Thread Rating:
  • 7 Vote(s) - 3 Average
  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5
मनमोहक गंदी कहानियाँ... RoccoSam
Heart 
Heart
नेट पर सर्फ़िग करते समय मुझे कविता के रूप में कुछ रचनाये मिली जिनका शीर्षक था..."उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली अंगिया". 

मुल रचनाओं के अनाम अज्ञात रचनाकार को कोटिशः धन्यवाद...

प्रथम रात्रि प्रणय कि एवं उसके पश्चात संभोग कि गाथा कैसे एक नवविवाहिता स्त्री अपनी सखी को बता रही है इसी र यह कवितायें इतने खुलेपन से लिखी गई थी क्या कहूं...उन्हें पढ कर लगा कि यही बात इससे व्यवस्थित और साफ़ सुथरे ढंग से नहीं कही जा सकती...

आप भी आनंद लें...



प्रथम रात्रि

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

दरवाज़े खुले फिर बंद हुए, कुण्डी उन पर सरकाई गई 
मैं जान – बूझकर सुन री सखी, निद्रा-मुद्रा में लेट गई 
साजन की सुगंध को मैंने तो, हर साँस में था महसूस किया 
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया


पहले हम हँसे फिर नैन हँसे, फिर नैनन बीच हँसा कजरा
पहले तो निहारा उसने मुझे फिर मुस्कान होठों पर खेल गई
ऊँगली से ठुड्डी उठा मेरी, होठों को मेरे सखी चूम लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.


मेरे स्तन बारी बारी उसने वस्त्र सहित ही चूम लिए
अंगिया का आवरण दूर किया और चुम्बन से उन पर दबाय दिया
हर कोने में स्तनों को री सखी, हाथों से उभार कर चूम लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.



दबा-दबा के बक्षों को, उसने मुझको मदहोश किया
फिर चूम लिया और चाट लिया, फिर तरह-तरह से चूस लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.


अंगन से रगड़त थे अंगन को, सब अंगन पे जीभ फिरात रहे
सर्वांग मेरे बेहाल हुए, मुझे मोम की भांति पिघलाय दिया,
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.


आगे चूमा पीछे चूमा, मोहे चूम-चूम निढाल किया
उभरे अंगों को साजन ने , दांतों के बीच दबाय लिया
मैं कैसे कहूँ तुझसे ऐ सखी, अंग-अंग पे निशानी छोड़ दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.


माथे को उसने चूम लिया, फिर आँखों को उसने चूमा
होठों को लेकर होठों में, सब रस होठों का चूस लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.


चुम्बन की बारिश सुन री सखी, ऊपर से नीचे बढती गई
मैं सिसकारी लेती ही गई, वह अमृत रस पीता ही गया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.


साजन ने बैठकर बिस्तर पर, मेरे कंधे सहलाए 

सखी गालों पर गहन चुम्बन लेकर, 
अंगिया की डोर को खींच दिया 
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया 

नग्न पीठ पर साजन ने, ऊँगली से रेखा खींच दई 
बिजली जैसे मुझमे उतरी, सारे शरीर में दौड़ गई 
निस्वास लेकर फिर मैंने तो,अपनी करवट को बदल लिया 
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया 

करवट तो मात्र बहाना था, बैचेन बदन को चैन कहाँ 
मुझे साजन की खुसबू ने सखी, अंग लगने को मजबूर किया 
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया 

एक हाथ से उसने सुन ओ सखी, 
स्तन दबाये और भीच लिया 
मैंने गर्दन को ऊपर कर, उसके हाथों को चूम लिया 
दोनों बाँहों से भीच मुझे, साजन ने करीब और खींच लिया उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया 

साजन ने जोर लगा करके, मोहे अपने ऊपर लिटा लिया 
मेरे तपते होठों को उसने, अपने होठों में कैद किया 
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया 

उसने भींचा मेरा निचला होंठ, मैंने ऊपर का भींच लिया दोनों के होंठ यूँ जुड़े सखी, जिह्वाओं ने मिलन का लुत्फ़ लिया 
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया 

साजन ने उठाकर मुझे सखी, पलंग के नीचे फिर खड़ा किया 
खुद बैठा पलंग किनारे पर, मेरा एक-एक वस्त्र उतार दिया उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया 

मुझे पास खींचकर फिर उसने, स्तनों के चुम्बन गहन लिया दोनों हाथों से नितम्ब मेरे, सख्ती से दबाकर भींच लिया 
कई तरह से उनको सहलाया, कई तरह से दबाकर छोड़ दिया 
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया 

स्तन मुट्ठी में जकड सखी, उसने उनको था उभार लिया उभरे स्तन को साजन ने, अपने मुंह माहि उतार लिया 
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया 

बोंडियों को जीभ से उकसाया, होठों से पकड़ उन्हें खींच लिया 
रस चूसा सखी उनसे जी भर, मेरी काम- क्षुधा भड़काय दिया 
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया 

साजन का दस अंगुल का अंग, 
सखी मेरी तरफ था देख रहा 
उसकी बेताबी समझ सखी, मैंनेउसको अधरस्थ किया 
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया 

पलंग के कोर बैठा साजन, मैं नीचे थी सखी बैठ गई 
साजन के अंग पर जिह्वा से, मैंने तो चलीं कई चाल नई 
वह ओह-ओह कर चहुंक उठा, मैंने अंग को ऐसा दुलार किया 
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया 

अब सब कुछ था बिपरीत सखी, साजन नीचे मैं पलंग कोर जिस तरह से उसने चूसे स्तन, उसी तरह से अंग को चूस लिया 
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया 

उसने अपनी जिह्वा से सखी, अंग को चहूँ ओर से चाट लिया 
बहके अंग के हर हिस्से को, जिह्वा- रस से लिपटाय दिया रस में डूबे मेरे अंग में, अन्दर तक जिह्वा उतार दिया 
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया 

मैं पलंग किनारा पकड़ सखी, अंग को उभार कर खड़ी हुई साजन ने मेरे नितम्बों पर, दांतों से सिक्के छाप दिया 
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया 

उसके बिपरीत मुख करके सखी, घुटनों के बल मैं बैठ गई कंधे तो पलंग पर रहे झुके, नितम्बों को पूर्ण उठाय दिया उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया 

साजन ने झुककर पीछे से, अंग ऊपर से नीचे चाट लिया खुले-उभरे अंग में उसने, जिह्वा को अंग बनाय दिया 
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया 

साजन ने अपने अंग से सखी, मेरे अंग को जी भरके रगडा अंग से स्रावित रस में अंग को, सखी पूर्णतया लिपटाय लिया 
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया 

कठोर -सख्त अंग से री सखी, रस टपक-टपक कर गिरता था 
अपना अंग लेकर वह री सखी, मेरे अंग के मध्य समाय दिया
दस अंगुल की चिकनी सख्ती, मेरे अंग के मध्य घुसाय दिया 
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया 


जांघों के सहारे उठे नितम्ब, अब स्पंदन का सुख भोग रहे स्पंदन की झकझोर से फिर, स्तन दोलन से डोल रहे सीत्कार, सिसकी, उई, आह, ओह, सब वातावरण में घोल दिया 
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया 


ऐसे स्पंदन सखी मैंने, कभी सोचे न महसूस किये 
पूरा अंग बाहर किया सखी, फिर अन्तस्थल तक ठेल दिया उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया 

मैंने अंग में महसूस करी, अंग की कठोरता पर मधुर छुहन अंग की रसमय मधुशाला में, अंग ने अंग को मदहोश किया उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया 

पहले तो थे धीरे-धीरे, अब स्पंदन क्रमशः तेज हुए 
अंग ने अब अंग के अन्दर ही, सुख के थे कई-कई छोर छुए तगड़े गहरे स्पंदन से, मेरारोम-रोम आह्लाद किया 
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया 

साजन ने अब जिह्वा रस की, एकधारा नितम्ब मध्य टपकाई 
उसकी सारी चिकनाई सखी, हमरेअंगों ने सोख लई 
चप-चप, लप-लप की ध्वनियों से, सुख के द्वारों को खोल दिया 
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया 



जैसे-जैसे बढे स्पंदन, वैसे-वैसे आनंद बढा 
हर स्पंदन के साथ सखी, सुख घनघोर घटा सा उमड़ पड़ा
 साजन की आह ओह के संग, मैंनेआनंदमय सीत्कार किया
 उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया 

बारिश होने के पहले ही, सखी मेरा बांध था टूट गया 
मेरी जांघों ने जैसे की, नितम्बों का साथ था छोड़ दिया 
अंग का महल ढह गया सखी, दीर्घ आह ने सुख अभिव्यक्त किया 
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया 

मेरे नितम्बों के आँगन पर, साजन ने मोती बिखेर दिया
 साजन के अंग ने मेरे अंग को,सखी अद्भुत यह उपहार दिया 
आह्लादित साजन ने नितम्बों का, मोती के रस से लेप किया
 उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया 


मोती रस से मेरी काम अगन, मोती सी शीतल हुई सखी
 मन की अतृप्त इस धरती पर, घटा उमड़-उमड़ कर के बरसी 
मैंने साजन का सिर खीच सखी, अपने बक्षों में छुपाय लिया
 उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया


फिर स्पंदन का दौर चला, तन 'मंथन योग' में डूब गया
स्पंदन क्रमशः तेज हुए, मैंने भी नितम्ब उठाय दिए
मैं लेती गई वह देता गया, अब सीत्कार उल्लास हुआ
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

खटिया की ‘चूँ-चूँ’ की धुन थी, और स्पंदन की थाप सखी
उसकी सांसों की हुन्कन ने, आनंद-अगन का काम किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.


अंग उसका सखी मेरे अंग में, अन्दर जाता बाहर आता

छूकर मेरे अन्तस्थल को, वह सखी और भी इतराता
मेरे अंग ने तो सरस होकर, सखी उसको और कठोर किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.


हर स्पंदन के साथ सखी, मेरी मदहोशी बढती गई
मैं सिसकारी के साथ साथ, उई आह ओह भी करती गई ,
अंगों के रसमय इस प्याले में, उत्तेजना ने अति उफान लिया
उसरात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.


उसके नितम्ब यूँ उठे-गिरे, जैसे लोहार कोई चोट करे,
तपता लोहा मेरा अंग बना उसका था सख्त हथोड़े सा
उसके मुख से हुन्कन के स्वर, मैंने आह ओह सीत्कार किया
उसरात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.


स्पंदन रत उसके नितम्बों पर, मैंने सखी उँगलियाँ फेर दईं
मैंने तो अपनी टांगों को सखी उसकी कमर में लपेट दईं
मैंने हाथों से देकर दबाव, नितम्बों को गतिमय और किया
उसरात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.



