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28-11-2019, 02:49 PM
(This post was last modified: 07-12-2019, 01:49 PM by usaiha2. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
मेरी फितरत नही किसी की चीज़ को अपने नाम करू...
so as i always say... all credit goes to unsung original writer...
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28-11-2019, 02:50 PM
(This post was last modified: 07-12-2019, 06:21 PM by usaiha2. Edited 4 times in total. Edited 4 times in total.)
List of stories:
Page no. 01 :
01. शालिनी ने जो चाहा वो पाया
Page no. 02 :
02. गुदने की कीमत
Page no. 03 :
03. ट्रिपल सेक्स
Page no. 04 :
04. गैर मर्द से चुदाई...
05. स्वैपिंग...
Page no. 05 :
06. जागरण
Page no. 06 :
07. पति की अदला बदली
09. अनु भाभी - (दोस्त की बीबी और बहनें - भाग 02)
Page no. 07 :
10. बीवी को बदलकर लिया चुदाई का मजा
11. मेरी बीवी और उसकी बहन का पति
12. मेरी बीवी को मेरे पापा ने चोदा
Page no. 08 :
13. अदला बदली
14. अनजान लड़की की चुदाई खुले में
15. गोवा में कामुक मस्ती
16. दीपिका - (दोस्त की [url=https://www...'.s/biwi-ki-chahat-03]बीबी और बहनें - भाग 03)
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28-11-2019, 02:54 PM
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शालिनी ने जो चाहा वो पाया
मेरा भी शुरू से यह मानना है कि सेक्स, उत्तेजना और कामुकता का भाव आना और उस दौरान की जाने वाली सभी गतिविधियाँ जैसे लड़को-लड़कियों द्वारा किया जाने वाला हस्त-मैथुन एक सामान्य प्रक्रिया है। सेक्स का यह अहसास स्त्री-पुरुष के रूप में ही परिभाषित है, वहाँ न कोई मालिक-नौकर का भेद है, ना अमीर-गरीब का और तो और ना ही यह रिश्ते देखता है, बस हो जाता है।
ऐसा ही एक वाकया मुझे मेरी एक पाठिका ने बताया जिसका नाम शालिनी है। उसका सरनेम और शहर में यहाँ नहीं लिखूँगा।
उसने जो लिखा यह भी एक अजीबोगरीब फेंटेसी, कल्पना का ही हिस्सा है, जो सुनने में अजीब लगती है पर यह सदियों से चली आ रही है और शालिनी इन दिनों लगातार मेरे संपर्क में है, उसके कहने से ही मैं उसके साथ घटे इस वाकये को यहाँ एक कहानी के रूप में लिख रहा हूँ। इसके लिए उसने मुझे अपने कुछ फोटोग्राफ भी मेल किये थे जिनसे मुझे उसके रंग-रूप, अंग-प्रत्यंग और शारीरिक बनावट के बारे में अनुमान लगा, जो इस तरह की उत्तेजक कहानियों का जरूरी हिस्सा भी होता है।
तो यहाँ सबसे पहले मैं आपको शालिनी के बारे या कहें कि उसके रंग-रूप के बारे में उसके शारीरिक गठन के बारे में विस्तार से बता देता हूँ। मैंने उसके विभिन्न तरह के चित्र देख कर अनुमान लगाया कि वह एक बहुत ही ज्यादा गोरी, गदराये हुए बदन वाली थोड़ी तंदुरुस्त लड़की है, जिसके बाल काले घने, नैन-नक्श तीखे तो नहीं पर आकर्षक हैं, वो मेकअप करने की बहुत शौकीन है क्योंकि उसकी स्टाइलिश आई-ब्रो, आई लाइनर और लिपस्टिक सब कुछ लाजवाब दिख रहे थे, जैसे कोई मॉडल हो। उसके सभी चित्र हॉट निक्कर, केप्री और डोरियों वाले विदाउट स्लीव्स टॉप में ही थे, उसका शारीरिक नाप-तोल गजब हैं, वक्ष उसकी उम्र के हिसाब से कुछ ज्यादा ही विकसित प्रतीत हो रहे थे, नेकर और केप्री जिस हिसाब से उसके कूल्हों में फंसे हुए थे, उससे यह भी पक्का था कि उसके चूतड़ या कूल्हे भी कयामत ही होंगे।
मैं अपने पाठकों को उसका सही अनुमान लगाने के लिए एक इशारा देता हूँ, जिससे इस रोमांचक किस्से को पढ़ते समय वे शालिनी की एक छवि अपने दिमाग में बसा सकते हैं, वो काफी कुछ फिल्मों में नई आई हुई एक बहुत खूबसूरत अभिनेत्री 'हुमा कुरैशी' से मिलती जुलती सी है। यह तो बात हुई शालिनी की, अब मैं उसकी फेंटेसी की बात करता हूँ जो उसने मुझे सुनाई।
वो एक करोड़पति परिवार से ताल्लुक रखती है, एक आलिशान महलनुमा घर में रहने वाली, पूरे घर में सभी कामों के लिए खूब नौकर चाकर, ड्राइवर और माली रखे हुए थे।
वो हमेशा शाही शान और शौकत से रहने वाली, बड़ी बड़ी पार्टियों, रिसोर्ट और क्लब में शिरकत करने वाली, हमेशा रईस और दिखावे वाले लोगों से घिरी रहती थी। पर उसे इन सब से बहुत चिढ़ होती थी, उसकी 'यौन तृष्णा' यानि सेक्सुअल फेंटेसी उन लोगों से बिल्कुल ही उलट, गरीब, साधरण शक्ल-सूरत वाले, काले-कलूटे, पसीने से भीगे बदन वाले मजदूर या नौकर को देख कर हुआ करती थी, यहाँ तक कि उसने बताया कि इंटरनेट पर भी वो हमेशा अफ्रीकन पुरुषों के नंगे बदन वाले फोटो को बैठ कर घंटों निहारती रहती थी और अभी हाल में ही संपन्न हुए इलाहबाद कुम्भ में नंगे जटाधारी साधुओं को देखने में भी कामुक उत्तेजना महसूस करती थी।
तो चलिए अब हम उसके किस्से की तरफ आते हैं जो उसने मुझे सुनाया और अब मैं उसे यहाँ एक कहानी के रूप में आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ।
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उसके साथ यह घटना देहरादून में घटी, जहाँ उनका एक आलिशान बंगला है, उसके पापा वहाँ अपने काम के सिलसिले में जा रहे थे तो वो भी उनके साथ जिद करके वहाँ स्टडी करने के लिए चली गई। शालिनी के पापा काम के सिलसिले में बहुत व्यस्त रहा करते थे और वो अकेली बंगले में रह सकती थी क्योंकि वहाँ नौकर-चाकर, चौकीदार वगैरा सब रहते हैं।
उसका कमरा सबसे ऊपर था और उसके पीछे की तरफ एक बड़ी सी बालकनी थी जहाँ से दूर दूर तक उनके बंगले का घना और पेड़ों से घिरा हुआ बगीचा दिखाई देता था।
उस दिन सुबह दस बजे के करीब वो अपने सारे कपड़े उतार पूरी नंगी होकर नहाने के लिए बाथ रूम में घुसी, वहाँ लगे बड़े से शीशे में अपने निर्वस्त्र नग्न बदन को निहारा और फिर शावर चला कर उसके नीचे खड़ी हो गई। उसने अपने बालों में महंगा शैम्पू लगा कर खूब झाग बनाए, पूरे बदन पर खूब सारा बॉडी शैम्पू मल कर वो ऊपर से नीचे तक झाग ही झाग से सराबोर हो गई।
तभी उसे बाहर से जोर जोर से ठक-ठक, ठक-ठक की आवाजें लगातार आने लगी।
उसे समझ नहीं आया कि पीछे बगीचे में कौन है और ये ठक-ठक की आवाजें किस वजह से आ रही हैं, उसने बाथरूम की खिड़की से देखने का प्रयास किया तो वहाँ उसे कोई आदमी दिखाई दिया। वहाँ एक काला कलूटा सा आदमी या कहें कि लड़का था जो उघड़े बदन था। उसने नीचे की तरफ सिर्फ एक धोती लपेट रखी थी और वो पसीने से तरबतर था।
वो कुल्हाड़ी लेकर पीछे के बेतरतीब बढ़ चुके पेड़ों की शाखाओं को काट रहा था।
उसका बदन बहुत ही कसरती था, छाती पर बाल थे और जब वो पूरी तरह से कुल्हाड़ी ऊपर उठा कर पेड़ की डाल पर मार रहा था तो देखा कि उसके बाहों के नीचे बगलों में भी घने बालों का गुच्छा था।
और यही सब बातें शालिनी को बहुत ज्यादा उत्तेजित भी करती थी और वो इस समय बिल्कुल निर्वस्त्र और भीगी हुई खड़ी थी वो एक टक उसे निहारने लगी और उसके हाथ बरबस अपने वक्ष पर कसने लगे, उसे बहुत अच्छा लग रहा था, ऐसे ही रफ टफ, खुरदुरे और मजदूर जैसे लोग उसे ना जाने क्यों बहुत ही ज्यादा उत्तेजित करते थे, वो अपना नहाना भूल गई और एक टक उसे देखे जा रही थी और अब उसने बाथरूम की खिड़की बहुत अच्छे से खोल ली, अब वो उसे ज्यादा अच्छे से देख पा रही थी और वो इस बात से बिल्कुल निश्चिन्त थी कि वो मजदूर युवक उसे नहीं देख पा रहा था।
और तब उसने अपना दूसरा हाथ अपनी चूत की तरफ सरकाना शुरू किया, पूरा बदन वैसे ही साबुन की वजह से चिकना हो रहा था,
और अब तो चूत के अंदर तक भी उसे कुछ चिकना सा द्रव निकलता सा प्रतीत हुआ।
हम सब जानते हैं कि चूत के इस तरह से गीला होने का क्या मतलब होता है, उसका गीला बदन भी अब वासना की आग में जलने लगा था, अब वो और जोर जोर से और दबा कर अपनी चूत को सहलाने और मसलने लगी।
तभी उस मजदूर ने अपनी कुल्हाड़ी एक तरफ रखी और पास ही पड़े एक टूटे से जग को उठा कर पानी पिया। टूटे होने की वजह से जग का कुछ पानी उसके मुँह, गर्दन, छाती और पेट से होकर बहता हुआ नीचे आ रहा था, जो उसे और भी ज्यादा उत्तेजक बना रहा था।
पानी पीने के बाद उसने अपनी धोती खोलने का उपक्रम किया और बालकनी के नीचे वाले कोने की तरफ बढ़ने लगा।
शालिनी फट से समझ गई कि वह उस जगह पेशाब करने जा रहा है। और वो कोना उसे अपने बाथरूम से दिखाई नहीं देता था। शालिनी वासना की आग में बुरी तरह से तप चुकी थी और उसके लंड को देखने का मौका गंवाना नहीं चाहती थी, इसलिए बिना सोचे समझे, सारी लाज-शर्म भूल कर वैसे ही नग्नावस्था में बाथरूम से बाहर निकल कर बालकनी की ओर भागी। पूरे बदन पर, बालों पए साबुन के झाग थे, पर वो बेपरवाह भाग कर बालकनी में जा पहुँची उसकी उत्तेजना और उत्सुकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसके पूरी तरह से धोती खोल कर चड्डी उतारने से पहले ही वो वहाँ पहुँच चुकी थी उसके लंड के दीदार करने के लिए ! बालकनी तक भी खूब घने घने पेड़ और शाखाएँ थी वो उनकी आड़ में जा छुपी और अब अपने एक पैर को फैला के अपनी एक उंगली को चूत के अन्दर तक घुसा कर उसके चड्डी से बहर आते हुए लंड को देखने लगी।
और जब लंड बाहर आया तो...
उसकी तो जैसे साँसें ही तूफ़ान बन गई, दिल जोर जोर से धड़कने लगा, वो खुद जितना काला था उससे भी कहीं ज्यादा काला उसका लंड था जो सामान्य सुप्त अवस्था में ही काफी बड़ा दिख रहा था, ना जाने उसने कब से अपना पेशाब रोका हुआ था, क्योंकि एकदम से तेज़ धार छूटी और उसने चैन की सांस ली। पेशाब करने के दौरान वो अपनी घनी, गंदी और उलझी झांटों के बाल नौचता रहा और टूटे हुए जो बाल उसके हाथ में आये, उन्हें फूंक मार के हवा में उड़ाता रहा।
और उधर ऊपर नंगी पुंगी खड़ी शालिनी उस गंदे इंसान के लंड को देख कर पगला ही गई और जब तक उसने मूतने के बाद लंड को वापिस कच्छे के अंदर नहीं घुसा लिया, वो देखती रही।
अब वो हस्तमैथुन करने लगी थी, वो वहीं बालकनी में फ़र्श पर पसर गई अपने पैरों को चौड़ा करके !
