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पंद्रहवीं फुहार
शाम लगभग ढल रही थी।
सूरज भाभी की लाल टिकुली की तरह पश्चिम में दिख रहा था , वो बँसवाड़ी के पीछे , जहां हर शाम वो छुप जाता था।
हलकी हलकी सिन्दूरी सी आभा जैसे किसी ने नयकी भौजी को जबरन थोड़ा गुलाल पोत दिया हो , बस वैसे लग रहा था।
खरगोश से सफेद बादल आसमान के आँगन में इधर उधर खेल रहे थे।
एक ओर धानी चूनर से फैले , दूर दूर तक धान के खेत दिख रहे थे , और पीछे की ओर जिधर मेरा कमरा था , खूब घनी बँसवाड़ी , नीम और पाकुड के पेड़ , और आठ दस खूब गझिन आम के पुराने पेड़ और उसी के पीछे था अजय का घर , जिसकी हलकी सी झाईं सी दिखती थी।
और थोड़ी दी दूर पे खूब घने गन्ने के खेत , जिधर से काले बादल बढे आ रहे थे
[i]और उन गन्ने के खेतों के पीछे दूर चांदी की हँसुली की तरह, गाँव घेरे पतली सी नदी भी दिखती थी।
चम्पा भाभी ने चाय के लिए आवाज दी और कपडे और बड़ी समेटे मैं और भाभी छत से नीचे उतर पड़े।
मैं और भाभी दोनों किचेन में पहुँच गए , जहाँ भाभी की मम्मी , चंपा भाभी कुछ हंस बतला रही थीं।
[/i]
लेकिन आगे का हवाल बताने से पहले जरूरी है ,की भाभी के घर की जियोग्राफी जरा डिटेल में बता दी जाय।
भाभी का परिवार गाँव के सबसे पुराने और समृद्ध परिवारों में था , घर भी खूब पुराना और बड़ा।
चलिए आगे से शुरू करते हैं। घर दो भागों में बंटा था जिसे कोई मरदाना ,जनाना भी कह सकता है लेकिन वहां सब उसे पक्की कच्ची खंद के नाम से कहते थे।
अगला हिस्सा पक्का था। सामने खूब बड़ा सा खुला सहन था , वहां एक छप्पर के नीचे गाय और भैंस रहती थी। इस समय दो जर्सी गाय और एक मुर्रा भैसं थी। एक गाय और भैंस दूध देती थीं। एक जमाने में हीरा मोती बैलों की जोड़ी भी थी वो भी दो दो ,लेकिन अब एक ट्रैकटर है , जिसे गाहे बगाहे ,भाभी के भैया चलाते है ,वरना उनके पुराने हरवाहे श्यामू का लड़का , चंदू चलाता है।
इसके अलावा दो पक्के कुंवे हैं , जिनमे डोल पड़ी रहती है। घर के लिए पहले कहारिने पानी भर के लाती थीं और मर्द कुँए पे ही नहाते थे। लेकिन ट्यूबवेल लगने के बाद नल अब सीधा घर में हैं लेकिन तब भी अगर कहीं बिजली रानी दो तीन दिन तक लगातार गायब हो गयीं ,या भाभी को मन किया कुंए के पानी से नहाने का तो कहारिन भर के ले आती थी।
एक बूढ़ा , बड़ा पीपल का पेड़ था ,जो हर आने वाले की झुक कर अगवानी करता था। भाभी की मम्मी कहती थीं की जब उनकी सास गौने में आई थीं तो उनकी पालकी उसी पेड़ के नीचे उतरी थी। और बसंती नाउन की दादी ने उनका परछन किया था।
बगल में एक बैल चक्की भी थी , दो बड़े पत्थर के चक्के एक दूसरे के ऊपर , लेकिन वो ज़माने से नहीं चली थी।
हाँ उस के बगल में कोल्हू था , जो अभी भी जाड़े में कुछ दिन चलता था। भाभी के यहाँ ७-८ एकड़ गन्ने का खेत था , और पास की एक चीनी मिल वाले एडवांस में खेत बुक कर लेते थे, लेकिन भाभी की माँ को शौक था ,ताजे और घर में बने गुड का और जैसे ही कटना शुरू होता था , कई कई रात कोल्हू चलता था।
सरसों के तेल की भी यही हालत थी। उनके अपने खेत के सरसों को एक तेली कोल्हू पेरता था।
सामने के हिस्से में एक खूब चौड़ा बरामदा था और उस में ज्यादातर चारपाइयां पड़ी रहती थीं और आने जाने वाले उसी पर बैठते थे। उसी के साथ लगी बैठक थी जिसमें कुर्सियां , एक पुरानी पलंग ,मोढ़े पड़े थे लेकिन उसका इस्तेमाल कोई फंक्शन हो ,कुछ सरकारी लोग आएं या ख़ास मेहमान तभी उसका इस्तेमाल होता था।
अंदर की ओर फिर एक पक्का बरामदा था , और उसी के साथ जुड़े दो तीन पक्के कमरे , एक में भाभी की माँ रहती थीं और बगल के कमरे में भाभी के भैया और चंपा भाभी।
फिर बड़ा सा पक्का आँगन , घर की शादियां वही होती थी , इसलिए मंडप के लिए बांस लगाने के लिए उसमे जगह बनी थी। यहीं से सीढ़ी थी ऊपर जाने के लिए और इसी आँगन में बाथरूम ऐसा भी था जहाँ कहारिन पानी भर के बाल्टी रख देती थी।
किचेन दोनों हिस्से के संधिस्थल पर था।
लेकिन असली जगह जहाँ दिन भर की सब हलचल होती थी , वो कच्ची खंद ही थी जहाँ हम लड़कियों ,महिलाओं का पूरा राज्य था। ये आँगन उतना बड़ा नहीं था पर छोटा भी नहीं था।
दो तिहाई से ज्यादा कच्चा ,लेकिन सुबह सुबह रोज गोबर से पोता जाता। इस आँगन में एक नीम का पेड़ था। और दो ओर बरामदे , वो कच्चे। इस खंद में भी तीन चार कमरे थे , दीवारे सबकी पक्की थीं लेकिन फर्श कच्ची और छत खपड़ैल की थी।
इस में कच्चे बरामदे से एक छोटा सा दरवाजा था , जो पीछे की ओर था और सारी लड़कियां , औरते इसी दरवाजे से आती थीं। गाँव में सारे घरों में ये पिछला दरवाजा होता था , और औरतों के लिए ही बना होता था। इसके अलावा , चुड़िहारिन ,नाउन ,कहारिने सब इसी दरवाजे से आती थी।
और इन्ही कमरों में से एक में भाभी रहती थीं , और एक भाभी के कमरे से सटे कमरे में मैंने अड्डा जमाया था। और उसमें भी एक छोटी खिड़की नुमा दरवाजा था जिससे जब चाहे तब चंदा और मेरी बाकी सब नयी सहेलियां , कजरी , पूरबी , गीता आ धमकती थीं।
हम लोगों के आने पर जो सोहर और गाने हुए थे वो इसी इलाके में बरामदे में हुए थे।
एक फायदा ये भी था की इस इलाके में मर्दों का प्रवेश लगभग वर्जित था , उसी तरह औरते ,लड़कियां आगे वाले दरवाजे से नहीं आती थीं। हाँ उन लड़कों की बात और थी जो रिश्ते में भाभी के भाई लगते थे , लेकिन वो भी अकेले कम ही इस इलाके में आते थे , जैसे अजय आया तो भाभी को छोड़ने।
……
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...तेरा गाँव बड़ा प्यारा
भाभी का घर
तो इस के बात चलिए वापस चलते हैं किचेन में जहाँ चंपा भाभी गरम गरम चाय के साथ गरम गरम बातें परोस रही थीं।
आज चंपा भाभी और मेरी भाभी में खुल के छेड़छाड़ चल रही थी,और इस बात का कोई फरक नहीं पड़ रहा था की भाभी की माँ भी वहीँ बैठी थीं।
बल्कि वो खुद भी इस मजाक में खुल के रस ले रही थीं और बजाय अपनी बेटी का साथ देने के चम्पा भाभी को और उकसा, चढ़ा रही थीं।
चंपा भाभी ,मेरी भाभी के ग्लास मेंचाय ढाल रही थीं , भाभी ने कुछ ना नुकुर किया तो चंपा भाभी ने ग्लास पूरी भरते हुए बोला ,
" अरी बिन्नो , अब तक तो तुझे ये अंदाज लग जाना चाहिए था की ये डालने वाला तय करता है की आधा डाले की पूरा , और ससुराल से सैयां के साथ देवर ननदोई संग इतनी कब्बडी खेल के आई होगी , तो फिर आधे में क्या मजा आएगा। "
और उसमें टुकड़ा लगाया , भाभी की माँ ने , बोलीं , " अरे आधे में तो न डालने वाले को मजा न डलवाने वाले को ,सही तो कह रही है चंपा। "
भाभी कुछ झिझकी , मेरी ओर देखा फिर चंपा भाभी से बोलीं , " अरे चलिए भाभी थोड़ी देर की बात है , रात में देखती हूँ आप की पहलवानी , कौन आधा डालता है कौन पूरा ,पता चल जायेगा। "
मैं मुस्कराहट रोकने की कोशिश कर रही थी लेकिन तभी मेरा नाम आ गया और मेरा कान खड़ा होगया।
"माँ , आज भैया नहीं है , भाभी को डर लगेगा , तो मैं आज उनके साथ सोऊंगीं , और मुन्ना को आप सम्हाल लीजियेगा रात में , वैसे भी अब वो आपसे इतना हिलगया है। "
लेकिन फिर उन्होंने मेरी ओर देखा और कुछ सोच के मुझसे बोलीं ,
" लेकिन , फिर तुझे उस कच्ची खंद में अकेले सोना पडेगा , कही डर तो नहीं लगेगा मेरी ननद रानी को "
और मैं सचमुच डर गयी , वो भी बहुत जोर से।
कहीं अगर मेरे सोने की जगह बदली तो बिचारे अजय का क्या होगा ? कल वैसे ही रतजगे के चक्कर में उसका उपवास हो गया था। और अब मेरी बुलबुल को भी चारा घोंटे २४ घंटे से ऊपर होगया था , उस को भी जोर जोर से चींटे काट रहे थे।
ऊपर से मैंने उसे बोल भी दिया था ,कुण्डी मत खड़काना राजा ,सीधे अंदर आना राजा।
लेकिन मुझे भाभी की माँ ने बचाया , मेरी पीठ सहलाते वो मेरी आँख में आँख डाल के खूब रस ले ले के बोल रही थी, भाभी से बोलीं
" अरे ये मेरी बेटी है ,किससे डरेगी। तुम क्या सोचती हो तेरे भाइयों से डरेगी , अरे उन्हें तो एक बार में गप्प कर जाएगी ये। गपागप गपागप घोंट लेगी। नहीं डरेगी न। "
मैंने तुरंत जोर से हामी में सर हिलाया, मैं किसी भी हालत में अपनी कुठरिया में ही सोना चाहती थी , वरना मेरा जबरदस्त घाटा हो जाता।
लेकिन चम्पा भाभी कहाँ छोड़ने वाली थीं , उन्होंने खोल के पूछा,
" तो बोल न साफ़ साफ़ नहीं डरेगी। "
"नहीं एकदम नहीं।"
मैंने पूरे कांफिडेंस में बोला और एक्स्ट्रा कन्फर्मेशन के लिए सर भी हिलाया खूब जोर जोर से।
और मेरी भाभी , चम्पा भाभी दोनों खूब जोर से हंसी। उनकी माँ भी मीठा मीठा मुस्करा रही थीं।
मेरी भाभी ने जोर से सबके सामने मेरी टॉप फाड़ती चूंचियों को जोर जोर से टीपते बोला , "
मेरी बिन्नो , किस चीज ने नहीं डरेगी , मेरे भाइयों का गपागप , सटासट घोंटने से , अरे अगवाड़ा पिछवाड़ा दोनों फाड़ के रख देंगे , मेरे भाई। "
फिर भाभी की माँ मेरे बचाव में आयीं ,
" अरे सबका फटता है ,तो ये भी फटवा लेगी। कौन सी नयी बात है, फिर कल तो इसने सबको अपनी चुनमुनिया खोल के दिखाई न ,कितनी प्यारी एकदम गुलाबी ,कसी, मक्खन जैसी , फटने को तैयार। और अगर सावन में , अपने भैया के ससुराल में नहीं फटा तो फिर… , ठीक है ये वहीँ सोयेगी जहाँ रोज सोती है।"
मैंने तो चैन की सांस ली ही , भाभी और चंपा भाभी ने भी चैन की सांस ली।
अरेंजमेंट तय हो गया था , भाभी, चंपा भाभी के कमरे में। मुन्ना , भाभी की माँ के साथ और मैं वहीँ जहाँ रोज सोती थी।
तब तक भाभी की माँ ने बाहर देखा तो जैसे घबड़ा गयीं , रात हो गयी थी लेकिन आकाश में न चंदा न तारे , खूब घने बादल।
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पा भाभी
तब तक भाभी की माँ ने बाहर देखा तो जैसे घबड़ा गयीं , रात हो गयी थी लेकिन आकाश में न चंदा न तारे , खूब घने बादल।
" बहुत जोर की बारिश होने वाली है , तूफान भी आएगा , हवा एकदम नहीं चल रही है , चलो जल्दी जल्दी तुम तीनो छिनारो मिल के खाना आधे घंटे के अंदर बना लो। आठ बजे के पहले सब काम खत्म हो जाय।
मैं ज़रा बाहर शामू और चंदू को बोल के आती हूँ , गाय भैस ठीक से अंदर कर के बंद कर दे। "
और वो बाहर निकल गयीं और हम तीनो भूत की तरह ,....
१५ मिनट में वो आयीं तब तक चंपा भाभी ने दाल चढ़ा दिया था मैं सब्जी काट रही थी और भाभी आटा गूंथ रही थीं।
जल्दी आज हम तीनो को थी.
और भाभी की माँ ने आते ही एक सेंसिटिव मामला छेड़ दिया ,
वही जिसको लेके कल रतजगा में ,चंपा भाभी और फिर चमेली भाभी ( चंदा की सगी भाभी ) ने मेरी वो जबरदस्त रगड़ाई की थी ,
रॉकी का।
……………..
