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Misc. Erotica सेक्स, उत्तेजना और कामुकता -
"धत बड़े मामा, आप तो बहुत ही गंदे ..... ऊंह आप भी ना कैसी कैसी ....," मैं शर्मा रही थी। मेरा दिल बड़े मामा की वासनामयी विचित्र इच्छायों से उत्तेजित हो कर तेज़ी से धक्-धक् कर रहा था।


"बेटा, आपका मूत्र तो अमृत की तरह मीठा और सुन्धित है। आज तो मैंने बस चखा है मैं तो दिल खोल कर अपनी बेटी का मूत्र्पान करने के दिन का इंतज़ार कर रहा हूँ।" बड़े मामा ने प्यार से मेरी चूत को फिर से चूमा उन्होंने मेरी दोनों जांघें उठा कर अपने कन्धों पर रख ली। मैं कुछ भी न समझने के कारण बड़े मामा को सिर्फ प्यार से निहारती रही।


बड़े मामा मेरी पूरी खुली जांघों की बीच मेर्रे गीली चूत के ऊपर मुंह रख कर उसे ज़ोर* से चूमने लगे। मेरे गले से ऊंची सिसकारी निकल पड़ी।

"बड़े मामा ... आह आप क्या कर रहें हैं?" मैं बड़ी मुश्किल से बोल पाई।


बड़े मामा ने मुझे नज़रंदाज़ कर मेरी कुंवारी छूट के गुलाबी अविकसित भगोष्ठों को अपनी जीभे से खोल कर मेरी चूत के संकरी दरार को जोर से अपनी जीभ से चाटने लगे।

"बड़े मामा, मेरी चूत जल रही है। ओह ... आह ... ओह .. बड़े मामा .. आ ...आ ... उन्न .. उन्न ...अं।" मेरे गले से वासना भरी सिसकारी निकलने लगीं।


बड़े मामा ने मेरी चूत को अपनी खुरदुरी जीभ से चाटना शुरू कर दिया। उनकी जीभ मेरी चूत के निचले कोने से शुरू हो कर मेरे भग-शिश्न पर रुकती थी। उन्होंने कुछ ही क्षड़ों में मेरी चूत को वासना के अग्नि से प्रज्ज्वलित कर दिया।


मेरे दोनों हाथ स्वतः ही उनके घुंघराले घने बालों में समा गए। मैंने उनके घने बालों को मुठी में कस कर पकड़ लिया और उनका* मुंह अपनी चूत में दबाने लगी।

"बड़े मामा, मेरी चूत आह ... आह ... ओह .. कितना अच्छा लग रहा है, बड़े मामा आह ..ऊंह .. ऊंह ....आन्न्ह ...आन्नंह ....और चाटिये प्लीज़।" मैं अब वासना की आग में जल रही थी और अनर्गल बोलने लगी।


बड़े मामा अपनी जीभ से अब मेरे सख्त अविकसित किशमिश के दाने के आकार के अति-संवेदनशील क्लिटोरिस को चाटने लगे। उनकी भारी खुरदुरी जीभ ने जैसे हे मेरे भग-शिश्न को जोर से चाटा मेरा रत-निष्पात शुरू हो गया।


"बड़े मामा मैं झड़ रही हूँ। आह .. आन्नंह ....ओह .. ओह ... मा ...मा ..... जी ...ई ... ई .... ऊउन्न्न्न्न्ह्ह्ह," मैं जोर से चीख कर झड़ने लगी। मेरा प्रचुर रति-रस ने मेरी चूत से झरने की तरह बह कर बड़े मामा के मुंह को भर दिया। बड़े मामा मेरे चूत के रस को प्यार से पी कर मेरी कुंवारी चूत को फिर से चाटना शुरू कर दिया।


मैं अब बिलकुल पागल हो गयी। मेरा कमसिन अविकसित शरीर इतनी तीव्र प्रचंड वासना को सम्भालने के लिए अत्यंत अपरिपक्व था। दूसरी और बड़े मामा सम्भोग के खेल में अत्यंत अनुभवी थे। मेरे शरीर को उन्होंने अपने प्रभुत्व में ले कर मेरी छूट को अपनी जीभ से एक बार फिर से गर्म कर दिया।

मेरी सीत्कारी बार बार स्नानगृह में गूँज रहीं थीं।


मैं सिसकते हुए बड़े मामा के सर को अपने जांघों के बीच में जोर से दबा रही थी। बड़े मामा ने मेरी जांघों को और ऊपर कर मेरे नितिम्बों को और खोल दिया। उनकी जीभ अचानक मेरे मलाशय के छिद्र पर पहुँच गयी। मेरी सांस बंद हो चली मुझे तो सपने में भी सोच नही आता की कोई किसी दुसरे के गुदा-छिद्र को चाटने की इच्छा कर सकता था।


बड़े मामा मेरे सामने संसर्ग के नए द्वार खोल रहे थे।


बड़े मामा ने अब अपनी जीभ की नोक से मेरी गुदा को करोदने लगे। मेरी गांड का छेद स्वतः फड़कने लगा। बड़े मामा ने थोड़ी देर ही में उसे चाट कर शिथिल कर दिया। अचानक उनकी जीभ की नोक मेरी गांड के छेड़ के अंदर प्रविष्ट हो गयी।


"बड़े मामा आप क्या कर रहें हैं? ओह .. ओह .. आन्न्ह ... मेरी गा .. आंड ... ओह ... आन्न्न्ह्ह्ह .... ऒओन्न्न्न्ह्ह्ह्ह्ह।" मेरे जलते हुए शरीर पर अब बड़े मामा का पूरा अधिकार था। मैंने अपने आप को बड़े मामा के हाथों पर छोड़ दिया।


बड़े मामा की जीभ मेरी गांड के छेद से लेकर चूत के ऊपरी कोने तक चाटने लगी। हर बार उनकी खुरदुरी जीभ मेरे संवेदनशील भग-शिश्न को जोर से रगड़ देती थी। मैं एक बार फिर से झड़ने के द्वार पर खड़ी थी। मेरी चूत में एक विचित्र से दर्द उठ चला। उस दर्द ने एक अजीब सी जलन भी थी।


"बड़े मामा मुझे झाड़ दीजिये, " मैं हलक फाड़ कर चीखी।


बड़े मामा ने तुरंत अपनी मोटी तर्जनी [इंडेक्स फिंगर] मेरी गांड में डाल केर मेरे जलते हुए भाग-शिश्न को अपने होंठों में कास कर पकड़ कर उसे झंझोंड़ने लगे। मैं चीख कर झड़ने लगी।


मेरा सारा शरीर अकड़ गया। मेरे पेट में दर्द भरी एंथन ने मेरी सांस रोक दी। मेरी चूत के बहुत भीतर एक नई दर्द भरी मरोड़ पैदा हो गयी थी।

मेरे कमसिन अपरिपक्व शरीर के अंदर उठे सारे दर्द एक जगह में मिल गए। वो जगह मेरी चूत थी।


मेरी ऊंची चीख से स्नानगृह की दीवारें गूँज उठीं। जब मेरा रत-निष्पति शुरू हुई तो मेरे सारे शरीर की मांस-पेशियाँ शिथिल पड़ गयीं। मेरा अकड़ा हुआ कमसिन शरीर बिलकुल ढीला हो कर बड़े मामा के ऊपर गिर गया। मेरे लम्बी साँसें मेरे सीने को जोर से ऊपर-नीचे कर रहीं थें।


मेरी चूत में से रस बह कर बड़े मामा के मुंह में समा गया। मुझे लगा जैसे मेरी चूत में कोई पानी की नली खुल गयी थी।


मुझे पता नहीं मैं कितनी देर तक गहरी साँसे लेती शिथिल बड़े मामा की बाँहों में पड़ी रही। जब ममुझे होश आया तो मैं मुकुर कर बड़े मामा से लिपट गयी। बड़े मामा ने मेरे मुस्कुराते हुए मुंह पैर मेरे रस से भीगा अपने मुंह को लगा दिया। मेरे होंठों ने उनके होंठो पे लगे मेरे मीठे-नमकीन*रति-रस को चखने लगे।

बड़ी देर तक बड़े मामा और मैं खुले मुंह से एक दुसरे के मुंह के अंदर का स्वाद अपनी जीभ से लेते रहे।


अंत मे बड़े मामा धीरे से मुझसे अलग हुए और खड़े हो गए। उनका सफ़ेद कुरता किसी तम्बू की तरह ऊंचा उठा हुआ था।

"बड़े मामा, आपके पजामे में कुछ है?" मैंने शर्माते हुए कहा।


बड़े मामा ने मेरा छोटा नाजुक हाथ लेकर उसे अपने पजामे के ऊपर रख दिया। मेरा हाथ थरथराते एक मोटे खम्बे के ऊपर लगा था।

"नेहा बेटा, इस लंड को छू कर देख लो। एक दिन में यह आपकी चूत के अंदर जाने वाला है," बड़े मामा ने धीरे से कहा और मुड़ कर मेरे स्नानगृह से बहर चले गए।


मैं गहरे वासनामयी सोंचों में डूबी कमोड पर बैठी रही। तब मुझे पता नहीं था की पुरुष के लंड कितने बड़े होते थे। मनु भैया का लंड जितना भी दिखा था मुझे तो बहुत मोटा लगा था। अंजू भाभी ने तो बताया था की मेरे परिवार के पुरुषों के लंड बहुत विशाल थे। मैं सोच में पड़ गयी की अंजू भाभी को सबके लंडों के बारे में कैसे पता चला?


मेरे हाथ ने बड़े मामा के पजामे में छुपे उनके लिंग को छुआ था वो तो मुझे बहुत ही भारी और मोटा लगा था।

मैं अब घबराने लगी। पर मेरी बड़े मामा के अश्लील शब्दों से जागृत वासना में कैसी भी कमी नहीं हुई। मैं अब बेचैनी से बड़े मामा के साथ संसर्ग के सपने देखने लगी।


मैंने अपने शयन-कक्ष सुइट में पहुच कर जल्दी से बैग में कुछ कपड़े, जूते, अन्त्वस्त्र डाल लिए. मैं केवल लम्बी टी शर्ट पहन कर बिस्तर में रज़ाई के अंदर घुस गयी.

मुझे सारी रात ठीक से नींद नहीं आयी. मैं बिस्तर में उलट-पलट कर सोने के कोशिश कर रही थी, घड़ी में बारह बजे थे.मेरे शयन-कक्ष के दरवाज़े खोल कर अंजू भाभी जल्दी से मेरे बिस्तर में कूद कर रज़ाई में घुस कर मेरे से लिपट गयीं. अंजू भाभी ने सिर्फ एक झीना सा रेशम का साया पहना हुआ था.


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"अंजू भाभी, आप को तो सुबह जाने की तय्यारी करनी थी," मैं भी अंजू भाभी के साथ ज़ोर से लिपट गयी.

अंजू भाभी ने मुझे पलट कर पीठ पर सीधा लिटा दिया और मेरे ऊपर लेट गयीं. उन्होंने ने मेरे होठों पर अपने गरम कोमल होंठ रख कर धीरे से फुसफुसाईं,"मेरी प्यारी और अत्यंत सुंदर नन्दरानी, तुम्हे प्यार से विदा किये बिना तो मैं नहीं जा सकती थी."


अंजू भाभी ने अपने जीभ से मेरे होंठों को खोलकर मेरे मूंह में अपनी जीभ डाल कर मेरे मसूड़ों को प्यार से सहलाया.उनका मीठा थूक मेरे मूंह में बह रहा था. मैंने भी अपनी जीभ उनकी जीभ से भिड़ा दी.


अंजू भाभी ने मेरी टीशर्ट ऊपर कर मेरे फड़कते हुए मोटे पर अभी भी पूर्ण तरह से अविकसित स्तनों को उज्जागर कर दिया। उनका हाथ मेरे दोनों उरोजों को बारी बारी से लगा। मेरी सिसकारी भाभी के मुंह में समा गयी। उन्होंने मेरा एक स्तन अपने हाथ से मसलना शुरू कर दिया औए अपनी जीभ ज़ोर से मेरे मुंह में घुसेड़ने लगीं।

मेरी चूत मेरे रस से भर गयी और मेरा रस चूत से बहार निकल कर मेरी जांघों को भिगोना लगा।


अंजू भाभी के काफी लम्बे चुम्बन से मेरी सांस कामोन्माद से रुक-रुक कर आ रही थी. अंजू भाभी ने अंत में मुझे मुक्त कर दिया. मैंने भाभी की मीठी लार निगल कर नटखटपने से कहा, "आज क्या बात है, अप्सरा से भी सुंदर मेरी भाभी इस वक़्त नरेश भैया से नहीं चुद रहीं?" मैंने अपनी छोटी सी किशोर-उम्र में पहली बार अश्लील शब्द का उपयोग किया.


अंजू भाभी खिलखिला कर हंसी और मुझे जोर से चूमने के बाद बोलीं, "मेरी छोटी सी, गुड़िया जैसी प्यारी नन्द. आपके भैया मेरी चूत और गांड दोनों मारने के बाद सो गएँ हैं. मैंने उनसे तुम्हारे बारे में पूछ लिया है. तुम्हारे भैया ने सन्देश भेजा है की जब तुम्हारा मन चाहे वो अत्यंत खुशी से तुम्हारी चुदाई के लए तैयार हैं. मैं तुम्हे यह अकेले में बताना चाहती थी. तुम बस हमें फ़ोन कर देना. तुम्हारे भैया और मैं कुछ भी बहाना बना कर तुम्हे अपने पास बुला लेंगे."


मेरी चूत बिलकुल गीली हो गयी. मैंने भाभी को प्यार से चूमा, "अंजू भाभी, क्या मैं आपकी ताज़ी चुदी हुई चूत और गांड देख सकती हूँ?" मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि मैं अब कामेच्छा से इतनी प्रभावित हो चुकी थी कि अब मुझे भाभी से इस तरह की बातें करते हुए कोई शर्म नहीं आ रही थी.


भाभी ने हंसते हुए अपना साया ऊपर किया और दोनों घुटने मेरे सिर के दोनों तरफ रख कर अपनी घने घुंघराले झांटों से भरी सुगन्धित चूत को मेरे मूंह के ठीक ऊपर रख दिया. भाभी ने अपने हाथों से अपनी यौनी के फ़लकों को खोल कर मेरे सामने अपनी चूत का गुलाबी प्रवेश-मार्ग मेरे सामने कर दिया, "नेहा, यदी चाहो तो अपनी जीभ से अपने भैया के वीर्य का स्वाद चख सकती हो."


भाभी की चूत की नैसर्गिक सुगंध से मेरे होश गुम हो गए.

मेरी जीभ अपनी मर्ज़ी से भाभी की चूत के प्रवेश को धीरे से चाटने लगी. मुझे भाभी की चूत से तेज़, तीखा-मीठा स्वाद मिला. भाभी ने नीचे की तरफ ज़ोर लगाया मानो पखाना करना करना चाहतीं हों. उनकी खुशबू भरी चूत से धीरे-धीरे सफ़ेद, चिपचिपा लसदार पदार्थ बह कर मेरी जीभ पर ढलक गया. मैंने जल्दी से अपना मूंह बंद कर लिया. मेरे नरेश भैया का वीर्य, भाभी के रति-रस से मिलकर विचित्र पर मदहोश करने वाले स्वाद से मेरा मूंह भर गया.


भाभी बोलीं, "नेहा मैं तुम्हरे भैया के वीर्य के स्वाद की दासी बन चुकी हूँ. मैं कोशिश करती हूँ शायद मेरी गांड में से भी थोड़ा सा निकल जाये."

इससे पहले कि मैं कुछ भी बोल पाऊँ भाभी कि कोमल हल्की-भूरी गांड का छोटा सा छेद मेरे खुले मूंह पर था. भाभी ने अपने दोनों नाज़ुक छोटे-छोटे हाथों से अपने भारी, मुलायम, गुदाज़ नितिम्बों को फैला दिया. भाभी बड़ी सी सांस भर कर ज़ोर से अपनी गांड का छेद खोलने की कोशिश करने लगीं. उनकी गांड का छल्ला धीरे-धीरे खुलने लगा. मुझे उनके गांड के भीतर की सुगंध से मदहोशी होने लगी. कुछ देर में ही भैया का लसलसा वीर्य की एक छोटी सी धार भाभी की गांड से बह कर मेरे मूंह में गिर पडी. इस बार भैया के वीर्य में भाभी की गांड का स्वाद शामिल था. मैंने लोभी की तरह भैया का वीर्य सटक लिया.



अंजू भाभी की गांड का छल्ला मेरे मुंह के ऊपर खुल-बंद हो रहा था। उनकी गांड के अंदर की गुलाबी परत जब भाभी जोर लगा कर अपनी गांड खोलती थीं तो मुझे दिखने लगती थी। मेरे बिना सोचे समझे और किये मेरी जीभ स्वतः मेरे मुंह से निकल भाभी की गांड के फूले छल्ले को चूमने लगी अंजू भाभी की सितकारी निकल गयी, "आह, नेहा, तुमने ...... आह, .... नेहा फिर से मेरी गांड को अपनी जीभ से चाटो।"


मैं गर्व से फूल गयी। मेरी जीभ ने अंजू भाभी को आनंद दिया इस बात से मैं उत्तेजित हो गयी। मैंने दोनों हाथों से भाभी के फूले बड़े मुलायम चौड़े चूतड़ पकड़ कर उनकी गांड को अपने मुंह के पास खींच लिया। मेरी जीभ ने उनके गांड के छिद्र को चाटना शुरू कर दिया।

अंजू भाभी की सिस्कारियां अब ऊंची होने लगीं।


मैंने उनकी फड़कती हुई गांड के छेड़ में अपनी जीभ की नोक अंदर डालने कोशिश शुरू कर दी। मेरी महनत का मुझे शीघ्र ही इनाम मिल गया। भाभी ने कराह कर अपनी गांड को ज़ोर लगा कर खोलनी की कोशिश की और मेरी तैयार जीभ उनकी गांड के अंदर समा गयी। मुझे उनकी गांड की मादक सुगंध तो पहले ही लुभा गयी थी अब उनकी गांड के अंदर का विचित्र स्वाद भी मुझे लुभाने लगा।


भाभी ने अपनी गांड धीरे धीरे मेरी जीभ के ऊपर रगड़ना शुरू कर दिया।

उनकी हर सिसकारी मुझे प्रोत्साहन दे रही थी। थोड़ी देर में अंजू भाभी करह आकर घुटी घुटी आवाज़ में बोलीं, "नेहा अब मेरी चूत चाटो। मुझे अपने मीठे मुंह से चूस कर झाड़ दो।"


भाभी के आदेश ने मुझे और भी उत्तेजित कर दिया। भाभी ने अपने चूतड़ हिला कर अपनी गीले घुंघराले रेशमी झांटों से ढकी योनी को मेरे मुंह के ऊपर सटा दिया। मैंने नादानी में उनकी सुगन्धित प्यारी चूत को अपने मुंह में भर कर कस कर चूम लिया। भाभी के गले से धीमी सी चीख निकल पड़ी। पहले तो मुझे लगा कि मैंने अपनी प्यारी सुंदर भाभी की चूत को चोट पहुंचा दी थी। पर जल्दी ही भाभी ने धीरे से कहा, " नेहा, तुम तो बहुत अच्छी चूत चूस रही हो। और ज़ोर से मेरी चूत चूसो। मेरी छूट को काट खाओ।


मैंने हिम्मत कर उनके मोटे, मुलायम ढीले लटके हुए गुलाबी भगोष्ठों को अपने मुंह में भर पहले तो धीरे धीरे से चूसा फिर भाभी की सिस्कारियां सुन कर मेरा साहस बड़ गया और मैंने भाभी के दोनों मोटे मुलायम भागोश्थों को अपने होंठों में दबा कर ज़ोर से चूसना शुरू कर दिया।

अंजू भाभी की सिस्कारियां अब कराहट में बदल गयीं, "आह .. ने .. एहा ...ऐसे ही चूसो। और ज़ोर से नेहा। और ज़ोर चूस कर दर्द करो।मैं जल्दी से झड़ने वाली हूँ।"


अंजू भाभी की गांड का छल्ला मेरे मुंह के ऊपर खुल-बंद हो रहा था। उनकी गांड के अंदर की गुलाबी परत जब भाभी जोर लगा कर अपनी गांड खोलती थीं तो मुझे दिखने लगती थी। मेरे बिना सोचे समझे और किये मेरी जीभ स्वतः मेरे मुंह से निकल भाभी की गांड के फूले छल्ले को चूमने लगी अंजू भाभी की सितकारी निकल गयी, "आह, नेहा, तुमने ...... आह, .... नेहा फिर से मेरी गांड को अपनी जीभ से चाटो।"


मैं गर्व से फूल गयी। मेरी जीभ ने अंजू भाभी को आनंद दिया इस बात से मैं उत्तेजित हो गयी। मैंने दोनों हाथों से भाभी के फूले बड़े मुलायम चौड़े चूतड़ पकड़ कर उनकी गांड को अपने मुंह के पास खींच लिया। मेरी जीभ ने उनके गांड के छिद्र को चाटना शुरू कर दिया।

अंजू भाभी की सिस्कारियां अब ऊंची होने लगीं।


मैंने उनकी फड़कती हुई गांड के छेड़ में अपनी जीभ की नोक अंदर डालने कोशिश शुरू कर दी। मेरी महनत का मुझे शीघ्र ही इनाम मिल गया। भाभी ने कराह कर अपनी गांड को ज़ोर लगा कर खोलनी की कोशिश की और मेरी तैयार जीभ उनकी गांड के अंदर समा गयी। मुझे उनकी गांड की मादक सुगंध तो पहले ही लुभा गयी थी अब उनकी गांड के अंदर का विचित्र स्वाद भी मुझे लुभाने लगा।


