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Adultery नदी का रहस्य
#81
१०)


[Image: images-20.jpg]


इंस्पेक्टर रॉय बहुत पास से निरीक्षण कर रहे थे. अपने चौदह वर्ष के सिक्युरिटीिया जीवन में ऐसा केस आज से पहले कभी नहीं देखा उन्होंने. इसलिए सिर्फ़ बाहरी मुआयने से ये पता कर पाना बेहद मुश्किल है की जो वो देख रहे हैं वो एक्चुअली है क्या?

सामने एक मृत देह है.

तो ये स्वाभाविक है की मृत्यु ही हुई है.

पर हुई कैसे?

क्या सीने पर थोड़े सूखे थोड़े गहरे ये तीन खरोंच इसकी मृत्यु के लिए उत्तरदायी हो सकते हैं?

इसका बनियान इसके उल्टे दिशा में पैरों के पास पड़ा है.

साधारणतः ऐसा होता नहीं है कि किसी ने बनियान उतारा और उसे पैरों के पास फेंक दिया हो.

अच्छा चलो मान लेते हैं की इसी ने ऐसा किया... पर प्रश्न अभी भी ये रह जाता है कि.....

“सर, कमरे में कुछ भी संदिग्ध नहीं मिला.”

रॉय के आगे और कुछ सोचने से पहले हवलदार श्याम ने उसे अपनी रिपोर्ट दी.

रॉय जरा से पलट कर हवलदार को देखा और एक गम्भीर और दीर्घ ‘ह्म्म्मम्म’ करते हुए दोबारा सामने बिस्तर पर पड़े उस शव को देखने लगा. श्याम भी बगल में आ कर खड़ा हो गया.

“क्या लगता है श्याम.. किसने और कैसे मारा होगा इसे?”

“मेरे को तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है सर. दरवाज़े और खिड़की से जबरन अंदर घुसने का कोई प्रमाण नहीं मिला. और ऐसा होना तो इसी बात की ओर संकेत करता है कि अगर कोई आया था तो ये लड़का उसे अवश्य जानता होगा और इसी ने उसे कमरे में आने दिया होगा. पर एक सवाल फ़िर भी रह जाता है.”

“कैसा सवाल?”

“यही की अगर कोई आया ही था तो फ़िर घरवालों को इस बात की कोई खबर क्यों नहीं है? किसी के आने से साफ इंकार कर दे रहे हैं. इनका कहना है की कल उतनी तेज़ बारिश और आँधी में कोई कैसे अपने घर से निकल कर किसी ओर के घर जा सकता है.”

“गुड. वैरी गुड श्याम. नाईस क्वेश्चन. तुमने अपना काम बहुत अच्छे से किया है. रहा सवाल इन घर के सदस्यों का तो अगर वाकई कल कोई आया था और ये बताने से इंकार कर रहे हैं तो निश्चित ही ये लोग झूठ बोल रहे हैं... और यदि ये लोग सच कह रहे हैं तो इसका मतलब ये हुआ की कोई आया तो अवश्य ही था पर शायद किसी दूसरे रास्ते से.”

कहते हुए रॉय कमरे की दो खिड़कियों में से एक की ओर घूम गया और धीरे क़दमों से, सावधानी से चलते हुए उस खिड़की के पास जा खड़ा हुआ और उसके पल्लों / पलड़ों को बहुत गौर से देखने लगा.

तभी श्याम को एक सिपाही आ कर कान में कुछ कहता है जिसे सुनकर श्याम बड़ी तत्परता से रॉय की ओर देखते हुए बोला,

“सर, मेडिकल टीम आ गई.”

रॉय ने अपना रिस्टवाच देखा, अफ़सोस में थोड़ा सिर हिलाया और धीरे से बोला,

“आज फ़िर आधा घंटा लेट.”

खिड़की से हट कर रॉय दोबारा उस शव के पास आ कर खड़ा हो गया और उसके आस पास के चीज़ों को सावधानी से देखने लगा.

पाँच मिनट के अंदर ही मेडिकल टीम कमरे में आ गई. उनके कमरे में दाखिल होते ही रॉय टीम के हेड की ओर मुस्कराते हुए आगे बढ़ा और अपना हाथ आगे करता हुआ बोला,

“आइए आइए, पार्थो दा. आप ही का इंतज़ार हो रहा था.”

“अरे अब मत पूछिए सर. आ तो कब का गया होता... पर सुबह सुबह आँख कमबख्त जल्दी खुलती भी तो नहीं.”

“क्यों दादा, रात में बहुत देर तक काम करते हैं क्या?”

“नहीं... काम होता ही कहाँ है आजकल ज्यादा करने को.”

“तो फ़िर? घर में सब ठीक तो है न?”

“अरे नहीं भाई.. सब कहाँ ठीक है?!”

पार्थो दा बहुत ड्रामेटिक स्टाइल में रोनी सूरत बनाते हुए बोले.

उनकी शक्ल देख कर रॉय तनिक चिंतित होता हुआ पूछा,

“क्या हुआ दादा, ऐसे क्यों बोले रहे हैं..? क्या हुआ घर में? लेट क्यों हुआ आपको??”

रॉय की ओर देखते हुए पार्थो दा एक आँख बंद करते हुए बोले,

“तुम्हारी बोउदी (भाभी) को हर रात चाहिए होता है. वो एक नहीं, तीन तीन बार! क्या करूँ.. विवाहित हूँ न... मना भी तो नहीं कर सकता. दायित्व का निर्वहन करना पड़ता है. इसी कारण देर से सोता हूँ और सुबह देर से आँख खुलती है.”

रॉय तुरंत समझा नहीं. पर जैसे ही समझा; दोनों हो हो कर के हँस पड़े.