भाभी के मायके का जबरदस्त बिदेसी ब्रीड का डॉग ,जिसका नाम जोड़े बिना चंपा भाभी की कोई गारी पूरी नहीं होती थी।
रोज वो कच्चे आँगन में नीम के पेड़ से बांध दिया जाता था , रात में। लेकिन आज जो तेज बारिश होनी थी तो , …
चंपा भाभी से उन्होंने कहा ,
' अरे ई रॉकी को खिला विला के उसकी कुठरिया में बंद करदेना , बहुत तेज बारिस आने वाली है घंटे दो घंटे में। तूफान भी लगता है जबरदस्त आएगा। "
चंपा भाभी ऐसा मौका क्यों भला छोड़तीं , बस उन्होंने मेरे ओर अपनी तोप मोड़ दी।
मेरी ओर इशारा कर के बोलीं ,
" अरे ई जो पूरे गाँव की नयकी भौजी हैं न , अब रॉकी की पूरी जिम्मेदारी एनके उपर।
मजा लेंगी ए , कल रतजगा में सबके सामने तय हुआ था न की एहि अंगना में ई निहुरिहये और रॉकी एनके ऊपर चढ़ के , गाँठ बाँध के पूरे घर गाँव में घिर्रा घिर्रा के , और इहो मना नहीं की खिस्स खिस्स मुस्कात रहीं , तो अब रॉकी इनके जिम्मे "
" अरे भौजी , उ सब मजाक था , उ बात का क्या " खिस्स खिस्स हंस के मैंने बचने की कोशिश की।
लेकिन अब मेरी भाभी भी , वो भी अपनी भाभी की जुगलबंदी में ,
" कुछ मजाक नहीं था सब एकदम सच था , कातिक में मैं लाऊंगी तुमको , फिर ,.... कुछ दिन की बात है। एक भी बात गलत नहीं थी जो कल रात चंपा भाभी कह रही थी और फिर चंपा भाभी का कहा वैसे भी कोई टाल नहीं सकता , इसलिए अब तुम चाहे हाँ कहो या ना , अरे ले लो एक बार ,ऐसा क्या, …"
मेरी भाभी भी कम नहीं थी।
लेकिन जब भाभी की माँ बोली तो मुझे लगा शायद वो मेरी बचत में आएँगी पर वो भी ,… मुझसे बोली,
" तोहार भाभी जउन कह रही हैं सब सच है सिवाय एक बात के , :" और ये कह के वो चुप हो गयीं।
हम तीनो इन्तजार करते रहे , और कुछ रुक के उन्होंने रहस्य पर से पर्दा हटाया।
" कातिक वाली बात , अरे ई कुतिया गर्माती है कातिक में ,लेकिन तोहार एस जवान लड़की तो हरदमै गरम ,पनियाइल रहती हैं। और रॉकी भी बारहों महीने तैयार रहता है तो कौनो जरूरी नाही की कातिक का इन्तजार करो , जब भी तोहार मन करे या तोहार भौजाई लोग जेह दिन चहिये ओहि दिन , "
और दोनों भाभियों के कहकहे में बाकी बात डूब गयी।
मेरी भाभी भी अब एकदम खुल के , अब वो भी मेरे पीछे पड़ गयीं , मुस्कराती चिढ़ाती बोलीं।
" अरे मेरी ननदो , माँ ने तो तेरी परेशानी दूर कर दी। " फिर चंपा भाभी और अपनी माँ से बोली ,
" ये तो बहुत उदास हो गयी थी , कह रही थी , भाभी , कातिक तो अभी बहुत दूर है ,आने को तो मैं आ जाउंगी लेकिन , इतना लम्बा इन्तजार , मैंने बहुत समझाया , अरे तब तक गाँव में इतने लड़के हैं , अजय , सुनील ,रवी दिनेश , और भी तब तक उनके साथ काम चलाओ , दो तीन महीने की बात है लेकिन , माँ आप ने तो इसके मन की बात समझ ली , और परेशानी दूर कर दी। "
मैं उनकी बात का कुछ खंडन जारी करती की उसके पहले उनकी माँ बोल पड़ी , और आज वो सच में चम्पा भाभी और मेरी भाभी दोनों से कई हाथ आगे थी ,मेरी पीठ प्यार से सहलाते ( और जहाँ उंकुडु बैठने से मेरा छोटा सा टॉप उठ गया था और टॉप ,स्कर्ट के बीच मेरी गोरी पीठ एकदम खुल गयी थी खास तौर से वहां और उसमे जरा भी वात्सल्य रस नहीं था। ),
" तुम दोनों न , मेरी बेटी को समझती क्या हो , बहुत अच्छी है ये सबका मन रखेगी। गाँव के लड़को से तो चुदवायेगी ही , गाँव के मर्दों से भी. आखिर चम्पा के खाली देवर थोड़ी जेठ लोगों का भी तो मन करता है शहरी माल का मजा लेने का. हैं न बेटी ,
और रॉकी तो इसी घर का मर्द है ,तुम लोग जबरदस्ती बिचारी को चिढ़ाती हो , खुद ही उसका बहुत मन करता है रॉकी के साथ और रॉकी भी कितना चूम चाट रहा था था , जाने के पहले , बेटी चुदवा के जाना। माना गाँठ बनेगी तो बहुत दर्द होगा लेकिन उसी दर्द में तो मजा है , चंपा जाओ बिटिया के साथ एक दो दिन परका दो , उसके बाद रॉकी की जिम्मेदारी तो ये खुद ही ले लेगी ,क्यों बेटी है न ," ( और अबतक उनकी ऊँगली मेरे टॉप के अंदर घुस गयी थीं और पीठ सहला रहा थी ).
चम्पा भाभी उठी और साथ में मुझे भी उठा लिया , रॉकी को खिलाने और बाहर बांधने के लिए।
लेकिन मन तो मेरा उस चित चोर के पास था , जो मुझसे मुझी को चुरा के ले गया।
लेकिन कोई थाना -रपट ,दरोगा कोतवाली नहीं हो सकती , वो सिर्फ चोर थोड़े ही था , सीना जोर भी था. उलटे वही मेरा नाम धर देता और उसकी गवाही में गाँव के पांच दस लड़के अलग खड़े हो जाते।
ये बात नहीं थी की जो मेरी भाभी , चंपा भाभी और सबसे बढ़कर आज तो , भाभी की माँ जिस तरह मेरे पीछे , … (कल रात में रतजगा में जो खेल खुल्लमखुल्ला हुआ सब उस उस असर था ), जिस तरह से चिढ़ा रही थीं , मजाक कर रही थीं मुझे अच्छा नहीं लग रहा था। मैं खूब मजे ले रही थी , अपने शहर में तो इस तरह की बातें मैं सोच नहीं सकती थी।
अब तो मैं भी , चंपा भाभी से मेरी पक्की दोस्ती हो गयी थी। फिर मेरी भाभी उनकी छोटी ननद लगती थीं , और मेरी भाभी ,इसलिए हम लोग मिल के उनकी ऐसी की तैसी कर देते थे।
साढ़े आठ बजे बोल के गया था वो। चलो एक खटका तो टला कच्ची खंद में तो अकेले रहूंगी , और बीच में दो दो आँगन का फासला। कर ले अपनी मनमर्जी आज उसे भी नहीं रोकूंगी। लेकिन ये मुआ टाइम भी अभी साढ़े सात भी ठीक से नहीं बजे। पूरे एक घंटे बचे हैं उसके आने में।
मुझे मालूम था की आज मेरी बुर की बुरी हालत होनी है ,
चूत की चटनी बन जायेगी ,
लेकिन होनी है तो हो ,
तबतक चम्पा भाभी ने आवाज दी ,
वो आगे आगे मैं पीछे पीछे।
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चंपा भाभी ,
मैं चंपा भाभी के साथ निकल पड़ी ,चंपा भाभी ने एक तसले में रॉकी के लिए कुछ खाने के लिए लिया और मैंने एक लालटेन उठा ली ,( बत्ती थी ,भाभी के घर में लेकिन वो आती कम थी जाती ज्यादा थी , पिछले दो दिनों से नदारद थी ,कोई ट्रांसफरमर उड़ गया था और अगले दो दिन तक आने की उम्मीद भी नहीं थी ).
………….
रॉकी आॅगन में नीम के पेड़ से बंधा था।
और आँगन में पैर रखते ही मेरी फट गयी , मारे डर के।
एकदम घना अँधेरा , पूरा भयानक काला।
आसमान में एक भी तारे नहीं।
और हवा एकदम रुकी , आने वाले तूफान का इशारा करती।
आँगन में एक दीवाल में बने ताखे में एक छोटी सी ढिबरी जल रही थी।
दिन में जो बड़ा सा नीम का पेड़ इतना प्यारा लगता था , इस समय वही किसी बड़े जिन्नात सा , सिर्फ हल्का हलका रोशन और ऊपर का हिस्सा एकदम घुप्प अँधेरे में डूबा।
रॉकी ने हम दोनों को देखा , लेकिन उसके पहले चंपा भाभी ने उसके खाने का तसला मुझे पकड़ा दिया था और लालटेन अपने हाथ में ले ली थी और मेरे कान में बोला,
" रॉकी को आज तुझे ही हैंडल करना है , इसको सहलाओ , पुचकारो , कुछ भी करे उसे रोकना मत। और फिर खाना खिलाओ। घबड़ाना मत मैं भी तुम्हारे साथ ही रहूंगी , थोड़ा पीछे। "
और मैं आगे बढ़ी।
आँगन पहचाना नहीं जा रहा था।
नीम के पेड़ के निचले हिस्से और उस के आसपास का हिस्सा ढिबरी की रौशनी में बस हलके हलके उजाले में डूबा था।
बाकी आँगन घटाटोप काले अँधेरे में , आँगन के चारो ओर खूब ऊँची दीवारे थीं , १२ -१४ फिट की रही होंगी उनके पार दिन में खूब हरे भरे पेड़ दिखते थे। लेकिन इस समय जैसे किसी ने मोटी काली चादर ओढ़ा दी हो।
और तभी ,चंपा भाभी ने मेरे हाथ से लालटेन ले ली मुझे रॉकी के खाने का तसला पकड़ा दिया , और मेरे कान में फुसफुसाकर बोलीं ,
" जाओ , जरा भी डरना मत , बस उसे खूब प्यार से सहलाना , मैंने कुछ दूर ही पीछे रहूंगी। और ये खाना खिला देना। फिर उसे लेके बाहर जाना होगा।"
और अगले पल वो लालटेन की रोशनी धीमे धीमे दूर हो गयी।
हिम्मत कर में मैं आगे बढ़ी , अब सिर्फ ढिबरी की रोशनी मेरा सहारा थी , बड़े से नीम के पेड़ का साया और रॉकी बस दिख रहे थे।
और हलकी रोशनी में रॉकी और बड़ा दिख रहा था , वैसे भी वो दो फिट से ज्यादा ही ऊंचा था , मेरे बगल में खड़े होने पर वो मेरी जाँघों के ऊपरी हिस्से तक आ जाता था।
पहले तो वो हलके भौका।
मैं डर से सिहर गयी , लेकिन ये सिहरन सिर्फ डर की नहीं थी। कल रतजगा में जो मुझे रॉकी के साथ जोड़ के गालियां दी गयी थीं , चंपा भाभी और चमेली भाभी ने 'खूब विस्तार' से समझाया था, पूरे डिटेल के साथ कैसे पहले वो चाटे चूमेगा , फिर पीछे आके , .... और जब उसकी बड़ी सी मुट्ठी के साइज की गाँठ मेरे अंदर , .... खूब घिर्रा घिर्रा के , … और चंदा ने भी कल बोला था की ये मजाक नहीं है , चंपा भाभी सच में बिना चढ़ाये छोड़ेंगी नहीं , … मेरे दिल की धड़कन धक धक हो रही थी।
फिर जैसे उसने मुझे पहचान लिया हो और उसका भौंकना एकदम बंद हो गया।
मेरी निगाह फिर रॉकी के ' वहां ' पड़ गयी , वो , .... वो, … बाहर निकला था , एकदम किसी आदमी के जैसा , \
मैंने थूक घोंटा , सांस आलमोस्ट रुक गयी। मुझे भाभी की माँ की बात याद आ गयी। ' बेटी कातिक -वातिक की सिर्फ कुतिया के लिए है, कुतिया कातिक में गरमाती हैं , रॉकी तो बारहो महीना तैयार रहता है , अगर उसे महक लग जाय ,…लौंडिया "
पैंटी तो मैं पहनती नहीं थी , और नीचे अब कुछ लसलसा सा लग रहा था।
मेरी टाँगे अब पिघल रही थीं , और मैं समझ रही थी , की अगर इस अँधेरे में रॉकी ने कुछ ,… तो कोई आएगा भी नहीं।
मुश्किल से मैंने अपने को सम्हाला।
अब तक मैं रॉकी के एकदम पास पहुँच गयी थी ,वो चेन से बंधा जरूर था मगर एक तो चेन बहुत ही पतली थी , उसके लिए उसको तुड़ाना बहुत ही आसान था ,दूसरी चेन इतनी लम्बी थी की आधे आँगन से ज्यादा वो आराम से जा सकता था।
और रॉकी ने अपनी नाक ऊपर की जैसे उसे मेरी जांघो के बीच की लसलस की महक मिल गयी हो.
फिर सीधे उसकी जीभ मेरी खुली पिंडलियों पे ,उसने चाटना शुरू कर दिया।
मैं घबड़ा रही थी लेकिन हिल भी नहीं सकती थी।
चंपा भाभी ने पहले ही समझा दिया था की अगर वो चाटम चूटी कर रहा हो तो जरा सा भी डिस्टर्ब नहीं करना , वरना अगर गुस्सा हो गया सकता है।
कुछ ही देर में उसकी जीभ घुटनो तक पहुँच गयी , मैंने भी उसे खूब प्यार से सहलाना , हलके हलके रॉकी रॉकी बोलना शुरू कर दिया।
धीरे धीरे मेरा डर कुछ कम हो रहा था , मैंने उसका ध्यान बंटाने के लिए , उसे खाने का तसला दिखाया।
मुझे लगा खाने को देख कर शायद कर उसका मन बदल जाय ,
,
मेरे पैर लग रहा था अब गए , तब गए , … मैं रॉकी को खूब प्यार से सहला रही थी , रॉकी रॉकी बुला रही थी ,
और तभी मेरी निगाह नीचे की ओर मुड़ी ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह , मेरी चीख निकलते निकलते बची , …
,लाल गुस्सैल , एकदम तना ,कड़ा गुस्सैल , और मोटा ,
मेरी तो जान सूख गयी ,
मतलब ,मतलब वो ,… पूरे जोश में है , एकदम तन्नाया। और अब कहीं वो मेरे ऊपर चढ़ बैठा ,....
और जिस तरह से अब उसकी जीभ , मैं गनगना रही थी ,चार पांच मिनट अगर वो इसी तरह चाटता रहां तो मैं खुद किसी हालत में नहीं रहूंगी कुछ ,....
