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11-07-2020, 02:04 PM
(This post was last modified: 11-07-2020, 02:11 PM by Dark Soul. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
(04-07-2020, 10:16 PM)Nitin_ Wrote: Behad shandaar update
(04-07-2020, 10:33 PM)Ramsham Wrote: Are bhai kya likha hai mere bhai bahut acche ultimate very good. Maza aa gya.
(05-07-2020, 01:33 AM)harishgala Wrote: Nice update
(05-07-2020, 09:17 AM)Kam1nam2 Wrote: इसको अच्छे से पूरा नंगा करवाकर chudavaanaa गांव की चुत वैसे भी खुलकर लोडा खाती है। रांड रहती है साली।
(06-07-2020, 01:50 PM)kill_l Wrote: badiya.....
(06-07-2020, 07:06 PM)HunkLaunda Wrote: Bahut hi zabardast likh rahe ho bhai
(09-07-2020, 02:47 PM)duttluka Wrote: very mysterious and interesting story......
pls continue.......
कहानी को पसंद करने के लिए आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद.
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(11-07-2020, 08:57 AM)Ramsham Wrote: Are bhai update de na jaldi mere bhai
(11-07-2020, 08:57 AM)Ramsham Wrote: We r waiting
अपडेट का क्या है. आज नहीं तो कल आ ही जाएँगे.
आप रेप्स देने की तो कृपा करें महाराज.
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रेप्स एडेड सक्सेसफुली। अब तो ला दो अपडेट।
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८)
रह रह कर कालू के आँखों के सामने कुछ दृश्य उभर आते और उसी के साथ कालू का सिर दुखने लगता. इसी दर्द से कालू बिस्तर पर पड़े पड़े छटपटाने लगता.
बंद आँखों से सजग रहते हुए ही उन दृश्यों को समझने का प्रयत्न करता; पर जैसे ही दिमाग पर जरा सा ज़ोर क्या लगाता सिर फिर से दुखने लगता. कुछ टूटे बिखरे से रंगीन दृश्य; जो यदि जरा सा थम जाए या धीमे हो जाए तो तब शायद कुछ समझ पाए कालू... पर.... पर... दृश्य तो जैसे सब खिचड़ी से आते जाते.
बस इतना ही समझ पाया था कालू कि इन दृश्यों का उससे अवश्य कोई सम्बन्ध है अन्यथा वो स्वयं को इन दृश्यों में नहीं पाता.
पर... पर... ये दूसरा व्यक्ति कौन है?
जिन दृश्यों को अपने बंद आँखों से देख रहा है... जिन्हें वो सपना समझ रहा है.... उन सपनों में उसके अलावा कोई और भी है जिसे वो महसूस तो कर पा रहा है पर स्पष्ट देख नहीं पा रहा.
तभी किसी ने उसे ज़ोर से हिलाया, झकझोरा...
एक झटके से उठ बैठा वो.
देखा, उसके आस पास उसे घेरे हुए बहुत लोग हैं; दोस्त हैं, सम्बन्धी हैं, गाँव के कुछ लोग हैं, पड़ोसी हैं, पिताजी बिस्तर पर उसके पास बैठे हुए हैं, माताजी सिरहाने बैठी उसे हाथ वाले पंखे से हवा कर दे रही हैं.
कालू अपनी आँखें मलता हुआ चारों ओर और अच्छे से देखा तो पाया कि वो इस समय अपने कमरे में ही है.
कालू हैरानी से सबको देखने लगा. खास कर माँ की आँखों में आँसू और पिताजी के चेहरे पर गहरी चिंता देख कर उसे बहुत ज्यादा हैरानी हुई. शुभो और देबू थोड़ा पास आ कर उसकी ओर झुक कर पूछे,
“कालू... यार... कैसा है तू... क्या हुआ था तुझे?”
उनका ये पूछने भर की देरी थी कि जितने भी लोग वहाँ उपस्थित थे, सब के सब यही प्रश्न एक साथ करने लगे.
गहरी नींद से उठा कालू बेचारा कुछ समझ ही नहीं पा रहा था की देबू और शुभो ने उससे क्या पूछा और उसके परिवार जनों के साथ साथ बाकी के लोग भी आखिर उससे क्या जानना चाहते हैं. उसने असमंजस भरी निगाहों से अपने माँ बाबूजी की ओर देखा. दोनों को देख कर ये साफ़ महसूस किया उसने की दोनों अभी अभी किसी गहरी दुष्चिन्ता से बाहर निकले हैं.
उसे घेर कर खड़े लोगों ने फिर से प्रश्नोत्तर का पहला चरण शुरू कर दिया और इसी में पूरा दिन पार हो गया.
शाम को वो घर पर ही रहा.
लोगों के प्रश्नों के बारे में सोचता रहा.
सबके प्रश्न उसे बहुत अटपटे और मजाकिया लग रहे थे.
“तुम्हें क्या हुआ था... कहाँ चले गए थे... ऐसा क्यों हुआ... और कौन था साथ में....” इत्यादि इत्यादि प्रश्न.
इन सबके अलावा जो चीज़ उसे सबसे अजीब लग रही थी वो ये कि उसे कुछ भी याद क्यों नहीं है. यहाँ तक की उसे शुभो के घर जाने के बारे में भी कुछ याद नहीं. वो तो शुभो ने उससे जब पूछा की उसके घर से जाने के बाद वो कहाँ गया था और शाम को मिलने क्यों नहीं आया था.. तब कालू को पता चला की वो शुभो के घर गया था और शाम को मिला भी नहीं अपने दोस्तों से.
कालू ने शर्ट के बटन खोल कर अपने सीने पर अभी भी ताज़ा लग रहे उन तीन खरोंचों को देखा.
आश्चर्य..
इनके बारे में भी कुछ याद नहीं उसे.
बस यही समझ पाया की इनमें अब सूजन और दर्द नहीं है.
अगले दिन सुबह आठ बजे शुभो उसके घर आया.
जल्दी ही आया क्योंकि उसे फिर जा कर अपनी दुकान भी खोलनी थी.
कालू अपने कमरे में ही बैठा चाय पी रहा था. दोस्त को आया देख बहुत खुश हुआ और बैठा कर उसे भी चाय बिस्कुट दिया. थोड़ी देर के कुशल क्षेम और इधर उधर की बातचीत के बाद कालू गम्भीर होता हुआ बोला,
“यार, कुछ पूछना है तेरे से... पूछूँ?”
गर्म चाय की एक सिप लेता हुआ शुभो बोला,
“हाँ ... पूछ.”
“यार.... हुआ क्या था?”
होंठों तक चाय के कप को लाते हुए शुभो रुक गया और शंकित लहजे में कालू से पूछा,
“मतलब?”
“मतलब, मेरे साथ क्या हुआ था... मुझे कुछ भी याद क्यों नहीं है? आधे से ज्यादा गाँव वाले, दोस्त, रिश्तेदार, माँ बाबूजी.. सब के सब मुझे घेर कर क्यों खड़े थे? मामला क्या है?”
चाय खत्म कर कप को एक साइड रखते हुए पॉकेट से बीड़ी निकाल कर होंठों के बीच दबाते हुए शुभो पूछा,
“यार एक बात तो मुझे समझ नहीं आ रही और वो यह कि तू सच बोल रहा है या झूठ ... की तुझे कुछ भी याद नहीं. वैसे तू जिस हालत में मिला था, उससे तो तेरी इस बात पे की तुझे कुछ पता नहीं या कुछ भी याद नहीं; पर विश्वास किया जा सकता है.”
“हालत? कैसी हालत?”
कालू उत्सुक हो उठा.
बीड़ी सुलगाते हुए शुभो बोला,
“नंगा!”
कालू समझा नहीं... इसलिए दोबारा पूछा,
“क्या? क्या बोला तू?”
कालू की ओर देख कर शुभो फिर अपनी बात को दोहराया; पर इस बार थोड़ा अच्छे से बोला,
“अबे तू नंगा था... नंगा ! एकदम निर्वस्त्र!... नंगी हालत में गाँव के ताल मैदान में मिला था तू. नंगा तो था ही... साथ ही बुखार से तड़प रहा था... और...”
“और?”
“और धीमे आवाज़ में एक ही बात को बार बार दोहरा रहा था... ‘और चाहिए... और चाहिए’... सबने सुना पर किसी को कुछ भी समझ में नहीं आया. अब ये ‘और क्या चाहिए’ ये तो तू ही बता सकता है. है न?”
व्यंग्य करता हुआ शुभो कालू को तीक्ष्ण दृष्टि से देखा.
कालू तो शुभो की बात सुनकर ही हैरान परेशान हो गया. अभी अभी शुभो ने उसे जो कुछ भी बताया; उनसे वो कुछ भी नहीं समझा... पर कालू के चेहरे पर उमड़ते चिंता के बादल से इतना तो तय है कि कालू वाकई में कुछ नहीं जानता है.
शुभो सामने दीवार घड़ी पर नज़र डाला.
अब उसके उठने का समय हो आया है अतः बीड़ी को जल्दी खत्म कर के उठता हुआ बोला,
“देख भाई, सही गलत, याद आना या नहीं आना बाद की बात है. सबसे पहले तो तू कुछ दिन और आराम कर... चंगा हो जा, हम लोग के साथ चाय दुकान पर बैठना शुरू कर, पहली वाली दिनचर्या शुरू होने दे.. फिर इस बारे में कभी सोचेंगे. ठीक है? अब चलना चाहिए मेरे को. समय हो रहा है.”
कहते हुए शुभो कालू के कंधे पर सहानुभूति से हाथ रखा, फिर पलट कर जाने लगा.
