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Misc. Erotica छोटी छोटी कहानियां...
यह सुनते ही मेरे दिल को एक सुकून पहुंचा। अंडरवियर का घटिया सा कैद अब हट चुका था और मेरा गुरु आजाद हो चुका था। इतनी देर से पिंजरे में कैद होने के कारण मेरा गुरु अब क्रोधित हो चुका था। उसने अपनी लंबाई को छू लिया था और तैयार था अपनी शिष्या के साथ मिलन करने को।


बिना किसी देरी के मेरे गुरु ने उस अप्सरा की गहराई को नाप लिया था। इसके साथ ही उस अपार्टमेंट में खूबसूरत अप्सरा के साथ साथ मेरी भी कामुक सीत्कारे निकलने लगी। मैं तो एक खिलाड़ी ही था स्त्रियों की खूबसूरती की गहराई नापने का। लेकिन पहली बार एक हसीना मिली जिसने मुझे इतना तड़पाया। मेरा और उसका जिस्म जैसे एक दूसरे में सामने की कोशिश कर रहे थे। मेरा गुरुजी लगातार उस हसीना की गहराई को और गहरा करने की कोशिश कर रहा था। मैं तो प्यासा था, उसके तड़पाने से मेरे जिस्म से पसीने की बौछार हो चुकी थी।

अन्त बड़ा ही आनंददायक था,मेरे गुरु ने भी इस आंनद का सुख से तृप्त होकर उस अप्सरा की गहराई में अपने पसीने की बारिश कर दी थी।

आज मुझे समझ आया कि वासना में प्रेम और प्रेम में वासना क्या है। लडक़ी को नंगा करो, बिस्तर पे सुलाओ और उसपे कूद जाओ ,ये है शुद्ध वासना। इसमे प्रेम की तड़प नहीं है। आज मैंने जो किया वो असल मे वासना और प्रेम का मिलन है।



The End
...... Heart ......
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Bahut sundar varnan kiya hai.
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Heart 
गौरी

avsji

A biggest thanks to original writer (Most Active Member on other internet site.) ... For creating such a good erotic story for us... 


A true gem or I say "Koh-E-Noor" of erotic writing
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गौरी

गौरी अत्यधिक व्यग्र और बेचैन थी। जब जब वो अपनी माँ को किसी सर-कटी मुर्गी की तरह इधर उधर दौड़ भाग करते देखती, तो उसका दिल और बैठ जाता। वो उनके मन की दशा समझती थी – आज उसकी शादी जो थी। माँ ने अपनी तरफ से किसी भी तरह की कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। आखिर एकलौती लड़की की शादी जो थी। हाँलाकि ‘बाबूजी’ ने उसको समझाया था की वो किसी भी तरह की चिंता न करें, लेकिन फिर भी.. आखिर वो हैं तो उसकी माँ ही!


आज गौरी की शादी है – किसी भी लड़की के लिए यह बहुत ही भावुक दिन होता है – एक तरफ तो अपना मायका छोड़ने का दुःख, और दूसरी तरफ गृहस्थी में पहला कदम! जीवन के इस परिवर्तन करने वाली घटना ज्यादातर लड़कियों के लिए ख़ुशी देने वाली होती है। लेकिन गौरी के मन की हालत अच्छी नहीं थी – वो उदास थी, खिन्न थी, उसके मन में एक प्रकार का अन्धकार था। उसने खुद को आईने में देखा – हर वर्ष कितनी ही लड़कियों की शादी होती है, उसने सोचा। क्या सभी उसकी तरह सोचती होंगी?

दुल्हन के जोड़े में वो कितनी सुन्दर लग रही थी, इसका ध्यान भी गौरी को नहीं था। दुल्हन के लाल जोड़े में वो सचमुच किसी परी के समान लग रही थी। जो कुछ आदित्य के साथ विवाह के लिए सिलवाया था, वही उसने आज भी पहना हुआ था। और यह उसका दुःख और भी अधिक बढ़ा रहा था।

गौरी की बेचैनी और व्यग्रता का एक कारण था। वो दिन आज भी उसको याद है। 

आज पांच साल हो गए हैं उस बात को, फिर भी याद है। आज भी उस दिन की याद उसके ह्रदय में वैसी पीड़ा देता है, जैसा की उस दिन हुआ था। उस दिन, जब उसको आदित्य की मृत्यु की खबर मिली थी… उसका दिल जैसे कुछ क्षणों के लिए रुक गया था.. उसका आदित्य! उसका आदित्य अब इस संसार में नहीं था! इस बात पर वो विश्वास भी कैसे कर लेती? यह संभव भी कैसे था? वह तो अभी जीवित थी…

‘हे प्रभु - आपने मुझे भी मेरे आदित्य के साथ क्यों नहीं बुला लिया?’

पिछले पांच वर्षों से वह यही प्रार्थना कर रही थी, लेकिन भगवान ने आज तक उसकी प्रार्थना नहीं सुनी!

##

ठाकुर भूपेन्द्र (बाबूजी) और ठाकुर घनश्याम (पिताजी) दोनों बचपन के मित्र थे और बहुत ही घनिष्ठ मित्र थे। ऐसे मित्र जिनकी मित्रता की बाकी सारे लोग मिसालें देते थे। उनकी मित्रता उम्र के बढ़ने के साथ साथ और गाढ़ी होती चली गई। जब वो दोनों बड़े हुए, तो उन्होंने एक दूसरे को वचन दिया की यदि उनमे से किसी के यहाँ लड़का हुआ और दूसरे के यहाँ लड़की, तो वे उन दोनों का विवाह करवा देंगे, जिससे मित्रता का बंधन, रिश्तों के अडिग बंधन में बंध जाय। आज कल ऐसी बातें किस्से कहानियों में ही सुनने को मिलती हैं, लेकिन 1930 में यह सब बातें करी जाती थीं।

दोनों ही ठाकुरों ने एक साथ ही शादी करी – बस कुछ ही दिन आगे पीछे। दोनों की पत्नियाँ लगभग एक साथ ही गर्भवती भी हुईं। समय के साथ भूपेन्द्र को एक लड़का हुआ, जिसका नाम आदित्य रखा गया, और घनश्याम को एक लड़की, जिसका नाम गौरी रखा गया। दोनों बच्चे हमउम्र थे – बस कुछ ही दिनों का अंतर था दोनों के बीच! बचपन से ही उन दोनों को मालूम हो गया था कि बड़े होकर उनकी शादी हो जाएगी और वो दोनों साथ रहेंगे। दोनों ही बच्चे इसी विश्वास के साथ बड़े हो रहे थे। ख़ुशी की बात यह भी थी कि उन दोनों में प्रेम भी बहुत था। दोनों साथ में बहुत खुश रहते थे और उनको देख कर राम-सीता जैसी आकर्षक जोड़ी वाली मिसालें देते थे! दोनों परिवार भी इस सम्बन्ध से बहुत खुश थे - आखिर, दो बहुत ही संपन्न और प्रभावशाली परिवार एक होने वाले थे।

लेकिन शादी के दिन से ठीक दो महीने पहले ही वो शोकपूर्ण घटना घट गई।

##

‘ओह आदित्य!’ गौरी ने दुःख भरी गहरी साँस ली। पांच साल! लेकिन अभी भी लगता है जैसे वो घटना कल ही हुई हो। 

ठाकुर घनश्याम को उस घटना के कारण गहरा धक्का लगा। उसके बाद वो एक गहरे अवसाद में चले गए और उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया। आदित्य उनके लिए अपने खुद के बेटे से भी कहीं प्रिय था। ठाकुर भूपेन्द्र भी अचानक ही समय से पहले ही बूढ़े से दिखने लगे। जल्दी ही पिताजी की तबियत और बिगड़ने लगी। तब बाबूजी आये थे, पिताजी का हाल चाल देखने के लिए।

अपने परम प्रिय मित्र की ऐसी हालत देख कर ठाकुर भूपेन्द्र की आँखें छलक गईं। दोनों मित्र भाइयों से भी अधिक सगे थे। उस हालत में भी दोनों एक दूसरे को स्वान्त्वाना दे रहे थे और एक दूसरे की हिम्मत बढ़ा रहे थे। उस क्षण ठाकुर भूपेन्द्र ने एक बात कही, जो शायद वो कहने ही आये थे,

“ठाकुर, जैसे आदित्य तुम्हारा बेटा था, वैसे ही गौरी भी मेरी बेटी है। और हमेशा रहेगी। अब हमारा तुम्हारा क्या भरोसा - जिस गति से हम चल रहे हैं, उस गति को सोच कर लगता है की हमारी भगवान भोलेनाथ से जल्दी ही भेंट हो जाएगी। लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न यह है की हमारे बाद हमारी बिटिया का क्या होगा? इसलिए मेरे मन में एक बात है.. अगर तुमको कोई आपत्ति न हो तो…”

“नहीं नहीं ठाकुर, कैसी बातें कर रहे हो? तुम तो अपने हो! तुम्हारी बात पर भला मुझे कैसे आपत्ति हो सकती है?”

“अगर ऐसी बात है ठाकुर तो सुनो.. मैं गौरी का हाथ अपने आदर्श के लिए मांगना चाहता हूँ!”

“क्या कह रहे हो ठाकुर?” घनश्याम को यकीन ही नहीं हुआ की उन्होंने ठीक ठीक सुना है।

भूपेन्द्र ने बस सर हिला कर अपनी कही हुई बात की पुष्टि करी।

“लेकिन.. लेकिन.. वो तो उम्र में काफी छोटा है गौरी से…”

“ठाकुर..” भूपेन्द्र ने जैसे फैसला सुनाते हुए कहा, “हमारे परिवार एक हैं! इस तथ्य को स्वयं भोलेनाथ भी नहीं झुठला सकते! मुझे तो लगता है कि प्रभु ने मुझे दूसरा लड़का इसीलिए दिया कि हम अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर सकें, और अपनी दोस्ती को एक मिसाल बना सकें! अपने मन में झाँक कर देखो - क्या तुमको नहीं लगता की यह सब भोलेनाथ की माया है? क्या तुम्हे नहीं लगता की वो स्वयं चाहते हैं कि हमारे परिवार एक हो सकें?”

घनश्याम को तो जैसे मन मांगी मुराद मिल गई। और बस यूँ ही, अनायास ही, गौरी का भाग्य फिर से निर्धारित हो गया। अब वो आदित्य के छोटे भाई आदर्श की होने वाली पत्नी बन गई थी।

आदर्श, आदित्य का छोटा भाई, जो गौरी से आठ साल छोटा था!

उस समय उन दोनों की शादी नहीं हो सकी - आदर्श उस समय तक परिपक्व नहीं हुआ था। इसलिए हो ही नहीं सकती थी। इसलिए शादी तब तक के लिए टाल दी गई, जब तक आदर्श बड़ा न हो जाय! या गौरी के लिए राहत की बात थी। लेकिन सबसे अधिक जिस बात ने गौरी के दिल को कचोटा, वह यह थी कि किसी ने भी उसकी राय, उसकी मंशा जानने की कोशिश तक नहीं करी। न तो बाबू जी ने, वो उसको अपनी खुद की बेटी से भी बढ़ कर मानते थे, न ही माँ ने, और न ही आदर्श ने!

वो कल का छोकरा कैसे भूल सकता है कि वो गौरी को भाभी भाभी कह कर बुलाता रहता था, कभी नंगा, तो कभी कच्छे में उसके आगे पीछे होता रहता था, और आज वो उसी से शादी करना चाहता है! पिताजी को तो बस एक ही बात का भूत सवार था, और वो यह की गौरी आदर्श से शादी करने के लिए हाँ कर दे… इसके लिए उन्होंने गौरी से वायदा ले लिया कि वो आदर्श से ही शादी करे। उनकी हालत देख कर गौरी ‘न’ नहीं कह सकी। जब तक शादी की बात नहीं हो रही थी, तब तक तो सब ठीक था, लेकिन जैसे जैसे शादी का दिन करीब आता गया, वैसे वैसे ही गौरी भावनात्मक समुद्र के और गहरे में डूबती चली गई।

आखिरकार वो इतनी बेचैन कैसे न हो!
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विवाह के दौरान जब जब भी आदर्श और गौरी के शरीर आपस में छूते, तो गौरी के मन में एक घृणा या कहिए, जुगुप्सा की अनुभूति हो जाती।


‘किसी और की पत्नी..’ ‘किसी और की पत्नी..’ बस यही ख़याल उसके मन को सालता जा रहा था।

‘जिसको मन से अपना पति माना, उसकी जगह किसी और को कैसे दे दूं? मन के मीत को ऐसे ही, किसी और से बदला जा सकता है क्या? कैसी शादी थी यह! हे भगवान्! यह तेरी कैसे लीला है? ये तू मेरी कैसी परीक्षा ले रहा है? क्या करूँ!’

गौरी की सहेलियाँ खुश थीं - उनके हिसाब से यह तो स्वर्ग में बनी हुई जोड़ी है!

‘हुँह! स्वर्ग में बनी जोड़ी! जिससे जोड़ी बनी थी, उसको तो वापस ही स्वर्ग में बुला लिया.. ओह आदित्य!’

वो सभी हंस रही थीं, गा रही थीं, खिलवाड़ कर रही थीं, हंसी मज़ाक कर रही थीं… उनमें से लगभग सारी अब तक तो माँ भी बन चुकी थीं। माँ बन चुकी थीं - एक महत्वपूर्ण घटना! या कहिए, सबसे महत्वपूर्ण घटना! क्या होगा अब! क्या वो कभी माँ बनेगी! ओह!

शादी के दौरान वो बस यंत्रवत महंत जी के कहे के अनुसार करती गई - न तो उसको कभी ऐसा रोमांच हुआ कि उसकी शादी हो रही है, और न ही अपने आने वाले वैवाहिक जीवन के लिए नरम गरम प्रत्याशा! शादी की रस्मे कब पूरी हो गईं, उसको पता ही नहीं चला। विवाह के बाद के खेलों में भी उसका मन नहीं लगा। मन क्या नहीं लगा, ये कहिए की उसको चिड़चिड़ाहट सी होने लगी। उसका मन हो रहा था कि सब गायब हो जाएँ, और उसको अकेला छोड़ दें - अपने आदित्य की यादों के साथ।

#

अगली सुबह उसको विदा कर दिया गया। अब उसको अपने जीवन की एक नई यात्रा शुरू करनी थी जो उसने खुद नहीं चुनी। पिताजी के जाने के बाद तो अम्मा की हालत जैसे मरणासन्न ही हो गयी। वो तो जैसे गौरी के विवाह की ही राह देख रही थीं, और बस उसी उम्मीद में जी रही थीं। क्या होगा उनका उसके जाने के बाद? यह सब इतना बड़ा घर बार कौन सम्हालेगा! उनको कौन सम्हालेगा! वो बेचारी तो बस अब गई कि तब गई जैसी हालत में थी। गौरी का दिल बैठ गया – अम्मा को छोड़ कर जाना उसको सबसे अधिक दुःख दे गया। वो कुछ देर के लिए अपना ही दुःख भूल गई। विदा होते समय वो खूब रोई – फफक फफक कर रोई। न जाने अम्मा से गले लगने का मौका कभी मिलेगा भी या नहीं! सच में, उसकी डोली नहीं, उसकी अर्थी उठ रही थी।

देखने वालो को यही लगा कि जैसे सभी लड़कियों को होता है, वैसे ही मायके से बिछोह का दुःख हो रहा है गौरी को! लेकिन उसके मन का दुःख भला कोई क्या समझता? लेकिन, उसकी सास, लक्ष्मी ने उसकी मन की बात बखूबी समझी। यह भी समझी की गौरी को क्या साल रहा है! लक्ष्मी देवी गौरी को उसके जन्म से ही जानती थीं। क़रीब चालीस साल की ही थीं, लेकिन बड़े बेटे के जाने के ग़म ने उनको भी असमय बूढ़ा कर दिया था।

उन्होंने सभी आने जाने वालों को गौरी से दूर किया, यह कह कर कि बहू थक गई है, इसलिए अभी किसी से नहीं मिल सकती। और ऐसा कह कर उन्होंने गौरी को एक अलग, शांत कमरे में ले जाकर आराम से बैठाया। उन्होंने गौरी का गाल प्रेम से छुआ और कहा,

“बिटिया, तूने इस घर की बहू बनना स्वीकार कर के हमारा मान बढ़ा दिया.. सच में, तेरे आने से यह घर अब घर नहीं, मंदिर बन गया..”

गौरी को ऐसा सुनने की उम्मीद नहीं थी। उसकी आंखों से आंसू गिरने लगे।

“आप क्या कह रही हैं अम्मा! सम्मान तो मेरा है। आपने मुझे एक घर की बहू बनने दिया, यह मेरे लिए इतना बड़ा सम्मान है, जिसके लिए मैं उम्र भर आपकी लौंडी बन कर रहूंगी।“

“बेटी, ऐसा न कह.. पहले मेरी पूरी बात सुन ले। जब मैंने दोनों ठाकुरों की प्रतिज्ञा सुनी तो मुझे लगा कि दोनों मज़ाक मज़ाक में यह बात कह गए। लेकिन जब मैंने पहली बार तुझे देखा, तो सच में मन में बस एक ही बात आई, कि क्यों न यह बिटिया मेरे घर आ जाए। तुझे तो मैंने हमेशा ही अपनी बहू, अपनी बेटी के ही रूप में देखा है।“

कुछ देर रुक कर उन्होंने आगे कहा, “... और, मुझे मालूम है कि तूने आदित्य को ही अपना पति माना है। यह बात मैंने जानती हूँ... लेकिन मैं क्या करती? तुझे इस घर में कैसे लाती? कैसे अपनी बेटी बनाती? मैं लालच में आ गयी बिटिया.. मुझे माफ़ कर दे!”

लक्ष्मी देवी ने अपने दोनों हाथ जोड़ लिए; उनके आँखों से भी आंसूं झरने लगे थे।

“मुझे मालूम है कि आदर्श भी तुझे सुखी रखेगा। हो सकता है कि आदित्य से भी अधिक! वो तुझे बहुत प्यार करता है बिटिया.. वो तेरी पूजा करता है। मेरी बस एक ही विनती है, थोड़ा धीरज रखना। समय के साथ सब ठीक हो जाएगा।“

“क्या कह रही हैं अम्मा! आप मुझसे विनती करेंगी? मुझसे? मैं आपकी बेटी हूँ अम्मा! मेरी जगह आपके पैरों में है। आप मुझे आदेश दीजिए!”

“बिटिया, मैंने तुझे जना नहीं है तो क्या? तू मेरी है.. मेरी बेटी! मेरी अपनी बेटी! अपने लालच में हमने तेरी परवाह नहीं करी, लेकिन हम सभी तुझे बहुत चाहते हैं। मेरी यह बात समझ ले बिटिया, और अपनी इस माँ को माफ़ कर दे?”

