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17-07-2021, 03:02 PM
(This post was last modified: 17-07-2021, 05:03 PM by usaiha2. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
मंगलसूत्र
लेखक : avsji
अंजलि जी ने ये कहानी xossip पर लिखी थी.............. मेरी पसंदीदा कहानियों में से है... मित्रों, इस कहानी में लेखक ने एक 'सामाजिक प्रयोग' (social experiment) भी किया।
हाँलाकि मेरे हिसाब से यह एक प्रेम कथा है, लेकिन लेखकने इस कहानी को incest की category में डाला।
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बात थोड़ी पुरानी है, लेकिन उससे कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ता है। यह एक taboo विषय है। मेरे बहुत से दक्षिण भारतीय मित्र हैं। दो मित्र अपनी चचेरी बहनों से ब्याहे हैं। वहां इस सम्बन्ध को सामाजिक मान्यता है। मामा और भांजी का भी वैवाहिक सम्बन्ध मान्य है। उत्तर भारत में भी यह होते हुए देखा मैंने।
बस एक हैं, हमारे पिता जी के मित्र, जिन्होंने अपनी मौसी से शादी करी थी। उनके घर में इस सम्बन्ध को ले कर क्या वितंडावाद हुआ, वो पिता जी कभी कभी बताते हैं। घर से निकाला और न जाने क्या क्या।
कहने का मतलब यह कि एकाध अपवाद हैं समाज में!
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बात थोड़ी पुरानी है, लेकिन उससे कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ता है।
मैं और मेरा परिवार मूलतः केरल राज्य से हैं। वो अलग बात है कि मेरा जन्म और मेरी परवरिश उत्तरी-भारत में हुई। फिर भी वंशावली के नाते, केरल से मेरे सम्बन्ध सदैव रहे।
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केरल को भारत में 'देवों के देश' के नाम से जाना जाता है। उसके कई सारे कारण हो सकते हैं - एक तो यह कि केरल प्राकृतिक रूप से एक अत्यंत सुन्दर भूमि है - हमारे लाख दुष्प्रयत्नों के बाद भी यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता अभी भी लगभग वैसी ही है जैसी की लगभग एक सहस्त्र वर्ष पहले रही होगी। सहस्त्रों वर्षों से विभिन्न मानव जातियाँ केरल आती रहीं, और मिलती रहीं। द्रविड़, सीरिआई, आर्य, अरबी और ऐसी ही कई प्रकार की मानव जातियाँ यहाँ आईं और मिलती रहीं। और इसी मिश्रित परम्पराओं से उपजी है केरल की अत्यंत संपन्न संस्कृति!
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खैर, भावनाओं की रौ में बहने से पहले मैं अब कुछ अपने और अपने परिवार के बारे में बता देता हूँ। मेरे परिवार में बस हम तीन लोग ही हैं। मैं, मेरी माँ और मेरे पिता।
मेरे पिता, मेरी माँ से करीब दस साल बड़े हैं – उनका विवाह कोई प्रेम विवाह नहीं था, बल्कि उनके माता-पिता द्वारा तय किया हुआ विवाह था। उन दिनों लड़कियों की शादी बहुत जल्दी हो जाती थी।
उस लिहाज़ से माँ का विवाह होने में कुछ देर हो गई। उसी जल्दबाज़ी में जो भी पहला, बढ़िया वर मिल पाया, उसी से माँ को ब्याह दिया गया। उन दोनों के विवाह का एक ही कारण था, और वो था मेरे पिता की सरकारी नौकरी!
वो अलग बात है कि बाद में मालूम पड़ा कि वो एक अच्छे इंसान भी हैं। विवाह के बाद उन्होंने माँ को काफी प्रोत्साहन दिया, जिसके कारण उन्होंने मुझे जन्म देने के बाद स्वयं भी नौकरी करना आरम्भ कर दिया। आगे की पढ़ाई नहीं करी लेकिन एक बैंक में माँ क्लर्क का काम करती थीं। पिता जी तब तक सिंचाई विभाग में अधिवीक्षक बन गए थे। उन दोनों की ही नौकरियाँ उत्तर-भारत में थीं। और सरकारी नौकरी होने के बावजूद उनका ज्यादातर समय अपने अपने कार्य में ही बीतता था।
मैं बचपन से ही काफी जीवंत था। मेरा पूरा समय इधर उधर भागने दौड़ने, और खेलने में ही बीत जाता था। और मेरी ऊर्जा का मुकाबला न तो मेरे पिता ही कर पाते थे, और न ही मेरी माता। समय से बहुत पहले ही बूढ़े हो गए थे दोनों। मेरे जन्म के समय माँ के शरीर में कुछ जटिलता उत्पन्न हो गई थी, इसलिए उनको और संताने नहीं हो सकीं - अन्यथा उन दिनों सिर्फ एक संतान का चलन नहीं था। बच्चों की एक पूरी लड़ी लग जाती थी। खैर, काम के बोझ से मेरे माता पिता दोनों ही थके हुए और चिड़चिड़े से रहते थे। इसलिए मेरे साथ बहुत समय नहीं बिता पाते थे। और फिर जैसे जैसे मेरी उम्र बढ़ी, वैसे वैसे हमारे बीच दूरियाँ बढ़ती गईं। ऐसा नहीं है कि मैं उनका आदर नहीं करता था, या फिर वो मुझसे प्रेम नहीं करते थे।
मैं उनका आदर भी करता था, और वो मुझसे प्रेम भी करते थे। बस हमारे बीच में यह दिक्कत थी कि हम एक दूसरे से अपनी भावनाएं खुल कर नहीं कह पाते थे। इन सब बातों का मुझ पर असर यह हुआ कि मैं अपने शुरूआती जीवन के बाद, बहुत जल्दी ही आत्म-निर्भर हो गया। अपना सब काम, और घर के कुछ काम मैं कर लेता था। इस कारण से आज़ाद ख़याली भी काफ़ी हो गई थी, और उसके कारण मेरी सोच भी भेड़-चाल से भिन्न विकसित होती गई। पढ़ाई लिखाई में मैं साधारण ही था। न तेज़, न फिसड्डी। कुछ एक बार एकाध विषयों में फ़ेल होते होते बचा था। लेकिन पूरा फ़ेल कभी नहीं!
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हमको जब कभी भी उनको छुट्टियां मिलती थी, तो वो समय हम अपने तय स्थान केरल जा कर मनाते थे। केरल में मेरे नाना-नानी और मौसी रहते थे। नाना-नानी की कई संतानें हुईं : माँ के बाद 4 और, फिर अम्माई (मौसी), फिर एक और। लेकिन अधिकतर बच्चों की मृत्यु हो गई थी - कोई मृत पैदा हुए, तो कोई जन्म के कुछ दिनों में मर गए। केवल मेरी माँ और मौसी ही जीवित बच सके।
लिहाज़ा, माँ और मौसी के बीच उम्र का लम्बा चौड़ा अंतर था। मेरी मौसी अल्का मुझसे कोई 05 साल बड़ी रही होंगी। उनका नाम उनके घने घुंघराले बालों के कारण ही पड़ा था। सच तो यह है कि मैं केरल जाने की राह अक्सर ही देखता रहता था - और उसका कारण थीं मेरी मौसी अल्का।
उनके लिए मेरे मन में गंभीर प्रेमासक्ति थी। मेरे कहने का यह मतलब कतई नहीं है की मेरे मन में उनको लेकर किसी प्रकार की कामुक फंतासी थी। मैं बस यह कहना चाहता हूँ कि मेरे मन में इनके लिए एक प्रबल और स्मरणीय स्नेह था। और उनके मन में मेरे लिए! उनसे एक अलग ही तरह का लगाव था मुझे। माँ के ख़ानदान में मैं एकलौता पुरुष संतान बचा हुआ था। उस कारण से भी मुझे काफी तवज्जो मिलती थी। लेकिन मौसी और मेरा एक अलग ही तारतम्य था।
माँ कभी कभी मुझे कहती भी थी: “अल्का तुमको बहुत प्यार करती है। उसके लिए तुम दुनिया के सबसे प्यारे बच्चे हो! और हो भी क्यों न? तुम भी तो उसके सामने एक सीधे सादे बच्चे बन जाते थे!”
यह बात सच भी थी - उनके साथ अपनी छुट्टियों का एक एक पल बिताना भी मुझे अच्छा लगता था। उनके आस पास रहने से मेरी अतिसक्रियता अचानक ही कम हो जाती थी। वो मुझे पुस्तक से पढ़ कर कोई कहानी सुनातीं, तो मैं चुपचाप बैठ कर सुन लेता। वो जो भी कहतीं, मैं बिना किसी प्रतिवाद के कर देता।
अल्का मौसी बदले में मेरे साथ विनोदप्रियता, बुद्धिमत्ता और प्रेम से व्यवहार करती थीं। न तो वो कभी मुझसे ऊंची आवाज़ में बात करती थीं, और न ही कभी मेरी मार पिटाई। और प्रेम तो इतना करतीं कि बस पूछिए मत! दुनिया में वो मेरी सबसे पसंदीदा व्यक्ति थीं।
जब तक मैं छोटा था, तब तक प्रत्येक वर्ष हम दो बार केरल अवश्य जाते थे। लेकिन मेरे बड़े होने के साथ साथ माता-पिता की जिम्मेदारियां भी बढ़ने लगीं और मेरी पढ़ाई का बोझ भी।
नाना जी की मृत्यु (तब मैं ग्यारह-बारह साल का रहा होऊंगा!) के समय हम सभी दो बार साथ में गए, और उसके बाद केरल जाना कम होता गया। नाना जी की बहुत बड़ी खेती थी, और उसको सम्हालने का कार्य अब मौसी के सर था। आश्चर्य की बात है की ऐसा सश्रम कार्य मौसी बखूबी और कुशलता से निभा रही थीं।
मेरी नानी अब करीब पैंसठ साल की हो चुकीं थीं, और अब उनकी सभी इन्द्रियां शिथिल पड़ गईं थीं। उनको अब ठीक से दिखाई, और सुनाई नहीं देता था। सात बच्चे हो जाने कारण उनके शरीर में ऐसे ही कमज़ोरी आ गई थी। उनके हाथ कांपते थे; गठिया और मृदुलास्थि के कारण ठीक से चल भी नहीं पाती थीं। उनकी देखभाल और खेती के कार्य के बढ़ते बोझ के कारण मौसी ने विवाह करने से भी मना कर दिया था। उनका कहना था कि यह दो जिम्मेदारियां उनके लिए बहुत हैं! ज्ञात रहे, कि उन दिनों अगर कोई लड़की 25 साल की हो जाए, और अविवाहित हो, तो केरल के ग्रामीण परिद्रेश्य में वो विवाह योग्य नहीं रहती। वैसे तो कुछेक लोग अभी भी उनके लिए विवाह प्रस्ताव लाते थे, लेकिन उनकी दृष्टि सिर्फ मौसी की धन-सम्पदा पर ही थी। इसलिए उनके विवाह की कोई भी सम्भावना अब लगभग नगण्य थी।
लेकिन मेरे मन में एक अबूझ सी बात अक्सर आती। मैं जब भी अलका मौसी के बारे में सोचता, या फिर जब भी उनको देखता, तो मुझे लगता कि हो न हो - उन्ही के जैसी कोई लड़की मेरे लिए ठीक है... हर प्रकार से! जिस प्रकार से वो विभिन्न जिम्मेदारियों को निभाती हैं, वो एक तरह से बहुत ही आकर्षक, रोचक और एक तरह से दिलासा देने वाला भाव उत्पन्न करता है। उन के जैसी मृदुभाषी, कर्मठ, विभिन्न कलाओं में दक्ष, समाज में आदरणीय लड़की कौन नहीं चाहेगा! लेकिन देखिए - कोई नहीं चाहता। ख़ैर...
उनकी देखा-देखी मुझे भी मन होता था कि मैं भी खेती करूँ। आज कल कृषि एक कर्मनाशा व्यवसाय हो गया है, लेकिन मानव-जाति की असंख्य पीढ़ियाँ यही व्यवसाय कर के उन्नति कर सकीं। इसलिए बड़े होते होते मैंने भी यह ठान लिया था कि कृषि क्षेत्र में ही स्नातक की पढ़ाई कर खेती का व्यवसाय करुंगा। इस हेतु मैंने दुनिया भर में कृषि क्षेत्र में चल रहे वैज्ञानिक उन्नति के बारे में पढ़ना और समझना शुरू कर दिया था, और जल्दी ही मेरे मस्तिष्क में कृषि के आधुनिकीकरण को लेकर कई सारे विचार और प्रयोग उत्पन्न हो गए।
लेकिन, मेरे इस निर्णय से मेरे माता पिता सबसे अधिक चिंतित रहते थे - उनको लगता था की यह बहुत बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय नहीं था, और नौकरी करना ही श्रेयस्कर था। उन दोनों ने मुझे मनाने की बहुत कोशिश करी, लेकिन मेरे तर्क के सामने बेबस हो गए। खैर, मेरे बारहवीं करते करते उन्होंने मुझे एक साल का अवसर दिया कि मैं अपनी सोच और प्रयोग केरल में हमारी खेती पर सफलतापूर्वक आज़मा सका तो वो मुझे इसी क्षेत्र में जाने देंगे, अन्यथा मुझे उनकी बात माननी पड़ेगी और नौकरी करनी पड़ेगी। मेरे पास उनकी बात मानने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं था।
अल्का मौसी ने मेरे निर्णय पर मेरे सामने तो ख़ुशी ज़ाहिर करी, लेकिन मेरे माता-पिता के सामने नहीं। दरअसल, बिना मेरे माता पिता को बताए, वो मेरे सुझावों को हमारी खेती में पिछले तीन चार साल से इस्तेमाल कर रहीं थी, और इसके कारण खेती में पहले ही बहुत उन्नति हो चुकी थी। मेरा केरल जाना कम हो गया था, लेकिन फ़ोन और डाक के जरिए मौसी और मेरी बात-चीत चलती रहती थी।
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मेरे सुझावों के कारण, पिछले इन तीन वर्षों में हमारी कृषि आय प्रतिवर्ष औसतन कोई बीस प्रतिशत बढ़ी। यह एक बड़ी बात थी। मौसी अगर यह बात मेरे माता पिता को बता देतीं, तो उनके सामने मेरी बात मानने का कोई चारा न रहता! लेकिन मेरे ही आग्रह के कारण उन्होंने यह रहस्य मेरे माता-पिता के सामने नहीं खोला।
खैर, केरल जाने से पूर्व मुझे उनसे एक बार पुनः एक लम्बा चौड़ा भाषण सुनना पड़ा और अंततः मैं केरल के लिए रवाना हो गया। पहले साल में सिर्फ एक दो बार ही वहाँ जाता था, और वो भी बस एक एक सप्ताह के लिए, लेकिन इस बार पूरे एक साल के लिए जा रहा था, और वो भी अपने सपने को साकार करने के लिए। अपना भविष्य बनाने! मैं बहुत खुश था!