दरवाज़े तक पहुँचा ही था कि कालू ने पीछे से पूछा,
“यार... देबू नहीं आया?”
ठीक दरवाज़े के पास जा कर ठिठक कर रुका शुभो; कालू की ओर पीछे मुड़ा और एक मुस्कान लिए बोला,
“वो तो अभी नहीं आ सकता न... सुबह सुबह सबको दूध पहुँचाता है... पर कह रहा था कि तुझसे ज़रूर मिलेगा. उसे भी तेरी बहुत चिंता हो रही थी.”
इतना कह कर शुभो कमरे से निकल गया.
इस समय कालू शुभो का चेहरा नहीं देखा पाया; अन्यथा बड़ी आसानी से बता देता की शुभो ने उससे झूठ बोला.
इधर कालू के घर से निकल कर शुभो अपनी दुकान की ओर साइकिल चलाता कालू के बारे में सोचता हुआ जा रहा था.
अभी कुछ दूर गया ही होगा कि तभी उसे दूर से देबू आता दिखा. वो भी अपनी साइकिल पर दूध के बड़े बड़े तीन कैन लिए मस्ती में झूमता हुआ सा चला आ रहा था. सुबह सुबह अपने एक और जिगरी यार को देख कर शुभो बहुत खुश हुआ और साइकिल तेज़ चलाता हुआ आगे बढ़ा.
पर उसके आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा जब उसने देखा की देबू न सिर्फ अपनी धुन में उस के आगे आया, अपितु उसके बगल से ऐसे निकल गया मानो शुभो वहाँ है ही नहीं. शुभो की ओर नज़र फेर कर भी नहीं देखा.
शुभो के बिल्कुल बगल से निकल जाने के बाद भी देबू के साइकिल के स्पीड में कोई कमी नहीं आई. पहले की ही भांति अपनी ही दुनिया में मग्न वह चला जा रहा था. शुभो पीछे मुड़ कर देबू को आवाज़ लगाया ये सोच कर कि अगर देबू ने उसे वाकई में नहीं देखा होगा तो कम से कम आवाज़ सुन कर रुक जाएगा.
पर ऐसा हुआ नहीं.
उल्टे ऐसा लगा मानो देबू ने अपना स्पीड बढ़ा दिया है.
शुभो को कुछ ठीक नहीं लगा. देबू उसे ऐसे नज़रंदाज़ भला क्यों करे? शुभो को ये बात अजीब लगा. उसने साइकिल घूमाया और चल पड़ा देबू के पीछे. पर जान बूझ कर देबू से दूरी बनाए रखा.
देबू सीधे नबीन बाबू के घर जा कर रुका.
सीटी बजाते हुए साइकिल का स्टैंड लगाया, कैन उतारा और दरवाज़ा खटखटाया. अंदर से शायद किसी ने पूछा होगा कि ‘कौन है?’ तभी तो देबू ने बाहर से आवाज़ लगाया,
“मैं हूँ भाभी जी. दूध ले लीजिए.”
दो मिनट बाद दरवाज़ा खुला और अंदर से रुना भाभी मुस्कराती हुई बाहर निकली. लाल साड़ी - ब्लाउज में एक लंबी वक्षरेखा दिखाती रुना इतनी सुंदर लग रही थी कि उसे देखने के बाद शुभो तो क्या; गाँव का अस्सी – नब्बे साल का बूढ़ा भी उसके प्रेम में पड़ जाए.
दोनों में थोड़ी सी बातचीत हुई और फिर रुना भाभी अंदर चली गई.
देबू भी एक मिनट बाद अपने चारों ओर अच्छे से देखने के बाद अंदर घुसा और दरवाज़ा बंद कर दिया.
शुभो पहले तो कुछ समझा नहीं. और फिर जो कुछ भी वो समझा, उसे मानने के लिए वो कतई तैयार नहीं हुआ. देबू एक अच्छा लड़का है और उसका दोस्त भी. वहीँ रुना भाभी भी एक सुशिक्षित और अच्छे आचार विचार वाली महिला हैं. ऐसे कैसे वो कुछ भी समझ और मान ले.
करीब दस मिनट तक वो अपनी जगह पर ही खड़ा देबू के निकलने की प्रतीक्षा करने लगा.
जब देबू दस मिनट बाद भी नहीं निकला तब उसका सब्र का बाँध टूट गया. साइकिल बगल की झाड़ियों के अंदर खड़ी कर के शुभो घर के मुख्य दरवाज़े तक आया. हाथ बढ़ा कर दस्तक देने ही वाला था कि रुक गया. सोचा, ‘ये ठीक नहीं होगा. कुछ और करना चाहिए.’ कुछ पल सोचा और फिर कुछ निश्चय कर दरवाज़े से हट गया. बाहर से खड़े खड़े ही पूरे घर को अच्छे से निहारा और घूम कर घर के पिछवाड़े की ओर चल दिया.
घर के पीछे एक छोटा सा मैदान जैसा ज़मीन था जिसे देख कर साफ पता चलता है की एक समय यहाँ एक सुंदर बगीचा हुआ करता था. अभी भी कुछ छोटे छोटे पौधे लगे हुए थे. खास कर गेंदे के पौधे... कुछ सूखे हुए तो कुछ हरे भरे. कुछेक बांस को काट कर उन्हीं से बाउंड्री बनाया गया था कभी पर आज अधिकांश हिस्सा टूटा हुआ है.
शुभो आगे कुछ सोचता कि तभी उसे ऊपर के कमरे से हँसने की आवाज़ आई. अब वो और देर नहीं करना चाहता. जल्दी अपने चारों ओर देखा. थोड़ी ही दूर पर एक बड़ा सा पेड़ दिखा. दौड़ता हुआ गया और जितनी जल्दी हो सके पेड़ पर चढ़ने लगा. थोड़े से प्रयास के बाद शुभो पेड़ के सबसे ऊँची डाली पर पहुँच गया. खुद को अच्छे से डालियों पर जमा लेने के बाद वो रुना के घर की तरफ बड़े ध्यान से देखने लगा. खास कर उस कमरे की ओर जहाँ से कुछ मिनट पहले उसने हँसी की आवाजें सुनी थी.
वहीँ एक डाली पर बैठे बैठे एक अनजाना तीव्र कौतुहल के साथ साथ भय भी घर किए जा रहा था शुभो के मन में,
‘क्या हो अगर किसी ने उसे इस तरह पेड़ पर बैठे देख लिया? क्या होगा अगर वो रुना भाभी के कमरों की ताक – झाँक करते हुए पकड़ा गया?? अपने इस उद्द्दंड शरारत का क्या स्पष्टीकरण देगा वो???’
इस तरह के अनगिनत भयावह परिस्थितियाँ और प्रश्नों के घेरे में खुद को संभावित तौर पर फँसता देखने में व्यस्त शुभो शायद थोड़ी ही देर बाद उतर जाने का निर्णय ले लेता कि तभी....
तभी उसे उसी कमरे में एक हलचल होती दिखाई दी.
सामने की तीन कमरों में एक कमरे में एक स्त्री दिखाई दे रही है.
रुना भाभी ही है वो.
मस्त अल्हड़ जवानी लिए किसी के साथ मदमस्त हो झूम रही है. शायद जिसके साथ वो है; उसकी बाँहों में आने से बचने की कोशिश कर रही है. और जिससे बचने की कोशिश कर रही है.. वो और कोई नहीं, देबू है.
रुना के चेहरे पर एक बहुत ही अलग तरह की रौनक है... और... देबू भी कितना खुश लग रहा है. अजीब, अलग सी ख़ुशी. जैसे बहुत जिद, मिन्नत, विनती और एक लंबी प्रतीक्षा के बाद एक बच्चे को उसका मनपसंद कोई सामान.. कोई खिलौना मिलता है तो वो कैसे खुश होता है... बिल्कुल वैसे ही.
पेड़ की ऊँची डाली पर बैठा शुभो देख रहा था कि कैसे देबू ने अंततः रुना भाभी को अपनी बाँहों में ले लिया और फिर एक दीवार से भाभी की पीठ को लगा कर उनकी आँखों, गालों और होंठों को बेतहाशा चूमने लगा. रुना कुछ पलों के लिए चुपचाप बुत सी खड़ी रही... फिर... धीरे धीरे... अपने दोनों हाथों को देबू के पीछे, उसके पीठ पर ले जाकर अच्छे से पकड़ ली.
देबू रुके नहीं रुक रहा था. या शायद खुद को रोकना ही नहीं चाह रहा था. गालों और होंठों को चूमते हुए वह थोड़ा नीचे आया और रुना के चेहरे को थोड़ा ऊपर उठा कर, उनकी गर्दन को चूमने और चूसने लगा. जैसे ही देबू ने भाभी की गर्दन को चूसना शुरू किया ठीक तभी उनकी होंठों पर एक मुस्कान तैर गई और ये मुस्कान साफ़ बता रही थी कि भाभी को न सिर्फ इस क्रिया से एक अपरिचित सुख मिल रहा है अपितु उन्होंने तो शायद ऐसे किसी क्रिया और उससे मिलने वाली सुख के बारे में कभी कल्पना भी नहीं की होगी.
देबू कभी उनकी जीभ को चूसता तो कभी गालों को. रह रह कर रुना की पूरी गर्दन को चुम्बनों से भर देता. इस पूरे काम क्रिया के दौरान रुना हँसती रही और देबू के पीठ और सिर के बालों को सहलाती रही.