हर स्पंदन से रस बनता, अंग के प्याले में गिर जाता
साजन के अंग से चिपुड- चिपुड, मेरे अंग को और भी मदमाता
साजन ने रसमय अंग लेकर, स्पंदन कई विशेष किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.


पूरा का पूरा अंग उसका, सखी मेरे अंग के अन्दर था,
कम्मर के पार से हाथ लिए, नितम्बों को उसने पकड़ा था
अंग लम्बाई तक उठ नितम्बों ने, अंग उतना ही अन्दर ठेल दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.


अब इतनी क्रियाएं एक साथ, मेरे तन में सखी होती थी ,
मुंह में जिह्वा, होठों में होठ, अंगों का परस्पर परिचालन

साजन ने अपने हाथों से, स्तनों का मर्दन खूब किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.



मैं अब सब कुछ सखी भूल गई, मैंने कुछ भी न याद किया
अंग की गहराई में साजन ने, सुख तरल बना के घोल दिया
मेरे अंग में उसने परम सुख की कई- कई धाराएँ छोड़ दिया
उसरात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.


मैं संतुष्ट हुई वह संतुष्ट हुआ, उसका तकिया मेरा बक्ष हुआ
गहरी सांसों के तूफानों ने, क्रमशः बयार का रूप लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
[+] 1 user Likes usaiha2's post
Like Reply
Do not mention / post any under age /rape content. If found Please use REPORT button.
जब साजन ने खोली मोरी अंगिया


स्नानगृह में

स्नानगृह में जैसे ही नहाने को मैं निर्वस्त्र हुई 
मेरे कानों को लगा सखी, दरवाज़े पे कोई दस्तक हुई 
धक्-धक् करते दिल से मैंने दरवाज़ा सखी री, 
खोल दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


आते ही साजन ने मुझको अपनी बाँहों में कैद किया 
होंठों को होंठों में लेकर उभारों को हाथों से मसल दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


फिर साजन ने, सुन री ओ सखी, फव्वारा जल का खोल दिया 
भीगे यौवन के अंग-अंग को होंठों की तुला में तौल दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


कंधे, स्तन, कमर, नितम्ब कई तरह से पकड़े, मसले और छोड़े गए 
गीले स्तन सख्त हाथों से आंटे की भांति गूंथे गए 
जल से भीगे नितम्बों को दांतों से काट-कचोट लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


मैं विस्मित सी, सुन री ओ सखी, साजन की बाँहों में सिमटी रही 
साजन ने नख से शिख तक ही होंठों से अति मुझे प्यार किया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


चुम्बनों से मैं थी दहक गई, जल-क्रीड़ा से बहकी मैं सखी 
बरबस झुककर स्व मुख से मैंने साजन के अंग को दुलार किया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


चूमत-चूमत, चाटत-चाटत साजन पंजे पर बैठ गए 
मैं खड़ी रही साजन ने होंठ नाभि के नीचे पहुँचाय दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


मेरे गीले से उस अंग से उसने जी भर के रसपान किया 
मैंने कन्धों पे पाँव को रख रस के द्वार को खोल दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


मैं मस्ती में थी डूब गई क्या करती हूँ न होश रहा 
साजन के होंठों पर अंग को रख नितम्बों को चहुँ-ओर हिलौर दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



साजन बहके-दहके-चहके मोहे जंघा पर ही बिठाय लिया 
मैंने भी उसकी कमर को अपनी जंघाओं में फँसाय लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


जल से भीगे और रस में तर अंगों ने मंजिल खुद खोजी 
उसके अंग ने मेरे अंग के अंतिम पड़ाव तक प्रवेश किया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


ऊपर से जल कण गिरते थे नीचे दो तन दहक-दहक जाते 
चार नितम्ब एक दंड से जुड़े एक दूजे में धँस-धँस जाते 
मेरे अंग ने उसके अंग के एक-एक हिस्से को फांस लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


जैसे वृक्षों से लता, सखी, मैं साजन से लिपटी थी यों 
साजन ने गहन दबाव देकर अपने अंग से मुझे चिपकाय लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


नितम्बों को वह हाथों से पकड़े स्पंदन को गति देता था 
मेरे दबाव से मगर सखी वह खुद ही नहीं हिल पाता था 
मैंने तो हर स्पंदन पर दुगना था जोर लगाय दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


अब तो बस ऐसा लगता था साजन मुझमें ही समा जाएँ 
होठों में होंठ, सीने में वक्ष आवागमन अंगों ने खूब किया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


कहते हैं कि जल से, री सखी, सारी गर्मी मिट जाती है 
जितना जल हम पर गिरता था उतनी ही गर्मी बढ़ाए दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


वह कंधे पीछे ले गया, सखी, सारा तन बाँहों पर उठा लिया 
मैंने उसकी देखा-देखी अपना तन पीछे खींच लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


इससे साजन को छूट मिली साजन ने नितम्ब उठाय लिया 
अंग में उलझे मेरे अंग ने चुम्बक का जैसे काम किया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


हाथों से ऊपर उठे बदन नितम्बों से जा टकराते थे 
जल में भीगे उत्तेजक क्षण मृदंग की ध्वनि बजाते थे 
साजन के जोशीले अंग ने मेरे अंग में मस्ती घोल दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


खोदत-खोदत कामांगन को जल के सोते फूटे री सखी 
उसके अंग के फव्वारे ने मोहे अन्तस्थल तक सींच दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


फव्वारों से निकले तरलों से तन-मन दोनों थे तृप्त हुए 
साजन के प्यार के उत्तेजक क्षण मेरे अंग-अंग में अभिव्यक्त हुए 
मैंने तृप्ति की एक मोहर साजन के होंठों पर लगाय दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 
[+] 1 user Likes usaiha2's post
Like Reply
Heart 
69 का खेल 


साजन की गोद में सिर मेरा, आवारा साजन के हाथ सखी 
ऊँगली के कोरों से उसने, स्तन को तोड़ मरोड़ दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



फिर साजन ने सिर पीछे से, होंठों को मेरे चूम लिया 
कुछ और आगे बढ़ स्तन पर, चुम्बन की झड़ी लगाय दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



साजन अब थोड़ा और बढ़े, चुम्बन नाभि तक जा पहुँचे नाभि के नीचे भी चुम्बन, मोरा अंग-अंग थर्राय दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मैंने सोचा अब क्या होगा, उई माँ ! क्या मैंने सोच लिया 
कुछ और सोचूँ उससे पहले, साजन ने होंठ टिकाय दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मेरी जंघाएँ फ़ैल गईं, जैसे इस पल को मैं आतुर थी 
मैं कसमसाई, मैं मचल उठी, मैंने खुद को व्याकुल पाया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



नितम्बों के नीचे पंजे रखकर, उनको ऐसा मसला री सखी मेरे अंग को जल में भीगे, कमल-दल की तरह खिलाय दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



शायद इतना काफी न था, साजन ने आगे का सोच रखा 
जिह्वा से मेरे अंग को उसने, उचकाय दिया, उकसाय दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



उसके नितम्ब मुख के समीप, अंग जैसे था फुफकार रहा मैंने फुफकारते उस अंग को, अपने मुंह माहि खींच लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



चहुँ ओर से मेरा अंग खुला, उसने 'जिह्वा-जीव' को छोड़ दिया 
वह इतने अन्दर तक जा पहुंची, रोम-रोम में मेरे रस सींच दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मैं तो जैसे बेसुध थी सखी, कुछ सोच रही न सूझ रहा 
उसके उस अंग को मैंने तो, अमवा की भांति चूस लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



जिह्वा उसकी अंग के अन्दर, और अन्दर ही जा धंसती थी 
मदहोशी के आलम में उसने, सिसकारी लेने को विवश किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मेरे भी अंग मचलते थे, मेरे भी नितम्ब उछलते थे साजन ने अपना मुंह चौड़ाकर, सर्वस्व अन्दर था खींच लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



अब सब कुछ साजन के मुख में था, जिह्वा अंग में थी नाच रही 
'काम-शिखर; पे आनन्द चढ़ा, रग-रग में हिलोरें छोड़ गया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



दोनों के मुख से 'आह-प्रवाह', साजन के अंग से रस बरसा 
साजन ने अपने 'अंग-रस’ से, मुख को मेरे सराबोर किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



हम निश्चल से आपस में लिपटे, उस पल के बारे में सोच रहे 
जिस पल में अपना सब खोकर, एक दूजे का सब पाय लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



अब मेरे मन में कोई प्रश्न न था, मैंने सब उत्तर पाए सखी 
इस उनहत्तर (69) से उनके मुख से, कोटि सुख मुझमें समाये सखी 
ऐसे साजन पर वारी मैं, जिसने अद्भुत ये प्यार दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
[+] 1 user Likes usaiha2's post
Like Reply
मुख-चोदन

मैं लेटी थी, वह लेटा था, अंग-अंग को उसने चूसा था, 
होंठों से उसने सुन री सखी, मेरे अंग-अंग को झकझोर दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



एक किरण ऊष्मा की जैसे, मेरे तन - मन में दौड़ गई 
मैंने भी उसके अंग को सखी, अपनी मुट्ठी में कैद किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



साजन ने अपने अंग को सखी, मेरे स्तन पर फेर दिया 
रगड़ा दोनों चुचूकों पर बारी-बारी, तो आग लगाय दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



कहाँ रुई से नाजुक मेरे स्तन, कहाँ वह निर्दय और कठोर सखी 
पर उस कठोर और निर्दय ने, मुझको था भाव-विभोर किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



वह निर्दय और कठोर सखी, दोनों स्तन मध्य बैठ गया 
मैंने भी उसको हाथों से, दोनों स्तनों से जकड़ लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मांसलता में वह कैद सखी, अनुपम सुख को था ढूंढ रहा 
आगे जाता पीछे आता, मेरी मांसलता को रौंद दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



सिर के नीचे मेरे तकिया था, आँखें थी अब दर्शक मेरी 
वह उत्तेजित और विभोर सखी, मेरे मन को भरमाय दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मैंने गर्दन को उठा सखी, उसको मुह मांहि खींच लिया 
मुझको तो दो सुख मिले सखी, उसको जिह्वा से सरस किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



वह दो स्तन मध्य से आता था, और मुँह में जाय समाता था 
मैंने होंठों की दी जकड़न, और जिह्वा का उसे दुलार दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



अनुभव सुख का कुछ ऐसा था, मुझको बेसुध कर बैठा था लगता था युग यूँ ही बीतें, थम जाये समय जो बीत गया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