भाभी ने अपनी गांड धीरे धीरे मेरी जीभ के ऊपर रगड़ना शुरू कर दिया।

उनकी हर सिसकारी मुझे प्रोत्साहन दे रही थी। थोड़ी देर में अंजू भाभी करह आकर घुटी घुटी आवाज़ में बोलीं, "नेहा अब मेरी चूत चाटो। मुझे अपने मीठे मुंह से चूस कर झाड़ दो।"


भाभी के आदेश ने मुझे और भी उत्तेजित कर दिया। भाभी ने अपने चूतड़ हिला कर अपनी गीले घुंघराले रेशमी झांटों से ढकी योनी को मेरे मुंह के ऊपर सटा दिया। मैंने नादानी में उनकी सुगन्धित प्यारी चूत को अपने मुंह में भर कर कस कर चूम लिया। भाभी के गले से धीमी सी चीख निकल पड़ी। पहले तो मुझे लगा कि मैंने अपनी प्यारी सुंदर भाभी की चूत को चोट पहुंचा दी थी। पर जल्दी ही भाभी ने धीरे से कहा, " नेहा, तुम तो बहुत अच्छी चूत चूस रही हो। और ज़ोर से मेरी चूत चूसो। मेरी छूट को काट खाओ।


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मैंने हिम्मत कर उनके मोटे, मुलायम ढीले लटके हुए गुलाबी भगोष्ठों को अपने मुंह में भर पहले तो धीरे धीरे से चूसा फिर भाभी की सिस्कारियां सुन कर मेरा साहस बड़ गया और मैंने भाभी के दोनों मोटे मुलायम भागोश्थों को अपने होंठों में दबा कर ज़ोर से चूसना शुरू कर दिया।

अंजू भाभी की सिस्कारियां अब कराहट में बदल गयीं, "आह .. ने .. एहा ...ऐसे ही चूसो। और ज़ोर से नेहा। और ज़ोर चूस कर दर्द करो।मैं जल्दी से झड़ने वाली हूँ।"


मैं अब भाभी की वासना की आग में शामिल हो गयी। मैंने अपनी पहले एक उंगली उनकी गांड में डाली फिर उनकी कसी हुई गांड में एक और उंगली डाल दी। मैं उसी समय उनके भगोष्ठों को अपने दांतों में हलके से भींच कर अपने मुंह के अंदर खींचने लगी।


अंजू भाभी का सारा शरीर कांपने लगा। उनकी ऊंची चीख कमरे में गूँज उठी। उन्होंने अपने गांड मेरी उंगलीयों पर और अपनी चूत मेरे मुंह पर कास कर दबा दी। मेरी सांस भाभी के भारी चूतडों के नीचे दबकर घुट रही थी। पर भाभी का तड़पता शरीर चरमोत्कर्ष के लिए उत्सुक था। उनकी चूत ने अचानक मेरे मुंह में मीठा रस की मानो नाली खोल दी।


मेरा मुंह भाभी के रति-रस से बार बार भर गया। मैंने जल्दी जल्दी उसे पीने लगी पर फिर भी भाभी की चूत से झड़ते रस ने मेरे मुंह को पूरा भिगो दिया।

भाभी का कम्पित शरीर बड़ी देर में संतुलित हुआ। उन्होंने लपक कर पलती ली और मुझे अपनी बाँहों में भर लिया, "नेहा, ऐसे तो मैं किसी और स्त्री के चूसने से कभी भी नहीं आयी। तुम्हारे मीठे मुंह में तो जादू है। अब मुझे अपनी सुंदर ननद का एहसान चुकाना होगा।"


उन्होंने ने अपना साया अतार कर फैंक दिया।

इससे पहले कि मैं समझ पाती अंजू भाभी फिर से पलट कर मेरे ऊपर लेट गयी। उन्होंने मेरी भरी गुदाज़ जांघों को मोड़ कर पूरा फैला दिया। मेरी गीली चूत पूरी खुल कर भाभी के सामने थी। मेरी टीशर्ट मेरे पेट के ऊपर इकठ्ठी हो गयी थी।


उनके मोटी मादक जांघों ने मेरे चेहरे को कस कर जकड़ कर एक बार फिर से मेरे मुंह के ऊपर अपनी मीठी रस भरी चूत को लगा दिया।

भाभी ने मेरी चूत को जोर से चूम कर अपनी जीभ से मेरे संकरी चूत के दरार को चाटने लगीं। एक रात में मेरी चूत दूसरी बार चूस रही थी।


मेरी सिसकारी भाभी की चूत के अंदर दफ़न हो गयी। मैंने भी ज़ोरों से भाभी की चूत के ऊपर अपने जीभ, होंठ और दांतों से आक्रमण कर दिया।

भाभी ने मेरी चूत को अपनी जीभ से चाट कर मेरे भग-शिश्न को रगड़ने लगीं। मेरी गांड स्वतः उनके मुंह के ऊपर मेरी चूत को दबाने लगीं।

मैंने भाभी का मोटा, तनतनाया हुआ भाग-शिश्न अपने मुंह में ले कर चूसते हुए अपने दो उंगलियाँ उनकी कोमल छूट में घुसेड़ दीं।


मैंने अपनी उँगलियों से भाभी की चूत मारते हुए उनके क्लिटोरिस को बेदर्दी सी चूसना, रगड़ना और कभी कभी हलके से काटना शुरू कर दिया।

भाभी मेरी चूत चाटते हुए मेरी तरह सिस्कारिया भर रहीं थी।

भाभी अपनी एक उंगली से मेरी गांड के छिद्र को सहलाने लगीं। मैं बिदक कर अपने चूतड़ बिस्तर से ऊपर उठा कर उनके मुंह में अपनी चूत घुसाने की कोशिश करने लगी।


मुझे पता नहीं कितनी देर तक हम ननद-भाभी एक दुसरे के साथ सैम-लैंगिक प्यार में डूबे रहे। अचानक मेरी चूत में ज़ोर से जलन होने लगी। मैं समझ गयी कि मैं अब जल्दी झड़ने वाली हूँ। मैंने भाभी के भाग-शिश्न को फिर से अपने होंठों से खींचना उमेठना शुरू कर उनकी चूत को अपनी उंगलियाँ से तेज़ी से मारने लगी।

भाभी और मैं लगभग एक साथ झड़ने लगीं। मारी चूत से मानों कि रस का झड़ना फुट उठा। भाभी की चूत ने एक बार फिर से इतना रस मेरे मुंह में निकाला कि मैं मुश्किल से बिना व्यर्थ किये पी पायी।


हम दोनों बहुत देर तक एक दुसरे की जांघों के बीच अपना मुंह दबा कर हांफती हुई साँसों को काबू में करने का प्रयास कर रहीं थीं।

आखिकार थकी हुई सी भाभी पलटीं और मुझे बाँहों में लेकर अनेकों बार चूमने लगीं। मैंने भी भाभी के चुम्बनों का जवाब अपने चुम्बनों से देना प्रारंभ कर दिया।

कुछ देर बाद भाभी मेरे ऊपर से फिसल कर मेरे साथ लेट गयीं और मेरे होंठों पर अनेकों चुम्बन दिए.


कुछ देर बाद मैंने भाभी के साथ हुए सैम-लैंगिक अगम्यागमन को नज़रंदाज़ करने के लिए शरारत से भाभी के दोनों निप्पलों को कास कर दबा दिया और नटखटपन से बोली, "अब तो मुझे भैया से चुवाना ही पड़ेगा. उनका ताज़ा मीठा-नमकीन वीर्य तो मुझे हमेशा के लिए याद रहेगा."

मेरी भाभी ने मेरा चेहरा हाथों में ले कर धीरे से बोलीं,"नेहा, तुम्हारी स्वार्गिक सौन्दर्य के लए तो भगवान् भी लालची बन जायेंगे. नेहा, तुम्हें शायद पता न हो पर इस घर में सारे पुरुष तुम्हे प्यार से चोदने से पीछे नहीं हटेंगें. कभी तुमने अपने पापा को ध्यान से देखा है. उनके जैसा पुरुष तो किसी भी स्त्री का संयम भंग कर सकता है. मुझे तो पता नहीं कि तुम कैसे एक घर में रह कर भी उनसे चदवा कर उनकी दीवानी नहीं बन गयीं. मैं तो अबतक अपना कौमार्य उनको सम्पर्पित कर देती."


अब मैं बिलकुल शर्म से तड़प उठी. ममेरे भई से चुदवाने की अश्लील बात एक तरफ थी पर अपने प्यारे पापा के साथ...[ऊफ पापा के साथ कौटुम्बिक-व्यभिचार...भगवान् नहीं..नहीं]... मेरा दिमाग पागल हो गया.

"भाभी प्लीज़ आप ऐसे नहीं बोलिए. मुझे बहुत शर्म और परेशानी हो रही है,"


भाभी ने प्यार से मुझे पकड़ के एक लम्बा सा चुम्बन दिया और मुझसे विदा ली, “नेहा, तुम कल बड़े बाबूजी [बड़े मामा] के साथ मछली पकड़ने जा रही हो। यह अच्छा मौक़ा है अपने बड़े मामा से अपनी कुंवारी चूत फड़वाने का। उन्हें पटाने में तुम्हें ज़्यादा मेहनत भी नहीं करनी होगी।”

मेरा दिल जोर से धड़कने लगा। क्या अंजू भाभी को शक हो गया था की मेरे और बड़े मामा के बीच में कुछ चल रहा था?


मैंने बड़ी बहादुरी से अपना डर छुपा कर मुस्करा कर बोली, "भाभी, आप को कैसे पता की बड़े मामा को पटाने में कम मेहनत लगेगी? क्या अपने ससुरजी के साथ भी चुदाई की हुई है?"

मैंने देखा की कुछ क्षणों के लिए अंजू भाभी भाभी सकपका गयीं। पर वो मुझे बहुत परिपक्व थीं। उन्होंने संभल कर बात सम्भाल ली, "अरे, मेरी छोटी सी नन्द रानी तो बड़ी तड़ाके से बोलना सीख गयी है।"


उन्होंने झुक कर मेरी नाक की नोक को प्यार से काट कर मेरे खिलखिला कर हँसते हुए मुंह को उतने प्यार से ही चूम लिया, " नेहा, मुझे बेटी पैदा करने का सौभाग्य हुआ तो मैं प्रार्थना करूंगी की वो तुम्हारे जितनी प्यारी और सुंदर हो।" उन्होंने मेरे मुंह पर से अपने मीठे होंठ लगा कर चूम लिया। मैं उनके प्यार से अभिभूत हो गयी।


अंजू भाभी ने मुझे मुक्त किया और द्वार की तरफ चल दीं। पर अंजू भाभी भी अंजू भाभी थीं। उन्होंने दरवाज़े के पास मुड़ कर मुझे मुस्करा कर देखा और मीठी सी आवाज़ में बोलीं, "नेहा, तुम्हारे बड़े मामा मेरे ससुर हैं और मैं उनके बेटे की अर्धांग्नी हूँ। मुझे अपने ससुर जी के सोचने के तरीके के बारे में काफी-कुछ पता है। सो मेरी बात भूलना नहीं। यदि बड़े मामा तुम्हारे इशारों को ना समझें तो तुम्हारे नरेश भैया तो तैयार हैं हीं।"



मेरा मन तो हुआ कि मैं अंजू भाभी को वापिस बुला कर सब बता दूं। हो सकता है की वो मुझे कुछ बड़े मामा से चुदवाने में मदद करने की कोई सलाह देदें। पर फिर मुझे तुरंत विचार आया कि बड़े मामा भी तो इस प्रसंग में शामिल हैं और उनकी आज्ञा के मुझे किसी को भी बताने का अधिकार नहीं है।

मैं इस उहापोह में पड़ी रही पर कुछ ही देर में मैंने अपने मस्तिष्क को समझा दिया। आखिरकार मैं निद्रादेवी की गोद में गिरकर गहरी नींद में शांति से सो गयी.


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सुबह मैंने जल्दी से नहाने के बाद अपने बालों को खुला छोड़ दिया. मैंने सफ़ेद कॉटन की ब्रा और जांघिया चुनकर हलके गुलाबी रंग का कुरता और सफ़ेद सलवार पहनी. उसके ऊपर मैंने सफ़ेद झीनी सी चुन्नी गले पर लपेट ली. दुपट्टे के नीचे मेरे बड़े उरोज़ और भी उभरे हुए प्रतीत होते थे. मैंने अपने गोरे छोटे-छोटे पैरों पर हलके भूरे मुलायम चमड़े की फ्लैट हील की रोमन सैंडल डाल ली.


नौकर ने मेरा बैग बड़े मामा की मर्सिडीज़ ४x४ में रख दिया. मुझे पता था की इस गाड़ी में भी हमारे परिवार की दसियों गाड़ियों की तरह काले शीशे का एकांत या प्राइवेसी विभाजन था.


बाहर सब लोग नरेश भैया और अंजू भाभी को विदा करने के लिए इकट्ठा थे. नरेश भैया ने मुझे दूर से देखकर तेज़ी से मेरी तरफ आये और अपने बाँहों में भर लिया. भैया ने मुझे दोनों गालों पर चूमा और मेरे कान में धीरे से फुसफुसाए, "नेहा, भाभी ने मुझे सब समझा दिया है. मैं तुम्हारे फोने का बेसब्री से इंतज़ार करूंगा." मैं शर्मा कर उनसे लिपट गयी.


अंजू भाभी भी नज़दीक आ कर मुझसे गले मिली और मेरे चुपके से मेरे नितिम्बों को दबा दिया.

भैया-भाभी के जाने के बाद बड़े मामा और मैं भी रवाना हो गए. पीछे हमारा परिवार एक दुसरे को गोल्फ में हराने की बातें में व्यस्त हो गया.


"नेहा बेटा, आप बहुत ही सुंदर लग रही हो," बड़े मामा की प्रशंसा ने मुझे शर्म से लाल कर दिया.

बड़े मामा ने खाकी पतलून, आसमानी रंग की कमीज़ और गहरे नीले रंग का [नेवी ब्लू]कोट पहना था. वृहत्काय बड़े मामा अत्यंत हैंडसम और सुन्दर लग रहे थे.


"बड़े मामा आप ने ड्राईवर को क्यों नहीं लिया? हमें रास्ते में भी आपके साथ समय मिल जाता." मैंने शर्मा कर बड़े मामा के साथ किसी पत्नी जैसे अंदाज़ शिकायत की.

बड़े मामा खूब ज़ोर से हंसें, "नेहा बेटा. आप भूल गए ड्राईवर होता तो वो भी बंगले में ही रहता. आप फ़िक्र नहीं करो, हम वहां पहुच कर आपकी सारी शिकायत मिटा देंगें."


मैंने शर्म से अपना सिर झुका लिया. मैं अपने अक्षत-यौन को नष्ट करने के लिए कितनी बेशर्मी से बड़े मामा के साथ समरक्त-रतिसंयोग के लए उत्सुक थी.

बड़े मामा ने प्यार से मेरे खुले बालों को सहलाया.


बड़े मामा ने मुझे सारे रास्ते अपने मज़ाकों से हंसा-हंसा के मेरे पेट में दर्द कर दिया. हमने रास्ते में एक ढाबे में रुक कर नाश्ता किया. बड़े मामा को पता था कि मुझे सड़क के साथ के ढाबों में खाना खाना बहुत पसंद था. मुझे आलू के परांठे, अचार, अंडे के भुजिया किसी पांच सितारा होटल के खाने से भी अच्छी लगे. बड़े मामा मुझे लालचपने से खाते हुए पिताव्रत प्यारभरी आँखों से देखते रहे.


मैंने उनकी आँखों में भरे प्यार को अस्सानी से महसूस किया और उनका ध्यान बटाने के लिए बोली, "बड़े मामा, प्लीज़ थोडा खाइए ना. बेचारे ढाबे वाला समझेगा कि आपको उसका खाना अच्छा नहीं लगा."

बड़े मामा ने धीरे से कहा,"नेहा बेटा, काश तुम मेरी बेटी होतीं. तुम्हारे जैसी बेटी पाने के लिए मैं दुनिया का हर धन त्याग देता." जबसे मुझे याद है मेरे जन्म के बाद वो इस बात को कई बार कह चुके थे.


जब मनू भैया सिर्फ एक साल के थे तभी बड़ी मामी का देहांत हो गया था. उन्नीस साल तक मामा ने अपनी अर्धांग्नी की क्षति का दर्द सीने में छुपा कर अपने दोनों बेटों के लिए पूरा समय दे दिया.


मैंने अपना छोटा सा हाथ बड़े मामा के बड़े मज़बूत हाथ पर रखा, "बड़े मामा, आप मेरे पित-तुल्य हैं. मैं आपकी बेटी के तरह ही तो हूँ. इसका मतलब है कि आप मुझे अपनी बेटी नहीं समझते?"


बड़े मामा ने मेरा छोटा सा हाथ अपने बड़े हाथ में लेकर प्यार से अपने होंठों से चूम कर बोले, "आइ ऍम सॉरी,बेटा. मैं बुड़ापे में थोडा बुद्धू हो चला हूँ. तुम तो मेरी बेटी ही नहीं हमारे पूरे खानदान के अकेली अनमोल हीरा बेटी हो."


बड़े मामा सही कह रहे थे. मैं अपने पूरे परिवार में इकलौती बेटी थी. छोटे मामा और बुआ के कोई भी बच्चा नहीं था. बड़े मामा कभी दूसरी शादी का विचार भी मन में नहीं लाये थे. मेरे मम्मी पापा ने पता नहीं क्यों दूसरे बच्चे के लए प्रयास नहीं किया. मुझे हमेशा छोटे बहन-भाई ना होने का अहसास होता रहता था.


मैंने बड़े मामा का ध्यान इस दर्द भरी स्थिती से हटाने के लिए कृत्रिम रूप से इठला कर बोली, "बड़े मामा आप अभी बूढ़े नहीं हो सकते. अभी तो आपको अपनी बेटी जैसी भांजी का कौमर्यभंग करने के बाद ज़ोर से चुदाई करनी है."


बड़े मामा अपनी भारी आवाज़ में ज़ोर से हंस पड़े, "नेहा बेटा, बंगले में पहुच कर आपकी चूत और गांड की आज शामत आ जायेगी. मेरा लंड आपकी चूत और गांड बार बार चोद कर उनकी धज्जीयां उड़ा देगा." बड़े मामा ने अश्लील बातों से मुझे रोमांचित कर दिया.


बड़े मामा और मैं दो घंटे की यात्रा में कभी पिता-बेटी की तरह बात करते तो कभी अत्यंत अश्लील और वासनामयी वक्रोक्ती से एक दूसरे की कामंग्नी को और भी भड़का देते थे.


"मामाजी यदि किसी ने सुरेश अंकल या नम्रता आंटी से पूछ लिया तो क्या होगा?" मुझे बड़े मामा की इज्ज़त की बहुत फिक्र थी.

"नेहा बेटा, मैंने सुरेश को बताया कि मैं एक बहुत खूबसूरत, अत्यंत विशेष नवयुवक स्त्री को परिवार की परिधी से दूर मिलने के लए आ रहा हूँ. दोनों ने समझ लिया कि ये विशेष स्त्री हो सकता है कि एक बार के बाद मुझसे मिलना न चाहे. मुझे झूठ नहीं बोलना पड़ा पर पूरी बात भी नहीं बतानी पडी."



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"ओहो, मुझे आपके ऊपर तरस आ रहा है बड़े मामा. कहाँ तो आपकी कहानी की विशेष नवयुवती और कहाँ आपकी लड़कों जैसी नटखट भांजी." मुझे बड़े मामा को चिड़ाने में मज़ा आ रहा था.


बड़े मामा ने जोरकर हंस कर मेरी ओर प्यार से देखा.


हम दोनों के निरंतर वार्तालाप में बाकी यात्रा यूँ ही समाप्त हो गयी.

हम परिवार का झील वाला बंगला एक पहाड़ी पर था. सिर्फ एक सड़क ही थी और वो सड़क सिर्फ हमारी जायदात पर ही ख़त्म हो जाती थी.


बड़े मामा ने बंगले के सामने बड़े खुले पार्किंग दालान में कार रोक दी. बँगला लगबघ ५० एकड़ के बीच में था. परिघी के बाद सब तरफ वादी थी. ४-५ एकड़ की घास भरी ज़मीन के बाद सारी तरफ घने पेड़ों का जंगल था. उसके बीच में ६ एकड़ की झील थी.


बँगला टीक लकड़ी और और पहाड़ी पत्थरों से बना था. उसमे दस शयन-कक्ष, ४ बैठक, २ रसोई और दो परिवार के खेलने और सिनेमा देखने के कमरे थे.

बड़े मामा ने मुझे गाड़ी से निकलते ही अपनी बाँहों में उठा लिया, "नेहा बेटा, आज तो मुझे आपसे आपकी सुहागरात जैसे ही व्यवहार करना चाहिये."


मैंने अपनी बाहें मामाजी कि गर्दन के इर्दगिर्द डाल दीं.

बड़े मामा ने मुझे तीसरे बड़े शयन-कक्ष में ले गए. दरवाज़े के अंदर जाते ही मेरी आँखे खुली की खुली रह गयीं.


पूरा कमरा फूलों से सजा हुआ था.बिस्तर पर भी गुलाब की कोमल पंखुड़ियां बिखरी हुई थीं. सफ़ेद बिस्तर पर लाल और गुलाबी ग़ुलाब की पंखुड़ियां किसी भी स्त्री के दिल को प्यार से झंझोड़ देने के लिये पर्याप्त थीं.


मेरी आश्चर्य से चीख निकल गयी. मैंने बड़े मामा के मूंह को बार-बार चूम कर गीला कर दिया.

मामा ने मुझे धीरे से ज़मीन पर खडा कर दिया मानो मैं अत्यंत नाज़ुक थी. मेरी दृष्टी मुलायम तकियों के ऊपर एक बड़े से शलीन के बक्से पर पडी. मैंने बड़े मामा की तरफ देखा और उन्होंने मुस्करा कर सिर हिलाया.


