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06-06-2021, 05:49 PM
(This post was last modified: 06-06-2021, 05:50 PM by usaiha2. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
UPDATE 2
अब लंड को शांत करना आसान नहीं था, मैं उठा लाइट बंद की और बिस्तर पर लेट गया, कोमल की गुदाज झंघे और उसके भारी नितम्ब याद आ रहे थे, उनको नंगा देखने की इच्छा तेज हो गयी, उन्हें छूने की और चूमने की इच्छा हो रही थी, उसकी योनी का गीलापन परेशान कर रहा था, उसके उठे हुए वक्ष और भरे नितम्बो को याद कर रहा नहीं गया, मुठ मार कर लंड को शांत किया, भरभराकर वीर्य निकल पडा, कब गहरी नीद आयी मालूम नहीं. गर्मी का समय था, लगभग सुबह ५-६ बजे नीद खुली तो पाया मुहं में एक अजीब क़िस्म का कड़वा मीठा सा स्वाद है.
ताज्जुब हुआ, शीशे में देखा तो मुहं में चोकलेट लगी हुई थी और लगा किसीने जबदस्ती मुहं में चाकलेट डालने की कोशिश की थी, यह किसने किया होगा मैंने सोचा, कमरे से बाहर आया और कोमल के कमरे में झांक कर देखा वह सो रही थी, उसकी माँ और पिताजी नहीं थे, फिर मैंने अपने बाबूजी के कमरे में देखा वहां भी कोई नहीं था, मुझे ध्यान आया रात को माँ ने बताया था की उनलोगों के साथ सुबह का दर्शन करने मंदिर जाने का प्रोग्राम था और घर की चाभियाँ मुझे दी थी, मंदिर हमारे यहाँ से कोई ४५ किलोमीटर होगा , बाहर देखा तो गाड़ी गैरेज में नहीं थी, मतलब था उनको कम से कम २-३ घंटे तो लगेंगे, मैं समझ गया यह चोकलेट की बदमाशी हो न हो कोमल की ही थी,
मैं वापस आया और कोमल के कमरे में देखा, वो ऐसे ही सो रही थी पैर फैला कर नितम्बों को ऊपर किये, वक्ष को गद्दे पर दबाये हुए, उसकी चूत के निचले हिस्से का का हल्का उभार उसके सलवार में दिख रहा था, मैं नजदीक आया और गौर से देखा उसने अन्दर पेंटी नहीं पहनी हुई थी, कुर्ती ऊपर सरक गयी थी, की कमर को सलवार के नाड़े ने घेर रखा था, मुझे रात को सताया, मैंने भी बदला लेने की सोची, कोमल का पूरा शरीर उस समय गजब की सेक्सी अवस्था में गद्दे पर फैला पड़ा था, वो पुरी नीदं में बेखबर सो रही थी, मैंने उसके नजदीक बैठ गया और उसके बेधड़क फैले शरीर का आनंद लेने लगा, गदराया बदन, कमर गोरी जिसपर सलवार बंधी थी, उभार के साथ बड़े नितम्ब, बाल खुले, साँसों के साथ वक्ष ऊपर नीचे हो रहा था, कोई प्रतिमा सी लग रही थी, जैसे बुला रही थी मुझे ले लो,
मुझे अपने पर कंट्रोल नहीं रहा, मैं उसकी पीठ की और बैठा था, धीरे धीर कुर्ती को और ऊपर सरकाया, वो थोडा कुनमुनाई पर उठी नहीं, अब उसकी पूरी नंगी कमर दिख रही थी, मेरे हाथ काँप रहे थे, मैंने धीरे से हाथ कमर पर घेर कर सलवार के नाड़े को खींचना शुरू किया, डर भी लग रहा था की कहीं उठ न जाए और बात बिगड़ जाये, नाड़ा खुल गया और सलवार की पकड़ कमर पर ढीली हो गयी, मैंने सलवार को नीचे खिसकाना शुरू किया लेकिन सलवार थोड़ी सी नीची होकर रुक गयी, वो गद्दे और नितम्ब के बीच में दबी थी, और खींचने पर कोमल जग जाती, कोमल के गोरे और चिकने नितम्ब अपनी उभार के साथ ऊपरी हिस्सा दिख रहा था, नितम्बों के बीच की दरार दिख रही थी , मैंने धीरे से हाथ उसके नितम्बों पर रक्खा और चूम लिया, हाथ को दरार के ऊपर से नीचे सरकाने की कोशिश की तो गरम हवा सी हथेलियों में लगी, बहुत मजा आ रहा था और डर से एक रोमांच भी हो रहा था, मेरे शरीर के रोंये खड़े हो गए थे,
..पहली बार किसी लड़की के नितम्ब खुले देख रहा था, वो भी इतनी नजदीक से और उनको प्यार करने और चूमने का अवसर भी, मैंने कभी स्वप्न में भी सोचा नहीं था, कोमल जवान कली थी, अभी जवानी का रंग चढ़ ही रहा था, बिलकुल नादान सी, लेकिन शरीर ऐसा भरा हुआ और नशीला बनाया था भगवान ने, मैं देखता रह गया, सुडौल विकसित नितम्ब, गोरे और इतने चिकने, भूरी लालिमा के साथ नितम्बो के बीच की दरार जो उसकी योनी तक जा रही थी, मुझसे रहा नहीं गया, मैं जीभ और होठों से नितम्बो की पहाड़ियों को चूम चाट रहा था, वासना ने मुझे निष्फिक्र बना दिया था, शायद कोमल को कुछ आभास हुआ और उसने मेरी ओर करवट ली.
अब उसका जोबन ऊपर की तरफ उठा हुआ, सलवार नाभी से नीचे, नाड़ा खुला, नीन्द में श्वास लेती , वक्ष ऊपर नीचे श्वास के साथ, मैं उसके चहरे को देख रहा था, कमर कटाव के साथ, वक्ष विकसित और कुर्ती के ऊपरी हिस्से से वक्ष का मांसल भाग बाहर निकल पड़ने को तैयार, अब सलवार को नीचे खींच पाना आसान था, बहुत धीर से नितम्ब के किनारे सलवार को पकड़ कर खींचा और सलवार जैसे कोई निकलना ही चाहती हो ऐसे निकल पडी, घुटनों तक सलवार को नीचे किया, सामने कोई अप्सरा नींद में बेफिक्र सो रही थी, मैं उसकी योनी देखा कर जैसे होश खो बैठा, आज पहली बार लड़की की योनी देखी वो भी एक कली की, बहुत हलके मुलायम बाल योनी पर, सुनहरे, अभी आने ही शुरू हुए थे ऐसा लगा, योनी के दोनों भाग फूले हुए, मीठे मालपुए की तरह, .....
.............एक खूबसूरत कमसिन कन्या जिसपर नई नई जवानी का खुमार चढ़ ही रहा था, इस प्रकार बेसुध सोई हुई अर्धनग्न, अपने बहुमूल्य खजाने को अनजाने में दिखाती हुई, उसे पता भी नहीं था वो क्या कर रही है, स्तनों का उन्नत उभार, कटीली कमर, योनी के दोनों ओर के फूले हुए पट, योनीद्वार के किनारे के सुनहरे बाल, मोटी गोरी झांघों का योनीद्वार के पास मिलकर बनता हुआ त्रिकोण और उसपर मासूमियत भरा उसका चेहरा गहरी नींद में बेखबर. यह दृश्य मुझे पागल बना रहा था. पाठकों, क्या कभी आपने जवान होती हरे भरे शरीर वाली कमसिन कली को अर्धनग्न देखा है और वो भी बेसुध बेखबर ?
दोस्तों आपने भी जाना होगा की चोरी चोरी छुप के होनेवाली मस्ती का आनंद कुछ और ही होता है, कोई देख लेगा ऐसा एक रोमांच, शरीर में एक झुरझुरी, भय और आनंद का मिश्रण.खुले सेक्स में वो मजा कभी नहीं. मैंने कोमल की योनी के पास मुँह ले गया और स्वास ली, एक नशीली सुगंध, कोमल के शरीर की मोहक सुगंध उसके योनी के पसीने और रात को की गयी मूत्र परत से निकलती सुंगंध मिलकर एक अजीब समाँ बन रहा था,रहा नहीं गया, मैं धीरे से योनी पट को चूम रहा था, मन हो रहा था के योनी को हाथों से फैलाकर योनी छिद्र में अपनी जीभ डाल कर चूम लूं चाट लूं और उसे बाँहों में भर कर प्यार करूँ...
........
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UPDATE 3
...........जांघों को धीरे से फैलाया की कोमल की नींद ना खुल जाये, हसीन दृश्य, अपनी जीभ को योनी पंखुड़ियों से सटाकर उन्हें चूमा नमकीन स्वाद मादक कर रहा था. तभी याद आया रात इस लड़की ने मुझे सताया है और बदले की भावना आ आगई, अपने आप को कण्ट्रोल करता हुआ मैं रसोई में गया और फ्रिज से चोकलेट क्रीम लेकर आया, कोमल वैसे ही सो रही थी, दोनों पैरों को और थोडा फैलाया और एक घुटने के नीचे तकिया लगाया, योनी द्वार अब साफ़ दिख रहा था, योनी के दोनों ओर के दरवाज़ों को बहुत सावधानी से फैला कर चोकलेट क्रीम उड़ेल दी उसके त्रिकोण पर ओर चद्दर से ढक कर वापस अपने कमरे में आ गया, दिमाग से खुमार उतर नहीं रहा था.
यह तो अच्छा हुआ कोमल की नींद नहीं खुली वरना क्या होता पता नहीं. मैं सांस रोके सोच रहा था क्या होता है, बार बार उसके कमरे में झांक आता था, कुछ देर बाद झाँका तो देखा वो उठ कर गद्दे पर बैठी हुई थी, उसके हाथों में चोकलेट क्रीम लगी थी और बार बार झुक कर अपनी योनी को देख रही थी और हाथों को योनी के ऊपर रगड़ कर क्रीम हटा रही थी, उसने योनी के दोनों ओर के पाटों को फैलाया, अन्दर की लाल दीवार दिख रही थी जिसपर भूरे रंग का चोकलेट क्रीम लसा पड़ा था, उसके चेहरे पर अजीब से भाव थे, मुझे दया आने लगी, कोमल ने अपनी कुर्ती के कोने से योनी के अन्दर की पुत्तियों और बाहर मालपुए से फूले हुए पाटों को साफ़ किया और कमरे से बाहर की तरफ आने लगी, मैं भागा.... और
.....आप सोचें की एक कुंवारी कमसिन कन्या जो अभी खिलती हुई कली ही है और एक लड़का जिसने जवानी की तरफ ही प्रवेश किया है, सेक्स के बारे में कितने उत्सुक और अधीर होंगे, यह मैंने बाद में जाना की कोमल भी सेक्स की रंगीन दुनिया के लिए सोचती थी और कमसिन कन्याएँ जितना सोचती हैं और अधरी होती हैं उतना और किसी उम्र में शायद ही होती होंगी और इस आनंद को प्राप्त करने के लिए नए प्रयोग करने से भी संकोच नहीं करती... कोमल बाथरूम में गयी और सलवार उतार कर अपने योनी स्थान को धोने लगी, बाथ का दरवाज़ा आधा खुला छोड़ दिया था, शायद उसने सोचा नहीं इतनी सुबह कोई होगा और मैं पीछे से देख रहा होऊँगा. अद्भुत दृश्य...
बनाने वाले ने गज़ब के नितम्ब और जांघें दी थी, गोल, भरे भरे मांसल,गोरे, बिलकुल जैसे सांचे में ढले हुए, मै उसकी योनी नहीं देख पा रहा था, पानी की धार योनी को साफ़ करती हुई जांघों के बीच से पैरों पर होती हुए नीचे गिर रही थी, उसकी कुर्ती गीली हो गयी थी, मैं दरवाजे के पीछे छुप कर देख ही रहा था की वो अचानक ही मुड़ी और मुझे देख स्तब्ध हो गयी, यही हाल मेरा था, उसने सलवार नहीं पहनी थी, सामने से अर्ध नग्न, योनी जांघें और पैर पानी से गीले, योनी पर के हलके सुनहरे बाल योनी से चिपके हुए, स्तन उन्नत और कुर्ती को फाड़ बाहर आने को तैयार, स्तन का ऊपरी हिस्सा गोरा चिकना आकर्षित कर रहा था.
लेकिन हम दोनों को काटो तो खून नहीं ऐसी हालत थी..... कोमल ने हड़बड़ा कर अपनी सलवार खूंटी से खींची और बिना पहने ही अपने कमरे की ओर भागी, मैं देखता रह गया, एक जवान नंगी कन्या के नितंबों को, हिलते और मचलते हुए . मेरा मन बेचैन, रहा नहीं गया, मैं कमरे के तरफ आया, कोमल ने सलवार पेहेन ली थी, बाहर निकलते हुए बोली यह तुमने किया ?
मैंने अनजान बनते हुए पुछा, क्या किया ?
"ज्यादा चालाक मत बनो तुमने मुझे चोकलेट क्रीम से पूरी तरह लस दिया, और इस तरह ?"
"तो किस तरह , तुम ने भी रात को क्या किया"
"पर मैंने तुम्हारे मुहं में लगाया और तुमने......." और बोलते बोलत वो रुक गयी
"और मैंने क्या, तुम्हें जो अच्छा लगा वहां तुमने लगाया, मुझे जो अच्छा लगा वहां मैंने लगाया "
कोमल की तो आवाज ही बंद होगई सुनकर, "तुम गंदे हो " उसने कहा,
"तुमने कपडे ख़राब कर दिए मेरे, मेरी सलवार पर दाग लग गए, कैसे छूटेंगे "
" और मेरे पैंट पर जो दाग लगे वो क्या" मैंने कहा,
"झूठ, मैंने वहां नहीं लगाया " कोमल बोल पड़ी
"तुमने लगाया, यह देख" मैंने अपना अन्दर्वेअर लाकर दिखाया जिसमें रात वीर्य पोंछा था, सूख कर दाग हो गए थे,
"यह चोकलेट थोड़ी है, यह क्या है, मैंने ऐसा कुछ नहीं किया " और कोमल मेरे अन्दर्वेअर को देख शर्मा गयी, उसे समझ में नहीं आ रहा था की मैं क्या बोल रहा हूँ,
" यह तुम्हारी वजह से है, तुम्हारे कारण यह निकला" मैंने कहा,
"निकला ?" उसने अनजाने में पुछा,
" मेरा रस "
" तुम्हारा रस मतलब ?" वो वाकई अनजान थी,
"तुम गुस्सा नहीं हो तो मैं बताऊँगा तुमने क्या किया मेरे साथ " मैं अब उससे कुछ खुल गया था और मुझे अपने पर काबू नहीं था, मैं चाहता था की बात को उस ओर मोड़ कर उसकी प्रतिक्रिया देंखूं,
"बोलो" उसने कहा
"गुस्सा नहीं होना, यह देख क्या किया " कहकर मैंने अपने अपने लिंग पर हाथ रक्खा जो अब फिर से फुफकार रहा था और पैंट के एक तरफ के किनारे को ऊपर कर लिंग की चमड़ी को पूरा पीछे खींच भरपूर लाल सुपाड़े की झलक उसे दिखाई, लिंग था मोटा और लाल, उसकी आँखें पथरा सी गयीं, एकटक निहारने लगी,
"आआअ, उईई, यह क्या है....आआआआ..शी शी शी शी........ओह हो यह क्या है ...." कोमल का चेहरा आश्चर्य से भरा था, आँखें सुपाड़े पर अटकी थी,
और आवाज़ भारी हो गयी जैसे गले में रुंध गयी हो, लिंग फडफडा रहा था, शिष्न बिंदु पर रस की बूँद दिख रही थी, उसने मुझे देखा,
"देख क्या किया, यही रस है, तुमने ऐसा किया " कहकर मैंने सिस्न चमड़ी को आगे पीछे किया, रस की बूँद स्पष्ट थी, सिस्न चिकना और गीला हो गया, कोमल देखे जा रही थी लिंग का रूप, उससे रहा नहीं गया और अनायास वो सिस्न पर फूँक मारने लगी, साथ ही अजीब सी आवाज़ भी कर थी, आह ऊह्ह ... उसने कहा "मैंने तो रात को इसे छुआ भी नहीं फिर यह ऐसा रस सा क्या निकल रहा है " ........ कोमल के नजरें मादक थी, लग रहा था वो सिस्न को हाथ में लेने के लिए बेताब थी, गुस्सा होना तो दूर वो तो अचरज से मरी जा रही थी जैसे कोई बच्चा नए खिलौने के लिए व्याकुल हो.
मैं कुछ कहता इससे पहले ही कोमल ने हाथ आगे बढ़ा कर सिस्न को पकड़ लिया और अपने हाथों से चमड़ी को आगे पीछे करने लगी और साथ ही फूँक मार रही थी, लिंग से जैसे लावा ही फूट पड़ेगा ऐसा लगा, मैं किसी और ही दुनिया में था, विश्वास नहीं हो रहा था की कोमल ने मेरे लिंग को थाम रक्खा था और उसे सहला रही थी, " क्या चीज़ है .... आह्ह्ह्ह ये ऐसा क्यों हो गया, इतना लाल और लगता है रो रहा है, ...." कोमल बोल रही थी, उसने मुझे देखा, आँखों में जैसे गुलाबी नशा....."तुमने इसे छोड़ दिया और चोकलेट नहीं खिलाई इसलिए रो रहा है..." मैं बोला और कोमल को कंधे पकड़ कर खड़ा किया, अब उसके होंठ मेरे सामने थे, मैंने धीरे से उनको चूमा, और हाथ कमर के पीछे बाँध उसे आगोश में भर लिया, उसके स्तन मेरे सीने से दब रहे थे, उसने भी मेरे कमर में हाथ डाल मझे अपने से सटा लिया.
