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Adultery सोलवां सावन
फट गया 


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पिछवाड़ा 




[Image: rear-end-N.jpg]



जल्द ही दोनों तनकर खड़े हो गये।





अजय के लण्ड के चमड़े को मैंने कस के खींचा और उसका मोटा गुलाबी सुपाड़ा बाहर निकल आया। मैंने उंगली से उसके छेद को हल्के से छू दिया और वह सिहर गया। 




तब तक अचानक अजय ने मुझे पकड़कर कस के झुका दिया और उसका गरम सुपाड़ा, मेरे गुलाबी होंठों से रगड़ खा रहा था- “ले चूस इसे, घोंट, खोल के अपना मुँह ले अंदर जैसे अभी चन्दा चूस रही थी…” 

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और मैंने अपने होंठ खोलकर पहली बार उसके सुपाड़े को घोंट लिया। 





मेरे गुलाबी, मखमली होंठ उसके सुपाड़े को रगड़ते, घिसते हुये, उसे अंदर ले रहे थे। मेरी रेशमी जुबान, सुपाड़े के निचले हिस्से को चाट रही थी। थोड़ी देर तक मैं उसके मोटे सुपाड़े को चूमती चाटती रही। 


+
[Image: BJ-lick-tumblr_p0svv1hmyL1ueo5r9o1_500.gif]



अजय ने उत्तेजित होकर मेरे सर को और जोर से अपने लण्ड पर दबाया और आधा लण्ड मेरे मुँह में घुस गया।

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मेरे हाथ उसके लण्ड के बेस को पकड़े हुए, दबा सहला रहे थे और फिर मैं उसके पेल्हड़ को भी सहलाने लगी। 





“हां हां ऐसे ही, और कस के चूस ले, चूस ले मेरा लण्ड साल्ली… ले-ले पूरा ले…” 





मुझे अच्छा लगा रहा था कि मेरा चूसना अजय को इतना अच्छा लगा रहा है। 





मैं अपनी गर्दन ऊपर-नीचे करके खूब कस के चूस रही थी। कुछ देर चूसने के बाद, जब मैं थोड़ी थक जाती तो उसे बाहर निकालकर लालीपाप की तरह उसके लाल खूब बड़े सुपाड़े को चाटती, मेरी जीभ उसके पूरे लण्ड को चाटती और फिर मैं उसका लण्ड गप्प से लील जाती।




मेरे गाल एकदम फूल जाते, कभी लगता कि वह मेरे हलक तक पहुँच गया है पर मैं गप्पागप उसका लण्ड घोंटती रहती, चूसती रहती।


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मैं सुनील को एकदम भूल गयी थी पर मुझे तब उसकी याद आयी जब उसने मेरे चूतड़ सहलाते हुये मेरे गाण्ड के छेद पर अपना लण्ड लगाया। 






“नहीं… नहीं… वहां नहीं…” मैंने कहने की कोशिश की। 


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पर अजय ने कस के मेरा सर अपने लण्ड पर दबा दिया और मेरी आवाज नहीं निकल पायी। 





थोड़ी देर वहां रगड़ने के बाद, सुनील ने लण्ड मेरी चूत पे सटाया और एक झटके में सुपाड़ा अंदर पेल दिया।



मेरी जान में जान आयी कि मेरी गाण्ड बच गयी।





पर चन्दा के रहते, ये कहां होने वाला था। चन्दा ने पहले तो सहलाने के बहाने मेरे चूतड़ को कस-कस के दो-दो हाथ लगाये और फिर अपनी उंगली में खूब थूक लगाकर उसे मेरी गाण्ड के छेद पे लगाया। 





सुनील ने अपनी पूरी ताकत लगाकर मेरे दोनों कसे-कसे कोमल नितंबों को अच्छी तरह फैलाया और चन्दा ने भी कस के मेरी गाण्ड के छेद को चियार कर उसमें अपनी थूक लगी उंगली को ढकेल दिया। 




मैंने अपनी गाण्ड हिलाने की बहुत कोशिश की पर वह धीरे-धीरे, पूरी उंगली अंदर करके मानी। 

[Image: sixteen-9cef4b67548730b1bac42af212484574.cache.jpg]


पर वह वहां भी रुकने वाली नहीं थी। 







जब मेरी गाण्ड को उसकी आदत हो गयी तो वह उसे गोल-गोल घुमाने लगी, और फिर जोर-जोर से अंदर-बाहर करने लगी। जब मैंने अपने चूतड़ ज्यादा हिलाये तो वो बोली- 




“अरे, अभी एक उंगली में इत्ता चूतड़ मटका रही हो तो अभी थोड़ी देर में ही पूरा मूसल ऐसा लण्ड इसी गाण्ड में घुसेगा तो कैसे गप्प करोगी…” 







मैं चाहकर भी कुछ नहीं बोल सकती थी क्योंकी अजय मेरा सर पकड़ के मेरे मुँह को अब पूरी ताकत से लण्ड से चोद रहा था और अब मेरे थूक से वह इतना चिकना हो गया था कि गपागप मैं उसे लील रही थी और कई बार तो वह मेरे गले तक ढकेल देता। 


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और उधर सुनील भी मेरे मम्मे पकड़कर कस के चोद रहा था।







जब कुछ देर बाद चन्दा ने मेरी गाण्ड से उंगली निकाली तो मेरी सांस आयी। 



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मेरी गाण्ड

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मेरी चूत सुनील के लण्ड की धकापेल चुदाई का पूरा मजा ले रही थी और मैं भी अपनी चूत उसके मोटे खूंटे जैसे लण्ड पर भींच रही थी।
तभी चन्दा ने किसी ट्यूब की एक नोज़ल मेरी गाण्ड के छेद में डाल दी। मैं मन ही मन उसे खूब गालियां दे रही थी। वह जेली की ट्यूब थी और उसने दबा-दबाकर पुरी ट्यूब मेरी गाण्ड में खाली कर दी। 
मेरी पूरी गाण्ड चप-चप हो रही थी।







उसके ट्यूब निकालते ही सुनील ने अपना लण्ड मेरी चूत से निकालकर 

मेरी डर से दुबदुबाती गाण्ड के छेद पे लगा दी।

 चन्दा ने बेरहमी से मेरे दोनों चूतड़ों को पकड़ के, खूब कस के गाण्ड के छेद तक फैला दिया था। 







अब सुनील का लण्ड भी मेरी चूत को चोद के अच्छी तरह गीला हो गया था और गाण्ड के अंदर भी खूब क्रीम भरी थी, इसलिये अब जब उसने धक्का मारा तो थोड़ा सा मेरी गाण्ड में घुस गया।



पर मेरी गाण्ड एकदम कड़ी हो गयी थी और मसल्स अंदर लण्ड घुसने नहीं दे रही थीं। 

सुनील ने मुझसे कहा कि मैं डरूं नहीं और थोड़ा ढीली करूं पर मैं और सहम गयी।





चन्दा कस के बोली- 

“हे ज्यादा छिनारपना ना दिखा, गाण्ड ढीली कर ठीक से मरवा नहीं तो और दर्द होगा…” 



और उसने अचानक मेरी दोनों टांगों के बीच हाथ डालकर कस के अपने नाखूनों से मेरी क्लिट पर खूब कस के चिकोट लिया। 




मैं दर्द से बिलबिला कर चीख उठी और मेरा ध्यान मेरी गाण्ड से हट गया। 


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सुनील पूरी तरह तैयार था और उसने तुरंत मेरी कमर पकड़ के कस के तीन-चार धक्कों में अपना पूरा सुपाड़ा मेरी गाण्ड में पेल दिया।


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मेरी पूरी गाण्ड दर्द से फटी जा रही थी। मैंने बहुत जोर से चीखने की कोशिश की पर अजय ने और कस के अपना लण्ड मेरे हलक तक ठेल दिया और कस के मेरा सर दबाये रहा। सिर्फ मेरी गों गों की आवाज निकल पा रही थी। मैं कस-कस के अपनी गाण्ड हिला रही थी पर… 





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[b]“गुड्डी रानी, अब चाहो कितना भी चूतड़ हिलाओ, गाण्ड पटको, [/b]


[b]पूरा सुपाड़ा अंदर घुस गया है, इसलिये अब लण्ड बाहर निकलने वाला नहीं है…”[/b]

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[b]चन्दा मेरे सामने आकर मुझे चिढ़ाते हुये बोली और मेरा जोबन कस के दबा दिया।[/b]
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फट गइल ,सटक गइल , घुस गइल हो 


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“गुड्डी रानी, अब चाहो कितना भी चूतड़ हिलाओ, गाण्ड पटको, पूरा सुपाड़ा अंदर घुस गया है, इसलिये अब लण्ड बाहर निकलने वाला नहीं है…”



 चन्दा मेरे सामने आकर मुझे चिढ़ाते हुये बोली और मेरा जोबन कस के दबा दिया। 


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सुनील अब पूरी ताकत से मेरी कसी, अब तक कुंवारी गाण्ड के अंदर अपना सख्त, मोटा लण्ड धीरे-धीरे घुसा रहा था।

मैं कितना भी चूतड़ पटक रही थी पर सूत-सूत करके वह अंदर सरक रहा था


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कहाँ सोलह साल की कच्ची कुंवारी कसी कसी गांड और बीत्ते भर लम्बा, कलाई ऐसा मोटा सुनील का बांस , 



पानी के बाहर मछली की तरह छटपटा रही थी , तड़प रही थी , दर्द से डूबी ,




मुंह में अगर अजय ने अपना खूंटा  हलक तक मेरे न ठोंक रखा होता तो चीख चीख कर , .... 


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दर्द के मारे मेरी जान निकली जा रही थी पर उस बेरहम को तो… कभी कमर तो कभी मेरे कंधे पकड़कर वह पूरी ताकत से अंदर ठेल रहा था और जब आधा लण्ड घुस गया होगा और उसको भी लगा कि अब और अंदर पेलना मुश्किल है तो वह रुका।

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मुझे लगा रहा था कि किसी ने मेरी गाण्ड के अंदर लोहे का मोटा राड डाल दिया है। उसके रुकने से मेरा दर्द थोड़ा कम होना शुरू हुआ।


पर चन्दा को कहां चैन, वह बोली- 

“हे गुड्डी रानी, क्या मजे हैं तुम्हारे, एक साथ दो लण्ड का मजा, एक मुँह में चूस रही हो और दूसरे से गाण्ड में मजा ले रही हो, और मैं यहां सूखी बैठी हूं। '



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। और अजय से कहा- 



“हे इसका मुँह छोड़ो, जब तक सुनील इसकी गाण्ड का हलुवा बना रहा है, तुम मेरे साथ मजा लो ना…” 





अजय ने जब इशारे से बताने की कोशिश कि जैसे ही वह मेरे मुँह से लण्ड निकालेगा, 
मैं चीखने चिल्लाने लगूंगी।



तो चन्दा ने अजय का लण्ड मेरे मुँह से निकालते हुए कहा-





“अरे चीखने चिल्लाने दो ना साल्ली को। पहली बार गाण्ड मरा रही है तो थोड़ा, चीखना, चिल्लाना, रोना, धोना, अच्छा लगाता है। थोड़ा, रोने चीखने दो ना उसको…” 



ये कहकर उसने अजय को वैसे ही नीचे लिटा दिया और खुद उसके ऊपर चढ़ गयी। 







मैं भी गर्दन मोड़कर उसको देख रही थी। वह अपनी चूत, ऊपर से अजय के सुपाड़े तक ले आती और जब अजय कमर उचकाकर लण्ड घुसाने की कोशिश करता, तो वह छिनार चूत और ऊपर उठा लेती। उसने अजय की दोनों कलाई पकड़ रखी थी। फिर उसने अपने माथे की बिंदी उतारकर अजय के माथे को लगा दी और कहने लगी- 





“आज मैं चोदूंगी और तुम चुदवाओगे…” 






और उसने अपनी चूत को उसके लण्ड पे जोर के धक्के के साथ उतार दिया। 


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थोड़ी ही देर में अजय का पूरा लण्ड उसकी चूत के अंदर था। अब वह कमर ऊपर-नीचे करके चोद रही थी 

और अजय, जैसे औरतें मस्ती में आकर नीचे से चूतड़ उठा-उठाकर चुदवाती हैं, वैसे कर रहा था। 





चन्दा ने मेरा एक झुका हुआ जोबन कस के दबा दिया और अब सुनील को चढ़ाते हुए, कहने लगी- 






हे अभी मेरी चूत की चुदाई तो सुपाड़ा बाहर लाकर एक धक्के में पूरा लण्ड डालकर कर रहे थे, और अब इस छिनाल की गाण्ड में सिर्फ आधा लण्ड डालकर… क्या उसकी गाण्ड मखमल की है और मेरी चूत टाट की… अरे मारो गाण्ड पूरे लण्ड से, फट जायेगी तो कल क्ललू मोची से सिलवा लेगी साल्ली… ऐसी गाण्ड मारो इस छिनाल की… की सारे गांव को मालूम हो जाये कि इसकी गाण्ड मारी गयी, पेल दो पूरा लण्ड एक बार में इसकी गाण्ड में… वरना मैं आ के अभी अपनी चूची से तेरी गाण्ड मारती हूं…” 