मैंने सुंदर बक्सा खोला तो उसमे तीन विभाग थे. एक में हीरों का हार, दूसरे में वैसे ही हीरों का कंगन था और तीसरे में मिलती हुई हीरों की पैंजनी [एंकलेट] थी. मैं मामा से लिपट गयी. बड़े मामा ने मेरे साथ सहवास के लिये कितनी तय्यारियाँ की थीं. उनके उपहार कीमत से नहीं उनके दिल की चाहत की वज़ह से मेरे लिये बेशकीमती थे. मैंने होले से बक्सा बंद किया और बिस्तर के पास की मेज़ पर रख दिया.


फिर मैं शर्माती हुई अपने वृहत्काय बड़े मामा की बाँहों में समा गयी. बड़े मामा ने मुझे अपने बाँहों में भर कर कस के अपने भारी-भरकम शरीर से जकड़ लिया. बड़े मामा मुझसे एक फुट से भी ज़्यादा लम्बे थे. मैंने अपना शर्म से लाल चेहरा उनकी सीने में झुपा लिया. बड़े मामा ने मेरी थोड़ी को अपनी उंगली से ऊपर उठाया और नीचे सर झुका कर मेरे नर्म, कोमल होठों पर अपने होंठ रख दिए.


मेरी साँस तेज़ हो गयी. मेरा मुंह सांस की तेज़ी के कारण अपने आप ही खुल गया. मामाजी की मोटी जीभ मेरे मुंह में समा गयी. बड़े मामा ने मेरे पूरे मुंह के अंदर अपनी जीभ को सब तरफ अच्छे से फिराया.मेरे मुंह में उनकी जीभ ने मुझे पागल कर दिया. मेरी जीभ स्वतः ही मामाजी की जीभ से खेलने लगी.


बड़े मामा ने अपने खुले मुंह से मेरे मुंह में अपनी लार टपकाने लगे. मेरा मुंह उनके मीठे थूक से भर गया. मैंने जल्दी से उसको निगल कर बड़े मामा के साथ खुले मुंह के चुम्बन में पूरी तरह से शामिल हो गयी. बड़े मामा ने अपने हाथ मेरे पीठ पर फिरा कर मेरे दोनों गुदाज़ नितिम्बों पर रख दिए.


मामाजी ने अपने होंठों को जोर से मेरे मुंह पर दबा कर मेरे दोनों चूतड़ों को मसल दिया. मैं कामुकता की मदहोशी के प्रभाव से झूम उठी. मैंने अपने पैर की उंगलियों पर खड़ी हो कर थोड़ा ऊंची हो गयी जिस से मामा जी को मुझे चूमने के लिए कम झुकना पड़े. बड़े मामा ने मुझे अपने दोनों हाथों को मेरे नितिम्बों के नीचे रख कर ऊपर उठा लिया और बिस्तर की तरफ ले गए.


बड़े मामा बिस्तर के कगार पर बैठ गए. मैं उनकी फ़ैली हुई जांघों के बीच मे खड़ी थी. मामाजी ने मुझे खींच कर अपनी बाँहों मे भर कर मेरे मुंह से अपना


मुंह लगा कर मेरी साँसों को रोकने वाला चुम्बन लेने लगे. उनके दोनों हाथ मेरे गुदाज़ चूतड़ों को प्यार से सहला रहे थे, जब मामाजी मेरे नितिम्बों को ज़ोर से


मसल देते तो मेरी सिसकारी निकल जाती और मैं अपना मुंह और भी ज़ोर से मामाजी के खुले मुंह से चिपका देती.


मामाजी ने धीरे-धीरे मेरा कुरता ऊपर उठा दिया. उनके हाथ जैसे मेरी नंगी कमर को सहलाने लगे तो मेरी मानो जान ही निकल गयी. मुझे अब आगे के


सहवास के बारे में आशंका होने लगी. मेरी कमसिन किशोर अवस्था ने मुझे मामाजी के अनुभवी आत्मविश्वास के सामने अपने अनुभव शून्यता और अनाड़ीपन का


अहसास करा दिया. मुझे फ़िक्र होने लगी की मैं कहीं बड़े मामा को सहवास में खुश न कर पाई तो उन्हें कितनी निराशा होगी. बड़े मामा ने मेरे साथ चुदाई के लिए


कितने दिनों से मन लगाया हुआ था. मैं कुछ कहने ही वाली थी पर बड़े मामा के हाथों के जादू ने मुझे सब-कुछ भुला दिया.



बड़े मामा ने मेरी सलवार का नाड़ा खोल दिया और मेरी सलवार नीचे सरक कर पैरों पर इकट्ठी हो गयी. मामाजी ने मेरे छोटे से सफ़ेद झांगिये के अंदर


अपने दोनों हाथ डाल दिए और मेरे नग्न चूतड़ों को सहलाने लगे. मेरी सांस अब रुक-रुक कर आ रही थी.मेरे मस्तिष्क में अब कोइ भी विचार नहीं रह गया था.


मेरा सारा दिमाग सिर्फ मेरे शरीर की भड़की आग पर लगा था. उस आग को बड़े मामा ने अपने अनुभवी हाथों से और भी उकसा दिया.



मेरे मूंह से सिसकारी निकल गयी, "मामाजी, हाय मुझे ..अह," मैंने अपने दोनों बाँहों को मामाजी की गर्दन के चारों और ज़ोर से डाल कर उनसे लिपट


गयी. बड़े मामा ने ने बड़ी सहूलियत और चुपचाप से मेरी जांघिया नीचे कर दी. बड़े मामा ने मेरा कुर्ता और भी ऊपर कर मेरे ब्रा में से फट कर बाहर आने को


तड़प रहे उरोज़ों को अपने हाथों से ढक कर धीरे से दबाया. मेरी मूंह से दूसरी सिसकारी निकल गयी.


मेरी सिस्कारियों से बड़े मामा को अपनी बेटी-समान भांजी के भीतर जलती प्रचंड वासना की अग्नि का अहसास दिला दिया.


मामा जी ने मेरे मुंह को चुम्बन से मुक्त कर मेरे कुरते को उतार दिया.मैं अब सिर्फ ब्रा के अलावा लगभग वस्त्रहीन थी. एक तरफ मुझे लज्जा से मामाजी से आँखे मिलाने में हिचक हो रही थी और दूसरी तरफ मामा जी के हाथ, जो मेरे गुदाज़ बदन पर हौले-हौले फिर रहे थे, मेरी कौमार्य-भंग की मनोकामना को उत्साहित कर


रहे थे. बड़े मामा ने मेरी ब्रा के हुक खोल कर मेरे उरोज़ों को नग्न कर दिया. मेरे स्तन मेरी किशोर उम्र के लिहाज़ से काफी बड़े थे. बड़े मामा ने पहली बार मेरी नग्न चूचियों को अपने हाथों में भर किया. उनके हाथों ने दोनों उरोज़ों को हलके से सहालाया और धीरे-धीरे मसलना शुरू कर दिया. मेरी मुंह कामंगना और शर्म से


दमक रहा था. मेरे मामा ने मेरा चेहरा अपने हाथों में ले कर बड़े प्यार से चूम कर कहा, "नेहा बेटा, तुम जैसी अप्सरा के समान सुंदर मैंने अपनी ज़िंदगी सिर्फ एक और लड़की को ही जानता हूँ."



बड़े मामा की प्रशंसा से मेरा दिल चहक उठा और मुझे सांत्वना मिली की मामाजी मुझे अपनी भांजी के अलावा स्त्री की तरह भी चाहते हैं.


बड़े मामा ने आहिस्ता से गोद में उठाकर कर मुझे बिस्तर पर सीधे लिटा दिया. मैंने शर्मा कर अपना एक हाथ से अपने बड़े उरोज़ों और दूसरा हाथ अपनी जांघों के बीच, गुप्तांग को ढक लिया.


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बड़े मामा मुझे शर्माते देख कर मुस्कराए और अपने कपडे उतारने लगे. उन्होंने पहले अपने जूते और मोज़े उतार कर पतलून निकाल दी. बड़े मामा की जांघें


किसी मोटे पेड़ के तने की तरह विशाल और घने बालों से भरी हुईं थीं. बड़े मामा ने बौक्सर-जांघिया पहना हुआ था.बड़े मामा ने अपने कमीज़ खोल कर अपने


बदन से दूर कर ज़मीन पर फ़ेंक दी. बड़े मामा का भीमकाय शरीर ने मुझे ने मेरी वासना को और भी उत्तेजित कर दिया. बड़े मामा का सीना घने घुंगराले बालों से


आवृत था. उनका पेट अब कुछ सालों से बाहर निकल आया था. पर फिर भी उसे अभी तोंद नहीं कह सकते थे. उनके सीने के बाल पेट पर भी पूरी तरह फ़ैल गए


थे.



मैंने सांस रोक कर बड़े मामा को अपना जांघिया उतारते गौर से देख रही थी. बड़े मामा जब जांघिये को अलग कर खड़े हुए तो उनका गुप्तांग मेरी आँखों


के सामने था. बड़े मामा का लंड अभी बिकुल भी खड़ा नहीं था फिर भी वो मेरी भुजा के जितना लंबा था. बड़े मामा के लंड का मोटाई मेरी बाजू से भी ज़्यादा


थी. मेरी सांस मानों बंद हो गयी. मुझे बड़े मामा के लंड को देख कर अंदर ही अंदर बहुत डर सा लगा.



बड़े मामा बिस्तर पर मेरी तरफ को करवट लेकर मेरे साथ लेट गए. बड़े मामा ने मेरे होंठो पर अपने होंठ रख कर धीरे से मेरे होंठों को अलग कर


दिया. उनकी जीभ मेरे मूंह में समा गयी. मेरे दोनों बाँहों ने स्वतः मामाजी के गर्दन को जकड़ लिया. बड़े मामा ने मेरे उरोज़ों को सहलाना शुरू कर दिया. मैं अब


मामाजी के मुंह से अपना मुंह ज़ोर से लगा रही थी. हम दोनों के विलास भरे चुम्बन ने और मामा जी के मेरी चूचियों के मंथन मेरी चूत को गरम कर दिया, मेरी


चूत में से पानी बहने लगा.


बड़े मामा ने अपना मुंह मेरे से अलग कर मेरे दायीं चूची के ऊपर रख दिया. मेरे दोनों उरोज़ों में एक अजीब सा दर्द हो रहा था. बड़े मामा एक हाथ से


मेरी दूसरी चूची को हलके हलके मसल रहे थे. मेरी सांस बड़ी तेज़ी से अंदर बाहर हो रही थी. मेरे दोनों हाथ अपने आप बड़े मामा के सर के ऊपर पहुँच गए. मैं


मामाजी का मुंह अपने चूची के ऊपर दबाने लगी. मामा मेरी चूची की घुंडी को अंगूठे और उंगली के बीच में पकड़ कर मसलने लगे और होंठों के बीच में मेरा दूसरा


चूचुक ले कर उसको ज़ोर से चूसना शुरू कर दिया.


मेरे सारे शरीर में अजीब सी एंठन फ़ैल गयी. बड़े मामा के हाथों ने मेरे दोनों संवेदनशील उरोज़ों से खेल कर मेरे चूत में तूफ़ान उठा दिया. मेरी चूत में


जलन जैसी खुजली हो रही थी. बड़े मामा का दूसरा हाथ मेरी चूत के ऊपर जा लगा. मामाजी अपने बड़े हाथ से मेरी पूरी चूत ढक कर सहलाने लगे. मैं अब ज़ोरों


से सिस्कारियां भर रही थी. मामा ने मेरे उरोज़ों का उत्तेजन और भी तेज़ कर दिया और दुसरे हाथ की हथेली से उन्होंने मेरी पूरी चूत को दृढ़ता से मसलने लगे.



"आह, अह..अह..मामाजी, मुझे अजीब सा लग रहा है, ऊं.. ऊं अम्म..बड़े मामा ...आ ..आ ... उफ़, " मैं सीत्कारिया मार कर अपनी शरीर में


दोड़ती विद्युत धारा से विचलित हो चली थी. मेरे कुल्हे अपने आप बिस्तर से ऊपर उठ-उठ कर बड़े मामा के हाथ को और भी ज़ोर से सहलाने को उत्साहित करने


लगे.


बड़े मामा ने मेरी एक चूचुक को अपने दातों के बीच में दबा कर नरमी से काटा, दुसरे चूचुक को अंगूठे और उंगली में हलके भींच कर अहिस्ता से मेरे


चूची से अलग खींचने का प्रयास के साथ-साथ अपने चूत के ऊपर वाले हाथ के अंगूठे को मेरे भागंकुर के ऊपर रख उसे मसलने लगे.


बड़े मामा ने मेरे वासना से लिप्त अल्पव्यस्क नाबालिग किशोर शरीर के ऊपर तीन तरह के आक्रमण से मेरी कामुकता की आग को प्रज्जवलित कर दिया.
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मेरे पेट में अजीब सा दर्द होने लगा, वैसा दर्द मेरी दोनों चूचियों में भी समा गया. कुछ ही क्षणों में वह दर्द मेरी चूत के बहुत अंदर से मुझे तड़पाने लगा.


मेरे सारे शरीर की मांसपेशियां संकुचित हो गयीं.


"बड़े मामा .. आ.. आ.. मेरी चूत जल रही है. बड़े मामा आह आह अँ ..अँ अँ अँ ऊओह ऊह ," मेरे मूंह से चीख सी निकल पडी. बड़े मामा ने यदि मेरी


पुकार सुनी भी हो तो उसकी उपेक्षा कर दी और मेरी चूचियों की घुंडियों को अपने मुंह और हाथ से तड़पाने लगे. मेरी चूत और भगशिश्निका को बड़े मामा और


भी तेज़ी से मसलने लगे.


"बड़े मामा मैं झड़ने वाले हूँ. मेरी चूत झाड़ दीजिये माम जी ..ई. ई...आह." मेरा शरीर निकट आ रहे यौन-चमोत्कर्ष के प्रभाव से असंतुलित हो गया.


मैं यदि बड़े मामा के ताकतवर बदन से नहीं दबी होती तो बिस्तर से कुछ फुट ऊपर उठ जाती. मेरे गले से एक लम्बी घुटी-घुटी सी चीख के साथ मेरा


यौन-स्खलन हो गया. मेरे कामोन्माद के तीव्र प्रहार से मेरा तना हुआ बदन ढीला ढाला हो कर बिस्तर पर लस्त रूप से पसर गया. बड़े मामा ने मेरी तीनो,


कामुकता को पैदा करने वाले, अंगों को थोड़ी देर और उत्तेजित कर मेरे निढाल बदन को अपनी वासनामयी यंत्रणा से मुक्त कर दिया.


बड़े मामा मुझे अपनी बाँहों में भर कर प्यार से चूमने लगे. मैं थके हुए अंदाज़ में मुस्करा दी. मेरी अल्पव्यस्क किशोर शरीर को प्रचण्ड यौन-स्खलन के बाद की थकावन


से अरक्षित देख बड़े मामा का वात्सल्य उनके चुम्बनों में व्यक्त हो रहा था.


"बड़े मामा, मैं तो ऐसे कभी भी नहीं झड़ी," मैंने भी प्यार से मामाजी को वापस चूमा.


"नेहा बेटा, अभी तो यह शुरूवात है," बड़े मामा ने मेरी नाक को प्यार से चूमा. उनका एक हाथ मेरे उरोज़ों को हलके-हलके सहला रहा था.


बड़े मामा और मैं अगले कई क्षण वात्सल्यपूर्ण भावना से एक दुसरे को चूमते रहे. बड़े मामा ने कुछ देर बाद उठ कर मेरी टागों के बीच में लेट गए.




बड़े मामा ने मेरी दोनों घुटनों को मोड़ कर मेरी जांघे फैला दीं. उनका मूंह मेरी बहुत गीली चूत के ऊपर था.


मेरी सांस बड़े मामा के अगले मंतव्य से मेरे गले में फँस गयी. बड़े मामा ने मेरे भीगी झांटों को अपने जीभ से चाटने के बाद मेरे चूत के दोनों भगोष्ठों को अलग कर मेरी गुलाबी


कोमल कुंवारी चूत के प्रविष्ट -छिद्र को अपनी जीभ से चाटने लगे. मेरी वासना फिर पूर्ण रूप से तीव्र हो गयी.



बड़े मामा ने अपने हाथों को मेरी टांगों के बाहर से लाकर मेरे दोनों फड़कते उरोज़ों को अपने काबू में ले लिया. बड़े मामा ने मेरी चूत अपने मोटी खुरदुरी जीभ से चाटना


शुरू कर दिया. मामा ने दोनों चूचियों का मंथन के साथ साथ मेरे भागान्कुन का मंथन भी अपने दातों से कर रहे थे.


मामाजी के भग-चूषण ने मेरी सिस्कारियों का सिलसिला फिर से शुरू कर दिया.



बड़े मामा ने अपना मूंह मेरी चूत से अचानक हटा लिया. मैं बड़ी ज़ोर से आपत्ती करने के लिए कुनमुनाई, तभी मामा ने अपनी जीभ से मेरी गांड के छोटे से छेद को चाटने लगे.


मेरे होशोअवास उड़ गए. मेरी छोटी सी ज़िंदगी में इतना वासना का जूनून कभी भी महसूस नहीं किया था. मामाजी ने अपना थूक मेरी गांड पर लगा दिया. मेरी गांड का छल्ला


फड़कने लगा. बड़े मामा की बदस्तूर कोशिश से उनकी जीभ की नोक मेरी गांड के छिद्र में प्रविष्ट हो गयी. मेरे मूंह से बड़ी ज़ोर से सिसकारी निकल गयी. बड़े मामा ने अपने एक


हाथ से मेरे उरोंज़ को मुक्त कर मेरी चूत की घुंडी का मंथन करने लगे. मैं हलक फाड़ कर चीखी,"बड़े मामा, मैं झड़ने वाली हूँ. मेरी चूत झाड़ दीजिये...आह ..आह."



बड़े मामा ने आपनी जीभ मेरी गांड से निकाल कर मेरी भागान्ग्कुर को अपने दातों में नरमी से ले कर अहिस्ता से उसे झझोंड़ने लगे, जैसे कोई वहशी जानवर अपने शिकार


के मांस को चीड़ फाड़ता है. मेरी चूत की जलन मेरी बर्दाश्त की ताकत से बाहर थी. मैंने अपने दोनों हाथों से मामाजी का सर पीछे पकड़ कर अपनी चूत में दबा लिया. मामा जी ने


अपने खाली हाथ की अनामिका मेरी गांड में उंगली के जोड़ तक दाल दी.



मेरे चूतड़ मेरी अविश्वसनीय यौन-चरमोत्कर्ष के मीठे दर्द के प्रभाव में बिस्तर से उठ कर मामा के मूंह के और भी क़रीब जाने के लिए बेताब होने लगे. मामा ने मेरे थरथराते


शरीर को अपने मज़बूत हाथ से नीचे बिस्तर पर दबा कर मेरी रति रस से भरी हुई चूत का रसास्वादन तब तक करते रहे जब तक मेरे आनंद की पराकाष्ठा शांत नहीं होने लगी.



मेरी चूत अब नहुत संवेदनशील थी और बड़े मामा के चुम्बन करीब-करीब दर्दभरे से लगने लगे. मैं कुनमुना कर मामा का सर अपनी चूत से हटाने के लिए संकेत दिया. बड़े


मामा उठ कर मेरी खुली पसरी गुदाज़ जांघों के बीच बैठे तो उनके मूंह पर मेरी चूत का सहवास-रस लगा हुआ था. बड़े मामा ने खूब स्वाद से मेरी चूत और गांड में डाली


उँगलियों को प्यार चूसा. मेरी वासना उनकी इस हरकत से बड़ी प्रभावित हुई पर मैंने उन्हें झूठी डांट पिला दी, "बड़े मामा आप ने मेरी गांड की गंदी उंगली को मूंह में ले लिया,


उफ,कैसे हैं आप...छी-छी." पर मेरा दिल अंदर से बहुत प्रसन्न हुआ.



मैंने बड़े मामा के हाथ को अपने तरफ खींचा. बड़े मामा अपने भीमकाय शरीर के पूरे भार से मेरे कमसिन, किशोर गुदाज़ शरीर को दबा कर मेरे ऊपर लेट गए. मैंने अपने


दोनों नाज़ुक, छोटे-छोटे हाथों से मामाजी का बड़ा चेहरा पकड़ कर उनका मूंह अपने जीभ से चाट-चाट कर साफ़ कर दिया. मैंने शैतानी में उनकी मर्दान्ग्नी के मुनासिब खूबसूरत नाक


को अपनी जीभ की नोक से सब तरफ से चाटा. जब मामाजी का मूंह, नाक मैंने अपने चूत के पानी को चाट कर साफ़ कर दिया तो उनकी नाक की नोक पर प्यार से चुम्बन रख


दिया. उन्होंने मेरे नाबालिग, कमसिन, किशोर लड़की के अंदर की औरत को जगा दिया. मुझे बड़े मामा के ऊपर वात्सल्य प्रेम आ रहा था. उन्होंने मेरी वासना की आग दो बार


अविस्वस्नीय प्रकार से बुझा दी थी. आगे पता नहीं और क्या-क्या उनके दिमाग में था.


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"बड़े मामा, क्या मैं आपका लंड चूसूं?" मैंने हलके से पूछा. बड़े मामा के चेहरे पर खुली मुस्कान मेरा जवाब था.


बड़े मामा मेरे सीने के दोनों तरफ घुटने रख कर अपना लगभग पूरा तनतनाया हुए लंड को मेरे मूंह की तरफ बड़ा दिया. बड़े मामा का लंड उसकी मुरझाई स्तिथी से अब लगभग


दुगना लंबा और मोटा हो गया था. उनका लंड मेरे चूचियों के ऊपर से लेकर मेरे माथे से भी ऊपर पहुँच रहा था.



