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सुधा अपनी सहेली शीला के घर जा रही थी लेकिन वहां जाने की इच्छा उसके बिल्कुल भी नहीं हो रही थी लेकिन मजबूरी थी सो जाना पड़ रहा था क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि किसी की मदद लिया जाए वैसे भी शीला बहुत बार सुधा की मदद कर चुकी थी इस वजह से सुधा शीला के एहसानों तले दबी हुई थी बार-बार उससे मदद मांगना सुधा को भी अच्छा नहीं लग रहा था लेकिन क्या करें मजबूरी थी।
नहा कर तैयार होने के बाद सुधा
थोड़ी ही देर में पैदल चलते हुए सुधा शीला के घर पहुंच गई..... दरवाजे पर दस्तक देते हुए जैसे जैसेे दरवाजे पर दस्तक की आवाज कर रही थी वैसे वैसेसुधा के दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी। थोड़ी ही देर में दरवाजा खुला और सुधा कि हम उम्र शीला अपने गीले बालों को टावल से पौछते हुए दरवाजे पर खड़ी सुधा को देख कर मुस्कुराने लगी.. यह मुस्कुराहट इस बात का सबूत था कि शीला सुधा की एक सच्ची मित्र थी जो कि हमेशा सुधा की भलाई और मदद करने के लिए तत्पर रहती थी दरवाजे पर खड़ी सुधा को देखकर शीला मुस्कुराते हुए सुधा को कमरे में आने के लिए बोली।
आज बहुत दिनों बाद तुम्हें अपनी सहेली की याद आई..(कुर्सी पर बैठते हुए और सुधा को भी कुर्सी पर बैठने का इशारा करते हुए शीला बोली।)
शीला तुम तो जानती हो मेरी हालत यू बार बार किसी के घर पहुंचे रहना भी तो अच्छी बात नहीं है ।(कुर्सी पर बैठते हुए सुधा बोली)
ऐसा कहकर तुम हमारी दोस्ती को गाली दे रही हो सुधा तुम अच्छी तरह से जानती हो कि मेरे मन में दूसरी और को जैसा कुछ भी नहीं है मैं तुम्हें अपनी बहन ही मानती हूं।
मेरा कहने का मतलब वैसा कुछ भी नहीं था मेरा मतलब यह था कि मैं वैसे भी तुम्हारे एहसानों तले दबी हुई हु।
सुधा यह गलत बात है मैंने तुम पर कोई भी एहसान नहीं की हूं मैं तो सिर्फ अपनी दोस्ती का फर्ज निभाई हूं।
यह तो तुम्हारी दरियादिली है शीला वरना आजकल के जमाने में बिना मतलब का कोई इतनी मदद नहीं करता ।
अरे बातों ही बातों में मैं तो तुम्हें चाय पिलाना ही भूल गई।
रहने दो शीला परेशान होने की जरूरत नहीं है।
इसमें परेशानी की कौन सी बात है वैसे भी मैं चाय बना ही रही थी रुको मैं लेकर आती हूं (इतना कहते हुएशीला कुर्सी पर से उठी और किचन की तरफ चली गई सुधा उसे जाते हुए देख रही थी।और मन ही मन भगवान को इतनी अच्छी सहेली देने के लिए शुक्रिया अदा कर रही थी। थोड़ी ही देर में सीला दो कप चाय और कुछ बिस्कुट लेकर आ गई।दोनों चाय पीने लगे चाय की चुस्की लेते हुए सुधा बार बार अपने मन की बात शीला से कहने जा रही थी लेकिन शब्द नहीं फूट रहे थे उसे आज शीला से मदद मांगने में शर्मिंदगी का एहसास हो रहा था लेकिन फिर भी क्या करती मजबूरी थी इसलिए वह हिचकी चाहते हुए बोली ।
शीला मैं तुम्हारे पास छोटी सी मदद मांगने आई हु।
?हां हां बोलो...
मुझे कुछ पैसों की जरूरत थी।
तो इतना कहने में शर्मा क्यों रही हो मैं तुम्हारी सहेली हूं कोई साहूकार नहीं हु की तुम्हें मदद करने के एवज में कोई चीज गिरवी रख लूंगी।
(शीला हंसते हुए बौली।)
शीला तुम तो जानती हो कि मेरी माली हालत कितनी खराब है।बड़ी मुश्किल से घर का खर्चा चलता है एक किराएदार था तो वह भी चला गया।
चला गया क्यों चला गया?( शीला आश्चर्य व्यक्त करते हुए बोली)
चला नहीं गया मैंने ही उसे निकाल दी।
लेकिन क्यों यह बात जानते हुए कि उसके दीए किराए से तुम्हें काफी मदद मिल जा रही
हां यह बात अच्छी तरह से जानते हुए भी मैंने उसे घर खाली करने को कह दो और उसे घर से निकाल दी।
लेकिन तुमने ऐसा किया क्यों ?
कर भी क्या सकती थी मैं मजबूर हो गई थी क्योंकि उसकी नियत खराब थी।
तुझे कैसे मालूम कि उसकी नियत खराब थी ।
यार (चाय की चुस्की लेते हुए) 1 दिन में बाथरूम में नहा रही थी लेकिन दरवाजे की कड़ी बंद करना भूल गईऔर आदत के अनुसार
मैं बिल्कुल नंगी होकर नहा रही थी।( इतना सुनते ही शीला के कान खड़े हो गए और वह मुस्कुराते हुए सुधा की तरफ देख कर उसकी बात सुनने लगी)
फिर क्या हुआ?
मैं तो इस बात से बेखबर कि वह चोरी चुपे मुझे देख रहा है मैं अपनी मस्ती हूं अपने बदन के चारों तरफ हाथ घुमा घुमा कर नहाने लगी।
सुधा तु सच में बिल्कुल नंगी थी?(शीला आश्चर्य के साथ बौली)
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हां यार कर भी क्या सकती हूं बिना कपड़ों के बहाना मेरे जवानी के दिनों की आदत है... अब से तो बदला नहीं जा सकता लेकिन मुझसे गलती हो गई थी कि मैं दरवाजे की कड़ी लगाना भूल गई थी...
गलती...... बहुत ही खूबसूरत गलती कहो.... ऐसी गलती हर किसी से नहीं होती। सुधा काश मैं तेरी किराएदार होती तो उस नजारे को देखकर कसम से गरम आहें भरने लगती....
क्या शिला तू भी शुरू हो गई...
(सुधा यह बात अच्छी तरह से जानती थी कि शीला को इस तरह की मजाक करने की आदत है क्योंकि वह दोनों बचपन की पक्की सहेलियां थी और यह बात भी अच्छी तरह से जानती थी कि सुधा जिस तरह से अभी इस उम्र में भी खूबसूरत दिखती है उससे भी कहीं ज्यादा खूबसूरत हो अपनी जवानी के दिनों में थी और इस बात से उसे जलन भी होती थी कि लड़कों का झुंड उसी के पीछे पड़ा रहता था लेकिन वह किसी को घास तक नहीं डालती थी...शीला खुद सुधा के खूबसूरत मादक बदन की दीवानी थी क्योंकि उसके अंगों की बनावट उसके हर एक अंग का कटाव ऐसा लगता था जैसे भगवान ने खुद अपने हाथों से बनाया हो और यही देखकर वह थोड़ा बहुत सुधा से ईर्ष्या भी करती थी लेकिन उससे प्यार भी बहुत करती थी....)
सुधा तू यह नहीं जानती कि तू कितनी खूबसूरत है इस उम्र में भी तुम लड़कों का पानी निकाल दे.... पता है जब तू चलती है ना तो ऐसा लगता है कि जैसे कामदेवी खुद सड़क पर गश्त लगाने के लिए जा रही है तेरी बड़ी बड़ी गांड कसी हुई साड़ी में बेहद खूबसूरत लगती है और सच कहूं तो मर्दों के साथ-साथ औरतें भी तेरा यह बड़ा पिछवाड़ा देखकर तुझसे ईर्ष्या करती हैं.....
तू करती है....( सुधा तपाक से बोली...हालांकि अपनी सबसे पक्की सहेली के मुंह से अपनी तारीफ सुनने में उसे बहुत अच्छा लग रहा था और सबसे ज्यादा अच्छा तो यह लग रहा था कि एक औरत होने के नाते बिना ईर्ष्या के वह उसकी तारीफ कर रही थी...)
हम्ममम.......(सोचते हुए) हां कुछ-कुछ...... यार मैं भी एक औरत हूं और औरत होने के नाते औरत की खूबसूरती देखकर थोड़ी बहुत तो ईर्ष्या मेरे मन में भी होती है ना लेकिन फिर भी मैं तेरे से बहुत खुश हूं.... लेकिन सुधा क्या तेरे किराएदार ने तेरी वो देख लिया था....
क्या वो...?(चाय की चुस्की लेते हुए सुधा शीला की तरफ सवालिया नजरों से देखते हुए बोली)
चल अब ज्यादा बन मत बताना क्या तेरी किराएदार ने तेरा सब कुछ देख लिया था....(सुधा की तरफ देखकर शीला उत्सुकता वश बोली और सुधा अच्छी तरह से जानती थी कि वह बिना सुने मानने वाली नहीं है आए दिन हम दोनों के बीच इस तरह की बातें हुआ करती थी लेकिन जब से सुधा के पति का देहांत हुआ था तब से यह मजाक यह सब बातें कम होने लगी थी लेकिन आज मौका देख कर शीला सारी कसर निकालने के मूड में थी..)
अब कह तो रही हूं कि मैं बाथरूम में एकदम नंगी नहा रही थी तो सब कुछ देख ही लिया होगा ना....
Sudha ke nange badan ke bare mein soch soch kar Shila ki halat kharab ho Rahi thi.
सब कुछ से मतलब ......क्या तेरी बुर..... बुर..... भी देख लिया था उसने....(शीला तपाक से बोली)
अब देख ही लिया होगा ना वैसे भी मैं उस पर साबुन लगाकर उसे साफ कर रही थी....(सुधा ना चाहते हुए भी अपनी बातों पर नमक मिर्च लगाकर बोलने लगी थी क्योंकि वह अच्छी तरह से जानती थी कि शीला को इस तरह की बातें सुनने में बहुत मजा आता है और इस समय सुधा को पैसे की ज्यादा जरूरत है इसलिए वह अपनी बातों में नमक मिर्च लगाकर बोल रही थी..)
सससहहहहहहह ....आहहहहहहह..... सुधा मेरी जान कसम से मजा आ गया होगा तेरे किराएदार को...(शीला गरम आहें भरते हुए बोली...) लेकिन सुधा तेरी बुर में तो कुछ आता जाता है नहीं मेरा मतलब है कि तू अभी तो किसी से चुदवाती नहीं है तो साफ क्यों कर रही थी....
क्या शीला तू तो एकदम पागल हो गई है अब जरूरी है कि चुदवाने के बाद ही औरत अपनी बुर को साफ करती है... उसे स्वच्छ रखना भी तो औरत का ही फर्ज है बस वही फर्ज निभा रही थी....
हाय काश यह फर्ज मुझे निभाने को मिलता....(शीला अंगड़ाई लेते हुए बोली....)
यार शीला कसम से मुझे ऐसा लगता है कि अगर तू औरत ना होकर एक मर्द होती तो अब तक तू मेरी इज्जत ले ली होती....
यह भी पूछने वाली बात है अगर सच में ऐसा होता तो अब तक ना जाने कितनी बार मेरा लंड तेरी बुर की गहराई नाप लिया होता....
तब तो जीजाजी रोज तेरी बुर की गहराई नापते होंगे...
अरे उनको कहां फुर्सत मिलती है कि औरत की तरफ ध्यान दें बस अपना काम काम काम.... कभी-कभी तो सोचती हूं कि उनसे शादी करके मैं अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली नहीं तो औरतों के भी अरमान होते हैं भले उम्र का वह दौर गुजर गया लेकिन शरीर में जवानी बरकरार है इसी में जोड़ने के लिए एक अच्छी खासे मर्द की जरूरत होती है लेकिन मेरे पतिदेव को तो मेरी फिक्र ही नहीं है....
(शीला बातों ही बातों में अपने मन का दर्द सुधा से कह दी.... लेकिन सुधा सीना से इस बारे में कुछ ज्यादा नहीं बोल पाई क्योंकि भले ही वह शीला से बातें कर रही थी उसका ध्यान पूरी तरह से रितु की फीस की तरफ ही था...)
सब कुछ सही हो जाएगा शीला....(चाय का आखरी घूंट भर कर खाली कप को टेबल पर रखते हुए बोली...)
क्या खाक ठीक होगा इतने वर्षों में नहीं हुआ तो अब क्या होने वाला है मैं भी अपना मन मसोसकर रह जाती हूं ....(शीला भी जल्दी-जल्दी घूंट भर कर खाली कब टेबल पर रख दी)
औरतों की किस्मत में यही होता है सीला मेरे पति नहीं है तो यह हाल है और तेरे पति होने के बावजूद भी तेरा यह हाल है आखिर दिल की बात कहे भी तो कैसे कहें....
सच कह रही है सुधा( इतना कह कर टेबल पर से दोनों खाली कप लेकर वहां किचन की तरफ चली गई.. सुधा ऊसे जाते हुए देख रही थी अनायास ही उसका ध्यान शीला की मटकती हुई गांड पर चली गई जो कि ज्यादा विशाल तो नहीं थी लेकिन इतनी तो थी कि मानव कसी हुई साड़ी में दो बड़े-बड़े तरबूज बांध दिए गए हो।... शीला की बड़ी बड़ी गांड देखकर सुधा यही सोच रही थी कि शीला का बदन भी बहुत खूबसूरत था एक औरत के पास मर्द को रिझाने के लिए जिस तरह के अंग होने चाहिए वह सब कुछ शीला के पास था लेकिन फिर भी उसके बताए अनुसार वह पति का प्यार नहीं पा पा रही थी अब ईसे किस्मत का दोष कहे या औरत का नसीब.... सुधा को अच्छी तरह से याद था कि जब दोनों साथ साथ कॉलेज में पढ़ते थे तो शीला काफी चंचल किस्म की लड़की थी जो कि लड़कों के साथ जल्दी घुलमिल जाती थी और शादी के पहले ही उसने अपना कौमार्य भंग करवा चुकी थी .... सुधा शीला के बारे में और कुछ सोच पाती इससे पहले ही किचन में से शीला बाहर आ गई और शीला को देखकर सुधा बोली....
शीला अब मुझे चलना चाहिए काफी देर हो गई है....(इतना कहकर सुधा उठ गई और उसे कुर्सी पर से उठता हुआ देखकर शीला बोली...)
Sheela bhi kuch kam nahi thi ye bat Sudha bhi acchi tarah se janti thi
अरे रुक तो सही मैं अभी आती हूं....(इतना कहकर वह अपने कमरे की तरफ चली गई और कुछ देर बाद बाहर आई तो उसके हाथों में सो सो के नोट की गड्डी थी... जिस पर नजर पड़ते ही सुधा की आंखों में चमक आ गई वह समझ गई कि उसका काम बन गया है....) मैं जिस काम के लिए आई है वह तो लेती जा....
(इतना कहकर सीला सुधा को सो सो की नोट की गड्डी पकड़ा दी और सुधा मजबूरी में हाथ आगे बढ़ाकर उसे ले ली और शीला का आभार प्रकट करते हुए वह हाथ जोड़ते हुए बोली।)
शीला मैं तेरा एहसान कभी नहीं भूलूंगी पूरी दुनिया में एक तू ही है जो मेरी मदद कर सकती है इसलिए मैं तेरे पास आती हुं....
यह क्या कर रही है सुधा मैं तेरी सहेली हूं इस तरह से हाथ जोड़कर तू मेरा अपमान मत कर लेकिन इतना जरूर कहुगी कि जल्द से जल्द कोई किरायेदार रखकर थोड़ी बहुत आवक का जरिया बना ले यह दुनिया ऐसी ही है हर वक्त मर्दों की नजर औरतों पर ही रहती है... सारे मर्द एक जैसे होते हैं अगर उनकी नजर देखकर तो उन्हें घर से निकालती रहेगी तो कैसे काम चलेगा मर्दों की इस तरह की नजरों से अपने आप को बचाना भी है और आगे भी बढ़ना है...
मैं तेरी बात अच्छी तरह से समझ रही हूं लेकिन क्या करूं रितु अब बड़ी हो गई है मैं नहीं चाहती कि किसी की गंदी नजर उस पर पड़े...
चल कोई बात नहीं सब सही हो जाएगा....
अच्छा तो शीला अब मैं चलती हूं बहुत देर हो रही है। और हां अगर हो सके तो मेरे लिए किसी नौकरी का बंदोबस्त कर दें ऑफिस में या कहीं भी....
हां यह बात तुम्हें ठीक कही मैं जल्द से जल्द तेरे लिए कुछ करती हूं......
(शीला की बात सुनकर सुधा के होठों पर मुस्कुराहट तेरे गई और वह उससे बीदा लेकर अपने घर की तरफ आ गई...)
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Thanks for reading this story.
I am always very fond of this kind of slow seductive story. In reality, a woman needs time to involved in an affair. All women are not sex-starved or whore that they can easily be driven by anyone.
Most of the cases, there is a very particular and valid reason to involve in any illicit relationship. Sometimes they forced by other persons, sometimes they forced by the situation which arises unexpectedly in front of her.
I read a lot of stories which look very unrealistic as in those, a married woman shows like a characterless slut, but the reality is different.
I am not the original writer, I collect stories from different internet sites like old EXBII, XOSSIP, RSS, ISS, NIFTY, ASSTR, & LITEROTICA.
I just copy and pest them here for my as well as your enjoyment... all credit goes to the unsung writer's who are the original heroes.
So, I request to all my fellow authors to write more slow seductive real stories regarding married women.
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हसीन धोखा
ये कहानी सच्चाई पर आधारित है. इसमें हुई सारी घटनायें सच्ची हैं, लेकिन पात्रों के नाम बदल दिए गायें हैं.
ये कहानी उस वक़्त की है जब मैं कॉलेज ख़त्म करके आगे इंजिनियरिंग की तय्यरी कर रहा था. मैं अपने घर में सबसे छोटा हूँ. मेरे दो बड़े भाई हैं जिनमें से एक की शादी हो चुकी है और दूसरा बंगलोर में जॉब कर रहा था. कुछ महीने बाद मैने एंट्रेन्स एग्ज़ॅम दिए जिसमे मेरे अच्छे अंक आए और मेरा दाखिला चंडीगड़ के एक कॉलेज में हो गया.
चंडीगड़ में मेरे चाचा का परिवार रहता था. चाचा की कई साल पहले मौत हो चुकी थी. घर में चाची, उनका बेटा और बहू रहते थे. उनकी बेटी भी थी जिसकी अब शादी हो चुकी थी. तय यह हुआ की मैं होस्टल में न रहकर चाचा के घर में रहकर इंजिनियरिंग के चार साल बिताऊँगा. पहले मैं इस बात से बहुत नाराज़ हुआ. मुझे लगा की कॉलेज का मज़ा तो होस्टल में ही आता है, लेकिन मुझे क्या पता था की वो चार साल मेरी ज़िंदगी के सबसे खूबसूरत चार साल होंगे.
कुछ महीने बाद मैं निकल पड़ा चंडीगड़ के लिए. रास्ते भर मैं खुश था की कई साल बाद मैं अपनी भाभी से मिलूँगा. सुमन मेरे चचेरे भाई रवि की बीवी का नाम है. रवि भैया मुझसे उम्र में आठ साल बड़े हैं. उन्होने कॉलेज ख़त्म करने के कुछ महीने बाद ही सुमन भाभी से शादी कर ली थी. मैं न जाने कितनी बार सुमन भाभी के नाम की मुट्ठी मारी थी. और थी भी वो तगड़ा माल. शादी के वक़्त जब भाभी को दुल्हन के कपड़ो में देखा था, तब लंड पर काबू पाना मुश्किल था. मैने बस यही सोचा था की रवि भैया कितने खुशकिस्मत हैं जो इस बला की खूबसूरत लड़की को चोदने को मिल रहा है उन्हे.
खैर मैं अगले दिन चंडीगड़ पहुँचा और चाची और भाभी ने मेरा स्वागत किया. चाची बोली, "अब तू आ गया है, चलो कोई तो मर्द होगा घर में, नही तो तेरा भाई हर समय इधर-उधर भागता रहता है बस". भैया की सेल्स की जॉब थी जिस वजह से वो हर वक्त बाहर रहते थे. सुमन भाभी मेरे लिए पानी लेकर आई. क्या ज़बरदस्त माल लग रही थीं वो. गुलाबी साड़ी में किसी स्वर्ग की अप्सरा जैसी खूबसूरत, गोरा सुडौल बदन जो किसी नामर्द के लंड में जान डाल दे. पर जो सबसे खूबसूरत था वो था उनके पल्लू से उनका आधा ढका पेट और उसमे से आधी झाँकती हुई ठुण्डी. मैने उनके हाथ से पानी लिया पर मेरी नज़र उनके पेट से हट नही पा रही थी. दिल करता था की बस पल्लू हटा के उनके पेट और ठुण्डी को चूम लू.
तभी अचानक भाभी बोल पड़ी "क्या देख रहे हो देवर जी".
मैं तोड़ा झेप गया. सोचने लगा कहीं भाभी कुछ ग़लत ना सोचे या चाची को ये न लगे कि मैं उनकी बहू को ताड़ रहा हूँ.
मेरी नज़र भाभी के चेहरे पर पड़ी. इतनी खूबसूरत थी वो जैसे मानो भगवान ने फ़ुर्सत में पूरा वक्त देकर उन्हे बनाया हो.
"क्क्क-कुछ नही भाभी" मैं कुछ भी बोल पाने में असमर्थ था.
"राजेश, तुझे सबसे उपर दूसरी मंज़िल पर कमरा दिया है. अपना सामान लगा ले और नहा-धो कर नीचे आजा खाने के लिए." चाची बोली.
मैं अपना सामान उपर ले जाने लगा. मेरी नज़र भाभी पर पड़ी, तो वो मेरी तरफ मुस्कुराकर कर देखी और अपना पल्लू हल्का सा खोलकर अपनी नाभि के दर्शन कराकर चिढ़ा रही थी.
शाम को भैया वापस आए. हम सब ने खाना खाया और रात को सोने चले गये. रात को मेरी नींद अचानक खुली. मुझे प्यास लगी थी. मैं पानी पीने के लिए नीचे गया. सबसे नीचे वाली मंज़िल पर चाची सो रही थी. मैं पानी पी कर उपर आ रहा था कि तभी पहली मंज़िल पर मुझे कुछ आवाज़ें सुनाई दी. इस मंज़िल पर भैया-भाभी का कमरा था. उनके कमरे से एक औरत की मधुर कामुक आवाज़ें आ रही थी. मैने सोचा की कान लगा के सुने क्या चल रहा है अंदर. थोड़ा इंतज़ार करने के बाद मैने दरवाज़े पर अपना कान लगा दिया. अंदर से भैया बोल रहे थे, "सुम्मी, चूस... हाँ..और ज़ोर से चूस. मुझे मालूम है तू कितनी इस लंड की दीवानी है. चूस... चूस साली रांड़... चूस". और तभी भाभी के लंड चूसने की आवाज़ और तेज़ हो गयी.
मेरा लंड फनफना उठा. मुझसे रहा नही गया. मैने अपने पयज़ामे में से अपना लंड निकाला और और धीरे-धीरे उसे हिलने लगा.
"आह... आह...आह.... क्या मस्त चूस्ती है तू, साली मादरचोद"
भाभी भैया के लंड को ३ मिनिट से चूस रही थी.
"सुम्मी.... अब रुक जा... नही तो मैं तेरे मूँह में ही छूट जाऊँगा."
अंदर से भाभी की लंड चूसने की आवाज़ें बंद हो गयी.
"अब बता... मेरा लंड तुझे कितना पसंद है?"
भाभी बोली, "आप जानते हैं, फिर भी मुझसे बुलवाना चाहते हैं."
"बता ना मेरी जान"
अचानक मेरी नज़र चाबी के छेद पर पड़ी. मैने अपनी आँख लगाकर देखा क्या हो रहा है अंदर.
भैया बिस्तर पर बैठे थे और भाभी ज़मीन पर अपने घुटनो पर. दोनो नंगे थे. भाभी को नंगा देख कर मेरी आँखें फटी रह गयी. गोरा शरीर, सुंदर चूचियाँ देख कर मैं अपने लंड को और तेज़ी से हिलाने लगा. हाथ में उनके भैया का लंड था जिसे वो हल्के-हल्के हिला रही थी.
"आपका लंड मुझे पागल कर देता है. रोज़ रात को ये कमीनी चूत मेरी, बहुत परेशन करती है. आपके लंड के लिए तरसती है. रोज़ रात को एक योद्धा की तरह आपके लंड से युद्ध करना चाहती है और उस युद्ध में आपसे हारना चाहती है. आपका अमृत पा कर ही इसे ठंडक मिलती है."
भाभी जीभ निकाल कर भैया के पेशाब वाले छेद को चाटने लगी.
"क्या सही में?.... आह!!!"
"हाँ... औरत की संभोग की प्यास मर्द से कई गुना ज़्यादा होती है. लेकिन आप आधे वक्त घर पर ही नही होते. ऐसी रातों में बस अपनी उंगली से ही इस कमीनी को शांत करती हूँ. बहुत अकेली हो जाती हूँ आपके बिना. दिल नही लगता मेरा."
"सुम्मी, उठ फर्श से..... "
भाभी फर्श से उठ कर भैया के सामने खड़ी हो गयी. मेरा लंड उनके नंगे बदन को और बढ़कर सलामी देने लगा. भैया ने भाभी की कमर को दोनो हाथों से पकड़ा और उनका पेट चूम लिया.
"सुम्मी, अगर ऐसी बात है तो क्यूँ ना मैं तेरे इस प्यारे से पेट में एक बच्चा दे दूँ?" यह कहके एक बार फिर उन्होने भाभी का पेट चूम लिया.
भाभी ने एक कातिल मुस्कान देकर कहा "हाँ, दे दीजिए मुझे एक प्यारा सा बच्चा. बना दीजिए मुझे माँ. बो दीजिए अपना बीज मेरी इस कोख में". भाभी अपना हाथ अपने पेट पर रखते हुए बोली.
"चल आजा बिस्तर पे. आज तेरी कोख हरी कर देता हूँ. बच्चेदानी हिला कर चोदून्गा, साली, एक साथ चार बच्चे पैदा करेगी तू." भैया बोले.
"रुकिये... पहले मेरी बुर चाट के इसे गीला कर दीजिए ना एक बार" भाभी बोली.
"मेरी जान, तुझे कितनी बार बोलू, मेरी चूत चाटना पसंद नही. बहुत ही कसैला सा स्वाद होता है."
"आप मुझसे तो अपना लंड चुसवा लेते हैं, मेरी चूत क्या इस काबिल नही की उसे थोड़ा प्यार मिले."
"तू चूस्ती भी तो मज़े से है, चल अब देर मत कर, लेट जा और टांगे खोल दे"
भाभी ने वैसा ही किया. भैया अपने लंड पर थूक मल रहे थे.
भैया ने भाभी की टाँगों को खोल कर, अपना लंड हाथ में लेकर उसे भाभी की चूत पर रखकर एक झटका मारा.