तभी तेज़ बादल गरजे, देहरादून में उन दिनों बारिश का मौसम था, और पानी की बौछारें उसके नंगे बदन पर गिरने लगी और उसके जिस्म से साबुन और झाग बह बह के जाने लगे और उसका दूधिया नंगा बदन खिलने लगा। उसके हाथ अब तेज़ी से उसकी योनि पर चल रहे थे और दिमाग यह सोच रहा था कि अब इस काले मजदूर को कैसे अपना गुलाम बनाया जाए, उससे अपना बदन मसलवाया जाए !
और फिर धीरे धीरे उसके दिमाग में एक योजना बनने लगी, उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई, और फिर उसने बालकनी के उस खुरदुरे फर्श पर अपने मांसल कूल्हे उछाल उछाल कर और एक पेड़ की शाखा को अपनी चूत से रगड़ रगड़ कर हस्तमैथुन संपन्न किया और देर तक यूहीं बालकनी में नंग धडंग पड़ी रही, भीगती रही।
नहाते समय उसने जो कुछ देखा, महसूस किया और उसके बाद खुले आसमान के नीचे गंदी सी पड़ी बालकनी के खुरदरे फर्श पर किये हस्त-मैथुन ने उसे असीम आनन्द प्रदान किया था।
#
दोपहर के खाने के समय भी वो यही सब सोचती रही, फिर दिन में जब वो सोने गई, तो फिर उसे वही काला, मजदूर और उससे भी ज्यादा काला उसका लंड उसके मन मस्तिष्क पर छा गए और उसे सोने नहीं दिया, एक बार फिर से उसका हाथ सरकते हुए अपनी चूत पर चला गया, लेकिन उस बेफकूफ को पता नहीं था कि नारी शरीर में योनि वो स्थान है जिसे छूने से वासना की आग कम नहीं होती बल्कि और ज्यादा भड़कती है।
और वही उसके साथ भी हुआ, एक एक करके फिर सारे कपड़े उतरते गए उतरते गए और वो एक बार फिर से पूर्ण नग्न हो गई और अपने आप को खुद की चूत सहलाने से रोक नहीं पाई, पलंग पर उलट-पलट होने लगी, बुरी तरह से वासना की आग में तड़पने लगी और एक बार फिर हस्त-मैथुन करते हुए, मन ही मन कुछ निश्चय किया।
#
उसने दोपहर के चाय के समय अपने रसोइये को बुलाया और फरमान किया- बंगले में इन दिनों जितने भी नौकर काम कर रहे हैं, सभी को मेरे सामने हाज़िर करो तुरंत !
रसोइया घबरा गया- क्या बात है मेम साब, सब ठीक तो है, किसी से कोई गुस्ताखी तो नहीं हुई न?
शालिनी बोली- जो कहा है, वो करो ! मुझे भी तो मालूम होना चाहिए कि घर में कौन कौन है और कैसे कैसे है।
"जी मेम साब !" बोल कर रसोइया चला गया और थोड़ी देर में ही घर के तीन नौकर वहाँ हाज़िर थे, पर उनमें वो उत्तेजक काला पुरुष नहीं था।
वो बोली- कौन नहीं आया?
रसोइया बोला- मेम साब सब आ गये हैं, यह दीनू है घर के अंदर की साफ़ सफाई करता है, यह रामू है माली का काम देखता है और ड्राईवर शंकर है जिसे आप जानती हैं, वो बड़े साब को लेकर बाहर गया है।
उसने कहा- तो कल पीछे के पेड़ और डालियाँ कौन काट रहा था, वो कहाँ गया, वो कौन है?
माली बोला- मैडम जी वो राजेश है, मेरा भांजा है, कुछ दिनों के लिए यहाँ आया है, दिन भर कमरे में फालतू बैठा रहता था, इसलिए उसे काम पर लगा दिया, वैसे भी उसे कसरत करने का शौक है, मैडम जी उसने कोई गुस्ताखी तो नहीं की ना आपके साथ? उसे ड्राइविंग बहुत अच्छी आती है, आप लोग आ रहे थे तो इसे काम में सहायता के लिए बुला लिया और साब की मेहरबानी होगी तो इसे कोई काम दिलाने को उनसे बोलूँगा।
शालिनी बोली- उसे बुलाओ !
"जो हुकुम मैडम जी !" कहते हुए माली गया और कुछ ही देर में वो काला शख्स जिसने उसके होश उड़ा दिए थे वो हाज़िर था, वो कसरती बदन वाला बन्दा इस समय सकपकाया सा आकर उसके सामने खड़ा हो गया।
उसने उसे ऊपर से नीचे तक तेज़ और तीखी नजर से बहुत गौर से देखा, और फिर उसकी धड़कने तेज़ हो गई, लेकिन अपने आप पर काबू पाते हुए उसने कहा- ओके ! जब तक मैं यहाँ हूँ, यह मेरे काम करेगा, वैसे भी पापा का ड्राईवर उनके साथ ही बिजी रहता है। अब तुम लोग जाओ, मैं इससे कुछ बात करती हूँ।
माली अपने भांजे को समझाते हुए बोला- देख राजू, जो जो मैडम जी कहें, वो सब बात अच्छे से सुनना और और इनका हुकुम बजाना ! समझा, कोई शिकायत का मौका मत देना !
शालिनी यह सब सुन कर मन ही मन मुस्कुराने लगी।
फिर वो सब लोग चले गए, और वो अकेला ही वहाँ रह गया।
सबके जाने के बाद शालिनी अपने बदन से लापरवाह होकर पास ही पड़े सोफे पर पसर कर बैठ गई। उसने इस समय छोटी और कसी केपरी पहन रखी थी और एक बिना बाहों वाला टॉप पहन रखा था, बाल खुले हुए थे, कपड़ों से बाहर निकलती उसकी गोरी गोरी बाहें और पिंडलियाँ बहुत सेक्सी लग रही थी और ऊपर से उसके बैठने का सेक्सी अंदाज़ अब उस काले नौकर राजेश को भी बेचैन करने लगा था।
यह बात शालिनी ने भी भांप ली थी, उसे और उकसाते हुए उसने अपने पैरों को एक दूसरे से रगड़ते हुए कहा- कल तुम पीछे क्या खट-खट कर रहे थे?
वो घबराते हुए बोला- मैडम जी, उधर बहुत पेड़ बढ़ गए थे और फ़ैल रहे थे इसलिए उनकी छंटाई कर रहा था।
शालिनी बोली- तो पूरी तरह से क्यों नहीं किये? वहाँ तो अभी भी काफी डालियाँ बेतरतीब बढ़ रही हैं?
वो तुरंत बोला- आप बताइये मैडम, कल सुबह वो भी कर दूँगा।
वो बोली- ओके, आओ मेरे साथ !
और अपनी लो वेस्ट केपरी को सोफे पर तेज़ दबाते हुए जानबूझ कर इस तरह से उठी कि वो उसकी कमर से काफी नीचे तक खिसक गई और उसके कूल्हों की गोलाइयाँ और उनकी गहरी विभाजन रेखा थोड़ी बहुत दिखाई देने लगी और वो उसके आगे कूल्हे मटकाते हुए चलने लगी, अब वो और ज्यादा उत्तेजक दिख रही थी।
अब शालिनी का चेहरा तो आगे था, राजेश की निगाहें उसके चूतड़ों पर ज़म कर रह गई और यही वो चाहती भी थी।
बंगले के पिछवाड़े पहुँच कर उसे अपने बाथरूम की खिड़की के बाहर का हिस्सा दिखाया, जहा शाखाओं और पत्तों का बहुत झुरमुट हो रहा था।
उसने कहा- मेडम मुझे इसके लिए वहाँ चढ़ कर ही काटना पडेगा, कल कर दूँगा।
इसके बाद वो चला गया और शालिनी अगली सुबह की योजना बनाने लगी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
वो एक बहुत ऊँचे रसूख वाली और रईस लड़की थी, उस नौकर के साथ में वो खुद पहल करना नहीं चाहती थी, इसलिए उसने यह खेल रचा था।
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28-11-2019, 03:07 PM
अगले दिन वो बाथरूम में गई और उस जगह को खाली किया जहाँ से उस खिड़की से साफ़ दिखाई देता था, क्योंकि आज वो उसी जगह पर नहाने वाली थी, और साइड की खाली जगह पर अपने मेकअप किट से एक छोटा सा शीशा ऐसे कोण से रखा कि वो खुद खिड़की का नज़ारा देख सकती थी और बाथरूम की सभी तेज़ लाइट्स उसने ऑन कर दी।
देहरादून में उस समय बारिश का मौसम था घने काले बादल की वजह से दिन में भी काफी अन्धेरा हो जाता था, ऊपर से शाखाओं और पत्तों का झुरमुट की वजह से वो नौकर वहाँ आसानी से उसे छिप कर पूरे इत्मिनान से देख सकता था।
अब वो अपने नहाने की पूरी तैयारी करके पूरी बत्तियाँ बन्द करके बैठ गई, बाथरूम में अँधेरा होते ही उसे खिड़की के बाहर दिखाई देने लगा था, उसकी धड़कने तेज़ हो रही थी, एक बार को तो उसे लगा कि क्या वो सही कर रही है? उसे थोड़ी शर्म भी आ रही थी, पर दोस्तो, इतिहास गवाह के दो विपरीत चीज़ों में जबरदस्त आकर्षण होता है।
#
पाठको, आपने एक बहुत ही प्रसिद्ध और अपने ज़माने की निहायत ही खूबसूरत और जांबाज़ ,., शासिका 'रज़िया सुलतान' का नाम जरूर सुना होगा जिसे अपने अस्तबल में काम करने वाले काले हब्शी गुलाम से प्यार हो गया था, और जिसे पाने के लिए उसने अपनी हैसियत और सल्तनत की भी परवाह नहीं की, इस पर एक बेहतरीन फिल्म भी बन चुकी है जिसमें ये किरदार क्रमश: हेमा मालिनी और धर्मेन्द्र ने निभाये थे।
#
चलिए हम तो अभी शालिनी की ही बात करें, वो मन पक्का करके बाथरूम से बाहर निकलने ही वाली थी कि उसे उस खिड़की में कोई आहट सुनाई दी और उसके कदम वहीं रुक गये।
उस पर एक बार फिर से कामवासना का नशा चढ़ने लगा, सारी शराफत, डर और शर्म ना जाने कहाँ चले गए, उसने उस शीशे से उस की स्थिति का जायजा लिया, वो सिर्फ एक बनियान और धोती में बिलकुल बाथरूम की खिड़की के सामने ही था, यानि अब वो जैसे ही बाथरूम की रोशनी चालू करती, उस नौकर को बाथरूम का पूरा नज़ारा साफ़ साफ़ नजर आने वाला था और साथ में ही वो खुद भी !
फिर उसने हिम्मत करके सभी बतीयाँ जला दी, और एकदम बेफिकरी के साथ अपना तौलिया खूँटी पर टांग दिया। उसने इस समय एक नाइटी पहन रखी थी। उसने गीज़र चलू किया और कोई गाना गुनगुनाने लगी। फिर उसने एक सरसरी सी निगाह उस शीशे पर डाली कि लाईट ओन होते ही वो कहीं डर के मारे भाग तो नहीं गया।
पर वो राजेश वहीं मौजूद था, हालांकि बाथरूम की तेज़ लाईट की वजह से अब सिर्फ उसकी एक झलक ही दिखाई दे रही थी, पर पता चल रहा था कि वो अब पत्तों की ओट से उसे ही देख रहा था।
शालिनी एकाएक ही बहुत ज्यादा उत्तेजना महसूस करने लगी, उसने अपनी नाइटी उतार कर एक तरफ रख दिया, अब वो मात्र पेंटी और ब्रा में ही थी। फिर उसने अपने बालों को लपेट कर सिर पर जूड़े की तरह बांध लिया और शावर कैप पहन ली फिर अपनी ब्रा का हुक खोलते हुए उसे अलग किया, वो किसी के देखे जाते हुए अपने आपको निर्वस्त्र करने के अहसास मात्र से बहुत रोमांचित हो रही थी, उसने इसके तुरंत बाद ही अपनी पेंटी भी उतार डाली और अपने आप को पूरी नंगी कर लिया।
फिर उसने एक मादक सी अंगड़ाई ली, उसे खिड़की में कुछ हलचल सी महसूस हुई, वो समझ गई कि उसकी हालत खराब हो चुकी होगी
उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ गई, उसे और ज्यादा तरसाने के लिए उसने अपने नंगे जिस्म पर एक लोशन लगाना शुरू किया। अभी तक उसकी पीठ खिड़की की तरफ थी, वो उसके भारी नितम्ब देख चुका था, अब वो अचानक घूम गई अब उसके उन्नत वक्ष और योनि उसके सामने थी।
उसे फिर एक सिसकारी की सी आवाज उस तरफ से आई पर वो उसे नज़रंदाज़ करती हुए, अपने उरोजों, बगल, और पेट पर लोशन मलती जा रही थी, अब उसकी शर्म झिझक सब जा चुकी थी और उसे बहुत मज़ा आ रहा था, अब वो अपनी नाभि के आसपास और जांघों को मसलती हुई पूरी टाँगों पर लोशन लगा रही थी।
फिर उसने अपनी चूत को अच्छे से मसला, और पूरे बदन पर लोशन लगने के बाद उसका समूचा नंगा बदन तेज़ रौशनी में बहुत ही चमक रहा था और वो एक नग्न अप्सरा लग रही थी।
फिर उसने शावर का गर्म पानी चेक किया और शावर चला कर अब वो बहुत ही उत्तेजक अदाएँ बना बना कर नहाने लगी, अपने स्तन, कूल्हे और चूत सब रगड़ते हुए !
