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अब मुझसे रहा नहीं गया। मैं उठा, और उसको खड़ा कर अपने गले से लगा लिया।
“मेरे स्वामी, तुम मुझको प्रसाद नहीं दोगे?”
“प्रसाद?”
“हाँ! मेरी योनि में प्रविष्ट हो कर मेरी पूजा सिद्ध कर दो...” उसने आँखे बंद किए हुए यह बात कह डाली।
मैंने अपने हाथ को उसकी योनि की तरफ बढ़ाया।
“नहीं!” उसने मुझे रोका।
मैंने प्रश्नवाचक दृष्टि उस पर डाली।
“आज हाथ नहीं!” उसने काँपते हुए होंठों से से यह बात कह डाली।
‘हे प्रभु!’ यह क्या बात कह दी अल्का ने!
अचानक से ही मेरी धरती और आकाश का भेद संज्ञान करने की क्षमता गड्ड-मड्ड हो गई। यह काम तो पति-पत्नी करते हैं! यह सब क्या इतना जल्दी जल्दी नहीं हो रहा है! हो सकता है। लेकिन अपने सामने खड़ी इस सम्पूर्ण नग्न लड़की का क्या करूँ? अल्का से समागम करने का मन तो मेरा हमेशा से ही था, लेकिन आज, जब वो यह अवसर मुझे खुद ही प्रदान कर रही है तो ऐसी व्याकुलता, ऐसी बेचैनी क्यों महसूस हो रही है?
“अल्का?” मैंने दबी घुटी आवाज़ में कहा। उसने आँखें खोली।
“चेट्टन?”
“आर यू श्योर?”
“श्योर न होती, तो तुमसे ऐसी बड़ी बात कहती?”
कहते हुए उसने अपने काँपते होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। मुझे चुम्बन लेने देने का कोई ज्ञान नहीं था; यह भी नहीं मालूम था कि इसको किया कैसे जाता है। अरे, मुझे तो यह भी नहीं मालूम था कि पति पत्नी आपस में क्या क्या करते हैं। मैंने उसके चुम्बन की प्रतिक्रिया में उसके होंठों पर तीन चार छोटे छोटे चुम्बन जड़ दिए। इतना तो मालूम ही था कि खड़े खड़े कुछ नहीं हो सकता। इसलिए मैंने धीरे से अल्का को वहीं ज़मीन पर लिटा दिया। आँगन में बारिश की मोटी मोटी बूँदें गिर रही थीं, और नानी या चिन्नम्मा कभी भी उस तरफ आ सकती थीं। अपने जीवन में इस तरह की उत्तेजना, इस तरह की लालसा और इस तरह की व्याकुलता मैंने पहले कभी नहीं महसूस करी थी।
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अल्का पीठ के बल मेरे सामने लेट गई; उसने मेरे लिंग का स्वागत करने के लिए अपनी टांगें खोल दी। उसकी जाँघें ऊपर उठी हुई थीं, और पैर ज़मीन पर समतल! मेरी बेचैनी बढती ही जा रही थी। उत्तेजना के अतिरेक से मेरा लिंग ठोस तो बहुत पहले ही हो गया था, और मुझे लग रहा था कि यह शुभ-कार्य जल्दी से कर लेना चाहिए। अपनी किस्मत पर मुझे कोई ख़ास भरोसा नहीं था। भगवान की कृपा से अल्का जैसी लड़की का प्रेम मिल रहा था, जो मेरे सर आँखों पर था। इस सुनहरे दान को मैं अपने दोनों हाथों से लपक लेना चाहता था।
मैं अल्का के ऊपर दंड-बैठक करने वाली मुद्रा में छा गया - मतलब मेरे हाथ उसके दोनों तरफ, और पैर सीधे नीचे ज़मीन पर, और मैं खुद सीधा उसके ऊपर। थोड़ी सी बेढब मुद्रा है, लेकिन मुझे इसका अनुभव भी कहाँ था? मैंने उसी मुद्रा में एक दंड पेला - उम्मीद थी कि लिंग स्वयं ही उसकी योनि में प्रविष्ट हो जाएगा। लेकिन ऐसा कुछ हुआ ही नहीं। ऐसे ही मैंने चार-पाँच बार प्रयास किया... कुछ नहीं! निष्कर्ष वही ढाक के तीन पात! अल्का को लगा कि उसको भी मेरी सहायता करनी होगी। अपने कोमल हाथ से उसने मेरा लिंग पकड़ा और अपनी योनि के द्वार पर सटाया।
कैसा कोमल एहसास ! एक ऊष्ण, आर्द्र छिद्र! मैंने प्रविष्ट होने के लिए धक्का लगाया, तो वहाँ चिकनाई पा कर मेरा लिंग अपने गंतव्य से फिसल गया। ऐसे ही चार पांच निष्फल प्रयास और निकल गए।
“चेट्टा मेरे, थोड़ा जल्दी करो! ऐसा न हो कि कोई आ जाए... हमारे कमरे तक जाने की अब मेरी हालत नहीं है!”
अल्का ने मुझे उकसाया। हाँ, समय का अभाव तो था ही! मैंने भी अपने काम पर फोकस किया।
“मोलू, तुम इसको अपनी पुरु पर सटा कर पकड़े रहो, तो मैं ज़ोर लगाऊंगा..”
“ठीक है मेरे कुट्टन...”
उसने वैसे ही किया, और साथ ही साथ अपनी योनि का द्वार थोड़ा खोल भी दिया। इस बार मेरा लिंग उसकी योनि के कुछ भीतर तक घुस गया। यह एक बड़ी सफलता थी। लिंग मेरा उसके थोड़ा ही अंदर गया हो, अंदर तो गया! अब अल्का कुँवारी नहीं रह गई थी। किसी भी स्त्री या पुरुष के लिए यह एक बहुत बड़ी बात है।
“और अंदर कुट्टन...”
मैंने ज़ोर लगाया। इस प्रयास से शिश्नाग्र पूरा ही अल्का की योनि के भीतर हो गया ।
“आह !” अल्का की कराह निकल गई।
मुझे भी एकदम अलग सा एहसास हुआ ।
‘कितना मुलायम है अंदर!’
अब और अंदर कैसे जाया जाए? इस धक्के की सारी ताकत तो समाप्त हो गई थी। मुझे स्वप्रेरणा से लगा कि दूसरा धक्का लगाना चाहिए। लेकिन वैसा करने से बाहर निकल जाने का भय भी था। इसलिए मैंने अपने पुट्ठों को बस इतना पीछे किया कि बस दूसरा धक्का लगाने के लिए पर्याप्त बल मिल जाए, लेकिन लिंग अपने युगल से बाहर न निकले।
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मैंने दूसरा धक्का लगाया ।
“आअह्ह्ह!!” यह न तो कराह थी, और न ही चीख। लेकिन जो भी कुछ था, बहुत उच्च स्वर में था। नानी और चिन्नम्मा दोनों ने ही शर्तिया सुना होगा।
इस बार मेरा लिंग अपनी कोई एक तिहाई लम्बाई तक अंदर घुसने में सफल रहा!
‘कितना मखमली एहसास! गुदगुदी सी होने लगी!’
मैंने तीसरा धक्का लगाया ही था कि जैसे मेरे वृषणों में एक आंदोलन हुआ हो... एक विस्फ़ोट के साथ सारा वीर्य अल्का की योनि के भीतर जमा हो गया। संतुष्टि भरी कराह मेरे गले से निकल गई। उधर अल्का इस तीसरे हमले के बल से एक और बार चीखी। अपने चरमोत्कर्ष के उन्माद में मैंने एक और धक्का लगाया, अल्का फिर से कराही।
उसके बाद मेरा लिंग तेजी से सिकुड़ने लगा। अगला धक्का लगाने के लिए उसमें अब पर्याप्त दृढ़ता नहीं रह गई। कुछ ही पलों में वो खुद ही अल्का की योनि से बाहर निकल आया। अल्का को अवश्य ही मालूम चल गया होगा कि मैं स्खलित हो गया था।
“चिन्नू... मेरे कुट्टन! मेरे चेट्टा!” अल्का ने तेज साँसे भरते हुए कहा, “कैसा लगा तुमको? अच्छा तो लगा न ?”
“बहुत अच्छा लगा मोलू... मेरी पोन्ने... बहुत अच्छा!”
वो मुस्कुराई, “आज मैं पूरी औरत बन गई...” कह कर उसने मेरे होंठों को चूम लिया ।
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“यजमंट्टी आ रही हैं... तुम लोग जल्दी से ठीक हो जाओ..”
हमको चिन्नम्मा की आवाज़ सुनाई दी। उस समय हमारे दिमाग में यह बात नहीं आई कि हमारा समागम चिन्नम्मा से छुपा हुआ नहीं था, और उन्होंने सब कुछ देख लिया था.. या फिर न जाने कितना कुछ!
“चेट्टन, तुम जल्दी से छुप जाओ । जाओ.. जल्दी !”
अल्का ने मुझे अपने से परे धकेला। मैं जल्दी से उठा और वहीं एक कोने में जा कर छुप गया। कपड़े पहनने का समय न तो मेरे पास था, और न ही अल्का के पास। और मैं भी अल्का के ऊपर से बस ऐन मौके पर ही हट सका। मेरे पूरी तरह से छुपने से ठीक पहले ही अम्मम्मा (नानी) आँगन की तरफ आती हुई दिखाई दीं।
“अरे मोलूट्टी... तू ऐसे नंगी क्यों बैठी है? अगर पट्रन इधर आ गया और तुमको ऐसी हालत में देख लिया तो?”
“अरे यजमंट्टी, आप मोलूट्टी का परिणय करवा दो न? कितना समय हो गया! देखो न बेचारी कैसी हो गई है..” चिन्नम्मा ने अपना दाँव फेंका।
“अरे दस बारह साल से कोशिश कर रही हूँ.. न तो इसे कभी कोई पसंद आता है, और न ही किसी का नाम लेती है! देखो तो लक्ष्मी... कितनी बड़ी हो गई है! इतने बड़े बड़े मुलाक्कल और वो भी सूखे!”
“अम्मा!” कहते हुए अल्का ने शर्म अपना चेहरा ढँक लिया।
“क्या अम्मा?! मेरे सामने नंगी बैठी है, उसमे तो तुझे लज्जा नहीं या रही है। और मेरी इस बात से लज्जित हो रही है। अरे, लड़की इनमें से तो दूध की धार बहती रहनी चाहिए! जब मैं तेरी उम्र की थी, तब मेरे कितने बच्चे हो गए थे।”
“अम्मा, मैं कोई गाय हूँ क्या, जो मेरे दूध की धार बहती रहे?”