आस पास खड़े मेडिकल टीम के दूसरे सदस्य और सिक्युरिटी के सिपाही कुछ समझे तो नहीं कि ये क्यों हँस रहे हैं पर उन्हें इस प्रकार हँसता देख कर वे लोग भी अपनी मुस्कराहट को रोक नहीं सके.


उस समय कमरे में ही उपस्थित घर के दो सदस्यों ने इस प्रकार के इंसेंसिटिव बर्ताव के लिए आपत्ति जताना चाहा पर हवलदार श्याम जल्दी से उनको साइड में ले जा कर बोला,

“देखिए, आप लोग कृप्या शांत रहें. मैं जानता हूँ की आप लोग को इनका ये व्यवहार काफ़ी आपत्तिजनक लग रहा है. विश्वास कीजिए... ये ऐसा आदतन नहीं कर रहे.. दरअसल अधिकतर ऐसे केस पिछले कई महीनों से विभिन्न गाँवों से आ रहे हैं और पिछले तीन महीने से आपके गाँव से आना जारी है... कभी नदी के तट पर तो कभी गाँव में. इस प्रकार हमेशा मृत देह देखना और देख कर स्वयं को संतुलित रख पाना सरल नहीं होता. इसलिए काम के शुरुआत में ही या बीच बीच में कुछेक शब्द ऐसे बोल लेते हैं जिनसे इनका मानसिक स्थिति ठीक रहे और ये सकुशल अपना निर्धारित कार्य कर सकें. आप लोग हमारी परेशानी को भी कृप्या समझने का प्रयास करें. हम सिक्युरिटी वाले आप ही की तरह जीता जागता मानव हैं और आपकी और समाज की सहायता के लिए ही सदैव तत्पर रहते हैं. इसलिए करबद्ध निवेदन है आपसे की कृप्या मामले को गम्भीरता से न लें, शांत रहें और सहयोग करें.”


इतना कह कर हवलदार ने परिवार जनों के सामने हाथ जोड़ा और अपनी स्थिति समझाने का भरसक प्रयास किया. उसका ये प्रयास तत्काल अपना रंग भी दिखाया और सब ने हवलदार की बात को मान लिया.

इधर रॉय और पार्थो दा ने भी जब देखा की उनकी इन हरकतों से दूसरों में रोष हो रहा है तो उन दोनों ने भी जल्दी से अपना अपना पोजीशन सम्भाला और काम करने लगे.

इंस्पेक्टर रॉय की ही तरह पार्थो दा को भी इस शव ने कुछ पलों के लिए विस्मित कर दिया.

रॉय से एक दो सवाल और करने के बाद पार्थो दा अपने कलीग को कुछ निर्देश देने लगे और खुद भी बारीकी से शव का मुआयना करने में जुट गए. तब तक रॉय भी हवलदार श्याम और दूसरे सिपाहियों के साथ जाँच संबंधी दूसरे दिशा निर्देशों को ले कर जानकारी देने लगे.


----


चार दिन बाद,

इंस्पेक्टर रॉय थाने में अपने कमरे में बैठा दूसरे कई फाइलों में खोया हुआ था कि तभी हवलदार श्याम आया,

“सर!”

श्याम को देखते ही रॉय ने तुरंत उसे आने का निर्देश दिया,

“हाँ श्याम, अंदर आओ.”

बड़ी तत्परता से श्याम अंदर आ कर सैल्यूट मार कर सावधान के मुद्रा में खड़ा हुआ. रॉय टेबल पर रखे चाय के ग्लास को उठा कर होंठों से लगाते हुए पूछा,

“कहो श्याम ... क्या रिपोर्ट लाए हो? और सुनो.. प्लीज कोई अच्छी बात सुनाना. ऐसे केस ने सुबह से ही सिर दर्द दे रखा है.”

हाथ में थामे हुए फाइल को रॉय की ओर बढ़ाते हुए श्याम ने कहा,

“कुछ खबर तो है पर अच्छी या बुरी ये नहीं जानता....”

“ओके.. आगे बोलो.” ग्लास को रख फाइल के पन्नो को पलटते हुए रॉय ने कहा.

“सर, पार्थो सर ने ये फाइल देते हुए मुझे आपसे पाँच बातें कहने को कहा था,

पहला, इस लड़के, मतलब की शुभोजीत बनर्जी उर्फ़ शुभो को सडन माइल्ड हार्ट अटैक हुआ था.

दूसरा, इस लड़के को एकाएक खून की कमी हुई थी.. अब ये कमी हार्ट अटैक से ठीक पहले हुई थी या बाद में इस पर पार्थो सर अभी और जाँच करेंगे.

तीसरा, इस बात की पूरी सम्भावना है कि मरने से ठीक पहले ये लड़का सेक्सुअल एक्टिविटी में लिप्त था.

चौथा, उस बिस्तर से एक लम्बा बाल पाया गया है जो लाइट ब्राउन रंग का है और सम्भवतः किसी महिला की है. और ये महिला अंदाजन तीस से चालीस के बीच की आयु की होगी.

और पाँचवा....”

बोलते हुए कुछेक सेकंड्स के लिए हवलदार श्याम रुक गया. लगा जैसे वो खुद पशोपेश में है.

“और पाँचवा क्या श्याम? आगे बोलो.”

उसे बोलते हुए चुप होता देख रॉय की भी उत्सुकता एकाएक बढ़ गई.

“सर, पार्थो सर ने पाँचवीं बात ये कहा है कि आज तक उस गाँव में जितने भी शव बरामद हुए हैं; उन सबके पास से ऐसे ही एक लम्बा बाल पाया गया है और पिछले दो सालों में ये इक्कीसवीं बार है.”