तब उत्तर भारत से केरल तक जाने में काफी अधिक समय लग जाता था। एक ट्रैन थी, जो कि करीब ढाई दिन लेती थी एर्नाकुलम तक पहुँचने में। फिर वहाँ से बस, और फिर बैलगाड़ी ले कर करीब तीन दिन की एक लम्बी यात्रा के बाद मैं शाम को अपने ननिहाल पहुंचा।
##
“अम्माई (मौसी)!” मैंने जैसे ही अल्का मौसी को दरवाज़े पर देखा, मेरे चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान फ़ैल गई। मौसी का चेहरा पहले से ही ख़ुशी में सौ वाट के बल्ब जैसा चमक रहा था।
“चिन्नू!!”
मेरा नाम वैसे तो अर्चित है, लेकिन मौसी मुझे चिन्नू ही कहती हैं। वो मुझसे मिलने के लिए दौड़ती हुई मेरे पास आईं। उनके पास आकर मैं उनके पैर छूने के लिए झुका तो उन्होंने मुझे बीच में ही रोक लिया और अपने गले से लगा लिया।
“इतने दिनों के बाद आए! मेरी याद नहीं आती?” मौसी ने लाड़ से शिकायत करी।
“आती क्यों नहीं! बहुत आती है। लेकिन अम्मा और अच्चन पढ़ाई के बहाने से मुझे आने ही नहीं दिए। अब आया हूँ - इस बार तो कम से कम पूरे साल भर रहूँगा! और अगर किस्मत तेज रही, तो हमेशा!”
उनके गले लग कर मुझे महसूस हुआ, कि वाकई उनकी कितनी कमी महसूस होती रही है मुझे। मैंने उसी आवेश में उनको और ज़ोर से गले लगा लिया, और उनके गाल को चूम लिया। मौसी मुस्कुराई। और मुझे कंधे से पकड़े हुए ही एक दो कदम पीछे हट कर मुझे देखने लगी।
“तुम तो कितने बड़े हो गए!! मुझसे भी ऊंचे!”
“हा हा हा!”
“और सिर्फ ऊंचे ही नहीं,” उन्होंने मेरी भुजाओं को महसूस करते हुए कहना जारी रखा, “मज़बूत भी!”
“एक्सरसाइज करता हूँ न!” मैंने इम्प्रैशन झाड़ा!
“हाँ! तभी तो! वरना वहाँ का खाना पीना तो यहाँ के जैसा थोड़े ही है!” वो मुझे ऐसे देख रही थीं, जैसे मेरे पूरे शरीर का अनुपात पता लगा लेंगी...
“पिछली बार जब तुम आए थे तो कैसे दुबले पतले थे.… लेकिन अभी देखो! पूरे नौजवान बन गए हो! और हैंडसम भी!” उन्होंने आँख मारते हुए कहा।
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“क्या अम्माई!” मैंने झेंप गया, लेकिन मैंने भी उनकी खिंचाई करी, “वैसे, तुम भी कुछ कम नहीं लग रही हो।”
“हा हा! हाँ, यहाँ की धूप, धूल-मिट्टी, और गर्मी मुझे बहुत रास आ रही है! चल अंदर आ!”
मौसी अपने साँवले रंग की तरफ इशारा कर रही थीं, लेकिन मेरा इशारा उनकी गढ़न की तरफ था। कम से कम उनके सीने पहले से अधिक विकसित हो गए थे। जब आखिरी बार उनको देखा था, तो वो पतली दुबली, सुकुड़ी सी लड़की थीं। लेकिन शायद उम्र के एक पड़ाव के बाद स्त्रियों का शरीर भरने लगता है। मौसी में यह परिवर्तन देर से ही सही, लेकिन हो रहे थे। जब मैं बहुत छोटा था, तब तो मौसी भी छोटी ही थीं। उस समय मुझे हम दोनों को हमारी उम्र में वाकई कोई अंतर नहीं लगता था। क्योंकि वो मुझसे मौसी के जैसे कम और दोस्त के जैसे अधिक बर्ताव करती थीं। छुटपन में हमारे लिए एक दूसरे के सामने यूँ ही नंगे घूमना, और वैसे ही साथ में खेलना एक आम बात थी। लेकिन धीरे धीरे हमारे शरीरों में परिवर्तन होने लगे। छोटा लड़का होने के नाते मेरे शरीर में परिवर्तन धीरे हो रहा था, लेकिन मेरी हर केरल यात्रा के दौरान मैं अलका मौसी के शरीर में जो अंतर देखता था, वो मुझे बहुत रोचक जान पड़ता।
लेकिन पिछले तीन चार वर्षों में उनका जैसे कायाकल्प हो गया था! यौवन ने जैसे जीवन के स्त्रोत से रस सोख लिया था। मौसी का रूप हर बार मुझे और निखरा हुआ लगता था... मुझे ही नहीं, बल्कि हम सभी को! उनका चेहरा कई मायनों में बदल गया था... ऐसे नहीं की उनकी शक्ल ही बदल गई हो, बस वो छोटे छोटे, लगभग अपरिभाष्य तरीके से आते हैं, वो! उनके चेहरे पर से धीरे-धीरे बालपन की सुंदरता की जगह, यौवन के लावण्य ने ले ली थी। उनके होंठ अब और अधिक रसीले हो गए थे, उनकी मुस्कान पहले से भी प्यारी और आकर्षक हो गई थी। मौसी जब छोटी थीं, तो साफ रंग की थीं, लेकिन खेत पर काम के कारण अब उनके रंग में सांवलापन बैठ गया था। लेकिन मैंने एक बात ध्यान दी कि वो काफी सुन्दर लगती हैं। अगर कैराली मर्द रंग के पर्दे के परे देख सकते तो समझते!
मेरे सामने वो बहुत पहले से ही नग्न होना बंद कर चुकी थी - लेकिन ऐसा नहीं था कि उन्होंने मुझे अपने नवोदित स्तनों को छूने या महसूस करने से रोका हो। हमारी हर केरल यात्रा में किसी न किसी बहाने से मैं उनके स्तनों को छूता या टटोलता ज़रूर था, और उनको यह बात भली भांति मालूम भी थी। और सबसे अच्छी बात यह, कि वो मुझे रोकती भी नहीं थीं। वो अलग बात है कि पिछले दो बार से मैंने ऐसी कोई चेष्टा नहीं करी। लेकिन मैं हर बार उनके आकार बदलते स्तनों को एक नया नाम देता - कभी चेरुनारेंगा (नींबू), तो कभी सातुकुड़ी (संतरा)! वो भी मेरे मज़ाक का बुरा नहीं मानती थीं - बल्कि मेरे साथ खुद भी इस बात पर हंसती थीं।
घर में आ कर मैंने नानी के पैर छू कर उनसे आशीर्वाद लिया। हमारी बहुत पुरानी वित्तुवेल्लक्कारी (आया... नौकरानी नहीं) चिन्नम्मा भी थीं। मैंने उनके भी पैर छू कर आशीर्वाद लिए। चिन्नम्मा अब इस घर का अभिन्न हिस्सा थीं। उनके बिना घर का काम आगे नहीं बढ़ सकता था। हाँलाकि उनका घर लगभग दस मिनट की दूरी पर था, लेकिन दिन का ज्यादातर समय उनका नानी की और घर की देखभाल में बीतता था। सभी से हाल चाल लेने के बाद, स्नान कर के मैं भोजन करने को बैठा। मौसी मेरे स्वागत के लिए उस दिन, और अगले पूरे दिन घर पर ही रहीं। उनसे पूरे तीन साल बाद मिला था। वो जम कर मेरी आवभगत करना चाहती थीं। आज करीमीन पोळीचट्टु, एराची उल्लरथीयद्दु, अप्पम, चावल, और पायसम पकाया गया था। वैसे भी उत्तर भारत में इस प्रकार के व्यंजन उपलब्ध नहीं हो पाते। तो मैंने डट कर खाया। वैसे भी रास्ते भर ठीक से खाना नहीं हो सका। गाँव में बिजली की व्यवस्था नहीं थी। इसलिए दिन जल्दी ही समाप्त हो जाते थे उन दिनों।
नाना का घर बड़ा था, लेकिन आज कल घर का ज्यादातर हिस्सा एक तरह का गोदाम बन गया था। उपज अधिक होने के कारण बाकी सारे कमरों को कोठरी के जैसे ही इस्तेमाल किया जा रहा था। इसलिए अब सिर्फ दो ही कमरे खुले हुए थे। एक कमरे में तो नानी रहती थीं, दूसरे में मौसी। इसलिए अब मेरे पास बस दो ही विकल्प थे - एक तो घर के बाहर सोना या रहना या फिर मौसी के साथ! लेकिन बाहर सोने की आदत अब ख़त्म हो गई थी। मच्छर और अन्य कीड़े मकोड़ों का डर भी था। जब तक अभ्यस्थ न हो जाएँ नए परिवेश में, तब तक बार सोने का जोखिम लेना मूर्खतापूर्ण काम था। इतने वर्षों तक अकेले सोने के बाद मेरी किसी के संग सोने की आदत नहीं थी। खासतौर पर किसी लड़की के साथ! सतही तौर पर मैंने थोड़ी बहुत शिकायत तो करी, लेकिन फिर भी मौसी जैसी सुन्दर लड़की के साथ ‘सोने’ के अवसर पर मेरा मन प्रफुल्लित भी था। भई, अब मैं भी जवान हो गया था, और इस उम्र में लड़की का साथ बुरा तो नहीं लगता। वो अलग बात थी कि नानी की दृष्टि में मैं अभी भी छोटा बच्चा ही था।
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माँ ने जाने से पूर्व मुझे कई सारे सामान दिए थे, मौसी, नानी, चिन्नम्मा और गाँव के अन्य ख़ास लोगों के लिए उपहार स्वरुप! शाम को मुझसे मिलने के लिए परिवार के कुछ अभिन्न मित्र आए हुए थे। उनसे मैंने कुछ देर बात करी, और उनको उनके हिस्से के उपहार सौंप दिए। छोटे से समाज में रहने के बड़े लाभ है – जैसे की अभी की बात देख लीजिए। जो लोग मिलने आए, वो लोग कुछ न कुछ साथ में लाए भी। कुछ लोग रात के खाने के लिए व्यंजन भी साथ ले आए थे। इसलिए घर में उस रात अधिक कुछ पकाना नहीं पड़ा।
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खैर, जब हम रात को कमरे में आए, तो मौसी ने कहा कि अब मैं उनको अम्माई न कहा करूँ... सिर्फ अल्का कहा करूँ! एक तो अम्माई बहुत ही औपचारिक शब्द है, और अगर हम दोनों कहीं साथ में जा रहे हों, और मैंने उनको ‘मौसी’ कह कर बुलाया तो लोग समझेंगे कि कोई बुढ़िया जा रही है... और ऊपर से अगर हम दोनों साथ में सोने वाले हैं तो एक दूसरे का नाम ले कर बुलाने में कोई हर्ज़ नहीं है। यह बात कहते हुए वो हलके से मुस्कुरा भी रही थीं, और उनका चेहरा शर्म से कुछ कुछ लाल भी होता जा रहा था। मुझे थोड़ी हिचकिचाहट सी हुई। ऐसे कैसे अम्माई से अलका बोलने लग जाऊँगा। खैर, अंत में निश्चित हुआ कि शुरुआत में जब हम अकेले हों, तब तो मैं उनको अलका कह कर बुला सकता हूँ।
फिर मैंने अलका के लिए अम्मा ने जो सामान दिया था, वो उनको दिखा दिया। अधिकतर तो बस कपड़े लत्ते ही थे। अम्मा ने बनारसी साड़ी भेजी थी ख़ास। अलका को बहुत पसंद आई। मैंने भी मौसी के लिए अपनी जेब-खर्च से बचा बचा कर एक ‘छोटा सा’ उपहार खरीद लिया था। निक्कर और टी-शर्ट! अम्मा और अच्चन की नज़र से छुपा कर! वो लोग देख लेते तो बहुत नाराज़ होते। ऐसे कपड़े तो अभी दिल्ली की ही लड़कियाँ नहीं पहनती थीं। लेकिन मैंने एक मैगज़ीन में लड़कियों को यह पहने देखा था। इसलिए अपनी कल्पना से मौसी की नाप सोच कर उनके लिए खरीद लिया था। इस चक्कर में मेरा सब संचित धन ख़र्च हो गया था। लेकिन उसकी परवाह नहीं थी। परवाह बस इस बात की थी कि मौसी को यह उपहार पसंद आना चाहिए, और उन्हें स्वीकार होना चाहिए। लेकिन समझ नहीं आ रहा था की वो उनको कैसे दूँ! हम दोनों दोस्त भी थे, लेकिन सम्बन्ध की मर्यादा भी तो थी! हाँलाकि उनके इस खुलेपन के कारण मुझे भी कुछ कुछ हिम्मत आई। मैंने मौसी को उनका ‘उपहार’ दिखाया। वो उस छोटी सी निक्कर को देख कर पहले तो काफी हैरान हुईं, लेकिन फिर हलके से मुस्कुराईं भी!