मेरे छोटे-छोटे नाज़ुक हाथ बड़े मामा के लंड की पूरी परिधी को पकड़ने के लिए अपर्याप्त थे. मैंने दोनों हाथों से मामाजी का लौहे जैसा सख्त, पर रेशम जैसा


चिकना, लंड संभाल कर उनके लंड का सुपाड़ा अपने पूरे खुले मुंह में ले लिया. मेरा मुंह मामाजी के लंड के सिर्फ सुपाड़े से ही भर गया. मुझे लंड को चूसने का कोई भी अभ्यास


नहीं था. मैंने जैसे भी मैं कर सकती थी वैसे ही बड़े मामा के लंड को कभी मुंह में लेकर, कभी जीभ से चाट कर अपने प्यारे मामाजी को शिश्न-चूषण के आनंद देने का भरपूर


प्रयास किया.



मैंने बड़े मामा के अत्यंत मोटे भारी लंड को अपने अगरम मूंह से जितना भी सुख देने की मेरा सामर्थ्य था उतना प्रयास मैंने दिल लगा


कर किया। उनके मोटे लंड ने मेरे गले को बिलकुल भर दिया था। मेरे मूंह के किनारे इतने खिंच रहे थे कि मुझे थोड़ा थोड़ा दर्द होने लगा।


पांच मिनट के बाद बड़े मामा ने अपना लंड मेरे थूक से भरे मुंह से निकाल लिया और फिर से मेरी जांघों के बीच में चले गए, "नेहा बेटा


अब आपकी चूत मारने का समय आ गयाहै."


मेरा हलक रोमांच से सूख गया. मेरी आवाज़ नहीं निकली, मैंने सिर्फ अपना सिर हिला कर मामाजी के निश्चय को अपना समर्थन दे दिया.


बड़े मामा ने मेरी गुदाज़ जांघें अपनी शक्तीशाली बाज़ुओं पर डाल लीं. उन्हीने अपना लंड मेरी गीली कुंवारी चूत के प्रविष्टी-द्वार पर ऊपर-नीचे रगड़ा. फिर मुझे उनके, छोटे


सेब के बराबर के आकार के लंड का सुपाड़ा अपनी छोटी सी कुंवारे चूत के छिद्र पर महसूस हुआ.


"नेहा बेटा, पहली चुदाई में थोड़ा दर्द तो ज़रूर होगा. आपने नीलू बेटी की चुदाई तो देखी थी. एक बार तुम्हारी चूत के अंदर लंड घुसड़ने के बाद चूत लंड के आकार


से अनुकूलन कर लेगी."


बड़े मामा के मेरे कौमार्य-भंग की चुदाई के पहले का आश्वासन से मेरा दिल में और भी डर बैठ गया.



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बड़े मामाजी ने एक हल्की सी ठोकड़ लगाई और उनके विशाल लंड का बेहंत मोटा सुपाड़ा मेरी चूत के प्रवेश-द्वार के छल्ले को फैला कर मेरी कुंवारी चूत के अंदर


दाखिल हो गया.


"बड़े मामा, धीरे, प्लीज़.आपका लंड बहुत बड़ा और मोटा है. मुझे दर्द हो रहा है," मैं बिलबिलायी. मेरी चूत मामाजी के वृहत्काय लंड के ऊपर*अप्राकृतिक आकार में फ़ैल


गयी थी. मेरे सारे शरीर में दर्द की लहर दौड़ गयी. मैं छटपटाई और मामाजी को धक्का देकर अपने से दूर करने के लिए हाथ फैंकने लगी.


मामाजी का लंड अब मेरी चूत में फँस गया था. बड़े मामा ने मेरी दोनों कलाई अपने एक विशाल हाथ में पकड़ कर मेरे सिर के ऊपर स्थिरता से दबा दी और अपना भारी विशाल


बदन का पूरा वज़न डाल मेरे ऊपर लेट गए. मैं अब बड़े मामा के नीचे बिलकुल निस्सहाय लेटने के कुछ और नहीं कर सकती थी. बड़े मामा का महाकाय शरीर मुझे अब और भी दानवीय आकार का लग रहा था.


मैंने अपने नीचे के होंठ को दातों से दबा कर आने वाले दर्द को बर्दाश्त करने की कोशिश के लिए तैयार होने का प्रयास करने लगी.



बड़े मामा ने अपनी शक्तिशाली कमर और कूल्हों की मांसपेशियों की सहायता से अपने असुर के समान महाकाय लंड को मेरी असहाय कुंवारी चूत में दो-तीन


इंच और अंदर धकेल दिया. मैं दर्द के मारे छटपटा कर ज़ोर से चीखी, "नहीं, नहीं , मामाजी, आपने मेरी चूत फाड़ दी. मेरी चूत से अपना लंड निकाल लीजिये. मुझे


आपसे नहीं चुदवाना. मैं मर गयी, बड़े मामा ...आह मेरी चू...ऊ ..ऊ ..त फ..अ..आ..त ग...यी."


मैं पानी के बिना मछली के समान कपकपा रही थी.


बड़े मामा ने मेरी दयनीय स्तिथी और रिरियाने को बिलकुल नज़रंदाज़ कर दिया. मैं बिस्तर में बड़े मामा के अमानवीय शक्तिशाली शरीर के


नीचे असहाय थी. बड़े मामा ने मेरी चूत में अपने दानवाकारी लंड को पूरा अंदर डाल कर मेरी चुदाई का निश्चय कर रखा था.


मेरी आँखों से आंसू बहने लगे. बड़े मामा ने "चुप बेटा..शुष.." की आवाज़ों से मुझे *असहनीय पीढ़ा को बर्दाश्त करने की सलाह सी दी.


बड़े मामा ने मेरी चूत के अंदर अपना लौहे समान सख्त लंड और भी अंदर घुसेड़ दिया. उनका लंड मेरी कौमार्य की सांकेतिक योनिद्वार की झिल्ली


को फाड़ कर और भी अंदर तक चला गया.


मेरी दर्द से भरी चीख से सारा कमरा गूँज उठा. मैं रिरिया कर मामा से अपना लंड बाहर निकलने की प्रार्थना कर रही थी. मेरे आंसूओं की अविरल धारा


मेरे दोनों गालों को तर करके मेरी गर्दन और उरोज़ों तक पहुँच रही थी. मैंने सुबक सुबक कर रोना शुरू कर दिया.


बड़े मामा कठोड़ हृदय से मेरी सुबकाई और छटपटाहट की उपेक्षा कर अपने यंत्रणा के हथियार को मेरी दर्द से भरी चूत में कुछ इंच और भीतर धकेल


दिया. मुझे अपनी चूत से एक गरम तरल द्रव की अविरल धारा बह कर मेरी गांड के ऊपर से बिस्तर पर इकट्ठी होती महसूस हुई.
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मेरे प्रचुर आंसू मेरी नाक में से बहने लगे. मेरा सुबकता चेहरा मेरे आंसूओं और मेरी बहती नाक से मलिन ही गया था. मैं हिचकियाँ मार कर ज़ोर


से रो रही थी. बड़े मामा ने मेरे रोते लार टपकाते हुए मुंह पर अपना मुंह रख कर मेरी चीखों को काफी हद तक दबा दिया. मुझे लगा की मेरी चूत के


दर्द से बड़ा कोई और दर्द नहीं हो सकता. मुझे किसी भी तरह विष्वास नहीं हो रहा था कि सिर्फ मामाजी का लंड अंदर जाने के इस दर्द के बाद कैसे


मामाजी मुझे चोद पायेंगे. मैं दिल में निश्चित थी की मैं दर्द के मारे बेहोश हो जाऊंगी.



मेरा सुबकना हिचकी मार-मार कर रोना जारी रहा, पर बड़े मामा अपने मुंह से मेरा मुंह बंद कर मेरे रोने की ध्वनि की मात्रा कम कर दी थी. बड़े


मामा कस कर मुझे अपने नीचे दबाया और अपना लंड मेरी थरथराती हुई चूत में से थोड़ा बाहर निकाल कर अपने शक्तिवान कमर और कूल्हों को भींच


कर अपना लंड पूरी ताकत से से मेरी तड़पती कुंवारी चूत में बेदर्दी से ठोक दिया. मेरा सारा बदन अत्यंत पीड़ा से तन गया.



बड़े मामा ने अपने भारी वज़न से मेरे छटपटाते हुए नाबालिग शरीर को कस कर दबाकर काबू में रखा. मेरे गले से घुटी-घुटी एक लम्बी चीख


निकल पड़ी. मैं 'गौं-गौं' की आवाज़ निकालने के सिवाय, निस्सहाय बड़े मामा के वृहत्काय शरीर के नीचे दबी, रोने चीखने के सिवाय कुछ और नहीं कर


सकती थी. मेरी कुंवारी चूत की मामाजी ने अपने, किसी असुर के लंड के समान बड़े लंड से, धज्जियां उड़ा दी.



मैं दर्द से बिलबिला रही थी पर मेरी आवाज़ मामाजी ने अपने मुंह से घोंट दी थी. मेरे नाखून मामाजी की पीठ की खाल में गड़ गए. मैंने बड़े


मामा की पीठ को अपने नाखूनों से खरोंच दिया.


मैं उनसे अपनी फटी चूत में से मामाजी का महाकाय लंड बाहर निकालने की याचना भी नहीं कर सकती थी. यदि इसको ही चुदाई कहते हैं


तो मैंने मन में गांठ मार ली कि जब मामाजी ने मुझे इस यंत्रणा से मुक्त कर देंगे तो उसके बाद सारा जीवन मैं चूत नहीं मरवाऊंगी.


मुझे ज्ञात नहीं कि मैं कितनी देर तक रोती बिलखती रही. मेरे आंसू और नाक निरन्तर बह रही थी. काफी देर के बाद मुझे थोडा अपनी


स्तिथी का थोड़ा अहसास हुआ. मैं अब रो तो नहीं रही थी, पर जैसे लम्बे रोने के बाद होता है, वैसे ही कभी-कभी मेरी हिचकी निकल जाती थी. बड़े


मामा का मुंह मेरे मुंह पर सख्ती से चुपका हुआ था. मेरी चूत में अब भी भयंकर दर्द हो रहा था. मुझे लगा कि जैसे कोई मूसल मेरी चूत में घुसड़ा हुआ


था.


बड़े मामा ने धीरे से मेरे मुंह से अपना मुंह ढीला किया, जब मेरे मुंह से कोई दर्दनाक चीख नहीं निकली तो मामाजी अपना मुंह उठा कर बोले,


"नेहा बेटा, आपकी कुंवारी चोट बहुत ही तंग है. सॉरी, यदि बहुत दर्द हुआ तो."


मुझे विष्वास नहीं हुआ कि मेरे पिता-तुल्य मामाजी को मेरे चीखने चिल्लाने के बावज़ूद मेरी पीड़ा का ठीक अंदाज़ा नहीं था, "बड़े मामा," मैंने सुबक


कर बोली, 'आपने मेरी चूत फाड़ दी है. आप बहुत बेदर्द हैं, मामाजी. आप ने अपनी इकलौती भांजी के दर्द का कोई लिहाज़ नहीं किया?"


बड़े मामा ने हल्की सी मुस्कान के साथ मुझे माथे पर चूमा, "पहली बार कुंवारी चूत मरवाने का दर्द है, नेहा बेटा. आगे इतना दर्द नहीं होगा."



मैं अपनी चूत में फंसे मामाजी के *मूसल को अब पूरी तरह से महसूस *करने लगी. मुझे बड़े मामा के अत्यंत मोटे लंड के ऊपर अपनी चूत के


अमानवीय फैलाव की जलन भरे दर्द का पहली बार ठीक से अनुमान हुआ. मेरी कुंवारी चूत में अबतक मेरी एक पतली कोमल उंगली तक नहीं गयी थी,


उसमे बड़े मामा ने अपना घोड़े से भी बड़ा लंड बेदर्दी से मेरी नाज़ुक, कुंवारी चूत में पूरा लंड की जड़ तक घुसेड़ दिया था.


बड़े मामा प्यार से मेरा मुंह साफ करने लगे. बड़े मामा ने प्यार से मेरे सारे मलिन मुंह से सारे आंसू और बहती नाक को चाट कर साफ़ कर


दिया. मैं दर्द के बावज़ूद हंस पड़ी, "मामाजी, मेरे मूंह पर सब तरफ मेरी नाक लगी है, छी आप कितने गंदे हैं." मैंने मामाजी को कृत्रिम रूप से


झिड़कना दी, पर मेरा दिल मेरी मामाजी के लाड़-प्यार से पिघल गया.


मुझे अब अपने, विशाल शरीर और अमानवीय ताकत के, पर फूल जैसे कोमल हृदय के मालिक बड़े मामा पर बहुत प्यार आ रहा था. अब


मुझे उनका बेदर्दी से मेरी चूत फाड़ना उनकी मर्दानगी और मर्द-प्रेमी की सत्ता का प्रतीक लगने लगा. आखिर मेरे सहवास के अनाड़ीपन का भी तो बड़े


मामा को ख़याल रखना पड़ा था?



बड़े मामा ने मेरा पूरा चेहरा अपनी जीभ से चाट कर साफ़ कर, मेरी नाक को अपने मूंह में भर लिया. बड़े मामा की जीभ की नोक ने मेरे दोनों


नथुनों के अंदर समा कर मेरी नाक को प्यार से चाट कर साफ़ कर दिया. मैं खिलखिला कर छोटी बच्ची की तरह हंस पड़ी.


बड़े मामा के ने मेरी नाक को प्यार से चूमा और मेरे हँसते हुए मुंह को अपने मुंह से ढक लिया.


बड़े मामा ने धीरे-धीरे अपना लंड मेरी चूत से बाहर निकलना. मेरी सांस मेरे गले में फंसने लगी. मामा जी ने बहुत सावधानी से धीरे-धीरे


अपना मूसल लंड मेरी कुंवारी चूत में जड़ तक डाल दिया. मुझे बहुत ही कम दर्द हुआ. इस दर्द को मैं चूत की चुदाई के लिए कभी भी बर्दाश्त कर


सकती थी. बड़े मामा ने उसी तरह अहिस्ता-अहिस्ता मेरी चूत को, अपने महाकाय लंड की अत्यंत मोटी लम्बाई से धीरे-धीरे परिचित कराया. क़रीब


दस मिनट के बाद मेरी सिसकारी छूटने लगीं. इस बार मैं दर्द से नहीं कामवासना की मदहोशी से सिसक रही थी.


"बड़े मामा, अब मेरी चूत में दर्द नहीं हो रहा. हाय,अब तो मुझे अच्छा लग रहा है, "मैं कामुकता से विचलित हो, बड़े मामा से अपनी चूत


की चुदाई की प्रार्थना करने लगी, "बड़े मामा, अब आप मेरी चूत मार सकते हैं. आह..आपका लंड कितना मोटा..आ.. है."


मैं वासना की आग में जलने लगी. बड़े मामा ने उसे प्रकार धीरे-धीरे मेरी चूत अपने लंड से चोदते रहे. पांच मिनट के अंदर मेरे गले में


मानो कोई गोली फँस गयी. मेरे दोनों उरोंज़ दर्द से सख्त हो गए. मेरी चूत में अब जो दर्द उठा उसका इलाज़ मामा का लंड ही था. मैंने बड़े मामा


की गर्दन पर अपने बाहें डाल दीं और अपना चेहरा उनकी घने बालों से ढके सीने में छुपा लिया. मैं अब गहरी-गहरी सांस ले रही थी.



बड़े मामा ने मेरी स्तिथी भांप ली. मेरे यौन-चरमोत्कर्ष के और भी जल्दी परवान चढ़ाने के लिए बड़े मामा अपना लंड थोड़ी तेज़ी से


मेरी चूत में अंदर बाहर करने लगे. बड़े मामा जब अपना विशाल लंड जड़ तक अंदर घुसेड़ कर अपने कुल्हे गोल-गोल घुमाते थे तो उनका सुपाड़ा मेरी


चूत की बहुत भीतर मेरी गर्भाशय की ग्रीवा को मसल देता था. मेरी किशोर शरीर थोड़े दर्द और बहुत तीव्र कामेच्छा से तन जाता था. बड़े मामा का


विशाल लंड मेरी चूत में 'चपक-चपक' की आवाज़ करता हुआ सटासट अंदर बाहर जा रहा था.


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"बड़े मामा, मैं अब आने वाली हूँ. मेरी चूत झड़ने वाले है. मेरी चूत को झाड़िए, मामाजी..ई..ई..अँ अँ..अँ..आह्ह."


मैं जैसे ही मेरा यौन-स्खलन हुआ मैं बड़े मामा के विशाल शरीर से चुपक गयी. मारी सांस रुज-रुक गर मेरी वासना की तड़प को और


भी उन्नत कर रही थी. मेरी चूत मानो आग से जल उठी. अब मेरे चूत की तड़पन मेरी बड़े मामा के महाविशाल लंड की चुदाई के लिए आभारी थी.



मेरे रति-निष्पत्ति से मेरा सारा शरीर थरथरा उठा. मुझे कुछ क्षण संसार की किसी भी वस्तु का आभास नहीं था. मैं कामंगना की देवी


की गोद में कुछ क्षणों के लिए निश्चेत हो गयी.


बड़े मामा ने मेरे मुंह को चुम्बनों से भर दिया. बड़े मामा ने अब अपना लंड सुपाड़े को छोड़ कर पूरा बाहर निकाला और दृढ़ता से एक


लम्बी शक्तिशाली धक्के से पूरा मेरी चूत में जड़ तक पेल दिया. मेरे मुंह से ज़ोर की सित्कारी निकल पड़ी. पर इस बार मेरी चूत में दर्द की कराह के


अलावा उस दर्द से उपजे आनंद की सिसकारी भी मिली हुई थी.


बड़े मामा अपने वृहत्काय लंड की पूरी लम्बाई से मेरी कुंवारी चूत को चोदने लगे. मैं अगले दस मिनटों में फिर से झड़ गयी.


बड़े मामा ने मेरी चूत का मंथन संतुलित पर दृढ़तापूर्वक धक्के लगा कर निरंत्रण करते रहे. बड़े मामा ने मेरी चूत को अगले एक घंटे तक


चोदा. मैं वासना की उत्तेजना में अंट-शंट बक रही थी. मेरी चूत बार-बार मामाजी के लंड के प्रहार के सामने आत्मसमर्पण कर के झड़ रही थी. मेरे


बड़े मामा ने अपने विशाल लंड से मेरी चूत का मंथन कर मेरी नाबालिग, किशोर शरीर के भीतर की स्त्री को जागृत कर दिया.



"बड़े मामा, मेरी चूत को फाड़ दीजिये. मुझे और चोदिये.मुझे आपका लंड कितना दर्द करता है पर और दर्द कीजिये." मेरी बकवास मेरे बड़े


मामा के एक कान में घुस कर दूसरे कान से निकल गयी. बड़े मामा ने हचक-हचक अपने अत्यंत मोटे-लम्बे लौहे की तरह सख्त लंड से मेरी चूत का


लतमर्दन कर के मुझे लगातार आनंद की पराकाष्ठा के द्वार पर ला के पटकते रहे. मैं भूल गयी कि उस दिन मेरी पहली चुदाई के दौरान, मेरी चूत, बड़े


मामा के लंड की चुदाई से कितनी बार झड़ी थी.



बड़े मामा ने ने मेरे ऊपर लेट कर मेरे होंठों पर अपने होंठ जमा लिए और उपने मज़बूत चूतड़ों से मेरी चूत को और भी तेज़ी से छोड़ने


लगे, "नेहा बेटी, मुझे अब तुम्हारी चूत में आना है. मेरा लंड तुम्हारी चूत में झड़ने वाला है," बड़े मामा कामोन्माद के प्रभाव में फुसफुसाये.


मैंने अपनी बाँहों से इनकी पीठ सहलायी, "बड़े मामा आप अपना लंड मेरी चूत में खोल दीजिये. मेरी चूत को अपने मोटे लंड के वीर्य से


भर दीजिये."


बड़े मामा ने अपना पूरा लंड बाहर निकल कर पूरे शक्ति से मेरी चूत में जड़ तक घुसेड़ कर मेरे मुंह के अंदर ज़ोर से गुर्राए. उनके लंड ने मेरी


चूत के अंदर थरथरा कर बहुत दबाव के साथ गरम, लसलसे वीर्य की पिचकारी खोल दी. मेरी चूत इतनी उत्तेजना के प्रभाव से फिर झड़ गयी. बड़े


मामा का लंड बार बार मेरी चूत के भीतर बार बार विपुल मात्रा में वीर्य स्खलन कर रहा था. मुझे लगा कि बड़े मामा के लंड का वीर्य स्खलन कभी रुकेगा ही नहीं.