“ओह! ये तो बहुत बुरी बात है. दो साल में इक्कीस शव?! ये तो बहुत चिंतनीय विषय है.... ह्म्म्म.... (कुछ सेकंड्स चुप रहने के बाद).... पर इसी में एक काम की खबर भी है. एक कॉमन बात जो अब तक के सभी शवों के पास से पाया गया है.”

एक विजयी मुस्कान से रॉय श्याम की ओर देखते हुए बोला.

“आप उन लंबे बालों की बात तो नहीं कर रहे हैं सर?” श्याम ने प्रश्न के रूप में अपना मत प्रकट करने का प्रयास किया.

“हाँ.. श्याम. बिल्कुल. मैं इसी कॉमन चीज़ की बात कर रहा हूँ. यही एक ऐसा क्लू बन सकता है हमारे लिए जो अब तक के हुए सभी हत्याओं का......” ख़ुशी से चहकते रॉय का चेहरा एकदम से फक्क पड़ गया.

पैकेट से निकला सिगरेट दोबारा पैकेट में आधा घुस गया.


रॉय की अचानक से ऐसी प्रतिक्रिया को देख कर आश्चर्य करता हुआ श्याम उससे कारण पूछा.

चिंतित रॉय तुरंत कुछ न बोला.

फिर टेबल के नीचे रखे बोतल को उठा कर पानी पीने के बाद एक दीर्घ श्वास लेता हुआ बोला,

“बात वहीँ अटक गई श्याम.”

“कैसे सर?”

उत्सुकता ने श्याम को अधिक देर न करने दिया प्रश्न करने के लिए.


सिग्रेट जलाते हुए रॉय बोला,

“अब मुझे भी याद आ रहा है श्याम, जितने भी लंबे बाल मिलने वाले केस हुए हैं वो सब या तो गाँव में या गाँव से सटे हुए उस जंगल में हुए हैं... और सब के सब पुरुषों के शव थे... लड़कों के थे. उन केसेस को अगर ले लें तो शायद इक्कीस हुए होंगे लेकिन उस नदी का क्या? कुछेक अपवाद छोड़ दें तो वहाँ से तो हमेशा स्त्रियों के ही शव मिलते आए हैं आज तक. उस नदी के दक्षिण दिशा से सम्बन्धित अब तक हुए मृत्यु के कुल योग का क्या? क्या वहाँ के शवों से हमें लंबे बाल मिले हैं? बोलो श्याम.”

श्याम एकदम से चुप हो गया.


इंस्पेक्टर रॉय ने ये बहुत ही अच्छा और पते का प्रश्न किया था. लंबे बाल मिलने की आंशिक सफ़लता की ख़ुशी में हवलदार श्याम खुद इस पॉइंट को भूल गया था कि ये लंबे बालों वाला केस तो सिर्फ़ गाँव और उससे जुड़े जंगल से से हैं. आखिर नदी के दक्षिणी तट से मिलने वाले शवों के दोषी के बारे में भी तो पता लगाना है.

अधिकांश शव उस गाँव की ही किसी महिला या फ़िर कम आयु की अविवाहित लड़कियों की थी और उन सभी शवों पर इतनी बुरी तरह से दुष्कर्म करने के संकेत मिले थे कि कोई भी सभ्य सम्भ्रांत मनुष्य उन शवों को देख कर ही या तो तुरंत दृष्टि फेर ले या उल्टी करना शुरू कर दे.

कुछ देर तक इंस्पेक्टर रॉय और हवलदार श्याम यूँ ही सोचते रहे. जब कुछ समझ में नहीं आया तो रॉय ने ही बात शुरू की,

“गाँव वालों से पूछताछ हुई?”

“जी सर, हुई. गाँव के ही जिष्णु चाय वाला, हरिपद नौका वाला और बिल्टू दूधवाला, इन तीनों का कहना है कि जिस रात शुभो का देहांत हुआ उसी शाम को वो काफ़ी भटका और बहका हुआ सा लग रहा था. उसके बर्ताव से उसके अलावा उसके साथ किसी और के होने का आभास हो रहा था. बिल्टू दूध वाले का कहना है कि वो पहले हरिपद और जिष्णु काका के बीच होने वाले नदी में हुए एक दुर्घटना की बातें सुनता रहा और फिर अचानक से उससे, यानि बिल्टू से रुना भाभी के बारे में पूछने लगा.....”

“एक मिनट... ये रुना भाभी कौन है?”

“सर, रुना भाभी अर्थात् रुना मुखर्जी इसी गाँव में ही रहती हैं और एक शिक्षिका हैं. उनके पति श्री नबीन मुखर्जी पोस्ट ऑफिस में हेड क्लर्क के पद पर कार्यरत हैं. शिक्षिका होने के कारण उनका बहुत मान - सम्मान है इस गाँव में. गाँव का हर छोटा – बड़ा उनके प्रति आदर व श्रद्धा का भाव रखता है. पहले कॉलेज से लौटने के बाद घर में ही छोटे बच्चों को मुफ्त का पढ़ाती भी थी पर अब घर के काम बढ़ जाने के कारण नहीं पढ़ाती हैं.”

“और ये बिल्टू.... ये तो वही....”

“जी सर, ये उसी तुपी काका का भांजा है. तुपी दूध वाले का. जिनका नौकर, जिसे वे अपना बेटा समान मानते थे; ‘मिथुन’ की मृत्यु हुई थी करीब महीने भर पहले.”

“हम्म....”