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न्दा का इतना जोश दिलाना सुनील के लिये बहुत था। सुनील ने मेरी कमर पकड़कर अपना लण्ड थोड़ा बाहर निकाला और फिर पूरी ताकत से एक बार में मेरी गाण्ड में ढकेल दिया। 
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फट गयीइइइइइइ 

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[b]चन्दा का इतना जोश दिलाना सुनील के लिये बहुत था। सुनील ने मेरी कमर पकड़कर अपना लण्ड थोड़ा बाहर निकाला और फिर पूरी ताकत से एक बार में मेरी गाण्ड में ढकेल दिया। 
[/b]















उउह्ह्ह, मेरी तो जान निकल गयी। मैंने दांत से होंठ काटकर चीख रोकने की कोशिश की पर दर्द इतना तेज था कि तब भी चीख निकल गयी। पर मैं जानती थी, कि अब सुनील नहीं रुकने वाला है, चाहे मेरी गाण्ड फट ही क्यों ना जाये। 











और वही हुआ, सुनील ने बिना रुके फिर पहले से जोरदार धक्का मारा और मैं बेहोश सी हो गयी, मेरी बहुत तेज चीख निकली पर चन्दा ने कसकर मेरे मुँह पर हाथ लगाकर भींच लिया। 











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सुनील धक्के को धक्का मारता रहा। मैं छटपटा रही थी, दर्द से बेहाल हो रही थी लेकिन चन्दा ने इतनी कस के पूरी ताकत से मेरा मुँह भींच रखा था कि मेरी जरा सा भी चीख नहीं निकल पायी। 







[Image: anal-ruff-J-tumblr-nrsiam4-Wsd1utzq8lo1-500.gif]







कुछ देर में सुनील के धक्के रुक गये, पर मुझे अहसास तभी हुआ, जब चन्दा ने हाथ हटा लिया और बोली-









“अरे जरा बगल में तो देख, कितनी आराम से तेरी गाण्ड ने लण्ड घोंट रखा है…” 





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और सच में जब मैंने बगल में देखा तो वहां शीशे में साफ दिख रहा था कि, कैसे मेरी कसी-कसी गाण्ड में उसका मोटा लण्ड पूरे जड़ तक मेरी गाण्ड में घुसा है। 














अब दर्द जैसे धीरे-धीरे कम हुआ मेरी गाण्ड ने लण्ड अपने अंदर महसूस करना शुरू कर दिया। थोड़ी देर तक रुक के सुनील ने लण्ड थोड़ा बाहर निकाल के कस-कस के धक्के फिर मारने शुरू कर दिये। 

पर अब मुझे दर्द के साथ एक नये तरह का मजा मिल रहा था। 










उधर, अजय ने भी अब चन्दा को चौपाया करके चोदना शुरू कर दिया था। 









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मैं और चन्दा दोनों एक साथ एकदम सटकर चुदवा रहे थे। 



मेरी सोलह साल की कच्ची कसी गांड पहली बार हचक हचक के मारी जा रही थी , 




और मेरी सहेली मेरे बगल में मेरे यार से अपनी रसीली बुर चुदवा रही थी , 











सुनील अब मेरी चूचियां पकड़ के गाण्ड मार रहा था। 







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वह एक हाथ से मेरी चूची पकड़ता और दूसरी से चन्दा की दबाता। 









अब अजय और सुनील दोनों पूरी तेजी से धक्के पे धक्के मारे जा रहे थे।





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सुनील ने मेरी चूत में पहले तो दो, फिर तीन उंगलियां घुसा दीं और कस के अंदर-बाहर करने लगा।


कहां तो मेरी चूत को एक उंगली घोंटने में पसीना होता था और कहां तीन उंगलीं… मेरी गाण्ड और चूत दोनों का बुरा हाल था, पर मजा भी बहुत आ रहा था। जब उसका लण्ड मेरी गाण्ड में जाता तो वह उंगली बाहर निकाल लेता और जब चूत में तीन उंगलियां एक साथ पेलता तो गाण्ड से लण्ड बाहर खींच लेता। 



मैं बार-बार झड़ने के कगार पर पहुँचती तभी चन्दा ने कस के मेरी क्लिट पकड़कर रगड़ मसल दी और मैं झड़ने लगी और बहुत देर तक झड़ती रही। मेरा सारा रस उसकी उंगली पर लग रहा था। 


जब मैं झड़ चुकी तो सुनील ने मेरी चूत से अपनी उंगली निकालकर मेरे मुँह में लगा दी और मुझे मजबूर करके चटाया। फिर तो मैंने उसके उंगलियों से एक-एक बूंद रस चाट लिया। 



चन्दा मुझे चिढ़ाते हुए बोली- “क्यों कैसा लगा चूत रस…” 
मैं चुप रही।


पर चन्दा क्यों चुप रहती। वह बोली- “अरे अभी तो सिर्फ चूत रस चाटा है अभी तो और बहुत से रस का स्वाद चखना है…” 


जब सुनील ने उसे आँख तरेर कर मना किया तो वो बोली- 


“अरे गाण्ड मरवाने का मजा ये लेंगी, तो चूम चाटकर साफ कौन करेगा…” 



तभी सुनील ने मेरे चूतड़ों पर कस-कस के कई दोहथ्थड़ मारे, इत्ते जोर से की मेरे आँखों में गंसू आ गये। और उसने जोर से मेरी चोटी पकड़कर खींचा, और बोला- 






“सच सच बोल गाण्ड मराने में मज़ा आ रहा है की नहीं…”





[Image: anal-tumblr_o493adkBqA1uklrrho1_400.gif]



“हां हां आ रहा है…” मुझे बोलना ही पड़ा। 


“तो फिर बोलती क्यों नहीं…” 



सच कहूं, मेरी समझ में नहीं आ रहा था अब मुझे कभी-कभी दर्द में भी अजब मज़ा मिलता था, कल जब दिनेश ने चोदते समय कीचड़ में जमकर मेरी चूचियां रगड़ीं थीं और आज जब इसने मेरे चूतड़ो पर मारा- 



“हां हां मेरे जानम मार लो मेरी गाण्ड, बहुत मजा आ रहा है ओह हां हां… डाल ले… मारो मेरी गाण्ड… कस के मारो पेल दो अपना पूरा लण्ड मेरी गाण्ड में…” 


और सच में मैं अब उसके हर धक्के का जवाब धक्के से दे रही थी। 



काफी देर चोदने के बाद अजय और सुनील साथ-साथ ही झड़े। 

[Image: anal-cum-tumblr-o7prwkyoe-A1rce5pwo1-540.gif]

किसी तरह चन्दा का सहारा लेकर मैं घर लौटी। 





[Image: frnds-kez.jpg]
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बसंती संग मस्ती 

[Image: diya-4734389cde4fde2603a8a019ecf53cf0.jpg]


अब तक 


 
चन्दा मुझे चिढ़ाते हुए बोली- “क्यों कैसा लगा चूत रस?” 


[Image: shalwar-shriya_actress-salwar-kameez.jpg]

 
मैं चुप रही।
 
पर चन्दा क्यों चुप रहती। वह बोली- 

“अरे अभी तो सिर्फ चूत रस चाटा है अभी तो और बहुत से रस का स्वाद चखना है…” 
 
जब सुनील ने उसे आँख तरेर कर मना किया तो वो बोली- 


“अरे गाण्ड मरवाने का मजा ये लेंगी, तो चूम चाटकर साफ कौन करेगा?” 
 
तभी सुनील ने मेरे चूतड़ों पर कस-कसकर कई दोहत्थड़ मारे, इत्ते जोर से की मेरे आँखों में आँसू आ गये। और उसने जोर से मेरी चोटी पकड़कर खींचा, और बोला-


[Image: spanking-J-tumblr_mzk0rqbSCY1ryino5o3_500.gif]


“सच-सच बोल… गाण्ड मराने में मज़ा आ रहा है की नहीं?”
 
“हाँ हाँ आ रहा है…” मुझे बोलना ही पड़ा। 
 
“तो फिर बोलती क्यों नहीं?” 
 
सच कहूं, मेरी समझ में नहीं आ रहा था। अब मुझे कभी-कभी दर्द में भी अजब मज़ा मिलता था, कल जब दिनेश ने चोदते समय कीचड़ में जमकर मेरी चूचियां रगड़ीं थीं और आज जब इसने मेरे चूतड़ो पर मारा- “हाँ हाँ मेरे जानम मार लो मेरी गाण्ड, बहुत मजा आ रहा है ओह्ह… हाँ हाँ… डाल ले… मारो मेरी गाण्ड… कसकर मारो पेल दो अपना पूरा लण्ड मेरी गाण्ड में…” और सच में मैं अब उसके हर धक्के का जवाब धक्के से दे रही थी। काफी देर चोदने के बाद अजय और सुनील साथ-साथ ही झड़े।
 
किसी तरह चन्दा का सहारा लेकर मैं घर लौटी।


[Image: salwar-kameez-006b5dd87fb4ce533f1fc9134e61679a.md.jpg]
एकदम चला नहीं जा रहा था , एक हाथ चंदा के कंधे पर रख कर , लेकिन तब भी जैसे एक कदम रखती , पिछवाड़े इतनी कस के टीस उठती ,


रोकते रोकते भी सिसकी निकल जाती , जोर जोर से पिछवाड़े परपरा रहा था , जब दोनों हिस्से  आपस में रगड़ते , लगता था जैसे वहां आग लगी है ,

और उससे भी बढकर आगे भी एकदम लसलस ,  ये अजय भी न बड़की कटोरी भर के थक्केदार मलाई , और आज तो शलवार सरकायी के निहुरा के जो  उसने लिया था , फिर मैंने भी शलवार सरका के पहन लिया , दोनों जाँघों के बीच अभी तक चपचप हो रहा था , फिर शलवार पर भी बड़ा धब्बा , खूब  दूर से दिखाई देर  रहा था , 

लेकिन पिछवाड़े तो जैसे अभी तक कोई मोटी लकड़ी घुसी हो , स्साला , उसकी बहन की बुर मारों , ये सुनील एक तो बांस ऐसा मोटा ऊपर से इतना रगड़ रगड़ के हचक हचक के , मैं चीख रही थी , रो रही थी , दुहाई दे रही थी पर वो स्साला एकदम चला नहीं जा रहा था ,

वो तो किसी तरह चंदा का सहारा, ... गाँव के सारे रास्ते गैल गुड्डी ने देख लिए थे , पर चंदा ने शार्ट कट के मारे मेंड़ मेंड़ हो कर, 

दो ओर ऊँचे ऊँचे गन्ने के खेत थे जिसमे  आदमी क्या हाथी छिप जाए , मेड़ बस जैसे खेतो के बीच होती है , सिर्फ एक चल पाए , वो भी एक पैर के पीछे पैर रखकर  बड़ी मुश्किल से , और रात भर जो जम के पानी बरसा था तो मेड़ के दोनों ओर खेतों में कहीं टखने भर पानी तो कहीं कीचड़ ,

मेड़ से जरा भी पैर सरका तो अरररररर धम्म , फिसल के कीचड़ में 

और वो मेरी सहेली से ज्यादा दुश्मन , चंदा पीछे से हँस हँस कर चिढ़ा रही थी ,

" अरे गोरी जरा सम्हल के चल ना, कहीं कीचड़ में गिर गयी तो सोलहवां सावन के साथ सोलवां फागुन भी हो जाएगा"

मैं उसको अच्छा सा जवाब देती की पिछवाड़े से जबरदस्त चिलख उठी, जान निकल गयी , रोकते रोकते भी चीख निकल गयी ,


क्या कहूं उस साले सुनील को , ये भाभी के जितने भाई हैं न सब सालो का इतना मोटा, ... और पिछवाड़े जब चीरता फाड़ता घुसा , ... अंदर जगह  छिल गया था , ... वो तो अजय ने मेरे गले तक अपना लंड पेल  रखा था वरना चीख चीख कर, ... मेरी हालत खराब थी , एक कदम नहीं रख पा रही थी , और चंदा ने जान बूझ कर ये मेंड़ वाला रास्ता चुना , उस का सहारा ले कर चल रही थी तब भी लेकिन अब जब पहले एक पैर  दूसरा ठीक उसी जगह  पर , इत्ती कस के पिछवाड़े रगड़  घिस हो रही थी , जितना दर्द गांड मरवाने में हुआ उससे कम अभी नहीं हो रहा था , 

 पतली सी मट्टी की मेंड़, दोनों ओर कीचड़ और गन्ने के ऊँचे ऊँचे खेत , मेंड़ पर चलती इठलाती मचलती दो किशोरियां , 


