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अब मैंने अपना हाथ उसकी चूत पर फ़िराना चालू कर दिया। उसने भी मेरे कहने से मेरे लंड को कस कर हाथ में पकड़ लिया और सहलाने लगी। लंड महाराज तो ठुमके ही लगाने लगे। मैंने जब उसके उरोज दबाये तो उसके मुँह से सीत्कार निकालने लगी।
‘ओह भाई कुछ करो ना? पता नहीं मुझे कुछ हो रहा है !’
उत्तेजना के मारे उसका शरीर कांपने लगा था, साँसें तेज होने लगी थी। इस नए अहसास और रोमांच से उसके शरीर के रोएँ खड़े हो गए थे। उसने कस कर मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया।
अब देर करना ठीक नहीं था। मैंने उसकी स्कर्ट और टॉप उतार दिए। उसने ब्रा तो पहनी ही नहीं थी। छोटे छोटे दो अमरुद मेरी आँखों के सामने थे। गोरे रंग के दो रसकूप जिनका एरोला कोई अठन्नी जितना और निप्पल्स तो कोई मूंग के दाने जितने बिल्कुल गुलाबी रंग के ! मैंने तड़ से एक चुम्बन उसके उरोज पर ले लिया। अब मेरा ध्यान उसकी पतली कमर और गहरी नाभि पर गया।
जैसे ही मैंने अपना हाथ उसकी पेंटी की ओर बढ़ाया तो उसने मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा- भाई, तुम भी तो अपने कपड़े उतारो ना?’
‘ओह हाँ !’
मैंने एक ही झटके में अपना नाईट सूट उतार फेंका। मैंने चड्डी और बनियान तो पहनी ही नहीं थी। मेरा 7 इंच का लंड 120 डिग्री पर खड़ा था। लोहे की रॉड की तरह बिल्कुल सख्त। उस पर प्री-कम की बूँद चाँद की रोशनी में ऐसे चमक रही थी जैसे शबनम की बूँद हो या कोई मोती।
‘कणिका इसे प्यार करो ना !’
‘कैसे?’
‘अरे बाबा इतना भी नहीं जानती? इसे मुँह में लेकर चूसो ना?’
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मुझे शर्म आती है !’
मैं तो दिलो जान से इस अदा पर फ़िदा ही हो गया। उसने अपनी निगाहें झुका ली पर मैंने देखा था कि कनिखयों से वो अभी भी मेरे तप्त लंड को ही देखे जा रही थी बिना पलकें झपकाए।
मैंने कहा- चलो, मैं तुम्हारी बुर को पहले प्यार कर देता हूँ फ़िर तुम इसे प्यार कर लेना !’
‘ठीक है !’ भला अब वो मना कैसे कर सकती थी।
और फ़िर मैंने धीरे से उसकी पेंटी को नीचे खिसकाया, गहरी नाभि के नीचे हल्का सा उभरा हुआ पेडू और उसके नीचे रेशम से मुलायम छोटे छोटे बाल नजर आने लगे। मेरे दिल की धड़कनें बढ़ने लगी। मेरा लंड तो सलामी ही बजाने लगा। एक बार तो मुझे लगा कि मैं बिना कुछ किये-धरे ही झड़ जाऊँगा।
उसकी चूत की फांकें तो कमाल की थी। मोटी मोटी संतरे की फांकों की तरह। गुलाबी चट्ट, दोनों आपस में चिपकी हुई। मैंने पेंटी को निकाल फेंका। जैसे ही मैंने उसकी जाँघों पर हाथ फ़िराया तो वो सीत्कार करने लगी और अपनी जांघें कस कर भींच ली।