रॉय कुछ पल सोचता रहा और फ़िर अपने टेबल के सबसे ऊपर के दराज से एक मोटा सा कॉपी निकाल कर उसके पन्ने पलटने लगा. ये वही कॉपी है जिसमें उस रात शुभो ने कुछ बातें लिखी थीं. बॉडी को मेडिकल टीम के ले जाने के बाद रॉय ने बिस्तर को चेक किया था और गद्दे के नीचे से यह कॉपी बरामद हुई थी.

सात में से तीन पन्नों को पढ़ने के बाद रॉय ने एक लम्बा कश लगा कर सिगरेट ऐशट्रे में डाल कर बुझाया और बड़े गम्भीर और चिंतित मुद्रा में कहा,

“बड़ा पेंच है इस पूरे मामले में. श्याम, एक काम करो, कल ठीक दस बजे... नबीन, रुना, तुपी काका, उनकी बीवी सीमा, भांजा बिल्टू, हरिपद, जिष्णु और शुभो के दोनों दोस्त देबू और कालू को यहाँ हाजिर करो. कल दस बजे का मतलब बिल्कुल दस बजे ही... मुझे ये सब यहाँ चाहिए... इज़ दैट क्लियर?”


पूरी सतर्कता और जोश में श्याम बोला,

“यस सर!”
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#82
Great going
Perfect mixture of horror, suspense and erotica
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#83
Bahut accha update diya. Very good. Keep it up bro.
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#84
Nice update
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#85
बहुत बढ़िया।
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#86
Maza aa gya bhai.... regular post kariyega??
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#87
Update please
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#88
Shandar jabardast jindabad
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#89
Shandar jabardast jindabad
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#90
११)

अगले दिन सुबह ठीक दस बजे थाने के बाहर सिक्युरिटी की जीप आ कर रुकी.

इंस्पेक्टर रॉय उतरा और थाने की सीढ़ियाँ चढ़ा.

दरवाज़े के दोनों तरफ दो सिपाही अपनी अपनी राइफलें ले कर सतर्क बैठे थे... रॉय को देखते ही झट से खड़े हो कर सैल्यूट किया. रॉय ने हाथ उठा कर उनके सैल्यूट का उत्तर दिया.

अंदर अपने टेबल के सामने हवलदार कुछ लोगों के साथ बात कर रहा था. उसने भी रॉय को देख कर खड़े हो कर सैल्यूट किया. रॉय ने भी पहले जैसे ही उत्तर दिया. हवलदार के बैठने के स्थान के ठीक बगल में; दाएँ साइड रॉय का कमरा है.

कमरे में घुसने से पहले रॉय ठिठक गया. सिर घूमा कर देखा; आज और दिन के मुकाबले कुछ ज्यादा ही लोग आए हैं. उसने प्रश्नसूचक दृष्टि डाली श्याम पर. श्याम ने तुरंत आँखों के इशारे से ही कुछ कहा रॉय को जिसे रॉय एक क्षण में ही समझ गया.

बेंच और चेयरों पर बैठे लोगों की ओर एक नज़र देख कर श्याम को बोला,

“तुम पाँच मिनट बाद अंदर आना.”

“यस सर!”

अपने कमरे में जाने के बाद सबसे पहले रॉय ने टेबल पर पहले से रखे ग्लास से पानी पिया, फिर अपने पॉकेट से अपने भगवान की फ़ोटो निकाल कर उन्हें प्रणाम किया और फिर अपने गुरुदेव के फ़ोटो को.

फ़िर आराम से अपनी कुर्सी पर बैठा.

सामने कुछ फाइलें रखी थीं.

उनमें से दो – तीन फाइल के पन्ने पलट कर देखा, दूसरे पॉकेट से सिगरेट का पैकेट निकाला, सिगरेट सुलगाया और ऊपर चलते पंखे की ओर देखते हुए मन ही मन कुछ बातों को क्रमवार सजाने लगा.

ठीक पाँच मिनट बाद ही दरवाज़े पर श्याम आया और विनम्र स्वर में बोला,

“आपने बुलाया था सर?”

श्याम के आवाज़ से विचारों के उधेड़बुन से बाहर आया रॉय ने पहले श्याम की ओर देखा और फ़िर उसपर से नज़रें हटा कर सामने रखे आधे खाली ग्लास की ओर देखते हुए बोला,

“हाँ... सुनो.”

श्याम अंदर आया और सैल्यूट मार कर सावधान की पोजीशन में खड़ा हो गया.

“श्याम... सब आ गए हैं?”

“जी सर!”

“किसी ने भी नखरे दिखाए... ना नुकुर किया?”

“दो – तीन ने किया सर.”

“दो – तीन?! कौन कौन?”

“नबीन, उनकी पत्नी रुना और जिष्णु चायवाला.”

“बाकी सब तैयार हो गए थे?”

“सभी कुछ न कुछ कहना चाहते थे शायद... पर सिक्युरिटी के डर के कारण शायद कुछ बोला नहीं गया इनसे, सर.”

“हम्म... और कोई नयी बात?”

“नहीं सर, फिलहाल नहीं. पर इतना ही की नबीन और दूसरे जन बोल रहे हैं कि उन्हें जल्दी छोड़ दिया ताकि तुरंत अपने काम पर जा सके.”

“हाँ.. हाँ.. ऐसा ही होगा... अब तुम जाओ और अगले दस मिनट बाद एक एक कर के सब को भेजना. जब कोई एक आए तो तुम भी यहाँ रहोगे? ओके?... और बद्री को बोलो बाहर तुम्हारे काम को तब तक वो सम्भाले.”

“यस सर.”

“और ये लो... ये लिस्ट है.. जिसका जिस नम्बर पर नाम है उसे वैसे ही अंदर भेजना.”

“यस सर.”