“गाय नहीं है... लेकिन मेरी कन्यका तो है! अब तक तेरे दो तीन बच्चे हो जाते, तो अच्छा रहता।”
“क्या अम्मा..”
“अरी! फिर वही बात! अभी चिन्नू भी ऐसे ही नंगा घूम रहा था, अब तू भी! चलो, वो तो अभी बच्चा है, लेकिन तू तो सयानी है न!”
“बच्चा है वो यजमंट्टी? उसका कुन्ना देखा है तुमने ? केले जैसा हो गया है!” चिन्नम्मा ने अपनी विशेष टिप्पणी जारी रखी।
“हट बेशरम!”
“बेशरम नहीं.. मैंने उसका अभ्यंगम किया है.. सब देखा है.. बढ़िया जवान नाती है तुम्हारा... अब तो उसका वीर्य भी बनने लगा है..” चिन्नम्मा ने बड़ी बेशर्मी से अपनी बात कह दी। मुझे जवानी का प्रमाणपत्र मिल गया।
“हाँ ठीक है.. ठीक है... वो भी बड़ा हो गया है.. लेकिन बात इस लड़की की हो रही है.. कब तक इसको ऐसी कुँवारी घर में बैठाऊं ? अब तक तो इसके सीने से दूध आने लगना था!”
“मेरे सीने से दूध निकलवाने का बस यही तरीका बचा हुआ क्या अम्मा, कि तुम मुझे किसी भी घर के खूंटे से बाँध दो? अपनी लड़की के साथ किसी मवेशी के जैसे व्यवहार करो?” अल्का ने बनावटी भावनाओं के साथ कहा। अब तक वो अम्मम्मा के पास आ कर बैठ गई थी।
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“अरे मेरी मगळ (बेटी), मैंने ऐसा कब कहा? किसी भी खूंटे से बांधना होता, तो तेरी इतनी बक बक सुनती? तेरी पसंद के ही किसी वर से करूँगी तेरा विवाह! तू कह तो सही!”
“वर तो है मेरी नज़र में यजमंट्टी...” चिन्नम्मा ने कहा।
“अरे? वर है? तो अभी तक बताया क्यों नहीं?”
“बताने में हिचक रही थी मैं यजमंट्टी..”
अल्का ने चिन्नम्मा को सर हिला कर इशारा किया, लेकिन वो आज कुछ सुनने, मानने वाली नहीं थी।
“अरे यजमंट्टी, अपना अर्चित नहीं दिखता क्या आपको?”
“चिन्नू? अल्का का विवाह चिन्नू से? पागल हो गई है क्या, लक्ष्मी? यह सब तेरे यहाँ होता होगा!”
“वाह यजमंट्टी, आपके यहाँ मामा अपनी भांजी से परिणय कर सकता है, लेकिन अम्माई अपने भांजे से नहीं! यह कैसी व्यवस्था है? अपनी मोलूट्टी से पूछ कर देखिए... अगर उसको अर्चित पसंद है, तो फिर क्या परेशानी है?”
चिन्नम्मा की इस बात का अम्मम्मा के पास कोई उत्तर नहीं था।
“मुझ बुढ़िया ने यह सब रीति रिवाज़ थोड़े न बनाए हैं, लक्ष्मी!” नानी ने बुझी हुई आवाज़ में कहा, “लेकिन सोचती हूँ, तो तुम्हारी बात तो ठीक ही लगती है। अल्का, मेरी बच्ची, क्या हो गया। तू ऐसे नंगी क्यों है मेरी मोलू?” अम्मम्मा की आवाज़ में चिंता थी ।
“कुछ नहीं अम्मा...” अल्का रुकी और फिर सोच कर बोली, “मैं अपने भगवान की पूजा कर रही थी।"
“नग्न पूजा! अच्छा है.. कर ले, अपने लिए एक अच्छा सा वर भी माँग ले..”
“माँगा है माँ!” अल्का मुस्कुराई।
“भगवान तेरी प्रार्थना स्वीकार करें!” कह कर नानी ने अल्का के सर पर प्यार से हाथ फिराया और कहा, “जल्दी से अपने कपड़े ले बच्ची... चिन्नू तुझे ऐसे देखेगा तो क्या सोचेगा?”
“देखने लेने दो न यजमंट्टी; क्या पता अपनी अल्का के भाग्य में अर्चित ही लिखा हो?”
“तू फिर से शुरू हो गई, लक्ष्मी?”
“क्या इतनी बुरी बात कह दी मैंने यजमंट्टी?”
“नहीं लक्ष्मी, बुरी बात तो नहीं कही है...”
“तो फिर?”
“बस एक अलग सी बात है। पता नहीं! भगवान के खेल.. मुझ बुढ़िया की समझ से बाहर हैं। और फिर रीति रिवाज़ भी तो मानने पड़ते हैं, है न?”
“प्रेम के संयोग तो भगवान ही बनाते हैं, न यजमंट्टी!”
“सो तो है ही..”
“और यदि मैं यह कहूँ कि अपनी अल्का अर्चित को पसंद करती है, और अर्चित अल्का को, तो क्या कहोगी यजमंट्टी?”
बाण अब न केवल तूणीर से बाहर निकल गया था, बल्कि धनुष की प्रत्यंचा पर चढ़ कर अपने लक्ष्य की तरफ चल भी दिया था। अब आगे की घटनाओं पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होने वाला था।
“क्या? ये लक्ष्मी क्या कह रही है, मोलूट्टी ?”
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अम्मम्मा के प्रश्न के उत्तर में अल्का बस सर झुकाए बैठी रही। कुछ बोल न सकी।
“अरे बोल न, मेरी प्यारी बच्ची! अगर मैं बुढ़िया तुझे किसी भी प्रकार का सुख दे सकी तो मुझे मंज़ूर है सब कुछ! सब मंज़ूर है। तूने मेरी सेवा के लिए कैसा कठिन व्रत ले लिया है। मैं कब तक तुझ पर ऐसे बोझ बनी बैठी रहूंगी।”
“ऐसे न कहो अम्मा। माँ बाप क्या हम पर बोझ हैं? उन्ही के आशीर्वाद से तो हम होते हैं। तुम मेरे लिए कब से बोझ हो गई अम्मा?”
“अगर ऐसी बात है तो बोल मुझे। अगर तेरी यही मंशा है, तो मैं तेरी ख़ुशी के लिए कुछ भी कर दूँगी!”
अम्मम्मा की बात पर अल्का शर्म से मुस्कुरा दी।
“क्या सच में अम्मा?”
“हाँ मेरी बच्ची! तू बोल न?”
“अम्मा, मेरी प्यारी अम्मा... मैंने... मैंने अर्चित को ही अपना भगवान मान लिया है..”
“क्या?” नानी अवाक् सी देखती रह गई।
“हाँ अम्मा! आपके आने से पहले मैं उन्ही की पूजा कर रही थी । मैंने... अपना सब कुछ उनको ही सौंप दिया है... अब मैं... अब मैं कन्यका नहीं रही अम्मा..”
“यह सब क्या कह रही है तू? तेरा दिमाग तो ठीक है?” अम्मम्मा, जो बहुत ही खुश-मिज़ाज थीं, स्वाभाविक रूप से क्रोधित दिख रही थीं।
“हाँ अम्मा, मेरा दिमाग भी ठीक है और जो मैंने अभी अभी आपको बताया है वह भी सच है। मैंने अपना सर्वस्व अर्चित को सौंप दिया है, और उनको मन से अपना पति मान लिया है। अब आप भी अपना आशीर्वाद दे दीजिए।”
नानी बहुत देर तक सोचती रही और फिर बोली, “किधर है वो ?”
“कुट्टन...” अल्का ने मुझे आवाज़ लगाई, “चेट्टा...”
मन में तो था कि बाहर न निकलूँ, लेकिन जब अल्का एक लड़की हो कर इतनी हिम्मत से अपनी माँ के सामने इतनी बड़ी बात कर सकती है, तो मैं क्यों नहीं, सोच कर मैं अपने अपने छुपे हुए स्थान से बाहर निकल आया। था तो मैं पूरा नंगा ही.. मुझे देखते ही अम्मम्मा की हँसी निकल गई। माँ की ममता में क्रोध का स्थान किंचित मात्र भी नहीं होता है।
“इधर आ दुष्ट!” उन्होंने हँसते हुए कहा, “सारे संसार में तुझे बस एक तेरी अम्माई ही मिली थी प्रेम करने के लिए?”
मैं लगभग दौड़ते अम्मम्मा के पास आया, और उनके पैर पकड़ लिए, “अम्मम्मा, मेरी प्यारी अम्मम्मा.. मैं अल्का को बहुत प्यार करता हूँ.. और उसको अपना मानता हूँ। आपका आशीर्वाद हो, तो मैं उससे परिणय करना चाहता हूँ।”
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अम्मम्मा ने मुझे हाथों से थाम कर उठने का इशारा किया; मैं उठा तो उन्होंने मेरे चेहरे पर उठते बैठते हाव भाव का जायज़ा लिया और फिर मेरे शरीर का। लज्जा के मारे मेरा शिश्न सिकुड़ कर एक मूंगफली के आकार का हो गया था। देखने वाला कोई कह ही नहीं सकता था कि अभी अभी इसी लिंग से एक सुन्दर युवती से रमण किया गया है। कोई और क्या, मैं स्वयं नहीं कह सकता था।
“तुझे मालूम है न कि परिवार के सदस्यों के बीच परिणय नहीं होता?”
यह बात केवल आंशिक रूप से सत्य थी। हमारे समाज में परिवार के सदस्यों के बीच विवाह को सामाजिक मान्यता मिली हुई है। अम्मम्मा का विवाह ख़ुद उनके ही मामा के साथ हुआ था। ममेरे भाई बहनों के बीच विवाह के किस्से तो बहुतायत से हैं। मुझे हाल में ही पता चला था कि पास के गाँव में किसी ने अपनी अम्माई से विवाह किया था। हाँ, वो अलग बात है कि उसकी अम्मा, दरअसल सौतेली अम्मा थी।
“लेकिन... हो तो सकता है न, अम्मम्मा?” मैंने उम्मीद भरी मनुहार करी।
लेकिन नानी ने जैसे मेरी बात ही नहीं सुनी, “और तू उससे आयु में कितना छोटा भी तो है..”