मैं जानता था कि यह उत्तेजना और रोमांच के कारण है। मैंने धीरे से अपनी अंगुली उसकी बुर की फांकों पर फ़िराई। वो तो मस्त ही हो गई। मैंने अपनी अंगुली ऊपर से नीचे और फ़िर नीचे से ऊपर फ़िराई। 3-4 बार ऐसा करने से उसकी जांघें अपने आप चौड़ी होती चली गई। अब मैंने अपने दोनों हाथों से उसकी बुर की दोनों फांकों को चौड़ा किया। एक हल्की सी पुट की आवाज के साथ उसकी चूत की फांकें खुल गई।
आह ! अन्दर से बिल्कुल लाल चुटर ! जैसे किसी पके तरबूज का गूदा हो। मैं अपने आप को कै से रोक पाता। मैंने अपने जलते होंठ उन पर रख दिए।
आह… नमकीन सा स्वाद मेरी जबान पर लगा और मेरी नाक में जवान जिस्म की एक मादक महक भर गई। मैंने अपनी जीभ को थोड़ा सा नुकीला बनाया और उसके छोटे से टींट पर टिका दिया। उसकी तो एक किलकारी ही निकल गई। अब मैंने ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर जीभ फ़िरानी चालू कर दी।
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उसने कस कर मेरे सिर के बालों को पकड़ लिया। वो तो सीत्कार पर सीत्कार किये जा रही थी।
बुर के छेद के नीचे उसकी गांड का सुनहरा छेद उसके कामरज से पहले से ही गीला हो चुका था। अब तो वो भी खुलने और बंद होने लगा था।
कणिका आह…उन्ह… कर रही थी, ऊईई… मा..आ एक मीठी सी सीत्कार निकल ही गई उसके मुँह से।
अब मैंने उसकी बुर को पूरा मुँह में ले लिया और जोर की चुस्की लगाई। अभी तो मुझे दो मिनट भी नहीं हुए होंगे कि उसका शरीर अकड़ने लगा और उसने अपने पैर ऊपर करके मेरी गदर्न के गिर्द लपेट लिए और मेरे बालों को कस कर पकड़ लिया। इतने में ही उसकी चूत से काम रस की कोई 4-5 बूँदें निकल कर मेरे मुँह में समां गई। आह क्या रसीला स्वाद था। मैंने तो इस रस को पहली बार चखा था। मैं उसे पूरा का पूरा पी गया।
अब उसकी पकड़ कुछ ढीली हो गई थी। पैर अपने आप नीचे आ गए। 2-3 चुस्कियाँ लेने के बाद मैंने उसके एक उरोज को मुँह में ले लिया और चूसना चालू कर दिया।
शायद उसे इन उरोजों को चुसवाना अच्छा नहीं लगा था। उसने मेरा सिर एक और धकेला और झट से मेरे खड़े लंड को अपने मुँह में ले लिया। मैं तो कब से यही चाह रहा था। उसने पहले सुपाड़े पर आई प्रीकम की बूँदें चाटी और फ़िर सुपारे को मुँह में भर कर चूसने लगी जैसे कोई रस भरी कुल्फी हो।
आह.. आज किसी ने पहली बार मेरे लंड को ढंग से मुँह में लिया था। कणिका ने तो कमाल ही कर दिया। उसने मेरा लंड पूरा मुँह में भरने की कोशिश की पर भला सात इंच लम्बा लंड उसके छोटे से मुँह में पूरा कैसे जाता।
मैं चित्त लेटा था और वो उकडू सी हुई मेरे लंड को चूसे जा रही थी। मेरी नजर उसकी चूत की फांकों पर दौड़ गई। हल्के हल्के बालों से लदी चूत तो कमाल की थी। मैंने कई ब्ल्यू फ़िल्मों में देखा था कि चूत के अन्दर के होंठों की फांके 1.5 या 2 इंच तक लम्बी होती हैं पर कणिका की तो बस छोटी छोटी सी थी, बिल्कुल लाल और गुलाबी रंगत लिए। मामी की तो बिल्कुल काली काली थी। पता नहीं मामा उन काली काली फांकों को कैसे चूसते हैं।