"आह" भाभी के मूँह से निकला. भाभी का ख़याल ना रखते हुए, वो झटके पे झटके मार मार के अपना पूरा छेह इंच का लंड भाभी की चूत में जड़ दिया.
"साली, तेरी कमीनी चूत तो बेशर्मी से गीली हो रही है."
दोनो ने दो मिनिट साँस ली. फिर भैया बोले "छिनाल, तैयार हो जा... माँ बनने वाली है तू... इसी कोख से दर्जनों बच्चे जनेगी तू."
और फिर तीव्र गति से भाभी की चुदाई शुरू हो गई. भाभी भैया के नीचे लेटी हुई थी और चेहरे पे चुदाई के भाव थे.
"ओह... ओह... ओह... सस्स्स्सस्स... आह" भाभी के मुख से कामुक आवाज़ें सुन कर मैं अपना लंड और तेज़ी से हिलने लगा.
"ले चुद साली... और चुद...." भाभी का हाथ लेकर भैया ने उसे अपने टट्टो पर रख दिया.
"ले सहला मेरे टटटे... और ज़्यादा बीज दूँगा तुझे" भाभी भैया के टॅटन को सहलाने लगी.
भैया ने भाभी के कंधों पर हाथ रखकर उन्हे कसकर पकड़ लिया और कसकर चोद्ने लगे.
"ले, मालिश कर मेरे लंड की अपनी चूत से.... साली, क्या लील रही है तेरी चूत मेरे लंड को... लगता है बड़ी उतावली है तू मेरे बीज के लिए"
और भाभी चीख पड़ी...
"चोद मुझे साले भड़वे... दे दे मुझे अपना बच्चा.... हरी कर दे मेरी कोख". भैया ने चुदाई और तेज़ कर दी. अब तो पूरा बिस्तर बुरी तरह से हिल रहा था.
भाभी ने अपनी उंगली अपने मूँह में डालकर गीली की और उससे भैया के पिछवाड़े वाले छेद को रगड़ने लगी.
"आह... सुम्मी.. मैं छूटने वाला हूँ." भैया बोले.
"नही.. थोड़ा रूको... मैं भी छूटने वाली हूँ" भाभी बोली
"नही... और नही रुक सकता, सुम्मी..... आह... मैं छूट रहा हूँ... ये ले मेरा बीज... आह".
भैया ने सारा माल भाभी की चूत में डाल दिया.
फिर भैया एक तरफ करवट लेकर सो गये. मुझसे भी रहा नही गया. मैं भी छूट गया और मेरा सारा माल फर्श पर गिर गया.
थोड़ी देर बाद मैने च्छेद से झाँक कर देखा तो भैया सो गये थे, ख़र्राटों की आवाज़ आ रही थी. भाभी अभी भी जागी हुई थी और हाँफ रही थी. वो गुस्से में थी.
भैया की तरफ मुँह करके भाभी बोली "अपनी हवस मेरी चूत पर निकाल कर... करवट लेकर सो गया, मादरचोद!"
अचानक भाभी उठी तो मुझे लगा वो दरवाज़े पर आ रही हैं. इसलिए मैं वहाँ से भाग कर अपने कमरे में आ गया.
कुछ देर रुकने के बाद मैने सोचा एक आख़िरी बार भाभी के नंगे बदन के दर्शन कर लूँ. मैं ध्यान से नीचे उतरा और फिर से छेद से झाँका.
नज़ारा देख के मेरा लंड फिर से जाग उठा. मेरी नंगी भाभी ने अपनी दो उंगलियाँ चूत में डाली थी. और दूसरे हाथ से वो अपना दाना रगड़ रही थी.
मैने फिर से लंड हिलना शुरू कर दिया. भाभी अपनी उंगलियों से अपनी ही चूत चोद रही थी और कामुक आवाज़ें निकल रही थी. कुछ देर बाद उनके अंदर से एक आवाज़ आई जो सिर्फ़ एक तृप्त औरत छूटते समय निकलती है. उसके बाद भाभी की चूत से फवररा सा निकला. मुझे लगा वो मूत रही थी.
खैर, उसके बाद भाभी लाइट बंद करके सो गयी और मैं भी अपने कमरे में आ के सो गया.
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52
अगले दिन सुबह उठा तो आठ बज रहे थे. मैने देखा कि मैं नंगा ही सो गया था और वो भी दरवाज़ा खुला छोड़ के. मुझे डर लगा की कहीं किसी ने मुझे नंगा तो नही देख लिया. तभी अचानक मेरा ध्यान, कल रात की घटनाओं पर पडा. कैसे मैने भैया-भाभी की चुदाई देखी और कैसे अपना माल फर्श पर गिरा दिया था. भाभी का गोरा सुडौल शरीर याद करके मेरा आठ इंच आठ इंच का लंड पूरा तन कर खड़ा हो गया.
मैने झट से दरवाज़ा बंद किया और भाभी के बारे में सोच कर अपना लंड हिलाने लगा. मैने आँखें बंद की और भाभी का नंगा बदन मेरे सामने आया. नंगी चूचियाँ और उनपर चॉक्लेट जैसे भूरे निप्पल जिनको भाभी अपने एक हाथ से मसल रही थी. और उनका खूबसूरत पेट और उसपर उनकी प्यारी सी नाभि. भाभी अपनी कमर एक नौटंकी में नाचने वाली रंडी के जैसे मटका रही थी और मुझसे खुद को चोदने का आग्रेह कर रही थी.
इतने में मुझसे रहा नही गया और मैं छूट गया. ढेर सारा माल मेरे लंड से छूट कर नीचे चादर पर गिरकर इकट्ठा होने लगा. मैने नंगे ही लेटकर कुछ देर आराम किया और फिर मेरी आँख लग गयी.
कुछ देर बाद दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ ने मुझे जगाया. "क्यूँ देवर जी, रात को क्या घोड़े बेचे थे जो इतना देर तक सो रहे हो. जल्दी उठो, आज आपका कॉलेज का पहला दिन है. चलो उठो."
"हन भाभी, बस २ मिनिट" मैं भूल ही गया था की आज मुझे कॉलेज जाना है." मैं अपने कपड़े ढूँढने लगा. लेकिन मुझे मेरी चड्डी नही मिली, तो मैं बिना चड्डी के सिर्फ़ पायजामे में दरवाज़ा खोला. पायजामे में मेरे वीर्य ने एक गीला धब्बा बना दिया था और साथ ही चड्डी न होने की वजह से मेरा लंड पायजामे में झूल रहा था. मैने दरवाज़ा खोला तो भाभी बोली "सासू माँ उपर नही चढ़ पाती तो उन्होने मुझे भेजा है. चलो नहा धो के नीचे आ जाओ. नाश्ता कर लो"
भाभी कमरे में आ गयी. उन्होने साड़ी पहनी हुई थी और हर बार की तरह क़यामत ढहा रही थी. और हर बार की तरह मेरी नज़र उनके गोरे मुलायम और खूबसूरत पेट पर पड़ी. मन तो था कि अभी बिस्तर पर पटक के पेट चूम लू और नंगी करके चोद दूं. मैं यही ख़याल में था जब भाभी बोली
"तुम्हारा कमरा साफ कर देती हूँ, देवर जी. जाओ तब तक नहा लो."
भाभी की नज़र चादर पर मेरे वीर्य से बने गीले धब्बे पर पड़ी. "यह क्या है देवर जी"
भाभी ने हँसकर बोला "कहीं रात को बिस्तर गीला तो नहीं..... हाय राम राजेश, वो क्या है?"
"क्या भाभी?"
मैने भाभी की नज़र देखी और सर झुका कर देखा तो देखा की मेरा 8 इंच का लंड पजामे के मूतने वाले छेद से बाहर निकल कर भाभी को सलामी दे रहा था. मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गयी. मैं लंड को पाजामे के अंदर करते हुए बाथरूम की तरफ भागा. बाथरूम का दरवाज़ा बंद करते समय मैं देखा भाभी के चेहरे अचंभे के भाव थे. मैं बातरूम के अंदर काफ़ी देर तक बंद रहा. सोचा कि भाभी ने सबको जाकर बता दिया होगा. बाहर निकला तो देखा कि भाभी मेरा पूरा कमरा ठीक करके गयी हैं. मैं नहा-धो के नीचे नाश्ते के लिए आया. वहाँ भैया और चाची नाश्ता कर रहे थे.
मैं चुपचाप आकर बैठ गया.
तभी भाभी मेरा नाश्ता लेकर आई और खुद भी बैठकर नाश्ता करने लगी. मेरी हालत खराब थी कि कहीं मेरी हरकत के बारे में बता ना दिया हो. भाभी ने कुछ देर बाद बोला, "सासू माँ, मैं सोच रही थी अपना राजू कितना सयाना हो गया है. हमारी शादी के वक़्त तो बस बच्चा ही था." ऐसा कहते हुए भाभी ने मेरे गाल खीचे. मुझे महसूस हो गया की भाभी कुछ देर पहली हुई घटना के बारे में किसी को नही बताया.
"हाँ बहू, बड़ा हो गया राजू." चाची बोली.
उसके बाद मैं कॉलेज चला गया. मेरा यही रवैया हो गया था. सुबह कॉलेज जाना. शाम को कॉलेज से आकर खाना खाना और रोज़ रात को भैया-भाभी की चुदाई देखना
कुछ दिन बाद शनिवार का दिन था. भैया काम से बाहर गये थे. कॉलेज भी बंद था. मैं घर के बाघीचे में पौधो को पानी दे रहा था. तभी चाची बोली-"बेटा राजेश, ज़रा उपर जाकर सुमन को बुला दे"
मैं उपर की ओर बढ़ा और भाभी के कमरे तक पहुँचा. मैने दरवाज़ा खटखटने की सोची लेकिन कुत्ते की पूंछ कभी सीधी हुई है? मैं हर बार की तरह चाभी वाले छेद से अंदर झाँकने के लिए झुका. नज़ारा देख कर मेरी आँखें फटी रह गयी और मेरा लंड फनफना कर खड़ा हो गया. सामने भाभी केवल गुलाबी रंग की ब्रा और चड्डी में खड़ी खुद को शीशे में निहार रही थी.
मैं अपना लंड निकल कर धीरे-धीरे हिलने लगा. भाभी के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान थी. वो अपने बदन को घूम-घूम कर आईने में देख रही थी. फिर वो अपने बदन के अंगों को हाथों से सहलाने लगी. गर्दन और चूचियों को सहलाते हुए वो अपने खूबसूरत पेट और नाभि पर हाथ फेरते हुए बोली "बहुत जल्द..."
उसके बाद भाभी ने अपनी ब्रा और चड्डी उतार दी और चूतड़ मटकाते हुए बाथरूम में नहाने चली गयी. मैं अपना लंड हिला रहा था. तभी मैने देखा की भाभी कमरा अंदर से बंद करना भूल गयी थी. मैं चुपचाप, बिना आवाज़ किए उनके कमरे में घुस गया. भाभी की ब्रा और चड्डी अभी भी ज़मीन पर पड़ी थी. मैने उनकी चड्डी ज़मीन से उठाई और उसे सूंघने लगा.
क्या मादक खुश्बू आ रही थी उनकी चड्डी से. ऐसी खुश्बू सिर्फ़ एक चुदासी औरत की चूत से ही आ सकती थी. मैं चड्डी सूंघते हुए अपना लंड बुरी तरह से हिला रहा था.
फिर मैंने उनकी चड्डी को अपने लंड पर लगाकर आँखें बंद कर ली. भाभी की चड्डी गीली थी. मैने अपना लंड चड्डी के उसी जगह पर लगाया था जहाँ भाभी की चूत थी. मेरा लंड का टोपा गीला हो चुका था. उस गीलेपन ने भाभी की चड्डी भी गीली कर दी. कुछ देर और हिलने के बाद मैं छूटने वाला था. मैने भाभी की चड्डी को एक बार अपने लंड से रगड़कर अलग किया और छूटने को तय्यार था.
मैने अपनी आँखें खोली तो देखा भाभी बाथरूम के दरवाज़े पर खड़ी थी. उन्होने सिर्फ़ एक पीली तौलिया पहनी थी. वो मेरी तरफ देख रही थी और उनका मूह हैरानी से खुला था. मेरा हाथ अपने लंड से छूट गया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. मेरा मुठ मेरे लंड से बाहर निकल कर फर्श पर गिर रहा था.
भाभी की नज़र मेरे मुठ गिरते लंड पर पड़ी. जब मेरा लंड शांत हुआ, मैने अपना पजामा उठाया और वहाँ से निकालने की सोची.
"रुक!" भाभी की गरजती हुई आवाज़ ने मुझे रोका.
"बेशरम!... तू यह सब सोचता है अपनी भाभी के बारे में...."
भाभी मेरे पास आई और फर्श पर से अपनी गीली चड्डी उठाई. उन्होने उसे सूँघा और फिर मेरे गाल पर ज़ोर का थप्पड़ मारा.
"बदतमीज़... बहुत ठरक चढ़ही है ना तुझे... बता कब से चल रहा है ये सब.... बता वरना सासू माँ को सब बोलती हूँ"
"नही नही भाभी... प्लीज़.... किसी को मत बोलना... मैं बताता हूँ."
मैने भाभी को सब बताया. सब सुनने के बाद भाभी गुस्से में थी.
"तू रुक.... आज शाम को तेरे भैया को सब बताऊंगी... की उनका चचेरा भाई उनकी बीवी के बारे में कितने गंदे ख़याल रखता है."
"नही भाभी... प्लीज़.. भैया मुझे जान से मार डालेंगे."
"बिल्कुल... तेरे जैसे बेशार्मों की यही सज़ा होनी चाहिए"
"नही भाभी प्लीज़... आप जो कहोगी मैं वो करूँगा.... आप जो सज़ा देना चाहो दे दो"
"अच्छा... अभी सासू माँ खाना बनाने के लिए बुला रही हैं... खाना खाने के बाद इसी कमरे में आ... तेरी सज़ा तभी मिलेगी तुझे."
भाभी नीचे खाना बनाने चली गयी. उन्होने काली साड़ी पहन रखी थी. भाभी मेरे लिए खाना लेकर आई. हम तीनो खाना खा रहे थे. सबसे पहले चाची ने खाना ख़त्म किया और वो उठकर अपनी थाली रखने चली गयीं. टेबल पर सिर्फ़ मैं और भाभी थे. भाभी बोली- "खाना ख़ाके चुपचाप मेरे कमरे में चले जाना". मैं जवाब देने में असमर्थ था. मैने सिर्फ़ हाँ में सिर हिलाया.
फिर चाची की आवाज़ आई "सुमन, बेटा मैं सोने जा रही हूँ. तू भी टेबल सेमेटकर आराम कर ले. राजेश तुझे तो पढ़ाई करनी होगी." और फिर चाची कमरे में जाकर सो गयी. मैने खाना ख़त्म किया और भाभी के आदेशानुसार उनके कमरे में जाकर इंतज़ार करने लगा. कुछ देर बाद भाभी आई.
"हाँ... तो देवर जी... बताइए आपकी क्या सज़ा होनी चाहिए?"
"कुछ भी भाभी... बस प्लीज़ भैया को मत बताना."
"ठीक है... तो.." भाभी मेरे पास आई और मेरे पैजमे का नाड़ा खोल दिया.
"उतरो इसे और अपना लंड खड़ा करो मेरे सामने.... बहुत मज़ा आता है तुझे दूसरों को नंगा देखने में.... अब बता कैसा लग रहा है तुझे?"
साड़ी में से उनका नंगा पेट और प्यारी सी नाभि देखकर तो मेरा लंड तो पहले ही खड़ा था. मैं बस हिलाकर उसे तोड़ा आराम दे रहा था.
"रुक... हिलाना बंद कर.... अब खड़े लंड के साथ सॉरी बोलते हुए कान पकड़कर ३० बार उटठक- बैठक कर"
मेरा लंड भाभी के सामने तनकर खड़ा था. और मैने अपना लंड छोड़कर कान पकड़कर उटठक-बैठक करनी शुरू कर दी. मेरी नज़र भाभी पर ही थी. लेकिन भाभी सिर्फ़ मेरे झूलते हुए खड़े लंड को ही देख रही थी.
भाभी ने मेरे लंड को देखते हुए अपनी जीभ बाहर निकली और उससे अपने होठों को चाटा. मैने उटठक-बैठक ख़त्म की तो मेरा लंड बहुत दर्द कर रहा था. मैने उसे हिलाने के लिए भाभी से अनुमति माँगी. भाभी ने अपनी आँखें झपकाकर हाँ का इशारा किया.
मैं तुरंत अपना लंड धीरे-धीरे हिलाकर उसे आराम देने लगा. कुछ देर बाद भाभी बोली "रुक...!"
मुझे लगा की फिर से सज़ा मिलेगी. लेकिन भाभी मेरे पास आई और मेरे लंड पर अपना थूक थूका और बोली "ले, इसे अपने पूरे लंड पर मल और फिर हिला"
मैने वैसा ही किया और मुझे और आनंद मिला. मैं आँखें बंद करके अपना लंड हिलाए जा रहा था. तभी मुझे अपने लंड पर कुछ गीला गरम-सा महसूस हुआ. मैने नीचे सिर झुकाया तो पाया की भाभी मेरा लंड अपने मुँह में लेकर चूस रही थी. मैने अपना हाथ लंड से हटाया और भाभी ने मेरे लंड के पूरे आठ इंच अपना मुँह में ले लिए. भाभी अपनी जीभ से मेरा पूरा लंड चाट रही थी. उनकी आँखें बंद थी और चाटते हुए उन्होने मेरा लंड अपने मुँह से निकाला और मेरे लंड के मूतने वाले छेद को जीभ से चाटने लगी.
मैं भाभी के बालों को सहलाते हुए बोल पड़ा "सुम्मी... चूसो इसे... चूस एक ढाई रुपये वाली रंडी के जैसे... मुझे मालूम है की तू कैसी लालची निगाहों से इसे देखती है.... चूस इसे... और प्यास बुझाले अपनी..."
भाभी ये सुनके मेरा लंड ज़ोर से चूसने लगी और हल्के-हल्के मेरे टट्टो को सहलाने लगी. मुझसे रहा नही गया. मैने भाभी का चेहरा दोनो हाथों से पकड़ा और कसके अपना लंड उनके मुँह से अंदर-बाहर करने लगा. कुछ ही देर में भाभी मेरी गांड पर चपत लगाने लगी और चिकोटी काटने लगी. मुझे दर्द हुआ तो मैने उन्हे छोड़ दिया.
भाभी कुछ देर खाँसी और फिर बोली "तू और तेरा भाई... दोनो एक नंबर के भड़वे.... साले मेरे से अपना लंड मज़े से चुस्वाएँगे... लेकिन दोनो में से कोई भी मेरी बुर नही चाटेगा.... चल इधर आ... और चाट इसे"
भाभी बिस्तर पर बैठ गयी. मैं ज़मीन पर अपने घुटनों पर बैठ गया. मैने उनकी साड़ी का पल्लू हटाया और उनका खूबसूरत पेट और नाभि नज़र आई. मुझसे रहा नही गया मैने उनकी नाभि चूम ली और पेट को अपने चेहरे से लगा लिया. भाभी ने मेरे बाल खीचें और बोली "साले... चूत चाटने को बोला था... मेरा पेट क्यों चूम रहा है?"
"भाभी, प्लीज़... आप नही जानती हो की आपके पेट और नाभि का मैं कितना दीवाना हूँ... दुनिया की सबसे खूबसूरत चीज़ है ये... आपका गुलाम बनके रहूँगा हमेशा, बस मुझसे इसे प्यार करने दो"
भाभी ने मुझे अपने पेट और नाभि को खूब प्यार करने दिया.
"चल... अब देर मत कर... मेरी चूत बहुत प्यासी है"
मैने भाभी की साड़ी उठाई और उनकी खूबसूरत जांघें चूम ली. जांघें चूमते हुए मैने उनकी चड्डी उतार दी. फिर उनकी चूत के पास जाकर एक गहरी साँस अंदर ली. वो भाभी के बदन की असली खुश्बू थी. वो खुश्बू से मैं पागल हो गया और भाभी की चूत को मैने चूम लिया.
भाभी के मुँह से "आह!" निकल पड़ी. मैने सिर उठाकर उपर देखा तो भाभी के आँखें बंद थी और चहेरे पर कामुकता के खूबसूरत भाव थे.
भाभी बोली, "राजू, फिर से कर... बहुत तड़पाती है ये कमीनी". मैंने भाभी को थोड़ा परेशान करने की सोची. मैने चूत के पास अपना मुँह लगाया और दोनो जांघों को पास लाकर अपने गालों से चिपका लिया. फिर चूत के इर्द-गिर्द ही अपनी जीभ से भाभी की चूत छेड़नी शुरू की. मैने ठान ली की जबतक भाभी खुद तड़प कर मुझसे चूत चाटने को ना बोले, मैं उनकी चूत नही चाटूंगा. और मैने वैसा ही किया.
चूत के इर्द-गिर्द ही जीभ घुमा रहा था और इसके साथ ही मेरी खुरदरी दाढ़ी भाभी की जांघों को सता रही थी. भाभी बार बार सोच रही थी की मैं चूत अब चाटूँगा लेकिन मैं ऐसा नही कर रहा था. तंग आकर भाभी ने अपना हाथ मेरे सिर पर लगाकर मुझसे अपनी चूत चटवाने की कोशिश की लेकिन मैने फिर भी उनकी चूत नही चाटी. आख़िर में भाभी के सब्र का बाँध टूट गया और वो बोली "भड़वे साले... चाट ले ना अब मेरी चूत को"
और फिर मैने भाभी की चूत पर अपनी जीभ चलानी शुरू कर दी. मैं एक हाथ से उनके पेट को हल्के हल्के दबा रहा था और साथ ही चूत चाटे जा रहा था. भाभी के मुँह से कामुक आवाज़ें आने लगी.
"हाँ राजू, चाट ले इसे... शांत कर दे साली को... बहुत तंग करती है ये तेरी भाभी को... बदला ले अपनी भाभी का इससे"
और मैं और तेज़ी से भाभी की चूत चाटने लगा. भाभी ने आगे से अपनी उंगली लाकर अपनी चूत का दाना रगड़ने लगी. वो ज़ोर से हाँफ रही थी. मैं भाभी के दाने से उनकी उंगली हटाई और अपनी उंगली से उनका दाना रगड़ने लगा.
"हाँ... हाँ... बस राजू वहीं पे... हाँ वही पे... बहुत मज़ा आ रहा है राजू... तू.. तू पागल कर देगा मुझे... हाँ राजू.. बस चाट मुझे" और फिर मैने भाभी को पूरी ताक़त से चाटना शुरू कर दिया. मुझे लगा की जैसे मेरी ज़िंदगी का मक़सद ही सुमन भाभी को कामुक सुख देना हो.
"रा... रा.. राजू.... मैं... मैं छूट रही हूँ.... मैं छूट रही हूँ.... आआआहह!"
भाभी ने अपनी जांघों से मेरा सिर पकड़ कर छूटने लगी. उनकी चूत से गाढ़े पानी की धार छूट कर सीधा मेरे मुँह पर गिरने लगी. मुझे लगा की वो मूत रही हैं लेकिन वो मूत नही रही थी. वो उनकी चूत का पानी था. भाभी ने सारा पानी मेरे मुँह पर छोड़ा और फिर शांत हो गयी.
मैने उनका पानी चखा. नमकीन लेकिन स्वादिष्ट था. मैंने सिर उठा के देखा तो पाया भाभी गहरी साँसें ले रही थी और चेहरे पर एक तृप्त औरत की हल्की सी मुस्कान थी. मैं भाभी के उपर आ गया और ब्लाउस फड़कर उनकी चूचियाँ आज़ाद कर दी और निपल चूसने लगा. फिर भाभी का चेहरा प्यार से पकड़कर उनको चूमने लगा. भाभी भी मेरे चुम्मो का जवाब देने लगी. हम दोनो कई मिनिट तक एक दूसरे को चूमते रहे. मैने उनकी आँखें भी चूमी.
मेरा लंड और भाभी की चूत भी एक दूसरे को चूम रहे थे. मैं भाभी के कान में बोला "भाभी.... क्या मैं...?"
भाभी ने मुझे गले से लगाया और बोली "हाँ राजू.... डाल दे"
मैने झट से अपना लंड भाभी की चूत में डाला. छूट इतनी गीली थी की फ़ौरन मेरा लंड जड़ तक भाभी की चूत में घुस गया. मैने भाभी की चूत में अपने लंड ले खुदाई करने लगा. भाभी की चूत मेरे लंड को लील रही थी. मैं अपने लंड की मालिश भाभी की चूत से कर रहा था और भाभी के नर्म रसीले होंठ चूम रहा था.
जल्द ही मैं भी छूटने वाला था. भाभी मुझसे प्यार से चुदवा रही थी. उनके दोनो हाथ मेरे चूतड़ पर थे. मैं सोच रहा था की अपना माल कहाँ निकालू. अचानक मुझे याद आया की उस रात भैया भाभी को बच्चा देने वाले थे. ये ख़याल आते ही मुझसे रहा नही गया और मैं भाभी की चूत के अंदर ही छूट गया. छूटते समय मैने भाभी को फिर चूम लिया.
जब मैं पूरी तरह से छूट गया तो भाभी के उपर से उतरकर उनके बगल में लेट गया और प्यार से उनका पेट सहलाने लगा, ये सोचकर की शायद मेरा बच्चा अब इस पेट में पल रहा है. मैने भाभी को लेट-लेट अपनी बाहों में लिया. उन्होने भी मुझे अपनी बाहों में लिया. हम दोनों ने एक दूसरे को चूमा और चिपक कर सो गये.
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मैं जब उठा तो भाभी मेरे से चिपक के सो रही थी. मैने घड़ी देखी तो उसमे चार बज रहे थे. मैने भाभी को देखा. वो बहुत प्यारी लग रही थी. मैने उन्हे थोड़ा कस्के अपनी बाहों में जकड़ा और प्यार से उनके होंठ चूम लिए. फिर उनके नंगे बदन को अपने हाथ से सहला रहा था. उनकी पीठ से होते हुए अपने हाथ उनके चूतड़ पर ले गया. उनके सुंदर चूतड़ पर हाथ मलते हुए मैने एक चपत लगाई. भाभी लेकिन उठी नही. उनके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान थी. मैने फिर उनके होंठ चूम लिए.
फिर मैने भाभी के घुटने के नीचे वाले हिस्से को पकड़ा और उनका पैर अपने सीने तक ले जाकर उनकी एड़ी अपने चूतड़ पर रख दिया. भाभी अब भी सो रही थी और उनकी चूत पूरी तरह से खुल गयी थी. मेरा लंड खड़ा हो चुका था. मैने अपना लंड हाथ में लिया और लंड के टोपे को उनकी चूत पर रगड़ने लगा.
भाभी नींद में 'म्म्म्ममम' की आवाज़ निकालने लगी. मुझे याद आया की मैने अपना वीर्य भाभी के अंदर छोड़ा था और शायद उससे वो माँ बन चुकी होगी. इसलिए मैं उनका पेट सहलाने लगा. भाभी को माँ बनाने के ख़याल ने मेरा लंड और कड़ा कर दिया. मुझसे रहा नही गया. मैने अपना लंड भाभी की चूत पर टिकाया और ज़ोर का झटका मारा. लंड एक ही बार में सारे बंधन तोड़ के पूरे आठ इंच भाभी की चूत में जाकर बस गया. भाभी चीख मार के उठी. मैने अपना हाथ जल्दी से उनके मूँह पर रखा. भाभी कुछ देर ऐसे ही कराह रही थी.