“अम्मम्मा, मैं अल्का को संसार के सारे सुख दूँगा।”
“देगा न ?” अम्मम्मा ने तुरंत कहा, “देगा न मेरी बेटी को संसार के सारे सुख ? उसका जीवन पर्यन्त ध्यान रखेगा न?”
“जी अम्मम्मा! मैं अल्का से बहुत प्रेम करता हूँ.. उसकी प्रसन्नता मेरे लिए अपनी प्रसन्नता से ऊपर रहेगी!”
“केवल प्रेम से पेट नहीं भरता बच्चे! मेरी मोलूट्टी ने अब तक बहुत कड़ी मेहनत करी है। बिलकुल जैसे एक घोड़ी की तरह! उसको अब सुख चाहिए। बोल, तू उसको सुख देगा न? उसको सुख दे सकेगा?”
“अम्मा! आप यह सब क्या कह रही हैं? आपको तो मालूम ही है कि हमारी आमदनी पिछले कुछ वर्षों में अचानक ही बढ़ गई है। वो कैसे बढ़ गई क्या आपको मालूम है? वो सब चिन्नू के ज्ञान के कारण हुआ है। मुझे मालूम है कि जब वो कृषि का भार पूरी तरह से सम्हाल लेगा, तो हमारी सम्पन्नता में दिन दूनी और रात चौगुनी वृद्धि होगी!” अल्का ने अम्मम्मा के प्रश्न का अपनी तरफ़ से उत्तर दिया।
“एक मिनट मोलू..” मैंने अल्का की बात को बीच में काटा, और कहा, “जी, अम्मम्मा, मैं आपकी बेटी को जीवन के सारे सुख दे सकूँगा - वो सारे सुख, जो उसको मिलने चाहिए और जो मेरे लिए संभव हैं। आज से आपकी बेटी कोई काम नहीं करेगी। अब सब कार्यों की जिम्मेदारी मेरी। मैं अब उसके सुख में कोई कोर कसर नहीं रखूँगा..”
अम्मम्मा ने मुझे और फिर अल्का को बारी बारी से ध्यान से देखा और कहा, “बेटा, मेरी बच्ची ऐसी तो नहीं है कि किसी के भी सामने ऐसी निर्लज्ज सी हो कर नग्न खड़ी हो जाए। इसने आज तुमको अपना सर्वस्व दिया है। इस बात का तुम सम्मान करना। इस बात का सम्मान मैं भी करूँगी... मेरे लिए आज से तुम मेरे पट्रन नहीं, मरुमकन हो!”
“ओह अम्मा अम्मा!!” कह कर अल्का ने अम्मम्मा को अपने गले से लगा लिया। मैंने भी भाव विह्वल हो कर उनके पैर छू लिए।
“मैं तो तरस गई कि इस घर में फिर से कोई विवाह हो! नादस्वर और तविळ की आवाज़ मेरे आँगन में फिर से गूँजे! ये लड़की तो जैसे कसम खा कर बैठी थी कि किसी से विवाह ही नहीं करेगी। अब जा कर मेरे हृदय में शांति हुई है।”
“अम्मा! मेरी प्यारी अम्मा!!” अल्का ने हर्षातिरेक में अम्मम्मा को कस कर अपने गले से लगा लिया।
“यह हुई न बात, यजमंट्टी!” चिन्नम्मा ने प्रसन्न होते हुए कहा।
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“लेकिन इस बात में भी एक बाधा है... तुम्हारी अम्मा और तुम्हारे अच्चन को भी इनके विवाह के लिए सहमत होना होगा। नहीं तो केवल मुझ बुढ़िया की बात का कोई महत्त्व नहीं है।”
“अम्मम्मा, आपका आशीर्वाद मिल गया है। मुझे पूरा विश्वास है कि अम्मा और अच्चन भी मान जाएँगे!” मैंने अम्मम्मा के पैर छूते हुए कहा।
“तू उनको मना ले तो बहुत बढ़िया रहेगा। नहीं तो मेरे पास कोई और उपाय नहीं बचेगा! और मेरी बेटी कुँवारी ही रह जाएगी।”
“ऐसा नहीं होगा अम्मम्मा! आप अल्का के बच्चों - अपने कोच्चुमकन (नाती-नातिन) और वलीय कोच्चुमकन (पर नाती-नातिन) को अपनी गोद में जल्दी ही खिलाएँगीं!” मैंने शरारत से कहा।
“ईश्वर करें, कि ऐसा ही हो! लेकिन हमेशा याद रखना कि यह राह जिस पर तुम दोनों चल निकले हो, बड़ी कठिन है। कैसी भी कठिनाई आए, एक दूसरे का साथ कभी मत छोड़ना, और एक दूसरे का सम्बल बनना। तभी तुम्हारे प्रेम की परिणति होगी। अन्यथा समाज से दुत्कार के अतिरिक्त और कुछ नहीं पाओगे।”
“अम्मा, अब आप आशीर्वाद मिल गया है। चेची और अलियन को भी मना लेंगे और उनका भी आशीर्वाद ले लेंगे।” अल्का अम्मम्मा से लिपट कर बोली।
“मेरी प्यारी बेटी! मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा है कि मेरी बेटी को प्रेम हो गया है!”
अल्का ने कहा, “कभी कभी तो मुझे भी नहीं होता अम्मा! ये हमेशा शैतानी करने वाला लड़का, मेरे जीवन का सबसे बड़ा प्रेम बन जाएगा, यह तो मैंने भी नहीं सोचा था अम्मा! यह सब कुछ कैसे हो गया, मुझे तो याद भी नहीं पड़ता। मुझे तो बस ये मालूम है कि चिन्नू के साथ रहना मेरे लिए पूरी तरह से नैसर्गिक स्वभाव जैसा है। है न सब कुछ अविश्वसनीय सा?”
अम्मम्मा ने अल्का का मस्तक चूमते हुए कहा, “हाँ! और उससे मुझे एक बात ध्यान हो आई। तुम दोनों आज.. केवल आज के लिए एक विवाहित जोड़े के जैसे रहो।”
“क्या सच में अम्मा!” अल्का और मैं, दोनों ही एक साथ ही अम्मम्मा की बात पर आश्चर्यचकित हो कर बोल पड़े।
“हाँ! इसको मेरी तरफ से अपने होने वाले विवाह के लिए एक उपहार ही समझो। लेकिन पट्रन, जब तक तुम्हारा नया व्यवसाय चल न निकले, तब तक तुम दोनों का परिणय विधि के अनुसार नहीं हो सकेगा।”
“अम्मा! मेरी प्यारी अम्मा!!” अल्का ने आह्लादित होते हुए अम्मम्मा को अपने गले से लगा लिया।
“चल.. अब निर्लज्ज लड़की के जैसे नंगी मत रह और कुछ पहन ले..”
“अम्मा, लेकिन अभी अभी आप ही ने तो..”
“हाँ हाँ! मैंने कहा था कि आज तुम दोनों विवाहित जोड़ो के जैसे रह सकते हो। लेकिन थोड़ा तो सोच - ‘उपहार’ यदि खुला हुआ हो, तो उसका महत्त्व, उसके लिए उत्साह थोड़ा कम हो जाता है। अपनी पत्नी को अपने हाथों से निर्वस्त्र करना, एक पति के लिए बड़े अधिकार और गौरव की बात है।”
अल्का शरमा कर मुस्कुरा दी और अपने कपड़े पहनने के लिए कमरे के अंदर जाने लगी।
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मैं भी उसके पीछे पीछे चला, तो अम्मम्मा ने मुझे टोका,
“अब तू क्यों उसके पीछे पीछे चल दिया ? तू रूक! लक्ष्मी, इसका अभ्यंगम कर दे। मेरी बेटी को पूरा सुख मिलना चाहिए! समझ गए?” अम्मम्मा ने शरारती मुस्कान भरते हुए कहा।
तो फिर क्या था! चिन्नम्मा ने मेरी मालिश करना, और अल्का ने साड़ी-ब्लाउज़ और अन्य साज सज्जा करना शुरु कर दिया। आज सच में, यह एक बहुत बड़ी बात हो गई थी। कहने सुनने में यह एक छोटी सी बात लग सकती है, लेकिन एक लड़के और लड़की के जीवन में यह अवसर केवल एक बार आता है। अल्का का तो ठीक था - वो एकांत में थी और आराम से तैयार हो रही थी। लेकिन मेरी हालत ठीक नहीं थी - मैं दो दो महिलाओं के सामने नंगा था और मेरी मालिश हो रही थी। चिन्नम्मा ने इस मालिश में तो कोई कोर कसर ही नहीं रख छोड़ी थी; मेरे पूरे शरीर की दमदार - ख़ास तौर पर वो मेरे लिंग को दबा दबा कर, खींच खींच कर ज़ोरदार मालिश कर रही थीं। कोई कहने वाली बात नहीं है, कि मेरा लिंग वापस ठोस हो कर अपने उत्थान के चरम पर था। बस यही गनीमत थी कि स्खलन नहीं हो गया। अम्मम्मा भी बीच बीच में मेरे लिंग की जाँच पड़ताल कर के ‘अच्छा कुन्ना’ ‘अच्छा कुन्ना’ कह कह कर मेरा उत्साह बढ़ा रही थीं। मालिश होने के साथ साथ दोनों बुढ़ियाएँ मुझे अपनी पत्नी के संग उत्तम सम्भोग करने का आरंभिक ज्ञान भी देती जा रही थीं। उदाहरण के लिए, क्या क्या करना चाहिए; स्तनों का मर्दन कैसे करना चाहिए; क्या क्या करना नहीं करना चाहिए; क्या करने से अधिक आनंद आएगा इत्यादि। कुछ देर में अल्का ने कमरे के अंदर से ही आवाज़ लगाई,
“अम्मा, मैं तैयार हूँ..”
“अरे देखो तो ज़रा मोलूट्टी को... सम्भोग करने के लिए कितनी उतावली हो रही है..” चिन्नम्मा ने हम को छेड़ा.. “जाओ जाओ चिन्नू, तुम्हारी वधु तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही है..”
मैं कमरे में जाने को उठा।
“लेकिन, उसके पहले एक रस्म होती है, जो तुमको निभानी पड़ेगी.. अपनी वधु से रमण करने से पहले, वर अपनी माँ के मुलाक्कल पीता है।” चिन्नमा ने एक और बम छोड़ा, “हाँ हाँ, हमको मालूम है कि तुम दोनों पहले ही रमण कर चुके हो, लेकिन इस बार तो हमारी निगरानी में तुम्हारा मिलन हो रहा है न?”
