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Misc. Erotica छोटी छोटी कहानियां...
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Heart 
हसरतें

हेलो दोस्तों मेरा नाम सुनैना है। मेरे दो बच्चे हैं । बड़ी बेटी का नाम नीतू है और उसकी शादी हो चुकी है। बेटे का नाम सुधीर है वह भी b.a. के फाइनल ईयर का स्टूडेंट है 

मेरेपति का अपना बिजनेस है। हम एक उच्च मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते हैं। अच्छा घर बार है, ज़िन्दगी जीने की सभी सहूलतें हैं। किसी चीज की कोई कमी नहीं है। इस समय मेरी उम्र 43 साल की है। अभी पिछले साल ही मेरी बेटी की शादी हुई।


पिछले साल मेरी जिंदगी में एक ऐसा मोड़ आया जिसने मेरी पूरी जिंदगी बदल कर रख दी। मुझे तो यह भी समझ नहीं आ रहा कि मैं इस अनोखे मोड़ को सुखदायक कहूं या दुख दायक। 

उस घटना को बयान करने से पहले मैं उस घटना के असली कारण को बताना चाहती हूं जिसके कारण यह घटना घटी। इस घटना का असली कारण था मेरे पति का हर दिन शराब पीना। मेरे पति हर रोज शराब पीते हैं। शादी के समय में वो ऐसे नहीं थे उस समय वह नौकरी करते थे। जिंदगी सुखी थी। बच्चों के जन्म के बाद उन्होंने अपना बिजनेस शुरू किया। शुरुआत में काम अत्यधिक होने के कारण दौड़ धुप करनी पड़ती थी। वो इतना थक जाते थे के कभी कभी थकान मिटाने के लिए दो एक दो पेग दारू के लगा लिया करते थे। धीरे-धीरे यह उनकी आदत बन गई। 

पहले पहले मैं उनको उनकी इस आदत के लिए खूब कोसा करती थी मगर धीरे धीरे मैंने उनकी आदत को स्वीकार कर लिया। इसके दो तीन कारण थे पहला कारण तो बता मैं खुद देख सकती थी कि वह दारू को अय्याशी के लिए नहीं बल्कि एक जरूरत के हिसाब से पीते थे। दूसरा मुख्य कारण था कि वह दारू पीकर कभी भी हल्ला नहीं करते थे लड़ाई झगड़ा नहीं करते थे। वह काम से आते थे दारु पीते थे और उसके बाद सो जाते थे 

मगर सबसे बड़ा कारण यह था कि दारु पीने के बाद वह हर रोज मेरी खूब दम लगाकर चुदाई करते थे। मेरी हर हर रोज भरपुर ठुकाई होती थीर। अक्सर लोग कहते हैं कि जैसे जैसे आदमी की जवानी ढलती है दिन बीतते हैं वैसे वैसे सेक्स की चुदाई की इच्छा कम होने लगती है। यह बात मेरे पति के हिसाब से बिल्कुल ठीक थी। धीरे-धीरे उनकी चोदने की इच्छा कम हो रही थी 

लेकिन मेरे बारे में जो बिल्कुल उल्टी बात थी जैसे-जैसे मेरी उम्र बढ़ रही थी मेरी चुदवाने की इच्छा और भी तेज होती जा रही थी ऐसे में जब मेरे पति रात को दारू से टुन्न होकर दनादन मेरी चूत मैं लंड पेलते थे और मेरी खूब दमदार चुदाई करते थे तो मैं भला उनकी दारू को बुरा भला कैसे कह सकती थी। 

बस उनके मुंह से आने वाली दुर्गन्ध अच्छी नहीं लगती थी। लेकिन एक बार जबाब उनका लण्ड मेरी चूत के अंदर उत्पात मचाना सुरु करता था तो दुर्गन्ध भी खुशबू लगने लगती थी। मेने कभी यह नहीं सोचा था के उनकी दारू की लत्त जिसका मुझे भरपूर लाभ मिलता था आगे चलकर कभी मेरे लिए इतनी बड़ी मुश्किल बन्न सकती थी के मेरी पूरी ज़िन्दगी ही बदल देगी।

##

हुआ यूँ के मेरी बेटी की शादी के समय मेरे जेठ जी भी अपने पूरे परिवार सहित आये हुए थे। वो अमेरिका में रहते हैं। उनका एक बेटा है जिसकी सगाई अमेरिका में हो चुकी थी मगर शादी दोनों परिवार भारत में ही करना चाहते थे। इसीलिए जब वो नीतू की शादी के लिए भारत आये तो उन्होनो साथ में ही अपने बेटे की शादी करने का भी निर्णय कर लिया। 

मेरी बेटी की शादी के ठीक एक महीने बाद उनके बेटे की शादी की तारिख निकली। अब हम बंगलौर में रहते हैं जबके मेरे जेठ के लड़के के सुसराल वाले पुणे के हैं। चूँकि हम लड़के वाले थे इस लिए हमें बारात लेकर पुणे जाना था। मेरे जेठ जी ने पुणे का एक पूरा होटल बुक् करवा लिया था। 

शादी के दो दिन पहले हम होटल पहुंचे थे। दोनों परिवार इतने रईस थे और शादी पर इतना खर्च हुआ के शादी की चकाचोंध देख कर पूरी दुनिया विस्मित हो उठी। नीतू को अपने पति के साथ अलग कमर मिला था और मुझे अपने पति के साथ एक अलग कमरा जबके मेरे बेटे सुधीर को दो और लड़को के साथ कमरा शेयर करना पड़ा था।


पहली रात तो सफ़र की थकान ने हमें इतना थक दिया था के उस रात में और मेरा पति घोड़े बेचकर सोते रहे। 

मगर दूसरे दिन मेरा मन मचल रहा था। पूरा दिन शादी की ररंगीनियों में गुज़रा था। घर की सजावट से लेकर खाने पीने तक सभ कुछ इतना शानदार था के बस मन वाह वाह कर उठे। वैसे भी विदेश में वसने के कारन शादी का माहोल भी काफी खुलापन लिए था। लडकिया ऐसे छोटे छोटे और टाइट कपडे पहन कर घूम रही थी जैसे उन्होनो कपडे अपने अंगों को ढकने की बजाये उन्हें दिखाने के लिए पहने हुए थे। मगर लडकिया तो लडकिया औरतें भी कम् नहीं लग रही थी। किसी की साड़ी का पल्लू पारदर्शी था और अंदर से पूरा ब्लाउज मोटे मोटे मम्मो के दर्शन करवा रहा था तो किसी का लहंगा इतना टाइट था के गांड का पूरा उभार खुल कर नज़र आता था। कोई डीप गले का सूट पहन कर आधे मम्मे दिखाती घूम रही थी तो कई बिना ब्रा के इतना टाइट सूट पहन कर घूम रही थी के देखने वाले को पूरे मम्मो के दर्शन हो जाये। निप्पल तक पूरे साफ़ साफ़ दिखाई दे रहे थे।


मर्दों की खूब चांदी थी। गानों पर नाचते हुए औरतों को खूब मसल रहे थे। और गाने भी कैसे....मुन्नी बदनाम हुयी, बीड़ी जला ले... उफ्फ्फ ऐसा माहोल मेने नहीं देखा था। जिस तरह खुलेआम मरद औरतें एक दूसरे के साथ ठरक भोग रहे थे 

उनको देख कर मेरी ठरक भी कुछ् जयादा ही बढ़ गयी थी। मेरे निप्पल कड़े हो गए थे और चूत भी खूब रस बहा रही थी। ऐसे में एक मनचले ने नाचते हुए बहाने से दो तीन बार मुझे रगड़ दिया। उफ़फ हरामी ने चिंगारी को हवा देकर भड़का दिया था अब मेरा पूरा जिस्म वासना की भीषण अग्नि में जल रहा था। 

वहां का माहोल गरम और गरम होता जा रहा था। हर कोई इशारों इशारों में बातें कर रहा था। हर मरद औरत टंका फिट कर रहे थे। आज कई औरतें पराये मर्दों के निचे लेटने वाली थी। कईयो की आज सील टूटने वाली थी। आज रात चुदाई का खूब दौर चलने वाला था।

 खुद मेरी बेटी मेरे सामने अपने पति से लिपटी हुयी थी। उसे तो लगता था मेरी मोजुदगी से कोई मतलब ही नहीं था। खैर उसका दोष भी कया था, नयी नयी शादी हुयी थी। चूत को लण्ड मिला था और जिस तरह से मेरा दामाद उसे खुद से चिपकाये हुए था, जैसे वो बार बार उसके अंगो को सहला रहा था, मसल रहा था लगता था मेरी बेटी की खूब दिल खोलकर ठुकाई करता था। 


इधर वो कम्बखत जिसने नाचने के दौरान कई बार मुझे मसला था मेरे आगे पीछे ही घूम रहा था। कमीने ने बड़े ज़ोर ज़ोर से मम्मो को मसला था। निप्पल मैं अभी भी हलकी हलकी चीस उठ रही थी। अभी भी मौका देखकर वो कई बार मेरे नितम्बो में ऊँगली घुसा चूका था। 

मेने उसे घूर कर देखा मगर हद दर्जे का ढीठ इंसान था। वैसे भी जवान था। कोई पैंतीस के करीब का होगा। जिसम भी बालिश्ठ था। ऐसे आदमी बहुत ज़ोरदार चुदाई करते हैं। वो जिस तरह से मुझे देख रहा था लगता था बस मौके की तलाश कर रहा था के कब् मुझे ठोकने का उसे मौका मिला। वो मेरी और देखते हुए ऐसे होंठो पर जीभ फिरा रहा था और इस तरह पेंट के ऊपर से अपने लण्ड को मसल रहा था जेसे वहीँ मुझे खड़े खड़े ही चोद देना चाहता हो। पेंट का उभार देखकर लगता था खूब मोटा तगड़ा लण्ड था। 

मेरी चूत पानी पानी हो चुकी थी। पूरी देह कामाग्नि मैं जल रही थी। अब तो मेरा दिल भी खुल कर चुदवाने के लिए मचल रहा था। और मेरे सामने वो अजनबी पूरी तरह तयार था मेरी भरपूर चुदाई के लिए। एक तो पिछली रात को मेरी चुदायी नहीं हुयी थी और ऊपर से आज के माहोल ने मुझे इतना गरम कर दिया था के एकबारगी तो मेरा दिल भी मचल उठा के आज पराये लण्ड से चुद जायुं। उफ्फ्फ कामोन्माद मेरे सर चढ़कर बोल रहा था और मैं जिसने आज ताक अपने पति के सिवा किसी दूसरे लण्ड को छूआ तक नहीं था आज पराये मरद के नीचे लेटने के लिए मचल रही थी। दिल कर रहा था आज अपने जिसम को लूटा दूँ, उस अनजान आदमी से अपना कांड करवा दूँ, अपनी चूत के साथ साथ अपनी गांड भी उससे मरवायुं। 

और यकीनन ऐसा हो भी जाता अगर में वहां से चली न आती। अगर कुछ देर और वहां रूकती तोह जरूर उससे ठुकवा बैठती। मैं कमरे में आते ही नहाने चली गयी। ठन्डे पानी ने आग को और भड़का दिया। चूत लण्ड के लिए रो रही थी। मेरे मम्मे मैं कसाव भर गया था। निप्पल इतने अकड़े हुए थे के ज़ोर ज़ोर से मसल कर ही उनको ढीला किया जा सकता था।

मेरा दिल तो जरूर था ऊँगली से खुद को शांत करने का। मगर मेने अपने पति का इंतज़ार करना ही बेहतर समझा। आग तो आज उसके दिल में भी बराबर लगी होगी। कल रात उसके लण्ड को भी चूत नसीब नहीं हुयी थी। और वेसे भी वो आज खूब पिए हुए था। आज तो जरूर पतिदेव मेरी चूत की ऐसी तैसी कर देने वाले थे। उन्हें भी मेरी चूत मारे बिना नींद कहाँ आती थी। जरूर आने ही वाले थे। मगर इंतज़ार एक पल का भी नहीं हो रहा था। मेने बदन पोंछा और कमरे की बत्ती बंद करके पूरी नंगी ही बेड पर लेट गयी।

मुझे नहाये हुए दस् मिनट ही गुज़रे होंगे के अचानक से कमरे का दरवाजा खुला और पतिदेव अंदर आये। मेने झट से अपने ऊपर चादर खींच ली के कहीं उनके साथ कोई हो ना। मगर वो अकेले थे उन्होनो दरवाजा खोला और अंदर कदम रखते ही वो गिर पड़े। लगता था दारू कुछ जयादा ही चढ़ा ली थी। मेने कुछ पल इंतज़ार किया के वो उठकर बेड की तरफ आ जाये। मगर जिस तरह उन्होनो पी रखी थी उससे तो उनका बेड ढूंढ पाना भी मुश्किल ही था। 

मुझे ही हिम्मत करनी थी। मैं चादर हटाकर बेड से निचे उतरी। दरवाजा हल्का सा खुला था इसलिए मेने बत्ती नहीं जलायी। पूरी नंगी दरवाजे के पास गयी। दरवाजा बंद करके मेने पति को सहारा दिया और वो खांसता हुआ उठ खड़ा हुआ। उससे शराब की तेज़ गंध आ रही थी। मुझे शक हो रहा था के वो इतने नशे में मुझे चोद भी पायेगा के नहीं। में किसी तरह पति को बेड तक लेकर गयी और वो उस पर गिर पड़ा। 

मेने जल्दी से उसके बदन पर हाथ घुमाया तोह मेरा दिल ख़ुशी से झूम उठा। उसका लण्ड पत्थर की तरह कठोर था। मेने उसे हाथ में पकड़ कर मसला तोह उसने तेज़ ज़ोरदार झटका खाया। उफ्फ्फ आज तो उसका लण्ड कुछ जयादा ही तगड़ा जान पढता था। एकदम कड़क था। बल्कि मेरे मसलने से और भी कडा होता जा रहा था। अब मुझे परवाह नहीं थी। अगर पतिदेव कुछ नहीं भी करते तो में खुद लण्ड पर बैठकर दिल खोलकर चुदवाने वाली थी।

मेने पेंट को खोला और खींच कर टांगो से निकल दी। फिर मेने जांघिये को इलास्टिक से पकड़ खींचते हुए पैरों से निकाल कर निचे फेंक दिया। मैं बेड के किनारे बैठ लण्ड को हाथ में लेकर मसलने लगी।

"उफ्फ्फ्फ्फ़.........कहाँ थे जी आप अब तक। यहां मेरी चूत जल रही है और आपको शराब के बिना कुछ नजर ही नहीं आता। कल रात भी आपने मुझे नहीं चोदा। वैसे आपको तो शायद याद न हो मगर इस पूरे साल में कल पहली रात थी जब अपने मेरी चूत नहीं मारी थी।"

 पतिदेव की तेज़ तेज़ भरी साँसे गूंज रही थी। वो जाग रहे थे मगर कुछ बोल नहीं रहे थे जा शायद जयादा शराब पिने के कारन बोलने लायक नहीं रहे थे।

"थोड़ी कम पी लेते।" मैं पतिदेव के टट्टो को हाथों मैं भर सहलाती बोली। मेने थोडा सा दवाब बढ़ाया तो उनके मुंह से तेज़ सिसकी निकली। वो जाग रहे थे अब कोई शक नहीं था। मेने अपना मुंह झुकाया और सुपाड़े को अपने होंठो में भर लिया। जैसे ही मेरी जिव्हा लण्ड की मुलायम त्वचा से टकराई पतिदेव के मुंह से 'आह्ह्ह्ह्ह्' की ज़ोरदार सिसकारी निकली। में मन ही मन मुस्करा उठी। लण्ड को होंठो में दबा में सुपाड़े को चाटती उसे चूसने लगी। एक हाथ से टट्टे सहलाती मैं मुख को धीरे धीरे ऊपर नीचे करने लगी। लण्ड और अधिक फूलता जा रहा था। मुझे हैरानी होने लगी थी मगर हैरानी से ज्यादा ख़ुशी हो रही थी। मेरा मुख और भी तेज़ी से ऊपर नीचे होने लगा। 

तभी पतिदेव ने मेरे सर को पकड़ लिया और अपना पूरा लण्ड मेरे मुंह में घुसाने लगे। मेने उनके पेट पर हाथ रखकर उन्हें ऐसा करने से रोका। पहले मैं उनका पूरा लण्ड मुंह में ले लेती थी मगर आज जिस प्रकार उनका लौड़ा फूला हुआ था मैं चाह कर भी उनका पूरा लण्ड मुंह में नहीं ले सकती थी। वैसे भी उस समय मैं लण्ड मुंह में नहीं अपनी चूत में चाहती थी।

मेने लण्ड से अपना मुख हटाया और पतिदेव की टांगे उठाकर बेड के ऊपर कर दी। फिर मैं फ़ौरन बेड के ऊपर चढ़ गयी। एक हाथ से लण्ड पकडे मैं पतिदेव के ऊपर सवार हो गयी। उनकी छाती पर एक हाथ रखकर मैं ऊपर को उठी जबके दूसरे हाथ से उनका लण्ड थामे रखा। जहां अंधेरे में मेने अपनी कमर हिलाकर अंदाज़े से लण्ड के निशाने पर रखी और फिर धीरे धीरे कमर नीचे लाने लगी। 

लण्ड मेरे दोनों नितम्बो के बिच घुसता हुआ आगे मेरी चूत की और सरकने लगा। जैसे ही लण्ड का सुपाड़ा मेरी भीगी चूत के होंठो से टकराया हम दोनों के मुख से आह निकल गयी। आज हम दोनों कुछ जयादा ही उत्तेजित थे। पतिदेव का लौड़ा तो कुछ जयादा ही मचल रहा था।

"ऊऊफ़्फ़फ़्फ़ देखिये ना आपका लण्ड कितनी बदमाशी कर रहा है। एक दिन चूत नहीं मिली तो कैसे अकड़ कर उछल कूद मचा रहा है। अभी इसको मज़ा चखाती हूँ।" मैं लण्ड को हाथ में दबाये मैंउस पर चूत का दबाव देने लगी। मेरी चूत के होंठ खुले और सुपाड़ा धीरे धीरे अंदर सरकने लगा। उफ्फफ़फ़फ़ सुपाड़ा अंदर घुसते घुसते मुझे पसीना आने लगा। लण्ड इतना फूला हुआ था के मेरी चूत को बुरी तरह से फैला रहा था। मेने अपने सूखे होंठो पर जीभ फिराई और फिर से दबाव बढ़ाना शुरु किया। मेरी रस से सरोबर चूत में पल पल लण्ड अंदर धंसता जा रहा था। 

मुझे हलकी हलकी पीड़ा के साथ अत्यधिक चुभन महसूस हो रही थी जिसने मुझे असमंजस में डाल दिया था। मगर मैं कामोन्माद के चरम पर थी और उस समय सिर्फ और सिर्फ चुदवाने के बारे में ही सोच रही थी। आज तक सिर्फ और सिर्फ मेरे पति ने ही मुझे चोदा है। एक इकलौता लण्ड मेरी हूत में हज़ारों हज़ारों दफा गया है इसलिए मुझे अच्छा खासा एहसास है के वो चूत के अंदर किस सीमा तक घुसता है। और आज जब वो लण्ड उस सीमा से काफी आगे पहुँच चूका था तो मुझे हैरत होने लगी। शायद आज अतिउत्तेजना की वजह से उनका लण्ड कुछ अत्यधिक फूल गया था। जब मेने उसे मुठी में भरा था तो मुझे वो बहुत मोटा लगा था। अचानक नजाने कयों मुझे अजीब सा लगा और मैं अपना एक हाथ नीचे हम दोनों के बीच ले गयी। उफ्फ्फ मेरे आस्चर्य की सीमा न रही। लण्ड तो अभी भी एक इंच से जयादा बाहर था। 

मैं कुछ समझ पाती उसी समय मेरे पति के दोनों हाथ मेरी कमर पर कस गए और आईईईईईईए.......... मेरे मुंह से तेज़ सिसकारी निकल गयी। कमीने ने दोनों हाथों में मेरी कमर जकड़ कर नीचे को दबाया और नीचे से अपनी कमर ऊपर को उछाली और पूरा लण्ड मेरी चूत में पेल दिया। वो कमीना ही था। मेरे पति का लण्ड इतना लम्बा मोटा नहीं हो सकता था। वो कौन था मुझे कोई अंदाज़ा नहीं था और में सोचने की हालात में भी नहीं थी। 

कमीने ने लण्ड अंदर घुसाते ही धक्के लगाने सुरु कर दिए। मेरी कमर पकड़ वो नीचे से दनादन मेरी चूत में लण्ड पेलने लगा। मेरी कमर को उसने बहुत कस कर पकड़ा हुआ था के कहीं मैं भाग न जायुं। मगर मैं भागने की स्थिति में तो थी नहीं। कामोत्तेजना तो पहले ही मेरे सर चढ़ी हुयी थी और चूत में उस भयंकर लण्ड के ताकतवर धक्को ने मुझे पसत कर दिया। मेरे मुख से सिसकियाँ निकलने लगी। मैं आह उनन्ह उफ्फ्फ करती सिसकती कराहती चुदने लगी। सिसकियों के साथ साथ में खुद अपनी कमर हिलती चुदाई में उसका साथ देने लगी। 

मुझे राजी देखकर उसकी पकड़ धीरे धीरे मेरी कमर पर हलकी पढने लगी। जैसे ही मेरी कमर पर उसकी पकड़ ढीली पड़ी मेने अपने दोनों हाथ उसकी छाती पर रखे और उछाल उछाल कर अपनी चूत उसके लण्ड पर पटकने लगी। वो भी ताल से ताल मिलाता मेरी चूत में लण्ड पेलने लगा। फच फच की आवाज़ कमरे में गूंजने लगी।
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Heart 
मेने एक बार भी उस पराये आदमी को रोकने की कोशिश नहीं की थी। मेरे दिल में ख़याल तक नहीं आया था के मैं अपने पति के साथ धोखा कर रही हूँ। सुना था भगवान मन की मुराद पूरी कर देता है आज देख भी लिया था। आज शाम से बार बार मन में पराये आदमी से चुदवाने का ख़याल आ रहा था और अब हक़ीक़त में एक ताकतवर लण्ड मेरी चूत को बुरी तरह से रगड़ ररहा था।
उफ्फ्फ्फ्फ़ कहीं यह वही तो नहीं जिसने डांस के समय कई बार मेरे मम्मो को मसल दिया था। वही होगा। पूरी शाम मेरे आगे पीछे घूम रहा था।


मैं अभी सोच ही रही थी के उसने मेरी बाहें पकड़ी और मुझे अपने ऊपर गिरा लिया। फिर वो मुझे एक तरफ को करके मेरे ऊपर आ गया। मेरी टांगे के बीच आकर उसने मेरे पैर पकडे और उठाकर अपने कंधो पर रख लिए। मेने अपनी टांगे आगे कर उसकी गर्दन पर लपेट दी। उसने अपना लौड़ा मेरी चूत रखा और एक करारा झटका मारा। कमीने ने पूरा लौड़ा एक ही झटके में जड़ तक पेल दिया था। मैं चीख ही पड़ी थी। मगर उसने कोई दया न दिखाई और मेरे कंधे थाम मेरी चूत में फिर से लण्ड पेलने लगा।

 'आअह्ह्ह्ह्ह....ऊऊन्ग्गह्ह्ह्ह्ह्ह्........ऊऊऊम्मम्मम्म....' मेरी सिसकियां तेज़ और तेज़ होने लगी। वो और भी जोश में आ गया।

"ऊऊफ़्फ़फ़्फ़.........हायययययययययय.........मेरे मेरे मम्मे पकड़ो....मेरे मम्मे पकड़ो.." मेने उसके हाथ कंधो से हटाकर अपने मम्मो पर रख दिए। 

उसने तृन्त मेरे मम्मो को अपने हाथो में कस लिया। 

"ऐसे ही मेरे मम्मो को मसल मसल कर मुझे चोदो। कस कस कर चोदो मुझे" मैं उस अनजान सख़्श से बोली। और जैसा मेने उसे कहा उसने वैसा ही किया। मेरी टांगे कंधो पर जमाये उसने ऐसे ताबड़तोड़ धक्के मेरी चूत में लगाये के में बदहवासी में चीखने लगी। उसका मोटा लण्ड मेरी चूत को इतनी बुरी तरह रगड़ रहा था और मुझे ऐसा असीम आनंद आ रहा था के में उसे उकसाती कमर उछाल उछाल कर चुदवाने लगी। वो भी धमाधम लण्ड पेले हा रहा था। कैसा जबरदस्त आनंद था और वो आनंद पल पल बढ़ता ही जा रहा था। आखिरकार मेरा बदन अकड़ने लगा। मैं हाथ पांव पटकने लगी।


"उफ्फ्फ्फ़......मारो......और ज़ोर ज़ोर से मारो.......हाय चोदो मुझे जितना चाहे चोदो..........पूरा लौड़ा पेलो.........आआईईईईई......." मैं बहुत देर तक टिक न सकी और मेरी चूत से रस फूटने लगा। 

वो अजनबी अभी भी मुझे पेले जा रहा था। एक एक धक्का खींच खींच कर लगा रहा था। और फिर वो भी छूट गया। मेरी जलती चूत में उसका गरम गरम रस गिरने लगा। हुंगार भरता वो मेरी चूत को भरने लगा। वो अभी भी धक्के लगा रहा था। आखिरकार उसके धक्के बंद हो गए। मगर वो अब भी उसी हालात में था। अब भी उसके हाथ मेरे मम्मो को कस कर पकडे हुए थे। अब भी मेरी टांगे उसके कंधो पर थी। 

मेरी साँसे लौट चुकी थी। मेने उस अजनबी के चेहरे को पकड़ अपने चेहरे पर झुकाया और अगले ही पल हमारे होंठ मिल गए। मैं उसकी जिव्हा को अपने होंठो में भरकर चूसने लगी। वो भी मेरे मुखरस को पीता मेरे होंठो को काटता मुझे चूमने चाटने लगा। धेरे धीरे उसके हाथ मेरे मम्मो पर फिर से चलने लगे। कभी मैं उसके होंठो को चूमती चुस्ती तो कभी वो। हमारी साँसे फूलने लगी। जब हम दोनों के चेहरे अलग हुए तो हम हांफ रहे थे। सांसे सँभालते ही हमारे होंठ फिर से जुड़ गए।

"मेरी टांगो में दर्द हो रहा है" इस बार जब हमारे होंठ जुदा हुए तो मेने उसे धीमे से कहा। उसने तृन्त मेरे मम्मो से हाथ हटाये और आराम से मेरी टांगे अपने कंधो से उतार दी और फिर वो मेरे ऊपर से हट गया। कुछ देर बाद वो उठा और अँधेरे में अपने कपडे ढूंढने लगा।

"दरवाजे के दायीं और स्विच है।" मेने उसे बताया। मगर उसने स्विच ओन नहीं किया और वहीँ अँधेरे में हाथ चलता रहा। मुझे उस पर हैरत हो रही थी। वो अभी अभी मुझे चोद कर हटा था और मुझे चेहरा दिखने में उसे डर लग्ग रहा था। जबके एक औरत होने के नाते डरना मुझे चाहिए था। खैर उसे अपनी पेंट मिल गयी और वो पहनने लगा। मुझे उसका इस तरह से अचानक चला जाना अच्छा नहीं लगा।

"सुनो...." दरवाजे के हैंडल को पकडे वो वहीँ पर रुक गया। "तुमने अभी अभी मुझे चोदा है कम से कम मुझे अपना नाम तो बताकर जाओ..." 

