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Non-erotic अंतिम इच्छा
#21
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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#22
मैं बेचैनी से पहलु बदलता हूं। कितना असाध्य है प्रेम।
और जो प्रेम को साध ले?
“वह दो कौड़ी का आदमी हो जाता है।” लड़की ने सहजता से कहा।
मैं मुस्कुराता हूं। ऐन उसी वक़्त मोबाइल स्क्रीन पर एक संदेशा कौंधता है, लड़की के नाम का। उसने लिखा है “मुझे समय पर पहुंचना अच्छा लगता है और इंतज़ार करना नाहद उबाऊ” लड़की की कही बातें मेरे भीतर कहीं गहरे बैठ जाती है। मैं उसकी कही बातों की गांठ बांध रख लेता हूं। मन के संदूकची में। बिन ताले वाली संदूकची। कभी किसी निरीह एकांत में संदूकची में घुस तमाम गांठे खोल देता हूं।
एक दिन उसने कहा “मेरी कहानी का मुख्य किरदार ऐनक लगाता है।” और तब से ऐनक चढ़ा मैं खुद को नायक की तरह देखता हूं। ऐसे तो मैं ऐनक बारह साल की उम्र से लगाता आ रहा हूं और पहली बार जब ऐनक चढ़ा कॉलेज गया था तब सहपाठियों ने खूब मजाक उड़ाया था। इसलिए ऐनक को कभी नायक तत्व की तरह नहीं देख पाया, लेकिन लड़की ने कहा – मैं उसकी कहानी का नायक हूं।
लड़की कहानियां लिखती है, विशेषकर प्रेम कहानियां।
मैंने पूछा “क्या तुमने कभी प्रेम किया है?’
उसने साहिर भोपाली के प्रसिद्ध शेर के मतले की पहली पंक्ति को अपने ताल्लुक ढाल दोहरा दिया “दर्दे दिल में मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं“
और तुरंत ही प्रश्न गेंद की तरह मेरी ओर उछाल दिया “और तुमने?”
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#23
प्रत्यक्ष में ‘नहीं’ कह मैं मन ही मन ‘ फ़ैज़ ‘ को बुदबुदाया “और भी दुःख है जमाने में मोहब्बत के सिवा”
लड़की ने जैसे सुन लिया “क्या दुःख है तुम्हे?”
“दुःख तो ये है कि कोई दुःख नहीं”
“जितना सोचते हो, उतना लिखते क्यूं नहीं?”
सब लिखा जा चुका है। पीला कुर्ता, धानी दुपट्टा, बड़ा चेहरा और छोटी आंख।।।
और?
“आख़िरी प्रेम।”
“आख़िरी प्रेम?”
“हाँ, आख़िरी प्रेम।”
लड़की को बेचैनी होने लगती है, प्रेम भी कभी पहला, दूसरा या आखिरी हुआ है? प्रेम तो एक निर्बाध दरिया है जो निरंतर बहता रहता है।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#24
मैं उसकी बेचैनी अपने भीतर महसूस करता हूं। उस वक़्त मैं पसीने से लस्त उसकी ठंडी हथेलियों के मध्य अपनी ऊंगली रख उससे कहता हूं “ प्रेम बेचैनियों भरा कुंड है और प्रेमिल चाहनायें समूह नृत्य में लिप्त अनगिनत मतस्य“


“नहीं, ओक्टोपस, आठों भुजाओं से जकड़ रखने वाली” लड़की ने मुस्कुराते हुए यूं कहा जैसे उसके भीतर कुछ छटपटा रहा हो। उसके होंठ सूख गए थे, आंखें तरल हो गई थी। उंगलियां कॉफ़ी के कप पर कस गई थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#25
कभी-कभी तो लड़की बंद किताब सी लगती है, जिसे मैं हर्फ़ दर हर्फ़ पढ़ना चाहता हूं और कभी-कभी उर्दू की तरह इश्क में बिखरी हुई लगती है, जिसे समेट मैं कुछ ऐसा रच देना चाहता हूं जो उस जैसा ही अलहदा हो।
वह बेहद अलहदा है, मैं उसे परतों में लिपटी गुलाब की तरह कभी नहीं देख पाया, ना ही ख़ुशबू बिखेरती मोगरा लगी, दोपहर में भी वह मुझे सुबह की पहली किरण सी खिली हुई सुगंधित कनेर लगी !