इधर देबू के हाथ भी हरकत में आ रहे थे. धीरे धीरे उसने रुना के ब्लाउज के सभी हुक खोल दिया. ब्लाउज के खुले दोनों पल्लों को साइड कर वो रुना के गदराई दुधिया स्तनों का ब्रा के ऊपर से ही हस्त मर्दन करने लगा. उसके हाथों का स्पर्श पाते ही रुना ऐसे चिहुंक उठी मानो बरसों की तड़प पर आज किसी ने पानी डाल कर शांत किया हो.
वो और कस कर जकड़ ली देबू को.
देबू भी तो यही चाह रहा था. दरअसल वो हमेशा से ही ऐसी गदराई महिलाओं का दीवाना रहा है जिनका नैन नक्श अच्छा हो, बड़े स्तनों के साथ गदराया बदन हो, अपेक्षाकृत पतली कमर हो और सहवास के समय जो अपने साथी को अपने बदन से जम के जकड़ ले.
यौन उन्माद की अतिरेकता में देबू ने ब्रा उतारने का झंझट न ले कर ब्रा कप्स को एक झटके में नीचे कर दिया. कठोर मर्दन के कारण दुधिया रंग से सुर्ख गुलाबी हो चुके दोनों स्तन एकदम से कूद कर बाहर आ गए. दोनों स्तनों के बस बाहर आने की ही देर थी; देबू ने उन्हें लपकने में क्षण भर का भी समय नहीं गँवाया. कॉटन से भी अधिक मुलायम दोनों स्तनों के स्पर्श का आनंद अपने हथेलियों द्वारा लेते हुए सुध बुध खोया सा देबू ने अपना मुँह दोनों स्तनों के बीच में घुसा कर दोनों तरफ से मुलायम दुदुओं का दबाव अनुभव करने लगा.
बहुत ही भिन्न और दिमाग के सभी बत्तियों को गुल कर देने वाली एक मीठी सुगंध आ रही थी रुना के शरीर से... विशेषतः उसके स्तन वाले क्षेत्र से.
और इसी मीठी सुगंध से पागल सा हुआ जा रहा था देबू. जीवन में अभी तक शायद ही कभी ऐसी सुगंध से वास्ता हुआ होगा. जैसे एक मतवाला हाथी हरे भरे खेत में बेलगाम घुस कर सभी फ़सल को ध्वस्त कर देता है; ठीक वैसे ही देबू भी मतवाला हो चुका था और बेलगाम हो कर उस हसीन तरीन गदराई स्त्री देह को रौंद देना चाहता था.
इधर,
दो जवान सख्त हाथों के द्वारा अपने सुकोमल नग्न स्तनों पर पड़ते दबाव से बुरी तरह तड़पते हुए कसमसा रही थी रुना. पुरुषों की एक प्राकृतिक एवं स्वाभाविक लालसा होती है स्त्री देह पर ... विशेष कर उसके वक्षों के प्रति... ऐसा अपनी जवानी के पहले पायदान पर कदम रखते ही सुना था रुना ने. पर फूले, गदराए वक्षों के प्रति ऐसा दीवानापन होता है इन मर्दों का ये कदाचित इतने लंबे समय बाद अनुभव कर रही थी वो. निःसंदेह विवाह के पश्चात अपने पति के हाथों अपना कौमार्य भंग करवाते हुए यौन सुख भोगी थी... पर... पर आज तो एक पराए मर्द... नहीं.. एक पराए लड़के के द्वारा....
‘आह्ह!’
एक हल्की सिसकारी ले उठी वह.
उन्माद में देबू ने कुछ ज्यादा ही ज़ोर से उसका स्तन दबा दिया था.
प्यार भरे शब्दों से रुना ने देबू को डांटना चाहा... ये कहना चाहा की अभी बहुत समय है.. आराम से करे... उसे पीड़ा होती है.
पर, जिस अनुपम कलात्मक ढंग से देबू के हाथ और उसकी अंगुलियाँ दोनों स्तनों के क्षेत्रफल पर गोल गोल घूमते हुए उसके दोनों निप्पल से छेड़छाड़ कर रहे थे और जिस दीवानगी से देबू उन सुंदर अंगों पर अपने चुम्बनों की वर्षा करते हुए चाटे जा रहा था; उससे रुना के मन में अपने लिए गर्व और देबू के लिए ढेर सारा प्यार उमड़ पड़ा. इसलिए कुछ कहे बिना बचे हुए लाज को ताक पर रख कर अधखुली आँखों से देबू के कामक्रियाओं को देखने लगी.
इधर पेड़ की डाल पर खुद को किसी तरह से बिठा कर कमरे के अंदर का पूरा दृश्य को देख कर चरम उत्तेजना से भरा हुआ शुभो वहीं हस्तमैथुन करने लगा था. थोड़ी ही देर में उसका वीर्य निकलने वाला था कि अचानक उसे ऐसा लगा मानो उस कमरे से देबू से प्यार पाती और उसे प्यार करती रुना की नज़रें सीधे उस पर यानि शुभो पर टिकी हुई हैं... वो... वो... शायद शुभो को ही देख रही थी...
‘पर...पर ये कैसे संभव है?!’
मन ही मन सोचा शुभो.
‘मैं तो अच्छे से एक ऐसे डाल पर बैठा हुआ हूँ जिसके आगे पत्तों का झुरमुठ है. इतनी सरलता से मुझे देख पाना; वो भी इस दूरी से... असंभव हो न हो, एक कठिन दुष्कर कार्य तो ज़रूर है. उफ़.. क्या करूँ... पकड़े जाने का खतरा मैं नहीं ले सकता. गाँव वाले पूछेंगे की मैं क्या कर रहा था... या.. क्यों बैठा हुआ था एक डाली पर... वो भी रुना भाभी के कमरे की ओर मुँह कर के... तो मैं क्या उत्तर दूँगा..?? न भाभी की इज्ज़त को दांव पर लगा सकता हूँ और न खुद की. उफ़... नहीं.. अब और नहीं.. बहुत देर बैठ लिया.. अब मुझे जाना चाहिए. ज्यादा दिमाग लगाना ठीक नहीं होगा.’
शुभो बिना आवाज़ किए; आहिस्ते से पेड़ से उतरा, अपने कपड़े झाड़ा और दबे पाँव लंबे डग भरते हुए वहाँ से निकल गया.
देखा जाए तो ये भी अच्छा ही हुआ शुभो के लिए क्योंकि कुछ ही क्षणों बाद रुना देबू को अपने गद्देदार बिस्तर पर ले गई जोकि खिड़की से काफ़ी परे हट कर था. तो शुभो अगर बैठा भी रहता डाली पर तब भी उसे कुछ दिखने वाला नहीं था.
अपनी साइकिल उठा कर जल्दी जल्दी पैडल मारते हुए शुभो अपने दुकान पहुँचा. करीब बीस मिनट की देरी हो गई थी. दो – तीन ग्राहक आ चुके थे. जल्दी से दुकान खोल कर, हाथ धो कर भगवान श्री गणेश एवं माता लक्ष्मी जी की छोटी मूर्तियों को अगरबत्ती दिखा कर दुकानदारी शुरू कर दी.
पूरा दिन दुकानदारी में अच्छे से दिमाग लगाया. हालाँकि बीच बीच में बेकाबू हो जा रहा था पर जैसी तैसे मन को समझाया.
संध्या में यथासमय दुकान को बढ़ा कर (बंद कर) कालू को साथ ले एक अन्य चाय दुकान में ले गया.
कुछ देर एक दूसरे का कुशल क्षेम पूछने के बाद चाय पीते पीते शुभो ने कालू को दिन की सारी घटना विस्तार से कह सुनाया. कालू को विश्वास तो नहीं हो रहा था पर चूँकि शुभो फालतू के लंबे लंबे गप्पे हांकने का शौक़ीन नहीं था और ना ही आज से पहले इस तरह की बातें जो की झूठ साबित हो जाए; कभी किया था इसलिए उसकी बातों को मानने के अलावा फिलहाल कालू के पास और कोई चारा न था.
जब पूरी घटना सुनाने के बाद शुभो चुप हुआ तब थोड़ी देर के लिए दोनों के बीच शांति छा गई.
एक कुल्हड़ चाय मँगाते हुए कालू ने कहा,
“यार.. अपनी दृष्टि से देखें तो पूरी बात बहुत संदेहास्पद है. पर.. ये दो लोगों के बीच का मामला है... भाभी को नहीं तो क्या देबू से इस बारे में बात किया जा सकता है?”
बहुत गम्भीर हो कर कुछ सोचता हुआ शुभो बोला,
“यार कालू, हमें देबू से ही बात करनी होगी.”
“देबू से ही बात करनी होगी...?! क्यों भई?”
“कालू... ये जो पूरी घटना है... ये केवल संदेहास्पद ही नहीं अपितु भयावह भी है.”
“वो कैसे?”
“यार, पेड़ की डाली पर बैठा जब मैं उस घर के ऊपरी तल्ले के कमरे में भाभी और देबू के काम क्रीड़ा को देख रहा था और जब अचानक से मुझे ऐसा लगा कि भाभी मेरी ही ओर देख रही है; तब मैंने एक बात पर गौर किया.”
“किस बात पर?”
“भाभी की आँखें... उ..उन.. की आँखें.....”
“भाभी की आँखें का क्या शुभो?” एक तीव्र कौतुक जाग उठा कालू के मन में.
“यार, भाभी की आँखें पूरी तरह से काली थीं!”
“क्या?! क्या मतलब??”
“मतलब की, हमारी आँखों में जो सफ़ेद अंश होता है... वो.. वो भाभी की आँखों में नहीं था! पूरी आँखें काली थीं!!”
बोलते हुए शुभो का गला काँप उठा.
और कालू के हाथ से भी कुल्हड़ छूट कर जमीन पर धड़ाम से गिरा.
