे गरमा गरम तली होई मछली सामने रख थी, जो गज़ब कि महक रही थी। हम लोगो ने चियर्स किया और पीने लगे। थोड़ी देर में मुझे देवब्रत के घर में बड़ा सन्नाटा से लगा तो मैंने उसे पूछा, "क्यों सब लोग बाहर गए है क्या? तुम तो कह रहे थे कि माँ आयी है?'

वो बोला, "सर माँ है न? बीबी तो डिलेवरी के लिए अपने मायके गयी है, इसीलिये मेरे पास कुछ दिन रहने के लिए माँ आ गयी है।"

मैंने पूछा," कहाँ है?"

उसने जवाब दिया,' माँ रसोई मै है, आप आये है इसलिए माँ कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती।"

तभी उसकी माँ ने अंदर से कुछ बंग्ला में कहाँ और वह अंदर चला गया। मैंने देखा की फिर वह कुछ लेकर चला आया है। तब मैंने कहाँ,"देवब्रत यह बात बड़ी बुरी है, माँ से कहो वे यहाँ आकर बैठे, मुझे और कुछ नहीं चाहिए है। अब सीथे खाना ही खायेंगे।"

तब उसने कुछ कहा बंग्ला में और अंदर चला गया। मुझे कुछ फूस फुसाहट की आवाज अंदर से आरही थी और मेरा अनुमान था कि माँ यहाँ आने से हिचक रही है। तब मैंने आवाज़ देकर कहाँ,"देवब्रत उनसे कहो यदि नहीं आयी तो मै कुछ भी नहीं खाऊंगा।"

मेरी बात का प्रभाव यह हुआ कि देवब्रत की माँ उसके पीछे पीछे, ड्राइंगरूम के अंदर आई और मै उन्हें प्रणाम करने के लिए खड़ा होगया। मैंने हाथ जोड़ कर प्रणाम करते हुए उनका मुख देखा तो बस देखता ही रह गया। मेरे मन में जो देवब्रत की माँ की एक कल्पना थी, वह उन्हें देख कर वह कल्पना धूलधूसरित हो गयी थी। वे एक लगभग 55 वर्ष की गौरवर्ण की महिला थी, घने मिश्रित काले सफ़ेद बाल उन पर दमक रहे थे। वो सजी धजी, सफ़ेद रंग कि लाल बॉर्डर कि बढ़िया से साड़ी पहने हुई थी। 5',3" के लगभग लंबाई, चौड़ा माथा, गोल चेहरा, उनके बेहद तीखे नाक नक्श थे, कोई भी उन्हें देख कर बंगाली बता सकता था। देवब्रत की माँ हष्टपुष्ट बड़ा गठा हुआ बदन था, मै बिलकुल ही झटका खा गया था।

मेरी प्रतिक्रिया अप्रत्याशित व अवांछनीय थी। मुझे कुछ ही क्षणों में माँ के आगमन पर अपनी अभिक्रिया पर ग्लानि होने लगी थी। मुझे बोध हो रहा था कि मैं जिस प्रकार से उनको अवाक देखता रहा था, वह सभ्य समाज में अमर्यादित माना जाता है। मुझे अपने पर खीज आरही थी। मैंने झेप मिटाते हुए बोला, "आई ये साथ मे यहां बैठिए, मुझको यह बुरा लग रहा था कि हम लोग यहाँ पर बैठे है और आप अकेले अंदर काम मे लगी हुई है। इतना तो कुछ आप भेज चुकी है, अब और नही। माँ जी, मैंने किसी बंगाली परिवार में इतनी शानदार मछली आज तक नहीं खाई है।"

मेरे कहने पर वो कोने में देवब्रत की तरफ बैठ गई और हमारी प्लेट में और मछली के कुछ टुकड़े डाल दिए। मैं और देवब्रत दोनो जिन पीते हुए, इधर उधर कि बात करने लगे, लेकिन पता नहीं क्यों, मेरा ध्यान बट चुका था। मै, देवब्रत से बात करते करते, अंजाने में, उसकी माँ की तरफ देखने लगता। दो चार बार तो हमारी आंखे मिल गई, उन्होंने मेरा उन्हें चोर नज़रों से देखना, पकड़ लिया था। मुझे जीवन मे बहुत से अनुभव हुये है लेकिन फिर भी, मै उस समय यह बिलकुल भी नहीं समझ पा रहा था कि क्यों मै अपने से 20/25 वर्ष की प्रौढ़ बूढी महिला के मुख को बार बार, देखना चाहता था। मेरा देवब्रत की बुजुर्ग माँ के प्रति अभिभूत होना, शोचनीय था। जब हम लोगो के 3 पैग हो गये तो मुझे देवब्रत की आवाज़ में लड़खड़ाहट लगने लगी थी। मैंने उसको मना किया कि वह अब न पिये, उसकी माँ ने भी बंग्ला में उसको कुछ कहा, लेकिन देवब्रत बोला."सर कुछ नहीं है, सब कंट्रोल में है, आप और लीजिये, फिर उसके बाद खाना खायेंगे."

देवब्रत की बात सुन मै धर्म संकट में पड़ गया। मुझको और पीने की इच्छा थी लेकिन यहां तो मेजबान ही लुढ़का जा रहा था। मैंने उसकी माँ कि तरफ देखा और इशारे से पूछा क्या करे ? उनके चेहरे से लग रहा था कि उनको अपने लड़के कि हरकत पसंद नहीं आरही थी, वो बंग्ला में कुछ कुछ कह भी रही थी, लेकिन बड़ी शालीनता से बैठी हुई थी। मैंने उनसे कहा,"सुनिये आप भी कुछ ले। मुझे यह बड़ा अजीब लग रहा है की हम लोग इस तरह खाए जारहे है और आप ऐसे ही बैठी हुई है। आप भी लीजिए न?" यह कह कर मैंने एक प्लेट में मछली के दो टुकड़े परोस दिए। मैं परोस रहा था और वो न न कहती जारही थी लेकिन आखिर मेरे बहुत कहने पर उन्होंने प्लेट अपने हाथ में ले ली। इस बीच देवब्रत ने कब चाौथा पैग बना कर एक झटके में ख़तम कर दिया मुझे पता ही नहीं चला। थोड़ी देर बाद बात करते करते, देवब्रत ऊंची आवाज में बोलने लगा और बाते भी, लड़खड़ाती आवाज़ में अंट शंट करने लगा, तब मैंने उससे कहाँ,"देवब्रत, तुम को चढ़ गयी है। तुम मुँह जाकर धो और अब तुम बिल्कुल भी नहीं पियोगे।"

देवब्रत बोला,"सॉरी सर, बहुत दिन बाद ली, लगता है लग गई, आप बैठो अभी आया।"

जब वो चला गया तब मैंने उसकी माँ से कहाँ,"आप परेशान मत हो, देवब्रत अच्छा लड़का है। लड़के है, ठीक हो जायेगा।"

"हमे ये सब बुरा लग रहा है। देबू आपके सामने ऐसे हो गया, क्या सोचेंगा आप?" उन्होंने बड़ी मीठी बंग्ला मिश्रित हिंदी आवाज में मुझको जवाब दिया। यह पहली बार था की उन्होंने मुझसे सीधे कुछ कहा था।

मैंने तुरंत कहा,"आप इसकी चिंता मत करे। कुछ ऐसा वैसा सोचने कि जरुरत नहीं है। चलिए इसी बहाने आपसे बात हो गयी।"

तभी देवब्रत, डोलता हुआ ड्राइंग रूम में आगया और उसका चेहरा देख कर लग रहा था कि उसके बाजे बजे हुए है। उसकी हालत देख कर लग रहा था कि वह अपने बल पर, ज्यादा देर तक संतुलित नहीं खड़ा हो पायेगा। उसकी माँ ने बंग्ला में उससे कुछ कहा तो उसने झटक दिया। तब मैंने देवब्रत से कहा ,"सुनो देवब्रत, तुम बिलकुल भी ठीक नहीं हो, जा कर थोडा लेट जाओ, मै चलता हूँ।"