“तो मैं क्या करूँ..?” मुझे लज्जा आने लगी।
“अरे इतना क्या सोचना? मेरे ही मुलाक्कल पी लो, फिर चले जाओ! मेरे बाद अलका के मुलाक्कल जी भर के पी लेना.. हा हा!” कह कर हँसते हुए चिन्नम्मा ने अपनी ब्लाउज के बटन खोल दिए और उनके विशालकाय मुलाक्कल बाहर निकल आए। उनके बड़े बड़े साँवले रंग के चूचक मेरी मोलू के मुलाक्कलों का भला क्या मुकाबला करते! खैर, मैंने बेमन से बारी बारी से उनके दोनों मुलाक्कन्न को अपने मुँह में लेकर चूसा और आगे बढ़ गया।
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“ए री लक्ष्मी, तूने उसको ऐसे क्यों छेड़ा?” अम्मम्मा ने मेरे जाने के बाद चिन्नम्मा से पूछा।
“क्या यजमंट्टी! इतना सुन्दर युवक मेरे सामने इतनी देर से नंगा खड़ा रहे, और मैं कुछ करूँ भी न!”
“तू वेश्या है, लक्ष्मी!” अम्मम्मा ने हँसते हुए चिन्नम्मा को डाँटा, “पूरी की पूरी..!”
“लेकिन यजमंट्टी, आपको क्या लगता है? क्या इन दोनों का परिणय हो पाएगा? मुत्तामकल (मेरी माँ) क्या बोलेगी? वो मान जाएगी?”
“पता नहीं लक्ष्मी! लेकिन भविष्य को लेकर आज क्यों चिंता करी जाए? इन दोनों को एक दूसरे से प्रेम है, वही बड़ी बात है! मुझे तो आजीवन प्रेम नहीं मिला। कम से कम मेरी एक बेटी को प्रेम मिल जाए, तो मैं उतने से संतुष्ट हूँ! ईश्वर न करें, लेकिन यदि इन दोनों का विवाह न भी हो, तो भी कम से कम एक दूसरे के सान्निध्य के एक दो अवसर यदि मैं इन दोनों को उपहार स्वरुप दे सकूँ, तो मुझको प्रसन्नता होगी।”
“वाह यजमंट्टी! आप तो बड़ी खुले विचारों वाली निकलीं। सच में, यदि मुत्तामकल मान जाए तो कितना अच्छा हो! अर्चित एक अच्छा लड़का है! अपनी मोलूट्टी को बड़े प्रेम से रखेगा।”
“हाँ लक्ष्मी! बहुत अच्छा लड़का है। लेकिन, क्या इस तरह का विवाह ठीक होगा?”
“यजमंट्टी, आप एक बात बताइए... यह कैसी बात हुई कि मामा अपनी भांजी से तो विवाह कर सके, लेकिन अम्माई अपने भाँजे से नहीं?”
“अब मैं बुढ़िया इस बात का उत्तर कैसे दूँ ?”
“मैं देती हूँ न उत्तर.. हमारे समाज ने यह सोचा होगा कि कन्याओं को अपने पति का आदर करना चाहिए। यह उस समय बहुत आवश्यक रहा होगा - अगर पत्नी अपने पति का आदर न करे तो संभव है कि वो उसको छोड़ सकती है! पति एक तरह का संरक्षक भी होता है... न केवल पत्नी का, बल्कि पूरे परिवार का। अगर पत्नी अपने पति से आयु अथवा सम्बन्ध में बड़ी है, तो संभव है कि वो अपने पति का आदर न करे.. उसको संरक्षक की तरह न देखे। लेकिन, मेरा मत यह है कि अगर कन्या और वर, एक दूसरे से प्रेम करते हैं और दोनों ही विवाह में अपनी अपनी भूमिका समझ सकते हैं, तो उनको विवाह करने देना चाहिए। समाज को चाहिए कि उनको आशीर्वाद दे।”
अम्मम्मा ने विनोद और आदर के साथ चिन्नम्मा को देखा और कहा, “वाह लक्ष्मी! तुमने कितनी बढ़िया बात कह दी! मेरे मन की शंका कम कर दी! भगवान तुमको लम्बी आयु दें!”
“हा हा! क्या अम्मा! आप भी! लेकिन एक बात तो कहिए, अगर आपको खुद ही निश्चित नहीं था, तो आपने इन दोनों को रमण करने की अनुमति क्यों दे दी?”
“देखो, पहली बात तो यह है कि दोनों एक बार सहवास कर चुके हैं। अगर मैं मना करती, तो भी वो दोनों छुप छुप कर फिर से करते! और बार बार करते! युवा शरीर की भूख ऐसे एक बार से ही तो कम नहीं हो सकती।”
“अरे अम्मा, वो दोनों तो फिर से सम्भोग कर ही सकते हैं न?”
“बिलकुल कर सकते हैं! और बिलकुल करेंगे भी! लेकिन उनको यह मालूम रहेगा कि उनको मेरा आशीर्वाद है। संभव है कि न भी करें! देखते हैं!”
“यजमंट्टी, आप बहुत अच्छी हैं! आपने बिलकुल सही किया! दोनों बहुत खुश रहेंगे।”
“हाँ! यही तो मैं भी चाहती हूँ कि दोनों खुश रहें। और अगर इनका विवाह होना ही है, तो जल्दी से जल्दी हो जाए! ऐसे शुभ कार्यों में देरी नहीं होनी चाहिए। अपने नाती के बच्चे का, अपनी बेटी के बच्चे का मुँह देख लूं, तो सुख-पूर्वक सिधार सकूंगी!”
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कॉलेज के दिनों में अल्का ने एक दो बार की अश्लील पुस्तक पढ़ी थी। उन कहानियों में पति-पत्नी के मध्य अंतरंग संबंधों का ऐसा कामुक वर्णन था कि पढ़ते पढ़ते उसके शरीर के रोंगटे खड़े हो गए थे। उसको भी ऐसी ही अंतरंगता की उम्मीद थी। लेकिन अपने प्रथम संसर्ग में उसने वैसा कुछ महसूस नहीं किया। लेकिन चूँकि वह सब कुछ ऐसे भागते भागते हुआ था, इसलिए संभव था कि इसी कारणवश उसको पुस्तक में वर्णित समुचित आनंद की अनुभूति नहीं हो सकी! लेकिन सौभाग्य से दोनों को उसी दिन एक और अवसर प्रदान किया था। इस बार घर के बुज़ुर्गों का भी आशीर्वाद था।
इस बार कैसा रहेगा, इस विचार की कल्पना मात्र से ही अल्का को एक नशा सा चढ़ने लगा। अब अल्का जल्दी से जल्दी दांपत्य के परम सुख को प्राप्त कर लेना चाहती थी। अल्का इन्ही विचारों का विश्लेषण कर ही रही थी, कि मैंने कमरे में प्रवेश किया। मुझे देखते ही अल्का के होंठों पर एक लम्बी सी मुस्कान आ गई। मैंने कुछ भी नहीं पहना हुआ था। उधर अल्का ने पारम्परिक कासावु साड़ी पहनी हुई थी। इतने कम समय में वो एक नव-वधू की तरह सज-धज तो नहीं सकी, लेकिन किसी दुल्हन से कम भी नहीं लग रही थी। हमारे समागम के पूर्वाभास से ही मेरा शिश्न पूरी तरह से तन गया था। इस बार तो मन भर कर संभोग करूंगा!
“मेरे चिन्नू... ओह सॉरी सॉरी! मेरे चेट्टा.. मेरे कुट्टन! बड़ी देर लग गई आने में।”
“हाँ! वो चिन्नम्मा ने बड़ी देर तक...”
“हाँ, वो तो दिख रहा है” अल्का ने मुस्कुराते हुए मेरे लिंग को देखा।
“अल्का..?”
“हाँ चेट्टा!”
“मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ”
“मैं भी कुट्टन”
“मुझे बस तुम चाहिए..”
“मैं तो हूँ, कुट्टन!” अल्का ने मुस्कुराते हुए कहा, “लेकिन, उसके पहले.. कुछ पियोगे?”
“हाँ! क्या?”
“पानाकम?”
“पानाकम ! हम्म.. तुम क्या पियोगी ?” मुझे मालूम है कि अल्का को कॉफ़ी बहुत पसंद है, ख़ास तौर पर फ़िल्टर कॉफ़ी, “कॉफ़ी?”
“कॉफ़ी नहीं, चाय पियूँगी”
“और अगर चाय न मिले तो?” मैंने अल्का को छेड़ा, “.. कुछ और दे सकता हूँ? चाय से भी बढ़िया ! बताना, बढ़िया है या नहीं?”
मैंने अपने कर्मचारियों से कह कर दो बोतल अंग्रेज़ी मदिरा मंगवाई थी - एक स्कॉच और दूसरी फ्रेंच वाइन! सुना था कि शादी ब्याह में वाइन का अधिक इस्तेमाल होता है और लड़कियाँ भी उसका आस्वादन करती हैं। मतलब, अल्का भी पी सकती है। मैं उठा और उठ कर रेडियो पर संगीत चालू किया। मैंने कमरे में एक गुप्त स्थान से वाइन की बोतल बाहर निकाली, और दो गिलास में वाइन भर कर सिप करते हुए संगीत की ताल पर अल्का की तरफ पाँव बढ़ाए.....
“यह क्या है मेरे कुट्टन?”
“मदिरा!”
“क्या! तुम मदिरा पीते हो? छीः!” अल्का ने शिकायती लहजे में अपनी बात कही तो, लेकिन उसने शिकायत करी, यह बात समझ में नहीं आई। समझ में नहीं आया कि वो नाराज़ है या नहीं।
“नहीं, पीता तो नहीं। लेकिन किसी ख़ास अवसर के लिए मंगवा कर रखी थी। मुझे लगा कि वो ख़ास अवसर अभी है! है न?”
“हम्मम मेरा छोटा सा चिन्नू सचमुच में बड़ा हो गया है!”
“हाँ, काफी बड़ा” मैंने अर्थ का अनर्थ निकाला।
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अल्का शर्म से मुस्कुरा दी और वापस मेरे अभी भी तने हुए शिश्न की तरफ देखने लगी।
“पियो न!” मैंने मनुहार करी। अल्का ने एक चुस्की ली, और चुस्की लेते ही उसने आँखें सिकोड़ लीं।
“क्या हुआ? अच्छी नहीं है?” सच कहूँ तो मुझे भी नहीं मालूम था कि उसका स्वाद अच्छा है या खराब। एकदम नया सा स्वाद था; कुछ समझ नहीं आया कि वह स्वाद पसंद आना चाहिए या नहीं।
“पता नहीं.. लेकिन मुझे एक बात पता है कि एक बहुत ही स्वादिष्ट पीने की चीज़ मेरी ब्लाउज में है..”
