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Adultery सोलवां सावन
#81
नदी नारे न जाओ 
[Image: sixteen-47255b6ae1833abe8b6dc27abfd8dc94.md.jpg]


अठारहवीं फुहार 

[Image: sixteen1.md.jpg]

अगले दिन जब पूरबी मुझे लेने गयी तो आंगन में काफी धूप निकल चुकी थी। बहुत दिनों के बाद आज मौसम खुला था। 



चन्दा के घर कुछ मेहमान आये थे इसलिये वह आज खाली नहीं थी। बसंती और भाभी आंगन में बैठे थे और बसंती मुन्ने को तेल लगा रही थी। तेल लगाते-लगाते, बसंती ने मेरी ओर देखकर, मालिश करते बोला- 





आटा पाटा दही का लाटा, मुन्ने की बुआ का लहंगा फाटा। 





भाभी ने मजाक में मुझसे धीरे से पूछा- क्यों लहंगे के अंदर वाला अभी फटा की नहीं। 





मैंने मुश्कुराकर हामी में सर हिला दिया और उनका चेहरा खिल उठा। थोड़ी देर में, गीता, कजरी और नीरा भी नदी नहाने के लिये इकठ्ठा हो आयीं और हम लोग चल दिये। 





मेरी समझ में नहीं आ रहा था की हम लोग नदी में नहायेंगे कैसे… क्योंकी बदलने के लिये कपड़ा हम लोगों ने लिया नहीं था। पर नदी के किनारे पहुँच कर मेरे समझ में आ गया। 





सब लड़कियों ने साड़ी चोली उतार दी थी और अपना साया खूब कस के अपने सीने के ऊपर बांध रखा था। नहाने के बाद सिर्फ साड़ी चोली में घर वापस आ जातीं और गीले पेटीकोट साथ ले आतीं।



वह जगह एकदम एकांत में थी और मुझे गीता ने बताया कि औरतों का घाट होने के परण वहां मर्द नहीं आते। सबकी तरह मैंने भी अपने जोबन के ऊपर पेटीकोट बांध लिया और नदी में घुस गयी। 



[Image: sixteen-girls-river-bath-download.jpg]





पर थोड़ी देर में ही छेड़छाड़ शुरू हो गयी। पानी के जोर से सबका पेटीकोट ऊपर हो जाता और पूरा शरीर भीग रहा था। तभी मैंने पाया कि गीता ने पानी के अंदर घुसकर मेरे जोबन पकड़ लिये और मसलने लगी। 





मैं क्यों छोड़ती, मैंने भी उसके उभारों को पकड़ के कस के दबा दिया। 





तब तक कजरी भी मैदान में आ गयी और वह मेरे जांघों के बीच हाथ रगड़ने लगी। कुछ देर तक मैं और गीता एक दूसरे की चूचियां दबाते रहे पर तभी मैंने देखा कि पूरबी मुझे इशारे से बुला रही है। मैं जैसे ही उसकी ओर मुड़ी, गीता और कजरी एक दूसरे के साथ चालू हो गयीं। 





पूरबी नीरा के पास नहा रही थी। उसने मुझसे आँख मारकर इशारे से पूछा- 





[Image: teen-young-19807615.jpg]


“क्यों इस कच्ची कली का मजा लेना है…” 





मैंने कहा- “अभी बहुत छोटी है…” 

पूरबी बोली- “जरा नीचे का चेक करो, छोटी वोटी कुछ नहीं है…” 



जब तक वो बेचारी कुछ समझती, मैंने उसकी जांघों के बीच में हाथ डालकर कस के दबोच लिया था। 

उसकी छोटी-छोटी काली झांटें मेरे हाथ में आ गयीं। 



जब तक वह कुछ बोलती, पूरबी ने उसके दोनों छोटे छोटे उभरते उभारों को कस के पकड़ लिया था और मजे ले-लेकर दबा रही थी।



मुझे सुनील की याद गयी कि कल कैसे कस-कस के उसने मेरी चूत फाड़ी थी और आज उसकी बहन… 

मैंने अपनी उंगली का टिप उसकी चूत में बिना सोचे डाल दी।

 मेरा दूसरा हाथ उसके छोटे-छोटे चूतड़ दबा रहा था। 


[Image: pussy-fingering-CU.md.jpg]




हम लोग इतनी मस्ती कर रहे थे पर ऊपर से कुछ पता नहीं चलता, क्योंकी हमारे हाथ जो शैतानियां कर रहे थे वो पानी के अंदर थे। 



बहुत देर तक उसको छेड़ने मजा लेने के बाद, अचानक पूरबी ने पैंतरा बदलकर मेरे जोबन दबाने चालू कर दिये। 

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पर जब मैं उसकी चूचियां पकड़ने लगी तो वो तैरकर दूर निकल गयी। 

पर उसे ये नहीं पता था की मैं भी पानी की मछली हूं। मैं इंटर-कॉलेज तैराकी चैम्पियन थी।



मैंने भी उसका पीछा किया। जब मैंने उसे पकड़ा तो वो जगह एकदम एकांत में थी। 

नदी में तेज मोड़ आ आया था और वहां से हमारी सहेलियां क्या, कुछ भी नहीं दिख रहा था।





दोनों ओर किनारे खूब ऊँचे और घने लंबे पेड़ थे। पानी की धार भी वहां एकदम कम थी। 



पूरबी पानी में खड़ी हो गयी। वहां उसके सीने से थोड़ा ही कम पानी था और पेटीकोट के भीग जाने से, उसके पत्थर से कठोर स्तन एकदम साफ दिख रहे थे। 



मैंने पीछे से उसे पकड़कर उसके भरपूर जोबन कस-कस के दबाने शुरू कर दिये। 

[Image: lez-dom-boobs.jpg]

पर वो भी कम नहीं थी।


 थोड़ी देर में मेरे हाथ से मछली की तरह वो फिसल गयी और तैर कर सामने आ गयी। जब उसने मेरे सीने की ओर हाथ बढ़ाया, तो मैंने अपने दोनों उभारों को हाथ से छिपा लिया। 

पर मुझे क्या मालूम था कि उसका इरादा कुछ और है। 

उसने एक झटके में मेरे पेटीकोट का नाड़ा खींच लिया और जब तक मैं सम्हलूं, पानी के अंदर घुसकर उसने नीचे से उसे खींच लिया और यह जा वह जा।



मैं भी उसके पीछे तैरी। 
[Image: sixteen-girl-river-download.jpg]


थोड़ी देर मेरा पेटीकोट हाथ में लिये, वो मुझ चैलेंज करती रही पर जब मैं पास में पहुँची तो उसने उसे किनारे पर दूर फेंक दिया। 

पहली बार इस तरह खुले आसमान के नीचे, नदी में मैं पूरी तरह निर्वस्त्र तैर रही थी।


नदी का पानी मेरे जोबन, जांघों के बीच सहला रहा था। 


जल्द ही मैंने उसे धर पकड़ा, पर पूरबी पहले से तैयार थी और उसने अपने साये का नाड़ा कस के पकड़ रखा था।


 काफी देर खींचातानी के बाद भी जब मैं उसका हाथ नहीं हटा पायी तो उसकी जांघों के बीच हाथ डालकर मैंने कसकर उसकी चूत को पकड़कर मसल दिया। 


अपने आप उसका हाथ नीचे चला आया और मैंने उसका नाड़ा खोलकर पेटीकोट खींच दिया। जब तक वह मुझे पकड़ती मैंने उसका पेटीकोट भी वहीं फेंक दिया, जहां मेरा पेटीकोट पड़ा था। 


अब हम दोनों एक जैसे थे। 


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#82
पूरबी

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अब हम दोनों एक जैसे थे। 





अब पूरबी ने मुझे पकड़ने की कोशिश की तो मैं तैरकर किनारे की ओर बढ़ी, पर इस बार पूरबी ने मुझे जल्द ही पकड़ लिया (मैं शायद चाहती भी थी, पकड़वाना)। 




मैं हार मानकर खड़ी हो गयी। वहां पर पानी हमारे सीने के आस-पास था। पूरबी ने मुझे अपनी बांहों में भरकर, अपनी बड़ी-बड़ी चूंचियों से मेरी चूंचिया रगड़नी शुरू कर दीं।