मेरी जांघे पूरी तरह अपने आप फैल गयी थीं,
ताखे में रखी ढिबरी की लौ जोर जोर से हिल रही थी , अब बुझी ,तब बुझी।
" रॉकी , रॉकी ,पहले खाना खा , खाना खा लो , रॉकी , रॉकी "
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19-02-2019, 09:34 PM
(This post was last modified: 19-02-2019, 09:41 PM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
घन छाये घनघोर
![[Image: rain-clouds-4.md.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/10/17/rain-clouds-4.md.jpg)
" रॉकी , रॉकी ,पहले खाना खा , खाना खा लो , रॉकी , रॉकी "
![[Image: skirt-hot-EI-775.jpg]](https://i.ibb.co/d5qWBx0/skirt-hot-EI-775.jpg)
और उसने मेरी सुन ली।
जैसे बहुत बेमन से उसने मेरे स्कर्ट से अपने नथुने निकाले , और झुक के तसले में मुंह लगा लिया ,और खाना शुरू कर दिया।
बड़ी मुश्किल से मैं उसके बगल में घुटने मोड़ के उँकड़ू बैठी और उसकी गरदन , उसकी पीठ सहलाती रही , मैं लाख कोशिश कर रही थी की मेरी निगाह उधर न जाय लेकिन अपने आप ,
'वो ' उसी तरह से खड़ा ,तना मोटा और अब तो आठ इंच से भी मोटा उसकी नोक लिपस्टिक की तरह से निकली।
और तभी मैंने देखा की चंपा भाभी भी मेरे बगल में बैठी है , मुस्कराती , लालटेन की लौ उन्होंने खूब हलकी कर दी थी।
' पसंद आया न "
मेरे गाल पे जोर से चिकोटी काट के वो बोलीं , और जब तक मैं जवाब देती उनका हाथ सीधे मेरी जाँघों के बीच और मेरी बुलबुल को दबोच लिया उन्होंने जोर से।
![[Image: Guddi-skirt-80767112.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/10/17/Guddi-skirt-80767112.jpg)
खूब गीली ,लिसलिसी हो रही थी। और चंपा भाभी की गदोरी उसे जोर जोर से रगड़ रही थी।
" मेरी छिनार बिन्नो , जब देख के इतनी गीली हो रही तो जो ये सटा के रगडेगा तो क्या होगा , इसका मतलब अब तू तो राजी है और रॉकी की तो हालत देख के लग रहा है , तुझे पहला मौका पाते ही पेल देगा। "
मेरे कान में फुसफुसा के वो बोलीं।
तब तक रॉकी ने तसला खाली कर दिया था।
उसे अब बाहर ले जाना था , उसकी कुठरिया में ,मैंने उसकी चेन पेड़ से खोलने की कोशिश की तो भाभी ने बोला , नहीं नहीं , रॉकी के गले से चेन निकाल दो। बिना चेन के साथ बाहर चलो।
मेरा भी डर अब चला गया था. और रॉकी भी अब सिर्फ मेरे एक बार कहने पे ,बीच बीच में झुक के मैं उसकी गरदन पीठ सहला देती थी।
बाहर एक छोटी सी कुठरिया सी थी , उसमे एक कोने में पुआल का ढेर भी पड़ा था.चंपा भाभी ने मुझे बोला की मैं उसमें रॉकी को बंद कर दूँ।
लेकिन रॉकी अंदर जाय ही न , फिर चंपा भाभी ने सजेस्ट किया की मैं अंदर घुस जाऊं , और पुवाल के पास खड़े हो के रॉकी को खूब प्यार से पुचकारुं , बुलाऊँ तो शायद वो अंदर आ जायेगा।
और चंपा भाभी की ट्रिक काम कर गयी , मैं कमरे के एकदम अंदरुनी हिस्से में थी और उसे पुचकार रही थी , रॉकी तुरंत अंदर।
लेकिन तबतक दरवाजा बाहर से बंद हो गया, मुझे लगा की शायद हवा से हुआ हो , पर बाहर से कुण्डी बंद होने की आवाज आई साथ में चम्पा भाभी के खिलखिलाने की ,
'आज रात एही के साथ रहो , कल मिलेंगे।'
मैं अंदर से थप थप कर रही थी ,परेशान हो रही थी , आखिर हँसते हुए चंपा भाभी ने दरवाजा खोल दिया।
मेरे निकलते ही बोलीं ,
" अरे तू वैसे घबड़ा रही थी , रॉकी को सबके सामने चढ़ाएंगे तोहरे ऊपर। आँगन में दिन दहाड़े , ऐसे कुठरिया में का मजा आएगा। जबतक मैं , कामिनी भाभी ,चमेली भाभी और सबसे बढकर हमार सासु जी न सामने बइठइहें , … "
……………..
तब तक सामने से गुलबिया दिखाई पड़ी , ऑलमोस्ट दौड़ते हुए अपने घर जा रही थी।
उसने बोला ,वो सरपंच के यहां से आ रही है , और रेडियो पर आ रहा था की आज बहुत तेज बारिश के साथ तूफानी हवाएँ रात भर चलेगीं। नौ साढ़े नौ बजे तक तेज बारिश चालू हो जाएगी। सब लोग घर के अंदर रहें , जानवर भी बाँध के रखे।
और जैसे उसकी बात की ताकीद करते हुए, अचानक बहुत तेज बिजली चमकी।
मैंने जोर से चंपा भाभी को पकड़ लिया।
मेरी निगाह अजय के घर की ओर थीं , बिजली की रोशनी में वो पगडण्डी नहा उठी , खूब घनी बँसवाड़ी , गझिन आम के पेड़ों के बीच से सिर्फ एक आदमी मुश्किल से चल सके वैसा रास्ता था , सौ ,डेढ़ सौ मीटर , मुश्किल से,… लेकिन अगर आंधी तूफान आये तेज बारिश में कैसे आ पायेगा।
और अब फिर बादल गरजे और मैं और चम्पा भाभी तुरत घर के अंदर दुबक गए और बाहर का दरवाजा जोर से बंद कर लिया।
" भाभी , बिजली और बादल के गरजने से, रॉकी डरेगा तो नहीं। " मैंने चंपा भाभी से अपना डर जाहिर किया।
चंपा भाभी , जोर से उन्होंने मेरी चूंची मरोड़ते हुए बोला ,
![[Image: Geeta-38.jpg]](https://i.ibb.co/tPvRxhJ/Geeta-38.jpg)
' बड़ा याराना हो गया है एक बार में मेरी गुड्डी का , अरे अभी तो चढ़ा भी नहीं है तेरे ऊपर। एकदम नहीं डरेगा और वैसे भी कल से उसके सब काम की जिम्मेदारी तेरी है , सुबह उसको जब कमरे से निकालने जाओगी न तो पूछ लेना , हाल चाल। "
अपने कमरे से मैं टार्च निकाल लायी , क्योंकि आँगन की ढिबरी अब बुझ चुकी थी।
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कडुवा तेल
जैसे ही हम दोनों किचेन में घुसे , कडुवा तेल की तेज झार मेरी नाक में घुसी।
मेरी फेवरिट सब्जी ,मेरी भाभी बैठ के कडुवा तेल से छौंक लगा रही थीं।
और मैंने जो बोला तो बस भाभी को मौका मिल गया मेरे ऊपर चढ़ाई करने का।
" भाभी कड़वे तेल की छौंक मुझे बहुत पसंद है। "
मेरे मुंह से निकल गया , बस क्या था पहले मेरी भाभी ही ,
" सिर्फ छौंक ही पसंद है या किसी और काम के लिए भी इस्तेमाल करती हो " उन्होंने छेड़ा।
मैं भाभी की मम्मी के बगल में बैठी थी , आगे की बात उन्होंने बढ़ाई,
मैं उकड़ूँ बैठी थी ,मम्मी से सटी , और अब उनका हाथ सीधे मेरे कड़े गोल नितम्बो पे , हलके से दबा के बोलीं
" तुम दोनों न मेरी बेटी को , अरे सही तो कह रही है , कड़वा तेल चिकनाहट के साथ ऐन्टिसेप्टिक होता है इसलिए गौने के दुल्हिन के कमरे में उसकी सास जेठानी जरूर रखती थीं , पूरी बोतल कड़वे तेल की और अगले दिन देखती भी थीं की कितना बचा। कई बार तो दुल्हिन को दूल्हे के पास ले जाने के पहले ही उसकी जेठानी खोल के थोड़ा तेल पहले ही , मालूम तो ये सबको ही होता है की गौने की रात तो बिचारी की फटेगी ही , चीख चिलहट होगी ,खून खच्चर होगा। इसलिए कड़वा तेल जरूर रखा जाता था। "
अब चंपा भाभी चालू हो गयीं ,
" ई कौन सी गौने की दुलहन से कम है , इहाँ कोरी आई हैं , फड़वा के जाएंगी। "
भाभी की मम्मी भी ,अब उनकी उँगलियाँ सीधे पिछवाड़े की दरार पे , और उन्होंने चंपा भी की बात में बात जोड़ी ,
![[Image: Mummy-tumblr-ojcuymbsy-Z1tpzgwzo1-540.jpg]](https://i.ibb.co/JdPNdMc/Mummy-tumblr-ojcuymbsy-Z1tpzgwzo1-540.jpg)
" ई बताओ आखिर ई कहाँ आइन है , आखिर अपनी भैया के ससुराल , तो एनहु क ससुरालै हुयी न। और पहली बार ई आई हैं , तो पहली बार लड़की ससुराल में कब आती है , गौने में न। तो ई गौने की दुल्हन तो होबै की न। "
" हाँ लेकिन एक फरक है "
मेरी भाभी ने चूल्हे पर से सब्जी उतारते हुए,खिलखिलाते कहा ,
" गौने की दुलहन के एक पिया होते हैं और मेरी इस छिनार ननदिया के दस दस है। "
" तब तो कडुवा तेल भी ज्यादा चाहिए होगा। "
हँसते हुए चंपा भाभी ने छेड़ा।
" ई जिमेदारी तुम्हारी है। "
भाभी की माँ ने चम्पा भाभी से कहा।
" आखिर इस पे चढ़ेंगे तो तेरे देवर , तो तुम्हारी देवरानी हुयी न , तो बस अब , कमरे में तेल रखने की , "
फिर चम्पा भाभी बोली ,
" अरे , जब बाहर निकलती है न तब भी , बल्कि अपनी अंगूरी में चुपड़ के दो उंगली सीधे अंदर तक , मेरे देवरों को भी मजा आएगा और इसको भी .
भाभी ने तवा चढ़ा दिया था , और तभी एक बार फिर जोर से बिजली चमकी।
और हम सब लोग हड़काए गए
," जल्दी से खाना का के रसोई समेट के चलो , बस तूफान आने ही वाला है। "
जब हम लोगों ने खाना खत्म किया पौने आठ बजे थे। अब बाहर हलकी हलकी हवा चलनी शुरू हो गयी थी।और रोज की तरह फिर वही नाटक ,चम्पा भाभी का , लेकिन आज भाभी की मम्मी भी उनका साथ दे रही थीं , खुल के।
एक खूब लम्बे से ग्लास में , तीन चौथाई भर कर गाढ़ा औटाया दूध और उसके उपर से तीन अंगुल मलाई ,
और आज भाभी की माँ ने अपने हाथ से , ग्लास पकड़ के सीधे मेरे होंठों पे लगा दिया ,और चम्पा भाभी ने रोज की बात दुहरायी ,
" अरे दूध पियोगी नहीं तो दूध देने लायक कैसे बनोगी। "
लेकिन आज सबसे ज्यादा भाभी की माँ , जबरन दूध का ग्लास मेरे मुंह में धकेलते उन्होंने चंपा भाभी को हड़काया ,
" अरे दूध देने लायक इस बनाने के लिए , तेरे देवरों को मेहनत करनी पड़ेगी , स्पेशल मलाई खिलानी पड़ेगी इसे ,और कुछ बहाना मत बनाना ,मेरी बेटी पीछे हटने वाली नहीं है , क्यों गुड्डी बेटी "
मैं क्या बोलती , मेरे मुंह में तो दूध का ग्लास अटका था. हाँ भाभी की माँ का एक हाथ कस के ग्लास पकडे हुआ था और दूसरा हाथ उसी तरह से मेरे पिछवाड़े को दबोचे था.
" माँ , आपकी इस बेटी पे जोबन तो गजब आ रहां है। "
भाभी ने मुझे देखते हुए चिढ़ाया।
भाभी की माँ ने खूब जोर से उन्हें डांटा ,
" थू , थू , नजर लगाती है मेरी बेटी के जोबन पे , यही तो उमर है , जोबन आने का और जुबना का मजा लूटने का , देखना यहाँ से लौटेगी मेरी बेटी तो सब चोली छोटी हो जाएगी , एकदम गदराये , मस्त , तुम्हारे शहर की लौंडियों की तरह से नहीं की मारे डाइटिंग के ,… ढूंढते रह जाओगे , "
![[Image: 91d3a93a815b2f4976c4bb70d78e568a.jpg]](https://i.ibb.co/cgcskGg/91d3a93a815b2f4976c4bb70d78e568a.jpg)
चंपा भाभी ने गलती कर दी बीच में बोल के। आज माँ मेरे खिलाफ एक बात नहीं सुन सकती थीं।
" माँ जी , उसके लिए आपकी उस बेटी को जुबना मिजवाना ,मलवाना भी होगा खुल के अपने यारों से। "
बस माँ उलटे चढ़ गयीं।
" अरे बिचारी मेरी बेटी को क्यों दोष देती हो। सब काम वही करे , बिचारी इतनी दूर से चल के सावन के महीने में अपने घर से आई , सीना तान के पूरे गाँव में चलती है दिन दुपहरिया , सांझे भिनसारे। तुम्हारे छ छ फिट के देवर काहें को हैं , कस कस के मीजें, रगड़े ,.... मेरी बेटी कभी मिजवाने मलवाने में पीछे हटे, ना नुकुर करे तो मुझे दोष देना।"
मेरी राय का सवाल ही नहीं था , अभी भी ग्लास मेरे मुंह में उन्होंने लगा रखा था , पूरा उलटा जिससे आखिरी घूँट तक मेरे पेट में चला जाय।
मेरा मुंह बंद था आँखे नहीं।
………………………………………
चम्पा भाभी और मेरी भाभी के बीच खुल के नैन मटक्का चल रहा था और आज दोनों को बहुत जल्दी थी। जब तक मेरा दूध खत्म हुआ ,उन दोनों भाभियों ने रसोई समेट दी थी और चलने के लिए खड़ी हो गयीं।
चंपा भाभी , भाभी की माँ साथ थोड़ा , और उनके पीछे मैं और मेरी भाभी।
चम्पा भाभी हलके हलके भाभी की माँ से बोल रही थीं लेकिन इस तरह की बिना कान पारे मुझे सब साफ साफ सुनाई दे रहा था।
चंपा भाभी माँ से बोल रही थीं ," अरे जोबन तो आपकी बिटिया पे दूध पिलाने और मिजवाने रगड़वाने से आ जाएगा , लेकिन असली नमकीन लौंडिया बनेगीं वो खारा नमकीन शरबत पिलाने से। "
" एक दम सही कह रही है तू , लेकिन ये काम तो भौजाई का ही है न , और तुम तो भौजाई की भौजाई हो, अब तक तो , … "
लेकिन तबतक मेरी भाभी उन लोगों के बगल में पहुँच गयीं और उन को आँखों के इशारे के बरज रही थीं की मैं सब सुन रही हो , चंपा भाभी ने मोरचा बदला और मेरी भाभी को दबोचा और बोलीं ,
" भौजी ननद को बिना सुनहला खारा शरबत पिलाये छोड़ दे ये तो हो नहीं सकता , "
किसी तरह भाभी हंसती खिलखिलाती उनकी पकड़ से छूटीं और सीधे चंपा भाभी के कमरे में , जहाँ आज उन्हें चंपा भाभी सोना था।
और भाभी के जाते ही मैं अपनी उत्सुकता नहीं दबा पायी , और पूछ ही लिया " चंपा भाभी आप किस शरबत की बात कर रही थीं जो हमारी भाभी , .... "
" अरे कभी तुमने ऐपल जूस तो पिया होगा न , बिलकुल उसी रंग का , … " चम्पा भाभी ने समझाया।
और अब बात काटने की बारी मेरी थी , खिलखिलाती मैं दोनों लोगों से बोली ,
" अरे ऐपल जूस तो मुझे बहुत बहुत अच्छा लगता है। "
" अरे ये भी बहुत अच्छा लगेगा तुझे, हाँ थोड़ा कसैला खारा होगा ,लेकिन चार पांच बार में आदत लग जायेगी ,तुझे कुछ नहीं करना बस अपनी चंपा भाभी के पीछे पड़ी रह, उनके पास तो फैक्ट्री है उनकी। " भाभी की माँ जी बोलीं , लेकिन तबतक चम्पा भाभी भी अपने कमरे में , और पीछे पीछे मैं।
वहां भाभी मेरे लिए काम लिए तैयार बैठी थीं।
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भाभी की माँ
" अरे ये भी बहुत अच्छा लगेगा तुझे, हाँ थोड़ा कसैला खारा होगा ,लेकिन चार पांच बार में आदत लग जायेगी ,तुझे कुछ नहीं करना बस अपनी चंपा भाभी के पीछे पड़ी रह, उनके पास तो फैक्ट्री है उनकी। "
भाभी की माँ जी बोलीं , लेकिन तबतक चम्पा भाभी भी अपने कमरे में , और पीछे पीछे मैं।
वहां भाभी मेरे लिए काम लिए तैयार बैठी थीं।
मुन्ना सो चुका था , उसे मेरी गोद में डालते हुए बोलीं , सम्हाल के माँ के पास लिटा दो जागने न पाये। और हाँ , उसे माँ को दे के तुरंत अपने कमरे में जाना ,तेज बारिश आने वाली है .