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मैंने कणिका की चूत पर हाथ फ़िराना चालू कर दिया। वो तो मस्त हुई मेरे लंड को बिना रुके चूसे जा रही थी। मुझे लगा अगर जल्दी ही मैंने उसे मना नहीं किया तो मेरा पानी उसके मुँह में ही निकल जाएगा और मैं आज की रात बिना चूत मारे ही रह जाऊँगा।
मैं ऐसा हरिगज नहीं चाहता था।
मैंने उसकी चूत में अपनी अंगुली जोर से डाल दी। वो थोड़ी सी चिहुंकी और मेरे लंड को छोड़ कर एक और लुढ़क गई।
वो चित्त लेट गई थी। अब मैं उसके ऊपर आ गया और उसके होंठों को चूमने लगा।
एक हाथ से उसके उरोज मसलने चालू कर दिए और एक हाथ से उसकी चूत की फांकों को मसलने लगा। उसने भी मेरे लंड को मसलना चालू कर दिया। अब लोहापूरी तरह गर्म हो चुका था और हथौड़ा मारने का समय आ गया था। मैंने अपने उफनते हुए लंड को उसकी चूत के मुहाने पर रख दिया। अब मैंने उसे अपने बाहों में जकड़ लिया और उसके गाल चूमने लगा, एक हाथ से उसकी कमर पकड़ ली। इतने में मेरे लंड ने एक ठुमका लगाया और वो फ़िसल कर ऊपर खिसक गया।
कणिका की हंसी निकल गई।
मैंने दोबारा अपने लंड को उसकी चूत पर सेट किया और उसके कमर पकड़ कर एक जोर का धक्का लगा दिया। मेरा लंड उसके थूक से पूरा गीला हो चुका था और पिछले आधे घंटे से उसकी चूत ने भी बेतहाशा कामरज बहाया था। मेरा आधा लंड उसकी कुंवारी चूत की सील को तोड़ता हुआ अन्दर घुस गया।
इसके साथ ही कणिका की एक चीख हवा में गूंज गई। मैंने झट से उसका मुँह दबा दिया नहीं तो उसकी चीख नीचे तक चली जाती।
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कोई 2-3 मिनट तक हम बिना कोई हरकत किये ऐसे ही पड़े रहे। वो नीचे पड़ी कुनमुना रही थी, अपने हाथ पैर पटक रही थी पर मैंने उसकी कमर पकड़ रखी थी इस लिए मेरा लंड बाहर निकालने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता था। मुझे भी अपने लंड के सुपारे के नीचे जहाँ धागा होता है, जलन सी महसूस हुई। यह तो मुझे बाद में पता चला कि उसकी चूत की सील के साथ मेरे लंड की भी सील (धागा) टूट गई है।
चलो अच्छा है अब आगे का रास्ता दोनों के लिए ही साफ़ हो गया है। हम दोनों को ही दर्द हो रहा था। पर इस नए स्वाद के आगे यह दर्द भला क्या माने रखता था।
‘ओह… भाई मैं तो मर गई रे…’ कणिका के मुँह से निकला- ओह… बाहर निकालो मैं मर जाऊँगी !’
‘अरे मेरी बहना रानी ! बस अब जो होना था हो गया है। अब दर्द नहीं बस मजा ही मजा आएगा। तुम डरो नहीं ये दर्द तो बस 2-3 मिनट का और है उसके बाद तो बस जन्नत का ही मजा है !’