थोड़ी देर बाद मैने हाथ हटाया और लंड आगे-पीछे करने लगा. भाभी गुस्से से मुझे देख रही थी. मैं उनके चूमने के लिए आगे बढ़ा, भाभी बोली- "दूर हट.... इतनी बेरहमी से डाला है तूने अपना लंड मेरे अंदर.... बलात्कार करेगा अपनी भाभी का?" मैने चुदाई बंद कर दी.
"नही भाभी... आप ऐसा सोच भी कैसे सकती हो... मैं और आपका बलात्कार.... बलात्कार सिर्फ़ हिजड़े करते हैं. आपकी चूत गीली थी तो मुझे लगा... अगर आपको मैने दर्द दिया तो मुझे माफ़ कर दीजिए"
भाभी ने मुझे पुचकारा. मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए बोली- "राजू... तुझे कुछ भी करना हो मेरे साथ, मेरी अनुमति ले लिया कर.... तेरे साथ चुदाई के बाद मैं बहुत ही मीठी नींद सो रही थी. अचानक तेरे लंड के हमले ने मुझे जगा दिया. तुझे ये मालूम होना चाहिए की तेरी भाभी भी एक इंसान है सिर्फ़ एक चूत नही जिसमे तू कभी भी अपना लंड पेल देगा.... चल, कोई बात नही... इधर आ."
भाभी ने मुझे अपने पास बुलाया और मेरा माथा चूम के मुझे अपने सीने से लगा लिया. मेरा सर भाभी की चूची पर था. उनकी भूरी निप्पल मैने अपने मुँह में ली और चूसने लगा.
"ओ... दूद्धू पिएगा भाभी का?"
उन्होने अपना हाथ से मुझे सहारा दिया और ऐसे लगा जैसे एक माँ अपने बच्चे को दूध पीला रही हो. ज़ाहिर सी बात है की उनकी चूची से असली दूध नही निकला लेकिन मैं फिर भी चूस्ता रहा.
"राजू... चुदाई क्यों बंद कर दी तूने?.... तेरे लंड डालने के तरीके से नाराज़ थी मैं... तेरे लंड से नही.... तेरी एक चुदाई ने मुझे तेरे लंड का दीवाना बना दिया है.... क्या चोदता है तू... जानवर पाल रखा है तूने... चल चोद ले मेरी चूत को."
मैं भाभी के उपर चढ़ गया और फिर से ठुकाई करने लगा. भाभी की चूत बेशर्मी से गीली हो रही थी. वो मेरे लंड को जकड़े हुए थी. मैं फिर भी पूरी लगन से भाभी को चोद रहा था.
"हाँ राजू... चोद मुझे... चोद मुझे... तेरे मोटे लंड की दीवानी हो गयी हूँ मैं... इतना लंबा है ये... मैं इसे अपने बच्चेदानी में महसूस कर रही हूँ.... चोद मुझे... निकल अपनी ठरक मेरी चूत में"
मैने भाभी को चूम लिया और सटा-सट चोदने लगा. मेरे हाथ भाभी की चूचियों को कस के पकड़ कर चोद रहा था और उनके हाथ मेरे चूतड़ पर थे. वॉ अपनी उंगली से मेरी गान्ड का छेद रगड़ने लगी. बदले में मैं भी उनका दुद्धु पीने लगा. थोड़ी देर बाद भाभी बोली- "राजू... मैं.... मैं....मैं छूटने वाली हूँ"
मैं भाभी को बेरहमी से चोदे जा रहा था. अचानक भाभी मेरे चूतड़ पर अपने नाख़ून कस के गढ़ा दिए और 'आआआआअ" की आवाज़ के साथ छूटने लगी. मुझसे भी रहा नही गया. मैं भाभी का निप्पल जिसे मैं चूस रहा था ज़ोर से काटा और भाभी की चूत में ही छूटने लगा.
मेरे सारा माल गिराने के बाद, मैं भाभी के उपर बेहोश पड़ा रहा. कुछ देर बाद भाभी मेरे चूतड़ पर हल्के-हल्के चपत लगाने लगी.
"उठ राजू.... शाम हो गयी है... सासू माँ भी उठने वाली होंगी"
मैं भाभी के उपर से उठा और बगल में लेट कर आराम करने लगा. भाभी उठ कर बाथरूम में चली गयी और नहाने लगी. मैने उनको बहुत गंदा कर दिया था.
भाभी नहा कर बाहर आई और अपनी साड़ी पहनने लगी. मैं उठा और भाभी को पीछे से जाकर पकड़ा.
"भाभी... आज आपको मज़ा आया?"
"मज़ा?... तूने मुझे सबसे ज़्यादा सुख दिया है... ऐसा सुख जो सिर्फ़ एक मर्द ही एक औरत को दे सकता है.... तेरे लंड की तो मैं अब पूजा करूँगी"
मैं भाभी के सामने आया और घुटनो पर ज़मीन पर बैठ गया. भाभी की साड़ी का पल्लू खोला और उनका पेट सहलाने लगा. उनकी नाभि चूम ली.
"राजू, एक बात बता... मेरे पेट से तुझे इतना लगाव क्यों है? हमेशा इसको ही प्यार करता रहता है"
"भाभी... मेरे लिए ये दुनिया की सबसे खूबसूरत चीज़ है... आपका पेट और आपकी ये प्यारी सी नाभि" मैने नाभि चूमते हुए बोला.
"लेकिन भाभी, अब तो ये पेट बहुत जल्द फूल जाएगा"
"वो भला क्यों, राजू"
"क्योंकि भाभी, मैने अपना वीर्य आपकी चूत में छोड़ा था.... आप मेरे बच्चे की माँ बनने वाली हो"
भाभी हँसते हुए बोली
"अरे पगले... ऐसे ही किसी लड़की की चूत में अपना वीर्य छोड़ने से लड़की माँ नही बनती"
"तो फिर क्या भाभी?"
"महीने के कुछ दिन ख़ास होते हैं.... तब मेरी बच्चेदानी में अंडा होता है... उसे जब मर्द का बीज आकर मिलता है तब बच्चा पैदा होता है.... लेकिन तू फ़िक्र मत कर... जिस दिन मेरी बच्चेदानी में अंडा हुआ और चूत में तेरे लंड की खुजली हुई, तो तू कॉंडम पहनकर मेरे साथ सेक्स कर लेना... वैसे भी मुझे भी एक नाजायज़ औलाद को जन्म नही देना"
मैं भाभी का पेट चूमता रहा. भाभी साड़ी पहन कर तय्यार हो रही थी. मैं नंगा ही उनका पेट चूम रहा था. उनकी बातें सुन के मेरा लंड पूरा तन गया.
भाभी बोली, "चल राजू, तू भी कपड़े पहन ले.... हाय राम, इतनी चुदाई के बाद भी तेरा लंड खड़ा हो गया... कोई हैवान छुपा है तेरे लंड में."
"भाभी... बस आपके प्यार को तरसता है ये.... इसे थोड़ा प्यार कर लो ना"
मैने उपर उठ कर बोला. भाभी मुस्कुराई और ज़मीन पर बैठ कर मेरा लंड हाथ में लेकर उससे खेलने लगी. उन्होने मेरे लंड पर थूका और मेरा लंड पर थूक मलने लगी.
वो मेरे लंड को हिलाने लगी. मेरे लंड के टोपे पर पानी आ चुका था जिसे भाभी ने जीभ निकल कर चखा.
"बड़ा अच्छा स्वाद है तेरे लंड का, राजू"
भाभी मेरे लंड को चूम रही थी, चाट रही थी. मैं उम्मीद कर रहा था की भाभी मेरे लंड को चूसेंगी. लेकिन भाभी ने ऐसा नही किया. उन्होने मेरे दोनो टटटे पकड़े और बारी-बारी से एक-एक को मूँह में लेकर चूसा.
मुझसे रहा नही गया और मैने भाभी का चेहरा पकड़ा और लंड मूँह में डालकर अंदर-बाहर करने लगा. भाभी ने चूतड़ पर चपत लगाई. लंड मूँह से निकालकर बोली "अभी सिखाया हुआ पाठ भूल गया. मेरे साथ कुछ भी ज़बरदस्ती मत करना... इजाज़त ले हमेशा."
"सॉरी भाभी... पर लंड बहुत तंग कर रहा था... प्लीज़ चूसो ना इसे"
भाभी मेरे लंड को चूसने लगी और मेरे टटटे सहलाने लगी.
उन्होने लंड मूह से बाहर निकाला और बोली "राजू, मैं अभी नहा कर आई हूँ इसलिए मुझे गंदा मत करना... मेरे मुँह में ही अपना वीर्य निकल देना" और भाभी फिर से मेरा लंड चूसने लगी.
भाभी पूरे चाव से मेरा लंड चूस रही थी और प्यार से मेरे टटटे सहला रही थी. फिर उन्होने एक हाथ मेरे चूतड़ पर रख दिए और प्यार से चूतड़ सहलाने लगी. वो मेरा लंड चूस रही थी और साथ ही मेरे टटटे और चूतड़ सहला रही थी. फिर उन्होने अपनी उंगली ली और मेरे चूतड़ के छेद को उससे रगड़ने लगी. इतने में मैंने भाभी का सिर पकड़ा और मूँह में ही छूटने लगा. करीब ३० सेकेंड छूटा और फिर शांत हो गया.
भाभी मेरा सारा माल पी गयी. मैं फर्श पर ही लेट गया. भाभी अपनी साड़ी ठीक करने लगी.
"चल राजू... कपड़े पहन ले और अपने कमरे में चला जा."
मैं उठा. भाभी का पल्लू हटा के नाभि चूमी, कुछ देर पेट को अपने चेहरे से लगाया और फिर कपड़े उठा कर नंगा ही अपने कमरे में चला गया.
भाभी के साथ इतनी चुदाई के बाद मैं थक चुका था. इसलिए अपने कमरे में आ कर मैं नंगा ही अपने बिस्तर पर लेट गया और सो गया. कुछ देर बाद भाभी ने आकर मुझे जगाया.
"राजू... उठ... सोने से पहले पजामा तो पहन लेता. अपना लौड़ा सारी दुनिया में नुमाइश करने का इरादा है क्या"?
"भाभी... नुमाइश के लिए दुनिया है लेकिन घर तो इसका आपके अंदर है".
भाभी मुस्कुराई. मैने पल्लू हटा के उनकी नाभि चूमी फिर उनकी नाभि चाटने लगा. भाभी ज़ोर से मेरा सर दबाने लगी और मुझसे अपना पेट चटवाने लगी.
"राजू, जितना प्यार तुझे मेरे पेट को करना है कर ले. तेरे भैया रास्ते में हैं और महीने भर घर पर ही रहेंगे."
"भाभी ये तो बुरी खबर है. आपकी चूत में तो आग लग जाएगी."
"सही कहा राजू... बहुत मिस करूँगी इस छोटे शेर को".
"भाभी... तो एक बार... मेरा लंड चूसो ना".
"ज़रूर चूसूंगी, राजू... लेकिन वादा कर की तू अभी मेरे उपर या अंदर अपना माल नही गिराएगा".
"तो कहाँ गिराऊंगा... भाभी?"
"यह मेरे पास एक शीशी है. उसमे अपना सारा माल गिरा देना. नहा धो कर आई हूँ. फिर से नही नहाना मुझे".
"ठीक है, भाभी. अब चूसो ना प्लीज़".
भाभी बिस्तर पर बैठ गयी. मेरा लंड अपने दोनो हाथों में लेकर प्यार से बोली.
"ये महाशय तो थकते ही नहीं. इतनी चुदाई की, फिर भी शांत नही हुआ. बड़ा गुस्सैल लंड है".
फिर भाभी ने मेरा लंड चाटना शुरू कर दिया और प्यार से मेरे टटटे सहलाने लगी.
मुझे बड़ा आनंद आ रहा था. भाभी मेरा लंड टट्टों से टोपे तक चाटती. एक बार उन्होने मेरे लंड का छेद अपनी जीभ से छेड़ा, मेरे अंदर बिजली दौड़ गयी.
"भाभी, उधर ही चाटो ना".
"बदमाश... भाभी से अपना छेद चटवाता है... शर्म नही आती तुझे?"
मैं मुस्कुराया और भाभी के बाल सहलाने लगा.
भाभी भी मुस्कुराई और मेरे छेद को अपनी जीभ से चाटने लगी.
"बहुत अच्छा लग रहा है, भाभी... रुकना मत".
मैं नंगा खड़ा अपना छेद चटवा रहा था. भाभी मेरे टटटे सहला रही थी.
मुझे इतना आनंद आ रहा था. मैने भाभी की चूचियाँ ब्लाउस के उपर से ही पकड़ ली और कस-कस के दबाने लगा.
"आराम से राजू... साड़ी खराब मत कर".
"भाभी प्लीज़... क्या मैं आपका मुँह चोद सकता हूँ"?
"नही!"
"प्लीज़ भाभी... अभी आप एक महीने के लिए नही मिलोगी मुझे प्लीज़ करने दो".
"उफ्फ... ठीक है कर ले... लेकिन अगर तूने मेरे मुँह में अपना माल छोड़ा, तो याद रखना, तुझे कभी अपने जिस्म पर हाथ नही रखने दूँगी".
"ठीक है भाभी".
मैं नीचे झुक कर भाभी के होंठ चूमने लगा. खूब देर उनका रसपान किया.
भाभी तब तक मेरे टटटे सहला रही थी. फिर अपना लंड उनके मुँह के सामने ले आया. भाभी ने भी अपना मुँह हल्का सा खोला.
मैने भाभी का चेहरा पकड़ा और अपना लंड उनके मुँह में सरका दिया. भाभी जीभ से मेरा लंड गीला कर रही थी. साथ ही मेरे टट्टो की मसाज कर रही थी.
मुझे बहुत आनंद आ रहा था. कुछ देर बाद मैने अपने कूल्हे आगे-पीछे करने शुरू किए. उनकी मुँह चुदाई शुरू हो गयी थी. मैं प्यार से उनका मुँह चोद रहा था. लेकिन ख़याल रख रहा था की अपना माल उनके मुँह में ना गिरा दूं.
भाभी खूब मज़े ले रही थी. एक हाथ से वो मेरे टटटे सहला रही थी. तभी मैने उनका दूसरा हाथ अपने कूल्हे पर महसूस किया. वो मेरे कूल्हे अपने नाखूनो से नोचने लगी. मुझे मज़ा आ रहा था. करीब 15 मिनिट ऐसे ही चला.
अचानक भाभी की उंगली मेरे पिछवाड़े के छेद पर पड़ी और वो उसे अपनी उंगली से मलने लगी.
मुझे लगा मैं छूटने वाला हूँ.
"भाभी मैं.... मैं... मैं छूट रहा हूँ".
भाभी ने तुरंत अपने मुँह से मेरा लंड निकाला और एक हाथ से हिलाने लगी. दूसरे हाथ से शीशी का ढक्कन खोला और बोली, "ले राजू.. इसमे झड़ना".
"भाभी आप हिलाती रहो... मैं छूटने वाला हूँ".
भाभी ने वैसा ही किया. जल्दी ही मैं छूटा.
मेरा माल लंड से निकल कर शीशी को भरने लगा. मैं 20 सेकेंड छूटा जिससे पूरी शीशी भर गयी.
छूटने के बाद मैं बिस्तर पर गिर पड़ा और आराम करने लग. भाभी साड़ी ठीक करने लगी.
थोड़ी देर बाद भाभी मेरे पास आई और शीशी को देख कर बोली.
"हाय राम! राजू तू कितना माल छोड़ता है. एक बार में. इतने माल से तो तू 10 औरतों को एक साथ पेट से कर सकता है".
"मुझे तो सिर्फ़ एक ही औरत को पेट से करना है". मैं भाभी के पेट पर हाथ फिराते हुए बोला.
"हट.. बदमाश... मुझे पेट से करेगा तू?... अपनी भाभी को पेट से करेगा?... अपनी नाजायज़ औलाद देगा मुझे?"
"क्यों नही भाभी... आप इस दुनिया की सबसे उत्तम औरत हो... आप नही चाहोगी की आपके साथ जो बच्चा पैदा करे वो भी उत्तम हो?... आप नही चाहोगी की आपका बेटा मेरे जैसा मस्त लंड पाए?"
"बिल्कुल चाहूँगी, राजू... लेकिन एक नाजायज़ औलाद को जन्म नही देना मुझे.... ये बता... तुझे सच में मैं उत्तम लगती हूँ?"
"भाभी... आप तो सर्व-गुण संपन्न हो. आप खूबसूरत हो. सेक्सी हो. अच्छा खाना बनाती हो. कौन नही चाहेगा आपसे शादी करना. और आपका ये गोरा मुलायम पेट और ये प्यारी सी नाभि.... कौन मर्द नही चाहेगा की उसका बच्चा इस पेट में पले... भाभी अगर आपकी बहन होती तो मैं उससे ज़रूर शादी कर लेता".
भाभी मुस्कुराई और मुझे आके चूम लिया.
"चल... तेरे भैया आते ही होंगे. कपड़े पहन ले".
भाभी इतना कहके चली गयी.
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थोड़ी देर बाद भैया आ गये और खाना खाने के लिए मुझे नीचे बुलाया गया. टेबल पे चाची और भैया बैठे थे. भाभी खाना बना रही थी.
"मैं भाभी की ज़रा मदद करता हूँ." मैने चाची और भाभी से बोला.
मैं किचन में भाभी के पीछे जाकर खड़ा हो गया. फिर भाभी की कमर पर अपना हाथ रख दिया.
भाभी चौंक उठी और पीछे घूमी तो मैने उन्हे झट से चूम लिया.
वो मुझसे अलग हुई और बोली "राजू... यहाँ नही... तेरे भैया बगल वाले कमरे में ही हैं"
"भाभी आप खाना बनाइए... मुझे अब आपकी चूत तो अगले कई दिनो तक नही मिलेगी... अब ऐसे ही मज़े लेने पड़ेंगे"
भाभी ने चेहरे से नाराज़गी जताई पर वो खाना बनाने लग गयी.
मैं अपना हाथ सरका कर उनके पेट पर ले गया और नाभि से खेलने लगा.
"एक दिन देखना इस पेट से मेरी औलदें पैदा होंगी"
फिर मैं अपना हाथ साड़ी के अंदर सरका कर उनकी चूत को रगड़ने लगा.
दूसरे हाथ से मैं चूचियाँ दबाने लगा.
"राजू... नही... तेरे भैया को सब सुनाई दे जाएगा".
लेकिन भाभी की चूत गीली होने लगी थी.
"राजू ये वक़्त और जगह नही है ये सब करने की".
"तू चूत क्यूँ गीली है तेरी... सुम्मी".
भाभी मेरी तरफ गुस्से से देखने लगी.
भाभी ने मेरा हाथ अपनी चड्डी में से निकाल दिया और खाना लेकर डाइनिंग टेबल पर चली गई. मैं थोड़ी देर बाद पानी लेकर डाइनिंग टेबल पर पहुंचा और भाभी के बगल में बैठ गया. सब लोग खाना खाने लगे और मैंने धीरे से भाभी के पेट पर हाथ रख दिया. भाभी ने मुझे फिर गुस्सा नजरों से देखा. लेकिन मैंने अपना हाथ नहीं हटाया और प्यार से उनका पेट चलाने लगा. नाभि के इर्द-गिर्द गोल गोल अपनी उंगलियों से घुमा घुमा के मैं आनंद ले रहा था. फिर मैंने एक चम्मच गिरने के बहाने से नीचे झुका और पल्लू हटा के उनका पेट चूम लिया. भाभी ने मेरा चेहरा अपने पेट से हटाया और खाना खाने लग गई. मुझे मालूम था कि अगले कुछ दिनों तक भाभी की खूबसूरत योनि का स्वाद मुझे नसीब नहीं होगा. इसलिए मैंने सोचा कि कुछ दिन उनकी चड्डी से ही काम चलाना पड़ेगा. मुझसे रुका नहीं गया और मैं धीरे-धीरे भाभी की साड़ी उठाने लगा. उनकी गोरी सुडौल जांघें मुझे ललचा रही थी. मैंने उनकी जांघ पर अपना हाथ रख दिया. बहुत ही मुलायम त्वचा थी. भाभी ने झट से मेरा हाथ अपने हाथ से पकड़ लिया और आंखों से इशारा किया रुकने का. लेकिन मैं कहां मानने वाला था. जैसे ही भाभी ने मेरा हाथ छोड़ा मैं धीरे-धीरे फिर से उनकी चड्डी की तरफ अपना हाथ बढ़ाने लगा. उनकी चड्डी के पास पहुंचकर मैं उनकी चूत सहलाने लगा. चड्डी बहुत गीली थी. भाभी की आंखें गुस्से से तमतमा रही थी. लेकिन मैंने एक ना सुनते हुए धीरे धीरे उनकी चड्डी नीचे उतारने लगा. थोड़ी ही देर में उनकी चड्डी मैंने उनके जिस्म से अलग कर दी और किसी बहाने से नीचे झुक कर उनकी चड्डी अपनी जेब में रख ली. भाभी साड़ी के नीचे अब पूरी नंगी थी. खैर मेरा रात का इंतजाम तो हो गया. मैंने सोचा भाभी की चड्डी की महक लेते हुए मीठी नींद सोऊंगा. हम सब खाना खाकर सोने चले गए. मैं लेटे लेटे भाभी की चड्डी की महक लेते हुए अपना लंड हिला रहा था. तभी किसी ने मेरे दरवाजे पर खटखटाया. मैंने दरवाजा खोला तो सामने भाभी खड़ी थी और गुस्से से मुझे देख रही थी.
तभी उन्होंने मेरे गाल पर जोर का थप्पड़ रसीद दिया.
"तूने क्या मुझे अपनी रंडी समझ रखा है? जब आकर मेरी चूत मैं अपनी उंगली करेगा या सब की मौजूदगी में मेरी चड्डी उतार के मुझे नंगा करेगा? शुक्र मना कि तेरे भैया सासू मां को नहीं पता चला. पहले भी तुझे बोला था मेरे साथ कोई जोर जबरदस्ती नहीं करना. मैं कोई ढाई रूपए वाली रंडी नहीं हूं जो तू मेरे साथ अपनी मनमानी करें. बेशर्म मुझे पेट से करना चाहता था ना तू. आइंदा मुझे छूना भी मत नहीं तो मैं सिक्युरिटी में जाऊंगी और तेरी शिकायत करूंगी. तू मेरी चूत के जितने मजे लेना चाहता था ले चुका. अब बस मेरी चड्डी पर ही मुंह मारना. भड़वा साला मुझे अपनी रंडी समझता है".
मुझे यकीन नहीं हुआ कि भाभी इतना बुरा मान गई है. मैं उनको मनाने उनके पीछे गया. भाभी ने मुझे धमकाया की वह सच में सिक्युरिटी के पास जाएंगे अगर मैंने उन्हें छुआ भी तो. फिर भाभी अपने कमरे में चली गई और मैं भी अपने कमरे में आ गया. भाभी की चड्डी संभालकर अंदर रख दी और बिना हस्तमैथुन किए सो गया.
अगले 10 दिन तक मेरी भाभी से बात नहीं हुई. वह मुझे देखकर इग्नोर करती. खाना खाने को बुलाने के लिए भी भैया से कहती. भाभी मुझसे नाराज थी. और इस नाराजगी के चलते मैं इतने दिनों हस्तमैथुन भी नहीं किया. एक रात पानी पीने के लिए जब मैं उठा तो भाभी के कमरे से कामुक आवाजें आ रही थी. मैं दरवाजे पर कान लगाकर खड़ा हो गया.
"हां जानू.... हां बस वही पर... बस उधर ही... प्लीज रुकना मत.... चोदो मुझे.... चोदो मुझे... मेरी चूत की प्यास बुझाओ"
"मेरी जान.... हा.... हां.... मैं छूट रहा हूं.... मैं छूट रहा हूं"
भैया छूट के भाभी के जिस्म से अलग हो गए और खर्राटे मार के सोने लगे. भाभी रोने लगी.
"10 दिन से मेरा संभोग अधूरा रह जाता है... अपने भाई से कुछ सीख... बिना मेरा पानी निकाले छूटता नहीं था... बेचारा आज कल बस हस्तमैथुन ही कर पा रहा होगा. लेकिन गलती उसी की ही है... पर माफी भी तो मांग सकता है ना".
उसके बाद भाभी सो गई और मैं भी अपने कमरे में आकर सो गया. सुबह हुई तो भैया काम पर चले गए मैं भी कॉलेज जाने के लिए तैयार हो रहा था. नीचे उतरा तो भाभी के कमरे की तरफ गया. भाभी नहा कर आई थी और साड़ी पहनकर अपने बाल सवार रही थी. मैं धीरे से आकर जमीन पर बैठ गया और अपना सर उनके पांव पर लगा दिया.
"यह क्या कर रहा है राजू?"
"भाभी प्लीज मुझे माफ कर दीजिए. मुझसे गलती हो गई. आप की मर्जी के बिना अब कभी मैं आपको हाथ भी नहीं लगाऊंगा"
भाभी ने मुझे उठने को कहा फिर मुझे अपने गले से लगा लिया.
"जा राजू मैंने तुझे माफ किया. लेकिन वादा कर ऐसी हरकत तू दोबारा कभी नहीं करेगा".
"वादा करता हूं भाभी... आप जब से नाराज हुई तब से मैं हस्तमैथुन भी नहीं कर पाया हूं"
भाभी को कस के गले लगा लिया और फूट-फूट कर रोने लगा.
"रो मत राजू... तुझे सबक सिखाना जरूरी था"
"भाभी आई लव यू... आपके बिना मैं जी नहीं पाऊंगा".
"आई लव यू टू राजू"
फिर भाभी ने मुझे चूम लिया. मैं भी भाभी को प्यार से चूमने लगा.
"बड़ा तड़पाया मैंने मेरे राजू को.... ले... जितना प्यार करना है कर ले".
मैंने पल्लू खोल दिया और उनका गोरा पेट मेरे सामने था. मैंने भाभी की नाभि को चूम लिया और खूब देर तक चूमता रहा. फिर प्यार से उनका पेट सहलाने लगा और फिर उनका पेट अपने चेहरे से लगा लिया.
"चल राजू अब तू कॉलेज जा और रात को मुझे तेरी जरूरत पड़ेगी".
"क्या हुआ भाभी?"
" 10 दिन की प्यासी हूं समझ जा". भाभी ने मुझे आंख मारते हुए बोला.
मैं खुशी-खुशी कॉलेज चला गया. और रात का बेसब्री से इंतजार करने लगा. कॉलेज से वापस आया तो भाभी खाना बना रही थी.
मैं मुंह हाथ धोकर नीचे आया और टीवी देखने लगा. थोड़ी देर बाद खाना लग गया. हम सब खाना खाने लगे. खाना खाने के बाद भाभी मेरे पास आई और बोली "तैयार रहना तुझे कॉल करूंगी थोड़ी देर में".
हम सब सोने चले गए. मुझे मालूम था कि भैया भाभी की चुदाई शुरू हो गई होगी. करीबन 1 घंटे बाद मुझे भाभी का फोन आया.
"राजू मेरे कमरे में आ जा".
मैं उत्साहित होकर भाभी के कमरे में गया. वहां भैया सो रहे थे और नीचे गद्दा बिछा हुआ था.