और अब गन्ने के खेत मेंड़ से एकदम सटे चिपके और उनकी पत्तियां  मेरी देह को सहलाती रगड़ती,

आमसान में एक बार फिर बादल घिर आये थे , एक तो ऊँचे ऊँचे गन्ने के खेतों के बीच छन छन कर थोड़ी सी धूप आ रही थी और अब काले काले बादलों के चक्कर में करीब करीब अँधेरा ऊपर से पीछे से चंदा की बातें, 

" हे गोरी ये हंस की चाल न चलो जल्दी जल्दी पैर बढ़ाओ, कहीं बारिश आ गयी तो , ... "

मैं सम्हल सम्हल चल कर रही थी शहर में कहाँ गन्ने के खेत और कहाँ मट्टी की मेंड़ ,

" हे अगर कहीं किसी मरद ने इसी गन्ने के खेत में खींच लिया न , तो दुबारा गाँड़ मार लेगा और अबकी तो मट्टी पर , ऐसी हचक के मारेगा , सब ठेले मट्टी हो जाएंगे।  " चंदा ने छेड़ा 

" तू मरवा न गाँड़ , मुझे नहीं मरवानी , स्साली जान निकली जा रही है तेरे चक्कर में ,... अब तो उस सुनील से मैं बोलूंगी भी नहीं ,... " दर्द से सिसकते मैं बोली 

" स्साली ,  ज्यादा नखड़ा न कर , दर्द दर्द ,... अरे तुझसे कम उमर के लौंडे सब उसी गन्ने के खेत में , बस निहुरा के नेकर सरका के,... " चंदा ने चिढ़ाया 

पर अब मुझे मौका मिल गया था जवाब देने का हँसते खिलखिलाते मैं चढ़ गयी उसके ऊपर ,

" अरे मेरी भैया की स्साली,  सही कह रही है  तू , मेरे भैया के सारे साले गांडू हैं , पैदायशी , खानदानी गांडू,... और उनकी बहना छिनार भाईचोद " 

पर चंदा से जीतना मुश्किल था , ... पलट के बोली ,

" अगली बार आना न तो अपने उस कुंवारे भैया को ले आना , अपने यार को , बस अगल बगल निहुरा के जैसे अभी सुनील ने तेरी गाँड़ मारी थी न , उसी तरह  हचक  हचक के मारी जाएगी , तेरी भी तेरे भैया की भी इसी गन्ने के खेत में , देखूंगी कौन ज्यादा चिल्लाता है , तू या तेरा भाई ,.. अरे अभी सुनील ने शुरुआत की है , ऐसे मोटे मोटे चूतड़ मटका के चलती है , गाँड़ तो तेरी मारी ही जानी है ये तो मेले में ही तय हो गया था , कितने लौंडे , मरद तेरा पिछवाड़ा देखकर अपने लंड मसल रहे  थे , सोच अगर दिनेश का एक फुटा घुसता तो , और लौंडे मरद सब मारेंगे मेरी सहेली की गाँड़ घबड़ा मत ,.... "

मेरा ध्यान उसकी बात सुनने में लगा था और 

अररररररर , मैं फिसली , 

मुझे ध्यान ही नहीं रहा एक और गन्ने के खेत ख़तम हो गएँ और करीब घुटने भर पानी में औरते रोपनी कर रही हैं , 

मेरे टखने तक कीचड़ में धंस गए थे। 

दूर दूर तक धानी चूनर की तरह पसरे खेत , रोपनी के धुनों की गूँज, ... और दर्जनों औरतें लड़कियां झुकी हुयी रोपनी करती, गाती 


मेरे फिसलते ही सब  एक साथ सुर में जैसे सुर मिला के खिलखिला के हंसने लगी, 


बात यही थी की भाभी के गाँव में सब औरतें लड़कियां सब का रिश्ता मुझसे मज़ाक का छेड़खानी का था , और गाँव में तो एकदम खुल के असली वाला, जो भाभी की रिश्ते से बहन लगती थीं , उनकी तो मैं ननद लगती ही थी, भाभी की भाभियों की तो डबल ननद ( और इसमें कामवालियां भी शामिल थी बल्कि वो और कस के रगड़ाई करती थीं )

एक हंस के बोली , पाहुन सावन में बहुत मस्त माल भेजे हैं अपने सालों के लिए , दिन रात बारिश होगी।  

तो दूसरी बोली तो का हम लोग छोड़ेंगे , साले के साथ सलहज और साली भी रस लूटेंगी, 

( मुझे चंपा भाभी की बात याद आयी , रोपनी वालियों के बारे में अड़ोस पड़ोस के गाँव से भी आती थीं हर साल , और रोपनी के साथ साथ गाँव के मरद भी अपना अपना बीज रोपने का , शायद ही कोई बचती हो जिसपे  रोपनी में ६-७ मर्द न चढ़ते हों , और एकाध जबरदस्त जोबन रूप रंग वाली  तो फिर तो , एक के बारे में बताया उन्होंने की वो खाली भाभी के ही खेत पर काम करती थी , और हर साल जबरदस्त मस्त चंपा भाभी के पति , खास तौर से दिन भले नागा हो जाए , हफ्ते में पांच छह बार , कंगना नाम था उसका , ... और शाम को वो आयी भी तो चम्पा भाभी ने इशारे से  बता दिया यही है , उमरिया की बारी लेकिन जबरदस्त  जोबन और मज़ाक में बंसती और गुलबिया के भी कान काटती थी ,... माँ की भी 'बहुत ख़ास',... मुझे देख के बोली , अरे सावन में तो अगवाड़े पिछवाड़े  दोनों  ओर से कीचड़ टपकना चाहिए , चला हमारे साथ , तोहरो रोपनी कराय देई )

और उसी की आवाज सुनाई पड़ी , जहाँ मेरा पैर धंसा था वहीँ बगल में रोपनी कर रही थी , चिढ़ाते बोली 

" लगता है हचक के गाँड़ मारी गयी है ननद रानी की कउनो मोट खूंटा धंसा है गंडिया में  बहुत दर्द हो रहा है का "

"   अरे काहे चिढ़ा रही हो , अइसन मस्त गाँड़  है तो मारी ही जायेगी , इसके भइया भेजे ही इसी लिए हैं ,... लेकिन दुनो जून , दिन में रात में  गाँड़ मरवाओ  तो दर्द कम  हो जाएगा , आज रात में फिर नंबर लगवा लेना "  एक बड़ी उम्र वाली बोली। 

" अरे यह गाँव में गाँड़ मारने वालों की कोई कमी नहीं है , हाँ कडुआ तेल लगा के निकला करो पिछवाड़े , वरना वो तो मौका पाते ही निहुरायँगे  ठोंक देंगे  लेकिन  गाँड़ मरवाने में फायदा भी  तो है , गाभिन होने का डर नहीं और पेट अलग साफ़,... "

कंगना फिर मुझे चिढ़ाने में जुट गयी थी , 

मेरी भी हंसी छूट गयी , कंगना ने मदद की मेरा पैर कीचड़ से निकलवाने में।  

लेकिन कुछ देर चलने के बाद भाभी का घर दिखने लगा था , बस पास ही था। 
 
चन्दा- “अब तो घर आ गया है तू निकल, मैं चलती हूँ…” 

आगे 




मुझे खेत के उस पार कोई लड़का सा दिखा 


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लेकिन अगले पल वो आँख से ओझल हो गया था, हाँ ये लग रहा था की ये पतला रास्ता खेत के उस पार की किसी बस्ती की ओर जा रहा था, जहां 8-10 कच्चे घर बने थे। मेरे कुछ जवाब देने के पहले ही चन्दा उस गन्ने के खेत में गायब थी। बस गन्नों के हल्के-हल्के हिलने से लग रहा था की वो उसी ओर जा रही थी, जिधर वो बस्ती थी। 

 
देखते-देखते चन्दा भी उन बड़े गन्ने के खेतों में खो गई और मैं घर के रास्ते पे। 


किसी तरह रुकते-रुकाते मैं घर के सामने पहुँच गई। दरवाजा बंद था। दो पल मैं सुस्ताई, गहरी सांस ली और दरवाजा खटखटाया, बस यह सोचते की भाभी लोग न हों। दरवाजा बंसती ने खोला। 
 
मैंने कुछ घबड़ाते, सम्हलते, सिमटते, घर के अंदर देखा। अंदर का पक्का हिस्सा जिधर चम्पा भाभी, भाभी की माँ रहती थी, बंद था। मैंने कुछ राहत की सांस ली और बाकी राहत बसंती की बात से मिल गई की भाभी और उनकी माँ रवी के यहाँ गई हैं और चम्पा भाभी, कामिनी भाभी के साथ उनके घर। बसंती को बोला गया है की मुझे खाना खिला के, थोड़ी देर बाद शाम होते-होते आम के बाग़ में ले आये, वहीं जहाँ हम लोग पिछली बार झूला झूलने गए थे। 
 
बंसती ने अंदर से दरवाजा बंद कर दिया था। 
 
आसमान में सावन भादों के धूप छाँह की लुका छिपी चल रही थी। आँगन के पेड़ के ठीक ऊपर किसी कटी पतंग की तरह एक घने काले बादल का टुकड़ा अटक गया था, जिसकी परछाईं में आँगन में थोड़ा-थोड़ा अँधेरा छाया था। आँगन में एक चटाई जमीन पे बिछी थी और बगल में एक कटोरी में कड़वा तेल रखा था, लगता था बसंती तेल मालिश कर रही थी। 
 
एक पल में मेरी आँखों ने आसमान में उड़ते बादलों की पांत से लेकर घर में पसरे सन्नाटे तक सब नाप लिया और ये भी अंदाज लगा लिया की घर में सिर्फ हम दोनों हैं और शाम तक कोई आने वाला भी नहीं है। तब तक बसंती ने जोर से मुझे अपनी बाँहों में भींच लिया।
 
उफ्फ… मैंने बसंती के बारे में पहले बताया था की नहीं, मेरा मतलब देह रूप के बारे में। चलिए अगर बताया होगा भी तो एक बार फिर से बता देती हूँ।


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बसंती उम्र में मेरी भाभी की समौरिया रही होगी या शायद एकाध साल बड़ी, 25-26 साल की और चम्पा भाभी से एकाध साल छोटी। लेकिन मजाक करने में दोनों का नंबर काटती थी। लम्बाई मेरे बराबर ही रही होगी, 5’5” या 5’6”, बहुत गोरी तो नहीं, लेकिन सांवली भी नहीं, जो गेंहुआ कहते हैं न बस वैसा। लेकिन देह थी उसकी खूब भरी पूरी लेकिन एक छटांक भी मांस फालतू नहीं, सब एकदम सही जगह पे।


 दीर्घ नितम्बा और कसी-कसी चोली से छलकते गदराये जोबन, पतली कमर और एकदम गठी-गठी देह, जैसे काम करने वालियों की होती है, भरी भरी पिंडलियां। 


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किसी तरह अपने दर्द को मैंने रोक रखा था। लेकिन जैसे ही बसंती ने अंकवार में पकड़कर दबाया, एक बार फिर से पिछवाड़े जोर से चिलख उठी, और बसंती समझ गई, बोली- 

“क्यों बिन्नो, लगता है पिछवाड़े जम के कुदाल चली है…” 


और जोर से उसके हाथ ने मेरे चूतड़ को दबोच लिया, एक उंगली सीधे कसी शलवार के बीच पिछवाड़े की दरार में घुस गई। 
 
और अबकी चिलख जो उठी तो मैं चीख नहीं दबा पायी। 
 
“अरे थोड़ी देर लेट जाओ, कुछ देर में दर्द कम हो जाएगा। पहली बार मरवाने में होता है…” 


खिलखिलाते हुए बसंती बोली। 


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मैं जैसे ही चटाई पर बैठी, एक बार फिर जैसे ही मेरे नितम्ब फर्श पे लगे, जोर से फिर दर्द की लहर उठी। 
 
“अरे तुम तो एकदमै नौसिखिया हो, पेट के बल लेटो, तनी एहपर कुछ देर तक कौनो जोर मत पड़े दो, आराम मिल जाएगा…” 
 
और मैं चट्ट से पट हो गई। सच में दुखते पिछवाड़े को आराम मिल गया। बसंती ने एक हाथ मेरे पेट के नीचे रखा और जब तक मैं समझूँ-समझूँ, मेरी शलवार का नाड़ा खुल चुका था और दोनों हाथों से उसने शलवार सरका के घुटने तक। 
 
मैंने कुछ ना-नुकुर किया, लेकिन हम दोनों जानते थे उसमें कोई दम नहीं थी। और कोई पहली बार तो मेरे कपड़े बसंती ने उठाये नहीं, सुबह-सुबह मेहंदी लगाते हुए कुर्ता उठाकर मेरे जोबन पे, चम्पा भाभी के सामने और उसके पहले जब वो मुझे उठाने गई थी, सीधे मेरी स्कर्ट के अंदर हाथ डालकर अच्छी तरह मेरी चुनमुनिया को रगड़ा मसला था। 