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बड़े मामा की गहरी साँसे मेरे मुंह में मीठा स्वाद पैदा कर रहीं थीं. मेरी चूत की नाज़ुक कंदरा उनके धड़कते लंड की हर थरथराहट के आभास से कुलमुला रही थे. बड़े मामा और मैं एक दूसरे से लिपट कर अपने लम्बे अवैध कौटुम्बिक व्यभिचार के कामोन्माद के बाद की शक्तिहीन अवस्था और एक दूसरे के मुंह का मीठा स्वाद का आनंद ले रहे थे. बड़े मामा मुझे क़रीब दो घंटे से चोद रहे थे.
बड़े मामा का लंड अभी भी इस्पात से बने खम्बे की तरह सख्त था, "बड़े मामा आपका लौहे जैसा सख्त लंड तो अभी भी मेरी चूत में तनतना रहा है? क्या इसे अपनी बेटी जैसी भांजी की चूत और मारनी है?" मैने कृत्रिम इठलाहट से मामाजी को चिड़ाया.
बड़े मामा ने मेरी नाक की नोक को दातों से हलके से काट के, मुझे अपनी विशाल बाँहों में भींच आकर कहा,"अब तो तुम्हारी चूत की चुदाई शुरू हुई है, नेहा बेटा. अब तक तो हम आपकी को अपने लंड से पहचान करवा रहे थे."
बड़े मामा ने अपना लंड मेरी चूत से बाहर निकालने लगे. मेरी आँखें मेरे नेत्रगुहा से बाहर निकल पड़ी. मैं विष्वास नहीं कर सकी जब मैंने बड़े मामा का हल्लवी मूसल घोड़े के वृहत्काय लिंग के माप का लंड अपनी छोटी सी अछूती कुंवारी चूत में से निकलते हुए देखा. बड़े मामा का लंड मेरे कौमार्य भंग के खून और अपने वीर्य से सना हुआ था, "भगवान्, बड़े मामा ने कैसे इतना बड़ा लंड मेरी चूत में डाल दिया?" मेरा दिमाग चक्कर खाने लगा. मुझे काफी जलन हुई जब बड़े मामा का लंड मेरी चूत के द्वार-छिद्र से निकला. मेरी चूत से विपुल गरम गरम द्रव बह निकला.
बड़े मामा ने मुझे गुड़िया जैसे उठा कर कहा, " नेहा बेटा, अब हम तुम्हारी चूत पीछे से मारेंगें." मैं बड़े मामा के महाविशाल लंड और अपनी चूत में से बहे खून को देख कर काफी असहाय महसूस करने लगी और बड़े मामा की शक्तिशाली मर्द सत्ता के प्रभाव में उनकी हर इच्छा का पालन करने को इच्छुक थी. मेरी दृष्टी सफ़ेद चादर पर फैले गाड़े लाल रंग के बड़े दाग पर पड़ी. पता नहीं क्या मेरी चूत वाकई फट गयी थी? इतना खून कहाँ से निकला होगा?

बड़े मामा ने मुझे घोड़े की मुद्रा में मोड़ कर स्थिर कर के मेरे फूले, मुलायम चूतड़ों के पीछे खड़े हो गए. बड़े मामा ने अपना विशाल लंड तीन चार धक्कों में पूरा मेरी चूत में फिर से घुसेड़ दिया. मेरे मुंह से सिसकारी निकल पडीं , "धीरे बड़े मामा, धीरे. आपका लंड बहुत बड़ा है," मैंने अपने होंठ अपने दातों में दबा लिए वरना मेरी चीख निकल जाती. "नेहा बेटा, अब तो तुम्हारी चूत दनदना कर मारूंगा. तुम्हारी कोमल चूत अब खुल गयी है." बड़े मामा ने मेरी धीरे चूत मारने की प्रार्थना की खुले रूप से उपेक्षा कर दी.
बड़े मामा ने अपने हाथों से मेरी गुदाज़ कमर को स्थिर कर अपने लंड से मेरी चूत मारना प्रारंभ कर दिया. इस बार बड़े मामा ने लंड दस-बारह ठोकरों के बाद बाद मेरी चूत में अपना लंड से सटासट तेज़ और ज़ोर से धक्के मारने लगे. मेरी सांस अनियमित और भारी हो गयी. मेरी सिस्कारियों से कमरा गूँज उठा. बड़े मामा की शक्तिशाली कमर की मांसपेशियां उनके विशाल लंड को मेरी चूत में उनका लंड बहुत ताकत से धकेल रहीं थी. बड़े मामा के लंड का हर धक्का मेरे पूरे शरीर को हिला रहा था. मेरी नीचे लटकी बड़ी चूचियां बुरी तरह से आगे पीछे हिल रही थीं.

"आह, मामाजी, मुझे चोदिये. अँ...अँ..ऊं..ऊं..उह ..उह..और चोदिये बड़े मामा. मेरी चूत में अपना लंड ज़ोर से डालिए. मेरी चूत झाड़ दीजिये," मेरे मूंह से वासना के प्रभाव में अश्लील शब्द अपने आप निकल आकर बड़े मामा को और ज़ोर से चूत मारने को उत्साहित करने लगे. बड़े मामा ने कभी बहुत तेज़ छोटे धक्कों से, और कभी पूरे लंड के ताकतवर लम्बे बेदर्द धक्कों से मेरी चूत का निरंतर मंथन अगले एक घंटे तक किया. मैं कम से कम दस बार झड़ चुकी थी तब बड़े मामा ने मेरी चूत में अपना लंड दूसरी बार खोल कर वीर्य स्खलन कर दिया. दूसरी बार भी बड़े मामा के वीर्य की मात्रा अमानवीय प्रचुर थी.
मैं बहुविध रति-निष्पत्ति से थकी अवस्था में बड़े मामा की आखिरी ठोकर को सह नहीं पाई और मैं मूंह और पेट के बल बिस्तर पर गिर पडी. बड़े मामा का लंड मेरी चूत से बाहर निकल गया.
मुझे बड़े मामा के मुंह से मनोरथ भंग होने की कुंठा से गुर्राहट निकलती सुनाई पड़ी. बड़े मामा अब अपनी कामवासना से अभिभूत थे और उनकी बेटी समान भांजी का किशोर नाबालिग शरीर उनकी भूख मिटाने के लिए ज़रूरी और उनके सामने हाज़िर था. बड़े मामा ने बड़ी बेसब्री से मुझे पीठ पर पलट चित कर दिया. मेरी उखड़ी साँसे मेरे सीने और उरोज़ों से ऊपर को नीचे कर रहीं थी.
बड़े मामा ने मेरी दोनों टांगों को मेरी चूचियों की तरफ ऊपर धकेल दिया. मैं अब लगभग दोहरी लेटी हुए थी. बड़े मामा ने अपना अतृप्य स्पात के समान सख्त विशाल लंड मेरी खुली चूत में तीन धक्कों से पूरा अंदर डाल कर वहशी अंदाज़ में चोदने लगे. बड़े मामा ने मेरी चूत को बेदर्दी से भयंकर ताकत भरे धक्कों से चोदना शुरू कर दिया. बड़े मामा मानो मेरी कुंवारी, नाज़ुक चूत का लतमर्दन से विध्वंस करने का निश्चय कर चुके थे. मेरी सिस्कारियां और बड़े मामा की जांघों के मेरे चूतड़ों पर हर धक्के के थप्पड़ जैसी टक्कर की आवाज़ से कमरा गूँज उठा.
बड़े मामा ने मेरे दोनों उरोज़ों को अपने हाथों में ले कर मसल-मसल कर बुरा हाल कर दिया. मुझे अपनी चड़ती वासना के ज्वार में समझ कुछ नहीं आ रहा था कि कहाँ बड़े मामा मुझे ज्यादा दर्द कर रहे थे - अपने महाकाय लंड से मेरी चूत में या अपने हाथों से बेदर्दी से मसल कर मेरी चूचियों में. अब मैं अपने निरंतर, लहर की तरह मेरे शरीर को तोड़ रहे चरम-आनन्द के लिए मैं दोनों पीड़ा का स्वागत कर रही थी.
"बड़े मामा, आपने तो मेरी चूत को आह..बड़े..ऐ..ऐ ..ऐ *मा..मा...मा..मामा..आं..आं..आं..आं..आं. मुझे झाड़ दीजिये.उफ ओह मामा जी ..ई..ई..ई." मैं हलक फाड़ कर चिल्लाई. मेरे निरंतर रति-स्खलन ने मेरे दिमाग को विचारहीन और निरस्त कर दिया.
मेरा सारा शरीर दर्द भरी मीठी एंठन से जकड़ा हुआ था. बड़े मामा ने एक के बाद एक और भयानक ताक़त से भरे धक्कों से मेरी चूत को बिना थके और धीमे हुए एक घंटे से भी ऊपर तक चोदते रहे. मैं अनगिनत बार झड़ चुकी थे और मुझ पर रति-निष्पत् के बाद की बेहोशी जैसी स्तिथी व्याप्त होने लगी. मेरी चूत मेरे मामाजी के विशाल मोटे लंड से घंटों लगातार चुद कर बहुत जलन पर दर्द कर रही थी.
"बड़े मामा, अब मेरी चूत आपका अतिमानव लंड और सहन नहीं कर सकती. मेरे प्यारे मामाजी मेरी चूत में अपना लंड खोल दीजिये. मेरी चूत को अपने गरम वीर्य से भर दीजिये," मैं चुदाई की अधिकता भरी मदहोशी में बड़े मामा को चुदाई ख़त्म करने के लिए मनाने लगी. मुझे नहीं लगता था कि मैं काफी देर तक अपना होश संभाल पाऊँगी.
मेरी थकी विवश आवाज़ और शब्दों ने बड़े मामा की कामेच्छा को आनन्द की पराकाष्ठा तक पहुंचा दिया,"नेहा बेटा,मैं अब तुम्हारी चूत में झड़ने वाला हूँ," बड़े मामा ने मेरे चूत का सिर्फ कौमार्य भंग ही नहीं किया था पर उसे अपने विशाल लंड और अमानवीय सहवास संयम-शक्ति से अपना दासी भी बना लिया था. मैं बड़े मामा से सारी ज़िंदगी चुदवाने के लिए तैयार ही नहीं पर उसके विचार से ही रोमांचित थी.
बड़े मामा ने मेरे चूचियों को बेदार्दी से मसल कर मेरी छाती में ज़ोर से दबा कर अपने भारी मोटे लंड को पूरा बाहर निकाल कर पूरा अंदर तक बारह-तेरह बार डाल कर मेरे ऊपर अपने पूरे वज़न से गिर पड़े. मेरे फेफड़ों से सारी वायु बाहर निकल पड़ी. उनका लंड मेरे चूत में फट पड़ा. बड़े मामा के स्खलन ने मेरी चूत में नया रति-स्खलन शुरू कर दिया. मैंने अपने बाहें, ज़ोर-ज़ोर से सांस लेते हुए बड़े मामा की गर्दन के चरों तरफ डाल कर, उनको कस कर पकड़ लिया. हम दोनों अवैध अगम्यागमन के चरमानंद से मदहोश इकट्ठे झड़ रहे थे.
बड़े मामा मेरी गरदन पर हल्क़े चुम्बन देने लगे. मैंने थके हुए अपने बड़े मामा को वात्सल्य से जकड़ कर अपने से चुपका लिया. मुझे बड़े मामा पर माँ का बेटे के ऊपर जैसा प्यार आ रहा था. बड़े मामा और मैं उसी अवस्था में एक दूसरे की बाँहों में लिपटे कामंगना की अस्थायी संतुष्टी की थकन से निंद्रा देवी की गोद में सो गए.

मेरे आँख कुछ घंटों में खुली. मैंने अपने को बड़े मामा की मांसल भुजाओं में लिपटा पाया. बड़े मामा अभी भी सो रहे थे. उनके थोड़े से खुले होंठों से गहरी सांस मेरे मुंह से टकरा रही थी. मुझे बड़े मामा की साँसों की गरमी बड़ी अच्छी लग रही थी. बड़े मामा के नथुने बड़ी गहरी सांस के साथ-साथ फ़ैल जाते थे. बड़े
मामा की गहरी सांस कभी खर्राटों में बदल जाती थी. मुझे बड़े मामा का पुरूषत्व से भरा खूबसूरत चेहरा मुझे पहले से भी ज़्यादा प्यारा लगा, और उनका वोह चेहरा मेरे दिल में बस गया. मैंने अब आराम से बड़े मामा के वृहत्काय शरीर को प्यार से निरीक्षण किया. मामाजी की घने बालों से ढके चौड़े सीने के बाद उनका बड़ा सा पेट भी बालों से ढका था. मेरी दृष्टी उनके लंड पर जम गयी. बड़े मामा का लंड शिथिल अवस्था में भी इतना विशाल था की मुझे मामाजी से घंटों चुदने के बाद भी विश्वास नहीं हुआ की उनका अमानवीय वृहत लंड मेरी चूत में समा गया था. मैं मामाजी के सीने पर अपना चेहरा रख कर उनके ऊपर लेट गयी. बड़े मामा ने नींद में ही मुझे अपनी बाँहों में पकड़ लिया.


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मेरा बच्चों जैसा छोटा हाथ स्वतः मामाजी के मोटे शिथिल लंड पर चला गया. मैंने अपनी ठोढ़ी बड़े मामा जी के सीने पर रख कर उनके प्यारे मूंह को निहारती, लेटी रही. कुछ ही देर में बड़े मामा का लंड धीरे-धीरे मेरे हाथ के सहलाने से सूज कर सख्त और खड़ा होने लगा. मेरा पूरा हाथ उनके लंड के सिर्फ आधी परिधी को ही घेर पाता था. बड़े मामा ने नीद में मुझे बाँहों में भरकर अपने ऊपर खींच लिया. मैं हलके से हंसी और बड़े मामा के खुले मुंह को चूम लिया. बड़े मामा की नीद थोड़ी हल्की होने लगी.
मैंने संतुष्टी से गहरी सांस ली और मामा के बालों से भरे सीने पर अपना चेहरा रख कर आँखे बंद कर ली. मेरा हाथ मामाजी के लंड को निरंतर सहलाता रहा. शायद मैं फिर से सो गयी थी. मेरी आँख खुली तो बड़े मामा जगे हुए थे और मुझे प्यार से पकड़ कर मेरे मूंह को चूम रहे थे. "मम्म्मम्म.. बड़े मामा आप तो बहुत थक गए," मैंने प्यार से मामाजी की नाक को चूमा.
"नेहा बेटा, यह थकान नहीं, अपनी बेटी की चूत मारने के बाद के आनंद और संतुष्टी के घोषणा थी," बड़े मामा ने हमेशा की तरह मेरे सवाल को मरोड़ दिया. "अब क्या प्लान है, मामाजी," मैंने अल्ल्हड़पन से पूछा. बड़े मामा ने मेरी नाक की नोक की चुटकी लेकर बोले, "पहले नेहा बेटी की चूत मारेंगें, फिर नहा धोकर देर का लंच खायेंगे," बड़े मामा ने अपने वाक्य के बीच में मुझे अपने से लिपटा कर करवट बदल कर मेरे ऊपर लेट गए, " उसके आगे की योजना हम आपके ऊपर छोड़ते हैं." बड़े मामा ने मेरे खिलखिला कर हँसते हुए मुंह पर अपना मुंह रख कर मुझे चूमने लगे.
मेरी अपेक्षा अनुसार बड़े मामा ने अपनी टांगों से मेरे दोनों टांगों को अलग कर फैला दिया. मामाजी ने अपना लोहे जैसा कठोड़ लंड मेरी चूत के द्वार पर टिका कर हलके धक्के से अपना बड़ा सुपाड़ा मेरी चूत के अंदर घुसेड़ दिया. मेरी ऊंची सिसकारी ने बड़े मामा के लंड का मेरी चूत पर सन्निकट हमले की घोषणा सी कर दी.
बड़े मामा ने दृढ़ता से अपने विशाल लंड को मेरे फड़कती हुई चूत में डाल दिया. मैंने अपने होंठ कस कर दातों में दबा लिए. मुझे आनंदायक आश्चर्य हुआ की बड़े मामा के हल्लवी मूसल से मुझे सिवाय बर्दाश्त कर सकने वाले दर्द के अलावा जान निकल देने वाली पीड़ा नहीं हुई. मेरी चूत में बड़े मामा के लंड के प्रवेश ने मेरी वासना की आग को हिमालय की चोटी तक पहुचा दिया.
मेरे बाँहों ने बड़े मामा की गर्दन को जकड़ लिया. मामाजी ने मेरे कोमल कमसिन बदन के ऊपर अपना भारी-भरकम शरीर का पूरा वज़न डाल कर मेरी चूत की चुदाई शुरू कर दी. बड़े मामा के लंड ने मेरी सिस्कारियों से कमरा भर दिया. बड़े मामा ने मेरी चूत को आधा घंटा अपने मोटे लंड से सटासट धक्कों से चोदा. मेरी चूत तीन बार झड गयी. बड़े मामा ने आखिर टक्कर से मेर्रे चूत में अपना लंड जड़ तक घुसेड कर मेरी चूत में झड़ गयी. बड़े मामा और में एक दूसरे को बाँहों में पकड़ कर चुदाई के बाद के आनंद के रसास्वाद से मगन हो गए. बड़े मामा ने प्यार से मुझे अपनी बाँहों में उठा कर स्नानघर में ले गए.
बड़े मामा जब पेशाब करने खड़े हुए तो मैंने उनका लंड अपने हाथ में लेकर उनकी पेशाब की धार को सब तरफ घुमाते हुए शौचालय में पेशाब कराया. बड़े मामा का शिथिल लंड भी बहुत भारी और प्यारा था. मैंने उनके भीगे लंड को प्यार से चूमा. मुझे मामाजी के पेशाब का स्वाद बिलकुल भी बुरा नहीं लगा. मैं जैसे ही शौचालय की सीट पर बैठने लगी बड़े मामा ने मुझे बाँहों में उठा कर नहाने के टब में खड़े हो गए. बड़े मामा ने अपने शक्तिशाली भुजाओं से मुझे अपने कन्धों तक उठा कर मेरी टाँगें अपने कन्धों पर डालने को कहा. मेरा बड़े मामा की हरकतों से हसंते-हंसते पेट में दर्द हो गया. इस अवस्था में मेरी गीली चूत ठीक मामाजी के मुंह के सामने थी. मैं बड़े मामा से अपनी चूत चटवाने के विचार से रोमांचित हो गयी, "बड़े मामा मेरी वस्ति पूरी भरी हुई है. मेरा पेशाब निकलने वाला है."
"नेहा बेटा, मुझे अपना मीठा मूत्र पिला दो. कुंवारी चूत की चुदाई के बाद पहला मूत तो प्रसाद की तरह होता है." बड़े मामा ने मेरी रेशमी बालों से ढकी चूत को चूम मुझे उन्हें अपना मूत्र-पान कराने के लिए उत्साहित किया.
मेरा पेशाब अब वैसे ही नहीं रुक सकता था. मेरे मूत की धार तेज़ी से बड़े मामा के खुले मूंह में प्रवाहित हो गयी. बड़े मामा ने मुंह में भरे मूत्र को जल्दी से सटक लिया, पर तब तक मेरे पेशाब की तीव्र धार ने उनके मुंह का पूरा 'मूत्र स्नान' कर दिया. बड़े मामा ने कम से कम मेरे आधे पेशाब को पीने में सफल हो गए. उनका मुंह, सीना और पेट मेरे मूत से भीग गया था. सारे स्नानघर में मेरे मूत्र की तेज़ सुगंध फ़ैल गयी.

"बड़े मामा, मुझे प्लीज़ शौचासन पर बैठना है." बड़े मामा ने मुझे प्यार से कमोड पर बिठा दिया. मैंने बड़े मामा के आधे-सख्त लंड को मूंह में ले कर मलोत्सर्ग करने लगी. मेरे पखाने की महक स्नानघर में फ़ैल गयी. बड़े माम ने गहरी सांस ली, मेरा शरीर रोमांच से भर गया, कि बड़े मामा को मेरा मलोत्सर्जन भी वासनामयी लगता था. मेरे मल-विसर्जन की पाने में गिरने की आवाज़ से बड़े मामा का लंड और भी सख्त हो गया. जब मेरा मलोत्सर्ग समाप्त हो गया तो मामाजी ने मुझे अपने को साफ़ किये बिना उठा कर, बिना फ्लश किये, शौचाल्या पर खुद बैठ गए.
बड़े मामा ने मुझे मोड़ कर झुका दिया. बड़े मामा ने मेरे गुदाज़ चूतड़ फैला कर गुदा-छिद्र को अपने मूंह से चाट कर साफ़ करने लगे. मेरी चूत में से रस बहने लगा. मेरी नाबालिग जीवन में एक दिन में ही सहवास की वासना के कितने रूप बड़े मामा ने दिखला दिये थे. बड़े मामा की जीभ ने मेरी गांड को चाट कर मुझे गरम कर दिया. मेरे साँसों में बड़े मामा के मलोत्सर्ग की गन्ध भर गयी. बड़े मामा जब मलोत्स्र्जन समाप्त कर रोल की तरफ हाथ बड़ाया तो मैंने उनका हाथ पकड़ कर उन्हें खींचा. मेरा मुंह, जो मैं उनको अर्पण करना चाहती थी उसके विचार से ही लाल हो गया. बड़े मामा को मेरी इच्छा समझने में कुछ क्षण ही लगे और मामाजी मुड़ कर अपने दोनों हाथो को घुटनों पर रख कर आगे झुक गए.
मैंने बड़े मामा के विशाल घने बालों से ढके चूतड़ों को फैला कर मामाजी की गुदा के बालों से भरे छल्ले को जीभ से चाटने लगी. मुझे मामाजी की गांड में से मर्दों वाली सुगंध और स्वाद से आनंद आने लगा. मुझे मामाजी की गांड चाटने में बहुत मज़ा आया. मुझे अब मामाजी की अजीब इच्छाओं का महत्व समझ आने लगा.
मैंने मामाजी की गांड अपने थूक से गीली कर बिलकुल साफ़ कर दी. बड़े मामा और मैंने पहले दातों को ब्रश किया फिर इकट्ठे स्नान करने के लिए शावर के लिए चल पड़े. बड़े मामा ने मुझे प्यार से साबुन लगाया. उनके हाथों ने मेरी उरोजों, चूत और गांड को खूब तरसाया. मामाजी ने मेरे बालों को में शेम्पू भी लगाया. मेरी शरीर में वासना की आग भड़कने लगी. मैंने भी बड़े मामा को सहला कर साबुन लगाया.मेरे हाथों ने उनके खड़े मूसल लंड को खूब सहलाया, मैंने उनकी विशाल बहुत नीचे तक लटके अंडकोष को भी अपने हाथों में भरकर साफ़ करने के बहाने सहला कर मामजी की कामंगना को भड़का दिया.