वह धवल कनेर सी कोने वाली कुर्सी पर बैठी थी। उसका चेहरा झुका था। वह कोई किताब पढ़ रही थी। पास ही रखी कॉफ़ी की एक खाली प्याली और गद्य में आकंठ डूबी वह। वह दरवाजे की ओर नहीं देख रही थी, वह मेरी राह नहीं तक रही थी। वह प्रतीक्षा में बेचैन नहीं थी। प्रणय की आभा से भरी। अनुरक्ति के आलोक से दीप्त और गरिमा की प्रस्तुत तस्वीर वह।
कुछ देर मैं उसे देखता हूं। कुछ और देर तक देखना चाहता हूं लेकिन उसके पूर्व निर्देशानुसार बैरा एक कॉफ़ी और एक अदरक वाली चाय के साथ भजिये रख जाता है।
उसने किताब से सर उठा कर पूछा “तुम कब आये?” और ऐसा पूछते हुए उसने उल्लू की आकृति वाली बुकमार्क अधूरे पढ़े पन्नों के बीच रख किताब बंद कर दिया। आंखों से ऐनक उतार बगल में रखे बैग के किसी भीतरी खोह से केस निकाल उसमें रखते हुए वह मेरी ओर देख मुस्कुराई।
“जब तुम किताब पढ़ रही थी…” कहते हुए मैंने किताब पर नज़र डाली, फ्रान्ज़ कक्फा की ‘लेटर्स टू मिलेना’ थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#26
सफ़ेद पारदर्शी टॉप और ब्लू जींस पहने वह बेहद संजीदा लग रही थी। टॉप के भीतर से स्पष्ट दिखाई देते नीले रंग के फ्लोरल ब्रा पर उसके शैम्पू किये खुले बाल बिखरे हैं। आज से पहले मैंने कभी उसके कपड़ों पर गौर नहीं किया था। न जाने क्यूं आज कर रहा था। उसने गहरा पिंक लिपस्टिक लगाया है। मैनिक्योर्ड उंगलियों के नेल भी पिंक रंग से रंगे हैं। बायीं अनामिका में छोटे-छोटे हीरे से घिरे बड़ी सी रूबी जड़ित अंगूठी, गले में पतली सी चेन से लटकता मैचिंग पेंडेंट और दांई कलाई में स्लीक घड़ी। लड़की ज़्यादातर हलके रंग के कपड़े पहनती है। मैं उसे किसी अन्य रंग के कपड़ों में नहीं सोचता। वह जो पहनती है, मुझे वही मुग्ध करता है।
हंसिनी मेरे समक्ष है और मैं बेहद मुग्ध भाव से उसे निहार रहा हूं।
“तुमको देखा तो ये खयाल आया …” मेरे जेहन के आत्ममंथन को भाषा और भंगिमा देता यह गीत कैफ़े के पुराने रिकॉर्ड में धीमे धीमे गुनगुना रहा था। मेरी दशा गीत के आख्यायक सरीखे ही है, यह जानते हुए भी कि मेरी बेसकूं रातों का सवेरा एक नायिका ही है, मैं तमाम सुबहों से महरूम हूं।
“कैसे आना हुआ?” बेखुदी में एक ग़ैरज़रूरी सवाल पूछता हूं।
“लाइब्रेरी से किताबें लेनी थी और कुछ अन्य ज़रूरी काम थे।”
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#27
मुझसे मिलना ज़रूरी कामों में से एक नहीं था, सोचता मैं टेबल पर अपनी दोनो कांपती कोहनी को दृढ़ता से टिकाए सामान्य बने रहने की कोशिश करता हुआ उसके कुछ कहने का इंतज़ार करता हूं। मैं कुछ कहना नही चाहता, वह जो भी कहेगी वही मान्य होगा। यह अबोला समझौता है। वैसे भी हमारे बीच सबकुछ बिनबोला ही रहा है अब तक और अब मैं उसके बोलने की प्रतीक्षा कर रहा हूं।
“प्रेम लिखना बहुत सरल है किंतु प्रेम में होना दुष्कर।” उसने टेबल से कार की चाभी उठाते हुए कहा और चली गई।
मैं उसके मुड़कर देखने की प्रतीक्षा करता रहा। मैं उसकी प्रतीक्षा का आदी हूं।
ठंडी बेमज़ा चाय की छोटी छोटी घूंट भरता मैं उसके जाने के बहुत देर तक पशोपेश में रहा। वह क्यूं आई थी?