“वो तो सबसे स्वादिष्ट चीज़ है मोलू!” मैंने छूटते ही कहा। और फिर मनुहार करते हुए आगे कहा, “मेरी मोलू, तुम मुझसे एक वायदा करो... जब तुम मेरे साथ रहो न, तो पूरी नंगी रहा करो!”
“हाय चिन्नू! अपनी अम्माई को तुम ‘ऐसे’ देखना चाहते हो?” अल्का ने छेड़ते हुए कहा।
“हाँ, लेकिन अपनी अम्माई को नहीं, अपनी भार्या को.. हाँ... ‘ऐसे’ और हमेशा!”
कह कर मैंने अल्का के होंठों पर एक चुम्बन लिया और उसको बिस्तर पर लिटा कर, उसके शरीर से कपड़े धीरे धीरे उतार कर ज़मीन पर डाल दिया, जैसे उसने कोई फालतू सी चीज़ पहनी हुई हो। इस बात की आशंका और पूर्वानुमान अल्का को थी ही.. आखिर हम सम्भोग करने ही तो इस कमरे में आए थे। इसलिए अल्का ने भी कम से कम कपड़े ही पहने थे। उसने ब्लाउज पहनी थी, ब्रा नहीं। साड़ी और पेटीकोट पहनी थी, लेकिन चड्ढी नहीं। मतलब वो खुद भी हमारे मिलान के लिए तैयार थी। लेकिन फिर भी, लड़कियों को एक तरह की घबराहट तो होती ही है। अल्का को भी थी, लेकिन फिर उसने धीरे धीरे खुद को संयत किया..
मैं उसके होंठों पर लम्बे लम्बे चुम्बन देते हुए उनको चूसने लगा। ऐसे जैसे मैं उसके होंठों को ही नहीं, बल्कि उनके साथ साथ उनकी लालिमा भी चूस लेना चाहता था। चुम्बन के दौरान ही अल्का पूरी तरह से नग्न हो गई। उसने लज्जा से अपनी आँखें बंद कर लीं, और खुद को चादर से ढँक लिया। मैंने उस चादर को भी हटा दिया। अब अल्का ने अपने सीने पर अपने हाथ आड़े तिरछे रख लिए, एक तरह से अपने मुलाक्कल छुपाने की नाकामयाब कोशिश! उसके दोनों हाथों को हटा कर मैं मुग्ध हो कर उसके शरीर को देखने लगा। कुछ देर ऐसे ही देखने के बाद मैं कांपते हुए स्वर में बोला,
“तुम कितनी सुन्दर हो, मोलू!”
अल्का ने करवट बदलकर खुद को छुपाते हुए कहा, “क्या सुन्दर लगा मुझमें?”
उत्तर देने से पहले मैंने मन भर कर अल्का को निहारा। मुझे खुद ही अपने भाग्य पर संदेह हो आया। क्या यह सब मेरे साथ सच में हो रहा है, या बस कोई मीठा सपना है! अगर यह एक सपना है, तो भगवान्, इस सपने को यूँ ही चलने दें!
“मुझे तो तुम पूरी की पूरी सुन्दर लगती हो, मोलू!” मेरी आवाज़ में अब उत्तेजना आने लगी थी।
“ऐसे नहीं कुट्टन! मुझे मालूम है कि तुम उत्तेजित हो और मेरे साथ रमण करना चाहते हो। मेरी भी तो यही इच्छा है! इसलिए तुम खुल कर, एक कामुक प्रेमी की तरह मुझे बताओ कि तुमको मुझमें क्या सुन्दर लगता है?”
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मुझे तो अल्का पूरी ही अच्छी लगती है। लेकिन हाँ, सच है कि उसके शरीर के कुछ अंग बाकी अंगों से अधिक सुन्दर तो हैं। मैंने कहा, “तुम्हारे होंठ, कैसे रस भरे हैं। उनको चूम कर लगता है कि जैसे किशमिश चख रहा हूँ!”
अल्का के होंठों पर यह सुनते ही मुस्कान आ जाती है। मैं आगे कहना जारी रखता हूँ,
“तुम्हारी आँखें - तुम कुछ न भी बोलो, तो भी यह सब कुछ बोल देती हैं।”
मैंने बारी बारी से उसकी दोनों आँखों को चूमा।
“तुम्हारा चेहरा! कैसा भोलापन! कितनी सुंदरता!”
मैंने बारी बारी से उसके दोनों गालों, मस्तक और ठुड्डी को चूमा।
फिर मैंने उसके सीने पर से उसके हाथों हो हटा दिया और उसकी कमर के इर्द गिर्द अपनी बाहों का घेरा बना लिया। ऐसे कोमल आलिंगन से उसके मुलाक्कल और मुलाक्कन्न मेरे सीने पर चुभने लगे। मैंने एक हाथ से उसके एक मुलाक्कल को सहलाते हुए कहा,
“तुम्हारे पृयूर! तुम तो खुद ही ईश्वर की कलाकृति हो, लेकिन तुम्हारे पृयूर... एकदम पुष्ट और रसीले!”
मैंने बारी बारी से उसके दोनों मुलाक्कलों को पहले चूमा, फिर उनको हाथों में भर कर दबाने लगा। ऐसे गोल गोल और सुडौल मुलाक्कल किसको पसंद नहीं आएँगे?
“कितने सुन्दर हैं ये! इतने सुन्दर मैंने कभी नहीं देखे! तुम मुझे पागल कर दोगी!”
“कितनी स्त्रियों के मुलाक्कल देख लिए तुमने चिन्नू?”
“तुम्हारे ही.. और... चिन्नम्मा के!”
“चिन्नम्मा के!? हा हा!”
“हाँ!” कहते हुए मैंने अल्का के स्तनों पर बूँद बूँद कर वाइन डाल दी, और जीभ से चाटने लगा।
“इससे मदिरा का स्वाद बढ़ गया क्या?”
“हाँ..”
“हम्म्मम..”
उसके बाद वाइन को अल्का के पूरे शरीर पर डाल कर मैं चाटने लगा। मुझ पर एक अलग ही तरह की मदहोशी छाने लगी। उधर अल्का मेरे बालों में उँगलियाँ डाले आनंद ले रही थी। मैं पुनः चूमते हुए उसके स्तनों पर पहुंचा।
“अभी ये रसीले नहीं हैं।” अल्का की आवाज़ लड़खड़ाने लगी, “अभी पके नहीं हैं न, तुम्हारे पृयूर!”
“कब पकेंगे?” मैंने सरलता से पूछ लिया। मेरे प्रश्न पर अल्का शरमा गई।
“जानू!” उसने ठुनकते हुए कहा, “क्या तुम नहीं मालूम? सच में?”
“क्या नहीं मालूम?”
“हम्म... इनमें रस तब आएगा जब हमारी संतान...” कहते हुए अल्का ने लज्जा से अपना चेहरा अपनी हथेलियों से ढँक लिया।
“फिर तो जल्दी ही हमको विवाह कर लेना चाहिए!” मैंने हँसते हुए कहा।
“हाँ हाँ! चिन्नू जी, मुझको माँ बनाने की इतनी जल्दी है आपको?” अल्का ने मुझे छेड़ते हुए कहा।
“नहीं। जल्दी तो मुझे तुमको अपनी पत्नी बनाने की है।”
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यह कह कर मैं कुछ देर तक उसके स्तनों को पीने लगा। कितना रुचिकर होता है अपनी पत्नी, अपनी प्रेमिका का स्तनों को पीना। सुख हो जाता है। जब स्तनपान से मन भर गया, तब मैंने अल्का को आलिंगन में भरे हुए ही कहा,
“अल्का, तुम्हारा हर अंग बहुत सुन्दर है। मुझे तुम्हारा हर अंग प्रिय है!”
अल्का मुस्कुराई।
“और तुम्हारा रंग भी प्रिय है!”
“मेरा रंग? मेरा रंग कोई गोरा तो नहीं है...” वो बोली ।
“इसीलिए तो और भी पसंद है..” फिर कुछ रुक कर, “तुम्हारा पूरा शरीर अपूर्व है! कैसी चिकनी त्वचा, कैसे मुलायम और चमकीले बाल.. कैसे काले काले हैं!”
“आओ, मैं तुमको अपने बालों से ढँक लूँ! याद है कुट्टन तुमको? जब तुम छोटे थे, तो लुका छिपी खेलते समय मेरे बालों में छुप जाते थे।”
कह कर अल्का ने मुझे अपने सीने में भींच कर मुझे अपने बालों से ढँक लिया। मैं क्यों शिकायत करता? मैं तो वापस अपनी मनपसंद जगह पर आ गया था। मैंने उंगली से उसके मुलाक्कन्न छुए, फिर उनको अपनी नाक की नोक से किसी पक्षी के मानिंद सहलाया, और सूंघा। फिर उसके दोनों चूचकों को अपने मुँह में ले कर मन भर चूसा।
“मोलू, तुमको मालूम है कि वाइन पीने के बाद चेरी खानी चाहिए?”
“अच्छा?” अलका एक आज्ञाकारी पत्नी की तरह मेरी हर इच्छा को पूरा करना चाहती थी, “मुझे नहीं मालूम था... लेकिन.. लेकिन घर पर चेरी तो है ही नहीं...”
“घर पर नहीं है.. लेकिन यहाँ (मैंने उसके चूचकों की तरफ इशारा करते हुए कहा) तो हैं!”
“हा हा ! आप तो इनको बहुत देर से खा रहे हैं!”
‘आप!’ मैंने मन ही मन कहा!
मैं अल्का के स्तनों और पेट का चुम्बन लेते हुए धीरे धीरे नीचे की ओर उसके नाज़ुक यौनांगों तक आ गया। अल्का ने सख्ती से अपनी दोनों जाँघें जोड़ी हुई थीं। उनको मैंने अपने दोनों हाथों से अलग करते हुए कहा,
“अपना स्वाद लेने दो, मोलू!”
“छीः! नहीं!” उसने वापस अपनी जांघें आपस में भींच लीं।
“क्यों?”
“अरे! क्यों क्यों? कितना गन्दा काम है!”
