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Misc. Erotica छोटी छोटी कहानियां...
मेरी भाभी सँग अन्तर्वासना...

नमस्कार दोस्तो, मै एक‌ बार फिर आप लोगो के लिये अपनी एक नयी कहानी लेकर आ रहा हुँ, जोकी मेरी और मेरी प्यारी भाभी पायल की कहानी है...!


जैसा की आप मेरी पहले की हर एक‌ कहानी मे मेरी भाभी का जिक्र सुनते आ रहे हो... मगर उनके साथ मेरे इस‌ सफर की सुरुवात कैसे हुई..? 

ये मेरे जो xosip के पुराने पाठक है उन्हे तो शायद पता होगा, मगर जो नये पाठक है, जिन्होने वो कहानी नही‌ पढी उनके‌ लिये एक‌ बार फिर से मै ये कहानी लिखने की कोशिश कर रहा हुँ, उम्मीद ये आपको पसन्द आयेगी...
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यह कहानी मेरे पहले सेक्स अनुभव की है। यह मेरी और मेरी प्यारी पायल भाभी की कहानी है, जिसका जिक्र आप मेरी हर एक‌ कहानी सुनते आ रहे हो। मेरी सैक्स लाईफ की शुरुआत उनसे ही हुई थी। मेरी भाभी ने ही मुझे ये सब सिखाया है‌ या फिर ये कहुँ की‌ मेरी सैक्स गुरु वो है तो‌ इसमे कोई गलत नही है।

तो दोस्तो अब ज्यादा समय ना लेते हुवे मै अब सीधा कहानी‌ पर आता हुँ, 

पर कहानी शुरु करने से पहले एक बार फिर मैं आपको बता देना चाहता हूँ कि मेरी सभी कहानियाँ काल्पनिक हैं.. ये बस मात्र मनोरँजन‌ के लिये है जिनका किसी से भी कोई सम्बन्ध नहीं है। अगर होता भी है.. तो यह मात्र संयोग ही होगा।

मेरी आदत नहीं कि किसी और कि मेहनत अपने नाम करुं... कहानी लिखने का श्रेय महेश कुमार को जाता है...
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वो दुल्हन के लिबास में स्वर्ग की किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थीं.. बिल्कुल दूध जैसा सफेद रंग, गोल चेहरा, सुर्ख गुलाबी पतले पतले होंठ, बड़ी-बड़ी काली आँखें.. पतली और लम्बी सुराहीदार गर्दन.. काले घने लम्बे बाल.. बङी-बङी सख्त चुँचियाँ.. पतली बलखाती कमर.. गहरी नाभि.. पुष्ट और भरे हुए बड़े-बड़े कुल्हे...


हालांकि उस समय मुझे सेक्स के बारे में कुछ भी नहीं पता था.. मगर फ़िर भी भाभी मुझे बहुत ही अच्छी लगीं थी। सैक्स की नजर से नही, सैक्स का तो उस समय मुझे सैक्स "एस" भी नही पता था। बस उनकी सुन्दरता की वजह से वो दिल को भा गयी थी। वैसे भी‌ उस समय मैं बहुत डरपोक व शर्मीला सा लड़का हुवा करता था।

भाभी ने आते ही सारे घर की जिम्मेदारी सम्भाल ली थी। वो सारा दिन घर के कामों में व्यस्त रहती और जब कभी समय मिलता तो मेरी भी पढ़ने में मदत कर देती थी। भाभी ने बी.एससी. कि हुई थी इसलिए पढ़ाई में कोई दिक्कत आने पर मै भाभी से ही पूछ लेता था और उसके बदले कभी कभी मै भी भाभी का घर के कामों में हाथ बंटा देता।

शुरु शुरु मे तो मै अपने शरमीलेपन के कारण भाभी से कम ही बात करता था मगर फिर समय के साथ-साथ मैं और भाभी एक-दूसरे से खुलते चले गये, भाभी ने जहाँ मुझसे हँशी मझाक कर‌ना शुरु कर दिया तो मै भी उनके साथ शरारते करने लगा.. मगर मैंने भाभी के बारे में कभी गलत नहीं सोचा था।

##

मेरे दिन अब ऐसे ही गुजर रहे थे की एक बार स्कूल से आते समय मेरे कुछ दोस्त थे जो की‌ सैक्स के बारे मे‌ काफी कुछ जानते थे। उनमे से एक दो तो यहाँ तक कहते थे की वो सैक्स भी कर चुके है।

उन्होने कभी सैक्स ‌किया या नही‌ किया ये तो मुझे नही पता मगर हाँ पहली बार औरत कि अश्लील और नंगी तस्वीरे मुझे उन्होने ही दिखाई थी, यहाँ तक की वो तो मुझे हस्तमैथुन भी करने को भी बोलते थे मगर मै ही उनकी बातो पर कम ध्यान देता था।

उस दिन वो सारे ऐसे ही हँशी मजाक मे सेक्स के बारे में बातें कर रहे थे कि तभी...
"इसको देखो ऐसे ही घुम रहा है जबकी इसके तो घर मे ही जबरदस्त माल है..!"मेरे एक दोस्त ने मजाक करते हुवे कहा।


"क्या मतलब..?" मैंने पुछा तो वो कहने‌ लगा की.. "तेरी भाभी है ना.. तेरे भैया तो आर्मी मे‌ है, वो तेरी भाभी के पास तो रहते‌ नही, और तेरे भैया के जाने के बाद तेरी भाभी का भी दिल तो सेक्स के लिए करता होगा..?" इस पर मेरे सारे दोस्त जोरो से हँसने लगे।

उस समय तो मैंने उनकी बातों को मजाक में उड़ा दिया.. मगर एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि मेरा भी भाभी के प्रति नजरिया ही बदल गया...
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उस दिन मैं और भाभी ऐसे ही बातें कर रहे थे और बीच-बीच में एक-दूसरे से मजाक भी कर रहे थे, तभी भाभी ने मेरी बगल में गुदगुदी कर दी...अब मैं भी भाभी को गुदगुदी करना चाहता था.. इसलिए भाभी को पकङकर मैंने उन्हे बिस्तर पर गिरा लिया और दोनों हाथों से उनकी कमर में जोरो जोर से गुदगुदी करने लगा...


मेरे गुदगुदी करने से भाभी हँस-हँस कर दोहरी हो गयी थी इसलिये अपने आपको बचाने के‌ चक्कर मे उन्होने अपने दोनो पैर घुटनो को मोड़कर उपर कर लिया..भाभी ने साङी व ब्लाउज पहन रखा था अब जैसे ही उन्होंने अपने घुटनो को मोङकर उपर किया उनकी साड़ी व पेटीकोट भी उनकी कमर तक उलट गये...

भाभी की दूध सी गोरी चिकनी जाँघें व जाँघो के बीच काली पैन्टी मे फुली हुई चुत तक अब मुझे साफ दिख गयी थी, जिसे देख मेरे रोम-रोम में एक तूफ़ान सा उठा और उसका असर सीधा मेरी जाँघो के बीच हुवा, पर ये नजारा मुझे ज्यादा देर तक‌ देखने को‌ नही मिला‌...!