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एक मित्र ने आपके इस कहानी को पढने का सुझाव दिया था। कहानी बहोत ही अच्छी है। एक कामकथा होने के साथ ये एक अच्छी भयकथा के रुप मै उभे आयेगी इसमे कोई संदेह नही। बहोत धन्यवाद मित्र।
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९)
धीरे धीरे दस दिन बीत गए.
हर रोज़ नबीन बाबू के ऑफिस के लिए निकल जाने के बाद देबू दूध देने आता और बहुत सा समय रुना के साथ बिताता.
और इन्हीं दस दिनों में शुभो ने भी कम से कम सात दिन देबू का रुना के घर तक पीछा किया, पेड़ पर चढ़ा, उस कमरे की खिड़की की ओर टकटकी बाँधे बैठा रहता किसी एक डाली पर और तब तक बैठा रहता जब तक उस खिड़की से रुना भाभी और देबू के कामक्रियाओं का कुछ दृश्य दिखाई न दे देता.
जब कुछ भी दिखना बंद हो जाता तब भारी मन से पेड़ से उतर कर अपने दुकान जाता और सारा दिन खोया खोया सा रहते हुए काम करता.
इसमें कोई संदेह नहीं है की शुभो को रुना भाभी अच्छी नहीं लगती थी.. वो तो उसे बहुत अच्छी... हद से भी अधिक अच्छी लगती थी.. पर सिर्फ़ गाँव की एक शिक्षित और सुसंस्कृत महिला के रूप में. पर जब से रुना को देबू के साथ काम लीला में रत देखना शुरू किया है तब से सिर्फ़ और सिर्फ़ रुना को एक कामदेवी के रूप में देखने लगा है.
पर इससे भी बड़ी बात ये है कि वासना से भी अधिक जो अब शुभो के दिलो दिमाग पर छा गया है वो है ‘डर’.
जब पहली बार उसने खिड़की से देबू और रुना को आपस में प्रेम प्रणय करते देखा था उसी दिन उसने कभी न भूलने वाली एक बात और देखा था.
रुना की काली आँखें!
हो सकता है की शायद ये शुभो के मन का वहम हो परन्तु शुभो तो जैसे ये मान ही बैठा था कि उसी दिन रुना ने शुभो को पेड़ की डाली पर बैठ पत्तों के झुरमुठ से उस कमरे की खिड़की में ताक झाँक करते हुए देख लिया था...
और यही वो समय था जब शुभो ने रुना की काली... पूरी तरह से काली हो चुकी आँखों को देखा था.
हालाँकि उस दिन के बाद से शुभो इतना डर गया था कि हस्तमैथुन भी करे तो डर के कारण वीर्य के स्थान पर मूत निकल जाए; फिर भी वो इन बीते दस में से सात दिन खुद को रोक न सका और नबीन बाबू के घर के पीछे जा उसी पेड़ की डाली पर बैठ रुना और देबू के शारीरिक आह्लाद वाली खेल को बड़े चाव से देखा.
एक बात जो उसे अच्छी लगी; वो ये कि इन सात दिनों में एक बार भी ऐसा नहीं लगा की रुना दोबारा उसकी तरफ देखी हो.
लेकिन एक बार जो वो भय उसके मन में घर कर गया... वो अब निकाले न निकले.
अपने डर के अनुभव को तो वो कालू के साथ बाँट ही चुका था.. सिर्फ़ देबू ही रह गया था.
पर शुभो को तब बहुत आश्चर्य हुआ जब उसके ये पूछने पर कि देबू और रुना के बीच क्या चक्कर है तो देबू ऐसी किसी भी बात से साफ़ मुकर गया. शुभो ने जब दोस्ती खातिर देबू पर दबाव डाला तब देबू ने साफ़ कह दिया,
“देख भाई, तू पिछले कुछ दिनों से बड़ा अजीब तरह से बर्ताव कर रहा है. इतनी उल्टी सीधी और बहकी बहकी बातें कर रहा है कि कभी कभी तो लगता है तुझे शहर ले जा कर डॉक्टर से दिखाना पड़ेगा. सुन, ये सब न कालू के सामने किया कर... वो भरोसा करता है ऐसी बातों पे और जल्दी मान भी जाता है. यार, तुझे शर्म आनी चाहिए जो तूने रुना भाभी जैसी एक संभ्रांत परिवार की महिला पर इस तरह का ऐसा घिनौना संदेह किया, उनके चरित्र पर अँगुली उठाया. और उससे भी बड़ी दुःख की बात ये की तूने अपने इस जिगरी यार पर भी संदेह करता हुआ ऐसा बेहूदा आरोप लगाया. तेरे से ऐसी अपेक्षा नहीं थी. धिक्कार है ऐसी मित्रता पर.”
आँखों में आँसू लिए देबू वहाँ से चला गया.
और शुभो को एक अलग ही द्वंद्व में डाल दिया.
अपने और रुना भाभी के बीच के अमान्य सम्बन्ध को स्वीकार करने से साफ़ मना करने और ऐसी नीच बात सोचने और देबू पर झूठे आरोप लगाने की बात बोलकर उल्टे शुभो को ही देबू ने बहुत भला बुरा कह दिया और इसी के साथ ही दोनों की दोस्ती में दरार पड़ गई.
अपने सीने पर लगे खरोंच, कुछ दिन पहले हुई कुछ अनजानी बातों और अब शुभो के मुँह से रुना भाभी के बारे में सुनने के बाद से ही कालू और अधिक डर गया था और अब अपने घर से दुकान और दुकान से सीधे घर पहुँचता. कहीं किसी से कोई बेकार की बातें करना या समय बर्बाद करना; ये सब आदत उसकी रातों रात छूट गई.
चाय दुकान पर भी यदि शुभो से मिलता भी तो बस दस से पन्द्रह मिनट के लिए... फिर तेज़ क़दमों से चल कर सीधे घर पहुँचता.
देबू ने साथ उठना बैठना छोड़ दिया था.
शुभो और कालू ने उसे समझाने और मनाने की कोशिश की पर... सब व्यर्थ हुआ.
दिन किसी तरह कटते रहे...
अब बहुत कुछ पहले जैसा नहीं रहा.
एक दिन सुबह नींद से जागते ही शुभो को सीने पर दर्द होने लगा. कुछ चुभता हुआ सा लगा.
जल्दी से अपना टी शर्ट उतार कर देखा तो वो दंग रह गया.
उसके सीने पर ठीक वैसे खरोंचों के निशान थे जो आज से कुछ दिन पहले कालू ने अपने सीने पर दिखाया था. गहरे, टीस देते, सूजे हुए. आँखों पर से आश्चर्य के बादल हटते ही शुभो को असीमित भय के आवरण ने घेर लिया. उसके मन – मस्तिष्क में केवल भय ही भय बैठ गया. वह जल्दी से बिस्तर से उठा और कालू से मिलने के लिए तैयार होने लगा. पर तैयार होते होते ही उसे याद आया कि जब तक वो नहा धो कर, नाश्ता नहीं कर लेता तब तक घर के बाहर कदम नहीं रख सकता. ये एक ऐसा नियम था जो उसके परदादा के भी परदादा के ज़माने से चला आ रहा था और आज भी उसके दादाजी के साथ साथ उसके माता – पिता भी पूरे निष्ठा के साथ इस नियम का पालन करते हैं.
अतः तैयार होना छोड़ कर शुभो झट से बाथरूम में घुसा और नहाने लगा. मग से जब सिर पर पानी डालता और जब वह पानी बहते हुए सीने पर लगे घाव पे जा लगता तो घोर वेदना से शुभो सिहर उठता. अब तक उसे अंदाजन इतना तो समझ में आ ही गया था कि ये कोई मामूली खरोंच के दाग नहीं हैं अपितु कोई पराभौतिक मामला है.
नहा धो कर अपने कमरे में आया और जल्दी जल्दी कपड़े पहनने लगा. इसी दौरान उसने बिस्तर पर कुछ ऐसा देखा जो उसे थोड़ा अजीब लगा. बिस्तर पर उसके तकिये पर एक बाल था. चूँकि तकिया का कवर सफ़ेद रंग का था इसलिए अनायास ही उसकी नज़र तकिये पर चली गई थी. शुभो अपेक्षाकृत छोटे बाल रखता है और यहाँ ये बाल थोड़ा बड़ा था. उत्सुकता ने शुभो को तकिये पास जा कर खड़ा कर दिया. शुभो थोड़ा झुका और अंगूठे और तर्जनी अँगुली की मदद से उस बाल को तकिये पर उठा कर अपने आँखों के बहुत पास ला कर देखा.
बाल सिर्फ़ बड़ा ही नहीं, वरन बहुत बड़ा था और निःसंदेह किसी स्त्री का था और पूरी तरह काले रंग का न हो कर लाइट ब्राउन था.
एक के बाद एक दो बड़ी बातों ने शुभो के दिमाग का काम करना बंद कर दिया. पहले तो सीने पर खरोंच और अब तकिये पर एक स्त्री का बाल. पहला सुलझा नहीं की दूसरे ने और उलझा दिया.
मन ही मन सोचा,
‘किसी और से तो बात हो नहीं सकती इस बारे में. देबू तो सुनने वाला नहीं. बचा अब ये कालू. इस बाल के बारे में कुछ बता पाए या न बता पाए... इन खरोंचों के बारे में कुछ तो बता ही सकता है.’
जल्दी से नाश्ता खत्म कर वह कालू से मिलने उसके घर के लिए रवाना हो गया.