कुछ दिन पहले मैंने ही कहा था “उधर आती हो तो, कॉफ़ी के लिये…” मैंने बात अधूरी छोड़ दी थी।
सबके सामने यूं कहा था मानों ख़ास आमंत्रण ना देकर बस खानापूर्ति की हो। मैं किसी ख़ास तरह के निमंत्रण देने की स्थिति में था भी नहीं, लेकिन उसका मैसेज आने तक मैं अपनी उसी अधूरी बात में जीता रहा और वह मुझमें।
इन दिनों कुछ अलग सी दुश्वारियों में जी रहा था। मैं क्या कर रहा था, क्या चाहता था, कुछ समझ नही आ रहा था। कुछ समझना चाहता भी नहीं, बस उसका आना चाहता था। आज वो आई थी। अब चली गई है। उसके आने और जाने के बीच जो भी था, नॉर्मल नहीं था। वह जा चुकी है मैं वहीं बैठा हूं। मैं मुन्तज़िर हूं लेकिन वह नहीं आयेगी। वह जा चुकी है।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#28
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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#29
उसकी जूठी कॉफ़ी का आधा भरा कप वहीं रखा है। उस कप के साथ वह थोड़ी सी अब भी यहीं है। मैंने चारों ओर देखा, मेरे अलावा वहां एक आध और लोग थे और वे अपने गम में डूबे हुए थे। मेरे दर्द से किसी को कोई सरोकार नहीं था। आश्वस्त होकर मैंने उसका जूठा कप उठा लिया। ठीक लिपस्टिक से बने उसके होंठों के निशान पर मैंने अपने होंठ रख दिये। मैं उसे चूमना नहीं चाहता था, मैं उसके पास होना चाहता था। मैंने एक घूंट में उसकी छोड़ी हुई पूरी कॉफ़ी पी ली। कहते हैं जूठा पीने से प्यार बढ़ता है। ये मैंने क्या किया? घबराहट में मेरे पसीने निकल गये। अभी अभी तो वह कहकर गई है… प्रेम में होना दुष्कर है। जीवन वैसे भी सुगम नहीं, कम से कम प्रेम में जीना तो बिलकुल नहीं।
कितना सरल था जीवन जब हमारे बीच प्रेम नहीं था। प्रेम कब आया। शायद परछाईं सा पीछे लगा हुआ था, एक अदद मौक़े की तलाश में था। अब हमारे बीच है। नहीं, उसने छुआ नहीं है, मैंने भी नहीं देखा है लेकिन अब हमारे बीच है यह हमने जान लिया है!
आजिज मन से दरवाज़े से बाहर देखने लगा। अमूमन ऐसा तब होता है जब किसी का इंतज़ार होता है लेकिन वह जा चुकी है। शायद लौट कर नहीं आयेगी। फिर मैं दरवाज़े के पार क्यूं देख रहा हूं। मुझे इंतज़ार करना अच्छा लगता है जो कभी लौट कर नहीं आयेगी, उसका इंतज़ार। उसने यह नहीं कहा कि अब कभी नहीं आयेगी। लेकिन मैं समझ गया वह नहीं आयेगी। सार्वजनिक स्थलों पर मेरे ‘कैसी हो’ का ‘अच्छी हूं’ जवाब देगी!
मुझे कैफ़े में घुटन होने लगी, मैं जाने को उठ खड़ा हुआ किन्तु पुनः उस रिक्त कुर्सी पर जा बैठा जहां कुछ देर पहले वह बैठी थी। वहां उसके परफ्यूम की हल्की ख़ुशबू अभी भी बची हुई थी। ये वही ख़ुशबू है जो उसने उस दिन भी लगाया था। वह दिन बाक़ी दिनों से अलग था शायद। जब मुझसे “मैंने तुम्हें मिस किया” कहते हुए लिपट गई थी। हम कई महीनों बाद मिले थे, वह अपने पति के साथ थी और आलिंगन बेहद औपचारिक था, किन्तु उसके निष्ठ मन के ओज से मेरी देह तप गई थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#30
मैं उसके मुताल्लिक और नहीं सोचना चाहता “और भी गम हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा” और जो मोहब्बत ही गम हो तो क्या कीजे? भीतर से एक आवाज़ आई और मैं मुस्कुराया!
आधी रात की नीरवता में बीप की आवाज़ के साथ पत्नी ने करवट बदली।
उसका नाम मेरे मोबाइल पर कौंध रहा था, जैसे सफ़ेद शर्ट के बीच रखी पीले रंग की साड़ी “आई होप यू अंडरस्टैंड “।
“यस आई डू”
उसने मुस्कान भेजी, मैं ओढ़ कर सो गया।
वह कभी मेरी कल्पनाओं में निर्बाध विचरन करने वाली प्रेमिका नहीं हो सकी, बल्कि हमेशा ही अमत्त नायिका बनी रही और यक़ीनन उसकी उत्कृष्टता उसके रुढ़ीगत होने में ही समाहित रहा। जैसे हरशिंगार के टूट कर गिरने की परंपरा में ही उसकी विशिष्टता निहित होती है !