मैं समझ गया वो लाल मस्त लिंग को देख कर गरम हो गयी थी और सब कुछ भूल कर वासना में बह गयी थी, कोमल की हालत मदहोश जैसी हो गयी, वो मेरे हाथों पर गिर पडी, धीरे से उसे पलंग पर लेटाया..........सिस्न उसके हाथों में पकड़ा कर कुर्ती के ऊपर से उसके उरोजों को सहलाने लगा, धीरे धीरे स्तनों को सहला रहा था, दबा रहा था, मेरा हर काम उसकी कामाग्नी बढ़ा रहा था, उसके मुहं से अजीब सी आवाजें निकल रही थी, मेरे सिस्न को छोड़ने को तैयार ही नहीं, उसे खींच रही थी , दबा रही थी....सिस्न रस से लसपस था, मैंने कुर्ती के ऊपर के बटन खोले बहुत सावधानी से की उसको किसी प्रकार का डर ना लगे.....
सिस्न रस से लसपस था, मैंने कुर्ती के ऊपर के बटन खोले बहुत सावधानी से की उसको किसी प्रकार का डर ना लगे.........दुधिया उरोजों की उठान, कोमल की सांसें तेज चल रही थी, मेरे लिंग के साथ बहुत मजे से खेल रही थी, उसे खींचना, पकड़ कर मचोड़ देना और पूरे लाल सुपाड़े को निकाल कर उसपर फूंक मारना, हैरानी और प्यार से देखना, मैं भी व्याकुल था, कुर्ती के बाकी बटन खोल उरोजों को आजाद किया, मस्त बिलकुल विकसित, बहुत ही गुदाज, दूधिया चमकते उरोजों के जोड़े, गुलाबी घुन्डियाँ और ऐरोला, इस उम्र की लड़कियों का अगर शरीर विकसित हो तो अत्यंत गुदाज और वासनामयी हो जाता है.
कोमल अच्छे परिवार से थी, खानपान अच्छा था, इस उम्र में खाती पीती लड़कियों के शरीर में एक प्रकार का भारीपन आजाता है और नितम्ब और कूल्हे भर जातें हैं, वक्ष विकसित हो शान से अपनी उठान दिखाते हैं, अपने वजन से भी झुकते नहीं, चोली हर समय टाईट हो जाती है, झांघें बड़ी और मांसल हो जाती हैं, योनी पट फूल उठते हैं और योनी द्वार को ढक लेते हैं जैसे किसी कीमती चीज़ का बचाव कर रहें हो, योनी पर हलके बाल आ जाते हैं, योनी श्राव शुरू हो जाता है, चेहरा भर जाता है और एक मादकता हर समय चेहरे पर रहती है, आँखें चंचल हो जाती हैं, पसीने में एक नशीली खुशबु हो जाती है, कोई रूप और शरीर की प्रसंशा करता रहे ऐसी तमन्ना इस नाबालिग उम्र में हरसमय होती है, किसी अच्छे लगने वाले का हल्का स्पर्श भी शरीर में जैसे बिजली भर देता है और खुमारी छा जाती है, कोमल की उम्र भी वही थी......
..मैंने सोचा भी नहीं इतनी जल्दी कोमल अपने आप को समर्पित कर देगी, लेकिन यह उस उम्र का तकाजा ही है और इस उम्र में लड़कियों के लिए अपने आप को कामवासना से बचाना बहुत मुश्किल है अगर उन्हें कोई फ़साने की कोशिस करे तो... कुछ साल के बाद यानी अगर लडकी १९-२० की हो जाती है तो थोडा मुश्किल है लेकिन कमसिन उम्र में बहुत जल्दी ही प्रभावित हो जाती हैं... कोमल के साथ यही हुआ... मैं उसके स्तनों को मसल रहा था, वो मेरे लिंग को सहला रही थी, लग रहा था लिंग से रस की धार छूट पड़ेगी.
मैं हाथ नीचे सरकाकर उसकी योनी के पास लाया और उसके त्रिकोण को सहलाने लगा, मैं धीरे करना चाहता था, जल्दबाजी में कोमल डर जाती, कमसिन लड़किया जितनी जल्दी समर्पण करती हैं उतनी ही डरती भी हैं और जरा सा उतावलापन दिखाने से डर कर दूर भाग जाती हैं, उन्हें प्यार और धैर्य से नजदीक लाना होता है, उसके बाद वो आँख बंद कर आपपर भरोसा करती हैं... हम दोनों आनंद विभोर थे, दिमाग में माँ-पिताजी के वापस लौटने आने का भी भय था, मैंने कोमल के कान में कुछ प्यार भरी बातें कही और उसे अपनी योनी को दिखाने के लिए राजी किया,
"सिर्फ एक बार दिखाऊँगी, वो भी छूने नहीं दूंगी" वो बोली,
"तुमने मेरा कैसे छुआ और खींच खींच कर दर्द कर दिया, ठीक है एक बार देखूँगा और तुम्हारी सुसु की एक पप्पी लूँगा फिर कभी मत दिखाना" कह कर उसे मनाया, उसने शर्म से आँखें बंद कर ली, मैंने नाड़ा खोल सलवार नीचे की और उस सुन्दरता को देखता रह गया, योनी पर के बाल सुनहरे थे , सर झुकाकर एक लम्बी सांस ली और उसकी मादकता को सूँघता रहा, नरम और मुलायम, अंगुलियो से योनी पट को थोडा फैलाया, गुलाबी रेशम की दीवार खुल गयी,
" जल्दी करो जो करना है, " उसकी आवाज़ लड़खड़ा रही थी, "वहां कुछ काट रहा है " "जल्दी करो" "करो ना " और वो अपना सर जोरों से हिलाने लगी, और मेरे हाथों पर जोर से नाखून गड़ा दिए , आँखें बंद थी, और नितम्ब उठा कर बेड पर पटकने लगी, मैंने योनी पट खोल होठ और जीभ योनी के अन्दर घुसा योनी को चूसने लगा, "ओह्ह्हह्ह. आह्ह्ह.ओह्ह्ह्ह .उईईइईईए . .आअह्हाआअ...." जैसी आवाजें करने लगी,
"और कर" " और कर", "पूरा काट ले उसे" , "करता रह", "छोड़ मत", "जोरे से काट", "दांत गड़ा दे, काट ले", "चूसे ले" जैसी भाषा बोलने लगी, मैं जोरों से योनी को चूस रहा था और कई जगह योनी के अन्दर काट लिया, पर उसे और चाहिए था, वो पागल सी हो गयी थी, लिंग को टाईट पकड़ खींचने लगी, मेरी हालत ख़राब थी, कुछ ही छनों में लिंग ने पानी छोड़ दिया और वीर्य की धार उसके स्तनों और पेट पर गिरी, कुछ बूँद उसके चेहरे पर भी गिरीं और जैसे की उसे होश आया, "क्या हुआ, यह क्या हुआ" कहती हुई वो हडबडा कर उठ बैठी, उसे समझ में नहीं आया की क्या हुआ, मेरे लिंग के मुहं पर दूधिया वीर्य की बूँद लगी हुई थी और उसके चेहरे पेट और स्तनों पर, कुछ सेकेंड्स तो आश्चर्य से देखती रही फिर शर्मा गयी,
बोली " क्या किया तुमने मुझे" और सर झुका लिया, बिना आँख मिलाये पूछा "और यह क्या है, छी.. छी ..कैसे आया छी ..." कहकर मुहं और स्तन पर लगे वीर्य को अपनी अंगुलियो और हथेलियो से पोंछ लिया, कोमल की मासूमियत उसकी खूबसूरती को और बढ़ा रहे थे, उसने अपनी हथेलियों को सूँघा और पूछा "यह क्या है" और मेरे लिंग को देखने लगी, "इससे निकला " और मैंने सर हिलाया तो अचरज से उसकी आँखें बड़ी हो गयीं , "कैसे ", मैंने कहा " कल रात भी तुमने ऐसे ही इसे निकाला था जो मेरे अन्दर्वेअर में लगा है, यह लड़कों के लंड का रस है जो जवान सुन्दर लड़की के छूने से निकल जाता है " मैंने पहली बार लंड शब्द का इस्तेमाल किया था,
"पर रात मैंने तो तुम्हारे इसे छुआ नहीं" कोमल बोली,
"तो क्या हुआ , तुमने मुझे तो छुआ था "...
.
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(This post was last modified: 06-06-2021, 06:07 PM by usaiha2. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
UPDATE 04
तुमने नींद में मुझे छुआ और इसे पकड़ कर इतना खींचा की इसका जूस निकल गया"
"झूठ मत बोलो, मैंने सिर्फ तुम्हारे मुंह में चोकलेट डाली थी और कुछ नहीं किया" कोमल बोली,
"सच बताओ, तुमने मुझे पप्पी नहीं ली ? " मैंने अँधेरे में तीर मारा जो निशाने पर लगा, कोमल को काटो तो खून नहीं, " बस एक बार गाल पर" आँखें झुकाकर और चेहरा घुमा कर कोमल ने जवाब दिया, मैंने कोमल के गोरे गालों पर छोटी सी पप्पी जड़ थी, वो शर्म से बोल नहीं पा रही थी, मैंने उसे खींचा और सीने से लगा कर होठों को चूस लिया, उसने भी अब जवाब दिया और मेरे सर को पकड़ जोरों से मेरे होठ अपने मुहं में लेकर चूसने लगी, हम तन्मय थे, शरीर मैं चीटियाँ चल रही थी, जलन सी होने लगी, मैंने स्तनों को दबाया और कुर्ती के बचे हुए बटन खोल कुर्ती नीचे सरका दिया, वो पूरे समय आँखें झुकाए खड़ी रही मुझे थामे हुए, और मेरे लिंग को सहलाते हुए जो कोमल के सहलाने से फिर से गर्म हो कठोर होने लगा था,..................
.......बाँहों में मस्त जवान कली, गुदाज़ उरोजो का खुला निमंत्रण, हसीं चेहरा, गुलाबी होंठ जो वासना से थरथरा रहे थे, एक खूबसूरत उफनता हुआ स्त्री शरीर जो किसी को भी दीवाना बना दे, हम एक दुसरे के बाँहों में थे, कोमल के गोरे और चिकने स्तन उठान पर अपनी पूरी शान से जैसे किसी जवान होती लड़की........बाँहों में मस्त जवान कली, गुदाज़ उरोजो का खुला निमंत्रण, हसीं चेहरा, गुलाबी होंठ जो वासना से थरथरा रहे थे,
एक खूबसूरत उफनता हुआ स्त्री शरीर जो किसी को भी दीवाना बना दे, हम एक दुसरे के बाँहों में थे, कोमल के गोरे और चिकने स्तन उठान पर अपनी पूरी शान से जैसे किसी जवान होती लड़की के होते हैं, गुलाबी एरोला, मुहं में लेकर चूसने लगा, वो हल्की सिस्कारी भर रही थी, मेरे लिंग को दोनों हाथों से पकड़ सहला रही थी और अपनी योनी की और खींच रही थी, पूरा माहौल वासना की आग से भरा था, मुझे कुछ
होश था लेकिन कोमल पूरी तरह मदहोश, मैंने उसे चूम कर दूर हटाया, वो बहुत गर्म थी और मेरे हाथों को बुरी तरह खरोंच लिया दूर होते हुए, अपनी नाराजगी जाहिर की इस तरह, पर माँ-पिताजी आने वाले थे, मन में डर था.
उसने याचना भरी आँखों से देखा जैसे कह रही हो क्यों छोड़ दिया, गालों को चूमते हुए कोमल के कानों में कहा " माँ-पिताजी आने वाले हैं, दोपहर में मिलेंगे" .... उसकी बेचैनी साफ़ दिख रही थी, मैंने सोचा भी नहीं था की एक नादान सी दिखने वाली लड़की का काम वासना से ये हाल होगा, मैं अपने कमरे में आया और आँखें बंद कर अपने भगवान को धन्यवाद् दिया जिसने ऐसा सुनेहरा मौका मुझे दिया था एक जवान मस्त लडकी को सम्भोग के लिए मेरे पास भेजा, कोमल का मस्ती भरा शरीर जैसे आँखों और दिमाग से हटने का नाम नहीं ले रहा था.... भगवान ने बहुत धैर्य और आराम से उसे बनाया था, रह रह कर उसकी बाहें , उसकी नशीली आँखें, उसके उरोजों को दबाने का आनंद, अत्यंत मस्त नितम्ब और हल्की मुस्कराहट , अभी तो उसे पूरा देखा भी नहीं था, मैं कल्पना कर रहा था उसकी जवानी को मादरजात नंगी देखने का...,
अपने लिंग से काफी देर खेलता रहा, किसी तरह उसे समझाया की शांत रह, तुझे अभी वो चीज़ दूंगा की तू भी याद रक्खेगा ज़िंदगी भर...... और वही हुआ पाठकों, आज भी उस दिन को याद करता हूँ तो शरीर में एक तनाव भर आता है, कुछ ही देर में माँ-पिताजी आ गए.. किसी तरह मन पर लगाम लगते हुए मैं नहा कर तैयार हुआ और जब नाश्ते की टेबल पर आया तो देख कर दंग रह गया, कोमल पहले से बैठी थी, खूबसूरत मूर्ती सी, उसने सलवार कुर्ती की बजाय स्कर्ट और कमीज़ पहनी हुई थी, इन कपड़ो में उसकी जवानी फूट फूट कर बाहर आ रही थी, पूर्ण विकसित स्तन गज़ब समां बना रहे थे, स्कर्ट से नीचे घुटने और पैरों की आकर्षक पिंडलियाँ दिख रहीं थी,
उसने मेरी और चिढ़ाने वाली नज़रों से देखा.. एक व्यंग भरी मुस्कान के साथ जैसे कह रही हो .... अब बताओ क्या करोगे.... अब तो तुम्हे मेरे पास आना ही होगा... कमसिन लड़कियां कामाग्नी में जिस प्रकार पागल हो जाती हैं वैसा किसी उम्र में नहीं होतीं यह मैंने बाद में जाना, वो अपने आप को पूर्ण समर्पित करती हैं और आपसे भी वही चाहती हैं ...उनके लिए वासना एक तूफ़ान की तरह होती है, जबरदस्त आवेश, कभी कभी इस आवेश से डर लगने लगे, ऐसा उन्माद की आप सोचें वासना में पागल इस लड़की को कैसे शांत करूँ ... ऐसा ही कोमल और मेरे साथ हुआ, अब बात कुछ दूसरी ही थी, कोमल मुझे लुभाने में लग गयी, यहाँ तक की अपने स्वाभाविक शर्म को भी छोड़ दिया, उसे दोपहर का इंतजार भी नहीं था, ये एक उन्माद था,
कमसिन लड़कियां जिस प्रकार पागल हो जाती हैं वैसा किसी उम्र में नहीं होतीं यह मैंने बाद में जाना, वो अपने आप को पूर्ण समर्पित करती हैं और आपसे भी वही चाहती हैं ..उनके लिए वासना एक तूफ़ान की तरह होती है, जबरदस्त आवेश, कभी कभी इस आवेश से डर लगने लगे, ऐसा उन्माद की आप सोचे की वासना में पागल इस लड़की को कैसे शांत करूँ ... ऐसा ही कोमल और मेरे साथ हुआ, अब बात कुछ दूसरी ही थी, कोमल मुझे लुभाने में लग गयी, यहाँ तक की अपने स्वाभाविक शर्म को भी छोड़ दिया, उसे दोपहर का इंतजार भी नहीं था, ये एक उन्माद था, उसने आँखों से इशारा कर अपने बगल में बैठने को कहा, जैसे ही मैं बैठा उसने मेरे जांघों पर हाथ रख दबाया और मुस्कुरा दी, मैं अचंभित था,
माँ हमें नाश्ता करा रहीं थी, मुझे डरथा की कहीं उन्होंने देख लिया तो, लेकिन कोमल को डर नहीं था, वो बार बार मुझे छेड़ रही थी, छूने और छेड़ने से लिंग पैंट में फटक रहा था, उसने मेरे जिप पर हाथ रक्खा और लिंग को पकड़ जोरों से दबा दिया, मुझे आर्डर देती हुई सी बोली नाश्ता कर जल्दी ऊपर आओ, तुमसे काम है. उसकी आवाज में रोबाब था, मेरे पर हुक्म चलाने जैसा, जबसे आई थी मैंने देखा था उसमे एक शान थी शायद अपने हुस्न और जवानी की ताकत का अंदाज़ा था उसे, और अब जब वो मेरे पीछे दिवानी थी तब भी वही अंदाज़, कोमल उठके ऊपर चली गयी, हमारे घर में छत पर दो कमरे हैं, नीचे मेरा और मेहमानों का कमरा है आँगन बैठक और रसोई है और ऊपर माँ-पिताजी का कमरा और एक कमरा है जो ख़ाली रहता है और बहुत बड़ी छत है, घर के चारों और खुली जगह और सामने गेराज और फुलवारी है , ऊपर छत पर कोई नहीं होता, माँ-पिताजी ज्यादा समय नीचे ही होते हैं बैठक में या फिर सामने बगीचे में. मैं कुछ कुछ कोमल के ऊपर छत पर बुलाने का मतलब समझ रहा था फिर भी विश्वास नहीं हो रहा था, मैं ऊपर छत पर आया तो देखा कोई नहीं, पानी टंकी के पीछे कोमल खड़ी थी, मुझे नजदीक बुलाया,
" सुबह क्या किया तुमने ?" कोमल बोली
"मैंने क्या किया, तुमने ही मेरे मुह में चोकलेट डाल दी नींद में "
"तो तुम भी मुहं में लगाते , वहां क्यों लगाया" कहकर कोमल ने
अपना हाथ स्कर्ट पर योनी की जगह रख इशारा किया,
"जैसे तुम्हारी वैसे मेरी मर्जी, कहीं लगाऊं, पर मैंने कुछ किया नहीं ? " अनजान बनता हुआ मैं बोला,
"बनो म़त, तुमने क्या किया दिखाऊँ ? " कहते हुए कोमल ने अपनी स्कर्ट ऊपर कर दी
ये क्या, मैं देखता रह गया, उसने पैंटी नहीं पहनी रक्खी थी, गोरी, चमकती सुनहरे
बालों के बीच की योनी मेरे सामने एकदम नंगी थी, दो जांघो के बीच की छोटीसी गद्देदार जगह, बीच में एक गुलाबी फांक, मैं सुन्न था, समझ में नहीं आया क्या बोलूँ, मैं देख रहा था और कोमल निःसंकोच मुझे अपनी नंगी योनी दिखा रही थी, उसकी आँखें में एक चंचल मुस्कराहट थी,