मगर वो कुछ नहीं बोला और उसने दरवाजे का हैंडल घुमाया। मुझसे रहा नहीं गया। "तुम डर क्यों रहे हो? तुमने चोरी से मेरे रूम में घुसकर जबरदस्ती मेरी चुदाई की है मगर मेने तुम्हे कुछ नहीं कहा बल्कि तुम्हारा पूरा साथ दिया है। फिर इस तरह घबरा कर भाग क्यों रहे हो।" 

वो फिर भी कुछ नहीं बोला। शायद वो मन में हालात का जायजा वे रहा था। मैं उसे अभी जाने नहीं देना चाहती थी। और उसे रोकने के लिए उसे विस्वास दिलाना जरूरी था के मैं उसका पकड़वाने वाली नहीं थी।

"देखो अगर मेने तुम्हे पकड़वाना होता तो में तुम्हे कब की पकड़वा चुकी होती.......तुम्हे खुद इस बात बात का एहसास होना चाहिये। तुम बेकार में डर रहे हो।" वो कुछ पल खड़ा अँधेरे में सोचता रहा और फिर जैसे उसने फैसला कर लिया। उसने हैंडल घुमाया। 

मैं बेड से निचे उतरी। कैसा गधा है यह, मैं इसे निमत्रण दे रही हूँ और यह भाग रहा है|

"देखो रुको.....जाने से पहले मेरी बात सुनलो" 

उसके हाथ वहीँ ठिठक गए। 

अब आखिरी मौका था उसे रोकने का। "देखो मुझे लगता है तुम जानते हो के मैं कौन हूँ और तुम मुझे पहचानते हो.....लेकिन मुझे नहीं मालूम तुम कौन हो नाही मैं तुम्हे पहचानती हूँ और अगर तुम बताना नहीं चाहते तो मुझे कोई एतराज़ नहीं है। मैं तुमसे नहीं पूछूंगी।" 

इस बार मेरे शब्दों ने असर दिखाया और उसने हैंडल छोड़ दियाऔर वो मेरी तरफ घूम गया। 

"जो सुख जो आनंद आज तुमने मुझे दिया है मेरे पति ने आज तक मुझे नहीं दिया। इतना मज़ा.....इतना मज़ा पहले कभी नहीं आया।"मैं चलते चलत्ते उसके पास पहुच गयी थी। हम दोनों आमने सामने थे। "मैं तुम्हारा सुक्रिया अदा करना चाहती थी। तुम्हारा नाम इसलिए पूछ रही थी के अगर बाद में कभी......कभी भी.......मेरा मतलब है अगर कभी फिर से तुम्हारा दिल करे तो मुझे कोई एतराज़ नहीं है" मैं सिसकती आवाज़ में बोली। 

अब वो मेरी बात सुन रहा था और वहां से जाने के बारे में भूल चूका था। मेने अपना हाथ आगे बढाकर उसके सीने पर रखा और फिर उसे निचे की और ले जाने लगी। उसकी सांसो की रफ़्तार तेज़ हो रही थी। शायद वो भी अभी वहां से जाने का इच्छुक नहीं था। मगर अपना भेद खुलने से डर रहा था। मेरा हाथ जब पेंट की जिपर पर गया तो वहां पर हलकी सी हलचल देख कर मेरे होंठो पर मुस्कान आ गयी। मेने धेरे से पेंट की जिपर नीचे खींच दी। और उसके जांघिये में हाथ डालकर उसका कड़क होता लण्ड पकड़ लिया। मेरा हाथ लगते ही वो सिसक उठा।

"तुम्हारा यह बहुत बड़ा है.....बहुत मोटा है.......लंबा भी खूब है......मुझे नहीं मालूम था यह इतना बड़ा भी हो सकता है" मैं लण्ड को मसलते बोली जो अभी भी मेरी चूत के रस से भीग हुआ था। । लण्ड तेज़ी से अकड़ता जा रहा था। "उफ्फ्फ्फ़ यकीन नहीं होता इतना मोटा लण्ड मेरी चूत के अंदर था.......बहुत ज़ोर से ठोका है तुमने मुझे......मेरी चूत में चीस उठ रही है" में आग में घी डालते बोली। उसकी सांसो की रफ़्तार मुझे बता रही थी के वो कितना उत्तेजित है। वो धीरे धीरे मेरे हाथों मैं अपना लण्ड ठेल रहा था। "सुनो.....मेरे पति आज रात आने वाले नहीं है......अगर तुम कुछ देर और रुकना चाहो तो......" 

वो कुछ नहीं बोला। मेने उसके लण्ड से हाथ हटाये और उसके हाथ पकड़ अपने मम्मो पर रख दिए। वो मेरे निप्पलों को मसलने लगा और में उसकी पेंट की बेल्ट खोलने लगी। उसकी पेंट और जांघिया खुलते ही उसने अपना चेहरा झुकाया और मेरे निप्पल को होंठो में भरकर चुसकने लगा। में फिर से उसका लण्ड मसलने लगी। वो मेरे मम्मो को चूस्ता चाटता उन्हें दांतो से काट रहा था और में उसे रोक नहीं रही थी।

कुछ देर उससे मम्मे चुसवा कर मेने उसका चेहरा अपने सीने से हटाया और उसके पैरों के पास घुटनो के बल बैठ गयी। मैं जीभ निकाल उसके लण्ड को चाटने लगी। उसकी सिसकारियाँ गूंजने लगी। अब वो मेरे बस में था। सुपाड़े को अपनी जिव्हा से रगर रगड़ कर लाल करने के बाद मेने उसे अपने मुंह में भर लिया और उसे चूसने लगी। में अपना मुख हिलाती लण्ड को खूब मज़े से चुसक रही थी। अब उसका लण्ड फिर से अपने भयन्कर रूप को धारण कर चूका था। मुझसे इंतज़ार नहीं हो रहा था और उस अजनबी से भी नहीं। उसने मेरे कंधे पकड़ मुझे उठाया। मैं खड़ी हो गयी और हमारे होंठ मिल गए। मुझे चूमते हुए उसने मेरी एक टांग उठा ली और मेरी चूत पर लण्ड दबाने लगा। मेने लण्ड को हाथ से पकड़ रास्ता दिखाया। 

अगले ही पल लण्ड का सुपाड़ा चूत में था। में उत्तेजना में उसके होंठ काटने लगी। मेने अपनी टांग उसकी कमर पर लपेट दी और अपनी बाहें उसके गले में डाल दी। उसने एक हाथ से मेरी टांग को उठाया और दूसरे को मेरी पीठ पर लपेट मेरी चूत में लण्ड पेलने लगा। वो मुझे ठोकने लगा और मैं फिर से ठुकने लगी। हम दोनों एक दूसरे के मुंह में सिसक रहे थे। दोनों चुदाई में एक दूसरे की सहायता कर रहे थे। उसका मोटा लण्ड मेरी चूत में खचाखच खचाखच अंदर बाहर हो रहा था।

"कहीं तुम वहीँ तो नहीं जो डांस के समय बार बार मेरे मम्मो को मसल रहा था और मेरी गांड में ऊँगली डाल रहा था।" 

मगर उसने कोई जवाब नहीं दीया। वो बस लगातार मुझे चोदे जा रहा था जेसे उसे यह मौका दुबारा नहीं मिलने वाला था। मेने उसे दुबारा नहीं पूछा। कहीं वो डर कर चुदाई बंद न कर दे। मुझे भी ऐसा कड़क लण्ड शायद दुबारा नहीं मिलने वाला था इसीलिए मेने भी मौके का पूरा फायदा उठाने की सोची और मस्ती में खुल कर चुदवाने लगी। हर धक्के का जवाब में भी बराबर ज़ोर लगा कर दे रही थी। पूरी मस्ती में ठुकवा रही थी।

"ओह्ह्ह गॉडडडडड........ऊऊफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्............पेलो......कस कस कर अपना लण्ड पेलो। ऊऊफ़्फ़फ़्फ़ ऐसे ही चुदवाने के लिए में तड़फती थी। और ज़ोर से......और ज़ोर से......हाययययययय......ऊउन्ननगहह्ह्ह् मेरी चूत.....मेरी चूत......चोदो मुझे...." 

मेरी बातें उसके जोश को दुगना चुगना कर रही थी। फिर यकायक वो रुक गया और मुझसे अलग हो गया। शायद वो आसान बदलना चाहता था। उसने मुझे घुमाया और मेरे सर को निचे की और दबाने लगा। मुझे समझने में देर न लगी और में तरुन्त बेड के किनारे को पकड़ झुक कर घोड़ी बन गयी। उसने पीछे से मेरी कमर को पकड़ा और अपना लण्ड पूरे ज़ोर से मेरी चूत में घुसेड़ दीया।
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"आआईईईईईई........ऊऊन्नन्नह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्............हाय बेदर्द.......ऊऊन्नन्नह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्हूऊफ़्फ़्फ़्.......चोद मुझे.......ऐसे ही कस कस कर पेल अपना लौड़ा मेरी चूत में......." मैं घोड़ी बनी चीखती अपनी चूत उसके लण्ड पर धकेल रही थी। 

वो भी पूरा ज़ोर लगा रहा था। एक एक धक्का खींच खींच कर लगा रहा था। पूरा लण्ड चूत को चीरता जड़ तक अंदर बाहर अंदर बाहर हो रहा था। इस तेरह पीछे खढे होकर मेरी कमर को पकड़ कर उसे धक्के लगाने में आसानी हो रही थी और वो मज़े में अपना पूरा ज़ोर लगाता मुझे पेले।जा रहा था। 

और मैं सिसकती कराहती बेशर्मी से उसे उकसा रही थी। मेरे अति अश्लील शब्द् सुन कर जोश में वो मेरी चूत की ऐसी तैसी कर रहा था। उस कमीने की उस ज़ालिम चुदाई में इतना आनंद था के मैं बहुत देर तक रुक न सकी और फिर से मेरी चूत झड़ने लगी। बेड की चादर को मुट्ठियों में भींच मैं चीख रही थी और वो दे दनादन मेरी चूत में लण्ड पेले जा रहा था। 

कुछ देर बाद वो भी ऊँचे ऊँचे सिसकने लगा। धक्को की रफ़्तार बहुत बढ़ गयी थी। अब किसी भी पल उसका छूटने वाला था। 

मैं अपनी चूत में उसके रस की बौछार का इंतज़ार कर रही थी के अचानक कानो को भेद देने वाला शोर सुनाई दिया। हम दोनों रुक गए। वो फायर अलार्म था। मैं घबरा कर उठी और दौड़ कर दरवाजे के पास गयी और लाइट का स्विच ढूंढने लगी।

"नहीं रुको, लाइट मत जलाओ।" वो घबराई मगर बेहद जानी पहचानी आवाज़ मेरे कानो में गूंज उठी। मगर देर हो चुकी थी। उसके बोलने से पहले ही में स्विच ऑन कर चुकी थी। कमरा रौशनी से जगमग उठा। और फिर मेने उस अजनबी को देखा।

उस अजनबी को देखते ही मेरे पांव तले ज़मीन खिसक गयी। वो कोई और नहीं सुधीर था जो कुछ क्षण पहले मुझे घोड़ी वनाकर चोद रहा था। मेरा अपना बेटा मेरे सामने पूरा नंगा खड़ा था। मेरी सारी सोच समझ जवाब दे गयी। मैं कया करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा था। मेरा बेटा मेरे सामने नंगा खड़ा था और उसका मोटा लम्बा लण्ड मेरी आँखों के सामबे ऊपर निचे हो रहा था और वो मेरे पूरे जिस्म को फटी फटी आँखों से देख रहा था।

"सुधीर....यह तुमने कया......" मेरी बात पूरी न हो सकी। उसके लण्ड से तेज़ ज़ोरदार वीर्य की पिचकारी सीधी मेरी नाभि पर आकर गिरी और उसका रस बहकर नीचे मेरी चूत की और जाने लगा। मैं स्तब्ध सी देख रही थी के दूसरी फुहार निकल कर एकदम सीधी मेरी चूत से टकराई।


"ओह्ह्ह्ह्ह्......" सुधीर के मुंह से सिसकी निकल गयी। सुधीर की नज़र मेरी चूत पर जमी हुयी थी और उसके लण्ड से वीर्य की तेज़ फुहारे मेरी चूत को नहला रही थी। 

अचानक मुझे होश आया। मैं घूमी और फटाफट बाथरूम की और भागी। मेने भढाक से दरवाजा बंद कर दिया।

"अपने कपडे पहनो और जाओ देखो काया हुआ है। मैं आती हूँ अभी। जल्दी करो।" मेने एक सेकंड बाद हल्का सा दरवाजा खोल उसे कहा और फिर से दरवाजा बंद कर दिया।

मेने शावर खोला और अपने चेहरे को हाथों से ढक कर अपने अंतर में चल रहे मनमंथन को शांत करने का प्रयास करने लगी। कुछ ही क्षणों में इतना कुछ घट चूका था के दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था। वो 'अजनबी' मेरा पति नहीं था इस बात का आभास तो मुझे उसी क्षण हो गया जब उसका लण्ड मेरी चूत के अंदर घुसा था मगर वो मेरा अपना बेटा निकलेगा इसकी तो मेने कल्पना तक नही की थी। 'मगर यह हुआ कैसे ? वो आखिर मेरे कमरे में कैसे आया? उसे मालूम नहीं था के वो उसकी माँ का कमरा है? उसे मालूम नहीं चला के वो अपनी ही माँ को चोद रहा है? आखिर यह हुआ कैसे? उसने मेरी आवाज़ को क्यों नहीं पहचाना?" हर पल दिमाग़ में नया सवाल कोंध रहा था और मेरे पास एक भी सवाल का जवाब नहीं था। 

में पानी से बदन को रगड़ रगड़ कर साफ़ करने लगी जैसे उस गुनाह का हर सबूत मिटा देना चाहती थी जो मैंने अपने बेटे के साथ मिलकर किया था और जिसके गवाह हम दोनों थे। मेरा हाथ चूत पर गया तो पूरा बदन सनसना उठा। उसके रस से पूरी जांघे भरी पड़ी थी। मेने अपनी जांघे खोल पानी की धार को अपनी चूत पर केंद्रित किया। मेरा पूरा हाथ चिपचिपा हो गया था। बहुत ही गाढ़ा रस था एकदम मख्खन की तेरह। मेने अपनी दो उँगलियाँ चूत के अंदर घुसाई तो मेरा हाथ फिर से भर गया। 'उफ्फ्फ नजाने कम्बखत ने कब से जमा करके रखा था। पूरी चूत लबालब भरी पड़ी है।' 

कोई पांच मिनट की मेहनत के बाद में बेटे की चिकनाई को धो सकी। मेने घूम कर पीठ को भी साफ़ करना चाहा के तभी मेरी नज़र बाथरूम के शीशे पर पड़ी। शीशे पर ऊँची ऊँची लाल लपटे नाच रही थी। अचानक से मुझे होश आया। फायर अलार्म फालस नहीं था जैसे मुझे सुरु में लगा था। सच में आग लगी हुयी थी।


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मैंने तुम्हारे डैड को नही बताया इसका मतलब यह नही के मैंने तुम्हे माफ़ कर दिया है। चाहे तुमने मेरा बेटा होते हुए मेरे साथ बहुत गंदी हरकत की है मगर मैं माँ होने का फ़र्ज़ नहीं भूल सकती।। लेकिन अब मुझसे ज्यादा उम्मीद मत करना। अब मैं तुम्हारी माँ सिर्फ तुम्हारे बाप के सामने हूँ। मुझे नहीं लगता मैं तुम्हे कभी मुआफ़ कर पायुंगी"


उस दिन के बाद मैंने अपने बेटे से दूरी बना ली थी। मैं एक माँ का फ़र्ज़ जरूर पूरा कर रही थी। उसका खाना बनाना, कपडे धोना इत्यादि काम मैं उसके जरूर कर रही थी मगर माँ के प्यार और स्नेह से उसे मेने पूरी तरह वंचित रखा था। मैंने हम दोनों के बीच एक ऐसी दीवार खड़ी कर ली थी जिससे हम दोनों एक ही घर में रहते हुए भी अलग कर दिया था। 

अब हम दोनों में लगभग ना के बराबर ही बातचीत होती थी। जब कोई बेहद जरूरी बात होती तो मैं उसे बुलाती थी। जैसे दो दिन पहले मैंने उसे पॉकेट मनी के बारे में पूछा था और उसने इंकार में धीरे से सर हिला दिया था के उसके पास पैसे नहीं थे और इसके बाद मैंने उसे कुछ रूपये जेब खर्च के लिए दिए थे। क्योंके घर का खर्च और हिसाब किताब सब मेरे पास होता था और उसकी जरूरते भी में ही पूरी करती थी। 

लेकिन रात को एक अजनबी मेरे सपनो में आता और वो मुझे उत्तेजित कर देता लेकिन में उस सपने को नजरअंदाज कर देती, में जानती थी वो अजनबी कौन हे।

अब दूरी तो उसने भी मुझ से बना ली थी। मैंने तो जरूरत पड़ने पर दो तीन बार उसे बुला ही लिया था मगर उसने एक बार भी बात करने की कोशिश नहीं की थी। पैसे न होने पर भी उसने मुझसे मांगे नही थे। मगर एक दूसरे से बात न करने की हमारी वजह अलग अलग थी। मैं उसे उसकी करतूत के लिए सजा दे रही थी जबके वो अपना बचाव कर रहा था। वो इस बात की पूरी कोशिश करता था के हमारा आमना सामना कम से कम हो जा बिलकुल ना हो। सुबह कॉलेज को जाना और कॉलेज से सीधा घर आना। खाना खाने भी वो हमारे बुलाने के बाद ही आता था। अपने बाप से भी बेहद कम बोलता था। यहाँ तक के उसने कॉलेज के सिवा और कहीं जाना बिलकुल बंद कर दिया था। पहले वो रोजाना अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने जाता था, हफ्ते में एक दो बार सिनेमा देखने जा फिर यूँ ही कहीं घूमने चले जाना जैसे आजकल जवान छोकरे करते हैं। लेकिन नहीं, उसने कॉलेज के सिवा सब बंद कर दिया था। 

मुझे लगता था सायद उसे इस बात का डर था के कहीं मैं किसी बात पर उससे गुस्सा न हो जायुं और उसके बाप के सामने उसकी पोल ना खोल दू। मेरी नाराज़गी तो वो यकीनन किसी भी हालात में नहीं चाहता था। या फिर शायद वो बात के ठंड पड़ने के इंतज़ार कर रहा था और उसकी यह शराफत वकती तौर पर उसका ढोंग मात्र थी।


वजह कुछ भी हो मगर हम दोनों के एक दूसरे से इस तरह कट जाने से घर में एक दम नीरसता छा गयी थी। असहनीय शांति और भयानक चुप्पी से हमारा घर घर ना होकर समशान लगने लगा था। कभी कभी तो मुझे डर लगने लगता था। बेटा घर में होता भी तो अपने कमरे से बहार नही निकलता था और मैं उसके कमरे में जाती नहीं थी। मैं जाती थी उसका बिस्तर बनाने जा फिर गंदे कपडे उठाने, मगर तभी जब वो कॉलेज गया होता। वो बंद कमरे में काया करता था मैं नहीं जान सकती थी। अपनी पढ़ाई कितनी करता था, सोता कितना था जा फिर इंटरनेट पर ब्लू फिल्म्स देखता था जा अश्लील सहित पढ़ता था, मेरे पास जानने का कोई मार्ग नहीं था। उसके कमरे से हालांके मुझे ढूंढने पर भी कोई आपत्तिजनक चीज़ नहीं मिली थी और पासवर्ड प्रोटेक्टर होने के कारन उसका कंप्यूटर तो मैं चला नहीं सकती थी।
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Heart 
एक महीना बीत चूका था और अब मुझे चिंता होने लगी थी। उसकी इतनी बड़ी हरकत के बाद मेरा उससे इतनी कठोरता से पेश आना स्वाभाविक था मगर जिस तरह वो एकदम से एकाकी जीवन ब्यतीत करने लगा था वो सही नहीं था। मैंने तो सोचा था एक दो महीने उसे बात नहीं करुँगी, उसे थोड़ी बहुत सजा दूंगी मगर मुझसे ज्यादा तो वो खुद को सजा दे रहा था। मैंने उसे क्या डराना था उसने उल्टा मुझे डरा दिया था। हालांके मुझे पहले पहले उसकी यह चुप्पी ड्रामा लग रही थी, शायद वो दुखी होने का ढोंग करके मेरी सहानुभूति चाहता हो ऐसी सम्भावना बहुत थी। 

लेकिन एक महीना बीत जाने के बाद भी जब उसके सवभाव में कोई बदलाव नहीं आया तो मैं उसके अंतर में झाँकने की कोशिश करने लगी। खाने के टेबल पर जब वो हमारे साथ बैठता तो मैंने उसके चेहरे को पढ़ने की कोशिश की। वो खाना भी खाता था तो चेहरा झुकाकर। नज़र तो वो मिलाता ही नहीं था। उसे देखकर कहना मुहाल था के वो एक्टिंग कर रहा है। इतनी सहनशीलता वो भी इतने लंबे समय तक धारण किये रहना बहुत ज्यादा मुश्किल है। मुझे अब लगभग यकीन हो चला था के वो ढोंग नहीं कर रहा था बल्कि वास्तव में वो बहुत डरा हुआ है।

अब सबसे बड़ा सवाल यह था के क्या उसे अपने किये पर पछतावा है? अब उसने जो किया था उसके नतीजे से उसे डर लगना स्वाभिक ही था। ऊपर से मैंने उसे, उसके बाप का डर दिया था, घर से निकाले जाने का डर यकीनन बहुत बुरा होता है तो वो डरा हुआ था, खामोश था, इस मुश्किल घड़ी से किसी तरह बच निकलना चाहता था मगर लेकिन क्या वो अपने किये पर शर्मिंदा था? शर्मशार था मुझे नहीं लगता था वो पछता रहा है। अब मैं अजीब से संकट में फस गयी थी। अगर मैं उसका डर दूर नहीं करती तो मुझे चिंता थी कहीं वो किसी मनोरोग का शिकार न हो जाए और अगर मैं उसका डर दूर करने की पहल करती तो वो मुझे कमज़ोर मान सकता था और इतनी आसानी से बच निकलने पर बहुत संभव था वो दोबारा मुझे चोदने की कोशिश करता।

happy

मैं कुछ फैसला करती उससे पहले मेरी मुसीबत का हल मेरे पति ने कर दिया। घर में हर वक़त छायी रहने वाली चुप्पी और हम दोनों माँ बेटे के बीच किसी बातचीत के न होने की और उनका धयान जाना स्वाभाविक ही था। 

वो गुरुवार का दिन था और हम जैसा लगभग पिछले एक महीने से चल रहा था, चुपचाप खाना खा रहे थे।

"सुनैना, मैं बहुत दिनों से देख रहा हूँ तुम और सुधीर आपस में बात नहीं करते। बिलकुल भी बात नहीं करते। क्यों? जबसे शादी से लौटे हैं घर में इतनी चुप्पी छायी हुयी है मानो यह घर नहीं कोई वीरान खंडहर है। आखिर बात कया है?" अचानक से मेरे पति ने खाना कहते हुए मुझे पूछा तो मैं सकपका गयी। मैं अपनी सोच में गुम थी इसलिए अपने पती को कया जवाब दूँ, मुझे कुछ सुझा नहीं।

"कुछ बात नहीं है, आपको यूँ ही लग रहा है।" मैंने बात टालते हुए कहा। मेरे दिल में एक बार भी यह ख्याल नहीं आया था के घर के माहोल की तरफ मेरे पति की नज़र भी जायेगी और वो इसकी वजह जानना चाहेगा।

"कुछ बात नहीं है। मुझे यूँ ही लग रहा है! तुम्हे क्या लगता है मुझे दिखाई नहीं देता जा मैं मुर्ख हूँ? तुम गुमसुम सी रहती हो और सुधीर को तो मानो सांप सूंघ गया है। आखिर तुम दोनों में लड़ाई किस बात की है?" पतिदेव ने खीझकर पूछा। जरूर वह कई दिनों से देख रहे थे मगर चुप थे।

"उफ़्फ़्फ़्फ़ऊऊह्ह्ह्ह्ह्............. कोनसी लड़ाई....किस बात की लड़ाई........आपको ग़लतफहमी हुयी है। और आपने मुझे कब गुमसुम देख लिया।" मैं पतिदेव को झुठलाती बोली। लेकिन मेरी बात में दम नहीं था इसलिए इस बार वो अपने वेट से मुखातिब हुए।

"सुधीर तुम्हारी माँ तो साफ़ झूठ बोल रही है, तुम ही बता दो आखिर बात क्या है? तुम दोनों आपस में बोल क्यों नहीं रहे हो?"