“अम्मा, माफ़ी जैसा कुछ नहीं है!” कह कर गौरी ने लक्ष्मी देवी को कस कर अपने गले से लगा लिया, “आपने मुझे बेटी कहा, और यही मेरे लिए सब कुछ है! .... और मुझे मालूम है कि यहाँ मुझे अपने मायके से भी अधिक प्यार मिलेगा।“

दोनों की स्त्रियाँ गले लग कर बहुत देर तक रोती रहीं, और एक दूसरे को मनाती रहीं।
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आदर्श एक सुदर्शन व्यक्तित्व वाला नवयुवक था। देखने में तो अपने बड़े भाई आदित्य से भी खूबसूरत था। जवानी अभी भी दूर थी – और उसका शरीर अभी भी भर रहा था। युवावस्था की तरुणाई, और आगे आने वाले समय की उत्तेजना से उसके मन में अपार उत्साह था। अपने बड़े भाई की असमय मृत्यु से उसको भी एक गहरा धक्का लगा था, लेकिन चूँकि वो उम्र में छोटा था, इसलिए उसके घाव जल्दी ही भर गए।


जब से उसकी शादी गौरी से तय हुई थी, वो और भी अधिक खुश रहने लगा। उसके लिए गौरी एक आदर्श महिला थी; आदर्श महिला, आदर्श मित्र, और आदर्श जीवनसाथी! उसने गौरी और आदित्य को साथ में देखा था, और उन दोनों का प्यार भी! इसीलिए उसको उम्मीद थी कि गौरी उसको भी उतना ही प्रेम कर सकेगी, जितना वो आदित्य को करती थी।

सगाई के बाद आदर्श गौरी को शादी वाले ही दिन देख सका। और उस दिन भी गौरी दुल्हन के लिबास में थी, और सर से पाँव तक ढँकी हुई थी। बस, सिन्दूर लगाते समय उसको गौरी की सूरत देखने को मिली। लेकिन उसको गौरी के मेहंदी से सजे हाथ, और पैर बखूबी दिख रहे थे। इस बीच में गौरी का शरीर भी भर गया था। वो अपने यौवन के चरमोत्कर्ष पर थी। कपड़ों में, और आँचल से ढके गौरी के उन्नत स्तनों को दर्शन में चूक नहीं हो सकती थी। तानपूरे के तुम्बे जैसे उसके नितम्ब! गौरी के शरीर की कल्पना मात्र से उसका छुन्नू खड़ा होने लगा था। नहीं छुन्नू नहीं, लंड... बड़े लड़के इसको लंड कहते हैं... छुन्नू तो नाउन अम्मा कहती थी, जब वो उसकी मालिश करती थीं। अब तो वो बड़ा हो गया है.. खैर, वो तो अच्छा हुआ कि उसने ढीली ढाली धोती पहनी हुई थी, नहीं तो बेईज्ज़ती हो जाती।

विवाह के दौरान जब भी उन दोनों के शरीर छूते, तो उसको रोमांच हो आता। उसको जल्द ही गौरी को अपने आलिंगन के पाश में बाँधने का मन होने लगा। उसके मन में उन दोनों की उम्र के अंतर का कभी भान तक नहीं हुआ। गौरी उसकी धर्मपत्नी थी, बस!


****


नवदम्पति का कमरा हवेली की पहली मंजिल पर, एकदम आखिरी छोर पर स्थित था। यह एक काफी बड़ा कमरा था – पूर्णतया सुसज्जित! नई नवेली जोड़ी के लिए बिलकुल आदर्श! वहां समुचित एकांत था; पलंग, झूला और कुर्सियों जैसे असबाब हर प्रकार का आनंद देने में सक्षम थे। उस तरफ लोग आते जाते भी नहीं थे। सन पचास के दशक में गाँव देहात में रौशनी करने के लिए लालटेन का प्रयोग होता था – और उस कमरे में ऐसी चार बड़ी लालटेन लगी हुई थीं। कमरे को विभिन्न प्रकार के फूलों से सजाया गया था, और लोबान, चन्दन और शतपुष्प को मिला कर धूप बनाया गया था, जिसके सुलगने से कमरा सुवासित हो रहा था।

गौरी वही सेज पर असहज सी बैठी हुई थी। यह सब नौटंकी अपने से आठ साल छोटे छोकरे के लिए! कहाँ भला वो भाभी भाभी करते हुए उसके आस पास मंडराता था, और कहाँ आज वो उसके शरीर पर अपना हक़ जमाना चाहता है!

उधर आदर्श की मनःस्थिति भी अलग थी – वो भी बहुत घबराया हुआ था। उसका दिल सामान्य से अधिक तेजी से धड़क रहा था। वो धीमे कदमो से चलता हुआ आ कर गौरी के समीप बैठ गया। लोगों ने उसको सुहागरात के बारे में बताया था – उन बातो की कल्पना मात्र से उसको सिहरन सी हो जाती थी। और आज वह सब कुछ करने का समय आ गया था। रोमांच से उसका शरीर कांप रहा था। उसका युवा शिश्न अपने गृहस्थ जीवन के कर्तव्यों का वहन करने को पूरी तरह से तैयार था।

“मैं आपका घूंघट हटा दूं?” उत्तेजना के मारे उसकी आवाज़ फटी हुई जा रही थी।

गौरी ने कुछ न कहा, और आदर्श ने उसको मूक हामी समझ लिया। हिम्मत कर के, कांपते हाथों से जैसे तैसे उसने गौरी का घूंघट हटाया। लालटेन की पीली रोशनी में गौरी का चाँद सा मुखड़ा देख कर कुछ पलों के लिए वो खो सा गया।

गौरी की खूबसूरती देख उसके मुंह से खुद ब खुद निकला, “हे प्रभु! मुझे नहीं पता था की मेरी किस्मत इतनी अच्छी है।“

पिछली बार पांच बरस पहले उसने गौरी को देखा था। इतने समय में गौरी का रूप और अधिक निखर आया था। लालटेन के प्रकाश में उसका चेहरा किसी परी की भांति चमक रहा था। गले की नीली नसें साँस के आने जाने से हिल रही थीं, और उसका गोरा शरीर लालटेन की रोशनी में एक चाँदी की कटोरी जैसा दिपदिपा रहा था।

सचमुच, वो धरती का सबसे भाग्यशाली पुरुष था! उसका ह्रदय रोमांच में हिलोरें लेने लगा। उसकी नसों में रक्त उबलने लगा; जैसे एक हिंस्र पशु अपने सामने शिकार को देखकर मचलने लगता है, वैसा ही उसके मन में होने लगा। लेकिन उसने उस पशु पर लगाम कसी।

उसको कुछ याद आया। उसने अपने कुरते की जेब से सोने की करधनी निकाली।

“अम्मा ने ये आपके लिए दिया है।“ उसने गौरी को दिखाते हुए कहा।

“आपको पसंद आई? देखिए..?”

गौरी ने कुछ नहीं कहा।

“मैं आपको पहना दूं?”

फिर से कुछ नहीं! उसने थोड़ा जोखिम लेने का सोचा,

“पहनाने के लिए आपका आँचल हटाना पड़ेगा। हटा दूं?”

गौरी बस पहले की ही भांति चुप-चाप बैठी रही। न तो उसने कुछ कहा, और न ही कुछ किया। आदर्श ने कुछ और हिम्मत बटोरी और खुद ही पहल कर के गौरी के वस्त्र पुनर्व्यवस्थित करने लगा। गौरी ने न तो उसकी पहल का विरोध किया, और न ही उसकी मदद करने की कोई भी कोशिश करी। पहले के ही जैसी, बुत बनी बैठी रही। जैसे तैसे उसने गौरी का आँचल उसके सीने से हटा दिया। पहली बार उसको गौरी के आकर्षक स्तनों का आकार दिखाई दिया। उसकी चोली ने आकर्षक तरीके से दोनों स्तनों को हलके से दबाया हुआ था – जिससे देखने वाले को आनंद आना स्वाभाविक ही था। तेजी से साँस लेने और छोड़ने से वो तेजी से ऊपर नीचे हो रहे थे। आदर्श ऐसा कामुक दृश्य देख कर लगभग पागल हो गया! लेकिन फिर भी अपने पशु पर से उसकी लगाम अभी भी नहीं छूटी – कारण चाहे कुछ भी रहा हो।

अपने मन में उठने वाले इस विचार से उसका स्खलन होते होते बचा। खैर, उसने गौरी को करधनी पहना दी। समय लगा – लेकिन उसने अपनी धर्मपत्नी को पहली बार इतने अन्तरंग क्षणों में देखा और छुआ। वो खुश था।

“हो गया! अब मुझे दिखाइए तो, कि कैसा लगता है!”

उसकी हिम्मत बढ़ती ही जा रही थी। लेकिन फिर भी गौरी की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। कुछ देर उसने उसके कुछ कहने और करने का इंतज़ार किया, और कुछ न होता देख कर थोड़ा सा अधीर हो गया। उसने गौरी के हाथ पकड़े और उसको बिस्तर से उतार कर ज़मीन पर खड़ा कर दिया।

“ह्म्म्म... अरे वाह! आप पर तो ये बहुत सुन्दर लग रहा है। लेकिन कहना पड़ेगा, कि यह सुन्दर इसलिए लग रहा है, क्योंकि आप पर है...”

उसने बहुत ही काव्यात्मक भाषा में गौरी के रूप की बढ़ाई कर डाली। सच में – गौरी सचमुच में किसी अप्सरा की भांति ही प्रतीत हो रही थी। वो अपनी सुध बुध खो कर कुछ देर उसकी सुन्दरता को निहारता रहा। उसकी हिम्मत अपने शिखर पर थी। उसने एक आखिरी प्रहार किया,

“ठीक से दिख नहीं रहा है..” कहते हुए उसने गौरी के लहँगे का नारा पकड़ कर खींचना शुरू कर दिया।

गौरी को आदर्श से ऐसी हिमाकत की उम्मीद नहीं थी। इसलिए वो इस प्रकार के प्रहार के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं थी। इस अचानक हुए हमले से वो भौंचक हो गई, और प्रतिक्रिया स्वरुप अपने बचाव में ज़मीन पर ही बैठ गई। बैठते हुए वो गुस्से से चीखी,

“नही... मुझे मत छुओ! मुझे छूने की हिम्मत भी मत करो! मैं तुम्हारे भाई को चाहती हूँ.. मेरे लिए वही मेरे पति हैं.. मैं तुमको अपना नहीं मान पाऊंगी.. कभी नहीं...” कहते हुए वो सुबकने और रोने लगी।

गौरी की इस एक बात ने आदर्श के सारे सपने चकनाचूर कर दिए। वो भी भौंचक हो कर पलंग के किनारे पर सर थाम कर बैठ गया। उसको समझ ही नहीं आया कि वो क्या करे! काफी देर वो यूँ ही सर पर हाथ धरे बैठा रहा; गौरी सुबकती रही। अंततः, वो धीरे से उठा, और भारी डग भरते हुए कमरे से बाहर निकल गया।

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किसी आदर्श भारतीय बहू के समान गौरी ने तुरंत ही पूरे घर और कारोबार की जिम्मेदारी अपने सर पर ले ली, और साथ ही साथ लक्ष्मी देवी को अनावश्यक कार्यों से मुक्ति दे दी। 

गौरी न केवल उच्च शिक्षित लड़की थी, बल्कि एक बेहद समझदार लड़की भी थी। साथ ही साथ उसको कृषि और उससे सम्बंधित व्यापार के बारे में अच्छी समझ भी थी। अपने घर पर उसने अपने पिताजी का अक्सर हाथ बँटाया था। इसलिए अपने ससुराल आकर उसने कृषि और वाणिज्य में भी पहल लेनी शुरू कर दी। उसको किसी ने रोका भी नहीं – ठाकुर भूपेन्द्र को इस बारे में मालूम था, और उनको गौरी के कौशल पर पूरा भरोसा भी था।


सच पूछो, तो उनको एक तरह से तसल्ली ही हुई की अब उनका लड़का भी बहू की संगत में रह कर कुछ सीख लेगा। और हुआ भी लगभग ऐसा ही – उसके निर्देश में पहली फसल का विक्रय उम्मीद से कहीं अधिक मूल्य पर हुआ। धीरे धीरे उसने कृषि की लागत भी कम करनी शुरू कर दी। खेतों में काम करने वाले मजदूरों के लिए वही खेतों में ही स्थाई आवास भी बनवाए, जिससे सभी मजदूर खेतों में ही अपने परिवारों के साथ रहने लगे। कहने वाली बात नहीं है कि काम करने वाले सभी लोग इस बात से अत्यंत प्रसन्न हुए और गौरी और ठाकुर परिवार के लिए उनकी निष्ठा और भी बढ़ गई। सभी लोग गौरी को बहुत पसंद करते थे, और उसका आदर भी करते थे। सिर्फ वाणिज्य और कृषि के काम में ही नहीं, गौरी गृह संचालन में भी अत्यंत निपुण साबित हुई। बस कुछ ही दिनों में यह एक आम चर्चा हो गयी कि ठाकुर की बहू साक्षात् लक्ष्मी का अवतार है!

आदर्श के लिए कृषि और वाणिज्य का क्षेत्र नया था; और साथ ही साथ वो अपनी पढ़ाई भी कर रहा था। लेकिन, जो कमी उसके अनुभव में थी, वो कमी उसने अपने कठिन परिश्रम और लगन से पूरी कर दी। वो स्वयं भी एक सक्षम नेता था; वो अपने लोगों के साथ ही मेहनत करता, सभी के भले का ख़याल रखता, और सभी से ही बेहद मज़बूत रिश्ते बना के रखता था। साथ ही साथ, वो अपनी पढ़ाई भी बड़ी लगन के साथ कर रहा था।

ज्यादातर लोगों ने इस जोड़े से इस प्रकार की करामात की उम्मीद नहीं करी थी, लेकिन साल भर बाद सभी यह कहने पर मजबूर हो गए कि ठाकुर ने क्या किस्मत पाई है! सच में! बहू नहीं, लक्ष्मी ही घर में आई है! 

गौरी आदर्श का ख़याल रखती – जैसे वो उसकी भाभी होने पर करती; और आदर्श भी गौरी का पूरा ध्यान रखता था – क्या वो खाना ठीक से खा रही है, समय पर सो रही है, थक तो नहीं गई इत्यादि। यह सब तो ठीक है, लेकिन उन दोनों के बीच किसी भी तरह की अंतरंगता नहीं थी। उस रात के बाद, आदर्श ने गौरी को छुआ तक नहीं था। तो अपने कमरे के एकांत में दोनों पूरी तरह से अजनबी थे।

लेकिन, यह सब बाहर से नहीं दिखता था। दोनों साथ में काम करते, बात करते, और ऐसे लगते जैसे एक दूसरे के पूरक हों – देखने वाले को इस राज़ की भनक भी नहीं हो सकती थी। खैर, इस कठिन परिश्रम का फल यह हुआ कि इस वर्ष में खेती से होने वाली आय दोगुनी हो गयी। ठाकुर भूपेन्द्र को समझ आ गया कि अब वो शांति से सेवानिवृत्त हो सकते हैं।

और वो सचमुच सेवानिवृत्त हो गए! उनके साथ साथ ही लक्ष्मी देवी, जो पहले काम के बोझ तले दबी रहती थीं, को भी आराम मिला गया और आराम के साथ साथ ढेर सारा समय भी। ठाकुर और ठकुराइन को अपने वैवाहिक जीवन में पहली बार एक दूसरे के लिए इतना समय मिल सका। जब इतना समय मिला, तो उस समय का उपयोग उन दोनों ने अपने पारस्परिक प्रेम की ज्योति को पुनः प्रज्ज्वलित करने में किया। दोनों की उम्र अधिक नहीं थी – ठकुराइन कुछ चालीस साल की रही होंगी, और ठाकुर भूपेन्द्र कोई पैतालीस साल के। अपार फुर्सत मिलने के कारण दोनों दीर्घकालिक और संतोषजनक सम्भोग करने लगे। उनके वैवाहिक जीवन का यह सबसे आनंददायक अंतराल था। अब उनको हर बात के लिए समय मिलने लगा – वो अपने मित्रों से मिलते, सामाजिक कार्यों में भाग लेते, धार्मिक कार्यों में भाग लेते... अचानक ही वो दोनों पहले से कम उम्र लगने लगे – सच कहें तो चालीस से भी कम उम्र लगने लगे। दोनों प्रसन्न रहने लगे। दोनों ही संतुष्ट रहने लगे।

आदर्श जब कभी दोपहर में घर आता, तो उसको अपने माता-पिता के कमरे से सम्भोग करने की आवाजें आती। ऐसा नहीं है कि उसको बुरा लगता – सच पूछे तो उसको अच्छा ही लगता। उसको अच्छा लगता कि आखिरकार उसके माता पिता को बहुत ज़रूरी आनंद मिल पा रहा है। साथ ही साथ उसको एक उम्मीद भी होती, कि कभी वो अपनी राजकुमारी को भी इसी तरह से प्रेम कर सकेगा।

गौरी को भी अपने सास ससुर के बीच बढ़ते हुए प्रेम के बारे में मालूम था। उसको भी अच्छा लगता था कि दोनों एक दूसरे के कितने करीब हैं! अपने बड़े बेटे की मृत्यु के बाद, उस दोनों को प्रसन्न रहने की बहुत ही ज़रुरत थी.. और यह अच्छी बात थी कि वो दोनों अब खुश रह पा रहे हैं। बस, उसके एक बात का मलाल था, और वह यह कि आदर्श की पीड़ा उससे देखी नहीं जाती थी। उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया था जिससे वो ऐसे दंड का अधिकारी बने! लेकिन वो क्या करे!

खैर, देखते देखते ही आदर्श एक जिम्मेदार और आदरणीय नवयुवक बन कर उभरा। अपने ही गाँव क्या, उसकी बढ़ाई आस पास के कई गावों के लोग करने लगे। वो अपने गुणों के कारण विख्यात होने लगा। लोग उसको अपने यहाँ सलाह लेने के लिए बुलाते, और आदर्श भी इतना नेक था कि वो किसी को भी सहायता करने से मना नहीं करता था। ठाकुर भूपेन्द्र का सीना गर्व से चौड़ा हो गया।

गौरी को मालूम नहीं था कि उसको बिना बताए ही आदर्श उसकी माँ को देखने जाया करता था; उनकी देखभाल करने के लिए उसने एक आया और ससुराल की कृषि और वाणिज्य की देखभाल के लिए मुनीम और अन्य कर्मचारी लगा दिया था। कम से कम गौरी की अम्मा अब भगवान् भरोसे नहीं थीं। उनकी अच्छी देखभाल हो रही थी – उसके एहसान तले बहुत से लोग दब गए थे और किसी भी तरह से उसके उपकार का बदला चुकाना चाहते थे। इसलिए गौरी की अम्मा की देखभाल उत्तरदायी हाथों में थी। जल्दी ही उनकी शारीरिक हालत और आर्थिक हालत में सुधार आने लगा। साल भर में उस घर की सम्पन्नता भी वापस आ गई।

*****
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एक दिन लक्ष्मी देवी ने गौरी को अपने पास बुलाया और कहा, “बिटिया, तुम हमारे बारे में क्या सोचती होगी!”


“किस बारे में अम्मा!”

“तू सोचती होगी कि तेरी सास कितनी निर्लज्ज है!”

“क्यों अम्मा! आप ऐसा क्यों कह रही हैं?”

“बिटिया – तुझसे क्या छुपा है? ये सब खेल, जो हम अब बुढ़ापे में खेल रहे हैं, वो तो सब जवानी के हैं! तुम दोनों के खेलने के लिए हैं! लेकिन तुम दोनों दिन भर काम काम और बस काम ही करते रहते हो.. तुम दोनों को एक दूसरे के लिए समय मिल भी पाता है या नहीं?”

गौरी सबसे झूठ बोल सकती थी, लेकिन अपनी माँ समान लक्ष्मी देवी से नहीं। उसने कुछ भी नहीं कहा। लक्ष्मी देवी को पहले ही संदेह था। यह बस निश्चित हो गया।

“तुम दोनों को समय नहीं मिल पाता?”

“नहीं अम्मा.. ऐसा नहीं है...”

“मतलब.. तुम दोनों...!”

गौरी ने अपना सर ‘न’ में हिलाया। लक्ष्मी देवी को उसके मन की बात समझ में आ रही थी।



“तुझे.. अभी तक यही लगता है की आदित्य तेरा पति है..?”

