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जिनके उपन्यास पाकिस्तान में ही नहीं भारत में भी ब्लैक में बिका करते थे
#21
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क्या आपने इब्ने सफी का उपन्यास ‘कुंए का राज’ पढ़ा है? इस कहानी में आपको कई दिलचस्प किरदार मिल जाएंगे. तारिक जिसकी आंखें खतरनाक थीं (कहानी के बीच में पता चलता है कि दरअसल वो सांप के जहर का नशा करता है), जिसके पास एक अजीबोगरीब नेवला था जो पल भर में बड़े से बड़े शहतीर काट कर फेंक देता था.

परवेज- एक चालीस साल का बच्चा जो घुटनों के बल चलता था, बोतल से दूध पीता था और नौकर उसे गोद में उठाए फिरते थे. वो इमारत जिसकी दीवारों से दरिंदे जानवरों की आवाजें आती थीं. वो कुआं जिससे अंगारों की बौछारें निकलती थीं. क्या कहा, आपने नहीं पढ़ा? तो हम ये कह सकते हैं की आपसे कुछ ऐसा छूट गया है जो बेशकीमती था.

लगभग तीन दशक में बिना दोहराए 126 उपन्यास लिखे

इब्ने सफी हर महीने एक नॉवेल लिखते थे. उनका पहला उपन्यास था ‘दिलेर मुजरिम’ जो साल 1952 में प्रकाशित हुआ. इसी साल उनके 10 और उपन्यास आए. 1952 से 1979 तक उन्होंने कुल 126 उपन्यास लिखे लेकिन अपने आपको कभी दोहराया नहीं. शुरूआती लेखन में उनके ऊपर अंग्रेजी नॉवेलों का असर रहा लेकिन जल्दी ही उनका कथानक पूरी तरह से हिंदुस्तानी परिवेश में रच और बस गया. फिर उपन्यास में उन्होंने ऐसे नायाब प्रयोग किये जो आज भी अनूठे हैं.



ये लेखक इब्ने सफी का इसलिए हमेशा ऋणी रहेगा क्योंकि उसका ये निश्चित मानना है कि अगर जासूसी दुनिया पढ़ने के लिए उसमें दीवानगी न पैदा हुई होती तो उसका उर्दू सीखना नामुमकिन था. पहले बड़ी बहनों से जासूसी दुनिया को सुनना फिर हिज्जे लगा-लगाकर उन्हें अकेले में पढ़ना. ये तो लेखक को बहुत बाद में आभास हुआ कि किसी भाषा को तभी आत्मसात किया जा सकता है जब उस भाषा के सहारे आप अपनी कल्पनाओं में गोते लगाने लगें.

इब्ने सफी का नाम था असरार अहमद और इलाहाबाद जिले के नारा कस्बे में 26 जुलाई, 1928 को उनका जन्म हुआ था. उस जमाने में बीए पास करना एक उपलब्धि हुआ करती थी (उन्होंने आगरा विश्वविद्द्यालय से बीए पास किया) शायद इसीलिए वो हमेशा ‘इब्ने सफी बीए’ लिखा करते थे. हालांकि शुरुआती दिनों में उन्होंने ‘असरार नारवी’, ‘सनकी सोल्जर’ और ‘तुगरल फुरगान’ नाम से भी उर्दू पत्रिका निकहत के लिए लिखा जो इलाहाबाद से निकलती थी.

असरार अहमद यानी इब्ने सफी बाद में पकिस्तान चले गए लेकिन निकहत पब्लिकेशन से उनका अनुबंध बना रहा और उनके उपन्यास हिन्दुस्तानी पाठकों तक हर महीने पहुंचते रहे. ये उपन्यास मूलतः उर्दू में छपते थे जिनका हिंदी अनुवाद प्रेम प्रकाश करते थे. उन्होंने इब्ने सफी के जासूसों के नाम हिंदी पाठकों के लिए गढ़ लिए थे.

कर्नल फरीद हिंदी में कर्नल विनोद हो गए और इमरान की जगह राजेश का बोलबाला हो गया. उनके एक और बहुत रोचक किरदार कैप्टन हमीद हिंदी में भी हमीद ही रहे. कर्नल विनोद और कैप्टन हमीद की जोड़ी ने हिंदी पाठकों के दिल में वो जगह बनाई जो आज भी अमिट है.



पाकिस्तान जाना निजी क्षति महसूस होती है

भारत-पाक विभाजन की त्रासदी अपनी जगह लेकिन उन लाखों हिंदुस्तानियों में ये लेखक भी शामिल है जिन्हें सआदत हसन मंटो, जोश मलीहाबादी और इब्ने सफी का पकिस्तान जाना, निजी क्षति महसूस होती है.

जासूसी या रहस्यमयी कथाओं की परंपरा हिंदुस्तान में भले ही न पनपी हो लेकिन अंग्रेजी और यूरोप की बहुत सी भाषाओँ में जासूसी उपन्यासों का एक लंबा इतिहास है. हमारे देश में सामाजिक, एतिहासिक और धार्मिक कथाओं का ही बोलबाला दिखाई देता है. वैसे जासूसी की बात छोड़ दीजिए, आज उपन्यास पढने-पढ़ने का रिवाज भी हमारे समाज में खत्म सा हो चला है.

मनोरंजन के नाम पर पढने से ज्यादा देखने का प्रचलन है. प्रेम-सेक्स, सास-बहू और ननद-भाभी की साजिशें ही हमारी कहानियों का हिस्सा हैं या फिर एतिहासिक कथाएं. यह सारा का सारा मनोरंजन टीवी के परदे से होता हुआ हम तक पहुंच रहा है.