“मैं इसको कब पहनूंगी? और तुमको कैसे लगा कि मैं ऐसे कपड़े पहन लूंगी?” उन्होंने मुझे छेड़ते हुए कहा।
“व्व्व्वो म्म्म्म्मौसी...”
“मौसी नहीं... अल्का कहो! याद है न?”
“ह्ह्ह्हान् अल्का... वो मैंने सोचा की यहाँ तो ऐसे कपड़े मिलते नहीं। इसलिए ले आया। सोचा की आपको अच्छा लगेगा।”
“यहाँ ये कपड़े नहीं मिलते क्योंकि यहाँ कोई ऐसे कपड़े नहीं पहनता। समझे चिन्नू!”
“त त तो? मतलब आप इसे नहीं पहनेंगी?”
“मैंने ऐसे कब कहा? मैंने तो बस इतना कहा कि मैं इसे कब पहनूंगी!”
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17-07-2021, 05:13 PM
(This post was last modified: 17-07-2021, 05:16 PM by usaiha2. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
अल्का मुझे छेड़ रही थीं, यह बात मुझे समझ में आ गई। मैंने कुछ हिम्मत दिखाई।
“क्यों? अभी पहन लीजिए?”
“अभी? तुम्हारे सामने?” अल्का का नाटक जारी था।
“हाँ!”
“चिन्नू जी, क्या चल रहा है दिमाग में?”
“अल्का, आज इसी को पहन कर सो जाओ न!” अब मैं भी काफी हिम्मत दिखा रहा था।
“पहन का सो जाओ? मतलब नाईट ड्रेस?”
“हाँ! अगर इसको दिन में नहीं सकती, तो रात में ही पहनो!”
अल्का कुछ देर तक सोच में पड़ी रही, और फिर दोनों कपड़े ले कर कमरे से बाहर निकल गई। कोई दो तीन मिनट बाद ही वो कमरे में वापस आई। वो कमरे में आ कर दरवाज़े के सामने कुछ देर के लिए खड़ी हो गई - जैसे वो स्वयं को मुझे दिखा रही हो और पूछ रही हो, ‘बताओ, कैसी लग रही हूँ?’
मैंने यह दोनों ही कपड़े अपने अंदाजे से खरीदे थे - मेरे दिमाग में दो साल पुरानी अल्का की ही छवि थी। लेकिन अभी की अल्का शारीरिक तौर पर और परिपक्व हो गई थी। इस कारण से जो कपड़े मेरे ख्याल से अल्का के नाप के थे, अभी काफी कसे हुए लग रहे थे, और उसकी देहयष्टि साफ़ दिखा रहे थे। अल्का का शरीर गांधार प्रतिमाओं जैसा था - नपा तुला शरीर, सुडौल ग्रीवा, छाती पर शानदार स्तनों की जोड़ी जो सामने की तरफ अभिमान से उठे हुए थे, क्षीण बल-खाती कमर, और उसके नीचे सौम्य उभार लिए हुए परिपक्व नितम्ब!
अलका ने टी-शर्ट के अंदर किसी भी प्रकार का अधोवस्त्र (ब्रा) नहीं पहना हुआ था, और इस अनुभव से वह भी काफी रोमांचित दिख रही थी। उसके स्तनों के दोनों चूचक और उसके आसपास का करीब दो इंच का गोलाकार हिस्सा टी-शर्ट के होशरी कपड़े को सामने की तरफ ताने हुए थे। इस उम्र तक लड़के लड़कियों को एक दूसरे के शरीर के बारे में ज्ञान तो हो ही जाता है, और मैं भी कोई अपवाद नहीं था। एक नई नई मैगज़ीन आई थी मार्किट में। डेबोनेयर! कहीं से, किसी तरह पैसे जुगाड़ कर हमने एक दो मैगज़ीन खरीदी थीं। पहली बार हिंदुस्तानी लड़कियों को उनके नग्न रूप में देखा था। वैसे तो मैं नग्न लड़कियों की तस्वीरों का विदेशी मैगज़ीनों में कई बार आस्वादन कर चुका था, और मुझे यह तो अच्छे से पता था की लड़कियों के शरीर में कहाँ पर क्या क्या होता है, लेकिन हिंदुस्तानी लड़कियाँ पहली बार डेबोनेयर में ही दिखीं। लेकिन चित्र में देखना और वास्तविकता में देखना दो अलग बातें हैं।
अलका का पेट पूरी तरह सपाट तो नहीं था - उसमें एक सौम्य उभार था, जो कि नीचे की तरफ जाते जाते और जाँघों के जोड़ तक पहुँचते पहुँचते एक प्रकार की गहराई में परिवर्तित होता जा रहा था। इतना तो मुझे मालूम था कि यही हिस्सा अल्का की योनि है, लेकिन मैं उसके बारे में सिर्फ अंदाज़ा लगा सकता था। निक्कर से बाहर उसकी दोनों टाँगे शरीर के अन्य हिस्सों के मुकाबले गोरी थीं और काफी सुडौल थीं। जाँघों, घुटनों और पिण्डलियों की माँस-पेशियाँ काफ़ी उभरी हुई थीं। बाहुबली फिल्म की देवसेना याद है (हेरोइन का नाम है अनुष्का शैट्टी)?
अरे, याद कैसे नहीं होगी? बस ये समझ लीजिये कि बिलकुल वैसा का शरीर, नाक-नक्श और उम्र! बस, अल्का उसके मुकाबले सांवली थी।
आज पहली बार मैंने एक बला जैसी सुन्दर लड़की देखी थी!
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“तो?” आखिरकार अल्का ने ही चुप्पी तोड़ी।
मेरी तो जैसे तन्द्रा टूटी! मैं हैरानी से उसको देख रहा था।
“चिन्नू बाबू... कभी लड़की नहीं देखी क्या?” वो मुस्कुराते हुए कह रही थी - वो हल्का फुल्का मज़ाक तो कर रही थी, लेकिन खुद भी कुछ घबराई हुई थी।
“देखी तो है... लेकिन आप जैसी सुन्दर नहीं!”
“हम्म्... अच्छा है फिर तो! ‘मेरे जैसी’ सुन्दर लड़की के साथ सोने का मौका मिलेगा!” कहते हुए वो बिस्तर में मेरे पास आ गई, और आते ही उसने खुद को चद्दर से ढक लिया। मौसम गर्म था, और अब हम दोनों भी! और ऐसे में चद्दर ओढ़ना! यह तो तय बात थी कि वो अपने स्तंभित मुलाक्कन्ना (चूचकों) को ढकना चाहती थी।
“यह निक्कर बहुत कसी हुई है....” कह कर उसने निक्कर के बटन खोल दिए। आवाज़ और उसके हाथ की हरकतों से मुझे इतना तो मालूम हो गया। माहौल बहुत ही भारी हो गया था। हम दोनों ने बहुत देर तक कुछ भी बात नहीं करी।
“और ये टी शर्ट भी!” उन्होंने चुप्पी तोड़ी।
मैं क्या कहता! वो तो लग ही रहा था कि टी शर्ट बहुत कसी हुई थी।
“मेरा साइज़ लगता है कि थर्टी फोर हो गया है!” उन्होंने ऐसे कहा जैसे कि ऐसे ही कोई आम बात कह रही हों।
“मुलाक्कल (स्तनों) का?” मेरे मुंह से अनायास ही निकल गया।
“हाँ!”
“सातुकुड़ी अब पृयूर बन गए ... हा हा!” मैंने मज़ाक में कहा।
पृयूर दरअसल एक बहुत ही उत्कृष्ट नस्ल का आम होता है जो केरल में होता है। इसके फ़ल में खटास कभी नहीं होती, कच्चा होने पर भी नहीं। और पक जाने पर यह बहुत रसीला, और मीठा हो जाता है।
मेरी इस बात पर वो भी खिलखिला कर हंस पड़ी!
“पृयूर नहीं.. उससे भी बड़े!” उसने हँसते हुए आगे जोड़ा। उनके यह बोलते ही मेरे आँखों के सामने उनके स्तनों का एक परिकल्पित दृश्य घूम गया.. मैंने कुछ कहा नहीं, बस एक हलकी सी, दबी हुई हंसी छोड़ी।
“गुड नाईट चिन्नू” अंततः अल्का ने कहा।
“गुड नाईट अल्का!” मैंने भी कहा और जबरदस्ती सोने की कोशिश करने लगा।
इस तरह के अनुभव के बाद नींद किसको आ सकती है? यही हाल मेरा भी था। और एक समस्या थी - और वह यह कि मैं अब तक अत्यंत कामोत्तेजित हो गया था। यह मेरे लिए वैसे कोई नई बात तो थी नहीं। इस उम्र में वैसे भी हार्मोनों का प्रभाव अपने चरम पर होता है। लेकिन, उससे भी बड़ा कारण थी अल्का, जो मेरे ही बगल लेटी हुई थी, और उस प्रकार के कपड़े पहने हुए थी, जो किसी भी नवयुवक को पागल कर दे! मुझे यह ज्ञान था कि मेरे बगल वही अत्यंत सुन्दर जवान लड़की लेटी हुई थी। और उस लड़की के पास एक कोरी योनि थी, और मेरे पास एक अनभ्यस्त लिंग! न जाने क्यों बंद आँखों के पटल पर एक तस्वीर खिंच गई जिसमें मैं और अलका दोनों नग्न थे, और आलिंगनबद्ध थे।
‘यह कैसा दृश्य!’ कब अलका मेरे ख्यालों में इस तरह आने लग गई! अब जब आ ही गई है, तो मन में एक और विचार कौंधा, ‘क्या मैं अल्का की योनि के कोरे कागज़ पर अपने लिंग की कलम से कोई प्रेम कहानी लिख पाऊंगा?’ ऐसी बातों का उत्तर तो भविष्य की कोख में था! लेकिन मेरा अलका को देखने का नज़रिया बदलने लग गया था। यही सब सोचते सोचते जब नींद आई, तो मेरे सपने में लड़कियों के कामुक सपने आने लगे, और उन लड़कियों के चेहरे अल्का से मिलते जुलते से लगे।
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सवेरे देर से उठा - उठ कर देखा की मेरे बगल अल्का तो नहीं, बल्कि उसकी पहनी हुई टी-शर्ट और निक्कर पड़ी हुई थी - जैसे उसने एक निशानी रख छोड़ी हो मेरे लिए! आप मानो या न मानो, मेरे लिए यह एक अत्यंत कामुक दृश्य था। अब यह काम अल्का ने जानबूझ कर मुझे छेड़ने के लिए किया था, या अनजाने में, यह कहना मेरे लिए मुश्किल था। वैसे भी यह अल्का का कमरा था, और हो सकता है कि उसकी ऐसी आदत हो! खैर, मैं जैसे तैसे अपनी नींद को तोड़ कर कमरे से बाहर निकला तो पाया कि वहाँ अल्का घर पर नहीं थी। चिन्नम्मा ने बताया कि अल्का आज खेत पर बड़ी जल्दी ही चली गई थी, नाश्ता भी नहीं किया, और वहीं मिलेगी। कोई ज़रूरी काम था। वो वहाँ दिन भर रुकना नहीं चाहती थी, क्योंकि आज वो पूरा दिन मेरे साथ ही बिताना चाहती थी। अच्छी बात है। अगर मेरे साथ दिन बिताना है तो मैं ही चला जाता हूँ खेत पर। मैंने जल्दी से नित्यकर्म किया और फिर हम दोनों के लिए नाश्ता लेकर खेत की तरफ रवाना हो गया।
जब नाना जी ने खेती शुरू करी थी, तब छोटी खेती थी। लेकिन कालांतर में खेती की बरकत और माता-पिता की आर्थिक मदद से आज हमारे पास अब करीब करीब साठ एकड़ ज़मीन थी। काफी पहले से ही हमने अपना सारा ध्यान सिर्फ मसाले उगाने पर केंद्रित कर दिया था - हम इलाइची, कालीमिर्च, जायफल उगाते थे, और साथ साथ केले और नारियल भी। नगदी फसलों पर ध्यान केंद्रित करने का काफी लाभ हुआ था। कालांतर में हमारी लागत कम, और आय बढ़ने लगी थी। हाँलाकि मैं खेत का काफी हिस्सा देख चुका था, लेकिन फिर भी कई सारी जगहें मैंने अभी तक नहीं देखी थीं। लोगों से पूछते पूछते मैंने अल्का को ढूंढ लिया। वो खेत पर काम करने वालो को निर्देश दे रही थी, मैंने काफी देर तक उसकी बातें सुनी, और फिर अपनी तरफ से कुछ और निर्देश दे डाले। मेरे ज्ञान पर काम करने वाले काफी आश्चर्यचकित हुए, तो अल्का ने उनको बताया कि मैं शहर से आया हूँ... उनका नया मालिक!