"आजा राजू... गद्दे पर लेट जाओ".
"लेकिन भैया?"
"अरे तेरे भैया को मैंने थोड़ी शराब पिला दी. सुबह तक नहीं उठेंगे."
मैं कपड़े उतारकर नंगा हो गया और लंड हाथ में लेकर धीरे धीरे हिलाने लगा. भाभी ने भी अपने सारे कपड़े उतार दिए और मेरे लंड को ललचाई निगाहों से देखने लगी.
"राजू तरस गई हूं तेरे लंड के लिए. चूत मेरी बड़ी प्यासी है. आज की प्यास बुझा जा".
"जरूर भाभी. आप गद्दे पर लेट जाइए और बंदा आप की खिदमत में हाजिर है".
भाभी गद्दे पर लेट गई. और मैं अपना मुंह की चूत के पास ले गया. मैंने गहरी सांस अंदर ली तो उनकी मादक खुशबू से मेरा लंड पूरे शबाब पर आ गया. मैंने अपनी जीभ निकाली और प्यार से उनकी चूत चाटने लगा. बहुत ही गर्म थी उनकी चूत. और जल्द ही चूत से पानी बहने लगा. मैं सारा पानी चट कर गया. भाभी कामुक आवाजें निकाल रही थी और अपनी चूचियां सहला रही थी. मैं अपना काम करता रहा. फिर मैंने अपनी उंगली ली और उनका दाना रगड़ने लगा. भाभी तो मानो पागल ही हो गई. उनकी सांसे तेज हो गई.
"हां राजू. बस मुझे चाटता रह. प्लीज रुकना मत. मुझे छूटने मैं मेरी मदद कर.... आह.... आह.... आह... हां मेरे राजा. काश तू मेरा पति होता. चाट मुझे. चाट मुझे"
मैं एक हाथ से उनका दाना रगड़ रहा था और दूसरे हाथ से उनकी चूचियां मसल रहा था. तभी भाभी के अंदर से एक आवाज आई "आह" की और भाभी छूटने लगी. भाभी खूब देर छूटी और फिर शांत हो गई. मैं ऊपर आ गया हूं और उनको चूमने लगा. भाभी भी मुझे चूमने लगी. मैंने देखा उनकी आंखों से आंसू बह रहे थे. मैंने प्यार से उनकी आंखें चूम ली और आंसू पी गया.
"राजू, मैं 10 दिन की प्यासी हूं. मेरे अंदर आग लगी हुई थी. आग बुझाने के लिए शुक्रिया. अरे यह क्या, तेरा छोटा शेर तो बड़ा उछल रहा है."
भाभी मुझे उठने को बोली. खुद भी उठ गए. मेरा लंड मुंह में लिया और प्यार से चूसने लगी. कभी-कभी मेरे लंड के छेद को वह अपनी जीभ से छेड़ती तो मुझे आनंद आ जाता. मैं भी 10 दिन से हस्तमैथुन नहीं किया था. मेरे अंडे में बहुत माल था.
"भाभी प्लीज अब चोदने दो ना. आप चुस्ती रही तो मैं आपके मुंह में ही झड़ जाऊंगा"
भाभी ने मेरा लंड अपने मुंह से निकाला और गद्दे पर लेट गई. मैं उनके ऊपर चढ़ गया, अपना लंड उनकी चूत के मुंह पर रखा और एक ठोकर मारी जिस से मेरा पूरा लंड एक ही बार में नंगी चूत में जा धसा.
भाभी के मुंह से कामुक आवाजें आने लगी. मैंने धीरे धीरे अपना लंड आगे पीछे करना चालू किया. चुदाई शुरू हो चुकी थी. मैं भाभी को चूम लिया और फिर उनकी एक चूचुक मुंह में लेकर चूसने लगा.
"हां. चोद मेरे राजा. चोद मेरे राजा. बना दे मेरी चूत का भोसड़ा".
मैं कस के भाभी को चोदने लगा. भाभी खूब मज़े लेने लगी और गंदी गंदी गालियां देने लगी.
"आह मादड़चोद.... ओ बहनचोद.... चोद रे साले मादरजात.... खुद को मेरी चूत के लायक साबित कर".
"कुत्तिया. रंडी. छिनाल. पति से चुदवाती है और अब अपने देवर से चुदवा रही है. मेरी रांड"
भाभी ने मुझे कस के पकड़ लिया, अपने पैर मेरे चूतड़ों पर रख दिए मुझे कस के चोदने को कहने लगी. मैंने अपनी रफ़्तार बढ़ा दी. अब भाभी की चूत से फच फच फच फच की आवाज आने लगी. तभी अचानक भाभी छूटने लगी. मैंने अपनी रफ्तार थोड़ी और बढ़ाई और उनको छूटने में मदद की. मैंने उनको चूम लिया. मेरे अंडे भाभी के चूतड़ों पर तबला बजा रहे थे. बहुत ही कामुक माहौल था. भाभी पसीने से तर थे. फिर भी मुझे और चोदने को कहती रही. तभी मुझे लगा कि मैं छूटने वाला हूं. मैंने भाभी को कस के पकड़ लिया.
"भाभी मैं छूटने वाला हूं. अपना माल कहां निकाल दूं?"
"जहां भी तेरा मन करें निकाल दे. तूने खुद को मेरे जिस्म के काबिल साबित कर दिया है".
मैंने भाभी को चूम लिया और फिर उनकी चूत में छूटने लगा. 10 दिन का माल इतना ज्यादा था कि उनकी चूत से मेरा माल बहने लगा और जमीन पर इकट्ठा होने लगा. मैं 20 सेकंड तक छूटता रहा और भाभी प्यार से मेरे अंडे सहला रही थी.
हम दोनों बहुत थक गए थे और एक दूसरे की बाहों में ही आराम करने लगे. मेरा लंड अभी भी भाभी की चूत मैं ही था और माल छोड़ रहा था.
"भाभी, इतना माल कितनी औरतों को पेट से कर सकता है?"
मैंने मुस्कुराते हुए पूछा.
"कम से कम 25-30 औरतों के लिए तो इतना माल काफी होगा".
"भाभी, थैंक यू. आपके बिना तो यह लंड पागल ही हो गया था. मुझे लगता है आपकी चूत ही इसका असली घर है".
"अच्छा देवर जी. और अपना यह माल जो छोड़ रहा है उसका घर कहां है?"
मैं मुस्कुराया और भाभी के पेट को चूम लिया.
"यही है मेरे माल की असली जगह. आपके पेट में. 9 महीने अपना घर बनाएगा उसको"
"हट बदमाश. मुझे मां बनाएगा तू? और बाप कौन होगा. तू या तेरा भाई?"
"आप जैसा बोलो भाभी. मैं तो आपसे शादी भी कर लूंगा. आई लव यू सुमन".
"आई लव यू टू राजू. तुझे एक खुशखबरी सुनाऊं?"
"क्या हुआ भाभी? क्या सच में आप पेट से हो?"
"अरे नहीं रे पगले. तेरे भैया अगले हफ्ते 2 महीने के लिए मुंबई जा रहे हैं और सासू मां भी 1 महीने के लिए हरिद्वार जा रही हैं किसी आश्रम में".
"मतलब?"
"मतलब तू और मैं 1 महीने के लिए इस घर में अकेले होंगे".
"सच में भाभी?" मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा और मैंने भाभी को चूम लिया.
"मैं इंतजार नहीं कर सकता, भाभी, आपके साथ अकेले वक्त बिताने का".
"अच्छा ऐसा क्या करेगा तुम मेरे साथ?"
"बस भाभी. इतना चोदूंगा की एक साथ आप आधे दर्जन बच्चों की मां बन जाओगी".
भाभी हंसने लगी और मुझे चूम लिया. मेरा मन था कि आज भाभी से चिपक कर ही सो जाऊं.
"उठ जा राजू. कपड़े पहन ले और अपने कमरे में जाकर सो जा".
"भाभी प्लीज सोने दो ना आज अपने साथ. बड़े दिन हो गए हैं".
"राजू हफ्ता भर सब्र कर. खूब मस्ती करेंगे हम दिन में. रात में चिपक कर सोएंगे एक साथ".
मैंने भाभी के होठों को चूम लिया और उठ गया. मैं अपने कपड़े पहनने लग गया तो देखा भाभी की चूत काफी खुल गई थी.
"देखो भाभी. असली मर्द से चोदने का असर. आपकी चूत भी बंद होने का नाम नहीं ले रही".
भाभी हंसने लगी और मैं अपने कमरे में चला गया और भाभी के ख्यालों में खोया खोया सही सो गया.
भाभी के साथ जबरदस्त चुदाई के बाद मैं अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर जाकर लेट गया. मैं अपने कपड़े उतारकर नंगा हो गया, अपना लंड हाथ में लिया और यह सोच कर कि हफ्ते भर बाद अगले 1 महीने तक भाभी सिर्फ मेरी ही होंगी, मैं लंड हिलाने लगा. मैं प्लान बनाने लगा की भाभी को किस किस अंदाज में और कौन-कौन सी जगह पर चोदूंगा. भाभी के गर्म जिस्म से चिपक कर सोऊंगा. मैं यही सब सोच कर अपना लंड हिला रहा था और कुछ देर बाद में झड़ गया और नंगा ही सो गया.
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सुबह उठा तो भाभी की चुम्मी के साथ. सुबह सुबह भाभी के दर्शन पाकर मैं बड़ा खुश हुआ. मैंने उनको चूम लिया तो भाभी बोली "राजू, पहले ब्रश तो कर ले.... मैं तब तक तेरा बिस्तर ठीक कर देती हूं"
मैं जल्दी से उठकर बाथरूम में गया और ब्रश करने लगा. भाभी तब तक मेरा कमरा ठीक कर रही थी. मैं ब्रश कर कर आया और भाभी को पीछे से पकड़ लिया और उनकी गर्दन को चूम लिया, और फिर साड़ी के अंदर हाथ ले जाकर उनके पेट पर रख दिए.
"भाभी, बड़ा मन हो रहा है. एक बार लेने दो ना."
"राजू आज से मेरी महावरी शुरू हो गई है, इसलिए मैं तेरे साथ सेक्स नहीं कर सकती. एक हफ्ता सब्र कर. सब्र का फल मीठा होता है."
मैंने भाभी की चूत पर साड़ी के ऊपर से ही हाथ रखा और बोला "हमम.... फल."
मैं और भाभी दोनों हंसने लगे और फिर भाभी ने मेरा लंड अपने हाथ में लिया और प्यार से हिलाने लगे.
"राजू, इसे एक हफ्ते तक मत हिलाना. अपने टट्टो में ढेर सारा माल इकट्ठा होने दे. अगले रविवार तेरे माल से नहाऊंगी."
फिर उन्होंने मेरे लंड को छोड़ दिया और कमरा ठीक करने लगी. मैं उनके आगे आकर उनका पल्लू हटाया और खूब देर उनके पेट से खेला और नाभि में जीभ डाल कर चाटा. फिर मैं नहा धोकर नाश्ता करके कॉलेज चला गया. अगले 5 दिन तक भाभी की महावरी चली और मैं लंड बिना हिलाए ही गुजारा करने लगा. मैं चुदाई के लिए उतावला हो रहा था और रविवार का इंतजार करने लगा. न हिलाने की वजह से मेरे टट्टे मुझे भारी महसूस होने लगे थे. मेरा लंड भाभी की चूत में जाने को आतुर था.
खैर रविवार का दिन आ ही गया. सुबह भैया चाची को लेकर चले गए. जाने से पहले उन्होंने मुझसे बोला "राजू घर का ध्यान रखना और भाभी का ख्याल रखना."
"आप घबराओ मत भैया. भाभी का मैं बहुत अच्छे से ख्याल रखूंगा."
भैया और चाची के चले जाने के बाद मैंने देखा कि भाभी किचन में खाना बना रही थी. मैंने भाभी को पीछे से जकड़ लिया. भाभी बोली "राजू नाश्ते में क्या खाएगा?"
"भाड़ में जाए नाश्ता, भाभी. पेट से ज्यादा मेरा लंड भूखा है. अभी सिर्फ चुदाई करनी है."
यह कह कर मैंने गैस बंद करी और भाभी को गोद में उठाकर सीढ़ियां चढ़कर उनके कमरे में ले आया.
"राजू, चुदाई तो हम नीचे नहीं कर सकते थे? मुझे मेरे कमरे में क्यों लाया है?"
"भाभी आप के साथ सेक्स करने में सबसे ज्यादा मजा आप ही के बिस्तर में आता है."
यह कह कर मैंने भाभी का पल्लू हटाया और फिर ब्लाउज भी उतार दिया. फिर उनका ब्रा उतार कर उनकी चुचियों से खेलने लगा. एक एक करके उनकी चूचूक बारी-बारी से चूसने लगा. भाभी "स्स्स्स्सस्स आह स्स्स्स्स आह"की आवाज निकाल कर अपनी चूचियां चुसवाने का मजा लेने लगी.
चूचियां चूसते हुए मैंने भाभी की चड्डी भी उतार दी. अब भाभी पूरी तरह से नंगी थी. मैं भी कपड़े उतारकर नंगा हो गया और उनके बदन को कस के जकड़ लिया और उन्हें प्यार से चूम लिया.
"राजू, महावरी के बाद बहुत प्यासी है मेरी चूत. इसको थोड़ा चाट ना. बहुत परेशान करती है यह मुझे."
मैं नीचे जमीन पर बैठ गया. अब भाभी की चूत मेरे मुंह के सामने थी. सबसे पहले मैंने भाभी की चूत को चूम लिया और खूब देर तक चूमता रहा. भाभी सिसकारियां ले रही थी, फिर बोली "राजू, इसे चूमना बंद कर और चाट इसे. अपनी जीभ निकालकर युद्ध कर इससे."
मैंने भाभी का कहा माना और जीभ निकालकर उनकी चूत पर धावा बोल दिया. अभी चूत के इर्द-गिर्द, कभी चूत को तो कभी चूत के अंदर अपनी जीभ से छेड़ता. भाभी की सिसकियां बढ़ने लगी. मैं चूत को पागलों की तरह चाटे जा रहा था. भाभी के मुंह से "आह आह"की आवाज आ रही थी. उनकी चूत ने भी अब जवाब देना शुरू कर दिया था. वह अपना रस छोड़ने लगी. भाभी का रस मुझे और चाटने पर प्रेरित कर रहा था. मैंने और तेजी से भाभी की चूत चटना शुरू कर दिया. भाभी तो मानो पागल ही हो गई थी. उन्होंने मेरा सर पकड़ लिया और कहा "हां राजू... हां वहीं पर... बस वहीं पर. मेरी चुदक्कड़ चूत को चाट. छोड़ना मत एसे. बहुत परेशान करती है यह तेरी भाभी को."
मैंने अपनी उंगली ली और उससे भाभी की भगनासा रगड़ने लगा. भाभी को और क्या चाहिए था. अचानक भाभी चीख उठी. "राजू.... मैं छूट रही हूं... मैं छूट रही हूं.... आहहहहहहह!"
भाभी खूब देर तक छुटी. बिस्तर पर लेट गई.
मैं भाभी के ऊपर चढ़ गया और उनको चूम लिया.
"भाभी, मैंने आप की चूत की भूख तो शांत कर दी पर मेरा लंड अभी भी भूखा है. अब चोदने दो ना भाभी."
भाभी ने मुझे अनुमति दे दी. मैंने अपना लंड लिया उनकी चूत में डाला. चूत इतनी गीली थी कि बिना किसी रूकावट के लंड पूरा ही एक बार में अंदर चला गया.
मैंने धीरे धीरे अपना लंड आगे पीछे करना चालू किया. भाभी की चूत इतनी गीली थी की जरा देर में ही मेरा लंड उनकी चूत के पानी से सन गया. चूत से फचफचफचफच की आवाज आने लगी. मैंने भाभी की एक टांग उठाई और अपने कंधे पर रख दी. अब भाभी की चूत मेरे लिए पूरी तरह से खुली थी मैं भाभी के ऊपर आ गया और चुदाई और तेज कर दी. भाभी के मुंह से "आहहहहहहहह"की आवाज निकल रही थी. मेरे अंडे भाभी के पिछवाड़े पर तबला बजा रहे थे. मैंने भाभी को चूम लिया अपनी जीभ के मुंह में डाल दी. अब हमारी जीभ में घमासान युद्ध शुरू हो गया. मैंने अपने हाथों से भाभी की दोनों चूचियां पकड़ ली और कस कस के दबाने लगा. उस पल मैं और भाभी पूरी तरह से एक हो गए थे. भाभी ने भी मुझे अपने दोनों हाथों से कस के पकड़ा हुआ था.
"चोद मेरे राजा! और कस के चोद! पूरी ताकत से चोद! भोसड़ा बना मेरी चूत का! आहआहआहआहआह!"
तभी मैंने महसूस किया की भाभी की चूत मेरे लंड को कस के भीच रही है.
"आह! मैं छूट रही हूं राजू... मैं.... मैं... मैं छूट रही हूं!"
और भाभी छूट गई. मैंने अपना लंड जल्दी से भाभी की चूत से निकाला और उनके मुंह के पास लाकर पिचकारी मरने लगा. मेरे अंडों में जमा ढेर सारा माल मेरे लंड से निकल कर भाभी के मुंह पर गिरने लगा. मेरे माल की वर्षा से भाभी नहाने लगी.
भाभी को नहलाने के बाद मैं थक के चूर हो गया और उनके बदन पर ही गिर पड़ा. भाभी हल्के हल्के मुझे सहला रही थी.
"राजू, तूने तो अपनी भाभी को बहुत ही ज्यादा गंदा कर दिया है. अब उठ जा और मुझे नहाने दे."
मैं भाभी को गोद में उठाकर उनके बाथरूम में ले गया और शावर ऑन कर दिया. पानी की धार के नीचे खड़े होकर हम एक दूसरे से चिपक गए. भाभी को मैंने अपने माल से नहला कर बहुत गंदा कर दिया था. मैंने पानी से भाभी का चेहरा धोया और फिर साबुन लगाकर उसे साफ किया. फिर हम दोनों ने एक दूसरे के शरीर पर साबुन लगाया और एक दूसरे को नहलाया. नहाने के बाद भाभी बोली "राजू, मैं थक के चूर हो गई हूं. बहुत नींद आ रही है. चल थोड़ी देर सो जाते हैं.".
"हां भाभी, जरूर. आपके संग सोने के लिए ही तो मैं उतावला हूं."
भाभी मुस्कुराए और अपनी ब्रा और पेंटी पहनने लगी.
"यह क्या कर रही हो भाभी?"
"राजू मैं तो बस अपने कपड़े पहन रही थी."
"भाभी, एक वादा कीजिए. जब तक चाची वापस नहीं आ जाती, तब तक आप नंगी ही रहेंगे. एक भी कपड़ा नहीं पहनोगी."
"मगर राजू...."
"भाभी प्लीज, आपको मेरे लंड की कसम."
"चल राजू और भला मैं तेरे को कैसे मना कर सकती हूं."
मैं भाभी को उठाकर कमरे में ले आया और बिस्तर पर लेटा दिया. भाभी ने देखा कि मेरा लंड खड़ा हुआ है.
"राजू तेरा छोटा शेर तो अभी भी खड़ा हुआ है. भूखा है बेचारा".
"भूखा नहीं है भाभी. बस अब आप की गुफा के अंदर जाकर आराम करना चाहता है."
भाभी ने मुस्कुराकर अपनी टांगे खोल दी. मैंने अपना लंड उनकी चूत के अंदर सरका दिया. फिर मैं भाभी के ऊपर आकर लेट गया. हम दोनों ने एक दूसरे को जकड़ लिया और एक दूसरे के होठों को खूब देर चूमा. फिर मैं भाभी की चूची पर सर रखकर उनकी दिल की धड़कन सुनते हुए मीठी नींद सो गया.
कुछ घंटों बाद में उठा. मैंने देखा भाभी अभी भी सो रही थी. सोते हुए बहुत प्यारी लग रही थी. मैंने भाभी को चूम लिया और धीरे धीरे लंड आगे पीछे करके उनको चोदने लगा. भाभी नींद में ही ममममममम ममममममम की मीठी आवाज निकाल रही थी. भाभी के होठों को मैं चूमने लगा. उनकी चूचियां पकड़ के मसलने लगा. इस बीच भाभी उठ गई. अपने हाथों से उन्होंने मेरी पीठ को जकड़ लिया और अपने पैरों से मेरे पिछवाड़े को. अब उनके हाथ मेरी पीठ पर थे और उनके तलवे मेरे कूल्हे पर. "चोद मुझे राजू.... और कस कर चोद.... बना दे इसे भोसड़ा!"
"भाभी, बड़े दिनों का भूखा है मेरा लंड. ढेर सारी चुदाई करने के बाद ही शांत होगी इसकी भूख!"
"तो शांत कर इसकी भूख. चोद मुझे भड़वे. मेरी चूत का घमंड चूर चूर कर दे. इसे अपने लंड की दासी बना दे.... आह आह आह आह.... राजू, मैं छूट रही हूं... मैं छूट रही हूं!"
भाभी की चूत मेरे लंड को जकड़ लिया और भाभी ने मुझे. फिर वह छूटने लगी. मुझसे भी ज्यादा देर ना रहा गया और भाभी की चूत में ही मैं भी छूट गया.
अपना सारा माल भाभी के अंदर छोड़ने के बाद मैंने भाभी को चूम लिया. भाभी मुझे चूमने लगी. मेरा लंड छोटा होकर भाभी की चूत से बाहर निकल आया. भाभी की चूत से मेरे वीर्य की धार निकल कर बिस्तर पर इकट्ठा होने लगा. भाभी ने अपनी चूत में उंगली डालकर ज्यादा से ज्यादा माल निकालने की कोशिश की.
"हाय राम! राजू .... कितना माल बनाते हैं तेरे टट्टे? मेरी चूत में तो मानो बाढ़ ही आ गई हो.".
"भाभी, पिछले 1 हफ्ते से मैंने मुट्ठ भी नहीं मारा था.... इतने दिनों का माल मेरे अंडों में जमा था... आज आपकी चूत मिली है तो उसी का धन्यवाद कर रहा है मेरा लंड आपको इतना सारा माल छोड़ कर."
भाभी मुस्कुराई. हम फिर एक दूसरे को चूमने लगे. फिर मैंने धीरे से भाभी को बोला.
"भाभी मेरी एक दिली इच्छा है. प्लीज बुरा मत मानना."
"हां बोल राजू. मेरी कोई बात मुझे बुरी नहीं लगेगी."
"भाभी... मैं आपके संग एक बच्चा करना चाहता हूं. आप के अंदर अपना बीज बोना चाहता हूं. आपकी कोख हरी करना चाहता हूं. अपनी औलाद को आपके पेट में पलता देखना चाहता हूं."
"यह क्या कह रहा है राजू? तू मुझे मां बनाना चाहता है?"
"हां भाभी. बस एक ही बच्चा. आपके और मेरे प्यार की निशानी."
"देख राजू. हम खूब सेक्स करते हैं. तेरे लंड की तो मुझे लत लग चुकी है. मुझे अच्छा लगता है अपनी चूत में तेरा लंड लेकर तेरे से चुदना. पर इस दुनिया में बच्चा लाना बहुत ही बड़ी जिम्मेदारी होती है. तू तो बस मुझे चोद कर मेरे अंदर अपना बीज बोकर चला जाएगा. उस बेचारी नन्हीं सी जान को पालूंगी मैं और तेरे भैया. वह बेचारा यह भी नहीं जानेगा कि उसका असली बाप कौन है. इसलिए ऐसी नाजायज औलाद पैदा करना समझदारी का काम नहीं है."
"पर भाभी प्लीज...."
"अच्छा छोड़ इन बातों को राजू.... बड़ी भूख लगी है. किचन में जाकर खाना बनाने दे."
भाभी पहले बाथरूम गई और पानी से धो कर अपनी चूत साफ करने लगी. 15 मिनट के बाद वह बाहर आई.
"राजू, तूने तो ढेर सारा माल मेरे बहुत अंदर छोड़ा था. कभी भी मुझे इतनी देर नहीं लगी अपनी चूत साफ करने में". मैं मुस्कुरा कर अपने टट्टे हिला रहा था. तभी मैंने देखा भाभी अपनी ब्रा पहनने लग रही है. मैंने तुरंत उनकी ब्रा को पकड़ा और बोला "भाभी, अपना वादा मत भूलो". भाभी मुस्कुराई और ब्रा उतार कर फेंक दी और फिर नंगी ही किचन में जाकर खाना बनाने लगी. चलते समय उनके बलखाते चूतड़ और हिलती हुई कमर मेरा लंड फिर से जगने लगा. भाभी किचन में खाना बना रही थी और मैं उनके पीछे जाकर खड़ा हो गया. मैंने उनकी कमर पर अपने हाथ रखे और उनकी पीठ चूमने लगा.
"राजू, इतनी चुदाई के बाद भी तू थका नहीं?"
"भाभी, बस यूं समझ लीजिए कि आपके खूबसूरत बदन की लत लग चुकी है मुझे. इससे ज्यादा देर में दूर नहीं रह सकता."
भाभी मुस्कुराकर खाना बनाने लगी और मैं उनकी पीठ को चूमते उनके चूतड़ों की तरफ आ गया.
मैंने उनकी चूत को सूंघ कर चूत की महक अपने अंदर ली. बहुत ही मीठी खुशबू थी भाभी की चूत में. मैंने अपनी जीभ निकाली और उससे भाभी की चूत चाटने लगा.
"उफफ राजू.... लगता है तू आज मेरी चूत को फाड़कर ही रख देगा."
फिर भाभी ने अपनी चूत को अपने हाथों से ढक लिया.
"भाभी, आप की चूत ही मेरी देवी है.... मैं इसी की पूजा करूंगा. अभी मैं बस अपनी देवी को खुश करने की कोशिश कर रहा हूं". प्यार से भाभी का हाथ उनकी चूत से हटाया और मस्त होकर उनकी चूत चाटने लगा और अपनी देवी को खुश करने की कोशिश करने लगा. मैं प्यार से उनकी चूत चाटी जा रहा था और वह कसमसा रही थी. उनके मुंह से सिसकारी भी निकल रही थी. मेरे मन में थोड़ी शैतानी आई. मैंने जल्दी से शहद की शीशी उठाई और अपने हाथ में पलट दी. फिर अपने शहद से सने हाथों को भाभी की चूत पर मलने लगा. फिर उनकी शहद से सनी चूत को मैं चाटने लगा. शहद का स्वाद मुझे चाटने को और प्रेरित कर रहा था. इसी बीच भाभी छुटने लगी.
"राजू, और कितना चोदेगा आज तुम मुझे. मेरी चूत का तो लगभग भोसड़ा बनी चुका है."
"सुम्मी मेरी जान... आज मैं तुझे इतना चोदूंगा कि मेरा लंड भी तुझे अपनी चूत में ढीला लगेगा."
यह कहकर मैंने अपना लंड भाभी की चूत में फिर से डाल दिया लेकिन चुदाई शुरू नहीं की. भाभी इंतजार कर रही थी कि मैं कब अपना लंड आगे पीछे करना शुरू करूंगा. जब मैंने चुदाई शुरू नहीं की तो भाभी बोली "राजू, शुरू कर ना."
"भाभी आप खाना बनाओ. मैं प्यार से आपको चोदता रहूंगा".