ऐसे में बीते दिनों के उस मनोरंजन को सिर्फ याद कर के ही जो सिरहन सी दौड़ जाती है उसे आज की इंटरनेट पीढ़ी को बताना भी ऐसा है जैसे आप पत्थर से बात कर रहे हों. ऐसे में उस जासूसी दुनिया की बात करना, उस इब्ने सफी की बात करना जिसने 3 दशक तक अपने पाठकों के दिलों पर सिर्फ हुक्मरानी ही नहीं की बल्कि उनके बौद्धिक स्तर को भी उंचा किया.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#22
जाने माने कथाकार नीलाभ (जिन्होंने इब्ने सफी उपन्यास-माला का संपादन भी किया) एक जगह लिखते हैं 'कहते हैं कि जिन दिनों अंग्रेजी के जासूसी उपन्यासों की जानी-मानी लेखिका अगाथा क्रिस्टी का डंका बज रहा था, किसी ने उनसे पूछा कि इतनी बड़ी तादाद में अपने उपन्यासों की बिक्री और अपार लोकप्रियता को देखकर उन्हें कैसे लगता है? इसपर अगाथा क्रिस्टी ने जवाब दिया कि इस मैदान में वह अकेली नहीं हैं, दूर हिंदुस्तान में एक और उपन्यासकार है जो हरदिल-अजीज और किताबों की बिक्री में उनसे उन्नीस नहीं है. वो उपन्यासकार है – इब्ने सफी.'
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#23
सिर्फ अगाथा क्रिस्टी की ही बात नहीं है, हिंदी के एक और बेहद सफल जासूसी लेखक सुरेंद्र मोहन पाठक का भी मानना है 'इब्ने सफी को जन्मजात रहस्यकथा लेखक कहा जाय तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. जब तक उन्होंने लिखा, इस क्षेत्र में उनसे आगे कोई नहीं था.'

उपन्यास ऐसे बिकते थे जैसे राशन की दुकान पर शक्कर

ब्लिट्ज (उर्दू संस्करण) के संपादक और मशहूर शायर ‘हसन कमाल’ अपने बचपन के लखनऊ में बिताए दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि 'जिस दिन इब्ने सफी का नोवेल दुकान पर आने वाला होता था, घंटों पहले से दुकान के सामने लाइन लग जाती थी. उनके उपन्यास ऐसे बिकते थे जैसे राशन की दुकान पर शक्कर.'

आज के समय में उपन्यास लेखन पर (खासतौर पर हिंदी में), एक प्रश्न-चिन्ह लगा हुआ है. लेकिन लोकप्रिय मनोरंजन की अगर बात की जाए तो ‘पल्प-फिक्शन’ यानी लुगदी साहित्य में जो कुछ हमारे सामने है उसमें चालू, बाजारू, या फुटपाथिया कहे जाने वाले उपन्यासों की भरमार है. ऐसे में इब्ने सफी के उपन्यासों के किरदार, उनका नैतिक आचरण, दिलकश साहित्यिक भाषा और कथानक में पाठकों को बांधे रखने की अद्भुत क्षमता सिर्फ उन्हीं के दिमाग की उपज थी.

ज़ाहिर है कि जुर्म ही वो चीज़ है जिसके इर्द-गिर्द जासूसी कहानी का ताना-बाना बुना जाता है लेकिन इब्ने सफी जासूसी कहानी के बहाने समाज की जेहनी परवरिश भी करते चलते हैं. वो खुद एक जगह लिखते हैं- 'मैं सोचता... सोचता रहा. आखिरकार इस नतीजे पर पहुंचा कि आदमी में जब तक कानून को स्वीकार करने का सलीका नहीं पैदा होगा, यही सब कुछ होता रहेगा. यह मेरा मिशन है कि आदमी कानून का एहतेराम करना सीखे और जासूसी नॉवेल की राह मैंने इसीलिए चुनी थी. थके हारे लोगों का मनोरंजन भी करता हूं और उन्हें कानून को स्वीकार करना भी सिखाता हूं.'
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#24
शायद इसीलिए इब्ने सफी ने अपनी खलनायकों पर बहुत मेहनत की. उन्होंने खलनायक डॉ. नारंग, हकीम आर्सेलानोस, अल्बोंसे, डॉक्टर दोयेगो, गेराल्ड शास्त्री और मशहूर खलनायिका थ्रेसिया जैसे अनेक किरदार गढ़े. ये सारे मुजरिम प्रतिभाशाली भी हैं और विश्वासघाती भी. ये कहानी में दोस्त बनकर भी आते हैं और कभी-कभी तो ऐसे आते हैं कि जब तक आप पर ये राज खुले कि वो खलनायक हैं, वो आपके दिल में बस चुके होते हैं.

जाहिर है ऐसा कर के इब्ने सफी बड़ी बेदर्दी से आपका दिल तोड़ बैठते हैं और एक मुद्दत के लिए उनका कथानक आपको परेशान करता रहता है.
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#25
जासूसी कहानियों लिखने के अलावा माहिर हास्य व्यंग्य और बेहतरीन शायर थे

आखिरकार 1980 में असरार अहमद उर्फ इब्ने सफी ने, उसी दिन जब उनके पाठक उनका जन्मदिन मना रहे थे, अलविदा कह कर सबको चौंका दिया. वो सिर्फ जासूसी कहानियां ही नहीं लिखते थे बल्कि एक माहिर हास्य-व्यंग्य कथाकार के साथ-साथ हरदिल अजीज शायर भी थे. चलते-चलते उनकी गजल के कुछ शेर-