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उसके हाथ मुझे कसकर जकड़े हुये थे और मैंने भी उसे पकड़ लिया था। चूचियों से चूचियां मसलते हुये पूरबी ने प्यार से मेरी ओर देखा और अचानक मेरे होंठों पर अपने होंठ रखकर कसकर एक चुम्मी ले ली। मेरी देह भी अब दहकने लगी थी और मैं भी अपनी चूचीं उसकी चूची पर दबा रही थी।







पूरबी का एक हाथ सरक कर पानी के अंदर मेरे चूतड़ों तक पहुँचा और उसनेउसे कसकर भींच लिया। उह्ह्ह मेरे मुँह से सिसकारी निकल गयी। अब उसकी चूत भी मेरी चूत दबा रही थी। 




धीरे-धीरे, उसने मेरी चूत पर अपनी चूत रगड़नी शुरू की और मेरा एक हाथ भी खींचकर अपनी चूची को रखकर दबवाने लगी। हम दोनों कसकर अपनी चूत एक दूसरे से रगड़ रहे थे, 



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मैं उसकी पथरीली, कड़ी-कड़ी चूचियां अपने हाथे से सहला दबा रही थी 

और पूरबी का एक हाथ मेरे चूतड़ों को कसकर भींच रहा था। 



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हम दोनों एकदम मस्त होकर आपा खो बैठे थे और किनारे के काफी पास पहुँच गये थे। 







वहां एक पत्थर सा निकला हुआ था, जिस पर पूरबी ने मुझे लिटा दिया। 



मेरी आँखें मुंदी जा रही थीं।

 पूरबी के एक हाथ ने मेरी चूत में उंगली डालकर मंथन करना शुरू कर दिया और दूसरा कस के मेरी चूची मसल रहा था और मेरे चूचुक को खींच रहा था।


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मैंने भी पूरबी की चूत पानी के अंदर पकड़ ली और उसे रगड़ने मसलने लगी। 

अभी भी पानी हम दोनों की कमर से काफी ऊपर था। पूरबी की उंगली तेजी से मेरी चूत के अंदर-बाहर हो रही थी और अंगूठा मेरी क्लिट को रगड़ रहा था।

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मैं एकदम झड़ने के कगार पर पंहँच गयी थी। तभी जैसे किसी ने मेरे पैर पकड़ के पानी के अंदर खींच लिया। 







मैं एकदम डर गयी।





मैंने सुन रखा था कि, पानी के अंदर कुछ… होते हैं जो सुंदर कन्याओं को पकड़ ले जाते हैं,

 लेकिन तभी उसने पीछे से मेरे किशोर उरोजों को पकड़ लिया, पहले मुझे लगा कि पूरबी है, पर वह तो सामने खड़ी हँस रही थी 



और अबतक मैं मर्दों का हाथ पहचानने भी लगी थी। 







दोनों जोबनों को कस के दबाते उसने पीछे से ही मेरे गालों पर खूब रसभरा कसकर चुम्बन ले लिया। उसका लण्ड भी एकदम खड़ा होकर मेरे चूतड़ों के बीच धंस रहा था। 





“हे कौन…” 


मैंने पीछे मुड़ने की कोशिश करते हुये पूछा। पर एक तो उसकी पकड़ बड़ी तगड़ी थी और दूसरे, अब उसने मेरी पीठ के पीछे अपना मुँह छिपा लिया था। 





पूरबी मुश्कुराती हुई बोली- 

[Image: Joru-K-teen-young-8.jpg]

“अरे तुम्हें लण्ड से मतलब या नाम से…” 

और उससे बोली- 

“ठीक है आ जाओ सामने…” 





जब वह सामने निकला तो मैं उसे पहचान गयी, ये तो वही था, जो उसे दिन मेले में मेरी इतनी तारीफ कर रहा था और जिसके बारें में चम्पा ने बताया था कि वह पूरबी के ससुराल का यार है, गोरा, लंबा, ताकतवर, कसरती गठा बदन। 





“अपने आशिकों की लिस्ट में इसका भी नाम लिख लो, राजीव नाम है इसका…” हँसती हुई, पूरबी बोली। 





अब तक उसने मुझे अपनी बाहों में भर लिया था और कस-कस के चूम रहा था, उसकी चौड़ी छाती मेरे कड़े-कड़े उत्तेजित रसीले जोबनों को दबा रही थी, और उसका सख्त, कड़ा लण्ड मेरी चूत पे धक्का मार रहा था। 



अपने आप मेरी जांघें फैल गयीं। थोड़ी देर में मेरी बाहें भी उसी जोश से उसे पकड़े थीं और अब उसका एक हाथ कस-कस के मेरी चूचियों का रस ले रहा था और दूसरा मेरा चूतड़ नाप रहा था।





पूरबी ने ही मुझे इतना गरम कर दिया था और फिर जब उसका लण्ड मेरी अब पूरी तरह गीली चूत को टक्कर मारता, तो बस यही मन कर रहा था कि अब ये कस के पकड़ के मुझे चोद दे। 





मन तो उसका भी यही कर रहा था। उसने मेरी टांगों को थोड़ा फैलाकर मेरी चूत में अपना लण्ड डालने की कोशिश की पर वह नहीं घुस पाया। इसके पहले मैंने कभी खड़े-खड़े नहीं चुदवाया था और फिर वह भी नदी के भीतर… उसकी कोशिश से लण्ड तो नहीं घुस पाया पर मैं और गरम हो गयी। 







पूरबी ने रास्ता सुझाया- “जरा और किनारे को चले आओ, यहां…” उसने उस पत्थर की ओर इशारा किया जिस पर लिटाकर वह कर रही थी। 





उसने वही किया और पत्थर पर मुझे पेट के बल लिटा दिया। मेरे कंधे के ऊपर पानी से बाहर था और बाकी सारा शरीर नदी के अंदर। पूरबी मेरा सर सहला रही थी।

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पीछे जाकर उसने मेरी जांघों को खूब चौड़ा करके फैला दिया और मेरी चूत में कस-कस के उंगली करने लगा, उसका दूसरा हाथ नदी के अंदर मेरी चूची मसल रहा था। मेरी हालत खराब हो रही थी। 





मैं खीझकर बोली- “हे करो ना… डालो… प्लीज… जल्दी… हां ऐसे ही… ओह… लगा रहा है… एक मिनट… बस…” 




मेरे बोलते-बोलते उसने दोनों हाथों से मेरी कमर पकड़ के कस के अपना लण्ड मेरी चूत में डाल दिया और चोदने लगा। मेरे चिल्लाने का उसके ऊपर कोई असर नहीं था और वह पागलों की तरह मुझे पूरी ताकत से चोद रहा था। और ऊपर से पूरबी, वह मेरे दोनों उरोजों को उससे भी कस के दबा, मसल रही थी और उसे उकसा रही थी- 


“हां रा[Image: fucking-ruff-J-tumblr-nvpwj4-J1m-Z1uydt1yo1-500.gif]जीव रुकना नहीं पूरी ताकत से चोदो, फाड़ दो इसकी…” 
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#83
राजीव


[Image: fucking-hard-bw-G.gif]
“हां राजीव रुकना नहीं पूरी ताकत से चोदो, फाड़ दो इसकी…” 

और राजीव का हाथ जैसे ही मेरी क्लिट पर पहुँचा मैं झड़ने लगी। 



[Image: sixteen-hot-tumblr_mppgs93n8x1s290u2o1_500.jpg]




पर राजीव रुका नहीं वह कभी मेरे चूतड़ पकड़कर, 


[Image: fucking-ruff-tumblr-oppp3vbx-GU1vz5sogo1-540.gif]


कभी कमर पकड़कर, कभी चूचियां दबाते, नदी के अंदर चोदता रहा, चोदता रहा और बहुत देर चोदने के बाद ही झड़ा। 







हम दोनों किनारे पे आकर बड़ी देर लेटे रहे।

 फिर अचानक मुझे याद आया कि अपनी साड़ी और चोली तो हम घाट पे ही छोड़ आये हैं। 





मैंने जब पूरबी से कहा तो वो हँसके बोली- 


ये तेरा आशिक किस दिन काम आयेगा। जैसे ही राजीव कपड़े लेने गया, पूरबी मुझे पटक के मेरे ऊपर चढ़ गयी और बोली- 

तूने तो मजा ले लिया पर मेरा क्या होगा… जो काम हम कर रहे थे, चलो उसे पूरा करते हैं…” 