“माँ, ‘वो’ (उस समय शादी-शुदा लड़कियां अपने पति का नाम नहीं लेती थीं) बहुत ही अच्छे इंसान हैं। कोई भी लड़की उनको पा कर खुद को बहुत भाग्यशाली समझेगी। मुझे भी ऐसा ही लगता है। लेकिन.. लेकिन मैं कैसे भूल जाऊं! कैसे भूल जाऊं आदित्य को? उनकी यादें अभी तक ताज़ा हैं...”

लक्ष्मी देवी ने उसको बीच में ही टोक दिया,

“बिटिया, मैं तेरी बात समझती हूँ। ये भी समझती हूँ की अपने पहले प्यार को भुला पाना नामुमकिन है। लेकिन आदित्य तेरा अतीत था। आदर्श तेरा वर्तमान और भविष्य है। तनिक उसके बारे में भी सोच! और किसने कहा कि तू आदित्य को भूल जा? वो मेरा भी तो बेटा था.. है न? क्या मैं उसको भूल सकती हूँ? नहीं न! लेकिन, हम हमेशा अतीत में तो ठहरे नहीं रह सकते.. है न! और, वो अतीत तो तेरे जीवन का एक छोटा सा हिस्सा है। वो तेरा पूरा जीवन तो नहीं बन सकता। और, ये मत भूल कि आदर्श भी तो तेरी इस मूर्खता के कारण दुःख झेल रहा होगा! सोच! कैसी ज़िन्दगी है!”

गौरी कुछ बोल न सकी। बस सर झुकाए, अपनी सास की बातें सुनती रही।

“एक बात बोल मेरी बच्ची, तू कब तक इस तरह रहेगी? तू अभी जवान है! जवान शरीर की अपनी ज़रूरतें होती हैं। मैं खुद भी घर बार की देखभाल में ऐसी फंसी, और तेरे बाबूजी भी खेती बाड़ी में ऐसे फंसे, कि हम तो वह सब बातें भूल ही गए। लेकिन फिर तू आई, और तेरे कारण से हमको एक दूसरे के लिए समय मिल सका। और हमने हमारा खोया हुआ प्यार वापस पा लिया। जब हमको, इस उम्र में शारीरिक ज़रूरतें हैं, तो क्या तुझे नहीं हैं? क्या आदर्श को नहीं हैं? सोच बच्चे, अपने बारे में सोच! तुम दोनों अभी बहुत छोटे हो.. बहुत जवान हो!”

गौरी खामोशी से रो रही थी। आंसू बह रहे थे, लेकिन कोई आवाज़ नहीं।

“बिटिया, तुझे कभी जवानी का आनंद लेने का मन नहीं होता? हम्म? कैसी कमानी की तरह देह है! तेरा मन नहीं होता कि कोई इसकी कसावट ढीली कर दे? तेरा मन नहीं होता कि कोई इस देह को इस तरह मसले कि इसके पोर पोर से मीठा सा दर्द उठने लगे? तेरा मन नहीं होता कि कोई मर्द तेरे बदन को छुए? हम्म?”

“अम्मा! आप ऐसे मत कहिए..”

“लेकिन क्यों बेटी?”

“मैं कुछ नहीं कर सकती अम्मा.. कुछ नहीं!”

“मेरी बच्ची, जोड़े तो वहाँ, ऊपर बनते हैं.. स्वर्ग में! जब भोलेनाथ ने स्वयं आदर्श को तेरे लिए चुन लिया, तो तू इस सम्बन्ध को पूरा होने में क्यों विघ्न डाल रही है?”

गौरी कुछ कह नहीं पा रही थी। कुछ बातों पर तर्क वितर्क नहीं किया जा सकता! उससे सिर्फ कुतर्क निकल कर आता है! वो सिर्फ रो रही थी – पूरा शरीर हिचकियाँ ले रहा था। ऐसी प्यारी बिटिया की ऐसी हालत देख कर लक्ष्मी देवी का दिल भी पसीज गया। उनको समझ आ गया कि कुछ ज्यादा ही हो गया। उन्होंने लपक कर गौरी को अपने सीने में भींच लिया और उसके माथे को चूमा।

“मेरी प्यारी बिटिया.. मेरी गुड़िया.. मैं अपने दोनों बच्चों की खुशियाँ ही चाहती हूँ बस.. इसीलिए ऐसी हिमाकत की! मैंने पहले भी कहा था, आज भी वही बात दोहरा रही हूँ.. बस धीरज रखो। प्रभु सब ठीक करेंगे।“

गौरी अपनी अम्मा के गले से लिपटी, बहुत देर तक रोती रही।

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इस घटना के कुछ दिनों के बाद गौरी की अम्मा उससे मिलने के लिए आईं। गौरी उनको देख कर घोर आश्चर्यचकित हुई। सबसे अधिक आश्चर्य उसको इस बात का हुआ कि उसकी अम्मा की हालत पहले से कहीं अधिक अच्छी लग रही थी। अच्छी क्या – वो तो पूरी तरह स्वस्थ लग रही थीं। कहाँ वो रुग्ण, मरणासन्न अम्मा, और कहाँ ये! उनको देख कर लग रहा था जैसे उनका पुराना स्वास्थ्य वापस लौट आया हो। चेहरे पर कान्ति देख कर तो यही लग रहा था। वो वहां अधिक रुक तो नहीं सकती थीं (बेटी के घर का पानी नहीं पिया जाता और न ही खाना खाया जाता है), लेकिन जितनी भी देर रहीं, बस अपने दामाद आदर्श के नाम की माला जपती रहीं। उन्होंने गौरी को बताया की कैसे आदर्श ने उनकी देखभाल का, और खेती बाड़ी की देखभाल का इंतजाम कर के रखा है। अपना बेटा भी क्या ऐसा करता! और तो और, दूर दूर तक आदर्श की चर्चा है! सभी उसका नाम इज्ज़त से लेते हैं। भगवान्! न जाने कौन से कर्म किया थे की ऐसा देवता जैसा दामाद मिला! ऐसा दामाद तो सभी को दे प्रभु! उन्होंने यह भी कहा कि गौरी सच में बहुत भाग्यवान है कि उसको आदर्श जैसा पति मिला। ऐसे ही आदर्श आदर्श रटते रटते वो वापस घर चली गईं।


इस घटना का गौरी पर गहरा प्रभाव हुआ। पहली बार उसने आदर्श को उसके गुणों के कारण समझा... और एक पुरुष के गुणों के कारण जाना। उसने बाद में आदर्श से पूछा की उसने उसको क्यों नहीं बताया कि वो उसकी अम्मा की देखभाल कर रहा है। इसके जवाब में आदर्श ने कहा, कि अम्मा तो उसकी खुद की अम्मा के ही तो जैसी हैं! और अपनी अम्मा की देखभाल के लिए उसको किसी से बताने या पूछने की क्या ज़रुरत?

गौरी को अब जा कर समझ आया की उसका पति सचमुच बहुत ही नेक है! उसको इस बात पर शक नहीं था – एक ही कमरे में सोते हुए भी आदर्श ने कभी भी उसको छूने की कोशिश नहीं करी। उसका मन तो करता ही होगा .. लेकिन उसने किया कभी नहीं! लेकिन उसने इस बात पर अधिक ध्यान नहीं दिया – हो सकता है कि उसके डर से आदर्श उससे दूर रहता हो! लेकिन आज अम्मा की बात ने शक के सारे बादल हटा दिए। उसका पति उसको तभी छुएगा, जब वो खुद उसको प्रेम करेगी!

****

“अम्मा, मुझसे गलती हो गई। बहुत बड़ी गलती हो गई, अम्मा! पाप हो गया! इसका प्रायश्चित कैसे करूँ?” गौरी ने लक्ष्मी देवी से कहा।

वो समझ गईं कि किस बारे में बात हो रही है।

“बिटिया, प्रेम में न कोई पाप होता है, और न कोई प्रायश्चित! सिर्फ प्रेम होता है। प्रेम – बिना शर्तों का! पूरी निष्ठा के साथ। तूने आदित्य से प्रेम किया था, और आदर्श ने तुझसे। अरे, वो तो तेरी पूजा करता है! सच बता, क्या उसने कभी भी तुझे छूने की भी कोशिश करी है? तुमने माना किया था न? अगर ये प्रेम नहीं है, तो क्या है? ... और मैं तुमको एक बात बताऊँ? तुम भी उसको चाहती हो.. बस तुमको अभी तक ये बात मालूम नहीं है।“

गौरी जानती थी, कि लक्ष्मी देवी सही कह रही थीं।

“लेकिन अम्मा, मैं उनसे अब आँखें भी कैसे मिला पाऊंगी?”

“क्यों”

“इतना सब कुछ हो गया...”

:क्या इतना कुछ हो गया? कुछ भी नहीं हुआ। तूने कुछ भी गलत नहीं किया – मैंने पहले भी तुमको कहा है। बस, आदर्श को पूरी निष्ठा से प्रेम कर.. बस, प्रेम कर..”

गौरी ने लक्ष्मी को कहा की काश, आदर्श ही पहल कर ले; क्योंकि वो कुछ कर नहीं पाएगी। उसका लज्जा भाव काफी बढ़ गया है, और अब उसकी हिम्मत लगभग ख़तम है। लेकिन लक्ष्मी देवी ने कहा कि आदर्श ऐसा कभी नहीं करेगा। वो गौरी से बहुत प्रेम करता है, और उसका प्रेम उसे ऐसा कुछ भी करने से रोक लेगा। पहल तो गौरी को ही करनी होगी। लेकिन गौरी के अन्दर अपराध-बोध घर कर गया था.. उसके लिए भी कुछ संभव नहीं था।
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कुछ दिनों बाद –



“बिटिया, क्या तुम दोनों ने.. मेरा मतलब, सम्भोग करना शुरू किया?” लक्ष्मी देवी ने खुलेआम उससे पूछ लिया।

गौरी ने शर्म से सर झुका कर ‘न’ में सर हिलाया।

“मुझे मालूम था। मुझे मालूम था कि कुछ नहीं हुआ होगा। तुम दोनों ही बेकार हो – तुम भी, और तेरा पति भी! बस! अब बहुत हो गया! अब मैं इसको और घिसटने नहीं दूंगी। अगर मैं ऐसे ही इंतज़ार करती रही, तो बिना अपने पोते पोतियों का मुँह देखे ही चल बसूँगी...” उन्होंने कुछ क्षण रुक कर कुछ सोचा और आगे कहा, “ठीक है.. अब मैं जैसा कहती हूँ, ठीक वैसा ही कर! इसको अपनी अम्मा का आदेश मान। जा, और जा कर नहा कर आ.. फिर सारी बाते बताऊंगी..”

‘नहा कर..!’ गौरी को समझ नहीं आया, लेकिन अम्मा की बात नकारने की उसकी फितरत नहीं थी। जब वो नहा धो कर बाहर आई, तो लक्ष्मी देवी एक नौकरानी के साथ जेवर, और नए कपडे – लहँगा-चोली, और.. और.. ये क्या है? गौरी को अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हुआ, जब उसने कपड़ों के बीच में विदेशी चड्ढी, और ब्रा देखी। ‘ये कहाँ से आई!’

“तेरे बाबूजी ने मंगवाया था.. वो क्या नाम है.. हाँ, अमरीका से! तेरा सीना भी मेरे जितना लगता है, तो.. तुझको भी दुरुस्त आएगा। और..” लक्ष्मी देवी ने दबी आवाज़ में मुस्कुराते हुए आगे कहा, “ये सामने से खुलता है..”

गौरी का चेहरा शर्म से चुकंदर के जैसा लाल लाल हो गया।

“तू समझ रही है न बिटिया रानी? आज तेरी सुहागरात है। कल जब तू उस कमरे से बाहर निकले न, तो कुमारी नहीं रहनी चाहिए। न तू, और न ही आदर्श! चल.. अब जल्दी से तुझे तैयार कर देती हूँ! आदर्श भी आने वाला होगा..”

****

इसको सुहागरात नहीं, सुहाग-शाम कहना अधिक मुनासिब होगा!

शाम के करीब पांच बजे होंगे, लेकिन लक्ष्मी देवी ने जिद कर के दोनों को उनके कमरे में भेज दिया। उन्होंने गौरी को बिस्तर पर बैठाया, उसका माथा चूमा, और निकलने से पहले उन दोनों से कहा,

“एक बात और... जब तुम दोनों कल इस कमरे से बाहर निकलो, तो मैं तुम दोनों को पूरी तरह से नंगा देखना चाहती हूँ.. समझे? पूरे नंगे.. तुम दोनों को..” और यह कह कर उन्होंने दरवाज़े का पल्ला लगा दिया।

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“गौरी..” आदर्श बिस्तर पर नहीं बैठा; बस खड़े खड़े ही एक नपी तुली आवाज़ में बोला, “आप यह सब कहीं अम्मा के दबाव में आकर तो नहीं कर रही हैं?”


गौरी फिर से चुप!

“भगवान् के वास्ते गौरी! आप कुछ कहती क्यों नहीं..?”

गौरी ने ‘न’ में सर हिलाया।

“इसका क्या मतलब है?”

गौरी के लिए अपनी आवाज़ को पाना ही दूभर हो रहा था। वो कैसे इस अन्तरंग विषय पर बात करे! क्या आदर्श को नहीं मालूम, कि संसर्ग जैसे विषय पर लडकियाँ कुछ बोल नहीं पातीं! खैर, उसने जैसे तैसे तो तमाम हिम्मत बटोर कर कहा.. कहा क्या, बस एक अस्पष्ट फुसफुसाहट सी निकली,

“नहीं.. उन उनके दबाव में न्न्न्नहीं..”

आदर्श ने इतनी दबी हुई बात भी साफ़ सुनी। इस एक छोटे से वाक्य ने उसके जीवन को एक अलग ही दिशा प्रदान कर दी।

“क्या सच?” वो मुस्कुराया! विजय वाली मुस्कराहट नहीं.. चाहे जाने पर प्रसन्न होने वाली मुस्कराहट!

गौरी ने उसको मुस्कुराते हुए तो नहीं देखा – वो तो अपना सर अपने घुटनों में छुपाए बैठी हुई थी। लेकिन वो भी मुस्कुराई। उसने हलके से सहमति में सर हिलाया। इस एक छोटे से संकेत से आदर्श के शिश्न में जीवन का संचार हो गया। युवावस्था तो होती ही ऐसी है! पल पल भर में शिश्न संभोगरत को तैयार हो जाता है।

“गौरी.. आप तो हमारे दिल की रानी हो..”

कहते हुए वो गौरी के समीप पलंग पर बैठा, और उंगली से उसकी ठोढ़ी उठा कर उसके रसीले गुलाब से होंठों को चूम लिया।

गौरी भी आदर्श के लिए अपने में, अपने ह्रदय में उमड़ते घुमड़ते प्रेम के सागर में डूबने लगी; जब आदर्श ने उसको चूमा, तो उसके सब्र का बाँध भी टूट गया – उसने आदर्श के चुम्बन का समुचित उत्तर दिया। उसको नहीं मालूम था कि चुम्बन कैसा होता है, या कैसे करते हैं.. लेकिन फिर भी, उसने कोशिश करी। और फिर एक चुम्बन के बाद दूसरा चुम्बन के बाद तीसरा चुम्बन.. प्रेमी युगल जल्दी ही अपने चुम्बनों के आदान प्रदान में गिनती भूल गया।

जब वो एक दूसरे से अलग हुए, तो भावना की दीवार जिसके भीतर गौरी ने स्वयं को बंद कर रखा था, वो टूट गई, और आंसू के रूप में उसके गालों पर ढलक गई। आदर्श को समझ में नहीं आया कि गौरी दुखी है या प्रसन्न – लेकिन उसने उसको अपने प्रेममय आलिंगन में बाँध लिया।

प्रेममय आलिंगन तो था ही, लेकिन उस आलिंगन में दो युवा शरीर बंधे हुए थे। पहली बार दोनों विपरीत लिंग के संसर्ग में बंधे हुए थे। आदर्श को गौरी के स्तन अपने सीने पर दबते हुए महसूस हुए। गौरी को भी महसूस हुआ – ऐसे कोमल और अन्तरंग एहसास लडकियों से चूक नहीं सकते। उसने गौरी की आँखों में देखा, मानो उससे कुछ कहना चाहता हो.. लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। गौरी भी कुछ देर रुकी – उसको भी लगा कि आदर्श उससे कुछ कहना चाहता था, लेकिन जब उसने कुछ नहीं कहा, तो उसने आगे बढ़ कर एक बार फिर से आदर्श के होंठों को चूम लिया। हलके से ही सही, यह चुम्बन गौरी की पहल की निशानी था। दोनों प्रेमी पुनः अधर-रस-पान करने में लीन हो गए। जब तक दोनों का चुम्बन छूटा, तब तक दोनों की साँसें भारी हो चली थीं।

दोनों ने पुनः एक दूसरे की आँखों में देखा। तेज़ साँसों के साथ साथ गौरी के स्तन भी तेजी से ऊपर नीचे हो रहे थे। ऐसा मनोहारी दृश्य आदर्श की आँखों से बच नहीं सका – उसकी कौतूहल और उत्साह भरी दृष्टि मानों गौरी के स्तनों पर ही चिपक गई। गौरी को मालूम था कि वो क्या देख रहा है, लेकिन फिर भी सहज रूप से आदर्श की दृष्टि का पीछा करते हुए उसकी आँख अपने ही स्तनों पर चली गई। ऐसे देखे जाने पर गौरी को लगा जैसे आदर्श उसको आँखों से ही निर्वस्त्र कर रहा हो। गौरी को लगा जैसे आदर्श उसकी मूक बढ़ाई करा रहा हो.. वैसी अनुभूति जैसे खुद को बड़ी शिद्दत से चाहे जाने पर होती है। लेकिन साथ ही साथ उसको शर्म भी आई कि उसके वक्षस्थल को इस प्रकार की निर्लज्जता से देखा जा रहा है! लज्जा से उसका चेहरा पुनः लाल हो गया... अपनी योनि के भीतर उसको एक अपरिचित सी झुनझुनी महसूस हुई। शर्म के मारे, उसने अपना चेहरा अपने हाथों से ढक लिया।

समय बस पास ही था! आदर्श से अब रहा नहीं जा रहा था। उसने आगे बढ़ कर गौरी की चोली के निचले किनारे को ऊपर की तरफ हलके से खींचा। यह इशारा उसने समझा।

“प्प्पीछे.. से..” उसने हलकी सी घबराहट के साथ कहा।

आदर्श को समझ आया कि चोली को खोलने के लिए पीछे देखना पड़ेगा – पीठ की तरफ उसको खोलने के लिए हुक थे, और उनको खोलना परिश्रम वाला काम था। खैर, अधीर और कांपते हाथों से उसने जल्दी ही सारे हुक अलग कर दिए, और उस वस्त्र को गौरी के शरीर से अलग कर दिया। अचानक ही गौरी को एक नग्न अनुभूति होने लगी – भले ही उसने अभी भी समुचित कपडे पहन रखे थे। लेकिन आदर्श को निराशा ही हाथ लगी, क्योंकि उसका पुरस्कार तो अभी भी छुपा हुआ था।



‘ये क्या बला है!’ उसको समझ ही नहीं आया कि इस नए तरह के वस्त्र का क्या करना है!



लेकिन वो था बहुत रोचक – लक्ष्मी देवी ने गौरी को यह कह कर पहना दिया था कि यह गौरी की माप का था, लेकिन ऐसा था नहीं। दरअसल वो ब्रा कुछ छोटी थी, जिसके दबाव से उसका वक्ष-विदरण उठ कर सामने आ गया था।



‘क्या बात है..!’ आदर्श के मन में अनायास ही प्रसंशा छूटी।



आदर्श को यूँ संभ्रमित होते हुए देख कर गौरी ने ही उसकी मदद करी।



“ये.. सामने से..” फुसफुसाती हुई आवाज़ में उसने मार्ग दर्शाया – उसको अपनी ही कही हुई बात पर शर्म आ गई। वो दरअसल आदर्श को बता रही थी कि उसको निर्वस्त्र कैसे किया जाय..