उस पर वो हाथ जोड़ कर विनती करने लगा और मुझसे माफ़ी मांगते हुए कहा,"सर अब ये न कीजिये, बिना खाना खाये जायेंगे माँ को बुरा लगेगा और बहुत नाराज़ हो जायेगी।"

तब उन्होंने तेज आवाज में कहाँ," देबू तुई जेबी! लेटो जाकर! आपनी जाबेन ना साहब! खा कर जाना।"

मैं माँ की बंग्ला कुछ कुछ समझ रहा था, वो देवब्रत को सोने को बोल रही थी और मुझसे खा कर ही जाने को कह रही थी। मैंने देवब्रत से कहा की वो थोड़ा लेट कर आराम करे, मै इंतज़ार कर लूंगा। उसके बाद वो सर झुका, कमरे में चला गया और उसकी माँ उसके पीछे पीछे चली गई।

उनके जाने के बाद मै सोफे से धीरे से उठा और दरवाजा खोल कर निकलने लगा, तभी देवब्रत की माँ आगयी और कहा," सर आपनी जाबेन ना! रुक जाओ आप! दोया कोरे।इज्जत रख लो।"

मैंने उनको देखा वो हाथ जोड़े हुए थी। मै वही रुक गया और आगे बढ़ कर उनके जोड़े हुये हाथ को हाथ में ले लिया और कहा," हाथ मत जोड़िये, चलिए मै रुक जाता हूँ।"

जब मैंने उनका हाथ पकड़ा, तो मेरे शरीर मे एक सिहरन सी दौड़ गई। मै नहीं जानता कि उस पल मुझे क्या हुआ था, लेकिन लगा, जैसे मै एक स्त्री को स्पर्श रहा हूँ। मेरा मन विचलित हो गया। मै जड़वत उनका हाथ पकडे ही रहा और इसका मुझे एहसास तब हुआ जब उन्होंने अपना हाथ खीचा लिया। मुझे उनकी आँखों में एक अजीब सी लज्जा और चेहरे पर बेचैनी सी देखी। मै अपनी इस हरकत पर खुद भौचक्का था। मैंने शराब पी रक्खी थी, थोडा नशा भी था लेकिन मुझे अपने से इस तरह के व्यवहार की बिल्कुल अपेक्षा नहीं थी। मैने अटकते हुए बोला,'' अरे आप परेशान न हो, मै बिल्कुल भी नाराज नहीं हूँ, आप चलिए मै बैठता हूँ।"

यह कह कर मै खुद ही ड्राइंग रूम कि ऒर मुड़ लिया। बाहर के दरवाजे वाला गलियारा संकरा था, जब मै तजी से पीछे ड्राइंगरूम के लिए बढ़ा, तो उन्होंने दिवार से सटते हुए, मुझे आगे जाने की जगह दी, लेकिन फिर भी, मेरा दाहिना हाथ उनसे रगड़ा और मेरी कोहनी उनकी छाती को सहलाते हुए चली गयी। जैसे ही मेरी कोहनी उनके वक्षस्थल से छुई, मेरे ह्र्दय की गति थम गई। सांस, जहां थी वही ही ओझल हो गई। मै बिना ठहरे, तीर की तरह सीधे सोफे पर जा गिरा। मेरा अपने ह्रदय में हर धड़कन के साथ हो रहे प्रहार को सुन सकता था। मेरे मस्तिष्क में सैकड़ो सवाल कौंध रहे थे।

" हे भगवान ये मुझे हो क्या रहा है!"
"एक बार नहीं, दो बार नही, बारंबार देवब्रत की माँ के साथ कुछ न कुछ, मुझसे होते जा रहा है!"
"क्यों एक 55/60 साल कि प्रौढ़ मुझे अंदर से हिला दे रही है?"
"वह क्या सोचेंगी?"
"क्या मैं अतिरेक कामुकता से पीड़ित, उम्र और पद की गरिमा छिन्न भिन्न कर रहा हूँ?"
"मै मानसिक रूप से विछिप्त हो रहा हूँ, क्या?"

मै इसी उधेड़ बुन में ही था कि मुझे उनकी आवाज़ सुनाई पड़ी, वो कह रही थी,"अमी दुक्खीतो, सॉरी।" मैंने उनसे बिना आंखे मिलाए कहा,"सॉरी? क्यों? आपको यह कह कर मुझे शर्मिंदा न करे, ऐसा हो जाता है, कभी कभी।"

इस पर उन्होंने कहा," आप ड्रिंक ले लीजिये, जब खाना लगाना हो, बोल दीजियेगा।"

वह यह कह कर अंदर जाने लगी तब मैंने उनसे कहा,"आप कहां जा रही है? आप भी बैठिये, अकेले ठीक नहीं लगता है।"

इस पर वो सामने बैठ गयी। बड़ी असाधारण परिस्थिति बन गई थी। मैंने जल्दी से निकल जाना चाहता था लेकिन उनका सामने बैठना, मुझे मेरा ह्रदय वहां और रोक रहा था। मन कह रहा था,"प्रशांत, अभी तक इज्जत बची हुई है, जल्दी थोड़ा खा कर निकल जाओ।" लेकिन ह्रदय में पल्लवित हो चुकी कामुकता, मुझे उनके सांनिध्य को देर तक, खींचना चाह रही थी। मैंने अपने को संयमित करने के लिए अगला पैग बनाया और उनसे कहा," मै नहीं जानता कि मुझे कहना चाहिए या नहीं लेकिन मुझे आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा।"

इस पर वो हँसने लगी और साड़ी के पल्लू से अपने मुँह में दबा दिया। उनके इस व्यवहार पर मुझे भी हंसी आ गई और वातावरण में जो अब तक तनाव भरा हुआ था, हल्का हो गया। मैंने अपने पैग पीने के दौरान उनसे कलकत्ता और उनके परिवार के बारे में पूछताज की तो मुझे पता चला कि वो ग्रेजुएट थी और उन्होंने संगीत भी सीखा था। मै बात तो उनसे कर रहा था लेकिन हर क्षण उनका आभा मंडल मुझ पर छाता जा रहा था। मै अब उनको बिना झिझके उनकी देख भी रहा था और उनसे खुल के बात भी कर रहा था। मुझे तभी सरूर का एक झौंका आया और मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा,"है यह बड़ी अजीब बात, उम्मीद है आप बुरा नहीं मानेगी। मुझे आपके सामने यह स्वीकार करने में कोई शर्मिंदगी नही की आज तक मैंने आपकी ऐसी इतनी सुन्दर गरिमामय स्त्री नहीं देखी।"

मेरी इस स्वछंद स्वीकारोक्ति पर वे अचंभित हो कर अवाक रह गई। फिर वह संभली और बंग्ला में उन्होंने कुछ तेजी से कहा, जो मेरे पल्ले बिल्कुल भी नहीं पड़ा। मै उन्हें प्रश्नवाचक दृष्टिसे एकटक देखता रहा, जैसे मै उनसे पूछ रहा हूँ की आपने क्या कहा ?

उन्होंने साड़ी का पल्ला अपने सर पर रखते हुए, आंखे निकालते हुए मुझसे कहा,"सर आपको भी चढ़ गया? कैसी बात बोला? मै कहाँ एक बुढ़िया और आप मेरा प्रशोन्सा कर रहे है?"