उसके होंठों ने मेरी चूत को कस के भींच लिया था और वह उसे कस-कस के चूस रही थी। 

अपनी चूत भी वह मेरे मुँह पर रगड़ रगी थी। 


[Image: Lez-face-sitting-14271176.gif]




थोड़ी देर में उसकी तरह मैं भी चूत चूसने लगी। 

यह मेरी [Image: sixty-nine-th.gif]सिक्स्टी नाईन की पहली ट्रेनिंग थी। 




जब हम लोग झड़कर अलग हुए तो देखा कि राजीव हम दोनों के कपड़े लिये मुश्कुरा रहा है।





पूरबी के कपड़े तो उसने दे दिये पर मेरे कपड़ों के लिये उसने मना कर दिया। 





जब मैंने पूरबी से बिनती की तो वो बोली-

 तेरे कपड़े हैं तू मना इसको या फिर वैसे ही घर चल। 




[Image: tits-young-2.jpg]


मैंने राजीव से कहा की- 


“मैं सिर्फ उससे ही नहीं बल्की आज के बाद अगर गांव में जो भी मुझसे मांगेगा, मैं मना नहीं करूंगी…” 



मेरे पास चारा क्या था। 





बड़ी मुश्किल से कपड़े मिले और उसपर से भी दुष्ट पूरबी ने जानबूझ कर मेरी चोली देते हुये नदी में गिरा दी। वह अच्छी तरह गीली हो गयी, और मुझे भीगा ब्लाउज पहनकर ही घर आना पड़ा। 


मेरी चूचियों से वह अच्छी तरह चिपका था और रास्ते में दो-चार लड़के गांव के मिल भी गये जो मेरी चूचियों को घूर रहे थे। 


[Image: wet-8.jpg]


पूरबी ने मुझे चिढ़ाया- “अरे दे दो ना जोबन का दान, सबसे बड़ा दान होता है ये…” 









ये तो धूप अच्छी थी, रास्ते में वह कुछ सूख गया।

 गनीमत था कि जब मैं घर पहुँची तो भाभी और चम्पा भाभी नहीं थी, सिर्फ बसंती थी।

 उसने बताया कि सब लोग पड़ोस के गांव में गये हैं और शाम के आस-पास ही 3-4 घंटे बाद लौटेंगे, मेरा खाना रखा है और उसे भी कुछ काम से जाना है। 







मैं अपने कमरे में चली गई और जल्दी से कपड़े बदले। 






कहीं जाना तो था नहीं इसलिये मैंने, एक टाप और स्कर्ट पहना और खाना खाने आ गयी। 


[Image: halter-top-2.jpg]
खाने के बाद मैं अपने कमरें में थोड़ी देर लेटी थी और बसंती सब काम समेट रही थी। 



तभी बसंती ने दरवाजे के पास आकर बताया कि दिनेश आया है। 
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#84
लता कितनी भी खूबसूरत क्यों न हो ,उसे एक सपोर्ट तो चाहिए न ,ऊपर चढ़ने के लिए।

Very Well said
आरज़ूएं हज़ार रखते हैं
तो भी हम दिल को मार रखते हैं
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#85
(28-02-2019, 12:44 AM)Black Horse Wrote: लता कितनी भी खूबसूरत क्यों न हो ,उसे एक सपोर्ट तो चाहिए न ,ऊपर चढ़ने के लिए।

Very Well said

एकदम सही कहा आपने। और सोलहवां सावन हो , भाभी  का गाँव हो तो सहारे की क्या कमी। 
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#86
बीसवीं फुहार

 
घर आँगन में

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झूले पे



[Image: jhula-2.gif]



दिनेश






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गनीमत था कि जब मैं घर पहुँची तो भाभी और चम्पा भाभी नहीं थी, सिर्फ बसंती थी। उसने बताया कि सब लोग पड़ोस के गांव में गये हैं और शाम के आस-पास ही 3-4 घंटे बाद लौटेंगे, मेरा खाना रखा है और उसे भी कुछ काम से जाना है।


मैं अपने कमरे में चली गई और जल्दी से कपड़े बदले। कहीं जाना तो था नहीं इसलिये मैंने, एक टाप और स्कर्ट पहना और खाना खाने आ गयी।

[Image: Girl-skirt-4a160a88fc56139fab0e56181d593aa5.jpg]


खाने के बाद मैं अपने कमरें में थोड़ी देर लेटी थी और बसंती सब काम समेट रही थी। तभी बसंती ने दरवाजे के पास आकर बताया कि दिनेश आया है।


मैं चौंक कर उठ बैठी और मुश्कुराने लगी। मुझे याद आया कि जब मैंने चन्दा से दिनेश के बारे में पूछा था तो उसने हँसकर कहा था कि खुद देख लेना। और बहुत खोदने पर वो बोली- 

“मिलने के पहले कम से कम आधी शीशी वैसलीन की लगा लेना…



मैंने बसंती से कहा- “बैठाओ, मैं आ रही हूं…”


मैंने अपने ड्रेस की ओर देखा।

मेरी टाप खूब टाइट थी या शायद इधर दबवा-दबवा कर मेरे जोबन के साईज़ कुछ बढ़ गये थे, मेरे उभार… यहां तक की निपल भी दिख रहे थे।


[Image: nips-poking-tumblr-74045566aca96c5ff2735...9b-640.jpg]


ब्रा तो मैंने गांव आने के बाद पहननी ही छोड़ दी थी। और स्कर्ट भी जांघ से थोड़ी ही नीचे थी।



खड़ी होकर मैं ड्रेसिंग टेबल के पास गयी और लिपिस्टक हल्की सी लगा ली।



सामने वैसलीन की बोतल थी, मैंने दोनों उंगलीयों में लेकर टांग फैलाकर अपनी चूत के एकदम अंदर तक लगा ली। फिर थोड़ी और लेकर चूत के मुहाने पर भी लगा ली।

मुझे एक शरारत सूझी और मैंने हल्की सी लिपिस्टक चूत के होंठ पर भी लगा ली।



[Image: lipstick-2.jpg]


मैं बाहर निकली तो दिनेश इंतजार कर रहा था, उसने पूछा- “

क्यों भाभी नहीं हैं क्या…”


मैंने हँसकर कहा-

“नहीं, आज तो हमीं से काम चलाना पड़ेगा…”

[Image: dress-disco-edde17828e85c232122d16facd2baf80.jpg]

 और मैंने उसको सुनाते हुए बसंती से पूछा-

“क्यों भाभी लोग तो शाम को आयेंगी, तीन चार घंटे बाद…”





बसंती काम खतम करती हुई बोली- “हां शाम के आसपास, और मैं भी जा रही हूं, दरवाजा बंद कर लेना…”


[Image: Geeta-Mithra-Sexy-Navel-Photos-In-Saree-...wing-3.jpg]


दरवाजा बंद करके मैंने मुश्कुराते हुए कहा-

“चलो, अंदर कमरें में चलते हैं…”

उसको लेकर चूतड़ मटकाती आगे आगे चलती मैं कमरें में आयी। उसे पलंग पर बैठाकर उसके सामने पड़ी कुरसी पर बैठकर मैंने धीरे-धीरे अपनी जांघें फैलानी शुरू कीं।





उसका ध्यान एकदम मेरी स्कर्ट से साफ-साफ दिख रही भरी-भरी गोरी-गोरी जांघों की ओर ही था। बैठते समय मेरी स्कर्ट थोड़ी ऊपर चढ़ भी गयी थी।


मैंने उसे छेड़ा- “कहां ध्यान है… तुम दिखते नहीं, कहां रहते हो… मैंने भाभी से भी पूछा कई बार…”


“नहीं नहीं… कहीं नहीं… मेरा मतलब है…” हडबड़ा कर अब उसने अपनी निगाहें ऊपर कर लीं।


पर मैं कहां मानने वाली थी।





मेरे कबूतर तो वैसे ही मेरे कसे टाप को फाड़कर बहर निकलना चाहते थे, मैंने उनको थोड़ा और उभारा। अब उसकी निगाहें वहीं चिपक गयीं थीं। मैंने अपने दोनों हाथों को उनके बेस को क्रास करके उन्हें पूरा पुश करते हुए भोलेपन से पूछा-

[Image: dress-nip-poking-b73a50975d230dd7d042a878bcfe7d7a.jpg]