"पापा वो बात........" बेटे की घिग्गी बंध गयी। वो मेरी तरफ देखने लगा।

"आप भी ना.......खामखाह बात का बतंगड़ बना देते हैं। अगले महीने उसके एग्जाम सुरु होने वाले हैं, उसका पूरा ध्यान पढ़ाई पर है और वैसे भी आपको मालूम तो है उस रात होटल में आग लगने के बाद......." बोलते हुए मुझे झुरझुरी सी आ गयी। 

पतिदेव को ठंडा करने के लिए अब कुछ ढोंग तो करना ही था। मेरे पति पर तृन्त असर हुआ और उसने टेबल के ऊपर से मेरा हाथ पकड़ कर दबा दिया और मेरी और देखते हुए बड़े ही प्यार से मुस्करा दिए। मैंने मन ही मन चैन की साँस ली। 'बला टली'। कुछ देर के लिए कमरे में फिर से चुप्पी छा गयी। मैंने बेटे की और देखा तो उसका चेहरा लाल हो गया था।

"यकीन नहीं होता तुम्हे एग्जाम की इतनी फिकर है" कुछ देर बाद पतिदेव ने बेटे जो मज़ाक करते हुए कहा तो मैंने उन्हें घूर कर देखा।

"खैर........भगवन की कृपा से हम सभ उस रात बच गए और अब उसे याद कर कर परेशां क्यों होना। भूल जाओ उस रात को........और वैसे भी मुझे इस तरह ख़ामोशी पसंद नहीं है, बेचैनी महसूस होती है। और बरखुरदार तुम.......तुम अपनी माँ का ध्यान रखा करो......अब मेरा तो पूरा दिन ऑफिस में निकल जाता है और अगर तुम भी अपने कमरे में बंद रहोगे तो तुम्हारी माँ का ख्याल कौन करेगा? इसलिए यह तुम्हारी जिम्मेदारी है के तुम अपनी माँ का ख्याल रखो। उसके काम में हाथ बंटाया करो.......उसे कहीं घुमा लाया करो.......कहीं शौपिंग वगेरह के लिए ले जाया करो........उसका भी मन बहल जायेगा" मेरे पति बेटे को लंबा चौढ़ा भाषण देते बोले।

"जी पापा" बेटा धीरे से बोला।

"हुंह....और यह भीगी बिल्ली की तरह रहना, बोलना बंद करो.....मरद बनो मरद........हम तुहारी उम्र में गर्दन अकड़ कर चलते थे और तुम.....जैसे जैसे तुम पर जवानी चढ़ रही है तुम ठन्डे पढ़ते जा रहे हो......." मेरे पति बेटे का कन्धा थपथपा कर बोले। उसके गाल कुछ और लाल हो गए थे।

"हाँ हाँ..बहुत अच्छी बात है......आपका समझाने का तरीका तो ........माशाअल्लाह........आप क्या चाहते हैं वो पढ़ाई छोड़ कर आवारागर्दी करने लग जाये........जी नहीं, वो जैसा है, बहुत अच्छा है।" मैं मुस्कराती पति को टोकती हुयी बोली।

"अरे बेगम साहिबा। यह उम्र पढ़ाई के साथ साथ मस्ती करने की भी होती है। तुम क्या चाहती हो वो बंद कमरे में सारा दिन किताबों के पन्ने ही पलटता रहे। ऐसा नहीं चलेगा......अरे जवानी में मरद बड़े बड़े किले फ़तेह कर लेता है......हमें देखो....हम क्या थे और आज क्या हैं......" मेरे पति खुद पर गर्व करते बोले। 

अब उन्हें क्या पता जिस बेटे को वो मर्दानगी का पाठ पढ़ा रहे है, उसी बेटे ने उसकी बीवी पर मर्दानगी की ऐसी छाप छोड़ी थी जितनी वो आज तक नहीं छोड़ पाये थे। अपने मोटे लंड के ऐसे ताबड़तोड़ धक्के लगाये थे के पूरी चूत सूज गयी थी।

"बस कीजिये.......बस कीजिये.....वर्ना मेरी हंसी निकल जायेगी...." मैं हँसते हुए पतिदेव को चिढ़ाते हुए बोली। तभी मेरा बेटा उठ खड़ा हुआ। सायद वो हमारी बातचीत के कारन असहज महसूस करने लगा था।

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उस रात जैसे ही मैं काम खत्म कर अपने कमरे में गयी तो पतिदेव ने मुझ पर भूखे शेर की तरह झपट पड़े। मेरा नाईट सूट झटके से निकल कर कोने में फेंक दिया और फिर मुझे उठाकर बेड पर पटक दिया और फिर अपना पायजामा उतारकर छलांग लगा बेड पर मेरी टांगो के मध्य आ गए।


"क्या बात है आज तो बहुत उछल कूद लगा रहे हो?" मैं हंसती हुयी बोली।

"तुम्हे मेरी मर्दानगी की बातें सुनकर हंसी आती है.....हुंह.....अब तुम्हे दिखता हूँ जानेमन.....असली मरद कया होता है"

"ओह तो जो आज तक दिखाया था वो कया था........" मेरी बात पूरी न हो सकी। पतिदेव की लपलपाती जीभ मेरी चूत के अंदर घुस गयी। उनके हाथ मेरे मम्मो को बुरी तरह निचोड़ने लगे। उफ्फ्फ्फ्फ़ कया आनंद था। कुछ भी कहूँ, मेरे पति चूत चाटने में उस्ताद थे। उनकी खुरदरी जिव्हा जैसे ही मेरे भग से टकराई मेरे मुख से तेज़ सिसकारी निकली। फिर क्या था घूम घूम कर उनकी जिव्हा की तीखी नोंक मेरी चूत के दाने को रगड़ने लगी। मेरे हाथ खुद बा खुद पतिदेव के सर पर पहुँच गए और मैं उनका सर अपनी चूत पर दबाने लगी। कुछ ही क्षणों में मैं बुरी तरह कामोत्तेजित हो चुकी थी। चूत से रस बहने लगा था जिसे मेरे पतिदेव बड़े प्यार से चाट, चूस रहे थे। उनके हाथ मेरे तीखे अकड़े निप्पलों का खूब ज़ोरदार मर्दन कर रहे थे। उन्होनो जोश में मेरी फूली हुयी चूत को पूरा मुंह में भर लिया और उसे ज़ोर ज़ोर से चूसने लगे। मैं सिसयाती हुयी सर पटकने लगी। मेरा बदन ऐंठ रहा था। 

जल्द ही मैं सखलत होने वाली थी के तभी मेरे पतिदेव उठकर मेरी छाती पर स्वर हो गए। उन्होनो मेरा सर पकड़ अपना लन्ड मेरे होंटो पर दबाया। मेरे होंठ खुलते ही उन्होनो आधा लंड मेरे मुंह में घुसा दिया। अब मेरे पति जरूर चूत चाटने में उस्ताद थे मगर मेरे लन्ड चूसने के आगे उनकी कोई विसात नहीं थी। सुपाड़े को मुंह में दबा जब मैंने अपनी जिव्हा नरम कोमल तवचा पर रगड़ी तो पतिदेव आह आह करने लगे। मेरी जिव्हा की नोंक उनके मूत्र के छेद को कुरेदने लगी। मैंने एक हाथ से उनके टट्टे सहलाने सुरु कर दिए और दूसरा हाथ पीछे ले जाकर उनकी गांड में ऊँगली डालने लगी। 

अब मेरा मुंह तेज़ी से उनके लंड पर आगे पीछे हो रहा था और उसका सुपाड़ा फूलता जा रहा था। पतिदेव ने झटके से मेरा सर नीचे पटका और उठ कर वापस मेरी टांगो के मधय चले गए। उन्होनो मेरी टांगे अपने कंधो पर रख ली और मेरे मम्मो को दबोच एक तेज़ ज़ोरदार झटका दिया।

"ऊँह्ह्ह्ह्ह्......." लण्ड का सुपाड़ा अंदर घुसते ही मैं सिसक उठी। पतिदेव ने मम्मे भींच तीन चार करारे घस्से मरे और लन्ड पूरा अंदर घुसा दिया।

"ऊऊफ़्फ़फ़्फ़....क्या बात है आज तो बड़े पहलवान बन रहे हो"

"तुझे बहुत बातें आने लगी हैं......बहुत हंसी आती है मेरी मर्दानगी पर हुंह" पतिदेव हुंकारते हुए धक्के पर धक्का दिए जा रहे थे।

"ओह तो बदला ले रहे हैं......हाय्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्य्यह........" मेरे मुंह से तेज़ सिसकारी निकली। "हाय मर गयी कोई भला ऐसे भी बीवी को चोदता है.......अगर कहीं.....उंगग्ग्ग्ग्ग्ग्ग......मेरी चूत फट गयी तो......."

"तेरी गांड है ना.....वो साली किस दिन काम आएगी......" पतिदेव के धक्के तेज़ होते जा रहे थे। चूत रस से इतनी भरी हुयी थी के लंड के अंदर बाहर होने का ऊँचा शोर पैदा हो रहा था।


"ख़बरदार जो मेरी गाँड के बारे में सोचा तक भी......वो तो हरगिज़ नहीं मिलेगी आप को" मैं भी निचे से गांड उछालने की कोशिश कर रही थे मगर पति ने इस कदर दबोचा हुआ था के मेरे लिए गांड उछलना बहुत मुश्किल था।


"ऐसे नखरे तो तू शुरू से करती आ रही है मगर गांड तो तेरी मैं फिर भी ले ही लेता हूँ"

"अब नहीं दूंगी.....अगर ऐसे मारोगे जैसे अब मेरी चूत मार रहे हो तो गांड के बारे में भूल जाओ" मेरे पतिदेव हमेशा मेरी गांड के पीछे पड़े रहते थे मगर मुझे चूत मरवाने में ज्यादा आनंद आता था।आनंद तो गांड मरवाने में भी जरूर था मगर चूत जितना नही ,"सुधीर का जरा ख्याल करा कर......मुझे उसकी बहुत टेंशन रहती है" मेरे पति अचानक मुझे चोदते हुए बोल उठे।

"ख्याल तो रखती हूँ अब और क्या करूँ" पतिदेव ने भी क्या मौका चुना था बेटे की बाबत बात करने का।

"अरे मेरा मतलब......यार वो इतना जवान है.....और सारा दिन कमरे में घुसा है........इस उम्र में तो लड़के लड़कियो के पीछे घूमते हैं" पतिदेव ने अचनक से चुदाई रोक दी।

"अच्छी बात है ना इसमें बुरा क्या है" मैं निचे से अपनी कमर हिलाती बोली।

"यार तुम बात को समझ करो.......उसक इस तरह एकांत को पसंद करना ठीक नहीं ......" पतिदेव अचानक मेरी आँखों में देखते बोले। वो खासा सीरियस थे।

"क्या मतलब?"

"इस तरह दुनिया से कट जाना......इसके दो ही कारन हो सकते हैं.....या तो किसी लड़की ने उसका दिल तोड़ दिया है जा फिर जा फिर...."

"या फिर क्या?" मैं उत्सुकतावश पूछ बैठी।

"या फिर कहीं वो गे तो नही है" पतिदेव के मुंह से वो बात निकलते ही मैं हंसने लगी।

"आप भी ना......गे और वो......माय गॉड......." हंसी से मेरा बुरा हाल हो गया था।

"इसमें हंसने की कोनसी बात है?" मेरे पती ने मेरे कूल्हों पर ज़ोरदार चपत लगते हुए कहा।

"और क्या.....गे...... हमारा बेटा गे है......." मैं और भी ज़ोर से हंसने लगी। पतिदेव भी मुस्करा उठे।

"तो तुम्हे क्या लगता है?"

"मुझे क्या लगता है.....मैं बताती हूँ....मगर आप जरा अपने लन्ड को तो हरकत दीजिये......आप तो अपनी मर्दानगी दिखने वाले थे" मेरे ताने पर पतिदेव ने फिर से घस्से लगाने शुरू कर दिए।

"हुंह यह हुयी ना बात......आपका लंड जब मेरी चूत को यूँ रगड़ता है तो मेरा दिमाग बहुत तेज़ चलता है........"

"दिमाग तो मालूम नहीं मगर जब भी तेरी भीगी चूत को चोदता हूँ तो ऐसा आनंद आता है के लगता है जन्नत बस तेरी टांगो के बीच ही है" मेरे पतिदेव अपनी पसंदीदा लाइन बोलते हुए अपना चेहरा झुकाकर मेरे होंठो को चूमते है।

"हुम्म....बहुत चालू हैं आप भी"

"बस डार्लिंग तुम्हारी सोहबत का असर है........अब ज़रा मेरे सवाल का भी जवाब दे दो"

"हुंह काया पूछा था आपने........ हन्ह वो बेटे के बारे में......मुझे लगता है आपकी पहली बात सही है, जरूर किसी लड़की ने बेचारे का दिल तोड़ दिया है"

"मुझे भी यही लगता है.......मादरचोद मालूम नहीं साली कौन होगी" पतिदेव गुस्से में अपने घस्सों को तेज़ किये जा रहे थे। हम फिर से उत्तेजना के शिखर की और बढ़ने लगे थे।

"आप उस बेचारी को क्यों गलियां दे रहे हैं........आप तो जानते तक नहीं हो उसे?"

"गलियां नहीं दूँ तो और क्या करू......और तू क्यों उसकी इतनी तरफदारी कर रही है जैसे तू उसे जानती है?"

"मैं कहाँ तरफदारी कर रही हूँ...मैं तो कह रही हूँ के गलती हमारे बेटे की भी हो सकती है" अचानक वो रात का मंज़र मेरी आँखों के सामने घूम गया। चूत और भी रस बहाने लगी।

"गलती? क्या गलती करेगा वो......ज्यादा से ज्यादा उसकी चूत ही मार ली होगी ना............हरामिन किसी और से भी तो मरवाएगी ही.....अगर मेरे बेटे ने मार ली तो कोनसा पहाड़ टूट पड़ा" पतिदेव के मुंह से बेटे के लण्ड का ज़िक्र सुन मेरी चूत में सनसनी की लहर दौड़ गयी। मैंने पूरा ज़ोर लगाकर कमर उछालनी सुरु कर दी। मुझे कामुकता का दौरा सा पड़ गया।

"उफ्फ्फ्फ्फ़......ज़रा तेज़ तेज़ करिये न.......मेरा रस निकलने वाला है"

"मेरा भी" पतिदेव ने अपनी घस्सों की ररफ्तार फुल कर दी।

"वैसे आप सही कह रहे थे.......हमारे बेटे ने किसी को चोद भी दिया तो क्या हो गया.........अब भगवान ने उसे लण्ड तो चोदने के लिए ही दिया है" मैं फिर से उसी समय में पहुँच गयी थी।
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"यही तो कह रहा हूँ डार्लिंग चूत तो बनी ही चोदने के लिए है" मेरे सामने मेरे बेटे का चेहरा था जो मुझ पर झुका हुआ मुझे ठोक रहा था।


"हुम्....... चूत तो बनी ही है चोदने के लिए.......लण्ड लेने के लिए........" मैं उन आँखों में देखतो बोली। "चोदो मुझे......मेरी चूत मारो......ऊऊम्मम्मह्ह्ह्ह्........चोदो......मेरी चूत मारो.......मेरी चूत तो बनी ही चोदने के लिए है" 

मैंने बेटे का चेहरा अपने हाथों में पकड़ उसे खींच कर अपने होंठ उसके होंठो पर दबा दिए। मेरी चूत से रस बहने लगा। जिस्म अकड़ने लगा। पूरी देह की नस नस फड़कने लगी। मेरी आँखे बंद हो गयी मैं झड़ती हुयी बेटे के लण्ड का स्वाद लेने लगी। कुछ ज़ोरदार धक्को के बाद उसका रस मेरी जलती चूत को शीतल करने लगा। मैंने उसकी गर्दन पर अपनी बाहें जकड दी और उसे कस कर सीने से लगा लिया।

मेरा पती भी कितना भोला था। वो समझ रहा था उसने मुझे चोदा था। उसे क्या मालूम था मुझे उसने नही बल्कि उसके ही बेटे ने चोदा था.....फिरसे। उफ्फ्फ्फ्फ्फ अभी भी चूत रस बहा रही थी। उसके लण्ड का स्पर्श चूत की दरो दिवार में समां गया था।

##

अगली सुबह मैं कुछ जल्दी उठी थी। पतिदेव को 7 दिन के लिए कामकाज के सिलसिले में बाहर जाना था। नहाधोकर मैंने नाश्ता बनाया और फिर पति को नाश्ते के लिए बुलाया। इसके बाद मैँ ऊपर गयी और एक महीने बाद बेटे के दरवाजे पर दस्तक दी। वो सायद कमरे में नही था। मैं अंदर गयी और बाथरूम के बंद दरवाजे पर दस्तक दी। अंदर से पानी की गिरती आवाज़ फ़ौरन वंद हो गयी।

"बेटा नाश्ता तयार है, जल्दी से निचे आ जाओ" मैं जितना हो सकता था प्यार भरे स्वर में बोली और फिर वापस निचे आ गयी। 

सीढियाँ उतरते मेरे होंठो पर जबरदसत मुस्कान थी,रात की चुदाई ने मेरी शंकाए दूर कर दी थी ,अब मुझे फिर से अपने बेटे का लंड चाहिए था अपनी चूत में।


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शाम को सुधीर जानबूझकर काफी देर बाद घर आया । उसने देखा मेँ डाइनिंग रूम या किचन में नहीं थी जैसा की मै अक्सर इस समय होती थी । शायद वो दिन भर सोच रहा था कि घर जाकर मेरा सामना कैसे करेगा लेकिन जब उसने पाया कि मै आज , अन्य दिनों की तरह , डिनर के लिए उसका इंतज़ार नहीं कर रही है तो उसने राहत की
सांस ली ।

उस ने किचन में झांककर देखा तो पाया कि में ने उसके लिए खाना पकाकर रख दिया था । उसने चुपचाप खाना गरम किया और खाने लगा ।

डिनर के बाद उसने थोड़ी देर वहीँ सोफे पर बैठकर TV देखा फिर वो बाथरूम की तरफ चल दिया । चुपचाप उसकी ये हरकते अँधेरे में से देख रही थी ,सुबह मेरे बुलाने पर भी वो नहीं आया तो मेरे दिल में उसके लिए हमदर्दी का ज्वार उमड़ पड़ा था 

मुझे बार बार मेरे पति की वो बात याद आ रही थी की उसने किसी लड़की की चूत भी मार ली होगी तो क्या हुआ वो क्या किसी से नहीं चुदवाती होगी। में सुबकने लगी , 

सुधीर मेरे बेडरूम के दरवाज़े से गुजरते वक़्त उसे हलकी हलकी मेरे सुबकने की आवाज़ें सुनाई दीं । अपने कानों में मेरे सुबकने की आवाज़ पड़ने से उसका दिल बैठ गया । जो कुछ भी हुआ उसके लिए उसका मन अपने को ही दोषी ठहराने लगा । वो सोचने लगा
अगर वो उस रात मॉम के बाद में चुदाई वाले प्रस्ताव को ठुकरा देता तो वो घटना होती ही नहीं । उसका दिल अपनी सुबकती हुई
मॉम के पास दिलासा देने के लिए जाने को मचलने लगा 

दूसरी तरफ ये बात भी थी कि सुधीर को भी उस रात जब तक उसे ये पता नहीं चला था की वो अपनी मॉम को चोद रहा हे वो अजनबी औरत अच्छी लगी थी । उस औरत ने बिना नखरे दिखाये
सुधीर के साथ खुलकर सेक्स किया था और ये बात सुधीर को बहुत पसंद आयी थी । लेकिन जब रोशनी में असलियत से उसका सामना हुआ और उस औरत से मुलाकात हुई तो वो उसकी अपनी ही मॉम निकली जिससे सेक्स सम्बन्ध बनाने की वो कल्पना भी नहीं कर सकता था ।

वैसे तो हम दोनों ही माँ बेटे आपस में बिलकुल ही खुले हुए थे । अक्सर ही में घर में टीशर्ट और शॉर्ट्स में अपनी खुली टांगों में घूमती रहती थी । जब सुधीर हमारे साथ आकर रहने लगा था तब भी में ने अपने तौर तरीकों में कोई बदलाव नहीं किया था । क्योंकि दोनों के दिल में एक दूसरे के लिए कोई बुरे विचार या वासना की भावना नहीं थी ।

लेकिन एक बार हम दोनों माँ बेटे के बीच जिस्मानी सम्बन्ध बन जाने के बाद अब सारे हालत बदल चुके थे।

“ मॉम ” उसने दरवाज़े के बाहर से मेरे को आवाज़ दी ।

" जाओ यहाँ से " में सुबकते सुबकते ही बोली ।

" मॉम , प्लीज मुझे अंदर आने दो । मैं तुमसे बात करना चाहता हूँ । “

" सुधीर , तुम मुझसे दूर रहो । मुझे अकेला छोड़ दो । प्लीज ! ”

सुधीर मेरा दुःख और बढ़ाना नहीं चाहता था । इसलिए उसने ज्यादा जोर नहीं दिया और चुपचाप अपने बेडरूम में आ गया । बेड में लेटे हुए उसे महसूस हुआ कि उसने अपनी प्यारी मॉम को खो दिया है ।
उसे लगा कि, उन दोनों के बीच जो लाड़ भरा रिश्ता माँ बेटे का था और जो उसके लिए बहुत मायने रखता था

क्योंकि वो अपनी मॉम से बहुत प्यार करता था और उम्र में थोड़ा छोटा होने के बावजूद एक protective बेटे की तरह उसकी केयर करता था , वो रिश्ता अब हमेशा के लिए खत्म हो चुका है ।

हम दोनों ही माँ बेटे के लिए वो रात बहुत लम्बी गुजरी l दोनों ही अपनी अपनी मानसिक पीड़ा को भोगते हुए बिस्तर में इधर से उधर करवटें बदलते रहे । आखिर थककर नींद ने हमें अपने आगोश में ले लिया ।

#

दूसरे दिन घर में मेरा मन नहीं लगा । मेरे मन में वही सब ख्याल आते रहे । उस रात में सुधीर के सीने से  cool2 लगने पर हुई उत्तेजना के दृश्य उसकी आँखों के सामने घूमते रहे । जिस अजनबी को वो इतना चाहने लगी थी वो अब अजनबी नहीं उसका बेटा सुधीर था । फिर भी मेरी चाहत कम नहीं हो रही थी ।

मेने अपने दिल को समझाना चाहा कि ये सिर्फ छिछोरापन है , सुधीर उसका बेटा है और वो उसकी मॉम। आखिर दुनिया में कौन माँ अपने बेटे की तरफ इस तरह आकर्षित होती है कि उससे सेक्स सम्बन्ध
बनाने की इच्छा हो ? जो भी हुआ वो किस्मत की एक गलती थी और अगर अब भी मैं सुधीर की तरफ आकर्षित हो ही हूँ तो ये बहुत ही गलत बात है , जो संसार के नियम बंधनों के हिसाब से पाप है ।

मुझे अपने ऊपर ही क्रोध आने लगा । लेकिन लाख कोशिश करने के बाद भी में अपने दिल पर काबू न पा सकी ।मेरे मन में सुधीर को पाने की इच्छा बढ़ती ही गयी । जब भी में अपनी आँखे बंद करती मुझको सुधीर ही दिखाई देता । मेने अपनी पूरी कोशिश की , कि में अपने बेटे के बारे में इस तरह से न सोचू । 

मेने अपना ध्यान सुधीर से हटाकर , अपनेपति के साथ बिताये पलों को याद करने का प्रयास किया । लेकिन इन सब कोशिशों से कोई फायदा नहीं हुआ । मुझे बार बार उस अँधेरे कमरे में अपने ऊपर सुधीर के बदन की परछाई दिखाई दे रही थी ।

#

शाम को में डाइनिंग रूम में सोफे पर आँखें बंद किये लेटी थी । मेरे मन में सुधीर के ही ख्याल आ रहे थे । मुझे लगा सुधीर उसके ऊपर लेटा हुआ है और उससे धीमे धीमे प्यार कर रहा है । 

अपने आप ही मेरा एक हाथ clitoris पर चला गया और दूसरे हाथ से में अपनी एक चूची को हलके से सहलाने लगी । फिर कुछ पलों बाद मेने सुधीर के मुंह से निकलती सिसकारी सुनी और अपनी चूत में सफ़ेद गाड़े वीर्य की धार महसूस की ।

पिछले कुछ दिनों से मेरे मन में सुधीर से मिलने की बहुत तड़प थी । उस रात की उत्तेजना मेरे मन से कभी निकल ही नहीं पायी । मुझे लगता था मेरे बदन में कुछ आग सी लग गयी है ।अपनी चूत के फूले होंठ मुझे  कुछ ज्यादा ही sensitive महसूस हो रहे थे और चूत में हर समय एक गीलापन महसूस होता था ।

अपने अंदर उठती इन भावनाओं की वजह से दिन भर में बहुत रोयी थी । ये ऐसी इच्छाएं थी जो पूरी नहीं की जा सकती थीं और अपने बेटे के लिए तड़प , तो समाज स्वीकार ही नहीं करता था । मेने कभी नहीं सोचा था कि सिर्फ एक रात के सम्बन्ध से हालत यहाँ तक पहुँच जायेंगे और मेरे मन में अपने बेटे को पाने की चाहत स कदर बढ़ जायेगी कि वो समाज के बनाये नियमों को तोड़ने पर आमादा हो जाएगी ।

अब में सुधीर से अनजान नहीं थी । ये बात बिलकुल साफ़ हो चुकी थी कि वो कौन था जो उसके उत्तेजक सपनो में आता था और उसको भरपूर कामतृप्त करके ही जाता था । जिसके चौड़े सीने से लगकर वो अपने आप को  फिर से छोटी बच्ची की तरह सुरक्षित महसूस करती थी । अब उस अजनबी का चेहरा धुंधला सा नहीं था , वो चेहरा था मेरे हैंडसम बेटे सुधीर का ।

ऐसे हालात में एक ही छत के नीचे अपने बेटे के साथ रहना अब मेरे लिए नामुमकिन सा था । सुधीर के उसके ही साथ रहने से मेरे को अपनी भावनाओं पर काबू पाना संभव नहीं लग रहा था । मुझे लग रहा था कि अगर सुधीर यहीं रहा तो वो उसके लिए तड़पती ही रहेगी । मेने सोचा कि वो अपने बेटे से कह देगी कि वो फिर से हॉस्टल चला जाये मगर सुधीर को जाने के लिए कहने के ख्याल के बारे में सोचने से ही मुझे इतनी पीड़ा पहुंची कि मेने इस ख्याल को ही मन से निकाल दिया ।

मेरे लिए अब सुधीर ही मेरा “ बॉयफ्रेंड “ था । लेकिन सुधीर के लिए ?