भाभी खाना बनाने लगी. मैं धीरे धीरे अपना लंड आगे पीछे करके उन्हें चोदने लगा. मेरे हाथ भाभी के पेट पर थे. और मैं उनकी नाभि से खेल रहा था. मेरा लंड भाभी की चूत के पानी से सन चुका था.
अब तो मैं भाभी की परवाह किए बिना उनकी चूत चोदने लगा. मेरा लंड बहुत भूखा था. उनकी चूत इतनी गीली थी कि मेरी चुदाई से बुरी तरह से फचफचफचफच की आवाज आ रही थी. भाभी भी चीखने लगी "आआआआआ हां राजू वहीं पर... बस उधर ही.... चोद मुझे.... चोद मुझे.... जान निकाल दे मेरी चूत की.... दासी बना दे इसे अपने लंड की.... आहआहआहआहआह.... मैं.... मैं.... मैं छूट रही हूं.... मैं छूट रही हूं". फिर भाभी की चूत में मेरे लंड को कस के भीच लिया और भाभी छूटने लगी.
मेरा लंड तो अभी छुटने का नाम भी नहीं लिया था. छुटने के कुछ मिनट बाद भाभी हांफते हुए बोली "राजू, 1 दिन में इतनी चुदाई तो मैंने कभी नहीं की... आज तो मेरी चूत भी मुझसे दया के मांग रही है और ना चुदने के लिए."
"भाभी आपको मेरा लंड पसंद है?"
"क्या बात कर रहा है, राजू. तेरे मोटे काले लंड के लिए ही तो मैं जीती हूं. मुझे से अपनी चूत में लेना और रंडी जैसे चुदना. अच्छा लगता है. तेरा लंड और मेरी चूत एक दूजे के लिए बने हैं. बहुत मजा दिया है तेरे इस लंड ने मुझे."
"तो यह लंड आपसे अपना हक मांगता है, भाभी."
"कौन सा हक, राजू?"
"आपके अंदर अपने बीज बोने का हक".
"राजू..."
"प्लीज भाभी.... सिर्फ एक बच्चा... मेरे लंड की खातिर."
भाभी ने मेरा लंड अपनी चूत से निकाला और पलट के मेरी तरफ देखा. उन्होंने प्यार से मुझे चूमा.
"राजू, मैं समझ सकती हूं तेरी मेरे अंदर अपना बीज बोने की चाहत. तू मेरे इस पेट को अपने बच्चे से फूलता हुआ देखना चाहता है और मेरा यकीन मान, तेरे बीज में इतनी ताकत है. पर राजू, तू अभी बहुत छोटा है. थोड़ा बड़ा हो जा, दुनिया देख ले, फिर बच्चे पैदा करने की सोचना, मेरी चूत तो तेरे लंड की दासी है ही."
भाभी ने फिर से मेरी बात को टाल दिया था. लेकिन मैंने भी अब उस बात को आगे नहीं बढ़ाया.
जब खाना बनकर तैयार हो गया तो भाभी मेरे पास खाना लेकर आई.
"यह ले राजू. खाना खा ले. तू भी बहुत भूखा होगा."
मैं कुर्सी पर बैठ गया पर मेरा लंड अभी भी खड़ा था. भाभी ने मुझे थाली पकड़ाई और खुद जमीन पर बैठकर मेरा लंड मुंह में लेकर चूसने लगी. मुझे खूब आनंद आ रहा था. भाभी कुशल पूर्वक मेरा लंड चूस रही थी. कभी चाटती तो कभी हल्के से काटती तो कभी मेरे लंड का छेद अपनी जीभ से छेड़ती. साथ ही साथ वह मेरे अंडे भी सहला रही थी. कुछ देर बाद मेरा लंड छुटने लगा और मैं भाभी के मुंह में ही छूट गया. भाभी भी मेरे पूरे माल को पी गई.
"स्वादिष्ट और मलाईदार है तेरा माल, राजू".
पर मेरा लंड अभी भी खड़ा हुआ था. मैंने भाभी को अपने लंड पर बिठाया. फिर हम एक दूसरे को खाना खिलाने लगे. मैं भाभी की चूचियां भी चूस रहा था. खाना खाने के बाद मैंने थाली एक तरफ रख दी और भाभी को अपनी गोद में उठाकर बिस्तर पर ले गया. हम फिर एक बार चुदाई करने लगे और इस बार मैंने अपना सारा माल भाभी की चूत में ही निकाला.
सोमवार सुबह कॉलेज जाने तक मैं और भाभी नंगी ही रहे और एक दूसरे को चोदते रहे. कॉलेज जाने से पहले मैंने भाभी को अपनी कसम दी मेरी गैर हाजिरी में वह नंगी ही रहेंगी और एक भी कपड़ा नहीं पहनेगी. भाभी ने मेरी कसम खाई. हमारी यही दिनचर्या रही. सुबह उठना, भाभी के साथ नहाना, भाभी का नंगा ही नाश्ता बनाना, भाभी के साथ नाश्ता खाना, फिर भाभी को चोदना, फिर कॉलेज चले जाना और वापस आकर खाना खा कर भाभी को चोद के सो जाना. एक शाम को जब मैं वापस आया तो भाभी नंगी ही कुर्सी पर बैठ कर किताब पढ़ रही थी. मुझे यह देख कर खुशी हुई की भाभी ने इतने दिनों तक कसम नहीं तोड़ी. मैं चुपचाप भाभी के पैरों के पास जाकर बैठ गया और धीरे से उनका पैर चूम लिया.
"राजू तू आ गया. चल तेरे लिए खाना बना देती हूं."
"भाभी रुको.... आप किताब पढ़ते रहो."
भाभी किताब पढ़ने लगी. मैंने भाभी के पैरों को खोला और उनकी चूत के पास जाकर गहरी सांस ली. बहुत ही मादक खुशबू थी. मैंने जीभ निकाली और भाभी की चूत पर धावा बोल दिया.
"आह राजू... कितना जालिम है रे तू... आते ही मेरी चूत पर धावा बोल दिया?"
मैं भाभी की चूत चाटते रहा और उनकी भगनासा रगड़ता रहा.
"हां राजू.... हां राजू... कमीनी का सारा घमंड चूर कर दे... दिन भर सताती है यह तेरी भाभी को.... आहआहआहआहआह"
और कुछ ही देर में भाभी झड़ गई. फिर भाभी जाकर खाना बनाने लगी. मैं कमरे में जाकर कपड़ा उतार के नंगा हो गया और नीचे आकर किचन में जाकर भाभी के पीछे खड़ा हो गया. अपना लंड लिया और भाभी की चूत में सरका दिया.
"क्या कर रहे हो देवर जी?"
"कुछ नहीं मेरी जान... अपनी तलवार को इसकी म्यान में रख रहा हूं."
मैंने अभी चुदाई शुरू नहीं की थी. मैं भाभी के पेट पर अपने हाथ मल रहा था और उनकी पीठ चूम रहा था. भाभी बार-बार मुझे चुदाई शुरू करने का सिग्नल दे रही थी. लेकिन मैंने उनकी एक न मानी. आखिर में तंग आकर उन्होंने मुझसे पूछा, "क्या हुआ राजू... चोद क्यों नहीं रहा आज तुम मुझे?"
"भाभी बस एक छोटी सी ख्वाहिश थी."
"बोल ना मेरे राजा."
"क्या आपके पास लहंगा चोली है?"
"क्या?"
"लहंगा और चोली, भाभी."
"हां है.... क्यों?"
"बस तो फिर खाना खा कर आज आप लहंगा चोली पहनकर ऊपर कमरे में आना... बिना ब्रा और पेंटी के."
"ठीक है."
हमें एक साथ खाना खाया और फिर मैं भाभी के कमरे में आ गया और बिस्तर पर बैठ गया.
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कुछ देर बाद भाभी यही लहंगा चोली पहनकर. उन्होंने चुनरी नहीं पहन रखी थी इसलिए लहंगा चोली में उनका पेट साफ दिख रहा था और उनकी प्यारी सी नाभि भी. भाभी मेरे पास आई. उनका एक हाथ अपनी कमर पर था.
"लो देवर जी. आ गई मैं लहंगा चोली में. अब बताओ क्या करना है?"
मैं बिस्तर पर बैठा था और भाभी को उनके हाथ से खींच कर अपने पास ले आया. थोड़ी देर उनके पेट को निहारा और फिर खूब देर उनके पेट को प्यार किया.
फिर कुछ देर बाद में बोला, "भाभी, इस लहंगा चोली में आप बहुत खूबसूरत लग रही हो. लेकिन आज मैं चाहता हूं कि आप मेरे लिए एक सस्ती सी नचनिया जैसे नाचो."
मैंने भाभी के पेट को एक बार फिर चूमा और फिर गाना बजाना शुरू कर दिया. गाना था खलनायक फिल्म का "चोली के पीछे क्या है".
भाभी उस गाने पर नाचने लगी. माधुरी दीक्षित की तरह अपनी कमर मटका के भाभी मुझे रिझा रही थी. मेरा लंड हरकत में आने लगा. गाना अभी भी चल रहा था भाभी मस्त होकर नाच रही थी. मेरे लंड में भाभी की चूत की खुजली होने लगी थी. मैंने भाभी को पकड़ लिया और फिर उनके होंठ चूमने लगा. मेरे हाथ चोली के ऊपर से भाभी की चूचियां पकड़े हुए थे. मैंने धीरे से भाभी की चोली के आगे वाले दो हिस्से पकड़े और एक झटके में अलग कर दिए. भाभी की चोली आगे से फट गई थी और मैंने उनकी नंगी चूचियां पकड़ ली और बारी बारी से उनके निप्पल चूसने लगा.
भाभी को भी मजा आ रहा था. उनकी सांसे तेज हो रही थी. इतने में मैंने हाथ नीचे करके उनके लहंगे का नाडा पकड़ा और खींच दिया. लहंगा जमीन पर गिर गया और भाभी अब पूरी तरह से नंगी थी. मैं भाभी को उठाकर बिस्तर पर ले गया, अपना लंड हाथ में लिया और भाभी की चूत पर मलने लगा. थोड़ी देर बाद मैंने अपना लंड अंदर सरकाने की कोशिश की तो भाभी ने मुझे रोक दिया.
"राजू... रुक जा... जरा कंडोम तो पहन ले."
"क्यों भाभी?"
"राजू मेरी माहवारी खत्म हुए 2 हफ्ते बीत चुके हैं. मेरी बच्चेदानी में अंडा हो सकता है. मैं गर्भधारण कर सकती हूं. इसलिए कंडोम पहन ले."
मेरा मन तो नहीं था कंडोम पहनने का लेकिन भाभी की चूत की दीवानगी ने मुझे कंडोम पहना दिया.
कंडोम पहन कर मैंने अपना लंड भाभी की चूत में सरकाया और भाभी को चूम लिया.
"आह राजू... वैसे तो मुझे तेरा नंगा लंड ही अपने अंदर लेना अच्छा लगता है. लेकिन मेरी मजबूरी है. अभी तेरा नंगा लंड अंदर लिया, तो शायद तेरे नाजायज बच्चे की मां बन जाऊंगी."
"भाभी... आपकी यह बात बार-बार बोल कर मेरा दिल तोड़ देती हो."
"नहीं राजू."
"तो क्यों आप मेरे बच्चे की मां नहीं बनना चाहती हो, भाभी? मैं तो बस आपको अपने प्यार की निशानी देना चाहता हूं. आप के संग प्यारा सा बच्चा करके."
"राजू, हम इस बारे में पहले भी बात कर चुके हैं."
"मालूम है भाभी. लेकिन मैं ऐसे बार-बार इसलिए कहता हूं क्योंकि मैं आपसे प्यार करता हूं और अपनी आखरी सांस तक करता रहूंगा. और जिस औरत को मैं इतना प्यार करता हूं उसके साथ में बच्चा पैदा क्यों नहीं करना चाहूंगा?"
"राजू..."
"हां भाभी. मेरे मन में हमारा रिश्ता सिर्फ लंड और चूत का नहीं है. प्यार का है"
भाभी कुछ बोल नहीं पाई. मैं भी चुप हो गया और बस चुदाई करता रहा.
चुदाई के बाद मेरा लंड अपना माल कंडोम में ही छोड़ दिया. फिर भाभी के ऊपर से उतरकर उनके बगल में लेट गया. कुछ देर में मुझे नींद भी आ गई.
सुबह उठा तो भाभी मेरे बगल में ही लेटी थी. उनकी आंखें खुली थी. उन्हें देखकर लग रहा था कि वह रात भर सोई नहीं है.
"भाभी, आप रात भर सोई नहीं क्या?"
"नहीं राजू, रात भर सोच ही रही थी."
"क्या भाभी?"
"राजू, तो सच में मुझसे प्यार करता है?"
"हां भाभी... सच्चा प्यार."
भाभी मेरे पास आई और प्यार से मेरे होंठ चूम लिए.
"ठीक है राजू... मैं तेरे बच्चे की मां बनने के लिए तैयार हूं."
भाभी की यह बात सुनकर मेरी बांछें खिल उठे. मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था.
"आप सच कह रही हो भाभी? आप सच में मेरे साथ बच्चा करना चाहती हो?"
"राजू... कल रात को जो तूने मुझसे कहा, वह कठोर से कठोर औरत के दिल को भी पिघला सकता है".
मैं भाभी के मुलायम पेट को सहलाने लगा और उनकी नाभि के साथ खेलने लगा.
"भाभी, मुझे यकीन नहीं हो रहा है. मैं इंतजार नहीं कर सकता आपके पेट को मेरे बच्चे से फूलता हुआ देखने को".
यह सुनकर भाभी मुस्कुरा दी. फिर मैं भाभी के ऊपर चढ़ गया और प्यार से उनके होंठ चूमने लगा. होठों को चूमते हुए मैं अपने हाथ भाभी की चूचियों के ऊपर ले आया और हल्के-हल्के उनको दबाने लगा और चूचको को खींचने दबाने लगा. यह खूब देर चला. फिर मैं भाभी के एक चूचक को मुंह में लेकर चूसने लगा. भाभी मेरे सर पर अपना हाथ फेरने लगी और प्यार से अपनी चूची मुझसे चुसवाने लगी. खूब देर उनकी चूची चूसने के बाद मैं बोला,
"भाभी, मैं इंतजार नहीं कर सकता उस दिन का जब आपकी यह चूचियां दूध देने लगेंगी और हमारे बच्चे को आप अपना दूध पिलाओगी"
भाभी इस बात पर मुस्कुराई.
"भाभी, क्या मुझे भी अपना दूध पिलाओगी?"
"राजू, मां का दूध उसके बच्चे के लिए होता है. इसलिए मेरे दूध पर सबसे पहला हक हमारे बच्चे का होगा. उसके बाद तुझे जितना मेरा दूध पीना हो, पी लेना".
यह सुनके मैं खुश हो गया और भाभी के होंठ चूम लिए. मेरा लंड पहले से ही खड़ा था. मैंने अपना लंड भाभी की चूत पर टिकाया लेकिन तभी भाभी बोली, "राजू, रुक जा."
"क्या हुआ भाभी?"
"राजू, हम बच्चा पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं. इसलिए बेहतर यह होगा कि तू अपने अंडों को थोड़ा आराम दे. इन्हें ढेर सारा बीज बनाने दे और फिर चोदना मुझे ताकि मैं जल्दी मां बन जाऊं."
"लेकिन भाभी, मेरे टट्टे तो हमेशा ही बहुत माल बनाते हैं."
"राजू मेरी बात मान. कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है. तुझे मेरे साथ बच्चा करना है?"
"हां भाभी, बिल्कुल करना है."
"तो ठीक है. कल शाम तक तू मेरे साथ चुदाई नहीं करेगा और ना ही अपना लंड हिलाएगा".
"कल शाम तक? भाभी, मैं तो पागल हो जाऊंगा."
"राजू, सब्र कर. तेरे लंड के बिना मेरी यह चूत भी बहुत खुजलाएगी."
"भाभी, यह आपकी शर्त है तो मेरी भी एक शर्त है."
"क्या राजू?"
"कल शाम की चुदाई हम घर के अंदर नहीं करेंगे"
"तो कहां करेंगे, राजू?"
"घर की छत पर. जहां पर सिर्फ आप और मैं होंगे और एक गद्दा. और भाभी आप एक लाल साड़ी पहन कर आओगी."
"ठीक है राजू. अगर तू यही चाहता है तो यही सही. चल अब उठ जा. मैं जरा फ्रेश हो लूं"
भाभी उठकर बाथरूम चली गयी और अपने दांत घिसने लगी. मैं भी बाथरूम में गया और मूतने लगा. मूतने के बाद में भाभी के पीछे जाकर खड़ा हो गया और उनकी पीठ चूमने लगा. मेरा एक हाथ उनके पेट पर था अब दूसरा उनकी एक चूची पकड़ा हुआ था. मैं उनका पेट सहलाने लगा और फिर नाभि में उंगली डालकर नाभि से खेलने लगा. मेरी नजरें भाभी से मिली. भाभी मुझे देख कर मुस्कुराई. मैं यही करता रहा जब तक वह ब्रश करती रही. ब्रश करने के बाद वह पलटी और मैं उनके होंठ चूमने लगा.
"राजू तू भी ब्रश कर ले."
मैंने भाभी का ब्रश लिया और उन्हें ही थमा दिया.
"यह लीजिए भाभी"
"राजू, यह तो मेरा ब्रश है"
"हां भाभी, अब आप अपने ब्रश से मेरे दांत ब्रश कीजिए"
मैं कमरे से स्टूल ले आया उसपर बैठ गया. भाभी आकर मेरे दांत ब्रश करने लगी. मेरे हाथ भाभी के पेट पर थे और मैं उनकी नाभि से खेलने लगा. मुझे थोड़ी शरारत सूझी. मैंने अपनी उंगली अपने मुंह में डालकर गीली की और उससे भाभी की चूत मलने लगा.
"आह राजू!"
मैं भाभी की चूत मलता रहा. भाभी की चूत बुरी तरह से रिस रही थी. मेरा हाथ उनकी चूत के पानी से पूरा भीग चुका था. मेरी नजर भाभी की भगनासा पर पड़ी. मैं अपना दूसरा हाथ नीचे लाकर उनकी भगनासा रगड़ने लगा. भाभी के मुंह से कामुक आवाज निकलने लगी.
इसी बीच मेरा ब्रश भी हो गया था. मैंने भाभी को स्टूल पर बैठाया और खुद जमीन पर बैठ गया. और फिर अपनी जीभ से मैंने उनकी चूत पर धावा बोल दिया. दूसरे हाथ से में उनकी भगनासा को छेड़ता रहा.
"हां.... हां..... हां... राजू. बस वही पर. हां वही पर".
भाभी की चूत का रस टपक टपक कर मेरी जीभ पर गिर रहा था. चूत का रस मुझे और चाटने को प्रेरित कर रहा था. मैं अपने हाथ भाभी की गांड पर ले गया और भाभी को आगे की तरफ खिसकाया. मैंने एक गहरी सांस ली, फिर पूरी ताकत से भाभी की चूत चाटने लगा. मैंने तो अपने आपा ही खो दिया.
"आह...आह... आह... आह...... चाटो इसे.... चाटो इसे.... चाटो.... खूब चाटो".
भाभी ने मेरे हाथ पकड़ कर अपनी चुचियों पर रख दिए.
"मसलो.... मसलो मेरी चूचियां... और चाटो अपनी भाभी की चुदक्कड़ फुद्दी को... चाट इसे... चाट इसे राजू".
मैं भाभी की चूची भी मसलने लगा. भाभी ने अपने दोनों हाथों से मेरे सर को पकड़ लिया.
"राजू... मैं छूटने वाली हूं बहुत जल्द... आह...आह... आह... आह".
तभी मैंने भाभी के दोनों हाथ पकड़ कर अलग किए और अपना सर उनकी चूत से हटा दिया. मैंने उनके हाथों को छोड़ा नहीं.
"यह क्या कर रहा है राजू? चाटना क्यों बंद किया तूने?"
"भाभी... अब आप समझो मेरे लंड का दर्द. आपकी चूत के बिना यह कल शाम तक कैसे रह पाएगा? आप तो मजे से अपनी चूत मेरे से झड़वा रही थी, लेकिन मेरे इस लंड को तो कल शाम तक भूखा रहना है."
भाभी जोर-जोर से हाफ रही थी.
"भाभी आप चाहो तो मैं अभी आपको छुटा सकता हूं. अपने इस खड़े लंड से आपको चोद कर. लेकिन फिर मैं अपना माल जल्दी छोड़ दूंगा शायद कल की चुदाई में मैं आपको मां ना बना सकूं? तो फैसला कीजिए आपको क्या चाहिए? अपनी चूत की संतुष्टि या मेरा बच्चा?"
खूब देर तक हांफने के बाद भाभी शांत हुई और फिर बोली "राजू, मेरी मां बनने की चाह अपनी चूत की संतुष्टि से कहीं ऊपर है. संभाल कर रख अपना लंड और बचा कर रखा अपने टट्टों में बन रहा माल. मैं तेरे से कल शाम से पहले नहीं चुदूंगी. चल अब जा और मुझे नहाने दे."
"भाभी, मैं आपको अकेले नहीं छोड़ सकता. कहीं आप मेरे पीछे अपनी चूत रगड़ने लगी तो?"
"ओहो राजू... बड़ा जालिम है रे तू. अच्छा ठीक है चल. मैं तेरे सामने ही नहा लेती हूं."
मैं उनके शरीर को निहार रहा था.
"भाभी, आपको ऐसे नंगा देखकर सच में लगता है कि स्वर्ग से कोई अप्सरा धरती पर अवतरित हो गई हो. सच में भाभी, आपके संग बच्चा करके मैं धन्य महसूस कर रहा हूं."
भाभी मुस्कुराई.
"आजा राजू. तू भी मेरे संग नहा ले."
"भाभी आज शावर के बजाय बाथटब में नहाए क्या?"
"मैं भी यही सोच रही थी राजू."
मैं कपड़े निकाल कर नंगा हो गया और बाथटब का पानी भरने के बाद उसमें बैठ गया और भाभी भी आके उसमें बैठ गई. उनकी पीठ मेरी तरफ थी.
मैं पानी से उनके शरीर को धोने लगा. वह भी साबुन लगाके अपने शरीर को धोने लगी. मैंने हाथ आगे बढ़ा के भाभी के पेट पर रख दिए और उनकी पीठ चूमने लगा.
"कितनी खूबसूरत हो तुम, सुमन भाभी. मैंने आपको आपकी शादी के समय देखा था, तभी से मेरा दिल आप पर आ गया था. मैंने कभी नहीं सोचा था कि 1 दिन आपको चोदूंगा और आपके साथ बच्चे पैदा करूंगा."
"राजू, बच्चे?"
"हां भाभी. मैं आपके संग सिर्फ एक नहीं बहुत सारे बच्चे पैदा करना चाहता हूं."
मैं भाभी की गर्दन चूमने लगा.
"मेरे बच्चे आपके पेट में 9 महीने पलेंगे".
मैं उनके पेट पर हाथ फेरते हुए बोला.
"फिर आपकी चूत से पैदा होंगे".
मैं अपना हाथ उनकी चूत पर ले गया.
"और फिर आपके स्तनों से दूध पिएंगे".
मैं अपना दूसरा हाथ उनकी चूची पर लेख जाकर चूचियां मसलने लगा और दूसरे हाथ की उंगलियों से उनकी चूत चोदने लगा. बीच में भाभी की गर्दन चूम और चूस रहा था.
भाभी की सांसे तेज होने लगी. मैं उनकी चूत में उंगली करता रहा. फिर उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया. इसी बीच मैं उनके चूचको को खींच-दबा रहा था. काफी देर तक यही चलता रहा.
मुझे महसूस हुआ कि भाभी का शरीर अकड़ रहा है. मुझे मालूम था कि इसका मतलब है कि वह छुटने वाली है. मैंने तुरंत उनकी चूत से अपनी उंगलियां निकाली और अपनी हथेली से उनकी चूत को ढक लिया.
"राजू! मैं छूटने वाली थी. इतना अत्याचार करेगा अपनी भाभी पर".
"भाभी, मेरा लंड भी तो इस अत्याचार को झेल रहा है".
भाभी को कुछ वक्त लगा शांत होने में. फिर हम दोनों बाथटब से बाहर निकले और एक दूसरे के शरीर को पोछने लगे.
"राजू, चल अब मुझे नाश्ता बनाने दे".
फिर भाभी अपनी गांड मटकाते हुए रसोई की तरफ चली गई.
मैं भाभी के बिस्तर पर आकर लेट गया और कुछ मिनट आराम किया. तब तक भाभी चाय और नाश्ता लेकर आई.
"भाभी, आपने रसोई में छूटने की कोशिश तो नहीं की ना?"
"नहीं राजू".
"खाओ मेरी कसम, भाभी".
"राजू, मैं हमारे होने वाले बच्चे की कसम खाती हूं"
फिर मैं और भाभी एक दूसरे को नाश्ता खिलाने लगे. भाभी की खूबसूरती को देखता रहा. मुझे यकीन नहीं हुआ कि मुझे इस औरत के संग बच्चा करने का मौका मिल रहा है.
फिर मैंने चाय पी.
"भाभी, चाय में चीनी थोड़ी कम है".
"रुक राजू, मैं थोड़ी चीनी ले आती हूं".
"ठहरो भाभी, मुझे मालूम है चीनी कहां से लेनी है".
मैं भाभी के पास आ गया और उनके होंठ चूमने लगा. कुछ सेकंड तक उनके होंठ चूमने के बाद मैंने चाय की एक चुसकी ली.
"भाभी, अभी चाय हो गई है मीठी".
भाभी मुस्कुराई. हम एक दूसरे को चूमते हुए चाय पीने लगी. कुछ ही मिनट में हमारी चाय खत्म हो गई.
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"राजू, अब क्या करना है? चुदाई तो हम कर नहीं सकते. क्या करना चाहता है?"
"भाभी एक खेल खेलोगी मेरे साथ?"
"कैसा खेल राजू?"
"बहुत आसान है भाभी. हमें बस एक दूसरे को चूमते रहना है. लेकिन जिसने भी सबसे पहले हमारा चुंबन तोड़ा वह हार जाएगा."
"बस इतना ही?"
"बस एक शर्त है. जीतने वाला हारने वाले से कोई भी एक काम करा सकता है और हारने वाला मना भी नहीं कर सकता."
"बस. यह खेल तो मैं बहुत आसानी से जीत जाऊंगी, राजू. हारने के लिए तैयार हो जा."
हम एक दूसरे से चिपक गए और एक दूसरे के होठ चूसने लगे. हमारे चुंबन बहुत गहरे थे. हम पूरी शिद्दत से एक दूसरे को चूम रहे थे. मेरा एक हाथ भाभी के पेट पर था. मेरी उंगलियां भाभी की नाभि से खेल रही थी. मेरा दूसरा हाथ भाभी के चेहरे पर प्यार से रखा हुआ था. बहुत ही कामुक माहौल था. हम आधे घंटे तक एक दूसरे को यूं ही चूमते रहे.
और मैंने भाभी के मुंह में अपनी जीभ डाल दी. हमारी जीभ में घमासान युद्ध शुरू हो गया और साथ ही थूक का आदान-प्रदान भी होने लगा. मेरा लंड तो खड़ा हो ही चुका था.