" देखो कैसी लाल कर दी तुमने" उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी योनी पर लगाया, मेरी हालत ख़राब थी, मैं उसकी योनी सहला रहा था और वो आँखें बंद कर जमीन पर बैठ गयी, योनी छिद्र पर हाथ लगा तो पाया बुरी तरह से पानी निकल रहा था, योनी चिकनी होकर गीली हो गयी थी, उसने हाथ बढ़ा कर मेरे जिप को खोल मेरा मोटा लिंग बाहर निकाल लिया और हसरत भरी नजरों से देखने लगी,
कोमल होशियार हो गयी थी, पुरी चमड़ी पीछे कर सुपाड़े को बाहर निकाला और अपने गालों और होठों से उसे छु कर प्यार करने लगी, लिंग भी गीला हो पानी छोड रहा था, उसने उसे चूस लिया और फिर अचानक ही पूरा सुपाडा मुहं में डाल चूसने लगी, यह मैंने सोचा भी नहीं था की कोमल ऐसा करेगी और बिना मेरे बोले हुए अपनी मर्जी से इतने मज़े में मेरा सुपाडा चूस रही थी, मैंने उसका सर पकड़ लिया लिंग को अन्दर बहार करने लगा, वो सुबह लंड को देख व्याकुल हो चकी थी और अब उसको अपने ऊपर कण्ट्रोल नहीं था,
मेरा रस कोमल के मुहं में ही निकलने ही वाला था की मैंने उसे दूर किया, लेकिन लिंग का रस जोरों से फूट ही पड़ा और कोमल के गले और आँखों पर पिचकारी सा मारता हुआ बहने लगा, कोमल ने आँखें खोली, उसका चेहरा लाल था, पसीने की बूँदें चहरे पर और मासूमियत और ख़ूबसूरती बढ़ा रही थी, वो फिर भी लिंग के आकर्षण में बंधी उसे छोड़ने को तैयार नहीं औए कुछ कुछ स्तब्ध आश्चर्यचकित नज़रों से उसे देखे जा रही थी, ऐसा लग रहा था की इसके पहले उसने किसी युवक का लिंग इस प्रकार पूर्ण नंगा और रस निकालते हुए देखा नहीं था और सोचा भी नहीं होगा की पुरुष लिंग क्या ऐसा होता है, मैंने उसे उठाया, और सीने से लगा कर चूम लिया,
वो पूर्ण रूप से समर्पित, अपने रूमाल से उसके चेहरे पर फैले वीर्य को साफ़ किया और उसके होठों और स्तनों को चूमते हुए उसे दोपहर में मिलने को कहा, वो चुपचाप थी, शर्म से नजर नहीं मिला रही थी, लेकिन मुझे छोड़ नीचे जाने को भी तैयार नहीं, किसी तरह उसे मना कर भेजा और तीन बजे उसे उसी जगह बुलाया, उस समय सभी सो जाते थे, मेरा लिंग अब शांत हो गया था, मैं भी थोड़ी देर बाद नीचे आया, कोमल बाथरूम में थी, मैं बाज़ार की और चला गया, कोमल और मेरे माँ-पिताजी शाम को किसी मित्र परिवार से मिलने जाने वाले थे और रात का खाना भी वहीं था,
मेरा मन सातवें आसमान पर था, समझ में नहीं आ रहा था की क्या ये सचमुच मेरे साथ हो रहा था, मन कहीं नहीं लगा और मैं वापस एक बजे तक घर आगया, गर्मी का मौसम था, सभी दोपहर को सो रहे थे, मेरा खाना डाइनिंग टेबल पर लगा था, भाई भी बाहर था, आज सुबह से 2 बार वीर्य स्खलन हो गया था, कामुक मन शांत था, लेकिन दिल कहीं कोमल के पास था, देखा माँ और कोमल किचेन में थे, मुझे देखते ही कोमल बाहर आयी और मुझसे मुस्कुराते हुए खाना खाने को कह कर माँ से बोली " मैं रजत को खाना खिला देती हूँ ", उस समय कोमल ने खाना खिलाया,
माँ रसोई में बना रही थी, खिलाते पूरे समय कोमल मेरे साथ बदमाशी करती रही, कभी मेरे पैर को अपने पैर से दबा देती, कभी मेरे गाल खींच लेती, एक बार तो मेरा कान ही जोरों से काट लिया, माँ खाना खिला कर ऊपर अपने कमरे में चली गयी, कोमल से कहा वो भी अपने माँ के कमरे में जा कर सो जाये शाम को बाहर जायेंगे , कोमल ने बड़ी सहजता से कहा "ठीक है आंटी" और मुझे आँखें दबा कर कुछ इशारा किया, नीचे मैं और कोमल अकेले रह गए थे, उसके माँ बाबूजी महमानों के कमरे में सो रहे थे, हम कुछ देर इधर उधर की बातें करते रहे, फिर कोमल ने कहा मैं आती हूँ और अपनी माँ के कमरे में देख कर आयी, कहा माँ-बाबूजी दोनों गहरी नींद में हैं, चलो हमलोग तुम्हारे कमरे में चलते हैं,
मैंने कहा कोई जग जायेगा लेकिन कोमल बोली "कुछ नहीं होगा तुम डरपोक हो, एक दो घंटे कोई जगने वाला नहीं, मैं तो लड़की होकर भी नहीं डरती " और मेरा हाथ खींच कर मेरे कमरे में ले गयी और अन्दर से दरवाजा बंद कर लिया, मुझे बेड पर धकेल मेरे ऊपर गिर पड़ी और मुझे दबा कर जोरों से होठों को चूमने लगी. अपने युवा स्तनों के दबाव से मुझे काबू में कर लिया, आज याद करता हूँ तो लगता है कोमल पागल हो गयी थी, मतवाली हथिनी की तरह, बेफिक्र और उन्माद में मस्त, उसे सिर्फ अब चाहिए था की मैं उसकी जवानी से खेलूँ और उसे आनंद दूं,
उसने सारी शर्म और लज्जा किनारे कर दी थी, सुबह के अनुभवों ने उसे वासना के लिए लाचार कर दिया, सच पूछें दोस्तों तो मुझे अपनी जीत और उसकी लाचारी पर एक विजय भावना और अपनी ताकत का एहसास हो रहा था, वो पुरी तरह समर्पित थी, लेकिन साथ ही एक प्यार भी आ रहा था और उसकी गज़ब जवानी को रौंद देने का विचार भी...... पलट कर उसे अपने नीचे किया और उसके स्तनों को आजाद किया, दोस्तों इस कमसिन उम्र में लड़की के स्तनों का आनंद जैसा रसभरा होता है है वैसा सिर्फ एक बार और थोड़े समय के लिए जब वो नवजात बच्चे की माँ होती है तब होता है
...
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UPDATE 05
कोमल ने अभी 18 वे साल में कदम रक्खा ही था लेकिन शरीर का विकास जैसे कोई कमसिन कन्या हो, दोस्तों आपने देखा होगा की कमसिन -कुंवारी लड़कियों में एक हल्का मोटापा होता है जिसे अंग्रेजी में पप्पी फैट कहते हैं, शरीर का हल्का मोटापा उन्हें बेहद आकर्षक बनाता है,, खासकर इससे लड़कियां जबरदस्त सेक्सी लगने लगती हैं और उनके सभी उभार मस्त हो कर दीखते हैं उन विशेष स्थानों जैसे उनके नितम्बों पर, उनके स्तनों पर, उनकी कमर और कूल्हे, उनकी पिंडलिया और जांघें, यहाँ तक की गाल भी फूल जाते हैं, बस पूछिए मत जिन लडकियों को अपने इन घातक अंगों की ताकत का एहसास हो जाता है वो लडकों को पागल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़तीं. और मैं भी ऐसा ही पागल बना बैठा था,
उससे भी ज्यादा पागल थी कोमल जिसकी काम वासना में आँखें भी नहीं खुल रहीं थी, उसपर एक खुमार था, मैंने उसके उरोजों को शर्ट से बहार किया और चूसता हुआ एक हाथ उसकी जांघों पर गया और पाया की उसने पैंटी नहीं पहनी थी, मतलब था वो सुबह से घर में नंगी ही घूम रही थी अन्दर से..... मुझे उसकी हिम्मत पर आश्चर्य हुआ,
मैंने पुछा " यह क्या... कुछ पहना नहीं, ऐसे ही घूम रही हो, कोई देख लेता तो ? ".
उसने मुझे चिपका लिया और कहा " तुम्हे दिखाना था, तुमने तो देखा नहीं.. और कौन देखता ? " उसकी बातें मुझे उसे नंगा करने के लिया मजबूर कर रहीं थी, " तो अब दिखा दे न ? " " देख लो न , मैंने रोका क्या ? " और कमर उठा दिया, मैंने उसकी कमर से स्कर्ट के बटन खोले और नीचे सरका कर उसे नंगा कर दिया, उसकी शर्ट उतर कर उसके जोबन को भी नंगा कर दिया, वो पूरी तरह से मदर्जात नंगी थी.....
कोमल की आँखें बंद हो रहीं थी उसपर एक खुमार था, उसने अपने आपको पूरी तरह समर्पित कर दिया था, खूबसूरत कली मेरे से सम्भोग के लिए तैयार और जैसे याचना कर रही हो की मुझे सुख दो, मुझे लूट लो, मेरे शरीर को रौंद दो, मेरे अन्दर समा जाओ. कोमल ने मेरे कंधो और हाथों पर जोरों से खरोंच लिया, वो वासना की आग में जल रही थी और अब उसकी मुंह से सिसकारी निकल रही थी,
मैं हाथों को उसकी योनी पर लेगया , वासना के रस से गीली, मैंने अपनी अंगुली अन्दर घुसाई, काफी टाईट, वो चीखने लगी " बाहर निकाल , क्या कर रहा है...दर्द हो रहा है ....", पर मैंने अंगुली अन्दर डाल ही दी और उसकी योनी के अन्दर मसलने लगा, वो चिल्ला रही थी पर उसे आनंद भी आ रहा था, थोड़ी ही देर में बोलने लगी "हा हां हां अच्छा लग रहा है.....बहुत मजा आ रहा है....मेरे अन्दर कुछ हो रहा है....., ..डाल डाल घुसा दे पुरी अंगुली मेरे अन्दर ..." और बडबडाने लगी, कोमल सर पटक रही थी और मुझे नोचे जा रही थी, मेरे होठों को काट लिया, पुरी तरह नंगी मेरे नीचे दबी हुई, मस्त जवान स्त्री शरीर, मेरा मन भी बेकाबू हो रहा था पर मुझे कुछ होश था लेकिन कोमल सुब कुछ देने को तैयार, मैं नहीं चाहता था की कुछ ऐसा हो जाये की बाद में पछताना पड़े,
कोमल बेतहाशा सिसकार रही थी और मुझे गालों और कंधे पर कई जगह काट लिया और नाखूनों से नोच लिया था, उसकी बेचैनी मुझे मजबूर कर रही थी की सब भूल कर उसके साथ सम्भोग कर बैठूं, मैं होश खो रहा था, पर कही दिमाग रोक रहा था, किसी तरह उससे अपने आप को छुड़ाया और कहा अभी नहीं, शाम को मिलेंगे, उसकी आँखों में गुस्सा था, उसको होठों पर चूम कर किसी तरह मनाया और अलग किया, फिर भी उसकी नाराजगी दिख रही थी , उसने मुझे धक्का देकर कहा "अब मत आना मेरे पास" और कपड़े ठीक कर बाहर निकल गयी,
मैंने देखा किचेन में जाकर सुबक रही थी, मुझे दुःख तो था पर मन में विश्वास की वो मेरे किये का सही मकसद समझ जायेगी, मैं घर से निकल कर यूं ही बाज़ार में घूमता रहा, शाम को करीब ६ बजे घर पहुंचा तो देखा की सभी लोग किसी मित्र परिवार से मिलने जाने को तैयार हो रहे थे, पिताजी ने मुझसे भी कहा मैंने इन्कार कर दिया, कोमल भी जा रही थी, मेरा मन था वो रुक जाये, मैंने कोमल को किनारे बुला धीरे से कहा तुम मना कर दो, मत जाओ, उसने बेरुखी से कहा " क्यों रुकूं, तुम्हें मेरी जरूरत नहीं" और मुहं फेर चली गयी.
मैं घर में अकेला था, ... कोमल की बहुत याद आ रही थी, मन बेचैन था, बार बार उसके जबरजस्त मादक शरीर का ख्याल आ रहा था, उसका सुबकना वो कितनी भोली थी, पर साथ ही लगा की इतनी कामुक कैसे हो सकती है, क्या इसके पहले भी कभी उसने किसी से से शारीरिक सम्बन्ध बनाये थे ? बार बार मन में ये प्रश्न आता था, लेकिन लगता था की इतनी भोली और मासूम दिखने वाली लड़की ऐसा नहीं कर सकती, यह तो बाद में जाना की इस उम्र की लड़कियों पर वासना का भूत जब सवार होता है तो अच्छों अच्छों को शर्मिन्दा कर सकती हैं, खास कर उनके शुरुआती यौन व्यवहार में तो बेहद गर्म होती हैं.
मैंने सोच लिया था रात को आएगी तो छोडूंगा नहीं और उसमे कितना जोश है देखता हूँ और उसका दिमाग भी ठीक करना होगा..... पूरे समय ये ही सब सोचते बीत गया...रोक नहीं पाया तो अपने लिंग से खेलता रहा...रात करीब ११ बजे सभी वापस आये, कोमल ने मुझे देखा भी नहीं...मुहं फुला रक्खा था.... और कुछ ही देर बाद सभी सोने चले गए ...कोमल बाथरूम में गयी तो मैंने बात करने की कोशिस की लेकिन बिना कुछ कहे वो कपड़े बदल अपने कमरे में चली गयी... उसने एक ढीला सा घुटनों तक का पजामा पहना हुआ था और एक छोटी सी ढ़ीली सी कमीज बिना बाँहों की जिसमे उसका यौवन फूट पड़ रहा था l
चेहरे पर एक गरूर.... मैं सोच रहा था कैसे इसके घमंड को चूर करूं लेकिन मन ही मन उसपर मर मिट भी रहा था...उसकी कांख के हलके भूरे बाल दिख रहे थे और उरोजों के तनाव से कमीज़ के बटन खिंच रहे थे, स्तनों की घुन्डियाँ कमीज़ पर जोर दे रही थी, साफ़ मालूम हो रहा था की उसने अपनी चोली खोल दी थी और उसके उन्नत स्तन कमीज़ के भीतर आज़ाद थे शायद हमें चिढ़ाने के लिए... एक नज़र हमारी ओर देख कोमल अपने कमरे में भागी... हम देखते रहे, मैंने कमरे में आकर सोने की कोशिश की लेकिन नीद नहीं आईl
छोटा भाई बगल में सो रहा था.... कब समय बीत गया मालूम नहीं.. कोमल के कमरे में जाकर कई बार झाँका... वो गहरी नीदं में सोई हुई लगी.... उसकी बगल में उसकी मम्मी थी हिम्मत नहीं हो रही थी उसे छेड़ूँ, कोई जग गया तो क्या होगा .... रात करीब २-२.३० बजे ऐसा लगा जैसे कोई मेरे कमरे के सामने से निकला ..... अँधेरा था. बहुत धुंधली रोशनी में मैं उठ कर बाहर की ओर लपका, देखा कोमल थी जो बाथरूम जा रही थी.... उसने दरवाज़ा बंद किया .... मैं दरवाज़े के पास आया तो बाथरूम से कोमल के पेशाब करने की आवाज़ आ रही थी l
मेरे लिंग में कुछ हलचल सी हुई, मैंने हल्के से दस्तक देकर पूछा "कौन है " ...."मैं हूँ" कोमल ने धीमे से कहा, मैं दरवाज़े के बाहर खड़ा रहा, वहां अँधेरा था, .... कोमल कुछ क्षण में पैजामा बाँधती हुई बाहर निकली, मैंने झट उसका हाथ पकड़ लिया और खींच कर उसके होठों पर होठ दबा दिया, "छोड़ो मुझे .." उसने हाथ छुड़ाते हुए कहा, " नहीं बात करनी, तुम क्या समझते हो.... " और जाने की कोशिस करने लगी, मैंने जोरों से उसकी कमर पकड़ फिर से उसे चूम लिया, वो मुझे धक्का दे रही थी, मैंने कहा " ठीक है, जाना है तो जाओ...." और उसे छोड़ दिया l
मेरा शरीर आवेश में गर्म हो रहा था , गुदाज़ स्तनों के स्पर्श से लिंग टाईट होकर खड़ा होगया , मन तो हो रहा था की उसे वहीं जमीन पर ही पटक दूं और उसकी सारी गर्मी मिटा दूं पर मैं चाहता था की वो अपनी ओर से पहल करे और खुद मेरी बाँहों में आये.................कोमल देखती रह गयी, कुछ क्षण रुकी, उसे उम्मीद नहीं थी मैं ऐसा कहूँगा, वो अपने कमरे की तरफ लौटने लगी लेकिन तभी कुछ सोच वापस मेरे नजदीक आयी और मेरा हाथ पकड़ अपने कमर पर लपेट लिया और उरोजों को मेरे सीने से दबा मुझे पीछे धकेल मेरे होठों को चूसने लगी l
" तुम क्या समझे, मैं छोड़ दूंगी... क्यूं पहले छेड़ा मुझे ..." और लिपट गयी मुझसे.... वो चूम रही थी, मैं अवाक था उसका बदला रूप देख कर... मेरा लिंग उसकी योनी पर दबाव दे रहा था, उसे व्याकुल करने के लिए ये काफी था... उसने हाथ नीचे कर मेरे हाफ पैंट के उपर से लिंग को पकड़ लिया l
"मुझे सताते हो... अब बताती हूँ ..."
अभी भी गर्व था आवाज़ में, मैंने छेड़ते हुए कहा " अभी तक तो बहुत गुस्सा थी अब क्या हुआ..."
"अब तुम्हारी जान मारने आयी हूँ..." और लिंग को पैंट के अन्दर हाथ डाल जोरों से मरोड़ दिया....