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कुछ देर में कुरता भी काफी ऊपर सरक चुका था लेकिन एक बात बसंती की सही थी, जब ठंडी हवा मेरे खुले चूतड़ों पे पड़ी तो धीरे-धीरे दर्द उड़ने लगा। बसंती की हथेली मेरे भरे-भरे गोरे गुदाज चूतड़ों को सहला रही थी दबोच रही थी। 
 
और मुझे न जाने कैसा-कैसा लग रहा था। बस मस्ती से आँखें मुंदी जा रही थी, लग रहा था मैं बिना पंखो के बादलों के बीच उड़ रही हूँ। दर्द कहीं कपूर की तरह उड़ गया था। बसंती की उँगलियां बस… उईईईईईई, मैं जोर से चीखी- 
 
“नहीं भौजी उधर नहीं…” 

[Image: ass-fingering-10761840.gif]

दर्द से कराहते मैं बोली। 
 
बसंती ने दोनों अंगूठे से पिछवाड़े का छेद फैलाकर पूरी ताकत से मंझली उंगली ठेल दी थी।
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मैं जोर से चीखी- 

 
“नहीं भौजी उधर नहीं…” 


दर्द से कराहते मैं बोली। 


[Image: sixteen-assfingering1.jpg]

 
बसंती ने दोनों अंगूठे से पिछवाड़े का छेद फैलाकर पूरी ताकत से मंझली उंगली ठेल दी थी। उसकी कलाई के पूरे जोर के बावजूद मुश्किल से पहला पोर घुस पाया था। बसंती बोली- 
 
“बहुत कसी है अभी…” 

और फिर उंगली निकाल के जब तक मैं सम्हलूं सीधे मेरे मुँह में, और कहा- 
 
“चल तू मना कर रही थी तो उधर नहीं तो इधर, ज़रा कस-कसकर चूसो अबकी पूरी उंगली घुसाऊँगी…” 
 
और मैं जोर-जोर से चूसने लगी। अभी कुछ देर पहले ही तो अजय का इत्ता मोटा लम्बा चूसा था, अचानक याद आया की ये उंगली कहाँ से निकली है अभी… लेकिन बंसती से पार पाना आसान है क्या” 
 
मैं गों गों करती रही, लेकिन उसने जड़ तक उंगली ठूंस दी। और जब निकाली तो फिर जड़ तक सीधे गाण्ड में, और अबकी मैं और जोर से चीखी, लेकिन बंसती बोली- 


“तेरी गाण्ड मारने वाले ने ठीक से नहीं मारी, रहम दिखा दी…” 


और फिर दूसरी उंगली भी घुसाने की कोशिश करने लगी।
 
बसंती भौजी की कोशिश और नाकमयाब हो, ऐसा हो नहीं सकता। चाहे लाख चीख चिल्लाहट मचे, और कुछ ही देर में बसंती की एक नहीं दो उँगलियां मेरी कसी गाण्ड के अंदर, पूरी नहीं सिर्फ दो पोर। जितना सुनील के मोटा सुपाड़ा पेलने पे दर्द हुआ था उससे कम नहीं हुआ, और मैं चीखी भी उतनी ही। 


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लेकिन बसंती पे कुछ फरक न पड़ा, वो गरियाती रही, जिसने मेरी गाण्ड मारी उसको- 
 
“अरे लागत है बहुत हल्के-हल्के गाण्ड मारी है उसने तेरी, हचक-हचक के जबतक लौड़ा गाण्ड में न ठेले…”
 
बात उसकी सही थी, शुरू में तो मेरे चीखने चिल्लाने से सुनील ने आधे लण्ड से ही, 

वो तो साल्ली छिनार चन्दा, उसने गाली देकर, जोश दिला के सुनील का पूरा लण्ड पेलवाया। 
 
“बिना बेरहमी और जबरदस्ती के कौनो क गाण्ड पहली बार नहीं मारी जा सकती। और तुम्हारी ऐसी मस्त गाण्ड बनी ही मारने के लिए है…” 



बसंती गोल-गोल दोनों उंगलियां घुमा रही थी और बोले जा रही थी- 
 
“अरे गाण्ड मरवावे का असल मजा तो तब है कि तू खुदै गाण्ड फैलाकर मोटे खूंटे पे बैठ जाओ। 


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लेकिन ई तब होई जब हचक-हचक के कौनो मर्दन से, तब असल में गाण्ड मरौवल का मजा आई। देखा चोदे और गाण्ड मारे में बहुत फरक है, चोदे के समय धक्के पे धक्का, जोर-जोर से तोहार जइसन कच्ची कली क चूत फटी। लेकिन गाण्ड मारे में एक बार डालकर पूरी ताकत से ठेलना पड़ता है। जब तक गाण्ड क छल्ला न पार हो जाय…” 
 
बसंती की बात में दम था। 
 
लेकिन तब तक उसकी दोनों उँगलियां मेरी गाण्ड के छल्ले को पार कर चुकी थीं और उसने कैंची की तरह उसे फैला दिया, तो गाण्ड का छल्ला उतना फैल गया जितना सुनील के मोटे लण्ड ने भी नहीं फैलाया था। और यही नहीं उन फैली खुली उँगलियों को वो धीरे-धीरे आगे पीछे कर रही थी। 
 
और मैं जोर-जोर से चीख रही थी। 
 
लेकिन बसंती सिर्फ दर्द देना नहीं जानती थी बल्की मजे देना भी, और मौके का फायदा उठाना भी। जब मैं दर्द से दुहरी हो रही थी, उसने मेरा कुर्ता कंधे तक उठा दिया और अब मेरे गोल-गोल गुदाज उभार भी खुले हुए थे। 




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एक हाथ उन खुले उभारों को कभी पकड़ता, कभी सहलाता, कभी दबाता। कभी निपल जोर से पकड़कर वो पुल कर देती। 
 
और कब दर्द मजे में बदल गया मुझे पता ही नहीं चला। साथ में नीचे की मंजिल पे अब दुहरा हमला हो रहा था। एक हाथ की हथेली मेरी चूत पे रगड़-घिस्स कर रही थी और दूसरे हाथ का हमला मेरे पिछवाड़े बदस्तूर जारी था। गाण्ड में घुसी अंगुलिया गोल-गोल घूम रही थीं, खरोंच रही थीं और जब वो वहां से निकली तो सीधे नीचे वाले मुँह से ऊपर वाले मुँह में… और हलक तक। 
 
बसंती से कौन जीत सका है आज तक। और बात बदलने में भी और केयर करने दोनों में बसंती नंबर एक। वो बोली- 

“चलो अब थोड़ा मालिश कर दूँ, सारा दर्द एकदम गायब हो जाएगा। फिर खाना…”
 
बसंती दर्द देने में भी माहिर थी और दर्द दूर करने में, लेकिन मजा दोनों हालत में आता था। मेरी टाइट शलवार अब आलमोस्ट उतर चुकी थी और कुरता बस कंधों तक सिमटा पड़ा था। मैं पेट के बल लेटी थी, मेरे खुले गोरे गदराये उरोज चटाई पर दबे, और मस्त नितम्ब उभरे हुए। बसंती ने कहा- 

“हे सर पे कड़ा-कड़ा लग रहा है, ये लगा लो…”
 
बसंती ने अपना ब्लाउज उतार के मेरे सर के नीचे रख दिया और तेल लगी उसकी उँगलियां मेरे कंधे दबाने लगी और थोड़ी ही देर में उन उँगलियों ने मेरी देह की सारी थकान, सब दर्द, जिस तरह सुनील और अजय ने मिलकर मुझे रगड़ा था, सब गायब। बस हल्की-हल्की नींद सी मेरी आँखों में छा रही थी। 


लेकिन मुझे लग रहा था जल्द ही बसंती की उँगलियां फिर एक बार, वहीं पहुँच जाएंगी… और फिर मस्ती में मेरी देह… लेकिन बसंती तड़पाने और तरसाने में भी उतनी ही माहिर थी जितनी जवानी की आग लगाने में। 
 
कन्धों के बाद उसके दोनों हाथ मेरी पीठ को मींजते-मींजते जब कूल्हों तक आये तो मुझे लगा की अब, अब… लेकिन बसंती तो बसंती, उसने दोनों कूल्हों को जोर-जोर से दबाया, मेरे नितम्बों का सारा दर्द निकाल दिया और यहाँ तक की जब उसने जोर से दोनों हाथों से दोनों नितम्बों को फैलाकर मेरे पिछवाड़े के छेद को पूरी ताकत से फैलाया, मुझे लगा अब फिर से… 
 
लेकिन नहीं, उसके हाथ अब सीधे सरक के मेरी जाँघों और टखनों तक पहुँच गए थे। मेरे पैरों का सारा दर्द उसकी उँगलियों ने जैसे चूस लिया था। और ‘वो वाली’ फीलिंग मुझे उसकी उँगलियों ने नहीं, बल्की उसके गदराये भरे-भरे ठोस उरोजों ने दी जब हल्के से उसने, अपने उभारों को मेरी पान ऐसी चिकनी पीठ पे हल्के से सहलाया और, धीरे-धीरे नीचे की ओर। 
एक बार फिर उसकी उँगलिया मेरे भरे-भरे चूतड़ों पे थीं। और अबकी वो जोर-जोर से उसे दबा रही थी, मसल रही थी, कोई मर्द क्या मसलेगा ऐसे, और साथ में उसके जोबन मेरी पीठ पे। 


एक बार उसने फिर गाण्ड के छेद को, और अबकी पहले से भी जोर से… 


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जब अच्छी तरह छेद खुल गया तो सीधे कटोरी से, टप-टप-टप, कड़वे तेल की बूँदें, एक के बाद एक। एक चौथाई कटोरी तो मेरी गाण्ड में उसने डाल दिया होगा। 
 
कड़वे तेल का असर होना तुरंत शुरू हो गया, छरछराना लेकिन मुझे मालूम था मुझे क्या करना है और मैंने जोर से गाण्ड भींच ली। 

लेकिन असली असर था, बंसती की उँगलियों का। जैसे ही मैंने गाण्ड का छेद भींचा, बसंती की तेल से सनी गदोरी सीधे मेरी चुनमुनिया पर, जिसके अंदर अभी भी अजय की गाढ़ी-गाढ़ी रसीली मलाई बची थी। और हल्के से सहलाने के साथ बसंती की अनुभवी हथेली ने मेरी चिकनी चमेली को धीमे-धीमे भींचना शुरू कर दिया। 
 
मस्ती से मेरी आँखें भिंच गयीं, कड़वे तेल का छरछराना परपराना सब मैं भूल गई। और जैसे चूत की रगड़ाई काफी नहीं थी, बसंती के दूसरे हाथ ने हल्के से मेरी चूची को पकड़ा और दबाना, रगड़ना, मसलना सब कुछ चालू हो गया। 
 
असर ये हुआ की गाण्ड के अंदर का छरछराना परपराना मैं सब भूल गई। पांच दस मिनट में ही मस्ती में चूर। 
 
लेकिन कड़वा तेल अंदर अपना काम कर रहा था, खास तौर से गाण्ड के छल्ले पर, जहाँ सुनील के मोटे लण्ड ने उसे फैलाकर, जब वह रगड़ते दरेरते घुसता था, लगता था अंदर कहीं-कहीं छिल भी गया था। और जब मुझे लगा कि मैं एक बार फिर झड़ने के कगार पे हूँ, चूत की पुत्तियां अपने आप जोर-जोर से भिंच रही थीं, लग रहा था अब कि तब। 
 
तब तक बसंती ने अपने दोनों हाथ हटा लिए और मेरी पतली कमर पकड़कर मुझे फिर डागी पोज में कर दिया। घुटने दोनों मुड़े हुए और चटाई पर, चूतड़ हवा में, और कहा- 


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“हाँ बस ऐसे ही, जइसन गाण्ड मरवावे बदे गंड़िया उठाये रहलूं न, बस एकदम वैसे…” और वो गायब। 


और लौटी तो उसके हाथ में एक शीशी थी, और उसमें कुछ सफेद मलाई जैसा।
 
बिना कुछ कहे पिछवाड़े का छेद उसने फैलाया और सीधे वो शीशी से मेरी गाण्ड में, और कहा-
 
 “अरे ई कामिनी भाभी क स्पेशल क्रीम है, खास गाण्ड फड़वाने के बाद के लिए बस एका घोंट लो, और दस मिनट अइसे गाण्ड उठाय के रहो, कुल दर्द गायब। और तब तक हम खाना ले आते हैं…” 
 
बंसती की बात एकदम सही थी, एकदम ठंडा, पूरा अंदर तक। और कुछ ही देर में सारी चिलख, दर्द, परपराना सब गायब। मैं पिछवाड़े का छेद भींचे, एकदम चुपचाप वैसे ही पेट के बल लेटी रही। 
 