साइकिल से ज्यादा टाइम नहीं लगा कालू के घर तक पहुँचने में. उसके घर के बाहर उसकी छोटी बहन अपनी दो सहेलियों के साथ बैठी थी. शुभो को देखते ही खुश हो गई. दौड़ कर उसके पास गई और बोली,
“नमस्ते भैया... आप भैया से मिलने आए हैं?”
“हाँ छोटी... क्या कर रहे हैं तुम्हारे भैया? सो रहे हैं?”
“नहीं जाग रहे हैं. भैया, आप मेरे लिए लाए हैं?”
कहते हुए अपना दायाँ हाथ आगे बढ़ा दी छोटी.
जीभ काटते हुए शुभो उदास चेहरा बनाते हुए बोला,
“सॉरी छोटी. आज जल्दी में था इसलिए भूल गया. कल पक्का ला दूँगा. ठीक है?”
सुन कर छोटी निराश हो गई. दिल छोटा हो गया उसका. एक शुभो ही था जो अक्सर ही उसे टॉफ़ी ला कर देता था. घर में सब उसे ज्यादा टॉफ़ी खाने से मना करते थे. पर छोटी जैसी कम आयु की लड़की क्या जाने टॉफ़ी खाने के फायदे या नुकसान.. अक्सर ही ज़िद करती रहती. कभी कभार कालू उसे दे देता था पर ये शुभो ही था जो छोटी को बहन से भी ज्यादा प्यार देते हुए उसे अक्सर ही तरह तरह के फ्लेवर वाले टॉफ़ी ला कर देता था.
अभी शुभो के मुँह से ‘ना’ सुनकर उसका दिल तो छोटा हो गया पर वो जानती है कि शुभो बाद में उसे ज़रूर टॉफ़ी देगा. इसलिए तुरंत ही मुस्करा कर बोली,
“अच्छा तो बाद में देंगे न?”
“बिल्कुल!”
“पक्का प्रॉमिस?”
“पक्का प्रॉमिस!”
“ओके. थैंक्यू!”
“अच्छा, चल अब बता... तेरे भैया अगर जाग रहे हैं तो किधर हैं?”
“घर के पीछे... पुआल घर में.”
“क्या? पुआल घर में..?? क्या बात है.. सुबह सुबह ही ग्राहक आ गए?”
“ग्राहक नहीं भैया... मैडम आईं है.”
“मैडम? कौन मैडम?”
“मैडम मतलब नहीं समझे? रुना मैडम आईं हैं!”
“क्या??”
शुभो के तो होश ही उड़ गए.
ऐसा कुछ सुनने की तो उसने कोई आशा ही नहीं की थी. सीने पर उभर आए घाव के साथ साथ जिस व्यक्ति विशेष के बारे में कालू से थोड़ा चर्चा करना चाहता था वो स्वयं ही यहाँ आ पहुंची है! पर क्यों? क्या वाकई उन्हें कुछ लेना – खरीदना है? या फ़िर....??
छोटी को बाय बोल कर अपनी साईकिल वहीँ खड़ी कर के वो आहिस्ते क़दमों से चलता हुआ घर के पीछे पहुँचा. घर के सामने से पीछे तक पहुँचने में उसे कुल बाईस कदम चलने पड़े और घर के पीछे पहुँचने पर उसने देखा की पुआल घर थोड़ा और पीछे हट कर स्थित है जहाँ तक पहुँचने में अंदाजन उसे पंद्रह से सोलह कदम चलने पड़ेंगे.
उसने एक लंबी साँस ली, मानसिक तौर पर खुद को तैयार किया ताकि वहाँ पहुँचने पर अगर उसे कोई ऐसी वैसी भयावह दृश्य देखने को मिले तो वो घबराए न, ज़ोर पकड़ती धड़कनों की स्पीड को संयत करने का प्रयास किया और मन ही मन अपने ईश्वर को याद कर के आगे बढ़ा. उसका दायाँ हाथ उसके गले में पतले धागे से बंधे उसके कुलदेवता के एक छोटी सी ताबीज नुमा फ़ोटो पर थी. अपने कुलदेवता से अपनी रक्षा का और कोई अनुचित या अवांछित दृश्य न दिखने का प्रार्थना करता हुआ सधे पर धीमे कदमो से आगे बढ़ता रहा.
जैसे ही पुआल घर के एकदम पास पहुँचा; उसे दबी आवाज़ में किसी की हँसी सुनाई दी.
किसी भयावह दृश्य से सामना होने की परिकल्पना अब तक अपने मन मस्तिष्क में संजोए शुभो के लिए हँसी की आवाज़ बहुत ही अप्रत्याशित थी. एक तरह से झटका लगा उसे.
चारों तरफ पुआल ही पुआल. बगल में ही पुआलों के ढेर में उसे कुछ हलचल होती दिखी. शुभो तुरंत उस ओर बढ़ा.
और उस ओर जाने पर उसे जो दिखा; उसके बारे में भी उसने नहीं सोचा था.
पुआलों के ढेर पर रुना अधनंगी लेटी हुई थी और उसके बगल में कालू लेटा हुआ उसे प्यार किए जा रहा था.
इस दृश्य को देखते ही शुभो को फ़ौरन दो मिनट खुद को सँभालने में लग गए.
आँखों को हल्के से मसल कर वो दोबारा उस तरफ देखा.
सच में! रुना और कालू पुआल के ढेर में लेटे हुए आपस में प्यार करते हुए अपनी रंगीन दुनिया में खोए हुए हैं. कालू के हाथ रुना के आधे अधूरे कपड़ों के ऊपर से ही उसके पूरे बदन पर घूम रहे हैं और कालू खुद भी रुना के उभारों और गहराईयों की मस्ती में खोया हुआ उसे चूमे और प्यार किए जा रहा है.
दोनों को एक साथ ऐसी अवस्था में देख कर शुभो घोर अविश्वास से दोहरा हो गया. दिमाग सांय सांय करने लगा. उसके आँखों के सामने ही वे दोनों धीरे धीरे प्यार के सागर की गहराईयों में डूबते जा रहे थे.
“क्या कर रहा है बे?!”
शुभो ज़ोर से चिल्ला पड़ा.
अचानक ऐसी आवाज़ सुन कर रुना और कालू; दोनों ही बहुत बुरी तरह से डर कर हड़बड़ा गए. शुभो को देख कर दोनों एक झटके में उठ बैठे और जल्दी जल्दी अपने कपड़ों को ठीक करने लगे.
“रुको!”
शुभो फ़िर चिल्लाया.
दोनों हतप्रभ हो उसे देखने लगे. दोनों के चेहरों के रंग सफ़ेद पड़ चुके थे और चोरी पकड़े जाने के कारण भयभीत थे.
शुभो दो कदम आगे बढ़ कर फ़िर गुर्राया,
“अब अगर तुम दोनों में से किसी की भी एक ऊँगली तक हिली तो मैं चिल्ला चिल्ला कर सबको यहाँ इकट्टा कर लूँगा.”
ये वाक्य ख़त्म होते ही पहले से बुरी तरह डरे कालू और रुना को जैसे साँप सूंघ गया. दोनों जड़वत वहीं बैठ गए.
“साले... कुत्ते.... तेरे को न जाने कितनी बार समझाया था पहले की चाहे जो भी हो जाए... इस चुड़ैल से दूर रहना. इसका कोई भरोसा नहीं. विवाहिता होते हुए भी अपने दूधवाले को अपने रूपजाल में फँसा चुकी है और अब तेरे पे डोरे डाल रही है. अबे पागल... तू ये तक भूल गया कि तूने ही सबसे पहले मुझे और देबू को बताया था उस दिन कि मिथुन के साथ तूने रुना को कई बार देखा है और जिस दिन वो मरा उसके पहले वाले दिन भी उसे इसी के साथ देखा था. आज खुद ही देख ले; तुझे और देबू को अधिकतर बातें याद नहीं रहती. देबू तो हम दोनों से दोस्ती तक तोड़ चुका है.. क्यों? कब हुआ ऐसा? जब से इसके प्रेमजाल में फँसा है तब से. मैंने बताया था तुझे इसकी काली आँखों के बारे में... फ़िर भी तू.... कैसे यार?!!”
शुभो एक साँस में बोलता चला गया. जो कुछ उसके मन में था सब कुछ बोलता चला गया. और वे दोनों चुपचाप सुनते रहे. यहाँ एक बात कालू और शुभो में से किसी ने गौर नहीं किया कि जब शुभो ने रुना और मिथुन के साथ वाले घटना का ज़िक्र किया तब रुना चौंक गई थी और तिरछी नज़रों से गौर से कालू को देखने लगी थी.
“देख यार शुभो, तू जो सोच रहा है .....”
कालू के बात को बीच में ही काटते हुए शुभो बोल पड़ा,
“हाँ... ये अच्छा है.. जब तक चोरी पकड़ी नहीं गई, तब तक सब ठीक है... पर जैसे ही पकड़ में आ जाओ तो कहो की जो दूसरे सोच रहे हैं वैसा कुछ नहीं है... हम्म... साले.. क्या कहना चाहता है तू....आं.. कि तू यहाँ रुना भाभी को लेटा कर उनकी मसाज कर दे रहा था.. या कपड़ों की फिटिंग देख रहा था ताकि नए कपड़े दिलवा सको? अबे इतना बेवकूफ़, नासमझ और लापरवाह कैसे हो सकता है तू? ये एक ख़तरनाक औरत है... तू नहीं जानता क्या? पहले तो बड़ा शक किया करता था... अब क्या हुआ?”
“यार... सुन..”
“अबे चुप... क्या सुनूँ मैं तेरी... और क्यों सुनूँ...? हाँ..?”