“अच्छा… एक बात बताओ, मैं तुमको कैसी लगती हूं…”


उसका तम्बू अब साफ-साफ तनने लगा था- “अच्छी लगती हो… बहुत अच्छी लगती हो…”

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मैंने अपने टाप के बाकी बटन भी खोलते हुये कहा- “उमस लग रही है ना, आराम से बैठो…” बटन खुलने से मेरा क्लीवेज तो अब पूरा दिख ही रहा था, मेरे रसीले जोबन भी झांक रहे थे।


उसकी हालत एकदम बेकाबू हो रही थी पर मैं कहां रुकने वाली थी।


मैंने अपने दोनों पैर मोड़ लिये और स्कर्ट को एड्जस्ट करके अच्छी तरह फैला लिया।


अब तो उसे मेरी चूत की झलक भी अच्छी तरह मिल रही थी। उसकी निगाहें मेरी जांघों के बीच अच्छी तरह धंसी हुई थीं और उसका लण्ड उसके पाजामे से बाहर आने को बेताब था।


[url=https://picsbees.com/image/RdnZDZ]
थोड़ी देर वह देखता रहा फिर अचानक उठकर मैं उसके पास आकर, एकदम सटकर बैठ गयी। मैंने उसका हाथ खींचकर अपने कंधे को रख लिया और उसे अपने भरे-भरे जोबन के पास ले गयी और मेरा गोरा हाथ उसकी जांघ पे था, उसके तने हुए टेंटपोल के पास।


“अच्छा… अगर मैं तुम्हें अच्छी लगती हूँ तो तुम मेरे पास क्यों नहीं आते…” मैंने मुश्कुराकर पूछा।

“मुझे लगता है… था… कि कहीं तुम बुरा ना मानो…”


मैंने अब खींचकर उसका हाथ अपने जोबन पर रखकर हल्के से दबा दिया और बोली



“बुद्धू, अरे अगर किसी को कोई लड़की अच्छी लगेगी, तो वह बुरा क्यों मानेगी, उसे तो और अच्छा लगेगा…”



और उसके हाथ अब खूब कस के अपने जोबन पर दबाते हुए, मेरा हाथ जो उसकी जांघ पर था,


हल्के से उसके खड़े खूंटे को छूने लगा।



मैंने अपने दहकते होंठों से उसके कान को सहलाते हुये कहा-
“और मुझे तो तुम कुछ भी… कुछ भी करोगे तो बुरा नहीं लगेगा…”

“सच… कुछ भी… करूं…” उसकी आवाज थरथरा रही थी।


मैंने अपने गुलाबी गाल उसके गाल से रगड़ते हुए कहा- “हां… कुछ भी जो तुम चाहो… जैसे भी… जितनी बार… जब भी…
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#87
साइज मैटर्स ,… 



[Image: sixteen-cock11.md.jpg]

लेकिन लगता है बहुत,....


[Image: sixteen-tumblr_moko1u171O1r8quyio4_400.jpg]



“सच… कुछ भी… करूं…” उसकी आवाज थरथरा रही थी। 





मैंने अपने गुलाबी गाल उसके गाल से रगड़ते हुए कहा-



“हां… कुछ भी जो तुम चाहो… जैसे भी… जितनी बार… जब भी…” 


अब उससे नहीं रहा गया और उसने खींच के मुझे अपनी गोद में बिठा लिया और मेरे गरम गुलाबी रसीले होंठों को कस-कस के किस करने लगा। उसका एक हाथ मेरा सर पकड़ के अपनी ओर खींच रहा था और दूसरा कस-कस के टाप के ऊपर से ही मेरे जोबन का रस ले रहा था। 

[Image: sixteen-kacchetik5.md.jpg]



सकी जुबान मेरे होंठों के बीच घुस गयी थी और जल्द हो उसने मेरा टाप उठाकर मेरे कबूतरों को आजाद कर दिया। मेरे गोरे-गोरे उठते उभारों को देख के जैसे उसकी सांस थम गयी पर बिना रुके, जैसे किसी नदीदे बच्चे को मिठाई मिल जाये और वह उसपे टूट पड़े, वह उसे दबाने मसलने लगा।



उसके होंठ भी अब उसे चूम रहे थे, मेरे रसीले जोबन का रसपान कर रहे थे। और पाजामे के अंदर से उसका मोटा खड़ा लण्ड… लग रहा था कि अब मेरी स्कर्ट को भी फाड़कर मेरी चूत में घुस जायेगा। 



[Image: sixteen-16297_07.jpg]



उसका हाथ मेरी गोरी जांघों को सहलाते सहमते-सहमते, मेरी चूत की ओर बढ़ रहा था, फिर अचानक उसने कस के मेरी चूत को पकड़ लिया। 



वह भी अब खूब गीली हो रही थी। 



लेकीन अब मेरा मन भी उसके खड़े लण्ड को देखने को कर रहा था। उसने मुझे पहले तो लिटा दिया 


फिर कुछ सोचकर मुझसे पेट के बल लेटने को कहा। मेरा टाप इस बीच मेरा साथ छोड़ चुका था। जब मैं पेट के बल लेट गयी, तो उसने मेरे पेट के नीचे कई तकिया लगाकर मेरे चूतड़ खूब उभार दिये। 


[Image: sixteen-butt125.md.jpg]



मेरे सर के नीचे भी उसने एक छोटी सी तकिया लगा दी और पीछे जाकर, स्कर्ट कमर तक करके मेरी टांगें भी खूब अच्छी तरह फैला दीं। कपड़ों की सरसराहट की आवाज के साथ मैं समझ गयी, कि अब उसके भी कपड़े उतर गये हैं।





मुझे लगा रहा था कि अब वो अपना लण्ड मेरी चूत में डालेगा। 





पर मेरे पीछे बैठकर थोड़ी देर वो मेरे सेक्सी चूतड़ों को सहलाता रहा और फिर उसने एक उंगली मेरी चूत में घुसेड़ दी। मेरी चूत वैसे ही गरम हो रही थी। थोड़ी देर तक एक उंगली अंदर-बाहर करने के बाद, उसने उसे निकाल लिया। मैं मस्ती के मारे पागल हो रही थी





पर अब भी उसने अपना लण्ड पेलने के बजाय अपनी दो उंगलियां एक साथ घुसेड़ दीं।






मैं खूब गीली हो रही थी, और वैसलीन भी मैंने अच्छी तरह चुपड़ी थी फिर भी दो उंगलियां मेरे लिये बहुत थीं और वो मेरी चूत में खूब रगड़-रगड़ के अंदर जा रही थी। 
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मैं मस्ती के मारे सिसकियां भर रहीं थी- “हां दिनेश डाल दो ना प्लीज, अब और मत तड़पाओ… उह… 

उह्ह्ह… हां हां… करो ना… कब तक… ओह…
” मस्ती के मारे मेरे चूतड़ भी हिल रहे थे।









पर उसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था और अब वह एक हाथ से मेरी झुकी हुई चूचियों को कस-कस के दबा रहा था और उसकी दोनों उंगलियां भी खूब कस के मेरा चूत मंथन कर रही थी। 





कभी वह तेजी से अंदर-बाहर होतीं, कभी वह उसको गोल-गोल तेजी से घुमाता। जब मेरी हालत बहुत खराब हो गयी तो उसने एक हाथ से मेरी चूत के होंठ फैलाकर अपना सुपाड़ा सटाया और कमर पकड़ के पूरी ताकत से पेल दिया। 





ओह्ह्हह्ह्हह… मेरी जान निकल गयी। मैंने अपना मुँह कस के तकिये में दबा लिया था। 


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तब तक उसने फिर पूरी ताकत से दुबारा धक्का लगाया। 




मैं समझ गयी कि आज तो मेरी चूत फट जायेगी।





पर गलती तो मेरी ही थी मैंने उसे इतना छेड़ा था। मेरी चूत पूरी तरह फैली हुई थी, पर वह रुकने वाला नहीं था, उसने फिर कस के धक्का लगाया। 







“उईईई…” मैंने कसकर अपने होंठों को दांत से काटा, पर फिर भी चीख निकल गयी। लग रहा था कि कोई लोहे का मोटा राड मेरी चूत में धंस गया हो। मैं कस-कस के अपने चूतड़ हिला रही थी, पर लण्ड एकदम अंदर तक धंसा हुआ था और बाहर निकलने वाला नहीं था। 