ये तो मुझे बहुत बाद में पता चला की कामिनी भाभी की वो क्रीम, दर्द तो एकदम गायब कर देती थी, अंदर कुछ चोट खरोंच हो तो उसके लिए भी एंटी-सेप्टिक का काम करती थी, लेकिन साथ में दो काम और करती थी। एक तो वो गाण्ड को फिर से पहले जैसा ही टाइट कर देती थी, जैसे उसके अंदर कुछ गया ही न हो… एकदम कसी कच्ची कली की तरह। लेकिन दूसरी चीज और खतरनाक थी, उसमें कुछ ऐसा पड़ा था की कुछ देर बाद ही गाण्ड में बड़े-बड़े चींटे काटने लगते थे, और बस मन करता था कि कोई हचक के मोटा, लम्बा पूरा अंदर तक पेल दे।
 
और जब बसंती दस की जगह पंद्रह मिनट में लौटी, हाथ में थाली लिए तो, बिना ब्लाउज के भी साड़ी को उसने अपने उभारों पे ऐसे लपेट के रखा था…



[Image: Boobs-jethani-Champa-...18010724_2338528...4516_n.jpg]


 बस थोड़ा-थोड़ा दिखता लेकिन हाँ कटाव उभार सब महसूस होता था। और मेरे बगल में बैठ गयीं, धम्म से। 
 
शरारत में मैं कौन बसंती भौजी से कम थी। उसके दोनों गरमागरम जलेबी की तरह रसभरे उभार, साड़ी से झलक रहे थे, और मैंने एक झटके में उसकी साड़ी खींच दी, और कहा- 


“काहे भौजी, का छिपायी हो, उहौ आपन ननदी से…” 



और दोनों उभार छलक कर बाहर, जितने बड़े-बड़े उतने ही कड़े-कड़े और ऊपर से दोनों घुन्डियां, एकदम खड़ी। 
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***** *****मस्ती ही मस्ती


[Image: Teej-23621592_1977780582438238_185923757...9260_n.jpg]



मेरा एक हाथ झटाक से सीधे वहीं। 


लेकिन बजाय बुरा मानने के बसंती भौजी ने एक लाइफ टाइम आफर दिया, अपनी बुर दिखाने का-


“अरे तोहार चुनमुनिया तो हवा खिलाने के लिए खोल दिए हैं, तुम कहोगी की भौजी आपन ना दिखाइन…” 

लेकिन जैसे कहते हैं न टर्म्स एंड कंडीशंस अप्लाई, बस वही बात… बसंती भौजी ने मेरी आँखें बंद करा दीं और बोला कि मैं उंगली से देखूं। 
 
मैं मान गई। धीरे-धीरे उनका हाथ मुझे उनकी जांघ की सीढ़ी से चढ़ाते हुए, मेरे हाथ की उँगलियां, खूब चिकनी एकदम मक्खन, मांसल लेकिन गठी… धीमे-धीमे मेरी उँगलियां चढ़ती गयीं, और फिर झांटों का झुरमुट और वहीं बसंती भाभी की उंगली ने मेरा हाथ छोड़ दिया। 
 
एक कौर खाना सीधे मेरे मुँह में। उनके हाथ से दाल रोटी भी इतनी मीठी लग रही थी की जैसे पूड़ी हलवा हो। और मेरी उंगली, अब इतनी भोली भी नहीं थी। 
[Image: 04384c6ea818fcaabac.md.jpg]


झांटों के बगीचे में उसने रास्ते ढूँढ़ लिया, और फिर तो, बसंती भौजी की बुर की पुत्तियां, खूब उभरीं-उभरीं कुछ देर तक तो अंगूठा और तर्जनी दबा-दबाकर उनका स्वाद ले रहा था, और फिर गचाक्क… गप से मेरी उंगली उनके नीचे वाले मुँह में घुस गई और उनके निचले होंठों ने जोर से उसे दबोच लिया। 
 
जैसे मैंने बंसती भाभी की मेरे मुँह में कौर खिलाते उंगली को शरारत से दांत से दबोच लिया और हल्के से काट कर पूछा- 
“भौजी, आपने खाया?” 
 
“तूहूँ न, अरे हमार प्यारी-प्यारी ननदिया भूखी रहे और हम खाय लेब…” बसंती ने बहुत प्यार से जवाब दिया। 
 
और मैं सब कुछ हार गई, गच्च से पूरी उंगली मैंने बसंती भौजी के निचले मुँह में जड़ तक ठेल दी और शरारत से बोली- 

[Image: fingering-a-16977090.gif]


“झूठ भौजी, मुझे मालूम है भौजी तू का का गपागप खात हो, घोंटत हो और आपन छोटकी ननदिया क ना पूछी हो…” 
 
“अरे अब आगे आगे देखना, अबहीं त तू घोंटब शुरू कइली हौ, एक से एक लम्बा, मोट-मोट घोंटाउब न, एक साथ दो-दो, तीन-तीन…” 

[Image: boobs-jethani-champa-15095573_1325382605...3502_n.jpg]


बंसती भौजी ने अपनी बात की ताकीद करते हुये साथ में अपनी उंगली मेरी कच्ची सहेली के मुँह में ठेल दी, और फिर तो घचाघच-घचाघच, सटासट-सटासट। 
 
और जवाब मेरे ऊपर वाले मुँह ने दिया। एक हाथ से मैंने भौजी का सर पकड़ा और फिर मेरे होंठ उनके होंठों के ऊपर और मेरा आधा खाया, कुचला सीधे मेरी जीभ के साथ उनके मुँह में, और कुछ देर तक उनकी जीभ ने मेरी जीभ के साथ चल कबड्डी खेला, फिर क्या कोई लड़की लण्ड चूसेगी जैसे वो मेरी जीभ चूस रही थीं। उसके बाद तो सब कौर कभी उनके मुँह से मेरे मुँह में, और कभी मेरे मुँह में और साथ में हम दोनों खुलकर एक दूसरे के होंठ का, मुँह का रस ले रहे थे। 
 
नीचे बसंती भौजी की बुर उसी स्वाद के साथ मेरी उंगली भींच रही थी। और अब वो खुलकर बखान कर रही थीं गाँव के मर्दों का किसका कित्ता बड़ा और कित्ता मोटा है कौन कित्ती देर तक चोद सकता है। हाँ, एक बात सब में थी की सबके सब मेरे जुबना के दीवाने हैं। 
 
बात बदलने के लिए मैंने कमान अपने हाथ में ले ली और शिकायत की- 


“भौजी हमारे पिछवाड़े तो… हमार तो जान निकल गई और आप कह रही थीं की ठीक से नहीं मारा…” 


[Image: Sensual-Erotic-Pictures-Pack-242---Nudit...ded-27.jpg]

 
“एकदम सही कह रह थी मैं, अरे असली पहचान ई है की अगर हचक-हचक के गाण्ड मारी जायेगी न तुहार, तो बस खाली कलाई के जोर से एक बार में दो उँगरी सटाक से घोंट लेबू… और घबड़ा जिन, ई कामिनी भाभी के मर्द, जउने दिन उनके नीचे आओगी न त बस, तब पता चलेगा गाण्ड मरवाई क असली मजा…” 
 
बसंती ने हाल खुलासा बयान किया, और मेरा ध्यान चम्पा भाभी की बात ओर चला गया, कल इसी आँगन में तो, ऊ कह रही थीं यही बात। 


मेले में उन्होंने देखा था मुझे, और तभी से… एकदम बजरबट्टू। 
 
उसके बाद जो कामिनी भाभी रतजगा में आई और उन्होंने मुझे अच्छी तरह ‘खुलकर’ देखा, तो चम्पा भाभी को बताया। और चम्पा भाभी भी बोलीं उनसे- 


“अरे अगर गाँव में सावन बरस रहा है तो उनसे कह दो न उहै बेचारे काहें प्यासे रहें। 

छक के आपन पियास बुझावें न…” 
 
मेरा ध्यान फिर बसंती की बात की ओर गया। आज जब कामिनी भाभी आई थीं तो फिर वही बात कर रही थीं। 

उसके बाद तो भौजी ने जो बात बताई कामिनी भाभी के पति के बारे में की मेरे कान खड़े हो गए। 
 
कामिनी भाभी के पति शादी के पहले शुद्ध बालक भोगी थे। 

[Image: MIL-seema-singh-best-pics.jpg]

लेकिन शादी के बाद कामिनी भाभी ने उनकी हालत सुधार दी, 
पर अभी भी हफ्ते दस दिन में अगर कहीं कोई कमसिन नमकीन लौंडा दिख गया तो वो बिना उसका शिकार किये नहीं मानते और कामिनी भाभी भी बुरा नहीं मानती, बल्की उन्हें अगर कहीं कोई शिकार दिख गया तो उसे खुद पटा करके… 

और उनका भी फायदा हो जाता है क्योंकी उस रात वो दुगुनी ताकत से। 


फिर उसके साथ कामिनी भाभी को भी तो कच्ची कलियों का शौक है, लड़के लड़की में भेद वो भी नहीं करतीं। फिर खिलखिलाते हुए बसंती भौजी ने पूछा- 


“जानती हो कामिनी का पिछवाड़ा इतना चौड़ा काहे है?” 

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बात बसंती भौजी की एकदम सही थी, जवाब भी उन्होंने दिया- 

“अरे दूसरे तीसरे उनके मर्द पिछवाड़े का बाजा जरूर बजाते हैं। और ओह दिन तो पूरे गाँव में मालूम हो जाता है, आधे दिन ऊ उठ नहीं पाती। उनका लण्ड एक तो ऐसे पूरा मूसल है 
और जउन मर्दन को लौंडेबाजी की आदत होती है न उनका वैसे ही देर में, 
लेकिन… ऊ तो गाण्ड में तीस-चालीस मिनट से पहले नहीं… उहो पूरी ताकत से तूफान मेल चलाते हैं…” 


साथ-साथ भौजी की उंगली भी मेरी ओखली में चल रही थी।
 
और मस्ती से मेरी हालत ख़राब हो रही थी। लेकिन मुझे विश्वास नहीं हुआ और मैं बोल पड़ी- 
 
“सच में भौजी, तीस-चालीस मिनट… बिस्वास नहीं होता…” 
 
बसंती जोर से खिलखिलाई और कसकर मेरे खड़े निपल उमेठ के बोली- 

“पूछें नाउ ठाकुर केतना बाल। कहेन मालिक अगवे गिरी। 
अरे बहुते जल्द, तुहूं घोंटबू उनकर, तो अगले दिन हम पूछब न तोसे, कहो कैसे लगा। 
अगवाड़ा पिछवाड़ा दोनों एक हो जाई…” 
 
और हम दोनों एक साथ हँस पड़े। 


मेरी उंगली भी भौजी की बुर में बुरी तरह अंदर-बाहर हो रही थी।


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गुलबिया और उसका मर्द, 


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और हम दोनों एक साथ हँस पड़े। मेरी उंगली भी भौजी की बुर में बुरी तरह अंदर-बाहर हो रही थी।

 

बसंती ने बात बदली और उसका जिक्र छेड़ दिया, जो हम लोगों के लिए बाहर से पानी भरती थी, गुलबिया और उसका मर्द, बाहर कुंवे से पानी निकालता था। 

उसको तो मैं अच्छी तरह जानती थी, बसंती की उम्र की ही होगी, एक-दो साल छोटी और मजाक में छेड़ने में भी एकदम वैसी। 


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“कभी कुंवे के पानी से नहायी हो यहाँ?” बसंती ने पूछा। 

 

“हाँ दो तीन बार, जब नल नहीं आ रहा था, खूब ठंडा और ताज़ा…” मैंने बोला। 

 

“और जो कुंए का पानी निकालता था, उसके पानी से?”