रहे-तलब में कौन किसी का अपने भी बेगाने हैं

चांद से मुखड़े रश्क-ए-गजालां सब जाने पहचाने हैं

उफ्फ ये तलाशे-हुस्नो-हकीकत किस जा ठहरे जाए कहां

सहने-चमन में फूल खिले हैं सहरा में दीवाने हैं

बिल आखिर थक-हार के यारों हमने भी तस्लीम किया

अपनी जात से इश्क है सच्चा बाकी सब अफसाने हैं
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#26
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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#27
[Image: ibn-e-safi.png][Image: w6skF4Y7aVFu049g9DdHWO6yR2-A0LD-vvWUXsUD...7wguXsyfp8][Image: 5622180.jpg][Image: 200+-+Dhuyei+Ki+Murti.JPG][img]https://urduw,.'s.files.wordpress.com/2014/04/ibne_safi-18_yrs_approx.jpg[/img][Image: main-qimg-089d0dc32c35bf379558ad3745c17a0e][Image: JASOOSI%2BDUNIYA%2B-%2BKHOONI%2BPYASA.jpg][Image: images?q=tbn%3AANd9GcTEejWZENUTEJMt4ooeF...Q&usqp=CAU][Image: Imran-Series-Jild-2-by-Ibne-Safi-2.gif]
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#28
[Image: Ibne-Safi-1.jpg]












[Image: images.jpeg][Image: 9789380283944.jpg][Image: Daler-Mujrim-Jasoosi-Dunya-No-1-By-Ibn-Safi.jpg]
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#29
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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#30
इसरार अहमद उर्फ इब्ने सफी साहब का जासूसी दुनिया पत्रिका में सन् 1942 में प्रथम उर्दू उपन्यास प्रकाशित हुआ 'बहादुर अपराधी' जो की बाद में हिन्दी में 'दिलेर मुजरिम' के नाम से भी प्रकाशित हुआ। यह इब्ने सफी का पहला उपन्यास है, और यह 'जासूसी दुनिया' पत्रिका में प्रकाशित हुआ , हार्पर काॅलिंस द्वारा प्रकाशित इब्ने सफी का पहला उपन्यास है, इंस्पेक्टर फरीदी और हमीद का पहला उपन्यास है और इस ब्लॉग पर समीक्षार्थ इब्ने सफी का पहला उपन्यास है।
अब चर्चा करते है उपन्यास कथानक की। उपन्यास का आरम्भ डाॅक्टर शौकत से होता है। शौकत अली की माँ सविता देवी का कत्ल हो जाता है। (बेटा शौकत और माँ सविता, यह भी एक रहस्य है)
[b]सविता देवी सिर से पाँव तक कम्बल ओढ़े चित लेटी हुई थी और उनके सीने में एक ख़ंजर इस तरह घोंपा गया था कि सिर्फ़ उसका हत्था नज़र आ रहा था। बिस्तर ख़ून से तर था।[/b]
इस कत्ल की खोजबीन के लिए इंस्पेक्टर फरीदी और हमीद का आगमन होता है।
[b]इन्स्पेक्टर फ़रीदी तीस-बत्तीस साल का एक तेज़ दिमाग़ और बहादुर जवान था। उसके चौड़े माथे के नीचे दो बड़ी-बड़ी आँखें उसकी क़ाबिलियत को नुमायाँ करती थीं। उसके लिबास के रख-रखाव और ताज़ा शेव किये चेहरे से मालूम हो रहा था वह एक उसूल वाला आदमी है। सार्जेंट हमीद की चाल-ढाल में थोड़ा-सा ज़नानापन था। उसके अन्दाज़ से मालूम होता था कि वह ज़बर्दस्ती अपने हुस्न की नुमाइश करने का आदी था। उसने कोई बहुत ही तेज़ ख़ुशबू वाला सेंट लगा रखा था। उसकी उम्र चौबीस साल से ज़्यादा न थी, लेकिन इस छोटी-सी उम्र में भी वह बहुत चतुर और बुद्धिमान था।[/b]
         फरीदी एक रहस्य से आवरण हटाता है - [b]अब मामला बिलकुल ही साफ़ हो गया कि सविता देवी डॉक्टर ही के धोखे में क़त्ल हुई थीं।[/b]
कहानी का दूसरा घटनाक्रम है नवाब वजाहत मिर्जा का। मिर्जा के बीमार होने पर उनके रिश्तेदार उसकी सम्पत्ति को हड़पना चाहते हैं। लेकिन यहाँ भी इंस्पेक्टर फरीदी का आगमन हो जाता है।
अब दोनों घटनाक्रम कैसे एक होते हैं‌ और कौन षड्यंत्र रचता है, यह पठनीय है। क्या कारण रहा था की डाॅक्टर शौकत की माँ का कत्ल कर दिया जाता है। यह सब काम एक चालाक अपराधी द्वारा किया जाता है जो पर्दे के पीछे रहकर खतरनाक खेल खेलता है। इंस्पेक्टर फरीदी भी अपराधी की बुद्धिमता को मानता है।
[b]ऐसा बहादुर अपराधी आज तक मेरी नज़रों से नहीं गुज़रा...!
‘‘आइए...तो चलिए, उसे तलाश करें।’’ हमीद ने कहा।
‘‘पागल हो गये हो...अब तुम उसकी परछाईं को भी नहीं पा सकते। वह मामूली दिमाग़ का आदमी नहीं।’’
[/b]
        अपराधी की जासूस वर्ग की आँखमिचौली उपन्यास में निरंतर चलती रहती है। हालांकि मध्यांतर पश्चात अपराधी का पता चल जाता है लेकिन उसको पकड़ने के लिए फरीदी जो जाल बुनता है वह फरीदी के बुद्धि कौशल का कमाल पठनीय है।

उपन्यास में हमीद का चित्रण अधिकांश हास्य उपस्थित करने के लिए किया गया है लेकिन उपन्यास में उपस्थित वैज्ञानिक प्रोफेसर इमरान का किरदार बहुत रोचक है। वह सनकी है, पागल है और हास्य पैदा करने वाला भी है।