ये नजारा बस कुछ पल ही रहा, क्योंकि भाभी ने तुरन्त ही अपने कपङो को ठीक कर लिया और..
"हटो बहुत शरारती हो गए हो तुम..!" भाभी ने हँसते हुवे कहा और उठ कर कमरे से बाहर चली गईं।

भाभी जा चुकी थीं.. मगर मुझे तो जैसे सांप सा सूँघ गया था। मेरे सामने तो अब भी भाभी की गोरी चिकनी जांघें व काली पैन्टी मे उनकी फुली हुई चुत ही घूम रही थी। इस तरह की मैने बस तस्वीरे ही देखी थी। उस दिन‌ से पहले‌ मैने‌ कभी भी किसी लङकी या औरत को ऐसे नही देखा था।

मै अभी भी वैसे ही बैठा रहा मगर कुछ देर बाद ही भाभी खाने की प्लेट लेकर कमरे में फिर से आ गईं और मुस्कुराते हुए...
"चलो खाना खा लो..!" भाभी ने खाने की प्लेट को बिस्तर पर रखते हुवे कहा और मेरी बगल‌ मे ही बैठ गयी।

मैं चुपचाप उठ कर खाना खाने लगा.. मगर मेरा लण्ड अब भी उत्तेजित था जो कि मेरी हाफ़ पैंट में उभरा हुआ स्पष्ट दिखाई दे रहा था। मैं उसे बार-बार दबा कर भाभी से छुपाने की कोशिश कर रहा था जिससे शायद भाभी को भी मेरी हालत का अहसास हो गया...

"कुछ चाहिए.. तो आवाज दे देना.. मैं रसोई में जा रही हूँ..!" भाभी ने अब हँसते हुए कहा और उठकर बाहर चली गयी।

अब खाना खाते हुवे भी मेरे जहन मे तो बस भाभी ही भाभी घुम‌ रही थी और मुझे रह-रह कर उस दिन वाली मेरे दोस्तों की बातें याद आ रही थी, जोकी शायद सही भी थी। क्योंकि मेरे भैया भाभी के पास रहे ही कितना थे, शादी के बाद से मुश्किल से तीन या फिर चार महिना...

इस घटना ने मेरा अब सब कुछ बदल कर रख दिया था, क्योंकि मैं अपनी भाभी को अब वासना की नजरों से देखने लगा तो अधिक से अधिक उनके पास भी रहने की कोशिश करना लगा था। इस बात का अहसास शायद अब भाभी को भी हो गया था.. मगर वो कुछ कहती नहीं थीं।
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हमारे घर में उस समय बस दो ही कमरे थे जिसमें से एक कमरे में मम्मी-पापा रहते थे और दूसरे कमरा भाभी का था। मैंने अपना बिस्तर‌ ड्राईंग रूम में ही लगा रखा है और वहीं पर अपनी पढ़ाई भी करता था।


अब ऐसे ही एक बार रात को पढ़ते समय गणित का एक प्रश्न मुझसे हल नहीं हो रहा था। मैने उसे अपनी भाभी से पूछने की सोची..! और उमके कमरे का दरवाजा बजा कर बताया..

मगर मेरे अब भाभी को बताने पर भी भाभी ने दरवाजा नहीं खोला, उन्होंने अन्दर से ही आवाज देकर बताया की वो - "अभी वो सो रही है, इसलिये कल बता देगी.."

मैं भी अब वापस ड्राईँगरुम मे आ गया और फिर से अपनी पढ़ाई करने लगा.. मगर फिर कुछ देर बाद ही भाभी ने पता नहीं क्या सोचा और क्या नही..? की उन्होने कमरे का दरवाजा खोल दिया और कमरे से ही आवाज देकर मुझे अपने‌ कमरे‌ मे बुलाया...

मै भी अपनी किताबे लेकर भाभी के कमरे मे पहुँच गया, मगर अब भाभी के कमरे में गया तो देखा भाभी ने काले रंग की एक पतली व झीनी सी एक नाईटी पहनी हुई है.. जिसमें से उनका पुरे का‌ पुरा दुधिया गोरा बदन, यहाँ तक की काले रंग के ब्रा व पैन्टी भी स्पष्ट दिखाई दे रहे थे।

"शायद इसलिये ही भाभी दरवाजा नही‌ खोल‌ रही थी" मैने मन मे ही सोचा मगर भाभी का यह उत्तेजक रूप देख मेरी हालत अब खराब हो गयी। मेरे लण्ड ने तो उत्तेजित होकर मेरी हाफ़ पैंट में ही बङा सा उभार बना लिया था जिसे शायद मेरी भाभी ने भी देख लिया था..!

मगर मुझे तो अब होश ही कहाँ था। भाभी क्या सोचेगी और क्या नही..? इस बात से बेखबर मै तो बस उस पारदर्शी नाईटी मे से दिखाई देते भाभी के गोरे चिकने बदन को ही देखे जा रहा था...

मेरे अन्दर आते ही भाभी ने अब कमरे का दरवाजा बन्द कर‌ लिया और बिस्तर पर जाकर बैठ गयी, मगर मैं अभी भी उपर से नीचे तक भाभी को ही देखे जा रहा था..

भाभी को भी मेरी इस हालत का अहसास हो गया था इसलिये उन्होने बिस्तर पर बैठ कर अब एक नजर तो मेरी हाफ़ पैंट मे‌ बने‌ लण्ड के‌ उभार पर डाली, फिर मेरे चेहरे की तरफ देखते हुवे..

"बोलो क्या पूछना है..?" भाभी ने मुस्कुराते हुए पुछा।

वैसे उस समय मुझे सैक्स का या फिर औरत के बदन के बारे मे इतना कुछ ज्ञान नही था मगर जिस तरह की नाईटी भाभी ने पहनी थी, मैने बस इस तरह की तस्वीरे ही देखी थी। असलियत मे किसी औरत या लङकी को मै पहली बार देख रहा था और भी अपनी ही भाभी को..?

अब मेरे लिये तो बस इतना देखना ही काफी था, जैसे किसी बहुत दिनो से भुखे प्यासे को खाने की बस एक झलक भी दिख जाये तो जो हालत उस भुखे की‌ हो जाती है भाभी के बदन को देखकर बस वही हालत उस समय मेरी हो रही थी।

शरम‌ व उत्तेजना से मेरा चेहरा लाल‌ हो आया था‌ तो गला भी जैसे सुख सा गया था। मेरे गले से आवाज नहीं निकल रही थी इसलिए भाभी के पास अपनी‌ बुक्स ले जाकर मैंने बस हाथ के इशारे से उनको किताब में वो प्रशन दिखा दिया...

भाभी ने अब भी कुछ कहा नही, उन्होने मुस्कुराते हुवे बस एक‌ नजर तो‌ मेरे चेहरे को देखा, फिर चुपचाप मुझे वो गणित का प्रशन समझाने लगी। भाभी‌ मुझे वो प्रशन समझा रही थी मगर मेरा ध्यान अब पढ़ने में कहाँ था.. मैं तो बस भाभी को ही देखे जा रहा था...