 

 घच्च से दूसरी उंगली भी मेरी पनीली चूत में ठेलते, आँख नचाकर उसने पूछा। 


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“धत्त…” खिस्स से हँस दी मैं। 

 

“अरे ऊ तो कामनी के मर्द से भी दो चार आगे है…” 

 

ये तो मुझे पूरा यकीन था की कामिनी भाभी के पति का बंसती कई बार घोंट चुकी है, लेकिन ये भी…” 

 

और जैसे मेरे सवाल को भांपते बसंती खिलखिला के हँसी, बोली- 

 

“अरे मेरा देवर लगता है…” 



और फिर पूरा हाल खुलासा बताया।

 

“सिर्फ लम्बाई या मोटाई में ही नहीं वो चुदाई में भी कामिनी के मर्द से 22 है। चूत चोदने में तो बस ई सोचो की अच्छी-अच्छी चुदी चुदाई, कई-कई बच्चों की महतारी, भोसड़ी-वालियां पशीना छोड़ देती हैं उसकी चुदाई में। ऐसा रगड़ चोदता है न की बस… लेकिन अगर ऊ गाण्ड मारने पे आ गया न तो बस… चाहे जितना रोओ, चिल्लाओ, गाण्ड फाड़ के रख देगा।


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 अगर तुम दो-चार बार मरवा लो न उससे, फिर सटासट गपागप गाण्ड में लण्ड घोंटोगी, खुदै गाण्ड फैलाकर लण्ड पे बैठ जाओगी…” 

 

मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, डर भी लग रहा था, मन भी कर रहा था। कुछ बसंती की बातें कुछ उसकी उँगलियों का असर जो मेरी चूत में तूफान मचा रही थीं। 

 

बसंती मुश्कुराकर शरारत से बोली- 

“अरे अई मतलब नहीं की गाण्ड मरावे में दरद नहीं होगा। अरे जब गाण्ड के छल्ले में दरेरता, रगड़ता, घिसटता, फाड़ता घुसेगा न… जो दरद होगा वही तो असली मजा है, मारने वाले के लिए भी और मरवाने वाली के लिये भी…” 

 

बात बसंती भौजी की एकदम सही थी, जब सुनील का मोटा सुपाड़ा दरेरता हुआ घुसा था, एकदम जैसे किसी ने गाण्ड में मुट्ठी भर लाल मिर्च झोंक दी हो, आँख से पानी निकल आया था। 

लेकिन याद करके फिर से गाण्ड सिकुड़ने फूलने लगती थी। 

 

बसंती भौजी ने मेरे चूत के पानी से डूबी अपनी उंगली निकाली और मेरी दुबदुबाती गाण्ड के छेद पे मसल दी और हँसकर, मसलकर बोलीं-


“क्यों मन कर रहा है उसका लेने का? 

लेकिन भरौटी में जाना पड़ेगा उसके घर। अरे तोहार भौजी हूँ, दिलवा दूंगी, खुद ले चलूंगी। हाँ जाने के पहले गाण्ड में पाव भर कड़वा तेल डालकर जाना…” 

 

मैं कुछ बोलती, जवाब देती उसके पहले ही भौजी ने एक वार्निंग भी दे दी- 

 
“लेकिन भरौटी के लौंडन से बच के रहना…”
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भरौटी के ....




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“लेकिन भरौटी के लौंडन से बच के रहना…” 

 
“काहें भौजी?” 


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अपनी बड़ी-बड़ी गोल आँखें नचाते मैंने पूछा। 
 
“अरे हमार छिनार ननद रानी, एक तो उन साल्लों का, मनई क ना, गदहन क लण्ड होला। 
बित्ता भर से कम तो कौनो क ना होई। 


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फिर अगर कहीं तोहार एक माल उनके पकड़ में आ गया तो बस… यू इहां तक की गन्ना और अरहर क खेत भी नहीं खोजते, उंहीं सीधे मेड़ के नीचे, सरपत के पीछे, कहीं भी चढ़ जाएंगे। 

और फिर एस रगड़-रगड़ के चोदिहें न… मिटटी का ढेला, गाण्ड से रगड़-रगड़ के टूट न जाय तब तक, और ऐसी गंदी-गंदी गाली देते हैं और चोदवाने वाली से दिलवाते हैं की बस कान में उंगली डाल लो। 

और फिर खाली चोद के छोड़ने वाली नहीं, उंहीं निहुरा के कुतिया बनाकर गाण्ड भी मारेंगे, कम से कम दो-तीन बार। 


[Image: anal-doggy-2.gif]


और अकेले नहीं दो-तीन लौंडे मिल जाते है, और एक गाण्ड में तो दूसरा बुर में, कौनो दो-तीन बार से कम नहीं चोदता। जितना रोओ, चीखो चिल्लाओ, कौनो बचाने वाला नहीं। 


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और अगर कहीं भरौटी क मेहरारुन देख लिहिन तो बजाय बचावे के ऊ और लौंडन क ललकरिहें…” 
 
और उसके साथ जितनी जोर-जोर से बंसती भौजी की दो उँगलियां मेरी चूत चोद रही थी की जैसे कोई लण्ड ही चूत मंथन कर रहा हो। 
 
मैं सोच रही थी की बंसती मना कर रही है या मुझे उकसा रही है उन लौंडो के साथ? 
 
मेरी उंगली भी बसंती की बुर में गोल-गोल घूम रही थी। अच्छी तरह पनिया गई थी। मीठा शीरा निकलना शुरू हो गया था, खूब गाढ़ा लसलसा। 


मैं तो पहले अजय, सुनील, रवि और दिनेश के साथ ही… लेकिन यहाँ तो बसंती ने पूरी लाइन लगा दी और वो भी एक से एक। 
 
जोर से मेरी क्लिट रगड़ते बसंती बोली- 


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“अरे देखना बिन्नो, लण्ड की लाइन लगा दूंगी। आखिर तोहार भौजी हूँ, एक जाइ त दू गो घुसे बदे तैयार रहिहें, एक से एक मोटे लम्बे, जब घर लौटबू न रोज त हम चेक करब, आगे पीछे दूनों ओर से सड़का टप-टप टपकत रही…” 
 
भौजी आपके मुँह में घी शक्कर…”
 
 मारे ख़ुशी के भौजी के सीधे होंठों पे चूमती और जोर से उनकी बड़ी-बड़ी चूची मीजती मैं बोली। 

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खाना तो कब का ख़तम हो गया था अब तो बस चुम्मा चाटी रगड़न मसलन चल रही थी। हम दोनों झड़ने के कगार पर ही थीं। 



" अरे एक चीज तो रहिये गयी, कामिनी भाभी का बताया असली टोटका, ओकरे बाद तो तू गाँव क कुल मरदन क लौंड़ा हँसत खेलत गाँड़ में घोंट लेबू , सटासट , सटासट।  "

और मैं जब तक रोकूं, टोकूं तो बंसती किचेन में और थोड़ी देर में बाहर और उसे देख कर मेरा दिल दहल गया, 

खूब बड़ा सा कटोरा, और जब बसंती या माँ ज्यादा मोहाती थीं तो वो कटोरा भर दूध मुझे पूरा पीना पड़ता था , 

आज दूध में डेढ़ दो इंच मोटी  साढ़ी ( मलाई ) पड़ी थी , 

मुझे धक्का देके बंसती ने चटाई पर गिरा दिया और बोली घबड़ा जिन अबहीं तुमको दूध नहीं पिला रही हूँ , लेकिन ज़रा एक बार फिर से पिछवाड़े का हाल चाल ले लूँ , 

अब तक आधी कटोरी कड़ुवा तेल तो वो मेरे पिछवाड़े पिला ही चुकी थी।  

गच्चाक , एक झटके में अबकी पूरी मंझली ऊँगली गाँड़ में पेल दी , और जैसे सुनील ने मेरी गाँड़ मारी थी , वैसे ही हचक के सटाक सटाक , बंसती ऊँगली बार बार पेलती, निकालती , फिर पूरी ताकत से गचाक से पेल देती बहुत ताकत थी बसंती भौजी में , 

मैं चीख रही थी लेकिन किसी ननद के चीखने पर कोई भौजाई छोड़ती है जो बसंती भौजी छोड़तीं, 

और अबकी दूसरी ऊँगली भी , मेरी जान निकल गयी जोर से चीखी मैं पर बसंती बिना जड़ तक पेले बिना कहाँ छोड़ने वाली थी , और फिर दोनों उँगलियों को चम्मच  की तरह मोड़ कर , गाँड़ के अंदर करोच करोच कर, गोल गोल घुमा घुमा ,

और फिर दोनों उँगलियाँ सीधे दूध के कटोरे में ,

मेरा तो दिल दहल गया , लेकिन ननद के दिल दहलने से भाभी पर क्या असर पड़ता है ,

दो चार मिनट तक वो ऊँगली दोनों दूध में घुमाती रहीं , फिर जब साढ़ी अच्छी तरह ऊँगली में लिपट गयी तो सीधे दोनों ऊँगली साढ़ी से लिपटी फिर मेरे पिछवाड़े , धीमे धीमे अंदर ,

और अबकी बसंती अंदर बाहर नहीं कर रही थी , बस धीमे धीमे सरका रही थी , जब पूरी साढ़ी लगी ऊँगली मेरी गाँड़ में जड़ तक तो बसंती ने मुझसे बोला 

" ननद रानी अब कस के आपन गाँड़ एहि ऊँगली पर भींचो, सोचो तोहरे यार का लंड है , ... मेरे मन में सुनील का का लंड ही आया और वही सोच के मैं बसंती की ऊँगली ,... 

हाँ ऐसे थोड़ी और ताकत से भींचो , दबा के झाड़ दो स्साले का लंड ,... बसंती ने उकसाया 

थोड़ी देर तक मैं ऐसे भींचती रही , फिर बसंती ने बोला अब धीमे धीमे ढीली करो ,... 

पांच -छह बार ऐसे ही सात आठ मिनट तक और जब ऊँगली बाहर निकली तो साढ़ी सब की सब अंदर रह गयी  थी ,... 

और अब बसंती ने कटोरा मेरी ओर बढ़ा दिया ,






तब तक बंसती बोलीं- 
 
“अरे चला, तोहार मुँह हम अबहियें मीठ करा देती हूँ…” 

और अगले पल धक्का देकर मुझे चटाई पर लिटा दिया और सीधे मेरे ऊपर, उनकी झांटों भरी बुर मेरे मुँह के ऊपर, उनकी दोनों मांसल जाँघों के बीच में मेरा सर दबा।


[Image: Lez-face-sitting-14271176.gif]

 
ये नहीं था कि इसके पहले मैंने चूत नहीं चाटी थी। चन्दा की, फिर नदी नहाने में पूरबी की, कल इसी आँगन में चम्पा भाभी की भी। 

लेकिन जो मजा आज बसंती की चूत में आ रहा था, एकदम अलग। एक गजब का स्वाद, और उसके साथ जो अंदाज था उसका, एक कच्चे सेक्स का जो मजा होता है न बस वही और साथ में जो वो जबरदस्ती कर रही थी, जो उसकी ना न सुनने की आदत थी… और साथ में गालियों की फुहार, बस मजा आ गया। 
 
उसने सबसे पहले मेरी नाक दबाई और जैसे मैंने सांस लेने के लिए मुँह खोला, बस झाटों भरी उसकी बुर सीधे मेरे गुलाबी होंठों के बीच। 
 
मैंने थोड़ा बहुत सर हिलाने की कोशिश की तो कचकचा के उसने अपनी भरी-भरी मांसल जाँघों के बीच उसे कसकर भींच दिया और अब मैं सूत बराबर भी सर नहीं हिला सकती थी। और वह सीधे एकदम ‘फेस सिटिंग’ वाली पोजीशन में। 
[Image: Lez-face-sitting-13632604.gif]

 
और जब मैंने हल्के-हल्के चाटना चूसना शुरू किया तभी उसने नाक छोड़ी। 

लेकिन बसंती भौजी ने जिस हाथ से नाक छोड़ा मेरे निपल को पकड़ लिया। 

बस शहद, थोड़ी देर तक बाहर से चूसने चाटने के बाद, मुझसे भी नहीं रहा गया 
और मेरी जीभ ने प्रेम गली का रास्ता ढूँढ़ ही लिया और सीधे अंदर। जैसे एक तार की चाशनी हो, खूब गाढ़ी, और रसीली। 


[Image: lez-tumblr_op9gcornV91uojrlyo1_540.jpg]

 
जितनी जोर से मैं चाटती थी उसके दूने जोर से बसंती मेरे होंठों पर मेरे मुँह पे अपनी बुर रगड़ती थी, क्या कोई मर्द किसी लौंडिया का मुँह चोदेगा। और साथ में उनकी उंगली कभी-कभी मेरी चूत में भी… बार बार वो मुझे किनारे पे ले जाती लेकिन झड़ने नहीं देती। 
 
दस पंद्रह मिनट की जबरदस्त रगडाई, चुसाई के बाद, वो झड़ी और झड़ती रही देर तक। सब शहद और चासनी सिर्फ मेरे मुँह पे नहीं बल्की चेहरे पर भी।

 लेकिन उसके बाद भी उनकी बुर ने मेरे मुँह पर से कब्जा नहीं छोड़ा। कुछ देर तक हम दोनों एक दूसरे की आँखों में आँखें डालकर देखते रहे। 
 
फिर भौजी ने शरारत से जोर से मेरे गाल पर एक चिकोटी काटी और बोलीं- 


“ननद रानी मन तो कर रहा था की अबहियें तुम्हें पेट भर खारा शरबत पिला देती लेकिन…” 
 
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खारा शरबत

[Image: Golden-shower-F-2-M-13908098.jpg]


“ननद रानी मन तो कर रहा था की अबहियें तुम्हें पेट भर खारा शरबत पिला देती लेकिन…” 

 
फिर कुछ देर रुक के वो बोली- 


[Image: geeta-KJ.jpg]





“लेकिन, चम्पा भाभी ने बोला था पहली बार उनके सामने, आखिर जंगल में मोर नाचा किसी ने न देखा तो, क्या मजा?” 
 