कह कर श्याम सैल्यूट दे कर कमरे से निकल गया.

इधर, उसके बाहर निकलते ही रॉय जल्दी से आँखें बंद कर अपने उन्हीं विचारों पर फिर से ध्यान केन्द्रित कर दिया.

ठीक दस मिनट बाद हवलदार श्याम अंदर आया और रॉय से अनुमति लेने के बाद एक एक कर सबको बुलाने लगा.

सबसे पहले हरिपद को बुलाया गया.

रॉय ने उसे टेबल के विपरीत अपने सामने वाले चेयर पर बैठने को कहा.

उसके बैठते ही रॉय ने अपने दाएँ हाथ की ऊँगलियों से कुछ इशारा किया श्याम को जिसे सिर्फ़ श्याम ही समझ सकता था. हरिपद का ध्यान तो इस तरफ गया ही नहीं. उस बेचारे का तो डर से ही हालत ख़राब हुए जा रहा था कि न जाने क्या क्या पूछा जायेगा और अगर किन्ही प्रश्नों का उत्तर अगर वो न दे सका तो कहीं उस जेल में न डाल दे.

सिक्युरिटी और उनसे जुड़े कुछ अफवाहों को हरिपद ने इतना सुन रखा था बचपन से की आज जैसे उसकी आँखों के सामने वे सभी अफवाहें किसी चलचित्र की भांति एक एक कर के चलने लगी हो.

रॉय ने उसे पहले पानी पीने को कहा.

हरिपद ने उसके लिए सामने रखे ग्लास को उठाया और गटागट पूरा ग्लास खाली कर दिया.

उसकी हालत देख कर रॉय और श्याम दोनों एक दूसरे की ओर देख कर मुस्कराए.

“ठीक हो हरिपद?”

“जी, साहब.”

“कुछ सवाल करूँगा... सही जवाब दोगे?”

“पूरी कोशिश करूँगा माई बाप.”

हरिपद हाथ जोड़कर मिमियाते हुए बोला.

रॉय हल्का सा मुस्कराया. सीधा बैठा. श्याम को इशारा कर के हरिपद से एक हाथ दूर खड़े रहने को कहा.

और फ़िर शुरू हुआ प्रश्नकाल.

किसी प्रश्न का हरिपद बड़ी सहजता के साथ उत्तर दे गया तो किसी प्रश्न में बुरी तरह गड़बड़ा गया.

एक एक कर उससे कुल बारह प्रश्न किए गए. सभी प्रश्नों के उत्तर देते हरिपद के हरेक गतिविधि को बहुत सूक्ष्मता से देख रहा था रॉय.


इधर, बाहर बैठी रुना को धीरे धीरे बेचैनी होने लगी थी.

उसे ऐसा लगने लगा मानो उसके अंदर... उसके सीने में किसी ने दहकता आग का गोला रख दिया हो.

वो सामने श्याम के स्थान पर बैठे बद्री को पानी के लिए बोली. बद्री ने दूसरे सिपाही को पानी के लिए बोला. दूसरा सिपाही एक नया भर्ती हुआ बाईस वर्षीय लड़का था जो निर्देश मिलते ही जल्दी से एक ग्लास पानी ला कर रुना को दिया. रुना ने जरा सा नज़र उसकी ओर करके कृतज्ञता पूर्ण स्वर में धन्यवाद कहा और पानी पीने लगी.

वो लड़का वापस जाने से पहले दो मिनट वहीं खड़ा रहा.

दरअसल उसे रुना की सुन्दरता भा गई थी. अत्यधिक टेंशन के कारण पीठ पर से साड़ी को हटाने के फलस्वरूप रुना के डीप बैक स्क्वायर कट ब्लाउज से पर्याप्त अंश में बाहर दिखती उसकी स्वच्छ, निर्मल, बेदाग़ पीठ और उसपे भी टाइट ब्लाउज के कारण मांसल गदराई पीठ पर बनती हल्की सी क्लीवेज ने तो बस उसे पल भर में ही रुना का दीवाना बना लिया.

काजल लगी आँखें, होंठों पर लाल लिपस्टिक ऐसा मानो अभी अभी ताज़े रक्त में भीगी हुई हो, एक सुंदर पतली चेन जो आंचल के नीचे वक्षस्थल में कहीं समाई हो, दोनों में लाल चूड़ियों के साथ एक एक सफ़ेद शाखा चूड़ी. आंचल सीने पर अच्छे से लिए होने के बावजूद भी उस लड़के को रुना के वक्षों के आकार का अनुमान करने में कोई असुविधा नहीं हुई.


 इतना कुछ देखने के बाद वो लड़का अपने धड़कनों पर नियंत्रण नहीं रख पाया.

उसका दिल धाड़ धाड़ से ज़ोरों से धड़कने लगा. सूख गए होंठों पर बार बार जीभ फिरा कर उन्हें भिगाने की कोशिश करने लगा. इतना तो फिर भी ठीक था.. असल मुश्किल तो तब हुई जब उसे अपने चड्डी के अंदर बेलगाम हलचल होने का आभास हुआ.

बिन हड्डी वाला मांसल अंग अपने दूसरे रूप में आ चुका था जिस कारण पैंट के अंदर से बनी तम्बू के कारण उस लड़के को अपने आप से लज्जा होने लगी. वह तुरंत वहाँ से चला गया.

पानी पीने के बाद बेचैनी तो पूरी तरह से गई नहीं रुना की पर थोड़ा आराम ज़रूर मिला उसे. कुर्सी के बैकरेस्ट से पीठ टिका कर आराम से बैठ गई और अंदर ही अंदर खुद को सिक्युरिटी इंटेरोगेशन के लिए दोबारा तैयार करने लगी.