दूसरी तरफ शायद सुधीर के लिए ये सब बहुत मुश्किल था । वो सुनैना को बहुत प्यार करता था और उसका पूरा ख्याल रखता था । सुनैना की बात वो टालता नहीं था । लेकिन अपनी मॉम के लिए शारीरिक आकर्षण जैसी कोई भावना उसके मन में नहीं थी । उस रात नशे की हालत में उसने चुदाई जरूर कर दी थी लेकिन कभी मेरे माथे पर प्यार भरा किस कर लिया तो कर लिया वरना सुधीर , समझदार बेटे
की तरह उससे एक शारीरिक दूरी बनाये रखता था । उसने कभी भी मेरी छाती , मेरे नितम्बों और अक्सर खुली रहने वाली लम्बी चिकनी टांगों की तरफ गलत नज़रों से नहीं देखा था । वो तो मॉम की तरह उससे प्यार करता था । उसका मन अपनी माँ के लिए शीशे की तरह साफ़ था और ये बात मेरे को अच्छी तरह से मालूम थी ।


लेकिन इससे मेरी पीड़ा और भी बढ़ गयी क्योंकि में जानती थी कि मेरी तड़प इकतरफा थी और ये भी कि सुधीर के मन में उसके लिए ऐसी कोई तड़प नहीं है ।

हर शाम मेरे लिए लम्बी खिंचती चली गयी । समय के साथ मेरी उलझन बढ़ती जा रही थी । मेरे को लग रहा था कि में एक चक्रव्यूह में फंस चुकी है और बाहर निकलने का कोई रास्ता उसे नहीं सूझ रहा था ।
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Heart 
“मॉम ! मॉम !”


“कौन ? कौन है ?“ जोर जोर से अपना नाम पुकारे जाने की आवाज़ से उसकी तन्द्रा टूटी और वो हड़बड़ा के सोफे में उठ बैठी ।

“मैं कितनी देर से आपको आवाज़ दे रहा हूँ । आपको क्या हो गया हे ?

“ सॉरी सुधीर ...कुछ दिनों से मैं ढंग से सो नहीं पायी हूँ इसलिए आँख लग गयी थी “ मेने आँखें मलते हुए कहा ।

सुधीर ने मेरे चेहरे से छलकता दर्द देखा वो तुरंत समझ गया कि में किन ख़यालों में डूबी हुई थी । रात को नींद न आने की बात तो सिर्फ एक बहाना थी ।

“ देखो मॉम , जो कुछ भी हुआ वो एक किस्मत की गलती थी और हम दोनों का ही इसमें कोई कसूर नहीं है । हमको इस बात को
भूल जाना चाहिए और फिर से आपस में पहले जैसा ही व्यवहार करना चाहिए ।"

“पहले की तरह ? ये संभव ही नहीं है । “

“ लेकिन जो कुछ भी हुआ उसको अब हम पलट तो नहीं सकते ना । इसलिए उसे भूल जाना ही ठीक है । "

“तुम क्या कह रहे हो सुधीर ? जो हुआ उसे भूल जाऊँ ? कैसे ? " मेरी पीड़ा अब गुस्से में बदल रही थी ।

एक तो मै पहले से ही परेशान थी , ऊपर से सुधीर का बड़ों की तरह ऐसे बातें करना मुझे अच्छा नहीं लग रहा था ।

गुस्से से मेरा मुंह लाल हो गया ।

“ मॉम , प्लीज , पहले मेरी बात सुनो । मैं सिर्फ ये कह रहा हूँ कि माँ बेटे के बीच मर्यादा की जो रेखा होती है , हमें उसे पहले जैसे ही बरक़रार रखना चाहिए । मैं तुम्हारा बेटा , तुम मेरी मॉम हो । जो कुछ हुआ उसे बुरा सपना समझकर भुला देना चाहिए । आपको मेरी इतनी सी बात समझ क्यों नहीं आ रही है ? उस घटना को भूल जाने में आपको प्रॉब्लम क्या है ? "

तुम्हें कुछ अंदाजा भी है कि उस रात के बाद से मुझ पर क्या गुजरी है ? और तुमने कितनी आसानी से कह दिया , सब भूल जाओ । मैं कैसे भूल जाऊँ ? मर्यादा की जिस रेखा की तुम बात कर रहे हो , उसे तो तुम कब का पार कर चुके हो ।“ इतनी सी बात ...... ? ये इतनी सी बात है ......? बकवास बंद करो सुधीर !! भाड़ में गयी तुम्हारी ये लेक्चर बाजी । 


सुधीर अब वो रेखा हम दोनों के बीच है ही नहीं क्योंकि उस रात के बाद अब हम दोनों उस रेखा के एक ही तरफ हैं ।

उस रात जो बदन तुम्हारे जिस्म के नीचे था , वो मेरा बदन था , तुम्हारी अपनी सगी माँ का । अब आँखें फेर लेने से क्या होगा ।और ये बात नशे के बाद भी तुम जानते थे सच को झुठला तो नहीं सकते ना तुम । "

मेरी आँखों से टपटप आँसू बहने लगे ।“ बात सिर्फ उस रात के सेक्स की नहीं है । लेकिन उस रात बिताये पलों के बाद , जाने अनजाने में , मेरे मन में जो आशाएं , उम्मीदें , जो इच्छाएं जन्मी थी , उनका क्या ? जो सपने रात भर मुझे बेचैन किये रहते थे , उनका क्या ? मैं उन्हें भुला ही नहीं सकती , चाहे मैं कितनी ही कोशिश क्यों ना कर लूँ । समझे तुम ? "

मेरे अंदर की इतने दिनों की पीड़ा , उसकी तड़प , लावा बनकर फूट पड़ी ।

“तुम सभी मर्द एक जैसे होते हो । तुम लोगों को इस बात का कुछ अंदाजा ही नहीं होता कि जब एक औरत किसी लड़के को
अपना दिल दे बैठती है तो उस पर क्या बीतती है । लड़कों को लगता है कि औरत पर थोड़ा पैसा खर्च कर दो , कुछ गिफ्ट वगैरह दे दो और वो औरत उनके लिए अपने कपडे उतार दे । क्यों ? क्योंकि वो ऐसा चाहते हैं , बस । वो किसी भी तरह सिर्फ सेक्स करने की कोशिश में रहते हैं । औरत की भावनाओं की उन्हें कोई क़द्र नहीं होती । उनका सिर्फ एक लक्ष्य होता है कि कैसे भी पटाकर औरत की टांगे फैला दी जाएँ और इससे पहले कि औरत कहीं अपना इरादा ना बदल दे , झट से उसके ऊपर चढ़के उसके अंदर अपना पानी गिरा दें । कई बेवक़ूफ़ औरते इनके चक्करों में फंस भी जाती हैं और जब तक उन्हें समझ आती है , लड़के अपना काम निकाल के , उनको छोड़ कर जा चुके होते हैं ।

लेकिन ये बातें मुझे जल्द ही समझ आ गयी थीं । मैं जानती थी की उस दिन मेरे लिए सेक्स बहुत मायने रखता था,तुम नहीं होते तो शायद किसी और से चुदवा लेती ,तुम्हारे पापा की शराबखोरी ने उन्हें सेक्स में कमजोर बना दिया था और हर रात में अतृप्त रह जाती थी,उस रात तुमने मुझे कई रातो के बाद तृप्त किया था ,हा ये सही हे की मुझे जब ये पता चला की तुमने मेरे साथ सेक्स किया हे तो में नाराज थी लेकिन इन दो महीनो में मुझे पता चल गया हे की में तुम्हारे बिना नहीं रह सकती।

मै बोलते बोलते थोड़ी साँस लेने के लिए रुकी । 

मेरी पीड़ा देखकर सुधीर का दिल भर आया । उसने मुझ को
आलिंगन में भरकर मेरा सर अपनी छाती से लगा लिया । अपने बेटे की मजबूत बाँहों के घेरे में आकर मेने एक गहरी सांस ली । मेरी आँखों से फिर आँसू बह चले ।

सुबकते हुए में बोली , " cool2  सुधीर उस रात मैं सिर्फ थोड़ा मज़ा लेना चाहती थी और कुछ नहीं । लेकिन जैसा प्यार उस अजनबी ने मुझे दिया वैसा मैंने कभी महसूस ही नहीं किया था । मुझे पता ही नहीं था कोई ऐसा इतना प्यार देने वाला भी हो सकता है। मै उस रात के बाद से हर रात उस अजनबी के ही सपने देखती रही हूँ और एक बार फिर से उन आनंद के पलों को पाने के लिए तड़प रही हूँ ।

लेकिन जब वो अजनबी मेरा बेटा यानि तुम निकले तो मेरे ऊपर आसमान ही टूट पड़ा । मेरे सपनों का शहजादा जिससे मिलने को मैं तड़प रही थी वो मेरा अपना बेटा निकला तो इसमें मेरा क्या कसूर है । “

मै फिर चुप हो गयी और अपने बेटे के सीने से लगी रही । 

सुधीर के आलिंगन से मेरी तड़प फिर बढ़ने लगी ।

Sleepy मै फिर से बेचैन हो उठी ।

“ सिर्फ एक बार , बस एक बार, अगर तुम मुझसे वैसे ही प्यार करो , तो शायद मेरे मन की तड़प पूरी हो जाये और ये रोज़ रात में आकर तड़पाने वाले सपनों से मुझे मुक्ति मिल जाये । क्या पता । “

फिर मेने अपनी आँखें उठाकर सुधीर की आँखों में झाँका पर उनमे उसे वही भाव दिखे , जो कुछ दिन से दिख रहे थे

" सुधीर प्लीज , मैं जानती हूँ तुम मेरे बेटे हो और ऐसा करना शायद तुम्हारे लिए बहुत मुश्किल होगा। लेकिन सिर्फ एक बार मुझे वही प्यार दो । उसके बाद तुम अगर मेरे पास आना नहीं चाहोगे तो कोई बात नहीं । लेकिन सिर्फ एक बार मैं तुमसे वही प्यार चाहती हूँ और फिर जैसा तुम चाहोगे वैसा ही होगा । अगर तुम चाहोगे तो फिर से हम पहले के जैसे माँ बेटे बन जायेंगे । लेकिन प्लीज एक बार , सिर्फ इस बार मेरा मन रखलो । सिर्फ एक बार के लिए मेरे बॉयफ्रेंड बन जाओ मेरे बेटे ।"

अपनी सुबकती हुई माँ को सीने से लगाए हुए सुधीर गहरी साँसे लेते हुए चुपचाप खड़ा रहा ।

मेने अपने को सुधीर के आलिंगन से अलग किया । अपनी आँखों से आँसू पोछे और सुधीर को उम्मीद भरी नज़रों से देखा ।

लेकिन सुधीर की कुछ समझ मेँ नहीं आ रहा था कि वो क्या बोले ।

" मैं अपने बेडरूम का दरवाज़ा खुला रखूंगी । तुम अगर अपना मन बना लोगे तो सीधे अंदर आ जाना । नॉक करने की कोई जरुरत नहीं ।
मैं तुम्हारा इंतज़ार करुँगी । अगर तुम नहीं आये तो मैं समझ जाऊँगी कि तुमने क्या decide किया है । "

इससे पहले कि सुधीर कुछ जवाब दे पाता , मै तेज तेज क़दमों से अपने बेडरूम में चली गयी

सुधीर की कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था । अपने बेडरूम में बेड पर लेटे हुए उसके दिमाग में उस रात के दृश्य घूमने लगे । उस अँधेरे कमरे में वो मादक औरत जिसने उसे जी भर के कामतृप्ति दी थी । लेकिन मेने जो बातें अभी कहीं थी , उनसे सुधीर उलझन में था । अगर वो मेरी बात मानकर मेरा दिल रख लेता है तो भी उनके बीच
कुछ अलग नहीं होने वाला था । क्योंकि आपस में सेक्स तो वो पहले ही कर चुके थे । अब इससे ज्यादा और हो ही क्या सकता था। लेकिन वो ये भी जानता था कि अगर ये किस्सा शुरू हुआ तो फिर ये एक बार ही नहीं होगा । ये होते रहेगा और उनकी लाइफ को और उनके आपसी रिश्तों को और उलझा देगा ।

सुधीर अभी कोई मन नहीं बना पा रहा था । उसको इन सब बातों पर सोचने के लिए कुछ और वक़्त की जरुरत थी ।

उसने सोचा होगा कि अगर वो मेरी बात नहीं मानता और मुझको मना कर देता है तो फिर एक ही छत के नीचे वो कैसे रह पायेंगे । उनके रिश्ते के बीच एक दरार पैदा हो जायेगी ।

सुधीर फिर उस रात की औरत के बारे में सोचने लगता है । वो औरत उसे भी बहुत पसंद आयी थी और उस रात को याद करके उसका लंड भी कई बार खड़ा हो जाता था । पर अब हालत दूसरे थे , वो औरत कोई अनजान नहीं , खुद उसकी माँ थी । 

अब अगर वो मॉम के बेडरूम में चला भी जाता है तो अपनी मॉम के साथ वैसे सेक्स थोड़ी कर पायेगा जैसे उसने उस रात अनजान औरत के साथ उसको dominate करके किया था और जो submissive nature की मुझे बहुत पसंद आया था । वो वैसा कर ही नहीं सकता था क्योंकि उसे मालूम था , अपनी मॉम के सामने वो नर्वस हो जायेगा । सुधीर कुछ भी decide नहीं कर पाया । उसने सारी समस्या को वक़्त और किस्मत के भरोसे छोड़ दिया ।

जो किस्मत में होगा देखा जायेगा । उसने सोचा कि देखते हैं सुबह में कैसा रियेक्ट करती हू ।

उधर मै रात में अपने कमरे में सुधीर के आने का इंतज़ार करती रही । वो रात मेरे लिए बहुत लम्बी और तड़पा देने वाली साबित हुई । जैसे जैसे समय बीतता गया , में डिप्रेशन की गहराईयों में गिरते चली गयी ।

Sleepy


दूसरे दिन सुबहमें बहुत दुखी थी । 

[Image: 122389140-349607173027610-7717023301398506930-n.jpg]

अपनी पैंटी के ऊपर एक लम्बी ढीली टीशर्ट डालकर नाश्ता बना रही थी । नाश्ता करते समय हम दोनों में से कोई भी कुछ नहीं बोल रहा था । हम चुपचाप अपनी प्लेटों की तरफ देखकर खाना खा रहे थे । खा क्या रहे थे , बस प्लेट में खाना इधर उधर घुमा रहे थे । दोनों ही अपने अपने विचारों में खोये हुए थे ।

जब मेने नाश्ता कर लिया तो मेने नज़रें उठाकर सुधीर को देखा , अपने हैंडसम बेटे को ।लेकिन अब में जानती थी कि मुझे अपने बेटे के प्रति शारीरिक आकर्षण को वहीँ पर ख़तम कर देना चाहिए । हम दोनों की नज़रें आपस में मिली । मेरा दिल तड़प उठा । मेरी आँखों में दर्द उमड़ आया । सुधीर द्वारा ठुकरा दिए जाने की पीड़ा से मेरे आँसू गालों पर बहने लगे ।

“ तुम्हारा निर्णय अब मुझे पता चल गया है ” में बुदबुदायी और फिर एक झटके से उठी और अपनी प्लेट लेकर किचन में चली गयी ।

मेरा दुःख देखकर सुधीर का दिल भर आया । मेरे उदास और लटके हुए चेहरे को देखकर उसने उसी क्षण फैसला ले लिया ,भाड़ में जाये , समाज के नियम - कानून । मेरी माँ मुझे इतना चाहती है और मैं उसे चाहता हूँ , तो हमें औरों से क्या लेना देना ।

सुधीर अपनी कुर्सी से उठा और मेरी ओर बढ़ा । मेरे को अपनी तरफ घुमाकर उसने मजबूत बाँहों के घेरे में भरके मुझे अपनी ओर खींचा । मेने अपनी आँसुओं से भरी आँखें उठाकर सुधीर की आँखों में देखा , वहां अब असमंजस के भाव नहीं थे , सुधीर निर्णय ले चुका था ।

मेने अपनी बाहें उसके गले में डालकर उसकी छाती में अपना सर रख दिया । हम दोनों थोड़ी देर तक एक दूसरे की बांहों में ऐसे ही खड़े रहे । 

सुधीर ने अपने हाथ नीचे ले जाकर मेरे चूतड़ों को पकड़कर मुझे प्यार से थोड़ा और अपनी तरफ खींचा । मै मानो इन्ही पलों का इंतज़ार कर रही थी मै खुद ही सुधीर से चिपट गयी । सुधीर की बांहों में जो ख़ुशी मेरे को मिली उससे मुझे ऐसा महसूस हुआ मानो मेरा दिल ही उछल कर बाहर आ जायेगा ।

सुधीर ने फिर से अपनी माँ के नरम जिस्म और उसकी मादक गंध को महसूस किया । लेकिन वो जल्दबाज़ी नहीं करना चाहता था । उसके दिल से बोझ उतर चुका था और वो अब बहुत हल्का महसूस कर रहा था । 

सुधीर ने अपना सर झुकाकर मेरे को देखा , पहली बार एक लड़के की नज़र से , मै खूबसूरत थी और अब तो सुधीर का दिल भी पिघल चुका था । अब उनके बीच कोई दीवार नहीं थी । सुधीर ने मेरे माथे का धीरे से चुम्बन लिया और फिर मेरे सर के ऊपर अपना चेहरा रख दिया । मेने सुधीर का चुम्बन अपने माथे पर महसूस किया , मेरे पूरे बदन में एक लहर सी दौड़ गयी और तभी मुझे सुधीर का चेहरा अपने बालों में महसूस हुआ । मेने अपने सर को थोड़ा हटाया और सुधीर की तरफ देखा । दोनों की नज़रें मिली ।

" तुम ये मेरी खुशी के लिए कर रहे हो ? " मै फुसफुसाई ।

"हमारी ख़ुशी के लिए मॉम " सुधीर मुस्कुराया ।

फिर सुधीर ने अपना चेहरा झुकाके मेरे होठों की तरफ अपने होंठ बढ़ाये । मेने भी अपने कंपकपाते होंठ सुधीर के होठों से लगा लिये ।हम दोनों किसी नए प्रेमी जोड़े की तरह धीरे धीरे एक दूसरे का चुम्बन लेने लगे । 

शुरू में थोड़ी झिझक हुई पर कुछ पलों बाद दोनों का चुम्बन लम्बा और प्रगाढ़ हो गया सुधीर ने अपने दोनों हाथ मेरे बड़े गोल चूतड़ों पर रखे हुए थे और मेने अपनी बाहें सुधीर के गले में डाली हुई थी । मेने अपने होंठ सुधीर के होठों से अलग किये बिना ही अपना एक हाथ सुधीर की कमीज के अंदर डाल दिया और उसके पेट , चौड़ी छाती और मजबूत कन्धों पर अपना हाथ फिराने लगी । जब मेरी उँगलियों ने सुधीर के निप्पल को छुआ तो मेने उसको उंगुलियों के बीच थोड़ा दबाया और गोल गोल घुमाया ।


अपनी बाँहों में लेकर मेरे प्रेमी की तरह चुम्बन लेते हुए सुधीर को बहुत अच्छा महसूस हो रहा था । मेरे नाजुक और रसीले होठों को सुधीर चूमते रहा । फिर सुधीर ने अपना बांया हाथ मेरी पैंटी के अंदर खिसकाया । उसने मेरे बदन में कम्पन महसूस किया । 

कुछ पलों तक उसने अपना हाथ मेरे बड़े गोल चूतड़ों पर रोके रखा और अपनी मॉम के नग्न शरीर के स्पर्श का सुख लिया फिर उसका हाथ दोनों चूतड़ों के बीच की दरार की तरफ बढ़ गया ।जब उसकी उँगलियों ने दरार के बीच से मेरी चूत को छुआ तो उसको अपनी उँगलियों में गीलापन महसूस हुआ । मेने उत्तेजना से अपने पैर जकड़ लिये । 

सुधीर ने चूत के नरम और गीले होठों को अपनी उँगलियों से सहलाया और अपनी दो उँगलियाँ चूत के छेद के अंदर डालकर अंदर की गर्मी और गीलेपन को महसूस किया । हम दोनों के होंठ अभी भी एक दूसरे से चिपके हुए थे । सुधीर की उँगलियों के अपनी चूत में स्पर्श से मेने अपने पूरे बदन में उतेज़ना की बढ़ती लहर महसूस की ।

सुधीर ने मेरे बदन में उठती उत्तेजना की लहरें महसूस की । उसने भांप लिया कि अगर वो ऐसे ही मेरी चूत में उँगलियाँ अंदर बाहर करते रहेगा तो में झड़ जाउंगी । लेकिन वो इतनी जल्दी ऐसा होना नहीं चाहता था । इन मादक पलों को लम्बा खींचने के लिये उसने अपनी उँगलियाँ मेरी चूत से बाहर निकाल लीं और अपने होंठ मेरे होठों से अलग कर लिये । लेकिन मेरे को चुम्बन तोडना पसंद नहीं आया मै तो सुधबुध खोकर आँखें बंद किये चुम्बन लेते हुए किसी और ही दुनिया में खोयी थी.

फिर सुधीर मेरी टीशर्ट को उतारने लगा । में ने अपने दोनों हाथ ऊपर उठाकर टीशर्ट उतारने में मदद की । अब सुधीर की आँखों के सामने अपनी मॉम की बड़ी बड़ी गोल चूचियां थीं , जिन्हें वो पहली बार देख रहा था । सुधीर ने दोनों चूचियों के निप्पल को एक एक करके अपने होठों के बीच लेकर उनका चुम्बन लिया । मेरी उत्तेजना से सिसकारी निकल गयी। फिर उसने अपनी कमीज भी उतार दी । कमीज़ उतरते ही अपने हैंडसम बेटे के गठीले जिस्म को देखकर मेरी आँखों में चमक आ गयी । 

मेने तुरंत अपने हाथों को उसके गठीले जिस्म पर फिराया । फिर उसका निक्कर का बटन खोलकर उसे फर्श पर गिरा दिया। पैंटी और अंडरवियर छोड़कर अब दोनों के बदन पर कोई कपड़ा नहीं था ।हम दोनों ने एक दूसरे के बदन पर बचे आखिरी कपडे को पकड़ा और नीचे को खींच लिया ।

दोनों पहली बार एक दूसरे के नग्न बदन को देख रहे थे । मेरे खूबसूरत नग्न जिस्म को देखकर सुधीर का लंड तनकर खड़ा हो गया । मेने भी पहली बार अच्छे से सुधीर के लंड को देखा । मेने लंड को हाथ में लेकर उसकी मोटाई का अंदाजा लिया । मुझे याद आया इसी मोटे लंड से उस रात सुधीर ने मेरी चूत की खूब धुलाई की थी । सुधीर अभी भी मेरे नग्न जिस्म की खूबसूरती में खोया हुआ था । उस रात अँधेरे कमरे में हम दोनों ने एक दूसरे को महसूस किया था पर आज पहली बार दोनों एक दूसरे के नंगे बदन को अपनी आँखों से देख रहे थे ।

सुधीर ने मेरे नग्न बदन को अपने आलिंगन में भर लिया । मेरे को अपने बदन में पेट के पास सुधीर के खड़े लंड की चुभन महसूस हुई । मेने अपने होंठ फिर से सुधीर के होठों से लगा लिए । कुछ देर तक दोनों चुम्बन लेते रहे । सुधीर ने अपने होंठ अलग किये और फिर अपने दोनों हाथ मेरे कन्धों पर रखकर उसको नीचे घुटनों के बल झुका दिया । अब मेरी आँखों के सामने सुधीर का तना हुआ लंड था । मै समझ गयी कि उसका बेटा क्या चाहता है । मेने एक गहरी साँस ली और अपने होंठ सुपाड़े पर रख दिये और उसका चुम्बन लिया । फिर अपना मुंह खोलकर सुपाड़े को अंदर ले लिया ।
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मेरे को अपनी जीभ पर लंड से टपकी pre - cum की बूँद का स्वाद महसूस हुआ । अपना दूसरा हाथ मै सुधीर की जांघों के पिछले हिस्से पर फेरने लगी और लंड को चूसते चूसते अपने हाथ को सुधीर के चूतड़ों पर फिराने लगी । सुधीर ने मेरे सर को दोनों हाथों से पकड़ा और अपने लंड को मेरे मुंह में गले तक डाल दिया । मेरे को दम घुटता सा महसूस हुआ । 

मै समझ गयी कि dominating nature का सुधीर उसे उसी तरह से अपने काबू में कर रहा है , जैसे उसने उस रात किया था । थोड़ी देर तक मेरा मुंह चोदने के बाद सुधीर ने अपना लंड बाहर निकाल लिया और मेरे सर पर पकड़ ढीली कर दी । वो अभी झड़ना नहीं चाहता था और इन पलों को और लम्बा खींचना चाहता था । में ने लंड को चूसते और चाटते हुए सुधीर की बढ़ती हुई उत्तेजना महसूस की । 

तभी सुधीर ने मेरे को रोक दिया और मुझको खड़ा करके मेरे होठों पर गहरा चुम्बन फिर सुधीर ने मुझे उठाया और किचन काउंटर पर बैठा दिया । मेरे पैर फैलाकर खुद उनके बीच आ गया। मेरे को सुधीर के हाथ अपनी नग्न पीठ पर घूमते महसूस हुए और सुधीर का लंड मेरी चूत को स्पर्श कर रहा था । फिर सुधीर ने अपने होंठ मेरे होठों पर रख दिये।हम दोनों एक दूसरे के होठों को चूमने लगे और एक दूसरे के मुंह में जीभ घुमाने लगे । हमारे हाथ एक दूसरे के बदन और पीठ पर घूम रहे थे ।

तभी मेने न साँस लेने के लिए चुम्बन तोड़ दिया और बोली , "सुधीर अगर तुम्हें सही नहीं लग रहा है तो अभी भी रुक सकते हो । मैं नहीं चाहती कि बाद में तुम कुछ और फील करो । मुझे तो अच्छा लग रहा है पर मैं चाहती हूँ कि तुम फिर से सोच लो ।"

सुधीर ने मेरी आँखों में देखा फिर बोला , "देखो मॉम तुम जितना मुझे चाहती हो , मैं भी तुम्हें उतना ही चाहता हूँ । सिर्फ निर्णय न ले पाने से उलझन थी , झिझक थी । जो अब दूर हो चुकी है ।अब तुम मेरी गर्लफ्रेंड हो और मैं तुम्हारा बॉयफ्रेंड ।"फिर उसने अपने लंड को मेरी चूत के छेद पर लगा दिया और थोड़ा अंदर धकेल दिया ।


मेने दोनों हाथों से सुधीर के चूतड़ों को पकड़ा और धीरे धीरे अपनी तरफ खींचने लगी। सुधीर का पूरा लंड मेरी पूरी तरह से गीली हो चुकी चूत में घुसता चला गया । "अहह ........ सुधीर बहुत अच्छा लग रहा है " मदहोशी में आँखे बंद करके सिसकारी लेते हुए मै बोली ।

सुधीर के मोटे लंड से मेरे को अपनी टाइट चूत में कुछ दर्द सा भी महसूस हो रहा था लेकिन दर्द के साथ साथ बहुत कामसुख भी मिल रहा था । मेरे चेहरे के भाव देखकर सुधीर ने मुझसे पूछा " मॉम तुम्हें कुछ परेशानी , दर्द तो नहीं हो रहा ? " में ने एक पल के लिए आँखे खोली , सुधीर को देखा , हल्का मुस्कुरायी , " नहीं सुधीर , मुझे कोई दर्द नहीं हो रहा । तुमkarte raho .