[b]‘‘मुझसे मिलिए...मैं प्रोफ़ेसर इमरान हूँ।’’ उसने हाथ मिलाने के लिए दायाँ हाथ बढ़ाते हुए कहा। ‘‘और आप...!"
‘‘मुझे शौकत कहते हैं...!’’ शौकत ने बेदिली से हाथ मिलाते हुए कहा।
डॉक्टर शौकत रुक गया। उसे महसूस हुआ जैसे उसके जिस्म के सारे रोयें खड़े हो गये हों। इतनी ख़ौफ़नाक शक्ल का आदमी आज तक उसकी नज़रों से न गुज़रा था।
[/b]

उपन्यास में एक जगह वर्णन आता है। जहाँ हमीद जासूस फरीदी को कहता है।
...इस वक़्त तो आप किसी चालीस रुपये वाले जासूसी नावेल के जासूस की तरह बोल रहे हैं।’’ हमीद बोला।
उस समय चालीस रूपये की उपन्यास की कल्पना असंभव सी जान पड़ती है या यह हार्पर काॅलिंस की मुद्रण गलती है।

[b]निष्कर्ष-[/b]
          हत्या और फिर अपराधी की खोज पर आधारित यह छोटा सा उपन्यास वास्तव में दिलचस्प है। हालांकि खलनायक का पता मध्यांतर पश्चात चल जाता है लेकिन उसके पीछे का कारण, हत्या के तरीके आदि उपन्यास को बांधे रखते हैं।
उपन्यास रोचक और पठनीय है।


[b]उपन्यास- दिलेर मुजरिम (प्रथम संस्करण- मार्च, 1942)
लेखक- इब्ने सफी
प्रकाशक- हार्पर काॅलिंस
[/b]
इब्ने सफी का प्रथम उपन्यास
(06-08-2020, 12:46 PM)neerathemall Wrote:
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#31
खामोश, मौत आती है!- कर्नल रंजीत
- December 28, 2017
. मौत का अनोखा खेल
खामोश, मौत आती है- कर्नल रंजीत, थ्रिलर, रोमांच। मेजर बलवंत का कारनामा।
--------------------------
दिल्ली शहर में एक के बाद एक खूबसूरत लङकियों का अपहरण होता है। बहुत कोशिश के पश्चात भी सिक्युरिटी किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पाती। तब दिल्ली शहर में आये मेजर बलवंत की मुलाकात सिक्युरिटी इंस्पेक्टर रंजीत से होती है। इस तरह मेजर बलवंत इस अपहरण के केस से जुङ जाता है। इसी दौरान एक फोटो स्टुडियो पर काम करने वाले मथुरा दास का कत्ल हो जाता है। इस कत्ल के पश्चात मेजर बलवंत और उसकी टीम एक -एक कङी जोङती जाती है और जा पहुंचती है असली अपराधी तक।

- जासूसी उपन्यास लेखन के सरताज कर्नल रंजीत की अनोखी कलम से हैरतअंगेज कारनामों से भरा एक और अनोखा कारनामा- खामोश, मौत आती है।
- कैसी थी वह मौत, जो बिना किसी आहट के चुपचाप चली आती थी? क्या सचमुच मौत थी वह या मौत से भी बढकर कुछ और?
- राजधानी में खूबसूरत लङकियों का एक के बाद एक अपहरण होने लगता है और फिर उनके मंगेतर या प्रेमी भी गायब होने लगते हैं, क्या तालमेल था दोनों तरह के अपहरण में?
- खूबसूरत जवानियों को तबाह करने का घिनौना और भयानक खेल। कौन था वह सफेदपोश भेङिया, जो मासूम युवक-युवतियों को जीते जी मौत भेंट देता था।
- भावनाओं की ब्लैकमेलिंग का अजीबोगरीब तरीका जिसे शातिर बदमाश की बुद्धि ही खोज सकती थी।
- सनसनी और रहस्य-रोमांच का जबरदस्त तूफान जो मन -मस्तिष्क को हिलाकर रख देता है।
भारत की सर्वप्रथम पाॅकेट बुक्स हिंद पॉकेट बुक्स की प्रस्तुति कर्नल रंजीत का उपन्यास - खामोश, मौत आती है।

उपन्यास का आरम्भ जितना अच्छा होता है उसके बाद यह उपन्यास इतना अच्छा रह नहीं पाता। कहीं- कहीं तो लगता है पता नहीं कहानी कहां जा रही है। उपन्यास को आवश्यक से ज़्यादा घूमाने के चक्कर में लेखक मूल कहानी से भटका सा लगता है। और इसी भटकाव के चक्कर में कहानी का आनंद खत्म हो जाता है।
पाठक जहाँ प्रारंभ में शहर में हो रहे खूबसूरत लङकियों के अपहरण को जानने को बेचैन है, तभी वहाँ मथुरादास के कत्ल का किस्सा आरम्भ हो जाता है। अभी यह किस्सा पूरा नहीं हो पाता की नकली नोटों की चर्चा चल निकलती है। और नकली नोटों का किस्सा पूरा सिरे नहीं चढता की शहर में कुछ युवाओं के अपहरण के घटना घटित हो जाती है। पाठक अभी इनसे से निपट नहीं पाता की उपन्यास खत्म भी हो जाता है।
उपन्यास को अच्छा बनाया जा सकता था पर लेखक ज्यादा नाटकीय घटनाओं के चक्कर में उपन्यास की मूल कहानी के साथ न्याय नहीं कर पाया।
उपन्यास के अंत में जिसे अपराधी दिखाया गया वह भी कोई दमादार नहीं लगा।

मनोरंजन के लिए इस उपन्यास को एक बार तो पढा जा सकता है।

--------
उपन्यास- खामोश, मौत आती है।
लेखक- कर्नल रंजीत
प्रकाशक- हिंद पॉकेट बुक्स
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#32
इब्ने सफी (मूल नाम असरार अहमद) का जन्म का जन्म 26 जुलाई 1928 को उत्तर प्रदेश के  इलाहाबाद जिले के नारा नामक स्थान में हुआ था.  कला में स्नातक की उपाधि लेने के पश्चात् वे 1948 में नकहत  प्रकाशन में कविता विभाग में एडिटर के रूप में अपने प्रथम कार्य में जुड़ गए.  नकहत प्रकाशन की स्थापना 1948 में ही उनके घनिष्ठ मित्र और प्रेरणा स्त्रोत अब्बास हुसैनी जी ने की थी. इसी समय इब्ने सफी ने विविध विधाओं में अपने हुनर के साथ प्रयोग किया और प्रथम कहानी 'फरार' का प्रकाशन इसी वर्ष हुआ, परन्तु इब्ने सफी इससे संतुष्ट नहीं थे. 