साजन ने कई-कई आह भरीं, और अपनी अखियाँ मूंद लईं 
मैं बेसुध थी मुझे पता नहीं, कब ज्वालामुखी था फूट गया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मुँह, गाल, स्तन, गर्दन, सब आनन्द रस से तर थे सखी 
वह गर्माहट वह शीतलता, कैसे मैं करूँ बखान सखी 
मेरे मन के इस आँगन को, वह कामसुधा से लीप गया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



साजन थे आनन्द के सहभागी, मैं पुन-पुन यह सुख चाहूँ री सखी 
वह मधुर अगन वह मधुर जलन, मैंने तो चरम सुख पाय लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 
[+] 1 user Likes usaiha2's post
Like Reply
रसोई में

मैं घर में खाना पका रही, साजन पीछे से आ पहुँचे, 
मैं देख भी न पाई उनको, बाँहों में मुझे उठाय लिया, 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मैं बोली ये क्या करते हो, ये प्यार की कोई जगह नहीं 
मैं आगे कुछ भी कह न सकी, होंठों से मुझे लाचार किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



माथा चूमा, आँखें चूमी, गालों पे कई चुम्बन दागे 
स्तनों को दांतों से भींचा, और प्यार की निशानी छाप दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



दोनों हाथों में दो स्तन, पीछे से आकर पकड़ रखे 
उड़ने को आतुर पंछी को, शिकारी ने जैसे जकड़ रखे 
कंधे चूमे, गर्दन चूमी, कानों को दांतों से खींच लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



एक हाथ से कमर को भींचा, दूजे से स्तन दाब रहे 
ऐसा लगता था मुझे सखी, ये क्षण हर पल आबाद रहे 
स्तनाग्रों पे उँगलियाँ वीणा सी ऊपर-नीचे सरकाय दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



एक हाथ अंग से खेल रहा, दूजा था वस्त्र उतार रहा 
मैंने आँखें सखी मूँद लईं, मेरा रोम-रोम सीत्कार किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



बाँहों में उठाकर उसने मुझे, खाने की मेज पे लिटा दिया 
मैंने भी अपने अंग से सखी, सारे पहरों को हटा दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मैं लेटी थी पर मेरा अंग, उसकी आँखों के सम्मुख था 
उँगलियों से उसने सुन री सखी, चिकने अंग को सहलाय दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



रस से लबालब मेरे अंग में, एक ऊँगली फिर अन्दर सरकी 
मैं सिसकारी ले चहुंक उठी, नितम्बों को स्वतः उठाय दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



ऊँगली और अंग के घर्षण ने, रग-रग में अग्नि फूंक दई 
ऊँगली अन्दर ऊँगली बाहर, कभी गोलाकार घुमाय दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मैं तो चाहूँ सब कुछ देखूं, हर पल आँखों में कैद करूँ 
कुहनी के बल सुन री ओ सखी, गर्दन को अपनी उठाय लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मैंने देखा सुन री ओ सखी, साजन कितना कामातुर था 
ऊँगली के संग-संग जिह्वा से, मेरे अंग को वो सहलाता था 
आनन्द दुगुणित हुआ सखी, जिह्वा ने अपना काम किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



ऊँगली के आने-जाने से, अब काम पिपासा बड़ी सखी 
उस पर नटखट उस जिह्वा ने, अन्तरंग में आग लगाय दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मेरे अंग से रस स्रावित होता, जिह्वा रस में जा मिलता था 
दोनों मिलकर यूँ बहे सखी, मेरी जांघ-नितम्ब भिगाय दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मुझे पता नहीं कब साजन ने, अपनी ऊँगली बाहर कर ली 
और ऊँगली के स्थान सखी, दस अंगुल की मस्ती भर दी 
बेसब्र बिखरते यौवन में, अपने अंग को पूर्ण विस्तार दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मैंने भी अपनी टांगों से, विजयी (V) मुद्रा अब बना लई 
मेरे अंग में उसके अंग ने, अब छेड़ दई एक तान नई 
गहरी सांसें, सिसकी, हुन्कन, सब आह-ओह में मिला दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मेरे हिलते डुलते स्तन, उसने मुट्ठी में थाम लिया 
हर स्पंदन के साथ सखी, मेरी गहराई नाप लिया 
मैंने भी अंग संकुचित कर, अंग को सख्ती से थाम लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



अब साजन ने मेरी टाँगें, अपने कन्धों पर खींच लई 
मैंने अंग में अंग को घिसते, दस अंगुल का आनन्द लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



अंग में अंग की चहलकदमी, और स्पंदन की थाप लगी 
उत्तेजना अब ऐसी भड़की, सारी मेज पे भूकंप लाय दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



दोनों जंघाएँ पकड़ सखी, अंग को अन्दर का लक्ष्य दिया 
नितम्बों से ठोकर दे देकर, मुझे चरम-सुख की तरफ धकिय़ाय दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



थमने से पहले सुन री सखी, सब कुछ अत्यंत था तीव्र हुआ 
स्पंदन क्रमशः तेज हुए, अंगों ने अंतिम छोर छुआ 
गहरे लम्बे इन अंगों में, सब सुख था हमने लीन किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



सुनते हैं कि ओ प्यारी सखी, तूफ़ान कष्टकर होते हैं 
पर इस तूफ़ान ने तो जैसे, लाखों सुख मुझ में उड़ेल दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मेरे अंग से उसके अंग का, रस रिस-रिस कर बह जाता था 
वह और नहीं कुछ था री सखी, मेरा सुख छलका जाता था 
आह्लादित साजन को मैंने, पुनः मस्ती का एक ठौर दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
[+] 1 user Likes usaiha2's post
Like Reply
तरण-ताल

सखी चारों तरफ चांदनी थी, हम तरण-ताल में उतरे थे, 
जल तो कुछ शीतल था लेकिन, ये बदन हमारे जलते थे, 
जल में ही सखी सुन साजन ने, मुझको बाँहों में भींच लिया, 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



हर्षित उल्लासित मन से हमने, कई भांति जल में क्रीड़ा की, 
साजन ने दबा उभारों को, मन-मादक मुझको पीड़ा दी, 
यत्र-तत्र उसके चुम्बनों का, मैंने जरा नहीं प्रतिकार किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मुझको बाँहों में उठा सखी, कभी जल में उछाल के झेल लिया, 
कभी मुझे पकड़ कर कमर से, जल में चक्कर सा घुमा दिया, 
हाथों से जल मुझपे उछाल, कई भांति उसने चुहुल किया, 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मैं भी साजन को छेड़त थी, कभी अंग को पकड़त छोड़त थी, 
साजन की कमर, नितम्बों पर, कभी च्योंटी काट के दौड़त थी, 
साजन के उभरे सीने पर, मैंने दंताक्षर री सखी छाप दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



गर्दन, जांघें, स्तन, नितम्ब, पेडू पे ओष्ठ-चिह्न छापे गए, 
ऊँगली-मुट्ठी के पैमाने से, वस्त्र सहित दृढ़ स्तन नापे गए, 
होंठों पे रख कर तप्त होंठ, मुख में मुख का रस घोल दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



अब जहाँ-जहाँ साजन जाता, मैं वहाँ- वहाँ पर जाती थी, 
उससे होने की दूर सखी, नहीं चेष्टा मैं कर पाती थी, 
जल में डूबे द्रवित अंग लिए, नैनों से साजन को न्योत दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



सखी साजन ने जल के अन्दर, मुझे पूर्णतया निर्वस्त्र किया, 
हाथों से जलमग्न उभारों को, कई भांति दबाकर छोड़ दिया, 
जल में तर मेरे नितम्बों को, कई तरह से उसने निचोड़ दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



ऊँगली-मुट्ठी से वस्त्र रहित नितम्ब, नोचे-खरोचे-मसले गए, 
आटे की लोई से स्तन द्वय, दबाये-भींचे-पकड़े-छोड़े गए, 
नितम्बों की गहन उस घाटी में, उँगलियों ने गमन भी खूब किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



स्तन की घुंडी पे चुम्बन ले, जिह्वा से उनको उकसाया, 
पहले घुंडी मुंह अन्दर की, फिर अमरुद तरह स्तन खाया, 
होंठ-जिह्वा-दांतों से दबा-दबा, सारा रस उनका चूस लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



साजन मेरे पीछे आया, मुझे अंग की गड़न महसूस हुई 
स्तन से लेकर द्रवित अंग तक, उँगलियाँ की सरसरी विस्तृत हुई 
दोनों हाथों में भींची कमर, और अंग पे मुझे बिठाय लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



सखी साजन ने भर बाँहों में, मेरे होंठों को अतिशय चूमा, 
जल में जलमग्न स्तनों को, हाथों से उभार-उभार चूमा, 
स्तनों के मध्य रख कर अंग को, उन्हें कई-कई बार हिलोर दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



होकर अब बड़ी बेसब्र सखी, मैं जल-तल पर मछली सी मचली, 
साजन का अंग पकड़ने को, मेरी मुट्ठी घड़ी-घड़ी फिसली 
साजन की सख्त उँगलियों ने, अंग में कमल के पुष्प कई खिला दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



तरण-ताल के जल में सखी, हमरे अंग के रंग विलीन हुए 
जल में चिकने होकर हमने, उत्तेजना के नए-नए शिखर छुए, 
मैंने मुट्ठी से अंग के संग, साजन को भाव-विभोर किया. 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



सखी साजन ने मुझको अपनी, निर्मम बाँहों में उठा लिया, 
और ला के किनारे तट पे मुझे, हौले से सखी बिठाय दिया, 
खुद वो तो रहा जल के अन्दर, मुझे जांघों से पकड़कर खीच लिया. 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मैं कुहनी के बल बैठी थी, अंग उसके मुख के सम्मुख था, 
मैं सोच-सोच उद्वेलित थी, मैं जानत थी अब क्या होगा 
साजन ने अपनी जिह्वा से, मेरी मर्जी का सखी काम किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मस्ती के मारे सुन री सखी, अब मुझको कुछ न सूझत था, 
साजन होंठों और जिह्वा से, मेरे अंतर्रस को चूसत था, 
मैंने भी उठाकर नितम्ब सखी, मस्ती का उदाहरण पेश किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



साजन के होंठ तो चंचल थे, जिह्वा भी अंग पर अति फिसली, 
कुहनी के बल मैंने नितम्ब उठा, जिह्वा अंग के अन्दर कर ली 
अंग में जिह्वा का मादक रस, सखी मैंने स्वयं उड़ेल लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



साजन का दस अंगुल का अंग, मुझे जल में और विशाल दिखा, 
उसकी मादकता पाने को, सखी मेरे मन भी लोभ उठा 
मैंने जल में अब उतर सखी, साजन को किनारे बिठा दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