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#31
अनुरोध
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#32
(19-11-2020, 04:49 PM)neerathemall Wrote: अनुरोध
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#33
फ़ेस बुक ( F B ) भी क्या चीज़ है ! कितने लोगों से मिलाती है, बातें करवाती है, और बोरिंग लमहों को ख़ूबसूरत लमहों में ढाल देती है । मैं भी एक दिन ऐसे ही FB के पन्ने पलटते-पलटते लिखे हुए संदेश और तस्वीरों को देख रहा था । ऊँगली तेज़ी से चल रही थी । जब भी मेरी नज़र किसी विशेष फ़ोटो या संदेश पर पड़ती, तो मैं उसे विस्तार से देखता । FB के पन्नों को पलटते-पलटते मेरी नज़र एक फ़ोटो पर पड़ी । पहले तो फ़ोटो को मैंने आगे कर दिया परंतु, दूसरे ही पल उस फ़ोटो को वापिस ला कर ध्यान से देखा। पल भर के लिए मेरी नज़रें उस पर टिक गईं । वह तस्वीर एक शादी की सालगिरह की लगती थी । इस में वो दोनो हाथ में हाथ पकड़े एक दूसरे में खोए हुए थे।हालाँकि उनके चारों तरफ़ काफ़ी लोग खड़े थे, मगर ऐसा लगता था कि वो इस से बिलकुल बेख़बर थे ।
उस लड़की के चेहरे के भावों को देख कर मैं चकित रह गया । एक औरत अपना सब कुछ लुटा कर दिलो जान से मुहब्बत करती है । उसकी आँखें उसके भावों को बख़ूबी स्पष्ट कर रहीं थीं। कितना प्यार छलक रहा था, एक जुनून था उसकी आँखों में ।एक दम मेरे मुँह से वाह वाह सुभान अल्लाह निकल गया । वाह, इसे कहते हैं इश्क़ । उम्र उनकी लग भग ३७-३८ वर्ष हो गी । उनका यह अटूट प्रेम मेरे गीत में उतर गया, और मैंने चार पंक्तियाँ उस फ़ोटो के कॉमेंट बॉक्स में डाल दीं।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#34
हाथ में हाथ हो साथ चलते रहें
प्रीत के दीप राहों में जलते रहें
मुस्कुराती रहे हर तरफ़ चाँदनी
दिल के अरमान गीतों में ढलते रहें।

मैं टकटकी बांधे बड़ी देर तक उस तस्वीर को देखता रहा । क्यों की रात बहुत गुज़र चुकी थी, मेरी आँखें नींद से बोझल हो रहीं थीं । मैंने ipad इस इरादे से बंद किया, कि कल उस फ़ोटो को फिर से देखूँगा, कुछ ऐसी आकर्षण थी उस तस्वीर में ।

अगले दिन सुबह, हर रोज़ कि तरह, तैयार हो कर नाश्ते के पश्चात, सैर केरने को चला गया । जब में वापिस लौटा, तो मेरी पत्नी सुशम ने पहले ही से मेज़ पर लंच लगा दिया था, चीज़ सलाद और सूप। कहते हैं, कि जैसा देश वैसा भेस । इंग्लैंड का मौसम तो आप जानते हि हैं कि कैसा होता है । इसी लिए यहाँ पर लोग दोपहर को हल्का खाना ही खाते हैं । खाना खाने के बाद थोड़ी देर आराम किया । फिर मुझे ख़्याल आया कि क्यों ना FB पर कल वाली फ़ोटो फिर से देखी जाए । बड़ी देर तक ढूँढने की कोशिश की, मगर सफलता ना मिली । अचानक, मेरी नज़र एक फ़ोटो पर आ कर रुक गई । यह तस्वीर ब्लैक और वाइट में थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#35
इस पर लिखा था SSC officers based in London १९८० । क्यूँकि इस कम्पनी का अकाउंट हमारे बैंक में था, इस लिए मैं काफ़ी लोगों को जानता था । हो सकता है कि मैं किसी को पहचान सकूँ, इस विचार से मैं उस फ़ोटो को बड़े ध्यानपूर्वक देखने लगा । फिर एक व्यक्ति पर मेरी नज़र आ कर टिक गई । अरे, यह तो अपना मित्र जग्गी है । मैं तो इसे बड़ी अच्छी तरह जानता हूँ । इसकी पोस्टिंग ४० वर्ष पहले ३ वर्ष के लिए लंदन में हुई थी । उसके दो बच्चे भी हैं, एक लड़का और एक लड़की । लंदन में वह मेरे घर के पास ही रहता था, इस लिए अकसर मुलाक़ात हो जाती थी । और जब भी मैं उस के घर जाता, तो खाना खाए बग़ैर तो वह आने ही नहीं देता था । उसकी लड़की बिनू छोटी सी उम्र में ही काफ़ी सुलझी हुई थी, मगर उसका लड़का, जो की बीनू से छोटा था, कभी कुछ नहीं बोलता था । लेकिन उसकि आँखें बहुत रहस्यमय थीं । कुछ ना कहते हुए भी बहुत कुछ कह जाती थीं ।