मेरी मुश्कुराती आँखें बस यही कह रही थीं, पिला देती तो पिला देती, मैं गटक जाती। 


और जब वो हटीं तो मैं थकी अलसायी वहीं चटाई पे लुढक गई।
 
और जब मैं उठी तो बसंती मुझे जगा रही थी, शाम होने वाली थी और झूला झूलने चलना था। 

मेरे लिए साड़ी भी उसने ला के रख दी थी। पेटीकोट न मैं पहनती थी न कोई भौजाइ पहनने देती थी।
 
“भौजी, ब्लाउज?” 
 
“आज अईसे चलो, तोहार जोबन क उभार तनी गाँव क लौंडन खुलकर देख लें…” 


बसंती कोई मौका छोड़ती क्या?
 
लेकिन बहुत निहोरा करने पर वो एक ब्लाउज ले आई, चोली कट बहुत छोटा सा। पहनाया भी उसी ने। 


आधे से ज्यादा उभार बाहर छलक रहे थे। आगे से बंद होने वाले हुक थे और बड़ी मुश्किल से दो हुक बंद हुए, कटाव उभार निपल्स सब साफ दिखते थे। 
 


[Image: boobs-01e5879ea5c5cf00bf9778d188a09747.jpg]

लेकिन बसंती की शरारत घर से निकलने पर मुझे समझ में आई। 


बाहर मौसम का क्या कहूँ, आसमान में बादल खूब घने घिर आये थे। 



[Image: clouds-5.jpg]







[Image: paddy-fields-2.md.jpg]
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Man,good evening, first of all ,I salute you,you are a great author, who has knowledge about,how can write good story. Mam uploaded images on story are not opening ,how it will solve,will you post "solhwa saawan"on ////.
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(13-04-2019, 05:50 PM)Chandan pushpak Wrote: Man,good evening, first of all ,I salute you,you are a great author, who has knowledge about,how can write good story. Mam uploaded images on story are not opening ,how it will solve,will you post "solhwa saawan"on ////.

Thanks so much do read my new story mohe rang de
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पच्चीसवीं फुहार

[Image: paddy-fields-2.jpg]


चारों ओर हरी चुनरी की तरह फैले धान के खेत, खेतों में काम कर रही औरतों के रोपनी गाने की मीठी-मीठी आवाजें, कहीं नाचते अपनी प्रेयसी को रिझाते मोर, 

[Image: mango-grove-5.jpg]


जगह-जगह आमों से लदी अमराई, और उनपर पड़े झूले। 


हम लोग थोड़ी देर में उसी रास्ते पर थे जिधर से सुबह मैं आई थी। 

एक ओर मेरी उंचाई से भी दूने गन्ने के घने खेत और दूसरी ओर गझिन अरहर, 

[Image: Sugarcane-crushing-could-face-delay.jpg]



दिन में भी कोई न दिखायी दे और अब तो बादल घने हो गए थे। 




बंसती ने शरारत से मेरे उभारों की ओर देखा और मुझे बात एकदम समझ में आ गई। 
 
जो चोली वो ढूँढ़ के मेरे लिए लाई थी, वो काफी घिसी हुई थी, इसलिए सब कुछ झलक रहा था लेकिन उससे भी बढ़कर अगर मजाक-मजाक में भी किसी ने उंगली से भी उसे खिंच दिया तो बस- “चरर्र…” फट के हाथ में आ जाती। 

[Image: Geeta-bcfc7830101b88acde98f3ebb2d5c69c.jpg]

 
तब तक बसंती ने बोला- 


“एक मिनट रुको जरा, मुझे ज़रा जोर से ‘आ रही’ है…” 
 
‘आ तो’ मुझे भी रही थी। लेकिन यहाँ कहाँ खुले में? 


पर बसंती सोचने का मौका दे तो न… और धम्म से उसने खींचकर मुझे भी अपने बगल में बैठा लिया जहाँ मेड़ थोड़ी ऊँची थी, सामने अरहर के घने खेत थे, उसने साड़ी उठाकर कमर में लपेट ली और उसकी देखा देखी मैं भी। 





बस, बसंती ने तेज धार के साथ, छुर्र-छुर्र और फिर मोटी धार, पीले रंग की… 


मैं भी शुरू हो गई, लेकिन मारे शर्म के मेरी आँखें बंद थीं। 
 
पर बसंती आँखें बंद कहाँ रहने देती, और उसने मेरा सिर मोड़कर सीधे अपनी जाँघों के बीच से निकालकर उठते हुए बोली- 


“तुम सोच रही होगी कि भौजी ने एतना ढेर सारा खारा शरबत बेकार कर दिया, लेकिन चलो कल भिन्सारे से बिना नागा, झांटों के छन्ने से छना खारा शरबत…” 
 
और साड़ी ठीक करते-करते उसने अपनी तरजनी अपनी भीगी गीली बुर पे रगड़ी और सीधे मेरे होंठ पे लगा दी, और कहा-


  “चला तब तक तनी स्वादे चख ला…” 
 
लेकिन मेरी निगाह कहीं और अटकी थी। जहाँ हम लोग बैठे थे, वहीं ठीक बगल में एक पतली मेड़ सी पगडण्डी थी, जहाँ पहले मुझे अंदर गन्ने के खेत के रास्ते में एक लड़का दिखा था और फिर चन्दा मुझे छोड़कर उधर चल दी थी। सुबह उधर जो दूर 10-12 मिट्टी के घर दिखे थे वो अभी भी हल्के से दिख रहे थे। मैं पूछ बैठी- 


“बसंती भौजी, आई रास्ता कहाँ जा रहा है?”
 
बसंती पहले तो खिलखिलाती रही फिर अपने ढंग से बोली- 


“अरे बहुत तोहरे चूत में चींटा काटत हाउ, चला एक दिन तोहैं ए रास्ता पे भी घुमाय लाइब। अरे इहै रास्ता तो हौ भरौटी क…” 
 
“धत्त…” 

मैं जोर से बोली, लेकिन मैं सोच रही थी की इसका मतलब सुबह चन्दा उधर ही। 
 
थोड़ी देर में हम लोग अमराई में पहुँच गए। और काफी अंदर जाने के बाद जहां पेड़ बहुत गझिन हो गए थे वहां झूला पड़ा था, (वही जगह जहां भाभी के गाँव में सबसे पहल मैंने झूला झूला था और इसी झूले पे रात के अँधेरे में, तेज बारिश में अजय ने मेरी सील तोड़ी थी।) बादल और घने हो गए थे, हल्का अँधेरा सा हो गया था, हवा भी हल्की-हल्की चल रही थी, बस लग रहा था की अब बारिश हुई तब बारिश हुई। 


[Image: rain-clouds-4.jpg]



कामिनी भाभी, चम्पा भाभी, पूरबी पहले ही पहुँच गई थीं। और हम लोगों के साथ गाँव की एक दो और लड़कियां भी आ गई थीं।
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you are a gem, have learned a lot from you
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झूले पे 
[Image: jhula-5.md.jpg]













झूले पे मेरे पीछे कामिनी भाभी थीं और आगे बसंती। 



बंसती के पीछे पूरबी और कामिनी भाभी के पीछे चम्पा भाभी। 


[Image: Teej-Poonam-Jhawar-hot-navel.jpg]


उनके अलावा दो तीन और भौजाइयां, गाँव की लड़कियां। पेंग एक ओर से चमेली भाभी दे रही थीं और दूसरी ओर से गीता। 

 
चमेली भाभी ने बताया की चन्दा जब मुझे छोड़ने गई थी उसके बाद नहीं आई शायद अपनी किसी सहेली के पास चली गई होगी। 
 
मैंने मुश्किल से अपनी मुश्कान दबाई। 

जब से बसंती ने भरौटी के लौंडों के बारे में बताया था, और ये भी की वो रास्ता चन्दा जिससे गई थी, कहाँ जाता है, मुझे अंदाज हो गया था कि चन्दा रानी कहाँ अपनी ओखल में धान कुटवा रही होंगी। 


[Image: Teej-11-download.jpg]

 
कामिनी भाभी जिस तरह से मुझे देखकर मुश्कुरा रही थीं, उनका इरादा साफ नजर आ रहा था और जिस तरह से मैं बसंती और उनके बीच में थी, फिर आज मेरी भाभी भी नहीं थी झूले पे की कोई उनका लिहाज झिझक करता। 

लेकिन मेरा ध्यान कामिनी भाभी से ज्यादा उनके पति के बारे में था, जिस तरह कल चम्पा भाभी और आज बसंती ने बताया था, सुन सोच के ही मेरी गीली हो रही थी।
 
पहली बार मैं जब भाभियों के साथ झूला झूलने आई थी, उससे आज मामला और ज्यादा ‘हाट हाट’ हो रहा था। ये बात नहीं थी की उस दिन मैं बच गई थी, खूब मस्त गाली भरी कजरी मैंने पहली बार सुना था, और भौजाइयों ने रगड़न मसलन भी की थी और उंगली भी। 
 
लेकिन पहला दिन था मेरा इसलिए मैं थोड़ी हिचक रही थी और भाभियां भी थोड़ा, सोच रही थीं की कहीं कुछ ज्यादा हो गया तो मैं शहर की छोरी कहीं, बिचक गई तो?
 
 
लेकिन अब उस ‘रतजगे’ वाली रात के बाद मैंने सारी भौजाइयों का और उन्होंने मेरा ‘सब कुछ’ देख भी लिया और हाथ वाथ भी लगा दिया था। और दो चार तो जो यहाँ थीं, चम्पा भाभी, बसंती, कामिनी भाभी इन सबको पक्का पता चल गया था की मैं भी अब उन्हीं की गोल में शामिल हो गई हूँ। फिर आज मेरी भाभी भी नहीं थीं साथ में कि, कुछ उनका लिहाज, हिचक, । 
 
और आज एक नई गौरेया भी आई थी। मुझसे भी दो साल छोटी, अभी आठवीं पास करके नौवें में गई थी आगे सुधी पाठक एवं पाठिकाएं स्वयं समझ सकती हैं। 



जी, सुनील की छोटी बहन नीरू। 


[Image: teen-young-9010.jpg]

 
और पूरबी के साथ जब नदी नहाने गई थी तो उसके कच्चे टिकोरों की मैं ‘नाप तौल’ अच्छे से की थी। 



टिकोरे आ गए थे बस अभी थोड़े छोटे थे और मूंगफली के दाने ऐसे, बस जैसे नौवीं में पढ़ने वाली लड़कियों के होते हैं। 


[Image: teen-young-19807615.jpg]


पूरबी ने मुझे उकसाया तो मैंने नीचे का भी हाल चेक किया, बस सुनहली झांटें, रेशम के धागे ऐसी बस आ रही थीं।
 
लेकिन भौजाइयों के बीच ननद आ जाये तो फिर… 

और भौजाई भी कौन गुलबिया, एकदम बसंती के टक्कर की बल्की छेड़ने में, खुल के गारी देने में उससे भी दो हाथ आगे। 
 
वही, जो हम लोगों के यहां पानी लाती थी और उसका मर्द कुंवे पे पानी भरता था, जिसकी आज इतनी बड़ाई बसंती ने की थी। 

आज गुलबिया ठीक नीरू के पीछे बैठी और मैं समझ गई की जहाँ पेंग तेजी हुई, नीरू के टिकोरे उसके हाथों में होंगे। 
 
 “ओहो ओहो तनी सा धीरे-धीरे पेंग मार पिया, धीरे-धीरे पेंग मार पीया, 
 तनी सा धीरे-धीरे पेंग मार पिया, जरा सा धीरे-धीरे पेंग मार पिया। 
 
एक ओर से पूरबी ने पेंग मारते हुए कजरी शुरू की। 
 
तो गुलबिया ने छेड़ा- 


[Image: Gulabiya-5064d53d6eb2f7ad030b02c3f86f8ef1.jpg]



“अरे धीरे-धीरे मारने में न मारने वाले को मजा न मरवाने वाली को…” 
 
जवाब चम्पा भाभी ने दिया- 

“अरे जस नया माल लेके बैठी हो तो शुरू-शुरू में धीरे-धीरे ही मारनी पड़ेगी न…” 
 
पूरबी और कजरी जो पेंग मार रही थी उन्होंने रफ़्तार बढ़ा दी। 
 
और एक भौजी जो गुलबिया के पीछे बैठीं थी उन्होंने बोला- 

“अरे जरा छुटकी ननदिया को जोर से पकड़ो न…”


[Image: Joru-K-kacchetikore17-1.jpg]

 
और गुलबिया ने नीरू के नए-नए आये उभारों के ठीक नीचे हाथ लगाते हुए कस के दबोच लिया। 
 
मेरी हालत कुछ कम नहीं थी लेकिन मैं जानती थी क्या होनेवाला था? पेंग तेज होने के साथ ही मेरा आँचल उड़ के जैसे हटा, कामिनी भाभी ने मेरे दोनों कबूतर गपुच लिए और बसंती का हाथ मेरे चिकने पेट पे था। 
 