उधर खिड़की पर उस नौकर का शायद बंटाधार हो गया था क्योंकि वहाँ से डाल टूटने की और पत्तों की तेज़ आवाज आई।
शालिनी ने एकदम से चिल्ला कर पूछा- कौन है?
"कौन है वहाँ?"
और लपक के अपनी नाइटी उठा कर अपना नंगा बदन छिपाने का नाटक किया और बाथरूम से बाहर भागी। उसके जबरदस्त सेक्सी कारनामे का पहला चरण सफलतापूर्वक पूरा हो चुका था।
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शालिनी के अभी तक के दोनों सेक्स अनुभव बाथरूम में ही हुए थे और वो भी अकेले ही हुए थे, और बहुत ही अच्छे हुए थे और उसने बहुत एन्जॉय भी किया था।
अब वो इसे बेडरूम तक लाना चाहती थी, और वो भी अकेले नहीं उस काले नौकर के साथ जिसने उसकी नींद उड़ा रखी थी।
आगे की पूरी योजना उसके दिमाग में तैयार थी और शालिनी की नग्न देह के दर्शन करने के बाद वो नौकर भी अब उसके काबू में था।
और मौका भी अगले ही दिन मिल गया।
शालिनी के डैडी के एक दोस्त कर्नल साब का बंगला थोड़ी ही दूर पर था और वहाँ एक शराब-कवाब की पार्टी थी, वहाँ यह सिस्टम था कि जब भी किसी के यहाँ कोई पार्टी होती थी, आस पास के बंगले के नौकर वहाँ काम करने जाते थे, उनके यहाँ से भी नौकर जाने थे, लेकिन शालिनी के घर पर रहने की वजह से उसके डैडी ने एक नौकर को उसकी हिफाज़त और चाकरी के लिए वहाँ छोड़ने का निर्णय किया, और सब नौकरों में राजेश ही जवान और हट्टा कट्टा था तो शालिनी ने उसका ही नाम सुझाया।
वो उस दिन की घटना के बाद सकपकाया हुआ था, उसे शक था कि शालिनी को सब पता चल गया है इस लिए वो डर भी रहा था।
लेकिन शालिनी के डैडी ने उसे उस दौरान घर में प्रवेश की इजाज़त नहीं दी, उसे बाहर रह कर ही देखभाल करनी थी और पूरी रात सोना भी नहीं था।
शालिनी को कहा गया कि वो घर के अंदर ही रहेगी और अंदर से पूरी तरह से लॉक करके रखेगी। शालिनी ने मुस्कुरा कर सहमति में सर हिला दिया और शाम होते होते उसके अलावा सब नौकर चले गये और रात आठ बजे शालिनी के डैडी भी चले गए।
अब पूरे बंगले में सिर्फ वो दो ही बचे थे, राजू जैसे ही बंगले का बड़ा फाटक बंद करके अंदर आया, वहाँ शालिनी खड़ी थी, वो एकदम से सकपका गया और हकलाते हुए बोला- मैडम जी, आपको घर के अंदर रहना चाहिए !
वो तेज़ आवाज में बोली- यह बात तू मुझे बताएगा कि मैं कहाँ रहूँ? तू नौकर है नौकर की औकात में रह ! समझा?
वो फिर हकलाते हुए बोला- मैडम, मालिक साब बोल के गये हैं।
वो फिर तेज़ आवाज में बोली- अभी मैं हूँ तेरी मालकिन ! चुपचाप अंदर चल, तेरे से कुछ हिसाब करना है !
वो डरते डरते उसके पीछे अंदर आ गया और चुपचाप एक कोने में खड़ा हो गया।
वो शान से एक सोफे पर बैठ गई और बोली- हाँ, अब बोल ! उस दिन बाथरूम की खिड़की से मुझे देखने की हिम्मत कैसे हुई तेरी?
"वो.. मैं... मैं.. वो....!"
वो चिल्लाई- यग क्या मैं मैं लगा रखी है? मैंने तुझे खुद उस खिड़की पर देख लिया था, इसलिए झूठ तो बोलना मत, मैं जो पूछ रही हूँ उसका जवाब दे सच सच ! वरना अगर डैडी को बता दिया ना, तो बहुत हंटर पड़ेंगे ! समझा?
"क्या तूने मुझे पूरी बिना कपड़ों के देखा?"
"नंगी देखा?"
वो चुप हो गया और नीचे देखते हुए फर्श पर नाख़ून से कुरेदने लगा।
वो फिर चिल्लाई- बोल जल्दी?
"हाँ !"
"साले हरामजादे, तो फिर वहाँ से हटा क्यों नहीं?"
"पूरे वक्त देखता ही रहा?"
वो फिर चुप हो गया।
"साले, शर्म नहीं आई तुझे अपनी मालकिन को ऐसे बिना कपड़ों के नंगी देखते हुए?"
अब वो एकदम से उसके पैरों में गिर गया और गिड़गिड़ाते हुए बोला- मैडम जी, माफ़ कर दो ! साब को और मेरे चाचा को मत बताना, मैं मर जाऊँगा !
शालिनी ने उसका गिरेबान पकड़ कर उठाया और कहा- ठीक है नहीं बताऊँगी साले पर तुझे भी मेरे सामने पूरा नंगा होना पड़ेगा अभी, इसी वक्त ! चल शुरू हो जा !
वो और घबरा गया- मैडम जी, माफ़ कर दो !
शालिनी बोली- बस माफ़ी इसी शर्त पर मिलेगी ! खोलता है कपड़े या करूँ फोन डैडी को?
और यह कहते हुए उसने झूठ मूठ में नम्बर मिलाने का नाटक किया।
और उधर राजू ने घबरा कर कमीज़ के बटन खोलने शुरू कर दिए।
शालिनी की साँसें तेज़ हो गई, वो एक छड़ी लेकर सोफे पर बैठ गई, उसे नज़दीक आने का इशारा किया।
तब तक वो कमीज़ उतार चुका था, उस गरीब आदमी की बनियान में कई जगह छेद थे, उसने उसे भी उतार दिया।
उसका सीना चौड़ा और मज़बूत था, जिस पर घने काले बाल थे, जो उस काले को और काला बना रहे थे।
अब शालिनी ने उसके पैंट पर छड़ी मारी और उसे उतारने का इशारा किया।
अब वो खुद बहुत उत्तेजित होती जा रही थी और यह बात उसके हाव-भाव से जाहिर हो रही थी, और अब वो नौकर भी इस बात को समझ रहा था कि आज उसे कुछ और मज़ा मिल सकता है इसलिए उसने भी पैंट की चेन नीचे की और पैंट उतार दी।
अब वो एक बहुत ही घिसी घिसाई सी अंडरवियर में उसके बिल्कुल सामने खड़ा था।
उसके इस भयानक काले रूप को देख के शालिनी उत्तेजना के मारे कांपने लगी, सोफे से खड़ी हो गई, उसकी बालों से भरी छाती पर हाथ रख दिया, उसमें उंगलियाँ फिराने लगी और एक हाथ उसकी पीठ पर कस लिया।
उसकी चाहत आज पूरी होने को थी, यह काला गुलाम आज उसके कब्जे में था, अपने दोनों हाथ उसके काले और बालों से भरे बदन पर फिराते हुए उसने उसके दोनों हाथ उसे ऊपर करने को कहा और जैसे ही उसने अपने दोनों हाथ ऊपर किये, उसकी बगलों से पसीने की तेज़ दुर्गन्ध आने लगी, उसके बगलों में बहुत बाल थे कुल मिला कर वो एक बदसूरत, काला और भद्दा मर्द था, पर वो अप्सरा जैसी खूबसूरत शालिनी को उत्तेजित कर रहा था।
अब शालिनी के हाथ उसके पेट पर फिसल रहे थे, साथ ही अब वो नौकर भी जबरदस्त उत्तेजित हो गया था, उसका लंड बहुत ज्यादा तन कर बड़ा हो गया था, पर दिक्कत यह हुई कि वो गलत दिशा में था और वहीं पर बड़ा हो गया था, इससे वो फंस गया था उसने उसे सीधा करने के लिए हाथ नीचे लाना चाहा पर शालिनी ने रोक दिया, बोली- क्या परेशानी है तुझे? चुपचाप खड़ा रह !
वो बोला- मैडम जी, मेरा वो...वो....!!
"क्या हुआ उसको?" वो बोली।
"वो चड्डी में फंस रहा है और बहुत दर्द हो रहा है।"
"ओहो !"
अब शालिनी का ध्यान उसकी चड्डी में बुरी तरह से फंस रहे लंड पर गया- बाप रे ! इतना बड़ा !
उसने सोचा अंडरवियर से बाहर निकलते हुए लंड को नज़दीक से देखना चाहिए इसलिए उसने उसे अपने एकदम पास खींच लिया, अब उसका अंडरवियर शालिनी के चेहरे के एकदम नज़दीक आ गया था और अंडरवियर में हाथ डाल कर एक झटके से उसका अंडरवियर नीचे खिसका दिया।
लेकिन यहाँ एक तमाशा हो गई, उसका काले नाग जैसा मोटा और कड़क लंड उछल कर बाहर निकला और सीधा उसके चेहरे और होंठों से टकराया, शालिनी बुरी तरह से हकबका गई, यह देख उस नौकर को हंसी आ गई।
शालिनी ने अपनी झेंप मिटाने के लिए उसके लंड पर ज़ोरदार तमाचा लगा दिया और चिल्लाई- साले चुपचाप खड़ा रह !
और अब ध्यान से उसके लंड को देखा जो उसके बदन से भी कहीं ज्यादा काला था और बेतहाशा झांटों से घिरा हुआ था।
और साथ ही साथ तेज़ बदबू का झोंका भी आया इतना ज्यादा कि उसका जी खराब हो गया- साले गंदे ! कितनी बदबू मार रहा है !
और उसे अपनी लातों और थप्पड़ों के साथ अपने बेडरूम में ले गई और बाथरूम के अंदर धकेल दिया वहाँ पाइप वाला शावर लेकर उसके ऊपर चला दिया, उस नौकर को अब इस खेल में मज़ा आ रहा था, और शालिनी को भी क्यूंकि वो अपनी सारी भड़ास इस पर निकाल सकती थी और कोई देखने वाला नहीं था और यह एक तरह से उसका गुलाम नौकर था।
उसने वहाँ पड़ी लिक्विड सोप की शीशी उस पर उड़ेल दी और लूफा से उसके बदन को रगड़ने लगी, अब वो खुद उत्तेजना की आग में जल रही थी।
उसका पूरा बदन झाग से भर गया था उसने उसकी बगलों, सीना, पीठ, गांड लंड के आस पास की जगह और फिर लंड को पकड़ के जी भर के रगड़ा, और उससे चिपटती भी गई, उसके खुद के कपड़े गीले होकर उसके बदन से चिपक गये थे।
फिर उसने पाइप के सिरे से शावर वाला नोजल हटा के पानी की तेज़ धार बना ली और उसके बदन पर मारने लगी, जैसे कि सर्विसिंग करने वाले लोग स्कूटर पर मारते हैं।
जैसे जैसे उसके झाग बह रहे थे, अंदर से उसका काला कलूटा बदन बाहर आ रहा था। और शालिनी का खुद का जिस्म और सारे कपड़े भी पानी से गीले हो के चिपक गए थे, उसकी चूत कामवासना के दौरान निकलने वाले पानी से गीली हो गई थी, उसकी आँखों में लाल लाल डोरे तैर आये थे।
यह बात वो नौकर भी समझ गया था, वो खुद भी उत्तेजित हो गया था।
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और दोस्तो, मैंने अपनी पहले की कहानियों में भी बताया है कि जब भी कामवासना की आग भड़कती है तो सब रिश्ते, ओहदे और भेद भाव ख़त्म हो जाते हैं।
यहाँ भी यही हुआ !