फिर 1952 में वह दिन आया जिसने न केवल इब्ने सफी और नकहत प्रकाशन बल्कि संपूर्ण उर्दू उपन्यास जगत को बदल दिया. इब्ने सफी की सलाह पर अब्बास हुसैनी जी ने मासिक जासूसी उपन्यास के प्रकाशन की व्यवस्था की और मार्च 1952 में 'जासूसी दुनिया' का प्रथम अंक प्रकाशित हुआ. असरार ने पहली बार इब्ने सफी नाम का प्रयोग किया और उनके  प्रथम उपन्यास 'दिलेर मुजरिम' ने जासूसी दुनिया (उर्दू) के प्रथम उपन्यास होने का गौरव प्राप्त किया.  परन्तु इसी वर्ष अगस्त 1952 में वे पाकिस्तान चले गए. पाकिस्तान जाने के बाद भी भारत में उनके उपन्यास के चाहने वालों से उनका साथ नहीं छूटा और उनके उपन्यास नकहत प्रकाशन के द्वारा निरंतर भारत में प्रकाशित किये जाते रहे.
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#33
1955 में उन्होंने इमरान नाम से नए चरित्र को जन्म दिया और प्रसिद्ध इमरान सीरिज की शुरुआत हुयी. इस सीरिज की पहली पुस्तक थी - खौफनाक इमारत जो अगस्त 1955 में कराची और नवम्बर 1955 में भारत में प्रकाशित हुयी. 


अक्टूबर 1957  में उन्होंने  कराची में असरार प्रकाशन नाम से स्वयं की संस्था की शुरुआत की और पाकिस्तान में जासूसी दुनिया के प्रथम अंक 'ठंडी आग' का प्रकाशन हुआ. भारत में इसी माह इसका प्रकाशन हुसैनी जी के नकहत प्रकाशन द्वारा किया गया. 

उर्दू साथित्य में 'जासूसी दुनिया' और 'इमरान सीरिज' जैसे नगीने देने वाले सफी जी की मृत्यु उनकी जमम दिवस के ही दिन जुलाई 26, 1980 को लम्बी बीमारी के पश्चात हो गयी.

इब्ने सफी द्वारा लिखित इमरान सीरिज के उपन्यास 'बेबाकों की तलाश' पर आधारित 'धमाका'  नामक फिल्म दिसम्बर 1974 में प्रदर्शित हुयी थी. यह उनके द्ववारा लिखी गयी एकमात्र फिल्म थी. इसमें इब्ने सफी ने अपनी आवाज़ दी थी. 

विश्व विख्यात महान जासूसी लेखिका अगाथा क्रिस्टी ने कहा था - "मुझे उर्दू का ज्ञान नहीं है परन्तु मुझे उपमहाद्वीप के जासूसी उपन्यासों की जानकारी है - और इब्ने सफी ही एकमात्र ओरिजनल लेखक हैं."
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#34
जासूसी दुनिया की वास्तविक शुरुआत भारत में ही मार्च 1952 में नकहत प्रकाशन, इलाहाबाद से श्री अब्बास हुसैनी द्वारा की गयी थी. जैसा की उपरोक्त वर्णित हैं की जासूसी दुनिया का प्रकाशन पाकिस्तान और भारत दोनों में ही अलग-अलग प्रकाशकों के द्वारा साथ-साथ किया जाता रहा था. 


नकहत प्रकाशन के द्वारा जासूसी दुनिया का प्रकाशन उर्दू से प्रारंभ किया गया था और मार्च 1952 में प्रकाशित प्रथम उपन्यास थी - दिलेर मुजरिम. 

बदती लोकप्रियता को देखते हुए जासूसी दुनिया को जल्द ही हिंदी भाषा में भी प्रकाशित किया जाने लगा. दिसम्बर 1952 में प्रथम अंक - खून की बौछार का प्रकाशन हुआ. 

जासूसी दुनिया के करीब 250+ विविध अंक प्रकाशित हुए जिनमे इब्ने सफी की मूल जासूसी दुनिया के साथ इमरान सीरिस का भी प्रकाशन किया गया था. 1990 में हुसैनी जी की मृत्यु के बाद उनके पुत्र इम्तियाज हैदर ने संपादक की भूमिका निभायी
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#35
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#36
https://drive.google.com/file/d/1ChV1-sB...8m4Wr/view
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#37









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#38
इब्ने सफी की जासूसी दुनिया
पिछले दिनों प्रकाशन जगत में अंतर्राष्ट्रीय स्टार पर दो घटनाएँ ऐसी हुई जिनको कोई खास तवज्जो नहीं दी गई, लेकिन उसने लगभग गुमनाम हो चुके एक लेखक को चर्चा में ला दिया. बात इब्ने सफी की हो रही है. उनकी एक किताब का अनुवाद अंग्रेजी के मशहूर प्रकाशन रैंडम हाउस ने प्रकाशित किया. यही नहीं हाल में ही हिंदी प्रकाशन शुरू करनेवाले प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशक हार्पर कॉलिन्स ने उनकी १५ किताबों को प्रकाशित कर एक तरह से जासूसी उपन्यासों के इस पहले भारतीय लेखक कि ओर ध्यान आकर्षित करने का काम किया है. उनकी लोकप्रियता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके बारे में एक दौर में कहा जाता था कि चंद्रकांता तथा चंद्रकांता संतति ने बड़े पैमाने पर हिंदी के पाठक तैयार किये, जिस जमीन पर हिंदी साहित्य कि विकास यात्रा आरम्भ हुई, तो इब्ने सफी ने आधुनिक पाठकों कि वह मनःस्थिति तैयार की जिसकी भीत पर आधुनिक हिंदी साहित्य का महल खड़ा हुआ. भले यह बात तंजिया कही जाती रही हो लेकिन इस बार का भी एक आधार है.