३ वर्ष पूरे होने पर जग्गी की तब्दीली दिल्ली हो गई । कुछ वर्षों तक तो सम्बंध रहा, मगर यह कब टूट गया, याद नहीं । उसके बाद मेरी भी शादी हो गई और मैं अपनी ग्रहस्ती में व्यस्त हो गया। जैसे कि एक कहावत है ‘ आँख ओझल पहाड़ ओझल ‘ वाली बात हो गई । मगर वह तस्वीर देख कर बहुत सारी पुरानी यादें ताज़ा हो गईं और उस से मिलने की फिर से तमन्ना जाग उठी ।काफ़ी चेष्टा के बाद उसका पता मिल हि गया । मैंने FB पर उसके नाम संदेश भेजा और फिर उसके उत्तर की प्रतीक्षा करने लगा। जब कुछ दिन तक उसका जवाब नहीं आया, तो बड़ी निराशा हुई । फिर कोई एक मास के बाद उसका पैग़ाम आ ही गया । उस ने देर से जवाब देने के लिए क्षमा माँगी थी । इसके बाद FB पर काफ़ी संदेश अक्सचेंज होते रहे । उस ने कहा, कि मैं जब भी दिल्ली आऊँ, तो उस से ज़रूर मिलूँ । और फिर वह दिन आ ही गया ।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#36
मैं और मेरी पत्नी सुशम, नवंबर के महीने में दिल्ली के लिए रवाना हो गए । ऐरपोर्ट पर हमें लेने के लिए, मेरी छोटी बहन नीता और बहनोइ राज, आए हुए थे । जब हम हवाई-अड्डे से चले तो उनके घर पहुँचते-पहुँचते २.०० बज गए । वहाँ पर मेरी बड़ी बहन और उसके पती भी आ चुके थे । थोड़ी देर में खाना परोसा गया, और फिर खाने के साथ साथ फ़ैमिली के बारे में गप शप होती रही । मेरी बड़ी बहन और बहनोइ , कुछ देर के बाद अपने घर चले गए । हम भी आराम करने के लिए अपने कमरे में आ गए । मुझे थकान की वजह से फ़ोरन नींद आ गई । जब सुशम ने मुझे जगाया,तो शाम के ६ बज चुके थे । कहने लगी, सोते हि रहो गे क्या ? हम त्य्यार हो कर नीचे पहुँचे तो मेरी भांजी अंजु भी आ चुकी थी । बड़ी ख़ुशी से बोली, कैसे हो मामाजी ? इस से पहले कि मैं कोई ऊत्तर देता, वह मेरे गले से लिपट गई और फिर मेरे साथ वाली कुर्सी पर जम कर बैठ गई । उसकी और मेरी ख़ूब जमती है । वह एक लेखिका, चित्रकार तो है ही, इसके साथ-साथ सितार और हार्मोनीयम अच्छा ख़ासा बजा लेती है ।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#37
इधर-उधर की बातें करते हुए रात काफ़ी हो गई थी, हम शुभ रात्रि कह कर सोने के लिए अपने कमरे में आ गए । अगले कुछ दिन रिश्ते दारों से मिलने मिलाने में निकल गए ।ज्यों-ज्यों दिन बीत रहे थे, हमारे जाने का समय भी नज़दीक आ रहा था, और सुशम शोपिंग करने को बहुत उतावली हो रही थी । वह तो अपने साथ एक लम्बी लिस्ट ले कर आई थी, मगर अभी तक शोपिंग करने का अवसर हि नहीं मिला था ।ख़ैर, अगले दिन सुबह-सुबह उसने घोषणा कर दी कि वह और नीता, नाश्ते के बाद शोपिंग के लिए जाएँगी । यह सिलसिला कुछ दिन तक चलता रहा । हर शाम को वह सारी चीज़ें, जो दिन में ख़रीदती ,मुझे दिखाती, और फिर बड़े गर्व से कहती, कि किस तरह से उसने भाव-तोल कर के कितने पैसे बचाए हैं । भारत में शोपिंग भी एक आर्ट है जो कि हर एक के बस की बात नहीं ।
एक दिन मेरी नींद रात ३ बजे के क़रीब खुल गई और मैं दिल्ली के ट्रिप के बारे में सोचने लगा । मुझे याद आया मैं जग्गी से वादा कर चुका था कि दिल्ली आऊँगा तो ज़रूर मिलूँगा । बस, सुबह नाश्ते के बाद मैंने जग्गी को फ़ोन किया। किसी महिला ने फ़ोन उठाया । मैंने कहा कि जग्गी से बात करवा दें। थोड़ी देर में आवाज़ आई जगदीश here । जग्गी, यार क्या हाल है ? में शाम बोल रहा हूँ, दिल्ली से । सच में, शाम तू दिल्ली से बोल रहा है ? हाँ-हाँ यहीं से बोल रहा हूँ । वाह-वाह, मज़ा आ गया ।कब आया ? इतने दिन हो गए और आज फ़ोन कर रहा है । अच्छा, बता कब मिले गा ? इस से पहले कि मैं कुछ उत्तर देता, उसने कहा आज ही आ जा । मेरा दिल तो तुझे अभी मिलने को कर रहा है । मैंने कनाट प्लेस में किसी से मिलना है, परंतु मैं १.३० बजे तक ख़ाली हो जाऊँगा । जग्गी ने कहा तो किस वक़्त मिलेगा ? चलो तो अपनी पुरानी जगह रीगल पर हि २ बजे मिलते हैं ।