आदर्श को बात समझ में आ गई। उसने ध्यान से देखा, तो सामने की तरफ हुक दिखाई दिए, जिनको खोलते ही दुनिया के सबसे परिपूर्ण, दोषरहित, सुन्दर और गोल स्तन उसके दर्शन के लिए निरावृत हो गए। आदर्श ने पूरी तसल्ली से गौरी के ऊर्ध्व भाग को निर्वस्त्र किया और थोड़ा पीछे हट कर गौरी को दृष्टि भर कर देखा। गौरी की शारीरिक गढ़न के लिए उसके स्तन बिलकुल ही उत्तम थे और अत्यंत आकर्षक थे। उसकी स्तनों की गोलाइयों का रंग साफ़ था, और चूचकों और उनके गिर्द गोल घेरों का रंग गहरा लाल गुलाबी था। गौरी के चूचक उत्तेजनावश खड़े हो गए थे। ऐसा लग रहा था कि कुछ देर ऐसे ही रहेंगे तो फट पड़ेंगे!



‘ये तो एकदम शहतूत के फलों जैसे हैं.. वो लाल शहतूत...!’ उनको देख कर आदर्श को सबसे पहला यही ख़याल आया।



आदर्श को अपने स्तनों को ऐसे अरमान और लालसा भरी दृष्टि से देखते हुए देख कर गौरी का दिल पसीज गया। उसका मन हुआ कि वो आदर्श को अपने सीने में भींच ले। लेकिन वो कुछ कर न सकी। बस, नज़रें झुकाए अपने पति की लोभी आँखों का स्पर्श अपने चूचकों पर महसूस करती रही। उसको आज पहली बार अपनी योनि से कुछ रिसता हुआ सा महसूस हुआ। आदर्श के चुस्त पाजामे के भीतर से अंगड़ाई लेता हुआ उसका छुन्नू गौरी देख पा रही थी.. आखिरकार एक बड़ा सा तम्बू जो बना हुआ था वहां पर!



“खड़ी हो..” आदर्श ने आज्ञा दी। गौरी ने तुरंत उसका पालन किया।



पलंग पर बैठे हुए ही आदर्श ने उसकी कमर से पकड़ कर अपनी ओर खींचा, और फर एक एक कर के उसके सारे वस्त्र उतारने शुरू कर दिए। गौरी ने चड्ढी नहीं पहनी थी क्योंकि उनमें वो अत्यंत असहज महसूस कर रही थी। बस कुछ ही क्षणों में गौरी नितांत नग्न आदर्श के सामने खड़ी थी। उसके शरीर पर जेवरात छोड़ कर अब कुछ भी नहीं बचा था।



वो वैसी ही, अनाड़ी की भांति नग्न खड़ी थी। उत्तेजना, शर्म, और घबराहट से उसकी हालत खराब थी। उधर आदर्श की भी कोई अच्छी हालत नहीं थी। अपनी पत्नी के इस दिव्या रूप को देख कर वो विस्मय और आदर से भर गया था – कितनी कम उम्र लग रही थी गौरी! बहुत ही कम! खुद उसकी उम्र के जितनी! गुड़िया जैसी! बहुत बहुत सुन्दर! बेहद सुन्दर!



बिना गौरी के चेहरे से दृष्टि हटाए, उसने पुनः उसको कमर से पकड़ कर अपनी ओर समेटा, और अपने आलिंगन में फिर से बाँध लिया।



‘कितना चिकना शरीर!’ गौरी के नितम्बों पर हाथ फिराते हुए उसने महसूस किया!



गौरी के चूचक इतने करीब देख कर उसको सहज ही उनको पीने की इच्छा जाग गई – वो जानता था, कि इनमें दूध तो नहीं है अभी.. लेकिन फिर भी ऐसे सुन्दर स्तनों को बिना चखे कैसे रहा जाय?



गौरी की जैसे तो मन मांगी मुराद पूरी हो गए जब आदर्श ने उसके चूचकों को बारी बारी से पीना शुरू कर दिया। बिलकुल किसी भोले बच्चे के समान। वहां तक तो सब ठीक था, लेकिन इस पूरी क्रिया का गौरी पर अजीब सा प्रभाव हो रहा था। उसका पूरा शरीर कांप रहा था और उससे खड़ा नहीं हुआ जा रहा था। उसके पैर पके हुए मांड के जैसे हो गए थे – लिजलिजे.. नहीं लिजलिजे नहीं, डांवाडोल!



‘यहाँ मुझसे खड़ा ही नहीं हुआ जा रहा है, वो ये मेरे भोले सजन, मुझे छोड़ ही नहीं रहे हैं!’



फिर एक समय आया जब उसका पूरा शरीर बुरी तरह से कांपने लगा, इतनी तेज कि आदर्श ने भी महसूस किया। उसके स्तन पीना छोड़ कर वो प्रश्नवाचक दृष्टि से गौरी को देखने लगा। गौरी आँखें बंद किये, सर पीछे ढलकाए, और मुँह से साँस लेती हुई किसी और ही दुनिया में प्रतीत हो रही थी। आदर्श को नहीं मालूम पड़ा, लेकिन गौरी को पता चला कि उसकी योनि से एक प्रबल स्राव हुआ है! लेकिन क्या स्राव हुआ है, वो समझ नहीं आया उसको। उसको लगा कि शायद पेशाब हुई है। उसको शर्म आई! उसका पति क्या सोचेगा! वो तो गनीमत है कि इतना कम हुआ! लेकिन इस पेशाब का अनुभव कितना भिन्न था... कितना.. आनंददायक! ऐसा आनंद, जैसा कभी नहीं महसूस हुआ!


आदर्श ने गौरी को पलंग पर लिटा दिया।

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कुछ देर और उसके स्तनों का भोग लगाने के बाद, वो उसके शरीर के अन्य हिस्सों को भी चूमते हुए नीचे की तरफ जाने लगा। गौरी के योनिस्थल पर बाल थे। कौतूहलवश, उसने उँगलियों से बालों को अलग किया, और योनि के होंठों पर एक प्रगाढ़ चुम्बन रसीद दिया। गौरी आनंद से सिहर उठी! हद तो तब ही गई, जब आदर्श ने उसकी योनि के चीरे की लम्बाई पर ऊपर नीचे कई बार चाट भी लिया।


“ईइस्स्स्स! ऐसे मत करिए.. ये गन्दा है..”

“मुझे लगा कि आपने नहाया है..” कह कर आदर्श वापस उसी काम में लग गया।

“हाँ.. लेकिन.. ऊऊह्ह्ह्ह!” उसका वाक्य अधूरा ही रह गया। आदर्श ने जो कुछ भी किया था, वो उसको अत्यंत आनंद दे रहा था।

लेकिन, आदर्श को भी इस विषय में कोई ज्ञान नहीं था। जो भी उसको समझ में आ रहा था, वो कर रहा था.. यह सोच कर कि शायद गौरी को पसंद आये! उसको नहीं मालूम था की सम्भोग के समय में क्या कार्य करने होते हैं, कैसे करने होते हैं, और कितनी देर करने होते हैं! अपनी सीमा में उसको जो भी समझ आ रहा था, वो बढ़िया कर रहा था।

न तो आदर्श, और न ही गौरी को इस बात का भान भी हुआ कि गौरी पहले अपने स्तन पिए जाने, और अब अपनी योनि पिए जाने पर – मतलब दो बार यौन चरमोत्कर्ष प्राप्त कर चुकी है! खैर, मुँह का इस्तेमाल कब तक करे कोई! इसलिए अब वो रुक गया। समय हो गया था!

आदर्श ने जल्दी जल्दी निर्वस्त्र होना शुरू किया। गौरी ने एक बात पर गौर किया कि आदर्श अपनी उम्र के हिसाब से सुगढ़ और अच्छी डील डौल वाला नवयुवक था।

‘कुछ और समय में वो पूर्ण पुरुष बन जायेगा तो कितना आकर्षक लगेगा!’ उसने सोचा।

लेकिन अभी भी वो एक आकर्षक, और मंत्रमुग्ध कर देने वाला नवयुवक था। खेतों में श्रम, व्यायाम इत्यादि से बाहों की मछलियाँ साफ़ दिख रही थीं, सीने और कंधे मज़बूत, और कमर पतली थी। अपने पति को ऐसे देख कर गौरी का गला सूख गया। जब आदर्श अपनी जांघिया उतार रहा था, तो गौरी का दिल धाड़ धाड़ कर बज रहा था।

‘कैसा होगा इनका छुन्नू!’

जब आदर्श पूरी तरह से निर्वस्त्र हो गया तब गौरी का मन हुआ कि कहीं और देखे.. किसी और तरफ! लेकिन चाह कर भी वो ऐसा न कर सकी। वो सम्मोहित सी आदर्श के शिश्न को निहारने लगी। गौरी के पास किसी भी अन्य तरह की उपमा नहीं थी, आदर्श ले लिंग को देने के लिए। यह एक पुष्ट अंग था – एक सीधे केले के समान। उत्तेजनावश वो लगभग ऊर्ध्व खड़ा हुआ था और उसका सिरा कमरे की छत को निहार रहा था। उसका आकार, लम्बाई और मोटाई.. देख कर गौरी को डर लग गया।

ऐसे आदर्श के अंग को देख कर उसको कहीं न कहीं अपराध बोध सा हुआ, लेकिन वो बेबस थी। उसको इस अंग का उद्देश्य भी मालूम था। और यह भी मालूम था की यह उसके लिए बहुत बड़ा है। इसलिए उसको डर लग रहा था.. लेकिन यह इतना प्यारा सा अंग था कि उसकी दृष्टि वहां से हट ही नहीं पा रही थी। एक जादुई छड़ी के समान आदर्श के लिंग ने गौरी पर मोहिनी डाल दी।

आदर्श वापस बिस्तर पर आया। गौरी धड़कते दिल के साथ होने वाले सम्भोग की प्रत्याशा में लेटी हुई थी। आदर्श ने गौरी की टाँगे फैलाईं। ऐसा करने से गौरी के योनि-ओष्ठ थोड़े से अलग हो गए। सायंकाल की ढलती रौशनी में टाँगों के बीच छुपी योनि चमक रही थी। योनि रस लगातार रिस रहा था – गौरी का शरीर उसके अनजाने में ही अपने प्रथम प्रणय की प्रत्याशा में तैयार हो गया था।

उसने खुद को दोनों टांगों के बीच में स्थापित किया, और अपने शिश्न को उसकी योनि मुख पर व्यवस्थित किया। उंगली की मदद से उसने कुछ जगह बनाई, जिससे गौरी के होंठ उसके लिंग को पकड़ लें, और फिर उसके रस से शिश्नाग्र को सरोबार कर लिया।

गौरी घबरा रही थी, लेकिन फिर भी मुस्कुराई, “आप थोड़ा.. आराम से.... ये.. चोट लग सकती है..” उसने पूरा वाक्य नहीं कहा, लेकिन आदर्श को समझ में आ गया।

वो भी लज्जा से लाल होते हुए बोला, “मैंने कभी नहीं किया..”

गौरी की मुस्कान अभी भी बरकरार थी, “कोई बात नहीं.. आराम से.. मैं आपकी हूँ.. कहीं भागी नहीं जा रही हूँ.. जितना समय लेना हो, लीजिए..”

गौरी की योनि का छेड़ दरअसल छोटा था। शायद सभी कुंवारी लड़कियों का ऐसे ही होता हो। आदर्श जानता था कि उसको दर्द होगा.. लेकिन क्या करे! आज उनका मिलन तो अपरिहार्य था! गौरी को वो किसी भी तरह का दुःख, दर्द देने के ख़याल से ही घृणा करता था, लेकिन आज उसको अपनी बनाना ही था। या उसकी इच्छा भी थी, और इसमें गौरी की रजामंदी भी थी.. इसलिए आज वह स्वार्थी हो गया।

“बहुत आराम से.. ठीक है?” उसने फुसफुसाते हुए कहा।

गौरी ने हामी में सर हिलाया। आदर्श ने गौरी के गर्भ के द्वार में अपना लिंग बैठाया, और सावधानी से धीरे धीरे लिंग को अन्दर की तरफ ठेला। आदर्श के लिंग के गोल और बड़े सिरे ने तुरंत ही गौरी के योनि मुख को फैला दिया। प्रतिक्रिया में गौरी ने एक तेज़ साँस ली और घूँट कर के पी ली। आदर्श रुक गया – अभी तो वो कही गया भी नहीं! जब गौरी ने साँस छोड़ी, तब आदर्श ने पुनः लिंग को ठेला – इस बार थोड़ा और बलपूर्वक। तनाव में आकर गौरी का शरीर अकड़ गया; उसने आदर्श को कांपते हुए आलिंगन में भर लिया। उसके घुटने खुद-ब-खुद ऊपर की तरफ उठ गए, और उसके पैर आदर्स के नितम्बो के गिर्द लिपट गए। इस आसन में गौरी की योनि ने अनचाहे ही आदर्श को रास्ता दे दिया। दरअसल असली अवरोध तो उसकी योनिमुख का छोटा सा द्वार था, जो की खुल गया था। आदर्श अभी भी लिंग को आगे ठेल रहा था, अभी वो कुछ अन्दर चला गया था। लेकिन फिलहाल उसने और आगे बढ़ना रोक लिया, जिससे गौरी को कुछ आराम मिल सके।

“ऊह्ह” गौरी ने गहरी साँस ली, और बस!

आदर्श ने पुनः धक्का लगाया। इस बार उसने गौरी की पीड़ा की परवाह नहीं की। और तुरंत ही उसका लिंग गौरी की योनि के भीतर कई इंच अन्दर तक चला गया। दोनों ही इस बात पर आश्चर्यचकित हो गए। साथ ही साथ गौरी को तीव्र पीड़ा का अनुभव भी हुआ। उसका मुख पीदवश खुला हुआ था, लेकिन कोई आवाज़ नहीं आ रही थी। मानो साँसों ने आना जाना ही बंद कर दिया हो। आदर्श ने देखा तो फ़ौरन उसने अपने लिंग को पीछे खींचा। लगभग तुरंत ही गौरी की साँस वापस आ गईं।

उसकी आँखें आंसुओं से भर गईं। वो रोना चाहती थी, लेकिन रोई नहीं। यह सही समय नहीं था। क्या किससे सुने थे – सब बकवास! अभी तक उसको पीड़ा के अतिरिक्त कुछ नहीं मिला। कोई आनंद नहीं! आदर्श ने अपने चुम्बनों से गौरी के नमकीन आँसुओं को पी लिया। उसके शिश्न का सिरा अभी भी गौरी के अन्दर ही था। जब गौरी पुनः तैयार हो गई, तो आदर्श ने फिर से धक्का लगाया, और लगभग उतना ही अन्दर गया जितना पहले गया था। उसने फिर जल्दी जल्दी चार पांच धक्के लगाए। गौरी को दर्द हुआ, लेकिन फिर भी वो हिम्मत जुटा कर मुस्कुराई। गौरी आदर्श को चाहती थी, और उसका दिल नहीं दुखाना चाहती थी। वैसे भी उसने आदर्श को इतने लम्बे समय तक वैवाहिक सुख से वंचित कर के रखा हुआ था, इस बात की वो क्षति पूर्ती भी करना चाहती थी। उसको मालूम था, कि अभी जो कुछ हो रहा है, उसको रोकना असंभव है।

कुछ ही धक्कों में आदर्श का लिंग आसानी से अन्दर बाहर आने जाने लगा। अब वो गौरी के और भीतर तक जा रहा था, और उसकी योनि का और अधिक प्रसार कर रहा था। गौरी भी आदर्श के प्रहारों का प्रतिरोध नहीं कर रही थी, बल्कि उनको स्वीकार रही थी। आदर्श रह रह कर गौरी को चूमता, आलिंगन में भरता, और धक्के लगाता जाता।

गौरी की पूरी योनि आदर्श के लिंग से भर गई थी। उसने अपने पैर आदर्श की कमर के गिर्द लपेट रखी थी, जिससे आदर्श उसका योनि-भेदन समुचित तरीके से कर पा रहा था। एक बार उसके लिंग के गौरी की योनि के अधोभाग को छू लिया। कैसा अनपेक्षित संवेदन था! आदर्श उसके अन्दर उतना जा चुका था, जितना संभव था! यह बात आदर्श को भी मालूम हुई। उसने रुक कर गौरी को गले से लगा लिया। आदर्श के दिल की हर धड़कन से उसका शिश्न योनि के तल को जैसे बुहार रहा था। एक आश्चर्यजनक.. एक अतुल्य अनुभव!

गौरी भी आदर्श के दिल की धड़कन इस मैथुनिक संयोग से महसूस कर रही थी। दोनों ने बिना कुछ भी कहे सुने, एक दूसरे की आँखों में देर तक देखा। उस क्षण सम्भोग के स्वर्गिक आनंद की एक कोमल सी लौ, गौरी के भीतर संदीप्त हुई।

उसने फिर से धक्के लगाने आरम्भ कर दिए – इस बार कुछ तीव्र गति से। जल्दी ही गौरी के उत्तेजना अपने चरम शिखर पर पहुँच गई... और उस शाम तीसरी बार रति-निष्पत्ति का अनुभव करने लगी। लेकिन यह आनंद पहले दोनों आनंद के जोड़ से भी दो गुणा था! आदर्श ने जब उसकी योनि को रह रह कर अपने लिंग की लम्बाई पर संकुचित होता महसूस किया, वो वह खुद भी कामोन्माद के चरम पर पहुँच गया। महीने भर का संचित उसका वीर्य, गौरी की कोख में प्रस्फोट के रूप में खाली होने लगा।

गौरी महसूस कर रही थी, कि आदर्श भी वही आनंद महसूस कर रहा था जो की वो खुद भी कर रही है। उसके शिश्न के साथ साथ ही उसने अपनी योनि भी संकुचित करी। उसने आदर्श के आठ प्रस्फोट अपने भीतर महसूस किए। तब कहीं जा कर आदर्श ने राहत और आनंद भरी साँस बाहर छोड़ी।

जब उन दोनों की आँखें मिली, तो गौरी आदर्श के चेहरे पर देख सकती थी कि वो बताना चाहता था कि उसको कितना अच्छा लगा! लेकिन उसने खुद को ज़ब्त कर लिया.. बातें कर के ऐसे रोमानी माहौल का कबाड़ा क्यों किया जाय! बजे कुछ कहने के, आदर्श मुस्कुराया, और उसने गौरी का मुख चूम लिया।
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“अरे! आदर्श अभी उठा नहीं?” ठाकुर भूपेन्द्र चिंतातुर हो कर कह रहे थे। उनका बेटा तो सदा ही सूर्योदय से पहले ही उठ जाता है। कभी कभी तो चिड़ियाँ भी नहीं जागतीं, वो तब उठ जाता है। आज क्या हो गया!


लक्ष्मी देवी ने उनकी बात को अनसुना कर दिया। उनको तो अच्छी तरह मालूम था कि ऊपर क्या हो रहा है।

“उसकी तबियत तो ठीक है!” ठाकुर साहब खुद से ही बात कर रहे थे।

“और तो और, बिटिया भी नीचे नहीं आई!” उनकी चिंता बढती जा रही थी। आज लक्ष्मी देवी काम कर रही थीं.. ऐसा एक अर्से के बाद हुआ है.. क्या हुआ होगा बिटिया को!

“मैं जा कर देख कर आता हूँ.. पता नहीं क्या हो गया!”