अब कुछ देर में ही भाभी ने वो प्रशन हल भी करके दिखा दिया और...
" समझ गये..?" भाभी ने मेरे चेहरे की ओर देखते हुवे पुछा।

"ह्.ह्.आ्.आ्..आ..." मैंने अब झूठ-मूठ में ही ‘हाँ’ कह दिया जबकि मैंने ठीक से किताब की तरफ देखा भी नहीं था.. मैं तो बस भाभी के के गोरे चकने बदन को ही देखे जा रहा था।

"तो फिर चलो अब, मुझे सोना है.." भाभी ने किताबे मुझे‌ देते हुवे कहा। भाभी के कमरे से आने को मेरा दिल तो नहीं हो रहा था.. मगर फिर भी मैं वहाँ से आ गया और भाभी ने फिर से दरवाजा बन्द कर लिया।
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भाभी के गोरे चिकने बदन को देख कर मुझे मजा तो बहुत आ रहा था मगर अब कर भी तो क्या सकता था..? मै वापस ड्राईँगरुम मे आकर अपनी पढाई करने लगा, मगर अब पढने मे दिल कहाँ लगना था मेरे जहन मे तो बस भाभी ही भाभी घुम रही थी।


मै भाभी के बारे मे ही सोच रहा था की, तभी मुझे भाभी को फिर से देख‌ने एक तरीका सूझ गया। मै कुछ देर तो ऐसे ही बैठा रहा फिर भाभी के कमरे के पास जाकर फिर से उनका दरवाजा बजा दिया...

"अब क्या हुआ..?" भाभी ने दरवाजा खोल कर मुस्कुराते हुए पूछा।

"व्.व्. वो एक बार फिर से बता दो..!
मुझसे हो नही रहा.." भाभी‌ की नाईटी मे‌ से‌ दिखाई देते उनके गोरे चिकने‌ बदन को देखते हुवे कहा..

भाभी बस अब मुस्कुराकर रह गयी और मुझे अपने कमरे मे‌ ले जाकर एक बार फिर से वो सवाल समझाने लगीं.. मगर मेरा ध्यान तो भाभी पर ही रहा.. और वैसे भी मैं पढ़ने भी कहाँ आया था.. मैं तो भाभी की पारदर्शी नाईटी से दिखाई देते उनके गोरे चिकने बदन को देखने आया था।

कुछ देर में ही भाभी ने वो सवाल अब फिर से हल करके दिखा दिया, जिससे मुझे अब फिर से उनके कमरे से आना पड़ा। पर मै भी कम‌ नही था, कुछ देर रुकने के बाद ही मैंने एक नया सवाल लेकर फिर से भाभी के कमरे का दरवाजा बजा दिया...

इस बार भाभी दरवाजा खोलते ही हँसने लगी और.. "अब फिर से.."भाभी ने‌ हँसते हुए पुछा।

"न्.न्.नही् ..ये दुसरा है..!" इस बार मै‌ भी हकला गया था जिससे मेरी भाभी अब जोरो से हँशने लगी।

भाभी समझ तो रही थी की मैं बार-बार उ‌नके पास क्यों आ रहा हूँ, मगर उन्होंने कुछ कहा नही बस हँशकर रह गयी...
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अब मेरे बार-बार भाभी का दरवाजा बजाने की आवाज सुनकर मेरे पापा भी अपने कमरे से बाहर आ गये जिससे भाभी तो दरवाजे के पीछे छुप गयी मगर पापा मुझ पर बरस पङे..


" क्या है.. क्यों बार बार दरवाजा बजा रहा है..? पापा ने डाटते हुवे कहा।

"व्.व्. वो मैं तो बस पढ़ने आया था..!" मैने हकलाते हुवे बताया।

"सारा दिन तो टीवी देखते रहते हो और अब रात को तुम्हे पढना है, बार-बार दरवाजा बजाकर परेशान क्यों कर रहा है इसे, एक बार ही आराम‌ से बैठकर पढ‌ ले...."पापा ने उसी टोन मे डाटते हुवे कहा।

"वो सवाल पूछने के लिए आना पड़ता है..!" मैने कहा तो..

"तुम‌ इधर ही क्यो‌ नही‌ सो‌ जाते..?" पापा की ये बात सुनकर तो जैसे मुझे कोई मुँह माँगी ही मुराद ही मिल गयी थी इसलिये पापा‌ अब मुझे डाटते रहे और मै चुपचाप सुनता रहा...

"वहाँ सारा दिन टीवी देखते रहते हो, यहाँ पायल (मेरी भाभी‌ का नाम) तुम्हारी खबर भी लेती रहेगी और तुम्हें पढ़ा भी देगी.. " इतना कह कर पापा अब वापस अपने कमरे में चले गये.. मगर मेरी तो जैसे बाँछे ही खिल गयी, क्योंकि भाभी के कमरे में बिस्तर लगाने का मतलब दिन रात अब भाभी‌ के साथ ही रहना था।

पापा के जाते ही मैं अब अपनी किताबे व सारा सामान तुरन्त भाभी के कमरे में लाने लगा मगर मेरी ये जल्दबाजी देख भाभी अब जोरो से हँशने लगी और..
"अरे..अरे..अभी रात को रहने दो.. मैं कल तुम्हारा सामान यहाँ रख लुँगी.. अभी तो ये बताओ तुम्हें पूछना क्या है..?" भाभी ने हँसते हुए कहा।

अब भाभी ने ही मना कर दिया तो मै भी कुछ नही‌ कर सकता था। मै अपना मन मसोस कर रह गया और एक नया सवाल भाभी के सामने रख दिया..

"तुम्हें पहले वाला समझ आ गया..? भाभी ने अब हँशते हुवे पुछा।

"हाँ हाँ.आ्.आ्..." मैने भी अब जल्दबाजी मे ‘हाँ’ कह दिया जिससे..

"ठीक है तो जरा मुझे पहले ये वाला करके दिखाओ..?" भाभी को पता था कि मुझे वो प्रशन‌ नही आयेगा, और मैं बार-बार उनके पास किसलिए आ रहा हूँ..इसलिए उन्होंने अब जान-बूझकर मेरी खिंचाई करने‌ के लिये पुछा।

मैं अब कर भी क्या सकता था, मै उस सवाल को हल तो करने तो बैठ गया.. मगर मुझे वो आ नहीं रहा था, और आता भी तो कहाँ से..? भाभी जब उसे हल‌ करके दिखा रही थी तो मैंने उसे ठीक से देखा ही कहाँ था। मै तो बस भाभी को ही देख रहा था।

मेरी हालत तो अब पतली हो गयी थी जिसे देख‌ भाभी अब फिर से हँसने लगीं और..."अभी सो जाओ.. बाकी कल पढ़ लेना..! भाभी ने हँशते हुवे कहा।
शरम के मारे मेरी हालत पतली हो गयी थी इसलिये मै अब चुपचाप भाभी के कमरे से निकलकर बाहर आ गया और ड्राईँगरुम मे अपने बिस्तर पर आकर लेट गया। मै सोने की‌ कोशिश तो कर रहा था मगर मुझे अब नीँद नही आ रही थी।

मेरे दिल दिमाग मे तो बस भाभी ही भाभी घुम रही थी, पर शायद भाभी मुझे अब अपने कमरे मे कभी‌ नही सुलायेगी, इस बात की उधेङबुन के साथ साथ डर भी‌ लग रहा था की कही भाभी मेरे मम्मी पापा से मेरी शिकायत ना कर दे...
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खैर जैसे तैसे उस रात मै सो गया और सुबह भी जल्दी ही उठकर स्कूल चला गया। मेरी भाभी से अब बात तक करने की हिम्मत नहीं हो रही थी इसलिये मैने उस दिन‌ सुबह नाश्ता भी नही किया। मै ऐसे ही स्कुल‌ चला गया था, मगर जब मै स्कूल से वापस घर आया तो देखा मेरा सामान ड्राईंग रूम से गायब था..?