हालाँकि कनाट प्लेस में चार सिनमा हैं, मगर अकसर लोग रीगल पर ही मिलते हैं । मेरी मीटिंग १.३० से पहले ही ख़त्म हो गई । मैं इतना उत्सुक था जग्गी से मिलने को, कि रीगल पर २० मिनट पहले ही पहुँच गया । सुना था कि इंतज़ार की घड़ियाँ लम्बी होती हैं, और आज इसका मतलब भी समझ में आ गया ।एसा लगता था कि घड़ी की सुइयाँ एक जगह पर आ कर थम गईं हैं क्यूँ कि २ बजने को ही नहीं आ रहे थे । पास खड़ी महिला से टाइम पूछा । मेरी घड़ी में भी वहि टाइम था जो उस ने बताया ।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#38
आख़िर २ भी बज गए, मगर जग्गी का कोई अता-पता हि नहीं था । सोचा, चलो कुछ देर और इंतज़ार कर लेते हैं, फिर उस को फ़ोन करेंगे । इतनी देर में सामने से ऐक व्यक्ति को अपनी ओर आते हुवे देखा, मगर वह पास आ कर रुका नहीं, सीधा ही निकल गया । बड़ी निराशा हुई । अभी मैं सोच ही रहा था, कि किसी ने पीछे से मेरी पीठ पर हाथ मारा । शाम ? बस फिर क्या था । बड़े ज़ोर से गले मिले, और फिर सवालों की बोछार लग गई । यार माफ़ करना ट्रैफ़िक में फँस गया था इस लिए देर हो गई ।
बातें करते-करते हम यूनाइटिड कोफ़ी हाउस पहुँचे गए । कमाल की टमेटो फ़िश बनाते हैं, मैंने जग्गी से कहा । चलो, आज फ़िश ही खाएँगे । मगर इसके साथ वाइन भी तो होनी चाहिए । मुझे याद है, तू सिर्फ़ वाइन ही पिया करता था, जब हम लंदन में थे । कहीं छोड़ तो नहीं दी ? अरे कहाँ, क्या बात करता है ‘ छुटती नहीं है ज़ालिम मुँह से लगी हुई ‘ । शाम, यार तेरी शकल कितनी बदल गई है । हाँ भाई, बड़े उतार-चढ़ाओ देखे हैं ज़िंदगी में । मगर तू बिलकुल नहीं बदला । वैसे ही घने बाल, हाँ कुछ सफ़ेदी ज़रूर आ गई है । फिर दूसरे दोस्तों के बारे में बातें होती रहीं । बातों बातों में पता ही नहीं चला कि कब पाँच बज गए । जाते हुए उस ने कहा, किसी वीकएंड पे आ जा, सब से मुलाक़ात हो जाएगी । हाँ, भाभी को ज़रूर साथ लाना, तोशी ने कहा था।यार यह शर्त बड़ी मुश्किल है । मैं अपने आने का वादा तो कर सकता हूँ , मगर सुशम को साथ लाने का नहीं । वह आजकल नाश्ते के बाद शापिंग के लिए नीता को साथ ले कर जाती है । बस सारा दिन उसी में गुज़ार देती है । पहले तो वह बहुत सारी चीज़ें ख़रीद लाती है, और फिर कुछ दिनों के बाद ८०% से अधिकतर लोटा आती है । यह बात सुन कर, वह बड़े ज़ोर से हँसा । कहने लगा अधिकतर औरतें ऐसा ही करती हैं । फिर जल्दी मिलने का वादा कर के, हम ने बाई बाई की और अपने घर कि तरफ़ चल दीए ।
कुछ दिनों के बाद, जब सुशम और नीता शॉपिंग जाने के लिए त्य्यार हुईं, तो मैंने सुशम से कहा कि आज मैं अपने मित्र से मिलने जा रहा हूँ । बहुत अच्छा हो गा यदि तुम भी साथ चलो । उस ने कुछ नाराज़गी से कहा, इतनी शॉपिंग करनी बाक़ी है, और वापिस जाने में दिन ही कितने रह गये हैं ? मर्दों का क्या है, बातें तो औरतों को ही सुननी पड़ती हैं । सब के लिए कुछ ना कुछ प्रेज़ेंट तो लेना ही पड़े गा । मैं चुप चाप सब कुछ सुनता रहा ।
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#39
इतने वर्षों की शादी में यह तो सीख ही लिया था, कि पत्नी की हाँ में हाँ मिलाने में ही भलाई है । इसके बाद मैं टैक्सी ले कर जग्गी के घर कि तरफ़ चल दिया । उसके घर पहुँचते पहुँचते काफ़ी समय लग गया । सड़कें कुछ ऐसी ही थीं कि बस सारा इंजर-पिंजर ढीला हो गया । मैंने कोठी की घंटी बजाई तो ऐक युआ महिला ने दरवाज़ा खोला । आईऐ अंकल जी, हम आपकी ही राह देख रहे थे । इतनी देर में जग्गी भी आ गया । बड़े प्यार से गले मिला । यार, घर ढूँढने में तकलीफ़ तो नहीं हुई ? नहीं तो, मगर सड़कें और ट्रैफ़िक कुछ ऐसा था कि बस – -। फिर पीछे से आवाज़ आई, भाई साहब कैसे हो ? मुड़ कर देखा तो तोशी थी । जिस तरह वह प्यार से मिली, ऐसा लगा कि ४० वर्षों में कुछ भी तो नहीं बदला । वो दोनो वैसे ही थे जैसे कि लंदन में ।