दरवाजे पर रुक कर एक पल के लिए छेड़ती मैं बोली ,
" भाभी कल कितने बजे चाय ले के आऊँ ,"
चंपा भाभी ने जोर से हड़काया ," अगर सुबह ९ बजे से पहले दरवाजे के आस पास भी आई न तो सीधे से पूरी कुहनी तक पेल दूंगी अंदर। "
मैं हंसती ,मुन्ने को लिए भाभी की माँ के कमरे की ओर भाग गयी।
भाभी जैसे इन्तजार कर रही थीं ,उन्होंने तुरंत दरवाजा न सिर्फ अंदर से बंद किया ,बल्कि सिटकनी भी लगा दी।
भाभी की माँ कमरा बस उढ़काया सा था। मेरे हाथ में मुन्ना था इसलिए हलके से कुहनी से मैंने धक्का दिया , और दरवाजा खुल गया।
मैं धक् से रह गयी।
वो साडी उतार रही थीं , बल्कि उतार चुकी थी , सिर्फ ब्लाउज साये में।
मैं चौक कर खड़ी हो गयी , लेकिन बेलौस साडी समेटते उन्होंने बोला , अरे रुक क्यों गयी , अरे उस कोने में मुन्ने को आहिस्ते से लिटा दो , हाँ उस की नींद न टूटे ,और ये कह के वो भी बिस्तर में धंस गयी और मुझे भी खींच लिया।
और मैं सीधे उन.के ऊपर।
कमरे में रेशमी अँधेरा छाया था। एक कोने में लालटेन हलकी रौशनी में जल रही थी ,फर्श पर।
मेरे उठते उरोज सीधे उनकी भारी भारी छातियों पे जो ब्लाउज से बाहर छलक रही थीं।
उन के दोनों हाथ मेरी पीठ पे ,और कुछ ही देर में दोनों टॉप के अंदर मेरी गोरी चिकनी पीठ को कस के दबोचे ,सहलाते ,अपने होंठों को मेरे कान के पास सटा के बोलीं ,
" तुझे डर तो नहीं लगेगा ,वहां ,तू अकेली होगी और हम सब इस तरफ ,.... "
और मैं सच में डर गयी।
जोर से डर गयी।
कहीं वो ये तो नहीं बोलेंगी की मैं रात में यहीं रुक जाऊं।
और आधे घंटे में अजय वहां मेरा इन्तजार कर रहा होगा।
मैंने तुरंत रास्ता सोचा , मक्खन और मिश्री दोनों घोली ,और उन्हें पुचकारकर ,खुद अपने हाथों से उन्हें भींचती,मीठे स्वर में बोली ,
" अरे आपकी बेटी हूँ क्यों डरूँगी और किससे ,अभी तो आपने खुद ही कहा था ,… "
![[Image: skirt-2.jpg]](https://i.ibb.co/prRcjnc/skirt-2.jpg)
" एकदम सही कह रही हो ,हाँ रात में अक्सर तेज हवा में ढबरी ,लालटेन सब बुझ जाती है इसलिए ,…"
वो बोलीं ,पर उनकी बात बीच में काट के ,मैंने अपनी टार्च दिखाई , और उनकी आशंका दूर करते हुए बोली,
ये है न अँधेरे का दुश्मन मेरे पास। "
" सही है ,फिर तो तुमअपने कमरे में खुद ताखे में रखी ढिबरी को या तो हलकी कर देना या बुझा देना। आज तूफान बहुत जोर से आने वाला है ,रात भर पानी बरसेगा। सब दरवाजे खिड़कियां ठीक से बंद रखना ,डरने की कोई बात नहीं है। " वो बोलीं और जैसे उनके बात की ताकीद करते हुए जोर से बिजली चमकी।
और फिर तेजी से हवा चलने लगी ,बँसवाड़ी के बांस आपस में रगड़ रहे थे रहे थे ,एक अजीब आवाज आ रही थी।
![[Image: LANTERN-BATT-jpg-22.jpg]](https://i.ibb.co/VWrgRP1/LANTERN-BATT-jpg-22.jpg)
और लालटेन की लौ भी एकदम हलकी हो गयी।
मैं डर कर उनसे चिपक गयी।
भाभी की माँ की उंगलिया जो मेरी चिकनी पीठ पर रेंग रही थीं ,फिसल रही थीं ,सरक के जैसे अपने आप मेरे एक उभार के साइड पे आ गयीं और उनकी गदोरियों का दबाव मैं वहां महसूस कर रही थी।
मेरी पूरी देह गिनगिना रही थी।
लेकिन एक बात साफ थी की वो मुझे रात में रोकने वाली नही थी ,हाँ देर तक मुझे समझाती रही ,
" बेटी ,कैसा लग रहा है गाँव में ? मैं कहती हूँ तुम्हे तो निधड़क ,गाँव में खूब ,खुल के ,.... अरे कुछ दिन बाद चली जाओगी तो ये लोग कहाँ मिलेंगे ,और ये सब बात कल की बात हो जायेगी। इतना खुलापन , खुला आसमान ,खुले खेत ,और यहाँ न कोई पूछने वाला न टोकने वाला ,तुम आई हो इतने दिन बाद इस घर चहल पहल ,उछल कूद ,हंसी मजाक , …फिर तुम्हारी छुटीयाँ कब होंगी ? और अब तो हमारे गाँव से सीधे बस चलती है , दो घंटे से भी कम टाइम लगता है , कोई दिक्कत नहीं और तुम्हारे साथ तेरी भाभी भी आ जाएंगी। "
" दिवाली में होंगी लेकिन सिर्फ ४-५ दिन की ," मैंने बोला ,और फिर जोड़ा लेकिन जाड़े की छूट्टी १० -१२ दिन की होगी।
"अरे तो अबकी दिवाली गाँव में मनाना न , और जाड़े छुट्टी के लिए तो मैं अभी से दामाद जी को बोल दूंगी ,उनके लिए तो छुटटी मिलनी मुश्किल है तो तेरे साथ बिन्नो को भेज देंगे अजय को बोल दूंगी जाके तुम दोनों को ले आएगा , अच्छा चलो तुम निकलो ,मैं दो दिन से रतजगे में जगी हूँ आज दिन में भी , बहुत जोर से नींद आ रही है वो बोलीं,मुझे भी नींद आ रही है। "
लेकिन मेरे उठने के पहले उन्होंने एक बार खुल के मेरी चूंची दबा दी।
मैं दबे पाँव कमरे से निकली और हलके से जब बाहर निकल कर दरवाजा उठंगा रही थी , तो मेरी निगाह बिस्तर पर भाभी की माँ जी सो चुकी थीं ,अच्छी गाढ़ी नींद में।
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superb..marvelous writing skill.
unmatched on the forum or else where too.
keep posting
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(20-02-2019, 08:04 AM)chodumahan Wrote: superb..marvelous writing skill.
unmatched on the forum or else where too.
keep posting
thanks so much....please keep on posting your comments ...it helps
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सोलहवीं फुहार
पिया मिलन की आस
पक्के वाले आँगन से निकलते समय उसके और कच्चे वाले हिस्से के बीच का दरवाजा मैने अच्छी तरह बंद कर दिया।
वैसे भी दोनों हिस्सों में दूरी इतनी थी की मेरे कमरे में क्या हो रहा था वहां पता नहीं चलने वाला था , और चंपा भाभी ,मेरी भाभी की कब्बड्डी तो वैसे ही सारे रात चलने वाली थी,
फिर भी ,…
अब मैं कच्चे वाले आँगन में आ गयी ,जहाँ एक बड़ा सा नीम का पेड़ था, और ज्यादातर आँगन कच्चा था.
वहां ताखे में रखी ढिबरी बुझ चुकी थी ,कुछ भी नहीं दिख रहा था।
बूंदो की आवाज तेज हो चुकी थी ,उस हिस्से में कमरों और बरामदे की छतें खपड़ैल की थीं ,और उन पर गिर रही बूंदो की आवाज , और वहां से ढरक कर आँगन में गिर रही तेज मोटी पानी की धार एक अलग आवाज पैदा कर रही थी।
बादलों की गरज तेज हो गयी थी ,एक बार फिर तेजी से बिजली चमकी ,
और मैं एक झटके में आँगन पार कर के अपने कमरे में पहुँच गयी।
गनीमत थी वहां ताखे में रखी ढिबरी अभी भी जल रही थी और उस की रोशनी उस कमरे के लिए काफी थी।
लेकिन उसकी रोशनी में सबसे पहली नजर में जिस चीज पे पड़ी , उसी ताखे में रखी,
एक बड़ी सी शीशी , जो थोड़ी देर पहले वहां नहीं थी।
कड़ुआ तेल ( सरसों के तेल ) की ,
मैं मुस्कराये बिना नहीं रह सकी ,चंपा भाभी भी न ,
लेकिन चलिए अजय का काम कुछ आसान होगा ,आखिर हैं तो उन्ही का देवर।
अब एक बार मैंने फिर अपनी कलाई घड़ी पे निगाह डाली , उफ़ अभी भी ८ मिनट बचे थे।
थोड़ी देर मैं पलंग पर लेटी रही , करवटें बदलती रही , लेकिन मेरी निगाह बार बार ताखे पर रखी कडुवे तेल की बोतल पर पड़ रही थी।
अचानक हवा बहुत तेज हो गयी और जोर जोर से मेरे कमरे की छोटी सी खिड़की और पीछे वाले दरवाजे पे जोर जोर धक्के मारने लगी।
लग रहा था जोर का तूफान आ रहा है।
ऊपर खपड़ैल की छत पर बूंदे ऐसी पड़ रही थीं जैसे मशीनगन की गोलियां चल रही हों।
बादल का एक बार गरजना बंद नहीं होता की दूसरी बार उससे भी तेज कड़कने की आवाज गूँज जाती , कमरा चारो ओर से बंद था लेकिन लग रहा था सीधे कान में बादल गरज रहे हों ,
बस मेरे मन में यही डर डर बार उठता था ,इतनी तूफानी रात में वो बिचारा कैसे आएगा।
मुझसे रहा नहीं गया , उठ के मैंने बिना कुछ सोचे समझे छोटी सी खिड़की खोल दी जिधर से अजय के घर का रास्ता साफ दिखता था।
जैसे एक साथ सौ कोड़ें पड़े हो तेज पानी की बौछार मेरे चेहरे पे पड़ी , और चेहरे के साथ मेरा टॉप पूरा भीग गया ,लेकिन मेरे ऊपर कोई फरक नहीं पड़ा ,मेरी आँखे उधर ही चिपकी रही और अगली बार जब बिजली चमकी, बँसवाड़ी ,घर के पीछे के खूब गझिन आम के पेड़ , और उस के बीच से जाती पतली पगडंडी , जो सीधे अजय के घर तक जाती थी सब रोशन हो गयी।
लग रहा था बिजली बँसवाड़ी के पीछे ही कहीं गिरी, और हवा के तेज झोंके से ढिबरी बुझ गयी।
पूरे कमरे में जैसे किसी ने कालिख पोत दिया ,घुप्प अँधेरा।
मैंने जैसे तैसे करके वो खिड़की बंद की.
अब एक और परेशानी ,अगर अजय ने आके पीछे के दरवाजे पे आके खटखट की तो ऐसे तूफान में कैसे सुनाई देगा ,फिर मैंने तो उसे बोला था
कुण्डी मत खटकाना राजा ,सीधे अंदर आना राजा ,
और यहाँ ,अगर मैं जैसे दरवाजा खोलती हूँ ,तूफानी हवा के साथ बारिश अंदर आ जायेगी।
आखिर मैंने खिड़की वाले दरवाजे की सिटकनी बस फंसा के रख दी ,जो ज़रा सा झटके से खुल जाती।
बस मैं मनौती मना रही थी ,इस तूफानी रात में वो बिचारा किसी तरह आ जाय ,उसे कोई परेशानी न हो।
मैंने कितना तंग किया , कितना नखड़ा बनाया ,बस किसी तरह आज आ जाय ,पक्का प्रामिस ,
अगर अजय आज आ जाये ,न तो बस मैं उस की सब बात मानूंगी ,एक बार भी नखड़ा नहीं करुँगी ,झूठ मूठ में भी नहीं।
मेरा कौन सा घट जाएगा उस को देने से ,मैं भी न एकदम ,....
मुझे पता नहीं मेरी आँख लग गयी या क्या हुआ ,
थोड़ी देर में तूफान मेरे कमरे में घुस आया ,सीधे मेरे बिस्तर पे।
मुझे पता भी नहीं चला कब पीछे वाला दरवाजा खुला ,कब बंद हुआ।
बस ये पता चला की तूफ़ान जितना बाहर था उससे तेज अंदर था , और मैंने आँखे दबोच के बंद कर रखी थी ,क्या पता सपना हो ,और आँख खोलते टूट जाय।
लेकिन आँख तो खोलनी ही पड़ी और जोर से मैं चीखी भी ,जब कचकचा के अजय ने मेरा गाल काट लिया।
मुझे पता नहीं कब उसके कपडे हटे कब मेरे ,लेकिन हम दोनों के बीच कुछ भी नहीं बचा था।
आज न उसको जल्दी थी न मुझे सारी रात हमारी थी।
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अजय
अजय जित्ता भी सीधा लगे ,उसके हाथ और होंठ दोनों ही जबरदस्त बदमाश थे ,ये मुझे आज ही पता लगा।
शुरू में तो अच्छे बच्चो की तरह उसने हलके हलके होंठों को ,गालो को चूमा लेकिन अँधेरा देख और अकेली लड़की पा के वो अपने असली रंग में उतर आये।
मेरे दोनों रस से भरे गुलाबी होंठों को उसने हलके से अपने होंठों के बीच दबाया ,कुछ देर तक वो बेशरम उन्हें चूसता रहा, चूसता रहा जैसे सारा रस अभी पी लेगा ,और फिर पूरी ताकत से कचकचा के ,इतने जोर से काटा की आँखों में दर्द से आंसू छलक पड़े , फिर होंठों से ही उस जगह दो चार मिनट सहलाया और फिर पहले से भी दुगुने जोर से और खूब देर तक… पक्का दांत के निशान पड़ गए होंगे।
मेरी सहेलियां , चंदा , पूरबी ,गीता ,कजरी तो चिढ़ाएंगी ही ,चम्पा भाभी और बसंती भी …
लेकिन मैं न तो मना कर सकती थी न चीख सकती थी ,मेरे दोनों होंठ तो उस दुष्ट के होंठों ने ऐसे दबोच रखे थे जैसे कोई बाज किसी गौरेया को दबोचे।
बड़ी मुश्किल से होंठ छूटे तो गाल ,
और वैसे भी मेरे भरे भरे डिम्पल वाले गालों को वो हरदम ऐसे ललचा ललचा के देखता था जैसे कोई नदीदा बच्चा हवा मिठाई देख रहा हो।
गाल पर भी उसने पहले तो थोड़ी देर अपने लालची होंठ रगड़े ,और फिर कचकचा के , पहले थोड़ी देर चूस के दो दांत जोर से लगा देता ,मैं छटपटाती ,चीखती अपने चूतड़ पटकती ,फिर वो वहीँ थोड़ी देर तक होंठों से सहलाने के बाद दुगुनी ताकत से , .... दोनों गालों पर।
मुझे मालूम था उसके दाँतो के निशान मेरे गुलाब की पंखुड़ियों से गालों पर अच्छे खासे पड़ जाएंगे ,
पर आज मैंने तय कर लिया था।
मेरा अजय ,
उसकी जो मर्जी हो ,उसे जो अच्छा लगे ,… करे।
मैं कौन होती हूँ बोलने वाली , उसे रोंकने टोकने वाली।
और शह मिलने पर जैसे बच्चे शैतान हो जाते हैं वैसे ही उसके होंठ और हाथ ,
उसके होंठ जो हरकत मेरे होंठों और गालों के साथ कर रह रहे थे ,वही हरकत अजय के हाथ मेंरे मस्त उभरते कड़े कड़े टेनिस बाल साइज के जोबन के साथ कर रहे थे।
आज तक मेरे जोबन ,चाहे शहर के हो या या गांव के लड़के ,उन्हें तंग करते ,ललचाते ,उनके पैंट में तम्बू बनाते फिरते थे ,
आज उन्हें कोई मिला था , टक्कर देने वाला।
और वो सूद ब्याज के साथ ,उनकी रगड़ाई कर रहा था ,
पर मेरे जोबन चाहते भी तो यही थे।
कोई उन्हें कस के मसले ,कुचले ,रगड़े ,मीजे दबाये,
और फिर जोबन का तो गुण यही है , बगावत की तरह उन्हें जितना दबाओ उतना बढ़ते हैं ,और सिर्फ मेरे जुबना को मैं क्यों दोष दूँ ,
सभी तो यही चाहते थे न की मैं खुल के मिजवाऊं ,दबवाऊं ,मसलवाऊं।
चंपा भाभी ,मेरी भाभी ,
यहाँ तक की भाभी की माँ भी
और फिर जब दबाने मसलने वाला मेरा अपना हो ,
अजय
तो मेरी हिम्मत की मैं उसे मना करूँ।
और क्या कस कस के ,रगड़ रगड़ के मसल रहा था वो।
आज वो अमराई वाला अजय नहीं था ,जिसने मेरी नथ तो उतारी , मेरी झिल्ली भी फाड़ी थी अमराई में ,लेकिन हर बार वो सम्हल सम्हल कर ,झिझक झिझक कर मुझे छू रहा था ,पकड़ रहा था ,दबा रहा था.