कहते कहते अचानक से शुभो की नज़र इतनी देर बाद दोबारा रुना पर गई जो अभी साड़ी के थोड़े से भाग से अपने बड़े वक्षस्थलों को ढकने का असफल प्रयास कर रही थी... और इसी में उसकी लंबी गहराई वाली वक्षरेखा बहुत कामुक रूप से दृश्यमान हो रही थी.. वह दृश्य इतना नयनाभिराम था कि कुछ पलों के लिए शुभो भी अपने पलकें झपकाने भूल गया.
पर तुरंत ही खुद को सम्भाला और ये सोच कर की कहीं उसकी ये हरकत इन दोनों ने न देख ली हो इसलिए वो अब रुना भाभी पर भी बुरी तरह बरस पड़ा. वो भाभी जिसे वो बहुत सम्मान किया करता था. जिसे सोच कर ही उसका सिर स्वयमेव ही श्रद्धा से झुक जाया करता था.
“ये... इसी ने तेरा, मेरा, देबू का और न जाने कितनों का दिमाग ख़राब कर रखा है. विवाहिता होते हुए भी कितने ही परायों से सम्बन्ध बनाए घूमती रहती है. काम भी क्या करती है... शिक्षिका... हम्म... शिक्षिका हैं ये देवी जी... जब शिक्षिका ही ऐसी हैं तो पता नहीं कॉलेजों, विद्यालयों में पढ़ने वाले देश के भविष्यों का क्या भविष्य होगा...छि.. शर्म नहीं आती तुम्हें..??!”
रुना भाभी के लिए ‘आप’ से सीधे ‘तुम’ पर आ गया.
अनर्गल बातें बोलता हुआ शुभो को अपने द्वारा कही गई बातों का होश ही नहीं रह गया था और अत्यधिक भावना में बहते हुए गुस्से में रुना की ओर थूक भी दिया. हालाँकि थूक रुना के जगह से बहुत पहले ही गिर गई पर शुभो के इस कृत्य ने सहसा रुना के अंदर प्रतिरोध करने की शक्ति उत्पन्न कर दी.
शांत, मर्यादित, आहत भाव से बोली,
“शुभो... जो और जितना कह रहे हो; कहो... पर इसमें अपनी सीमा और मर्यादा को मत भूलो. चाहे मुझसे कैसी भी गलती हुई हो... मेरा दोष कैसा भी हो... तुम्हें इस तरह से मेरे साथ ऐसा बर्ताव करने का कोई अधिकार नहीं है!”
हर दक्ष शिक्षक और शिक्षिका में प्रतिवाद की एक अनूठी कला होती है और यह इस समय रुना के स्वर में स्पष्ट परिलक्षित हुई.
यहाँ तक की शुभो भी अपने कृत्य पर बुरी तरह शर्मिंदा हो गया.
परन्तु वो किसी भी हाल में इस समय रुना और कालू के सामने अपने बर्ताव के लिए क्षमा माँग कर खुद को उनके बराबर या उनसे छोटा करने के मूड में बिल्कुल नहीं था.
अतः मामले को थोड़ा सम्भालने का प्रयास करता हुआ बोला,
“मुझे आपसे किसी तरह का ज्ञान नहीं चाहिए मैडमजी. और तू (कालू की ओर ऊँगली से इशारा करता हुआ) ... तेरी भलाई इसी में होगी कि तू इस चरित्रहीन औरत का साथ आज से ही छोड़ दे. नहीं तो मैं तुम दोनों की करतूतों की खबर हर किसी को कर दूँगा. ख़ास कर आप (रुना की ओर इशारा करते हुए), अगर आपने भी अपना ये त्रिया चरित्र वाला खेल बंद नहीं किया न.. तो आपकी पोल खोलने में मैं रत्ती भर का समय नहीं गवाऊँगा. नबीन भैया को खुद जा कर बताऊँगा और अगर ज़रुरत हुआ तो प्रमाण भी दिखा दूँगा.”
नबीन बाबू को बता देने की धमकी को सुन रुना भय से काँप उठी. क्षण भर को तो उन्हें अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ पर शुभो के गुस्से से भरे चेहरे को देख कर ही समझ गई कि ये कोई कोरी धमकी नहीं है और ऐसा करने के लिए शुभो शत प्रतिशत दृढ़ प्रतिज्ञ है.
घृणा भरी नज़रों से दोनों को देख कर शुभो पीछे मुड़ा और वहाँ से जाने लगा. जब वो मुड़ रहा था तब रुना की नज़र उसके गले में बंधे ताबीज पर गई. उसकी भवें आगे की ओर सिकुड़ गई पर अगले ही क्षण नार्मल हो गई और साथ ही होंठों के कोने में एक हल्की मुस्कराहट उभर आई.
कुछ कदम चलने के बाद अचानक से शुभो को अपने पैरों में तेज़ दर्द महसूस हुआ और लड़खड़ा कर पास की झाड़ियों पर गिर पड़ा. बदन पर कुछ कांटे चुभ गए जिस कारण शुभो को असहनीय पीड़ा हुई.
कालू अपने दोस्त को ऐसे गिर कर दर्द से कराहते देख कर सहायता के लिए आगे बढ़ना चाहा पर अभी कुछ देर पहले हुई तकरार को याद कर के रुक गया. कालू का आगे बढ़ना और तुरंत रुक जाना देख कर शुभो को भी बुरा लगा. वो कोई सहायता तो नहीं चाह रहा था पर मन के किसी कोने में एक क्षण के लिए आशा की दीप जल उठी थी कि शायद कालू हमदर्दी दिखाए.
पर कालू का यूँ रुक जाना शुभो के मन में अनचाहे ही विषैली भावनाओं की एक नयी पौधरोपण कर गई. साथ ही उसे इस बात की अनुभूति भी हुई कि अवश्य ही उसने ताव में आकर बहुत कुछ ऐसा कह दिया है जिससे उनकी मित्रता कहीं न कहीं थोड़ी दरक चुकी है.
ख़ुद को सम्भालते हुए शुभो उठा और वहाँ से चला गया.
क्रमशः
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(जारी.....)
कालू के घर से ले कर अपने दुकान तक और फ़िर अपने दुकान से लेकर देर शाम अपने घर तक हर पल शुभो को ऐसा लगता रहा की वो अकेला नहीं है. कोई न कोई हर पल उसके साथ है. उस पूरे दिन उसके दिमाग में एक साथ इतनी बातें चल रही थी कि वो किसी भी काम पे ध्यान नहीं दे पाया. हरेक काम में कोई न कोई गलती होती रही उससे. यहाँ तक की अपने सीने पर उभर आए उन तीन खरोंचों के निशान तक को भी भूल गया.
देर शाम जब वो किसी दूसरे चाय दुकान में एक छोटी बेंच पर बैठा चाय पी रहा था तब हरिपद के साथ भेंट हुई. दरअसल हरिपद अपने अधीनस्थ दोनों नाविकों को उस दिन का खर्चा दे कर बचे हुए पैसे लेकर घर की ओर ही जा रहे थे कि अचानक से तेज़ बारिश होने लगी. ये चाय दुकान बगल में ही था तो बचने के लिए तुरंत वहीं घुस गए.
गाँव के चाय दुकान वाले हो या दैनिक बिक्री वाले दूसरे दुकानदार.. हमेशा बड़े और खुले जगह पर दुकान खोला करते हैं. दुकान ऐसा रखते हैं की एक साथ दस आदमी अंदर आराम से बैठ जाए.
उस समय शुभो और चाय वाले जिष्णु काका को लेकर कुल चार लोग थे. अब हरिपद भी शामिल हो गए. हरिपद और जिष्णु काका अच्छे दोस्त थे. उनमें बातें शुरू हो गई. शुभो अपने ख्यालों में खोया हुआ चाय - बीड़ी ले रहा था. बारिश अभी और तेज़ हुई ही थी कि दौड़ता हुआ बिल्टू भी घुस आया दुकान में. वो भी घर की ओर जा रहा था. अचानक बेमौसम बरसात का किसी को अंदाज़ा नहीं था. इसलिए सब बिना छाता के थे.
बिल्टू तो भीग भी गया था. जल्दी से एक आमलेट, चार बॉयल्ड अंडे और एक चाय का आर्डर दे बैठा.
शुभो को देख चहकते हुए पूछा,
“और दोस्त... कैसे हो?”
शुभो ने एक नज़र बिल्टू की ओर देखा और फिर बीड़ी का एक कश लगाते हुए बोला,
“ठीक हूँ... अपनी सुनाओ.”
“बस यार... सब ठीक चल रहा है जगदम्बे की कृपा से.”
“हम्म.”
बिल्टू के उत्तर पर बहुत छोटा सा ‘हम्म’ कर के शुभो दोबारा अपने ख्यालों में खो गया.
“क्या बात है यार? मन उदास है क्या?”
“नहीं यार. ऐसी बात नहीं?”
“क्या ऐसी बात नहीं.. अभी मुझे आए दस मिनट भी नहीं हुए हैं कि तुमने इतने ही देर में दो बीड़ी खत्म कर के तीसरी जला ली. कोई तो बात है. कोई प्यार व्यार का चक्कर है क्या?”
“नहीं.. वो भी नहीं.”
“तो फिर क्या बात है... बताओ भाई.”
बिल्टू के ज़ोर देने पर शुभो ने उसे रुना भाभी के बारे में बताने का सोचा. कहने ही जा रहा था कि उसकी नज़र गई पाँच कदम दूर बैठे हरिपद पर. एक हाथ में चाय की ग्लास और दूसरे में बेकरी वाला मोटा बिस्कुट लिए जिष्णु काका के साथ गप्पे लड़ाने में व्यस्त हैं.