इब्ने सफी से पहले लोकप्रिय उपन्यासों कि दुनिया राजे-रजवाड़ों की सामंती गलियों में भटक रही थी. वह तिलिस्म-ऐयारी की एक ऐसी दुनिया थी जिसका अपने नए बनते शहरी समाज से कुछ खास लेना-देना नहीं था. इसी दौर में विदेशी जासूसी उपन्यासों के हिंदी अनुवादों का बाजार बना. हिंदुस्तान के नए शिक्षित समाज को शहरी जासूस अधिक बहाने लगे थे. इसी दौर में इब्ने सफी के ठेठ भारतीय पृष्ठभूमि के जासूसों विनोद-हामिद, इमरान, राजेश ने दस्तक दी. वे हिंदी के पहले अपने जासूस थे, ठेठ भारतीय लेकिन अपने पाठकों की ही तरह पढ़े-लिखे आधुनिक. देखते देखते इब्ने सफी के न जासूसों ने पाठकों के बीच ऐसी जगह बनाई कि कहते हैं उस दौर में इब्ने सफी के उपन्यासों की इतनी मांग रहती थी कि लोग उसे ब्लैक में खरीदकर पढते थे. मूलतः उर्दू में लिखने वाले इस लेखक के बारे में कहा जाता है कि कि उर्दू साहित्य साहित्य के इतिहास में इतना लोकप्रिय दूसरा कोई लेखक नहीं हुआ. हिंदी में उनके अनुवादों की धूम थी.
१९२८ में इलाहाबाद के नारा में पैदा हुए इब्ने सफी का नाम असरार अहमद था और यह बहुत कम लोगों को पता होगा कि लिखने कि शुरुआत उन्होंने शायरी से की थी और ताउम्र खुद को शायर ही मानते रहे. कहा जाता कि उन्होंने जासूसी उपन्यास लिखना एक चुनौती के तहत शुरू किया. उन दिनों उर्दू में अंग्रेजी से अनूदित जासूसी उपन्यास छपते थे और जिनमें सेक्स पर ख़ासा ज़ोर होता था. उनका मानना था कि बिना सेक्स के भी अच्छे जासूसी उपन्यास लिखे जा सकते हैं. उनके दलीलों को सुनकर एक दिन उनके एक दोस्त ने चुनौती दी की खाली बात करने से क्या फायदा अगर कूवत है तो ऐसा कोई जासूसी उपन्यास लिखकर दिखाओ जिसमें सेक्स का वर्णन भी ना हो और पाठकों को जिसे पढ़ने में भी आनंद आए. कहते हैं शायर असरार अहमद ने इस तरह के बाजारू उपन्यास लिखने के लिए इब्ने सफी का नाम अपनाया. संयोग ऐसा देखिये उसके बाद शायर असरार अहमद का नाम कोई जान नहीं पाया. इब्ने सफी उपनाम उस पर भारी पड़ गया. आज़ादी और विभाजन बाद के दौर में असरार अहमद उर्फ इब्ने सफी के इस नए सफर की शुरुआत हुई. जिसकी बुनियाद में यह बात थी कि उर्दू के पाठकों का ध्यान अश्लील साहित्य कि तरफ से हटाया जाए.
उनके जज्बे से प्रभावित होकर अब्बास हुसैनी ने जासूसी दुनिया नामक एक मासिक पत्रिका की शुरुआत की, जिसके पन्नों पर इब्ने सफी का नाम पहली-पहली बार छपा. इंस्पेक्टर फरीदी और सार्जेंट उनके दो किरदार थे जो बहुत लोकप्रिय हुए. १९५२ में उनका पहला उपन्यास छपा दिलेर मुजरिम. कहते हैं यह उपन्यास विक्टर गन के उपन्यास आयरन साइडस लोन हैंड्स पर आधारित था लेकिन उसके किरदार खालिस देसी. ये पात्र जासूसी दुनिया सीरीज़ के अमर किरदार बन गए. कुछ दिनों बाद ही वे पाकिस्तान चले गए लेकिन जासूसी दुनिया इतनी लोकप्रिय होती जा रही थी कि पाकिस्तान में उन्होंने असरार प्रकाशन शुरू किया तथा हिन्दुस्तान और पकिस्तान दोनों जगहों से जासूसी दुनिया का प्रकाशन होने लगा. १९५५ मन में उन्होंने इमरान सीरीज कि शुरुआत कि जिसको भारत में इलाहबाद के निकहत प्रकाशन ने छापना शुरू किया.
वे मानते थे कि अच्छे जासूसी उपन्यास के लिए यह आवश्यक है कि उसका प्लाट ज़बरदस्त होना चाहिए और लेखक की भाषा में ऐसी रवानी होनी चाहिए कि पाठक उसमें इस कदर बह जाए कि अगर प्लाट में कोई झोल भी हो तो उस ओर पाठकों का ध्यान न जाए. लेखन की इसी तकनीक ने जासूसी दुनिया श्रृंखला के १२५ उपन्यासों तथा इमरान सीरीज के १२० उपन्यासों को अपार लोकप्रियता दिलवाई. कहते हैं कि १९५०-६० के दशक में हिंदी में पाए के रोमांटिक लेखक इसलिए परिदृश्य पर नही आ पाए क्योंकि इब्ने सफी के उपन्यासों में रोमांच के साथ-साथ रोमांस भी ज़बरदस्त होता था. उनके पुराने पाठक तो याद करते हुए कहते हैं कि उसमें हास्य-व्यंग्य भी धाकड़ होता था. लेकिन सेक्स नहीं होता था साहब. असरार अहमद ने अपने दोस्त के सामने अपनी बात साबित करके दिखा दी. भले इस दरम्यान उनको असरार अहमद से इब्ने सफी बनना पद. यही रीत है किसी को मरकर कीर्ति मिलती है किसी को छद्म नाम रख लेने से. कहते हैं कि इब्ने सफी कि मकबूलियत को कम करने के लिहाज़ से कर्नल रणजीत नामक एक छद्म नाम गढ़ा गया. कहते हैं लेखन कि दुनिया के आला दिमाग उस नाम से जासूसी उपन्यास लिखा करते थे. लेकिन इब्ने सफी की लोकप्रियता पर कोई खास असर नहीं पडा.
इब्ने सफी बाद में पाकिस्तान चले गए, लेकिन सीमा के इधर और उधर उनकी ऐसी ख्याति थी कि उनके उपन्यासों के भूगोल में माहौल तो दोनों तरफ के पाठकों को अपना-अपना सा लगता था लेकिन कारगाल, मक्लाक, जीरोलैंड जैसे उनके नाम काल्पनिक होते थे, इसलिए ताकि दोनों तरफ के पाठकों को अपनी ही तरफ का लगे. पाकिस्तान में उर्दू में लिखे गए इमरान के कारनामे हिंदी तक आते-आते विनोद का नाम धर लेती थी. कहा जाता है कि विभाजन के बाद के उन सबसे तल्ख़ दिनों में बस इक इब्ने सफी का नाम ही था जो हिन्दुस्तान-पकिस्तान के अवाम को एक कर देता था. एक दौर तो ऐसा था कि एक महीने में उनके तीन-चार उपन्यास तक आ जाते थे. डर रहता था कि लंबा अंतराल छोड़ने पर कहीं उनके पाठकों का ध्यान ना बंट जाए.
१९८० में महज ५२ साल कि उम्र में इस लेखक का देहांत कैंसर से हुआ जिसने लोकप्रियता के लिए कभी नैतिकता का दामन नहीं छोड़ा.
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#39
इब्ने सफी
इब्ने सफी उपन्यास सूची