इसी बीच मैं अपनी उंगलियां भाभी की नाभि से हटाकर उनकी चूत में डालकर उनकी चूत चोदने लगा.
भाभी के अंदर से 'मममममम मममममम' की आवाजें आने लगी.
हम कुछ देर तक एक दूसरे को ऐसे ही चूमते रहे. थोड़ी देर बाद मैंने भाभी को बिस्तर पर लेटा दिया. मैंने इस बात का ध्यान रखा कि मेरे होठ भाभी के होठों से अलग ना हो. मैंने अपना खड़ा लैंड भाभी की चूत में डाला और उससे उनकी चूत चोदने लगा.
भाभी घबरा कर उठी.
"क्या कर रहा है तू, राजू. तुझे चोदने के लिए मना किया है ना."
"भाभी, आप शर्त हार गई."
भाभी मुझे देख कर मुस्कुराई.
"राजू, तू तो यह छल कपट से जीता है."
"लेकिन भाभी, जीता तो मैं ही ना. अब मैं आपसे कोई भी एक काम करवा सकता हूं और आप उसके लिए न भी नहीं कर सकती हो."
"अच्छा बाबा, क्या चाहता है तू? सब कुछ तो करवा लिया तूने मुझसे. मुझे कभी भी चूमता है. मेरे संग कितनी चुदाई करता है. मेरे शरीर पर अपने हाथ फेरता है. मुझे पूरे दिन नंगा रखता है. मेरी चूत चाटता है. और तो और अब तू मेरे साथ बच्चा भी कर रहा है. अब और क्या चाहिए तुझे?"
"भाभी, बस एक चीज भूल गई."
"वह क्या राजू?"
मैंने भाभी के मुंह में अपनी उंगली डाली और गीला किया. फिर उंगली को उनके मुंह से निकाल कर उनकी गांड का छेद मलने लगा.
"आपका यह छेद, भाभी".
"राजू, यह तू क्या कह रहा है. तू मेरी गांड मारना चाहता है?"
"हां भाभी".
"राजू, मेरी गांड अभी भी कुंवारी है. मैंने यह किसी से नहीं चुदवाई. इसे तो बक्श दे."
"नहीं भाभी. मेरा आपकी गांड मारने का बहुत मन है. आप जब चलती हो तो आपके बलखाते चूतड़ मेरे लंड में जान डाल देते हैं. इसलिए आपका यह छेद का उद्घाटन मेरा लंड करना चाहता है."
"लेकिन राजू..."
"भाभी, आप शर्त हारी थी और अपनी जीत से मैं आपके संग यही करना चाहता हूं. आपकी यह मस्त गांड चोद चोद के ढीली करना चाहता हूं."
"राजू, अगर तेरी यही इच्छा है तो मैं तेरी इच्छा को पूरा करूंगी, तुझसे अपनी गांड मरवा कर. लेकिन प्यार से मारना. मैंने सुना है कई बार गांड मारते समय औरत हग देती है. ध्यान रहे कि मैं भी ना हग दूं."
"भाभी, इसलिए आप दोपहर का खाना खाने के बाद कल शाम तक कुछ मत खाइए गा. कल रात को आपके गर्भाधान के बाद आपकी गांड मारूंगा."
फिर मैं लेट गया और भाभी मेरे ऊपर आ गई.
मैंने एक उंगली मुंह में डालकर गीली की. फिर उससे भाभी की गांड का छेद मलने लगा.
"राजू, ऐसे ही मलता रह. बहुत अच्छा लग रहा है. बहुत अच्छा लग रहा है".
कुछ देर मलने के बाद मैंने अपनी उंगली भाभी की गांड के अंदर डाल दी.
"राजू, यह क्या कर रहा है?"
"भाभी, आपने अपनी गांड कभी नहीं चुदवाई है. ताकि कल दर्द ना हो, मैं आपकी गांड को खोल रहा हूं".
मैंने अपनी उंगली पूरी उनकी गांड के अंदर डाल दी. भाभी बहुत कसमसाई फिर शांत हो गई. हम दोनों कुछ घंटे ऐसे ही आराम करते रहे.
फिर भाभी उठी और उन्होंने कहा, "राजू, मुझे खाना बनाना है. अपनी उंगली मेरी गांड से निकाल ले."
"नहीं भाभी, आज पूरा दिन मेरी उंगली आपकी गांड के अंदर ही रहेगी."
"क्या?"
"हां भाभी. मुझे आपकी गांड को अपने लंड के लिए खोलना है. इसलिए यह मैं अपनी उंगली आपकी गांड से आज बिल्कुल नहीं निकालूंगा."
"अच्छा बाबा, जो मर्जी है वह कर. अभी मुझे रसोई जाना है तो चल मेरे साथ."
भाभी उठी तो उनके साथ मैं भी उठा. मेरी उंगली उनकी गांड के अंदर ही थी. भाभी जब एक कदम आगे बढ़ी तो मैं भी उनके साथ एक कदम आगे बढ़ता. चलते समय मेरी उंगली उनकी गांड में अलग-अलग जगह रगड़ रही थी. भाभी को खूब आनंद मिल रहा था. वह कामुक आवाजें निकालकर मेरी हरकतों को अपनी स्वीकृति दे रही थी.
रसोई पहुंचकर भाभी ने खाना बनाना शुरू किया और मैंने अपनी उंगली से उनकी गांड चोदना. भाभी को बहुत मजा आ रहा था. मैं अपना दूसरा हाथ आगे बढ़ा कर उनकी चूत और भगनासा से खेलने लगा. भाभी मुस्कुरा कर अपना काम कर रही थी. तभी मैंने भाभी से कहा, "भाभी, थोड़ा मक्खन गर्म कर दोगी क्या?"
"अभी करती हूं राजू."
भाभी मक्खन गर्म करने लगी. इसी बीच मैंने अपनी दूसरी उंगली भी भाभी की गांड के अंदर डाल दी. दूसरी उंगली डालते समय भाभी को थोड़ी तकलीफ हुई तो मैंने नीचे झुक के दूसरे हाथ से उनका पिछवाड़ा खोला और अपनी उंगली डाली. फिर मैंने प्यार से उनके कूल्हे को दांत से काटा. इसी बीच मक्खन पूरा पिघल चुका था लेकिन थोड़ा गर्म था. थोड़ी देर हमने उसे ठंडा होने के लिए छोड़ दिया और हम ऐसे ही अवस्था में खड़े रहे. मेरी एक हाथ की उंगलियां भाभी की गांड में और दूसरे हाथ की उंगलियां उनकी चूत के अंदर. थोड़ी देर बाद जब खाना पक गया ओ भाभी बोली "राजू, खाना तैयार है. खा ले."
मैंने उनकी गांड से अपनी उंगलियां निकाली, फिर नीचे झुक कर चेक किया तो देखा कि गांड काफी खुल गई है. मैं उठा और भाभी को चूमने लगा.
"भाभी, मुझे कस के पकड़ लो."
"क्यों राजू?"
और तभी मैंने भाभी को कमर से पकड़कर उन्हें उल्टा कर के पकड़ लिया. अब भाभी के पैर ऊपर और सर नीचे था. भाभी की चूत मेरे मुंह के सामने थी और भाभी का चेहरा मेरे लंड के सामने. भाभी को अपना संतुलन बनाने में थोड़ी दिक्कत हो रही थी.
"भाभी मैंने आपको पकड़ लिया है. अब आप भी मेरी कमर को अपने हाथों से पकड़ लीजिए और अपने पैरों से मेरी गर्दन को."
भाभी ने वैसा ही किया.
"राजू, तूने मुझे उल्टा क्यों किया है? अब क्या करने का इरादा है अपनी भाभी के साथ?"
भाभी की चूत मेरे मुंह के सामने थी. मैंने अपनी जीभ निकाली और उनकी चूत चाटने लगा. भाभी भी जल्द ही कामुक आवाजें निकालने लगी. मेरा लंड उनके मुंह के सामने था. वह मेरा लंड मुंह में लेकर चूसने लगी. बहुत ही कामुक माहौल था.
"ध्यान से भाभी. इतना मत चूसना कि कहीं मैं छूट ही जाऊं."
भाभी ने मेरा लंड चूसना बंद कर दिया.
"राजू, तूने इसके लिए मुझे उल्टा किया है. मेरी चूत चाटने के लिए?"
"नहीं भाभी, मैं तो बस आपका ध्यान भटका रहा था."
"किस चीज से?"
"इससे."
मैंने एक हाथ से भाभी की गांड खोली. दूसरे हाथ से गर्म मक्खन का कटोरा उठाया और पिघला हुआ मक्खन उनकी गांड के अंदर बहाने लगा.
"आह राजू, क्या डाल रहा है मेरी गांड के अंदर?"
"कुछ नहीं भाभी, बस मक्खन है."
"हे भगवान!"
मैंने काफी मक्खन भाभी की गांड में उड़ेला. दो कूल्हे को कस के पकड़ लिया ताकि गांड से मक्खन ना बहे. फिर से भाभी की दोबारा चूत चाटने लगा.
"राजू, नीचे उतार मुझे."
मैंने चूत चाटना बंद कर दिया और भाभी को नीचे उतारा.
"राजू, मेरी गांड में मक्खन भरने से पहले मुझसे पूछ तो लिया होता."
"भाभी, आपकी गांड मारने के लिए आपकी गांड को तैयार कर रहा हूं ताकि आपको दर्द कम हो."
मैंने मक्खन का कटोरा लिया और बचा हुआ मक्खन अपने लंड पर डाल दिया और लंड को मक्खन से मलने लगा.
मैंने भाभी को पीछे से पकड़ लिया और बोला, "भाभी, गांड तो मैं आपकी कल मारूंगा लेकिन आज थोड़ा ट्रेलर दे देता हूं."
मैंने भाभी के दोनों कूल्हे पकड़ के खोलें और अपने लंड को उनकी गांड के छेद पर मलने लगा.
"सुमन... मेरी रांड... तैयार हो जा अपनी गांड मरवाने को."
मैंने एक जोर का झटका मारा लगभग आधा भाभी की गांड में घुस गया. भाभी ने खूब जोर से चीख मारी.
"आह राजू... हे भगवान! बहुत दर्द हो रहा है मुझे.... निकाल ले इसे."
मैंने अपने दोनों हाथों से भाभी को जकड़ लिया. एक हाथ से में उनकी नाभि से खेलने लगा. दूसरे हाथ से चूचियां मसलने लगा. साथ में उनकी गर्दन और पीठ चूमने लगा. कुछ देर तक यही चला. जब भाभी थोड़ी शांत हो गई तो मैंने फिर एक झटका मारा तो मेरा लंड थोड़ा और भाभी के अंदर गया. भाभी फिर से चीख मारी. लेकिन मैंने भाभी की कोई परवाह नहीं की और ठोकर मार मार के पूरा लंड उनकी गांड के अंदर घुसा दिया.
भाभी की आंखों में आंसू आ गए और वो सिसक सिसक कर रोने लगी.
मैंने प्यार से उनके आंसू पूछे.
"क्या हुआ भाभी?"
"राजू,... इतनी बेरहमी? मैंने तुझे बताया था कि मुझे दर्द हो रहा है लेकिन तूने मेरी परवाह किए बगैर मेरे अंदर अपना पूरा लंड डाल दिया."
"भाभी, पहली बार गांड मरवाना तकलीफ देता है. क्या अभी आप अच्छा महसूस कर रही हो?"
"नहीं राजू, थोड़ा रुक जा."
मैं वैसे ही खड़ा रहा ताकि भाभी को थोड़ा अच्छा महसूस होने लगे. इस समय मैं भाभी के कंधे चूम रहा था. काफी देर बाद मैंने भाभी की कमर पकड़ी और लंड आगे पीछे करना शुरू किया.
मैंने उनकी गांड मारना शुरू कर दिया. मेरे लिए किसी सपने से कम नहीं था. भाभी को थोड़ी तकलीफ हो रही थी लेकिन साथ ही वह कामुक आवाजें निकाल रही थी.
"सुमन, मेरी रांड... कैसा लग रहा है अपने देवर से अपनी गांड मरवा कर?"
"राजू, तेरा लंड मेरी गांड की अच्छे से ठुकाई कर रहा है. बहुत मजा आ रहा है. बहुत मजा आ रहा है. चोदता रह मुझे. रुकना मत."
भाभी की यह बात सुनकर मैंने चुदाई की रफ्तार बढ़ा दी. भाभी तो मानो पागल ही हो गई.
"चोद मुझे राजू. चोद मुझे. अच्छे से मेरी गांड मार. मुझे नहीं पता था.... आह.... कि...आह... गांड मरवाने में इतना मजा आता है."
मैं अपना एक हाथ आगे ले गया और उसकी उंगलियों से भाभी का दाना रगड़ने लगा.
"हे भगवान राजू, मैं... मैं... मैं छूटने वाली हूं राजू."
भाभी के यह कहने पर मैंने चुदाई बंद कर दी और अपना लंड उनकी गांड से बाहर निकाल लिया. मैंने भाभी के दोनों हाथ भी पकड़ लिया ताकि वह अपना दाना ना रगड़ पाए.
"कमीने, तूने मुझे फिर प्यासा छोड़ दिया. इतना तड़पा रहा है अपनी भाभी को."
"बस कल और इंतजार है भाभी."
भाभी खूब देर तक हाफ रही थी. काफी देर बाद बोली, "राजू चल खाना खा ले."
भाभी ने खाना थाली में परोसा और मुझे देने के लिए जब आगे बढ़े तो बोली, "राजू. मैं चल नहीं पा रही हूं. तूने तो बहुत बुरी तरह से मेरी गांड मारी है."
मैंने भाभी को पकड़ लिया और हम दोनों ने खड़े होकर ही खाना खाया. फिर मैं भाभी को गोद में उठाकर उनके कमरे में ले गया और बिस्तर पर लिटा दिया और मैं भाभी के ऊपर चढ़ गया.
"अब क्या करना है राजू?"
"भाभी आप की चुचियों से अपने लंड की मालिश करनी है बस."
"राजू, तू तो अपनी भाभी को रंडी बनाकर ही छोड़ेगा शायद. ले कर ले अपने लंड की मालिश मेरी चुचियों से."
मैंने अपना लंड भाभी की चूचीयों की बीच में फसाया. मेरे पैर बिस्तर पर थे पर मेरी गांड भाभी के पेट पर थी. भाभी ने अपनी चूचियां पकड़ कर मेरा लंड को भीचा मैंने लंड आगे पीछे करके भाभी की चूचियां चोदनी शुरू कर दी. मुझे बहुत मजा आ रहा था. मेरा लंड भाभी के चेहरे पर ठोकर मार रहा था.
"भाभी, अपना मुंह खोलो ना".
भाभी ने अपना मुंह खोला और मेरा लंड अभी भाभी के मुंह के अंदर जाने लगा. मुझे ऐसा करना बहुत अच्छा लग रहा था.
मैंने जब अपनी रफ्तार बढ़ाई तो भाभी बोली "रुक जा राजू... कहीं छूट मत जाना."
मैंने चूचियों की चुदाई बंद कर दी और भाभी के ऊपर ही लेट गया. भाभी की एक निप्पल मेरे मुंह के पास थी तो मैं उनकी निप्पल मुंह में लेकर चूसने लगा.
"भाभी, मैं इंतजार नहीं कर सकता उस दिन का जब आपकी इन चूचियों से दूध बहेगा."
भाभी हंसने लगी.
"राजू, बड़ी थक गई हूं मैं. चल सो जाते हैं."
हम दोनों ने एक दूसरे को जकड़ लिया एक दूसरे की बाहों में मीठी नींद सो गए.
शाम को जब हम उठे तो भाभी रसोई में खाना बनाने चली गई. मैं भाभी के पीछे पीछे गया और उनके पीछे खड़ा हो गया. मैंने भाभी की पीठ पर नाखून गड़ाए और उनकी गांड तक खुरचता चला गया. भाभी के अंदर से एक हल्की सी "आह"की आवाज आई. फिर मैं भाभी की पीठ और गांड पर चुम्मो की बारिश करने लगा. फिर मैंने भाभी की गांड को अपने दांतो से काटा. भाभी चीख उठी.
"आह राजू... बाप रे... इतनी बुरी तरह से मेरी गांड को काटा तूने?"
"भाभी, आपकी गांड है ही इतनी मदमस्त. इतनी खूबसूरत, गोल गोल, उभरी हुई गांड है, मानो न्योता दे रही हो इसको चखने का."
भाभी हल्के हल्के हंसने लगी.
"सच में, भाभी. जब आप नंगी होकर चलती हो, तब आपकी यह मस्त गांड खूब बल खाती है. मेरा तो लंड पागल हो जाता है. भाभी, मुझे तो कभी-कभी यकीन नहीं होता आप इतनी खूबसूरत कैसे हो सकती हो? आपका जिस्म तो लगता है भगवान ने फुर्सत में पूरा वक्त देकर बनाया हो."
अपनी इतनी तारीफ सुनकर भाभी खुश हो गई और पीछे मुड़कर मुझे चूमने लगी.
"क्या मैं सच में इतनी खूबसूरत हूं?"
"हां भाभी... मुझे तो लगता है आप पिछले जन्म में द्रौपदी थी."
भाभी मुस्कुराई.
"और तू पिछले जन्म में दुशासन होगा. तभी अपनी भाभी को जब देखो तब नंगा करता रहता है."
"हां भाभी.... बस फर्क इतना है कि इस जन्म में द्रौपदी अपनी लाज नहीं बचाना चाहती और दुशासन के सामने नंगा होना चाहती है. दुशासन के लंड से चुदना चाहती है और दुशासन का बच्चा अपने पेट में पालना चाहती है."
मेरा लंड खड़ा हो गया और मैंने भाभी को पलट कर उसे भाभी की चूत के अंदर सरका दिया.
"यह क्या कर रहा है राजू? कल तक सब्र कर."
"फिक्र मत कर द्रौपदी. दुशासन अपना माल तेरे अंदर कल ही छोड़ेगा."
मैंने अपना लंड आगे पीछे करके भाभी की चूत चोदने शुरू कर दी. भाभी का शरीर कामुकता से भर गया. उनकी चूत गीली होकर बुरी तरह से पानी छोड़ने लगी. भाभी की चूत का पानी टपक टपक कर मेरे टट्टे गीले कर रहा था.
"भाभी, मुझे आपकी यह ठरक से पागल चूत चोदना बहुत पसंद है. आपकी नाभि से खेलना पसंद है. आपके इस दाने को रगड़ना पसंद है. आपके शरीर को चूमना और चाटना पसंद है."
मैंने चुदाई की रफ्तार और तेज कर दी. भाभी तो पागलों की तरह चीख चीख कर मुझसे चुदने लगी.
"लेकिन जो मुझे सबसे ज्यादा पसंद है, वह है आपकी यह मस्त गांड पर तबला बजाना."
मैंने अपना लंड भाभी की चूत से बाहर निकाल लिया और उनकी गांड पर कस कस के चपत लगाने लगा. मैंने खूब देर तक उनकी गांड पर चपत लगाई. जब मैं रुका तो उनकी गांड पूरी लाल हो चुकी थी तो मैंने उनकी गांड प्यार से नोचनी शुरू कर दी.
भाभी कुछ मिनट बाद जब सामान्य हुई तो बोली, "राजू, आज पूरे दिन तूने मेरी चूत को इतना सताया है कि अब मेरा शरीर बहुत गर्म है चुदने के लिए. लेकिन मैं फिर भी अपनी कामुकता को मारके कल तक इंतजार करूंगी. चल अब खाना खा लेते हैं."
हमने भाभी का बनाया हुआ स्वादिष्ट खाना खाया. फिर हम लोग बिस्तर पर लेट गए.
"राजू, मैं बहुत थक गई हूं. अब मुझे सिर्फ सोना है. इसलिए कोई शरारत नहीं करना."
फिर मैं और भाभी चिपक कर सोने लगे. रात को मैं मूतने के लिए उठा. जब मैं मूत के वापस आया तो मैने अपना सिर भाभी की चूत के तरफ कर लिया और मेरे पैर भाभी के चेहरे की तरफ है. भाभी की एक टांग उठा कर अपना सर दोनों टांगों के बीच में डाल दिया. अब भाभी की चूत मेरे चेहरे से सिर्फ 1 इंच दूर थी. यह सब करते समय भाभी जग गई और बोली, "यह क्या कर रहा है राजू. अपना चेहरा मेरी टांगो के बीच में क्यों रखा है?"
"कुछ नहीं भाभी. आपकी चूत से बहुत ही मादक खुशबू आ रही थी. मैं उसी को सूंघ कर मीठी नींद सोना चाहता हूं. मेरा लंड भी आपके चेहरे के पास है. आप चाहो तो उससे आ रही खुशबू सूंघ कर सो सकती हो."
"बदमाश.... चल अब सो जा."
मैंने अपनी जीभ निकाली और भाभी की चूत को दो-चार बार चाटा. फिर अपनी नाक को उनकी चूत के बहुत पास ले गया और चूत से आ रही खुशबू सूंघ कर सो गया.
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सुबह हुई तो मैंने आंखें खोली. भाभी की मादक चूत मेरे सामने थी. मैं अपना चेहरा भाभी की चूत के पास ले गया और चूत को चूमने लगा. कुछ वक्त तक चूमने के बाद मैंने अपनी जीभ निकालकर भाभी की चूत चाटनी शुरू कर दी. मैं खूब देर तक उनकी चूत चाटता रहा. कभी मैं भाभी की चूत पर अपना थूक थूकता और चाटता. कभी जीभ को नुकीला बनाकर भाभी की चूत के अंदर डालता है तो कभी भाभी की भगनासा अपनी जीभ से छेड़ता तो कभी उसे दांतो से हल्का सा काटता.
फिर मैंने अपने हाथ भाभी के चूतड़ पर रख दिए और जबरदस्त चूत चटाई शुरू कर दी. मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने भाभी के चूतड़ पर चपत लगानी शुरू कर दी.
मैं भाभी की चूत चाटते रहा और भाभी के अंदर से भी कामुक आवाजें आने लगी.
भाभी नींद में "मममममम मममममममममममम"की आवाजें निकालने लगी. जल्दी ही भाभी की चूत से पानी बहने लगा. भाभी की चूत का पानी मुझे और चाटने को प्रेरित कर रहा था. मैंने और तेजी से भाभी की चूत चाटनी शुरू कर दी. फिर मैंने अपनी एक उंगली भाभी की गांड के अंदर डाली. भाभी उठ गई.
"राजू, इतनी सुबह से तूने मेरी चूत चाटनी शुरू कर दी? आह.... अच्छा लग रहा है. रुकना मत."
मैंने भाभी की चूत चटाई चालू रखी. कुछ देर बाद मैंने अपनी एक उंगली ली और उससे भाभी की भगनासा रगड़ने लगा.
भाभी ने बहुत जोर की कामुक आवाज निकाली. मेरा खड़ा लंड भाभी के चेहरे के पास था. भाभी मेरा लंड अपने मुंह में लेकर चूसने लगी और प्यार से मेरे टट्टे सहलाने लगी.
"ध्यान से भाभी. इतने जोर से मत चूसना कि मैं अपना माल आपके मुंह में गिरा दूं. याद रखना भाभी. आज हमें बच्चा पैदा करना है."
भाभी ने मेरा लंड चूसने की गति कम कर दी और टट्टे सहलाने बंद कर दिए.
"भाभी, अभी आप अगर छूटना चाहती हो तो छूट लो. मैं आपकी चूत चाटना तब तक बंद नहीं करूंगा जब तक आप छूट नहीं लेती हो."
"क्या सच में, राजू?"
फिर मैं जमीन पर बैठ गया और भाभी को टांगों के सहारे खींचकर बिस्तर के किनारे पर ले आया. फिर मैंने भाभी की चूत पर एक जोरदार चपत लगाई और चूत चाटनी और भगनासा रगड़नी शुरू कर दी. मैं दूसरे हाथ से भाभी का सपाट पेट सहला रहा था.
खूब देर चटाई के बाद भाभी का शरीर हल्के हल्के झटके खाने लगा. भाभी ने मेरे बाल पकड़ लिए.
"राजू, रुकना मत.... रुकना मत.... मैं.... मैं.... मैं.... मैं छूट रही हूं.... मैं छूट रही हूं.... आह.... राजू.... मैं छूट रही हूं... आह!"
भाभी को छूटे हुए 24 घंटे से भी ज्यादा हो चुका था इसलिए वह बहुत जोर से छूटी थी.
मैं भाभी से थोड़ा अलग हो गया. भाभी जोर-जोर से हांफ रही थी. कुछ देर हांफने के बाद भाभी का शरीर थोड़ा अकड़ने लगा.
"क्या हुआ भाभी?"
"दूर हट जा राजू."
"क्यों भाभी?"
फिर भाभी ने अपना शरीर पूरा ढीला छोड़ दिया और वह मूतने लगी. भाभी का पेशाब फर्श पर गिर रहा था. भाभी खूब दे मूती फिर शांत हो गई.
"चल राजू, तू अब मुंह धो ले.... तब तक मैं अपना पेशाब साफ करती हूं."
मैं बाथरूम में चला गया और ब्रश करने लगा. भाभी पोछा लाकर अपना पेशाब साफ करने लगी. कुछ देर बाद जब मैं बाहर निकला तो भाभी ने बोला, "राजू, एक बात है मुझे अभी पता चली."
"क्या हुआ, भाभी?"
"सासु मां आज शाम तक वापस आ जाएंगी. 4:30 उनकी ट्रेन स्टेशन पर आएगी और 5:00 बजे तक वह घर में होंगी."
"तो अब क्या भाभी? हम अपना बच्चा कब करेंगे?"
"कोई परेशानी वाली बात नहीं है राजू... हम पहले शाम को करने वाले थे. अब हम दोपहर को करेंगे. मैं तेरे संग बच्चा पैदा करके ही रहूंगी. 12:00 बजे तैयार रहना."
मैं भाभी के पास आकर उनको चूमने लगा.
"भाभी, आपको लाल रंग की साड़ी पहननी होगी और खुद को द्रौपदी समझना होगा. मैं खुद को दुशासन समझूंगा. आज दुशासन द्रौपदी को नंगा करके उसके संग बच्चा पैदा करेगा."
भाभी हंसने लगी.
"ठीक है राजू. तब तक तुम मुझसे दूर ही रहना. अब ऊपर अपने कमरे में चला जा और 12:00 बजे से पहले बाहर मत निकलना."
मैंने भाभी के होंठ चूमे और अपने कमरे में चला गया. मैं अपने कमरे में काफी दिनों बाद आया था इसलिए कमरा काफी गंदा था. मैंने एक घंटा लगा कर कमरे को साफ किया फिर लगभग 1 घंटे तक मैं नहा कर खुद को साफ किया.
जब मैं बाहर निकला तो सिर्फ 10:30 बजे थे. अभी डेढ़ घंटा बचा था. मैं किसी ना किसी तरह से समय काट रहा था. कभी या तो किताब पढ़ रहा था जब कभी गाने सुन रहा था. वह डेढ़ घंटा मेरी जिंदगी का सबसे लंबा डेढ़ घंटा था. खैर किसी तरह से 12:00 बज गए.
मैं धीरे से उतर कर भाभी के कमरे का दरवाजा खटखटाया. भाभी ने दरवाजा खोला तो भाभी लाल रंग की साड़ी पहनी हुई थी और नहा धोकर एकदम तैयार थी.
"दुशासन, आप यहां क्या कर रहे हो? किसने आपको देखा तो नहीं?"