जग्गी ने फिर अपने बेटे सोनू और उसकी पत्नी ममता से परिचय करवाया । उन दोनो नें, और उन के दोनो ब्च्चों ने मेरे पाँव छुए । भारतिए सभ्यता देख कर मैं गद गद हो गया और उन्हें बहुत दुआऐं दीं ।
जब हम सब अंदर जा कर बैठ गए, तो तोशी ने अपनी बहुरानी से कहा, बेटा अंकल जी के लिए कुछ चाए का इंतज़ाम करो । ममता चाए का इंतज़ाम करने में व्यस्त हो गई और मैं सोनू से बातें करने लगा । उसने बताया कि वह एक multinational कम्पनी में काम करता है । उसका ओफ़िस काफ़ी दूर है, इसलिए तक़रीबन चार घंटे आने जाने में लग जाते हैं । इतनी देर में चाये भी आ गई । कुछ देर उनके दोनो बच्चों से भी बातें कीं । फिर लंदन की पुरानी यादें ताज़ा करने लगे । तोशी ने कहा, भाई साब, आपको याद है जब Queen ने बीनू को बच्चों की पार्टी में Buckingham Palace बुलाया था । वो दिन हमारी ज़िंदगी का बहुत महत्वपूर्ण दिन था । हाँ हाँ, अछी तरह से याद है । और यह भी याद है कि उन्हों ने बीनू के लिए कार भी भेजी थी । उस दिन बीनू कितनी उत्तेजित थी । इतनी देर में ममता ने पूछा अंकल जी चीनी कितनी लेंगे ? बेटा हम चाय बग़ैर चीनी के पीते हैं । तोशी बोली, भाई साब आपको भी शूगर की बीमारी है क्या ? नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं है । शादी से पहले, मेरी पत्नी की यह शरत थी, कि शादी के बाद चाय बग़ैर शक्कर के पीनी पड़े गी तभी शादी करेगी । बस मैंने फ़ोरन हाँ कर दी । अब ग़लती तो इन्सान से हि होती है ना । सब हंस पड़े। जग्गी ने कहा यार तेरी मज़ाक़ करने की आदत अभी तक नहीं गई । ममता ने मुझे चाए का कप दिया, और अपना कप ले कर सोनू के पास जा कर बैठ गई । मैंने ममता से पूछा बेटे, आप क्या करती हैं ? उस ने कहा अंकल जी मैं डेप्युटी हेड टीचर हूँ, गणित और इंग्लिश पढ़ाती हूँ । और आप की होबी क्या है ? अंकल जी उस के लिए समय हि नहीं मिलता । हाँ, कभी अगर अवसर मिले, तो कुछ गीत ग़ज़ल पढ़ लेती हूँ । तो आपको पोयट्री में रुचि है । यह तो बहुत अच्छी बात है । हमें भी पोयट्री में काफ़ी रुचि है। सोनू ने कहा, तो आज की शाम, पोयट्री के नाम हो जाए । जग्गी और तोशी ने कहा यह तो बहुत अच्छा विचार है । ममता, आप ही कुछ सुनाएँ । अंकल जी ऐसे तो कुछ याद नहीं, आप ही शुरू करें । जब मुझे कुछ याद आ गया, तो सुना दूँगी । तो सुनिए । कुछ समय पहले एक गीत लिखा था, एक फ़ोटो से प्रभावित हो कर, जो मैंने FB पर देखी थी । जग्गी ने कहा, यार तूने कभी बताया ही नहीं कि तू लिखता भी है ।तोशी ने कहा तो सुनाईऐ ना । सुनाने से पहले इसके पीछे की कहानी संक्षिप्त में बता दूँ ताकि हर बात स्पष्ट हो जाए । एक दिन मैंने एक तस्वीर FB पर देखी । यह तस्वीर एक युवा कपल की थी जो अपनी शादी की सालगिरह मना रहे थे । वह एक दूसरे का हाथ पकड़े एक दूसरे के प्यार में पूरी तरह मगन थे । मुझे ऐसे महसूस हुआ कि उस के प्यार में इक जुनून था और वह अपने पप्रियतम से कह रही थी :

हाथ में हाथ हो साथ चलते रहें
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#40
प्रीत के दीप राहों में जलते रहें

अभी इतना ही पढ़ा था, कि ऐकदम ममता ने अनुरोध किया, अंकल जी प्लीज़ एक बार फिर से पढ़िए । मैंने उसकी तरफ़ सवालिया नज़रों से देखा । उसका चेहरा एकदम गम्भीर हो गया था । मैंने वह दो पंक्तियाँ फिर से पढ़ीं । वह जल्दी से उठी और मेरे पाओं के पास, ज़मीन पर आ कर बैठ गई । कहने लगी, अंकल जी, मेरे मन के भाव आप ने कैसे पढ़ लिए । मैं थोड़ा अचंभित हो गया ।