“गन्दा काम! अरे देखो तो! कितने सुन्दर हैं तुम्हारी योनि के होंठ! मैं जानता हूँ कि इनके अंदर अमृत भरा हुआ है.. प्लीज मुझे तुम्हारा अमृत पीने दो!”
“आपको भी न जाने क्या क्या अमृत लगता है!”
मैंने धीरे धीरे से उसकी जाँघों को अलग किया। अल्का ने इस बार विरोध नहीं किया, लेकिन उसने शर्म से अपनी आँखें बंद कर लीं। उत्तेजना के कारण उसकी योनि से पहले ही कामरस रिस रहा था। मैंने अल्का की योनि में अपने मुंह को पूरी यथासंभव अंदर तक डाल दिया और उसका कामरस पीने लगा। कुछ देर में मैंने उसका सारा अमृत पी लिया.. कैसी प्यास! अल्का भी अपनी आँखें बंद किए हुए इस अनोखे अनुभव को जी रही थी..।
“आँखें खोलो मोलू... मुझे देखो!”
अल्का ने आँखें खोलीं। सामने का दृश्य देख कर उसने एक गहरी सिसकारी भरी। मैंने अपने शिश्न से शिश्नाग्रच्छद हटा दिया था। साँवले गुलाबी रंग का शिश्नमुंड उसके सामने था; ह्रदय की गति के साथ मेरा शिश्न भी रक्त संचार के कारण रह रह कर झटके खा रहा था। इस समय वो पहले से अधिक बड़ा लग रहा था। थोड़ी ही देर में वो पुनः इस लिंग के द्वारा भोगे जाने वाली थी - एक पत्नी के तौर पर। सच कहें तो वो पहली ही बार भोगी जाने वाली थी। पहली बार तो बस जैसे तैसे बस एक सम्बन्ध स्थापित हुआ था। भोगने जैसा कुछ हुआ नहीं था। उस समय एक असहजता थी, अनाड़ीपन था, डर था। अभी हम सहज थे, और आश्वस्त हो कर सम्भोग कर रहे थे।
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एक असहज भय और लज्जा से उसने पुनः अपनी आँखें मूँद लीं। मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपने अंग पर रख दिया।
“इसको मन भर कर महसूस करो.. आज से यह तुम्हारा है! केवल तुम्हारा!”
अल्का ने अपनी हथेली मेरे लिंग पर लिपटा ली। उसकी पकड़ छोटी पड़ गई। उसके हाथ थर थर कांप रहे थे।
“क्या हुआ मोलू?”
“हे भगवान्! कितना बड़ा है यह!” अल्का एकदम मंत्रमुग्ध हो कर मेरे लिंग को स्पर्श कर रही थी...
“तुमको पसंद है?” अल्का ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“फिर क्या! इसको ठीक से देखो और महसूस करो... आँखें खोलो... ये देखो..” कह कर मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपने लिंग की पूरी लम्बाई पर फिराया।
“इसको ठीक से महसूस करो...। दबाओ इसे.. हाँ, ऐसे... मुँह में लो.. गालों से लगाओ.. सीने पर फिराओ! आनंद लो!”
अल्का के चेहरे पर घबराहट और संकोच के भाव साफ़ दिख रहे थे, लेकिन इस समय वह उत्सुकता से वशीभूत थी। उसने उँगलियों से पहले मेरे लिंग को हलके से छुआ और फिर दबाया,
“कितना कड़ा है, लेकिन फिर भी कितना कोमल! और कितना गरम भी”
मैंने प्यार से अल्का के सीने पर हाथ फिराया। मेरी इस हरकत पर अल्का की आँख फिर से बंद हो गई... मैंने उसकी बंद आँखों को फिर से चूम लिया, और फिर उसके गालों पर.. अल्का पूरी तरह से तैयार थी, इतना तो मुझे मालूम था। अभी से नहीं, बल्कि जब से हमने अपनी ‘सुहागरात’ की पहली क्रिया शुरू करी थी, तब से। लेकिन मैंने खुद पर संयम बनाए रखा हुआ था। लिंग पर हाथ फिराने से उसका मुंड वापस छुप गया था, इसलिए मैंने लिंग की त्वचा को पीछे की तरफ सरका कर उसको फिर से अनावृत कर दिया, और शिश्नमुंड को अल्का के योनि पर पर छेड़तेहुए चलाने लगा। अल्का कामुक उत्तेजना से छटपटा रही थी। वासना की प्यास अब उसको कष्ट देने लगी थी। उसने आँखें खोल कर मुझे देखा.. और मैं, बस मुस्कुराया। फिर आगे जो हुआ वो बहुत अप्रत्याशित था! उसने दोनों हाथों से मुझे कमर से पकड़ कर अपनी तरफ खींचा।
“बोलो... क्या चाहती हो?” मैंने अल्का को छेड़ा। कामोद्दीपन के चरम पर पहँचु कर अल्का बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। उसका पूरा शरीर वासना के अधीन हो कर काँप रहा था।
“बताओ मोलू... क्या चाहती हो?”
अल्का अभी भी कुछ नहीं कह रही थी। बस अपने सर को धीरे धीरे दाएँ बाएँ हिला रही थी।
“देर सही नहीं जा रही है क्या?”
मैंने अल्का को कुछ और छेड़ा। इस पूरी छेड़खानी के दौरान मैं उसकी योनि को छेड़ता रहा। कैसे कह दे अल्का मुझे कि देर नहीं सही जा रही है! यह सब कहना तो सीखा ही नहीं। प्रेम की अभिव्यक्ति कर दी, विवाह की पेशकश कर दी.. अब वो क्या यह भी बोल दे? लड़कियाँ यह सब कैसे कह दें ! लज्जा की चादर ने उसको पूरी तरह से ढँक लिया था।
वो देख रही थी..
मेरी आँखों में उसके लिए प्यास! मेरे होंठों पर उसके लिए प्यास!
उसने कुछ नहीं कहा तो मैंने उसको छेड़ना जारी रखा। मैंने उसकी नाभि को जीभ की नोक से चाटना और फिर चूसना शुरू किया। कुछ देर ऐसे ही करने के बाद मैंने उसके नितम्बों को अपने हाथों में ले कर दबाना, और उसकी जाँघों को सहलाना शुरू कर दिया।
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यह बात न तो अल्का को मालूम थी, और न ही मुझे (बाद में अम्मम्मा और चिन्नम्मा ने हम दोनों को समझाई) कि अल्का की योनि संभवतः उसकी उम्र के हिसाब से कुछ छोटी थी! छोटी सी भी थी, और प्यारी सी भी। खैर, वो संज्ञान हमको बाद में होगा, फिलहाल तो मैंने एक उंगली उसकी योनि के भीतर डाली, तो वो पागल सी हो गई। मैंने धीरे से एक और, और एक और कर के उँगलियाँ भीतर डाल दी।
वो बोली, “ब्ब्ब्बस... अब मत करो!”
“क्या न करो?” मेरी आवाज़ कर्कश हो गई थी।
“उ उ उंगली..”
“तो फिर?”
“अ अ आप.. आप.. अंदर.. आह!”
इसी हरी झंडी की तो राह देख रहा था मैं कब से! मैंने खुद को अल्का के ऊपर ठीक से व्यवस्थित करते हुए अपने हाथ से अपने लिंग को अल्का की इच्छुक योनि का मार्ग दिखलाया। अल्का की योनि की मुलायम पंखुड़ियों ने तुरंत ही मेरे पौरुष को अपनी पकड़ में ले लिया,
“आह... बहुत गरम है अल्का तुम्हारी चूत (मैंने जान-बूझ कर एक गंदे शब्द का प्रयोग किया)..”
“हम्म्म्फ़” अल्का अपनी आँखे बंद किए हुए, और अपने होंठों को भींच कर बोली।
मैंने उससे पूछा, “मज़ा आ रहा है?”
उसने कुछ नहीं कहा।
इस बार मैं अल्का को जी भर कर भोगना चाहता था - पिछली बार से कहीं अधिक समय तक! मैं अल्का को शरीर और आत्मा का वो सुख देना चाहता था, जिससे वो अभी तक वंचित थी। मैं इस काम में कोई विशेषज्ञ तो नहीं था, लेकिन इतना तो मुझे मालूम था कि सम्भोग इतनी देर तक तो चलना ही चाहिए जिससे स्त्री की सभी इन्द्रियाँ पूरी तरह से उद्दीप्त हो जाएँ। मैंने अल्का के गोल गोल नितम्बों को अपने हाथों में पकड़ा, और सम्भोग की चिरंतन काल से चली आ रही लयबद्ध गति पकड़ ली। शारीरिक बल और पौरुष तो मेरे अंदर कूट कूट कर भरा हुआ था, साथ ही साथ अल्का को परम सुख देने की बलवती इच्छा भी थी। लिहाज़ा, मेरी कमर के प्रबल धक्कों के साथ मेरा लिंग अल्का की योनि में प्रबलता से अंदर बाहर होने लगा।
“ओह अल्का! मेरी मोलू! मैं केवल तुम्हारा हूँ और तुम मेरी। मैं अपने वीर्य से तुम्हारी योनि भर देना चाहता हूँ। ओह्ह्ह्ह! आह्ह्ह्ह!”
मैं उच्च स्वर में अल्का पर अपने अधिकार की सीमा बढ़ा रहा था। जाहिर सी बात है, यह बात न केवल अम्मम्मा और चिन्नम्मा ने सुनी, बल्कि अगर कोई हमारे घर के पास से निकला होगा तो उसने भी सुनी होगी। संभव है कि अल्का ने सोचा होगा कि पिछली बार के जैसे ही मैं इस बार भी जल्दी ही स्खलित हो जाऊँगा - लेकिन पिछली और इस बार के रति संयोग में बड़ा अंतर था। पिछली बार डर था, इस बार पूरी निर्भीकता थी! पिछली बार मैं शुद्ध नौसिखिया था, लेकिन इस बार मुझे अनुभव था। पिछली बार मैं एक प्रेमी था, जो चोरी छुपे अपनी प्रेमिका से सम्भोग कर रहा था, लेकिन इस बार मैं एक पति था, जो अपनी पत्नी को उसके विवाहित जीवन का सुख दे रहा था!