#
मालकिन और नौकर का भेदभाव जाता रहा, उस नौकर राजू ने शालिनी के हाथ से पाइप छीन कर दूर फेंका और उसके कपड़े उतारने को लपका।
यहाँ भी शालिनी की एक और फ़ंतासी भी थी जो वो हमेशा से चाहती थी कि कोई उसके साथ कपड़े फाड़ कर सेक्स करे, इसलिए वो अपने टोपर और केप्री को पकड़ कर उसे उतारने नहीं दे रही थी, पर अब वो उसका गुलाम नौकर नहीं था।
और जो लडकियाँ इस कहानी को पढ़ रही होंगी वो जानती होंगी कि बहुत ज्यादा महंगे और कीमती कपड़े उतने ही नाज़ुक भी होते हैं। राजू उसके कपड़ों पर झपट पड़ा और उन्हें उतारने की कोशिश करने लगा, खींचने लगा, शालिनी के बदन के कपड़ों का जो हिस्सा उसके हाथ में आया, वो ही फट कर उसके जिस्म से अलग हो गया और शालिनी के जिस्म के खूबसूरत अंग नुमाया होने लगे, और थोड़ी ही देर में उसका टॉप चीथड़े चीथड़े होकर नीचे गिरा पड़ा था, उसके बदन के ऊपरी हिस्से पर सिर्फ ब्रा ही रह गई।
शालिनी को बहुत मज़ा आ रहा था, वो राजू को और तरसाने के लिए बाथरूम से बाहर की ओर भागी, लेकिन...
उस वहशी हो चुके नौकर ने जोर से उसके चूतड़ों पर हाथ मारा और उसकी केप्री में अंदर तक हाथ घुसा के उसे खींच लिया, पर वो फिर भी रुकी नही, नतीज़ा यह हुआ कि 'च्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र च्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र करते हुए उसकी केप्री भी पूरी तरह से फट गई, पर शालिनी भागने में कामयाब हो गई लेकिन भागते भागते उसकी केप्री के चीथड़े उसके नितम्बों-जांघों से अलग होकर राजू के हाथ में रह गये।
अब शालिनी की सलोनी काया पर मात्र पेंटी और ब्रा ही थी।
वो भी उसके पीछे पीछे भागा, वो कमरे से निकल के उसी अवस्था में बाहर की तरफ़ भाग गई, उसे पता था बंगले में उन दोनों के सिवा कोई नहीं था, उसे बहुत मज़ा आ रहा था, पर वो ज्यादा तेज़ी से उसके पीछे आ रहा था, वहाँ ऐसा दृश्य हो गया था जैसे कि कोई जंगली रीछ किसी सफ़ेद मेमने को पकड़ने को दौड़ रहा हो, क्यूँकि शालिनी अति की गोरी और खूबसूरत थी और राजू हद से ज्यादा काला तो था ही उसके पूरे बदन पर बाल भी थे।
अब शालिनी लॉन में आ गई और वह फव्वारे की इर्दगिर्द घूम घूम कर उसे छकाने लगी और अब हंसने भी लगी थी, क्यूंकि उस भागते हुए नंग धडंद नौकर का कडक, और तना हुआ लंड भी उसके भागने से झूल रहा था जो उसे बहुत ही मजेदार लग रहा था और शालिनी के हंसने और उसे छकाने से वो नौकर भी आश्वस्त हो गया कि वो अपनी मालकिन के साथ कोई जबर नहीं कर रहा है !
और फिर वासना की मारी शालिनी खुद उसकी पकड़ में चल कर ही आ गई। उस नौकर की हिम्मत अब बहुत बढ़ गई थी, उसने भी उसे पकड़ कर सबसे पहला काम यह किया कि उसकी पेंटी को फाड़ कर अलग किया, ब्रा के भी दो टुकड़े कर डाले।
और घर की मालकिन शालिनी घर से बाहर खुले आसमान के नीचे पूर्ण निर्वस्त्र हो गई थी, और यह अहसास उसे बहुत बहुत अच्छा लग रहा था, उसने ब्रा और पेंटी के चीथड़े पास ही पड़े डस्टबिन में डाल दिए और अपनी बाहें राजू की ओर फैला दीं, राजू ने भी अब उसे एक नाज़ुक फूल की तरह से अपनी गोद में उठा लिया और विक्रम और बेताल की तरह से उसे अपने एक कंधे पर पटक लिया, शालिनी की लम्बाई भी काफी अच्छी है, तो उसके दोनों हाथ उसके चूतड़ों तक जा रहे थे और पैर उसके कड़क लंड को छू रहे थे।
शालिनी इस सारे खेल का पूरा मज़ा ले रही थी, उसे फिर शरारत सूझी, उसने उस कालू के चूतड़ों पर दो चार चांटे लगा दिए और पैरों के पंजे से उसका लंड जकड़ लिया।
राजू बिलबिला उठा और उसे छोड़ने को कहने लगा पर वो नहीं मानी तो उसने भी कस कस के शालिनी के नंगे चूतड़ों पर चांटे लगा दिए पर इसमें तो शालिनी को और मज़ा आया।
फिर राजू ने उसकी गांड में अपनी उंगली घुसाने की कोशिश की तब उसने उसे छोड़ा।
राजू शालिनी को लेकर फिर से बेडरूम में आया और पलंग पर पटक दिया।
शालिनी पसर कर लेट गई, और वो एकटक उसे देखता रहा।
वो बोली- अब और क्या देख रहा है साले? उस दिन बाथरूम में मुझे नंगी देख कर तेरा मन नहीं भरा क्या?
वो बोला- ऊपर खिड़की से सब कुछ तो दिख गया पर तेरी चूत बिलकुल नहीं दिखी थी।
उसके जवाब पर उसे हंसी आ गई, वो खिलखिलाते हुए बोली- ले तो अब देख ले मेरे कालू !
उसने अपने दोनों पैर ऊपर हवा में उठा कर पूरे चौड़े करके फैला दिए और उसकी छोटी सी प्यारी, चिकनी चूत की पंखुड़ियाँ खुल गई।
वो ये सब देख के हक्का बक्का रह गया और उसके फैले हुए पैरों के बीच बैठ गया और उसकी चूत को निहारने लगा और उसके पैरों और जांघों को सहलाने लगा।
शालिनी की बाईं जांघ पर चूत के बिलकुल पास एक गहरा क़ाला तिल भी था जो उसकी खूबसूरती को बढ़ा रहा था।
शालिनी ने अब उसे एक लात जमाते हुए कहा- कब तक घूरता रहेगा साले ! आज तो तू मुझे पूरा चख भी सकता है, खा भी सकता है, चल शुरू हो जा, ज्यादा वक्त भी नहीं है, देर रात तक सब लोग आ भी सकते हैं उस पार्टी से !
उसे भी यह बात समझ आ गई।
"ले साले, तू भी क्या याद रखेगा, चूम चाट जो करना है कर, मैं पड़ी हूँ तेरे सामने !"
और वो पागलों की तरह से उस सुन्दरी के बदन पर पिल पड़ा, उसे बेतहाशा चूमने लगा, चाटने लगा, उसका एक हाथ उसकी चूत पर था और वो उसे मसल रहा था, और दूसरे से उसका एक स्तन को कुचल रहा था, दूसरा स्तन उसके मुँह में था।
फिर वो बारी बारी से दोनों को चूसता रहा, और जो हाथ चूत पर था उसकी उंगलियाँ अब अंदर तक जा रही थी। शालिनी को बहुत मज़ा आ रहा था। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
फिर उसका मुँह उसके वक्ष से फिसलता हुआ उसके पेट और नाभि पर जा पहुँचा और उसकी चूत की ओर बढ़ने लगा।
शालिनी समझ गई कि अब राजू उसकी चूत खाने वाला है, वो एकदम से उठ गई- तुम्हें चूत खानी है मेरे कालू जी?
वो बोला- हाँ मैडम जी !
"तो ऐसे नहीं ! मैं खुद खिलाऊँगी तुम्हें !"
"ओके? अब तुम लेट जाओ !"
वो आज्ञाकारी तुरंत लेट गया, शालिनी उठी और उसके लंड की तरफ मुँह करके उसके ठीक मुँह के ऊपर अपनी चूत रख दी और इत्मिनान से बैठ गई, उस कालू ने भी अपना पूरा मुँह खोल कर उसकी चूत को अच्छे से अपने मुँह में ले लिया और शालिनी अब उसके बदन पर लेट गई और उसके भयंकर काले लंड को सहलाने लगी उसकी लंड की गोलियों से खेलने लगी और उसे कहा कि उसके चेहरे पर जो चूतड़ हैं वो उन्हें सहलाता-दबाता रहे अपने हाथों से !
वो शुरू हो गया !
शालिनी की गोरी गोरी गाण्ड की गोलाईयाँ बहुत मस्त थी, और इधर शालिनी ने उसका लंड अपने मुँह में ले लिया तो वो पागल हो गया।
और इधर शालिनी की चूत भी जवाब दे गई और अब कोई कारण नहीं था जो उन्हें चुदाई से रोक सकता था।
उसने शालिनी को उठा कर नीचे लिटाया और उसके पैर चौड़े करके उसकी निहायत गीली हो चुकी चूत पर अपना लंड रखा और अंदर तक घुसाता ही चला गया, शालिनी के मुँह से एक गाली के साथ भयानक चीख निकली- "साले हरामजादे, कुत्ते कमीने ! जोर से चोद, और जोर से आह आह ओह्ह आआआआह्ह्ह्ह मर गई ! मैं मर गई !"
और वो जोर जोर से अपने चूतड़ उछालने लगी और वो राक्षस की तरह उसे रौंदता रहा। फिर भी उसे बहुत मज़ा आ रहा था, वो पूरी आज़ादी से बेशर्मी से चुदाई का मज़ा ले रही थी। सब कुछ शालिनी की मर्ज़ी से हो रहा था। आज उसने "जो चाहा था वो सब पा लिया था !"
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गुदने की कीमत
दोस्तो मेरा नाम दीपिका है मैं दिल्ही की रहने वाली हु मेरा एक बॉयफ्रेंड है हम दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे दिवाली में मैं उसे एक सरप्राइज देना चाहती थी।
बड़ा प्यारा है वो! जब वह ‘मांगता’ है तो खुद को रोकना सचमुच मुश्किल हो जाता है। ऐसे प्यार से, ऐसा मासूम बनकर मांगता है कि दिल उमड़ आता है उस पर। लालची या फरेबी तो बिल्कुल नहीं लगता। मन करता है लुटा दूँ खुद को उस पर। ऐसा भी खुद को बचाकर क्या रखना। सभी तो इंजॉय कर रहे हैं। मेरी कितनी सहेलियां कइयों से ‘लिवा’ चुकी हैं, मैं ही क्यों वंचित रहूँ। सहेलियाँ मुझे बढ़ावा भी देती हैं। कहती हैं कैसा सुंदर है तेरा बॉयफ्रेंड; करवा ले न उसके साथ… कहीं छोड़ कर चला गया तो हाथ मलती रह जाओगी।
दोस्तों की बातों, और सबसे बड़ी मेरे बॉयफ्रेंड की बार-बार मनुहार, का असर रहा होगा कि इस बार दिवाली में मैंने उससे कह दिया, इस बार तुम्हें दिवाली में कुछ खास गिफ्ट करूंगी, तैयार रहो। उसने पूछा कि क्या गिफ्ट करूंगी तो मैंने कहा कि ऐसी चीज जो मैंने उसे कभी नहीं दी।
अब वह बेचारा समझ रहा है कि मैं उसे ‘दूंगी’। लेकिन मैं सोच रही हूँ कि कुछ ऐसा करूं कि उसको ‘फाइनल’ चीज देने से बच जाऊं और वह खुशी से गदगद भी हो जाए।
मैंने कुछ साल पहले एक कहानी पढ़ी थी मुझे उसमें गुदना गुदवाने का सीन बड़ा अच्छा लगा था। मैंने लेखक से पूछा भी था कि वह टैटू आर्टिस्ट दिल्ली में कहाँ रहता है। पर उन्होंने मुझे कुछ खास नहीं बताया। तब मैंने अपने से तलाश किया।
एक मिला, अभी नया ही काम शुरू किया था, मगर हाथ में सफाई थी। जवान बंदा था, मुझे थोड़ा डर लगा कि कहीं यह मुझे एक्सप्लॉयट न करे। पर सोचा मामला भी तो ‘वयस्क’ का है। अगर कुछ इसने करना चाहा तो देख लूंगी। देखने में खूबसूरत भी था।
मैंने उसे अपनी जरूरत बताई। बॉयफ्रेंड को सेक्स का मजा तो देना चाहती हूं मगर फ**** से बचना भी चाहती हूं, और यह मुझे दीवाली में गिफ्ट करना है। मैंने सोचा था कि दोनों स्तनों पर ही दीवाली से ताल्लुक रखता कोई संदेश टैटू करवाऊंगी। इस तरह मेरा ब्वायफ्रेंड मेरे स्तन देख लेगा और उनसे कुछ खेल भी लेगा।
लेकिन उस टैटू कलाकार का आइडिया इससे ज्यादा साहसी था। साहसी क्या, दुस्साहसी था। मैं संकोच में पड़ गई कि इतनी दूर पहली बार में ही जाना उचित होगा? भद्दा नहीं लगेगा? मैं कर पाऊंगी? लेकिन उसने मुझे आश्वस्त किया कि वल्गर नहीं लगेगा, कलात्मक ही होगा।
हैप्पी दिवाली का विश – सिर्फ छातियों तक ही क्यों? इससे तो वह धोखा खाया-सा महसूस करेगा। उसे लगेगा तुमने ऊपर ऊपर ही निपटा दिया। अगर गिफ्ट का मजा गाढ़ा बनाना चाहती हो तो और आगे जाओ।
सचमुच… मुझे भी लगा जहाँ वह पूरे सम्भोग की उम्मीद कर रहा है वहाँ केवल स्तनों तक ही सीमित रहने से बहुत फीका हो जाएगा। लेकिन टैटू कलाकार का आइडिया केवल जांघें खोलने तक का नहीं था, भगों को भी नंगा रखने का था। यह बहुत ही डेयरिंग था, पुसी भी दिखानी पड़ेगी। मैं कुछ देर ठिठकी, फिर बिंदास होकर उसका आइडिया कबूल कर लिया।
उसने मुझे दिवाली के ही दिन सुबह-सुबह आने को कहा, बोला कि मैं उसकी पहली ग्राहक हूंगी।
बाद में पता चला उस दिन मैं उसकी अकेली ही ग्राहक थी।
उसने मुझे बार-बार आश्वस्त किया कि मुझे निराश नहीं होना पड़ेगा।
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मैं दीवाली की सुबह बिल्कुल साफ-सुथरी, अंदर से सेंटेड होकर उसके पास पहुंची। उसने मुझे अंदर के बालों को मूड़ने से मना किया था। बोला था, बालों की ड्रैसिंग उसी दिन करेंगे। उसने मुझे बता ही दिया था मुझे उसके सामने बिल्कुल खुलकर, और अपने को बिल्कुल खोलकर बैठना पड़ेगा। उसके निर्देशानुसार मैं घाघरा पहन कर पहुंची थी।
पहुँची तो वह तैयार था, बाहर ही खड़ा इंतजार कर रहा था। नहाया-धोया, एकदम फ्रेश! मुझसे हाथ मिलाया और गुड मॉर्निंग बोला। पुरुष के नजर की यही तारीफ औरत को कमजोर कर देती है। अच्छा कोलोन वगैरह लगाकर महक रहा था।
क्यों न हो, एक सुंदर लड़की की पुसी के दीदार का दुर्लभ मौका मिल रहा था।
मैंने मुस्कुराकर उसके गुड मॉर्निंग का जवाब दिया।
अंदर जाकर उसने कुछ सामान्य बातें पूछीं जिन्हें करने का उसने मुझे पहले ही निर्देश दे दिया था। उसने मुझे तौलिया दिया और घाघरा उतारने देने को कहा। मैंने सोचा था शुरू में पैंटी पहने रहूंगी लेकिन उसने कहा कि बाद में पैंटी उतारते समय टैटू खराब हो जाएगी।
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मुझे खुद पर ताज्जुब हो रहा था कि कहाँ तो इतनी रूढ़िवादी हूँ कि ब्वायफ्रेंड को अभी तक स्तन भी देखने नहीं दिए, कहाँ यह मैं इस अनजान के सामने पूरी तरह नंगी हो रही हूँ। लेकिन मैं बिंदास थी। करना है तो करना है, बस!