मैंने अच्छी तरह से अंदर-बाहर वैसलीन लगायी थी फिर भी मेरी चूत… चरचरा रही थी।


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#88
जब उसने अगला धक्का लगाया तो मेरी तो जान ही निकल गयी। अजय, सुनील, रवी, राजीव इतने लोगों से मैंने चुदवाया, पर… 





मेरे मोटे चूतड़ को पकड़ के उसने थोड़ा रूक के और अंदर पुश किया। 







अब और नहीं ओह्ह्ह… मुझे लगा कि अब मैं और नहीं सह सकती, उसने थोड़ा रुककर बाहर खींचकर अपना लण्ड फिर पूरी ताकत से एक बार में अंदर ढकेला, और मैं… दर्द की ऐसी लहर उठी की मैं बेहोश सी हो उठी।



कुछ देर बाद, जब दर्द कुछ कम हुआ तो मैंने गरदन मोड़कर उसकी ओर देखा। उसकी मुश्कुराहट और चेहरे की खुशी देखकर मैं भी मुश्कुरा पड़ी। अब उसने धीरे-धीरे चोदना शुरू किया। 





वह हल्के से लण्ड थोड़ा सा बाहर निकालता और फिर धीरे से उसे अंदर ढकेलता। दर्द तो अभी भी हो रहा था, पर जब चूत की दीवारों से उसका मोटा लण्ड रगड़ता तो मजा भी आ रहा था।


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कुछ ही देर में दर्द की टीस सी बाकी रही पर एक नये ढंग की मस्ती छा रही थी और मैं भी उसके साथ-साथ अपने चूतड़ हिलाती, चूत से उसके लण्ड को सिकोड़ती। उसको जल्द ही इस बात का अहसास हो आया और उसने फिर कस-कस के धक्के लगाकर चोदना शुरू कर दिया। मुझे दर्द के साथ एक नया नशा हो रहा था।

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अब उसने मेरी चूचियां पकड़ ली थी और उसको दबाते मसलते, कस-कस के चोद रहा था। चूत की इस जबरदस्त रगड़ाई से मैं कुछ देर बाद झड़ गयी। 


थोड़ी देर में उसने पोजीशन चेंज की और मुझे पीठ के बल लिटा दिया और मेरी टांगें अच्छी तरह फैलाकर, कंधे पे रखकर चोदना शुरू किया। 



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अब मैंने देखा कि उसका लण्ड कित्ता मोटा था और अभी भी कुछ हिस्सा बाहर था। मैं उसे चिढ़ाना चाहती थी की… बाकी क्या अपनी बहनों के लिये बचा रखा है, पर अभी जो मेरी चूत की हालत हुई थी वो सोचकर चुप रही। 


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वह तरह-तरह के पोज में चोदता रहा, कभी टांगें अपने कंधे को रख के, कभी मुझे अच्छी तरह मोड़ के, उसने मुझे रूई की तरह धुन दिया। 



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मैं कितनी बार झड़ी पर जब वह झड़ा तब तक मैं पस्त हो चुकी थी। 






कुछ देर बाद हल्की ठंडी बयार के साथ मेरी आँख खुली। 




मेरी चूचियों पर उसके मसलने के, काटने के निशान, फैली हुई जांघों और चूत पर सफेद वीर्य, लग रहा था कि वहां से कोई तूफान गुजर गया हो। 


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उसने मुझे सहारा देकर उठाया।
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#89
बीसवीं फुहार 


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आँगन में रगड़ाई , दिनेश संग 



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उसने मुझे रूई की तरह धुन दिया। 



मैं कितनी बार झड़ी पर जब वह झड़ा तब तक मैं पस्त हो चुकी थी। कुछ देर बाद हल्की ठंडी बयार के साथ मेरी आँख खुली। मेरी चूचियों पर उसके मसलने के, काटने के निशान, फैली हुई जांघों और चूत पर सफेद वीर्य, लग रहा था कि वहां से कोई तूफान गुजर गया हो। 



उसने मुझे सहारा देकर उठाया। 





हम लोग कुछ देर बातें करते रहे।



बाहर बहुत अच्छी हवा चल रही थी। मैंने उससे कहा कि चलो बाहर चलते हैं। मैंने एक साड़ी ऐसे तैसे लपेट ली और आंगन में उसके साथ आ गयी। सफ़ेद बादल के टुकड़ों से आसमान भरा था और ठंडी पुरवाई चल रही थी। भाभी के घर के आंगन में एक बड़ा सा नीम का पेड़ था उसकी मोटी डाल पर रस्सी का एक झूला पड़ा था। 





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मैं उसपे बैठ गयी और मैंने, दिनेश से इसरार किया कि मुझे झुलाये। वह मेरे पीछे जमीन पर खड़ा होकर झुला रहा था। 



कुछ हवा का झोंका और कुछ उसकी शरारत, मेरा आंचल हट गया और मेरे उभार एकदम खुल गये। 





मैंने उन्हें ढकने की कोशिश की पर उसने मना कर दिया और मुझे टापलेश ढंग से ही आंगन में झुलाता रहा। 


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थोड़ी देर में सांवन बूंदियां पड़ने लगी और मैं उठ गयी पर उसने कहा नहीं झुलो ना और मेरे बची खुची साड़ी भी पकड़कर खींच दी और वैसे ही झूले पे बैठा दिया।





रस्सी मेरे कोमल चूतड़ में गड़ रही थी लेकिन उसने कस-कस के पेंग देनी शुरू कर दी। मुझे याद आया कि पूरबी ने जो बताया था कि दिन में मायके आने से पहले उसने अपने साजन के साथ कैसे झूला झुला था। 





झुलाते समय कभी दिनेश मेरी चूचियां दबा देता, कभी जांघों के बीच सहला देता। मैंने उसको अपने मन की बात कान में बताई तो वह तुरंत मुझे हटाकर झूले पे आ गया। 


पानी की बूंदे अब तेज हो चुकी थीं। दिनेश जब झूले पे बैठा तो उसके टांगों के बीच, खूब लंबा मोटा, विशालकाय खूंटे जैसा, लण्ड… मेरा तो दिल धक्क से रह गया, इतना बड़ा… और कितना… मोटा पर हिम्मत करके मैंने उसे पकड़ लिया और उसे चिढ़ाया- “क्यों, ये आदमी का है, कि गधे का…” 


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मुश्कुराकर वह बोला- “पसंद तो है ना…” 









मेरे किशोर गोरे-गोरे हाथों की गरमी पाकर वह एकदम खड़ा हो गया था और अब इत्ता फूल गया था कि मेरी मुट्ठी में नहीं समा पा रहा था। मैंने उसे कस के खींचा तो ऊपर का चमड़ा हट गया और पूरा सुपाड़ा खुल गया।



जैसे एकदम गुस्से में हो… लाल लाल… खूब बड़े पहाडी आलू जैसा। 





मैंने बात बदलकर पूछा- “तुम मेरे पीछे से क्यों आये… मेरा मतलब है…” 





“इसलिये मेरी जान…” मेरे गाल चूमते हुये वो बोला- “कि कहीं तुम उसे देखकर डर ना जाओ, और फिर… इसका क्या होता…” 





बात उसकी सही थी… किसी लड़की का भी दिल दहल जाता… पर एक बार लेने के बाद कौन मना कर सकता था। मैं उसका लण्ड पकड़कर सहला, मसल रही थी पर सुपाड़ा उसी तरह खुला हुआ था। 





“आओ ना…” अब वह बेताब हो रहा था। उसने मेरी दोनों टांगें खूब अच्छी तरह फैलाकर मुझे झूले पे अपनी गोद में बिठा लिया। मेरे चूतड़ उसकी जांघों पे थे और उसका बेताब सुपाड़ा मेरी चूत को रगड़ रहा था।





मैंने दोनों हाथों से कसकर झूले की रस्सी पकड़ ली। उसने अपने दोनों मजबूत हाथों में पकड़कर मुझे अपनी ओर कसकर खींचा और मेरे रसीले गाल कसकर काट लिये। मेरे उभरे जोबन उसकी चौड़ी छाती से कस के दब गये थे। मेरी टांगें उसकी कमर के दोनों ओर फैलीं थी इसलिये चूत का मुँह वैसे ही थोड़ा फैला था। 