“ठाकुर साहब.. आज वहां न जाइए..” उन्होंने एक अर्थपूर्ण भाव से यह बात कही।

“अरे क्यों?”

“क्योंकि आप वहां जायेंगे तो उनको बाधा होगी..”

“बाधा होगी..? मगर.. ओह.. ओओओओहह! अच्छा अच्छा!” अब उनको समझ आया!


****
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Heart 
दोनों प्रेमियों ने सोने से पहले दो बार, और सुबह उठने के बाद एक और बार सम्भोग किया। अब उन दोनों को भूख लगने लगी थी। गौरी को याद आया कि खाना इत्यादि भी तो बनाना है.. और सूरज तो काफी ऊपर चढ़ आया दिखता है! वो जल्दी से बिस्तर से उठी, और अपने कपडे पहनने लगी। लेकिन आदर्श ने उसको रोका,


“अम्मा की बात भूल गई? उन्होंने कहा था की वो हम दोनों को नंगा देखना चाहती हैं..”

“लेकिन मैं ऐसे कैसे बाहर निकलूँ?” गौरी ने लजाते हुए कहा। “सब ऐसे देखेंगे मुझे... क्या इज्ज़त रहेगी मेरी?”

“रुको..” आदर्श उठा, और अपने बक्से से एक थैली निकाल लाया।

“ये मैंने तुम्हारे लिए बनवाई थी..”

यह एक सोने की करधनी थी – उसमें छोटे छोटे काले रंग के मोती लगे हुए थे, और एक तरफ गुच्छे जैसा था.. जैसे की बेंदी में होता है। इसी के सेट में पायल और गले में पहनने वाला हार भी था।

“तुमको अच्छा लगा? पहनोगी?”

गौरी मुस्कुराई।

“सिर्फ इन्हें?”

आदर्श ने सर हिला कर हामी भरी।

गौरी फिर से मुस्कुराई।

“ठीक है..”

गौरी ने बड़े प्रेम से अपने पति के दिए उपहार को पहना। आदर्श ने करधनी के बेंदी वाले हिस्से को सामने तक लाया जिससे वो गौरी की योनि का कुछ हिसा ढक सके।

[Image: 60528.jpg]

“एक और बात..” आदर्श ने गौरी के बालों को खोल दिया, जिससे उसके बाल उन्मुक्त हो सकें। “अब हम तैयार हैं..”

गौरी के खुले बालों के मध्य सिन्दूर सुशोभित हो रहा था, हाथों में कंगन और लाल चूड़ियाँ थीं, गले में छोटी काली मोतियों वाला हार / मंगलसूत्र था, जो उसके गौरवशाली स्तनों पर ठहरे हुए थे, और कमर में एक करधनी थी, जो बमुश्किल उसकी योनि को ढक पा रही थी। किसी के सामने नग्न होना वैसे भी मुश्किल काम है, और इस तरह से नग्न होना, कि खुद की प्रदर्शनी लग जाए, एक लगभग असंभव काम है। लेकिन अगर आदर्श उसके बगल खड़ा हो, तो यह सब कुछ मायने नहीं रखता। उसको कोई फर्क नहीं पड़ता। उसका पति उसके साथ है, बस, यह काफी है। गौरी ने एक गहरी साँस ली, मुस्कुराई और गौरान्वित भाव से अपने पति का हाथ पकड़ कर बाहर जाने को तैयार हो गई।

[Image: 20210620-085537.jpg]

दोनों प्रेमी अंततः कमरे से बाहर निकले। 

बाहर निकलते ही उन्होंने वहीँ सामने लक्ष्मी देवी, ठाकुर भूपेन्द्र सिंह, और एक नौकरानी को खड़ा हुआ पाया... वो एक बड़ी सी थाल में कई सारी व्यंजन सामग्री ले कर खड़े हुए थे, और नौकरानी अपने हाथ में उनके लिए कपड़े! ऐसा लग रहा था जैसे वो इन नव-युगल का ही इंतज़ार कर रहे हों!

“आओ बच्चों!” लक्ष्मी देवी ने अपने तमाम जीवन में ऐसा प्यारा, ऐसा सुन्दर युगल नहीं देखा था.. उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “गृहस्थ जीवन में तुम दोनों का स्वागत है!”


* समाप्त *
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Heart 
Thanks for reading this story. 

I am always very fond of this kind of slow seductive story. In reality, a woman needs time to involved in an affair. All women are not sex-starved or whore that they can easily be driven by anyone. 

Most of the cases, there is a very particular and valid reason to involve in any illicit relationship. Sometimes they forced by other persons, sometimes they forced by the situation which arises unexpectedly in front of her.

I read a lot of stories which look very unrealistic as in those, a married woman shows like a characterless slut, but the reality is different. So, I request to all my fellow authors to write more slow seductive real stories regarding married women.


Heart
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Heart 
भाई बहन का पवित्र रिश्ता 
#1

मेरा नाम रवि है और मैं 21 साल का एक युवक हूँ, मेरी दीदी का नाम संगीता है। उसकी उमर क़रीब 26 साल है। दीदी मुझसे 5 साल बड़ी हैं। हम लोग एक मिडल-कलास फ़ैमिली है और एक छोटे से फ्लैट में मुंबई में रहते हैं।





हमारा घर में एक छोटा सा हाल, डायनिंग रूम दो बेडरूम और एक किचन है। बाथरूम एक ही था और उसको सभी लोग इस्तेमाल करते थे। हमारे पिताजी और माँ दोनों नौकरी करते हैं।





दीदी मुझको रवि कह कर पुकारती हैं और मैं उनको दीदी कह कर पुकारता हूँ।





शुरू शुरू में मुझे सेक्स के बारे कुछ नहीं मालूम था क्योंकि मैं हाई स्कूल में पढ़ता था और हमारे बिल्डिंग में भी अच्छी मेरे उमर की कोई लड़की नहीं थी। इसलिए मैंने अभी तक सेक्स का मज़ा नहीं लिया था और ना ही मैंने अब तक कोई नंगी लड़की देखी थी। हाँ मैं कभी कभी पॉर्न मैगजीन में नंगी तस्वीर देख लिया करता था।





जब मुझे लड़कियों के तरफ़ और सेक्स के लिए इंटेरेस्ट होना शुरू हुआ। मेरे नज़रों के आसपास अगर कोई लड़की थी तो वो संगीता दीदी ही थी। दीदी की लंबाई क़रीब क़रीब मेरे तरह ही थी, उनका रंग बहुत गोरा था और उनका चेहरा और बोडी स्ट्रक्चर हिंदी सिनेमा के जीनत अमान जैसा था। हाँ उनकी चूचियाँ जीनत अमान जैसे बड़ी बड़ी नहीं थी।





मुझे अभी तक याद है कि मैंने अपना पहला मुठ मेरी दीदी के लिए ही मारा था। एक सन्डे सुबह सुबह जैसे ही मेरी दीदी बाथरूम से निकली मैं बाथरूम में घुस गया। मैंने बाथरूम का दरवाज़ा बंद किया और अपने कपड़े खोलने शुरू किए। मुझे जोरो की पेशाब लगी थी। पेशाब करने के बाद मैं अपने लंड से खेलने लगा।





एकाएक मेरी नज़र बाथरूम के किनारे दीदी के उतरे हुए कपड़ों पर पड़ी। वहाँ पर दीदी अपनी नाइटगाऊन उतार कर छोड़ गई थी। जैसे ही मैंने दीदी का नाइटगाऊन उठाया तो देखा कि नाइटगाऊन के नीचे दीदी की ब्रा पड़ी थी।





जैसे ही मैंने दीदी की काले रंग की ब्रा उठाई तो मेरा लंड अपने आप खड़ा होने लगा। मैंने दीदी का नाइटगाऊन उठाया तो उसमें से दीदी के नीले रंग का पैंटी भी नीचे गिर गई। मैंने पैंटी भी उठा ली। अब मेरे एक हाथ में दीदी की पैंटी थी और दूसरे हाथ में दीदी की ब्रा थी।





ओह भगवान ! दीदी के अन्दर वाले कपड़े चूमने से ही कितना मज़ा आ रहा है यह वही ब्रा है जिसमें कुछ देर पहले दीदी की चूचियाँ जकड़ी हुई और यह वही पैंटी हैं जो कुछ देर पहले तक दीदी की चूत से लिपटी थी। यह सोच सोच करके मैं हैरान हो रहा था और अंदर ही अंदर गरमा रहा था। मैं सोच नहीं पा रहा था कि मैं दीदी की ब्रा और पैंटी को लेकर क्या करूँ।





मैंने दीदी की ब्रा और पैँटी को लेकर हर तरफ़ से छुआ, सूंघा, चाटा और पता नहीं क्या क्या किया। मैंने उन कपड़ों को अपने लंड पर मला, ब्रा को अपने छाती पर रखा। मैं अपने खड़े लंड के ऊपर दीदी की पैंटी को पहना और वो लंड के ऊपर तना हुआ था। फिर बाद में मैं दीदी की नाइटगाऊन को बाथरूम के दीवार के पास एक हैंगर पर टांग दिया। फिर कपड़े टांगने वाला पिन लेकर ब्रा को नाइटगाऊन के ऊपरी भाग में फँसा दिया और पैँटी को नाइटगाऊन के कमर के पास फँसा दिया।





अब ऐसा लग रहा था की दीदी बाथरूम में दीवार के सहारे ख़ड़ी हैं और मुझे अपनी ब्रा और पैँटी दिखा रही हैं। मैं झट जाकर दीदी के नाइटगाऊन से चिपक गया और उनकी ब्रा को चूसने लगा और मन ही मन सोचने लगा कि मैं दीदी की चुची चूस रहा हूँ। मैं अपना लंड को दीदी की पैँटी पर रगड़ने लगा और सोचने लगा कि मैं दीदी को चोद रहा हूँ।





मैं इतना गरम हो गया था कि मेरा लंड फूल कर पूरा का पूरा टनटना गया था और थोड़ी देर के बाद मेरे लंड ने पानी छोड़ दिया और मैं झड़ गया। मेरे लंड ने पहली बार अपना पानी छोड़ा था और मेरे पानी से दीदी की पैंटी और नाइटगाऊन भीग गया था। मुझे पता नहीं कि मेरे लंड ने कितना वीरज़ निकाला था लेकिन जो कुछ निकला था वो मेरे दीदी के नाम पर निकला था।





मेरा पहले पहले बार झड़ना इतना तेज़ था कि मेरे पैर जवाब दे गए, मैं पैरों पर ख़ड़ा नहीं हो पा रहा था और मैं चुपचाप बाथरूम के फ़र्श पर बैठ गया। थोड़ी देर के बाद मुझे होश आया तो मैं उठ कर नहाने लगा। शोवर के नीचे नहा कर मुझे कुछ ताज़गी महसूस हुई और मैं फ़्रेश हो गया। नहाने बाद मैं दीवार से दीदी की नाइटगाऊन, ब्रा और पैंटी उतारा और उसमें से अपना वीरज़ धोकर साफ़ किया और नीचे रख दिया।





उस दिन के बाद से मेरा यह मुठ मारने का तरीक़ा मेरा सबसे फ़ेवरेट हो गया। हाँ, मुझे इस तरह से मैं मारने का मौक़ा सिर्फ़ इतवार को ही मिलता था क्योंकि इतवार के दिन ही मैं दीदी के नहाने के बाद नहाता था। इतवार के दिन चुपचाप अपने बिस्तर पर पड़ा देखा करता था कि कब दीदी बाथरूम में घुसे और दीदी के बाथरूम में घुसते ही मैं उठ जाया करता था और जब दीदी बाथरूम से निकलती तो मैं बाथरूम में घुस जाया करता था।





मेरे मां और पिताजी सुबह सुबह उठ जाया करते थे और जब मैं उठता था तो मां रसोई के नाश्ता बनाती होती और पिताजी बाहर बाल्कोनी में बैठ कर अख़बार पढ़ते होते या बाज़ार गये होते कुछ ना कुछ समान ख़रीदने।





इतवार को छोड़ कर मैं जब भी मैं मारता तो तब यही सोचता कि मैं अपना लंड दीदी की रस भरी चूत में पेल रहा हूँ। शुरू शुरू में मैं यह सोचता था कि दीदी जब नंगी होंगी तो कैसा दिखेंगी? फिर मैं यह सोचने लगा कि दीदी की चूत चोदने में कैसा लगेगा। मैं कभी कभी सपने ने दीदी को नंगी करके चोदता था और जब मेरी आँख खुलती तो मेरा शॉर्ट भीगा हुआ होता था।





मैंने कभी भी अपना सोच और अपना सपने के बारे में किसी को भी नहीं बताया था और न ही दीदी को भी इसके बारे में जानने दिया.





मैं अपनी स्कूल की पढाई ख़त्म करके कालेज जाने लगा। कॉलेज में मेरी कुछ गर्ल फ़रेंड भी हो गई। उन गर्ल फ़रेंड में से मैंने दो चार के साथ सेक्स का मज़ा भी लिया। मैं जब कोई गर्ल फ़रेंड के साथ चुदाई करता तो मैं उसको अपने दीदी के साथ कम्पेयर करता और मुझे कोई भी गर्ल फ़रेंड दीदी के बराबर नहीं लगती।





मैं बार बार यह कोशिश करता था मेरा दिमाग़ दीदी पर से हट जाए, लेकिन मेरा दिमाग़ घूम फिर कर दीदी पर ही आ जाता। मैं हमेशा 24 घंटे दीदी के बारे में और उसको चोदने के बारे में ही सोचता रहता।





मैं जब भी घर पर होता तो दीदी तो ही देखता रहता, लेकिन इसकी जानकारी दीदी की नहीं थी। दीदी जब भी अपने कपड़े बदलती थी या मां के साथ घर के काम में हाथ बटाती थी तो मैं चुपके चुपके उन्हे देखा करता था और कभी कभी मुझे सुडोल चुची देखने को मिल जाती (ब्लाउज़ के ऊपर से) थी।





दीदी के साथ अपने छोटे से घर में रहने से मुझे कभी कभी बहुत फ़ायदा हुआ करता था। कभी मेरा हाथ उनके शरीर से टकरा जाता था। मैं दीदी के दो भरे भरे चुची और गोल गोल चूतड़ों को छूने के लिए मरा जा रहा था.





मेरा सबसे अच्छा पास टाइम था अपने बालकोनी में खड़े हो कर सड़क पर देखना और जब दीदी पास होती तो धीरे धीरे उनकी चुचियों को छूना। हमारे घर की बाल्कोनी कुछ ऐसी थी की उसकी लम्बाई घर के सामने गली के बराबर में था और उसकी संकरी सी चौड़ाई के सहारे खड़े हो कर हम सड़क देख सकते थे। मैं जब भी बालकोनी पर खड़े होकर सड़क को देखता तो अपने हाथों को अपने सीने पर मोड़ कर बालकोनी की रेल्लिंग के सहारे ख़ड़ा रहता था।





कभी कभी दीदी आती तो मैं थोड़ा हट कर दीदी के लिए जगह बना देता और दीदी आकर अपने बगल ख़ड़ी हो जाती। मैं ऐसे घूम कर ख़ड़ा होता की दीदी को बिलकुल सट कर खड़ा होना पड़ता। दीदी की भारी भारी चुन्ची मेरे सीने से सट जाता था। मेरे हाथों की उंगलियाँ, जो की बाल्कोनी के रेल्लिंग के सहारे रहती वे दीदी के चूचियों से छु जाती थी।





मैं अपने उंगलियों को धीरे धीरे दीदी की चूचियों पर हल्के हल्के चलत था और दीदी को यह बात नहीं मालूम था। मैं उँगलियों से दीदी की चुन्ची को छू कर देखा की उनकी चूची कितना नरम और मुआयम है लेकिन फिर भी तनी तनी रहा करती हैं कभी कभी मैं दीदी के चूतड़ों को भी धीरे धीरे अपने हाथों से छूता था। मैं हमेशा ही दीदी की सेक्सी शरीर को इसी तरह से छू्ता था.





मैं समझता था की दीदी मेरे हाक्तों और मेरे इरादो से अनजान हैं दीदी इस बात का पता भी नहीं था की उनका छोटा भाई उनके नंगे शरीर को चाहता है और उनकी नंगी शरीर से खेलना चाहता है लेकिन मैं ग़लत था। फिर एक दीदी ने मुझे पकड़ लिया।





उस दिन दीदी किचन में जा कर अपने कपरे बदल रही थी। हाल और किचन के बीच का पर्दा थोड़ा खुला हुआ था। दीदी दूसरी तरफ़ देख रही थी और अपनी कुर्ता उतार रही थी और उसकी ब्रा में छुपा हुआ चुची मेरे नज़रों के सामने था। फ़िर रोज़ के तरह मैं टी वी देख रहा था और दीदी को भी कंखिओं से देख रहा था।





दीदी ने तब एकाएक सामने वाले दीवार पर टंगा शीशे को देखा और मुझे आँखे फ़िरा फ़िरा कर घूरते हुए पाया। दीदी ने देखा की मैं उनकी चूचियों को घूर रहा हूँ। फिर एकाएक मेरे और दीदी की आँखे मिरर में टकरा गयी मैं शर्मा गया और अपने आँखे टी वी तरफ़ कर लिया।





मेरा दिल क्या धड़क रहा था। मैं समझ गया की दीदी जान गयी हैं की मैं उनकी चूचियों को घूर रहा था। अब दीदी क्या करेंगी? क्या दीदी मां और पिताजी को बता देंगी? क्या दीदी मुझसे नाराज़ होंगी? इसी तरह से हज़ारों प्रश्ना मेरे दिमाग़ में घूम रहा था। मैं दीदी के तरफ़ फिर से देखने का साहस जुटा नहीं पाया।





उस दिन सारा दिन और उसके बाद 2-3 दीनो तक मैं दीदी से दूर रहा, उनके तरफ़ नहीं देखा। इन 2-3 दीनो में कुछ नहीं हुआ। मैं ख़ुश हो गया और दीदी को फिर से घुरना चालू कर दिया। दीदी में मुझे 2-3 बार फिर घुरते हुए पकड़ लिया, लेकिन फिर भी कुछ नहीं बोली। मैं समझ गया की दीदी को मालूम हो चुका है मैं क्या चाहता हूँ ।





ख़ैर जब तक दीदी को कोई एतराज़ नहीं तो मुझे क्या लेना देना और मैं मज़े से दीदी को घुरने लगा.





एक दिन मैं और दीदी अपने घर के बालकोनी में पहले जैसे खड़े थे। दीदी मेरे हाथों से सट कर ख़ड़ी थी और मैं अपने उँगलियों को दीदी के चूची पर हल्के हल्के चला रहा था।





मुझे लगा की दीदी को शायद यह बात नहीं मालूम की मैं उनकी चूचियों पर अपनी उँगलियों को चला रहा हूँ। मुझे इस लिए लगा क्योंकी दीदी मुझसे फिर भी सट कर ख़ड़ी थी। लेकिन मैं यह तो समझ रहा थी क्योंकी दीदी ने पहले भी नहीं टोका था, तो अब भी कुछ नहीं बोलेंगी और मैं आराम से दीदी की चूचियों को छू सकता हूँ.





हमलोग अपने बालकोनी में खड़े थे और आपस में बातें कर रहे थे, हमलोग कालेज और स्पोर्ट्स के बारे में बाते कर रहे थे। हमारा बालकोनी के सामने एक गली था तो हमलोगों की बालकोनी में कुछ अंधेरा था.