लेकिन पैंटी उतारने के बाद ऐसी शर्म आने लगी कि रोयें खड़े हो गए। लीलाधर जी ने शालू की इस स्थिति के बारे में कुछ बताया नहीं था। मैंने सोचा था की मुझे वह गद्देदार मजेदार कुर्सी पर बिठाएगा। पर उसने मुझे टेबल पर चढ़कर पंजों पर ‘चुक्को-मुक्को’ बैठने का निर्देश दिया। छी, कितना बुरा लग रहा था जैसे इन्डियन टॉयलेट पर पॉटी करने के लिए बैठी हूँ।
बैठने पर तौलिया इस तरह उठ गया था कि नीचे सबकुछ खुल गया था। सोच रही थी, मैं ये क्या कर रही हूँ।
वह मेरी खुली टांगों के बीच कुर्सी लगाकर बैठ गया। तौलिया यूँ भी नामभर को था, उसको भी हटाकर उसने मेरी पुसी का ठीक से मुआयना किया। पेंसिल लेकर उसने दोनों जांघों पर बीच से बराबर दूरी रखते हुए निशान लगाए। कुछ निशान उसने भग-होठों के दोनों तरफ भी उसने लगाए। फिर उसने एक दूसरी पैंसिल लेकर लिखना शुरू किया।
पैंसिल की नोक चलने पर जांघ में गुदगुदी होने लगी। कुछ देर तक उस गुदगुदी के मारे स्थिर नहीं रह पाई। कुछ देर की प्रैक्टिस के बाद ही उसके लिखने लायक स्थिर हो पाई। जब वह मेरी बाईं जांघ पर लिख रहा था उस वक्त मैंने यथासंभव योनि होठों को और दाईं जांघ को तौलिये से ढक लिया था।
बाईं जांघ पर लिखने के बाद उसने मेरी दाई जांघ पर एक दूसरा शब्द लिखा। लिखने के बाद उसने मुझे आइना थमाया। बड़े अक्षरों में एक जाँघ पर ‘शुभ’ और दूसरी पर ‘दीपावली’ लिखा था- ‘शुभ दीपावली’ बड़ी कलात्मक लिखाई थी।
मानना पड़ेगा कि स्त्री की खुली योनि को देखते हुए भी कोई कलाकार होशो-हवास सलामत रखकर सुंदर लिखाई को अंजाम दे सकता है। लेकिन दोनों शब्दों के बीच योनि होठों और बालों की गहरी कालिमा तो अच्छी नहीं लग रही थी। मैंने कहा, इतना तो पैंटी पहनकर भी दिखाया जा सकता है? पुसी दिखेगी तो संदेश गंदा लगेगा, दीपावली की शुभता और पवित्रता का एहसास चला जाएगा।
लेकिन अभी उसका काम समाप्त नहीं हुआ था। उसने मेरे सवाल का कोई जवाब नहीं दिया। कई कलाकार एक बार तय कर लें तो टोका-टोकी पसंद नहीं करते। मैंने अभी तक अपनी पुसी पर तौलिये का कोना दबा रखा था। उसने उसे मेरे हाथों को हटा दिया और मेरी कमर से तौलिया खींच लिया। मैं ऊपर टी-शर्ट में लेकिन नीचे पूरी तरह नंगी थी और वह मेरी भगों में सीधे देख रहा था। गुदा का छिद्र भी उसे साफ दिख रहा होगा। मैं तो शरम से मर ही गई थी।
कुछ देर तक उसने उसका अच्छे से मुआयना किया। उसके बाद उसने उस्तरा उठाया और पेड़ू के बालों को धीरे-धीरे मूंड़ना शुरू किया। बाहर से अंदर होटों की ओर। रेजर से बालों के कटने की किर-किर आवाज अजीब और उत्तेजक लग रही थी। मूड़ते हुए क्रमशः होठों की ओर बढ़ते हुए उसने होठों के बाहर बाहर लगभग एक अंगुल चौड़ाई में बाल छोड़ दिए। होठों के किनारे-किनारे पौन इंच तक घने काले बालों का बॉर्डर और उसके बाद सफाचट गोरा मैदान। जैसे गेट के किनारों पर किसी ने घास की सजावट करके छोड़ दिया हो।
बैठे-बैठे मेरे पाँव थकने लगे थे और होठों व योनि में इन गतिविधियों से गीलापन आने लगा था। निश्चित ही उसे उसकी गंध मिलने लगी होगी। इसलिए मैं कुछ देर रुकने का समय चाहती थी।
वह उठा और बाथरुम चला गया, लगभग 5 मिनट बिताकर निकला। मुझे लग गया कि उतनी देर में वह बाथरूम में हाथ से अपनी उत्तेजना शांत करके आया है। उसके चेहरे पर लाली थी। फिर भी मुझे उस पर गुस्सा नहीं आया, बल्कि उल्टे मुझे अच्छा लगा।
उतनी देर में मेरी भी ‘गर्मी’ कम हो गई थी।
उसने फिर काम शुरु किया।
अब उसने कैंची से बालों को धीरे-धीरे कुतरना शुरु किया। उन्हें इच्छित लंबाई तक लाने के बाद ब्रश से कटे बालों को झाड़ दिया। अभी तक मुझे उसकी डिजाइन का कुछ खास आइडिया नहीं था। इतना जरूर मालूम था वहाँ कोई तस्वीर बनाने वाला है।
मुझे काफी गुदगुदी हो रही थी। उसने मुझे स्थिर रहने को कहा नहीं तो तस्वीर बिगड़ जाएगी। मैं जिस तरह बैठी थी, मेरे योनि के होठों की फांक उसकी नाक की सीध में खड़ी थी; ऊपर क्लिट से संकरे कोण से शुरू होकर होंठों के बीच कुछ दूर तक समान अंतर के बाद नीचे फैलते हुए चूतड़ों की फाँक।
उसने फाँक के दोनों तरफ जाँघों पर आधे-आधे दीपक की आउटलाइन खींची। अब मुझे समझ में आ गया वह क्या बना रहा है। सस्पेंस को बनाए रखते हुए उसने सुनहले रंग में कूची डुबोई और फाँक के किनारे किनारे बालों को रंगना शुरू किया। बालों पर हल्के हल्के ब्रश चलाते हुए उसने उन्हें इस तरह रंगा कि कुछ बाल काले रहें, कुछ सुनहरे।
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मैं मुस्कुरा रही थी। मुझे गुदगुदी के साथ-साथ उत्तेजना हो रही थी। योनि का गीलापन इतना बढ़ गया था कि होंठों के बीच लसलसा तार बन जा रहा था। उसने जब वहाँ तौलिया दबाकर सुखाया तो मेरे गीलेपन का खुला इकरार हो गया।
मैं सोच रही थी मेरे इतने दिन से प्रेम की प्यास में पड़ा हुआ बॉयफ्रेंड जिसे देख तक नहीं पाया है, उसे यह नामुराद खुलकर देख रहा है। देख ही नहीं, उसे छू और सहला भी रहा है। मन में ख्याल आया कि अगर यह उसे चूम ले, चाट भी ले तो कौन सी बड़ी बात हो जाएगी।
भगों में जिस तरह गुदगुदी और सनसनी हो रही थी उसमें कभी-कभी लगता था, काश यह हिम्मत करके ऐसा कर ही दे। मैं उसे हल्का-फुल्का डाँटकर छोड़ दूंगी और उसे करने दूंगी। लेकिन यह बंदा कुछ ज्यादा ही शरीफ था। शायद कलाकार का अपना मिजाज था कि जब वह रच रहा होता है तो हर लोभ-लालच से दूर होता है।
बालों को रंगने के बाद उसने उन्हें फूंक फूंक कर सुखाया। अब उसने ब्रश लेकर आउटलाइन के अंदर रंग भरना शुरू किया। उसकी कूची पुसी में ऊपर से नीचे घूमते हुए नीचे जाकर कभी कभी गुदा के छेद को भी छू जाती थी। बालों की उस छुअन से इतनी सुरसुरी होती थी कि मुझे उसे बीच-बीच में रुकने के लिए कहना पड़ता था।
आख़िरकार उसने योनि होठों की विभाजक रेखा के निचले हिस्से में दोनों चूतड़ों पर आधे-आधे दीपक बना दिए। जांघों को पूरी तरह फैलाए रखने में मेरी कमर और पांव बुरी तरह दुख गए थे।
चित्र पूरा करके उसने मुझे आइना पकड़ा दिया।
वाह… एक बहुत ही सुंदर कल्पना साकार हो रही थी। आइने में मैं देख रही थी कि एक एक जांघ पर ‘शुभ’ और ‘दीपावली’ लिखी थी और दोनों शब्दों के बीच जांघों के जोड़ में दीपक जल रहा था। योनि के हल्के खुले होठों के अंदर की लाली दिए की लौ के बीच की लाली बन गई थी और होंठों के किनारों पर के बाल लौ के बाहरी पीले-भूरे रंग। बालों में लगा सुनहरा रंग ऐसा लग रहा था मानो दिए की लौ से सुनहरी आभा बिखर रही हो।
उसने शुभ दीपावली की रेखाओं को रंगों से मोटा और गाढ़ा करके काम समाप्त कर दिया। कुछ देर यों ही बैठने के लिए कहा ताकि रंग अच्छे सूख जाएँ। उसने ब्लोअर से हवा भी लगा दी।
मैं उसे पैसे देने लगी तो उसने पैसे लेने से मना कर दिया। बोला कि पहले जिस काम के लिए टैटू बनवाया है वह काम कर लूँ। पसंद आया तभी पैसे लेगा।
“ऐसे ग्राहक रोज रोज नहीं मिलते इसलिए खास मन से काम किया है, आपके और ब्वायफ्रेंड को पसंद आएगा तो उसे अपनी कला की सफलता मानूंगा।”
मुझे अजीब लगा पर उसकी इच्छा देखते हुए बात मान ली।
शायद वह देखना चाहता था कि बॉयफ्रेंड को दिखाने के बाद मेरी क्या गत हुई… चुदी या नहीं। या शायद वह पैसे के अलावा मुझसे कुछ ‘एक्स्ट्रा’ पाना चहता था।
जो हो, बंदा भला था, काम के दौरान उसने किसी प्रकार की कोई गलत हरकत नहीं की थी, इसलिए मैं भी उसके प्रति कुछ उदार होने को तैयार हो गई। (वैसे इच्छा तो मेरी भी होने लगी थी।)
ब्वायफ्रेंड से मिलने जाते समय मन में शंकाओं-चिंताओं-रोमांचों के जितने पटाखे फूट रहे थे, वे इससे पहले की किसी भी दीवाली से ज्यादा थे। क्या होगा, कैसे दिखाऊंगी उसको, शुरुआत ही कैसे करूंगी। क्या सोचेगा वो? मुझे सस्ती या चालू तो नहीं समझ लेगा? हाय राम, क्या मैं सचमुच उसके सामने टांगें खोलूंगी? मगर अभी उस कलाकार के सामने अपने को मैं कैसे नंगी दिखा सकी? मैं सही दिमाग में तो हूँ न? पागल तो नहीं हूँ?