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मैंने उसके बाद साबुन भरे हाथों से मामाजी के विशाल बालों से भरे चूतड़ों को मसला और अपनी उंगली से उनकी चूतड़ों के बीच की दरार को सहलाया, मेरी उंगली बड़ी देर तक उनके गांड के छेद पर टिकी रही. बड़े मामा ने मुझे मुड़ कर अपनी बाँहों में उठा लिया. मैं खिलखिला कर हंस पड़ी, मेरे बाहें मामाजी की गर्दन से लिपट गयीं और मेरी टांगों ने मामाजी की चौड़ी कमर के उभार को जकड़ लिया. बड़े मामा ने मेरे साबुन लगे चिकने चूतड़ों को अपने हाथों में संभाला और अपने घुटने झुका कर अपना अमानवीय अकार के घोड़े जैसे साबुन से लस्त लंड के अत्यंत मोटे सुपाड़े को मेरी चूत में घुसेड़ दिया. हम दोनो के बदन साबुन के चिकने थे. मामाजी ने मेरा वज़न की सहायता से मेरी चूत में अपने विशाल लंड को मोटे खूंटे की तरह धकेल दिया. मेरी चीख से स्नानघर गूँज उठा. बड़े मामा ने मेरे चूतड़ ऊपर उठा और फिर मेरे वज़न का इस्तेमाल कर के नीचे गिरा कर अपने लंड से मेरी चूत बिजली की तेज़ी से मारने लगे. बड़े मामा ने भयंकर तीव्रता से मेरी चूत मारनी शुरू कर दी. मेरे सांस एक बार भी संतुलित नहीं हो पायी. बड़े मामा ने अपने विशाल लोहे जैसे सख्त लंड को स्थिर रख, मेरे चूतड़ों से आगे पीछे कर के वास्तव में मेरी चूत से अपना लंड मार रहे थे. मेरी सिस्कारियों से दीवारें बहरी हो गयीं. बड़े मामा ने मुझे अपनी और अपने महाकाय लंड की मर्दानी ताकत का फिर से आभास कराया. मैंने अपना खुला सिसकता हुआ मुंह बड़े मामा की गर्दन में छुपा लिया.बड़े मामा की वहशी चुदाई ने मेरी चूत को पांच बार झाड़ दिया. बड़े मामा की इतनी उत्तेजना भरी चुदाई ने मेरी हालत बेहाल कर दी. मेरी किशोर शरीर बड़े मामा के लंड से उपजी महा-कामेच्छा को संभालने के लिए अभी बहुत अल्पव्यस्क था. मैंने अपने आपको बड़े मामा और अपनी धधकती वासना के ऊपर छोड़ दिया.
जब मुझे लगने लगा कि बड़े मामा उस दिन कभी भी नहीं झड़ेंगे, मामाजी ने मेरी चूत और भी तेज़ी से मारनी शुरू कर दी. मेरी सिस्कारियों में अब चरम कामाग्नी के अलावा थोड़ा सा दर्द भी शामिल था. पर मुझे उस दर्द के भीतर छुपे काम-आनंद ने पागल कर दिया. "मामाजी, मुझे चोदिये. और चोदिये. मेरी चूत अपने मोटे लंड से मारिये. आह अंन्ह ...हाय मेरी चूत ...मामाजी... ई..ई ....ई .... ई ....... मर गयी ई ....ई ... ई........ मैं," मेरा मुंह मामाजी कि गर्दन से चुपका हुआ था. बड़े मामा अपने भयंकर लंड से मेरी चूत का विध्वंस निरंतर हिंसक तेज़ी से करते रहे जब तक उनका लंड अचानक मेरी चूत में स्खलित हो गया. मामाजी के गरम वीर्य ने मेरे हलक से जोर की सिसकारी निकाल दी. मेरी चूत ने भी एक बार फिर से रति-रस विसर्जित कर दिया.बड़े मामा का महाकाय लंड ने लगभग तेरह बार झटके मार कर मेरी चूत को अपने मर्दांगनी के निचोड़,संतान उत्पादक, वीर्य से भर दिया.
बड़े मामा ने मुझे जोर से अपने शरीर से भींच लिया. मैं भी उनसे बच्चे की तरह लिपट गयी. हम दोनों को काफी समय लगा अपनी सांसों को संतुलित करने में.


बड़े मामा और मैं नहा धो कर रसोई में खाने के लिए चल दिए. बड़े मामा ने सब नौकरों को छुट्टी दे कर घर हमारी चुदाई के लिए तैयार कर दिया था. पर नौकर शाम को रात के खाने के लिए वापस आने वाले थे. बड़े मामा ने खाना गरम करने की मेज़ से दोनों के लिए खाना परोसा. मेरी सारी पसंद की चींज़े बड़े मामा ने पकवाईं थी. मैनें मामाजी से लिपट कर उन्हें प्यार से कई बार चूमा. बड़े मामा ने मुझे खींच कर अपनी गोद में बिठा लिया. हम दोनों ने निवस्त्र अवस्था में एक दूसरे को प्यार से खाना खिलाया.
बड़े मामा के हाथ बड़ी मुश्किल से मेरे गुदाज़ स्तनों कुछ क्षणों के लिए ही से दूर जाते थे। मेरे कोमल उरोज यों तो मेरी उम्र की तुलना से बड़े थे पर अभी भी अविकसित थे। बड़े मामा ने उन को रात भर और सुबह मसल, मड़ोड़, और उमेठ कर लाल नीले गुमटों से भर दिया था। बड़े मामा ने मेरी दोनों चुचुक को भींच कर मेरे गाल को चूम कर पूछा, "मेरी बेटी किस विचारों में खो गयी है?" मैं शर्मा कर लाल हो गयी, "मामाजी मैं अपनी चुदाई के बारे में सोच रही थी। आपने कितनी बेदरदी से मेरी चूचियों का मर्दन किया है? देखिये कैसी बुरी तरह से दागी हो गयी हैं?" बड़े मामा ने मुझे कस कर भींच लिया और शैतानी से हँसते हुए मेरे उरोज़ों को और भी कस कर मसल दिया। मैं भी दर्द से सिसकने के बाद हंस पड़ी। मैंने अपने मूंह में भरे चिकन के कुचले हुए टुकड़े को हँसते हुए मामाजी के मूंह से अपना मूंह लगा कर उनके मूंह में डाल दिया। बड़े मामा ने उसे प्यार से और भी चबा कर खा गए। मैं इस साधारण साधारण सी प्यार भरी चुल्ह्ढ़पन से रोमांचित हो गयी।
बड़े मामा और मैं अब अपने मूंह में चबाये हुए भोजन को एक दूसरे को खिलाने लगे। बड़े मामा ने चार गुलाब जामुन मेरी टाँगे चौड़ा कर मेरी चूत में भीतर तक भर भर दिए। मैं मचल उठी, "बड़े मामू मेरी चूत तो यह नहीं खा सकती।" "नेहा बिटिया, आपकी चूत तो इन्हें और भी मीठा कर देगी। फिर हम इनका सेवन करेगें।" बड़े मामा और मैं फिर से अपने मूंह से भोजन चबा आकर एक दूसरे को खिलाने लगे। "बड़े मामा हमें भी तो आपकी मिठास से भरी मिठाई चाहिए।" मैं इठला कर बोली। "यह तो आपकी समस्या है। हमारे पास तो हमारी बेटी की चूत है," बड़े मामा खुल कर हंस पड़े।
पर मैं अब बड़े मामा के परिपक्व अनुभव से तेज़ी से कामानंद की क्रियायें सीख रही थी। मैंने बड़े मामा को हाथ पकड़ कर उठाया और उन्हें आगे झुकने के लिए निवेदन किया। बड़े मामा के विशाल बालों से भरे चूतडों के बीच में छोटी सी गांड का छेड़ मेरे लिए तैय्यार था। मैंने बरगी के चार पांच टुकड़े बड़े मामा की गांड के अंदर अपनी उंगली से घुसा दिये। मैंने फिर उनकी मीठी गांड को प्यार से चूमकर नाटकीय अंदाज़ में कहा, "मेरे प्यारे बड़े मामू की प्यारी प्यारी गांड कृपया मेरी बर्फी को और भी मीठा कर दो।"
बड़े मामा और मेरी चुहल बाजी, हंसी-मज़ाक पूरे खाने के दौरान चलती रही। खाना समाप्त होने के प्रश्च्यात बड़े मामा ने मुस्कुरा कर मुझे मेज पर लिटा दिया। मैं भी वासनामयी मुस्कान से खिल उठी। मैंने जोर लगा कर अपनी चूत में भरे गुलाब जामुनों को बाहर धकेलने का प्रयास किया। बड़े मामा ने अपनी उंगली से मेरी मदद की।

उन्होंने मेरी चूत से निकली मिठाई को लालाचपने से खाया। बड़े मामा ने अपने जीभ और मूंह से मेरी चूत पर लिसी चासनी को साफ़ कर दिया। उनके बाद मेरी बारी थी। बड़े मामा मेज पर हाथ रख कर आगे झुक गए। उन्होंने भी जोर लगा कर मसली कुचली बर्फी अपनी गांड से बाहर निकालने की कोशिश की। धीरे धीरे मिठाई उनकी बालों से ढकी गांड के छेद के बाहर आने लगी। मैंने अपना खुला मूंह बड़े मामा की गांड पर लगा कर मिठाई को अपने मूंह में भर लिया। बर्फी अब झक सफ़ेद तो नहीं रही थी पर उसमे बड़े मामा की गांड की मिठास तो बेशक शामिल हो गयी थी। जो बाक़ी बर्फी बड़े मामा अपनेआप से नहीं निकाल पाए उसे मैंने अपनी कोमल उंगली से कुरेद कर चाट लिया।
बड़े मामा मुझे, ‘खाना खाने के बाद’, गोद में उठा कर कमरे में ले गए, "नेहा बेटा, मुझे गंगा बाबा और दुसरे नौकरों को फोन कर के रात के खाने के लिए आने की इजाज़त देनी पड़ेगी. हम दोनों झील के जंगल में घूमने जा सकते हैं.
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जब बड़े मामा गंगा बाबा को फोन कर रहे थे तब मैं अपने कपड़े निकालने लगी. बड़े मामा ने सफ़ेद कुरता पजामा चुना. बड़े मामा पजामे के नीचे कोई कच्छा नहीं पहना. मुझे हंसी आ गयी, "मामाजी, यदि आपका लंड खड़ा हो गया तो पजामा तम्बू की तरह उठ जाएगा."
बड़े मामा ने मेरे दोनों उरोजों को प्यार से सहलाया, "जंगल में सिर्फ तुम्हारे और कौन इस खड़े लंड को देखेगा? वैसे भी मेरी नेहा बेटी मेरे खड़े लंड को अपनी चूत में छुपा लेगी. नहीं बेटा?" मैं शर्म से लाल हो गयी और धीरे से सर हिला कर हामी भर दी.
बड़े मामा ने मेरी जींस को उठा कर अलग कर दिया. मेरे जिज्ञासु अभिव्यक्ति को देख के मामाजी मुस्कुराये और अलमारी से हलके पीले रंग का पेटीकोट और सफ़ेद ब्लाऊज़ निकल कर मुझे पहनने को दिया, "नेहा बेटी इसमें तुम अत्यंत सुंदर लगोगी," बड़े मामा ने हंस कर कहा, "यदि मेरा लंड खड़ा हो गया तो सिर्फ मुझे तुम्हारा लहंगा ऊपर करने की ही ज़रुरत है और तुम्हारी चूत मेरे लंड के लिए खुल जायेगी."
मैं शर्मा गयी और मामाजी के सीने पर अपने नन्हे हाथों की मुट्ठी से बार बार घूंसे मारने लगी जिसका प्रभाव मेरे विशाल बड़े मामा के ऊपर सिवाय इनको और ज़ोर से हसाने के अलावा निरर्थक था. मैंने लहंगे के नीचे जान्घियाँ और ब्लाऊज़ के नीचे ब्रा नहीं पहनी.
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बड़े मामा और मैं हँसते, बाते करते हुए झील की तरफ चल दिए. एक बार जब हम जंगल के घने पेड़ों से घिर गए तो मैंने अपनी बांह बड़े मामा की विशाल कमर के ऊपर डाल दी. हम दोनों झील के शांत विलक्षण वातावरण में एक दुसरे की बाँहों में खुश, छोटी-छोटी बातें कर रहे थे. "बड़े मामा हमें सुरेश अंकल और नम्रता आंटी के बारे में झूठ बोलना पडेगा?" मैंने अपना गाल बड़े मामा की चौड़ी मांस-पेशियों से भरी भुजा पर रगड़ कर अपना डर में मामाजी को शामिल करना चाहा. बड़े मामा ने अपना हाथ मेरे चूची के ऊपर रख कर मुझे आश्वासित किया, "नेहा बेटा हमें कोई झूठ नहीं बोलना पडेगा. आप सब चिंता मुझ पर छोड़ दो." मैंने मुस्कुरा कर अपना अधखुला मूंह ऊपर कर बड़े मामा को चुम्बन का निमंत्रण दिया. बड़े मामा ने मुझे अपनी गोद में खींच लिया और शीघ्र हमारे खुले मुंह एक दुसरे के मूंह से चुपक गए. हमारी झीभ एक दुसरे के मुंह में अंदर-बाहर जाने लगी. हमारी लार एक मुंह से दुसरे मुंह में जा रही थी. बड़े मामा का प्रचंड लंड मेरे गुदाज़ नितिम्बों को कुरेदने लगा. बड़े मामा ने मेरे ब्लाऊज़ के बटन खोल कर मेरे संवेदनशील उरोज़ों को मुक्त कर दिया. मामाजी ने मेरे सख्त चूचुक अपनी चुटकी में भर मसलने लगे. बड़े मामा के मजबूत हाथों में मेरे दोनों स्तनों को मसलने और गून्दने लगे। मेरी सिस्कारियां बड़े मामा को और भी उत्साहित कर रहीं थीं। मैंने अपने नाज़ुक नन्हे हाथों से बड़े मामा के लंड को पहले पजामे के ऊपर से रगड़ा, पर मुझे मामाजी के विशाल लंड की गर्मी अपने हाथों में महसूस करनी थी. मैंने बड़े मामा के पजामे का नाड़ा खोल कमरबंद ढीला कर दिया. मामाजी का महाकाय प्रचंड लंड ने मेरे नन्हे हाथों को भर दिया. मैंने हलके से अपने को बड़े मामा की बाँहों से मुक्त कर उनकी झांगों के बीच में झुक गयी। मैंने बड़े मामा का विशाल सुपाड़े को अपना गर्म थूक से भरे मुंह को पूरा खोल कर अंदर ले लिया। बड़े मामा मेरे घुंघराले घने बालों को सहलाने लगे। मैंने बड़ी मुश्किल से बड़े मामा के लंड को अपने मुंह में ले कर चूसने की कोशिश करने लगी। बड़े मामा की हल्की सी सिसकारी ने मुझे और भी उत्साहित कर दिया। मैं दिल लगा कर उनके लंड को जितना अच्छे से हो सकता था चूसने लगी। बड़े मामा ने मेरे लहंगे के अंदर हाथ डाल कर मेरी गीली चूत को सहलाने लगे। यदि मेरा मुंह बड़े मामा के लंड से नहीं भरा होता तो मेरी सिसकारी जंगल में गूँज जाती। मैं बड़े मामा के लंड को अपने मुंह से चूस कर लोहे की तरह सख्त कर दिया। उनकी अनुभवी उँगलियों ने मेरी चूत को सहला कर मुझे झड़ने के बहुत निकट तक ले आये। बड़े मामा ने वासना की उत्तेजना में गुर्रा कर कहा, "नेहा बेटा मेरे लंड को आपकी चूत चाहिए. क्या मैं आपकी चूत मारूं?" नेकी और पूछ-पूछ! बड़े मामा मुझे तरसा रहे थे. मैंने अपनी सिस्कारियों से उनकी इच्छा के सामने अपने नाबालिग, किशोर शरीर का एक बार फिर से समर्पण कर दिया. मैंने अपने लहंगा अपने हांथों से ऊपर उठा लिया, जैसे मामाजी ने मुझे अपनी बाँहों में भर कर खड़े हुए. मामाजी का खुला पजामा उनके टखनों के इर्दगिर्द गिर गया. "बड़े मामा प्लीज़ गिर नहीं जाईयेगा," मुझे मामाजी की फ़िक्र लग रही थी. मामाजी ने मेरी चिंता की उपेक्षा कर अपने प्रचंड लंड के सुपाड़े से मेरी चूत ढूँढने लगे. मैंने अपने नन्हे हाथ से मामाजी के विशाल लंड को अपनी तंग किशोर कमसिन यौनी के द्वार की सीध पर रख दिया. मामाजी ने चार भयंकर धक्कों में अपना महाकाय लंड मेरी चुस्त चूत में जड़ तक अंदर डाल दिया. झील के मीलों तक सुनसान किनारे पहले मेरी चीखों और फिर मेरी ऊंची सिस्कारियों से गूँज उठे. बड़े मामा के बड़े शक्तिशाली हाथ मेरे भारी गुदाज़ नितिम्बों को संभाल कर मुझे अपने लंड पर ऊपर नीचे करने लगे। मेरी चूत उनके भीमकाय लंड के ऊपर अप्राकृतिक आकार में फ़ैल गयी थी। शीघ्र ही मेरी रति-रस से भरी चूत सपक- सपक की आवाज़ कर बड़े मामा के लंड से चुद रही थी। मैंने बड़े मामा की सीने में अपना सिसकता मुंह छिपा लिया। "आह .. बड़े मामा मुझे चोदिये। आपका लंड कितना बड़ा है। आह .. ओह ... ब .. ऊंह ... ड़े मा ... ऊन्न्ह्ह्ह .... मा ..आ ...ऒन्न्ह ऊन्न्नग्ग्ग," मै बड़े मामा के भयंकर धक्कों से बुरी तरह से हिल रही थी। मेरी चूचियां बड़े मामा के हर भीषण धक्के से ऊपर नीचे मादक नाच कर रहीं थीं। मैं कुछ ही देर में झड़ने के लिए तैयार थी। मैं एक जोर की चीख के साथ बड़े मामा के वृहत लंड के ऊपर झड़ गयी। बड़े मामा ने मुझे ऊपर उठा कर मेरे थरकते हुए चूची को अपने मुंह में खींच कर चूसने लगे। मेरे कामोन्माद की चीख में मेरे स्तन में बड़े मामा के चूसने के दर्द भी मिल गया। बड़े मामा ने स्नानगृह के सामान मेरी चूत लम्बे प्रचंड धक्कों से मार कर मेरी हालत खराब कर दी. मेरी कामेच्छा प्रज्जवलित हो मेरे शरीर में आग लगाने लगी. बड़े मामा ने मुझे उसी भयंकर तेज़ी से क़रीब एक घंटा मुझे चोदा. ****************** मैंने शैतानी से मुस्कराते हुए बड़े मामा का पजामा लपेट कर अपने लहंगे के कमर बंद में घुसा दिया। बड़े मामा ने भी मुस्करा कर मेरा ब्लाउज रूमाल की तरह तह मार कर अपने कुर्ते की जेब में रख लिया। मेरा एक हाथ बार बार बड़े मामा के लंड को सहला देता था। हम आधा घंटा धीरे धीरे घुमते हुए हम एक सुंदर घने पेड़ों से घिरी एक जगह पे रुक गए। हरी-भरी मुलायम घास एक गुदगुदे गलीचे के सामान थी। मेरी वासना अब फिर से बड़े मामा के लंड के लिए जागृत हो गयी। मै घास पर घुटने पर बैठ कर बड़े मामा के आधे खड़े मेरे चूत के रस से भीगे लंड को चूसने लगी। बड़े माम का लंड कुछ क्षड़ों के चूसने से ही लोहे के डंडे की तरह खडा हो गया। बड़े मामा ने मुझे ऊपर उठा कर अपनी बाँहों में भर लिया। उनका खुला मुंह मेरे मुंह के ऊपर चुपक गया। मेरी भूखी जीभ उनके मुंह के अंदर हर जगह जा कर उनकी जीभ से भिड़ गयी। मैंने बड़े मामा के कुर्ते के बटन खोल दिए। मैंने उनकी सीने की घने बालों में अपनी उँगलियों घुमाने लगी। बड़े मामा ने मुझे प्यार से घास के बिस्तर पर लिटा दिया। उन्होंने मेरे लहंगे का नाड़ा खोल कर उसे मेरे शरीर से अलग कर पास में रख दिया। बड़े मामा का पजामा भी मेरे लहंगे के साथ ही चला गया। बड़े मामा ने मेरी आँखों की प्रार्थना को समझ कर अपना कुर्ता भी उतार दिया।
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बड़े मामा ने अपना विकराल लोहे से भी सख्त पर रेशम जैसा मुलायम लंड मेरी छूट के द्वार पर रगड़ने लगे। मेरी सिसकारी उन्हें मेरे अविकसित स्त्री-गृह की नाज़ुक सुगन्धित सुरंग के अंदर आने के लिए उत्साहित कर रही थी। बड़े मामा की झिलमिलाती हल्की भूरी आँखें मेरी वासना भरी आँखों से अटक गयीं। उनके होंठों पर एक हल्की सी मुस्कान थी। मैं समझ गयी कि बड़े मामा अपनी बेटी जैसी भांजी के होंठों से सम्भोग के अश्लील शब्दों को सुनना चाहते थे। मैं भी अब उन्हें बोलने से बहुत नहीं शर्माती थी। "बड़े मामा अपनी बेटी जैसी भांजी की चूत में अपना पितातुल्य विशाल लंड डाल दीजिये। मामू अपने विकराल लंड से अपनी बेटी की मासूम चूत को फाड़ दीजिये," मैं पहले धीरे फिर जोर से बोली। बड़े मामा ने चार भयंकर धक्कों से अपना पूरा भीमकाय लंड मेरी चूत में जड़ तक ठूंस दिया। मेरी चीख मेरे हलक में ही अटक गयी क्योंकि बड़े मामा ने मुझे एक क्षण भी दिए बिना मेरी चूत को भीषण रफ़्तार से चोदने लगे। उनका विकराल लंड मेरी चूत को रेल के इंजिन के पिस्टन की रफ़्तार और शक्ति से चोद रहा था। मेरे गले से जब आवाज़ निकली तो पहले मैं बिलबिला कर चीखी पर कुछ ही क्षणों में मे मैं ऊंची सिस्कारियों से अपने बड़े मामा की शक्तिशाली चुदाई के लिए आभार प्रकट करने लगी। बड़े मामा के विशाल हाथों ने मेरी चूचियों का मर्दन निर्ममता से किया, पर मैं उन्हें और भी बेदर्दी से मसलवाना चाहती थी। "बड़े मामू ... ओओओण्ण्ण्ण्ण आँ ...आँ ....आँ .....आअह ...और ज़ोर से। मैं आने वाली हूँ। मामा जी ... ई .... ई .... ई .......अंअंअंअंअंअं। मर गयी मैं तो ....आआआ ह्हूम।" 'चपक-चपक' की सुंदर ध्वनि मेरे चूत के मर्दन की घोषणा कर रहीं थी। बड़े मामा ने मुझे चार बार झाड़ कर मेरी चूत अपने मर्दाने संतान-उत्पादक गरम वीर्य से भर दी. मैं बड़े मामा से छोटी बच्ची की तरह लिपट गयी. हम दोनों कुछ देर उसी तरह लेटे रहे. बड़े मामा ने मुझे कई बार प्यार से चूम कर अपने लंड से मुक्त कर दिया. हम धीरे-धीरे जंगल में घूमने लगे. हम दोनों एक दुसरे के शरीर के आकर्षण से अपने को मुक्त नहीं कर सके। बड़े मामा के हाथ मेरे चूचियों, नितिम्बों से एक पल भी नहीं हते। मेरा हाथ भी उनके शिथिल पर भरी विशाल लंड से अलग होने में अक्षम था। बड़े मामा का अत्रिप्य मांसल लोह पुरुष लिंग तनतना कर फिर से उदंग हो गया। बड़े मामा ने झील के किनारे एक लकड़ी की बेंच को देख कर मुझे बेसब्री से उसकी और खीचने लगे। बड़े मामा ने मुझे उस खुरदुरी बेंच पर लिटा दिया। बड़े मामा ने मेरी भारी गुदाज़ झांगों को अपनी बाँहों में उठा कर मेरी चूत के मुहाने पर अपना वृहत्काय लंड का सेब जैसा सुपाड़ा लगा कर एक हल्का सा धक्का दिया। उनका सुपाड़ा मेरी संकरी चूत में प्रविष्ट हो गया। मेरी हल्की सी सिसकारी ने बड़े मामा के लंड का स्वागत किया। बड़े मामा कुछ देर तक अपने सुपाड़े को धीरे धीरे मेरी चूत में हिलाते रहे। मेरी चूत बड़ी तेजी से रस से भर गयी। बड़े मामा ने अपने सुपाड़े को गोल-गोल घुमा के मेरी चूत कर तंग छिद्र को चौड़ाने लगे। मेरी सिसकारी ने मेरी जलती हुई कामवासना की स्तिथी की घोषणा कर दी। मैंने अपने गांड को ऊपर उठा कर बड़े मामा का लंड अपनी चूत में लीलने की कोशिश की। "नेहा, बेटा आप क्या कर रहे हैं?" बड़े मामा ने मुझे चिड़ाते हुए बच्चों जैसी मासूम मुस्कान से पूछा। मैं समझ गयी थी कि एक बार फिर से बड़े मामा अपनी बेटी सामान भांजी के मुंह से अश्लील शब्दों को सुनना चाहते थे। मेरी चूत में जोर से आग लगी थे औए उसे बुझाने का अस्त्र बड़े मामा के पास था। "बड़े मामा मुझे क्यों तरसा रहें हैं? मुझे अपने घोड़े जैसे लंड से चोदिये। अपनी बेटी की चूत में अपना भीमकाय लंड पूरा अंदर तक डाल दीजिये," मैं वासना के ज्वार से धधक रही थी, "बड़े मामा मेरी चूत अपने मोटे लम्बे लंड से फाड़ दीजिये।" बड़े मामा ने अपने दोनों हाथों को मेरे कमसिन पर बड़े मोटे स्तनों से भर लिया। बड़े मामा ने बेदर्दी से मेरे दोनों चूचियों को मसल कर अपनी ताकतवर नितिम्बों की सयाहता से एक विध्वंसक धक्के से लगभग आधा लंड मेरी अविकसित चूत के संकरी सुरंग में धकेल दिया। मैं ज़ोरों से चीख पड़ी, " बड़े मामा, आह ... कितना दर्द ... ऊन्न्ह ... मेरी चूत फट गयी। ओह .. आह ... ऒन्न्ह्ह्ह ...ऊन्नग्ग्ग।" मेरे बिलबिलाने को अनसुना कर बड़े मामा ने एक गहरी सांस भर कर एक दूसरा भयंकर धक्का लगाया। उनका तीन- चौथाई विशालकाय लंड मेरी चूत में दनदना कर प्रविष्ट हो गया। मेरी छूट मानों जल रही थी। दर्द के मारे मेरी चीख फिर से जंगल में गूँज उठी। बड़े मामा ने अपने हाथों से मेरे दोनों उरोजों का लतमर्दन करते हुए तीसरे भीषण धक्के से अपना पूरा लंड जड़ तक मेरी चूत में डाल दिया। बड़े मामा ने मेरी चीख की एक बार फिर से उपेक्षा कर मुझे अपने घोड़े जैसे लम्बे मोटे लंड से चोदने लगे। दस बारह धक्कों के बाद ही मेरा सारा दर्द गायब हो गया और मेरी चीखों की जगह अब मेरे मुंह से लगातार सिस्कारियां उबल रही थीं। बड़े मामा ने मेरी चूचियों को उतनी ही बेदर्दी से मसला और नोचा जितनी निर्ममता से वो मेरी कमसिन चूत मार रहे थे। मामाजी के लम्बे जोरदार धक्कों से मैं पांच मिनट में ही झड गयी। बड़े मामा ने बिना धीरे हुए आधे घंटे से भी ऊपर मुझे चोद कर तीन बार कामोन्माद के द्वार पर ला कर पटक दिया। जब मैं तीसरी बार सिसकारते हुए झड़ रही थी तब बड़े मामा के भीमकाय लंड ने भी मेरी रस उगलती कमसिन चूत में मीठा गाड़ा जनक्षम वीर्य उलेढ़ दिया। बड़े मामा अपना भारी-भरकम बदन मेरे ऊपर डाल कर निढाल हो गए। मैंने प्यार से उनको अपनी बाँहों में जकड़ लिया और उनके मुंह को गीले चुम्बनों से भर दिया। हम दोनों काफी देर तक एक दुसरे की बाँहों में पड़े मुस्करा कर एक दुसरे को चूमते रहे। आखिर कर हम दोनों उठे और फिर से झील के अगले किनारे की तरफ चल दिए। बड़े मामा ने वापिस जाने के लिए दूसरा रास्ता चुना। हम दोनों पहाड़ी के किनारे के बहुत पास थे। हरी वादी का घुला नज़ारा किसी को भी विस्मित कर सकता था। बड़े मामा ने मुझे बाँहों में भर कर ज़ोर से भींच लिया। उनका लंड पूरा खड़ा था। पास में एक बड़ा पेड़ गिर पड़ा था। बड़े मामा ने मुझे उस पेड़ के तने पर हाथ टिका कर झुका दिया। हम दोनों के सामने खुली वादी का नज़ारा था। बड़े मामा ने मेरी चौड़ी खुली झांगों के पीछे जा कर अपना लंड एक बार फिर से मेरी फड़कती हुई चूत के ऊपर टिका दिया। मैंने अपना निचला होंठ दांतों के बीच दबा लिया। जैसे मैंने सोचा था उसी तरह बड़े मामा ने मेरे दोनों चूतड़ कस के पकड़ कर चार दर्द भरे धक्कों से अपने अमानवीय लंड को मेरी चूत में जड़ तक डाल कर मेरी अस्थी-पंजर हिला देने वाली भीषण चुदाई शुरू कर दी। मेरी वासना भरी चीखों से खुली वादी गूँज उठी। मैं सिसक सिसक कर बड़े मामा की विध्वंसक चुदाई से कई बार झड़ गयी। बड़े मामा ने उस बार मुझे एक घंटे तक बुरी तरह रगड़ कर चोदा। मेरे दोनों चूचियों की कोमल त्वचा पर बड़े मामा के निर्मम मर्दन से नीले निशान उभर आये। जब बड़े मामा ने अपना लंड मेरी थकी मांदी चूत में खोल। तब तक मैं इतनी शिथिल हो गयी थी की मेरे दोनों टांगें बड़ी मुश्किल से मेरा वज़न संभाल पा रहीं थीं। हम जब शाम का अन्धेरा छाने लगा तो घर की तरफ चल दिए.