मुझे आश्चर्य हुआ कि अल्का ने उनको यह नहीं बोला कि मैं उसका भतीजा हूँ। वैसे मुझे भी अपने इस नए परिचय से आनंद हुआ, इसलिए मैंने कुछ नहीं कहा। खेत के कुछ हिस्से में किसी प्रकार की खेती नहीं होती थी। मैंने उस हिस्से में प्रयोग के लिए सलाद वाली सब्ज़ियाँ उगाने का सुझाव दिया। अगर मेरे परिकल्पना के आधार पर सब कुछ हुआ, तो उन दो एकड़ों से उतनी रकम आती, जितनी हमारी हमेशा की फसलों से दस एकड़ में आती। यह बात मैंने अल्का को बताई। उसने इस बारे में और बात करने को कहा। उसको सलाद की खेती का कोई ज्ञान नहीं था। फिर उस फसल को खरीदेगा कौन? हम उसको बेचेंगे कैसे? सलाद तो जल्दी खराब हो जाएगा - इसलिए उसको ट्रांसपोर्ट करने का काम कौन करेगा? यह सब बातें जाननी बहुत ज़रूरी थीं।
जब सभी खेत मज़दूर काम करने निकल गए, और हम दोनों अकेले रह गए, तो मैंने अल्का को नाश्ता करने को कहा। हमने हलकी फुलकी बातें करते हुए नाश्ता किया - लेकिन रात की बात का बिलकुल भी ज़िक्र नहीं किया। एक दो बार उसने मुझे, और मैंने उसको खाने का निवाला अपने हाथों से खिलाया।
अल्का ने इस समय शलवार कुर्ता पहना हुआ था, और सर पर दुपट्टा डाला हुआ था। उन कपड़ों में अल्का को देख कर कोई नहीं कह सकता था कि उसकी देहयष्टि इतनी तराशी हुई हो सकती है! यदि यह बात कोई देख सकता, खासतौर पर अल्का से विवाह की मंशा रखने वाले लोग, तो वो लोग उसकी ज़मीन जायदाद भूल कर उसके रूप के धन का लालच करने लगते!
अच्छा है... ऐसे दुष्टों के हाथ नहीं लगी थी वो अब तक!
कमाल है! अल्का के विवाह भी बात सोच कर भी मुझे जलन और चिढ़ क्यों महसूस हो रही थी!!
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हमारा घर, गाँव के और घरों की तरह न हो कर हमारे खेत में ही था। इसलिए घर में और उसके आसपास काफी एकांत सा रहता था। घर के इर्द गिर्द आधे एकड़ के क्षेत्र में फलदार घने वृक्ष लगे हुए थे। हम सभी को उनकी छाँव में चारपाई डाल कर पिकनिक मनाने में बहुत आनंद आता था। नानी आज भी दोपहर में वहाँ सोती हैं। दोपहर खाने के बाद कम से कम दो घंटे तक सोना, यह उनका नियम सा बन गया है।
खैर, मेरे खुद के तौर तरीक़े बदलने लगे थे। अगर जीवन अपनी मातृभूमि, अपनी कर्मभूमि पर बिताना है, तो वहां के रहन सहन से खुद को अच्छी तरह से वाकिफ़ कर लेना चाहिए। है न? तो मैं भी कल्लिमुन्डु (लुंगी) और उदुप्पू (शर्ट) पहनने लगा। सूर्य देव की कुछ ख़ास कृपा रहती है केरल भूमि पर। कहते हैं कि इसी कारण से कुरुमुलक (कालीमिर्च) में सूर्य जैसी गर्मी आती है। गाँव का रहन सहन मुझे भाने लगा। सवेरे मेहनत, शाम को मेहनत, दिन में आराम, लोगों से मिलना जुलना, बात करना, और उम्दा भोजन! ऐसा जीवन किसको रास नहीं आएगा?
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ऐसे ही करते करते गाँव के तौर तरीके सीखते सीखते मुझे करीब एक सप्ताह हो गया। बस वहां के मौसम की आदत नहीं पड़ी थी अभी तक - एक सप्ताह में ही मेरा पूरा शरीर कालीमिर्च की भाँति ही काला हो गया था। अल्का मेरे रोज़ और काले पड़ते रंग को देख कर बोलती कि ‘हाँ, अब मेरा चिन्नू लग रहा है पूरा मलयाली मान्यन (भद्रपुरुष)!’ मैं भी मज़ाक में कहता कि कम से कम विटामिन डी की कमी नहीं रहेगी मेरे शरीर में!
खैर, उस पहली रात के जैसा वैद्युतीय घटनाक्रम इतने दिनों तक नहीं हुआ। अल्का रात में ढीली ढाली मैक्सी पहन कर सोती। उधर मुझे भी पूरे कपड़ों में सोने में दिक्कत होती है। जब मैंने अल्का को यह बात बताई तो उसी ने कहा कि मेरा जैसा मन करे, मैंने वैसे सो सकता हूँ। अब मैं रात में सिर्फ शॉर्ट्स में सोता हूँ। मुण्डु पहन कर सोने में यह डर रहता है कि कहीं खुल न जाए! वैसे कभी कभी मन होता है कि सारे कपड़े उतार कर अल्का से लिपट जाऊँ, लेकिन हिम्मत नहीं होती।
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एक सवेरे रसोई घर में मैं अल्का के साथ ही था, उसने नाश्ता तैयार करते हुए मुझसे पूछा,
“चिन्नू, तुमने हमारे खेत में नदी वाला हिस्सा देखा है क्या?”
हमारे खेत में नदी है - यह बात तो मुझे मालूम तक नहीं थी। मैंने उसको यह बात बताई। उसने मुझे बताया कि सलाद की खेती के लिए उसने वही ज़मीन सोची है। मैं यह सोच कर बहुत प्रसन्न हुआ... वो इसलिए कि अल्का मेरी बात मान रही थी। मैंने उसको कहा कि मुझे वो ज़मीन देखनी है - अल्का ने भी कहा कि वो मुझे आज वो हिस्सा दिखाना चाहती है, जिससे आगे का काम जल्दी हो सके। वो हिस्सा कुछ दूर पड़ता है, इसलिए उसने सुझाया कि दोपहर का खाना साथ ले कर उधर चलेंगे।
अल्का ने नानी को बातें समझाईं - मुझे नहीं मालूम कि नानी को उसकी बात कितनी समझ आई। लेकिन उन्होंने हमको मज़े करने को कहा!
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चिन्नम्मा को ज़रूरी निर्देश और दोपहर में नानी को खाना खिलाने के निर्देश दे कर, अल्का और मैं उस तरफ चल दिए। खैर, चूँकि रास्ता अल्का को मालूम था इसलिए वो आगे और मैंने उसके पीछे चल रहा था। उसने हमेशा की तरह वही ढीले ढाले कपड़े पहने हुए थे, लेकिन मेरे मन में उसकी निक्कर और टी-शर्ट पहनी हुई छवि बसी हुई थी। मैंने यही सोच रहा था कि अगर वो इस समय उन्ही कपड़ों में होती तो किस तरह उसके नितम्ब उसकी हर चाल पर थिरकते! यह सोच कर एक बार फिर से मुझे उत्तेजना हो आई, लेकिन एक तो वहां एकांत था, और मैं पीछे था - इसलिए उत्तेजना छुपाने की कोई आवश्यकता नहीं थी। हमारा सारा खेत एक साथ नहीं था, और यह हिस्सा थोड़ा अलग थलग पड़ा हुआ था। खैर, आराम से चलते और बातें करते हुए हम पैंतालीस मिनट में उस जगह पहुँच गए।
वो जगह वाकई बहुत सुन्दर थी। वो नदी छोटी सी थी, और उसके अगल बगल हरी घास उगी हुई थी। कुछ छोटे बड़े वृक्ष भी उगे हुए थे। और इन सब बातों का सम्मिलित प्रभाव यह था कि वह जगह बहुत शांत और निस्तब्ध थी! यहाँ खेत नहीं, रिसोर्ट बनाना चाहिए!! नदी के एक तरफ ढाल था, जिसमें पानी भर कर एक तालाब जैसा बन गया था। अल्का ने बताया की करीब आठ-नौ फ़ीट गहरा तालाब होगा। मेरी खेती के इरादे के लिए यह जगह एकदम सही लग रही थी। मेरे मन में एक और बात आई - क्यों न अल्का और मैं इसी तालाब में साथ साथ नहाएं! उस जगह का भली भाँति निरीक्षण करने के बाद मैंने अल्का को विस्तार से पूरे प्लान के बारे में बताया। मैंने बताया कि आज कल अमरीका से बहुत सारे पर्यटक (हिप्पी) आ रहे थे, जो कि कई दिनों तक एक जगह रुकते थे। उन लोगों में सलाद की ख़पत बढ़िया रहेगी। मछली और चिकन के साथ सलाद तो उन लोगो का खाना है ही। अल्का ध्यान से मेरी पूरी बात सुन रही थी, और अपनी तरफ से कई सारे सुझाव भी देती जा रही थी। हम दोनों ही एक बात पर सहमत थे, कि सलाद की खेती से लाभ तो होगा! त्रिवेंद्रम, एर्णाकुलम, कोच्चि, मुन्नार जैसे बड़े शहरों में इसकी खपत बढ़िया रहेगी, और खेत से इन जगहों पर जाने में सिर्फ दो से तीन घंटे लगेंगे! बड़ी गाड़ी की ज़रुरत भी नहीं है, बस दो जीप में भर कर एक को उत्तर और दूसरे को दक्षिण दिशा में भेजना है। मतलब एकदम ताज़ा सलाद, जो इस व्यापार के लिए सबसे आवश्यक नियम है! मतलब सवेरे काट कर, ग्राहकों को दे कर दिन भर में वापस आया जा सकता है। बढ़िया!
खैर, यह बातें करते करते काफी समय बीत गया और मुझे अचानक ही भूख लगने लगी। अल्का ने वहीं घास पर पत्तलों पर खाना लगाया। अल्का को भी भूख लग गई थी। हम दोनों ही जल्दी जल्दी खाना खाने लगे। उसके बाद मैं वहीं पर लेट गया, और हर रात की तरह अल्का भी मेरी बगल लेट गई। वही लेटे लेटे हम उस जगह की शांति का आनंद उठाने लगे। दोपहर गरम थी। और ऐसे छाँव में लेटना बहुत सुखद था। लेटे हुए मैंने थोड़ा सा हिला तो मेरा हाथ, अल्का के हाथ को छूने लगा। न तो अल्का ने अपना हाथ हटाया, और न ही मैंने! कुछ देर ऐसे ही रहने के बाद मैंने उसके हाथ को सहलाना शुरू कर दिया। अल्का ने फिर भी अपना हाथ नहीं हटाया।
कुछ देर ऐसे ही रहने के बाद मैंने कहा, “अल्का, यह तालाब तो बढ़िया जगह है नहाने के लिए!”
“हाँ! यह ज़मीन हमको बहुत सस्ते में मिल गई थी। इसके पहले के मालिक लोग लंदन में बसने जा रहे थे, तो उन्होंने पिता जी को यह ज़मीन बेच दी। पता है, जब मैं छोटी थी तो यहाँ आ कर खूब नहाती थी!”
“कौन लोग थे?”
“तुमको नहीं मालूम होगा। उनकी यहाँ ज़मीन थी, लेकिन उस पर खेती कोई और करते थे।”
“हम्म्म!”
हम कुछ देर तक चुप रहे, फिर मैं ही बोला, “बिना कपड़ों के?”
“क्या बिना कपड़ों के?”
“जब तुम यहाँ नहाने आती थी?”
“हाँ! और कैसे?”
“मज़ा आता था?”
“बहुत! लेकिन फिर बाद में चेची और अम्मा मुझे मना करने लगे!”
“हम्म्म.... तो अभी कभी नहाती हो यहाँ?”
“कभी कभी!”
“बिना कपड़ों के?”
अल्का हंसी, “चिन्नू बहुत शैतान हो गया है!”
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“बताओ न मौसी!” मैंने छेड़ा।
“अरे फिर से मौसी!! मुझे मेरे नाम से ही बुलाया करो। मुझे अच्छा लगता है।”
“तुमने मेरी बात का जवाब नहीं दिया!”
“नहीं बाबा! नहीं नहाती! कोई देख लेगा तो?”
“कौन देखेगा? ये जगह तो ऐसे ही सूनसान सी रहती है!”
“हाँ! सूनसान सी रहती है, इसीलिए तो! अगर कुछ हो जाए, तो कोई बचाने वाला भी नहीं रहेगा!”
“हा हा! वो भी ठीक है!” कह कर मैं चुप हो गया। फिर कुछ हिम्मत कर के मैंने आगे कहा,
“आज नहा लो?”
“अच्छा! और तुम जो यहाँ हो, वो?”
“मैं ही तो हूँ बस! मैं बचा भी लूँगा! चलो न, नहाते हैं?”
“मेरे चिन्नू, अब हम बड़े हो गए हैं… और जब एक लड़का और एक लड़की बड़े हो जाएँ न, तो यह सब नहीं कर सकते! समझे?”
यह कहते कहते अल्का का चेहरा शर्म से लाल हो गया था। ये इस कारण हुआ कि उसने मुझे ‘मेरे चिन्नू’ कहा, या फिर इस कारण की वो हम दोनों को उस तालाब में साथ में निर्वस्त्र नहाते हुए सोच रही थी, यह मैं कह नहीं सकता!