"द्रौपदी, बहुत दिन हो गए हैं तेरे संग संभोग किए. आज मेरा लिंग प्यासा है. इसे अपनी योनि में प्रवेश कराके इसकी प्यास बुझाओ."
"दुशासन, आज मेरे अंडोत्सर्ग का दिन है. आज के दिन हमने अगर सहवास किया तो मैं आपके बच्चे की मां बन सकती हूं."
"मुझे इसी दिन का तो इंतजार था, द्रौपदी."
मैं कमरे के अंदर घुस गया. भाभी को चूमने लगा.
"आज मैं तेरे संग सहवास करूंगा, द्रौपदी और तेरे अंदर अपना बीज बो दूंगा. 9 महीने बाद अपनी चूत से मेरे बच्चे को जनेगी तू, द्रौपदी."
मैंने भाभी का पल्लू हटाया और उनकी चुचियों को सहलाने लगा. फिर मैंने भाभी के होठों पर अपने होंठ रख दिए और उनके होठों को चूमने लगा. होठों को चूमते हुए मैं भाभी के ब्लाउज के हुक खोलने लगा. फिर मैंने भाभी का ब्लाउज उतार कर उनके जिस्म से अलग कर दिया. भाभी ने ब्रा नहीं पहनी थी तो उनकी चूचियां लटक रही थी. मैं प्यार से उनकी चूचियां सहलाने और दबाने लगा.
"द्रौपदी, इन्हीं से तू हमारे बच्चे को दूध पिलाएगी, और मुझे भी."
मैंने भाभी की एक निप्पल मुंह में ली और चूसने लगा. भाभी के अंदर से कामुक आवाजें आनी शुरू हो गई थी. खूब देर तक उनका स्तनपान करने के बाद मैंने उनकी साड़ी खोलनी शुरू की. मैंने साड़ी का एक हिस्सा पकड़ लिया और भाभी से कहा, "द्रौपदी, अब यह दुशासन तेरा वस्त्र हरण करने जा रहा है. मैंने तेरी साड़ी का एक हिस्सा पकड़ रखा है. आ मेरी दासी. घूम घूम कर अपनी साड़ी उतार और नंगी हो जा."
भाभी ने अपनी साड़ी उतार दी और अब वह पेटीकोट में खड़ी थी. मैं नीचे झुके उनके पेट को चूमने लगा और उनकी नाभि में जीभ डालकर चाटने लगा.
"तेरे अंदर आज अपना बीज बो दूंगा, द्रौपदी. फिर तेरा यह सपाट पेट मेरे बच्चे से फूल जाएगा. संसार तेरे पति को इस बच्चे की बधाई देगा, लेकिन तुझे हमेशा याद रहेगा इस बच्चे का बाप मैं हूं."
फिर मैंने भाभी की पेटीकोट की डोरी अपने दांत से खोल दी और पेटिकोट नीचे सरका दिया. भाभी अब नंगी हो चुकी थी और मैंने भी जल्दी से कपड़े उतार दिए और नंगा हो गया.
मैंने भाभी को जमीन पर बिछे गद्दे पर लेटा दिया. मैं अपने लंड पर थूक मलने लगा.
भाभी की चूत मेरे सामने थी. मैं नीचे झुका और भाभी की चूत को अपने मुंह में भरा और चूमने-चाटने लगा. भाभी का शरीर कसमसा रहा था. मां बनने की प्रत्याशा में वह पहले ही कामुकता से उत्तेजित थी. मेरी चूत चटाई से उनकी चूत बुरी तरह से गीली हो चुकी थी. भाभी अपनी चुचियों से खेल रही थी. मैं अपने एक हाथ से भाभी की भगनासा को रगड़ रहा था और दूसरे से भाभी का पेट सहला रहा था.
"आह... दुशासन... मैं... मैं... मैं छूट रही हूं दुशासन.... मैं छूट रही हूं.... आपकी द्रौपदी छूट रही है."
मैंने तुरंत भाभी की चूत चाटना बंद कर दिया ताकि वह छूट ना पाए.
"यह क्या कर रहे हो आप, दुशासन? मैं छूटने वाली थी."
"द्रौपदी... आज तुझे केवल दुशासन का लंड ही छुड़ा पाएगा... तैयार हो जा... मेरा लंड तेरी चूत में जाने वाला है... बहुत जल्द तू मां बन जाएगी."
मैंने अपना खड़ा लंड भाभी की चूत पर रखा और एक झटका मारा. मेरा लंड लगभग आधा भाभी की चूत में घुस गया. भाभी कामुक आवाज निकाल रही थी. मैंने एक और झटका मारा तो मेरा पूरा लंड जड़ तक भाभी की चूत में घुस गया. भाभी चीख मारने ही वाली थी लेकिन मैंने अपने होठ भाभी के होठों पर रख दिए और भाभी को चूमने लगा. भाभी जी मुझे वापस चूमने लगी. हम खूब देर तक एक दूसरे को चूमते रहे.
"द्रौपदी, अपने दुशासन के बच्चे की मां बनने को तैयार हो?"
"हां दुशासन... आप अपना बीज मेरे अंदर बो दीजिए. मेरे इस बच्चे के पिता आप हैं, यह बात हमारे बीच गोपनीय रहेगी."
और फिर मैंने भाभी की चुदाई शुरू कर दी. मैं अपनी गांड आगे पीछे करके भाभी को चोद रहा था. मैंने भाभी की चूचियां कस के पकड़ ली और चोदने के साथ-साथ उनकी चूचियां भी कस कस के दबा रहा था. मैं भाभी को चूम रहा था. मैंने अपनी जीभ भाभी के मुंह के अंदर डाल दी और हमारी जीभो में घमासान युद्ध शुरू हो गया. मैं अपने लंड को भाभी की चूत से लगभग पूरा निकाल कर फिर जड़ तक पेल रहा था. इसी कारण मेरे टट्टे भाभी की गांड पर तबला बजा रहे थे. बहुत ही कामुक माहौल था. भाभी ने मेरे जिस्म को अपने हाथों से और अपने पैरों से कसकर जकड़ लिया था. 10 मिनट तक मैं ऐसे ही भाभी को चोदता रहा. 10 मिनट के बाद भाभी चीख उठी.
"राजू... आह... मैं... मैं छूट रही हूं.... मैं छूट रही हूं... आह... आह.... आह.... आह.... मैं छूट रही हूं... चोदो मुझे राजू... चोदते रहो मुझे... मैं छूट रही हूं... आहहहहहहह."
और भाभी छूटने लगी. भाभी की चूत ने मेरा लंड को कस कर भींच लिया लेकिन मैं भी इतनी जल्दी छूटने वाला नहीं था. मैंने चुदाई जारी रखी. मैं भाभी को सटासट चोदे जा रहा था. भाभी की चूत से फचफचफचफच की आवाज आने लगी. भाभी अपने पहले रतिक्षण से उबरी नहीं थी इसलिए सिर्फ बेजान पड़ी चुद रही थी. थोड़ी देर बाद मैंने महसूस किया की भाभी मेरे टट्टे सहला रही है. इससे उत्तेजित होकर मैंने भाभी को सबसे तीव्र गति से चोदना शुरू कर दिया. भाभी तो मानो पागल ही हो गई.
"आह... आह... आह... आह... चोद मुझे राजू... चोद मुझे... बो अपना बीज मेरे अंदर... बना दे मुझे औरत से जनानी... पेल मुझे... रंडी की तरह पेल मुझे."
फिर भाभी की चूत पर मैंने बुरी तरह से प्रहार करना शुरू किया. उनकी परवाह किए बगैर मैं उनको बुरी तरह से चोदने लगा.
इस प्रहार से भाभी खुद को नहीं बचा पाई और फिर से छूटने लगी.
भाभी ने अपनी नाख़ून मेरी पीठ में गड़ा दिए. उनके अंदर से एक बहुत ही गहरी आवाज आई. और उनकी चूत मेरे लंड को भीचते हुए छूटने लगी. मैं अभी फिर भी छूटने का नाम नहीं लिया.
"राजू, मैं दो बार छूट चुकी हूं, तू अभी तक नहीं छूटा?"
"नहीं भाभी. मेरा लंड आज आपकी चूत से पूरा बदला लेगा. जब तक इस को फाड़ कर नहीं रख देता, तब तक नहीं झड़ेगा."
"राजू, थोड़ा तरस खा अपनी भाभी पर.... या मैं कहूं अपने होने वाले बच्चे की मां पर और दे दे मुझे अपना बीज."
"भाभी, मेरा लंड अपनी मर्जी का मालिक है. जब तक आपकी चूत का भोसड़ा नहीं बनाता, तब तक नहीं झड़ेगा."
और मैं भाभी को पेलता रहा. हम लगभग आधे घंटे से चुदाई कर रहे थे लेकिन मेरा लंड झड़ने का नाम नहीं ले रहा था. तभी भाभी ने मेरी गांड पर कस कस कर चपत लगानी शुरू की. मेरी गांड को भाभी नोचने लगी. फिर दूसरे हाथ की उंगली को अपने मुंह में गीला करके उससे मेरी गांड का छेद छेड़ने लगी. मुझे बहुत अच्छा लग रहा था कुछ देर बाद भाभी ने अपनी उंगली मेरी गांड के अंदर सरका दी. मुझे और क्या चाहिए था. मैंने भाभी के बदन को कस कर जकड़ लिया और भाभी की चूत के अंदर अपना माल छोड़ना शुरू कर दिया. मेरे टट्टो ने बहुत माल बनाया था. मैं अगले 10 सेकंड तक भाभी के अंदर छूटता रहा. भाभी भी मेरे टट्टो को प्यार से सहला रही थी. पूरी तरह से झड़ने के बाद मैं भाभी के ऊपर गिर पड़ा. कुछ सेकंड आराम करने के बाद मैंने एक तकिया भाभी की गांड के नीचे लगा दिया. फिर मैं भाभी के बदन से चिपक गया और आराम करने लगा. भाभी भी मेरे बाल और मेरी पीठ को सहला रही थी.
कुछ मिनट आराम करने के बाद मैंने फिर से अपनी गांड आगे पीछे करके भाभी की चुदाई शुरू कर दी.
"आह राजू, मुझे इतना चोद के भी तेरा लंड थका नहीं?"
"भाभी, मेरा लंड तो थक गया है लेकिन मेरे टट्टो ने इतना माल बनाया है कि जब तक आपकी चूत में मैं अपना सारा बीज नहीं छोड़ देता, तब तक मेरे टट्टे आप को चोदने के लिए कहते रहेंगे."
फिर मैंने भाभी को चूम लिया और चुदाई वापस शुरू कर दी.
लगभग 3:00 बजे तक हम यूं ही चुदाई करते रहे. 3:00 बजे के करीब मैंने आखरी बार भाभी के अंदर अपना माल छोड़ा. भाभी और मैं थक के चूर हो गए थे और एक दूसरे के साथ चिपक कर सो गए.
जब हम जगे तो 4:00 बज गए थे. भाभी ने मुझे उठाकर बोला, "राजू, उठ जा. 4:00 बज गए हैं. 1 घंटे में सासू मां भी आती होंगी."
भाभी के मुलायम शरीर से अलग होने का मेरा मन नहीं था और भाभी के कहने पर मैं उठ गया और उनको प्यार से चूमा. भाभी उठकर शीशे के सामने चली गई और खुद के बदन को निहारने लगी. भाभी के नंगे बदन और बल खाते चूतड़ देख के मेरा लंड फिर से हरकत में आने लगा. मैं घुटनों के बल चलकर भाभी के पास गया और अपने हाथों से उनके दोनों चूतड़ों को अलग किया फिर उनकी गांड के छेद में जीभ डालकर चाटने लगा.
"राजू, अब तो छोड़ दे अपनी भाभी को. मुझे तैयार होने दे."
मैंने गांड की छेद को चाटना बंद किया और उसमें अपनी उंगली डाल दी. भाभी दर्द से कराह उठी.
"राजू, यह क्या कर रहा है?"
"भाभी, हमारे पास एक घंटा है ना."
"हां है राजू."
"भाभी, मैं आपकी गांड मारना चाहता हूं."
"राजू, यह क्या कह रहा है. इस समय तू मेरी गांड मारेगा?"
"हां भाभी, आप गद्दे पर कुत्तिया बनके लेट जाओ. मैं मक्खन गर्म कर कर लाता हूं."
"राजू, सासू मां कभी भी आ सकती हैं."
"भाभी, याद है ना आपको... आप मुझसे शर्त हारी थी. अब शर्त की भरपाई करने का वक्त है."
मैं किचन में चला गया मक्खन गर्म करने. 5 मिनट बाद जब मैं गर्म मक्खन लेकर ऊपर आया तो भाभी कुत्तिया बनकर गद्दे पर लेटी थी.
"भाभी, आप तैयार हो?"
"राजू, सच बोलूं तो इस समय मैं अपनी गांड नहीं मरवाना चाहती. लेकिन मैं अपने वादे की बहुत पक्की हूं."
फिर भाभी ने अपनी गांड उठा दी और अपना चेहरा तकिए से लगा दिया. मैंने भाभी की गांड में उंगली डालकर उसे खोला और गर्म मक्खन उनकी गांड में उड़ेलने लगा. गर्म मक्खन अपनी गांड में उड़ेलना भाभी को अच्छा लग रहा था. मैंने लगभग पूरा मक्खन भाभी की गांड में उड़ेल दिया. जो थोड़ा बचा था उसे अपने लंड पर मला. फिर मैंने भाभी की गांड पर अपने हाथ रखें और बोला, "भाभी, गांड मराने के लिए तैयार हो?"
भाभी ने गांड मटका के हामी भरी.
मैंने भाभी की गांड में अपना लंड डाला तो सिर्फ मेरा लंड का सुपारा ही अंदर घुस पाया.
"भाभी, अपने शरीर को थोड़ा ढीला छोड़ दो. तभी गांड मरवाने में मजा आएगा."
भाभी ने धीरे-धीरे अपने शरीर को ढीला छोड़ा. मैं धीरे-धीरे अपना लंड भाभी की गांड के अंदर और डालता रहा. जब मेरा लंड जड़ तक भाभी की गांड में घुसा, तब मैं रुक गया ताकि भाभी थोड़ी समायोजित हो जाएं.
लगभग 1 मिनट के बाद मैंने भाभी की गांड मारना शुरू किया. मैं धीरे-धीरे, प्यार से अपना पिछवाड़ा आगे पीछे करके भाभी की गांड मार रहा था. मैंने देखा भाभी को भी मजा आ रहा था. उनके अंदर से कामुक आवाजें निकल रही थी और वह अपनी गांड से पीछे की तरफ ठोकर मार कर मेरे लंड से चुद रही थी.
यह देख कर मैंने चुदाई की रफ्तार बढ़ाई. भाभी और जोर से आवाज निकालने लगी. मेरी और भाभी की चुदाई से पूरा कमरा गूंज रहा था. मैं अपना लंड भाभी की गांड से लगभग पूरा निकाल कर जड़ तक पेलता. साथ ही साथ मैं भाभी की गांड पर जोर से चपत लगा रहा था. 15 मिनट तक मैं भाभी को ऐसे ही चोदता रहा. फिर मैंने देखा की भाभी का बदन अकड़ गया है और वह कांप रही हैं. भाभी झड़ रही थी. यह देख मैं भी खुद को रोक नहीं पाया और भाभी की गांड के अंदर ही झड़ गया. जब मैंने अपना लंड भाभी की गांड से बाहर निकाला तो भाभी बोली, "राजू, मेरी उठने में मदद कर. मुझे बहुत दर्द हो रहा है."
मैंने भाभी को धीरे धीरे उठाया. भाभी खड़ी हो गई लेकिन उनको चलने में दिक्कत हो रही थी. मैं डर गया क्योंकि चाची कुछ ही मिनट में आने वाली थी.
"भाभी, आप ठीक हो?"
"राजू, गांड मार के अपनी भाभी से पूछ रहा है कि क्या आप ठीक हो? मैं कैसे ठीक हो सकती हूं जब तूने मेरी गांड मारी है? पकड़े रहे मुझे छोड़ना मत."
भाभी को मैं पकड़ा रहा. 5 मिनट के बाद भाभी ने धीरे धीरे चलना शुरू किया और धीरे धीरे चल के वह बाथरूम में चली गई और टॉयलेट पर बैठ गई और हगने लगी. भाभी 5 मिनट तक हगी. फिर जब वह खड़ी हुई, उन्हें थोड़ा अच्छा महसूस हो रहा था. फिर भाभी ने शावर चला दिया और बोली, "आजा राजू, हम दोनों बहुत गंदे हो रहे हैं इस समय. आजा मेरे साथ नहा ले."
मैं और भाभी शावर के नीचे खड़े हो गए और एक दूसरे से चिपक गए. हमने एक दूसरे के बदन पर खूब साबुन लगाकर एक दूसरे को धोया. हम 10 मिनट तक यूं ही नहाते रहे. फिर भाभी बोली, "राजू, सासु मां 15 मिनट में आने वाली होंगी. तू अपने कमरे में जा कर तैयार हो जा. मैं भी साड़ी पहन लेती हूं."
मैंने भाभी की बात को सुना और अपने कमरे में चला गया और कपड़े पहन कर तैयार हो गया. मैं सबसे नीचे वाले कमरे में आकर चाची का इंतजार करने लगा. कुछ देर बाद भाभी साड़ी पहनकर नीचे आई. भाभी एकदम आदर्श बहु लग रही थी और बहुत खुश दिख रही थी.
"राजू, सासू मां कुछ देर में आती ही होंगी. तब तक क्या करें हम?"
"भाभी, आपको ऐसा देखकर मैं शांत तो नहीं बैठ सकता."
"अरे राजू, क्या तू फिर से मेरी साड़ी खोल कर मुझे नंगा कर के चोदेगा?"
मैं भाभी के पास गया और उनके होठों पर अपने होंठ रख कर उनको चूमने लगा. भाभी भी मेरा साथ देकर मुझे चूमने लगी. हम एक दूसरे को तब तक चूमते रहे जब तक चाची ने दरवाजे की घंटी नहीं बजाई.
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चाची जब अंदर आई तो मैंने उनके पांव छुए और उनका सामान लेकर अंदर रखने चला गया.
जाते-जाते मैंने पीछे से चाची की आवाज सुनी, "बहू, सब कुछ ठीक से हो गया?"
"हां, मां जी... सब ठीक से हो गया."
फिर मैं अपने कमरे में चला गया और पढ़ाई करने लगा. रात के 8:00 बजे मैं खाना खाने के लिए नीचे आया. भाभी रसोई में खाना बना रही थी और चाची टेबल पर बैठी थी. मैंने भाभी को पीछे से जाकर पकड़ लिया और उनकी गर्दन चूमने लगा.
"राजू, अभी नहीं... सासू मां बगल के ही कमरे में हैं. खाना खाकर मैं 10:00 बजे आऊंगी तेरे कमरे में."
मैंने भाभी की चूचियां मसली और फिर उन्हें छोड़ दिया और टेबल पर जाकर मैं भी बैठ गया. कुछ देर में भाभी खाना लेकर आए और हम सब ने साथ खाना खाया.
फिर मैं अपने कमरे में चला गया.
करीब 10:00 बजे मेरा दरवाजा पर खटखटाहट हुई. मैं समझ गया कि भाभी होंगी. मैंने दरवाजा खोला तो भाभी थी. वह अपने हाथ में कुछ सफेद की चीज पकड़ी थी और बहुत खुश लग रही थी. भाभी ने मेरे कमरे के अंदर आकर मुझे चूम लिया.
"राजू, यह देख."
भाभी ने मुझे बहुत सफेद सी चीज थमाई.
"यह क्या है, भाभी?"
"राजू, मैंने टेस्ट किया. तूने अपना बीज मेरे अंदर बो दिया है. मैं मां बन गई हूं, राजू, तेरे बच्चे की."
मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. मैं बिस्तर पर बैठ गया और भाभी को अपने पास बुलाया. भाभी मेरे पास आई और मैंने उनका पल्लू खोल दिया. भाभी का खूबसूरत पेट और उनकी प्यारी सी नाभि मेरे सामने थी. मैंने भाभी का पेट अपने चेहरे से लगा लिया. आखिर मेरा बच्चा भाभी की पेट में ही तो पल रहा था. फिर मैंने भाभी के पेट को खूब देर चूमा और फिर भाभी की साड़ी खोल दी. भाभी साड़ी से बाहर निकल आई. फिर मैंने अपने दांतो से भाभी की पेटीकोट की डोरी खोल दी. भाभी ने अपनी ब्रा और ब्लाउज को भी उतार दिया. अब भाभी सिर्फ अपनी गुलाबी चड्डी में ही थी. मैंने भी जल्दी से अपने सारे कपड़े उतार दिए और नंगा हो गया.
मैंने भाभी को बिस्तर पर बिठाया और हम एक दूसरे को चूमने लगे. मैं भाभी की चूचियों के साथ खेल रहा था और भाभी मेरे लंड के साथ. मैं भाभी की चूचियां को कस कर दबा रहा था और उनके निप्पल को खींच और दबा रहा था. खूब देर तक ऐसा ही चलता रहा. फिर भाभी बोली, "राजू, तू लेट जा और भाभी को अपना कमाल दिखाने दे."
मैं लेट गया और भाभी अपने हाथों में मेरा लंड लेकर हिलाने लगी और प्यार से मेरे टट्टे सहलाने लगी.
"आज बहुत काम किया है इन बेचारो ने."
भाभी ने मेरे टट्टो को चूम लिया और बारी बारी से हर टट्टे को मुंह में लेकर चूसा. साथ में भाभी मेरा लंड हिला रही थी. मुझे बहुत आनंद आ रहा था.
जल्दी ही मेरे लंड के टोपे पर पानी आ गया जिसे भाभी ने अपनी जीभ से चाट कर चखा. फिर भाभी उठी और आकर मेरे लंड पर बैठ गई. भाभी की चूत गीली थी इसलिए मेरा लंड आराम से भाभी की चूत के अंदर चला गया. फिर भाभी ने अपनी गांड मटका के मेरे लंड से चुदना शुरू किया. मुझे बहुत मजा आ रहा था और मैंने भाभी की चूचियां पकड़ ली.
हम दोनों सुबह से इतनी चुदाई कर चुके थे कि थक के चूर हो चुके थे. इसलिए जल्दी ही भाभी छूट गई और उनके साथ मैं भी उनकी चूत के अंदर छूट गया. भाभी मेरे ऊपर गिर पड़ी. मैंने उन्हें कसके दबोच लिया और हम दोनों चिपक कर सो गए.
मैं मीठी नींद सो रहा था कि तभी मुझे महसूस हुआ कि कोई मुझे जगा रहा है. मैंने आंखें खोली तो वह चाची थी.
"राजेश, सुमन... बेटा उठो."
मैं घबराहट में उठा और मेरी घबराहट को महसूस करके भाभी भी उठ गई.
"राजेश, कपड़े पहन कर नीचे आजा. सुमन, तू भी."
भाभी अपनी साड़ी, ब्लाउज, पेटिकोट, ब्रा और पेंटी समेटकर अपने कमरे में चली गई.
"राजेश, तू भी जल्दी नीचे आ."
फिर चाची चली गई.
मैं बहुत घबरा रहा था. मेरी गांड फटी हुई थी. चाची ने मुझे उनकी बहू को चोदते हुए पकड़ा था. मैं किसी तरह से हिम्मत जुटा कर कपड़े पहना और सबसे नीचे वाली मंजिल पर चला गया. चाची वही बैठी हुई थी और मुझे देख रही थी. मैंने उनसे अपनी आंखें चुरा ली. मुझे लग रहा था कि चाची तुरंत मुझे अपना सामान बांधने को बोलेगी और घर से बाहर निकाल देंगी. कुछ ही मिनट में भाभी भी आ गई. फिर चाची ने बोला-
"राजेश, सुमन को पेट से करने के लिए शुक्रिया."
मुझे चाची के शब्दों पर यकीन नहीं हुआ.
"क्या, चाची?"
"हां राजेश... तेरे भैया का बीज बहुत कमजोर है. तेरी भाभी को अच्छे बीज की जरूरत थी. सुमन को अपना बीज देकर तूने उसे गर्भवती कर दिया. इसके लिए शुक्रिया."
मेरे तो पैरों तले जमीन खिसक गई थी. मुझे समझ नहीं आ रहा था मैं क्या कहूं.
"मां जी, मुझे लगता है हमें राजू को शुरुआत से सब बताना चाहिए."
"हां, तू ठीक कहती है सुमन."
मैं समझने की कोशिश कर रहा था कि यह दोनों क्या कहना चाह रही हैं. लेकिन फ़िर चाची बोली-
"राजेश, तेरे भैया और सुमन पिछले 2 साल से बच्चा पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन असफल है. हमने दोनों को डॉक्टर को दिखाया. डॉक्टर ने टेस्ट करने के बाद बताया कि सुमन में कोई खराबी नहीं है. उसे मां बनने में कोई दिक्कत नहीं आएगी. असली कमी है तेरे भैया के बीज में. रवि का बीज बहुत कमजोर है. वह सुमन को कभी मां नहीं बना पाएगा. हमें अपने घर में बच्चा चाहिए था और हम गोद नहीं लेना चाहते थे. लेकिन हम वीर्य दान के लिए भी तैयार नहीं थे. पता नहीं किस मर्द का बीज हो और पता नहीं इस बीज से पैदा होने वाला बच्चा कैसा निकले. इसी बीच में पता लगा कि तू चंडीगढ़ आ रहा है कॉलेज में पढ़ने. इसी बीच मैंने सुमन से बात करी कि क्या वह तेरे बीज से मां बनना चाहेगी? मैंने उससे कहा कि घर की ही बात है, घर ही में रहे तो अच्छा है. हमारे खानदान के ही एक मर्द के बीज को सुमन अपने पेट में पाले, तो ही अच्छा है. लेकिन सुमन इसके लिए तैयार नहीं थी. कहती थी राजू तो अभी बच्चा ही है."
मैं हैरानी से भाभी की तरफ देखने लगा.
"राजू, तुझे याद होगा तेरे यहां आने के कुछ दिन बाद एक रात जब मैं और तेरे भैया कमरे में कर रहे थे, तब मैंने तेरी परछाई दरवाजे के नीचे से देखी थी. तू हमें देखकर मुट्ठ मार रहा था और तूने अपना माल फर्श पर ही गिरा दिया था. उसके बाद जब तू कमरे में चला गया तब मैंने दरवाजा खोल के देखा था और पाया कि तूने ढेर सारा माल फर्श पर गिरा दिया है और तेरे अंडे ढेर सारा माल बनाते हैं. तब मुझे भी लगने लगा कि शायद तू इस काम के लिए ठीक रहेगा. मैंने सासू मां से इस बारे में बात की थी. और मैंने उन्हें यह भी बताया कि मैं किसी डॉक्टर के यहां जाकर तेरे से बीज निकलवा कर उस बीज को अपने पेट में नहीं पालना चाहती. नहीं तो तू समझेगा कि सिर्फ तेरा बीज पाने के लिए हमने तुझे यहां बुलाया है. मैं चाहती थी कि अगर मुझे तेरा बीज मिले तो वो इसलिए मिले क्योंकि तू मुझे अपना बीज देना चाहता है. मैं प्राकृतिक ढंग से मां बनना चाहती थी. सासू मां जब इस बात के लिए राजी हो गई, तभी मैंने तुझे रिझाना शुरू किया अपनी खूबसूरती से. तेरे संग एक दो बार सेक्स भी किया और पाया तू भी अपना बीज मुझे देना चाहता है क्योंकि तू हर बार अपना बीज मेरी योनि के अंदर ही छोड़ता था. इसके बाद मैंने तुझे एक दिन एक शीशी में झड़ने को बोला था. उस शीशी में मौजूद वीर्य का मैंने डॉक्टर के यहां टेस्ट करवाया. राजू, बहुत ही शक्तिशाली वीर्य है तेरा. एक बार में तेरे वीर्य में लगभग 60 करोड़ शुक्राणु होते हैं. कभी भी किसी लड़की को चोदते समय कंडोम जरूर पहनना. नहीं तो खामियाजा भुगतना पड़ेगा. कुछ ही दिन बाद तेरे भैया ने बताया कि वह 2 महीने के लिए बाहर जा रहे हैं. मैंने और सासू मां ने तभी यह प्लान बनाया था और इसलिए सासू मां भी बाहर चली गई थी ताकि तू और मैं अकेले यहां रहे और तू अपना बीज मेरे अंदर बो सके."