सुधीर ने सुपाड़ा छोड़कर बाकी लंड बाहर निकाल लिया । फिर मेरे चूतड़ों को दोनों हाथ से पकड़कर उसे अपनी तरफ खींच कर , अचानक एक झटके में पूरा लंड अंदर धांस दिया । मेरी तेज चीख निकल गयी । फिर सुधीर चूत में थपाथप धक्के लगाने लगा । धक्के लगाते हुए ही अपने एक हाथ से मेरी हिलती हुई बड़ी बड़ी चूचियों को पकड़कर उन्हें मसलने लगा । 

कुछ देर बाद अपने मुंह को मेरी क चूचियों पर रखकर उन्हें चूसने लगा ।सुधीर के अपनी चूत पर पड़ते धक्कों से मेरी सिसकारियां बढ़ती चली गयीं । दर्द और उत्तेजना से मेने सुधीर के कन्धों पर अपने नाख़ून गड़ा दिये और अपनी टांगों को उसकी कमर के चारों ओर लपेट लिया ।

कुछ देर बाद मेरा बदन अकड़ गया ओर उसको एक जबरदस्त ओर्गास्म की लहरें आयीं । सुधीर भी ज्यादा देर नहीं रुक पाया और उसने अपनी माँ यानी मेरी चूत को अपने वीर्य से भर दिया । फिर कुछ समय तक हम दोनों एक दूसरे को आलिंगन में जकड़े रहे । दोनों ही एक दूसरे से अलग होना नहीं चाह रहे थे ।

फिर कुछ समय तक दोनों एक दूसरे को आलिंगन में जकड़े रहे । दोनों ही एक दूसरे से अलग होना नहीं चाह रहे थे ।

कुछ देर बाद सुधीर ने मुझे किचन काउंटर से उतार दिया और मुझे घुमाकर कमर से झुका दिया ।

मेने ने अपनी बांहें किचन काउंटर पर टिका दीं । उसकी बड़ी बड़ी चूचियां लटकी हुई थीं और लम्बी चिकनी टाँगें थोड़ा फैली हुई थीं ।"लगता है अभी मेरे प्रेमी का मन नहीं भरा ।" में पीछे की ओर सर मोड़कर सुधीर को देखते हुए बोली ।

सुधीर बस मुस्कुरा दिया । मेरी खूबसूरत गांड उसके सामने थी । उसने मेरी एक टांग मोड़कर किचन काउंटर पर रख दी । अब में घबरा गयी मेने सोचा सुधीर उसकी गांड में लंड घुसाने जा रहा है , वो भी बिना किसी lube के , जैसे उसने उस रात अँधेरे कमरे में घुसेड़ दिया था । तब सुधीर के मोटे लंड ने मेरी गांड की जो कुटाई की थी , उससे मै दो दिन तक ठीक से चल नहीं पायी थी । 

मैंने जोर से सर हिलाकर "नहीं " कहा ।

पर सुधीर ने मेरी तरफ ध्यान नहीं दिया और अपने तने हुए लंड को, मेरी चूतरस से भीगी हुई चूत में पीछे से घुसेड़ दिया ।

में तो कुछ और ही सोच रही थी , हुआ कुछ और ।

सुधीर ने पूछा , "तुमने नहीं क्यों कहा ?"

" कुछ नहीं , मैंने सोचा तुम आज फिर मेरे बदन की कुटाई करने वाले हो । " मेने शरारत भरी मुस्कान से सुधीर को देखा ।

सुधीर मुस्कुरा दिया , उसे अच्छी तरह से पता था कि मेने “ नहीं “ क्यों कहा था। वो जानता था अब मै उसके मोटे लंड को अपनी टाइट गांड में डालने नहीं दूंगी । वो तो बस मज़े में मेरे मुंह से सुनना चाह रहा था । पर मेने भी सीधे कहने की बजाय इशारों में जवाब दिया था ।

अब सुधीर ने दोनों हाथों से मेरी कमर पकड़कर पीछे से धक्के लगाने शुरू कर दिए । मै भी अपने बेटे का पूरा साथ देते हुए पीछे को गांड दबाकर लंड अपनी चूत में ज्यादा से ज्यादा अंदर भरने की कोशिश करने लगी । सुधीर बीच बीच में मेरी मखमली पीठ पर हाथ फेरने लगता । कभी आगे हाथ बढ़ाकर उसकी नीचे को लटक के हिलती हुई मुलायम चूचियों और निप्पल को हाथ में दबाकर मसलने लगता और मेरे को तड़पाने के लिए धक्के रोक देता । 

धक्के रोक देने से मेरा मज़ा बिगड़ जा रहा था तो मेने खुद ही अपनी चूत आगे पीछे करते हुए सुधीर के लंड को चोदना शुरू कर दिया ।

 मेरी कामुकता देखकर सुधीर को भी जोश चढ़ गया । उसने पूरी तेजी से जोरदार धक्के लगाने शुरू कर दिए ।

मेरी सिसकारियां उसी तेजी से धक्कों के साथ बढ़ती गयीं ।

सिसकारियों लेते लेते ही मै बोली ,"सुधीर मेरे बेटे !!! हाँ ऐसे ही तेज तेज धक्के लगाते रहो .....आह आह .आआ हहहह ..."

और देखते ही देखते मै बदन में कंपकपी के साथ दूसरी बार कामतृप्त हो गयी ।

इस बार का ओर्गास्म कुछ ज्यादा ही तेज और देर तक आया था ।पर अभी सुधीर का पानी नहीं निकला था । वो दोनों हाथ से मेरी गांड पकड़कर मेरी चूत को पेलता रहा ।

कुछ देर बाद सुधीर को भी लगा कि वो अब झड़ने वाला है । उसने आगे झुककर दोनों हाथों में मेरी चूचियां पकड़ ली और दोनों चूचियों को मसलने लगा । फिर उसका बदन कांपा और उसके लंड से वीर्य निकलकर मेरी चूत में गिरने लगा । थककर वो मेरी पीठ में ही पस्त हो गया ।हम दोनों जी भरकर कामतृप्त हो चुके थे ।

कुछ पलों बाद जब सुधीर की सांस लौटी तब वो मेरे बदन से अलग हुआ । उसका लंड मेरी चूत से बाहर निकल आया । चूत से वीर्य और चूतरस का मिला जुला जूस बाहर निकलकर मेरी टांगों में बहने लगा ।मै मुस्कुरायी और सुधीर की तरफ मुड़कर थोड़ा झुकी फिर दोनों हाथों में सुधीर का लंड पकड़कर उसको चूमा। फिर खड़े होकर सुधीर के गले में बाहें डालकरसुधीर के होठों पर एक जोरदार चुम्बन दिया ।

"थैंक यू मेरे बेटे !! तुमने मेरा सपना पूरा कर दिया। "

"थैंक्स मुझे नहीं , अपनी हिम्मत को कहना मॉम जिस की वजह से आज मैं तुम्हारा बॉयफ्रेंड हूँ । "

"मेरा बेटा , मेरा बॉयफ्रेंड। " मेरे दमकते चेहरे पर अब सुख की मुस्कान थी ।

माँ बेटे की इस चुदाई के चक्कर में सुधीर के कॉलेज जाने का वक़्त निकल चुका था । पर हमें इसकी कोई परवाह नहीं थी ।

जब घर में इतना सुख मिल रहा हो तो कॉलेज जाके करना भी क्या था ।

##

शाम को जब सुधीर मार्केट से घर वापस आया तो में टीवी देख रही थी । सुधीर भी सोफे पर बैठ गया और मेरे हाथ से रिमोट लेकर चैनल बदलने लगा। इस वक़्त सारे चूतियापे के प्रोग्राम आ रहे थे इसलिए जल्दी ही वो बोर हो गया ।और मेरे को रिमोट पकड़ा दिया । जितनी देर तक वो चैनल बदलने में लगा था , मै TV स्क्रीन की बजाय उसी को देख रही थी । जब सुधीर ने उसे रिमोट पकड़ा दिया तो मेने रिमोट को टेबल पर रख दिया और खुद सुधीर से जांघें सटा कर बैठ गयी और उसके कंधे पर अपना सर रख दिया । समीर ने मेरे कंधे पर अपनी बांह रख दी ।

कुछ देर बाद मेने अपनी एक टाँग उठाकर सुधीर की जांघों के ऊपर डाल दी और उसके गले में बाँहें डालकर अपनी आँखें बंद करके होंठ गोल करके आगे को बढ़ाये । सुधीर ने अपना हाथ मेरे सर के पीछे लगाकर अपने होंठ मेरे होठों पर रख दिये और फिर हम दोनों की चुम्माचाटी शुरू हो गयी ।दोनों एक दूसरे के मुंह में जीभ घुसा घुसाकर , जीभ से ही ब्रश करने लगे ।

मेरे निप्पल खड़े होकर तन गए । अब मै सुधीर की गोद में बैठ गयी और अपनी तनी हुई चूचियां सुधीर की छाती में गड़ा के फिर से चुम्बन चालू कर दिया । अपने शॉर्ट्स के नीचे मुझे सुधीर का खड़ा होता लंड चुभता सा महसूस हुआ । अब मेने अपनी चूत को कपड़ों के ऊपर से ही सुधीर के लंड के ऊपर रगड़ना शुरू कर दिया । मुझे अपनी पैंटी गीली होती महसूस हुई । 
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मेरे निप्पल खड़े होकर तन गए । अब मै सुधीर की गोद में बैठ गयी और अपनी तनी हुई चूचियां सुधीर की छाती में गड़ा के फिर से चुम्बन चालू कर दिया । अपने शॉर्ट्स के नीचे मुझे सुधीर का खड़ा होता लंड चुभता सा महसूस हुआ । अब मेने अपनी चूत को कपड़ों के ऊपर से ही सुधीर के लंड के ऊपर रगड़ना शुरू कर दिया । मुझे अपनी पैंटी गीली होती महसूस हुई । 

दोनों को बहुत मज़ा आ रहा था तब ही मेरी फ्रेंड रिया का फ़ोन आ गया रिया ने फ़ोन रखा नहीं मुझ से किट - पिट करती रही तब तक सुधीर का खड़ा होता लंड बैठ गया और मेरे तने निप्पल मुरझा गये । "

##

रात में ,मै किचन में डिनर की तैयारी कर रही थी । सुधीर किचन के दरवाजे पर हाथ बांध के खड़ा हो गया और अपने कंधे दरवाजे पर टिका लिये । खाना बनाती हुई मुझ को निहारने लगा । 

अपने बेटे को अपनी ख़ूबसूरती निहारते देखकर मै मन ही मन ख़ुश हुई । फिर सुधीर की तरफ देखकर बोली , "सुधीर, मैंने तुम्हारे लिये स्पेशल डिनर बनाया है । जितना ज्यादा खा सकते हो , खा लेना । आज रात तुम्हें बहुत एनर्जी की जरुरत पड़ने वाली है ।"

मेरी कामुक बातें सुनकर सुधीर का लंड नींद से उठ गया । वो मेरे पीछे गांड से चिपक के आलिंगन करते हुए मेरा चुम्बन लेने लगा । "तुम्हारे लिये मेरे पास पहले से ही बहुत एनर्जी है मॉम । अगर तुमने मुझे एक्स्ट्रा एनर्जी दे दी तो फिर तुम मुझे झेल नहीं पाओगी और फिर एक हफ्ते तक बेड से उठ नहीं सकोगी , और अगर उठ भी गयी तो लंगड़ा लंगड़ा के चलोगी ।" जोर से ठहाका लगाते हुए सुधीर बोला ।

उसकी इस गुस्ताखी पर , में ने अपने निचले होंठ को दातों में दबाते हुए , सुधीर के पेट में अपनी कोहनी मार दी । मेने कहा मुझे यह मोटा लौड़ा अपनी चूत की पूरी गहराई में चाहिये… पूरा जड़ तक… तुझे मैं सिखाऊँगी कि एक्स्ट्रा एनर्जी क्या हे और मुझे कैसी चुदाई पसंद है… मुझे जोरदार और निर्मम चुदाई पसंद है… कोई दया नहीं… वहशी चुदाई… अब रुको मत और एक ही बार में बाकी का लण्ड घुसेड़ दो मेरी चूत में…”

यह सुनकर सुधीर ने एक जोरदार शाट मारा और पूरा का पूरा मूसल मेरी चूत में पेलम-पेलकर दिया। पर मेरे लिये यह भी पूरा न पड़ा।

“और अंदर…” मै चीखी।

फिर तो सुधीर ने आव देखा न ताव और अपने लण्ड से जबरदस्त पेलाई शुरू कर दी।“बैठ जा इस पर, छिनाल… चल साली कुतिया… चोद मेरे लौड़े को। अब किस बात का इंतज़ार है… मुझे पता है कि मुझसे ज्यादा तू तड़प रही है मेरा लौड़ा अपनी चूत में खाने के लिये। बैठ जा अब इस पर राँड… चोद अपनी गीली चूत पूरी नीचे तक मेरे लण्ड की जड़ तक…”

“ये ले… साले हरामी…” मै बोली और उस मोटे लण्ड को जकड़ने के लिये उसने अपनी चूत नीचे दबा दी- “हाय… कितना बड़ा और मोटा महसूस हो रहा है, विशाल सख्त लौड़ा… अपना लण्ड मेरी चूत में ऊपर को ठाँस… चोदू, मुझे पूरा लण्ड दे दे… मैंने अपनी चूत में कभी कुछ भी इतना बड़ा नहीं लिया। ऐसा लग रहा है जैसे ये लौड़ा मेरी चूत को चीर रहा है…”


मै सच ही बोल रही थी। ये अदभुत ठुँसायी जो इस समय मेरी चूत में महसूस हो रही थी, इसकी मेने कभी कल्पना भी नहीं की थी। मुझे लग रहा था कि मेरी तंग चूत इतनी फैल जायेगी कि फिर पहले जैसी नहीं होगी। फिर भी बोली- “मुझे पूरा चाहिये… बेरहमी से चोद … मेरी चूत में ऊपर तक ठाँस दे… चीर दे मेरी चूत को, इसका भोंसड़ा बना दे…” गहरे, लम्बे धक्कों की ऐसी झड़ी सुधीर ने लगाई कि मेरे मुँह से चूं तक न निकल पाई। मै जब झड़ी तो मुझे लगा कि वो शायद मर चुकी है। उसका अपने शरीर पर कोई जोर नहीं है। उसकी चमड़ी जैसे जल रही है। उसकी चूचियों में जैसे पिन घुसी हुई हों। उसकी चूत की तो हालत ही खस्ता थी। सुधीर के मोटे लौड़े की भीषण पेलाई ने जैसे उसे चीर दिया था। उसके बाद भी वो मादरचोद लड़का पिला हुआ था उसकी चूत की असीमतम गहराइयों को चूमने के लिये।



मेने अपने होश सम्भालते हुए गुहार की- “दे मुझे यह लौड़ा, पेल दे, पेल दे, पेल दे… भर दे मेरी चूत, भर दे… भर दे इसे अपने लौड़े के पानी से…”



सुधीरअब और न ठहर सका। और भरभरा कर अपनी मॉम की चूत में झड़ गया। मै अपनी चूत को उसके लण्ड पर रगड़ती जा रही थी।


जब दोनों शांत हुए तो मै सुधीर को चूमते हुए बोली- “मेरे शानदार चुदक्कड़ बेटे, काश हम लोग भाग सकते होते तो हम कहीं ऐसी जगह चले जाते जहाँ हम जितनी चाहते, चुदाई कर सकते...

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स्वप्नदोष का उपचार

मैं निधि हूँ. मैं 27 वर्षीय बहुत खूबसूरत स्त्री हूँ और मेरे जिस्म का माप 36/24/38 है। मेरा शरीर बहुत गोरा है, चेहरा गोरा और अंडाकार है, कद पांच फुट छह इंच है, होंठ खूबसूरत गुलाब की पंखुड़ियों जैसे हैं, बल खाती पतली कमर के बीच नाभि की गहराई है, हिरणी जैसी नशीली आँखें भूरे रंग की हैं।

मेरी वक्ष पर उठी हुई गोल और सख्त चूचियाँ हैं जिन पर गहरे भूरे रंग के चूचुक हैं, पेट सपाट है, नितम्ब थोड़े भारी हैं, टांगें लंबी और जांघें सुडौल हैं तथा नितम्बों तक पहुँचते हुए काले काले बाल हैं।

मैं एक मध्यम वर्ग के परिवार की विधवा बहू हूँ जिसके मायके और ससुराल में एक को छोड़ कर कोई भी व्यक्ति जीवित नहीं है ! वह जीवित व्यक्ति है मेरे स्वर्गवासी पति के बड़े भाई का बेटा दीपक जिसे मैं दीप कह कर ही पुकारती हूँ।

दीप 20 वर्ष का एक हृष्ट-पुष्ट नौजवान है जिसने बचपन से ही व्यायाम और खेल-कूद के कारण एक स्वस्थ शरीर पाया है। दीप का कद 5’11” है, सीना चौड़ा, छह पैक बॉडी, लंबी और मजबूत टाँगें, लंबी और ताकतवर बाजूएँ, साफ़ रंग, काले बाल, गोल चेहरा, चौड़ा माथा, काली आँखे, लंबी नाक !

उसे देख कर तो कोई भी लड़की उसकी ओर आकर्षित हो जाती है। दीप आजकल पानीपत के पास इंजिनीयरिंग कालेज में चौथे सेमस्टर (यानि दूसरे वर्ष) में पढ़ता है, बहुत ही सीधा साधा लड़का है जिसमें मुझे कोई अवगुण दिखाई नहीं देते, हर समय मदद के लिए तैयार रहता है, घर, कालेज और जिम के इलावा वह कहीं भी नहीं जाता है और ना ही उसका कोई व्यभिचारी दोस्त है।

मेरे जीवनचक्र का मोड़ लगभग आठ साल पहले जून माह की घटना से शुरू हुआ, जब हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा के पास एक बस दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी !

वह बस एक पांच सौ फुट गहरी खाई में गिर गई थी और उस बस में सवार 40 सवारियों में से 18 सवारियों की मृत्यु हो गई थी और 20 सवारियों को चोटें लगी थी। जब दुर्घटना हुई तब मैं और मेरे पति, उनके बड़े भाई तथा उनकी पत्नी और उनका पुत्र दीप भी इसी बस में सवार थे !

इस दुर्घटना में मरने वाली 18 सवारियों में घटना स्थल पर मृत होने वालों में मेरे पति, उनके बड़े भाई तथा उनकी पत्नी भी थे ! क्योंकि दीप और मुझे को कुछ चोटें आईं थी इसलिए हमें एक दिन के लिए हस्पताल में इलाज के लिए भरती रखा और दूसरे दी छुट्टी दे दी। हमने पुलिस से मृत शरीरों के मिलने के बाद कुछ दूर के रिश्तेदारों के साथ मिल कर दीप के माता, पिता और चाचा का अंतिम संस्कार किया और अपने घर पानीपत में रहने लगे !

इस घटना के समय मैं बीस वर्ष की थी और छह माह पहले ही मेरी शादी दीप के चाचा के साथ हुई थी। उस समय दीप लगभग तेरह वर्ष का था और अष्टम कक्षा में पढ़ता था। दीप की पढ़ाई और घर के खर्चे के लिए हमने पानीपत वाले घर के नीचे का हिस्सा किराये पर दे दिया और ऊपर की मंजिल पर बनी एक ही कमरे वाली बरसाती में रहने लगे। कई रिश्तेदारों और आस पास के लोगों ने मुझे फिर से विवाह करने के लिए कहा, लेकिन मैंने दीप की ज़िम्मेदारी के कारण उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया और दीप के साथ पानीपत में ही रहने लगी।

इस दुर्घटना की वजह मैं टूट तो गई थी लेकिन दीप की हालत देख कर मैंने अपना दुःख भुला दिया और उसकी देख रेख और पढ़ाई में लग गई !

दीप स्कूल में पढ़ने लगा और मैं घर को संभालती तथा आस पास के बच्चों कि ट्यूशनें लेकर अपने गुज़र बसर के लिए कुछ कमा लेती। नीचे के मकान के किराये और मेरी ट्यूशनों की आमदनी से हमारा गुज़ारा बहुत ही आराम से चल जाता था। शुरू में दीप अपने माता, पिता और चाचा को खोने के बाद कुछ सहमा सहमा सा रहता था और कई बार रात को डर कर उठ जाता था और रोने लगता था क्योंकि हमारे पास एक ही कमरा था इसलिए उसे सांत्वना देने के लिए मैं उसे अपने पास ही सुलाती थी।

सुबह दीप स्कूल चला जाता था तब मैं घर का काम समाप्त करती और स्कूल में शाम की पारी में पढ़ने वाले पांच विद्यार्थियों की ट्यूशन लेती। शाम को जब दीप स्कूल से घर आ जाता था तो मैं उसे खिला पिला कर उसे शाम के समय पढ़ने वाले चार विद्यार्थियों के साथ ही पढ़ा देती थी।

इसके बाद अधिकतर हम दोनों थोड़ी देर टीवी देखते, फिर खाना खाते और दस बजे तक सो जाते थे !

दीप मेरे साथ एक ही बिस्तर में मेरे से लिपट कर ही सोता था !

इसी दिनचर्या में सात वर्ष व्यतीत हो गए और दीप ने इंजिनीयरिंग कालेज में दाखिला ले लिया था। कमरा छोटा होने के कारण हम अधिक सामान नहीं रख कर हमने सिर्फ एक डबल बैड और दो कुर्सियाँ ही रखी हुई थी और दोनों उसी डबल बैड पर सोते थे।

दीप 19 वर्ष का हो चुका था लेकिन घर पर वह अभी भी बारह वर्ष के बच्चे की तरह व्यवहार करता था, जब भी घर होता था वह उछल कूद करता ही रहता था और जब देखो तब वह मेरे से चिपट जाता !

जब वह ** वर्ष का था, मैं तब से देख रही थी कि अक्सर सुबह उठने के समय उसका लिंग खड़ा हुआ होता था ! कभी कभी तो रात में जब वह मेरे साथ चिपट के सो रहा होता था तब भी मैंने उसके सख्त और खड़े लिंग की चुभन भी महसूस करती थी। दिन के समय में भी वह जब कभी मुझे चिपकता तब भी मैंने अपनी जाँघों से उसके लिंग का स्पर्श महसूस करती थी, लेकिन मैंने इस बात को तो हमेशा नज़रंदाज़ कर दिया करती थी।

लेकिन दो सप्ताह पहले जब मैं सुबह छह बजे उठी तो दीप सो रहा था तब मैंने उसका पजामा आगे से गीला पाया।

जब मैंने पास जाकर ध्यान से देखा तब आशंका हुई कि शायद उसे स्वप्नदोष के कारण वीर्य स्खलन हो गया था !

मैंने दीप को जगाया और उसे गीले पजामे के बारे में पूछा तो वह भौंचक्का सा पजामे को देखने लगा और मायूस सा चेहरा बनाते हुए कहा कि उसे इसके बारे में कुछ भी पता नहीं !

मैंने दीप का पजामा उतरवा कर उस लगे गीलेपन का परीक्षण किया तो पाया वह उसका वीर्यरस ही था और मेरा स्वप्नदोष के कारण वीर्य स्खलन का अनुमान सही निकला। जांघिये में वीर्यरस से लथपथ चिपका हुआ दीप के लिंग को देख कर मैंने उसे कपड़े बदलने को कहा।

उस दिन पांच वर्ष के बाद मुझे दीप के लिंग की झलक देखने को मिली, जो लम्बाई में छह इंच से बढ़ कर आठ इंच और मोटाई में एक इंच से बढ़ कर ढाई इंच का हो गया था। जब दीप ** वर्ष का था तब छुट्टी के दिन उसे नहलाते समय मैंने उसके लौड़े को अक्सर देखा और छुआ भी था, लेकिन उस दिन मैं ऐसा कुछ करने की हिम्मत नहीं जुटा सकी।

क्योंकि इतने प्यारे और आकर्षक लौड़े को देख कर मैं गर्म हो गई थी इसलिए दीप को कपड़े बदल कर वापिस आने पर मैं बाथरूम में घुस गई और ना चाहते हुए भी कोने में मैले कपड़ों की टोकरी में से दीप के गील पजामे और जांघिये को निकाल कर उसमें लगे वीर्य को सूंघा और जीभ से चाट कर चखा !