1. अजनबी मेहमान

2. अंधा मुजरिम

3. अनदेखा दुश्मन

4. अशांत सागर

5. अनोखी लड़की

6. अनोखी औरत

7. अनोखी नर्तक

8. अनोखी वसीयत

9. अनोखा चोर

10. अनोखा जाल

11. अधूरा कत्ल

12. अपािहज की मौत

13. अंधेरे का शिकार

14. अंधेरे का सम्राट

15. अँधेरे का खून

16. अँधेरे का जलजला

17. अंगारे की मौत

18 अंगारों का संगीत

19. अपराधी की बाहों

20. अपराधी का रूप

21. अपराधी का चैलेंज

22. अपराध की गूंज

23. अपराधी के दो

24. अपराधी की खोज

25. अपराध का पुजारी

26. आग और गीत

27. आग की मूरत

28. आग की मीनार

29. आग की परियाँ

30. आखरी चीख

51. चमकती छाया

52. चट्टानों के आँसू

53. चट्टानों में फायर

54. चिराग का जहर

55. चाँदनी का धुँआ

56. दुश्मन की लाश

57. दाँत का जहर

58. दिलेर मुजरिम

59 डॉ. टिसडिल

60. दो नकाबपोश

61. दो निशान

62. दो शिकार

63. धुएं का सूरज

64. धुँए का बादल

65. धुँए की मूर्ति

66. धरती का धुँआ

67. धरती का धमाका

68. धरती का शैतान

69. धूप का समुंदर

70. एक गुनाह सौ अपराधी

71. फांसी का फंदा

72. फांसी के बाद

73. फायरों की गूंज

74. फूलों का नाच

75. ग्यारह नवंबर

76. गूंगी लड़की

77. गुनाह की शहजादी

78. गीतों का तूफान

79. गीतों के धमाके

80. गेंद का चमत्कार

81. गेंद का निशाना

82. हीरों की खान

83. हीरों का हार

84. हलाकू एण्ड कम्पनी

85. हवेली की आग

86. हमीद की जासूसी

87. जहरीला हाथ

88. जहरीला फूल

89. जहरीला शाम

90. जहरीली आँधी

91. जहरीली नागिन

92. जहरीली नागिनें

93. जलता शहर

94. जंगल की आग

95. जर्मनी का जासूस

96. जिंदा लाश

97. जड़ों की खोज

98. कचनार का जंगल

99. कला की मौत

100. कैदी की चीख

101. कत्ल का सवेरा

102. काले नाग

103. काल सूरज

104. काली तस्वीर

105. काली कोठी

106. खण्डहर का कैदी

107. खण्डहरों की राजकुमारी

108. खौफनाक इमारत

109. खौफनाक जंगल

110. खोपड़ियो का नाच

111. खतरे की घण्टी

112. खतरनाक दुश्मन

113. खतरनाक लाशें

114. खतरनाक योजना

115. खून की लकीरें

116. खून का उजाला

117. खून की बौछार

118. खून की धार

119. खून‌ के मतवाले

120. खून की रोशनी

121. खून की प्यास

122. खून का रास्ता

123. खून के धब्बे

124. खूनी प्यासा

125. खूनी बवंडर

126. खूनी बस्ती

127. खूनी हवेली

128. खूनी टकराव

129. खूनी पत्थर

130. खूनी भेड़िये

131. लाश की चीख

132. लाश का खून

133. लाश का बुलावा

134. लाशों का बाजार

135. लाशों के सौदागर

136. लाशों‌ की वर्षा

137. लाल चक्र

138. लाल घाटी

139. लोहे का आदमी

140. लखपति चौकीदार

141. लंगडी कोठी

142. मनोरंजन चक्र

143. मूँछ मूंडने वाली

144. मुजरिम की वापसी

145. मूर्खों‌ की संस्था

146. मौत का निशान

147. मौत का मेहमान

148. मौत की ज्वाला

149. मौत की माला

150. मौत की आँधी

151. मौत का दरवाजा

152. मौत की चट्टान

153. मौत का सफर

154. नकली राजकुमार

155. नकली लाश

156. नकली रूप

157. नरक के राही

158. नरक की राजकुमारी

159. नीली आँखें

160. नीली धूप

161. नीली लकीर

162. नीली आग

163. नीला खून

164. नीला प्रकाश

165. नीला महल

166. नंगी लाश

167. नागिन का गीत

168. नर्तकी का खून

169. निर्दोष अपराधी

170. पागल कैदी

171. पागल कुत्ते

172. पागल चित्रकार

173. पागलों की सभा

174. पर्वत की रोशनी

175. पर्वत की रानी

176. पहाड़ों की बस्ती

177. पहाड़ों के पीछे

178. पहाड़ी लुटेरे