"कोई आ जायेगा... चलो बैठक में चलते हैं... मैंने कहा ,
"वहां कोई देख लेगा, यहाँ अँधेरे में कोई नहीं आएगा... " कहते हुए कोमल ने मेरा हाथ अपने स्तनों पर दबा
....."वहां कोई देख लेगा, यहाँ अँधेरे में कोई नहीं आएगा... " कहते हुए कोमल ने मेरा हाथ अपने स्तनों पर दबा दिया ...
"सब गहरी नींद में हैं , कोई आने वाला नहीं....डरो मत... " कोमल बिलकुल निश्चिंत थी उसे कोई डर नहीं की कोई भी आ जाए...
मेरी उत्तेजना से हालत ख़राब थी उससे भी बुरा हाल कोमल का था, मेरे लिंग को हाथ में लेकर खींच रही थी और अपने पैजामा को नाड़ा खोल नीचे गिरा दिया, उसकी योनी नंगी थी अब, मैंने एक हाथ नीचे लगाया तो योनी एकदम गीली और चिकनी ,
ऐसा जैसे योनी से कोई गर्म हवा सी निकल रही हो, मैंने योनी द्वार पर उंगली लगाई तो जैसे अन्दर फिसल गयी,
" आह अह.. क्या कर रहा है ....आ आ ..बहोत अच्छा लग रहा है... और डाल ना अन्दर .." कोमल जैसे गिडगिडा रही थी,
"डाल न.. समझता नहीं क्या.....रगड़ दे उसे..." . कोमल गर्मी में बोले जा रही थी, मैं देखता रह गया, सोच रहा था ये लड़की एक दिन में ही बल्कि कुछ घंटो में ही कितनी खुल गयी थी और पहले जैसी शर्मीली नहीं थी, ....एक ही दिन में जवानी और वासना के आवेश ने उसे इतना पागल कर दिया था और बेशर्म भी, मैं उसकी योनी को रगड़ रहा था, वो आनंद में डूबी थी, मेरे लिंग को बार बार अपने हथेलियों से घेर कर महसूस कर रही थी और सिसकारी ले रही थी l
"क्या है ये...आ आ मस्त चीज़ है.....मन करता है खा जाऊं..." कोमल कहे जा रही थी, मैं भी उसकी मस्ती देख पागल सा था, लग रहा था लिंग से वीर्य की धार फूट पड़ेगी, अपने पर काबू करना मुश्किल था, उसकी हथेली को लिंग से हटाया पर वो कहाँ मानने वाली थे, नीचे बैठ गयी और पैंट को नीचे खींच मुझे नंगा किया और मेरे चूतड़ों को अपने दोनों हाथों से पीछे आगे दबाया और लिंग को अपने मुहं में निगल लिया l
मैं उसके बालों से खेल रहा था, वो नीचे बैठी जैसे कोई लोलीपोप चूस रही हो ऐसे मेरे लिंग को मुहं में ले कर चूस रही थी, ... मेरे दोनों चूतड़ों को हथेलियों से दबाते हुए बड़े मजे से लिंग को मुहं में ले रक्खा था....चूसते हुए कई बार लिंग को काट लिया l
" ये क्या... दर्द होता है... काटो मत ... " मैंने कहा तो हंसने लगी,
"पूरा काट लूंगी और तुम बिना इसके रह जाओगे ..."
मैं स्खलित नहीं होना चाहता था, अगर नहीं रोकता तो सुबह की तरह कोमल के मुहं में ही हो जाता,
कोमल को उठाया और चूमते हुए पुछा " इतना पसंद है....तो रख लो... "
"कैसे.." कोमल बोली..
" चलो ड्राइंग (बैठक) में..." मैंने उसके कान में कहा. हमने कपडे ठीक किये और बिना शोर किये बैठक में आ गएl
ड्राइंग में एकदम अँधेरा होता था लेकिन बाहर तरफ दरवाज़े पर रात को एक बल्ब जलता था और उसकी बहुत हल्की धीमी रोशनी ड्राइंग में आती थी, जिससे की अगर कोई ड्राइंग में हो तो बस एक छाया सी मालूम होती थी, मैंने कोमल को सोफे पर लिटाया और उसके ऊपर चढ़ कर उसको आगोश में लेते हुए चूमने लगा, वो भी मेरे मुहं में जीभ डाल कर मेरे चूमने का पूरा जवाब दे रही थी l
रात का समय हम दोनों अकेले ड्राइंग में अधनंगी अवस्था में, अन्दर से डर भी की कोई अगर अचानक आ गया तो क्या होगा, ...यूं तो कोमल को भी डर लग रहा था लेकिन हम दोनों ही खतरा लेने को तैयार थे, हमें कुछ नहीं सूझ रहा था सिवाय एक दुसरे के साथ मजा लेने के l
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UPDATE 06
काफी देर तक हम एक दुसरे को चूमते चाटते रहे, कोमल और मेरे बीच अब कोई झिझक नहीं थी... हम बेबाक एक दुसरे के निजी अंगों से खेल रहे थे, उन्हें चूस रहे थे...चूम रहे थे और अपनी जवान इच्छाओं के बारे में खुल कर बातें कर रहे थे, पहले तो कोमल शर्माती रही लेकिन बाद में इतना खुल गयी जो मैंने सोचा भी नहीं था... उसने बहुत अचरज और मजे लेकर सभी अंगों के बारे में पूछा और उनके रोजमर्रा के गंदे नामों पर खूब हंसी.... उसने सुन तो रक्खे थे पर कभी अपने मुहं से कहा नहीं था..... थोड़ी देर बाद में तो वो अंगो के नाम बार बार हंस हंस कर ले रही थी, बल्की मुझे चिढ़ाने के अंदाज़ में की तुम क्या समझते हो... क्या मैं लड़की हूँ तो तुम्हारे जैसा नहीं बोल सकती...
उसकी ये अदाएं मुझे और ज्यादा गर्म बना रहीं थी.... कोमल के लिए ये पहला ऐसा अनुभव था जब उसने इतनी आज़ादी और आनंद महसूस किया..... कभी वो मलिका बन जाती ...और मैं उसका गुलाम....और कभी वो मेरे सामने याचना करती हुई .. मुझे चोद कर मेरी जान लेले ... उसने एक दो बार लड़कों के लिंग क्षणिक देखे तो थे पर कभी इस तरह नंगे तने हुए नहीं और उसने कबूल किया की मेरे लिंग का लाल सुपाडा पूरी तरह तना हुआ और गीला चमकता हुआ जब उसने पहली बार देखा तो वो अपने आप को रोक नहीं पाई और उसका मन अनायास ही उसे छूने और महसूस करने का हो गया और वो ऐसा कर बैठी, उसे बाद में खुद पर शर्म भी आयी लेकिन फिर से देखने और छूने की इच्छा को रोक नहीं सकी....
उसने बताया की जब उसने मेरे सुपाडे को देखा था तो उसे लगा की यह कोई गर्म लोहा है और वो उसे फूंक मारने लगी और अभी भी उसे लाल सुपाडा देखने से गर्म लोहा ही लगता है...सचमुच वो लंड की दिवानी हो गयी थी और बार बार मेरे लंड को पीछे खींच सुपाड़े को देखती... उसे प्यार करती... अजीब अजीब आवाजें मुहं से करती और उसे अपने होठों के बीच लेकर चूसती, पूरे सुपाड़े को निगल जाती, मैंने भी उसकी योनी को चूस चूस कर लाल कर दिया, वो कई बार स्खलित हुई .....मुझे भी स्खलित किया ... मेरा वीर्य उसने अपने स्तनों पर लिया और बड़े मजे से उसे अपने स्तनों पर लपेट लिया और मालिश करती रही,
वो मस्ती में दीवानी हो गयी थी, बार बार कहती रही की उसने ऐसा आनंद, ऐसी शरीर की जलन कभी पहले महसूस नहीं की, ये मस्ती २-३ घंटे चलती रही, हम करीब करीब नंगे से सोफे पर पड़े एक दुसरे से खेलते रहे, प्यार करते रहे, हम शायद दिन भर ऐसे ही पड़े रहते, मन भरा नहीं, लेकिन दिन निकल रहा था, ये तो अच्छा हुआ की सब सोये हुए थे, वरना उस दिन शामत थी, मैंने कोमल से कहा तुम चुपचाप कमरे में जाओ और मैं अपने कमरे में आया, छोटा भाई सो रहा था, मेरी भी कब आँख लगी मालूम नहीं.....
................सुबह उठा तो मालूम हुआ मेरे और कोमल के पिताजी फैक्ट्री चले गए हैं, अब वो देर शाम को ही लौटने वाले थे, माँ और कोमल की मम्मी बैठक में नाश्ता कर रहीं थीं और माँ ने बताया की वो दोपहर वो कोमल की मम्मी को बाज़ार करवाने वालीं थीं और ३-४ घंटे लगेंगे वापस आने में इसलिए मैं जल्दी खाना खा लूं ..... कोमल बाथरूम में नहा रही थी... काम करने घर में मेहरी आती थी वो किचेन में व्यस्त थी, मैं अपने को रोक नहीं सका और बाथरूम की और आया तो अन्दर से पानी की आवाज़ आ रही थी.... मेरी ओर किसीका ध्यान नहीं था, मैंने धीरे से बाथ का दरवाज़ा खटखटाया...कोमल समझ गयी, उसने दरवाज़े के नज़दीक आकर पुछा?
"कौन है...", "
"मैं हूँ..दरवाज़ा खोलो " मैंने कहा
"मैं नहा रही हूँ... तुम जाओ ."
मैंने फिर दरवाज़ा खटखटाया तो उसने थोड़ा सा खोल आँख निकाल कहा "मम्मी आ जायेंगी... बेवकूफी मत कर "... मैंने जोर से दरवाज़े पर दबाव डाला दबाया तो उसने थोड़ा सा खोल कर मुझे अन्दर ले लिया,
" क्या करते हो.. पागल हो गए क्या.. मम्मी बाहर बैठीं है... आ जायेंगी..." वो बोली,
"आने दो ... " और उसको देखा, बिलकुल नंगी, बेहद खूबसूरत पानी में नहाई हुई मूर्ती सी मेरे सामने खड़ी थी, कोमल शर्मा गयी, 'क्या देखा रहे हो.. कल रात तो सब देख लिया .... अब क्या है .." उसने दोनों हाथों से स्तनों को ढक लिया और आगे झुक कर अपनी जाँघों के बीच में योनी को छुपाने की कोशिश करने लगी, "मम्मी बाज़ार जा रहीं हैं, तुम मना कर देना...हम बातें करेंगें.." मैंने फुसफुसा कर कहा
" मेरा भी बाज़ार जाने का मन है.. मैं जाऊंगी..." कोमल बोली "शाम को मिलेंगे.. अब तुम भागो .. मुझे नहाने दो...कोई देख लेगा "
मैं बाथरूम से बाहर निकल आया, उसे दुबारा देखा भी नहीं, बहुत गुस्सा आ रहा था, जब खुद का मन होता है तो मेरे पास आती है और जब मैं कहता हूँ तो मना कर देती है, नखरे दिखाती है. येही सब सोचते हुए मैं तैयार हुआ और बैठक में आया तो देखा कोमल सोफे पर बैठी मुस्कुरा रही थी, मुझसे मुहं बनाते हुए इशारे में कहा की बहुत गुस्सा नजर आ रहे हो, क्या बात है ? मैंने कोई जवाब नहीं दिया और नाश्ता कर बाहर निकल गया, रात को हुए अनुभव के कारण दिमाग कुछ भी सोच नहीं पा रहा था और सिर्फ कोमल ही याद आ रही थी,
मैंने स्कूटर उठाया और बाज़ार की ओर निकल गया, पता नहीं क्या सूझा और एक दुकान से ३ पैकेट कोहिनूर के खरीद लिए, जब वापस आया तो माँ, कोमल और उसकी मम्मी ऊपर के कमरे में बहुत किस्म के कपड़े और साड़िया बिछा कर बातें कर रहे थे, मैं नीचे आ गया, थोड़ी देर में कोमल भी अकेले नीचे आयी,
".हमलोग बाहर जाने वाले हैं.. तुम भी चलो ना .." कोमल बोली, मैंने मना कर दिया,
"ठीक है... तुम बोलोगे तो मैं रुक जाऊंगी ...."
"मैं क्यों बोलूँ , जैसी तुम्हारी मर्जी...." मैंने कहा, मुझे बहुत ख़राब लग रहा था....मैं सोच रहा था की किसी तरह कोमल रुक जाए पर मुहं से निकल नहीं रहा था, ....अब मैंने उसपर गौर किया, एक छोटे से फ्रोक में उसकी जवानी बाहर को आ रही थी, दोनों स्तनों के बीच की रेखा गहराई तक दिख रही थी और स्तनों के ऊपर का गुदाज़ हिस्सा उभर कर बाहर निकल रहा था और कोमल की जवानी को बयां कर रहा था, आँखों में वही गरूर, मैं अपने कमरे में चला आया,
कोमल ऊपर लौट गयी, कोहिनूर के पैकेट अपने ड्रावर में रक्खी किताबों के बीच छुपा कर मैं बैठक में आ टीवी देखने लगा, मन तो व्याकुल था, नजर और कान ऊपर की तरफ ही थे की वो दिख जाये, थोड़ी देर बाद माँ और सभी नीचे उतरे, माँ ने कहा हम और ताइजी (कोमल की मम्मी) बाज़ार जा रहे हैं तुमलोग खाना खा लेना, रक्खा है...कोमल गर्म कर देगी....
मुझे आस्चर्य हुआ...पूछा " क्यूं, वो नहीं जा रही ? "
" उसे रात को नींद नहीं आयी...कहती है सर बहुत दुःख रहा है.. इसलिए नहीं जायेगी.....हम शाम तक आते हैं... " कोमल की मम्मी ने कहा.. मैंने कोमल की ओर देखा...उसने आँखें झुका रक्खी थीं ... तो ये बात है... मन तो जैसे हवा में उड़ने लगा...
"ठीक है, ताईजी " मैंने कहा, माँ और कोमल की मम्मी बाज़ार निकल गए, महरी भी बस जाने ही वाली थी, छोटा भाई तो घंटो से गायब था... मैंने भगवान को ऐसे मौके के लिए धन्यवाद दिया....
कोमल ने नजदीक आकर कहा " अब तो खुश "
"तुम्हारा मन नहीं था तो चली जातीं ... कोई मेहेरबानी तो नहीं की " झूठी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा...जो कोमल से छुप न सकी ...
"मन में लड्डू और ऊपर से नाराज... बनो मत.. मैं सब जानती हूँ.." उसने हंस कर कहा..
" तो देख अब... " कहते हुए मैं उसपर झपट पड़ा और दबोच लिया, वो तो जैसे तैयार ही थी मुझे सोफे पर धकेलते हुए मेरे पर गिर पडी,
"अभी रुक.. महरी को जाने दे.. " और जोरों से मेरे होठों को चूमते हुए खड़ी होकर अपने कमरे की तरफ भागी...कुछ ही समय में महरी भी काम कर चली गयी... अब हम दोनों घर में बिलकुल अकेले रह गए थे, वो कमरे से बाहर आयी पूछा " महरी गयी.. ? " मेरे हाँ कहते ही दौड़ कर आ मेरी गोद में बैठ लिपट गयी, फ्रोक जांघों पर सरक गयी, उसने मुझे आगोश में बाँध रक्खा था, हम एक दुसरे को बेहतहाशा चूम रहे थे, कोमल ने मेरे हाथ को पकड़ अपने जांघों पर ऊपर सरका अपने योनी के पास ले आयी,
वो गर्म थी, मैंने एक अंगुली टाईट पैंटी के किनारे से अन्दर की और योनी द्वार को छुआ... ओह्ह्ह्ह क्या हो रहा था, वो मेरे होठों को काटे जा रही थी, और कभी अपनी जीभ मेरे मुहं के अन्दर घुसा देती... कभी मेरी जीभ अपने मुंह में लेकर चूसने लगती..योनी रस से सरोबर थी... फिर से उसकी सिस्कारियां निकलने लगी.. उसने झट अपने नितम्ब उठाये और अपने हाथों से पैंटी खींच नीचे उतार दी... और मेरे जिप को खोल हाथ अन्दर डाल लिंग को खींच बाहर निकल लिया जो पूरी तरह अब फुफकार रहा था, कोमल मेरे लिंग को देखते ही व्याकुल हो जाती ..
मुझे मालूम हो गया था की सबसे ज्यादा मस्ती उसे लिंग और सुपाड़े से खेल कर आती थी .. उसने लिंग को पीछे खींच सुपाडा बाहर किया और उसे प्यार से देखते हुई चूसने लगी, कोमल को सुपाडा चूसने में बहुत मस्ती आती थी यह मैंने बाद में जाना.... वो मेर लिंग को चूस रही थी और मैं उसके मस्त उठान भरे स्तनों को चोली से बाहर निकाल दबा रहा था... क्या अनुभव... अत्यंत गुदाज़ .. मुलायम और स्पंज से .....
...कोमल ने एक हाथ से मेरे मेरे लिंग को पकड़ उसे मुहं में डाल रक्खा था और दुसरे हाथों से मेरे अंडकोष सहला रही थी.. वो बेखबर जैसे एक स्वर्गिक अनुभव और आनंद में लिप्त.. कोमल के मुलायम होठों और जीभ के स्पर्श से हुए घर्षण ने मेरे लिंग में जबरदस्त उत्तेजना और आवेश भर दिया था... मेरे शरीर में अन्दर ही अन्दर लावा बह रहा था...उसके बालों को पकड़ सर पीछे खींच लिंग को उसके होठों की जकड़ से मुक्त कराया, उसे बाँहों में भर ऊपर उठाया और गालों को चूमा तो उसने आँखें खोलीं ..