 पुरवा पवनवा उड़ावेला अंचरवा रामा, अरे ननदी जुबना झलकावे ला हरी। 
 अरे रामा ननदी, दुनों जुबना झलकावे ला हरी, अरे लौंडन के ललचावे ला हरी। 
 
अबकी कजरी गुलबिया ने छेड़ी, और कामिनी भाभी ने जैसे उसकी ताकीद करते हुए सीधे मेरी चोली में हाथ डाल दिया 


और सीधे मेरे जुबना उनके हाथ में। 
 
बादल बहुत जोर से घिर आये थे और लग रहा था बारिश अब हुई, तब हुई। 


हवा भी हल्की-हल्की चल रही थी और झूले के पेंग की रफ़्तार बहुत तेज हो गई थी। कजरी के बीच सिसकियों की आवाजें भी आ रही थीं। 


[Image: rain-nice-5.gif]

और तब तक टप-टप बूंदें पड़ने लगी और मैं समझ गई की अब भौजाइयां और जोश में आ जाएंगी, और हुआ भी वही। 
 
मुश्किल से दिख रहा था। 



कहीं दूर बिजली भी चमक रही थी। सब लोग अच्छी तरह भींज गए थे, लेकिन न झूले की रफ़्तार कम हुई और न भौजाइयों की शरारतों की। 


[Image: Rain-Lightning-tenor.gif]

 
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कामिनी भौजी ने जरा साथ हाथ और अंदर किया और, ब्लाउज का कपड़ा एक तो एकदम घिसा हुआ और पुराना था, फिर एकदम टाइट भी, 

जरा सा कामिनी भाभी के तगड़े हाथ का जोर और, 
 
चर्र चरर, 
 
और बसंती ये मौका क्यों छोड़ती, जहाँ जरा सा फटा था, 

वहीं से पकड़ के सीधे नीचे तक, एक उभार अब खुल के बाहर। 

[Image: Teen-Young-3254.jpg]
 
ई हाउ जुबना क ताकत देखा एकदम चोली फाड़ देहलस…” 


एक भौजाई बोली। 
 
तो बसंती बोली अरे एह ननद के भाई लोग हमार फाड़े हैं तो एनकर फायदे क जिमेदारी भौजाई क है…” 



और एक बचा हुआ हुक भी तोड़ दिया। 


[Image: tits-young-2211-046.md.jpg]

 
एक-एक उभार बसंती और कामिनी भाभी ने बाँट लिया और कामिनी भाभी के एक हाथ दोनों जाँघों के बीच, सीधे प्रेम गली में। 


बस गनीमत थी कि अब अँधेरा इतना हो गया था की कुछ दिख नहीं रहा था, बारिश भी तेज हो गई थी। बस बिजली जब चमकती तो, 
 
और नीरू की हालत और ज्यादा खराब हो रही थी, 

[Image: boobs-young-5.jpg]

गुलबिया के साथ दो और भौजाइयों ने उसे दबोच लिया था।
 
और कामिनी भाभी की चतुर चालाक उंगली मेरी दोनों मांसल रसीली पनियाई चूत की पुत्तियों के बीच रगड़ घिस्स कर रही थी, 

एक निपल बसंती की मुट्ठी में तो दूसरा उभार कामिनी भाभी के हाथों में और अब तो ब्लाउज का कवच भी नहीं था।

[Image: nip-massage-tumblr-oygo2t4-IZD1wyx8qxo1-400.gif]


 चूंचियां एकदम पथरा गई थीं। 


 
बस मन कर रहा था की, किसी तरह… 


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लेकिन आँगन में जैसे बंसती भौजी ने तड़पाया, तीन बार किनारे तक ले गईं, लेकिन बिना झाड़े छोड़ दिया। बस वही हालत कामिनी भाभी भी मेरी कर रही थीं। 
 
मैं सिसक रही थी, तड़प रही थी, चूतड़ पटक रही थी। 
 
मस्ती के चककर में गाने बंद हो गए थे, हाँ पेंगे और जोर-जोर से लग रही थीं।
 
किसी भौजी ने मुझे ललकारा- 

“अरे काहें मुस्स भड़क बइठल हो तानी कौनो मोटा लण्ड घुसेड़ल हो का?” 


[Image: Boobs-Jethani-26166310_542427386134654_1...3436_n.jpg]

 
मैंने मुँह बनाया की मुझे कजरी नहीं आती तो कामिनी भाभी ने बोला- 

“अरे रतजगा में जो सुनाया था उहे सुना दो, हम सब साथ देंगे न। 
 
तब तक गुलबिया की आवाज सनाई पड़ी- 

“कौनो बात न अगर न सुनावे क मन होय तो, बिलौजवा के बाद आई साडियों फाड़ के तुहरे गंड़ियां में घुसेड़ देब और नंगे नचाइब। बोला गइबू की नचबू?”
 
 
अब तो कोई सवाल ही नहीं था मैं चालू हो गई, 
 
 तानी धीरे-धीरे डाला बड़ा दुखाला रजऊ,
 मस्त जुबनवा चोली धईला, गाल त कई देहला लाल। 
 काहें धँसावत बाड़ा भाला, बड़ा दुखाला रजउ। 
 
और उस गाने की ताल पर कामिनी भाभी की उंगली मेरी खूब पनियाई चूत में जिस तरह अंदर-बाहर हो रही थी, 


[Image: fingering-a-16977090.gif]


मुझे लग रहा था अब गई कि तब गई। 
 
लेकिन तब तक अरररा कर एक पेड़ की डाल गिरी और हम सब कूदकर झूले से उतर गए की कहीं ये डाल भी नहीं, 
 
किसी ने बोला की चला जाय क्या?
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ab kya kahun .....sharafat chhodne pe majboor kar rahi ho :esc:
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(15-04-2019, 08:56 PM)rajeshsarhadi Wrote: ab kya kahun .....sharafat chhodne pe majboor kar rahi ho :esc:

कभी कभी छोड़ भी देनी चाहिए ,....  :D Shy
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छब्बीसवीं फुहार
कच्ची कली : नीरू 
अब तक


[Image: teen-boobs.jpg]



मैंने मुँह बनाया की मुझे कजरी नहीं आती तो कामिनी भाभी ने बोला- 

“अरे रतजगा में जो सुनाया था उहे सुना दो, हम सब साथ देंगे न। 
 
तब तक गुलबिया की आवाज सनाई पड़ी- 




“कौनो बात न अगर न सुनावे क मन होय तो, बिलौजवा के बाद आई साडियों फाड़ के तुहरे गंड़ियां में घुसेड़ देब और नंगे नचाइब। बोला गइबू की नचबू?”
 
 
अब तो कोई सवाल ही नहीं था मैं चालू हो गई, 
 
 तानी धीरे-धीरे डाला बड़ा दुखाला रजऊ,
 मस्त जुबनवा चोली धईला, गाल त कई देहला लाल। 
 काहें धँसावत बाड़ा भाला, बड़ा दुखाला रजउ। 
 
और उस गाने की ताल पर कामिनी भाभी की उंगली मेरी खूब पनियाई चूत में जिस तरह अंदर-बाहर हो रही थी, मुझे लग रहा था अब गई कि तब गई। 

[Image: fingering-9.jpg]

 
लेकिन तब तक अरररा कर एक पेड़ की डाल गिरी और हम सब कूदकर झूले से उतर गए की कहीं ये डाल भी नहीं, 
 
किसी ने बोला की चला जाय क्या?

आगे

 
 
लेकिन पेड़ की डाल टूट कर गिरने के पहले , मेरे ठीक पीछे झूले पर बैठी , उस कच्ची कली के साथ जस्ट जवान होती , 

अरे वही नीरू , सुनील की बहिनिया , जो अभी आठवें से नौवें में ,...,

[Image: teen-young-19807615.jpg]


(सुबह नदी नहाने मैंने भी तो , …, गीता और मैंने , एकदम बस चूँचियाँ उठान , ….बस छोटे छोटे आते  उभार , जस्ट ललछौंहे , लेकिन मैंने मीजा मसला खूब , और नीचे भी तो , एकदम कच्ची कसी , बस दो चार रेशमी बाल ' वहां ' )



,... गुलबिया और बसंती दोनों ,... जो हरकत मेरे सतह कामिनी भाभी कर रही थीं , उससे भी बढ़कर गुलबिया उस कच्ची कली के साथ ,
 
मेरे मन में ये सवाल उमड़ घुमड़ ही रहा था की ये तो अभी छोटी होगी , 
 
लेकिन गुलबिया जैसे उसने मेरे मन को पढ़ लिया , बिना मेरे पूछे बोल उठी , 
 
" अरे यह गाँव में कुल ननदिया , चौदह की होते ही चुदवासी हो जाती हैं , ... झांट बाद में आती है , लंड पहले खोजने लगती हैं , क्यों चौदह की तो हो गयी न , ... "
 
" कब की , " 
 
हंसती खिलखिलाती उस कच्ची कली की आवाज सुनाई पड़ी। 

[Image: pussy-fingering-15880638.gif]

 
गचाक , खच्च से गुलबिया ने अपनी मंझली ऊँगली दो पोर तक पेल दी , और जोर से उस कच्ची जवानी की चीख सुनाई पड़ी। 
 
और जैसे जवाब में कामिनी भाभी ने जड़ तक दो ऊँगली मेरी गुलाबो में हचक कर ठेल दी। 
 
" ननदन क चीख से मीठी आवाज कउनो नहीं होती , ... " 
[Image: Geeta-Sana-Khan-Spicy-in-Half-Saree.jpg]


बसंती उस नयी आयी जवानी के नए नए जोबन को कस के मीजते रगड़ते बोली।  
 
तेज पानी बरस रहा था , बादल खूब घने छाए थे , आम की यह बाग़ वैसे भी इतनी गझिन , दिन में भी कुछ नहीं दिखता था , 





इसी बाग़ में तो अजय ने सबसे पहले मेरा जोबन लूटा था , 
 
सांझ भी पूरी तरह , ... 


लेकिन मैं गर्दन पीछे कर के , कनखियों से उस कच्ची कली  की रगड़ाई ,... 


मुझे कुछ मजा ज्यादा इसलिए भी आ रहा था की आज इसी के भाई ने कितनी बेरहमी से मेरे पिछावड़े , मेरे रोने चीखने के बाद भी उस दुष्ट ने मेरी फाड़ कर रख दी थी  अब तक चिल्हक मच रही थी ,
 
और झुरमुट सी झलक भले ही हलकी हलकी दिख रही थी लेकिन उस छुटकी की चीखें सिसकियाँ तो अच्छी तरह सुनाई दे रही थी। 

[Image: fingering-G-g.gif]

 
" नाही गुलबिया भौजी निकार लो , बहुत दर्द हो रहा है ,... " 


नीरू चीख रही थी। 

[Image: guddi-cute-19264654.jpg]

 
गुलबिया , जिसके नाम से इस गाँव की सारी ननदे कांपती थी , ऐसी मस्ती कच्ची कली को पकड़ने के बाद कैसे छोड़ देती , 
 
" अभी कउनो लौंडा पकड़ के अरहर के खेत में पटक के पेल देता तो , तो तोहरे चीखे से छोड़ देत का , ... चल अबकी होली में तोहैं , तोहरे भैया के खूंटे पर बैठाऊंगी , ... " 


[Image: Fucking-close-up-17378912.gif]

गुलबिया ऊँगली अंदर बाहर करती बोली।  
 
" अरे होली में त अभिन बहुत दूर हो , तब तक ई बेचारी का ,... "
 
 एक हाथ से कस कस के मेरे जोबन रगड़ते दूसरे से मेरी चुनमुनिया में जोर जोर से ऊँगली करते कामिनी भाभी बोलीं , ... 


[Image: MIL-93fa21722035706ff31ddd4c7773e03d.jpg]

 
" अरे हम भौजाई लोग काहें क हई , तब तक ई चिरैया , भउजी लोगन के साथ , तानी हमहुँ लोग तो यह कच्ची कली क रस ,... " 
 
ये बसंती की आवाज थी , वो जोर से  उस नयी जवानी के कच्चे टिकोरों को मसल रगड़ रही थी , ऊँगली से उसके जरा जरा सा निप्स को ,... 


और साथ में गुलबिया की ऊँगली उसके बिल में घचर घचर ,
 
और आगे कामिनी भाभी जोर जोर से मेरी बिल में , उनका अंगूठा मेरे क्लिट पर , 
 
मैं झड़ने के कगार पर थी , मन बहुत कर रहा था मेरा भौजी किसी तरह झड़ा दें , बंसन्ती ने , तीन चार बार ,... लेकिन हर बार ,... किनारे पर  ले जाके छोड़ दिया उसने ,... 

अभी बस लग रहा था अब झड़ी , तब झड़ी ,... और उसी समय अरररा कर वो पास में डाल टूटी और हम सब झूले पर से  हट कर ,
 
 
मैं बिना झड़ी , वैसे ही प्यासी ,...

[Image: rain-tree.gif]
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