मैं अल्का की बात से विचलित नहीं हुआ। मुझे अचानक ही लगने लगा कि अल्का का शरीर देखने का एक सुनहरा मौका है आज!
मैंने कहा, “अरे! हम दोनों अपने अंडरवियर में नहा सकते हैं! है न? वैसे भी यहाँ कौन है देखने वाला? जल्दी से नहा कर निकल लेंगे!”
अल्का की आँखें एक गहरी सोच में सिकुड़ सी गईं। साफ तौर पर वो मेरे सुझाव के बारे में सोच रही थी। अंततः उसने कहा, “हाँ... नहा तो सकते हैं! लेकिन, नहायेंगे नहीं!”
उसकी बात पर मेरा चेहरा उतर गया।
“क्या हुआ चिन्नू राजा?” अल्का ने मुस्कुराते हुआ कहा, “लगता है तुम्हारी शादी कर देनी चाहिए! तब जी भर के अपनी पत्नी को नहाते हुए देखना! हा हा!”
“हा हा हा” मैंने चिढ़ते हुआ कहा, “तुम ही कर लो न मेरे संग शादी। फिर मैं ही देखूँगा तुमको.. जी भर के!”
“अले अले! मेला चिन्नू नाराज़ हो गया!”
“मैं क्यूँ नाराज़ होऊंगा भला? न नहाना है, तो न नहाओ!”
वैसे भी शाम ढलने वाली थी, इसलिए वापस चलना ही ठीक था। इसलिए हम दोनों उस जगह से वापस हो लिए।
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शाम को मैंने भी खाना पकाने में अल्का और चिन्नम्मा की सहायता करी। केरल में शाकाहार करने वाले काम ही हैं। मछली का सेवन भोजन में काफ़ी होता है। प्रोटीन का बहुत अच्छा स्रोत है। लेकिन यहाँ लोग चावल खूब खाते हैं। इसलिए अधिकतर लोग बड़ी सी तोंद निकाले घूमते रहते हैं। खैर, आज शाकाहारी भोजन की व्यवस्था थी। मैंने अल्का के सञ्चालन में सांबर और अवियल पकाया, और उन दोनों ने चावल, तोरन, अदरक की चटनी और नारियल की बर्फी बनाई।
खाने के समय नानी ने हमको अपने बचपन और जवानी के कई किस्से सुनाये, जो अल्का पहले भी कई बार सुन चुकी थी, लेकिन मेरे लिए नए थे। इसलिए मैंने पूरी दिलचस्पी के साथ नानी की बातें सुनी। नया श्रोता पा कर नानी भी देर तक किस्से कहानियाँ सुनाती रहीं।
ऐसे ही बातें करते हुए न जाने क्यों अल्का ने चिन्नम्मा से कहा, “चिन्नम्मा, कल चिन्नू का अभ्यंगम कर देना... इतनी दूर से आया हुआ है, उसकी कुछ तो सेवा करी जाए।”
अभ्यंगम पूरे शरीर की तेल-मालिश को कहते हैं। मालिश तो वैसे भी फायदेमंद क्रिया है, लेकिन अभ्यंगम के बाद क्या शारीरिक और क्या मानसिक - दोनों ही प्रकार की थकान निकल जाती है। चिन्नम्मा वैसे भी मेरी मालिश कई बार कर चुकी हैं। हर छुट्टी में यह एक नियम सा था। जैसे केरल घूमने जाने वाले आज कल के पर्यटकों को कुछ चीज़ें करनी ही होती हैं, वैसा। चिन्नम्मा की मालिश में बस एक ही दिक्कत थी और वह यह कि वो सबसे पहले मुझे नंगा कर देती थीं, फिर चाहे घर में कोई भी हो। और फिर मालिश से लेकर नहलाने तक का सारा काम वो ही करती थीं। पूरा काम करने में कोई दो घंटा लग जाता था, और पूरे दो घंटे तक मैं नंगा ही रहता था। मालिश के चक्कर में कई बार शर्मसार होना पड़ा था मुझे। लेकिन तब मैं छोटा था, इसलिए कोई बात नहीं थी। लेकिन अब मैं बड़ा हो गया था। इसलिए डर इस बात का था कि कहीं चिन्नम्मा वापस अपनी तर्ज़ पर ही न शुरू हो जाएँ।
“ठीक है मोलूटी!” उन्होंने सहमति जताई।
रात में सोने से पहले मैं और अल्का पूरे दिन के घटनाक्रम पर कुछ देर बातें करते थे। अम्मा और अच्चन से इस तरह खुल कर तो शायद ही कभी बात करी हो मैंने। आज कल हमारी अधिकतर चर्चा मेरे खेती के प्रयोग पर ही होती थी। ऐसे ही कुछ देर तक बतियाने के बाद मैंने अल्का से कुछ पर्सनल बात करने की सोची।
“अल्का, तुमने अभी तक शादी क्यों नहीं करी?”
“चिन्नू, अब तुम भी मत शुरू हो जाओ!”
“सॉरी अम्माई!”
“अरे! फिर से अम्माई!” अलका ने कहा। कुछ देर तक हम दोनों ही चुप रहे फिर अल्का ही बोली, “चिन्नू... सॉरी वाली बात नहीं है। यहाँ लोगों को सिर्फ गोरा रंग चाहिए, या फिर धन या फिर दोनों! गोरा रंग मेरे पास है नहीं, और धन तो तुम सबका है। फिर कौन करता मुझसे शादी? अब तो मेरी उम्र भी बहुत हो गई। मेरी कई सहेलियों के तो दस दस साल के बच्चे हैं। अब क्या होगी मेरी शादी! और सच पूछो तो मुझे करनी भी नहीं है शादी किसी से... यहाँ अपने घर में हूँ, और ठाठ से हूँ। तो फिर क्यों मैं किसी और के पास जाऊँ और उसकी नौकर बन के रहूँ? और फिर अम्मा को कौन देखेगा? और इतनी बड़ी खेती! उसका क्या?”
अल्का की बात पर मैं काफी देर तक चुप रहा और फिर बोला,
“अगर तुमको ऐसा आदमी मिल जाए जो तुम्हारे रंग, तुम्हारे धन से नहीं, सिर्फ तुमसे प्यार करे, तो?”
“सो जाओ चिन्नू..”
मैं चुप हो गया। कुछ देर के बाद मुझे लगा कि अल्का सुबक रही है। मुझे ग्लानि का अनुभव हुआ। अनजाने में ही मैंने अल्का को दुःख पहुँचाया था और मुझे उस बात का खेद था। मैंने उसको ‘सॉरी’ कहा, और फिर उसको अपने से दुबका का कर सुलाने की कोशिश करने लगा। मुझे कब नींद आ गई, कुछ याद नहीं।
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सवेरे -
“चिन्नू, आज बढ़िया गरमा गरम इडली बनाई है तुम्हारे लिए। जल्दी से खा लो, फिर तुम्हारा ‘मसाज’ होगा।”
“आज तुम खेत पर नहीं गई ?”
“नहीं, आज छुट्टी है। आज हम सिर्फ मजा मस्ती करेंगे.. या फिर जो तुम कहो वो। ठीक है? लेकिन पहले चिन्नम्मा...”
मैंने जल्दी जल्दी नित्यकर्म किया और स्वादिष्ट गरमागरम इडली खाई, और कॉफ़ी पी। फिर चिन्नम्मा सुगन्धित तेल की कटोरी लेकर आई और बोली,
“चिन्नू, तेल मालिश आँगन में होगी, या फिर बाहर, अहाते में?”
मौसम अच्छा था, इसलिए मैंने कहा, “अहाते में, चिन्नम्मा!”
अहाते में चिन्नम्मा ने चटाई बिछाई और फिर मुझसे कपड़े उतारने को कहा। बढ़िया हवा बयार चल रही थी, और चिड़ियाँ चहक रही थीं। मैंने जाँघिया को छोड़ कर सब कपड़े उतार दिए।
“ये भी।”
“ये भी?”
“हाँ! नहीं तो मालिश कैसे होगी?”
“अरे ऐसे ही कर दो न चिन्नम्मा!”
“ऐसे ही कैसे कर दूँ? हमेशा ही तो पूरा नंगा कर के तुम्हारी मालिश होती है।”
“क्या चिन्नम्मा! अब मैं बड़ा हो गया हूँ। ऐसे कैसे आपके सामने नंगा हो जाऊँगा?”
“बड़े हो गए हो?”
“और क्या?”
“अच्छा!”
“हाँ!”
“देखूँ तो... कितने बड़े हो गए हो।”
यह कह कर वो खुद ही मेरे जाँघिया का नाड़ा खोल कर मुझे नंगा करने लगीं। चिन्नम्मा तो अम्मा से भी बड़ी थीं, तो उनको मना कैसे करूँ, यह समझ नहीं आया। बस दो सेकंड में ही मैं उनके सामने पूरा नंगा खड़ा था। और उतनी ही देर में मेरे लिंग में इतना रक्त भर गया कि वो गन्ने की पोरी के जितना लम्बा, मोटा और ठोस हो गया। चिन्नम्मा ने मेरे लिंग को अपनी हथेली में पकड़ कर दो तीन बार दबाया और कहा,
“बढ़िया!”
बढ़िया तो था, लेकिन यह अनुभव मेरे लिए बहुत अनोखा था। इतने दिनों से अल्का के साथ रहते रहते वैसे भी शरीर में कामुक ऊर्जा भरी हुई थी। यहाँ आने के पहले तो रोज़ का नियम हो गया था कि हाथ से ही खुद को शांत कर लिया जाए। लेकिन यहाँ उस तरह का एकांत अभी तक नहीं मिल पाया था। और फिर चिन्नम्मा का ऐसा हमला! मैं अपने अण्डकोषों में बनने वाले दबाव को रोक नहीं सका। जब चिन्नम्मा ने एक और बार मेरे लिंग को दबाया, तो मेरे वृषण ने पिछले दस बारह दिनों से संचित वीर्य को पूरी प्रबलता से से बाहर फेंक दिया।
कम से कम सात आठ बार मेरे लिंग ने अपना वीर्य उगला होगा, और हर बार उसकी प्रबलता में कोई ख़ास कमी नहीं हुई। चिन्नम्मा मुझसे चिपक कर नहीं बैठी थीं। लेकिन फिर भी स्खलन में इतनी तीव्रता थी कि सारा का सारा वीर्य सामने बैठी चिन्नम्मा के ऊपर ही जा कर गिरा। उस वर्षा से चिन्नम्मा पूरी तरह से भीग गईं। जब मैंने आँखें खोली तो देखा कि उनके चेहरे, बाल, ब्लाउज और साड़ी पर मेरा वीर्य गिरा हुआ है।
“अरे मेरे चक्कारे, बता तो देता कि यह होने वाला है!” चिन्नम्मा ने सम्हलते हुए कहा।
मैंने काफी देर तक गहरी गहरी साँसे भर कर खुद को संयत किया और फिर कहा, “कैसे बताता चिन्नम्मा, तुमने एक तो मुझे ऐसे नंगा कर दिया, और फिर ऐसे छेड़-खानी करने लगी।”
“छेड़-खानी नहीं, मैं तो तुम्हारा कुन्ना देख रही थी। फिर से नहाना पड़ेगा मुझे अब! कोई बात नहीं! मेरा चिन्नू तो सचमुच का बड़ा हो गया है। बढ़िया मज़बूत कुन्ना है। कुछ दिन तुम्हारी मालिश कर दूँगी तो और मज़बूत हो जायेगा यह। चलो, अब जल्दी से तुम्हारी मालिश कर दूँ।” चिन्नम्मा ने अपनी साड़ी के आँचल से अपना चेहरा साफ़ करते हुए कहा।
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आज कल कैराली मसाज के विभिन्न रूप बाज़ार में उपलब्ध हैं। बहुत से लोग आज कल इसको एरोमा थेरेपी के नाम से भी जानते हैं। लेकिन चिन्नम्मा के तेल में ऐसा कोई एरोमा वेरोमा नहीं था। मालिश का तेल साधारण तिल के तेल, सरसों के तेल, शुद्ध हींग और हल्दी को मिला कर बनाया गया था। जो महक थी, सब इन्ही के कारण थी। और कुछ भी नहीं। आज कल काम की चीज़ कम, और नौटंकी ज्यादा करी जाती है! खैर, हमको क्या! काम करने वालो को लाभ होता है, तो मना कैसे और क्यों किया जाए?