भीगे अंग को मुख के रस से, चहुँ और सखी लिपटाय दिया 
होठों से पकड़ कर कंठ तरफ, मैंने उसको सरकाय लिया 
नीचे के होंठ संग जिह्वा रख, मैंने लिप्सा अपनी पूर्ण किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



जिह्वा अंग को थी उकसाती, उसे होठों से मैं कसकर पकड़े, 
साजन के बदन में थिरकन के, सखी कई-कई अब बुलबुले उड़े, 
अंग को जिह्वा-होठों से खींच, सखी मैंने कंठ लगाय लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



उसको करने से प्यार सखी, मेरा मन कभी न भरता था, 
मुंह का रस अंग भिगोने को, सखी कभी भी न कम पड़ता था 
चूस-चाट-चटकार-चबा, कई बार उसे कंठस्थ किया, 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



साजन भी अब जल में उतरे, मुझे अपनी बाँहों में उठा लिया 
फिर कमर से मुझे पकड़ सखी, अपने अंग पे जैसे बिठा लिया 
अंग से अंग मिल गया सखी, अंग स्वतः ही अंग में उतर गया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



दस अंगुल के कठोर अंग ने, मेरे अंग में स्वछंद प्रवेश किया 
हम कमर तक डूबे थे सखी, जल में अंग ने अंग धार लिया 
साजन ने पकड़ नितम्बों से, थोडा ऊपर मुझे उठाय लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



साजन के हाथों के आर-पार, मैंने जंघाएँ सखी फंसा लई 
साजन की गर्दन में बाहें लपेट, नितम्बों को धीमी गति दई 
दोनों हाथों से पकड़ नितम्ब, साजन ने उन्हें गतिमान किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मेरी गति से सखी जल के मध्य, छप-छप आवाजें होती थी, 
मुख से निकली मेरी आह ओह, मेरे सुख की कहानी कहती थी 
मादक अंगों की लिसलिसी छुअन, रग-रग को भाव विभोर किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



जंघा से पार दो कठोर हाथ, नितम्बों को जकड़े-पकड़े थे, 
कभी उसने सहलाया उनको, कभी उँगलियों से गए मसले थे 
मेरे अंग ने साजन के अंग की, चिकनाई सखी और बढ़ा दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



साजन के अंग पे चढ़-चलकर, मैं सुख के शिखर तक जा पहुँची, 
अंगों के घर्षण-मर्दन से, तन में ज्वालायें कई-कई धधकीं, 
मैं जैसे ही स्थिर हुई सखी, साजन ने नितम्ब-क्रम चला दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



वृक्षों से लिपटी लता सदृश, अंग उसके अंग से चिपटा था 
अंग घर्षण से निकले स्वर से, वातावरण बहुत ही मादक था 
उसका अंग तो मेरे अंग के, जैसे कंठ के भी सखी पार गया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



जल में छप-छप अंग में लप-लप, मुंह में थे आह-ओह के शब्द 
साँसें थी जैसे धौंकनी हो, हमें देख प्रकृति भी थी स्तब्ध 
उसके जोशीले नितम्बों ने, जल में लहरें कई उठाय दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



साजन का सिर पकड़ के हाथों में, मुख उसके जिह्वा घुसाय दिया 
होठों को होठों से जकड़ा, जिह्वा से जिह्वा का मेल किया 
जैसे अंग परस्पर मिलते थे, जिह्वा ने मुख में वही खेल किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



साँसों की गति थी तूफानी, पर स्पंदन की उससे भी तेज 
अंगों की तरलता के आगे, चांदनी भी थी जैसे निस्तेज 
चुम्बन के स्वर, जल की छप-छप, साँसों के स्वर में घोल दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



अति तीव्र गति से सांसों के, तूफ़ान निरंतर बह निकले, 
अति दीर्घ आह-ओह के संग, बदन कँपकपाए हम बह निकले, 
अंग के अन्दर बने तरण ताल, मन ने उनमें खूब किलोल किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



अंगों से जो रस बह निकले, अन्तरंग ताल के जल में मिले 
सांसों में उठे तूफानों के, अब जाके धीमे पड़े सिले 
तरण ताल में उठी लहरों ने, अब जाकर के विश्राम किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



सब शांत हुआ लेकिन री सखी, मैं साजन से लिपटी ही रही 
मेरे अंग में उसके अंग की सखी, गहन ऊष्मा घुलती रही 
मुझे पता नहीं कब साजन ने, मुझे तट पर लाकर लिटा दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मैंने खोली जब आँखें तो, साजन को निज सम्मुख पाया 
होठों पर मृदु मुस्कान लिए, उसे मुख निहारते हुए पाया 
बाँहों से साजन को घेर सखी, तृप्त होंठों से होंठ मिलाय दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
[+] 1 user Likes usaiha2's post
Like Reply
स्वप्न

वह रात चाँदनी रही सखी, साजन निद्रा में लीन रहा 
आँखों में मेरी पर नींद नहीं, मैंने तो देखा स्वप्न नया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



सोते साजन के बालों को, हौले-हौले सहलाय दिया 
माथे पर एक चुम्बन लेकर, होठों में होंठ घुसाय दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



साजन के होंठों से होंठ मेरे, चिपके जैसे कि चुम्बक हों 
साजन सोते या जागते हैं, अंग पे हाथ फेर अनुमान किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



दस अंगुल का विस्तार निरख, मैं तो हो गई निहाल सखी 
साजन सोते हैं या जागते हैं, अब ये विचार मन से दूर किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



अपने स्तन निर्वस्त्र किये, साजन के होठों में सौंप दिए 
गहरी-गरम उसकी सांसों ने, मेरे स्तन स्वतः फुलाय दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



साजन के उभरे सीने पर, फिर मैंने जिह्वा सरकाई सखी 
उसके सीने पर होंठों से, चुम्बन के कई प्रकार लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



साजन बेसुध सा सोया था, मैंने अंतःवस्त्र उतार दिया 
दस अंगुल के चितचोर को फिर, मैंने मुख माहि उतार लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मैंने साजन के अंग से फिर, मुँह से खेले कई खेल सखी 
कभी होंठों से खींचा उसको, कभी जीभ से रस फैलाय दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



कभी केले सा होंठस्थ किया, कभी आम सा था रस चूस लिया 
कभी जिह्वा की अठखेली दी, कभी दाँतों से मृदु दंड दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



होंठ-जिह्वा दोनों संग-संग, इस क्रिया में रत रहे सखी 
जिह्वा-रस में तर अंग से मैंने, स्तनों पे रस का लेप किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मैंने सोचा साजन का अंग, मेरे अंग में कैसे जाता होगा 
कैसे अंग में वह धँसता होगा, कैसे अंग में इतराता होगा 
अपनी मुट्ठी को अंग समझ, मैंने क्या–क्या नहीं अनुमान किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मैं देखत थी मैं खेलत थी, अंग मुँह के अन्दर सेवत थी 
मेरे मन में ऐसा लोभ हुआ, मैंने उसको पूर्ण कंठस्थ किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



साजन की उँगलियाँ अब मैंने, नितम्बों पे फिरती अनुभव की 
मैं समझ गई अब साजन की, आँखों से उड़ी झूठी निंदिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



साजन ने नितम्ब सहलाये सखी, पूरा अंग मुट्ठी ले दबा दिया 
ख़ुशी से झूमे मेरे अंग ने, द्रव के द्वारों को खोल दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



नितम्बों के मध्य सखी साजन ने, रस भरा सा चुम्बन टांक दिया 
मेरे मुँह से बस सिसकी निकली, मैंने आनन्द अतिरेक था प्राप्त किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



साजन ने नितम्बों पर दाँतों से, कई मोहरें सखी उकेर दईं 
मक्खन की ढेली समझ उन्हें, जिह्वा से चाट-चटकार लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



एक बड़े अनोखे अनुभव ने, जीवन में मेरे किलकार किया 
मैं चिहुंकी मेरे अंग फड़के, मैंने उल्लास मय चीत्कार किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



रात्रि के गहन सन्नाटे को, मेरी सिसकारी थी तोड़ रही 
मैं बेसुध सी होकर अंग को, होंठों से पकड़ और छोड़ रही 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मैं बेसब्री से उठी सखी, साजन के अंग पर जा लेटी 
साजन के विपरीत था मुख मेरा, नितम्बों को पकड़ निचोड़ दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मेरा मुख साजन के पंजों पर, स्तन घुटनों पर पड़े सखी 
मेरा अंग विराजा उसके अंग पर, अंग को सांचे में ढाल लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



साजन की कमर के आर-पार, मेरे दो घुटने आधार बने 
मेरे पंजों ने तो साजन की, तकिया का जैसे काम किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मेरे अंग के सब क्रिया कलाप, अब साजन की नज़रों में थे 
अंग को अंग से सख्ती से जकड़, चहुँ ओर से नितम्ब हिलोर दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



कभी इस चक्कर कभी उस चक्कर, मेरे नितम्ब थे डोल रहे 
साजन ने उँगलियों से उकसाया, कभी उन पे कचोटी काट लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



बड़ी बेसब्री से अंग मेरा, स्तम्भ पे चढ़ता उतरता था 
जितनी तेजी से चढ़ता था, उतना ही तीव्र उतरता था 
मेरे अंग ने उसके अंग की, लम्बाई-चौड़ाई नाप लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



साजन ने अपनी आँखों से, देखे मेरे सब स्पंदन 
उसने देखा रस में डूबे, अंगों का गतिमय आलिंगन 
उसने नितम्ब पर थाप दिया, मैंने स्पंदन पुरजोर किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



श्रम के मारे मेरा शरीर, श्रम के कण से था भीग गया 
मेरा उद्वेलित अंग उसके अंग पर, कितने ही मील चढ़-उतर गया 
स्तम्भ पे कुशल कोई नट जैसा, मेरे अंग ने था अठखेल किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



आह, ओह, सीत्कार सिवा, हमरे मुख में कोई शब्द न थे 
मैं जितनी थी बेसब्र सखी, साजन भी कम बेसब्र न थे 
साजन के अंग ने मेरे अंग में, कई शब्दों का स्वर खोल दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मेरा अंग तो उसके अंग को, लील लेने को बेसब्र रहा 
ऐसी आवाजें आती थी, जैसे भूखा भोजन चबा रहा 
साजन ने अपने अंगूठे को, नितम्बों के मध्य लगाय दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



अंग का घर्षण था अंग के संग, अंगूठे का मध्य नितम्बों पर 
उसका सुख था अन्दर-अन्दर, इसका सुख था बाहर-बाहर 
मैं सर्वत्र आनन्द से घिरी सखी, सुख काम-शिखर तक पहुँच गया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



अंगों की क्षुधा बढ़ती ही गई, संग स्पंदन भी बढ़े सखी 
पल भर में ऐसी बारिश हुई, शीतल हो गई तपती धरती 
साजन के अंग ने मेरे अंग में, तृप्ति के बांध को तोड़ दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



साजन ने उठाकर मुझे सखी, अपने सीने से लगा लिया 
और हंसकर बोला वह मुझसे, अनुपम सुख हमने प्राप्त किया 
मैंने सहमति की मुस्कान लिए, होंठों से होंठ मिलाय लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !



पहले हम हँसे फिर नैन हँसे, फिर नैनन बीच हँसा कजरा 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



पहले तो निहारा उसने मुझे फिर मुस्कान होठों पर खेल गई 
उंगली से ठुड्डी उठा मेरी, होंठों को मेरे सखी, चूम लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मेरे स्तन बारी बारी उसने वस्त्र सहित ही चूम लिए 
अंगिया का आवरण दूर किया और चुम्बन से उन पर दबाय दिया 
हर कोने में स्तनों को री सखी, हाथों से उभार कर चूम लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



दबा-दबा के वक्षों को, उसने मुझको मदहोश किया 
फिर चूम लिया और चाट लिया, फिर तरह-तरह से चूस लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



अंगन से रगड़त थे अंगन को, सब अंगन पे जीभ फिरात रहे 
सर्वांग मेरे बेहाल हुए, मुझे मोम की भांति पिघलाय दिया, 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



आगे चूमा पीछे चूमा, मोहे चूम-चूम निढाल किया 
उभरे अंगों को साजन ने, दांतों के बीच दबाय लिया 
मैं कैसे कहूँ तुझसे ऐ सखी, अंग-अंग पे निशानी छोड़ दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



माथे को उसने चूम लिया, फिर आँखों को उसने चूमा 
होंठों को लेकर होंठों में, सब रस होंठों का चूस लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



चुम्बन की बारिश सुन री सखी, ऊपर से नीचे बढ़ती गई 
मैं सिसकारी लेती ही गई, वह अमृत रस पीता ही गया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



अपना अंग लेकर वह री सखी, मेरे अंग के मध्य समाय गया 
फिर स्पंदन का दौर चला, तन 'मंथन योग' में डूब गया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



स्पंदन क्रमशः तेज हुए, मैंने भी नितम्ब उठाय दिए 
मैं लेती गई वह देता गया, अब सीत्कार उल्लास हुआ 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



खटिया की ‘चूँ-चूँ’ की धुन थी, और स्पंदन की थाप सखी 
उसकी सांसों की हुन्कन ने, आनन्द-अगन का काम किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



अंग उसका सखी मेरे अंग में, अन्दर जाता बाहर आता 
छूकर मेरे अन्तस्थल को, वह सखी और भी इतराता 
मेरे अंग ने तो सरस होकर, सखी उसको और कठोर किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



हर स्पंदन के साथ सखी, मेरी मदहोशी बढ़ती गई 
मैं सिसकारी के साथ साथ, उई आह ओह भी करती गई 
अंगों के रसमय इस प्याले में, उत्तेजना ने अति उफान लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



उसके नितम्ब यूँ उठे-गिरे, जैसे लौहार कोई चोट करे, 
तपता लोहा मेरा अंग बना उसका था सख्त हथौड़े सा 
उसके मुख से हुन्कन के स्वर, मैंने आह ओह सीत्कार किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



स्पंदन रत उसके नितम्बों पर, मैंने सखी उँगलियाँ फेर दईं 
मैंने तो अपनी टांगों को सखी उसकी कमर में लपेट दईं 
मैंने हाथों से देकर दबाव, नितम्बों को गतिमय और किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



हर स्पंदन से रस बनता, अंग के प्याले में गिर जाता 
साजन के अंग से चिपुड़-चिपुड़, मेरे अंग को और भी मदमाता 
साजन ने रसमय अंग लेकर, स्पंदन कई विशेष किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



पूरा का पूरा अंग उसका, सखी मेरे अंग के अन्दर था, 
कमर के पार से हाथ लिए, नितम्बों को उसने पकड़ा था 
अंग लम्बाई तक उठ नितम्बों ने, अंग उतना ही अन्दर ठेल दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



अब इतनी क्रियाएँ एक साथ, मेरे तन में सखी होती थी 
मुख में जिह्वा, होंठों में होंठ, अंगों का परस्पर परिचालन 
साजन ने अपने हाथों से, स्तनों का मर्दन खूब किया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मैं अब सब कुछ सखी भूल गई, मैंने कुछ भी न याद किया 
अंग की गहराई में साजन ने, सुख तरल बना के घोल दिया 
मेरे अंग में उसने परम सुख की कई-कई धाराएँ छोड़ दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



मैं संतुष्ट हुई वह संतुष्ट हुआ, उसका तकिया मेरा वक्ष हुआ 
गहरी सांसों के तूफानों ने, क्रमशः बयार का रूप लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
[+] 1 user Likes usaiha2's post
Like Reply
Heart
मैके में मन की बात


मैं मैके अपने आई सखी, कई दिन साजन से दूर रही
मन मयूर मेरा नाच उठा, जब साजन मेरे घर आया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
एकांत जगह मेरे घर में, बाँहों में मुझको कैद किया

मेरे होठों को होठों से, सखी जोंक की भांति जकड लिया
मैं भी न चाहूँ होंठ हटें, साजन को करीब और खीच लिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
कुछ हलचल हुई, मैं चौंक गई, साजन को परे हटाय दिया

रात में मिलूंगी साजन ने, सखी मुझसे वादा धराय लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

जैसे-तैसे तो शाम हुई, रात्रि तो मुझे बड़ी दूर लगी
होते ही रात सखी साजन को, बहनों ने मेरी घेर लिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
हँसी ठिठोली बहनों की, मुझको बिलकुल न भाई सखी

सिरदर्द के बहाने मैंने तो, बहनों से किनारा काट लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

अपने कमरे में आकर मैं, सखी बिस्तर पर थी लेट गई
बंद करके आँखें पड़ी रही, साजन के सपनो में डूब गई

हर आहट पर सखी मैंने तो, साजन को ही आते पाया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

दरवाज़े खुले फिर बंद हुए, कुण्डी उन पर सरकाई गई
मैं जान – बूझकर सुन री सखी, निद्रा-मुद्रा में लेट गई

साजन की सुगंध को मैंने तो, हर साँस में था महसूस किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

साजन ने बैठकर बिस्तर पर, मेरे कंधे सहलाए सखी
गालों पर गहन चुम्बन लेकर, अंगिया की डोर को खींच दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
नग्न पीठ पर साजन ने, ऊँगली से रेखा खींच दई

बिजली जैसे मुझमे उतरी, सारे शरीर में दौड़ गई
निस्वास लेकर फिर मैंने तो, अपनी करवट को बदल लिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
करवट तो मात्र बहाना था, बैचेन बदन को चैन कहाँ

मुझे साजन की खुसबू ने सखी, अंग लगने को मजबूर किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

एक हाथ से उसने सुन ओ सखी, स्तन दबाये और भीच लिया
मैंने गर्दन को ऊपर कर, उसके हाथों को चूम लिया.



दोनों बाँहों से भीच मुझे, साजन ने करीब और खींच लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

साजन ने जोर लगा करके, मोहे अपने ऊपर लिटा लिया
मेरे तपते होठों को उसने, अपने होठों में कैद किया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
उसने भींचा मेरा निचला होंठ, मैंने ऊपर का भींच लिया

दोनों के होंठ यूँ जुड़े सखी, जिह्वाओं ने मिलन का लुत्फ़ लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

साजन ने उठाकर मुझे सखी, पलंग के नीचे फिर खड़ा किया
खुद बैठा पलंग किनारे पर, मेरा एक-एक वस्त्र उतार दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
मुझे पास खींचकर फिर उसने, स्तनों के चुम्बन गहन लिया

दोनों हाथों से नितम्ब मेरे, सख्ती से दबाकर भींच लिया
कई तरह से उनको सहलाया, कई तरह से दबाकर छोड़ दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
स्तन मुट्ठी में जकड सखी, उसने उनको था उभार लिया

उभरे स्तन को साजन ने, अपने मुंह माहि उतार लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

बोंडियों को जीभ से उकसाया, होठों से पकड़ उन्हें खींच लिया
रस चूसा सखी उनसे जी भर, मेरी काम- क्षुधा भड़काय दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
साजन का दस अंगुल का अंग, सखी मेरी तरफ था देख रहा

उसकी बेताबी समझ सखी, मैंने उसको होठास्थ किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

पलंग के कोर बैठा साजन, मैं नीचे थी सखी बैठ गई
साजन के अंग पर जिह्वा से, मैंने तो चलीं कई चाल नई

वह ओह-ओह कर चहुंक उठा, मैंने अंग को ऐसा दुलार किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

अब सब कुछ था बिपरीत सखी, साजन नीचे मैं पलंग कोर
जिस तरह से उसने चूसे स्तन, उसी तरह से अंग को चूस लिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
उसने अपनी जिह्वा से सखी, अंग को चहूँ ओर से चाट लिया

बहके अंग के हर हिस्से को, जिह्वा- रस से लिपटाय दिया
रस में डूबे मेरे अंग में, अन्दर तक जिह्वा उतार दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
मैं पलंग किनारा पकड़ सखी, अंग को उभार कर खड़ी हुई.