आज आ गया था ,मेरे जोबन का असली मालिक ,मेरे जुबना का राजा ,
आज आ गया था मेरे जोबन को लूटने वाला ,जिसके लिए सोलह साल तक बचा के रखा था मैंने इन्हे ,
भैया की शादी में मेरा चौदहवां पूरा हो चला था और यही भाभी नयी नयी आयी थी और अकेले मिलते ही एकदम ,मेरे जस्ट आये जोबन मसल कर ,
' अरे चौदहवां पूरा हो गया ,तेरा अब तक चुदी नहीं , ... लोग तुझे तो कुछ नहीं मुझे कहेंगे कैसी भाभी है ननद का ख्याल नहीं रखती "
भाभी के छेड़ने का जवाब भी मैं एकदम ननद के स्टाइल में ही देती ,
" सच तो कहेंगे , आप तो रोज बिना नागा , ... और बेचारी ननद ,... "
" अरे यार मेरे गांव में तो मेरे सारे कज़िन , ... जिससे कह उससे , अजय सुनील , .. सच बोलती हूँ अगर एक बार बस तू मेरे गाँव चल चल मेरे साथ बस ,... आगे का काम मेरे कजिन्स के हवाले ,... और तब तक तेरा कजिन है न रविंद्र , उससे चलवा दूँ तेरा चक्कर
मेरी पूरी देह गनगना रही थी ,मेरी सहेली गीली हो रही थी ,
बाहर चल रहे तूफान से ज्यादा तेज तूफान मेरे मन को मथ रहा था.
और मेरे उरोजों की मुसीबत, हाथ जैसे अकेले काफी नहीं थे , उनका साथ देने के लिए अजय के दुष्ट पापी होंठ भी आ गए।
दोनों ने मिल के अपना माल बाँट लिया ,एक होंठों के हिस्से एक हाथ के हवाले।
गाल और होंठों का रस लूट चुके ,अजय के होंठ अब बहुत गुस्ताख़ हो चुके थे , सीधे उन्होंने मेरे खड़े निपल पर निशाना लगाया और साथ में अजय की एक्सपर्ट जीभ भी ,
उसकी जीभ ने मेरे कड़े खड़े , कंचे की तरह कड़े निपल को पहले तो फ्लिक किया ,देर तक और फिर दोनों होंठों ने एक साथ गपुच लिया और देर तक चुभलाते रहे चूसते रहे , जैसे किसी बच्चे को उसका पसंदीदी चॉकलेट मिल जाए और वो खूब रस ले ले के धीमे धीमे चूसे , बस उसी तरह चूस रहा था वो।
और दूसरा निपल बिचारा कैसे आजाद बचता ,उसे दूसरे हाथ के अंगूठे और तरजनी ने पकड़ रखा था और धीमे धीमे रोल कर रहे थे ,
जब पहली बार शीशे में अपने उभरते उभारों को देख के मैं शरमाई ,
जब गली के लड़कों ने मुझे देख के ,खास तौर से मेरे जोबन देख के पहली बार सीटी मारी ,
जब कॉलेज जाते हुए मैंने किताब को अपने सीने के सामने रख के उन्हें छिपाना शुरू किया ,
जब पड़ोस की आंटी ने मुझे ठीक से चुन्नी न रखने के लिए टोका ,
और जब पहली बार मैंने अपनी टीन ब्रा खरीदी ,
तब से मुझे इसी मौके का तो इन्तजार था , कोई आये ,कस कस के इसे पकडे ,रगड़े ,दबाये ,मसले ,
और आज आ गया था , मेरे जुबना का राजा।
मैंने अपने आप को अजय के हवाले कर दिया था ,मैं उसकी ,जो उसकी मर्जी हो करे।
मैं चुप चाप लेटी मजे ले रही थी ,सिसक रही थी और जब उसने जोर से मेरी टेनिस बाल साइज की चूंची पे कस के काटा तो चीख भी रही थी।
पर थोड़ी देर में मेरी हालत और ख़राब हो गयी ,उसका जो हाथ खाली हुआ उससे ,अजय ने मेरी सुरंग में सेंध लगा दी।
मेरी सहेली तो पहले से गीली थी और ऊपर से उसने अपनी शैतान गदोरी से जोर जोर से मसला रगड़ा।
मेरी जांघे अपने आप फैल गयी ,और उसको मौका मिल गया ,खूब जोर से पूरी ताकत लगा के घचाक से एक उंगली दो पोर तक मेरी बुर में पेलने का।
उईई इइइइइइइ ,मैं जोर से चीख उठी.
आज उसे मेरे चीखने की कोई परवाह नहीं थीं ,वो गोल गोल अपनी उंगली मेरी बुर में घुमा रहा था ,
मैं सिसक रही थी चूतड़ पटक रही थी , मैंने लता की तरह अजय को जोर से अपनी बाँहों में ,अपने पैरों के बीच लता की तरह लपेट लिया।
लता कितनी भी खूबसूरत क्यों न हो ,उसे एक सपोर्ट तो चाहिए न ,ऊपर चढ़ने के लिए।
और आज मुझे वो सहारा मिल गया था ,मेरा अजय।
लेकिन था वो बहुत दुष्ट ,एकदम कमीना।
उसे मालूम था मुझे क्या चाहिए इस समय ,उसका मोटा और सख्त ,… लेकिन मैं जानती थी वो बदमाश मेरे मुंह से सुनना चाहता था।
मैंने बहुत तड़पाया था उसे ,और आज वो तड़पा रहा था।
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तड़पाओगे ,तड़पा लो
![[Image: sixteen-EI7.md.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/10/22/sixteen-EI7.md.jpg)
मैंने बहुत तड़पाया था उसे ,और आज वो तड़पा रहा था।
………………
" हे करो न ,… " आखिर मुझे हलके से बोलना ही पड़ा।
जवाब में मेरे उरोज के ऊपरी हिस्से पे ,( जो मेरी लो कट चोली से बिना झुके भी साफ साफ दिखता ) अजय ने खूब जोर से कचकचा के काटा ,और पूछा ,
"बोल न जानू क्या करूँ ,… "
मैं क्या करती ,आखिर बोली ," प्लीज अजय ,मेरा बहुत मन कर रहा है , अब और न तड़पाओ ,प्लीज करो न "
जोर से मेरे निपल उसने मसल दिए और एक बार अपनी उंगली आलमोस्ट बाहर निकाल कर एकदम जड़ तक मेरी बुर में ठेलते हुए वो शैतान बोला ,
![[Image: pussy-fingering-tumblr-n1ciai-Jq-DH1rw5um0o1-r1-400.gif]](https://i.ibb.co/Gd4sFf0/pussy-fingering-tumblr-n1ciai-Jq-DH1rw5um0o1-r1-400.gif)
" तुम जानती हो न जो तुम करवाना चाहती हो ,मैं करना चाहता हूँ उसे क्या कहते हैं ,तो साफ साफ बोलो न। "
और मेरे जवाब का इन्तजार किये बिना मेरी चूंची के ऊपरी हिस्से पे, एक बार उसने फिर पहले से भी दूने जोर से काट लिया और मैं समझ गयी की ये निशान तो पूरी दुनिया को दिखेंगे ही और मैं न बोली तो बाकी जगह पर भी ,
![[Image: nipple-bites-e338f9fa09ed6779409bdf8f4268b003.jpg]](https://i.ibb.co/dgCdnkZ/nipple-bites-e338f9fa09ed6779409bdf8f4268b003.jpg)
फिर उसकी ऊँगली ने मुझे पागल कर दिया था ,
शरम लिहाज छोड़ के उसके कान के पास अपने होंठ ले जाके मैं बहुत हलके से बोली ,
" अजय , मेरे राजा ,चोद न मुझे "
और अबकी एक बार फिर उसने दूसरे उभार पे अपने दांत कचकचा के लगाये और बोला ," गुड्डी ,जोर से बोलो , मुझे सुनाई नहीं दे रहा है। "
" अजय ,चोदो ,प्लीज आज चोद दो मुझको , बहुत मन कर रहा है मेरा। " अबकी मैंने जोर से बोला।
बस ,इसी का तो इन्तजार कर रहा था वो दुष्ट ,
![[Image: Fucking-ruff-tumblr_m6xgmfr0ox1qeskczo1_500.md.gif]](https://picsbees.com/images/2018/10/22/Fucking-ruff-tumblr_m6xgmfr0ox1qeskczo1_500.md.gif)
मेरी दोनों लम्बी टाँगे उसके कंधे पे थीं ,उसने मुझे दुहरा कर दिया और उसका सुपाड़ा सीधे मेरी बुर के मुहाने पे।
दोनों हाथ से उसने जोर से मेरी कलाई पकड़ी ,और एक करारा धक्का ,
दूसरे तूफानी धक्के के साथ ही ,अजय का मोटा सुपाड़ा मेरी बच्चेदानी से सीधे टकराया ,
![[Image: fucking-close-up-16895269.md.gif]](https://picsbees.com/images/2018/10/22/fucking-close-up-16895269.md.gif)
और मैं जोर से चिल्लाई ," उईइइइइइइइइइ माँ , प्लीज लगता है ,माँ ओह्ह आह बहोत जोर से नहीईईईई अजय बहोत दर्द उईईईईईई माँ। "
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उईइइइइइइइइइ , प्लीज लगता है ,ओह्ह आह बहोत जोर से नहीईईईई
और मैं जोर से चिल्लाई ,
" उईइइइइइइइइइ माँ , प्लीज लगता है ,माँ ओह्ह आह बहोत जोर से नहीईईईई अजय बहोत दर्द उईईईईईई माँ। "
………….
" अपनी माँ को क्यों याद कर रही हो ,उनको भी चुदवाना है क्या ,चल यार चोद देंगे उनको भी , वो भी याद करेंगी की ,...."
दोनों हाथों से हलके हलके मेरी दोनों गदराई चूंची दबाते , और अपने पूरा घुसे लंड के बेस से जोर जोर से मेरे क्लिट को रगड़ते अजय ने चिढ़ाया।
लेकिन मैं क्यों छोड़ती उसे ,जब भी वो हमारे यहाँ आता मैं उसे साल्ले ,साल्ले कह के छेड़ती , आखिर मेरे भइया का साला तो था ही। मैंने भी जवाब जोरदार दिया।
" अरे साल्ले भूल गए ,अभी साल दो साल भी नहीं हुआ , जब मैं इसी गाँव से तोहार बहिन को सबके सामने ले गयी थी , अपने घर ,अपने भइया से चुदवाने। और तब से कोई दिन नागा नहीं गया है जब तोहार बहिन बिना चुदवाये रही हों। ओहि चुदाई का नतीजा ई मुन्ना है , और आप मुन्ना के मामा बने हो। "
मिर्ची उसे जोर की लगी।
बस उसने उसी तरह जवाब दिया ,जिस तरह से वो दे सकता था ,पूरा लंड सुपाड़े तक बाहर निकाल कर ,एक धक्के में हचक के उसने पेल दिया पूरी ताकत अबकी पहली बार से भी जोरदार धक्का उसके मोटे सुपाड़े का मेरी बच्चेदानी पे लगा।
दर्द और मजे से गिनगीना गयी मैं।
और साथ ही कचकचा के मेरी चूची काटते , अजय ने अपना इरादा जाहिर किया ,
" जितना तेरी भाभी ने साल भर में , उससे ज्यादा तुम्हे दस दिन में चोद देंगे हम, समझती क्या हो।
मुझे मालूम है हमार दी की ननद कितनी चुदवासी हैं ,सारी चूत की खुजली मिटा के भेजेंगे यहाँ से तुम खुदे आपन बुरिया नही पहचान पाओगी। "
जवाब में जोर से अजय को अपनी बाहों में बाँध के अपने नए आये उभार ,अजय की चौड़ी छाती से रगड़ते हुए , उसे प्यार से चूम के मैंने बोला ,
" तुम्हारे मुंह में घी शक्कर , आखिर यार तेरा माल हूँ और अपनी भाभी की ननद हूँ ,कोई मजाक नहीं। देखती हूँ कितनी ताकत है हमारी भाभी के भैय्या में , चुदवाने में न मैं पीछे हटूंगी ,न घबड़ाउंगी। आखिर तुम्हारी दी भी तो पीछे नहीं हटती चुदवाने में , मेरे शहर में। साल्ले बहनचोद , अरे यार बुरा मत मानना , आखिर मेरे भैय्या के साले हो न और तोहार बहिन को तो हम खुदै ले गयी थीं ,चुदवाने तो बहिनचोद , … "
मेरी बात बीच में ही रुक गयी , इतनी जोर से अजय ने मुझे दुहरा कर के मेरे दोनों मोटे मोटे चूतड़ हाथ से पकड़े और एक ऐसा जोरदार धक्का मारा की मेरी जैसे साँस रुक गयी ,और फिर तो एक के बाद एक ,क्या ताकत थी अजय में ,मैंने अच्छे घर दावत दे दी थी।
मैं जान बूझ के उसे उकसा रही थी। वो बहुत सीधा था और थोड़ा शर्मीला भी ,लेकिन इस समय जिस जोश में वो था ,यही तो मैं चाहती टी।
जोर जोर से मैं भी अब उसका साथ देने की कोशिश कर रही थी। दर्द के मारे मेरी फटी जा रही थी लेकिन फिर भी हर धक्के के जवाब में चूतड़ उचका रही थी , जोर जोर से मेरे नाखून अजय के कंधे में धंस रहे थे ,मेरी चूंचियां उसकी उसके सीने में रगड़ रही थीं।
दरेरता, रगड़ता , घिसटता उसका मोटा लंड जब अजय का ,मेरी चूत में घुसता तो जान निकल जाती लेकिन मजा भी उतना ही आ रहा था।
कचकचा के गाल काटते ,अजय ने छेड़ा मुझे ,
" जब तुम लौट के जाओगी न तो तोहार भैया सिर्फ हमार बल्कि पूरे गाँव के साले बन जाएंगे , कौनो लड़का बचेगा नहीं ई समझ लो। "
और उस के बाद तो जैसे कोई धुनिया रुई धुनें ,
सिर्फ जब मैं झड़ने लगी तो अजय ने थोड़ी रफ्तार कम की।
मैंने दोनों हाथ से चारपाई पकड़ ली ,पूरी देह काँप रही थी. बाहर तूफान में पीपल के पेड़ के पत्ते काँप रहे थे ,उससे भी ज्यादा तेजी से।
जैसे बाहर पागलों की तरह बँसवाड़ी के बांस एक दूसरे से रगड़ रहे थे, मैं अपनी देह अजय की देह में रगड़ रही थी।
अजय मेरे अंदर धंसा था लेकिन मेरा मन कर रहा था बस मैं अजय के अंदर खो जाऊं , उसके बांस की बांसुरी की हवा बन के उसके साथ रहूँ।
मुझे अपने ही रंग में रंग ले , मुझे अपने ही रंग में रंग ले ,
जो तू मांगे रंग की रंग रंगाई , जो तू मांगे रंग की रंगाई ,
मोरा जोबन गिरवी रख ले , अरे मोरा जोबन गिरवी रख ले ,
मेरा तन ,मेरा मन दोनों उस के कब्जे में थे।
दो बार तक वह मुझे सातवें आसमान तक ले गया ,और जब तीसरी बार झड़ी मैं तो वो मेरे साथ ,मेरे अंदर , … खूब देर तक गिरता रहा ,झड़ता रहा।
बाहर धरती सावन की हर बूँद सोख रही थी और अंदर मैं उसी प्यास से ,एक एक बूँद रोप रही थी।
देर तक हम दोनों एक दूसरे में गूथे लिपटे रहे।
वह बूँद बूँद रिसता रहा।
अलसाया ,
बाहर भी तूफान हल्का हो गया था।
बारिश की बूंदो की आवाज , पेड़ों से , घर की खपड़ैल से पानी के टपकने की आवाज एक अजब संगीत पैदा कर रहा था।
उसके आने के बाद हम दोनों को पहली बार , बाहर का अहसास हुआ।
अजय ने हलके से मुझे चूमा और पलंग से उठ के अँधेरे में सीधे ताखे के पास , और बुझी हुयी ढिबरी जला दी.