गंगा बाबा हमारा इंतज़ार कर रहे थे. गंगा बाबा एक पहलवान के जिस्म के मालिक थे. उनका ६’१” ऊंचा शरीर अत्यंत चौड़ा और विशाल था. उनकी घनी मूंछें उनके असम सुन्दर चेहरे को और भी निखार देतीं थीं. गंगा बाबा ४२ साल के विधुर थे और अपनी अत्यंत सुंदर बेटी जानकी के साथ हमारे परिवार की विसायत के मैनेजर थे. दोनों हमारे परिवार की सारी*जागीर की देखबाल करते थे. जानकी २१ साल के थोड़े भरे हुए शरीर की बेहद सुंदर स्त्री थी. गंगा बाबा ने मुझे प्यार से गले लगा लिया. रात का खाना और भी स्वादिष्ट था. बड़े मामा ने इटली की विंटेज लाल अंगूरी मदिरा, बरोलो, की बोतल खोली. हम दोनों ने गंगा बाबा और जानकी दीदी के साथ खाना खाया. गंगा बाबा ने खाने के ठीक बाद सारे नौकरों को भगा दिया. जानकी दीदी ने मुझे गले लगा कर शुभरात्री की इच्छा व्यक्त की,"वैसे यदि रवि चाचा जैसे मर्द का लंड पास हो तो कोई भी रात शुभ ही होगी." मेरी शर्म से आवाज़ बंद हो गयी,जानकी दीदी को कैसे पता* चला? "दीदी आपको कैसे पता चला? क्या गंगा बाबा को भी पता है? " "घबराओ नहीं, नेहा, पापा और रवि चाचू के बीच में कोई बात गुप्त नहीं रहती. पर घर की बात घर में ही रहेगी. रवि चाचू का लंड मैंने भी झेला है.पहली बार की चुदाई करीब साल ६-७ साल पहले थी. फिर पापा और रवि चाचू ने मिल कर मुझे सारी रात चोदा। अगले दिन मैं मुश्किल से खड़ी हो पाई चलना तो बहुत दूर रहा।" जानकी दीदी ने मुझे प्यार से चूम कर आश्वासन दिया. बड़े मामा ने जानकी दीदी को भी चोदा था, इस विचार से ही मैं गरम हो गयी. आखिर में नौ बजे तक घर में बड़े मामा और मैं फिर से अकेले थे. बड़े मामा ने स्कॉच के गिलास के साथ मुझे बाँहों में भर कर सिनेमाघर वाले कमरे में सेक्स की अश्लील चलचित्र लगाया. "नेहा बेटा, यह सारे चलचित्र यथार्थ हैं और वास्तविक परिवारों के निजी जीवन की कहानियां हैं." बड़े मामा ने मुझे बताया.