हरिपद जिष्णु काका से कह रहे हैं,
“भाई.. सुना तुमने... परसों नदी के उस पार के तट पर फ़िर एक शव मिला... एक बत्तीस वर्षीया महिला का.”
“हाँ भई, सुना मैंने... बहुत बुरा. ये भी सुना की अभी चार साल ही हुए थे उसकी शादी को. पता नहीं अब उसके बच्चे का क्या होगा?”
कहते हुए जिष्णु काका अफ़सोस करने लगे.
उन दोनों की बातें सुनकर शुभो के मन में कुछ खटका. उसने ऐसी ही कोई बात करने की सोची बिल्टू के साथ...पर सीधे नहीं, घूमा कर.
धीरे से बोला,
“यार बिल्टू, एक बात पूछूँगा.. सही सही बताना.”
“हाँ बोल न.” सहमति जताने में बिल्टू ने देर नहीं की.
थोड़ा रुक कर शुभो पूछा,
“यार... तेरे को.. ये.. अम... ये... रु..रुना भाभी कैसी लगती है?”
प्रश्न सुनते ही बिल्टू आँखें बड़ी बड़ी कर के शुभो को देखने लगा. पूछा,
“क्यों बे? अचानक भाभियों में कब से तेरी रूचि जाग गई? और वो भी कोई ऐसी वैसी नहीं.. रुना भाभी!”
“अबे तू जो समझ रहा है वैसी कोई बात नहीं है. पर मैं जो कहना चाहता हूँ उसी से जुड़ा हुआ है.” शुभो ने उसे समझाते हुए कहा.
“हम्म.. देख भई, वैसे तो बड़ी मस्त लगती है. रस से भरपूर. पर मैं उन्हें गलत नज़र से नहीं देखता. बहुत सम्मानीय महिला हैं.” कहते हुए बिल्टू आँख मारी.
शुभो भी मन ही मन हँस पड़ा.
“सम्मानीय! हा हा हा”
फिर बोला,
“और?”
“और क्या?”
“पिछले कुछ दिनों से तुझे उनमें कोई परिवर्तन नहीं दिखा?”
“नहीं. और वैसे भी उतना देखना का समय कहाँ? सबको ताड़ता फिरूँगा तो काम कब करूँगा.. और जब काम नहीं कर पाऊँगा तब खाऊँगा क्या?”
तभी काका एक प्लेट आमलेट, चार बॉयल्ड अंडे और एक ग्लास चाय दे गए और बिल्टू चटकारे ले ले कर खाने लगा. उसे खाते देख शुभो को भी भूख लग गई और उसने भी आमलेट और चार अंडे आर्डर कर दिया.
उसने अभी आमलेट का एक टुकड़ा मुँह में रखा ही था कि अचानक उसे लगा जैसे किसी ने पीछे से उसके कंधे पर हाथ रखा है. वो डर कर पीछे पलटा.
उसे यूँ पलटते देख कर बिल्टू पूछा,
“क्या हुआ?”
“क.. कु.. कुछ नहीं... बस ऐसे ही.”
शुभो ने खाने को निगलते और डरते हुए कहा.
पीछे कोई नहीं था.
मन का वहम समझ कर वो फिर खाने पर ध्यान दिया. इस बार फिर किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा. हाथ इसबार कंधे पर नहीं रुका. वो धीरे धीरे फिसलते हुए उसके पीठ पर से होते हुए उसके कमर पर आ कर रुक गया, जैसे उसके पीठ को सहला रहा हो.
शुभो ने तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीं दिया. उसने गौर किया... ये हाथ मरदाना हाथ जैसा सख्त नहीं अपितु बहुत कोमल है. तभी उसे अपने पीठ के निचले हिस्से पर कुछ चुभता हुआ सा प्रतीत हुआ.
वो लगभग उछल पड़ा.
उसके ऐसा करने से बिल्टू भी थोड़ा डर गया.
“अबे क्या हुआ?”
“क... कुछ...नहीं... म.. मच्छर!”
“तो कोई ऐसे उछलता है क्या... साला पूरा मूड ख़राब कर दिया.” बिल्टू गुस्सा करते हुए बोला.
अब तक वहाँ उपस्थित बाकी लोगों का भी ध्यान उन दोनों पर आ गया था.
शुभो फटाफट अपना खाना खत्म कर हाथ धो कर काका के पास गया बिल देने. जब पैसे देने लगा तब एक और घटना घटी. दो हाथों की चूड़ियाँ उसके ठीक कानों के पास खनक उठी. शुभो हड़बड़ा कर इधर उधर देखने लगा. इस बार भय से उसके होंठ सूख गए. सांसे तेज़ हो गई. उसकी ऐसी स्थिति देख कर जिष्णु काका और हरिपद काका को भी बहुत अचरज हुआ.
वो कुछ पूछे इसके पहले ही शुभो पैसे दे कर वहाँ से चलता बना.
साइकिल चलाते हुए अपने घर को जाता शुभो को रास्ते भर ऐसा लगता रहा कि कोई उसके साइकिल पर... पीछे बैठा ... या.. बैठी हुई है. बार बार लगता रहा कि कोई उसके कमर को पकड़ी हुई है और रह रह कर उसके पुरुषांग को छू रही है.
रात को खाते समय भी उसका दिमाग इसी उधेड़बुन में था कि आखिर कालू कैसे रुना भाभी के चक्कर में फंस गया? एक तो भाभी पहले से ही विवाहिता हैं.. दूसरे, उन्होंने देबू को फँसा रखा है... तो फ़िर अब कालू के साथ क्यों? क्या भाभी सच में इतनी बुरी हैं? क्या उनका एक से मन नहीं भरता? क्या यही है एक पढ़ी लिखी सम्भ्रांत भाभी का असली चेहरा?
खाना खत्म कर के अपने कमरे में सोने गया. एक पुरानी कहानी की किताब ले कर पढ़ने बैठ गया. देर तक रात तक बीड़ी फूँकता हुआ कहानी पढ़ता रहा और अपने साथ घट रही घटनाओं के बारे में सोचता रहा. उस कहानी के नायक को हमेशा कुछ न कुछ लिखने का शौक था और हमेशा ही थोड़ा सा समय निकाल कर एक मोटी डायरी में लिखता रहता था. शुभो के भी दिमाग में कुछ लिखने का आईडिया आया और ऐसा ख्याल दिमाग में आते ही एकदम से उठ बैठा और एक मोटी कॉपी ले कर शुरू के कुछ पन्ने छोड़ कर उसमें कुछ लिखने लगा.
करीब चालीस मिनट तक लिखने के बाद उसे अच्छे से अपने सिरहाने बिस्तर के गद्दे के नीचे रख दिया और सो गया.
उसे सोए घंटे भर से ज्यादा का टाइम बीता होगा कि कमरे में हो रही कुछ खटपट की आवाज़ों से उसकी नींद टूट गई.
उसने जैसे ही उठने का कोशिश किया; आश्चर्य का ठिकाना न रहा.
वो तो हिल भी नहीं पा रहा है!
उसने फिर प्रयत्न किया... वही नतीजा!
घबराहट में वो छटपटाने लगा. पर सिवाय अपने सिर को दाएँ बाएँ घूमाने के और कुछ न कर सका. शुभो ऐसा लड़का है जो ऐसी परिस्थितियों के कल्पना मात्र से ही बुरी तरह सिहर उठता है.. लेकिन आज.. अभी... ऐसा ही कुछ साक्षात् घटित हो रहा है उसके साथ. वो बुरी तरह हांफने और कांपने लगा. साँसें इतनी तेज़ हो गई कि साँस ठीक से लेना भी एक चुनौती बन गई.
और तभी!
कमरे में पायल की रुनझुन सुनाई दी ! बहुत मीठी आवाज़!
लेकिन ऐसी परिस्थितियों में ऐसी आवाजें डर को बढ़ा देती है.. सुकून नहीं देती.
अपनी साँस पर नियंत्रण पाने की व्यर्थ चेष्टा करता शुभो दरवाज़े के पास एक हिलती परछाई देख कर और भी ज्यादा डर गया. बगल के कमरे में सो रहे अपने माँ बाबूजी को आवाज़ लगाना चाहा.. पर ये क्या? उसकी तो आवाज़ भी नहीं निकल रही. रात के सन्नाटे में ज़ोरों से चलती धड़कन उसे अपने सीने पर हथौड़े से पड़ते मालूम होने लगे. पूरे बदन पर पसीने की बूँदे छलक आईं. इतने देर बाद उसने गौर किया... उसके बदन पर से उसकी सैंडो गंजी (बनियान) गायब है!
‘मैं तो पहन कर ही सोया था...त... तो...’ इसके आगे सोचने से पहले ही उसकी नज़र उसी काली परछाई पर चली गई जो अब उसके बहुत पास आ गई थी.
‘ये.. ये... तो... कोई.... स्त्री.... है...’
डरते हुए शुभो ने धीरे से पूछा,
“क.. कौन हैं... आप?”
“श्श्शश्श्श...”
उस स्त्री के होंठों से एक शीत लहरी जैसी धीमी आवाज़ निकली. उसकी दायीं हाथ की तर्जनी ऊँगली उठी और धीरे धीरे आगे बढ़ती हुई शुभो के होंठों पर जा कर रुकी. फिर धीरे से नीचे उतरते हुए उसके सीने पर लगे खरोंचों तक पहुंची और उन घावों पर ऊँगली गोल गोल घूमने लगी.
और एकदम अचानक से तीन ऊँगलियों के नाखून उन घावों में धंस गए. अत्यधिक पीड़ा से बेचारा शुभो तड़प उठा. मारे उस दर्द के वो ज़ोरों से चीखना चाहा पर आवाज़ तब भी न निकली.