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उसने अपने एक हाथ से मेरे भगोष्ठों को खूब जबरन फैलाया और फिर अपना सुपाड़ा सेंटर करके कस के मेरे चूतड़ पकड़कर धक्का दिया। मैंने भी हिम्मत करके रस्सी पकड़कर अपनी कमर को जोर से उसकी ओर पुश किया… एक हाथ कमर पे और दूसरा मेरे चूतड़ को पकड़कर उसने पूरी ताकत से धक्का दिया और दो-तीन बार में मेरी कसी चूत पूरा सुपाड़ा गप्प कर गयी।


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हवा तेज हो चली थी, इसलिये बौछार खूब कस-कसकर हम लोगों की देह पे पड़ रही थी।



नीम का पेड़ भी झूम रहा था, और आंगन की उंची दीवालों के पार, हरे-हरे पेड़ खूब कसकर झूम रहे थे, घने काले बादल उमड़ घुमड़ रहे थे 
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और मौसम की इस मस्ती में भीगते हुये, दिनेश खूब जोर से पेंग लगाता, जब झूला ऊपर जाता तो वो लण्ड थोड़ा बाहर खींच लेता और जैसे ही वह नीचे आता, वह पूरी ताकत से कस के धक्के के साथ लण्ड अंदर करता, और मैं भी अपनी ओर से धक्का लगाकर उसका पूरा साथ देती। 


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झूले पे इस तरह झूलते, बारिश में भीगते, चुदाई का मजा लेते, हम दोनों एक दूसरे को चूम रहे थे, दबा रहे थे। 


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#90
कजरी और झूला 

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झूले पे इस तरह झूलते, बारिश में भीगते, चुदाई का मजा लेते, हम दोनों एक दूसरे को चूम रहे थे, दबा रहे थे। 





झूला हो और कजरी ना हो, दिनेश ने मुझसे कहा और मैं मस्ती में गाने लगी- 


हमरे आंगन में, नीम पे झूला डलवाय दो, हमका झुलाय दो ना, 
अरे अपनी गोदिया में हमका बैठाय के, सजन झुलाय दो ना, 
हमार दोनों जोबना पकड़, धक्का कस के लगावा, हमका झुलाय दो ना, 
लण्ड कस के घुसावा, बुर हमरी चुदावा, चुदवाय दो ना, सजन सावन में हमका झुलाय दो ना, 





बारिश अब और तेज हो गयी थी। 



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आंगन में पानी के बुलबुले फूट रहे थे। भाभी के मायके का आधा आंगन कच्चा था, जिसके बगल में फूलों की क्यारियां बनी थी। वहां मिट्टी गीली हो रही थी। 


दिनेश ने मुझसे पूछा- “तुमने कभी बिना झूले के झूला, झूला है…” 
मैंने कहा- “नहीं, बिना झूले के कैसे…” 
वह बात काटकर बोला- “झूलना है, तुम्हें…” 
उसके होंठ चूमते हुये, मैं बोली- “हां… जरूर…” 



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अब वह मुझे लिये झूले पर से उतरा, आधे से अधिक लण्ड मेरी चूत में घुसा था।


वह मुझे वैसे ही लिये वहां आया जहां आंगन कच्चा था और मुझे लिटा दिया। मेरी दोनों टांगों अभी भी उसी तरह उसके दोनों ओर फैली थीं। उसने अपनी दोनों टांगें मेरे चूतड़ के नीचे की और फिर अचानक मेरी कमर के नीचे हाथ डालकर मुझे उठा लिया। 

मैं जैसे ऊपर आती, वह पीछे मुड़ जाता और जब वह आगे आता तो… मुझे लगभग अपने हाथों के सहारे जमीन पे लिटा देता, जैसे बच्चे सी-सा खेलते हैं उसी तरह। और इसी के साथ-साथ उसका लण्ड भी खूब कस-कस के रगड़ता हुआ मेरी चूत के अंदर-बाहर हो रहा था


। आंगन का पानी भी बहकर मिट्टी वाले हिस्से की ओर से आ रहा था और वहां पूरा कीचड़ हो रहा था। मेरे चूतड़ में भी कीचड़ थोड़ा लगा गया। 



थोड़ी देर तक इस तरह झूला झूलाने के बाद उसने मुझे खींच के अपनी जांघ पे बिठा लिया और मेरे होंठों को कस के चूमते, पूछा- “क्यों कैसा लगा, झूला…” 


उसके चुम्बन का जवाब मैंने भी खूब कस के उसे चूमते हुए दिया और बोली- “बहुत मजा गया…” 


“तो लो इस तरह से भी झूलने का मजा लो…” अ


ब वह मुझे अपनी जांघ पर बिठाकर चोदते हुये ही झूलने का मजा दे रहा था। इसमें और भी मजा आ रहा था, कभी वह मेरी कमर पकड़ के झुलाता, कभी दोनों चूंचिया पकड़ के। थोड़ी देर इस तरह से झुलाने के बाद उसने मुझे मिट्टी पर लिटा दिया। 

मेरी जांघें पूरी तरह फैली हुई थीं, और उसके बीच में वह।



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उसका आधे से भी ज्यादा, विशालकाय मोटा लण्ड मेरी चूत को फाड़ते हुये, उसके अंदर घुसा हुआ था। 




पानी की धार चारों ओर उसके शरीर से होते हुये मेरी कंचन काया पर गिर रही थी। मेरी दोनों चूचियों को पकड़ वह मेरी आँखों में प्यार से झांक रहा था। जैसे उसकी आँखें पूछ रही हों- “क्यों… डाल दूं पूरा… दर्द तो तुम्हें होगा थोड़ा… पर मेरा मन भी…” 



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#91
कीचड़ में कमल 
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पंकिल उरोज 



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हम दोनों सब कुछ भूलकर वहशियों की तरह चुदाई कर रहे थे। 

…………………..
थोड़ी देर में उसने मुझे पलट दिया। अब मेरे दोनों हाथ कोहनियों के बल मुड़े थे और उनके और घुटनों के बल मैं थी, मेरे चूतड़ उठे थे। 


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वो कमर पकड़ के अपना लण्ड हर धक्के के साथ सुपाड़े तक निकालकर पूरा पेल रहा था और मैं भी उसके हर धक्के का जवाब कस के दे रही थी। थोड़ी ही देर में उसके जोरदार धक्कों से मेरी कुहनी जमीन पर लग गयी और अब मेरी रसीली चूचियां कस-कस के कीचड़ में लिथड़ रही थीं, उसके हर धक्के के साथ वह बुरी तरह कीचड़ में रगड़ खा रहीं थी, मैं कभी दर्द से, कभी मजे से चिल्ला रही थी पर उसके ऊपर कोई असर नहीं था।






सटासट-सटासट वह धक्के मारे जा रहा था और मेरी चूत भी गपागप-गपागप उसका लण्ड घोंट रही थी।





बरसात भी अब तूफानी बरसात में बदल चुकी थी। मुसलाधार पानी के साथ तूफानी हवा भी चल रही थी, पेड़ जोर से हर हरा रहे थे। चर-चर धड़ाम की आवाज से बाहर अचानक कोई बड़ा पेड़ गिरा। और उसी समय उसके मोटे गधे की तरह लंबे लण्ड का बेस मैंने अपने चूत के मुँह पे महसूस किया। 







और मैं तेजी से झड़ने लगी। 





मैं ऐसे इसके पहले कभी नहीं झड़ी थी। 





मेरी पूरी देह जोर-जोर से कांप रही थी, मेरी चूचियां पत्थर जैसी कड़ी हो गयीं थीं और मेरे चूचुकों में भी झड़ने का सेंसेशन हो रहा था। मेरा झड़ना रुकता और फिर एक नयी लहर शुरू हो जाती। मेरी चूत में उसके लण्ड का एहसास बार-बार झड़ना ट्रिगर कर रहा था। 


जैसे किसी बहुत पतली मुँह वाली बोतल में खूब ठूंस कर कोई मोटा, बड़ा कार्क घुसेड़ दिया जाय, और बड़ी मुशिक्ल से वह घुस तो जाय पर उसका निकालना उतना ही मुश्किल हो, वही हालत मेरी हो रही थी। '