इधर तुपी काका की पत्नी सीमा रुना को खा जाने वाली निगाहों से देख रही थी.

दरअसल जब से वो थाने में आई है और रुना को अपने सामने देखी है तब से ही उसे उसी खा जाने वाली नज़रों से देखे जा रही थी. आँखों में गज़ब का गुस्सा झलक रहा था. तुपी काका, नबीन बाबू, कालू और यहाँ तक की रुना ने भी सीमा के इस बर्ताव को देखा. पर सिवाए तुपी काका और नबीन बाबू के रुना को रत्ती भर का आश्चर्य नहीं हुआ.

सच कहा जाए तो कहीं न कहीं दोनों स्त्रियों में बहुत पहले से कुछ ख़ास नहीं बनती थी. रुना सीमा को पसंद ही नहीं करती थी और सीमा को भी रुना के रूप लावण्य से सदैव ईर्ष्या रही.

रुना अपने आप में अलग थी ज़रूर और इसी कारण विवाहिता होते हुए भी गाँव के कई पुरुषों के रातों की, उनके सपनों की रानी भी थी; पर कहीं न कहीं सीमा रुना को टक्कर देती जान पड़ती थी और कभी कभी यही बात रुना को भी तनिक असुरक्षा का बोध करा देती थी.

थोड़ी ही देर बाद हरिपद कमरे से निकला और चुपचाप एक खाली कुर्सी पर जा के बैठ गया.

फ़िर एक एक कर के सबको बुलाया गया.

सबसे औसतन करीब पन्द्रह मिनट तक सवाल जवाब होते रहे.

सिवाय रुना और सीमा के.

इन दोनों को दो दो बार सवाल जवाब के लिए बुलाया गया और आधे - आधे घंटे तक प्रश्न सत्र चलता रहा.

इन दोनों को बार बार बुलाए जाने से इन दोनों के पति, नबीन बाबू और तुपी काका भी काफ़ी परेशान रहे पर क्या करते... सिक्युरिटी के काम में रुकावट डालने का जोखिम भला कौन ले?

जब सब बाहर अपने जगह पर बैठे थे तब रॉय और श्याम अलग से १५ मिनट तक आपस में बातें करते रहे.

फ़िर एकाएक अपने कमरे से निकले.


रॉय ने सबको एकबार अच्छे से देखा और कहा,

“आप लोगों ने काफ़ी अच्छा सहयोग किया. इसके लिए बहुत धन्यवाद. आज के लिए इतना ही. आगे अगर ज़रूरत पड़ी तो फ़िर से आप लोगों थाने बुलाया जाएगा.”

देबू और बिल्टू ने गला खँखार कर धीरे से कहा,

“साहब, फ़िर से आना पड़ेगा? साहब... हम लोगों का काम....”

उनका वाक्य ख़त्म होने से पहले ही रॉय गुस्सा करता हुआ बोला,

“तुम्हें क्या लगता है... आज यहाँ पार्टी करने के लिए बुलाया था क्या? हँसी मसखरी होती है यहाँ? इन सवाल जवाबों में हमारा भी समय जाता है... कई काम हमारे धरे के धरे रह जाते हैं. जो कहा जा रहा है.. सुनो और करो.”

इतना कह कर रॉय गुस्से से अंदर चला गया.

हवलदार श्याम ने सबको इशारे से जाने को कहा... रॉय के गुस्से को देख कर किसी को किसी से कुछ कहने पूछने का हिम्मत नहीं हुआ. सब चुपचाप अपने अपने जगह से उठे और बाहर जाने लगे.

तभी अंदर से रॉय ने आवाज़ दिया,

“श्याम... इधर सुनना.”

“यस सर.”

श्याम तुरंत अंदर आया.

“श्याम... सब गए या नहीं?”

“जी सर, जा ही रहे हैं.”

“ह्म्म्म.. सबके बातों को नोट किया?”

“जी सर... सबने जो भी कहा... उसमें जो कुछ भी महत्वपूर्ण लगा; मैंने वो सब नोट कर लिया.”

“गुड. वैरी गुड. अब एक और बात बताओ...”

“जी सर...”

“सबसे सवाल जवाब होते समय तुम यहीं थे... पूरे समय... तुमने हर किसी के जवाबों को सुना... नोट किया.... सबकी बातों को सुनने के बाद तुम्हें प्रथमदृष्ट्या क्या लगता है... कौन अपराधी हो सकता है... किसपे संदेह सबसे अधिक हुआ है?”

“सर, मुझे तो लगता है कि..........”

श्याम ने जैसे ही बोलना शुरू किया बाहर से चीख पुकार की आवाज़ आने लगी.

बहुत ज़ोरों से आवाजें आ रही थीं... आदमी और औरत... दोनों के.

रॉय और श्याम पहले तो कुछ समझ नहीं पाए. पहले पाँच सेकंड तक एक दूसरे को देखते रहे... फ़िर एक साथ लगभग दौड़ते हुए कमरे से बाहर निकले. दोनों ने देखा की थाने के सिपाही सब भी थाने के बाहर खड़े हैं और किन्हीं को छुड़ाने का असफल प्रयास कर रहे हैं.

रॉय और श्याम दोनों जल्दी से थाने के मेन दरवाज़े तक आए.

बाहर आ कर जो देखा उससे दोनों ही स्तब्ध रह गए.

बाहर सीमा और रुना दोनों एक दूसरे से भीड़ी हुई थीं. दोनों ही एक दूसरे को थप्पड़ों से मार रही थी और जितना ज़ोर से हो सके उतना मारने का प्रयास कर रही थी. खास कर सीमा... उसके गुस्से का कोई पार नहीं दिख रहा था.