चिन्नम्मा ने तेल की कटोरी को एक सुलगते हुए कंडे के ऊपर रखा हुआ था, जिससे तेल हल्का सा गरम था। उसी को
लेकर उन्होंने मेरे पूरे शरीर की दमदार मालिश करी। सच कहूँ, यात्रा की थकावट तो आज की मालिश के बाद ही निकली। उन्होंने मेरी एक एक माँस-पेशी, एक एक जोड़, और एक एक अंग की ऐसी मालिश करी कि मुझे लगा कि पूरा शरीर आराम के अतिरेक से शिथल हो गया है। उनके हाथों में एक अभूतपूर्व जादू है - किस अंग को कैसे दबाना है, और कैसे रगड़ना है, उनको यह सब अच्छी तरह से मालूम था। एक बात और, जिस पर मेरा और चिन्नम्मा दोनों का ध्यान गया था और वह यह था कि स्खलन के बाद भी मेरा लिंग स्तंभित ही रहा। बीच में कुछ देर के लिए शिथल पड़ा था लेकिन जब उन्होंने वापस वृषण और लिंग की मालिश शुरू करी, तो फिर से तन कर तैयार हो गया। हाँ, वो अलग बात है कि इस बार चिन्नम्मा और मैं दोनों ही किसी भी हादसे के लिए पहले से तैयार थे।
“चिन्नू, यह तो बड़ा ढीठ है। खुद से बैठ ही नहीं रहा है। मैं बैठा दूँ? नहीं तो बाद में दर्द होगा।” उन्होंने सहानुभूति दिखाते हुआ कहा।
“ठीक है।” मैंने स्वीकृति दे दी।
अगले पांच मिनट तक चिन्नम्मा मेरे लिंग को दबाती, सहलाती और रगड़ती रहीं। तब कहीं जा कर उसमे से दोबारा स्खलन हुआ और तब कहीं जा कर वो शांत हुआ। इस बार कोई हादसा नहीं हुआ। और भी अच्छी बात यह हुई कि पूरे मालिश के दौरान कोई घर नहीं आया। कम से कम किसी और के आगे मेरी इज़्ज़त नहीं गई। मुझे नहीं मालूम कि अल्का ने मुझे वैसी हालत में देखा या नहीं। लेकिन वो पूरे समय तक मैंने उसको बाहर निकले नहीं देखा। अच्छी बात है! मालिश हो जाने के बाद मैंने अपने कपड़े पहने, और घर के अंदर आ गया।
अंदर अल्का कॉफ़ी पीने के साथ साथ रेडियो पर गाने सुन रही थी। मुझे देखते ही वो मुस्कुराई,
“हो गई मालिश?”
“हाँ!” मैंने झेंपते हुए कहा।
“चिन्नम्मा बहुत बढ़िया मालिश करती हैं। रोज़ करवाया करो। जब तुम खेतों पर काम शुरू करोगे, तो रोज़ अभ्यंगम करवाना। थकावट तो यूँ चुटकी बजाते निकल जाएगी।”
“तुम करवाती हो?”
“हाँ!”
“क्या सच?”
“हाँ! इसमें झूठ वाली क्या बात है?”
“रोज़?”
“हाँ, लगभग रोज़ ही । मतलब, सप्ताह में तीन चार बार तो हो ही जाता है। नहीं तो मेरा थक कर चूरा बन जाएगा।”
“हा हा!”
“तो, आज का क्या प्लान है?”
“नहाना है...”
“तो नहा लो..”
“तालाब पर...”
अल्का की मुस्कराहट और बढ़ गई।
“मालूम था... चिन्नू जी को तालाब पर ही नहाना रहेगा। तो जाओ, नहा लो न!”
“तुम भी चलो ।“
“क्यों?”
“तुमने नहा लिया?”
“हाँ!”
“ओह!” मेरा मुँह लटक गया।
“लेकिन मैं चल सकती हूँ। आज कोई काम नहीं है मुझे, और रेडिओ पर भी बहुत ही पुराने गाने आ रहे हैं।”
मैं तुरंत खुश हो गया, “तो चलो..”
“ठीक है, लेकिन कुछ खाने को रख लेते हैं।”
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करीब आधे घंटे के बाद हम दोनों तालाब की तरफ चल दिए। रास्ते में हम क्या क्या उगाएंगे, इस बारे बात करते रहे। सलाद पत्ती, जिसको लेटुस कहते हैं वो दो महीने तक चलने वाली फसल है। चेरी टमाटर, लाल-पीले शिमला मिर्च, और अंग्रेजी पालक.. अगर हो सके तो अंग्रेजी खीरे। इसके अलावा बारह मास उगने वाली बेसिल, बेबी स्पिनच इत्यादि भी उगाया जा सकता है। अल्का मेरी बातें सुन रही थी और अपनी राय भी दे रही थी। पिछली बार की तरह मैं आज अल्का के पीछे पीछे नहीं, बल्कि साथ साथ चल रहा था। हम आज जल्दी ही तालाब पर पहुँच गए।
“चलो, नहा लो !”
“तुम भी नहा लो..”
“लेकिन मैंने तो नहा लिया है।”
“फिर से नहा लो.. मेरे साथ? इतनी दूर आई हो, क्या मुझे नहाता देखने?”
अलका कुछ देर सोच में पड़ गई। मुझे मालूम था कि वो मेरे साथ आई ही इसलिए है कि मेरे साथ में तालाब में तैर सके, और नहा सके। लेकिन न जाने क्या सोच कर संकोच कर रही थी। खैर कोई दो मिनट के बाद वो बोली,
“ठीक है... लेकिन एक बात याद रखना, मैं तुम्हारी मौसी हूँ....”
ये उसने क्यों कहा!
“तुम मेरी मौसी नहीं, मेरी प्यारी मौसी हो।” मैंने प्यार और मनुहार से कहा।
“तो ठीक है! लेकिन किसी से यह कहना मत! नहीं तो चेची और अम्मा मिल कर मेरी खाल खींच लेंगी, अगर उनको यह मालूम पड़ा।”
“मैं पागल हूँ क्या जो उनको कुछ कहूँगा!”
मुझे लगता है की अल्का के मन में कहीं किसी कोने में इस तरह के जोखिम भरे काम करने की इच्छा दबी हुई थी, जो मेरे उकसाने से बाहर उभर आई थी। अब जब उसने तालाब में नहाने का मन बना ही लिया था तो वो यह काम जल्दी से कर लेना चाहती थी। ठीक जैसे छोटे बच्चे करते हैं। उसने चारों तरफ सतर्कता से देखा, और जब संतुष्ट हो गई तो उसने अपने कुर्ते के बटन खोलने शुरू कर दिए। बटन खोलने के बाद उसको उतारने के लिए कुर्ते के नीचे का घेरा दोनों हाथों में पकड़ा और अचानक ही रुक गई। मैं अल्का को यह सब करते हुए अपलक देख रहा था।
“तुम उधर मुँह करो… तभी तो उतारूंगी!”
“तुम भी न! साथ में नहाना है, फिर भी...” मैंने कहा और उसको देखता रहा।
अल्का ने कुछ देर तक मेरा मुँह फेरने का इंतज़ार किया, लेकिन फिर उसको लगा कि मैं उसको देखना बंद नहीं करुंगा। तो उसने अपना कुरता पकड़ कर सर से होते हुए उतार दिया।
अल्का का शरीर सचमुच गांधार प्रतिमाओं जैसा था - तराशा हुआ शरीर, सुडौल ग्रीवा, आवश्यकता से छोटी ब्रा में कसी हुई शानदार स्तनों की जोड़ी जो सामने की तरफ अभिमान से उठे हुए थे, क्षीण बल-खाती कमर, गहरी नाभि और उसके नीचे सौम्य उभार लिए हुए परिपक्व नितम्ब! अल्का मेरी निगहबानी में निर्वस्त्र होने की प्रक्रिया कर रही थी। शलवार भी जल्दी ही उसके शरीर से अलग हो गई। अल्का जैसी परिपक्व, सुन्दर और सुडौल लड़की को जब मैंने अपने सामने ब्रा और चड्ढी में खड़े देखा तो मैं भूल गया कि मुझे भी अपने कपड़े उतारने थे। अल्का ने मुझको अपलक ताकते हुए देखा तो कहा,
“चिन्नू.... अब बस करो! मुझे पहले ही इतनी शर्म आ रही है। मुझे ऐसे घूरोगे तो मैं तो पानी पानी हो जाऊँगी...”
मैं किसी तन्द्रा से जागा। मैंने जल्दी जल्दी अपनी शर्ट और पैंट उतारी और शीघ्र ही सिर्फ अपनी चड्ढी में रह गया। उस समय मैंने देखा कि एक भारी समस्या थी - मेरा लिंग इस समय पूरी तरह कड़ा हो गया था और उसमें रक्त के संचार की धमक के कारण बार बार स्पंदन हो रहा था। और यह सब अल्का से छुपा नहीं रह सकता था। उसने मेरे जघन क्षेत्र की तरफ देखा, और हलके से मुस्कुराई - बस एक बहुत ही मंद मुस्कान! चड्ढी से पूरी बेशर्मी से झांकता उभार देखकर उसको मेरे शारीरिक विकास का आभास तो हो ही गया होगा! कुछ देर पहले तक अल्का को शर्म आ रही थी, लेकिन अब मेरी बारी थी। कपड़े उतारते ही मैं तुरंत तालाब की तरफ भगा, और पानी में डूब गया। वहां जल्दी जाने के मुझे दो फायदे होने वाले थे - एक तो यह कि मेरा बेकाबू लिंग पानी में छुप जाएगा, और दूसरा यह कि पानी के अंदर रहते हुए मैंने इत्मीनान से अल्का को अंदर आते देख सकूँगा।
मैंने देखा कि अल्का बहुत ही सावधानीपूर्वक तालाब की तरफ आ रही थी। कभी कभी जब उसके पैरों तले कठोर और नोकीले पत्थर आ जाते, तो वो दर्द से चिहुँक जाती। अच्छा है कि मैं पानी के अंदर था - अल्का को मात्र ब्रा और चड्ढी में अपनी तरफ आते देख कर मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरे लिंग में जैसे विस्फोट हो जाएगा।
“जल्दी से आ जाओ - पानी बहुत अच्छा लग रहा है!” मैंने कुछ कहने के इरादे से कह दिया। इसी बहाने मैं उसकी तरफ देख भी सकूँगा!
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सच कहूँ - यह मेरे जीवन का पहला मौका था जब मैंने किसी जवान लड़की को नग्नता के इस दर्जे में देखा था। कोई आश्चर्य की बात नहीं कि मैं इस प्रकार की उत्तेजना महसूस कर रहा था। अल्का धीरे धीरे चलते हुए अंततः पानी में आने लगी और कुछ इस तरह बैठी कि उसके स्तन पानी की सतह से ठीक ऊपर रह गए। उनको देख कर ऐसा लग रहा था जैसे पानी के ऊपर तैर रहे हों। … मेरे मन में आया कि उन्हें छू कर देखूं और महसूस करूँ कि एक लड़की के स्तन कैसे लगते हैं! लेकिन मैं अपने भाग्य को बहुत आज़माना नहीं चाहता था - मुझे महसूस हो रहा था कि अभी सब्र कर लेने से मुझे बाद में बहुत से लाभ हो सकते थे! अभी मैंने ऐसा कुछ किया तो हो सकता कि अल्का नाराज़ हो जाए, और ऐसे सुखद पल हमेशा के लिए समाप्त हो जाएँ! तो मैंने उस समय बस अल्का की छवि का आनंद उठाने की ही ठानी!
मैं तैरते हुए अल्का के पास गया। वो मुस्कुरा रही थी - स्पष्ट था कि उसको भी आनंद आ रहा था। मैंने कहा,
“अल्का, यह जगह तो बहुत सुन्दर है! कोई आश्चर्य नहीं कि तुमको भी यह जगह बहुत पसंद है! हम इस जगह को ज्यादा छेड़ेंगे नहीं, बल्कि यहाँ पर एक बहुत सुन्दर सा कुञ्ज बनाएँगे.... ठीक है?”
उत्तर में वह बस कुछ और मुस्कुराई। मैंने पूछा,
“यह तालाब कहाँ पर गहरा है?”
“आओ, मैं दिखाती हूँ…”
कह कर वो मेरे बगल आ कर खड़ी हो गई। हम दोनों एक दूसरे के अत्यंत समीप थे। मैंने महसूस किया कि उसके स्तन मेरे बाँह को स्पर्श कर रहे थे। अल्का को या तो संभवतः यह बात पता नहीं थी, या फिर वो जान कर भी अनजान बनी हुई थी। मैं क्यों शिकायत करता? उसके स्तनों को छूने की मेरी चाह जो पूरी हो रही थी। उसने मेरा हाथ पकड़ा और तालाब के बीच की तरफ जाने लगी।
“इस तरफ काफी गहरा है”
उसने कहा, और उसने बस तीन चार कदम ही चले होंगे कि वो अचानक ही पूरी तरह से पानी के अंदर हो ली। मुझे लगा कि वो डूब गई! मैंने उसका हाथ पकड़ा हुआ था, इसलिए मैंने सहज बोध से उसका हाथ मजबूती से पकड़ कर अपनी तरफ खींचने लगा। जब वो तरकीब काम में नहीं आई, तो मैंने उसके पीछे पानी के अंदर डुबकी लगाई, और अपने दोनों हाथ उसकी बगलों में डाल कर ऊपर की तरफ खींचा। मेरे ऐसा करते ही अल्का के पैर ज़मीन से हट गए, और वो पीछे की तरफ (मतलब मेरी तरफ) गिर गई। उसको सम्हालने के चक्कर में मेरे हाथ उसके सीने पर चले गए। मेरे दोनों हाथों में उसके ठोस गोलार्द्ध! कैसी किस्मत!! बस, थोड़ी ही देर पहले तो मैंने मन ही मन माँगा था कि मैं उसके स्तन महसूस कर सकूँ! मन की मुरादें इतनी जल्दी पूरी होती हैं क्या भला? मैं रुक नहीं सका। मेरे दोनों हाथ स्वतः ही उसके दोनों स्तनों को कोमलता से सौंदने और निचोड़ने लगे।
अल्का इस अचानक हुए घटनाक्रम से भौंचक्क हो गई। फिर वो संयत हो कर पानी में धीरे से सीधी खड़ी हो गई। उसके हाथ ऊपर की तरफ आए, और मेरे हाथों के ऊपर आ कर स्थापित हो गए - कुछ देर तक उसने मेरे हाथों को हटाने का कोई भी प्रयास नहीं किया। हम दोनों उसी अवस्था में जड़वत खड़े रहे। फिर वो मेरी तरफ मुड़ी, ऐसा करने से मेरे हाथ स्वतः उसके स्तनों से हट गए।
“ओ माँ! नीचे लगता है कोई बड़ा गड्ढा था। थैंक यू! मैं तो किनारे की तरफ जा रही हूँ।”
‘थैंक यू! यह तो मुझे बोलना चाहिए!’