जब उसने आखिरी बार कस के धक्का मारा तो मैं कीचड़ में पूरी तरह लेट गयी थी और चूंचिया तो अच्छी तरह लिथडीं थीं हीं, बाकी पेट, जांघों पर भी अच्छी तरह कीचड़ लिपट गया था। मेरी कमर को पकड़कर ऊपर उठाकर खूब कस-कस के खींचा तो लण्ड थोड़ा, बाहर निकला। अब उसने मुझे पीठ के बल लिटा दिया। 


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जब उसने मुझे, मेरे जोबन को कीचड़ से लथपथ देखा तो कहने लगा- “अरे, तेरी चूचियां तो कीचड़ में…” 
“और क्या, कीचड़ में ही तो कमल खिलते हैं, लेकिन तुम क्यों अलग रहो…”
 
[/i]



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और मैंने अपने हाथ में बगल की क्यारी में से खूब अच्छी तरह कीचड़ ले लिया था, उसे मैंने उसके दोनों गालों पर होली में जैसे रंग मलते हैं, खूब कसकर मल दिया। 





“अच्छा, अभी लगता है थोड़ी कसर बाकी है…” और उसने ढेर सारा कीचड़ निकालकर मेरे जोबन पर रख दिया और कसकर मेरी चूचियों की रगड़ाई मसलाई करने लगा।





मैं क्यों पीछे रहती मैंने भी अबकी ढेर सारा कीचड़ लेकर उसके मुंह, पीठ पर अच्छी तरह लपेट दिया। 

मुझे फिर एक आइडिया आया। मैंने उसे कस के अपनी बाहों में भींच लिया और अपनी चूंचियां उसकी चौड़ी छाती पर रगड़ने लगी और अब वह भी उसी तरह लथपथ था, जैसे हम कीचड़-कुश्ती कर रहे हों। 





“अच्छा…” कहकर उसने मेरे भरे-भरे गालों को कसकर काट लिया और जोर से काटता रहा। 







उईइइइइइ… मैं चीख पड़ी पर बारिश और तूफान में क्या सुनाई पड़ता। पर उसे कोई फरक नहीं पड़ा और कुछ रुक कर उसने दुबारा वहीं पूरी ताकत से काटा। मैं समझ गयी, गाल के ये दाग, मेरे घर लौटने के भी बहुत दिन बाद तक रहेंगे।


तभी उसने, मैंने जो उसके गाल पे कीचड़ लगाया था, कसकर अपने गाल को मेरे गालों पर रगड़कर लगाना शुरू कर दिया। 


“इस मलहम से तेरे गालों का दर्द चला जायेगा…” वह हँसकर बोला। 







मैंने बदले में ढेर सारा कीचड़ उठाकर उसकी पीठ पर डाल दिया। हमारे बदन एक दूसरे को रगड़ रहे थे, लग रहा था उसके ढेर सारे हाथ और होंठ हो गये हों। 


कभी वह मेरी चूचियों को कस-कस के रगड़ता, मसलता, कभी क्लिट को छेड़ता, कभी उसके होंठ मेरे गाल और होंठ चूसते काटते, कभी मेरे निपल का सारा रस निकाल लेते, और उसका लण्ड तो किसी मोटे पिस्टन की तरह बिना रुके मेरी चूत के अंदर-बाहर हो रहा था, कभी वह मेरे चूतड़ पकड़ के चोदता, कभी कमर पकड़ के। 

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उसने अपना लण्ड सुपाड़े तक बाहर निकालकर मेरी दोनों किशोर चूंचियों को कस के पकड़ के पूछा- 


“क्यों गुड्डी मजा आ रहा है, चुदवाने का…” 



हां साजन हां, ओह…” 


और मेरे चूतड़ अपने आप ऊपर उठ गये। 


मैंने अपनी दोनों टांगें उसके कमर के पीछे जकड़कर खींचा और उसने इत्ता कस के धक्का मारा कि पूरा लण्ड एक बार में अंदर हो गया। चोदते-चोदते कभी वह मुझे ऊपर कर लेता, उसका पूरा लण्ड मेरी चूत में और वह मेरी मस्त चूचियों को मसलता रहता, उसकी पूरी पीठ कीचड़ से लथपथ हो जाती। 


पर हम दोनों को कोई परवाह नहीं थी। 


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वह चोदता रहा, मैं चुदवाती रही। 




मुझे पता नहीं कि मैं कित्ती बार झड़ी पर जब वह झड़ा तब तक मैं पस्त हो चुकी थी। बारिश धीमी हो गयी थी। हम दोनों ने जब एक दूसरे को देखा तो हंसे बिना नहीं रह सके, कीचड़ में एकदम लथपथ। 



आंगन के बगल की खपड़ैल जो थी उसपर से छत का पानी परनाले की तरह बह रहा था। मैं उसे, उसके नीचे खींच के ले गयी और छोटे बच्चों की तरह, जैसे मोटे नल की धार के नीचे खड़े होकर हम दोनों नहाते रहे और मल-मल कर एक दूसरे का कीचड़ छुड़ाते रहे। 



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फिर मैं एक तौलिया ले आयी और दिनेश को मैंने रगड़-रगड़ के सुखाया।और वह भी मुझे रगड़ने का मौका क्यों छोड़ता।

 वह बार-बार पूछता- 

“अगली बार कब…” 



पानी लगभग बंद हो गया था। मैं उसे छोड़ने दरवाजे तक गयी। बाहर गली में दोनों ओर देखकर मैंने उसे कसकर बाहों में पकड़ लिया और उसके मुँह पर एक कसकर चुम्मा लेते हुए बोली- 

“तुम, जब चाहो तब…” 





अब मेरी देह बुरी तरह टूट रही थी। पलंग पर लेटते ही मुझे पता नहीं क्यों रवीन्द्र की याद आ रही थी। मुझे अचानक याद आया, चन्दा ने जो कहा था, रवीन्द्र के बारे में, उसका… उसने जितना देखा है उन सबसे ज्यादा… और उसने दिनेश का तो देखा ही है… तो क्या रवीन्द्र का दिनेश से भी ज्यादा… 






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उफ़… आज तो मेरी जान ही निकल गयी थी और रवीन्द्र… यह सोचते सोचते मैं सो गयी। 









सपने में भी, रवीन्द्र मुझे तंग करता रहा। 


[Image: Couple-Love-Making-Erotic-Pictures---Nud...984-21.jpg]
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#92
Update is from last page....
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#93
super sexy super hot
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#94
Thanks do read my holi stories too
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#95
अब रविन्द्र की बारी...
बर्बादी को निमंत्रण
https://xossipy.com/thread-1515.html

[b]द मैजिक मिरर (THE MAGIC MIRROR) {A Tale of Tilism}[/b]
https://xossipy.com/thread-2651.html

Hawas ka ghulam
https://xossipy.com/thread-33284-post-27...pid2738750
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#96
https://xossipy.com/thread-4421.html Pure desi gujarati erotic and sexy story with daily new updates
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#97
प्यारी भौजी इस बार तो गुड्डी को रॉकी से भी चुदवा देना और sweet भाभी plzzzz एक बार फिर गुड्डी को भाभी के गांव में फिर ले जाइएगा plzzzz plzzz
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#98
(09-03-2019, 11:21 AM)Fucker134 Wrote: प्यारी भौजी इस बार तो गुड्डी को रॉकी से भी चुदवा देना और sweet भाभी plzzzz एक बार फिर गुड्डी को भाभी के गांव में फिर ले जाइएगा plzzzz plzzz

sure...idea accha hai ....ye poori hone ke baad iska sequel bhi aayega
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#99
(06-03-2019, 02:23 PM)Rocksanna999 Wrote: अब रविन्द्र की बारी...

nahi nahi ...ravindra ka number abhi naahi aane vaala
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२१ वीं फुहार 

[Image: teen-30bb7dee4be07d2aa7b13b53db67f940.md.jpg]

आँगन में ,... 