उस वीर्य की सुगंध और स्वाद मेरे पति के वीर्य जैसा नमकीन-मीठा था जिसके कारण मुझे अपने मृत पति की बहुत याद आई और मेरी आँखों में से आँसू भी निकलने लगे। मैंने उन कपड़ों में लगे वीर्य को पहले तो अपनी योनि पर रगड़ा और फिर उसमें दो उँगलियाँ डाल कर हस्तमैथुन करके अपनी चूत में लगी अग्नि और खुजली को मिटाया।

दीप के वीर्य में लथपथ लौड़े का चित्र मेरी आँखों के सामने बार बार आने लगा और इसलिए मैं घर के काम में ध्यान भी नहीं दे पा रही थी। मुझे उस लौड़े को देखने और छूने की लालसा परेशान करने लगी तथा उस शानदार, खूबसूरत, सख्त और कड़क लौड़े को अपनी चूत में डलवा कर पिछले सात वर्ष की तन्हाई दूर करने की प्रबल इच्छा सताने लगी थी।

मैंने किसी तरह अपने आप पर काबू किया और अपने को घर के काम में व्यस्त रखा तथा दीप को कालेज भेज दिया !

दीप के जाने के बाद मैंने अपने सारे कपड़े उतार कर उस लौड़े को याद कर के बहुत देर अपनी चूत में उंगली मारती रही ! जब कई बार मेरा पानी छूट गया तब जा कर मैं थकान से निढाल हो कर लेट गई और दीप का लौड़े से अपनी चूत की प्यास कैसे बुझाऊँ, इसकी रूपरेखा ही बनाती रही !

शाम को दीप के घर आने और कुछ खाने पीने के बाद पर मैंने बड़े प्यार उससे फिर पूछा कि उसका पजामा गीला कैसे हुआ, तो वह मेरी कसम खा कर कहने लगा कि उसको इस बारे में कुछ भी नहीं पता।

मेरे यह पूछने पर कि क्या उसके साथ पहले भी कभी ऐसा हुआ था तो उसने बताया कि दो हफ्ते पह्ले भी आधी रात को ऐसा हुआ था क्योंकि उसकी नींद खुल गई थी इसलिए उसने कपड़े बदल लिए थे लेकिन शर्म के कारण उसने मुझे कुछ भी नहीं बताया था।

रात को जब हम सोने की तैयारी कर रहे थे तब मुझे दीप के लौड़े को एक बार फिर से देखने की लालसा जागी तथा मैं उसे छूना भी चाहती थी, इसलिए मैंने उसे अपने पास बिठा कर समझाया कि इस तरह बार बार पजामा गीला होना ठीक नहीं होता इसलिए मुझे इसके कारण की जाँच करनी पड़ेगी !

इस जांच के लिए जब मैंने उसे कपड़े उतारने को कहा तो वह कुछ झिझका और शर्म के कारण आनाकानी करने लगा। तब मैंने उसे समझाया कि मैं तो उसे कई बार नंगा देख चुकी हूँ इसलिए उसे शर्माने की ज़रूरत नहीं है।

फिर मेरे दबाव में आकर वो पजामा और जांघिया उतार कर नंगा हो गया, तब मैंने उसके लौड़े को हाथ में लेकर सभी ओर से बड़े ध्यान से देखा ! मेरे ऐसे उलटने पलटने के कारण दीप का लौड़ा सख्त होना शुरू हो गया और देखते ही देखते खड़ा हो गया !

मैंने लौड़े के ऊपर का मांस पीछे करके सुपाड़े को बाहर निकाला तो उसके अंदर मैल की सफ़ेद परत देखी। क्योंकि दीप बड़े ध्यान से मुझे ऐसा करते हुए देख रहा था इसलिए मैंने उसे समझाया कि रोज सुबह-रात को सुपाड़े को बाहर निकाल कर इस सफ़ेद परत को साफ़ करना चाहिए, नहीं तो कोई संक्रमण हो सकता है !

लौड़े में लगी हुई सफ़ेद परत को कैसे साफ़ करना चाहिए इसके लिए मैंने उसे बाथरूम में लेजा कर उसके लौड़े को पानी से अच्छी तरह से मसल कर धोया, फिर मैंने उसे कपडे पहनने को कहा और उसे चेताया कि वह इस बात का ज़िक्र किसी से भी ना करे क्योंकि मुझे उसके पजामा गीला होने का कारण समझ नहीं आया इसलिए मैं परिवार के डॉक्टर से पूछ कर ही उपचार बता पाऊँगी।

इसके बाद मैं बाथरूम से बाहर आकर जिस हाथ से मैंने दीप के लौड़े को मसला था उसे बहुत देर तक चूमती और चाटती रही ! मेरी चूत में बहुत खुजली होने लगी थी और मैं दीप के लौड़े को अपनी चूत में लेने के लिए व्याकुल हो उठी थी !

लेकिन ना तो मैं पहल करना चाहती थी और ना ही मैं चुदने के लिए कोई उतावलापन दिखाना चाहती थी इसलिए अपना मन मसोस कर बाथरूम में जाकर मैंने अपनी चूत में उंगली की और अपनी आग और खुजली को शांत कर के बिस्तर में आकर सो गई।

अगले दिन शाम को कालेज से आने के बाद दीप ने, पजामा गीले होने के बारे में डाक्टर ने क्या कारण बताया, जानने की कोशिश की। तब मैंने उसे बताया कि कोई चिंताजनक बात नहीं है और सारा काम समाप्त कर के हम दोनों आराम से बैठ कर इस विषय पर बात करेंगे।

रात दस बजे जब हम सोने के समय जब दीप ने उस विषय के बारे में फिर पूछा तो मेरे मन में एक बार फिर उसके लौड़े को देखने और छूने की लालसा जाग उठी !

मैंने उसे बताया कि डॉक्टर के अनुसार इसे स्वप्नदोष कहते हैं और यह बिमारी नहीं है ! फिर मैंने उसे कहा कि अगर वह विस्तार से जानना चाहता है तो वह अपने कपड़े उतार दे ताकि मैं इसके बारे में उसे अच्छी तरह समझा सकूँ !

मेरे इतना कहने पर दीप अपना पजामा और जांघिया उतार कर मेरे सामने खड़ा हो गया ! मैंने उसके लौड़े को एक हाथ में पकड़ कर ऊपर किया और दूसरे हाथ से उसके अंडकोष को पकड़ा तथा अहिस्ता आहिस्ता दोनों को सहलाने लगी !

मेरे सहलाने से उसका लौड़ा खड़ा हो गया और उसके टट्टे ऊपर को चढ़ गए !

तब मैंने उसे अंडकोष को दिखाते हुए बताया कि इसके अंदर लगातार वीर्य बनता रहता है और जब यह अंडकोष भर जाता है तथा उसमें और वीर्य-रस नहीं समा सकता तब पहले वाला रस बाहर निकल जाता है और नए रस के लिए जगह बन जाती है ! इस प्राकृतिक क्रिया को स्वप्नदोष ही कहते हैं और यह हर पुरुष के साथ होता है !

क्योंकि मैं उसके लौड़े को छोड़ना नहीं चाहती थी इसलिए मैंने उसे मसलते हुए दीप को स्वप्नदोष के उपचार के बारे में बताने लगी।

इसके बाद मैं उसके लौड़े को पकड़ कर आगे पीछे हिला हिला कर उसकी मुठ मारने लगी और उसे बताती रही कि ऐसा करने से वह उतेजित हो जाएगा और उसके अंदर का वीर्य बाहर आ जाएगा !

तब दीप ने पूछा- इससे क्या होगा, जो नया रस बनेगा उसके निकलने से भी तो पजामा गीला हो सकता है !

तब मैंने उसे बताया कि अगर एक बार रस निकाल दो तब नए रस के लिए अगले एक सप्ताह तक के लिए जगह बन जाती है और फिर ना तो वह बाहर निकलेगा ना ही उसका पजामा गीला होगा ! यही स्वप्नदोष का उपचार है।
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कह कर मैं चुप हो गई और उसकी मुठ मारती रही ! लगभग दस मिनट मुठ मारने के बाद दीप आह्ह… आह… आह्ह्ह… करने लगा और उसका बदन अकड़ने लगा, उसकी आँखें बंद हो गई और फिर इसने एक झटके के साथ लौड़े में से रस की फुहार छोड़नी शुरू कर दी!


दीप की आँखें बंद देख कर मैंने झट से अपना मुँह खोल कर उसके लौड़े को मुँह में ले लिया और उस रस को पी लिया। मेरी इस हरकत को दीप ने देख लिया और इससे पहले वह कुछ बोले या पूछे मैंने उसके लौड़े को अच्छी से दबा कर उसमें से बचा हुआ रस भी निचोड़ दिया तथा उसे धो कर तौलिए से पोंछ दिया।

इसके बाद मैंने दीप को हिदायत दी कि वह इस क्रिया के बारे में किसी से भी जिक्र नहीं करेगा और सप्ताह में सिर्फ एक ही बार करेगा या मुझे ही करने को कहेगा !

इतना कह कर मैं बाथरूम से बाहर आ गई और मुँह में बचे-खुचे रस का स्वाद लेने लगी !

दीप कपड़े पहन कर असमंजस में कुछ सोचता हुआ बाथरूम से बाहर आया और मेरे पास बिस्तर पर लेट गया तथा मुझे पूछने लगा कि जो रस उसके लौड़े में से निकला था वह मैंने क्यों पिया !

तब मैंने उसे बताया कि जब उसने रस की पहली फुहार छोड़ी थी वह मेरे मुँह पर आ कर गिरी थी, क्योंकि मुझे रस बहुत स्वादिष्ट लगा इसलिए मैंने अपना मुँह आगे करके सारा का सारा रस पी लिया।

इसके बाद दीप ने मुझसे पूछा कि अगली बार उपचार कब करेंगे, तो मैंने कह दिया कि शनिवार रात को करेंगे और उसे अपने पास खींच के उससे लिपट कर सो गई।

अगले छह दिन रोज की तरह निकल गए और शनिवार शाम को जब दीप कालेज से घर आया तो काफी खुश था। जब मैंने उससे खुशी का कारण पूछा तो उसने कहा कि पिछले पूरे सप्ताह उसको स्वप्नदोष नहीं हुआ था और आज उसका अगले सप्ताह के लिए उपचार भी होना था इसलिए वह खुश था !

फिर उसने मुझ से पूछा कि उसकी मुठ कब मारूंगी तो मैंने कहा कि पिछले सप्ताह की तरह सोने से पहले मार दूँगी ! रात को लगभग दस बजे दीप ने मुझे बाथरूम में चलने के लिए आग्रह किया, तब मैंने उसे बाथरूम में ले जाकर उसके सारे कपड़े उतरवाए और उसे एक जगह खड़ा कर दिया, फिर मैं उसके सामने बैठ गई और उसके आठ इंच के लौड़े को मसलने और उसकी मुठ मारने लगी।

दस मिनट के बाद दीप का बदन अकड़ने लगा, उसकी आँखें बंद हो गई और उसने आह… ओह… आःह… करते हुए अपने वीर्य-रस की पिचकारी छोड़ी !

मैं इसके लिए तैयार थी और झट से अपना मुँह खोल उसके लौड़े पर लगा दिया और उसका रसपान करने लगी। जब उसने पिचकारी छोड़ना बंद कर दी तब मैंने लौड़े में बचे हुए रस को चूस लिया और उसे चाट कर साफ कर दिया।

मेरे ऐसा करने से दीप को जैसे बहुत आनन्द आया होगा इसलिए मेरे खड़े होते ही वह मुझ से लिपट गया और मेरे गालों पर चुम्बनों की बौछार कर दी ! इसके बाद दीप ने कपड़े पहन लिए तथा हम दोनों बाथरूम से बाहर आ गए और सोने के लिए बिस्तर पर जा कर लेट गए! बातों ही बातों में मैंने दीप से पूछा कि उसने मुझे इतना चूमा क्यों था तो उसने बताया आखिर में जब मैंने उसके लौड़े में से बचे हुए रस को चूस कर खींचा था तब उसे बहुत ही आनन्द आया था !

इसके बाद बातें करते हुए हम दोनों को कब नींद आ गई यह पता ही नहीं चला।

रविवार सुबह सात बजे जब मेरी नींद खुली तो मैंने देखा कि दीप सीधा सो रहा था और उसके लौड़ा खड़ा हुआ था तथा पजामे को एक तम्बू की तरह उठा रखा था। मैं कुछ देर तो वह नज़ारा देखती रही फिर अपने मोबाइल फोन से उस दशा की कुछ फोटो खींच ली, फिर मैंने चाय बना कर उसे जगाया, मुस्करा कर गुड-मोर्निंग कही और हम दोनों ने बिस्तर पर ही बैठ कर चाय पी !

हम इधर उधर की बातें कर रहे थे कि तभी दीप ने करनाल लेक पर घूमने जाने की योजना बना दी और हम जल्दी से उठ कर तैयारी करने लगे। मैंने खाने पीने का सामान बनाया अथवा इकट्ठा करके एक बैग में रखा और दीप ने बाकी ज़रूरत की सब वस्तुएँ इकट्ठी कर के दूसरे बैग में रख ली। इसके बाद दीप नहाने चला गया और मैं पहनने के कपड़े निकालने लगी।

जैसे ही दीप नहा कर बाहर आया तब मैं बाथरूम में घुस गई और अपनी नाइटी, ब्रा और पेंटी उतार कर नहाने लगी। कुछ देर के बाद जब मैं नहा चुकी और तौलिए लेने के लिए हाथ बढ़ाया तो मैंने पाया कि मैं जल्दी में तौलिया लाना ही भूल गई थी। मैंने दीप को तौलिया देने के लिए आवाज लगाई और उसका इन्तज़ार कर ही रही थी कि अचानक दीप बाथरूम का दरवाज़ा खोल कर तौलिया हाथ में पकड़े हुए अंदर आ गया !

मुझे बिल्कुल नंगा देख कर वह खुले दरवाजे के पास ही खड़ा हो कर मुँह फाड़े मुझे देखने लगा। शायद मेरे नंगे बदन की मनमोहक सुंदरता ने उसके होश उड़ा दिए थे !

मैंने जब दीप को आँखे फाड़े मुझे देखते हुए देखा तो मैंने उससे पूछ लिया- इस तरह क्यों घूर रहा है?

तो वह सकपका गया और बाथरूम से बाहर चला गया। फिर मैं अपना बदन पोंछ कर ब्रा और पेंटी पहन कर कमरे में आई और अलमारी में से कपड़े निकाल कर पहन लिए। मैंने देखा कि इस बीच दीप सामने कुर्सी पर बैठा यह सब देख रहा था।

मुझ से रहा नहीं गया, मैंने उससे फ़िर पूछ लिया- क्या देख रहा है दीप?

तो उसने कहा कि वह मेरे बदन को देख रहा था जो की बिना कपड़ों के बहुत ही खूबसूरत लगता है !

मेरे पूछने पर कि उसे मेरे बदन में उसे क्या अच्छा लगा तो वह बिना झिझके बोल उठा कि सब कुछ अच्छा लगा, लेकिन जो जगह सबसे ज्यादा अच्छी लगी, वह थी मेरी चूचियों के ऊपर की गहरे भूरे रंग की चूचुक और मेरी नाभि के नीचे वाले हल्के हल्के से काले बाल ! फिर उसने मुझ वह उनको छूने की इच्छा ज़ाहिर की तो मैंने यह कह कर मना कर दिया कि अभी तो कपड़े पहने हुए हैं, रात को जब नाइटी पहनी होगी तब छू लेना !

इसके बाद हम दीप की मोटर साइकल पर बैठ कर करनाल चले गए और सारा दिन लेक पर, करनाल के मॉल और बाजार में घूमते रहे और देर रात को खाना खाकर घर पहुँचे !

दिन भर के थके होने के कारण घर पहुँचते ही मैंने कपड़े बदले और सोने के लिए बिस्तर पर लेट गई। तभी दीप कपड़े बदल कर मेरे पास आकर बैठ गया और मेरे कान में फुसफसाया कि वह मेरी चूचुक छूना चाहता था!

मेरी अनुमति देने पर उसने नाइटी के ऊपर से ही उन्हें पकड़ने की कोशिश करी लेकिन मैंने उसे रोक दिया और अपनी नाइटी उतार कर एक ओर रख दी तथा उसे पास में लिटा लिया, क्योंकि मैंने जान बूझ कर ब्रा और पेंटी नहीं पहनी थी इसलिए दीप मेरे नग्न बदन को देख कर बहुत खुश हो गया और बड़े प्यार से वह अपने हाथों से मेरी चूचियों और चूचुक को सहलाने लगा।

मुझे उसका ऐसा करना बहुत अच्छा लग रहा था क्योंकि करीब सात वर्ष के बाद ही कोई उन्हें सहला रहा था !

जल्द ही मेरे चूचुक सख्त हो गए, तब दीप ने पूछा कि यह सख्त और खड़े से क्यों हो गए हैं?

तो मैंने उसे समझाया कि जैसे उसका लौड़ा सख्त और खड़ा हो जाता है उसी तरह यह भी सख्त और खड़े हो जाते हैं।

फिर दीप ने एक हाथ से चूचियाँ दबाता-मसलता रहा और दूसरे हाथ से मेरी नाभि के नीचे बालों को सहलाना शुरू कर दिया।

दीप के इस तरह दो जगह पर एक साथ सहलाने से मैं थोड़ी देर में ही गर्म होना शुरू हो गई और मेरी चूत में हलचल होने लगी। मैंने दीप के हाथों को पकड़ कर रोका और उसे चूचियाँ चूसने को कहा। तब वह बारी बारी से मेरी दोनों चूचियों को चूसने लगा !

दस मिनट में मेरी चूत में से पानी रिसने लगा और मुझसे जब अधिक बर्दाश्त नहीं हो रहा था इसलिए मैंने दीप के मुँह से चूचियाँ छुड़वा दी और उसका सिर पकड कर उसका मुँह अपनी चूत में लगा दिया तथा उसे चूसने व चाटने को कहा !

दीप तत्काल अपनी जीभ मेरी चूत में डाल कर घुमाने लगा जिससे मेरी चूत में से तेज़ी से पानी बहने लगा, वह उस पानी को पीने लगा और साथ साथ चूत के होंटों तथा छोले को भी चाटने लगा !

जब मैं कुछ ज्यादा गर्म हो गई तब मैंने दीप का पजामा और जांघिया उतरवा कर उसके लौड़े को मुँह में लिया और चूसने लगी, वह मेरी चूत चूसता रहा !

कुछ ही मिनटों ज़ोरदार चुसाई से दीप का लौड़ा लोहे की तरह सख्त हो गया था और उसका प्री-कम भी निकलना शुरू हो गया था।

जब मुझ से अधिक सहन नहीं हुआ तब मैंने दीप को मुझे चोदने को कहा तो वह पूछने लगा- चाची, चुदाई कैसे करते हैं?

तब मैंने उसे पीठ के बल नीचे लिटा दिया और खुद उसके ऊपर चढ़ गई, अपनी दोनों टाँगें उसके अगल बगल में करके मैंने नीचे हो कर उसके लौड़े को पकड़ा और अपनी चूत के मुँह से लगा कर उस पर बैठ गई, इसके बाद मैं धीरे धीरे नीचे की ओर दबाव डालने लगी जिससे लौड़ा मेरी चूत में घुसने लगा। दीप का सुपारा फूल कर तीन इंच मोटा हो गया था इसलिए मेरी पिछले सात वर्ष से अनचुदी कसी चूत में घुस ही नहीं रहा था !

मैंने थोड़ा कमर को हिला कर झटके से नीचे को ओर बैठी तो वह घुस तो गया लेकिन मेरी दर्द के मारे मेरी उइ ईई माँ…उइई ईमाँ… उइईई माँ… चीखें निकलने लगी !

दीप घबरा गया और लौड़े को बाहर निकालने के लिए मुझे पकड़ कर ऊपर करने लगा। तब मैंने उसे ऐसा करने से मना कर दिया तथा एक और झटका लगा कर आधा लौड़ा चूत के अंदर घुसा लिया !दर्द और झटकों की वजह से मैं हांफने लगी थी इसलिए थोड़ी देर के लिए वैसे ही रुकी रही और दर्द कम होने का इन्तज़ार करने लगी।

मेरी शादी के बाद सुहागरात को जब पहली बार सील तुड़वाई थी तब भी मुझे इतनी दर्द नहीं हुई थी जितनी उस समय हो रही थी !इसका कारण यह था कि मेरे पति का लौड़ा सिर्फ छह इंच लम्बा और एक इंच मोटा था और मेरे पति का सुपारा फूल कर सिर्फ सवा इंच मोटा होता था।

करीब पांच मिनट रुकने के बाद मुझे दर्द कम हुआ तब मैंने फिर से झटके मारने शुरू किये और आहिस्ता आहिस्ता पूरा लौड़ा चूत के अंदर घुसेड़ लिया !

मुझे चूत के अंदर दीप के लौड़े का कड़कपन और गर्मी महसूस हो रही थी और मैं रगड़ाई के लिए तैयार थी !

मैं धीरे धीरे ऊपर नीचे होने लगी और फिर निरंतर अपनी गति बढ़ाती गई जिससे मेरी चूत सिकुड़ने लगी और मुझे लौड़े की रगड़ का आनन्द आने लगा।

दीप को भी अब आनन्द आना शुरू हो गया था क्योंकि वह भी हर धक्के पर मेरी तरह उन्ह्ह्ह्ह… उन्ह… आह ह्ह्ह्ह… आह… आह ह… उन्ह ह्ह… उह… ओह… की आवाजें निकालने लगा था ! कमरे में हम दोनों की आवाजों के शोर को कोई बाहर वाला ना सुन ले इसलिए मैं अपने होंट दीप के होंटों पर रख कर उसे चूमने लगी !

पन्द्रह मिनट की ज़बरदस्त चुदाई में मैंने चार बार पानी छोड़ा जो बाहर बह कर दीप के टट्टों को गीला कर रहा था। इसके बाद मैंने झटकों की गति बहुत तेज कर दी और कुछ मिनटों में ही मेरा बदन अकड़ने लगा और मेरी चूत दीप के लौड़े को जकड़ने लगा !

उसी समय दीप का लौड़ा भी फड़कने लगा और एकदम फूल गया तथा एक ज़ोरदार फुहार छोड़ी ! मुझे ऐसे लगा कि जैसे मेरी चूत में किसी जवालामुखी का विस्फोट हुआ हो और उसके अंदर गर्म गर्म लावा बहने लगा है !

उस लावे की गर्मी को कम करने के लिए मेरी चूत ने भी अपनी जलधारा खोल दी।

इसके बाद दीप के लौड़े और मेरी चूत में जैसे एक होड़ सी लग गई, जैसे ही लौड़ा फुहार मारता, चूत जलधारा की लहर छोड़ देती ! देखते ही देखते मेरी चूत दोनों के रस के मिश्रण से लबालब भर गई और झरने की तरह बाहर की ओर बह निकली !

पांच मिनट के बाद जब हमें सुध आई तो मैं बहुत थकी थकी महसूस करने लगी और उसी तरह लौड़े में फंसी हुई दीप के ऊपर लेट गई।

दीप ने मुझे अपनी बाहों में भर लिया और मेरे कान में पूछा- क्या इसे ही चुदाई कहते हैं?

तो मैंने सिर हिला कर हाँ कह दिया।तब उसने पूछा कि मुझे यह चुदाई कैसी लगी तो मैंने उसे बताया कि मेरी जिंदगी की अभी तक की सबसे बढ़िया चुदाई थी !

उसने जब पूछा कि मैं यह कैसे कहती हूँ तो मैंने उसे बताया कि शादी के बाद उसके चाचा ने मुझे छह माह तक खूब चोदा था लेकिन मेरी चूत में आज जैसी खिंचावट पहले कभी नहीं हुई थी। फिर मैं उठ कर दीप से अलग हुई और दोनों बाथरूम में जाकर एक दूसरे को अच्छी तरह साफ़ किया और वापिस कमरे में आ कर दोनों उसी तरह नग्न ही लेट गए !

दीप मेरे साथ चिपक कर लेट गया और उसका हाथ मेरी चूची पर था तथा टांग का घुटना मेरी चूत के बालों के पर था! मुझे अपनी जांघ पर उसके लौड़े की स्पर्श महसूस हो रहा था इसलिए मैंने अपना एक हाथ से उसके लौड़े को पकड़ लिया और हम दोनों निद्रा के आगोश में खो गए !

क्योंकि गर्मियों के दिन थे, सुबह पांच बजे ही मेरी नींद खुल गई, मैंने अपनी आँखें खोली तो मुझे पास में सोये हुए दीप पर नज़र पड़ी जो कि दूसरी ओर मुँह किये हुए सो रहा था। खिड़की के पर्दों में से छन कर आती हुई बाहर की रोशनी में उसका नंगा बदन मुझे बिल्कुल साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा था, उसकी सफ़ेद पीठ, उसके गोल गोल नितम्ब और उन नितम्बों के बीच की दरार, उसकी लंबी सुडौल टांगें !

इतना सब देखने के बाद मेरा मन मचल उठा और ना चाहते हुए भी मैंने दीप के नितम्बों के बीच की दरार में अपनी उंगली डाल कर उसकी गांड को टटोला और फिर उसमें घुसेड़ दी।

मेरी इस हरकत से दीप चौंक कर उठ बैठा तथा मुझे आश्चर्य से मुझे घूरने लगा !

मैंने उसके असमंजस का उत्तर जोर से हँसते हुए उसके कन्धों को पकड़ लिया और अपनी ओर खींचते हुए उसके होंटों पर अपने होंट रख कर एक ज़बरदस्त चुम्बन से दिया !

दीप ने मेरे चुम्बन का जवाब भी अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल कर और मेरी जीभ को चूस कर दिया। जब हम अलग हुए तब उसने मुझे ध्यान से देखा और आगे बढ़ कर अपना मुँह मेरे वक्षस्थल पर लगा कर मेरे चूचुक चूसने लगा, तब मुझे बोध हुआ कि मैं भी नग्न थी और पांच घंटे पहले सम्भोग करने के पश्चात हम दोनों उसी अवस्था में सो गए थे !