अल्का चलती हुई तालाब के किनारे पर आई, और वहीँ पर बैठ गई। उसके बैठने का ढंग कुछ ऐसा था जिससे उसकी टाँगे सामने की तरफ कुछ खुल गईं थीं। हाँलाकि इस समय तालाब का पानी उसकी कमर तक तो था, लेकिन पानी साफ़ होने के कारण कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला था। मुझे दरअसल उसका शरीर साफ़ साफ़ दिख रहा था। अल्का की हलके धानी रंग की चड्ढी, जो पानी में जाने से पहले अपारदर्शी थी, इस समय पूरी तरह गीली होने के कारण उसके शरीर से पूरी तरह चिपकी हुई थी, और काफी पारदर्शी हो गई थी। अल्का की योनि पर उगी काले बालों की पट्टी मुझे साफ़ दिख रही थी। और साथ ही साथ उसकी योनि की फांकों के उभार भी दिख रहे थे। एक तो मैंने अभी अभी उसके स्तनों को अपने हाथों में महसूस किया था, और अब यह दृश्य! मेरी साँसे मेरे गले में ही अटक गईं। मेरा मुँह सूख गया। आज तो मन मांगी सभी मुरादें पूरी हो गईं थीं - आंशिक ही सही, लेकिन अल्का की योनि के दर्शन तो हो ही रहे थे! न जाने कैसे मेरा लिंग रक्त के दबाव से फटा क्यों नहीं!
मैंने अनजाने ही अल्का के सामने ही अपने लिंग को व्यवस्थित किया - मेरा दिमाग तो उसी जगह पर केंद्रित था। आँखें अल्का की योनि से हट ही नहीं पा रही थीं।
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अल्का भी संभवतः कुछ समय हुए घटनाक्रम से कुछ घबराई हुई थी। वो भी इधर उधर देखते हुए ही बात कर रही थी। इसलिए उसको अभी तक मालूम नहीं पड़ा था कि मेरी दृष्टि किस तरफ थी। वो कुछ कुछ कह रही थी, और मैं बस ‘अह’, ‘हाँ’, और ‘हम्म’ में ही जवाब दे रहा था। कुछ समय बाद, वो अचानक उठी, और बोली कि देर हो रही है, और हमको चलना चाहिए। ऐसा करते समय उसने मेरी तरफ देखा, और तुरंत समझ गई कि मैं किधर देख रहा था। एक बार तो उसके चेहरे से जैसे सारा रक्त निचुड़ गया!
“उई माँ! चिन्नू, तुम बहुत खराब हो! देखो, तुम्हारी बातों में आने का अंजाम! मेरी ऐसी हालत है कि कुछ पहनने या न पहनने का कोई मतलब ही नहीं रह गया! हट्ट!”
कह कर वो अपने गोल गोल नितम्ब मटकाती हुई अपने कपड़ो की तरफ चल दी। हमने चुप रह कर जैसे तैसे अपने कपड़े बदले। अल्का और मैंने अपने गीले अधोवस्त्र उतार दिए थे। और वापस अपने घर की तरफ चल दिए।
उस रात को जब हम सोने के लिए बिस्तर पर आए, तो अल्का ने कहा,
“चिन्नू, तुमने मुझे आज ऐसे देख ही लिया है। तो...”
“अल्का, मैंने प्रॉमिस किया है न कि मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगा!” मैंने कहा।
“नहीं.. वो बात नहीं...सोते समय अगर मैं भी कपड़े उतार कर लेटूँ तो?”
“तुम्हारा घर है, अल्का! जैसा तुमको अच्छा लगे?”
“ओये होए! कैसा भोला बन रहा है मेरा चिन्नू!!” अल्का ने मुझे चिढ़ाते हुए कहा, “इतनी अच्छी किस्मत नहीं है तुम्हारी! हा हा हा! लेकिन एक बात याद रखना! जो भी कुछ हुआ, वो किसी को न बताना!”
अल्का की बात से मैं हकलाने लगा, “नननननहीं! मैं कुछ नहीं कहूँगा!”
“गुड नाईट चिन्नू!”
निरंतर उत्तेजित रहना मेरे लिए मानिए जैसे आम बात थी। उस समय भी कुछ अलग नहीं था। उत्तेजना के कारण मुझे नींद नहीं आ पा रही थी। मेरा लिंग उत्तेजना से स्पंदन कर रहा था। दिमाग में अल्का का नग्न शरीर घूम रहा था! ऊपर से उसकी अभी अभी की गई छेड़खानी से मेरा सोना और भी कठिन हो गया था। नींद आँखों से कोसों दूर थी। ऐसे ही सोने की कोशिश करते करते एक घंटे से ऊपर हो गया। मैं अभी भी नहीं सो पा रहा था। रात की गहराई में झींगुरों का गान। बचपन में झींगुरों की आवाज़ से डर लगता था। बड़े होने पर पता चला कि नर झींगुर, मादा झींगुरों को आकर्षित करने के लिए अपने पंखों को रगड़ कर ऐसी आवाज़ पैदा करते हैं। मतलब यह एक प्रेम गीत है। यह सोच कर मैं मुस्कुरा दिया। बात वही थी - लेकिन नज़रिया बदल गया। आज उन तमाम झींगुरों के जैसे ही मेरे दिल का हाल भी अपनी प्रेमिका के लिए आतुर हो रहा था। अल्का की साँसे अब गहरी गहरी चल रहीं थीं, इसका मतलब वो अब सो चुकी थी। न जाने क्यों, उसको ऐसा सोते देख कर बड़ा सुकून सा महसूस हुआ। सोते सोते ही अचानक ही उसने करवट बदली, और उसने अपना हाथ मेरे सीने पर रख दिया। वो स्पर्श! ओह! न जाने क्यों, अल्का की छुवन से मुझे बहुत राहत सी मिली। सतत स्तम्भन के दर्द को अपने लिंग में महसूस करने के बाद भी मैं सोने में सफल हो गया।
बड़े सुन्दर सपने! भले ही जागने पर याद रहें या न रहें, लेकिन सपने मनुष्य को जीने की ताकत देते हैं। कितने ही लोग हैं जिन्होंने बताया है कि अपनी समस्याओं का समाधान उनको सपनों में मिला। कई सारे जटिल, वैज्ञानिक प्रश्न, सपनों में ही हल किए गए हैं। मेरे जीवन में कोई समस्या थोड़े ही थी। एक कोरा कैनवास था, जिस पर अचानक से ही अल्का अपने प्रेम की कूंची से नए नए रंग भरने लगी थी। मुझे तो लगता है कि प्रत्येक मनुष्य के मन में यह इच्छा तो अवश्य ही होती होगी कि कोई उसको प्यार से देखे। आँखें आँखों से कुछ ऐसे मिलें, कि सब कुछ ठहर जाए। कोई ऐसा प्रेमी हो जो उसको प्रेम से छुए, चुंबन दे… देह के रोम रोम पर चुम्बन दे! उसके प्रेम में इतनी उष्णता हो कि उसका सान्निध्य मिलते ही तन और मन सिहर जाए। कोई ऐसा, अपना हो, जो देर तक उसके साथ हो...! किसके मन में नहीं होती प्रेम की यह पागल इच्छा? अचानक से ही यह इच्छा मेरे मन में भी अंकुर लेने लगीं थीं। और इन इच्छाओं के मध्य में थी अल्का!
लेकिन यह सब क्या आसान है? हमारे अपने लोग, और फिर उनसे इतर जो समाज के लोग हैं क्या वो अल्का और मेरा संग सहन कर पाएँगे? अम्मा और अम्माई - दोनों शब्द एक समान हैं। समाज में संभव है कि दोनों को एक दर्जा दिया हुआ है। इसीलिए तो ऐसे शब्दों का आविष्कार हुआ है। तो क्या अम्माई सिर्फ अम्मा के ही किरदार में रह सकती है? प्रेमिका के नहीं? पत्नी के नहीं? अगर मैं अपने मन की बात किसी से कहूँ, तो वो क्या समझ सकेगा कि मैं क्या कहना चाहता हूँ? मुझे चरित्रहीन तो नहीं कहने लगेंगे? समाज से मेरा बहिष्कार तो नहीं कर देंगे? सामाजिक बंधन भला इतने कठोर क्यों हैं?
फिर अचानक ही ऐसे विवशता भरे नकारात्मक विचार लुप्त हो जाते हैं। सपनों के पटल पर नया दृश्य उभर आता है। अल्का! एक मधुर... मादक सा अहसास उठ जाता है। लगा कि जैसे मीठे संगीत की ध्वनि-लहरियाँ कानों में बजने लगीं हों। ओह! उसका भीगा हुआ रूप! कितना रोमांचित कर देने वाला दृश्य और अहसास! सपने में लगा कि जैसे मेरे होंठ अल्का के होंठ ढूंढ रहे हैं। मन में अल्का की देह को अपने में भींच लेने तीव्र अकुलाहट होने लगी। रोम-रोम में न जाने कैसी मीठी मीठी तरंगें निकलने लगीं। इतनी सुन्दर इच्छा! लेकिन कैसी विवशता!
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अगले दिन जब मैं उठा तो मेरे शॉर्ट्स के सामने गीला, चिपचिपा धब्बा बना हुआ था। मुझे स्वप्न-दोष हो गया था। शॉर्ट्स के साथ साथ ओढ़ने वाली चद्दर और बिस्तर का बिछौना, दोनों भी गीले हो गए थे!
‘बाप रे! कितना सारा वीर्य गिरा है!’
मुझे मालूम था, कि अल्का जब यह सब गन्दगी देखेगी तो समझ जायेगी कि यह सब उसकी पारदर्शक चड्ढी से होने वाले अंग-प्रदर्शन के का प्रभाव है। उसी के कारण मुझे ‘वो’ सपना भी आया था। सपने में मैंने देखा कि अल्का और मैं, हम दोनों पूर्ण नग्न हो कर नीले समुद्र में तैर रहे हैं। तैरने के बाद हम समुद्र-तट पर एक चद्दर के ऊपर साथ साथ लेट गए हैं। मेरा एक हाथ उसके एक स्तन पर था और दूसरा उसकी जाँघों के बीच की गहराई में उतर रहा था। मेरी उंगलियां उसकी योनि की गहराई माप रही थीं। अल्का भी मेरे तने हुए लिंग को अपनी मुट्ठी में भरे ऊपर नीचे कर रही थी। कुछ देर के बाद मेरे अंदर का लावा तीव्र वेग से हवा में उछल जाता है, और अल्का के हाथ पर गिर जाता है। यही काम सोते समय मेरे लिंग ने भी कर दिया होगा। यह सब गन्दगी उसी की निशानी है।
मैं जल्दी से गुसलखाने में गया, और वहां जा कर खुद की और शॉर्ट्स की सफाई करी। वहां एक कपड़े को गीला कर के मैं शयनकक्ष में वापस आया, जिससे की चद्दर साफ़ कर सकूँ, लेकिन तब तक बहुत देर हो गई थी। अल्का बिस्तर पर से चद्दर बदल चुकी थी, और निश्चित तौर पर वो मेरे कारनामे देख चुकी थी। मुझे कमरे में आते देख कर उसने मुस्कुराते हुआ कहा,
“नॉटी नॉटी! कल किसके सपने देख रहा था मेरा चिन्नू?”
मैं शर्म के मारे ज़मीन में गड़ा जा रहा था। कुछ कहते नहीं बना। और वो कहते जा रही थी,
“ज़रूर बहुत ही सुन्दर रही होगी वो! कौन थी वो चिन्नू?”
अल्का की बात से मुझे एक बात तो समझ आई और वो यह कि उसको स्त्री-पुरुष के शारीरिक भेद, अंतर और प्रक्रियाओं के बारे में मालूम था। और एक बात, अल्का के सामने मैं यह नहीं मान या कह सकता था कि मैं उसके ही सपने देख रहा था। यह बात सुन कर वो शर्मसार हो सकती थी, या नाराज़! इस दशा में कुछ न कहना ही श्रेयस्कर था। अल्का मेरे मन में चल रही इन सब बातों से बेखबर मेरी टाँगे खींचने में लगी हुई थी।
“क्या हुआ? कुछ बोलते क्यों नहीं?”
उसकी चिढ़ावन भरी ज़िद से तंग आ कर मैं आखिरकार बोल ही पड़ा, “अगर जानना ही चाहती हो तो सुनो! मैं तुम्हारे सपने देख रहा था! अब खुश?”