मैंने बाहर जाकर देखा तो भाभी किचन में कुछ काम कर रही थीं। मेरी भाभी से तो पुछने कुछ की हिम्मत नही हुई मगर मैने जब भाभी के कमरे में जाकर देखा तो मेरा सारा सामान भाभी ने अपने कमरे में लगा रखा था।

मेरी बुक्स से लेकर कुर्सी-टेबल, यहाँ तक की मेरे कपङे भी भाभी ने अपनी अलमारी मे रखे हुवे थे, मगर जो मै चाहता था बस वो ही सामान वहाँ नही था और वो था मेरा बिस्तर..?

भाभी ने मेरा सारा सामान तो अपने कमरे मे रख लिया था मगर उन्होने मेरा बिस्तर अपने कमरे मे नही लगाया था, मुझे ये अच्छा भी लग रहा था और बुरा भी। मेरी भाभी से बात करने कि हिम्मत तो नहीं हो रही थी.. मगर फ़िर भी मैं ये पूछने के लिए भाभी के पास किचन में चला गया....

भाभी मुझे देखते ही अब एक बार तो मुस्कुराई फिर..
"तुमने सुबह नाश्ता क्यो नही‌ किया..?" भाभी ने हल्का गुस्सा सा दिखते हुवे पुछा।

"व्.वो् मुझे भुख नही थी, पर मेरा सामान..!" मैने अब भाभी की बात का जवाब‌ देने के साथ साथ ही पुछ लिया...

"हाँ.हाँ.. रख लिया है तुम्हारा सामान मैने अपने कमरे मे.., सुबह भी कुछ नही खाके गये, चलो अब खाना खा लो.." भाभी ने कहा।

"पर वो मेरा बिस्तर..? " मैने मायुस सा होते हुवे पुछा।

"इतना सामान कमरे में नहीं आएगा.. तुम मेरे साथ बिस्तर पर ही सो जाना और वैसे भी डबलबेड है.. हम दोनों आराम से सो सकते हैं.." भाभी ने अबकी बार मेरी तरफ देखकर हल्का सा मुस्कुराते हुवे कहा।

अब भाभी की ये बात सुनकर तो मानो जैसे एक पल के लिये मेरी धङकन ही थम गयी, मै इतना खुश हो गया जैसे कि मुझे कोई खजाना ही मिल गया हो, मगर मैंने वो जाहिर नहीं किया। मैने चुपचाप अब खाना खाया और रात होने का इंतजार करने लगा...
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भाभी ने दिन से ही सलवार कमीज पहन रखा था और रात को भी उसे ही पहनकर सो गईं.. इसलिए उस रात मुझे कुछ देखने को तो नहीं मिला। ऊपर से भाभी के इतना नजदीक होने के कारण मेरा लण्ड रात भर ही उत्तेजित रहा जिस कारण मुझे ठीक से नींद भी नहीं आ सकी।


अगले दिन भाभी ने साड़ी पहनी थी इसलिए मैं दिन भर यह सोच कर खुश होता रहा कि शायद भाभी आज रात को सोते समय वो ही वाली नाईटी पहनेंगी और मुझे कुछ देखने को मिल जायेगा.. मगर रात को भी भाभी ने कपड़े नहीं बदले बस उन्होने अपनी साड़ी को ही उतारा..

साड़ी को तो उतार कर उन्होंने अलबारी मे रख दिया और मात्र पेटीकोट व ब्लाउज मे मुझे अब पढ़ाने बैठ गयी। भाभी ने नीचे काले रंग का पेटीकोट पहन रखा था तो ऊपर भी‌ काले रंग का ही ब्लाउज पहना हुवा था, जिनके बीच से उनका गोरा चिकना पेट अलग ही चमकता दिखाई दे रहा था।

भाभी को इस तरह देखकर मजा तो बहुत आ रहा था मगर मेरा लण्ड अब अपने आप ही उत्तेजित होता जा रहा था जिससे मुझे डर लगने लगा की कहीं ये भाभी को दिखाई ना दे जाए इसलिये...

"मुझे कुछ पूछना होगा तो मैं आपको बता दूँगा.. भाभी आप सो जाओ..!" मैंने भाभी को पढाने से मना करते हुवे कहा।

भाभी ने भी अब कुछ कहा नही बस.. "ठीक है तो, वैसे भी‌ मै थक गयी हुँ इसलिये नीँद आ रही है..!, सोते समय‌ लाईट बन्द कर देना " कहा और मेरे पास से उठकर बिस्तर पर एक तरफ होकर सो गईं, मगर अब सोते भाभी का पेटीकोट घुटनो तक उठ गया जिससे भाभी की दूधिया सफेद पैरो की पिण्डलियाँ दिखने लगीं...
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मैं अब फिर से पढ़ाई करने लगा.. मगर मेरा ध्यान पढ़ाई में कम और भाभी पर ज्यादा था। भाभी दिवार की तरफ मुँह करके सोई थी। उन्होंने अपना एक पैर तो सीधा किया हुवा था और दुसरे को घुटने से मोङ लिया था जिससे उनका पेटीकोट उपर हो गया और सीधे वाला पैर घुटने से उपर तक नँगा हो गया था।


एकदम संगमरमर से सफेद पैर थे भाभी‌ के। मै तो उनके नँगे पेट को ही देखकर उत्तेजित हो गया था जबकि अब तो मुझे भाभी के गोरे चिकने नँगे पैर के साथ साथ पेटिकोट के उपर से ही उनके बङे बङे व माँसल कुल्हो की बनावट तक‌ साफ‌ दिख रही थी।

भाभी भी बेसुध सोई थी, उनको सही‌ मे इतनी नीँद आ रही थी या नही, ये तो‌ मुझे नही पता, मगर हाँ उन्होंने अपने पेटिकोट को ठीक करने की बिल्कुल भी कोशिश नही‌ की, वो वैसे ही सोती रही.. जिसका फायदा मै भी अब अपनी आँखो को सेककर उठाने‌ लगा..

मैं चोर निगाहों से बार-बार भाभी को ही देख रहा था और उपर वाले से दुवा भी कर रहा था की भाभी‌ का ये पेटीकोट थोङा सा और उपर उठ जाये.. मगर हाय रे‌ मेरी किस्मत देखो..! तभी साली बिजली चली गई और कमरे में एकदम‌ घुप्प अंधेरा हो गया..

अब तो मैं भी कुछ नहीं कर सकता था.. इसलिए मै चुपचाप भाभी की बगल मे जाकर लेट गया। मै सोने की‌ कोशिश कर रहा था मगर मुझे अब नीँद नही आ रही थी‌, क्योंकि मैने अभी अभी एक‌ तो इतना शानदार नजार देखा था उपर से भाभी मेरी बगल मे ही लेट रही थी...