बाते करते करते दीदी मेरे उँगलियों को, जो उनकी चूची पर घूम रहा था, अपने हाथों से पकड़कर अपने चूची से हटा दिया। दीदी को अपने चूची पर मेरे उंगली का एहसास हो गया था और वो थोड़ी देर के लिए बात करना बंद कर दिया और उनकी शरीर कुछ अकड़ गयी लेकिन, दीदी अपने जगह से हिली नहीं और मेरे हाथो से सट कर खड़ी रही।





दीदी ने मुझे से कुछ नहीं बोली तो मेरा हिम्मत बढ गया और मैं अपना पूरा का पूरा पंजा दीदी की एक मुलायम और गोल गोल चूची पर रख दिया।





मैं बहुत डर रहा था। पता नहीं दीदी क्या बोलेंगी? मेरा पूरा का पूरा शरीर कांप रहा था। लेकिन दीदी कुछ नहीं बोली। दीदी सिर्फ़ एक बार मुझे देखी और फिर सड़क पर देखने लगी। मैं भी दीदी की तरफ़ डर के मारे नहीं देख रहा था। मैं भी सड़क पर देख रहा था और अपना हाथ से दीदी की एक चूची को धीरे धीरे सहला रहा था। मैं पहले धीरे धीरे दीदी की एक चूची को सहला रहा था और फिर थोड़ी देर के बाद दीदी की एक मुलायम गोल गोल, नरम लेकिन तनी चूची को अपने हाथ से ज़ोर ज़ोर से मसलने लगा। दीदी की चूची काफ़ी बड़ी थे और मेरे पंजे में नहीं समा रही थी।





थोड़ी देर बाद मुझे दीदी की कुर्ता और ब्रा के उपर से लगा की चूची के निपपले तन गयी और मैं समझ गया की मेरे चूची मसलने से दीदी गरमा गयी हैं दीदी की कुर्ता और ब्रा के कपड़े बहुत ही महीन और मुलायम थी और उनके ऊपेर से मुझे दीदी की निपपले तनने के बाद दीदी की चूची छूने से मुझे जैसे स्वर्ग मिल गया था।





किसी जवान लड़की के चूची छूने का मेरा यह पहला अवसर था। मुझे पता ही नहीं चला की मैं कब तक दीदी की चूचियों को मसलता रहा। और दीदी ने भी मुझे एक बार के लिए मना नहीं किया। दीदी चुपचाप ख़ड़ी हो कर मुझसे अपना चूची मसलवाती रही।





दीदी की चूची मसलते मसलते मेरा लंड धीरे धीरे ख़ड़ा होने लगा था। मुझे बहुत मज़ा आ रहा था लेकिन एकाएक मां की आवाज़ सुनाई दी। मां की आवाज़ सुनते ही दीदी ने धीरे से मेरा हाथ अपने चूची से हटा दिया और मां के पास चली गयी उस रात मैं सो नहीं पाया, मैं सारी रात दीदी की मुलायम मुलायम चूची के बारे में सोचता रहा.





दूसरे दिन शाम को मैं रोज़ की तरह अपने बालकोनी में खड़ा था। थोड़ी देर के बाद दीदी बालकोनी में आई और मेरे बगल में ख़ड़ी हो गयी मैं 2-3 मिनट तक चुपचाप ख़ड़ा दीदी की तरफ़ देखता रहा। दीदी ने मेरे तरफ़ देखी। मैं धीरे से मुस्कुरा दिया, लेकिन दीदी नहीं मुस्कुराई और चुपचाप सड़क पर देखने लगी।





मैं दीदी से धीरे से बोला- छूना है, मैं साफ़ साफ़ दीदी से कुछ नहीं कह पा रहा था। और पास आ दीदी ने पूछा – क्या छूना चाहते हो रवि? साफ़ साफ़ दीदी ने फिर मुझसे पूछी।





तब मैं धीरे से दीदी से बोला, तुम्हारी दूध छूना दीदी ने तब मुझसे तपाक से बोली, क्या छूना है साफ़ साफ़ मैं तब दीदी से मुस्कुरा कर बोला, तुम्हारी चूची छूना है उनको मसलना है। अभी मां आ सकती है रवि,

दीदी ने तब मुस्कुरा कर बोली।





मैं भी तब मुस्कुरा कर अपनी दीदी से बोला, जब मां आएगी हमें पता चल जायेगा मेरे बातों को सुन कर दीदी कुछ नहीं बोली और चुपचाप नज़दीक आ कर ख़ड़ी हो गयी, लेकिन उनकी चूची कल की तरह मेरे हाथों से नहीं छू रहा था।





मैं समझ गया की दीदी आज मेरे से सट कर ख़ड़ी होने से कुछ शर्मा रही है अबतक दीदी अनजाने में मुझसे सट कर ख़ड़ी होती थी। लेकिन आज जान बुझ कर मुझसे सात कर ख़ड़ी होने से वो शर्मा रही है क्योंकी आज दीदी को मालूम था की सट कर ख़ड़ी होने से क्या होगा।





जैसे दीदी पास आ गयी और अपने हाथों से दीदी को और पास खीच लिया। अब दीदी की चूची मेरे हाथों को कल की तरह छू रही थी। मैंने अपना हाथ दीदी की चूची पर टिका दिया। दीदी के चूची छूने के साथ ही मैं मानो स्वर्ग पर पहुँच गया। मैं दीदी की चूची को पहले धीरे धीरे छुआ, फिर उन्हे कस कस कर मसला। कल की तरह, आज भी दीदी का कुर्ता और उसके नीचे ब्रा बहुत महीन कपड़े का था, और उनमे से मुझे दीदी की निपपले तन कर खड़े होना मालूम चल रहा था। मैं तब अपने एक उंगली और अंगूठे से दीदी की निपपले को ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा।





मैं जितने बार दीदी की निपपले को दबा रहा था, उतने बार दीदी कसमसा रही थी और दीदी का मुँह शरम के मारे लाल हो रहा था। तब दीदी ने मुझसे धीरे से बोली, रवि धीरे दबा, लगता है मैं तब धीरे धीरे करने लगा.





मैं और दीदी ऐसे ही फाल्तू बातें कर रहे थे और देखने वाले को एही दिखता की मैं और दीदी कुछ गंभीर बातों पर बहस कर रहे रथे। लेकिन असल में मैं दीदी की चुचियोंको अपने हाथों से कभी धीरे धीरे और कभी ज़ोर ज़ोर से मसल रहा था। थोड़ी देर मां ने दीदी को बुला लिया और दीदी चली गयी ऐसे ही 2-3 दिन तक चलता रहा।





मैं रोज़ दीदी की सिर्फ़ एक चूची को मसल पाता था। लेकिन असल में मैं दीदी को दोनो चुचियों को अपने दोनो हाथों से पाकर कर मसलना चाहता था। लेकिन बालकोनी में खड़े हो कर यह मुमकिन नहीं था। मैं दो दिन तक इसके बारे में सोचता रहा.





एक दिन शाम को मैं हाल में बैठ कर टी वी देख रहा था। मां और दीदी किचन में डिनर की तैयारी कर रही थी। कुछ देर के बाद दीदी काम ख़तम करके हाल में आ कर बिस्तर पर बैठ गयी दीदी ने थॉरी देर तक टी वी देखी और फिर अख़बार उठा कर पढने लगी। दीदी बिस्तर पर पालथी मार कर बैठी थी और अख़बार अपने सामने उठा कर पढ रही थी। मेरा पैर दीदी को छू रहा था। मैंने अपना पैरों को और थोड़ा सा आगे खिसका दिया और और अब मेरा पैर दीदी की जांघो को छू रहा था।





मैं दीदी की पीठ को देख रहा था। दीदी आज एक काले रंग का झीना टी शर्ट पहने हुई थी और मुझे दीदी की काले रंग का ब्रा भी दिख रहा था। मैं धीरे से अपना एक हाथ दीदी की पीठ पर रखा और टी शर्ट के उपर से दीदी की पीठ पर चलाने लगा। जैसे मेरा हाथ दीदी की पीठ को छुआ दीदी की शरीर अकड़ गया।





दीदी ने तब दबी जवान से मुझसे पूछी, यह तुम क्या कर रहे हो तुम पागल तो नहीं हो गये मां अभी हम दोनो तो किचन से देख लेगी”, दीदी ने दबी जवान से फिर मुझसे बोली। “मा कैसे देख लेगी?” मैंने दीदी से कहा। “क्या मतलब है तुम्हारा? दीदी ने पूछी। “मेरा मतलब यह है की तुम्हारे सामने अख़बार खुली हुई है अगर मां हमारी तरफ़ देखेगी तो उनको अख़बार दिखलाई देगी.” मैंने दीदी से धीरे से कहा। “तू बहुत स्मार्ट और शैतान है दीदी ने धीरे से मुझसे बोली.




फिर दीदी चुप हो गयी और अपने सामने अख़बार को फैला कर अख़बार पढने लगी। मैं भी चुपचाप अपना हाथ दीदी के दाहिने बगल के ऊपेर नीचे किया और फिर थोड़ा सा झुक कर मैं अपना हाथ दीदी की दाहिने चूची पर रख दिया। जैसे ही मैं अपना हाथ दीदी के दाहिने चूची पर रखा दीदी कांप गयी मैं भी तब इत्मिनान से दीदी की दाहिने वाली चूची अपने हाथ से मसलने लगा।
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#2


थोड़ी देर दाहिना चूची मसलने के बाद मैं अपना दूसरा हाथ से दीदी बाईं तरफ़ वाली चूची पाकर लिया और दोनो हाथों से दीदी की दोनो चूचियों को एक साथ मसलने लगा। दीदी कुछ नहीं बोली और वो चुप चाप अपने सामने अख़बार फैलाए अख़बार पढ्ती रही। मैं दीदी की टी शर्ट को पीछे से उठाने लगा। दीदी की टी शर्ट दीदी के चूतड़ों के नीचे दबी थी और इसलिए वो ऊपेर नहीं उठ रही थी। मैं ज़ोर लगाया लेकिन कोई फ़ैदा नहीं हुआ। दीदी को मेरे दिमाग़ की बात पता चल गया। दीदी झुक कर के अपना चूतड़ को उठा दिया और मैंने उनका टी शर्ट धीरे से उठा दिया। अब मैं फिर से दीदी के पीठ पर अपना ऊपेर नीचे घूमना शुरू कर दिया और फिर अपना हाथ टी शर्ट के अंदर कर दिया। वो! क्या चिकना पीठ था दीदी का।


मैं धीरे धीरे दीदी की पीठ पर से उनका टी शर्ट पूरा का पूरा उठ दिया और दीदी की पीठ नंगी कर दिया। अब अपने हाथ को दीदी की पीठ पर ब्रा के ऊपेर घूमना शुरू किया। जैसे ही मैंने ब्रा को छुआ दीदी कांपने लगी।


फिर मैं धीरे से अपने हाथ को ब्रा के सहारे सहारे बगल के नीचे से आगे की तरफ़ बढा दिया। फिर मैं दीदी की दोनो चुचियों को अपने हाथ में पकड़ लिया और ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा। दीदी की निपपले इस समय तनी तनी थी और मुझे उसे अपने उँगलेओं से दबाने में मज़ा आ रहा था। मैं तब आराम से दीदी की दोनो चूचियों को अपने हाथों से दबाने लगा और कभी कभी निपपल खिचने लगा.


मा अभी भी किचन में खाना पका रही थी। हम लोगों को मां साफ़ साफ़ किचन में काम करते दिखलाई दे रही थी। मैं यह सोच सोच कर खुश हो रहा की दीदी कैसे मुझे अपनी चुचियों से खेलने दे रही है और वो भी तब जब मां घर में मौजूद हैं। मैं तब अपना एक हाथ फिर से दीदी के पीठ पर ब्रा के हूक तक ले आया और धीरे धीरे दीदी की ब्रा की हूक को खोलने लगा।


दीदी की ब्रा बहुत टाईट थी और इसलिए ब्रा का हूक आसानी से नहीं खुल रहा था। लेकिन जब तक दीदी को यह पता चलता मैं उनकी ब्रा की हूक खोल रहा हूँ, ब्रा की हूक खुल गया और ब्रा की स्ट्रप उनकी बगल तक पहुँच गया।


दीदी अपना सर घुमा कर मुझसे कुछ कहने वाली थी की मां किचन में से हाल में आ गयी मैं जल्दी से अपना हाथ खींच कर दीदी की टी शर्ट नीचे कर दिया और हाथ से टी शर्ट को ठीक कर दिया। मां हल में आ कर कुछ ले रही थी और दीदी से बातें कर रही थी। दीदी भी बिना सर उठाए अपनी नज़र अख़बार पर रखते हुए मां से बाते कर रही थी। मां को हमारे कारनामो का पता नहीं चला और फिर से किचन में चली गयी


जब मां चली गयी तो दीदी ने दबी ज़बान से मुझसे बोली, सोनू, मेरी ब्रा की हूक को लगा “क्या? मैं यह हूक नहीं लगा पाउंगा,” मैं दीदी से बोला


“क्यों, तू हूक खोल सकता है और लगा नहीं सकता? दीदी मुझे झिड़कते हुए बोली। “नही, यह बात नहीं है दीदी। तुम्हारा ब्रा बहुत टाईट है !” मैं फिर दीदी से कहा।


दीदी अख़बार पढते हुए बोली, मुझे कुछ नहीं पता, तुमने ब्रा खोला है और अब तुम ही इसे लगाओगे.” दीदी नाराज़ होती बोली।


“लेकिन दीदी, ब्रा की हूक को तुम भी तो लगा सकती हो?” मैं दीदी से पूछा। ” बुधू, मैं नहीं लगा सकता, मुझे हूक लगाने के लिए अपने हाथ पीछे करने पड़ेंगे और मां देख लेंगी तो उन्हे पता चल जाएगा की हम लोग क्या कर रहे थी, दीदी मुझसे बोली.


मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था की मैं क्या करूँ। मैं अपना हाथ दीदी के टी शर्ट नीचे से दोनो बगल से बढा दिया और ब्रा के स्ट्रप को खीचने लगा। जब स्ट्रप थोड़ा आगे आया तो मैंने हूक लगाने की कोशिश करने लगा। लेकिन ब्रा बहुत ही टाईट था और मुझसे हूक नहीं लग रहा था। मैं बार बार कोशिश कर रहा था और बार बार मां की तरफ़ देख रहा था।


मां ने रात का खाना क़रीब क़रीब पका लिया था और वो कभी भी किचन से आ सकती थी। दीदी मुझसे बोली, यह अख़बार पकड़। अब मुझे ही ब्रा के स्ट्रप को लगाना परेगा.” मैं बगल से हाथ निकल कर दीदी के सामने अख़बार पाकर लिया और दीदी अपनी हाथ पीछे करके ब्रा की हूक को लगाने लगी.


मैं पीछे से ब्रा का हूक लगाना देख रहा था। ब्रा इतनी टाईट थी की दीदी को भी हूक लगाने में दिक्कत हो रही थी। आख़िर कर दीदी ने अपनी ब्रा की हूक को लगा लिया। जैसे ही दीदी ने ब्रा की हूक लगा कर अपने हाथ सामने किया मां कमरे में फिर से आ गयी मां बिस्तर पर बैठ कर दीदी से बातें करने लगी। मैं उठ कर टोइलेट की तरफ़ चल दिया, क्योंकी मेरा लंड बहुत गरम हो चुका था और मुझे उसे ठंडा करना था.


दूसरे दिन जब मैं और दीदी बालकोनी पर खड़े थे तो दीदी मुझसे बोली, हम कल रत क़रीब क़रीब पकड़ लिए गये थे। मुझे बहुत शरम आ रही मुझे पता है और मैं कल रात की बात से शर्मिंदा हूँ। तुम्हारी ब्रा इतना टाईट थी की मुझसे उसकी हूक नहीं लगा” मैंने दीदी से कहा।


दीदी तब मुझसे बोली, मुझे भी बहुत दिक्कत हो रही थी और मुझे अपने हाथ पीछे करके ब्रा की स्ट्रप लगाने में बहुत शरम आ रही दीदी, तुम अपनी ब्रा रोज़ कैसे लगती मैंने दीदी से धीरे से पूछा। दीदी बोली, हूमलोग फिर दीदी समझ गयी की मैं दीदी से मज़ाक कर रहा हूँ तब बोली, तू बाद में अपने आप समझ जाएगा.


फिर मैंने दीदी से धीरे से कहा, मैं तुमसे एक बात कहूं? हाँ -दीदी तपाक से बोली.


“दीदी तुम सामने हूक वाले ब्रा क्यों नहीं पहनती, मैंने दीदी से पूछा। दीदी तब मुस्कुरा कर बोली, सामने हूक वाले ब्रा बहुत महंगी है। मैं तपाक से दीदी से कहा, कोइ बात नही। तुम पैसे के लिए मत घबराओ, मैं तुम्हे पैसे दे दूंगा।


मेरे बातों को सुनकर दीदी मुस्कुराते हुए बोली, तेरे पास इतने सारे पैसे हैं चल मुझे एक 100 का नोट दे। मैं भी अपना पर्स निकाल कर दीदी से बोला, तुम मुझसे 100 का नोट ले लो दीदी मेरे हाथ में 100 का नोट देख कर बोली, नही, मुझे रुपया नहीं चाहिए। मैं तो यूँही ही मज़ाक कर रही “लेकिन मैं मज़ाक नहीं कर रहा हूँ। दीदी तुम ना मत करो और यह रुपये तुम मुझसे ले और मैं ज़बरदस्ती दीदी के हाथ में वो 100 का नोट थमा दिया।


दीदी कुछ देर तक सोचती रही और वो नोट ले लिया और बोली, मैं तुम्हे उदास नहीं देख सकती और मैं यह रुपया ले रही हूँ। लेकिन याद रखना सिर्फ़ इस बार ही रुपये ले रही हूँ। मैं भी दीदी से बोला, सिर्फ़ काले रंग की ब्रा ख़रीदना। मुझे काले रंग की ब्रा बहुत पसंद है और एक बात याद रखना, काले रंग के ब्रा के साथ काले रंग की पैँटी भी ख़रीदना दीदी। दीदी शर्मा गयी और मुझे मारने के लिए दौड़ी लेकिन मैं अंदर भाग गया.


अगले दिन शाम को मैं दीदी को अपने किसी सहेली के साथ फ़ोन पर बातें करते हुए सुना। मैं सुना की दीदी अपने सहेली को मार्केटिंग करने के लिए साथ चलने के लिए बोल रही है।


मैं दीदी को अकेला पा कर बोला, मैं भी तुम्हारे साथ मार्केटिंग करने के लिए जाना चाहता हूँ। क्या मैं तुम्हारे साथ जा सकता हूं दीदी कुछ सोचती रही और फिर बोली, सोनू, मैं अपनी सहेली से बात कर चुकी हूँ और वो शाम को घर पर आ रही है और फिर मैंने मां से भी अभी नहीं कही है की मैं शोपिन्ग के लिए जा रही हूं।


मैं दीदी से कहा, तुम जाकर मां से बोलो कि तुम मेरे साथ मार्केट जा रही हो और देखना मां तुम्हे जाने देंगी। फिर हम लोग बाहर से तुम्हारी सहेली को फ़ोने कर देंगे की मार्केटिंग का प्रोग्राम कँसेल हो गया है और उसे आने की ज़रूरत नहीं है ठीक है ना, “हाँ, यह बात मुझे भी ठीक लगती है मैं जा कर मां से बात करती हूं और यह कह कर दीदी मां से बात करने अंदर चली गयी मां ने तुरंत दीदी को मेरे साथ मार्केट जाने के लिए हाँ कह दी.