"क्यों निकाल लिया.. बहुत मज़ा आ रहा था... " कोमल बोली
"और भी मज़ा आएगा ... "मैंने कहा और उसे खड़ा कर नितम्बों को पकड़ उसकी योनी पर अपना मुहं लगा दिया, योनी के दोनों पाटों को अलग कर अपनी जीभ उसके अन्दर डाल चूसते ही कोमल दोनों हांथ मेरे पीठ पीछे डालते हुए बेसुध सी होकर मेरे पर गिर पडी, उसके स्तन मेरे पीठ पर दबाव डाल रहे थे, आह्ह क्या महसूस हो रहा था बता नहीं सकता, कुछ ही क्षणों में कोमल नितम्बों को हिलाते हुए चिल्लाने लगी.... आःह्ह ...आःह
और पीठ पर दांतों को गड़ा दिया.... "छोड़ मुझे... छोड़ .... तुम्हे मार दूंगी ...तू गुंडा है... " कोमल अपने नितम्ब हिलाते हुए योनी से मेरे मुहं पर धक्के मार रही थी और योनी का घर्षण करती हुई बक रही थी...
" अन्दर डाल जीभ को... और दबा... दबा मेरी बूर को .. जीभ को घुमा... और घुमा अन्दर ...बहुत मज़ा आ रहा है.... कुछ अन्दर जल रहा है ... .. " कोमल वासना ज्वार में बहुत बोल रही थी, मुझे गालियाँ भी देने लगी कभी कुत्ता... कभी साला कहने लगी ..और बेहिचक वो सारे शब्द कहने लगी जो उसने कुछ ही देर पहले सीखे थे, ..... यूँ तो हम पहले भी एक दुसरे को जानते थे लेकिन पिछले तीन दिनों के साथ में हम दोस्त बन गए थे बिलकुल नजदीकी और खुले बिना किसी शर्म और हिचक के बातें होने लगी थी........
कोमल ने मेरे एक हाथ को नितम्बों से हटा उसने अपने स्तन पर लगाया " इसे भी कर न कुछ ..." और बहुत मजे से अपनी योनी और स्तन रगड़वाने लगी .... मेरे से अब रहना मुश्किल था....मैं उठा और कोमल को कमर से पकड़ उसके कान में कहा " तुझे अभी दूसरी दुनिया में ले जाऊँगा ....पहले इसे खोल " और इशारा किया, कोमल ने अपने हाथों से मेरे पैंट को खोल नीचे गिरा दिया, मेरा जांघिया भी खोल दिया और मेरा लिंग और अंडकोष सहलाती रही....... मैंने उसे पूरी नंगी कर दिया....कोमल का हाथ पकड़ उसे अपने कमरे में ले आया....
हम दोनों पूरी तरह नंगे आईने के सामने खड़े एक दुसरे को देख रहे थे, कोमल मेरी कमर को अपनी बाँहों से घेर मेरे से सट कर खड़ी आईने में मुझे देख रही थी... और मैं उसे... कोमल के पीछे खड़े हो उसके उरोजों को दबाता हुआ योनी को सहलाने लगा, मेरा लिंग उसके नितम्बों के दरार में घुसने के लिए व्याकुल..... कोमल बिलकुल बदल गयी थी सिर्फ दो ही दिन में जो मैंने सोचा भी नहीं था ... वो पूर्ण समर्पण के लिए तैयार.. यहाँ तक की मैं तो कुछ सोच भी रहा था लेकिन वो तो एकदम आगे बढ़कर सबकुछ करने को तैयार... कहीं वो इतनी नादान तो नहीं थी या फिर जरूरत से ज्यादा तेज इतनी सी उम्र में.. कुछ पता नहीं चल रहा था..
माँ के आने में कम से कम २- घंटे तो थे ही.. हम दोनों निश्चिंत.. सिर्फ एक डर था तो छोटे भाई का लेकिन वो भी देखा जायेगा... मेन दरवाज़ा बंद था... कोई जल्दी नहीं थी , मैं कोमल के साथ पूरी मस्ती लेना चाहता था..और उसे भी एक मस्त अनुभव देना चाहता था .. उसके जवान और बेहद खूबसूरत शरीर का रस धीरे धीरे लेना था...हमलोग यूहीं नंगे कुछ देर बेड पर पड़े रहे और खेलते रहे.. फिर कोमल से पूछा फ्रिज में शरबत है पिओगी, चलो देखते हैं ? हम दोनों एक दुसरे से गुंथे हुए से नंगे किचेन में आये..फ्रिज में गुलाब का शरबत था और दूसरी चीज़ें जैसे आइस-क्रीम, फल, सब्जियां वगैरह... कोमल ने ग्लास लिए और शरबत बनाने लगी, फ्रिज से आइस ट्रे निकाल कर आइस तोड़ने लगी.. .खूबसूरत नज़ारा... वो ट्रे से आइस तोड़ रही थी और उसके विशाल गोरे स्तन ऊपर नीचे हिल रहे थे ..मैंने एक टुकड़ा लेकर उसके चिकने फूले नितम्बों के बीच घुसा दिया...
" ओह्ह्ह क्या करते हो.. शरबत बनाने दो... मैं कुछ करूंगी तो बचोगे नहीं...." उसने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा...
"क्या करोगी" मैंने कहा
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UPDATE 07
ओह्ह्ह क्या करते हो.. शरबत बनाने दो... मैं कुछ करूंगी तो बचोगे नहीं...." उसके बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा...
"क्या करोगी" मैंने कहा
कोमल ने चाकू उठाया बोली " यह देख रहे हो, वो काट दूंगी इससे..." और मेरे लिंग की तरफ इशारा किया
"फिर तुम्हारी इस बेचैन मुन्नी का क्या होगा... " मैंने उसकी योनी को मसलते हुए कहा,
"मेरे से ज्यादा बेचैन तो तुम हो...." कोमल ने कहा,
" अच्छा ? ...तो देख " मैंने कहा और उसपर झपटा, वो बिल्ली की सी तेजी से निकल मुझे चिढ़ाती हुई ऊपर सीढ़ियों की तरफ भागी, मैं नीचे से देखता रहा,
" ... पकड़ सकता है मुझे ? " ...वो ऊपर सीढ़ियों पर खड़ी खिलखिला रही थी ..मैं हैरानी से देख रहा था... क्या जिस्म.. क्या अदा.. क्या मासूमियत..कभी बचपन में सोचा भी नहीं था की ये लड़की जवान होने पर ऐसी क़यामत बनेगी.. सच पूछिए तो उस समय मन उसे छूने का भी नहीं था, सिर्फ देखते रहने का....कभी आपने कोई हसीँ दृश्य देखा है ? आप सोचते हैं ये बिगड़ न जाए, बस देखते रहें... यही हाल मेरा था...सामने हुस्न, उम्र नादाँ, बेबाक पूर्ण नग्न, जवानी पर एक इंच कपड़ा नहीं... मुझे एक टक देखते हुए देख कोमल शर्मा गयी, उसकी हंसी बंद हो गयी और हम एक दुसरे को निहार रहे थे, वो सीढ़ियों पर ऊपर खड़ी और मैं नीचे, मैं भी पूरी तरह नग्न .. उसके गाल लाल हो गए . शर्म और लाज से....आँखें झुका कर पूछा " ..ऐसे क्यों देख रहे हो ...चलो शरबत बनाते हैं ... " कहती हुई सीढ़ियों से उतरती हुए मेरी और आने लगी,
मैं देखता रह गया उसकी मतवाली चाल, कोमल ने अच्छी लम्बाई पाई थी, शरीर की बनावट बड़ी थी, गदराया शरीर, चिकनी काया, शरीर का हर अंग तराशा हुआ, चाल में एक लचक और शरीर में भरपूर मादकता, आँखें और चेहरे पर भी सेक्स का रंग, कोई भी देखे तो इस लडकी में मौजूद गज़ब के सेक्स अपील से बच न सके , ऐसा नशीला बदन और ऐसी ख़ूबसूरती कुछ एक लड़कियों को बनाने वाले की देन होती है , उनके बदन से हर वक्त कामुकता और वासना फूट फूट पड़ती है, कोमल कुछ ऐसी ही थी,
मैं बिलकुल सामने खड़ा और वो जैसे कोई हवा से निकली परी की तरह निर्वस्त्र अपने अंगों का प्रदर्शन करती आ रही थी, गोल सुडौल स्तन, भरी भरी जांघें और बीच में सुनहरे हलके रेशों के बीच योनी, शरीर की ही तरह ही गद्देदार योनी पट जिन्होंने योनी को दोनों और से दबा कर दरवाज़े को बंद कर रक्खा था, दूर से ही मालूम पड़ रहे थे रसमलाई की तरह फूले हुए, सर से कन्धों तक लहराते काले रेशमी बाल, पहली बार पूर्ण निर्वस्त्र बदन देख रहा था, वो भी बिलकुल सामने से -- इस प्रकार मानो एक संगेमरमर मूर्ती में जान डाल दी हो. देने वाला भी कभी खूब देता है, कोमल के दाहिने उरोज के उठान पर एक काला तिल और वैसा ही उसकी बांये जांघ पर योनी के थोड़ा नीचे, गोरे चिकने शरीर पर खूब दिख रहे थे, मैं अवाक् सा खड़ा देख रहा था,
" कभी किसी लड़की को नहीं देखा क्या... ? ऐसा क्या है मेरे में . ? " कोमल ने छेड़ने के अंदाज़ में पुछा,
"देखा तो.. पर ऐसा नहीं.... "
" अच्छाआआ... ऐसा क्या है जो देख रहे हो .." कोमल मेरे नजदीक आकर बोली,
"यह है " कहते हुए उसके दोनों उरोजों को हथेलियों में दबा उसके होठों को चूम लिया... मेरा लिंग फिर से खड़ा हो रहा था और देखते देखते पूरे तनाव में आकर लम्बा खड़ा हो कोमल की योनी पर प्रहार कर रहा था, हम कुछ एक मिनट लिपटे रहे फिर कोमल ने कहा "चलो पहले तुम्हें शरबत देती हूँ फिर मुझे देख लेना जितना चाहो ..." हम किचेन में आये और कोमल और मैंने मिलकर शरबत पिया, सारे समय हम एक दुसरे से चुहलबाजी करते रहे,
... उसे हाथ पकड़ कमरे में लेकर आया और पलंग पर गिरा उसपर लोट गया...."एक चीज़ दिखाऊँ ... देखोगी " मैंने पुछा .... "क्या है " कोमल बोली,
"यह देख " मैंने कहा और उठकर ड्रोवर से कोहिनूर का पैकेट निकाला और साथ ही एक किताब जिसमें मैथुन से भरे शानदार चित्र थे, मेरे एक दोस्त ने दी थी स्वीडेन की छपी चमकीली किताब जिसमें पुरुष और इस्त्रियों के अनेक चित्र थे मैथुन करते हुए, कोमल ने ऊपर के कवर को देखते ही आश्चर्य से पुछा " ऐसी किताब..कहाँ से मिली... तुम ये सब पढ़ते हो.. ? "
"छोड दो तुम्हें नहीं देखना तो..." मैंने कहा
"नहीं नहीं, दिखाओ तो क्या है..." उसने उत्सुकता से कहा और मेरे हाथ से किताब खींच ली...
" आआआआ ...क्या कर रही हैं ये लडकी .... कैसे इस तरह की फोटो खिंचवाती हैं.... देखो इसने कैसे पकड़ रक्खा है और क्या कर रही है.... " कोमल की आँखें बड़ी हो गयीं थी, उसने बहुत ही आश्चर्य से एक चित्र को दिखाते हुए कहा जिसमे एक इस्त्री एक पुरुष के लंड को खींचती हुई अपनी योनी में डाल रही थी. हम दोनों नंगे पलंग पर सट कर बैठे थे, कोमल एक एक पन्ना पलट रही थी और आश्चर्य और गौर से सभी फोटो देख रही थी, बीच
बीच में आँख उठा कर मुझे भी देख लेती और शर्मा जाती. उसका हाथ अनायास ही मेरे लिंग को पकड़ सहलाने लगा,
वो चित्रों को बहुत ध्यान से देखे जा रही थी और मेरे लिंग को भी हाथों में पकड़ घुमा रही थी, खींच रही थी, मेरा एक हाथ उसकी कमर के पीछे जाकर उसके बाएं स्तन को दबा रहा था और दुसरे हाथ की उँगलियों ने उसकी जांघों को सहलाना शुरू किया और फिसलता हुआ उसके योनी द्वार के पास सिल्क से मुलायम
चूत पर के बालों को सहला रहा था, कोमल का गला सूख रहा था, उसकी आवाज़ उखड़ी सी हो गयी, " बहुत मज़ा आता होगा इनको क्या ?..." उसने मेरी आँखों में देखते हुए कहा....कोमल की जांघों के रोंगटे खड़े हो गए थे जैसे की शरीर में झुरझुरी होने से होती है... उसकी आँखों में लाल डोरे साफ़ दिखने लगे...वो उत्तेजित हो रही थी.. कामुक और नशीली अवस्था में होश खो रही थी, स्तन की घुन्डियाँ टाईट हो गयीं, मेरे शरीर में सनसनाहट होने लगी.
एक चित्र में लड़की दो पुरुषों के साथ मैथुन में लिप्त थी, देख कर कोमल हैरत में आ गयी, " अरे ... यह कैसे.. दो लड़कों से एक साथ कैसे कर सकती है .. " उसने कहा, ....दुसरे ही चित्र में में लड़की के योनी और गुदा द्वार में लड़कों का लंड एक साथ देख कर उसकी आँखें खुली रह गयीं .... कोमल ने मुझे पलंग पर गिरा दिया और मेरे ऊपर चढ़ बैठी , अपने स्तनों से मुझे दबा मेरे को चूमने लगी " तुमने किसी लडकी को किया है ऐसा"...उसने पूछा ...
क्या .. " मैंने जान कर कहा
"जो इस किताब में है... क्या कर रहे हैं तुमको नहीं मालूम ?..." कोमल बोली
" पूरा नहीं मालूम .. तुम बताओ न ? "मैंने कहा
"मुझे बुद्धू मत समझ .. तुम्हें सब मालूम है .. मेरे से सुनना चाहता है न ? " कोमल तेज लडकी थी, मेरे कहने का मकसद समझ रही थी
"जब तुम समझती हो तो बताती क्यूँ नहीं .." मैंने कहा..
" मैं नहीं बोलूंगी... मुझे शर्म आती है... तुमने किया कभी ... ?" कोमल बोली पर मैं उसके मुहं से ही सुनना चाहता था की उसकी बाकी बची झिझक भी ख़त्म हो जाये, हम लोग एक दुसरे के निजी अंगों से खेलते हुए बातें कर रहे थे, कोमल मेरे ऊपर चढ़ी हुई अपनी योनी से मुझे धीरे धीरे धक्के दे रही थी,
" जब रात को बैठक में थे तब तो तुम्हें शर्म नहीं आ रही थी ... अब क्यों...?
"उस समय रात थी ..अब शर्म आती है .." कोमल बोली,
"अच्छा मैं आँखें बंद करता हूँ... कोशिश करो ... " मैंने कहा,
" मैं पूछ रही हूँ .. तुमने कभी किसी लड़की को ऐसे किया... है... ऐसे...च.. च... चोदा.. है ...? कोमल ने झिझकते हुए कहा,
मैंने आँखें खोली " हाँ, ऐसे साफ़ बोलोगी तब तो समझूंगा... तुम्हारे मेरे बीच में अब क्या शर्म..." कोमल का चेहरा शर्म से लाल हो गया,
मैंने उसके नितम्बों को दबाते हुए कहा " आज तक तो नहीं चोदा पर आज चोदुंगा ...? "
"किसे.." वो बोली
" तुम्हें.. और किसे..."
"पर मैं तो नहीं करने वाली..जैसा इन फोटो में है ...तुमने कैसे सोचा की मैं तुमसे कुछ करवाऊंगी .." कोमल ने कहा
" ठीक है.. तो फिर हम क्यों हैं यहाँ... चलो...बाहर.." मैंने उठने का बहाना किया...
" रुको तो... मैंने उस चीज़ के लिए मना किया..प्यार करने के लिए तो नहीं... " कोमल का मन तो था पर वो खुल कर बोल नहीं रही थी, कोमल पूरी मेरे ऊपर आ आगयी और मुझे बाँहों में भर मेरे लिंग पर योनी को दबाते हुए मेरे गालों को चाटने चूमने लगी, वो जबदस्त गर्म थी,
हम दोनों एक दुसरे पर उलट पुलट होते रहे, उसकी योनी में रस भर गया था, मेरे लिंग से भी लग रहा था पानी निकल जायेगा,
मैंने उससे कहा " जल्दी कर, माँ आ जायेंगी"
" तुम क्यों घबराते हो अभी देर है .." कहते हुए कोमल ने सर घुमाकर मेरा लिंग मुहं में ले लिया जो उसको अच्छा लगता था, हम 69 की पोजिसन में थे,
अपने आप ही उसकी योनी मेरे होठों पर आ गयी और मैंने अपनी जीभ अन्दर डाल दी,
"आह आह.. आःह ... यह क्या हो रहा है ...श्श्श ... श्श्स...." उसकी वासना भरी आवाज़ सुन रहा था....
"इसको चूस ले पूरा... मत छोड़ना... इसको काट ले.....दांत से काट उसे ... " कोमल याचना कर रही थी,
....मेरे लिंग और अंडकोष को हाथों से पकड़ बड़ी ही मस्ती में चूस रही थी, लिंग की चमड़ी को खींच पीछे कर दिया, मेरा लिंग जैसे फट कर पानी फेंकने को तैयार था, और वो पूरा मुहं में डाल उसे मक्खन की तरह स्वाद ले रही थी, मैं भी उसकी योनी को काट रहा था चूस रहा था, वो कराहने की सी आवाज़ निकालने लगी, मेरे दोनों हाथ उसके नितम्बों को दबा रहे थे और उसकी योनी ने मेरे मुहं को बंद कर रक्खा था,
नितम्बों की दरार के बीच उंगली डाल उसके गुहा द्वार के बाहर उंगली घुमाने पर उसे बहुत मज़ा आ रहा था " अरे मत कर...बहुत गुदगुदी होती है वहां हाथ लगाते हो तो.." वो चिल्ला रही थी खुशी में, इससे पहले की मेरा पानी निकल आये, मैंने पलट कर उसके मुहं को अपने चुम्बन से बंद किया उसे दबाते हुए हाथ फैला कर कोहिनूर के पैकट को खोल एक रबर बाहर निकाला और कोमल को दिखाया.... शायद उसने कभी कंडोम नहीं देखा था,
"क्या है... क्या करोगे इसका..." कोमल ने हैरानी से पुछा,
"ये अपने इसको...पहना कर तुझे मज़े कराऊँगा " मैंने अपने लंड की तरफ इशारा कर दिखाया कैसे कंडोम चढ़ाते हैं, कोमल अजीब सी नजरों से देखती रही...