साजन ने मेरे नितम्बों पर, दांतों से सिक्के छाप दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

उसके बिपरीत मुख करके सखी, घुटनों के बल मैं बैठ गई
कंधे तो पलंग पर रहे झुके, नितम्बों को पूर्ण उठाय दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
साजन ने झुककर पीछे से, अंग ऊपर से नीचे चाट लिया

खुले-उभरे अंग में उसने, जिह्वा को अंग बनाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

साजन ने अपने अंग से सखी, मेरे अंग को जी भरके रगडा
अंग से स्रावित रस में अंग को, सखी पूर्णतया लिपटाय लिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
कठोर -सख्त अंग से री सखी, रस टपक-टपक कर गिरता था

दस अंगुल की चिकनी सख्ती, मेरे अंग के मध्य घुसाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

जांघों के सहारे उठे नितम्ब, अब स्पंदन का सुख भोग रहे
स्पंदन की झकझोर से फिर, स्तन दोलन से डोल रहे

सीत्कार, सिसकी, उई, आह, ओह, सब वातावरण में घोल दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

ऐसे स्पंदन सखी मैंने, कभी सोचे न महसूस किये
पूरा अंग बाहर किया सखी, फिर अन्तस्थल तक ठेल दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
मैंने अंग में महसूस करी, अंग की कठोर पर मधुर छुहन

अंग की रसमय मधुशाला में, अंग ने अंग को मदहोश किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

पहले तो थे धीरे-धीरे, अब स्पंदन क्रमशः तेज हुए
अंग ने अब अंग के अन्दर ही, सुख के थे कई-कई छोर छुए

तगड़े गहरे स्पंदन से, मेरा रोम-रोम आह्लाद किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

साजन ने अब जिह्वा रस की, एक धारा नितम्ब मध्य टपकाई
उसकी सारी चिकनाई सखी, हमरे अंगों ने सोख लई

चप-चप, लप-लप की ध्वनियों से, सुख के द्वारों को खोल दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

जैसे-जैसे बड़े स्पंदन, वैसे-वैसे आनंद बड़ा
हर स्पंदन के साथ सखी, सुख घनघोर घटा सा उमड़ पड़ा

साजन की आह ओह के संग, मैंने आनंदमय सीत्कार किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

वारिस होने के पहले ही, सखी मेरा बांध था टूट गया
मेरी जांघों ने जैसे की, नितम्बों का साथ था छोड़ दिया

अंग का महल ढह गया सखी, दीर्घ आह ने सुख अभिव्यक्त किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

मेरे नितम्बों के आँगन पर, साजन ने मोती बिखेर दिया
साजन के अंग ने मेरे अंग को, सखी अद्भुत यह उपहार दिया

आह्लादित साजन ने नितम्बों का, मोती के रस से लेप किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

मोती रस से मेरी काम अगन, मोती सी शीतल हुई सखी
मन की अतृप्त इस धरती पर, घटा उमड़-उमड़ कर के बरसी

मैंने साजन का सिर खीच सखी, अपने बक्षों में छुपाय लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
[+] 1 user Likes usaiha2's post
Like Reply
स्पंदन गिन गिनकर

सखी मैं साजन से रूठी थी, और साजन मुझे मनाता था
मैं और दूर हट जाती थी, वह जितने कदम बढाता था
साजन के हाथों को मैंने, अपने बदन से परे हटाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.
साजन ने कितना समझाया, मैंने एक भी न मानी उसकी
साजन के चुम्बन ले लेने पर, होठों को हथेली से साफ़ किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

साजन ने पीछे से री सखी, आकर मुझको बाँहों में घेरा
मैं कुस्मुसाई तो बहुत मगर, साजन ने मुझको न छोड़ा
गालों पर चुम्बन लेकर के, मुझे अपनी तरफ घुमाय लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

मेरी आँखों में तो आंसू थे, साजन ने आँखें चूम लई
आँखों से गिरी हीरों की कनी, होठों की तुला में तोल दई
हर हीरे की कनी का साजन ने, चुम्बन का अद्भुत मोल दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

साजन ने सखी मुझे खींच लिया, अपने सीने से लगा लिया
फिर कानों में बोला मुझसे, मैंने तुझसे बहुत है प्यार किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

मैं साजन से परे हटी सखी, भीगी आँखों से देखा उसको
फिर धक्का देकर मैंने तो, उसे पलंग के ऊपर गिराय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

मैं स्वयं गिरी उसके ऊपर, होठों से होंठ मिलाय दिया
साजन के मुख पर मैंने तो, चुम्बन की झड़ी लगाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

साजन ने शरारत करी सखी, पेटीकोट की डोरी खोल दिया
कम्मर के नीचे नितम्बों पर, उँगलियाँ कई भांति फिराय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

पांवों में फँसाकर पेटीकोट, सखी नीचे उसने सरकाय दिया
पांवों से ही उसने सुन री सखी, मेरा अंतर्वस्त्र उतार दिया
अँगिया दाँतों से खीच लई, बदन सारा यों निर्वस्त्र किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

सुरसुरी की धाराएँ तन से सखी मेरे मन तक दौड़ गईं
साजन ने मध्यमा ऊँगली को, नितम्बों के मध्य फिराय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

मैं साजन के होठों को सखी, अपने होठों से चूसत थी
साजन ने अपने हाथों से, स्तनों पे मदमाते खेल किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

पथदर्शक-मध्यमा ऊँगली के, मध्य बोंडी सखी फसाय लिया
बोंडियों से उठाये स्तन द्वय, कई बार उठाकर गिरा दिया
पाँचों उँगलियों के नाखूनों की स्तनों पे निशानी छोड़ दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

हाथों से दबाकर अगल-बगल, दोनों स्तन सखी मिला लिया
एक गलियारा उभरा उसमे, होठों से घुसने का यत्न किया
उन्मुक्त स्तनों को हिलोरें दे, मुख पर साजन ने रगड़ लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

मेरे सब्र का बांध था टूट गया, मैंने उसको भी निर्वस्त्र किया
साजन के होठों पर मैंने, अब अपना अंग बिठाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

साजन चूसत था सर्वांग मेरा, मैं पीछे को मुड गई सखी
अपने हाथों से साजन के, अंग पर मैंने खिलवाड़ किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

होंठ, जिह्वा सखी साजन के, स्थिर थे जैसे कोई धुरी
मैंने तो अपने अंग को उन पर, बेसब्री से सखी रगड़ दिया
साजन ने दोनों हाथों से, सखी मेरे अंग का मुख खोल लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

साजन की जिह्वा ने मेरे अंग के, रस के बाँधों को तोड़ दिया
साजन ने निस्सारित रस को, मधुरस की भांति चाट लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

मैं अब पीछे को सरकी, उसके अंग को अंग में धार लिया
दो-चार स्पंदन कर धीरे से, अंग गहराई तक उतार लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

साजन ने मुझको सुन री सखी, बहुतई जोरों से भीच लिया
और करवट लेकर उसने तो, स्वयं को मेरे ऊपर बिछाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

फिर उसने कहा तू दस तक गिन, और दस स्पंदन कड़े किया
फिर करवट लेकर उसने तो, पुनः अपने ऊपर मुझे किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

मैंने कहा अब तू भी गिन, नितम्ब धीरे-धीरे गतिमान किया
पच्चीस की गिनती पर मैंने तो, सखी खुद को लेकिन रोक लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

साजन ने कहा ले आगे गिन, नीचे रहकर किये प्रति स्पंदन
मैं गिनती रही वह करता रहा, गिनती अस्सी के पार किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

अब मेरी बारी आई सखी, साजन को गिनती करनी थी
अंग को पकडे पकडे अंग से, साजन को ऊपर बुलाय लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

दोनों टाँगें मैंने फैला दईं, अंग से अंग पर रस फैलाया
साजन ने अपने कन्धों को, बाँहों के सहारे उठाय लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

हर स्पंदन पर साजन ने, सखी गहरी सी हुँकार भरी
मैंने स्पंदन को छोड़ सखी, अब साजन की हुँकार गिनी
साजन ने मारकर शतक सखी, मुझे अवसर पुनः प्रदान किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

मैंने तो सखी स्पंदन में, अब कई प्रयोग थे कर डाले
ऊपर नीचे दायें बाएं, कभी अंग को अंग से खाय लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

खेलत-खेलत मैं थकी सखी, साजन के बदन पर लोट गई
साजन ने कहा सौ नहीं हुए, और प्रतिस्पंदन कई बार किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

साजन ने समझी दशा मेरी, मुझको नीचे फिर किया सखी
मैंने अपनी दोई टांगों को, उसके कन्धों पर ढलकाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

साजन ने बाँहों से उठा बदन, सारा जोर नितम्बों पर लगा दिया
मेरी सीत्कार उई आह के संग, स्पंदन की गति को बढ़ा दिया
मैं गिनती ही सखी भूल गई, मुझे मदहोशी की धार में छोड़ दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

अंगों का परस्पर मिलन हुआ, तो आवाजें भी मुखरित हुईं
सुड़क-सुड़क, चप-चप,लप-लप, अंगों ने रस में किलोल किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

साजन ने कहा ले फिर से गिन, मैंने फिर से गिनती शुरू करी
हर गिनती के ही साथ सखी, मेरे मुंह से सिसकारी निकलीं
आकर पचपन पर प्यारी सखी, मैंने दीर्घ "ओह" उच्चार किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

मेरा स्वर तो सखी बैठ गया, मैं छप्पन न कह पाई सखी
एक तीब्र आह लेकर मैंने, साजन को जोरों से भीच लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

साजन की साँस धोकनी सी, पसीने से तर उसका था बदन
सत्तावन पर सखी साजन ने, हिचकोले खा लम्बी आह लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

मेरे अंग में धाराएँ फूटीं, दोनों का तटबंध था टूट गया
मेरा सुख निस्सारित होकर, उसके सुख में था विलीन हुआ
स्पंदन के सुखमय योगों ने, परमानन्द से संयोग किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.

मेरे अंग पर सीना रखकर, वह प्रफुल्लित होकर लेट गया
मैंने अपनी एडियों को, उसके नितम्बों पर सखी फेर दिया
शांति की अनंत चांदनी में, हमने परस्पर लिपट बिश्राम किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
[+] 1 user Likes usaiha2's post
Like Reply
निद्रा का बहाना

वह रात चांदनी रही सखी, साजन निद्रा में लीन रहा
आँखों में मेरी पर नींद नहीं, मैंने तो देखा स्वप्न नया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
सोते साजन के बालों को, हौले - हौले सहलाय दिया
माथे पर एक चुम्बन लेकर, होठों में होठ घुसाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

साजन के होठों से होंठ मेरे, चिपके जैसे कि चुम्बक हों
साजन सोते या जागते हैं, अंग पे हाथ फेर अनुमान किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

दस अंगुल का विस्तार निरख, मैं तो हो गई निहाल सखी
साजन सोते हैं या जागते हैं, अब ये विचार मन से दूर किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

अपने स्तन निर्वस्त्र किये, साजन के होठों में सौंप दिए
गहरी-गरम उसकी सांसों ने, मेरे स्तन स्वतः फुलाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

साजन के उभरे सीने पर, फिर मैंने जिव्हा सरकाई सखी
उसके सीने पर होठों से, चुम्बन के कई प्रकार लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

साजन बेसुध सा सोया था, मैंने अंतर- वस्त्र उतार दिया
दस अंगुल के चितचोर को फिर, मैंने मुख माहि उतार लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

मैंने साजन के अंग से फिर, मुँह से खेले कई खेल सखी
कभी होठों से खींचा उसको, कभी जीभ से रस फैलाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

कभी केले सा होंठस्थ किया, कभी आम सा था रस चूस लिया
कभी जिह्वा की अठखेली दी, कभी दाँतों से म्रदु दंड दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

होंठ-जिह्वा दोनों संग-संग, इस क्रिया में रत रहे सखी
जिह्वा-रस में तर अंग से मैंने, स्तनों पे रस का लेप किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