वो तो ऐसे कर रही थी जैसे की अभी के अभी रुना के कई टुकड़े कर के उसे कच्चा ही चबा जाएगी. रुना भी पलट कर उसके थप्पड़ों का जवाब दे रही थी पर मारने से कहीं ज्यादा वो खुद को बचाने का प्रयास कर रही थी.

सीमा रह रह के बार बार एक ही बात दोहरा रही थी,

“तू...तूने ही खाया है मिथुन... तूने ही छीना है हमसे... मेरे मिथुन को... उस बेचारे ... भोले लड़के को तूने ही निगला है. बता... बोल न.. क्यों की ऐसा... कमीनी...”

दोनों के पति और वहाँ उपस्थित बाकी सभी लोग दोनों को छुड़ाने का प्रयास कर रहे थे लेकिन थोड़ा छूटने के तुरंत बाद सीमा फिर से रुना पर टूट पड़ती. धीरे धीरे वहाँ बहुत भीड़ जमा हो गई.

थाने के सामने इस तरह का एक तमाशा होता देख कर रॉय बुरी तरह गुस्से में भर गया और बहुत ज़ोर से चीखते हुए गरज उठा,

“बस करो... क्या लगा रखा है यहाँ? कोई बाज़ार है?? या गाँव का अखाड़ा है??? जो करना है अपने गाँव में... अपने घर में करो... जाओ... अब अगर एक शब्द भी तुम लोगों में से किसी के भी मुँह से सुना तो अभी के अभी बिना किसी कंप्लेंट के तुम सबको पूरे एक महीने के लिए अंदर डाल दूँगा... समझे..! जाओ यहाँ से!!”

रॉय के इस धमकी ने तुरंत वहाँ जमा हुए लोगों पर अपना असर दिखाया और सब हड़बड़ा कर वहाँ से भाग खड़े हुए. सीमा और रुना ने भी अब तक एक दूसरे को छोड़ दिया था और आगे बढ़ गई थी.

सीमा अब भी गुस्से से बीच बीच में रुना को देख रही थी पर कुछ कह नहीं पा रही थी क्योंकि वो तो खुद अब रॉय के गुस्से से डर गई थी.

और भला एक गुस्सैल सिक्युरिटी वाला को कौन उकसाए?

यही सोच कर उसने फ़िलहाल अपने गुस्से को काबू करने का पूरजोर कोशिश कर रही थी.


सबके चले जाने के करीब आधे घंटे बाद थाने के अंदर की गतिविधि भी थोड़ी शांत हुई और जब दैनिक कामकाज पटरी पर आई तब रॉय ने बद्री को बुला कर चाय लाने को कहा और साथ ही श्याम को भी बुलवा भेजा.

श्याम ने आते ही सैल्यूट मारा और कहा,

“आपने बुलाया सर?”

“अं.. हाँ... पहले बैठो... कुछ बात करनी है.”

श्याम तुरंत आदेश का पालन करता हुआ रॉय के सामने चेयर पर बैठ गया.

“तुमने तो सब देखा... सुना... और तो और थाने के ठीक बाहर हुए तमाशे के समय भी तुम वहाँ मेरे साथ ही थे...क्या लगता है... कौन है असली अपराधी?”

उत्तर देने से पहले श्याम दो क्षण सोचा और बड़े विचारणीय ढंग से बोला,

“सर... मुझे लगता है इन सब में ये.... रुना... रुना जी का हाथ है.”

“ऐसा क्यों?”

“सर, वो जब प्रश्नों के उत्तर दे रही थी तब काफ़ी अटक जा रही थी.. लग रहा था मानो वो बोलना चाह कर भी नहीं बोलना चाहती.. या फ़िर सही बात किसी भी हाल में न निकले इसका भरसक प्रयास कर रही थी.”

“यस, राईट! रुना मुखर्जी कुछ जानती ज़रूर है पर कहना नहीं चाहती. और कुछ?”

श्याम सोचते हुए बोला,

“सर, और कुछ तो अभी याद नहीं आ रहा. मैंने जो सबके स्टेटमेंट्स नोट किया है; एकबार उनको अच्छे से स्टडी करना पड़ेगा. थोड़ा टाइम लगेगा सर.”

“हाँ... थोड़ा टाइम तो ज़रूर लगेगा. लेकिन कोशिश करना पड़ेगा की टाइम थोड़ा ही लगे... ज्यादा न हो जाए. ओके?”

“यस सर.”

“हम्म.. और कोई नयी बात? अच्छा....वो नया लड़का कैसा काम कर रहा है?”

“काम तो ठीक ही कर लेता है सर... पर आज थोड़ी सी गलती हो गई उससे... अभी जब मैं यहाँ आया तो देखा बद्री उसे समझा रहा था.”

“गलती!! कैसी गलती?”

“व..वो...सर...”

“ओह.. कम ऑन श्याम. जल्दी बोलो.”

“स...सर...वो... बाहर कुर्सी पर जब रुना और लोगों के साथ बैठी हुई थी तब उसे प्यास लगी थी... बद्री को बोलने पर उसने उस लड़के को पानी देने को कहा. लड़का जब पानी दिया तो रुना के बहुत पास था... अ...औ...”

“और??” रॉय की उत्सुकता बढ़ने लगी.

“और व.. वो... रुना जी.. पर .... मोहित हो गया.”

“हैं?!!”

“जी सर.”

रॉय ने श्याम को गौर से देखा.

श्याम सच बोल रहा था. ये बात समझते ही रॉय खिलखिला कर हँस पड़ा. उसे हँसता देख कर श्याम भी हँसी रोक नहीं सका और हँस पड़ा.