मुझे यह सुनकर हैरानी हो रही थी. मेरे संग ऐसी धोखाधड़ी कभी नहीं हुई थी.
"राजेश, तुझे यह बात राज रखनी होगी. सुमन के होने वाले बच्चे का बाप तू है, यह बात सिर्फ मुझे, सुमन और तुझे पता है. यह बात और किसी को नहीं पता चलनी चाहिए. खानदान की इज्जत का सवाल है."
"राजू, अब जाकर तू सो जा. आज तूने बहुत काम किया है. हम भी सो जाते हैं जाके."
भाभी के इतना कहने पर मैं उठकर अपने कमरे की तरफ बढ़ने लगा. मैंने पीछे मुड़कर देखा की चाची और भाभी कुछ बात कर रही हैं.
मैं अपने कमरे में आ गया और अभी जो सारी बातें चाची और भाभी ने कही थी उन्हीं के बारे में सोच रहा था. कुछ मिनट बाद भाभी मेरे कमरे में आई.
"सासू मां सो गई है, राजू."
"भाभी...", मैं इससे ज्यादा और कुछ बोल नहीं पाया और मेरी आंखों में आंसू आ गए. मैं भाभी से प्यार करता था और उनकी इस धोखाधड़ी से मेरे दिल को बहुत चोट पहुंची थी.
भाभी मेरे पास आए और मुझे अपने सीने से लगा लिया और मेरी पीठ सहलाने लगी.
"राजू, रो मत. मैं समझ सकती हूं तुझे कैसा महसूस हो रहा होगा. तुझे ऐसा लग रहा होगा कि मैंने तेरा फायदा उठाया."
"भाभी.... मैं आपसे प्यार करता हूं. क्या आप मुझसे प्यार करती हो?"
भाभी ने मेरी आंखों में आंखें डाल कर देखा.
"नहीं राजू. मैं तेरे से प्यार नहीं करती. मैं सिर्फ तेरे भैया से प्यार करती हूं. उनको दुख ना देने के लिए ही मैंने तेरे संग बच्चा किया."
भाभी का यह बोलने पर मैं फूट-फूट कर रोने लगा.
"रो मत राजू. असल में तू भी मुझसे प्यार नहीं करता."
"ऐसा नहीं है भाभी."
"राजू, अगर तू मुझसे प्यार करता है तो एक बात बता. तुझे मेरे बारे में क्या सबसे अच्छा लगता है, मेरे जिस्म के अलावा?"
मैंने कुछ देर सोचा लेकिन मेरे पास कोई जवाब नहीं था.
"देखा राजू. तुझे सिर्फ मेरे जिस्म से प्यार है. इसलिए तू मुझसे प्यार नहीं करता. तेरे अंदर मेरे जिस्म के लिए एक ठरक है. उस ठरक को तो प्यार समझता है."
"भाभी, आपने मुझे धोखा दिया."
"हां राजू.... मैं अपने पति से बहुत प्यार करती हूं. उनकी खुशी के लिए मैंने तुझे धोखा दिया. लेकिन एक बात और है. प्यार में अपने पति से करती हूं लेकिन मेरी चूत में भी तेरे लंड के लिए एक ठरक है. इसलिए जब भी मुझे मौका मिलेगा, मैं अपनी चूत की ठरक मिटाने तेरे पास आऊंगी. तेरे संग बेमतलब की चुदाई करने. लेकिन इस बारे में ना तेरी चाची ना तेरे भैया को पता लगना चाहिए. बता, मंजूर है तुझे?"
मैं थोड़ा शांत हुआ और कुछ देर सोचने के बाद बोला, "भाभी, मैं भी आपको एक चुदासी रांड समझ कर चोदूंगा. मुझे आपकी शर्त मंजूर है."
"तो फिर इंतजार किस चीज का कर रहा है. चोद मुझे. अपनी रांड को."
और मैंने भाभी की चुदाई शुरू कर दी.
भाभी और चाची ने चाची की तबीयत खराब होने का बहाना बनाकर भैया को जल्दी बुला लिया. भैया अगले 4 दिन में वापस आ गए. फिर भाभी ने भैया के संग खूब चुदाई की. कुछ दिन बाद उन्होंने भैया को खबर दी कि वह मां बन गई है. भैया की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उन्होंने मुझे बोला, "राजेश, बहुत जल्दी चाचा बनने वाला है."
मैंने भी उन्हें बधाई दी और अपनी खुशी व्यक्त की.
कुछ दिन बाद भैया फिर अपने काम के सिलसिले में बाहर चले गए. भाभी और मैं फिर से चुदाई करने लगे. 1 दिन भाभी मेरे पास ही सो रही थी. अचानक वह सुबह उठी और बाथरूम में जाकर उल्टी करने लगी.
मैं भाभी के पीछे जाकर खड़ा हो गया और उनके बाल सहलाने लगा. भाभी उल्टी करती रही. उल्टी करने के बाद भाभी उठी और कुल्ला करने लगी. मैंने भाभी के पेट पर अपना हाथ रखा और बोला, "भाभी, आपकी सुबह की उल्टी इस बात का सबूत है कि हमारा बच्चा आपकी कोख में बड़ा हो रहा है.". भाभी यह बात सुनकर मुस्कुराई और फिर बिस्तर पर जाकर लेट गई. मैं बोला, "भाभी, चाची कभी भी ऊपर आ सकती हैं. आपको अपने कमरे में होना चाहिए."
"राजू, इस हालत में मैं अपने कमरे में चलकर नहीं जा सकती."
मैंने भाभी को अपनी गोद में उठा लिया और खुद चलकर उन्हें उनके कमरे तक ले गया और बिस्तर पर लेटा दिया. फिर उन्हें चादर ओढ़ा दी और मैं अपने कमरे में वापस आ गया. अगले कई महीने तक ऐसा ही चलता रहा. भैया की गैर हाजरी में भाभी मुझसे चुद रही थी. साथ ही साथ भाभी का पेट भी फूल रहा था. मेरा बच्चा भाभी की कोख में बड़ा हो रहा था. कुछ महीने बाद, भाभी ने एक प्यारे से बच्चे को जन्म दिया. बच्चे के पैदा होने के वक्त भी भैया बाहर थे. अस्पताल में मैं और चाची थे. भाभी ने हमारे बच्चे को नाम दिया, राहुल. चाची अपने पोते को देखकर बड़ी खुश थी. अस्पताल से आने के बाद भाभी राहुल की देखभाल में लग गई. भैया जब वापस आए तो राहुल को देख कर बड़ा खुश थे. हमें जब भी मौका मिलता, मैं और भाभी चुदाई कर लेते. भाभी ने मुझे अपने स्तन से दूध भी पिलाया. भाभी ने मुझे उनका दूध पीने की खुली छूट दी थी. इसलिए जब मेरा मन करता, मैं भाभी के कमरे में जाता, उनका ब्लाउज खोलता, उनकी निप्पल मुंह में लेकर चूसता और उनका दूध पीता.
राहुल जब डेढ़ साल का हो गया तो एक दिन चाची और भाभी ने मुझे बुलाया. चाची बोली, "राजेश, तेरे भैया सुमन के साथ एक और बच्चा करना चाहते हैं. मैंने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन वह मान नहीं रहा. वह एक और बच्चा चाहता है. राजेश, हमें फिर से तेरे बीज की जरूरत है."
इसके बाद मैंने और भाभी ने फिर से चुदाई की. भाभी दोबारा मां बन गई और 9 महीने बाद हमारी बेटी, तान्या पैदा हुई. भैया फिर से खुश हो गए. इस तरह से मेरे कॉलेज के दिन चंडीगढ़ में निकले. मैं और भाभी खूब चुदाई करते थे. अपने खाली वक्त में मैं अपने बच्चों के साथ खेलता था और देखभाल में भाभी की मदद भी करता था. आखरी सेमेस्टर में मुझे दिल्ली में नौकरी मिल गई. इसका मतलब यह था कि 6 महीने में मैं भाभी के घर से चला जाऊंगा. भाभी को इस बात से बड़ी चिंता हुई कि अब वह अपनी चूत की ठरक कैसे शांत करेंगी? लिहाजा मैं और भाभी बहुत ज्यादा चुदाई करने लगे. हमें जब मौका मिलता, भाभी अपनी टांगे खोल देती और मैं अपना लंड उनकी चूत में डाल देता. ऐसी ही किसी एक चुदाई में हमने ध्यान नहीं दिया कि भाभी उस दिन अंडोत्सर्ग कर रही थी. मैंने उस दिन कॉंडम नहीं पहनी थी और भाभी की चूत के अंदर ही मैंने अपना बीज छोड़ दिया. हमें पता भी नहीं चला कि भाभी मां बन चुकी है. एक दिन भाभी जब सुबह उठी तो पिछली बार की तरह उन्हें फिर से उल्टी हुई. तब हमने चेक किया तो पाया कि भाभी गर्भवती हैं. हमने यह बात चाची को बताई तो चाची ने मुझसे बहुत नाराजगी जताई क्योंकि उनको पता चल गया था कि उनकी पीठ पीछे उनकी बहू और भतीजा चुदाई करते हैं. भैया एक हफ्ते पहले घर आए थे. भाभी ने उनको फोन करके बताया कि वह फिर से गर्भवती हैं. भैया फिर से खुश हुआ. कुछ हफ्ते बाद मैं और चाची भाभी को डॉक्टर के पास चेकअप के लिए ले गए. डॉक्टर ने बताया कि भाभी के पेट के अंदर जुड़वा बच्चे पल रहे हैं. मैं और भाभी इस बात से बड़े खुश हुए. लेकिन हमें चुदाई से रोकने के लिए चाची ने भाभी को अपने कमरे में बुला लिया और रात को उन्हीं के साथ सोने लगी. लेकिन हमें जब भी मौका मिलता हम चुदाई करते थे.
भाभी अपने पांचवे महीने में थी जब मेरा कॉलेज खत्म हो गया और मैं दिल्ली शिफ्ट हो गया. 4 महीने बाद भाभी ने हमारी जुड़वा बच्चियों को जन्म दिया. उस समय राहुल 3 साल का और तान्या लगभग 2 साल की थी.
आज इस बात को कई साल बीत चुके हैं. आज मेरी शादी हो चुकी है और मेरे अपने दो जायज बच्चे हैं. भैया और भाभी अभी भी साथ हैं और भैया को नहीं पता कि उनके बच्चों का असली बाप मैं हूं. कुछ साल पहले चाची गुजर गई. मैं कई बार चंडीगढ जाता हूं भाभी और अपने बच्चों से मिलने, भैया की गैर हाजरी में. भाभी और मैं तब खूब चुदाई करते हैं.
अपनी जिंदगी में मुझे कई धोखे मिले हैं, लेकिन जो हसीन धोखा मेरी भाभी ने मुझे दिया, मैं प्रार्थना करूंगा कि आप सबको वैसा ही हसीन धोखा मिले.
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18-05-2021, 11:12 AM
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06-06-2021, 06:30 AM
रात भर गैर मर्द से चुदीं
नैनीताल में होटल बहुत महंगे हैं तो हमने एक ही रूम में एडजस्ट होने की सोची। होटल वाला भी मान गया।
दिन भर घूमने के बाद होटल वापिस आए और नितिन और मैंने दम से विहस्की खींची, और मैंने दोनों लेडीज को भी कोकाकोला मेंशराब मिला कर पिला दी फिर खाना खाकर रूम में गए और एक ही बिस्तर पर चारों पसर गए।
एक रजाई में मैं और मेरी बीवी घुस गए और दूसरी में नितिन और डॉली घुस गए। अपनी अपनी बीवियों से चिपकते ही हमारे लंड खड़े हो गए और हमने रजाई के अन्दर ही चूत मारने का फैसला किया। मेरी बीबी मानसी ने फटाफट अपने कपड़े उतार दिए.. और एकदम नंगी हो गई।
नितिन को हम लोगों की खुसुर-पुसुर से समझ आ गया। वो बोला- क्या तुम लोग इकसठ-बासठ कर रहे हो?
“हाँ भैय्या, अब यहाँ आकर भी इकसठ-बासठ नहीं की तो प्यासे रह जायेंगे।” मानसी ने जवाब दिया।
“चलो जी अब मैं भी नंगी हो रही हूँ, तुम भी चालू हो जाओ।” डॉली भी चुदाने को आतुर हो बोली। डॉली ने जब कपड़े उतारे तो उसकी गोरी-गोरी चूचियाँ मुझे दिख गईं।
मेरा लंड तन्ना कर खड़ा हो गया। मैंने मानसी की चूची दबा कर उसकी चूत में लंड पेल दिया जो सरसराता हुआ घुस गया। मानसी की सीत्कार कमरे में गूँज गई।
उधर नितिन ने भी डॉली की चूत में अपना लंड पेल दिया था, क्योंकि डॉली की चीख निकल गई थी। “अबे नितिन क्या झंडा गाड़ दिया किले पर…!” मानसी हँसने लगी। नितिन की झांटें सुलग गईं। “क्यों बे, तेरा झंडा नहीं गड़ा क्या अभी तक ..!” “अबे तू अपनी धकापेल चालू रख ! मैं तो मानसी की चुदाई में लगा ही हूँ, खूब हचक कर चुदवाती है मेरी मस्त मानसी।” मेरी शराब अब अपने सुरूर को दिखा रही थी। हम दोनों चुदाई के साथ-साथ खुल्लम-खुल्ला अश्लील बातें कर रहे थे और इस में हमारी बीवियाँ भी हमारा साथ दे रही थीं।
एक घंटे तक हम अपनी बीवियों की चुदाई करते रहे। जब चोद-चाद कर कुछ शिथिल से हो गए तो निढाल हो कर बिस्तर पर पैर पसार कर लेट गए। अचानक मुझे पेशाब आने लगी तो मैं नंगा ही बाथरूम चला गया क्योंकि अब जब एक-दूसरे की चुदाई की धपाधप चल रही थी तब हम लोग अश्लील बातों में पीछे नहीं थे तो सब शर्म खत्म हो चुकी थी। जब लौटा तो नितिन भी नंगा ही बाथरूम में घुस गया। मैंने देखा कि दोनों लड़कियां बिस्तर पर अकेले लेटी थीं। मेरे दिमाग में एक खुराफात आई कि क्यों न मैं डॉली की रजाई में घुस जाऊँ, अँधेरे में किसी को क्या पता चलेगा और डॉली की चूची दबा कर ‘सॉरी’ बोल कर आ जाऊँगा। यह सोच कर मैं डॉली की रजाई में घुस गया। उसके कोमल शरीर से लिपटकर उसकी चूची दबाने लगा। वो बहुत गर्म हो रही थी। उसके निप्पल सख्त हो रहे थे, बिना कुछ बोले उसने अपनी टाँगें खोल दीं और चूत पर मेरा लंड रख कर बोली- डालो। मैंने फटाफट उसकी चूत में लंड घुसा दिया। डॉली की चूत टाइट थी। धीरे-धीरे उसकी चूत में मेरा पूरा लंड घुस गया। मेरी तो लाटरी निकल गई। बिना किसी प्रयास की डॉली की चूत मिल गई।
उधर जब नितिन बाथरूम से निकला तो अँधेरे में शराब के नशे के प्रभाव में उसने देखा कि जो लड़की अकेली पड़ी है उसकी तरफ चलो। तो वो मेरी बीवी मानसी की रजाई में घुस गया। मानसी ने भी अपने चूची उसकी हवाले कर दी क्योंकि मानसी की आवाज़ सुनाई दे रही थीं। फिर उसने अपने टाँगें खोल कर नितिन का लंड अपनी चूत में डाल लिया और बहुत जोर से चीखी, “अबे ये लंड इतना लम्बा कैसे हो गया?”
तब मुझे पता चला कि नितिन का लंड मुझसे लम्बा है। मुझे अपनी बीवी के किसी और से चुद जाने पर बहुत अफ़सोस हुआ, पर इसका कोई विकल्प नहीं था। जब मैं डॉली को चोद रहा हूँ तो मानसी का नितिन से चुदना निश्चित था।
रात भर हम एक-दूसरे की बीवियों की चूत मारते रहे। बड़ा मजा आया। सुबह जब उठे तो हमारी बीवियाँ पहले ही उठ चुकी थीं। वो हंस-हंस कर मेरी तरफ देख रही थी। इसका मतलब उन्हें पता चल गया था कि रात भर वो गैर मर्द से चुदती रही हैं।
मानसी मेरे पास आकर बोली- नितिन को कुछ पता नहीं है। उसे कुछ मत बताना। उसे पसंद नहीं है, पर डॉली को बहुत मजा आया। वो अब हमारे साथ चुदना चाहती है। कितना मजा आया चुदते वक़्त, सिर्फ मुझे पता था कि हम एक-दूसरे की बीवियों को चोद रहे हैं। धोखे से हम दूसरे की पार्टनर को चोद चुके थे।
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06-06-2021, 05:34 PM
कमनीय कोमल
नेट पर एक कहानी पढ़ी है एक कमसिन कमनीय लड़की कोमल की और नौजवान की जो अभी जवानी की तरफ बढ़ रहा है कैसे छेड़छाड़ उत्सुकता से प्यार परवान चढ़ा और फिर पहला मिलन हुआ
कहानी मेरी नहीं है पर समयानुसार कुछ काट छांट जरूर की है
लेखक में दो नाम सामने आये mrindia और bbmast ...
असली लेखक के बारे में काफी प्रयास करने पर भी पता नहीं चला .. किसी ने अगर पढ़ी ही और असली लेखक के बारे में जानते हो तो अवश्य बताना उन्होंने बहुत अच्छी कहानी लिखी है
कहानी से उनका नाम जुड़ा होना चाहिए...
उसे यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ आशा है पसंद आएगी
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06-06-2021, 05:36 PM
परिचय
पुरानी बात है, मैंने कॉलेज से निकल कर कॉलेज में कदम रक्खा ही था, सारा माहौल उस समय रूमानी लगता था, हर लड़की खूबसूरत लगती थी, शरीर और दिमाग में मस्ती रहती थी, शरीर जैसे हर समय विस्फोट के लिए तैयार, मुठ मारने लगा था, लंड बेचैन रहता था, वैसे मैं पढाई में भी तेज था और क्लास में ऊँचे दर्जे से पास होता था, इस वजह से घर और बाहर इज्जत थी, किसी चीज के लिए घरवाले मना नहीं करते,
उसी समय गर्मी की छुट्टियां हुई और मेरे ताउजी के एक घनिष्ट मित्र अपनी पत्नी और बेटी के साथ हमारे घर आये तीन चार दिनों के लिए, उन्हें पुरी जाना था और हमारे यहाँ रुके थे, बेटी अलीगढ़ के एक कॉलेज में छात्रा थी और अभी अभी परीक्षा का रिजल्ट आया था जिसमे पास हो गयी थी, छुट्टियों के बाद आगे पढाई जारी रखनी थी.
उसके परिवार से हमारा बहुत पुराना सम्बन्ध था और मेहमानों जैसी कोई बात नहीं थी. उसके पिताजी भी मेरे पिताजी के दोस्त जैसे ही थे. पहले हम संयुक्त परिवार में रहते थे, तीन चार सालों से ताउजी व्यापार के लिए पूना रहने लगे थे. कोमल को बहुत सालों के बाद देखा था.
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06-06-2021, 05:43 PM
(This post was last modified: 06-06-2021, 05:46 PM by usaiha2. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
UPDATE 1
कोमल को मेरे बारे में याद तो था, पहले बिलकुल एक छोटी बच्ची सी थी जब देखा था, हमलोग मकान के पीछे के बाड़े में खेले हुए थे और उसे याद था की साथ ही आइसक्रीम खाने और पिक्चर देखने गए थे जब वो एक दो बार आयी थी, अब जब वो आयी तो मैंने देखा की वो बड़ी लगने लगी थी, शरीर भर गया था, ऊँचाई भी पूरी हो गयी थी, अब वो सलवार पेहेनने लगी थी, मेरा भी देखने का अंदाज बदल गया था, पहले इस तरह से देखा नहीं था, अब वो शर्माती थी, और ज्यादा कर अपनी माँ के साथ ही रहती, थोड़ी बहुत बातें हुई लेकिन झिझकते हुए, मुझे वो बहुत अच्छी लगी, सुन्दर तो थी ही लेकिन जवानी आने से और भी मदमस्त लगने लगी थी,
मैं उससे दोस्ती बढ़ाने और किसी भी तरह उसे आगोश में लेने के लिए व्याकुल हो गया, अब छुट्टियों के बावजूद में दोस्तों के पास नहीं जा रहा था और घर में ही रहता, छोटे भाई के जरिये कोमल के साथ कैरम, लूडो खेलने की योजना बनाता और उसके सामने रहने की कोशिश करता, वो लोग तीन चार दिन के लिए ही आये थे, बातों बातों में अकेले में मैंने एक दो बार उसकी ख़ूबसूरती की तारीफ़ की तो वो शर्मा गयी, लगा जैसे की उसे यह सुनने में अच्छा लगा.
दूसरी रात को मैं, कोमल और भाई जमीन पर बैठे लूडो खेल रहे थे, माँ पिताजी वगैरह दुसरे कमरे में थे, मैं मौका पाकर कोमल के हाथों को और बाँहों को छु देता था, एक दो बार मैंने पासा फेंकते हुए अपना हाथ उसके जांघों पर भी रख कर हलके से दबा दिया था पर उसने कोई विरोध नहीं किया, शायद उसे लगा हो की अनायास ही ऐसा हुआ हो, उसकी भरी भरी गुदाज जांघों के स्पर्श से बिजली सी शरीर में कौंध गयी, मेरा शरीर अब आवेश से गरम हो रहा था, रात को मैं हाफ पैंट पेहेन कर सोता था,
मैंने कोशिस की और कोमल के और नजदीक खिसककर हो गया, मैंने धीरे से अपने एक पैर के पंजों को कोमल की जांघों के नीचे घुसाना शुरू किया, उसने मेरी ओर देखा पर कहा कुछ नहीं और दूर हटने की कोशिश भी नहीं की, मेरी हिम्मत बढ़ी और मैं पैर की उंगुलियों से उसके जांघों के नीचे हिस्से को सहलाने लगा, मुझे लगा की मेरे पैरों पर किसी ने गरम कोमल स्पंज रख दिया है, थोड़ी देर बाद मैंने महसूस किया की कोमल ने अपनी जांघों को कुछ ऊपर किया जैसे की मुझे और अन्दर तक पैर डालने के लिए कह रही हो, मैंने हिम्मत कर अपने पंजो को और अन्दर किया, अब मेरे पंजे बिलकुल उसके योनी के नजदीक थे, मैं धीरे धीरे अपने पैर के अंगूठे से उसके योनी के पास उसे छेड़ रहा था,
मेरा लंड बेकाबू हो गया था, मैं उसे अपना फुफकारता हुआ लंड दिखाना चाहता था, अब मन खेल में नहीं था, कोमल भी बेमन से खेल रही थी, उसकी आवाज़ उखड़ रही थी, लग रहा था उसका गला सूख गया है, मेरे पैर की उंगलिया अब उसके योनी के ऊपर तक पहुँच गयी थी, मैं अंगूठे से उसकी बूर दबा रहा था, मुझे लगा जैसे की उसकी बूर से कुछ पानी जैसा निकला हो, उसकी सलवार गीली लग रही थी, मेरे लिय बैठना मुश्किल था, मैंने कोमल से कहा मेरी गोटियाँ ऐसे ही रहने दो और तुम दोनों खेलो और मैं सुसु से आता हूँ फिर तुम्हे हराऊँगा,
मुझे मालूम था भाई जीत जायेगा , वो बहुत लूडो खेलता था, वही हुआ, थोड़ी देर में वो जीत गया और खेल से बाहर हो गया, अब मैं और कोमल थे, भाई अपने बेड पर जा कर किताब पढ़ने लगा, मैं आकर अपनी जगह बैठ गया, कोमल से कहा आगे खेलो, और पहले की तरह अपने पंजों को कोमल के जांघों के नीचे सरकाने लगा, कोमल ने बिना कुछ कहे जांघे ऊपर की और मैं उसकी बूर को कुरेदने लगा, अब हम खेल का बहाना कर रहे थे, थोड़ी देर बाद देखा तो भाई सो रहा था, अब वो बार बार मेरी तरफ देख रही थी, मैंने एक प्लान किया था, बाथरूम से वापस आते समय अपने पैंट के सामने के दो बटन खोले लिए थे, अब बैठते समय वहां बने सुराख़ से लंड थोड़ा थोड़ा झांक रहा था, कोमल की नजर उसपर पड़ रही थी, मैं ऐसा बना हुआ था की मुझे मालूम ही नहीं हो ही मेरे बटन खुले हैं, मैं कनखियों से देख रहा था,
कोमल की नजर बार बार उस और जा रही थी, मेरा निशाना ठीक था, कोमल और मै दोनों व्याकुल थे, हम खेल रहे थे लेकिन कोई दूसरा ही खेल चल रहा था, दोनों चुप थे, लंड अन्दर बने रहने को तैयार नहीं था, आवेश में फटकर बाहर आना चाहता था, मैं कोमल को बार बार अब छु रहा था , कभी जांघों पर, कभी उसकी कमर पर, कभी उसके हाथों को पकड़ रहा था, उसका जिस्म बहुत ही भरा भरा था, अचानक मैंने देखा कोमल की आँखे मेरे पैंट नीचले हिस्से पर जम गयी हैं, लंड बेकाबू होकर सामने के दरवाज़े से बाहर फिसल पड़ा, अपनी उत्तेजित अवस्था में तना खड़ा था पुरी लम्बाई के साथ, लाल सुपाड़ा, वासना की तरलता से चिकना और चमकता हुआ, ६.५ इंच लम्बा, मोटा और कुछ कुछ हल्का कलास लिए हुए, तनाव से फडफडा रहा था,
कोमल स्तब्ध सी फटी फटी आँखों से देख रही थी, मैं फिर भी अंजान सा बना उससे पासा फेकने को कहता रहा, कोमल भी उत्तेजित थी, उसकी बूर का पानी मेरे अंगूठे को गीला कर रहा था, उससे रहा नहीं गया और वो उठ कर भागी, कहा "मुझे अब नहीं खेलना है" , समझ में नहीं आया की कहीं नाराज तो नहीं हो गयी.
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