मैंने सोचा साजन का अंग, मेरे अंग में कैसे जाता होगा
कैसे अंग में वह धँसता होगा, कैसे अंग में इतराता होगा
अपनी मुट्ठी को अंग समझ, मैंने क्या – क्या नहीं अनुमान किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

मैं देखत थी मैं खेलत थी, अंग मुँह के अन्दर सेवत थी
मेरे मन में ऐसा लोभ हुआ, मैंने उसको पूर्ण कंठस्थ किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

साजन की उँगलियाँ अब मैंने, नितम्बों पे फिरती अनुभव की
मैं समझ गई अब साजन की, आँखों से उडी झूठी निंदिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

साजन ने नितम्ब सहलाये सखी, पूरा अंग मुट्ठी ले दबा दिया
ख़ुशी से झूमे मेरे अंग ने, द्रव के द्वारों को खोल दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

नितम्बों के मध्य सखी साजन ने, रस - भरा सा चुम्बन टांक दिया
मेरे मुंह से बस सिसकी निकली, मैंने आनंद अतिरेक था प्राप्त किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

साजन ने नितम्बों पर दाँतों से, कई मोहरें सखी उकेर दईं
मक्खन की ढेली समझ उन्हें, जिह्वा से चाट-चटकार लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

एक बड़े अनोखे अनुभव ने, जीवन में मेरे किलकार किया
मैं चिहुंकी मेरे अंग फडके, मैंने उल्लास मय चीत्कार किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

रात्रि के गहन सन्नाटे को, मेरी सिसकारी थी तोड़ रही
मैं बेसुध सी होकर अंग को, होठों से पकड़ और छोड़ रही
साजन ने जिह्वा के करतब से, रग-रग में मस्ती घोल दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
मैं बेसब्री से उठी सखी, साजन के अंग पर जा लेटी
साजन के बिपरीत था मुख मेरा, नितम्बों को पकड़ निचोड़ दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

मेरा मुख साजन के पंजों पर, स्तन घुटनों पर पड़े सखी
मेरा अंग विराजा उसके अंग पर, अंग को सांचे में ढाल लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

साजन की कमर के आर - पार, मेरे दो घुटने आधार बने
मेरे पंजों ने तो साजन की, तकिया का जैसे काम किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

मेरे अंग के सब क्रिया कलाप, अब साजन की नज़रों में थे
अंग को अंग से सख्ती से जकड, चहुँ ओर से नितम्ब हिलोर दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

कभी इस चक्कर कभी उस चक्कर, मेरे नितम्ब थे डोल रहे
साजन ने उँगलियों से उकसाया, कभी उन पे कचोटी काट लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

बड़ी बेसब्री से अंग मेरा, स्तम्भ पे चढ़ता उतरता था
जितनी तेजी से चढ़ता था, उतना ही तीब्र उतरता था
मेरे अंग ने उसके अंग की, लम्बाई-चौड़ाई नाप लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

साजन ने अपनी आँखों से, देखे मेरे सब स्पंदन
उसने देखा रस में डूबे, अंगों का गतिमय आलिंगन
उसने नितम्ब पर थाप दिया, मैंने स्पंदन पुरजोर किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

श्रम के मारे मेरा शरीर, श्रम के कण से था भीग गया
मेरा उद्वेलित अंग उसके अंग पर, कितने ही मील चढ़-उतर गया
स्तम्भ पे कुशल कोई नट जैसा, मेरे अंग ने था अठखेल किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

आह, ओह, सीत्कार सिवा, हमरे मुख में कोई शब्द न थे
मैं जितनी थी बेसब्र सखी, साजन भी कम बेसब्र न थे
साजन के अंग ने मेरे अंग में, कई शब्दों का स्वर खोल दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

मेरा अंग तो उसके अंग को, लील लेने को बेसब्र रहा
ऐसी आवाजें आती थी, जैसे भूखा भोजन चबा रहा
साजन ने अपने अंगूठे को, नितम्बों के मध्य लगाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

अंग का घर्षण था अंग के संग, अंगूठे का मध्य नितम्बों पर
उसका सुख था अन्दर-अन्दर, इसका सुख था बाहर- बाहर
मैं सर्वत्र आनंद से घिरी सखी, सुख काम-शिखर तक पहुँच गया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

अंगों की क्षुधा बढती ही गई, संग स्पंदन भी बढे सखी
पल भर में ऐसी बारिस हुई, शीतल हो गई तपती धरती
साजन के अंग ने मेरे अंग में, तृप्ति के बांध को तोड़ दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया

साजन ने उठाकर मुझे सखी, अपने सीने से लगा लिया
और हंसकर बोला वह मुझसे, अनुपम सुख हमने प्राप्त किया
मैंने सहमति की मुस्कान लिए, होठों से होठ मिले लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
[+] 1 user Likes usaiha2's post
Like Reply
सखी ऐसी बात हुई मुझसे


सखी ऐसी बात हुई मुझसे, कि साजन मुझसे रूठ गया,

बहुत देर तक न माना तो, मेरा सब्र का बाँध भी टूट गया.

मैं साजन के संग जा लेटी, वह करवट बदल के लेट गया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



साजन के बालों में हाथ फिरा, गर्दन और पीठ को चूम लिया

साजन के पेट नितम्बों पर, उंगली फिरा फिरा गुदगुदी किया

गाल चूम लेने की कोशिश पर, साजन ने गर्दन झकझोर लिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



मैं पीछे से सुन री ओ सखी, साजन से जोरों से से लिपट गई,

मैंने उँगलियाँ अपनी सखी बार बार, साजन के सीने पे फेर दई,

उसके नितम्बों को अपने अंग से, दबाया और फिर रगड़ दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



साजन सखी गुस्से में डूबा, निष्क्रिय सा बिलकुल लेटा रहा,

मेरे हर चुम्बन पर लेकिन सखी, गहरी-गहरी सांसें वह लेता रहा,

मैंने अपने हाथों को सुन री सखी, नीचे की तरफ अब बढ़ा दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



मेरी चंचल उँगलियाँ जैसे ही, साजन की नाभि तक पहुंची,

साजन के बदन में थिरकन हुई, लहरें उकसी अंग तक पहुंची

अन्तः वस्त्र में अब हाथ ड़ाल, साजन का उत्थित अंग पकड़ लिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



साजन का दस अंगुल का अंग, सखी अब मेरी मुट्ठी में था,

उँगलियों हथेली से मैंने उसको, दबाया-खिलाया और मसला था,

साजन ने लेटे-लेटे ही अंग को, छुड़ाने का एक यत्न किया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



साजन का अंग पकडे पकडे, सखी मैं अब उठकर बैठ गई,

अंग को पकडे पकडे ही सखी, मैं जैसे साजन पर लेट गई,

एक हाथ से उसका अंग पकड, हर अंगुल पर अंग चूम लिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



उसके अंग को तरह तरह चूमा, फिर मै ऊपर की ओर बड़ी

पेडू-नाभि-सीने से होकर, मैं साजन के मुख तक जा पहुंची

चुम्बन लेकर कई होठों पर, जिह्वा मुख में सखी घोल दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



मुख में मैंने जो रस डाला, उसकी प्रतिक्रिया अंग पे देखी,

अंग की कठोर मोटाई से, सखी भारी हो गई मेरी मुट्ठी,

मदहोशी से अभिभूत अंग, ठुमके लगा-लगा कर मचल गया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



साजन ने दोनों हाथों से, मेरे मुख को सखी री भीच लिया,

अपना मुख मेरे मुख अन्दर कर, जिह्वा होठों से खीच लिया

साजन की पहल ने बदन मेरे, सखी चक्रवात कई उठा दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



साजन सखी उठकर बैठा और, बेताबी से मुझे निर्वस्त्र किया

साजन की इस बेसब्री को, मैंने सांसों -हाथों में महसूस किया

घुटनों के बल उठकर उसने, मुझे बाँहों में अपनी भीच लिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



जिस काम में लगते मिनट सखी, उसमे कुछ ही सेकण्ड लगे,

मेरी अंगिया-चोली-दामन कुछ भी, सखी अब न मेरे बदन रहे,

मैंने भी जरा न देर करी, उसके सारे वस्त्र उतार दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



उसके उत्थित अंग को मैंने, दोनों स्तन जोड़कर पकड़ लिया

रक्तिम जलते उसके अंग को, मांसलतम अंग से मसल दिया

साजन का बदन स्फुरित होकर, जैसे था कि कंपकपाय गया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

अंग की दृढता से कोमलतम, मेरे स्तन दहके और छिले

उसका अंग स्थिर बना रहा, मेरे स्तन ही उस पर फिसले

दृढता-मादकता-कोमलता, एक जगह जुड़े सुख गूंथ लिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



उत्थित अंग से मैंने स्तनों पर, वृत-आयत-त्रिकोण सब बना लिए,

दस अंगुल के दृढतम अंग ने, स्तनों को कई नए उभार दिए

साजन के आवेगी आलिंगनो ने, मुझे समर्पण को मजबूर किया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



मुझको बाँहों में लपेट-पकड़, वह अपने तन में था गूंथ रहा

नितम्ब छोड़े या स्तन पकडे, सखी उसको कुछ भी न सूझ रहा,

उसने बेसब्री में सख्त हाथ, मेरे अंग पे कई बार फिराय दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



घुटने के बल साजन था खड़ा , मैं वैसे ही उठकर खडी हुई

दोनों के मध्य किंचित दूरी, दबावों से सखी समाप्त हुई ,

सख्त हाथों के कई कई फेरे, नितम्बों से स्तन तक लगा दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



कंधे-गर्दन-आँखें-गाल-होठ, चुम्बनों से सखी सब दहक गए

मेरे अतिशय गोरे गालों पर, चुम्बन के निशान से उभर गए

होठों में दौड़ा रक्त और, गालों को गुलाबी बना गया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



रुई के फाहे से गुदगुदे स्तन, पके अमरुद की तरह कठोर बने

बोंडियों में गुलाबी पन आया, वो भी सख्त हुए और खूब तने

साजन के हाथों को पकड़ सखी, मैंने स्तन उनमे थमाय दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



अन्दर तक मुंह में जिह्वा घुसा, एक हाथ से स्तन दबा लिया

एक हाथ से उन्नत नितम्बों को, सहलाया-भीचा और छोड़ दिया

ऐसे मसले स्तन और नितम्ब, मुह ने सिसकी स्वतः ही छोड़ दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



साजन ने अपनी कलाई पर, नितम्बों के जरिये मुझे उठा लिया

अब मेरे स्तन पर सुन री सखी, चुम्बन की झड़ी लगाय दिया

दोनों स्तन होठों से चूस चूस, मुख-रस से उन्हें भिगाय दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