‘ओह… नहीं प्लीज… बाहर निका…लो… ओह… या… आ… उन्ह… या’
मैं जानता था उसका दर्द अब कम होने लगा है और उसे भी मजा आने लगा है। मैंने हौले से एक धक्का लगाया तो उसने भी अपनी चूत को अन्दर से सिकोड़ा। मेरा लंड तो निहाल ही हो गया जैसे। अब तो हालत यह थी कि कणिका नीचे से धक्के लगा रही थी। अब तो मेरा लंड उसकी चूत में बिना किसी रुकावट अन्दर बाहर हो रहा था। उसके कामरज और सील टूटने से निकले खून से सना मेरा लंड तो लाल और गुलाबी सा हो गया था।
‘उईई… मा.. आह… मजा आ रहा है भाई तेज करो ना.. आह ओर तेज या…’
कणिका मस्त हुई बड़बड़ा रही थी।
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14-01-2021, 01:38 PM
(This post was last modified: 29-02-2024, 04:57 PM by neerathemall. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
अब उसने अपने पैर ऊपर उठा कर मेरी कमर के गिर्द लपेट लिए थे। मैंने भी उसका सिर अपने हाथों में पकड़ कर अपने सीने से लगा लिया और धीरे धीरे धक्के लगाने लगा। जैसे ही मैं ऊपर उठता तो वो भी मेरे साथ ही थोड़ी सी ऊपर हो जाती और जब हम दोनों नीचे आते तो पहले उसके नितम्ब गद्दे पर टिकते और फ़िर गच्च से मेरा लंड उसकी चूत की गहराई में समां जाता। वो तो मस्त हुई ‘आह उईई माँ’ ही करती जा रही थी। एक बार उसका शरीर फ़िर अकड़ा और उसकी चूत ने फ़िर पानी छोड़ दिया।
वो झड़ गई थी ! आह…! एक ठंडी सी आनंद की सीत्कार उसके मुँह से निकली तो लगा कि वो पूरी तरह मस्त और संतुष्ट हो गई है।
मैंने अपने धक्के लगाने चालू रखे। हमारी इस चुदाई को कोई 20 मिनट तो हो ही गए थे, अब मुझे लगाने लगा कि मेरा लावा फूटने वाला है, मैंने कणिका से कहा तो वो बोली,’कोई बात नहीं, अन्दर ही डाल दो अपना पानी ! मैं भी आज इस अमृत को अपनी कुंवारी चूत में लेकर निहाल होना चाहती हूँ !’
मैंने अपने धक्कों की रफ़्तार बढ़ा दी और फ़िर गर्म गाढ़े रस की ना जाने कितनी पिचकारियाँ निकलती चली गई और उसकी चूत को लबालब भरती चली गई।
उसने मुझे कस कर पकड़ लिया। जैसे वो उस अमृत का एक भी कतरा इधर उधर नहीं जाने देना चाहती थी। मैं झड़ने के बाद भी उसके ऊपर ही लेटा रहा।
मैंने कहीं पढ़ा था कि आदमी को झड़ने के बाद 3-4 मिनट अपना लंड चूत में ही डाले रखना चाहिए इस से उसके लंड को फ़िर से नई ताकत मिल जाती है और चूत में भी दर्द और सूजन नहीं आती।
थोड़ी देर बाद हम उठ कर बैठ गए। मैंने कणिका से पूछा- कैसी लगी पहली चुदाई मेरी जान?’
‘ओह ! बहुत ही मजेदार थी मेरे भैया?’
‘अब भैया नहीं सैंया कहो मेरी जान !’
‘हाँ हाँ मेरे सैंया ! मेरे साजन ! मैं तो कब की इस अमृत की प्यासी थी। बस तुमने ही देर कर रखी थी !’
‘क्या मतलब?’
‘ओह, तुम भी कितने लल्लू हो। तुम क्या सोचते हो मुझे कुछ नहीं पता?’
‘क्या मतलब?’
‘मुझे सब पता है तुम मुझे नहाते हुए और मूतते हुए चुपके चुपके देखा करते हो और मेरा नाम ले लेकर मुट्ठ भी मारते हो !’
‘ओह… तुम भी ना… एक नंबर की चुदक्कड़ हो रही हो !’
‘क्यों ना बनूँ आखिरर खानदान का असर मुझ पर भी आएगा ही ना?’ और उसने मेरी ओर आँख मार दी।
फ़िर आगे बोली ‘पर तुम्हें क्या हुआ मेरे भैया?’
‘चुप साली अब भी भैया बोलती है !
The end
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स ब दिन रात एक करके अपने लोगों की संख्या करोड़ों में शामिल होने की बात कही है
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(14-01-2021, 01:22 PM)neerathemall Wrote: clp);
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