मै उनकी बात सुनकर हंस दिया और ऐसा व्यवहार किया कि जैसे मैंने कोई आमोद की बात की हो ताकि वो कोई बुरा न माने। इसी बीच अंदर कमरे से देवब्रत की खर्राटे की तेज आवाज आने लगी। हम दोनों ने खर्राटों को सुना और हम दोनों की आँखे मिली।

मैंने कहा," अब तो देबरत सुबह ही उठेगा. मेरे ख्याल से अब चलता हूँ। पेट भर चूका है।"

इस पर उन्होंने कहा," अरे यह कैसे हो सकता है? बैठिये, अभी खाना आता है।"

यह कह कर वे अंदर चली गयी और थोड़ी देर में ट्रे में खाना लेकर वापस अंदर आगई। उन्होंने एक प्लेट में मेरा खाना लगा दिया। मैंने यह देख कर कहा,"यह क्या? सिर्फ मै? नहीं, मैं अकेला नही खाऊंगा, आप भी साथ मे खाइए।"

मैं यह कहते हुए खुद ही दूसरी प्लेट लाने, किचन की तरफ लेने चल दिया। उस पर उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर रोक दिया और बोली," बोशो बोशो! बाबा लाती हूँ!"

अब तक शराब ने निसंदेह मेरा बहुत ज्यादा सामर्थ्य बढ़ा दिया था। मेरा विवेक गायब होते जा रहा था। मैं जो कर रहा था, वह यदि चेतन अवस्था मे होता तो अदम्य इच्छा होने के बाद भी नहीं करता। मैं सौ बार ऊँच नीच को सोचता। मेरे लिए यतार्थ तो यही था की देवब्रत भट्टाचार्य, मेरे अधीन तृतीय श्रेणी के सहायक के रूप में कार्यरत था। मै उसका अधिकारी, अंधेरी रात में, कर्मचारियों की कॉलोनी में उसके घर मे बैठ कर शराब पी रहा था और मेरे साथ अकेले में एक अकेली महिला बैठी हुई थी। वो महिला, भले ही मेरी माँ की उम्र कि थी लेकिन उसके व्यक्तिव ने मुझे उसके प्रति आसक्त कर दिया था।

वो फ़ौरन अपनी भी प्लेट ले आई और खाना परसने लगी। वह जब खाना परोस रही थी तब उनकी साड़ी का पल्लू खिसक गया और उनका लाल ब्लाउज दिखने लगा था। किसी स्त्री का ब्लाउज दिखना तो को खास बात नहीं थी लेकिन विशेष यह था की इस उम्र में भी वह ब्लाउज उनकी कसी कसी छातियो की अनुभूति दे रही थी। मुझे नशा जरुर चढ़ रहा था लेकिन मेरे अंदर उफान लेती हुई कामुकता की एक अद्मय लालसा, मेरे नशे को और बढ़ा रही थी। मुझे वह बुजुर्ग महिला, बेहद सम्मोहित कर रही थी। मेरे लिए, मेरे सामने, बालो में सफेदी लिए बैठी वह प्रौढा, सिर्फ, शारीरिक रूप से कामोत्तेजना का संचार करने वाली पूर्ण रूपेण स्त्री थी। मेरे अंदर प्रज्वलित हो चुकी कामाग्नि का न उनकी उम्र से कोई मतलब था, न सामाजिक बंधन की, न मर्यादा की और न ही संस्कार की बाध्यता की। उस क्षण, रात के सन्नाटे में, टेबल पर एक तरफ सिर्फ कामुकता से विहिल एक पुरुष बैठा था और दूसरी तरफ एक आभा बिखेरती स्त्री थी जो स्वयं अंजाने में उस पुरुष में काम को उद्वेलित कर रही थी।
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उस समय कुछ ऐसा अवश्य हुआ की वे मेरी उनकी छातियों को घूरती आंखों को लेकर सचेत हो गई और उन्होंने अपना पल्लू संभाल लिया। उन्होंने जब अपने पल्लू से अपने उन्नत वक्षस्थल को ढका तो लगा की जैसे मैं किसी तन्द्रा के टूटने से जागा हूँ। मैं एक चोर की तरह उनसे बिना आंख मिलाए, अपने खाने की प्लेट में धंस गया। मेरा ह्रदय बेहद तेजी से धड़क रहा था। मै अपनी मर्यादा की सीमाओं को तोड़ते जारहा था और स्वयं को धिक्कार भी रहा था, लेकिन मेरे वश में भी कुछ नहीं था।

मैंने उनको कनखियो से देखा, वो असहज सी, सिमटी हुई, धीरे धीरे मछली चावल खा रही थी। मुझे उनको देख कर लग रहा था की वे भी हिली हुई है। मुझे इसमे कोई संदेह नही रह गया था की अपने बेटे के उम्र के व्यक्ति की आंखों और उसके मन को उन्होंने पढ़ लिया था। उनके चेहरे के अभिप्राय से लग रहा था कि वे बेहद तनाव में है। मैं उनकी यह उलझन समझ सकता था क्यों कि जो मेरे से स्पंदन उन्हें मिल रहे थे, वह तो उन्होंने कभी उन्होंने सोंचा भी नहीं होगा। मैं, उस समय कमरे में छा गये कृतिम सन्नाटे को तोड़ने के लिए बराबर खाने की प्रशंसा करने लगा और आखरी कौर लेते वक्त, मेरी जबान फिर फिसल गई। मेरे मुँह से निकला,"मैंने जीवन में इतना शानदार खाना, इतने शानदार हाथो से बना हुआ कभी नहीं खाया, बहुत खूबसूरत।" और उनको देखते हुए बड़ी मादकता से मुस्करा दिया। उन्होंने मेरी यह अतिरेकता से भरी प्रशंसा को सुनकर पहले तो मुझे घूरा और फिर, "धत!" कह कर, लजाती हुई अंदर चली गई।

मैंने खाना खाने के बाद, अंदर वाश बेसिन में हाथ धोये और उनकी दी गई तौलिया से हाथ पोछने के बाद कहा,"अब मै चलता हूँ, देवब्रत को कुछ मत कहियेगा।" उन्होंने सर हिला कर, इसकी मौन सहमति दी और मेरे पीछे पीछे, मुझे बाहर मुझे छोड़ने के लिए चली आई। मैं गलियारे से होते हुए दरवाजे तक पहुंचा और उसकी सिटकनी खोलने से पहले, उनको धन्यवाद देने के लिए, अचानक पीछे मुड़ गया। मेरे अचानक पीछे की तरफ के मुड़ने को वे देख नहीं पाई और मुझसे टकरा गई।

मै लड़खड़ा गया और सँभलने के लिए उनको पकड़ लिया। मेरे हाथ उनके कंधो पर पड़े थे। मेरा उनके कंधे को छूना मेरे अंदर एक बवंडर ले आया। एक साथ मेरे दिमाग में सैकड़ो तूफान उठ गए। उस वक्त ऐसा लगा मै डूबने वाला हूँ और उस सहारे को मैं अपने अंदर समेट लूँ। अपने को सँभालते सँभालते, मेरी बाँहों ने उनका जकड लिया था। जो हुआ वह नियति प्रधान था, वह एक दैवयोग था। मैंने जब उनको अपनी बाहों में पाया तब मेरा उनके प्रति आकर्षण, आसक्ति, मेरे आप से बाहर हो चुके थे। मेरा अचानक लड़खड़ा कर, संभालने के लिए पकड़ना और उनका मेरी बाहों में जकड़ जाने वे बेहद घबड़ा गयी। उनके मुँह से हड़बड़ाते हुये बंग्ला में कुछ निकला और फिर कहा," सम्भालिये! क्या कर रहे है सर? छोड़िये।"

मैंने नशे में उनकी बात को अनसुनी कर, उनको अपनी बाँहों में और कसके समेटते हुए, आहिस्ता से लड़खड़ाती जबान से कहा,"नहीं बर्दाश्त कर पाया। आप मुझे बहुत अच्छी लगती हो।"

"क्या बाबा क्या बाबा!" लगभग चिल्लाते हुए उन्होंने कहा।

मेरे तब तक सारे ज्ञान चक्षु बंद हो चुके थे। मैंने उनको बाहों में कस के लेते हुए, अपने ओठ उनके ओठ पर रख दिए। मेरे ओठो को अपने ओठो पर पाकर वो मुझे धक्का देकर, मुझको अलग करने की कोशिश करने लगी और पीछे मुंह मोड़ कर ड्राइंग रूम की तरफ देखने लगी। मैंने उनसे बड़ी कामुक विहल स्वर में कहा, "कुछ नहीं होगा, प्लीज आप बहुत सुन्दर हो, मै अब अपने आप पर काबू नहीं रख पा रहा हूँ।"

मेरी बात सुन कर उन्होंने मेरी तरफ लॉबी के अंधियारे में घूर कर देखा, उनकी आँखो में आंसू दिख रहे थे और चेहरे पर घबड़ाहट थी। फिर उन्होंने कातर स्वर में कहा,"सर जी, बेटे के बराबर हो! छोड़ दीजिये! यह ठीक नहीं है!!"