दोनों स्तन का इंच इंच, सखी साजन ने मुंह से चूसा

होकर बेसब्र मेरी बोंडियों को , जिह्वा होठों से दबा दबा खींचा

मैं पीछे को झुक गई सखी, स्तन से रस टपक टपक गया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



साजन के दंतन – चुम्बन से, गोरी छाती पर कई चिन्ह बने

मर्दन के सुख से मेरे स्तन, रक्तिम रसभरे कठोर बने

बारी बारी से दोनों स्तन, भांति-भांति दबाया रस चूस लिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



नितम्बों के सहारे कलाई से, मुझको ऊपर और उठा लिया

मेरी नाभि और पेडू पर उसने, रसीले कई चुम्बन टांक दिया

मैं तो अब खड़ी हो गई सखी, और पावों को फैलाय दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



मैं अपनी दोनों टाँगें रखकर, साजन के कन्धों पर बैठ गई ,

मेरे अंग पर सखी साजन ने, चुम्बन की कतारें बना दई ,

मैंने नितम्बों से देकर दबाव, अंग को होठों में ठूस दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



सखी साजन ने जिह्वा रस से, अंग पूर्णतया लिपटाय दिया

जिह्वा से रस निकाल निकाल, अंग पर सब तरफ फैलाय दिया

नितम्बों की घाटी से चल जिह्वा ने, अंग की गहराई नाप लिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



सखी मेरे पीठ और कम्मर की, उसकी बाहें ही सहारा थीं

उसकी जिह्वा ने मेरे अंग में , रस की छोड़ी कई धारा थीं

मैंने उई माँ कहकर कई कई बार , जिह्वा को अंग में डुबा लिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



सखी साजन अब उठकर खड़ा हुआ, मुझको उसने बैठाय दिया

मैंने घुटनों के बल उठकर, उसके अंग को होठों से प्यार किया

दोनों हाथों से पकड़ा उसको, सखी मुख में अपने ढाल लिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



हाथों से पकड़कर अंग उसका , मुंह में चहुँ ओर घुमाय लिया

जिह्वा होठों को संयुक्त कर , अंग को रस से लिपटाय लिया

साजन ने पकड़कर सिर मेरा , अंग मुख में अति अन्दर धांस दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



मैंने साजन के नितम्ब सखी , दोनों हाथों से अब पकड़ लिए ,

अंग को मुख से पकडे – पकडे , नितम्ब साजन के गतिमान किये

साजन ने मनतब्य समझ मेरा , स्पंदन क्रमशः तेज किया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



साजन ने सखी मेरे मुख को , जैसे मेरा अंग बनाय दिया

मैंने आनंदमय आ-आ ऊं-ऊं कर , साजन को और उकसाय दिया

साजन ने अपनी सी-सी आह-ओह , सांसों की ध्वनि में मिला दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



अंग जैसे ही अन्दर जाता , मैं जिह्वा से लपेट लेती उसको

बाहर आता तो दांतों के संग , होठों से पकड़ती थी उसको

अंग से छूटे मुख के रस ने , साजन के उपांग भिगाय दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



मेरे मुख के अन्दर सखी साजन ने , अति तीब्र किये कई स्पंदन

मैंने उई आह सिसकारी ली , साजन ने गुंजाये कई हुन्कन

फिर हौले से मुझको लिटा सखी , मुख पर अंग सहित वो बैठ गया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



मैं लेटी तो पर मैंने सखी , मुंह से उसका अंग न छोड़ा ,

साजन ने उत्तेजना वशीभूत , स्पंदन का क्रम भी न तोडा

कभी दायें से कभी बाएं से , उग्र दस अंगुल मुख में ठेल दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



मेरे मुख ने सखी साजन के , अंग का रसास्वादन खूब किया

दांतों होठों और जिह्वा से , मैंने अंग को कई तरफ से पकड़ लिया

मुख से निकाल दस अंगुल को , उसने मेरे अंग के मध्य पिरोय दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



मेरी कम्मर के पास सखी , कुहनी रखकर कंधे पकडे

उधर रस में तर दस अंगुल को , रसभरा अंग दृढतर जकड़े

नितम्ब स्वतः बहककर उचक गए , होठों ने फू फू फुकार किया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



लिसलिसे व चिकने अंगों में , उत्तेजना थी ज्यों ठूंस ठूंस भरी

यह गुस्सा था उसका री सखी , या मेरे प्यार की सफल घडी

सखी मैंने अपनी दोनों टांगों को , उसकी जांघों पर ढाल दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



मैंने साजन का ये उग्र रूप , सखी नहीं कभी भी देखा था

ऊँचे – गहरे अघात वो करता था , पर दम लेने को न रुकता था

स्पंदन जो प्रारंभ किया , तो पल भर भी न सांस लिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



न जाने कितनी आह ओह , कितनी सीत्कार मुख से निकलीं

रसभरे अंगों के घर्षण से , कई मदभरी मोहक ध्वनि निकलीं

थप – थप की क्रमबद्ध ताल सखी , उखड़ी सांसों में मिला दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



अंतर थप – थप की ध्वनि का , कम होता था न घटता था

खडपच – खडपच ध्वनि का स्वर भी , उई आह ओह संग चलता था

चीख सदृष दीर्घ आह के संग , मैंने आँखें मूंदी मुख खोल लिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



सीत्कार , थाप , मुख की आह ओह , सांसों की गति अति तीब्र हुई

अंगों के मिलने की चरम घडी , बदन की थिरकनों में अभिव्यक्त हुई

अंतिम क्षण में सखी सुन साजन ने , नितम्बों को दबा क्रम रोक दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



चलते अंग में जब अंग रुका, सुख छूट गया अतिशय उछला

उसका गुस्सा अब पिघल पिघल, अंग से निकला मेरे अंग में घुला

ऐसे गुस्से पे वारी मैं, जिसने सुख सर्वत्र बिखेर दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



सांसों की ध्वनि को छोड़ सखी , अब चारों तरफ शांति थी

मैं अब भी साजन की बाँहों में , सखी गोह की भांति चिपकी थी

साजन ने नितम्बों का घेरा , कुछ कुछ ढीला अब छोड़ दिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.



एक हाथ से पकड़कर स्तन को , साजन ने मेरा मुख चूम लिया

बोला और भला क्या चाहे तू , मैंने सब कुछ तुझे प्रदान किया

कहा मैंने तू यूँ नित रूठा कर , और उसको बाँहों में घेर लिया

उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

[+] 1 user Likes usaiha2's post
Like Reply
Heart 
Heart
Like Reply
Heart 
Thanks for reading this story & liking the thread.

 
I am not the original writer, I collect stories from different internet sites like old EXBII, X-forum, XOSSIP, RSS, ISS, NIFTY, ASSTR, & LITEROTICA.

I just copy and pest them here for my as well as your enjoyment ... all credit goes to the unsung writer's who are the original heroes.

I am always very fond of this kind of slow seductive story. In reality, an indian girl or woman needs time to involved in an affair with a person who is not his husband. 

But whenever it happens the relationship contains romance, emotions, a slight fear of catching, a excitement of hidden meetings with new found lover, courage & sudden boldness to do some naughty and taboo, & of cours  LOVE.

Some times these new lover's are relatives or near dear friends.

Incest between relatives is gave sparkling effect to these relationship. fight

And reading such stories is also raise excitement, a touch of taboo that not everyone do such things and to read such thing gave thrill & the characters remains in memories.

All women are not sex-starved or whore that they can easily be driven by anyone. 

Most of the cases, there is a very particular and valid reason to involve in any illicit relationship. Sometimes they forced by other persons, sometimes they forced by the situation which arises unexpectedly in front of her.

I read a lot of stories which look very unrealistic as in those, a married woman shows like a characterless slut, but the reality is different. 

So, I request to all my fellow authors to write more slow seductive real stories regarding indian girls & women.

Heart 
Like Reply
Heart 
.......
[Image: 20210722-061142.jpg]

[Image: 20210722-061137.jpg]
Like Reply
Heart 
.......

[Image: 20210721-134713.jpg]
[Image: 20210721-134704.jpg]
[Image: 20210721-134622.jpg]
[Image: 20210721-120346.jpg]
[Image: 20210721-120334.jpg]
[Image: 20210721-120225.jpg]
[Image: 20210721-120214.jpg]
Like Reply
Heart 
......

[Image: 20210721-120504.jpg]
Heart
[Image: 20210721-120416.jpg]
Like Reply
Heart 
.
.....
[Image: 20210722-060913.jpg]
[Image: 20210721-134237.jpg]
[Image: 20210721-134147.jpg]
[Image: 20210722-195122.jpg]
[Image: 20210721-120239.jpg]
[Image: 20210721-120205.jpg]
[Image: 20210721-113129.jpg]
Like Reply
Heart 
.

..
[Image: 20210722-061354.jpg]
[Image: 20210722-061343.jpg]
[Image: 20210722-061335.jpg]


[Image: 20210721-120408.jpg]
[Image: 20210722-061420.jpg]


[Image: 20210722-201924.jpg]

[Image: 20210722-202158.jpg]
[Image: 20210721-120256.jpg]

[Image: 20210721-120318.jpg]
Like Reply
Heart 
.....
[Image: 20210722-201550.jpg]
Like Reply
Wink 
.....................................
Thanks for reading this story & liking the thread.
 
I am not the original writer, I collect stories from different internet sites like old EXBII, X-forum, XOSSIP, RSS, ISS, NIFTY, ASSTR, & LITEROTICA.

I just copy and pest them here for my as well as your enjoyment ... all credit goes to the unsung writer's who are the original heroes.

I am always very fond of this kind of slow seductive story. In reality, an indian girl or woman needs time to involved in an affair with a person who is not his husband. 

But whenever it happens the relationship contains romance, emotions, a slight fear of catching, a excitement of hidden meetings with new found lover, courage & sudden boldness to do some naughty and taboo, & of cours  LOVE.

Some times these new lover's are relatives or near dear friends.

Incest between relatives is gave sparkling effect to these relationship. fight

And reading such stories is also raise excitement, a touch of taboo that not everyone do such things and to read such thing gave thrill & the characters remains in memories.

All women are not sex-starved or whore that they can easily be driven by anyone. 

Most of the cases, there is a very particular and valid reason to involve in any illicit relationship. Sometimes they forced by other persons, sometimes they forced by the situation which arises unexpectedly in front of her.

I read a lot of stories which look very unrealistic as in those, a married woman shows like a characterless slut, but the reality is different. 

So, I request to all my fellow authors to write more slow seductive real stories regarding indian girls & women.


Heart
Like Reply




Users browsing this thread: 2 Guest(s)