मैं गाड़ी में ठीक से बैठी भी नहीं कि रंग न उखड़ जाएँ हालाँकि उसने मुझे आश्वस्त किया था कि बैठने से या कपड़ों की रगड़ से या पानी लगने से चित्र नहीं छूटेगा। मिटाने के लिए खास द्रव से धोना पड़ेगा, उसके लिए मुझे उसके पास आना होगा।
मगर मन कहाँ मानता है; मैं कार सी सीट पर चूतड़ को आधा उठाए ही बैठी थी।
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ब्वायफ्रेंड से मिलने जाते समय मन में शंकाओं-चिंताओं-रोमांचों के जितने पटाखे फूट रहे थे, वे इससे पहले की किसी भी दीवाली से ज्यादा थे। क्या होगा, कैसे दिखाऊंगी उसको, शुरुआत ही कैसे करूंगी। क्या सोचेगा वो? मुझे सस्ती या चालू तो नहीं समझ लेगा? हाय राम, क्या मैं सचमुच उसके सामने टांगें खोलूंगी? मगर अभी उस कलाकार के सामने अपने को मैं कैसे नंगी दिखा सकी? मैं सही दिमाग में तो हूँ न? पागल तो नहीं हूँ?
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मैं गाड़ी में ठीक से बैठी भी नहीं कि रंग न उखड़ जाएँ हालाँकि उसने मुझे आश्वस्त किया था कि बैठने से या कपड़ों की रगड़ से या पानी लगने से चित्र नहीं छूटेगा। मिटाने के लिए खास द्रव से धोना पड़ेगा, उसके लिए मुझे उसके पास आना होगा।
मगर मन कहाँ मानता है; मैं कार सी सीट पर चूतड़ को आधा उठाए ही बैठी थी।
वह बाहर ही मेरा इंतजार कर रहा था। मैंने चलने से पहले फोन कर दिया था- आ रही हूँ। लेकिन मेरे पास वक्त बहुत कम है। तुरंत लौट जाऊंगी।
ऐसा मैंने अपना भाव बनाए रखने के लिए और अपनी सुरक्षा के लिहाज से भी किया था कि अगर सिचुएशन से बाहर निकलना पड़े तो आसानी हो।
मुझे देखते ही वह खिल पड़ा था; गाड़ी रुकते ही उसने मेरा दरवाजा खोला और तुरंत पूछकर ड्राइवर को पैसे दिए और बड़े मान से अपने कमरे में ले गया, बोला- आज दीवाली के दिन मेरे घर लक्ष्मी आई है।
वह एक पूजा की थाली लेकर आया और मेरे कपाल पर तिलक लगाकर मेरी आरती उतारने लगा।
“अरे ये क्या नाटक कर रहे हो?”
पर उसने मेरा मुँह बंद कर दिया- मुझे अच्छा लगता है। उसने थाली में से लेकर मुझ पर फूल की पंखुड़ियाँ बरसायी- मैं देवी लक्ष्मी की पूजा कर रहा हूँ।
मुझे बड़ी हँसी आ रही थी- तुम एकदम पागल हो। मालूम होता कि मुझे इतना बनाओगे तो नहीं आती।
पूजा समाप्त करके थाली रखी और मेरे दोनों कंधे पकड़कर बोला- देवी आज कुछ खास आशीर्वाद देने वाली हैं ना?
“हूँ…” मैंने गला खँखारा- देवी का आशीर्वाद पाने के लिए कंधे नहीं, चरण पकड़ने चाहिए, स्टुपिड!
वह झट मेरे सामने फर्श पर बैठ गया; मेरे पैर पकड़ने लगा तो मैंने रोक दिया, उसके सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया- तुम्हारा कल्याण हो वत्स!
वह मेरा मुँह देखता रह गया। बस इतना ही?
मुझे उस पर दया आने लगी लेकिन कुछ देर तड़पाने का मजा लेना चाहती थी।
“और भी देवियों से आशीर्वाद लिया?”
“किसी से नहीं, तुम पहली हो।”
“और दूसरी?”
“कोई नहीं, तुम्हीं आखिरी भी रहोगी… अगर…”
“अगर?”
“पूरे मन से आशीर्वाद दोगी।”
“हूँ… देखती हूँ तुम उतने बुद्धू नहीं हो!” कहते हुए मैंने अपना एक पैर उठाकर उसके एक कंधे पर रख दिया। मेरा घाघरा जमीन पर पड़े दूसरे पैर से थोड़ा ऊपर उठ गया। वह पैर के उस नंगे हिस्से को देखने लगा।
“क्या आशीर्वाद चाहिए, बोलो?”
उसने सिर उठाकर मुझे देखा और बोला- तुम… तुम खुद एक पूरी की पूरी आशीर्वाद हो।
“बहुत चापलूस हो। कुछ ज्यादा नहीं मांग रहे हो?”
“तुमने वादा किया था।”
वह फिर मेरे उस घाघरे से बाहर निकले पैर को देखने लगा। मैंने पैर के बालों की वैक्सिंग करा रखी थी, उंगलियों में नई नाखूनपॉलिश लगाई थी।
“मैंने सिर्फ दीवाली विश करने का वादा किया था, और कुछ नहीं।” कहते हुए मैंने दूसरा पैर उठाकर उसके दूसरे कंधे पर रख दिया।
उसके चेहरे पर निराशा सी आई; मुझे क्रूरता में आनंद आ रहा था, मैंने घाघरा को थोड़ा ऊपर खींचा।
“ठीक है, तो वही विश कर दो।” वह मेरा खेल कुछ कुछ समझने लगा।
कोई लड़की यूँ ही उसके कंधों पर दोनों पाँव नहीं रख देगी। उस स्थिति में वैसा करने से मेरा पूरा पेड़ू उसके चेहरे के सामने आ गया था, भले ही वह अभी घाघरे के अंदर था।
मैंने कहा- अब समय हो गया, मुझे जाना है!
उसने मेरे दोनों पैर पकड़ लिए। बचने के लिए मैंने घाघरे को पकड़ा तो घाघरा खिसककर घुटनों तक उठ गया। उसे अंदर मेरी नंगी जांघों की निचली सतह दिखने लगी होगी। मैं सहारा पाने का अभिनय करते हुए पीछे झुक गई।
“कहाँ जाओगी?” मेरा पैर कन्धों पर लिए ही वह उठ गया। और जो होना था वही हुआ। मैं बिस्तर पर पीठ के बल गिर गई, घाघरा सरककर मेरे पेट पर आ गया। यह सब एक क्षण में हो गया। मेरे दोनों टखने उसकी हथेलियों में थे और वह उन्हें फैलाए कमरे की जगमगाती रोशनी में उनके बीच में देख रहा था।
“माय गॉड!” वह आँखें फाड़े देखता रह गया- ये क्या है?
मैंने हिम्मत करके बोल दिया- शुभ दीपावली, डार्लिंग!
“मगर…!”
“क्या?”
“कुछ नहीं!” कहकर उसने गोता लगाया और सीधे बीच में दीपक को लौ पर मुँह लगा दिया।
मैं उछल पड़ी।
इसके पहले कि मैं उसे ऊपर खींच पाती उसने दनादन वहाँ पर दो-तीन चुम्बन और दाग दिए- चुस… चुस… चुस…
मैंने कहा- अरे, मुझे भी विश करो।
“शुभ दीपावली!” उसने हड़बड़ाकर कहा और ऊपर आकर मेरे होंठों पर आकर वह चूमने लगा। रंग और योनि की मिली-जुली गंध जो नई और उत्तेजक थी।
मैंने उसके चुम्बनों का जवाब दिया।
“बहुत सुंदर है, बहुत ही सुंदर… लेकिन…”
“लेकिन क्या?”
“इसे बनाया कैसे?” लेकिन मेरे जवाब का इंतजार किए बिना फिर से मुझे चूमने लगा। चूमते चूमते वह ‘कमाल का है, ‘अद्भुत’, ‘फैन्टास्टिक’ वगैरह कर रहा था।
मैं भी उसके भार के नीचे दबी उसके चुम्बनों का जवाब दे रही थी।
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वह मेरी टॉप पेट पर से ऊपर खिसकाने लगा, मैंने उसे रोका, वह टॉप के अंदर हाथ घुसाकर मेरी छातियाँ सहलाने लगा।
मर्द का यह जोर और आवेग मुझे अच्छा लग रहा था लेकिन लगा कि ऐसे उसको बढ़ने दिया तो चुद ही जाऊंगी, मैंने रोका- देवी से ऐसे जबरदस्ती करते हैं क्या? रुको।
जवाब में वह मेरे पेड़ू पर अपना पेड़ू रगड़ने लगा। योनि होंठों पर उसके पजामे के नीचे सख्त लिंग का दबाव महसूस होने लगा।
“रुको” मैंने उसे जोर लगाकर ठेला- आज के दिन कोई जबरदस्ती नहीं! कहाँ तो मुझ पर फूल छिड़कना, और कहाँ यह जबरदस्ती?
वह रुक गया। मैंने हँसकर उसकी ठोड़ी पकड़ी और नाटकीय आवाज में कहा- वत्स, आज तो देवी तुम्हें स्वयं आशीर्वाद दे रही हैं। हड़बड़ी क्यों करते हो?
मैंने उसे बिस्तर से दूर कुर्सी पर बैठने को कहा।
वह बेमन से वह जाकर कुर्सी पर बैठ गया।
मैंने अपनी टॉप का किनारा पकड़ा और सिर के ऊपर खींच लिया; अंदर मैंने समीज पहनी थी। सुबह पैंटीहीन रहने की विवशता देखते हुए आज मैंने ब्रा भी नहीं पहनी थी। ऐसे में चुद जाने का खतरा जबरदस्त था, मैंने कमान अपने हाथ में ही रखने के लिए कहा- वहीं बैठे रहना, नहीं तो चली जाऊंगी।
वह बोला- खुशी की बात में भी धमकी क्यों देती हो?
मैंने अपनी समीज उतार दी, मेरे नंगे स्तन देखकर वह दीवाना हो गया और उठकर मेरे पास आ गया। मैंने किसी तरह उसे ठेला; सचमुच यहीं पर छोड़कर घर चले जाने की धमकी दी। अब इतना शरीफ तो वह था ही कि जोर आजमाइश नहीं करता; मिन्नतें करने लगा- एक बार, बस एक बार छूने दो।
मैंने दया दिखाई तो उसने न केवल छूआ बल्कि सहलाया भी।
इसके बाद स्वाभाविक था कि वह चूमने की भी जिद करता। मैंने “बस इससे ज्यादा नहीं…” करते करते उसे अच्छा खासा चूमने और चूस भी लेने दिया। मैं समझ रही थी थी कि उसे सीमा के अंदर रखकर खुद को सम्हाले रखना है नहीं तो अपनी उत्तेजना के आगे मैं खुद मजबूर हो जाऊंगी।
स्तनों को छोड़ा तो मेरे फिर से मेरे भगों पर लपक गया। एक बार वहाँ का स्वाद ले चुका था। मैं वहाँ पर उत्तेजित होने से बचना चाहती थी हालाँकि उत्सुक भी थी क्योंकि सारी तैयारी तो मैंने उसी में की थी। वह जांघों पर लिखी ‘शुभ’ और ‘दीपावली’ को छोड़कर बीच में दीपक को ही देखे जा रहा था। उसने भगोष्ठों के किनारे-किनारे बालों के तटबंध में उंगली फिराई और फिर बीच कुंड में उंगली डुबो दी। उसने उसमें उंगली चलाई और निकालकर मुँह में चूस लिया। देखकर ही मेरी योनि मेंढक की तरह फुदकने लगी।
अब अगर इसने फिर से उसमें मुँह लगाया तो मैं तो गई। वह चाटने के लिए झुका तो मैंने जांघें बंद कर लीं। मेरे अंदर से द्रव की लहर-सी उठकर होंठों के बीच छलछला गई। मैं आँखें मूंदकर बदन में हो रही आनंददायी सिहरन को महसूस करने लगी।
वह मंत्रमुग्ध मुझे देख रहा था, बोला- ये क्या था, तुम क्लाइमेक्स कर रही थी क्या?