यह सुन कर मैंने कहा,"आप माँ कहाँ लगती है!! मेरे लिए संपूर्ण स्त्री है। मुझे मालूम है की आपको मै भी पसंद हूँ।"

यह कहते हुए मै अपना शरीर, उनसे रगड़ने लगा। मेरा कामांध लंड उनकी जांघो को साडी के ऊपर से दबाने लगा। वो बारबार ड्राइंगरूम की तरफ देख रही थी लेकिन कुछ कह नही रही थी। मुझे लगने लगा था कि उनका विरोध तो है लेकिन वह विरोध ऐसा नहीं था की मुझे उन्हें बाँहों में जकड़ने में कोई जबरदस्ती करनी पड़ रही थी। एक तरफ मै अपना लंड उसकी जांघो से रगड़ रहा था और दूसरी तरफ मेरे ओठ उनके ओठो, गालो और आँखों को चूमे जा रहे थे।मेरा बायां हाथ उनकी पीठ को ऐसा सहला रहा था जैसे की मैं उन्हें आश्वस्त कर रहा हूँ की सब ठीक है, घबड़ाने की कोई बात नहीं है।

मेरे तीन तरफ़ा प्रणय निवेदन से उनके शरीर में तनाव जहां बढ़ रहा था वही मेरी बाहों में उनका शरीर शिथिल हो रहा था। उन्होंने फिर धीरे से, कांपती हुई आवाज में कहा," सर! बहुत गलत हो जायेगा। बेटा बगल में ही सो रहा है। उसने कही कुछ देख सुन लिया तो इस उम्र में मुंह दिखने लायक नहीं रहूंगी!"

मुझे उनकी बात सुन कर इत्मीनान हुआ की मेरी वासना से ओतप्रोत उनका स्पर्श, उनकी अंदर की स्त्री को स्पर्श कर रहा है। उनको मेरा आलिंगन, मेरा चुम्बन और मेरे लंड की व्यग्रता, उनको भी अच्छी लग रही है लेकिन इसके साथ वह जो कह रही थी वह भी सही था। मैंने उनकी बात को सुन कर, उनको अपने सीने से चिपका लिया और उनकी छातियाँ मेरे सीने से आके चिपक गयी। मैंने उनके माथे को चूमते हुये, अपना दायाँ हाथ उनके ब्लाउज के ऊपर से ही, उनकी दाहिनी चुंची पर रख दिया। उन्हें सहलाते हुए, मैंने फुसफुसाते हुए कहा,"वो सो रहा है, कल सुबह से पहले नहीं उठेगा, सब जगह सन्नाटा है।" और यह कहते हुए मैंने उनकी चुंची की घुंडी पकड़ी और अपने ओंठ को उनके ओंठो पर रख, उनके निचले ओंठ को दबाकर चूसने लगा।


मै उनके ओठ चूस रहा था और मेरा दायाँ हाथ उनकी चूची को ब्लाउज के ऊपर से ही मसल रहा था। इस वक्त वो मेरी बाँहों में असहाय पड़ी थी। मैंने जब अपना हाथ उनके ब्लाउज के अंदर डालने का प्रयास किया तो उन्होंने अपना मुंह मोड़, पीछे की तरफ देखा। जैसे वह आशवस्त होना चाहती थी की उनका लड़का अभी सो रहा है। जब वो पीछे की तरफ देख रही थी तो मैं थोड़ा घूम कर, उनके पीछे आगया और पीछे से उनको जकड लिया। अब मेरा लंड, साड़ी के ऊपर से उनके चूतड़ों को दबा रहा था। मेरे दोनों हाथ, ब्लाउज के ऊपर से उनकी भरी हुई चूचियों को दबा रहे थे। मेरे ओठ उनकी गर्दन, उनके बाल, उनके कानो को चूमे जा रहे थे। हम दोनों, इसी अवस्था में करीब 2/3 मिनिट खड़े रहे। मेरा शरीर उनके शरीर को रगड़े जा रहा था और उनकी साँसे गहरी होती जा रही थी। 55 वर्ष की प्रौढा के अंदर के स्त्रीत्व ने कामुकता का आलिंगन कर लिया था और उनका शरीर ढीला पड़, मेरे शरीर का सहारा ले रहा था।

मैंने उसके बाद, अपनी उंगलियां उनके ब्लाउज के अंदर घुसा कर, उनकी चुंचियो को पकड़ने का प्रयास किया तो उन्होंने सर हिला कर मना किया और मेरे से अलग होने की कोशिश करने लगी। यह देख कर मैंने उनको छोड़ दिया और उनका हाथ पकड़ कर पैन्ट के ऊपर से ही अपने कड़े लंड पर रक्ख दिया। मेरे लंड पर हाथ रखते ही वे थोड़ा चिहुंकी, लेकिन मैंने उनका हाथ कस के अपने लंड के ऊपर दबाया हुआ था। उस वक्त, गलियारे के अध उजियारे में उनकी आंखें मुझे घूर रही थी। जैसे वो, कुछ मुझ मे पढ़ना चाहती हों या यह देखने का प्रयास कर रही थी की मै कितना उनको पढ़ रहा हूँ। मैंने यह देखने के लिए की उनमे कितनी आग लगी है, लंड पर रक्खे उनके हाथ पर अपने हाथ का दबाव कम कर दिया। मेरे दबाव कम हो जाने के बाद भी उन्होंने अपना हाथ, मेरे लंड से हटाने की कोई कोशिश नहीं की। इस उम्र में अपने से दो दशक से ज्यादा छोटे जवान लंड के स्पंदन ने, उनके अंदर की स्त्री को कामोत्तेजित कर दिया था।

उनके हाथ की उंगलियां मेरे लंड के तनाव को नाप रही थी और साथ मे वे गर्दन घुमा घुमा कर पीछे ड्राइंगरूम की तरफ देख रही थी। वो अभी भी अपने बेटे देवब्रत के उठने के प्रति संशकित थी। अब मैंने उनके कंधे पर जरा जोर देकर उनको दीवार के सहारे ही चिपका दिया और उनके ओठो को चूमने लगा। मेरे एक हाथ अब उनकी भारी अधेड़ चूंचियों को ब्लाउज़ के ऊपर से ही मसल रहा था और दूसरे हाथ से उनके चूतरो को साड़ी के ऊपर से सहला और दबा रहा लगा। मैंने जब एक बार फिर अपनी उंगलियों को ब्लाउज में घुसेड उनकी चुंचियो की नग्नता को स्पर्श करना चाहे तो फिर उन्होंने मना करते हुए फुफुसाय,"बेटा, अब जाने दो।"

मैंने कहा,"आपने आग लगा दी है, अब कैसे रुंकु? सच कहिए, आपको अच्छा लग रहा है?"