मेरा लण्ड अब भी उत्तेजित व तना खङा था जो कि मुझे सोने नहीं दे रहा था। जी कर रहा था एक बार भाभी के माँसल व बङे बङे कुल्हो को हाथ लगाकर देखुँ, उनके उस नँगे पैर को छुकर उसकी चिकनाई‌ को‌ महसुस करुँ, मगर डर लग रहा था...
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मैं बार-बार करवट बदल रहा था मगर नींद नहीं आ रही थी.. तभी भाभी ने करवट बदली और पीठ‌‌ के बल सीधा होकर सो गयी। करवट बदलकर भाभी मेरे इतने पास आ गयी थी की उनका एक हाथ अब सीधा मेरे सीने पर आकर गीरा था।


अब तो मुझमे भी थोड़ी सी हिम्मत आ गयी। मैने‌ भी‌ भाभी‌ के जैसे नीँद के बहाने बाहने ही भाभी को‌ हाथ‌ लगाने की सोची..! और करवट बदल कर अपना मुँह भाभी की तरफ ही‌ कर लिया। भाभी के जैसे ही करवट बदलते समय मैने भी अपना एक हाथ भाभी के उपर रख दिया था जो की सीधा ही भाभी की नर्म‌नर्म चुँचियो पर रखा गया।

भाभी की चुँचियाँ नर्म‌ मुलायम व स्पँज के जैसे इतनी गुदाज थी की मानो जैसे मेरा हाथ किसी गद्देदार बोल पर रखा गया हो। मुझे डर लग रहा था कहीं भाभी जाग ना जाएं जिससे दिल जोरों से धक-धक कर रहा था.. मगर फ़िर भी मैं धीर-धीरे भाभी की चुँचियो को सहलाने..?

नही...नही... इसे मै सहलाना तो‌ नही कहुँगा,‌ बस उपर उपर से ही छुकर मै उनकी बनावट महसुस कर रहा था।‌‌ मै एक‌ हाथ‌ से भाभी‌ की‌ चुँचियो ‌को‌ महसूस कर रहा था तो‌ दुसरे हाथ से‌ अपने‌ लण्ड को भी मसल रहा था..‌

ऐसा नही था की मैने कभी मुठ नही‌ मारी थी, एक दो बार अपने दोस्तों के साथ मैने भी मुठ मारी थी मगर किसी की नर्म‌‌ मुलायम चुँचियो को मैं अपने जीवन मे पहली बार छू रहा था, और किसी‌ की भी क्या..? अपनी खुद की ही भाभी‌ की चुँचियो को छु रहा था..

इसलिये भाभी के नर्म मुलायम चुँचियो के अहसास ने मुझे इतना अधिक उत्तेजित कर दिया था की बस एक दो बार, और वो भी कपङो के उपर से ही लण्ड को मसलने से मै चर्म पर पहुँच गया, जिससे मेरा अण्डर वियर मेरे वीर्य से भरता चला चला गया..


अपना सारा कामरस कपङो मे ही उगलने के बाद मैने भाभी‌ की‌ चुँचियो पर से अपना हाथ हटा लिया और करवट बदल कर अपना मुँह दुसरी तरफ कर लिया। उत्तेजना का जो ज्वार मेरे अन्दर उठ रहा था वो अब शाँत हो गया था इसलिये कुछ देर बाद ही मुझे भी नींद आ गयी...
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जैसा की अभी तक‌ आपने‌ पढा मै अब अपनी‌ भाभी‌ के‌ कमरे मे ही सोने‌ लगा था, और पिछली रात मै बस भाभी‌ स्पर्श से ही रसखलित होकर सो गया था अब उसके‌ आगे..


अगले दिन हमारे पङोस मे‌ ही एक लङकी की शादी थी। भाभी सारा दिन शादी मे ही बीजी थी इसलिये दिन मे तो‌ मेरी उनसे बात नही हो सकी, मगर शादी से आने के बाद जब वो ग्यारह साढे ग्यारह बजे के करीब कमरे मे आई उस समय तक मै पढाई ही कर रहा था..

दरअसल पढाई तो क्या कर रहा था, बस भाभी के ही आने का इन्तजार कर रहा था इसलिये..
"अरे तुम‌‌ अभी तक सोये नही..." भाभी ने कमरे मे आते ही पुछा।

भाभी अभी अभी सीधा शादी से ही आ रही थी।उन्होंने शादी मे जाने के लिये एक तो मेकअप किया हुवा था उपर से लाल‌ कलर के लहँगे चोली मे वो किसी अप्सरा से कम‌ नही‌ लग रही थी इसलिये...

"नही वो बस पढ रहा था..!" मैने भाभी को उपर से नीचे तक देखते हुवे कहा। तब तक भाभी ने अलार्म घङी उठा ली और..

"तुम्हें पता है ना, कल पापा मम्मी को दवाई दिलाने ले जा रहे हैं.. उन्हे आते आते शाम हो जायेगी इसलिए तुम्हें कल स्कूल नहीं जाना ..!

भाभी ने घङी मे‌ अलार्म भरते हुवे कहा।
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दरअसल मेरी मम्मी का इलाज हमारे पास के ही बङे शहर से चल रहा था। आपने मेरी पहले की‌ कहानियो पढा होगा की मेरी मम्मी की तबियत अधिकतर खराब ही रहती थी। इसलिये चैक-अप और दवाई लेने के लिये महिने‌ मे‌ एक‌ या दो बार तो उन्हे शहर ले जाना ही होता था...


और जब भी मेरे मम्मी पापा‌ बाहर जाते उस दिन मुझे घर पर ही रहना‌ पङता था क्योंकि उस समय हमारे शहर का‌ माहौल इतना अच्छा नही था। मेरी भाभी‌ घर मे अकेली ना हो इसलिये उस दिन‌ मुझे स्कुल‌ की छुट्टी करनी‌ पङती थी।

अगले दिन मेरे पापा मम्मी को चैक-अप और दवाई दिलाने के लिये शहर ले‌ जाने वाले थे‌ और मुझे घर पर ही रहना‌ था‌ इसलिये मैंने भी हामी भर दी।

चलो अब सो जाओ बहुत हो गयी पढाई,..!" भाभी ने घङी मे अलार्म भरकर उसे वापस टेबल पर रखते हुवे कहा।

"नही आप सो जाओ, मुझे अभी पढना है..!" मैने भाभी‌ को मना करते हुवे कहा। वैसे पढना तो कहाँ था दरअसल मै सोच रहा था की, हो सकता है आज भी पिछली रात के जैसे ही कुछ देखने को‌ मिल जाये इसलिये मैने बहाना बनाया था।

"ठीक है तो.. तुम एक बार बाहर जाओ मुझे कपड़े बदलने हैं..! भाभी ने अब फिर से मेरी तरफ देखते हुवे कहा।

"क्यो बदल रहे हो, ऐसे ही सो जाओ ना बहुत सुन्दर लग रहे है.." सही मे उन कपङो मे भाभी बला की खुबसूरत लग रही थी इसलिये मैने एक बार फिर से भाभी को उपर से नीचे तक देखते हुवे कहा‌ जिससे भाभी के चेहरे पर मुस्कान तैर गयी।

"पहन कर सोउँगी तो खराब नही हो जायेँगे..?" भाभी ने हँशते हुवे कहा।

"ठीक है तो बदल लो.." मैने कहा।

"पहले तुम‌ बाहर तो निकलो.." भाभी ने थोङा खिजते हुवे कहा।

"ऐसे ही बदल लो, मै‌ आपको कहाँ कुछ कह रहा हँ.." मैंने अब ऐसे ही मजाक मजाक में कह दिया जिससे भाभी जोरो से हँसने लगीं और...