मैं उठकर बैठ गई- अब चलती हूँ।
मुझे अपनी वैल्यू बनाए रखनी थी। वह मेरा प्रेमी था।
“लेकिन…” उसका सवाल फिर उपस्थित हो गया, चेहरे पर वही शिकन- ये दीया वहाँ आया कैसे? तुम तो खुद नहीं बना सकती।
“नहीं।”
“किसी से बनवाया है।”
“हाँ, एक टैटू कलाकार से!”
“तो तुमने उसे अपना सब कुछ दिखाया? बल्कि उसे…” उसके अंदर दबी अधिकार भावना अब उभर रही थी।
“ये तुम्हें अब याद आया?”
वह चुप रहा। कैसे बोलता कि उस समय मजा लेने की जल्दी थी।
“मुझे तो कभी छूने तक नहीं दिया और अचानक से एक बाहरी आदमी के सामने सब कुछ?”
“यह सब मैंने तुम्हारे लिए किया।”
“मगर ये तो गलत है।”
“मैं ऐसी ही हूँ। और शादी के बाद भी ऐसी ही रहूंगी।”
बोलते ही मुझे खुद पर बड़ा गुस्सा आया कि ये शादी की बात क्यों मुँह से निकली।
“आई थी यह सोचकर कि आज तुमको ग्रेट तोहफा दूंगी। यूनीक और डेयरिंग। लेकिन तुम भी दूसरे लड़कों की तरह ही निकले। इतनी मुश्किल से यह पेंटिंग बनवाई और तुम…” बोलते मेरी आँखें लरज गईं।
मैंने अपनी समीज पहनने के लिए उठा ली।
उसने मेरे हाथों में समीज पकड़ ली- तो वह ग्रेट तोहफा दे दो ना, मैं कब से इंतजार कर रहा हूँ।
“मेरा जो मन था वह मैंने अपनी मर्जी से दिया, कोई परवाह नहीं की; अब और नहीं; छोड़ो।” मैंने उसके हाथों से खींचकर समीज पहन ली।
उसने मेरा टॉप अपने कब्जे में ले लिया- प्लीज, मान जाओ, मैं सॉरी बोल रहा हूँ ना।
“मेरा टॉप दो।”
“प्लीज…”
“कोई फायदा नहीं।”
समीज में मेरे स्तन ढक चुके थे और मैं एक हद तक सुरक्षित थी।
उसने मुझे आलिंगन में लेने की कोशिश की।
“तुम मेरे साथ जबरदस्ती करोगे?”
“नो नो, आय लव यू… मुझे माफ कर दो!”
मैं गुस्से से खड़ी हो गई- तुमने मुझे क्या समझ रखा है? रण्डी? मेरे कपड़े मुझे दे दो!
वह डर गया। मैंने उसके हाथ से टॉप ले लिया, टॉप पहनी, घाघरा ठीक किया, जूते पहने और चलने को हुई।
“जस्ट एक मिनट रूक जाओ, मेरी बात सुनो।”
“बोलो?”
“कोई और तुम्हें अंदर के हिस्से तक देखे तो बुरा लगना स्वाभाविक है। तुम यूँ ही आतीं तो मुझे अच्छा लगता।”
“अभी तो हमारे बीच कुछ हुआ नहीं, और तुम इतना पजेसिव हो रहे हो? उधर उस कलाकार ने मुझे गलत इरादे से छुआ तक नहीं। तुम जो और और बातें सोच रहे हो, वह तो बहुत दूर की बात है। मुझे सफाई नहीं देनी पर तुम्हारा भ्रम दूर करने के लिए बोल रही हूँ।”
वह कुछ आश्वस्त सा हुआ, बोला- देखो मैं तुम्हें खो नहीं सकता! आय लव यू!
मेरे अंदर आग की तेज लपट-सी उठी, मैंने कहा- मैं जा रही हूँ। उसी कलाकार के पास। इस बार जो तुमसे नहीं कराया वह कराने। टु गेट प्रॉपर्ली फक्ड। उसके बाद भी तुम्हारा मन होगा तो बोलना आय लव यू।
वह आँखें फाड़े मुझे देखता रह गया, मैं बाय कहकर निकल पड़ी।
कहानी जारी रहेगी
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Great... What a bold step.
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29-11-2019, 10:09 AM
(This post was last modified: 29-11-2019, 10:11 AM by usaiha2. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
बाहर मैंने टैक्सी रुकवाई और बैठ गई। मैंने ड्राइवर को तेज गाड़ी चलाने कहा। मैं आवेश में थी, क्या बोल गई। इतना बेशरम मैं कैसे हो सकती हूँ? क्या सोचकर आई थी और क्या हो गया। उसने मेरी भावनाओं और इतने सुंदर आर्ट की कद्र नही की।
खिड़की से बाहर खंभे, मकान, पेड़ आदि तेजी से गुजर रहे थे। मैं भी इस गाड़ी की तरह आज कितनी ही चीजों को पीछे छोड़ते आगे बढ़ी जा रही थी। कहाँ तो एकदम परम्परागत लड़की थी – शादी से पहले नो किसिंग, न हगिंग, फकिंग तो बहुत दूर की ही बात थी। लेकिन आज एकबारगी न सिर्फ टैटू वाले के सामने टांगें खोलकर चूत पर चित्र बनावाया बल्कि अपने ब्वायफ्रेंड, जिसको लाख मनाने के बावजूद अपनी छातियों को महसूस भी न करने दिया था, उससे बूब्स और पुसी दोनों को चुमवा और चुसवा भी लिया।
लेकिन उसने मेरी हिम्मत और लगाव को किस रूप में लिया? मुझे बार-बार आँखें पौंछनी पड़ रही थी।
कलाकार की दुकान को देखकर मैं चौंकी कि मैं सचमुच यहीं आ गई। मैंने गुस्से में टैक्सी वाले को यहीं का पता दिया था।
मुझे देखते ही खड़ा हो गया- अरे तुम? इतनी जल्दी? वहाँ गई भी या नहीं?
“मैं वहीं से आ रही हूँ।”
“ओके, गुड” उसने मुझे इज्जत से बिठाया और बोला- “वेलकम अगेन!
“कैसा रहा?”
“वंडरफुल, फैंटास्टिक…”
“तुमने कर लिया?”
“हाँ।”
“लेकिन तुमने बहुत जल्दी निपटा लिया? मजा आया तुम्हें?”
इस सवाल में उसका अपना मतलब भी निकलता था। निकलने दो, कौन ये मेरा प्रेमी है। प्रेमी ने तो फूल बरसाए और फिर अपमानित किया। यह क्या करेगा? करने दो जो करता है। मेरी नजर उसकी पैंट में चेन के पास चली गई।
आज मैं अपने बॉयफ्रेंड का वो भी देखना चाहती थी, उसका मौका ही नहीं आया।
मैंने कहा- हाँ और नहीं दोनों।
“अरे! ऐसा कैसे?”
“तुम अब ये टैटू मिटा दो।” कह कर मैं उसी टेबल पर जा बैठी जिस पर गुदना बनवाया था।
“वहाँ नहीं, यहाँ बैठो” उसने मुझे अपनी सुंदर गद्देदार कुर्सी पर बैठाया।
“वो खास तौर पर दीवाली का गिफ्ट है। कम से कम आज भर तो रखो। वैसे भी मुझे अपने आर्ट को इतना जल्दी रिमूव करने में दुःख होगा।”
मैं उसके चेहरे को देखती रह गई; क्या बोल रहा है, इसको आज फिर से मेरी पुसी देखने का मौका मिल रहा है और यह उसे छोड़ रहा है। कह रहा है अपने आर्ट को रिमूव करने में दुख होगा। मेरे प्रेमी ने तो ठीक से देखा तक नहीं और तुरंत उस पर मुँह लगा दिया और यह उतनी देर तक देखकर भी अविचलित रहा। दुबारा आई हूँ तब भी फायदा उठाने की चिंता में नहीं है। आर्ट की कद्र करने को कह रहा है।
मैंने सिर झुका लिया, मेरी आँखें डबडबाने लगीं।
उसने मेरे कंधे थपथपाए, मेरे हाथ से आँसुओं से भींगा रुमाल लेकर सूखने के लिए फैला दिया।
“नैस हैंकी…” उसका इतना अधिकार दिखाना और अप्रत्यक्ष तारीफ करना मुझे अच्छा लगा।
“अगर तुम्हें बुरा ना लगे तो मैं पूछ सकता हूँ कि क्या हुआ? तुमने कहा कि एंजॉय किया भी और नहीं भी किया?”
मैंने शब्दों के लिए अटकते अटकते उसे संक्षेप में घटना कह सुनाई।
घटना ही ऐसी थी।
मैंने उसको ब्वायफ्रेंड को बोली हुई अंतिम बात नहीं बताई कि उसी कलाकार के पास फिर से जा रही हूँ ‘टू गेट प्रोपरली फक्ड…’
मेरी बात सुनता हुआ वह नॉर्मल रहा। लेकिन साथ ही मैंने नोटिस किया कि उसकी पैंट में उभार लगातार बना रहा था, उसे अपने मनोभावों पर नियंत्रण करना आता था।
“तुम कितनी अच्छी लड़की हो… उसने तुम्हारी कद्र नहीं की!”
“अब क्या फायदा… मिटा दो इसे!”
“ना.. नहीं… बल्कि मैं तो इसे और सुधारना चाहता हूँ!”
“वो क्यों?”
“यह तुम्हारा फैसला था, तुम्हारी उसके लिए वेल विशिंग थी… यू लव्ड हिम, इसलिए तुमको सॉरी फील नहीं करना चाहिए।
बल्कि तुम्हें इसकी खुशी मनानी चाहिए.”
मुझे लग रहा था कि यह मुझे फिर से वहाँ पर देखना करना चाहता है, मैं सोचने लगी।
“क्या तुम फिर से मुझे वहाँ पर देखना चाहते हो?” मैंने पूछ ही लिया।
वह हँस पड़ा, “यू आर सो इन्नोसेंट!”
इसका मतलब क्या हुआ? मैं सोच में पड़ गई। क्या मैं बेवकूफ हूँ? ऐसे काम करने वाली लड़की बेवकूफ न होगी तो क्या होगी।
वह गया और अपनी पेंसिलें कूचियाँ ले आया। मेरे पैरों के पास एक पिढ़िया रखकर बैठ गया। इस बार उसका नीचे बैठना भी खास मकसद का लगा।
उसने मेरे पैर उठाकर कुर्सी की सीट पर ही मेरे नितम्बों के पास रख दिए।
मैंने अपना मोबाइल चेक किया। स्क्रीन पर कोई मिस्ड कॉल का नोटिफिकेशन नहीं था। कहीं साइलेंट तो नहीं है? नहीं, रिंग का वॉल्यूम फुल था।
कलाकार मेरी ‘उस’ जगह को गौर से देख रहा था। मैंने कुर्सी की बैकरेस्ट पर सिर रख दिया। होने दो जो होता है। आज दीपावली है। मैरी कैसी दीपावली मन रही है! मुझे पेंसिल की चुभन महसूस हुई। मैंने आँखें मूंद लीं। माता लक्ष्मी, मुझे माफ करना।
पेंसिल की नोक की चुभनें, ब्रश की सरसराहटें, कभी कभी कुछ रगड़ना मैं इन सबको महसूस करके भी जैसे नहीं कर रही थी।
चित्रकार ने ज्यादा समय नहीं लिया।
“ये रही तुम्हारी तस्वीर!” उसने मुझे आइना दिया. मैंने देखा, ‘शुभ’ और ‘दीपावली’ शब्दों के नीचे उसने एक एक कलश और स्वस्तिक का निशान बना दिया था।
मुझे लगा, यह भी ज्यादा हो गया। मैं इतनी शुभ कहाँ थी- तुम मुझे ओवररेट कर रहे हो! आय एम ए चीप गर्ल!
“नेवर से सो (ऐसा हरगिज मत कहना)”
मेरे मोबाइल की घंटी बजी, लपककर मैंने उठाया, उसी का फोन था। इतनी देर लगी उसे फिर से फोन करने में! मैंने फोन काट दिया।
वह मुझे देख रहा था- मेरी पुसी से लेकर चेहरे तक, एक सीध में। जलती हुई लौ के अंदर मेरी योनि। उसके दोनों तरफ स्वस्तिक और कलश के शुभ के प्रतीक।
“इसे एक दो दिन तक जरूर रखना!” कहता हुआ वह उठने लगा।
मैंने उसके कन्धे दबा दिये, वह पुनः बैठ गया।
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मैंने उसका सर पकड़ा और अपनी ओर झुकाकर धीरे धीरे जांघें बंद कर लीं। वह कुछ कहना चाहता था मगर सामने आते चित्र को देखकर चुप रहा। एक क्षण के लिए मेरे भगों पर उसके मुँह का दबाव महसूस हुआ और मैंने जांघें अलग कर लीं। उसने जरूर समझा होगा कि मैं उसे चाटने को बोल रही हूँ लेकिन मैंने उसका चेहरा हटा दिया तो वह मुझे सवालिया निगाह से देखने लगा।
मैंने आइना उठाकर उसके सामने कर दिया, देखकर वह मुस्कुरा पड़ा, कच्चे गीले रंग से उसके दोनों गालों पर उभर आए थे स्वस्तिक और कलश के निशान।
“शुभ दीपावली” मैंने कलाकार को कहा।
“वेरी वेरी हैपी दीपावली!” उसने खुश होते हुए कहा। वह घुमा घुमाकर अपने चेहरे को आइने में देख रहा था- तुम भी किसी कलाकार से कम नहीं हो!