उस दिन कपड़े की मार्केट में बहुत भीड़ थी और मैं ठीक दीदी के पीछे ख़ड़ा हुआ था और दीदी के चुतड़ मेरे जांघों से टकरा रहा था। मैं दीदी के पीछे चल रहा था जिससे की दीदी को कोई धक्का ना मार दे। हम जब भी कोई फूटपाथ के दुकान में खड़े हो कर कपड़े देखते तो दी मुझसे चिपक कर ख़ड़ी होती और उनकी चूची और जांघे मुझसे छू रहा होता। अगर दीदी कोई दुकान पर कपड़े देखती तो मैं भी उनसे सट कर ख़ड़ा होता और अपना लंड कपड़ों के ऊपर से उनके चुतड़ से भिड़ा देता और कभी कभी मैं उनके चूतड़ों को अपने हाथों से सहला देता। हम दोनो ऐसा कर रहे थे और बहाना मार्केट में भीड़ का था। मुझे लगा कि मेरे इन सब हरकतों दीदी कुछ समझ नहीं पा रही थी क्योंकि मार्केट में बहुत भीड़ थी.


मैंने एक जीन्स का पैंट और टी-शर्ट खरीदा और दीदी ने एक गुलाबी रंग की पंजाबी ड्रेस, एक गर्मी के लिए स्कर्ट और टॉप और 2-3 टी-शर्ट खरीदी। हम लोग मार्केट में और थोड़ी तक घूमते रहे। अब क़रीब 7.30 बज गए थे।


दीदी ने मुझे सारे शॉपिंग बैग थमा दिए और बोली- आगे जा कर मेरा इंतज़ार करो, मैं अभी आती हूँ।


वो एक दुकान में जा कर खड़ी हो गई। मैंने दुकान को देखा, वो महिलाओं के अंडरगारमेंट की दुकान थी। मैं मुस्कुरा कर आगे बढ़ गया।


मैं देखा कि दीदी का चेहरा शर्म के मारे लाल हो चुका है, और वो मेरी तरफ़ मुस्कुरा कर देखते हुए दुकानदार से बातें करने लगी।


कुछ देर के बाद दीदी दुकान पर से चल कर मेरे पास आई। दीदी के हाथ में एक बैग था।


मैं दीदी को देख कर मुस्कुरा दिया और कुछ बोलने ही वाला था कि दीदी बोली- अभी कुछ मत बोल और चुपचाप चल।


हम लोग चुपचाप चल रहे थे। मैं अभी घर नहीं जाना चाहता था और आज मैं दीदी के साथ अकेला था और मैं दीदी के साथ और कुछ समय बिताने के लिए बेचैन था।


मैंने दीदी से बोला- चलो कुछ देर हम लोग समुंदर के किनारे पर बैठते हैं और भेलपुरी खाते हैं।


“नहीं, देर हो जाएगी !” दीदी मुझसे बोली।


लेकिन मैंने फिर दीदी से कहा- चलो भी दीदी। अभी सिर्फ़ 7.30 बजे हैं और हम लोग थोड़ी देर बैठ कर घर चल देंगे और माँ जानती हैं कि हम दोनों साथ-साथ हैं, इसलिए वो चिंता भी नहीं करेंगी।


दीदी थोड़ी सोच कर बोली- चल समुंदर के किनारे चलते हैं।


दीदी के राज़ी होने से मैं बहुत खुश हुआ और हम दोनों समुंदर के किनारे, जो कि मार्केट से सिर्फ़ 10 मिनट का पैदल रास्ता था, चल दिए। हमने पहले एक भेलपुरी वाले से भेलपुरी ली और एक मिनरल वाटर की बोतल ली और जाकर समुंदर के किनारे बैठ गए।


हम लोग समुंदर के किनारे पास-पास पैर फैला कर बैठ गए। अभी समुंदर का पानी पीछे था और हमारे चारों तरफ़ बड़े-बड़े पत्थर पड़े हुए थे। वहाँ खूब ज़ोरों की हवा चल रही थी और समुंदर की लहरें भी तेज़ थी। इस समय बहुत सुहाना मौसम था।


हम लोग भेलपुरी खा रहे थे और बातें कर रहे थे। दीदी मुझ से सट कर बैठी थी और मैं कभी-कभी दीदी के चेहरे को देख रहा था। दीदी आज काले रंग की एक स्कर्ट और ग्रे रंग का ढीला सा टॉप पहनी हुई थी।


एक बार ऐसा मौका आया जब दीदी भेलपुरी खा रही थी, तो एक हवा का झोंका आया और दीदी की स्कर्ट उनकी जाँघ के ऊपर तक उठ गई और दीदी की जांघें नंगी हो गई। दीदी ने अपने जाँघों को ढकने की कोई जल्दी नहीं की। उनने पहले भेलपुरी खाई और आराम से रूमाल से हाथ पोंछ कर फिर अपनी स्कर्ट को जाँघों के नीचे किया और स्कर्ट को पैरों से दबा लिया।


वैसे तो हम लोग जहाँ बैठे थे वहाँ अंधेरा था, फिर भी चाँदनी की रोशनी में मुझे दीदी के गोरी-गोरी जाँघों का पूरा नज़ारा मिला। दीदी की जाँघों को देख कर मैं कुछ गर्म हो गया।


जब दीदी ने अपनी भेलपुरी खा चुकी तो मैं दीदी से पूछा- दीदी, क्या हम उन बड़े-बड़े पत्थरों के पीछे चलें?


दीदी ने फ़ौरन मुझसे पूछा- क्यों?


मैंने दीदी से कहा- वहाँ हम लोग और आराम से बैठ सकते हैं।


दीदी ने मुझसे मुस्कुराते हुए पूछा- यहाँ क्या हम लोग आराम से नहीं बैठे हैं?


“लेकिन वहाँ हमें कोई नहीं देखेगा !” मैंने दीदी की आँखों में झाँकते हुए धीरे से बोला।


तब दीदी शरारत भरी मुस्कान के साथ बोली- तुझे लोगों के नज़रों से दूर क्यों बैठना है?


मैंने दीदी को आँख मारते हुए बोला- तुम्हें मालूम है कि मुझे क्यों लोगों से दूर बैठना है।


दीदी मुस्कुरा कर बोली- हाँ मालूम तो है, लेकिन सिर्फ़ थोड़ी देर के लिए बैठेंगे। हम लोग को वैसे ही काफ़ी देर हो चुकी है। और दीदी उठ कर पत्थरों के पीछे चल पड़ी।


मैं भी झट से उठ कर पहले अपने बैग संभाला और दीदी पीछे-पीछे चल पड़ा। वहाँ पर दो बड़े-बड़े पत्थरों के बीच एक अच्छी सी जगह थी। मुझे लगा वहाँ से हमें कोई देख नहीं पाएगा।


मैंने जा कर वहीं पहले अपने बैग को रखा और फिर बैठ गया। दीदी भी आकर मेरे पास बैठ गई। दीदी मुझसे क़रीब एक फ़ुट की दूरी पर बैठी थी। मैंने दीदी से और पास आ कर बैठने के लिए कहा। दीदी थोड़ा सा सरक कर मेरे पास आ गई और अब दीदी के कंधे मेरे कंधों से छू रहे थे।


मैंने दीदी के गले बाहें डाल कर उनको और पास खींच लिया। मैं थोड़ी देर चुपचाप बैठा रहा और फ़िर दीदी के कान के पास अपना मुँह ले जाकर धीरे से कहा- तुम बहुत सुंदर हो।


“सोनू, क्या तुम सही बोल रहे हो?” दीदी ने मेरे आँखों में आँखें डाल कर मुझे चिढ़ाते हुए बोली।


मैंने दीदी के कानों पर अपना होंठ रगड़ते हुए बोला- मैं मज़ाक नहीं कर रहा हूँ। मैं तुम्हारे लिए पागल हूँ।


दीदी धीरे से बोली- मेरे लिए?


मैंने फिर दीदी से धीरे से पूछा- मैं तुम्हें क़िस कर सकता हूँ?


दीदी कुछ नहीं बोली और अपनी सर मेरे कंधों पर टिका कर आँखें बंद कर लीं। मैंने दीदी की ठोड़ी पकड़ कर उनका चेहरा अपनी तरफ़ घुमाया। तो दीदी ने एक मेरी आँखों में झाँका और फिर से अपनी आँखें बंद कर लीं।


मैं अब तक दीदी को पकड़े-पकड़े गर्म हो चुका था और मैंने अपने होंठ दीदी के होंठों पर रख दिए। ओह ! भगवान दीदी के होंठ बहुत ही रसीले और गर्म थे।
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Heart 
#3


जैसे ही मैंने अपना होंठ दीदी के होंठ पर रखे। दीदी की गले से एक घुटी-सी आवाज़ निकल गई। मैं दीदी को कुछ देर तक चूमता रहा। चूमने से मैं तो गर्म हो ही गया और मुझे लगा कि दीदी भी गर्मा गई है।


दीदी मेरे दाहिने तरफ़ बैठी थी। अब मैं अपने हाथ से दीदी की एक चूची पकड़ कर दबाने लगा। मैं इत्मीनान से दीदी की चूची से खेल रहा था क्योंकि यहाँ माँ के आने का डर नहीं था।


मैं थोड़ी देर तक दीदी की एक चूची कपड़ों के ऊपर से दबाने के बाद मैंने अपना दूसरा हाथ दीदी की टॉप के अंदर घुसा दिया और उनकी ब्रा के ऊपर से उनकी चूची मींज़ने लगा।


मुझे हाथ घुसा कर दीदी की चूची दबाने में थोड़ा अटपटा सा लग रहा था और इसलिए मैंने अपने हाथों को दीदी के टॉप में से निकाल कर अपने दोनों हाथों को उनकी कमर के पास रखा और धीरे-धीरे दीदी के टॉप को उठाने लगा और फिर अपने दोनों हाथों से दीदी की दोनों चूचियों को पकड़ कर ज़ोर-ज़ोर से मसलने लगा।


दीदी मुझे रोक नहीं रही थी और मुझे कुछ भी करने का अच्छा मौक़ा था। मैं अपने दोनों हाथों से दीदी की दोनों चूचियों को पकड़ कर ज़ोर-ज़ोर से मसल रहा था। दीदी बस अपने गले से घुटी-घुटी मस्त सिसकारियाँ निकाल रही थी।


मैं अपने दोनों हाथों को दीदी के पीछे ले गया और उनकी ब्रा के हुक खोलने लगा। जैसे ही मैंने दीदी की ब्रा का हुक खोला तो ब्रा गिर कर उनके मम्मों पर लटक गई। दीदी कुछ नहीं बोली।


मैं फिर से अपने हाथों को सामने लाया और दीदी की चूचियों पर से ब्रा हटा कर उनकी चूचियों को नंगा कर दिया। मैंने पहली बार दीदी की नंगी चूची पर अपना हाथ रखा। जैसे ही मैं दीदी की नंगी चूचियों को अपने हाथों से पकड़ा।


दीदी कुछ कांप सी गई और मेरे दोनों हाथों को अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया। मैं अब तक बहुत गर्मा गया था और मेरा लौड़ा खड़ा हो चुका था। मुझे बहुत ही उत्तेजना चढ़ गई थी।


मैं सोच रहा था झट से अपने पैंट में से अपना लौड़ा निकालूँ और दीदी के सामने ही मुट्ठ मार लूँ। लेकिन मैं अभी मुट्ठ नहीं मार सकता था। मैं अब ज़ोर-ज़ोर से दीदी की नंगी चूचियों को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर मसल रहा था।


मैं दीदी की चूची को दबा रहा था, रगड़-रगड़ कर मसल रहा था और कभी-कभी उनके निप्पलों को अपने उँगलियों में पकड़ कर मसल रहा था। दीदी के निप्पल इस वक़्त अकड़ कर कड़े हो गए थे। जब-जब मैं निप्पलों को अपने उँगलियों में पकड़ कर उमेठता था, तो दीदी छटपटा उठती।


मैंने बहुत देर तक चूचियों को पकड़ कर मसलने के बाद, अपना मुँह नीचे करके दीदी के एक निप्पल को अपने मुँह में ले लिया। दीदी ने अभी भी अपनी आँखें बंद कर रखी थी।


जब दीदी की चूची पर मेरा मुँह लगा तो दीदी ने अपनी आँखें खोल दी और देखा कि मैं उनके एक निप्पल को अपने मुँह में भर कर चूस रहा हूँ, वो भी गर्मा गई। दीदी की साँसे ज़ोर-ज़ोर से चलने लगीं और उनका बदन उत्तेजना से काँपने लगा। दीदी ने मेरे हाथों को कस कर पकड़ लिया।


इस वक़्त मैं उनकी दोनों दुद्दुओं को बारी-बारी से चूस रहा था। अब दीदी के गले से अजीब-अजीब सी आवाजें निकलने लगीं। उन्होंने मुझे कस कर अपनी छाती से चिपटा लिया और थोड़ी देर के बाद शांत हो गई।


मेरा चेहरा नीचे की तरफ़ था और दीदी की चूचियों को ज़ोर-ज़ोर से चूस रहा था। मुझे पर दीदी के पानी की खुशबू आई। ओह माय गॉड! मैंने अपनी दीदी की चूत की पानी सिर्फ़ उनकी चूची चूस-चूस कर निकाल दिया था?


मैं अपना हाथ दीदी की चूची पर से हटा कर उनकी चूचियों को हल्के से पकड़ते हुए उनके होंठों को चूम लिया। मैंने अपना हाथ दीदी के पेट पर रख कर नीचे की तरफ़ ले जाने लगा और धीरे-धीरे मेरा हाथ दीदी की स्कर्ट के हुक तक पहुँच गया।


दीदी मेरा हाथ पकड़ कर बोली- अब और नीचे मत ले।


मैंने दीदी से पूछा- क्यों?


दीदी तब मेरे हाथों को और ज़ोर से पकड़ते हुए बोली- नीचे अपना हाथ मत ले जाओ, अभी उधर बहुत गंदा है।


मैंने झट से दीदी को चूम कर बोला- गंदा क्यों हैं? क्या तुम झड़ गईं।


दीदी ने बहुत धीमी आवाज़ में कहा- हाँ, मैं झड़ गई हूँ।


मैंने फिर दीदी से पूछा- दीदी मेरी वजह से तुम झड़ गईं हो?


“हाँ रवि, तुम्हारी वजह से ही मैं झड़ गई हूँ। तुम इतना उतावले थे कि मैं अपने आप को संभाल ही नहीं पाई।” दीदी ने मुस्कुरा कर मुझसे कहा।


मैंने भी मुस्कुरा कर दीदी से पूछा- क्या तुम्हें अच्छा लगा?


दीदी मुझे पकड़ कर चूमते हुए बोली- मुझे तुम्हारी चूची चुसाई बहुत अच्छी लगी, और उसके बाद मुझे झड़ना और भी अच्छा लगा।


दीदी ने आज पहली बार मुझे चूमा था।


दीदी अपने कपड़ों को ठीक करके उठ खड़ी हो गई और मुझसे बोली- रवि, आज के लिए इतना सब काफ़ी है, और हम लोगों को घर भी लौटना है।


मैंने दीदी को एक बार फिर से पकड़ चुम्मा लिया और सड़क की तरफ़ चलने लगे। मैंने सारे बैग फिर से उठा लिए और दीदी के पीछे-पीछे चलने लगा।


थोड़ी दूर चलने के बाद वे मुझसे बोली- मुझे चलने में बहुत परेशानी हो रही है।


मैंने फ़ौरन पूछा- क्यों?


दीदी मेरी आँखों में देखती हुई बोली- नीचे बहुत गीला हो गया है। मेरी पैन्टी बुरी तरह से भीग गई है। मुझे चलने में बहुत अटपटा लग रहा है।


मैंने मुस्कुराते हुए बोला- दीदी मेरी वजह से तुम्हें परेशानी हो गई है न?


दीदी ने मेरी एक बाँह पकड़ कर कहा- रवि, यह ग़लती सिर्फ़ तुम्हारी अकेले की नहीं है, मैं भी उसमें शामिल हूँ।


हम लोग चुपाचाप चलते रहे और मैं सोच रहा था की दीदी की समस्या को कैसे दूर करूँ? एकाएक मेरे दिमाग़ में एक बात सूझी।


मैंने फ़ौरन दीदी से बोला- एक काम करते हैं। वहाँ पर एक पब्लिक टॉयलेट है, तुम वहाँ जाओ और अपने पैन्टी को बदल लो। अरे तुमने अभी-अभी जो पैन्टी खरीदी है, वहाँ जा कर उसको पहन लो और गन्दी हो चुकी पैन्टी को निकाल दो।


दीदी मुझे देखते हुए बोली- तेरा आईडिया तो बहुत अच्छा है। मैं जाती हूँ और अपने पैन्टी बदल कर आती हूँ।


हम लोग टॉयलेट के पास पहुँचे और दीदी ने मुझसे अपनी ब्रा और पैन्टी वाला बैग ले लिया और टॉयलेट की तरफ़ चल दीं।


जैसे ही दीदी टॉयलेट जाने लगी, मैंने दीदी से धीरे से बोला- तुम अपनी पैन्टी चेंज कर लेना तो साथ ही अपनी ब्रा भी चेंज कर लेना। इससे तुम्हें यह पता लग जाएगा कि ब्रा ठीक साइज़ की हैं या नहीं !!


दीदी मेरी बातों को सुन कर हँस पड़ी और मुझसे बोली- बहुत शैतान हो गए हो और स्मार्ट भी।


दीदी शर्मा कर टॉयलेट चली गई।


क़रीब 15 मिनट के बाद दीदी टॉयलेट से लौट कर आईं। हम लोग बस स्टॉप तक चल दिए हम लोगों को बस जल्दी ही मिल गई और बस में भीड़ भी बिल्कुल नहीं थी।


बस क़रीब-क़रीब ख़ाली थी। हमने टिकट लिया और बस के पीछे जा कर बैठ गए।


सीट पर बैठने के बाद मैंने दीदी से पूछा- तुमने अपनी ब्रा भी चेंज कर ली न?


दीदी मेरी तरफ़ देख कर हँस पड़ी।


मैंने फिर दीदी से पूछा- बताओ ना दीदी। क्या तुमने अपनी ब्रा भी चेंज कर ली है?


तब दीदी ने धीरे से बोला- हाँ रवि, मैंने अपनी ब्रा चेंज कर ली है।


मैं फिर दीदी से बोला- मैं तुमसे एक रिक्वेस्ट कर सकता हूँ?


दीदी ने मेरी तरफ देखा और कहा- हाँ बोल।


“मैं तुम्हें तुम्हारे नये पैन्टी और ब्रा में देखना चाहता हूँ।” मैंने दीदी से कहा।


दीदी फ़ौरन घबरा कर बोली- यहाँ? तुम मुझे यहाँ मुझे ब्रा और पैन्टी में देखना चाहते हो?