"अच्छा जी.. आजकल मै देख रही हुँ तुम कुछ ज्यादा ही बदमाश होते जा रहे हो..अब तुम बाहर चलो बहुत रात हो गयी, मुझे सुबह जल्दी उठकर मम्मी-पापा के लिए खाना बनाना है..!" भाभी ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे कमरे बाहर निकालते हुवे कहा और अन्दर से कमरे का दरवाजा बन्द कर लिया...
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मैं बाहर खड़ा होकर अब इन्तजार करने लगा मगर जब भाभी ने दरवाजा खोला तो, भाभी‌ को देखकर मेरी आँखें फटी की फटी ही रह गईं... क्योंकि भाभी ने अब उस दिन वाली ही नाईटी पहन रखी थी.. जिसमें से उनकी ब्रा-पैन्टी यहाँ तक उनका पुरा गोरा बदन स्पष्ट दिखाई दे रहा था।


मै आँखे फाङे बस भाभी को ही देखे जा रहा था मगर तभी..
"अब अन्दर नही आना क्या, या बाहर ही रहना है..? भाभी ने शरारत से हँशते हुवे कहा।

"ह्.ह्.ह्.ऊ.. हाँ.. " कहकर मै‌ अब अन्दर आ गया मगर मेरी‌ नजरे अभी भी भाभी पर ही टिकी रही।

"सोते समय लाईट बन्द कर देना कल भी चालु छोङकर सो गये थे...!" भाभी ने शिकायत के‌ लहजे मे‌ कहा और बिस्तर पर जाकर सो गईं.. मगर सोते समय आज भी भाभी की नाईटी उनके घुटनों तक पहुँच गई थी जिससे भाभी की संगमरमर सी सफेद पिण्डलियाँ दिखने लगीं।

वैसे तो भाभी की नाईटी का‌ होना और ना होना एक बराबर ही था, क्योंकि उसका कपङा इतना पतला‌ व झीना था की‌ उनका‌ पुर का पुरा गोरा बदन स्पष्ट दिखाई दे रहा था , मगर फिर भी नाईटी‌ के घुटनो तक उठ जाने से जो थोङा बहुत अवरोध था वो भी दुर हो गया था।

भाभी ने भी उसे ठीक करने की कोशिश नही की वो ऐसे ही सो गईं और मैं फिर से पढ़ाई करने लगा। मगर मेरा ध्यान अब पढ़ने में कहाँ था.. मैं तो बस टयूब लाईट की सफेद रोशनी में दमकते भाभी के दूधिया गोरे बदन व उनकी गोरी चिकनी पिण्डुलियाँ ही देखे जा रहा था..

मैं भगवान से दुआ भी कर रहा था कि भाभी की नाईटी थोड़ा और ऊपर खिसक जाए तो‌ कसम से मजा आ‌ ही जाये, और शायद उस दिन भगवान ने भी मेरी दुआ सुन ली... क्योंकि करीब दस पन्द्रह मिनट बाद ही भाभी ने करवट बदली..करवट तो क्या बदली बस एक बार पैरो को थोङा सा मोङकर उन्हे सीधा किया था।

वो पिछली रात के जैसे ही दिवार की तरफ मुँह करके अपना एक पैर मोङकर सोई थी‌ जिससे पहले ही उनकी नाईटी घुटनो तक उपर उठी हुई थी मगर अब पैरो को मोङकर उन्होंने सीधा किया तो उनकी‌ नाईटी उनके घुटनो से उपर, उनकी जाँघो तक चढ गयी..

अब तो मेरे लिए खुद पर काबू पाना ही मुश्किल हो गया, क्योंकि भाभी की गोरी चिकनी जाँघो को देख मेरा लण्ड अकड़ कर लोहे की रॉड की तरह एकदम सख्त हो गया था तो उसमें बहुत तेज दर्द भी होने लगा...

भाभी की नँगी जाँघो को देख‌ देखकर मैं अब हाथ से ही अपने लण्ड को मसलने लगा जिससे मेरे लण्ड ने पानी छोड़-छोड़ कर मेरे अण्डरवियर को ही गीला करना शुरु कर दिया... मै कल के जैसे अब अपने कपङो को खराब नही करना चाहता था इसलिये कुछ देर तो ऐसे ही भाभी की जाँघो को देख देखकर अपने‌ लण्ड को मसलता रहा. फिर वहाँ से उठकर बाहर बाथरुम मे आ गया...
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बाथरुम मे आकर मैने एक अच्छे से मुठ मारी तब‌ जाकर मुझे कुछ राहत मिली। मगर बाथरुम से मुठ मारकर जब नै वापस भाभी के‌ कमरे मे आया तो मेरी साँसे ही अटक कर रह गयी.., क्योंकि भाभी अब बिल्कुल सीधी करवट करके सो रही थीं और उनकी नाईटी पेट तक उल्टी हुई थी।


भाभी की दूधिया सफेद गोरी चिकनी नँगी जांघें व उनकी लाल रंग की पैन्टी अब पुरा दिखाई दे रही थी।
भाभी को‌ इस हालत मे देख मेरी अब सांसें फूल गईं.. तो दिल की धङकन जैसे रुक सी गयी। मै अभी अभी बाथरुम से मुठ मारकर आया था मगर भाभी को देख मेरे लण्ड अब तुरन्त ही फिर से उत्तेजित हो गया..

मै कुछ देर तो ऐसे ही वही दरवाजे पर खङे खङे भाभी‌ को देखता रहा, फिर धीरे धीरे दबे पांव आहिस्ता आहिस्ता चलते हुवे बिस्तर के पास पहुँच गया। मुझे डर तो लग रहा था मगर इतना बहतरीन नजारा शायद मुझे फिर कभी नसीब नही होने वाला था...

मेरा दिल डर के कारण जोरों से धक धक कर रहा था कि कहीं भाभी जाग ना जाएं मगर फिर भी आहिस्ता आहिस्ता मैं बिस्तर पर चढकर भाभी के बिल्कुल ही पास चला गया और उनके दुधियाँ अधनँगे नँगे बदन को बङे ही ध्यान से देखने लगा..

अब तो मुझे भाभी की पैन्टी में उनकी फूली हुई चुत और चुत को बराबर दो भागो मे विभाजित करती चुत की रेखा का उभार तक स्पष्ट दिखाई दे रहा था। चुत की रेखा के ठीक‌ नीचे बिल्कुल जाँघो के जोङ‌ के पास से भाभी की पैँटी हल्की सी नम भी थी।

वो शायद भाभी की चुत का रस रहा था, मगर उस समय मुझे कहा इतना पता था। मै तो उसे भाभी‌ पिसाब ही समझ रहा था, मगर भाभी की चुत को इतना करीब से देखकर मुझे अब बेचैनी सी होने लगी थी..