“मैं भी इसे दो एक दिन तक ऐसे ही रखूँगा.”
“अजीब नहीं लगेगा? लोग क्या कहेंगे?”
उसने मेरी आँखों में देखा और ना में सर हिलाया।
मैं उसके गाल पकड़कर उसकी आँखों में देखने लगी। मुझे कैसा तो महसूस हुआ। उसे देखते देखते ही मैंने आँखें मूंद लीं। पीछे लद गयी और पुनः सिर पीछे टिका लिया। सिर पीछे करते ही योनिस्थल कुछ और आगे बढ़ गया।
कुछ ही क्षणों में मुझे वहाँ पर गर्म साँस का स्पर्श महसूस हुआ।
आश्चर्य! उसका सिर तो बहुत पहले से मेरी पुसी के करीब था। लेकिन सांस पर मेरा ध्यान अब गया था।
और अगले क्षण ही ठीक होंठों की फाँक में एक छुअन। बेहद हल्की, बेहद सरसरी तौर पर। लेकिन उतने में ही मेरी जाँघें थरथरा सी गईं। मुझे लगा, मेरी योनि की ‘पलकें’ खुल गई हैं जबकि आँखों की पलकें बंद हैं।
खुली पलकों के भीतरी किनारों पर वह छुअन एक साथ आई थी। यह क्या थी? होंठ या जीभ?
“मैं तुम्हारा शोषण तो नहीं कर रहा हूँ?” उसका प्रश्न मेरे कानों में पड़ा।
“तुम बहुत अच्छे मनुष्य हो…”
“वेरी केयरिंग एंड…”
“एंड…?”
“खूबसूरत जवाँ भी” हिम्मत करके मैंने कह दिया।
कुछ देर तक कुछ नहीं हुआ, मैं प्रत्याशा में सांस लेती छोड़ती रही।
उसने मुझे मोबाइल पकड़ाया, थरथरा रहा था, मैंने अनिच्छा से देखा, उसी का फोन था।
इच्छा हुई काट दूँ, पर हेल्लो कर दिया.
“तुम कहाँ हो? तुम्हारे पीजी में गया, तुम वहाँ नहीं थी।”
मैं कुछ नहीं बोली।
“प्लीज, बोलो ना… मैं सॉरी बोलता हूँ, बोलो ना?”
मुझे गुस्सा आया, मैंने फिर काट दिया।
“तुम करो” मैंने कलाकार को कहा।
वह हिचकता रहा- आर यू श्योर?
“तुम्हें बुरा लगता है तो छोड़ दो।”
“आई लव इट…” उसने अपने होठों पे जीभ फिरायी।
“तो करो ना…”
फोन फिर थरथराया- ओफ्फ! क्या है?
“प्लीज फोन बंद मत करना। सॉरी सॉरी सॉरी, तुम कहाँ हो?”
एक चुम्बन मेरे (भग) होठों पर पड़ा; आ…ह।
“मैंने तुम्हें बता दिया था.” मैंने फोन में कहा।
“उसी टैटू वाले के यहाँ?”
दूसरा चुम्बन – होठों के मध्य से ऊपर।
“क्या करोगे जानकर?” मैंने अपने गुस्से पर काबू पाने की कोशिश की।
“प्लीज, बोलो ना।”
“हाँ… और कुछ कहना है?”
“क्या कर रही हो वहाँ?”
उस वक़्त मैं तीसरा चुम्बन प्राप्त कर रही थी, उसकी घबराहट पर हंसी आई।
तभी उसने कहा- आई लव यू!
और मेरा गुस्सा फिर भड़क गया- जानना चाहते हो क्या कर रही हूँ? फोन मत बंद करना, चालू रखो।
मैंने सर उठाकर देखा, कलाकार का सर झुका हुआ था।
चौथा चुम्बन होठों के मध्य से नीचे आया, वहाँ जरा और खुली हुई फाँक में घुसकर… और यह मीठा था। मैंने फोन में सुनाने के लिए जरा जोर से आह भरी- आ….ह…!
“क्या कर रही हो?” उसने फोन में पूछा।
जवाब में पुनः मैंने आह भरी।
चुम्बन की चोट खाली नहीं जा सकती थी।
अगली बार और अन्दर की कोमल सतहों पर चाट… मेरी और बड़ी कराह!
“क्या कर रही हो, बोल ना?”
“मैंने बताया था।”
“नहीं मालूम, बोलो ना?”
“मुझे परेशां मत करो… बस सुनते रहो!” कहते कहते मेरे मुँह से सिसकारी निकल गयी, मेरी भगनासा पर उसने जीभ फिरा दी थी।
मेरी आहों और सिसकारियों का सिलसिला बढ़ता जा रहा था। उसे स्त्री केंद्र को चूमना चाटना आता था।
“कहाँ पर हो? कौन सी जगह है?”
उत्तर मैंने अपनी आहों और कराहों से दिया।
“बताओ ना कौन जगह है?”
“फोन बंद कर रही हूँ।”
“प्लीज… सिर्फ जगह बता दो… प्लीज।”
मैंने कलाकर से कहा- वह जगह पूछ रहा है।
कलाकार ने पूछा- कोई प्रॉब्लम तो नहीं करेगा?
उसके मुँह के आसपास मेरा गीलापन चमक रहा था।
“पता नहीं!” मैंने कहा।
“मेरा एड्रेस फॉरवर्ड कर दो। मैं नहीं डरता.”
वह फिर चाटने लगा।
मैंने उसे रोका और एड्रेस फॉरवर्ड कर दिया; मैं उसे जलाना और दण्डित करना चाहती थी।
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कलाकार ने मेरे हाथ से फोन लेकर रख दिया और पुनः भक्ति भाव से काम में लग गया। मुझे बहुत अच्छा फील हो रहा था, पता लग रहा था क्यों मेरी सखियाँ इसके लिए बार बार कहती थीं।
“वो आकर मार-पीट तो नहीं करेगा?”
“बड़ा पोजेसिव है!”
लेकिन उसके इसी स्वामित्व भाव की तो मैं उसे सजा देना चाहती थी।
“आ…ह…!” मैंने अपने पेडू को और आगे ठेलने की कोशिश की। मेरी मुड़ी हुई टांगें दुखने लगी थीं। लेकिन इस आनन्द के सामने ये दर्द क्या था!
“आ…ह!”
वह दबाव के साथ कुरेद रहा था। कोमल होंठों और जिह्वा की ये रगड़ अद्भुत थी।
“आह आह आह! कुछ और बढ़ो यार!”
मेरी भगनासा को उसने जड़ के आसपास से घेरा और होंठों के नीचे दांत छिपाकर कचड़ दिया।
“अरे ब्बा…..!” मैं घबरा सी गयी।
उसने भगनासा को छोड़ दिया, मुझे रहत मिली।
उसने ये क्रिया फिर से दुहराई, लेकिन इस बार उसने भगनासा को छोड़ा नहीं, बल्कि जोर जोर चूसने लगा। आनन्द पीड़ा में बदल गया और मैं उससे निकलने के लिए छूटने लगी। आह आह आह आह… मैं रोने के जैसी कर रही थी। मैंने उसे छोड़ने के लिये कहा तो उसने मेरे नितम्ब पकड़ लिए।
मैंने अंतिम जोर लगाया- ओ…ह, छोड़ो!
उसने छोड़ दिया।
पहला चरम सुख!
मैंने धीरे धीरे आँखें खोलीं, नजर डबडबा गयी, आंसू निकल आए थे।
वह मेरी आँखों में देख रहा था।
उसने मेरा रुमाल लिया और मेरी आँखें पौंछीं, झुककर मुझे चूमा।
मेरी इच्छा हुई कि थैंक्स बोलूँ। अपनी योनि की गंध उसके मुँह पर पाकर शर्म आई और अच्छा लगा।
“चलो अब चलें… वो कभी भी आ सकता है…”
मैं यही तो चाहती थी, बॉयफ्रेंड से बदला लेना।
मैं उसकी कमर के बटन खोलने लगी।
“तुम करना चाहती हो?”
जवाब में मैंने उसकी चेन खींच दी। एक ये है, इस अवस्था में भी यह मुझसे पूछ रहा है कि चाहती हूँ कि नहीं। एक वो है, मेरा बॉयफ्रेंड… जबरदस्ती कर रहा था।
कितने अलग हैं दोनों!
मैंने उसकी पैंट को कमर से नीचे खिसका दिया। चड्डी में बहुत बड़ा उभार था, पता नहीं, इस मामले में कैसे हैं दोनों।
उसने पैंट पैरों से बाहर निकल लिया। मैं चड्डी के अन्दर की वस्तु के प्रति डरी हुई थी। पता नहीं कितना बड़ा है।
वह मेरा इन्तजार कर रहा था- तुम निकालो इसे!
आख़िरकार मैंने हिम्मत करके उसकी कमर में उंगलियाँ फंसाईं और झटके से नीचे खींच दी, उछलकर लिंग बाहर आ गया।
बाप रे… उस बॉयफ्रेंड के लिए मेरा गुस्सा और बढ़ गया; उसकी खातिर मुझे इतना बड़ा अपने अंदर लेना पड़ेगा।
कलाकार ने मेरे टॉप को उतारने के लिए पकड़ा। अब ये मामला प्यार का होता था, मैं ब्वायफ्रेंड से प्यार का बदला नहीं लेना चाहती थी, उसने मेरे साथ विश्वासघात नहीं किया था। उसने मेरे साथ सेक्स करने की कोशिश की थी। मुझे सेक्स का ही बदला लेना था, मैंने कलाकार को रोक दिया- रहने दो।
मैंने कलाकार के चेहरे को पकड़कर उसे चुम्बन दिया। चुम्बन उसकी कला-प्रतिभा, सज्जनता और शालीनता के लिए थे। फिर चुम्बन, फिर चुम्बन, और क्रमशः लम्बे होते चुम्बन। इस सुख को अपने ब्वायफ्रेंड से पति के रूप में सुहाग सेज पर पाना चाहा था।
मैं उसको मन में दिखाती हुई और जोर से चुम्बन ले रही थी।
मैंने कलाकार की कमर अपनी तरफ खींची। उसका लिंग अब तक मेरे योनि होंठों को कभी छू, कभी अलग हो रहा था। मैंने उसे अपने पर दबा लिया।
दरवाजे पर दस्तक हुई।
“कम इन।”
“दरवाजा खुला है?” मैंने कलाकार से पूछा।
“यस, इट्स ओपन!” कलाकार ने लिंग को दाहिने बाएँ हिलाकर मेरे योनि द्वार को ढूंढते और उस पर लिंग को सेट करते हुए कहा।
“तब भी तुम इतना कर गए? डर नहीं लगा?”
“सिर्फ तुम्हारे लिये… अगर तुम्हें डर नहीं लगा तो मुझे कोई डर नहीं?”
“क्या कोई लड़की ग्राहक यहाँ आई है?” ब्वायफ्रेंड की ऊँची आवाज बाहरी कमरे से आई।
हम दोनों में से कोई नहीं बोला… खुद आएगा।
“दीपिका, यहाँ हो?” कहता हुआ वह अंदर आया।
मैंने कलाकार की कमर पकड़ ली; वैसे भी उसे बढ़ावा देने की जरूरत नहीं थी, उसने धक्का दिया, लिंग होंठों के पार हो गया।
स्स्स… मैंने दाँत पर दाँत रख लिये। पहला खिंचाव! ओह…!
“ये क क्क क्या कर रही हो!!!” विस्मय से उसकी आवाज हकला सी गई।
कलाकार शायद मुझे फैलने देने के लिए रुकना चाहता था। मैंने उसे लगातार दबाते रहने के लिए प्रेरित किया।
“क्या यह तुम्हारा पहली बार है?”
पता नहीं मैंने उसे बताया था कि नहीं… पर इस सवाल में उसके पौरुष की घोषणा थी। मेरे प्रेमी के सामने मुझसे पूछ रहा था- इज दिस योर फर्स्ट टाइम?
उसके गालों पर मेरे स्वस्तिक और कलश चमक रहे थे।
मेरा ब्वायफ्रेंड स्तम्भित खड़ा था। अवाक! कलाकार के गालों, उसके नंगे नितम्बों और मेरी खुली जांघों को देखता।
“हाँ…” मैंने कहा।
फिर मैंने ब्वायफ्रेंड से पूछा- क्या तुम मुझे प्यार करते हो?
“दीपिका, प्लीज…” उसके बोल फूटे।
“किक मी हार्ड बास्टर्ड…!” मैं कलाकार पर चिल्लाई
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