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सोलहवीं फुहार ,जारी
बाहर बारिश , अंदर बारिश
और उस हलकी मखमली रोशनी में मैंने पहली बार खुद को देखा और शरमा गयी।
मेरे जवानी के फूलों पे नाखूनों की गहरी खरोंचे , दांत के निशान ,टूटी हुयी चूड़ियाँ , और थकी फैली जाँघों के बीच धीमे धीमे फैल कर बिखरता , अजय का , सफेद गाढ़ा ,…
क्या क्या छिपाती , क्या ढकती।
मैंने अपनी बड़ी बड़ी कजरारी आँखे ही मूँद ली। और चादर ओढ़ ली
लेकिन तबतक अजय एक बार फिर मेरे पास , चारपाई पर ,
और जिसने मुझे मुझसे ही चुरा लिया था वो कबतक मेरी शरम की चादर मुझे ओढ़े रहने देता।
और उस जालिम के तरकश में सिर्फ एक दो तीर थोड़े ही थे , पहले तो वो मेरी चादर में घुस गया , फिर कभी गुदगुदी लगा के ( ये बात जरूर उसे भाभी ने बतायी होगी की गुदगुदी से झट हार जाती हूँ ,आखिर हर बार होली में वो इसी का तो सहारा लेती थीं। )
तो कभी हलकी हलकी चिकोटी काट के तो कभी मीठे मीठे झूठे बहाने बना के और जब कुछ न चला तो अपनी कसम धरा के ,
और उसकी कसम के आगे मेरी क्या चलती।
पल भर के लिए मैने आँखे खोली, तो फिर उसकी अगली शर्त , बस जरा सा चद्दर खोल दूँ , वो एक बार जरा बस ,एक मिनट के लिए उन उभारों को देख ले जिन्होंने सारे गाँव में आग लगा रखी है , बहाना बनाना और झूठी तारीफें करना तो कोई अजय से सीखे।
उस दिन अमराई में भी अँधेरा था और आज तो एकदम घुप्प अँधेरा , बस थोड़ी देर , बस चादर हटाउ और झट से फिर बंद कर लूँ ,
मैं भी बेवकूफ , उसकी बातों में आ गयी।
हलकी सी चादर खोलते ही उसने कांख में वो गुदगुदी लगाई की मैं खिलखिला पड़ी , और फिर तो
" देखूं कहाँ कहाँ दाँतो के निशान है , अरे ये तो बहुत गहरा है ,उफ़ नाख़ून की भी खरोंच , अरे ये निपल तेरे एकदम खड़े , "
मुझे पता भी न चला की कब पल भर पांच मिनट में बदल गए और कब खरोंच देखते देखते वो एक बार फिर हलके से उरोज मेरे सहलाने लगा।
चादर हम दोनों की कमर तक था , और नया बहाना ये था की हे तू बोलेगी की मैंने तुम्हे अपना दिखा दिया , तू भी तो अपना दिखाओ।
और मैंने झटके से बुद्धू की तरह हाँ बोल दिया , और चादर जब नीचे सरक गयी तो मुझे समझ में आया , की जनाब अपना दिखाने से ज्यादा चक्कर में थे देख लें ,
और चादर सिर्फ नीचे ही नहीं उतरी , पलंग से सरक कर नीचे भी चली गयी.
और अपना हाथ डाल कर , कुछ गुदगुदी कुछ चिकोटियां , मेरी जांघे उस बदमाश ने पूरी खोल के ही दम लिया और ऊपर से उसकी कसम , मैं अपनी आँखे भी नहीं बंद कर सकती थी।
मैंने वही किया जो कर सकती थी , बदला।
और एक बेशर्म इंसान को दिल देने का नतीजा यही होना था ,मैं भी उसके रंग में रंग गयी।
मैंने वही किया जो अजय कर रहा था।
सावन से भादों दुबर,
अजय ने गुदगुदी लगा के मुझे जांघे फैलाने पे मजबूर कर दिया और जब तक मैं सम्हलती,सम्हलती उसकी हथेली सीधे मेरी बुलबुल पे।
चारा खाने के बाद बुलबुल का मुंह थोड़ा खुला था इसलिए मौके का फायदा उठाने में एक्सपर्ट अजय ने गचाक से ,
एक झटके में दो पोर तक उसकी तर्जनी अंदर थी और हाथ की गदोरी से भी वो रगड़ मसल रहा था।
मैं गनगना रही थी लेकिन फिर मैंने भी काउंटर अटैक किया।
मेरे मेहंदी लगे हाथ उसके जाँघों के बीच ,
और उसका थोड़ा सोया ,ज्यादा जागा खूंटा मेरी कोमल कोमल मुट्ठी में।
" अब बताती हूँ तुझे बहुत तंग किया था न मुझे " बुदबुदा के बोली मैं।
क्या हुआ जो इस खेल में मैं नौसिखिया थी , लेकिन थी तो अपनी भाभी की पक्की ननद और यहाँ आके तो और ,
चंपा भाभी और बसंती की पटु शिष्या,
मैंने हलके हलके मुठियाना शुरू किया।
लेकिन थोड़ी ही देर में शेर ने अंगड़ाई ली , गुर्राना शुरू किया और मेरे मेहंदी लगे हाथों छुअन ,
कहाँ से मिलता ऐसे कोमल कोमल हाथों का सपर्श ,
फूल के 'वो ' कुप्पा हो गया ,
कम से कम दो ढाई इंच तो मोटा रहा ही होगा , और मेरी मुट्ठी की पकड़ से बाहर होने की कोशिश करने लगा।
माना मेरे छोटे छोटे हाथों की मुट्ठी की कैद में उसे दबोचना मुश्किल था , लेकिन मेरे पास तरीकों की कमी नहीं थी।
अंगूठे और तरजनी से पकड़ के ,उसके बेस को मैंने जोर से दबाया ,भींचा और फिर ऊपर नीचे ,ऊपर नीचे और
एक झटके में जो उसका चमड़ा खींचा तो जैसे दुल्हन का घूंघट हटे,
खूब मोटा ,गुस्सैल ,भूखा बड़ा सा धूसर सुपाड़ा बाहर आ गया।
+
ढिबरी की रौशनी में वो और भयानक,भीषण लग रहा था।
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24-02-2019, 07:42 PM
(This post was last modified: 24-02-2019, 07:46 PM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
मजा कडुवा तेल का
![[Image: Mustard-Oil-16.9Oz-500mL.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/10/22/Mustard-Oil-16.9Oz-500mL.jpg)
ढिबरी की रौशनी में वो और भयानक,भीषण लग रहा था।
और ढिबरी की बगल में कडुवे ( सरसों के ) तेल की बोतल चंपा भाभी रख गयीं थीं , वो भी दिख गयी।
चंपा भाभी और भाभी की माँ की बातें मेरे मन में कौंध गयी और शरारत , ( आखिर शरारतों पे सिर्फ अजय का हक़ थोड़े ही था ) भी
मुठियाने का मजा अजय चुपचाप लेट के ले रहा था।
अब बात मानने की बारी उसकी थी और टू बी आन सेफ साइड ,मैंने कसम धरा दी उसे ,
झुक के उसके दोनों हाथ पकड़ के उसके सर के नीचे दबा दिया और उसके कान में बोला ,
" हे अब अच्छे बच्चे की तरह चुपचाप लेटे रहना , जो करुँगी मैं करुँगी। "
उसने एकदम अच्छे बच्चे की तरह बाएं से दायें सर हिलाया
और मैं बिस्तर से उठ के सीधे ताखे के पास ,कड़वे तेल की बोतल से १०-१२ बूँद अपनी दोनों हथेली में रख के मला और क्या पता और जरूरत पड़े , तो कडुवा तेल की बोतल के साथ बिस्तर पे ,
तेल की शीशी वहीँ पास रखे स्टूल के पास छोड़ के सीधे अजय की दोनों टांगों के बीच ,
बांस एकदम कड़ा ,तना और खड़ा.
![[Image: cock-20514937.jpg]](https://i.ibb.co/fdn3Q8p/cock-20514937.jpg)
कम से कम मेरी कलाई इतना मोटा रहा होगा ,
लेकिन अब उसका मोटा होना ,डराता नहीं था बल्कि प्यार आता था और एक फख्र भी होता था की ,मेरा वाला इतना जबरदस्त…
दोनों हथेलियों में मैंने अच्छी तरह से कडुवा तेल मल लिया था , और फिर जैसे कोई नयी नवेली ग्वालन , मथानी पकड़े , मैंने दोनों तेल लगे हथेलियों के बीच उस मुस्टंडे को पकड़ लिया और जोर जोर से , दोनों हथेलियाँ,
![[Image: holding-cocktumblr-ornye6-WPd-U1vc315zo1-500.gif]](https://i.ibb.co/Sw02rGp/holding-cocktumblr-ornye6-WPd-U1vc315zo1-500.gif)
कुछ ही मिनट में वो सिसक रहा था , चूतड़ पटक रहा था।
मेरी निगाह उसके भूखे प्यासे सुपाड़े ( भूखा जरूर ,अभी तो जम के मेरी सहेली को छका था उसने ,लेकिन उस भुख्खड़ को मुझे देख के हरदम भूख लग जाती थी। )
और उस मोटे सुपाड़े के बीच उसकी एकलौती आँख ( पी होल ,पेशाब का छेद ) पे मेरी आँख पद गयी और मैं मुस्करा पड़ी।
अब बताती हूँ तुझे , मैंने बुदबुदाया और अंगूठे और तरजनी से जोर से अजय सुपाड़े को दबा दिया।
जैसे कोई गौरेया चोंच खोले , उस बिचारे ने मुंह चियार दिया।
मेरी रसीली मखमली जीभ की नुकीली नोक ,सीधे ,सुपाड़े के छेद ,अजय के पी होल ( पेशाब के छेद में) और जोर जोर से सुरसुरी करने लगी।
![[Image: bj-lick-55.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/10/22/bj-lick-55.jpg)
मैं कुछ सोच के मुस्करा उठी [b][i]( [/b][/i]
[b][i]चंदा की बात , चंदा ने बताया था न की वो एक दिन 'कर' के उठी थी तो रवि ने उसके लाख मना करने पर भी उसे चाटना चूसना शुरू कर दिया। जब बाद में चंदा ने पूछा की कैसा लगा तो मुस्करा के बोला , बहुत अच्छा ,एक नया स्वाद, थोड़ा खारा खारा। मुझे भी अब 'नए स्वाद' से डर नहीं लग रहा था.)[/b][/i]
अजय की हालत ख़राब हो रही थी , बिचारा सिसक रहा था , लेकिन हालत ख़राब पे करने कोई लड़कों की मोनोपोली थोड़े ही है।
मेरे कडुवा तेल लगे दोनों हाथों ने अजय की मोटी मथानी को मथने की रफ़्तार तेज कर दी। साथ में जो चूड़ियाँ अजय की हरकतों से अभी तक बची थीं ,वो भी खनखना रही थीं, चुरुर मुरुर कर रही थीं।
![[Image: holding-cock-tumblr-o050lrr-Zd-H1uk76xgo1-400.gif]](https://i.ibb.co/MPbPB59/holding-cock-tumblr-o050lrr-Zd-H1uk76xgo1-400.gif)
मुझे बसंती की सिखाई एक बात याद आ गयी , आखिर मेरे जोबन पे वो इतना आशिक था तो कुछ उसका भी मजा तो दे दूँ बिचारे को।
और अब मेरे हाथ की जगह मेरी गदराई कड़ी कड़ी उभरती हुयी चूंचियां , और उनके बीच अजय का लंड।
दोनों हाथो से चूंचियों को पकड़ के मेरे हाथ उनसे ,अजय के लंड को रगड़ मसल रहे थे।
![[Image: sixteen-tumblr_n1mrl4RUy01subk3mo1_500.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/10/22/sixteen-tumblr_n1mrl4RUy01subk3mo1_500.jpg)
जीभ भी अब पेशाब के छेद से बाहर निकल के पूरे सुपाड़े पे , जैसे गाँव में शादी ब्याह के समय पहले पतुरिया नाचती थी , उसी तरह नाच रही थी।
लपड़ सपड ,लपड़ सपड़ जोर जोर से मैं सुपाड़ा चाट रही थी , और साथ में मेरी दोनों टेनिस बाल साइज की चूंचियां ,अजय के लंड पे ऊपर नीचे, ऊपर नीचे,
तब तक मेरी कजरारी आँखों ने अजय की चोरी पकड़ ली , उसने आँखे खोल दी थीं और टुकुर टुकुर देख रहा था ,
मेरी आँखों ने जोर से उसे डपटा , और बिचारे ने आँख बंद कर ली।
![[Image: guddi-tit-fuck-tumblr-ophif8-Hmo-I1wowizjo1-500.gif]](https://i.ibb.co/thHs2XJ/guddi-tit-fuck-tumblr-ophif8-Hmo-I1wowizjo1-500.gif)
मस्ती से अजय की हालत ख़राब थी , लेकिन उससे ज्यादा हालत उसके लंड की खराब थी , मारे जोश के पगलाया हुआ था।
उस बिचारे को क्या मालूम अभी तो उसे और कड़ी सजा मिलनी है।
मेरे कोमल कोमल हाथों , गदराये उरोजों ने उसे आजाद कर दिया , लेकिन अब मैं अजय के ऊपर थी और मेरी गीली गुलाबी सहेली सीधे उसके सुपाड़े के ऊपर ,पहले हलके से छुआया फिर बहुत धीमे धीमे रगड़ना शुरू कर दिया।
अजय की हालत खराब थी लेकिन उससे ज्यादा हालत मेरी खराब थी ,
मन तो कर रहा था की झट से घोंट लूँ , लेकिन , …
![[Image: sixteen-BW11.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/10/22/sixteen-BW11.jpg)
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मैं साजन तू सजनी ,
मैं ऊपर तू नीचे
अजय की हालत खराब थी लेकिन उससे ज्यादा हालत मेरी खराब थी ,
मन तो कर रहा था की झट से घोंट लूँ , लेकिन , …
सुन तो बहुत चुकी थी , पूरबी ने पूरा हाल खुलासा बताया था , की रोज ,दूसरा राउंड तो वही उपर चढ़ती है ,पहले राउंड की हचक के चुदाई के बाद जब मर्द थोड़ा थका अलसाया हो , तो , … और फिर उसके मर्द को मजा भी आता है.