मैं भी उसे स्तनपान कराते हुए उसके टांगों के बीच में अर्धचेतना की दशा में पड़े हुए लौड़े को पकड़ लिया और पहले तो मसला, फिर झुक के मुँह में लेकर चूसने लगी।

दीप ने जब मेरी ओर जिज्ञासा से देखा तब मैंने उसे कहा कि पांच घंटे पहले डाला गया ईंधन समाप्त हो गया है और अब मुझे और ईंधन की ज़रूरत है।

मेरी इस बात पर दीप मुस्करा पड़ा और मेरी चूचियों को जोर जोर से चूसने अथवा मसलने लगा ! उसकी इस क्रिया के कारण मैं उत्तेजित होना शुरू हो गई और मैं भी उसके लौड़े को जोर जोर से चूसने लगी !

तब दीप ने मेरे स्तनों को चूसना छोड़ दिया और घूम कर मेरी जांघों के बीच आ गया, मेरी चूत को चाटने लगा !

उसने मेरी चूत के अंदर अपनी जीभ डाल कर घुमाने लगा जिससे मैं बहुत उत्तेजित हो गई और आह… आह… करते हुए मैंने अपना पानी छोड़ दिया।

दीप ने बड़े मजे से मेरा सारा पानी पी लिया और मेरी चूत को चाटता रहा !

लगभग तीन-चार मिनट तक इसी तरह एक दूसरे को हम चूसते व चाटते रहे और जब मैंने दूसरी बार अपना रस छोड़ा तब दीप ने भी अपना वीर्य रस मेरे मुँह में छोड़ दिया।

दीप ने मेरा और मैंने दीप का सारा रस पी लिया और फिर हम दोनों ने चाट चाट कर एक दूसरे को साफ़ किया तथा एक दूसरे से चिपक कर लेट गए।

दीप सीधा लेटा हुआ था और मैं उसे लिपटी हुई थी, मेरी चूचियाँ उसकी छाती के साथ चिपकी हुई थीं, मेरी एक टांग उसकी जांघों के ऊपर थी और दूसरी टांग उसकी जांघों के साथ सटी हुई थी। दीप का एक हाथ हम दोनों के जिस्म के बीच में था और वह मुझे उत्तेजित करने के लिए उस हाथ से मेरी चूत में उंगली कर रहा था तथा दूसरे हाथ से मेरी एक चूचुक को मसल रहा था।

मैं भी एक हाथ में उसका बैठे हुए लौड़े को पकड़ कर खड़ा करने के लिए ऊपर नीचे की दिशा में हिलाने लगी !

करीब आधे घंटे के बाद दीप का आठ इंच लम्बा और ढाई इंच मोटा लौड़ा सख्त हो गया तब उससे चुदने के ख्याल मात्र से मेरी चूत में भी गुदगुदी होने लगी।

तब हम दोनों थोड़ा चौकन्ने हो गए और जैसे ही दीप के लौड़े से प्री-कम निकलने लगा और मेरी चूत से पानी रिसने लगा।
मैं उठ कर दीप पर चढ़ गई और उसके लौड़े को अपनी चूत के मुँह के सामने फिट कर के उस पर बैठ गई, दीप का सुपारा तीन इंच मोटा हो गया था इसलिए उसको अंदर घुसने में कुछ समय लगा, लेकिन सुपाड़े के घुसते ही उसके प्री-कम और मेरे रस की वजह से उसका पूरा लौड़ा फिसलते हुए एक झटके में गोली की तरह मेरी चूत में गुम हो गया।

मैंने कुछ सेकंड इंतज़ार किया और फिर ऊपर नीचे उछल उछल कर लौड़े को अंदर बाहर करने लगी। दीप ने मेरी दोनों चूचियाँ पकड़ ली और वह भी नीचे से धक्के मारने लगा।लगभग पन्दरह मिनट की इस चुदाई में मैंने आह… ओह… उन्ह… उन्ह्ह… अह हम्म… उन्ह… करते हुए दो बार पानी छोड़ा तब दीप ने पलट कर मुझे नीचे लिटा दिया, मेरे ऊपर चढ़ गया, मेरी टांगें चौड़ी कर के अपना पूरा लौड़ा मेरी चूत में घुसेड़ कर उछल उछल कर मुझे चोदने लगा !

वह तेज़ी से धक्के देने लगा था और उसके हर एक धक्के से मेरी चूत में खिंचावट बढ़ने लगी !

पांच मिनट के तेज धक्के ही लगे थे कि मेरी चूत के अंदर एक ज़बरदस्त अकड़ाहट हुई और मेरी चूत ने दीप के लौड़े को बहुत जोर से जकड़ लिया ! इस जकड़न की वजह से हम दोनों के अंगों को बहुत तेज रगड़ लगने लगी और हम दोनों के मुँह से तेज तेज आवाजें आने लगी। दीप के मुँह से उहुंह… उह… हुंह… की आवाजें और मेरे मुँह से आह… ह्ह… उन्ह… ह्ह… अह… उन्ह… की ! हम दोनों इस चुदाई का मज़ा ले रहे थे तभी मेरा जिस्म अकड़ गया और मेरे मुँह से एक ज़ोरदार चीख निकली- उई ईईईई माआ आआआ… उईई ईईइ माआआ आआ…!

और मेरी चूत के अंदर तूफ़ान आया और मेरे रस की बाढ़ बह निकली !उसी समय दीप भी एकदम अकड़ा और उंह… उन्ह… अह… अहह… करते हुए मेरी चूत के अंदर ही अपने लौड़े से वीर्य-रस की पिचकारी चला दी !

उसके गर्म गर्म वीर्य-रस ने मेरी चूत के अंदर आग लगा दी और मुझे संसार के सबसे बड़े आनन्द का अनुभव हुआ तथा मैं आनन्दित हो कर दीप से चिपक गई और उस पर चुम्बनों की बौछार कर दी !
दीप जैसे थक गया था इसलिए उसने अपने लौड़े को मेरी चूत में ही रहने दिया और मेरी चूचियों को अपने नीचे दबा कर हांफते हुए मेरे ऊपर ही लेट गया।मैंने दीप को कस कर अपने आलिंगन में लिया और उसके माथे को चूमा और करीब आधा घंटा वैसे ही लेटे रही !

इसके बाद हम उठे और बाथरूम में जा कर एक दूसरे को साफ़ किया और फिर रोज की दिनचर्या में लग गए। पिछले एक सप्ताह में हमने हर रोज कम से कम दो बार तो चुदाई ज़रूर की और छुट्टी के दिन तो तीन बार भी की !

मेरी सात वर्ष की प्यासी चूत की प्यास बुझने में तो अभी समय लगेगा, लेकिन दीप को मस्त चुदाई करना सीखने में सिर्फ एक दिन और एक रात ही रात लगी।

अब तो ऐसी मस्त चुदाई करता है कि आप उसके लौड़े की दीवानी हो जायेंगीं, और 24 घंटे चुदने की फिराक में रहेंगी क्योंकि मैंने अभी दीप से बहुत चुदना है इसलिए मैं उसे अभी तो मेरे सिवाय किसी और को चोदने नहीं दूँगी !

समाप्त
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Wink 
मैं उन्हें भइया बोलती हूँ

एक बार फिर मैं आपके सामने अपनी एक बहुत ही हसीन आपबीती लेकर उपस्थित हुई हूँ, आशा करती हूँ आपको पसंद आयेगी।

मेरे पापा के एक दोस्त हैं अनिल अग्रवाल ! पापा और अनिल अंकल एक ही कम्पनी में काम करते हैं, दोनों की काफी अच्छी दोस्ती है।

अनिल अंकल हमारे घर अक्सर आते रहते हैं।

एक दिन अनिल अंकल का पापा के पास फोन आया, कहा- यार मुझे और मेरी पत्नी को रिश्तेदारी में एक शादी में जाना है और मेरा बेटा भी काम के सिलसिले में बाहर गया है। हम शादी में जायेंगे तो पलक बहू घर में अकेली हो जाएगी, शादी में जाना भी जरूरी है और मेरी पोती बहुत छोटी है, तो हम पलक को अकेला नहीं छोड़ सकते। क्या तुम रोमा को कुछ दिन के लिए मेरी बहू के साथ हमारे घर में रहने के लिए भेज सकते हो?

तो पापा ने कहा- मैं रोमा से पूछ कर बताता हूँ।

फिर पापा ने मुझसे पूछा तो मैंने कहा- ठीक है, मैं चली जाऊँगी।

पापा ने अंकल को कह दिया- ठीक है, वो पलक के साथ रह लेगी !

तो अंकल ने कहा- हमें कल शाम में जाना है, मैं कल सुबह रोमा को लेने आ जाऊँगा।

उनका घर हमारे घर से काफी दूर है, मैंने अपनी तैयारी की जाने की और अगले दिन सुबह अंकल मुझे लेने के लिए आ गये। मैं तैयार हो रही थी, मम्मी ने उन्हें जलपान कराया फिर उन्होंने कहा- हम दोनों में तो एक हफ्ते के लिए जा रहे हैं पर मेरा बेटा तीन-चार दिन में घर वापस आ जायेगा तो वो रोमा को वापस छोड़ देगा तब तक रोमा पलक और उसकी बेटी के साथ रह लेगी।

पापा ने कहा- ठीक है यार, जब तक तुम दोनों नहीं आ जाते, रोमा वहाँ रह सकती है।

और फिर अंकल मुझे लेकर अपने घर आ गए।

उनके घर जाकर मैं उनकी बहू से मिली, वैसे तो मैं उनसे पहले भी मिल चुकी थी जब वो हमारे घर आई थी पर हमारी ज्यादा बात नहीं हो पाई थी।


फिर शाम को पाँच बजे अंकल और आँटी की ट्रेन थी तो वो चले गये, मैं उनके घर में थोड़ी चुप-चुप सी थी तो पलक भाभी ने मुझसे कहा- रोमा, तुम इतनी चुप क्यों हो? क्या तुम्हें यहाँ अच्छा नहीं लग रहा है?

मैंने कहा- नहीं नहीं भाभी, ऐसी कोई बात नहीं है !

तो भाभी कहने लगी- रोमा, तुम इसे अपना ही घर समझो, किसी भी चीज की जरूरत हो तो बेझिझक मुझसे कहना ! तुम मुझे अपनी सखी-सहेली ही समझो।

भाभी की बेटी अभी नौ महीने की है, मैं उसके साथ खेलने लगी।

भाभी ने रात का खाना बनाया, हमने खाना खाया, फिर मैंने भाभी से कहा- मैं कहाँ पर सोऊँगी भाभी?


तो भाभी ने कहा- रोमा, तुम मेरे साथ मेरे ही कमरे में सो जाओ, तुम्हारे भईया तो है नहीं, तुम मेरे साथ सोओगी तो अच्छा रहेगा।
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रात में भाभी और मैं कुछ बातें करने लगे। उनकी बेटी रोने लगी तो भाभी ने अपना ब्लाउज ऊपर करके एक उरोज को बाहर निकाल कर गुलाबी निप्पल को बेबी के मुँह में देकर उसे दूध पिलाने लगी।


मैं यह देख कर वहाँ से उठ कर जाने लगी तो भाभी ने कहा- कहाँ जा रही हो रोमा ! बैठी रहो ! इसमें क्या शरमाना !

मैं वहीं बैठी रही।

भाभी के स्तन काफी बड़े थे जो मुझे साफ साफ दिखाई दे रहे थे। मैंने भाभी से पूछा- भाभी, आपकी अरेंज मैरिज थी या लव मैरिज?

तो भाभी मुस्कुराने लगी कहा- अरेंज कम लव मैरिज थी।

फिर मैंने पूछा- भाभी, आप और भईया कहाँ मिले थे?

तो भाभी कहने लगी- हम कॉलेज में मिले थे !

काफी देर तक हम ऐसे ही बातें करते रहे, बात करते करते रात का एक बज गया था, मैंने भाभी से पूछा- भईया ने आपको प्रपोज कैसे किया था?

तो भाभी कहने लगी- रात बहुत हो गई है रोमा, हमें सोना चाहिए, अब कल बात करेंगे।

फिर सुबह जब मेरी नींद खुली तो भाभी बिस्तर पर नहीं थी। मैं उठ कर बाथरूम की तरफ गई पर बाथरूम अन्दर से बन्द था। भाभी को पता चल गया था कि मैं उठ गई हूँ तो उन्होंने अन्दर से ही कहा- रोमा, मैं अभी 5 मिनट में निकलती हूँ !

मैंने कहा- ठीक है।

फिर भाभी बाथरूम से निकली तो वो सिर्फ ब्रा-पेंटी में थी और वो ब्रा-पेंटी सफ़ेद रंग की पारदर्शी थी। भाभी तौलिये से अपने बालों को पौंछ रही थी।

मैं उन्हें देखती ही रही, उनके बड़े बड़े उरोज ब्रा में से छलक-झलक रहे थे और उनकी योनिस्थल पर हल्के हल्के बाल थे, जो मुझे उस पारदर्शी ब्रा पेंटी से दिखाई दे रहे थे। मैं उन्हें एकटक देखे जा रही थी।

फिर भाभी ने अलमारी से अपने कपड़े निकाले और उन्हें पहनते हुए भाभी ने मुझे कहा- जाओ रोमा, तुम भी जाकर नहा लो।

मैं अपने बैग से कपड़े निकलने लगी पर बैग में ब्रा और पेंटी दिखी नहीं तो मैं बैग में ही ढूंढने लगी।

तो भाभी ने मुझे देख कर पूछा- क्या ढूँढ रही हो रोमा?

तो मैंने कहा- कुछ नहीं भाभी !

तो उन्होंने कहा- क्या हुआ, बताओ? तुम कुछ परेशान सी लग रही हो?

तो मैंने कहा- हाँ भाभी, लगता है मैं अपनी ब्रा-पेंटी घर ही भूल आई हूँ, वो बैग में नहीं है !

तो भाभी ने कहा- इसमें परेशान होने की क्या बात है, मेरे पास बहुत सारी हैं तुम वो ले लो !

तो मैंने कहा- भाभी, आपकी ब्रा-पेंटी मुझे कहाँ फिट आयेंगी, आप का साइज़ और मेरा साइज़ अलग अलग है।

तो भाभी ने कहा- मेरे पास तुम्हारे साइज़ की ब्रा-पेंटी भी हैं। जब मेरी नई नई शादी हुई थी तो मेरा साइज़ भी तुम्हारे साइज़ जितना ही था, तुम्हारे भईया जब भी बाहर जाते हैं, मेरे लिए ब्रा पेंटी लेकर ही आते हैं। रुको, मैं तुम्हें वो लाकर देती हूँ !

तब भाभी ने अलमारी खोली और उसमें से मुझे अपनी 4-5 ब्रा-पेंटी निकाल कर दी और कहा- ये लो रोमा, ये तुम रख लो ! अब

ये मेरे साइज़ की नहीं है, ये तुम्हारे काम आयेंगी।

मैं नहाने चली गई। जब मैं नहा कर बाहर आई तो भाभी कमरे में ही थी।

भाभी ने मुझे कहा- रोमा, दिखाओ तो तुम्हें ब्रा पेंटी ठीक आई या नहीं?

तो मैंने कहा- हाँ भाभी, ठीक साइज़ की हैं।

तो उन्होंने कहा- दिखाओ तो ! मुझ से क्या शरमा रही हो?

और उन्होंने मेरा तौलिया हटा दिया, फिर कहा- हाँ ठीक हैं ये !

और कहा- रोमा, मुझसे तुम शर्माया मत करो, मुझे अपनी दोस्त ही समझो !

तो मैंने कहा- ठीक है भाभी !

और वो कमरे से चली गई, मैंने अपने कपड़े पहने, फिर हमने नाश्ता किया।

मैंने फिर भाभी से पूछा- बताओ नाअ भाभी, आप लोग कैसे मिले थे?

तो भाभी ने कहा- मैंने बताया तो था कि हम कॉलेज में मिले थे और तुम्हारे भईया ने मुझे वहाँ प्रपोज किया, मुझे भी वो पसंद आये तो मैंने भी हाँ कर दी थी। फिर हम ऐसे ही मिलते रहे थे और पढ़ाई पूरी करने के बाद हमारी शादी हो गई।

और कहने लगी- शादी से पहले हमने लाइफ को खूब एन्जोय किया !

तो मैंने कहा- वो कैसे भाभी?

तो उन्होंने कहा- हम शादी से पहले खूब घूमते थे और मस्ती किया करते थे।

मैंने कहा- क्या क्या मस्ती करते थे आप?

तो उन्होंने कहा- हमने शादी के पहले भी बहुत चुदाई की है !

फिर भाभी ने मुझ से कहा- रोमा, तुमने कभी चुदाई की है?

तो मैंने कुछ नहीं कहा और मुस्कुराने लगी।

फिर भाभी ने कहा- बताओ रोमा? की है तुमने कभी चुदाई?

“की है !” मैंने भाभी से कहा- हाँ मैंने की है भाभी ! आप किसी को बताना मत !

उन्होंने ने कहा- ठीक है !

फिर भाभी ने कहा- कैसा लगा था तुम्हें?

तो मैंने कहा- बहुत अच्छा लगा था !

फिर भाभी ने कहा- चलो, मैं तुम्हें कुछ दिखाती हूँ !

हम कमरे में गए तो भाभी ने एक बैग निकाला, उसे खोला तो उसमें ढेर सारी सीडी थी !

मैंने पूछा- ये किसकी सीडी हैं?

तो भाभी ने कहा- चुदाई की सीडी हैं, तुम्हारे भईया की हैं हम कभी कभी साथ बैठ कर देखते हैं। और फिर जैसे जैसे उस सीडी में चुदाई होती है तुम्हारे भईया भी मुझे वैसे वैसे ही चोदते हैं। बहुत मजा आता है।

भाभी ने एक सीडी लेपटोप में लगा दी, भाभी और मैं उस सीडी में चल रही चुदाई को देखने लगे। चुदाई को देख कर मेरा मन भी चुदने का करने लगा और भाभी भी गर्म हो गई थी तो उन्होंने अपनी साड़ी उठाई और पेंटी के अन्दर हाथ डाल कर अपनी चूत में उंगली करने लगी, मैं उन्हें देख रही थी फिंगरिंग करते हुए !

फिर भाभी ने कहा- रोमा, क्या तुम्हारा मन नहीं कर रहा चुदने का?

मैंने कहा- भाभी कर तो रहा है !

तो उन्होंने मुझे कहा- तुम भी फिंगरिंग कर लो, तुम्हें अच्छा लगेगा !

और उन्होंने मेरी सलवार का नाड़ा खोल दिया। मैं भी गर्म थी तो मैंने भी अपनी सलवार उतार दी।

फिर भाभी ने कहा- अब तुम भी करो रोमा !

तो मैं भी करने लगी।

भाभी ने कहा- रोमा, मैं तुम्हारी कुछ मदद करूँ क्या?

और फिर उन्होंने मेरा हाथ हटा दिया और मेरी चूत में अपनी उंगली डाल कर आगे पीछे करने लगी। मुझे बहुत मजा आ रहा था कुछ ही देर बाद मैं झड़ गई।

फिर भाभी कहने लगी- रोमा, तुम्हारे भईया का लंड बहुत बड़ा और मोटा है, मुझे उससे चुदने में बहुत मजा आता है। वो 8-10 दिन से बाहर हैं तो मैं चुदाई की प्यासी हो गई हूँ, अब तो ऐसे लग रहा है कि वो जल्दी से आ जायें और मुझे चोदें ! और वो भी मुझे चोदने के लिए उतने ही बेताब होंगे जितना कि मैं उनसे चुदने के लिए बेताब हूँ ! देखना आते ही सबसे पहले वो मेरी चुदाई करेंगे !

##

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अगली सुबह भईया का फ़ोन आया कि वो आज रात में घर आ रहे हैं तो भाभी की ख़ुशी का तो ठिकाना ही नहीं था।



फिर मैंने भैया के उस बैग से एक दूसरी सीडी निकाली और उसे लेपटोप पर लगा कर देखने लगी और अपनी चूत में उंगली डाल कर हिलाने लगी।

भाभी ने कहा- रोमा, अब तुम्हें फिंगरिंग की नहीं किसी लंड की जरूरत है।

मैंने कहा- भाभी, अब वो मुझे कहाँ मिलेगा, इसलिए मैं ये कर रही हूँ।

तो भाभी ने कहा- रोमा, अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकता हूँ।

मैंने पूचा- वो कैसे भाभी?

तो उन्होंने कहा- मैं तुम्हें अपने पति से चुदवा सकती हूँ !

मैंने चौंकते हुए कहा- यह क्या बोल रही हो भाभी आप? मैं ऐसा नहीं कर सकती ! वो आप के पति हैं, मैं उन्हें भइया बोलती हूँ।

तो भाभी ने कहा- तो क्या हुआ रोमा? मैं तुमको उनसे चुदने की परमिशन दे रही हूँ और वैसे भी काफी दिनों से वो बोल रहे थे कि उन्हें किसी और चूत का स्वाद चखना है। तो तुम ही उनको अपनी चूत का स्वाद चखा दो !

मैंने कुछ भी नहीं कहा, मैं चुप ही रही तो फिर भाभी ने कहा- अच्छा तुम आज रात हमारी चुदाई देख लो, फिर अच्छा लगे तो तुम भी अपनी चुदाई करवा लेना।

और कहने लगी- रोमा, जब तुम उनका लंड एक बार देख लोगी तो तुम खुद को रोक नहीं आओगी और उनसे चुदाई करवा ही लोगी।

फिर भाभी औरमैं रात के खाने की तैयारी करने लगे। रात के 8 बज चुके था पर भईया अभी तक नहीं आये थे तो भाभी ने उन्हें फोन लगाया और पूछा कि वो कहाँ पर हैं, घर कब तक पहुँचेंगे।

तो उन्होंने कहा- 10 बज जायेंगे घर आते तक !

फिर मैंने कहा- चलो भाभी, हम खाना खा लेते हैं।

भाभी ने कहा- ठीक है !

और हम खाना खाने बैठ गए। खाना खाकर कमरे में जा कर हम दोनों टी वी देखने लगे। थोड़ी देर बाद दरवाजे की घंटी तो भाभी झट से उठी और दरवाजा खोलने गई। मैं भी उठ कर कमरे से बाहर आई तो मैंने देखा, भाभी ने जैसे ही दरवाजा खोला, भैया उन पर टूट पड़े, उन्होंने भाभी को अपने गले से लगा लिया और उन्हें चूमने लगे। कभी वो भाभी के गाल और गर्दन को चूमते तो कभी उनके होठों को !

भाभी भैया को कहने लगी- रुक जाओ, इतनी जल्दी क्या है, मैं कहीं भागी थोड़े ही जा रही हूँ !

तो भईया ने कहा- नहीं, मुझसे नहीं रुका जायेगा !

फिर भईया ने अचानक मेरी तरफ देखा कि मैं उन्हें देख रही हूँ तो वो भाभी से अलग हो गए। वो अन्दर आये और अपना

सामान रख कर मुझे कहा- अरे रोमा, तुम अभी तक सोई नहीं !

तो भाभी ने झट से कहा- नहीं, वो मेरे साथ आप के आने का इन्तजार कर रही थी।

फिर भाभी ने भैया को कहा- जाओ, आप जाकर फ्रेश हो जाओ, मैं खाना लगाती हूँ !

मैं भी कमरे में आकार टीवी देखने लगी तब भईया भी उसी कमरे में आए और फ्रेश होने के लिए बाथरूम में चले गए।

तभी भईया ने आवाज लगाई- अरे, जरा मेरा तौलिया तो देना !

तब भाभी आई और मुझे कहा- रोमा, जरा उन्हें तौलिया दे देना, मेरे हाथ गन्दे हैं।



मैं तौलिया लेकर बाथरूम की तरफ गई और दरवाजा खटखटाया तो भईया ने कहा- दरवाजा खुला है !

तो मैंने दरवाजे को थोड़ा से खोला और कहा- यह आपका तौलिया !

तो भईया ने हाथ बड़ा कर तौलिया लिया और मेरा हाथ पकड़ कर अन्दर खींचने लगे।

मैंने कहा- भईया, यह आपका तौलिया !

तो उन्होंने मेरा हाथ छोड़ दिया और दरवाजा बंद कर लिया। यह बात मैंने भाभी को आकर बताई तो भाभी हँसी और कहने लगी- रोमा, शायद उन्होंने समझा होगा कि मैं हूँ इसलिए उन्होंने तुम्हारा हाथ पकड़ कर अन्दर खींचा होगा। वो अक्सर ऐसा ही करते हैं, तौलिया लेकर बाथरूम नहीं जाते और फिर मुझे कहते हैं कि तौलिया दो और जब मैं उन्हें तौलिया देने जाती हूँ तो मेरा हाथ पकड़ कर अन्दर खींच लेते हैं।

फिर भईया जब फ्रेश होकर बाहर आये वो मुझे देख कर मुस्कुराने लगे। मैं भी मुस्कुराने लगी तो भाभी ने उनसे कहा- मेरे लिए क्या ले कर आये हो?

तो भईया ने कहा- वही जो हमेशा लाता हूँ ! बैग में है।

भाभी ने भईया को खाना परोसा और कहा- मैं जाकर देखती हूँ !

भाभी ने कहा- चलो रोमा !

मैं उनके साथ चली गई। भाभी ने बैग खोली तो उसमें एक बॉक्स था, भाभी ने भईया को आवाज देकर पूछा- बॉक्स में ही है क्या?

तो भईया ने कहा- हाँ बॉक्स में ही है !
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भाभी ने जल्दी से उस बॉक्स को खोला तो उसमें से गुलाबी ब्रा पेंटी का सेट था। भाभी ने वो मुझे भी दिखाया तो मैंने कहा- भाभी, ये तो उसी ब्रा और पेंटी के जैसे हैं जो आपने मुझे दी थी, और जो मैंने अभी पहन भी रखी हैं।


भाभी ने कहा- मुझे दिखाओ रोमा !

और उन्होंने मेरी कुर्ती को ऊपर कर दी और देखने लगी, कहने लगी- हाँ रोमा, ये तो एक जैसी ही हैं।

भाभी ने कहा- कोई बात नहीं !