इस पर वो चुप हो गयी। मैंने उनकी चुप्पी देख, अपने हाथ को, उनके ब्लाउज़ के भीतर डाल कर, ब्रा में घुसेड़ कर दाहिनी चुंची को पकड़ लिया। जैसे ही मेरी ऊँगली से उनकी घुंडी को को सहला कर रगड़ा, उनके मुँह से सिसियाते हुए निकला,"बाबू न बाबू!" और पहली बार उन्होंने अपना पूरा शरीर मेरे ऊपर निढाल छोड़ दिया। मै तो इस खूबसूरत बूढी स्त्री को समर्पित होता देख, बावरा हो गया था। मैं जब उनकी चूचियों को दबा रहा था तब मैंने अपनी पैन्ट की ज़िप को खोल कर, अपना लंड बाहर निकल लिया और उनका हाथ पकड़ कर अपने गर्म फंफनाए लंड पर रक्ख दिया। उनके अधेड़ हाथ को जैसे ही इस मस्त जवान लंड का स्पर्श मिला उनके मुह से उईईई की आवाज निकल पड़ी!

मेरा कड़कड़ाते लंड का स्पर्श पाते ही उनकी भावभंगिमा बदल गई। उन्होंने मेरे लंड को कस के उन्होंने मुट्ठी में दबा लिया। मैंने उनको वासना में मादक होते देख कर उनकी साड़ी उठा, अंदर हाथ डालने की कोशिश की तो उन्होंने मेरे लंड से हाथ हटा लिया और साड़ी उठाते हाथ को रोक, बंग्ला में कुछ कहा। मेरा उसका भावार्थ समझ गया था, वो मुझे साड़ी के अंदर छूने को मना कर रही थी। वो स्त्रियोचित लज्जावश मुझे रोक रही थी लेकिन मेरे अंदर तो काम इतना प्रवेश कर चुका था कि मेरे सारी इंद्रियों पर चुदाई सवार थी। उनका रुक रुक कर रोकना मेरे अंदर झुंझलाहट पैदा कर रहा था। हालांकि मैं यह जनता था कि इस पतले से गलियारे से 20/25 कदम पर उनका 27 वर्ष का जवान बेटा सो रहा है और यह उचित स्थान नही है, जहां पहली बार, इससे ज्यादा दैहिक स्वतंत्रता ली जाए। मैंने उनकी चुचियो को कसके मसलते हुए कहा,"बाहर अँधेरा है, शेड के नीचे चलते है।"

उन्होंने फिर सर हिलाया और कहा,"यह कैसे होगा? नहीं सर जी, आप अब घर जाओ।"

मैंने उस पर कहा," इस रात के सन्नाटे में, 11 बजे शेड में कोई नहीं देखेगा। उसके बाद मै चला जाऊँगा।"

यह कह कर मैंने दरवाजा खोला और बाहर इधर उधर देख, उनको हाथों से पकड़ बाहर ले आया। बाहर एक 15 वाट का बल्ब आगे गेट पर जल रहा था और पूरी कॉलोनी में सन्नाटा था। एक बार फिर चारो तरफ देखने के बाद, मै उनको शेड के नीचे ले आया, जहाँ पर घर के पुराने सामान रक्खे हुए थे। वहां आकर मैंने देखा की वो अभी भी बहुत घबड़ाई हुई थी और बार बार इधर उधर देख रही थी। मै वही फर्श पर रक्खे हुए पुआल पर बैठ गया और उनका हाथ खीच कर नीचे बैठा लिया। अब हम ऐसी जगह थे, जहाँ से कोई भी हमें नहीं देख सकता था और यदि कोई बाहर सड़क पर आता जाता भी तो वह हमें नही दिख सकता था। मैंने उनको पहले इत्मीनान से बैठने दिया और फिर उनको दिलासा देने के लिए उनकी पीठ सहलाने लगा। मेरे ऐसा करने से वे थोड़ी शांत हुयी और इस दौरान मेरा लंड जो अब भी पैंट के बाहर था वह मुरझा गया था।

मुझे उस रात के अँधेरे में उनकी भारी सांसे सुनाई दे रही थी। मेरे खुद के ह्रदय की धड़कन भी बहुत तेज चल रही थी। में जब यहां खाना खाने आया था तब मैंने सोचा भी नहीं था की मै इस तरह, चोरो की तरह, एक कोने में कामपीड़ित अवस्था में बैठूंगा। लेकिन यह चुदाई की लालसा एक ऐसा कामोन्माद है की कब और कैसे चढ़ जाये, कोई नहीं जानता है। मुझे अपने से 20/25 वर्ष बड़ी एक बूढी महिला, स्त्री के रूप में अच्छी लगी, वही एक अचरज था लेकिन मै उस पर आसक्त हो, उसे चोदने में दुस्साहसी हो रहा हूँ वह बड़ी विचित्र बात थी। मुझे कही न कही उनकी आँखों से झांकती, उनके अंदर की छुपी हुई स्त्री ने मुझे इतना निर्भय बना दिया था की मैं अपने कामातुर प्रणय को उनसे अभिव्यक्त कर दिया था। उस दुस्साहस का ही परिणाम था वह कुंदन सी दमकती प्रौढा मेरे साथ शेड के नीचे, बगल में मेरी स्त्री बनी बैठी थी।

मेरे हाथ उनकी पीठ सहला रहे थे और वे भी मेरे स्पर्श की पूरी अनुभूति ले रही थी। उनको शांत देख कर, मैंने उनके कंधे पर अपना दाहिना हाथ रख दिया और उनको गले लगा लिया। मैं अपने बाएं हाथ से उनका चेहरा उठाया और उनके ओठो को चूमने लगा। इस बार उनके ओंठ मेरे ओंठो से लड़ नहीं रहे थे। वो मेरे चुम्बन को स्वीकार कर रही थी और मेरे ओठो को उन्हें चूसने दे रही थी। मैं उनके इस तरह से चुम्बन के स्वीकार करने से आश्वस्त हो गया की वे, मैं जो आगे करने जारहा हूँ उसके लिए मानसिक रूप से तैयार होगई है। मैंने अपने बाये हाथ से उनके ब्लाउस के ऊपर से पहले उनकी चूचियो को सहलाया और फिर उंगलियो से उनके आगे के हुक खोल दिए। अँधेरे में उनकी चूचियाँ सफ़ेद ब्रा के अंदर, अध छुपी अध खुली स्वछंद होगई थी। मेरे हाथ अब तेज़ हरकत में आगये। पहले तो ब्रा के अंदर घूस कर मैंने उनकी बड़ी बड़ी चुंचियो को जो उम्र की मार पर थोड़े लटके थे उनको कब्जे में लेकर मसला और फिर बिना समय गवाए पीछे से मैने उनका ब्रा खुलने लगा।

मेरे ब्रा खोलने पर वो फिर बोल पड़ी," इसे न उतारो बेटा, जगह ठीक नहीं है।"

किंतु यह कहते हुए उन्होंने खुद ही ब्रा ऊपर कर के अपनी चूचियों को नंगा कर दिया। नंगी चूचियो को देख कर तो मै फिर उत्तेजित होगया। मेरा लंड जो छोटा हो गया था, वह भी उन नग्न चुंचियो के आतिथ्य में कड़ा हो खड़ा होने लगा। मैंने अपना मुँह उनकी चूचियो पर लगा दिया और उनको चूमने और चूसने लगा। मै एक चूची और घुंडी को चूमता और चूसता तो दूसरी को हथेली से रगड़ता और घुंडी को उंगलियों के बीच लेकर दबाता। मेरे चूसने और घुंडीयों से खिलवाड़ पर उनमें भी उन्मत्तता छाने लगी। उनकी चुंचियो में कसाव उठने लगा और घुंडीया जो निर्जीव लग रही थी, वो भी कड़ी हो गई। अब उन्होंने पीछे दीवाल पर अपनी पीठ लगा कर टेक लगा दी थी और मै उनकी चूचियो से खुल के खेल रहा था। यह सब शायद 4/5 मिनट चला होगा की मैंने उनसे कान में कहा,"बंगालिन जादूगरनी होती है, यह मैंने सुना था, लेकिन आज तो आपने तो मेरे हवास ही उड़ा दिए।"