अब वो औरत धीरे से अपने नाखूनों को उसके सीने के घावों में से निकाली और अपने होंठों पर रख दी. इस अंधकार में भी शुभो कैसे उस औरत के अधिकांश हिस्सों को देख पा रहा है ये भी एक बहुत बड़ा आश्चर्य था उसके लिए.
नाखूनों पर लगे खून को अपने लंबे लाल जीभ से चाटने लगी वो. स्वाद लेने का तरीका ही बता रहा था कि उसे वो खून बहुत स्वादिष्ट लगा है. इधर शुभो के सीने पर से खून की एक धारा बह निकली जो अब धीरे धीरे बिस्तर पर बिछे चादर पर लग कर फैलने लगी.
पीड़ा और भय के मिले जुले भाव चेहरे पर लिए शुभो अब उस औरत के अगले कदम के बारे में सोचने लगा. अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी. वो औरत उसके पास से उठ कर उसके पैरों के तरफ गई. बिस्तर पर नहीं बैठ कर शुभो के नज़रों के एकदम सीध में ज़मीन पर घुटनों के बल बैठ कर शुभो के पैरों के तलवों को अपने नाखूनों से सहलाने लगी. सहलाते सहलाते वो ऊपर उठी और धीरे धीरे उसके जाँघों तक आई और एक झटके में उसके हाफ पैंट को दोनों साइड से पकड़ कर नीचे खींच दी.
अब शुभो का नग्न पुरुषांग उन दोनों के ही सामने था.
उस औरत ने दाएँ हाथ की अंजुली बना कर बड़े प्यार से उसके अंग (लंड) को हाथ में ली और अंगूठे के हल्के स्पर्श से मसलने लगी. तभी बादलों से ढके आसमान में एक ज़ोरदार गर्जन हुई और बिजली चमकी.
बाहर भयानक तूफ़ान शुरू हो गया था...
बिजली के चमकने से कमरे में थोड़ी रौशनी हुई और उसी रौशनी में शुभो ने गौर किया कि इस औरत के कपड़े बिल्कुल वैसे ही हैं जैसा सुबह रुना भाभी के बदन पर देखा था!
दुर्भाग्य से चेहरा न देख सका उस औरत का.
बीच बीच में उस औरत की हँसी सुनाई दे रही थी. दबी हुई हँसी. मानो लाख चाह कर भी अपना हँसी नहीं रोक पा रही है वो औरत.
उस औरत के हाथ के स्पर्श से ही शुभो का पुरुषांग धीरे धीरे फूलने लगा और कुछ ही क्षणों पश्चात् अपने पूरे रौद्र रूप में आ गया. उस औरत का हाथ उसके पूरे अंग पर फिसलने लगा और पतली उँगलियाँ मानो उस अंग की मोटाई और लम्बाई माप रही हो. और मापने का भी क्या अंदाज़ है.... चरम उत्तेजना में पहुँचा दे रही है.
तभी फिर बिजली चमकी.
और इस बार जो देखा शुभो ने वह देख उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ... भय से रोम रोम उसका खड़ा हो गया. कुछ देर पहले तन मन में छाई यौन उत्तेजना अब क्षण भर में गायब हो गई.
उस औरत की आँखें पूरी तरह से काली थीं और आँखों के कोनों से खून की पतली धारा बह रही थी. आँचल कई फोल्ड लिए बाएँ वक्ष के ऊपर थी. दायाँ स्तन ब्लाउज कप के ऊपर से ऐसे फूल कर उठी हुई थी मानो अभी फट पड़ेगी. गले पर चमकती एक मोटी चेन उसके लंबे गहरे वक्षरेखा में घुसी हुई थी. दोनों हाथों में सोने की मोटी मोटी चूड़ियाँ... कानों में सोने के चमकते झुमके. दोनों भवों के बीचोंबीच एक लम्बा पतला तिलक... शायद काले रंग का है...
“आ...आप....?!”
बस इतनी सी ही आवाज़ निकली शुभो की. उसके बाद तो शब्दों ने जैसे साफ़ मना कर दिया बाहर आने से.
होंठों के कोने में दुष्टता वाली मुस्कान लिए एकटक शुभो को कुछ देर तक देखने के बाद धीरे धीरे झुकते चली गई... और तभी शुभो को अपने जननांग पर कुछ गीला सा लगा. सिर उठा कर देखा... तो... वह औरत उसके पुनः खड़े हो चुके अंग को अपने मुँह में भर ली थी और किसी छोटे बच्चे के मानिंद आँखें बंद कर बड़े चाव और सुख से उसे चूसने लगी थी.
झुके होने के कारण स्त्री के दोनों वक्षों के अनावृत अंश रह रह कर उसके जाँघों पर रगड़ खा रहे थे जोकि शुभो के बदन में एक सनसनाहट पैदा कर रही थी.
सारा डर भूल कर शुभो आँखें बंद कर अब सिर्फ़ मुखमैथुन का आनंद लेने लगा.
मन ही मन कहने लगा,
“प्लीज़... मत रुकना... रुकना... मत...”
पल प्रति पल जैसे जैसे उस स्त्री का चूसने का गति बढ़ता गया वैसे वैसे शुभो चरम सुख से आत्मविभोर हो पागल सा होता गया. शहर जा कर कुछेक बाजारू लड़कियों से यौन सुख प्राप्त किया अवश्य था पर किसी के इस तरह चूसने से भी ऐसी चरम सुख वाली अवस्था प्राप्त होती है यह आज उसे पहली बार पता चला.
वो औरत बड़ी ही दक्षता से उसके पुरुषांग के मशरूम से लेकर जड़ तक और फिर जड़ से लेकर मशरूम सिर तक जीभ से भिगाती हुई चूम और चूस रही थी. ऊपर से नीचे और फिर नीचे से ऊपर तक... हरेक इंच को छूती, हर शिराओं का अहसास करती और कराती वो औरत शुभो को यौनोंमांद में पागल किए दे रही थी.
ऐसा कुछ भी आज से पहले उसने कभी अनुभव नहीं किया था.
इसलिए ज्यादा देर तक मैदान में न टिक सका.
कुछ ही समय बाद उसका वीर्यपात हो गया. लेकिन वो औरत फ़िर भी नहीं रुकी... चूसते रही. चूसते ही रही.
उसके वीर्य के एक बूँद तक को व्यर्थ नहीं जाने दी... सब निगल गई. एक क्षण के लिए रुक कर बड़े कामुक अंदाज़ में अपने होंठों पर जीभ फ़िरा कर सम्भावित बचे हुए वीर्य की बूँदों को चाट ली और फ़िर उसके जनेन्द्रिय को पूरे अधिकार से अपनी मुट्ठी की गिरफ्त में ले कर चूसना प्रारंभ कर दी.
शुभो को वाकई बहुत मज़ा आया लेकिन वीर्यपात होने के साथ ही वो आहिस्ते आहिस्ते चेतनाशून्य हो गया.
कुछ और समय बीता....
बाहर उठा तूफ़ान अब शांत हो चुका था...
और इधर धीरे धीरे शुभो का शरीर भी ठंडा होता चला गया.....
.....निष्प्राण.
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(15-07-2020, 11:41 AM)Ramsham Wrote: Story mast chal rahi hai
(15-07-2020, 11:41 AM)Ramsham Wrote: Ase hi manoranjan krte raho.
(18-07-2020, 07:03 PM)Bregs Wrote: zabrdast suspenseful story
आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद.
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(18-07-2020, 01:26 PM)garamrohan Wrote: एक मित्र ने आपके इस कहानी को पढने का सुझाव दिया था। कहानी बहोत ही अच्छी है। एक कामकथा होने के साथ ये एक अच्छी भयकथा के रुप मै उभे आयेगी इसमे कोई संदेह नही। बहोत धन्यवाद मित्र।
जी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद कहानी को पसंद करने के लिए. मेरी ओर से बस एक छोटा सा प्रयास है एक इरोटिका लिखने का.
आप जिस मित्र की बात कर रहे हैं मैं उन्हें जानता हूँ. बहुत हेल्पफुल हैं वो.
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Kahani bahut acchi chal rahi hai. Bahut accha suspense create kiya hai. Abhi tak pata nhi chal raha ki runa pe kya kisi aatma ka sayaa hai. Bahut acche. Wonderful update. Wonderful writing. Bas ase hi likhte raho.
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21-07-2020, 08:41 PM
(This post was last modified: 21-07-2020, 08:52 PM by Bregs. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
oh wow ye mystery kya hai kon hai ye aurat ?
ruba bhahi to asal mein ho nahi sakti ?
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(21-07-2020, 08:57 AM)Ramsham Wrote: Kahani bahut acchi chal rahi hai. Bahut accha suspense create kiya hai. Abhi tak pata nhi chal raha ki runa pe kya kisi aatma ka sayaa hai. Bahut acche. Wonderful update. Wonderful writing. Bas ase hi likhte raho.
आपका बहुत बहुत धन्यवाद इस कहानी को इतना प्यार देने के लिए.
कृप्या अंत तक साथ बने रहें.
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(21-07-2020, 08:41 PM)Bregs Wrote: oh wow ye mystery kya hai kon hai ye aurat ?
ruba bhahi to asal mein ho nahi sakti ?
रहस्य जानने के लिए तो आपको अंत तक साथ बने रहना पड़ेगा.
आशा है की आपको कहानी अंत तक अच्छी लगेगी.
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Gr8 mistry story update more
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(23-07-2020, 01:17 PM)Johnyfun Wrote: Waiting for next update
Tomorrow night.
Between 8:30 to 9:00.
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