बसंती ने भी बोला था , असली चुदक्कड़ वही लौंडिया है जो खुद ऊपर चढ़ के मर्द को चोद दे , कोई जरुरी है हर बार मरद ही चोदे , … आखिर चुदवाने का मजा दोनों को बराबर आता है।
और देखा भी था , चंदा को सुनील के ऊपर चढ़े हुए , जैसे कोई नटिनी की बेटी बांस पे चढ जाए बस उसी तरह, सुनील का कौन सा कम है लेकिन ४-५ मिनट के अंदर मेरी सहेली पूरा घोंट गयी.
दोनों पैर मैंने अजय के दोनों ओर रखे थे,घुटने मुड़े , लेकिन अजय का सुपाड़ा इतना मोटा था और मेरी सहेली का मुंह इतना छोटा ,
झुक के दोनों हाथों से मैंने अपनी गुलाबी मखमली पुत्तियों को फैलाया , और अब जो थोड़ा सा छेद खुला उस पे सटा के , दोनों हाथ से अजय की कमर पकड़ के ,…
पूरी ताकत से मैंने अपने की नीचे की ओर दबाया।
जब रगड़ते हुए अंदर घुसा तो दर्द के मारे जान निकल गयी लेकिन सब कुछ भूल के पूरी ताकत से मैं अपने को नीचे की ओर प्रेस किया , आँखे मैंने मूँद रखी थी.
सिर्फ अंदर घुसते , फैलाते फाड़ते ,उस मोटे सुपाड़े का अहसास था।
किन आधा सुपाड़ा अंदर जाके अटक गया और मैं अब लाख कोशिश करूँ कितना भी जोर लगाउ वो एक सूत सरक नहीं रहा था।
मेरी मुसीबत में और कौन मेरा साथ देता।
मैं पसीने पसीने हो रही थी , अजय ने अपने दोनों ताकतवर हाथों से मेरी पतली कमर कस के पकड़ ली और पूरी ताकत से अपनी ओर खींचा ,साथ में अपने नितम्बो को उचका के पूरे जोर से अपना , मेरे अंदर ठेला।
मैंने भी सांस रोक के ,अपनी पूरी ताकत लगा के , एक हाथ से अजय के कंधे को दूसरे से उसकी कमर को पकड़ के , अपने को खूब जोर से पुश किया।
मिनट दो मिनट के लिए मेरी जान निकल गयी , लेकिन जब सटाक से सुपाड़ा अंदर घुस गया तो जो मजा आया मैं बता नहीं सकती।
फिर मैंने वो किया जो न मैंने पूरबी से सुना था न चंदा को करते देखा था , ओरिजिनल , गुड्डी स्पेशल।
अपनी कसी चूत में मैंने धंसे ,घुसे ,फंसे अजय के मोटे सुपाड़े हलके से भींच दिया।
और जैसे ही मेरी चूत सिकुड़ कर उसे दबाया , मेरी निगाहें अजय के चेहरे चिपकी थीं , जिस तरह से उसने सिसकी भरी ,उसके चेहरे पे ख़ुशी छायी,बस फिर क्या था , मेरी चूत बार बार सिकुड़ रही थी , उसे भींच रही थी ,
और जैसे ही मेरे बालम ने थोड़ी देर पहलेतिहरा हमला किया था वही मैंने भी किया , मेरे हाथ और होंठ एक साथ ,
एक हाथ से मैं कभी उसके निप्स फ्लिक करती तो कभी गाढ़े लाल रंग के नेलपालिश लगे नाखूनों से अजय के निप्स स्क्रैच करती।
और मेरी जीभ भी कभी हलके से लिक कर लेती तो कभी दांत से हलके से बाइट ,
ये गुर मुझे बसंती ने सिखाया था की लड़कों के निपल भी उतने ही सेंसिटिव होते हैं जितने लड़कियों के।
और साथ में अपनी नयी आई चूंचियां मैं कभी हलके से तो कभी जोर से अजय के सीने पे रगड़ देती।
नतीजा वही हुआ जो , होना था।
मेरी पतली कमर अभी भी अजय के हाथों में थी ,उसने पूरी ताकत से उसने मुझे अपने लंड पर खींचा और नीचे से साथ साथ पूरी ताकत से उचका के धक्का मारा।
और अब मैंने भी साथ साथ नीचे की ओर पुश करना जारी करना रखा ,बस थोड़े ही देर में करीब करीब तीन चौथाई, छ इंच खूंटा अंदर था।
और अब अजय ने मेरी कमर को पकड़ के ऊपर की ओर ,
बस थोड़ी ही देर में हम दोनों ,
मैं कभी ऊपर की ओर खींच लेती तो कभी धक्का देके अंदर तक , मुझसे ज्यादा मेरी ही धुन ताल पे अजय भी कभी मुझे ऊपर की ओर ठेलता तो कभी नीचे की ओर ,
[b]सटासट गपागप , सटासट गपागप , [/b]
अजय को मोटा सख्त लंड मेरी कच्ची चूत को फाड़ता दरेरता ,
[b]लेकिन असली करामात थी , कडुवा तेल की जो कम से कम दो अंजुरी मैंने लंड पे चुपड़ा लगाया था , और इसी लिए सटाक सटाक अंदर बाहर हो रहा था,[/b]
दस बारह मिनट तक इसी तरह
मैं आज चोद रही थी मेरा साजन चुद रहा था
मैंने अपनी लम्बी लम्बी टाँगे फैला के कस कस के अजय की कमर के दोनों ओर बाँध ली और मेरे हाथ भी जोर से उसके पीठ को दबोचे हुए थे।
मेरे कड़े कड़े उभार जिसके पीछे सारे गाँव के लोग लट्टू थे , अजय के चौड़े सीने में दबे हुए थे।
ये कहने की बात नहीं की मेरे साजन का ८ इंच का मोटा खूंटा जड़ तक मेरी सहेली में धंसा था ,
अब न मुझमे शरम बची थी और न अजय में कोई झिझक और हिचक।
मुझे मालूम था की मेरे साजन को क्या अच्छा लगता है और उसे भी मेरी देह के एक एक अंग का रहस्य , पता चल गया था।
जैसे बाहर बारिश की रफ्तार हलकी पड़ गयी थी , उसी तरह उस के धक्के की रफ्तार और तेजी भी , द्रुत से वह विलम्बित में आ गया था।
हम दोनों अब एक दूसरे की गति ,ताल, लय से परिचित हो गए थे ,और उसके धक्के की गति से मेरी कमर भी बराबर का जवाब दे रही थी।
पायल की रुनझुन ,चूड़ी की चुरमुर की ताल पर जिस तरह से वो हचक हचक कर ,
और साथ में अजय की बदमाशियां , कभी मेरे निपल को कचाक से काट लेता तो कभी अपने अंगूठे से मेरा क्लिट रगड़ देता ,
एकबार मैं फिर झड़ने के कगार पे आ गयी और मुझसे पहले मेरे उसे ये मालूम हो गया ,
अगले ही पल उसने मुझे फिर दुहरा कर दिया था ,
उसके हर धक्के की थाप , सीधे मेरी बच्चेदानी पे पड़ती थी और लंड का बेस मेरे क्लिट को जोर से रगड़ देता।
मैंने लाख कोशिश की लेकिन , मैं थोड़ी देर में ,
उसने अपनी स्पीड वही रखी ,
दो बार , दूसरी बार वो मेरे साथ ,
लग रहा था था कोई बाँध टूट गया ,
कोई ज्वाला मुखी फूट गया ,
न जाने कितने दोनों का संचित पानी , लावा
और जब हम दोनों की देह थिर हुयी , एक साथ सम पर पहुंची ,हम दोनों थक कर चूर हो गए थे।
बहुत देर तक जैसे बारिश के बाद , ओरी से ,पेड़ों की पत्तियों से बारिश की बूँद टप टप गिरती रहती है ,वो मेरे अंदर रिसता रहा , चूता रहा।
और मैं रोपती रही ,भीगती रही ,सोखती रही उसकी बूँद बूँद।
पता नहीं हम कितनी देर
लेकिन अजय ने नीचे से मुझे उठा लिया और थोड़ी देर में मैं उसके गोद में मैंने अपनी लम्बी लम्बी टाँगे फैला के कस कस के अजय की कमर के दोनों ओर बाँध ली और मेरे हाथ भी जोर से उसके पीठ को दबोचे हुए थे।
बहुत देर तक हम दोनों एक दूसरे की बाँहों में बंधे लिपटे रहे।
न उसका हटने का मन कर रहा था न मेरा।
बाहर तूफान कब का बंद हो चुका था ,लेकिन सावन की धीमी धीमी रस बुंदियाँ टिप टिप अभी भी पड़ रही थीं , हवा की भी हलकी हलकी आवाज आ रही थी।
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सत्रहवीं फुहार
![[Image: sixteen-82a17fa4ce91c72e02e6d13264ea37ad-1.md.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/10/24/sixteen-82a17fa4ce91c72e02e6d13264ea37ad-1.md.jpg)
मेरे सिवाय तेरे और कितने दीवाने हैं
[i]और मैं रोपती रही ,भीगती रही ,सोखती रही उसकी बूँद बूँद।
बहुत देर तक हम दोनों एक दूसरे की बाँहों में बंधे लिपटे रहे।
न उसका हटने का मन कर रहा था न मेरा।
बाहर तूफान कब का बंद हो चुका था ,लेकिन सावन की धीमी धीमी रस बुंदियाँ टिप टिप अभी भी पड़ रही थीं , हवा की भी हलकी हलकी आवाज आ रही थी।
…………
[/i]
![[Image: sixteen-tumblr_nr0gp6K5wv1tl6rwso1_540-1.md.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/10/24/sixteen-tumblr_nr0gp6K5wv1tl6rwso1_540-1.md.jpg)
एक सवाल मेरे मन को बहुत देर से साल रहा था , मैंने पूछ ही लिया ,
" सुन यार, एक बात पूछूं बुरा मत मानना , वो,.... उस दिन , … वो उस दिन ,… मैं सुनील के साथ , वहां गन्ने के खेत में ,… "
जवाब उस दुष्ट ने तुरंत दिया , अपने तरीके से , कचकचा के मेरी गोरी गोरी चूंची को काट के ,
" तू न हरामी ,सुधरेगी नही , अरे सुनील के साथ क्या , बोल न साफ साफ़ , अब भी तू , … "
मैं समझ गयी वो क्या सुनना चाहता है। और मैं उसी तरह से बोलने लगी , ( जैसे चंपा भाभी और मेरी भाभी बोलती हैं )
" वो वो , उस दिन मैं सुनील के साथ , वहीँ ,.... गन्ने के खेत में चुदवा रही थी तो तूने बुरा तो नहीं माना। "
धीमे धीमे घबड़ाते मैं बोली।
![[Image: sixteen-sugarcrops_sugarcane_clip_image0...2-1.md.jpg]](https://picsbees.com/images/2018/10/24/sixteen-sugarcrops_sugarcane_clip_image006_0002-1.md.jpg)
"पगली ,बुर वाली की बात का क्या बुरा मानना। अरे सुनील ने तुझे चोदा तो क्या हुआ मैंने भी तो उसके माल को, चंदा को चोदा। तू न एकदम बुद्धू है , अरे १०-१२ दिन के लिए गाँव आई है तो खुल के गाँव का मजा ले न , फिर ये तो पूरे गाँव को मालूम है न की तू माल किसकी है ?"
" एकदम ",
ख़ुशी से उसके सीने पे अपनी कड़ी कड़ी चूंचियां रगड़ती मैं बोलीं।
![[Image: nips-e0bd079dc08319c77ceead0294873eae.jpg]](https://i.ibb.co/GPnTTnW/nips-e0bd079dc08319c77ceead0294873eae.jpg)
" इसमें किसी को कोई शक हो सकता है क्या , सबके सामने मेले में मैंने खुद ही बोला था ,मैं तेरा माल हूँ , थी और रहूंगी। आखिर मेरी कोरी जवानी को , मेरी कच्ची कली को , .... "
उसने चूम के मेरा मुंह बंद करा दिया , और बोला ,
" बस तो तुझे जवाब मिल गया न। सारे गाँव के लड़के मुझसे जलते हैं की एक तो पहली बार मैंने तेरी ली, दूसरे एक दो बार भले कोई ले ले माल तो तू मेरी ही है। बस ये याद रखना ,तू मेरी माल है और रहेगी। "
" एकदम , "
खुश हो के मैं बोली और अबकी मैंने अपने तरीके से ख़ुशी जाहिर की , उसके सोते जागते शेर को पुचकार के। लेकिन जरा सा मेरे मुठियाते ही वो फिर अंगड़ाई लेने लगा।
तो एक ख़ुशी में हो जाय एक राउंड और मेरे माल की चुदाई "
वो बोला और उसकी ऊँगली मेरी मलाई भरी बुर में।
" तुझे न बस एक चीज सूझती है "
गुस्से से बुरा सा मुंह बना के मैं बोली लेकिन मेरे हाथ उसे मुठियाते ही रहे।
कुछ रुक के मैंने फिर कहा , मैं गुस्सा हूँ तेरे से।
" क्यों मेरी सोन चिरैया क्या हुआ , "गाल चूमते वो बोला।
" मैं तेरा माल हूँ , मैं मानती हूँ , पूरा गाँव मानता है , तो फिर तुम पूछते क्यों हो तेरा माल है जब चाहे तब चढ़ जाओ। "
खिलखिलाते मैं बोली लेकिन मैंने जोड़ा
“खिड़की खोल दो न उमस हो रही है तूफान तो बंद हो गया है।“
वो खिड़की खोलने गया और पीछे पीछे मैं,
उसे पीछे से पकड़ कर , उसके पीठ में अपने जुबना की बरछी धँसाते, जीभ से उसके कान में सुरसुरी करते उसके इयर लोब को हलके से काट के मैंने उसके खूंटे को दायें हाथ में पकड़ ,हलके से मुठियाते पूछा ,
" राज्जा , ये कितनी की सुरंग में घुस चूका है "
और बिना पीछे मुड़े उसने नाम गिनाने शुरू कर दिए ,
" कजरी ,पूरबी ,चंदा , उर्मि , … , … " कुल १८ नाम थे , आधे दर्जन से ज्यादा तो मैं जानती थी , वो सब अब मेरी पक्की सहेलियां थी , तीन चार उसकी भाभियाँ और बाकी सब खेत और घर में काम करनेवालियाँ, मिल मैं उन सब से भी चुकी थी।
[i]" तेरे गाँव से वापस लौटने से पहले तेरा रिकार्ड तोड़ दूंगी ,कम से कम बीस " [/i]
जोर जोर से उसकी पीठ पर अपनी छोटी छोटी नयी आई चूंची रगड़ती मैंने अपना इरादा जाहिर किया।
और मेरे इरादे पे उसने सील लगा दी अपने होंठों से , खिड़की खोल के मुड़ के उसने मेरे होंठों को जोर से चूमा और बोला ,
" पक्का , तब मैं मानूंगा की तू मेरी सच में माल है। "
हम दोनों खिड़की से बाहर झाँक रहे थे , यह रात का वह पल था जिसमें रात सबसे गहरी होती है। ढाई तीन बज रहा होगा।
बाहर घना अँधेरा था , तूफान तो रुक चुका था लेकिन उसके निशान चारो और दिख रहे थे।
अंदर से कुछ कमरे की रौशनी छन छन कर आ रही थी और उससे ज्यादा मुझे भी गाँव में रहते पारभासी अँधेरे में कुछ कुछ दिखने लगा था।
अजय के घर के रास्ते वाली पगडण्डी के थोड़ा बगल में वो पुराना पाकुड का पेड़ अररा कर गिरा था , बस बँसवाड़ी के बगल में.