इस पर, उनके मुँह से से सिर्फ एक हलकी सी आह निकली, मैंने फिर कहा," लौड़ा पकड़ लो, आपके लिए बावला हो रहा है।"

उस पर उन्होंने धीरे से कहा," सर जी, बेटा जी, अब जाने दो। कही पकड़ गए तो न मै बेटे को मुँह दिखा पाऊँगी न आपकी इज़्ज़त बचेगी। "

उनकी बात बिलकुल सही थी लेकिन मैं कुछ समझने की स्थिति में नही था। मैंने उनकी चुंची चूसते हुए ही, उनको पुआल पर गिराने के लिए, हल्का सा धक्का दिया और वे निढाल सी, पुवाल बार पसर गयी। मैंने अब उनको पूरी बाहो में ले लिया और अपनी जांघ को उनकी जांघो पर चढ़ा दिया। मेरा फ़ुफ़कारता हुआ लंड अब साडी के ऊपर से ही उनको रगड़ने लगा था। मैंने लंड रगड़ते हुए उनसे कान में कहा,"अच्छा लग रहा है? मजा आरहा है?"

उनके मुँह से एक सकपकाती हुई आवाज निकली और उनका बदन कसमसा गया। फिर उन्होंने कहा, "बाबू ,जो करना है जल्दी करो।"

मै समझ गया था की अब मैंने ज्यादा देर की तो वे घबड़ा कर मना कर सकती है और पकडे जाने का खतरा भी ज्यादा बढ़ जायेगा। मै अपने ओठ उनके कान के पास लगाया और उनके कान चूसते हुए बोला,"आपका भी मन कर रहा है, जरा लौड़े को भी पुचकार दो!'

यह कह के मैंने उनकी हथेली पकड़नी चाही लेकिन उससे पहले ही उन्होंने हाथ बढ़ा कर मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में बन्द कर लिया था। जैसे ही उन्होंने मेरे लंड को मुट्ठी में लेकर दबाया , उनके मुह से "उम्म्म" की आवाज निकल पड़ी और वे बिना मेरे कुछ कहे, मेरे लंड को सहलाने लगी। मेरे लंड के सुपाडे को अपने अंघुठे से रगड़ने लगी। उनकी इस हरकत से मेरे अंदर तो बिजली दौड़ पड़ी और उनको मैंने कस के जकड कर, उनकी चूचियों, उनके पेट, उनकी गर्दन को चूमने लगा। मेरे चूमने की रफ़्तार के साथ साथ वे भी मेरे लंड को कस के हिलाने लगी। वो मेरे लंड को इस तेजी से हिला रही थी कि मुझे लगा की कहीं इनका इरादा मुझे मुट्ठ मार कर झाड़ देने का तो नही है? मैंने उनको रोकने की जगह, हाथ बढ़ा कर उनकी साड़ी ऊपर खीच दी। जैसे ही मैंने ऐसा किया उन्होंने लंड छोड़ मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली,"बाबू बेटा जी, अब यह मत करो। आज छोड़ दो फिर कभी। जगह ठीक नही है, खतरा है।"

उनकी बात सुनकर मै अंदर ही अंदर मुस्करा दिया। यह पहली बार था जब वह खुद ही मुझसे फिर से मिलने के लिए कह रही थी। मै जानता था जिस जगह और जिस हालत में हम लोग है वो बिलकुल भी सही नहीं है। उनका भी मन डोल चुका था और अब खुद चुदासी हो चुकी थी। वह यही चाहती थी कि जब चुदना ही है तो कायदे से, चुदा जाये। लेकिन मेरे अंदर कामुक पुरुष सब जानते हुए भी कल पर कुछ नहीं छोड़ना चाहता था। मैंने साड़ी ऊंची करते हुए कहा,"अब चूत तो छूने दो, देंखे तो आपकी बंगाली चूत कैसी है। मेरा लंड तो देख लिया मुझे भी देखने दीजिये।"

इसके साथ साड़ी, पेटीकोट समेत ऊपर तक उठ दी। उनकी नंगी जांघे दिखने लगी थी। मै जब उन पर हाथ फिराते हुए, अपने हाथ धीरे धीरे ऊपर ले जाने लगा, उनके पैर कांप रहे थे। उनका कंपन मुझे महसूस हो रहा था। यह कंपन कामोत्तजना का भी था और इस प्रकार बाहर अँधेरे में इस तरह लथ पथ पड़े होने का भी था। आखिर मेरी हथेली उनकी जांघो के बीच पहुँच गयी और घनेरे बालो के बीच वो जादुई चूत मेरी उंगलियो से घनघना उठी। मै उनकी चूत को इतने आहिस्ते से सहलाया जैसे कोई नयी नवेली चिकनी चूत हो। मै इतना अभिभूत था की उंगलियों से उनकी चूत के घनियारे बालो को ऐसे सहला रहा था जैसे मैं चूत को कंघी कर रहा हूँ। मेरी ऊँगली ने जब उनकी चूत को फांको को अलग कर अंदर उनकी चूत में प्रवेश किया तो वो एक दम से मेरी बाहों में धनुषाकार टेढ़ी हो गयी और फुसफुसाने लगी,"उई बाबू उई!आआआआअहह्ह्ह!"

मै उनकी उखड़ी बैचेन आवाजो से और उत्तेजित हो गया और झट सर उठा उनकी जांघो के बीच घुसेड़ दिया। यह सब इतनी तेजी से हुआ की वो भी नहीं समझ पायी यह क्या हुआ। जब उनको मेरी नाक और मेरी जीभ उनकी चूत पर महसूस हुयी तो न चाहते हुए उनके मुँह से ,"हाय!!! छी छी!!!! गन्दा गन्दा!" निकल पड़ा। उनके दोनों हाथ मेरी सर पर गये और मुझे अपनी चूत से हटाने लगी। लेकिन मैंने उनकी एक भी नहीं सुनी। मैं तो चूत का उन्मत्त प्रेमी हूँ, उसकी महक, उसके स्वाद और उसके स्पंदन का दीवाना हूँ। मैंने उनकी जांघे थोड़ी और चौड़ा कर उनकी झांटो सहित चूत को अपने ओठो में दबोच लिया। मेरी जीभ पर जैसे ही चूत का स्वाद चढ़ा, मै उसकी चूत की फांको को कस के चूसने लगा। मेरी जीभ जब उनकी चूत के अंदर तक गई तो तो वे छटपटाने लगी। उनका विरोध इस लिए था की कभी उनकी चूत किसी ने चूसी नहीं थी। चूत चूसना, कामक्रीड़ा में महत्वपूर्ण है यह मालूम ही नही था। उनके लिए यह गन्दा काम था। उनको चूत चुसवाने में शर्म भी आरही थी, क्यों की मेरी जीभ को पता चल चूका था की उनकी बरसो से सूखी चूत, अंदर से गरम और लसलसी हो गयी थी। मै अपनी जीभ से ही उनकी चूत को चोदने लगा था। जैसे जैसे मेरी जीभ, उनकी चूत अंदर बाहर होती, उनकी जांघे ढीली पड़नी और फैलनी शुरू हो गई थी। उनको अपनी चूत पर इस नए प्रहार का अंजाना सुख मिल रहा था और वे अपनी सुधबुध खोती जारही थी।