"कभी किसी से सेक्स किया है तुमने " मैंने पूछा
" क्या.. ? .... तुमको क्या लगता है.. मैंने तो किसी को पहले नंगा तक नहीं देखा .... तुम्हें पहली बार देख रही हूँ .. तुमने मुझे फंसा दिया ..." कोमल रूआंसी जैसी हो गयी.. .मुझे लगा मामला बिगड़ गया.. मैंने कोई जल्दबाजी नहीं करने की सोची, अभी तक तो मज़े कर रही थी अब अचानक क्या हो गया...ये लड़कियों का स्वभाव है, मैंने उसे शांत किया... उससे बातें की..
" हम तो एक दुसरे को कितना चाहते हैं... मैं मजाक कर रहा था.." वगैरह, कुछ देर तक उसे समझाता रहा. फिर याद आया मेरे पास एक दूसरी किताब भी है .. मैंने अपनी अलमीरा के नीचे से उसे निकाला ... वो एक हिंदी की किताब थी जिसमे कुछ चित्र भी थे और कहानी भी , कुछ हाथ से बनी पेंटिंग्स भी थीं . उसमे उसे दिखाया की कंडोम कैसे चढ़ाते हैं और फिर क्या करते है....
" मुझे मालूम है .. ये कंडोम है, लगा कर सेक्स करने से पेट में बच्चा नहीं होता.... .." कोमल ने मेरे लिंग को हाथ में लेकर बताया, अब में हैरान था, वो सब जानती थी, मैं तो उसे नादाँ समझ रहा था,
"इसको पहनने से तुम्हारे इसका .. वो जो निकलता है ना ... वो अन्दर नहीं जायेगा... मुझे मालूम है..लड़के लडकी का पानी अन्दर जाकर मिलते हैं तो बच्चा होता है " कोमल मेरे लंड को पकड़ते हुए बोली, अब मुझे लगा जैसे मैं ही बेवक़ूफ़ हूँ और ये तो बहुत चालाक हैl
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UPDATE 08
" किसने बताया तुम्हें .." मैंने पूछा, "हमलोग बातें करतें हैं मेरी दोस्त और हम सब .. एक दिन हम सबने एक फ्रेंड के यहाँ विडियो भी देखी थी.. उसमे इसको लगाकर हीरो हीरोइन को फक करता है " कोमल ने रबर की तरफ इशारा करके कहा, मेरा दिमाग घूम गया, कोमल इतनी नादाँ नहीं थी जितना मैं समझता था, मैं जान गया अब उसे कुछ समझाने की जरूरत नहीं, गर्म होगी तो खुद ही तैयार हो चुदवाएगी , बस उसको गर्म कर मजबूर कर दूं की खुद ही मेरे लिंग को पकड़ अन्दर घुसाने को तैयार हो जाये....लेकिन अब उसका मूड ठीक नहीं था और मैं भी ठंडा हो गया था उसकी बातें सुनकर, मैंने कोहिनूर का पैकेट और किताबें अन्दर रक्खीं और कोमल से कहा की कपड़े पहेन ले,
मैंने भी कपड़े पहने और बाहर निकल आया, अब मूड नहीं था. हम दोनों सोफे पर बैठ कुछ देर टीवी देखते रहे, कुछ देर बाद ही माँ भी आ गयीं. शाम को पिताजी और कोमल के पिताजी भी आ गए, तब तक कोमल और मैं दोनों ही नोर्मल हो गए थे. रात को खाना खाकर कोमल से पूछा की बाहर मेरे साथ चलोगी तो उसने इशारे में हाँ कहा, मैंने कोमल की मम्मी से आज्ञा मांगी तो उन्होंने जाने की इज़ाज़त दे दी की जल्दी आजाना, घर में किसीको को भी बिलकुल ना ही शक था और ना कोई अंदेशा की मेरे और कोमल के बीच में क्या चल रहा है,
हम दोनों स्कूटर पर बाज़ार की ओर चल दिए, कुछ देर इधर उधर घुमते रहे, कोमल मेरे से सैट कर बैठी थी, उसके उरोजों का दवाब मेरे पीठ पर पड़ रहा था, मदमस्त बिलकुल नर्म और गुदाज़, वो भी निःसंकोच थी, मुझे समझ में आया अब वो पूरी तरह नोर्मल थी, एक जगह हम आइसक्रीम खाने रुके,
वहां पूछ ही बैठा " मेरे से गुस्सा हो..."
"नहीं तो .." कोमल ने कहा " गुस्सा होती तो तुम्हारे साथ आती क्या ..."
" फिर उस समय क्यों नहीं साथ दिया..." मैंने कहा
" किस समय... मैं तो तुम्हारे साथ ही थी... तुम्हीने अपना मूड ख़राब कर लिया और मेरा भी ..."
" अच्छा... तो एक बात बताओ... रात को आओगी.." मैंने डरते हुए पुछा कहीं वो मुझे फिर गलत न समझले
" मुझे डर लगता है... मैं कुछ नहीं करनेवाली जो तुम समझ रहे हो..." कोमल बोली
" सिर्फ एक बार.. हम सिर्फ बातें करेंगे और थोडा सा प्यार और कुछ नहीं ...रात को सब सो जांए तो मेरे कमरे में आना या बैठक में..." मैंने कहा
" नहीं...मेरे से नहीं होगा .. बहोत रिस्क है.. कोई जग जायेगा.. और तुम्हारे साथ रिक्कू (मेरा छोटा भाई) भी तो सोता है.." कोमल ने कहा..
"वो बच्चा है, उसे कुछ पता नहीं और सोता भी है घोड़े बेच कर ... तुम मत डरो..." मैंने कहा
"देखूंगी... पर मैं कुछ करने वाली नहीं हूँ .. फिर मत कहना की साथ नहीं दिया "..." कोमल ने जैसे दुबारा खुलासा किया..
"आना तो .." मैंने कहा
कोमल ने कोई जवाब नहीं दिया लेकिन मुझे विश्वास था वो आयेगी, उसका मेरे साथ आना, उसका स्कूटर पर मुझे जोरों से पकड़ कर बैठना, अपने उरोजों को जान बूझ कर दबाना, मेरे लिंग को छूने और चूसने के लिए उसका जबरदस्त सम्मोहन और इस समय जब मैं सिर्फ उससे बातें ही कर रहा था उसकी साँसे तेज हो गयीं, और दिख रहा था की स्तन समीज के अन्दर साँसों के साथ ऊपर नीचे हो रहे थे, साफ़ था बातों ने ही उसे बेचैन कर दिया था...
हम कुछ ही देर मैं घर लौट आये, पूरे रस्ते कोमल ने मुझे जोरों से पकड़ रक्खा था, स्तनों से दबा मुझे मजे देती रही, और एक दो बार तो मेरे गर्दन पर चूमा भी. माँ बाबू जी और कोमल के माता पिता सबलोग बातें कर रहे थे, मैं कमरे में आकर सोने का बहाना कर लेट गया, कहीं मन नहीं लग रहा था अब सिर्फ इंतजार था, न जाने कब सब लोग अपने कमरों में चले गए, मुझे भी नींद आ गयी.. रात दो तीन बार नीदं खुली तो देखा कोमल अपने कमरे में सो रही थी....मेरी हिम्मत नहीं उसे जगाऊँ...
फिर सोचा वो खुद आयेगी..शायद नीदं आ गयी उसे...उसे भी तो मेरे जैसे ही बैचैनी होगी...कैसे मुझे स्कूटर पर चूम रही थी... मैं सोच कर हैरान था, लंड तनाव से खड़ा हो गया..... सिर्फ १५ साल की छोकरी लेकिन गरम कैसे होती है बिलकुल किसी कुतिया की तरह, यह तो दोपहर में मैं ही रुक गया वरना तो वो गर्मी में आकर मुझे अपना सब कुछ देने ही वाली थी... और अभी कहती है मैं कुछ नहीं करूंगी.. एक बार आने तो दे फिर देखता हूँ .. मैं यह ही सब उधेड़ बुन में था..आयेगी या नहीं....
लेटा लेटा सोच रहा था...कल की ही तरह रात के २.३० बज गए... फिर ३ लगा अब वो नहीं आयेगी, तभी कुछ आवाज़ सी आयी, लगा कोई धीमे क़दमों से बाथरूम की ओर गया, शायद कोमल ही हो ऐसा मन सोच रहा था.. मैं सांस थामे लेटा रहा.... कुछ मिनटों बाद ही देखा अँधेरे में एक साया कमरे के दरवाज़े पर खड़ा था और मुड मुड कर बाहर की ओर देख रहा था.. फिर धीरे से सरक के अन्दर आया, ये कोमल ही थी... मैं जान कर चुप चाप आँखें हल्की खोल कर पड़ा रहा, अँधेरे में उसे मालूम नहीं की मैं उसकी हरकतें देख पा रहा हूँ,
कोमल ने नाईट ड्रेस की बजाय एक छोटा फ़्रोक पेहेन रक्खा था, मेरे पलंग के नजदीक आकर खड़ी हुई, उसकी जांघें बिलकुल मेरे से सट कर लगी थीं, कुछ देर वो देखती रही फिर बैठ गयी पलंग के किनारे और हाथ बढ़ा उसने मेरे गालों को छुआ, अँधेरे सन्नाटे में मैं उसकी तेज और भारी साँसों को नजदीक से सुन रहा था, मुझे सोता देख उसने मेरा हाथ उठा कर अपनी गोद में रक्खा और अपने हाथों से मेरे सीने को सहलाती हुए अपने हाथ मेरी जांघों तक ले आयी, मेरा लिंग अब बर्दास्त नहीं कर सकता था और बिलकुल कठोर हो उछालें लगा रहा था, मैंने थोडा सा जांघों को अलग किया,
कोमल कुछ देर तक मेरी जांघों को सहलाती रही, उसकी अंगुलिया कई बार मेरे अंडकोष को छु रही थी, वो शायद मेरी प्रतिक्रिया का इन्तेजार कर रही थी पर मैंने भी सोचा था की आज तुम्हारे मन की बात जान कर ही रहूँगा, मैं यूं ही पड़ा रहा...कोमल आगे सरकी और अपनी योनी से मेरे हाथ को छूने लगी,
मेरे हाथों को कोमल की योनी का गुदाज़ भाग महसूस हो रहा था, मेरे लिए इस स्थिती को सहन करना मुश्किल था, जैसे स्वाभाविक नींद में हुआ हो इस प्रकार मैंने थोड़ा करवट लिया और आगे सरक गया अब मेरा हाथ बिलकुल उसकी फ़्रोक के ऊपर उसकी योनी को दबा रहा था, उसने फ़्रोक को खींचा, मेरा हाथ अब उसकी नग्न योनी को छु रहा था जो गीली हो रक्खी थी , उसने पैंटी नहीं पहनी थी,
अंडकोष से उसने हाथ बढ़ा अब लिंग को थाम लिया और उसे मरोड़ने लगी, अब उसे शायद लगा मैं नाटक कर रह हूँ, वो झुक कर कान में फुसफुसाई " बहुत हुआ...अब उठो भी ... मैं आ गयी हूँ बोलो क्या चाहते हो..."
मैं यही चाहता था सुनना, मैंने उसे खींच उसके होठों को काट लिया " तू बहुत बनती है... अब तेरी चुदाई करूंगा..."
"यहीं करोगे क्या ... चलो बाहर.." कोमल ने दबी आवाज़ में जवाब दिया
हम धीरे से उठ बाहर आये, कमरे में ही मैंने कोमल की फ़्रोक खोल गिरा दी और वो एकदम नंगी ही कमरे से बैठक तक आयी, पूरे घर में घुप अँधेरा था, सिवाय बैठक के जहाँ खिड़की से आते सिर्फ एक हलके उजाले का आभास भर था, उसने भी मेरे हाफ पैंट के बटन खोल लिंग को खींच बाहर किया .....हम कुछ देर तक एक दुसरे के बदन को महसूस करते रहे.. तनाव बढ़ता जा रहा था, तभी कुछ याद आया, कोमल को बैठक में छोड़ मैं कमरे में आया और तकिये के नीचे रात को रक्खे कोहिनूर के पैकेट को ले वापस बैठक में आया
" कहाँ गए थे.." कोमल ने पुछा,
"यूं ही.. "
"झूठ, तुम कंडोम का पैकट लेने गए थे ना...सच बोलो .. " कोमल बोली, चोरी पकड़ा गयी,
"हाँ..."
" इतनी आसानी से नहीं मिलेगा तुम्हें...." कोमल बोल उठी, लेकिन वो आग में झुलस रही थी,
"देखेंगे..." मैंने कहा और हम लिपट पड़े.....
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UPDATE 09
सन्नाटा था, सभी गहरी नींद में से सो रहे थे एर्कोंडिसन की ठंढक में , मैं और कोमल आग में झुलस रहे थे, हम सोफे पर एक दुसरे को चूम चाट रहे थे बेखबर, कोमल नंगी मेरे आगोश में थी, मैंने भी पैंट उतार दिया था, हम दोनों एक सोफे पर ऊपर नीचे पड़े महसूस कर रहे थे एक दुसरे के निजी अंगों से खेलते हुए प्यार करते हुए उत्तेजना के शिखर पर थे, कोमल की सांसें तेज थीं,
उसके स्तन सांसों के साथ हिलते हुए एक समां बना रहे थे, हल्की रोशनी में कोमल का शरीर गज़ब का सेक्सी लग रहा था, कोमल को लिंग से खेलना बहुत अच्छा लगता था, वो बार बार मेरे लिंग को पकड़ उसे खींचती, मोड़ती और मुहं में लेकर चूस लेती, कोमल के स्पर्श और मस्तियों से लिंग से जैसे पानी फूट पड़ने को तैयार था, हम 69 की अवस्था में हो गए, वो मुझे चूस रही थी, मैंने उसके नितम्बों को हाथों से घेर अपनी जीभ को उसकी योनी में पूरा घुसेड दिया, योनी की दीवार को चूसने और काटने का मज़ा ही बेमिसाल था, मुझे कोमल की कराहने की धीमी आवाज़ सुन रही थी,
"आह आह्ह... और करो और करो..." वो मुझसे फुसफुसाते हुए सी आवाज़ में कह रही थी और साथ ही मेरे लंड और अन्डकोशों को सहलाते हुए अपनी जीभ से गीला करने लगी, कभी उन्हें चूसती, कभी खींचती , कभी दांतों से काट लेती, धीरे धीरे वो आपे से बाहर हो रही थी, उसने मुझे नाखून से नोचना शुरू कर दिया, मेरे जांघों को काट लिया और अपने नितम्बों को हिला हिला कर अपनी योनी को मेरे मुहं पर जोर से दबाने लगी, योनी को मेरे मुहं पर मारने लगी और अब गालियाँ भी दे रही थी, बार बार मुझे गुंडा और कुत्ता कह रही थी,
"तुमने मुझे क्या समझा... मैं तुमसे कुछ करवाऊंगी ? ...." कोमल के मुहं से पहली बार इस तरह की बात सुन मैं हैरान था,
"तुम घूमना मेरे पीछे..तुम्हें रुलाऊंगी .. मुझे क्या कर सकते हो देखती हूँ.... " वो बकने लगी आवेश में, जैसे मुझे कुछ करने के लिए जोश दिला रही हो,
उसके शब्द मुझे गर्म कर रहे थे और सम्भोग के लिए उत्तेजित भी कर रहे थे, मन कर रहा था उसके बदन को रगड़ कर ठंडा कर दूं,
"क्या करूंगा ? तुम बताओ.. ? " मैंने छेड़ते हुए पुछा जान कर,
"वही..जो तुम सोच रहे हो... इसको अन्दर घुसाना चाहते हो न ..सच बताओ. .? कोमल ने लंड को सहलाते हुए कहा, अब वो खुल कर बोलने लगी थी, उसकी झिझक कम हो गयी थी,
" हाँ.. घुसाना है... देखता हूँ कैसे बचती हो...? " मैंने भी उसी अंदाज़ में जवाब दिया,
" मुझे डर लगता है..... " कोमल के लिए अब बर्दास्त करना मुश्किल था, वो मेरे लंड से खेलते हुए अपने नितम्बो को जोर जोर से आगे पीछे कर रही थे, उसकी योनी रस से सरोबर चिकनी हो गयी और वो कराह रही थी जैसे दर्द हो रहा हो...कोमल ने अपनी पोजीसन बदली और पलट कर मेरी ओर मुहं कर मुझे चूमने लगी, वो तैयार थी पूरी तरह अपने आपको न्योछावर करने, मेरा लंड उसके योनी को दबा रहा था,
" मैं तुझे चोदना चाहता हूँ, तू तैयार है देने को..." मैंने अब उसे प्यार करते हुए खुल कर पुछा
".. कुछ हो जायेगा तो........." कोमल ने कुछ चिंता से कहा , हम दोनों के बीच में जैसे कोई दीवार थी शर्म की वो खत्म हो गयी, कोमल को मजा आ रहा था, हम दोनों उत्तेजित हो रहे थे, मैंने तो सोचा भी नहीं था लेकिन कोमल तो जैसे खुल कर बातें करने के लिए बेताब ही थी,
" कुछ नहीं होगा... तुम कुछ मत सोचो ...हम तो प्यार कर रहे हैं और क्या.." मैंने कोमल को समझाते हुए उसके डर को मिटाने की कोशिश की...
"ठीक है... पर दर्द मत करना.... " कोमल बोली....हम दोनों बेखबर मस्त थे, मैं उसके स्तनों को चूस रहा था और उसकी योनी में अंगुली सटा पुत्तियों को खींच रहा था जो गीली हो गयी और मेरे पुरी अंगुली को ही अन्दर लेने को तैयार थीं, कोमल मेरे होठों को काट रही थी, उसकी हालत जैसे किसी शराबी की सी हो गयी, बेसुध, बेखबर....