मेरा दिल कर रहा था कि मैं अभी भाभी की ये पैन्टी उतार कर फेंक दूँ और भाभी की गोरी चिकनी जाँघो व उनकी चुत से कस के लिपट जाऊँ.. मगर डर लग रहा था।

मै कुछ देर तो ऐसे ही बिस्तर पर बैठे बैठे भाभी‌ की चुत को देखता रहा, मगर फिर मुझे पिछली रात वाला ही तरीका सही लगा। मैंने जल्दी से कमरे की लाईट बन्द कर दी और भाभी के बगल में जा कर लेट गया...
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मै आज पहले ही जानबुझकर भाभी के बिलकुल नजदीक होकर सोया, उपर से मैने धीरे से भाभी की तरफ करवट बदल कर अपना एक पैर भी अब सीधा‌ उनके नँगे पैरो पर रख दिया...


एकदम गर्म‌ गर्म‌ व बिल्कुल ही सोफ्ट सोफ्ट पैर थे भाभी के। अपना एक पैर भाभी के पैरो पर रखकर मै अब कुछ देर तो ऐसे ही बिना कोई हरकत के लेटा रहा, फिर धीरे धीरे और बिल्कुल ही आहिस्ता आहिस्ता अपने पैर से ही भाभी के पैरों को सहलाते हुवे उसे उपर की ओर बढाना शुर कर दिया..

मैने अपना पैर भाभी की पिण्डलियो पर रखा था मगर अब जैसे जैसे मै अपना पैर उपर की ओर बढा रहा था, वैसे वैसे ही मेरे पैर का घुटना मुङता जा रहा था और मेरी जाँघे भाभी की नँगी जाँघो पर चढती जा रही थी। एकदम ही सोफ्ट सोफ्ट व बिल्कुल चिकना अहसास था भाभी‌ की जाँघो का...

भाभी‌ के पैर तो नँगे थे ही, सोते समय मैंने भी जानबुझकर अपनी हाफ पैँट को ऊपर तक खींच लिया था इसलिये मेरी जाँघे भी लगभग नंगी ही थीं।
अपनी नँगी जाँघ से भाभी की नँगी जाँघो को सहलाने मे इतना अधिक मजा आ रहा था की बस पुछो मत.. ?

मै बिल्कुल ही धीरे धीरे और आहिस्ता आहिस्ता से भाभी की जाँघो को सहला रहा था ताकी अगर भाभी जाग भी जाएं तो उन्हे लगे जैसे कि मैं नींद में हूँ। वैसे तो मै अनाङी था मगर इस काम को मै बङी ही सावधानी से कर रहा था, क्योंकि इसमे फायदा भी तो मेरा ही हो रहा था। मुझे भाभी की नँगी जाँघो की चिकनाई का इतना अधिक मजा जो मिल रहा था।

एकदम ही पतली व इतनी अधिक नर्म मुलायम स्कीन थी भाभी‌ की‌ जाँघो की ऐसा लग रहा था जैसे मेरा पैर किसी वैलवैट पर ही फिसल रहा था। भाभी की‌‌ रेशम‌ सी मुलायम‌ नँगी जाँघो को बिल्कुल ही धीरे धीरे और आहिस्ता आहिस्ता अपनी नँगी जाँघो से घीसकर मै पग पग उनकी चिकनाई को महसूस कर रहा था...
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अब कुछ देर तो मैं ऐसे ही अपने‌ पैर से भाभी‌ की जाँघो की चिकनाई को महसुस करता रहा मगर जब भाभी की तरफ से कोई भी हलचल नही हुई तो मैंने अपना एक हाथ भी धीरे से भाभी की नर्म मुलायम गोलाइयों पर भी रख दिया..


अपना हाथ भाभी की चुँचियो ओर रखकर मैने अब फिर से कुछ देर रुककर भाभी की हरकत का इन्तजार किया, और जब भाभी की तरफ से कोई भी हरकत ना हुई तो मैने धीरे-धीरे आहिस्ता आहिस्ता पिछली रात के‌ जैसे ही उनकी चुँचियो को भी सहलाना शुरु‌ कर दिया..

भाभी की जाँघो के‌ जैसे ही उनकी चुँचियाँ भी एकदम‌ मस्त थी, मगर मै उन्हे अब सहला ही रहा था की तभी भाभी के बदन मे कुछ हलचल‌ सी हुई और उनका एक‌ हाथ सीधा उनकी चुँचियो पर आ गया..!

मेरी तो डर के मारे जैसे अब दिल की धड़कन ही बन्द हो गयी.. वो तो गनीमत थी की मैने तुरन्त अपना हाथ भाभी की चुँचियो पर से हटा लिया, नही तो भाभी का हाथ सीधा मेरे हाथ पर ही लगता..

डर के मारे मै चुपचाप अब सोने का नाटक करने‌ लगा.. मगर भाभी के हाथ ने उनकी‌ चुँचियो पर आकर एक बार तो कुछ हरकत सी की, शायद उन्होंने वहाँ पर खुजाया था फिर वो चुपचाप फिर सो गयी..
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मैं अब काफी देर तक चुपचाप ऐसे ही पड़ा रहा.. मगर मुझे चैन कहाँ आ रहा था। जल्दबाजी मे मै बस अपने हाथ को ही भाभी की चुँचियो पर से हटा पाया था, मेरी जाँघे अभी भी भाभी की जाँघो पर ही चढी हुई थी जो की भाभी की नँगी जाँघो की गर्मी चुस रही थी..


मुझसे रहा नही जा रहा था इसलिये कुछ देर बाद ही मैने अब फिर से अपनी जाँघ से भाभी की जाँघ को सहलाना शुरु कर दिया..भाभी अब शाँत भाव से सोई रही, उनके बदन‌ मे‌ कोई हलचल नही हो रही थी इसलिये एक बार फिर से हिम्मत करके मैने अपना हाथ भी फिर से भाभी की चुँचियो पर हाथ रख दिया..

मगर इस बार मैंने जैसे ही भाभी की चुँचियो पर हाथ रखा, मेरे रोंगटे से खड़े हो गए.. क्योंकि भाभी की नाईटी के उपर के बटन खुले हुए थे तो, उनकी दोनो चुँचियाँ भी ब्रा की कैद से आजाद थी। उनकी ब्रा चुँचियो से ऊपर हो रखी थी इसलिये मेरा हाथ सीधा ही उनकी नर्म मुलायम नँगी चुँचियो पर रखा गया था।

रेशम‌ सी नर्म मुलायम और गर्म गर्म नँगी चुँचियो को छुते ही मेरे लण्ड ने तो अब मेरी पैन्ट मे ही झटके से खाने शुरु कर दिये.. भाभी की जाँघो के जैसे ही उनकी चुँचियो की स्किन भी एकदम‌ पतली व रेशम के जैसे बिल्कुल मुलायम थी।

भाभी की चुँचियो के रेशमी स्पर्श ने मुझे पागल सा कर दिया था। मुझे अब डर तो लग रहा था, की कही भाभी की नीँद फिर से ना खुल जाये, मगर‌ फिर भी मैं दोनो चुँचियो पर धीरे धीरे अपना हाथ फ़िराकर देखने लगा..