बरसो से सूखी चूत पाकर मै निहाल होगया था। उस वक्त मै कहाँ, किस हाल , कैसे और किसके साथ हूँ, यह मेरे चित्त से बिलकुल ही उतर गया था। मेरी जीभ तेजी से घनी झांटो वाली चूत के अंदर बाहर हो रही थी और बीच बीच मै उनकी भग्नाशा को ओठो के बीच लेकर कर चूसते हुए कस के मसल दे रहा था। उनकी भग्नाशा बड़ी थी, जो मेरे ओठ और जीभ के आक्रमण से कड़ी हो कर चूत की फलको से ऊपर निकल आई थी। अपनी चूत पर मेरे चुंबन और जीभ से की गई चुदाई के कारण, वे पूर्ण समर्पण किये, अब पड़ी हुयी थी। मुझे सिर्फ उनकी गर्म सांसे और बीच बीच में घुटी हुयी आहे ही सुनाई पड़ रही थी। तभी बाहर सड़क पर कोई कुत्ता भौका और हम दोनों ही अपनी अपनी तन्द्रा से जाग पड़े। वे हड़बड़ा कर, अपने पैर भीचते हुए उठने लगी और मै भी, इस अचानक जांघो के दबाव से, उनकी चूत से मुँह हटा कर, अपना सर ऊपर कर के अँधेरे में सड़क की तरफ देखने लगा था। जब इत्मीनान हो गया की कोई नहीं है, तब मैंने उनकी तरफ सर घुमाया तो देखा वो उठी बैठी थी, ब्रा में चुचिया कैद हो चुकी थी और साडी ने भी उनकी चूत को ढक लिया था। हकीकत में मेरे लंड भी अपना कड़ापन भूल कर ज़िप के बाहर झूल रहा था।

मैंने जैसे ही उनको अपने पास खीचा , वो कांपती हुयी आवाज में धीरे से बोली," सर जी, बेटा जी, रात बहुत हो गयी है, अब आप जाओ. प्लीज!"

उनकी बात बिलकुल सत्य थी लेकिन शराब के कारण चुदाई का भूत इस तरह मुझ पर चढ़ा था की न मुझे उनको छोड़ते बन रहा था न ही रुकते बन रहा था। मैंने बहुत दारुण स्वर से उनसे कहा," जानता हूँ, लेकिन सब्र नहीं होता। आप का मन न कर रहा हो तो, मैं चला जाता हूँ।"

उसके बाद मै उनका हाथ पकड़ कर जवाब का इंतज़ार करने लगा। वे चुप चाप उस अँधेरे में सर झुकाये वही पुआल मै बैठी रही, उनकी साँसे धौकनी की तरह चल रही थी। उनको चुप देख कर मैंने उनके गालो का चुंबन लेते हुए बोला," बोलिए." और अपने लंड पर उनका हाथ रक्ख दिया। उनके हाथ का स्पर्श पाते ही मेरा लंड एक दम से उचक के खड़ा होने लगा और उसके साथ ही मैंने अपने लंड को उनकी मुट्ठी में दबते हुए पाया। वो मेरे लंड को कस के दबा रही थी और उसको सहलाने लगी थी। उनके हाथो की गर्मी से मेरा लंड फिर से कड़ा हो गया और उसके साथ ही मुझे उनका उत्तर भी मिल गया था। मैंने अपनी दोनों हथेलियों से उनके चेहरे को पकड़ा कर ऊपर किया और उनको लंबा चुंबन दिया। उनके ओठ अपने आप खुल गए और मेरी जीभ, जो उनकी ही चूत के रस में नहायी हुयी थी, उनके मुँह के अंदर चली गई।

फिर मैंने अपने दाहिने हाथ को नीचे कर के उनके ब्लाउस के हुक खोल दिए और साथ में उनकी ब्रा भी उनके बदन से अलग कर दी। अब उनकी चूचियाँ पूरी तरह नंगी मुझसे चिपक गई थी। फिर मेरे एक हलके से इशारे पर वे खुद ही पुआल पर लेट गई और मैंने आनन फानन में अपनी बुशर्ट , बनियान, पेंट और अंडरवियर उतार दी। अब मै पूरी तरह मदार जात नंगा था। मै नंगे ही उन पर गिर पड़ा और उनकी चूचियों को चूमने चाटने लगा। मेरी जांघो ने उनको अपनी गिरिफ्त में लिया था और उनके हाथ मेरे पीठ कमर और जांघो को सहलाने लगे थे। अँधेरे में उनके हाथ अब भी शर्म के मारे, मेरे लंड के आस पास से निकल जारहे थे लेकिन उसको पकड़ कर अपनी चूत में डालने का हौसला नहीं कर रही थी। उनको बरसो के बाद, किसी नंगे शरीर से जकडा था। मेरे ऐसे जवान नंगे शरीर को उनसे लिप्त पाकर, वे मेरे ही शरीर का पूरा सुख लेना चाहती थी। अब मैंने उनकी साडी ऊपर करने के बजाये , उसकी गांठ ही खोल दी। मैंने साडी जब खींची तो उन्होंने ने जरा भी विरोध नहीं किया, वे अब खुद भी कामाग्नि में जल उठी थी। उनको भी अब जगह और समय का कोई विचार नहीं रह गया था। उनका पेटीकोट भी एक झटके में खुल गया और उसको भी मैंने उनसे अलग कर दिया। अब हम दोनों ही नंगे थे और एक दूसरे से बुरी तरह चिपक हुए थे। मै उनको हर जगह चुम रहा था और मेरी हाथ उनकी चूत और चूतड़ों को सहला और दबा रहे थे। मेरी उत्तेजना तो इस सीमा तक बढ़ गई थी की मुझे इस बात का डर लगने लगा था की कही मै उनकी जांघो से लंड रगड़ते रगड़ते कही झड़ न जाऊ। यह सोच कर मै पलट कर उनके ऊपर आगया और नीचे की तरफ चला गया। वो भी समझ गई थी की जिस के लिए, इतने समय से अंतर्द्वंद चल रहा था, वह घडी आगयी है। उन्होंने अपने पैर उठा, अपने आप फैला दिए। जैसे अब वे निमंत्रण दे रही हों की आओ, बड़ी मेहनत कर ली, अब चोद लो मुझे आकर।

मैंने उनके पैरो को थोड़ा और ऊपर किया और अपना लंड उनकी चूत पर रख कर रगड़ने लगा। उनकी चूत लसलसायी हुयी थी। मेरे सुपाडे का स्पर्श पाकर वो एक दम से विहल हो गई और उनके मुँह से एक मादकता वाली कराहट निकल पड़ी। मुझे तो और इस तरह उनकी चूत को सुपाडे से रगड़ने की इच्छा थी लेकिन लंड इतने समय से उबला पड़ा था की मुझे खुद अपने पर ही विश्वास नहीं था की मेरा लंड कितने समय तक मेरा साथ दे सकेगा। वाकई यह कामक्रीड़ा का ही प्रताप था की एक करीब 55 वर्ष की हसीन बुढ़िया, मेरे 33 वर्ष के जवान लंड का मान मर्दन कर रही थी।

मैंने और देरी न कर के अपने लंड पर धूक लगाया और उनकी चूत पर लंड रख कर एक कसके धक्का मारा। मेरे लंड के उनके चूत में घुसते ही उनकी कमर कसके हिली और उनके मुँह से हलकी सी चीख निकल पड़ी। उनके मुँह से,"अरी बाबा!' निकला और तेजी से बांग्ला में उन्होंने कुछ बोला। उनके स्वर में जहां वर्षों बाद बिना चुदी चूत में 6 इंच के भन्नाए लंड के घुसने की कराहट थी वही उनकी अनभ्यस्त चूत में जवान लंड के आगमन का कामसुख भी था। मेरा लंड एक धक्के में ही आधे से ज्यादा उनकी चूत में घुस गया था। उनकी चूत बुजुर्ग जरूर थी लेकिन कई बरसो से अनचुदी होने के कारण कसाव लिए हुई थी। मैंने दूसरा धक्का और कस के मारा और उनकी चूत में मेरा पूरा लंड समां गया। मेरे दूसरे धक्के पर वो कसमसा उठी और उनके मुँह से फिर से दबी हुई आवाज़ निकली। मैंने तुरंत उनके मुँह को अपने ओठो से बंद कर दिया। अँधेरे सन्नाटे में हलकी आवाज भी दूर तक जाती है और मुझे डर था की कही किसी को आहट न हो जाये। मैं उनकी चूत में लंड डाले पड़ा रहा और उनसे फुसफुसते हुए कहा,"आवाज मत करिये।" उन्होंने सर हिलाकर बताया की वो समझ रही है।