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पहली फिल्म एक सुंदर परिवार में कौटुम्बिक व्यभिचार के बारे में थी. घर में अत्यंत सुंदर माँ और दो किशोर लम्बे तंदरुस्त बेटे थे. लड़कों की छुट्टी के दिन थे सो दोनों सुबह देर से उठे। माँ का नाम सुधा था। सुधा बड़े से रसोईघर एक सफ़ेद रंग की ढीली सी मैक्सी जैसा गाउन पहने नाश्ता तैयार कर रही थी। उसका गाउन के नीचे उसकी गुदाज़ भरी गोरी-गोरी जांघें, पिंडलियाँ और खूबसूरत छोटे-छोटे पैर किसी भी मर्द का संयम हिला सकते थे। सुधा अत्यंत सुंदर स्त्री थी। उसके दो ब्रा से मुक्त बड़े-बड़े गोल स्तन उसकी हर क्रिया पर बहुत आकर्षक तरह से हिल रहे थे। सुधा ने कई बार मुड़ कर देखा। उसे शायद अपने बेटों का देर से नीचे आना विचित्र लग रहा था। कुछ ही देर में दो सुंदर लम्बे-तंदरुस्त किशोरावस्था के लड़के नीचे तेजी से धूम धड़का मचाते हुए रसोईघर में आये। सुधा के सुंदर मुख पर प्रसन्नता की मुस्कान छा गयी। दोनों के सुंदर चेहरों पर तब किसी मूंछ और दाड़ी आने का प्रमाण नहीं था। सुनील और अनिल की उम्र में सिर्फ एक साल का फर्क था। दोनों सिर्फ शॉर्ट्स में थे। सनिल ने पीछे से अपनी माँ को अपनी बाँहों में भर लिया। सुधा मुस्करा के बोली, "बड़ी देर लगाई उठने में। क्या कल रात बहुत थक गए थे?" सुनील ने अपने दोनों हाथ अपने माँ के गाउन के अंडर डाल कर उसके उभरे गोल पेट को सहलाना शूरू कर दिया, "मम्मी, हम आपसे प्यार कर के क्या कभी भी थके हैं?" सुधा के मुंह से, अपने बेटे के हाथों से स्पर्श से एक मीठी सी सिसकारी निकल गयी। सुधा मुड़ कर अपने बेटे की बाँहों में समा गयी। सुनील छोटी उम्र में भी अपनी माँ से काफी लम्बा था। उसने अपना खुला मुंह अपनी माँ के मुस्कराते हुए मुंह पर रख दिया। सुधा की दोनों गुदाज़ भरी-भरी बाहें अपने बेटे की गर्दन के चरों तरफ कस गयी। सुनील ने अपनी जीभ अपनी माँ के मीठे मुंह में भर दी। सुधा ने भी अपनी जीभ से अपने बेटे की स्वादिष्ट जीभ भिड़ा दी। सुधा का मुंह शीघ्र अपने बेटे की मीथी लार से भर गया। सुधा ने जल्दी से उसे अमृत की तरह सटक लिया। सुनील के दोनों हाथ अपनी माँ के बड़े गुदाज़ स्थूल नितिम्बों को मसल रहे थे। पीछे से अनिल की शिकायत आयी, "मम्मी आपका छोटा बेटा भी तो अपनी माँ को गुड-मोर्निंग कहना चाहता है।" सुनील ने नाटकीय अंदाज़ में मुंह बना कर अपने माँ को मुक्त कर दिया। सुधा तुरंत अपने छोटे बेटे की बाँहों में समां गयी। अनिल अपना मुंह बेसब्री से अपनी माँ के मुंह पर रख उसके मीथे होंठों को चूसने लगा। उसके हाथ उतनी हे बेसब्री से सुधा के चूतड़ों को रगड़ रहे थे।
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सुनील ने सिसकारी भरती हुई अपनी माँ के पीछे जा कर उसका गाउन खोल दिया। सुनील ने अपने हाथ अपने भाई ओर माँ के शरीर के बीच में डाल कर अपनी माँ के दोनों उरोज़ों को अपने हाथों में भर लिया। माँ की एक और सिसकारी ने उसे और भी उत्साहित कर दिया। सुनील ने अपनी माँ की चूचियां मसलनी शुरू कर दीं। सुधा अपने छोटे बेटे की बाँहों में मचलने लगी। उसका मुंह अभी भी अपने बेटे के मुंह से चिपका हुआ था। अनिल ने सुधा का गाउन उसके कन्धों से गिर दिया। सुनील ने जल्दी से उसे अलग कर फर्श पर फेंक दिया और फिर से अपनी सिसकती माँ के उरोज़ों का मर्दन करने लगा। सुधा को अपने दोनों बेटों के सख्त लंड आगे-पीछे चुभ रहे थे। वैसे तो दोनों अभी किशोर थे पर उनका शारीरिक विकास अपेक्षा से बहुत पहले ही बढ चला था। "बेटा, चलो पहले नाश्ता कर लो," सुधा का शरीर अब अन्तरंग रूप से परिचित अग्नि में जल रहा था। पर माँ की ज़िम्मेदारी उसे स्त्री की वासना को दबाने के लिए बुला रही थी। दोनों बेटों ने कुनमुना कर कहा, "मम्मी, पहले हम दोनों पहले आपका नाश्ता करेंगें, फिर ही कुछ और खायेंगें।" सुधा जानती थी की जब उसके बेटों को माँ के शरीर की भूख लग जाती है तो कुछ भी उन्हें अपने माँ को भोगने से नहीं रोक सकता था। सुधा ने अपना शरीर अपने बेटों के बाँहों में ढीला छोड़ दिया। सुनील ने अपनी माँ की चूचियों को ज़ोरों से मसलना और गूंदना शुरू कर दिया। सुधा के मुंह से दर्द और वासनामयी सीत्कारी उबल कर रसोई में गूँज रहीं थीं। अब तक सुधा भी कामोन्माद में डूब गयी थी। उसके दोनों बेटे बहुत आसानी से अपनी माँ की वासना की अग्नि प्रज्ज्वलित कर सकते थे। और उस सुबह भी वही हुआ। सुधा ने बेसब्री से अनिल के शॉर्ट्स को नीचे करना शुरू कर दिया। उसका मुंह अभी भी अपने बेटे के मीठे मुंह से चिपका हुआ था। अनिल ने एक हाथ से अपनी माँ की मदद कर अपने शॉर्ट्स तो नीचे कर अपनी टांगों से दूर फ़ेंक दिया। सुधा का कोमल छोटा मुलायम हाथ अपने बेटे के स्पात जैसे सख्त, रेशम जैसे चिकने लंड से भर गया। सुधा के दोनों बेटों की तब तक झांटे नहीं उगी थी। उनके विशाल लंड और मोटे बड़े विर्यकोश से भरे अंडकोष भी झांटों के बिना बिलकुल मुंह में पानी लाने जैसे साफ़ और चिकने थे। उस छोटी उम्र में भी सुधा के दोनों बेटों के लंड अमानवीय रूप से बहुत लम्बे और मोटे थे। सुधा कुछ सालों से अपने बेटों से चुदवा रही थी पर अब भी हर साल उनका लंड और भी बड़ा और मोटा हो जाता था। दोनों बेटों की राय थी की वोह सब माँ को प्यार करना और रोज़ चोदने का पुरूस्कार था। सुधा यह सब सोच आकर अनिल के मुंह में मुस्करा दी। उसके दोनों बेटे बहुत ही आज्ञाकारी, पढाई में अच्छे और भद्र लड़के थे। सुधा ने अपने को अनिल से मुक्त कर फर्श पर घुटनों पर बैठ गयी। तब तक सुनील भी नग्न हो गया था। सुधा ने अनिल के मोटे लंड को अपने हाथों में ले आर उसके सेज जैसे सुपाड़े को अपने मुंह में ले लय। अपनी माँ के गर्म मुंह में अपना लंड जाते ही अनिल के मुंह से सिसकारी फूट पडी, "आह मम्मी ..." सुधा के हाथ अपने बेटे के लंड की पूरी मोटाई को पकड़ने के लिया काफी छोटे थे। कुछ देर अनिल का लंड चूस कर सुधा ने अपने बड़े बेटे का लंड अपने मुंह में ले लिया सुनील का लंड अनिल से थोडा सा बड़ा था। उसके मुलायम हाथ बारी बारी से अपने दोनों बेटों के अंडकोष को सहला रहे थे। सुनील ने थोड़ी देर में कहा, "मम्मी, मुझे अब आपकी चूत मारनी है।" अनिल ने कुनमुना कर पर भलेपन और प्यार से शिकायत की, 'मम्मी सुनील को ही क्यों पहले आपकी चूत मिलेगी। मैं भी तो आपकी चूत मार सकता हूँ?" सुधा को पता था की दोनों भाइयों के एक-दूसरे के लिए प्यार की कोई सीमा नहीं थी पर वो दोनों मीठी लड़ाई करने से नहीं रुकते थे। सुधा ने उठ कर अनिल को प्यार से चूमा और अपने माँ होने का एहसास कराया, "बड़े भाई का माँ पे पहला हक होता है। अनिल बेटा ये तो तुम्हे अच्छे से पता है।" अनिल ने अपनी माँ के सुंदर नाक की नोक को प्यार से काट कर धीरे से 'सौरी' बोल दिया। अनिल जल्दी से डाइनिंग टेबल पर जांघें फैला कर बैठ गया। उसका माहकाय लंड तनतना कर अपनी माँ को आकर्षित कर रहा था। सुधा ने अपने दोनों हाथ अनिल के जांघों के दोनों तरफ डाइनिंग टेबल पर रख, झुक कर घोड़ी की तरह बन गयी। सुनील ने अपनी माँ के गोरे विशाल रेशम से मुलायम कूल्हों को प्यार से सहलाया और फिर अपनी माँ की जांघों को चौड़ा कर फैला दिया। सुधा ने अनिल के लंड को अपने नाजुक हाथों से सहला कर उसके सुपाड़े को चुम्बन देना शुरू कर दिया। सुनील अपनी माँ के गुदाज़ गांड को चूमने के बाद उसके गीली घुंगराले झांटों से ढकी चूत को अपनी जीभ से चाटने लगा। सुधा की सिसकारी की ऊँची आवाज़ उसके बेटों के लिए जलतरंग का संगीत था। अपनी माँ की चूत रस से भरी पा कर सुनील ने अपना विशाल वृहत लंड अपनी माँ के फड़कती हुई चूत के द्वार पे लगा दिया। इसी तंग संकरी मखमली सुरंग से दोनों भाई इस दुनिया में अवतरित हुए थे। अब सुनील फिर से अपने जन्मस्थान में प्रवेश होने वाला था। माँ और बेटे के संसर्ग से बड़ा शायद कोइ और कामुक और वर्जित संसर्ग नहीं होता। सुनील ने अपने मोटे सुपाड़े को जोर से अपनी माँ की चूत की तंग योनि में धकेल दिया। सुधा अपने छोटे बेटे के लंड के पेशाब के छिद्र को अपनी जीभ की नोक से सता रही थी। उसकी चूत इतने सालों के बाद भी बेटों के लम्बे मोटे लंड लेते हुए तड़प जाती थी। सुधा की सिसकारी ने दोनों बेटों के लंड को और भी सख्त कर दिया। सुनील ने अपने मजबूत हाथों से अपनी माँ के कूल्हों को कस के पकड़ कर एक बेदर्द भीषण धक्का लगाया। उसका मोटा मूसल जैसा लंड एक ही धक्के में लगभग चार इंच उसकी माँ की चूत में दाखिल हो गया। सुधा दर्द से बिखल उठी, "सूनी .......ई ...ई .... आहह मर गयी बेटा। अनिल ने अपनी सुंदर माँ का खुला मुंह अपने लंड से भर दिया। सुनील ने अपनी माँ के बिलखने की परवाह किये बिना तीन और चार भयंकर धक्कों से अपना पूरा लंड माँ की चूत में डाल दिया। सुनील ने अपने लंड को आधा भार खींच कर बिना रुके हचक कर फिर से अपनी माँ के जननी-सुरंग में धकेल दिया। अनिल अपनी माँ के घुंघराले घने लटों को मुठी में भर कर उसका मुंह अपने मोटे गोरे चिकने लंड के उपर नीचे करने लगा। सुधा के मुंह से 'गों ..गों 'की आवाज़ निकलने लगी। अनिल बेरहमी से अपनी माँ के मुंह में ज़्यादा से ज़्यादा लंड डालने की कोशिश कर रहा था। सुनील ने अपनी माँ की चूत को लम्बे ताकतवर धक्कों से चोदने लगा। रसोई में सुधा की घुटी-घुटी सिस्कारियां गूँज उठी। उसमे दो बेटों की घुरघुराहट की आवाज़े भी शामिल थीं। सुनील और अनिल जानते थे की उनकी माँ को उनका उसे बेदर्दी से चोदना अच्छा लगता था। सुधा की चूत अपने बेटे के लंड को व्याकुल हो कर ले रही थी। उसकी फूली विपुल गांड अपने बेटे के हर धक्के से थरथरा जाती थी। सुनील को अपनी माँ के चूतड़ों का फिरकना बहुत उत्तेजित कर देता था। वोह और भी ताकत लगा कर अपनी माँ की चूत में धक्के लगाने लगा। सुधा अपने छोटे बेटे के लंड को जितना हो सकता था उतने कौशल से चूस रही थी। उसकी लार मुंह से निकल अनिल के लंड को नेहला रही थी। पांच दस मिनट के बाद सुधा का सार बदन अकड़ गया। दोनों बेटे समझ गए की उनकी माँ झड़ रही थी। सुनील और अनिल अब अपनी माँ की लम्बी चुदाई के लए तैयार थे। सुनील ने आगे झुक कर अपनी माँ के लटके हुए विशाल उरोज़ों को मसलना शुरू कर दिया। उसके लंड की हर टक्कर उसकी माँ के सारे शरीर को हिला देती थी। सुधा के दोनों बेटे उसका मुंह और चूत प्यार भरी निर्ममता से चोद रहे थे। सुधा तीन बार झड़ चुकी थी। उसे पता था की उसके दोनों बेटे रति-संसर्ग में निपुड़ थे। जैसे ही उन्हें लगा की वो झड़ने वाले थे उन्होंने अपनी जगह बदल ली। अब अनिल अपनी माँ की चूत को अपने साड़े-सात इंच के लंड से चोद रहा था और अनिल का आठ इंच का लंड उनकी माँ के मुंह में समाया हुआ था।
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दोनों बेटों ने तीन बार अदला बदली कर एक घंटे तक अपनी माँ को चोद कई बार झाड दिया था। आखिर में स्त्री ही जीतती है। दोनों बेटों के लंड माँ के मुंह और चूत में फट पड़े। सुधा का मुंह अपने बड़े बेटे के गर्म गाढ़े वीर्य से भर गया। अनिल ने भी अपनी माँ की चूत को अपने जनक्षम पानी से भर दिया। उसका लंड सुधा के गर्भाशय से लग कर अपने वीर्य से नहला रहा था। तीनो धीरे-धीरे अलग हुए और सुधा ने दोनों बेटों को नाश्ता परोसा सुनील ने अपनी माँ को अपनी गोद में खींच कर बिठा लिया और प्यार से उसे भी नाश्ता खिलाने लगा। सुधा बार बार नाश्ते को अपने मुंह से चबा कर अपने बेटों के मुंह में डाल देती थी। सुनील और अनिल भी अपनी माँ के मुंह में कुचला चब्या हुआ खाना प्यार से डाल कर अपनी माँ को आधे चबाये हुए खाने को निगलते हुए देख कर प्रसन्न हो रहे थे। तीनो की हंसी और खिलखिलाते हुए वार्तालाप से रसोई गूँज रही थी। नाश्ते के बाद भी बेटों की कामाग्नी शांत नहीं हुई थी। दोनों बेटे सुधा के स्तनों को मसल कर उसे बारी-बारी से चुम्बन देने लगे। अनिल की उंगलिया माँ की गीली चूत में दाखिल हो गयी। अनिले अपने अगुंठे से अपनी माँ के भग-शिश्न [ क्लिटोरिस ] को रगड़ और मसल रहा था। सुधा का शरीर फिर से अपने बेटों के लंड की भूख से जगमगा उठा। अनिल इस बार भोजन मेज पर चित लेट गया। उसकी टांगें मेज के किनारे पर लटकी हुईं थी। सुधा सुनील की मदद से मेज पर चढ़ गयी और अपनी दोनों विपुल जांघों को अनिल की जांघों के दोनों तरफ रख कर उसके लोहे के समान सख्त लंड को मुश्किल से सीधा कर अपनी चूत के दहाने से लगा लिया। उसकी आँखे स्वतः अत्यंत आनंद के प्रभाव से आधी बंद हो गयीं। उसका मुंह वासना के ज्वार से थोडा सा खुला हुआ था और उसके सुंदर नथुने गहरी साँसों से फड़क रहे थे। सुधा ने अपने भारी आकर्षक गांड को अपने बेटे के मोटे लंड के के सुपाड़े को अपनी चूत में फसा कर नीचे दबाने लगी। अनिल का मोटा लंबा लंड इंच-इंच कर उसकी माँ की गीली रसभरी चूत के अंदर गायब हो गया। सुधा ने अपने छोटे बेटे का पूरा लंड अपनी चूत में छुपा लिया। उसका सुंदर मुंह वासना भरे दर्द और आनंद के मिश्रण के प्रभाव से आधा खुला हुआ था। सुनील के ऊंचाई अपनी माँ की गांड मारने के लियी बिलकुल ठीक थी। सुनील नीचे झुक कर माँ के गांड को चुम्बन कर अपनी जीभ से कुरेदने लगा। सुधा की आँखे कामवासना से बंद होने लगीं। उसके एक बेटे का मोटा लम्बा लंड अपने माँ की चूत में धंसा हुआ था और उसका दूसरा बेटा अपनी जीभ से अपनी माँ के गुदा-छिद्र को प्यार से कुरेद कर उसे अपने विशाल लंड के लिए तैयार कर रहा था। एक चुदासी माँ की उत्तेजना को भड़काने के लिए इससे ज़्यादा और क्या चाहिए। सुधा की सिसकारी उसके आनंद को घोषित कर रही थी। सुनील ने अपना दानवीय लंड अपनी माँ की गुदा के छोटे से छिद्र पर लगा कर जोर से अंदर डालने की उत्सुकता से दबाने लगा। सुधा ने आने वाले दर्द के पूर्वानुमान से अपने होंठ दांतों से दबा लिए। सुनील ने अपनी माँ के विपुल, गोल भरी कमर को कस कर पकड़ एक भीषण धक्के से अपने लंड का सुपाडा अपनी माँ के गुदा-द्वार के अंदर घुस दिया। सुधा के मुंह से न चाहते हुए भी चीख निकल पड़ी , "सुनील आह ... धीरे ... ऊउन्न्न्न्न कितना मोटा है बेटा तुम्हारा लंड। सुनील ने अपनी माँ की गोर सुकोमल कमर को चुम्बन दे कर अपने विशाल लंड को भयंकर धक्कों से अपनी माँ की गांड में अपना पूरा आठ इंच का मोटा लंड जड़ तक डाल दिया। सुधा के चीखों ने रसोई को गूंजित कर दिया। अनिल अपनी माँ के लटके हुए कोमल विशाल चूचियों को मसल कर उसके दर्द को कम करने का प्रयास करने लगा। अनिल ने माँ के तने हुए चूचुक को मसल कर खीचने लगा। सुधा की चींखे सित्कारियों में बदल गयीं। उसके दोनों बेटे अपनी माँ को काम वासना का आनंद देने में बहुत परिपक्व हो गए थे। सुनील और अनिल ने अपने माँ की चूत और गांड मारना प्रारंभ कर दिया। उनके मोटे लम्बे लंड उनकी माँ की दोनों सुरंगों का प्यारभरी बेदर्दी से मर्दन कर रहे थे। सुधा ने अपने शरीर को अपने बेटों के शक्तिशाली हाथों में छोड़ दिया। अनिल अपनी मजबूत कमर को उठा अपना लंड अपनी माँ की चूत में जोर से धक्का दे कर धकेल रहा था। उसका बड़ा भाई उतनी ही ताकत से अपनी माँ की गांड मार रहा था। सुनील का लंड शीघ्र ही अपनी माँ के मलाशय के रस से सराबोर हो कर और भी आसानी से सुधा की गांड में अंदर-बाहर हो रहा था। रसोई में सुधा की गांड की सुगंध फ़ैल गयी। उस सुगंध ने हमेशा की तरह उसके बेटों की कामोत्तेजना को और भी बढ़ा दिया। सुधा के दोनों बेटे जोर से धक्के लगा कर सिस्कारती हुई माँ को चोदने लगे। सुधा जल्दी ही चरमावस्था के सन्निकट पहुँच गयी। अनिल ने अपनी माँ के झड़ने के स्तिथी भांप कर जोर से उसके निप्पल को मसलने लगा। सुनील ने अपना हाथ माँ के नीचे डाल कर उसका क्लिट कस कर मसला और फिर उसे अंगूठे और उंगली के बीच दबा कर निर्ममता से मरोड़ने लगा। सुधा जोर से चीख मार कर झड़ गयी। उसके दोनों बेटे बिना थके और धीरे हुए अपनी माँ की चूत और गांड को भीषण धक्कों से चोदने लगे। सुधा अपने बेटों के विशाल लंड पर अटकी सिस्कारती हुई बार-बार झड़ कर फिर से कामोन्माद के पर्वत पर चढ़ जाती थी। सुधा जानती थी की दोनों उसे इस तरह बड़ी देर तक चोद सकते थे। आधे घंटे के बाद सुधा जब चौथी बार झड़ रही थी तो भाईयों ने माँ के छेद बदलने का इशारा किया। सुधा के मुंह के सामने उसके बड़े बेटे का लंड था जो उसकी गांड के रस से लिपा हुआ था। सुधा ने सुनील की मनोकामना समझ के उसका लंड चूस और चाट कर साफ़ कर दिया। अनिल ने बेसब्री से अपना खूंटे जैसा सख्त लंड अपनी माँ के अब गांड के ढीले और खुले छेद में दाल कर तीन जानदार धक्कों से पूरा लंड अंदर डाल दिया। सुधा की सिसकारी अनिल के प्रयासों का इनाम थी। सुनील ने अपनी माँ के शरीर के नीचे सरक कर अपना लंड उसकी चूत के मुहाने पर लगा दिया। अनिल ने थोड़ा रुक कर अपने भाई को माँ की चूत भरने का अवसर दिया। कुछ देर बाद दोनों बेटे एक बार फिर से अपनी माँ को दोनों छेदों को जोर से चोदने लगे। सुधा के सिस्कारियां और घुटी-घुटी चीखें उसके परमानद की घोषणा कर रहीं थीं। दोनों बेटों में अपनी माँ की प्रबल चुदाई से बिलकुल क्षीण कर दिया। सुधा इतनी बार झड़ चुकी थी की उसने गिनना ही छोड़ दिया। सुधा का आखरी रति-निष्पति इतनी तीव्र थी की उसकी चीख रसोई में गूँज उठी, "अह अह ह ह ...अब मेरी गांड और चूत में आ जाओ। अपने लंड अपनी माँ की चूत और गांड में खोल दो बेटा।" उसके आज्ञाकारी बेटों ने सुधा की चूचियों को मसल कर अपने लंड पूरी ताकत से उसके शरीर में धक्के से अदर तक डाल कर स्खलित हो गए। तीनो बड़ी देर तक शिथिल लिपटे हुए पड़े रहे। सुनील ने अपना लंड अपनी माँ की नर्म दहकती हुई गांड से बाहर निकाल लिया।उसने माँ का हाथ पकड़ उसे अनिल के लंड से उठ कर उतरने में मदद की।


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सुधा ने थके हुए होते भी सुनील के लंड तो चाट के साफ़ कर दिया। तीनो पसीने से तरबतर थे। सुधा ने स्नान-गृह में नहाने का निर्देश दिया। दोनों बेटों ने अपनी माँ को पेशाब करते हुए देखा। सुनील ने माँ के मीठे मूत्र को ओख में भर कर पी लिया। अनिल ने भी माँ के सुनहरे प्रसाद को प्यार से चखा। बेटों ने अपनी माँ के देवियों जैसे सुंदर शरीर को शावर में भी अकेला नहीं छोड़ा। बेटों की अठखेलियों से तीनो फिर से वासना के समुन्द्र में गोते लगाने लगे। इस बार दोनों ने बारी बारी से माँ को दीवार से लगा कर चोदा। सुधा जब तीन बार झड़ गयी तो सुनील ने माँ को अपनी मजबूत बाँहों में उठा कर उसकी चूत को अपने लंड पर टिका कर नीचे गिरा दिया। सुधा की लम्बी घुटी चीख ने उसकी चूत में उसके बेटे के लम्बे मोटे लंडे के प्रवेश की घोषणा कर दी। अनिल ने अपनी माँ की गांड में उतनी ही तेजी से अपना लंड डाल दिया। दोनों ने अब अपने स्वार्थ के लिए माँ को चोदा। सुधा फिर भी दो बार झड़ गयी। दोनों ने भी एक बार फिर से अपने गर्म गाढ़े वीर्य की बौछार से अपनी माँ की गांड और चूत को ठंडक प्रदान की। तीन घंटे की चुदाई के बाद माँ और बेटे अस्थायी संतुष्टी से भर गए. दोनों थकी लगती माँ को नहाने के टब में सुगन्धित पानी में बिठा कर तैयार हो दोस्तों के साथ खेलने के लिए निकल पड़े। सुधा कौटुम्बिक सम्भोग के बाद थकन भरी संतुष्टी का आनंद लेते हुए टब में लेती रही। उसके सुंदर चेहरे पर मातृत्व प्रेम की मुस्कान थी जो उसे और भी सुंदर बना रही थी। ****************** आखिर आधे घंटे बाद सुधा टब से निकली और उसने अपना गदराया हुआ बदन मुलायम तौलिया से पौंछ कर सुखाया। जब सुधा का ध्यान अपने शरीर को तौलिया से सुखाने पर था तब उसके ससुर चुप चाप से उसके शयनकक्ष में दाखिल हो गए। उनकी आँखें अपनी बहु के गदराये सुंदर नग्न शरीर को देख कर चमक उठीं। सुधा के ससुर हौले-हौले चलते हुए अपनी बहु के पीछे तक पहुँच गए। उसके ससुर छः फुट ऊँचे भारीभरकम पुरुष थे। उन्होंने सुधा के नग्न शरीर को अपनी बाँहों में भर लिया। सुधा अपने आप को अपने ससुर की शक्तिशाली बुझायों में पा कर खिलखिला कर हंस दी, "बाबूजी, मेरे ससुर जी ने चोरों की तरह कबसे अपनी बहु को पकड़ना शुरू कर दिया?" सुधा प्यार से कुनमुनाई और पलट कर अपने ससुर की मजबूत बाँहों में समा गयी। सुधा के ससुर ने उसे प्यार से कई बार चूम कर उसे खुशखबरी दी, "सुधा बेटा तुम्हारे पापा आज आज शाम को आने वाले हैं." सुधा खुशी से खिलखिला उठी. उसके ससुर खुश बहु के थिरकते हुए भारी विशाल उरोजों को सहलाने लगे। उनका भीमकाय लंड पतलून के भीतर कसा हुआ सख्त होने लगा। अपनी सुंदर बहु का नग्न गुदाज़ शरीर देख कर हमेशा उनका लंड कुछ ही क्षड़ों में फूल जाता था। "सुधा बेटी, मेरे पोतों ने अपनी माँ को चोद कर थका तो नहीं दिया?" सुधा के ससुर ने अपनी बहु के होंठों को प्यार से चूसते हुए कहा। "बाबूजी आपके पोतों ने अपने माँ की चूत और गांड सुबह बुरी तरह से तो मारी है ।" सुधा ने भी अपने मर्दाने ससुर के होंठों को वापस चूसा। "इसका मतलब है कि मेरी थकी बहु अपने ससुर से चुदवाने के लिए अभी तैयार नहीं है," सुधा के ससुर ने उसके एक निप्पल की जोर से चुटकी भर दी। "ऊईई .. बाबूजी," सुधा की दर्द भरे आनंद से सिसकारी निकल गयी, "आपकी बहु क्या कभी भी आपसे चुदवाने के लिए तैयार नहीं मिली ?" सुधा का मुलायम हाथ ने अपने ससुर के विशाल लंड को उनकी पतलून के ऊपर से सहलाया। ससुर के चेहरे पे अपनी बहु के प्यार को देख कर खुशी की मुस्कान छा गयी। उनका दूसरा हाथ अपनी बहु की घुंघराली झांटों से ढकी छोट पर चला गया। उनकी उँगलियों ने उन्हें अपनी बहु की गीली तैयार चूत की सूचना दे दी। उन्होंने अपनी नंगी बहु को अपनी बाँहों में उठा कर पलंग पर पटक दिया। सुधा के ससुर बच्ची की तरह खिलखिला के हंसती हुई बहु को एकटक देखते हुए अपने कपडे बेसब्री से उतारने लगे। सुधा की साँसे तेज़ तेज़ चलने लगीं। उसकी आँखे अपने ससुर के वृहत लंड को कच्छे से बाहर आने के लिए उत्सुक थीं। शीघ्र ही उसके ससुर का भीमकाय दस इंच लम्बा बोतल के जैसा मोटा लोहे की तरह सख्त लंड उनके घने बालों से भरे मर्दाने बदन की शान बड़ा रहा था। सुधा के ससुर ने अपनी बहु की भारी खुली जांघों के बीच बैठ कर अपना अमानुषिक लंड सुधा की कोमल रेशमी चूत के द्वार पर टिका दिया। सुधा की सांस कुछ देर के लिए उसके गले में अटक गयी। सुधा के ससुर ने अपनी अप्सरा जैसी बहु की मोटी गुदाज़ जांघें अपनी शक्तिशाली बाँहों के उपर रख कर उसके गुदाज़ बदन के उपर झुक गए। सुधा की हलके भूरे रंग की सुंदर आँखे अपने ससुर की वासना से भरी आँखों से अटक गयीं। सुधा के ससुर ने अपने शक्तिशाली कमर की ताकत से प्रचंड धक्का लगाया। सुधा की चीख कमरे में गूँज उठी। सुधा के ससुर ने अपना अमानवीय लंड अपनी बहु की कोमल चूत में डाल दिया। सुधा पांच बार और चीखी। उसकी हर चीख ससुर के खूंखार धक्के से शामिल थी। सुधा रिरयायी, "बाबूजी , मार डाला आपने। धीरे बाबूजी! कितना मोटा लंड है आपका? हाय कितना दर्द करता है इतने सालों के बाद भी?" सुधा के ससुर ने अपनी बहु की गुहार सूनी तो उसे अनसुनी कर दी। ससुर ने बिस्तर पर चित टांगें पसारे लेती अपनी अप्सरा सामान बहू की चूत में अपना विध्वंसक लंड भयंकर धक्कों से जड़ तक डाल कर सुधा की चूत की वहशी अंदाज़ में चुदाई शुरू कर दी। उनके बड़े जालिम हाथ सुधा की हिलती फड़कती चूचियों का मर्दन करने लगे। सुधा की सिस्कारियां कमरे में गूँज रही थीं। सुधा के ससुर का भीमकाय लंड उसकी गीली चूत में 'सपक-सपक' की आवाज़ के साथ रेल इंजिन के पिस्टन की तरह बिजली की तेजी से अंदर बहर जा रहा था। सुधा दर्द भरे आनंद से अभिभूत हो चली। सुधा के ससुर की प्रचंड चुदाई से सुधा की चूत चरमरा गयी। उसके स्तन ससुर के बेदर्दी भरे मर्दन से दर्द से भर गए। पर सारा दर्द सुधा के सिसकारी भरते हुए बदन में परम आनंद की आग लगा रहा था। जल्दी ही सुधा का शरीर एन्थ कर झड़ गया। उसके ससुर ने अपनी बहु के रति-निष्पति की उपेक्षा कर उसको तूफानी रफ़्तार से चोदते रहे। अगले आधे घंटे में सुधा चार बार और झड गयी। सुधा अब वासना के आनंद से अभिभूत अपना सर इधर-उधर फेंक रही थी। उसके रेशमी घुंघराले बाल सब तरफ समुन्द्र की लहरों की तरह बिस्तर पर फ़ैल गए। सुधा के ससुर ने अपनी बहु के कोमल विशाल चूचियों को अपनी मुठी में भर कर कुचलना शुरू कर दिया। उनका लंड पिस्टन की तरह सुधा की चूत मार रहा था।


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