भाभी की नँगी चुँचियो का स्पर्श रेशम की तरह एकदम मुलायम और आनन्द भरा था। मैं ऐसे ही चुँचियो को सहला रहा‌ था की तभी भाभी ने एकदम से करवट बदलकर अपना मुँह मेरी‌ तरफ‌ कर लिया‌ और अपनी एक‌ नँगी जाँघ मेरी कमर तक चढाकर मुझसे जोरो चिपक गयी।

डर के मारे मै तो‌ जैसे अब एकदम ही‌ जङ हो गया था मगर तभी भाभी ने..

"उ्.उ्.ऊ्.ह्ह्ह्..नरेश्श्श्..." कराहते हुवे एक बार तो भैया का नाम लिया फिर मेरे उपर उनका‌ जो हाथ रखा हुवा था उसे मेरी पीठ पीछे ले जाकर मुझे खीँचकर अपने बदन के साथ जोरो से चिपका लिया..
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मेरी और भाभी की लम्बाई समान ही थी.. इसलिए मेरा चेहरा भाभी के चेहरे को स्पर्श कर रहा था तो भाभी की गर्म गर्म महकती सांसें भी अब मेरी साँसों को महकाने लगी थी। मेरे लिए यह पहला अवसर था कि मैं किसी औरत के इतने करीब था। क्योंकि भाभी की नर्म मुलायम चुँचियाँ मेरे सीने से दब रही थी तो मेरा उत्तेजित लण्ड भी अब बिल्कुल भाभी कि चुत को ही छू रहा था।


मैं अब यह सोचने लगा कि भाभी कहीं जाग तो नहीं रही हैं..? कही वो भैया का बहाना करके ये सब जानबूझकर कर रही हों..और ये भी हो सकता है कि भाभी सपने में ही ये सब कर रही हों.. मगर कुछ भी हो मुझे मजा बहुत आ रहा था।

मुझे अपनी बाँहो लेकर भाभी अब फिर से चुपचाप सो गयी थी मगर भाभी के मेरा इतना करीब आ जाने से मेरी हालत खराब हो गयी थी। उत्तेजना से मैं पागल हो रहा था मगर आगे कुछ करने की ना तो मुझमे हिम्मत थी और ना ही मुझे कुछ मालुम था..!

मगर तभी एक बार फ़िर से भाभी ने.. "आ्ह्ह्ह्.." भरते हुए भैया का नाम लिया और मुझे बाँहों में भीँचे भीँचे ही करवट बदलकर पीठ के बल सीधा हो गयी...

ये काम भाभी ने करवट बदलते हुवे अब इस तरह से किया की, मै भी खिँचता हुवा सीधा भाभी के ऊपर पहुँच गया। जिससे भाभी के नर्म मुलायम चुँचियाँ मेरे सीने से दब गयी तो मुझे अपने लण्ड पर भी अब सीधा भाभी चुत की गर्माहट महसूस होने लगी..

उत्तेजना व घबराहट के मारे मेरा अब बहुत ही बुरा हाल हो गया था, बदन कँपकँपाने लगा था तो साँसे ऐसे चल रही थी मानो मै मिलो दौङकर आ रहा हुँ.. इस तरह का मै अपने‌ जीवन मे‌ पहली बार महसूस कर रहा था..आपने भी जब कभी पहली बार किसी के साथ सम्बन्ध बनाये होगे तो ऐसा जरूर महसूस किया होगा..

इस अहसास को‌ लिखने के लिये मेरे पास अब शब्द नही है, मगर हाँ भाभी के मखमली बदन की नर्मी व उनकी चुत की गर्मी को सीधा अपने लण्ड पर पाकर मैं अब इतना अधिक उत्तेजित हो गया कि बिना कुछ किये ही चर्म पर पहुँच गया...

ऐसा मैने जान बुझकर नही किया था मगर पता नही क्यो भाभी के उपर जाते ही मेरी साँसे जैसे अब अटक गयी तो बदन भी अपने आप ही तन कर ऐँठ सा गया। मेरा अब खुद पर ही काबु नही रह गया था इसलिये कपङो मे ही मेरे लण्ड ने रह रहकर ढेर सारा वीर्य उगलना शुरु कर दिया...

सही मे उस रात मेरे लण्ड वीर्य कुछ ज्यादा भी उगला था जिससे मेरे कपड़ों के साथ साथ अब भाभी की पैन्टी तक भीगती चली गयी... मगर मेरा अभी ठीक से रसखलन पुरा भी नही हुवा था की तभी अलार्म घड़ी बज उठी... जिससे मै और भाभी हङबङा से गये...भाभी ने जहाँ तुरन्त मुझे अपने उपर से धकेलकर नीचे गीरा दिया तो, वही मै भी अब चुपचाप सो‌ने का नाटक‌ करने लगा...
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जैसा की आपने पढा उस रात मेरा भाभी‌ के उपर लेटते ही रशखलित हो गया जिससे मेरे कपड़ों के साथ साथ भाभी की पैन्टी तक भीगती चली गयी... मगर मेरा अभी ठीक से रसखलन पुरा भी नही हुवा था की तभी अलार्म घड़ी बज उठी... जिससे मै और भाभी हङबङा से गये...


भाभी ने जहाँ तुरन्त मुझे अपने उपर से धकेलकर नीचे गीरा दिया तो, वही मै भी अब चुपचाप सो‌ने का नाटक‌ करने लगा। अब उसके आगे....

मुझे अपने उपर से नीचे धकेलकर भाभी ने पहले तो उठकर जल्दी से उस अलार्म घङी को बन्द किया फिर बिस्तर से उठकर खङी हो गयी। वैसे तो‌ मै अब सोने का नाटकर कर रहा था मगर मैंने थोड़ी सी आँखें खोलकर देखा तो भाभी कपड़े बदल रही थीं।

कमरे की लाईट बन्द थी.. मगर एक कम पावर का बल्ब जल रहा था.. जिसकी रोशनी में बिल्कुल साफ से तो नहीं.. मगर फिर भी मै भाभी को कपड़े बदलते देख पा रहा था।

भाभी ने अपनी नाईटी को उतारकर पहले तो शलवार सुट पहना फिर उस नाईटी को अलबारी ने रखकर चुपचाप कमरे से बाहर चली गयी.. मगर मैं अभी भी ऐसे ही लेटा रहा...

भाभी के जाने के बाद मैने उठकर अब बाहर देखा तो अभी भी अन्धेरा था। भाभी शायद बाथरुम चली गयी थी इसलिये भाभी तो मुझे कही दिखाई नही दी मगर मेरे मम्मी पापा के कमरे की लाईट जल रही थी।

शायद वो जाने की तैयारी‌ कर रहे थे इसलिये 
क बार बाहर देखने के बाद मै वापस कमरे मे आ गया। अन्दर आकर मैने घङी मे समय देखा तो सवा चार बज रहे थे इसलिये मै अब वापस बिस्तर पर जाकर लेट गया।


रात भर मैने जो भाभी के साथ किया उसके बारे मे सोच सोचकर मुझे अब डर लग रहा था कि कहीं भाभी मेरी शिकायत मम्मी पापा से ना कर दें, मगर मै रात भर से सोया नही था इसलिये अब यही सोचते-सोचते पता नहीं कब मुझे नींद आ गयी...
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