जब मैं उठी तो शाम ढलने लगी थी। बाहर निकलकर मैंने देखा तो भाभी लोग अभी भी नहीं आयी थीं। मैंने किचेन में जाकर एक गिलास खूब गरम चाय बनायी और अपने कमरे की चौखट पर बैठकर पीने लगी। बादल लगभग छट गये थे, आसमान धुला-धुला सा लगा रहा था। 

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ढलते सूरज की किरणों से आकाश सुरमई सा हो रहा था, बादलों के किनारों से लगाकर इतने रंग बिखर रहे थे कि लगा रहा था कि प्रकृति में कितने रंग हैं। 


जहां हम झूला झूल रहे थे, उस नीम के पेड़ की ओर मैंने देखा, जैसे किसी बच्चे की पतंग झाड़ पर अटक जाय, उसके ऊपर बादल का एक शोख टुकड़ा अटका हुआ था। 

[Image: rain-2.jpg]

मैं सोच रही थी भाभी के गाँव में मुझे अभी पांच दिन भी तो नहीं हुए थे लेकिन पांंच लड़कों का मजा , शुरुआत अजय ने की।



और मेरा पहले से भी थोड़ा थोड़ा मन तो था ही ऊपर से चंदा ने और आग लगा दी। फिर गाँव के मेले में , अब तो सिर्फ मेरी सहेलियां ही नहीं गाँव की सभी मुझे अजय का माल कहती थीं , फिर कल की रात जैसे उसने चार बार रगड़ा ,अब तो मैं कहीं भी कभी भी उसके साथ ,… और ऊपर से उसने बोल दिया , माल तो मैं उसका हूँ और रहूंगी लेकिन खबरदार जो मैंने किसी को मना किया तो। 





फिर मना करना मेरे बस में हैं क्या , 





वो छिनार चंदा , अगले दिन उसने कसम धरा दी और गन्ने के खेत में सुनील के साथ ,… फिर सुनील ने जो शाम को अमराई में बुलाया , तो एक के साथ एक फ्री , वो साल्ला चूत चटोरा रवी भी , उस दिन तो दो बार ,वो भी चंदा के सामने। 



और अगले दिन , पूरबी के यार ने नंबर लगा दिया। ,मुझे पक्का श्योर है , पूरबी ने उससे सेटिंग की थी , मुझे दिलवाने की। तभी वो नदी नहलाने ले गयी मुझे और वहां भी बाकी लड़कियों से दूर ,सूने में ,… लेकिन उसके यार को क्यों कुछ कहूँ यार , गाँव के सारे लौंडे , देख के मुझे तम्बू खड़ा हो जाता है उनका। 



और सच बोलूं तो मुझे भी अच्छा लगता है , वो जोबन भी क्या आये जो आग न लगाए। 


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और आज लौट के आई तो दिनेश , क्या खूंटा है उसका , साला अबतका चूत परपरा रही है , बित्ते भर का रहा होगा। और मोटा भी कितना , सुनील से बीस ही रहा होगा। 



अचानक मैं मुस्करा पड़ी , मुझे मम्मी की मां की बात याद आगयी। कितना खुल के छेड़ती है मुझे और कितना सपोर्ट भी करती हैं। और सबसे बड़ी बात उनकी बात सच भी निकलती है। जब मैं भाभी के साथ आई थी उसी समय ,जब सोहर हो रहा था और भाभी की भौजाइयां , बहने मुझे चिढ़ा रही थी और भाभी भी , हर सोहर में तो मुझे ही गालियां पड़ रही थीं। 





भाभी ने छेड़ते हुये पूछा था - “क्यों ननद रानी, मेरा कौन सा भाई पसंद है, अजय, सुनील, रवी या दिनेश… किससे चुदवाओगी…” 





मेरे कुछ बोलने के पहले ही भाभी की अम्मा बोल पड़ी- 




“अरे किससे क्या… चारों से चुदवायेगी। मेरी ये प्यारी बिन्नो सबका मन रखेगी…” और यह कहते-कहते, मेरे गोरे, गुलाबी गालों पर चिकोटी काट ली थी उन्होने. 

उस समय तो मैं शर्म से लाल हो गयी पर आज सोचती हूँ तो उनकी बात एकदम सही निकली। अजय ,सुनील, रवी ,दिनेश और पूरबी का यार राजीव भी तो , जहाँ यहाँ आने से पहले मैं कच्ची थी , शहर की छोरी , लड़कों का नाम लेने से ही शरमा जाती थी , अब तो एकदम। 





और फिर दिन कितने हुए मुझे आये , पहली रात तो चंदा रानी ने सोने नहीं दिया , गाँव के लड़कों के किस्से सुना सुना के। और मन तो मैंने उसी रात बना लिया था की इस चंदा की दिखा दूंगी , मैं कम नहीं हूँ उससे। 



और अगली रात तो मैं जिंदगी भर नहीं भूल सकती , जब आम के बाग़ में , बरसात में मेरी चिरैया ने पहली बार चारा घोंटा। 


अजय भी न , सच में कुछ फुसला बहला के , कुछ जोर जबरदस्ती उसने मेरा चुदाई का डर निकाल दिया। 

जब घर लौटी तो रात तो करीब करीब निकल ही गयी थी।



तीसरी रात रतजगे में बीती ,और वहां भी कितना मजा आया। 


उस दिन से सारी भाभियों से और सबसे बढ़ कर भाभी की माँ से भी , आखिर हम सब ने एक दूसरे का सब कुछ देख लिया था , एकदम खुल के। 







और कल की रात , चौथी रात मेरी जिंदगी की सबसे सुनहरी रात थी जब अजय ने , मेरे अजय ने , रात भर , चार बार , .... चार रातें गुजरी और पांच लड़के। 



जब यहाँ आने की बात हो रही थीं तो भाभी मेरी खूब छेड़ती थीं , " कच्ची कली कचनार की " की और मैं भी उन्हें जवाब देती थी ," अरे भाभी मैं डरती नहीं हूँ ,देख लूंगी आपके भाइयों को भी। "



सोलहवां साल बस लगा ही लगा था , मैं अभी ग्यारहवें में पढ़ रही थी। 

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भाभी भी , कभी मेरे स्कर्ट के अंदर हाथ घुसा के कभी , 


[Image: panty-5384084.jpg]


शलवार के ऊपर से चुनमुनिया दबा के बोलती थीं , 



" अरी बिन्नो , जरूर देखना , बिना दिखाए , पकड़ाए , घुसाये वो छोड़ेंगे भी नहीं। 

अब बहुत दिन तुमने इसे बचा के रख लिया ,अब फड़वाने की साइत आ गयी है। "



भाभी की बात एक दम सच निकली। 



और उनसे भी बढ़कर भाभी की मम्मी की बात ,अजय ,सुनील ,रवी दिनेश कोई भी नहीं बचा। 

मजा भी कितना आया , लेकिन उन्होंने एक बात और कही थी जिसे सोच के मैं काँप गयी। 

कहीं वो भी तो सच नहीं निकलेगी।





जब से मैं आई थी ,बल्कि भैया की शादी में भी जब मुझे गारी दी जा रही थी , 

एकलौती बहन जो थी , ममेरी ही सही , 

रॉकी का नाम जोड़ के एक से एक खुल के , … 





लेकिन अबकी तो पहले दिन से ही , और रॉकी भी अबकी कुछ ज्यादा ही , 

फिर पहली बार मैंने नोटिस किया उसका कितना बड़ा मोटा सा , …

 बार बार चंपा भाभी मेरी भाभी से कहतीं थी ,

[Image: MIL-86656847e3eebfcc1284935607a6252a.jpg]

" बिन्नो अबकी कातिक में इसे जरूर ले आना , अबकी बिना रॉकी को इसपे चढ़ाएं छोड़ेंगे नहीं , 

आखिर वो भी तो इसी गाँव का मर्द है , उसका भी तो हक़ बनता है। "





लेकिन मेरी हालत कल रात खराब हो गयी , जब भाभी की मम्मी मुझसे बोलीं,



"अरे ई कुतिया गर्माती है कातिक में ,लेकिन तोहार एस जवान लड़की तो हरदमै गरम ,पनियाइल रहती हैं। 




और रॉकी भी बारहों महीने तैयार रहता है तो कौनो जरूरी नाही की कातिक का इन्तजार करो , जब भी तोहार मन करे या तोहार भौजाई लोग जेह दिन चहिये ओहि दिन। "



और चंपा भाभी के लिए तो बस इशारा काफी था , 

[Image: boobs-jethani-14054088-248867345507149-7...4382-n.jpg]

उन्हें तो बस अब ग्रीन सिंगल मिल गया।

 तो भाभी की माँ की ये बात सही हो गयी की मैं अजय, सुनील ,रवी और दिनेश सब के साथ ,

तो क्या ये भी बात सही हो जायेगी की इसी बार रॉकी के साथ भी ,…


सोच के ही मैं गिनगिना गयी , 
तभी ,...



[Image: bengali-teen-71.md.jpg]
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