गझिन अमराई की भी एक दो पेड़ों की मोटी मोटी टहनियां गिरी थीं।
हलकी हलकी बूंदे अभी भी आसमान से झर रहीं थीं , लेकिन उनसे ज्यादा मोटी मोटी बूंदे पेड़ों की पत्तियों से टपक रही थीं , और हम लोगों के घर के छत से तो मोटे परनाले सा पानी बह रहा था।
हवा अभी भी तेज थी और उसके झोंके से पानी की फुहार हम दोनों के चेहरे को अच्छी तरह भिगो रही थी। मैं खिड़की में लगी सलाखें एक हाथ से पकडे थी , अपना चेहरा खिड़की सटाये बौछार का मजा लेती। और वो मेरे ठीक पीछे , एक हाथ मेरे उभार को दबोचे , और मेरे मस्त नितम्बों के बीच उसका खूंटा अब एकबार फिर ९० डिग्री हो गया था।
' बौछार कितनी अच्छी लग रही हैं ,न। " मैंने बिना मुंह उसकी ओर घुमाए कहा।
दोनों हाथों से मेरे निपल्स को पकड़ के गोल गोल घुमाते अपना औजार मेरे पिछवाड़े रगड़ते वो बोला ,
" जानती हो मेरा क्या मन कर रहा है, "…
[i]
मैं चुप रही।
वो खुद बोला ," तुझे बाहर , भीगते पानी में ले जा के हचक हचक के चोदूँ ".
[/i]
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26-02-2019, 08:55 AM
(This post was last modified: 02-08-2019, 10:25 AM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
बारिश में ,… बारिश
वो खुद बोला ," तुझे बाहर , भीगते पानी में ले जा के हचक हचक के चोदूँ ".
एक पल मैं चुप रही फिर जोर से अपना चूतड़ उसके खड़े हथियार पे जोर से रगड़ के मैने बोला ,
" तू एक बार समझता नहीं लगता। "
वो समझ गया , मैंने कहा था अगर तूने दोबारा मुझसे पूछा न तो कुट्टी , वो भी पक्की वाली।
पांच मिनट में हम दोनों बाहर थे ,
उस मोटे पाकड़ के तने के पीछे ,ठीक बँसवाड़ी के बीच जहाँ दिन में ढूंढने पे भी आदमी न मिले।
और इस समय तो घुप्प अँधेरा था , और हाँ वो मुझे अपनी गोद में उठा के ले आया था।
तगड़ा प्रेमी होने का कुछ तो फायदा हो ,लेकिन उसके तगड़े होने सबूत और मिल गया मुझे जब उसने निहुरा दिया ,
कुतिया की तरह उस पाकड़ के पेड़ के मोटे तने को पकड़ के ,और एक झटके में अंदर।
दो बार की मलाई पूरी अंदर थी।
बारिश की बूंदे , आम के पेड़ों से टपकती पानी की धार मुझे भिगो रही थी और ऊपर से अजय की शरारतें ,
"तूने खुद बोला है छिनार की जनी कम से कम २० से चुदेगी, इस गाँव में. \अगर एक भी कम हुआ न तो मुट्ठी पेल दूंगा और जैसे कुतिया बनी है न वैसे ही कुतिया बना के गाँव के जितने,देसी … "
अब मुझे लगा की वो चंपा भाभी का पक्का देवर है यही वार्निंग ठीक मुझे चंपा भाभी ने दी थी ,
" अगर छिनरो ,गाँव का कौनो मरद बचा न त जाने से पहले तोहरी बुरिया में , ई मुट्ठी पूरा पेल दूंगी सोच लो ,लंड खाना है या मुट्ठी। "
इस बार उस ज़ालिम ने हद कर दी , बिना मेरे दर्द की परवाह किये , एक बार में पूरा मूसल पेल दिया जड़ तक ,
उस सन्नाटे में मेरी चीख निकल गयी , लेकिन मेरे बलमाको कोई परवाह नहीं थी।
मैं कुतिया की तरह , झुकी हुयी , दोनों हाथ मेरे पेड़ के तने पे ,
और उस के दोनों हाथ मेरी चूंचियों को दबाते हुए ऐसे जोर जोर से निचोड़ रहे थे की क्या कोई जूस स्टाल वाला नारंगी निचोड़ेगा।
गपागप गपागप , सटासट सटासट ,
वो पेल रहा था मैं लील रही थी , खुले आसमान के नीचे ,खुले मैदान में.
बारिश एक बार फिर तेज हो गयी , सावन की छोटी छोटी बूंदे ,तेज धार में बदल गयी थी ,
आसमान में फिर बिजली चमकने लगी थी.
लेकिन उस बेरहम पे कोई फरक नहीं पड़ने वाला था , बल्कि उसकी चुदाई की रफ्तार और बढ़ गयी।
जो मुझे चंदा और बसंती ने बताया सिखाया था , अगर मरद दो बार झड़ चुका है और फिर चोद रहा है ,
तो समझ लो चूत के चिथड़े उड़ेंगे ,और वो वही कर रहा था ,धकापेल चुदाई।
जोर जोर से उसके धक्कों की थाप मेरे भारी भारी चूतड़ों पर पड़ रही थी,
झुक झुक के मेरे मीठे मालपूआ ऐसे गालों को वो बेशरम कचाक कचाक काट रहा था।
घूस गइल , धंस गइल ,अंडस गइल हो ,
लेकिन उसे कोई फरक पड़ने वाला था क्या , इतनी जोर जोर से वो बेरहम पेल रहा था ठेल रहा था , मेरी कसी कच्ची चूत को फैलाते,चौड़ा करते ,.... इत्ते जोर से मेरी छरछरा रही थी , लेकिन अब चुदवाने के अलावा कोई रास्ता भी था क्या।
एक पल के लिए उसने चूंची पर से एक हाथ उठाया तो मैंने गहरी सांस ली लेकिन मुझे क्या पता की अब क्या होने वाला था ,
उसने उस हाथ से अपना मोटा बांस ऐसा लंड जो अभी भी ३/४ करीब ६ इंच से ज्यादा मेरी चूत में घुसा था पकड़ लिया और लगा गोल गोल घुमाने।
चूत की अंदरुनी दीवालों को रगड़ता अब वो सीधे मेरी जान लेने पे तुला था और उस सन्नाटे में कौन सुनता मेरी सिसकियों और चीखों को ,
और जो सुन रहा था वो तो बस हचक हचक कर चोदने में जुटा था।
मैं सोच रही थी ,
चल गुड्डी आज तुझे असली गाँव की चुदाई का मजा मिल रहा है।
जोर से उसने निपल पिंच किया और गाली एक के बाद एक , गलती मेरी थी जब वो हाथ से पकड़ के गोल गोल अपना मोटा लंड चूत में घुमा रहा था , मेरी मुंह से दर्द के मारे निकल गया ,
उईइइइइइइइइइइ माँ
बस ,
“तेरी माँ की , न जाने कितने भंडुवों से चुदवा के उसने तेरा जैसे गरम माल अपने भोसड़े से निकाला , \उसका भोसड़ा मारूं ,मादरचोद "
और मेरी हिम्मत नहीं हुयी की कुछ बोलूं क्यों की उसी के साथ ,
उसने सुपाड़े तक लंड बाहर निकाल के एक धक्के में , … इत्ते जोर से मेरी बच्चेदानी पे लगा की मेरी चीख निकल गयी और उसके बाद फिर उसकी गालियां ,
"तेरे सारे मायकेवालों की चूत मारूं, गांड मारूं अब तक कहाँ छिपा के रखी थी ऐसी मस्त छिनार चूत, साल्ली।”
और फिर ,
धक्के पर धक्के और साथ में , गालियों की झड़ी,
" गदहे की जनी, जनम की चुदक्क्ड़ , तेरी सारी चुदवास मिट जायेगी , ऐसी चुदेगी हमारे गाँव में न गिनती भूल जायेगी ,कितने लंड घुसे ,कितने निकले ,दिन रात सड़का टपकता रहेगा , किसी को मना किया न तेरी माँ बहन सब चोद दूंगा .
…
[b]" मादरचोद ,तेरी माँ का भोंसड़ा मारूं क्या मस्त माल पैदा किया है हमारे गाँव वालों के लिए , … "[/b]
"तूने खुद बोला है छिनार की जनी कम से कम २० से चुदेगी, इस गाँव में. अगर एक भी कम हुआ न तो मुट्ठी पेल दूंगा और जैसे कुतिया बनी है न वैसे ही कुतिया बना के गाँव के जितने,देसी … "
अब मुझे लगा की वो चंपा भाभी का पक्का देवर है यही वार्निंग ठीक मुझे चंपा भाभी ने दी थी ,
" अगर छिनरो ,गाँव का कौनो मरद बचा न त जाने से पहले तोहरी बुरिया में , ई मुट्ठी पूरा पेल दूंगी सोच लो ,लंड खाना है या मुट्ठी। "
आज उसकी गालियां बहुत प्यारी लग रही थीं ,
कई बार रिश्ते ऐसे हो जाते हैं की कोई बिना गाली के बात करे तो गाली लगता है।
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26-02-2019, 09:05 AM
(This post was last modified: 02-08-2019, 10:39 AM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
गुजर गयी रात
मुझे बस इतना याद है की जब वो झडा तो पानी की झड़ी एक बार फिर कम हो गयी थी।
मैं चल नहीं पा रही थी ,वो एक बार फिर मुझे गोद में उठा के कमरे में ले आया शायद साढ़े तीन बजा था।
और साढ़े चार पौने पांच के आसपास जब वो गया, मैंने पीछे वाला दरवाजा बंद किया।
अँधेरा कुछ धुंधला रहा था ,बरसात बंद हो चुकी थी।
लेकिन जाने के पहले के एक बार और उसने नंबर लगा दिया था ,
कुल चार बार रात भर में।
….
सुबह सुबह पूरी देह टूट रही थी , उठने का मन नहीं कर रहा था।
अलसाया अलसाया लग रहा था।
मैं सुबह उठी तो साढ़े आठ बज रहे थे , उठी क्या बसंती ने उठाया।
बस मन कर रहा था , एक बार फिर अजय आ जाय। साल्ले ने रात में रगड़ के रख दिया था ,
जरा मैंने गर्दन झुकाई तो पूरे उभारों पर उसके दांतों के ,नाखूनों के निशान रात की गवाही दे रहे थे ,
ख़ास तौर से जो मेरी गोलाइयों के ऊपरी हिस्से में ( जो न मेरी चोली में छुपती हैं और जिन्हे न मैं छुपाना चाहती हूँ )
जबरदस्त कचकचा के काटा था उस दुष्ट ने ,जैसे अपनी मुहर लगा दी हो , आज से ये माल मेरा है।
बात तो उसकी सही थी , माल तो मैं उसकी थी ही।
मेरी सारी सहेलियां मुझे अजय का माल कह के ही बुलाती थी और मेरी नथ भी तो उसी ने उतारी थी ,मेरे सारे नखड़े के बावजूद , और कल रात जो उसने चुदाई की थी
मैं मान गयी।
जो मैं सोचती थी मर्द कैसा होना चाहिए एकदम वैसा , जो ज़रा भी ना नुकुर न सुने , केयरिंग भी हो लेकिन चोदने के समय , एकदम गाली दे दे के रगड़ रगड़ के चोदे ,…
एकदम वैसा और ताकत भी कितनी , भाभी सही कह रही थीं जिस दिन चढ़ेगा ननद रानी ढंग से दो दिन टांग फैला के चलोगी।
मैं मुस्कराने लगी उसकी और अपनी बात सोच के , एक बात जो मुझे साल रही थी उस की भी फाँस उस ने निकाल दी ,
और फिर खुद तो हुजूर ने किसी को छोड़ा नहीं है मेरी कोई सहेली नहीं बची , उसकी कितनी भौजाइयों और घर खेत में काम करने वालियां , और कैसे बेलौस सब उस ने खुद ही बोल भी दिया और अपनी मर्जी भी बता दी , … बस अब अपने अजय का हुक्म भी है और , मन तो यार मेरा भी करता है ,…
किसी तरह चारपाई पकड़ के मैं उठी ,और उठते ही मेरी गोरी गोरी जाँघों पर मेरे साजन की रात भर की मेहनत की कमाई ,खूब गाढ़ी गाढ़ी सफेद थक्केदार मलाई की धार , सड़का टपक रहा रहा था पूरी जांघ लिसलिसी हो रही थी।
किसी तरह अपने को थोड़ा बहुत ठीक किया ,
बाहर निकलते समय ताखे पर निगाह पड़ी ,कल जो बोतल कड़वे तेल की चंपा भाभी पूरी भर के रख गयीं थीं अब आधी हो गयी थी।
मुश्किल से मुस्कराहट रोकी मैंने।
![[Image: geeta-228bb8ba66fcd14951bc14cabd67f8be.jpg]](https://i.ibb.co/WG9r52Z/geeta-228bb8ba66fcd14951bc14cabd67f8be.jpg)
किचेन में चाय देते समय बसंती खुल के मुस्करा रही थी।
उस की निगाहों से कुछ छिपता है क्या , और फिर अब छिपाने से फायदा भी क्या ,वो भी तो अपने ही गोल की हो गयी थी।
चंपा भाभी का कमरा अभी भी बंद था।
मुझे याद आया की आज पूरबी आने वाली है ,मुझे नदी नहाने ले किये ,मैं जल्दी जल्दी हाथ मुंह धो ,साडी पहन तैयार हुयी।
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Chudai ka scene bahut bada aur zabardast tha aur photo ke perfect istemmal ne ise aur jada akarshak bana diya. Mai bhi xossip par apni story me aise hi bade bade scene likjta tha par philhaal apni purani likhi ja chuki ko xossip par jaha tak likh chuka tha waha tak jaldi pahuchne ke liye sex update thode chhote likh raha waha pahuchne ke baad aise hi bade likhunga. Waise ye update padkar maza aa gaya.
Read my story
A story of 7 female friends with different plot of everyone.
Pehle ye xossip site par likh raha tha par stroy ke mid me wo site band hone ki wajah se yaha us story ko dubara short me likhna pada.
Pad kar apna feedback de story ka link neeche hai.
https://xossipy.com/thread-1191.html?hig...in+village
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