“ओके.. जो हुआ सो हुआ... अब काम की बात.. मैं अभी पुराने कुछ केसेस को लेकर व्यस्त रहूँगा.. उनको स्टडी करूँगा; तो ध्यान रहे कोई मुझे डिस्टर्ब न करे. बहुत ज़रूरी होने पर ही मेरे पास किसी को आने देना. समझे?”

“यस सर.”

“ओके. यू मे गो नाउ.”

अनुमति मिलते ही श्याम वहाँ से चला गया.


श्याम के जाते ही रॉय ने बगल में रखी एक फाइल को उठा कर उसके नीचे दबी कुछ पासपोर्ट साइज़ के फ़ोटो निकाले. ये वो फ़ोटो थे जिन्हें उसने आज सवाल जवाब के समय नबीन बाबू, रुना और अन्य लोगों को लाने को कहा था.

दो सफ़ेद पेपर लिया, उनमें से एक पर उसने सभी पुरुषों के फ़ोटो रख दिया और दूसरे पर दोनों महिला, अर्थात् सीमा और रुना का फ़ोटो रखा और पेपर पर ही एक जगह पेन से पासपोर्ट साइज़ का एक चतुर्भुज बनाया. अब दोनों फ़ोटो और वो चतुर्भुज ऐसे बने और रखे थे कि अगर तीनों को रेखाओं से जोड़ा जाए तो एक त्रिकोण बन जाए.

रॉय ने अब एक सिगरेट सुलगाया, तीन – चार कश लगाया और अपने आप से ही कहा,

“पता नहीं श्याम ने इस बात को नोटिस किया या नहीं... ये दो औरतें... सीमा और रुना... शुरू से ही संदेह के घेरे में हैं. दोनों के लंबे बाल हैं... दोनों के ही बालों का रंग लाइट ब्राउन है, दोनों ने ही अपने नाखूनों को थोड़ा बढ़ाया हुआ है, नाखूनों पर नेलपॉलिश लगी है, दोनों ने ही मैनीक्योर किया है. रुना मुखर्जी तो है ही सुन्दर... लेकिन सीमा को भी इस मामले में नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है. दोनों ने ही शायद परफ्यूम भी शायद एक सा लगाया था.... या शायद.... म्मम्म....खैर...”

रॉय ने अब दो कागज और लिया; और उन दोनों कागज़ों में से एक पर नबीन बाबू, हरिपद और तुपी काका के फ़ोटो उसी त्रिकोण तरीके से रखा और दूसरे पर देबू, कालू और शुभो के.

इसके बाद रॉय ने टेबल का ही एक और दराज खोला, हेडफ़ोन निकाला और उसे उसी दराज में रखे एक छोटे से टेप रिकॉर्डर से कनेक्ट कर के कुछ सुनने लगा. ज्यों ज्यों सुनता गया... त्यों त्यों उसके चेहरे के भाव कई बार बदलते गए.


इधर,

गाँव में...

एक बड़े घने छाँवदार वृक्ष के नीचे गाँव के कुछ प्रबुद्ध और वरिष्ठ लोग एकत्र हुए थे. सबके ही मुख मंडल पर घोर चिंता के घनघोर बादल छाए हुए थे. सभी किसी सोच में एक साथ डूबे हुए थे. सब के सब बिल्कुल चुप.


बड़ी देर बाद गाँव के सबसे वरिष्ठ सज्जन श्री सुमलय बिस्वास ने गला साफ़ करते हुए कहा,

“नहीं मेरे मित्रों... व्यक्तिगत रूप से मेरा यही मानना है कि इस समस्या का समाधान हमारे खुद के हाथों में नहीं है. सिक्युरिटी चाहे कुछ भी कहे या करे; मेरा स्वयं का मानना है की ये सभी घटनाएँ किसी बहुत ताकतवर ऊपरी बला का काम है... और इसका मुकाबला करने के लिए हमें भी ऐसे ही किसी ताकत की सहायता लेनी होगी.”

एक वृद्ध सज्जन बोल पड़े,

“वो तो हम सब समझ ही रहें हैं बिस्वास जी... पर असल प्रश्न तो यही है कि क्या आप या इस गाँव में कोई भी ऐसी किसी शक्ति को जानता है जो हमारी सहायता करने के लिए तैयार हो?”

इस प्रश्न पर सभी चुपचाप एक दूसरे का मुँह ताकने लगे... और जब उत्तर नहीं मिला तो परे देखने लगे... सिवाय बिस्वास जी के.

उन्होंने कांपते लहजे में कहा,

“हाँ... मैं जानता हूँ ऐसे किसी को.”

उनका ये कहना था कि सभी आश्चर्य से बिस्वास जी की ओर देखने लगे. लेकिन बिस्वास जी के चेहरे पर दृढ़ता के साथ साथ एक अनिश्चितता का भी भाव था. एक घबराहट थी उनमें.

उन्हें ऐसा देख कर एक दूसरा सज्जन उनके पास आया और पूछा,

“कौन? किसकी बात कर रहे हैं आप?”

होंठों पर जीभ फेर कर खुद को नार्मल दिखाने की कोशिश करते हुए बिस्वास जी बोले,

“कापालिक!”
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#91
Mast....
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#92
(31-07-2020, 01:32 PM)kill_l Wrote: Mast....
 

धन्यवाद.
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#93
Shandar
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#94
Nice update interesting
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#95
Zabardast
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#96
Zabarzast
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#97
Mindblowing
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#98
Awesome
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#99
कापालिक की एंट्री। गुड।। कृपया अपडेट जल्दीजल्दी देवें।
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Update?
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