और जैसा कि मैंने सोचा था, वो शर्म से लाल हो गई। अल्का के गालों में सुर्ख रंग उत्तर आया था। मैं खुद भी शर्मसार हो गया था। मैं मुड़ा, और कमरे से बाहर निकलने लगा। बाहर निकलते निकलते मुझे भ्रम हुआ की अल्का बुदबुदा रही है :
“और मैं तुम्हारे…”
अल्का दिन भर बाहर ही रही, और मैं खेत पर। अपने कर्मचारियों से बात करना, उनसे मेल जोल बढ़ाना, उनका हाल चाल और सेहत का ध्यान रखना ज़रूरी है, अगर आप अपनी खेती में बरकत चाहते हैं । शाम को जब मैं वापस आया तो थक कर चूर हो गया था। अल्का रसोईघर में व्यस्त थी। आज रात बहुत उमस थी - अच्छा संकेत था कि बारिश बस आने ही वाली है! दिन भर अल्का से बात करने का कोई अवसर ही नहीं मिल सका। रात में भी नहीं। रात में अल्का मुस्कुराते हुए बिस्तर में आ कर लेट गई। आज अधिक बात नहीं हो पाई। और मैंने उससे उसकी मुस्कराहट का कारण नहीं पूछा। नींद जल्दी ही आ गई।
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अगले दिन जब मैं उठा, तो अल्का रोज़ की तरह बाहर जा चुकी थी। मैंने भी जल्दी ही तैयार हो कर बाहर का रुख लिया – सोचा की कुछ लोगों से मुलाक़ात ही कर ली जाए! लोगों से मिलते मिलाते, कब दोपहर हो गई, पता ही नहीं चला। अच्छी बात यह हुई की चिन्नम्मा मुझे ढूंढते हुए सही जगह पहुँच गई, और उसने मुझे दोपहर के खाने के लिए घर बुलाया। आज हम तीनों (अम्मम्मा, अल्का और मैं) एक साथ खाने की टेबल पर खाना खा रहे थे (दोपहर में शायद ही हमने साथ में खाया हो)। हमेशा शलवार-कुरता पहनने वाली अल्का, इस समय शर्ट और जीन्स पहने हुए थी। दोनों कपड़े कुछ पुराने लग रहे थे और उसके लिए कुछ कसे हुए भी थे। शर्ट में बस एक-चौथाई आस्तीन थी, और कालर थोड़े चौड़े से.... अल्का बहुत सुन्दर लग रही थी। मैंने उसको प्रसंशा भरी दृष्टि से देखा। शर्ट से परिलक्षित होता हुआ अल्का का सौंदर्य, मैं खाने की टेबल पर बैठे बैठे पी रहा था। अल्का कल की घटनाओं से किसी भी तरह उद्विग्न नहीं लग रही थी। उसको देख कर मैं भी संयत हो गया।
मेरी दृष्टि अल्का के चेहरे से होते हुए उसके वक्षों पर आ कर रुक गई। मन को लालसा ने आ घेरा। उसको भी पता चल गया कि मैं किस तरफ देख रहा हूँ - एक हलकी, पतली मुस्कान उसके होंठों पर तैर गई। कभी वो अपने बालों में हाथ फिराती, तो कभी होठों को जीभ से गीला करती, तो कभी अपनी शर्ट के बटन से खिलवाड़ करती। मैं कभी उसका चेहरा देखता, तो कभी उसकी छाती! मेरे लिंग में वो जानी-पहचानी हलचल पुनः होने लगी। इन सब के अतिरिक्त एक और बात मैंने ध्यान दी, और वह यह कि अल्का काफी प्रसन्न लग रही थी - पहले से कहीं अधिक!
“मैंने एक डीलर से बात करी है… सलाद के पौधों और बीजों के लिए! उसका एक आदमी अभी आता ही होगा। तुम उससे ठीक से बात कर लेना। याद है न, यह तुम्हारा प्रोजेक्ट है। मैंने सिर्फ तुम्हारी असिस्टेंट बन कर रहूंगी!”
उसने बातों ही बातों में मुस्कुराते हुए कहा।
मुझे सुन कर आश्चर्य हुआ! मेरे दिमाग से वो बात तो निकल ही गई थी। न जाने कैसे अल्का को याद था। और तो और, उसने इस दिशा में कार्य भी शुरू कर दिया था। नानी ठीक से सुन नहीं पाती थीं, इसलिए उनको चिल्ला चिल्ला कर बताना पड़ रहा था। खैर, उनको यह जान कर ख़ुशी मिली, कि मैं यहाँ पर अपना काम करना चाहता हूँ। उन्होंने मुझे बहुत सारा आशीर्वाद, और शुभकामनाएं दीं। खाना खत्म कर के हम दोनों गाँव की सड़क की तरफ चल दिए, जहाँ डीलर का आदमी हमसे मिलने आने वाला था। वहां पहुँचने के कोई आधे घंटे में वो आदमी वहां पहुँच गया। उस डीलर ने सलाद की पौध, और बीज का नया नया काम शुरू किया था, इसलिए हमको मेरे आंकलन से कहीं कम दाम में बीज उपलब्ध हो गए। मानसून केरल में अगले पंद्रह दिनों में पहुँच जाने वाला था, इसके पहले ही मैं रोपड़ का कार्य समाप्त कर लेना चाहता था। डीलर ने वायदा किया कि अगले एक सप्ताह में हमको सब पौधे और बीज मिल जायेंगे।
सलाद की खेती के लिए हल बैल की आवश्यकता तो नहीं होती, लेकिन उनका ध्यान बहुत रखना पड़ता है। अच्छी बात यह थी कि, जिस भूमि क्षेत्र में हम सलाद उगाना चाहते थे, वह काफी उपजाऊ थी। बस, बाकी खेत से कुछ अलग थलग रहने के कारण यहाँ कुछ उगाया नहीं जाता था। दो आदमी, पांच से सात दिनों के प्रयास से ही इस खेत को तैयार कर सकते थे। डीलर से सब प्रकार की बाते पूछने, और जानने के बाद, हमने उसको अपनी आज्ञप्ति दे दी। सलाद की खेती उस समय नहीं होती थी, इसलिए उस डीलर ने भी लागत में काफी छूट दी थी। खैर, सारी बातें पक्की कर के, और उसको कुछ रकम पेशगी में दे कर, हमने उससे विदा ली।
उसके बाद, हम दोनों सड़क पर बात करते हुए, धीरे धीरे चल रहे थे। रास्ता कच्चा था, इसलिए रह रह कर हम दोनों की बाहें आपस में रगड़ खा रही थीं। अल्का ने कहा कि कल से ही वो दो लोगों को काम पर लगा देगी। वैसे तो इस कार्य में उन्नत तकनीक प्रयोग में लायी जाती है, लेकिन मैं धीरे धीरे इसका विकास करना चाहता था, जिससे लागत कम आए और खपत का ठीक ठीक अनुमान लगाया जा सके। मैंने राह में चलते चलते अल्का को यह सब बातें बताईं, और यह भी कहा कि मैं भी खेत पर काम करुंगा, जिससे मुझे कार्य का ठीक ठीक अनुमान लग सके। अल्का ने हँसते हुए मेरी बात मान ली, और मुझे छेड़ते हुए बोली कि दोपहर में वो मेरे लिए खाना लाया करेगी, और अपने हाथ से मुझे खिलायेगी। भले ही वो मुझे छेड़ रही थी, लेकिन यह बात सुन कर मुझे अच्छा लगा।
यह सब बातें करते करते जब हम अपने खेत पर पहुंचे तो करीब चार बज गए थे। काम करने वाले लोग तब तक अपने घर लौट गए थे।
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अपने विस्तृत खेत में हम दोनों इस समय एकदम अकेले थे। दोपहर और साँझ के बीच के सन्नाटे में मंद मंद बयार बहुत सुखद लग रही थी। अल्का बोली,
“कल से वहाँ काम शुरू हो जाएगा।”
“हाँ!” मुझे लगा कि यह एक साधारण सा वाक्य है। फिर मुझे लगा कि संभवतः वो कुछ और भी कहना चाहती है। तो मैंने कुछ रुक कर आगे कहा, “तो?”
“तो.… अब उस जगह पर नहाना और तैरना आसान नहीं होगा!”
“हैं? वो क्यों?”
“अरे! अब तो वहां भी लोग आते जाते रहेंगे न!”
'ओओओह्ह्ह! बात तो सही है'
“वो तो है!”
अल्का कुछ झिझकी, “तुमको वहां नहाना हो तो आज नहा लो!”
“अरे! लेकिन मेरे साथ कोई क्या करेगा? मैं तो कभी भी नहा सकता हूँ!” मैंने आँख मारते हुए अल्का को छेड़ा।
“हाँ! बन्दर के साथ कोई क्या ही करेगा! हा हा हा हा!” अल्का जोर से हंसने लगी।
“और तू है बंदरिया!” मैंने चिढ कर बोला।
न जाने क्यों पुरुष का अहम् ऐसे तुरंत ही ठेस खा लेता है। ऐसा क्या कह दिया अल्का ने कि मैं इस तरह से चिढ़ जाऊँ। लेकिन चिढ़ गया।
“मेरा प्यारा बन्दर! लाल लाल पुट्ठे वाला! हे हे हे ही ही ही!”
“आओ बताता हूँ... इतनी मार लगाऊँगा, की तेरी भी लाल हो जायेगी!”
“भी? आहाहाहाहाहा” अल्का के ठहाके थम नहीं रहे थे।
मैंने चिढ कर उसको दौड़ा लिया। वो भागी। खेत की मेढ़ों और कच्चे रास्ते उसके लिए आम बात थे, इसलिए शुरू शुरू में वो मुझसे आगे निकल रही थी। लेकिन जीन्स के कारण गति बन नहीं पाई, और मैंने जल्दी ही उसको धर दबोचा। अल्का को वहीं ज़मीन पर पटक कर उसको उल्टा किया और उसके दोनों चूतड़ों पर बारी बारी से मैंने तीन तीन चपत लगाई।
“ऊईईई अम्मा! हा हा .. माफ़ कर दो! ऊई! अब नहीं कहूँगी.. हा हा!”
खैर, उसके माफ़ी मांगने पर मैंने उसको छोड़ दिया। उसकी शर्ट वैसे ही तंग थी, और इस उठा पटक में वो थोडा ऊपर चढ़ गई थी, और धूल से गन्दी भी हो गई। उस दिन मैंने पहली बार अल्का का नंगा पेट और पीठ देखा! हाथ के मुकाबले काफी गोरा शरीर! जाहिर सी बात है – केरल की धूप में कोई अगर दिन भर बाहर काम करे तो ऐसा तो होना ही है।
“हाय चिन्नू! कितनी जोर से मारा! ऐसे कोई मारता है क्या?” अल्का अपने नितम्ब सहलाते हुए बोली; वो इस बात से अनभिज्ञ थी की मैं उसकी सुन्दरता का आस्वादन कर रहा था!
“सॉरी मेरी आलू!” कह कर मैंने उसके पुट्ठों को सहलाया।
“अच्छा! पहले तो मारता है, और अभी चांस ले रहा है! हट्ट शैतान!”
मैं अचानक ही थोड़ा गंभीर हो गया – और मैंने उसके पुट्ठों से हाथ भी नहीं हटाया, और बस सहलाता रहा।
“आई ऍम सॉरी अल्का!”
मैंने उतनी ही गंभीरता से कहा। मुझे वाकई नहीं समझ में आया कि मैंने उसको इस तरह से क्यों मारा। क्यों मुझे ऐसे गुस्सा आया। क्यों मुझे ऐसे चिढन हुई। अल्का ने मुझे सहलाने से रोका नहीं, लेकिन अपने हाथ से मेरे गाल को हलके से छू कर कहा,
“कोई बात नहीं चिन्नू! चलो.. घर चलते हैं!”
लेकिन मैं वहीँ ज़मीन पर पालथी मार कर बैठ गया, और अल्का को अपनी गोद में बैठा लिया। मैं साथ ही साथ उसकी पीठ, हाथ और नितम्ब सहलाता रहा।
“क्या हो गया, चिन्नू?”
“आई ऍम सॉरी!”
“इट इस ओके!” कह कर अल्का ने मुझे माथे पर एक बार चूम लिया।
“आई ऍम सच में सॉरी, आलू!”
“कोई बात नहीं !” कह कर अल्का ने बारी बारी मेरे दोनों गाल भी चूम लिए।
“मैंने एक और बात सोची है..”
“वो क्या?”
“मैं इस तालाब में नहीं नहाऊँगा...”
“अरे? ऐसे क्यों?”
“बिना तुम्हारे कभी नहीं!”
“हा हा! मेरे चिन्नू! तुम्हारी सुई तो एक जगह ही अटकी हुई है!” उसने हँसते हुए कहा।
“बिलकुल!” मन में पुनः कल की सारी बातें कौंध गईं।
“तो ठीक है... मैं भी नहा लूँगी तुम्हारे साथ में!”
“अभी?”
“हाँ!”
“लेकिन, इन कपड़ों में?”
“कल कैसे नहाया था?”
“मुझे लगा कि तुमको शायद अच्छा नहीं लगा।”
“मेरे चिन्नू.... मुझे तुम्हारे साथ सब अच्छा लगता है। सब कुछ!”
“ऐसी बात है?”
“हाँ”
“मैं कुछ कहूँगा, तो करोगी?”
“अगर कर सकी, तो ज़रूर करूंगी” अल्का की आवाज़ गंभीर होती जा रही थी। कुछ रुक कर, “.... बोलो?”
“बिना कपड़ों के नहा सकोगी मेरे साथ?”
मैंने न जाने किस आवेश में कह दिया। मेरी बात सुन कर अल्का का सर नीचे झुक गया। वो चुप हो गई। मेरे दिल की धड़कनें बहुत बढ़ गईं। हम लोग बिना कुछ बोले चलते रहे - हमारे तालाब की तरफ! करीब पांच मिनट बाद अल्का बेहद गंभीर स्वर में बोली,
“कल जितना नंगा देख कर तुम्हारा मन नहीं भरा? मुझे पूरी नंगी देखना चाहते हो?”
“हाँ.... और हाँ…” मैं लगभग चिल्लाते हुए बोला। यह मेरा खुद को दृढ़ दिखाने का एक बचकाना प्रयास था।
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