अब मैंने उनकी चूत को धीरे धीरे चोदने लगा। लंड ने पूरी तरह उनकी चूत में अपना रास्ता बना लिया था और चूत की गर्माहट उसको महसूस होने लगी थी। उनकी चूत को मेरे लंड से मिल रही गर्मी, उन पर भी असर कर रही थी। उन्होंने ने मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया। मैं 6/7 धीरे धक्के मारने के बाद एक कस के धक्का मार कर लंड को चूत की जड़ तक पंहुचा दे रहा था। जब मै कसके धक्का मारता तब उनकी कमर हिल जाती थी। अब मैंने उनके पैरो को और उठा दिया और अब लंड सीधे उनकी चूत को चोट कर रहा था। 4/5 मिनट उनको इस तरह चोदने के बाद, मै उनकी चूचियों को भी मसलने लगा और वो भी अब अपनी कमर को उठा कर मेरे लंड को अपने अंदर पूरा लेने लगी थी। उस सन्नाटे में पुवाल के ऊपर मेरे लंड के हर धक्के पर अब धम्म धम्म की आवाज आने लगी थी। इधर मेरा लंड उनकी चूत को अब मस्त होकर चोद रहा था और मेरे हाथ उनकी चूचियो, उनकी घुंडीयों को आज़ादी से मसल और दबा रहे थे। मेरे ओठ कभी उनके गर्दन को चूमते कभी उनके गालो को और कभी उनकी चूची को चूस रहे थे। फिर तभी उन्होंने अपनी दोनों बाँहों से मुझे कस के पकड़ लिया और अपनी हथेली से मेरी पीठ और कमर सहलाने लगी। यह उन्होंने पहली बार इस तरह से मेरे साथ किया था। उनके इस तरह के स्पर्श से मेरे शरीर में एक सनसनी सी फ़ैल गयी थी। उनको चुदाई में आनंद आने लगा था। उनको चुदने के सुख की अनुभूति ने जाग्रत कर दिया था। वे इसी सुख और जागरण से अभिभूत मुझे सहला कर, अनुग्रहित होने के भाव को मुझे समर्पित कर रही थी।

मै उनके कान के पास जाकर बोला," मजा आरहा है? बहुत मस्त हो आप, सारी जवान औरते बेकार है। जो आपको चोदने में मजा आ रहा है वो अभी तक नहीं मिला।"

यह सुनकर, वे अपना मुँह उठा कर मेरे से गले लग गयी और अपने पैरो को मेरे कमर पर चढ़ा दिया। उन्होंने मुझे अपने से और चिपका लिया और मेरे गालों और ओंठो पर ताबड़तोड़ चुम्बन देने लगी। उनके मुँह से 'उम्म''उम्म' की आवाज निकल रही थी। उन्होंने फिर अपने पैर से मेरे चूतड़ों की सहल दिया जिस पर मै पगला ही गया और तेजी से उनको चोदने लगा मै अब अंतिम पड़ाव पर पहुंचने वाला था, इसलिए मैंने उनसे कहा,''सुनो घोड़ी बन जाओ, पीछे से चोदते है।''

तब उन्होंने सर हिलाते हुए धीरे से कहा,' बेटा, नही, अभी ऐसे ही कर के जाओ, बाद में जैसा चाहना कर लेना।"

उनकी बात सुन कर मैंने ताबड़ तोड़ 5/6 धक्के मारे और कहा,''ठीक है, लेकिन पहले बताओ चुदने में मजा आया?''
उन्होंने सर हिलाया लेकिन मैंने उनके कान को चूसते हुए कहा,"ऐसे नहीं, बोलिये।"

इसपर उन्होंने नीचे से कमर चलते हुए कहा,"बेटा क्या कहे, पाप तो हो ही गया है। अपने बेटे जैसे से करवाऊँगी नहीं सोचा था। मर्द हो।" मै उनकी बात सुनकर और उत्तेजित हो गया और लगने लगा की अब कभी भी झड़ जाऊँगा। मैंने ध्यान बटाने के लिए उनसे कामांध कहा,"अब कब फिर चुदवाओगी? तुमको कुतिया बनाकर चोदना है।"

इस पर "आह" "आह" कहते हुए उन्होंने कहा,"बाबू मौका मिलेगा तो बेटे से कुत्ता बन जाना।"

उनका मुझे इस बार बेटा कहना कही मेरे लंड को हिला दिया और लगा कि अब नही रोक पाऊंगा। इसी के साथ मै उनकी चूत में कस कस के धक्के मारने लगा। मैंने थोड़े ही धक्के मारे होंगे की मेरे लंड से पिचकारी छूट गयी और मेरा गरम गरम लावा, लंड से निकल कर उनकी चूत में समां गया।

मेरे झड़ते ही मेरे वीर्य की गर्माहट से वे निहाल हो गई और कस कस के अपने चूतड़ उठा उठा कर मेरे लंड को ही चोदने लगी। मै झड़ने के बाद भी उनके बदन को कसके लिपटे हुए धक्के मार रहा था। धक्के मारते मारते हुए ही मेरा लंड अपने वीर्य और उनकी चूत के पानी से लिपटे हुये, उनकी चूत से बाहर निकल कर, उनकी झांटो और झांघो में सिमट गया। मै बुरी तरह हांफ रहा था और वो भी बेसुध बेहाल, बाल तितर बितर हुए, पुवाल में पड़ी हुयी थी। मै उनके ऊपर लेटा ही रहा। थक कर बेहाल था आँख भी बंद हो रही थी। मुझे चेतना तब आई जब उन्होंने मुझे अपने ऊपर से धकेल कर हटाया। मै उनके ऊपर से उठा और अँधेरे में उनको निहारने लगा। वे मुझे घूरता देख कर, अपने कपडे उठा, उठ खड़ी हुई। बड़ा ही खूबसूरत मंजर था, अँधेरे में उनके नग्न शरीर का सिर्फ एहसास भर हो रहा था, बाल खुले हुये थे, हाथ में कपडे लिए साडी लपेटने की कोशिश कर रही थी। मुझसे रहा नहीं गया और मैंने उनको वैसे ही बाहो में ले कर और चूम लिया। उन्होंने अपना बायां हाथ मेरे सर पर रख कर, मेरे बालो को सहलाते हुए कहा,"बाबा! अब तो बस करो! जाओ!"

मैंने उनकी चूची दबाते हुए कहा ," मन से बताइये, कब फिर मिलेंगी और चोदना है ?"

इस पर उन्होंने मेरे माथे को चूम लिया और कहा, '"शीघ्र।"
इसके साथ ही मैंने भी जल्दी से कपडे पहने और उनके अंदर जाने के बाद, अंधियारे में छुपता छुपाता अपने घर पहुंच चला आया।

वे करीब दो महीने वहां रही थी और इस बीच करीब 20 बार मैंने उनको चोदा था। देवब्रत जब भी अपनी मित्र मंडली या जहां काम चल रहा था, वहां फंसा होता तो फोन पर बात हो जाती। मैं रात को ही जाता था क्योंकि दिन में मेरे लिए देवब्रत के यहां जाना संभव नही था। लेकिन एकांत होने पर मैं उन्हें अपने ही घर बुलवा लेता था। हमारी पहली चुदाई के बाद से वे खुल गयी थी और उन्होंने ने मुझ से हर तरीके से चुदवाया। आज मै खुद 60 के ऊपर हो चुका हूँ लेकिन आज भी वह खूबसूरत 55 वर्षीय प्रौढ़ बंगालिन की याद मुझे कामातुर कर जाती है।
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