"तेरे इससे कितना रस निकल रहा है... .बहुत अजीब लग रहा है... मेरी सुसु को जोरों से अंगुली से रगड़.... ....." कोमल बोली,
"बुद्धू... अब इसको सुसु मत बोल... " अब मैंने को कोमल के साथ खुले शब्दों को प्रयोग करने का मन किया जिससे वो और ज्यादा उत्तेजित हो और मुझे भी अच्छा लग रहा था...
"तो क्या बोलूँ..." उसने धीमे से हँसते हुए पुछा.....
" अब ये सिर्फ सुसु करने के लिए नहीं है... इसमें मैं अभी कुछ करने वाला हूँ.... यह अब बड़ी हो गयी इसको बूर कहते है.... मालूम है.." मैंने उसे दबाते हुए और कान में फुसफुसा कर कहा,
" तुम गुंडे हो....मुझे मालूम है... पर नहीं बोलूंगी...." वो हंस रही थी...
"एक बार बोल तो....सिर्फ एक बार..." मैंने छेड़ते हुए कहा..
"अच्छा तुम्हारे वाले को क्या कहते है...... लंड ...है ना ? कोमल हँसने लगी, मैं हैरान... कितनी आसानी से उसने कह दिया...
"तुम्हें मालूम है....." मैंने आश्चर्य से कहा...
"तो क्या... नहीं मालूम होगा...इतनी भी अनजान नहीं हूँ जितना समझते हो ..."
"कहाँ से जाना ये सब..." मैंने उत्सुकता से पुछा तो बोली " पीछे बताऊंगी.. अभी तो मस्ती करने दे...." और मेरे ऊपर चढ़ बैठी.
हमारी प्यास बढ़ रही थी, कोमल मेरे ऊपर लेटी थी, मेरा लंड उसकी योनी से सटा अन्दर जाने को बेताब सा था, तभी कोमल ने अपने हाथ से लंड को पकड़ योनी के मुहं पर लगाया....
" इसको ..अन्दर... कर न...." वो बोली जैसे याचना कर रही थी, उसका गला सूखा था और आवाज़ उखड़ी हुए निकल रही थी...
"रुक.. एक मिनट...." मैंने कोहिनूर पाकेट हाथ में लेकर खोला और एक कोंडोम निकाला, कोमल ने मेरे हाथों से छीन लिया और बड़े गौर से उसे अँधेरे में ही देखने लगी...
" इसे कैसे यूज करोगे ..."
"बताता हूँ " कहकर मैंने उसे इशारो में समझाया , मैंने और कोमल ने मिलकर कोंडोम को लंड पर चढ़ाया और खोल दिया....कोमल को आश्चर्य हो रहा था.. उसने लंड को सहलाया...
"वाह... अब ये सेफ (safe) हो गया न...." उसने तसल्ली के लिए पुछा....
"हाँ अब जो चाहें करो... मैंने उसे पयर करते हुए कहा...वो निश्चिंत दिखी....
कोमल ने लंड को पकड योनी के पास लगाया, वो बेताब थी लंड को लेने के लिए .. हम दोनों अब रोक नहीं पा रहे थे... मैंने भी सोचा अब वो बिलकुल गर्म है...
"कोमल... एक बात बताऊँ ... जब लंड अन्दर जायेगा तो तुम्हें एक बार दर्द होगा लेकिन थोड़ी देर में दर्द ख़तम हो जायेगा और बहुत मज़ा आएगा.. तुम घबराना नहीं..." मैंने जान बूझ कर उसे खून निकलने की बात नहीं बताई...वो डर जाती...मुझे भी पूरी तरह मालूम नहीं था..ये सब सुना सुनाया था...और कुछ सेक्स की किताबों में पढ़ा था सो कह दिया... .
" मुझे कुछ कुछ मालूम है.. पर ज्यादा दर्द मत करना....अब अन्दर तो डाल " कोमल की सांसे तेज चल रही थी.. मेरी भी... हम दोनों पहली बार सम्भोग की दुनिया में जा रहे थे... .और दोनों ही अनाड़ी थे...सच पूछिए तो मुझे भी बहुत डर लग रहा था....
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UPDATE 10
मैंने बाँहों में भर कोमल को पलट नीचे दबाया और ऊपर चढ़ लिंग को उसकी योनी पर दबा अन्दर घुसेड़ा पहले धीरे से और ..योनी बिलकुल सरोबार थी रस से.... फिर भी लिंग को अन्दर जाने में जैसे कोई रुकावट लगी, कोमल की योनी टाईट थी, वो फुसफसाने लगी "धीरे कर.. धीरे धीरे ..."..... लेकिन मुझे चैन कहाँ ...भरपूर प्रहार से लिंग अन्दर जा घुसा ." उई उई..आ आ आ.... करती हुए उसकी कराहने की आवाज़ निकली, मैंने उसके मुहं को हाथों से दबाया डर लग रहा था कहीं जोरों से चिल्ला नहीं बैठे और लिंग के धक्के जारी रक्खे, " आह ...आह....आआ..." वो अब कराह रही थी और मुझे कभी अपने ऊपर से हटाने की कोशिश कर रही थी..और कभी मेरी कमर पकड़ मेरे धक्को के साथ जैसे लय मिलाते हुए नितम्ब उठाकर धक्के दे रही थी....
कुछ ही देर में सिसकारी की आवाज़ धीमी हो गयी और उसने मुझे चूमते हुए जोरों से पकड़ साथ देना शुरू कर दिया.... अब उसकी आवाज़ में एक आनंद था...उसकी योनी रस से भरपूर मेरे लिंग को पूरा निगल रही थी. यूं तो योनी टाईट थी लेकिन उसने फ़ैल कर लिंग को अन्दर समा लिया और अब लिंग योनी रस के कारण स्वाभाविक रूप से योनी को घर्षण करता हुआ धक्के लगा रहा था, कोमल भी उन धक्कों का जवाब देने लगी... उसने जांघें उठा मेरे चूतड़ों को लपेट लिया और हाथों को पीठ पर दबा अपने अपने नितम्ब उठाते हुए हौले हौले मेरे हर धक्के का जवाब दे रही थी.. बहार अभी भी अँधेरा था.. हम एक दुसरे में गुंथे पड़े थे, कोमल अत्यंत गर्म हो गयी थी, उसने मुझे गालों पर काट लिया और पीठ को नाखूनों से खरोंच डाला,
उसकी सांसें जैसे थक कर भारी हो गयीं , मेरी हालत भी ऐसी ही थी, हमें होश नहीं था, कोमल के स्तनों को चूस डाला और घुंडियों को खींच कई बार काट डाला, वो कराहने लगती लेकिन मुझे रोकती नहीं और मेरी पीठ और चूतड़ों को दबा और धक्के लगाने का इशारा करती, कोमल बहुत ही कामुक थी ये तो मैं पहले ही समझ गया था लेकिन सम्भोग में भी इतना ही खुल कर मजे से साथ देगी मैने नहीं सोचा था, हम पसीने पसीने थे और पूरी तरह नग्न, कुछ ही क्षणों में जैसे लिंग से लावा फूट कर बहने लगा, मैं कोमल पर निढाल सा पड़ गया, उसने भी मुझे जोरों से बाँहों में दबा लिया, शरीर के रोम रोम में रोमांच था, जैसे नसों से कुछ बहता हुआ एक जोर की उत्तेजना के साथ लिंग से निकल पड़ा हो, ऐसा आनदं कभी पहले महसूस नहीं किया था, किसीने जैसे शरीर को तोड़ दिया हो, जैसे की सारी थकावट दूर हो गयी और शरीर हल्का हो कर उड़ने लगा हो,
हम कुछ देर ऐसे ही पड़े रहे, सांसें धीमें हुईं और लिंग सिकुड़ ठंडा हो गया मैंने योनी से बाहर खींचा, कोमल आँखें बंद किये निढ़ाल पडी थी, मैंने ध्यान से देखा कोंडोम वीर्य से भरा था, ऐसा लगा जैसे कोमल की जांघों पर कुछ धब्बे लगे हुए थे, मुझे लगा कौमार्य का स्राव होगा मैंने सावधानी बरती थी की सोफे पर तौलिया बिछा दिया था, कोमल ने पूछा " खून है क्या ....? दर्द हो रहा है ..." मैंने इशारे से हाँ कहा, वो बोली "तुम्हारा कहाँ है... अन्दर तो नहीं गया न.." मैंने कहा "डर मत.. कुछ नहीं होगा, ....मैं आता हूँ..." कह कर मैं बाथरूम में गया और कोंडोम को फ्लश कर दिया, कोंडोम पर खून के धब्बे थे जिन्हें देख मुझे एक अजीब एहसास हुआ, लगा की मैं क्या कर बैठा, अनायास ही कोमल के लिए मन में प्यार और एक सुरक्षा की भावना आयी जैसे वो मेरी हो, मैं कुछ देर यूं ही सोचता रहा, बाहर आया तो देखा कोमल ने कपड़े पहन लिए थे और सोफे पर बैठी थी, मैंने पैंट पहना और उसके पास बैठ गया, वो उदास थी, चेहरा उतरा हुआ बिलकुल रोने जैसा,
"क्या हुआ..." मैंने पुछा , वो बिना कुछ जवाब दिए उठी और मुझे कंधे पर धक्का देते हुए अपने कमरे में चली गयी, मुझे कुछ समझ में नहीं आया क्या हुआ, अभी तो बिलकुल ठीक थी और इतनी देर तक तो मस्ती से सम्भोग में लिप्त थी और अब क्या हुआ अचानक. मैंने सोफे को ठीक ठाक किया, तौलिया उठाया और कमरे में आकर सोने की कोशिश कर रहा था. अब तक दिन निकलने लगा था, हल्का उजाला हो गया था, मैं सोच रहा था ये अचानक कोमल को क्या हो गया, कुछ देर पहले मेरे उसके बीच जो हुआ उसपर विश्वास नहीं हो रहा था, ये तो किस्मत थी की कोई भी घर में इस दौरान जगा नहीं, हम दोनों ही कुछ ऐसा खो गए थे की होश नहीं था किसीने देखा लिया होता तो हम दोनों ही मारे जाते और कोमल का क्या होता, यही सब सोचते सोचते नींद लग गयी.
सुबह उठा तो बहुत देर हो गयी थी, बाबूजी और कोमल के पिताजी बाहर जा चुके थे, माँ और कोमल की मम्मी बाहर के आहाते में थे , कोमल कहीं दिखी नहीं, अपने कमरे में भी नहीं, किसीसे पूछने की हिम्मत भी नहीं हुई, मैं बाथरूम में गया, रात को जो तौलिया इस्तेमाल किया था उसपर कुछ हल्के लाल धब्बे लगे थे उनको गर्म पानी से धो कर बाकी कपड़ों के साथ धोने में डाल दिया, बहुत डर भी लग रहा था की किसी को कुछ भनक न लग जाए. मैं स्नान कर आया तो माँ किचेन में थी, पुछा " क्या बात है.. आज इतनी देर सोते रहे , नाश्ता कर ले" ,
मुझसे रहा नहीं गया ' कोमल कहाँ है... " मैंने पुछा, " उसकी तबियत ठीक नहीं... शायद बुखार है... बाबूजी के साथ डाक्टर के यहाँ गयी है." यह सुन मुझे काटो तो खून नहीं... ये क्या हुआ... उसकी तबियत ज्यादा ख़राब तो नहीं... कहीं डॉ को पता चल गया तो... लेकिन ऐअसा कुछ हुआ नहीं... कुछ देर में कोमल वापस आयी, वो काफी कमजोर और उदास लग रही थी, डॉ ने बताया कुछ नहीं है और सिर्फ थोड़ी थकावट है ... आराम करो तीन दिन सब ठीक हो जाएगा...कोमल बिना मुझसे नजरें मिलाये अपने कमरे में चली गयी, माँ और उसकी मम्मी भी गयीं और उसे आराम करने की हिदायत दी..." तुम कोमल के पास बैठो.. उसका मन लगेगा...उसे दवा दे देना और बातें करना" कहती हुई उसकी मम्मी ने मुझे उसके पास भेज दिया, मैं कोमल के बिस्तर पर उसके नजदीक बैठ उसके हाथों को सहला रहा था की कोमल बोल पड़ी
" मैंने बहुत गलत किया कल रात, किसी लड़की को शादी से पहले ऐसा नहीं करना चाहिए..."
"कोई गलती नहीं हुई... हमने जो भी किया सच्चे मन से किया.. कोई पाप नहीं था" मैंने कहा, मैं उसे काफी देर तक समझाता रहा, "जो हो गया उसमे में दुखी न हो कर जिन्दगी जीने का सुख लेना चाहिए .." इस प्रकार की कई बातें कर के किसी तरह उसके मन को हल्का किया, मैंने देखा बातें करते करते उसने अपना मुहं मेरी गोद में छिपा लिया था और सुबक रही थी, थोड़ी देर में उसका रोना बंद हो गया, " किसी से कभी बताओगे तो नहीं..." कोमल ने कहा, "तुम पागल हो क्या..., मैं क्यूं बताऊँगा...मैंने दिल से तुमको प्यार किया है..." मैंने कहा, कोमल को कुछ सांत्वना हुई,
"चलो, उठो और तैयार हो जाओ.. हमलोग बाहर बगीचे में बैठते हैं.. माँ और आंटी किचेन में थे, हम बहार आ गए.... " मुझे वहां दर्द हो रहा है... कुछ हो तो नहीं जाएगा " कोमल ने पुछा उसकी आँखों में चिंता थी, " कुछ नहीं... थोड़ी देर में ठीक हो जाएगा... दर्द ज्यादा है क्या.." मैंने पुछा तो उसके चेहरे पर इतनी देर बाद पहली बार मुस्कराहट देखी
" नहीं.. हल्का हल्का... जैसे कोई दाँतों से काट रहा हो....."
" कौन काट रहा है..." मैंने पुछा तो कोमल ने मुस्कुराकर दिया पर कुछ कहा नहीं. उसे काफी समझाया और सांत्वना दी. मुझे लगा की अब उसके मन की अवस्था ठीक हो रही थी और मुझसे शिकायत करके उसने अपने मन का बोझ हल्का कर लिया था... मैं उसका ध्यान रात की बातों से हटाकर उसकी उदासी को दूर करना चाहता था. कोमल की तबियत शाम तक कुछ ठीक लगने लगी, बुखार अब नहीं था, उनको २ दिन और रुकना था और फिर पुरी के लिए जाने वाले थे, वहां १ हफ्ते रुक कर सीधा अलीगढ़ वापस लौटने का कार्यक्रम था.
शाम को पिताजी और कोमल के पिताजी घर आये तो किसी ठेके के बारे में बातें कर रहे थे जो कलकत्ते से २ घंटे पर था बिजली के नए बन रहे कारखाने में. कोमल के पिताजी उसमे इच्छुक थे और सुबह कम्पनी ऑफिस में किसीसे मिलने गए थे. बातों ये मालूम हुआ की पुरी से लौटते हुए वो पुनः हमारे घर पर रुकेंगे, शायद एक या दो दिन. मुझे सुन कर खुशी का अंदाजा नहीं रहा, लगा जैसे भगवान मेरी बातें सुन रहा था और मुझ पर मेहेरबान था. रात तक कोमल का मूड कुछ कुछ ठीक हो गया था, मैं उससे ज्यादा बातें नहीं कर रहा था और सोच रहा था की उसे खुद ही महसूस हो की जो कुछ हुआ उसमे किसीकी गलती नहीं थी और ये सब स्वाभाविक था, उसके मन से किसी तरह की गलती करने की भावना दूर हो जाये.
रात मैंने पुछा तो उसने बताया की अब दर्द नहीं के बराबर है. सच पुछा जाये तो मुझे लगा वाकई दर्द कभी इतना था ही नहीं बल्की उसके मन में गलती किये जाने की भावना ज्यादा थी. खैर जो भी हो, उसका मूड ठीक हो रहा था ये खुशी की बात थी. उस रात मैं उसके बगल में बैठा था ड्राइंग हॉल में और सबसे नजरें बचा कर उसके हाथों पर हाथ रक्खा तो उसने भी धीरे से मेरे हाथों को दबा दिया और मेरी और देखा. मैं अपने कमरे में सोने गया लेकिन नींद नहीं थी आँखों में. बार बार कोमल का मासूम चेहरा और उसके मादक बदन की याद आ रही थी.
रहा नहीं गया तो कोमल के कमरे की तरफ गया, वो अपने माता-पिता के कमरे में सो रही थी. जगाने की हिम्मत नहीं हुई. उसने नाईट ड्रेस पहनी हुई थी, पैजामा और बिना बाँहों की ढ़ीली और खुली हुई सी कमीज़. मैं देखता रह गया. फिर से शरीर गर्म हो गया इस नज़ारे को देख. मैं खिड़की के पीछे से देख रहा था, अन्दर स्याह अँधेरा तो नहीं था लेकिन रोशनी काफी कम थी और सिर्फ कोमल के अंगों का प्रतिरूप ही मालूम पड़ रहा था, उसके वक्षस्थल के उभारों का आभाष हो रहा था, मैं कितनी देर खड़ा रहा मालूम नहीं, मैं अनायास ही अपने लिंग को सहलाने लगा और कल रात के अनुभव को याद करते हुए लिंग तन कर टाईट हो गया ,
कुछ देर बाद रहा नहीं गया और बेचैनी में कभी बैठक में जाता कभी कोमल के कमरे की खिड़की पर आ खड़ा उसे निहारता. रहा नहीं गया तो अपना पैंट खोल अर्धनग्न अवस्था में लिंग से खेलने लगा उसे शांत करने के लिए. इसी बीच देखा कोमल अपने बिस्तर पर नहीं थी, किसी समय जब में बैठक में था वो बाथरूम गयी होगी और उसने अँधेरे में मुझे देखा नहीं होगा, मैं बैठक में सोफे पर नग्न बैठा उसके आने की प्रतीक्षा कर रहा था,
मेरा लिंग तनी अवस्था में विकराल खड़ा था जो मैं उसे दिखाना चाहता था, दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आयी और अँधेरे में कोमल की छाया दालान में आती दिखी , उसे बताने के लिए मैंने क्षणिक रोशनी बैठक के बल्ब को जलाया, मुझे वहां देख मेरी और आकर उसने फुसफुसाते हुए पुछा
"क्या कर रहे हो यहाँ इतनी रात..?"