मैंने दीदी को समझाते हुए बोला- नहीं, यहाँ नहीं, मैं घर पर तुम्हें ब्रा और पैन्टी में देखना चाहता हूँ।


दीदी फिर मुझसे बोली- पर घर पर कैसे होगा। माँ घर पर होगी। घर पर यह संभव नहीं हैं।


“कोई समस्या नहीं हैं, माँ घर पर खाना बना रही होगी और रसोई में जाकर अपने कपड़े चेंज करोगी। जैसे तुम रोज़ करती हो। लेकिन जब तुम कपड़े बदलो। रसोई का पर्दा थोड़ा सा खुला छोड़ देना। मैं हॉल में बैठ कर तुम्हें ब्रा और पैन्टी में देख लूँगा।”


दीदी मेरी बात सुन कर बोली- नहीं रवि, फिर भी देखते हैं।


फिर हम लोग चुप हो गए और अपने घर पहुँच गए। हमने घर पहुँच कर देखा कि माँ रसोई में खाना बना रही हैं।


हम लोगों ने पहले 5 मिनट तक रेस्ट किया और फिर दीदी अपनी मैक्सी उठा कर रसोई में कपड़े बदलने चली गई। मैं हॉल में ही बैठा रहा।


रसोई में पहुँच कर दीदी ने पर्दा खींचा और पर्दा खींचते समय उसको थोड़ा सा छोड़ दिया और मेरी तरफ़ देख कर मुस्कुरा दी और हल्के से आँख मार दी।


मैं चुपचाप अपनी जगह से उठ कर पर्दे के पास जा कर खड़ा हो गया। दीदी मुझे सिर्फ़ 5 फ़ीट की दूरी पर खड़ी थी और माँ हम लोग की तरफ़ पीठ करके खाना बना रही थी।


माँ दीदी से कुछ बातें कर रही थी।


दीदी माँ की तरफ़ मुड़ कर माँ से बातें करने लगी फिर दीदी ने धीरे-धीरे अपनी टी-शर्ट को उठा कर अपने सर के ऊपर ले जाकर धीरे-धीरे अपनी टी-शर्ट को उतार दी।


टी-शर्ट के उतरते ही मुझे आज की खरीदी हुई ब्रा दिखने लगी। वाह क्या ब्रा थी। फिर दीदी ने फ़ौरन अपने हाथों से अपनी स्कर्ट की इलास्टिक को ढीला किया और अपनी स्कर्ट भी उतार दी। अब दीदी मेरे सामने सिर्फ़ अपनी ब्रा और पैन्टी में थी।


दीदी ने क्या मस्त ब्रा और मैचिंग की पैन्टी खरीदी है। मेरे पैसे तो पूरे वसूल हो गए। दीदी ने एक बहुत सुंदर नेट की ब्रा खरीदी थी और उसके साथ पैन्टी में भी खूब लेस लगा हुआ था।


मुझे दीदी की ब्रा से दीदी की चूचियों के आधे-आधे दर्शन भी हो रहे थे। फिर मेरी आँखें दीदी के पेट और उनकी दिलकश नाभि पर जा टिकीं। दीदी की पैन्टी इतनी टाइट थी कि मुझे उनके पैरों के बीच उनकी चूत की दरार साफ़-साफ़ दिख रही थी। उसके साथ-साथ दीदी की चूत के होंठ भी दिख रहे थे।


मुझे पता नहीं कि मैं कितनी देर तक अपनी दीदी को ब्रा और पैन्टी में अपनी आँखें फाड़-फाड़ कर देखता रहा। मैंने दीदी को सिर्फ़ एक या दो मिनट ही देखा होगा। लेकिन मुझे लगा कि मैं कई घंटो से दीदी को देख रहा हूँ।


दीदी को देखते-देखते मेरा लौड़ा पैंट के अंदर खड़ा हो गया और उसमें से लार निकलने लगी। मेरे पैर कामुकता से कांपने लगे।


सारे वक़्त दीदी मुझसे आँखें चुरा रही थी। शायद दीदी को अपने छोटे भाई के सामने ब्रा और पैन्टी में खड़ी होना कुछ अटपटा सा लग रहा था।


जैसे ही दीदी ने मुझे देखा, तो मैंने इशारे से दीदी पीछे घूम जाने के लिए इशारा किया। दीदी धीरे-धीरे पीछे मुड़ गई लेकिन अपना चेहरा माँ की तरफ़ ही रखा। मैं दीदी को अब पीछे से देख रहा था। दीदी की पैन्टी उनके चूतड़ों में चिपकी हुई थी। मैं दीदी के मस्त चूतड़ देख रहा था और मन ही मन सोच रहा था कि अगर मैं दीदी को पूरी नंगी देखूँगा तो शायद मैं अपने पैंट के अंदर ही झड़ जाउँगा।


थोड़ी देर के बाद दीदी मेरी तरफ़ फिर मुड़ कर खड़ी हो गई और अपनी मैक्सी उठा ली और मुझे इशारा किया कि मैं वहाँ से हट जाऊँ। मैंने दीदी को इशारा किया कि अपनी ब्रा उतारो और मुझे नंगी चूची दिखाओ। दीदी बस मुस्कुरा दी और अपनी मैक्सी पहन ली।


मैं फिर भी इशारा करता रहा लेकिन दीदी ने मेरी बातों को नहीं माना। मैं समझ गया कि अब बात नहीं बनेगी और मैं पर्दे के पास से हट कर हॉल में बिस्तर पर बैठ गया।


दीदी भी अपने कपड़ों को लेकर हॉल में आ गई। अपने कपड़ों को अल्मारी में रखने के बाद दीदी बाथरूम चली गई।


मैं समझ गया कि अब बात नहीं बनेगी और मैं पर्दे के पास से हट कर हॉल में बिस्तर पर बैठ गया। दीदी भी अपने कपड़ों को लेकर हॉल में आ गई। अपने कपड़ों को अल्मारी में रखने के बाद दीदी बाथरूम चली गई।


मैं दीदी को सिर्फ़ ब्रा और पैन्टी में देख कर इतना गर्मा गया था कि अब मुझको भी बाथरूम जाना था और मुट्ठ मारना था। मेरे दिमाग़ में आज शाम की हर घटना बार-बार घूम रही थी।


पहले हम लोग शॉपिंग करने मार्केट गए, फिर हम लोग समुंदर के किनारे गए, फिर हम लोग एक पत्थर के पीछे बैठे थे। फिर मैंने दीदी की चूचियों को पकड़ कर मसला था और दीदी चूची मसलवा कर झड़ गई, फिर दीदी एक पब्लिक टॉयलेट में जाकर अपनी पैन्टी और ब्रा चेंज की थी।


एकाएक मेरे दिमाग़ यह बात आई कि दीदी की उतरी हुई पैन्टी अभी भी बैग में ही होगी। मैंने रसोई में झाँक कर देखा कि माँ अभी खाना पका रही हैं और झट से उठ कर गया और बैग में से दीदी उतरी हुई पैन्टी निकाल कर अपनी जेब में रख ली।


मैंने जल्दी से जाकर के बाथरूम का दरवाज़ा बंद किया और अपना जीन्स का पैंट उतार दिया और साथ-साथ अपना अंडरवियर भी उतार दिया। फिर मैंने दीदी की गीली पैन्टी को खोला और और उसे उल्टा किया। मैंने देखा कि जहाँ पर दीदी की चूत का छेद था वहाँ पर सफ़ेद-सफ़ेद गाढ़ा-गाढ़ा चूत का पानी लगा हुआ है, जब मैंने वो जगह छुई तो मुझे चिपचिपा सा लगा।


मैंने पैन्टी अपने नाक के पास ले जाकर उस जगह को सूंघा। मैं धीरे-धीरे अपने दूसरे हाथ को अपने लौड़े पर फेरने लगा। दीदी की चूत से निकली पानी की महक मेरे नाक में जा रही थी, और मैं पागल हुआ जा रहा था।


मैं दीदी की पैन्टी की चूत वाली जगह को चाटने लगा। वाह दीदी की चूत के पानी का क्या स्वाद है, मज़ा आ गया। मैं दीदी की पैन्टी को चाटता ही रहा और यह सोच रहा था कि मैं अपनी दीदी की चूत चाट रहा हूँ।


मैं यह सोचते-सोचते झड़ गया। मैं अपना लंड हिला-हिला कर अपना लंड साफ़ किया और फिर पेशाब की और फिर दीदी की पैन्टी और ब्रा अपने जेब में रख कर वापस हॉल में पहुँच गया।


थोड़ी देर के बाद जब दीदी को अपनी भीगी पैन्टी का याद आई तो वो उसको बैग में ढूँढने लगी। शायद दीदी को उसे साफ़ करना था। दीदी को उनकी पैन्टी और ब्रा बैग में नहीं मिली।


थोड़ी देर के बाद दीदी ने मुझे कुछ अकेला पाया तो मुझ से पूछा- मुझे अपनी पुरानी पैन्टी और ब्रा बैग में नहीं मिल रही है।


मैंने दीदी से कुछ नहीं कहा और मुस्कुराता रहा।


“तू हँस क्यों रहा हैं? इसमें हँसने की क्या बात है।” दीदी ने मुझसे पूछा।


मैंने दीदी से पूछा- तुम्हें अपनी पुरानी पैन्टी और ब्रा क्यों चाहिए? तुम्हें तो नई ब्रा और पैन्टी मिल गई।


तब कुछ-कुछ समझ कर मुझसे पूछा- उनको तुमने लिया है?


मैं भी कह दिया- हाँ, मैंने लिया है। वो दोनों अपने पास रखना है, तुम्हारी गिफ़्ट समझ कर।


तब दीदी बोली- रवि, वो गंदे हैं।


मैं मुस्कुरा कर दीदी से बोला- मैंने उनको साफ़ कर लिया।


लेकिन दीदी ने परेशान हो कर मुझसे पूछा- क्यों?


मैंने दीदी से कहा- मैं बाद में दे दूंगा।


अब माँ कमरे आ गई थीं। इसलिए दीदी ने और कुछ नहीं पूछा।


अगले सुबह मैंने दीदी से पूछा- क्या वो मेरे साथ दोपहर के शो में सिनेमा जाना चाहेंगी?


दीदी ने हँसते हुए पूछा- कौन दिखायेगा?


मैं भी हँस के बोला- मैं।


दीदी बोली- मुझे क्या पता तेरे को कौन सा सिनेमा देखने जाना है।


मैंने दीदी से बोला- हम लोग न्यू थियेटर चलें?


वो सिनेमा हॉल थोड़ा सा शहर से बाहर है।


“ठीक है, चल चलें।” दीदी मुझसे बोली।


असल में दीदी के साथ सिनेमा देखने का सिर्फ़ एक बहाना था। मेरे दिमाग़ में और कुछ घूम रहा था। सिनेमा के बाद मैं दीदी को और कहीं ले जाना चाहता था।


पिछले कई दिनों से मैंने दीदी की मुसम्मियों को कई बार दबाया था और मसला था और दो तीन-बार चूसा भी था। अब मुझे और कुछ चाहिए था और इसीलिए मैं दीदी को और कहीं ले जाना चाहता था। मुझे दीदी को छूने का अच्छा मौक़ा सिनेमा हॉल में मिल सकता था, या फिर सिनेमा के बाद और कहीं ले जाने के बाद मिल सकता था।


जब दीदी सिनेमा जाने के लिए तैयार होने लगी तो मैं धीरे से दीदी से कहा- आज तुम स्कर्ट पहन कर चलो।


दीदी बस थोड़ा सा मुस्कुरा दी और स्कर्ट पहनने के लिए राज़ी हो गई।


ठंड का मौसम था इसलिए मैं और दीदी ने ऊपर से जैकेट भी ले लिया था।


मैंने आज यह सिनेमा हॉल जान बूझ कर चुना था क्योंकि यह हॉल शहर से थोड़ा सा बाहर था और वहाँ जो सिनेमा चल रहा था। वो दो हफ़्ते पुरानी हो गया था।


मुझे मालूम था कि हॉल में ज्यादा भीड़ भर नहीं होगी। हम लोग वहाँ पहुँच कर टिकट ले लिया और हॉल में जब घुसे तो किसी और सिनेमा का ट्रेलर चल रहा था। इसलिए हॉल के अंदर अंधेरा था।


जब अंदर जा कर मेरे आँखें अंधेरे में देखने में कुछ अभ्यस्त हो गईं, तो मैंने देखा कि हॉल में कुछ लोग ही बैठे हुए हैं और मैं एक किनारे वाली सीट पर दीदी को ले जाकर बैठ गया। हम लोग जहाँ बैठे थे उसके आस पास और कोई नहीं था। और जो भी हॉल में बैठे थे वो सब किनारे वाली सीट पर बैठे हुए थे।


हम लोग भी बैठ गए सिनेमा देखने लगे। मैं सिनेमा देख रहा था और दिमाग़ में सोच रहा था मैं पहले दीदी की चूची को दबाऊंगा, मसलूँगा और अगर दीदी मान गई तो फिर दीदी की स्कर्ट के अंदर अपना हाथ डालूँगा।


मैंने क़रीब 15 मिनट तक इंतज़ार किया और फिर अपनी सीट पर मैं आराम से पैर फैला कर बैठ गया। संगीता दीदी मेरे दाहिने तरफ़ बैठी थी।


मैं धीरे से अपना दाहिना हाथ बढ़ा कर दीदी की जाँघों पर रख दिया। फिर मैं धीरे-धीरे दीदी की जाँघों पर स्कर्ट के ऊपर से हाथ फेरने लगा। दीदी कुछ नहीं बोली।


दीदी बस चुपचाप बैठी रही और मैं उनकी जाँघों पर हाथ फेरने लगा। अब मैं धीरे-धीरे दीदी की स्कर्ट को पैरों से ऊपर उठाने लगा जिससे कि मैं अपना हाथ स्कर्ट के अंदर डाल सकूँ।


दीदी ने मुझको रोका नहीं और ऊपर से मेरे कानों के पास अपनी मुँह लेकर के बोली- कोई देख ना ले।


इधर-उधर देख कर मैंने भी धीरे से बोला- नहीं कोई नहीं देख पाएगा।


दीदी फिर से बोली- स्क्रीन की लाइट काफ़ी ज़्यादा है और इसमें कोई भी हमें देख सकता है।


मैंने दीदी से कहा- अपना जैकेट उतार कर अपनी गोद में रख लो।


दीदी ने थोड़ी देर रुक कर अपनी जैकेट उतार कर अपनी गोद में रख ली। और इससे उनकी जाँघ और मेरा हाथ दोनों जैकेट के अंदर छुप गया।


मैं अब अपना हाथ दीदी के स्कर्ट के अंदर डाल कर के उनके पैरों और जाँघों को सहलाने लगा।


दीदी फिर फुसफुसा कर बोली- कोई हमें देख ना ले।


मैंने दीदी को समझाते हुए कहा- हमें कोई नहीं देख पाएगा। आप चुपचाप बैठी रहो।


मैंने अपना हाथ अब दीदी के जाँघों के अंदर तक ले जाकर उनकी जाँघ के अंदरूनी भाग को सहलाने लगा और धीर-धीरे अपना हाथ दीदी की पैन्टी की तरफ़ बढ़ाने लगा। मेरा हाथ इतना घूम गया की दीदी की पैन्टी तक नहीं पहुँच रहा था।


मैंने फिर हल्के से दीदी के कानों में कहा- थोड़ा नीचे खिसक कर बैठो न।


दीदी ने हँसते हुए पूछा- क्या तुम्हारा हाथ वहाँ तक नहीं पहुँच रहा है।


“हाँ” मैंने दबी जुबान से दीदी को बोला।


दीदी धीरे से हँसते हुए बोली- तुमको अपना हाथ कहाँ तक पहुँचाना है?


मैं शर्माते हुए बोला- तुमको मालूम तो है।


दीदी मेरी बातों को समझ गई और नीचे खिसक कर बैठी। मेरा हाथ शुरू से दीदी के स्कर्ट के अंदर ही घुसा हुआ था और जैसे ही दीदी नीचे खिसकी मेरा हाथ जा करा अपने आप दीदी की पैन्टी से लग गया। फिर मैं अपने हाथ को उठा कर पैन्टी के ऊपर से दीदी की चूत पर रखा और ज़ोर से दीदी की चूत को छू लिया।


यह पहली बार था की अपने दीदी की चूत को छू रहा था। दीदी की चूत बहुत गर्म थी। मैं अपनी उंगली को दीदी की चूत के छेद के ऊपर चलाने लगा।


थोड़ी देर के बाद दीदी फुसफुसा कर बोली- रुक जाओ, नहीं तो फिर से मेरी पैन्टी गीली हो जायेगी।


लेकिन मैंने दीदी की बात को अनसुनी कर दी और दीदी की चूत के छेद को पैन्टी के ऊपर से सहलाता रहा।


दीदी फिर से बोली- प्लीज़, अब मत करो, नहीं तो मेरी पैन्टी और स्कर्ट दोनों गंदी हो जायेगीं।


मैं समझ गया कि दीदी बहुत गर्मा गई हैं। लेकिन मैं यह भी नहीं चाहता था कि जब हम लोग सिनेमा से निकलें तो लोगों को दीदी गंदी स्कर्ट दिखे। इसलिए मैं रुक गया।


मैंने अपना हाथ चूत पर से हटा कर दीदी की जाँघों को सहलाने लगा। थोड़ी देर के इंटरवल हो गया। इंटरवल होते ही मैं और दीदी अलग-अलग बैठ गए और मैं उठ कर पॉपकॉर्न और पेप्सी ले आया।


मैंने दीदी से धीरे से कहा- तुम टॉयलेट जाकर अपनी पैन्टी निकाल कर नंगी होकर आ जाओ।


दीदी ने आँखें फाड़ कर मुझसे पूछा- मैं अपनी पैन्टी क्यों निकालूँ?


मैं हँस कर बोला- निकाल लेने से पैन्टी गीली नहीं होगी।


दीदी ने तपाक से पूछा- और स्कर्ट का क्या करें? क्या उसे भी उतार कर आऊँ?


“सिंपल सी बात है जब टॉयलेट से लौट कर आओगी तो बैठने से पहले अपनी स्कर्ट उठा कर बैठ जाना” मैंने दीदी को आँख मारते हुए बोला।


दीदी मुस्कुरा कर बोली- तुम बहुत शैतान हो और तुम्हारे पास हर बात का जबाब है।


जैसा मैंने कहा था, दीदी टॉयलेट में गई और थोड़ी देर के बाद लौट आई। जब मैं दीदी को देख कर मुस्कुराया तो दीदी शर्मा गई और अपनी गर्दन झुका ली।


हम लोग फिर से हॉल में चले गए जब बैठने लगी तो अपनी स्कर्ट ऊपर उठा ली, लेकिन पूरी नहीं। हम लोगों के जैकेट अपने-अपने गोद में थी और हम लोग पॉपकॉर्न खाना शुरू किया। थोड़ी देर के बाद हम लोगों ने पॉपकॉर्न खत्म किए और फिर पेप्सी भी खत्म कर लिया।


फिर हम लोग अपनी-अपनी सीट पर नीचे हो कर पर फैला कर आराम से बैठ गए थोड़ी देर के बाद मैंने अपना हाथ बढ़ा कर दीदी की गोद पर रखी हुई जैकेट के नीचे से ले जाकर के दीदी की जाँघों पर रख दिया।


मेरे हाथों को दीदी की जाँघों से छूते ही दीदी ने अपने जाँघों को और फैला दिया। फिर दीदी ने अपने चूतड़ थोड़ा ऊपर उठा करके अपने नीचे से अपनी स्कर्ट को खींच करके निकाल दिया और फिर से बैठ गए अब दीदी हॉल के सीट पर अपनी नंगी चूतड़ों के सहारे बैठी थी।


सीट की रेग्जीन से दीदी को कुछ ठंड लगी पर वो आराम से सीट पर नीचे होकर के बैठ गई। मैं फिर से अपने हाथ को दीदी की स्कर्ट के अंदर डाल दिया। मैं सीधे दीदी की चूत पर अपना हाथ ले गया।


जैसे ही मैं दीदी की नंगी चूत को छुआ, दीदी झुक गई जैसे कि वो मुझे रोक रही हो। मुझे दीदी की नंगी चूत में हाथ फेरना बहुत अच्छा लग रहा था। मुझे चूत पर हाथ फेरते-फेरते चूत के ऊपरी भाग पर कुछ बाल का होना महसूस हुआ।


मैं दीदी की नंगी चूत और उसके बालों को धीरे धीरे सहलाने लगा। मैं दीदी की चूत को कभी अपने हाथ में पकड़ कर कस कर दबा रहा था, कभी अपने हाथ उसके ऊपर रगड़ रहा था और कभी-कभी उनकी क्लिट को भी अपने उँगलियों से रगड़ रहा था।
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