और फिर भाभी ने भईया से पूछा- आपका खाना हो गया क्या?

तो उन्होंने कहा- हो ही गया है।

फिर भाभी ने कहा- मैं इसे पहन कर देख लूँ क्या?

भईया ने कहा- हाँ पहन लो, ये भी कोई पूछने की बात है?

फिर भईया कमरे में आये और भाभी से पूछा- पसंद तो आई ना?

तो भाभी ने कहा- हाँ बहुत अच्छी है !

फिर भईया ने अपनी बेटी को उठा कर कमरे से बाहर चले गए और उसके साथ खेलने लगे।

भाभी ने अपनी साड़ी उतार दी और मुझसे भी कहा- रोमा अब तुम भी कपड़े बदल लो !

मैं कपड़े बदलने बाथरूम में जाने लगी तो भाभी ने टोका- कहाँ जा रही हो?

तो मैंने कहा- कपड़े बदलने बाथरूम में जा रही हूँ !

तो भाभी ने कहा- तुम यहीं बदल लो, मुझे जाना है बाथरूम !

और फिर भाभी ने जल्दी से अपना पेटीकोट, ब्लाउज, ब्रा-पेंटी को उतार उस नई ब्रा पेंटी को पहना और बाथरूम में चली गई।

मैंने अपने कपड़े उतारे और अपने बैग से नाईटी निकालने लगी, तभी अचानक भईया ने आकर पीछे से मेरे बूब्स पकड़ लिए और उन्हें दबाने लगे और मेरी गर्दन पर चुम्बनों की बौछार कर दी। अचानक हुए इस हमले से मैं घबरा गई, मैंने कहा- भईया, ये क्या कर रहे हो आप?

तो भईया ने मेरा मुँह घुमाया और मुझे देख कर दूर हट गये और कहा- रोमा तुम? पलक कहाँ है?

मैं वैसे ही खड़ी थी ब्रा और पेंटी में, मैंने कहा- भाभी बाथरूम में हैं !

तो भईया ने कहा- मुझे माफ़ कर देना रोमा, मैंने सोचा पलक है।

और कहा- मैंने जो पलक के लिए लाया था वो तुमने कैसे पहन लिया? इसलिए मुझे गलतफहमी हो गई और मुझे लगा कि तुम ही पलक हो।

उधर भाभी बाथरूम से निकल कर आई और कहा- मैं यहाँ हूँ !

भईया ने भाभी की तरफ देख और कहा- तुम दोनों ने एक सी ब्रा-पेंटी कैसे पहनी हैं। मैं तो इस ब्रा-पेंटी का एक ही सेट लाया था तो ये दो जोड़ी कैसे हो गई। तुम दोनों ने एक सी ब्रा-पेंटी पहनी है।

तो भाभी ने कहा- आप एक बार पहले भी यही ब्रा पेंटी का सेट लाए थे मेरे लिए, जब हमारी शादी हुई थी, जो अब मुझे छोटी हो गई है तो मैंने रोमा को दे दी है और इत्तेफाक से रोमा वही पहने है।

भईया मुझे देख कर मुस्कुराने लगे, मैं भी मुस्कुराई और अपनी नाईटी पहन कर कमरे के बाहर जाने लगी तो भैया ने भाभी का हाथ पकड़ कर उन्हें अपने सीने से लगा लिया और उन्हें चूमने लगे।

तब भाभी ने कहा- अभी रुको, बेटी को सुला तो लेने दो !

फिर भाभी भईया से छुट कर बाहर आई तो मैंने भाभी से कहा- भाभी, आज मैं कहाँ सोऊँ?

तो भाभी ने कहा- हमारे ही कमरे में सो जाओ !

तो मैंने कहा- नहीं भाभी, भईया बहुत दिन बाद आये हैं।

और मैंने भाभी से इसे ही मजाक करते हुए कहा- आज तो भैया आप को छोड़ने वाले नहीं हैं, कैसे उतावले हो रहे हैं, मेरे सामने ही चूमा चाटी कर रहे हैं।

तो फिर भाभी ने कहा- हाँ, ये तो आज मुझे चोदे बिना छोड़ेंगे नहीं, तुम बगल वाले कमरे में सो जाओ !

और फिर भाभी ने भी मुझसे कहा- वैसे भी तुम्हें भी आज नींद कहाँ आयेगी !

मैं मुस्कुराने लगी तो भाभी ने कहा- सच सच बताना रोमा, तुम्हारा भी मन कर रहा है ना चुदने का?

तो मैंने कहा- हाँ भाभी, जिस तरह भैया आपके साथ चूमा चाटी कर रहे थे और मुझे भी उन्होंने जिस तरह पीछे से आकर पकड़ कर मेरे चूचों को मसल दिया, मुझे बहुत अच्छा लगा !

तो भाभी कहने लगी- तो कर लो ना इनके साथ सेक्स ! बहुत अच्छी चुदाई करते हैं तुम्हारे भईया ! इनसे चुदते हुए मुझे तो ऐसा लगता है कि मैं स्वर्ग में हूँ !

तो मैंने कहा- नहीं भाभी, आप जाइये, भईया आपकी राह देख रहे हैं, वो बहुत उताबले हो रहे हैं !

फिर भाभी बोली- मैं अपनी बेटी को सुला देती हूँ ! रोमा प्लीज, तुम इसे आज इसे अपने पास सुलाए रखना, क्योंकि जब ये मेरे साथ सेक्स करते है तो बहुत बुरी तरीके से करते हैं और उस हड़बड़ी में यह उठ जाती है, फिर इसे सुलाने में सारा मज़ा खराब हो जाता है।

फ़िर आगे बोली- मैं इसे सुलाती हूँ, जब सो जाएगी तो मैं तुम्हें आवाज दे दूंगी, तुम इसे ले जाना !

मैंने कहा- ठीक है भाभी, मैं ले जाऊँगी !

भाभी अपने कमरे में चली गई, मुझे नींद तो आ नहीं रही थी तो मैं उत्तेजनावश उनके कमरे के पास आ गई।

मुझे कुछ सुनाई दिया, भाभी भईया से कह रही थी- तुम रोमा की चुदाई करना चाहते हो? तुम उसे जिस तरह पीछे से आकर पकड़ कर उसके बूब्स दबा रहे थे, उसे बहुत अच्छा लग रहा था, जब उसने मुझे बताया, तो मैंने उससे पूछ लिया कि क्या वो सेक्स करना चाहती है तो उसने चुदने की इच्छा जताई !

भैया ने कहा- हाँ पलक, मैं भी रोमा को चोदना चाहता हूँ, मुझे उसकी चूत का स्वाद चखना है।

यह सुन कर जब मैं उनके कमरे में झांकने लगी तो भाभी सिर्फ पेंटी में थी, उन्होंने ब्रा उतार दी थी और बेटी को दूध पिला रही थी।

और भैया को भी ! भाभी का एक निप्पल उनकी बेटी के मुँह में था और दूसरा भैया के मुँह में ! वो दोनों को दूध पिला रही थी और कह रही थी- छोड़ो, बेटी के हिस्से का दूध भी तुम पी लोगे क्या?

भईया ने भाभी से कहा- अब यह सो गई है, तुम इसे रोमा को दे दो, अब तो मुझ से रहा नहीं जा रहा है।

भाभी ने मुझे आवाज दी और कहा- रोमा इसे ले जाओ।

मैं उनके कमरे में गई, भैया अभी भी भाभी के निप्पल को मुँह में लिए चूस रहे थे !

मुझे भाभी ने कहा- देख रही हो रोमा, इन्हें बिलकुल सब्र नहीं हो रहा है !


फिर मैंने जैसे ही उनकी बेटी को भाभी की गोद से उठाया, भईया ने भाभी को बिस्तर पर लिटा दिया और उनके दूसरे चूचे को हाथ से दबाने लगे। मैं उनकी बेटी को लेकर कमरे से बाहर आई, उसे दूसरे कमरे में लाकर सुलाया और फिर जल्दी से भईया और भाभी के कमरे के पास पहुँची, उनके कमरे में झांकने लगी।

भैया अभी भी भाभी के दुग्धकलश चूस रहे थे, इधर मेरी हालत भी अब ख़राब हो रही थी, मैं अपनी पेंटी के अन्दर हाथ डाल कर अपनी चूत को सहलाने लगी, फ़िर भईया भाभी की रति क्रिया देखने लगी।

फिर भईया ने अपने होंठों को भाभी के होंठों पर रखा और चूसने लगे। कुछ देर होंठों को चूसने के बाद भईया भाभी के बदन को

चूमते हुए नीचे आने लगे, कभी वो चूचियाँ चूसते तो कभी पेट की नाभि को और दोनों हाथों से बूब्स को जोर जोर से दबा रहे थे तो भाभी कहने लगी- थोड़ा धीरे करो !

तो भैया ने कहा- आज कुछ धीरे नहीं करुँगा।

और भैया फिर उरोजों को दबाने लगे, भाभी के मुँह से आअह्ह्ह्ह्ह् ह्ह आआअ ह्ह्ह्ह ह्ह्ह्ह्ह आअह्ह्ह की आवाजें निकल रही थी जो बड़ी ही मोहक उत्तेजक लग रही थी।

फिर भईया नाभि को चूमते हुए पेंटी के ऊपर से ही भाभी की चूत को चूमने लगे और भाभी के उरोजो को मथे जा रहे थे। अब भैया ने अपनी टीशर्ट और लोअर उतारी और फिर से चूत को पेंटी के ऊपर से ही चूमने लगे।

भाभी ने कहा- ऊपर से क्यूँ चूम रहे हो, पैंटी हटा कर अन्दर फ़ुद्दी चूमो !

तो भईया ने पेंटी को चूत से थोड़ा बगल में किया, उनकी चूत पर अपना मुँह रख कर चूत को चूसने लगे।

भाभी की आआह्ह्ह आअह्ह आअह्ह की आवाजें अब और तेज को गई थी, अब भाभी भैया से कह रही थी- जोर जोर चूसो ! खा जाओ मेरी चूत को !

उनके मुँह से लगातार सिसकारियाँ निकल रही थी, पूरा कमरा उनकी आवाज से गूंज रहा था।

फिर भईया ने कहा- साली, अभी कह रही थी कि धीरे धीरे करो, और अब कह रही है जोर जोर से करो ! क्यूँ अब मजा आने लगा लगता है?

भाभी कहने लगी- हाँ, बहुत मजा आर हा है ! तुम बात मत करो, चूसो, मेरी चूत को खा जाओ !

अब भैया ने अपनी जीभ चूत के अन्दर डाल दी थी, भाभी आह्ह्ह आऐईईईइ आअह्ह करते हुए चिल्ला उठी।

अब भईया उठे और अपनी अंडरवीयर उतार कर अपने लंड को भाभी के मुँह में दे दिया। भाभी लण्ड चूसने लगी। फिर उन्होंने भईया को बिस्तर पर लिटा दिया और उनके ऊपर चढ़ कर लंड को चूसने लगी।

कुछ देर लंड चूसने के बाद भईया ने भाभी को बिस्तर पर लिटाया और उनके मुँह को बिस्तर से नीचे लटका दिया और खुद बिस्तर के नीचे खड़े हो गये और लण्ड को भाभी के मुँह में डाल कर उनके मुँह की चुदाई करने लगे और दोनों हाथों से पलक के वक्ष उभारों को मसलने लगे।

मेरी हालत अब और ख़राब हो गई थी, मैंने चूत में उंगली डाल ली थी और उसे अन्दर बाहर हिला रही थी।

कुछ देर मुँह की चुदाई के बाद भईया अब बिस्तर पर लेटे और भाभी को अपने ऊपर लिया, उनका मुँह लंड की तरफ और भाभी की चूत भैया के मुँह की तरफ थी अब भाभी भैया का लौड़ा चूस रही थी और भईया भाभी की फ़ुद्दी को चूस रहे थे।

लगभग 5-7 मिनट की चुसाई के बाद भाभी ने कहा- मुझसे सब्र नहीं हो रहा है, मुझे चोदो !

भईया ने भाभी को सीधा किया, उनके दोनों पैरों को उठा कर अपने कंधे पर रख लिया। अब उन्होंने लण्ड को चूत के ऊपर रखा और लंड से योनि को सहलाने लगे।

भाभी कहने लगी- इतना तड़पा क्यूँ रहे हो? लण्ड डालो चूत के अन्दर और चोदो !

तो भैया ने कहा- इतनी जल्दी क्या है डार्लिंग ! अभी तो पूरी रात पड़ी है, आज तो पूरी रात चोदूँगा तुझे !

भाभी कहने लगी- प्लीज़ ! ऐसे तड़पाओ मत ! चोदो मुझे !

तो भईया ने लंड को अन्दर सरकाना शुरू किया पर लंड अन्दर नहीं जा रहा था तो भईया भाभी से कहने लगे- डार्लिंग, तुम्हारी चूत तो बहुत टाईट हो गई है, लंड अन्दर ही नहीं जा रहा है?

फिर भईया ने एक जोरदार झटके के साथ लंड को आधा चूत के अन्दर घुसा दिया और भाभी के मुँह से एक जोरदार चीख निकली। भईया थोड़ा रुके फिर एक और झटके के साथ उन्होंने पूरा लण्ड भाभी की चूत में डाल दिया, उन्होंने भाभी को धीरे धीरे चोदना शुरू किया, भाभी मस्त हुए जा रही थी और चुदाई का पूरा आनन्द ले रही थी, उन के मुँह से लगातार आह आअह्ह ऊउह्ह्ह् आअह्ह्ह्ह आअह्ह्ह्ह्ह की आवाजें निकल रही थी।



भैया ने अपनी स्पीड को थोड़ा बढ़ा दिया और उनकी चुदाई करने लगे, भाभी कहने लगी- चोदो बलमा चोदो ! आज जम कर चोदो मुझे ! भैया ने अपनी स्पीड को और बढ़ा दिया। अब भाभी की फ़ुद्दी ने पानी छोड़ दिया था पर भईया भाभी को चोदे जा रहे थे, चूत में से फच फच की आवाज निकल रही थी।

इतनी चुदाई के बाद भाभी दो बार झड़ चुकी थी। फिर भैया ने चूत में से लण्ड निकाल को बिस्तर पर लेट गए। अब भाभी उनके ऊपर चढ़ी और लण्ड को अपनी चूत के अन्दर लेती हुई लंड पर बैठ गई।

भैया ने अपने हाथों से उनके दोनों बूब्स को पकड़ा और भाभी ने लंड पर उछलना चालू कर दिया। भैया भी नीचे से धक्के लगा रहे थे। फिर अचानक भैया उठे और भाभी को नीचे बिस्तर पर पटका और उनके दोनों पैरों को फैला दिया और लण्ड को चूत में डाल कर धक्के लगाने लगे और बोलने लगे- साली आज बहुत दिन बाद चोदने को मिली है तू ! आज तो तेरी चूत को फाड़ डालूँगा !

पूरा कमरा भाभी की सिसकारियों से गूंज रहा था।

करीब 5 मिनट की चुदाई के बाद भैया के मुँह से भी आअह आअह्ह आअह्ह्ह की आवाज निकलने लगी और उन्होंने अपना गर्म गर्म वीर्य भाभी की गर्भ-गुहा में छोड़ दिया।


इस चुदाई के बाद भैया थक कर भाभी के पास ही लेट गए और भाभी उठ कर उनके लण्ड को अपने मुँह में लेकर चाट कर साफ करने लगी।

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इधर मेरी चूत भी पानी छोड़ चुकी थी, मैं अपने कमरे में चली गई। इतने में ही भाभी की बेटी जग गई और रोने लगी तो मैं उसे उठा कर सुलाने की कोशिश करने लगी।



शायद भाभी को उसके रोने की आवाज सुन गई थी तो उन्होंने मुझे आवाज लगा कर कहा- रोमा, उसे मेरे पास ले आओ।

मैं उठी और उनकी बेटी को लेकर उनके कमरे में गई तो भैया कमरे में नहीं थे और भाभी नंगी ही बिस्तर पर बैठी थी।

मैंने उनकी बेटी को उन्हें दिया, भाभी उसे दूध पिलाने लगी, मैंने भाभी से पूछा- कैसी रही आपकी चुदाई? हो गई या अभी बाकी है?

तो भाभी ने बताया- हाँ, हो गई है, अभी वो बाथरूम में हैं, आएँगे तो हम फिर से करेंगे !

फिर भाभी ने कहा- रोमा, तुम भी अपनी रगड़ाई करवा लो ना इनसे !

तो मैंने कहा- भाभी, पहले आप तो चुद लो जी भर के ! मेरी तो बाद की बात है !

यह बात भईया पीछे खड़े सुन रहे थे तो भैया ने आकर मुझे फिर पीछे से पकड़ लिया और मेरे बूब्स को दबाने लगे, उनका लण्ड मेरे चूतड़ों की दरार में घुस रहा था।

मैंने थोड़ा विरोध करना चाहा पर कर न सकी और वो मेरे चूचों को जोर जोर से मसल रहे थे। फिर उन्होंने मुझे अपनी तरफ घुमाया और मेरे होंठों को चूमने लगे। मैं तो पहले से र्वासना की अग्नि में झुलस रही थी तो मैं भी भईया का साथ देने लगी और उन के होंठों को चूमने लगी।

भाभी बिस्तर पर बैठी अपनी बेटी को दूध पिला रही थी। फिर भैया ने मेरी नाइटी उतार दी और मेरा हाथ उनकी छाती से होता हुआ उनके लंड की तरफ जाने लगा, मैं उनके लंड को अपने हाथ से सहलाने लगी। अब भईया ने मेरी ब्रा का हुक खोल दिया और मुझे बिस्तर पर लिटा कर मेरे उरोज चूसने लगे।

मैं भी मस्त हुई जा रही थी, मैं अपने दोनों हाथों से उनके सर को पकड़ कर अपने वक्ष में दबाने लगी और भईया जोर जोर से मेरे चुचूक चूसे जा रहे थे। फिर वो चूमते-चाटते नीचे आने लगे, मेरी नाभि को चूमने लगे और दोनों हाथों से मेरे स्तन दबाने लगे।

अब भैया ने अपना हाथ मेरी चूत पर रख दिया और उसे सहलाने लगे, फिर मेरी पेंटी को उतार दिया और कहा- रोमा, तुम्हारी चूत तो बहुत ही सुन्दर है !

अब उन्होंने अपने होंठों को मेरी चूत के ऊपर रख दिया और चूत को चूसने लगे। मैं सिहर उठी और मेरे मुँह से जोर से आअह्ह्ह की आवाज निकली।

भाभी जो वहीं बैठी अपनी बेटी को दूध पिला रही थी, उन्होंने कहा- कैसा लगा रोमा?

मैं कुछ न बोल सकी, बस आहें भरे जा रही थी। भैया मेरी चूत को बुरी तरह चूसे जा रहे थे। मेरी चूत गीली हो चुकी थी तो भईया कहने लगे- रोमा, तुम्हारी चूत का स्वाद बहुत अच्छा है।

काफी देर तक चूत चूसने के बाद वो उठे और मेरे ऊपर आकर अपने लंड को मेरे दोनों बूब्स के बीच में रख और मुझ से कहा- रोमा, तुम अपने बूब्स को बगल से बीच में दबाओ ताकि मेरा लण्ड तुम्हारे बूब्स के बीच में फंस जाये।

मैंने वैसा ही किया। अब उनका लण्ड मेरी वक्ष घाटी में फंस चुका था और भैया मेरे बूब्स की चुदाई करने लगे। ऐसा करते हुए जब उनका लण्ड आगे आता तो वो मेरे होंठों को छू जाता। यह मुझे बहुत अच्छा लग रहा था, मैं अपनी जीभ निकाल कर लन्ड के अग्र भाग का स्वाद चख रही थी।

थोड़ी देर बूब्स चुदाई के बाद भैया ने लण्ड को मेरे मुँह पर रख दिया और कहा- लो रोमा, अब चूसो इसे, बहुर बेसबरी हुई जा रही हो इसके लिए !

मैंने भी देर न करते हुए उनके लंड को अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी। मैं उनके लण्ड को किसी लॉलीपॉप के तरह चूस रही थी। भईया अपने हाथों से मेरे सिर को पकड़ कर अपने लंड पर दबाने लगे जिससे उनका लण्ड मेरे गले तक जा रहा था। वो लंड से मेरे मुँह की चुदाई करने लगे तो भैया के मुँह से भी अह्ह्ह्ह्ह आह्ह्ह्ह्ह की आवाज आने लगी और उन्होंने अपना गर्मागर्म वीर्य मेरे मुँह में ही छोड़ दिया।

वो ढीले होकर बिस्तर पर लेट गए और मुझ से लिपट कर मेरे होंठों को चूमने लगे। अब भाभी उठी और अपनी बेटी को वहीं रखे पालने में सुला कर हमारे पास आकर भैया के लण्ड को अपने मुँह में लेकर चूसने लगी भैया का लंड फिर से खड़ा होने लगा। अब भैया बिस्तर पर सीधे लेट गए और मुझे अपनी छाती पर बिठा लिया और मेरी चूत को अपने मुँह के पास रख कर चूसने लगे और भाभी भैया का लण्ड चूसे जा रही थी।

मेरे मुख से बेतहाशा आअह आअह्ह्ह ओह्ह की सिसकारियाँ निकल रही थी, मैंने भईया से कहा- मैं झड़ने वाली हूँ !

तो वो और जोर जोर से चूत को चूसने लगे फिर मैं उनके मुँह पर ही झड़ गई।

फिर भैया ने मुझे बिस्तर पर गिरा दिया, लण्ड को भाभी के मुँह से निकाल कर मेरे पैरों को फैला दिया और लण्ड को मेरी चूत पर रख दिया और लंड से ही मेरी चूत को सहलाने लगे।

मैं बोली- भैया, अब मुझ से सब्र नहीं हो रहा है !

तो उन्होंने लण्ड को चूत के अन्दर डालना शुरू किया। उन्होंने एक ही झटके में अपना आधा लण्ड मेरी चूत में सरका दिया। मैं जोर से चील्लाई- आआईईईईईइ !

और कहा- भाभी, मुझे बहुत दर्द हो रहा है।

तो भाभी ने भैया को कहा- थोड़ा धीरे करो इसे !

और मुझसे कहा- रोमा, थोड़ा सा दर्द होगा, इसे सहन कर लो, फिर बाद में नहीं होगा, तुम्हें बहुत मजा आयेगा !

भैया थोड़ी देर वैसे ही लण्ड को मेरी चूत में फ़ंसाये मेरे ऊपर ही लेट गए। फिर थोड़ी देर बाद जब मेरा दर्द कुछ कम हो गया हो उन्होंने एक और झटका मारा पर उनका लण्ड अभी तक पूरा अन्दर नहीं गया था, पर मेरा दर्द कम हो गया था तो उन्होंने और दो तीन झटके मारे तो उनका लण्ड पूरा चूत के अन्दर चला गया।

मेरी चूत ने फिर पानी छोड़ दिया जिसकी चिकनाई से अब भैया का लण्ड आसानी से अन्दर बाहर होने लगा था और मुझे अब मजा आने लगा था। अब भैया ने मेरी ठकाठक चुदाई करनी चालू की, वो मुझे चोदे जा रहे थे और मैं आहें भरे जा रही थी। अब

मुझे चुदाई का और ज्यादा मजा आने लगा, मैं कहने लगी- और जोर से चोदो।

तो भैया ने अपनी स्पीड बढ़ा दी। फिर उन्होंने मेरे पैरों को उठा कर अपने कंधे पर रखा और भाभी उठ कर उनके होंठों को चूमने लगी। इधर भईया मेरी चुदाई कर रहे थे और भाभी उनके होंठों को चूम रही थी। इस चुदाई के दौरान मेरी चूत दो बार पानी छोड़ चुकी थी; फिर भैया ने भाभी को अपने से अलग किया और मेरी चुदाई की स्पीड और तेज कर दी। 4-5 मिनट की चुदाई के बाद भैया कहने लगे- मैं झड़ने वाला हूँ !

तो भाभी ने कहा- रोमा की चूत में मत झड़ना ! नहीं तो दिक्कत हो जाएगी !

तो फिर उन्होंने लण्ड को चूत से निकाला, उनकी पिचकारी छुट गई, मेरे भईया के लौड़े से निकली मलाई मेरे बदन पर आकर गिरी। भाभी ने जल्दी से उनके लण्ड अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी। मैं बिस्तर में ही लेटी थी और बहुत थक चुकी थी, मेरा सारा बदन दर्द कर रहा था।

मैं उठ कर जाने लगी तो भाभी बोली- कहाँ जा रही है?

मैंने कहा- बाथरूम में?

वो बोली- क्यों?

“इसे साफ़ करने !” मैंने अपने बदन पर पड़े वीर्य की तरफ़ इशारा किया।

“अरे, यह तो मेरा है, आ मेरे पास, मैं साफ़ करती हूँ !” पलक भाभी बोली और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपने पास खींच कर मेरे बदन पर गिरे भईया के वीर्य को चाट कर साफ़ कर दिया।

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कुछ ही देर बाद बाहर कमरे से आवाजें आने लगी- जोर से चोदो मेरे राजा, जरा जोर जोर चोदो !


मैं बाथरूम से बाहर निकली तो देखा कि अब भैया भाभी की चुदाई कर रहे थे। मैं उनके पास जा कर बैठ गई तो भाभी ने कहा- रोमा, कैसा लगा चुदाई करवा कर? कैसा चोदते हैं ये?

तो मैंने कहा- भाभी, मुझे तो बहुत मजा आया ! भैया बहुत मजेदार चुदाई करते हैं।

मैंने कहा- भाभी, आप बहुत लकी हो जो आपको इतनी अच्छी चुदाई करने वाला पति मिला है।

फिर भैया ने कहा- रोमा, मुझे भी तुमको चोद कर मजा आ गया !

भाभी कहने लगी- और चुदाई करवाना चाहोगी क्या रोमा?

मैंने हाँ कर दी। उस रात भैया ने भाभी और मेरी चार बार चुदाई की। इसी तरह चुदाई करते करते हमें 5 बज चुके थे और हम तीनों वैसे ही नंगे एक दूसरे से लिपट कर सो गये।


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