वह तस्वीर हमारी सालगिरह की थी और मैंने ही FB पर डाली थी । मैंने वह चार पंक्तियाँ, जो कॉमेंट बॉक्स में थीं, पढ़ीं । मैं असमंजस में पड़ गई थी कि यह कौन है जिस ने मेरे भावों को इस ख़ूबसूरती से इन पंक्तियों में ढाल दिया है ? उसके बाद आपको FB पर ढूँढने की कोशिश की, मगर असफल रही । तो वह चार पंक्तियाँ आप ने हि लिखी थीं । हाँ बेटा, फिर बाद में यह एक पूरा गीत बन गया ।शीग्र ही वातावरण में सन्नाटा छा गया और सबकी दृष्टि ममता पर टिक गई ।ममता ने कहा अंकल जी पूरा गीत पढ़ें । उस ने मेरी टांगो को इस तरह से कस के पकड़ लिया, जैसे कि एक छोटा बचा सुरक्षा के लिए अपनी माँ की टांगों से लिपट जाता है ।फिर उसने अपना सर मेरे घुटने पर टिका दिया । मैं बहुत भावुक हो गया और उसके सर को सहलाते हुए कहा
“मेरी बेटी“
फिर पूरा गीत तरन्नुम में पढ़ा । वह गीत वाला काग़ज़ उसको सोंप्ते हुए कहा, धन्यवाद बेटा आप ने इस प्यारे से गीत को जन्म दिया । मैंने देखा कि सब की आँखें नम थीं, ख़ास कर तोशी की । उनके अनुरोध पर कुछ और गीत सुनाए । मैंने नोटिस किया , कि ममता कुछ लिख रही थी । मेरे हाथ में एक काग़ज़ थमाते हुए बोली, अंकल जी यह कुछ पंक्तियाँ मैंने आप के लिए लिखी हैं । अच्छा बेटा, तुम ही पढ़ कर सुनाओ । क्या भाव थे इस निमन लिखित लेखन में जिन्हें मैंने बहुत सराहा ।
दुआ करते हैं ऐसी बहार फिर से हो
उनसे अपनी मुलाक़ात फिर से हो
उनसे मिल कर हमारा मन हरशाया
उनके आशीर्वाद में अपनापन पाया ।

थोड़ी देर में खाना परोसा गया । इतने में ममता मेरी साथ वाली कुर्सी पर आ कर बैठ गई। उस ने मेरी प्लेट में सारी चीज़ें थोड़ी थोड़ी भर दीं। मैंने खाना शुरू किया और तोशी से कहा कि वाह, खाना तो बहुत स्वादिष्ट बनाया है। वह कहने लगी भाई साब इस का श्रेय ममता को जाता है । सब कुछ इसी ने बनाया है । ममता की तारीफ़ सुन कर मुझे अंदर से बहुत ख़ुशी हुई । ज्यों ही गर्म गर्म रोटी आती, ममता मेरी पलटे में डाल देती और पहले वाली उठा लेती । मेरे अनुरोध करने पर, कि मेरा पेट बहुत भर गया है, वह कहती, थोड़ी सी और, मेरे लिए ।और फिर अंत में सूजी का हलवा परोसा गया। वाह वाह तोशी तू ने कमाल कर दिया । तो तुझे याद रहा कि मुझे यह बहुत पसंद है । तेरे जैसा हलवा तो कोई बना ही नहीं सकता। जो भी खाए, उँगलीयाँ चाटता रह जाए । याद है, लंदन में दो प्लेट से कम मैं खाता ही नहीं था । तो आज भी पेट भर के खाईऐ । मैंने ख़ास तोर पर आप के लिए ही बनाया है ।

थोड़ी देर में दीवार पर लगी घड़ी ने टन टन कर के ११ बजने का संकेत दिया । अरे जग्गी, यार बड़ी देर हो गई । अब जाने का वक़्त आ गया है । उसने कहा आज की रात यहीं रुक जा । नहीं यार, मेरा जाना बहुत ज़रूरी है । ममता ने मेरी तरफ़ इस तरह देखा, जैसे कह रही हो ‘पापा मत जाओ’ । फिर सब से मिले, और अंत में ममता से । वह मुझे से बड़े प्यार से गले मिली । मैंने उसके सर पे हाथ रखकर बहुत प्यार किया और दुआऐं दीं । इतना प्यार देख कर मुझे यक़ीन हो गया कि मेरा और ममता का पुनर जन्म का सम्बंध है । फिर मैंने अपने आप को बड़ी मुश्किल से ममता से अलग किया ।मुझे उस से अलग होते हुए ऐसा लगा कि जैसे मैं अपने जिगर के टुकड़े से बिछड़ रहा हूँ । इस पर हम दोनो की आँखें भर आईं । मैं बड़ी मुश्किल से अपना हाथ छुड़ा कर गेट से बाहर निकल आया । कुछ क़दम चल कर मैं ठिटका और मैंने मुड़ कर देखा । सब लोग अंदर जा चुके थे, मगर ममता वहीं खड़ी थी बाहें फैलाए ………..।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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