179. परछाई की औरत

180. परछाई की लाश

181. परछाईयों का देश

182. पत्थर के गीत

183. पत्थर की लड़की

184. पत्थर की आग

185. पत्थर की लाश

186. पथरीले फूल

187. प्रेमी की हत्या

188. प्यासी लाश

189. पुराना शिकार

190. पीला तूफान

191. पिस्तौल का खेल

192. पुजारी का रहस्य

193. पायल की चीख

194. पानी की दीवार

195. पानी के अंगारे

196. रंगीन टापू

197. रंगीन की कीड़े

198. रेत का शोला

199. रेत का आदमी

200. रात का शहजादा

201. रात का भिखारी

202. रात और धूप

203. रात और लाश

204. रायफल का संगीत

205. राजकुमार जूलिया

206. रोशनी की उड़ान

207. रोशनी की अप्सरा

208. रोशनी के धमाके

209. रोशनी की दीवार

210. सुनहरी चिंगारियां

211. सुनहरी बौछार

212. सुनहरी आग

213. सुनहरी परछाई

214. सुनहरा तीर

215. सोने की धरती

216. सोने की छाया

217. सोने की नदी

218. सन्नाटे की चीख

219. सन्नाटे की झील

220. समुद्री अनाथालय

221. समुंदर की आग

222. सुंदरता के दुश्मन

223. सांपों‌ के शिकारी

224. सांपों का डाक्टर

225. संकेत का खोजी

226. साये की हत्या

227. सफेद रात

228. सफेद चोर

229. शोलों का महल

230. शोलों की चांदनी

231. शैतान का भूत

232. शैतानी नाच

233. शाहबाज का बसेरा

234. शीतल ज्वाला

235. शीतल घाटी

236. शराबी गीदड़

237. शीशे का आदमी

238. शाही मेहमान

239. तस्वीर की मौत

240. तस्वीर का दुश्मन

241. तस्वीर की उड़ान

242. तस्वीरों की तलाश

243. तस्वीर का कैदी

244. तस्वीर की लाश

245. तेहरवां कत्ल

246. तिजोरी का गीत

247. तूफान का पूजारी

248. तीन लडा़के

249. तीन गिनतियां

250. ट्रेन की चोरी

251. उड़ती लाश

252. उजाले का धुआँ

253. उजाले का दुश्मन

254. विष का सागर

255. विचित्र हत्या

256. विकराल छाया

257. वैज्ञानिक का भेद

258. विवाह चक्र

259. विदेशी साँप
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#40
इब्ने सफी के सिरिज वाले उपन्यास

तस्वीर सिरिज

1. मौत की आहट

2. दूसरी तस्वीर

3. चट्टानों का भेद

4. ठण्डा सूरज

5. तस्वीर का चक्कर

6. आग का गोला

7. चमकदार लकीरें



लोबो लीला सीरिज

1. पहाड़ी कोठी

2. काला धब्बा

3. धुएं की लकीर



डॉक्टर आशीष सीरिज

1. अफ्रीका की लड़की

2. घर का भेदी

3. तीसरी उडान



जहर सीरिज

1. आदमी का जहर

2. सातवाँ आदमी

3. जहरीला रूप



काले द्वीप सीरिज

1. काले द्वीप

2. अंधा भिखारी

3. सोने की मोहर

4. हत्यारों का देश



धारिया सीरिज

1. रंगीन धारियां

2. धारियों का हमला

3. जौंक और नागिन



शोला सीरिज

1.अंगारों का नाच

2. पहली चिंगारी

3. दूसरी चिंगारी

4. तीसरी चिंगारी

5. नरक की आग



डार्केन सीरिज

1. जहरीले तीर

2. पानी का धुआ

3. हंसती लाश

4. डॉक्टर डार्केन



पत्थर सीरिज

1. पत्थर का आदमी

2. दूसरा पत्थर

3. खतरनाक ऊंगलियां



बोगा सीरिज

1. हीरों का शहर

2. आवाजों का जंगल

3. भयानक चीखें

4. खतरनाक जुआरी



जेबरा मैन सीरिज

1. खून की आंधी

2. चमकीला बादल

3. जेबरा मैन

4. जंगल का आदमी





शक्राला सीरिज

1. शक्राला की कहानी

2. खतरनाक ढलान

3. जंगल में मंगल

4. तीन सनकी



किंग चांग सीरिज

1. लहरों का गीत

2. ब्लैक एण्ड व्हाईट

3. किंग चांग

जीरो हाउस सीरिज

1. किरणों का सफर

2. जीरो हाउस

3. पानी का बुत

4. विराने की सुंदरी
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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