वैसे भी कुछ ही देर पहले मेरा वीर्य निकल चुका था, इसलिए इस बार वापस निकलने में अधिक समय तो लगना निश्चित ही था। कारण जो भी रहा हो, अल्का का भोग काफ़ी समय तक जारी रहा। हमको (या यह कह लीजिए कि मुझे) सम्भोग की किसी अन्य मुद्रा का ज्ञान नहीं था, इसलिए हम उसी मुद्रा में हम एक दूसरे को बदस्तूर भोग रहे थे। अल्का के मुँह से आनंद की दबी-घुटी आवाजें निकल रही थी। अल्का के लिए यह सम्भोग के आनंद की परम सीमा थी। अल्का को समझ में नहीं आया कि उसके साथ क्या हो गया है! आँखें बंद किए हुए, खुले हुए मुख से वो अपने जीवन के पहले चरम सुख का आनंद लेने लगी। मैंने उसके शरीर की कँपकँपी को महसूस किया, लेकिन समझ नहीं पाया कि अचानक से ही उसको क्या हो गया।
लेकिन चूँकि अल्का के चेहरे पर आनंद के भाव थे, इसलिए मेरा धक्के लगाने का सिलसिला कायम रहा। मेरा जघन क्षेत्र किसी स्वचालित यंत्र के भाँति अल्का की योनि में कार्यरत था। मेरे हर धक्के के साथ अल्का के स्तन, पेट, सर, या यह कह लीजिए कि उसका पूरा शरीर, उसका मस्तिष्क भी झटकों की ताल में हिल रहे थे। जल्दी ही मैंने भी अपने चरम सुख को प्राप्त कर लिया।
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“मोलू.. मेरी.. अल्का! मेरी अल्का! बस एक दो बार और... मैं अपना वीर्य तुमको दे रहा हूँ! आह!”
कहते हुए मैंने एक तीव्र स्खलन महसूस किया। अल्का ने मुझे अपने पूरे शरीर से आलिंगनबद्ध कर लिया। मैंने लगभग हाँफते हुए एक के बाद एक कई पिचकारियों में अपने बीज को अल्का की कोख के अंदर तक भर दिया। कुछ देर में मेरा बीज तो निकल गया लेकिन अल्का की योनि की अनुभूति इतनी सुखद, इतनी मीठी थी कि स्खलन होने के बाद भी बाहर निकलने का मन नहीं हुआ, इसलिए मैं शिथिल हो कर अल्का के ऊपर ही गिर गया और सुस्ताने लगा। उधर अल्का मेरे शरीर के नीचे दबी हुई, अपने हर अंग में एक मीठा मीठा सा दर्द महसूस कर रही थी।
‘इस बार तो पिछली बार से कहीं अच्छा अनुभव था!’ उसने सोचा।
अन्यमनस्क सी स्थिति में उसका हाथ अपने एक चूचक पर चला गया तो उसको लगा कि जैसे वहाँ से एक ज्वालामुखी फट पड़ा हो... ऐसी आनंददायक पीड़ा! अल्का ने खुद को थोड़ा व्यवस्थित किया और अपने एक चूचक पर मेरा मुँह आ जाने दिया। मुझे किसी अन्य संकेतों की आवश्यकता नहीं थी। मैंने उस चूचक को चूसने चुभलाना शुरू दिया। यह करते हुए कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला।
हमारे प्रथम संसर्ग के समापन की उत्तरदीप्ति में अल्का कुछ देर तक अपने शरीर में होने वाली मीठी मीठी पीड़ा का आनंद लेती रही, और मेरे सर के बालों से खेलती रही। लेकिन जब उसने मुझे पूरी तरह से बेसुध हो कर सोते हुए देखा, तो वो बिस्तर से उठ खड़ी हुई। उसको नींद नहीं आ रही थी। वो अपने इस नए अनुभव का पूरा आनंद लेना चाहती थी, और उसके अनूठे आनंद को निद्रा की बेसुधी में गँवाना नहीं चाहती थी। वो अंगड़ाई लेती हुई कमरे से बाहर निकल आई।
“अरे! मोलूट्टी! तेरे कुट्टन ने तुझे इतना सताया कि तू बिना कपड़ों के ही बाहर भाग आई?” अल्का को कमरे से बाहर आते देखते ही चिन्नम्मा ने उस से ठिठोली करी।
“अरे, मोलूट्टी.. तू आ गई? और.. अर्चित?” अम्मम्मा ने अल्का से पूछा।
“वो सो रहे हैं, अम्मा!”
“हम्म्म्म! लेकिन तू कुछ पहन तो ले.. सयानी लड़की घर भर में ऐसे नंगी घूमती हुई ठीक नहीं लगती है...!”
“पहन तो लूं अम्मा, लेकिन उसका कोई फायदा ही नहीं है। वो साड़ी मैंने पूरे आधे घंटे की मेहनत कर के पहनी थी। हुआ क्या? केवल दो क्षणों में ही सब कुछ उतर गया!”
अम्मम्मा अल्का की बात सुन कर मुस्कुराने लगीं।
“सुन रही है न लक्ष्मी? आज कल के बच्चे पूरी तरह से निर्वस्त्र हो कर सम्भोग करते हैं। हमारे समय में तो बस मुण्डु उठा कर काम हो जाता था।”
“क्यों न हो यजमंट्टी? इतनी सुन्दर सी तो है हमारी मोलूट्टी! सच कहूँ तो निर्वस्त्र हो कर तो और प्यारी सी लगती है ये! तू ऐसी ही रहा कर मोलूट्टी।” कह कर चिन्नम्मा ने अल्का को अपने आलिंगन में भर लिया।
“और.. उन्होंने कहा है कि उनके सामने मैं नंगी ही..” कहते हुए अल्का के गाल लज्जा से लाल हो गए।
“अरे वाह री आज्ञाकारी पत्नी!!” अम्मम्मा ने हँसते हुए कहा, “अच्छा है! हा हा... अच्छा है.. मुझे यह सब सुन कर बहुत अच्छा लगा! ... हम्म! अब, एक बात बता, कैसा रहा?”
“ओह अम्मा! मैं तो तृप्त हो गई!”
“पिछली बार के जैसा तो नहीं था?” चिन्नम्मा ने पूछा।
अल्का ले लज्जा से लाल होते हुए ‘न’ में सर हिलाया।
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“पिछली बार?”
“हाँ यजमंट्टी, इनका पहली बार रहा होगा। बड़ी कठिनाई से अंदर गया था, और बस दो तीन बार में ही...”
“तुझसे कुछ नहीं छुपा है क्या लक्ष्मी?”
“अरे यजमंट्टी, मैं तो काम से अंदर आ रही थी, और ये दोनों आपस में इतना मगन थे कि इन्होने मुझे देखा ही नहीं तो इसमें मेरा क्या दोष है?”
“सही कह रही है! तेरा कोई दोष नहीं! भले ही पूरी की पूरी दुष्ट है तू, लेकिन तेरा कोई दोष नहीं!”
“हा हा! लेकिन इस बार लगता है कि देर तक चला दोनों का। सच सच कहना मोलूट्टी, तुझको आनंद तो आया न? अर्चित ने तुझे सुख तो दिया न?”
“बहुत आनंद आया चिन्नम्मा! सच में आत्मा तृप्त हो गई!”
“हम्म्म.. बहुत बढ़िया! मुझे अर्चित से यही आशा थी। पति का कर्त्तव्य है कि वो अपनी पत्नी को सभी प्रकार की संतुष्टि दे!” अम्मम्मा ने कहा, “अच्छा, अब मेरी एक बात ध्यान से सुन। तुम दोनों युवा हो; और तुम दोनों ने अब सम्भोग का फल भी खा लिया है। और प्रत्यक्ष है कि तुम दोनों को इसमें आनंद भी आया। इसका मतलब यह है कि अब तुम दोनों को आगे सम्भोग करने से रोक पाना बहुत कठिन है। तुम एक दूसरे को मन से अपना चुके हो, इसलिए मैं नहीं चाहती कि तुम दोनों छुप छुप कर यह काम करो। सम्भोग निर्बाध हो कर करना चाहिए, एकदम उन्मुक्त! बिना किसी डर के, बिना किसी रोक टोक के..”
अल्का कुछ बोलने को हुई तो अम्मम्मा ने उसको रोकते हुए कहा, “मेरी बात तो सुन ले पहले.. मैं पहले तो सोच रही थी कि अर्चित अपने काम का बोझ पूरी तरह से सम्हाल लेता, तब तुम दोनों के विवाह की बात मैं उसके अम्मा और अच्चन से करती। लेकिन मुझे अब लगता है कि उचित यही होगा कि तुम दोनों शीघ्र अतिशीघ्र विवाह के बंधन में बंध जाओ। इसका मतलब मुझे तेरी चेची से बात करनी पड़ेगी, और उसको यहाँ बुलाना पड़ेगा।”
“ओह अम्मा!” कह कर अल्का अम्मम्मा से लिपट गई, “मुझे बहुत डर लग रहा है..”
“डर तो तुझे इस राह चल निकलने से पहले लगना चाहिए था बच्चे। लेकिन अब जब तुम इस राह चल ही निकली हो, तो अब डरो मत! अर्चित का प्रेम तुम्हारे साथ है, और साथ में मैं भी तो अब तेरे साथ हूँ! है न, बच्चे!”
“ओह अम्मा! मेरी प्यारी अम्मा!”
“लेकिन यह मेरा कर्त्तव्य है कि मैं तुमको बता दूँ, कि मैं अपनी ओर से पूरा प्रयास करूँगी कि तुम दोनों के विवाह के लिए अर्चित के माँ बाप को मना लूँ। लेकिन यदि वो न माने, तो मेरे हाथ बंधे हुए हैं। और यदि वो मान गए, तो बाकी के समाज को मनाना कोई बहुत बड़ा काम नहीं!”
“अम्मा, आपने अभी तक जो कुछ भी किया है, वो भी तो कुछ कम नहीं! यह एक ऋण है, जिसको मैं उम्र भर चुका नहीं सकती।”
“अरे चल! माँ बाप का भी भला कोई ऋण होता है अपने बच्चों पर? मैं तो बस तुम दोनों की ख़ुशियाँ चाहती हूँ। बस - और कुछ भी नहीं।”
अल्का हर्षातिरेक में अम्मम्मा से लिपट जाती है।
“हाँ! मैं भी तुम दोनों की ख़ुशियाँ चाहती हूँ।” चिन्नम्मा ने कहा, “अब से तू अधिक से अधिक समय अर्चित के साथ व्यतीत कर। जब वो घर पर हो, तब तू उसके साथ रह। घर के काम की चिंता मत कर। उसके लिए मैं हूँ। तू बस अपने इस नए जीवन का आनंद उठा।”
“चिन्नम्मा!” कह कर अल्का ने लज्जा के मारे अपने चेहरे को अपनी हथेलियों से ढँक लिया।
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“लक्ष्मी, मेरी बच्ची को मत छेड़! उसको जीवन में पहली बार यह सुख मिला है, कम से कम उसको उन्मुक्त हो कर इस सुख का आनंद उठाने दे!”