"नींद नहीं आ रही" कहते हुए मैंने उसका हाथ पकड़ सोफे पर नजदीक बैठाया और उसके गालों को चूम लिया. वो थोड़ा सकपकाई और अपने को छुड़ाती हुई बोली" मेरा मन नहीं है..."
"बस एक बार...यह रह नहीं पा रहा.. " कहते हुए अपने लिंग को उसके हाथों में पकड़ा दिया.
"एक बार इसको प्यार करले..." मैंने कोमल से कहा..उसके दोनो हाथों को पकड़ मैंने अपने लिंग और अंडकोष पर रख दिए, वो सर झुकाकर उनको मालिश करने लगी, उसके कंधे पकड़ उसे नजदीक खींचा और उसके गालों पर होठ रख चूमने लगा,
"छोड़ दो.. मन नहीं है.. तू मानेगा नहीं जबतक तेरा कुछ हो नहीं जाता ... मैं जानती हूँ .." कोमल बोली
"तो फिर कर दे न ..तू जानती है तो...' मैं कहा, कोमल ने लिंग को अपनी मुट्ठी में थाम ऊपर नीचे करना शुरू कर दिया और दुसरे हाथ से अंडकोष को सहलाती रही, उसे मालूम था मुझे किन चीज़ों से उत्तेजना बढ़ती है, मैं रोक नहीं पा रहा था अपने को, मैंने उसके कमीज़ के अन्दर हाथ डाल स्तनों को पकड़ दबाया और अपने होठ उसपर रख दिए,
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06-06-2021, 06:23 PM
(This post was last modified: 06-06-2021, 07:30 PM by usaiha2. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
UPDATE 11
मैंने उसके कमीज़ के अन्दर हाथ डाल स्तनों को पकड़ दबाया और अपने होठ उसपर रख दिए, स्तनों को चूसते हुए अपने हाथ से उसकी जांघों को महसूस कर रहा था, गुदाज़ और मांसल, मेरे हाथ कभी उसकी जांघों को सहला रहे थे कभी उसकी कमर को, कब हाथ कोमल की योनी के पास पहुँच गया अनायास मालूम नहीं, मैंने सोचा कोमल विरोध करेगी लेकिन उसने कुछ नहीं कहा और अपनी मुट्ठी में मेरे लिंग को घेर अपने हाथों से मैथुन करती रही बिना कुछ कहे चुपचाप. बिलकुल अँधेरा था सिर्फ हमारी साँसों की आवाज़ आ रही थी,
कोमल के नर्म स्पर्श से शरीर में बिजली सी दौड़ रही थी, लिंग से पानी बाहर आने को तैयार, मेरे मुहं से सिस्कारियां निकलने लगी "आह्ह्ह..आःह्ह्ह...धीरे धीरे खींच इसे..बहुत मस्ती आ रही है.... मत छोड़.. करती रह..निकलनेवाला है बस ...." मैं बडबडा रहा था और साथ ही कोमल की चूचियों के बीच मुहं को डाल उसकी बदन की खुशबु में होश खो रहा था, इसी बीच जैसे शरीर में कोई तीव्र झुरझुराहट सी हुई और लिंग से वीर्य की धार फूट पड़ी, " आह ...आः......aaaaahhhhhh" करता हुआ मैं निढ़ाल सा कोमल पर पड़ गया, कोमल ने लिंग को सहलाना जारी रक्खा और चमड़ी को ऊपर नीचे करते हुए लंड से पूरा वीर्य निकाल दिया, उसकी मुट्ठी लसलसे वीर्य से सरोबर हो गयी,
मैंने चेहरा उठा कर देखा , कोमल जैसे बिना किसी भावना के मुझे देखते हुए मेरे पैंट पर अपने हाथों को पोंछा और अपनी कमीज़ के बटन बंद करते हुए उठकर चली गयी कमरे में...उत्तेजना का ज्वर उतर गया अब तक, मैं भी कमरे मैं आकर सो गया, जब वासना पूर्ती से मन शांत होता है तो नींद भी अच्छी आती है, सुबह उठा, आज कोमल और उसका परिवार पुरी जाने वाले थे, शाम को ट्रेन थी, दिन भर उसने मुझे ठीक से देखा भी नहीं, एक दो बार रोक कर उससे बात करने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुआ, समझ में नहीं आ रहा था ऐसा अजीब व्यवहार वो क्यों कर रही थी, शाम को हमलोग उनको छोड़ने स्टेशन गए, फर्स्ट क्लास का डब्बा था, कोमल का परिवार नीचे प्लेटफोर्म पर पिताजी और मां के साथ खड़ा था, मौका देख मैं कोमल के पास अन्दर गया, उसने मुझे बिना भाव के देखा, मुझसे रहा नहीं गया और उसके चेहरे को पकड़ जोरों से चूम लिया
" ऐसा व्यवहार करोगी तो मर जाऊँगा.... फिर मेरा मुहं भी नहीं देखोगी..." मैं कुछ गुस्से और कुछ अपनी मन की बेचैनी में बोल पड़ा....कोमल उसी तरह चुप सी देखती रही, " तुम जा रही हो... तुम्हारे अलावा कुछ सोच नहीं सकता... " कहता हुआ उसे बाँहों में भर लिया, "नीचे जाओ... कोई देख लेगा..." इतनी देर बाद कोमल के मुहं से कुछ सुना... उसकी आँखों में एक फिर एक बार प्यार दिखा और करुणा के भाव भी...मैं डब्बे से बाहर निकलने लगा तो उसने मेरी बाँहों को पकड़ लिया और एक क्षण के लिए अपना सर मेरे सीने से लगा दिया ... लगा जैसे अभी भी उसके मन में मेरे लिया कुछ था .. ट्रेन के जाने का समय हुआ...कोमल दरवाज़े पर नहीं आयी....
मैंने खिड़की से देख उसे हाथ हिलाया, उसने भी धीरे से हाथ उठा कर जवाब दिया......कोमल के जाने के बाद मुझे सब कुछ इतना उदास लगने लगा, माँ और पिताजी को भी उनका कुछ दिनों रहना अच्छा लगा सब का मन लगा हुआ था. कोमल के पिताजी का फ़ोन आया वो सब ठीक पुरी पहुँच गए थे. मैं याद कर रहा था की कब वो वापस आयें की तीन दिन बाद दोपहर को फ़ोन की घंटी बजी, मैंने फ़ोन उठा कर पुछा तो उस तरफ कोमल थी, मेरे आश्चर्य और खुशी का ठिकाना नहीं, "कैसी हो..." मैंने पुछा तो कोमल ने कहा " तुमसे ही बात करनी थी.... तुम इस समय मिलोगे इसलिए फ़ोन किया.." "क्या बात है..." मैंने कुछ चिंता से पूछा तो वो धीमे से हंसती हुई बोली " घबराओ मत...तुम्हें बताना था..मैं मेंस में हूँ...." " हे भगवन...
क्या तुम इसलिए इतनी चिंतित थी... मैं तो घबरा रहा था तुम्हें क्या हो गया है... तुमने दो दिन मुझे ठीक से देखा भी नहीं.." मैं बोले जा रहा था मैंने फ़ोन पर फुसफुसाते हुए कहा "मुझे मालूम था कुछ नहीं होगा... मैंने सब सावधानी रक्खी थीं ... तुमने बताया क्यूँ नहीं की इसलिए तुम इतनी परेशां हो...." मेरे दिल का बोझ हल्का हुआ, कोमल बहुत खुश थी और उसने बहुत कुछ कहा जैसे " मुझे बहुत डर लग रहा था...अब सब ठीक है....हमलोग यहाँ बहुत मजे कर रहे हैं... मैंने कल समुद्र में नहाया ... बाबूजी मंदिर में हैं.....मेंस में हूँ....तुमको ये बताना था इसलिए फ़ोन किया...तुम्हारी याद आ रही है.... .हम फिर आ रहे हैं... जल्दी मिलेंगे ...." वगैरह वगैरह....
फ़ोन पर उसकी खुशी का अंदाजा मैं लगा सकता था और वो इतनी उदास क्यूँ थी ये भी समझ में आया..लड़की थी उसे गर्भ ठहर जाने का डर था जो उसे चिंतित कर रहा था, वो डर अब दूर हो गया...इसलिए इतना चहक रही थी फ़ोन पर.... उसकी याद मुझे सता रही थी.. तीन दिनों से उसका बदन मेरी आँखों के सामने आ आ कर मुझे जैसे झिझकोर जाता था.. इन तीन दिनों में रोज ही हस्तमैथुन कर बैठता.. ऐसा पहले नहीं था, .. रात को बिस्तर पर उलट पुलट होता रहता..
बेचैनी इतनी बढ़ गयी की देर रात उठ कर बाहर बैठक में आकर अँधेरे में बैठा रहता और कोमल के बारे में ही सोचता रहता... उसकी गज़ब की जवानी और शरीर की याद बदन में खून गरम कर देती तो वहीं हाथों से अपने आप को शांत करता.... उसकी फ़ोन पर मीठी चहकती आवाज़ ने पागल बना दिया था, इतनी दीवानगी तो जब वो सामने थी तब भी नहीं थी, अब आँखों से ओझल होने पर उसकी हर अदा और उसके शरीर का एक एक पोर जैसे मुझे याद आ रहा था, उसके स्पर्श को महसूस कर रहा था हर वक्त उसकी गैरमौजूदगी में,
उस रात बिस्तर पर उसे याद करते हुए दो बार वीर्यस्खलन कर बैठा अपने हाथों से, जब रहा नहीं गया तो गद्दे पर उल्टा लेटे पैंट को नीचे सरका लंड का घर्षण करते हुए इतना वीर्य निकल पड़ा की शरीर एक बार लगा जैसे तनाव मुक्त हो गया, छोटा भाई सो रहा था लेकिन कुछ सूझ नहीं रहा था और लगभग नंगा होकर ठंडी हवा से शांती प्राप्त करने की कोशिश करता हुआ कोमल के नजदीक होने की तमन्ना करता रहा,
दो तीन दिन बाद ही अलीगढ से दो तकनीकी लोग आये जो कोमल के पिताजी के यहाँ काम करते थे और नए ठेके की जानकारी करने आये थे... उनको पिताजी ने होटल में ठहराया ... घर में एक हलचल का वातावरण सा था, पिताजी भी शायद इस मिलनेवाले ठेके में शामिल थे .. ...इस बीच कोमल से बात नहीं हो सकी लेकिन माँ पिताजी की बात होती थी.. एक दिन पिताजी ने कहा कल वो लोग आयेंगे और मुझे लेने उन्हें स्टेशन जाना था .. गाडी सुबह सुबह ५-६ बजे आती थी ...ड्राईवर और मैं स्टेशन गए ...कोमल से मिलने को मन व्याकुल था....
उसे ट्रेन से उतरते देख दिल की धड़कन तेज हो गयी जैसे पहली बार देख रहा होऊँ. उनींदी आँखें...चेहरे पर सुबह की अलसाई सी निस्फिक्रता और शांती, अभी भी याद है सफ़ेद ढीली कमीज़ और पैजामा, लेकिन वक्ष का लुभावना उभार स्पष्ट उस ढीली कमीज़ में भी दिख रहा था,....कोमल ने आँखें मिलाई एक हल्की मुस्कराहट आयी उसके चेहरे पर जो सिर्फ मैं ही देख पाया....घर आये तो माँ और पिताजी सभी इंतज़ार कर रहे थे... सब अपने अपने काम में लग गए.. मैं बार बार कोमल से बात करने की फ़िराक में था लेकिन मौका ही नहीं मिला...मेरे छोटे भाई के तो उस दिन मजे हो गए...कोमल ने उसे कई बार चूमा और उसके साथ लिपट गयी मुझे दिखाते हुए....
मैंने देखा वो और उसकी मम्मी माँ के साथ बातों में लग गए और पुरी से लाया सामान दिखा रहे थे ... जैसे मुझे चिढ़ा रही थी इशारा करने पर भी नहीं आयी...... वो तकनीकी लोग भी कुछ देर में आ गए और पिताजी और कोमल के पिताजी उनके साथ बातों में लग गए.. थोड़ी देर में सभी बिजली कारखाने के लिए रवाना हुए तो मालूम हुआ की रात देर तक लौटेंगे..कोमल के इस व्यवहार से मुझे गुस्सा भी आ रहा था और मैं सोच में था की कैसे कोमल से मिलूँ...रहा नहीं गया और मौका तब मिला जब वो दोपहर में नहाने गयी...
"कौन.." दरवाज़े पर दस्तक करने पर कोमल ने पुछा..."खोलो...मैं हूँ..." मैंने कहा..
"पागल मत बनो... जाओ...कोई देख लेगा...."
"कोई नहीं है....मैं बात नहीं करूंगा..दरवाज़ा खोलो .. " मैंने जिद की तो कोमल ने थोड़ा सा दरवाज़ा खोल बाहर झाँका इसी समय मैंने दरवाज़े पर दबाव डाला और अन्दर जा घुसा और सिटकनी बंद की...
"तुम को क्या हुआ है... कोईभी देख लेगा तुम्हें अन्दर .." कोमल ने धीरे से फुसफुसाते हुए कहा
"कोई नहीं है.... माँ और तुम्हारी मम्मी ऊपर कमरे में हैं...उन्हें कुछ मालूम नहीं...घर में कोई नहीं है..." मैंने कहा तो कोमल कुछ निश्चिंत सी हुई... फिर भी मैं अन्दर से डर तो रहा ही था लेकिन मन में जो तूफ़ान था मैं कोई भी रिस्क लेने को तैयार था...रहा नहीं गया तो बाँहों में उसके गदराये बदन को भर कर जी भर पहले तो चूमा और फिर उसकी ओर देखा, एक काली चोली और छोटी सी पैंटी में उसका बदन दमक रहा था पानी की बूंदों से , भरी जांघें, उन्नत वक्ष और लम्बे ऊंचे शरीर का उठान जैसे मतवाला कर गया, होश काबू में नहीं रहे, मैंने उसके गालों को काट खाया......" सी सीई ... आह......क्या करते हो..." कहते हुए कोमल जैसे कराह उठी ,
" बाहर जाओ... मैं आती हूँ.... शाम को मिलेंगे..टंकी के पीछे ..." कहते हुए कोमल ने दरवाज़ा खोल मुझे बाहर धकेल दिया.
********* समाप्त *********
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ये स्टोरी किसी और लेखक की है, इसलिए मैं इसका सारा श्रेय इसके असली लेखक को देता हूं. मुझे यह स्टोरी पर्सनल रूप से बहुत अच्छी लगी इसलिए सोचा कि आपलोगों के साथ भी शेयर करूँ.
कोई लंबी नहीं बल्कि एक छोटी स्टोरी होगी.
मैं लेखक के स्टोरी में कुछ बदलाव करके ही यहां पोस्ट कर रहा हूं. यह पूरी तरह से काल्पनिक है.
आशा करता हूं कि आपको ये स्टोरी अच्छी लगेगी.
कमेंट में जरूर बताएं.
धन्यवाद।
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11-06-2021, 12:15 PM
तांत्रिक प्रेम
यह कहानी एक युवक सागर की है, जो वासना और वासना में जुड़े प्रेम को ढूढ़ने की कोशिश कर रहा है। इसे बिल्कुल नहीं पता कि वासना को प्रेम मिलन में कैसे बदला जाए जिससे कि स्त्री-पुरुष का संगम वासना की नहीं बल्कि प्रेम का उदाहरण बने।
यह कहानी सागर की जुबानी में है।
आज दिन भर से बहुत बोर लग रहा था , न जाने मौसम का असर था या कुछ और। बहुत दिनों की भाग दौड़ के बाद इन्सान जब खाली बैठता है तो उसका मन उसे चैन से बैठने भी नहीं देता ..सोचा चलो Gym हो आते है शायद कुछ बोरियत ही कम हो जाये और थोडा बदन चुस्त दुरुस्त हो जाये। Gym में भी थोड़ी बहुत एक्सरसाइज के बाद , मसल्स में दर्द होने लगा सोचा थोड़ी स्ट्रेचिंग ही कर ली जाये !
इधर उधर नजर घुमा रहा था की..देखा Gym के एक रूम में किक बॉक्सिंग की क्लास शुरू होने वाली है ...किक बॉक्सिंग की क्लास में पहले पहले सुन्दर कमसिन और नाजुक लडकियों को देख मन प्रसन्न होता था पर अब वंहा पर घरेलू और थकी मांदी प्रोफेशनल अधेड़ औरतो का जमावड़ा लगता है जो मन में आनंद की जगह अवसाद पैदा करता है ...पर कोई चारा न देख मैं उस क्लास में घुस गया !
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आज की क्लास कोई नयी ट्रेनर ले रही थी। उसकी पीठ हम लोगो की तरफ थी। उसने म्यूजिक स्टार्ट किया और शुरू हो गयी अपने मुंह से लगे स्पीकर पे चिल्लाने ...पहले जेप .. फिर लेफ्ट किक , फिर राईट किक , फिर दो कदम आगे इक फ्रंट किक फिर दो कदम पीछे हुक
...यह सब चल रहा था और हम उसकी आवाज को प्रोग्राम्ड रोबोट की तरह फॉलो कर रहे थे .. उसकी अपनी पीठ जो हमारे तरफ की थी , उसने अपनी पोजीशन बदली और वह हमारे सामने थी ...ohh! ..My ..God .. क्या कोई इस कदर खुबसूरत भी हो सकती है ..लगता था भगवन ने उसे फुरसत में नहीं वीक एंड में ओवर टाइम करके बनाया था ...
उसे एक बार देखने के बाद मुझे जेप ..हुक ..कट ..किक ... कुछ भी सुनायी नहीं दिया ..
पहले से ही प्रोग्राम्ड रोबोट जो उसकी आवाज को फॉलो कर रहे थे अब ..मेरा जैसा बिगड़ा हुआ रोबोट तो सिर्फ उसे देख अपने हाथपावं चला रहा था ..
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