अम्मम्मा की बात पर अल्का पुनः लज्जा से लाल हो गई।
“हाँ! इस सुख का आनंद तो उठाना ही चाहिए। ये दोनों ही अभी युवा हैं। जितना भी संभव हो, इनको पारस्परिक अंतरंगता का आनंद उठाना ही चाहिए। अच्छा, तनिक इधर तो आओ मोलूट्टी, मैं थोड़ा तुम्हारी जाँच कर लूँ।”
“क्या जाँच करेगी तू लक्ष्मी?”
“यजमंट्टी, अल्का की पूरु अर्चित के हिसाब से छोटी है। उम्र में उससे बड़ी है तो क्या हुआ?”
“अरे, पूरु भी कहीं छोटी होती है?”
“यजमंट्टी, इसके अभ्यंगम के समय मैंने कितनी बार देखा है। अंदर कनिष्ठा डालने में भी मुँह बनाने लगती है। और फिर उसके सामने अर्चित का वाळप्पनम जैसा कुन्ना!”
“अपनी बुरी नज़र मत डाल मेरे मरुमकन पर! अच्छा, पुष्ट लिंग है, लेकिन वैसा बड़ा नहीं है। हाँ, लेकिन धीरे धीरे और बढ़ जाएगा दो तीन वर्षों में!”
अल्का अपने और मेरे शरीर की बनावट की यूँ खुले-आम चर्चा होते हुए देख कर शरमा गई। लेकिन फिर भी वो चिन्नम्मा के पास गई। चिन्नम्मा ने ध्यान से अल्का के कोमल अंगों की जाँच करी।
“दर्द हुआ था?” उन्होंने पूछा।
अल्का ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“उसने जल्दबाज़ी तो नहीं करी?
अल्का ने ‘न’ में सर हिलाया।
“क्या किया उसने?”
“चिन्नम्मा!” अल्का ने शर्माते हुए अपना चेहरा ढँक लिया।
“अरे शरमा मत! मर्दों का क्या है? उनको तो छोटे आकार की योनि ही पसंद आती है, क्योंकि उनकी कसावट में मर्दों को अधिक आनंद मिलता है। परेशानी तो हमारी हो जाती है। बोल क्या क्या किया उसने?”
“उन्होंने पहले मुँह से… फिर अपनी उंगलियाँ डालीं, और फिर अपना कु …” कहते कहते अल्का रुक गई।
“क्या सच में? बढ़िया फिर तो! चिन्नू को अगली बार कहना कि थोड़ा और देर तक यही काम करे। दर्द कम होगा।”
“क्या क्या करते हैं आज कल के बच्चे! और लक्ष्मी, ये सब बातें कोई औरत अपने पति से कहती है क्या?”
“यजमंट्टी, औरत अपने पति से न कहे, तो फिर किस से कहे? मोलूट्टी, अपना अर्चित तुझसे उम्र में छोटा है। तेरा कहा मानेगा। तेरी इच्छा समझेगा। तू बस अपने मन की बातें उसको कहने बताने में संकोच न करना। ठीक है?”
अल्का ने लज्जा से मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“ठीक है! चल, मैं पानी गरम कर देती हूँ। उसमे नारियल तेल डाल कर कुछ देर सिंकाई कर ले। आराम मिलेगा।”
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अगले कुछ दिन अम्मा के आगमन की राह देखने में निकल गए। उनको केवल इतना ही बताया गया था कि अल्का के विवाह के लिए बहुत आवश्यक बात करनी है, और इसलिए वो और अच्चन यथाशीघ्र घर आ जाएँ। उनको हमारे सम्बन्ध के बारे में कुछ नहीं बताया गया था। यह समय हमने अपने बीच की अंतरंगता को बढ़ाने में व्यतीत किया। यह समय हमने एक दूसरे की पसंद और नापसंद जानने समझने, एक दूसरे के जीवन की कहानियाँ सुनने जैसे कामों में व्यतीत किया। दाम्पत्य के सुख के लिए यह सब जानना बहुत आवश्यक होता है। हमारी अंतरंगता शारीरिक नहीं, बल्कि आत्मिक थी। उन कुछ दिनों में हमारा प्रेम और प्रगाढ़ हो गया। और हमको यह दृढ़ विश्वास हो गया कि अब हमारे प्रेम की परिणति विवाह के बंधन में बंध जाने से ही होगी। साथ ही साथ हमको यह डर भी खाए जा रहा था कि अम्मा और अच्चन क्या सोचेंगे, और हमारे सम्बन्ध के बारे में जान कर कैसी प्रतिक्रिया देंगे। इसी उधेड़बुन में वह दिन आ गया जब अम्मा और अच्चन घर आए।
जैसी कि हमको अम्मा से उम्मीद थी, उनकी इस पूरे घटनाक्रम को लेकर प्रतिक्रिया बहुत ही नकारात्मक और विस्फोटक थी। अम्मम्मा, चिन्नम्मा, अल्का, और मैं - हम चारों लोग बहुत देर तक उनके कोप का भाजन बने रहे। वो हम पर दिल खोल कर कुपित हुईं - उन्होंने हम पर चिल्लाया, हमको बुरा (भला) बुरा कहा, हम सभी को चरित्रहीन बताया : अम्मम्मा को विच्छिप्त बुढ़िया; अल्का को चरित्रहीन, डायन, नागिन और कुतिया; मुझे महामूर्ख, निकम्मा और आवारा और भी न जाने क्या कुछ कहा! अम्मम्मा ने हम सभी को सख्त हिदायद दी हुई थी कि हम अम्मा से किसी भी तरह का विवाद नहीं करेंगे, उनसे कैसा भी प्रतिकार नहीं करेंगे, बस हम उनकी सारी बातें, सारी गालियाँ, सारी डाँट चुपचाप सुन लेंगे। उनका गुस्सा जायज़ है (वो अलग बात है कि उनके गुस्से की कोई बुनियाद नहीं है)। अपनी बात उनको सुनाने से पहले, उनका क्रोध कम होना आवश्यक है। तो हमने सब कुछ सुना, सब कुछ बर्दाश्त किया, और चुप रहे। मेरे पिता जी, अम्मा की अपेक्षा आश्चर्यजनक रूप में काफी शांत नज़र आए। मुझे पहले लग रहा था कि अम्मा नहीं, अच्चन अधिक बखेड़ा खड़ा करेंगे। लेकिन वैसा नहीं था। वो तो कुछ बाद में मुझे समझ में आया कि उनको इस विवाह-सम्बन्ध से होने वाले आर्थिक लाभ ने शांत कर के रखा हुआ था।
सामान्य गणित के हिसाब से, अम्मा का हमारी पैतृक संपत्ति में केवल पंद्रह बीस प्रतिशत की ही हिस्सेदारी बनती है, और उतनी ही अल्का की भी। एक छोटा सा हिस्सा (मुश्किल से कोई दस प्रतिशत) मेरा है, और शेष सब कुछ अम्मम्मा का है। इसका मतलब यह है कि यदि अल्का बहू बन कर हमारे घर आती है, तो हमारा सब कुछ, हमारी सारी संपत्ति एक ही घर में रह जाएगी - मतलब पिताजी के घर में! नानी वैसे भी अपना सब कुछ हमारे ही नाम लिखने वाली थीं। लेकिन सबसे बड़ी बात यह थी कि अल्का ने पिछले कुछ वर्षों में अपनी कमाई से काफ़ी सम्पत्ति जोड़ ली थी.. जाहिर सी बात है कि विवाह के बाद यह सब कुछ एक ही घर में एकीकृत हो जाएगा। कुल मिला कर यह एक अत्यंत लाभकारी सम्बन्ध प्रस्ताव था। और ऊपर से उनको मुझसे कोई ख़ास उम्मीद नहीं थी… उनकी दृष्टि में मैं महानिकम्मा था। वो तो यही सोचते थे कि मैं अपने जीवन में शायद ही कुछ कर पाऊँ... उस हालत में मुझे दहेज़ में कुछ ख़ास मिलना कितना मुश्किल रहेगा यह कुछ कहा नहीं जा सकता! इसलिए जो मिल रहा है, उनको वही बहुत अलग रहा था। और जो मिल रहा था वह किसी भी प्रकार से कम नहीं था।
इस समय हमारे पाठकों को यह बता देना आवश्यक है कि हमारी अधिकतर सामाजिक रीतियाँ दरअसल संपत्ति के समीकरणों के इर्द गिर्द बनाई गईं हैं। उनके पीछे मानवीय भावनाओं के संरक्षण कोई कारण, कोई तर्क नहीं है। दक्षिण भारत के कई समाजों में मामा - भांजी, और ममेरे भाई बहनों में विवाह सम्बन्ध बनाए जाते हैं। उसके पीछे का तर्क यह है कि घर की संपत्ति घर में ही रह जाती है, अन्यथा उसका बँटवारा हो जाता है। कहने का मतलब यह है कि धन-संपत्ति विवाह संबंधों के लिए एक बलवान प्रेरक है। संपत्ति के साथ साथ अच्चन ने यह भी सोचा होगा कि मुझे बैठे बिठाए रोज़गार भी मिल जाएगा... एक तो न जाने कैसे ठेल ठेल कर मुझे अभियांत्रिकी की पढ़ाई के लिए दाखिला दिलवाना पड़ता, फिर उसकी पढ़ाई करने में न जाने कितना खर्च आता; और सबसे बड़ी बात यह थी कि मुझे उस विषय में कोई रुचि भी नहीं थी... यह तो खड़ी मजूरी चोखा दाम वाली कहावत सिद्ध हो गई थी। उनकी गणित के हिसाब से यह सर्वोत्तम सम्बन्ध था। ऊपर से वर वधू एक दूसरे से प्रेम भी करते हैं... इतना सब होने पर इस सम्बन्ध को अस्वीकार करने जैसा कुछ भी नहीं था... इसलिए अच्चन ने हमको कुछ नहीं कहा। लेकिन उन्होंने क्रोधित अम्मा को हमको गालियाँ देने से रोका भी नहीं। संभवतः वो सही समय के आने का इंतज़ार कर रहे थे।
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